The Old Testament of the Holy Bible
1 आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृय्वी की सृष्टि की। 2 और पृय्वी बेडौल और सुनसान पक्की यी; और गहरे जल के ऊपर अन्धिक्कारनेा या: तया परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता या। 3 तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो: तो उजियाला हो गया। 4 और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्वर ने उजियाले को अन्धिक्कारने से अलग किया। 5 और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धिक्कारने को रात कहा। तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहिला दिन हो गया।। 6 फिर परमेश्वर ने कहा, जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए। 7 तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया। 8 और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया।। 9 फिर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्यान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे; और वैसा ही हो गया। 10 और परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृय्वी कहा; तया जो जल इकट्ठा हुआ उसको उस ने समुद्र कहा: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 11 फिर परमेश्वर ने कहा, पृय्वी से हरी घास, तया बीजवाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृझ भी जिनके बीज उन्ही में एक एक की जाति के अनुसार होते हैं पृय्वी पर उगें; और वैसा ही हो गया। 12 तो पृय्वी से हरी घास, और छोटे छोटे पेड़ जिन में अपक्की अपक्की जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृझ जिनके बीज एक एक की जाति के अनुसार उन्ही में होते हैं उगे; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 13 तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया।। 14 फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिथे आकाश के अन्तर में ज्योतियां हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षोंके कारण हों। 15 और वे ज्योतियां आकाश के अन्तर में पृय्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें; और वैसा ही हो गया। 16 तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिथे, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिथे बनाया: और तारागण को भी बनाया। 17 परमेश्वर ने उनको आकाश के अन्तर में इसलिथे रखा कि वे पृय्वी पर प्रकाश दें, 18 तया दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अन्धिक्कारने से अलग करें: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 19 तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौया दिन हो गया।। 20 फिर परमेश्वर ने कहा, जल जीवित प्राणियोंसे बहुत ही भर जाए, और पक्की पृय्वी के ऊपर आकाश कें अन्तर में उड़ें। 21 इसलिथे परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियोंकी भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक एक जाति के उड़नेवाले पझियोंकी भी सृष्टि की : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 22 और परमेश्वर ने यह कहके उनको आशीष दी, कि फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्की पृय्वी पर बढ़ें। 23 तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पांचवां दिन हो गया। 24 फिर परमेश्वर ने कहा, पृय्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्यात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृय्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों; और वैसा ही हो गया। 25 सो परमेश्वर ने पृय्वी के जाति जाति के वनपशुओं को, और जाति जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 26 फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपके स्वरूप के अनुसार अपक्की समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पझियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृय्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृय्वी पर रेंगते हैं, अधिक्कारने रखें। 27 तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपके स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपके ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्योंकी सृष्टि की। 28 और परमेश्वर ने उनको आशीष दी : और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृय्वी में भर जाओ, और उसको अपके वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तया आकाश के पझियों, और पृय्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओ पर अधिक्कारने रखो। 29 फिर परमेश्वर ने उन से कहा, सुनो, जितने बीजवाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृय्वी के ऊपर हैं और जितने वृझोंमें बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिथे हैं : 30 और जितने पृय्वी के पशु, और आकाश के पक्की, और पृय्वी पर रेंगनेवाले जन्तु हैं, जिन में जीवन के प्राण हैं, उन सब के खाने के लिथे मैं ने सब हरे हरे छोटे पेड़ दिए हैं; और वैसा ही हो गया। 31 तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया या, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवां दिन हो गया।।
1 योंआकाश और पृय्वी और उनकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया। 2 और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता या सातवें दिन समाप्त किया। और उस ने अपके किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्रम किया। 3 और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उस में उस ने अपक्की सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्रम लिया। 4 आकाश और पृय्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह है कि जब वे उत्पन्न हुए अर्यात् जिस दिन यहोवा परमेश्वर ने पृय्वी और आकाश को बनाया: 5 तब मैदान का कोई पौधा भूमि पर न या, और न मैदान का कोई छोटा पेड़ उगा या, क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने पृय्वी पर जल नहीं बरसाया या, और भूमि पर खेती करने के लिथे मनुष्य भी नहीं या; 6 तौभी कुहरा पृय्वी से उठता या जिस से सारी भूमि सिंच जाती यी 7 और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नयनो में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया। 8 और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक बाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उस ने रचा या, रख दिया। 9 और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भांति के वृझ, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए, और बाटिका के बीच में जीवन के वृझ को और भले या बुरे के ज्ञान के वृझ को भी लगाया। 10 और उस बाटिका को सींचने के लिथे एक महानदी अदन से निकली और वहां से आगे बहकर चार धारा में हो गई। 11 पहिली धारा का नाम पीशोन् है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहां सोना मिलता है घेरे हुए है। 12 उस देश का सोना चोखा होता है, वहां मोती और सुलैमानी पत्यर भी मिलते हैं। 13 और दूसरी नदी का नाम गीहोन् है, यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है। 14 और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल् है, यह वही है जो अश्शूर् के पूर्व की ओर बहती है। और चौयी नदी का नाम फरात है। 15 जब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की बाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रझा करे, 16 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, कि तू बाटिका के सब वृझोंका फल बिना खटके खा सकता है: 17 पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृझ है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा।। 18 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मै उसके लिथे एक ऐसा सहाथक बनाऊंगा जो उस से मेल खाए। 19 और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के बनैले पशुओं, और आकाश के सब भँाति के पझियोंको रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या क्या नाम रखता है; और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया। 20 सो आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पझियों, और सब जाति के बनैले पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिथे कोई ऐसा सहाथक न मिला जो उस से मेल खा सके। 21 तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भारी नीन्द में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उस ने उसकी एक पसुली निकालकर उसकी सन्ती मांस भर दिया। 22 और यहोवा परमेश्वर ने उस पसुली को जो उस ने आदम में से निकाली यी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। 23 और आदम ने कहा अब यह मेरी हड्डियोंमें की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है : सो इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है। 24 इस कारण पुरूष अपके माता पिता को छोड़कर अपक्की पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बनें रहेंगे। 25 और आदम और उसकी पत्नी दोनोंनंगे थे, पर लजाते न थे।।
1 यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त या, और उस ने स्त्री से कहा, क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृझ का फल न खाना ? 2 स्त्री ने सर्प से कहा, इस बाटिका के वृझोंके फल हम खा सकते हैं। 3 पर जो वृझ बाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे। 4 तब सर्प ने स्त्री से कहा, तुम निश्चय न मरोगे, 5 वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखे खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे। 6 सो जब स्त्री ने देखा कि उस वृझ का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिथे चाहने योग्य भी है, तब उस ने उस में से तोड़कर खाया; और अपके पति को भी दिया, और उस ने भी खाया। 7 तब उन दोनोंकी आंखे खुल गई, और उनको मालूम हुआ कि वे नंगे है; सो उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिथे। 8 तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिरता या उसका शब्द उनको सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी बाटिका के वृझोंके बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। 9 तब यहोवा परमेश्वर ने पुकारकर आदम से पूछा, तू कहां है? 10 उस ने कहा, मैं तेरा शब्द बारी में सुनकर डर गया क्योंकि मैं नंगा या; इसलिथे छिप गया। 11 उस ने कहा, किस ने तुझे चिताया कि तू नंगा है? जिस वृझ का फल खाने को मै ने तुझे बर्जा या, क्या तू ने उसका फल खाया है? 12 आदम ने कहा जिस स्त्री को तू ने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृझ का फल मुझे दिया, और मै ने खाया। 13 तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, तू ने यह क्या किया है? स्त्री ने कहा, सर्प ने मुझे बहका दिया तब मै ने खाया। 14 तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा, तू ने जो यह किया है इसलिथे तू सब घरेलू पशुओं, और सब बनैले पशुओं से अधिक शापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा : 15 और मै तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करुंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा। 16 फिर स्त्री से उस ने कहा, मै तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दु:ख को बहुत बढ़ाऊंगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा। 17 और आदम से उस ने कहा, तू ने जो अपक्की पत्नी की बात सुनी, और जिस वृझ के फल के विषय मै ने तुझे आज्ञा दी यी कि तू उसे न खाना उसको तू ने खाया है, इसलिथे भूमि तेरे कारण शापित है: तू उसकी उपज जीवन भर दु:ख के साय खाया करेगा : 18 और वह तेरे लिथे कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा ; 19 और अपके माथे के पक्कीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा। 20 और आदम ने अपक्की पत्नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदिमाता वही हुई। 21 और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिथे चमड़े के अंगरखे बनाकर उनको पहिना दिए। 22 फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिथे अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृझ का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे। 23 तब यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की बाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिस मे से वह बनाया गया या। 24 इसलिथे आदम को उस ने निकाल दिया और जीवन के वृझ के मार्ग का पहरा देने के लिथे अदन की बाटिका के पूर्व की ओर करुबोंको, और चारोंओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।।
1 जब आदम अपक्की पत्नी हव्वा के पास गया तब उस ने गर्भवती होकर कैन को जन्म दिया और कहा, मै ने यहोवा की सहाथता से एक पुरूष पाया है। 2 फिर वह उसके भाई हाबिल को भी जन्मी, और हाबिल तो भेड़-बकरियोंका चरवाहा बन गया, परन्तु कैन भूमि की खेती करने वाला किसान बना। 3 कुछ दिनोंके पश्चात् कैन यहोवा के पास भूमि की उपज में से कुछ भेंट ले आया। 4 और हाबिल भी अपक्की भेड़-बकरियोंके कई एक पहिलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई; तब यहोवा ने हाबिल और उसकी भेंट को तो ग्रहण किया, 5 परन्तु कैन और उसकी भेंट को उस ने ग्रहण न किया। तब कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुंह पर उदासी छा गई। 6 तब यहोवा ने कैन से कहा, तू क्योंक्रोधित हुआ ? और तेरे मुंह पर उदासी क्योंछा गई है ? 7 यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी ? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी और होगी, और तू उस पर प्रभुता करेगा। 8 तब कैन ने अपके भाई हाबिल से कुछ कहा : और जब वे मैदान में थे, तब कैन ने अपके भाई हाबिल पर चढ़कर उसे घात किया। 9 तब यहोवा ने कैन से पूछा, तेरा भाई हाबिल कहां है ? उस ने कहा मालूम नहीं : क्या मै अपके भाई का रखवाला हूं ? 10 उस ने कहा, तू ने क्या किया है ? तेरे भाई का लोहू भूमि में से मेरी ओर चिल्लाकर मेरी दोहाई दे रहा है ! 11 इसलिथे अब भूमि जिस ने तेरे भाई का लोहू तेरे हाथ से पीने के लिथे अपना मुंह खोला है, उसकी ओर से तू शापित है। 12 चाहे तू भूमि पर खेती करे, तौभी उसकी पूरी उपज फिर तुझे न मिलेगी, और तू पृय्वी पर बहेतू और भगोड़ा होगा। 13 तब कैन ने यहोवा से कहा, मेरा दण्ड सहने से बाहर है। 14 देख, तू ने आज के दिन मुझे भूमि पर से निकाला है और मै तेरी दृष्टि की आड़ मे रहूंगा और पृय्वी पर बहेतू और भगोड़ा रहूंगा; और जो कोई मुझे पाएगा, मुझे घात करेगा। 15 इस कारण यहोवा ने उस से कहा, जो कोई कैन को घात करेगा उस से सात गुणा पलटा लिया जाएगा। और यहोवा ने कैन के लिथे एक चिन्ह ठहराया ऐसा ने हो कि कोई उसे पाकर मार डाले।। 16 तब कैन यहोवा के सम्मुख से निकल गया, और नोद् नाम देश में, जो अदन के पूर्व की ओर है, रहने लगा। 17 जब कैन अपक्की पत्नी के पास गया जब वह गर्भवती हुई और हनोक को जन्मी, फिर कैन ने एक नगर बसाया और उस नगर का नाम अपके पुत्र के नाम पर हनोक रखा। 18 और हनोक से ईराद उत्पन्न हुआ, और ईराद ने महूयाएल को जन्म दिया, और महूयाएल ने मतूशाएल को, और मतूशाएल ने लेमेक को जन्म दिया। 19 और लेमेक ने दो स्त्रियां ब्याह ली : जिन में से एक का नाम आदा, और दूसरी को सिल्ला है। 20 और आदा ने याबाल को जन्म दिया। वह तम्बुओं में रहना और जानवरोंका पालन इन दोनो रीतियोंका उत्पादक हुआ। 21 और उसके भाई का नाम यूबाल है : वह वीणा और बांसुरी आदि बाजोंके बजाने की सारी रीति का उत्पादक हुआ। 22 और सिल्ला ने भी तूबल्कैन नाम एक पुत्र को जन्म दिया : वह पीतल और लोहे के सब धारवाले हयियारोंका गढ़नेवाला हुआ: और तूबल्कैन की बहिन नामा यी। 23 और लेमेक ने अपक्की पत्नियोंसे कहा, हे आदा और हे सिल्ला मेरी सुनो; हे लेमेक की पत्नियों, मेरी बात पर कान लगाओ: मैंने एक पुरूष को जो मेरे चोट लगाता या, अर्यात् एक जवान को जो मुझे घायल करता या, घात किया है। 24 जब कैन का पलटा सातगुणा लिया जाएगा। तो लेमेक का सतहरगुणा लिया जाएगा। 25 और आदम अपक्की पत्नी के पास फिर गया; और उस ने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम यह कह के शेत रखा, कि परमेश्वर ने मेरे लिथे हाबिल की सन्ती, जिसको कैन ने घात किया, एक और वंश ठहरा दिया है। 26 और शेत के भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उस ने उसका नाम एनोश रखा, उसी समय से लोग यहोवा से प्रार्यना करने लगे।।
1 आदम की वंशावली यह है। जब परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की तब अपके ही स्वरूप में उसको बनाया; 2 उस ने नर और नारी करके मनुष्योंकी सृष्टि की और उन्हें आशीष दी, और उनकी सृष्टि के दिन उनका नाम आदम रखा। 3 जब आदम एक सौ तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा उसकी समानता में उस ही के स्वरूप के अनुसार एक पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम शेत रखा। 4 और शेत के जन्म के पश्चात् आदम आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुईं। 5 और आदम की कुल अवस्या नौ सौ तीस वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 6 जब शेत एक सौ पांच वर्ष का हुआ, तब उस ने एनोश को जन्म दिया। 7 और एनोश के जन्म के पश्चात् शेत आठ सौ सात वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुईं। 8 और शेत की कुल अवस्या नौ सौ बारह वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 9 जब एनोश नब्बे वर्ष का हुआ, तब उस ने केनान को जन्म दिया। 10 और केनान के जन्म के पश्चात् एनोश आठ सौ पन्द्रह वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां हुई। 11 और एनोश की कुल अवस्या नौ सौ पांच वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 12 जब केनान सत्तर वर्ष का हुआ, तब उस ने महललेल को जन्म दिया। 13 और महललेल के जन्म के पश्चात् केनान आठ सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 14 और केनान की कुल अवस्या नौ सौ दस वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 15 जब महललेल पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उस ने थेरेद को जन्म दिया। 16 और थेरेद के जन्म के पश्चात् महललेल आठ सौ तीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 17 और महललेल की कुल अवस्या आठ सौ पंचानवे वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 18 जब थेरेद एक सौ बासठ वर्ष का हुआ, जब उस ने हनोक को जन्म दिया। 19 और हनोक के जन्म के पश्चात् थेरेद आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 20 और थेरेद की कुल अवस्या नौ सौ बासठ वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया। 21 जब हनोक पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उस ने मतूशेलह को जन्म दिया। 22 और मतूशेलह के जन्म के पश्चात् हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्वर के साय साय चलता रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 23 और हनोक की कुल अवस्या तीन सौ पैंसठ वर्ष की हुई। 24 और हनोक परमेश्वर के साय साय चलता या; फिर वह लोप हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया। 25 जब मतूशेलह एक सौ सत्तासी वर्ष का हुआ, तब उस ने लेमेक को जन्म दिया। 26 और लेमेक के जन्म के पश्चात् मतूशेलह सात सौ बयासी वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 27 और मतूशेलह की कुल अवस्या नौ सौ उनहत्तर वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 28 जब लेमेक एक सौ बयासी वर्ष का हुआ, तब उस ने एक पुत्र जन्म दिया। 29 और यह कहकर उसका नाम नूह रखा, कि यहोवा ने जो पृय्वी को शाप दिया है, उसके विषय यह लड़का हमारे काम में, और उस कठिन परिश्र्म में जो हम करते हैं, हम को शान्ति देगा। 30 और नूह के जन्म के पश्चात् लेमेक पांच सौ पंचानवे वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 31 और लेमेक की कुल अवस्या सात सौ सतहत्तर वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 32 और नूह पांच सौ वर्ष का हुआ; और नूह ने शेम, और हाम और थेपेत को जन्म दिया।।
1 फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, और उनके बेटियां उत्पन्न हुई, 2 तब परमेश्वर के पुत्रोंने मनुष्य की पुत्रियोंको देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्होंने जिस जिसको चाहा उन से ब्याह कर लिया। 3 और यहोवा ने कहा, मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लोंविवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है : उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी। 4 उन दिनोंमें पृय्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्चात् जब परमेश्वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियोंके पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्पन्न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीत्तिर् प्राचीनकाल से प्रचलित है। 5 और यहोवा ने देखा, कि मनुष्योंकी बुराई पृय्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है। 6 और यहोवा पृय्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ। 7 तब यहोवा ने सोचा, कि मै मनुष्य को जिसकी मै ने सृष्टि की है पृय्वी के ऊपर से मिटा दूंगा क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूं। 8 परन्तु यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही।। 9 नूह की वंशावली यह है। नूह धर्मी पुरूष और अपके समय के लोगोंमें खरा या, और नूह परमेश्वर ही के साय साय चलता रहा। 10 और नूह से, शेम, और हाम, और थेपेत नाम, तीन पुत्र उत्पन्न हुए। 11 उस समय पृय्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई यी, और उपद्रव से भर गई यी। 12 और परमेश्वर ने पृय्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियोंने पृय्वी पर अपक्की अपक्की चाल चलन बिगाड़ ली यी। 13 तब परमेश्वर ने नूह से कहा, सब प्राणियोंके अन्त करने का प्रश्न मेरे साम्हने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृय्वी उपद्रव से भर गई है, इसलिथे मै उनको पृय्वी समेत नाश कर डालूंगा। 14 इसलिथे तू गोपेर वृझ की लकड़ी का एक जहाज बना ले, उस में कोठरियां बनाना, और भीतर बाहर उस पर राल लगाना। 15 और इस ढंग से उसको बनाना : जहाज की लम्बाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ, और ऊंचाई तीस हाथ की हो। 16 जहाज में एक खिड़की बनाना, और इसके एक हाथ ऊपर से उसकी छत बनाना, और जहाज की एक अलंग में एक द्वार रखना, और जहाज में पहिला, दूसरा, तीसरा खण्ड बनाना। 17 और सुन, मैं आप पृय्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियोंको, जिन में जीवन की आत्मा है, आकाश के नीचे से नाश करने पर हूं : और सब जो पृय्वी पर है मर जाएंगे। 18 परन्तु तेरे संग मै वाचा बान्धता हूं : इसलिथे तू अपके पुत्रों, स्त्री, और बहुओं समेत जहाज में प्रवेश करना। 19 और सब जीवित प्राणियोंमें से, तू एक एक जाति के दो दो, अर्यात् एक नर और एक मादा जहाज में ले जाकर, अपके साय जीवित रखना। 20 एक एक जाति के पक्की, और एक एक जाति के पशु, और एक एक जाति के भूमि पर रेंगनेवाले, सब में से दो दो तेरे पास आएंगे, कि तू उनको जीवित रखे। 21 और भांति भांति का भोज्य पदार्य जो खाया जाता है, उनको तू लेकर अपके पास इकट्ठा कर रखना सो तेरे और उनके भोजन के लिथे होगा। 22 परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।
1 और यहोवा ने नूह से कहा, तू अपके सारे घराने समेत जहाज में जा; क्योंकि मै ने इस समय के लोगोंमें से केवल तुझी को अपक्की दृष्टि में धर्मी देखा है। 2 सब जाति के शुद्ध पशुओं में से तो तू सात सात, अर्यात् नर और मादा लेना : पर जो पशु शुद्ध नहीं है, उन में से दो दो लेना, अर्यात् नर और मादा : 3 और आकाश के पझियोंमें से भी, सात सात, अर्यात् नर और मादा लेना : कि उनका वंश बचकर सारी पृय्वी के ऊपर बना रहे। 4 क्योंकि अब सात दिन और बीतने पर मैं पृय्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूंगा; जितनी वस्तुएं मैं ने बनाईं है सब को भूमि के ऊपर से मिटा दूंगा। 5 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया। 6 नूह की अवस्या छ: सौ वर्ष की यी, जब जलप्रलय पृय्वी पर आया। 7 नूह अपके पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत, जलप्रलय से बचने के लिथे जहाज में गया। 8 और शुद्ध, और अशुद्ध दोनो प्रकार के पशुओं में से, पझियों, 9 और भूमि पर रेंगनेवालोंमें से भी, दो दो, अर्यात् नर और मादा, जहाज में नूह के पास गए, जिस प्रकार परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी यी। 10 सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृय्वी पर आने लगा। 11 जब नूह की अवस्या के छ: सौवें वर्ष के दूसरे महीने का सत्तरहवां दिन आया; उसी दिन बड़े गहिरे समुद्र के सब सोते फूट निकले और आकाश के फरोखे खुल गए। 12 और वर्षा चालीस दिन और चालीस रात निरन्तर पृय्वी पर होती रही। 13 ठीक उसी दिन नूह अपके पुत्र शेम, हाम, और थेपेत, और अपक्की पत्नी, और तीनोंबहुओं समेत, 14 और उनके संग एक एक जाति के सब बनैले पशु, और एक एक जाति के सब घरेलू पशु, और एक एक जाति के सब पृय्वी पर रेंगनेवाले, और एक एक जाति के सब उड़नेवाले पक्की, जहाज में गए। 15 जितने प्राणियोंमें जीवन की आत्मा यी उनकी सब जातियोंमें से दो दो नूह के पास जहाज में गए। 16 और जो गए, वह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सब जाति के प्राणियोंमें से नर और मादा गए। तब यहोवा ने उसका द्वार बन्द कर दिया। 17 और पृय्वी पर चालीस दिन तक प्रलय होता रहा; और पानी बहुत बढ़ता ही गया जिस से जहाज ऊपर को उठने लगा, और वह पृय्वी पर से ऊंचा उठ गया। 18 और जल बढ़ते बढ़ते पृय्वी पर बहुत ही बढ़ गया, और जहाज जल के ऊपर ऊपर तैरता रहा। 19 और जल पृय्वी पर अत्यन्त बढ़ गया, यहां तक कि सारी धरती पर जितने बड़े बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। 20 जल तो पन्द्रह हाथ ऊपर बढ़ गया, और पहाड़ भी डूब गए 21 और क्या पक्की, क्या घरेलू पशु, क्या बनैले पशु, और पृय्वी पर सब चलनेवाले प्राणी, और जितने जन्तु पृय्वी मे बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए। 22 जो जो स्यल पर थे उन में से जितनोंके नयनोंमें जीवन का श्वास या, सब मर मिटे। 23 और क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्की, जो जो भूमि पर थे, सो सब पृय्वी पर से मिट गए; केवल नूह, और जितने उसके संग जहाज में थे, वे ही बच गए। 24 और जल पृय्वी पर एक सौ पचास दिन तक प्रबल रहा।।
1 और परमेश्वर ने नूह की, और जितने बनैले पशु, और घरेलू पशु उसके संग जहाज में थे, उन सभोंकी सुधि ली : और परमेश्वर ने पृय्वी पर पवन बहाई, और जल घटने लगा। 2 और गहिरे समुद्र के सोते और आकाश के फरोखे बंद हो गए; और उस से जो वर्षा होती यी सो भी यम गई। 3 और एक सौ पचास दिन के पशचात् जल पृय्वी पर से लगातार घटने लगा। 4 सातवें महीने के सत्तरहवें दिन को, जहाज अरारात नाम पहाड़ पर टिक गया। 5 और जल दसवें महीने तक घटता चला गया, और दसवें महीने के पहिले दिन को, पहाड़ोंकी चोटियाँ दिखलाई दीं। 6 फिर ऐसा हुआ कि चालीस दिन के पश्चात् नूह ने अपके बनाए हुए जहाज की खिड़की को खोलकर, एक कौआ उड़ा दिया : 7 जब तक जल पृय्वी पर से सूख न गया, तब तक कौआ इधर उधर फिरता रहा। 8 फिर उस ने अपके पास से एक कबूतरी को उड़ा दिया, कि देखें कि जल भूमि से घट गया कि नहीं। 9 उस कबूतरी को अपके पैर के तले टेकने के लिथे कोई आधार ने मिला, सो वह उसके पास जहाज में लौट आई : क्योंकि सारी पृय्वी के ऊपर जल ही जल छाया या तब उस ने हाथ बढ़ाकर उसे अपके पास जहाज में ले लिया। 10 तब और सात दिन तक ठहरकर, उस ने उसी कबूतरी को जहाज में से फिर उड़ा दिया। 11 और कबूतरी सांफ के समय उसके पास आ गई, तो क्या देखा कि उसकी चोंच में जलपाई का एक नया पत्ता है; इस से नूह ने जान लिया, कि जल पृय्वी पर घट गया है। 12 फिर उस ने सात दिन और ठहरकर उसी कबूतरी को उड़ा दिया; और वह उसके पास फिर कभी लौटकर न आई। 13 फिर ऐसा हुआ कि छ: सौ एक वर्ष के पहिले महीने के पहिले दिन जल पृय्वी पर से सूख गया। तब नूह ने जहाज की छत खोलकर क्या देखा कि धरती सूख गई है। 14 और दूसरे महीने के सताईसवें दिन को पृय्वी पूरी रीति से सूख गई।। 15 तब परमेश्वर ने, नूह से कहा, 16 तू अपके पुत्रों, पत्नी, और बहुओं समेत जहाज में से निकल आ। 17 क्या पक्की, क्या पशु, क्या सब भांति के रेंगनेवाले जन्तु जो पृय्वी पर रेंगते हैं, जितने शरीरधारी जीवजन्तु तेरे संग हैं, उस सब को अपके साय निकाल ले आ, कि पृय्वी पर उन से बहुत बच्चे उत्पन्न हों; और वे फूलें-फलें, और पृय्वी पर फैल जाएं। 18 तब नूह, और उसके पुत्र, और पत्नी, और बहुएं, निकल आईं : 19 और सब चौपाए, रेंगनेवाले जन्तु, और पक्की, और जितने जीवजन्तु पृय्वी पर चलते फिरते हैं, सो सब जाति जाति करके जहाज में से निकल आए। 20 तब नूह ने यहोवा के लिथे एक वेदी बनाई; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पझियोंमें से, कुछ कुछ लेकर वेदी पर होमबलि चढ़ाया। 21 इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, कि मनुष्य के कारण मैं फिर कभी भूमि को शाप न दूंगा, यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही होता है; तौभी जैसा मैं ने सब जीवोंको अब मारा है, वैसा उनको फिर कभी न मारूंगा। 22 अब से जब तक पृय्वी बनी रहेगी, तब तक बोने और काटने के समय, ठण्ड और तपन, धूपकाल और शीतकाल, दिन और रात, निरन्तर होते चले जाएंगे।।
1 फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रोंको आशीष दी और उन से कहा कि फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृय्वी में भर जाओ। 2 और तुम्हारा डर और भय पृय्वी के सब पशुओं, और आकाश के सब पझियों, और भूमि पर के सब रेंगनेवाले जन्तुओं, और समुद्र की सब मछलियोंपर बना रहेगा : वे सब तुम्हारे वश में कर दिए जाते हैं। 3 सब चलनेवाले जन्तु तुम्हारा आहार होंगे; जैसा तुम को हरे हरे छोटे पेड़ दिए थे, वैसा ही अब सब कुछ देता हूं। 4 पर मांस को प्राण समेत अर्यात् लोहू समेत तुम न खाना। 5 और निश्चय मैं तुम्हारा लोहू अर्यात् प्राण का पलटा लूंगा : सब पशुओं, और मनुष्यों, दोनोंसे मैं उसे लूंगा : मनुष्य के प्राण का पलटा मै एक एक के भाई बन्धु से लूंगा। 6 जो कोई मनुष्य का लोहू बहाएगा उसका लोहू मनुष्य ही से बहाथा जाएगा क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को अपके ही स्वरूप के अनुसार बनाया है। 7 और तुम तो फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृय्वी में बहुत बच्चे जन्मा के उस में भर जाओ।। 8 फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रोंसे कहा, 9 सुनों, मैं तुम्हारे साय और तुम्हारे पश्चात् जो तुम्हारा वंश होगा, उसके साय भी वाचा बान्धता हूं। 10 और सब जीवित प्राणियोंसे भी जो तुम्हारे संग है क्या पक्की क्या घरेलू पशु, क्या पृय्वी के सब बनैले पशु, पृय्वी के जितने जीवजन्तु जहाज से निकले हैं; सब के साय भी मेरी यह वाचा बन्धती है : 11 और मै तुम्हारे साय अपक्की इस वाचा को पूरा करूंगा; कि सब प्राणी फिर जलप्रलय से नाश न होंगे : और पृय्वी के नाश करने के लिथे फिर जलप्रलय न होगा। 12 फिर परमेश्वर ने कहा, जो वाचा मै तुम्हारे साय, और जितने जीवित प्राणी तुम्हारे संग हैं उन सब के साय भी युग युग की पीढिय़ोंके लिथे बान्धता हूं; उसका यह चिन्ह है : 13 कि मैं ने बादल मे अपना धनुष रखा है वह मेरे और पृय्वी के बीच में वाचा का चिन्ह होगा। 14 और जब मैं पृय्वी पर बादल फैलाऊं जब बादल में धनुष देख पकेगा। 15 तब मेरी जो वाचा तुम्हारे और सब जीवित शरीरधारी प्राणियोंके साय बान्धी है; उसको मैं स्मरण करूंगा, तब ऐसा जलप्रलय फिर न होगा जिस से सब प्राणियोंका विनाश हो। 16 बादल में जो धनुष होगा मैं उसे देख के यह सदा की वाचा स्मरण करूंगा जो परमेश्वर के और पृय्वी पर के सब जीवित शरीरधारी प्राणियोंके बीच बन्धी है। 17 फिर परमेश्वर ने नूह से कहा जो वाचा मैं ने पृय्वी भर के सब प्राणियोंके साय बान्धी है, उसका चिन्ह यही है।। 18 नूह के जो पुत्र जहाज में से निकले, वे शेम, हाम, और थेपेत थे : और हाम तो कनान का पिता हुआ। 19 नूह के तीन पुत्र थे ही हैं, और इनका वंश सारी पृय्वी पर फैल गया। 20 और नूह किसानी करने लगा, और उस ने दाख की बारी लगाई। 21 और वह दाखमधु पीकर मतवाला हुआ; और अपके तम्बू के भीतर नंगा हो गया। 22 तब कनान के पिता हाम ने, अपके पिता को नंगा देखा, और बाहर आकर अपके दोनोंभाइयोंको बतला दिया। 23 तब शेम और थेपेत दोनोंने कपड़ा लेकर अपके कन्धोंपर रखा, और पीछे की ओर उलटा चलकर अपके पिता के नंगे तन को ढ़ाप दिया, और वे अपना मुख पीछे किए हुए थे इसलिथे उन्होंने अपके पिता को नंगा न देखा। 24 जब नूह का नशा उतर गया, तब उस ने जान लिया कि उसके छोटे पुत्र ने उस से क्या किया है। 25 इसलिथे उस ने कहा, कनान शापित हो : वह अपके भाई बन्धुओं के दासोंका दास हो। 26 फिर उस ने कहा, शेम का परमेश्वर यहोवा धन्य है, और कनान शेम का दास होवे। 27 परमेश्वर थेपेत के वंश को फैलाए; और वह शेम के तम्बुओं मे बसे, और कनान उसका दास होवे। 28 जलप्रलय के पश्चात् नूह साढ़े तीन सौ वर्ष जीवित रहा। 29 और नूह की कुल अवस्या साढ़े नौ सौ वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।
1 नूह के पुत्र जो शेम, हाम और थेपेत थे उनके पुत्र जलप्रलय के पश्चात् उत्पन्न हुए : उनकी वंशावली यह है।। 2 थेपेत के पुत्र : गोमेर, मागोग, मादै, यावान, तूबल, मेशेक, और तीरास हुए। 3 और गोमेर के पुत्र : अशकनज, रीपत, और तोगर्मा हुए। 4 और यावान के वंश में एलीशा, और तर्शीश, और कित्ती, और दोदानी लोग हुए। 5 इनके वंश अन्यजातियोंके द्वीपोंके देशोंमें ऐसे बंट गए, कि वे भिन्न भिन्न भाषाओं, कुलों, और जातियोंके अनुसार अलग अलग हो गए।। 6 फिर हाम के पुत्र : कूश, और मिस्र, और फूत और कनान हुए। 7 और कूश के पुत्र सबा, हवीला, सबता, रामा, और सबूतका हुए : और रामा के पुत्र शबा और ददान हुए। 8 और कूश के वंश में निम्रोद भी हुआ; पृय्वी पर पहिला वीर वही हुआ है। 9 वही यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला ठहरा, इस से यह कहावत चक्की है; कि निम्रोद के समान यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला। 10 और उसके राज्य का आरम्भ शिनार देश में बाबुल, अक्कद, और कलने हुआ। 11 उस देश से वह निकलकर अश्शूर् को गया, और नीनवे, रहोबोतीर, और कालह को, 12 और नीनवे और कालह के बीच रेसेन है, उसे भी बसाया, बड़ा नगर यही है। 13 और मिस्र के वंश में लूदी, अनामी, लहाबी, नप्तूही, 14 और पत्रुसी, कसलूही, और कप्तोरी लोग हुए, कसलूहियोंमे से तो पलिश्ती लोग निकले।। 15 फिर कनान के वंश में उसका ज्थेष्ठ सीदोन, तब हित्त, 16 और यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी, 17 हिव्वी, अर्की, सीनी, 18 अर्वदी, समारी, और हमाती लोग भी हुए : फिर कनानियोंके कुल भी फैल गए। 19 और कनानियोंका सिवाना सीदोन से लेकर गरार के मार्ग से होकर अज्जा तक और फिर सदोम और अमोरा और अदमा और सबोयीम के मार्ग से होकर लाशा तक हुआ। 20 हाम के वंश में थे ही हुए; और थे भिन्न भिन्न कुलों, भाषाओं, देशों, और जातियोंके अनुसार अलग अलग हो गए।। 21 फिर शेम, जो सब एबेरवंशियोंका मूलपुरूष हुआ, और जो थेपेत का ज्थेष्ठ भाई या, उसके भी पुत्र उत्पन्न हुए। 22 शेम के पुत्र : एलाम, अश्शूर्, अर्पझद्, लूद और आराम हुए। 23 और आराम के पुत्र : ऊस, हूल, गेतेर और मश हुए। 24 और अर्पझद् ने शेलह को, और शेलह ने एबेर को जन्म दिया। 25 और एबेर के दो पुत्र उत्पन्न हुए, एक का नाम पेलेग इस कारण रखा गया कि उसके दिनोंमें पृय्वी बंट गई, और उसके भाई का नाम योक्तान है। 26 और योक्तान ने अल्मोदाद, शेलेप, हसर्मावेत, थेरह, 27 यदोरवाम, ऊजाल, दिक्ला, 28 ओबाल, अबीमाएल, शबा, 29 ओपीर, हवीला, और योबाब को जन्म दिया : थे ही सब योक्तान के पुत्र हुए। 30 इनके रहने का स्यान मेशा से लेकर सपारा जो पूर्व में एक पहाड़ है, उसके मार्ग तक हुआ। 31 शेम के पुत्र थे ही हुए; और थे भिन्न भिन्न कुलों, भाषाओं, देशोंऔर जातियोंके अनुसार अलग अलग हो गए।। 32 नूह के पुत्रोंके घराने थे ही हैं : और उनकी जातियोंके अनुसार उनकी वंशावलियां थे ही हैं; और जलप्रलय के पश्चात् पृय्वी भर की जातियां इन्हीं में से होकर बंट गई।।
1 सारी पृय्वी पर एक ही भाषा, और एक ही बोली यी। 2 उस समय लोग पूर्व की और चलते चलते शिनार देश में एक मैदान पाकर उस में बस गए। 3 तब वे आपस में कहने लगे, कि आओ; हम ईंटें बना बना के भली भंाति आग में पकाएं, और उन्होंने पत्यर के स्यान में ईंट से, और चूने के स्यान में मिट्टी के गारे से काम लिया। 4 फिर उन्होंने कहा, आओ, हम एक नगर और एक गुम्मट बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बात करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें ऐसा न हो कि हम को सारी पृय्वी पर फैलना पके। 5 जब लोग नगर और गुम्मट बनाने लगे; तब इन्हें देखने के लिथे यहोवा उतर आया। 6 और यहोवा ने कहा, मैं क्या देखता हूं, कि सब एक ही दल के हैं और भाषा भी उन सब की एक ही है, और उन्होंने ऐसा ही काम भी आरम्भ किया; और अब जितना वे करने का यत्न करेंगे, उस में से कुछ उनके लिथे अनहोना न होगा। 7 इसलिथे आओ, हम उतर के उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डालें, कि वे एक दूसरे की बोली को न समझ सकें। 8 इस प्रकार यहोवा ने उनको, वहां से सारी पृय्वी के ऊपर फैला दिया; और उन्होंने उस नगर का बनाना छोड़ दिया। 9 इस कारण उस नगर को नाम बाबुल पड़ा; क्योंकि सारी पृय्वी की भाषा में जो गड़बड़ी है, सो यहोवा ने वहीं डाली, और वहीं से यहोवा ने मनुष्योंको सारी पृय्वी के ऊपर फैला दिया।। 10 शेम की वंशावली यह है। जल प्रलय के दो वर्ष पश्चात् जब शेम एक सौ वर्ष का हुआ, तब उस ने अर्पझद् को जन्म दिया। 11 और अर्पझद् ने जन्म के पश्चात् शेम पांच सौ वर्ष जीवित रहा; और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 12 जब अर्पझद् पैंतीस वर्ष का हुआ, तब उस ने शेलह को जन्म दिया। 13 और शेलह के जन्म के पश्चात् अर्पझद् चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 14 जब शेलह तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा एबेर को जन्म हुआ। 15 और एबेर के जन्म के पश्चात् शेलह चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 16 जब एबेर चौंतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा पेलेग का जन्म हुआ। 17 और पेलेग के जन्म के पश्चात् एबेर चार सौ तीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 18 जब पेलेग तीस वर्ष को हुआ, तब उसके द्वारा रू का जन्म हुआ। 19 और रू के जन्म के पश्चात् पेलेग दो सौ नौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 20 जब रू बत्तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा सरूग का जन्म हुआ। 21 और सरूग के जन्म के पश्चात् रू दो सौ सात वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 22 जब सरूग तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा नाहोर का जन्म हुआ। 23 और नाहोर के जन्म के पश्चात् सरूग दो सौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 24 जब नाहोर उनतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा तेरह का जन्म हुआ। 25 और तेरह के जन्म के पश्चात् नाहोर एक सौ उन्नीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 26 जब तक तेरह सत्तर वर्ष का हुआ, तब तक उसके द्वारा अब्राम, और नाहोर, और हारान उत्पन्न हुए।। 27 तेरह की यह वंशावली है। तेरह ने अब्राम, और नाहोर, और हारान को जन्म दिया; और हारान ने लूत को जन्म दिया। 28 और हारान अपके पिता के साम्हने ही, कस्दियोंके ऊर नाम नगर में, जो उसकी जन्मभूमि यी, मर गया। 29 अब्राम और नाहोर ने स्त्रियां ब्याह लीं : अब्राम की पत्नी का नाम तो सारै, और नाहोर की पत्नी का नाम मिल्का या, यह उस हारान की बेटी यी, जो मिल्का और यिस्का दोनोंका पिता या। 30 सारै तो बांफ यी; उसके संतान न हुई। 31 और तेरह अपना पुत्र अब्राम, और अपना पोता लूत जो हारान का पुत्र या, और अपक्की बहू सारै, जो उसके पुत्र अब्राम की पत्नी यी इन सभोंको लेकर कस्दियोंके ऊर नगर से निकल कनान देश जाने को चला; पर हारान नाम देश में पहुचकर वहीं रहने लगा। 32 जब तेरह दो सौ पांच वर्ष का हुआ, तब वह हारान देश में मर गया।।
1 यहोवा ने अब्राम से कहा, अपके देश, और अपक्की जन्मभूमि, और अपके पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा। 2 और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगा, और तुझे आशीष दूंगा, और तेरा नाम बड़ा करूंगा, और तू आशीष का मूल होगा। 3 और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूंगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे। 4 यहोवा के इस वचन के अनुसार अब्राम चला; और लूत भी उसके संग चला; और जब अब्राम हारान देश से निकला उस समय वह पचहत्तर वर्ष का या। 5 सो अब्राम अपक्की पत्नी सारै, और अपके भतीजे लूत को, और जो धन उन्होंने इकट्ठा किया या, और जो प्राणी उन्होंने हारान में प्राप्त किए थे, सब को लेकर कनान देश में जाने को निकल चला; और वे कनान देश में आ भी गए। 6 उस देश के बीच से जाते हुए अब्राम शकेम में, जहां मोरे का बांज वृझ है, पंहुचा; उस समय उस देश में कनानी लोग रहते थे। 7 तब यहोवा ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, यह देश मैं तेरे वंश को दूंगा : और उस ने वहां यहोवा के लिथे जिस ने उसे दर्शन दिया या, एक वेदी बनाई। 8 फिर वहां से कूच करके, वह उस पहाड़ पर आया, जो बेतेल के पूर्व की ओर है; और अपना तम्बू उस स्यान में खड़ा किया जिसकी पच्छिम की ओर तो बेतेल, और पूर्व की ओर ऐ है; और वहां भी उस ने यहोवा के लिथे एक वेदी बनाई : और यहोवा से प्रार्यना की 9 और अब्राम कूच करके दक्खिन देश की ओर चला गया।। 10 और उस देश में अकाल पड़ा : और अब्राम मिस्र देश को चला गया कि वहां परदेशी होकर रहे -- क्योंकि देश में भयंकर अकाल पड़ा या। 11 फिर ऐसा हुआ कि मिस्र के निकट पहुंचकर, उस ने अपक्की पत्नी सारै से कहा, सुन, मुझे मालूम है, कि तू एक सुन्दर स्त्री है : 12 इस कारण जब मिस्री तुझे देखेंगे, तब कहेंगे, यह उसकी पत्नी है, सो वे मुझ को तो मार डालेंगे, पर तुझ को जीती रख लेंगे। 13 सो यह कहना, कि मैं उसकी बहिन हूं; जिस से तेरे कारण मेरा कल्याण हो और मेरा प्राण तेरे कारण बचे। 14 फिर ऐसा हुआ कि जब अब्राम मिस्र में आया, तब मिस्रियोंने उसकी पत्नी को देखा कि यह अति सुन्दर है। 15 और फिरौन के हाकिमोंने उसको देखकर फिरौन के साम्हने उसकी प्रशंसा की : सो वह स्त्री फिरौन के घर में रखी गई। 16 और उस ने उसके कारण अब्राम की भलाई की; सो उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, दास-दासियां, गदहे-गदहियां, और ऊंट मिले। 17 तब यहोवा ने फिरौन और उसके घराने पर, अब्राम की पत्नी सारै के कारण बड़ी बड़ी विपत्तियां डालीं। 18 सो फिरौन ने अब्राम को बुलवाकर कहा, तू ने मुझ से क्या किया है ? तू ने मुझे क्योंनहीं बताया कि वह तेरी पत्नी है ? 19 तू ने क्योंकहा, कि वह तेरी बहिन है ? मैं ने उसे अपक्की ही पत्नी बनाने के लिथे लिया; परन्तु अब अपक्की पत्नी को लेकर यहां से चला जा। 20 और फिरौन ने अपके आदमियोंको उसके विषय में आज्ञा दी और उन्होंने उसको और उसकी पत्नी को, सब सम्पत्ति समेत जो उसका या, विदा कर दिया।।
1 तब अब्राम अपक्की पत्नी, और अपक्की सारी सम्पत्ति लेकर, लूत को भी संग लिथे हुए, मिस्र को छोड़कर कनान के दक्खिन देश में आया। 2 अब्राम भेड़-बकरी, गाय-बैल, और सोने-रूपे का बड़ा धनी या। 3 फिर वह दक्खिन देश से चलकर, बेतेल के पास उसी स्यान को पहुंचा, जहां उसका तम्बू पहले पड़ा या, जो बेतेल और ऐ के बीच में है। 4 यह स्यान उस वेदी का है, जिसे उस ने पहले बनाई यी, और वहां अब्राम ने फिर यहोवा से प्रार्यना की। 5 और लूत के पास भी, जो अब्राम के साय चलता या, भेड़-बकरी, गाय-बैल, और तम्बू थे। 6 सो उस देश में उन दोनोंकी समाई न हो सकी कि वे इकट्ठे रहें : क्योंकि उनके पास बहुत धन या इसलिथे वे इकट्ठे न रह सके। 7 सो अब्राम, और लूत की भेड़-बकरी, और गाय-बैल के चरवाहोंके बीच में फगड़ा हुआ : और उस समय कनानी, और परिज्जी लोग, उस देश में रहते थे। 8 तब अब्राम लूत से कहने लगा, मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहोंके बीच में फगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाई बन्धु हैं। 9 क्या सारा देश तेरे साम्हने नहीं? सो मुझ से अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दहिनी ओर जाऊंगा; और यदि तू दहिनी ओर जाए तो मैं बाईं ओर जाऊंगा। 10 तब लूत ने आंख उठाकर, यरदन नदी के पास वाली सारी तराई को देखा, कि वह सब सिंची हुई है। 11 जब तक यहोवा ने सदोम और अमोरा को नाश न किया या, तब तक सोअर के मार्ग तक वह तराई यहोवा की बाटिका, और मिस्र देश के समान उपजाऊ यी। 12 अब्राम तो कनान देश में रहा, पर लूत उस तराई के नगरोंमें रहने लगा; और अपना तम्बू सदोम के निकट खड़ा किया। 13 सदोम के लोग यहोवा के लेखे में बड़े दुष्ट और पापी थे। 14 जब लूत अब्राम से अलग हो गया तब उसके पश्चात् यहोवा ने अब्राम से कहा, आंख उठाकर जिस स्यान पर तू है वहां से उत्तर-दक्खिन, पूर्व-पश्चिम, चारोंओर दृष्टि कर। 15 क्योंकि जितनी भूमि तुझे दिखाई देती है, उस सब को मैं तुझे और तेरे वंश को युग युग के लिथे दूंगा। 16 और मैं तेरे वंश को पृय्वी की धूल के किनकोंकी नाई बहुत करूंगा, यहां तक कि जो कोई पृय्वी की धूल के किनकोंको गिन सकेगा वही तेरा वंश भी गिन सकेगा। 17 उठ, इस देश की लम्बाई और चौड़ाई में चल फिर; क्योंकि मैं उसे तुझी को दूंगा। 18 इसके पशचात् अब्राम अपना तम्बू उखाड़कर, मम्रे के बांजोंके बीच जो हेब्रोन में थे जाकर रहने लगा, और वहां भी यहोवा की एक वेदी बनाई।।
1 शिनार के राजा अम्रापेल, और एल्लासार के राजा अर्योक, और एलाम के राजा कदोर्लाओमेर, और गोयीम के राजा तिदाल के दिनोंमें ऐसा हुआ, 2 कि उन्होंने सदोम के राजा बेरा, और अमोरा के राजा बिर्शा, और अदमा के राजा शिनाब, और सबोयीम के राजा शेमेबेर, और बेला जो सोअर भी कहलाता है, इन राजाओं के विरूद्ध युद्ध किया। 3 इन पांचोंने सिद्दीम नाम तराई में, जो खारे ताल के पास है, एका किया। 4 बारह वर्ष तक तो थे कदोर्लाओमेर के अधीन रहे; पर तेरहवें वर्ष में उसके विरूद्ध उठे। 5 सो चौदहवें वर्ष में कदोर्लाओमेर, और उसके संगी राजा आए, और अशतरोत्कनम में रपाइयोंको, और हाम में जूजियोंको, और शबेकिर्यातैम में एमियोंको, 6 और सेईर नाम पहाड़ में होरियोंको, मारते मारते उस एल्पारान तक जो जंगल के पास है पहुंच गए। 7 वहां से वे लौटकर एन्मिशपात को आए, जो कादेश भी कहलाता है, और अमालेकियोंके सारे देश को, और उन एमोरियोंको भी जीत लिया, जो हससोन्तामार में रहते थे। 8 तब सदोम, अमोरा, अदमा, सबोयीम, और बेला, जो सोअर भी कहलाता है, इनके राजा निकले, और सिद्दीम नाम तराई। में, उनके साय युद्ध के लिथे पांति बान्धी। 9 अर्यात् एलाम के राजा कदोर्लाओमेर, गोयीम के राजा तिदाल, शिनार के राजा अम्रापेल, और एल्लासार के राजा अर्योक, इन चारोंके विरूद्ध उन पांचोंने पांति बान्धी। 10 सिद्दीम नाम तराई में जहां लसार मिट्टी के गड़हे ही गड़हे थे; सदोम और अमोरा के राजा भागते भागते उन में गिर पके, और जो बचे वे पहाड़ पर भाग गए। 11 तब वे सदोम और अमोरा के सारे धन और भोजन वस्तुओं को लूट लाट कर चले गए। 12 और अब्राम का भतीजा लूत, जो सदोम में रहता या; उसको भी धन समेत वे लेकर चले गए। 13 तब एक जन जो भागकर बच निकला या उस ने जाकर इब्री अब्राम को समाचार दिया; अब्राम तो एमोरी मम्रे, जो एश्कोल और आनेर का भाई या, उसके बांज वृझोंके बीच में रहता या; और थे लोग अब्राम के संग वाचा बान्धे हुए थे। 14 यह सुनकर कि उसका भतीजा बन्धुआई में गया है, अब्राम ने अपके तीन सौ अठारह शिझित, युद्ध कौशल में निपुण दासोंको लेकर जो उसके कुटुम्ब में उत्पन्न हुए थे, अस्त्र शस्त्र धारण करके दान तक उनका पीछा किया। 15 और अपके दासोंके अलग अलग दल बान्धकर रात को उन पर चढ़ाई करके उनको मार लिया और होबा तक, जो दमिश्क की उत्तर ओर है, उनका पीछा किया। 16 और सारे धन को, और अपके भतीजे लूत, और उसके धन को, और स्त्रियोंको, और सब बन्धुओं को, लौटा ले आया। 17 जब वह कदोर्लाओमेर और उसके सायी राजाओं को जीतकर लौटा आता या तब सदोम का राजा शावे नाम तराई में, जो राजा की भी कहलाती है, उस से भेंट करने के लिथे आया। 18 जब शालेम का राजा मेल्कीसेदेक, जो परमप्रधान ईश्वर का याजक या, रोटी और दाखमधु ले आया। 19 और उस ने अब्राम को यह आशीर्वाद दिया, कि परमप्रधान ईश्वर की ओर से, जो आकाश और पृय्वी का अधिक्कारनेी है, तू धन्य हो। 20 और धन्य है परमप्रधान ईश्वर, जिस ने तेरे द्रोहियोंको तेरे वश में कर दिया है। तब अब्राम ने उसको सब का दशमांश दिया। 21 जब सदोम के राजा ने अब्राम से कहा, प्राणियोंको तो मुझे दे, और धन को अपके पास रख। 22 अब्राम ने सदोम के राजा ने कहा, परमप्रधान ईश्वर यहोवा, जो आकाश और पृय्वी का अधिक्कारनेी है, 23 उसकी मैं यह शपय खाता हूं, कि जो कुछ तेरा है उस में से न तो मै एक सूत, और न जूती का बन्धन, न कोई और वस्तु लूंगा; कि तू ऐसा न कहने पाए, कि अब्राम मेरे ही कारण धनी हुआ। 24 पर जो कुछ इन जवानोंने खा लिया है और उनका भाग जो मेरे साय गए थे; अर्यात् आनेर, एश्कोल, और मम्रे मैं नहीं लौटाऊंगा वे तो अपना अपना भाग रख लें।।
1 इन बातोंके पश्चात् यहोवा को यह वचन दर्शन में अब्राम के पास पहुंचा, कि हे अब्राम, मत डर; तेरी ढाल और तेरा अत्यन्त बड़ा फल मैं हूं। 2 अब्राम ने कहा, हे प्रभु यहोवा मैं तो निर्वंश हूं, और मेरे घर का वारिस यह दमिश्की एलीएजेर होगा, सो तू मुझे क्या देगा ? 3 और अब्राम ने कहा, मुझे तो तू ने वंश नहीं दिया, और क्या देखता हूं, कि मेरे घर में उत्पन्न हुआ एक जन मेरा वारिस होगा। 4 तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, कि यह तेरा वारिस न होगा, तेरा जो निज पुत्र होगा, वही तेरा वारिस होगा। 5 और उस ने उसको बाहर ले जाके कहा, आकाश की ओर दृष्टि करके तारागण को गिन, क्या तू उनको गिन सकता है ? फिर उस ने उस से कहा, तेरा वंश ऐसा ही होगा। 6 उस ने यहोवा पर विश्वास किया; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धर्म गिना। 7 और उस ने उस से कहा मैं वही यहोवा हूं जो तुझे कस्दियोंके ऊर नगर से बाहर ले आया, कि तुझ को इस देश का अधिक्कारने दूं। 8 उस ने कहा, हे प्रभु यहोवा मैं कैसे जानूं कि मैं इसका अधिक्कारनेी हूंगा ? 9 यहोवा ने उस से कहा, मेरे लिथे तीन वर्ष की एक कलोर, और तीन वर्ष की एक बकरी, और तीन वर्ष का एक मेंढ़ा, और एक पिण्डुक और कबूतर का एक बच्चा ले। 10 और इन सभोंको लेकर, उस ने बीच में से दो टुकड़े कर दिया, और टुकड़ोंको आम्हने-साम्हने रखा : पर चिडिय़ाओं को उस ने टुकड़े न किया। 11 और जब मांसाहारी पक्की लोयोंपर फपके, तब अब्राम ने उन्हें उड़ा दिया। 12 जब सूर्य अस्त होने लगा, तब अब्राम को भारी नींद आई; और देखो, अत्यन्त भय और अन्धकार ने उसे छा लिया। 13 तब यहोवा ने अब्राम से कहा, यह निश्चय जान कि तेरे वंश पराए देश में परदेशी होकर रहेंगे, और उसके देश के लोगोंके दास हो जाएंगे; और वे उनको चार सौ वर्ष लोंदु:ख देंगे; 14 फिर जिस देश के वे दास होंगे उसको मैं दण्ड दूंगा : और उसके पश्चात् वे बड़ा धन वहां से लेकर निकल आएंगे। 15 तू तो अपके पितरोंमें कुशल के साय मिल जाएगा; तुझे पूरे बुढ़ापे में मिट्टी दी जाएगी। 16 पर वे चौयी पीढ़ी में यहां फिर आएंगे : क्योंकि अब तक एमोरियोंका अधर्म पूरा नहीं हुआ। 17 और ऐसा हुआ कि जब सूर्य अस्त हो गया और घोर अन्धकार छा गया, तब एक अंगेठी जिस में से धुआं उठता या और एक जलता हुआ पक्कीता देख पड़ा जो उन टुकड़ोंके बीच में से होकर निकल गया। 18 उसी दिन यहोवा ने अब्राम के साय यह वाचा बान्धी, कि मिस्र के महानद से लेकर परात नाम बड़े नद तक जितना देश है, 19 अर्यात्, केनियों, कनिज्जियों, कद्क़ोनियों, 20 हित्तियों, पक्कीज्जियों, रपाइयों, 21 एमोरियों, कनानियों, गिर्गाशियोंऔर यबूसियोंका देश मैं ने तेरे वंश को दिया है।।
1 अब्राम की पत्नी सारै के कोई सन्तान न यी : और उसके हाजिरा नाम की एक मिस्री लौंडी यी। 2 सो सारै ने अब्राम से कहा, देख, यहोवा ने तो मेरी कोख बन्द कर रखी है सो मैं तुझ से बिनती करती हूं कि तू मेरी लौंडी के पास जा : सम्भव है कि मेरा घर उसके द्वारा बस जाए। 3 सो सारै की यह बात अब्राम ने मान ली। सो जब अब्राम को कनान देश में रहते दस वर्ष बीत चुके तब उसकी स्त्री सारै ने अपक्की मिस्री लौंडी हाजिरा को लेकर अपके पति अब्राम को दिया, कि वह उसकी पत्नी हो। 4 और वह हाजिरा के पास गया, और वह गर्भवती हुई और जब उस ने जाना कि वह गर्भवती है तब वह अपक्की स्वामिनी को अपक्की दृष्टि में तुच्छ समझने लगी। 5 तब सारै ने अब्राम से कहा, जो मुझ पर उपद्रव हुआ सो तेरे ही सिर पर हो : मैं ने तो अपक्की लौंडी को तेरी पत्नी कर दिया; पर जब उस ने जाना कि वह गर्भवती है, तब वह मुझे तुच्छ समझने लगी, सो यहोवा मेरे और तेरे बीच में न्याय करे। 6 अब्राम ने सारै से कहा, देख तेरी लौंडी तेरे वश में है : जैसा तुझे भला लगे वैसा ही उसके साय कर। सो सारै उसको दु:ख देने लगी और वह उसके साम्हने से भाग गई। 7 तब यहोवा के दूत ने उसके जंगल में शूर के मार्ग पर जल के एक सोते के पास पाकर कहा, 8 हे सारै की लौंडी हाजिरा, तू कहां से आती और कहां को जाती है ? उस ने कहा, मैं अपक्की स्वामिनी सारै के साम्हने से भग आई हूं। 9 यहोवा के दूत ने उस से कहा, अपक्की स्वामिनी के पास लौट जा और उसके वश में रह। 10 और यहोवा के दूत ने उस से कहा, मैं तेरे वंश को बहुत बढ़ाऊंगा, यहां तक कि बहुतायत के कारण उसकी गणना न हो सकेगी। 11 और यहोवा के दूत ने उस से कहा, देख तू गर्भवती है, और पुत्र जनेगी, सो उसका नाम इश्माएल रखना; क्योंकि यहोवा ने तेरे दु:ख का हाल सुन लिया है। 12 और वह मनुष्य बनैले गदहे के समान होगा उसका हाथ सबके विरूद्ध उठेगा, और सब के हाथ उसके विरूद्ध उठेंगे; और वह अपके सब भाई बन्धुओं के मध्य में बसा रहेगा। 13 तब उस ने यहोवा का नाम जिस ने उस से बातें की यीं, अत्ताएलरोई रखकर कहा कि, कया मैं यहां भी उसको जाते हुए देखने पाई जो मेरा देखनेहारा है ? 14 इस कारण उस कुएं का नाम लहैरोई कुआं पड़ा; वह तो कादेश और बेरेद के बीच में है। 15 सो हाजिरा अब्राम के द्वारा एक पुत्र जनी : और अब्राम ने अपके पुत्र का नाम, जिसे हाजिरा जनी, इश्माएल रखा। 16 जब हाजिरा ने अब्राम के द्वारा इश्माएल को जन्म दिया उस समय अब्राम छियासी वर्ष का या।
1 जब अब्राम निन्नानवे वर्ष का हो गया, तब यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूं; मेरी उपस्यिति में चल और सिद्ध होता जा। 2 और मैं तेरे साय वाचा बान्धूंगा, और तेरे वंश को अत्यन्त ही बढ़ाऊंगा, और तेरे वंश को अत्यन्त ही बढ़ाऊंगा। 3 तब अब्राम मुंह के बल गिरा : और परमेश्वर उस से योंबातें कहता गया, 4 देख, मेरी वाचा तेरे साय बन्धी रहेगी, इसलिथे तू जातियोंके समूह का मूलपिता हो जाएगा। 5 सो अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा परन्तु तेरा नाम इब्राहीम होगा क्योंकि मैं ने तुझे जातियोंके समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। 6 और मैं तुझे अत्यन्त ही फुलाऊं फलाऊंगा, और तुझ को जाति जाति का मूल बना दूंगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे। 7 और मैं तेरे साय, और तेरे पश्चात् पीढ़ी पीढ़ी तक तेरे वंश के साय भी इस आशय की युग युग की वाचा बान्धता हूं, कि मैं तेरा और तेरे पश्चात् तेरे वंश का भी परमेश्वर रहूंगा। 8 और मैं तुझ को, और तेरे पश्चात् तेरे वंश को भी, यह सारा कनान देश, जिस में तू परदेशी होकर रहता है, इस रीति दूंगा कि वह युग युग उनकी निज भूमि रहेगी, और मैं उनका परमेश्वर रहूंगा। 9 फिर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, तू भी मेरे साय बान्धी हुई वाचा का पालन करना; तू और तेरे पश्चात् तेरा वंश भी अपक्की अपक्की पीढ़ी में उसका पालन करे। 10 मेरे साय बान्धी हुई वाचा, जो तुझे और तेरे पश्चात् तेरे वंश को पालनी पकेगी, सो यह है, कि तुम में से एक एक पुरूष का खतना हो। 11 तुम अपक्की अपक्की खलड़ी का खतना करा लेना; जो वाचा मेरे और तुम्हारे बीच में है, उसका यही चिन्ह होगा। 12 पीढ़ी पीढ़ी में केवल तेरे वंश ही के लोग नहीं पर जो तेरे घर में उत्पन्न हों, वा परदेशियोंको रूपा देकर मोल लिथे जाएं, ऐसे सब पुरूष भी जब आठ दिन के होंजाएं, तब उनका खतना किया जाए। 13 जो तेरे घर में उत्पन्न हो, अयवा तेरे रूपे से मोल लिया जाए, उसका खतना अवश्य ही किया जाए; सो मेरी वाचा जिसका चिन्ह तुम्हारी देह में होगा वह युग युग रहेगी। 14 जो पुरूष खतनारहित रहे, अर्यात् जिसकी खलड़ी का खतना न हो, वह प्राणी अपके लोगोंमे से नाश किया जाए, क्योंकि उस ने मेरे साय बान्धी हुई वाचा को तोड़ दिया।। 15 फिर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, तेरी जो पत्नी सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा होगा। 16 और मैं उसको आशीष दूंगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्र दूंगा; और मैं उसको ऐसी आशीष दूंगा, कि वह जाति जाति की मूलमाता हो जाएगी; और उसके वंश में राज्य राज्य के राजा उत्पन्न होंगे। 17 तब इब्राहीम मुंह के बल गिर पड़ा और हंसा, और अपके मन ही मन कहने लगा, क्या सौ वर्ष के पुरूष के भी सन्तान होगा और क्या सारा जो नब्बे वर्ष की है पुत्र जनेगी ? 18 और इब्राहीम ने परमेश्वर से कहा, इश्माएल तेरी दृष्टि में बना रहे! यही बहुत है। 19 तब परमेश्वर ने कहा, निश्चय तेरी पत्नी सारा के तुझ से एक पुत्र उत्पन्न होगा; और तू उसका नाम इसहाक रखना : और मैं उसके साय ऐसी वाचा बान्धूंगा जो उसके पश्चात् उसके वंश के लिथे युग युग की वाचा होगी। 20 और इश्माएल के विषय में भी मै ने तेरी सुनी है : मैं उसको भी आशीष दूंगा, और उसे फुलाऊं फलाऊंगा और अत्यन्त ही बढ़ा दूंगा; उस से बारह प्रधान उत्पन्न होंगे, और मैं उस से एक बड़ी जाति बनाऊंगा। 21 परन्तु मैं अपक्की वाचा इसहाक ही के साय बान्धूंगा जो सारा से अगले वर्ष के इसी नियुक्त समय में उत्पन्न होगा। 22 तब परमेश्वर ने इब्राहीम से बातें करनी बन्द कीं और उसके पास से ऊपर चढ़ गया। 23 तब इब्राहीम ने अपके पुत्र इश्माएल को, उसके घर में जितने उत्पन्न हुए थे, और जितने उसके रूपके से मोल लिथे गए थे, निदान उसके घर में जितने पुरूष थे, उन सभोंको लेके उसी दिन परमेश्वर के वचन के अनुसार उनकी खलड़ी का खतना किया। 24 जब इब्राहीम की खलड़ी का खतना हुआ तब वह निन्नानवे वर्ष का या। 25 और जब उसके पुत्र इश्माएल की खलड़ी का खतना हुआ तब वह तेरह वर्ष का या। 26 इब्राहीम और उसके पुत्र इश्माएल दोनोंका खतना एक ही दिन हुआ। 27 और उसके घर में जितने पुरूष थे जो घर में उत्पन्न हुए, तया जो परदेशियोंके हाथ से मोल लिथे गए थे, सब का खतना उसके साय ही हुआ।।
1 इब्राहीम मम्रे के बांजो के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा हुआ या, तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया : 2 और उस ने आंख उठाकर दृष्टि की तो क्या देखा, कि तीन पुरूष उसके साम्हने खड़े हैं : जब उस ने उन्हे देखा तब वह उन से भेंट करने के लिथे तम्बू के द्वार से दौड़ा, और भूमि पर गिरकर दण्डवत् की और कहने लगा, 3 हे प्रभु, यदि मुझ पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि है तो मैं बिनती करता हूं, कि अपके दास के पास से चले न जाना। 4 मैं योड़ा सा जल लाता हूं और आप अपके पांव धोकर इस वृझ के तले विश्रम करें। 5 फिर मैं एक टुकड़ा रोटी ले आऊं और उस से आप अपके जीव को तृप्त करें; तब उसके पश्चात् आगे बढें : क्योंकि आप अपके दास के पास इसी लिथे पधारे हैं। उन्होंने कहा, जैसा तू कहता है वैसा ही कर। 6 सो इब्राहीम ने तम्बू में सारा के पास फुर्ती से जाकर कहा, तीन सआ मैदा फुर्ती से गून्ध, और फुलके बना। 7 फिर इब्राहीम गाय बैल के फुण्ड में दौड़ा, और एक कोमल और अच्छा बछड़ा लेकर अपके सेवक को दिया, और उसने फुर्ती से उसको पकाया। 8 तब उस ने मक्खन, और दूध, और वह बछड़ा, जो उस ने पकवाया या, लेकर उनके आगे परोस दिया; और आप वृझ के तले उनके पास खड़ा रहा, और वे खाने लगे। 9 उन्होंने उस से पूछा, तेरी पत्नी सारा कहां है? उस ने कहा, वह तो तम्बू में है। 10 उस ने कहा मैं वसन्त ऋतु में निश्चय तेरे पास फिर आऊंगा; और तब तेरी पत्नी सारा के एक पुत्र उत्पन्न होगा। और सारा तम्बू के द्वार पर जो इब्राहीम के पीछे या सुन रही यी। 11 इब्राहीम और सारा दोनो बहुत बूढ़े थे; और सारा का स्त्रीधर्म बन्द हो गया या 12 सो सारा मन में हंस कर कहने लगी, मैं तो बूढ़ी हूं, और मेरा पति भी बूढ़ा है, तो क्या मुझे यह सुख होगा? 13 तब यहोवा ने इब्राहीम से कहा, सारा यह कहकर कयोंहंसी, कि क्या मेरे, जो ऐसी बुढिय़ा हो गई हूं, सचमुच एक पुत्र उत्पन्न होगा? 14 क्या यहोवा के लिथे कोई काम कठिन है? नियत समय में, अर्यात् वसन्त ऋतु में, मैं तेरे पास फिर आऊंगा, और सारा के पुत्र उत्पन्न होगा। 15 तब सारा डर के मारे यह कहकर मुकर गई, कि मैं नहीं हंसी। उस ने कहा, नहीं; तू हंसी तो यी।। 16 फिर वे पुरूष वहां से चलकर, सदोम की ओर ताकने लगे : और इब्राहीम उन्हें विदा करने के लिथे उनके संग संग चला। 17 तब यहोवा ने कहा, यह जो मैं करता हूं सो क्या इब्राहीम से छिपा रखूं ? 18 इब्राहीम से तो निश्चय एक बड़ी और सामर्यी जाति उपकेगी, और पृय्वी की सारी जातियां उसके द्वारा आशीष पाएंगी। 19 क्योंकि मैं जानता हूं, कि वह अपके पुत्रोंऔर परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें, इसलिथे कि जो कुछ यहोवा ने इब्राहीम के विषय में कहा है उसे पूरा करे। 20 क्योंकि मैं जानता हूं, कि वह अपके पुत्रोंऔर परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें, इसलिथे कि जो कुछ यहोवा ने इब्राहीम के विषय में कहा है उसे पूरा करे। 21 इसलिथे मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्होंने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं : और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा। 22 सो वे पुरूष वहां से मुड़ के सदोम की ओर जाने लगे : पर इब्राहीम यहोवा के आगे खड़ा रह गया। 23 तब इब्राहीम उसके समीप जाकर कहने लगा, क्या सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा ? 24 कदाचित् उस नगर में पचास धर्मी हों: तो क्या तू सचमुच उस स्यान को नाश करेगा और उन पचास धमिर्योंके कारण जो उस में हो न छोड़ेगा ? 25 इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनोंकी एक ही दशा हो। 26 यहोवा ने कहा यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मिलें, तो उनके कारण उस सारे स्यान को छोडूंगा। 27 फिर इब्राहीम ने कहा, हे प्रभु, सुन मैं तो मिट्टी और राख हूं; तौभी मैं ने इतनी ढिठाई की कि तुझ से बातें करूं। 28 कदाचित् उन पचास धमिर्योंमे पांच घट जाए : तो क्या तू पांच ही के घटने के कारण उस सारे नगर का नाश करेगा ? उस ने कहा, यदि मुझे उस में पैंतालीस भी मिलें, तौभी उसका नाश न करूंगा। 29 फिर उस ने उस से यह भी कहा, कदाचित् वहां चालीस मिलें। उस ने कहा, तो मैं चालीस के कारण भी ऐसा ने करूंगा। 30 फिर उस ने कहा, हे प्रभु, क्रोध न कर, तो मैं कुछ और कहूं : कदाचित् वहां तीस मिलें। उस ने कहा यदि मुझे वहां तीस भी मिलें, तौभी ऐसा न करूंगा। 31 फिर उस ने कहा, हे प्रभु, सुन, मैं ने इतनी ढिठाई तो की है कि तुझ से बातें करूं : कदाचित् उस में बीस मिलें। उस ने कहा, मैं बीस के कारण भी उसका नाश न करूंगा। 32 फिर उस ने कहा, हे प्रभु, क्रोध न कर, मैं एक ही बार और कहूंगा : कदाचित् उस में दस मिलें। उस ने कहा, तो मैं दस के कारण भी उसका नाश न करूंगा। 33 जब यहोवा इब्राहीम से बातें कर चुका, तब चला गया : और इब्राहीम अपके घर को लौट गया।।
1 सांफ को वे दो दूत सदोम के पास आए : और लूत सदोम के फाटक के पास बैठा या : सो उनको देखकर वह उन से भेंट करने के लिथे उठा; और मुंह के बल फुककर दण्डवत् कर कहा; 2 हे मेरे प्रभुओं, अपके दास के घर में पधारिए, और रात भर विश्रम कीजिए, और अपके पांव धोइथे, फिर भोर को उठकर अपके मार्ग पर जाइए। उन्होंने कहा, नहीं; हम चौक ही में रात बिताएंगे। 3 और उस ने उन से बहुत बिनती करके उन्हें मनाया; सो वे उसके साय चलकर उसके घर में आए; और उस ने उनके लिथे जेवनार तैयार की, और बिना खमीर की रोटियां बनाकर उनको खिलाई। 4 उनके सो जाने के पहिले, उस सदोम नगर के पुरूषोंने, जवानोंसे लेकर बूढ़ोंतक, वरन चारोंओर के सब लोगोंने आकर उस घर को घेर लिया; 5 और लूत को पुकारकर कहने लगे, कि जो पुरूष आज रात को तेरे पास आए हैं वे कहां हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ, कि हम उन से भोग करें। 6 तब लूत उनके पास द्वार बाहर गया, और किवाड़ को अपके पीछे बन्द करके कहा, 7 हे मेरे भाइयों, ऐसी बुराई न करो। 8 सुनो, मेरी दो बेटियां हैं जिन्होंने अब तक पुरूष का मुंह नहीं देखा, इच्छा हो तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर ले आऊं, और तुम को जैसा अच्छा लगे वैसा व्यवहार उन से करो : पर इन पुरूषोंसे कुछ न करो; क्योंकि थे मेरी छत के तले आए हैं। 9 उनहोंने कहा, हट जा। फिर वे कहने लगे, तू एक परदेशी होकर यहां रहने के लिथे आया पर अब न्यायी भी बन बैठा है : सो अब हम उन से भी अधिक तेरे साय बुराई करेंगे। और वे पुरूष लूत को बहुत दबाने लगे, और किवाड़ तोड़ने के लिथे निकट आए। 10 तब उन पाहुनोंने हाथ बढ़ाकर, लूत को अपके पास घर में खींच लिया, और किवाड़ को बन्द कर दिया। 11 और उन्होंने क्या छोटे, क्या बड़े, सब पुरूषोंको जो घर के द्वार पर थे अन्धा कर दिया, सो वे द्वार को टटोलते टटोलते यक गए। 12 फिर उन पाहुनोंने लूत से पूछा, यहां तेरे और कौन कौन हैं? दामाद, बेटे, बेटियां, वा नगर में तेरा जो कोई हो, उन सभोंको लेकर इस स्यान से निकल जा। 13 क्योंकि हम यह स्यान नाश करने पर हैं, इसलिथे कि उसकी चिल्लाहट यहोवा के सम्मुख बढ़ गई है; और यहोवा ने हमें इसका सत्यनाश करने के लिथे भेज दिया है। 14 तब लूत ने निकलकर अपके दामादोंको, जिनके साय उसकी बेटियोंकी सगाई हो गई यी, समझा के कहा, उठो, इस स्यान से निकल चलो : क्योंकि यहोवा इस नगर को नाश किया चाहता है। पर वह अपके दामादोंकी दृष्टि में ठट्ठा करनेहारा सा जान पड़ा। 15 जब पह फटने लगी, तब दूतोंने लूत से फुर्ती कराई और कहा, कि उठ, अपक्की पत्नी और दोनो बेटियोंको जो यहां हैं ले जा : नहीं तो तू भी इस नगर के अधर्म में भस्म हो जाएगा। 16 पर वह विलम्ब करता रहा, इस से उन पुरूषोंने उसका और उसकी पत्नी, और दोनोंबेटियोंको हाथ पकड़ लिया; क्योंकि यहोवा की दया उस पर यी : और उसको निकालकर नगर के बाहर कर दिया। 17 और ऐसा हुआ कि जब उन्होंने उनको बाहर निकाला, तब उस ने कहा अपना प्राण लेकर भाग जा; पीछे की और न ताकना, और तराई भर में न ठहरना; उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा। 18 लूत ने उन से कहा, हे प्रभु, ऐसा न कर : 19 देख, तेरे दास पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि हुई है, और तू ने इस में बड़ी कृपा दिखाई, कि मेरे प्राण को बचाया है; पर मैं पहाड़ पर भाग नहीं सकता, कहीं ऐसा न हो, कि कोई विपत्ति मुझ पर आ पके, और मैं मर जाऊं : 20 देख, वह नगर ऐसा निकट है कि मैं वहां भाग सकता हूं, और वह छोटा भी है : मुझे वहीं भाग जाने दे, क्या वह छोटा नहीं हैं? और मेरा प्राण बच जाएगा। 21 उस ने उस से कहा, देख, मैं ने इस विषय में भी तेरी बिनती अंगीकार की है, कि जिस नगर की चर्चा तू ने की है, उसको मैं नाश न करूंगा। 22 फुर्ती से वहां भाग जा; क्योंकि जब तक तू वहां न पहुचे तब तक मैं कुछ न कर सकूंगा। इसी कारण उस नगर का नाम सोअर पड़ा। 23 लूत के सोअर के निकट पहुचते ही सूर्य पृय्वी पर उदय हुआ। 24 तब यहोवा ने अपक्की ओर से सदोम और अमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई; 25 और उन नगरोंको और सम्पूर्ण तराई को, और नगरोंको और उस सम्पूर्ण तराई को, और नगरोंके सब निवासिक्कों, भूमि की सारी उपज समेत नाश कर दिया। 26 लूत की पत्नी ने जो उसके पीछे यी दृष्टि फेर के पीछे की ओर देखा, और वह नमक का खम्भा बन गई। 27 भोर को इब्राहीम उठकर उस स्यान को गया, जहां वह यहोवा के सम्मुख खड़ा या; 28 और सदोम, और अमोरा, और उस तराई के सारे देश की ओर आंख उठाकर क्या देखा, कि उस देश में से धधकती हुई भट्टी का सा धुआं उठ रहा है। 29 और ऐसा हुआ, कि जब परमेश्वर ने उस तराई के नगरोंको, जिन में लूत रहता या, उलट पुलट कर नाश किया, तब उस ने इब्राहीम को याद करके लूत को उस घटना से बचा लिया। 30 और लूत ने सोअर को छोड़ दिया, और पहाड़ पर अपक्की दोनोंबेटियोंसमेत रहने लगा; क्योंकि वह सोअर में रहने से डरता या : इसलिथे वह और उसकी दोनोंबेटियां वहां एक गुफा में रहने लगे। 31 तब बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, हमारा पिता बूढ़ा है, और पृय्वी भर में कोई ऐसा पुरूष नहीं जो संसार की रीति के अनुसार हमारे पास आए : 32 सो आ, हम अपके पिता को दाखमधु पिलाकर, उसके साय सोएं, जिस से कि हम अपके पिता के वंश को बचाए रखें। 33 सो उन्होंने उसी दिन रात के समय अपके पिता को दाखमधु पिलाया, तब बड़ी बेटी जाकर अपके पिता के पास लेट गई; पर उस ने न जाना, कि वह कब लेटी, और कब उठ गई। 34 और ऐसा हुआ कि दूसरे दिन बड़ी ने छोटी से कहा, देख, कल रात को मैं अपके पिता के साय सोई : सो आज भी रात को हम उसको दाखमधु पिलाएं; तब तू जाकर उसके साय सोना कि हम अपके पिता के द्वारा वंश उत्पन्न करें। 35 सो उन्होंने उस दिन भी रात के समय अपके पिता को दाखमधु पिलाया : और छोटी बेटी जाकर उसके पास लौट गई : पर उसको उसके भी सोने और उठने के समय का ज्ञान न या। 36 इस प्रकार से लूत की दोनो बेटियां अपके पिता से गर्भवती हुई। 37 और बड़ी एक पुत्र जनी, और उसका नाम मोआब रखा : वह मोआब नाम जाति का जो आज तक है मूलपिता हुआ। 38 और छोटी भी एक पुत्र जनी, और उसका नाम बेनम्मी रखा; वह अम्मोन् वंशियोंका जो आज तक हैं मूलपिता हुआ।।
1 फिर इब्राहीम वहां से कूच कर दक्खिन देश में आकर कादेश और शूर के बीच में ठहरा, और गरार में रहने लगा। 2 और इब्राहीम अपक्की पत्नी सारा के विषय में कहने लगा, कि वह मेरी बहिन है : सो गरार के राजा अबीमेलेक ने दूत भेजकर सारा को बुलवा लिया। 3 रात को परमेश्वर ने स्वप्न में अबीमेलेक के पास आकर कहा, सुन, जिस स्त्री को तू ने रख लिया है, उसके कारण तू मर जाएगा, क्योंकि वह सुहागिन है। 4 परन्तु अबीमेलेक उसके पास न गया या : सो उस ने कहा, हे प्रभु, क्या तू निर्दोष जाति का भी घात करेगा ? 5 क्या उसी ने स्वयं मुझ से नहीं कहा, कि वह मेरी बहिन है ? और उस स्त्री ने भी आप कहा, कि वह मेरा भाई है : मैं ने तो अपके मन की खराई और अपके व्यवहार की सच्चाई से यह काम किया। 6 परमेश्वर ने उस से स्वप्न में कहा, हां, मैं भी जानता हूं कि अपके मन की खराई से तू ने यह काम किया है और मैं ने तुझे रोक भी रखा कि तू मेरे विरूद्ध पाप न करे : इसी कारण मैं ने तुझ को उसे छूने नहीं दिया। 7 सो अब उस पुरूष की पत्नी को उसे फेर दे; क्योंकि वह नबी है, और तेरे लिथे प्रार्यना करेगा, और तू जीता रहेगा : पर यदि तू उसको न फेर दे तो जान रख, कि तू, और तेरे जितने लोग हैं, सब निश्चय मर जाएंगे। 8 बिहान को अबीमेलेक ने तड़के उठकर अपके सब कर्मचारियोंको बुलवाकर थे सब बातें सुनाई : और वे लोग बहुत डर गए। 9 तब अबीमेलेक ने इब्राहीम को बुलवाकर कहा, तू ने हम से यह क्या किया है ? और मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा या, कि तू ने मेरे और मेरे राज्य के ऊपर ऐसा बड़ा पाप डाल दिया है ? तू ने मुझ से वह काम किया है जो उचित न या। 10 फिर अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, तू ने क्या समझकर ऐसा काम किया ? 11 इब्राहीम ने कहा, मैं ने यह सोचा या, कि इस स्यान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो थे लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे। 12 और फिर भी सचमुच वह मेरी बहिन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई। 13 और ऐसा हुआ कि जब परमेश्वर ने मुझे अपके पिता का घर छोड़कर निकलने की आज्ञा दी, तब मैं ने उस से कहा, इतनी कृपा तुझे मुझ पर करनी होगी : कि हम दोनोंजहां जहां जाएं वहां वहां तू मेरे विषय में कहना, कि यह मेरा भाई है। 14 तब अबीमेलेक ने भेड़-बकरी, गाय-बैल, और दास-दासियां लेकर इब्राहीम को दीं, और उसकी पत्नी सारा को भी उसे फेर दिया। 15 और अबीमेलेक ने कहा, देख, मेरा देश तेरे साम्हने है; जहां तुझे भावे वहां रह। 16 और सारा से उस ने कहा, देख, मैं ने तेरे भाई को रूपे के एक हजार टुकड़े दिए हैं : देख, तेरे सारे संगियोंके साम्हने वही तेरी आंखोंका पर्दा बनेगा, और सभोंके साम्हने तू ठीक होगी। 17 तब इब्राहीम ने यहोवा से प्रार्यना की, और यहोवा ने अबीमेलेक, और उसकी पत्नी, और दासिक्कों चंगा किया और वे जनने लगीं। 18 क्योंकि यहोवा ने इब्राहीम की पत्नी सारा के कारण अबीमेलेक के घर की सब स्त्रियोंकी कोखोंको पूरी रीति से बन्द कर दिया या।।
1 सो यहोवा ने जैसा कहा या वैसा ही सारा की सुधि लेके उसके साय अपके वचन के अनुसार किया। 2 सो सारा को इब्राहीम से गर्भवती होकर उसके बुढ़ापे में उसी नियुक्त समय पर जो परमेश्वर ने उस से ठहराया या एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 3 और इब्राहीम ने अपके पुत्र का नाम जो सारा से उत्पन्न हुआ या इसहाक रखा। 4 और जब उसका पुत्र इसहाक आठ दिन का हुआ, तब उस ने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उसक खतना किया। 5 और जब इब्राहीम का पुत्र इसहाक उत्पन्न हुआ तब वह एक सौ वर्ष का या। 6 और सारा ने कहा, परमेश्वर ने मुझे प्रफुल्लित कर दिया है; इसलिथे सब सुननेवाले भी मेरे साय प्रफुल्लित होंगे। 7 फिर उस ने यह भी कहा, कि क्या कोई कभी इब्राहीम से कह सकता या, कि सारा लड़कोंको दूध पिलाएगी ? पर देखो, मुझ से उसके बुढ़ापे में एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 8 और वह लड़का बढ़ा और उसका दूध छुड़ाया गया : और इसहाक के दूध छुड़ाने के दिन इब्राहीम ने बड़ी जेवनार की। 9 तब सारा को मिस्री हाजिरा का पुत्र, जो इब्राहीम से उत्पन्न हुआ या, हंसी करता हुआ देख पड़ा। 10 सो इस कारण उस ने इब्राहीम से कहा, इस दासी को पुत्र सहित बरबस निकाल दे : क्योंकि इस दासी का पुत्र मेरे पुत्र इसहाक के साय भागी न होगा। 11 यह बात इब्राहीम को अपके पुत्र के कारण बुरी लगी। 12 तब परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, उस लड़के और अपक्की दासी के कारण तुझे बुरा न लगे; जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान, क्योंकि जो तेरा वंश कहलाएगा सो इसहाक ही से चलेगा। 13 दासी के पुत्र से भी मैं एक जाति उत्पन्न करूंगा इसलिथे कि वह तेरा वंश है। 14 सो इब्राहीम ने बिहान को तड़के उठकर रोटी और पानी से भरी चमड़े की यैली भी हाजिरा को दी, और उसके कन्धे पर रखी, और उसके लड़के को भी उसे देकर उसको विदा किया : सो वह चक्की गई, और बेर्शेबा के जंगल में भ्रमण करने लगी। 15 जब यैली का जल चुक गया, तब उस ने लड़के को एक फाड़ी के नीचे छोड़ दिया। 16 और आप उस से तीर भर के टप्पे पर दूर जाकर उसके साम्हने यह सोचकर बैठ गई, कि मुझ को लड़के की मृत्यु देखनी न पके। तब वह उसके साम्हने बैठी हुई चिल्ला चिल्ला के रोने लगी। 17 और परमेश्वर ने उस लड़के की सुनी; और उसके दूत ने स्वर्ग से हाजिरा को पुकार के कहा, हे हाजिरा तुझे क्या हुआ ? मत डर; क्योंकि जहां तेरा लड़का है वहां से उसकी आवाज परमेश्वर को सुन पक्की है। 18 उठ, अपके लड़के को उठा और अपके हाथ से सम्भाल क्योंकि मैं उसके द्वारा एक बड़ी जाति बनाऊंगा। 19 परमेश्वर ने उसकी आंखे खोल दी, और उसको एक कुंआ दिखाई पड़ा; सो उस ने जाकर यैली को जल से भरकर लड़के को पिलाया। 20 और परमेश्वर उस लड़के के साय रहा; और जब वह बड़ा हुआ, तब जंगल में रहते रहते धनुर्धारी बन गया। 21 वह तो पारान नाम जंगल में रहा करता या : और उसकी माता ने उसके लिथे मिस्र देश से एक स्त्री मंगवाई।। 22 उन दिनोंमें ऐसा हुआ कि अबीमेलेक अपके सेनापति पीकोल को संग लेकर इब्राहीम से कहने लगा, जो कुछ तू करता है उस में परमेश्वर तेरे संग रहता है : 23 सो अब मुझ से यहां इस विषय में परमेश्वर की किरिया खा, कि तू न तो मुझ से छल करेगा, और न कभी मेरे वंश से करेगा, परन्तु जैसी करूणा मैं ने तुझ पर की है, वैसी ही तू मुझ पर और इस देश पर भी जिस में तू रहता है करेगा 24 इब्राहीम ने कहा, मैं किरिया खाऊंगा। 25 और इब्राहीम ने अबीमेलेक को एक कुएं के विषय में, जो अबीमेलेक के दासोंने बरीयाई से ले लिया या, उलाहना दिया। 26 तब अबीमेलेक ने कहा, मै नहीं जानता कि किस ने यह काम किया : और तू ने भी मुझे नहीं बताया, और न मै ने आज से पहिले इसके विषय में कुछ सुना। 27 तक इब्राहीम ने भेड़-बकरी, और गाय-बैल लेकर अबीमेलेक को दिए; और उन दोनोंने आपस में वाचा बान्धी। 28 और इब्राहीम ने भेड़ की सात बच्ची अलग कर रखीं। 29 तब अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, इन सात बच्चियोंका, जो तू ने अलग कर रखी हैं, क्या प्रयोजन है ? 30 उस ने कहा, तू इन सात बच्चियोंको इस बात की साझी जानकर मेरे हाथ से ले, कि मै ने कुंआ खोदा है। 31 उन दोनोंने जो उस स्यान में आपस में किरिया खाई, इसी कारण उसका नाम बेर्शेबा पड़ा। 32 जब उन्होंने बेर्शेबा में परस्पर वाचा बान्धी, तब अबीमेलेक, और उसका सेनापति पीकोल उठकर पलिश्तियोंके देश में लौट गए। 33 और इब्राहीम ने बेर्शेबा में फाऊ का एक वृझ लगाया, और वहां यहोवा, जो सनातन ईश्वर है, उस से प्रार्यना की। 34 और इब्राहीम पलिश्तियोंके देश में बहुत दिनोंतक परदेशी होकर रहा।।
1 इन बातोंके पश्चात् ऐसा हुआ कि परमेश्वर ने, इब्राहीम से यह कहकर उसकी पक्कीझा की, कि हे इब्राहीम : उस ने कहा, देख, मैं यहां हूं। 2 उस ने कहा, अपके पुत्र को अर्यात् अपके एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा, और वहां उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा। 3 सो इब्राहीम बिहान को तड़के उठा और अपके गदहे पर काठी कसकर अपके दो सेवक, और अपके पुत्र इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिथे लकड़ी चीर ली; तब कूच करके उस स्यान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्वर ने उस से की यी। 4 तीसरे दिन इब्राहीम ने आंखें उठाकर उस स्यान को दूर से देखा। 5 और उस ने अपके सेवकोंसे कहा गदहे के पास यहीं ठहरे रहो; यह लड़का और मैं वहां तक जाकर, और दण्डवत् करके, फिर तुम्हारे पास लौट आऊंगा। 6 सो इब्राहीम ने होमबलि की लकड़ी ले अपके पुत्र इसहाक पर लादी, और आग और छुरी को अपके हाथ में लिया; और वे दोनोंएक साय चल पके। 7 इसहाक ने अपके पिता इब्राहीम से कहा, हे मेरे पिता; उस ने कहा, हे मेरे पुत्र, क्या बात है उस ने कहा, देख, आग और लकड़ी तो हैं; पर होमबलि के लिथे भेड़ कहां है ? 8 इब्राहीम ने कहा, हे मेरे पुत्र, परमेश्वर होमबलि की भेड़ का उपाय आप ही करेगा। 9 सो वे दोनोंसंग संग आगे चलते गए। और वे उस स्यान को जिसे परमेश्वर ने उसको बताया या पहुंचे; तब इब्राहीम ने वहां वेदी बनाकर लकड़ी को चुन चुनकर रखा, और अपके पुत्र इसहाक को बान्ध के वेदी पर की लकड़ी के ऊपर रख दिया। 10 और इब्राहीम ने हाथ बढ़ाकर छुरी को ले लिया कि अपके पुत्र को बलि करे। 11 तब यहोवा के दूत ने स्वर्ग से उसको पुकार के कहा, हे इब्राहीम, हे इब्राहीम; उस ने कहा, देख, मैं यहां हूं। 12 उस ने कहा, उस लड़के पर हाथ मत बढ़ा, और न उस से कुछ कर : क्योंकि तू ने जो मुझ से अपके पुत्र, वरन अपके एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस से मै अब जान गया कि तू परमेश्वर का भय मानता है। 13 तब इब्राहीम ने आंखे उठाई, और क्या देखा, कि उसके पीछे एक मेढ़ा अपके सींगो से एक फाड़ी में बफा हुआ है : सो इब्राहीम ने जाके उस मेंढ़े को लिया, और अपके पुत्र की सन्ती होमबलि करके चढ़ाया। 14 और इब्राहीम ने उस स्यान का नाम यहोवा यिरे रखा : इसके अनुसार आज तक भी कहा जाता है, कि यहोवा के पहाड़ पर उपाय किया जाएगा। 15 फिर यहोवा के दूत ने दूसरी बार स्वर्ग से इब्राहीम को पुकार के कहा, 16 यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपक्की ही यह शपय खाता हूं, कि तू ने जो यह काम किया है कि अपके पुत्र, वरन अपके एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; 17 इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकोंके समान अनगिनित करूंगा, और तेरा वंश अपके शत्रुओं के नगरोंका अधिक्कारनेी होगा : 18 और पृय्वी की सारी जातियां अपके को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी : क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है। 19 तब इब्राहीम अपके सेवकोंके पास लौट आया, और वे सब बेर्शेबा को संग संग गए; और इब्राहीम बेर्शेबा में रहता रहा।। 20 इन बातोंके पश्चात् ऐसा हुआ कि इब्राहीम को यह सन्देश मिला, कि मिल्का के तेरे भाई नाहोर से सन्तान उत्पन्न हुए हैं। 21 मिल्का के पुत्र तो थे हुए, अर्यात् उसका जेठा ऊस, और ऊस का भाई बूज, और कमूएल, जो अराम का पिता हुआ। 22 फिर केसेद, हज़ो, पिल्दाश, यिद्लाप, और बतूएल। 23 इन आठोंको मिल्का इब्राहीम के भाई नाहोर के जन्माए जनी। और बतूएल ने रिबका को उत्पन्न किया। 24 फिर नाहोर के रूमा नाम एक रखेली भी यी; जिस से तेबह, गहम, तहश, और माका, उत्पन्न हुए।।
1 सारा तो एक सौ सत्ताईस बरस की अवस्या को पहुंची; और जब सारा की इतनी अवस्या हुई; 2 तब वह किर्यतर्बा में मर गई। यह तो कनान देश में है, और हेब्रोन भी कहलाता है : सो इब्राहीम सारा के लिथे रोने पीटने को वंहा गया। 3 तब इब्राहीम अपके मुर्दे के पास से उठकर हित्तियोंसे कहने लगा, 4 मैं तुम्हारे बीच पाहुन और परदेशी हूं : मुझे अपके मध्य में कब्रिस्तान के लिथे ऐसी भूमि दो जो मेरी निज की हो जाए, कि मैं अपके मुर्दे को गाड़के अपके आंख की ओट करूं। 5 हित्तियोंने इब्राहीम से कहा, 6 हे हमारे प्रभु, हमारी सुन : तू तो हमारे बीच में बड़ा प्रधान है : सो हमारी कब्रोंमें से जिसको तू चाहे उस में अपके मुर्दे को गाड़; हम में से कोई तुझे अपक्की कब्र के लेने से न रोकेगा, कि तू अपके मुर्दे को उस में गाड़ने न पाए। 7 तब इब्राहीम उठकर खड़ा हुआ, और हित्तियोंके सम्मुख, जो उस देश के निवासी थे, दण्डवत करके कहने लगा, 8 यदि तुम्हारी यह इच्छा हो कि मैं अपके मुर्दे को गाड़के अपक्की आंख की ओट करूं, तो मेरी प्रार्यना है, कि सोहर के पुत्र एप्रोन से मेरे लिथे बिनती करो, 9 कि वह अपक्की मकपेलावाली गुफा, जो उसकी भूमि की सीमा पर है; उसका पूरा दाम लेकर मुझे दे दे, कि वह तुम्हारे बीच कब्रिस्तान के लिथे मेरी निज भूमि हो जाए। 10 और एप्रोन तो हित्तियोंके बीच वहां बैठा हुआ या। सो जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से होकर भीतर जाते थे, उन सभोंके साम्हने उस ने इब्राहीम को उत्तर दिया, 11 कि हे मेरे प्रभु, ऐसा नहीं, मेरी सुन; वह भूमि मैं तुझे देता हूं, और उस में जो गुफा है, वह भी मैं तुझे देता हूं; अपके जातिभाइयोंके सम्मुख मैं उसे तुझ को दिए देता हूं: सो अपके मुर्दे को कब्र में रख। 12 तब इब्राहीम ने उस देश के निवासियोंके साम्हने दण्डवत की। 13 और उनके सुनते हुए एप्रोन से कहा, यदि तू ऐसा चाहे, तो मेरी सुन : उस भूमि का जो दाम हो, वह मैं देना चाहता हूं; उसे मुझ से ले ले, तब मैं अपके मुर्दे को वहां गाडूंगा। 14 एप्रोन ने इब्राहीम को यह उत्तर दिया, 15 कि, हे मेरे प्रभु, मेरी बात सुन; एक भूमि का दाम तो चार सौ शेकेल रूपा है; पर मेरे और तेरे बीच में यह क्या है ? अपके मुर्दे को कब्र मे रख। 16 इब्राहीम न एप्रोन की मानकर उसको उतना रूपा तौल दिया, जितना उस ने हित्तियोंके सुनते हुए कहा या, अर्यात् चार सौ ऐसे शेकेल जो व्यापारियोंमें चलते थे। 17 सो एप्रोन की भूमि, जो मम्रे के सम्मुख की मकपेला में यी, वह गुफा समेत, और उन सब वृझोंसमेत भी जो उस में और उसके चारोंऔर सीमा पर थे, 18 जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से होकर भीतर जाते थे, उन सभोंके साम्हने इब्राहीम के अधिक्कारने में पक्की रीति से आ गई। 19 इसके पश्चात् इब्राहीम ने अपक्की पत्नी सारा को, उस मकपेला वाली भूमि की गुफा में जो मम्रे के अर्यात् हेब्रोन के साम्हने कनान देश में है, मिट्टी दी। 20 और वह भूमि गुफा समेत, जो उस में यी, हित्तियोंकी ओर से कब्रिस्तान के लिथे इब्राहीम के अधिक्कारने में पक्की रीति से आ गई।
1 इब्राहीम वृद्ध या और उसकी आयु बहुत भी और यहोवा ने सब बातोंमें उसको आशीष दी यी। 2 सो इब्राहीम ने अपके उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिक्कारनेी या, कहा, अपना हाथ मेरी जांघ के नीचे रख : 3 और मुझ से आकाश और पृय्वी के परमेश्वर यहोवा की इस विषय में शपय खा, कि तू मेरे पुत्र के लिथे कनानियोंकी लड़कियोंमें से जिनके बीच मैं रहता हूं, किसी को न ले आएगा। 4 परन्तु तू मेरे देश में मेरे ही कुटुम्बियोंके पास जाकर मेरे पुत्र इसहाक के लिथे एक पत्नी ले आएगा। 5 दास ने उस से कहा, कदाचित् वह स्त्री इस देश में मेरे साय आना न चाहे; तो क्या मुझे तेरे पुत्र को उस देश में जहां से तू आया है ले जाना पकेगा ? 6 इब्राहीम ने उस से कहा, चौकस रह, मेरे पुत्र को वहां कभी न ले जाना। 7 स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जिस ने मुझे मेरे पिता के घर से और मेरी जन्मभूमि से ले आकर मुझ से शपय खाकर कहा, कि मैं यह देश तेरे वंश को दूंगा; वही अपना दूत तेरे आगे आगे भेजेगा, कि तू मेरे पुत्र के लिथे वहां से एक स्त्री ले आए। 8 और यदि वह स्त्री तेरे साय आना न चाहे तब तो तू मेरी इस शपय से छूट जाएगा : पर मेरे पुत्र को वहां न ले जाना। 9 तब उस दास ने अपके स्वामी इब्राहीम की जांघ के नीचे अपना हाथ रखकर उस से इसी विषय की शपय खाई। 10 तब वह दास अपके स्वामी के ऊंटो में से दस ऊंट छंाटकर उसके सब उत्तम उत्तम पदार्योंमें से कुछ कुछ लेकर चला : और मसोपोटामिया में नाहोर के नगर के पास पहुंचा। 11 और उस ने ऊंटोंको नगर के बाहर एक कुएं के पास बैठाया, वह संध्या का समय या, जिस समय स्त्रियां जल भरने के लिथे निकलती है। 12 सो वह कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर, यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, और मेरे स्वामी इब्राहीम पर करूणा कर। 13 देख मैं जल के इस सोते के पास खड़ा हूं; और नगरवासियोंकी बेटियोंजल भरने के लिथे निकली आती हैं : 14 सो ऐसा होने दे, कि जिस कन्या से मैं कहूं, कि अपना घड़ा मेरी ओर फुका, कि मैं पीऊं; और वह कहे, कि ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटो को भी पीलाऊंगी : सो वही हो जिसे तू ने अपके दास इसहाक के लिथे ठहराया हो; इसी रीति मैं जान लूंगा कि तू ने मेरे स्वामी पर करूणा की है। 15 और ऐसा हुआ कि जब वह कह ही रहा या कि रिबका, जो इब्राहीम के भाई नाहोर के जन्माथे मिल्का के पुत्र, बतूएल की बेटी यी, वह कन्धे पर घड़ा लिथे हुए आई। 16 वह अति सुन्दर, और कुमारी यी, और किसी पुरूष का मुंह न देखा या : वह कुएं में सोते के पास उतर गई, और अपना घड़ा भर के फिर ऊपर आई। 17 तब वह दास उस से भेंट करने को दौड़ा, और कहा, अपके घड़े मे से योड़ा पानी मुझे पिला दे। 18 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, ले, पी ले: और उस ने फुर्ती से घड़ा उतारकर हाथ में लिथे लिथे उसको पिला दिया। 19 जब वह उसको पिला चुकी, तक कहा, मैं तेरे ऊंटोंके लिथे भी तब तक पानी भर भर लाऊंगी, जब तक वे पी न चुकें। 20 तब वह फुर्ती से अपके घड़े का जल हौदे में उण्डेलकर फिर कुएं पर भरने को दौड़ गई; और उसके सब ऊंटोंके लिथे पानी भर दिया। 21 और वह पुरूष उसकी ओर चुपचाप अचम्भे के साय ताकता हुआ यह सोचता या, कि यहोवा ने मेरी यात्रा को सुफल किया है कि नहीं। 22 जब ऊंट पी चुके, तब उस पुरूष ने आध तोले सोने का एक नत्य निकालकर उसको दिया, और दस तोले सोने के कंगन उसके हाथोंमें पहिना दिए; 23 और पूछा, तू किस की बेटी है? यह मुझ को बता दे। क्या तेरे पिता के घर में हमारे टिकने के लिथे स्यान है ? 24 उस ने उत्तर दिया, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूं। 25 फिर उस ने उस से कहा, हमारे वहां पुआल और चारा बहुत है, और टिकने के लिथे स्यान भी है। 26 तब उस पुरूष ने सिर फुकाकर यहोवा को दण्डवत् करके कहा, 27 धन्य है मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर यहोवा, कि उस ने अपक्की करूणा और सच्चाई को मेरे स्वामी पर से हटा नहीं लिया : यहोवा ने मुझ को ठीक मार्ग पर चलाकर मेरे स्वामी के भाई बन्धुओं के घर पर पहुचा दिया है। 28 और उस क्न्या ने दौड़कर अपक्की माता के घर में यह सारा वृत्तान्त कह सुनाया। 29 तब लाबान जो रिबका का भाई या, सो बाहर कुएं के निकट उस पुरूष के पास दौड़ा गया। 30 और ऐसा हुआ कि जब उस ने वह नत्य और अपक्की बहिन रिबका के हाथोंमें वे कंगन भी देखे, और उसकी यह बात भी सुनी, कि उस पुरूष ने मुझ से ऐसी बातें कहीं; तब वह उस पुरूष के पास गया; और क्या देखा, कि वह सोते के निकट ऊंटोंके पास खड़ा है। 31 उस ने कहा, हे यहोवा की ओर से धन्य पुरूष भीतर आ : तू क्योंबाहर खड़ा है ? मैं ने घर को, और ऊंटो के लिथे भी स्यान तैयार किया है। 32 और वह पुरूष घर में गया; और लाबान ने ऊंटोंकी काठियां खोलकर पुआल और चारा दिया; और उसके, और उसके संगी जनो के पांव धोने को जल दिया। 33 तब इब्राहीम के दास के आगे जलपान के लिथे कुछ रखा गया : पर उस ने कहा मैं जब तक अपना प्रयोजन न कह दूं, तब तक कुछ न खाऊंगा। लाबान ने कहा, कह दे। 34 तक उस ने कहा, मैं तो इब्राहीम का दास हूं। 35 और यहोवा ने मेरे स्वामी को बड़ी आशीष दी है; सो वह महान पुरूष हो गया है; और उस ने उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, सोना-रूपा, दास-दासियां, ऊंट और गदहे दिए है। 36 और मेरे स्वामी की पत्नी सारा के बुढ़ापे में उस से एक पुत्र उत्पन्न हुआ है। और उस पुत्र को इब्राहीम ने अपना सब कुछ दे दिया है। 37 और मेरे स्वामी ने मुझे यह शपय खिलाई, कि मैं उसके पुत्र के लिथे कनानियोंकी लड़कियोंमें से जिन के देश में वह रहता है, कोई स्त्री न ले आऊंगा। 38 मैं उसके पिता के घर, और कुल के लोगोंके पास जाकर उसके पुत्र के लिथे एक स्त्री ले आऊंगा। 39 तब मैं ने अपके स्वामी से कहा, कदाचित् वह स्त्री मेरे पीछे न आए। 40 तब उस ने मुझ से कहा, यहोवा, जिसके साम्हने मैं चलता आया हूं, वह तेरे संग अपके दूत को भेजकर तेरी यात्रा को सुफल करेगा; सो तू मेरे कुल, और मेरे पिता के घराने में से मेरे पुत्र के लिथे एक स्त्री ले आ सकेगा। 41 तू तब ही मेरी इस शपय से छूटेगा, जब तू मेरे कुल के लोगोंके पास पहुंचेगा; अर्यात् यदि वे मुझे कोई स्त्री न दें, तो तू मेरी श्पय से छूटेगा। 42 सो मैं आज उस कुएं के निकट आकर कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा, यदि तू मेरी इस यात्रा को सुफल करता हो : 43 तो देख मैं जल के इस कुएं के निकट खड़ा हूं; सो ऐसा हो, कि जो कुमारी जल भरने के लिथे निकल आए, और मैं उस से कहूं, अपके घड़े में से मुझे योड़ा पानी पिला; 44 और वह मुझ से कहे, पी ले और मै तेरे ऊंटो के पीने के लिथे भी पानी भर दूंगी : वह वही स्त्री हो जिसको तू ने मेरे स्वामी के पुत्र के लिथे ठहराया हो। 45 मैं मन ही मन यह कह ही रहा या, कि देख रिबका कन्धे पर घड़ा लिथे हुए निकल आई; फिर वह सोते के पास उतरके भरने लगी : और मै ने उस से कहा, मुझे पिला दे। 46 और उस ने फुर्ती से अपके घड़े को कन्धे पर से उतारके कहा, ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटोंको भी पिलाऊंगी : सो मैं ने पी लिया, और उस ने ऊंटोंको भी पिला दिया। 47 तब मैं ने उस से पूछा, कि तू किस की बेटी है ? और उस ने कहा, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूं : तब मैं ने उसकी नाक में वह नत्य, और उसके हाथोंमें वे कंगन पहिना दिए। 48 फिर मैं ने सिर फुकाकर यहोवा को दण्डवत् किया, और अपके स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा, क्योंकि उस ने मुझे ठीक मार्ग से पहुंचाया कि मै अपके स्वामी के पुत्र के लिथे उसकी भतीजी को ले जाऊं। 49 सो अब, यदि तू मेरे स्वामी के साय कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझ से कहो : और यदि नहीं चाहते हो, तौभी मुझ से कह दो; ताकि मैं दाहिनी ओर, वा बाईं ओर फिर जाऊं। 50 तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, यह बात यहोवा की ओर से हुई है : सो हम लोग तुझ से न तो भला कह सकते हैं न बुरा। 51 देख, रिबका तेरे साम्हने है, उसको ले जा, और वह यहोवा के वचन के अनुसार, तेरे स्वामी के पुत्र की पत्नी हो जाए। 52 उनका यह वचन सुनकर, इब्राहीम के दास ने भूमि पर गिरके यहोवा को दण्डवत् किया। 53 फिर उस दास ने सोने और रूपे के गहने, और वस्त्र निकालकर रिबका को दिए : और उसके भाई और माता को भी उस ने अनमोल अनमोल वस्तुएं दी। 54 तब उस ने अपके संगी जनोंसमेत भोजन किया, और रात वहीं बिताई : और तड़के उठकर कहा, मुझ को अपके स्वामी के पास जाने के लिथे विदा करो। 55 रिबका के भाई और माता ने कहा, कन्या को हमारे पास कुछ दिन, अर्यात् कम से कम दस दिन रहने दे; फिर उसके पश्चात् वह चक्की जाएगी। 56 उस ने उन से कहा, यहोवा ने जो मेरी यात्रा को सुफल किया है; सो तुम मुझे मत रोको अब मुझे विदा कर दो, कि मैं अपके स्वामी के पास जाऊं। 57 उन्होंने कहा, हम कन्या को बुलाकर पूछते हैं, और देखेंगे, कि वह क्या कहती है। 58 सो उन्होंने रिबका को बुलाकर उस से पूछा, क्या तू इस मनुष्य के संग जाएगी? उस ने कहा, हां मैं जाऊंगी। 59 तब उन्होंने अपक्की बहिन रिबका, और उसकी धाय और इब्राहीम के दास, और उसके सायी सभोंको विदा किया। 60 और उन्होंने रिबका को आशीर्वाद देके कहा, हे हमारी बहिन, तू हजारोंलाखोंकी आदिमाता हो, और तेरा वंश अपके बैरियोंके नगरोंका अधिक्कारनेी हो। 61 इस पर रिबका अपक्की सहेलियोंसमेत चक्की; और ऊंट पर चढ़के उस पुरूष के पीछे हो ली : सो वह दास रिबका को साय लेकर चल दिया। 62 इसहाक जो दक्खिन देश में रहता या, सो लहैरोई नाम कुएं से होकर चला आता या। 63 और सांफ के समय वह मैदान में ध्यान करने के लिथे निकला या : और उस ने आंखे उठाकर क्या देखा, कि ऊंट चले आ रहे हैं। 64 और रिबका ने भी आंख उठाकर इसहाक को देखा, और देखते ही ऊंट पर से उतर पक्की 65 तब उस ने दास से पूछा, जो पुरूष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, सो कौन है? दास ने कहा, वह तो मेरा स्वामी है। तब रिबका ने घूंघट लेकर अपके मुंह को ढ़ाप लिया। 66 और दास ने इसहाक से अपना सारा वृत्तान्त वर्णन किया। 67 तब इसहाक रिबका को अपक्की माता सारा के तम्बू में ले आया, और उसको ब्याहकर उस से प्रेम किया : और इसहाक को माता की मृत्यु के पश्चात् शान्ति हुई।।
1 तब इब्राहीम ने एक और पत्नी ब्याह ली जिसका नाम कतूरा या। 2 और उस से जिम्रान, योझान, मदना, मिद्यान, यिशबाक, और शूह उत्पन्न हुए। 3 और योझान से शबा और ददान उत्पन्न हुए। और ददान के वंश में अश्शूरी, लतूशी, और लुम्मी लोग हुए। 4 और मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीदा, और एल्दा हुए, से सब कतूरा के सन्तान हुए। 5 इसहाक को तो इब्राहीम ने अपना सब कुछ दिया। 6 पर अपक्की रखेलियोंके पुत्रोंको, कुछ कुछ देकर अपके जीते जी अपके पुत्र इसहाक के पास से पूरब देश में भेज दिया। 7 इब्राहीम की सारी अवस्या एक सौ पचहत्तर वर्ष की हुई। 8 और इब्राहीम का दीर्घायु होने के कारण अर्यात् पूरे बुढ़ापे की अवस्या में प्राण छूट गया। 9 और उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने, हित्ती सोहर के पुत्र एप्रोन की मम्रे के सम्मुखवाली भूमि में, जो मकपेला की गुफा यी, उस में उसको मिट्टी दी गई। 10 अर्यात् जो भूमि इब्राहीम ने हित्तियोंसे मोल ली यी : उसी में इब्राहीम, और उस की पत्नी सारा, दोनोंको मिट्टी दी गई। 11 इब्राहीम के मरने के पश्चात् परमेश्वर ने उसके पुत्र इसहाक को जो लहैरोई नाम कुएं के पास रहता या आशीष दी।। 12 इब्राहीम का पुत्र इश्माएल जो सारा की लौंडी हाजिरा मिस्री से उत्पन्न हुआ या, उसकी यह वंशावली है। 13 इश्माएल के पुत्रोंके नाम और वंशावली यह है : अर्यात् इश्माएल का जेठा पुत्र नबायोत, फिर केदार, अद्बेल, मिबसाम, 14 मिश्मा, दूमा, मस्सा, 15 हदर, तेमा, यतूर, नपीश, और केदमा। 16 इश्माएल के पुत्र थे ही हुए, और इन्हीं के नामोंके अनुसार इनके गांवों, और छावनियोंके नाम भी पके; और थे ही बारह अपके अपके कुल के प्रधान हुए। 17 इश्माएल की सारी अवस्या एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई : तब उसके प्राण छूट गए, और वह अपके लोगोंमें जा मिला। 18 और उसके वंश हवीला से शूर तक, जो मिस्र के सम्मुख अश्शूर् के मार्ग में है, बस गए। और उनका भाग उनके सब भाईबन्धुओं के सम्मुख पड़ा।। 19 इब्राहीम के पुत्र इसहाक की वंशावली यह है : इब्राहीम से इसहाक उत्पन्न हुआ। 20 और इसहाक ने चालीस वर्ष का होकर रिबका को, जो पद्दनराम के वासी, अरामी बतूएल की बेटी, और अरामी लाबान की बहिन भी, ब्याह लिया। 21 इसहाक की पत्नी तो बांफ यी, सो उस ने उसके निमित्त यहोवा से बिनती की: और यहोवा ने उसकी बिनती सुनी, सो उसकी पत्नी रिबका गर्भवती हुई। 22 और लड़के उसके गर्भ में आपस में लिपटके एक दूसरे को मारने लगे : तब उस ने कहा, मेरी जो ऐसी ही दशा रहेगी तो मैं क्योंकर जीवित रहूंगी? और वह यहोवा की इच्छा पूछने को गई। 23 तब यहोवा ने उस से कहा तेरे गर्भ में दो जातियां हैं, और तेरी कोख से निकलते ही दो राज्य के लोग अलग अलग होंगे, और एक राज्य के लोग दूसरे से अधिक सामर्यी होंगे और बड़ा बेटा छोटे के अधीन होगा। 24 जब उसके पुत्र उत्पन्न होने का समय आया, तब क्या प्रगट हुआ, कि उसके गर्भ में जुड़वे बालक है। 25 और पहिला जो उत्पन्न हुआ सो लाल निकला, और उसका सारा शरीर कम्बल के समान रोममय या; सो उसका नाम एसाव रखा गया। 26 पीछे उसका भाई अपके हाथ से एसाव की एड़ी पकडे हुए उत्पन्न हुआ; और उसका नाम याकूब रखा गया। और जब रिबका ने उनको जन्म दिया तब इसहाक साठ वर्ष का या। 27 फिर वे लड़के बढ़ने लगे और एसाव तो वनवासी होकर चतुर शिकार खेलनेवाला हो गया, पर याकूब सीधा मनुष्य या, और तम्बुओं में रहा करता या। 28 और इसहाक तो एसाव के अहेर का मांस खाया करता या, इसलिथे वह उस से प्रीति रखता या : पर रिबका याकूब से प्रीति रखती यी।। 29 याकूब भोजन के लिथे कुछ दाल पका रहा या : और एसाव मैदान से यका हुआ आया। 30 तब एसाव ने याकूब से कहा, वह जो लाल वस्तु है, उसी लाल वस्तु में से मुझे कुछ खिला, क्योंकि मैं यका हूं। इसी कारण उसका नाम एदोम भी पड़ा। 31 याकूब ने कहा, अपना पहिलौठे का अधिक्कारने आज मेरे हाथ बेच दे। 32 एसाव ने कहा, देख, मै तो अभी मरने पर हूं : सो पहिलौठे के अधिक्कारने से मेरा क्या लाभ होगा ? 33 याकूब ने कहा, मुझ से अभी शपय खा : सो उस ने उस से शपय खाई : और अपना पहिलौठे का अधिक्कारने याकूब के हाथ बेच डाला। 34 इस पर याकूब ने एसाव को रोटी और पकाई हुई मसूर की दाल दी; और उस ने खाया पिया, तब उठकर चला गया। योंएसाव ने अपना पहिलौठे का अधिक्कारने तुच्छ जाना।।
1 और उस देश में अकाल पड़ा, वह उस पहिले अकाल से अलग या जो इब्राहीम के दिनोंमें पड़ा या। सो इसहाक गरार को पलिश्तियोंके राजा अबीमेलेक के पास गया। 2 वहां यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा, मिस्र में मत जा; जो देश मैं तुझे बताऊं उसी में रह। 3 तू इसी देश में रह, और मैं तेरे संग रहूंगा, और तुझे आशीष दूंगा; और थे सब देश मैं तुझ को, और तेरे वंश को दूंगा; और जो शपय मैं ने तेरे पिता इब्राहीम से खाई यी, उसे मैं पूरी करूंगा। 4 और मैं तेरे वंश को आकाश के तारागण के समान करूंगा। और मैं तेरे वंश को थे सब देश दूंगा, और पृय्वी की सारी जातियां तेरे वंश के कारण अपके को धन्य मानेंगी। 5 क्योंकि इब्राहीम ने मेरी मानी, और जो मैं ने उसे सौंपा या उसको और मेरी आज्ञाओं विधियों, और व्यवस्या का पालन किया। 6 सो इसहाक गरार में रह गया। 7 जब उस स्यान के लोगोंने उसकी पत्नी के विषय में पूछा, तब उस ने यह सोचकर कि यदि मैं उसको अपक्की पत्नी कहूं, तो यहां के लोग रिबका के कारण जो परम सुन्दरी है मुझ को मार डालेंगे, उत्तर दिया, वह तो मेरी बहिन है। 8 जब उसको वहां रहते बहुत दिन बीत गए, तब एक दिन पलिश्तियोंके राजा अबीमेलेक ने खिड़की में से फांकके क्या देखा, कि इसहाक अपक्की पत्नी रिबका के साय क्रीड़ा कर रहा है। 9 तब अबीमेलेक ने इसहाक को बुलवाकर कहा, वह तो निश्चय तेरी पत्नी है; फिर तू ने क्योंकर उसको अपक्की बहिन कहा ? इसहाक ने उत्तर दिया, मैं ने सोचा या, कि ऐसा न हो कि उसके कारण मेरी मृत्यु हो। 10 अबीमेलेक ने कहा, तू ने हम से यह क्या किया ? ऐसे तो प्रजा में से कोई तेरी पत्नी के साय सहज से कुकर्म कर सकता, और तू हम को पाप में फंसाता। 11 और अबीमेलेक ने अपक्की सारी प्रजा को आज्ञा दी, कि जो कोई उस पुरूष को वा उस स्त्री को छूएगा, सो निश्चय मार डाला जाएगा। 12 फिर इसहाक ने उस देश में जोता बोया, और उसी वर्ष में सौ गुणा फल पाया : और यहोवा ने उसको आशीष दी। 13 और वह बढ़ा और उसकी उन्नति होती चक्की गई, यहां तक कि वह अति महान पुरूष हो गया। 14 जब उसके भेड़-बकरी, गाय-बैल, और बहुत से दास-दासियां हुई, तब पलिश्ती उस से डाह करने लगे। 15 सो जितने कुओं को उसके पिता इब्राहीम के दासोंने इब्राहीम के जीते जी खोदा या, उनको पलिश्तियोंने मिट्टी से भर दिया। 16 तब अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, हमारे पास से चला जा; क्योंकि तू हम से बहुत सामर्यी हो गया है। 17 सो इसहाक वहां से चला गया, और गरार के नाले में तम्बू खड़ा करके वहां रहने लगा। 18 तब जो कुएं उसके पिता इब्राहीम के दिनोंमें खोदे गए थे, और इब्राहीम के मरने के पीछे पलिश्तियोंने भर दिए थे, उनको इसहाक ने फिर से खुदवाया; और उनके वे ही नाम रखे, जो उसके पिता ने रखे थे। 19 फिर इसहाक के दासोंको नाले में खोदते खोदते बहते जल का एक सोता मिला। 20 तब गरारी चरवाहोंने इसहाक के चरवाहोंसे फगड़ा किया, और कहा, कि यह जल हमारा है। सो उस ने उस कुएं का नाम एसेक रखा इसलिथे कि वे उस से फगड़े थे। 21 फिर उन्होंने दूसरा कुआं खोदा; और उन्होंने उसके लिथे भी फगड़ा किया, सो उस ने उसका नाम सित्रा रखा। 22 तब उस ने वहां से कूच करके एक और कुआं खुदवाया; और उसके लिथे उन्होंने फगड़ा न किया; सो उस ने उसका नाम यह कहकर रहोबोत रखा, कि अब तो यहोवा ने हमारे लिथे बहुत स्यान दिया है, और हम इस देश में फूलें-फलेंगे। 23 वहां से वह बेर्शेबा को गया। 24 और उसी दिन यहोवा ने रात को उसे दर्शन देकर कहा, मैं तेरे पिता इब्राहीम का परमेश्वर हूं; मत डर, क्योंकि मैं तेरे साय हूं, और अपके दास इब्राहीम के कारण तुझे आशीष दूंगा, और तेरा वंश बढ़ाऊंगा 25 तब उस ने वहां एक वेदी बनाई, और यहोवा से प्रार्यना की, और अपना तम्बू वहीं खड़ा किया; और वहां इसहाक के दासोंने एक कुआं खोदा। 26 तब अबीमेलेक अपके मित्र अहुज्जत, और अपके सेनापति पीकोल को संग लेकर, गरार से उसके पास गया। 27 इसहाक ने उन से कहा, तुम ने मुझ से बैर करके अपके बीच से निकाल दिया या; सो अब मेरे पास क्योंआए हो ? 28 उन्होंने कहा, हम ने तो प्रत्यझ देखा है, कि यहोवा तेरे साय रहता है : सो हम ने सोचा, कि तू तो यहोवा की ओर से धन्य है, सो हमारे तेरे बीच में शपय खाई जाए, और हम तुझ से इस विषय की वाचा बन्धाएं; 29 कि जैसे हम ने तुझे नहीं छूआ, वरन तेरे साय निरी भलाई की है, और तुझ को कुशल झेम से विदा किया, उसके अनुसार तू भी हम से कोई बुराई न करेगा। 30 तब उस ने उनकी जेवनार की, और उन्होंने खाया पिया। 31 बिहान को उन सभोंने तड़के उठकर आपस में शपय खाई; तब इसहाक ने उनको विदा किया, और वे कुशल झेम से उसके पास से चले गए। 32 उसी दिन इसहाक के दासोंने आकर अपके उस खोदे हुए कुएं का वृत्तान्त सुना के कहा, कि हम को जल का एक सोता मिला है। 33 तब उस ने उसका नाम शिबा रखा : इसी कारण उस नगर का नाम आज तक बेर्शेबा पड़ा है।। 34 जब एसाव चालीस वर्ष का हुआ, तब उस ने हित्ती बेरी की बेटी यहूदीत, और हित्ती एलोन की बेटी बाशमत को ब्याह लिया। 35 और इन स्त्रियोंके कारण इसहाक और रिबका के मन को खेद हुआ।।
1 जब इसहाक बूढ़ा हो गया, और उसकी आंखें ऐसी धुंधली पड़ गई, कि उसको सूफता न या, तब उस ने अपके जेठे पुत्र एसाव को बुलाकर कहा, हे मेरे पुत्र; उस ने कहा, क्या आज्ञा। 2 उस ने कहा, सुन, मैं तो बूढ़ा हो गया हूं, और नहीं जानता कि मेरी मृत्यु का दिन कब होगा : 3 सो अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हयियार लेकर मैदान में जा, और मेरे लिथे हिरन का अहेर कर ले आ। 4 तब मेरी रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर मेरे पास ले आना, कि मै उसे खाकर मरने से पहले तुझे जी भर के आशीर्वाद दूं। 5 तब एसाव अहेर करने को मैदान में गया। जब इसहाक एसाव से यह बात कह रहा या, तब रिबका सुन रही यी। 6 सो उस ने अपके पुत्र याकूब से कहा सुन, मैं ने तेरे पिता को तेरे भाई एसाव से यह कहते सुना, 7 कि तू मेरे लिथे अहेर करके उसका स्वादिष्ट भोजन बना, कि मैं उसे खाकर तुझे यहोवा के आगे मरने से पहिले आशीर्वाद दूं 8 सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और यह आज्ञा मान, 9 कि बकरियोंके पास जाकर बकरियोंके दो अच्छे अच्छे बच्चे ले आ; और मैं तेरे पिता के लिथे उसकी रूचि के अनुसार उन के मांस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊंगी। 10 तब तू उसको अपके पिता के पास ले जाना, कि वह उसे खाकर मरने से पहिले तुझ को आशीर्वाद दे। 11 याकूब ने अपक्की माता रिबका से कहा, सुन, मेरा भाई एसाव तो रोंआर पुरूष है, और मैं रोमहीन पुरूष हूं। 12 कदाचित् मेरा पिता मुझे टटोलने लगे, तो मैं उसकी दृष्टि में ठग ठहरूंगा; और आशीष के बदले शाप ही कमाऊंगा। 13 उसकी माता ने उस से कहा, हे मेरे, पुत्र, शाप तुझ पर नहीं मुझी पर पके, तू केवल मेरी सुन, और जाकर वे बच्चे मेरे पास ले आ। 14 तब याकूब जाकर उनको अपक्की माता के पास ले आया, और माता ने उसके पिता की रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दिया। 15 तब रिबका ने अपके पहिलौठे पुत्र एसाव के सुन्दर वस्त्र, जो उसके पास घर में थे, लेकर अपके लहुरे पुत्र याकूब को पहिना दिए। 16 और बकरियोंके बच्चोंकी खालोंको उसके हाथोंमें और उसके चिकने गले में लपेट दिया। 17 और वह स्वादिष्ट भोजन और अपक्की बनाई हुई रोटी भी अपके पुत्र याकूब के हाथ में दे दी। 18 सो वह अपके पिता के पास गया, और कहा, हे मेरे पिता : उस ने कहा क्या बात है ? हे मेरे पुत्र, तू कौन है ? 19 याकूब ने अपके पिता से कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूं। मैं ने तेरी आज्ञा मे अनुसार किया है; सो उठ और बैठकर मेरे अहेर के मांस में से खा, कि तू जी से मुझे आशीर्वाद दे। 20 इसहाक ने अपके पुत्र से कहा, हे मेरे पुत्र, क्या कारण है कि वह तुझे इतनी जल्दी मिल गया ? उस ने यह उत्तर दिया, कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उसको मेरे साम्हने कर दिया। 21 फिर इसहाक ने याकूब से कहा, हे मेरे पुत्र, निकट आ, मैं तुझे टटोलकर जानूं, कि तू सचमुच मेरा पुत्र एसाव है वा नहीं। 22 तब याकूब अपके पिता इसहाक के निकट गया, और उस ने उसको टटोलकर कहा, बोल तो याकूब का सा है, पर हाथ एसाव ही के से जान पड़ते हैं। 23 और उस ने उसको नहीं चीन्हा, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई के से रोंआर थे। 24 और उस ने पूछा, क्या तू सचमुच मेरा पुत्र एसाव है ? उस ने कहा मैं हूं। 25 तब उस ने कहा, भोजन को मेरे निकट ले आ, कि मैं, अपके पुत्र के अहेर के मांस में से खाकर, तुझे जी से आशीर्वाद दूं। तब वह उसको उसके निकट ले आया, और उस ने खाया; और वह उसके पास दाखमधु भी लाया, और उस ने पिया। 26 तब उसके पिता इसहाक ने उस से कहा, हे मेरे पुत्र निकट आकर मुझे चूम। 27 उस ने निकट जाकर उसको चूमा। और उस ने उसके वोंको सुगन्ध पाकर उसको वह आशीर्वाद दिया, कि देख, मेरे पुत्र का सुगन्ध जो ऐसे खेत का सा है जिस पर यहोवा ने आशीष दी हो : 28 सो परमेश्वर तुझे आकाश से ओस, और भूमि की उत्तम से उत्तम उपज, और बहुत सा अनाज और नया दाखमधु दे : 29 राज्य राज्य के लोग तेरे अधीन हों, और देश देश के लोग तुझे दण्डवत् करें : तू अपके भाइयोंका स्वामी हो, और तेरी माता के पुत्र तुझे दण्डवत् करें : जो तुझे शाप दें सो आप ही स्रापित हों, और जो तुझे आशीर्वाद दें सो आशीष पाएं।। 30 यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे ही चुका, और याकूब अपके पिता इसहाक के साम्हने से निकला ही या, कि एसाव अहेर लेकर आ पहुंचा। 31 तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपके पिता के पास ले आया, और उस ने कहा, हे मेरे पिता, उठकर अपके पुत्र के अहेर का मांस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे। 32 उसके पिता इसहाक ने पूछा, तू कौन है ? उस ने कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूं। 33 तब इसहाक ने अत्यन्त यरयर कांपके हुए कहा, फिर वह कौन या जो अहेर करके मेरे पास ले आया या, और मैं ने तेरे आने से पहिले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया ? वरन उसको आशीष लगी भी रहेगी। 34 अपके पिता की यह बात सुनते ही एसाव ने अत्यन्त ऊंचे और दु:ख भरे स्वर से चिल्लाकर अपके पिता से कहा, हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे। 35 उस ने कहा, तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को लेके चला गया। 36 उस ने कहा, क्या उसका नाम याकूब ययार्य नहीं रखा गया ? उस ने मुझे दो बार अड़ंगा मारा, मेरा पहिलौठे का अधिक्कारने तो उस ने ले ही लिया या : और अब देख, उस ने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है : फिर उस ने कहा, क्या तू ने मेरे लिथे भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है ? 37 इसहाक ने एसाव को उत्तर देकर कहा, सुन, मैं ने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयोंको उसके अधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है : सो अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिथे क्या करूं ? 38 एसाव ने अपके पिता से कहा हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है ? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे : योंकहकर एसाव फूट फूटके रोया। 39 उसके पिता इसहाक ने उस से कहा, सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि पर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर पके।। 40 और तू अपक्की तलवार के बल से जीवित रहे, और अपके भाई के अधीन तो होए, पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपके कन्धे पर से तोड़ फेंके। 41 एसाव ने तो याकूब से अपके पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; सो उस ने सोचा, कि मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपके भाई याकूब को घात करूंगा। 42 जब रिबका को अपके पहिलौठे पुत्र एसाव की थे बातें बताई गई, तब उस ने अपके लहुरे पुत्र याकूब को बुलाकर कहा, सुन, तेरा भाई एसाव तुझे घात करने के लिथे अपके मन को धीरज दे रहा है। 43 सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा ; 44 और योड़े दिन तक, अर्यात् जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना। 45 फिर जब तेरे भाई का क्रोध ने उतरे, और जो काम तू ने उस से किया है उसको वह भूल जाए; तब मैं तुझे वहां से बुलवा भेजूंगी : ऐसा क्योंहो कि एक ही दिन में मुझे तुम दोनोंसे रहित होना पके ? 46 फिर रिबका ने इसहाक से कहा, हित्ती लड़कियोंके कारण मैं अपके प्राण से घिन करती हूं; सो यदि ऐसी हित्ती लड़कियोंमें से, जैसी इस देश की लड़कियां हैं, याकूब भी एक को कहीं ब्याह ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा?
