Proverbs

1:1 दाऊद क पूत अउ इस्राएल क राजा सुलैमान क नीतिवचन (कहावतन)। 2 इ सबइ बातन क मनइ क बुद्धि क पावइ, अनुसासन क ग्रहण करइ, जेनसे समुझ स भरी बातन क गियान होइ, 3 मनई धरम स पूर्ण, निआव स पूर्ण सत्तय स पूर्ण क करम करइ क विवेकसील अउर अनुसासन मँ रहइ क जिन्नगी पावइ, 4 सहल सोझवाले लोगन क इ सिखावाइ बरे कि विवेकसील जिन्नगी कइसे बिताइ जाइ, अउर जवान लोगन क गियान अउर बुद्धीमत्ता सिखावइ बरे, लिखा गवा अहइँ। 5 बुद्धिमान लोगन क ओनका सुनिके आपन बुद्धि अउर समुझदारी बढ़ावइ द्या। 6 एह बरे लिखा गवा, ताकि मनई नीतिवचन, गियानी क दृष्टान्तन क अउर पहेली भरी बातन क समुझ सकइँ। 7 यहोवा क डर मानब गियान क प्रारम्भ अहइ। मुला मूरख जन तउ बुद्धि अउ सिच्छा क निरर्थक मानत हीं। 8 हे मोर पूत, आपन बाप क सिच्छा पइ धियान द्या अउर आपन महतारी क नसीहत क जिन बिसरा। 9 उ पचे तोहार मूँड़ सजावइ क मुवुट अउ सोभा स जोरइ तोहरे गले क हार बनिहीं। 10 हे मोर पूत, अगर पापी लोग तोहका बहलावइ फुसलावइ आवइँ ओनकर कबहुँ जिन मान्या। 11 अउर अगर उ पचे कहइँ, “आवा हमरे संग। आ, हम पचे कउनो क घाते मँ बइठी। आ, निदोर्ख पइ छुपिके वार करी। 12 आ, हम पचे ओनका जिअत ही सारा क सारा लील जाइ वइसे ही जइसे कब्र लील लेत हीं। जइसे खाले पाताल मँ कहूँ फिसरत चला जात ह। 13 हम सबहिं बहोत कीमती चिजियन पाइ जाब अउर आपन इ लूट स घरवा भरि लेब। 14 आपन भाग्य क पाँसा हम लोग आपन बीच लोकावा, हम पचे सामुहिक बटुआ क सहभागी होब।” 15 हे मोर पूत, तू ओनकर राहन पइ जिन चला, तू आपन गोड़ ओन लोगन क राहे पइ जिन रखा। 16 काहेकि ओनकर गोड़ बुराई क ओर बढ़त हीं। उ पचे रकत बहावइ क बहोत सन्नध रहत हीं। 17 उ समइ जाल क फइलाना केतना बेकार अहइ जबकि पंछी पूरी तरह स लखत हीं। 18 जउन कउनो क रकत बहावइ क इंतजार मँ बइठा अहइँ उ पचे अपने आप जालि मँ फँसि जइहीं। 19 उ सबइ जउन बेइमानी क धन हासिल करइ क जतन करत ह उ पचे आपन जिन्नगी उहइ मँ खो देत हीं। 20 बुद्धि, गलियन मँ गोहरावत ह, उ सर्वजनिक जगहन मँ आपन आवाज उठावत ह। 21 सोर स भरी गलियन क नोवकड़ पइ गोहरावत ह, सहर क फाटक पइ आपन भासण देत ह: 22 “अरे नादान लोगो! तू कब तलक आपन नादानी स पिरेम करत रहब्या? हँसी ठटाकरइवालो, तू कब तलक ठटा करने मँ आनन्द लेब्या? अरे मूखोर्, तू कब तलक गियान स घिना करब्या? 23 अगर मोर फटकार तोह पइ असर डावत तउ मइँ तोह पइ आपन हिरदय उड़ेर देत अउर तोहका अपने सबहिं विचार देखाइ देतेउँ। 24 “मुला काहेकि तू तउ मोका नकार दिहा जब मइँ तोहका गोहराएउँ, अउर कउनो धियान नाहीं दिहस, जब मइँ आपन हथवा बढ़ाए रहेउँ। 25 तू मोर सबहि उपदेस क उपेच्छा किहा अउर मोर फटकार कबहुँ नाहीं स्वीकार किहा। 26 एह बरे, बदले मँ, मइँ तोहरे नासे पइ हँसब। मइँ हँसी ठट्टा करब जब तोहार बिनास तोहका घेरी। 27 जब बिनास तोहका वइसे ही घेरी जइसे खउफनाक बबूला क चत्रवाद घेरत ह, जब बिनास जकड़ी, अउर जब बिनास अउ संकट तोहका बोर देइहीं। 28 “तब, उ पचे मोका गोहरइहीं किंतु मइँ कउनो भी जवाब नाहीं देबउँ। उ पचे मोका हेरत फिरिहीं मुला नाहीं पइहीं। 29 काहेकि उ पचे हमेसा गियान स घिना करत रहेन, अउर उ पचे कबहुँ नाहीं चाहेन कि उ पचे यहोवा स डेराइँ। 30 काहेकि उ पचे, मोर उपदेस कबहुँ धारन नाहीं किहन, अउर मोर डाट-फटकार क रद्द करिहीं। 31 उ पचे अपन जीवन क करमन क फल जरूर भोगिहीं, उ पचे आपन बुरे जोजना स खुद आपन पेट भरिहीं। 32 “नादान लोगन क हटी ओनका ही बिनास करिहीं मूरखन लोगन क लापरवाही वाला रवैया ओनका नस्ट कइ देइ। 33 मुला जउन मोर सुनी उ सुरच्छित रही, उ बगैर कउनो नोस्कान अउर कउनो डर क हमेसा चैन स रही।”

2:1 हे मारे पूत, अगर तू मोरे बोध बचनन क सुना अउर मोर हुवुम मन मँ बटोरा, 2 अउर तू बुद्धि क बातन पइ कान लगावा, मन आपन समुझदारी मँ लगावत भए, 3 अउर अगर तू अन्तदृस्टि बरे गोहरावा, अउर तू समुझबूझ क बरे पुकारा, 4 अगर तू एका अइसे हेरा जइसे कउनो कीमती चाँदी क हेरत ह, अउर तू एका हेरा, जइसे कउनो छुपे भए खजाना क हेरत ह, 5 तब तू यहोवा क डर क समुझब्या अउर परमेस्सर क गियान पउब्या। 6 काहेकि यहोवा बुद्धि देत ह अउर ओकरे मुँह स ही गियान अउ समुझदारी क बातन फूटत हीं। 7 ओकरे भंडारे मँ खरी बुद्धि ओनके बरे रहत ह जउन खरा अहइँ। अउर ओनके बरे जउन कि इमानदारी स रहत ह एक ढाल जइसे अहइ। 8 उ निआव क मारग क रखवारी करत ह अउर आपन वफादार लोगन क राह क रच्छा करत ह। 9 तबहिं तू समुझब्या कि नेक निआब अउर इमानदारी का अहइ। इ सबइ नीक चिजियन अहइ। 10 तउ बुद्धि तोहरे मने मँ प्रवेस करी अउर गियान तोहरी आतिमा क आनन्दित करी। 11 तोहका नीक बुरा क बोध बचाइ, समुझबूझ भरी बुद्धि तोहार रखवारी करी। 12 बुद्धि तोहका बुरे लोगन क राहे स बचाइ। बुद्धि तोहका ओन लोगन स बचाइ जउन बुरी बात बोलत हीं। 13 अँधियारी गलियन मँ भटकइ बरे उ पचे सहल-सोझ राहन क तजि देत रहत हीं। 14 उ पचे बुरे करम करइ मँ हमेसा आनन्द मनावत हीं। उ पचे बुरे कार्य मँ हमेसा मगन रहत हीं। 15 ओन लोगन पइ बिस्सास नाहीं कइ सकित। उ पचे लबार अहइँ अउर छल करइवाला अहइँ। मुला तोहार बुद्धि अउर समुझ तोहका इन बातन स बचायेगी। 16 इ बुद्धि तोहका बदकार मेहरारु अउ ओकर चापललूसी स भरी बातन स बचाइ। 17 जउन आपन जवानी क साथी तजि दिहन वाचा क उपेच्छा परमेस्सर क समच्छ किहे रहा। 18 काहेकि ओकर घर मउत क गड्ढा मँ अहइ अउर ओकर राहन नरक मँ लइ जात हीं। 19 जउन भी ओकरे घर जात ह उ कबहुँ नाहीं लउटि पावत अउर ओका जिन्नगी क राहन कबहुँ नाहीं मिलतिन। 20 एह बरे तू नीक लोगन क मार्ग पइ चलइ चाही अउर तेहका हमेसा सत्यता क मागेर् पइ बना रहे चाही। 21 इमानदार जन अउर बे कसूर लोग आपन धरती पइ बसा रइहीं। 22 मुला जउन दुट्ठ धोका बाज अहइँ ओनका धरती स हटा दीन्ह जइहीं।

3:1 हे मोर पूत, मेरी सिच्छा क जिन बिसरा, बल्कि तू मोर आदेसन क आपन हिरदय मँ बसाइ ल्या। 2 काहेकि उ सबइ तोहार जिन्नगी क लम्बी अउर सान्तिमइ बनाहीं। 3 वफादारी अउर सच्चाई क कबहुँ भी आपन स अलग न होइ द्या। तू एनका हार क नाई अपने गले मँ डावा। एनका आपन हिरदय क पटल पइ लिख ल्या। 4 इ तरह स तू सफल होब्या अउर परमेस्सर अउ मनई दुइनउँ तोहसे आन्नदित होब्या। 5 आपन पूरे हिरदय स यहोवा मँ बिस्सास राखा। तू अपनी समुझ पइ निर्भर जिन करा। 6 तू आपन सबइ करमन मँ जेका तू करत ह परमेस्सर क इच्छा क याद राखा। उहइ तोहार सब राहन क सोझ करी। 7 आपन ही आँखिन मँ तू बुद्धिमान जिन बना, यहोवा स डरेत रहा अउर बुराई स दूर रहा। 8 एहसे तोहार बदन पूरा तन्दुरूस्त रही अउर तोहार हाड्डियन पुट्ठ होइहीं। 9 आपन सम्पत्ति स, अउर आपन उपज स पहिले फलन स यहोवा क आदर करा। 10 तोहार भण्डार बहुतायत स भरि जइहीं, अउर तोहार मधु क बर्तन दाखरस स उमण्डत रइहीं। 11 हे मोर पूत, यहोवा क अनुसासन क रद्द जिन करा। तोहका सुधार करइ क ओकर प्रयास बरे बुरा जिन बोला। 12 काहेकि यहोवा सिरिफ ओनहीं क डाँटत ह जेनसे उ पिआर करत ह। वइसे ही जइसे बाप उ पूत क डाँटइ जउन ओका बहोतइ पिआरा अहइ। 13 धन्य अहइ उ मनई, जउन बुद्धि पावत ह। उ मनई धन्य अहइ जउन समुझ प्राप्त करइ। 14 बुद्धि, कीमती चाँदी स जियादा लाभ देइवाली अहइ, अउर सोना स जियादा उत्तिम प्रतिदान देत ह। 15 बुद्धि मणि माणिक स जियादा कीमती अहइ। जेका तू चाह सवया। सबइ चिजियन मँ स कउनो भी चीज जेका तू सायद कि चाह रखत ह ओकर बराबरी क नाहीं हो सकत ह। 16 बुद्धि क दाहिन हाथे मँ सुदीर्घ जिन्नगी अहइ अउर ओकरे बाएँ हाथे मँ सम्पत्ति अउ सम्मान अहइ। 17 ओकर मारग मनोहर अहइँ अउर ओकर सबहिं राह सान्ति क रहत हीं। 18 बुद्धि ओनके बरे जिन्नगी क दरखत अहइ जउन एका गले लगावत ह। उ पचे हमेसा धन्य रइहीं जउन मजबूती स बुद्धि क थामे रहत हीं। 19 यहोवा धरती क नेेंव बुद्धि स धरेस, उ समुझ अकासे क स्थिर किहस। 20 ओकरे ही गियान स गहिर सोतन फूटि पड़ेन अउ बादर ओसे क कण बरसावत हीं। 21 हे मोर पूत, तू अपनी निगाह स बुद्धि क लुप्त जिन होइ द्या। किन्तु बजाए एका आपन जोग्यता क सही फैसला लइ बरे अउर विवेक बरे रच्छा करा। 22 उ पचे तउ तोहरे बरे जिन्नगी बन जइहीं, अउर तोहरे कंठे क सजावइ क एक ठु आभूसण। 23 तब तू सुरच्छित बना अपना मागेर् पर चलेहीं अउर तोहार गोड़ कबहुँ ठोकर नाहीं खइहीं। 24 तोहका सोवइ पइ कबहुँ डर नाहीं खाहीं अउर सोइ जाए पइ तोहार नींद मधुर होइ। 25 तू आकस्मिक बिनासे स या उ तबाही स जउन दुट्ठ लोगन पइ आवत ह जिन डेराअ। 26 काहेकि यहोवा तोहार संग होइ, अउर उ तोहरे गोड़े क फँदा मँ फँसइ स बचाइ। 27 जउन लोग नीक चीज क हकदार अहइ ओनका उहइ दइ स इन्कार जिन करा। जब तू नीक करइ क जोग्य ह तउ एका करा। 28 जब आपन पड़ोसी क देब तोहरे लगे धरा होइ तउ ओहसे अइसा जिन कहा कि “बाद मँ आया काल्हि तोहका देब।” 29 तोहार पड़ोसी बिस्सास स तोहरे लगे रहत होइ तउ ओकरे खिलाफ ओका नोस्कान पहोंचावइ बरे कउनो सडयंत्र जिन रचा। 30 बिना कउनो कारण क कउनो मनइ क संग जउन कि तोहका कउनो छति नाहीं पहोंचाएस ह बहस जिन करा। 31 कउनो उपद्रवी मनई स तू जलन जिन करा, अउर ओकर कउनो भी राहे क अनुसरन जिन करा। 32 काहेकि यहोवा वुटिल लोगन स घिना करत ह अउ इमानदार लोगन क अपनावत ह। 33 दुट्ठ मनई क घरे यहोवा क सराप रहत ह, उ नेक क घरे क आसीर्वाद देत ह। 34 उ स्वाथीर् अउर घमंडी लोगन क हँसी उड़ावत ह, मुला विनर्म लोगन पइ उ मेहरबानी करत ह। 35 विवेकी जन तउ आदर पइहीं, मुला उ मूर्खन क, लज्जित ही करी।

4:1 हे मोर पूतो, बाप क सिच्छा क सुना ओह पइ धियान द्या अउर तू समुझबूझ पाइ लया। 2 मइँ तू पचन्क गहिर-गंभीर सिच्छा देत हउँ। मोर इ सिच्छा क तू पचे जिन तज्या। 3 जब मइँ आपन बाप क घर एक बालक रहेउँ अउर महतारी क बहोतइ कोमल एकलौता गदेला रहेउँ, 4 उ मोका सिखावत रहा, “मोरे सिखिया का पूर्ण रूप स पालन करा। जदि तू मोर आदेसन क माना तउ तू जिअब। 5 तू बुद्धि प्राप्त करा अउ समुझबूझ प्राप्त करा, मोर वचन जिन बिसरा अउर ओनसे जिन डुगा, 6 बुद्धि जिन तजा। उ तोहार रच्छा करी। ओहसे पिरेम करा उ तोहार धियान राखी।” 7 बुद्धि सबन त नीक बाटइ: सब कछू दइके भी बुद्धि प्राप्त करा। गियान प्राप्त करा। 8 बुद्धि स पिरेम करा। उ तोहका महान बनाहीं। ओका तू गले स लगाइ ल्या, उ तोहार सम्मान बढ़ाई। 9 उ तोहरे मूँड़े पइ सोभा क माला धरी अउर उ तोहका एक ठु वैभव क मुवुठ देइ। 10 सुना, हे मोर पूत! जउन कछू मइँ कहत हउँ तू ओका ग्रहण करा। तू अनगिनत बरिस जिअत रहब्या। 11 मइँ तोहका बुद्धि क मागेर् पइ चलइ क राह देखावत हउँ, अउर सरल मार्गन पइ अगुवाई करत हउँ। 12 जब तू अगवा बढ़ब्या तोहार गोड़ रूकावट नाहीं पइहीं, अउर जब तू दउड़ब्या ठोकर नाहीं खाब्या। 13 सिच्छा क थामे रहा, ओका तू जिन छो़ड़ा। एकर रखवारी करा। इहइ तोहार जिन्नगी अहइ। 14 तू दुट्ठ लोगन क राहे पइ कदम जिन धरा। बुरे लोगन क राहे पइ जिन चला। 15 तू एहसे बचत रहा। एह क ओर कदम जिन बढ़ावा। एहसे तू मुड़ि जा अउर एकरे बगल स गुजर जा। 16 उ पचे बुरे करम किए बगैर सोइ नाहीं पउतेन। उ पचे नींद खोइ चुकत हीं जब तलक कउनो क नाहीं गिरउतेन। 17 उ पचे तउ बस हमेसा नीच होइ क रोटी खात हीं अउर हिंसा क दाखरस पिअत हीं। 18 मुला नीक लोगन क राह वइसे होत ह जइसे भिंसारे क किरण होत ह, जउन दिन क पूर्ण होइ तलक आपन प्रकास मँ बढ़त ही चली जात ह। 19 मुला दुठ्न लोगन क मारग अँधियारा जइसा होत ह। उ पचे नाहीं जानत ह कि केकर कारण उ पचे ठोकर खात ह या गिरत ह। 20 हे मोर पूत, जउन कछू मइँ कहत हउँ ओह पइ तू धियान द्या। मोर बचनन क तू कान लगाइके सुना। 21 ओनका आपन दृस्टि स ओझर जिन होइ द्या। आपन हिरदय पइ तू ओनका धरे रहा। 22 काहेकि जउन ओनका पावत हीं ओनके बरे उ सबइ जिन्नगी बन जात हीं अउर उ पचे एक मनई क संपूर्ण तने क तन्दुरूस्ती बनत हीं। 23 सबन स बड़की बात इ अहइ कि तू आपन विचार क बारे मँ होसियार रहा। काहेकि तोहार विचार जिन्नगी क कब्जे मँ राखत हीं। 24 तू आपन मुँह स वुटिलता क दूर राखा। तू आपन ओंठनस गलत बात दूर राखा। 25 आपन आंखिन क हमेसा सिधे रखा, आपन पलकन क समन्वा क ओर रखा। 26 आपन गोड़न बरे तू सोझ मारग बनावा। बस तू ओन राहन पइ चला जउन निहचइ ही सुरच्छित अहइँ। 27 दाहिने क या बाएँ क जिन डुगा। तू आपन गोड़न क बुराई स रोके रहा।

5:1 हे मोर पूत तो मोरी बुद्धि क बातन पइ धियान द्या। मोर बुद्धिमानी क सिच्छा क धियान स सुना। 2 ताकि तोहार भला-बुरा क चेतना सुरच्छित रहइ अउर तोहरे ओंठन गियान कि सुरच्छा करइ। 3 काहेकि कउनो पराई मनइ क पतनी आपन ओंठन क मधुर बातन स तोहका लुभा सकत ह, ओकर ओंठन क वाणी तेल स भी जियादा चिकनी होत ह। 4 अंत मँ उ तोहरे बरे भयंकर दुःख दर्द लाहीं उ दुधारी तरवार क नाई अहइ। 5 ओकर गोड़ मउत क गड्ढा कइँती बढ़त हीं अउर उ तोहका सिधे कब्र तलक लइ जात हीं। 6 उ कबहुँ भी जिन्नगी क मारग क नाहीं सोचत। ओकर राहन खोटी अहइँ। किंतु हाय्य, ओका मालूम नाहीं। 7 अब हे मोरे पूतन, तू मोर बात सुना। जउन कछू भी मइँ कहत हउँ ओहसे जिन मोड़ा। 8 तू अइसी राह पइ चला जउन ओहसे काफी दूर होइ। ओकर घरे तलक जिन जा। 9 नाहीं तउ दूसर कउनो तोहरे ताकत क उपयोग करिहीं, अउर तोहार जिन्नगी क बरिस कउनो अइसे मनइ लइ ले हीं जउन कि करुर होइ। 10 अइसा न होइ, तोहरे धने पइ अजनबी मउज करइँ। तोहार मेहनत अउरन क घर भरइ। 11 तोहार जिन्नगी क अंतिम दिना मँ जब तू बिमार होब्या अउर तोहार लगे कछू भी न होइ, तउ तोहका रोवत बिलबिलात भवा छोड़ दीन्हा जाहीं। 12 अउर तू कहब्या, “हाय! मइँ अनुसासन स काहे घिना किहा? मइँ सुधार क काहे उपेच्छा किहा? 13 मइँ आपन सिच्छकन क बात नाहीं मानेउँ या मइँ आपन प्रसिच्छकन पइ धियान नाहीं दिहेउँ। 14 मइँ महानासे क किनारे पइ आइ गावा हउँ अउर हर एक इ जानत ह।” 15 तू आपन हौज स ही पानी पिया करा अउ तू आपन झरना स ही सुद्ध पानी पिया करा। तू आपन पानी क गलियन मँ इधर-उधर फइलइ जिन दया। एका गलियन मँ नदी क नाई बहव जिन द्या। 16 17 इ तउ बस तोहार ही होइ, एकमात्र तोहार ही। ओनमाँ कबहुँ कउनो अजनबी क हींसा न होइ, 18 आपन पत्नी क संग धन्न रहा। ओकरे संग ही तू जीवन रस क पान करा जेक तू आपन जवानी क समइ सादी कीन्ह रहा। 19 ओकर छातियन हरिणी अउर खुबसुरत पहाड़ी बोकरी क नाई तोहका हमेसा सन्तुस्त करइ, ओकर पिरेम जाल तोहका हमेसा फाँस लइ 20 हे मोर पूत, कउनो बिभिचारिणी क तोहका विनासे क ओर काहे लइ जावइ चाही? तोहका कउनो अजनबी मेहरारु क काहे गले लगावइ चाही? 21 यहोवा तोहार राहन पूरी तरह लखत अहइ अउ उ तोहार सबहिं राहन परखत बाटइ। 22 दुट्ठ क बुरे करम ओका बाँध लेत हीं। ओकर ही पाप जाल ओका फाँसि लेत ह। 23 उ अनुसासन क कमी क कारण मरि जात ह। ओकर महान मूरखता ओका विनास क ओर लइ जावत ह।

6:1 हे मोर पूत, जदि तू बगैर समुझबूझिके कउनो अजनबी मनइ क बदले मँ कउनो क जमानत दिहा ह या कउनो स कउनो बचन किहस ह 2 तउ तू आपन ही कहनी क जालि मँ फँसि गवा अहा, तू आपन मुँह क ही सब्दन क पिंजरे मँ बंद होइ गवा अहा। 3 हे मोर पूत, काहेकि तू अउरन क हाथन क पुतला होइ गवा ह। तू आपन क रच्छा बरे अइसा ही करा जइसा मइँ कहत हउँ। ओन लोगन क निआरे जा अउ विनम्र होइके आपन पड़ोसियन स आग्रह करा। 4 आपन आँखिन क आराम जिन करइ द्या। आपन आँखियन क पलक झपकी तलक न लइ द्या। 5 खुद क हरिणी क नाईं या सिकारी क हाथे स भागा भवा कउनो पंछी क नाईं आजाद कइ ल्या। 6 अरे ओ आलसी, चोंटी क लगे जा। ओकर कार्य विधि लखा अउर ओहसे सीख ल्या। 7 ओकर न तउ कउनो नायक अहइ, न ही कउनो निरीच्छक, न ही कउनो सासक अहइ। 8 फुन भी उ गरमी मँ खइया क बटोरत ह अउ कटनी क समइ अन्न क दाना बटोरत ह। 9 अरे ओ सुस्त मनइ, कब तलक तू हिआँ पड़ा रहब्या? आपन नींद स तू कब जाग उठब्या? 10 तू तनिक सोब्या, तनिक झपकी लेब्या, तनिक सुस्ताइ बरे आपन हाथन पइ हाथ धइ लेब्या 11 अउर बस तोहका गरीबी लुटेरा क नाईं आइके घेरी अउर अभाव तोहका हतयार स लैस डाकोअन क नाई घेर लेइ। 12 नीच अउ दुट्ठ मनइ उ होत ह जउन धोका दइवाले बातन बोलत भवा फिरत रहत ह। 13 जउन आँख मारइ क इसारा करत ह अउर आपन अँगुरियन अउर पैरन स संकेत देत ह। 14 उ सडयंत्र रचत ह अउर हमेसा बहस व मुबाहिसा करत ह। 15 एह बरे ओह पइ एकाएक महानास गिरी अउर फउरन नस्ट होइ जाइ। ओकरे लगे बनइ क उपाय नाहीं होइ। 16 यहोवा छ: चिजियन स घिना करत ह, अउर सातवे चीज ओकर बरे घृणित अहइ। 17 गर्व स भरी आँखिन, झूठ स भरी वाणी, उ सबइ हाथन जउन निदोर्ख लोगन क हतियारा अहइँ। 18 अइसा हिरदय जउन सडयंत्र रचत रहत ह, उ सबइ गोड़ जउन बुराइ क मारग पइ तुरन्त दउड़ पड़त हीं। 19 उ लबार गवाह, जउन लगातार झूठ उगलत ह अउर अइसा मनई जउन भाइयन क बीच फूट डावइ। 20 हे मोर पूत, आपन बाप क आग्या क माना अउर आपन महतारी क सिच्छा क कबहुँ जिन तजा। 21 आपन हिरदय पइ ओनका हमेसा ही बाँधे रहा अउर ओनका आपन गटइया क हार बनाइ ल्या। 22 जब तू अगवा बढ़ब्या, उ पचे राह देखइहीं। जब तू सोइ जाब्या, उ पचे तोहार रखवारी करिहीं अउर जब तू जागब्या, उ पचे तोहसे बातन करिहीं। 23 काहेकि आदेस दीपक क नाई अहइँ अउर सिच्छा एक जोति क नाई हइ। अनुसासन क डाँट फटकार तउ जिन्नगी क मारग अहइ। 24 उ सबइ तोहका चरित्रहीन मेहरारू स अउर बिभिचारणी क फुसलाहट स रच्छा करत हीं। 25 तू आपन मन क ओकर सुन्नर क चाह जिन करइ द्या अउर ओकर आँखिन क जादू क सिकार जिन बना। 26 काहेकि उ रण्डी तउ तोहका रोटी-रोटी क मोहताज कइ देइ। मुला उ वुलटा तउ तोहार जिन्नगी हर लेइ। 27 का इ होइ सकत ह कि कउनो केउ क गोदी मँ आगी रखि देइ अउर ओकर ओढ़ना फुन भी तनिकउ भी न जरइ? 28 दहकत भए कोएले क अंगारन पइ का कउनो मनई अपन गोड़वन क बगैर झुरसाए भए चल सकत ह 29 उ मनई अइसा ही अहइ जउन कउनो दूसर क पत्नी स समागम करत ह। अइसी पइ मेहरारू क जउन भी कउनो छुइ, उ बगैर दण्ड पाए नाहीं रहि पाइ। 30 अगर कउनो चोर कबहुँ भूखन मरत होइ, अउर उ भूख मिटावइ बरे चोरी करइ तउ लोग ओहसे घिना नाहीं करिहीं। फुन भी अगर उ धरा जाइ तउ ओका सात गुना भरइ पड़त ह चाहे ओहसे ओकरे घरे क समूचा धन चुक जाइ। 31 32 मुला एक मनइ जउन दूसर क पत्नी क संग सारीरिक सम्बंध करत ह तउ ओकरे लगे विवेक क कमी अहइ। जउन मनइ अइसा करत ह उ खुद बरे विनास लावत ह। 33 प्रहार अउ अपमान ओकर भाग्य अहइ। ओकर कलंक कबहुँ नहीं धोइ जाइ। 34 काहेकि पति क ईर्स्या किरोध जगावत ह अउर जब उ एकर बदला लेइ तब उ ओह पइ दाया नाहीं करी। 35 उ कउनो नोस्कान क पूतिर् अंगीकार नाहीं करी अउर कउनो ओका केतना ही बड़ा लालच देइ, ओका उ अंगीकार किए बगैर ठुकराइ।

7:1 हे मोर पूत, मोरे वचनन क पाला अउ अपने मने मँ मोर आदेस संचित करा। 2 जदि तू मोरे आदेसन क मानब्या तउ तू जियबा। तोहका मोहरे उपदेसन क आपन आँखी क पुतरी सरीखा सँभारिके राखइ चाही। 3 ओनका आपन अँगुरियन पइ बाँधि ल्या, तू आपन हिरदय पटल पइ ओनका लिख ल्या। 4 बुद्धि स कहा, “तू मोर बहिन अहा” अउर तू समुझबूझिके आपन वुटुम्बी जन कहा। 5 उ सबइ हि तोहका बदकार मेहरारु क चिकनी व लुभावन बातन स बचाई। 6 एक दिना मइँ अपन खिड़की क झरोखा स झाँकेउँ, 7 सरल नउजवानन क बीच एक अइसा नउजवान लखेउँ जेका नीक-बुरा क पहिचान नाहीं रहा। 8 उ उहइ गली स होइके उहइ बदकार मेहरारु क नुवकड़ क लगे स जात रहा। उ ओकरे ही घरवा कइँती बढ़त जात रहा। 9 सूरज साँझ क धुँधल मँ बूड़त रहा, राति क अँधियारा क तहन जमत जात रहिन। 10 तबहिं एक मेहरारु ओहसे मिलइ बरे निकरिके बाहेर आइ। उ रण्डी क भेस मँ सजीभइ रही। अउर ओकरी इरादा बहोत प्रबल रही। 11 उ वाचाल अउर ओकर प्रबल इरादे क रही। उ घरे मँ कबहुँ ठहिरइ नाहीं चाहेस। 12 उ कबहुँ-कबहुँ गलियन मँ, कबहुँ चउराहन पइ, अउर हर केउ क नोवकड़े पइ घात लगावत रही। 13 उ ओका रोक लिहस अउ ओका धरेस। उ ओका निर्लज्ज मुँहे स चूमेस, फुन ओहसे बोली, 14 “आजु मोका मेलबलि अर्पण किहा। मइँ आपन प्रतिग्या परमेस्सर बरे पूरी कइ लिहेउँ। 15 एह बरे मइँ तोहसे मिलइ अउर तोहका यह कहे बरे बाहेर आएहउँ कि आ अउर मोर दावत मँ सामिल होजा। मइँ तोहार तलास मँ रही अउर अंत मँ तोहका पाए लिहेउँ। 16 मइँ मिस्र क मलमले क रंगन स भरी भइ चादर स सेज सजाएउँ ह। 17 मइँ आपन सेज क गंधरस, दालचीनी अउर अगर गंध स सुगंधित किहेउँ ह। 18 तू मोरे लगे आवा। भोर क किरण तलक दाखरस पिअत रही, हम आपुस मँ भोग करत रही। 19 मोर पति घरे पइ नाहीं अहइँ। उ दूर जात्रा पइ गवा अहइ। 20 उ आपन थैली रूपाया स भरिके लइ गवा अहइ अउर पुन्नवासी तलक घरे पइ नाहीं होइ।” 21 उ ओका लुभावना सब्दन स मोह लिहस। ओका मीठ मधुरवाणी स फुसलाइ लिहस। 22 उ फउरन ओकरे पाछे अइसे होइ लिहस जइसे कउनो बर्धा क जबह करइ बरे ले जाया जात ह। उ अइस चलत ह जइसे कउनो मूरख जालि मँ गोड़ धरत होइ। 23 जब तलक एक तीर ओकर हिरदय नाहीं बेधी तब तलक उ पंछी सा जालि पइ बगैर इ जाने दूट पड़ी कि जालि ओकर प्राण हरि लेइ। 24 तउ मोरे पूतो, अब मोर बात सुना अउर जउन कछू मइँ कहत हउँ ओह पइ धियान द्या। 25 आपन मन वुलटा क राहन मँ जिन हींचइ द्या अउर ओका ओकरे राहन पइ जिन भटकइ द्या। 26 केतने ही सिकार उ मार गिराएन ह। उ जेनका मारेस ओनकर जमघट बहोत बड़ा बाटइ। 27 ओकर घर उ राजमार्ग अहइ जउन कब्र क जात ह अउर तरखाले मउते क कालकोठरी मँ उतरत ह।

8:1 का बुद्धि तोहका गोहरावत नाहीं अहइ? का समुझबूझ ऊँचकी अवाज स तोहका नाहीं बुलावत अहइ? 2 उ राह क किनारे ऊँचे ठउरन पइ अउर चौराहे पइ खड़ी रहत ह। 3 उ सहर क जाइवालो दुआरन क सहारे सिंह दुआर क ऊपर गोहराइके कहत ह, 4 “हे लोगो, मइँ तोहका गोहरावत हउँ, मइ समूची मानवजाति बरे अवाज अठावत हउँ। 5 अरे नादा लोगो! बुद्धिमानी स रहइ क सिखा तू जउन मूरख बना अहा समुझबूझ सिखा। 6 सुना। काहेकि मोरे लगे कहइ क उत्तिम बातन अहइँ, आपन मुँहन खोलति हउँ, जउन कहइ क उचित बा 7 मेरे मुखे स तउ उहइ निकरत ह जउन फुरइ अहइ, काहेकि मोरे ओंठन क दुट्ठता स घिन अहइ। 8 मोरे मुँहे स नकलइ वाले सबइ सब्द निआव स पूर्ण अहइ। ओन मँ स कउनो भी धोका देइ वाला नाहीं अहइ। 9 विचारवान मनई बरे उ सबइ साफ साफ अहइँ अउर गियानी जन बरे उ सबइ सब दोख रहित अहइँ। 10 चाँदी नाहीं बल्कि तू मोर हिदायत ग्रहण करा उत्तिम सोना नाहीं बल्कि तू मोर गियान ल्या। 11 सुबुद्धि रत्नन मणि माणिकन स जियादा कीमती अहइँ। तोहार अइसी मनचाही कउनो वस्तु स ओकर तुलना नाहीं होइ।” 12 “मइँ बुद्धि अउर गियान क संग रहत हउँ। नीक अउर विवेक मोर मीत अहइ।। 13 यहोवा स डरब, बुराई स घिना करब अहइ। स्वाथीर्पन अउर घमण्ड, बुराइ क मारग झुटी मुँह स मइँ घिना करत हउँ। 14 मोर लगे परामर्स अउ गियान अहइ। मोरे लगे बुद्धि सक्ती अहइ। 15 मोरे ही सहारे राजा राज्ज करत हीं, अउर सासक नेम रचत हीं, जउन निआउ स पूर्ण अहइ। 16 केवल मोरी ही मदद स धरती क सबइ नीक सासक राज्ज चलावत हीं। 17 जउन मोहसे पिरेम करत हीं, मइँ भी ओनसे पिरेम करत हउँ, मोका जउन हेरत हीं, मोका पाइ लेत हीं। 18 सम्पत्तियन अउ आदर मोर संग अहइँ। मइँ खरी सम्पत्ति अउ जस देत हउँ। 19 मोर फल सोना स उत्तिम अहइँ। मइँ जउन उपजावत हउँ, उ सुद्ध-चाँदी स जियादा नीक अहइ। 20 मइँ निआउ क मारग क संग संग सत्य क मारग पइ चलत आवत हउँ। 21 मोहसे जउन पिरेम करतेन ओनका मइँ धन देत हउँ, अउर ओनकर भंडार भरि देत हउँ। 22 यहोवा सबइ चिजियन क रचइ स पहिले आपन पुराने करमन स भी पहिले मोका रचेस ह। 23 मोर रचना सनातन काल मँ भइ रहा। धरती क रचान स पहिले मोर रचान भइ रहा। 24 जब मोरे रचना कीन्हा गवा रहा तब न तउ सागर रहा अउर न ही पानी क सोता रहेन। 25 मोका पहाड़न पहाड़ियन क थिर करइ स पहिले ही जन्म दीन्ह गवा। 26 धरती क रचना, या ओकर खेत या जब धरती क, धूल कण रचा गएन। ओसे पहिले मोका रचेस ह। 27 जब यहोवा अकासे क कायम किहे रहा ओहसे भी पहिले मोर अस्तित्व रहा। जब यहोवा सागार क पइ छितिज रेखा खिँचे रहा ओहसे भी पहिले मोर अस्तित्व रहा। 28 उ जब अकासे मँ सघन बादल टिकाए रहा, अउर गहिर सागर क पानी स भरे रहा तउ स भी मइँ हुवाँ रहा। 29 जब उ समुद्दर क चउहद्दी बाँधे रहा ताकि पानी ओहसे आगे न चला जाइ मइँ हुवाँ रहा। जब उ धरती क नेवन रखे रहा ओहेस पहिले मइँ राह। 30 तब मइँ ओकरे संग वुसल सिल्पी स रहेउँ, मइँ दिन-प्रतिदिन आनन्द स पूरिपूर्ण होत चली गएउँ। ओकर समन्वा हमेसा आनन्द मनावत। 31 ओकर पूरी दुनिया स मइँ आनन्दित रहेउँ। मोर खुसी समूचइ मानवता रही। 32 तउ अब, मोर पूतो, मोर बात सुना। ओ धन्न अहइ जउन जन मोर राह पइ चलत हीं। 33 मोर उपदेस सुना अउर बुद्धिमान बना। एनकर उपेच्छा जिन करा। 34 उहइ जन धन्न अहइ, जउन मोर बात सुनत अउर रोज मोरे दुआरन पइ दृस्टि लगाए रहत एवं मोर ड्योढ़ी पइ बाट जोहत रहत ह। 35 काहेकि जउन मोका पाइ लेत उहइ जिन्नगी पावत अउर उ यहोवा क अनुग्रह पावत ह। 36 मुला उ जउन मोर खिलाफ पाप करत ह खूद ही चोट खावत ह उ जउन मोहे स घिना करत ह उ मउत स गले लगावत ह।”