1 तब इसहाक ने याकूब को बुलाकर आशीर्वाद दिया, और आज्ञा दी, कि तू किसी कनानी लड़की को न ब्याह लेना। 2 पद्दनराम में अपके नाना बतूएल के घर जाकर वहां अपके मामा लाबान की एक बेटी को ब्याह लेना। 3 और सर्वशक्तिमान ईश्वर तुझे आशीष दे, और फुला-फलाकर बढ़ाए, और तू राज्य राज्य की मण्डली का मूल हो। 4 और वह तुझे और तेरे वंश को भी इब्राहीम की सी आशीष दे, कि तू यह देश जिस में तू परदेशी होकर रहता है, और जिसे परमेश्वर ने इब्राहीम को दिया या, उसका अधिक्कारनेी हो जाए। 5 और इसहाक ने याकूब को विदा किया, और वह पद्दनराम को अरामी बतूएल के उस पुत्र लाबान के पास चला, जो याकूब और एसाव की माता रिबका का भाई या। 6 जब इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देकर पद्दनराम भेज दिया, कि वह वहीं से पत्नी ब्याह लाए, और उसको आशीर्वाद देने के समय यह आज्ञा भी दी, कि तू किसी कनानी लड़की को ब्याह न लेना; 7 और याकूब माता पिता की मानकर पद्दनराम को चल दिया; 8 तब एसाव यह सब देख के और यह भी सोचकर, कि कनानी लड़कियां मेरे पिता इसहाक को बुरी लगती हैं, 9 इब्राहीम के पुत्र इश्माएल के पास गया, और इश्माएल की बेटी महलत को, जो नबायोत की बहिन भी, ब्याहकर अपक्की पत्नियोंमे मिला लिया।। 10 सो याकूब बेर्शेबा से निकलकर हारान की ओर चला। 11 और उस ने किसी स्यान में पहुंचकर रात वहीं बिताने का विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्त हो गया या; सो उस ने उस स्यान के पत्यरोंमें से एक पत्यर ले अपना तकिया बनाकर रखा, और उसी स्यान में सो गया। 12 तब उस ने स्वप्न में क्या देखा, कि एक सीढ़ी पृय्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुंचा है : और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं। 13 और यहोवा उसके ऊपर खड़ा होकर कहता है, कि मैं यहोवा, तेरे दादा इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का भी परमेश्वर हूं : जिस भूमि पर तू पड़ा है, उसे मैं तुझ को और तेरे वंश को दूंगा। 14 और तेरा वंश भूमि की धूल के किनकोंके समान बहुत होगा, और पच्छिम, पूरब, उत्तर, दक्खिन, चारोंओर फैलता जाएगा : और तेरे और तेरे वंश के द्वारा पृय्वी के सारे कुल आशीष पाएंगे। 15 और सुन, मैं तेरे संग रहूंगा, और जहां कहीं तू जाए वहां तेरी रझा करूंगा, और तुझे इस देश में लौटा ले आऊंगा : मैं अपके कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूं तब तक तुझ को न छोडूंगा। 16 तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा; निश्चय इस स्यान में यहोवा है; और मैं इस बात को न जानता या। 17 और भय खाकर उस ने कहा, यह स्यान क्या ही भयानक है ! यह तो परमेश्वर के भवन को छोड़ और कुछ नहीं हो सकता; वरन यह स्वर्ग का फाटक ही होगा। 18 भोर को याकूब तड़के उठा, और अपके तकिए का पत्यर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया, और उसके सिक्के पर तेल डाल दिया। 19 और उस ने उस स्यान का नाम बेतेल रखा; पर उस नगर का नाम पहिले लूज या। 20 और याकूब ने यह मन्नत मानी, कि यदि परमेश्वर मेरे संग रहकर इस यात्रा में मेरी रझा करे, और मुझे खाने के लिथे रोटी, और पहिनने के लिथे कपड़ा दे, 21 और मैं अपके पिता के घर में कुशल झेम से लौट आऊं : तो यहोवा मेरा परमेश्वर ठहरेगा। 22 और यह पत्यर, जिसका मैं ने खम्भा खड़ा किया है, परमेश्वर का भवन ठहरेगा : और जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूंगा।।
1 फिर याकूब ने अपना मार्ग लिया, और पूव्विर्योंके देश में आया। 2 और उस ने दृष्टि करके क्या देखा, कि मैदान में एक कुंआ है, और उसके पास भेड़-बकरियोंके तीन फुण्ड बैठे हुए हैं; क्योंकि जो पत्यर उस कुएं के मुंह पर धरा रहता या, जिस में से फुण्डोंको जल पिलाया जाता या, वह भारी या। 3 और जब सब फुण्ड वहां इकट्ठे हो जाते तब चरवाहे उस पत्यर को कुएं के मुंह पर से लुढ़काकर भेड़-बकरियोंको पानी पिलाते, और फिर पत्यर को कुएं के मुंह पर ज्योंका त्योंरख देते थे। 4 सो याकूब ने चरवाहोंसे पूछा, हे मेरे भाइयो, तुम कहां के हो? उन्होंने कहा, हम हारान के हैं। 5 तब उस ने उन से पूछा, क्या तुम नाहोर के पोते लाबान को जानते हो ? उन्होंने कहा, हां, हम उसे जानते हैं। 6 फिर उस ने उन से पूछा, क्या वह कुशल से है ? उन्होंने कहा, हां, कुशल से तो है और वह देख, उसकी बेटी राहेल भेड़-बकरियोंको लिथे हुए चक्की आती है। 7 उस ने कहा, देखो, अभी तो दिन बहुत है, पशुओं के इकट्ठे होने का समय नहीं : सो भेड़-बकरियोंको जल पिलाकर फिर ले जाकर चराओ। 8 उन्होंने कहा, हम अभी ऐसा नहीं कर सकते, जब सब फुण्ड इकट्ठे होते हैं तब पत्यर कुएं के मुंह से लुढ़काया जाता है, और तब हम भेड़-बकरियोंको पानी पिलाते हैं। 9 उनकी यह बातचीत हो रही यी, कि राहेल जो पशु चराया करती यी, सो अपके पिता की भेड़-बकरियोंको लिथे हुए आ गई। 10 अपके मामा लाबान की बेटी राहेल को, और उसकी भेड़-बकरियोंको भी देखकर याकूब ने निकट जाकर कुएं के मुंह पर से पत्यर को लुढ़काकर अपके मामा लाबान की भेड़-बकरियोंको पानी पिलाया। 11 तब याकूब ने राहेल को चूमा, और ऊंचे स्वर से रोया। 12 और याकूब ने राहेल को बता दिया, कि मैं तेरा फुफेरा भाई हूं, अर्यात् रिबका का पुत्र हूं : तब उस ने दौड़ के अपके पिता से कह दिया। 13 अपके भानजे याकूब को समाचार पाते ही लाबान उस से भेंट करने को दौड़ा, और उसको गले लगाकर चूमा, फिर अपके घर ले आया। और याकूब ने लाबान से अपना सब वृत्तान्त वर्णन किया। 14 तब लाबान ने याकूब से कहा, तू तो सचमुच मेरी हड्डी और मांस है। सो याकूब एक महीना भर उसके साय रहा। 15 तब लाबान ने याकूब से कहा, भाईबन्धु होने के कारण तुझ से सेंतमेंत सेवा कराना मुझे उचित नहीं है, सो कह मैं तुझे सेवा के बदले क्या दूं ? 16 लाबान के दो बेटियां यी, जिन में से बड़ी का नाम लिआ : और छोटी का राहेल या। 17 लिआ : के तो धुन्धली आंखे यी, पर राहेल रूपवती और सुन्दर यी। 18 सो याकूब ने, जो राहेल से प्रीति रखता या, कहा, मैं तेरी छोटी बेटी राहेल के लिथे सात बरस तेरी सेवा करूंगा। 19 लाबान ने कहा, उसे पराए पुरूष को देने से तुझ को देना उत्तम होगा; सो मेरे पास रह। 20 सो याकूब ने राहेल के लिथे सात बरस सेवा की; और वे उसको राहेल की प्रीति के कारण योड़े ही दिनोंके बराबर जान पके। 21 तब याकूब ने लाबान से कहा, मेरी पत्नी मुझे दे, और मैं उसके पास जाऊंगा, क्योंकि मेरा समय पूरा हो गया है। 22 सो लाबान ने उस स्यान के सब मनुष्योंको बुलाकर इकट्ठा किया, और उनकी जेवनार की। 23 सांफ के समय वह अपक्की बेटी लिआ : को याकूब के पास ले गया, और वह उसके पास गया। 24 और लाबान ने अपक्की बेटी लिआ : को उसकी लौंडी होने के लिथे अपक्की लौंडी जिल्पा दी। 25 भोर को मालूम हुआ कि यह तो लिआ है, सो उस ने लाबान से कहा यह तू ने मुझ से क्या किया है ? मैं ने तेरे साय रहकर जो तेरी सेवा की, सो क्या राहेल के लिथे नहीं की ? फिर तू ने मुझ से क्योंऐसा छल किया है ? 26 लाबान ने कहा, हमारे यहां ऐसी रीति नहीं, कि जेठी से पहिले दूसरी का विवाह कर दें। 27 इसका सप्ताह तो पूरा कर; फिर दूसरी भी तुझे उस सेवा के लिथे मिलेगी जो तू मेरे साय रहकर और सात वर्ष तक करेगा। 28 सो याकूब ने ऐसा ही किया, और लिआ : के सप्ताह को पूरा किया; तब लाबान ने उसे अपक्की बेटी राहेल को भी दिया, कि वह उसकी पत्नी हो। 29 और लाबान ने अपक्की बेटी राहेल की लौंडी होने के लिथे अपक्की लौंडी बिल्हा को दिया। 30 तब याकूब राहेल के पास भी गया, और उसकी प्रीति लिआ: से अधिक उसी पर हुई, और उस ने लाबान के साय रहकर सात वर्ष और उसकी सेवा की।। 31 जब यहोवा ने देखा, कि लिआ: अप्रिय हुई, तब उस ने उसकी कोख खोली, पर राहेल बांफ रही। 32 सो लिआ: गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और उस ने यह कहकर उसका नाम रूबेन रखा, कि यहोवा ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है : सो अब मेरा पति मुझ से प्रीति रखेगा। 33 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उस ने यह कहा कि यह सुनके, कि मै अप्रिय हूं यहोवा ने मुझे यह भी पुत्र दिया : इसलिथे उस ने उसका नाम शिमोन रखा। 34 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उस ने कहा, अब की बार तो मेरा पति मुझ से मिल जाएगा, क्योंकि उस से मेरे तीन पुत्र उत्पन्न हुए : इसलिथे उसका नाम लेवी रखा गया। 35 और फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक और पुत्र उत्पन्न हुआ; और उस ने कहा, अब की बार तो मैं यहोवा का धन्यवाद करूंगी, इसलिथे उस ने उसका नाम यहूदा रखा; तब उसकी कोख बन्द को गई।।
1 जब राहेल ने देखा, कि याकूब के लिथे मुझ से कोई सन्तान नहीं होता, तब वह अपक्की बहिन से डाह करने लगी : और याकूब से कहा, मुझे भी सन्तान दे, नहीं तो मर जाऊंगी। 2 तब याकूब ने राहेल से क्रोधित होकर कहा, क्या मैं परमेश्वर हूं? तेरी कोख तो उसी ने बन्द कर रखी है। 3 राहेल ने कहा, अच्छा, मेरी लौंडी बिल्हा हाजिर है: उसी के पास जा, वह मेरे घुटनोंपर जनेगी, और उसके द्वारा मेरा भी घर बसेगा। 4 तो उस ने उसे अपक्की लौंडी बिल्हा को दिया, कि वह उसकी पत्नी हो; और याकूब उसके पास गया। 5 और बिल्हा गर्भवती हुई और याकूब से उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 6 और राहेल ने कहा, परमेश्वर ने मेरा न्याय चुकाया और मेरी सुनकर मुझे एक पुत्र दिया : इसलिथे उस ने उसका नाम दान रखा। 7 और राहेल की लौंडी बिल्हा फिर गर्भवती हुई और याकूब से एक पुत्र और उत्पन्न हुआ। 8 तब राहेल ने कहा, मैं ने अपक्की बहिन के साय बड़े बल से लिपटकर मल्लयुद्ध किया और अब जीत गई : सो उस ने उसका नाम नप्ताली रखा। 9 जब लिआ: ने देखा कि मैं जनने से रहित हो गई हूं, तब उस ने अपक्की लौंडी जिल्पा को लेकर याकूब की पत्नी होने के लिथे दे दिया। 10 और लिआ: की लौंडी जिल्पा के भी याकूब से एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 11 तब लिआ: ने कहा, अहो भाग्य! सो उस ने उसका नाम गाद रखा। 12 फिर लिआ: की लौंडी जिल्पा के याकूब से एक और पुत्र उत्पन्न हुआ। 13 तब लिआ: ने कहा, मै धन्य हूं; निश्चय स्त्रियां मुझे धन्य कहेंगी : सो उस ने उसका नाम आशेर रखा। 14 गेहूं की कटनी के दिनोंमें रूबेन को मैदान में दूदाफल मिले, और वह उनको अपक्की माता लिआ: के पास ले गया, तब राहेल ने लिआ: से कहा, अपके पुत्र के दूदाफलोंमें से कुछ मुझे दे। 15 उस ने उस से कहा, तू ने जो मेरे पति को ले लिया है सो क्या छोटी बात है ? अब क्या तू मेरे पुत्र के दूदाफल भी लेने चाहती है? राहेल ने कहा, अच्छा, तेरे पुत्र के दूदाफलोंके बदले वह आज रात को तेरे संग सोएगा। 16 सो सांफ को जब याकूब मैदान से आ रहा या, तब लिआ: उस से भेंट करने को निकली, और कहा, तुझे मेरे ही पास आना होगा, क्योंकि मै ने अपके पुत्र के दूदाफल देकर तुझे सचमुच मोल लिया। तब वह उस रात को उसी के संग सोया। 17 तब परमेश्वर ने लिआ: की सुनी, सो वह गर्भवती हुई और याकूब से उसके पांचवां पुत्र उत्पन्न हुआ। 18 तब लिआ: ने कहा, में ने जो अपके पति को अपक्की लौंडी दी, इसलिथे परमेश्वर ने मुझे मेरी मंजूरी दी है : सो उस ने उसका नाम इस्साकार रखा। 19 और लिआ: फिर गर्भवती हुई और याकूब से उसके छठवां पुत्र उत्पन्न हुआ। 20 तब लिआ: ने कहा, परमेश्वर ने मुझे अच्छा दान दिया है; अब की बार मेरा पति मेरे संग बना रहेगा, क्योंकि मेरे उस से छ: पुत्र उत्पन्न चुके हैं : से उस ने उसका नाम जबूलून रखा। 21 तत्पश्चात् उसके एक बेटी भी हुई, और उस ने उसका नाम दीना रखा। 22 और परमेश्वर ने राहेल की भी सुधि ली, और उसकी सुनकर उसकी कोख खोली। 23 सो वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; सो उस ने कहा, परमेश्वर ने मेरी नामधराई को दूर कर दिया है। 24 सो उस ने यह कहकर उसका नाम यूसुफ रखा, कि परमेश्वर मुझे एक पुत्र और भी देगा। 25 जब राहेल से यूसुफ उत्पन्न हुआ, तब याकूब ने लाबान से कहा, मुझे विदा कर, कि मैं अपके देश और स्यान को जाऊं। 26 मेरी स्त्रियां और मेरे लड़के-बाले, जिनके लिथे मैं ने तेरी सेवा की है, उन्हें मुझे दे, कि मैं चला जाऊं; तू तो जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की है। 27 लाबान ने उस से कहा, यदि तेरी दृष्टि में मैं ने अनुग्रह पाया है, तो रह जा : क्योंकि मैं ने अनुभव से जान लिया है, कि यहोवा ने तेरे कारण से मुझे आशीष दी है। 28 फिर उस ने कहा, तू ठीक बता कि मैं तुझ को क्या दूं, और मैं उसे दूंगा। 29 उस ने उस से कहा तू जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की, और तेरे पशु मेरे पास किस प्रकार से रहे। 30 मेरे अपके से पहिले वे कितने थे, और अब कितने हो गए हैं; और यहोवा ने मेरे आने पर तुझे तो आशीष दी है : पर मैं अपके घर का काम कब करने पाऊंगा? 31 उस ने फिर कहा, मैं तुझे क्या दूं? याकूब ने कहा, तू मुझे कुछ न दे; यदि तू मेरे लिथे एक काम करे, तो मै फिर तेरी भेड़-बकरियोंको चराऊंगा, और उनकी रझा करूंगा। 32 मैं आज तेरी सब भेड़-बकरियोंके बीच होकर निकलूंगा, और जो भेड़ वा बकरी चित्तीवाली वा चित्कबरी हो, और जो भेड़ काली हो, और जो बकरी चित्कबरी वा चित्तीवाली हो, उन्हें मैं अलग कर रखूंगा : और मेरी मजदूरी में वे ही ठहरेंगी। 33 और जब आगे को मेरी मजदूरी की चर्चा तेरे साम्हने चले, तब धर्म की यही साझी होगी; अर्यात् बकरियोंमें से जो कोई न चित्तीवाली न चित्कबरी हो, और भेड़ोंमें से जो कोई काली न हो, सो यदि मेरे पास निकलें, तो चोरी की ठहरेंगी। 34 तब लाबान ने कहा, तेरे कहने के अनुसार हो। 35 सो उस ने उसी दिन सब धारीवाले और चित्कबरे बकरों, और सब चित्तीवाली और चित्कबरी बकरियोंको, अर्यात् जिन में कुछ उजलापन या, उनको और सब काली भेड़ोंको भी अलग करके अपके पुत्रोंके हाथ सौप दिया। 36 और उस ने अपके और याकूब के बीच में तीन दिन के मार्ग का अन्तर ठहराया : सो याकूब लाबान की भेड़-बकरियोंको चराने लगा। 37 और याकूब ने चनार, और बादाम, और अर्मोन वृझोंकी हरी हरी छडिय़ां लेकर, उनके छिलके कहीं कहीं छीलके, उन्हें धारीदार बना दिया, ऐसी कि उन छडिय़ोंकी सफेदी दिखाई देने लगी। 38 और तब छीली हुई छडिय़ोंको भेड़-बकरियोंके साम्हने उनके पानी पीने के कठौतोंमें खड़ा किया; और जब वे पानी पीने के लिथे आई तब गाभिन हो गई। 39 और छडिय़ोंके साम्हने गाभिन होकर, भेड़-बकरियां धारीवाले, चित्तीवाले और चित्कबरे बच्चे जनीं। 40 तब याकूब ने भेड़ोंके बच्चोंको अलग अलग किया, और लाबान की भेड़-बकरियोंके मुंह को चित्तीवाले और सब काले बच्चोंकी ओर कर दिया; और अपके फुण्ड़ोंको उन से अलग रखा, और लाबान की भेड़-बकरियोंसे मिलने न दिया। 41 और जब जब बलवन्त भेड़-बकरियां गाभिन होती यी, तब तब याकूब उन छडिय़ोंको कठौतोंमे उनके साम्हने रख देता या; जिस से वे छडिय़ोंको देखती हुई गाभिन हो जाएं। 42 पर जब निर्बल भेड़-बकरियां गाभिन होती यी, तब वह उन्हें उनके आगे नहीं रखता या। इस से निर्बल निर्बल लाबान की रही, और बलवन्त बलवन्त याकूब की हो गई। 43 सो वह पुरूष अत्यन्त धनाढय हो गया, और उसके बहुत सी भेड़-बकरियां, और लौंडियां और दास और ऊंट और गदहे हो गए।।
1 फिर लाबान के पुत्रोंकी थे बातें याकूब के सुनने में आई, कि याकूब ने हमारे पिता का सब कुछ छीन लिया है, और हमारे पिता के धन के कारण उसकी यह प्रतिष्ठा है। 2 और याकूब ने लाबान के मुखड़े पर दृष्टि की और ताड़ लिया, कि वह उसके प्रति पहले के समान नहीं है। 3 तब यहोवा ने याकूब से कहा, अपके पितरोंके देश और अपक्की जन्मभूमि को लौट जा, और मैं तेरे संग रहूंगा। 4 तब याकूब ने राहेल और लिआ: को, मैदान में अपक्की भेड़-बकरियोंके पास, बुलवाकर कहा, 5 तुम्हारे पिता के मुखड़े से मुझे समझ पड़ता है, कि वह तो मुझे पहिले की नाई अब नहीं देखता; पर मेरे पिता का परमेश्वर मेरे संग है। 6 और तुम भी जानती हो, कि मैं ने तुम्हारे पिता की सेवा शक्ति भर की है। 7 और तुम्हारे पिता ने मुझ से छल करके मेरी मजदूरी को दस बार बदल दिया; परन्तु परमेश्वर ने उसको मेरी हानि करने नहीं दिया। 8 जब उस ने कहा, कि चित्तीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़-बकरियां चित्तीवाले ही जनने लगीं, और जब उस ने कहा, कि धारीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़-बकरियां धारीवाले जनने लगीं। 9 इस रीति से परमेश्वर ने तुम्हारे पिता के पशु लेकर मुझ को दे दिए। 10 भेड़-बकरियोंके गाभिन होने के समय मैं ने स्वप्न में क्या देखा, कि जो बकरे बकरियोंपर चढ़ रहे हैं, सो धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले है। 11 और परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझ से कहा, हे याकूब : मैं ने कहा, क्या आज्ञा। 12 उस ने कहा, आंखे उठाकर उन सब बकरोंको, जो बकरियोंपर चढ़ रहे हैं, देख, कि वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं; क्योंकि जो कुछ लाबान तुझ से करता है, सो मैं ने देखा है। 13 मैं उस बेतेल का ईश्वर हूं, जहां तू ने एक खम्भे पर तेल डाल दिया, और मेरी मन्नत मानी यी : अब चल, इस देश से निकलकर अपक्की जन्मभूमि को लौट जा। 14 तब राहेल और लिआ : ने उस से कहा, क्या हमारे पिता के घर में अब भी हमारा कुछ भाग वा अंश बचा है? 15 क्या हम उसकी दृष्टि में पराथे न ठहरीं? देख, उस ने हम को तो बेच डाला, और हमारे रूपे को खा बैठा है। 16 सो परमेश्वर ने हमारे पिता का जितना धन ले लिया है, सो हमारा, और हमारे लड़केबालोंको है : अब जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा सो कर। 17 तब याकूब ने अपके लड़केबालोंऔर स्त्रियोंको ऊंटोंपर चढ़ाया; 18 और जितने पशुओं को वह पद्दनराम में इकट्ठा करके धनाढय हो गया या, सब को कनान में अपके पिता इसहाक के पास जाने की मनसा से, साय ले गया। 19 लाबान तो अपक्की भेड़ोंका ऊन कतरने के लिथे चला गया या। और राहेल अपके पिता के गृहदेवताओं को चुरा ले गई। 20 सो याकूब लाबान अरामी के पास से चोरी से चला गया, उसको न बताया कि मैं भागा जाता हूं। 21 वह अपना सब कुछ लेकर भागा : और महानद के पार उतरकर अपना मुंह गिलाद के पहाड़ी देश की ओर किया।। 22 तीसरे दिन लाबान को समाचार मिला, कि याकूब भाग गया है। 23 सो उस ने अपके भाइयोंको साय लेकर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा। 24 तब परमेश्वर ने रात के स्वप्न में आरामी लाबान के पास आकर कहा, सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा। 25 और लाबान याकूब के पास पहुंच गया, याकूब तो अपना तम्बू गिलाद नाम पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा या : और लाबान ने भी अपके भाइयोंके साय अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया। 26 तब लाबान याकूब से कहने लगा, तू ने यह क्या किया, कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियोंको ऐसा ले आया, जैसा कोई तलवार के बल से बन्दी बनाए गए? 27 तू क्योंचुपके से भाग आया, और मुझ से बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया; नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साय मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता ? 28 तू ने तो मुझे अपके बेटे बेटियोंको चूमने तक न दिया? तू ने मूर्खता की है। 29 तुम लोगोंकी हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझ से बीती हुई रात में कहा, सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा। 30 भला अब तू अपके पिता के घर का बड़ा अभिलाषी होकर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्योंचुरा ले आया है? 31 याकूब ने लाबान को उत्तर दिया, मैं यह सोचकर डर गया या : कि कहीं तू अपक्की बेटियोंको मुझ से छीन न ले। 32 जिस किसी के पास तू अपके देवताओं को पाए, सो जीता न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, सो भाई-बन्धुओं के साम्हने पहिचानकर ले ले। क्योंकि याकूब न जानता या कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है। 33 यह सुनकर लाबान, याकूब और लिआ : और दोनोंदासियोंके तम्बुओं मे गया; और कुछ न मिला। तब लिआ: के तम्बू में से निकलकर राहेल के तम्बू में गया। 34 राहेल तो गृहदेवताओं को ऊंट की काठी में रखके उन पर बैठी यी। सो लाबान ने उसके सारे तम्बू में टटोलने पर भी उन्हें न पाया। 35 राहेल ने अपके पिता से कहा, हे मेरे प्रभु; इस से अप्रसन्न न हो, कि मैं तेरे साम्हने नहीं उठी; क्योंकि मैं स्त्रीधर्म से हूं। सो उसके ढूंढ़ ढांढ़ करने पर भी गृहदेवता उसको न मिले। 36 तब याकूब क्रोधित होकर लाबान से फगड़ने लगा, और कहा, मेरा क्या अपराध है? मेरा क्या पाप है, कि तू ने इतना क्रोधित होकर मेरा पीछा किया है ? 37 तू ने जो मेरी सारी सामग्री को टटोलकर देखा, सो तुझ को सारी सामग्री में से क्या मिला? कुछ मिला हो तो उसको यहां अपके और मेरे भाइयोंके सामहने रख दे, और वे हम दोनोंके बीच न्याय करें। 38 इन बीस वर्षोंसे मै तेरे पास रहा; उन में न तो तेरी भेड़-बकरियोंके गर्भ गिरे, और न तेरे मेढ़ोंका मांस मै ने कभी खाया। 39 जिसे बनैले जन्तुओं ने फाड़ डाला उसको मैं तेरे पास न लाता या, उसकी हानि मैं ही उठाता या; चाहे दिन को चोरी जाता चाहे रात को, तू मुझ ही से उसको ले लेता या। 40 मेरी तो यह दशा यी, कि दिन को तो घाम और रात को पाला मुझे खा गया; और नीन्द मेरी आंखोंसे भाग जाती यी। 41 बीस वर्ष तक मैं तेरे घर में रहो; चौदह वर्ष तो मै ने तेरी दोनो बेटियोंके लिथे, और छ: वर्ष तेरी भेड़-बकरियोंके लिथे सेवा की : और तू ने मेरी मजदूरी को दस बार बदल डाला। 42 मेरे पिता का परमेश्वर अर्यात् इब्राहीम का परमेश्वर, जिसका भय इसहाक भी मानता है, यदि मेरी ओर न होता, तो निश्चय तू अब मुझे छूछे हाथ जाने देता। मेरे दु:ख और मेरे हाथोंके परिश्र्म को देखकर परमेश्वर ने बीती हुई रात में तुझे दपटा। 43 लाबान ले याकूब से कहा, थे बेटियोंतो मेरी ही हैं, और थे पुत्र भी मेरे ही हैं, और थे भेड़-बकरियोंभी मेरी ही हैं, और जो कुछ तुझे देख पड़ता है सो सब मेरा ही है : और अब मैं अपक्की इन बेटियोंवा इनके सन्तान से क्या कर सकता हूं ? 44 अब आ मैं और तू दोनोंआपस में वाचा बान्धें, और वह मेरे और तेरे बीच साझी ठहरी रहे। 45 तब याकूब ने एक पत्यर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया। 46 तब याकूब ने अपके भाई-बन्धुओं से कहा, पत्यर इकट्ठा करो; यह सुनकर उन्होंने पत्यर इकट्ठा करके एक ढेर लगाया और वहीं ढेर के पास उन्होंने भोजन किया। 47 उस ढेर का नाम लाबान ने तो यज्र सहादुया, पर याकूब ने जिलियाद रखा। 48 लाबान ने कहा, कि यह ढेर आज से मेरे और तेरे बीच साझी रहेगा। इस कारण उसका नाम जिलियाद रखा गया, 49 और मिजपा भी; क्योंकि उस ने कहा, कि जब हम उस दूसरे से दूर रहें तब यहोवा मेरी और तेरी देखभाल करता रहे। 50 यदि तू मेरी बेटियोंको दु:ख दे, वा उनके सिवाय और स्त्रियां ब्याह ले, तो हमारे साय कोई मनुष्य तो न रहेगा; पर देख मेरे तेरे बीच में परमेश्वर साझी रहेगा। 51 फिर लाबान ने याकूब से कहा, इस ढेर को देख और इस खम्भे को भी देख, जिनको मैं ने अपके और तेरे बीच में खड़ा किया है। 52 यह ढेर और यह खम्भा दोनोंइस बात के साझी रहें, कि हानि करने की मनसा से न तो मैं इस ढेर को लांघकर तेरे पास जाऊंगा, न तू इस ढेर और इस खम्भे को लांघकर मेरे पास आएगा। 53 इब्राहीम और नाहोर और उनके पिता; तीनोंका जो परमेश्वर है, सो हम दोनो के बीच न्याय करे। तब याकूब ने उसकी शपय खाई जिसका भय उसका पिता इसहाक मानता या। 54 और याकूब ने उस पहाड़ पर मेलबलि चढ़ाया, और अपके भाई-बन्धुओं को भोजन करने के लिथे बुलाया, सो उन्होंने भोजन करके पहाड़ पर रात बिताई। 55 बिहान को लाबान तड़के उठा, और अपके बेटे बेटियोंको चूमकर और आशीर्वाद देकर चल दिया, और अपके स्यान को लौट गया।
1 और याकूब ने भी अपना मार्ग लिया और परमेश्वर के दूत उसे आ मिले। 2 उनको देखते ही याकूब ने कहा, यह तो परमेश्वर का दल है सो उस ने उस स्यान का नाम महनैम रखा।। 3 तब याकूब ने सेईर देश में, अर्यात् एदोम देश में, अपके भाई एसाव के पास अपके आगे दूत भेज दिए। 4 और उस ने उन्हें यह आज्ञा दी, कि मेरे प्रभु एसाव से योंकहना; कि तेरा दास याकूब तुझ से योंकहता है, कि मैं लाबान के यहां परदेशी होकर अब तक रहा; 5 और मेरे पास गाय-बैल, गदहे, भेड़-बकरियां, और दास-दासियां है: सो मैं ने अपके प्रभु के पास इसलिथे संदेशा भेजा है, कि तेरी अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो। 6 वे दूत याकूब के पास लौटके कहने लगे, हम तेरे भाई एसाव के पास गए थे, और वह भी तुझ से भेंट करने को चार सौ पुरूष संग लिथे हुए चला आता है। 7 तब याकूब निपट डर गया, और संकट में पड़ा : और यह सोचकर, अपके संगवालोंके, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों, और ऊंटो के भी अलग अलग दो दल कर लिथे, 8 कि यदि एसाव आकर पहिले दल को मारने लगे, तो दूसरा दल भागकर बच जाएगा। 9 फिर याकूब ने कहा, हे यहोवा, हे मेरे दादा इब्राहीम के परमेश्वर, तू ने तो मुझ से कहा, कि अपके देश और जन्मभूमि में लौट जा, और मैं तेरी भलाई करूंगा : 10 तू ने जो जो काम अपक्की करूणा और सच्चाई से अपके दास के साय किए हैं, कि मैं जो अपक्की छड़ी ही लेकर इस यरदन नदी के पार उतर आया, सो अब मेरे दो दल हो गए हैं, तेरे ऐसे ऐसे कामोंमें से मैं एक के भी योग्य तो नहीं हूं। 11 मेरी बिनती सुनकर मुझे मेरे भाई एसाव के हाथ से बचा : मैं तो उस से डरता हूं, कहीं ऐसा ने हो कि वह आकर मुझे और मां समेत लड़कोंको भी मार डाले। 12 तू ने तो कहा है, कि मैं निश्चय तेरी भलाई करूंगा, और तेरे वंश को समुद्र की बालू के किनकोंके समान बहुत करूंगा, जो बहुतायत के मारे गिने नहीं जो सकते। 13 और उस ने उस दिन की रात वहीं बिताई; और जो कुछ उसके पास या उस में से अपके भाई एसाव की भेंट के लिथे छांट छांटकर निकाला; 14 अर्यात् दो सौ बकरियां, और बीस बकरे, और दो सौ भेड़ें, और बीस मेढ़े, 15 और बच्चोंसमेत दूध देनेवाली तीस ऊंटनियां, और चालीस गाथें, और दस बैल, और बीस गदहियां और उनके दस बच्चे। 16 इनको उस ने फुण्ड फुण्ड करके, अपके दासोंको सौंपकर उन से कहा, मेरे आगे बढ़ जाओ; और फुण्डोंके बीच बीच में अन्तर रखो। 17 फिर उस ने अगले फुण्ड के रखवाले को यह आज्ञा दी, कि जब मेरा भाई एसाव तुझे मिले, और पूछने लगे, कि तू किस का दास है, और कहां जाता है , और थे जो तेरे आगे आगे हैं, सो किस के हैं? 18 तब कहना, कि यह तेरे दास याकूब के हैं। हे मेरे प्रभु एसाव, थे भेंट के लिथे तेरे पास भेजे गए हैं, और वह आप भी हमारे पीछे पीछे आ रहा है। 19 और उस ने दूसरे और तीसरे रखवालोंको भी, वरन उस सभोंको जो फुण्डोंके पीछे पीछे थे ऐसी ही आज्ञा दी, कि जब एसाव तुम को मिले तब इसी प्रकार उस से कहना। 20 और यह भी कहना, कि तेरा दास याकूब हमारे पीछे पीछे आ रहा है। क्योंकि उस ने यह सोचा, कि यह भेंट जो मेरे आगे आगे जाती है, इसके द्वारा मैं उसके क्रोध को शान्त करके तब उसका दर्शन करूंगा; हो सकता है वह मुझ से प्रसन्न हो जाए। 21 सो वह भेंट याकूब से पहिले पार उतर गई, और वह आप उस रात को छावनी में रहा।। 22 उसी रात को वह उठा और अपक्की दोनोंस्त्रियों, और दोनोंलौंडियों, और ग्यारहोंलड़कोंको संग लेकर घाट से यब्बोक नदी के पार उतर गया। 23 और उस ने उन्हें उस नदी के पार उतार दिया वरन अपना सब कुछ पार उतार दिया। 24 और याकूब आप अकेला रह गया; तब कोई पुरूष आकर पह फटने तक उस से मल्लयुद्ध करता रहा। 25 जब उस ने देखा, कि मैं याकूब पर प्रबल नहीं होता, तब उसकी जांघ की नस को छूआ; सो याकूब की जांघ की नस उस से मल्लयुद्ध करते ही करते चढ़ गई। 26 तब उस ने कहा, मुझे जाने दे, क्योंकि भोर हुआ चाहता है; याकूब ने कहा जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूंगा। 27 और उस ने याकूब से पूछा, तेरा नाम क्या है? उस ने कहा याकूब। 28 उस ने कहा तेरा नाम अब याकूब नहीं, परन्तु इस्राएल होगा, क्योंकि तू परमेश्वर से और मनुष्योंसे भी युद्ध करके प्रबल हुआ है। 29 याकूब ने कहा, मैं बिनती करता हूं, मुझे अपना नाम बता। उस ने कहा, तू मेरा नाम क्योंपूछता है? तब उस ने उसको वहीं आशीर्वाद दिया। 30 तब याकूब ने यह कहकर उस स्यान का नाम पक्कीएल रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है। 31 पनूएल के पास से चलते चलते सूर्य उदय हो गया, और वह जांघ से लंगड़ाता या। 32 इस्राएली जो पशुओं की जांघ की जोड़वाले जंघानस को आज के दिन तक नहीं खाते, इसका कारण यही है, कि उस पुरूष ने याकूब की जांघ की जोड़ में जंघानस को छूआ या।।
1 और याकूब ने आंखें उठाकर यह देखा, कि एसाव चार सौ पुरूष संग लिथे हुए चला जाता है। तब उस ने लड़केबालोंको अलग अलग बांटकर लिआ, और राहेल, और दोनोंलौंडियोंको सौप दिया। 2 और उस ने सब के आगे लड़कोंसमेत लौंडियोंको उसके पीछे लड़कोंसमेत लिआ: को, और सब के पीछे राहेल और यूसुफ को रखा, 3 और आप उन सब के आगे बढ़ा, और सात बार भूमि पर गिरके दण्डवत् की, और अपके भाई के पास पहुंचा। 4 तब एसाव उस से भेंट करने को दौड़ा, और उसको ह्रृदय से लगाकर, गले से लिपटकर चूमा : फिर वे दोनोंरो पके। 5 तब उस ने आंखे उठाकर स्त्रियोंऔर लड़के बालोंको देखा; और पूछा, थे जो तेरे साय हैं सो कौन हैं? उस ने कहा, थे तेरे दास के लड़के हैं, जिन्हें परमेश्वर ने अनुग्रह करके मुझ को दिया है। 6 तब लड़कोंसमेत लौंडियोंने निकट आकर दण्डवत् की। 7 फिर लड़कोंसमेत लिआ: निकट आई, और उन्होंने भी दण्डवत् की: पीछे यूसुफ और राहेल ने भी निकट आकर दण्डवत् की। 8 तब उस ने पूछा, तेरा यह बड़ा दल जो मुझ को मिला, उसका क्या प्रयोजन है? उस ने कहा, यह कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो। 9 एसाव ने कहा, हे मेरे भाई, मेरे पास तो बहुत है; जो कुछ तेरा है सो तेरा ही रहे। 10 याकूब ने कहा, नहीं नहीं, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मेरी भेंट ग्रहण कर : क्योंकि मैं ने तेरा दर्शन पाकर, मानो परमेश्वर का दर्शन पाया है, और तू मुझ से प्रसन्न हुआ है। 11 सो यह भेंट, जो तुझे भेजी गई है, ग्रहण कर : क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे पास बहुत है। 12 फिर एसाव ने कहा, आ, हम बढ़ चलें: और मै तेरे आगे आगे चलूंगा। 13 याकूब ने कहा, हे मेरे प्रभु, तू जानता ही है कि मेरे साय सुकुमार लड़के, और दूध देनेहारी भेड़-बकरियां और गाथें है; यदि ऐसे पशु एक दिन भी अधिक हांके जाएं, तो सब के सब मर जाएंगे। 14 सो मेरा प्रभु अपके दास के आगे बढ़ जाए, और मैं इन पशुओं की गति के अनुसार, जो मेरे आगे है, और लड़केबालोंकी गति के अनुसार धीरे धीरे चलकर सेईर में अपके प्रभु के पास पहुंचूंगा। 15 एसाव ने कहा, तो अपके संगवालोंमें से मैं कई एक तेरे साय छोड़ जाऊं। उस ने कहा, यह क्यों? इतना ही बहुत है, कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। 16 तब एसाव ने उसी दिन सेईर जाने को अपना मार्ग लिया। 17 और याकूब वहां से कूच करके सुक्कोत को गया, और वहां अपके लिथे एक घर, और पशुओं के लिथे फोंपके बनाए: इसी कारण उस स्यान का नाम सुक्कोत पड़ा।। 18 और याकूब जो पद्दनराम से आया या, सो कनान देश के शकेम नगर के पास कुशल झेम से पहुंचकर नगर के साम्हने डेरे खड़े किए। 19 और भूमि के जिस खण्ड पर उस ने अपना तम्बू खड़ा किया, उसको उस ने शकेम के पिता हमोर के पुत्रोंके हाथ से एक सौ कसीतोंमें मोल लिया। 20 और वहां उस ने एक वेदी बनाकर उसका नाम एलेलोहे इस्राएल रखा।।
1 और लिआ: की बेटी दीना, जो याकूब से उत्पन्न हुई यी, उस देश की लड़कियोंसे भेंट करने को निकली। 2 तब उस देश के प्रधान हित्ती हमोर के पुत्र शकेम ने उसे देखा, और उसे ले जाकर उसके साय कुकर्म करके उसको भ्रष्ट कर डाला। 3 तब उसका मन याकूब की बेटी दीना से लग गया, और उस ने उस कन्या से प्रेम की बातें की, और उस से प्रेम करने लगा। 4 और शकेम ने अपके पिता हमोर से कहा, मुझे इस लड़की को मेरी पत्नी होने के लिथे दिला दे। 5 और याकूब ने सुना, कि शकेम ने मेरी बेटी दीना को अशुद्ध कर डाला है , पर उसके पुत्र उस समय पशुओं के संग मैदान में थे, सो वह उनके आने तक चुप रहा। 6 और शकेम का पिता हमोर निकलकर याकूब से बातचीत करने के लिथे उसके पास गया। 7 और याकूब के पुत्र सुनते ही मैदान से बहुत उदास और क्रोधित होकर आए: क्योंकि शकेम ने याकूब की बेटी के साय कुकर्म करके इस्राएल के घराने से मूर्खता का ऐसा काम किया या, जिसका करना अनुचित या। 8 हमोर ने उन सब से कहा, मेरे पुत्र शकेम का मन तुम्हारी बेटी पर बहुत लगा है, सो उसे उसकी पत्नी होने के लिथे उसको दे दो। 9 और हमारे साय ब्याह किया करो; अपक्की बेटियां हम को दिया करो, और हमारी बेटियोंको आप लिया करो। 10 और हमारे संग बसे रहो: और यह देश तुम्हारे सामने पड़ा है; इस में रहकर लेनदेन करो, और इसकी भूमि को अपके लिथे ले लो। 11 और शकेम ने भी दीना के पिता और भाइयोंसे कहा, यदि मुझ पर तुम लोगोंकी अनुग्रह की दृष्टि हो, तो जो कुछ तुम मुझ से कहा, सो मैं दूंगा। 12 तुम मुझ से कितना ही मूल्य वा बदला क्योंन मांगो, तौभी मैं तुम्हारे कहे के अनुसार दूंगा : परन्तु उस कन्या को पत्नी होने के लिथे मुझे दो। 13 तब यह सोचकर, कि शकेम ने हमारी बहिन दीना को अशुद्ध किया है, याकूब के पुत्रोंने शकेम और उसके पिता हमोर को छल के साय यह उत्तर दिया, 14 कि हम ऐसा काम नहीं कर सकते, कि किसी खतनारहित पुरूष को अपक्की बहिन दें; क्योंकि इस से हमारी नामधराई होगी : 15 इस बात पर तो हम तुम्हारी मान लेंगे, कि हमारी नाई तुम में से हर एक पुरूष का खतना किया जाए। 16 तब हम अपक्की बेटियां तुम्हें ब्याह देंगे, और तुम्हारी बेटियां ब्याह लेंगे, और तुम्हारे संग बसे भी रहेंगे, और हम दोनोंएक ही समुदाय के मनुष्य हो जाएंगे। 17 पर यदि तुम हमारी बात न मानकर अपना खतना न कराओगे, तो हम अपक्की लड़की को लेके यहां से चले जाएंगे। 18 उसकी इस बात पर हमोर और उसका पुत्र शकेम प्रसन्न हुए। 19 और वह जवान, जो याकूब की बेटी को बहुत चाहता या, इस काम को करने में उस ने विलम्ब न किया। वह तो अपके पिता के सारे घराने में अधिक प्रतिष्ठित या। 20 सो हमोर और उसका पुत्र शकेम अपके नगर के फाटक के निकट जाकर नगरवासिक्कों योंसमझाने लगे; 21 कि वे मनुष्य तो हमारे संग मेल से रहना चाहते हैं; सो उन्हें इस देश में रहके लेनदेन करने दो; देखो, यह देश उनके लिथे भी बहुत है; फिर हम लोग उनकी बेटियोंको ब्याह लें, और अपक्की बेटियोंको उन्हें दिया करें। 22 वे लोग केवल इस बात पर हमारे संग रहने और एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाने को प्रसन्न हैं, कि उनकी नाई हमारे सब पुरूषोंका भी खतना किया जाए। 23 क्या उनकी भेड़-बकरियां, और गाय-बैल वरन उनके सारे पशु और धन सम्पत्ति हमारी न हो जाएगी? इतना की करें कि हम लोग उनकी बात मान लें, तो वे हमारे संग रहेंगे। 24 सो जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे, उन सभोंने हमोर की और उसके पुत्र शकेम की बात मानी; और हर एक पुरूष का खतना किया गया, जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे। 25 तीसरे दिन, जब वे लोग पीड़ित पके थे, तब ऐसा हुआ कि शिमोन और लेवी नाम याकूब के दो पुत्रोंने, जो दीना के भाई थे, अपक्की अपक्की तलवार ले उस नगर में निधड़क घुसकर सब पुरूषोंको घात किया। 26 और हमोर और उसके पुत्र शकेम को उन्होंने तलवार से मार डाला, और दीना को शकेम के घर से निकाल ले गए। 27 और याकूब के पुत्रोंने घात कर डालने पर भी चढ़कर नगर को इसलिथे लूट लिया, कि उस में उनकी बहिन अशुद्ध की गई यी। 28 उन्होंने भेड़-बकरी, और गाय-बैल, और गदहे, और नगर और मैदान में जितना धन या ले लिया। 29 उस सब को, और उनके बाल-बच्चों, और स्त्रियोंको भी हर ले गए, वरन घर घर में जो कुछ या, उसको भी उन्होंने लूट लिया। 30 तब याकूब ने शिमोन और लेवी से कहा, तुम ने जो उस देश के निवासी कनानियोंऔर परिज्जियोंके मन में मेरी ओर घृणा उत्पन्न कराई है, इस से तुम ने मुझे संकट में डाला है, क्योंकि मेरे साय तो योड़े की लोग हैं, सो अब वे इकट्ठे होकर मुझ पर चढ़ेंगे, और मुझे मार डालेंगे, सो मैं अपके घराने समेत सत्यानाश हो जाऊंगा। 31 उन्होंने कहा, क्या वह हमारी बहिन के साय वेश्या की नाई बर्ताव करे?
1 तब परमेश्वर ने याकूब से कहा, यहां से कूच करके बेतेल को जा, और वहीं रह: और वहां ईश्वर के लिथे वेदी बना, जिस ने तुझे उस समय दर्शन दिया, जब तू अपके भाई एसाव के डर से भागा जाता या। 2 तब याकूब ने अपके घराने से, और उन सब से भी जो उसके संग थे, कहा, तुम्हारे बीच में जो पराए देवता हैं, उन्हें निकाल फेंको; और अपके अपके को शुद्ध करो, और अपके वस्त्र बदल डालो; 3 और आओ, हम यहां से कूच करके बेतेल को जाएं; वहां मैं ईश्वर के लिथे एक वेदी बनाऊंगा, जिस ने संकट के दिन मेरी सुन ली, और जिस मार्ग से मैं चलता या, उस में मेरे संग रहा। 4 सो जितने पराए देवता उनके पास थे, और जितने कुण्डल उनके कानोंमें थे, उन सभोंको उन्होंने याकूब को दिया; और उस ने उनको उस सिन्दूर वृझ के नीचे, जो शकेम के पास है, गाड़ दिया। 5 तब उन्होंने कूच किया: और उनके चारोंओर के नगर निवासियोंके मन में परमेश्वर की ओर से ऐसा भय समा गया, कि उन्होंने याकूब के पुत्रोंका पीछा न किया। 6 सो याकूब उन सब समेत, जो उसके संग थे, कनान देश के लूज नगर को आया। वह नगर बेतेल भी कहलाता है। 7 वहां उस ने एक वेदी बनाई, और उस स्यान का नाम एलबेतेल रखा; क्योंकि जब वह अपके भाई के डर से भागा जाता या तब परमेश्वर उस पर वहीं प्रगट हुआ या। 8 और रिबका की दूध पिलानेहारी धाय दबोरा मर गई, और बेतेल के नीचे सिन्दूर वृझ के तले उसको मिट्टी दी गई, और उस सिन्दूर वृझ का नाम अल्लोनबक्कूत रखा गया।। 9 फिर याकूब के पद्दनराम से आने के पश्चात् परमेश्वर ने दूसरी बार उसको दर्शन देकर आशीष दी। 10 और परमेश्वर ने उस से कहा, अब तक तो तेरा नाम याकूब रहा है; पर आगे को तेरा नाम याकूब न रहेगा, तू इस्राएल कहलाएगा : 11 फिर परमेश्वर ने उस से कहा, मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूं: तू फूले-फले और बढ़े; और तुझ से एक जाति वरन जातियोंकी एक मण्डली भी उत्पन्न होगी, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे। 12 और जो देश मैं ने इब्राहीम और इसहाक को दिया है, वही देश तुझे देता हूं, और तेरे पीछे तेरे वंश को भी दूंगा। 13 तब परमेश्वर उस स्यान में, जहां उस ने याकूब से बातें की, उनके पास से ऊपर चढ़ गया। 14 और जिस स्यान में परमेश्वर ने याकूब से बातें की, वहां याकूब ने पत्यर का एक खम्बा खड़ा किया, और उस पर अर्घ देकर तेल डाल दिया। 15 और जहां परमेश्वर ने याकूब से बातें की, उस स्यान का नाम उस ने बेतेल रखा। 16 फिर उन्होंने बेतेल से कूच किया; और एप्राता योड़ी ही दूर रह गया या, कि राहेल को बच्चा जनने की बड़ी पीड़ा आने लगी। 17 जब उसको बड़ी बड़ी पीड़ा उठती यी तब धाय ने उस से कहा, मत डर; अब की भी तेरे बेटा ही होगा। 18 तब ऐसा हुआ, कि वह मर गई, और प्राण निकलते निकलते उस ने उस बेटे को नाम बेनोनी रखा: पर उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा। 19 योंराहेल मर गई, और एप्राता, अर्यात् बेतलेहेम के मार्ग में, उसको मिट्टी दी गई। 20 और याकूब ने उसकी कब्र पर एक खम्भा खड़ा किया: राहेल की कब्र का वही खम्भा आज तक बना है। 21 फिर इस्राएल ने कूच किया, और एदेर नाम गुम्मट के आगे बढ़कर अपना तम्बू खड़ा किया। 22 जब इस्राएल उस देश में बसा या, तब एक दिन ऐसा हुआ, कि रूबेन ने जाकर अपके पिता की रखेली बिल्हा के साय कुकर्म किया : और यह बात इस्राएल को मालूम हो गई।। 23 याकूब के बारह पुत्र हुए। उन में से लिआ: के पुत्र थे थे; अर्यात् याकूब का जेठा, रूबेन, फिर शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, और जबूलून। 24 और राहेल के पुत्र थे थे; अर्यात् यूसुफ, और बिन्यामीन। 25 और राहेल की लौन्डी बिल्हा के पुत्र थे थे; अर्यात् दान, और नप्ताली। 26 और लिआ: की लौन्डी जिल्पा के पुत्र थे थे : अर्यात् गाद, और आशेर; याकूब के थे ही पुत्र हुए, जो उस से पद्दनराम में उत्पन्न हुए।। 27 और याकूब मम्रे में, जो करियतअर्बा, अर्यात् हब्रोन है, जहां इब्राहीम और इसहाक परदेशी होकर रहे थे, अपके पिता इसहाक के पास आया। 28 इसहाक की अवस्या एक सौ अस्सी बरस की हुई। 29 और इसहाक का प्राण छूट गया, और वह मर गया, और वह बूढ़ा और पूरी आयु का होकर अपके लोगोंमें जा मिला: और उसके पुत्र एसाव और याकूब ने उसको मिट्टी दी।।
1 एसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसकी यह वंशावली है। 2 एसाव ने तो कनानी लड़कियां ब्याह लीं; अर्यात् हित्ती एलोन की बेटी आदा को, और अहोलीबामा को जो अना की बेटी, और हिव्वी सिबोन की नतिनी यी। 3 फिर उस ने इश्माएल की बेटी बासमत को भी, जो नबायोत की बहिन यी, ब्याह लिया। 4 आदा ने तो एसाव के जन्माए एलीपज को, और बासमत ने रूएल को उत्पन्न किया। 5 और ओहोलीबामा ने यूश, और यालाम, और कोरह को उत्पन्न किया, एसाव के थे ही पुत्र कनान देश में उत्पन्न हुए। 6 और एसाव अपक्की पत्नियों, और बेटे-बेटियों, और घर के सब प्राणियों, और अपक्की भेड़-बकरी, और गाय-बैल आदि सब पशुओं, निदान अपक्की सारी सम्पत्ति को, जो उस ने कनान देश में संचय की यी, लेकर अपके भाई याकूब के पास से दूसरे देश को चला गया। 7 क्योंकि उनकी सम्पत्ति इतनी हो गई यी, कि वे इकट्ठे न रह सके; और पशुओं की बहुतायत के मारे उस देश में, जहां वे परदेशी होकर रहते थे, उनकी समाई न रही। 8 एसाव जो एदोम भी कहलाता है : सो सेईर नाम पहाड़ी देश में रहने लगा। 9 सेईर नाम पहाड़ी देश में रहनेहारे एदोमियोंके मूल पुरूष एसाव की वंशावली यह है : 10 एसाव के पुत्रोंके नाम थे हैं; अर्यात् एसाव की पत्नी आदा का पुत्र एलीपज, और उसी एसाव की पत्नी बासमत का पुत्र रूएल। 11 और एलीपज के थे पुत्र हुए; अर्यात् तेमान, ओमार, सपो, गाताम, और कनज। 12 और एसाव के पुत्र एलीपज के तिम्ना नाम एक सुरैतिन यी, जिस ने एलीपज के जन्माए अमालेक को जन्म दिया : एसाव की पत्नी आदा के वंश में थे ही हुए। 13 और रूएल के थे पुत्र हुए; अर्यात् नहत, जेरह, शम्मा, और मिज्जा : एसाव की पत्नी बासमत के वंश में थे ही हुए। 14 और ओहोलीबामा जो एसाव की पत्नी, और सिबोन की नतिनी और अना की बेटी यी, उसके थे पुत्र हुए : अर्यात् उस ने एसाव के जन्माए यूश, यालाम और कोरह को जन्म दिया। 15 एसाववंशियोंके अधिपति थे हुए : अर्यात् एसाव के जेठे एलीपज के वंश में से तो तेमान अधिपति, ओमार अधिपति, सपो अधिपति, कनज अधिपति, 16 कोरह अधिपति, गाताम अधिपति, अमालेख अधिपति : एलीपज वंशियोंमे से, एदोम देश में थे ही अधिपति हुए : और थे ही आदा के वंश में हुए। 17 और एसाव के पुत्र रूएल के वंश में थे हुए; अर्यात् नहत अधिपति, जेरह अधिपति, शम्मा अधिपति, मिज्जा अधिपति: रूएलवंशियोंमें से, एदोम देश में थे ही अधिपति हुए; और थे ही एसाव की पत्नी बासमत के वंश में हुए। 18 और एसाव की पत्नी ओहोलीबामा के वंश में थे हुए; अर्यात् यूश अधिपति, यालाम अधिपति, कोरह अधिपति, अना की बेटी ओहोलीबामा जो एसाव की पत्नी यी उसके वंश में थे ही हुए। 19 एसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसके वंश थे ही हैं, और उनके अधिपति भी थे ही हुए।। 20 सेईर जो होरी नाम जाति का या उसके थे पुत्र उस देश में पहिले से रहते थे; अर्यात् लोतान, शोबाल, शिबोन, अना, 21 दीशोन, एसेर, और दीशान; एदोम देश में सेईर के थे ही होरी जातिवाले अधिपति हुए। 22 और लोतान के पुत्र, होरी, और हेमाम हुए; और लोतान की बहिन तिम्ना यी। 23 और शोबाल के थे पुत्र हुए; अर्यात् आल्वान, मानहत, एबाल, शपो, और ओनाम। 24 और सिदोन के थे पुत्र हुए; अर्यात् अय्या, और अना; यह वही अना है जिस को जंगल में अपके पिता सिबोन के गदहोंको चराते चराते गरम पानी के फरने मिले। 25 और अना के दीशोन नाम पुत्र हुआ, और उसी अना के ओहोलीबामा नाम बेटी हुई। 26 और दीशोन के थे पुत्र हुए; अर्यात् हेमदान, एश्बान, यित्रान, और करान। 27 एसेर के थे पुत्र हुए; अर्यात् बिल्हान, जावान, और अकान। 28 दीशान के थे पुत्र हुए; अर्यात् ऊस, और अकान। 29 होरियोंके अधिपति थे हुए; अर्यात् लोतान अधिपति, शोबाल अधिपति, शिबोन अधिपति, अना अधिपति, 30 दीशोन अधिपति, एसेर अधिपति, दीशान अधिपति, सेईर देश में होरी जातिवाले थे ही अधिपति हुए। 31 फिर जब इस्राएलियोंपर किसी राजा ने राज्य न किया या, तब भी एदोम के देश में थे राजा हुए; 32 अर्यात् बोर के पुत्र बेला ने एदोम में राज्य किया, और उसकी राजधानी का नाम दिन्हाबा है। 33 बेला के मरने पर, बोस्रानिवासी जेरह का पुत्र योबाब उसके स्यान पर राजा हुआ। 34 और योबाब के मरने पर, तेमानियोंके देश का निवासी हूशाम उसके स्यान पर राजा हुआ। 35 और हूशाम के मरने पर, बदद का पुत्र हदद उसके स्यान पर राजा हुआ : यह वही है जिस ने मिद्यानियोंको मोआब के देश में मार लिया, और उसकी राजधानी का नाम अबीत है। 36 और हदद के मरने पर, मस्रेकावासी सम्ला उसके स्यान पर राजा हुआ। 37 फिर सम्ला के मरने पर, शाऊल जो महानद के तटवाले रहोबोत नगर का या, सो उसके स्यान पर राजा हुआ। 38 और शाऊल के मरने पर, अकबोर का पुत्र बाल्हानान उसके स्यान पर राजा हुआ। 39 और अकबोर के पुत्र बाल्हानान के मरने पर, हदर उसके स्यान पर राजा हुआ : और उसकी राजधानी का नाम पाऊ है; और उसकी पत्नी का नाम महेतबेल है, जो मेजाहब की नतिनी और मत्रेद की बेटी यी। 40 फिर एसाववंशियोंके अधिपतियोंके कुलों, और स्यानोंके अनुसार उनके नाम थे हैं; अर्यात् तिम्ना अधिपति, अल्बा अधिपति, यतेत अधिपति, 41 ओहोलीबामा अधिपति, एला अधिपति, पीनोन अधिपति, 42 कनज अधिपति, तेमान अधिपति, मिसबार अधिपति, 43 मग्दीएल अधिपति, ईराम अधिपति: एदोमवंशियोंने जो देश अपना कर लिया या, उसके निवासस्यानोंमें उनके थे ही अधिपति हुए। और एदोमी जाति का मूलपुरूष एसाव है।।
1 याकूब तो कनान देश में रहता या, जहां उसका पिता परदेशी होकर रहा या। 2 और याकूब के वंश का वृत्तान्त यह है : कि यूसुफ सतरह वर्ष का होकर भाइयोंके संग भेड़-बकरियोंको चराता या; और वह लड़का अपके पिता की पत्नी बिल्हा, और जिल्पा के पुत्रोंके संग रहा करता या : और उनकी बुराईयोंका समाचार अपके पिता के पास पहुंचाया करता या : 3 और इस्राएल अपके सब पुत्रोंसे बढ़के यूसुफ से प्रीति रखता या, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्र या : और उस ने उसके लिथे रंग बिरंगा अंगरखा बनवाया। 4 सो जब उसके भाईयोंने देखा, कि हमारा पिता हम सब भाइयोंसे अधिक उसी से प्रीति रखता है, तब वे उस से बैर करने लगे और उसके साय ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे। 5 और यूसुफ ने एक स्वप्न देखा, और अपके भाइयोंसे उसका वर्णन किया : तब वे उस से और भी द्वेष करने लगे। 6 और उस ने उन से कहा, जो स्वप्न मैं ने देखा है, सो सुनो : 7 हम लोग खेत में पूले बान्ध रहे हैं, और क्या देखता हूं कि मेरा पूला उठकर सीधा खड़ा हो गया; तब तुम्हारे पूलोंने मेरे पूले को चारोंतरफ से घेर लिया और उसे दण्डवत् किया। 8 तब उसके भाइयोंने उस से कहा, क्या सचमुच तू हमारे ऊपर राज्य करेगा ? वा सचमुच तू हम पर प्रभुता करेगा ? सो वे उसके स्वप्नोंऔर उसकी बातोंके कारण उस से और भी अधिक बैर करने लगे। 9 फिर उस ने एक और स्वप्न देखा, और अपके भाइयोंसे उसका भी योंवर्णन किया, कि सुनो, मैं ने एक और स्वप्न देखा है, कि सूर्य और चन्द्रमा, और ग्यारह तारे मुझे दण्डवत् कर रहे हैं। 10 यह स्वप्न उस ने अपके पिता, और भाइयोंसे वर्णन किया : तब उसके पिता ने उसको दपटके कहा, यह कैसा स्वप्न है जो तू ने देखा है? क्या सचमुच मैं और तेरी माता और तेरे भाई सब जाकर तेरे आगे भूमि पर गिरके दण्डवत् करेंगे? 11 उसके भाई तो उससे डाह करते थे; पर उसके पिता ने उसके उस वचन को स्मरण रखा। 12 और उसके भाई अपके पिता की भेड़-बकरियोंको चराने के लिथे शकेम को गए। 13 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, तेरे भाई तो शकेम ही में भेड़-बकरी चरा रहें होंगे, सो जा, मैं तुझे उनके पास भेजता हूं। उस ने उस से कहा जो आज्ञा मैं हाजिर हूं। 14 उस ने उस से कहा, जा, अपके भाइयोंऔर भेड़-बकरियोंका हाल देख आ कि वे कुशल से तो हैं, फिर मेरे पास समाचार ले आ। सो उस ने उसको हेब्रोन की तराई में विदा कर दिया, और वह शकेम में आया। 15 और किसी मनुष्य ने उसको मैदान में इधर उधर भटकते हुए पाकर उस से पूछा, तू क्या ढूंढता है? 16 उस ने कहा, मैं तो अपके भाइयोंको ढूंढता हूं : कृपा कर मुझे बता, कि वे भेड़-बकरियोंको कहां चरा रहे हैं? 17 उस मनुष्य ने कहा, वे तो यहां से चले गए हैं : और मैं ने उनको यह कहते सुना, कि आओ, हम दोतान को चलें। सो यूसुफ अपके भाइयोंके पास चला, और उन्हें दोतान में पाया। 18 और ज्योंही उन्होंने उसे दूर से आते देखा, तो उसके निकट आने के पहिले ही उसे मार डालने की युक्ति की। 19 और वे आपस में कहने लगे, देखो, वह स्वप्न देखनेहारा आ रहा है। 20 सो आओ, हम उसको घात करके किसी गड़हे में डाल दें, और यह कह देंगे, कि कोई दुष्ट पशु उसको खा गया। फिर हम देखेंगे कि उसके स्वप्नोंका क्या फल होगा। 21 यह सुनके रूबेन ने उसको उनके हाथ से बचाने की मनसा से कहा, हम उसको प्राण से तो न मारें। 22 फिर रूबेन ने उन से कहा, लोहू मत बहाओ, उसको जंगल के इस गड़हे में डाल दो, और उस पर हाथ मत उठाओ। वह उसको उनके हाथ से छुड़ाकर पिता के पास फिर पहुंचाना चाहता या। 23 सो ऐसा हुआ, कि जब यूसुफ अपके भाइयोंके पास पहुंचा तब उन्होंने उसका रंगबिरंगा अंगरखा, जिसे वह पहिने हुए या, उतार लिया। 24 और यूसुफ को उठाकर गड़हे में डाल दिया : वह गड़हा तो सूखा या और उस में कुछ जल न या। 25 तब वे रोटी खाने को बैठ गए : और आंखे उठाकर क्या देखा, कि इश्माएलियोंका एक दल ऊंटो पर सुगन्धद्रव्य, बलसान, और गन्धरस लादे हुए, गिलाद से मिस्र को चला जा रहा है। 26 तब यहूदा ने अपके भाइयोंसे कहा, अपके भाई को घात करने और उसका खून छिपाने से क्या लाभ होगा ? 27 आओ, हम उसे इश्माएलियोंके हाथ बेच डालें, और अपना हाथ उस पर न उठाएं, क्योंकि वह हमारा भाई और हमारी हड्डी और मांस है, सो उसके भाइयोंने उसकी बात मान ली। तब मिद्यानी व्यापारी उधर से होकर उनके पास पहुंचे : 28 सो यूसुफ के भाइयोंने उसको उस गड़हे में से खींचके बाहर निकाला, और इश्माएलियोंके हाथ चांदी के बीस टुकड़ोंमें बेच दिया : और वे यूसुफ को मिस्र में ले गए। 29 और रूबेन ने गड़हे पर लौटकर क्या देखा, कि यूसुफ गड़हे में नहीं हैं; सो उस ने अपके वस्त्र फाड़े। 30 और अपके भाइयोंके पास लौटकर कहने लगा, कि लड़का तो नहीं हैं; अब मैं किधर जाऊं ? 31 और तब उन्होंने यूसुफ का अंगरखा लिया, और एक बकरे को मारके उसके लोहू में उसे डुबा दिया। 32 और उन्होंने उस रंग बिरंगे अंगरखे को अपके पिता के पास भेजकर कहला दिया; कि यह हम को मिला है, सो देखकर पहिचान ले, कि यह तेरे पुत्र का अंगरखा है कि नहीं। 33 उस ने उसको पहिचान लिया, और कहा, हां यह मेरे ही पुत्र का अंगरखा है; किसी दुष्ट पशु ने उसको खा लिया है; नि:सन्देह यूसुफ फाड़ डाला गया है। 34 तब याकूब ने अपके वस्त्र फाड़े और कमर में टाट लपेटा, और अपके पुत्र के लिथे बहुत दिनोंतक विलाप करता रहा। 35 और उसके सब बेटे-बेटियोंने उसको शान्ति देने का यत्न किया; पर उसको शान्ति न मिली; और वह यही कहता रहा, मैं तो विलाप करता हुआ अपके पुत्र के पास अधोलोक में उतर जाऊंगा। इस प्रकार उसका पिता उसके लिथे रोता ही रहा। 36 और मिद्यानियोंने यूसुफ को मिस्र में ले जाकर पोतीपर नाम, फिरौन के एक हाकिम, और जल्लादोंके प्रधान, के हाथ बेच डाला।।
1 उन्हीं दिनोंमें ऐसा हुआ, कि यहूदा अपके भाईयोंके पास से चला गया, और हीरा नाम एक अदुल्लामवासी पुरूष के पास डेरा किया। 2 वहां यहूदा ने शूआ नाम एक कनानी पुरूष की बेटी को देखा; और उसको ब्याहकर उसके पास गया। 3 वह गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और यहूदा ने उसका नाम एर रखा। 4 और वह फिर गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसका नाम ओनान रखा गया। 5 फिर उसके एक पुत्र और उत्पन्न हुआ, और उसका नाम शेला रखा गया : और जिस समय इसका जन्म हुआ उस समय यहूदा कजीब में रहता या। 6 और यहूदा ने तामार नाम एक स्त्री से अपके जेठे एर का विवाह कर दिया। 7 परन्तु यहूदा का वह जेठा एर यहोवा के लेखे में दुष्ट या, इसलिथे यहोवा ने उसको मार डाला। 8 तब यहूदा ने ओनान से कहा, अपक्की भौजाई के पास जा, और उसके साय देवर का धर्म पूरा करके अपके भाई के लिथे सन्तान उत्पन्न कर। 9 ओनान तो जानता या कि सन्तान तो मेरी न ठहरेगी: सो ऐसा हुआ, कि जब वह अपक्की भौजाई के पास गया, तब उस ने भूमि पर वीर्य गिराकर नाश किया, जिस से ऐसा न हो कि उसके भाई के नाम से वंश चले। 10 यह काम जो उस ने किया उसे यहोवा अप्रसन्न हुआ: और उस ने उसको भी मार डाला। 11 तब यहूदा ने इस डर के मारे, कि कहीं ऐसा न हो कि अपके भाइयोंकी नाई शेला भी मरे, अपक्की बहू तामार से कहा, जब तक मेरा पुत्र शेला सियाना न हो तब तक अपके पिता के घर में विधवा की बैठी रह, सो तामार अपके पिता के घर में जाकर रहने लगी। 12 बहुत समय के बीतने पर यहूदा की पत्नी जो शूआ की बेटी यी सो मर गई; फिर यहूदा शोक से छूटकर अपके मित्र हीरा अदुल्लामवासी समेत अपक्की भेड़-बकरियोंका ऊन कतराने के लिथे तिम्नाय को गया। 13 और तामार को यह समाचार मिला, कि तेरा ससुर अपक्की भेड़-बकरियोंका ऊन कतराने के लिथे तिम्नाय को जा रहा है। 14 तब उस ने यह सोचकर, कि शेला सियाना तो हो गया पर मैं उसकी स्त्री नहीं होने पाई; अपना विधवापन का पहिरावा उतारा, और घूंघट डालकर अपके को ढांप लिया, और एनैम नगर के फाटक के पास, जो तिम्नाय के मार्ग में है, जा बैठी: 15 जब यहूदा ने उसको देखा, उस ने उस को वेश्या समझा; क्योंकि वह अपना मुंह ढ़ापे हुए यी। 16 और वह मार्ग से उसकी ओर फिरा और उस से कहने लगा, मुझे अपके पास आने दे, (क्योंकि उसे यह मालूम न या कि वह उसकी बहू है)। और वह कहने लगी, कि यदि मैं तुझे अपके पास आने दूं, तो तू मुझे क्या देगा? 17 उस ने कहा, मैं अपक्की बकरियोंमें से बकरी का एक बच्चा तेरे पास भेज दूंगा। 18 उस ने पूछा, मैं तेरे पास क्या रेहन रख जाऊं? उस ने कहा, अपक्की मुहर, और बाजूबन्द, और अपके हाथ की छड़ी। तब उस ने उसको वे वसतुएं दे दीं, और उसके पास गया, और वह उस से गर्भवती हुई। 19 तब वह उठकर चक्की गई, और अपना घूंघट उतारके अपना विधवापन का पहिरावा फिर पहिन लिया। 20 तब यहूदा ने बकरी का बच्चा अपके मित्र उस अदुल्लामवासी के हाथ भेज दिया, कि वह रेहन रखी हुई वस्तुएं उस स्त्री के हाथ से छुड़ा ले आए; पर वह स्त्री उसको न मिली। 21 तब उस ने वहां के लोगोंसे पूछा, कि वह देवदासी जो एनैम में मार्ग की एक और बैठी यी, कहां है? उन्होंने कहा, यहां तो कोई देवदासी न यी। 22 सो उस ने यहूदा के पास लौटके कहा, मुझे वह नहीं मिली; और उस स्यान के लोगोंने कहा, कि यहां तो कोई देवदासी न यी। 23 तब यहूदा ने कहा, अच्छा, वह बन्धक उस के पास रहने दे, नहीं तो हम लोग तुच्छ गिने जाएंगे: देख, मैं ने बकरी का यह बच्चा भेज दिया, पर वह तुझे नहीं मिली। 24 और तीन महीने के पीछे यहूदा को यह समाचार मिला, कि तेरी बहू तामार ने व्यभिचार किया है; वरन वह व्यभिचार से गर्भवती भी हो गई है। तब यहूदा ने कहा, उसको बाहर ले आओ, कि वह जलाई जाए। 25 जब उसे बाहर निकाल रहे थे, तब उस ने, अपके ससुर के पास यह कहला भेजा, कि जिस पुरूष की थे वस्तुएं हैं, उसी से मैं गर्भवती हूं; फिर उस ने यह भी कहलाया, कि पहिचान तो सही, कि यह मुहर, और वाजूबन्द, और छड़ी किस की है। 26 यहूदा ने उन्हें पहिचानकर कहा, वह तो मुझ से कम दोषी है; क्योंकि मैं ने उसे अपके पुत्र शेला को न ब्याह दिया। और उस ने उस से फिर कभी प्रसंग न किया। 27 जब उसके जनने का समय आया, तब यह जान पड़ा कि उसके गर्भ में जुड़वे बच्चे हैं। 28 और जब वह जनने लगी तब एक बालक ने अपना हाथ बढ़ाया: और धाय ने लाल सूत लेकर उसके हाथ में यह कहते हुथे बान्ध दिया, कि पहिले यही उत्पन्न हुआ। 29 जब उस ने हाथ समेट लिया, तब उसका भाई उत्पन्न हो गया: तब उस धाय ने कहा, तू क्योंबरबस निकल आया है ? इसलिथे उसका नाम पेरेस रखा गया। 30 पीछे उसका भाई जिसके हाथ में लाल सूत बन्धा या उत्पन्न हुआ, और उसका नाम जेरह रखा गया।।
1 जब यूसुफ मिस्र में पहुंचाया गया, तब पोतीपर नाम एक मिस्री, जो फिरौन का हाकिम, और जल्लादोंका प्रधान या, उस ने उसको इश्माएलियोंके हाथ, से जो उसे वहां ले गए थे, मोल लिया। 2 और यूसुफ अपके मिस्री स्वामी के घर में रहता या, और यहोवा उसके संग या; सो वह भाग्यवान् पुरूष हो गया। 3 और यूसुफ के स्वामी ने देखा, कि यहोवा उसके संग रहता है, और जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सुफल कर देता है। 4 तब उसकी अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई, और वह उसकी सेवा टहल करने के लिथे नियुक्त किया गया : फिर उस ने उसको अपके घर का अधिक्कारनेी बनाके अपना सब कुछ उसके हाथ में सौप दिया। 5 और जब से उस ने उसको अपके घर का और अपक्की सारी सम्पत्ति का अधिक्कारनेी बनाया, तब से यहोवा यूसुफ के कारण उस मिस्री के घर पर आशीष देने लगा; और क्या घर में, क्या मैदान में, उसका जो कुछ या, सब पर यहोवा की आशीष होने लगी। 6 सो उस ने अपना सब कुछ यूसुफ के हाथ में यहां तक छोड़ दिया: कि अपके खाने की रोटी को छोड़, वह अपक्की सम्पत्ति का हाल कुछ न जानता या। और यूसुफ सुन्दर और रूपवान् या। 7 इन बातोंके पश्चात् ऐसा हुआ, कि उसके स्वामी की पत्नी ने यूसुफ की ओर आंख लगाई; और कहा, मेरे साय सो। 8 पर उस ने अस्वीकार करते हुए अपके स्वामी की पत्नी से कहा, सुन, जो कुछ इस घर में है मेरे हाथ में है; उसे मेरा स्वामी कुछ नहीं जानता, और उस ने अपना सब कुछ मेरे हाथ में सौप दिया है। 9 इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं; और उस ने तुझे छोड़, जो उसकी पत्नी है; मुझ से कुछ नहीं रख छोड़ा; सो भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं ? 10 और ऐसा हुआ, कि वह प्रति दिन यूसुफ से बातें करती रही, पर उस ने उसकी न मानी, कि उसके पास लेटे वा उसके संग रहे। 11 एक दिन क्या हुआ, कि यूसुफ अपना काम काज करने के लिथे घर में गया, और घर के सेवकोंमें से कोई भी घर के अन्दर न या। 12 तब उस स्त्री ने उसका वस्त्र पकड़कर कहा, मेरे साय सो, पर वह अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया। 13 यह देखकर, कि वह अपना वस्त्र मेरे हाथ में छोड़कर बाहर भाग गया, 14 उस स्त्री ने अपके घर के सेवकोंको बुलाकर कहा, देखो, वह एक इब्री मनुष्य को हमारा तिरस्कार करने के लिथे हमारे पास ले आया है। वह तो मेरे साय सोने के मतलब से मेरे पास अन्दर आया या और मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी। 15 और मेरी बड़ी चिल्लाहट सुनकर वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया। 16 और वह उसका वस्त्र उसके स्वामी के घर आने तक अपके पास रखे रही। 17 तब उस ने उस से इस प्रकार की बातें कहीं, कि वह इब्री दास जिसको तू हमारे पास ले आया है, सो मुझ से हंसी करने के लिथे मेरे पास आया या। 18 और जब मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी, तब वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर बाहर भाग गया। 19 अपक्की पत्नी की थे बातें सुनकर, कि तेरे दास ने मुझ से ऐसा ऐसा काम किया, यूसुफ के स्वामी का कोप भड़का। 20 और यूसुफ के स्वामी ने उसको पकड़कर बन्दीगृह में, जहां राजा के कैदी बन्द थे, डलवा दिया : सो वह उस बन्दीगृह में रहने लगा। 21 पर यहोवा यूसुफ के संग संग रहा, और उस पर करूणा की, और बन्दीगृह के दरोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई। 22 सो बन्दीगृह के दरोगा ने उन सब बन्धुओं को, जो कारागार में थे, यूसुफ के हाथ में सौप दिया; और जो जो काम वे वहां करते थे, वह उसी की आज्ञा से होता या। 23 बन्दीगृह के दरोगा के वश में जो कुछ या; क्योंकि उस में से उसको कोई भी वस्तु देखनी न पड़ती यी; इसलिथे कि यहोवा यूसुफ के साय या; और जो कुछ वह करता या, यहोवा उसको उस में सफलता देता या।
1 इन बातोंके पश्चात् ऐसा हुआ, कि मिस्र के राजा के पिलानेहारे और पकानेहारे ने अपके स्वामी का कुछ अपराध किया। 2 तब फिरौन ने अपके उन दोनोंहाकिमोंपर, अर्यात् पिलानेहारे के प्रधान, और पकानेहारोंके प्रधान पर क्रोधित होकर 3 उन्हें कैद कराके, जल्लादोंके प्रधान के घर के उसी बन्दीगृह में, जहां यूसुफ बन्धुआ या, डलवा दिया। 4 तब जल्लादोंके प्रधान ने उनको यूसुफ के हाथ सौपा, और वह उनकी सेवा टहल करने लगा: सो वे कुछ दिन तक बन्दीगृह में रहे। 5 और मिस्र के राजा का पिलानेहारा और पकानेहारा, जो बन्दीगृह में बन्द थे, उन दोनोंने एक ही रात में, अपके अपके होनहार के अनुसार, स्वप्न देखा। 6 बिहान को जब यूसुफ उनके पास अन्दर गया, तब उन पर उस ने जो दृष्टि की, तो क्या देखता है, कि वे उदास हैं। 7 सो उस ने फिरौन के उन हाकिमोंसे, जो उसके साय उसके स्वामी के घर के बन्दीगृह में थे, पूछा, कि आज तुम्हारे मुंह क्योंउदास हैं ? 8 उन्होंने उस से कहा, हम दोनो ने स्वप्न देखा है, और उनके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं। यूसुफ ने उन से कहा, क्या स्वप्नोंका फल कहना परमेश्वर का काम नहीं है? मुझे अपना अपना स्वप्न बताओ। 9 तब पिलानेहारोंका प्रधान अपना स्वप्न यूसुफ को योंबताने लगा: कि मैं ने स्वप्न में देखा, कि मेरे साम्हने एक दाखलता है; 10 और उस दाखलता में तीन डालियां हैं: और उस में मानो कलियां लगीं हैं, और वे फूलीं और उसके गुच्छोंमें दाख लगकर पक गई। 11 और फिरौन का कटोरा मेरे हाथ में या: सो मै ने उन दाखोंको लेकर फिरौन के कटोरे में निचोड़ा और कटोरे को फिरौन के हाथ में दिया। 12 यूसुफ ने उस से कहा, इसका फल यह है; कि तीन डालियोंका अर्य तीन दिन है: 13 सो अब से तीन दिन के भीतर फिरौन तेरा सिर ऊंचा करेगा, और फिर से तेरे पद पर तुझे नियुक्त करेगा, और तू पहले की नाई फिरौन का पिलानेहारा होकर उसका कटोरा उसके हाथ में फिर दिया करेगा। 14 सो जब तेरा भला हो जाए तब मुझे स्मरण करना, और मुझ पर कृपा करके, फिरौन से मेरी चर्चा चलाना, और इस घर से मुझे छुड़वा देना। 15 क्योंकि सचमुच इब्रानियोंके देश से मुझे चुरा कर ले आए हैं, और यहां भी मै ने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिसके कारण मैं इस कारागार में डाला जाऊं। 16 यह देखकर, कि उसके स्वप्न का फल अच्छा निकला, पकानेहारोंके प्रधान ने यूसुफ से कहा, मैं ने भी स्वप्न देखा है, वह यह है: मै ने देखा, कि मेरे सिर पर सफेद रोटी की तीन टोकरियां है: 17 और ऊपर की टोकरी में फिरौन के लिथे सब प्रकार की पक्की पकाई वस्तुएं हैं; और पक्की मेरे सिर पर की टोकरी में से उन वस्तुओं को खा रहे हैं। 18 यूसुफ ने कहा, इसका फल यह है; कि तीन टोकरियोंका अर्य तीन दिन है। 19 सो अब से तीन दिन के भीतर फिरौन तेरा सिर कटवाकर तुझे एक वृझ पर टंगवा देगा, और पक्की तेरे मांस को नोच नोच कर खाएंगे। 20 और तीसरे दिन फिरौन का जन्मदिन या, उस ने अपके सब कर्मचारियोंकी जेवनार की, और उन में से पिलानेहारोंके प्रधान, और पकानेहारोंके प्रधान दोनोंको बन्दीगृह से निकलवाया। 21 और पिलानेहारोंके प्रधान को तो पिलानेहारे के पद पर फिर से नियुक्त किया, और वह फिरौन के हाथ में कटोरा देने लगा। 22 पर पकानेहारोंके प्रधान को उस ने टंगवा दिया, जैसा कि यूसुफ ने उनके स्वप्नोंका फल उन से कहा या। 23 फिर भी पिलानेहारोंके प्रधान ने यूसुफ को स्मरण न रखा; परन्तु उसे भूल गया।।
1 पूरे दो बरस के बीतने पर फिरौन ने यह स्वप्न देखा, कि वह नील नदी के किनारे पर खड़ा है। 2 और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गाथें निकलकर कछार की घास चरने लगीं। 3 और, क्या देखा, कि उनके पीछे और सात गाथें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकली; और दूसरी गायोंके निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुई। 4 तब थे कुरूप और दुर्बल गाथें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायोंको खा गई। तब फिरौन जाग उठा। 5 और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा, कि एक डंठी में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं। 6 और, क्या देखा, कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरफाई हुई निकलीं। 7 और इन पतली बालोंने उन सातोंमोटी और अन्न से भरी हुई बालोंको निगल लिया। तब फिरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही या। 8 भोर को फिरौन का मन व्याकुल हुआ; और उस ने मिस्र के सब ज्योतिषियों, और पण्डितोंको बुलवा भेजा; और उनको अपके स्वप्न बताएं; पर उन में से कोई भी उनका फल फिरौन से न कह सहा। 9 तब पिलानेहारोंका प्रधान फिरौन से बोल उठा, कि मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए: 10 जब फिरौन अपके दासोंसे क्रोधित हुआ या, और मुझे और पकानेहारोंके प्रधान को कैद कराके जल्लादोंके प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया या; 11 तब हम दोनोंने, एक ही रात में, अपके अपके होनहार के अनुसार स्वप्न देखा; 12 और वहां हमारे साय एक इब्री जवान या, जो जल्लादोंके प्रधान का दास या; सो हम ने उसको बताया, और उस ने हमारे स्वप्नोंका फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उस ने बता दिया। 13 और जैसा जैसा फल उस ने हम से कहा या, वैसा की हुआ भी, अर्यात् मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया। 14 तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह फटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्र बदलकर फिरौन के साम्हने आया। 15 फिरौन ने यूसुफ से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं; और मैं ने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है। 16 यूसुफ ने फिरौन से कहा, मै तो कुछ नहीं जानता : परमेश्वर ही फिरौन के लिथे शुभ वचन देगा। 17 फिर फिरौन यूसुफ से कहने लगा, मै ने अपके स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूं 18 फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गाथें निकलकर कछार की घास चरने लगी। 19 फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गाथें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मै ने तो सारे मिस्र देश में ऐसी कुडौल गाथें कभी नहीं देखीं। 20 और इन दुर्बल और कुडौल गायोंने उन पहली सातोंमोटी मोटी गायोंको खा लिया। 21 और जब वे उनको खा गई तब यह मालूम नहीं होता या कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहिले की नाई जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा। 22 फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठी में सात अच्छी अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं। 23 फिर, क्या देखता हूं, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी छूछी और पतली और पुरवाई से मुरफाई हुई निकलीं। 24 और इन पतली बालोंने उन सात अच्छी अच्छी बालोंको निगल लिया। इसे मैं ने ज्योतिषियोंको बताया, पर इस का समझनेहारा कोई नहीं मिला। 25 तब यूसुफ ने फिरौन से कहा, फिरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसको उस ने फिरौन को जताया है। 26 वे सात अच्छी अच्छी गाथें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है। 27 फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गाथें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुरफाई हुई बालें निकाली, वे अकाल के सात वर्ष होंगे। 28 यह वही बात है, जो मैं फिरौन से कह चुका हूं, कि परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसे उस ने फिरौन को दिखाया है। 29 सुन, सारे मिस्र देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे। 30 उनके पश्चात् सात वर्ष अकाल के आथेंगे, और सारे मिस्र देश में लोग इस सारी उपज को भूल जाथेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा। 31 और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा। 32 और फिरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है, कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा। 33 इसलिथे अब फिरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरूष को ढूंढ़ करके उसे मिस्र देश पर प्रधानमंत्री ठहराए। 34 फिरौन यह करे, कि देश पर अधिक्कारनेियोंको नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मिस्र देश की उपज का पंचमांश लिया करे। 35 और वे इन अच्छे वर्षोंमें सब प्रकार की भोजनवस्तु इकट्ठा करें, और नगर नगर में भण्डार घर भोजन के लिथे फिरौन के वश में करके उसकी रझा करें। 36 और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षोंके लिथे, जो मिस्र देश में आएंगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिस से देश उस अकाल से स्त्यानाश न हो जाए। 37 यह बात फिरौन और उसके सारे कर्मचारियोंको अच्छी लगी। 38 सो फिरौन ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, कि क्या हम को ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है ? 39 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है, कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान् नहीं; 40 इस कारण तू मेरे घर का अधिक्कारनेी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूंगा। 41 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, सुन, मैं तुझ को मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिक्कारनेी ठहरा देता हूं 42 तब फिरौन ने अपके हाथ से अंगूठी निकालके यूसुफ के हाथ में पहिना दी; और उसको बढिय़ा मलमल के वस्त्र पहिनवा दिए, और उसके गले में सोने की जंजीर डाल दी; 43 और उसको अपके दूसरे रय पर चढ़वाया; और लोग उसके आगे आगे यह प्रचार करते चले, कि घुटने टेककर दण्डवत करो और उस ने उसको मिस्र के सारे देश के ऊपर प्रधान मंत्री ठहराया। 44 फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, फिरौन तो मैं हूं, और सारे मिस्र देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पांव न हिलाएगा। 45 और फिरौन ने यूसुफ का नाम सापन त्पानेह रखा। और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका ब्याह करा दिया। और यूसुफ मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा। 46 जब यूसुफ मिस्र के राजा फिरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का या। सो वह फिरौन के सम्मुख से निकलकर मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा। 47 सुकाल के सातोंवर्षोंमें भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही। 48 और यूसुफ उन सातोंवर्षोंमें सब प्रकार की भोजनवस्तुएं, जो मिस्र देश में होती यीं, जमा करके नगरोंमें रखता गया, और हर एक नगर के चारोंओर के खेतोंकी भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया। 49 सो यूसुफ ने अन्न को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि करके रखा, यहां तक कि उस ने उनका गिनना छोड़ दिया; क्योंकि वे असंख्य हो गई। 50 अकाल के प्रयम वर्ष के आने से पहिले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे। 51 और यूसुफ ने अपके जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि परमेश्वर ने मुझ से सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है। 52 और दूसरे का नाम उस ने यह कहकर एप्रैम रखा, कि मुझे दु:ख भोगने के देश में परमेश्वर ने फुलाया फलाया है। 53 और मिस्र देश के सुकाल के वे सात वर्ष समाप्त हो गए। 54 और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षोंके लिथे अकाल आरम्भ हो गया। और सब देशोंमें अकाल पड़ने लगा; परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न या। 55 जब मिस्र का सारा देश भूखोंमरने लगा; तब प्रजा फिरोन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी मांगने लगी : और वह सब मिस्रियोंसे कहा करता या, यूसुफ के पास जाओ: और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो। 56 सो जब अकाल सारी पृय्वी पर फैल गया, और मिस्र देश में काल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारोंको खोल खोलके मिस्रियोंके हाथ अन्न बेचने लगा। 57 सो सारी पृय्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिथे यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृय्वी पर भयंकर अकाल या।
1 जब याकूब ने सुना कि मिस्र में अन्न है, तब उस ने अपके पुत्रोंसे कहा, तुम एक दूसरे का मुंह क्योंदेख रहे हो। 2 फिर उस ने कहा, मैं ने सुना है कि मिस्र में अन्न है; इसलिथे तुम लोग वहां जाकर हमारे लिथे अन्न मोल ले आओ, जिस से हम न मरें, वरन जीवित रहें। 3 सो यूसुफ के दस भाई अन्न मोल लेने के लिथे मिस्र को गए। 4 पर यूसुफ के भाई बिन्यामीन को याकूब ने यह सोचकर भाइयोंके साय न भेजा, कि कहीं ऐसा न हो कि उस पर कोई विपत्ति आ पके। 5 सो जो लोग अन्न मोल लेने आए उनके साय इस्राएल के पुत्र भी आए; क्योंकि कनान देश में भी भारी अकाल या। 6 यूसुफ तो मिस्र देश का अधिक्कारनेी या, और उस देश के सब लोगोंके हाथ वही अन्न बेचता या; इसलिथे जब यूसुफ के भाई आए तब भूमि पर मुंह के बल गिरके दण्डवत् किया। 7 उनको देखकर यूसुफ ने पहिचान तो लिया, परन्तु उनके साम्हने भोला बनके कठोरता के साय उन से पूछा, तुम कहां से आते हो? उन्होंने कहा, हम तो कनान देश से अन्न मोल लेने के लिथे आए हैं। 8 यूसुफ ने तो अपके भाइयोंको पहिचान लिया, परन्तु उन्होंने उसको न पहिचाना। 9 तब यूसुफ अपके उन स्वप्नोंको स्मरण करके जो उस ने उनके विषय में देखे थे, उन से कहने लगा, तुम भेदिए हो; इस देश की दुर्दशा को देखने के लिथे आए हो। 10 उन्होंने उस से कहा, नहीं, नहीं, हे प्रभु, तेरे दास भोजनवस्तु मोल लेने के लिथे आए हैं। 11 हम सब एक ही पिता के पुत्र हैं, हम सीधे मनुष्य हैं, तेरे दास भेदिए नहीं। 12 उस ने उन से कहा, नहीं नहीं, तुम इस देश की दुर्दशा देखने ही को आए हो। 13 उन्होंने कहा, हम तेरे दास बारह भाई हैं, और कनान देशवासी एक ही पुरूष के पुत्र हैं, और छोटा इस समय हमारे पिता के पास है, और एक जाता रहा। 14 तब यूसुफ ने उन से कहा, मैं ने तो तुम से कह दिया, कि तुम भेदिए हो; 15 सो इसी रीति से तुम परखे जाओगे, फिरौन के जीवन की शपय, जब तक तुम्हारा छोटा भाई यहां न आए तब तक तुम यहां से न निकलने पाओगे। 16 सो अपके में से एक को भेज दो, कि वह तुम्हारे भाई को ले आए, और तुम लोग बन्धुवाई में रहोगे; इस प्रकार तुम्हारी बातें परखी जाएंगी, कि तुम में सच्चाई है कि नहीं। यदि सच्चे न ठहरे तब तो फिरौन के जीवन की शपय तुम निश्चय ही भेदिए समझे जाओगे। 17 तब उस ने उनको तीन दिन तक बन्दीगृह में रखा। 18 तीसरे दिन यूसुफ ने उन से कहा, एक काम करो तब जीवित रहोगे; क्योंकि मैं परमेश्वर का भय मानता हूं; 19 यदि तुम सीधे मनुष्य हो, तो तुम सब भाइयोंमें से एक जन इस बन्दीगृह में बन्धुआ रहे; और तुम अपके घरवालोंकी भूख बुफाने के लिथे अन्न ले जाओ। 20 और अपके छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; इस प्रकार तुम्हारी बातें सच्ची ठहरेंगी, और तुम मार डाले न जाओगे। तब उन्होंने वैसा ही किया। 21 उन्होंने आपस में कहा, निस्न्देह हम अपके भाई के विषय में दोषी हैं, क्योंकि जब उस ने हम से गिड़गिड़ाके बिनती की, तौभी हम ने यह देखकर, कि उसका जीवन केसे संकट में पड़ा है, उसकी न सुनी; इसी कारण हम भी अब इस संकट में पके हैं। 22 रूबेन ने उन से कहा, क्या मैं ने तुम से न कहा या, कि लड़के के अपराधी मत बनो? परन्तु तुम ने न सुना : देखो, अब उसके लोहू का पलटा दिया जाता है। 23 यूसुफ की और उनकी बातचीत जो एक दुभाषिया के द्वारा होती यी; इस से उनको मालूम न हुआ कि वह उनकी बोली समझता है। 24 तब वह उनके पास से हटकर रोने लगा; फिर उनके पास लौटकर और उन से बातचीत करके उन में से शिमोन को छांट निकाला और उसके साम्हने बन्धुआ रखा। 25 तब यूसुफ ने आज्ञा दी, कि उनके बोरे अन्न से भरो और एक एक जन के बोरे में उसके रूपके को भी रख दो, फिर उनको मार्ग के लिथे सीधा दो : सो उनके साय ऐसा ही किया गया। 26 तब वे अपना अन्न अपके गदहोंपर लादकर वहां से चल दिए। 27 सराय में जब एक ने अपके गदहे को चारा देने के लिथे अपना बोरा खोला, तब उसका रूपया बोरे के मोहड़े पर रखा हुआ दिखलाई पड़ा। 28 तब उस ने अपके भाइयोंसे कहा, मेरा रूपया तो फेर दिया गया है, देखो, वह मेरे बोरे में है; तब उनके जी में जी न रहा, और वे एक दूसरे की और भय से ताकने लगे, और बोले, परमेश्वर ने यह हम से क्या किया है ? 29 और वे कनान देश में अपके पिता याकूब के पास आए, और अपना सारा वृत्तान्त उस से इस प्रकार वर्णन किया : 30 कि जो पुरूष उस देश का स्वामी है, उस ने हम से कठोरता के साय बातें कीं, और हम को देश के भेदिए कहा। 31 तब हम ने उस से कहा, हम सीधे लोग हैं, भेदिए नहीं। 32 हम बारह भाई एक ही पिता के पुत्र है, एक तो जाता रहा, परन्तु छोटा इस समय कनान देश में हमारे पिता के पास है। 33 तब उस पुरूष ने, जो उस देश का स्वामी है, हम से कहा, इस से मालूम हो जाएगा कि तुम सीधे मनुष्य हो; तुम अपके में से एक को मेरे पास छोड़के अपके घरवालोंकी भूख बुफाने के लिथे कुछ ले जाओ। 34 और अपके छोटे भाई को मेरे पास ले आओ। तब मुझे विश्वास हो जाएगा कि तुम भेदिए नहीं, सीधे लोग हो। फिर मैं तुम्हारे भाई को तुम्हें सौंप दूंगा, और तुम इस देश में लेन देन कर सकोगे। 35 यह कहकर वे अपके अपके बोरे से अन्न निकालने लगे, तब, क्या देखा, कि एक एक जन के रूपके की यैली उसी के बोरे में रखी है : तब रूपके की यैलियोंको देखकर वे और उनका पिता बहुत डर गए। 36 तब उनके पिता याकूब ने उन से कहा, मुझ को तुम ने निर्वंश कर दिया, देखो, यूसुफ नहीं रहा, और शिमोन भी नहीं आया, और अब तुम बिन्यामीन को भी ले जाना चाहते हो : थे सब विपत्तियां मेरे ऊपर आ पक्की हैं। 37 रूबेन ने अपके पिता से कहा, यदि मैं उसको तेरे पास न लाऊं, तो मेरे दोनोंपुत्रोंको मार डालना; तू उसको मेरे हाथ में सौंप दे, मैं उसे तेरे पास फिर पहुंचा दूंगा। 38 उस ने कहा, मेरा पुत्र तुम्हारे संग न जाएगा; क्योंकि उसका भाई मर गया है, और वह अब अकेला रह गया : इसलिथे जिस मार्ग से तुम जाओगे, उस में यदि उस पर कोई विपत्ति आ पके, तब तो तुम्हारे कारण मैं इस बुढ़ापे की अवस्या में शोक के साय अधोलोक में उतर जाऊंगा।।
1 और अकाल देश में और भी भयंकर होता गया। 2 जब वह अन्न जो वे मिस्र से ले आए थे समाप्त हो गया तब उनके पिता ने उन से कहा, फिर जाकर हमारे लिथे योड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ। 3 तब यहूदा ने उस से कहा, उस पुरूष ने हम को चितावनी देकर कहा, कि यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे। 4 इसलिथे यदि तू हमारे भाई को हमारे संग भेजे, तब तो हम जाकर तेरे लिथे भोजनवस्तु मोल ले आएंगे; 5 परन्तु यदि तू उसको न भेजे, तो हम न जाएंगे : क्योंकि उस पुरूष ने हम से कहा, कि यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न हो, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे। 6 तब इस्राएल ने कहा, तुम ने उस पुरूष को यह बताकर कि हमारा एक और भाई है, क्योंमुझ से बुरा बर्ताव किया ? 7 उन्होंने कहा, जब उस पुरूष ने हमारी और हमारे कुटुम्बियोंकी दशा को इस रीति पूछा, कि क्या तुम्हारा पिता अब तक जीवित है? क्या तुम्हारे कोई और भाई भी है ? तब हम ने इन प्रश्नोंके अनुसार उस से वर्णन किया; फिर हम क्या जानते थे कि वह कहेगा, कि अपके भाई को यहां ले आओ। 8 फिर यहूदा ने अपके पिता इस्राएल से कहा, उस लड़के को मेरे संग भेज दे, कि हम चले जाएं; इस से हम, और तू, और हमारे बालबच्चे मरने न पाएंगे, वरन जीवित रहेंगे। 9 मैं उसका जामिन होता हूं; मेरे ही हाथ से तू उसको फेर लेना: यदि मैं उसको तेरे पास पहुंचाकर साम्हने न खड़ाकर दूं, तब तो मैं सदा के लिथे तेरा अपराधी ठहरूंगा। 10 यदि हम लोग विलम्ब न करते, तो अब तब दूसरी बार लौट आते। 11 तब उनके पिता इस्राएल ने उन से कहा, यदि सचमुच ऐसी ही बात है, तो यह करो; इस देश की उत्तम उत्तम वस्तुओं में से कुछ कुछ अपके बोरोंमें उस पुरूष के लिथे भेंट ले जाओ : जैसे योड़ा सा बलसान, और योड़ा सा मधु, और कुछ सुगन्ध द्रव्य, और गन्धरस, पिस्ते, और बादाम। 12 फिर अपके अपके साय दूना रूपया ले जाओ; और जो रूपया तुम्हारे बोरोंके मुंह पर रखकर फेर दिया गया या, उसको भी लेते जाओ; कदाचित् यह भूल से हुआ हो। 13 और अपके भाई को भी संग लेकर उस पुरूष के पास फिर जाओ, 14 और सर्वशक्तिमान ईश्वर उस पुरूष को तुम पर दयालु करेगा, जिस से कि वह तुम्हारे दूसरे भाई को और बिन्यामीन को भी आने दे : और यदि मैं निर्वंश हुआ तो होने दो। 15 तब उन मनुष्योंने वह भेंट, और दूना रूपया, और बिन्यामीन को भी संग लिया, और चल दिए और मिस्र में पहुंचकर यूसुफ के साम्हने खड़े हुए। 16 उनके साय बिन्यामीन को देखकर यूसुफ ने अपके घर के अधिक्कारनेी से कहा, उन मनुष्योंको घर में पहुंचा दो, और पशु मारके भोजन तैयार करो; क्योंकि वे लोग दोपहर को मेरे संग भोजन करेंगे। 17 तब वह अधिक्कारनेी पुरूष यूसुफ के कहने के अनुसार उन पुरूषोंको यूसुफ के घर में ले गया। 18 जब वे यूसुफ के घर को पहुंचाए गए तब वे आपस में डरकर कहने लगे, कि जो रूपया पहिली बार हमारे बोरोंमें फेर दिया गया या, उसी के कारण हम भीतर पहुंचाए गए हैं; जिस से कि वह पुरूष हम पर टूट पके, और हमें वंश में करके अपके दास बनाए, और हमारे गदहोंको भी छीन ले। 19 तब वे यूसुफ के घर के अधिक्कारनेी के निकट जाकर घर के द्वार पर इस प्रकार कहने लगे, 20 कि हे हमारे प्रभु, जब हम पहिली बार अन्न मोल लेने को आए थे, 21 तब हम ने सराय में पहुंचकर अपके बोरोंको खोला, तो क्या देखा, कि एक एक जन का पूरा पूरा रूपया उसके बोरे के मुंह में रखा है; इसलिथे हम उसको अपके साय फिर लेते आए हैं। 22 और दूसरा रूपया भी भोजनवस्तु मोल लेने के लिथे लाए हैं; हम नहीं जानते कि हमारा रूपया हमारे बोरोंमें किस ने रख दिया या। 23 उस ने कहा, तुम्हारा कुशल हो, मत डरो: तुम्हारा परमेश्वर, जो तुम्हारे पिता का भी परमेश्वर है, उसी ने तुम को तुम्हारे बोरोंमें धन दिया होगा, तुम्हारा रूपया तो मुझ को मिल गया या: फिर उस ने शिमोन को निकालकर उनके संग कर दिया। 24 तब उस जन ने उन मनुष्योंको यूसुफ के घर में ले जाकर जल दिया, तब उन्होंने अपके पांवोंको धोया; फिर उस ने उनके गदहोंके लिथे चारा दिया। 25 तब यह सुनकर, कि आज हम को यहीं भोजन करना होगा, उन्होंने यूसुफ के आने के समय तक, अर्यात् दोपहर तक, उस भेंट को इकट्ठा कर रखा। 26 जब यूसुफ घर आया तब वे उस भेंट को , जो उनके हाथ में यी, उसके सम्मुख घर में ले गए, और भूमि पर गिरकर उसको दण्डवत् किया। 27 उस ने उनका कुशल पूछा, और कहा, क्या तुम्हारा बूढ़ा पिता, जिसकी तुम ने चर्चा की यी, कुशल से है ? क्या वह अब तक जीवित है ? 28 उन्होंने कहा, हां तेरा दास हमारा पिता कुशल से है और अब तक जीवित है; तब उन्होंने सिर फुकाकर फिर दण्डवत् किया। 29 तब उस ने आंखे उठाकर और अपके सगे भाई बिन्यामीन को देखकर पूछा, क्या तुम्हारा वह छोटा भाई, जिसकी चर्चा तुम ने मुझ से की यी, यही है ? फिर उस ने कहा, हे मेरे पुत्र, परमेश्वर तुझ पर अनुग्रह करे। 30 तब अपके भाई के स्नेह से मन भर आने के कारण और यह सोचकर, कि मैं कहां जाकर रोऊं, यूसुफ फुर्ती से अपक्की कोठरी में गया, और वहां रो पड़ा। 31 फिर अपना मुंह धोकर निकल आया, और अपके को शांत कर कहा, भोजन परोसो। 32 तब उन्होंने उसके लिथे तो अलग, और भाइयोंके लिथे भी अलग, और जो मिस्री उसके संग खाते थे, उनके लिथे भी अलग, भोजन परोसा; इसलिथे कि मिस्री इब्रियोंके साय भोजन नहीं कर सकते, वरन मिस्री ऐसा करना घृणा समझते थे। 33 सो यूसुफ के भाई उसके साम्हने, बड़े बड़े पहिले, और छोटे छोटे पीछे, अपक्की अपक्की अवस्या के अनुसार, क्रम से बैठाए गए: यह देख वे विस्मित् होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे। 34 तब यूसुफ अपके साम्हने से भोजन-वस्तुएं उठा उठाके उनके पास भेजने लगा, और बिन्यामीन को अपके भाइयोंसे पचगुणी अधिक भोजनवस्तु मिली। और उन्होंने उसके संग मनमाना खाया पिया।
1 तब उस ने अपके घर के अधिक्कारनेी को आज्ञा दी, कि इन मनुष्योंके बोरोंमें जितनी भोजनवस्तु समा सके उतनी भर दे, और एक एक जन के रूपके को उसके बोरे के मुंह पर रख दे। 2 और मेरा चांदी का कटोरा छोटे के बोरे के मुंह पर उसके अन्न के रूपके के साय रख दे। यूसुफ की इस आज्ञा के अनुसार उस ने किया। 3 बिहान को भोर होते ही वे मनुष्य अपके गदहोंसमेत विदा किए गए। 4 वे नगर से निकले ही थे, और दूर न जाने पाए थे, कि यूसुफ ने अपके घर के अधिक्कारनेी से कहा, उन मनुष्योंका पीछा कर, और उनको पाकर उन से कह, कि तुम ने भलाई की सन्ती बुराई क्योंकी है? 5 क्या यह वह वस्तु नहीं जिस में मेरा स्वामी पीता है, और जिस से वह शकुन भी विचारा करता है ? तुम ने यह जो किया है सो बुरा किया। 6 तब उस ने उन्हें जा लिया, और ऐसी ही बातें उन से कहीं। 7 उन्होंने उस से कहा, हे हमारे प्रभु, तू ऐसी बातें क्योंकहता है? ऐसा काम करना तेरे दासोंसे दूर रहे। 8 देख जो रूपया हमारे बोरोंके मुंह पर निकला या, जब हम ने उसको कनान देश से ले आकर तुझे फेर दिया, तब, भला, तेरे स्वामी के घर में से हम कोई चांदी वा सोने की वस्तु क्योंकर चुरा सकते हैं ? 9 तेरे दासोंमें से जिस किसी के पास वह निकले, वह मार डाला जाए, और हम भी अपके उस प्रभु के दास जो जाएं। 10 उस ने कहा तुम्हारा ही कहना सही, जिसके पास वह निकले सो मेरा दास होगा; और तुम लोग निरपराध ठहरोगे। 11 इस पर वे फुर्ती से अपके अपके बोरे को उतार भूमि पर रखकर उन्हें खोलने लगे। 12 तब वह ढूंढ़ने लगा, और बड़े के बोरे से लेकर छोटे के बोरे तक खोज की : और कटोरा बिन्यामीन के बोरे में मिला। 13 तब उन्होंने अपके अपके वस्त्र फाड़े, और अपना अपना गदहा लादकर नगर को लौट गए। 14 जब यहूदा और उसके भाई यूसुफ के घर पर पहुंचे, और यूसुफ वहीं या, तब वे उसके साम्हने भूमि पर गिरे। 15 यूसुफ ने उन से कहा, तुम लोगोंने यह कैसा काम किया है ? क्या तुम न जानते थे, कि मुझ सा मनुष्य शकुन विचार सकता है ? 16 यहूदा ने कहा, हम लोग अपके प्रभु से क्या कहें ? हम क्या कहकर अपके को निर्दोषी ठहराएं ? परमेश्वर ने तेरे दासोंके अधर्म को पकड़ लिया है : हम, और जिसके पास कटोरा निकला वह भी, हम सब के सब अपके प्रभु के दास ही हैं। 17 उस ने कहा, ऐसा करना मुझ से दूर रहे : जिस जन के पास कटोरा निकला है, वही मेरा दास होगा; और तुम लोग अपके पिता के पास कुशल झेम से चले जाओ। 18 तब यहूदा उसके पास जाकर कहने लगा, हे मेरे प्रभु, तेरे दास को अपके प्रभु से एक बात कहने की आज्ञा हो, और तेरा कोप तेरे दास पर न भड़के; तू तो फिरौन के तुल्य है। 19 मेरे प्रभु ने अपके दासोंसे पूछा या, कि क्या तुम्हारे पिता वा भाई हैं ? 20 और हम ने अपके प्रभु से कहा, हां, हमारा बूढ़ा पिता तो है, और उसके बुढ़ापे का एक छोटा सा बालक भी है, परन्तु उसका भाई मर गया है, इसलिथे वह अब अपक्की माता का अकेला ही रह गया है, और उसका पिता उस से स्नेह रखता है। 21 तब तू ने अपके दासोंसे कहा या, कि उसको मेरे पास ले आओ, जिस से मैं उसको देखूं। 22 तब हम ने अपके प्रभु से कहा या, कि वह लड़का अपके पिता को नहीं छोड़ सकता; नहीं तो उसका पिता मर जाएगा। 23 और तू ने अपके दासोंसे कहा, यदि तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख फिर न आने पाओगे। 24 सो जब हम अपके पिता तेरे दास के पास गए, तब हम ने उस से अपके प्रभु की बातें कहीं। 25 तब हमारे पिता ने कहा, फिर जाकर हमारे लिथे योड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ। 26 हम ने कहा, हम नहीं जा सकते, हां, यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग रहे, तब हम जाएंगे : क्योंकि यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग न रहे, तो उस पुरूष के सम्मुख न जाने पाएंगे। 27 तब तेरे दास मेरे पिता ने हम से कहा, तुम तो जानते हो कि मेरी स्त्री से दो पुत्र उत्पन्न हुए। 28 और उन में से एक तो मुझे छोड़ ही गया, और मैं ने निश्चय कर लिया, कि वह फाड़ डाला गया होगा ; और तब से मैं उसका मुंह न देख पाया 29 सो यदि तुम इसको भी मेरी आंख की आड़ में ले जाओ, और कोई विपत्ति इस पर पके, तो तुम्हारे कारण मैं इस पक्के बाल की अवस्या में दु:ख के साय अधोलोक में उतर जाऊंगा। 30 सो जब मैं अपके पिता तेरे दास के पास पहुंचूं, और यह लड़का संग न रहे, तब, उसका प्राण जो इसी पर अटका रहता है, 31 इस कारण, यह देखके कि लड़का नहीं है, वह तुरन्त ही मर जाएगा। तब तेरे दासोंके कारण तेरा दास हमारा पिता, जो पक्के बालोंकी अवस्या का है, शोक के साय अधोलोक में उतर जाएगा। 32 फिर तेरा दास अपके पिता के यहां यह कहके इस लड़के का जामिन हुआ है, कि यदि मैं इसको तेरे पास न पहुंचा दूं, तब तो मैं सदा के लिथे तेरा अपराधी ठहरूंगा। 33 सो अब तेरा दास इस लड़के की सन्ती अपके प्रभु का दास होकर रहने की आज्ञा पाए, और यह लड़का अपके भाइयोंके संग जाने दिया जाए। 34 क्योंकि लड़के के बिना संग रहे मैं कयोंकर अपके पिता के पास जा सकूंगा; ऐसा न हो कि मेरे पिता पर जो दु:ख पकेगा वह मुझे देखना पके।।
1 तब यूसुफ उन सब के साम्हने, जो उसके आस पास खड़े थे, अपके को और रोक न सका; और पुकार के कहा, मेरे आस पास से सब लोगोंको बाहर कर दो। भाइयोंके साम्हने अपके को प्रगट करने के समय यूसुफ के संग और कोई न रहा। 2 तब वह चिल्ला चिल्लाकर रोने लगा : और मिस्रियोंने सुना, और फिरौन के घर के लोगोंको भी इसका समाचार मिला। 3 तब यूसुफ अपके भाइयोंसे कहने लगा, मैं यूसुफ हूं, क्या मेरा पिता अब तब जीवित है ? इसका उत्तर उसके भाई न दे सके; क्योंकि वे उसके साम्हने घबरा गए थे। 4 फिर यूसुफ ने अपके भाइयोंसे कहा, मेरे निकट आओ। यह सुनकर वे निकट गए। फिर उस ने कहा, मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूं, जिसको तुम ने मिस्र आनेहारोंके हाथ बेच डाला या। 5 अब तुम लोग मत पछताओ, और तुम ने जो मुझे यहां बेच डाला, इस से उदास मत हो; क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे प्राणोंको बचाने के लिथे मुझे आगे से भेज दिया है। 6 क्योंकि अब दो वर्ष से इस देश में अकाल है; और अब पांच वर्ष और ऐसे ही होंगे, कि उन में न तो हल चलेगा और न अन्न काटा जाएगा। 7 सो परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे आगे इसी लिथे भेजा, कि तुम पृय्वी पर जीवित रहो, और तुम्हारे प्राणोंके बचने से तुम्हारा वंश बढ़े। 8 इस रीति अब मुझ को यहां पर भेजनेवाले तुम नहीं, परमेश्वर ही ठहरा: और उसी ने मुझे फिरौन का पिता सा, और उसके सारे घर का स्वामी, और सारे मिस्र देश का प्रभु ठहरा दिया है। 9 सो शीघ्र मेरे पिता के पास जाकर कहो, तेरा पुत्र यूसुफ इस प्रकार कहता है, कि परमेश्वर ने मुझे सारे मिस्र का स्वामी ठहराया है; इसलिथे तू मेरे पास बिना विलम्ब किए चला आ। 10 और तेरा निवास गोशेन देश में होगा, और तू, बेटे, पोतों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, और अपके सब कुछ समेत मेरे निकट रहेगा। 11 और अकाल के जो पांच वर्ष और होंगे, उन में मै वहीं तेरा पालन पोषण करूंगा; ऐसा न हो कि तू, और तेरा घराना, वरन जितने तेरे हैं, सो भूखोंमरें। 12 और तुम अपक्की आंखोंसे देखते हो, और मेरा भाई बिन्यामीन भी अपक्की आंखोंसे देखता है, कि जो हम से बातें कर रहा है सो यूसुफ है। 13 और तुम मेरे सब विभव का, जो मिस्र में है और जो कुछ तुम ने देखा है, उस सब को मेरे पिता से वर्णन करना; और तुरन्त मेरे पिता को यहां ले आना। 14 और वह अपके भाई बिन्यामीन के गले से लिपटकर रोया; और बिन्यामीन भी उसके गले से लिपटकर रोया। 15 तब वह अपके सब भाइयोंको चूमकर उन से मिलकर रोया : और इसके पश्चात् उसके भाई उस से बातें करने लगे।। 16 इस बात की चर्चा, कि यूसुफ के भाई आए हैं, फिरौन के भवन तब पंहुच गई, और इस से फिरौन और उसके कर्मचारी प्रसन्न हुए। 17 सो फिरौन ने यूसुफ से कहा, अपके भाइयोंसे कह, कि एक काम करो, अपके पशुओं को लादकर कनान देश में चले जाओ। 18 और अपके पिता और अपके अपके घर के लोगोंको लेकर मेरे पास आओ; और मिस्र देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है वह मैं तुम्हें दूंगा, और तुम्हें देश के उत्तम से उत्तम पदार्य खाने को मिलेंगे। 19 और तुझे आज्ञा मिली है, तुम एक काम करो, कि मिस्र देश से अपके बालबच्चोंऔर स्त्रियोंके लिथे गाडिय़ोंले जाओ, और अपके पिता को ले आओ। 20 और अपक्की सामग्री का मोह न करना; क्योंकि सारे मिस्र देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है सो तुम्हारा है। 21 और इस्राएल के पुत्रोंने वैसा ही किया। और यूसुफ ने फिरौन की मानके उन्हें गाडिय़ोंदी, और मार्ग के लिथे सीधा भी दिया। 22 उन में से एक एक जन को तो उस ने एक एक जोड़ा वस्त्र भी दिया; और बिन्यामीन को तीन सौ रूपे के टुकड़े और पांच जोड़े वस्त्र दिए। 23 और अपके पिता के पास उस ने जो भेजा वह यह है, अर्यात् मिस्र की अच्छी वस्तुओं से लदे हुए दस गदहे, और अन्न और रोटी और उसके पिता के मार्ग के लिथे भोजनवस्तु से लदी हुई दस गदहियां। 24 और उस ने अपके भाइयोंको विदा किया, और वे चल दिए; और उस ने उन से कहा, मार्ग में कहीं फगड़ा न करना। 25 मिस्र से चलकर वे कनान देश में अपके पिता याकूब के पास पहुचे। 26 और उस से यह वर्णन किया, कि यूसुफ अब तक जीवित है, और सारे मिस्र देश पर प्रभुता वही करता है। पर उस ने उनकी प्रतीति न की, और वह अपके आपे में न रहा। 27 तब उन्होंने अपके पिता याकूब से यूसुफ की सारी बातें, जो उस ने उन से कहीं यी, कह दीं; जब उस ने उन गाडिय़ोंको देखा, जो यूसुफ ने उसके ले आने के लिथे भेजीं यीं, तब उसका चित्त स्यिर हो गया। 28 और इस्राएल ने कहा, बस, मेरा पुत्र यूसुफ अब तक जीवित है : मैं अपक्की मृत्यु से पहिले जाकर उसको देखंूगा।।
1 तब इस्राएल अपना सब कुछ लेकर कूच करके बेर्शेबा को गया, और वहां अपके पिता इसहाक के परमेश्वर को बलिदान चढ़ाए। 2 तब परमेश्वर ने इस्राएल से रात को दर्शन में कहा, हे याकूब हे याकूब। उस ने कहा, क्या आज्ञा। 3 उस ने कहा, मैं ईश्वर तेरे पिता का परमेश्वर हूं, तू मिस्र में जाने से मत डर; क्योंकि मैं तुझ से वहां एक बड़ी जाति बनाऊंगा। 4 मैं तेरे संग संग मिस्र को चलता हूं; और मैं तुझे वहां से फिर निश्चय ले आऊंगा; और यूसुफ अपना हाथ तेरी आंखोंपर लगाएगा। 5 तब याकूब बेर्शेबा से चला: और इस्राएल के पुत्र अपके पिता याकूब, और अपके बाल-बच्चों, और स्त्रियोंको उन गाडिय़ोंपर, जो फिरौन ने उनके ले आने को भेजी यी, चढ़ाकर चल पके। 6 और वे अपक्की भेड़-बकरी, गाय-बैल, और कनान देश में अपके इकट्ठा किए हुए सारे धन को लेकर मिस्र में आए। 7 और याकूब अपके बेटे-बेटियों, पोते-पोतियों, निदान अपके वंश भर को अपके संग मिस्र में ले आया।। 8 याकूब के साय जो इस्राएली, अर्यात् उसके बेटे, पोते, आदि मिस्र में आए, उनके नाम थे हैं : याकूब का जेठा तो रूबेन या। 9 और रूबेन के पुत्र, हनोक, पललू, हेस्रोन, और कर्म्मी थे। 10 और शिमोन के पुत्र, यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, सोहर, और एक कनानी स्त्री से जन्मा हुआ शाऊल भी या। 11 और लेवी के पुत्र, गेर्शोन, कहात, और मरारी थे। 12 और यहूदा के एर, ओनान, शेला, पेरेस, और जेरह नाम पुत्र हुए तो थे; पर एर और ओनान कनान देश में मर गए थे। 13 और इस्साकार के पुत्र, तोला, पुब्बा, योब और शिम्रोन थे। 14 और जबूलून के पुत्र, सेरेद, एलोन, और यहलेल थे। 15 लिआ: के पुत्र, जो याकूब से पद्दनराम में उत्पन्न हुए थे, उनके बेटे पोते थे ही थे, और इन से अधिक उस ने उसके साय एक बेटी दीना को भी जन्म दिया : यहां तक तो याकूब के सब वंशवाले तैंतीस प्राणी हुए। 16 फिर गाद के पुत्र, सिय्योन, हाग्गी, शूनी, एसबोन, एरी, अरोदी, और अरेली थे। 17 और आशेर के पुत्र, यिम्ना, यिश्वा, यिस्त्री, और बरीआ थे, और उनकी बहिन सेरह यी। और बरीआ के पुत्र, हेबेर और मल्कीएल थे। 18 जिल्पा, जिसे लाबान ने अपक्की बेटी लिआ� को दिया या, उसके बेटे पोते आदि थे ही थे; सो उसके द्वारा याकूब के सोलह प्राणी उत्पन्न हुए।। 19 फिर याकूब की पत्नी राहेल के पुत्र यूसुफ और बिन्यामीन थे। 20 और मिस्र देश में ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से यूसुफ के थे पुत्र उत्पन्न हुए, अर्यात् मनश्शे और एप्रैम। 21 और बिन्यामीन के पुत्र, बेला, बेकेर, अश्बेल, गेरा, नामान, एही, रोश, मुप्पीम, हुप्पीम, और आर्द थे। 22 राहेल के पुत्र जो याकूब से उत्पन्न हुए उनके थे ही पुत्र थे; उसके थे सब बेटे पोते चौदह प्राणी हुए। 23 फिर दान का पुत्र हुशीम या। 24 और नप्ताली के पुत्र, यहसेल, गूनी, सेसेर, और शिल्लेम थे। 25 बिल्हा, जिसे लाबान ने अपक्की बेटी राहेल को दिया, उस के बेटे पोते थे ही हैं; उसके द्वारा याकूब के वंश में सात प्राणी हुए। 26 याकूब के निज वंश के जो प्राणी मिस्र में आए, वे उसकी बहुओं को छोड़ सब मिलकर छियासठ प्राणी हुए। 27 और यूसुफ के पुत्र, जो मिस्र में उस से उत्पन्न हुए, वे दो प्राणी थे : इस प्रकार याकूब के घराने के जो प्राणी मिस्र में आए सो सब मिलकर सत्तर हुए।। 28 फिर उस ने यहूदा को अपके आगे यूसुफ के पास भेज दिया, कि वह उसको गोशेन का मार्ग दिखाए; और वे गोशेन देश में आए। 29 तब यूसुफ अपना रय जुतवाकर अपके पिता इस्राएल से भेंट करने के लिथे गोशेन देश को गया, और उस से भेंट करके उसके गले से लिपटा हुआ रोता रहा। 30 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, मै अब मरने से भी प्रसन्न हूं, क्योंकि तुझे जीवित पाया और तेरा मुंह देख लिया। 31 तब यूसुफ ने अपके भाइयोंसे और अपके पिता के घराने से कहा, मैं जाकर फिरौन को यह समाचार दूंगा, कि मेरे भाई और मेरे पिता के सारे घराने के लोग, जो कनान देश में रहते थे, वे मेरे पास आ गए हैं। 32 और वे लोग चरवाहे हैं, क्योंकि वे पशुओं को पालते आए हैं; इसलिथे वे अपक्की भेड़-बकरी, गाय-बैल, और जो कुछ उनका है, सब ले आए हैं। 33 जब फिरौन तुम को बुलाके पूछे, कि तुम्हारा उद्यम क्या है? 34 तब यह कहना कि तेरे दास लड़कपन से लेकर आज तक पशुओं को पालते आए हैं, वरन हमारे पुरखा भी ऐसा ही करते थे। इस से तुम गोशेन देश में रहने पाओगे; क्योंकि सब चरवाहोंसे मिस्री लोग घृणा करते हैं।।