9:1 बुद्धि आपन घर बनाएस ह। उ आपन सात खम्भनगढ़ेन ह। 2 उ आपन खइया क तइयार किहस अउर मिलावा भवा दाखरस आपन खइया क खाइ क मेजे पइ सजाइ लिहस ह। 3 अउर आपन दासियन क सहर क सबन त ऊँचके जगहिया स बोलावइ क पठएस ह। 4 “जउन भी नादान अहइ, किरपा कइ क हिआँ पइ आइ।” जउन मनइ क समुझ नाहीं अहइ उ ओनसे कहत ह, 5 “आवइँ, मोर खइया क खाइँ, अउर मोर दाखरस पिअइँ जेका मइँ बनाएस हउँ। 6 तू पचे आपन नादानी तजि द्या तउ तू जिअब्या। समुझ-बूझिके मारग पइ सिधे आगे बढ़ा।” 7 जउन कउनो मसखरी करइवाले क सुधार देत ह उ अपमाने क बोलावत ह, अउर जउन कउनो दुठ्ट मनइ क डाँट फटकार करइ चोट खात ह। 8 मसखरी करइवाले वाले क कबहुँ भी जिन डाँटा-फटकारा, नाहीं तउ उ पचे तू पचन स ही घिना करइ लागी। मुला अगर तू कउनो विवेकी क डाँटा-टफकारा तउ उ तू पचन स पिरेम ही करी। 9 बुद्धिमान व्यक्ति क चेतावा, उ अउर जियादा बुद्धिमान होइ। कउनो नीक व्यक्ति क क सिखावा, उ आपन गियन क बृद्धि करी। 10 यहोवा स डर, बुद्धि क हासिल करब क पहिला कदम बाटइ। यहोवा क गियान, समझबूझ क हासिल क पहिला कदम अहइ। 11 काहेकि मोर जरिये ही तोहार उमिर बढ़ी, तोहार दिन बढ़िहीं, अउर तोहरी जिन्नगी मँ बरिस जुड़त ही जइहीं। 12 “अगर तू बुद्धिमान अहा, सुद्बुद्धि तोहका प्रतिफल देइ। अगर तू मसखरी करइवाले अहा, तउ तू अकेल्ले कस्ट झेलब्या। 13 मूरखता अइसी मेहरारू क नाई अहइ जउन बातन बनावत ह किन्तु कछू नाहीं जानत ह। ओनके लगे गियान नाहीं अहइ। 14 आपन घरे क दुआरे पइ उ बइठी रहत ही, सहर क सवोर्च्च बिंदु पइ उ आसन जमावत ह। 15 उ हर एक क जउन ओकर ओर निगाह भी नाहीं करत हीं, पुकारती ह, 16 “अरे नादान लोगो तू पचे भितरे चले आवा!” उ इ ओनसे कहत ह जेनके लगे सुझ-बूझ क कमी अहइ। 17 “चोरी क पानी तउ मीठ-मीठ होत ह, छुपके खइया क खावा गवा भोजन, बहोतइ सुआद देत ह।” 18 मुला उ पचे इ नाहीं जानतेन कि हुआँ मृतकन क बास होत ह अउर उ सबइ जेका उ पहिले निओता दिहस रहा अब कब्र मँ अहइँ।

10:1 इ सबइ सुलैमान क नीतिवचन (कहावतन) अहइ।एक बुद्धिमान पूत अपने बाप क आनन्द देत ह। मुला एकठु मूरख पूत, महतारी क दुःख देत ह। 2 बुराई स कमाए भए धन क खजाना हमेसा बियर्थ रहत हीं। जबकि धामिर्कता मउत स छोड़ावत ह। सत्य क मारग हम लगन क मउत स बचावत ह। 3 यहोवा कउनो भी नेक व्यक्ति क भूखा नाहीं रहइ देत ह। मुला दुट्ठ क लालसा पइ पानी फेरि देत ह। 4 सुस्त हाथ मनई क दरिद्र कइ देत ह, मुला मेहनती हाथ सम्पत्ति लिआवत हीं। 5 ग्रीस्मकाल मँ जउन उपज क बटोरके राखत ह, उहइ पूत बुद्धिमान अहइ; किन्तु जउन कटनी क समइ मँ सोवत ह उ पूत सर्मनाक होत ह। 6 नीक लोगन क मूँड़ पइ आसीसन क मुवुट होत ह मुला दुद्ठ क मुँह हिंसा स भरा होत ह। 7 नीक लोगन क यादगर आसीस होत ह, मुला दुट्ठ लोगन क नाउँ मिट जाहीं। 8 उ आग्या मानी जेकर मन विवेकसील अहइ, जबकि बववास मूरख नस्ट होइ जाइ। 9 विवेकवाला मनई सुरच्छित रहत ह, मुला टेंढ़ी चाल चलइवाले क भण्डा फूटी। 10 जउन बुरे इरादे स आँखी क इसारा करइ, तउ ओका ओहसे दुःख ही मिली। अउर बकवासी मूरख नस्ट होइ जाइ। 11 धमीर् व्यक्ति क मुँह तउ जिन्नगी क सोता अहइ, मुला दुट्ठ व्यक्ति क मँुहे हिंसा स भरा पड़त ह। 12 घिना वाद-विवाद क कारण अहइ। जबकि पिरेम सबइ अपराध क ढाँपि लेत ह। 13 बुद्धि क निवास हमेसा समुझदार ओंठन पइ होत ह, मुला जेनमाँ नीक बुरा क बोध नाहीं होत, ओकरे पिठिया पइ डंडा होत ह। 14 बुद्धिमान लोग, गियान क संचित करत रहेन, भुला मूरख क बाणी विपत्ति क बोलावत ह। 15 धनिक क धन, ओनकर मजबूत किला होत, दीन क दीनता पइ ओकर बिनास अहइ। 16 धमीर् मनइ क कमाई ओनका जिन्नगी प्रदान करत ह। मुला दुट्ठ मनइ आपन पाप बरे कीमत चुकावत ह। 17 उ जउन अनुसासन स सीखत ह उ दूसर क जिन्नगी क मारग बरे निदेर्स दे सकत ह। मुला उ जउन हिदायत क उपेच्छा करत ह अइसा मनई दूसर क भटकावा करत ह। 18 जउन मनई बैर पइ परदा डाए राखत ह, उ मिथ्यवादी अहइ अउर उ जउन निन्दा फइलावत ह, मूरख अहइ। 19 जियादा बोलइ स, कबहुँ पाप दूर नाहीं होत मुला जउन आपन जवान क लगाम देता ह, उहइ बुद्धिमान अहइ। 20 धमीर् क वाणी विसुद्ध चाँदी अहइ, मुला दुट्ठ क हिरदय क कउनो मोल नाहीं। 21 धमीर् जन क बातन चाँदी क नाई होत ह। मुला दुट्ठ मनइ क सुझाव क कउनो कीमत नाहीं होत ह। 22 यहोवा क वरदान स जउन धन मिलत ह, ओकरे संग उ कउनो दुःख नाहीं जोड़त। 23 बुरे आचार मँ मूरख क सुख मिलत ह, मुला एक समुझदार विवेक मँ सुख लेत ह। 24 जेहसे मूरख भयभीत होत ह ओका उहइ क कस्ट झेलइ क होइ। किन्तु एक धमीर् मनइ आपन इच्छा स आसिसित कीन्ह जाइ। 25 आँधी जब गुजरत ह, दुट्ठ उड़ जात हीं, मुला धमीर् लोग तउ सदा ही बिना हिले डुले खड़ा रहत हीं। 26 काम पइ जउन कउनो आलसी क पठवत ह, उ बन जात ह जइसे अम्ल सिरका दाँत क खटावत ह, अउर धुआँ आँखिन क तड़पावत दुःख देत ह। 27 यहोवा क भय उमिर बढ़ावत ह। मुला एक दुट्ठ मनई क उमिर तउ घट जात ह। 28 धमीर् क भविस्स आनन्द-उल्लास अहइ। मुला दुट्ठ क आसा तउ बियर्थ रहि जात ह। 29 इमानदार लोगन बरे यहोवा क मारग सरणस्थल अहइ; मुला जउन बुरा जन अहइँ, ओनकर इ बिनास अहइ। 30 धमीर् जन क कबहुँ उखाड़ा न जाइ, मुला दुट्ठ धरती पइ कबहुँ टिक नाहीं पाइ। 31 धमीर् क मुँहे स बुद्धि क धार बहत ह, मुला वुटिल जीभ क तउ काटिके लोकावा जाइ। 32 धमीर् क ओंठ जउन उचित अहइ जानत हीं, मुला दुट्ठ क मुँह बस वुटिल बातन बोलन ह।

11:1 यहोवा छले क तराजू स घिना करत ह, मुला ओकर आंनद सही नाप-तौल पइ अहइ। 2 अभिमान क संग अपमान आवत ह, मुला नम्रता क संग विवेक आवत ह। 3 इमानदार लोगन क नेकी ओनकर अगुवाई करत ह, मुला बिस्सासघाती क कपट ओनका विनास करत ह। 4 जब परमेस्सर लोगन क परखत ह तउ धन बियर्थ रहत ह। इ काम नाहीं आवत ह। मुला तब नेकी लोगन क मउत स बचावत ह। 5 नेकी निदोर्ख जन बरे मारग सरल सोझ बनावत ह, मुला दुट्ठ जन क ओकर आपन ही दुट्ठई धूरि चटाइ देत ह। 6 नेकी सज्जन लोगन क छोड़ावत ह। मुला धोकाबाज आपन ही बुरे जोजना जालि क मँ फँस जात ह। 7 जब दुट्ठ मरत ह तउ ओकर बरे कउनो आसा नाही रहत ह। बुरे मनइ क आसा बियर्थ होइ जाइ। 8 धमीर् जन तउ बिपत्ति स छुटकारा पाइ लेत ह, जबकि ओकरे बदले उ दुट्ठ पइ आइ पड़त ह। 9 बुरे लोगन क वाणी आपन पड़ोसी क लइ बूड़त ह। मुला गियान क जरिये धमीर् जन तउ बचि निकरत ह। 10 धमीर् क विकास सहर क आनन्द स भरि देत ह। जबकि दुट्ठ क नास हर्सनाद उपजावत। 11 सच्चे जने क आसीस तउ सहर क ऊँच उठाइ देत ह मुला दुट्ठ क बातन खाले गिराइ देत हीं। 12 अइसा मनई जेकरे लगे विवेक नाहीं होत, उ आपन पड़ोसी क अपमान करत ह, मुला समुझदार मनई चुपचाप रहत ह। 13 जउन अफवाह फैलावत ह उ भेद परगट करत ह, किन्तु बिस्सासी जन भेद क छुपावत ह। 14 जहाँ मारग दर्सन नाहीं, हुआँ रास्ट्र पतित होत ह, मुला बहुत सलाहकार जीत क सुनिस्चित करत हीं। 15 जउन अनजाने मनइयन क जामिन बनत ह, उ निहचइ ही पीड़ा उठाइ। मुला जउन जामिन बनावइ स बचत ह उ आपन आप क सुरच्छा करत ह। 16 दयालु मेहरारू तउ आदर पावत ह जबकि वूर मनई क लाभ सिरिफ धन अहइ। 17 दयालु मनई खुद आपन भला करत ह, जबकि निर्दयी मनई खुद पइ विपत्ति लिआवत ह। 18 दुट्ठ जन कपट भरी कमाई कमाता ह, मुला जउन नेकी क बोवत ह, ओका तउ सच्चा प्रतिफले क पाउब अहइ। 19 उ जउन धामिर्कता मँ मजबूत अहइ लम्बी उमिर पावत ह। किन्तु जउन बुराई क अनुसरण करत ह वुसमइ मरि जात ह। 20 वुटिल जनन स, यहोवा घिना करत ह मुला उ ओनसे खुस होत ह जेनका जिन्नगी स्वच्छ होत हीं। 21 इ जाना निहचित अहइ कि दुट्ठ जन कबहुँ सजा स नाहीं बचिहीं। किन्तु धमीर् जन अउर ओनकर गदेलन सजा स बचिहीं। 22 जउन नीक बुरा मँ फरक नाहीं करत, उ मेहरारू क सुन्नरता अइसी अहइ जइसे कउनो सुअरे क थूथुन मँ सोना क नथुनी। 23 धमीर् मनई क अभिलासा क भलाई मँ अंत होत ह। मुला दुट्ठ क आसा सिरिफ किरोध मँ अंत होत ह। 24 जउन उदार अजाद भाव स दान देत ह, उन्नती करिहीं। मुल उ जउन ओन चिजियन क आपन लगे रखत ह जेका देइ चाही, ओकर लगे उ नाही होइ जेन्का जरुरत ओका अहइ। 25 उदार जन तउ हमेसा, फूली फली अउर जउन दूसरन क पिआस बुझाइ, ओकर तउ पिआस अपने आप ही बुझी। 26 अन्न क जमाखोर लोगन क गारी खात हीं, मुला जउन ओका बेचइ क राजी होत ह ओकरे मूँड़ बरदान क मवुट स सजत ह। 27 जउन भलाई पावइ क जतन करत ह उहइ जस पावत ह; मुला जउन बुराई क पाछे पड़ा रहत ओकरे तउ हथवा बुराई ही लागत ह। 28 जउन कउनो आपन धने क भरोसा करत ह, झरि जाइ उ बेजीव झुरान पाते जइसा; मुला धमीर् जन नवी हरियर कोंपर स हरा-भरा ही रही। 29 जउने आपन घराने पइ अपमान लिआइ ओका कछू भी नाही मिली। एक मूरख, बुद्धिमान क दास बनिके रही। 30 धमीर् मनई क करम-फल “जिन्नगी क बृच्छ” अहइ, अउर जउन जन आतिमान क जीत लेत ह, उहइ बुद्धिमान अहइ। 31 अगर इ धरती पइ धमीर् जन आपन उचित प्रतिफल पावत हीं, तउ फुन पापी अउ दुट्ठ जन आपन वुकरमन क केँतना फल हिआँ पइहीं।

12:1 जउन अनुसासन स पिरेम करत ह, उ तउ गियान स भी पिरेम करत ह। किन्तु जउन सुधार स घिना करत ह तउ उ निरा मूरख अहइ। 2 सज्जन मनई यहोवा क किरपा पावत ह, मुला छल छछंदी क यहोवा सजा देत ह। 3 दुट्ठता, कउनो जने क थिर नाहीं कइ सकत किन्तु धमीर् जन कबहुँ उखड़ नाहीं पावत ह। 4 एक उत्तिम पत्नी क संग पति खुस अउर अभिमानी होत ह। किंतु उ पत्नी जउन आपन मनसेधू क लजावत ह उ ओका तने क बेरामी जइसे होत ह। 5 धमीर् मनई क सबइ जोजना निआव स पूर्ण होत हीं जबकि दुट्ठ क सलाह कपट स भरी होत हीं। 6 दुट्ठ क सब्द लोगन क मारइ बरे घात मँ रहत हीं। मुला सज्जन क मुहँ ओनका बचावत ह। 7 जउन खोट होत हीं उखाड़ पेंका जात हीं, मुला धमीर् मनई क घराना टिका रहत ह। 8 मनई आपन अच्छा बातन जउन उ बोलत ह क मुताबिक तारीफ पावत ह। मुला उ जउन मुरख अहइ ओका तुच्छ जाना जात ह। 9 सामान्य मनई बनिके मेहनत करब उत्तिम अहइ एकरे कि भूखा रहिके महत्वपूर्ण मनई स सुआँग भरब। 10 धमीर् मनई आपन जानाबरन तलक क धियान रखत ह; किन्तु दुट्ठ मनइ सदा ही जालिम होत ह। 11 जउन अपने खेते मँ काम करत ह ओकरे लगे खाइके इफरात होइ। मुला जउन बियर्थ बिचारन क पाछा करत ह ओकरे लगे विवेक क अभाव रहत ह। 12 दुट्ठ जन बुरे जोजना क इच्छा करत ह। मुला धमीर् जन क जड़ फल लावत ह। 13 पापी मनई क ओकर आपन ही सब्द ओका जाल मँ फँसाइ लेत ह। किंतु खरा मनई बिपत्ति स बच निकरत ह। 14 आपन अच्छी बातन स जउन उ कहत ह मनइ अच्छा प्रतिफल पावत ह। इहइ तरह स एक मनइ आपन कार्य क अनुसार लाभ पावत ह। 15 मूरख क आपन मारग ठीक जान पड़त ह, मुला बुद्धिमान मनई सम्मति सुनत ह। 16 मूरख जन आपन झुँझलाहट झटपट देखावत ह मुला बुद्धिमान अपमान क उपेच्छा करत ह। 17 फुरइ स पूर्ण गवाह खरी गवाही देत ह, मुला लबार साच्छी झूठी बातन बनावत ह। 18 बिन बिचारे वाणी तरवार स छेदत, मुला विवेकी क वाणी घावन क भरत ह। 19 फुरइ स भरी वाणी हमेसा हमेसा टिकी रहत ह, मुला झूठी जीभ बस छिन भर क टिकत ह। 20 ओनके मने मँ छल-कपट भरा रहत ह, जउन वुचत्रे स भरी जोजना रचत हीं। मुला जउन सान्ति क बढ़ावा देत हीं, आनन्द पावत हीं। 21 धमीर् जने पइ कबहँ विपत्ति नाहीं पड़ी, मुला दुट्ठन क तउ विपत्तियन घेरिहीं। 22 अइसे ओंठन क यहोवा घिना करत ह जउन झूठ बोलत हीं; मुला ओन लोगन स जउन सच स पूर्ण अहइँ, उ खुस रहत ह। 23 गियानी जियादा बोलत नाहीं ह, चुप रहत ह मुला मूरख जियादा बोलिके आपन अगियानी क देखावत ह। 24 मेहनती हाथ तउ सासन करिहीं, मुला आलस क परिणाम बेगार होइ। 25 चिंता स भरा मन मनई क दबोच लेत ह। किंतु सुभ समाचार ओका हर्स स भरि देत हीं। 26 धमीर् मनई आपन पड़ोसी क मार्गदर्सन करत ह। मुला दुट्ठन क चाल ओनहीं क भटकावत ह। 27 आलसी मनई आपन आलस क कारण आपन काम पूरा नाही कर सकत ह। मुला एक मेहनती मनइ आपन सखत मेहनत स धन दोलत पावत ह। 28 नेकी क मारग मँ जिन्नगी रहत ह, अउर उ राहे क किनारे अमरता बसत ह।

13:1 समुझदार पूत आपन बाप क सिच्छा पइ कान देत ह। मुला बिद्रोह पूत झिड़की पइ भी धियान नाहीं देत ह। 2 सज्जन आपन वाणी क सुफल क आनंद लेत हीं मुला दुर्जन तउ सदा हिंसा चाहत ह। 3 जउन आपन वाणी क बरे चौकस रहत ह, उ आपन जिन्नगी क रच्छा करत ह। पर जउन गाल बजावत रहत ह, आपन बिनास क पावत ह। 4 आलसी मनइ चिजियन क लालसा करत ह पर कछू नाहीं पावत, मुला एक ठू परिस्रमी क जेतनी भी इच्छी अहइ, पूर्ण होइ जात ह। 5 धमीर् मनई ओहसे घिना करत ह, जउन झूठ अहइ जबकि दुट्ठ लज्जा अउ अपमान लिआवत हीं। 6 सच्चरित्र मनई क रच्छा करइवाली नेकी अहइ; जबकि दुट्ठता पापी मनइयन क नास करत ह। 7 एक ठु मनई जउन धन क देखावा करत ह, किंतु ओकरे लगे कछु भी नाहीं होत ह। किन्तु एक दूसर जउन गरीबी क जिन्नगी गुजारत ह ओकरे लगे बहोत धन होत ह। 8 धनवान क आपन जिन्नगी बचावइ ओकर धन फिरौती मँ लगावइ पड़ी मुला दीन जन कउनो धमकी क भय स अजाद अहइ। 9 धमीर् मनई क जिन्नगी प्रकास क नाईं चमचमात ह। किंतु दुट्ठ मनई क दिया बुझाइ दीन्ह जात ह। 10 अहंकार सिरिफ झगड़न क पनपावत ह। मुला विवेक उ अहइ जउन दूसर क राय क मानत ह। 11 बेइमानी क धन यूँ ही धूरि होइ जाता ह मुला जउन परिस्रम कइके धन संचित करत ह, ओकर धन बा़ढ़त ह। 12 जदि कउनो आसा नाही होइ तउ मन उदास होइ जात ह, मुला कामना क पूतिर् खुसी देत ह। 13 जउन जन सिच्छा क निरादर करत ह, ओका एकर कीमत चुकावइ क पड़ी। मुला जउन सिच्छा क आदर करत ह, उ तउ एकर प्रतिफल पावत ह। 14 विवेक क सिच्छा जिन्नगी क उद्गम सोता बाटइ, उ लोगन क मउत क फंदे स बचावत ह। 15 उ जउन अच्छा समुझ बूझ रखत ह खियाती अजिर्त करत ह, पर विस्सासघात सिरफ विस्साघात ही लावत ह। 16 हर एक विवेकी गियान क साथ काम करत ह, मुला एक मूरख आपन बेववूफी परगट करत ह। 17 दुट्ठ सन्देसवाहक बिपत्ति मँ पड़त ह, मुला बिस्सास क जोग्ग दूत सांति देत ह। 18 अइसा मनई जउन सिच्छा क उपेच्छा करत ह, ओह पइ लज्जा अउ गरीबी आइ पड़त ह। मुला जउन डाँट फटकार पइ कान देत ह, उ महत्व वाला मनइ होइ जाइ। 19 कउनो इच्छा क पूर होइ जाब मने क मधुर लागत ह। किन्तु मूरखन क बुरा क तजब नाहीं भावत ह। 20 बुद्धिमान क संगति, मनई क बुद्धिमान बनावत ह। किंतु मूरखन क साथी नस्ट होइ जात ह। 21 दुर्भाग्य पापियन क पाछा करत रहत ह; किंतु धमिर्यन प्रतिफले मँ खुसहाली पावत हीं। 22 सज्जन आपन नाती-पोतन क धन सम्पत्ति छोड़तह जबकि पापी क धन धमिर्यन क खातिर संचित होत रहत ह। 23 दीन जन क खेत भरपूर फसल देत ह, मुला अनिआव ओका बुहार लइ जात ह। 24 जउन आपन पूते क कबहुँ नाहीं दण्डित करत, उ आपन पूत क दुसमन अहइ। मुला जउन आपन पूत स पिरेम करत ह तउ उ ओका अनुसासन मँ राखत ह। 25 धमीर् जन, मने स खात अउर पूरी तरह तृप्त होत हीं किन्तु दुट्ठ क पास प्रयाप्त भोजन नाही होत ह।

14:1 बुद्धिमान मेहरारू आपन घर बनावत ह; मुला मूरख मेहरारू आपन ही हाथन स आपन घर उजाड़ देत ह। 2 उ लोग जउन सच्ची राह पइ चलत ह आदर क संग उ यहोवा स डेरात ह। मुला ओकर जेका राह टेढ़ी अहइ उ यहोवा स घिना करत ह। 3 मूरख क बातन ओकरे बरे मुसीबत लावत ह। किंतु बुद्धिमानन क वाणी ओकर रच्छा करत ह। 4 जहाँ बर्धा नाहीं होतेन, खरिहान खाली रहत हीं, बर्धा क बल पइ ही भरपूर फसल होत ह। 5 एक सच्चा साच्छी कबहुँ नाहीं छलत ह मुला झूठा गवाह, झूठ उगलत रहत ह। 6 एक अनुसासनहीन मनइ बुद्धि तलास करत ह किन्तु एका नाहीं पावत ह। मुला जउन सिखइ क इच्छा करत ह आसानी स गियान पावत ह। 7 मूरख क संगत स दूरी बनाए राखा, काहेकि ओकरी वाणी मँ तू गियान नाहीं पउब्या। 8 गियानी जनन क गियान इहइ मँ अहइ कि उ पचे आपन राहन क चिंतन करइँ। किन्तु मूरखन आपन मूरखता स धोका खात ह। 9 एक मूरख आपन कीन्ह भवा बुरा करम क दण्ड पइ जेका ओका देइ होइ हसँत ह। किन्तु एक बुद्धि मान मनइ छमा पावइ क जतन करत ह। 10 हर मन आपन निजी पीड़ा क जानत ह, अउर ओकर दुःख कउनो नाहीं बाँटि पावत ह। 11 दुट्ठ क इमारत क ढहाइ दीन्ह जाइ, मुला सज्जन क डेरा फूली फली। 12 अइसी ही राह होत ह जउन मनई क उचित जान पड़त ह; मुला परिणाम मँ उ मउत क लइ जात ह। 13 हँसत भए भी हिरदय रोवत रहि सकत ह, अउर आनन्द दुःखे मँ बदल सकत ह। 14 बिस्सासहीन क, आपन वुमार्गन क फल भोगइ क पड़ी; अउर सज्जन सुमार्गन क प्रतिफल पाइ। 15 एक नादान सब कछू क बिस्सास कइ लेत ह। मुला विवेकी जन सोच-समुझिके गोड़ धरत ह। 16 बुद्धिमान मनई सचेत रहत ह अउर आपन क पापे स दूर रखत ह। मुला मूरख मनई लापरवाह होत ह अउर अतिबिस्सास रखत ह। 17 अइसा मनई जेका हाली किरोध आवत ह, उ मूरखता स भरा काम कइ जात ह अउर उ मनई छल-छंदी होत ह उ तउ सब ही क पावत ह 18 एक नादान जन क बस मूरखता मिल पावत ह मुला एक बुद्धिमान मनइ क सिरे पइ गियान क मवुट होत ह। 19 दुर्जन नीक लोगन क समन्वा सिर निहुरइहीं, अउर दुट्ठ मनइ इमानदार लोगन क जरिए हराइ जाइ। 20 गरीब क ओकर पड़ोसी भी दूर राखत हीं; मुला धनी जन क मीत बहोत होत हीं। 21 जउन आपन पड़ोसी क तुच्छ मानत ह उ पाप करत ह मुला जउन गरीबन पइ दाया करत ह उ जन धन्न अहइ। 22 अइसे मनइयन जउन सडयंत्र रचत हीं का गलती नाही करत हीं? मुला जउन भली जोजना रचत हीं, उ तउ पिरेम अउर बिस्सास पावत हीं। 23 मेहनत क प्रतिफल मिलत हीं; मुला कोरा बकवास बस दीनता लावत ह। 24 विवेकी क प्रतिफले मँ धन मिलत ह; पर मूरखन क प्रतिफले मँ सिरिफ मूरखता मिलत ह। 25 एक सच्चा गवाह अनेक जिन्नगी बचावत ह। पर झूठा गवाह, तबाही लावत ह। 26 अइसा मनई जउन परमेस्सर स डेरात ह, उ परमेस्सर म सुरच्छित जगह पावत ह। अउर हुवँइ ओनके गदेलन क भी सरण मिलत ह। 27 यहोवा क भय जिन्नगी क सोता होत ह, उ मनई क मउत क फंदे स बचावत ह। 28 विस्तृत बिसाल परजा राजा क महिमा अहइ, मुला परजा बिना राजा नस्ट होइ जात ह। 29 धीरज स पूर मनई बहोतइ समुझ-बूझ राखत ह। मुला अइसा मनई जेका हालीं स किरोध आवइ उ तउ आपन ही बेववूफी देखावत ह। 30 सान्त मन तने क जिन्नगी देत ह मुला जलन हाड़न तलक नास कइ देत ह। 31 जउन गरीब क सतावत ह, उ तउ सबक सिरजनहार क अपमान करत ह। मुला उ तउ कउनो गरीब पइ दयालु रहत ह, उ परमेस्सर क आदर करत ह। 32 जब विनास आवत ह तउ दुट्ठ मनइ तबाह होइ जाइ; मुला धमीर् जन तउ मउत मँ भी सुरच्छित स्थान पइ रहत ह। 33 बुद्धिमान क हिरदय मँ बुद्धि क निवास होत ह, अउर मूरखन क बीच भी उ आपन क जनावत ह। 34 नेकी स रास्ट्र क उत्थान होत ह; मुला पाप हर जाति क कलंक होत ह। 35 विवेकी सेवक, राजा क खुसी अहइ, मुला उ सेवक जउन मूरख होत ह उ ओकर किरोध जगावत ह।

15:1 कोमल जवाबे स किरोध सांत होत ह; किन्तु कठोर वचन किरोध क भड़कावत ह। 2 जब कउनो बुद्धिमान बोलत ह तउ दूसर ओका सुनइ चाहत ह, मुला मूरख क मुँह बेववूफी उगलत ह। 3 यहोवा क आँखी हर कहूँ लगी भई अहइ। उ नीक-बुरे क देखत रहत ह। 4 दयावाली बात जिन्नगी क बृच्छ क नाईं अहइ। मुला कपट स भरी वाणी मने क तोड़ देत ह। 5 मूरख आपन बाप क डाँट फटकार क तिरस्कार करत ह। मुला जउन डाँट फटकार पइ कान देत ह बुद्धिमान होत ह। 6 धमिर्न क घरे मँ बहोत सारा चिज रहत ह। दुट्ठ क कमाई ओह पइ मुसिबत लिआवत ह। 7 बुद्धिमान क वाणी गियान फइलावत ह, मुला मूरखन क मन अइसा नाहीं करत ह। 8 यहोवा दुट्ठ क चढ़ावा स घिना करत ह मुला ओका सज्जन क पराथन ही खुस कइ देत ह। 9 दुट्ठन क राहन स यहोवा घिना करत ह। मुला जउन धामिर्कता क राहे पइ चलत हीं, ओनसे उ पिरेम करत ह। 10 ओकरी प्रतीच्छा मँ कठोर दण्ड रहत ह जउन राहे स भटक जात, अउर जउन सुधार स घिना करत ह, उ निहचय मरि जात ह। 11 जबकि यहोवा क समन्वा मउत अउ बिनासे क रहस्य खुला पड़ा अहइँ। तउ निहचित रूप स उ लोगन क हिरदयन क बारे मँ बहोत जियादा जानत ह। 12 उ व्यक्ति जउन डाँट फटकार करइवालन क मजाक उड़ावत ह, उ विवेकी स परामर्स नाहीं लेत। 13 मने क खुसी मुँह क चमकावत, मुला मने क दर्द आतिमा क वुचरि देत ह। 14 जउने मने क नीक-बुरा क बोध होत ह उ तउ गियान क खोज मँ रहत ह मुला मूरख क मन, मूरखता पइ लागत ह। 15 गरीब व्यक्ति बरे हर एक दिन बुरा अहइ, किन्तु आनन्दित हिरदय बरे हर एक दिन उत्सव क नाईं अहइ। 16 बेचैनी क संग प्रचुर धन उत्तिम नाहीं, यहोवा भय मानत रहइ स तनिक भी धन उत्तिम अहइ। 17 घिना क संग जियादा खइया स, पिरेम क संग थोड़ा भोजन उत्तिम अहइ। 18 किरोधी जन वाद-विवाद भड़कावत ह। जबकि सहइवाला मनई वाद-बिवाद क सुलझावत ह। 19 आलसी क राह काँटन स रूँधी रहत हीं, जबकि सज्जन क मारग राजमार्ग होत ह। 20 विवेकी पूत अपने बाप क खुस करत ह, मुला मूरख मनई अपनी महतारी स घिना करत ह। 21 निर्बुद्धि मनई सोचत ह कि मूरखता मजाक अहइ। मुला समुझदार मनई सोझ राह चलत ह। 22 बिना परामर्स क जोजना बिफल होत हीं। किंतु एक मनई अनेक सलाहकारन क परामर्स स सफल होत हीं। 23 मनई उचित जवाब देइ स खुस होत ह। जइसा उचित होइ समय क बचन केतना उत्तिम अहइ। 24 बुद्धिमान जन क मारग ओका ऊँच स ऊँच लइ जात ह, अउर ओका मउत क गड़हा मँ गिरइ स बचा रहइ। 25 यहोवा अभिमानी क घरे क छिन्न-भिन्न करत ह। मुला उ गरीब राँड़ क भुइयाँ क देखरेख करत ह। 26 दुट्ठन क जोजना स यहोवा क घिना अहइ। पर सज्जनन क जोजना ओका हमेसा भावत हीं। 27 लालची मनई अपने घराने पइ हमेसा बदनामी लिआवत ह मुला उहइ सांति स जिअत रहत ह जउन जन-घूस स घिना भाव राखत ह। 28 धमीर् जन बोलइ स पहिले सोचत ह। मुला दुट्ठ जन बेसोचे समुझे बियर्थ बातन बोलत ह। 29 यहोवा दुट्ठन स दूर रहत ह, बहोत दूर; मुला उ धमीर् क पराथना सुनत ह। 30 आंनद स भरी आँखी क चमक मने क हसिर्त करत ह, नीक खबर हाड़न तलक ताकत पहोंचावत ह। 31 जउन जीवनदायी डाँट सुनत ह, उहइ बुद्धिमान जनन क बीच चैन स रही। 32 अइसा मनई जउन अनुसासन क उपेच्छा करत, उ तउ आपन जिन्नगी क ही रद्द करत ह। मुला जउन सुधार पइ धियान देत ह समुझ-बूझ पावत ह। 33 यहोवा क भय लोगन क गियान सिखावत ह। आदर पावइ स पहिले नम्रता आवत ह।

16:1 मनई तउ आपन जोजना क बनावत ह, मुला ओनका यहोवा ही कारज क रूप देत ह। 2 मनई क आपन राहन पाप रहित लागत ही; मुला यहोवा ओकरी नियत क परखत ह। 3 जउन कछू तू यहोवा क समर्पण करत अहा तोहार सारी जोजनन सफल होइहीं। 4 यहोवा हर एक चिजियन बरे जोजना बनाएस ह, अउर आपन जोजना क मुताबिक दुट्ठन क नास कीन्ह जाब। 5 जेनके मने मँ अहंकार भरा भवा अहइ, ओनसे यहोवा घिना करत ह। एका तू सुनिहचित जाना, कि उ पचे बगैर सजा पाए नाहीं बचिहीं। 6 वफादारी अउर सच्चाइ स अपराध क खतम किया जा सकत ह। यहोवा क आदर करइ स तू बुराइ स बचब्या। 7 यहोवा क जब मनई क राहन भावत हीं, उ ओकरे दुस्मनन क भी संग सान्ति स रहइ क मीत बनाइ देत ह। 8 अनिआव स मिले जियादा क अपेच्छा, नेकी क संग तनिक मिलब ही उत्तिम अहइ। 9 मने मँ मनई निज राहन रचत ह, मुला यहोवा ओकरे गोड़न क सुनिहचित करत ह। 10 राजा जउन बोलत ह नेम बन जात ह। ओका चाही उ निआव स नाहीं चूकइ। 11 यहोवा चाहत ह कि सबइ तराजू अउ बाट खरा होइ। उ चाहत ह कि सबइ व्यापारिक कारोबार निस्पच्छ होइ। 12 विवेकी राजा, बुरे करमन स घिना करत ह काहेकि नेकी पइ ही सिंहासन टिकत ह। 13 राजा लोगन क निआव स भरी वाणी पसन्द करइ चाही। जउन जन फुरइ बोलत ह, उ पचन्क ओका सम्मान देइ चाइही। 14 राजा क कोप मउत क दूत होत ह मुला गियानी जन स ही उ संात होइ। 15 राजा जब खुस होत ह तब सबइ क जिन्नगी उत्तिम होत ह, अगर राजा तोहसे खुस अहइ तउ उ बसंत ऋतु क बर्खा जइसी अहइ। 16 विवेक सोना स जियादा उत्तिम अहइ, अउर समुझबूझ पाउब चाँदी स उत्तिम अहइ। 17 सज्जन लोगन क राह बदी स दूर रहत ह। जउन आपन राहे क चौकस करत ह, उ आपन जिन्नगी क रखवारी करत ह। 18 नास आवइ स पहिले अहंकार आइ जात ह; अउ पतन स पहिले अहंकारी आवत ह। 19 स्वाभिमानी लोगन क संग लूटक सम्पत्ति बाँट लेइ स, दीन अउ गरीब लोगन क संग विनम्र रहब उत्तिम अहइ। 20 जउन भी आपन कारोबार म अच्छा अहइ उ फूली-फली। अउर जेकर भरोसा यहोवा पइ अहइ उहइ धन्न अहइ। 21 बुद्धिमान मनवाला विवेक कहवावत हीं। अउर उ व्यक्ति जउन सवधानी स सब्दन क चुनत ह उ जियादा बिस्सास जोग्ग होत ह। 22 जेनके लगे समुझबूझ अहइ, ओनके बरे समुझबूझ जिन्नगी सोता होत ह, मुला मूरखन क मूढ़ता ओनका सजा दिआवत ह। 23 बुद्धिमान क हिरदय आपन वाणी क अनुसासन मँ धरत ह; अउर बिस्सास जोग्ग सब्दन क जाड़त ह। 24 मन क भावइ वाली वाणी सहद जइसी होत ह। ओनका सरलता स ग्रहण किया जात ह अउर तोहार स्वास्थ्य बरे नीक होत ह। 25 मारग अइसा भी होत ह जउन उचित जान पड़त ह, मुला परिणाम मँ उ मउत क जात ह। 26 काम करइवाला क भूखे स भरी सबइ इच्छा ओहसे काम करवावत रहत हीं। इ भूख ही ओका अगवा ढकेलत ह। 27 बुरा मनई सडयंत्र रचत ह, अउर ओकर वाणी अइसी होत ह जइसी झुरसत आगी। 28 उत्पाती मनई बात-विवाद भड़कावत ह। अउर कानाफूसी करइ वाला निचके क मीतन क फोड़ देत ह। 29 आपन पड़ोसी क उ हिसंक फँसाइ लेत ह अउर वुमारग पइ ओका हींच लइ जात ह। 30 जब भी मनई आँखी स इसारा कइके योजनन क रचत रहत ह उ बिनासकारी ह। जब पड़ोसी क चोट पहुचावइ बरे जोजना रच लेत ह तउ उ हसँत ह। 31 सफेद बार महिमा मुवुट होत हीं जउन धमीर् जिन्नगी स मिलत हीं। 32 धरि जन कउनो जोधा स भी उत्तिम अहइँ, अउर जउन किरोध पइ नियंत्रण धरत ह, उ अइसे मनई स उत्तिम होत ह, जउन पूरे सहर क जीत लेत ह। 33 पासा तउ झोरी मँ डाइ दीन्ह जात ह, मुला ओकर हर फैसला यहोवा ही करत ह।