1 तब यूसुफ ने फिरौन के पास जाकर यह समाचार दिया, कि मेरा पिता और मेरे भाई, और उनकी भेड़-बकरियां, गाय-बैल और जो कुछ उनका है, सब कनान देश से आ गया है; और अभी तो वे गोशेन देश में हैं। 2 फिर उस ने अपके भाइयोंमें से पांच जन लेकर फिरौन के साम्हने खड़े कर दिए। 3 फिरौन ने उसके भाइयोंसे पूछा, तुम्हारा उद्यम क्या है ? उन्होंने फिरौन से कहा, तेरे दास चरवाहे हैं, और हमारे पुरखा भी ऐसे ही रहे। 4 फिर उन्होंने फिरौन से कहा, हम इस देश में परदेशी की भांति रहने के लिथे आए हैं; क्योंकि कनान देश में भारी अकाल होने के कारण तेरे दासोंको भेड़-बकरियोंके लिथे चारा न रहा : सो अपके दासोंको गोशेन देश में रहने की आज्ञा दे। 5 तब फिरौन ने यूसुफ से कहा, तेरा पिता और तेरे भाई तेरे पास आ गए हैं, 6 और मिस्र देश तेरे साम्हने पड़ा है; इस देश का जो सब से अच्छा भाग हो, उस में अपके पिता और भाइयोंको बसा दे; अर्यात् वे गोशेन ही देश में रहें : और यदि तू जानता हो, कि उन में से परिश्र्मी पुरूष हैं, तो उन्हें मेरे पशुओं के अधिक्कारनेी ठहरा दे। 7 तब यूसुफ ने अपके पिता याकूब को ले आकर फिरौन के सम्मुख खड़ा किया : और याकूब ने फिरौन को आशीर्वाद दिया। 8 तब फिरौन ने याकूब से पूछा, तेरी अवस्या कितने दिन की हुई है? 9 याकूब ने फिरौन से कहा, मैं तो एक सौ तीस वर्ष परदेशी होकर अपना जीवन बीता चुका हूं; मेरे जीवन के दिन योड़े और दु:ख से भरे हुए भी थे, और मेरे बापदादे परदेशी होकर जितने दिन तक जीवित रहे उतने दिन का मैं अभी नहीं हुआ। 10 और याकूब फिरौन को आशीर्वाद देकर उसके सम्मुख से चला गया। 11 तब यूसुफ ने अपके पिता और भाइयोंको बसा दिया, और फिरौन की आज्ञा के अनुसार मिस्र देश के अच्छे से अच्छे भाग में, अर्यात् रामसेस नाम देश में, भूमि देकर उनको सौंप दिया। 12 और यूसुफ अपके पिता का, और अपके भाइयोंका, और पिता के सारे घराने का, एक एक के बालबच्चोंके घराने की गिनती के अनुसार, भोजन दिला दिलाकर उनका पालन पोषण करने लगा।। 13 और उस सारे देश में खाने को कुछ न रहा; क्योंकि अकाल बहुत भारी या, और अकाल के कारण मिस्र और कनान दोनोंदेश नाश हो गए। 14 और जितना रूपया मिस्र और कनान देश में या, सब को यूसुफ ने उस अन्न की सन्ती जो उनके निवासी मोल लेते थे इकट्ठा करके फिरौन के भवन में पहुंचा दिया। 15 जब मिस्र और कनान देश का रूपया चुक गया, तब सब मिस्री यूसुफ के पास आ आकर कहने लगे, हम को भोजनवस्तु दे, क्या हम रूपके के न रहने से तेरे रहते हुए मर जाएं ? 16 यूसुफ ने कहा, यदि रूपके न होंतो अपके पशु दे दो, और मैं उनकी सन्ती तुम्हें खाने को दूंगा। 17 तब वे अपके पशु यूसुफ के पास ले आए; और यूसुफ उनको घोड़ों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलोंऔर गदहोंकी सन्ती खाने को देने लगा: उस वर्ष में वह सब जाति के पशुओं की सन्ती भोजन देकर उनका पालन पोषण करता रहा। 18 वह वर्ष तो योंकट गया; तब अगले वर्ष में उन्होंने उसके पास आकर कहा, हम अपके प्रभु से यह बात छिपा न रखेंगे कि हमारा रूपया चुक गया है, और हमारे सब प्रकार के पशु हमारे प्रभु के पास आ चुके हैं; इसलिथे अब हमारे प्रभु के साम्हने हमारे शरीर और भूमि छोड़कर और कुछ नहीं रहा। 19 हम तेरे देखते क्योंमरें, और हमारी भूमि को भोजन वस्तु की सन्ती मोल ले, कि हम अपक्की भूमि समेत फिरौन के दास हों: और हमको बीज दे, कि हम मरने न पाएं, वरन जीवित रहें, और भूमि न उजड़े। 20 तब यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि को फिरौन के लिथे मोल लिया; क्योंकि उस कठिन अकाल के पड़ने से मिस्रियोंको अपना अपना खेत बेच डालना पड़ा : इस प्रकार सारी भूमि फिरौन की हो गई। 21 और एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक सारे मिस्र देश में जो प्रजा रहती यी, उसको उस ने नगरोंमें लाकर बसा दिया। 22 पर याजकोंकी भूमि तो उस ने न मोल ली : क्योंकि याजकोंके लिथे फिरौन की ओर से नित्य भोजन का बन्दोबस्त या, और नित्य जो भोजन फिरौन उनको देता या वही वे खाते थे; इस कारण उनको अपक्की भूमि बेचक्की न पक्की। 23 तब यूसुफ ने प्रजा के लोगोंसे कहा, सुनो, मैं ने आज के दिन तुम को और तुम्हारी भूमि को भी फिरौन के लिथे मोल लिया है; देखो, तुम्हारे लिथे यहां बीज है, इसे भूमि में बोओ। 24 और जो कुछ उपके उसका पंचमांश फिरौन को देना, बाकी चार अंश तुम्हारे रहेंगे, कि तुम उसे अपके खेतोंमंे बोओ, और अपके अपके बालबच्चोंऔर घर के और लोगोंसमेत खाया करो। 25 उन्होंने कहा, तू ने हमको बचा लिया है : हमारे प्रभु के अनुग्रह की दृष्टि हम पर बनी रहे, और हम फिरौन के दास होकर रहेंगे। 26 सो यूसुफ ने मिस्र की भूमि के विषय में ऐसा नियम ठहराया, जो आज के दिन तक चला आता है, कि पंचमांश फिरौन को मिला करे; केवल याजकोंही की भूमि फिरौन की नहीं हुई। 27 और इस्राएली मिस्र के गोशेन देश में रहने लगे; और वहां की भूमि को अपके वश में कर लिया, और फूले-फले, और अत्यन्त बढ़ गए।। 28 मिस्र देश में याकूब सतरह वर्ष जीवित रहा : इस प्रकार याकूब की सारी आयु एक सौ सैंतालीस वर्ष की हुई। 29 जब इस्राएल के मरने का दिन निकट आ गया, तब उस ने अपके पुत्र यूसुफ को बुलवाकर कहा, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो अपना हाथ मेरी जांघ के तले रखकर शपय खा, कि मैं तेरे साय कृपा और सच्चाई का यह काम करूंगा, कि तुझे मिस्र में मिट्टी न दूंगा। 30 जब तू अपके बापदादोंके संग सो जाएगा, तब मैं तुझे मिस्र से उठा ले जाकर उन्हीं के कबरिस्तान में रखूंगा; तब यूसुफ ने कहा, मैं तेरे वचन के अनुसार करूंगा। 31 फिर उस ने कहा, मुझ से शपय खा : सो उस ने उस से शपय खाई। तब इस्राएल ने खाट के सिरहाने की ओर सिर फुकाया।।
1 इन बातोंके पश्चात् किसी ने यूसुफ से कहा, सुन, तेरा पिता बीमार है; तब वह मनश्शे और एप्रैम नाम अपके दोनोंपुत्रोंको संग लेकर उसके पास चला। 2 और किसी ने याकूब को बता दिया, कि तेरा पुत्र यूसुफ तेरे पास आ रहा है; तब इस्राएल अपके को सम्भालकर खाट पर बैठ गया। 3 और याकूब ने यूसुफ से कहा, सर्वशक्तिमान ईश्वर ने कनान देश के लूज नगर के पास मुझे दर्शन देकर आशीष दी, 4 और कहा, सुन, मैं तुझे फुला-फलाकर बढ़ाऊंगा, और तुझे राज्य राज्य की मण्डली का मूल बनाऊंगा, और तेरे पश्चात् तेरे वंश को यह देश दे दूंगा, जिस से कि वह सदा तक उनकी निज भूमि बनी रहे। 5 और अब तेरे दोनोंपुत्र, जो मिस्र में मेरे आने से पहिले उत्पन्न हुए हैं, वे मेरे ही ठहरेंगे; अर्यात् जिस रीति से रूबेन और शिमोन मेरे हैं, उसी रीति से एप्रैम और मनश्शे भी मेरे ठहरेंगे। 6 और उनके पश्चात् जो सन्तान उत्पन्न हो, वह तेरे तो ठहरेंगे; परन्तु बंटवारे के समय वे अपके भाइयोंही के वंश में गिने जाएंगे। 7 जब मैं पद्दान से आता या, तब एप्राता पहुंचने से योड़ी ही दूर पहिले राहेल कनान देश में, मार्ग में, मेरे साम्हने मर गई : और मैं ने उसे वहीं, अर्यात् एप्राता जो बेतलेहम भी कहलाता है, उसी के मार्ग में मिट्टी दी। 8 तब इस्राएल को यूसुफ के पुत्र देख पके, और उस ने पूछा, थे कौन हैं ? 9 यूसुफ ने अपके पिता से कहा, थे मेरे पुत्र हैं, जो परमेश्वर ने मुझे यहां दिए हैं : उस ने कहा, उनको मेरे पास ले आ कि मैं उन्हें आशीर्वाद दूं। 10 इस्राएल की आंखे बुढ़ापे के कारण धुन्धली हो गई यीं, यहां तक कि उसे कम सूफता या। तब यूसुफ उन्हें उनके पास ले गया ; और उस ने उन्हें चूमकर गले लगा लिया। 11 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, मुझे आशा न यी, कि मैं तेरा मुख फिर देखने पाऊंगा : परन्तु देख, परमेश्वर ने मुझे तेरा वंश भी दिखाया है। 12 तब यूसुफ ने उन्हें अपके घुटनोंके बीच से हटाकर और अपके मुंह के बल भूमि पर गिरके दण्डवत् की। 13 तब यूसुफ ने उन दोनोंको लेकर, अर्यात् एप्रैम को अपके दहिने हाथ से, कि वह इस्राएल के बाएं हाथ पके, और मनश्शे को अपके बाएं हाथ से, कि इस्राएल के दहिने हाथ पके, उन्हें उसके पास ले गया। 14 तब इस्राएल ने अपना दहिना हाथ बढ़ाकर एप्रैम के सिर पर जो छोटा या, और अपना बायां हाथ बढ़ाकर मनश्शे के सिर पर रख दिया; उस ने तो जान बूफकर ऐसा किया; नहीं तो जेठा मनश्शे ही या। 15 फिर उस ने यूसुफ को आशीर्वाद देकर कहा, परमेश्वर जिसके सम्मुख मेरे बापदादे इब्राहीम और इसहाक (अपके को जानकर ) चलते थे वही परमेश्वर मेरे जन्म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है ; 16 और वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कोंको आशीष दे; और थे मेरे और मेरे बापदादे इब्राहीम और इसहाक के कहलाएं; और पृय्वी में बहुतायत से बढ़ें। 17 जब यूसुफ ने देखा, कि मेरे पिता ने अपना दहिना हाथ एप्रैम के सिर पर रखा है, तब यह बात उसको बुरी लगी : सो उस ने अपके पिता का हाथ इस मनसा से पकड़ लिया, कि एप्रैम के सिर पर से उठाकर मनश्शे के सिर पर रख दे। 18 और यूसुफ ने अपके पिता से कहा, हे पिता, ऐसा नहीं: क्योंकि जेठा यही है; अपना दहिना हाथ इसके सिर पर रख। 19 उसके पिता ने कहा, नहीं, सुन, हे मेरे पुत्र, मैं इस बात को भली भांति जानता हूं : यद्यपि इस से भी मनुष्योंकी एक मण्डली उत्पन्न होगी, और यह भी महान् हो जाएगा, तौभी इसका छोटा भाई इस से अधिक महान हो जाएगा, और उसके वंश से बहुत सी जातियां निकलेंगी। 20 फिर उस ने उसी दिन यह कहकर उनको आशीर्वाद दिया, कि इस्राएली लोग तेरा नाम ले लेकर ऐसा आशीर्वाद दिया करेंगे, कि परमेश्वर तुझे एप्रैम और मनश्शे के समान बना दे : और उस ने मनश्शे से पहिले एप्रैम का नाम लिया। 21 तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, देख, मैं तो मरने पर हूं : परन्तु परमेश्वर तुम लोगोंके संग रहेगा, और तुम को तुम्हारे पितरोंके देश में फिर पहुंचा देगा। 22 और मैं तुझ को तेरे भाइयोंसे अधिक भूमि का एक भाग देता हूं, जिसको मैं ने एमोरियोंके हाथ से अपक्की तलवार और धनुष के बल से ले लिया है।
1 फिर याकूब ने अपके पुत्रोंको यह कहकर बुलाया, कि इकट्ठे हो जाओ, मैं तुम को बताऊंगा, कि अन्त के दिनोंमें तुम पर क्या क्या बीतेगा। 2 हे याकूब के पुत्रों, इकट्ठे होकर सुनो, अपके पिता इस्राएल की ओर कान लगाओ। 3 हे रूबेन, तू मेरा जेठा, मेरा बल, और मेरे पौरूष का पहिला फल है; प्रतिष्ठा का उत्तम भाग, और शक्ति का भी उत्तम भाग तू ही है। 4 तू जो जल की नाईं उबलनेवाला है, इसलिथे औरोंसे श्रेष्ट न ठहरेगा; क्योंकि तू अपके पिता की खाट पर चढ़ा, तब तू ने उसको अशुद्ध किया; वह मेरे बिछौने पर चढ़ गया।। 5 शिमोन और लेवी तो भाई भाई हैं, उनकी तलवारें उपद्रव के हयियार हैं। 6 हे मेरे जीव, उनके मर्म में न पड़, हे मेरी महिमा, उनकी सभा में मत मिल; क्योंकि उन्होंने कोप से मनुष्योंको घात किया, और अपक्की ही इच्छा पर चलकर बैलोंकी पूंछें काटी हैं।। 7 धिक्कार उनके कोप को, जो प्रचण्ड या; और उनके रोष को, जो निर्दय या; मैं उन्हें याकूब में अलग अलग और इस्राएल में तित्तर बित्तर कर दूंगा।। 8 हे यहूदा, तेरे भाई तेरा धन्यवाद करेंगे, तेरा हाथ तेरे शत्रुओं की गर्दन पर पकेगा; तेरे पिता के पुत्र तुझे दण्डवत् करेंगे।। 9 यहूदा सिंह का डांवरू है। हे मेरे पुत्र, तू अहेर करके गुफा में गया है : वह सिंह वा सिंहनी की नाई दबकर बैठ गया; फिर कौन उसको छेड़ेगा।। 10 जब तक शीलो न आए तब तक न तो यहूदा से राजदण्ड छूटेगा, न उसके वंश से व्यवस्या देनेवाला अलग होगा; और राज्य राज्य के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।। 11 वह अपके जवान गदहे को दाखलता में, और अपक्की गदही के बच्चे को उत्तम जाति की दाखलता में बान्धा करेगा ; उस ने अपके वस्त्र दाखमधु में, और अपना पहिरावा दाखोंके रस में धोया है।। 12 उसकी आंखे दाखमधु से चमकीली और उसके दांत दूध से श्वेत होंगे।। 13 जबूलून समुद्र के तीर पर निवास करेगा, वह जहाजोंके लिथे बन्दरगाह का काम देगा, और उसका परला भाग सीदोन के निकट पहुंचेगा 14 इस्साकार एक बड़ा और बलवन्त गदहा है, जो पशुओं के बाड़ोंके बीच में दबका रहता है।। 15 उस ने एक विश्रमस्यान देखकर, कि अच्छा है, और एक देश, कि मनोहर है, अपके कन्धे को बोफ उठाने के लिथे फुकाया, और बेगारी में दास का सा काम करने लगा।। 16 दान इस्राएल का एक गोत्र होकर अपके जातिभाइयोंका न्याय करेगा।। 17 दान मार्ग में का एक सांप, और रास्ते में का एक नाग होगा, जो घोड़े की नली को डंसता है, जिस से उसका सवार पछाड़ खाकर गिर पड़ता है।। 18 हे यहोवा, मैं तुझी से उद्धार पाने की बाट जोहता आया हूं।। 19 गाद पर एक दल चढ़ाई तो करेगा; पर वह उसी दल के पिछले भाग पर छापा मारेगा।। 20 आशेर से जो अन्न उत्पन्न होगा वह उत्तम होगा, और वह राजा के योग्य स्वादिष्ट भोजन दिया करेगा।। 21 नप्ताली एक छूटी हुई हरिणी है; वह सुन्दर बातें बोलता है।। 22 यूसुफ बलवन्त लता की एक शाखा है, वह सोते के पास लगी हुई फलवन्त लता की एक शाखा है; उसकी डालियां भीत पर से चढ़कर फैल जाती हैं।। 23 धनुर्धारियोंने उसको खेदित किया, और उस पर तीर मारे, और उसके पीछे पके हैं।। 24 पर उसका धनुष दृढ़ रहा, और उसकी बांह और हाथ याकूब के उसी शक्तिमान ईश्वर के हाथोंके द्वारा फुर्तीले हुए, जिसके पास से वह चरवाहा आएगा, जो इस्राएल का पत्यर भी ठहरेगा।। 25 यह तेरे पिता के उस ईश्वर का काम है, जो तेरी सहाथता करेगा, उस सर्वशक्तिमान को जो तुझे ऊपर से आकाश में की आशीषें, और नीचे से गहिरे जल में की आशीषें, और स्तनों, और गर्भ की आशीषें देगा।। 26 तेरे पिता के आशीर्वाद मेरे पितरोंके आशीर्वाद से अधिक बढ़ गए हैं और सनातन पहाडिय़ोंकी मन- चाही वस्तुओं की नाई बने रहेंगे : वे यूसुफ के सिर पर, जो अपके भाइयोंमें से न्यारा हुआ, उसी के सिर के मुकुट पर फूले फलेंगे।। 27 बिन्यामीन फाड़नेहारा हुण्डार है, सवेरे तो वह अहेर भझण करेगा, और सांफ को लूट बांट लेगा।। 28 इस्राएल के बारहोंगोत्र थे ही हैं : और उनके पिता ने जिस जिस वचन से उनको आशीर्वाद दिया, सो थे ही हैं; एक एक को उसके आशीर्वाद के अनुसार उस ने आशीर्वाद दिया। 29 तब उस ने यह कहकर उनको आज्ञा दी, कि मैं अपके लोगोंके साय मिलने पर हूं : इसलिथे मुझे हित्ती एप्रोन की भूमिवाली गुफा में मेरे बापदादोंके साय मिट्टी देना, 30 अर्यात् उसी गुफा में जो कनान देश में मम्रे के साम्हनेवाली मकपेला की भूमि में है; उस भूमि को तो इब्राहीम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इसी निमित्त मोल लिया या, कि वह कबरिस्तान के लिथे उसकी निज भूमि हो। 31 वहां इब्राहीम और उसकी पत्नी सारा को मिट्टी दी गई; और वहीं इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को भी मिट्टी दी गई; और वहीं मैं ने लिआ: को भी मिट्टी दी। 32 वह भूमि और उस में की गुफा हित्तियोंके हाथ से मोल ली गई। 33 यह आज्ञा जब याकूब अपके पुत्रोंको दे चुका, तब अपके पांव खाट पर समेट प्राण छोड़े, और अपके लोगोंमें जा मिला।
1 तब यूसुफ अपके पिता के मुंह पर गिरकर रोया और उसे चूमा। 2 और यूसुफ ने उन वैद्योंको, जो उसके सेवक थे, आज्ञा दी, कि मेरे पिता की लोय में सुगन्धद्रव्य भरो; तब वैद्योंने इस्राएल की लोय में सुगन्धद्रव्य भर दिए। 3 और उसके चालीस दिन पूरे हुए। क्योंकि जिनकी लोय में सुगन्धद्रव्य भरे जाते हैं, उनको इतने ही दिन पूरे लगते हैं : और मिस्री लोग उसके लिथे सत्तर दिन तक विलाप करते रहे।। 4 जब उसके विलाप के दिन बीत गए, तब यूसुफ फिरौन के घराने के लोगोंसे कहने लगा, यदि तुम्हारी अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो मेरी यह बिनती फिरौन को सुनाओ, 5 कि मेरे पिता ने यह कहकर, कि देख मैं मरने पर हूं, मुझे यह शपय खिलाई, कि जो कबर तू ने अपके लिथे कनान देश में खुदवाई है उसी में मैं तुझे मिट्टी दूंगा इसलिथे अब मुझे वहां जाकर अपके पिता को मिट्टी देने की आज्ञा दे, तत्पश्चात् मैं लौट आऊंगा। 6 तब फिरौन ने कहा, जाकर अपके पिता की खिलाई हुई शपय के अनुसार उनको मिट्टी दे। 7 सो यूसुफ अपके पिता को मिट्टी देने के लिथे चला, और फिरौन के सब कर्मचारी, अर्यात् उसके भवन के पुरनिथे, और मिस्र देश के सब पुरनिथे उसके संग चले। 8 और यूसुफ के घर के सब लोग, और उसके भाई, और उसके पिता के घर के सब लोग भी संग गए; पर वे अपके बालबच्चों, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलोंको गोशेन देश में छोड़ गए। 9 और उसके संग रय और सवार गए, सो भीड़ बहुत भारी हो गई। 10 जब वे आताद के खलिहान तक, जो यरदन नदी के पार है पहुंचे, तब वहां अत्यन्त भारी विलाप किया, और यूसुफ ने अपके पिता के सात दिन का विलाप कराया। 11 आताद के खलिहान में के विलाप को देखकर उस देश के निवासी कनानियोंने कहा, यह तो मिस्रियोंका कोई भारी विलाप होगा, इसी कारण उस स्यान का नाम आबेलमिस्रैम पड़ा, और वह यरदन के पार है। 12 और इस्राएल के पुत्रोंने उस से वही काम किया जिसकी उस ने उनको आज्ञा दी यी: 13 अर्यात् उन्होंने उसको कनान देश में ले जाकर मकपेला की उस भूमिवाली गुफा में, जो मम्रे के साम्हने हैं, मिट्टी दी; जिसको इब्राहीम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इस निमित्त मोल लिया या, कि वह कबरिस्तान के लिथे उसकी निज भूमि हो।। 14 अपके पिता को मिट्टी देकर यूसुफ अपके भाइयोंऔर उन सब समेत, जो उसके पिता को मिट्टी देने के लिथे उसके संग गए थे, मिस्र में लौट आया। 15 जब यूसुफ के भाइयोंने देखा कि हमारा पिता मर गया है, तब कहने लगे, कदाचित् यूसुफ अब हमारे पीछे पके, और जितनी बुराई हम ने उस से की यी सब का पूरा पलटा हम से ले। 16 इसलिथे उन्होंने यूसुफ के पास यह कहला भेजा, कि तेरे पिता ने मरने से पहिले हमें यह आज्ञा दी यी, 17 कि तुम लोग यूसुफ से इस प्रकार कहना, कि हम बिनती करते हैं, कि तू अपके भाइयोंके अपराध और पाप को झमा कर; हम ने तुझ से बुराई तो की यी, पर अब अपके पिता के परमेश्वर के दासोंका अपराध झमा कर। उनकी थे बातें सुनकर यूसुफ रो पड़ा। 18 और उसके भाई आप भी जाकर उसके साम्हने गिर पके, और कहा, देख, हम तेरे दास हैं। 19 यूसुफ ने उन से कहा, मत डरो, क्या मैं परमेश्वर की जगह पर हूं ? 20 यद्यपि तुम लोगोंने मेरे लिथे बुराई का विचार किया या; परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिस से वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रगट है, कि बहुत से लोगोंके प्राण बचे हैं। 21 सो अब मत डरो : मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाल-बच्चोंका पालन पोषण करता रहूंगा; इस प्रकार उस ने उनको समझा बुफाकर शान्ति दी।। 22 और यूसुफ अपके पिता के घराने समेत मिस्र में रहता रहा, और यूसुफ एक सौ दस वर्ष जीवित रहा। 23 और यूसुफ एप्रैम के परपोतोंतक देखने पाया : और मनश्शे के पोते, जो माकीर के पुत्र थे, वे उत्पन्न होकर यूसुफ से गोद में लिए गए। 24 और यूसुफ ने अपके भाइयोंसे कहा मैं तो मरने पर हूं; परन्तु परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देश से निकालकर उस देश में पहुंचा देगा, जिसके देने की उस ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपय खाई यी। 25 फिर यूसुफ ने इस्राएलियोंसे यह कहकर, कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विषय की शपय खिलाई, कि हम तेरी हड्डियोंको वहां से उस देश में ले जाएंगे। 26 निदान यूसुफ एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया : और उसकी लोय में सुगन्धद्रव्य भरे गए, और वह लोय मिस्र में एक सन्दूक में रखी गई।।
1 इस्राएल के पुत्रोंके नाम, जो अपके अपके घराने को लेकर याकूब के साय मिस्र देश में आए, थे हैं: 2 अर्यात् रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, 3 इस्साकार, जबूलून, बिन्यामीन, 4 दान, नप्ताली, गाद और आशेर। 5 और यूसुफ तो मिस्र में पहिले ही आ चुका या। याकूब के निज वंश में जो उत्पन्न हुए वे सब सत्तर प्राणी थे। 6 और यूसुफ, और उसके सब भाई , और उस पीढ़ी के सब लोग मर मिटे। 7 और इस्राएल की सन्तान फूलने फलने लगी; और वे अत्यन्त सामर्यी बनते चले गए; और इतना बढ़ गए कि कुल देश उन से भर गया।। 8 मिस्र में एक नया राजा गद्दी पर बैठा जो यूसुफ को नहीं जानता या। 9 और उस ने अपक्की प्रजा से कहा, देखो, इस्राएली हम से गिनती और सामर्य्य में अधिक बढ़ गए हैं। 10 इसलिथे आओ, हम उनके साय बुद्धिमानी से बर्ताव करें, कहीं ऐसा न हो कि जब वे बहुत बढ़ जाएं, और यदि संग्राम का समय आ पके, तो हमारे बैरियोंसे मिलकर हम से लड़ें और इस देश से निकल जाएं। 11 इसलिथे उन्होंने उन पर बेगारी करानेवालोंको नियुक्त किया कि वे उन पर भार डाल डालकर उनको दु:ख दिया करें; तब उन्होंने फिरौन के लिथे पितोम और रामसेस नाम भण्डारवाले नगरोंको बनाया। 12 पर ज्योंज्योंवे उनको दु:ख देते गए त्योंत्योंवे बढ़ते और फैलते चले गए; इसलिथे वे इस्राएलियोंसे अत्यन्त डर गए। 13 तौभी मिस्रियोंने इस्राएलियोंसे कठोरता के साय सेवकाई करवाई। 14 और उनके जीवन को गारे, ईंट और खेती के भांति भांति के काम की कठिन सेवा से दु:खी कर डाला; जिस किसी काम में वे उन से सेवा करवाते थे उस में वे कठोरता का व्यवहार करते थे। 15 शिप्रा और पूआ नाम दो इब्री धाइयोंको मिस्र के राजा ने आज्ञा दी, 16 कि जब तुम इब्री स्त्रियोंको बच्चा उत्पन्न होने के समय जन्मने के पत्यरोंपर बैठी देखो, तब यदि बेटा हो, तो उसे मार डालना; और बेटी हो, तो जीवित रहने देना। 17 परन्तु वे धाइयां परमेश्वर का भय मानती यीं, इसलिथे मिस्र के राजा की आज्ञा न मानकर लड़कोंको भी जीवित छोड़ देती यीं। 18 तब मिस्र के राजा ने उनको बुलवाकर पूछा, तुम जो लड़कोंको जीवित छोड़ देती हो, तो ऐसा क्योंकरती हो? 19 धाइयोंने फिरौन को उतर दिया, कि इब्री स्त्रियोंमिस्री स्त्रियोंके समान नहीं हैं; वे ऐसी फुर्तीली हैं कि धाइयोंके पहुंचने से पहिले ही उनको बच्चा उत्पन्न हो जाता है। 20 इसलिथे परमेश्वर ने धाइयोंके साय भलाई की; और वे लोग बढ़कर बहुत सामर्यी हो गए। 21 और धाइयां इसलिथे कि वे परमेश्वर का भय मानती यीं उस ने उनके घर बसाए। 22 तब फिरौन ने अपक्की सारी प्रजा के लोगोंको आज्ञा दी, कि इब्रियोंके जितने बेटे उत्पन्न होंउन सभोंको तुम नील नदी में डाल देना, और सब बेटियोंको जीवित रख छोड़ना।।
1 लेवी के घराने के एक पुरूष ने एक लेवी वंश की स्त्री को ब्याह लिया। 2 और वह स्त्री गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और यह देखकर कि यह बालक सुन्दर है, उसे तीन महीने तक छिपा रखा। 3 और जब वह उसे और छिपा न सकी तब उसके लिथे सरकंड़ोंकी एक टोकरी लेकर, उस में बालक को रखकर नील नदी के तीर पर कांसोंके बीच छोड़ आई। 4 उस बालक कि बहिन दूर खड़ी रही, कि देखे इसका क्या हाल होगा। 5 तब फिरौन की बेटी नहाने के लिथे नदी के तीर आई; उसकी सखियां नदी के तीर तीर टहलने लगीं; तब उस ने कांसोंके बीच टोकरी को देखकर अपक्की दासी को उसे ले आने के लिथे भेजा। 6 तब उस ने उसे खोलकर देखा, कि एक रोता हुआ बालक है; तब उसे तरस आया और उस ने कहा, यह तो किसी इब्री का बालक होगा। 7 तब बालक की बहिन ने फिरौन की बेटी से कहा, क्या मैं जाकर इब्री स्त्रियोंमें से किसी धाई को तेरे पास बुला ले आऊं जो तेरे लिथे बालक को दूध पिलाया करे? 8 फिरौन की बेटी ने कहा, जा। तब लड़की जाकर बालक की माता को बुला ले आई। 9 फिरौन की बेटी ने उस से कहा, तू इस बालक को ले जाकर मेरे लिथे दूध पिलाया कर, और मैं तुझे मजदूरी दूंगी। तब वह स्त्री बालक को ले जाकर दूध पिलाने लगी। 10 जब बालक कुछ बड़ा हुआ तब वह उसे फिरौन की बेटी के पास ले गई, और वह उसका बेटा ठहरा; और उस ने यह कहकर उसका नाम मूसा रखा, कि मैं ने इसको जल से निकाल लिया।। 11 उन दिनोंमें ऐसा हुआ कि जब मूसा जवान हुआ, और बाहर अपके भाई बन्धुओं के पास जाकर उनके दु:खोंपर दृष्टि करने लगा; तब उस ने देखा, कि कोई मिस्री जन मेरे एक इब्री भाई को मार रहा है। 12 जब उस ने इधर उधर देखा कि कोई नहीं है, तब उस मिस्री को मार डाला और बालू में छिपा दिया।। 13 फिर दूसरे दिन बाहर जाकर उस ने देखा कि दो इब्री पुरूष आपस में मारपीट कर रहे हैं; उस ने अपराधी से कहा, तू अपके भाई को क्योंमारता है ? 14 उस ने कहा, किस ने तुझे हम लोगोंपर हाकिम और न्यायी ठहराया ? जिस भांति तू ने मिस्री को घात किया क्या उसी भांति तू मुझे भी घात करना चाहता है ? तब मूसा यह सोचकर डर गया, कि निश्चय वह बात खुल गई है। 15 जब फिरौन ने यह बात सुनी तब मूसा को घात करने की युक्ति की। तब मूसा फिरौन के साम्हने से भागा, और मिद्यान देश में जाकर रहने लगा; और वह वहां एक कुएं के पास बैठ गया। 16 मिद्यान के याजक की सात बेटियां यी; और वे वहां आकर जल भरने लगीं, कि कठौतोंमें भरके अपके पिता की भेड़बकरियोंको पिलाएं। 17 तब चरवाहे आकर उनको हटाने लगे; इस पर मूसा ने खड़ा होकर उनकी सहाथता की, और भेड़-बकरियोंको पानी पिलाया। 18 जब वे अपके पिता रूएल के पास फिर आई, तब उस ने उन से पूछा, क्या कारण है कि आज तुम ऐसी फुर्ती से आई हो ? 19 उन्होंने कहा, एक मिस्री पुरूष ने हम को चरवाहोंके हाथ से छुड़ाया, और हमारे लिथे बहुत जल भरके भेड़-बकरियोंको पिलाया। 20 तब उस ने अपक्की बेटियोंसे कहा, वह पुरूष कहां है ? तुम उसको क्योंछोड़ आई हो ? उसको बुला ले आओ कि वह भोजन करे। 21 और मूसा उस पुरूष के साय रहने को प्रसन्न हुआ; उस ने उसे अपक्की बेटी सिप्पोरा को ब्याह दिया। 22 और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, तब मूसा ने यह कहकर, कि मैं अन्य देश में परदेशी हूं, उसका नाम गेर्शोम रखा।। 23 बहुत दिनोंके बीतने पर मिस्र का राजा मर गया। और इस्राएली कठिन सेवा के कारण लम्बी लम्बी सांस लेकर आहें भरने लगे, और पुकार उठे, और उनकी दोहाई जो कठिन सेवा के कारण हुई वह परमेश्वर तक पहुंची। 24 और परमेश्वर ने उनका कराहना सुनकर अपक्की वाचा को, जो उस ने इब्राहीम, और इसहाक, और याकूब के साय बान्धी यी, स्मरण किया। 25 और परमेश्वर ने इस्राएलियोंपर दृष्टि करके उन पर चित्त लगाया।।
1 मूसा अपके ससुर यित्रो नाम मिद्यान के याजक की भेड़-बकरियोंको चराता या; और वह उन्हें जंगल की परली ओर होरेब नाम परमेश्वर के पर्वत के पास ले गया। 2 और परमेश्वर के दूत ने एक कटीली फाड़ी के बीच आग की लौ में उसको दर्शन दिया; और उस ने दृष्टि उठाकर देखा कि फाड़ी जल रही है, पर भस्म नहीं होती। 3 तब मूसा ने सोचा, कि मैं उधर फिरके इस बड़े अचम्भे को देखूंगा, कि वह फाड़ी क्योंनहीं जल जाती। 4 जब यहोवा ने देखा कि मूसा देखने को मुड़ा चला आता है, तब परमेश्वर ने फाड़ी के बीच से उसको पुकारा, कि हे मूसा, हे मूसा। मूसा ने कहा, क्या आज्ञा। 5 उस ने कहा इधर पास मत आ, और अपके पांवोंसे जूतियोंको उतार दे, क्योंकि जिस स्यान पर तू खड़ा है वह पवित्र भूमि है। 6 फिर उस ने कहा, मैं तेरे पिता का परमेश्वर, और इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूं। तब मूसा ने जो परमेश्वर की ओर निहारने से डरता या अपना मुंह ढ़ाप लिया। 7 फिर यहोवा ने कहा, मैं ने अपक्की प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं उनके दु:ख को निश्चय देखा है, और उनकी जो चिल्लाहट परिश्र्म करानेवालोंके कारण होती है उसको भी मैं ने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है ; 8 इसलिथे अब मैं उतर आया हूं कि उन्हें मिस्रियोंके वश से छुड़ाऊं, और उस देश से निकालकर एक अच्छे और बड़े देश में जिस में दूध और मधु की धारा बहती है, अर्यात् कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी लोगोंके स्यान में पहुंचाऊं। 9 सो अब सुन, इस्राएलियोंकी चिल्लाहट मुझे सुनाई पक्की है, और मिस्रियोंका उन पर अन्धेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है, 10 इसलिथे आ, मैं तुझे फिरौन के पास भेजता हूं कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए। 11 तब मूसा ने परमेश्वर से कहा, मै कौन हूं जो फिरौन के पास जाऊं, और इस्राएलियोंको मिस्र से निकाल ले आऊं ? 12 उस ने कहा, निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा; और इस बात का कि तेरा भेजनेवाला मैं हूं, तेरे लिथे यह चिन्ह होगा कि जब तू उन लोगोंको मिस्र से निकाल चुके तब तुम इसी पहाड़ पर परमेश्वर की उपासना करोगे। 13 मूसा ने परमेश्वर से कहा, जब मैं इस्राएलियोंके पास जाकर उन से यह कहूं, कि तुम्हारे पितरोंके परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, तब यदि वे मुझ से पूछें, कि उसका क्या नाम है? तब मैं उनको क्या बताऊं? 14 परमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं जो हूं सो हूं। फिर उस ने कहा, तू इस्राएलियोंसे यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूं है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है। 15 फिर परमेश्वर ने मूसा से यह भी कहा, कि तू इस्राएलियोंसे यह कहना, कि तुम्हारे पितरोंका परमेश्वर, अर्यात् इब्राहीम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर, यहोवा उसी ने मुझ को तुम्हारे पास भेजा है। देख सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा। 16 इसलिथे अब जाकर इस्राएली पुरनियोंको इकट्ठा कर, और उन से कह, कि तुम्हारे पितर इब्राहीम, इसहाक, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने मुझे दर्शन देकर यह कहा है, कि मैं ने तुम पर और तुम से जो बर्ताव मिस्र में किया जाता है उस पर भी चित लगाया है; 17 और मैं ने ठान लिया है कि तुम को मिस्र के दुखोंमें से निकालकर कनानी, हित्ती, एमोरी, परिज्जी हिब्बी, और यबूसी लोगोंके देश में ले चलूंगा, जो ऐसा देश है कि जिस में दूध और मधु की धारा बहती है। 18 तब वे तेरी मानेंगे; और तू इस्राएली पुरनियोंको संग लेकर मिस्र के राजा के पास जाकर उस से योंकहना, कि इब्रियोंके परमेश्वर, यहोवा से हम लोगोंकी भेंट हुई है; इसलिथे अब हम को तीन दिन के मार्ग पर जंगल में जाने दे, कि अपके परमेश्वर यहोवा को बलिदान चढ़ाएं। 19 मैं जानता हूं कि मिस्र का राजा तुम को जाने न देगा वरन बड़े बल से दबाए जाने पर भी जाने न देगा। 20 इसलिथे मैं हाथ बढ़ाकर उन सब आश्चर्यकर्मोंसे जो मिस्र के बीच करूंगा उस देश को मारूंगा; और उसके पश्चात् वह तुम को जाने देगा। 21 तब मैं मिस्रियोंसे अपक्की इस प्रजा पर अनुग्रह करवाऊंगा; और जब तुम निकलोगे तब छूछे हाथ न निकलोगे। 22 वरन तुम्हारी एक एक स्त्री अपक्की अपक्की पड़ोसिन, और अपके अपके घर की पाहुनी से सोने चांदी के गहने, और वस्त्र मांग लेगी, और तुम उन्हें अपके बेटोंऔर बेटियोंको पहिराना; इस प्रकार तुम मिस्रियोंको लूटोगे।।
1 तब मूसा ने उतर दिया, कि वे मेरी प्रतीति न करेंगे और न मेरी सुनेंगे, वरन कहेंगे, कि यहोवा ने तुझ को दर्शन नहीं दिया। 2 यहोवा ने उस से कहा, तेरे हाथ में वह क्या है ? वह बोला, लाठी। 3 उस ने कहा, उसे भूमि पर डाल दे; जब उस ने उसे भूमि पर डाला तब वह सर्प बन गई, और मूसा उसके साम्हने से भागा। 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, हाथ बढ़ाकर उसकी पूंछ पकड़ ले कि वे लोग प्रतीति करें कि तुम्हारे पितरोंके परमेश्वर अर्यात् इब्राहीम के परमेश्वर, इसहाक के परमेश्वर, और याकूब के परमेश्वर, यहोवा ने तुझ को दर्शन दिया है। 5 तब उस ने हाथ बढ़ाकर उसको पकड़ा तब वह उसके हाथ में फिर लाठी बन गई। 6 फिर यहोवा ने उस से यह भी कहा, कि अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप। सो उस ने अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप लिया; फिर जब उसे निकाला तब क्या देखा, कि उसका हाथ कोढ़ के कारण हिम के समान श्वेत हो गया है। 7 तब उस ने कहा, अपना हाथ छाती पर फिर रखकर ढांप। और उस ने अपना हाथ छाती पर रखकर ढांप लिया; और जब उस ने उसको छाती पर से निकाला तब क्या देखता है, कि वह फिर सारी देह के समान हो गया। 8 तब यहोवा ने कहा, यदि वे तेरी बात की प्रतीति न करें, और पहिले चिन्ह को न मानें, तो दूसरे चिन्ह की प्रतीति करेंगे। 9 और यदि वे इन दोनोंचिन्होंकी प्रतीति न करें और तेरी बात को न मानें, तब तू नील नदी से कुछ जल लेकर सूखी भूमि पर डालना; और जो जल तू नदी से निकालेगा वह सूखी भूमि पर लोहू बन जाथेगा। 10 मूसा ने यहोवा से कहा, हे मेरे प्रभु, मैं बोलने में निपुण नहीं, न तो पहिले या, और न जब से तू अपके दास से बातें करने लगा; मैं तो मुंह और जीभ का भद्दा हूं। 11 यहोवा ने उस से कहा, मनुष्य का मुंह किस ने बनाया है ? और मनुष्य को गूंगा, वा बहिरा, वा देखनेवाला, वा अन्धा, मुझ यहोवा को छोड़ कौन बनाता है ? 12 अब जा, मैं तेरे मुख के संग होकर जो तुझे कहना होगा वह तुझे सिखलाता जाऊंगा। 13 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, जिसको तू चाहे उसी के हाथ से भेज। 14 तब यहोवा का कोप मूसा पर भड़का और उस ने कहा, क्या तेरा भाई लेवीय हारून नहीं है ? मुझे तो निश्चय है कि वह बोलने में निपुण है, और वह तेरी भेंट के लिथे निकला भी आता है, और तुझे देखकर मन में आनन्दित होगा। 15 इसलिथे तू उसे थे बातें सिखाना; और मैं उसके मुख के संग और तेरे मुख के संग होकर जो कुछ तुम्हे करना होगा वह तुम को सिखलाता जाऊंगा। 16 और वह तेरी ओर से लोगोंसे बातें किया करेगा; वह तेरे लिथे मुंह और तू उसके लिथे परमेश्वर ठहरेगा। 17 और तू इस लाठी को हाथ में लिए जा, और इसी से इन चिन्होंको दिखाना।। 18 तब मूसा अपके ससुर यित्रो के पास लौटा और उस से कहा, मुझे विदा कर, कि मैं मिस्र में रहनेवाले अपके भाइयोंके पास जाकर देखूं कि वे अब तक जीवित हैं वा नहीं। यित्रो ने कहा, कुशल से जा। 19 और यहोवा ने मिद्यान देश में मूसा से कहा, मिस्र को लौट जा; क्योंकि जो मनुष्य तेरे प्राण के प्यासे थे वे सब मर गए हैं 20 तब मूसा अपक्की पत्नी और बेटोंको गदहे पर चढ़ाकर मिस्र देश की ओर परमेश्वर की उस लाठी को हाथ में लिथे हुए लौटा। 21 और यहोवा ने मूसा से कहा, जब तू मिस्र में पहुंचे तब सावधान हो जाना, और जो चमत्कार मैं ने तेरे वश में किए हैं उन सभोंको फिरौन को दिखलाना; परन्तु मै उसके मन को हठीला करूंगा, और वह मेरी प्रजा को जाने न देगा। 22 और तू फिरौन से कहना, कि यहोवा योंकहता है, कि इस्राएल मेरा पुत्र वरन मेरा जेठा है, 23 और मैं जो तुझ से कह चुका हूं, कि मेरे पुत्र को जाने दे कि वह मेरी सेवा करे; और तू ने अब तक उसे जाने नहीं दिया, इस कारण मैं अब तेरे पुत्र वरन तेरे जेठे को घात करूंगा। 24 और ऐसा हुआ कि मार्ग पर सराय में यहोवा ने मूसा से भेंट करके उसे मार डालना चाहा। 25 तब सिप्पोरा ने एक तेज चकमक पत्यर लेकर अपके बेटे की खलड़ी को काट डाला, और मूसा के पावोंपर यह कहकर फेंक दिया, कि निश्चय तू लोहू बहानेवाला मेरा पति है। 26 तब उस ने उसको छोड़ दिया। और उसी समय खतने के कारण वह बोली, तू लोहू बहानेवाला पति है। 27 तब यहोवा ने हारून से कहा, मूसा से भेंट करने को जंगल में जा। और वह गया, और परमेश्वर के पर्वत पर उस से मिला और उसको चूमा। 28 तब मूसा ने हारून को यह बतलाया कि यहोवा ने क्या क्या बातें कहकर उसको भेजा है, और कौन कौन से चिन्ह दिखलाने की आज्ञा उसे दी है। 29 तब मूसा और हारून ने जाकर इस्राएलियोंके सब पुरनियोंको इकट्ठा किया। 30 और जितनी बातें यहोवा ने मूसा से कही यी वह सब हारून ने उन्हें सुनाई, और लोगोंके साम्हने वे चिन्ह भी दिखलाए। 31 और लोगोंने उनकी प्रतीति की; और यह सुनकर, कि यहोवा ने इस्राएलियोंकी सुधि ली और उनके दु:खोंपर दृष्टि की है, उन्होंने सिर फुकाकर दण्डवत की।।
1 इसके पश्चात् मूसा और हारून ने जाकर फिरौन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि वे जंगल में मेरे लिथे पर्व्व करें। 2 फिरौन ने कहा, यहोवा कौन है, कि मैं उसका वचन मानकर इस्राएलियोंको जाने दूं ? मैं यहोवा को नहीं जानता, और मैं इस्राएलियोंको नहीं जाने दूंगा। 3 उन्होंने कहा, इब्रियोंके परमेश्वर ने हम से भेंट की है; सो हमें जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाने दे, कि अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे बलिदान करें, ऐसा न हो कि वह हम में मरी फैलाए वा तलवार चलवाए। 4 मिस्र के राजा ने उन से कहा, हे मूसा, हे हारून, तुम क्योंलोगोंसे काम छुड़वाने चाहते हो? तुम जाकर अपके अपके बोफ को उठाओ। 5 और फिरोन ने कहा, सुनो, इस देश में वे लोग बहुत हो गए हैं, फिर तुम उनको परिश्र्म से विश्रम दिलाना चाहते हो ! 6 और फिरौन ने उसी दिन उन परिश्र्म करवानेवालोंको जो उन लोगोंके ऊपर थे, और उनके सरदारोंको यह आज्ञा दी, 7 कि तुम जो अब तक ईटें बनाने के लिथे लोगोंको पुआल दिया करते थे सो आगे को न देना; वे आप ही जाकर अपके लिथे पुआल इकट्ठा करें। 8 तौभी जितनी ईंटें अब तक उन्हें बनानी पड़ती यीं उतनी ही आगे को भी उन से बनवाना, ईंटोंकी गिनती कुछ भी न घटाना; क्योंकि वे आलसी हैं; इस कारण यह कहकर चिल्लाते हैं, कि हम जाकर अपके परमेश्वर के लिथे बलिदान करें। 9 उन मनुष्योंसे और भी कठिन सेवा करवाई जाए कि वे उस में परिश्र्म करते रहें और फूठी बातोंपर ध्यान न लगाएं। 10 तब लोगोंके परिश्र्म करानेवालोंने और सरदारोंने बाहर जाकर उन से कहा, फिरौन इस प्रकार कहता है, कि मैं तुम्हें पुआल नहीं दूंगा। 11 तुम ही जाकर जहां कहीं पुआल मिले वहां से उसको बटोर कर ले आओ; परन्तु तुम्हारा काम कुछ भी नहीं घटाया जाएगा। 12 सो वे लोग सारे मिस्र देश में तित्तर-बित्तर हुए कि पुआल की सन्ती खूंटी बटोरें। 13 और परिश्र्म करनेवाले यह कह कहकर उन से जल्दी करते रहे, कि जिस प्रकार तुम पुआल पाकर किया करते थे उसी प्रकार अपना प्रतिदिन का काम अब भी पूरा करो। 14 और इस्राएलियोंमें से जिन सरदारोंको फिरौन के परिश्र्म करानेवालोंने उनका अधिक्कारनेी ठहराया या, उन्होंने मार खाई, और उन से पूछा गया, कि क्या कारण है कि तुम ने अपक्की ठहराई हुई ईंटोंकी गिनती के अनुसार पहिले की नाई कल और आज पूरी नहीं कराई ? 15 तब इस्राएलियोंके सरदारोंने जाकर फिरौन की दोहाई यह कहकर दी, कि तू अपके दासोंसे ऐसा बर्ताव क्योंकरता है? 16 तेरे दासोंको पुआल तो दिया ही नहीं जाता और वे हम से कहते रहते हैं, ईंटे बनाओ, ईंटें बनाओ, और तेरे दासोंने भी मार खाई हैं; परन्तु दोष तेरे ही लोगोंका है। 17 फिरौन ने कहा, तुम आलसी हो, आलसी; इसी कारण कहते हो कि हमे यहोवा के लिथे बलिदान करने को जाने दे। 18 और जब आकर अपना काम करो; और पुआल तुम को नहीं दिया जाएगा, परन्तु ईटोंकी गिनती पूरी करनी पकेगी। 19 जब इस्राएलियोंके सरदारोंने यह बात सुनी कि उनकी ईंटोंकी गिनती न घटेगी, और प्रतिदिन उतना ही काम पूरा करना पकेगा, तब वे जान गए कि उनके दुर्भाग्य के दिन आ गए हैं। 20 जब वे फिरौन के सम्मुख से बाहर निकल आए तब मूसा और हारून, जो उन से भेंट करने के लिथे खड़े थे, उन्हें मिले। 21 और उन्होंने मूसा और हारून से कहा, यहोवा तुम पर दृष्टि करके न्याय करे, क्योंकि तुम ने हम को फिरौन और उसके कर्मचारियोंकी दृष्टि में घृणित ठहरवाकर हमें घात करने के लिथे उनके हाथ में तलवार दे दी है। 22 तब मूसा ने यहोवा के पास लौट कर कहा, हे प्रभु, तू ने इस प्रजा के साय ऐसी बुराई क्योंकी? और तू ने मुझे यहां क्योंभेजा ? 23 जब से मैं तेरे नाम से फिरौन के पास बातें करने के लिथे गया तब से उसने इस प्रजा के साय बुरा ही व्यवहार किया है, और तू ने अपक्की प्रजा का कुछ भी छुटकारा नहीं किया।
1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, अब तू देखेगा कि मैं फिरौन ने क्या करूंगा; जिस से वह उनको बरबस निकालेगा, वह तो उन्हें अपके देश से बरबस निकाल देगा।। 2 और परमेश्वर ने मूसा से कहा, कि मैं यहोवा हूं। 3 मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर के नाम से इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को दर्शन देता या, परन्तु यहोवा के नाम से मैं उन पर प्रगट न हुआ। 4 और मैं ने उनके साय अपक्की वाचा दृढ़ की है, अर्यात् कनान देश जिस में वे परदेशी होकर रहते थे, उसे उन्हें दे दूं। 5 और इस्राएली जिन्हें मिस्री लोग दासत्व में रखते हैं उनका कराहना भी सुनकर मैं ने अपक्की वाचा को स्मरण किया है। 6 इस कारण तू इस्राएलियोंसे कह, कि मैं यहोवा हूं, और तुम को मिस्रियोंके बोफोंके नीचे से निकालूंगा, और उनके दासत्व से तुम को छुड़ाऊंगा, और अपक्की भुजा बढ़ाकर और भारी दण्ड देकर तुम्हें छुड़ा लूंगा, 7 और मैं तुम को अपक्की प्रजा बनाने के लिथे अपना लूंगा, और मैं तुम्हारा परमेश्वर ठहरूंगा; और तुम जान लोगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुम्हें मिस्रियोंके बोफोंके नीचे से निकाल ले आया। 8 और जिस देश के देने की शपय मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से खाई यी उसी में मैं तुम्हें पहुंचाकर उसे तुम्हारा भाग कर दूंगा। मैं तो यहोवा हूं। 9 और थे बातें मूसा ने इस्राएलियोंको सुनाई; परन्तु उन्होंने मन की बेचैनी और दासत्व की क्रूरता के कारण उसकी न सुनी।। 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 11 तू जाकर मिस्र के राजा फिरौन से कह, कि इस्राएलियोंको अपके देश में से निकल जाने दे। 12 और मूसा ने यहोवा से कहा, देख, इस्राएलियोंने मेरी नहीं सुनी; फिर फिरौन मुझ भद्दे बोलनेवाले की क्योंकर सुनेगा ? 13 और यहोवा ने मूसा और हारून को इस्राएलियोंऔर मिस्र के राजा फिरौन के लिथे आज्ञा इस अभिप्राय से दी कि वे इस्राएलियोंको मिस्र देश से निकाल ले जाएं। 14 उनके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष थे हैं : इस्राएल के जेठा रूबेन के पुत्र : हनोक, पल्लू, हेस्रोन और कर्म्मी थे; 15 और शिमोन के पुत्र : यमूएल, यामीन, ओहद, याकिन, और सोहर थे, और एक कनानी स्त्री का बेटा शाउल भी या; इन्हीं से शिमोन के कुल निकले। 16 और लेवी के पुत्र जिन से उनकी वंशावली चक्की है, उनके नाम थे हैं : अर्यात् गेर्शोन, कहात और मरारी, और लेवी को पूरी अवस्या एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। 17 गेर्शोन के पुत्र जिन से उनका कुल चला : लिबनी और शिमी थे। 18 और कहात के पुत्र : अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल थे, और कहात की पूरी अवस्या एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। 19 और मरारी के पुत्र : महली और मूशी थे। लेवियोंके कुल जिन से उनकी वंशावली चक्की थे ही हैं। 20 अम्राम ने अपक्की फूफी योकेबेद को ब्याह लिया और उस से हारून और मूसा उत्पन्न हुए, और अम्राम की पूरी अवस्या एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई। 21 और यिसहार के पुत्र कोरह, नेपेग और जिक्री थे। 22 और उज्जीएल के पुत्र: मीशाएल, एलसापन और सित्री थे। 23 और हारून ने अम्मीनादाब की बेटी, और नहशोन की बहिन एलीशेबा को ब्याह लिया; और उस से नादाब, अबीहू, ऐलाजार और ईतामार उत्पन्न हुए। 24 और कोरह के पुत्र : अस्सीर, एलकाना और अबीआसाप थे; और इन्हीं से कोरहियोंके कुल निकले। 25 और हारून के पुत्र एलाजार ने पूतीएल की एक बेटी को ब्याह लिया; और उस से पीनहास उत्पन्न हुआ जिन से उनका कुल चला। लेवियोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष थे ही हैं। 26 हारून और मूसा वे ही हैं जिनको यहोवा ने यह आज्ञा दी, कि इस्राएलियोंको दल दल करके उनके जत्योंके अनुसार मिस्र देश से निकाल ले आओ। 27 थे वही मूसा और हारून हैं जिन्होंने मिस्र के राजा फिरौन से कहा, कि हम इस्राएलियोंको मिस्र से निकाल ले जाएंगे।। 28 जब यहोवा ने मिस्र देश में मूसा से यह बात कही, 29 कि मैं तो यहोवा हूं; इसलिथे जो कुछ मैं तुम से कहूंगा वह सब मिस्र के राजा फिरौन से कहना। 30 और मूसा ने यहोवा को उत्तर दिया, कि मैं तो बोलने में भद्दा हूं; और फिरोन क्योंकर मेरी सुनेगा ?
1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, सुन, मैं तुझे फिरौन के लिथे परमेश्वर सा ठहराता हूं; और तेरा भाई हारून तेरा नबी ठहरेगा। 2 जो जो आज्ञा मैं तुझे दूं वही तू कहना, और हारून उसे फिरौन से कहेगा जिस से वह इस्राएलियोंको अपके देश से निकल जाने दे। 3 और मैं फिरौन के मन को कठोर कर दूंगा, और अपके चिन्ह और चमत्कार मिस्र देश में बहुत से दिखलाऊंगा। 4 तौभी फिरौन तुम्हारी न सुनेगा; और मैं मिस्र देश पर अपना हाथ बढ़ाकर मिस्रियोंको भारी दण्ड देकर अपक्की सेना अर्यात् अपक्की इस्राएली प्रजा को मिस्र देश से निकाल लूंगा। 5 और जब मैं मिस्र पर हाथ बढ़ा कर इस्राएलियोंको उनके बीच से निकालूंगा तब मिस्री जान लेंगे, कि मैं यहोवा हूं। 6 तब मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही किया। 7 और जब मूसा और हारून फिरौन से बात करने लगे तब मूसा तो अस्सी वर्ष का या, और हारून तिरासी वर्ष का या।। 8 फिर यहोवा ने, मूसा और हारून से इस प्रकार कहा, 9 कि जब फिरौन तुम से कहे, कि अपके प्रमाण का कोई चमत्कार दिखाओ, तब तू हारून से कहना, कि अपक्की लाठी को लेकर फिरौन के साम्हने डाल दे, कि वह अजगर बन जाए। 10 तब मूसा और हारून ने फिरौन के पास जाकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किया; और जब हारून ने अपक्की लाठी को फिरौन और उसके कर्मचारियोंके साम्हने डाल दिया, तब वह अजगर बन गया। 11 तब फिरौन ने पण्डितोंऔर टोनहा करनेवालोंको बुलवाया; और मिस्र के जादूगरोंने आकर अपके अपके तंत्र मंत्र से वैसा ही किया। 12 उन्होंने भी अपक्की अपक्की लाठी को डाल दिया, और वे भी अजगर बन गए। पर हारून की लाठी उनकी लाठियोंको निगल गई। 13 परन्तु फिरौन का मन और हठीला हो गया, और यहोवा के वचन के अनुसार उस ने मूसा और हारून की बातोंको नहीं माना।। 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, फिरोन का मन कठोर हो गया है और वह इस प्रजा को जाने नहीं देता। 15 इसलिथे बिहान को फिरौन के पास जा, वह तो जल की ओर बाहर आएगा; और जो लाठी सर्प बन गई यी, उसको हाथ में लिए हुए नील नदी के तट पर उस से भेंट करने के लिथे खड़ा रहना। 16 और उस से इस प्रकार कहना, कि इब्रियोंके परमेश्वर यहोवा ने मुझे यह कहने के लिथे तेरे पास भेजा है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे कि जिस से वे जंगल में मेरी उपासना करें; और अब तक तू ने मेरा कहना नहीं माना। 17 यहोवा योंकहता है, इस से तू जान लेगा कि मैं ही परमेश्वर हूं; देख, मै अपके हाथ की लाठी को नील नदी के जल पर मारूंगा, और जल लोहू बन जाएगा, 18 और जो मछलियां नील नदी में हैं वे मर जाएंगी, और नील नदी बसाने लगेगी, और नदी का पानी पीने के लिथे मिस्रियोंका जी न चाहेगा। 19 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून से कह, कि अपक्की लाठी लेकर मिस्र देश में जितना जल है, अर्यात् उसकी नदियां, नहरें, फीलें, और पोखरे, सब के ऊपर अपना हाथ बढ़ा कि उनका जल लोहू बन जाए; और सारे मिस्र देश में काठ और पत्यर दोनोंभांति के जलपात्रोंमें लोहू ही लोहू हो जाएगा। 20 तब मूसा और हारून ने यहोवा की आज्ञा ही के अनुसार किया, अर्यात् उस ने लाठी को उठाकर फिरौन और उसके कर्मचारियोंके देखते नील नदी के जल पर मारा, और नदी का सब जल लोहू बन गया। 21 और नील नदी में जो मछलियां यीं वे मर गई; और नदी से दुर्गन्ध आने लगी, और मिस्री लोग नदी का पानी न पी सके; और सारे मिस्र देश में लोहू हो गया। 22 तब मिस्र के जादूगरोंने भी अपके तंत्र-मंत्रो से वैसा ही किया; तौभी फिरौन का मन हठीला हो गया, और यहोवा के कहने के अनुसार उस ने मूसा और हारून की न मानी। 23 फिरौन ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया, और मुंह फेर के अपके घर में चला गया। 24 और सब मिस्री लोग पीने के जल के लिथे नील नदी के आस पास खोदने लगे, क्योंकि वे नदी का जल नहीं पी सकते थे। 25 और जब यहोवा ने नील नदी को मारा या तब से सात दिन हो चुके थे।।
1 और तब यहोवा ने फिर मूसा से कहा, फिरौन के पास जाकर कह, यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे जिस से वे मेरी उपासना करें। 2 और यदि उन्हें जाने न देगा तो सुन, मैं मेंढ़क भेजकर तेरे सारे देश को हानि पहुंचानेवाला हूं। 3 और नील नदी मेंढ़कोंसे भर जाएगी, और वे तेरे भवन में, और तेरे बिछौने पर, और तेरे कर्मचारियोंके घरोंमें, और तेरी प्रजा पर, वरन तेरे तन्दूरोंऔर कठौतियोंमें भी चढ़ जाएंगे। 4 और तुझ पर, और तेरी प्रजा, और तेरे कर्मचारियों, सभोंपर मेंढ़क चढ़ जाएंगे। 5 फिर यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी, कि हारून से कह दे, कि नदियों, नहरों, और फीलोंके ऊपर लाठी के साय अपना हाथ बढ़ाकर मेंढकोंको मिस्र देश पर चढ़ा ले आए। 6 तब हारून ने मिस्र के जलाशयोंके ऊपर अपना हाथ बढ़ाया; और मेंढ़कोंने मिस्र देश पर चढ़कर उसे छा लिया। 7 और जादूगर भी अपके तंत्र-मंत्रोंसे उसी प्रकार मिस्र देश पर मेंढक चढ़ा ले आए। 8 तक फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, यहोवा से बिनती करो कि वह मेंढ़कोंको मुझ से और मेरी प्रजा से दूर करे; और मैं इस्राएली लोगोंको जाने दूंगा जिस से वे यहोवा के लिथे बलिदान करें। 9 तब मूसा ने फिरौन से कहा, इतनी बात पर तो मुझ पर तेरा घमंड रहे, अब मैं तेरे, और तेरे कर्मचारियों, और प्रजा के निमित्त कब बिनती करूं, कि यहोवा तेरे पास से और तेरे घरोंमें से मेंढकोंको दूर करे, और वे केवल नील नदी में पाए जाएं ? 10 उस ने कहा, कल। उस ने कहा, तेरे वचन के अनुसार होगा, जिस से तुझे यह ज्ञात हो जाए कि हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कोई दूसरा नहीं है। 11 और मेंढक तेरे पास से, और तेरे घरोंमें से, और तेरे कर्मचारियोंऔर प्रजा के पास से दूर होकर केवल नील नदी में रहेंगे। 12 तब मूसा और हारून फिरौन के पास से निकल गए; और मूसा ने उन मेंढकोंके विषय यहोवा की दोहाई दी जो उस ने फिरौन पर भेजे थे। 13 और यहोवा ने मूसा के कहने के अनुसार किया; और मेंढक घरों, आंगनों, और खेतोंमें मर गए। 14 और लोगोंने इकट्ठे करके उनके ढेर लगा दिए, और सारा देश दुर्गन्ध से भर गया। 15 परन्तु जब फिरोन ने देखा कि अब आराम मिला है तक यहोवा के कहने के अनुसार उस ने फिर अपके मन को कठोर किया, और उनकी न सुनी।। 16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून को आज्ञा दे, कि तू अपक्की लाठी बढ़ाकर भूमि की धूल पर मार, जिस से वह मिस्र देश भर में कुटकियां बन जाएं। 17 और उन्होंने वैसा ही किया; अर्यात् हारून ने लाठी को ले हाथ बढ़ाकर भूमि की धूल पर मारा, तब मनुष्य और पशु दोनोंपर कुटकियां हो गई वरन सारे मिस्र देश में भूमि की धूल कुटकियां बन गई। 18 तब जादूगरोंने चाहा कि अपके तंत्र मंत्रोंके बल से हम भी कुटकियां ले आएं, परन्तु यह उन से न हो सका। और मनुष्योंऔर पशुओं दोनोंपर कुटकियां बनी ही रहीं। 19 तब जादूगरोंने फिरौन से कहा, यह तो परमेश्वर के हाथ का काम है। तौभी यहोवा के कहने के अनुसार फिरौन का मन कठोर होता गया, और उस ने मूसा और हारून की बात न मानी।। 20 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बिहान को तड़के उठकर फिरौन के साम्हने खड़ा होना, वह तो जल की ओर आएगा, और उस से कहना, कि यहोवा तुझ से यह कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। 21 यदि तू मेरी प्रजा को न जाने देगा तो सुन, मैं तुझ पर, और तेरे कर्मचारियोंऔर तेरी प्रजा पर, और तेरे घरोंमें फुंड के फुंड डांस भेजूंगा; और मिस्रियोंके घर और उनके रहने की भूमि भी डांसोंसे भर जाएगी। 22 उस दिन मैं गोशेन देश को जिस में मेरी प्रजा रहती है अलग करूंगा, और उस में डांसोंके फुंड न होंगे; जिस से तू जान ले कि पृय्वी के बीच मैं ही यहोवा हूं। 23 और मैं अपक्की प्रजा और तेरी प्रजा में अन्तर ठहराऊंगा। यह चिन्ह कल होगा। 24 और यहोवा ने वैसा ही किया, और फिरौन के भवन, और उसके कर्मचारियोंके घरोंमें, और सारे मिस्र देश में डांसोंके फुंड के फुंड भर गए, और डांसोंके मारे वह देश नाश हुआ। 25 तब फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, तुम जाकर अपके परमेश्वर के लिथे इसी देश में बलिदान करो। 26 मूसा ने कहा, ऐसा करना उचित नहीं; क्योंकि हम अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे मिस्रियोंकी घृणित वस्तु बलिदान करेंगें; और यदि हम मिस्रियोंके देखते उनकी घृणित वस्तु बलिदान करें तो क्या वे हम को पत्यरवाह न करेंगे ? 27 हम जंगल में तीन दिन के मार्ग पर जाकर अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे जैसा वह हम से कहेगा वैसा ही बलिदान करेंगे। 28 फिरौन ने कहा, मैं तुम को जंगल में जाने दूंगा कि तुम अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे जंगल में बलिदान करो; केवल बहुत दूर न जाना, और मेरे लिथे बिनती करो। 29 तब मूसा ने कहा, सुन, मैं तेरे पास से बाहर जाकर यहोवा से बिनती करूंगा कि डांसोंके फुंड तेरे, और तेरे कर्मचारियों, और प्रजा के पास से कल ही दूर हों; पर फिरौन आगे को कपट करके हमें यहोवा के लिथे बलिदान करने को जाने देने के लिथे नाहीं न करे। 30 सो मूसा ने फिरौन के पास से बाहर जाकर यहोवा से बिनती की। 31 और यहोवा ने मूसा के कहे के अनुसार डांसोंके फुण्डोंको फिरौन, और उसके कर्मचारियों, और उसकी प्रजा से दूर किया; यहां तक कि एक भी न रहा। 32 तक फिरौन ने इस बार भी अपके मन को सुन्न किया, और उन लोगोंको जाने न दिया।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, फिरोन के पास जाकर कह, कि इब्रियोंका परमेश्वर यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि मेरी उपासना करें। 2 और यदि तू उन्हें जाने न दे और अब भी पकड़े रहे, 3 तो सुन, तेरे जो घोड़े, गदहे, ऊंट, गाय-बैल, भेड़-बकरी आदि पशु मैदान में हैं, उन पर यहोवा का हाथ ऐसा पकेगा कि बहुत भारी मरी होगी। 4 और यहोवा इस्राएलियोंके पशुओं में और मिस्रियोंके पशुओं में ऐसा अन्तर करेगा, कि जो इस्राएलियोंके हैं उन में से कोई भी न मरेगा। 5 फिर यहोवा ने यह कहकर एक समय ठहराया, कि मैं यह काम इस देश में कल करूंगा। 6 दूसरे दिन यहोवा ने ऐसा ही किया; और मिस्र के तो सब पशु मर गए, परन्तु इस्राएलियोंका एक भी पशु न मरा। 7 और फिरौन ने लोगोंको भेजा, पर इस्राएलियोंके पशुओं में से एक भी नहीं मरा या। तौभी फिरौन का मन सुन्न हो गया, और उस ने उन लोगोंको जाने न दिया। 8 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, कि तुम दोनोंभट्टी में से एक एक मुट्ठी राख ले लो, और मूसा उसे फिरौन के साम्हने आकाश की ओर उड़ा दे। 9 तब वह सूझ्म धूल होकर सारे मिस्र देश में मनुष्योंऔर पशुओं दोनोंपर फफोले और फोड़े बन जाएगी। 10 सो वे भट्टी में की राख लेकर फिरौन के साम्हने खड़े हुए, और मूसा ने उसे आकाश की ओर उड़ा दिया, और वह मनुष्योंऔर पशुओं दोनोंपर फफोले और फोड़े बन गई। 11 और उन फोड़ोंके कारण जादूगर मूसा के साम्हने खड़े न रह सके, क्योंकि वे फोड़े जैसे सब मिस्रियोंके वैसे ही जादूगरोंके भी निकले थे। 12 तब यहोवा ने फिरौन के मन को कठोर कर दिया, और जैसा यहोवा ने मूसा से कहा या, उस ने उसकी न सुनी।। 13 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बिहान को तड़के उठकर फिरौन के साम्हने खड़ा हो, और उस से कह इब्रियोंका परमेश्वर यहोवा इस प्रकार कहता है, कि मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। 14 नहीं तो अब की बार मैं तुझ पर, और तेरे कर्मचारियोंऔर तेरी प्रजा पर सब प्रकार की विपत्तियां डालूंगा, जिससे तू जान ले कि सारी पृय्वी पर मेरे तुल्य कोई दूसरा नहीं है। 15 मैं ने तो अभी हाथ बढ़ाकर तुझे और तेरी प्रजा को मरी से मारा होता, और तू पृय्वी पर से सत्यनाश हो गया होता; 16 परन्तु सचमुच मैं ने इसी कारण तुझे बनाए रखा है, कि तुझे अपना सामर्य्य दिखाऊं, और अपना नाम सारी पृय्वी पर प्रसिद्ध करूं। 17 क्या तू अब भी मेरी प्रजा के साम्हने अपके आप को बड़ा समझता है, और उन्हें जाने नहीं देता ? 18 सुन, कल मैं इसी समय ऐसे भारी भारी ओले बरसाऊंगा, कि जिन के तुल्य मिस्र की नेव पड़ने के दिन से लेकर अब तक कभी नहीं पके। 19 सो अब लोगोंको भेजकर अपके पशुओं को अपके मैदान में जो कुछ तेरा है सब को फुर्ती से आड़ में छिपा ले; नहीं तो जितने मनुष्य वा पशु मैदान में रहें और घर में इकट्ठे न किए जाएं उन पर ओले गिरेंगे, और वे मर जाएंगे। 20 इसलिथे फिरौन के कर्मचारियोंमें से जो लोग यहोवा के वचन का भय मानते थे उन्होंने तो अपके अपके सेवकोंऔर पशुओं को घर में हाँक दिया। 21 पर जिन्होंने यहोवा के वचन पर मन न लगाया उन्होंने अपके सेवकोंऔर पशुओं को मैदान में रहने दिया।। 22 तक यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा, कि सारे मिस्र देश के मनुष्योंपशुओं और खेतोंकी सारी उपज पर ओले गिरें। 23 तब मूसा ने अपक्की लाठी को आकाश की ओर उठाया; और यहोवा मेघ गरजाने और ओले बरसाने लगा, और आग पृय्वी तक आती रही। इस प्रकार यहोवा ने मिस्र देश पर ओले बरसाए। 24 जो ओले गिरते थे उनके साय आग भी मिली हुई यी, और वे ओले इतने भारी थे कि जब से मिस्र देश बसा या तब से मिस्र भर में ऐसे ओले कभी न गिरे थे। 25 इसलिथे मिस्र भर के खेतोंमें क्या मनुष्य, क्या पशु, जितने थे सब ओलोंसे मारे गए, और ओलोंसे खेत की सारी उपज नष्ट हो गई, और मैदान के सब वृझ टूट गए। 26 केवल गोशेन देश में जहां इस्राएली बसते थे ओले नहीं गिरे। 27 तब फिरौन ने मूसा और हारून को बुलवा भेजा और उन से कहा, कि इस बार मैं ने पाप किया है; यहोवा धर्मी है, और मैं और मेरी प्रजा अधर्मी हैं। 28 मेघोंका गरजना और ओलोंका बरसना तो बहुत हो गया; अब भविष्य में यहोवा से बिनती करो; तब मैं तुम लोगोंको जाने दूंगा, और तुम न रोके जाओगे। 29 मूसा ने उस से कहा, नगर से निकलते ही मैं यहोवा की ओर हाथ फैलाऊंगा, तब बादल का गरजना बन्द हो जाएगा, और ओले फिर न गिरेंगे, इस से तू जान लेगा कि पृय्वी यहोवा ही की है। 30 तौभी मैं जानता हूं, कि न तो तू और न तेरे कर्मचारी यहोवा परमेश्वर का भय मानेंगे। 31 सन और जव तो ओलोंसे मारे गए, क्योंकि जव की बालें निकल चुकी यीं और सन में फूल लगे हुए थे। 32 पर गेहूं और कठिया गेहूं जो बढ़े न थे, इस कारण वे मारे न गए। 33 जब मूसा ने फिरौन के पास से नगर के बाहर निकलकर यहोवा की ओर हाथ फैलाए, तब बादल का गरजना और ओलोंका बरसना बन्द हुआ, और फिर बहुत मेंह भूमि पर न पड़ा। 34 यह देखकर कि मेंह और ओलोंऔर बादल का गरजना बन्द हो गया फिरौन ने अपके कर्मचारियोंसमेत फिर अपके मन को कठोर करके पाप किया। 35 और फिरौन का मन हठीला होता गया, और उस ने इस्राएलियोंको जाने न दिया; जैसा कि यहोवा ने मूसा के द्वारा कहलवाया या।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, फिरोन के पास जा; क्योंकि मैं ही ने उसके और उसके कर्मचारियोंके मन को इसलिथे कठोर कर दिया है, कि अपके चिन्ह उनके बीच में दिखलाऊं। 2 और तुम लोग अपके बेटोंऔर पोतोंसे इसका वर्णन करो कि यहोवा ने मिस्रियोंको कैसे ठट्ठोंमें उड़ाया और अपके क्या क्या चिन्ह उनके बीच प्रगट किए हैं; जिस से तुम यह जान लोगे कि मैं यहोवा हूं। 3 तब मूसा और हारून ने फिरौन के पास जाकर कहा, कि इब्रियोंका परमेश्वर यहोवा तुझ से इस प्रकार कहता है, कि तू कब तक मेरे साम्हने दीन होने से संकोच करता रहेगा ? मेरी प्रजा के लोगोंको जाने दे, कि वे मेरी उपासना करें। 4 यदि तू मेरी प्रजा को जाने न दे तो सुन, कल मैं तेरे देश में टिड्डियां ले आऊंगा। 5 और वे धरती को ऐसा छा लेंगी, कि वह देख न पकेगी; और तुम्हारा जो कुछ ओलोंसे बच रहा है उसको वे चट कर जाएंगी, और तुम्हारे जितने वृझ मैदान में लगे हैं उनको भी वे चट कर जाएंगी, 6 और वे तेरे और तेरे सारे कर्मचारियों, निदान सारे मिस्रियोंके घरोंमें भर जाएंगी; इतनी टिड्डियां तेरे बापदादोंने वा उनके पुरखाओं ने जब से पृय्वी पर जन्मे तब से आज तक कभी न देखीं। और वह मुंह फेरकर फिरौन के पास से बाहर गया। 7 तब फिरौन के कर्मचारी उस से कहने लगे, वह जन कब तक हमारे लिथे फन्दा बना रहेगा ? उन मनुष्योंको जाने दे, कि वे अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना करें; क्या तू अब तक नहीं जानता, कि सारा मिस्र नाश हो गया है ? 8 तब मूसा और हारून फिरौन के पास फिर बुलवाए गए, और उस ने उन से कहा, चले जाओ, अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना करो; परन्तु वे जो जानेवाले हैं, कौन कौन हैं ? 9 मूसा ने कहा, हम तो बेटोंबेटियों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलोंसमेत वरन बच्चोंसे बूढ़ोंतक सब के सब जाएंगे, क्योंकि हमें यहोवा के लिथे पर्ब्ब करना है। 10 उस ने इस प्रकार उन से कहा, यहोवा तुम्हारे संग रहे जब कि मैं तुम्हें बच्चोंसमेत जाने देता हूं; देखो, तुम्हारे आगे को बुराई है। 11 नहीं, ऐसा नहीं होने पाएगा; तुम पुरूष ही जाकर यहोवा की उपासना करो, तुम यही तो चाहते थे। और वे फिरौन के सम्मुख से निकाल दिए गए।। 12 तब यहोवा ने मूसा से कहा, मिस्र देश के ऊपर अपना हाथ बढ़ा, कि टिड्डियां मिस्र देश पर चढ़के भूमि का जितना अन्न आदि ओलोंसे बचा है सब को चट कर जाएं। 13 और मूसा ने अपक्की लाट्ठी को मिस्र देश के ऊपर बढ़ाया, तब यहोवा ने दिन भर और रात भर देश पर पुरवाई बहाई; और जब भोर हुआ तब उस पुरवाई में टिड्डियां आईं। 14 और टिडि्डयोंने चढ़के मिस्र देश के सारे स्यानोंमे बसेरा किया, उनका दल बहुत भारी या, वरन न तो उनसे पहले ऐसी टिड्डियां आई यी, और न उनके पीछे ऐसी फिर आएंगी। 15 वे तो सारी धरती पर छा गई, यहां तक कि देश अन्धेरा हो गया, और उसका सारा अन्न आदि और वृझोंके सब फल, निदान जो कुछ ओलोंसे बचा या, सब को उन्होंने चट कर लिया; यहां तक कि मिस्र देश भर में न तो किसी वृझ पर कुछ हरियाली रह गई और न खेत में अनाज रह गया। 16 तब फिरौन ने फुर्ती से मूसा और हारून को बुलवाके कहा, मैं ने तो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का और तुम्हारा भी अपराध किया है। 17 इसलिथे अब की बार मेरा अपराध झमा करो, और अपके परमेश्वर यहोवा से बिनती करो, कि वह केवल मेरे ऊपर से इस मृत्यु को दूर करे। 18 तब मूसा ने फिरोन के पास से निकल कर यहोवा से बिनती की। 19 तब यहोवा ने बहुत प्रचण्ड पछुवा बहाकर टिड्डियोंको उड़ाकर लाल समुन्द्र में डाल दिया, और मिस्र के किसी स्यान में एक भी टिड्डी न रह गई। 20 तौभी यहोवा ने फिरौन के मन को कठोर कर दिया, जिस से उस ने इस्राएलियोंको जाने न दिया। 21 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ा कि मिस्र देश के ऊपर अन्धकार छा जाए, ऐसा अन्धकार कि टटोला जा सके। 22 तब मूसा ने अपना हाथ आकाश की ओर बढ़ाया, और सारे मिस्र देश में तीन दिन तक घोर अन्धकार छाया रहा। 23 तीन दिन तक न तो किसी ने किसी को देखा, और न कोई अपके स्यान से उठा; परन्तु सारे इस्राएलियोंके घरोंमें उजियाला रहा। 24 तब फिरौन ने मूसा को बुलवाकर कहा, तुम लोग जाओ, यहोवा की उपासना करो; अपके बालकोंको भी संग ले जाओ; केवल अपक्की भेड़-बकरी और गाय-बैल को छोड़ जाओ। 25 मूसा ने कहा, तुझ को हमारे हाथ मेलबलि और होमबलि के पशु भी देने पकेंगे, जिन्हें हम अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे चढ़ाएं। 26 इसलिथे हमारे पशु भी हमारे संग जाएंगे, उनका एक खुर तक न रह जाएगा, क्योंकि उन्हीं में से हम को अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना का सामान लेना होगा, और हम जब तक वहां न पहुंचें तब तक नहीं जानते कि क्या क्या लेकर यहोवा की उपासना करनी होगी। 27 पर यहोवा ने फिरौन का मन हठीला कर दिया, जिस से उस ने उन्हें जाने न दिया। 28 तब फिरौन ने उस से कहा, मेरे साम्हने से चला जा; और सचेत रह; मुझे अपना मुख फिर न दिखाना; क्योंकि जिस दिन तू मुझे मुंह दिखलाए उसी दिन तू मारा जाएगा। 29 मूसा ने कहा, कि तू ने ठीक कहा है; मैं तेरे मुंह को फिर कभी न देखूंगा।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, एक और विपत्ति मैं फिरौन और मिस्र देश पर डालता हूं, उसके पश्चात् वह तुम लोगोंको वहां से जाने देगा; और जब वह जाने देगा तब तुम सभोंको निश्चय निकाल देगा। 2 मेरी प्रजा को मेरी यह आज्ञा सुना, कि एक एक पुरूष अपके अपके पड़ोसी, और एक एक स्त्री अपक्की अपक्की पड़ोसिन से सोने चांदी के गहने मांग ले। 3 तब यहोवा ने मिस्रियोंको अपक्की प्रजा पर दयालु किया। और इससे अधिक वह पुरूष मूसा मिस्र देश में फिरौन के कर्मचारियोंऔर साधारण लोगोंकी दृष्टि में अति महान या।। 4 फिर मूसा ने कहा, यहोवा इस प्रकार कहता है, कि आधी रात के लगभग मैं मिस्र देश के बीच में होकर चलूंगा। 5 तब मिस्र में सिंहासन पर विराजने वाले फिरौन से लेकर चक्की पीसनेवाली दासी तक के पहिलौठे; वरन पशुओं तक के सब पहिलौठे मर जाएंगे। 6 और सारे मिस्र देश में बड़ा हाहाकार मचेगा, यहां तक कि उसके समान न तो कभी हुआ और न होगा। 7 पर इस्राएलियोंके विरूद्ध, क्या मनुष्य क्या पशु, किसी पर कोई कुत्ता भी न भोंकेगा; जिस से तुम जान लो कि मिस्रियोंऔर इस्राएलियोंमें मैं यहोवा अन्तर करता हूं। 8 तब तेरे थे सब कर्मचारी मेरे पास आ मुझे दण्डवत् करके यह कहेंगे, कि अपके सब अनुचरोंसमेत निकल जा। और उसके पश्चात् मैं निकल जाऊंगा। यह कह कर मूसा बड़े क्रोध में फिरौन के पास से निकल गया।। 9 यहोवा ने मूसा से कह दिया या, कि फिरौन तुम्हारी न सुनेगा; क्योंकि मेरी इच्छा है कि मिस्र देश में बहुत से चमत्कार करूं। 10 मूसा और हारून ने फिरौन के साम्हने थे सब चमत्कार किए; पर यहोवा ने फिरौन का मन और कठोर कर दिया, सो उसने इस्राएलियोंको अपके देश से जाने न दिया।।
1 फिर यहोवा ने मिस्र देश में मूसा और हारून से कहा, 2 कि यह महीना तुम लोगोंके लिथे आरम्भ का ठहरे; अर्यात् वर्ष का पहिला महीना यही ठहरे। 3 इस्राएल की सारी मण्डली से इस प्रकार कहो, कि इसी महीने के दसवें दिन को तुम अपके अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार, घराने पीछे एक एक मेम्ना ले रखो। 4 और यदि किसी के घराने में एक मेम्ने के खाने के लिथे मनुष्य कम हों, तो वह अपके सब से निकट रहनेवाले पड़ोसी के साय प्राणियोंकी गिनती के अनुसार एक मेम्ना ले रखे; और तुम हर एक के खाने के अनुसार मेम्ने का हिसाब करना। 5 तुम्हारा मेम्ना निर्दौष और पहिले वर्ष का नर हो, और उसे चाहे भेड़ोंमें से लेना चाहे बकरियोंमें से। 6 और इस महीने के चौदहवें दिन तक उसे रख छोड़ना, और उस दिन गोधूलि के समय इस्राएल की सारी मण्डली के लोग उसे बलि करें। 7 तब वे उसके लोहू में से कुछ लेकर जिन घरोंमें मेम्ने को खाएंगे उनके द्वार के दोनोंअलंगोंऔर चौखट के सिक्के पर लगाएं। 8 और वे उसके मांस को उसी रात आग में भूंजकर अखमीरी रोटी और कड़वे सागपात के साय खाएं। 9 उसको सिर, पैर, और अतडिय़ोंसमेत आग में भूंजकर खाना, कच्चा वा जल में कुछ भी पकाकर न खाना। 10 और उस में से कुछ बिहान तक न रहने देना, और यदि कुछ बिहान तक रह भी जाए, तो उसे आग में जला देना। 11 और उसके खाने की यह विधि है; कि कमर बान्धे, पांव में जूती पहिने, और हाथ में लाठी लिए हुए उसे फुर्ती से खाना; वह तो यहोवा का पर्ब्ब होगा। 12 क्योंकि उस रात को मैं मिस्र देश के बीच में से होकर जाऊंगा, और मिस्र देश के क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठोंको मारूंगा; और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूंगा; मैं तो यहोवा हूं। 13 और जिन घरोंमें तुम रहोगे उन पर वह लोहू तुम्हारे निमित्त चिन्ह ठहरेगा; अर्यात् मैं उस लोहू को देखकर तुम को छोड़ जाऊंगा, और जब मैं मिस्र देश के लोगोंको मारूंगा, तब वह विपत्ति तुम पर न पकेगी और तुम नाश न होगे। 14 और वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरेगा, और तुम उसको यहोवा के लिथे पर्ब्ब करके मानना; वह दिन तुम्हारी पीढिय़ोंमें सदा की विधि जानकर पर्ब्ब माना जाए। 15 सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, उन में से पहिले ही दिन अपके अपके घर में से खमीर उठा डालना, वरन जो पहिले दिन से लेकर सातवें दिन तक कोई खमीरी वस्तु खाए, वह प्राणी इस्राएलियोंमें से नाश किया जाए। 16 और पहिले दिन एक पवित्र सभा, और सातवें दिन भी एक पवित्र सभा करना; उन दोनोंदिनोंमे कोई काम न किया जाए; केवल जिस प्राणी का जो खाना हो उसके काम करने की आज्ञा है। 17 इसलिथे तुम बिना खमीर की रोटी का पर्ब्ब मानना, क्योंकि उसी दिन मानो मैं ने तुम को दल दल करके मिस्र देश से निकाला है; इस कारण वह दिन तुम्हारी पीढिय़ोंमें सदा की विधि जानकर माना जाए। 18 पहिले महीने के चौदहवें दिन की सांफ से लेकर इक्कीसवें दिन की सांफ तक तुम अखमीरी रोटी खाया करना। 19 सात दिन तक तुम्हारे घरोंमें कुछ भी खमीर न रहे, वरन जो कोई किसी खमीरी वस्तु को खाए, चाहे वह देशी हो चाहे परदेशी, वह प्राणी इस्राएलियोंकी मण्डली से नाश किया जाए। 20 कोई खमीरी वस्तु न खाना; अपके सब घरोंमें बिना खमीर की रोटी खाया करना।। 21 तब मूसा ने इस्राएल के सब पुरनियोंको बुलाकर कहा, तुम अपके अपके कुल के अनुसार एक एक मेम्ना अलग कर रखो, और फसह का पशु बलि करना। 22 और उसका लोहू जो तसले में होगा उस में जूफा का एक गुच्छा डुबाकर उसी तसले में के लोहू से द्वार के चौखट के सिक्के और दोनोंअलंगोंपर कुछ लगाना; और भोर तक तुम में से कोई घर से बाहर न निकले। 23 क्योंकि यहोवा देश के बीच होकर मिस्रियोंको मारता जाएगा; इसलिथे जहां जहां वह चौखट के सिक्के, और दोनोंअलंगोंपर उस लोहू को देखेगा, वहां वहां वह उस द्वार को छोड़ जाएगा, और नाश करनेवाले को तुम्हारे घरोंमें मारने के लिथे न जाने देगा। 24 फिर तुम इस विधि को अपके और अपके वंश के लिथे सदा की विधि जानकर माना करो। 25 जब तुम उस देश में जिसे यहोवा अपके कहने के अनुसार तुम को देगा प्रवेश करो, तब वह काम किया करना। 26 और जब तुम्हारे लड़केबाले तुम से पूछें, कि इस काम से तुम्हारा क्या मतलब है ? 27 तब तुम उनको यह उत्तर देना, कि यहोवा ने जो मिस्रियोंके मारने के समय मिस्र में रहने वाले हम इस्राएलियोंके घरोंको छोड़कर हमारे घरोंको बचाया, इसी कारण उसके फसह का यह बलिदान किया जाता है। तब लोगोंने सिर फुकाकर दण्डवत् की। 28 और इस्राएलियोंने जाकर, जो आज्ञा यहोवा ने मूसा और हारून को दी यी, उसी के अनुसार किया।। 29 और ऐसा हुआ कि आधी रात को यहोवा ने मिस्र देश में सिंहासन पर विराजनेवाले फिरौन से लेकर गड़हे में पके हुए बन्धुए तक सब के पहिलौठोंको, वरन पशुओं तक के सब पहिलौठोंको मार डाला। 30 और फिरौन रात ही को उठ बैठा, और उसके सब कर्मचारी, वरन सारे मिस्री उठे; और मिस्र में बड़ा हाहाकार मचा, क्योंकि एक भी ऐसा घर न या जिसमें कोई मरा न हो। 31 तब फिरौन ने रात ही रात में मूसा और हारून को बुलवाकर कहा, तुम इस्राएलियोंसमेत मेरी प्रजा के बीच से निकल जाओ; और अपके कहने के अनुसार जाकर यहोवा की उपासना करो। 32 अपके कहने के अनुसार अपक्की भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैलोंको साय ले जाओ; और मुझे आशीर्वाद दे जाओ। 33 और मिस्री जो कहते थे, कि हम तो सब मर मिटे हैं, उन्होंने इस्राएली लोगोंपर दबाव डालकर कहा, कि देश से फटपट निकल जाओ। 34 तब उन्होंने अपके गून्धे गुन्धाए आटे को बिना खमीर दिए ही कठौतियोंसमेत कपड़ोंमें बान्धके अपके अपके कन्धे पर डाल लिया। 35 और इस्राएलियोंने मूसा के कहने के अनुसार मिस्रियोंसे सोने चांदी के गहने और वस्त्र मांग लिथे। 36 और यहोवा ने मिस्रियोंको अपक्की प्रजा के लोगोंपर ऐसा दयालु किया, कि उन्होंने जो जो मांगा वह सब उनको दिया। इस प्रकार इस्राएलियोंने मिस्रियोंको लूट लिया।। 37 तब इस्राएली रामसेस से कूच करके सुक्कोत को चले, और बालबच्चोंको छोड़ वे कोई छ: लाख पुरूष प्यादे थे। 38 और उनके साय मिली जुली हुई एक भीड़ गई, और भेड़-बकरी, गाय-बैल, बहुत से पशु भी साय गए। 39 और जो गून्धा आटा वे मिस्र से साय ले गए उसकी उन्होंने बिना खमीर दिए रोटियां बनाई; क्योंकि वे मिस्र से ऐसे बरबस निकाले गए, कि उन्हें अवसर भी न मिला की मार्ग में खाने के लिथे कुछ पका सकें, इसी कारण वह गून्धा हुआ आटा बिना खमीर का या। 40 मिस्र में बसे हुए इस्राएलियोंको चार सौ तीस वर्ष बीत गए थे। 41 और उन चार सौ तीस वर्षोंके बीतने पर, ठीक उसी दिन, यहोवा की सारी सेना मिस्र देश से निकल गई। 42 यहोवा इस्राएलियोंको मिस्र देश से निकाल लाया, इस कारण वह रात उसके निमित्त मानने के अति योग्य है; यह यहोवा की वही रात है जिसका पीढ़ी पीढ़ी में मानना इस्राएलियोंके लिथे अति अवश्य है।। 43 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, पर्ब्ब की विधि यह है; कि कोई परदेशी उस में से न खाए; 44 पर जो किसी का मोल लिया हुआ दास हो, और तुम लोगोंने उसका खतना किया हो, वह तो उस में से खा सकेगा। 45 पर परदेशी और मजदूर उस में से न खाएं। 46 उसका खाना एक ही घर में हो; अर्यात् तुम उसके मांस में से कुछ घर से बाहर न ले जाना; और बलिपशु की कोई हड्डी न तोड़ना। 47 पर्ब्ब को मानना इस्राएल की सारी मण्डली का कर्तव्य कर्म है। 48 और यदि कोई परदेशी तुम लोगोंके संग रहकर यहोवा के लिथे पर्ब्ब को मानना चाहे, तो वह अपके यहां के सब पुरूषोंका खतना कराए, तब वह समीप आकर उसको माने; और वह देशी मनुष्य के तुल्य ठहरेगा। पर कोई खतनारहित पुरूष उस में से न खाने पाए। 49 उसकी व्यवस्या देशी और तुम्हारे बीच में रहनेवाले परदेशी दोनोंके लिथे एक ही हो। 50 यह आज्ञा जो यहोवा ने मूसा और हारून को दी उसके अनुसार सारे इस्राएलियोंने किया। 51 और ठीक उसी दिन यहोवा इस्राएलियोंको मिस्र देश से दल दल करके निकाल ले गया।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 कि क्या मनुष्य के क्या पशु के, इस्राएलियोंमें जितने अपक्की अपक्की मां के जेठे हों, उन्हें मेरे लिथे पवित्र मानना; वह तो मेरा ही है।। 3 फिर मूसा ने लोगोंसे कहा, इस दिन को स्मरण रखो, जिस में तुम लोग दासत्व के घर, अर्यात् मिस्र से निकल आए हो; यहोवा तो तुम को वहां से अपके हाथ के बल से निकाल लाया; इस में खमीरी रोटी न खाई जाए। 4 आबीब के महीने में आज के दिन तुम निकले हो। 5 इसलिथे जब यहोवा तुम को कनानी, हित्ती, एमोरी, हिब्बी, और यबूसी लोगोंके देश में पहुचाएगा, जिसे देने की उस ने तुम्हारे पुरखाओं से शपय खाई यी, और जिस में दूध और मधु की धारा बहती है, तब तुम इसी महीने में पर्ब्ब करना। 6 सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, और सातवें दिन यहोवा के लिथे पर्ब्ब मानना। 7 इन सातोंदिनोंमें अखमीरी रोटी खाई जाए; वरन तुम्हारे देश भर में न खमीरी रोटी, न खमीर तुम्हारे पास देखने में आए। 8 और उस दिन तुम अपके अपके पुत्रोंको यह कहके समझा देना, कि यह तो हम उसी काम के कारण करते हैं, जो यहोवा ने हमारे मिस्र से निकल आने के समय हमारे लिथे किया या। 9 फिर यह तुम्हारे लिथे तुम्हारे हाथ में एक चिन्ह होगा, और तुम्हारी आंखोंके साम्हने स्मरण करानेवाली वस्तु ठहरे; जिस से यहोवा की व्यवस्या तुम्हारे मुंह पर रहे : क्योंकि यहोवा ने तुम्हें अपके बलवन्त हाथोंसे मिस्र से निकाला है। 10 इस कारण तुम इस विधि को प्रति वर्ष नियत समय पर माना करना।। 11 फिर जब यहोवा उस शपय के अनुसार, जो उस ने तुम्हारे पुरखाओं से और तुम से भी खाई है, तुम्हे कनानियोंके देश में पहुंचाकर उसको तुम्हें दे देगा, 12 तब तुम में से जितने अपक्की अपक्की मां के जेठे होंउनको, और तुम्हारे पशुओं में जो ऐसे होंउनको भी यहोवा के लिथे अर्पण करना; सब नर बच्चे तो यहोवा के हैं। 13 और गदही के हर एक पहिलौठे की सन्ती मेम्ना देकर उसको छुड़ा लेना, और यदि तुम उसे छुड़ाना न चाहो तो उसका गला तोड़ देना। पर अपके सब पहिलौठे पुत्रोंको बदला देकर छुड़ा लेना। 14 और आगे के दिनोंमें जब तुम्हारे पुत्र तुम से पूछें, कि यह क्या है ? तो उन से कहना, कि यहोवा हम लोगोंको दासत्व के घर से, अर्यात् मिस्र देश से अपके हाथोंके बल से निकाल लाया है। 15 उस समय जब फिरौन ने कठोर होकर हम को जाने देना न चाहा, तब यहोवा ने मिस्र देश में मनुष्य से लेकर पशु तक सब के पहिलौठोंको मार डाला। इसी कारण पशुओं में से तो जितने अपक्की अपक्की मां के पहिलौठे नर हैं, उन्हें हम यहोवा के लिथे बलि करते हैं; पर अपके सब जेठे पुत्रोंको हम बदला देकर छुड़ा लेते हैं। 16 और यह तुम्हारे हाथोंपर एक चिन्ह सा और तुम्हारी भौहोंके बीच टीका सा ठहरे; क्योंकि यहोवा हम लोगोंको मिस्र से अपके हाथोंके बल से निकाल लाया है।। 17 जब फिरौन ने लोगोंको जाने की आज्ञा दे दी, तब यद्यपि पलिश्तियोंके देश में होकर जो मार्ग जाता है वह छोटा या; तौभी परमेश्वर यह सोच कर उनको उस मार्ग से नहीं ले गया, कि कहीं ऐसा न हो कि जब थे लोग लड़ाई देखें तब पछताकर मिस्र को लौट आएं। 18 इसलिथे परमेश्वर उनको चक्कर खिलाकर लाल समुद्र के जंगल के मार्ग से ले चला। और इस्राएली पांति बान्धे हुए मिस्र से निकल गए। 19 और मूसा यूसुफ की हड्डियोंको साय लेता गया; क्योंकि यूसुफ ने इस्राएलियोंसे यह कहके, कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विषय की दृढ़ शपय खिलाई यी, कि वे उसकी हड्डियोंको अपके साय यहां से ले जाएंगे। 20 फिर उन्होंने सुक्कोत से कूच करके जंगल की छोर पर एताम में डेरा किया। 21 और यहोवा उन्हें दिन को मार्ग दिखाने के लिथे मेघ के खम्भे में, और रात को उजियाला देने के लिथे आग के खम्भे में होकर उनके आगे आगे चला करता या, जिससे वे रात और दिन दोनोंमें चल सकें। 22 उस ने न तो बादल के खम्भे को दिन में और न आग के खम्भे को रात में लोगोंके आगे से हटाया।।
1 यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्राएलियोंको आज्ञा दे, कि वे लौटकर मिगदोल और समुद्र के बीच पीहहीरोत के सम्मुख, बालसपोन के साम्हने अपके डेरे खड़े करें, उसी के साम्हने समुद्र के तट पर डेरे खड़े करें। 3 तब फिरौन इस्राएलियोंके विषय में सोचेगा, कि वे देश के उलफनोंमें बफे हैं और जंगल में घिर गए हैं। 4 तब मैं फिरौन के मन को कठोर कर दूंगा, और वह उनका पीछा करेगा, तब फिरौन और उसकी सारी सेना के द्वारा मेरी महिमा होगी; और मिस्री जान लेंगे कि मैं यहोवा हूं। और उन्होंने वैसा ही किया। 5 जब मिस्र के राजा को यह समाचार मिला कि वे लोग भाग गए, तब फिरौन और उसके कर्मचारियोंका मन उनके विरूद्ध पलट गया, और वे कहने लगे, हम ने यह क्या किया, कि इस्राएलियोंको अपक्की सेवकाई से छुटकारा देकर जाने दिया ? 6 तब उस ने अपना रय जुतवाया और अपक्की सेना को संग लिया। 7 उस ने छ: सौ अच्दे से अच्छे रय वरन मिस्र के सब रय लिए और उन सभोंपर सरदार बैठाए। 8 और यहोवा ने मिस्र के राजा फिरौन के मन को कठोर कर दिया। सो उस ने इस्राएलियोंका पीछा किया; परन्तु इस्राएली तो बेखटके निकले चले जाते थे। 9 पर फिरौन के सब घोड़ों, और रयों, और सवारोंसमेत मिस्री सेना ने उनका पीछा करके उन्हें, जो पीहहीरोत के पास, बालसपोन के साम्हने, समुद्र के तीर पर डेरे डाले पके थे, जा लिया।। 10 जब फिरौन निकट आया, तब इस्राएलियोंने आंखे उठाकर क्या देखा, कि मिस्री हमारा पीछा किए चले आ रहे हैं; और इस्राएली अत्यन्त डर गए, और चिल्लाकर यहोवा की दोहाई दी। 11 और वे मूसा से कहने लगे, क्या मिस्र में कबरें न यीं जो तू हम को वहां से मरने के लिथे जंगल में ले आया है ? तू ने हम से यह क्या किया, कि हम को मिस्र से निकाल लाया ? 12 क्या हम तुझ से मिस्र में यही बात न कहते रहे, कि हमें रहने दे कि हम मिस्रियोंकी सेवा करें ? हमारे लिथे जंगल में मरने से मिस्रियोंकि सेवा करनी अच्छी यी। 13 मूसा ने लोगोंसे कहा, डरो मत, खड़े खड़े वह उद्धार का काम देखो, जो यहोवा आज तुम्हारे लिथे करेगा; क्योंकि जिन मिस्रियोंको तुम आज देखते हो, उनको फिर कभी न देखोगे। 14 यहोवा आप ही तुम्हारे लिथे लड़ेगा, इसलिथे तुम चुपचाप रहो।। 15 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू क्योंमेरी दोहाई दे रहा है? इस्राएलियोंको आज्ञा दे कि यहां से कूच करें। 16 और तू अपक्की लाठी उठाकर अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, और वह दो भाग हो जाएगा; तब इस्राएली समुद्र के बीच होकर स्यल ही स्यल पर चले जाएंगे। 17 और सुन, मैं आप मिस्रियोंके मन को कठोर करता हूं, और वे उनका पीछा करके समुद्र में घुस पकेंगे, तब फिरौन और उसकी सेना, और रयों, और सवारोंके द्वारा मेरी महिमा होगी, तब मिस्री जान लेंगे कि मैं यहोवा हूं। 18 और जब फिरौन, और उसके रयों, और सवारोंके द्वारा मेरी महिमा होगी, तब मिस्री जान लेंगे कि मैं यहोवा हूं। 19 तब परमेश्वर का दूत जो इस्राएली सेना के आगे आगे चला करता या जाकर उनके पीछे हो गया; और बादल का खम्भा उनके आगे से हटकर उनके पीछे जा ठहरा। 20 इस प्रकार वह मिस्रियोंकी सेना और इस्राएलियोंकी सेना के बीच में आ गया; और बादल और अन्धकार तो हुआ, तौभी उससे रात को उन्हें प्रकाश मिलता रहा; और वे रात भर एक दूसरे के पास न आए। 21 और मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया; और यहोवा ने रात भर प्रचण्ड पुरवाई चलाई, और समुद्र को दो भाग करके जल ऐसा हटा दिया, जिससे कि उसके बीच सूखी भूमि हो गई। 22 तब इस्राएली समुद्र के बीच स्यल ही स्यल पर होकर चले, और जल उनकी दाहिनी और बाईं ओर दीवार का काम देता या। 23 तब मिस्री, अर्यात् फिरौन के सब घोड़े, रय, और सवार उनका पीछा किए हुए समुद्र के बीच में चले गए। 24 और रात के पिछले पहर में यहोवा ने बादल और आग के खम्भे में से मिस्रियोंकी सेना पर दृष्टि करके उन्हें घबरा दिया। 25 और उस ने उनके रयोंके पहियोंको निकाल डाला, जिससे उनका चलना कठिन हो गया; तब मिस्री आपस में कहने लगे, आओ, हम इस्राएलियोंके साम्हने से भागें; क्योंकि यहोवा उनकी ओर से मिस्रियोंके विरूद्ध युद्ध कर रहा है।। 26 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ा, कि जल मिस्रियों, और उनके रयों, और सवारोंपर फिर बहने लगे। 27 तब मूसा ने अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया, और भोर होते होते क्या हुआ, कि समुद्र फिर ज्योंका त्योंअपके बल पर आ गया; और मिस्री उलटे भागने लगे, परन्तु यहोवा ने उनको समुद्र के बीच ही में फटक दिया। 28 और जल के पलटने से, जितने रय और सवार इस्राएलियोंके पीछे समुद्र में आए थे, सो सब वरन फिरौन की सारी सेना उस में डूब गई, और उस में से एक भी न बचा। 29 परन्तु इस्राएली समुद्र के बीच स्यल ही स्यल पर होकर चले गए, और जल उनकी दाहिनी और बाईं दोनोंओर दीवार का काम देता या। 30 और यहोवा ने उस दिन इस्राएलियोंको मिस्रियोंके वश से इस प्रकार छुड़ाया; और इस्राएलियोंने मिस्रियोंको समुद्र के तट पर मरे पके हुए देखा। 31 और यहोवा ने मिस्रियोंपर जो अपना पराक्रम दिखलाता या, उसको देखकर इस्राएलियोंने यहोवा का भय माना और यहोवा की और उसके दास मूसा की भी प्रतीति की।।
1 तब मूसा और इस्राएलियोंने यहोवा के लिथे यह गीत गाया। उन्होंने कहा, मैं यहोवा का गीत गाऊंगा, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; घोड़ोंसमेत सवारोंको उस ने समुद्र में डाल दिया है।। 2 यहोवा मेरा बल और भजन का विषय है, और वही मेरा उद्धार भी ठहरा है; मेरा ईश्वर वही है, मैं उसी की स्तुति करूंगा, (मैं उसके लिथे निवासस्यान बनाऊंगा ), मेरे पूर्वजोंका परमेश्वर वही है, मैं उसको सराहूंगा।। 3 यहोवा योद्धा है; उसका नाम यहोवा है।। 4 फिरौन के रयोंऔर सेना को उस ने समुद्र में डाल दिया; और उसके उत्तम से उत्तम रयी लाल समुद्र में डूब गए।। 5 गहिरे जल ने उन्हें ढांप लिया; वे पत्यर की नाईं गहिरे स्यानोंमें डूब गए।। 6 हे यहोवा, तेरा दहिना हाथ शक्ति में महाप्रतापी हुआ हे यहोवा, तेरा दहिना हाथ शत्रु को चकनाचूर कर देता है।। 7 और तू अपके विरोधियोंको अपके महाप्रताप से गिरा देता है; तू अपना कोप भड़काता, और वे भूसे की नाईं भस्म हो जाते हैं।। 8 और तेरे नयनोंकी सांस से जल एकत्र हो गया, धाराएं ढेर की नाईं यम गईं; समुद्र के मध्य में गहिरा जल जम गया।। 9 शत्रु ने कहा या, मैं पीछा करूंगा, मैं जा पकडूंगा, मैं लूट के माल को बांट लूंगा, उन से मेरा जी भर जाएगा। मै अपक्की तलवार खींचते ही अपके हाथ से उनको नाश कर डालूंगा।। 10 तू ने अपके श्वास का पवन चलाया, तब समुद्र ने उनको ढांप लिया; वे महाजलराशि में सीसे की नाई डूब गए।। 11 हे यहोवा, देवताओं में तेरे तुल्य कौन है? तू तो पवित्रता के कारण महाप्रतापी, और अपक्की स्तुति करने वालोंके भय के योग्य, और आश्चर्य कर्म का कर्त्ता है।। 12 तू ने अपना दहिना हाथ बढ़ाया, और पृय्वी ने उनको निगल लिया है।। 13 अपक्की करूणा से तू ने अपक्की छुड़ाई हुई प्रजा की अगुवाई की है, अपके बल से तू उसे अपके पवित्र निवासस्यान को ले चला है।। 14 देश देश के लोग सुनकर कांप उठेंगे; पलिश्तियोंके प्राण के लाले पड़ जाएंगे।। 15 एदोम के अधिपति व्याकुल होंगे; मोआब के पहलवान यरयरा उठेंगे; सब कनान निवासियोंके मन पिघल जाएंगें।। 16 उन में डर और घबराहट समा जाएगा; तेरी बांह के प्रताप से वे पत्यर की नाई अबोल होंगे, जब तक, हे यहोवा, तेरी प्रजा के लोग निकल न जाएं, जब तक तेरी प्रजा के लोग जिनको तू ने मोल लिया है पार न निकल जाएं।। 17 तू उन्हें पहुचाकर अपके निज भागवाले पहाड़ पर बसाएगा, यह वही स्यान है, हे यहोवा जिसे तू ने अपके निवास के लिथे बनाया, और वही पवित्रस्यान है जिसे, हे प्रभु, तू ने आप स्यिर किया है।। 18 यहोवा सदा सर्वदा राज्य करता रहेगा।। 19 यह गीत गाने का कारण यह है, कि फिरौन के घोड़े रयोंऔर सवारोंसमेत समुद्र के बीच में चले गए, और यहोवा उनके ऊपर समुद्र का जल लौटा ले आया; परन्तु इस्राएली समुद्र के बीच स्यल ही स्यल पर होकर चले गए। 20 और हारून की बहिन मरियम नाम नबिया ने हाथ में डफ लिया; और सब स्त्रियां डफ लिए नाचक्की हुई उसके पीछे हो लीं। 21 और मरियम उनके साय यह टेक गाती गई कि :- यहोवा का गीत गाओ, क्योंकि वह महाप्रतापी ठहरा है; घोड़ोंसमेत सवारोंको उस ने समुद्र में डाल दिया है।। 22 तब मूसा इस्राएलियोंको लाल समुद्र से आगे ले गया, और वे शूर नाम जंगल में आए; और जंगल में जाते हुए तीन दिन तक पानी का सोता न मिला। 23 फिर मारा नाम एक स्यान पर पहुंचे, वहां का पानी खारा या, उसे वे न पी सके; इस कारण उस स्यान का नाम मारा पड़ा। 24 तब वे यह कहकर मूसा के विरूद्ध बकफक करने लगे, कि हम क्या पीएं ? 25 तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने उसे एक पौधा बतला दिया, जिसे जब उस ने पानी में डाला, तब वह पानी मीठा हो गया। वहीं यहोवा ने उनके लिथे एक विधि और नियम बनाया, और वहीं उस ने यह कहकर उनकी पक्कीझा की, 26 कि यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा का वचन तन मन से सुने, और जो उसकी दृष्टि में ठीक है वही करे, और उसकी सब विधियोंको माने, तो जितने रोग मैं ने मिस्रियोंपर भेजा है उन में से एक भी तुझ पर न भेजूंगा; क्योंकि मैं तुम्हारा चंगा करनेवाला यहोवा हूं।। 27 तब वे एलीम को आए, जहां पानी के बारह सोते और सत्तर खजूर के पेड़ थे; और वहां उन्होंने जल के पास डेरे खड़े किए।।
1 फिर एलीम से कूच करके इस्राएलियोंकी सारी मण्डली, मिस्र देश से निकलने के महीने के दूसरे महीने के पंद्रहवे दिन को, सीन नाम जंगल में, जो एलीम और सीनै पर्वत के बीच में है, आ पहुंची। 2 जंगल में इस्राएलियोंकी सारी मण्डली मूसा और हारून के विरूद्ध बकफक करने लगी। 3 और इस्राएली उन से कहने लगे, कि जब हम मिस्र देश में मांस की हांडियोंके पास बैठकर मनमाना भोजन खाते थे, तब यदि हम यहोवा के हाथ से मार डाले भी जाते तो उत्तम वही या; पर तुम हम को इस जंगल में इसलिथे निकाल ले आए हो कि इस सारे समाज को भूखोंमार डालो। 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, देखो, मैं तुम लोगोंके लिथे आकाश से भोजन वस्तु बरसाऊंगा; और थे लोग प्रतिदिन बाहर जाकर प्रतिदिन का भोजन इकट्ठा करेंगे, इस से मैं उनकी पक्कीझा करूंगा, कि थे मेरी व्यवस्या पर चलेंगे कि नहीं। 5 और ऐसा होगा कि छठवें दिन वह भोजन और दिनोंसे दूना होगा, इसलिथे जो कुछ वे उस दिन बटोरें उसे तैयार कर रखें। 6 तब मूसा और हारून ने सारे इस्राएलियोंसे कहा, सांफ को तुम जान लोगे कि जो तुम को मिस्र देश से निकाल ले आया है वह यहोवा है। 7 और भोर को तुम्हें यहोवा का तेज देख पकेगा, क्योंकि तुम जो यहोवा पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं, कि तुम हम पर बुड़बुड़ाते हो ? 8 फिर मूसा ने कहा, यह तब होगा जब यहोवा सांफ को तुम्हें खाने के लिथे मांस और भोर को रोटी मनमाने देगा; क्योंकि तुम जो उस पर बुड़बुड़ाते हो उसे वह सुनता है। और हम क्या हैं ? तुम्हारा बुड़बुड़ाना हम पर नहीं यहोवा ही पर होता है। 9 फिर मूसा ने हारून से कहा, इस्राएलियोंकी सारी मण्डली को आज्ञा दे, कि यहोवा के साम्हने वरन उसके समीप आवे, क्योंकि उस ने उनका बुड़बुड़ाना सुना है। 10 और ऐसा हुआ कि जब हारून इस्राएलियोंकी सारी मण्डली से ऐसी ही बातें कर रहा या, कि उन्होंने जंगल की ओर दृष्टि करके देखा, और उनको यहोवा का तेज बादल में दिखलाई दिया। 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 12 इस्राएलियोंका बुड़बुड़ाना मैं ने सुना है; उन से कह दे, कि गोधूलि के समय तुम मांस खाओगे और भोर को तुम रोटी से तृप्त हो जाओगे; और तुम यह जान लोगे कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 13 और ऐसा हुआ कि सांफ को बटेरें आकर सारी छावनी पर बैठ गईं; और भोर को छावनी के चारोंओर ओस पक्की। 14 और जब ओस सूख गई तो वे क्या देखते हैं, कि जंगल की भूमि पर छोटे छोटे छिलके छोटाई में पाले के किनकोंके समान पके हैं। 15 यह देखकर इस्राएली, जो न जानते थे कि यह क्या वस्तु है, सो आपस में कहने लगे यह तो मन्ना है। तब मूसा ने उन से कहा, यह तो वही भोजन वस्तु है जिसे यहोवा तुम्हें खाने के लिथे देता है। 16 जो आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है, कि तुम उस में से अपके अपके खाने के योग्य बटोरा करना, अर्यात् अपके अपके प्राणियोंकी गिनती के अनुसार, प्रति मनुष्य के पीछे एक एक ओमेर बटोरना; जिसके डेरे में जितने होंवह उन्हीं भर के लिथे बटोरा करे। 17 और इस्राएलियोंने वैसा ही किया; और किसी ने अधिक, और किसी ने योड़ा बटोर लिया। 18 और जब उन्होंने उसको ओमेर से नापा, तब जिसके पास अधिक या उसके कुछ अधिक न रह गया, ओर जिसके पास योड़ा या उसको कुछ घटी न हुई; क्योंकि एक एक मनुष्य ने अपके खाने के योग्य ही बटोर लिया या। 19 फिर मूसा ने उन से कहा, कोई इस में से कुछ बिहान तक न रख छोड़े। 20 तौभी उन्होंने मूसा की बात न मानी; इसलिथे जब किसी किसी मनुष्य ने उस में से कुछ बिहान तक रख छोड़ा, तो उस में कीड़े पड़ गए और वह बसाने लगा; तब मूसा उन पर क्रोधित हुआ। 21 और वे भोर को प्रतिदिन अपके अपके खाने के योग्य बटोर लेते थे, ओर जब धूप कड़ी होती यी, तब वह गल जाता या। 22 और ऐसा हुआ कि छठवें दिन उन्होंने दूना, अर्यात् प्रति मनुष्य के पीछे दो दो ओमेर बटोर लिया, और मण्डली के सब प्रधानोंने आकर मूसा को बता दिया। 23 उस ने उन से कहा, यह तो वही बात है जो यहोवा ने कही, क्यांेकि कल परमविश्रम, अर्यात् यहोवा के लिथे पवित्र विश्रम होगा; इसलिथे तुम्हें जो तन्दूर में पकाना हो उसे पकाओ, और जो सिफाना हो उसे सिफाओ, और इस में से जितना बचे उसे बिहान के लिथे रख छोड़ो। 24 जब उन्होंने उसको मूसा की इस आज्ञा के अनुसार बिहान तक रख छोड़ा, तब न तो वह बसाया, और न उस में कीड़े पके। 25 तब मूसा ने कहा, आज उसी को खाओ, क्योंकि आज यहोवा का विश्रमदिन है; इसलिथे आज तुम को मैदान में न मिलेगा। 26 छ: दिन तो तुम उसे बटोरा करोगे; परन्तु सातवां दिन तो विश्रम का दिन है, उस में वह न मिलेगा। 27 तौभी लोगोंमें से कोई कोई सातवें दिन भी बटोरने के लिथे बाहर गए, परन्तु उनको कुछ न मिला। 28 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तुम लोग मेरी आज्ञाओं और व्यवस्या को कब तक नहीं मानोगे ? 29 देखो, यहोवा ने जो तुम को विश्रम का दिन दिया है, इसी कारण वह छठवें दिन को दो दिन का भोजन तुम्हें देता है; इसलिथे तुम अपके अपके यहां बैठे रहना, सातवें दिन कोई अपके स्यान से बाहर न जाना। 30 लोगोंने सातवें दिन विश्रम किया। 31 और इस्राएल के घरानेवालोंने उस वस्तु का नाम मन्ना रखा; और वह धनिया के समान श्वेत या, और उसका स्वाद मधु के बने हुए पुए का सा या। 32 फिर मूसा ने कहा, यहोवा ने जो आज्ञा दी वह यह है, कि इस में से ओमेर भर अपके वंश की पीढ़ी पीढ़ी के लिथे रख छोड़ो, जिससे वे जानें कि यहोवा हमको मिस्र देश से निकालकर जंगल में कैसी रोटी खिलाता या। 33 तब मूसा ने हारून से कहा, एक पात्र लेकर उस में ओमेर भर लेकर उसे यहोवा के आगे धर दे, कि वह तुम्हारी पीढिय़ोंके लिथे रखा रहे। 34 जैसी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी, उसी के अनुसार हारून ने उसको साझी के सन्दूक के आगे धर दिया, कि वह वहीं रखा रहे। 35 इस्राएली जब तक बसे हुए देश में न पहुंचे तब तक, अर्यात् चालीस वर्ष तक मन्ना को खाते रहे; वे जब तक कनान देश के सिवाने पर नहीं पहुंचे तब तक मन्ना को खाते रहे। 36 एक ओमेर तो एपा का दसवां भाग है।
1 फिर इस्राएलियोंकी सारी मण्डली सीन नाम जंगल से निकल चक्की, और यहोवा के आज्ञानुसार कूच करके रपीदीम में अपके डेरे खड़े किए; और वहां उन लोगोंको पीने का पानी न मिला। 2 इसलिथे वे मूसा से वादविवाद करके कहने लगे, कि हमें पीने का पानी दे। मूसा ने उन से कहा, तुम मुझ से क्योंवादविवाद करते हो? और यहोवा की पक्कीझा क्योंकरते हो? 3 फिर वहां लोगोंको पानी की प्यास लगी तब वे यह कहकर मूसा पर बुड़बुड़ाने लगे, कि तू हमें लड़केबालोंऔर पशुओं समेत प्यासोंमार डालने के लिथे मिस्र से क्योंले आया है ? 4 तब मूसा ने यहोवा की दोहाई दी, और कहा, इन लोगोंसे मैं क्या करूं? थे सब मुझे पत्यरवाह करने को तैयार हैं। 5 यहोवा ने मूसा से कहा, इस्राएल के वृद्ध लोगोंमें से कुछ को अपके साय ले ले; और जिस लाठी से तू ने नील नदी पर मारा या, उसे अपके हाथ में लेकर लोगोंके आगे बढ़ चल। 6 देख मैं तेरे आगे चलकर होरेब पहाड़ की एक चट्टान पर खड़ा रहूंगा; और तू उस चट्टान पर मारना, तब उस में से पानी निकलेगा जिससे थे लोग पीएं। तब मूसा ने इस्राएल के वृद्ध लोगोंके देखते वैसा ही किया। 7 और मूसा ने उस स्यान का नाम मस्सा और मरीबा रखा, कयोंकि इस्राएलियोंने वहां वादविवाद किया या, और यहोवा की पक्कीझा यह कहकर की, कि क्या यहोवा हमारे बीच है वा नहीं ? 8 तब अमालेकी आकर रपीदीम में इस्राएलियोंसे लड़ने लगे। 9 तब मूसा ने यहोशू से कहा, हमारे लिथे कई एक पुरूषोंको चुनकर छांट ले, ओर बाहर जाकर अमालेकियोंसे लड़; और मैं कल परमेश्वर की लाठी हाथ में लिथे हुए पहाड़ी की चोटी पर खड़ा रहूंगा। 10 मूसा की इस आज्ञा के अनुसार यहोशू अमालेकियोंसे लड़ने लगा; और मूसा, हारून, और हूर पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गए। 11 और जब तक मूसा अपना हाथ उठाए रहता या तब तक तो इस्राएल प्रबल होता या; परन्तु जब जब वह उसे नीचे करता तब तब अमालेक प्रबल होता या। 12 और जब मूसा के हाथ भर गए, तब उन्होंने एक पत्यर लेकर मूसा के नीचे रख दिया, और वह उस पर बैठ गया, और हारून और हूर एक एक अलंग में उसके हाथोंको सम्भाले रहें; और उसके हाथ सूर्यास्त तक स्यिर रहे। 13 और यहोशू ने अनुचरोंसमेत अमालेकियोंको तलवार के बल से हरा दिया। 14 तब यहोवा ने मूसा से कहा, स्मरणार्य इस बात को पुस्तक में लिख ले और यहोशू को सुना दे, कि मैं आकाश के नीचे से अमालेक का स्मरण भी पूरी रीति से मिटा डालूंगा। 15 तब मूसा ने एक वेदी बनाकर उसका नाम यहोवानिस्सी रखा ; 16 और कहा, यहोवा ने शपय खाई है, कि यहोवा अमालेकियोंसे पीढिय़ोंतक लड़ाई करता रहेगा।।
1 और मूसा के ससुर मिद्दान के याजक यित्रो ने यह सुना, कि परमेश्वर ने मूसा और अपक्की प्रजा इस्त्राएल के लिथे क्या क्या किया है, अर्यात् यह कि किस रीति से यहोवा इस्त्राएलियोंको मिस्र से निकाल ले आया। 2 तब मूसा के ससुर यित्रो मूसा की पत्नी सिप्पोरा को, जो पहिले नैहर भेज दी गई यी, 3 और उसके दोनोंबेटोंको भी ले आया; इन में से एक का नाम मूसा ने यह कहकर गेर्शोम रखा या, कि मै अन्य देश में परदेशी हुआ हूं। 4 और दूसरे का नाम उस ने यह कहकर एलीएजेर रखा, कि मेरे पिता के परमेश्वर ने मेरा सहाथक होकर मुझे फिरौन की तलवार से बचाया। 5 मूसा की पत्नी और पुत्रोंको उसका ससुर यित्रो संग लिए मूसा के पास जंगल के उस स्थान में आया, जहां परमेश्वर के पर्वत के पास उसका डेरा पड़ा या। 6 और आकर उस ने मूसा के पास यह कहला भेजा, कि मैं तेरा ससुर यित्रो हूं, और दोनो बेटोंसमेत तेरी पत्नी को तेरे पास ले आया हूं। 7 तब मूसा अपके ससुर से भेंट करने के लिथे निकला, और उसको दण्डवत् करके चूमा; और वे परस्पर कुशल झेम पूछते हुए डेरे पर आ गए। 8 वहां मूसा ने अपके ससुर से वर्णन किया, कि यहोवा ने इस्त्राएलियोंके निमित्त फिरौन और मिस्रियोंसे क्या क्या किया, और इस्त्राएलियोंने मार्ग में क्या क्या कष्ट उठाया, फिर यहोवा उन्हें कैसे कैसे छुड़ाता आया है। 9 तब यित्रो ने उस समस्त भलाई के कारण जो यहोवा ने इस्त्राएलियोंके साय की यी, कि उन्हें मिस्रियोंके वश से छुड़ाया या, मग्न होकर कहा, 10 धन्य है यहोवा, जिस ने तुम को फिरौन और मिस्रियोंके वश से छुड़ाया, जिस ने तुम लोगोंको मिस्रियोंकी मुट्ठी में से छुड़ाया है। 11 अब मैं ने जान लिया है कि यहोवा सब देवताओं से बड़ा है; वरन उस विषय में भी जिस में उन्होंने इस्त्राएलियोंसे अभिमान किया या। 12 तब मूसा के ससुर यित्रो ने परमेश्वर के लिथे होमबलि और मेलबलि चढ़ाए, और हारून इस्त्राएलियोंके सब पुरनियोंसमेत मूसा के ससुर यित्रो के संग परमेश्वर के आगे भोजन करने को आया। 13 दूसरे दिन मूसा लोगोंका न्याय करने को बैठा, और भोर से सांफ तक लोग मूसा के आसपास खड़े रहे। 14 यह देखकर कि मूसा लोगोंके लिथे क्या क्या करता है, उसके ससुर ने कहा, यह क्या काम है जो तू लोगोंके लिथे करता है? क्या कारण है कि तू अकेला बैठा रहता है, और लोग भोर से सांफ तक तेरे आसपास खड़े रहते हैं? 15 मूसा ने अपके ससुर से कहा, इसका कारण यह है कि लोग मेरे पास परमेश्वर से पूछने आते है। 16 जब जब उनका कोई मुकद्दमा होता है तब तब वे मेरे पास आते हैं और मैं उनके बीच न्याय करता, और परमेश्वर की विधि और व्यवस्या उन्हें जताता हूं। 17 मूसा के ससुर ने उस से कहा, जो काम तू करता है वह अच्छा नहीं। 18 और इस से तू क्या, वरन थे लोग भी जो तेरे संग हैं निश्चय हार जाएंगे, क्योंकि यह काम तेरे लिथे बहुत भारी है; तू इसे अकेला नहीं कर सकता। 19 इसलिथे अब मेरी सुन ले, मैं तुझ को सम्मति देता हूं, और परमेश्वर तेरे संग रहे। तू तो इन लोगोंके लिथे परमेश्वर के सम्मुख जाया कर, और इनके मुकद्दमोंको परमेश्वर के पास तू पहुंचा दिया कर। 20 इन्हें विधि और व्यवस्या प्रगट कर करके, जिस मार्ग पर इन्हें चलना, और जो जो काम इन्हें करना हो, वह इनको जता दिया कर। 21 फिर तू इन सब लोगोंमें से ऐसे पुरूषोंको छांट ले, जो गुणी, और परमेश्वर का भय मानने वाले, सच्चे, और अन्याय के लाभ से घृणा करने वाले हों; और उनको हजारफार, सौ-सौ, पचास-पचास, और दस-दस मनुष्योंपर प्रधान नियुक्त कर दे। 22 और वे सब समय इन लोगोंका न्याय किया करें; और सब बड़े बड़े मुकद्दमोंको तो तेरे पास ले आया करें, और छोटे छोटे मुकद्दमोंका न्याय आप ही किया करें; तब तेरा बोफ हलका होगा, क्योंकि इस बोफ को वे भी तेरे साय उठाएंगे। 23 यदि तू यह उपाय करे, और परमेश्वर तुझ को ऐसी आज्ञा दे, तो तू ठहर सकेगा, और थे सब लोग अपके स्यान को कुशल से पहुंच सकेंगें। 24 अपके ससुर की यह बात मान कर मूसा ने उसके सब वचनोंके अनुसार किया। 25 सो उस ने सब इस्त्राएलियोंमें से गुणी-गुणी पुरूष चुनकर उन्हें हजारफार, सौ-सौ, पचास-पचास, दस-दस, लोगोंके ऊपर प्रधान ठहराया। 26 और वे सब लोगोंका न्याय करने लगे; जो मुकद्दमा कठिन होता उसे तो वे मूसा के पास ले आते थे, और सब छोटे मुकद्दमोंका न्याय वे आप ही किया करते थे। 27 और मूसा ने अपके ससुर को विदा किया, और उस ने अपके देश का मार्ग लिया।।