17:1 झंझट झमेला भरे घरे क दावत स चैन अउ सान्ति क सूखी रोटी क टूका खाउब उत्तिम अहइ। 2 बुद्धिमान दास एक अइसे पूत पइ सासन करी जउन घरे बरे सर्मनाक होत ह। बुद्धिमान दास उ पूत क जइसा ही बसीयत पावइ मँ सहभागी होइ। 3 जइसे चाँदी अउ सोना क आगी मँ डाइ क सुद्ध कीन्ह जात ह वइसे ही यहोवा लोगन क हिरदय क परखत सोधत ह 4 दुट्ठ जन, दुट्ठ क वाणी क सुनत ह, लबार बैर भरी वाणी पइ धियान देत ह। 5 अइसा मनई जउन गरीब क हँसी उड़ावत ह, उ ओकरे सिरजनहार क अपमान करत ह। अउर उ जउन कउनो दूसर क समस्या पइ खुस होत ह सजा झेलब्या। 6 नाती-पोतन बृद्ध जन क मवुट होत हीं, अउर महतारी-बाप ओनके लरिकन क मान अहइँ। 7 मूरख बरे जियादा बोलब उत्तिम नाहीं अहइ वइसे ही सासक क झूठ बोलब केतना बुरा होइ! 8 घूस देइवाले क घूस महामंत्र जइसे लागत ह, जेहसे उ जहाँ भी जाइ, सफल ही होइ जाइ। 9 जदि कउनो मनइ कउनो क जउन ओकर बुरा किहस ह छमा कइ देत ह तउ उ पचे दोस्त होइ सकत ह। किन्तु उ मनइ जउन छमा करत ह उ लगातार दूसर क गलती क याद करत ह तउ ओनकर दोस्ती टूट जात ह। 10 विवेकी क धमकाउब ओतना प्रभावित करत ह; जेतना मूरखन क सौ-सौ कोड़न भी नाहीं करतेन। 11 दुट्ठ जन तउ बस हमेसा विद्रोह करत रहत ही; ओकरे बरे दाया स हीन अधिकारी पठवा जाइ। 12 आपन बेववूफी मँ चूर कउनो मूरख स मिलइ स अच्छा बाटइ, कि उ रीछिन स मिलब जेहसे ओकर बच्चन क छीन लीन्ह गवा होइ। 13 भलाई क बदले मँ अगर कउनो बुराई करइ तउ ओकरे घरे क बुराई नाहीं तजी। 14 झगड़ा सुरू करब अइसा अहइ जइसे बाँध क टूटब अहइ, तउ, एकरे पहिले कि तकरार सुरू होइ जाइ बात खतम करा। 15 यहोवा एन दुइनउँ ही बातन स घिना करत ह, दोखी क छोड़ब, अउर निदोर्ख क सजा देब। 16 मूरख क हाथन मँ धने क का प्रयोजन। काहेकि, ओका चाह नाहीं कि बुद्धि क मोल लेइ। 17 मीत तउ सदा-सर्वदा पिरेम करत ह। एक सच्चा भाइ बुरे दिनन मँ साहयता करत ह। 18 विवेकहीन जन ही किरिया स हाथ बँधाइ लेत अउर आपन पड़ोसी क ऋृण ओढ़ लेत ह। 19 जेका लड़ाई - झगड़ा भावत ह, उ तउ सिरिफ पापे स पिरेम करत ह अउर जउन डींग हाँकत रहत ह उ तउ आपन ही नास बोलावत ह। 20 वुटिल हिरदय जन कबहुँ फूलत फलत नाहीं अउर जेकर वाणी छली भइ अहइ, विपद मँ गिरत ह। 21 मूरख पूत बाप बरे पीरा लिआवत ह, मूरख क बाप क कबहुँ आनंद नाहीं होत। 22 खुस रहब सब स बड़की दवा अहइ, मुला बुझा मन हाड़न क झुराइ देत ह। 23 दुट्ठ मनई, निआव क गलत उपयोग करइ बरे एकंात मँ घूस लेत ह। 24 बुद्धिमान जन बुद्धि क समन्वा धरत ह, मुला मूरख क आँखिन धरती क छोरन तलक भटकत हीं। 25 मूरख पूत बाप क तेज ब्यथा देत ह, अउर महतारी बरे जउन ओका जनम दिहस, कड़ुवाहट भरि देत ह। 26 कउनो निदोर्ख क दण्ड देब उचित नाहीं, ईमानदार नेता क पीटब नीक नाहीं अहइ। 27 गियानी जन खामूस रहत ही, समुझ-बूझ वाला जन आपन पइ काबू राखत ह। 28 मूरख भी जब तलक नाहीं बोलत नीक लागत ह। अउर अगर आपन वाणी रोकइ तउ गियानी जाना जात ह।

18:1 कछू मनई आपन इच्छा क अनुसार काम करत ही। जदि दूसर कउनो ओनका सलाह देत ह तउ उ कोहान जात ह। 2 मूरख जन दूसर स सीखइ मँ खुस नाही होत ह। उ जउन कछू सोचत ह उहइ बोलत मँ खुस होत ह। 3 लोग दुट्ठ व्यक्ति क नाही चाहवत ह। लोग मूरख लोग क मजाक उड़ावत ह। 4 बुद्धिमान क सब्द गहिर जल क नाईं होत हीं, उ पचे बुद्धि क सोता स उछरत भए आवत हीं। 5 दुट्ठ जन क पच्छ लेब अउर निदोर्ख क निआव स वंचित राखब उचित नाहीं होत। 6 मूरख क होठंन बात-विबाद क जनम देत ह अउर आपन मुँह क कारण उ पिटा जात ह। 7 मूरख क मुँह ओकरे कामे क बिगाड़ देत ह अउर ओकर आपन ही होंठन क जाले मँ ओकर परान फंसि जात ह। 8 लोग हमेसा गपसप सुनइ चाहत ही। इ उत्तिम भोजन क नाईंर् अहइ जउन पेट क भीतर उतरत चला जात ह। 9 जउन अपन काम मंद गति स करत ह, उ ओकर भाई अहइ, जउन विनास करत ह। 10 यहोवा क नाउँ एक सुदृढ़ गढ़ क नाईं अहइ। उ कइँती धमीर् जन दौड़ जात हीं अउर सुरच्छित रहत हीं। 11 धनिक समुझत हीं कि ओनकर धन ओनका बचाइ लेइ उ पचे समुझत हीं कि उ एक सुरच्छित किला अहइ। 12 पतन स पहिले मन अंहकारी बन जात ह, मुला सम्मान स पूर्व विनम्रता आवत ह। 13 बात क बिना सुने ही, जउन जवाब मँ बोल पड़त ह, उ ओकर बेववूफी अउ ओकर अपजस अहइ। 14 मनई क मन ओका बियाधि मँ थामे राखत ह; मुला टूटे हिरदय क भला कउनो कइसे थामइ। 15 बुद्धिमान क मन गियान क पावत ह, बुद्धिमान क कान एका खोज लेत हीं। 16 उपहार देइवाले क मारग उपहार खोलत ह अउर ओका महापुरुसन क समन्वा पहोंचाइ देत ह। 17 पहिले जउन बोलत ह ठीक ही लागत ह मुला बस तब तलक ही जब तलक दूसर ओहसे सवाल नाहीं करत ह। 18 अगर दुइ बरिआर आपुस मँ झगड़त होइँ, उत्तिम अहइ कि ओनके झगड़न क पाँसा बहाइके निपटाउब। 19 रूठे भए बन्धु क मनाउब कउनो गढ़ वाला सहर क जीत लेइसे जियादा कठिन अहइ। अउर आपुसी झगड़न अइसे होत ही जइसे गढ़ी क मुँदे दुआर होत हीं। 20 मनई क पेट ओकरे मुँहे क फले स ही भरत ह, ओकरे होंठन क खेती क प्रतिफल ओका मिलत ह। 21 जीभ क वाणी जिन्नगी अउर मउत क सवती रखत ह। अउर जउन वाणी स पिरेम राखत हीं, उ पचे ओकर फल स आनन्दित होत हीं। 22 जेका नीक पत्नी मिली अहइ, उ उत्तिम पदार्थ पाएस ह। ओका यहोवा क अनुग्रह मिलत ह। 23 गरीब जन तउ दाया क माँग करत ह, मुला धनी जन तउ कठोर जवाब देत ह। 24 बहोत सारे मीतन क संगत तबाही लाइ सकत ह। किंतु आपन घनिष्ठ मीत भाई स भी उत्तिम होइ सकत ह।

19:1 उ गरीब मनइ ओन व्यक्ति स बेहतर अहइ जउन झूट बोलत ह अउ मूरख अहइ। 2 बिना गियान क उत्साह राखब नीक नाहीं अहइ एहसे उतावली मँ गलती होइ जात ह। 3 मनई आपन बेववूफी स आपन जिन्नगी बिगाड़ लेत ह, मुला उ यहोवा क दोखी ठहरावत ह। 4 धन स बहोत सारे मीत बन जात हीं, मुला गरीब जन क ओकर मीत भी तजि जात ह। 5 लबार गवाह बगैर सजा पाए नाहीं बची अउर जउन झूठ उगलत रहत ह, छूटइ नाहीं पाई। 6 बहोत स लोग सासक क खुस करइ क जतन करत ह अउर हर एक मनइ ओकर मीत बन जावा चाहत हीं, जउन उपहार देत रहत ह। 7 निर्धन क सब संबंधी ओहसे कतरात हीं। ओकर मीत ओहसे केतना बचत फिरत हीं, जदपि उ ओन लोगन स मदद बरे बिनती करत हीं तउ पइ भी उ पचे ओकर लगे नाहीं जाइहीं। 8 जउन गियान पावत ह उ आपन प्राण स ही प्रीति राखत ह, उ जउन समुझ-बूझ बढ़ावत रहत ह फलत अउर फूलत ह। 9 लबार गवाह सजा पाए बिना नाहीं बची, अउर उ, जउन झूठ उगलत रहत ह, ध्वस्त होइ जाइल। 10 मूरख धनी नाहीं बनइ चाही। उ अइसे होइ जइसे कउनो दास युवराजन पइ राज करइ। 11 बुद्धिमान मनइ सदा साँत रहत ह। जब उ ओन लोगन क छिमा करत ह जउन ओकरे खिलाफ होइँ, तउ ओकर सम्मान अउर भी बढ़ जात ह। 12 राजा क किरोध सेर क दहाड़ जइसा अहइ, मुला ओकर कृपा घास पइ ओसे क बूँद स होत ह। 13 मूरख पूत आपन बाप बरे बिनासे क लावत ह। अउर एक झगरालू पत्नी हमेसा टपकइ वाला पानी क नाईं अहइ। 14 भवन अउ धन-दौलत महतारी बाप स विरासत मँ मिल जात ह। मुला बुद्धिमान पत्नी यहोवा क ओर स धन्न अहइ। 15 आलस गहिर घोर नींद देत ह; मुला उ आलसी भूखा मरत ह। 16 अइसा मनई जउन आदेसन पइ चलत ह उ आपन जिन्नगी क रच्छा करत ह। मुला जउन आदेसन क उपेच्छा करत ह उ निहचय ही मउत अपनावत ह। 17 गरीब पइ किरपा देखाउब यहोवा क उधार देब अहइ, यहोवा ओका, ओकरे इ कामे क प्रतिफल देइ। 18 तू आपन पूत क अनुसासित करा अउर ओका सजा द्या, जब उ अनुचित होइ। बस इहइ आसा अहइ। अगर तू अइसा करइ क मना करा, तब तउ तू ओकरे बिनासे मँ ओकर सहायक बनत अहा। 19 अगर कउनो मनई क तुरंत किरोध आवइ, ओका एकर कीमत चुकावइ क होइ। अगर तू ओकर रच्छा करत अहा, तउ केतनी ही बार तोहे ओका बचावइ क होइ। 20 सुमति पइ धियान द्या अउर सुधार क अपनाइ ल्या तू जेहसे आखीर मँ तू बुद्धिमान बन जा। 21 मनई अपने मने मँ का का करइ क सोचत ह; कितुं यहोवा क जोजना पूरा होत ह। 22 लोग चाहत हीं मनई बिस्सास जोग्ग अउ सच्चा होइ। एह बरे गरीबी मँ बिस्सास क जोग्ग अउ सच्चा बनके रहब उचित अहइ अइसा मनई स जउन झूटा अउर धनी अहइ। 23 यहोवा क भय सच्ची जिन्नगी क राह देखावत ह, एहसे मनई सान्ति पावत ह अउर कस्ट स बचत ह। 24 एक आलसी आपन हाथ थारी मँ डालत ह मुला उ ओका मुँहे तलक उठावइ मँ बहोत सुस्ती क अनुभव करत ह। 25 ठट्ठा करइवाला मनई क मारा ताकि एक साधारन जन आहसे सीख पाइ। मामूली डाँट डपट ही एक बुद्धिमान मनई बरे काफी होत ह। 26 अइसा पूत जउन निन्दा क जोग्ग करम करत ह घरे क अपमान होत ह; उ अइसा होत ह जइसे पूत कउनो आपन बाप स छोरइ अउर घरे स असहाय महतारी क निकारि बाहेर करइ। 27 हे मोर पूत अगर अनुसासन पइ धियान देब तजि देब्या, तउ तू गियान क बचनन स भटक जाब्या। 28 भ्रस्ट गवाह निआव क सम्मान नाहीं देत ह। अउर दुस्ट क मुँह बुराई क भस्म कर देत ह। 29 उ जउन सम्मान नाहीं देत ह सजा पाइ, अउर मूरख जन क पीठ कोड़न खाइ।

20:1 सराब अउ दाखरस लोगन क काबू मँ नाहीं रहइ देतेन। उ ओनका हल्ला करइवाला अउर सेरवी जतावइ वाला बनावत ह। अउर उ जउन मदमसत होइ जात ह मूरखता क कार्य करत ह। 2 राजा क किरोध सेर क दहाड़ क सम्मान होत ह, जउन ओका किरोधित करत ह, प्राण स हाथ धोवत ह। 3 झगड़न स दूर रहब मनई क आदर अहइ। मुला मूरख जन तउ सदा झगड़ा करइ बरे तइयार रहत ह। 4 मौसम आवइ पइ अदूरदसीर् आलसी हर नाहीं डावत ह, तउ कटनी क समइ उ ताकत रहि जात ह अउर कछू भी नाहीं पावत ह। 5 व्यक्ति क सोच गहिर पानी क नाईं होत ह। कितुं समुझदार मनई ओनका बाहेर हींच लेत ह। 6 लोग आपन बिस्सास जोग्गता क बहोत ढोल पीटत हीं। मुला बिस्सास क जोग्ग जन क कउन खोज सकत ह 7 धमीर् जन बेकलके क जिन्नगी जिअत ह ओकरे पाछे आवइवाली संतानन धन्न अहइँ। 8 जब राजा निआव क सिंहासने पइ विराजत भवा आपन दृस्टि माय स बुराई क फटकि के छाँटत हइ। 9 कउन कहि सकत ह, “मइँ आपन हिरदय रखेउँ ह, मइँ बिसुद्ध, अउर पाप रहित हउँ?” 10 एन दुइनउँ स, खोट बाटन अउर खोट नापन स यहोवा घिना करत ह। 11 बालक भी आपन करमन स जाना जात ह, कि ओकर चालचलन सुद्ध अहइ, या नाहीं। 12 यहोवा कान बनाएस ह कि हम सुनी। यहोवा आँखिन बनाएस ह कि हम लखी। यहोवा इ दुइनउँ क एह बरे हमरे बरे बनाएस। 13 नींद स पिरेम जिन करा दरिद्र होइ जाब्या; तू जागत रहा तोहरे लगे भरपूर भोजन होइ। 14 गाहक बेसहत समइ कहत ह, “अच्छा नाहीं, बहोत मँहग!” मुला जब उ हुआँ स उ दूर चला जात ह आपन खरीद क सेखी बघारत ह। 15 कउनो मनई क लगे सोना बहोत बाटइ अउर मणिमाणिक बहोत ढेर अहइँ, मुला अइसे ओंठ जउन बातन गियान क बतावत दुर्लभ रतन होत हीं। 16 जउन कउनो अजनबी क ऋृण क जमानत देत ह उ आपन ओढ़ना तलक गँवाइ बइठत ह। 17 छले स कमाई रोटी मीठ लागत ह पर अंत मँ ओकर मुँह काँकरे स भरि जात ह। 18 सबइ जोजना स पहिले तू उत्तिम सलाह पाइ लिहा करा। जदि तोहका जुद्ध करब होइ तउ उत्तिम लोगन स अगुवाइ ल्या। 19 बकवादी रहस्य क फास कइ देत ह। यह बरे रहस्यमय बातन क बकवादी मनई स जिन कहा। 20 कउनो मनई आपन बाप क या आपन महतारी क कोसइ, ओकर दीया बुझ जाइ अउर गहिर अँधियारा होइ जाइ। 21 बेइमानी स प्राप्त कीन्ह गवा सम्पत्ति अंत मँ आसीस नाही लाइहीं। 22 इ बुराई क बदला मइँ तोहसे लेब। अइसा तू जिन कहा, यहोवा क बाट जोहा तोहका उहइ अजाद करी। 23 यहोवा खोटे बटखरन, गलत तराजू अउ पेमाना स घिना करत ह। खोटा माप नीक नाहीं बाटइ। 24 यहोवा फैसला करत ह कि हर एक मनई क जिन्नगी मँ का होइ। कउनो मनई कइसा समुझ सकत ह कि ओकरे जिन्नगी मँ का घटइवाला अहइ? 25 परमेस्सर क कछू अर्पण करइ क प्रतिग्या स पहिले ही विचार ल्या; भली भाँति विचार ल्या। होइ सकत ह जदि तू पाछे अइसा सोचा, “मइँ उ प्रतिग्या नाहीं करत। किन्तु तोहका उ प्रतिग्या पूरा करइ क होइ जउन तू परमेस्सर स किहा ह।” 26 विवेकी राजा इ फैसला करत ह कि कउन बुरा जन अहइ। अउर उ राजा उ जन क सजा देइ। 27 यहोवा क दीपक जन क आतिमा क जाँच लेत ह। यहोवा जने क अन्दर तलक लखा सकत ह। 28 वफादारी अउर सच्चाइ राजा क सुरच्छित रखत ह। किन्तु ओकर सिंहासन सिरिफ ओकर वफादारी पइ टिकत ह। 29 नउजवानन क महिमा ओनके बल स होत ह अउर बृद्धन क गौरव ओनकर पके बाल अहइँ। 30 अगर हमका सजा दीन्ह जाइ तउ हम बुरा करब तजि देइत ह। दर्द मनई क परिवर्तन कइ सकत ह।

21:1 राजा लोगन क मन यहोवा क हाथे होत ह, जहाँ भी उ चाहत ह ओका मोड़ देत ह वइसे ही जइसे कउनो किसान पानी क खेते क। 2 सबहिं क आपन आपन राहन उत्तिम लागत हीं; मुला यहोवा तउ मने क तउलत ह। 3 तोहार उ करम क करब जउन उचित अउर नेक अहइ यहोवा क जियादा चढ़ावा चढ़ावइ स ग्राह्य बाटइ। 4 घमण्डी आँखिन अउ दपीर्ला मन पाप अहइँ इ सबइ दुट्ठ क दुट्ठता प्रकास मँ लिआवत हीं। 5 परिश्रमी क योजनन फायदा देत हीं इ वइसे ही निहचित अहइ जइसे उतावली स गरीबी आवत ह। 6 झूठ बोलि बोलिके कमावा धन दौलत अउ महिमा भाप क नाईं स्थिर नाहीं अहइ। अउर नाहीं अहइ, अउ उ घातक फंदा बन जात ह। 7 दुट्ठ क हिंसा ओनका हींच लइ बूड़ी काहेकि उ पचे उचित करम करइ नाहीं चाहतेन। 8 अपराधी क मारग वुटिलतापूर्ण होत ह मुला जउन नीक अहइँ ओनकर राह सोझ सच्चा होत हीं। 9 झगड़ालू मेहरारू क संग घरे मँ निवास स, छत क कउने कोने पइ रहब नीक अहइ। 10 दुट्ठ जन हमेसा बुराइ करइ क इच्छुक रहत ह। ओकर पड़ोसी ओहसे दाया नाहीं पावत। 11 जब उच्छृंखल सजा पावत ह तब सरल जन क बुद्धि मिलि जात ह। मुला बुद्धिमान तउ डाँट फटकार करइ पइ ही गियान क पावत ह। 12 निआव स पूर्ण परमेस्सर दुट्ठ क घरे पइ आँखी धरत ह, अउर दुट्ठ जन क उ नास कइ देत ह। 13 अगर कउनो गरीब क, करुणा पुकार पइ कउनो मनई आपन कान बंद करत ह, तउ जब उ पुकारी तउ ओकर पुकार पइ भी कउनो उत्तर नाहीं दिहीं। 14 गुप्त रूप स दीन्ह गवा भेंट किरोध क सांत करत ह। अउर गुप्त रूप स दीन्ह गवा उपहार खउफनाक किरोध क सांत करत ह। 15 निआव जब पूर्ण होत ह धमीर् क सुख देत ह, मुला वुकमिर्यन क महा भय होत ह। 16 जउन मनई विवेक क पथ स भटकि जात ह, उ विस्राम करइ बरे मृतकन क साथी होइ जात ह। 17 जउन सुख भोगन स पिरेम करत रहत ह उ दरिद्र होइ जाइ, अउर जउन दाखरस अउ अतर स पिरेम करत ह कबहुँ धनी नाहीं होइ। 18 दुर्जन क कबहुँ ओन सबहिं चिजियन क फल भुगतइ क ही पड़ी, जउन सज्जन क खिलाफ करत हीं। बेईमान लोगन क ओनके किए गए क फल भुगतइ पड़ी जउन ईमानदार लोगन क विरुद्ध करत हीं। 19 चिड़चिड़ी झगड़ालू मेहरारू क संग रहइ स रेतिस्तान मँ रहब उचित अहइ। 20 विवेकी क घर मँ मनचाहा खइया क अउर इफरात तेल क भंडारा भरा होत ह मुला मूरख मनई जउन ओकरे लगे होत ह चट कइ जात ह। 21 जउन जन नेकी अउ पिरेम क पालन करत ह, उ जिन्नगी संपन्नता अउर समादर क पावत ह। 22 बुद्धिमान जन क कछू भी कठिन नाहीं अहइ। उ अइसे सहर पइ चढ़ाई कइ सकत ह जेकर रखवारी सूरवीर करत होइँ, उ उ परकोटे क ध्वस्त कइ सकत ह जेकरे बरे उ आपन सुरच्छा क बिस्सास मँ रहेन। 23 उ जउन आपन मुँह क अउर आपन जीभ क बस मँ राखत ह उ आपन आप क बिपत्ति स बचावत ह। 24 अइसा मनई अहंकारी होत ह, जउन आपन क औरन स स्रेस्ठ समुझत ह, ओकर नाउँ हीं “अभिमानी” होत ह। आपन ही करमन स उ देखाइ देत ह कि उ दुट्ठ होत ह। 25 आलसी मनई बरे ओकर ही सबइ लालसा ओकरे मरण क कारण बन जात हीं काहेकि ओकरे हाथे करम क नाहीं अपनउतेन। 26 कछू लालची लोग दिन भइ इच्छा करत ही कि ओका अउर मिलाइ। अउर किन्तु धमीर् जन तउ उदारता स देत ह। 27 दुट्ठ क चढ़ावा यूँ ही घिना स पूर्ण होत ह फिन केतना बुरा होइ जब उ ओका बुरे भाव स चढ़ावइ? 28 लबार गवाह क नास होइ जाइ अउर जउन ओकर झूठी बातन क सुनी उ भी ओकरे संग हमेसा सर्वदा बरे नस्ट होइ जाइ। 29 दुट्ठ मनई बुरा करइ बर ठान लेत ह। किन्तु एक ईमानदार व्यक्ति जानत ह कि ओकर राह सीधी अहइ। 30 जदि यहोवा न चाहइ तउ, न ही कउनो बुद्धि अउर न ही कउनो अन्तदृस्टि, न ही कउनो जोजनन पूरी होइ सकत ह। 31 जुद्ध क दिन तउ घोड़ा तैयार कीन्ह ह, मुला विजय तउ बस यहोवा पइ निर्भर अहइ।

22:1 अच्छा नाउँ अपार धन पावइ स जोग्ग अहइ। चाँदी, सोना स, तारीफ क पात्र होब जियादा उत्तिम अहइ। 2 धनियन मँ अउर निर्धनन मँ इ एक समता अहइ। यहोवा ही एन सबहिं क सिरजनहार अहइ। 3 वुसल जन जब कउनो विपत्ति क लखत ह, ओका बचइ बरे एहर ओहर होइ जात ह मुला मूरख उहइ राहे पइ बढ़त ही जात ह। अउर उ एकरे बरे दुःख ही उठत ह। 4 जब मनई विनम्र होत ह अउ यहोवा क भय करत ह उ धन-दौलत, आदर अउर जिन्नगी पाइहीं। 5 वुटिल क राहन काँटन स भरी होत ह अउर हुआँ पइ फंदन फइला होत ही; मुला जउन आतिमा क रच्छा करत ह उ तउ ओनसे दूर ही रहत ह। 6 बच्चन क जबकि उ छोटा अहइ जिन्नगी क नीक राह क सिच्छा दइ। तउ उ बुढ़ापा मँ भी ओहसे भटकी नाहीं। 7 धनी दरिद्रन पइ सासन करत हीं। उधार लेइवाला, देइवाल क दास होत ह। 8 अइसा मनई जउन दुट्ठता क बीज बोवत ह उ तउ संकट क फसल काटी; अउर ओकर किरोध क लाठी नस्ट होइ जाइ। 9 उदार मने क मनई खुद ही धन्न होइ, काहेकि उ आपन भोजन गरीब जने क संग बाँटिके खात ह। 10 गुस्ताख मनई जउन कि कउनो क सम्मान नाहीं देत ह क दूर करा तउ कलह दूर होइ। एहसे झगड़ा अउ अपमान मिट जात हीं। 11 उ जउन पवित्तर मने स पिरेम करत ह अउर जेकर वाणी मनोरम होत ह ओकर तउ राजा भी मीत बन जात ह। 12 यहोवा सदा विवेक क धियान राखत ह; मुला उ बिस्सासघाती क कार्य क नास करत ह। 13 काम नाहीं करइ क बहाना बनावत भवा आलसी कहत ह, “बाहेर सेर बइठा अहइ, “होइ सकत ह कि गलियन मँ मोका मार डावा जाइ।” 14 बिभिचार क पाप गहिर गढ़ा क नाईं अहइ। यहोवा ओहसे बहोतइ कोहाइ जाइ जउन भी इ मँ गिरी। 15 लरिकन सैतानी करत रहत हीं; मुला अनुसासन क छड़ी ही सैतानी दूर कइ देत ह। 16 अइसा मनई जउन आपन धन बढ़ावइ बरे गरीब पइ अत्याचार करत ह; अउर उ, जउन धनी क उपहार देत ह, दुइनउँ ही अइसे जन अहइ जउन निर्धन होइ जात हीं। 17 बुद्धिमान क कहावतन सुना अउर धियान द्या। ओह पइ धियान लगावा जउन मइँ सिखावत हउँ। 18 अगर तू ओनका आपन मने मँ बसाइ ल्या तउ बहोत नीक होइ; तू ओनका हरदम आपन ओंठन पइ तैयार राखा। 19 मइँ तोहका आजु सिच्छा देत हउँ ताकि तोहार यहोवा पइ बिस्सास पैदा होइ। 20 इ सबइ तीस सीखन मइँ तोहरे बरे रचेउँ, इ सबइ बचन सम्मति अउर गियान क अहइँ। 21 उ सबइ बचन जउन महत्वपूर्ण होतिन, इ सबइ सत्य बचन तोहका सिखइहीं ताकि तू ओका उचित जवाब दइ सका, जउन तोहका पठएस ह। 22 तू गरीब क सोसण जिन करा। एह बरे कि उ पचे बस दरिद्र अहइँ; अउर कंगाले क कचहरी मँ जिन हीचा। 23 काहेकि परमेस्सर ओनकर सुनवाई करी अउर जउन ओनका लूटेन ह उ ओनका लूट लेइ। 24 तू किरोधी सुभाव क मनइयन क संग कबहुँ मिताई जिन करा अउर ओकरे संग, आपन क जिन जोड़ा जेका हाली किरोध आइ जात ह। 25 नाहीं तउ तू भी ओकरे राहे चालब्या अउर आपन क जालि मँ फँसाइ बइठब्या। 26 तू कउनो दूसर क कर्ज बरे जमानतदार नाहीं बना। 27 जदि ओका चुकावइ मँ तोहार साधन चुकिहीं तउ खाले क बिस्तर तलक तोहसे छोर लीन्ह जाइ। 28 तोहरे धरती क सम्पत्ति जेकर चउहद्दिन तोहार पुरखन निर्धारित किहन उस सीमा रेखा कबहुँ भी जिन हिलावा। 29 अगर कउनो मनई आपन कारज मँ वुसल अहइ, तउ उ राजा लोगन क सेवा करइ क जोग्ग अहइ। अइसे मनइयन बरे जेनकर कछू महत्व नाहीं ओका काम करइ क जरूरत नाहीं अहइ।

23:1 जब तू कउनो अधिकारी क संग खइया क बरे बइठा तउ एकर धियान राखा, कि कउन तोहरे समन्वा अहइ। 2 अगर तू पेटू अहा तउ खाना पइ नियंत्रण राखा। 3 ओकरे स्वादिस्ट पकवानन क लालसा जिन करा काहेकि उ खइया धोका बाज़ अहइ। 4 धनवान बनइ क काम कइ कइके आपने क जिन थकावा। तू संयम देखावइ क, बुद्धि अपनाइ ल्या। 5 इ सबइ धन सम्पत्तियन लखत हीं लखत लुप्त होइ जइहीं निहचय ही आपन पंखन क फइलाइके उ पचे गरूड़ क नाईं अकासे मँ उड़ि जइहीं। 6 अइसे मनई क संग जउन स्वाथीर् अहइ भोजन जिन करा। तू ओकरे स्वादिस्ट पकवाने क लालसा जिन करा। 7 काहेकि उ अइसा मनई अहइ जउन मन मँ हरदम ओकरी कीमत क हिंसाब लगावत रहत ह; तोहसे तउ उ कहत ह- “तू खा अउर पिआ” मुला उ मने स तोहरे संग नाहीं अहइ। 8 जउन कछू थोड़ा बहोत तू ओकर खाइ चुका अहा, तोहका तउ उ भी उलटइ पड़ी अउर उ पचे तोहार कहे भए आदर स पूर्ण वचन बियर्थ चला जइहीं। 9 तू मूरख क संग बातचीत जिन करा, काहेकि उ तोहरे विवेक स भरे वचनन स धिना ही करी। 10 पुराने जमाने क सीमा क पत्थर क जिन सरका। अउर अनाथे क भुइयाँ क जिन हड़पा। 11 काहेकि ओनकर संरच्छक सामरथ स पूरा अहइ, तोहरे खिलाफ ओनकर मुकदमा उ लड़ी। 12 तू आपन मन सीख क बातन मँ लगावा। तू गियान स भरे बचनन पइ कान द्या। 13 तू कउनो गदेला क अनुसासित करइ मँ कबहुँ जिन रोका अगर तू कबहुँ ओका छड़ी स सजा देब्या तउ उ एहसे नाहीं मरी। 14 तू छड़ी स पीटिके ओका अउर ओकर जिन्नगी क मउत स बचाइ लेब्या। 15 हे मोर पूत, जदि तोहार मन विवेक स पूर्ण रहत ह तउ मोर मन भी आनंद स पूर्ण रही। 16 अउर जदि तोहार ओंठ उचित बोलत हीं, तउ मइँ बहोत खुस होब्या। 17 तू आपन मने मँ भी पापे स भरा मनइयन क बरे जलन जिन करा। मुला तू एकर बजाए यहोवा स सदा डरा। 18 तउ तोहार लगे भविस्य होई, अउर तोहार आसा कबहुँ ध्वस्त नाहीं होई। 19 मोर पूत सुना! अउर विवेकी बनि जा अउर आपन मन क नेकी क राहे पइ चलावा। 20 तू ओनके संग जिन रहा जउन पियवकड़ अहइँ, अथवा अइसे, जउन ठँूस ठँूस गोस खात हीं। 21 काहेकि इ पचे पियवकड़ अउर इ सबइ पेटू दलिद्र होइ जइहीं, अउर इ ओनकर खुमारी, ओनका चिथड़न पहिरइहीं। 22 आपन बाप क सुना जउन तोहका जिन्नगी दिहेस ह, अपनी महतारी क निरादर जिन करा जब उ बुढ़िया होइ जाइ। 23 सच्चाई क खरीद ल्या अउर ओका जिन बेचा। अइसे ही विवेक, अनुसासन अउ समुझ क भी खरीद ल्या। 24 नेक पूत क बाप महा आनंद मँ रहत अउर जेकर पूत विवेक स पूर्ण होत ह उ तउ ओहमाँ ही खुस रहत ह। 25 तोहार महतारी अउ तोहार बाप क आनंद प्राप्त होइ अउर तोहार महतारी जउन तोहका जन्म दिहस, ओका खुसी मिलत रहइ। 26 मोर पूत, मोहमाँ मन लगावा अउर तोहार आँखिन मोह पइ टिकी रहइँ। मोका आदर्स माना। 27 एक वेस्या गहिर गड़हा होत ह। अउर एक बदकार मेहरारु मुसीबत स भरा वुआँ अहइ। 28 उ घात मँ रहत ह जइसे कउनो डाकू अउर उ लोगन मँ बिस्सास हीनन क संख्या बढ़ावत ह। 29 कउन बिपत्ति मँ अहइ? कउन दुःखे मँ पड़ा अहइ? कउन झगड़न-टंटन मँ अहइ? कउने क सिकाइतन अहइँ? कउन क घाव अहइ? केकर आँखिन लाल अहइँ? 30 उ पचे जउन लगातार दाखरस पिअत रहत हीं अउर जेनमाँ मसाला मिली भइ दाखरस क ललक होत ह। 31 जब दाखरस लाल होइ, अउर पिआलन मँ झिलमिलात होइ अउ धीरे धीरे डावत जात होइ, ओका ललचाही आँखिन स जिन लखा। 32 सर्प क समान उ डसत, आखीर मँ जहर भरि देत ह जइसे नाग भरि देत ह। 33 तोहरी आँखिन मँ अजीब दृस्य तैरइ लगिहीं, तोहार मन उल्टी-सोझ बातन मँ उलझी। 34 तू अइसा होइ जाइ, जइसे उफनत सागरे पइ सोवत रहत होइ अउर जइसे मस्तूल क सिखर ओलरा होइ। 35 तू कहब्या, “उ पचे मोका मारेन पर मोका तउ दर्द क अनुभव नाहीं हुआ। उ पचे मोका पीटेन, पर मोका याद ही नाहीं मइँ उठी क लायक नाहीं हउँ, मोका पिअइ क अउर द्या।”

24:1 बुरे जन स तू कबहुँ डाह जिन करा। ओनकर संगत क तू चाहत जिन करा। 2 काहेकि ओनके मन हिंसा क योजनन रचत अउर ओनकर ओंठ दुःख देइ क बातन करत हीं। 3 बुद्धि स घरे क निर्माण होइ जात ह, अउर समुझ स ही उ थिर रहत ह। 4 गियान क जरिये ओकर कमरा अद्भुत अउर सुन्नर खजानन स भरि जात हीं! 5 बुद्धिमान जन मँ महासवती होत ह अउर गियानी पुरूख सवती क बढ़ावत ह। 6 जुद्ध लड़इ बरे परामर्स चाही अउर विजय पावइ बरे बहोत स सलाहकार। 7 मूरख बुद्धि क नाहीं समुझत जब महत्व स पूर्ण बातन क चर्चा करत हीं तउ मूरख समुझ नाहीं पावत। 8 सड्यंत्रकारी उहइ कहवावत ह, जउन बुरी योजनन बनावत रहत ह। 9 मूरख क योजनन पापी अहइ अउर घमण्डी निन्दक जन क लोग तजि देत हीं। 10 अगर तू बिपत्ति मँ हिम्मत छोड़ बइठब्या, तउ तोहार सवती केतनी थोड़ स अहइ। 11 जदि कउनो क हत्तिया क कउनो सड्यंत्र रचइ तउ ओका बचावइ क तोहका जतन करइ चाही। 12 तू अइसा नाहीं कहि सकत्या, “मोका एहसे का लेब।” यहोवा सब कछू जानत ह अउर इ भी उ जानत ह कि तू काहे काम करत अहा? यहोवा तोहका लखत रहत ह। उ तोहरे भीतर क जानत ह अउर उ हर एक क ओकर करमन क अनुसार प्रतिफल देत ह। 13 हे मोर पूत, तू सहद खावा करा काहेकि उ उत्तिम अहइ। इ तोहका मीठ लागी। 14 इहइ तरह इ तू भी जान ल्या कि आतिमा क तोहार बुद्धि मीठ लागी, अगर तू एका पउब्या तउ ओहमाँ निहित बाटइ तोहरी भविस्स क आसा अउर उ तोहार आसा कबहुँ भंग नाहीं होइ। 15 धमीर् मनई क घरे क विरोध मँ लुटेरा क नाईं घात मँ जिन बइठा अउर ओकरे निवासे पइ जिन छापा मारा। 16 काहेकि एक नेक चाहे सात दाईं गिरइ, फुन भी उठि बइठी। मुला दुट्ठ जन विपत्ति मँ बूड़ि जात ह। 17 सत्रु क पत्तन पइ आनन्द जिन करा। जब ओका ठोकर लागइ, तउ आपन मन खुस जिन होइ द्या। 18 अगर तू अइसा करब्या, तउ यहोवा लखी अउर उ तोहसे खुस नाहीं होइ, अउर उ तोहार दुस्मन पइ कोहाइ तजि देब। 19 तू दुर्जनन क संग कबहुँ जलन जिन राखा, ओन लोगन क कारण किरोधित जिन होवा। 20 काहेकि दुट्ठ जन क कउनो भविस्स नाहीं अहइ। दुट्ठ जन क दीया बुझाइ दीन्ह जाइ। 21 हे मोर पूत, यहोवा स अउर राजा स डरा विद्रोहियन क संग कबहुँ जिन मिला। 22 काहेकि उ पचे दुइनउँ अचानक नास ढाइ देइहीं ओन पइ; अउर कउन जानत ह केतनी खउफनाक विपत्तियन उ पचे पठइ देइँ। 23 इ सबइ सूवितयन बुद्धिमान जनन क अहइँ:निआव मँ पच्छपात करब उचित नाहीं अहइ। 24 अइसा जन जउन अपराधी स कहत ह, “तू निरपराध अहा” लोग ओका कोसिहीं अउर जातियन तजि देइहीं। 25 मुला जउन अपराधी क सजा देइहीं, सबहिं जन ओनसे खुस होइहीं अउर ओन पइ असीर्वाद क बर्खा होइ। 26 निर्मल जवाबे स मन खुस होत ह, जइसे ओठंन पइ चुम्बन अंकित कइ देइ। 27 पहिले बाहेर खेतन क काम पूरा कइ ल्या एकरे पाछे तू आपन घर बनावा। 28 आपन पड़ोसी क विरूद्ध बगैर कउनो कारण गवाही जिन द्या, या तू आपन वाणी क कउनो क छलइ मँ जिन प्रयोग करा। 29 जिन कहा अइसा, “ओकरे स्ंाग भी मइँ ठीक वइसा ही करब, मोरे संग जइसा उ किहेस ह।” 30 मइँ आलसी व्यक्ति क खेते स निर्बुद्धि व्यक्ति क अंगुर क खेत स होत भए गुजरउँ। 31 वंटीरी झाड़ियन निकरि आइ रहिन हर कहूँ खरपतवारे स खेत ढकि गवा रहा। अउर बाड़ पाथर क खंडहर होत रही। 32 जउन कछू मइँ लखेउँ, ओहसे मोका एक सीख मिली। 33 जरा एक झपकी, अउर तनिक स नींद, थोड़ा स सुस्ताब, धरिके हाथन पइ हाथ (दलिद्रता क बोलाउब अहइ) 34 उ तोह पइ टूट पड़ी जइसे कउनो लुटेरा टूट पड़त ह, अउर अभाव तोह पइ टूट पड़ी जइसे कउनो सस्रधारी टूट पड़त ह।