1 इस्त्राएलियोंको मिस्र देश से निकले हुए जिस दिन तीन महीने बीत चुके, उसी दिन वे सीनै के जंगल में आए। 2 और जब वे रपीदीम से कूच करके सीनै के जंगल में आए, तब उन्होंने जंगल में डेरे खड़े किए; और वहीं पर्वत के आगे इस्त्राएलियोंने छावनी डाली। 3 तब मूसा पर्वत पर परमेश्वर के पास चढ़ गया, और यहोवा ने पर्वत पर से उसको पुकारकर कहा, याकूब के घराने से ऐसा कह, और इस्त्राएलियोंको मेरा यह वचन सुना, 4 कि तुम ने देखा है कि मै ने मिस्रियोंसे क्या क्या किया; तुम को मानो उकाब पक्की के पंखोंपर चढ़ाकर अपके पास ले आया हूं। 5 इसलिथे अब यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा का पालन करोगे, तो सब लोगोंमें से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृय्वी तो मेरी है। 6 और तुम मेरी दृष्टि में याजकोंका राज्य और पवित्र जाति ठहरोगे। जो बातें तुझे इस्त्राएलियोंसे कहनी हैं वे थे ही है। 7 तब मूसा ने आकर लोगोंके पुरनियोंको बुलवाया, और थे सब बातें, जिनके कहने की आज्ञा यहोवा ने उसे दी यी, उनको समझा दीं। 8 और सब लोग मिलकर बोल उठे, जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे। लोगोंकी यह बातें मूसा ने यहोवा को सुनाईं। 9 तब यहोवा ने मूसा से कहा, सुन, मैं बादल के अंधिक्कारने में होकर तेरे पास आता हूं, इसलिथे कि जब मैं तुझ से बातें करूं तब वे लोग सुनें, और सदा तेरी प्रतीति करें। और मूसा ने यहोवा से लोगोंकी बातोंका वर्णन किया। 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, लोगोंके पास जा और उन्हें आज और कल पवित्र करना, और वे अपके वस्त्र धो लें, 11 और वे तीसरे दिन तक तैयार हो रहें; क्योंकि तीसरे दिन यहोवा सब लोगोंके देखते सीनै पर्वत पर उतर आएगा। 12 और तू लोगोंके लिथे चारोंओर बाड़ा बान्ध देना, और उन से कहना, कि तुम सचेत रहोंकि पर्वत पर न चढ़ो और उसके सिवाने को भी न छूओ; और जो कोई पहाड़ को छूए वह निश्चय मार डाला जाए। 13 उसको कोई हाथ से तो न छूए, परन्तु वह निश्चय पत्यरवाह किया जाए, वा तीर से छेदा जाए; चाहे पशु हो चाहे मनुष्य, वह जीवित न बचे। जब महाशब्द वाले नरसिंगे का शब्द देर तक सुनाई दे, तब लोग पर्वत के पास आएं। 14 तब मूसा ने पर्वत पर से उतरकर लोगोंके पास आकर उनको पवित्र कराया; और उन्होंने अपके वस्त्र धो लिए। 15 और उस ने लोगोंसे कहा, तीसरे दिन तक तैयार हो रहो; स्त्री के पास न जाना। 16 जब तीसरा दिन आया तब भोर होते बादल गरजने और बिजली चमकने लगी, और पर्वत पर काली घटा छा गई, फिर नरसिंगे का शब्द बड़ा भरी हुआ, और छावनी में जितने लोग थे सब कांप उठे। 17 तब मूसा लोगोंको परमेश्वर से भेंट करने के लिथे छावनी से निकाल ले गया; और वे पर्वत के नीचे खड़े हुए। 18 और यहोवा जो आग में होकर सीनै पर्वत पर उतरा या, इस कारण समस्त पर्वत धुएं से भर गया; और उसका धुआं भट्टे का सा उठ रहा या, और समस्त पर्वत बहुत कांप रहा या 19 फिर जब नरसिंगे का शब्द बढ़ता और बहुत भारी होता गया, तब मूसा बोला, और परमेश्वर ने वाणी सुनाकर उसको उत्तर दिया। 20 और यहोवा सीनै पर्वत की चोटी पर उतरा; और मूसा को पर्वत की चोटी पर बुलाया और मूसा ऊपर चढ़ गया। 21 तब यहोवा ने मूसा से कहा, नीचे उतरके लोगोंको चितावनी दे, कहीं ऐसा न हो कि वे बाड़ा तोड़के यहोवा के पास देखने को घुसें, और उन में से बहुत नाश होंजाएं। 22 और याजक जो यहोवा के समीप आया करते हैं वे भी अपके को पवित्र करें, कहीं ऐसा न हो कि यहोवा उन पर टूट पके। 23 मूसा ने यहोवा से कहा, वे लोग सीनै पर्वत पर नहीं चढ़ सकते; तू ने तो आप हम को यह कहकर चिताया, कि पर्वत के चारोंऔर बाड़ा बान्धकर उसे पवित्र रखो। 24 यहोवा ने उस से कहा, उतर तो जा, और हारून समेत ऊपर आ; परन्तु याजक और साधारण लोग कहीं यहोवा के पास बाड़ा तोड़के न चढ़ आएं, कहीं ऐसा न हो कि वह उन पर टूट पके। 25 थे ही बातें मूसा ने लोगोंके पास उतरके उनको सुनाईं।।
1 तब परमेश्वर ने थे सब वचन कहे, 2 कि मै तेरा परमेश्वर यहोवा हूं, जो तुझे दासत्व के घर अर्यात् मिस्र देश से निकाल लाया है।। 3 तू मुझे छोड़ दूसरोंको ईश्वर करके न मानना।। 4 तू अपके लिथे कोई मूतिर् खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृय्वी पर, वा पृय्वी के जल में है। 5 तू उनको दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मै तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते है, उनके बेटों, पोतों, और परपोतोंको भी पितरोंका दण्ड दिया करता हूं, 6 और जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हजारोंपर करूणा किया करता हूं।। 7 तू अपके परमेश्वर का नाम व्यर्य न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्य ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा।। 8 तू विश्रमदिन को पवित्र मानने के लिथे स्मरण रखना। 9 छ: दिन तो तू परिश्र्म करके अपना सब काम काज करना; 10 परन्तु सातवां दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे विश्रमदिन है। उस में न तो तू किसी भांति का काम काज करना, और न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरे पशु, न कोई परदेशी जो तेरे फाटकोंके भीतर हो। 11 क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश, और पृय्वी, और समुद्र, और जो कुछ उन में है, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्रम किया; इस कारण यहोवा ने विश्रमदिन को आशीष दी और उसको पवित्र ठहराया।। 12 तू अपके पिता और अपक्की माता का आदर करना, जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहने पाए।। 13 तू खून न करना।। 14 तू व्यभिचार न करना।। 15 तू चोरी न करना।। 16 तू किसी के विरूद्ध फूठी साझी न देना।। 17 तू किसी के घर का लालच न करना; न तो किसी की स्त्री का लालच करना, और न किसी के दास-दासी, वा बैल गदहे का, न किसी की किसी वस्तु का लालच करना।। 18 और सब लोग गरजने और बिजली और नरसिंगे के शब्द सुनते, और धुआं उठते हुए पर्वत को देखते रहे, और देखके, कांपकर दूर खड़े हो गए; 19 और वे मूसा से कहने लगे, तू ही हम से बातें कर, तब तो हम सुन सकेंगे; परन्तु परमेश्वर हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएं। 20 मूसा ने लोगोंसे कहा, डरो मत; क्योंकि परमेश्वर इस निमित्त आया है कि तुम्हारी पक्कीझा करे, और उसका भय तुम्हारे मन में बना रहे, कि तुम पाप न करो। 21 और वे लोग तो दूर ही खड़े रहे, परन्तु मूसा उस घोर अन्धकार के समीप गया जहां परमेश्वर या।। 22 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू इस्त्राएलियोंको मेरे थे वचन सुना, कि तुम लोगोंने तो आप ही देखा है कि मै ने तुम्हारे साय आकाश से बातें की हैं। 23 तुम मेरे साय किसी को सम्मिलित न करना, अर्यात् अपके लिथे चान्दी वा सोने से देवताओं को न गढ़ लेना। 24 मेरे लिथे मिट्टी की एक वेदी बनाना, और अपक्की भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैलोंके होमबलि और मेलबलि को उस पर चढ़ाना; जहां जहां मैं अपके नाम का स्मरण कराऊं वहां वहां मैं आकर तुम्हें आशीष दूंगा। 25 और यदि तुम मेरे लिथे पत्यरोंकी वेदी बनाओ, तो तराशे हुए पत्यरोंसे न बनाना; क्योंकि जहां तुम ने उस पर अपना हयियार लगाया वहां तू उसे अशुद्ध कर देगा। 26 और मेरी वेदी पर सीढ़ी से कभी न चढ़ना, कहीं ऐसा न हो कि तेरा तन उस पर नंगा देख पके।।
1 फिर जो नियम तुझे उनको समझाने हैं वे थे हैं।। 2 जब तुम कोई इब्री दास मोल लो, तब वह छ: वर्ष तक सेवा करता रहे, और सातवें वर्ष स्वतंत्र होकर सेंतमेंत चला जाए। 3 यदि वह अकेला आया हो, तो अकेला ही चला जाए; और यदि पत्नी सहित आया हो, तो उसके साय उसकी पत्नी भी चक्की जाए। 4 यदि उसके स्वामी ने उसको पत्नी दी हो और उस से उसके बेटे वा बेटियां उत्पन्न हुई हों, तो उसकी पत्नी और बालक उसके स्वामी के ही रहें, और वह अकेला चला जाए। 5 परन्तु यदि वह दास दृढ़ता से कहे, कि मैं अपके स्वामी, और अपक्की पत्नी, और बालकोंसे प्रेम रखता हूं; इसलिथे मैं स्वतंत्र होकर न चला जाऊंगा; 6 तो उसका स्वामी उसको परमेश्वर के पास ले चले; फिर उसको द्वार के किवाड़ वा बाजू के पास ले जाकर उसके कान में सुतारी से छेद करें; तब वह सदा उसकी सेवा करता रहे।। 7 यदि कोई अपक्की बेटी को दासी होने के लिथे बेच डाले, तो वह दासी की नाई बाहर न जाए। 8 यदि उसका स्वामी उसको अपक्की पत्नी बनाए, और फिर उस से प्रसन्न न रहे, तो वह उसे दाम से छुड़ाई जाने दे; उसका विश्वासघात करने के बाद उसे ऊपक्की लोगोंके हाथ बेचने का उसको अधिक्कारने न होगा। 9 और यदि उस ने उसे अपके बेटे को ब्याह दिया हो, तो उस से बेटी का सा व्यवहार करे। 10 चाहे वह दूसरी पत्नी कर ले, तौभी वह उसका भोजन, वस्त्र, और संगति न घटाए। 11 और यदि वह इन तीन बातोंमें घटी करे, तो वह स्त्री सेंतमेंत बिना दाम चुकाए ही चक्की जाए।। 12 जो किसी मनुष्य को ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए। 13 यदि वह उसकी घात में न बैठा हो, और परमेश्वर की इच्छा ही से वह उसके हाथ में पड़ गया हो, तो ऐसे मारनेवाले के भागने के निमित्त मैं एक स्यान ठहराऊंगा जहां वह भाग जाए। 14 परन्तु यदि कोई ढिठाई से किसी पर चढ़ाई करके उसे छल से घात करे, तो उसको मार ढालने के लिथे मेरी वेदी के पास से भी अलग ले जाना।। 15 जो अपके पिता वा माता को मारे-पीटे वह निश्चय मार डाला जाए।। 16 जो किसी मनुष्य को चुराए, चाहे उसे ले जाकर बेच डाले, चाहे वह उसके पास पाया जाए, तो वह भी निश्चय मार डाला जाए।। 17 जो अपके पिता वा माता को श्रप दे वह भी निश्चय मार डाला जाए।। 18 यदि मनुष्य फगड़ते हों, और एक दूसरे को पत्यर वा मुक्के से ऐसा मारे कि वह मरे नहीं परन्तु बिछौने पर पड़ा रहे, 19 तो जब वह उठकर लाठी के सहारे से बाहर चलने फिरने लगे, तब वह मारनेवाला निर्दोष ठहरे; उस दशा में वह उसके पके रहने के समय की हानि तो भर दे, ओर उसको भला चंगा भी करा दे।। 20 यदि कोई अपके दास वा दासी को सोंटे से ऐसा मारे कि वह उसके मारने से मर जाए, तब तो उसको निश्चय दण्ड दिया जाए। 21 परन्तु यदि वह दो एक दिन जीवित रहे, तो उसके स्वामी को दण्ड न दिया जाए; क्योंकि वह दास उसका धन है।। 22 यदि मनुष्य आपस में मारपीट करके किसी गभिर्णी स्त्री को ऐसी चोट पहुचाए, कि उसका गर्भ गिर जाए, परन्तु और कुछ हानि न हो, तो मारनेवाले से उतना दण्ड लिया जाए जितना उस स्त्री का पति पंच की सम्मति से ठहराए। 23 परन्तु यदि उसको और कुछ हानि पहुंचे, तो प्राण की सन्ती प्राण का, 24 और आंख की सन्ती आंख का, और दांत की सन्ती दांत का, और हाथ की सन्ती हाथ का, और पांव की सन्ती पांव का, 25 और दाग की सन्ती दाग का, और घाव की सन्ती घाव का, और मार की सन्ती मार का दण्ड हो।। 26 जब कोई अपके दास वा दासी की आंख पर ऐसा मारे कि फूट जाए, तो वह उसकी आंख की सन्ती उसे स्वतंत्र करके जाने दे। 27 और यदि वह अपके दास वा दासी को मारके उसका दांत तोड़ डाले, तो वह उसके दांत की सन्ती उसे स्वतंत्र करके जाने दे।। 28 यदि बैल किसी पुरूष वा स्त्री को ऐसा सींग मारे कि वह मर जाए, तो वह बैल तो निश्चय पत्यरवाह करके मार डाला जाए, और उसका मांस खाया न जाए; परन्तु बैल का स्वामी निर्दोष ठहरे। 29 परन्तु यदि उस बैल की पहिले से सींग मारने की बान पक्की हो, और उसके स्वामी ने जताए जाने पर भी उसको न बान्ध रखा हो, और वह किसी पुरूष वा स्त्री को मार डाले, तब तो वह बैल पत्यरवाह किया जाए, और उसका स्वामी भी मार डाला जाए। 30 यदि उस पर छुड़ौती ठहराई जाए, तो प्राण छुड़ाने को जो कुछ उसके लिथे ठहराया जाए उसे उतना ही देना पकेगा। 31 चाहे बैल ने किसी बेटे को, चाहे बेटी को मारा हो, तौभी इसी नियम के अनुसार उसके स्वामी के साय व्यवहार किया जाए। 32 यदि बैल ने किसी दास वा दासी को सींग मारा हो, तो बैल का स्वामी उस दास के स्वामी को तीस शेकेल रूपा दे, और वह बैल पत्यरवाह किया जाए।। 33 यदि कोई मनुष्य गड़हा खोलकर वा खोदकर उसको न ढांपे, और उस में किसी का बैल वा गदहा गिर पके 34 तो जिसका वह गड़हा हो वह उस हानि को भर दे; वह पशु के स्वामी को उसका मोल दे, और लोय गड़हेवाले की ठहरे।। 35 यदि किसी का बैल किसी दूसरे के बैल को ऐसी चोट लगाए, कि वह मर जाए, तो वे दोनो मनुष्य जीते बैल को बेचकर उसका मोल आपस में आधा आधा बांट ले; और लोय को भी वैसा ही बांटें। 36 यदि यह प्रगट हो कि उस बैल की पहिले से सींग मारने की बान पक्की यी, पर उसके स्वामी ने उसे बान्ध नहीं रखा, तो निश्चय यह बैल की सन्ती बैल भर दे, पर लोय उसी की ठहरे।।
1 यदि कोई मनुष्य बैल, वा भेड़, वा बकरी चुराकर उसका घात करे वा बेच डाले, तो वह बैल की सन्ती पाँच बैल, और भेड़-बकरी की सन्ती चार भेड़-बकरी भर दे। 2 यदि चोर सेंध लगाते हुए पकड़ा जाए, और उस पर ऐसी मार पके कि वह मर जाए, तो उसके खून का दोष न लगे; 3 यदि सूर्य निकल चुके, तो उसके खून का दोष लगे; अवश्य है कि वह हानि को भर दे, और यदि उसके पास कुछ न हो, तो वह चोरी के कारण बेच दिया जाए। 4 यदि चुराया हुआ बैल, वा गदहा, वा भेड़ वा बकरी उसके हाथ में जीवित पाई जाए, तो वह उसका दूना भर दे।। 5 यदि कोई अपके पशु से किसी का खेत वा दाख की बारी चराए, अर्यात् अपके पशु को ऐसा छोड़ दे कि वह पराए खेत को चर ले, तो वह अपके खेत की और अपक्की दाख की बारी की उत्तम से उत्तम उपज में से उस हानि को भर दे।। 6 यदि कोई आग जलाए, और वह कांटोंमें लग जाए और फूलोंके ढेर वा अनाज वा खड़ा खेत जल जाए, तो जिस ने आग जलाई हो वह हानि को निश्चय भर दे।। 7 यदि कोई दूसरे को रूपए वा सामग्री की धरोहर धरे, और वह उसके घर से चुराई जाए, तो यदि चोर पकड़ा जाए, तो दूना उसी को भर देना पकेगा। 8 और यदि चोर न पकड़ा जाए, तो घर का स्वामी परमेश्वर के पास लाया जाए, कि निश्चय हो जाय कि उस ने अपके भाई बन्धु की सम्पत्ति पर हाथ लगाया है वा नहीं। 9 चाहे बैल, चाहे गदहे, चाहे भेड़ वा बकरी, चाहे वस्त्र, चाहे किसी प्रकार की ऐसी खोई हुई वस्तु के विषय अपराध क्योंन लगाया जाय, जिसे दो जन अपक्की अपक्की कहते हों, तो दोनोंका मुकद्दमा परमेश्वर के पास आए; और जिसको परमेश्वर दोषी ठहराए वह दूसरे को दूना भर दे।। 10 यदि कोई दूसरे को गदहा वा बैल वा भेड़-बकरी वा कोई और पशु रखने के लिथे सौपें, और किसी के बिना देखे वह मर जाए, वा चोट खाए, वा हांक दिया जाए, 11 तो उन दोनो के बीच यहोवा की शपय खिलाई जाए कि मैं ने इसकी सम्पत्ति पर हाथ नहीं लगाया; तब सम्पत्ति का स्वामी इसको सच माने, और दूसरे को उसे कुछ भी भर देना न होगा। 12 यदि वह सचमुच उसके यहां से चुराया गया हो, तो वह उसके स्वामी को उसे भर दे। 13 और यदि वह फाड़ डाला गया हो, तो वह फाड़े हुए को प्रमाण के लिथे ले आए, तब उसे उसको भी भर देना न पकेगा।। 14 फिर यदि कोई दूसरे से पशु मांग लाए, और उसके स्वामी के संग न रहते उसको चोट लगे वा वह मर जाए, तो वह निश्चय उसकी हानि भर दे। 15 यदि उसका स्वामी संग हो, तो दूसरे को उसकी हानि भरना न पके; और यदि वह भाड़े का हो तो उसकी हानि उसके भाड़े में आ गई।। 16 यदि कोई पुरूष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात न लगी हो फुसलाकर उसके संग कुकर्म करे, तो वह निश्चय उसका मोल देके उसे ब्याह ले। 17 परन्तु यदि उसका पिता उसे देने को बिल्कुल इनकार करे, तो कुकर्म करनेवाला कन्याओं के मोल की रीति के अनुसार रूपके तौल दे।। 18 तू डाइन को जीवित रहने न देना।। 19 जो कोई पशुगमन करे वह निश्चय मार डाला जाए।। 20 जो कोई यहोवा को छोड़ किसी और देवता के लिथे बलि करे वह सत्यनाश किया जाए। 21 और परदेशी को न सताना और न उस पर अन्धेर करना क्योंकि मिस्र देश में तुम भी परदेशी थे। 22 किसी विधवा वा अनाय बालक को दु:ख न देना। 23 यदि तुम ऐसोंको किसी प्रकार का दु:ख दो, और वे कुछ भी मेरी दोहाई दें, तो मैं निश्चय उनकी दोहाई सुनूंगा; 24 तब मेरा क्रोध भड़केगा, और मैं तुम को तलवार से मरवाऊंगा, और तुम्हारी पत्नियां विधवा और तुम्हारे बालक अनाय हो जाएंगे।। 25 यदि तू मेरी प्रजा में से किसी दीन को जो तेरे पास रहता हो रूपए का ऋण दे, तो उस से महाजन की नाई ब्याज न लेना। 26 यदि तू कभी अपके भाईबन्धु के वस्त्र को बन्धक करके रख भी ले, तो सूर्य के अस्त होने तक उसको लौटा देना; 27 क्योंकि वह उसका एक ही ओढ़ना है, उसकी देह का वही अकेला वस्त्र होगा फिर वह किसे ओढ़कर सोएगा? तोभी जब वह मेरी दोहाई देगा तब मैं उसकी सुनूंगा, क्योंकि मैं तो करूणामय हूं।। 28 परमेश्वर को श्रप न देना, और न अपके लोगोंके प्रधान को श्रप देना। 29 अपके खेतोंकी उपज और फलोंके रस में से कुछ मुझे देने में विलम्ब न करना। अपके बेटोंमें से पहिलौठे को मुझे देना। 30 वैसे ही अपक्की गायोंऔर भेड़-बकरियोंके पहिलौठे भी देना; सात दिन तक तो बच्चा अपक्की माता के संग रहे, और आठवें दिन तू उसे मुझे दे देना। 31 और तुम मेरे लिथे पवित्र मनुष्य बनना; इस कारण जो पशु मैदान में फाड़ा हुआ पड़ा मिले उसका मांस न खाना, उसको कुत्तोंके आगे फेंक देना।।
1 फूठी बात न फैलाना। अन्यायी साझी होकर दुष्ट का साय न देना। 2 बुराई करने के लिथे न तो बहुतोंके पीछे हो लेना; और न उनके पीछे फिरके मुकद्दमें में न्याय बिगाड़ने को साझी देना; 3 और कंगाल के मुकद्दमें में उसका भी पझ न करना।। 4 यदि तेरे शत्रु का बैल वा गदहा भटकता हुआ तुझे मिले, तो उसे उसके पास अवश्य फेर ले आना। 5 फिर यदि तू अपके बैरी के गदहे को बोफ के मारे दबा हुआ देखे, तो चाहे उसको उसके स्वामी के लिथे छुड़ाने के लिथे तेरा मन न चाहे, तौभी अवश्य स्वामी का साय देकर उसे छुड़ा लेना।। 6 तेरे लोगोंमें से जो दरिद्र होंउसके मुकद्दमे में न्याय न बिगाड़ना। 7 फूठे मुकद्दमे से दूर रहना, और निर्दोष और धर्मी को घात न करना, क्योंकि मैं दुष्ट को निर्दोष न ठहराऊंगा। 8 घूस न लेना, क्योंकि घूस देखने वालोंको भी अन्धा कर देता, और धमिर्योंकी बातें पलट देता है। 9 परदेशी पर अन्धेर न करना; तुम तो परदेशी के मन की बातें जानते हो, क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे।। 10 छ: वर्ष तो अपक्की भूमि में बोना और उसकी उपज इकट्ठी करना; 11 परन्तु सातवें वर्ष में उसको पड़ती रहने देना और वैसा ही छोड़ देना, तो तेरे भाई बन्धुओं में के दरिद्र लोग उस से खाने पाएं, और जो कुछ उन से भी बचे वह बनैले पशुओं के खाने के काम में आए। और अपक्की दाख और जलपाई की बारियोंको भी ऐसे ही करना। 12 छ: दिन तक तो अपना काम काज करना, और सातवें दिन विश्रम करना; कि तेरे बैल और गदहे सुस्ताएं, और तेरी दासियोंके बेटे और परदेशी भी अपना जी ठंडा कर सकें। 13 और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है उस में सावधान रहना; और दूसरे देवताओं के नाम की चर्चा न करना, वरन वे तुम्हारे मुंह से सुनाई भी न दें। 14 प्रति वर्ष तीन बार मेरे लिथे पर्ब्ब मानना। 15 अखमीरी रोटी का पर्ब्ब मानना; उस में मेरी आज्ञा के अनुसार अबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, क्योंकि उसी महीने में तुम मिस्र से निकल आए। और मुझ को कोई छूछे हाथ अपना मुंह न दिखाए। 16 और जब तेरी बोई हुई खेती की पहिली उपज तैयार हो, तब कटनी का पर्ब्ब मानना। और वर्ष के अन्त में जब तू परिश्र्म के फल बटोर के ढेर लगाए, तब बटोरन का पर्ब्ब मानना। 17 प्रति वर्ष तीनोंबार तेरे सब पुरूष प्रभु यहोवा को अपना मुंह दिखाएं।। 18 मेरे बलिपशु का लोहू खमीरी रोटी के संग न चढ़ाना, और न मेरे पर्ब्ब के उत्तम बलिदान में से कुछ बिहान तक रहने देना। 19 अपक्की भूमि की पहिली उपज का पहिला भाग अपके परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना।। 20 सुन, मैं एक दूत तेरे आगे आगे भेजता हूं जो मार्ग में तेरी रझा करेगा, और जिस स्यान को मै ने तैयार किया है उस में तुझे पहुंचाएगा। 21 उसके साम्हने सावधान रहना, और उसकी मानना, उसका विरोध न करना, क्योंकि वह तुम्हारा अपराध झमा न करेगा; इसलिथे कि उस में मेरा नाम रहता है। 22 और यदि तू सचमुच उसकी माने और जो कुछ मैं कहूं वह करे, तो मै तेरे शत्रुओं का शत्रु और तेरे द्रोहियोंका द्रोही बनूंगा। 23 इस रीति मेरा दूत तेरे आगे आगे चलकर तुझे एमोरी, हित्ती, परज्जी, कनानी, हिब्बी, और यबूसी लोगोंके यहां पहुंचाएगा, और मैं उनको सत्यनाश कर डालूंगा। 24 उनके देवताओं को दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना, और न उनके से काम करना, वरन उन मूरतोंको पूरी रीति से सत्यानाश कर डालना, और उन लोगोंकी लाटोंके टुकड़े टुकड़े कर देना। 25 और तुम अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना करना, तब वह तेरे अन्न जल पर आशीष देगा, और तेरे बीच में से रोग दूर करेगा। 26 तेरे देश में न तो किसी का गर्भ गिरेगा और न कोई बांफ होगी; और तेरी आयु मैं पूरी करूंगा। 27 जितने लोगोंके बीच तू जाथेगा उन सभोंके मन में मै अपना भय पहिले से ऐसा समवा दूंगा कि उनको व्याकुल कर दूंगा, और मैं तुझे सब शत्रुओं की पीठ दिखाऊंगा। 28 और मैं तुझ से पहिले बर्रोंको भेजूंगा जो हिब्बी, कनानी, और हित्ती लोगोंको तेरे साम्हने से भगा के दूर कर देंगी। 29 मैं उनको तेरे आगे से एक ही वर्ष में तो न निकाल दूंगा, ऐसा न हो कि देश उजाड़ हो जाए, और बनैले पशु बढ़कर तुझे दु:ख देने लगें। 30 जब तक तू फूल फलकर देश को अपके अधिक्कारने में न कर ले तब तक मैं उन्हें तेरे आगे से योड़ा योड़ा करके निकालता रहूंगा। 31 मैं लाल समुद्र से लेकर पलिश्तियोंके समुद्र तक और जंगल से लेकर महानद तक के देश को तेरे वश में कर दूंगा; मैं उस देश के निवासिक्कों भी तेरे वश में कर दूंगा, और तू उन्हें अपके साम्हने से बरबस निकालेगा। 32 तू न तो उन से वाचा बान्धना और न उनके देवताओं से। 33 वे तेरे देश में रहने न पाएं, ऐसा न हो कि वे तुझ से मेरे विरूद्ध पाप कराएं; क्योंकि यदि तू उनके देवताओं की उपासना करे, तो यह तेरे लिथे फंदा बनेगा।।
1 फिर उस ने मूसा से कहा, तू, हारून, नादाब, अबीहू, और इस्त्राएलियोंके सत्तर पुरनियोंसमेत यहोवा के पास ऊपर आकर दूर से दण्डवत् करना। 2 और केवल मूसा यहोवा के समीप आए; परन्तु वे समीप न आएं, और दूसरे लोग उसके संग ऊपर न आएं। 3 तब मूसा ने लोगोंके पास जाकर यहोवा की सब बातें और सब नियम सुना दिए; तब सब लोग एक स्वर से बोल उठे, कि जितनी बातें यहोवा ने कही हैं उन सब बातोंको हम मानेंगे। 4 तब मूसा ने यहोवा के सब वचन लिख दिए। और बिहान को सवेरे उठकर पर्वत के नीचे एक वेदी और इस्त्राएल के बारहोंगोत्रोंके अनुसार बारह खम्भे भी बनवाए। 5 तब उस ने कई इस्त्राएली जवानोंको भेजा, जिन्होंने यहोवा के लिथे होमबलि और बैलोंके मेलबलि चढ़ाए। 6 और मूसा ने आधा लोहू तो लेकर कटारोंमें रखा, और आधा वेदी पर छिड़क दिया। 7 तब वाचा की पुस्तक को लेकर लोगोंको पढ़ सुनाया; उसे सुनकर उन्होंने कहा, जो कुछ यहोवा ने कहा है उस सब को हम करेंगे, और उसकी आज्ञा मानेंगे। 8 तब मूसा ने लोहू को लेकर लोगोंपर छिड़क दिया, और उन से कहा, देखो, यह उस वाचा का लोहू है जिसे यहोवा ने इन सब वचनोंपर तुम्हारे साय बान्धी है। 9 तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्त्राएलियोंके सत्तर पुरनिए ऊपर गए, 10 और इस्त्राएल के परमेश्वर का दर्शन किया; और उसके चरणोंके तले नीलमणि का चबूतरा सा कुछ या, जो आकाश के तुल्य ही स्वच्छ या। 11 और उस ने इस्त्राएलियोंके प्रधानोंपर हाथ न बढ़ाया; तब उन्होंने परमेश्वर का दर्शन किया, और खाया पिया।। 12 तब यहोवा ने मूसा से कहा, पहाड़ पर मेरे पास चढ़, और वहां रह; और मै तुझे पत्यर की पटियाएं, और अपक्की लिखी हुई व्यवस्या और आज्ञा दूंगा, कि तू उनको सिखाए। 13 तब मूसा यहोशू नाम अपके टहलुए समेत परमेश्वर के पर्वत पर चढ़ गया। 14 कि जब तक हम तुम्हारे पास फिर न आएं तब तक तुम यहीं हमारी बाट जोहते रहो; और सुनो, हारून और हूर तुम्हारे संग हैं; तो यदि किसी का मुकद्दमा हो तो उन्हीं के पास जाए। 15 तब मूसा पर्वत पर चढ़ गया, और बादल ने पर्वत को छा लिया। 16 तब यहोवा के तेज ने सीनै पर्वत पर निवास किया, और वह बादल उस पर छ: दिन तक छाया रहा; और सातवें दिन उस ने मूसा को बादल के बीच में से पुकारा। 17 और इस्त्राएलियोंकी दृष्टि में यहोवा का तेज पर्वत की चोटी पर प्रचण्ड आग सा देख पड़ता या। 18 तब मूसा बादल के बीच में प्रवेश करके पर्वत पर चढ़ गया। और मूसा पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात रहा।।
1 यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे यह कहना, कि मेरे लिथे भेंट लाएं; जितने अपक्की इच्छा से देना चाहें उन्हीं सभोंसे मेरी भेंट लेना। 3 और जिन वस्तुओं की भेंट उन से लेनी हैं वे थे हैं; अर्यात् सोना, चांदी, पीतल, 4 नीले, बैंजनी और लाल रंग का कपड़ा, सूझ्म सनी का कपड़ा, बकरी का बाल, 5 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ोंकी खालें, सुइसोंकी खालें, बबूल की लकड़ी, 6 उजियाले के लिथे तेल, अभिषेक के तेल के लिथे और सुगन्धित धूप के लिथे सुगन्ध द्रव्य, 7 एपोद और चपरास के लिथे सुलैमानी पत्यर, और जड़ने के लिथे मणि। 8 और वे मेरे लिथे एक पवित्रस्यान बनाए, कि मैं उनके बीच निवास करूं। 9 जो कुछ मैं तुझे दिखाता हूं, अर्यात् निवासस्यान और उसके सब सामान का नमूना, उसी के अनुसार तुम लोग उसे बनाना।। 10 बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनाया जाए; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, और चौड़ाई और ऊंचाई डेढ़ डेढ़ हाथ की हों। 11 और उसको चोखे सोने से भीतर और बाहर मढ़वाना, और सन्दूक के ऊपर चारोंओर सोने की बाड़ बनवाना। 12 और सोने के चार कड़े ढलवाकर उसके चारोंपायोंपर, एक अलंग दो कड़े और दूसरी अलंग भी दो कड़े लगवाना। 13 फिर बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हे भी सोने से मढ़वाना। 14 और डण्डोंको सन्दूक की दोनोंअलंगोंके कड़ोंमें डालना जिस से उनके बल सन्दूक उठाया जाए। 15 वे डण्डे सन्दूक के कड़ोंमें लगे रहें; और उस से अलग न किए जाएं। 16 और जो साझीपत्र मैं तुझे दूंगा उसे उसी सन्दूक में रखना। 17 फिर चोखे सोने का एक प्रायश्चित्त का ढकना बनवाना; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो। 18 और सोना ढालकर दो करूब बनवाकर प्रायश्चित्त के ढकने के दोनोंसिरोंपर लगवाना। 19 एक करूब तो एक सिक्के पर और दूसरा करूब दूसरे सिक्के पर लगवाना; और करूबोंको और प्रायश्चित्त के ढकने को उसके ही टुकड़े से बनाकर उसके दोनो सिरोंपर लगवाना। 20 और उन करूबोंके पंख ऊपर से ऐसे फैले हुए बनें कि प्रायश्चित्त का ढकना उन से ढंपा रहे, और उनके मुख आम्हने-साम्हने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर रहें। 21 और प्रायश्चित्त के ढकने को सन्दूक के ऊपर लगवाना; और जो साझीपत्र मैं तुझे दूंगा उसे सन्दूक के भीतर रखना। 22 और मैं उसके ऊपर रहकर तुझ से मिला करूंगा; और इस्त्राएलियोंके लिथे जितनी आज्ञाएं मुझ को तुझे देनी होंगी, उन सभोंके विषय मैं प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर से और उन करूबोंके बीच में से, जो साझीपत्र के सन्दूक पर होंगे, तुझ से वार्तालाप किया करूंगा।। 23 फिर बबूल की लकड़ी की एक मेज बनवाना; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की हो। 24 उसे चोखे सोने से मढ़वाना, और उसके चारोंओर सोने की एक बाड़ बनवाना। 25 और उसके चारोंओर चार अंगुल चौड़ी एक पटरी बनवाना, और इस पटरी के चारोंओर सोने की एक बाड़ बनवाना। 26 और सोने के चार कड़े बनवाकर मेज के उन चारोंकोनोंमें लगवाना जो उसके चारोंपायोंमें होंगे। 27 वे कड़े पटरी के पास ही हों, और डण्डोंके घरोंका काम दें कि मेज़ उन्हीं के बल उठाई जाए। 28 और डण्डोंको बबूल की लकड़ी के बनवाकर सोने से मढ़वाना, और मेज़ उन्हीं से उठाई जाए। 29 और उसके परात और धूपदान, और चमचे और उंडेलने के कटोरे, सब चोखे सोने के बनवाना। 30 और मेज़ पर मेरे आगे भेंट की रोटियां नित्य रखा करना।। 31 फिर चोखे सोने की एक दीवट बनवाना। सोना ढलवाकर वह दीवट, पाथे और डण्डी सहित बनाया जाए; उसके पुष्पकोष, गांठ और फूल, सब एक ही टुकड़े के बनें; 32 और उसकी अलंगोंसे छ: डालियां निकलें, तीन डालियां तो दीवट की एक अलंग से और तीन डालियां उसकी दूसरी अलंग से निकली हुई हों; 33 एक एक डाली में बादाम के फूल के समान तीन तीन पुष्पकोष, एक एक गांठ, और एक एक फूल हों; दीवट से निकली हुई छहोंडालियोंका यही आकार या रूप हो; 34 और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के समान चार पुष्पकोष अपक्की अपक्की गांठ और फूल समेत हों; 35 और दीवट से निकली हुई छहोंडालियोंमें से दो दो डालियोंके नीचे एक एक गांठ हो, वे दीवट समेत एक ही टुकड़े के बने हुए हों। 36 उनकी गांठे और डालियां, सब दीवट समेत एक ही टुकड़े की हों, चोखा सोना ढलवाकर पूरा दीवट एक ही टुकड़े का बनवाना। 37 और सात दीपक बनवाना; और दीपक जलाए जाएं कि वे दीवट के साम्हने प्रकाश दें। 38 और उसके गुलतराश और गुलदान सब चोखे सोने के हों। 39 वह सब इन समस्त सामान समेत किक्कार भर चोखे सोने का बने। 40 और सावधान रहकर इन सब वस्तुओं को उस नमूने के समान बनवाना, जो तुझे इस पर्वत पर दिखाया गया है।।
1 फिर निवासस्यान के लिथे दस परदे बनवाना; इनको बटी हुई सनीवाले और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का कढ़ाई के काम किए हुए करूबोंके साय बनवाना। 2 एक एक परदे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; सब परदे एक ही नाप के हों। 3 पांच परदे एक दूसरे से जुड़े हुए हों; और फिर जो पांच परदे रहेंगे वे भी एक दूसरे से जुड़े हुए हों। 4 और जहां थे दोनोंपरदे जोड़े जाएं वहां की दोनोंछोरोंपर नीली नीली फलियां लगवाना। 5 दोनोंछोरोंमें पचास पचास फलियां ऐसे लगवाना कि वे आम्हने साम्हने हों। 6 और सोने के पचास अंकड़े बनवाना; और परदोंके पंचो को अंकड़ोंके द्वारा एक दूसरे से ऐसा जुड़वाना कि निवासस्यान मिलकर एक ही हो जाए। 7 फिर निवास के ऊपर तम्बू का काम देने के लिथे बकरी के बाल के ग्यारह परदे बनवाना। 8 एक एक परदे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; ग्यारहोंपरदे एक ही नाप के हों। 9 और पांच परदे अलग और फिर छ: परदे अलग जुड़वाना, और छटवें परदे को तम्बू के साम्हने मोड़ कर दुहरा कर देना। 10 और तू पचास अंकड़े उस परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा और पचास ही अंकड़े दूसरी ओर के परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा बनवाना। 11 और पीतल के पचास अंकड़े बनाना, और अंकड़ोंको फलियोंमें लगाकर तम्बू को ऐसा जुड़वाना कि वह मिलकर एक ही हो जाए। 12 और तम्बू के परदोंका लटका हुआ भाग, अर्यात् जो आधा पट रहेगा, वह निवास की पिछली ओर लटका रहे। 13 और तम्बू के परदोंकी लम्बाई मे से हाथ भर इधर, और हाथ भर उधर निवास के ढांकने के लिथे उसकी दोनोंअलंगोंपर लटका हुआ रहे। 14 फिर तम्बू के लिथे लाल रंग से रंगी हुई मेढोंकी खालोंका एक ओढ़ना और उसके ऊपर सूइसोंकी खालोंका भी एक ओढ़ना बनवाना।। 15 फिर निवास को खड़ा करने के लिथे बबूल की लकड़ी के तख्ते बनवाना। 16 एक एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो। 17 एक एक तख्ते में एक दूसरे से जोड़ी हुई दो दो चूलें हों; निवास के सब तख्तोंको इसी भांति से बनवाना। 18 और निवास के लिथे जो तख्ते तू बनवाएगा उन में से बीस तख्ते तो दक्खिन की ओर के लिथे हों; 19 और बीसोंतख्तोंके नीचे चांदी की चालीस कुसिर्यां बनवाना, अर्यात् एक एक तख्ते के नीचे उसके चूलोंके लिथे दो दो कुसिर्यां। 20 और निवास की दूसरी अलंग, अर्यात् उत्तर की ओर बीस तख्ते बनवाना। 21 और उनके लिथे चांदी की चालीस कुसिर्यां बनवाना, अर्यात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हों। 22 और निवास की पिछली अलंग, अर्यात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हों। 23 और पिछले अलंग में निवास के कोनोंके लिथे दो तख्ते बनवाना; 24 और थे नीचे से दो दो भाग के होंऔर दोनोंभाग ऊपर के सिक्के तक एक एक कड़े में मिलाथे जाएं; दोनोंतख्तोंका यही रूप हो; थे तो दोनोंकोनोंके लिथे हों। 25 और आठ तख्तें हों, और उनकी चांदी की सोलह कुसिर्यां हों; अर्यात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हों। 26 फिर बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनवाना, अर्यात् निवास की एक अलंग के तख्तोंके लिथे पांच, 27 और निवास की दूसरी अलंग के तख्तोंके लिथे पांच बेंडे, और निवास की जो अलंग पश्चिम की ओर पिछले भाग में होगी, उसके लिथे पांच बेंड़े बनवाना। 28 और बीचवाला बेंड़ा जो तख्तोंके मध्य में होगा वह तम्बू के एक सिक्के से दूसरे सिक्के तक पहुंचे। 29 फिर तख्तोंको सोने से मढ़वाना, और उनके कड़े जो बेंड़ोंके घरोंका काम देंगे उन्हें भी सोने के बनवाना; और बेड़ोंको भी सोने से मढ़वाना। 30 और निवास को इस रीति खड़ा करना जैसा इस पर्वत पर तुझे दिखाया गया है।। 31 फिर नीले, बैजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूझ्म सनीवाले कपके का एक बीचवाला पर्दा बनवाना; वह कढ़ाई के काम किथे हुए करूबोंके साय बने। 32 और उसको सोने से मढ़े हुए बबूल के चार ख्म्भोंपर लटकाना, इनकी अंकडिय़ां सोने की हों, और थे चांदी की चार कुसिर्योंपर खड़ी रहें। 33 और बीचवाले पर्दे को अंकडिय़ोंके नीचे लटकाकर, उसकी आड़ में साझीपत्र का सन्दूक भीतर लिवा ले जाना; सो वह बीचवाला पर्दा तुम्हारे लिथे पवित्रस्यान को परमपवित्रस्यान से अलग किथे रहे। 34 फिर परमपवित्र स्यान में साझीपत्र के सन्दूक के ऊपर प्रायश्चित्त के ढकने को रखना। 35 और उस पर्दे के बाहर निवास की उत्तर अलग मेज़ रखना; और उसकी दक्खिन अलंग मेज़ के साम्हने दीवट को रखना। 36 फिर तम्बू के द्वार के लिथे नीले, बैंजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूझ्म सनीवाले कपके का कढ़ाई का काम किया हुआ एक पर्दा बनवाना। 37 और इस पर्दे के लिथे बबूल के पांच खम्भे बनवाना, और उनको सोने से मढ़वाना; उनकी कडियां सोने की हो, और उनके लिथे पीतल की पांच कुसिर्यां ढलवा कर बनवाना।।
1 फिर वेदी को बबूल की लकड़ी की, पांच हाथ लम्बी और पांच हाथ चौड़ी बनवाना; वेदी चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई तीन हाथ की हो। 2 और उसके चारोंकोनोंपर चार सींग बनवाना; वे उस समेत एक ही टुकड़े के हों, और उसे पीतल से मढ़वाना। 3 और उसकी राख उठाने के पात्र, और फावडिय़ां, और कटोरे, और कांटे, और अंगीठियां बनवाना; उसका कुल सामान पीतल का बनवाना। 4 और उसके पीतल की जाली एक फंफरी बनवाना; और उसके चारोंसिरोंमें पीतल के चार कड़े लगवाना। 5 और उस फंफरी को वेदी के चारोंओर की कंगनी के नीचे ऐसे लगवाना, कि वह वेदी की ऊंचाई के मध्य तक पहुंचे। 6 और वेदी के लिथे बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हें पीतल से मढ़वाना। 7 और डंडे कड़ोंमें डाले जाएं, कि जब जब वेदी उठाई जाए तब वे उसकी दोनोंअलंगोंपर रहें। 8 वेदी को तख्तोंसे खोखली बनवाना; जैसी वह इस पर्वत पर तुझे दिखाई गई है वैसी ही बनाई जाए।। 9 फिर निवास के आंगन को बनवाना। उसकी दक्खिन अलंग के लिथे तो बटी हुई सूझ्म सनी के कपके के सब पर्दोंको मिलाए कि उसकी लम्बाई सौ हाथ की हो; एक अलंग पर तो इतना ही हो। 10 और उनके बीस खम्भे बनें, और इनके लिथे पीतल की बीस कुसिर्यां बनें, और खम्भोंके कुन्डे और उनकी पट्टियां चांदी की हों। 11 और उसी भांति आंगन की उत्तर अलंग की लम्बाई में भी सौ हाथ लम्बे पर्दे हों, और उनके भी बीस खम्भे और इनके लिथे भी पीतल के बीस खाने हों; और उन खम्भोंके कुन्डे और पट्टियां चांदी की हों। 12 फिर आंगन की चौड़ाई में पच्छिम की ओर पचास हाथ के पर्दे हों, उनके खम्भे दस और खाने भी दस हों। 13 और पूरब अलंग पर आंगन की चौड़ाई पचास हाथ की हो। 14 और आंगन के द्वार की एक ओर पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, और उनके खम्भे तीन और खाने तीन हों। 15 और दूसरी ओर भी पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, उनके भी खम्भे तीन और खाने तीन हों। 16 और आंगन के द्वार के लिथे एक पर्दा बनवाना, जो नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके और बटी हुई सूझ्म सनी के कपके का कामदार बना हुआ बीस हाथ का हो, उसके खम्भे चार और खाने भी चार हों। 17 आंगन की चारोंओर के सब खम्भे चांदी की पट्टियोंसे जुड़े हुए हों, उनके कुन्डे चांदी के और खाने पीतल के हों। 18 आंगन की लम्बाई सौ हाथ की, और उसकी चौड़ाई बराबर पचास हाथ की और उसकी कनात की ऊंचाई पांच हाथ की हो, उसकी कनात बटी हुई सुझ्म सनी के कपके की बने, और खम्भोंके खाने पीतल के हों। 19 निवास के भांति भांति के बर्तन और सब सामान और उसके सब खूंटें और आंगन के भी सब खूंटे पीतल ही के हों।। 20 फिर तू इस्त्राएलियोंको आज्ञा देना, कि मेरे पास दीवट के लिथे कूट के निकाला हुआ जलपाई का निर्मल तेल ले आना, जिस से दीपक नित्य जलता रहे। 21 मिलाप के तम्बू में, उस बीचवाले पर्दे से बाहर जो साझीपत्र के आगे होगा, हारून और उसके पुत्र दीवट सांफ से भोर तक यहोवा के साम्हने सजा कर रखें। यह विधि इस्त्राएलियोंकी पीढिय़ोंके लिथे सदैव बनी रहेगी।।
1 फिर तू इस्त्राएलियोंमें से अपके भाई हारून, और नादाब, अबीहू, एलीआज़ार और ईतामार नाम उसके पुत्रोंको अपके समीप ले आना कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें। 2 और तू अपके भाई हारून के लिथे विभव और शोभा के निमित्त पवित्र वस्त्र बनवाना। 3 और जितनोंके ह्रृदय में बुद्धि है, जिनको मैं ने बुद्धि देनेवाली आत्मा से परिपूर्ण किया है, उनको तू हारून के वस्त्र बनाने की आज्ञा दे कि वह मेरे निमित्त याजक का काम करने के लिथे पवित्र बनें। 4 और जो वस्त्र उन्हें बनाने होंगे वे थे हैं, अर्यात् सीनाबन्द; और एपोद, और जामा, चार खाने का अंगरखा, पुरोहित का टोप, और कमरबन्द; थे ही पवित्र वस्त्र तेरे भाई हारून और उसके पुत्रोंके लिथे बनाए जाएं कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें। 5 और वे सोने और नीले और बैंजनी और लाल रंग का और सूझ्म सनी का कपड़ा लें।। 6 और वे एपोद को सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का और बटी हुई सूझ्म सनी के कपके का बनाएं, जो कि निपुण कढ़ाई के काम करनेवाले के हाथ का काम हो। 7 और वह इस तरह से जोड़ा जाए कि उसके दोनो कन्धोंके सिक्के आपस में मिले रहें। 8 और एपोद पर जो काढ़ा हुआ पटुका होगा उसकी बनावट उसी के समान हो, और वे दोनोंबिना जोड़ के हों, और सोने और नीले, बैंजनी और लाल रंगवाले और बटी हुई सूझ्म सनीवाले कपके के हों। 9 फिर दो सुलैमानी मणि लेकर उन पर इस्त्राएल के पुत्रोंके नाम खुदवाना, 10 उनके नामोंमें से छ: तो एक मणि पर, और शेष छ: नाम दूसरे मणि पर, इस्त्राएल के पुत्रोंकी उत्पत्ति के अनुसार खुदवाना। 11 मणि खोदनेवाले के काम से जैसे छापा खोदा जाता है, वैसे ही उन दो मणियोंपर इस्त्राएल के पुत्रोंके नाम खुदवाना; और उनको सोने के खानोंमें जड़वा देना। 12 और दोनोंमणियोंको एपोद के कन्धोंपर लगवाना, वे इस्त्राएलियोंके निमित्त स्मरण दिलवाने वाले मणि ठहरेंगे; अर्यात् हारून उनके नाम यहोवा के आगे अपके दोनोंकन्धोंपर स्मरण के लिथे लगाए रहे।। 13 फिर सोने के खाने बनवाना, 14 और डोरियोंकी नाईं गूंथे हुए दो जंजीर चोखे सोने के बनवाना; और गूंथे हुए जंजीरोंको उन खानोंमें जड़वाना। 15 फिर न्याय की चपरास को भी कढ़ाई के काम का बनवाना; एपोद की नाईं सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूझ्म सनी के कपके की उसे बनवाना। 16 वह चौकोर और दोहरी हो, और उसकी लम्बाई और चौड़ाई एक एक बित्ते की हों। 17 और उस में चार पांति मणि जड़ाना। पहिली पांति में तो माणिक्य, पद्क़राग और लालड़ी हों; 18 दूसरी पांति में मरकत, नीलमणि और हीरा; 19 तीसरी पांति में लशम, सूर्यकांत और नीलम; 20 और चौयी पांति में फीरोजा, सुलैमानी मणि और यशब हों; थे सब सोने के खानोंमें जड़े जाएं। 21 और इस्त्राएल के पुत्रोंके जितने नाम हैं उतने मणि हों, अर्यात् उनके नामोंकी गिनती के अनुसार बारह नाम खुदें, बारहोंगोत्रोंमें से एक एक का नाम एक एक मणि पर ऐसे खुदे जेसे छापा खोदा जाता है। 22 फिर चपरास पर डोरियोंकी नाई। गूंथे हुए चोखे सोने की जंजीर लगवाना; 23 और चपरास में सोने की दो कडिय़ां लगवाना, और दोनोंकडिय़ोंको चपरास के दोनो सिरोंपर लगवाना। 24 और सोने के दोनोंगूंथे जंजीरोंको उन दोनोंकडिय़ोंमें जो चपरास के सिरोंपर होंगी लगवाना; 25 और गूंथे हुए दोनो जंजीरोंके दोनोंबाकी सिक्कों दोनोंखानोंमें जड़वा के एपोद के दोनोंकन्धोंके बंधनोंपर उसके साम्हने लगवाना। 26 फिर सोने की दो और कडिय़ां बनवाकर चपरास के दोनोंसिरोंपर, उसकी उस कोर पर जो एपोद की भीतर की ओर होगी लगवाना। 27 फिर उनके सिवाय सोने की दो और कडिय़ां बनवाकर एपोद के दोनोंकन्धोंके बंधनोंपर, नीचे से उनके साम्हने और उसके जोड़ के पास एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगवाना। 28 और चपरास अपक्की कडिय़ोंके द्वारा एपोद की कडिय़ोंमें नीले फीते से बांधी जाए, इस रीति वह एपोद के काढ़े हुए पटुके पर बनी रहे, और चपरास एपोद पर से अलग न होने पाए। 29 और जब जब हारून पवित्रस्यान में प्रवेश करे, तब तब वह न्याय की चपरास पर अपके ह्रृदय के ऊपर इस्त्राएलियोंके नामोंको लगाए रहे, जिस से यहोवा के साम्हने उनका स्मरण नित्य रहे। 30 और तू न्याय की चपरास में ऊरीम और तुम्मीम को रखना, और जब जब हारून यहोवा के साम्हने प्रवेश करे, तब तब वे उसके ह्रृदय के ऊपर हों; इस प्रकार हारून इस्त्राएलियोंके न्याय पदार्य को अपके ह्रृदय के ऊपर यहोवा के साम्हने नित्य लगाए रहे।। 31 फिर एपोद के बागे को सम्पूर्ण नीले रंग का बनवाना। 32 और उसकी बनावट ऐसी हो कि उसके बीच में सिर डालने के लिथे छेद हो, और उस छेद की चारोंओर बखतर के छेद की सी एक बुनी हुई कोर हो, कि वह फटने न पाए। 33 और उसके नीचेवाले घेरे में चारोंओर नीेले, बैंजनी और लाल रंग के कपके के अनार बनवाना, और उनके बीच बीच चारोंओर सोने की घंटीयां लगवाना, 34 अर्यात् एक सोने की घंटी और एक अनार, फिर एक सोने की घंटी और एक अनार, इसी रीति बागे के नीचेवाले घेरे में चारोंओर ऐसा ही हो। 35 और हारून एक बागे को सेवा टहल करने के समय पहिना करे, कि जब जब वह पवित्रस्यान के भीतर यहोवा के साम्हने जाए, वा बाहर निकले, तब तब उसका शब्द सुनाई दे, नहीं तो वह मर जाएगा। 36 फिर चोखे सोने का एक टीका बनवाना, और जैसे छापे में वैसे ही उस में थे अझर खोदें जाएं, अर्यात् यहोवा के लिथे पवित्र। 37 और उसे नीले फीते से बांधना; और वह पगड़ी के साम्हने के हिस्से पर रहे। 38 और हारून के माथे पर रहे, इसलिथे कि इस्त्राएली जो कुछ पवित्र ठहराएं, अर्यात् जितनी पवित्र वस्तुएं भेंट में चढ़ावें उन पवित्र वस्तुओं का दोष हारून उठाए रहे, और वह नित्य उसके माथे पर रहे, जिस से यहोवा उन से प्रसन्न रहे।। 39 और अंगरखे को सूझ्म सनी के कपके का चारखाना बुनवाना, और एक पगड़ी भी सूझ्म सनी के कपके की बनवाना, और कारचोबी काम किया हुआ एक कमरबन्द भी बनवाना।। 40 फिर हारून के पुत्रोंके लिथे भी अंगरखे और कमरबन्द और टोपियां बनवाना; थे वस्त्र भी विभव और शोभा के लिथे बनें। 41 अपके भाई हारून और उसके पुत्रोंको थे ही सब वस्त्र पहिनाकर उनका अभिषेक और संस्कार करना, और उन्हें पवित्र करना, कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें। 42 और उनके लिथे सनी के कपके की जांघिया बनवाना जिन से उनका तन ढपा रहे; वे कमर से जांघ तक की हों; 43 और जब जब हारून वा उसके पुत्र मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करें, वा पवित्र स्यान में सेवा टहल करने को वेदी के पास जाएं तब तब वे उन जांघियोंको पहिने रहें, न हो कि वे पापी ठहरें और मर जाएं। यह हारून के लिथे और उसके बाद उसके वंश के लिथे भी सदा की विधि ठहरें।।
1 और उन्हें पवित्र करने को जो काम तुझे उन से करना है, कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें वह यह है। एक निर्दोष बछड़ा और दो निर्दोष मेंढ़े लेना, 2 और अखमीरी रोटी, और तेल से सने हुए मैदे के अखमीरी फुलके, और तेल से चुपक्की हुई अखमीरी पपडिय़ां भी लेना। थे सब गेहूं के मैदे के बनवाना। 3 इनको एक टोकरी में रखकर उस टोकरी को उस बछड़े और उन दोनोंमेंढ़ो समेत समीप ले आना। 4 फिर हारून और उसके पुत्रोंको मिलापवाले तम्बू के द्वार के समीप ले आकर जल से नहलाना। 5 तब उन वोंको लेकर हारून को अंगरखा ओर एपोद का बागा पहिनाना, और एपोद और चपरास बान्धना, और एपोद का काढ़ा हुआ पटुका भी बान्धना; 6 और उसके सिर पर पगड़ी को रखना, और पगड़ी पर पवित्र मुकुट को रखना। 7 तब अभिषेक का तेल ले उसके सिर पर डालकर उसका अभिषेक करना। 8 फिर उसके पुत्रोंको समीप ले आकर उनको अंगरखे पहिनाना, 9 और उसके अर्यात् हारून और उसके पुत्रोंके कमर बान्धना और उनके सिर पर टोपियां रखना; जिस से याजक के पद पर सदा उनका हक रहे। इसी प्रकार हारून और उसके पुत्रोंका संस्कार करना। 10 और बछड़े को मिलापवाले तम्बू के साम्हने समीप ले आना। और हारून और उसके पुत्र बछड़े के सिर पर अपके अपके हाथ रखें, 11 तब उस बछड़े को यहोवा के सम्मुख मिलापवाले तम्बू के द्वार पर बलिदान करना, 12 और बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर अपक्की उंगली से वेदी के सींगोंपर लगाना, और शेष सब लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल देना 13 और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जो फिल्ली कलेजे के ऊपर होती है, उनको और दोनो गुर्दोंको उनके ऊपर की चरबी समेत लेकर सब को वेदी पर जलाना। 14 और बछड़े का मांस, और खाल, और गोबर, छावनी से बाहर आग में जला देना; क्योंकि यह पापबलि होगा। 15 फिर एक मेढ़ा लेना, और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपके अपके हाथ रखें, 16 तब उस मेढ़ें को बलि करना, और उसका लोहू लेकर वेदी पर चारोंओर छिड़कना। 17 और उस मेढ़े को टुकड़े टुकड़े काटना, और उसकी अंतडिय़ोंऔर पैरोंको धोकर उसके टुकड़ोंऔर सिर के ऊपर रखना, 18 तब उस पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाना; वह तो यहोवा के लिथे होमबलि होगा; वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिथे हवन होगा। 19 फिर दूसरे मेढ़े को लेना; और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपके अपके हाथ रखें, 20 तब उस मेंड़े को बलि करना, और उसके लोहू में से कुछ लेकर हारून और उसके पुत्रोंके दहिने कान के सिक्के पर, और उनके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाना, और लोहू को वेदी पर चारोंओर छिड़क देना। 21 फिर वेदी पर के लोहू, और अभिषेक के तेल, इन दोनो में से कुछ कुछ लेकर हारून और उसके वोंपर, और उसके पुत्रोंऔर उनके वोंपर भी छिड़क देना; तब वह अपके वोंसमेत और उसके पुत्र भी अपके अपके वोंसमेत पवित्र हो जाएंगे। 22 तब मेढ़े को संस्कारवाला जानकर उस में से चरबी और मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं उसको, और कलेजे पर की फिल्ली को, और चरबी समेत दोनोंगुर्दोंको, और दहिने पुट्ठे को लेना, 23 और अखमीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे धरी होगी उस में से भी एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक पपक्की लेकर, 24 इन सब को हारून और उसके पुत्रोंके हाथोंमें रखकर हिलाए जाने की भेंट ठहराके यहोवा के आगे हिलाया जाए। 25 तब उन वस्तुओं को उनके हाथोंसे लेकर होमबलि की वेदी पर जला देना, जिस से वह यहोवा के साम्हने सुखदायक सुगन्ध ठहरे; वह तो यहोवा के लिथे हवन होगा। 26 फिर हारून के संस्कार को जो मेंढ़ा होगा उसकी छाती को लेकर हिलाए जाने की भेंट के लिथे यहोवा के आगे हिलाना; और वह तेरा भाग ठहरेगा। 27 और हारून और उसके पुत्रोंके संस्कार का जो मेढ़ा होगा, उस में से हिलाए जाने की भेंटवाली छाती जो हिलाई जाएगी, और उठाए जाने का भेंटवाला पुट्ठा जो उठाया जाएगा, इन दोनोंको पवित्र ठहराना। 28 और थे सदा की विधि की रीति पर इस्त्राएलियोंकी ओर से उसका और उसके पुत्रोंका भाग ठहरे, कयोंकि थे उठाए जाने की भेंटें ठहरी हैं; और यह इस्त्राएलियोंकी ओर से उनके मेलबलियोंमें से यहोवा के लिथे उठाऐ जाने की भेंट होगी। 29 और हारून के जो पवित्र वस्त्र होंगे वह उसके बाद उसके बेटे पोते आदि को मिलते रहें, जिस से उन्हीं को पहिने हुए उनका अभिषेक और संस्कार किया जाए। 30 उसके पुत्रोंके जो उसके स्यान पर याजक होगा, वह जब पवित्रस्यान में सेवा टहल करने को मिलाप वाले तम्बू में पहिले आए, तब उन वोंको सात दिन तक पहिने रहें। 31 फिर याजक के संस्कार का जो मेढ़ा होगा उसे लेकर उसका मांस किसी पवित्र स्यान में पकाना; 32 तब हारून अपके पुत्रोंसमेत उस मेढे का मांस और टोकरी की रोटी, दोनोंको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खाए। 33 और जिन पदार्योंसे उनका संस्कार और उन्हें पवित्र करने के लिथे प्रायश्चित्त किया जाएगा उनको तो वे खाएं, परन्तु पराए कुल का कोई उन्हें न खाने पाए, क्योंकि वे पवित्र होंगे। 34 और यदि संस्कारवाले मांस वा रोटी में से कुछ बिहान तक बचा रहे, तो उस बचे हुए को आग में जलाना, वह खाया न जाए; क्योंकि वह पवित्र होगा। 35 और मैं ने तुझे जो जो आज्ञा दी हैं, उन सभोंके अनुसार तू हारून और उसके पुत्रोंसे करना; और सात दिन तक उनका संस्कार करते रहना, 36 अर्यात् पापबलि का एक बछड़ा प्रायश्चित्त के लिथे प्रतिदिन चढ़ाना। और वेदी को भी प्रायश्चित्त करने के समय शुद्ध करना, और उसे पवित्र करने के लिथे उसका अभिषेक करना। 37 सात दिन तक वेदी के लिथे प्रायश्चित्त करके उसे पवित्र करना, और वेदी परम पवित्र ठहरेगी; और जो कुछ उस से छू जाएगा वह भी पवित्र हो जाएगा।। 38 जो तुझे वेदी पर नित्य चढ़ाना होगा वह यह है; अर्यात् प्रतिदिन एक एक वर्ष के दो भेड़ी के बच्चे। 39 एक भेड़ के बच्चे को तो भोर के समय, और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना। 40 और एक भेड़ के बच्चे के संग हीन की चौयाई कूटके निकाले हुए तेल से सना हुआ एपा का दसवां भाग मैदा, और अर्घ के लिथे ही की चौयाई दाखमधु देना। 41 और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना, और उसके साय भोर की रीति अनुसार अन्नबलि और अर्घ दोनोंदेना, जिस से वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिथे हवन ठहरे। 42 तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यहोवा के आगे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर नित्य ऐसा ही होमबलि हुआ करे; यह वह स्यान है जिस में मैं तुम लोगोंसे इसलिथे मिला करूंगा, कि तुझ से बातें करूं। 43 और मैं इस्त्राएलियोंसे वहीं मिला करूंगा, और वह तम्बू मेरे तेज से पवित्र किया जाएगा। 44 और मैं मिलापवाले तम्बू और वेदी को पवित्र करूंगा, और हारून और उसके पुत्रोंको भी पवित्र करूंगा, कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें। 45 और मैं इस्त्राएलियोंके मध्य निवास करूंगा, और उनका परमेश्वर ठहरूंगा। 46 तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा उनका परमेश्वर हूं, जो उनको मिस्र देश से इसलिथे निकाल ले आया, कि उनके मध्य निवास करूं; मैं ही उनका परमेश्वर यहोवा हूं।।
1 फिर धूप जलाने के लिथे बबूल की लकड़ी की वेदी बनाना। 2 उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ की हो, वह चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की हो, और उसके सींग उसी टुकड़े से बनाए जाएं। 3 और वेदी के ऊपरवाले पल्ले और चारोंओर की अलंगोंऔर सींगोंको चोखे सोने से मढ़ना, और इसकी चारोंओर सोने की एक बाड़ बनाना। 4 और इसकी बाड़ के नीचे इसके दानोंपल्ले पर सोने के दो दो कड़े बनाकर इसके दोनोंओर लगाना, वे इसके उठाने के डण्डोंके खानोंका काम देंगे। 5 और डण्डोंको बबूल की लकड़ी के बनाकर उनको सोने से मढ़ना। 6 और तू उसको उस पर्दे के आगे रखना जो साझीपत्र के सन्दूक के साम्हने है, अर्यात् प्रायश्चित्त वाले ढकने के आगे जो साझीपत्र के ऊपर है, वहीं मैं तुझ से मिला करूंगा। 7 और उसी वेदी पर हारून सुगन्धित धूप जलाया करे; प्रतिदिन भोर को जब वह दीपक को ठीक करे तब वह धूप को जलाए, 8 तब गोधूलि के समय जब हारून दीपकोंको जलाए तब धूप जलाया करे, यह धूप यहोवा के साम्हने तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में नित्य जलाया जाए। 9 और उस वेदी पर तुम और प्रकार का धूप न जलाना, और न उस पर होमबलि और न अन्नबलि चढ़ाना; और न इस पर अर्घ देना। 10 और हारून वर्ष में एक बार इसके सींगोंपर प्रायश्चित्त करे; और तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में वर्ष में एक बार प्रायश्चित्त लिया जाए; यह यहोवा के लिथे परमपवित्र है।। 11 और तब यहोवा ने मूसा से कहा, 12 जब तू इस्त्राएलियोंकि गिनती लेने लगे, तब वे गिनने के समय जिनकी गिनती हुई हो अपके अपके प्राणोंके लिथे यहोवा को प्रायश्चित्त दें, जिस से जब तू उनकी गिनती कर रहा हो उस समय कोई विपत्ति उन पर न आ पके। 13 जितने लोग गिने जाएं वे पवित्रस्यान के शेकेल के लिथे आधा शेकेल दें, यह शेकेल बीस गेरा का होता है, यहोवा की भेंट आधा शेकेल हो। 14 बीस वर्ष के वा उस से अधिक अवस्या के जितने गिने जाएं उन में से एक एक जन यहोवा की भेंट दे। 15 जब तुम्हारे प्राणोंके प्रायश्चित्त के निमित्त यहोवा की भेंट दी जाए, तब न तो धनी लोग आधे शेकेल से अधिक दें, और न कंगाल लोग उस से कम दें। 16 और तू इस्त्राएलियोंसे प्रायश्चित्त का रूपया लेकर मिलापवाले तम्बू के काम में लगाना; जिस से वह यहोवा के सम्मुख इस्त्राएलियोंके स्मरणार्य चिन्ह ठहरे, और उनके प्राणोंका प्रायश्चित्त भी हो।। 17 और यहोवा ने मूसा से कहा, 18 धोने के लिथे पीतल की एक हौदी और उसका पाया पीतल का बनाना। और उसके मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच में रखकर उस में जल भर देना; 19 और उस में हारून और उसके पुत्र अपके अपके हाथ पांव धोया करें। 20 जब जब वे मिलापवाले तम्बू में प्रवेश करें तब तब वे हाथ पांव जल से धोएं, नहीं तो मर जाएंगे; और जब जब वे वेदी के पास सेवा टहल करने, अर्यात् यहोवा के लिथे हव्य जलाने को आएं तब तब वे हाथ पांव धोएं, न हो कि मर जाएं। 21 यह हारून और उसके पीढ़ी पीढ़ी के वंश के लिथे सदा की विधि ठहरे।। 22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 23 तू मुख्य मुख्य सुगन्ध द्रव्य, अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के अनुसार पांच सौ शेकेल अपके आप निकला हुआ गन्धरस, और उसका आधा, अर्यात् अढ़ाई सौ शेकेल सुगन्धित अगर, 24 और पांच सौ शेकेल तज, और एक हीन जलपाई का तेल लेकर 25 उन से अभिषेक का पवित्र तेल, अर्यात् गन्धी की रीति से तैयार किया हुआ सुगन्धित तेल बनवाना; यह अभिषेक का पवित्र तेल ठहरे। 26 और उस से मिलापवाले तम्बू का, और साझीपत्र के सन्दूक का, 27 और सारे सामान समेत मेज़ का, और सामान समेत दीवट का, और धूपकेदी का, 28 और सारे सामान समेत होमवेदी का, और पाए समेत हौदी का अभिषेक करना। 29 और उनको पवित्र करना, जिस से वे परमपवित्र ठहरें; और जो कुछ उन से छू जाएगा वह पवित्र हो जाएगा। 30 फिर हारून का उसके पुत्रोंके साय अभिषेक करना, और इस प्रकार उन्हें मेरे लिथे याजक का काम करने के लिथे पवित्र करना। 31 और इस्त्राएलियोंको मेरी यह आज्ञा सुनाना, कि वह तेल तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे लिथे पवित्र अभिषेक का तेल होगा। 32 वह किसी मनुष्य की देह पर न डाला जाए, और मिलावट में उसके समान और कुछ न बनाना; वह तो पवित्र होगा, वह तुम्हारे लिथे पवित्र होगा। 33 जो कोई उसके समान कुछ बनाए, वा जो कोई उस में से कुछ पराए कुलवाले पर लगाए, वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाए।। 34 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बोल, नखी और कुन्दरू, थे सुगन्ध द्रव्य निर्मल लोबान समेत ले लेना, थे सब एक तौल के हों, 35 और इनका धूप अर्यात् लोन मिलाकर गन्धी की रीति के अनुसार चोखा और पवित्र सुगन्ध द्रव्य बनवाना; 36 फिर उस में से कुछ पीसकर बुकनी कर डालना, तब उस में से कुछ मिलापवाले तम्बू में साझीपत्र के आगे, जहां पर मैं तुझ से मिला करूंगा वहां रखना; वह तुम्हारे लिथे परमपवित्र होगा। 37 और जो धूप तू बनवाएगा, मिलावट में उसके समान तुम लोग अपके लिथे और कुछ न बनवाना; वह तुम्हारे आगे यहोवा के लिथे पवित्र होगा। 38 जो कोई सूंघने के लिथे उसके समान कुछ बनाए वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाए।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 सुन, मैं ऊरी के पुत्र बसलेल को, जो हूर का पोता और यहूदा के गोत्र का है, नाम लेकर बुलाता हूं। 3 और मैं उसको परमेश्वर की आत्मा से जो बुद्धि, प्रवीणता, ज्ञान, और सब प्रकार के कार्योंकी समझ देनेवाली आत्मा है परिपूर्ण करता हूं, 4 जिस से वह कारीगरी के कार्य बुद्धि से निकाल निकालकर सब भांति की बनावट में, अर्यात् सोने, चांदी, और पीतल में, 5 और जड़ने के लिथे मणि काटने में, और लकड़ी के खोदने में काम करे। 6 और सुन, मैं दान के गोत्रवाले अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को उसके संग कर देता हूं; वरन जितने बुद्धिमान है उन सभोंके ह्रृदय में मैं बुद्धि देता हूं, जिस से जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैं ने तुझे दी है उन सभोंको वे बनाएं; 7 अर्यात् मिलापवाला तम्बू, और साझीपत्र का सन्दूक, और उस पर का प्रायश्चित्तवाला ढकना, और तम्बू का सारा सामान, 8 और सामान सहित मेज़, और सारे सामान समेत चोखे सोने की दीवट, और धूपकेदी, 9 और सारे सामान सहित होमवेदी, और पाए समेत हौदी, 10 और काढ़े हुए वस्त्र, और हारून याजक के याजकवाले काम के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रोंके वस्त्र, 11 और अभिषेक का तेल, और पवित्र स्यान के लिथे सुगन्धित धूप, इन सभोंको वे उन सब आज्ञाओं के अनुसार बनाएं जो मैं ने तुझे दी हैं।। 12 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 13 तू इस्त्राएलियोंसे यह भी कहना, कि निश्चय तुम मेरे विश्रमदिनोंको मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे और तुम लोगोंके बीच यह एक चिन्ह ठहरा है, जिस से तुम यह बात जान रखो कि यहोवा हमारा पवित्र करनेहारा है। 14 इस कारण तुम विश्रमदिन को मानना, क्योंकि वह तुम्हारे लिथे पवित्र ठहरा है; जो उसको अपवित्र करे वह निश्चय मार डाला जाए; जो कोई उस दिन में से कुछ कामकाज करे वह प्राणी अपके लोगोंके बीच से नाश किया जाए। 15 छ: दिन तो काम काज किया जाए, पर सातवां दिन परमविश्रम का दिन और यहोवा के लिथे पवित्र है; इसलिथे जो कोई विश्रम के दिन में कुछ काम काज करे वह निश्चय मार डाला जाए। 16 सो इस्त्राएली विश्रमदिन को माना करें, वरन पीढ़ी पीढ़ी में उसको सदा की वाचा का विषय जानकर माना करें। 17 वह मेरे और इस्त्राएलियोंके बीच सदा एक चिन्ह रहेगा, क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश और पृय्वी को बनाया, और सातवें दिन विश्रम करके अपना जी ठण्डा किया।। 18 जब परमेश्वर मूसा से सीनै पर्वत पर ऐसी बातें कर चुका, तब उस ने उसको अपक्की उंगली से लिखी हुई साझी देनेवाली पत्यर की दोनोंतख्तियां दी।।
1 जब लोगोंने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, अब हमारे लिथे देवता बना, जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ? 2 हारून ने उन से कहा, तुम्हारी स्त्रियोंऔर बेटे बेटियोंके कानोंमें सोने की जो बालियां है उन्हें तोड़कर उतारो, और मेरे पास ले आओ। 3 तब सब लोगोंने उनके कानोंसे सोने की बालियोंको तोड़कर उतारा, और हारून के पास ले आए। 4 और हारून ने उन्हें उनके हाथ से लिया, और एक बछड़ा ढालकर बनाया, और टांकी से गढ़ा; तब वे कहने लगे, कि हे इस्त्राएल तेरा परमेश्वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है वह यही है। 5 यह देखके हारून ने उसके आगे एक वेदी बनवाई; और यह प्रचार किया, कि कल यहोवा के लिथे पर्ब्ब होगा। 6 और दूसरे दिन लोगोंने तड़के उठकर होमबलि चढ़ाए, और मेलबलि ले आए; फिर बैठकर खाया पिया, और उठकर खेलने लगे।। 7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, नीचे उतर जा, क्योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल ले आया है, सो बिगड़ गए हैं; 8 और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उनको दी यी उसको फटपट छोड़कर उन्होंने एक बछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत् किया, और उसके लिथे बलिदान भी चढ़ाया, और यह कहा है, कि हे इस्त्राएलियोंतुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा ले आया है वह यही है। 9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, मैं ने इन लोगोंको देखा, और सुन, वे हठीले हैं। 10 अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिस से मैं उन्हें भस्म करूं; परन्तु तुझ से एक बड़ी जाति उपजाऊंगा। 11 तब मूसा अपके परमेश्वर यहोवा को यह कहके मनाने लगा, कि हे यहोवा, तेरा कोप अपक्की प्रजा पर क्योंभड़का है, जिसे तू बड़े सामर्य्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है? 12 मिस्री लोग यह क्योंकहने पाए, कि वह उनको बुरे अभिप्राय से, अर्यात् पहाड़ोंमें घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया? तू अपके भड़के हुए कोप को शांत कर, और अपक्की प्रजा को ऐसी हानि पहुचाने से फिर जा। 13 अपके दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर, जिन से तू ने अपक्की ही किरिया खाकर यह कहा या, कि मै तुम्हारे वंश को आकाश के तारोंके तुल्य बहुत करूंगा, और यह सारा देश जिसकी मैं ने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूंगा, कि वह उसके अधिक्कारनेी सदैव बने रहें। 14 तब यहोवा अपक्की प्रजा की हानि करने से जो उन ने कहा या पछताया।। 15 तब मूसा फिरकर साझी की दानोंतख्तियोंको हाथ में लिथे हुए पहाड़ से उतर गया, उन तख्तियोंके तो इधर और उधर दोनोंअलंगोंपर कुछ लिखा हुआ या। 16 और वे तख्तियां परमेश्वर की बनाई हुई यीं, और उन पर जो खोदकर लिखा हुआ या वह परमेश्वर का लिखा हुआ या।। 17 जब यहोशू को लोगोंके कोलाहल का शब्द सुनाई पड़ा, तब उस ने मूसा से कहा, छावनी से लड़ाई का सा शब्द सुनाई देता है। 18 उस ने कहा, वह जो शब्द है वह न तो जीतनेवालोंका है, और न हारनेवालोंका, मुझे तो गाने का शब्द सुन पड़ता है। 19 छावनी के पास आते ही मूसा को वह बछड़ा और नाचना देख पड़ा, तब मूसा का कोप भड़क उठा, और उस ने तख्तियोंको अपके हाथोंसे पर्वत के नीचे पटककर तोड़ डाला। 20 तब उस ने उनके बनाए हुए बछड़े को लेकर आग में डालके फूंक दिया। और पीसकर चूर चूर कर डाला, और जल के ऊपर फेंक दिया, और इस्त्राएलियोंको उसे पिलवा दिया। 21 तब मूसा हारून से कहने लगा, उन लोगोंने तुझ से क्या किया कि तू ने उनको इतने बड़े पाप में फंसाया? 22 हारून ने उत्तर दिया, मेरे प्रभु का कोप न भड़के; तू तो उन लोगोंको जानता ही है कि वे बुराई में मन लगाए रहते हैं। 23 और उन्होंने मुझ से कहा, कि हमारे लिथे देवता बनवा जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरूष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ? 24 तब मैं ने उन से कहा, जिस जिसके पास सोने के गहनें हों, वे उनको तोड़कर उतार लाएं; और जब उन्होंने मुझ को दिया, मैं ने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा 25 हारून ने उन लोगोंको ऐसा निरंकुश कर दिया या कि वे अपके विरोधियोंके बीच उपहास के योग्य हुए, 26 उनको निरंकुश देखकर मूसा ने छावनी के निकास पर खड़े होकर कहा, जो कोई यहोवा की ओर का हो वह मेरे पास आए; तब सारे लेवीय उस के पास इकट्ठे हुए। 27 उस ने उन से कहा, इस्त्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि अपक्की अपक्की जांघ पर तलवार लटका कर छावनी से एक निकास से दूसरे निकास तक घूम घूमकर अपके अपके भाइयों, संगियों, और पड़ोसिक्कों घात करो। 28 मूसा के इस वचन के अनुसार लेवियोंने किया और उस दिन तीन हजार के अटकल लोग मारे गए। 29 फिर मूसा ने कहा, आज के दिन यहोवा के लिथे अपना याजकपद का संस्कार करो, वरन अपके अपके बेटोंऔर भाइयोंके भी विरूद्ध होकर ऐसा करो जिस से वह आज तुम को आशीष दे। 30 दूसरे दिन मूसा ने लोगोंसे कहा, तुम ने बड़ा ही पाप किया है। अब मैं यहोवा के पास चढ़ जाऊंगा; सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित्त कर सकूं। 31 तब मूसा यहोवा के पास जाकर कहने लगा, कि हाथ, हाथ, उन लोगोंने सोने का देवता बनवाकर बड़ा ही पाप किया है। 32 तौभी अब तू उनका पाप झमा कर नहीं तो अपक्की लिखी हुई पुस्तक में से मेरे नाम को काट दे। 33 यहोवा ने मूसा से कहा, जिस ने मेरे विरूद्ध पाप किया है उसी का नाम मैं अपक्की पुस्तक में से काट दूंगा। 34 अब तो तू जाकर उन लोगोंको उस स्यान में ले चल जिसकी चर्चा मैं ने तुझ से की यी; देख मेरा दूत तेरे आगे आगे चलेगा। परन्तु जिस दिन मैं दण्ड देने लगूंगा उस दिन उनको इस पाप का भी दण्ड दूंगा। 35 और यहोवा ने उन लोगोंपर विपत्ति डाली, क्योंकि हारून के बनाए हुए बछड़े को उन्हीं ने बनवाया या।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, तू उन लोगोंको जिन्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है संग लेकर उस देश को जा, जिसके विषय मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपय खाकर कहा या, कि मैं उसे तुम्हारे वंश को दूंगा। 2 और मैं तेरे आगे आगे एक दूत को भेजूंगा, और कनानी, एमोरी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगोंको बरबस निकाल दूंगा। 3 तुम लोग उस देश को जाओ जिस में दूध और मधु की धारा बहती है; परन्तु तुम हठीले हो, इस कारण मैं तुम्हारे बीच में होके न चलूंगा, ऐसा न हो कि मैं मार्ग में तुम्हारा अन्त कर डालूं। 4 यह बुरा समाचार सुनकर वे लोग विलाप करने लगे; और कोई अपके गहने पहिने हुए न रहा। 5 क्योंकि यहोवा ने मूसा से कह दिया या, कि इस्त्राएलियोंको मेरा यह वचन सुना, कि तुम लोग तो हठीले हो; जो मै पल भर के लिथे तुम्हारे बीच होकर चलूं, तो तुम्हारा अन्त कर डालूंगा। इसलिथे अब अपके अपके गहने अपके अंगोंसे उतार दो, कि मैं जानूं कि तुम्हारे साय क्या करना चाहिए। 6 तब इस्त्राएली होरेब पर्वत से लेकर आगे को अपके गहने उतारे रहे।। 7 मूसा तम्बू को छावनी से बाहर वरन दूर खड़ा कराया करता या, और उसको मिलापवाला तम्बू कहता या। और जो कोई यहोवा को ढूंढ़ता वह उस मिलापवाले तम्बू के पास जो छावनी के बाहर या निकल जाता या। 8 और जब जब मूसा तम्बू के पास जाता, तब तब सब लोग उठकर अपके अपके डेरे के द्वार पर खड़े हो जाते, और जब तक मूसा उस तम्बू में प्रवेश न करता या तब तक उसकी ओर ताकते रहते थे। 9 और जब मूसा उस तम्बू में प्रवेश करता या, तब बादल का खम्भा उतर के तम्बू के द्वार पर ठहर जाता या, और यहोवा मूसा से बातें करने लगता या। 10 और सब लोग जब बादल के खम्भे को तम्बू के द्वार पर ठहरा देखते थे, तब उठकर अपके अपके डेरे के द्वार पर से दण्डवत् करते थे। 11 और यहोवा मूसा से इस प्रकार आम्हने-साम्हने बातें करता या, जिस प्रकार कोई अपके भाई से बातें करे। और मूसा तो छावनी में फिर आता या, पर यहोशू नाम एक जवान, जो नून का पुत्र और मूसा का टहलुआ या, वह तम्बू में से न निकलता या।। 12 और मूसा ने यहोवा से कहा, सुन तू मुझ से कहता है, कि इन लोगोंको ले चल; परन्तु यह नहीं बताया कि तू मेरे संग किसको भेजेगा। तौभी तू ने कहा है, कि तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है, और तुझ पर मेरे अनुग्रह की दृष्टि है। 13 और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे अपक्की गति समझा दे, जिस से जब मैं तेरा ज्ञान पाऊं तब तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। फिर इसकी भी सुधि कर कि यह जाति तेरी प्रजा है। 14 यहोवा ने कहा, मैं आप चलूंगा और तुझे विश्रम दूंगा। 15 उस ने उस से कहा, यदि तू आप न चले, तो हमें यहां से आगे न ले जा। 16 यह कैसे जाना जाए कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर और अपक्की प्रजा पर है? क्या इस से नहीं कि तू हमारे संग संग चले, जिस से मैं और तेरी प्रजा के लोग पृय्वी भर के सब लोगोंसे अलग ठहरें? 17 यहोवा ने मूसा से कहा, मैं यह काम भी जिसकी चर्चा तू ने की है करूंगा; कयोंकि मेरे अनुग्रह की दृष्टि तुझ पर है, और तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है। 18 उस ने कहा मुझे अपना तेज दिखा दे। 19 उस ने कहा, मैं तेरे सम्मुख होकर चलते हुए तुझे अपक्की सारी भलाई दिखाऊंगा, और तेरे सम्मुख यहोवा नाम का प्रचार करूंगा, और जिस पर मैं अनुग्रह करना चाहूं उसी पर अनुग्रह करूंगा, और जिस पर दया करना चांहू उसी पर दया करूंगा। 20 फिर उस ने कहा, तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता। 21 फिर यहोवा ने कहा, सुन, मेरे पास एक स्यान है, तू उस चट्टान पर खड़ा हो; 22 और जब तक मेरा तेज तेरे साम्हने होके चलता रहे तब तक मै तुझे चट्टान के दरार में रखूंगा, और जब तक मैं तेरे साम्हने होकर न निकल जाऊं तब तक अपके हाथ से तुझे ढांपे रहूंगा; 23 फिर मैं अपना हाथ उठा लूंगा, तब तू मेरी पीठ का तो दर्शन पाएगा, परन्तु मेरे मुख का दर्शन नहीं मिलेगा।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, पहिली तख्तियोंके समान पत्यर की दो और तख्तियां गढ़ ले; तब जो वचन उन पहिली तख्तियोंपर लिखे थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, वे ही वचन मैं उन तख्तियोंपर भी लिखूंगा। 2 और बिहान को तैयार रहना, और भोर को सीनै पर्वत पर चढ़कर उसकी चोटी पर मेरे साम्हने खड़ा होना। 3 और तेरे संग कोई न चढ़ पाए, वरन पर्वत भर पर कोई मनुष्य कहीं दिखाई न दे; और न भेड़-बकरी और गाय-बैल भी पर्वत के आगे चरते पाएं। 4 तब मूसा ने पहिली तख्तियोंके समान दो और तख्तियां गढ़ी; और बिहान को सवेरे उठकर अपके हाथ में पत्यर की वे दोनोंतख्तियां लेकर यहोवा की आज्ञा के अनुसार पर्वत पर चढ़ गया। 5 तब यहोवा ने बादल में उतरके उसके संग वहां खड़ा होकर यहोवा नाम का प्रचार किया। 6 और यहोवा उसके साम्हने होकर योंप्रचार करता हुआ चला, कि यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करूणामय और सत्य, 7 हजारोंपीढिय़ोंतब निरन्तर करूणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का झमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा, वह पितरोंके अधर्म का दण्ड उनके बेटोंवरन पोतोंऔर परपोतोंको भी देनेवाला है। 8 तब मूसा ने फुर्ती कर पृय्वी की ओर फुककर दण्डवत् की। 9 और उस ने कहा, हे प्रभु, यदि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो प्रभु, हम लोगोंके बीच में होकर चले, थे लोग हठीले तो हैं, तौभी हमारे अधर्म और पाप को झमा कर, और हमें अपना निज भाग मानके ग्रहण कर। 10 उस ने कहा, सुन, मैं एक वाचा बान्धता हूं। तेरे सब लोगोंके साम्हने मैं ऐसे आश्चर्य कर्म करूंगा जैसा पृय्वी पर और सब जातियोंमें कभी नहीं हुए; और वे सारे लोग जिनके बीच तू रहता है यहोवा के कार्य को देखेंगे; क्योंकि जो मैं तुम लोगोंसे करने पर हूं वह भय योग्य काम है। 11 जो आज्ञा मैं आज तुम्हें देता हूं उसे तुम लोग मानना। देखो, मैं तुम्हारे आगे से एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगोंको निकालता हूं। 12 इसलिथे सावधान रहना कि जिस देश में तू जानेवाला है उसके निवासिक्कों वाचा न बान्धना; कहीं ऐसा न हो कि वह तेरे लिथे फंदा ठहरे। 13 वरन उनकी वेदियोंको गिरा देना, उनकी लाठोंको तोड़ डालना, और उनकी अशेरा नाम मूतिर्योंको काट डालना; 14 क्योंकि तुम्हें किसी दूसरे को ईश्वर करके दण्डवत् करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है, वह जल उठनेवाला ईश्वर है ही, 15 ऐसा न हो कि तू उस देश के निवासिक्कों वाचा बान्धे, और वे अपके देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करें, और उनके लिथे बलिदान भी करें, और कोई तुझे नेवता दे और तू भी उसके बलिपशु का प्रसाद खाए, 16 और तू उनकी बेटियोंको अपके बेटोंके लिथे लावे, और उनकी बेटियां जो आप अपके देवताओं के पीछे होने का व्यभिचार करती है तेरे बेटोंसे भी अपके देवताओं के पीछे होने को व्यभिचार करवाएं। 17 तुम देवताओं की मूत्तियां ढालकर न बना लेना। 18 अखमीरी रोटी का पर्ब्ब मानना। उस में मेरी आज्ञा के अनुसार आबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना; क्योंकि तू मिस्र से आबीब महीने में निकल आया। 19 हर एक पहिलौठा मेरा है; और क्या बछड़ा, क्या मेम्ना, तेरे पशुओं में से जो नर पहिलौठे होंवे सब मेरे ही हैं। 20 और गदही के पहिलौठे की सन्ती मेम्ना देकर उसको छुड़ाना, यदि तू उसे छुड़ाना न चाहे तो उसकी गर्दन तोड़ देना। परन्तु अपके सब पहिलौठे बेटोंको बदला देकर छुड़ाना। मुझे कोई छूछे हाथ अपना मुंह न दिखाए। 21 छ: दिन तो परिश्र्म करना, परन्तु सातवें दिन विश्रम करना; वरन हल जोतने और लवने के समय में भी विश्रम करना। 22 और तू अठवारोंका पर्ब्ब मानना जो पहिले लवे हुए गेहूं का पर्ब्ब कहलाता है, और वर्ष के अन्त में बटोरन का भी पर्ब्ब मानना। 23 वर्ष में तीन बार तेरे सब पुरूष इस्त्राएल के परमेश्वर प्रभु यहोवा को अपके मुंह दिखाएं। 24 मैं तो अन्यजातियोंको तेरे आगे से निकालकर तेरे सिवानोंको बढ़ाऊंगा; और जब तू अपके परमेश्वर यहोवा को अपना मुंह दिखाने के लिथे वर्ष में तीन बार आया करे, तब कोई तेरी भूमि का लालच न करेगा। 25 मेरे बलिदान के लोहू को खमीर सहित न चढ़ाना, और न फसह के पर्ब्ब के बलिदान में से कुछ बिहान तक रहने देना। 26 अपक्की भूमि की पहिली उपज का पहिला भाग अपके परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी के बच्चे को उसकी मां के दूध में ने सिफाना। 27 और यहोवा ने मूसा से कहा, थे वचन लिख ले; क्योंकि इन्हीं वचनोंके अनुसार मैं तेरे और इस्त्राएल के साय वाचा बान्धता हूं। 28 मूसा तो वहां यहोवा के संग चालीस दिन और रात रहा; और तब तक न तो उस ने रोटी खाई और न पानी पिया। और उस ने उन तख्तियोंपर वाचा के वचन अर्यात् दस आज्ञाएं लिख दीं।। 29 जब मूसा साझी की दोनोंतख्तियां हाथ में लिथे हुए सीनै पर्वत से उतरा आता या तब यहोवा के साय बातें करने के कारण उसके चेहरे से किरणें निकल रही यी।, परन्तु वह यह नहीं जानता या कि उसके चेहरे से किरणें निकल रही हैं। 30 जब हारून और सब इस्त्राएलियोंने मूसा को देखा कि उसके चेहरे से किरणें निकलती हैं, तब वे उसके पास जाने से डर गए। 31 तब मूसा ने उनको बुलाया; और हारून मण्डली के सारे प्रधानोंसमेत उसके पास आया, और मूसा उन से बातें करने लगा। 32 इसके बाद सब इस्त्राएली पास आए, और जितनी आज्ञाएं यहोवा ने सीनै पर्वत पर उसके साय बात करने के समय दी यीं, वे सब उस ने उन्हें बताईं। 33 जब तक मूसा उन से बात न कर चुका तब तक अपके मुंह पर ओढ़ना डाले रहा। 34 और जब जब मूसा भीतर यहोवा से बात करने को उसके साम्हने जाता तब तब वह उस ओढ़नी को निकलते समय तक उतारे हुए रहता या; फिर बाहर आकर जो जो आज्ञा उसे मिलती उन्हें इस्त्राएलियोंसे कह देता या। 35 सो इस्त्राएली मूसा का चेहरा देखते थे कि उस से किरणें निकलती हैं; और जब तक वह यहोवा से बात करने को भीतर न जाता तब तक वह उस ओढ़नी को डाले रहता या।।
1 मूसा ने इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली इकट्ठी करके उन से कहा, जिन कामोंके करने की आज्ञा यहोवा ने दी है वे थे हैं। 2 छ: दिन तो काम काज किया जाए, परन्तु सातवां दिन तुम्हारे लिथे पवित्र और यहोवा के लिथे परमविश्रम का दिन ठहरे; उस में जो कोई काम काज करे वह मार डाला जाए; 3 वरन विश्रम के दिन तुम अपके अपके घरोंमें आग तक न जलाना।। 4 फिर मूसा ने इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली से कहा, जिस बात की आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है। 5 तुम्हारे पास से यहोवा के लिथे भेंट ली जाए, अर्यात् जितने अपक्की इच्छा से देना चाहें वे यहोवा की भेंट करके थे वस्तुएं ले आएं; अर्यात् सोना, रूपा, पीतल; 6 नीले, बैंजनी और लाल रंग का कपड़ा, सूझ्म सनी का कपड़ा; बकरी का बाल, 7 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ोंकी खालें, सुइसोंकी खालें; बबूल की लकड़ी, 8 उजियाला देने के लिथे तेल, अभिषेक का तेल, और धूप के लिथे सुगन्धद्रव्य, 9 फिर एपोद और चपरास के लिथे सुलैमानी मणि और जड़ने के लिथे मणि। 10 और तुम में से जितनोंके ह्रृदय में बुद्धि का प्रकाश है वे सब आकर जिस जिस वस्तु की आज्ञा यहोवा ने दी है वे सब बनाएं। 11 अर्यात् तम्बू, और ओहार समेत निवास, और उसकी घुंडी, तख्ते, बेंड़े, खम्भे और कुसिर्यां; 12 फिर डण्डोंसमेत सन्दूक, और प्रायश्चित्त का ढकना, और बीचवाला पर्दा; 13 डण्डोंऔर सब सामान समेत मेज़, और भेंट की रोटियां; 14 सामान और दीपकोंसमेत उजियाला देनेवाला दीवट, और उजियाला देने के लिथे तेल; 15 डण्डोंसमेत धूपकेदी, अभिषेक का तेल, सुगन्धित धूप, और निवास के द्वार का पर्दा; 16 पीतल की फंफरी, डण्डोंआदि सारे सामान समेत होमवेदी, पाए समेत होदी; 17 खम्भोंऔर उनकी कुसिर्योंसमेत आंगन के पर्दे, और आंगन के द्वार के पर्दे; 18 निवास और आंगन दोनोंके खूंटे, और डोरियां; 19 पवित्रस्यान में सेवा टहल करने के लिथे काढ़े हुए वस्त्र, और याजक का काम करने के लिथे हारून याजक के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रोंके वस्त्र भी।। 20 तब इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली मूसा के साम्हने से लौट गई। 21 और जितनोंको उत्साह हुआ, और जितनोंके मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई यी, वे मिलापवाले तम्बू के काम करने और उसकी सारी सेवकाई और पवित्र वोंके बनाने के लिथे यहोवा की भेंट ले आने लगे। 22 क्या स्त्री, क्या पुरूष, जितनोंके मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई भी वे सब जुगनू, नयुनी, मुंदरी, और कंगन आदि सोने के गहने ले आने लगे, इस भंाति जितने मनुष्य यहोवा के लिथे सोने की भेंट के देनेवाले थे वे सब उनको ले आए। 23 और जिस जिस पुरूष के पास नीले, बैंजनी वा लाल रंग का कपड़ा वा सूझ्म सनी का कपड़ा, वा बकरी का बाल, वा लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ोंकी खालें, वा सूइसोंकी खालें यी वे उन्हें ले आए। 24 फिर जितने चांदी, वा पीतल की भेंट के देनेवाले थे वे यहोवा के लिथे वैसी भेंट ले आए; और जिस जिसके पास सेवकाई के किसी काम के लिथे बबूल की लकड़ी यी वे उसे ले आए। 25 और जितनी स्त्रियोंके ह्रृदय में बुद्धि का प्रकाश या वे अपके हाथोंसे सूत कात कातकर नीले, बैंजनी और लाल रंग के, और सूझ्म सनी के काते हुए सूत को ले आई। 26 और जितनी स्त्रियोंके मन में ऐसी बुद्धि का प्रकाश या उन्हो ने बकरी के बाल भी काते। 27 और प्रधान लोग एपोद और चपरास के लिथे सुलैमानी मणि, और जड़ने के लिथे मणि, 28 और उजियाला देने और अभिषेक और धूप के सुगन्धद्रव्य और तेल ले आथे। 29 जिस जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी यी उसके लिथे जो कुछ आवश्यक या, उसे वे सब पुरूष और स्त्रियां ले आई, जिनके ह्रृदय में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई यी। इस प्रकार इस्त्राएली यहोवा के लिथे अपक्की ही इच्छा से भेंट ले आए।। 30 तब मूसा ने इस्त्राएलियोंसे कहा सुनो, यहोवा ने यहूदा के गोत्रवाले बसलेल को, जो ऊरी का पुत्र और हूर का पोता है, नाम लेकर बुलाया है। 31 और उस ने उसको परमेश्वर के आत्मा से ऐसा परिपूर्ण किया हे कि सब प्रकार की बनावट के लिथे उसको ऐसी बुद्धि, समझ, और ज्ञान मिला है, 32 कि वह कारीगरी की युक्तियां निकालकर सोने, चांदी, और पीतल में, 33 और जड़ने के लिथे मणि काटने में और लकड़ी के खोदने में, वरन बुद्धि से सब भांति की निकाली हुई बनावट में काम कर सके। 34 फिर यहोवा ने उसके मन में और दान के गोत्रवाले अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब के मन में भी शिझा देने की शक्ति दी है। 35 इन दोनोंके ह्रृदय को यहोवा ने ऐसी बुद्धि से परिपूर्ण किया है, कि वे खोदने और गढ़ने और नीले, बैजनी और लाल रंग के कपके, और सूझ्म सनी के कपके में काढ़ने और बुनने, वरन सब प्रकार की बनावट में, और बुद्धि से काम निकालने में सब भांति के काम करें।।
1 और बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमान जिनको यहोवा ने ऐसी बुद्धि और समझ दी हो, कि वे यहोवा की सारी आज्ञाओं के अनुसार पवित्रस्यान की सेवकाई के लिथे सब प्रकार का काम करना जानें, वे सब यह काम करें।। 2 तब मूसा ने बसलेल और ओहोलीआब और सब बुद्धिमानोंको जिनके ह्रृदय में यहोवा ने बुद्धि का प्रकाश दिया या, अर्यात् जिस जिसको पास आकर काम करने का उत्साह हुआ या उन सभोंको बुलवाया। 3 और इस्त्राएली जो जो भेंट पवित्रस्यान की सेवकाई के काम और उसके बनाने के लिथे ले आए थे, उन्हें उन पुरूषोंने मूसा के हाथ से ले लिया। तब भी लोग प्रति भोर को उसके पास भेंट अपक्की इच्छा से लाते रहें; 4 और जितने बुद्धिमान पवित्रस्यान का काम करते थे वे सब अपना अपना काम छोड़कर मूसा के पास आए, 5 और कहने लगे, जिस काम के करने की आज्ञा यहोवा ने दी है उसके लिथे जितना चाहिथे उससे अधिक वे ले आए हैं। 6 तब मूसा ने सारी छावनी में इस आज्ञा का प्रचार करवाया, कि क्या पुरूष, क्या स्त्री, कोई पवित्रस्यान के लिथे और भेंट न लाए, इस प्रकार लोग और भेंट लाने से रोके गए। 7 क्योंकि सब काम बनाने के लिथे जितना सामान आवश्यक या उतना वरन उससे अधिक बनाने वालोंके पास आ चुका या।। 8 और काम करनेवाले जितने बुद्धिमान थे उन्होंने निवास के लिथे बटी हुई सूझ्म सनी के कपके के, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके के दस पटोंको काढ़े हुए करूबोंसहित बनाया। 9 एक एक पट की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; सब पट एक ही नाप के बने। 10 उस ने पांच पट एक दूसरे से जोड़ दिए, और फिर दूसरे पांच पट भी एक दूसरे से जोड़ दिए। 11 और जहां थे पट जोड़े गए वहां की दोनोंछोरोंपर उस ने पीली नीली फलियां लगाईं। 12 उस ने दोनोंछोरोंमें पचास पचास फलियां इस प्रकार लगाई कि वे आम्हने-साम्हने हुई। 13 और उस ने सोने की पचास घुंडियां बनाई, और उनके द्वारा पटोंको एक दूसरे से ऐसा जोड़ा कि निवास मिलकर एक हो गया। 14 फिर निवास के ऊपर के तम्बू के लिथे उस ने बकरी के बाल के ग्यारह पट बनाए। 15 एक एक पट की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हुई; और ग्यारहोंपट एक ही नाप के थे। 16 इन में से उस ने पांच पट अलग और छ: पट अलग जोड़ दिए। 17 और जहां दोनोंजोड़े गए वहां की छोरोंमें उस ने पचास पचास फलियां लगाईं। 18 और उस ने तम्बू के जोड़ने के लिथे पीतल की पचास घुंडियां भी बनाई जिस से वह एक हो जाए। 19 और उस ने तम्बू के लिथे लाल रंग से रंगी हुई मेंढ़ोंकी खालोंका एक ओढ़ना और उसके ऊपर के लिथे सूइसोंकी खालोंका भी एक ओढ़ना बनाया। 20 फिर उस ने निवास के लिथे बबूल की लकड़ी के तख्तोंको खड़े रहने के लिथे बनाया। 21 एक एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हुई। 22 एक एक तख्ते में एक दूसरी से जोड़ी हुई दो दो चूलें बनीं, निवास के सब तख्तोंके लिथें उस ने इसी भंाति बनाईं। 23 और उस ने निवास के लिथे तख्तोंको इस रीति से बनाया, कि दक्खिन की ओर बीस तख्ते लगे। 24 और इन बीसोंतख्तोंके नीचे चांदी की चालीस कुसिर्यां, अर्यात् एक एक तख्ते के नीचे उसकी दो चूलोंके लिथे उस ने दो कुसिर्यां बनाईं। 25 और निवास की दूसरी अलंग, अर्यात् उत्तर की ओर के लिथे भी उस ने बीस तख्ते बनाए। 26 और इनके लिथे भी उस ने चांदी की चालीस कुसिर्यां, अर्यात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां बनाईं। 27 और निवास की पिछली अलंग, अर्यात् पश्चिम ओर के लिथे उस ने छ: तख्ते बनाए। 28 और पिछली अलंग में निवास के कोनोंके लिथे उस ने दो तख्ते बनाए। 29 और वे नीचे से दो दो भाग के बने, और दोनोंभाग ऊपर से सिक्के तक उन दोनोंतख्तोंका ढब ऐसा ही बनाया। 30 इस प्रकार आठ तख्ते हुए, और उनकी चांदी की सोलह कुसिर्यां हुईं, अर्यात् एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हुईं। 31 फिर उस ने बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनाए, अर्यात् निवास की एक अलंग के तख्तोंके लिथे पांच बेंड़े, 32 और निवास की दूसरी अलंग के तख्तोंके लिथे पांच बेंड़े, और निवास की जो अलंग पश्चिम ओर पिछले भाग में यी उसके लिथे भी पांच बेंड़े, बनाए। 33 और उस ने बीचवाले बेंड़े को तख्तोंके मध्य में तम्बू के एक सिक्के से दूसरे सिक्के तक पहुंचने के लिथे बनाया। 34 और तख्तोंको उस ने सोने से मढ़ा, और बेंड़ोंके घर को काम देनेवाले कड़ोंको सोने के बनाया, और बेंड़ोंको भी सोने से मढ़ा।। 35 फिर उस ने नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का, और बटी हुई सूझ्म सनीवाले कपके का बीचवाला पर्दा बनाया; वह कढ़ाई के काम किथे हुए करूबोंके साय बना। 36 और उस ने उसके लिथे बबूल के चार खम्भे बनाए, और उनको सोने से मढ़ा; उनकी घुंडियां सोने की बनी, और उस ने उनके लिथे चांदी की चार कुसिर्यां ढालीं। 37 और उस ने तम्बू के द्वार के लिथे नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का, और बटी हुई सूझ्म सनी के कपके का कढ़ाई का काम किया हुआ पर्दा बनाया। 38 और उस ने घुंडियोंसमेत उसके पांच खम्भे भी बनाए, और उनके सिरोंऔर जोड़ने की छड़ोंको सोने से मढ़ा, और उनकी पांच कुसिर्यां पीतल की बनाईं।।
1 फिर बसलेल ने बबूल की लकड़ी का सन्दूक बनाया; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, चौड़ाई डेढ़ हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की यी। 2 और उस ने उसको भीतर बाहर चोखे सोने से मढ़ा, और उसके चारोंओर सोने की बाड़ बनाई। 3 और उसके चारोंपायोंपर लगाने को उस ने सोने के चार कड़े ढ़ाले, दो कड़े एक अलंग और दो कड़े दूसरी अलंग पर लगे। 4 फिर उस ने बबूल के डण्डे बनाए, और उन्हें सोने से मढ़ा, 5 और उनको सन्दूक की दोनो अलंगोंके कड़ोंमें डाला कि उनके बल सन्दूक उठाया जाए। 6 फिर उस ने चोखे सोने के प्रायश्चित्तवाले ढकने को बनाया; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की यी। 7 और उस ने सोना गढ़कर दो करूब प्रायश्चित्त के ढकने के दानोंसिरोंपर बनाए; 8 एक करूब तो एक सिक्के पर, और दूसरा करूब दूसरे सिक्के पर बना; उस ने उनको प्रायश्चित्त के ढकने के साय एक ही टुकड़े के दोनोंसिरोंपर बनाया। 9 और करूबोंके पंख ऊपर से फैले हुए बने, और उन पंखोंसे प्रायश्चित्त का ढकना ढपा हुआ बना, और उनके मुख आम्हने-साम्हने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर किए हुए बने।। 10 फिर उस ने बबूल की लकड़ी की मेज़ को बनाया; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की यी; 11 और उस ने उसको चोखे सोने से मढ़ा, और उस में चारोंओर सोने की एक बाड़ बनाई। 12 और उस ने उसके लिथे चार अंगुल चौड़ी एक पटरी, और इस पटरी के लिथे चारोंओर सोने की एक बाड़ बनाई। 13 और उस ने मेज़ के लिथे सोने के चार कड़े ढालकर उन चारोंकोनोंमें लगाया, जो उसके चारोंपायोंपर थे। 14 वे कड़े पटरी के पास मेज़ उठाने के डण्डोंके खानोंका काम देने को बने। 15 और उस ने मेज़ उठाने के लिथे डण्डोंको बबूल की लकड़ी के बनाया, और सोने से मढ़ा। 16 और उस ने मेज़ पर का सामान अर्यात् परात, धूपदान, कटोरे, और उंडेलने के बर्तन सब चोखे सोने के बनाए।। 17 फिर उस ने चोखा सोना गढ़के पाए और डण्डी समेत दीवट को बनाया; उसके पुष्पकोष, गांठ, और फूल सब एक ही टुकड़े के बने। 18 और दीवट से निकली हुई छ: डालियां बनीं; तीन डालियां तो उसकी एक अलंग से और तीन डालियां उसकी दूसरी अलंग से निकली हुई बनीं। 19 एक एक डाली में बादाम के फूल के सरीखे तीन तीन पुष्पकोष, एक एक गांठ, और एक एक फूल बना; दीवट से निकली हुई, उन छहोंडालियोंका यही ढब हुआ। 20 और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के सामान अपक्की अपक्की गांठ और फूल समेत चार पुष्पकोष बने। 21 और दीवट से निकली हुई छहोंडालियोंमें से दो दो डालियोंके नीचे एक एक गांठ दीवट के साय एक ही टुकड़े की बनी। 22 गांठे और डालियां सब दीवट के साय एक ही टुकड़े की बनीं; सारा दीवट गढ़े हुए चोखे सोने का और एक ही टुकड़े का बना। 23 और उस ने दीवट के सातोंदीपक, और गुलतराश, और गुलदान, चोखे सोने के बनाए। 24 उस ने सारे सामान समेत दीवट को किक्कार भर सोने का बनाया।। 25 फिर उस ने बबूल की लकड़ी की धूपकेदी भी बनाई; उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ ही यी; वह चौकोर बनी, और उसकी ऊंचाई एक हाथ की यी; वह चौकोर बनी, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की यी; और उसके सींग उसके साय बिना जोड़ के बने थे 26 और ऊपरवाले पल्लों, और चारोंओर की अलंगों, और सींगो समेत उस ने उस वेदी को चोखे सोने से मढ़ा; और उसकी चारोंओर सोने की एक बाड़ बनाई, 27 और उस बाड़ के नीचे उसके दोनोंपल्लोंपर उस ने सोने के दो कड़े बनाए, जो उसके उठाने के डण्डोंके खानोंका काम दें। 28 और डण्डोंको उस ने बबूल की लकड़ी का बनाया, और सोने से मढ़ा। 29 और उस ने अभिषेक का पवित्र तेल, और सुगन्धद्रव्य का धूप, गन्धी की रीति के अनुसार बनाया।।
1 फिर उस ने बबूल की लकड़ी की होमबलि भी बनाई; उसकी लम्बाई पांच हाथ और चौड़ाई पांच हाथ की यी; इस प्रकार से वह चौकोर बनी, और ऊंचाई तीन हाथ की यी। 2 और उस ने उसके चारोंकोनोंपर उसके चार सींग बनाए, वे उसके साय बिना जोड़ के बने; और उस ने उसको पीतल से मढ़ा। 3 और उस ने वेदी का सारा सामान, अर्यात् उसकी हांडिय़ों, फावडिय़ों, कटोरों, कांटों, और करछोंको बनाया। उसका सारा सामान उस ने पीतल का बनाया। 4 और वेदी के लिथे उसके चारोंओर की कंगनी के तले उस ने पीतल की जाली की एक फंफरी बनाई, वह नीचे से वेदी की ऊंचाई के मध्य तक पहुंची। 5 और उस ने पीतल की फंफरी के चारोंकोनोंके लिथे चार कड़े ढाले, जो डण्डोंके खानोंका काम दें। 6 फिर उस ने डण्डोंको बबूल की लकड़ी का बनाया, और पीतल से मढ़ा। 7 तब उस ने डण्डोंको वेदी की अलंगोंके कड़ोंमें वेदी के उठाने के लिथे डाल दिया। वेदी को उस ने तख्तोंसे खोखली बनाया।। 8 और उसे ने हौदी और उसका पाया दोनोंपीतल के बनाए, यह मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करनेवाली महिलाओं के दर्पणोंके लिथे पीतल के बनाए गए।। 9 फिर उस ने आंगन बनाया; और दक्खिन अलंग के लिथे आंगन के पर्दे बटी हुई सूझ्म सनी के कपके के थे, और सब मिलाकर सौ हाथ लम्बे थे; 10 उनके लिथे बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस कुसिर्यां बनी; और खम्भोंकी घुंडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की बनीं। 11 और उत्तर अलग के लिथे बीस खम्भे, और इनकी पीतल की बीस ही कुसिर्यां बनीं, और खम्भोंकी घुंडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की बनी। 12 और पश्चिम अलंग के लिथे सब पर्दे मिलाकर पचास हाथ के थे; उनके लिथे दस खम्भे, और दस ही उनकी कुसिर्यां यीं, और खम्भोंकी घंुडियां और जोड़ने की छड़ें चांदी की यीं। 13 और पूरब अलंग में भी वह पचास हाथ के थे। 14 आंगन के द्वार के एक ओर के लिथे पंद्रह हाथ के पर्दे बने; और उनके लिथे तीन खम्भे और तीन कुसिर्यां यी। 15 और आंगन के द्वार की दूसरी ओर भी वैसा ही बना या; और आंगन के दरवाजे के इधर और उधर पंद्रह पंद्रह हाथ के पर्दे बने थे; और उनके लिथे तीन हीे खम्भे, और तीन ही तीन इनकी कुसिर्यां भी यीं। 16 आंगन की चारोंओर सब पर्दे सूझ्म बटी हुई सनी के कपके के बने हुए थे। 17 और खम्भोंकी कुसिर्यां पीतल की, और घुंडियां और छड़े चांदी की बनी, और उनके सिक्के चांदी से मढ़े गए, और आंगन के सब खम्भे चांदी के छड़ोंसे जोड़े गए थे। 18 आंगन के द्वार के पर्दे पर बेल बूटे का काम किया हुआ या, और वह नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का; और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके के बने थे; और उसकी लम्बाई बीस हाथ की यी, और उसकी ऊंचाई आंगन की कनात की चौड़ाई के सामान पांच हाथ की बनी। 19 और उनके लिथे चार खम्भे, और खम्भोंकी चार ही कुसिर्यां पीतल की बनीं, उनकी घुंडियां चांदी की बनीं, और उनके सिक्के चांदी से मढ़े गए, और उनकी छड़ें चांदी की बनीं। 20 और निवास और आंगन की चारोंओर के सब खूंटे पीतल के बने थे।। 21 साझीपत्र के निवास का सामान जो लेवियोंकी सेवकाई के लिथे बना; और जिसकी गिनती हारून याजक के पुत्र ईतामार के द्वारा मूसा के कहने से हुई यी, उसका वर्णन यह है। 22 जिस जिस वस्तु के बनाने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उसको यहूदा के गोत्रवाले बसलेल ने, जो हूर का पोता और ऊरी का पुत्र या, बना दिया। 23 और उसके संग दान के गोत्रवाले, अहीसामाक के पुत्र, ओहोलीआब या, जो खोदने और काढ़नेवाला और नीले, बैंजनी और लाल रंग के और सूझ्म सनी के कपके में कारचोब करनेवाला निपुण कारीगर या।। 24 पवित्रस्यान के सारे काम में जो भेंट का सोना लगा वह उनतीस किक्कार, और पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से सात सौ तीन शेकेल या। 25 और मण्डली के गिने हुए लोगोंकी भेंट की चांदी सौ किक्कार, और पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से सत्तरह सौ पचहत्तर शेकेल यी। 26 अर्यात् जितने बीस बरस के और उससे अधिक अवस्या के गिने गए थे, वे छ: लाख तीन हज़ार साढ़े पांच सौ पुरूष थे, और एक एक जन की ओर से पवित्रस्यान के शेकेल के अनुसार आधा शेकेल, जो एक बेका होता है मिला। 27 और वह सौ किक्कार चांदी पवित्रस्यान और बीचवाले पर्दे दोनोंकी कुसिर्योंके ढालने में लग गई; सौ किक्कार से सौ कुसिर्यां बनीं, एक एक कुर्सी एक किक्कार की बनी। 28 और सत्तरह सौ पचहत्तर शेकेल जो बच गए उन से खम्भोंकी चोटियां मढ़ी गईं, और उनकी छड़ें भी बनाई गई। 29 और भेंट का पीतल सत्तर किक्कार और दो हज़ार चार सौ शेकेल या; 30 उससे मिलापवाले तम्बू के द्वार की कुसिर्यां, और पीतल की वेदी, पीतल की फंफरी, और वेदी का सारा सामान; 31 और आंगन के चारोंओर की कुसिर्यां, और आंगन की चारोंओर के खूंटे भी बनाए गए।।