25:1 इ सबइ भी सुलैमान क कहावतन अहइ: एन सबइ क यहूदा क राजा हिजकिय्याह क सेवक लोग जमा किहे रहेन। 2 कउनो विसय-वस्तु क रहस्य स पूर्ण राखइ मँ परमेस्सर क अधिकार अहइ। अउर राजा क कउनो बात पइ निर्णय करइ स पहिले खोज विचार करइ क अधिकार अहइ। 3 जइसे ऊपर अन्तहीन अकास अहइ अउर खाले अटल धरती अहइ, वइसे ही राजा लोगन क मन होत हीं जेनकर ओर-छोर क अता पता नाहीं। ओकर थाह लेब कठिन अहइ। 4 जदि तू चाँदी स ओकर मैल हटाउब्या तउ सुनार ओहसे पात्र बनाइ सकत ह। 5 वइसे ही, जदि तू राजा क समन्वा स दुट्ठ क दूर करब तउ भलाइ ओकरे सिंहासने क मजबूत कइ देब। 6 राजा क समन्वा आपन बड़ाई जिन बखाना अउर महापुरूखन क बीच ठउर जिन चाहा। 7 काहेकि उत्तिम इ होइ जदि राजा तोहसे कहइ, “आवा हिआँ, आइ जा” अपेच्छा एकरे कि महापुरुखन क समच्छ तोहार अपमान कीन्ह जाइ। 8 तू कउनो व्यक्ति क जल्दी मँ कचहरी जिन घसीटा। काहेकि होइ सकत ह कि उ तोहार गलती क पोल खोल दइ। तउ तू क कहब्या। 9 जब तू आपन विरोधी क खिलाफ मँ मुकद्दमा प वाद-विवाद करत ह तउ दूसर व्यक्ति क राज फास जिन करा। 10 अइसा न होइ जाइ कि कउनो जउन ऍका सुनत ह तोहका लज्जित करइ, तउ तू बदनाम होइ जाइही जेका कबहुँ मिटाइ नाहीं जाइ। 11 उचित अवसर पइ बोला बात अइसा ही अहइ जइसे चाँदी क तस्त म सुनहरा सेब। 12 बुद्धिमान मनई क कान बरे झिड़की सोना क बाली क नाईं अहइ। 13 एक बिस्सास क जोग्ग दूत, जउन ओका पठवत हीं ओनके बरे फसल कटनी क समइ क ठंडी बयार क जइसे होत ह। उ आपन स्वामी क आतिम क ताजा कर देत ह। 14 उ मनई बर्खा रहित बादरन अउर पवन क जइसा होत ह, जउन कछू देइ क वचन देत ह किन्तु एका देइ नाहीं चाहत ह। 15 धीरा स पूर्ण बातन स राजा तलक मनावा जात हीं अउर नम्र वाणी हाड़ तलक तोरि सकत ह। 16 जदपि सहद बहोत उत्तिम अहइ, पर तउ भी तू बहोत जियादा जिन खा। अउर जदि तू जियादा खाब्या, तउ उल्टी आइ जाइ अउर तू रोगी होइ जाब्या। 17 वइसे ही तू पड़ोसी क घरे मँ बार-बार गोड़ जिन रखा। वरना उ तोहसे उब जाइ अउर तोहसे घिना करइ लागी। 18 उ मनई, जउन झूटी गवाही आनप साथी क खिलाफ देत ह उ तउ अहइ हथौड़ा सा या तरवार सा या तीखे बाण सा। 19 बिपत्ति क काल मँ भरोसा बिस्सासघाती पइ होत ह अइसा जइसे दुःख देत दाँत या लँगड़ात गोड़। 20 जउन कउनो ओकरे समन्वा खुसी क गीत गावत ह जेकर मन भारी अहइ, तउ उ अइसा ही अहइ जइसा जाड़े मँ ओकर ओढ़ना उतार लइ या ओकरे फोड़े पइ सिरका उड़ेलना। 21 अगर तोहार दुस्मन कबहुँ भुखान होइ, ओकरे खाइ क बरे, तू खइया क दइ द्या, अउर जदि उ पिआसा होइ, तउ ओकरे करे पानी पिअइ क दइ द्या। 22 अगर तू अइसा करब्या उ लज्जित होइ। इ ओकर सिर पइ जलत भवा कोयला क अंगार रखइ क जइसा होइ। यहोवा तोहका ओकर प्रतिफल देइ। 23 उत्तर क हवा जइसे बर्खा लिआवत ह वइसे ही बेकार क बातन किरोध क बढ़ावत ह। 24 झगड़ालू मेहरारू क संग घरे मँ रहइ स छते क कउनो कोने पइ रहब उत्तिम अहइ। 25 कउनो दूर देस आई कउनो अच्छी खबर अइसी लागत ह जइसे थके माँदे पिआसे क सीतल जल। 26 गाद भरा झरना या कउनो दूसित वुआँ सा होत उ धमीर् पुरूस जउन कउनो दुट्ठ आगे निहुर जात ह। 27 जइसे बहोत जियादा सहद खाब अच्छा नाहीं वइसे आपन मान बढ़ावइ क जतन करब नीक नाहीं अहइ। 28 अइसा जन जेका खुद पइ निंयत्रण नाहीं, तउ उ उ नगर जइसा अहइ, जेकर देवारन नाही अहइ।

26:1 जइसे बरफ क गमीर् मँ पड़ब अउर जइसे कटनी क समइ पइ बर्खा का आउब उपयुक्त नाहीं अहइ वइसे ही मूरख क मान देब उपयुक्त नाहीं अहइ। 2 अगर तू कउनो क कछू बिगाड़्या नाहीं अउर तोहका उ सराप देइ, तउ उ सराप बियर्थ होइ। ओकर सरापपूर्ण बचन तोहरे ऊपरि स यूँ उड़िके निकरि जाइ जइसे चंचल चिरइया जउन टिकिके नाहीं बइठत। 3 जइसे घोड़े क चाबुक अहइ अउर खच्चर लगाम स काबू होत ह अइसे ही मूरख बरे डंडा अहइ। 4 मूरख क ओकर मूरखता क अनुसार जवाब जिन द्या नाहीं तउ तू भी खुद मूरख सा देखब्या। 5 तउ मूरख क मूरख वाला जवाब द्या नाहीं तउ उ आपन ही आँखिन मँ बुद्धिमान बन बइठी। 6 मूरख क हाथन सँदेसा पठउब वइसा ही होत ह जइसे आपन ही गोड़न पइ वुल्हाड़ी मारब। इ बिपत्ति क बोलाउब क नाईं अहइ। 7 कउनो मूरख क कहावत कहइ क जतन करइ वइसा ही अहइ जइसे कउनो लँगड़े क आपन लँगाड़ा गोड़ पइ चलइ क जतन करब। 8 मूरख क सम्मान देब वइसा ही होत ह जइसे कउनो गुलेल मँ पाथर राखब। 9 मूरख क मुँहे मँ सूवित अइसी होत ह जइसे सराबी क होथे मँ काँटेदार झाड़ी होइ। 10 कउनो मूरख क या कउनो अनजाने मनई क काम पइ लगाउब खतरनाक होइ सकत ह। तू नाहीं जानत्या कि केका दुःख पहोंची। 11 जइसे कउनो वूवुर खाइके बेराम होइ जात ह अउर उल्टी कइके फुन ओका खात ह वइसे ही मूरख आपन मूरखता बार-बार दोहरावत ह। 12 उ मनई जउन आपन क बुद्धिमान मानत ह, मुला होत नाहीं ह तउ उ कउनो मूरख स भी बुरा होत ह। ओकर बरे कउनो आसा नाहीं अहइ। 13 आलसी चिचियात रहत ह, काम नाहीं करइ क बहाने कबहुँ उ कहत ह सड़क पइ सेर बाटइ। 14 जइसे आपन चूड़ी पइ चलत रहत ह किवाड़। वइसे ही आलसी बिस्तर पइ आपन ही करवटन बदलत ह। 15 आलसी आपन हाथ थारी मँ डावत ह मुला ओकर आलस, ओकरे आपन ही मँुहे तलक ओका खइयाके नाहीं लिआवइ देत। 16 आलसी मनई, निज क मानत ह महाबुद्धिमान। सातउँ गियानी पुरुखन स भी बुद्धिमान। 17 अइसे राही जउन दूसरन क झगड़न मँ टाँग अड़ावत ह जइसे वूवुर पइ काबू पावइ बरे कउनो ओकर कान धरइ। 18 कउनो मनई जउन आपन पड़ोसी क छलत ह अउर तउ कहत ह: मइँ तउ बस यूँ ही मजाक करत रहेउँ। वइसा ही अहइ जइसे कउनो पागल घातक तीर फेंकत ह अउर कउनो क मार देत ह। 19 20 जइसे ईंधन बगैर आग बुझि जात ह वइसे ही कानाफूसी क बिना झगड़े मिटि जात हीं। 21 कोयला अंगारन क अउर आगी क लपट क काठ जइसे भड़कावत ह, वइसे ही झगड़ालू झगड़न क भड़कावत ह। 22 कानाफूसी करइ वाला क सब्दन वइसा ही सुआदिस्ट अहइ जइसा कि उ भोजन जउन आसानी स लोगन क पेट मँ उतरत चला जात ह। 23 दुट्ठ मनवाले क चिकनी चुपड़ी बातन होत हीं अइसी, जइसे माटी क बर्तन पइ चिपके चाँदी क बकर्। 24 घिना स पूर्ण मनई आपन मीठ वाणी स घिना क ढाँपत ह। किंतु आपन हिरदय मँ उ छले क पालत ह। 25 ओकर मोहक वाणी स ओकर भरोसा जिन करा, काहेकि ओकरे मने मँ घिना स भरी बातन समाई अहइँ। 26 छले स कउनो क घिना चाहे छुप जाइ मुला ओकर दुट्ठता सभा क बीच परगट हो जाइ। 27 अगर कउनो गड़हा खोदत ह कउनो क बरे तउ उ खुद ही ओहमाँ गिरी सकत ह; अगर कउनो मनई कउनो पाथर क कउनो पइ लुढ़कावत जतन करत ह तउ उ उहइ पाथर स वुचला जाइ सकत ह। 28 अइसा मनई जउन झूठ बोलत ह, ओनसे घिना करत ह जेनका नोस्कान पहोंचावत अउर चापलूस खुद क नास करत ह।

27:1 भविस्य क बरे सेखी जिन बघाड़ा। कउन जानत ह कि आगे का घटइ। 2 आपन ही मुँहे स आपन बड़कई जिन करा दूसरन क तोहार तारीफ करइ द्या। 3 कठिन अहइ पाथर ढोउब, अउर ढोउब रेत क, मुला इन दुइनउँ स कहूँ जियादा कठिन अहइ मूरख क जरिये उपजावा भवा कस्ट। 4 किरोध त्रूर होत ह। प्रकोप बाढ़ क नाईं अहइ मुला जलन बहोत ही घातक अहइ। 5 छुपे भए पिरेम स, खुली घुड़की उत्तिम अहइ। 6 दोस्त क तमाचा पइ विस्सास कइ जा सकत ह कि तोहार मदद कइ सकत ह। किन्तु दुस्मन तोहार संग दाया करइ क बहाना बनावत ह। उ तोहका नोस्कान पहोंचाहीं। 7 पेट भरि जाए पइ सहद भी नाहीं भावत मुला भुखिया मँ तउ हर चीज भावत ह। 8 आपन घर स दूर भटकत भवा मनई अइसा अहइ जइसे कउनो चिरइया आपन घोंसला स दूर भटकत ह। 9 इत्र अउर सुगंधित धूप मने क आनन्द स भरि देत हीं अउर मीत क सच्ची सम्मति स मन उल्लासे स भरि जात ह। 10 आपन मीत क जिन बिसरा न ही आपन बाप क मीत क। अउर बिपत्ति मँ मदद बरे दूर आपन भाई क घरे जिन जा। दूर क भाई स पास क पड़ोसी नीक बा। 11 हे मोर पूत, तू बुद्धिमान बन जा अउर मोर मन आनन्द स भरि द्या। ताकि मोरे निन्दा करइ वाला क मइँ जवाब दइ सकउँ। 12 बिपत्ति क आवत लखिके बुद्धिमान जन दूर हट जात हीं किंतु मूरख जन बगैर राह बदले चलत रहत हीं अउर फँस जात हीं। 13 जउन कउनो पराए मनई क जमानत भरत ह ओका आपन ओढ़ना भी खोवइ पड़ी। 14 ऊँच सुरे मँ ‘सुप्रभात’ कहिके अलख भिंसारे आपन पड़ोसी क जिन जगाया करा। उ एक सराप क रूप मँ झेली आसीर्वाद मँ नाहीं। 15 झगड़ालू मेहरारू अइसी होत ह जइसी बर्खा क दिनन मँ लगातार टपकइ वाला बर्खा। 16 ओका रोकब वइसा ही होत ह जइसे कउनो हवा क रोकइ क बेकार जतन करत ह या मूठी मँ तेल क धरइ क जतन करत ह। 17 जइसे लोहे स लोहा धार धरत ह, वइसे ही एक व्यक्ति दूसर व्यक्ति स सीखत ह। 18 जउन कउनो अंजीरे क बृच्छ सींचत ह, उ ओकर फल खात ह। वइसे ही जउन आपन सुआमी क सेवा करत ह, उ आदर पाइ लेत ह। 19 जइसे जल मुखड़ा क प्रतिबिंबित करत ह, वइसे ही हिरदय मनई क प्रतिबिंबित करत ह। 20 मउत अउ कबर कबहुँ तृप्त नाहीं अइसा ही मनई क आँखिन भी तृप्त नाहीं होत ह। 21 चाँदी अउ सोना क भट्ठी-वुठाली मँ परख लीन्ह जात ह। वइसे ही मनई उ तारीफ स परखा जात ह जउन उ पावत ह। 22 तू कउनो मूरख क चूना मँ पीसिके चाहे जेतना महीन करा अउर ओका पीसिके अनाज जइसा बनाइ द्या ओकर चूरन मुला ओकरी मूरखता क, कबहुँ भी ओहसे दूर न कइ पउब्या। 23 आपन रेवड़ क हानत तोहका निहचित ही जानइ चाही। आपन रेवड़ क धियान स देखरेख करा। 24 काहेकि धन-दौलत तउ टिकाऊ नाहीं होतेन। इ राजमवुट पीढ़ी-पीढ़ी तलक बना नाहीं रहत ह। 25 जब चारा कट जात ह, तउ नवी घास उग आवत ह। उ घास पहाड़ियन पइ स फुन बटोर लीन्ह जात ह। 26 मेमनन क ऊन काट ल्या अउर ओढ़ना बना ल्या बोकरियन क खेतन खरीदइ बरे बेच ल्या। 27 तोहरे परिवार क, तोहरे दास दासियन क अउर तोहरे आपन बरे भरपूर बोकरी क दूध होइ।

28:1 दुट्ठ क मने मँ सदा भय समाया रहत ह अउर जब कउनो पाछा नाहीं करत ह तउ भी भागत फिरत ह। किन्तु एक धमीर् जन क सदा निर्भय रहत ह वइसे होइ जइसे सेर निर्भय रहत ह। 2 देस मँ जब पाप ही पाप होइ तउ उ देस क सासक लम्बी समइ बरे सासन नाहीं करब्या। अइसा मनई ही देस क स्थिर रखत ह अउर लम्बी समइ तलक सासन करब्या। 3 उ राजा जउन गरीबे क दबावत ह, उ बर्खा क बाढ़ सा होत ह जउन फसल नाहीं छोड़त। 4 जउन व्यवस्था क विधाने क तजि देत हीं, दुट्ठन क तारीफ करत हीं, मुला जउन व्यवस्था क विधान क पालन करत हीं ओनकर विरोध मँ लड़ाइ करत हीं। 5 दुट्ठ जन निआव क नाहीं समुझत हीं। मुला जउन यहोवा क खोज मँ रहत हीं, ओका पूरी तरह जानत हीं। 6 उ निर्धन जेकर राह खरी अहइ उ धनी मनई स जेकर राह दुट्ठ अहइ उत्तिम अहइ। 7 विवेकी पूत व्यवस्था क विधानन क पालन करत ह। मुला जउन वियर्थ दोस्तन क साथी बनत ह, उ आपन बाप क निरादर करत ह। 8 उ जउन मोट ब्याज उसूलिके आपन धन बढ़ावत ह, उ तउ इ धन जोरत ह कउनो अइसे दयालु बरे जउन गरीबन पइ दाया करत ह। 9 जदि कउनो व्यक्ति परमेस्सर क सिच्छा पइ कान नाहीं देत तउ परमेस्सर ओनकर पराथना पइ धियान नाहीं देत ह। 10 उ तउ आपन ही जालि मँ फँस जाइ जउन सीधे लोगन क बुर मागेर् पइ भटकावत ह। मुला निदोर्स लोगन उत्तिम आसीस पाइ। 11 धनी मनई आपन आँखिन मँ बुद्धिमान होइ सकत ह किन्तू गरीब जन जउन बुद्धि होत ह सच्चाई क लखत ह। 12 सज्जन जब जीतत हीं, तउ सब खुस होत हीं। मुला जब दुट्ठ क सक्ती मिल जात ह तउ एक भी अइसा मनई क खोज पाउब कठिन अहइ जउन कि खुस अहइ। 13 जउन आपन पापन पइ पर्दा डावत ह, उ तउ कबहुँ नाहीं पूलत-फलत ह। मुला जउन आपन दोखन क कबूल करत ह अउर जउन गलत ह ओका तजत ह, उ दाया पावत ह। 14 धन्न अहइ, उ पुरुस जउन यहोवा स डेरात ह। मुला जउन आपन जिद्दी अहइ, विपत्ति मँ गिरत ह। 15 दुट्ठ सासक जउन असहाय जन पइ सासन करत हीं अइसे अहइ जइसे दहाड़त भवा सेर या झपट भवा रीछ। 16 एक अविवेक सासक आपन लोगन पइ अत्याचार करत ह मुला जउन बुरे मारग स आए भए धने स घिना करत ह, लम्बी समइ तलक सासन करब्या। 17 कउनो मनई क दूसर क हत्तिया क दोख ठहराया तउ उ मनई क सान्ति नाहीं मिली जब तलक कि उ नाही मरत ह। ओकर मदद जिन करा। 18 अगर कउनो निहकलंक होइ तउ उ सुरच्छित अहइ। जदि उ बुरा मनई होइ तउ उ आपन सामरथ खोइ बइठी। 19 जउन आपन धरती जोतत-बोवत ह अउर मेहनत करत ह, उसके लगे हमेसा भरपूर खाई क होइ। मुला जउन सदा सपनन मँ खोवा रहत ह, सदा दलिद्र होइ। 20 एक इमानदार मनई बहोत सारा आसीस पावत ह। मुला उ मनई जउन हाली धनी बनइ क जतन करत रहत ह; बिना दण्ड क नाहीं बची। 21 निर्णय देइ मँ पच्छपात करब अच्छा नाही होत ह। किन्तु कछू लोग तउ सिरिफ रोटी क एक टुकरा बरे अनिआय करब। 22 सूम सदा धन पावइ क लालच करत रहत ह अउर नाहीं जानत कि ओकरी ताक मँ दलिद्रता बाटइ। 23 उ जउन कउनो जने क सुधारइ क डाँटत ह, उ जियादा पिरेम पावत ह, अपेच्छा ओकरे जउन चापलूसी करत ह। 24 कछू लोग होत हीं जउन आपन बाप अउर महतारी स चोरावत हीं। उ कहत ह, “इ बुरा नाहीं अहइ।” इ उ बुरा मनई जइसा अहइ। जउन घरे क भीतर आइके सबहिं चिजियन क तोड़-फोड़ कइ देत ह। 25 लालची मनई तउ मतभेद भड़कावत ह, मुला उ मनई जेकर भरोसा यहोवा पइ अहइ पूली-फली। 26 मूरख क आपन पइ बहोत भरोसा होत ह। मुला जउन गियान क राहे पइ चलत ह, सुरच्छित रहत ह। 27 जउन गरीबन क दान देत रहत ह ओका कउनो बातन क अभाव नाहीं रहत। मुला जउन ओनसें आँखी मूँद लेत ह, उ सराप पावत ह। 28 जब कउनो दुट्‌ठा सक्ती पाइ जात ह तउ सज्जन छुप जाइ क दूर चला जात हीं। मुला जब दुट्ठा जन क बिनास होत ह तउ सज्जनन क बृद्धि परगट होइ लागत ह।

29:1 जउन बार बार डाँट डपट खाइ क बाद भी उहइ बेउहार करत ह तउ निहचय ही उ अचानक बर्बाद होइ जाइ। ओकर बरे कउनो आसा तलक नाहीं बची। 2 जब धर्मी जन क अधिकार पावत ह तउ लोग आनन्द मनावत हीं। जब दुट्ठ सासक बन जात ह तउ लोग कराहत हीं। 3 अइसा जब जउन विवेक स पिरेम राखत ह, बाप क आनन्द पहोंचावत ह। मुला जउन रंडियन क संगत करत ह, आपन धन खोइ देत ह। 4 निआव स राजा देस क स्थिरता देत ह। किन्तु राजा जब लालची होत ह तउ लोग आपन काम करवावइ बरे ओका घूस देत हीं। तब देस दुर्बल होइ जात ह। 5 जउन अपने साथी क चापलूसी करत ह उ आपन गोड़वन बरे जाल पसारत ह। 6 पापी खुद आपन बिछाइ भइ जालि मँ फँसत ह। मुला एक धर्मी गावत अउर खुस रहत ह। 7 सज्जन चाहत हीं कि गरीब क निआव मिलइ किन्तु दुट्ठन क ओनकी तनिकउ चिन्ता नाहीं होत ह। 8 जउन अइसा सोचत हीं कि हम दूसरन स उत्तिम अही, उ पचे विपत्ति उपजावत अउर सारे सहर क तहस-नहस कइ देत हीं। मुला जउन जन बु्द्धिमान होत हीं, सान्ति क कायम करत हीं। 9 बुद्धिमान जन जदि मूरख क साथ मँ वाद-विवाद सुलझावइ चाहत ह, तउ मूरख उत्तेजित हो जात ह मूरखता क बातन करत ह जेहसे दुइनउँ क बीच सन्धि नाहीं होइ पावत 10 खून क पिआसे लोग, सच्चे लोगन स घिना करत हीं। किन्तु सच्चे लोग ओनकर जिन्नगी बचावइ क जतन करत ह। 11 मूरख मनई क लउ बहोतइ हाली किरोध आवत ह। मुला बुद्धिमान धीरा धइके आपन पइ नियंत्रण राखत ह। 12 जदि एक सासक झूठी बातन क सुनत ह तउ ओकर सब अधिकारी भ्रस्ट होइ जात हीं। 13 एक हिंसाब स गरीब अउर जउन मनई क लूटत ह, उ समान अहइ। यहोवा ही दुइनउँ क बनाएस ह। 14 अगर कउनो राजा गरीब पइ निआव स पूर्ण रहत ह तउ ओकर सासन बहोत लम्बे काल बना रही। 15 सजा अउर डाँट स सुबुद्धि मिलत ह किन्तु जदि महतारी-बाप मनचाहा करइ क खुला छोड़ि देइँ, तउ उ आपन महतारी क लज्जा बनी। 16 दुट्ठ क राज मँ पाप पनप जात हीं मुला अन्तिम जीत तउ सज्जन क ही होत ह। 17 पूत क दण्डित करा जब उ अनुचित करइ, फुन तउ तोहका ओह पइ सदा ही घमण्ड होइ। उ तोहरी लज्जा क कारण कबहुँ नाहीं होइ। 18 अगर कउनो देस परमेस्सर क राहे पइ नाहीं चलत तउ उ देस मँ सान्ति नाहीं होइ। किन्तु उ देस जउन परमेस्सर क व्यवस्था पइ चलत ह, आनन्दित रही। 19 सिरिफ सब्द मात्र स दास नाहीं सुधरत ह। चाहे उ तोहार बात क समुझ लेइ, मुला ओकर पालन नाहीं करी। 20 अगर कउनो बगैर बिचारे भए बोलत ह तउ ओकरे बरे कउनो आसा नाहीं। जियादा आसा होत ह एक मूरख बरे अपेच्छा उ मनई क जउन बिचारे बिना बोलइ। 21 अगर तू आपन दास क सदा उ देब्या जउन भी उ चाहइ, तउ अंत मँ उ तोहार एक उत्तिम दास नाहीं रही। 22 किरोधी मनई मतभेद भड़कावत ह, अउर अइसा जन जेका किरोध आवत होइ, बहोत स पापन क अपराधी बनत ह। 23 मनई क अहंकार नीचा देखावत ह, मुला उ मनई जेकर हिरदय विनम्र होत आदर पावत ह। 24 जउन चोर क संग धरत ह उ आपन स दुस्मनी करत ह। काहेकि अदालत मँ जब ओका फुरइ बोलइ क होइ तउ उ कछू भी कहइ स बहोत डेरान रहब्या। 25 डर मनई बरे फंदा साबित होत ह, मुला जेकर आस्था यहोवा पइ रहत ह, सुरच्छित रहत ह। 26 बहोत लोग सासक क मीत होइ चाहत हीं, मुला उ यहोवा ही अहइ, जउन लोगन क फुरइ निआव करत ह। 27 सज्जन घिना करत हीं अइसे ओन लोगन स जउन सच्चे नाहीं होतेन, अउर दुट्ठ सच्चे लोगन स घिना राखत हीं।

30:1 इ सबइ सूक्तियन आगूर क अहइँ, जउन याके क पूत रहा। इ पुरुस ईतीएल अउ उक्काल स कहत ह। 2 मइँ महा बुद्धिहीन हउँ। मोहमाँ मनई क समुझदारी बिल्वुल नाहीं अहइ। 3 मइँ बुद्धि नाहीं पाएउँ अउर मोरे लगे उ पवित्तर क गियान नाहीं अहइ। 4 सरग स कउनो नाहीं आवा अउर हुआँ क रहस्य लिआइ सका पवन क मूठी मँ कउनो नाहीं बाँधि सका। कउनो नाहीं बाँधि सका पानी क ओढ़ना मँ अउर कउनो नाहीं जानि सका धरती क छोर। अउर अगर कउनो एन बातन क करि सका ह, तउ मोहसे कहा, ओकर नाउँ अउर नाउँ ओकरे पूत क मोका बतावा, अगर तू ओका जानत अहा। 5 परमेस्सर क सब्द दोखरहित होत ह, जउन कउनो भी ओकरी सरण जात हीं उ ओनकर ढाल होत ह। 6 ‘तू ओकरे सब्दन मँ कछू जिन बढ़ा। नाहीं तउ उ तोहका सजा दइ अउर झूठा ठहराइ। 7 हे यहोवा, मइँ तोहसे दुइ बातन माँगत हउँ: ओनका मोरे मउत स पहिले इनकार जिन करा। 8 तू मोहसे मिथ्या क, छल क दूर रखा। मोका दरिद्र जिन करा अउर न ही मोका धनी बनावा। मोका बस रोज खाइ क देत रहा। 9 कहूँ अइसा न होइ जाइ बहोत कछू पाइके मइँ तहका तजि देउँ, अउर कहइ लागूँ ‘कउन परमेस्सर अहइ?’ अउर जदि निर्धन बनउँ अउर चोरी करउँ, अउर इ तरह मइँ आपन पमेस्सर क नाउँ क लजाउँ। 10 तू सुआमी स सेवक क निन्दा जिन करा नाहीं तउ तोहका, उ अभिसाप देइ अउर तोहका ओकर भरपाइ करइ क होइ। 11 अइसे भी होत हीं जउन आपन बाप क कोसत हीं, अउर आपन महतारी क धन्न नाहीं कहत हीं। 12 होत हीं अइसे भी, जउन आपन आँखिन मँ तउ पवित्तर बने रहत हीं किन्तु अपवित्तरता स आपन नाहीं धोवा होत हीं। 13 अइसे भी लोग अहइ जउन सोचत हीं कि उ पचे बहोत नीक अहइ। उ पचे सोचत हीं कि उ पचे दूसर स बेहतर अहा। 14 अइसे भी होत हीं जेनकर दाँत कटार अहइँ अउर जेनकर जबड़न मँ खंजर जड़ा रहत हीं जेहसे उ पचे इ धरती क गरीबन क हड़प जाँइ, अउर जउन मानवन मँ स अभावग्रस्त अहइँ ओनका उ पचे लील लेइँ। 15 जोंक क दुइ बिटियन होत हीं उ पचे सदा चिचियात रहत हीं, “द्या, द्या।” तीन चिजियन अइसी अहइँ जउन कबहुँ नाहीं अघातिन अउर चार अइसी जउन कबहुँ बस नाहीं कहतिन। 16 कब्र, बाँझ कोख अउर धरती जउन जल स कबहुँ आघात नाहीं, अउर उ आगी जउन कबहुँ ‘बस’ नाहीं कहतिन। 17 जउन आँखिन आपन ही बापे पइ हँसत हीं, अउर महतारी क बात मानइ स घिना करत ह, घाटी क कउआ ओका नोंच लेइहीं अउर ओका गीध खाइ जइहीं। 18 तीन बातन अइसी अहइँ जउन मोका बहोत विचित्र लागत हीं, अउर चउथी अइसी जेका मइँ समुझ नाहीं पावत हउँ। 19 अकासे मँ उड़त भए गरूड़ क मारग, अउर लीक नाग क जउन चट्टान पइ चला, अउर महासागरे पइ चलत जहाज क राह अउर उ पुरूस क मारग जउन कउनो कामिनी क पिरेम जाल मँ बँधा होइ। 20 बिभीचारी मेहरारू क स्वभाव अइसी होत ह, उ खात रहत अउर आपन मुँह पोंछ लेत, अउर कहा करत ह, “मइँ तउ कछू भी बुरा नाहीं किहेउँ।” 21 तीन बातन अइसी अहइँ जेनसे धरती काँपत ह अउर एक चउथी अहइ जेका उ सह नाहीं कइ पावत। 22 दास जउन राजा बन जात अउर मूरख जेकर लगे प्रयाप्त भोजन होत ह, 23 अउर अइसी मेहरारू जेहसे घिना करत ह अउर अइसी दासी जउन सुआमिनी क जगह लइ लेइ। 24 चार जीव धरती पइ क अइसा अहइ जउन कि बहोत छुद्र अहइँ मुला ओनमाँ बहोत जियादा विवेक भरा भवा अहइ। 25 चींटियन जेनमाँ सक्ती नाहीं होत हीं फुन भी उ पचे गर्मी मँ आपन खइया क बटोरत हीं, 26 बिज्जू (सापान) दुर्बल प्राणी अहइँ फुन भी उ पचे कड़ी चट्टानन मँ आपन घर बनावत हीं, 27 टिड्डियन क कउनो भी राजा नाहीं होत ह फुन भी उ पचे पंक्ति बाँधिके साथ अगवा बढ़त हीं। 28 अउर उ छिपकिली जउन जब सिरिफ हाथ स ही धरी जाइ सकत ह, फुन भी उ राजा क महलन मँ पाई जात ह। 29 तीन प्राणी अइसे अहइँ जउन आन-बान स चलत हीं, किन्तु नाहीं, दर असल उ चार अहइ: 30 एक सेर, जउन सबहिं पसुअन मँ सक्तीवाला होत ह, जउन कबहुंँ कउनो स नाहीं डेरात, 31 घमण्डी चाल स चलत भवा मुर्गा अउ एक बोकरा अउर उ राजा जउन आपन सेना क अगवाइ करत ह। 32 तू जदि कबहुँ आपन बेववूफी क कारण स घमण्डी हो जात ह अउर दूसर क बिरुद्ध जोजना बनावत ह तउ एका बन्द करा अउर जउन तू करत ह ओकरे बरे सोच्या। 33 जइसे मथानी स दूध निकरत ह माखन अउर नाक मरोड़इ स लहू निकरि आवत ह वइसे ही जगाउब किरोध क होत ह झगड़न क भड़काउब।

31:1 इ सबइ सूक्तियन राजा लमूएल क, जेनका ओका ओकर महतारी सिखाए रही। 2 तू मोर पूत अहा उ पूत जउन मोका पिआरा अहइ। तोहका पावइ क मइँ परमेस्सर स मन्नत माने रहेउँ। 3 तू बियर्थ मँ आपन सक्ती मेहररूअन पइ जिन खर्च करा। मेहरारू ही राजा लोगन क बिनास क कारण होत ह एह बरे तू ओन पइ आपन छय जिन करा। 4 हे लमूएल! राजा क मधूपान सोभा नाहीं देता, अउर न ही इ कि सासक क यवसुरा ललचाइ। 5 नाहीं तउ, उ पचे दाखरस क बहोत जियादा पान कइके, विधान क व्यवस्था क बिसरि जइहीं अउर उ पचे सारे दीन दलितन क अधिकारन क छोरि लेइहीं। 6 ओन लोगन क जौ क दाखरस पिअइ द्या जउन बहोत बड़ा विपत्ती मँ अहइ। 7 उ पचे पिअइ अउर आपन दीनता क बरे मँ बिसर जाइ। उ पचे आपन मुसीबतन क याद नाही राखइही। 8 तू ओनके बरे बोल जउन कबहुँ भी आपन बरे बोल नाहीं पावत हीं, अउर ओन सबन क, अधिकारन बरे बोल जउन असाहय अहइ अउर विपत्ती क मारा अहइ। 9 तू ओन बातन क हेतु डटिके खड़ा रह जेनका तू जानत ह कि पचे उचित, निआवपूर्ण अहा। अउर बिना पच्छ-पात क सब क निआव कर। गरीब अउर जरुरत मन्द लोगन क अधिकार क रच्छा करा। 10 गुणवन्ती पत्नी कउन पाइ सकत ह उ जन मणि-मणिकन स कहँू जियादा कीमती अहइ। 11 ओकर पति ओकर बिस्सास कइ सकत ह। ओका कउनो भी अच्छी चिजियन क कमी नाही होइ। 12 सतपत्नी पति क संग उत्तिम व्यवहार करत ह। आपन जिन्नगी भर ओकरे बरे कबहुँ विपत्ति नाहीं उपजावत। 13 उ हमेसा ऊनी अउ सूती ओढ़ना बनावइ मँ व्यस्त रहत ह। 14 उ उ पानी क जहाज क नाईं अहइ जउन दूर देस स आवात ह अउर हर कहुँ स घरे पर भोज्य वस्तु लिआवत ह। 15 भिंसारे उठिके उ खइया क बनावत ह। अपने परिवारे क अउर दासियन क हींसा ओनका देत ह। 16 उ लखिके अउ परखिके खेत मोल लेत ह। आपन कमात भवा धन स दाख क बारी लगावत ह। 17 उ बड़ी मेहनत करत ह। उ आपन सबहिं काम करइ क समर्थ अहइ। 18 जब भी उ आपन बनाईं चीज क बेंचत ह, तउ लाभ कमात ह। उ देर रात तलक दीप जलाइ क काम करत ह। 19 उ सूत कातत अउर आपन वस्तु बुनत ह। 20 उ हमेसा ही दीनदुःखी क दान देत ह, अउर वंगाल जल क सहायता करत ह। 21 जब सर्दी पड़त ह तउ उ आपन परिवार बरे चिंतित नाहीं होत ह। काहेकि उ सबहिं क उत्तिम गरम ओढ़ना दइ रखे अहइ। 22 उ चादर बनावत ह अउर बिस्तरा पइ फैलावत ह। उ सने स बना भवा बढ़िया अउर बेंगनी ओढ़ना पहिरत ह। 23 लोग ओकरे पति क आदर करत ही उ जगह पावत ह नगर प्रमुखन क बीच। 24 उ अति उत्तिम बइपारी बनत ह। उ ओढ़नन अउर कमरबंदन क बनाइके ओनका बइपारी लोगन क बेचत ह। 25 उ सक्तीवाली अहइ, अउर आन-बान वाली अहइ। अउर बिस्सास क संग भविस्य क ओर लखत ह। 26 जब उ बोलत ह, उ विवेकपूर्ण रहत ह। ओकरी जीभ लोगन क पिरेम करइ अउर दाया करइ क सिच्छा देत ह। 27 उ कबहुँ भी आलस नाहीं करत अउर आपन घर बार क चिजियन पइ हर एक दिन धियान रखत ह। 28 ओकर बच्चन खड़ा होत हीं अउर ओका आदर देत हीं अउर ओकरे बारे मँ अच्छी बातन करत ह। ओकर पति ओकरी तारीफ करत ह। 29 ओकर पति कहत ह, “बहोत स उच्चकोटि क मेहरारूअन अहइ। किन्तू ओन सब मँ तू ही सवोर्त्तम पत्नी अहा।” 30 आकर्षण धोकाबाज़ अहइ अउर सुन्नरता दुइ पल क अहइ। मुला उ मेहरारू जेका यहोवा क डर बाटइ, ओकरी तारीफ हाइ चाही। 31 ओका उ प्रतिफल द्या जेकर उ जोग्ग अहइ। अउर जउन काम उ किहेस ह, ओनके बरे सारे लोग क बीच मँ ओकर तारीफ करा।