1 फिर उन्होंने नीले, बैंजनी और लाल रंग के काढ़े हुए कपके पवित्र स्यान की सेवकाई के लिथे, और हारून के लिथे भी पवित्र वस्त्र बनाए; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 2 और उस ने एपोद को सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके का बनाया। 3 और उन्होंने सोना पीट-पीटकर उसके पत्तर बनाए, फिर पत्तरोंको काट-काटकर तार बनाए, और तारोंको नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके में, और सूझ्म सनी के कपके में कढ़ाई की बनावट से मिला दिया। 4 एपोद के जोड़ने को उन्होंने उसके कन्धोंपर के बन्धन बनाए, वह तो अपके दोनोंसिक्कों जोड़ा गया। 5 और उसके कसने के लिथे जो काढ़ा हुआ पटुका उस पर बना, वह उसके साय बिना जोड़ का, और उसी की बनावट के अनुसार, अर्यात् सोने और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके का, और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके का बना; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 6 और उन्होंने सुलैमानी मणि काटकर उनमें इस्त्राएल के पुत्रोंके नाम जैसा छापा खोदा जाता है वैसे ही खोदे, और सोने के खानोंमें जड़ दिए। 7 और उस ने उनको एपोद के कन्धे के बन्धनोंपर लगाया, जिस से इस्त्राएलियोंके लिथे स्मरण कराने वाले मणि ठहरें; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 8 और उस ने चपरास को एपोद की नाई सोने की, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके की, और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके में बेल बूटे का काम किया हुआ बनाया। 9 चपरास तो चौकोर बनी; और उन्हो ने उसको दोहरा बनाया, और वह दोहरा होकर एक बित्ता लम्बा और एक बित्ता चौड़ा बना। 10 और उन्होंने उस में चार पांति मणि जड़े। पहिली पांति में तो माणिक्य, पद्य्क़राग, और लालड़ी जडे गए; 11 और दूसरी पांति में मरकत, नीलमणि, और हीरा, 12 और तीसरी पांति में लशम, सूर्यकान्त, और नीलम; 13 और चौयी पांति में फीरोजा, सुलैमानी मणि, और यशब जड़े; थे सब अलग अलग सोने के खानोंमें जड़े गए। 14 और थे मणि इस्त्राएल के पुत्रोंके नाम की गिनती के अनुसार बारह थे; बारहोंगोत्रोंमें से एक एक का नाम जैसा छापा खोदा जाता है वैसा ही खोदा गया। 15 और उन्होंने चपरास पर डोरियोंकी नाई गूंथे हुए चोखे सोने की जंजीर बनाकर लगाई; 16 फिर उन्होंने सोने के दो खाने, और सोने की दो कडिय़ां बनाकर दोनोंकडिय़ोंको चपरास के दोनोंसिरोंपर लगाया; 17 तब उन्होंने सोने की दोनोंगूंयी हुई जंजीरो को चपरास के सिरोंपर की दोनोंकडिय़ोंमें लगाया। 18 और गूंयी हुई दोनोंजंजीरोंके दोनोंबाकी सिक्कों उन्होंने दोनोंखानोंमें जड़के, एपोद के साम्हने दोनोंकन्धोंके बन्धनोंपर लगाया। 19 और उन्होंने सोने की और दो कडिय़ां बनाकर चपरास के दोनोंसिरोंपर उसकी उस कोर पर, जो एपोद की भीतरी भाग में यी, लगाईं। 20 और उन्होंने सोने की दो और कडिय़ां भी बनाकर एपोद के दोनोंकन्धोंके बन्धनोंपर नीचे से उसके साम्हने, और जोड़ के पास, एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगाईं। 21 तब उन्होंने चपरास को उसकी कडिय़ोंके द्वारा एपोद की कडिय़ोंमें नीले फीते से ऐसा बान्धा, कि वह एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर रहे, और चपरास एपोद से अलग न होने पाए; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 22 फिर एपोद का बागा सम्पूर्ण नीले रंग का बनाया गया। 23 और उसकी बनावट ऐसी हुई कि उसके बीच बखतर के छेद के समान एक छेद बना, और छेद के चारोंओर एक कोर बनी, कि वह फटने न पाए। 24 और उन्होंने उसके नीचेवाले घेरे में नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपके के अनार बनाए। 25 और उन्होंने चोखे सोने की घंटियां भी बनाकर बागे के नीचे वाले घेरे के चारोंओर अनारोंके बीचोंबीच लगाईं; 26 अर्यात् बागे के नीचेवाले घेरे की चारोंओर एक सोने की घंटी, और एक अनार लगाया गया कि उन्हें पहिने हुए सेवा टहल करें; जैसे यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 27 फिर उन्होंने हारून, और उसके पुत्रोंके लिथे बुनी हुई सूझ्म सनी के कपके के अंगरखे, 28 और सूझ्म सनी के कपके की पगड़ी, और सूझ्म सनी के कपके की सुन्दर टोपियां, और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके की जांघिया, 29 और सूझ्म बटी हुई सनी के कपके की और नीले, बैंजनी और लाल रंग की कारचोबी काम की हुई पगड़ी; इन सभोंको जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी वैसा ही बनाया।। 30 फिर उन्होंने पवित्र मुकुट की पटरी चोखे सोने की बनाई; और जैसे छापे में वैसे ही उस में थे अझर खोदे गए, अर्यात् यहोवा के लिथे पवित्र। 31 और उन्होंने उस में नीला फीता लगाया, जिस से वह ऊपर पगड़ी पर रहे, जिस तरह यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।। 32 इस प्रकार मिलापवाले तम्बू के निवास का सब काम समाप्त हुआ, और जिस जिस काम की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी, इस्त्राएलियोंने उसी के अनुसार किया।। 33 तब वे निवास को मूसा के पास ले आए, अर्यात् घंुडियां, तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुसिर्यां आदि सारे सामान समेत तम्बू; 34 और लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ोंकी खालोंका ओढ़ना, और सूइसोंकी खालोंका ओढ़ना, और बीच का पर्दा; 35 डण्डोंसहित साझीपत्र का सन्दूक, और प्रायश्चित्त का ढकना; 36 सारे सामान समेत मेज़, और भेंट की रोटी; 37 सारे सामान सहित दीवट, और उसकी सजावट के दीपक और उजियाला देने के लिथे तेल; 38 सोने की वेदी, और अभिषेक का तेल, और सुगन्धित धूप, और तम्बू के द्वार का पर्दा; 39 पीतल की फंफरी, डण्डों, और सारे सामान समेत पीतल की वेदी; और पाए समेत हौदी; 40 खम्भों, और कुसिर्योंसमेत आंगन के पर्दे, और आंगन के द्वार का पर्दा, और डोरियां, और खूंटे, और मिलापवाले तम्बू के निवास की सेवकाई का सारा सामान; 41 पवित्रस्यान में सेवा टहल करने के लिथे बेल बूटा काढ़े हुए वस्त्र, और हारून याजक के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रोंके वस्त्र जिन्हें पहिनकर उन्हें याजक का काम करना या। 42 अर्यात् जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यीं उन्हीं के अनुसार इस्त्राएलियोंने सब काम किया। 43 तब मूसा ने सारे काम का निरीझण करके देखा, कि उन्होंने यहोवा की आज्ञा के अनुसार सब कुछ किया है। और मूसा ने उनको आशीर्वाद दिया।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 पहिले महीने के पहिले दिन को तू मिलापवाले तम्बू के निवास को खड़ा करा देना। 3 और उस में साझीपत्र के सन्दूक को रखकर बीचवाले पर्दे की ओट में करा देना। 4 और मेज़ को भीतर ले जाकर जो कुछ उस पर सजाना है उसे सजवा देना; 5 और साझीपत्र के सन्दूक के साम्हने सोने की वेदी को जो धूप के लिथे है उसे रखना, और निवास के द्वार के पर्दे को लगा देना। 6 और मिलापवाले तम्बू के निवास के द्वार के साम्हने होमवेदी को रखना। 7 और मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच होदी को रखके उस में जल भरना। 8 और चारोंओर के आंगन की कनात को खड़ा करना, और उस आंगन के द्वार पर पर्दे को लटका देना। 9 और अभिषेक का तेल लेकर निवास को और जो कुछ उस में होगा सब कुछ का अभिषेक करना, और सारे सामान समेत उसको पवित्र करना; तब वह पवित्र ठहरेगा। 10 और सब सामान समेत होमवेदी का अभिषेक करके उसको पवित्र करना; तब वह परमपवित्र ठहरेगी। 11 और पाए समेत हौदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्र करना। 12 और हारून और उसके पुत्रोंको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर ले जाकर जल से नहलाना, 13 और हारून को पवित्र वस्त्र पहिनाना, और उसका अभिषेक करके उसको पवित्र करना, कि वह मेरे लिथे याजक का काम करे। 14 और उसके पुत्रोंको ले जाकर अंगरखे पहिनाना, 15 और जैसे तू उनके पिता का अभिषेक करे वैसे ही उनका भी अभिषेक करना, कि वे मेरे लिथे याजक का काम करें; और उनका अभिषेक उनकी पीढ़ी पीढ़ी के लिथे उनके सदा के याजकपद का चिन्ह ठहरेगा। 16 और मूसा ने जो जो आज्ञा यहोवा ने उसको दी यी उसी के अनुसार किया।। 17 और दूसरे बरस के पहिले महीने के पहिले दिन को निवास खड़ा किया गया। 18 और मूसा ने निवास को खड़ा करवाया, और उसकी कुसिर्यां धर उसके तख्ते लगाके उन में बेंड़े डाले, और उसके खम्भोंको खड़ा किया; 19 और उस ने निवास के ऊपर तम्बू को फैलाया, और तम्बू के ऊपर उस ने ओढ़ने को लगाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 20 और उस ने साझीपत्र को लेकर सन्दूक में रखा, और सन्दूक में डण्डोंको लगाके उसके ऊपर प्रायश्चित्त के ढकने को धर दिया; 21 और उस ने सन्दूक को निवास में पहुंचवाया, और बीचवाले पर्दे को लटकवाके साझीपत्र के सन्दूक को उसके अन्दर किया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 22 और उस ने मिलापवाले तम्बू में निवास की उत्तर अलंग पर बीच के पर्दे से बाहर मेज़ को लगवाया, 23 और उस पर उन ने यहोवा के सम्मुख रोटी सजाकर रखी; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 24 और उस ने मिलापवाले तम्बू में मेज़ के साम्हने निवास की दक्खिन अलंग पर दीवट को रखा, 25 और उस ने दीपकोंको यहोवा के सम्मुख जला दिया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 26 और उस ने मिलापवाले तम्बू में बीच के पर्दे के साम्हने सोने की वेदी को रखा, 27 और उस ने उस पर सुगन्धित धूप जलाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 28 और उस ने निवास के द्वार पर पर्दे को लगाया। 29 और मिलापवाले तम्बू के निवास के द्वार पर होमबलि और अन्नबलि को चढ़ाया; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 30 और उस ने मिलापवाले तम्बू और वेदी के बीच हौदी को रखकर उस में धोने के लिथे जल डाला, 31 और मूसा और हारून और उसके पुत्रोंने उस में अपके अपके हाथ पांव धोए; 32 और जब जब वे मिलापवाले तम्बू में वा वेदी के पास जाते थे तब तब वे हाथ पांव धोते थे; जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 33 और उस ने निवास की चारोंओर और वेदी के आसपास आंगन की कनात को खड़ा करवाया, और आंगन के द्वार के पर्दे को लटका दिया। इस प्रकार मूसा ने सब काम को पूरा कर समाप्त किया।। 34 तब बादल मिलापवाले तम्बू पर छा गया, और यहोवा का तेज निवासस्यान में भर गया। 35 और बादल जो मिलापवाले तम्बू पर ठहर गया, और यहोवा का तेज जो निवासस्यान में भर गया, इस कारण मूसा उस मे प्रवेश न कर सका। 36 और इस्त्राएलियोंकी सारी यात्रा में ऐसा होता या, कि जब जब वह बादल निवास के ऊपर उठ जाता तब तब वे कूच करते थे। 37 और यदि वह न उठता, तो जिस दिन तक वह न उठता या उस दिन तक वे कूच नहीं करते थे। 38 इस्त्राएल के घराने की सारी यात्रा में दिन को तो यहोवा का बादल निवास पर, और रात को उसी बादल में आग उन सभोंको दिखाई दिया करती यी।।
1 यहोवा ने मिलापवाले तम्बू में से मूसा को बुलाकर उस से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे कह, कि तुम में से यदि कोई मनुष्य यहोवा के लिथे पशु का चढ़ावा चढ़ाए, तो उसका बलिपशु गाय-बैलोंवा भेड़-बकरियोंमें से एक का हो। 3 यदि वह गाय बैलोंमें से होमबलि करे, तो निर्दोष नर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर चढ़ाए, कि यहोवा उसे ग्रहण करे। 4 और वह अपना हाथ होमबलिपशु के सिर पर रखे, और वह उनके लिथे प्रायश्चित्त करने को ग्रहण किया जाएगा। 5 तब वह उस बछड़े को यहोवा के साम्हने बलि करे; और हारून के पुत्र जो याजक हैं वे लोहू को समीप ले जाकर उस वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़के जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर है। 6 फिर वह होमबलिपशु की खाल निकालकर उस पशु को टुकड़े टुकड़े करे; 7 तब हारून याजक के पुत्र वेदी पर आग रखें, और आग पर लकड़ी सजाकर धरें; 8 और हारून के पुत्र जो याजक हैं वे सिर और चरबी समेत पशु के टुकड़ोंको उस लकड़ी पर जो वेदी की आग पर होगी सजाकर धरें; 9 और वह उसकी अंतडिय़ोंऔर पैरोंको जल से धोए। तब याजक सब को वेदी पर जलाए, कि वह होमबलि यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।। 10 और यदि वह भेड़ोंवा बकरोंका होमबलि चढ़ाए, तो निर्दोष नर को चढ़ाए। 11 और वह उसको यहोवा के आगे वेदी की उत्तरवाली अलंग पर बलि करे; और हारून के पुत्र जो याजक हैं वे उसके लोहू को वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़कें। 12 और वह उसको टुकड़े टुकड़े करे, और सिर और चरबी को अलग करे, और याजक इन सब को उस लकड़ी पर सजाकर धरे जो वेदी की आग पर होगी; 13 और वह उसकी अंतडिय़ोंऔर पैरोंको जल से धोए। और याजक सब को समीप ले जाकर वेदी पर जलाए, कि वह होमबलि और यहोवा के लिथे सुगन्धदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।। 14 और यदि वह यहोवा के लिथे पझियोंका होमबलि चढ़ाए, तो पंडुको वा कबूतरोंको चढ़ावा चढ़ाए। 15 याजक उसको वेदी के समीप ले जाकर उसका गला मरोड़ के सिर को धड़ से अलग करे, और वेदी पर जलाए; और उसका सारा लोहू उस वेदी की अलंग पर गिराया जाए; 16 और वह उसका ओफर मल सहित निकालकर वेदी की पूरब की ओर से राख डालने के स्यान पर फेंक दे; 17 और वह उसको पंखोंके बीच से फाड़े, पर अलग अलग न करे। तब याजक उसको वेदी पर उस लकड़ी के ऊपर रखकर जो आग पर होगी जलाए, कि वह होमबलि और यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।।
1 और जब कोई यहोवा के लिथे अन्नबलि का चढ़ावा चढ़ाना चाहे, तो वह मैदा चढ़ाए; और उस पर तेल डालकर उसके ऊपर लोबान रखे; 2 और वह उसको हारून के पुत्रोंके पास जो याजक हैं लाए। और अन्नबलि के तेल मिले हुए मैदे में से इस तरह अपक्की मुट्ठी भरकर निकाले कि सब लोबान उस में आ जाए; और याजक उन्हें स्मरण दिलानेवाले भाग के लिथे वेदी पर जलाए, कि यह यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धित हवन ठहरे। 3 और अन्नबलि में से जो बचा रहे सो हारून और उसके पुत्रोंका ठहरे; यह यहोवा के हवनोंमें से परमपवित्र वस्तु होगी।। 4 और जब तू अन्नबलि के लिथे तन्दूर में पकाया हुआ चढ़ावा चढ़ाए, तो वह तेल से सने हुए अखमीरी मैदे के फुलकों, वा तेल से चुपक्की हुई अखमीरी चपातियोंका हो। 5 और यदि तेरा चढ़ावा तवे पर पकाया हुआ अन्नबलि हो, तो वह तेल से सने हुए अखमीरी मैदे का हो; 6 उसको टुकड़े टुकड़े करके उस पर तेल डालना, तब वह अन्नबलि हो जाएगा। 7 और यदि तेरा चढ़ावा कढ़ाही में तला हुआ अन्नबलि हो, तो वह मैदे से तेल में बनाया जाए। 8 और जो अन्नबलि इन वस्तुओं में से किसी का बना हो उसे यहोवा के समीप ले जाना; और जब वह याजक के पास लाया जाए, तब याजक उसे वेदी के समीप ले जाए। 9 और याजक अन्नबलि में से स्मरण दिलानेवाला भाग निकालकर वेदी पर जलाए, कि वह यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे; 10 और अन्नबलि में से जो बचा रहे वह हारून और उसके पुत्रोंका ठहरे; वह यहोवा के हवनोंमें परमपवित्र वस्तु होगी। 11 कोई अन्नबलि जिसे तुम यहोवा के लिथे चढ़ाओ खमीर मिलाकर बनाया न जाए; तुम कभी हवन में यहोवा के लिथे खमीर और मधु न जलाना। 12 तुम इनको पहिली उपज का चढ़ावा करके यहोवा के लिथे चढ़ाना, पर वे सुखदायक सुगन्ध के लिथे वेदी पर चढ़ाए न जाएं। 13 फिर अपके सब अन्नबलियोंको नमकीन बनाना; और अपना कोई अन्नबलि अपके परमेश्वर के साय बन्धी हुई वाचा के नमक से रहित होने न देना; अपके सब चढ़ावोंके साय नमक भी चढ़ाना।। 14 और यदि तू यहोवा के लिथे पहिली उपज का अन्नबलि चढ़ाए, तो अपक्की पहिली उपज के अन्नबलि के लिथे आग से फुलसाई हुई हरी हरी बालें, अर्यात् हरी हरी बालोंको मींजके निकाल लेना, तब अन्न को चढ़ाना। 15 और उस में तेल डालना, और उसके ऊपर लोबान रखना; तब वह अन्नबलि हो जाएगा। 16 और याजक सींजकर निकाले हुए अन्न को, और तेल को, और सारे लोबान को स्मरण दिलानेवाला भाग करके जला दे; वह यहोवा के लिथे हवन ठहरे।।
1 और यदि उसका चढ़ावा मेंलबलि का हो, और यदि वह गाय-बैलोंमे से किसी को चढ़ाए, तो चाहे वह पशु नर हो या मादा, पर जो निर्दोष हो उसी को वह यहोवा के आगे चढ़ाए। 2 और वह अपना हाथ अपके चढ़ावे के पशु के सिर पर रखे और उसको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर बलि करे; और हारून के पुत्र जो याजक है वे उसके लोहू को वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़कें। 3 और वह मेलबलि में से यहोवा के लिथे हवन करे, अर्यात् जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जो चरबी उन में लिपक्की रहती है वह भी, 4 और दोनोंगुर्दे और उनके ऊपर की चरबी जो कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली, इन सभोंको वह अलग करे। 5 और हारून के पुत्र इनको वेदी पर उस होमबलि के ऊपर जलाएं, जो उन लकडिय़ोंपर होगी जो आग के ऊपर हैं, कि यह यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।। 6 और यदि यहोवा के मेलबलि के लिथे उसका चढ़ावा भेड़-बकरियोंमें से हो, तो चाहे वह नर हो या मादा, पर जो निर्दोष हो उसी को वह चढ़ाए। 7 यदि वह भेड़ का बच्चा चढ़ाता हो, तो उसको यहोवा के साम्हने चढ़ाए, 8 और वह अपके चढ़ावे के पशु के सिर पर हाथ रखे और उसको मिलापवाले तम्बू के आगे बलि करे; और हारून के पुत्र उसके लोहू को वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़कें। 9 और मेलबलि में से चरबी को यहोवा के लिथे हवन करे, अर्यात् उसकी चरबी भरी मोटी पूंछ को वह रीढ़ के पास से अलग करे, और जो चरबी उन में लिपक्की रहती है, 10 और दोनोंगुर्दे, और जो चरबी उनके ऊपर कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली, इन सभोंको वह अलग करे। 11 और याजक इन्हें वेदी पर जलाए; यह यहोवा के लिथे हवन रूपी भोजन ठहरे।। 12 और यदि वह बकरा वा बकरी चढ़ाए, तो उसे यहोवा के साम्हने चढ़ाए। 13 और वह अपना हाथ उसके सिर पर रखे, और उसको मिलापवाले तम्बू के आगे बलि करे; और हारून के पुत्र उसके लोहू को वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़के। 14 और वह उस में से अपना चढ़ावा यहोवा के लिथे हवन करके चढ़ाए, अर्यात् जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जो चरबी उन में लिपक्की रहती है वह भी, 15 और दोनोंगुर्दे और जो चरबी उनके ऊपर कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली, इन सभोंको वह अलग करे। 16 और याजक इन्हें वेदी पर जलाए; यह तो हवन रूपी भोजन है जो सुखदायक सुगन्ध के लिथे होता है; क्योंकि सारी चरबी यहोवा की हैं। 17 यह तुम्हारे निवासोंमें तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी के लिथे सदा की विधि ठहरेगी कि तुम चरबी और लोहू कभी न खाओ।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा 2 कि इस्त्राएलियोंसे यह कह, कि यदि कोई मनुष्य उन कामोंमें से जिनको यहोवा ने मना किया है किसी काम को भूल से करके पापी हो जाए; 3 और यदि अभिषिक्त याजक ऐसा पाप करे, जिस से प्रजा दोषी ठहरे, तो अपके पाप के कारण वह एक निर्दोष बछड़ा यहोवा को पापबलि करके चढ़ाए। 4 और वह उस बछड़े को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के आगे ले जाकर उसके सिर पर हाथ रखे, और उस बछड़े को यहोवा के साम्हने बलि करे। 5 और अभिषिक्त याजक बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर मिलापवाले तम्बू में ले जाए; 6 और याजक अपक्की उंगली लोहू मे डुबो डुबोकर और उस में से कुछ लेकर पवित्रस्यान के बीचवाले पर्दे के आगे यहोवा के साम्हने सात बार छिड़के। 7 और याजक उस लोहू में से कुछ और लेकर सुगन्धित धूप की वेदी के सींगो पर जो मिलापवाले तम्बू में है यहोवा के साम्हने लगाए; फिर बछड़े के सब लोहू को वेदी के पाए पर जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर है उंडेल दे। 8 फिर वह पापबलि के बछड़े की सब चरबी को उस से अलग करे, अर्यात् जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जितनी चरबी उन में लिपक्की रहती है, 9 और दोनोंगुर्दे और उनके ऊपर की चरबी जो कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली, इन सभोंको वह ऐसे अलग करे, 10 जैसे मेलबलिवाले चढ़ावे के बछड़े से अलग किए जाते हैं, और याजक इनको होमबलि की वेदी पर जलाए। 11 और उस बछड़े की खाल, पांव, सिर, अंतडिय़ां, गोबर, 12 और सारा मांस, निदान समूचा बछड़ा छावनी से बाहर शुद्ध स्यान में, जहां राख डाली जाएगी, ले जाकर लकड़ी पर रखकर आग से जलाए; जहां राख डाली जाती है वह वहीं जलाया जाए।। 13 और इन बातोंमें से किसी भी बात के विषय में जो कोई पाप करे, याजक उसका प्रायश्चित्त करे, और तब वह पाप झमा किया जाएगा। और इस पापबलि का शेष अन्नबलि के शेष की नाई याजक का ठहरेगा।। 14 तो जब उनका किया हुआ पाप प्रगट हो जाए तब मण्डली एक बछड़े को पापबलि करके चढ़ाए। वह उसे मिलापवाले तम्बू के आगे ले जाए, 15 और मण्डली के वृद्ध लोग अपके अपके हाथोंको यहोवा के आगे बछड़े के सिर पर रखें, और वह बछड़ा यहोवा के साम्हने बलि किया जाए। 16 और अभिषिक्त याजक बछड़े के लोहू में से कुछ मिलापवाले तम्बू में ले जाए; 17 और याजक अपक्की उंगली लोहू में डुबो डुबोकर उसे बीचवाले पर्दे के आगे सात बार यहोवा के साम्हने छिड़के। 18 और उसी लोहू में से वेदी के सींगोंपर जो यहोवा के आगे मिलापवाले तम्बू में है लगाए; और बचा हुआ सब लोहू होमबलि की वेदी के पाए पर जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर है उंडेल दे। 19 और वह बछड़े की कुल चरबी निकालकर वेदी पर जलाए। 20 और जैसे पापबलि के बछड़े से किया या वैसे ही इस से भी करे; इस भांति याजक इस्त्राएलियोंके लिथे प्रायश्चित्त करे, तब उनका पाप झमा किया जाएगा। 21 और वह बछड़े को छावनी से बाहर ले जाकर उसी भांति जलाए जैसे पहिले बछड़े को जलाया या; यह तो मण्डली के निमित्त पापबलि ठहरेगा।। 22 जब कोई प्रधान पुरूष पाप करके, अर्यात् अपके परमेश्वर यहोवा कि किसी आज्ञा के विरूद्ध भूल से कुछ करके दोषी हो जाए, 23 और उसका पाप उस पर प्रगट हो जाए, तो वह एक निर्दोष बकरा बलिदान करने के लिथे ले आए; 24 और बकरे के सिर पर अपना हाथ धरे, और बकरे को उस स्यान पर बलि करे जहां होमबलि पशु यहोवा के आगे बलि किथे जाते हैं; यह तो पापबलि ठहरेगा। 25 और याजक अपक्की उंगली से पापबलि पशु के लोहू में से कुछ लेकर होमबलि की वेदी के सींगोंपर लगाए, और उसका लोहू होमबलि की वेदी के पाए पर उंडेल दे। 26 और वह उसकी कुल चरबी को मेलबलि की चरबी की नाई वेदी पर जलाए; और याजक उसके पाप के विषय में प्रायश्चित्त करे, तब वह झमा किया जाएगा।। 27 और यदि साधारण लोगोंमें से कोई अज्ञानता से पाप करे, अर्यात् कोई ऐसा काम जिसे यहोवा ने माना किया हो करके दोषी हो, और उसका वह पाप उस पर प्रगट हो जाए, 28 तो वह उस पाप के कारण एक निर्दोष बकरी बलिदान के लिथे ले आए; 29 और वह अपना हाथ पापबलि पशु के सिर पर रखे, और होमबलि के स्यान पर पापबलि पशु का बलिदान करे। 30 और याजक उसके लोहू में से अपक्की उंगली से कुछ लेकर होमबलि की वेदी के सींगोंपर लगाए, और उसके सब लोहू को उसी वेदी के पाए पर उंडेल दे। 31 और वह उसकी सब चरबी को मेलबलिपशु की चरबी की नाईं अलग करे, तब याजक उसको वेदी पर यहोवा के निमित्त सुखदायक सुगन्ध के लिथे जलाए; और इस प्रकार याजक उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, तब उसे झमा मिलेगी।। 32 और यदि वह पापबलि के लिथे एक भेड़ी का बच्चा ले आए, तो वह निर्दोष मादा हो, 33 और वह अपना हाथ पापबलि पशु के सिर पर रखे, और उसको पापबलि के लिथे वहीं बलिदान करे जहां होमबलिपशु बलि किया जाता है। 34 और याजक अपक्की उंगली से पापबलि के लोहू में से कुछ लेकर होमबलि की वेदी के सींगोंपर लगाए, और उसके सब लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल दे। 35 और वह उसकी सब चरबी को मेलबलिवाले भेड़ के बच्चे की चरबी की नाई अलग करे, और याजक उसे वेदी पर यहोवा के हवनोंके ऊपर जलाए; और इस प्रकार याजक उसके पाप के लिथे प्रायश्चित्त करे, और वह झमा किया जाएगा।।
1 और यदि कोई साझी होकर ऐसा पाप करे कि शपय खिलाकर पूछने पर भी, कि क्या तू ने यह सुना अयवा जानता है, और वह बात प्रगट न करे, तो उसको अपके अधर्म का भार उठाना पकेगा। 2 और यदि कोई किसी अशुद्ध वस्तु को अज्ञानता से छू ले, तो चाहे वह अशुद्ध बनैले पशु की, चाहे अशुद्ध रेंगनेवाले जीव-जन्तु की लोय हो, तो वह अशुद्ध होकर दोषी ठहरेगा। 3 और यदि कोई मनुष्य किसी अशुद्ध वस्तु को अज्ञानता से छू ले, चाहे वह अशुद्ध वस्तु किसी भी प्रकार की क्योंन हो जिस से लोग अशुद्ध हो जाते हैं तो जब वह उस बात को जान लेगा तब वह दोषी ठहरेगा। 4 और यदि कोई बुरा वा भला करने को बिना सोचे समझे शपय खाए, चाहे किसी प्रकार की बात वह बिना सोचे विचारे शपय खाकर कहे, तो ऐसी बात में वह दोषी उस समय ठहरेगा जब उसे मालूम हो जाएगा। 5 और जब वह इन बातोंमें से किसी भी बात में दोषी हो, तब जिस विषय में उस ने पाप किया हो वह उसको मान ले, 6 और वह यहोवा के साम्हने अपना दोषबलि ले आए, अर्यात् उस पाप के कारण वह एक भेड़ वा बकरी पापबलि करने के लिथे ले आए; तब याजक उस पाप के विषय उसके लिथे प्रायश्चित्त करे। 7 और यदि उसे भेड़ वा बकरी देने की सामर्य्य न हो, तो अपके पाप के कारण दो पंडुकी वा कबूतरी के दो बच्चे दोषबलि चढ़ाने के लिथे यहोवा के पास ले आए, उन में से एक तो पापबलि के लिथे और दूसरा होमबलि के लिथे। 8 और वह उनको याजक के पास ले आए, और याजक पापबलिवाले को पहिले चढ़ाए, और उसका सिर गले से मरोड़ डाले, पर अलग न करे, 9 और वह पापबलिपशु के लोहू में से कुछ वेदी की अलंग पर छिड़के, और जो लोहू शेष रहे वह वेदी के पाए पर गिराया जाए; वह तो पापबलि ठहरेगा। 10 और दूसरे पक्की को वह विधी के अनुसार होमबलि करे, और याजक उसके पाप का प्रायश्चित्त करे, और तब वह झमा किया जाएगा।। 11 और यदि वह दो पंडुकी वा कबूतरी के दो बच्चे भी न दे सके, तो वह अपके पाप के कारण अपना चढ़ावा एपा का दसवां भाग मैदा पापबलि करके ले आए; 12 वह उसको याजक के पास ले जाए, और याजक उस में से अपक्की मुट्ठी भर स्मरण दिलानेवाला भाग जानकर वेदी पर यहोवा के हवनोंके ऊपर जलाए; वह तो पापबलि ठहरेगा। 13 और इन बातोंमें से किसी भी बात के विषय में जो कोई पाप करे, याजक उसका प्रायश्चित्त करे, और तब वह पाप झमा किया जाएगा। और इस पापबलि का शेष अन्नबलि के शेष की नाई याजक का ठहरेगा।। 14 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 15 यदि कोई यहोवा की पवित्र की हुई वस्तुओं के विषय में भूल से विश्वासघात करे और पापी ठहरे, तो वह यहोवा के पास एक निर्दोष मेढ़ा दोषबलि के लिथे ले आए; उसका दाम पवित्रस्यान के शेकेल के अनुसार उतने ही शेकेल रूपके का हो जितना याजक ठहराए। 16 और जिस पवित्र वस्तु के विषय उस ने पाप किया हो, उस में वह पांचवां भाग और बढ़ाकर याजक को दे; और याजक दोषबलि का मेढ़ा चढ़ाकर उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, तब उसका पाप झमा किया जाएगा।। 17 और यदि कोई ऐसा पाप करे, कि उन कामोंमें से जिन्हें यहोवा ने मना किया है किसी काम को करे, तो चाहे वह उसके अनजाने में हुआ हो, तौभी वह दोषी ठहरेगा, और उसको अपके अधर्म का भार उठाना पकेगा। 18 इसलिथे वह एक निर्दोष मेढ़ा दोषबलि करके याजक के पास ले आए, वह उतने दाम का हो जितना याजक ठहराए, और याजक उसके लिथे उसकी उस भूल का जो उस ने अनजाने में की हो प्रायश्चित्त करे, और वह झमा किया जाएगा। 19 यह दोषबलि ठहरे; क्योंकि वह मनुष्य नि:सन्देह यहोवा के सम्मुख दोषी ठहरेगा।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 यदि कोई यहोवा का विश्वासघात करके पापी ठहरे, जैसा कि धरोहर, वा लेनदेन, वा लूट के विषय में अपके भाई से छल करे, वा उस पर अन्धेर करे, 3 वा पक्की हुई वस्तु को पाकर उसके विषय फूठ बोले और फूठी शपय भी खाए; ऐसी कोई भी बात क्योंन हो जिसे करके मनुष्य पापी ठहरते हैं, 4 तो जब वह ऐसा काम करके दोषी हो जाए, तब जो भी वस्तु उस ने लूट, वा अन्धेर करके, वा धरोहर, वा पक्की पाई हो; 5 चाहे कोई वस्तु क्योंन हो जिसके विषय में उस ने फूठी शपय खाई हो; तो वह उसको पूरा पूरा लौटा दे, और पांचवां भाग भी बढ़ाकर भर दे, जिस दिन यह मालूम हो कि वह दोषी है, उसी दिन वह उस वस्तु को उसके स्वामी को लौटा दे। 6 और वह यहोवा के सम्मुख अपना दोषबलि भी ले आए, अर्यात् एक निर्दोष मेढ़ा दोषबलि के लिथे याजक के पास ले आए, वह उतने ही दाम का हो जितना याजक ठहराए। 7 इस प्रकार याजक उसके लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे, और जिस काम को करके वह दोषी हो गया है उसकी झमा उसे मिलेगी।। 8 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 9 हारून और उसके पुत्रोंको आज्ञा देकर यह कह, कि होमबलि की व्यवस्या यह है; अर्यात् होमबलि ईधन के ऊपर रात भर भोर तब वेदी पर पड़ा रहे, और वेदी की अग्नि वेदी पर जलती रहे। 10 और याजक अपके सनी के वस्त्र और अपके तन पर अपक्की सनी की जांघिया पहिनकर होमबलि की राख, जो आग के भस्म करने से वेदी पर रह जाए, उसे उठाकर वेदी के पास रखे। 11 तब वह अपके वस्त्र उतारकर दूसरे वस्त्र पहिनकर राख को छावनी से बाहर किसी शुद्ध स्यान पर ले जाए। 12 और वेदी पर अग्नि जलती रहे, और कभी बुफने न पाए; और याजक भोर भोर उस पर लकडिय़ां जलाकर होमबलि के टुकड़ोंको उसके ऊपर सजाकर धर दे, और उसके ऊपर मेलबलियोंकी चरबी को जलाया करे। 13 वेदी पर आग लगातार जलती रहे; वह कभी बुफने न पाए।। 14 अन्नबलि की व्यवस्या इस प्रकार है, कि हारून के पुत्र उसको वेदी के आगे यहोवा के समीप ले आएं। 15 और वह अन्नबलि के तेल मिले हुए मैदे में से मुट्ठी भर और उस पर का सब लोबान उठाकर अन्नबलि के स्मरणार्य के इस भाग को यहोवा के सम्मुख सुखदायक सुगन्ध के लिथे वेदी पर जलाए। 16 और उस में से जो शेष रह जाए उसे हारून और उसके पुत्र खा जाएं; वह बिना खमीर पवित्र स्यान में खाया जाए, अर्यात् वे मिलापवाले तम्बू के आंगन में उसे खाएं। 17 वह खमीर के साय पकाया न जाए; क्योंकि मैं ने अपके हव्य में से उसको उनका निज भाग होने के लिथे उन्हें दिया है; इसलिथे जैसा पापबलि और दोषबलि परमपवित्र है वैसा ही वह भी है। 18 हारून के वंश के सब पुरूष उस में से खा सकते हैं तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में यहोवा के हवनोंमें से यह उनका भाग सदैव बना रहेगा; जो कोई उन हवनोंको छूए वह पवित्र ठहरेगा।। 19 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 20 जिस दिन हारून का अभिषेक हो उस दिन वह अपके पुत्रोंके साय यहोवा को यह चढ़ावा चढ़ाए; अर्यात् एपा का दसवां भाग मैदा नित्य अन्नबलि में चढ़ाए, उस में से आधा भोर को और आधा सन्ध्या के समय चढ़ाए। 21 वह तवे पर तेल के साय पकाया जाए; जब वह तेल से तर हो जाए तब उसे ले आना, इस अन्नबलि के पके हुए टुकड़े यहोवा के सुखदायक सुगन्ध के लिथे चढ़ाना। 22 और उसके पुत्रोंमें से जो भी उस याजकपद पर अभिषिक्त होगा, वह भी उसी प्रकार का चढ़ावा चढ़ाया करे; यह विधी सदा के लिथे है, कि यहोवा के सम्मुख वह सम्पूर्ण चढ़ावा जलाया जाथे। 23 याजक के सम्पूर्ण अन्नबलि भी सब जलाए जाएं; वह कभी न खाया जाए।। 24 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 25 हारून और उसके पुत्रोंसे यह कह, कि पापबलि की व्यवस्या यह है; अर्यात् जिस स्यान में होमबलिपशु वध किया जाता है उसी में पापबलिपशु भी यहोवा के सम्मुख बलि किया जाए; वह परमपवित्र है। 26 और जो याजक पापबलि चढ़ावे वह उसे खाए; वह पवित्र स्यान में, अर्यात् मिलापवाले तम्बू के आँगन में खाया जाए। 27 जो कुछ उसके मांस से छू जाए, वह पवित्र ठहरेगा; और यदि उसके लोहू के छींटे किसी वस्त्र पर पड़ जाएं, तो उसे किसी पवित्रस्यान में धो देना। 28 और वह मिट्टी का पात्र जिस में वह पकाया गया हो तोड़ दिया जाए; यदि वह पीतल के पात्र में सिफाया गया हो, तो वह मांजा जाए, और जल से धो लिया जाए। 29 और याजकोंमें से सब पुरूष उसे खा सकते हैं; 30 पर जिस पापबलिपशु के लोहू में से कुछ भी खून मिलापवाले तम्बू के भीतर पवित्रस्यान में प्रायश्चित्त करने को पहुंचाया जाए तब तो उसका मांस कभी न खाया जाए; वह आग में जला दिया जाए।।
1 फिर दोषबलि की व्यवस्या यह है। वह परमपवित्र है; 2 जिस स्यान पर होमबलिपशु का वध करते हैं उसी स्यान पर दोषबलिपशु का भी बलि करें, और उसके लोहू को याजक वेदी पर चारोंओर छिड़के। 3 और वह उस में की सब चरबी को चढ़ाए, अर्यात् उसकी मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं वह भी, 4 और दोनोंगुर्दे और जो चरबी उनके ऊपर और कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली; इन सभोंको वह अलग करे; 5 और याजक इन्हें वेदी पर यहोवा के लिथे हवन करे; तब वह दोषबलि होगा। 6 याजकोंमें के सब पुरूष उस में से खा सकते हैं; वह किसी पवित्रस्यान में खाया जाए; क्योंकि वह परमपवित्र है। 7 जैसा पापबलि है वैसा ही दोषबलि भी है, उन दोनोंकी एक ही व्यवस्या है; जो याजक उन बलियोंको चढ़ा के प्रायश्चित्त करे वही उन वस्तुओं को ले ले। 8 और जो याजक किसी के लिथे होमबलि को चढ़ाए उस होमबलिपशु की खाल को वही याजक ले ले। 9 और तंदूर में, वा कढ़ाही में, वा तवे पर पके हुए सब अन्नबलि उसी याजक की होंगी जो उन्हें चढ़ाता है। 10 और सब अन्नबलि, जो चाहे तेल से सने हुए होंचाहे रूखे हों, वे हारून के सब पुत्रोंको एक समान मिले।। 11 और मेलबलि की जिसे कोई यहोवा के लिथे चढ़ाए व्यवस्या यह है। 12 यदि वह उसे धन्यवाद के लिथे चढ़ाए, तो धन्यवाद-बलि के साय तेल से सने हुए अखमीरी फुलके, और तेल से चुपक्की हुई अखमीरी फुलके, और तेल से चुपक्की हुई अखमीरी रोटियां, और तेल से सने हुए मैदे के फुलके तेल से तर चढ़ाए। 13 और वह अपके धन्यवादवाले मेलबलि के साय अखमीरी रोटियां, और तेल से सने हुए मैदे के फुलके तेल से तर चढ़ाए। 14 और ऐसे एक एक चढ़ावे में से वह एक एक रोटी यहोवा को उठाने की भेंट करके चढ़ाए; वह मेलबलि के लोहू के छिड़कनेवाले याजक की होगी। 15 और उस धन्यवादवाले मेलबलि का मांस बलिदान चढ़ाने के दिन ही खाया जाए; उस में से कुछ भी भोर तक शेष न रह जाए। 16 पर यदि उसके बलिदान का चढ़ावा मन्नत का वा स्वेच्छा का हो, तो उस बलिदान को जिस दिन वह चढ़ाया जाए उसी दिन वह खाया जाए, और उस में से जो शेष रह जाए वह दूसरे दिन भी खाया जाए। 17 परन्तु जो कुछ बलिदान के मांस में से तीसरे दिन तक रह जाए वह आग में जला दिया जाए। 18 और उसके मेलबलि के मांस में से यदि कुछ भी तीसरे दिन खाया जाए, तो वह ग्रहण न किया जाएगा, और न पुन में गिना जाएगा; वह घृणित कर्म समझा जाएगा, और जो कोई उस में से खाए उसका अधर्म उसी के सिर पर पकेगा। 19 फिर जो मांस किसी अशुद्ध वस्तु से छू जाए वह न खाया जाए; वह आग में जला दिया जाए। फिर मेलबलि का मांस जितने शुद्ध होंवे ही खाएं, 20 परन्तु जो अशुद्ध होकर यहोवा के मेलबलि के मांस में से कुछ खाए वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाए। 21 और यदि कोई किसी अशुद्ध वस्तु को छूकर यहोवा के मेलबलिपशु के मांस में से खाए, तो वह भी अपके लोगोंमें से नाश किया जाए, चाहे वह मनुष्य की कोई अशुद्ध वस्तु वा अशुद्ध पशु वा कोई भी अशुद्ध और घृणित वस्तु हो।। 22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 23 इस्त्राएलियोंसे इस प्रकार कह, कि तुम लोग न तो बैल की कुछ चरबी खाना और न भेड़ वा बकरी की। 24 और जो पशु स्वयं मर जाए, और जो दूसरे पशु से फाड़ा जाए, उसकी चरबी और और काम में लाना, परन्तु उसे किसी प्रकार से खाना नहीं। 25 जो कोई ऐसे पशु की चरबी खाएगा जिस में से लोग कुछ यहोवा के लिथे हवन करके चढ़ाया करते हैं वह खानेवाला अपके लोगोंमें से नाश किया जाएगा। 26 ओर तुम अपके घर में किसी भांति का लोहू, चाहे पक्की का चाहे पशु का हो, न खाना। 27 हर एक प्राणी जो किसी भांति का लोहू खाएगा वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाएगा।। 28 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 29 इस्त्राएलियोंसे इस प्रकार कह, कि जो यहोवा के लिथे मेलबलि चढ़ाए वह उसी मेलबलि में से यहोवा के पास भेंट ले आए; 30 वह अपके ही हाथोंसे यहोवा के हव्य को, अर्यात् छाती हिलाने की भेंट करके यहोवा के साम्हने हिलाई जाए। 31 और याजक चरबी को तो वेदी पर जलाए, परन्तु छाती हारून और उसके पुत्रोंकी होगी। 32 फिर तुम अपके मेलबलियोंमें से दहिनी जांघ को भी उठाने की भेंट करके याजक को देना; 33 हारून के पुत्रोंमें से जो मेलबलि के लोहू और चरबी को चढ़ाए दहिनी जांघ उसी को भाग होगा। 34 क्योंकि इस्त्राएलियोंके मेलबलियोंमें से हिलाने की भेंट की छाती और उठाने की भेंट की जांघ को लेकर मैं ने याजक हारून और उसके पुत्रोंको दिया है, कि यह सर्वदा इस्त्राएलियोंकी ओर से उनका हक बना रहे।। 35 जिस दिन हारून और उसके पुत्र यहोवा के समीप याजक पद के लिथे आए गए उसी दिन यहोवा के हव्योंमें से उनका यही अभिषिक्त भाग ठहराया गया; 36 अर्यात् जिस दिन यहोवा ने उसका अभिषेक किया उसी दिन उस ने आज्ञा दी कि उनको इस्त्राएलियोंकी ओर से थे ही भाग नित मिला करें; उनकी पीढ़ी पीढ़ी के लिथे उनका यही हक ठहराया गया। 37 होमबलि, अन्नबलि, पापबलि, दोषबलि, याजकोंके संस्कार बलि, और मेलबलि की व्यवस्या यही है; 38 जब यहोवा ने सीनै पर्वत के पास के जंगल में मूसा को आज्ञा दी कि इस्त्राएली मेरे लिथे क्या क्या चढ़ावे चढ़ाएं, तब उस ने उनको यही व्यवस्या दी यी।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 तू हारून और उसके पुत्रोंके वों, और अभिषेक के तेल, और पापबलि के बछड़े, और दोनोंमेढ़ों, और अखमीरी रोटी की टोकरी को 3 मिलापवाले तम्बू के द्वार पर ले आ, और वहीं सारी मण्डली को इकट्ठा कर। 4 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने किया; और मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठी हुई। 5 तब मूसा ने मण्डली से कहा, जो काम करने की आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है। 6 फिर मूसा ने हारून और उसके पुत्रोंको समीप ले जाकर जल से नहलाया। 7 तब उस ने उनको अंगरखा पहिनाया, और कटिबन्द लपेटकर बागा पहिना दिया, और एपोद लगाकर एपोद के काढ़े हुए पटुके से एपोद को बान्धकर कस दिया। 8 और उस ने उनके चपरास लगाकर चमरास में ऊरीम और तुम्मीम रख दिए। 9 तब उस ने उसके सिर पर पगड़ी बान्धकर पगड़ी के साम्हने पर सोने के टीके को, अर्यात् पवित्र मुकुट को लगाया, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 10 तब मूसा ने अभिषेक का तेल लेकर निवास का और जो कुछ उस में या उन सब को भी अभिषेक करके उन्हें पवित्र किया। 11 और उस तेल में से कुछ उस ने वेदी पर सात बार छिड़का, और कुल सामान समेत वेदी का और पाए समेत हौदी का अभिषेक करके उन्हें पवित्र किया। 12 और उस ने अभिषेक के तेल में से कुछ हारून के सिर पर डालकर उसका अभिषेक करके उसे पवित्र किया। 13 फिर मूसा ने हारून के पुत्रोंको समीप ले आकर, अंगरखे पहिनाकर, फेटे बान्ध के उनके सिर पर टोपी रख दी, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 14 तब वह पापबलि के बछड़े को समीप ले गया; और हारून और उसके पुत्रोंने अपके अपके हाथ पापबलि के बछड़े के सिर पर रखें 15 तब वह बलि किया गया, और मूसा ने लोहू को लेकर उंगली से वेदी के चारोंसींगोंपर लगाकर पवित्र किया, और लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल दिया, और उसके लिथे प्रायश्चित्त करके उसको पवित्र किया। 16 और मूसा ने अंतडिय़ोंपर की सब चरबी, और कलेजे पर की फिल्ली, और चरबी समेत दोनोंगुर्दोंको लेकर वेदी पर जलाया। 17 ओर बछड़े में से जो कुछ शेष रह गया उसको, अर्यात् गोबर समेत उसकी खाल और मांस को उस ने छावनी से बाहर आग में जलाया, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 18 फिर वह होमबलि के मेढ़े को समीप ले गया, और हारून और उसके पुत्रोंने अपके अपके हाथ मेंढ़े के सिर पर रखे। 19 तब वह बलि किया गया, और मूसा ने उसका लोहू वेदी पर चारोंओर छिड़का। 20 किया गया, और मूसा ने सिर ओर चरबी समेत टुकड़ोंको जलाया। 21 तब अंतडिय़ां और पांव जल से धोथे गए, और मूसा ने पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाया, और वह सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे होमबलि और यहोवा के लिथे हव्य हो गया, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 22 फिर वह दूसरे मेढ़े को जो संस्कार का मेढ़ा या समीप ले गया, और हारून और उसके पुत्रोंने अपके अपके हाथ मेढ़े के सिर पर रखे। 23 तब वह बलि किया गया, और मूसा ने उसके लोहू में से कुछ लेकर हारून के दहिने कान के सिक्के पर और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाया। 24 और वह हारून के पुत्रोंको समीप ले गया, और लोहू में से कुछ एक एक के दहिने कान के सिक्के पर और दहिने हाथ ओर दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाया; और मूसा ने लोहू को वेदी पर चारोंओर छिड़का। 25 और उस ने चरबी, और मोटी पूंछ, ओर अंतडिय़ोंपर की सब चरबी, और कलेजे पर की फिल्ली समेत दोनोंगुर्दे, और दहिनी जांघ, थे सब लेकर अलग रखे; 26 ओर अखमीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे रखी गई यी उस में से एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक रोटी लेकर चरबी और दहिनी जांघ पर रख दी; 27 और थे सब वस्तुएं हारून और उसके पुत्रोंके हाथोंपर धर दी गई, और हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के साम्हने हिलाई गई। 28 और मूसा ने उन्हें फिर उनके हाथोंपर से लेकर उन्हें वेदी पर होमबलि के ऊपर जलाया, यह सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे संस्कार की भेंट और यहोवा के लिथे हव्य या। 29 तब मूसा ने छाती को लेकर हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के आगे हिलाया; और संस्कार के मेढ़ें में से मूसा का भाग यही हुआ जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 30 और मूसा ने अभिषेक के तेल ओर वेदी पर के लोहू, दोनोंमें से कुछ लेकर हारून और उसके वोंपर, और उसके पुत्रोंऔर उनके वोंपर भी छिड़का; और उस ने वोंसमेत हारून को ओर वोंसमेत उसके पुत्रोंको भी पवित्र किया। 31 और मूसा ने हारून और उसके पुत्रोंसे कहा, मांस को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर पकाओ, और उस रोटी को जो संस्कार की टोकरी में है वहीं खाओ, जैसा मैं ने आज्ञा दी है, कि हारून और उसके पुत्र उसे खाएं। 32 और मांस और रोटी में से जो शेष रह जाए उसे आग में जला देना। 33 और जब तक तुम्हारे संस्कार के दिन पूरे न होंतब तक, अर्यात् सात दिन तक मिलापवाले तम्बू के द्वार के बाहर न जाना, क्योंकि वह सात दिन तक तुम्हारा संस्कार करता रहेगा। 34 जिस प्रकार आज किया गया है वैसा ही करने की आज्ञा यहोवा ने दी है, जिस से तुम्हारा प्रायश्चित्त किया जाए। 35 इसलिथे तुम मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सात दिन तक दिन रात ठहरे रहना, और यहोवा की आज्ञा को मानना, ताकि तुम मर न जाओ; क्योंकि ऐसी की आज्ञा मुझे दी गई है। 36 तब यहोवा की इन्हीं सब आज्ञाओं के अनुसार जो उस ने मूसा के द्वारा दी यीं हारून ओर उसके पुत्रोंने उनका पालन किया।।
1 आठवें दिन मूसा ने हारून और उसके पुत्रोंको और इस्त्राएली पुरनियोंको बुलवाकर हारून से कहा, 2 पापबलि के लिथे एक निर्दोष बछड़ा, और होमबलि के लिथे एक निर्दोष मेढ़ा लेकर यहोवा के साम्हने भेंट चढ़ा। 3 और इस्त्राएलियोंसे यह कह, कि तुम पापबलि के लिथे एक बकरा, और होमबलि के लिथे एक बछड़ा और एक भेड़ को बच्चा लो, जो एक वर्ष के होंऔर निर्दोष हों, 4 और मेलबलि के लिथे यहोवा के सम्मुख चढ़ाने के लिथे एक बैल और एक मेढ़ा, और तेल से सने हुए मैदे का एक अन्नबलि भी ले लो; क्योंकि आज यहोवा तुम को दर्शन देगा। 5 और जिस जिस वस्तु की आज्ञा मूसा ने दी उन सब को वे मिलापवाले तम्बू के आगे ले आए; और सारी मण्डली समीप जाकर यहोवा के साम्हने खड़ी हुई। 6 तब मूसा ने कहा, यह वह काम है जिसके करने के लिथे यहोवा ने आज्ञा दी है कि तुम उसे करो; और यहोवा की महिमा का तेज तुम को दिखाई पकेगा। 7 और मूसा ने हारून से कहा, यहोवा की आज्ञा के अनुसार वेदी के समीप जाकर अपके पापबलि और होमबलि को चढ़ाकर उनके लिथे प्रायश्चित्त कर। 8 इसलिथे हारून ने वेदी के समीप जाकर अपके पापबलि के बछड़े को बलिदान किया। 9 और हारून के पुत्र लोहू को उसके पास ले गए, तब उस ने अपक्की उंगली को लोहू में डुबाकर वेदी के सींगोंपर लोहू को लगाया, और शेष लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल दिया; 10 और पापबलि में की चरबी और गुर्दोंऔर कलेजे पर की फिल्ली को उस ने वेदी पर जलाया, जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी। 11 और मांस और खाल को उस ने छावनी से बाहर आग में जलाया। 12 तब होमबलिपशु को बलिदान किया; और हारून के पुत्रोंने लोहू को उसके हाथ में दिया, और उस ने उसको वेदी पर चारोंओर छिड़क दिया। 13 तब उन्होंने होमबलिपशु का टुकड़ा टुकड़ा करके सिर सहित उसके हाथ में दे दिया और उस ने उनको वेदी पर जला दिया। 14 और उस ने अंतडिय़ोंऔर पांवोंको धोकर वेदी पर होमबलि के ऊपर जलाया। 15 और उस ने लोगोंके चढ़ावे को आगे लेकर और उस पापबलि के बकरे को जो उनके लिथे या लेकर उसका बलिदान किया, और पहिले के समान उसे भी पापबलि करके चढ़ाया। 16 और उस ने होमबलि को भी समीप ले जाकर विधि के अनुसार चढ़ाया। 17 और अन्नबलि को भी समीप ले जाकर उस में से मुट्ठी भर वेदी पर जलाया, यह भोर के होमबलि के अलावा चढ़ाया गया। 18 और बैल और मेढ़ा, अर्यात् जो मेलबलिपशु जनता के लिथे थे वे भी बलि किथे गए; और हारून के पुत्रोंने लोहू को उसके हाथ में दिया, और उस ने उसको वेदी पर चारोंओर छिड़क दिया; 19 और उन्होंने बैल की चरबी को, और मेढ़े में से मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अतडिय़ां ढपी रहती हैं उसको, ओर गुर्दोंसहित कलेजे पर की फिल्ली को भी उसके हाथ में दिया; 20 और उन्होंने चरबी को छातियोंपर रखा; और उस ने वह चरबी वेदी पर जलाई, 21 परन्तु छातियोंऔर दहिनी जांघ को हारून ने मूसा की आज्ञा के अनुसार हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के साम्हने हिलाया। 22 तब हारून ने लोगोंकी ओर हाथ बढ़ाकर उनहें आशीर्वाद दिया; और पापबलि, होमबलि, और मेलबलियोंको चढ़ाकर वह नीचे उतर आया। 23 तब मूसा और हारून मिलापवाले तम्बू में गए, और निकलकर लोगोंको आशीर्वाद दिया; तब यहोवा का तेज सारी जनता को दिखाई दिया। 24 और यहोवा के साम्हने से आग निकलकर चरबी सहित होमबलि को वेदी पर भस्म कर दिया; इसे देखकर जनता ने जय जयकार का नारा मारा, और अपके अपके मुंह के बल गिरकर दण्डवत किया।।
1 तब नादाब और अबीहू नामक हारून के दो पुत्रोंने अपना अपना धूपदान लिया, और उन में आग भरी, और उस में धूप डालकर उस ऊपक्की आग की जिसकी आज्ञा यहोवा ने नहीं दी यी यहोवा के सम्मुख आरती दी। 2 तब यहोवा के सम्मुख से आग निकलकर उन दोनोंको भस्म कर दिया, और वे यहोवा के साम्हने मर गए। 3 तब मूसा ने हारून से कहा, यह वही बात है जिसे यहोवा ने कहा या, कि जो मेरे समीप आए अवश्य है कि वह मुझे पवित्र जाने, और सारी जनता के साम्हने मेरी महिमा करे। और हारून चुप रहा। 4 तब मूसा ने मीशाएल और एलसाफान को जो हारून के चाचा उज्जीएल के पुत्र थे बुलाकर कहा, निकट आओ, और अपके भतीजोंको पवित्रस्यान के आगे से उठाकर छावनी के बाहर ले जाओ। 5 मूसा की इस आज्ञा के अनुसार वे निकट जाकर उनको अंगरखोंसहित उठाकर छावनी के बाहर ले गए। 6 तब मूसा ने हारून से और उसके पुत्र एलीआजर और ईतामार से कहा, तुम लोग अपके सिरोंके बाल मत बिखराओ, और न अपके वोंको फाड़ो, ऐसा न हो कि तुम भी मर जाओ, और सारी मण्डली पर उसका क्रोध भड़क उठे; परन्तु वह इस्त्राएल के कुल घराने के लोग जो तुम्हारे भाईबन्धु हैं यहोवा की लगाई हुई आग पर विलाप करें। 7 और तुम लोग मिलापवाले तम्बू के द्वार के बाहर न जाना, ऐसा न हो कि तुम मर जाओ; क्योंकि यहोवा के अभिषेक का तेल तुम पर लगा हुआ है। मूसा के इस वचन के अनुसार उन्होंने किया।। 8 फिर यहोवा ने हारून से कहा, 9 कि जब जब तू वा तेरे पुत्र मिलापवाले तम्बू में आएं तब तब तुम में से कोई न तो दाखमधु पिए हो न और किसी प्रकार का मद्य, कहीं ऐसा न हो कि तुम मर जाओ; तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यह विधि प्रचलित रहे, 10 जिस से तुम पवित्र और अपवित्र में, और शुद्ध और अशुद्ध में अन्तर कर सको; 11 और इस्त्राएलियोंको उन सब विधियोंको सिखा सको जिसे यहोवा ने मूसा के द्वारा उनको सुनवा दी हैं।। 12 फिर मूसा ने हारून से और उसके बचे हुए दोनोंपुत्र ईतामार और एलीआजर से भी कहा, यहोवा के हव्य में से जो अन्नबलि बचा है उसे लेकर वेदी के पास बिना खमीर खाओ, क्योंकि वह परमपवित्र है; 13 और तुम उसे किसी पवित्रस्यान में खाओ, वह तो यहोवा के हव्य में से तेरा और तेरे पुत्रोंका हक है; क्योंकि मै ने ऐसी ही आज्ञा पाई है। 14 और हिलाई हुई भेंट की छाती और उठाई हुई भेंट की जांघ को तुम लोग, अर्यात् तू और बेटे-बेटियां सब किसी शुद्ध स्यान में खाओ; क्योंकि वे इस्त्राएलियोंके मेलबलियोंमें से तुझे और तेरे लड़केबालोंकी हक ठहरा दी गई हैं। 15 चरबी के हव्योंसमेत जो उठाई हुई जांघ और हिलाई हुई छाती यहोवा के साम्हने हिलाने के लिथे आया करेंगी, थे भाग यहोवा की आज्ञा के अनुसार सर्वदा की विधी की व्यवस्या से तेरे और तेरे लड़केबालोंके लिथे हैं।। 16 फिर मूसा ने पापबलि के बकरे की जो ढूंढ़-ढांढ़ की, तो क्या पाया, कि वह जलाया गया है, सो एलीआज़र और ईतामार जो हारून के पुत्र बचे थे उन से वह क्रोध में आकर करने लगा, 17 कि पापबलि जो परमपवित्र है और जिसे यहोवा ने तुम्हे इसलिथे दिया है कि तुम मण्डली के अधर्म का भार अपके पर उठाकर उनके लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करो, तुम ने उसका मांस पवित्रस्यान में क्योंनहीं खाया? 18 देखो, उसका लोहू पवित्रस्यान के भीतर तो लाया ही नहीं गया, नि:सन्देह उचित या कि तुम मेरी आज्ञा के अनुसार उसके मांस को पवित्रस्यान में खाते। 19 इसका उत्तर हारून ने मूसा को इस प्रकार दिया, कि देख, आज ही उन्होंने अपके पापबलि और होमबलि को यहोवा के साम्हने चढ़ाया; फिर मुझ पर ऐसी विपत्तियां आ पक्की हैं ! इसलिथे यदि मैं आज पापबलि का मांस खाता तो क्या यह बात यहोवा के सम्मुख भली होती? 20 जब मूसा ने यह सुना तब उसे संतोष हुआ।।
1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे कहो, कि जितने पशु पृय्वी पर हैं उन सभोंमें से तुम इन जीवधारियोंका मांस खा सकते हो। 3 पशुओं में से जितने चिरे वा फटे खुर के होते हैं और पागुर करते हैं उन्हें खा सकते हो। 4 परन्तु पागुर करनेवाले वा फटे खुरवालोंमें से इन पशुओं को न खाना, अर्यात् ऊंट, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, इसलिथे वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध ठहरा है। 5 और शापान, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, वह भी तुम्हारे लिथे अशुद्ध है। 6 और खरहा, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, इसलिथे वह भी तुम्हारे लिथे अशुद्ध है। 7 और सूअर, जो चिरे अर्यात् फटे खुर का होता तो है परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिथे वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध है। 8 इनके मांस में से कुछ न खाना, और इनकी लोय को छूना भी नहीं; थे तो तुम्हारे लिथे अशुद्ध है।। 9 फिर जितने जलजन्तु हैं उन में से तुम इन्हें खा सकते हों, अर्यात् समुद्र वा नदियोंके जलजन्तुओं में से जितनोंके पंख और चोंथेटे होते हैं उन्हें खा सकते हो। 10 और जलचक्की प्राणियोंमें से जितने जीवधारी बिना पंख और चोंथेटे के समुद्र वा नदियोंमें रहते हैं वे सब तुम्हारे लिथे घृणित हैं। 11 वे तुम्हारे लिथे घृणित ठहरें; तुम उनके मांस में से कुछ न खाना, और उनकी लोयोंको अशुद्ध जानना। 12 जल में जिस किसी जन्तु के पंख और चोंथेटे नहीं होते वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध है।। 13 फिर पझियोंमें से इनको अशुद्ध जानना, थे अशुद्ध होने के कारण खाए न जाएं, अर्यात् उकाब, हड़फोड़, कुरर, 14 शाही, और भांति भांति की चील, 15 और भांति भांति के सब काग, 16 शुतुर्मुर्ग, तखमास, जलकुक्कुट, और भांति भांति के बाज, 17 हवासिल, हाड़गील, उल्लू, 18 राजहँस, धनेश, गिद्ध, 19 लगलग, भांति भांति के बगुले, टिटीहरी और चमगीदड़।। 20 जितने पंखवाले चार पांवोंके बल चरते हैं वे सब तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं। 21 पर रेंगनेवाले और पंखवाले जो चार पांवोंके बल चलते हैं, जिनके भूमि पर कूदने फांदने को टांगे होती हैं उनको तो खा सकते हो। 22 वे थे हैं, अर्यात् भांति भांति की टिड्डी, भांति भांति के फनगे, भांति भांति के हर्गोल, और भांति भांति के हागाब। 23 परन्तु और सब रेंगनेवाले पंखवाले जो चार पांववाले होते हैं वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं।। 24 और इनके कारण तुम अशुद्ध ठहरोगे; जिस किसी से इनकी लोय छू जाए वह सांफ तक अशुद्ध ठहरे। 25 और जो कोई इनकी लोय में का कुछ भी उठाए वह अपके वस्त्र धोए और सांफ तक अशुद्ध रहे। 26 फिर जितने पशु चिरे खुर के होते है। परन्तु न तो बिलकुल फटे खुर और पागुर करनेवाले हैं वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं; जो कोई उन्हें छूए वह अशुद्ध हैं; जो कोई उन्हें छूए वह अशुद्ध ठहरेगा। 27 और चार पांव के बल चलनेवालोंमें से जितने पंजोंके बल चलते हैं वे सब तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं; जो कोई उनकी लोय छूए वह सांफ तक अशुद्ध रहे। 28 और जो कोई उनकी लोय उठाए वह अपके वस्त्र धोए और सांफ तक अशुद्ध रहे; क्योंकि वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं।। 29 और जो पृय्वी पर रेंगते हैं उन में से थे रेंगनेवाले तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं, अर्यात् नेवला, चूहा, और भांति भांति के गोह, 30 और छिपकली, मगर, टिकटिक, सांडा, और गिरगिटान। 31 सब रेंगनेवालोंमें से थे ही तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं; जो कोई इनकी लोय छूए वह सांफ तक अशुद्ध रहे। 32 और इन में से किसी की लोय जिस किसी वस्तु पर पड़ जाए वह भी अशुद्ध ठहरे, चाहे वह काठ का कोई पात्र हो, चाहे वस्त्र, चाहे खाल, चाहे बोरा, चाहे किसी काम का कैसा ही पात्रादि क्योंन हो; वह जल में डाला जाए, और सांफ तक अशुद्ध रहे, तब शुद्ध समझा जाए। 33 और यदि मिट्टी का कोई पात्र हो जिस में इन जन्तुओं में से कोई पके, तो उस पात्र में जो कुछ हो वह अशुद्ध ठहरे, और पात्र को तुम तोड़ डालना। 34 उस में जो खाने के योग्य भोजन हो, जिस में पानी का छुआव होंवह सब अशुद्ध ठहरे; फिर यदि ऐसे पात्र में पीने के लिथे कुछ हो तो वह भी अशुद्ध ठहरे। 35 और यदि इनकी लोय में का कुछ तंदूर वा चूल्हे पर पके तो वह भी अशुद्ध ठहरे, और तोड़ डाला जाए; क्योंकि वह अशुद्ध हो जाएगा, वह तुम्हारे लिथे भी अशुद्ध ठहरे। 36 परन्तु सोता वा तालाब जिस में जल इकट्ठा हो वह तो शुद्ध ही रहे; परन्तु जो कोई इनकी लोय को छूए वह अशुद्ध ठहरे। 37 और यदि इनकी लोय में का कुछ किसी प्रकार के बीज पर जो बोने के लिथे हो पके, तो वह बीज शुद्ध रहे; 38 पर यदि बीज पर जल डाला गया हो और पीछे लोय में का कुछ उस पर पड़ जाए, तो वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध ठहरे।। 39 फिर जिन पशुओं के खाने की आज्ञा तुम को दी गई है यदि उन में से कोई पशु मरे, तो जो कोई उसकी लोय छूए वह सांफ तक अशुद्ध रहे। 40 और उसकी लोय में से जो कोई कुछ खाए वह अपके वस्त्र धोए और सांफ तक अशुद्ध रहे; और जो कोई उसकी लोय उठाए वह भी अपके वस्त्र धोए और सांफ तक अशुद्ध रहे। 41 और सब प्रकार के पृय्वी पर रेंगनेवाले जन्तु घिनौने हैं; वे खाए न जाएं। 42 पृय्वी पर सब रेंगनेवालोंमें से जितने पेट वा चार पांवोंके बल चलते हैं, वा अधिक पांववाले होते हैं, उन्हें तुम न खाना; क्योंकि वे घिनौने हैं। 43 तुम किसी प्रकार के रेंगनेवाले जन्तु के द्वारा अपके आप को घिनौना न करना; और न उनके द्वारा अपके को अशुद्ध करके अपवित्र ठहराना। 44 क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; इस प्रकार के रेंगनेवाले जन्तु के द्वारा जो पृय्वी पर चलता है अपके आप को अशुद्ध न करना। 45 क्योंकि मैं वह यहोवा हूं जो तुम्हें मिस्र देश से इसलिथे निकाल ले आया हूं कि तुम्हारा परमेश्वर ठहरूं; इसलिथे तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।। 46 पशुओं, पझियों, और सब जलचक्की प्राणियों, और पृय्वी पर सब रेंगनेवाले प्राणियोंके विषय में यही व्यवस्या है, 47 कि शुद्ध अशुद्ध और भझय और अभझय जीवधारियोंमें भेद किया जाए।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे कह, कि जो स्त्री गभिर्णी हो और उसके लड़का हो, तो वह सात दिन तक अशुद्ध रहेगी; जिस प्रकार वह ऋतुमती होकर अशुद्ध रहा करती। 3 और आठवें दिन लड़के का खतना किया जाए। 4 फिर वह स्त्री अपके शुद्ध करनेवाले रूधिर में तेंतीस दिन रहे; और जब तक उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे न होंतब तक वह न तो किसी पवित्र वस्तु को छुए, और न पवित्रस्यान में प्रवेश करे। 5 और यदि उसके लड़की पैदा हो, तो उसको ऋतुमती की सी अशुद्धता चौदह दिन की लगे; और फिर छियासठ दिन तक अपके शुद्ध करनेवाले रूधिर में रहे। 6 और जब उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे हों, तब चाहे उसके बेटा हुआ हो चाहे बेटी, वह होमबलि के लिथे एक वर्ष का भेड़ी का बच्चा, और पापबलि के लिथे कबूतरी का एक बच्चा वा पंडुकी मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास लाए। 7 तब याजक उसको यहोवा के साम्हने भेंट चढ़ाके उसके लिथे प्रायश्चित्त करे; और वह अपके रूधिर के बहने की अशुद्धता से छूटकर शुद्ध ठहरेगी। जिस स्त्री के लड़का वा लड़की उत्पन्न हो उसके लिथे यही व्यवस्या है। 8 और यदि उसके पास भेड़ वा बकरी देने की पूंजी न हो, तो दो पंडुकी वा कबूतरी के दो बच्चे, एक तो होमबलि और दूसरा पापबलि के लिथे दे; और याजक उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, तब वह शुद्ध ठहरेगी।।
1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 2 जब किसी मनुष्य के शरीर के चर्म में सूजन वा पपक्की वा फूल हो, और इस से उसके चर्म में कोढ़ की व्याधि सा कुछ देख पके, तो उसे हारून याजक के पास या उसके पुत्र जो याजक हैं उन में से किसी के पास ले जाएं। 3 जब याजक उसके चर्म की व्याधि को देखे, और यदि उस व्याधि के स्यान के रोएं उजले हो गए होंऔर व्याधि चर्म से गहरी देख पके, तो वह जान ले कि कोढ़ की व्याधि है; और याजक उस मनुष्य को देखकर उसको अशुद्ध ठहराए। 4 और यदि वह फूल उसके चर्म में उजला तो हो, परन्तु चर्म से गहरा न देख पके, और न वहां के रोएं उजले हो गए हों, तो याजक उनको सात दिन तक बन्दकर रखे; 5 और सातवें दिन याजक उसको देखे, और यदि वह व्याधि जैसी की तैसी बनी रहे और उसके चर्म में न फैली हो, तो याजक उसको और भी सात दिन तक बन्दकर रखे; 6 और सातवें दिन याजक उसको फिर देखे, और यदि देख पके कि व्याधि की चमक कम है और व्याधि चर्म पर फैली न हो, तो याजक उसको शुद्ध ठहराए; क्योंकि उसके तो चर्म में पपक्की है; और वह अपके वस्त्र धोकर शुद्ध हो जाए। 7 और यदि याजक की उस जांच के पश्चात् जिस में वह शुद्ध ठहराया गया या, वह पपक्की उसके चर्म पर बहुत फैल जाए, तो वह फिर याजक को दिखाया जाए; 8 और यदि याजक को देख पके कि पपक्की चर्म में फैल गई है, तो वह उसको अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह कोढ़ ही है।। 9 यदि कोढ़ की सी व्याधि किसी मनुष्य के हो, तो वह याजक के पास पहुचाया जाए; 10 और याजक उसको देखे, और यदि वह सूजन उसके चर्म में उजली हो, और उसके कारण रोएं भी उजले हो गए हों, और उस सूजन में बिना चर्म का मांस हो, 11 तो याजक जाने कि उसके चर्म में पुराना कोढ़ है, इसलिथे वह उसको अशुद्ध ठहराए; और बन्द न रखे, क्योंकि वह तो अशुद्ध है। 12 और यदि कोढ़ किसी के चर्म में फूटकर यहां तक फैल जाए, कि जहां कहीं याजक देखें व्याधित के सिर से पैर के तलवे तक कोढ़ ने सारे चर्म को छा लिया हो, 13 जो याजक ध्यान से देखे, और यदि कोढ़ ने उसके सारे शरीर को छा लिया हो, तो वह उस व्याधित को शुद्ध ठहराए; और उसका शरीर जो बिलकुल उजला हो गया है वह शुद्ध ही ठहरे। 14 पर जब उस में चर्महीन मांस देख पके, तब तो वह अशुद्ध ठहरे। 15 और याजक चर्महीन मांस को देखकर उसको अशुद्ध ठहराए; कयोंकि वैसा चर्महीन मांस अशुद्ध ही होता है; वह कोढ़ है। 16 पर यदि वह चर्महीन मांस फिर उजला हो जाए, तो वह मनुष्य याजक के पास जाए, 17 और याजक उसको देखे, और यदि वह व्याधि फिर से उजली हो गई हो, तो याजक व्याधित को शुद्ध जाने; वह शुद्ध है।। 18 फिर यदि किसी के चर्म में फोड़ा होकर चंगा हो गया हो, 19 और फोड़े के स्यान में उजली सी सूजन वा लाली लिथे हुए उजला फूल हो, तो वह याजक को दिखाया जाए। 20 और याजक उस सूजन को देखे, और यदि वह चर्म से गहिरा देख पके, और उसके रोएं भी उजले हो गए हों, तो याजक यह जानकर उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह कोढ़ की व्याधि है जो फोड़े में से फूटकर निकली है। 21 और यदि याजक देखे कि उस में उजले रोएं नहीं हैं, और वह चर्म से गहिरी नहीं, और उसकी चमक कम हुई है, तो याजक उस मनुष्य को सात दिन तक बन्द कर रखे। 22 और यदि वह व्याधि उस समय तक चर्म में सचमुच फैल जाए, तो याजक उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह कोढ़ की व्याधि है। 23 परन्तु यदि वह फूल न फैले और अपके स्यान ही पर बना रहे, तो वह फोड़े को दाग है; याजक उस मनुष्य को शुद्ध ठहराए।। 24 फिर यदि किसी के चर्म में जलने का घाव हो, और उस जलने के घाव में चर्महीन फूल लाली लिथे हुए उजला वा उजला ही हो जाए, 25 तो याजक उसको देखे, और यदि उस फूल में के रोएं उजले हो गए होंऔर वह चर्म से गहिरा देख पके, तो वह कोढ़ है; जो उस जलने के दाग में से फूट निकला है; याजक उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि उस में कोढ़ की व्याधि है। 26 और यदि याजक देखे, कि फूल में उजले रोएं नहीं और न वह चर्म से कुछ गहिरा है, और उसकी चमक कम हुई है, तो वह उसको सात दिन तक बन्द कर रखे, 27 और सातवें दिन याजक उसको देखे, और यदि वह चर्म में फैल गई हो, तो वह उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि उसको कोढ़ की व्याधि है। 28 परन्तु यदि वह फूल चर्म में नहीं फैला और अपके स्यान ही पर जहां का तहां ही बना हो, और उसकी चमक कम हुई हो, तो वह जल जाने के कारण सूजा हुआ है, याजक उस मनुष्य को शुद्ध ठहराए; क्योंकि वह दाग जल जाने के कारण से है।। 29 फिर यदि किसी पुरूष वा स्त्री के सिर पर, वा पुरूष की डाढ़ी में व्याधि हो, 30 तो याजक व्याधि को देखे, और यदि वह चर्म से गहिरी देख पके, और उस में भूरे भूरे पतले बाल हों, तो याजक उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; वह व्याधि सेंहुआं, अर्यात् सिर वा डाढ़ी का कोढ़ है। 31 और यदि याजक सेंहुएं की व्याधि को देखे, कि वह चर्म से गहिरी नहीं है और उस में काले काले बाल नहीं हैं, तो वह सेंहुएं के व्याधित को सात दिन तक बन्द कर रखे, 32 और सातवें दिन याजक व्याधि को देखे, तब यदि वह सेंहुआं फैला न हो, और उस में भूरे भूरे बाल न हों, और सेंहुआं चर्म से गहिरा न देख पके, 33 तो यह मनुष्य मूंड़ा जाए, परन्तु जहां सेंहुआं हो वहां न मूंड़ा जाए; और याजक उस सेंहुएंवाले को और भी सात दिन तक बन्द करे; 34 और सातवें दिन याजक सेहुएं को देखे, और यदि वह सेंहुआं चर्म में फैला न हो और चर्म से गहिरा न देख पके, तो याजक उस मनुष्य को शुद्ध ठहराए; और वह अपके वस्त्र धोके शुद्ध ठहरे। 35 और यदि उसके शुद्ध ठहरने के पश्चात् सेंहुआं चर्म में कुछ भी फैले, 36 तो याजक उसको देखे, और यदि वह चर्म में फैला हो, तो याजक यह भूरे बाल न ढूंढ़े, क्योंकि मनुष्य अशुद्ध है। 37 परन्तु यदि उसकी दृष्टि में वह सेंहुआं जैसे का तैसा बना हो, और उस में काले काले बाल जमे हों, तो वह जाने की सेंहुआं चंगा हो गया है, और वह मनुष्य शुद्ध है; याजक उसको शुद्ध ही ठहराए।। 38 फिर यदि किसी पुरूष वा स्त्री के चर्म में उजले फूल हों, 39 तो याजक देखे, और यदि उसके चर्म में वे फूल कम उजले हों, तो वह जाने कि उसको चर्म में निकली हुई चाईं ही है; वह मनुष्य शुद्ध ठहरे।। 40 फिर जिसके सिर के बाल फड़ गए हों, तो जानना कि वह चन्दुला तो है परन्तु शुद्ध है। 41 और जिसके सिर के आगे के बाल फड़ गए हों, तो वह माथे का चन्दुला तो है परन्तु शुद्ध है। 42 परन्तु यदि चन्दुले सिर पर वा चन्दुले माथे पर लाली लिथे हुए उजली व्याधि हो, तो जानना कि वह उसके चन्दुले सिर पर वा चन्दुले माथे पर निकला हुआ कोढ़ है। 43 इसलिथे याजक उसको देखे, और यदि व्याधि की सूजन उसके चन्दुले सिर वा चन्दुले माथे पर ऐसी लाली लिथे हुए उजली हो जैसा चर्म के कोढ़ में होता है, 44 तो वह मनुष्य कोढ़ी है और अशुद्ध है; और याजक उसको अवश्य अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह व्याधि उसके सिर पर है।। 45 और जिस में वह व्याधि हो उस कोढ़ी के वस्त्र फटे और सिर के बाल बिखरे रहें, और वह अपके ऊपरवाले होंठ को ढांपे हुए अशुद्ध, अशुद्ध पुकारा करे। 46 जितने दिन तक वह व्याधि उस में रहे उतने दिन तक वह तो अशुद्ध रहेगा; और वह अशुद्ध ठहरा रहे; इसलिथे वह अकेला रहा करे, उसका निवास स्यान छावनी के बाहर हो।। 47 फिर जिस वस्त्र में कोढ़ की व्याधि हो, चाहे वह वस्त्र ऊन का हो चाहे सनी का, 48 वह व्याधि चाहे उस सनी वा ऊन के वस्त्र के ताने में हो चाहे बाने में, वा वह व्याधि चमड़े में वा चमड़े की किसी वस्तु में हो, 49 यदि वह व्याधि किसी वस्त्र के चाहे ताने में चाहे बाने में, वा चमड़े में वा चमड़े की किसी वस्तु में हरी हो वा लाल सी हो, तो जानना कि वह कोढ़ की व्याधि है और वह याजक को दिखाई जाए। 50 और याजक व्याधि को देखे, और व्याधिवाली वस्तु को सात दिन के लिथे बन्द करे; 51 और सातवें दिन वह उस व्याधि को देखे, और यदि वह वस्त्र के चाहे ताने में चाहे बाने में, वा चमड़े में वा चमड़े की बनी हुई किसी वस्तु में फैल गई हो, तो जानना कि व्याधि गलित कोढ़ है, इसलिथे वह वस्तु, चाहे कैसे ही काम में क्योंन आती हो, तौभी अशुद्ध ठहरेगी। 52 वह उस वस्त्र को जिसके ताने वा बाने में वह व्याधि हो, चाहे वह ऊन का हो चाहे सनी का, वा चमड़े की वस्तु हो, उसको जला दे, वह व्याधि गलित कोढ़ की है; वह वस्तु आग में जलाई जाए। 53 और यदि याजक देखे कि वह व्याधि उस वस्त्र के ताने वा बाने में, वा चमड़े की उस वस्तु में नहीं फैली, 54 तो जिस वस्तु में व्याधि हो उसके धोने की आज्ञा दे, तक उसे और भी सात दिन तक बन्द कर रखे; 55 और उसके धोने के बाद याजक उसको देखे, और यदि व्याधि का न तो रंग बदला हो, और न व्याधि फैली हो, तो जानना कि वह अशुद्ध है; उसे आग में जलाना, क्योंकि चाहे वह व्याधि भीतर चाहे ऊपक्की हो तौभी वह खा जाने वाली व्याधि है। 56 और यदि याजक देखे, कि उसके धोने के पश्चात् व्याधि की चमक कम हो गई, तो वह उसको वस्त्र के चाहे ताने चाहे बाने में से, वा चमड़े में से फाड़के निकाले; 57 और यदि वह व्याधि तब भी उस वस्त्र के ताने वा बाने में, वा चमड़े की उस वस्तु में देख पके, तो जानना कि वह फूट के निकली हुई व्याधि है; और जिस में वह व्याधि हो उसे आग में जलाना। 58 और यदि उस वस्त्र से जिसके ताने वा बाने में व्याधि हो, वा चमड़े की जो वस्तु हो उस से जब धोई जाए और व्याधि जाती रही, तो वह दूसरी बार धुल कर शुद्ध ठहरे। 59 ऊन वा सनी के वस्त्र में के ताने वा बाने में, वा चमड़े की किसी वस्तु में जो कोढ़ की व्याधि हो उसके शुद्ध और अशुद्ध ठहराने की यही व्यवस्या है।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 कोढ़ी के शुद्ध ठहराने की व्यवस्या यह है, कि वह याजक के पास पहुंचाया जाए। 3 और याजक छावनी के बाहर जाए, और याजक उस कोढ़ी को देखे, और यदि उसके कोढ़ की व्याधि चंगी हुई हो, 4 तो याजक आज्ञा दे कि शुद्ध ठहराने वाले के लिथे दो शुद्ध और जीवित पक्की, देवदारू की लकड़ी, और लाल रंग का कपड़ा और जूफा थे सब लिथे जाएं; 5 और याजक आज्ञा दे कि एक पक्की बहते हुए जल के ऊपर मिट्टी के पात्र में बलि किया जाए। 6 तब वह जीवित पक्की को देवदारू की लकड़ी और लाल रंग के कपके और जूफा इन सभोंको लेकर एक संग उस पक्की के लोहू में जो बहते हुए जल के ऊपर बलि किया गया है डुबा दे; 7 और कोढ़ से शुद्ध ठहरनेवाले पर सात बार छिड़ककर उसको शुद्ध ठहराए, तब उस जीवित पक्की को मैदान में छोड़ दे। 8 और शुद्ध ठहरनेवाला अपके वोंको धोए, और सब बाल मुंड़वाकर जल से स्नान करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा; और उसके बाद वह छावनी में आने पाए, परन्तु सात दिन तक अपके डेरे से बाहर ही रहे। 9 और सातवें दिन वह सिर, डाढ़ी और भौहोंके सब बाल मुंड़ाए, और सब अंग मुण्डन कराए, और अपके वोंको धोए, और जल से स्नान करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा। 10 और आठवें दिन वह दो निर्दोष भेड़ के बच्चे, और अन्नबलि के लिथे तेल से सना हुआ एपा का तीन दहाई अंश मैदा, और लोज भर तेल लाए। 11 और शुद्ध ठहरानेवाला याजक इन वस्तुओं समेत उस शुद्ध होनेवाले मनुष्य को यहोवा के सम्मुख मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़ा करे। 12 तब याजक एक भेड़ का बच्चा लेकर दोषबलि के लिथे उसे और उस लोज भर तेल को समीप लाए, और इन दोनो को हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के साम्हने हिलाए; 13 तब याजक एक भेड़ के बच्चे को उसी स्यान में जहां वह पापबलि और होमबलि पशुओं का बलिदान किया करेगा, अर्यात् पवित्रस्यान में बलिदान करे; क्योंकि जैसा पापबलि याजक का निज भाग होगा वैसा ही दोषबलि भी उसी का निज भाग ठहरेगा; वह परमपवित्र है। 14 तब याजक दोषबलि के लोहू में से कुछ लेकर शुद्ध ठहरनेवाले के दहिने कान के सिक्के पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाए। 15 और याजक उस लोज भर तेल में से कुछ लेकर अपके बाएं हाथ की हथेली पर डाले, 16 और याजक अपके दहिने हाथ की उंगली को अपके बाईं हथेली पर के तेल में डुबाकर उस तेल में से कुछ अपक्की उंगली से यहोवा के सम्मुख सात बार छिड़के। 17 और जो तेल उसकी हथेली पर रह जाएगा याजक उस में से कुछ शुद्ध होनेवाले के दहिने कान के सिक्के पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर दोषबलि के लोहू के ऊपर लगाएं; 18 और जो तेल याजक की हथेली पर रह जाए उसको वह शुद्ध होनेवाले के सिर पर डाल दे। और याजक उसके लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे। 19 और याजक पापबलि को भी चढ़ाकर उसके लिथे जो अपक्की अशुद्धता से शुद्ध होनेवाला हो प्रायश्चित्त करे; और उसके बाद होमबलि पशु का बलिदान करके: 20 अन्नबलि समेत वेदी पर चढ़ाए: और याजक उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, और वह शुद्ध ठहरेगा।। 21 परन्तु यदि वह दरिद्र हो और इतना लाने के लिथे उसके पास पूंजी न हो, तो वह अपना प्रायश्चित्त करवाने के निमित्त, हिलाने के लिथे भेड़ का बच्चा दोषबलि के लिथे, और तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके, और लोज भर तेल लाए; 22 और दो पंडुक, वा कबूतरी के दो बच्चे लाए, जो वह ला सके; और इन में से एक तो पापबलि के लिथे और दूसरा होमबलि के लिथे हो। 23 और आठवें दिन वह इन सभोंको अपके शुद्ध ठहरने के लिथे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर, यहोवा के सम्मुख, याजक के पास ले आए; 24 तब याजक उस लोज भर तेल और दोष बलिवाले भेड़ के बच्चे को लेकर हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के साम्हने हिलाए। 25 फिर दोषबलि के भेड़ के बच्चे का बलिदान किया जाए; और याजक उसके लोहू में से कुछ लेकर शुद्ध ठहरनेवाले के दहिने कान के सिक्के पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाए। 26 फिर याजक उस तेल में से कुछ अपके बाएं हाथ की हथेली पर डालकर, 27 अपके दहिने हाथ की उंगली से अपक्की बाईं हथेली पर के तेल में से कुछ यहोवा के सम्मुख सात बार छिड़के; 28 फिर याजक अपक्की हथेली पर के तेल में से कुछ शुद्ध ठहरनेवाले के दहिने कान के सिक्के पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर दोषबलि के लोहू के स्यान पर, लगाए। 29 और जो तेल याजक की हथेली पर रह जाए उसे वह शुद्ध ठहरनेवाले के लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करने को उसके सिर पर डाल दे। 30 तब वह पंडुकोंवा कबूतरी के बच्चोंमें से जो वह ला सका हो एक को चढ़ाए, 31 अर्यात् जो पक्की वह ला सका हो, उन में से वह एक को पापबलि के लिथे और अन्नबलि समेत दूसरे को होमबलि के लिथे चढ़ाए; इस रीति से याजक शुद्ध ठहरनेवाले के लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे। 32 जिसे कोढ़ की व्याधि हुई हो, और उसके इतनी पूंजी न हो कि वह शुद्ध ठहरने की सामग्री को ला सके, तो उसके लिथे यही व्यवस्या है।। 33 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 34 जब तुम लोग कनान देश में पहुंचो, जिसे मैं तुम्हारी निज भूमि होने के लिथे तुम्हें देता हूं, उस समय यदि मैं कोढ़ की व्याधि तुम्हारे अधिक्कारने के किसी घर में दिखाऊं, 35 तो जिसका वह घर हो वह आकर याजक को बता दे, कि मुझे ऐसा देख पड़ता है कि घर में मानोंकोई व्याधि है। 36 तब याजक आज्ञा दे, कि उस घर में व्याधि देखने के लिथे मेरे जाने से पहिले उसे खाली करो, कहीं ऐसा न हो कि जो कुछ घर में हो वह सब अशुद्ध ठहरे; और पीछे याजक घर देखने को भीतर जाए। 37 तब वह उस व्याधि को देखे; और यदि वह व्याधि घर की दीवारोंपर हरी हरी वा लाल लाल मानोंखुदी हुई लकीरोंके रूप में हो, और थे लकीरें दीवार में गहिरी देख पड़ती हों, 38 तो याजक घर से बाहर द्वार पर जाकर घर को सात दिन तक बन्द कर रखे। 39 और सातवें दिन याजक आकर देखे; और यदि वह व्याधि घर की दीवारोंपर फैल गई हो, 40 तो याजक आज्ञा दे, कि जिन पत्यरोंको व्याधि है उन्हें निकाल कर नगर से बाहर किसी अशुद्ध स्यान में फेंक दें; 41 और वह घर के भीतर ही भीतर चारोंओर खुरचवाए, और वह खुरचन की मिट्टी नगर से बाहर किसी अशुद्ध स्यान में डाली जाए; 42 और उन पत्यरोंके स्यान में और दूसरे पत्यर लेकर लगाएं और याजक ताजा गारा लेकर घर की जुड़ाई करे। 43 और यदि पत्यरोंके निकाले जाने और घर के खुरचे और लेसे जाने के बाद वह व्याधि फिर घर में फूट निकले, 44 तो याजक आकर देखे; और यदि वह व्याधि घर में फैल गई हो, तो वह जान ले कि घर में गलित कोढ़ है; वह अशुद्ध है। 45 और वह सब गारे समेत पत्यर, लकड़ी और घर को खुदवाकर गिरा दे; और उन सब वस्तुओं को उठवाकर नगर से बाहर किसी अशुद्ध स्यान पर फिंकवा दे। 46 और जब तक वह घर बन्द रहे तब तक यदि कोई उस में जाए तो वह सांफ तक अशुद्ध रहे; 47 और जो कोई उस घर में सोए वह अपके वोंको धोए; और जो कोई उस घर में खाना खाए वह भी अपके वोंको धोए। 48 और यदि याजक आकर देखे कि जब से घर लेसा गया है तब से उस में व्याधि नहीं फैली है, तो यह जानकर कि वह व्याधि दूर हो गई है, घर को शुद्ध ठहराए। 49 और उस घर को पवित्र करने के लिथे दो पक्की, देवदारू की लकड़ी, लाल रंग का कपड़ा और जूफा लिवा लाए, 50 और एक पक्की बहते हुए जल के ऊपर मिट्टी के पात्र में बलिदान करे, 51 तब वह देवदारू की लकड़ी लाल रंग के कपके और जूफा और जीवित पक्की इन सभोंको लेकर बलिदान किए हुए पक्की के लोहू में और बहते हुए जल में डूबा दे, और उस घर पर सात बार छिड़के। 52 और वह पक्की के लोहू, और बहते हुए जल, और जूफा और लाल रंग के कपके के द्वारा घर को पवित्र करे; 53 तब वह जीवित पक्की को नगर से बाहर मैदान में छोड़ दे; इसी रीति से वह घर के लिथे प्रायश्चित्त करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा। 54 सब भांति के कोढ़ की व्याधि, और सेहुएं, 55 और वस्त्र, और घर के कोढ़, 56 और सूजन, और पपक्की, और फूल के विषय में, 57 शुद्ध और अशुद्ध ठहराने की शिझा की व्यवस्या यही है। सब प्रकार के कोढ़ की व्यवस्या यही है।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 कि इस्त्राएलियोंसे कहो, कि जिस जिस पुरूष के प्रमेह हो, तो वह प्रमेह के कारण से अशुद्ध ठहरे। 3 और चाहे बहता रहे, चाहे बहना बन्द भी हो, तौभी उसकी अशुद्धता बनी रहेगी। 4 जिसके प्रमेह हो वह जिस जिस बिछौने पर लेटे वह अशुद्ध ठहरे, और जिस जिस वस्तु पर वह बैठे वह भी अशुद्ध ठहरे। 5 और जो कोई उसके बिछौने को छूए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध ठहरा रहे। 6 और जिसके प्रमेह हो और वह जिस वस्तु पर बैठा हो, उस पर जो कोई बैठे वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध ठहरा रहे। 7 और जिसके प्रमेह हो उस से जो कोई छू जाए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे और सांफ तक अशुद्ध रहे। 8 और जिसके प्रमेह हो यदि वह किसी शुद्ध मनुष्य पर यूके, तो वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे। 9 और जिसके प्रमेह हो वह सवारी की जिस वस्तु पर बैठे वह अशुद्ध ठहरे। 10 और जो कोई किसी वस्तु को जो उसके नीचे रही हो छूए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे। 11 और जिसके प्रमेह हो वह जिस किसी को बिना हाथ धोए छूए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे। 12 और जिसके प्रमेह हो वह मिट्टी के जिस किसी पात्र को छूए वह तोड़ डाला जाए, और काठ के सब प्रकार के पात्र जल से धोए जाएं। 13 फिर जिसके प्रमेह हो वह जब अपके रोग से चंगा हो जाए, तब से शुद्ध ठहरने के सात दिन गिन ले, और उनके बीतने पर अपके वोंको धोकर बहते हुए जल से स्नान करे; तब वह शुद्ध ठहरेगा। 14 और आठवें दिन वह दो पंडुक वा कबूतरी के दो बच्चे लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के सम्मुख जाकर उन्हें याजक को दे। 15 तब याजक उन में से एक को पापबलि; और दूसरे को होमबलि के लिथे भेंट चढ़ाए; और याजक उसके लिथे उसके प्रमेह के कारण यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे।। 16 फिर यदि किसी पुरूष का वीर्य्य स्खलित हो जाए, तो वह अपके सारे शरीर को जल से धोए, और सांफ तक अशुद्ध रहे। 17 और जिस किसी वस्त्र वा चमड़े पर वह वीर्य्य पके वह जल से धोया जाए, और सांफ तक अशुद्ध रहे। 18 और जब कोई पुरूष स्त्री से प्रसंग करे, तो वे दोनो जल से स्नान करें, और सांफ तक अशुद्ध रहें।। 19 फिर जब कोई स्त्री ऋतुमती रहे, तो वह सात दिन तक अशुद्ध ठहरी रहे, और जो कोई उसको छूए वह सांफ तक अशुद्ध रहे। 20 और जब तक वह अशुद्ध रहे तब तक जिस जिस वस्तु पर वह लेटे, और जिस जिस वस्तु पर वह बैठे वे सब अशुद्ध ठहरें। 21 और जो कोई उसके बिछौने को छूए वह अपके वस्त्र धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे। 22 और जो कोई किसी वस्तु को छूए जिस पर वह बैठी हो वह अपके वस्त्र धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे। 23 और यदि बिछौने वा और किसी वस्तु पर जिस पर वह बैठी हो छूने के समय उसका रूधिर लगा हो, तो छूनेहारा सांफ तक अशुद्ध रहे। 24 और यदि कोई पुरूष उस से प्रसंग करे, और उसका रूधिर उसके लग जाए, तो वह पुरूष सात दिन तक अशुद्ध रहे, और जिस जिस बिछौने पर वह लेटे वे सब अशुद्ध ठहरें।। 25 फिर यदि किसी स्त्री के अपके मासिक धर्म के नियुक्त समय से अधिक दिन तक रूधिर बहता रहे, वा उस नियुक्त समय से अधिक समय तक ऋतुमती रहे, तो जब तक वह ऐसी दशा में रहे तब तक वह अशुद्ध ठहरी रहे। 26 उसके ऋतुमती रहने के सब दिनोंमें जिस जिस बिछौने पर वह लेटे वे सब उसके मासिक धर्म के बिछौने के समान ठहरें; और जिस जिस वस्तु पर वह बैठे वे भी उसके ऋतुमती रहे के दिनोंकी नाई अशुद्ध ठहरें। 27 और जो कोई उन वस्तुओं को छुए वह अशुद्ध ठहरे, इसलिथे वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे। 28 और जब वह स्त्री अपके ऋतुमती से शुद्ध हो जाए, तब से वह सात दिन गिन ले, और उन दिनोंके बीतने पर वह शुद्ध ठहरे। 29 फिर आठवें दिन वह दो पंडुक या कबूतरी के दो बच्चे लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास जाए। 30 तब याजक एक को पापबलि और दूसरे को होमबलि के लिथे चढ़ाए; और याजक उसके लिथे उसके मासिक धर्म की अशुद्धता के कारण यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे।। 31 इस प्रकार से तुम इस्त्राएलियोंको उनकी अशुद्धता से न्यारे रखा करो, कहीं ऐसा न हो कि वे यहोवा के निवास को जो उनके बीच में है अशुद्ध करके अपक्की अशुद्धता में फंसे हुए मर जाएं।। 32 जिसके प्रमेह हो और जो पुरूष वीर्य्य स्खलित होने से अशुद्ध हो; 33 और जो स्त्री ऋतुमती हो; और क्या पुरूष क्या स्त्री, जिस किसी के धातुरोग हो, और जो पुरूष अशुद्ध स्त्री के प्रसंग करे, इन सभोंके लिथे यही व्यवस्या है।।
1 जब हारून के दो पुत्र यहोवा के साम्हने समीप जाकर मर गए, उसके बाद यहोवा ने मूसा से बातें की; 2 और यहोवा ने मूसा से कहा, अपके भाई हारून से कह, कि सन्दूक के ऊपर के प्रायश्चित्तवाले ढ़कने के आगे, बीचवाले पर्दे के अन्दर, पवित्रस्यान में हर समय न प्रवेश करे, नहीं तो मर जाएगा; क्योंकि मैं प्रायश्चित्तवाले ढ़कने के ऊपर बादल में दिखाई दूंगा। 3 और जब हारून पवित्रस्यान में प्रवेश करे तब इस रीति से प्रवेश करे, अर्यात् पापबलि के लिथे एक बछड़े को और होमबलि के लिथे एक मेढ़े को लेकर आए। 4 वह सनी के कपके का पवित्र अंगरखा, और अपके तन पर सनी के कपके की जांघिया पहिने हुए, और सनी के कपके का कटिबन्द, और सनी के कपके की पगड़ी बांधे हुए प्रवेश करे; थे पवित्र स्यान हैं, और वह जल से स्नान करके इन्हें पहिने। 5 फिर वह इस्त्राएलियोंकी मण्डली के पास से पापबलि के लिथे दो बकरे और होमबलि के लिथे एक मेढ़ा ले। 6 और हारून उस पापबलि के बछड़े को जो उसी के लिथे होगा चढ़ाकर अपके और अपके घराने के लिथे प्रायश्चित्त करे। 7 और उन दोनोंबकरोंको लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के साम्हने खड़ा करे; 8 और हारून दोनोंबकरोंपर चिट्ठियां डाले, एक चिट्ठी यहोवा के लिथे और दूसरी अजाजेल के लिथे हो। 9 और जिस बकरे पर यहोवा के नाम की चिट्ठी निकले उसको हारून पापबलि के लिथे चढ़ाए; 10 परन्तु जिस बकरे पर अजाजेल के लिथे चिट्ठी निकले वह यहोवा के साम्हने जीवता खड़ा किया जाए कि उस से प्रायश्चित्त किया जाए, और वह अजाजेल के लिथे जंगल में छोड़ा जाए। 11 और हारून उस पापबलि के बछड़े को जो उसी के लिथे होगा समीप ले आए, और उसको बलिदान करके अपके और अपके घराने के लिथे प्रायश्चित्त करे। 12 और जो वेदी यहोवा के सम्मुख है उस पर के जलते हुए कोयलोंसे भरे हुए धूपदान को लेकर, और अपक्की दोनोंमुट्ठियोंको फूटे हुए सुगन्धित धूप से भरकर, बीचवाले पर्दे के भीतर ले आकर 13 उस धूप को यहोवा के सम्मुख आग में डाले, जिस से धूप का धुआं साझीपत्र के ऊपर के प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर छा जाए, नहीं तो वह मर जाएगा; 14 तब वह बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर पूरब की ओर प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर अपक्की उंगली से छिड़के, और फिर उस लोहू में से कुछ उंगली के द्वारा उस ढकने के साम्हने भी सात बार छिड़क दे। 15 फिर वह उस पापबलि के बकरे को जो साधारण जनता के लिथे होगा बलिदान करके उसके लोहू को बीचवाले पर्दे के भीतर ले आए, और जिस प्रकार बछड़े के लोहू से उस ने किया या ठीक वैसा ही वह बकरे के लोहू से भी करे, अर्यात् उसको प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर और उसके साम्हने छिड़के। 16 और वह इस्त्राएलियोंकी भांति भांति की अशुद्धता, और अपराधों, और उनके सब पापोंके कारण पवित्रस्यान के लिथे प्रायश्चित्त करे; और मिलापवाला तम्बू जो उनके संग उनकी भांति भांति की अशुद्धता के बीच रहता है उसके लिथे भी वह वैसा ही करे। 17 और जब हारून प्रायश्चित्त करने के लिथे पवित्रस्यान में प्रवेश करे, तब से जब तक वह अपके और अपके घराने और इस्त्राएल की सारी मण्डली के लिथे प्रायश्चित्त करके बाहर न निकले तब तक कोई मनुष्य मिलापवाले तम्बू में न रहे। 18 फिर वह निकलकर उस वेदी के पास जो यहोवा के साम्हने है जाए और उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, अर्यात् बछड़े के लोहू और बकरे के लोहू दोनोंमें से कुछ लेकर उस वेदी के चारोंकोनोंके सींगो पर लगाए। 19 और उस लोहू में से कुछ अपक्की उंगली के द्वारा सात बार उस पर छिड़ककर उसे इस्त्राएलियोंकी भांति भांति की अशुद्धता छुड़ाकर शुद्ध और पवित्र करे। 20 और जब वह पवित्रस्यान और मिलापवाले तम्बू और वेदी के लिथे प्रायश्चित्त कर चुके, तब जीवित बकरे को आगे ले आए; 21 और हारून अपके दोनोंहाथोंको जीवित बकरे पर रखकर इस्त्राएलियोंके सब अधर्म के कामों, और उनके सब अपराधों, निदान उनके सारे पापोंको अंगीकार करे, और उनको बकरे के सिर पर धरकर उसको किसी मनुष्य के हाथ जो इस काम के लिथे तैयार हो जंगल में भेजके छुड़वा दे। 22 और वह बकरा उनके सब अधर्म के कामोंको अपके ऊपर लादे हुए किसी निराले देश में उठा ले जाएगा; इसलिथे वह मनुष्य उस बकरे को जंगल में छोड़े दे। 23 तब हारून मिलापवाले तम्बू में आए, और जिस सनी के वोंको पहिने हुए उस ने पवित्रस्यान में प्रवेश किया या उन्हें उतारकर वहीं पर रख दे। 24 फिर वह किसी पवित्र स्यान में जल से स्नान कर अपके निज वस्त्र पहिन ले, और बाहर जाकर अपके होमबलि और साधारण जनता के होमबलि को चढ़ाकर अपके और जनता के लिथे प्रायश्चित्त करे। 25 और पापबलि की चरबी को वह वेदी पर जलाए। 26 और जो मनुष्य बकरे को अजाजेल के लिथे छोड़कर आए वह भी अपके वोंको धोए, और जल से स्नान करे, और तब वह छावनी में प्रवेश करे। 27 और पापबलि का बछड़ा और पापबलि का बकरा भी जिनका लोहू पवित्रस्यान में प्रायश्चित्त करने के लिथे पहुंचाया जाए वे दोनोंछावनी से बाहर पहुंचाए जाएं; और उनका चमड़ा, मांस, और गोबर आग में जला दिया जाए। 28 और जो उनको जलाए वह अपके वोंको धोए, और जल से स्नान करे, और इसके बाद वह छावनी में प्रवेश करने पाए।। 29 और तुम लोगोंके लिथे यह सदा की विधि होगी कि सातवें महीने के दसवें दिन को तुम अपके अपके जीव को दु:ख देना, और उस दिन कोई, चाहे वह तुम्हारे निज देश को हो चाहे तुम्हारे बीच रहने वाला कोई परदेशी हो, कोई भी किसी प्रकार का काम काज न करे; 30 क्योंकि उस दिन तुम्हें शुद्ध करने के लिथे तुम्हारे निमित्त प्रायश्चित्त किया जाएगा; और तुम अपके सब पापोंसे यहोवा के सम्मुख पवित्र ठहरोगे। 31 यह तुम्हारे लिथे परमविश्रम का दिन ठहरे, और तुम उस दिन अपके अपके जीव को दु:ख देना; यह सदा की विधि है। 32 और जिसका अपके पिता के स्यान पर याजक पद के लिथे अभिषेक और संस्कार किया जाए वह याजक प्रायश्चित्त किया करे, अर्यात् वह सनी के पवित्र वोंको पहिनकर, 33 पवित्रस्यान, और मिलापवाले तम्बू, और वेदी के लिथे प्रायश्चित्त करे; और याजकोंके और मण्डली के सब लोगोंके लिथे भी प्रायश्चित्त करे। 34 और यह तुम्हारे लिथे सदा की विधि होगी, कि इस्त्राएलियोंके लिथे प्रतिवर्ष एक बार तुम्हारे सारे पापोंके लिथे प्रायश्चित्त किया जाए। यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी यी हारून ने किया।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 हारून और उसके पुत्रोंसे और कुल इस्त्राएलियोंसे कह, कि यहोवा ने यह आज्ञा दी है, 3 कि इस्त्राएल के घराने में से कोई मनुष्य हो जो बैल वा भेड़ के बच्चे, वा बकरी को, चाहे छावनी में चाहे छावनी से बाहर घात करके 4 मिलापवाले तम्बू के द्वार पर, यहोवा के निवास के साम्हने यहोवा को चढ़ाने के निमित्त न ले जाए, तो उस मनुष्य को लोहू बहाने का दोष लगेगा; और वह मनुष्य जो लोहू बहाने वाला ठहरेगा, वह अपके लोगोंके बीच से नाश किया जाए। 5 इस विधि का यह कारण है कि इस्त्राएली अपके बलिदान जिनको वह खुले मैदान में वध करते हैं, वे उन्हें मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास, यहोवा के लिथे ले जाकर उसी के लिथे मेलबलि करके बलिदान किया करें; 6 और याजक लोहू को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा की वेदी के ऊपर छिड़के, और चरबी को उसके सुखदायक सुगन्ध के लिथे जलाए। 7 और वे जो बकरोंके पूजक होकर व्यभिचार करते हैं, वे फिर अपके बलिपशुओं को उनके लिथे बलिदान न करें। तुम्हारी पीढिय़ोंके लिथे यह सदा की विधि होगी।। 8 और तू उन से कह, कि इस्त्राएल के घराने के लोगोंमें से वा उनके बीच रहनेहारे परदेशियोंमें से कोई मनुष्य क्योंन हो जो होमबलि वा मेलबलि चढ़ाए, 9 और उसको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के लिथे चढ़ाने को न ले आए; वह मनुष्य अपके लोगोंमें से नाश किया जाए।। 10 फिर इस्त्राएल के घराने के लोगोंमें से वा उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंमें से कोई मनुष्य क्योंन हो जो किसी प्रकार का लोहू खाए, मैं उस लोहू खानेवाले के विमुख होकर उसको उसके लोगोंके बीच में से नाश कर डालूंगा। 11 क्योंकि शरीर का प्राण लोहू में रहता है; और उसको मैं ने तुम लोगोंको वेदी पर चढ़ाने के लिथे दिया है, कि तुम्हारे प्राणोंके लिथे प्रायश्चित्त किया जाए; क्योंकि प्राण के कारण लोहू ही से प्रायश्चित्त होता है। 12 इस कारण मैं इस्त्राएलियोंसे कहता हूं, कि तुम में से कोई प्राणी लोहू न खाए, और जो परदेशी तुम्हारे बीच रहता हो वह भी लोहू कभी न खाए।। 13 और इस्त्राएलियोंमें से वा उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंमें से कोई मनुष्य क्योंन हो जो अहेर करके खाने के योग्य पशु वा पक्की को पकड़े, वह उसके लोहू को उंडेलकर धूलि से ढंाप दे। 14 क्योंकि शरीर का प्राण जो है वह उसका लोहू ही है जो उसके प्राण के साय एक है; इसी लिथे मैं इस्त्राएलियोंसे कहता हूं, कि किसी प्रकार के प्राणी के लोहू को तुम न खाना, क्योंकि सब प्राणियोंका प्राण उनका लोहू ही है; जो कोई उसको खाए वह नाश किया जाएगा। 15 और चाहे वह देशी हो वा परदेशी हो, जो कोई किसी लोय वा फाड़े हुए पशु का मांस खाए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे; तब वह शुद्ध होगा। 16 और यदि वह उनको न धोए और न स्नान करे, तो उसको अपके अधर्म का भार स्वयं उठाना पकेगा।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे कह, कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 3 तुम मिस्र देश के कामोंके अनुसार जिस में तुम रहते थे न करना; और कनान देश के कामोंके अनुसार भी जहां मैं तुम्हें ले चलता हूं न करना; और न उन देशोंकी विधियोंपर चलना। 4 मेरे ही नियमोंको मानना, और मेरी ही विधियोंको मानते हुए उन पर चलना। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 5 इसलिथे तुम मेरे नियमोंऔर मेरी विधियोंको निरन्तर मानना; जो मनुष्य उनको माने वह उनके कारण जीवित रहेगा। मैं यहोवा हूं। 6 तुम में से कोई अपक्की किसी निकट कुटुम्बिन का तन उघाड़ने को उसके पास न जाए। मैं यहोवा हूं। 7 अपक्की माता का तन जो तुम्हारे पिता का तन है न उघाड़ना; वह तो तुम्हारी माता है, इसलिथे तुम उसका तन न उघाड़ना। 8 अपक्की सौतेली माता का भी तन न उघाड़ना; वह तो तुम्हारे पिता ही का तन है। 9 अपक्की बहिन चाहे सगी हो चाहे सौतेली हो, चाहे वह घर में उत्पन्न हुई हो चाहे बाहर, उसका तन न उघाड़ना। 10 अपक्की पोती वा अपक्की नतिनी का तन न उघाड़ना, उनकी देह तो मानो तुम्हारी ही है। 11 तुम्हारी सोतेली बहिन जो तुम्हारे पिता से उत्पन्न हुई, वह तुम्हारी बहिन है, इस कारण उसका तन न उघाड़ना। 12 अपक्की फूफी का तन न उघाड़ना; वह तो तुम्हारे पिता की निकट कुटुम्बिन है। 13 अपक्की मौसी का तन न उघाड़ना; क्योंकि वह तुम्हारी माता की निकट कुटुम्बिन है। 14 अपके चाचा का तन न उघाड़ना, अर्यात् उसकी स्त्री के पास न जाना; वह तो तुम्हारी चाची है। 15 अपक्की बहू का तन न उघाड़ना वह तो तुम्हारे बेटे की स्त्री है, इस कारण तुम उसका तन न उघाड़ना। 16 अपक्की भौजी का तन न उघाड़ना; वह तो तुम्हारे भाई ही का तन है। 17 किसी स्त्री और उसकी बेटी दोनोंका तन न उघाड़ना, और उसकी पोती को वा उसकी नतिनी को अपक्की स्त्री करके उसका तन न उघाड़ना; वे तो निकट कुटुम्बिन है; ऐसा करना महापाप है। 18 और अपक्की स्त्री की बहिन को भी अपक्की स्त्री करके उसकी सौत न करना, कि पहली के जीवित रहते हुए उसका तन भी उघाड़े। 19 फिर जब तक कोई स्त्री अपके ऋतु के कारण अशुद्ध रहे तब तक उसके पास उसका तन उघाड़ने को न जाना। 20 फिर अपके भाई बन्धु की स्त्री से कुकर्म करके अशुद्ध न हो जाना। 21 और अपके सन्तान में से किसी को मोलेक के लिथे होम करके न चढ़ाना, और न अपके परमेश्वर के नाम को अपवित्र ठहराना; मैं यहोवा हूं। 22 स्त्रीगमन की रीति पुरूषगमन न करना; वह तो घिनौना काम है। 23 किसी जाति के पशु के साय पशुगमन करके अशुद्ध न हो जाना, और न कोई स्त्री पशु के साम्हने इसलिथे खड़ी हो कि उसके संग कुकर्म करे; यह तो उल्टी बात है।। 24 ऐसा ऐसा कोई भी काम करके अशुद्ध न हो जाना, क्योंकि जिन जातियोंको मैं तुम्हारे आगे से निकालने पर हूं वे ऐसे ऐसे काम करके अशुद्ध हो गई है; 25 और उनका देश भी अशुद्ध हो गया है, इस कारण मैं उस पर उसके अधर्म का दण्ड देता हूं, और वह देश अपके निवासिक्कों उगल देता है। 26 इस कारण तुम लोग मेरी विधियोंऔर नियमोंको निरन्तर मानना, और चाहे देशी चाहे तुम्हारे बीच रहनेवाला परदेशी हो तुम में से कोई भी ऐसा घिनौना काम न करे; 27 क्योंकि ऐसे सब घिनौने कामोंको उस देश के मनुष्य तो तुम से पहिले उस में रहते थे वे करते आए हैं, इसी से वह देश अशुद्ध हो गया है। 28 अब ऐसा न हो कि जिस रीति से जो जाति तुम से पहिले उस देश में रहती यी उसको उस ने उगल दिया, उसी रीति जब तुम उसको अशुद्ध करो, तो वह तुम को भी उगल दे। 29 जितने ऐसा कोई घिनौना काम करें वे सब प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किए जाएं। 30 यह आज्ञा जो मैं ने तुम्हारे मानने को दी है उसे तुम मानना, और जो घिनौनी रीतियां तुम से पहिले प्रचलित हैं उन में से किसी पर न चलना, और न उनके कारण अशुद्ध हो जाना। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली से कह, कि तुम पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूं। 3 तुम अपक्की अपक्की माता और अपके अपके पिता का भय मानना, और मेरे विश्रम दिनोंको मानना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 4 तुम मूरतोंकी ओर न फिरना, और देवताओं की प्रतिमाएं ढालकर न बना लेना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 5 जब तुम यहोवा के लिथे मेलबलि करो, तब ऐसा बलिदान करना जिससे मैं तुम से प्रसन्न हो जाऊं। 6 उसका मांस बलिदान के दिन और दूसरे दिन खाया जाए, परन्तु तीसरे दिन तक जो रह जाए वह आग में जला दिया जाए। 7 और यदि उस में से कुछ भी तीसरे दिन खाया जाए, तो यह घृणित ठहरेगा, और ग्रहण न किया जाएगा। 8 और उसका खानेवाला यहोवा के पवित्र पदार्य को अपवित्र ठहराता है, इसलिथे उसको अपके अधर्म का भार स्वयं उठाना पकेगा; और वह प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किया जाएगा।। 9 फिर जब तुम अपके देश के खेत काटो तब अपके खेत के कोने कोने तक पूरा न काटना, और काटे हुए खेत की गिरी पक्की बालोंको न चुनना। 10 और अपक्की दाख की बारी का दाना दाना न तोड़ लेना, और अपक्की दाख की बारी के फंड़े हुए अंगूरोंको न बटोरना; उन्हें दीन और परदेशी लोगोंके लिथे छोड़ देना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 11 तुम चोरी न करना, और एक दूसरे से न तो कपट करना, और न फूठ बोलना। 12 तुम मेरे नाम की फूठी शपय खाके अपके परमेश्वर का नाम अपवित्र न ठहराना; मैं यहोवा हूं। 13 एक दूसरे पर अन्धेर न करना, और न एक दूसरे को लूट लेना। और मजदूर की मजदूरी तेरे पास सारी रात बिहान तक न रहने पाएं। 14 बहिरे को शाप न देना, और न अन्धे के आगे ठोकर रखना; और अपके परमेश्वर का भय मानना; मैं यहोवा हूं। 15 न्याय में कुटिलता न करना; और न तो कंगाल का पझ करना और न बड़े मनुष्योंका मुंह देखा विचार करना; उस दूसरे का न्याय धर्म से करना। 16 लूतरा बनके अपके लोगोंमें न फिरा करना, और एक दूसरे के लोहू बहाने की युक्तियां न बान्धना; मैं यहोवा हूं। 17 अपके मन में एक दूसरे के प्रति बैर न रखना; अपके पड़ोसी को अवश्य डांटना नहीं, तो उसके पाप का भार तुझ को उठाना पकेगा। 18 पलटा न लेना, और न अपके जाति भाइयोंसे बैर रखना, परन्तु एक दूसरे से अपके समान प्रेम रखना; मैं यहोवा हूं। 19 तुम मेरी विधियोंको निरन्तर मानना। अपके पशुओं को भिन्न जाति के पशुओं से मेल न खाने देना; अपके खेत में दो प्रकार के बीज इकट्ठे न बोना; और सनी और ऊन की मिलावट से बना हुआ वस्त्र न पहिनना। 20 फिर कोई स्त्री दासी हो, और उसकी मंगनी किसी पुरूष से हुई हो, परन्तु वह न तो दास से और न सेंतमेंत स्वाधीन की गई हो; उस से यदि कोई कुकर्म करे, तो उन दोनोंको दण्ड तो मिले, पर उस स्त्री के स्वाधीन न होने के कारण वे दोनोंमार न डाले जाएं। 21 पर वह पुरूष मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के पास एक मेढ़ा दोषबलि के लिथे ले आए। 22 और याजक उसके किथे हुए पाप के कारण दोषबलि के मेढ़े के द्वारा उसके लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे; तब उसका किया हुआ पाप झमा किया जाएगा। 23 फिर जब तुम कनान देश में पंहुचकर किसी प्रकार के फल के वृझ लगाओ, तो उनके फल तीन वर्ष तक तुम्हारे लिथे मानोंखतनारहित ठहरें रहें; इसलिथे उन में से कुछ न खाया जाए। 24 और चौथे वर्ष में उनके सब फल यहोवा की स्तुति करने के लिथे पवित्र ठहरें। 25 तब पांचवें वर्ष में तुम उनके फल खाना, इसलिथे कि उन से तुम को बहुत फल मिलें; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 26 तुम लोहू लगा हुआ कुछ मांस न खाना। और न टोना करना, और न शुभ वा अशुभ मुहूर्तोंको मानना। 27 अपके सिर में घेरा रखकर न मुंड़ाना, और न अपके गाल के बालोंको मुंड़ाना। 28 मुर्दोंके कारण अपके शरीर को बिलकुल न चीरना, और न उस में छाप लगाना; मैं यहोवा हूं। 29 अपक्की बेटियोंको वेश्या बनाकर अपवित्र न करना, ऐसा न हो कि देश वेश्यागमन के कारण महापाप से भर जाए। 30 मेरे विश्रमदिन को माना करना, और मेरे पवित्रस्यान का भय निरन्तर मानना; मैं यहोवा हूं। 31 ओफाओं और भूत साधने वालोंकी ओर न फिरना, और ऐसोंको खोज करके उनके कारण अशुद्ध न हो जाना; मै तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 32 पक्के बालवाले के साम्हने उठ खड़े होना, और बूढ़े का आदरमान करना, और अपके परमेश्वर का भय निरन्तर मानना; मैं यहोवा हूं। 33 और यदि कोई परदेशी तुम्हारे देश में तुम्हारे संग रहे, तो उसको दु:ख न देना। 34 जो परदेशी तुम्हारे संग रहे वह तुम्हारे लिथे देशी के समान हो, और उस से अपके ही समान प्रेम रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 35 तुम न्याय में, और परिमाण में, और तौल में, और नाप में कुटिलता न करना। 36 सच्चा तराजू, धर्म के बटखरे, सच्चा एपा, और धर्म का हीन तुम्हारे पास रहें; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुम को मिस्र देश से निकाल ले आया। 37 इसलिथे तुम मेरी सब विधियोंऔर सब नियमोंको मानते हुए निरन्तर पालन करो; मैं यहोवा हूं।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे कह, कि इस्त्राएलियोंमें से, वा इस्त्राएलियोंके बीच रहनेवाले परदेशियोंमें से, कोई क्योंन हो जो अपक्की कोई सन्तान मोलेक को बलिदान करे वह निश्चय मार डाला जाए; और जनता उसको पत्यरवाह करे। 3 और मैं भी उस मनुष्य के विरूद्ध होकर उसको उसके लोगोंमें से इस कारण नाश करूंगा, कि उस ने अपक्की सन्तान मोलेक को देकर मेरे पवित्रस्यान को अशुद्ध किया, और मेरे पवित्र नाम को अपवित्र ठहराया। 4 और यदि कोई अपक्की सन्तान मोलेक को बलिदान करे, और जनता उसके विषय में आनाकानी करे, और उसको मार न डाले, 5 तब तो मैं स्वयं उस मनुष्य और उसके घराने के विरूद्ध होकर उसको और जितने उसके पीछे होकर मोलेक के साय व्यभिचार करें उन सभोंको भी उनके लोगोंके बीच में से नाश करूंगा। 6 फिर जो प्राणी ओफाओं वा भूतसाधनेवालोंकी ओर फिरके, और उनके पीछे होकर व्यभिचारी बने, तब मैं उस प्राणी के विरूद्ध होकर उसको उसके लोगोंके बीच में से नाश कर दूंगा। 7 इसलिथे तुम अपके आप को पवित्र करो; और पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 8 और तुम मेरी विधियोंको मानना, और उनका पालन भी करना; क्योंकि मैं तुम्हारा पवित्र करनेवाला यहोवा हूं। 9 कोई क्योंन हो जो अपके पिता वा माता को शाप दे वह निश्चय मार डाला जाए; उस ने अपके पिता वा माता को शाप दिया है, इस कारण उसका खून उसी के सिर पर पकेगा। 10 फिर यदि कोई पराई स्त्री के साय व्यभिचार करे, तो जिस ने किसी दूसरे की स्त्री के साय व्यभिचार किया हो तो वह व्यभिचारी और वह व्यभिचारिणी दोनोंनिश्चय मार डाले जाएं। 11 और यदि कोई अपक्की सौतेली माता के साय सोए, वह जो अपके पिता ही का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा; सो इसलिथे वे दोनोंनिश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा। 12 और यदि कोई अपक्की पतोहू के साय सोए, तो वे दोनोंनिश्चय मार डाले जाएं; क्योंकि वे उलटा काम करनेवाले ठहरेंगे, और उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा। 13 और यदि कोई जिस रीति स्त्री से उसी रीति पुरूष से प्रसंग करे, तो वे दोनोंघिनौना काम करनेवाले ठहरेंगे; इस कारण वे निश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा। 14 और यदि कोई अपक्की पत्नी और अपक्की सांस दोनोंको रखे, तो यह महापाप है; इसलिथे वह पुरूष और वे स्त्रियां तीनोंके तीनोंआग में जलाए जाएं, जिस से तुम्हारे बीच महापाप न हो। 15 फिर यदि कोई पुरूष पशुगामी हो, तो पुरूष और पशु दोनोंनिश्चय मार डाले जाएं। 16 और यदि कोई स्त्री पशु के पास जाकर उसके संग कुकर्म करे, तो तू उस स्त्री और पशु दोनोंको घात करना; वे निश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा। 17 और यदि कोई अपक्की बहिन का, चाहे उसकी संगी बहिन हो चाहे सौतेली, उसका नग्न तन देखे, तो वह निन्दित बात है, वे दोनोंअपके जाति भाइयोंकी आंखोंके साम्हने नाश किए जाएं; क्योंकि जो अपक्की बहिन का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा उसे अपके अधर्म का भार स्वयं उठाना पकेगा। 18 फिर यदि कोई पुरूष किसी ऋतुमती स्त्री के संग सोकर उसका तन उघाड़े, तो वह पुरूष उसके रूधिर के सोते का उघाड़नेवाला ठहरेगा, और वह स्त्री अपके रूधिर के सोते की उघाड़नेवाली ठहरेगी; इस कारण दोनोंअपके लोगोंके बीच से नाश किए जाएं। 19 और अपक्की मौसी वा फूफी का तन न उघाड़ना, क्योंकि जो उसे उघाड़े वह अपक्की निकट कुटुम्बिन को नंगा करता है; इसलिथे इन दोनोंको अपके अधर्म का भार उठाना पकेगा। 20 और यदि कोई अपक्की चाची के संग सोए, तो वह अपके चाचा का तन उघाड़ने वाला ठहरेगा; इसलिथे वे दोनोंअपके पाप का भार को उठाए हुए निर्वंश मर जाएंगे। 21 और यदि कोई भौजी वा भयाहू को अपक्की पत्नी बनाए, तो इसे घिनौना काम जानना; और वह अपके भाई का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा, इस कारण वे दोनोंनिर्वंश रहेंगे। 22 तुम मेरी सब विधियोंऔर मेरे सब नियमोंको समझ के साय मानना; जिससे यह न हो कि जिस देश में मैं तुम्हें लिथे जा रहा हूं वह तुम को उगल देवे। 23 और जिस जाति के लोगोंको मैं तुम्हारे आगे से निकालता हूं उनकी रीति रस्म पर न चलना; क्योंकि उन लोगोंने जो थे सब कुकर्म किए हैं, इसी कारण मुझे उन से घृणा हो गई है। 24 और मैं तुम लोगोंसे कहता हूं, कि तुम तो उनकी भूमि के अधिक्कारनेी होगे, और मैं इस देश को जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं तुम्हारे अधिक्कारने में कर दूंगा; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं जिस ने तुम को देशोंके लोगोंसे अलग किया है। 25 इस कारण तुम शुद्ध और अशुद्ध पशुओं में, और शुद्ध और अशुद्ध पझियोंमें भेद करना; और कोई पशु वा पक्की वा किसी प्रकार का भूमि पर रेंगनेवाला जीवजन्तु क्योंन हो, जिसको मैं ने तुम्हारे लिथे अशुद्ध ठहराकर वजिर्त किया है, उस से अपके आप को अशुद्ध न करना। 26 और तुम मेरे लिथे पवित्र बने रहना; क्योंकि मैं यहोवा स्वयं पवित्र हूं, और मैं ने तुम को और देशोंके लोगोंसे इसलिथे अलग किया है कि तुम निरन्तर मेरे ही बने रहो।। 27 यदि कोई पुरूष वा स्त्री ओफाई वा भूत की साधना करे, तो वह निश्चय मार डाला जाए; ऐसोंका पत्यरवाह किया जाए, उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून के पुत्र जो याजक है उन से कह, कि तुम्हारे लोगोंमें से कोई भी मरे, तो उसके कारण तुम में से कोई अपके को अशुद्ध न करे; 2 अपके निकट कुटुम्बियों, अर्यात् अपक्की माता, वा पिता, वा बेटे, वा बेटी, वा भाई के लिथे, 3 वा अपक्की कुंवारी बहिन जिसका विवाह न हुआ हो जिनका समीपी सम्बन्ध है; उनके लिथे वह अपके को अशुद्ध कर सकता है। 4 पर याजक होने के नाते से वह अपके लोगोंमें प्रधान है, इसलिथे वह अपके को ऐसा अशुद्ध न करे कि अपवित्र हो जाए। 5 वे न तो अपके सिर मुंड़ाएं, और न अपके गाल के बालोंको मुंड़ाएं, और न अपके शरीर चीरें। 6 वे अपके परमेश्वर के लिथे पवित्र बने रहें, और अपके परमेश्वर का नाम अपवित्र न करें; क्योंकि वे यहोवा के हव्य को जो उनके परमेश्वर का भोजन है चढ़ाया करते हैं; इस कारण वे पवित्र बने रहें। 7 वे वेश्या वा भ्रष्टा को ब्याह न लें; और न त्यागी हुई को ब्याह लें; क्योंकि याजक अपके परमेश्वर के लिथे पवित्र होता है। 8 इसलिथे तू याजक को पवित्र जानना, क्योंकि वह तुम्हारे परमेश्वर का भोजन चढ़ाया करता है; इसलिथे वह तेरी दृष्टि में पवित्र ठहरे; क्योंकि मैं यहोवा, जो तुम को पवित्र करता हूं, पवित्र हूं। 9 और यदि याजक की बेटी वेश्या बनकर अपके आप को अपवित्र करे, तो वह अपके पिता को अपवित्र ठहराती है; वह आग में जलाई जाए।। 10 और जो अपके भाइयोंमें महाथाजक हो, जिसके सिर पर अभिषेक का तेल डाला गया हो, और जिसका पवित्र वोंको पहिनने के लिथे संस्कार हुआ हो, वह अपके सिर के बाल बिखरने न दे, और अपके वस्त्र फाड़े; 11 और न वह किसी लोय के पास जाए, और न अपके पिता वा माता के कारण अपके को अशुद्ध करे; 12 और वह पवित्रस्यान से बाहर भी न निकले, और न अपके परमेश्वर के पवित्रस्यान को अपवित्र ठहराए; क्योंकि वह अपके परमेश्वर के अभिषेक का तेलरूपी मुकुट धारण किए हुए है; मैं यहोवा हूं। 13 और वह कुंवारी ही स्त्री को ब्याहे। 14 जो विधवा, वा त्यागी हुई, वा भ्रष्ट, वा वेश्या हो, ऐसी किसी को वह न ब्याहे, वह अपके ही लोगोंके बीच में की किसी कुंवारी कन्या को ब्याहे; 15 और वह अपके वीर्य्य को अपके लोगोंमें अपवित्र न करे; क्योंकि मैं उसका पवित्र करनेवाला यहोवा हूं। 16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 17 हारून से कह, कि तेरे वंश की पीढ़ी पीढ़ी में जिस किसी के कोई भी दोष होंवह अपके परमेश्वर का भोजन चढ़ाने के लिथे समीप न आए। 18 कोई क्योंन हो जिस में दोष हो वह समीप न आए, चाहे वह अन्धा हो, चाहे लंगड़ा, चाहे नकचपटा हो, चाहे उसके कुछ अधिक अंग हो, 19 वा उसका पांव, वा हाथ टूटा हो, 20 वा वह कुबड़ा, वा बौना हो, वा उसकी आंख में दोष हो, वा उस मनुष्य के चाईं वा खजुली हो, वा उसके अंड पिचके हों; 21 हारून याजक के वंश में से जिस किसी में कोई भी दोष हो वह यहोवा के हव्य चढ़ाने के लिथे समीप न आए; वह जो दोषयुक्त है कभी भी अपके परमेश्वर का भोजन चढ़ाने के लिथे समीप न आए। 22 वह अपके परमेश्वर के पवित्र और परमपवित्र दोनोंप्रकार के भोजन को खाए, 23 परन्तु उसके दोष के कारण वह न तो बीचवाले पर्दे के भीतर आए और न वेदी के समीप, जिस से ऐसा न हो कि वह मेरे पवित्रस्यानोंको अपवित्र करे; क्योंकि मैं उनका पवित्र करनेवाला यहोवा हूं। 24 इसलिथे मूसा ने हारून और उसके पुत्रोंको तया कुल इस्त्राएलियोंको यह बातें कह सुनाईं।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 हारून और उसके पुत्रोंसे कह, कि इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुओं से जिनको वे मेरे लिथे पवित्र करते हैं न्यारे रहें, और मेरे पवित्र नाम को अपवित्र न करें, मैं यहोवा हूं। 3 और उन से कह, कि तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में तुम्हारे सारे वंश में से जो कोई अपक्की अशुद्धता की दशा में उन पवित्र की हुई वस्तुओं के पास जाए, जिन्हें इस्त्राएली यहोवा के लिथे पवित्र करते हैं, वह प्राणी मेरे साम्हने से नाश किया जाएगा; मैं यहोवा हूं। 4 हारून के वंश में से कोई क्योंन हो जो कोढ़ी हो, वा उसके प्रमेह हो, वह मनुष्य जब तक शुद्ध न हो जाए तब तक पवित्र की हुई वस्तुओं में से कुछ न खाए। और जो लोय के कारण अशुद्ध हुआ हो, वा वीर्य्य स्खलित हुआ हो, ऐसे मनुष्य को जो कोई छूए, 5 और जो कोई किसी ऐसे रेंगनेहारे जन्तु को छूए जिस से लोग अशुद्ध हो सकते हैं, वा किसी ऐसे मनुष्य को छूए जिस में किसी प्रकार की अशुद्धता हो जो उसको भी लग सकती है। 6 तो वह प्राणी जो इन में से किसी को छूए सांफ तक अशुद्ध ठहरा रहे, और जब तक जल से स्नान न कर ले तब तक पवित्र वस्तुओं में से कुछ न खाए। 7 तब सूर्य अस्त होने पर वह शुद्ध ठहरेगा; और तब वह पवित्र वस्तुओं में से खा सकेगा, क्योंकि उसका भोजन वही है। 8 जो जानवर आप से मरा हो वा पशु से फाड़ा गया हो उसे खाकर वह अपके आप को अशुद्ध न करे; मैं यहोवा हूं। 9 इसलिथे याजक लोग मेरी सौपी हुई वस्तुओं की रझा करें, ऐसा न हो कि वे उनको अपवित्र करके पाप का भार उठाएं, और इसके कारण मर भी जाएं; मैं उनका पवित्र करनेवाला यहोवा हूं। 10 पराए कुल का जन किसी पवित्र वस्तु को न खाने पाए, चाहे वह याजक का पाहुन हो वा मजदूर हो, तौभी वह कोई पवित्र वस्तु न खाए। 11 यदि याजक किसी प्राणी को रूपया देकर मोल ले, तो वह प्राणी उस में से खा सकता है; और जो याजक के घर में उत्पन्न हुए होंवे भी उसके भोजन में से खाएं। 12 और यदि याजक की बेटी पराए कुल के किसी पुरूष से ब्याही गई हो, तो वह भेंट की हुई पवित्र वस्तुओं में से न खाए। 13 यदि याजक की बेटी विधवा वा त्यागी हुई हो, और उसकी सन्तान न हो, और वह अपक्की बाल्यावस्या की रीति के अनुसार अपके पिता के घर में रहती हो, तो वह अपके पिता के भोजन में से खाए; पर पराए कुल का कोई उस में से न खाने पाए। 14 और यदि कोई मनुष्य किसी पवित्र वस्तु में से कुछ भूल से खा जाए, तो वह उसका पांचवां भाग बढ़ाकर उसे याजक को भर दे। 15 और वे इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुओं को, जिन्हें वे यहोवा के लिथे चढ़ाएं, अपवित्र न करें। 16 वे उनको अपक्की पवित्र वस्तुओं में से खिलाकर उन से अपराध का दोष न उठवाएं; मैं उनका पवित्र करनेवाला यहोवा हूं।। 17 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 18 हारून और उसके पुत्रोंसे और इस्त्राएल के घराने वा इस्त्राएलियोंमें रहनेवाले परदेशियोंमें से कोई क्योंन हो जो मन्नत वा स्वेच्छाबलि करने के लिथे यहोवा को कोई होमबलि चढ़ाए, 19 तो अपके निमित्त ग्रहणयोग्य ठहरने के लिथे बैलोंवा भेड़ोंवा बकरियोंमें से निर्दोष नर चढ़ाया जाए। 20 जिस में कोई भी दोष हो उसे न चढ़ाना; क्योंकि वह तुम्हारे निमित्त ग्रहणयोग्य न ठहरेगा। 21 और जो कोई बैलोंवा भेड़-बकरियोंमें से विशेष वस्तु संकल्प करने के लिथे वा स्वेच्छाबलि के लिथे यहोवा को मेलबलि चढ़ाए, तो ग्रहण होने के लिथे अवश्य है कि वह निर्दोष हो, उस में कोई भी दोष न हो। 22 जो अन्धा वा अंग का टूटा वा लूला हो, वा उस में रसौली वा खौरा वा खुजली हो, ऐसोंको यहोवा के लिथे न चढ़ाना, उनको वेदी पर यहोवा के लिथे हव्य न चढ़ाना। 23 जिस किसी बैल वा भेड़ वा बकरे का कोई अंग अधिक वा कम हो उसको स्वेच्छाबलि कि लिथे चढ़ा सकते हो, परन्तु मन्नत पूरी करने के लिथे वह ग्रहण न होगा। 24 जिसके अंड दबे वा कुचले वा टूटे वा कट गए होंउसको यहोवा के लिथे न चढ़ाना, और अपके देश में भी ऐसा काम न करना। 25 फिर इन में से किसी को तुम अपके परमेश्वर का भोजन जानकर किसी परदेशी से लेकर न चढ़ाओ; क्योंकि उन में उनका बिगाड़ वर्तमान है, उन में दोष है, इसलिथे वे तुम्हारे निमित्त ग्रहण न होंगे।। 26 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 27 जब बछड़ा वा भेड़ वा बकरी का बच्चा उत्पन्न हो, तो वह सात दिन तक अपक्की मां के साय रहे; फिर आठवें दिन से आगे को वह यहोवा के हव्यवाह चढ़ावे के लिथे ग्रहणयोग्य ठहरेगा। 28 चाहे गाय, चाहे भेड़ी वा बकरी हो, उसको और उसके बच्चे को एक ही दिन में बलि न करना। 29 और जब तुम यहोवा के लिथे धन्यवाद का मेलबलि चढ़ाओ, तो उसे इसी प्रकार से करना जिस से वह ग्रहणयोग्य ठहरे।। 30 वह उसी दिन खाया जाए, उस में से कुछ भी बिहान तक रहने न पाए; मैं यहोवा हूं। 31 और तुम मेरी आज्ञाओं को मानना और उनका पालन करना; मैं यहोवा हूं। 32 और मेरे पवित्र नाम को अपवित्र न ठहराना, क्योंकि मैं इस्त्राएलियोंके बीच अवश्य ही पवित्र माना जाऊंगा; मैं तुम्हारा पवित्र करनेवाला यहोवा हूं। 33 जो तुम को मिस्र देश से निकाल लाया हूं जिस से तुम्हारा परमेश्वर बना रहूं; मैं यहोवा हूं।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे कह, कि यहोवा के पर्ब्ब जिनका तुम को पवित्र सभा एकत्रित करने के लिथे नियत समय पर प्रचार करना होगा, मेरे वे पर्ब्ब थे हैं। 3 छ: दिन कामकाज किया जाए, पर सातवां दिन परमविश्रम का और पवित्र सभा का दिन है; उस में किसी प्रकार का कामकाज न किया जाए; वह तुम्हारे सब घरोंमें यहोवा का विश्रम दिन ठहरे।। 4 फिर यहोवा के पर्ब्ब जिन में से एक एक के ठहराथे हुए समय में तुम्हें पवित्र सभा करने के लिथे प्रचार करना होगा वे थे हैं। 5 पहिले महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय यहोवा का फसह हुआ करे। 6 और उसी महीने के पंद्रहवें दिन को यहोवा के लिथे अखमीरी रोटी का पर्ब्ब हुआ करे; उस में तुम सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना। 7 उन में से पहिले दिन तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्र्म का कोई काम न करना। 8 और सातोंदिन तुम यहोवा को हव्य चढ़ाया करना; और सातवें दिन पवित्र सभा हो; उस दिन परिश्र्म का कोई काम न करना।। 9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 10 इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम उस देश में प्रवेश करो जिसे यहोवा तुम्हें देता है और उस में के खेत काटो, तब अपके अपके पक्के खेत की पहिली उपज का पूला याजक के पास ले आया करना; 11 और वह उस पूले को यहोवा के साम्हने हिलाए, कि वह तुम्हारे निमित्त ग्रहण किया जाए; वह उसे विश्रमदिन के दूसरे दिन हिलाए। 12 और जिस दिन तुम पूले को हिलवाओ उसी दिन एक वर्ष का निर्दोष भेड़ का बच्चा यहोवा के लिथे होमबलि चढ़ाना। 13 और उसके साय का अन्नबलि एपा के दो दसवें अंश तेल से सने हुए मैदे का हो वह सुखदायक सुगन्ध के लिथे यहोवा का हव्य हो; और उसके साय का अर्ध हीन भर की चौयाई दाखमधु हो। 14 और जब तक तुम इस चढ़ावे को अपके परमेश्वर के पास न ले जाओ, उस दिन तक नथे खेत में से न तो रोटी खाना और न भुना हुआ अन्न और न हरी बालें; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे सारे घरानोंमें सदा की विधि ठहरे।। 15 फिर उस विश्रमदिन के दूसरे दिन से, अर्यात् जिस दिन तुम हिलाई जानेवाली भेंट के पूले को लाओगे, उस दिन से पूरे सात विश्रमदिन गिन लेना; 16 सातवें विश्रमदिन के दूसरे दिन तक पचास दिन गिनना, और पचासवें दिन यहोवा के लिथे नया अन्नबलि चढ़ाना। 17 तुम अपके घरोंमें से एपा के दो दसवें अंश मैदे की दो रोटियां हिलाने की भेंट के लिथे ले आना; वे खमीर के साय पकाई जाएं, और यहोवा के लिथे पहिली उपज ठहरें। 18 और उस रोटी के संग एक एक वर्ष के सात निर्दोष भेड़ के बच्चे, और एक बछड़ा, और दो मेढ़े चढ़ाना; वे अपके अपके साय के अन्नबलि और अर्ध समेत यहोवा के लिथे होमबलि के समान चढ़ाए जाएं, अर्यात् वे यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य ठहरें। 19 फिर पापबलि के लिथे एक बकरा, और मेलबलि के लिथे एक एक वर्ष के दो भेड़ के बच्चे चढ़ाना। 20 तब याजक उनको पहिली उपज की रोटी समेत यहोवा के साम्हने हिलाने की भेंट के लिथे हिलाए, और इन रोटियोंके संग वे दो भेड़ के बच्चे भी हिलाए जाएं; वे यहोवा के लिथे पवित्र, और याजक का भाग ठहरें। 21 और तुम उस दिन यह प्रचार करना, कि आज हमारी एक पवित्र सभा होगी; और परिश्र्म का कोई काम न करना; यह तुम्हारे सारे घरानोंमें तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में सदा की विधि ठहरे।। 22 जब तुम अपके देश में के खेत काटो, तब अपके खेत के कोनोंको पूरी रीति से न काटना, और खेत में गिरी हुई बालोंको न इकट्ठा करना; उसे दीनहीन और परदेशी के लिथे छोड़ देना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।। 23 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 24 इस्त्राएलियोंसे कह, कि सातवें महीने के पहिले दिन को तुम्हारे लिथे परमविश्रम हो; उस में स्मरण दिलाने के लिथे नरसिंगे फूंके जाएं, और एक पवित्र सभा इकट्ठी हो। 25 उस दिन तुम परिश्र्म का कोई काम न करना, और यहोवा के लिथे एक हव्य चढ़ाना।। 26 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 27 उसी सातवें महीने का दसवां दिन प्रायश्चित्त का दिन माना जाए; वह तुम्हारी पवित्र सभा का दिन होगा, और उस में तुम अपके अपके जीव को दु:ख देना और यहोवा का हव्य चढ़ाना। 28 उस दिन तुम किसी प्रकार का कामकाज न करना; क्योंकि वह प्रायश्चित्त का दिन नियुक्त किया गया है जिस में तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त किया जाएगा। 29 इसलिथे जो प्राणी उस दिन दु:ख न सहे वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाएगा। 30 और जो प्राणी उस दिन किसी प्रकार का कामकाज करे उस प्राणी को मैं उसके लोगोंके बीच में से नाश कर डालूंगा। 31 तुम किसी प्रकार का कामकाज न करना; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे घराने में सदा की विधी ठहरे। 32 वह दिन तुम्हारे लिथे परमविश्रम का हो, उस में तुम अपके अपके जीव को दु:ख देना; और उस महीने के नवें दिन की सांफ से लेकर दूसरी सांफ तक अपना विश्रमदिन माना करना।। 33 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 34 इस्त्राएलियोंसे कह, कि उसी सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन से सात दिन तक यहोवा के लिथे फोंपडिय़ोंका पर्ब्ब रहा करे। 35 पहिले दिन पवित्र सभा हो; उस में परिश्र्म का कोई काम न करना। 36 सातोंदिन यहोवा के लिथे हव्य चढ़ाया करना, फिर आठवें दिन तुम्हारी पवित्र सभा हो, और यहोवा के लिथे हव्य चढ़ाना; वह महासभा का दिन है, और उस में परिश्र्म का कोई काम न करना।। 37 यहोवा के नियत पर्ब्ब थे ही हैं, इन में तुम यहोवा को हव्य चढ़ाना, अर्यात् होमबलि, अन्नबलि, मेलबलि, और अर्घ, प्रत्थेक अपके अपके नियत समय पर चढ़ाया जाए और पवित्र सभा का प्रचार करना। 38 इन सभोंसे अधिक यहोवा के विश्रमदिनोंको मानना, और अपक्की भेंटों, और सब मन्नतों, और स्वेच्छाबलियोंको जो यहोवा को अर्पण करोगे चढ़ाया करना।। 39 फिर सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन को, जब तुम देश की उपज को इकट्ठा कर चुको, तब सात दिन तक यहोवा का पर्ब्ब मानना; पहिले दिन परमविश्रम हो, और आठवें दिन परमविश्रम हो। 40 और पहिले दिन तुम अच्छे अच्छे वृझोंकी उपज, और खजूर के पत्ते, और घने वृझोंकी डालियां, और नालोंमें के मजनू को लेकर अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने सात दिन तक आनन्द करना। 41 और प्रतिवर्ष सात दिन तक यहोवा के लिथे पर्ब्ब माना करना; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में सदा की विधि ठहरे, कि सातवें महीने में यह पर्ब्ब माना जाए। 42 सात दिन तक तुम फोंपडिय़ोंमें रहा करना, अर्यात् जितने जन्म के इस्त्राएली हैं वे सब के सब फोंपडिय़ोंमें रहें, 43 इसलिथे कि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी के लोग जान रखें, कि जब यहोवा हम इस्त्राएलियोंको मिस्र देश से निकाल कर ला रहा या तब उस ने उनको फोंपडिय़ोंमें टिकाया या; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 44 और मूसा ने इस्त्राएलियोंको यहोवा के पर्ब्ब के नियत समय कह सुनाए।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंको यह आज्ञा दे, कि मेरे पास उजियाला देने के लिथे कूट के निकाला हुआ जलपाई का निर्मल तेल ले आना, कि दीपक नित्य जलता रहे। 3 हारून उसको, बीचवाले तम्बू में, साझीपत्र के बीचवाले पर्दे से बाहर, यहोवा के साम्हने नित्य सांफ से भोर तक सजाकर रखे; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी के लिथे सदा की विधि ठहरे। 4 वह दीपकोंके स्वच्छ दीवट पर यहोवा के साम्हने नित्य सजाया करे।। 5 और तू मैदा लेकर बारह रोटियां पकवाना, प्रत्थेक रोटी में एपा का दो दसवां अंश मैदा हो। 6 तब उनकी दो पांति करके, एक एक पांति में छ: छ: रोटियां, स्वच्छ मेज पर यहोवा के साम्हने धरना। 7 और एक एक पांति पर चोखा लोबान रखना, कि वह रोटी पर स्मरण दिलानेवाला वस्तु और यहोवा के लिथे हव्य हो। 8 प्रति विश्रमदिन को वह उसे नित्य यहोवा के सम्मुख क्रम से रखा करे, यह सदा की वाचा की रीति इस्त्राएलियोंकी ओर से हुआ करे। 9 और वह हारून और उसके पुत्रोंकी होंगी, और वे उसको किसी पवित्र स्यान में खाएं, क्योंकि वह यहोवा के हव्योंमें से सदा की विधि के अनुसार हारून के लिथे परमपवित्र वस्तु ठहरी है।। 10 उन दिनोंमें किसी इस्त्राएली स्त्री का बेटा, जिसका पिता मिस्री पुरूष या, इस्त्राएलियोंके बीच चला गया; और वह इस्त्राएली स्त्री का बेटा और एक इस्त्राएली पुरूष छावनी के बीच आपस में मारपीट करने लगे, 11 और वह इस्त्राएली स्त्री का बेटा यहोवा के नाम की निन्दा करके शाप देने लगा। यह सुनकर लोग उसको मूसा के पास ले गए। उसकी माता का नाम शलोमीत या, जो दान के गोत्र के दिब्री की बेटी यी। 12 उन्होंने उसको हवालात में बन्द किया, जिस से यहोवा की आज्ञा से इस बात पर विचार किया जाए।। 13 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 14 तुम लोग उस शाप देने वाले को छावनी से बाहर लिवा ले जाओ; और जितनोंने वह निन्दा सुनी हो वे सब अपके अपके हाथ उसके सिर पर टेकें, तब सारी मण्डली के लोग उसको पत्यरवाह करें। 15 और तू इस्त्राएलियोंसे कह, कि कोई क्योंन हो जो अपके परमेश्वर को शाप दे उसे अपके पाप का भार उठाना पकेगा। 16 यहोवा के नाम की निन्दा करनेवाला निश्चय मार डाला जाए; सारी मण्डली के लोग निश्चय उसको पत्यरवाह करें; चाहे देशी हो चाहे परदेशी, यदि कोई उस नाम की निन्दा करें तो वह मार डाला जाए। 17 फिर जो कोई किसी मनुष्य को प्राण से मारे वह निश्चय मार डाला जाए। 18 और जो कोई किसी घरेलू पशु को प्राण से मारे वह उसे भर दे, अर्यात् प्राणी की सन्ती प्राणी दे। 19 फिर यदि कोई किसी दूसरे को चोट पहुंचाए, तो जैसा उस ने किया हो वैसा ही उसके साय भी किया जाए, 20 अर्यात् अंग भंग करने की सन्ती अंग भंग किया जाए, आंख की सन्ती आंख, दांत की सन्ती दांत, जैसी चोट जिस ने किसी को पहुंचाई हो वैसी ही उसको भी पहुंचाई जाए। 21 और पशु का मार डालनेवाला उसको भर दे, परन्तु मनुष्य का मार डालनेवाला मार डाला जाए। 22 तुम्हारा नियम एक ही हो, जैसा देशी के लिथे वैसा ही परदेशी के लिथे भी हो; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 23 और मूसा ने इस्त्राएलियोंको यही समझाया; तब उन्होंने उस शाप देनेवाले को छावनी से बाहर ले जाकर उसको पत्यरवाह किया। और इस्त्राएलियोंने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।।
1 फिर यहोवा ने सीनै पर्वत के पास मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम उस देश में प्रवेश करो जो मैं तुम्हें देता हूं, तब भूमि को यहोवा के लिथे विश्रम मिला करे। 3 छ: वर्ष तो अपना अपना खेत बोया करना, और छहोंवर्ष अपक्की अपक्की दाख की बारी छांट छांटकर देश की उपज इकट्ठी किया करना; 4 परन्तु सातवें वर्ष भूमि को यहोवा के लिथे परमविश्रमकाल मिला करे; उस में न तो अपना खेत बोना और न अपक्की दाख की बारी छांटना। 5 जो कुछ काटे हुए खेत में अपके आप से उगे उसे न काटना, और अपक्की बिन छांटी हुई दाखलता की दाखोंको न तोड़ना; क्योंकि वह भूमि के लिथे परमविश्रम का वर्ष होगा। 6 और भूमि के विश्रमकाल ही की उपज से तुम को, और तुम्हारे दास-दासी को, और तुम्हारे साय रहनेवाले मजदूरोंऔर परदेशियोंको भी भोजन मिलेगा; 7 और तुम्हारे पशुओं का और देश में जितने जीवजन्तु होंउनका भी भोजन भूमि की सब उपज से होगा।। 8 और सात विश्रमवर्ष, अर्यात् सातगुना सात वर्ष गिन लेना, सातोंविश्रमवर्षोंका यह समय उनचास वर्ष होगा। 9 तब सातवें महीने के दसवें दिन को, अर्यात् प्रायश्चित्त के दिन, जय जयकार के महाशब्द का नरसिंगा अपके सारे देश में सब कहीं फुंकवाना। 10 और उस पचासवें वर्ष को पवित्र करके मानना, और देश के सारे निवासियोंके लिथे छुटकारे का प्रचार करना; वह वर्ष तुम्हारे यहां जुबली कहलाए; उस में तुम अपक्की अपक्की निज भूमि और अपके अपके घराने में लौटने पाओगे। 11 तुम्हारे यहां वह पचासवां वर्ष जुबली का वर्ष कहलाए; उस में तुम न बोना, और जो अपके आप ऊगे उसे भी न काटना, और न बिन छांटी हुई दाखलता की दाखोंको तोड़ना। 12 क्योंकि वह जो जुबली का वर्ष होगा; वह तुम्हारे लिथे पवित्र होगा; तुम उसकी उपज खेत ही में से ले लेके खाना। 13 इस जुबली के वर्ष में तुम अपक्की अपक्की निज भूमि को लौटने पाओगे। 14 और यदि तुम अपके भाईबन्धु के हाथ कुछ बेचो वा अपके भाईबन्धु से कुछ मोल लो, तो तुम एक दूसरे पर अन्धेर न करना। 15 जुबली के पीछे जितने वर्ष बीते होंउनकी गिनती के अनुसार दाम ठहराके एक दूसरे से मोल लेना, और शेष वर्षोंकी उपज के अनुसार वह तेरे हाथ बेचे। 16 जितने वर्ष और रहें उतना ही दाम बढ़ाना, और जितने वर्ष कम रहें उतना ही दाम घटाना, क्योंकि वर्ष की उपज जितनी होंउतनी ही वह तेरे हाथ बेचेगा। 17 और तुम अपके अपके भाईबन्धु पर अन्धेर न करना; अपके परमेश्वर का भय मानना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 18 इसलिथे तुम मेरी विधियोंको मानना, और मेरे नियमोंपर समझ बूफकर चलना; क्योंकि ऐसा करने से तुम उस देश में निडर बसे रहोगे। 19 और भूमि अपक्की उपज उपजाया करेगी, और तुम पेट भर खाया करोगे, और उस देश में निडर बसे रहोगे। 20 और यदि तुम कहो, कि सातवें वर्ष में हम क्या खाएंगे, न तो हम बोएंगे न अपके खेत की उपज इकट्ठी करेंगे? 21 तो जानो कि मैं तुम को छठवें वर्ष में ऐसी आशीष दूंगा, कि भूमि की उपज तीन वर्ष तक काम आएगी। 22 तुम आठवें वर्ष में बोओगे, और पुरानी उपज में से खाते रहोगे, और नवें वर्ष की उपज में से खाते रहोगे। 23 भूमि सदा के लिथे तो बेची न जाए, क्योंकि भूमि मेरी है; और उस में तुम परदेशी और बाहरी होगे। 24 लेकिन तुम अपके भाग के सारे देश में भूमि को छुड़ा लेने देना।। 25 यदि तेरा कोई भाईबन्धु कंगाल होकर अपक्की निज भूमि में से कुछ बेच डाले, तो उसके कुटुम्बियोंमें से जो सब से निकट हो वह आकर अपके भाईबन्धु के बेचे हुए भाग को छुड़ा ले। 26 और यदि किसी मनुष्य के लिथे कोई छुड़ानेवाला न हो, और उसके पास इतना धन हो कि आप ही अपके भाग को छुड़ा ले सके, 27 तो वह उसके बिकने के समय से वर्षोंकी गिनती करके शेष वर्षोंकी उपज का दाम उसको जिस ने उसे मोल लिया हो फेर दे; तब वह अपक्की निज भूमि का अधिक्कारनेी हो जाए। 28 परन्तु यदि उसके इतनी पूंजी न हो कि उसे फिर अपक्की कर सके, तो उसकी बेची हुई भूमि जुबली के वर्ष तक मोल लेनेवालोंके हाथ में रहे; और जुबली के वर्ष में छूट जाए तब वह मनुष्य अपक्की निज भूमि का फिर अधिक्कारनेी हो जाए।। 29 फिर यदि कोई मनुष्य शहरपनाह वाले नगर में बसने का घर बेचे, तो वह बेचने के बाद वर्ष भर के अन्दर उसे छुड़ा सकेगा, अर्यात् पूरे वर्ष भर उस मनुष्य को छुड़ाने का अधिक्कारने रहेगा। 30 परन्तु यदि वह वर्ष भर में न छुड़ाए, तो वह घर पर शहरपनाहवाले नगर में हो मोल लेनेवाले का बना रहे, और पीढ़ी-पीढ़ी में उसी मे वंश का बना रहे; और जुबली के वर्ष में भी न छूटे। 31 परन्तु बिना शहरपनाह के गांवोंके घर तो देश के खेतोंके समान गिने जाएं; उनका छुड़ाना भी हो सकेगा, और वे जुबली के वर्ष में छूट जाएं। 32 और लेवियोंके निज भाग के नगरोंके जो घर होंउनको लेवीय जब चाहें तब छुड़ाएं। 33 और यदि कोई लेवीय अपना भाग न छुड़ाए, तो वह बेचा हुआ घर जो उसके भाग के नगर में हो जुबली के वर्ष में छूट जाए; क्योंकि इस्त्राएलियोंके बीच लेवियोंका भाग उनके नगरोंमें वे घर ही हैं। 34 और उनके नगरोंकी चारोंओर की चराई की भूमि बेची न जाए; क्योंकि वह उनका सदा का भाग होगा।। 35 फिर यदि तेरा कोई भाईबन्धु कंगाल हो जाए, और उसकी दशा तेरे साम्हने तरस योग्य हो जाए, तो तू उसको संभालना; वह परदेशी वा यात्री की नाई तेरे संग रहे। 36 उस से ब्याज वा बढ़ती न लेना; अपके परमेश्वर का भय मानना; जिस से तेरा भाईबन्धु तेरे संग जीवन निर्वाह कर सके। 37 उसको ब्याज पर रूपया न देना, और न उसको भोजनवस्तु लाभ के लालच से देना। 38 मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; मैं तुम्हें कनान देश देने के लिथे और तुम्हारा परमेश्वर ठहरने की मनसा से तुम को मिस्र देश से निकाल लाया हूं।। 39 फिर यदि तेरा कोई भाईबन्धु तेरे साम्हने कंगाल होकर अपके आप को तेरे हाथ बेच डाले, तो उस से दास के समान सेवा न करवाना। 40 वह तेरे संग मजदूर वा यात्री की नाई रहे, और जुबली के वर्ष तक तेरे संग रहकर सेवा करता रहे; 41 तब वह बालबच्चोंसमेत तेरे पास से निकल जाए, और अपके कुटुम्ब में और अपके पितरोंकी निज भूमि में लौट जाए। 42 क्योंकि वे मेरे ही दास हैं, जिनको मैं मिस्र देश से निकाल लाया हूं; इसलिथे वे दास की रीति से न बेचे जाएं। 43 उस पर कठोरता से अधिक्कारने न करना; अपके परमेश्वर का भय मानते रहना। 44 तेरे जो दास-दासियां होंवे तुम्हारी चारोंओर की जातियोंमें से हों, और दास और दासियां उन्हीं में से मोल लेना। 45 और जो यात्री लोग तुम्हारे बीच में परदेशी होकर रहेंगे, उन में से और उनके घरानोंमें से भी जो तुमहारे आस पास हों, और जो तुम्हारे देश में उत्पन्न हुए हों, उन में से तुम दास और दासी मोल लो; और वे तुम्हारा भाग ठहरें। 46 और तुम अपके पुत्रोंको भी जो तुम्हारे बाद होंगे उनके अधिक्कारनेी कर सकोगे, और वे उनका भाग ठहरें; उन में से तुम सदा अपके लिथे दास लिया करना, परन्तु तुम्हारे भाईबन्धु जो इस्त्राएली होंउन पर अपना अधिक्कारने कठोरता से न जताना।। 47 फिर यदि तेरे साम्हने कोई परदेशी वा यात्री धनी हो जाए, और उसके साम्हने तेरा भाई कंगाल होकर अपके आप को तेरे साम्हने उस परदेशी वा यात्री वा उसके वंश के हाथ बेच डाले, 48 तो उसके बिक जाने के बाद वह फिर छुड़ाया जा सकता है; उसके भाइयोंमें से कोई उसको छुड़ा सकता है, 49 वा उसका चाचा, वा चचेरा भाई, तया उसके कुल का कोई भी निकट कुटुम्बी उसको छुड़ा सकता है; वा यदि वह धनी हो जाए, तो वह आप ही अपके को छुड़ा सकता है। 50 वह अपके मोल लेनेवाले के साय अपके बिकने के वर्ष से जुबली के वर्ष तक हिसाब करे, और उसके बिकने का दाम वर्षोंकी गिनती के अनुसार हो, अर्यात् वह दाम मजदूर के दिवसोंके समान उसके साय होगा। 51 यदि जुबली के बहुत वर्ष रह जाएं, तो जितने रूपयोंसे वह मोल लिया गया हो उन में से वह अपके छुड़ाने का दाम उतने वर्षोंके अनुसार फेर दे। 52 और यदि जुबली के वर्ष के योड़े वर्ष रह गए हों, तौभी वह अपके स्वामी के साय हिसाब करके अपके छुड़ाने का दाम उतने ही वषार्ें के अनुसार फेर दे। 53 वह अपके स्वामी के संग उस मजदूर के सामान रहे जिसकी वाषिर्क मजदूरी ठहराई जाती हो; और उसका स्वामी उस पर तेरे साम्हने कठोरता से अधिक्कारने न जताने पाए। 54 और यदि वह इन रीतियोंसे छुड़ाया न जाए, तो वह जुबली के वर्ष में अपके बाल-बच्चोंसमेत छूट जाए। 55 क्योंकि इस्त्राएली मेरे ही दास हैं; वे मिस्र देश से मेरे ही निकाले हुए दास हैं; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।
1 तुम अपके लिथे मूरतें न बनाना, और न कोई खुदी हुई मूतिर् वा लाट अपके लिथे खड़ी करना, और न अपके देश में दण्डवत् करने के लिथे नक्काशीदार पत्यर स्यापन करना; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं। 2 तुम मेरे विश्रमदिनोंका पालन करना और मेरे पवित्रस्यान का भय मानना; मैं यहोवा हूं।। 3 यदि तुम मेरी विधियोंपर चलो और मेरी आज्ञाओं को मानकर उनका पालन करो, 4 तो मैं तुम्हारे लिथे समय समय पर मेंह बरसाऊंगा, तया भूमि अपक्की उपज उपजाएगी, और मैदान के वृझ अपके अपके फल दिया करेंगे; 5 यहां तक कि तुम दाख तोड़ने के समय भी दावनी करते रहोगे, और बोने के समय भी भर पेट दाख तोड़ते रहोगे, और तुम मनमानी रोटी खाया करोगे, और अपके देश में निश्चिन्त बसे रहोगे। 6 और मैं तुम्हारे देश में सुख चैन दूंगा, और तुम सोओगे और तुम्हारा कोई डरानेवाला न हो; और मैं उस देश में दुष्ट जन्तुओं को न रहने दूंगा, और तलवार तुम्हारे देश में न चलेगी। 7 और तुम अपके शत्रुओं को मार भगा दोगे, और वे तुम्हारी तलवार से मारे जाएंगे। 8 और तुम में से पांच मनुष्य सौ को और सौ मनुष्य दस हजार को खदेड़ेंगे; और तुम्हारे शत्रु तलवार से तुम्हारे आगे आगे मारे जाएंगे; 9 और मैं तुम्हारी ओर कृपा दृष्टि रखूंगा और तुम को फलवन्त करूंगा और बढ़ाऊंगा, और तुम्हारे संग अपक्की वाचा को पूर्ण करूंगा। 10 और तुम रखे हुए पुराने अनाज को खाओगे, और नथे के रहते भी पुराने को निकालोगे। 11 और मैं तुम्हारे बीच अपना निवासस्यान बनाए रखूंगा, और मेरा जी तुम से घृणा नहीं करेगा। 12 और मैं तुम्हारे मध्य चला फिरा करूंगा, और तुम्हारा परमेश्वर बना रहूंगा, और तुम मेरी प्रजा बने रहोगे। 13 मैं तो तुम्हारा वह परमेश्वर यहोवा हूं, जो तुम को मिस्र देश से इसलिथे निकाल ले आया कि तुम मिस्रियोंके दास न बने रहो; और मैं ने तुम्हारे जूए को तोड़ डाला है, और तुम को सीधा खड़ा करके चलाया है।। 14 यदि तुम मेरी न सुनोगे, और इन सब आज्ञाओं को न मानोगे, 15 और मेरी विधियोंको निकम्मा जानोगे, और तुम्हारी आत्मा मेरे निर्णयोंसे घृणा करे, और तुम मेरी सब आज्ञाओं का पालन न करोगे, वरन मेरी वाचा को तोड़ोगे, 16 तो मैं तुम से यह करूंगा; अर्यात् मैं तुम को बेचैन करूंगा, और झयरोग और ज्वर से पीड़ित करूंगा, और इनके कारण तुम्हारी आंखे धुंधली हो जाएंगी, और तुम्हारा मन अति उदास होगा। और तुम्हारा बीच बोना व्यर्य होगा, क्योंकि तुम्हारे शत्रु उसकी उपज खा लेंगे; 17 और मैं भी तुम्हारे विरूद्ध हो जाऊंगा, और तुम अपके शत्रुओं से हार जाओगे; और तुम्हारे बैरी तुम्हारे ऊपर अधिक्कारने करेंगे, और जब कोई तुम को खदेड़ता भी न होगा तब भी तुम भागोगे। 18 और यदि तुम इन बातोंके उपरान्त भी मेरी न सुनो, तो मैं तुम्हारे पापोंके कारण तुम्हें सातगुणी ताड़ना और दूंगा, 19 और मैं तुम्हारे बल का घमण्ड तोड़ डालूंगा, और तुम्हारे लिथे आकाश को मानो लोहे का और भूमि को मानो पीतल की बना दूंगा; 20 और तुम्हारा बल अकारय गंवाया जाएगा, क्योंकि तुम्हारी भूमि अपक्की उपज न उपजाएगी, और मैदान के वृझ अपके फल न देंगे। 21 और यदि तुम मेरे विरूद्ध चलते ही रहो, और मेरा कहना न मानों, तो मैं तुम्हारे पापोंके अनुसार तुम्हारे ऊपर और सातगुणा संकट डालूंगा। 22 और मैं तुम्हारे बीच बन पशु भेजूंगा, जो तुम को निर्वंश करेंगे, और तुम्हारे घरेलू पशुओं को नाशकर डालेंगे, और तुम्हारी गिनती घटाएंगे, जिस से तुम्हारी सड़के सूनी पड़ जाएंगी। 23 फिर यदि तुम इन बातोंपर भी मेरी ताड़ना से न सुधरो, और मेरे विरूद्ध चलते ही रहो, 24 तो मैं भी तुम्हारे विरूद्ध चलूंगा, और तुम्हारे पापोंके कारण मैं आप ही तुम को सातगुणा मारूंगा। 25 तो मैं तुम पर एक ऐसी तलवार चलवाऊंगा, जो वाचा तोड़ने का पूरा पूरा पलटा लेगी; और जब तुम अपके नगरोंमें जा जाकर इकट्ठे होगे तब मैं तुम्हारे बीच मरी फैलाऊंगा, और तुम अपके शत्रुओं के वश में सौंप दिए जाओगे। 26 और जब मैं तुम्हारे लिथे अन्न के आधार को दूर कर डालूंगा, तब दस स्त्रियां तुम्हारी रोटी एक ही तंदूर में पकाकर तौल तौलकर बांट देंगी; और तुम खाकर भी तृप्त न होगे।। 27 फिर यदि तुम इसके उपरान्त भी मेरी न सुनोगे, और मेरे विरूद्ध चलते ही रहोगे, 28 तो मैं अपके न्याय में तुम्हारे विरूद्ध चलूंगा, और तुम्हारे पापोंके कारण तुम को सातगुणी ताड़ना और भी दूंगा। 29 और तुम को अपके बेटोंऔर बेटियोंका मांस खाना पकेगा। 30 और मैं तुम्हारे पूजा के ऊंचे स्यानोंको ढा दूंगा, और तुम्हारे सूर्य की प्रतिमाएं तोड़ डालूंगा, और तुम्हारी लोयोंको तुम्हारी तोड़ी हुई मूरतोंपर फूंक दूंगा; और मेरी आत्मा को तुम से घृणा हो जाएगी। 31 और मैं तुम्हारे नगरोंको उजाड़ दूंगा, और तुम्हारे पवित्र स्यानोंको उजाड़ दूंगा, और तुम्हारा सुखदायक सुगन्ध ग्रहण न करूंगा। 32 और मैं तुम्हारे देश को सूना कर दूंगा, और तुम्हारे शत्रु जो उस में रहते हैं वे इन बातोंके कारण चकित होंगे। 33 और मैं तुम को जाति जाति के बीच तित्तर-बित्तर करूंगा, और तुम्हारे पीछे पीछे तलवार खीचें रहूंगा; और तुम्हारा देश सुना हो जाएगा, और तुम्हारे नगर उजाड़ हो जाएंगे। 34 तब जितने दिन वह देश सूना पड़ा रहेगा और तुम अपके शत्रुओं के देश में रहोगे उतने दिन वह अपके विश्रमकालोंको मानता रहेगा। 35 और जितने दिन वह सूना पड़ा रहेगा उतने दिन उसको विश्रम रहेगा, अर्यात् जो विश्रम उसको तुम्हारे वहां बसे रहने के समय तुम्हारे विश्रमकालोंमें न मिला होगा वह उसको तब मिलेगा। 36 और तुम में से जो बच रहेंगे और अपके शत्रुओं के देश में होंगे उनके ह्रृदय में मै कायरता उपजाऊंगा; और वे पत्ते के खड़कने से भी भाग जाएंगे, और वे ऐसे भागेंगे जैसे कोई तलवार से भागे, और किसी के बिना पीछा किए भी वे गिर गिर पकेंगे। 37 और जब कोई पीछा करनेवाला न हो तब भी मानोंतलवार के भय से वे एक दूसरे से ठोकर खाकर गिरते जाएंगे, और तुम को अपके शत्रुओं के साम्हने ठहरने की कुछ शक्ति न होगी। 38 तब तुम जाति जाति के बीच पहुंचकर नाश हो जाओगे, और तुम्हारे शत्रुओं की भूमि तुम को खा जाएगी। 39 और तुम में से जो बचे रहेंगे वे अपके शत्रुओं के देशोंमें अपके अधर्म के कारण गल जाएंगे; और अपके पुरखाओं के अधर्म के कामोंके कारण भी वे उन्हीं की नाई गल जाएंगे। 40 तब वे अपके और अपके पितरोंके अधर्म को मान लेंगे, अर्यात् उस विश्वासघात को जो वे मेरा करेंगे, और यह भी मान लेंगे, कि हम यहोवा के विरूद्ध चले थे, 41 इसी कारण वह हमारे विरूद्ध होकर हमें शत्रुओं के देश में ले आया है। यदि उस समय उनका खतनारहित ह्रृदय दब जाएगा और वे उस समय अपके अधर्म के दण्ड को अंगीकार करेगें; 42 तब जो वाचा मैं ने याकूब के संग बान्धी यी उसको मैं स्मरण करूंगा, और जो वाचा मैं ने इसहाक से और जो वाचा मैं ने इब्राहीम से बान्धी यी उनको भी स्मरण करूंगा, और इस देश को भी मैं स्मरण करूंगा। 43 और वह देश उन से रहित होकर सूना पड़ा रहेगा, और उनके बिना सूना रहकर भी अपके विश्रमकालोंको मानता रहेगा; और वे लोग अपके अधर्म के दण्ड को अंगीकार करेगें, इसी कारण से कि उन्होंने मेरी आज्ञाओं का उलंघन किया या, और उनकी आत्माओं को मेरी विधियोंसे घृणा यी। 44 इतने पर भी जब वे अपके शत्रुओं के देश में होंगे, तब मैं उनको इस प्रकार नहीं छोडूंगा, और न उन से ऐसी घृणा करूंगा कि उनका सर्वनाश कर डालूं और अपक्की उस वाचा को तोड़ दूं जो मैं ने उन से बान्धी है; क्योंकि मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूं; 45 परन्तु मैं उनके भलाई के लिथे उनके पितरोंसे बान्धी हुई वाचा को स्मरण करूंगा, जिन्हें मै अन्यजातियोंकी आंखोंके साम्हने मिस्र देश से निकालकर लाया कि मैं उनका परमेश्वर ठहरूं; मैं यहोवा हूं।। 46 जो जो विधियां और नियम और व्यवस्या यहोवा ने अपक्की ओर से इस्त्राएलियोंके लिथे सीनै पर्वत पर मूसा के द्वारा ठहराई यीं वे थे ही हैं।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे यह कह, कि जब कोई विशेष संकल्प माने, तो संकल्प किए हुए प्राणी तेरे ठहराने के अनुसार यहोवा के होंगे; 3 इसलिथे यदि वह बीस वर्ष वा उस से अधिक और साठ वर्ष से कम अवस्या का पुरूष हो, तो उसके लिथे पवित्रस्यान के शेकेल के अनुसार पचास शेकेल का रूपया ठहरे। 4 और यदि वह स्त्री हो, तो तीस शेकेल ठहरे। 5 फिर यदि उसकी अवस्या पांच वर्ष वा उससे अधिक और बीस वर्ष से कम की हो, तो लड़के के लिथे तो बीस शेकेल, और लड़की के लिथे दस शेकेल ठहरे। 6 और यदि उसकी अवस्या एक महीने वा उस से अधिक और पांच वर्ष से कम की हो, तो लड़के के लिथे तो पांच, और लड़की के लिथे तीन शेकेल ठहरें। 7 फिर यदि उसकी अवस्या साठ वर्ष की वा उस से अधिक हो, और वह पुरूष हो तो उसके लिथे पंद्रह शेकेल, और स्त्री हो तो दस शेकेल ठहरे। 8 परन्तु यदि कोई इतना कंगाल हो कि याजक का ठहराया हुआ दाम न दे सके, तो वह याजक के साम्हने खड़ा किया जाए, और याजक उसकी पूंजी ठहराए, अर्यात् जितना संकल्प करनेवाले से हो सके, याजक उसी के अनुसार ठहराए।। 9 फिर जिन पशुओं में से लोग यहोवा को चढ़ावा चढ़ाते है, यदि ऐसोंमें से कोई संकल्प किया जाए, तो जो पशु कोई यहोवा को दे वह पवित्र ठहरेगा। 10 वह उसे किसी प्रकार से न बदले, न तो वह बुरे की सन्ती अच्छा, और न अच्छे की सन्ती बुरा दे; और यदि वह उस पशु की सन्ती दूसरा पशु दे, तो वह और उसका बदला दोनोंपवित्र ठहरेंगे। 11 और जिन पशुओं में से लोग यहोवा के लिथे चढ़ावा नहीं चढ़ाते ऐसोंमें से यदि वह हो, तो वह उसको याजक के साम्हने खड़ा कर दे, 12 तक याजक पशु के गुण अवगुण दोनोंविचारकर उसका मोल ठहराए; और जितना याजक ठहराए उसका मोल उतना ही ठहरे। 13 और यदि संकल्प करनेवाला उसे किसी प्रकार से छुड़ाना चाहे, तो जो मोल याजक ने ठहराया हो उस में उसका पांचवां भाग और बढ़ाकर दे।। 14 फिर यदि कोई अपना घर यहोवा के लिथे पवित्र ठहराकर संकल्प करे, तो याजक उसके गुण-अवगुण दोनोंविचारकर उसका मोल ठहराए; और जितना याजक ठहराए उसका मोल उतना ही ठहरे। 15 और यदि घर का पवित्र करनेवाला उसे छुड़ाना चाहे, तो जितना रूपया याजक ने उसका मोल ठहराया हो उस में वह पांचवां भाग और बढ़ाकर दे, तब वह घर उसी का रहेगा।। 16 फिर यदि कोई अपक्की निज भूमि का कोई भाग यहोवा के लिथे पवित्र ठहराना चाहे, तो उसका मोल इसके अनुसार ठहरे, कि उस में कितना बीज पकेगा; जितना भूमि में होमेर भर जौ पके उतनी का मोल पचास शेकेल ठहरे। 17 यदि वह अपना खेत जुबली के वर्ष ही में पवित्र ठहराए, तो उसका दाम तेरे ठहराने के अनुसार ठहरे; 18 और यदि वह अपना खेत जुबली के वर्ष के बाद पवित्र ठहराए, तो जितने वर्ष दूसरे जुबली के वर्ष के बाकी रहें उन्हीं के अनुसार याजक उसके लिथे रूपके का हिसाब करे, तब जितना हिसाब में आए उतना याजक के ठहराने से कम हो। 19 और यदि खेत को पवित्र ठहरानेवाला उसे छुड़ाना चाहे, तो जो दाम याजक ने ठहराया हो उस में वह पांचवां भाग और बढ़ाकर दे, तब खेत उसी का रहेगा। 20 और यदि वह खेत को छुड़ाना न चाहे, वा उस ने उसको दूसरे के हाथ बेचा हो, तो खेत आगे को कभी न छुड़ाया जाए; 21 परन्तु जब वह खेत जुबली के वर्ष में छूटे, तब पूरी रीति से अर्पण किए हुए खेत की नाई यहोवा के लिथे पवित्र ठहरे, अर्यात् वह याजक ही की निज भूमि हो जाए। 22 फिर यदि कोई अपना मोल लिया हुआ खेत, जो उसकी निज भूमि के खेतोंमें का न हो, यहोवा के लिथे पवित्र ठहराए, 23 तो याजक जुबली के वर्ष तक का हिसाब करके उस मनुष्य के लिथे जितना ठहराए उतना ही वह यहोवा के लिथे पवित्र जानकर उसी दिन दे दे। 24 और जुबली के वर्ष में वह खेत उसी के अधिक्कारने में जिस से वह मोल लिया गया हो फिर आ जाए, अर्यात् जिसकी वह निज भूमि हो उसी की फिर हो जाए। 25 और जिस जिस वस्तु का मोल याजक ठहराए उसका मोल पवित्रस्यान ही के शेकेल के हिसाब से ठहरे: शेकेल बीस गेरा का ठहरे।। 26 पर घरेलू पशुओं का पहिलौठा, जो यहोवा का पहिलौठा ठहरा है, उसको तो कोई पवित्र न ठहराए; चाहे वह बछड़ा हो, चाहे भेड़ वा बकरी का बच्चा, वह यहोवा ही का है। 27 परन्तु यदि वह अशुद्ध पशु का हो, तो उसका पवित्र ठहरानेवाला उसको याजक के ठहराए हुए मोल के अनुसार उसका पांचवां भाग और बढ़ाकर छुड़ा सकता है; और यदि वह न छुड़ाया जाए, तो याजक के ठहराए हुए मोल पर बेच दिया जाए।। 28 परन्तु अपक्की सारी वस्तुओं में से जो कुछ कोई यहोवा के लिथे अर्पण करे, चाहे मनुष्य हो चाहे पशु, चाहे उसकी निज भूमि का खेत हो, ऐसी कोई अर्पण की हुई वस्तु न तो बेची जाए और न छुड़ाई जाए; जो कुछ अर्पण किया जाए वह यहोवा के लिथे परमपवित्र ठहरे। 29 मनुष्योंमें से जो कोई अर्पण किया जाए, वह छुड़ाया न जाए; निश्चय वह मार डाला जाए।। 30 फिर भूमि की उपज का सारा दशमांश, चाहे वह भूमि का बीज हो चाहे वृझ का फल, वह यहोवा ही का है; वह यहोवा के लिथे पवित्र ठहरे। 31 यदि कोई अपके दशमांश में से कुछ छुड़ाना चाहे, तो पांचवां भाग बढ़ाकर उसको छुड़ाए। 32 और गाय-बैल और भेड़-बकरियां, निदान जो जो पशु गिनने के लिथे लाठी के तले निकल जानेवाले हैं उनका दशमांश, अर्यात् दस दस पीछे एक एक पशु यहोवा के लिथे पवित्र ठहरे। 33 कोई उसके गुण अवगुण न विचारे, और न उसको बदले; और यदि कोई उसको बदल भी ले, तो वह और उसका बदला दोनोंपवित्र ठहरें; और वह कभी छुड़ाया न जाए।। 34 जो आज्ञाएं यहोवा ने इस्त्राएलियोंके लिथे सीनै पर्वत पर मूसा को दी यी वे थे ही हैं।।
1 इस्त्राएलियोंके मिस्र देश से निकल जाने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के पहिले दिन को, यहोवा ने सीनै के जंगल में मिलापवाले तम्बू में, मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार, एक एक पुरूष की गिनती नाम ले लेकर करना; 3 जितने इस्त्राएली बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के हों, और जो युद्ध करने के योग्य हों, उन सभोंको उनके दलोंके अनुसार तू और हारून गिन ले। 4 और तुम्हारे साय एक एक गोत्र का एक एक पुरूष भी हो जो अपके पितरोंके घराने का मुख्य पुरूष हो। 5 तुम्हारे उन सायियोंके नाम थे हैं, अर्यात् रूबेन के गोत्र में से शदेऊर का पुत्र एलीसूर; 6 शिमोन के गोत्र में से सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल; 7 यहूदा के गोत्र में से अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन; 8 इस्साकार के गोत्र में से सूआ का पुत्र नतनेल; 9 जबूलून के गोत्र में से हेलोन का पुत्र एलीआब; 10 यूसुफवंशियोंमें से थे हैं, अर्यात् एर्पैम के गोत्र में से अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा, ओर मनश्शे के गोत्र में से पदासूर का पुत्र गम्लीएल; 11 बिन्यामीन के गोत्र में से गिदोनी का पुत्र अबीदान; 12 दान के गोत्र में से अम्मीशद्दै का पुत्र अहीऐजेर; 13 आशेर के गोत्र में से ओक्रान का पुत्र पक्कीएल; 14 गाद के गोत्र में से दूएल का पुत्र एल्यासाप; 15 नप्ताली के गोत्र में से एनाम का पुत्र अहीरा। 16 मण्डली में से जो पुरूष अपके अपके पितरोंके गोत्रोंके प्रधान होकर बुलाए गए वे थे ही हैं, और थे इस्त्राएलियोंके हजारोंमें मुख्य पुरूष थे। 17 और जिन पुरूषोंके नाम ऊपर लिखे हैं उनको साय लेकर, 18 मूसा और हारून ने दूसरे महीने के पहिले दिन सारी मण्डली इकट्ठी की, तब इस्त्राएलियोंने अपके अपके कुल और अपके अपके पितरोंके घराने के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्यावालोंके नामोंकी गिनती करवा के अपक्की अपक्की वंशावली लिखवाई; 19 जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी यी उसी के अनुसार उस ने सीनै के जंगल में उनकी गणना की।। 20 और इस्त्राएल के पहिलौठे रूबेन के वंश ने जितने पुरूष अपके कुल और अपके पितरोंके घराने के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 21 और रूबेन के गोत्र के गिने हुए पुरूष साढ़े छियालीस हजार थे।। 22 और शिमोन के वंश के लोग जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे, और जो युद्ध करने के योग्य थे वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 23 और शिमोन के गोत्र के गिने हुए पुरूष उनसठ हजार तीन सौ थे।। 24 और गाद के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 25 और गाद के गोत्र के गिने हुए पुरूष पैंतालीस हजार साढ़े छ: सौ थे।। 26 और यहूदा के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 27 और यहूदा के गोत्र के गिने हुए पुरूष चौहत्तर हजार छ: सौ थे।। 28 और इस्साकार के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 29 और इस्साकार के गोत्र के गिने हुए पुरूष चौवन हजार चार सौ थे।। 30 और जबूलून वे वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 31 और जबूलून के गोत्र के गिने हुए पुरूष सत्तावन हजार चार सौ थे।। 32 और यूसुफ के वंश में से एप्रैम के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 33 और एप्रैम गोत्र के गिने हुए पुरूष साढ़े चालीस हजार थे।। 34 और मनश्शे के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 35 और मनश्शे के गोत्र के गिने हुए पुरूष बत्तीस हजार दो सौ थे।। 36 और बिन्यामीन के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 37 और बिन्यामीन के गोत्र के गिने हुए पुरूष पैंतीस हजार चार सौ थे।। 38 और दान के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे अपके अपके नाम से गिने गए: 39 और दान के गोत्र के गिने हुए पुरूष बासठ हजार सात सौ थे।। 40 और आशेर के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उससे अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 41 और आशेर के गोत्र के गिने हुए पुरूष साढ़े एकतालीस हजार थे।। 42 और नप्ताली के वंश के जितने पुरूष अपके कुलोंऔर अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपके अपके नाम से गिने गए: 43 और नप्ताली के गोत्र के गिने हुए पुरूष तिरपन हजार चार सौ थे।। 44 इस प्रकार मूसा और हारून और इस्त्राएल के बारह प्रधानोंने, जो अपके अपके पितरोंके घराने के प्रधान थे, उन सभोंको गिन लिया और उनकी गिनती यही यी। 45 सो जितने इस्त्राएली बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के होने के कारण युद्ध करने के योग्य थे वे अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार गिने गए, 46 और वे सब गिने हुए पुरूष मिलाकर छ: लाख तीन हजार साढ़े पांच सौ थे।। 47 इन में लेवीय अपके पितरोंके गोत्र के अनुसार नहीं गिने गए। 48 क्योंकि यहोवा ने मूसा से कहा या, 49 कि लेवीय गोत्र की गिनती इस्त्राएलियोंके संग न करना; 50 परन्तु तू लेवियोंको साझी के तम्बू पर, और उसके कुल सामान पर, निदान जो कुछ उस से सम्बन्ध रखता है उस पर अधिक्कारनेी नियुक्त करना; और कुल सामान सहित निवास को वे ही उठाया करें, और वे ही उस में सेवा टहल भी किया करें, और तम्बू के आसपास वे ही अपके डेरे डाला करें। 51 और जब जब निवास का कूच हो तब तब लेवीय उसको गिरा दें, और जब जब निवास को खड़ा करना हो तब तब लेवीय उसको खड़ा किया करें; और यदि कोई दूसरा समीप आए तो वह मार डाला जाए। 52 और इस्त्राएली अपना अपना डेरा अपक्की अपक्की छावनी में और अपके अपके फण्डे के पास खड़ा किया करें; 53 पर लेवीय अपके डेरे साझी के तम्बू ही की चारोंओर खड़े किया करें, कहीं ऐसा न हो कि इस्त्राएलियोंकी मण्डली पर कोप भड़के; और लेवीय साझी के तम्बू की रझा किया करें। 54 जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी यीं इस्त्राएलियोंने उन्हीं के अनुसार किया।।
1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 2 इस्त्राएली मिलापवाले तम्बू की चारोंओर और उसके साम्हने अपके अपके फण्डे और अपके अपके पितरोंके घराने के निशान के समीप अपके डेरे खड़े करें। 3 और जो अपके पूर्व दिशा की ओर जहां सूर्योदय होता है अपके अपके दलोंके अनुसार डेरे खड़े किया करें वे ही यहूदा की छावनीवाले फण्उे के लोग होंगे, और उनका प्रधान अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन होगा, 4 और उनके दल के गिने हुए पुरूष चौहत्तर हजार छ: सौ हैं। 5 उनके समीप जो डेरे खड़े किया करें वे इस्साकार के गोत्र के हों, और उनका प्रधान सूआर का पुत्र नतनेल होगा, 6 और उनके दल के गिने हुए पुरूष चौवन हजार चार सौ हैं। 7 इनके पास जबूलून के गोत्रवाले रहेंगे, और उनका प्रधान हेलोन का पुत्र एलीआब होगा, 8 और उनके दल के गिने हुए पुरूष सत्तावन हजार चार सौ हैं। 9 इस रीति से यहूदा की छावनी में जितने अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख छियासी हजार चार सौ हैं। पहिले थे ही कूच किया करें।। 10 दक्खिन अलंग पर रूबेन की छावनी के फण्डे के लोग अपके अपके दलोंके अनुसार रहें, और उनका प्रधान शदेऊर का पुत्र एलीसूर होगा, 11 और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े छियालीस हजार हैं। 12 उनके पास जो डेरे खड़े किया करें वे शिमोन के गोत्र के होंगे, और उनका प्रधान सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल होगा, 13 और उनके दल के गिने हुए पुरूष उनसठ हजार तीन सौ हैं। 14 फिर गाद के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान रूएल का पुत्र एल्यासाप होगा, 15 और उनके दल के गिने हुए पुरूष पैंतालीस हजार साढ़े छ: सौ हैं। 16 रूबेन की छावनी में जितने अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर डेढ़ लाख एक हजार साढ़े चार सौ हैं। दूसरा कूच इनका हो। 17 उनके पीछे और सब छावनियोंके बीचोंबीच लेवियोंकी छावनी समेत मिलापवाले तम्बू का कूच हुआ करे; जिस क्रम से वे डेरे खड़े करें उसी क्रम से वे अपके अपके स्यान पर अपके अपके फण्डे के पास पास चलें।। 18 पच्छिम अलंग पर एप्रैम की छावनी के फण्डे के लोग अपके अपके दलोंके अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा होगा, 19 और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े चालीस हजार हैं। 20 उनके समीप मनश्शे के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान पदासूर का पुत्र गम्लीएल होगा, 21 और उनके दल के गिने हुए पुरूष बत्तीस हजार दो सौ हैं। 22 फिर बिन्यामीन के गोत्र में रहें, और उनका प्रधान गिदोनी का पुत्र अबीदान होगा, 23 और उनके दल के गिने हुए पुरूष पैंतीस हजार चार सौ हैं। 24 एप्रैम की छावनी में जितने अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख आठ हजार एक सौ पुरूष हैं। तीसरा कूच इनका हो। 25 उत्तर अलंग पर दान की छावनी के फण्डे के लोग अपके अपके दलोंके अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीशद्दै का पुत्र अहीऐजेर होगा, 26 और उनके दल के गिने हुए पुरूष बासठ हजार सात सौ हैं। 27 और उनके पास जो डेरे खड़े करें वे आशेर के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान ओक्रान का पुत्र पक्कीएल होगा, 28 और उनके दल के गिने हुए पुरूष साढ़े इकतालीस हजार हैं। 29 फिर नप्ताली के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान एनान का पुत्र अहीरा होगा, 30 और उनके दल के गिने हुए पुरूष तिरपन हजार चार सौ हैं। 31 और दान की छावनी में जितने गिने गए वे सब मिलकर डेढ़ लाख सात हजार छ: सौ हैं। थे अपके अपके फण्डे के पास पास होकर सब से पीछे कूच करें। 32 इस्त्राएलियोंमें से जो अपके अपके पितरोंके घराने के अनुसार गिने गए वे थे ही हैं; और सब छावनियोंके जितने पुरूष अपके अपके दलोंके अनुसार गिने गए वे सब मिलकर छ: लाख तीन हजार साढ़े पांच सौ थे। 33 परन्तु यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी भी उसके अनुसार लेवीय तो इस्त्राएलियोंमें गिने नहीं गए। 34 और जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी इस्त्राएली उन आज्ञाओं के अनुसार अपके अपके कुल और अपके अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार, अपके अपके फण्डे के पास डेरे खड़े करते और कूच भी करते थे।।
1 जिस समय यहोवा ने सीनै पर्वत के पास मूसा से बातें की उस समय हारून और मूसा की यह वंशावली यी। 2 हारून के पुत्रोंके नाम थे हैं: नादाब जो उसका जेठा या, और अबीहू, एलीआजार और ईतामार; 3 हारून के पुत्र, जो अभिषिक्त याजक थे, और उनका संस्कार याजक का काम करने के लिथे हुआ या उनके नाम थे ही हैं। 4 नादाब और अबीहू जिस समय सीनै के जंगल में यहोवा के सम्मुख ऊपक्की आग ले गए उसी समय यहोवा के साम्हने मर गए थे; और वे पुत्रहीन भी थे। एलीआजर और ईतामार अपके पिता हारून के साम्हने याजक का काम करते रहे।। 5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 6 लेवी गोत्रवालोंको समीप ले आकर हारून याजक के साम्हने खड़ा कर, कि वे उसकी सेवा टहल करें। 7 और जो कुछ उसकी ओर से और सारी मण्डली की ओर से उन्हें सौंपा जाए उसकी रझा वे मिलापवाले तम्बू के सामहने करें, इस प्रकार वे तम्बू की सेवा करें; 8 वे मिलापवाले तम्बू के कुल सामान की और इस्त्राएलियोंकी सौंपी हुई वस्तुओं की भी रझा करें, इस प्रकार वे तम्बू की सेवा करें। 9 और तू लेवियोंको हारून और उसके पुत्रोंको सौंप दे; और वे इस्त्राएलियोंकी ओर से हारून को सम्पूर्ण रीति से अर्पण किए हुए हों। 10 और हारून और उसके पुत्रोंको याजक के पद पर नियुक्त कर, और वे अपके याजकपद की रझा किया करें; और यदि अन्य मनुष्य समीप आए, तो वह मार डाला जाए।। 11 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 12 सुन इस्त्राएली स्त्रियोंके सब पहिलौठोंकी सन्ती मैं इस्त्राएलियोंमें से लेवियोंको ले लेता हूं; सो लेवीय मेरे ही हों। 13 सब पहिलौठे मेरे हैं; क्योंकि जिस दिन मैं ने मिस्र देश में के सब पहिलौठोंको मारा, उसी दिन मैं ने क्या मनुष्य क्या पशु इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंको अपके लिथे पवित्र ठहराया; इसलिथे वे मेरे ही ठहरेंगे; मैं यहोवा हूं।। 14 फिर यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा, 15 लेवियोंमें से जितने पुरूष एक महीने वा उस से अधिक अवस्या के होंउनको उनके पितरोंके घरानोंऔर उनके कुलोंके अनुसार गिन ले। 16 यह आज्ञा पाकर मूसा ने यहोवा के कहे के अनुसार उनको गिन लिया। 17 लेवी के पुत्रोंके नाम थे हैं, अर्यात् गेर्शोन, कहात, और मरारी। 18 और गेर्शोन के पुत्र जिन से उसके कुल चले उनके नाम थे हैं, अर्यात् लिब्नी और शिमी। 19 कहात के पुत्र जिन से उसके कुल चले उनके नाम थे हैं, अर्यात् अम्राम, यिसहार, हेब्रोन, और उज्जीएल। 20 और मरारी के पुत्र जिन से उसके कुल चले उनके नाम थे हैं, अर्यात् महली और मूशी। थे लेवियोंके कुल अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार हैं।। 21 गेर्शोन से लिब्नियोंऔर शिमियोंके कुल चले; गेर्शोनवंशियोंके कुल थे ही हैं। 22 इन में से जितने पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी, उन सभोंकी गिनती साढ़े सात हजार यी। 23 गेर्शोनवाले कुल निवास के पीछे पच्छिम की ओर अपके डेरे डाला करें; 24 और गेर्शोनियोंके मूलपुरूष से घराने का प्रधान लाएल का पुत्र एल्यासाप हो। 25 और मिलापवाले तम्बू की जो वस्तुएं गेर्शोनवंशियोंको सौंपी जाएं वे थे हों, अर्यात् निवास और तम्बू, और उसका ओहार, और मिलापवाले तम्बू से द्वार का पर्दा, 26 और जो आंगन निवास और वेदी की चारोंओर है उसके पर्दे, और उसके द्वार का पर्दा, और सब डोरियां जो उस में काम आती हैं।। 27 फिर कहात से अम्रामियों, यिसहारियों, हेब्रोनियों, और उज्जीएलियोंके कुल चले; कहातियोंके कुल थे ही हैं। 28 उन में से जितने पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी उनकी गिनती आठ हजार छ: सौ यी। वे पवित्र स्यान की रझा के उत्तरदायी थे। 29 कहातियोंके कुल निवास की उस अलंग पर अपके डेरे डाला करें जो दक्खिन की ओर है; 30 और कहातवाले कुलोंसे मूलपुरूष के घराने का प्रधान उज्जीएल का पुत्र एलीसापान हो। 31 और जो वस्तुएं उनको सौंपी जाएं वे सन्दूक, मेज़, दीवट, वेदियां, और पवित्रस्यान का वह सामान जिस से सेवा टहल होती है, और पर्दा; निदान पवित्रस्यान में काम में आनेवाला सारा सामान हो। 32 और लेवियोंके प्रधानोंका प्रधान हारून याजक का पुत्र एलीआजार हो, और जो लोग पवित्रस्यान की सौंपी हुई वस्तुओं की रझा करेंगे उन पर वही मुखिया ठहरे।। 33 फिर मरारी से महलियोंऔर मूशियोंके कुल चले; मरारी के कुल थे ही हैं। 34 इन में से जितने पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी उन सभोंकी गिनती छ: हजार दो सौ यी। 35 और मरारी के कुलोंके मूलपुरूष के घराने का प्रधान अबीहैल का पुत्र सूरीएल हो; थे लोग निवास के उत्तर की ओर अपके डेरे खड़े करें। 36 और जो वस्तुएं मरारीवंशियोंको सौंपी जाएं कि वे उनकी रझा करें, वे निवास के तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुसिर्यां, और सारा सामान; निदान जो कुछ उसके बरतने में काम आए; 37 और चारोंओर के आंगन के खम्भे, और उनकी कुसिर्यां, खूंटे और डोरियां हों। 38 और जो मिलापवाले तम्बू के साम्हने, अर्यात् निवास के साम्हने, पूरब की ओर जहां से सूर्योदय होता है, अपके डेरे डाला करें, वे मूसा और हारून और उसके पुत्रोंके डेरे हों, और पवित्रस्यान की रखवाली इस्त्राएलियोंके बदले वे ही किया करें, और दूसरा जो कोई उसके समीप आए वह मार डाला जाए। 39 यहोवा की इस आज्ञा को पाकर एक महीने की वा उस से अधिक अवस्यावाले जितने लेवीय पुरूषोंको मूसा और हारून ने उनके कुलोंके अनुसार गिन लिया, वे सब के सब बाईस हजार थे।। 40 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएलियोंके जितने पहिलौठे पुरूषोंकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक है, उन सभोंको नाम ले लेकर गिन ले। 41 और मेरे लिथे इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंकी सन्ती लेवियोंको, और इस्त्राएलियोंके पशुओं के सब पहिलौठोंकी सन्ती लेवियोंके पशुओं को ले; मैं यहोवा हूं। 42 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंको गिन लिया। 43 और सब पहिलौठे पुरूष जिनकी अवस्या एक महीने की वा उस से अधिक यी, उनके नामोंकी गिनती बाईस हजार दो सौ तिहत्तर यी।। 44 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 45 इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंकी सन्ती लेवियोंको, और उनके पशुओं की सन्ती लेवियोंके पशुओं को ले; और लेवीय मेरे ही हों; मैं यहोवा हूं। 46 और इस्त्राएलियोंके पहिलौठोंमे से जो दो सौ तिहत्तर गिनती में लेवियोंसे अधिक हैं, उनके छुड़ाने के लिथे, 47 पुरूष पीछे पांच शेकेल ले; वे पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से हों, अर्यात् बीस गेरा का शेकेल हो। 48 और जो रूपया उन अधिक पहिलौठोंकी छुडौती का होगा उसे हारून और उसके पुत्रोंको दे देना। 49 और जो इस्त्राएली पहिलौठे लेवियोंके द्वारा छुड़ाए हुओं से अधिक थे उनके हाथ से मूसा ने छुड़ौती का रूपया लिया। 50 और एक हजार तीन सौ पैंसठ शैकेल रूपया पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से वसूल हुआ। 51 और यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने छुड़ाए हुओं का रूपया हारून और उसके पुत्रोंको दे दिया।।
1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 2 लेवियोंमें से कहातियोंकी, उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार, गिनती करो, 3 अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावालोंकी सेना में, जितने मिलापवाले तम्बू में कामकाज करने को भरती हैं। 4 और मिलापवाले तम्बू में परमपवित्र वस्तुओं के विषय कहातियोंका यह काम होगा, 5 अर्यात् जब जब छावनी का कूच हो तब तब हारून और उसके पुत्र भीतर आकर, बीचवाले पर्दे को उतार के उस से साझीपत्र के सन्दूक को ढंाप दें; 6 तब वे उस पर सूइसोंकी खालोंका ओहार डालें, और उसके ऊपर सम्पूर्ण नीले रंग का कपड़ा डालें, और सन्दूक में डण्डोंको लगाएं। 7 फिर भेंटवाली रोटी की मेज़ पर नीला कपड़ा बिछाकर उस पर परातों, धूपदानों, करवों, और उंडेलने के कटोरोंको रखें; और नित्य की रोटी भी उस पर हो; 8 तब वे उन पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उसको सुइसोंकी खालोंके ओहार से ढ़ापे, और मेज़ के डण्डोंको लगा दें। 9 फिर वे नीले रंग का कपड़ा लेकर दीपकों, गलतराशों, और गुलदानोंसमेत उजियाला देनेवाले दीवट को, और उसके सब तेल के पात्रोंको जिन से उसकी सेवा टहल होती है ढांपे; 10 तब वे सारे सामान समेत दीवट को सूइसोंकी खालोंके ओहार के भीतर रखकर डण्डे पर धर दें। 11 फिर वे सोने की वेदी पर एक नीला कपड़ा बिछाकर उसको सूइसोंकी खालोंके ओहार के भीतर रखकर डण्डे पर धर दें। 12 तब वे सेवा टहल के सारे सामान को लेकर, जिस से पवित्रस्यान में सेवा टहल होली है, नीले कपके के भीतर रखकर सूइसोंकी खालोंके ओहार से ढांपे, और डण्डे पर धर दें। 13 फिर वे वेदी पर से सब राख उठाकर वेदी पर बैंजनी रंग का कपड़ा बिछाएं; 14 तब जिस सामान से वेदी पर की सेवा टहल होती है वह सब, अर्यात् उसके करछे, कांटे, फावडिय़ां, और कटोरे आदि, वेदी का सारा सामान उस पर रखें; और उसके ऊपर सूइसोंकी खालोंका ओहार बिछाकर वेदी में डण्डोंको लगाएं। 15 और जब हारून और उसके पुत्र छावनी के कूच के समय पवित्रस्यान और उसके सारे सामान को ढंाप चुकें, तब उसके बाद कहाती उसके उठाने के लिथे आएं, पर किसी पवित्र वस्तु को न छुएं, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएं। कहातियोंके उठाने के लिथे मिलापवाले तम्बू की थे ही वस्तुएं हैं। 16 और जो वस्तुएं हारून याजक के पुत्र एलीजार को रझा के लिथे सौंपी जाएं वे थे हैं, अर्यात् उजियाला देने के लिथे तेल, और सुगन्धित धूप, और नित्य अन्नबलि, और अभिषेक का तेल, और सारे निवास, और उस में की सब वस्तुएं, और पवित्रस्यान और उसके कुल समान।। 17 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 18 कहातियोंके कुलोंके गोत्रियोंको लेवियोंमें से नाश न होने देना; 19 उसके साय ऐसा करो, कि जब वे परमपवित्र वस्तुओं के समीप आएं तब न मरें परन्तु जीवित रहें; अर्यात् हारून और उसके पुत्र भीतर आकर एक एक के लिथे उसकी सेवकाई और उसका भार ठहरा दें, 20 और वे पवित्र वस्तुओं के देखने को झण भर के लिथे भी भीतर आने न पाएं, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएं।। 21 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 22 गेर्शोनियोंकी भी गिनती उनके पितरोंके घरानोंऔर कुलोंके अनुसार कर; 23 तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावाले, जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करने को सेना में भरती होंउन सभोंको गिन ले। 24 सेवा करने और भार उठाने में गेर्शोनियोंके कुलवालोंकी यह सेवकाई हो; 25 अर्यात् वे निवास के पटों, और मिलापवाले तम्बू और उसके ओहार, और इसके ऊपरवाले सूइसोंकी खालोंके ओहार, और मिलापवाले तम्बू के द्वार के पर्दे, 26 और निवास, और वेदी की चारोंओर के आंगन के पर्दों, और आंगन के द्वार के पर्दे, और उनकी डोरियों, और उन में बरतने के सारे सामान, इन सभोंको वे उठाया करें; और इन वस्तुओं से जितना काम होता है वह सब भी उनकी सेवकाई में आए। 27 और गेर्शोनियोंके वंश की सारी सेवकाई हारून और उसके पुत्रोंके कहने से हुआ करे, अर्यात् जो कुछ उनको उठाना, और जो जो सेवकाई उनको करनी हो, उनका सारा भार तुम ही उन्हें सौपा करो। 28 मिलापवाले तम्बू में गेर्शोनियोंके कुलोंकी यही सेवकाई ठहरे; और उन पर हारून याजक का पुत्र ईतामार अधिक्कारने रखे।। 29 फिर मरारियोंको भी तू उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिन लें; 30 तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवा करने को सेना में भरती हों, उन सभोंको गिन ले। 31 और मिलापवाले तम्बू में की जिन वस्तुओं के उठाने की सेवकाई उनको मिले वे थे हों, अर्यात् निवास के तख्ते, बेड़े, खम्भे, और कुसिर्यां, 32 और चारोंओर आंगन के खम्भे, और इनकी कुसिर्यां, खूंटे, डोरियां, और भांति भांति के बरतने का सारा सामान; और जो जो सामान ढ़ोने के लिथे उनको सौपा जाए उस में से एक एक वस्तु का नाम लेकर तुम गिन दो। 33 मरारियोंके कुलोंकी सारी सेवकाई जो उन्हें मिलापवाले तम्बू के विषय करनी होगी वह यही है; वह हारून याजक के पुत्र ईतामार के अधिक्कारने में रहे।। 34 तब मूसा और हारून और मण्डली के प्रधानोंने कहातियोंके वंश को, उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार, 35 तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष की अवस्या के, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे, उन सभोंको गिन लिया; 36 और जो अपके अपके कुल के अनुसार गिने गए वे दो हजार साढ़े सात सौ थे। 37 कहातियोंके कुलोंमें से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करने वाले गिने गए वे इतने ही थे; जो आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी यी उसी के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।। 38 और गेर्शोनियोंमें से जो अपके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिने गए, 39 अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्या के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे, 40 उनकी गिनती उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार दो हजार छ: सौ तीस यी। 41 गेर्शोनियोंके कुलोंमें से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करनेवाले गिने गए वे इतने ही थे; यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।। 42 फिर मरारियोंके कुलोंमें से जो अपके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिने गए, 43 अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्या के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को सेना में भरती हुए थे, 44 उनकी गिनती उनके कुलोंके अनुसार तीन हजार दो सौ यी। 45 मरारियोंके कुलोंमें से जिनको मूसा और हारून ने, यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो मूसा के द्वारा मिली यी, गिन लिया वे इतने ही थे।। 46 लेवियोंमें से जिनको मूसा और हारून और इस्त्राएली प्रधानोंने उनके कुलोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार गिन लिया, 47 अर्यात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की अवस्यावाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने का बोफ उठाने का काम करने को हाजिर होने वाले थे, 48 उन सभोंकी गिनती आठ हजार पांच सौ अस्सी यी। 49 थे अपक्की अपक्की सेवा और बोफ ढ़ोने के अनुसार यहोवा के कहने पर गए। जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उसी के अनुसार वे गिने गए।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंको आज्ञा दे, कि वे सब कोढिय़ोंको, और जितनोंके प्रमेह हो, और जितने लोय के कारण अशुद्ध हों, उन सभोंको छावनी से निकाल दें; 3 ऐसोंको चाहे पुरूष होंचाहे स्त्री छावनी से निकालकर बाहर कर दें; कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी छावनी, जिसके बीच मैं निवास करता हूं, उनके कारण अशुद्ध हो जाए। 4 और इस्त्राएलियोंने वैसा ही किया, अर्यात् ऐसे लोगोंको छावनी से निकालकर बाहर कर दिया; जैसा यहोवा ने मूसा से कहा या इस्त्राएलियोंने वैसा ही किया।। 5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 6 इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब कोई पुरूष वा स्त्री ऐसा कोई पाप करके जो लोग किया करते हैं यहोवा को विश्वासघात करे, और वह प्राणी दोषी हो, 7 तब वह अपना किया हुआ पाप मान ले; और पूरे मूल में पांचवां अंश बढ़ाकर अपके दोष के बदले में उसी को दे, जिसके विषय दोषी हुआ हो। 8 परन्तु यदि उस मनुष्य का कोई कुटुम्बी न हो जिसे दोष का बदला भर दिया जाए, तो उस दोष का जो बदला यहोवा को भर दिया जाए वह याजक का हो, और वह उस प्रायश्चित्तवाले मेढ़े से अधिक हो जिस से उसके लिथे प्रायश्चित्त किया जाए। 9 और जितनी पवित्र की हुई वस्तुएं इस्त्राएली उठाई हुई भेंट करके याजक के पास लाएं, वे उसी की हों; 10 सब मनुष्योंकी पवित्र की हुई वस्तुएं उसी की ठहरें; कोई जो कुछ याजक को दे वह उसका ठहरे।। 11 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 12 इस्त्राएलियोंसे कह, कि यदि किसी मनुष्य की स्त्री कुचाल चलकर उसका विश्वासघात करे, 13 और कोई पुरूष उसके साय कुकर्म करे, परन्तु यह बात उसके पति से छिपी हो और खुली न हो, और वह अशुद्ध हो गई, परन्तु न तो उसके विरूद्ध कोई साझी हो, और न कुकर्म करते पकड़ी गई हो; 14 और उसके पति के मन में जलन उत्पन्न हो, अर्यात् वह अपके स्त्री पर जलने लगे और वह अशुद्ध हुई हो; वा उसके मन में जलन उत्पन्न हो, अर्यात् वह अपक्की स्त्री पर जलने लगे परन्तु वह अशुद्ध न हुई हो; 15 तो वह पुरूष अपक्की स्त्री को याजक के पास ले जाए, और उसके लिथे एपा का दसवां अंश जव का मैदा चढ़ावा करके ले आए; परन्तु उस पर तेल न डाले, न लोबान रखे, क्योंकि वह जलनवाला और स्मरण दिलानेवाला, अर्यात् अधर्म का स्मरण करानेवाला अन्नबलि होगा। 16 तब याजक उस स्त्री को समीप ले जाकर यहोवा के साम्हने खड़ी करे; 17 और याजक मिट्टी के पात्र में पवित्र जल ले, और निवासस्यान की भूमि पर की धूलि में से कुछ लेकर उस जल में डाल दे। 18 तब याजक उस स्त्री को यहोवा के साम्हने खड़ी करके उसके सिर के बाल बिखराए, और स्मरण दिलानेवाले अन्नबलि को जो जलनवाला है उसके हाथोंपर धर दे। और अपके हाथ में याजक कडुवा जल लिथे रहे जो शाप लगाने का कारण होगा। 19 तब याजक स्त्री को शपय धरवाकर कहे, कि यदि किसी पुरूष ने तुझ से कुकर्म न किया हो, और तू पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध न हो गई हो, तो तू इस कडुवे जल के गुण से जो शाप का कारण होता है बची रहे। 20 पर यदि तू अपके पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हुई हो, और तेरे पति को छोड़ किसी दूसरे पुरूष ने तुझ से प्रसंग किया हो, 21 (और याजक उसे शाप देनेवाली शपय धराकर कहे,) यहोवा तेरी जांघ सड़ाए और तेरा पेट फुलाए, और लोग तेरा नाम लेकर शाप और धिक्कार दिया करें; 22 अर्यात् वह जल जो शाप का कारण होता है तेरी अंतडिय़ोंमें जाकर तेरे पेट को फुलाए, और तेरी जांघ को सड़ा दे। तब वह स्त्री कहे, आमीन, आमीन। 23 तब याजक शाप के थे शब्द पुस्तक में लिखकर उस कडुवे जल से मिटाके, 24 उस स्त्री को वह कडुवा जल पिलाए जो शाप का कारण होगा उस स्त्री के पेट में जाकर कडुवा हो जाएगा। 25 और याजक स्त्री के हाथ में से जलनवाले अन्नबलि को लेकर यहोवा के आगे हिलाकर वेदी के समीप पहुंचाए; 26 और याजक उस अन्नबलि में से उसका स्मरण दिलानेवाला भाग, अर्यात् मुट्ठी भर लेकर वेदी पर जलाए, और उसके बाद स्त्री को वह जल पिलाए। 27 और जब वह उसे वह जल पिला चुके, तब यदि वह अशुद्ध हुई हो और अपके पति का विश्वासघात किया हो, तो वह जल जो शाप का कारण होता है उस स्त्री के पेट में जाकर कडुवा हो जाएगा, और उसका पेट फूलेगा, और उसकी जांघ सड़ जाएगी, और उस स्त्री का नाम उसके लोगोंके बीच स्रापित होगा। 28 पर यदि वह स्त्री अशुद्ध न हुई हो और शुद्ध ही हो, तो वह निर्दोष ठहरेगी और गभिर्णी हो सकेगी। 29 जलन की व्यवस्या यही है, चाहे कोई स्त्री अपके पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हो, 30 चाहे पुरूष के मन में जलन उत्पन्न हो और वह अपक्की स्त्री पर जलने लगे; तो वह उसको यहोवा के सम्मुख खड़ी कर दे, और याजक उस पर यह सारी व्यवस्या पूरी करे। 31 तब पुरूष अधर्म से बचा रहेगा, और स्त्री अपके अधर्म का बोफ आप उठाएगी।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब कोई पुरूष वा स्त्री नाज़ीर की मन्नत, अर्यात् अपके को यहोवा के लिथे न्यारा करने की विशेष मन्नत माने, 3 तब वह दाखमधु आदि मदिरा से न्यारा रहे; वह न दाखमधु का, न और मदिरा का सिरका पीए, और न दाख का कुछ रस भी पीए, वरन दाख न खाए, चाहे हरी हो चाहे सूखी। 4 जितने दिन यह न्यारा रहे उतने दिन तक वह बीज से ले छिलके तक, जो कुछ दाखलता से उत्पन्न होता है, उस में से कुछ न खाए। 5 फिर जितने दिन उस ने न्यारे रहने की मन्नत मानी हो उतने दिन तक वह अपके सिर पर छुरा न फिराए; और जब तक वे दिन पूरे न होंजिन में वह यहोवा के लिथे न्यारा रहे तब तक वह पवित्र ठहरेगा, और अपके सिर के बालोंको बढ़ाए रहे। 6 जितने दिन वह यहोवा के लिथे न्यारा रहे उतने दिन तक किसी लोय के पास न जाए। 7 चाहे उसका पिता, वा माता, वा भाई, वा बहिन भी मरे, तौभी वह उनके कारण अशुद्ध न हो; क्योंकि अपके परमेश्वर के लिथे न्यारा रहने का चिन्ह उसके सिर पर होगा। 8 अपके न्यारे रहने के सारे दिनोंमें वह यहोवा के लिथे पवित्र ठहरा रहे। 9 और यदि कोई उसके पास अचानक मर जाए, और उसके न्यारे रहने का जो चिन्ह उसके सिर पर होगा वह अशुद्ध हो जाए, तो वह शुद्ध होने के दिन, अर्यात् सातवें दिन अपके सिर मुंड़ाए। 10 और आठवें दिन वह दो पंडुक वा कबूतरी के दो बच्चे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास ले जाए, 11 और याजक एक को पापबलि, और दूसरे को होमबलि करके उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, क्योंकि वह लोय के कारण पापी ठहरा है। और याजक उसी दिन उसका सिर फिर पवित्र करे, 12 और वह अपके न्यारे रहने के दिनोंको फिर यहोवा के लिथे न्यारे ठहराए, और एक वर्ष का एक भेड़ का बच्चा दोषबलि करके ले आए; और जो दिन इस से पहिले बीत गए होंवे व्यर्य गिने जाए, क्योंकि उसके न्यारे रहने का चिन्ह अशुद्ध हो गया।। 13 फिर जब नाज़ीर के न्यारे रहने के दिन पूरे हों, उस समय के लिथे उसकी यह व्यवस्या है; अर्यात् वह मिलापवाले तम्बू के द्वार पर पहुंचाया जाए, 14 और वह यहोवा के लिथे होमबलि करके एक वर्ष का एक निर्दोष भेड़ का बच्चा पापबलि करके, और एक वर्ष की एक निर्दोष भेड़ की बच्ची, और मेलबलि के लिथे एक निर्दोष मेढ़ा, 15 और अखमीरी रोटियोंकी एक टोकरी, अर्यात् तेल से सने हुए मैदे के फुलके, और तेल से चुपक्की हुई अखमीरी पपडिय़ां, और उन बलियोंके अन्नबलि और अर्घ; थे सब चढ़ावे समीप ले जाए। 16 इन सब को याजक यहोवा के साम्हने पहुंचाकर उसके पापबलि और होमबलि को चढ़ाए, 17 और अखमीरी रोटी की टोकरी समेत मेढ़े को यहोवा के लिथे मेलबलि करके, और उस मेलबलि के अन्नबलि और अर्घ को भी चढ़ाए। 18 तब नाज़ीर अपके न्यारे रहने के चिन्हवाले सिर को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मुण्डाकर अपके बालोंको उस आग पर डाल दे जो मेलबलि के नीचे होगी। 19 फिर जब नाज़ीर अपके न्यारे रहने के चिन्हवाले सिर को मुण्डा चुके तब याजक मेढ़े को पकाया हुआ कन्धा, और टोकरी में से एक अखमीरी रोटी, और एक अखमीरी पपक्की लेकर नाज़ीर के हाथोंपर धर दे, 20 और याजक इनको हिलाने की भेंट करके यहोवा के साम्हने हिलाए; हिलाई हुई छाती और उठाई हुई जांघ समेत थे भी याजक के लिथे पवित्र ठहरें; इसके बाद वह नाज़ीर दाखमधु पी सकेगा। 21 नाज़ीर की मन्नत की, और जो चढ़ावा उसको अपके न्यारे होने के कारण यहोवा के लिथे चढ़ाना होगा उसकी भी यही व्यवस्या है। जो चढ़ावा वह अपक्की पूंजी के अनुसार चढ़ा सके, उस से अधिक जैसी मन्नत उस ने मानी हो, वैसे ही अपके न्यारे रहने की व्यवस्या के अनुसार उसे करना होगा।। 22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 23 हारून और उसके पुत्रोंसे कह, कि तुम इस्त्राएलियोंको इन वचनोंसे आशीर्वाद दिया करना कि, 24 यहोवा तुझे आशीष दे और तेरी रझा करे: 25 यहोवा तुझ पर अपके मुख का प्रकाश चमकाए, और तुझ पर अनुग्रह करे: 26 यहोवा अपना मुख तेरी ओर करे, और तुझे शांति दे। 27 इस रीति से मेरे नाम को इस्त्राएलियोंपर रखें, और मैं उन्हें आशीष दिया करूंगा।।
1 फिर जब मूसा ने निवास को खड़ा किया, और सारे सामान समेत उसका अभिषेक करके उसको पवित्र किया, और सारे सामान समेत वेदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्र किया, 2 तब इस्त्राएल के प्रधान जो अपके अपके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष, और गोत्रोंके भी प्रधान होकर गिनती लेने के काम पर नियुक्त थे, 3 वे यहोवा के साम्हने भेंट ले आए, और उनकी भेंट छ: छाई हुई गाडिय़ां और बारह बैल थे, अर्यात् दो दो प्रधान की ओर से एक एक गाड़ी, और एक एक प्रधान की ओर से एक एक बैल; इन्हें वे निवास के साम्हने यहोवा के समीप ले गए। 4 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 5 उन वस्तुओं को तू उन से ले ले, कि मिलापवाले तम्बू के बरतन में काम आएं, सो तू उन्हें लेवियोंके एक एक कुल की विशेष सेवकाई के अनुसार उनको बांट दे। 6 सो मूसा ने वे सब गाडिय़ां और बैल लेकर लेवियोंको दे दिथे। 7 गेर्शोनियोंको उनकी सेवकाई के अनुसार उस ने दो गाडिय़ां और चार बैल दिए; 8 और मरारियोंको उनकी सेवकाई के अनुसार उस ने चार गाडिय़ां और आठ बैल दिए; थे सब हारून याजक के पुत्र ईतामार के अधिक्कारने में किए गए। 9 और कहातियोंको उस ने कुछ न दिया, क्योंकि उनके लिथे पवित्र वस्तुओं की यह सेवकाई यी कि वह उसे अपके कन्धोंपर उठा लिया करें।। 10 फिर जब वेदी का अभिषेक हुआ तब प्रधान उसके संस्कार की भेंट वेदी के आगे समीप ले जाने लगे। 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, वेदी के संस्कार के लिथे प्रधान लोग अपक्की अपक्की भेंट अपके अपके नियत दिन पर चढ़ाएं।। 12 सो जो पुरूष पहिले दिन अपक्की भेंट ले गया वह यहूदा गोत्रवाले अम्मीनादाब का पुत्र महशोन या; 13 उसकी भेंट यह यी, अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 14 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 15 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 16 पापबलि के लिथे एक बकरा; 17 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीनादाब के पुत्र महशोन की यही भेंट यी।। 18 और दूसरे दिन इस्साकार का प्रधान सूआर का पुत्र नतनेल भेंट ले आया; 19 वह यह यी, अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 20 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 21 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 22 पापबलि के लिथे एक बकरा; 23 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। सूआर के पुत्र नतनेल की यहीं भेंट यी।। 24 और तीसरे दिन जबूलूनियोंका प्रधान हेलोन का पुत्र एलीआब यह भेंट ले आया, 25 अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 26 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 27 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 28 पापबलि के लिथे एक बकरा; 29 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। हेलोन के पुत्र एलीआब की यहीं भेंट यी।। 30 और चौथे दिन रूबेनियोंका प्रधान शदेऊर का पुत्र एलीसूर यह भेंट ले आया, 31 अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 32 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 33 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 34 पापबलि के लिथे एक बकरा; 35 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। शदेऊर के पुत्र एलीसूर की यहीं भेंट यी।। 36 और पांचवें दिन शिमोनियोंका प्रधान सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल यह भेंट ले आया, 37 अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 38 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 39 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 40 पापबलि के लिथे एक बकरा; 41 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पंाच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। सूरीशद्दै के पुत्र शलूमीएल की यही भेंट यी।। 42 और छठवें दिन गादियोंका प्रधान दूएल का पुत्र एल्यासाप यह भेंट ले आया, 43 अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 44 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 45 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 46 पापबलि के लिथे एक बकरा; 47 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। दूएल के पुत्र एल्यासाप की यहीं भेंट यी।। 48 और सातवें दिन एप्रैमियोंका प्रधान अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा यह भेंट ले आया, 49 अर्यात् पवित्रस्यानवाले शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 50 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 51 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 52 पापबलि के लिथे एक बकरा; 53 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीहूद के पुत्र एलीशामा की यहीं भेंट यी।। 54 और आठवें दिन मनश्शेइयोंका प्रधान पदासूर का पुत्र गम्लीएल यह भेंट ले आया, 55 अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सो तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 56 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 57 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 58 पापबलि के लिथे एक बकरा; 59 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेडी के बच्चे। पदासूर के पुत्र गम्लीएल की यहीं भेंट यी।। 60 और नवें दिन बिन्यामीनियोंका प्रधान गिदोनी का पुत्र अबीदान यह भेंट ले आया, 61 अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 62 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 63 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 64 पापबलि के लिथे एक बकरा; 65 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। गिदोनी के पुत्र अबीदान की यही भेंट यी।। 66 और दसवें दिन दानियोंका प्रधान अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर यह भेंट ले आया, 67 अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 68 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 69 होमबलि के लिथे बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 70 पापबलि के लिथे एक बकरा; 71 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। अम्मीशद्दै के पुत्र अहीएजेर की यही भेंट यी।। 72 और ग्यारहवें दिन आशेरियोंका प्रधान ओक्रान का पुत्र पक्कीएल यह भेंट ले आया। 73 अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 74 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का धूपदान; 75 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 76 पापबलि के लिथे एक बकरा; 77 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। ओक्रान के पुत्र पक्कीएल की यहीं भेंट यी।। 78 और बारहवें दिन नप्तालियोंका प्रधान एनान का पुत्र अहीरा यह भेंट ले आया, 79 अर्यात् पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चांदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चांदी का एक कटोरा, थे दोनोंअन्नबलि के लिथे तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे; 80 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान; 81 होमबलि के लिथे एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा; 82 पापबलि के लिथे एक बकरा; 83 और मेलबलि के लिथे दो बैल, और पांच मेढ़े, और पांच बकरे, और एक एक वर्ष के पांच भेड़ी के बच्चे। एनान के पुत्र अहीरा की यही भेंट यी।। 84 वेदी के अभिषेक के समय इस्त्राएल के प्रधानोंकी ओर से उसके संस्कार की भेंट यही हुई, अर्यात् चांदी के बारह परात, चांदी के बारह कटोरे, और सोने के बारह धूपदान। 85 एक एक चांदी का परात एक सौ तीस शेकेल का, और एक एक चांदी का कटोरा सत्तर शेकेल का या; और पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से थे सब चांदी के पात्र दो हजार चार सौ शेकेल के थे। 86 फिर धूप से भरे हुए सोने के बारह धूपदान जो पवित्रस्यान के शेकेल के हिसाब से दस दस शेकेल के थे, वे सब धूपदान एक सौ बीस शेकेल सोने के थे। 87 फिर होमबलि के लिथे सब मिलाकर बारह बछड़े, बारह मेढ़े, और एक एक वर्ष के बारह भेड़ी के बच्चे, अपके अपके अन्नबलि सहित थे; फिर पापबलि के सब बकरे बारह थे; 88 और मेलबलि के लिथे सब मिला कर चौबीस बैल, और साठ मेढ़े, और साठ बकरे, और एक एक वर्ष के साठ भेड़ी के बच्चे थे। वेदी के अभिषेक होने के बाद उसके संस्कार की भेंट यही हुई। 89 और जब मूसा यहोवा से बातें करने को मिलापवाले तम्बू में गया, तब उस ने प्रायश्चित्त के ढकने पर से, जो साझीपत्र के सन्दूक के ऊपर या, दोनोंकरूबोंके मध्य में से उसकी आवाज सुनी जो उस से बातें कर रहा या; और उस ने ( यहोवा ) उस से बातें की।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 हारून को समझाकर यह कह, कि जब जब तू दीपकोंको बारे तब तब सातोंदीपक का प्रकाश दीवट के साम्हने हो। 3 निदान हारून ने वैसा ही किया, अर्यात् जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उसी के अनुसार उस ने दीपकोंको बारा, कि वे दीवट के साम्हने उजियाला दे। 4 और दीवट की बनावट यह यी, अर्यात् यह पाए से लेकर फूलोंतक गढ़े हुए सोने का बनाया गया या; जो नमूना यहोवा ने मूसा को दिखलाया या उसी के अनुसार उस ने दीवट को बनाया।। 5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 6 इस्त्राएलियोंके मध्य में से लेवियोंको अलग लेकर शुद्ध कर। 7 उन्हें शुद्ध करने के लिथे तू ऐसा कर, कि पावन करने वाला जल उन पर छिड़क दे, फिर वे सर्वांग मुण्डन कराएं, और वस्त्र धोएं, और वे अपके को स्वचछ करें। 8 तब वे तेल से सने हुए मैदे के अन्नबलि समेत एक बछड़ा ले लें, और तू पापबलि के लिथे एक दूसरा बछड़ा लेना। 9 और तू लेवियोंको मिलापवाले तम्बू के साम्हने समीप पहुंचाना, और इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली को इकट्ठा करना। 10 तब तू लेवियोंको यहोवा के आगे समीप ले आना, और इस्त्राएली अपके अपके हाथ उन पर रखें, 11 तब हारून लेवियोंको यहोवा के साम्हने इस्त्राएलियोंकी ओर से हिलाई हुई भेंट करके अर्पण करे, कि वे यहोवा की सेवा करनेवाले ठहरें। 12 और लेवीय अपके अपके हाथ उन बछड़ोंके सिरोंपर रखें; तब तू लेवियोंके लिथे प्रायश्चित्त करने को एक बछड़ा पापबलि और दूसरा होमबलि करके यहोवा के लिथे चढ़ाना। 13 और लेवियोंको हारून और उसके पुत्रोंके सम्मुख खड़ा करना, और उनको हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा को अपर्ण करना। 14 और उन्हें इस्त्राएलियोंमें से अलग करना, सो वे मेरे ही ठहरेंगे। 15 और जब तू लेवियोंको शुद्ध करके हिलाई हुई भेंट के लिथे अर्पण कर चुके, उसके बाद वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी सेवा टहल करने के लिथे अन्दर आया करें। 16 क्योंकि वे इस्त्राएलियोंमे से मुझे पूरी रीति से अर्पण किए हुए हैं; मै ने उनको सब इस्त्राएलियोंमें से एक एक स्त्री के पहिलौठे की सन्ती अपना कर लिया है। 17 इस्त्राएलियोंके पहिलौठे, चाहे मनुष्य के होंचाहे पशु के, सब मेरे हैं; क्योंकि मैं ने उन्हें उस समय अपके लिथे पवित्र ठहराया जब मैं ने मिस्र देश के सब पहिलौठोंको मार डाला। 18 और मैं ने इस्त्राएलियोंके सब पहिलौठोंके बदले लेवियोंको लिया है। 19 उन्हे लेकर मै ने हारून और उसके पुत्रोंको इस्त्राएलियोंमें से दान करके दे दिया है, कि वे मिलापवाले तम्बू में इस्त्राएलियोंके निमित्त सेवकाई और प्रायश्चित्त किया करें, कहीं ऐसा न हो कि जब इस्त्राएली पवित्रस्यान के समीप आएं तब उन पर कोई महाविपत्ति आ पके। 20 लेवियोंके विषय यहोवा की यह आज्ञा पाकर मूसा और हारून और इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली ने उनके साय ठीक वैसा ही किया। 21 लेवियोंने तो अपके को पाप से पावन किया, और अपके वोंको धो डाला; और हारून ने उन्हें यहोवा के साम्हने हिलाई हुई भेंट के निमित्त अर्पण किया, और उन्हें शुद्ध करने को उनके लिथे प्रायश्चित्त भी किया। 22 और उसके बाद लेवीय हारून और उसके पुत्रोंके साम्हने मिलापवाले तम्बू में अपक्की अपक्की सेवकाई करने को गए; और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को लेवियोंके विषय में दी यी उसी के अनुसार वे उन से व्यवहार करने लगे।। 23 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 24 जो लेवियोंको करना है वह यह है, कि पच्चक्कीस वर्ष की अवस्या से लेकर उस से अधिक आयु में वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी काम करने के लिथे भीतर उपस्यित हुआ करें; 25 और जब पचास वर्ष के होंतो फिर उस सेवा के लिथे न आए और न काम करें; 26 परन्तु वे अपके भाई बन्धुओं के साय मिलापवाले तम्बू के पास रझा का काम किया करें, और किसी प्रकार की सेवकाई न करें। लेवियोंको जो जो काम सौंपे जाएं उनके विषय तू उन से ऐसा ही करना।।
1 इस्त्राएलियोंके मिस्र देश से निकलने के दूसरे वर्ष के पहिले महीने में यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा, 2 इस्त्राएली फसह नाम पर्ब्ब को उसके नियत समय पर माना करें। 3 अर्यात् इसी महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय तुम लोग उसे सब विधियोंऔर नियमोंके अनुसार मानना। 4 तब मूसा ने इस्त्राएलियोंसे फसह मानने के लिथे कह दिया। 5 और उन्होंने पहले महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय सीनै के जंगल में फसह को माना; और जो जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी यीं उन्हीं के अनुसार इस्त्राएलियोंने किया। 6 परन्तु कितने लोग किसी मनुष्य की लोय के द्वारा अशुद्ध होने के कारण उस दिन फसह को न मान सके; वे उसी दिन मूसा और हारून के समीप जाकर मूसा से कहने लगे, 7 हम लोग एक मनुष्य की लोय के कारण अशुद्ध हैं; परन्तु हम क्योंरूके रहें, और इस्त्राएलियोंके संग यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर क्योंन चढ़ाएं? 8 मूसा ने उन से कहा, ठहरे रहो, मै सुन लूं कि यहोवा तुम्हारे विषय में क्या आज्ञा देता है। 9 यहोवा ने मूसा से कहा, 10 इस्त्राएलियोंसे कह, कि चाहे तुम लोग चाहे तुम्हारे वंश में से कोई भी किसी लोय के कारण अशुद्ध हो, वा दूर की यात्रा पर हो, तौभी वह यहोवा के लिथे फसह को माने। 11 वे उसे दूसरे महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय मानें; और फसह के बलिपशु के मांस को अखमीरी रोटी और कडुए सागपात के साय खाएं। 12 और उस में से कुछ भी बिहान तक न रख छोड़े, और न उसकी कोई हड्डी तोड़े; वे उस पर्ब्ब को फसह की सारी विधियोंके अनुसार मानें। 13 परन्तु जो मनुष्य शुद्ध हो और यात्रा पर न हो, परन्तु फसह के पर्ब्ब को न माने, वह प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किया जाए, उस मनुष्य को यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर न ले आने के कारण अपके पाप का बोफ उठाना पकेगा। 14 और यदि कोई परदेशी तुम्हारे साय रहकर चाहे कि यहोवा के लिथे फसह माने, तो वह उसी विधि और नियम के अनुसार उसको माने; देशी और परदेशी दोनोंके लिथे तुम्हारी एक ही विधि हो।। 15 जिस दिन निवास जो साझी का तम्बू भी कहलाता है खड़ा किया गया, उस दिन बादल उस पर छा गया; और सन्ध्या को वह निवास पर आग सा दिखाई दिया और भोर तक दिखाई देता रहा। 16 और नित्य ऐसा ही हुआ करता या; अर्यात् दिन को बादल छाया रहता, और रात को आग दिखाई देती यी। 17 और जब जब वह बादल तम्बू पर से उठ जाता तब इस्त्राएली प्रस्यान करते थे; और जिस स्यान पर बादल ठहर जाता वहीं इस्त्राएली अपके डेरे खड़े करते थे। 18 यहोवा की आज्ञा से इस्त्राएली कूच करते थे, और यहोवा ही की आज्ञा से वे डेरे खड़े भी करते थे; और जितने दिन तक वह बादल निवास पर ठहरा रहता उतने दिन तक वे डेरे डाले पके रहते थे। 19 और जब जब बादल बहुत दिन निवास पर छाया रहता तब इस्त्राएली यहोवा की आज्ञा मानते, और प्रस्यान नहीं करते थे। 20 और कभी कभी वह बादल योड़े ही दिन तक निवास पर रहता, और तब भी वे यहोवा की आज्ञा से डेरे डाले पके रहते थे और फिर यहोवा की आज्ञा ही से प्रस्यान करते थे। 21 और कभी कभी बादल केवल सन्ध्या से भोर तक रहता; और जब वह भोर को उठ जाता या तब वे प्रस्यान करते थे, और यदि वह रात दिन बराबर रहता तो जब बादल उठ जाता तब ही वे प्रस्यान करते थे। 22 वह बादल चाहे दो दिन, चाहे एक महीना, चाहे वर्ष भर, जब तक निवास पर ठहरा रहता तब तक इस्त्राएली अपके डेरोंमें रहते और प्रस्यान नहीं करते थे; परन्तु जब वह उठ जाता तब वे प्रस्यान करते थे। 23 यहोवा की आज्ञा से वे अपके डेरें खड़े करते, और यहोवा ही की आज्ञा से वे प्रस्यान करते थे; जो आज्ञा यहोवा मूसा के द्वारा देता या उसको वे माना करते थे।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 चांदी की दो तुरहियां गढ़के बनाई जाएं; तू उनको मण्डली के बुलाने, और छावनियोंके प्रस्यान करने में काम में लाना। 3 और जब वे दोनोंफंूकी जाएं, तब सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर तेरे पास इकट्ठी हो जाए। 4 और यदि एक ही तुरही फूंकी जाए, तो प्रधान लोग जो इस्त्राएल के हजारोंके मुख्य पुरूष हैं तेरे पास इकट्ठे हो जाएं। 5 जब तुम लोग सांस बान्धकर फूंको, तो पूरब दिशा की छावनियोंका प्रस्यान हो। 6 और जब तुम दूसरी बेर सांस बान्धकर फूंको, तब दक्खिन दिशा की छावनियोंका प्रस्यान हो। उनके प्रस्यान करने के लिथे वे सांस बान्धकर फूंकें। 7 और जब लोगोंको इकट्ठा करके सभा करनी हो तब भी फूंकना परन्तु सांस बान्धकर नहीं। 8 और हारून के पुत्र जो याजक हैं वे उन तुरहियोंको फूंका करें। यह बात तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी के लिथे सर्वदा की विधि रहे। 9 और जब तुम अपके देश में किसी सतानेवाले बैरी से लड़ने को निकलो, तब तुरहियोंको सांस बान्धकर फूंकना, तब तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को तुम्हारा स्मरण आएगा, और तुम अपके शत्रुओं से बचाए जाओगे। 10 और अपके आनन्द के दिन में, और अपके नियत पर्ब्बोंमें, और महीनोंके आदि में, अपके होमबलियोंऔर मेलबलियोंके साय उन तुरहियोंको फूंकना; इस से तुम्हारे परमेश्वर को तुम्हारा स्मरण आएगा; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।। 11 और दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के बीसवें दिन को बादल साझी के निवास पर से उठ गया, 12 तब इस्त्राएली सीनै के जंगल में से निकलकर प्रस्यान करके निकले; और बादल पारान नाम जंगल में ठहर गया। 13 उनका प्रस्यान यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी यी आरम्भ हुआ। 14 और सब से पहले तो यहूदियोंकी छावनी के फंडे का प्रस्यान हुआ, और वे दल बान्धकर चले; और उन का सेनापति अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन या। 15 और इस्साकारियोंके गोत्र का सेनापति सूआर का पुत्र नतनेल या। 16 और जबूलूनियोंके गोत्र का सेनापति हेलोन का पुत्र एलीआब या। 17 तब निवास उतारा गया, और गेर्शोनियोंऔर मरारियोंने जो निवास को उठाते थे प्रस्यान किया। 18 फिर रूबेन की छावनी फंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति शदेऊर का पुत्र एलीशूर या। 19 और शिमोनियोंके गोत्र का सेनापति सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल या। 20 और गादियोंके गोत्र का सेनापति दूएल का पुत्र एल्यासाप या। 21 तब कहातियोंने पवित्र वस्तुओं को उठाए हुए प्रस्यान किया, और उनके पहुंचने तक गेर्शोनियोंऔर मरारियोंने निवास को खड़ा कर दिया। 22 फिर एप्रैमियोंकी छावनी के फंडे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा या। 23 और मनश्शेइयोंके गोत्र को सेनापति पदासूर का पुत्र गम्लीएल या। 24 और बिन्यामीनियोंके गोत्र का सेनापति गिदोनी का पुत्र अबीदान या। 25 फिर दानियोंकी छावनी जो सब छावनियोंके पीछे यी, उसके फंडे का प्रस्यान हुआ, और वे भी दल बना कर चले; और उनका सेनापति अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर या। 26 और आशेरियोंके गोत्र का सेनापति ओक्रान का पुत्र पक्कीएल या। 27 और नप्तालियोंके गोत्र का सेनापति एनान का पुत्र अहीरा या। 28 इस्त्राएली इसी प्रकार अपके अपके दलोंके अनुसार प्रस्यान करते, और आगे बढ़ा करते थे। 29 और मूसा ने अपके ससुर रूएल मिद्यानी के पुत्र होबाब से कहा, हम लोग उस स्यान की यात्रा करते हैं जिसके विषय में यहोवा ने कहा है, कि मैं उसे तुम को दूंगा; सो तू भी हमारे संग चल, और हम तेरी भलाई करेंगे; क्योंकि यहोवा ने इस्त्राएल के विषय में भला ही कहा है। 30 होबाब ने उसे उत्तर दिया, कि मैं नहीं जाऊंगा; मैं अपके देश और कुटुम्बियोंमें लौट जाऊंगा। 31 फिर मूसा ने कहा, हम को न छोड़, क्योंकि जंगल में कहां कहां डेरा खड़ा करना चाहिथे, यह तुझे ही मालूम है, तू हमारे लिथे आंखोंका काम देना। 32 और यदि तू हमारे संग चले, तो निश्चय जो भलाई यहोवा हम से करेगा उसी के अनुसार हम भी तुझ से वैसा ही करेंगे।। 33 फिर इस्त्राएलियोंने यहोवा के पर्वत से प्रस्यान करके तीन दिन की यात्रा की; और उन तीनोंदिनोंके मार्ग में यहोवा की वाचा का सन्दूक उनके लिथे विश्रम का स्यान ढूंढ़ता हुआ उनके आगे आगे चलता रहा। 34 और जब वे छावनी के स्यान से प्रस्यान करते थे तब दिन भर यहोवा का बादल उनके ऊपर छाया रहता या। 35 और जब जब सन्दूक का प्रस्यान होता या तब तब मूसा यह कहा करता या, कि हे यहोवा, उठ, और तेरे शत्रु तित्तर बित्तर हो जाएं, और तेरे बैरी तेरे साम्हने से भाग जाएं। 36 और जब जब वह ठहर जाता या तब तब मूसा कहा करता या, कि हे यहोवा, हजारोंफार इस्त्राएलियोंमें लौटकर आ जा।।
1 फिर वे लोग बुड़बुड़ाने और यहोवा के सुनते बुरा कहने लगे; निदान यहोवा ने सुना, और उसका कोप भड़क उठा, और यहोवा की आग उनके मध्य जल उठी, और छावनी के एक किनारे से भस्म करने लगी। 2 तब मूसा के पास आकर चिल्लाए; और मूसा ने यहोवा से प्रार्यना की, तब वह आग बुफ गई, 3 और उस स्यान का नाम तबेरा पड़ा, क्योंकि यहोवा की आग उन में जल उठी यी।। 4 फिर जो मिली-जुली भीड़ उनके साय यी वह कामुकता करने लगी; और इस्त्राएली भी फिर रोने और कहने लगे, कि हमें मांस खाने को कौन देगा। 5 हमें वे मछलियां स्मरण हैं जो हम मिस्र में सेंतमेंत खाया करते थे, और वे खीरे, और खरबूजे, और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी; 6 परन्तु अब हमारा जी घबरा गया है, यहां पर इस मन्ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता। 7 मन्ना तो धनिथे के समान या, और उसका रंग रूप मोती का सा या। 8 लोग इधर उधर जाकर उसे बटोरते, और चक्की में पीसते वा ओखली में कूटते थे, फिर तसले में पकाते, और उसके फुलके बनाते थे; और उसका स्वाद तेल में बने हुए पुए का सा या। 9 और रात को छावनी में ओस पड़ती यी तब उसके साय मन्ना भी गिरता या। 10 और मूसा ने सब घरानोंके आदमियोंको अपके अपके डेरे के द्वार पर रोते सुना; और यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का, और मूसा को भी बुरा मालूम हुआ। 11 तब मूसा ने यहोवा से कहा, तू अपके दास से यह बुरा व्यवहार क्योंकरता है? और क्या कारण है कि मैं ने तेरी दृष्टि में अनुग्रह नहीं पाया, कि तू ने इन सब लोगोंका भार मुझ पर डाला है? 12 क्या थे सब लोग मेरे ही कोख में पके थे? क्या मैं ही ने उनको उत्पन्न किया, जो तू मुझ से कहता है, कि जैसे पिता दूध पीते बालक को अपक्की गोद में उठाए उठाए फिरता है, वैसे ही मैं इन लोगोंको अपक्की गोद में उठाकर उस देश में ले जाऊं, जिसके देने की शपय तू ने उनके पूर्वजोंसे खाई है? 13 मुझे इतना मांस कहां से मिले कि इन सब लोगोंको दूं? थे तो यह कह कहकर मेरे पास रो रहे हैं, कि तू हमे मांस खाने को दे। 14 मैं अकेला इन सब लोगोंका भार नहीं सम्भाल सकता, कयोंकि यह मेरी शक्ति के बाहर है। 15 और जो तुझे मेरे साय यही व्यवहार करना है, तो मुझ पर तेरा इतना अनुग्रह हो, कि तू मेरे प्राण एकदम ले ले, जिस से मैं अपक्की दुर्दशा न देखने पाऊं।। 16 यहोवा ने मूसा से कहा, इस्त्राएली पुरनियोंमें से सत्तर ऐसे पुरूष मेरे पास इकट्ठे कर, जिनको तू जानता है कि वे प्रजा के पुरनिथे और उनके सरदार है कि वे प्रजा के पुरनिथे और उनके सरदार हैं; और मिलापवाले तम्बू के पास ले आ, कि वे तेरे साय यहां खड़े हों। 17 तब मैं उतरकर तुझ से वहां बातें करूंगा; और जो आत्मा तुझ में है उस में से कुछ लेकर उन में समवाऊंगा; और वे इन लोगोंका भार तेरे संग उठाए रहेंगे, और तुझे उसको अकेले उठाना न पकेगा। 18 और लोगोंसे कह, कल के लिथे अपके को पवित्र करो, तब तुम्हें मांस खाने को मिलेगा; क्योंकि तुम यहोवा के सुनते हुए यह कह कहकर रोए हो, कि हमें मांस खाने को कौन देगा? हम मिस्र ही में भले थे। सो यहोवा तुम को मांस खाने को देगा, और तुम खाना। 19 फिर तुम एक दिन, वा दो, वा पांच, वा दस, वा बीस दिन ही नहीं, 20 परन्तु महीने भर उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नयनोंसे निकलने न लगे और तुम को उस से घृणा न हो जाए, कयोंकि तुम लोगोंने यहोवा को जो तुम्हारे मध्य में है तुच्छ जाना है, और उसके साम्हने यह कहकर रोए हो, कि हम मिस्र से क्योंनिकल आए? 21 फिर मूसा ने कहा, जिन लोगोंके बीच मैं हूं उन में से छ: लाख तो प्यादे ही हैं; और तू ने कहा है, कि मैं उन्हें इतना मांस दूंगा, कि वे महीने भर उसे खाते ही रहेंगे। 22 क्या वे सब भेड़-बकरी गाय-बैल उनके लिथे मारे जाए, कि उनको मांस मिले? वा क्या समुद्र की सब मछलियां उनके लिथे इकट्ठी की जाएं, कि उनको मांस मिले? 23 यहोवा ने मूसा से कहा, क्या यहोवा का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देखेगा, कि मेरा वचन जो मैं ने तुझ से कहा है वह पूरा होता है कि नहीं। 24 तब मूसा ने बाहर जाकर प्रजा के लोगोंको यहोवा की बातें कह सुनाई; और उनके पुरनियोंमें से सत्तर पुरूष इकट्ठे करके तम्बू के चारोंओर खड़े किए। 25 तब यहोवा बादल में होकर उतरा और उस ने मूसा से बातें की, और जो आत्मा उस में यी उस में से लेकर उन सत्तर पुरनियोंमें समवा दिया; और जब वह आत्मा उन में आई तब वे नबूवत करने लगे। परन्तु फिर और कभी न की। 26 परन्तु दो मनुष्य छावनी में रह गए थे, जिस में से एक का नाम एलदाद और दूसरे का मेदाद या, उन में भी आत्मा आई; थे भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिथे गथे थे, पर तम्बू के पास न गए थे, और वे छावनी ही में नबूवत करने लगे। 27 तब किसी जवान ने दौड़ कर मूसा को बतलाया, कि एलदाद और मेदाद छावनी में नबूवत कर रहे हैं। 28 तब नून का पुत्र यहोशू, जो मूसा का टहलुआ और उसके चुने हुए वीरोंमें से या, उस ने मूसा से कहा, हे मेरे स्वामी मूसा, उनको रोक दे। 29 मूसा ने उन से कहा, क्या तू मेरे कारण जलता है? भला होता कि यहोवा की सारी प्रजा के लोग नबी होते, और यहोवा अपना आत्मा उन सभोंमें समवा देता! 30 तब फिर मूसा इस्त्राएल के पुरनियोंसमेत छावनी में चला गया। 31 तब यहोवा की ओर से एक बड़ी आंधी आई, और वह समुद्र से बटेरें उड़ाके छावनी पर और उसके चारोंओर इतनी ले आईं, कि वे इधर उधर एक दिन के मार्ग तक भूमि पर दो हाथ के लगभग ऊंचे तक छा गए। 32 और लोगोंने उठकर उस दिन भर और रात भर, और दूसरे दिन भी दिन भर बटेरोंको बटोरते रहे; जिस ने कम से कम बटोरा उस ने दस होमेर बटोरा; और उन्होंने उन्हें छावनी के चारोंओर फैला दिया। 33 मांस उनके मुंह ही में या, और वे उसे खाने न पाए थे, कि यहोवा का कोप उन पर भड़क उठा, और उस ने उनको बहुत बड़ी मार से मारा। 34 और उस स्यान का नाम किब्रोयत्तावा पड़ा, क्योंकि जिन लोगोंने कामुकता की यी उनको वहां मिट्टी दी गई। 35 फिर इस्त्राएली किब्रोयत्तावा से प्रस्यान करके हसेरोत में पहुंचे, और वहीं रहे।।
1 मूसा ने तो एक कूशी स्त्री के साय ब्याह कर लिया या। सो मरियम और हारून उसकी उस ब्याहिता कूशी स्त्री के कारण उसकी निन्दा करने लगे; 2 उन्होंने कहा, क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साय बातें की हैं? क्या उस ने हम से भी बातें नहीं कीं? उनकी यह बात यहोवा ने सुनी। 3 मूसा तो पृय्वी भर के रहने वाले मनुष्योंसे बहुत अधिक नम्र स्वभाव का या। 4 सो यहोवा ने एकाएक मूसा और हारून और मरियम से कहा, तुम तीनोंमिलापवाले तम्बू के पास निकल आओ। तब वे तीनोंनिकल आए। 5 तब यहोवा ने बादल के खम्भे में उतरकर तम्बू के द्वार पर खड़ा होकर हारून और मरियम को बुलाया; सो वे दोनोंउसके पास निकल आए। 6 तब यहोवा ने कहा, मेरी बातें सुनो: यदि तुम में कोई नबी हो, तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपके आप को प्रगट करूंगा, वा स्वप्न में उस से बातें करूंगा। 7 परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घरानोंमे विश्वास योग्य है। 8 उस से मैं गुप्त रीति से नहीं, परन्तु आम्हने साम्हने और प्रत्यझ होकर बातें करता हूं; और वह यहोवा का स्वरूप निहारने पाता है। सो तुम मेरे दास मूसा की निन्दा करते हुए क्योंनहीं डरे? 9 तब यहोवा का कोप उन पर भड़का, और वह चला गया; 10 तब वह बादल तम्बू के ऊपर से उठ गया, और मरियम कोढ़ से हिम के समान श्वेत हो गई। और हारून ने मरियम की ओर दृष्टि की, और देखा, कि वह कोढ़िन हो गई है। 11 तब हारून मूसा से कहने लगा, हे मेरे प्रभु, हम दोनोंने जो मूर्खता की वरन पाप भी किया, यह पाप हम पर न लगने दे। 12 और मरियम को उस मरे हुए के समान न रहने दे, जिसकी देह अपक्की मां के पेट से निकलते ही अधगली हो। 13 सो मूसा ने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, हे ईश्वर, कृपा कर, और उसको चंगा कर। 14 यहोवा ने मूसा से कहा, यदि उसका पिता उसके मुंह पर यूका ही होता, तो क्या सात दिन तक वह लज्जित न रहती? सो वह सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रहे, उसके बाद वह फिर भीतर आने पाए। 15 सो मरियम सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रही, और जब तक मरियम फिर आने न पाई तब तक लोगोंने प्रस्यान न किया। 16 उसके बाद उन्होंने हसेरोत से प्रस्यान करके पारान नाम जंगल में अपके डेरे खड़े किए।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 कनान देश जिसे मैं इस्त्राएलियोंको देता हूं उसका भेद लेने के लिथे पुरूषोंको भेज; वे उनके पितरोंके प्रति गोत्र का एक प्रधान पुरूष हों। 3 यहोवा से यह आज्ञा पाकर मूसा ने ऐसे पुरूषोंको पारान जंगल से भेज दिया, जो सब के सब इस्त्राएलियोंके प्रधान थे। 4 उनके नाम थे हैं, अर्यात् रूबेन के गोत्र में से जककूर का पुत्र शम्मू; 5 शिमोन के गोत्र में से होरी का पुत्र शापात; 6 यहूदा के गोत्र में से यपुन्ने का पुत्र कालेब; 7 इस्साकार के गोत्र में से योसेप का पुत्र यिगाल; 8 एप्रैम के गोत्र में से नून का पुत्र होशे; 9 बिन्यामीन के गोत्र में से रापू का पुत्र पलती; 10 जबूलून के गोत्र में से सोदी का पुत्र गद्दीएल; 11 यूसुफ वंशियोंमें, मनश्शे के गोत्र में से सूसी का पुत्र गद्दी; 12 दान के गोत्र में से गमल्ली का पुत्र अम्मीएल; 13 आशेर के गोत्र में से मीकाएल का पुत्र सतूर; 14 नप्ताली के गोत्र में से वोप्सी का पुत्र नहूबी; 15 गाद के गोत्र में से माकी का पुत्र गूएल। 16 जिन पुरूषोंको मूसा ने देश का भेद लेने के लिथे भेजा या उनके नाम थे ही हैं। और नून के पुत्र होशे का नाम उस ने यहोशू रखा। 17 उन को कनान देश के भेद लेने को भेजते समय मूसा ने कहा, इधर से, अर्यात् दझिण देश होकर जाओ, 18 और पहाड़ी देश में जाकर उस देश को देख लो कि कैसा है, और उस में बसे हुए लोगोंको भी देखो कि वे बलवान् हैं वा निर्बल, योड़े हैं वा बहुत, 19 और जिस देश में वे बसे हुए हैं सो कैसा है, अच्छा वा बुरा, और वे कैसी कैसी बस्तियोंमें बसे हुए हैं, और तम्बुओं में रहते हैं वा गढ़ वा किलोंमें रहते हैं, 20 और वह देश कैसा है, उपजाऊ है वा बंजर है, और उस में वृझ हैं वा नहीं। और तुम हियाव बान्धे चलो, और उस देश की उपज में से कुछ लेते भी आना। वह समय पहली पक्की दाखोंका या। 21 सो वे चल दिए, और सीन नाम जंगल से ले रहोब तक, जो हमात के मार्ग में है, सारे देश को देखभालकर उसका भेद लिया। 22 सो वे दझिण देश होकर चले, और हेब्रोन तक गए; वहां अहीमन, शेशै, और तल्मै नाम अनाकवंशी रहते थे। हेब्रोन तो मिस्र के सोअन से सात वर्ष पहिले बसाया गया या। 23 तब वे एशकोल नाम नाले तक गए, और वहां से एक डाली दाखोंके गुच्छे समेत तोड़ ली, और दो मनुष्य उस एक लाठी पर लटकाए हुए उठा ले चले गए; और वे अनारोंऔर अंजीरोंमें से भी कुछ कुछ ले आए। 24 इस्त्राएली वहां से जो दाखोंका गुच्छा तोड़ ले आए थे, इस कारण उस स्यान का नाम एशकोल नाला रखा गया। 25 चालीस दिन के बाद वे उस देश का भेद लेकर लौट आए। 26 और पारान जंगल के कादेश नाम स्यान में मूसा और हारून और इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के पास पहुंचे; और उनको और सारी मण्डली को संदेशा दिया, और उस देश के फल उनको दिखाए। 27 उन्होंने मूसा से यह कहकर वर्णन किया, कि जिस देश में तू ने हम को भेजा या उस में हम गए; उस में सचमुच दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और उसकी उपज में से यही है। 28 परन्तु उस देश के निवासी बलवान् हैं, और उसके नगर गढ़वाले हैं और बहुत बड़े हैं; और फिर हम ने वहां अनाकवंशियोंको भी देखा। 29 दझिण देश में तो अमालेकी बसे हुए हैं; और पहाड़ी देश में हित्ती, यबूसी, और एमोरी रहते हैं; और समुद्र के किनारे किनारे और यरदन नदी के तट पर कनानी बसे हुए हैं। 30 पर कालेब ने मूसा के साम्हने प्रजा के लोगोंको चुप कराने की मनसा से कहा, हम अभी चढ़के उस देश को अपना कर लें; क्योंकि नि:सन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है। 31 पर जो पुरूष उसके संग गए थे उन्होंने कहा, उन लोगोंपर चढ़ने की शक्ति हम में नहीं है; क्योंकि वे हम से बलवान् हैं। 32 और उन्होंने इस्त्राएलियोंके साम्हने उस देश की जिसका भेद उन्होंने लिया या यह कहकर निन्दा भी की, कि वह देश जिसका भेद लेने को हम गथे थे ऐसा है, जो अपके निवासिक्कों निगल जाता है; और जितने पुरूष हम ने उस में देखे वे सब के सब बड़े डील डौल के हैं। 33 फिर हम ने वहां नपीलोंको, अर्यात् नपीली जातिवाले अनाकवंशियोंको देखा; और हम अपक्की दृष्टि में तो उनके साम्हने टिड्डे के सामान दिखाई पड़ते थे, और ऐसे ही उनकी दृष्टि में मालूम पड़ते थे।।
1 तब सारी मण्डली चिल्ला उठी; और रात भर वे लोग रोते ही रहे। 2 और सब इस्त्राएली मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगे; और सारी मण्डली उस ने कहने लगी, कि भला होता कि हम मिस्र ही में मर जाते! वा इस जंगल ही में मर जाते! 3 और यहोवा हम को उस देश में ले जाकर क्योंतलवार से मरवाना चाहता है? हमारी स्त्रियां और बालबच्चे तो लूट में चलें जाएंगे; क्या हमारे लिथे अच्छा नहीं कि हम मिस्र देश को लौट जाएं? 4 फिर वे आपस में कहने लगे, आओ, हम किसी को अपना प्रधान बना लें, और मिस्र को लौट चलें। 5 तब मूसा और हारून इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के साम्हने मुंह के बल गिरे। 6 और नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालिब, जो देश के भेद लेनेवालोंमें से थे, अपके अपके वस्त्र फाड़कर, 7 इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली से कहने लगे, कि जिस देश का भेद लेने को हम इधर उधर घूम कर आए हैं, वह अत्यन्त उत्तम देश है। 8 यदि यहोवा हम से प्रसन्न हो, तो हम को उस देश में, जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, पहुंचाकर उसे हमे दे देगा। 9 केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरूद्ध बलवा न करो; और न तो उस देश के लोगोंसे डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उन से न डरो। 10 तब सारी मण्डली चिल्ला उठी, कि इनको पत्यरवाह करो। तब यहोवा का तेज सब इस्त्राएलियोंपर प्रकाशमान हुआ।। 11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, वे लोग कब तक मेरा तिरस्कार करते रहेंगे? और मेरे सब आश्चर्यकर्म देखने पर भी कब तक मुझ पर विश्वास न करेंगे? 12 मैं उन्हें मरी से मारूंगा, और उनके निज भाग से उन्हें निकाल दूंगा, और तुझ से एक जाति उपजाऊंगा जो उन से बड़ी और बलवन्त होगी। 13 मूसा ने यहोवा से कहा, तब तो मिस्री जिनके मध्य में से तू अपक्की सामर्य्य दिखाकर उन लोगोंको निकाल ले आया है यह सुनेंगे, 14 और इस देश के निवासिक्कों कहेंगे। उन्होंने तो यह सुना है, कि तू जो यहोवा है इन लोगोंके मध्य में रहता है; और प्रत्यझ दिखाई देता है, और तेरा बादल उनके ऊपर ठहरा रहता है, और तू दिन को बादल के खम्भे में, और रात को अग्नि के खम्भे में होकर इनके आगे आगे चला करता है। 15 इसलिथे यदि तू इन लोगोंको एक ही बार में मार डाले, तो जिन जातियोंने तेरी कीत्तिर् सुनी है वे कहेंगी, 16 कि यहोवा उन लोगोंको उस देश में जिसे उस ने उन्हें देने की शपय खाई यी पहुंचा न सका, इस कारण उस ने उन्हें जंगल में घात कर डाला है। 17 सो अब प्रभु की सामर्य्य की महिमा तेरे इस कहने के अनुसार हो, 18 कि यहोवा कोप करने में धीरजवन्त और अति करूणामय है, और अधर्म और अपराध का झमा करनेवाला है, परन्तु वह दोषी को किसी प्रकार से निर्दोष न ठहराएगा, और पूर्वजोंके अधर्म का दण्ड उनके बेटों, और पोतों, और परपोतोंको देता है। 19 अब इन लोगोंके अधर्म को अपक्की बड़ी करूणा के अनुसार, और जैसे तू मिस्र से लेकर यहां तक झमा करता रहा है वैसे ही अब भी झमा कर दे। 20 यहोवा ने कहा, तेरी बिनती के अनुसार मैं झमा करता हूं; 21 परन्तु मेरे जीवन की शपय सचमुच सारी पृय्वी यहोवा की महिमा से परिपूर्ण हो जाएगी; 22 उन सब लोगोंने जिन्होंने मेरी महिमा मिस्र देश में और जंगल में देखी, और मेरे किए हुए आश्चर्यकर्मोंको देखने पर भी दस बार मेरी पक्कीझा की, और मेरी बातें नहीं मानी, 23 इसलिथे जिस देश के विषय मैं ने उनके पूर्वजोंसे शपय खाई, उसको वे कभी देखने न पाएंगे; अर्यात् जितनोंने मेरा अपमान किया है उन में से कोई भी उसे देखने न पाएगा। 24 परन्तु इस कारण से कि मेरे दास कालिब के साय और ही आत्मा है, और उस ने पूरी रीति से मेरा अनुकरण किया है, मैं उसको उस देश में जिस में वह हो आया है पहुंचाऊंगा, और उसका वंश उस देश का अधिक्कारनेी होगा। 25 अमालेकी और कनानी लोग तराई में रहते हैं, सो कल तुम घूमकर प्रस्यान करो, और लाल समुद्र के मार्ग से जंगल में जाओ।। 26 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 27 यह बुरी मण्डली मुझ पर बुड़बुड़ाती रहती है, उसको मैं कब तक सहता रहूं? इस्त्राएली जो मुझ पर बुड़बुड़ाते रहते हैं, उनका यह बुड़बुड़ाना मैं ने तो सुना है। 28 सो उन से कह, कि यहोवा की यह वाणी है, कि मेरे जीवन की शपय जो बातें तुम ने मेरे सुनते कही हैं, नि:सन्देह मैं उसी के अनुसार तुम्हारे साय व्यवहार करूंगा। 29 तुम्हारी लोथें इसी जंगल में पक्की रहेंगी; और तुम सब में से बीस वर्ष की वा उस से अधिक अवस्या के जितने गिने गए थे, और मुझ पर बुड़बुड़ाते थे, 30 उस में से यपुन्ने के पुत्र कालिब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़ कोई भी उस देश में न जाने पाएगा, जिसके विषय मैं ने शपय खाई है कि तुम को उस में बसाऊंगा। 31 परन्तु तुम्हारे बालबच्चे जिनके विषय तुम ने कहा है, कि थे लूट में चले जाएंगे, उनको मैं उस देश में पहुंचा दूंगा; और वे उस देश को जान लेंगे जिस को तुम ने तुच्छ जाना है। 32 परन्तु तुम लोगोंकी लोथें इसी जंगल में पक्की रहेंगी। 33 और जब तक तुम्हारी लोथें जंगल में न गल जाएं तक तक, अर्यात् चालीस वर्ष तक, तुम्हारे बालबच्चे जंगल में तुम्हारे व्यभिचार का फल भोगते हुए चरवाही करते रहेंगे। 34 जितने दिन तुम उस देश का भेद लेते रहे, अर्यात् चालीस दिन उनकी गिनती के अनुसार, दिन पीछे उस वर्ष, अर्यात् चालीस वर्ष तक तुम अपके अधर्म का दण्ड उठाए रहोगे, तब तुम जान लोगे कि मेरा विरोध क्या है। 35 मैं यहोवा यह कह चुका हूं, कि इस बुरी मण्डली के लोग जो मेरे विरूद्ध इकट्ठे हुए हैं उसी जंगल में मर मिटेंगे; और नि:सन्देह ऐसा ही करूंगा भी। 36 तब जिन पुरूषोंको मूसा ने उस देश के भेद लेने के लिथे भेजा या, और उन्होंने लौटकर उस देश की नामधराई करके सारी मण्डली को कुड़कुड़ाने के लिथे उभारा या, 37 उस देश की वे नामधराई करनेवाले पुरूष यहोवा के मारने से उसके साम्हने मर गथे। 38 परन्तु देश के भेद लेनेवाले पुरूषोंमें से नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालिब दोनोंजीवित रहे। 39 तब मूसा ने थे बातें सब इस्त्राएलियोंको कह सुनाई और वे बहुत विलाप करने लगे। 40 और वे बिहान को सवेरे उठकर यह कहते हुए पहाड़ की चोटी पर चढ़ने लगे, कि हम ने पाप किया है; परन्तु अब तैयार हैं, और उस स्यान को जाएंगे जिसके विषय यहोवा ने वचन दिया या। 41 तब मूसा ने कहा, तुम यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन क्योंकरते हो? यह सुफल न होगा। 42 यहोवा तुम्हारे मध्य में नहीं है, मत चढ़ो, नहीं तो शत्रुओं से हार जाओगे। 43 वहां तुम्हारे आगे अमालेकी और कनानी लोग हैं, सो तुम तलवार से मारे जाओगे; तुम यहोवा को छोड़कर फिर गए हो, इसलिथे वह तुम्हारे संग नहीं रहेगा। 44 परन्तु वे ढिठाई करके पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक, और मूसा, छावनी से न हटे। 45 अब अमालेकी और कनानी जो उस पहाड़ पर रहते थे उन पर चढ़ आए, और होर्मा तक उनको मारते चले आए।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम अपके निवास के देश में पहुंचों, जो मैं तुम्हे देता हूं, 3 और यहोवा के लिथे क्या होमबलि, क्या मेलबलि, कोई हव्य चढ़ावो, चाहे वह विशेष मन्नत पूरी करने का हो चाहे स्वेच्छाबलि का हो, चाहे तुम्हारे नियत समयोंमें का हो, या वह चाहे गाय-बैल चाहे भेड़-बकरियोंमें का हो, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो; 4 तब उस होमबलि वा मेलबलि के संग भेड़ के बच्चे पीछे यहोवा के लिथे चौयाई हिन तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना, 5 और चौयाई हिन दाखमधु अर्घ करके देना। 6 और मेढ़े पीछे तिहाई हिन तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना; 7 और उसका अर्घ यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला तिहाई दिन दाखमधु देना। 8 और जब तू यहोवा को होमबलि वा किसी विशेष मन्नत पूरी करने के लिथे बलि वा मेलबलि करके बछड़ा चढ़ाए, 9 तब बछड़े का चढ़ानेवाला उसके संग आध हिन तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाए। 10 और उसका अर्घ आध हिन दाखमधु चढ़ाए, वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य होगा। 11 एक एक बछड़े, वा मेढ़े, वा भेड़ के बच्चे, वा बकरी के बच्चे के साय इसी रीति चढ़ावा चढ़ाया जाए। 12 तुम्हारे बलिपशुओं की जितनी गिनती हो, उसी गिनती के अनुसार एक एक के साय ऐसा ही किया करना। 13 जितने देशी होंवे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाते समय थे काम इसी रीति से किया करें। 14 और यदि कोई परदेशी तुम्हारे संग रहता हो, वा तुम्हारी किसी पीढ़ी में तुम्हारे बीच कोई रहनेवाला हो, और वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाना चाहे, तो जिस प्रकार तुम करोगे उसी प्रकार वह भी करे। 15 मण्डली के लिथे, अर्यात् तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशी दोनोंके लिथे एक ही विधि हो; तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यह सदा की विधि ठहरे, कि जैसे तुम हो वैसे ही परदेशी भी यहोवा के लिथे ठहरता है। 16 तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशियोंके लिथे एक ही व्यवस्या और एक ही नियम है।। 17 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 18 इस्त्राएलियोंको मेरा यह वचन सुना, कि जब तुम उस देश में पहुंचो जहां मैं तुम को लिथे जाता हूं, 19 और उस देश की उपज का अन्न खाओ, तब यहोवा के लिथे उठाई हुई भेंट चढ़ाया करो। 20 अपके पहिले गूंधे हुए आटे की एक पपक्की उठाई हुई भेंट करके यहोवा के लिथे चढ़ाना; जैसे तुम खलिहान में से उठाई हुई भेंट चढ़ाओगे वैसे ही उसको भी उठाया करना। 21 अपक्की पीढ़ी पीढ़ी में अपके पहिले गूंधे हुए आटे में से यहोवा को उठाई हुई भेंट दिया करना।। 22 फिर जब तुम इन सब आज्ञाओं में से जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिया है किसी का उल्लंघन भूल से करो, 23 अर्यात् जिस दिन से यहोवा आज्ञा देने लगा, और आगे की तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में उस दिन से उस ने जितनी आज्ञाएं मूसा के द्वारा दी हैं, 24 उस में यदि भूल से किया हुआ पाप मण्डली के बिना जाने हुआ हो, तो सारी मण्डली यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला होमबलि करके एक बछड़ा, और उसके संग नियम के अनुसार उसका अन्नबलि और अर्घ चढ़ाए, और पापबलि करके एक बकरा चढ़ाए। 25 जब याजक इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली के लिथे प्रायश्चित्त करे, और उनकी झमा की जाएगी; क्योंकि उनका पाप भूल से हुआ, और उन्होंने अपक्की भूल के लिथे अपना चढ़ावा, अर्यात् यहोवा के लिथे हव्य और अपना पापबलि उसके साम्हने चढ़ाया। 26 सो इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली का, और उसके बीच रहनेवाले परदेशी का भी, वह पाप झमा किया जाएगा, क्योंकि वह सब लोगोंके अनजान में हुआ। 27 फिर यदि कोई प्राणी भूल से पाप करे, तो वह एक वर्ष की एक बकरी पापबलि करके चढ़ाए। 28 और याजक भूल से पाप करनेवाले प्राणी के लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे; सो इस प्रायश्चित्त के कारण उसका वह पाप झमा किया जाएगा। 29 जो कोई भूल से कुछ करे, चाहे वह परदेशी होकर रहता हो, सब के लिथे तुम्हारी एक ही व्यवस्या हो। 30 परन्तु क्या देशी क्या परदेशी, जो प्राणी ढिठाई से कुछ करे, वह यहोवा का अनादर करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किया जाए। 31 वह जो यहोवा का वचन तुच्छ जानता है, और उसकी आज्ञा का टालनेवाला है, इसलिथे वह प्राणी निश्चय नाश किया जाए; उसका अधर्म उसी के सिर पकेगा।। 32 जब इस्त्राएली जंगल में रहते थे, उन दिनोंएक मनुष्य विश्रम के दिन लकड़ी बीनता हुआ मिला। 33 और जिनको वह लकड़ी बीनता हुआ मिला, वे उसको मूसा और हारून, और सारी मण्डली के पास ले गए। 34 उन्होंने उसको हवालात में रखा, क्योंकि ऐसे मनुष्य से क्या करना चाहिथे वह प्रकट नहीं किया गया या। 35 तब यहोवा ने मूसा से कहा, वह मनुष्य निश्चय मार डाला जाए; सारी मण्डली के लोग छावनी के बाहर उस पर पत्यरवाह करें। 36 सो जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी उसी के अनुसार सारी मण्डली के लोगोंने उसको छावनी से बाहर ले जाकर पत्यरवाह किया, और वह मर गया। 37 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 38 इस्त्राएलियोंसे कह, कि अपक्की पीढ़ी पीढ़ी में अपके वोंके कोर पर फालर लगाया करना, और एक एक कोर की फालर पर एक नीला फीता लगाया करना; 39 और वह तुम्हारे लिथे ऐसी फालर ठहरे, जिस से जब जब तुम उसे देखो तब तब यहोवा की सारी आज्ञाएं तुम हो स्मरण आ जाएं; और तुम उनका पालन करो, और तुम अपके अपके मन और अपक्की अपक्की दृष्टि के वश में होकर व्यभिचार न करते फिरो जैसे करते आए हो। 40 परन्तु तुम यहोवा की सब आज्ञाओं को स्मरण करके उनका पालन करो, और अपके परमेश्वर के लिथे पवित्र बनो। 41 मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूं, जो तुम्हे मिस्र देश से निकाल ले आया कि तुम्हारा परमेश्वर ठहरूं; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।
1 कोरह जो लेवी का परपोता, कहात का पोता, और यिसहार का पुत्र या, वह एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम, और पेलेत के पुत्र ओन, 2 इन तीनोंरूबेनियोंसे मिलकर मण्डली के अढ़ाई सौ प्रधान, जो सभासद और नामी थे, उनको संग लिया; 3 और वे मूसा और हारून के विरूद्ध उठ खड़े हुए, और उन से कहने लगे, तुम ने बहुत किया, अब बस करो; क्योंकि सारी मण्डली का एक एक मनुष्य पवित्र है, और यहोवा उनके मध्य में रहता है; इसलिथे तुम यहोवा की मण्डली में ऊंचे पदवाले क्योंबन बैठे हो? 4 यह सुनकर मूसा अपके मुंह के बल गिरा; 5 फिर उस ने कोरह और उसकी सारी मण्डली से कहा, कि बिहान को यहोवा दिखला देगा कि उसका कौन है, और पवित्र कौन है, और उसको अपके समीप बुला लेगा; जिसको वह आप चुन लेगा उसी को अपके समीप बुला भी लेगा। 6 इसलिथे, हे कोरह, तुम अपक्की सारी मण्डली समेत यह करो, अर्यात् अपना अपना धूपदान ठीक करो; 7 और कल उन में आग रखकर यहोवा के साम्हने धूप देना, तब जिसको यहोवा चुन ले वही पवित्र ठहरेगा। हे लेवियों, तुम भी बड़ी बड़ी बातें करते हो, अब बस करो। 8 फिर मूसा ने कोरह से कहा, हे लेवियों, सुनो, 9 क्या यह तुम्हें छोटी बात जान पड़ती है, कि इस्त्राएल के परमेश्वर ने तुम को इस्त्राएल की मण्डली से अलग करके अपके निवास की सेवकाई करने, और मण्डली के साम्हने खड़े होकर उसकी भी सेवा टहल करने के लिथे अपके समीप बुला लिया है; 10 और तुझे और तेरे सब लेवी भाइयोंको भी अपके समीप बुला लिया है? फिर भी तुम याजक पद के भी खोजी हो? 11 और इसी कारण तू ने अपक्की सारी मण्डली को यहोवा के विरूद्ध इकट्ठी किया है; हारून कौन है कि तुम उस पर बुड़बुड़ाते हो? 12 फिर मूसा ने एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम को बुलवा भेजा; और उन्होंने कहा, हम तेरे पास नहीं आएंगे। 13 क्या यह एक छोटी बात है, कि तू हम को ऐसे देश से जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती है इसलिथे निकाल लाया है, कि हमें जंगल में मार डाले, फिर क्या तू हमारे ऊपर प्रधान भी बनकर अधिक्कारने जताता है? 14 फिर तू हमें ऐसे देश में जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं नहीं पहुंचाया, और न हमें खेतोंऔर दाख की बारियोंके अधिक्कारनेी किया। क्या तू इन लोगोंकी आंखोंमें धूलि डालेगा? हम तो नहीं आएंगे। 15 तब मूसा का कोप बहुत भड़क उठा, और उस ने यहोवा से कहा, उन लोगोंकी भेंट की ओर दृष्टि न कर। मैं ने तो उन से एक गदहा भी नहीं लिया, और न उन में से किसी की हानि की है। 16 तब मूसा ने कोरह से कहा, कल तू अपक्की सारी मण्डली को साय लेकर हारून के साय यहोवा के साम्हने हाजिर होना; 17 और तुम सब अपना अपना धूपदान लेकर उन में धूप देना, फिर अपना अपना धूपदान जो सब समेत अढ़ाई सौ होंगे यहोवा के साम्हने ले जाना; विशेष करके तू और हारून अपना अपना धूपदान ले जाना। 18 सो उन्होंने अपना अपना धूपदान लेकर और उन में आग रखकर उन पर धूप डाला; और मूसा और हारून के साय मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़े हुए। 19 और कोरह ने सारी मण्डली को उनके विरूद्ध मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठा कर लिया। तब यहोवा का तेज सारी मण्डली को दिखाई दिया।। 20 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 21 उस मण्डली के बीच में से अलग हो जाओ। कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूं। 22 तब वे मुंह के बल गिरके कहने लगे, हे ईश्वर, हे सब प्राणियोंके आत्माओं के परमेश्वर, क्या एक पुरूष के पाप के कारण तेरा क्रोध सारी मण्डली पर होगा? 23 यहोवा ने मूसा से कहा, 24 मण्डली के लोगोंसे कह, कि कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बुओं के आसपास से हट जाओ। 25 तब मूसा उठकर दातान और अबीराम के पास गया; और इस्त्राएलियोंके वृद्ध लोग उसके पीछे पीछे गए। 26 और उस ने मण्डली के लोगोंसे कहा, तुम उन दुष्ट मनुष्योंके डेरोंके पास से हट जाओ, और उनकी कोई वस्तु न छूओ, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी उनके सब पापोंमें फंसकर मिट जाओ। 27 यह सुन वे कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बुओं के आसपास से हट गए; परन्तु दातान और अबीराम निकलकर अपक्की पत्नियों, बेंटों, और बालबच्चोंसमेत अपके अपके डेरे के द्वार पर खड़े हुए। 28 तब मूसा ने कहा, इस से तुम जान लोगे कि यहोवा ने मुझे भेजा है कि यह सब काम करूं, क्योंकि मैं ने अपक्की इच्छा से कुछ नहीं किया। 29 यदि उन मनुष्योंकी मृत्यु और सब मनुष्योंके समान हो, और उनका दण्ड सब मनुष्योंके समान हो, तब जानोंकि मैं यहोवा का भेजा हुआ नहीं हूं। 30 परन्तु यदि यहोवा अपक्की अनोखी शक्ति प्रकट करे, और पृय्वी अपना मुंह पसारकर उनको, और उनका सब कुछ निगल जाए, और वे जीते जी अधोलोक में जा पकें, तो तुम समझ लो कि इन मनुष्योंने यहोवा का अपमान किया है। 31 वह थे सब बातें कह ही चुका या, कि भूमि उन लोगोंके पांव के नीचे फट गई; 32 और पृय्वी ने अपना मुंह खोल दिया और उनका और उनका घरद्वार का सामान, और कोरह के सब मनुष्योंऔर उनकी सारी सम्पत्ति को भी निगल लिया। 33 और वे और उनका सारा घरबार जीवित ही अधोलोक में जा पके; और पृय्वी ने उनको ढंाप लिया, और वे मण्डली के बीच में से नष्ट हो गए। 34 और जितने इस्त्राएली उनके चारोंओर थे वे उनका चिल्लाना सुन यह कहते हुए भागे, कि कहीं पृय्वी हम को भी निगल न ले! 35 तब यहोवा के पास से आग निकली, और उन अढ़ाई सौ धूप चढ़ानेवालोंको भस्म कर डाला।। 36 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 37 हारून याजक के पुत्र एलीआजार से कह, कि उन धूपदानोंको आग में से उठा ले; और आग के अंगारोंको उधर ही छितरा दे, क्योंकि वे पवित्र हैं। 38 जिन्होंने पाप करके अपके ही प्राणोंकी हानि की है, उनके धूपदानोंके पत्तर पीट पीटकर बनाए जाएं जिस से कि वह वेदी के मढ़ने के काम आवे; क्योंकि उन्होंने यहोवा के साम्हने रखा या; इस से वे पवित्र हैं। इस प्रकार वह इस्त्राएलियोंके लिथे एक निशान ठहरेगा। 39 सो एलीआजर याजक ने उन पीतल के धूपदानोंको, जिन में उन जले हुए मनुष्योंने धूप चढ़ाया या, लेकर उनके पत्तर पीटकर वेदी के मढ़ने के लिथे बनवा दिए, 40 कि इस्त्राएलियोंको इस बात का स्मरण रहे कि कोई दूसरा, जो हारून के वंश का न हो, यहोवा के साम्हने धूप चढ़ाने को समीप न जाए, ऐसा न हो कि वह भी कोरह और उसकी मण्डली के समान नष्ट हो जाए, जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा उसको आज्ञा दी यी।। 41 दूसरे दिन इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली यह कहकर मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगी, कि यहोवा की प्रजा को तुम ने मार डाला है। 42 और जब मण्डली के लोग मूसा और हारून के विरूद्ध इकट्ठे हो रहे थे, तब उन्होंने मिलापवाले तम्बू की ओर दृष्टि की; और देखा, कि बादल ने उसे छा लिया है, और यहोवा का तेज दिखाई दे रहा है। 43 तब मूसा और हारून मिलापवाले तम्बू के साम्हने आए, 44 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 45 तुम उस मण्डली के लोगोंके बीच से हट जाओ, कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूं। तब वे मुंह के बल गिरे। 46 और मूसा ने हारून से कहा, धूपदान को लेकर उस में वेदी पर से आग रखकर उस पर धूप डाल, मण्डली के पास फुरती से जाकर उसके लिथे प्रायश्चित्त कर; क्योंकि यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का है, और मरी फैलने लगी है। 47 मूसा की आज्ञा के अनुसार हारून धूपदान लेकर मण्डली के बीच में दौड़ा गया; और यह देखकर कि लोगोंमें मरी फैलने लगी है, उस ने धूप जलाकर लोगोंके लिथे प्रायश्चित्त किया। 48 और वह मुर्दोंऔर जीवित के मध्य में खड़ा हुआ; तब मरी यम गई। 49 और जो कोरह के संग भागी होकर मर गए थे, उन्हें छोड़ जो लोग इस मरी से मर गए वे चौदह हजार सात सौ थे। 50 तब हारून मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मूसा के पास लौट गया, और मरी यम गई।।
1 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंसे बातें करके उन के पूर्वजोंके घरानोंके अनुसार, उनके सब प्रधानोंके पास से एक एक छड़ी ले; और उन बारह छडिय़ोंमें से एक एक पर एक एक के मूल पुरूष का नाम लिख, 3 और लेवियोंकी छड़ी पर हारून का नाम लिख। क्योंकि इस्त्राएलियोंके पूर्वजोंके घरानोंके एक एक मुख्य पुरूष की एक एक छड़ी होगी। 4 और उन छडिय़ोंको मिलापवाले तम्बू में साझीपत्र के आगे, जहां मैं तुम लोगोंसे मिला करता हूं, रख दे। 5 और जिस पुरूष को मैं चुनूंगा उसकी छड़ी में कलियां फूट निकलेंगी; और इस्त्राएली जो तुम पर बुड़बुड़ाते रहते हैं, वह बुड़बुड़ाना मैं अपके ऊपर से दूर करूंगा। 6 सो मूसा ने इस्त्राएलियोंसे यह बात कही; और उनके सब प्रधानोंने अपके अपके लिथे, अपके अपके पूर्वजोंके घरानोंके अनुसार, एक एक छड़ी उसे दी, सो बारह छडिय़ां हुई; और उन की छडिय़ोंमें हारून की भी छड़ी यी। 7 उन छडिय़ोंको मूसा ने साझीपत्र के तम्बू में यहोवा के साम्हने रख दिया। 8 दूसरे दिन मूसा साझीपत्र के तम्बू में गया; तो क्या देखा, कि हारून की छड़ी जो लेवी के घराने के लिथे यी उस में कलियां फूट निकली, अर्यात् उस में कलियां लगीं, और फूल भी फूले, और पके बादाम भी लगे हैं। 9 सो मूसा उन सब छडिय़ोंको यहोवा के साम्हने से निकालकर सब इस्त्राएलियोंके पास ले गया; और उन्होंने अपक्की अपक्की छड़ी पहिचानकर ले ली। 10 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून की छड़ी को साझीपत्र के साम्हने फिर धर दे, कि यह उन दंगा करनेवालो के लिथे एक निशान बनकर रखी रहे, कि तू उनका बुड़बुड़ाना जो मेरे विरूद्ध होता रहता है भविष्य में रोक रखे, ऐसा न हो कि वे मर जाएं। 11 और मूसा ने यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार ही किया।। 12 तब इस्त्राएली मूसा से कहने लगे, देख, हमारे प्राण निकला चाहते हैं, हम नष्ट हुए, हम सब के सब नष्ट हुए जाते हैं। 13 जो कोई यहोवा के निवास के समीप जाता है वह मारा जाता है। तो क्या हम सब के सब मर ही जाएंगे।।
1 फिर यहोवा ने हारून से कहा, कि पवित्रस्यान के अधर्म का भार तुझ पर, और तेरे पुत्रोंऔर तेरे पिता के घराने पर होगा; और तुम्हारा याजक कर्म के अधर्म का भार भी तेरे पुत्रोंपर होगा। 2 और लेवी का गोत्र, अर्यात् तेरे मूलपुरूष के गोत्रवाले जो तेरे भाई हैं, उनको भी अपके साय ले आया कर, और वे तुझ से मिल जाएं, और तेरी सेवा टहल किया करें, परन्तु साझीपत्र के तम्बू के साम्हने तू और तेरे पुत्र ही आया करें। 3 जो तुझे सौंपा गया है उसकी और सारे तम्बू की भी वे रझा किया करें; परन्तु पवित्रस्यान के पात्रोंके और वेदी के समीप न आएं, ऐसा न हो कि वे और तुम लोग भी मर जाओ। 4 सो वे तुझ से मिल जाएं, और मिलापवाले तम्बू की सारी सेवकाई की वस्तुओं की रझा किया करें; परन्तु जो तेरे कुल का न हो वह तुम लोगोंके समीप न आने पाए। 5 और पवित्रस्यान और वेदी की रखवाली तुम ही किया करो, जिस से इस्त्राएलियोंपर फिर कोप न भड़के। 6 परन्तु मैं ने आप तुम्हारे लेवी भाइयोंको इस्त्राएलियोंके बीच से अलग कर लिया है, और वे मिलापवाले तम्बू की सेवा करने के लिथे तुम को और यहोवा को सौंप दिथे गए हैं। 7 पर वेदी की और बीचवाले पर्दे के भीतर की बातोंकी सेवकाई के लिथे तू और तेरे पुत्र अपके याजकपद की रझा करना, और तुम ही सेवा किया करना; क्योंकि मैं तुम्हें याजकपद की सेवकाई दान करता हूं; और जो तेरे कुल का न हो वह यदि समीप आए तो मार डाला जाए।। 8 फिर यहोवा ने हारून से कहा, सुन, मै आप तुझ को उठाई हुई भेंट सौंप देता हूं, अर्यात् इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुएं; जितनी होंउन्हें मैं तेरा अभिषेक वाला भाग ठहराकर तुझे और तेरे पुत्रोंको सदा का हक करके दे देता हूं। 9 जो परमपवित्र वस्तुएं आग में होम न ही जाएंगी वे तेरी ही ठहरें, अर्यात् इस्त्राएलियोंके सब चढ़ावोंमें से उनके सब अन्नबलि, सब पापबलि, और सब दोषबलि, जो वे मुझ को दें, वह तेरे और तेरे पुत्रोंके लिथे परमपवित्र ठहरें। 10 उनको परमपवित्र वस्तु जानकर खाया करना; उनको हर एक पुरूष खा सकता है; वे तेरे लिथे पवित्र हैं। 11 फिर थे वस्तुएं भी तेरी ठहरें, अर्यात् जितनी भेंट इस्त्राएली हिलाने के लिथे दें, उनको मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियोंको सदा का हक करके दे देता हूं; तेरे घराने में जितने शुद्ध होंवह उन्हें खा सकेंगे। 12 फिर उत्तम से उत्तम नया दाखमधु, और गेहूं, अर्यात् इनकी पहली उपज जो वे यहोवा को दें, वह मैं तुझ को देता हूं। 13 उनके देश के सब प्रकार की पहली उपज, जो वे यहोवा के लिथे ले आएं, वह तेरी ही ठहरे; तेरे घराने में जितने शुद्ध होंवे उन्हें खा सकेंगें। 14 इस्त्राएलियोंमें जो कुछ अर्पण किया जाए वह भी तेरा ही ठहरे। 15 सब प्राणियोंमें से जितने अपक्की अपक्की मां के पहिलौठे हों, जिन्हें लोग यहोवा के लिथे चढ़ाएं, चाहे मनुष्य के चाहे पशु के पहिलौठे हों, वे सब तेरे ही ठहरें; परन्तु मनुष्योंऔर अशुद्ध पशुओं के पहिलौठोंको दाम लेकर छोड़ देना। 16 और जिन्हें छुड़ाना हो, जब वे महीने भर के होंतब उनके लिथे अपके ठहराए हुए मोल के अनुसार, अर्यात् पवित्रस्यान के बीस गेरा के शेकेल के हिसाब से पांच शेकेल लेके उन्हें छोड़ना। 17 पर गाय, वा भेड़ी, वा बकरी के पहिलौठे को न छोड़ना; वे तो पवित्र हैं। उनके लोहू को वेदी पर छिड़क देना, और उनकी चरबी को हव्य करके जलाना, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो; 18 परन्तु उनका मांस तेरा ठहरे, और हिलाई हुई छाती, और दहिनी जांघ भी तेरा ही ठहरे। 19 पवित्र वस्तुओं की जितनी भेंटें इस्त्राएली यहोवा को दें, उन सभोंको मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियोंको सदा का हक करके दे देता हूं: यह तो तेरे और तेरे वंश के लिथे यहोवा की सदा के लिथे नमक की अटल वाचा है। 20 फिर यहोवा ने हारून से कहा, इस्त्राएलियोंके देश में तेरा कोई भाग न होगा, और न उनके बीच तेरा कोई अंश होगा; उनके बीच तेरा भाग और तेरा अंश मैं ही हूं।। 21 फिर मिलापवाले तम्बू की जो सेवा लेवी करते हैं उसके बदले मैं उनको इस्त्राएलियोंका सब दशमांश उनका निज भाग कर देता हूं। 22 और भविष्य में इस्त्राएली मिलापवाले तम्बू के समीप न आएं, ऐसा न हो कि उनके सिर पर पाप लगे, और वे मर जाएं। 23 परन्तु लेवी मिलापवाले तम्बू की सेवा किया करें, और उनके अधर्म का भार वे ही उठाया करें; यह तुम्हारी पीढ़ीयोंमें सदा की विधि ठहरे; और इस्त्राएलियोंके बीच उनका कोई निज भाग न होगा। 24 क्योंकि इस्त्राएली जो दशमांश यहोवा को उठाई हुई भेंट करके देंगे, उसे मैं लेवियोंको निज भाग करके देता हूं, इसीलिथे मैं ने उनके विषय में कहा है, कि इस्त्राएलियोंके बीच कोई भाग उनको न मिले। 25 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 26 तू लेवियोंसे कह, कि जब जब तुम इस्त्राएलियोंके हाथ से वह दशमांश लो जिसे यहोवा तुम को तुम्हारा निज भाग करके उन से दिलाता है, तब तब उस में से यहोवा के लिथे एक उठाई हुई भेंट करके दशमांश का दशमांश देना। 27 और तुम्हारी उठाई हुई भेंट तुम्हारे हित के लिथे ऐसी गिनी जाएगी जैसा खलिहान में का अन्न, वा रसकुण्ड में का दाखरस गिना जाता है। 28 इस रीति तुम भी अपके सब दशमांशोंमें से, जो इस्त्राएलियोंकी ओर से पाओगे, यहोवा को एक उठाई हुई भेंट देना; और यहोवा की यह उठाई हुई भेंट हारून याजक को दिया करना। 29 जितने दान तुम पाओ उन में से हर एक का उत्तम से उत्तम भाग, जो पवित्र ठहरा है, सो उसे यहोवा के लिथे उठाई हुई भेंट करके पूरी पूरी देना। 30 इसलिथे तू लेवियोंसे कह, कि जब तुम उस में का उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो, तब यह तुम्हारे लिथे खलिहान में के अन्न, और रसकुण्ड के रस के तुल्य गिना जाएगा; 31 और उसको तुम अपके घरानोंसमेत सब स्यानोंमें खा सकते हो, क्योंकि मिलापवाले तम्बू की जो सेवा तुम करोगे उसका बदला यही ठहरा है। 32 और जब तुम उसका उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो तब उसके कारण तुम को पाप न लगेगा। परन्तु इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुओं को अपवित्र न करना, ऐसा न हो कि तुम मर जाओ।।
1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 2 व्यवस्या की जिस विधि की आज्ञा यहोवा देता है वह यह है; कि तू इस्त्राएलियोंसे कह, कि मेरे पास एक लाल निर्दोष बछिया ले आओ, जिस में कोई भी दोष न हो, और जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो। 3 तब एलीआजर याजक को दो, और वह उसे छावनी से बाहर ले जाए, और कोई उसको उसके सम्हने बलिदान करे; 4 तब एलीआजर याजक अपक्की उंगली से उसका कुछ लोहू लेकर मिलापवाले तम्बू के साम्हने की ओर सात बार छिड़क दे। 5 तब कोई उस बछिया को खाल, मांस, लोहू, और गोबर समेत उसके साम्हने जलाए; 6 और याजक देवदारू की लकड़ी, जूफा, और लाल रंग का कपड़ा लेकर उस आग में जिस में बछिया जलती हो डाल दे। 7 तब वह अपके वस्त्र धोए और स्नान करे, इसके बाद छावनी में तो आए, परन्तु सांफ तक अशुद्ध रहे। 8 और जो मनुष्य उसको जलाए वह भी जल से अपके वस्त्र धोए और स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे। 9 फिर कोई शुद्ध पुरूष उस बछिया की राख बटोरकर छावनी के बाहर किसी शुद्ध स्यान में रख छोड़े; और वह राख इस्त्राएलियोंकी मण्डली के लिथे अशुद्धता से छुड़ानेवाले जल के लिथे रखी रहे; वह तो पापबलि है। 10 और जो मनुष्य बछिया की राख बटोरे वह अपके वस्त्र धोए, और सांफ तक अशुद्ध रहे। और यह इस्त्राएलियोंके लिथे, और उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंके लिथे भी सदा की विधि ठहरे। 11 जो किसी मनुष्य की लोय छूए वह सात दिन तक अशुद्ध रहे; 12 ऐसा मनुष्य तीसरे दिन उस जल से पाप छुड़ाकर अपके को पावन करे, और सातवें दिन शुद्ध ठहरे; परन्तु यदि वह तीसरे दिन आप को पाप छुड़ाकर पावन न करे, तो सातवें दिन शुद्ध ठहरेगा। 13 जो कोई किसी मनुष्य की लोय छूकर पाप छुड़ाकर अपके को पावन न करे, वह यहोवा के निवासस्यान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी इस्त्राएल में से नाश किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण वह अशुद्ध ठहरेगा, उसकी अशुद्धता उस में बची रहेगी। 14 यदि कोई मनुष्य डेरे में मर जाए तो व्यवस्या यह यह है, कि जितने उस डेरे में रहें, वा उस में जाएं, वे सब सात दिन तक अशुद्ध रहें। 15 और हर एक खुला हुआ पात्र, जिस पर कोई ढकना लगा न हो, वह अशुद्ध ठहरे। 16 और जो कोई मैदान में तलवार से मारे हुए को, वा अपक्की मृत्यु से मरे हुए को, वा मनुष्य की हड्डी को, वा किसी कब्र को छूए, तो सात दिन तक अशुद्ध रहे। 17 अशुद्ध मनुष्य के लिथे जलाए हुए पापबलि की राख में से कुछ लेकर पात्र में डालकर उस पर सोते का जल डाला जाए; 18 तब कोई शुद्ध मनुष्य जूफा लेकर उस जल में डुबाकर जल को उस डेरे पर, और जितने पात्र और मनुष्य उस में हों, उन पर छिड़के, और हड्डी के, वा मारे हुए के, वा अपक्की मृत्यु से मरे हुए के, वा कब्र के छूनेवाले पर छिड़क दे; 19 वह शुद्ध पुरूष तीसरे दिन और सातवें दिन उस अशुद्ध मनुष्य पर छिड़के; और सातवें दिन वह उसके पाप छुड़ाकर उसको पावन करे, तब वह अपके वोंको धोकर और जल से स्नान करके सांफ को शुद्ध ठहरे। 20 और जो कोई अशुद्ध होकर अपके पाप छुड़ाकर अपके को पावन न कराए, वह प्राणी यहोवा के पवित्र स्यान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मण्डली के बीच में से नाश किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण से वह अशुद्ध ठहरेगा। 21 और यह उनके लिथे सदा की विधि ठहरे। जो अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छिड़के वह अपके वोंको धोए; और जिस जन से अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छू जाए वह भी सांफ तक अशुद्ध रहे। 22 और जो कुछ वह अशुद्ध मनुष्य छूए वह भी अशुद्ध ठहरे; और जो प्राणी उस वस्तु को छूए वह भी सांफ तक अशुद्ध रहे।।
1 पहिले महीने में सारी इस्त्राएली मण्डली के लोग सीनै नाम जंगल में आ गए, और कादेश में रहने लगे; और वहां मरियम मर गई, और वहीं उसको मिट्टी दी गई। 2 वहां मण्डली के लोगोंके लिथे पानी न मिला; सो वे मूसा और हारून के विरूद्ध इकट्ठे हुए। 3 और लोग यह कहकर मूसा से फगड़ने लगे, कि भला होता कि हम उस समय ही मर गए होते जब हमारे भाई यहोवा के साम्हने मर गए! 4 और तुम यहोवा की मण्डली को इस जंगल में क्योंले आए हो, कि हम अपके पशुओं समेत यहां मर जाए? 5 और तुम ने हम को मिस्र से क्योंनिकालकर इस बुरे स्यान में पहुंचाया है? यहां तो बीच, वा अंजीर, वा दाखलता, वा अनार, कुछ नहीं है, यहां तक कि पीने को कुछ पानी भी नहीं है। 6 तब मूसा और हारून मण्डली के साम्हने से मिलापवाले तम्बू के द्वार पर जाकर अपके मुंह के बल गिरे। और यहोवा का तेज उनको दिखाई दिया। 7 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 8 उस लाठी को ले, और तू अपके भाई हारून समेत मण्डली को इकट्ठा करके उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी; इस प्रकार से तू चट्टान में से उनके लिथे जल निकाल कर मण्डली के लोगोंऔर उनके पशुओं को पिला। 9 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने उसके साम्हने से लाठी को ले लिया। 10 और मूसा और हारून ने मण्डली को उस चट्टान के साम्हने इकट्ठा किया, तब मूसा ने उस से कह, हे दंगा करनेवालो, सुनो; क्या हम को इस चट्टान में से तुम्हारे लिथे जल निकालना होगा? 11 तब मूसा ने हाथ उठाकर लाठी चट्टान पर दो बार मारी; और उस में से बहुत पानी फूट निकला, और मण्डली के लोग अपके पशुओं समेत पीने लगे। 12 परन्तु मूसा और हारून से यहोवा ने कहा, तुम ने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मुझे इस्त्राएलियोंकी दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया, इसलिथे तुम इस मण्डली को उस देश में पहुंचाने न पाओगे जिसे मैं ने उन्हें दिया है। 13 उस सोते का नाम मरीबा पड़ा, क्योंकि इस्त्राएलियोंने यहोवा से फगड़ा किया या, और वह उनके बीच पवित्र ठहराया गया।। 14 फिर मूसा ने कादेश से एदोम के राजा के पास दूत भेजे, कि तेरा भाई इस्त्राएल योंकहता है, कि हम पर जो जो क्लेश पके हैं वह तू जानता होगा; 15 अर्यात् यह कि हमारे पुरखा मिस्र में गए थे, और हम मिस्र में बहुत दिन रहे; और मिस्त्र्ियोंने हमारे पुरखाओं के साय और हमारे साय भी बुरा बर्ताव किया; 16 परन्तु जब हम ने यहोवा की दोहाई दी तब उस ने हमारी सुनी, और एक दूत को भेजकर हमें मिस्र से निकाल ले आया है; सो अब हम कादेश नगर में हैं जो तेरे सिवाने ही पर है। 17 सो हमें अपके देश में से होकर जाने दे। हम किसी खेत वा दाख की बारी से होकर न चलेंगे, और कूओं का पानी न पीएंगे; सड़क-सड़क होकर चले जाएंगे, और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएं, तब तक न दहिने न बाएं मुड़ेंगे। 18 परन्तु एदोमियोंने उसके पास कहला भेजा, कि तू मेरे देश में से होकर मत जा, नहीं तो मैं तलवार लिथे हुए तेरा साम्हना करने को निकलूंगा। 19 इस्त्राएलियोंने उसके पास फिर कहला भेजा, कि हम सड़क ही सड़क चलेंगे, और यदि हम और हमारे पशु तेरा पानी पीएं, तो उसका दाम देंगे, हम को और कुछ नहीं, केवल पांव पांव चलकर निकल जाने दे। 20 परन्तु उस ने कहा, तू आने न पाएगा। और एदोम बड़ी सेना लेकर भुजबल से उसका साम्हना करने को निकल आया। 21 इस प्रकार एदोम ने इस्त्राएल को अपके देश के भीतर से होकर जाने देने से इन्कार किया; इसलिथे इस्त्राएल उसकी ओर से मुड़ गए।। 22 तब इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली कादेश से कूच करके होर नाम पहाड़ के पास आ गई। 23 और एदोम देश के सिवाने पर होर पहाड़ में यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, 24 हारून अपके लोगोंमें जा मिलेगा; क्योंकि तुम दोनो ने जो मरीबा नाम सोते पर मेरा कहना छोड़कर मुझ से बलवा किया है, इस कारण वह उस देश में जाने न पाएगा जिसे मैं ने इस्त्राएलियोंको दिया है। 25 सो तू हारून और उसके पुत्र एलीआजर को होर पहाड़ पर ले चल; 26 और हारून के वस्त्र उतारके उसके पुत्र एलीआजर को पहिना; तब हारून वहीं मरकर अपके लोगोंमे जा मिलेगा। 27 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने किया; वे सारी मण्डली के देखते होर पहाड़ पर चढ़ गए। 28 तब मूसा ने हारून के वस्त्र उतारके उसके पुत्र एलीआजर को पहिनाए और हारून वहीं पहाड़ की चोटी पर मर गया। तब मूसा और एलीआजर पहाड़ पर से उतर आए। 29 और जब इस्त्राएल की सारी मण्डली ने देखा कि हारून का प्राण छूट गया है, तब इस्त्राएल के सब घराने के लोग उसके लिथे तीस दिन तक रोते रहे।।
1 तब अराद का कनानी राजा, जो दक्खिन देश में रहता या, यह सुनकर, कि जिस मार्ग से वे भेदिथे आए थे उसी मार्ग से अब इस्त्राएली आ रहे हैं, इस्त्राएल से लड़ा, और उन में से कितनोंको बन्धुआ कर लिया। 2 तब इस्त्राएलियोंने यहोवा से यह कहकर मन्नत मानी, कि यदि तू सचमुच उन लोगोंको हमारे वश में कर दे, तो हम उनके नगरोंको सत्यनाश कर देंगे। 3 इस्त्राएल की यह बात सुनकर यहोवा ने कनानियोंको उनके वश में कर दिया; सो उन्होंने उनके नगरोंसमेत उनको भी सत्यानाश किया; इस से उस स्यान का नाम होर्मा रखा गया।। 4 फिर उन्होंने होर पहाड़ से कूच करके लाल समुद्र का मार्ग लिया, कि एदोम देश से बाहर बाहर घूमकर जाएं; और लोगोंका मन मार्ग के कारण बहुत व्याकुल हो गया। 5 सो वे परमेश्वर के विरूद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, तुम लोग हम को मिस्र से जंगल में मरने के लिथे क्योंले आए हो? यहां न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुखित हैं। 6 सो यहोवा ने उन लोगोंमें तेज विषवाले सांप भेजे, जो उनको डसने लगे, और बहुत से इस्त्राएली मर गए। 7 तब लोग मूसा के पास जाकर कहने लगे, हम ने पाप किया है, कि हम ने यहोवा के और तेरे विरूद्ध बातें की हैं; यहोवा से प्रार्यना कर, कि वह सांपोंको हम से दूर करे। तब मूसा ने उनके लिथे प्रार्यना की। 8 यहोवा ने मूसा से कहा एक तेज विषवाले सांप की प्रतिमा बनवाकर खम्भे पर लटका; तब जो सांप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा। 9 सो मूसा ने पीतल को एक सांप बनवाकर खम्भे पर लटकाया; तब सांप के डसे हुओं में से जिस जिस ने उस पीतल के सांप को देखा वह जीवित बच गया। 10 फिर इस्त्राएलियोंने कूच करके ओबोत में डेरे डाले। 11 और ओबोत से कूच करके अबारीम नाम डीहोंमें डेरे डाले, जो पूरब की ओर मोआब के साम्हने के जंगल में है। 12 वंहा से कूच करके उन्होंने जेरेद नाम नाले में डेरे डाले। 13 वहां से कूच करके उन्होंने अर्नोन नदी, जो जंगल में बहती और एमोरियोंके देश से निकलती है, उसकी परली ओर डेरे खड़े किए; क्योंकि अर्नोन मोआबियोंऔर एमोरियोंके बीच होकर मोआब देश का सिवाना ठहरा है। 14 इस कारण यहोवा के संग्राम नाम पुस्तक में इस प्रकार लिखा है, कि सूपा में बाहेब, और अर्नोन के नाले, 15 और उन नालोंकी ढलान जो आर नाम नगर की ओर है, और जो मोआब के सिवाने पर है। 16 फिर वहां से कूच करके वे बैर तक गए; वहां वही कूआं है जिसके विषय में यहोवा ने मूसा से कहा या, कि उन लोगोंको इकट्ठा कर, और मैं उन्हे पानी दूंगा।। 17 उस समय इस्त्राएल ने यह गीत गया, कि हे कूएं, उबल आ, उस कूएं के विषय में गाओ! 18 जिसको हाकिमोंने खोदा, और इस्त्राएल के रईसोंने अपके सोंटोंऔर लाठियोंसे खोद लिया।। 19 फिर वे जंगल से मत्ताना को, और मत्ताना से नहलीएल को, और नहलीएल से बामोत को, 20 और बामोत से कूच करके उस तराई तक जो मोआब के मैदान में है, और पिसगा के उस सिक्के तक भी जो यशीमोन की ओर फुका है पहुंच गए।। 21 तब इस्त्राएल ने एमोरियोंके राजा सीहोन के पास दूतोंसे यह कहला भेजा, 22 कि हमें अपके देश में होकर जाने दे; हम मुड़कर किसी खेत वा दाख की बारी में तो न जाएंगे; न किसी कूएं का पानी पीएंगे; और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएं तब तक सड़क ही से चले जाएंगे। 23 तौभी सीहोन ने इस्त्राएल को अपके देश से होकर जाने न दिया; वरन अपक्की सारी सेना को इकट्ठा करके इस्त्राएल का साम्हना करने को जंगल में निकल आया, और यहस को आकर उन से लड़ा। 24 तब इस्त्राएलियोंने उस को तलवार से मार लिया, और अर्नोन से यब्बोक नदी तक, जो अम्मोनियोंका सिवाना या, उसके देश के अधिक्कारनेी हो गए; अम्मोनियोंका सिवाना तो दृढ़ या। 25 सो इस्त्राएल ने एमोरियोंके सब नगरोंको ले लिया, और उन में, अर्यात् हेशबोन और उसके आस पास के नगरोंमें रहने लगे। 26 हेशबोन एमोरियोंके राजा सीहोन का नगर या; उस ने मोआब के अगले राजा से लड़के उसका सारा देश अर्नोन तक उसके हाथ से छीन लिया या। 27 इस कारण गूढ़ बात के कहनेवाले कहते हैं, कि हेशबोन में आओ, सीहोन का नगर बसे, और दृढ़ किया जाए। 28 क्योंकि हेशबोन से आग, अर्यात् सीहोन के नगर से लौ निकली; जिस से मोआब देश का आर नगर, और अर्नोन के ऊंचे स्यानोंके स्वामी भस्म हुए। 29 हे मोआब, तुझ पर हाथ! कमोश देवता की प्रजा नाश हुई, उस ने अपके बेटोंको भगेडू, और अपक्की बेटियोंको एमोरी राजा सीहोन की दासी कर दिया। 30 हम ने उन्हें गिरा दिया है, हेशबोन दीबोन तक नष्ट हो गया है, और हम ने नोपह और मेदबा तक भी उजाड़ दिया है।। 31 सो इस्त्राएल एमोरियोंके देश में रहने लगा। 32 तब मूसा ने याजेर नगर का भेद लेने को भेजा; और उन्होंने उसके गांवोंको लिया, और वहां के एमोरियोंको उस देश से निकाल दिया। 33 तब वे मुड़के बाशान के मार्ग से जाने लगे; और बाशान के राजा ओग न उनका साम्हना किया, अर्यात् लड़ने को अपक्की सारी सेना समेत एद्रेई में निकल आया। 34 तब यहोवा ने मूसा से कहा, उस से मत डर; क्योंकि मैं उसको सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में कर देता हूं; और जैसा तू ने एमोरियोंके राजा हेशबोनवासी सीहोन के साय किया है, वैसा ही उसके साय भी करना। 35 तब उन्होंने उसको, और उसके पुत्रोंऔर सारी प्रजा को यहां तक मारा कि उसका कोई भी न बचा; और वे उसके देश के अधिक्कारनेी को गए।
1 तब इस्त्राएलियोंने कूच करके यरीहो के पास यरदन नदी के इस पार मोआब के अराबा में डेरे खड़े किए।। 2 और सिप्पोर के पुत्र बालाक ने देखा कि इस्त्राएल ने एमोरियोंसे क्या क्या किया है। 3 इसलिथे मोआब यह जानकर, कि इस्त्राएली बहुत हैं, उन लोगोंसे अत्यन्त डर गया; यहां तक कि मोआब इस्त्राएलियोंके कारण अत्यन्त व्याकुल हुआ। 4 तब मोआबियोंने मिद्यानी पुरनियोंसे कहा, अब वह दल हमारे चारोंओर के सब लोगोंको चट कर जाएगा, जिस तरह बैल खेत की हरी घास को चट कर जाता है। उस समय सिप्पोर का पुत्र बालाक मोआब का राजा या; 5 और इस ने पतोर नगर को, जो महानद के तट पर बोर के पुत्र बिलाम के जातिभाइयोंकी भूमि यी, वहां बिलाम के पास दूत भेजे, कि वे यह कहकर उसे बुला लाएं, कि सुन एक दल मिस्र से निकल आया है, और भूमि उन से ढक गई है, और अब वे मेरे साम्हने ही आकर बस गए हैं। 6 इसलिथे आ, और उन लोगोंको मेरे निमित्त शाप दे, क्योंकि वे मुझ से अधिक बलवन्त हैं, तब सम्भव है कि हम उन पर जयवन्त हों, और हम सब इनको अपके देश से मारकर निकाल दें; क्योंकि यह तो मैं जानता हूं कि जिसको तू आशीर्वाद देता है वह धन्य होता है, और जिसको तू शाप देता है वह स्रापित होता है। 7 तब मोआबी और मिद्यानी पुरनिथे भावी कहने की दझिणा लेकर चले, और बिलाम के पास पहुंचकर बालाक की बातें कह सुनाईं। 8 उस ने उन से कहा, आज रात को यहां टिको, और जो बात यहोवा मुझ से कहेगा, उसी के अनुसार मैं तुम को उत्तर दूंगा; तब मोआब के हाकिम बिलाम के यहां ठहर गए। 9 तब परमेश्वर ने बिलाम के पास आकर पूछा, कि तेरे यहां थे पुरूष कौन हैं? 10 बिलाम ने परमेश्वर से कहा सिप्पोर के पुत्र मोआब के राजा बालाक ने मेरे पास यह कहला भेजा है, 11 कि सुन, जो दल मिस्र से निकल आया है उस से भूमि ढंप गई है; इसलिथे आकर मेरे लिथे उन्हें शाप दे; सम्भव है कि मैं उनसे लड़कर उनको बरबस निकाल सकूंगा। 12 परमेश्वर ने बिलाम से कहा, तू इनके संग मत जा; उन लोगोंको शाप मत दे, क्योंकि वे आशीष के भागी हो चुके हैं। 13 भोर को बिलाम ने उठकर बालाक के हाकिमोंसे कहा, तुम अपके देश को चले जाओ; क्योंकि यहोवा मुझे तुम्हारे साय जाने की आज्ञा नहीं देता। 14 तब मोआबी हाकिम चले गए और बालाक के पास जाकर कहा, कि बिलाम ने हमारे साय आने से नाह किया है। 15 इस पर बालाक ने फिर और हाकिम भेजे, जो पहिलोंसे प्रतिष्ठित और गिनती में भी अधिक थे। 16 उन्होंने बिलाम के पास आकर कहा, कि सिप्पोर का पुत्र बालाक योंकहता है, कि मेरे पास आने से किसी कारण नाह न कर; 17 क्योंकि मैं निश्चय तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूंगा, और जो कुछ तू मुझ से कहे वही मैं करूंगा; इसलिथे आ, और उन लोगोंको मेरे निमित्त शाप दे। 18 बिलाम ने बालाक के कर्मचारियोंको उत्तर दिया, कि चाहे बालाक अपके घर को सोने चांदी से भरकर मुझे दे दे, तौभी मैं अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को पलट नहीं सकता, कि उसे घटाकर वा बढ़ाकर मानूं। 19 इसलिथे अब तुम लोग आज रात को यहीं टिके रहो, ताकि मैं जान लूं, कि यहोवा मुझ से और क्या कहता है। 20 और परमेश्वर ने रात को बिलाम के पास आकर कहा, यदि वे पुरूष तुझे बुलाने आए हैं, तो तू उठकर उनके संग जा; परन्तु जो बात मैं तुझ से कहूं उसी के अनुसार करना। 21 तब बिलाम भोर को उठा, और अपक्की गदही पर काठी बान्धकर मोआबी हाकिमोंके संग चल पड़ा। 22 और उसके जाने के कारण परमेश्वर का कोप भड़क उठा, और यहोवा का दूत उसका विरोध करने के लिथे मार्ग रोककर खड़ा हो गया। वह तो अपक्की गदही पर सवार होकर जा रहा या, और उसके संग उसके दो सेवक भी थे। 23 और उस गदही को यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिथे हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब गदही मार्ग छोड़कर खेत में चक्की गई; तब बिलाम ने गदही को मारा, कि वह मार्ग पर फिर आ जाए। 24 तब यहोवा का दूत दाख की बारियोंके बीच की गली में, जिसके दोनोंओर बारी की दीवार यी, खड़ा हुआ। 25 यहोवा के दूत को देखकर गदही दीवार से ऐसी सट गई, कि बिलाम का पांव दीवार से दब गया; तब उस ने उसको फिर मारा। 26 तब यहोवा का दूत आगे बढ़कर एक सकेत स्यान पर खड़ा हुआ, जहां न तो दहिनी ओर हटने की जगह यी और न बाईं ओर। 27 वहां यहोवा के दूत को देखकर गदही बिलाम को लिथे दिथे बैठ गई; फिर तो बिलाम का कोप भड़क उठा, और उस ने गदही को लाठी से मारा। 28 तब यहोवा ने गदही का मुंह खोल दिया, और वह बिलाम से कहने लगी, मैं ने तेरा क्या किया है, कि तू ने मुझे तीन बार मारा? 29 बिलाम ने गदही से कहा, यह कि तू ने मुझ से नटखटी की। यदि मेरे हाथ में तलवार होती तो मैं तुझे अभी मार डालता। 30 गदही ने बिलाम से कहा क्या मैं तेरी वही गदही नहीं जिस पर तू जन्म से आज तक चढ़ता आया है? क्या मैं तुझ से कभी ऐसा करती यी? वह बोला, नहीं। 31 तब यहोवा ने बिलाम की आंखे खोलीं, और उसको यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिथे हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब वह फुक गया, और मुंह के बल गिरके दण्डवत की। 32 यहोवा के दूत ने उस से कहा, तू ने अपक्की गदही को तीन बार क्योंमारा? सुन, तेरा विरोध करने को मैं ही आया हूं, इसलिथे कि तू मेरे साम्हने उलटी चाल चलता है; 33 और यह गदही मुझे देखकर मेरे साम्हने से तीन बार हट गई। जो वह मेरे साम्हने से हट न जाती, तो नि:सन्देह मैं अब तक तुझ को मार ही डालता, परन्तु उसको जीवित छोड़ देता। 34 तब बिलाम ने यहोवा के दूत से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं नहीं जानता या कि तू मेरा साम्हना करने को मार्ग में खड़ा है। इसलिथे अब यदि तुझे बुरा लगता है, तो मैं लौट जाता हूं। 35 यहोवा के दूत ने बिलाम से कहा, इन पुरूषोंके संग तू चला जा; परन्तु केवल वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूंगा। तब बिलाम बालाक के हाकिमोंके संग चला गया। 36 यह सुनकर, कि बिलाम आ रहा है, बालाक उस से भेंट करने के लिथे मोआब के उस नगर तक जो उस देश के अर्नोनवाले सिवाने पर है गया। 37 बालाक ने बिलाम से कहा, क्या मैं ने बड़ी आशा से तुझे नहीं बुलवा भेजा या? फिर तू मेरे पास क्योंनहीं चला आया? क्या मैं इस योग्य नहीं कि सचमुच तेरी उचित प्रतिष्ठा कर सकता? 38 बिलाम ने बालाक से कहा, देख मैं तेरे पास आया तो हूं! परन्तु अब क्या मैं कुछ कर सकता हूं? जो बात परमेश्वर मेरे मुंह में डालेगा वही बात मैं कहूंगा। 39 तब बिलाम बालाक के संग संग चला, और वे किर्ययूसोत तक आए। 40 और बालाक ने बैल और भेड़-बकरियोंको बलि किया, और बिलाम और उसके साय के हाकिमोंके पास भेजा। 41 बिहान को बालाक बिलाम को बालू के ऊंचे स्यानोंपर चढ़ा ले गया, और वहां से उसको सब इस्त्राएली लोग दिखाई पके।।
1 तब बिलाम ने बालाक से कहा, यहां पर मेरे लिथे सात वेदियां बनवा, और इसी स्यान पर सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर। 2 तब बालाक ने बिलाम के कहने के अनुसार किया; और बालाक और बिलाम ने मिलकर प्रत्थेक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया। 3 फिर बिलाम ने बालाक से कहा, तू अपके होमबलि के पास खड़ा रह, और मैं जाता हूं; सम्भव है कि यहोवा मुझ से भेंट करने को आए; और जो कुछ वह मुझ पर प्रकाश करेगा वही मैं तुझ को बताऊंगा। तब वह एक मुण्डे पहाड़ पर गया। 4 और परमेश्वर बिलाम से मिला; और बिलाम ने उस से कहा, मैं ने सात वेदियां तैयार की हैं, और प्रत्थेक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया है। 5 यहोवा ने बिलाम के मुंह में एक बाल डालीं, और कहा, बालाक के पास लौट जो, और योंकहना। 6 और वह उसके पास लौटकर आ गया, और क्या देखता है, कि वह सारे मोआबी हाकिमोंसमेत अपके होमबलि के पास खड़ा है। 7 तब बिलाम ने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, बालाक ने मुझे आराम से, अर्यात् मोआब के राजा ने मुझे पूरब के पहाड़ोंसे बुलवा भेजा: आ, मेरे लिथे याकूब को शाप दे, आ, इस्त्राएल को धमकी दे! 8 परन्तु जिन्हें ईश्वर ने नहीं शाप दिया उन्हें मैं क्योंशाप दूं? और जिन्हें यहोवा ने धमकी नहीं दी उन्हें मैं कैसे धमकी दूं? 9 चट्टानोंकी चोटी पर से वे मुझे दिखाई पड़ते हैं, पहाडिय़ोंपर से मैं उनको देखता हूं; वह ऐसी जाति है जो अकेली बसी रहेगी, और अन्यजातियोंसे अलग गिनी जाएगी! 10 याकूब के धूलि के किनके को कौन गिन सकता है, वा इस्त्राएल की चौयाई की गिनती कौन ले सकता है? सौभाग्य यदि मेरी मृत्यु धमिर्योंकी सी, और मेरा अन्त भी उन्हीं के समान हो! 11 तब बालाक ने बिलाम से कहा, तू ने मुझ से क्या किया है? 12 उस ने कहा, जो बात यहोवा ने मुझे सिखलाई क्या मुझे उसी को सावधानी से बोलना न चाहिथे? 13 बालाक ने उस से कहा, मेरे संग दूसरे स्यान पर चल, जहां से वे तुझे दिखाई देंगे; तू उन सभोंको तो नहीं, केवल बाहरवालोंको देख सकेगा; वहां से उन्हें मेरे लिथे शाप दे। 14 तब वह उसको सोपीम नाम मैदान में पिसगा के सिक्के पर ले गया, और वहां सात वेदियां बनवाकर प्रत्थेक पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया। 15 तब बिलाम ने बालाक से कहा, अपके होमबलि के पास यहीं खड़ा रह, और मैं उधर जाकर यहोवा से भेंट करूं। 16 और यहोवा ने बिलाम से भेंट की, और उस ने उसके मुंह में एक बात डाली, और कहा, कि बालाक के पास लौट जा, और योंकहना। 17 और वह उसके पास गया, और क्या देखता है, कि वह मोआबी हाकिमोंसमेत अपके होमबलि के पास खड़ा है। और बालाक ने पूछा, कि यहोवा ने क्या कहा है? 18 तब बिलाम ने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, हे बालाक, मन लगाकर सुन, हे सिप्पोर के पुत्र, मेरी बात पर कान लगा: 19 ईश्वर मनुष्य नहीं, कि फूठ बोले, और न वह आदमी है, कि अपक्की इच्छा बदले। क्या जो कुछ उस ने कहा उसे न करे? क्या वह वचन देकर उस पूरा न करे? 20 देख, आशीर्वाद ही देने की आज्ञा मैं ने पाई है: वह आशीष दे चुका है, और मैं उसे नहीं पलट सकता। 21 उस ने याकूब में अनर्य नहीं पाया; और न इस्त्राएल में अन्याय देखा है। उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग है, और उन में राजा की सी ललकार होती है। 22 उनको मिस्र में से ईश्वर ही निकाले लिथे आ रहा है, वह तो बैनेले सांड के समान बल रखता है। 23 निश्चय कोई मंत्र याकूब पर नहीं चल सकता, और इस्त्राएल पर भावी कहना कोई अर्य नहीं रखता; परन्तु याकूब और इस्त्राएल के विषय अब यह कहा जाएगा, कि ईश्वर ने क्या ही विचित्र काम किया है! 24 सुन, वह दल सिंहनी की नाई उठेगा, और सिंह की नाई खड़ा होगा; वह जब तक अहेर को न खा ले, और मरे हुओं के लोहू को न पी ले, तब तक न लेटेगा।। 25 तब बालाक ने बिलाम से कहा, उनको न तो शाप देना, और न आशीष देना। 26 बिलाम ने बालाक से कहा, क्या मैं ने तुझ से नहीं कहा, कि जो कुछ यहोवा मुझ से कहेगा, वही मुझे करना पकेगा? 27 बालाक ने बिलाम से कहा चल, मैं तुझ को एक और स्यान पर ले चलता हूं; सम्भव है कि परमेश्वर की इच्छा हो कि तू वहां से उन्हें मेरे लिथे शाप दे। 28 तब बालाक बिलाम को पोर के सिक्के पर, जहां से यशीमोन देश दिखाई देता है, ले गया। 29 और बिलाम ने बालाक से कहा, यहां पर मेरे लिथे सात वेदियां बनवा, और यहां सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर। 30 बिलाम के कहने के अनुसार बालाक ने प्रत्थेक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।।
1 यह देखकर, कि यहोवा इस्त्राएल को आशीष ही दिलाना चाहता है, बिलाम पहिले की नाई शकुन देखने को न गया, परन्तु अपना मुंह जंगल की ओर कर लिया। 2 और बिलाम ने आंखे उठाई, और इस्त्राएलियोंको अपके गोत्र गोत्र के अनुसार बसे हुए देखा। और परमेश्वर का आत्मा उस पर उतरा। 3 तब उसने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, कि बोर के पुत्र बिलाम की यह वाणी है, जिस पुरूष की आंखें बन्द यीं उसी की यह वाणी है, 4 ईश्वर के वचनोंका सुननेवाला, जो दण्डवत में पड़ा हुआ खुली हुई आंखोंसे सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है: कि 5 हे याकूब, तेरे डेरे, और हे इस्त्राएल, तेरे निवासस्यान क्या ही मनभावने हैं! 6 वे तो नालोंवा घाटियोंकी नाई, और नदी के तट की वाटिकाओं के समान ऐसे फैले हुए हैं, जैसे कि यहोवा के लगाए हुए अगर के वृझ, और जल के निकट के देवदारू। 7 और उसके डोलोंसे जल उमण्डा करेगा, और उसका बीच बहुतेरे जलभरे खेतोंमें पकेगा, और उसका राजा अगाग से भी महान होगा, और उसका राज्य बढ़ता ही जाएगा। 8 उसको मिस्र में से ईश्वर की निकाले लिथे आ रहा है; वह तो बनैले सांड़ के सामान बल रखता है, जाति जाति के लोग जो उसके द्रोही है उनको वह खा जाथेगा, और उनकी हड्डियोंको टुकड़े टुकड़े करेगा, और अपके तीरोंसे उनको बेधेगा। 9 वह दबका बैठा है, वह सिंह वा सिंहनी की नाई लेट गया है; अब उसको कौन छेड़े? जो कोई तुझे आशीर्वाद दे सो आशीष पाए, और जो कोई तुझे शाप दे वह स्रापित हो।। 10 तब बालाक का कोप बिलाम पर भड़क उठा; और उस ने हाथ पर हाथ पटककर बिलाम से कहा, मैं ने तुझे अपके शत्रुओं के शाप देने के लिथे बुलवाया, परन्तु तू ने तीन बार उन्हें आशीर्वाद ही आशीर्वाद दिया है। 11 इसलिथे अब तू अपके स्यान पर भाग जा; मैं ने तो सोचा या कि तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूंगा, परन्तु अब यहोवा ने तुझे प्रतिष्ठा पाने से रोक रखा है। 12 बिलाम ने बालाक से कहा, जो दूत तू ने मेरे पास भेजे थे, क्या मैं ने उन से भी न कहा या, 13 कि चाहे बालाक अपके घर को सोने चांदी से भरकर मुझे दे, तौभी मैं यहोवा की आज्ञा तोड़कर अपके मन से न तो भला कर सकता हूं और न बुरा; जो कुछ यहोवा कहेगा वही मैं कहूंगा? 14 अब सुन, मैं अपके लोगोंके पास लौट कर जाता हूं; परन्तु पहिले मैं तुझे चिता देता हूं कि अन्त के दिनोंमें वे लोग तेरी प्रजा से क्या क्या करेंगे। 15 फिर वह अपक्की गूढ़ बात आरम्भ करके कहने लगा, कि बोर के पुत्र बिलाम की यह वाणी है, जिस पुरूष की आंखे बन्द यी उसी की यह वाणी है, 16 ईश्वर के वचनोंका सुननेवाला, और परमप्रधान के ज्ञान का जाननेवाला, जो दण्डवत् में पड़ा हुआ खुली हुई आंखोंसे सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है: कि 17 मै उसको देखूंगा तो सही, परन्तु अभी नहीं; मैं उसको निहारूंगा तो सही, परन्तु समीप होके नहीं: याकूब में से एक तारा उदय होगा, और इस्त्राएल में से एक राज दण्ड उठेगा; जो मोआब की अलंगोंको चूर कर देगा, जो सब दंगा करनेवालोंको गिरा देगा। 18 तब एदोम और सेईर भी, जो उसके शत्रु हैं, दोनोंउसके वश में पकेंगे, और इस्त्राएल वीरता दिखाता जाएगा। 19 और याकूब ही में से एक अधिपति आवेगा जो प्रभुता करेगा, और नगर में से बचे हुओं को भी सत्यानाश करेगा।। 20 फिर उस ने अमालेक पर दृष्टि करके अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, अमालेक अन्यजातियोंमें श्रेष्ट तो या, परन्तु उसका अन्त विनाश ही है।। 21 फिर उस ने केनियोंपर दृष्टि करके अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, तेरा निवासस्यान अति दृढ़ तो है, और तेरा बसेरा चट्टान पर तो है; 22 तौभी केन उजड़ जाएगा। और अन्त में अश्शूर् तुझे बन्धुआई में ले आएगा।। 23 फिर उस ने अपक्की गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा, हाथ जब ईश्वर यह करेगा तब कौन जीवित बचेगा? 24 तौभी कित्तियोंके पास से जहाजवाले आकर अश्शूर् को और एबेर को भी दु:ख देंगे; और अन्त में उसका भी विनाश हो जाएगा।। 25 तब बिलाम चल दिया, और अपके स्यान पर लौट गया; और बालाक ने भी अपना मार्ग लिया।।
1 इस्त्राएली शित्तीम में रहते थे, और लोग मोआबी लड़कियोंके संग कुकर्म करने लगे। 2 और जब उन स्त्रीयोंने उन लोगोंको अपके देवताओं के यज्ञोंमें नेवता दिया, तब वे लोग खाकर उनके देवताओं को दण्डवत् करने लगे। 3 योंइस्त्राएली बालपोर देवता को पूजने लगे। तब यहोवा का कोप इस्त्राएल पर भड़क उठा; 4 और यहोवा ने मूसा से कहा, प्रजा के सब प्रधानोंको पकड़कर यहोवा के लिथे धूप में लटका दे, जिस से मेरा भड़का हुआ कोप इस्त्राएल के ऊपर से दूर हो जाए। 5 तब मूसा ने इस्त्राएली न्यायियोंसे कहा, तुम्हारे जो जो आदमी बालपोर के संग मिल गए हैं उन्हें घात करो।। 6 और जब इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर रो रही यी, तो एक इस्त्राएली पुरूष मूसा और सब लोगोंकी आंखोंके सामने एक मिद्यानी स्त्री को अपके साय अपके भाइयोंके पास ले आया। 7 इसे देखकर एलीआजर का पुत्र पीनहास, जो हारून याजक का पोता या, उस ने मण्डली में से उठकर हाथ में एक बरछी ली, 8 और उस इस्त्राएली पुरूष के डेरे में जाने के बाद वह भी भीतर गया, और उस पुरूष और उस स्त्री दोनोंके पेट में बरछी बेध दी। इस पर इस्त्राएलियोंमें जो मरी फैल गई यी वह यम गई। 9 और मरी से चौबीस हजार मनुष्य मर गए।। 10 तब यहोवा ने मूसा से कहा, 11 हारून याजक का पोता एलीआजर का पुत्र पीनहास, जिसे इस्त्राएलियोंके बीच मेरी सी जलन उठी, उस ने मेरी जलजलाहट को उन पर से यहां तक दूर किया है, कि मैं ने जलकर उनका अन्त नहीं कर डाला। 12 इसलिथे तू कह दे, कि मैं उस से शांति की वाचा बान्धता हूं; 13 और वह उसके लिथे, और उसके बाद उसके वंश के लिथे, सदा के याजकपद की वाचा होगी, क्योंकि उसे अपके परमेश्वर के लिथे जलन उठी, और उस ने इस्त्राएलियोंके लिथे प्रायश्चित्त किया। 14 जो इस्त्राएली पुरूष मिद्यानी स्त्री के संग मारा गया, उसका नाम जिम्री या, वह साल का पुत्र और शिमोनियोंमें से अपके पितरोंके घराने का प्रधान या। 15 और जो मिद्यानी स्त्री मारी गई उसका नाम कोजबी या, वह सूर की बेटी यी, जो मिद्यानी पितरोंके एक घराने के लोगोंका प्रधान या।। 16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 17 मिद्यानियोंको सता, और उन्हें मार; 18 क्योंकि पोर के विषय और कोजबी के विषय वे तुम को छल करके सताते हैं। कोजबी तो एक मिद्यानी प्रधान की बेटी और मिद्यानियोंकी जाति बहिन यी, और मरी के दिन में पोर के मामले में मारी गई।।
1 फिर यहोवा ने मूसा और एलीआजर नाम हारून याजक के पुत्र से कहा, 2 इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली में जितने बीस वर्ष के, वा उस से अधिक अवस्या के होने से इस्त्राएलियोंके बीच युद्ध करने के योग्य हैं, उनके पितरोंके घरानोंके अनुसार उन सभोंकी गिनती करो। 3 सो मूसा और एलीआजर याजक ने यरीहो के पास यरदन नदी के तीर पर मोआब के अराबा में उन से समझाके कहा, 4 बीस वर्ष के और उस से अधिक अवस्या के लोगोंकी गिनती लो, जैसे कि यहोवा ने मूसा और इस्त्राएलियोंको मिस्र देश से निकले आने के समय आज्ञा दी यी।। 5 रूबेन जो इस्त्राएल का जेठा या; उसके थे पुत्र थे; अर्यात् हनोक, जिस से हनोकियोंका कुल चला; और पल्लू, जिस से पल्लूइयोंका कुल चला; 6 हेस्रोन, जिस से हेस्रोनियोंका कुल चला; और कर्मी, जिस से कमिर्योंका कुल चला। 7 रूबेनवाले कुल थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे तैतालीस हजार सात सौ तीस पुरूष थे। 8 और पल्लू का पुत्र एलीआब या। 9 और पल्लू का पुत्र नमूएल, दातान, और अबीराम थे। थे वही दातान और अबीराम हैं जो सभासद थे; और जिस समय कोरह की मण्डली ने यहोवा से फगड़ा किया या, उस समय उस मण्डली में मिलकर वे भी मूसा और हारून से फगड़े थे; 10 और जब उन अढ़ाई सौ मनुष्योंके आग में भस्म हो जाने से वह मण्डली मिट गई, उसी समय पृय्वी ने मुंह खोलकर कोरह समेत इनको भी निगल लिया; और वे एक दृष्टान्त ठहरे। 11 परन्तु कोरह के पुत्र तो नहीं मरे थे। 12 शिमोन के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् नमूएल, जिस से नमूएलियोंका कुल चला; और यामीन, जिस से यामीनियोंका कुल चला; 13 और जेरह, जिस से जेरहियोंका कुल चला; और शाऊल, जिस से शाऊलियोंका कुल चला। 14 शिमोनवाले कुल थे ही थे; इन में से बाईस हजार दो सौ पुरूष गिने गए।। 15 और गाद के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् सपोन, जिस से सपोनियोंका कुल चला; और हाग्गी, जिस से हाग्गियोंका कुल चला; और शूनी, जिस से शूनियोंका कुल चला; और ओजनी, जिस से ओजनियोंका कुल चला; 16 और एरी, जिस से एरियोंका कुल चला; और अरोद, जिस से अरोदियोंका कुल चला; 17 और अरेली, जिस से अरेलियोंका कुल चला। 18 गाद के वंश के कुल थे ही थे; इन में से साढ़े चालीस हजार पुरूष गिने गए।। 19 और यहूदा के एक और ओनान नाम पुत्र तो हुए, परन्तु वे कनान देश में मर गए। 20 और यहूदा के जिन पुत्रोंसे उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् शेला, जिस से शेलियोंका कुल चला; और पेरेस जिस से पेरेसियोंका कुल चला; और जेरह, जिस से जेरहियोंका कुल चला। 21 और पेरेस के पुत्र थे थे; अर्यात् हेस्रोन, जिस से हेस्रोनियोंका कुल चला; और हामूल, जिस से हामूलियोंका कुल चला। 22 यहूदियोंके कुल थे ही थे; इन में से साढ़े छिहत्तर हजार पुरूष गिने गए।। 23 और इस्साकार के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् तोला, जिस से तोलियोंका कुल चला; और पुव्वा, जिस से पुव्वियोंका कुल चला; 24 और याशूब, जिस से याशूबियोंका कुल चला; और शिम्रोन, जिस से शिम्रोनियोंका कुल चला। 25 इस्साकारियोंके कुल थे ही थे; इन में से चौसठ हजार तीन सौ पुरूष गिने गए।। 26 और जबूलून के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् सेरेद जिस से सेरेदियोंका कुल चला; और एलोन, जिस से एलोनियोंका कुल चला; और यहलेल, जिस से यहलेलियोंका कुल चला। 27 जबूलूनियोंके कुल थे ही थे; इन में से साढ़े साठ हजार पुरूष गिने गए।। 28 और यूसुफ के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे मनश्शे और एप्रैम थे। 29 मनश्शे के पुत्र थे थे; अर्यात् माकीर, जिस से माकीरियोंका कुल चला; और माकीर से गिलाद उत्पन्न हुआ; और गिलाद से गिलादियोंका कुल चला। 30 गिलाद के तो पुत्र थे थे; अर्यात् ईएजेर, जिस से ईएजेरियोंका कुल चला; 31 और हेलेक, जिस से हेलेकियोंका कुल चला और अस्त्रीएल, जिस से अस्त्रीएलियोंका कुल चला; और शेकेम, जिस से शेकेमियोंका कुल चला; और शमीदा, जिस से शमीदियोंका कुल चला; 32 और हेपेर, जिस से हेपेरियोंका कुल चला; 33 और हेपेर के पुत्र सलोफाद के बेटे नहीं, केवल बेटियां हुई; इन बेटियोंके नाम महला, नोआ, होग्ला, मिल्का, और तिर्सा हैं। 34 मनश्शेवाले कुल थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे बावन हजार सात सौ पुरूष थे।। 35 और एप्रैम के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् शूतेलह, जिस से शूतेलहियोंका कुल चला; और बेकेर, जिस से बेकेरियोंका कुल चला; और तहन जिस से तहनियोंका कुल चला। 36 और शूतेलह के यह पुत्र हुआ; अर्यात् एरान, जिस से एरानियोंका कुल चला। 37 एप्रैमियोंके कुल थे ही थे; इन में से साढ़े बत्तीस हजार पुरूष गिने गए। अपके कुलोंके अनुसार यूसुफ के वंश के लोग थे ही थे।। 38 और बिन्यामीन के पुत्र जिन से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् बेला जिस से लेवियोंका कुल चला; और अशबेल, जिस से अशबेलियोंका कुल चला; और अहीराम, जिस से अहीरामियोंका कुल चला; 39 और शपूपास, जिस से शपूपामियोंका कुल चला; और हूपाम, जिस से हूपामियोंका कुल चला। 40 और बेला के पुत्र अर्द और नामान थे; और अर्द से तो अदिर्योंको कुल, और नामान से नामानियोंका कुल चला। 41 अपके कुलोंके अनुसार बिन्यामीनी थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार छ: सौ पुरूष थे।। 42 और दान का पुत्र जिस से उनका कुल निकला यह या; अर्यात् शूहाम, जिस से शूहामियोंका कुल चला। और दान का कुल यही या। 43 और शूहामियोंमें से जो गिने गए उनके कुल में चौसठ हजार चार सौ पुरूष थे।। 44 और आशेर के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् यिम्ना, जिस से यिम्नियोंका कुल चला; यिश्र्ी, जिस से यिश्र्ियोंका कुल चला; और बरीआ, जिस से बरीइयोंका कुल चला। 45 फिर बरीआ के थे पुत्र हुए; अर्यात् हेबेर, जिस से हेबेरियोंका कुल चला; और मल्कीएल, जिस से मल्कीएलियोंका कुल चला। 46 और आशेर की बेटी का नाम सेरह है। 47 आशेरियोंके कुल थे ही थे; इन में से तिर्पन हजार चार सौ पुरूष गिने गए।। 48 और नप्ताली के पुत्र जिस से उनके कुल निकले वे थे थे; अर्यात् यहसेल, जिस से यहसेलियोंका कुल चला; और गूनी, जिस से गूनियोंका कुल चला; 49 थेसेर, जिस से थेसेरियोंका कुल चला; और शिल्लेम, जिस से शिल्लेमियोंका कुल चला। 50 अपके कुलोंके अनुसार नप्ताली के कुल थे ही थे; और इन में से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार चार सौ पुरूष थे।। 51 सब इस्त्राएलियोंमें से जो गिने गए थे वे थे ही थे; अर्यात् छ: लाख एक हजार सात सौ तीस पुरूष थे।। 52 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 53 इनको, इनकी गिनती के अनुसार, वह भूमि इनका भाग होने के लिथे बांट दी जाए। 54 अर्यात् जिस कुल से अधिक होंउनको अधिक भाग, और जिस में कम होंउनको कम भाग देना; प्रत्थेक गोत्र को उसका भाग उसके गिने हुए लोगोंके अनुसार दिया जाए। 55 तौभी देश चिट्ठी डालकर बांटा जाए; इस्त्राएलियोंके पितरोंके एक एक गोत्र का नाम, जैसे जैसे निकले वैसे वैसे वे अपना अपना भाग पाएं। 56 चाहे बहुतोंका भाग हो चाहे योड़ोंका हो, जो जो भाग बांटे जाएं वह चिट्ठी डालकर बांटे जाए।। 57 फिर लेवियोंमें से जो अपके कुलोंके अनुसार गिने गए वे थे हैं; अर्यात् गेर्शोनियोंसे निकला हुआ गेर्शोनियोंका कुल; कहात से निकला हुआ कहातियोंका कुल; और मरारी से निकला हुआ मरारियोंका कुल। 58 लेवियोंके कुल थे हैं; अर्यात् लिब्नियोंका, हेब्रानियोंका, महलियोंका, मूशियोंका, और कोरहियोंका कुल। और कहात से अम्राम उत्पन्न हुआ। 59 और अम्राम की पत्नी का नाम योकेबेद है, वह लेवी के वंश की यी जो लेवी के वंश में मिस्र देश में उत्पन्न हुई यी; और वह अम्राम से हारून और मूसा और उनकी बहिन मरियम को भी जनी। 60 और हारून से नादाब, अबीहू, एलीआजर, और ईतामार उत्पन्न हुए। 61 नादाब और अबीहू तो उस समय मर गए थे, जब वे यहोवा के साम्हने ऊपक्की आग ले गए थे। 62 सब लेवियोंमें से जो गिने गथे, अर्यात् जितने पुरूष एक महीने के वा उस से अधिक अवस्या के थे, वे तेईस हजार थे; वे इस्त्राएलियोंके बीच इसलिथे नहीं गिने गए, क्योंकि उनको देश का कोई भाग नहीं दिया गया या।। 63 मूसा और एलीआजर याजक जिन्होंने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर इस्त्राएलियोंको गिन लिया, उनके गिने हुए लोग इतने ही थे। 64 परन्तु जिन इस्त्राएलियोंको मूसा और हारून याजक ने सीनै के जंगल में गिना या, उन में से एक पुरूष इस समय के गिने हुओं में न या। 65 क्योंकि यहोवा ने उनके विषय कहा या, कि वे निश्चय जंगल में मर जाएंगे, इसलिथे यपुन्ने के पुत्र कालेब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़, उन में से एक भी पुरूष नहीं बचा।।
1 तब यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश के कुलोंमें से सलोफाद, जो हेपेर का पुत्र, और गिलाद का पोता, और मनश्शे के पुत्र माकीर का परपोता या, उसकी बेटियां जिनके नाम महला, नोवा, होग्ला, मिलका, और तिर्सा हैं वे पास आईं। 2 और वे मूसा और एलीआजर याजक और प्रधानोंऔर सारी मण्डली के साम्हने मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़ी होकर कहने लगीं, 3 हमारा पिता जंगल में मर गया; परन्तु वह उस मण्डली में का न या जो कोरह की मण्डली के संग होकर यहोवा के विरूद्ध इकट्ठी हुई यी, वह अपके ही पाप के कारण मरा; और उसके कोई पुत्र न या। 4 तो हमारे पिता का नाम उसके कुल में से पुत्र न होने के कारण क्योंमिट जाए? हमारे चाचाओं के बीच हमें भी कुछ भूमि निज भाग करके दे। 5 उनकी यह बिनती मूसा ने यहोवा को सुनाई। 6 यहोवा ने मूसा से कहा, 7 सलोफाद की बेटियां ठीक कहती हैं; इसलिथे तू उनके चाचाओं के बीच उनको भी अवश्य ही कुछ भूमि निज भाग करके दे, अर्यात् उनके पिता का भाग उनके हाथ सौंप दे। 8 और इस्त्राएलियोंसे यह कह, कि यदि कोई मनुष्य निपुत्र मर जाए, तो उसका भाग उसकी बेटी के हाथ सौंपना। 9 और यदि उसके कोई बेटी भी न हो, तो उसका भाग उसके भाइयोंको देना। 10 और यदि उसके भाई भी न हों, तो उसका भाग चाचाओं को देना। 11 और यदि उसके चाचा भी न हों, तो उसके कुल में से उसका जो कुटुम्बी सब से समीप हो उसको उसका भाग देना, कि वह उसका अधिक्कारनेी हो। इस्त्राएलियोंके लिथे यह न्याय की विधि ठहरेगी, जैसे कि यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी।। 12 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, इस अबारीम नाम पर्वत के ऊपर चढ़के उस देश को देख ले जिसे मैं ने इस्त्राएलियोंको दिया है। 13 और जब तू उसको देख लेगा, तब अपके भाई हारून की नाई तू भी अपके लोगोंमे जा मिलेगा, 14 क्योंकि सीन नाम जंगल में तुम दोनोंने मण्डली के फगड़ने के समय मेरी आज्ञा को तोड़कर मुझ से बलवा किया, और मुझे सोते के पास उनकी दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया। ( यह मरीबा नाम सोता है जो सीन नाम जंगल के कादेश में है ) 15 मूसा ने यहोवा से कहा, 16 यहोवा, जो सारे प्राणियोंकी आत्माओं का परमेश्वर है, वह इस मण्डली के लोगोंके ऊपर किसी पुरूष को नियुक्त कर दे, 17 जो उसके साम्हने आया जाया करे, और उनका निकालने और पैठानेवाला हो; जिस से यहोवा की मण्डली बिना चरवाहे की भेड़ बकरियोंके समान न रहे। 18 यहोवा ने मूसा से कहा, तू नून के पुत्र यहोशू को लेकर उस पर हाथ रख; वह तो ऐसा पुरूष है जिस में मेरा आत्मा बसा है; 19 और उसको एलीआजर याजक के और सारी मण्डली के साम्हने खड़ा करके उनके साम्हने उसे आज्ञा दे। 20 और अपक्की महिमा में से कुछ उसे दे, जिस से इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली उसकी माना करे। 21 और वह एलीआजर याजक के साम्हने खड़ा हुआ करे, और एलीआजर उसके लिथे यहोवा से ऊरीम की आज्ञा पूछा करे; और वह इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली समेत उसके कहने से जाया करे, और उसी के कहने से लौट भी आया करे। 22 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने यहोशू को लेकर, एलीआजर याजक और सारी मण्डली के साम्हने खड़ा करके, 23 उस पर हाथ रखे, और उसको आज्ञा दी जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा कहा या।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंको यह आज्ञा सुना कि मेरा चढ़ावा, अर्यात् मुझे सुखदायक सुगन्ध देनेवाला मेरा हव्यरूपी भोजन, तुम लोग मेरे लिथे उनके नियत समयोंपर चढ़ाने के लिथे स्मरण रखना। 3 और तू उन से कह, कि जो जो तुम्हें यहोवा के लिथे चढ़ाना होगा वे थे हैं; अर्यात् नित्य होमबलि के लिथे एक एक वर्ष के दो निर्दोष भेड़ी के बच्चे प्रतिदिन चढ़ाया करे। 4 एक बच्चे को भोर को और दूसरे को गोधूलि के समय चढ़ाना; 5 और भेड़ के बच्चे के पीछे एक चौयाई हीन कूटके निकाले हुए तेल से सने हुए एपा के दसवें अंश मैदे का अन्नबलि चढ़ाना। 6 यह नित्य होमबलि है, जो सीनै पर्वत पर यहोवा का सुखदायक सुगन्धवाला हव्य होने के लिथे ठहराया गया। 7 और उसका अर्घ प्रति एक भेड़ के बच्चे के संग एक चौयाई हीन हो; मदिरा का यह अर्घ यहोवा के लिथे पवित्रस्यान में देना। 8 और दूसरे बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना; अन्नबलि और अर्घ समेत भोर के होमबलि की नाई उसे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य करके चढ़ाना।। 9 फिर विश्रमदिन को दो निर्दोष भेड़ के एक साल के नर बच्चे, और अन्नबलि के लिथे तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा अर्घ समेत चढ़ाना। 10 नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा प्रत्थेक विश्रमदिन का यही होमबलि ठहरा है।। 11 फिर अपके महीनोंके आरम्भ में प्रतिमास यहोवा के लिथे होमबलि चढ़ाना; अर्यात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के निर्दोष भेड़ के सात बच्चे; 12 और बछड़े पीछे तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवां अंश मैदा, और उस एक मेढ़े के साय तेल से सना हुआ एपा का दो दसवां अंश मैदा; 13 और प्रत्थेक भेड़ के बच्चे के पीछे तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा, उन सभोंको अन्नबलि करके चढ़ाना; वह सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे होमबलि और यहोवा के लिथे हव्य ठहरेगा। 14 और उनके साय थे अर्घ हों; अर्यात् बछड़े पीछे आध हीन, मेढ़े के साय तिहाई हीन, और भेड़ के बच्चे पीछे चौयाई हीन दाखमधु दिया जाए; वर्ष के सब महीनोंमें से प्रति एक महीने का यही होमबलि ठहरे। 15 और एक बकरा पापबलि करके यहोवा के लिथे चढ़ाया जाए; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए।। 16 फिर पहिले महीने के चौदहवें दिन को यहोवा का फसह हुआ करे। 17 और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को पर्ब्ब लगा करे; सात दिन तक अखमीरी रोटी खाई जाए। 18 पहिले दिन पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्र्म का कोई काम न किया जाए; 19 उस में तुम यहोवा के लिथे हव्य, अर्यात् होमबलि चढ़ाना; सो दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे हों; थे सब निर्दोष हों; 20 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; बछड़े पीछे एपा का तीन दसवां अंश और मेढ़े के सात एपा का दो दसवां अंश मैदा हो। 21 और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से प्रति एक बच्चे पीछे एपा का दसवां अंश चढ़ाना। 22 और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त हो। 23 भोर का होमबलि जो नित्य होमबलि ठहरा है, उसके अलावा इनको चढ़ाना। 24 इस रीति से तुम उन सातोंदिनोंमें भी हव्य का भोजन चढ़ाना, जो यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे हो; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए। 25 और सातवें दिन भी तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्र्म का कोई काम न करना।। 26 फिर पहिली उपज के दिन में, जब तुम अपके अठवारे नाम पर्ब्ब में यहोवा के लिथे नया अन्नबलि चढ़ाओगे, तब भी तुम्हारी पवित्र सभा हो; और परिश्र्म का कोई काम न करना। 27 और एक होमबलि चढ़ाना, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो; अर्यात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे; 28 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् बछड़े पीछे एपा का तीन दसवां अंश, और मेढ़े के संग एपा का दो दसवां अंश, 29 और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना। 30 और एक बकरा भी चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त हो। 31 थे सब निर्दोष हों; और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा इसको भी चढ़ाना।।
1 फिर सातवें महीने के पहिले दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; उस में परिश्र्म का कोई काम न करना। वह तुम्हारे लिथे जयजयकार का नरसिंगा फूंकने का दिन ठहरा है; 2 तुम होमबलि चढ़ाना, जिस से यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध हो; अर्यात् बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात निर्दोष भेड़ के बच्चे; 3 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् बछड़े के साय एपा का दो दसवां अंश, 4 और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना। 5 और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिस से तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त हो। 6 इन सभोंसे अधिक नए चांद का होमबलि और उसका अन्नबलि, और नित्य होमबलि और उसका अन्नबलि, और उन सभोंके अर्घ भी उनके नियम के अनुसार सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे यहोवा के हव्य करके चढ़ाना।। 7 फिर उसी सातवें महीने के दसवें दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; तुम अपके अपके प्राण को दु:ख देना, और किसी प्रकार का कामकाज न करना; 8 और यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध देने को होमबलि; अर्यात् एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक एक वर्ष के सात भेड़ के बच्चे चढ़ाना; फिर थे सब निर्दोष हों; 9 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् बछड़े के साय एपा का तीन दसवां अंश, और मेढ़े के साय एपा का दो दसवां अंश, 10 और सातोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना। 11 और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे सब प्रायश्चित्त के पापबलि और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि के, और उन सभोंके अर्धो के अलावा चढ़ाया जाए।। 12 फिर सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस में परिश्र्म का कोई काम न करना, और सात दिन तक यहोवा के लिथे पर्ब्ब मानना; 13 तुम होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे हव्य करके चढ़ाना; अर्यात् तेरह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह भेड़ के बच्चे; थे सब निर्दोष हों; 14 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्यात् तेरहोंबछड़ोंमें से एक एक बछड़े के पीछे एपा का तीन दसवां अंश, और दोनोंमेढ़ोंमें से एक एक मेढ़े के पीछे एपा का दो दसवां अंश, 15 और चौदहोंभेड़ के बच्चोंमें से एक एक बच्चे के पीछे एपा का दसवां अंश मैदा चढ़ाना। 16 और पापबलि के लिथे एक बकरा चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 17 फिर दूसरे दिन बारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 18 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।। 19 और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 20 फिर तीसरे दिन ग्यारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 21 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना। 22 और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 23 और फिर चौथे दिन दस बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 24 बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना। 25 और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 26 फिर पांचवें दिन नौ बछड़े, दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 27 और बछड़ों, मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना। 28 और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 29 फिर छठवें दिन आठ बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना; 30 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार चढ़ाना। 31 और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 32 फिर सातवें दिन सात बछड़े, और दो मेढ़े, और एक एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के बच्चे चढ़ाना। 33 और बछड़ोंऔर मेढ़ों, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार चढ़ाना। 34 और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 35 फिर आठवें दिन तुम्हारी एक महासभा हो; उस में परिश्र्म का कोई काम न करना, 36 और उस में होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे हव्य करके चढ़ाना; वह एक बछड़े, और एक मेढ़े, और एक एक वर्ष के सात निर्दोंष भेड़ के बच्चोंका हो; 37 बछड़े, और मेढ़े, और भेड़ के बच्चोंके साय उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना। 38 और पापबलि के लिथे एक बकरा भी चढ़ाना; थे नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएं।। 39 अपक्की मन्नतोंऔर स्वेच्छाबलियोंके अलावा, अपके अपके नियत समयोंमें, थे ही होमबलि, अन्नबलि, अर्घ, और मेलबलि, यहोवा के लिथे चढ़ाना। 40 यह सारी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी जो उस ने इस्त्राएलियोंको सुनाई।।
1 फिर मूसा ने इस्त्राएली गोत्रोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंसे कहा, यहोवा ने यह आज्ञा दी है, 2 कि जब कोई पुरूष यहोवा की मन्नत माने, वा अपके आप को वाचा से बान्धने के लिथे शपय खाए, तो वह अपना वचन न टाले; जो कुछ उसके मुंह से निकला हो उसके अनुसार वह करे। 3 और जब कोई स्त्री अपक्की कुंवारी अवस्या में, अपके पिता के घर से रहते हुए, यहोवा की मन्नत माने, वा अपके को वाचा से बान्धे, 4 तो यदि उसका पिता उसकी मन्नत वा उसका वह वचन सुनकर, जिस से उसने अपके आप को बान्धा हो, उस से कुछ न कहे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्यिर बनी रहें, और कोई बन्धन क्योंन हो, जिस से उस ने अपके आप को बान्धा हो, वह भी स्यिर रहे। 5 परन्तु यदि उसका पिता उसकी सुनकर उसी दिन उसको बरजे, तो उसकी मन्नतें वा और प्रकार के बन्धन, जिन से उस ने अपके आप को बान्धा हो, उन में से एक भी स्यिर न रहे, और यहोवा यह जान कर, कि उस स्त्री के पिता ने उसे मना कर दिया है, उसका यह पाप झमा करेगा। 6 फिर यदि वह पति के अधीन हो और मन्नत माने, वा बिना सोच विचार किए ऐसा कुछ कहे जिस से वह बन्धन में पके, 7 और यदि उसका पति सुनकर उस दिन उससे कुछ न कहे; तब तो उसकी मन्नतें स्यिर रहें, और जिन बन्धनोंसे उस ने अपके आप को बान्धा हो वह भी स्यिर रहें। 8 परन्तु यदि उसका पति सुनकर उसी दिन उसे मना कर दे, तो जो मन्नत उस ने मानी है, और जो बात बिना सोच विचार किए कहने से उस ने अपके आप को वाचा से बान्धा हो, वह टूट जाएगी; और यहोवा उस स्त्री का पाप झमा करेगा। 9 फिर विधवा वा त्यागी हुई स्त्री की मन्नत, वा किसी प्रकार की वाचा का बन्धन क्योंन हो, जिस से उस ने अपके आप को बान्धा हो, तो वह स्यिर ही रहे। 10 फिर यदि कोई स्त्री अपके पति के घर में रहते मन्नत माने, वा शपय खाकर अपके आप को बान्धे, 11 और उसका पति सुनकर कुछ न कहे, और न उसे मना करे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्यिर बनी रहें, और हर एक बन्धन क्योंन हो, जिस से उस ने अपके आप को बान्धा हो, वह स्यिर रहे। 12 परन्तु यदि उसका पति उसकी मन्नत आदि सुनकर उसी दिन पूरी रीति से तोड़ दे, तो उसकी मन्नतें आदि, जो कुछ उसके मुंह से अपके बन्धन के विषय निकला हो, उस में से एक बात भी स्यिर न रहे; उसके पति ने सब तोड़ दिया है; इसलिथे यहोवा उस स्त्री का वह पाप झमा करेगा। 13 कोई भी मन्नत वा शपय क्योंन हो, जिस से उस स्त्री ने अपके जीव को दु:ख देने की वाचा बान्धी हो, उसको उसका पति चाहे तो दृढ़ करे, और चाहे तो तोड़े; 14 अर्यात् यदि उसका पति दिन प्रति दिन उस से कुछ भी न कहे, तो वह उसको सब मन्नतें आदि बन्धनोंको जिस से वह बन्धी हो दृढ़ कर देता है; उस ने उनको दृढ़ किया है, क्योंकि सुनने के दिन उस ने कुछ नहीं कहा। 15 और यदि वह उन्हें सुनकर पीछे तोड़ दे, तो अपक्की स्त्री के अधर्म का भार वही उठाएगा। 16 पति पत्नी के बीच, और पिता और उसके घर मे रहती हुई कुंवारी बेटी के बीच, जिन विधियोंकी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी वे थे ही हैं।।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 मिद्यानियोंसे इस्त्राएलियोंका पलटा ले; बाद को तू अपके लोगोंमें जा मिलेगा। 3 तब मूसा ने लोगोंसे कहा, अपके में से पुरूषोंको युद्ध के लिथे हयियार बन्धाओ, कि वे मिद्यानियोंपर चढ़के उन से यहोवा का पलटा ले। 4 इस्त्राएल के सब गोत्रोंमें से प्रत्थेक गोत्र के एक एक हजार पुरूषोंको युद्ध करने के लिथे भेजो। 5 तब इस्त्राएल के सब गोत्रोंमें से प्रत्थेक गोत्र के एक एक हजार पुरूष चुने गथे, अर्यात् युद्ध के लिथे हयियार-बन्द बारह हजार पुरूष। 6 प्रत्थेक गोत्र में से उन हजार हजार पुरूषोंको, और एलीआजर याजक के पुत्र पीनहास को, मूसा ने युद्ध करने के लिथे भेजा, और उसके हाथ में पवित्रस्यान के पात्र और वे तुरहियां यीं जो सांस बान्ध बान्ध कर फूंकी जाती यीं। 7 और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी, उसके अनुसार उन्होंने मिद्यानियोंसे युद्ध करके सब पुरूषोंको घात किया। 8 और दूसरे जूफे हुओं को छोड़ उन्होंने एवी, रेकेम, सूर, हूर, और रेबा नाम मिद्यान के पांचोंराजाओं को घात किया; और बोर के पुत्र बिलाम को भी उन्होंने तलवार से घात किया। 9 और इस्त्राएलियोंने मिद्यानी स्त्रियोंको बालबच्चोंसमेत बन्धुआई में कर लिया; और उनके गाय-बैल, भेड़-बकरी, और उनकी सारी सम्पत्ति को लूट लिया। 10 और उनके निवास के सब नगरों, और सब छावनियोंको फूंक दिया; 11 तब वे, क्या मनुष्य क्या पशु, सब बन्धुओं और सारी लूट-पाट को लेकर 12 यरीहो के पास की यरदन नदी के तीर पर, मोआब के अराबा में, छावनी के निकट, मूसा और एलीआजर याजक और इस्त्राएलियोंकी मण्डली के पास आए।। 13 तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के सब प्रधान छावनी के बाहर उनका स्वागत करने को निकले। 14 और मूसा सहस्त्रपति-शतपति आदि, सेनापतियोंसे, जो युद्ध करके लौटे आते थे क्रोधित होकर कहने लगा, 15 क्या तुम ने सब स्त्रियोंको जीवित छोड़ दिया? 16 देखे, बिलाम की सम्मति से, पोर के विषय में इस्त्राएलियोंसे यहोवा का विश्वासघात इन्हीं ने कराया, और यहोवा की मण्डली में मरी फैली। 17 सो अब बालबच्चोंमें से हर एक लड़के को, और जितनी स्त्रियोंने पुरूष का मुंह देखा हो उन सभोंको घात करो। 18 परन्तु जितनी लड़कियोंने पुरूष का मुंह न देखा हो उन सभोंको तुम अपके लिथे जीवित रखो। 19 और तुम लोग सात दिन तक छावनी के बाहर रहो, और तुम में से जितनोंने किसी प्राणी को घात किया, और जितनोंने किसी मरे हुए को छूआ हो, वे सब अपके अपके बन्धुओं समेत तीसरे और सातवें दिनोंमें अपके अपके को पाप छुड़ाकर पावन करें। 20 और सब वों, और चमड़े की बनी हुई सब वस्तुओं, और बकरी के बालोंकी और लकड़ी की बनी हुई सब वस्तुओं को पावन कर लो। 21 तब एलीआजर याजक ने सेना के उन पुरूषोंसे जो युद्ध करने गए थे कहा, व्यवस्या की जिस विधि की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी है वह यह है, 22 कि सोना, चांदी, पीतल, लोहा, रांगा, और सीसा, 23 जो कुछ आग में ठहर सके उसको आग में डालो, तब वह शुद्ध ठहरेगा; तौभी वह अशुद्धता छुड़ानेवाले जल के द्वारा पावन किया जाए; परन्तु जो कुछ आग में न ठहर सके उसे जल में डुबाओ। 24 और सातवें दिन अपके वस्त्रोंको धोना, तब तुम शुद्ध ठहरोगे; और तब छावनी में आना।। 25 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 26 एलीआजर याजक और मण्डली के पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंको साय लेकर तू लूट के मनुष्योंऔर पशुओं की गिनती कर; 27 तब उनको आधा आधा करके एक भाग उन सिपाहियोंको जो युद्ध करने को गए थे, और दूसरा भाग मण्डली को दे। 28 फिर जो सिपाही युद्ध करने को गए थे, उनके आधे में से यहोवा के लिथे, क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या गदहे, क्या भेड़-बकरियां 29 पांच सौ के पीछे एक को मानकर ले ले; और यहोवा की भेंट करके एलीआजर याजक को दे दे। 30 फिर इस्त्राएलियोंके आधे में से, क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या गदहे, क्या भेड़-बकरियां, क्या किसी प्रकार का पशु हो, पचास के पीछे एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियोंको दे। 31 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी मूसा और एलीआजर याजक ने किया। 32 और जो वस्तुएं सेना के पुरूषोंने अपके अपके लिथे लूट ली यीं उन से अधिक की लूट यह यी; अर्यात् छ: लाख पचहत्तर हजार भेड़-बकरियां, 33 बहत्तर हजार गाय बैल, 34 इकसठ हजार गदहे, 35 और मनुष्योंमें से जिन स्त्रियोंने पुरूष का मुंह नहीं देखा या वह सब बत्तीस हजार यीं। 36 और इसका आधा, अर्यात् उनका भाग जो युद्ध करने को गए थे, उस में भेड़बकरियां तीन लाख साढ़े सैंतीस हजार, 37 जिस में से पौने सात सौ भेड़-बकरियां यहोवा का कर ठहरीं। 38 और गाय-बैल छत्तीस हजार, जिन में से बहत्तर यहोवा का कर ठहरे। 39 और गदहे साढ़े तीस हजार, जिन में से इकसठ यहोवा का कर ठहरे। 40 और मनुष्य सोलह हजार जिन में से बत्तीस प्राणी यहोवा का कर ठहरे। 41 इस कर को जो यहोवा की भेंट यी मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार एलीआजर याजक को दिया। 42 और इस्त्राएलियोंकी मण्डली का आधा 43 तीन लाख साढ़े सैंतिस हजार भेड़-बकरियां 44 छत्तीस हजार गाय-बैल, 45 साढ़े तीस हजार गदहे, 46 और सोलह हजार मनुष्य हुए। 47 इस आधे में से, जिसे मूसा ने युद्ध करनेवाले पुरूषोंके पास से अलग किया या, यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने, क्या मनुष्य क्या पशु, पचास पीछे एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियोंको दिया। 48 तब सहस्त्रपति-शतपति आदि, जो सरदार सेना के हजारोंके ऊपर नियुक्त थे, वे मूसा के पास आकर कहने लगे, 49 जो सिपाही हमारे अधीन थे उनकी तेरे दासोंने गिनती ली, और उन में से एक भी नहीं घटा। 50 इसलिथे पायजेब, कड़े, मुंदरियां, बालियां, बाजूबन्द, सोने के जो गहने, जिस ने पाया है, उनको हम यहोवा के साम्हने अपके प्राणोंके निमित्त प्रायश्चित्त करने को यहोवा की भेंट करके ले आए हैं। 51 तब मूसा और एलीआजर याजक ने उन से वे सब सोने के नक्काशीदार गहने ले लिए। 52 और सहस्त्रपतियोंऔर शतपतियोंने जो भेंट का सोना यहोवा की भेंट करके दिया वह सब का सब सोलह हजार साढ़े सात सौ शेकेल का या। 53 ( योद्धाओं ने तो अपके अपके लिथे लूट ले ली यी। ) 54 यह सोना मूसा और एलीआजर याजक ने सहस्त्रपतियोंऔर शतपतियोंसे लेकर मिलापवाले तम्बू में पहुंचा दिया, कि इस्त्राएलियोंके लिथे यहोवा के साम्हने स्म्रण दिलानेवाली वस्तु ठहरे।।
1 रूबेनियोंऔर गादियोंके पास बहुत जानवर थे। जब उन्होंने याजेर और गिलाद देशोंको देखकर विचार किया, कि वह ढ़ोरोंके योग्य देश है, 2 तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के प्रधानोंके पास जाकर कहने लगे, 3 अतारोत, दीबोन, याजेर, निम्रा, हेशबोन, एलाले, सबाम, नबो, और बोन नगरोंका देश 4 जिस पर यहोवा ने इस्त्राएल की मण्डली को विजय दिलवाई है, वह ढोरोंके योग्य है; और तेरे दासोंके पास ढोर हैं। 5 फिर उन्होंने कहा, यदि तेरा अनुग्रह तेरे दासोंपर हो, तो यह देश तेरे दासोंको मिले कि उनकी निज भूमि हो; हमें यरदन पार न ले चल। 6 मूसा ने गादियोंऔर रूबेनियोंसे कहा, जब तुम्हारे भाई युद्ध करने को जाएंगे तब क्या तुम यहां बैठे रहोगे? 7 और इस्त्राएलियोंसे भी उस पार के देश जाने के विषय जो यहोवा ने उन्हें दिया है तुम क्योंअस्वीकार करवाते हो? 8 जब मैं ने तुम्हारे बापदादोंको कादेशबर्ने से कनान देश देखने के लिथे भेजा, तब उन्होंने भी ऐसा ही किया या। 9 अर्यात् जब उन्होंने एशकोल नाम नाले तक पहुंचकर देश को देखा, तब इस्त्राएलियोंसे उस देश के विषय जो यहोवा ने उन्हें दिया या अस्वीकार करा दिया। 10 इसलिथे उस समय यहोवा ने कोप करके यह शपय खाई कि, 11 नि:सन्देह जो मनुष्य मिस्र से निकल आए हैं उन में से, जितने बीस वर्ष के वा उस से अधिक अवस्या के हैं, वे उस देश को देखने न पाएंगे, जिसके देने की शपय मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से खाई है, क्योंकि वे मेरे पीछे पूरी रीति से नहीं हो लिथे; 12 परन्तु यपुन्ने कनजी का पुत्र कालेब, और नून का पुत्र यहोशू, थे दोनोंजो मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिथे हैं थे तो उसे देखने पाएंगे। 13 सो यहोवा का कोप इस्त्राएलियोंपर भड़का, और जब तक उस पीढ़ी के सब लोगोंका अन्त न हुआ, जिन्होंने यहोवा के प्रति बुरा किया या, तब तक अर्यात् चालीस वर्ष तक वह जंगल में मारे मारे फिराता रहा। 14 और सुनो, तुम लोग उन पापियोंके बच्चे होकर इसी लिथे अपके बाप-दादोंके स्यान पर प्रकट हुए हो, कि इस्त्राएल के विरूद्ध यहोवा से भड़के हुए कोप को और भड़काओ! 15 यदि तुम उसके पीछे चलने से फिर जाओ, तो वह फिर हम सभोंको जंगल में छोड़ देगा; इस प्रकार तुम इन सारे लोगोंका नाश कराओगे। 16 तब उन्होंने मूसा के और निकट आकर कहा, हम अपके ढ़ोरोंके लिथे यहीं भेड़शाले बनाएंगे, और अपके बालबच्चोंके लिथे यहीं नगर बसाएंगे, 17 परन्तु आप इस्त्राएलियोंके आगे आगे हयियार बन्द तब तक चलेंगे, जब तक उनको उनके स्यान में न पहुंचा दे; परन्तु हमारे बालबच्चे इस देश के निवासियोंके डर से गढ़वाले नगरोंमें रहेंगे। 18 परन्तु जब तक इस्त्राएली अपके अपके भाग के अधिक्कारनेी न होंतब तक हम अपके घरोंको न लौटेंगे। 19 हम उनके साय यरदन पार वा कहीं आगे अपना भाग न लेंगे, क्योंकि हमारा भाग यरदन के इसी पार पूरब की ओर मिला है। 20 तब मूसा ने उन से कहा, यदि तुम ऐसा करो, अर्यात् यदि तुम यहोवा के आगे आगे युद्ध करने को हयियार बान्धो। 21 और हर एक हयियार-बन्द यरदन के पार तब तक चले, जब तक यहोवा अपके आगे से अपके शत्रुओं को न निकाले 22 और देश यहोवा के वश में न आए; तो उसके पीछे तुम यहां लौटोगे, और यहोवा के और इस्त्राएल के विषय निर्दोष ठहरोगे; और यह देश यहोवा के प्रति तुम्हारी निज भूमि ठहरेगा। 23 और यदि तुम ऐसा न करो, तो यहोवा के विरूद्ध पापी ठहरोगे; और जान रखो कि तुम को तुम्हारा पाप लगेगा। 24 तुम अपके बालबच्चोंके लिथे नगर बसाओ, और अपक्की भेड़-बकरियोंके लिथे भेड़शाले बनाओ; और जो तुम्हारे मुंह से निकला है वही करो। 25 तब गादियोंऔर रूबेनियोंने मूसा से कहा, अपके प्रभु की आज्ञा के अनुसार तेरे दास करेंगे। 26 हमारे बालबच्चे, स्त्रियां, भेड़-बकरी आदि, सब पशु तो यहीं गिलाद के नगरोंमें रहेंगे; 27 परन्तु अपके प्रभु के कहे के अनुसार तेरे दास सब के सब युद्ध के लिथे हयियार-बन्द यहोवा के आगे आगे लड़ने को पार जाएंगे। 28 तब मूसा ने उनके विषय में एलीआजर याजक, और नून के पुत्र यहोशू, और इस्त्राएलियोंके गोत्रोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंको यह आज्ञा दी, 29 कि यदि सब गादी और रूबेनी पुरूष युद्ध के लिथे हयियार-बन्द तुम्हारे संग यरदन पार जाएं, और देश तुम्हारे वश में आ जाए, तो गिलाद देश उनकी निज भूमि होने को उन्हें देना। 30 परन्तु यदि वे तुम्हारे संग हयियार-बन्द पार न जाएं, तो उनकी निज भूमि तुम्हारे बीच कनान देश में ठहरे। 31 तब गादी और रूबेनी बोल उठे, यहोवा ने जैसा तेरे दासोंसे कहलाया है वैसा ही हम करेंगे। 32 हम हयियार-बन्द यहोवा के आगे आगे उस पार कनान देश में जाएंगे, परन्तु हमारी निज भूमि यरदन के इसी पार रहे।। 33 तब मूसा ने गादियोंऔर रूबेनियोंको, और यूसुफ के पुत्र मनश्शे के आधे गोत्रियोंको एमोरियोंके राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग, दोनोंके राज्योंका देश, नगरों, और उनके आसपास की भूमि समेत दे दिया। 34 तब गादियोंने दीबोन, अतारोत, अरोएर, 35 अत्रौत, शोपान, याजेर, योगबहा, 36 बेतनिम्रा, और बेयारान नाम नगरोंको दृढ़ किया, और उन में भेड़-बकरियोंके लिथे भेड़शाले बनाए। 37 और रूबेनियोंने हेशबोन, एलाले, और किर्यातैम को, 38 फिर नबो और बालमोन के नाम बदलकर उनको, और सिबमा को दृढ़ किया; और उन्होंने अपके दृढ़ किए हुए नगरोंके और और नाम रखे। 39 और मनश्शे के पुत्र माकीर के वंशवालोंने गिलाद देश में जाकर उसे ले लिया, और जो एमोरी उस में रहते थे उनको निकाल दिया। 40 तब मूसा ने मनश्शे के पुत्र माकीर के वंश को गिलाद दे दिया, और वे उस में रहने लगे। 41 और मनश्शेई याईर ने जाकर गिलाद की कितनी बस्तियां ले लीं, और उनके नाम हव्वोत्याईर रखे। 42 और नोबह ने जाकर गांवोंसमेत कनात को ले लिया, और उसका नाम अपके नाम पर नोबह रखा।।
1 जब से इस्त्राएली मूसा और हारून की अगुवाई से दल बान्धकर मिस्र देश से निकले, तब से उनके थे पड़ाव हुए। 2 मूसा ने यहोवा से आज्ञा पाकर उनके कूच उनके पड़ावोंके अनुसार लिख दिए; और वे थे हैं। 3 पहिले महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्होंने रामसेस से कूच किया; फसह के दूसरे दिन इस्त्राएली सब मिस्रियोंके देखते बेखटके निकल गए, 4 जब कि मिस्री अपके सब पहिलौठोंको मिट्टी दे रहे थे जिन्हें यहोवा ने मारा या; और उस ने उनके देवताओं को भी दण्ड दिया या। 5 इस्त्राएलियोंने रामसेस से कूच करे सुक्कोत में डेरे डाले। 6 और सुक्कोत से कूच करके एताम में, जो जंगल के छोर पर हैं, डेरे डाले। 7 और एताम से कूच करके वे पीहहीरोत को मुड़ गए, जो बालसपोन के साम्हने है; और मिगदोल के साम्हने डेरे खड़े किए। 8 तब वे पीहहीरोत के साम्हने से कूच कर समुद्र के बीच होकर जंगल में गए, और एताम नाम जंगल में तीन दिन का मार्ग चलकर मारा में डेरे डाले। 9 फिर मारा से कूच करके वे एलीम को गए, और एलीम में जल के बारह सोते और सत्तर खजूर के वृझ मिले, और उन्होंने वहां डेरे खड़े किए। 10 तब उन्होंने एलीम से कूच करे लाल समुद्र के तीर पर डेरे खड़े किए। 11 और लाल समुद्र से कूच करके सीन नाम जंगल में डेरे खड़े किए। 12 फिर सीन नाम जंगल से कूच करके उन्होंने दोपका में डेरा किया। 13 और दोपका से कूच करके आलूश में डेरा किया। 14 और आलूश से कूच करके रपीदीम में डेरा किया, और वहां उन लोगोंको पीने का पानी न मिला। 15 फिर उन्होंने रपीदीम से कूच करके सीनै के जंगल में डेरे डाले। 16 और सीनै के जंगल से कूच करके किब्रोयत्तावा में डेरा किया। 17 और किब्रोयत्तावा से कूच करे हसेरोत में डेरे डाले। 18 और हसेरोत से कूच करके रित्मा में डेरे डाले। 19 फिर उन्होंने रित्मा से कूच करके रिम्मोनपेरेस में डेरे खड़े किए। 20 और रिम्मोनपेरेस से कूच करके लिब्ना में डेरे खड़े किए। 21 और लिब्ना से कूच करके रिस्सा में डेरे खड़े किए। 22 और रिस्सा से कूच करके कहेलाता में डेरा किया। 23 और कहेलाता से कूच करके शेपेर पर्वत के पास डेरा किया। 24 फिर उन्होंने शेपेर पर्वत से कूच करके हरादा में डेरा किया। 25 और हरादा से कूच करके मखेलोत में डेरा किया। 26 और मखेलोत से कूच करके तहत में डेरे खड़े किए। 27 और तहत से कूच करके तेरह में डेरे डाले। 28 और तेरह से कूच करके मित्का में डेरे डाले। 29 फिर मित्का से कूच करके उन्होंने हशमोना में डेरे डाले। 30 और हशमोना से कूच करके मोसेरोत मे डेरे खड़े किए। 31 और मोसेरोत से कूच करके याकानियोंके बीच डेरा किया। 32 और याकानियोंके बीच से कूच करके होर्हग्गिदगाद में डेरा किया। 33 और होर्हग्गिदगाद से कूच करके योतबाता में डेरा किया। 34 और योतबाता से कूच करके अब्रोना में डेरे खड़े किए। 35 और अब्रोना से कूच करके एस्योनगेबेर में डेरे खड़े किए। 36 और एस्योनगेबेर के कूच करके उन्होंने सीन नाम जंगल के कादेश में डेरा किया। 37 फिर कादेश से कूच करके होर पर्वत के पास, जो एदोम देश के सिवाने पर है, डेरे डाले। 38 वहां इस्त्राएलियोंके मिस्र देश से निकलने के चालीसवें वर्ष के पांचवें महीने के पहिले दिन को हारून याजक यहोवा की आज्ञा पाकर होर पर्वत पर चढ़ा, और वहां मर गया। 39 और जब हारून होर पर्वत पर मर गया तब वह एक सौ तेईस वर्ष का या। 40 और अरात का कनानी राजा, जो कनान देश के दक्खिन भाग में रहता या, उस ने इस्त्राएलियोंके आने का समाचार पाया। 41 तब इस्त्राएलियोंने होर पर्वत से कूच करके सलमोना में डेरे डाले। 42 और सलमोना से कूच करके पूनोन में डेरे डाले। 43 और पूनोन से कूच करके ओबोस में डेरे डाले। 44 और ओबोस से कूच करके अबारीम नाम डीहोंमें जो मोआब के सिवाने पर हैं, डेरे डाले। 45 तब उन डीहोंसे कूच करके उन्होंने दीबोनगाद में डेरा किया। 46 और दीबोनगाद से कूच करके अल्मोनदिबलातैम से कूच करके उन्होंने अबारीम नाम पहाड़ोंमें नबो के साम्हने डेरा किया। 47 और अल्मोनदिबलातैम से कूच करके उन्होंने अबारीम नाम पहाड़ोंमें नबो के साम्हने डेरा किया। 48 फिर अबारीम पहाड़ोंसे कूच करके मोआब के अराबा में, यरीहो के पास यरदन नदी के तट पर डेरा किया। 49 और वे मोआब के अराबा में वेत्यशीमोत से लेकर आबेलशित्तीम तक यरदन के तीर तीर डेरे डाले।। 50 फिर मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर, यहोवा ने मूसा से कहा, 51 इस्त्राएलियोंको समझाकर कह, जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुंचो 52 तब उस देश के निवासिक्कों उनके देश से निकाल देना; और उनके सब नक्काशे पत्यरोंको और ढली हुई मूतिर्योंको नाश करना, और उनके सब पूजा के ऊंचे स्यानोंको ढा देना। 53 और उस देश को अपके अधिक्कारने में लेकर उस में निवास करना, क्योंकि मैं ने वह देश तुम्हीं को दिया है कि तुम उसके अधिक्कारनेी हो। 54 और तुम उस देश को चिट्ठी डालकर अपके कुलोंके अनुसार बांट लेना; अर्यात् जो कुल अधिकवाले हैं उन्हें अधिक, और जो योड़ेवाले हैं उनको योड़ा भाग देना; जिस कुल की चिट्ठी जिस स्यान के लिथे निकले वही उसका भाग ठहरे; अपके पितरोंके गोत्रोंके अनुसार अपना अपना भाग लेना। 55 परन्तु यदि तुम उस देश के निवासिक्कों अपके आगे से न निकालोगे, तो उन में से जिनको तुम उस में रहने दोगे वे मानो तुम्हारी आंखोंमें कांटे और तुम्हारे पांजरोंमें कीलें ठहरेंगे, और वे उस देश में जहां तुम बसोगे तुम्हें संकट में डालेंगे। 56 और उन से जैसा बर्ताव करने की मनसा मैं ने की है वैसा ही तुम से करूंगा।
1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंको यह आज्ञा दे, कि जो देश तुम्हारा भाग होगा वह तो चारोंओर से सिवाने तक का कनान देश है, इसलिथे जब तुम कनान देश मे पहुंचों, 3 तब तुम्हारा दक्खिनी प्रान्त सीन नाम जंगल से ले एदोम देश के किनारे किनारे होता हुआ चला जाए, और तुम्हारा दक्खिनी सिवाना खारे ताल के सिक्के पर आरम्भ होकर पश्चिम की ओर चले; 4 वहां से तुम्हारा सिवाना अक्रब्बीम नाम चढ़ाई की दक्खिन की ओर पहुंचकर मुड़े, और सीन तक आए, और कादेशबर्ने की दक्खिन की ओर निकले, और हसरद्दार तक बढ़के अस्मोन तक पहुंचे; 5 फिर वह सिवाना अस्मोन से घूमकर मिस्र के नाले तक पहुंचे, और उसका अन्त समुद्र का तट ठहरे। 6 फिर पच्छिमी सिवाना महासमुद्र हो; तुम्हारा पच्छिमी सिवाना यही ठहरे। 7 और तुम्हारा उत्तरीय सिवाना यह हो, अर्यात् तुम महासमुद्र से ले होर पर्वत तक सिवाना बन्धाना; 8 और होर पर्वत से हामात की घाटी तक सिवाना बान्धना, और वह सदाद पर निकले; 9 फिर वह सिवाना जिप्रोन तक पहुंचे, और हसरेनान पर निकले; तुम्हारा उत्तरीय सिवाना यही ठहरे। 10 फिर अपना पूरबी सिवाना हसरेनान से शपाम तक बान्धना; 11 और वह सिवाना शपाम से रिबला तक, जो ऐन की पूर्व की ओर है, नीचे को उतरते उतरते किन्नेरेत नाम ताल के पूर्व से लग जाए; 12 और वह सिवाना यरदन तक उतरके खारे ताल के तट पर निकले। तुम्हारे देश के चारोंसिवाने थे ही ठहरें। 13 तब मूसा ने इस्त्राएलियोंसे फिर कहा, जिस देश के तुम चिट्ठी डालकर अधिक्कारनेी होगे, और यहोवा ने उसे साढ़े नौ गोत्र के लोगोंको देने की आज्ञा दी है, वह यही है; 14 परन्तु रूबेनियोंऔर गादियोंके गोत्र तो अपके अपके पितरोंके कुलोंके अनुसार अपना अपना भाग पा चुके हैं, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोग भी अपना भाग पा चुके हैं; 15 अर्यात् उन अढ़ाई गोत्रोंके लोग यरीहो के पास की यरदन के पार पूर्व दिशा में, जहां सूर्योदय होता है, अपना अपना भाग पा चुके हैं।। 16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 17 कि जो पुरूष तुम लोगोंके लिथे उस देश को बांटेंगे उनके नाम थे हैं; अर्यात् एलीआजर याजक और नून का पुत्र यहोशू। 18 और देश को बांटने के लिथे एक एक गोत्र का एक एक प्रधान ठहराना। 19 और इन पुरूषोंके नाम थे हैं; अर्यात् यहूदागोत्री यपुन्ने का पुत्र कालेब, 20 शिमोनगोत्री अम्मीहूद का पुत्र शमुएल, 21 बिन्यामीनगोत्री किसलोन का पुत्र एलीदाद, 22 दानियोंके गोत्र का प्रधान योग्ली का पुत्र बुक्की, 23 यूसुफियोंमें से मनश्शेइयोंके गोत्र का प्रधान एपोद का पुत्र हन्नीएल, 24 और एप्रैमियोंके गोत्र का प्रधान शिम्तान का पुत्र कमूएल, 25 जबूलूनियोंके गोत्र का प्रधान पर्नाक का पुत्र एलीसापान, 26 इस्साकारियोंके गोत्र का प्रधान अज्जान का पुत्र पलतीएल, 27 आशेरियोंके गोत्र का प्रधान शलोमी का पुत्र अहीहूद, 28 और नप्तालियोंके गोत्र का प्रधान अम्मीहूद का पुत्र पदहेल। 29 जिन पुरूषोंको यहोवा ने कनान देश को इस्त्राएलियोंके लिथे बांटने की आज्ञा दी वे थे ही हैं।।
1 फिर यहोवा ने, मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर मूसा से कहा, 2 इस्त्राएलियोंको आज्ञा दे, कि तुम अपके अपके निज भाग की भूमि में से लेवियोंको रहने के लिथे नगर देना; और नगरोंके चारोंओर की चराइयां भी उनको देना। 3 नगर तो उनके रहने के लिथे, और चराइयां उनके गाय-बैल और भेड़-बकरी आदि, उनके सब पशुओं के लिथे होंगी। 4 और नगरोंकी चराइयां, जिन्हें तुम लेवियोंको दोगे, वह एक एक नगर की शहरपनाह से बाहर चारोंओर एक एक हजार हाथ तक की हों। 5 और नगर के बाहर पूर्व, दक्खिन, पच्छिम, और उत्तर अलंग, दो दो हजार हाथ इस रीति से नापना कि नगर बीचोंबीच हो; लेवियोंके एक एक नगर की चराई इतनी ही भूमि की हो। 6 और जो नगर तुम लेवियोंको दोगे उन में से छ: शरणनगर हों, जिन्हें तुम को खूनी के भागने के लिथे ठहराना होगा, और उन से अधिक बयालीस नगर और भी देना। 7 जितने नगर तुम लेवियोंको दोगे वे सब अड़तालीस हों, और उनके साय चराइयां देना। 8 और जो नगर तुम इस्त्राएलियोंकी निज भूमि में से दो, वे जिनके बहुत नगर होंउन से योड़े लेकर देना; सब अपके अपके नगरोंमें से लेवियोंको अपके ही अपके भाग के अनुसार दें।। 9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, 10 इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुंचो, 11 तक ऐसे नगर ठहराना जो तुम्हारे लिथे शरणनगर हों, कि जो कोई किसी को भूल से मारके खूनी ठहरा हो वह वहां भाग जाए। 12 वे नगर तुम्हारे निमित्त पलटा लेनेवाले से शरण लेने के काम आएंगे, कि जब तक खूनी न्याय के लिथे मण्डली के साम्हने खड़ा न हो तब तक वह न मार डाला जाए। 13 और शरण के जो नगर तुम दोगे वे छ: हों। 14 तीन नगर तो यरदन के इस पार, और तीन कनान देश में देना; शरणनगर इतने ही रहें। 15 थे छहोंनगर इस्त्राएलियोंके और उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंके लिथे भी शरणस्यान ठहरें, कि जो कोई किसी को भूल से मार डाले वह वहीं भाग जाए। 16 परन्तु यदि कोई किसी को लोहे के किसी हयियार से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए। 17 और यदि कोई ऐसा पत्यर हाथ में लेकर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए। 18 वा कोई हाथ में ऐसी लकड़ी लेकर, जिस से कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए। 19 लोहू का पलटा लेनेवाला आप की उस खूनी को मार डाले; जब भी वह मिले तब ही वह उसे मार डाले। 20 और यदि कोई किसी को बैर से ढकेल दे, वा घात लगाकर कुछ उस पर ऐसे फेंक दे कि वह मर जाए, 21 वा शत्रुता से उसको अपके हाथ से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो जिस ने मारा हो वह अवश्य मार डाला जाए; वह खूनी ठहरेगा; लोहू का पलटा लेनेवाला जब भी वह खूनी उसे मिल जाए तब ही उसको मार डाले। 22 परन्तु यदि कोई किसी को बिना सोचे, और बिना शत्रुता रखे ढकेल दे, वा बिना घात लगाए उस पर कुछ फेंक दे, 23 वा ऐसा कोई पत्यर लेकर, जिस से कोई मर सकता है, दूसरे को बिना देखे उस पर फेंक दे, और वह मर जाए, परन्तु वह न उसका शत्रु हो, और न उसकी हानि का खोजी रहा हो; 24 तो मण्डली मारनेवाले और लोहू का पलटा लेनेवाले के बीच इन नियमोंके अनुसार न्याय करे; 25 और मण्डली उस खूनी को लोहू के पलटा लेनेवाले के हाथ से बचाकर उस शरणनगर में जहां वह पहिले भाग गया हो लौटा दे, और जब तक पवित्र तेल से अभिषेक किया हुआ महाथाजक न मर जाए तब तक वह वहीं रहे। 26 परन्तु यदि वह खूनी उस शरणस्यान के सिवाने से जिस में वह भाग गया हो बाहर निकलकर और कहीं जाए, 27 और लोहू का पलटा लेनेवाला उसको शरणस्यान के सिवाने के बाहर कहीं पाकर मार डाले, तो वह लोहू बहाने का दोषी न ठहरे। 28 क्योंकि खूनी को महाथाजक की मृत्यु तक शरणस्यान में रहना चाहिथे; और महाथाजक के मरने के पश्चात् वह अपक्की निज भूमि को लौट सकेगा। 29 तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे सब रहने के स्यानोंमें न्याय की यह विधि होगी। 30 और जो कोई किसी मनुष्य को मार डाले वह साझियोंके कहने पर मार डाला जाए, परन्तु एक ही साझी की साझी से कोई न मार डाला जाए। 31 और जो खूनी प्राणदण्ड के योग्य ठहरे उस से प्राणदण्ड के बदले में जुरमाना न लेना; वह अवश्य मार डाला जाए। 32 और जो किसी शरणस्यान में भागा हो उसके लिथे भी इस मतलब से जुरमाना न लेना, कि वह याजक के मरने से पहिले फिर अपके देश मे रहने को लौटने पाएं। 33 इसलिथे जिस देश में तुम रहोगे उसको अशुद्ध न करना; खून से तो देश अशुद्ध हो जाता है, और जिस देश में जब खून किया जाए तब केवल खूनी के लोहू बहाने ही से उस देश का प्रायश्चित्त हो सकता है। 34 जिस देश में तुम निवास करोगे उसके बीच मै रहूंगा, उसको अशुद्ध न करना; मैं यहोवा तो इस्त्राएलियोंके बीच रहता हूं।।
1 फिर यूसुफियोंके कुलोंमें से गिलाद, जो माकीर का पुत्र और मनश्शे का पोता या, उसके वंश के कुल के पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूष मूसा के समीप जाकर उस प्रधानोंके साम्हने, जो इस्त्राएलियोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूष थे, कहने लगे, 2 यहोवा ने हमारे प्रभु को आज्ञा दी यी, कि इस्त्राएलियोंको चिट्ठी डालकर देश बांट देना; और फिर यहोवा की यह भी आज्ञा हमारे प्रभु को मिली, कि हमारे सगोत्री सलोफाद का भाग उसकी बेटियोंको देना। 3 तो यदि वे इस्त्राएलियोंके और किसी गोत्र के पुरूषोंसे ब्याही जाएं, तो उनका भाग हमारे पितरोंके भाग से छूट जाएगा, और जिस गोत्र में से ब्याही जाएं उसी गोत्र के भाग में मिल जाएगा; तब हमारा भाग घट जाएगा। 4 और जब इस्त्राएलियोंकी जुबली होगी, तब जिस गोत्र में वे ब्याही जाएं उसके भाग में उनका भाग पक्की रीति से मिल जाएगा; और वह हमारे पितरोंके गोत्र के भाग से सदा के लिथे छूट जाएगा। 5 तब यहोवा से आज्ञा पाकर मूसा ने इस्त्राएलियोंसे कहा, यूसुफियोंके गोत्री ठीक कहते हैं। 6 सलोफाद की बेटियोंके विषय में यहोवा ने यह आज्ञा दी है, कि जो वर जिसकी दृष्टि में अच्छा लगे वह उसी से ब्याही जाए; परन्तु वे अपके मूलपुरूष ही के गोत्र के कुल में ब्याही जाएं। 7 और इस्त्राएलियोंके किसी गोत्र का भाग दूसरे के गोत्र के भाग में ने मिलने पाए; इस्त्राएली अपके अपके मूलपुरूष के गोत्र के भाग पर बने रहें। 8 और इस्त्राएलियोंके किसी गोत्र में किसी की बेटी हो जो भाग पानेवाली हो, वह अपके ही मूलपुरूष के गोत्र के किसी पुरूष से ब्याही जाए, इसलिथे कि इस्त्राएली अपके अपके मूलपुरूष के भाग के अधिक्कारनेी रहें। 9 किसी गोत्र का भाग दूसरे गोत्र के भाग में मिलने न पाएं; इस्त्राएलियोंके एक एक गोत्र के लोग अपके अपके भाग पर बने रहें। 10 यहोवा की आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी सलोफाद की बेटियोंने किया। 11 अर्यात् महला, तिर्सा, होग्ला, मिलका, और नोआ, जो सलोफाद की बेटियां यी, उन्होंने अपके चचेरे भाइयोंसे ब्याह किया। 12 वे यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश के कुलोंमें ब्याही गई, और उनका भाग उनके मूलपुरूष के कुल के गोत्र के अधिक्कारने में बना रहा।। 13 जो आज्ञाएं और नियम यहोवा ने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तीर पर मूसा के द्वारा इस्त्राएलियोंको दिए वे थे ही हैं।।
1 जो बातें मूसा ने यरदन के पार जंगल में, अर्यात् सूप के सामने के अराबा में, और पारान और तोपेल के बीच, और लाबान हसरोत और दीजाहाब में, सारे इस्त्राएलियोंसे कहीं वे थे हैं। 2 होरेब से कादेशबर्ने तक सेइर पहाड़ का मार्ग ग्यारह दिन का हैं। 3 चालीसवें वर्ष के ग्यारहवें महीने के पहिले दिन को जो कुछ यहोवा ने मूसा को इस्त्राएलियोंसे कहने की आज्ञा दी यी, उसके अनुसार मूसा उन से थे बातें कहने लगा। 4 अर्यात् जब मूसा ने ऐमोरियोंके राजा हेशबोनवासी सीहोन और बाशान के राजा अशतारोतवासी ओग को एद्रेई में मार डाला, 5 उसके बाद यरदन के पार मोआब देश में वह व्यवस्या का विवरण योंकरने लगा, 6 कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने होरेब के पास हम से कहा या, कि तुम लोगोंको इस पहाड़ के पास रहते हुए बहुत दिन हो गए हैं; 7 इसलिथे अब यहॉ से कूच करो, और एमोरियोंके पहाड़ी देश को, और क्या अराबा में, क्या पहाड़ोंमें, क्या नीचे के देश में, क्या दक्खिन देश में, क्या समुद्र के तीर पर, जितने लोग एमोरियोंके पास रहते हैं उनके देश को, अर्यात् लबानोन पर्वत तक और परात नाम महानद तक रहनेवाले कनानियोंके देश को भी चले जाओ। 8 सुनो, मैं उस देश को तुम्हारे साम्हने किऐ देता हॅू; जिस देश के विषय यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तुम्हारे पितरोंसे शपय खाकर कहा या, कि मैं इसे तुम को और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंश को दूंगा, उसको अब जाकर अपके अधिक्कारने में कर लो। 9 फिर उसी समय मैं ने तुम से कहा, कि मैं तुम्हारा भार अकेला नहीं सह सकता; 10 क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को यहॉ तक बढ़ाया है, कि तुम गिनती में आज आकाश के तारोंके समान हो गथे हो। 11 तुम्हारे पितरोंका परमेश्वर तुम को हजारगुणा और भी बढ़ाए, और अपके वचन के अनुसार तुम को आशीष भी देता रहे। 12 परन्तु तुम्हारे जंजाल, और भार, और फगड़े रगड़े को मैं अकेला कहॉ तक सह सकता हॅू। 13 सो तुम अपके एक एक गोत्र में से बुद्धिमान और समझदार और प्रसिद्ध पुरूष चुन लो, और मैं उन्हें तुम पर मुखिया ठहराऊॅगा। 14 इसके उत्तर में तुम ने मुझ से कहा, जो कुछ तू हम से कहता है उसका करना अच्छा है। 15 इसलिथे मैं ने तुम्हारे गोत्रोंके मुख्य पुरूषोंको जो बुद्धिमान और प्रसिद्ध पुरूष थे चुनकर तुम पर मुखिया नियुक्त किया, अर्यात् हजार-हजार, सौ-सौ, पचास-पचास, और दस-दस के ऊपर प्रधान और तुम्हारे गोत्रोंके सरदार भी नियुक्त किए। 16 और उस समय मैं ने तुम्हारे न्यायियोंको आज्ञा दी, कि तुम अपके भाइयोंके मुकद्दमे सुना करो, और उनके बीच और उनके पड़ोसियोंऔर परदेशियोंके बीच भी धर्म से न्याय किया करो। 17 न्याय करते समय किसी का पझ न करना; जैसे बड़े की वैसे ही छोटे मनुष्य की भी सुनना; किसी का मुॅह देखकर न डरना, क्योंकि न्याय परमेश्वर का काम है; और जो मुकद्दमा तुम्हारे लिथे कठिन हो, वह मेरे पास ले आना, और मैं उसे सुनूंगा। 18 और मैं ने उसी समय तुम्हारे सारे कर्त्तव्य कर्म तुम को बता दिए।। 19 और हम होरेब से कूच करके अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार उस सारे बड़े और भयानक जंगल में होकर चले, जिसे तुम ने एमोरियोंके पहाड़ी देश के मार्ग में देखा, और हम कादेशबर्ने तक आए। 20 वहाँ मैं ने तुम से कहा, तुम एमोरियोंके पहाड़ी देश तक आ गए हो जिसको हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है। 21 देखो, उस देश को तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे साम्हने किए देता है, इसलिऐ अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उस पर चढ़ो, और उसे अपके अधिक्कारने में ले लो; न तो तुम डरो और न तुम्हारा मन कच्चा हो। 22 और तुम सब मेरे पास आकर कहने लगे, हम अपके आगे पुरूषोंको भेज देंगे, जो उस देश का पता लगाकर हम को यह सन्देश दें, कि कौन सा मार्ग होकर चलना होगा और किस किस नगर में प्रवेश करना पकेगा? 23 इस बात से प्रसन्न होकर मैं ने तुम में से बारह पुरूष, अर्यात् गोत्र पीछे एक पुरूष चुन लिया; 24 और वे पहाड़ पर चढ़ गए, और एशकोल नाम नाले को पहुँचकर उस देश का भेद लिया। 25 और उस देश के फलोंमें से कुछ हाथ में लेकर हमारे पास आए, और हम को यह सन्देश दिया, कि जो देश हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है वह अच्छा है। 26 तौभी तुम ने वहाँ जाने से नाह किया, किन्तु अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरूद्ध होकर 27 अपके अपके डेरे में यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, कि यहोवा हम से बैर रखता है, इस कारण हम को मिस्र देश से निकाल ले आया है, कि हम को एमोरियोंके वश में करके सत्यनाश कर डाले। 28 हम किधर जाएँ? हमारे भाइयोंने यह कहके हमारे मन को कच्चा कर दिया है, कि वहाँ के लोग हम से बड़े और लम्बे हैं; और वहाँ के नगर बड़े बड़े हैं, और उनकी शहरपनाह आकाश से बातें करती हैं; और हम ने वहाँ अनाकवंशियोंको भी देखा है। 29 मैं ने तुम से कहा, उनके कारण त्रास मत खाओ और न डरो। 30 तुम्हारा परमेश्वर यहोवा जो तुम्हारे आगे आगे चलता है वह आप तुम्हारी ओर से लड़ेगा, जैसे कि उस ने मिस्र में तुम्हारे देखते तुम्हारे लिथे किया; 31 फिर तुम ने जंगल में भी देखा, कि जिस रीति कोई पुरूष अपके लड़के को उठाए चलता है, उसी रीति हमारा परमेश्वर यहोवा हम को इस स्यान पर पहुँचने तक, उस सारे मार्ग में जिस से हम आए हैं, उठाथे रहा। 32 इस बात पर भी तुम ने अपके उस परमेश्वर यहोवा पर विश्वास नहीं किया, 33 जो तुम्हारे आगे आगे इसलिथे चलता रहा, कि डेरे डालने का स्यान तुम्हारे लिथे ढूंढ़े, और रात को आग में और दिन को बादल में प्रगट होकर चला, ताकि तुम को वह मार्ग दिखाए जिस से तुम चलो। 34 परन्तु तुम्हारी वे बातें सुनकर यहोवा का कोप भड़क उठा, और उस ने यह शपय खाई, 35 कि निश्चय इस बुरी पीढ़ी के मनुष्योंमें से एक भी उस अच्छे देश को देखने न पाऐगा, जिसे मैं ने उनके पितरोंको देने की शपय खाई यी। 36 यपुन्ने का पुत्र कालेब ही उसे देखने पाऐगा, और जिस भूमि पर उसके पाँव पके हैं उसे मैं उसको और उसके वंश को भी दूंगा; क्योंकि वह मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिया है। 37 और मुझ पर भी यहोवा तुम्हारे कारण क्रोधित हुआ, और यह कहा, कि तू भी वहाँ जाने न पाएगा; 38 नून का पुत्र यहोशू जो तेरे साम्हने खड़ा रहता है, वह तो वहाँ जाने पाएगा; सो तू उसको हियाव दे, क्योंकि उस देश को इस्राएलियोंके अधिक्कारने में वही कर देगा। 39 फिर तुम्हारे बालबच्चे जिनके विषय में तुम कहते हो, कि थे लूट में चले जाएंगे, और तुम्हारे जो लड़केबाले अभी भले बुरे का भेद नहीं जानते, वे वहाँ प्रवेश करेंगे, और उनको मैं वह देश दूँगा, और वे उसके अधिक्कारनेी होंगे। 40 परन्तु तुम लोग घूमकर कूच करो, और लाल समुद्र के मार्ग से जंगल की ओर जाओ। 41 तब तुम ने मुझ से कहा, हम ने यहोवा के विरूद्व पाप किया हैं; अब हम अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार चढ़ाई करेंगे और लड़ेंगे। तब तुम अपके अपके हयियार बान्धकर पहाड़ पर बिना सोचे समझे चढ़ने को तैयार हो गए। 42 तब यहोवा ने मुझ से कहा, उन से कह दे, कि तुम मत चढ़ो, और न लड़ो; क्योंकि मैं तुम्हारे मध्य में नहीं हँू; कहीं ऐसा न हो कि तुम अपके शत्रुओं से हार जाओ। 43 यह बात मैं ने तुम से कह दी, परन्तु तुम ने न मानी; किन्तु ढिठाई से यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन करके पहाड़ पर चढ़ गए। 44 तब उस पहाड़ के निवासी एमोरियोंने तुम्हारा साम्हना करने को निकलकर मधुमक्खियोंकी नाई तुम्हारा पीछा किया, और सेईर देश के होर्मा तक तुम्हें मारते मारते चले आए। 45 तब तुम लौटकर यहोवा के साम्हने रोने लगे; परन्तु यहोवा ने तुम्हारी न सुनी, न तुम्हारी बातोंपर कान लगाया। 46 और तुम कादेश में बहुत दिनोंतक पके रहे, यहाँ तक कि एक जुग हो गया।।
1 तब उस आज्ञा के अनुसार, जो यहोवा ने मुझ को दी यी, हम ने घूमकर कूच किया, और लाल समुद्र के मार्ग के जंगल की ओर चले; और बहुत दिन तक सेईर पहाड़ के बाहर बाहर चलते रहे। 2 तब यहोवा ने मुझ से कहा, 3 तुम लोगोंको इस पहाड़ के बाहर बाहर चलते हुए बहुत दिन बीत गए, अब घूमकर उत्तर की ओर चलो। 4 और तू प्रजा के लोगोंको मेरी यह आज्ञा सुना, कि तुम सेईर के निवासी अपके भाई एसावियोंके सिवाने के पास होकर जाने पर हो; और वे तुम से डर जाएँगे। इसलिथे तुम बहुत चौकस रहो; 5 उन्हें न छेड़ना; क्योंकि उनके देश में से मैं तुम्हें पाँव धरने का ठौर तक न दूँगा, इस कारण कि मैं ने सेईर पर्वत एसावियोंके अधिक्कारने में कर दिया हैं। 6 तुम उन से भोजन रूपके से मोल लेकर खा सकोगे, और रूपया देकर कुंओं से पानी भरके पी सकोगे। 7 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे हाथोंके सब कामोंके विषय तुम्हें आशीष देता आया है; इस भारी जंगल में तुम्हारा चलना फिरना वह जानता हैं; इन चालीस वर्षो में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे संग संग रहा है; और तुम को कुछ घटी नहीं हुई। 8 योंहम सेईर निवासी और अपके भाई एसावियोंके पास से होकर, अराबा के मार्ग, और एलत और एस्योनगेबेर को पीछे छोड़कर चलें।। फिर हम मुड़कर मोआब के जंगल के मार्ग से होकर चले। 9 और यहोवा ने मुझ से कहा, मोआबियोंको न सताना और न लड़ाई छेड़ना, क्योंकि मैं उनके देश में से कुछ भी तेरे अधिक्कारने में न कर दूँगा क्योंकि मैं ने आर को लूतियोंके अधिक्कारने में किया है। 10 (अगले दिनोंमें वहाँ एमी लोग बसे हुए थे, जो अनाकियोंके समान बलवन्त और लम्बे लम्बे और गिनती में बहुत थे; 11 और अनाकियोंकी नाई वे भी रपाई गिने जाते थे, परन्तु मोआबी उन्हें एमी कहते हैं। 12 और अगले दिनोंमें सेईर में होरी लोग बसे हुए थे, परन्तु एसावियोंने उनको उस देश से निकाल दिया, और अपके साम्हने से नाश करके उनके स्यान पर आप बस गए; जैसे कि इस्राएलियोंने यहोवा के दिथे हुए अपके अधिक्कारने के देश में किया।) 13 अब तुम लोग कूच करके जेरेद नदी के पार जाओ; तब हम जेरेद नदी के पार आए। 14 और हमारे कादेशबर्ने को छोड़ने से लेकर जेरेद नदीे पार होने तक अड़तीस वर्ष बीत गए, उस बीच में यहोवा की शपय के अनुसार उस पीढ़ी के सब योद्धा छावनी में से नाश हो गए। 15 और जब तक वे नाश न हुए तब तक यहोवा का हाथ उन्हें छावनी में से मिटा डालने के लिथे उनके विरूद्ध बढ़ा ही रहा 16 जब सब योद्धा मरते मरते लोगोंके बीच में से नाश हो गए, 17 तब यहोवा ने मुझ से कहा, 18 अब मोआब के सिवाने, अर्यात आर को पार कर; 19 और जब तू अम्मोनियोंके साम्हने जाकर उनके निकट पहुँचे, तब उनको न सताना और न छेड़ना, क्योंकि मैं अम्मोनियोंके देश में से कुछ भी तेरे अधिक्कारने में न करूँगा, क्योंकि मैं ने उसे लूसियोंके अधिक्कारने में कर दिया है। 20 (वह देश भी रपाइयोंका गिना जाता या, क्योंकि अगले दिनोंमें रपाई, जिन्हें अम्मोनी जमजुम्मी कहते थे, वे वहाँ रहते थे; 21 वे भी अनाकियोंके समान बलवान और लम्बे लम्बे और गिनती में बहुत थे; परन्तु यहोवा ने उनको अम्मोनियोंके साम्हने से नाश कर डाला, और उन्होंने उनको उस देश से निकाल दिया, और उनके स्यान पर आप रहने लगे; 22 जैसे कि उस ने सेईर के निवासी एसावियोंके साम्हने से होरियोंको नाश किया, और उन्होंने उनको उस देश से निकाल दिया, और आज तक उनके स्यान पर वे आप निवास करते हैं। 23 वैसा ही अव्वियोंको, जो अज्जा नगर तक गाँवोंमें बसे हुए थे, उनको कप्तोरियोंने जो कप्तोर से निकले थे नाश किया, और उनके स्यान पर आप रहने लगे।) 24 अब तुम लोग उठकर कूच करो, और अर्नोन के नाले के पार चलो; सुन, मैं देश समेत हेशबोन के राजा एमोरी सीहोन को तेरे हाथ में कर देता हूँ; इसलिथे उस देश को अपके अधिक्कारने में लेना आरम्भ करो, और उस राजा से युद्ध छेड़ दो। 25 और जितने लोग धरती पर रहते हैं उन सभोंके मन में मैं आज ही के दिन से तेरे कारण डर और यरयराहट समवाने लगूंगा; वे तेरा समाचार पाकर तेरे डर के मारे कांपेंगे और पीड़ित होंगे।। 26 और मैं ने कदेमोत नाम जंगल से हेशबोन के राजा सीहोन के पास मेल की थे बातें कहने को दूत भेजे, 27 कि मुझे अपके देश में से होकर जाने दे; मैं राजपय पर चला जाऊँगा, और दहिने और बांए हाथ न मुड़ूँगा। 28 तू रूपया लेकर मेरे हाथ भोजनवस्तु देना कि मैं खाऊं, और पानी भी रूपया लेकर मुझ को देना कि मैं पीऊं; केवल मुझे पांव पांव चले जाने दे, 29 जैसा सेईर के निवासी एसावियोंने और आर के निवासी मोआबियोंने मुझ से किया, वैसा ही तू भी मुझ से कर, इस रीति मैं यरदन पार होकर उस देश में पहुंचूंगा जो हमारा परमेश्वर यहोवा हमें देता है। 30 परन्तु हेशबोन के राजा सीहोन ने हम को अपके देश में से होकर चलने न दिया; क्योंकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने उसका चित्त कठोर और उसका मन हठीला कर दिया या, इसलिथे कि उसको तुम्हारे हाथ में कर दे, जैसा कि आज प्रकट है। 31 और यहोवा ने मुझ से कहा, सुन, मैं देश समेत सीहोन को तेरे वश में कर देने पर हूँ; उस देश को अपके अधिक्कारने में लेना आरम्भ कर। 32 तब सीहोन अपक्की सारी सेना समेत निकल आया, और हमारा साम्हना करके युद्ध करने को यहस तक चढ़ा आया। 33 और हमारे परमेश्वर यहोवा ने उसको हमारे द्वारा हरा दिया, और हम ने उसको पुत्रोंऔर सारी सेना समेत मार डाला। 34 और उसी समय हम ने उसके सारे नगर ले लिए, और एक एक बसे हुए नगर का स्त्रियोंऔर बालबच्चोंसमेत यहाँ तक सत्यनाश किया कि कोई न छूटा; 35 परन्तु पशुओं को हम ने अपना कर लिया, और उन नगरोंकी लूट भी हम ने ले ली जिनको हम ने जीत लिया या। 36 अर्नोन के नाले के छोरवाले अरोएर नगर से लेकर, गिलाद तक कोई नगर ऐसा ऊँचा न रहा जो हमारे साम्हने ठहर सकता या; क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा ने सभोंको हमारे वश में कर दिया। 37 परन्तु हम अम्मोनियोंके देश के निकट, वरन यब्बोक नदी के उस पार जितना देश है, और पहाड़ी देश के नगर जहाँ जहाँ जाने से हमारे परमेश्वर यहोवा ने हम को मना किया या, वहाँ हम नहीं गए।
1 तब हम मुड़कर बाशान के मार्ग से चढ़ चले; और बाशान का ओग नाम राजा अपक्की सारी सेना समेत हमारा साम्हना करने को निकल आया, कि एद्रेई में युद्ध करे। 2 तब यहोवा ने मुझ से कहा, उस से मत डर; क्योंकि मैं उसको सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में किए देता हूँ; और जैसा तू ने हेशबोन के निवासी एमोरियोंके राजा सीहोन से किया है वैसा ही उस से भी करना। 3 सो इस प्रकार हमारे परमेश्वर यहोवा ने सारी सेना समेत बाशान के राजा ओग को भी हमारे हाथ में कर दिया; और हम उसको यहाँ तक मारते रहे कि उन में से कोई भी न बच पाया। 4 उसी समय हम ने उनके सारे नगरोंको ले लिया, कोई ऐसा नगर न रह गया जिसे हम ने उस से न ले लिया हो, इस रीति अर्गोब का सारा देश, जो बाशान में ओग के राज्य में या और उस में साठ नगर थे, वह हमारे वश में आ गया। 5 थे सब नगर गढ़वाले थे, और उनके ऊंची ऊंची शहरपनाह, और फाटक, और बेड़े थे, और इनको छोड़ बिना शहरपनाह के भी बहुत से नगर थे। 6 और जैसा हम ने हेशबोन के राजा सीहोन के नगरोंसे किया या वैसा ही हम ने इन नगरोंसे भी किया, अर्यात सब बसे हुए नगरोंको स्त्रियोंऔर बालबच्चोंसमेत सत्यानाश कर डाला। 7 परन्तु सब घरेलू पशु और नगरोंकी लूट हम ने अपक्की कर ली। 8 योंहम ने उस समय यरदन के इस पार रहनेवाले एमोरियोंके दोनोंराजाओं के हाथ से अर्नोन के नाले से लेकर हेर्मोन पर्वत तक का देश ले लिया। 9 (हेर्मोन को सीदोनी लोग सिर्योन, और एमोरी लोग सनीर कहते हैं।) 10 समयर देश के सब नगर, और सारा गिलाद, और सल्का, और एर्देई तक जो ओग के राज्य के नगर थे, सारा बाशान हमारे वश में आ गया। 11 जो रपाई रह गए थे, उन में से केवल बाशान का राजा ओग रह गया या, उसकी चारपाई जो लोहे की है वह तो अम्मोनियोंके रब्बा नगर में पक्की है, साधारण पुरूष के हाथ के हिसाब से उसकी लम्बाई नौ हाथ की और चौड़ाई चार हाथ की है। 12 जो देश हम ने उस समय अपके अधिक्कारने में ले लिया वह यह है, अर्यात अर्नोन के नाले के किनारेवाले अरोएर नगर से ले सब नगरोंसमेत गिलाद के पहाड़ी देश का आधा भाग, जिसे मैं ने रूबेनियोंऔर गादियोंको दे दिया, 13 और गिलाद का बचा हुआ भाग, और सारा बाशान, अर्यात अर्गोब का सारा देश जो ओग के राज्य में या, इन्हें मैं ने मनश्शे के आधे गोत्र को दे दिया। (सारा बाशान तो रपाइयोंका देश कहलाता है। 14 और मनश्शेई याईर ने गशूरियोंऔर माकावासियोंके सिवानोंतक अर्गोब का सारा देश ले लिया, और बाशान के नगरोंका नाम अपके नाम पर हब्बोत्याईर रखा, और वही नाम आज तक बना है।) 15 और मैं ने गिलाद देश माकीर को दे दिया, 16 और रूबेनियोंऔर गादियोंको मैं ने गिलाद से ले अर्नोन के नाले तक का देश दे दिया, अर्यात उस नाले का बीच उनका सिवाना ठहराया, और यब्बोक नदी तक जो अम्मोनियोंका सिवाना है; 17 और किन्नेरेत से ले पिसगा की सलामी के नीचे के अराबा के ताल तक, जो खारा ताल भी कहलाता है, अराबा और यरदन की पूर्व की ओर का सारा देश भी मैं ने उन्हीं को दे दिया।। 18 और उस समय मैं ने तुम्हें यह आज्ञा दी, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें यह देश दिया है कि उसे अपके अधिक्कारने में रखो; तुम सब योद्धा हयियारबन्द होकर अपके भाई इस्राएलियोंके आगे आगे पार चलो। 19 परन्तु तुम्हारी स्त्रियाँ, और बालबच्चे, और पशु, जिन्हें मैं जानता हूँ कि बहुत से हैं, वह सब तुम्हारे नगरोंमें जो मैं ने तुम्हें दिए हैं रह जाएँ। 20 और जब यहोवा तुम्हारे भाइयोंको वैसा विश्रम दे जैसा कि उस ने तुम को दिया है, और वे उस देश के अधिक्कारनेी हो जाएँ जो तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उन्हें यरदन पार देता है; तब तुम भी अपके अपके अधिक्कारने की भूमि पर जो मैं ने तुम्हें दी है लौटोगे। 21 फिर मैं ने उसी समय यहोशू से चिताकर कहा, तू ने अपक्की आँखो से देखा है कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने इन दोनोंराजाओं से क्या क्या किया है; वैसा ही यहोवा उन सब राज्योंसे करेगा जिन में तू पार होकर जाएगा। 22 उन से न डरना; क्योंकि जो तुम्हारी ओर से लड़नेवाला है वह तुम्हारा परमेश्वर यहोवा है।। 23 उसी समय मैं ने यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती की, कि हे प्रभु यहोवा, 24 तू अपके दास को अपक्की महिमा और बलवन्त हाथ दिखाने लगा है; स्वर्ग में और पृय्वी पर ऐसा कौन देवता है जो तेरे से काम और पराक्रम के कर्म कर सके? 25 इसलिथे मुझे पार जाने दे कि यरदन पारके उस उत्तम देश को, अर्यात उस उत्तम पहाड़ और लबानोन को भी देखने पाऊँ। 26 परन्तु यहोवा तुम्हारे कारण मुझ से रूष्ट हो गया, और मेरी न सुनी; किन्तु यहोवा ने मुझ से कहा, बस कर; इस विषय में फिर कभी मुझ से बातें न करना। 27 पिसगा पहाड़ की चोटी पर चढ़ जा, और पूर्व, पच्छिम, उत्तर, दक्खिन, चारोंओर दृष्टि करके उस देश को देख ले; क्योंकि तू इस यरदन के पार जाने न पाएगा। 28 और यहोशू को आज्ञा दे, और उसे ढाढ़स देकर दृढ़ कर; क्योंकि इन लोगोंके आगे आगे वही पार जाऐगा, और जो देश तू देखेगा उसको वही उनका निज भाग करा देगा। 29 तब हम बेतपोर के साम्हने की तराई में ठहरे रहे।।
1 अब, हे इस्राएल, जो जो विधि और नियम मैं तुम्हें सिखाना चाहता हूं उन्हें सुन लो, और उन पर चलो; जिस से तुम जीवित रहो, और जो देश तुम्हारे पितरोंका परमेश्वर यहोवा तुम्हें देता है उस में जाकर उसके अधिक्कारनेी हो जाओ। 2 जो आज्ञा मैं तुम को सुनाता हूं उस में न तो कुछ बढ़ाना, और न कुछ घटाना; तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की जो जो आज्ञा मैं तुम्हें सुनाता हूं उन्हें तुम मानना। 3 तुम ने तो अपक्की आंखोंसे देखा है कि बालपोर के कारण यहोवा ने क्या क्या किया; अर्यात् जितने मनुष्य बालपोर के पीछे हो लिथे थे उन सभोंको तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे बीच में से सत्यानाश कर डाला; 4 परन्तु तुम जो अपके परमेश्वर यहोवा के साय लिपके रहे हो सब के सब आज तक जीवित हो। 5 सुनो, मैं ने तो अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार तुम्हें विधि और नियम सिखाए हैं, कि जिस देश के अधिक्कारनेी होने जाते हो उस में तुम उनके अनुसार चलो। 6 सो तुम उनको धारण करना और मानना; क्योंकि और देशोंके लोगोंके साम्हने तुम्हारी बुद्धि और समझ इसी से प्रगट होगी, अर्यात् वे इन सब विधियोंको सुनकर कहेंगे, कि निश्चय यह बड़ी जाति बुद्धिमान और समझदार है। 7 देखो, कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसका देवता उसके ऐसे समीप रहता हो जैसा हमारा परमेश्वर यहोवा, जब कि हम उस को पुकारते हैं? 8 फिर कौन ऐसी बड़ी जाति है जिसके पास ऐसी धर्ममय विधि और नियम हों, जैसी कि यह सारी व्यवस्या जिसे मैं आज तुम्हारे साम्हने रखता हूं? 9 यह अत्यन्त आवश्यक है कि तुम अपके विषय में सचेत रहो, और अपके मन की बड़ी चौकसी करो, कहीं ऐसा न हो कि जो जो बातें तुम ने अपक्की आंखोंसे देखीं उनको भूल जाओ, और वह जीवन भर के लिथे तुम्हारे मन से जाती रहे; किन्तु तुम उन्हें अपके बेटोंपोतोंको सिखाना। 10 विशेष करके उस दिन की बातें जिस में तुम होरेब के पास अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े थे, जब यहोवा ने मुझ से कहा या, कि उन लोगोंको मेरे पास इकट्ठा कर कि मैं उन्हें अपके वचन सुनाऊं, जिस से वे सीखें, ताकि जितने दिन वे पृय्वी पर जीवित रहें उतने दिन मेरा भय मानते रहें, और अपके लड़के बालोंको भी यही सिखाएं। 11 तब तुम समीप जाकर उस पर्वत के नीचे खड़े हुए, और वह पहाड़ आग से धधक रहा या, और उसकी लौ आकाश तक पहुंचक्की यी, और उसके चारोंओर अन्धिक्कारनेा, और बादल, और घोर अन्धकार छाया हुआ या। 12 तक यहोवा ने उस आग के बीच में से तुम से बातें की; बातोंका शब्द तो तुम को सुनाई पड़ा, परन्तु कोई रूप न देखा; केवल शब्द ही शब्द सुन पड़ा। 13 और उस ने तुम को अपक्की वाचा के दसोंवचन बताकर उनके मानने की आज्ञा दी; और उन्हें पत्यर की दो पटियाओं पर लिख दिया। 14 और मुझ को यहोवा ने उसी समय तुम्हें विधि और नियम सिखाने की आज्ञा दी, इसलिथे कि जिस देश के अधिक्कारनेी होने को तुम पार जाने पर हो उस में तुम उनको माना करो। 15 इसलिथे तुम अपके विषय में बहुत सावधान रहना। क्योंकि जब यहोवा ने तुम से होरेब पर्वत पर आग के बीच में से बातें की तब तुम को कोई रूप न देख पड़ा, 16 कहीं ऐसा न हो कि तुम बिगड़कर चाहे पुरूष चाहे स्त्री के, 17 चाहे पृय्वी पर चलनेवाले किसी पशु, चाहे आकाश में उड़नेवाले किसी पक्की के, 18 चाहे भूमि पर रेंगनेवाले किसी जन्तु, चाहे पृय्वी के जल में रहनेवाली किसी मछली के रूप की कोई मूत्तिर् खोदकर बना लो, 19 वा जब तुम आकाश की ओर आंखे उठाकर, सूर्य, चंद्रमा, और तारोंको, अर्यात् आकाश का सारा तारागण देखो, तब बहककर उन्हें दण्डवत् करके उनकी सेवा करने लगो जिनको तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने धरती पर के सब देशवालोंके लिथे रखा है। 20 और तुम को यहोवा लोहे के भट्ठे के सरीखे मिस्र देश से निकाल ले आया है, इसलिथे कि तुम उसकी प्रजारूपी निज भाग ठहरो, जैसा आज प्रगट है। 21 फिर तुम्हारे कारण यहोवा ने मुझ से क्रोध करके यह शपय खाई, कि तू यरदन पार जाने न पाएगा, और जो उत्तम देश इस्राएलियोंका परमेश्वर यहोवा उन्हें उनका निज भाग करके देता है उस में तू प्रवेश करने न पाएगा। 22 किन्तु मुझे इसी देश में मरना है, मैं तो यरदन पार नहीं जा सकता; परन्तु तुम पार जाकर उस उत्तम देश के अधिक्कारनेी हो जाओगे। 23 इसलिथे अपके विषय में तुम सावधान रहो, कहीं ऐसा न हो कि तुम उस वाचा को भूलकर, जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम से बान्धी है, किसी और वस्तु की मूत्तिर् खोदकर बनाओ, जिसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को मना किया है। 24 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा भस्म करनेवाली आग है; वह जल उठनेवाला परमेश्वर है।। 25 यदि उस देश में रहते रहते बहुत दिन बीत जाने पर, और अपके बेटे-पोते उत्पन्न होने पर, तुम बिगड़कर किसी वस्तु के रूप की मूतिर् खोदकर बनाओ, और इस रीति से अपके परमेश्वर यहोवा के प्रति बुराई करके उसे अप्रसन्न कर दो, 26 तो मैं आज आकाश और पृय्वी को तुम्हारे विरूद्ध साझी करके कहता हूं, कि जिस देश के अधिक्कारनेी होने के लिथे तुम यरदन पार जाने पर हो उस में तुम जल्दी बिल्कुल नाश हो जाओगे; और बहुत दिन रहने न पाओगे, किन्तु पूरी रीति से नष्ट हो जाओगे। 27 और यहोवा तुम को देश देश के लोगोंमें तितर बितर करेगा, और जिन जातियोंके बीच यहोवा तुम को पहुंचाएगा उन में तुम योड़े ही से रह जाओगे। 28 और वहां तुम मनुष्य के बनाए हुए लकड़ी और पत्यर के देवताओं की सेवा करोगे, जो न देखते, और न सुनते, और न खाते, और न सूंघते हैं। 29 परन्तु वहां भी यदि तुम अपके परमेश्वर यहोवा को ढूंढ़ोगे, तो वह तुम को मिल जाएगा, शर्त यह है कि तुम अपके पूरे मन से और अपके सारे प्राण से उसे ढूंढ़ो। 30 अन्त के दिनोंमें जब तुम संकट में पड़ो, और थे सब विपत्तियां तुम पर आ पकेंगी, तब तुम अपके परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो और उसकी मानना; 31 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा दयालु ईश्वर है, वह तुम को न तो छोड़ेगा और न नष्ट करेगा, और जो वाचा उस ने तेरे पितरोंसे शपय खाकर बान्धी है उसको नहीं भूलेगा। 32 और जब से परमेश्वर ने मनुष्य हो उत्पन्न करके पृय्वी पर रखा तब से लेकर तू अपके उत्पन्न होने के दिन तक की बातें पूछ, और आकाश के एक छोर से दूसरे छोर तक की बातें पूछ, क्या ऐसाी बड़ी बात कभी हुई वा सुनने में आई है? 33 क्या कोई जाति कभी परमेश्वर की वाणी आग के बीच में से आती हुई सुनकर जीवित रही, जैसे कि तू ने सुनी है? 34 फिर क्या परमेश्वर ने और किसी जाति को दूसरी जाति के बीच में निकालने को कमर बान्धकर पक्कीझा, और चिन्ह, और चमत्कार, और युद्ध, और बली हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा से ऐसे बड़े भयानक काम किए, जैसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने मिस्र में तुम्हारे देखते किए? 35 यह सब तुझ को दिखाया गया, इसलिथे कि तू जान रखे कि यहोवा ही परमेश्वर है; उसको छोड़ और कोई है ही नहीं। 36 आकाश में से उस ने तुझे अपक्की वाणी सुनाई कि तुझे शिझा दे; और पृय्वी पर उस ने तुझे अपक्की बड़ी आग दिखाई, और उसके वचन आग के बीच में से आते हुए तुझे सुन पके। 37 और उस ने जो तेरे पितरोंसे प्रेम रखा, इस कारण उनके पीछे उनके वंश को चुन लिया, और प्रत्यझ होकर तुझे अपके बड़े सामर्य्य के द्वारा मिस्र से इसलिथे निकाल लाया, 38 कि तुझ से बड़ी और सामर्यी जातियोंको तेरे आगे से निकालकर तुझे उनके देश में पहुंचाए, और उसे तेरा निज भाग कर दे, जैसा आज के दिन दिखाई पड़ता है; 39 सो आज जान ले, और अपके मन में सोच भी रख, कि ऊपर आकाश में और नीचे पृय्वी पर यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं। 40 और तू उसकी विधियोंऔर आज्ञाओं को जो मैं आज तुझे सुनाता हूं मानना, इसलिथे कि तेरा और तेरे पीछे तेरे वंश का भी भला हो, और जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तेरे दिन बहुत वरन सदा के लिथे हों। 41 तब मूसा ने यरदन के पार पूर्व की ओर तीन नगर अलग किए, 42 इसलिथे कि जो कोई बिना जाने और बिना पहले से बैर रखे अपके किसी भाई को मार डाले, वह उन में से किसी नगर में भाग जाए, और भागकर जीवित रहे: 43 अर्यात् रूबेनियोंका बेसेर नगर जो जंगल के समयर देश में है, और गादियोंके गिलाद का रामोत, और मनश्शेइयोंके बाशान का गोलान। 44 फिर जो व्यवस्या मूसा ने इस्राएलियोंको दी वह यह है; 45 थे ही वे चितौनियां और नियम हैं जिन्हें मूसा ने इस्राएलियोंको उस समय कह सुनाया जब वे मिस्र से निकले थे, 46 अर्यात् यरदन के पार बेतपोर के साम्हने की तराई में, एमोरियोंके राजा हेशबोनवासी सीहोन के देश में, जिस राजा को उन्होंने मिस्र से निकलने के पीछे मारा। 47 और उन्होंने उसके देश को, और बाशान के राजा ओग के देश को, अपके वश में कर लिया; यरदन के पार सूर्योदय की ओर रहनेवाले एमोरियोंके राजाओं के थे देश थे। 48 यह देश अर्नोन के नाले के छोरवाले अरोएर से लेकर सीओन, जो हेर्मोन भी कहलाता है, 49 उस पर्वत तक का सारा देश, और पिसगा की सलामी के नीचे के अराबा के ताल तक, यरदन पार पूर्व की ओर का सारा अराबा है।
1 मूसा ने सारे इस्राएलियोंको बुलवाकर कहा, हे इस्राएलियों, जो जो विधि और नियम मैं आज तुम्हें सुनाता हूं वे सुनो, इसलिथे कि उन्हें सीखकर मानने में चौकसी करो। 2 हमारे परमेश्वर याहोवा ने तो होरेब पर हम से वाचा बान्धी। 3 इस वाचा को यहोवा ने हमारे पितरोंसे नहीं, हम ही से बान्धा, जो यहां आज के दिन जीवित हैं। 4 यहोवा ने उस पर्वत पर आग के बीच में से तुम लोगोंसे आम्हने साम्हने बातें की; 5 उस आग के डर के मारे तुम पर्वत पर न चढ़े, इसलिथे मैं यहोवा के और तुम्हारे बीच उसका वचन तुम्हें बताने को खड़ा रहा। तब उस ने कहा, 6 तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे दासत्व के घर आर्यात् मिस्र देश में से निकाल लाया है, वह मैं हूं। 7 मुझे छोड़ दूसरोंको परमेश्वर करके न मानना।। 8 तु अपके लिथे कोई मूतिर् खोदकर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना जो आकाश में, वा पृय्वी के जल में है; 9 तू उनको दण्डवत् न करना और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखनेवाला ईश्वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते हैं उनके बेटों, पोतों, और परपोतोंको पितरोंका दण्ड दिया करता हूं, 10 और जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं उन हजारोंपर करूणा किया करता हूं। 11 तू अपके परमेश्वर यहोवा का नाम व्यर्य न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्य ले वह उनको निर्दोष न ठहराएगा।। 12 तू विश्रमदिन को मानकर पवित्र रखना, जैसे तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी। 13 छ: दिन तो परिश्र्म करके अपना सारा कामकाज करना; 14 परन्तु सातवां दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे विश्रमदिन है; उस में न तू किसी भांति का कामकाज करना, न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरा बैल, न तेरा गदहा, न तेरा कोई पशु, न कोई परदेशी भी जो तेरे फाटकोंके भीतर हो; जिस से तेरा दास और तेरी दासी भी तेरी नाई विश्रम करे। 15 और इस बात को स्मरण रखना कि मिस्र देश में तू आप दास या, और वहां से तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा निकाल लाया; इस कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे विश्रमदिन मानने की आज्ञा देता है।। 16 अपके पिता और अपक्की माता का आदर करना, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है; जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहते पाए, और तेरा भला हो।। 17 तू हत्या न करना।। 18 तू व्यभिचार न करना।। 19 तू चोरी न करना।। 20 तू किसी के विरूद्ध फूठी साझी न देना।। 21 तू न किसी की पत्नी का लालच करना, और न किसी के घर का लालच करना, न उसके खेत का, न उसके दास का, न उसकी दासी का, न उसके बैल वा गदहे का, न उसकी किसी और वस्तु का लालच करना।। 22 यही वचन यहोवा ने उस पर्वत पर आग, और बादल, और घोर अन्धकार के बीच में से तुम्हारी सारी मण्डली से पुकारकर कहा; और इस से अधिक और कुछ न कहा। और उन्हें उस ने पत्यर की दो पटियाओं पर लिखकर मुझे दे दिया। 23 जब पर्वत आग से दहक रहा या, और तुम ने उस शब्द को अन्धिक्कारने के बीच में से आते सुना, तब तुम और तुम्हारे गोत्रोंके सब मुख्य मुख्य पुरूष और तुम्हारे पुरनिए मेरे पास आए; 24 और तुम कहने लगे, कि हमारे परमेश्वर यहोवा ने हम को अपना तेज और महीमा दिखाई है, और हम ने उसका शब्द आग के बीच में से आते हुए सुना; आज हम ने देख लिया कि यद्यपि परमेश्वर मनुष्य से बातें करता है तौभी मनुष्य जीवित रहता है। 25 अब हम क्योंमर जाएं? क्योंकि ऐसी बड़ी आग से हम भस्म हो जाएंगे; और यदि हम अपके परमेश्वर यहोवा का शब्द फिर सुनें, तब तो मर ही जाएंगे। 26 क्योंकि सारे प्राणियोंमें से कौन ऐसा है जो हमारी नाई जीवित और अग्नि के बीच में से बोलते हुए परमेश्वर का शब्द सुनकर जीवित बचा रहे? 27 इसलिथे तू समीप जा, और जो कुछ हमारा परमेश्वर यहोवा कहे उसे सुन ले; फिर जो कुछ हमारा परमेश्वर यहोवा कहे उसे हम से कहना; और हम उसे सुनेंगे और उसे मानेंगे। 28 जब तुम मुझ से थे बातें कह रहे थे तब यहोवा ने तुम्हारी बातें सुनीं; तब उस ने मुझ से कहा, कि इन लोगोंने जो जो बातें तुझ से कही हैं मैं ने सुनी हैं; इन्होंने जो कुछ कहा वह ठीक ही कहा। 29 भला होता कि उनका मन सदैव ऐसा ही बना रहे, कि वे मेरा भय मानते हुए मेरी सब आज्ञाओं पर चलते रहें, जिस से उनकी और उनके वंश की सदैव भलाई होती रहे! 30 इसलिथे तू जाकर उन से कह दे, कि अपके अपके डेरोंको लौट जाओ। 31 परन्तु तू यहीं मेरे पास खड़ा रह, और मैं वे सारी आज्ञाएं और विधियां और नियम जिन्हें तुझे उनको सिखाना होगा तुझ से कहूंगा, जिस से वे उन्हें उस देश में जिसका अधिक्कारने मैं उन्हें देने पर हूं मानें। 32 इसलिथे तुम अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार करने में चौकसी करना; न तो दहिने मुड़ना और न बांए। 33 जिस मार्ग में चलने की आज्ञा तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है उस सारे मार्ग पर चलते रहो, कि तुम जीवित रहो, और तुम्हारा भला हो, और जिस देश के तुम अधिक्कारनेी होगे उस में तुम बहुत दिनोंके लिथे बने रहो।।
1 यह वह आज्ञा, और वे विधियां और नियम हैं जो तुम्हें सिखाने की तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने आज्ञा दी है, कि तुम उन्हें उस देश में मानो जिसके अधिक्कारनेी होने को पार जाने पर हो; 2 और तू और तेरा बेटा और तेरा पोता यहोवा का भय मानते हुए उसकी उन सब विधियोंऔर आज्ञाओं पर, जो मैं तुझे सुनाता हूं, अपके जीवन भर चलते रहें, जिस से तू बहुत दिन तक बना रहे। 3 हे इस्राएल, सुन, और ऐसा ही करने की चौकसी कर; इसलिथे कि तेरा भला हो, और तेरे पितरोंके परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उस देश में जहां दूध और मधु की धाराएं बहती हैं तुम बहुत हो जाओ। 4 हे इस्राएल, सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है; 5 तू अपके परमेश्वर यहोवा से अपके सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साय प्रेम रखना। 6 और थे आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; 7 और तू इन्हें अपके बालबच्चोंको समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना। 8 और इन्हें अपके हाथ पर चिन्हानी करके बान्धना, और थे तेरी आंखोंके बीच टीके का काम दें। 9 और इन्हें अपके अपके घर के चौखट की बाजुओं और अपके फाटकोंपर लिखना।। 10 और जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उस देश में पहुंचाए जिसके विषय में उस ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब नाम, तेरे पूर्वजोंसे तुझे देने की शपय खाई, और जब वह तुझ को बड़े बड़े और अच्छे नगर, जो तू ने नहीं बनाए, 11 और अच्छे अच्छे पदार्योंसे भरे हुए घर, जो तू ने नहीं भरे, और खुदे हुए कुंए, जो तू ने नहीं खोदे, और दाख की बारियां और जलपाई के वझृ, जो तू ने नहीं लगाए, थे सब वस्तुएं जब वह दे, और तू खाके तृप्त हो, 12 तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि तू यहोवा को भूल जाए, जो तुझे दासत्व के घर अर्यात् मिस्र देश से निकाल लाया है। 13 अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना, और उसी के नाम की शपय खाना। 14 तुम पराए देवताओं के, अर्यात् अपके चारोंओर के देशोंके लोगोंके देवताओं के पीछे न हो लेना; 15 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा जो तेरे बीच में है वह जल उठनेवाला ईश्वर है; कहीं ऐसा न हो कि तेरे परमेश्वर यहोवा का कोप तुझ पर भड़के, और वह तुझ को पृय्वी पर से नष्ट कर डाले।। 16 तुम अपके परमेश्वर यहोवा की पक्कीझा न करना, जैसे कि तुम ने मस्सा में उसकी पक्कीझा की यी। 17 अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं, चितौनियों, और विधियोंको, जो उस ने तुझ को दी हैं, सावधानी से मानना। 18 और जो काम यहोवा की दृष्टि में ठीक और सुहावना है वही किया करना, जिस से कि तेरा भला हो, और जिस उत्तम देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाई उस में तू प्रवेश करके उसका अधिक्कारनेी हो जाए, 19 कि तेरे सब शत्रु तेरे साम्हने से दूर कर दिए जाएं, जैसा कि यहोवा ने कहा या।। 20 फिर आगे को जब तेरा लड़का तुझ से पूछे, कि थे चितौनियां और विधि और नियम, जिनके मानने की आज्ञा हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को दी है, इनका प्रयोजन क्या है? 21 तब अपके लड़के से कहना, कि जब हम मिस्र में फिरौन के दास थे, तब यहोवा बलवन्त हाथ से हम को मिस्र में से निकाल ले आया; 22 और यहोवा ने हमारे देखते मिस्र में फिरौन और उसके सारे घराने को दु:ख देनेवाले बड़े बड़े चिन्ह और चमत्कार दिखाए; 23 और हम को वह वहां से निकाल लाया, इसलिथे कि हमें इस देश में पहुंचाकर, जिसके विषय में उस ने हमारे पूर्वजोंसे शपय खाई यी, इसको हमें सौंप दे। 24 और यहोवा ने हमें थे सब विधियां पालने की आज्ञा दी, इसलिथे कि हम अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और इस रीति सदैव हमारा भला हो, और वह हम को जीवित रखे, जैसा कि आज के दिन है। 25 और यदि हम अपके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में उसकी आज्ञा के अनुसार इन सारे नियमोंको मानने में चौकसी करें, तो वह हमारे लिथे धर्म ठहरेगा।।
1 फिर जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उस देश में जिसके अधिक्कारनेी होने को तू जाने पर है पहुंचाए, और तेरे साम्हने से हित्ती, गिर्गाशी, एमोरी, कनानी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी नाम, बहुत सी जातियोंको अर्यात् तुम से बड़ी और सामर्यी सातोंजातियोंको निकाल दे, 2 और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे द्वारा हरा दे, और तू उन पर जय प्राप्त कर ले; तब उन्हें पूरी रीति से नष्ट कर डालना; उन से न वाचा बान्धना, और न उन पर दया करना। 3 और न उन से ब्याह शादी करना, न तो उनकी बेटी को अपके बेटे के लिथे ब्याह लेना। 4 क्योंकि वे तेरे बेटे को मेरे पीछे चलने से बहकाएंगी, और दूसरे देवताओं की उपासना करवाएंगी; और इस कारण यहोवा का कोप तुम पर भड़क उठेगा, और वह तुझ को शीघ्र सत्यानाश कर डालेगा। 5 उन लोगोंसे ऐसा बर्ताव करना, कि उनकी वेदियोंको ढा देना, उनकी लाठोंको तोड़ डालना, उनकी अशेरा नाम मूत्तिर्योंको काट काटकर गिरा देना, और उनकी खुदी हुई मूत्तियोंको आग में जला देना। 6 क्योंकि तू अपके परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा है; यहोवा ने पृय्वी भर के सब देशोंके लोगोंमें से तुझ को चुन लिया है कि तू उसकी प्रजा और निज धन ठहरे। 7 यहोवा ने जो तुम से स्नेह करके तुम को चुन लिया, इसका कारण यह नहीं या कि तुम गिनती में और सब देशोंके लोगोंसे अधिक थे, किन्तु तुम तो सब देशोंके लोगोंसे गिनती में योड़े थे; 8 यहोवा ने जो तुम को बलवन्त हाथ के द्वारा दासत्व के घर में से, और मिस्र के राजा फिरौन के हाथ से छुड़ाकर निकाल लाया, इसका यही करण है कि वह तुम से प्रेम रखता है, और उस शपय को भी पूरी करना चाहता है जो उस ने तुम्हारे पूर्वजोंसे खाई यी। 9 इसलिथे जान रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा ही परमेश्वर है, वह विश्वासयोग्य ईश्वर है; और जो उस से प्रेम रखते और उसकी आज्ञाएं मानते हैं उनके साय वह हजार पीढ़ी तक अपक्की वाचा पालता, और उन पर करूणा करता रहता है; 10 और जो उस से बैर रखते हैं वह उनके देखते उन से बदला लेकर नष्ट कर डालता है; अपके बैरी के विषय में विलम्ब न करेगा, उसके देखते ही उस से बदला लेगा। 11 इसलिथे इन आज्ञाओं, विधियों, और नियमोंको, जो मैं आज तुझे चिताता हूं, मानने में चौकसी करना।। 12 और तुम जो इन नियमोंको सुनकर मानोगे और इन पर चलोगे, तो तेरा परमेश्र यहोवा भी करूणामय वाचा को पालेगा जिसे उस ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर बान्धी यी; 13 और वह तुझ से प्रेम रखेगा, और तुझे आशीष देगा, और गिनती में बढ़ाएगा; और जो देश उस ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर तुझे देने को कहा है उस में वह तेरी सन्तान पर, और अन्न, नथे दाखमधु, और टटके तेल आदि, भूमि की उपज पर आशीष दिया करेगा, और तेरी गाय-बैल और भेड़-बकरियोंकी बढ़ती करेगा। 14 तू सब देशोंके लोगोंसे अधिक धन्य होगा; तेरे बीच में न पुरूष न स्त्री निर्वंश होगी, और तेरे पशुओं में भी ऐसा कोई न होगा। 15 और यहोवा तुझ से सब प्रकार के रोग दूर करेगा; और मिस्र की बुरी बुरी व्याधियां जिन्हें तू जानता है उन में से किसी को भी तुझे लगने न देगा, थे सब तेरे बैरियोंही को लगेंगे। 16 और देश देश के जितने लोगोंको तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे वश में कर देगा, तू उन सभोंको सत्यानाश करना; उन पर तरस की दृष्टि न करना, और न उनके देवताओं की उपासना करना, नहीं तो तू फन्दे में फंस जाएगा। 17 यदि तू अपके मन में सोचे, कि वे जातियां जो मुझ से अधिक हैं; तो मैं उनको क्योंकर देश से निकाल सकूंगा? 18 तौभी उन से न डरना, जो कुछ तेरे परमेश्वर यहोवा ने फिरौन से और सारे मिस्र से किया उसे भली भांति स्मरण रखना। 19 जो बड़े बड़े पक्कीझा के काम तू ने अपक्की आंखोंसे देखे, और जिन चिन्हों, और चमत्कारों, और जिस बलवन्त हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को निकाल लाया, उनके अनुसार तेरा परमेश्वर यहोवा उन सब लोगोंसे भी जिन से तू डरता है करेगा। 20 इस से अधिक तेरा परमेश्वर यहोवा उनके बीच बर्रे भी भेजेगा, यहां तक कि उन में से जो बचकर छिप जाएंगे वे भी तेरे साम्हने से नाश हो जाएंगे। 21 उस से भय न खाना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे बीच में है, और वह महान् और भय योग्य ईश्वर है। 22 तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियोंको तेरे आगे से धीरे धीरे निकाल देगा; तो तू एक दम से उनका अन्त न कर सकेगा, नहीं तो बनैले पशु बढ़कर तेरी हानि करेंगे। 23 तौभी तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तुझ से हरवा देगा, और जब तक वे सत्यानाश न हो जाएं तब तक उनको अति व्याकुल करता रहेगा। 24 और वह उनके राजाओं को तेरे हाथ में करेगा, और तू उनका भी नाम धरती पर से मिटा डालेगा; उन में से कोई भी तेरे साम्हने खड़ा न रह सकेगा, और अन्त में तू उन्हें सत्यानाश कर डालेगा। 25 उनके देवताओं की खुदी हुई मूत्तिर्यां तुम आग में जला देना; जो चांदी वा सोना उन पर मढ़ा हो उसका लालच करके न ले लेना, नहीं तो तू उसके कारण फन्दे में फंसेगा; क्योंकि ऐसी वस्तुएं तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं। 26 और कोई घृणित वस्तु अपके घर में न ले आना, नहीं तो तू भी उसके समान नष्ट हो जाने की वस्तु ठहरेगा; उसे सत्यानाश की वस्तु जानकर उस से घृणा करना और उसे कदापि न चाहना; क्योंकि वह अशुद्ध वस्तु है।
1 जो जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं उन सभोंपर चलने की चौकसी करना, इसलिथे कि तुम जीवित रहो और बढ़ते रहो, और जिस देश के विषय में यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजोंसे शपय खाई है उस में जाकर उसके अधिक्कारनेी हो जाओ। 2 और स्मरण रख कि तेरा परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षोंमें तुझे सारे जंगल के मार्ग में से इसलिथे ले आया है, कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी पक्कीझा करके यह जान ले कि तेरे मन में क्या क्या है, और कि तू उसकी आज्ञाओं का पालन करेगा वा नहीं। 3 उस ने तुझ को नम्र बनाया, और भूखा भी होने दिया, फिर वह मन्ना, जिसे न तू और न तेरे पुरखा ही जानते थे, वही तुझ को खिलाया; इसलिथे कि वह तुझ को सिखाए कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं जीवित रहता, परन्तु जो जो वचन यहोवा के मुंह से निकलते हैं उन ही से वह जीवित रहता है। 4 इन चालीस वर्षोंमें तेरे वस्त्र पुराने न हुए, और तेरे तन से भी नहीं गिरे, और न तेरे पांव फूले। 5 फिर अपके मन में यह तो विचार कर, कि जैसा कोई अपके बेटे को ताड़ना देता है वैसे ही तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को ताड़ना देता है। 6 इसलिथे अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं का पालन करते हुए उसके मागार्ें पर चलना, और उसका भय मानते रहना। 7 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे एक उत्तम देश में लिथे जा रहा है, जो जल की नदियोंका, और तराइयोंऔर पहाड़ोंसे निकले हुए गहिरे गहिरे सोतोंका देश है। 8 फिर वह गेहूं, जौ, दाखलताओं, अंजीरों, और अनरोंका देश है; और तेलवाली जलपाई और मधु का भी देश है। 9 उस देश में अन्न की महंगी न होगी, और न उस में तुझे किसी पदार्य की घटी होगी; वहां के पत्यर लोहे के हैं, और वहां के पहाड़ोंमें से तू तांबा खोदकर निकाल सकेगा। 10 और तू पेट भर खाएगा, और उस उत्तम देश के कारण जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देगा उसका धन्य मानेगा। 11 इसलिथे सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि अपके परमेश्वर यहोवा को भूलकर उसकी जो जो आज्ञा, नियम, और विधि, मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका मानना छोड़ दे; 12 ऐसा न हो कि जब तू खाकर तृप्त हो, और अच्छे अच्छे घर बनाकर उन में रहने लगे, 13 और तेरी गाय-बैलोंऔर भेड़-बकरियोंकी बढ़ती हो, और तेरा सोना, चांदी, और तेरा सब प्रकार का धन बढ़ जाए, 14 तब तेरे मन में अहंकार समा जाए, और तू अपके परमेश्वर यहोवा को भूल जाए, जो तुझ को दासत्व के घर अर्यात् मिस्र देश से निकाल लाया है, 15 और उस बड़े और भयानक जंगल में से ले आया है, जहां तेज विषवाले सर्प और बिच्छू हैं, और जलरहित सूखे देश में उस ने तेरे लिथे चकमक की चट्ठान से जल निकाला, 16 और तुझे जंगल में मन्ना खिलाया, जिसे तुम्हारे पुरखा जानते भी न थे, इसलिथे कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी पक्कीझा करके अन्त में तेरा भला ही करे। 17 और कहीं ऐसा न हो कि तू सोचने लगे, कि यह सम्पत्ति मेरे ही सामर्य्य और मेरे ही भुजबल से मुझे प्राप्त हुई। 18 परन्तु तू अपके परमेश्वर यहोवा को स्मरण रखना, क्योंकि वही है जो तुझे सम्पति प्राप्त करने का सामर्य्य इसलिथे देता है, कि जो वाचा उस ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर बान्धी यी उसको पूरा करे, जैसा आज प्रगट है। 19 यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा को भूलकर दूसरे देवताओं के पीछे हो लेगा, और उसकी उपासना और उनको दण्डवत् करेगा, तो मैं आज तुम को चिता देता हूं कि तुम नि:सन्देह नष्ट हो जाओगे। 20 जिन जातियोंको यहोवा तुम्हारे सम्मुख से नष्ट करने पर है, उन्ही की नाई तुम भी अपके परमेश्वर यहोवा का वचन न मानने के कारण नष्ट हो जाओगे।
1 हे इस्राएल, सुन, आज तू यरदन पार इसलिथे जानेवाला है, कि ऐसी जातियोंको जो तुझ से बड़ी और सामर्यी हैं, और ऐसे बड़े नगरोंको जिनकी श्हरपनाह आकाश से बातें करती हैं, अपके अधिक्कारने में ले ले। 2 उन में बड़े बड़े और लम्बे लम्बे लोग, अर्यात् अनाकवंशी रहते हैं, जिनका हाल तू जानता है, और उनके विषय में तू ने यह सुना है, कि अनाकवशियोंके साम्हने कौन ठहर सकता है? 3 इसलिथे आज तू यह जान ले, कि जो तेरे आगे भस्म करनेवाली आग की नाई पार जानेवाला है वह तेरा परमेश्वर यहोवा है; और वह उनका सत्यानाश करेगा, और वह उनको तेरे साम्हने दबा देगा; और तू यहोवा के वचन के अनुसार उनको उस देश से निकालकर शीघ्र ही नष्ट कर डालेगा। 4 जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे साम्हने से निकाल चुके तब यह न सोचना, कि यहोवा तेरे धर्म के कारण तुझे इस देश का अधिक्कारनेी होने को ले आया है, किन्तु उन जातियोंकी दुष्टता ही के कारण यहोवा उनको तेरे साम्हने से निकालता है। 5 तू जो उनके देश का अधिक्कारनेी होने के लिथे जा रहा है, इसका कारण तेरा धर्म वा मन की सीधाई नहीं है; तेरा परमेश्वर यहोवा जो उन जातियोंको तेरे साम्हने से निकालता है, उसका कारण उनकी दुष्टता है, और यह भी कि जो वचन उस ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजोंको शपय खाकर दिया या, उसको वह पूरा करना चाहता है। 6 इसलिथे यह जान ले कि तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझे वह अच्छा देश देता है कि तू उसका अधिक्कारनेी हो, उसे वह तेरे धर्म के कारण नहीं दे रहा है; क्योंकि तू तो एक हठीली जाति है। 7 इस बात का स्मरण रख और कभी भी न भूलना, कि जंगल में तू ने किस किस रीति से अपके परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया; और जिस देश से तू मिस्र देश से निकला है जब तक तुम इस स्यान पर न पहंुचे तब तक तुम यहोवा से बलवा ही बलवा करते आए हो। 8 फिर होरेब के पास भी तुम ने यहोवा को क्रोधित किया, और वह क्रोधित होकर तुम्हें नष्ट करना चाहता या। 9 जब मैं उस वाचा के पत्यर की पटियाओं को जो यहोवा ने तुम से बान्धी यी लेने के लिथे पर्वत के ऊपर चढ़ गया, तब चालीस दिन और चालीस रात पर्वत ही के ऊपर रहा; और मैं ने न तो रोटी खाई न पानी पिया। 10 और यहोवा ने मुझे अपके ही हाथ की लिखी हुई पत्यर की दोनोंपटियाओं को सौंप दिया, और वे ही वचन जिन्हें यहोवा ने पर्वत के ऊपर आग के मध्य में से सभा के दिन तुम से कहे थे वे सब उन पर लिखे हुए थे। 11 और चालीस दिन और चालीस रात के बीत जाने पर यहोवा ने पत्यर की वे दो वाचा की पटियाएं मुझे दे दीं। 12 और यहोवा ने मुझ से कहा, उठ, यहां से फटपट नीचे जा; क्योकिं तेरी प्रजा के लोग जिनको तू मिस्र से निकालकर ले आया है वे बिगड़ गए हैं; जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैं ने उन्हें दी यी उसको उन्होंने फटपट छोड़ दिया है; अर्यात् उन्होंने तुरन्त अपके लिथे एक मूत्तिर् ढालकर बना ली है। 13 फिर यहोवा ने मुझ से यह भी कहा, कि मैं ने उन लोगो को देख लिया, वे हठीली जाति के लोग हैं; 14 इसलिथे अब मुझे तू मत रोक, ताकि मैं उन्हें नष्ट कर डालूं, और धरती के ऊपर से उनका नाम वा चिन्ह तक मिटा डालूं, और मैं उन से बढ़कर एक बड़ी और सामर्यी जाति तुझी से उत्पन्न करूंगा। 15 तब मैं उलटे पैर पर्वत से नीचे उतर चला, और मेरे दोनोंहाथोंमें वाचा की दोनोंपटियाएं यीं। 16 और मैं ने देखा कि तुम ने अपके परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध महापाप किया; और अपके लिथे एक बछड़ा ढालकर बना लिया है, और तुरन्त उस मार्ग से जिस पर चलने की आज्ञा यहोवा ने तुम को दी यी उसको तुम ने तज दिया। 17 तब मैं ने उन दोनोंपटियाओं को अपके दोनो हाथोंसे लेकर फेंक दिया, और तुम्हारी आंखोंके साम्हने उनको तोड़ डाला। 18 तब तुम्हारे उस महापाप के कारण जिसे करके तुम ने यहोवा की दृष्टि में बुराई की, और उसे रीस दिलाई यी, मैं यहोवा के साम्हने मुंह के बल गिर पड़ा, और पहिले की नाई, अर्यात् चालीस दिन और चालीस रात तक, न तो रोटी खाई और न पानी पिया। 19 मैं तो यहोवा के उस कोप और जल-जलाहट से डर रहा या, क्योंकि वह तुम से अप्रसन्न होकर तुम्हें सत्यानाश करने को या। परन्तु यहोवा ने उस बार भी मेरी सुन ली। 20 और यहोवा हारून से इतना क्रोधित हुआ कि उसे भी सत्यानाश करना चाहा; परन्तु उसी समय मैं ने हारून के लिथे भी प्रार्यना की। 21 और मैं ने वह बछड़ा जिसे बनाकर तुम पापी हो गए थे लेकर, आग में डालकर फूंक दिया; और फिर उसे पीस पीसकर ऐसा चूर चूरकर डाला कि वह धूल की नाई जीर्ण हो गया; और उसकी उस राख को उस नदी में फेंक दिया जो पर्वत से निकलकर नीचे बहती यी। 22 फिर तबेरा, और मस्सा, और किब्रोतहत्तावा में भी तुम ने यहोवा को रीस दिलाई यी। 23 फिर जब यहोवा ने तुम को कोदशबर्ने से यह कहकर भेजा, कि जाकर उस देश के जिसे मैं ने तुम्हें दिया है अधिक्कारनेी हो जाओ, तब भी तुम ने अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के विरूद्ध बलवा किया, और न तो उसका विश्वास किया, और न उसकी बात मानी। 24 जिस दिन से मैं तुम्हें जानता हूं उस दिन से तुम यहोवा से बलवा ही करते आए हो। 25 मैं यहोवा के साम्हने चालीस दिन और चालीस रात मुंह के बल पड़ा रहा, क्योंकि यहोवा ने कह दिया या, कि वह तुम को सत्यानाश करेगा। 26 और मैं ने यहोवा से यह प्रार्यना की, कि हे प्रभु यहोवा, अपना प्रजारूपी निज भाग, जिनको तू ने अपके महान् प्रताप से छुड़ा लिया है, और जिनको तू ने अपके बलवन्त हाथ से मिस्र से निकाल लिया है, उन्हें नष्ट न कर। 27 अपके दास इब्राहीम, इसहाक, और याकूब को स्मरण कर; और इन लोगोंकी कठोरता, और दुष्टता, और पाप पर दृष्टि न कर, 28 जिस से ऐसा न हो कि जिस देश से तू हम को निकालकर ले आया है, वहां से लोग कहने लगें, कि यहोवा उन्हें उस देश में जिसके देश का वचन उनको दिया या नहीं पहुंचा सका, और उन से बैर भी रखता या, इसी कारण उस ने उन्हें जंगल में निकालकर मार डाला है। 29 थे लोग तेरी प्रजा और निज भाग हैं, जिनको तू ने अपके बड़े सामर्य्य और बलवन्त भुजा के द्वारा निकाल ले आया है।।
1 उस समय यहोवा ने मुझ से कहा, पहिली पटियाओं के समान पत्यर की दो और पटियाएं गढ़ ले, और उन्हें लेकर मेरे पास पर्वत के ऊपर आ जा, और लकड़ी का एक सन्दूक भी बनवा ले। 2 और मैं उन पटियाओं पर वे ही वचन लिखूंगा, जो उन पहिली पटियाओं पर थे, जिन्हें तू ने तोड़ डाला, और तू उन्हें उस सन्दूक में रखना। 3 तब मैं ने बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनवाया, और पहिली पटियाओं के समान पत्यर की दो और पटियाएं गढ़ीं, तब उन्हें हाथोंमें लिथे हुए पर्वत पर चढ़ गया। 4 और जो दस वचन यहोवा ने सभा के दिन पर्वत पर अग्नि के मध्य में से तुम से कहे थे, वे ही उस ने पहिलोंके समान उन पटियाओं पर लिखे; और उनको मुझे सौंप दिया। 5 तब मै पर्वत से नीचे उतर आया, और पटियाओं को अपके बनवाए हुए सन्दूक में धर दिया; और यहोवा की आज्ञा के अनुसार वे वहीं रखीं हुई हैं। 6 तब इस्राएली याकानियोंके कुओं से कूच करके मोसेरा तक आए। वहां हारून मर गया, और उसको वहीं मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र एलीआजर उसके स्यान पर याजक का काम करने लगा। 7 वे वहां से कूच करके गुदगोदा को, और गुदगोदा से योतबाता को चले, इस देश में जल की नदियां हैं। 8 उस समय यहोवा ने लेवी गोत्र को इसलिथे अलग किया कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक उठाया करें, और यहोवा के सम्मुख खड़े होकर उसकी सेवाटहल किया करें, और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें, जिस प्रकार कि आज के दिन तक होता आ रहा है। 9 इस कारण लेवियोंको अपके भाईयोंके साय कोई निज अंश वा भाग नहीं मिला; यहोवा ही उनका निज भाग है, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उन से कहा या। 10 मैं तो पहिले की नाई उस पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात ठहरा रहा, और उस बार भी यहोवा ने मेरी सुनी, और तुझे नाश करने की मनसा छोड़ दी। 11 फिर यहोवा ने मुझ से कहा, उठ, और तू इन लोगोंकी अगुवाई कर, ताकि जिस देश के देने को मैं ने उनके पूर्वजोंसे शपय खाकर कहा या उस में वे जाकर उसको अपके अधिक्कारने में कर लें।। 12 और अब, हे इस्राएल, तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और उसके सारे मार्गोंपर चले, उस से प्रेम रखे, और अपके पूरे मन और अपके सारे प्राण से उसकी सेवा करे, 13 और यहोवा की जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनको ग्रहण करे, जिस से तेरा भला हो? 14 सुन, स्वर्ग और सब से ऊंचा स्वर्ग भी, और पृय्वी और उस में जो कुछ है, वह सब तेरे परमेश्वर यहोवा ही का है; 15 तौभी यहोवा ने तेरे पूर्वजोंसे स्नेह और प्रेम रखा, और उनके बाद तुम लोगोंको जो उनकी सन्तान हो सर्व देशोंके लोगोंके मध्य में से चुन लिया, जैसा कि आज के दिन प्रगट है। 16 इसलिथे अपके अपके ह्रृदय का खतना करो, और आगे को हठीले न रहो। 17 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा वही ईश्वरोंका परमेश्वर और प्रभुओं का प्रभु है, वह महान् पराक्रमी और भय योग्य ईश्वर है, जो किसी का पझ नहीं करता और न घूस लेता है। 18 वह अनायोंऔर विधवा का न्याय चुकाता, और परदेशियोंसे ऐसा प्रेम करता है कि उन्हें भोजन और वस्त्र देता है। 19 इसलिथे तुम भी परदेशियोंसे प्रेम भाव रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में पकेदशी थे। 20 अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानना; उसी की सेवा करना और उसी से लिपके रहना, और उसी के नाम की शपय खाना। 21 वही तुम्हारी स्तुति के योग्य है; और वही तेरा परमेश्वर है, जिस ने तेरे साय वे बड़े महत्व के और भयानक काम किए हैं, जिन्हें तू ने अपक्की आंखोंसे देखा है। 22 तेरे पुरखा जब मिस्र में गए तब सत्तर ही मनुष्य थे; परन्तु अब तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरी गिनती आकाश के तारोंके समान बहुत कर दिया है।।
1 इसलिथे तू अपके परमेश्वर यहोवा से अत्यन्त प्रेम रखना, और जो कुछ उस ने तुझे सौंपा है उसका, अर्यात् उसी विधियों, नियमों, और आज्ञाओं का नित्य पालन करना। 2 और तुम आज यह सोच समझ लो (क्योंकि मैं तो तुम्हारे बाल-बच्चोंसे नहीं कहता,) जिन्होंने न तो कुछ देखा और न जाना है कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने क्या क्या ताड़ना की, और कैसी महिमा, और बलवन्त हाथ, और बढ़ाई हुई भुजा दिखाई, 3 और मिस्र में वहां के राजा फिरौन को कैसे कैसे चिन्ह दिखाए, और उसके सारे देश में कैसे कैसे चमत्कार के काम किए; 4 और उस ने मिस्र की सेना के घोड़ोंऔर रयोंसे क्या किया, अर्यात् जब वे तुम्हारा पीछा कर रहे थे तब उस ने उनको लाल समुद्र में डुबोकर किस प्रकार नष्ट कर डाला, कि आज तक उनका पता नहीं; 5 और तुम्हारे इस स्यान में पहुंचने तक उस ने जंगल में तुम से क्या क्या किया; 6 औैर उस ने रूबेनी एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम से क्या क्या किया; अर्यात् पृय्वी ने अपना मुंह पसारके उनको घरानों, और डेरों, और सब अनुचरोंसमेत सब इस्राएलियोंके देखते देखते कैसे निगल लिया; 7 परन्तु यहोवा के इन सब बड़े बड़े कामोंको तुम ने अपक्की आंखोंसे देखा है। 8 इस कारण जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सभोंको माना करना, इसलिथे कि तुम सामर्यी होकर उस देश में जिसके अधिक्कारनेी होने के लिथे तुम पार जा रहे हो प्रवेश करके उसके अधिक्कारनेी हो जाओ, 9 और उस देश में बहुत दिन रहने पाओ, जिसे तुम्हें और तुम्हारे वंश को देने की शपय यहोवा ने तुम्हारे पूर्वजोंसे खाईं यी, और उस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं। 10 देखो, जिस देश के अधिक्कारनेी होने को तुम जा रहे हो वह मिस्र देश के समान नहीं है, जहां से निकलकर आए हो, जहां तुम बीज बोते थे और हरे साग के खेत की रीति के अनुसार अपके पांव की नलियां बनाकर सींचते थे; 11 परन्तु जिस देश के अधिक्कारनेी होने को तुम पार जाने पर हो वह पहाड़ोंऔर तराईयोंका देश है, और आकाश की वर्षा के जल से सिंचता है; 12 वह ऐसा देश है जिसकी तेरे परमेश्वर यहोवा को सुधि रहती है; और वर्ष के आदि से लेकर अन्त तक तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि उस पर निरन्तर लगी रहती है।। 13 और यदि तुम मेरी आज्ञाओं को जो आज मैं तुम्हें सुनाता हूं ध्यान से सुनकर, अपके सम्पूर्ण मन और सारे प्राण के साय, अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो और उसकी सेवा करते रहो, 14 तो मैं तुम्हारे देश में बरसात के आदि और अन्त दोनोंसमयोंकी वर्षा को अपके अपके समय पर बरसाऊंगा, जिस से तू अपना अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल संचय कर सकेगा। 15 और मै तेरे पशुओं के लिथे तेरे मैदान में घास उपजाऊंगा, और तू पेट भर खाएगा और सन्तुष्ट रहेगा। 16 इसलिथे अपके विषय में सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन धोखा खाएं, और तुम बहककर दूसरे देवताओं की पूजा करने लगो और उनको दण्डवत् करने लगो, 17 और यहोवा का कोप तुम पर भड़के, और वह आकाश की वर्षा बन्द कर दे, और भूमि अपक्की उपज न दे, और तुम उस उत्तम देश में से जो यहोवा तुम्हें देता है शीघ्र नष्ट हो जाओ। 18 इसलिथे तुम मेरे थे वचन अपके अपके मन और प्राण में धारण किए रहना, और चिन्हानी के लिथे अपके हाथोंपर बान्धना, और वे तुम्हारी आंखोंके मध्य में टीके का काम दें। 19 और तुम घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते-उठते इनकी चर्चा करके अपके लड़केबालोंको सिखाया करना। 20 और इन्हें अपके अपके घर के चौखट के बाजुओं और अपके फाटकोंके ऊपर लिखना; 21 इसलिथे कि जिस देश के विषय में यहोवा ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर कहा या, कि मैं उसे तुम्हें दूंगा, उस में तुम्हारे और तुम्हारे लड़केबालोंकी दीर्घायु हो, और जब तक पृय्वी के ऊपर का आकाश बना रहे तब तक वे भी बने रहें। 22 इसलिथे यदि तुम इन सब आज्ञाओं के मानने में जो मैं तुम्हें सुनाता हूं पूरी चौकसी करके अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो, और उसके सब मार्गोंपर चलो, और उस से लिपके रहो, 23 तो यहोवा उन सब जातियोंको तुम्हारे आगे से निकाल डालेगा, और तुम अपके से बड़ी और सामर्यी जातियोंके अधिक्कारनेी हो जाओगे। 24 जिस जिस स्यान पर तुम्हारे पांव के तलवे पकें वे सब तुम्हारे ही हो जाएंगे, अर्यात् जंगल से लबानोन तक, और परात नाम महानद से लेकर पश्चिम के समुद्र तक तुम्हारा सिवाना होगा। 25 तुम्हारे साम्हने कोई भी खड़ा न रह सकेगा; क्योंकि जितनी भूमि पर तुम्हारे पांव पकेंगे उस सब पर रहनेवालोंके मन में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपके वचन के अनुसार तुम्हारे कारण उन में डर और यरयराहट उत्पन्न कर देगा। 26 सुनो, मैं आज के दिन तुम्हारे आगे आशीष और शाप दोनोंरख देता हूं। 27 अर्यात् यदि तुम अपके परमेश्वर यहोवा की इन आज्ञाओं को जो मैं आज तुम्हे सुनाता हूं मानो, तो तुम पर आशीष होगी, 28 और यदि तुम अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को नहीं मानोगे, और जिस मार्ग की आज्ञा मैं आज सुनाता हूं उसे तजकर दूसरे देवताओं के पीछे हो लोगे जिन्हें तुम नहीं जानते हो, तो तुम पर शाप पकेगा। 29 और जब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को उस देश में पहुंचाए जिसके अधिक्कारनेी होने को तू जाने पर है, तब आशीष गरीज्जीम पर्वत पर से और शाप एबाल पर्वत पर से सुनाना। 30 क्या वे यरदन के पार, सूर्य के अस्त होने की ओर, अराबा के निवासी कनानियोंके देश में, गिल्गाल के साम्हने, मोरे के बांज वृझोंके पास नहीं है? 31 तुम तो यरदन पार इसी लिथे जाने पर हो, कि जो देश तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें देता है उसके अधिक्कारनेी होकर उस में निवास करोगे; 32 इसलिथे जितनी विधियां और नियम मैं आज तुम को सुनाता हूं उन सभोंके मानने में चौकसी करना।।
1 जो देश तुम्हारे पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें अधिक्कारने में लेने को दिया है, उस में जब तक तुम भूमि पर जीवित रहो तब तक इन विधियोंऔर नियमोंके मानने में चौकसी करना। 2 जिन जातियोंके तुम अधिक्कारनेी होगे उनके लोग ऊंचे ऊंचे पहाड़ोंवा टीलोंपर, वा किसी भांति के हरे वृझ के तले, जितने स्यानोंमें अपके देवताओं की उपासना करते हैं, उन सभोंको तुम पूरी रीति से नष्ट कर डालना; 3 उनकी वेदियोंको ढा देना, उनकी लाठोंको तोड़ डालना, उनकी अशेरा नाम मूत्तिर्योंको आग में जला देना, और उनके देवताओं की खुदी हुई मूत्तिर्योंको काटकर गिरा देना, कि उस देश में से उनके नाम तक मिट जाएं। 4 फिर जैसा वे करते हैं, तुम अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे वैसा न करना। 5 किन्तु जो स्यान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे सब गोत्रोंमें से चुन लेगा, कि वहां अपना नाम बनाए रखे, उसके उसी निवासस्यान के पास जाया करना; 6 और वहीं तुम अपके होमबलि, और मेलबलि, और दंशमांश, और उठाई हुई भेंट, और मन्नत की वस्तुएं, और स्वेच्छाबलि, और गाय-बैलोंऔर भेड़-बकरियोंके पहिलौठे ले जाया करना; 7 और वहीं तुम अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने भोजन करना, और अपके अपके घराने समेत उन सब कामोंपर, जिन में तुम ने हाथ लगाया हो, और जिन पर तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की आशीष मिली हो, आनन्द करना। 8 जैसे हम आजकल यहां जो काम जिसको भाता है वही करते हैं वैसा तुम न करना; 9 जो विश्रमस्यान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे भाग में देता है वहां तुम अब तक तो नहीं पहुंचे। 10 परन्तु जब तुम यरदन पार जाकर उस देश में जिसके भागी तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें करता है बस जाओ, और वह तुम्हारे चारोंओर के सब शत्रुओं से तुम्हें विश्रम दे, 11 और तुम निडर रहने पाओ, तब जो स्यान तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास ठहराने के लिथे चुन ले उसी में तुम अपके होमबलि, और मेलबलि, और दशमांश, और उठाई हुईं भेंटें, और मन्नतोंकी सब उत्तम उत्तम वस्तुएं जो तुम यहोवा के लिथे संकल्प करोगे, निदान जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैं तुम को सुनाता हूं उन सभोंको वहीं ले जाया करना। 12 और वहां तुम अपके अपके बेटे बेटियोंऔर दास दासियोंसहित अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने आनन्द करना, और जो लेवीय तुम्हारे फाटकोंमें रहे वह भी आनन्द करे, क्योंकि उसका तुम्हारे संग कोई निज भाग वा अंश न होगा। 13 और सावधान रहना कि तू अपके होमबलियोंको हर एक स्यान पर जो देखने में आए न चढ़ाना; 14 परन्तु जो स्यान तेरे किसी गोत्र में यहोवा चुन ले वहीं अपके होमबलियोंको चढ़ाया करना, और जिस जिस काम की आज्ञा मैं तुझ को सुनाता हूं उसको वहीं करना। 15 परन्तु तू अपके सब फाटकोंके भीतर अपके जी की इच्छा और अपके परमेश्वर यहोवा की दी हुई आशीष के अनुसार पशु मारके खा सकेगा, शुद्व और अशुद्व मनुष्य दोनोंखा सकेंगे, जैसे कि चिकारे और हरिण का मांस। 16 परन्तु उसका लोहू न खाना; उसे जल की नाई भूमि पर उंडेल देना। 17 फिर अपके अन्न, वा नथे दाखमधु, वा टटके तेल का दशमांश, और अपके गाय-बैलोंवा भेड़-बकरियोंके पहिलौठे, और अपक्की मन्नतोंकी कोई वस्तु, और अपके स्वेच्छाबलि, और उठाई हुई भेंटें अपके सब फाटकोंके भीतर न खाना; 18 उन्हें अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने उसी स्यान पर जिसको वह चुने अपके बेटे बेटियोंऔर दास दासियोंके, और जो लेवीय तेरे फाटकोंके भीतर रहेंगे उनके साय खाना, और तू अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने अपके सब कामोंपर जिन में हाथ लगाया हो आनन्द करना। 19 और सावधान रह कि जब तक तू भूमि पर जीवित रहे तब तक लेवियोंको न छोड़ना।। 20 जब तेरा परमेश्वर यहोवा अपके वचन के अनुसार तेरा देश बढ़ाए, और तेरा जी मांस खाना चाहे, और तू सोचने लगे, कि मैं मांस खाऊंगा, तब जो मांस तेरा जी चाहे वही खा सकेगा। 21 जो स्यान तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बनाए रखने के लिथे चुन ले वह यदि तुझ से बहुत दूर हो, तो जो गाय-बैल भेड़-बकरी यहोवा ने तुझे दी हों, उन में से जो कुछ तेरा जी चाहे, उसे मेरी आज्ञा के अनुसार मारके अपके फाटकोंके भीतर खा सकेगा। 22 जैसे चिकारे और हरिण का मांस खाया जाता है वैसे ही उनको भी खा सकेगा, शुद्व और अशुद्व दोनो प्रकार के मनुष्य उनका मांस खा सकेंगे। 23 परन्तु उनका लोहू किसी भांति न खाना; क्योंकि लोहू जो है वह प्राण ही है, और तू मांस के साय प्राण कभी भी न खाना। 24 उसको न खाना; उसे जल की नाईं भूमि पर उंडेल देना। 25 तू उसे न खाना; इसलिथे कि वह काम करने से जो यहोवा की दृष्टि में ठीक हैं तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी भला हो। 26 परन्तु जब तू कोई वस्तु पवित्र करे, वा मन्नत माने, तो ऐसी वस्तुएं लेकर उस स्यान को जाना जिसको यहोवा चुन लेगा, 27 और वहां अपके होमबलियोंके मांस और लोहू दोनोंको अपके परमेश्वर यहोवा की वेदी पर चढ़ाना, और मेलबलियोंका लोहू उसकी वेदी पर उंडेलकर उनका मांस खाना। 28 इन बातोंको जिनकी आज्ञा मैं तुझे सुनाता हूं चित्त लगाकर सुन, कि जब तू वह काम करे जो तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला और ठीक है, तब तेरा और तेरे बाद तेरे वंश का भी सदा भला होता रहे। 29 जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियोंको जिनका अधिक्कारनेी होने को तू जा रहा है तेरे आगे से नष्ट करे, और तू उनका अधिक्कारनेी होकर उनके देश में बस जाए, 30 तब सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि उनके सत्यनाश होने के बाद तू भी उनकी नाई फंस जाए, अर्यात् यह कहकर उनके देवताओं के सम्बन्ध में यह पूछपाछ न करना, कि उन जातियोंके लोग अपके देवताओं की उपासना किस रीति करते थे? मैं भी वैसी ही करूंगा। 31 तू अपके परमेश्वर यहोवा से ऐसा व्यवहार न करना; क्योंकि जितने प्रकार के कामोंसे यहोवा घृणा करता है और बैर-भाव रखता है, उन सभोंको उन्होंने अपके देवताओं के लिथे किया है, यहां तक कि अपके बेटे बेटियोंको भी वे अपके देवताओं के लिथे अग्नि में डालकर जला देते हैं।। 32 जितनी बातोंकी मैं तुम को आज्ञा देता हूं उनको चौकस होकर माना करना; और न तो कुछ उन में बढ़ाना और न उन में से कुछ घटाना।।
1 यदि तेरे बीच कोई भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखनेवाला प्रगट होकर तुझे कोई चिन्ह वा चमत्कार दिखाए, 2 और जिस चिन्ह वा चमत्कार को प्रमाण ठहराकर वह तुझ से कहे, कि आओ हम पराए देवताओं के अनुयायी होकर, जिनसे तुम अब तक अनजान रहे, उनकी पूजा करें, 3 तब तुम उस भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखने वाले के वचन पर कभी कान न धरना; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारी पक्कीझा लेगा, जिस से यह जान ले, कि थे मुझ से अपके सारे मन और सारे प्राण के साय प्रेम रखते हैं वा नहीं? 4 तुम अपके परमेश्वर यहोवा के पीछे चलना, और उसका भय मानना, और उसकी आज्ञाओं पर चलना, और उसका वचन मानना, और उसकी सेवा करना, और उसी से लिपके रहना। 5 और ऐसा भविष्यद्वक्ता वा स्वप्न देखनेवाला जो तुम को तुम्हारे परमेश्वर यहोवा से फेरके, जिस ने तुम को मिस्र देश से निकाला और दासत्व के घर से छुड़ाया है, तेरे उसी परमेश्वर यहोवा के मार्ग से बहकाने की बात कहनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मार डाला जाए। इस रीति से तू अपके बीच में से ऐसी बुराई को दूर कर देना।। 6 यदि तेरा सगा भाई, वा बेटा, वा बेटी, वा तेरी अर्द्धांगिन, वा प्राण प्रिय तेरा कोई मित्र निराले में तुझ को यह कहकर फुसलाने लगे, कि आओ हम दूसरे देवताओं की उपासना वा पूजा करें, जिन्हें न तो तू न तेरे पुरखा जानते थे, 7 चाहे वे तुम्हारे निकट रहनेवाले आस पास के लोगोंके, चाहे पृय्वी के एक छोर से लेके दूसरे छोर तक दूर दूर के रहनेवालोंके देवता हों, 8 तो तू उसकी न मानना, और न तो उसकी बात सुनना, और न उस पर तरस खाना, और न कोमलता दिखाना, और न उसको छिपा रखना; 9 उसको अवश्य घात करना; उसके घात करने में पहिले तेरा हाथ उठे, पीछे सब लोगोंके हाथ उठे। 10 उस पर ऐसा पत्यरवाह करना कि वह मर जाए, क्योंकि उस ने तुझ को तेरे उस परमेश्वर यहोवा से, जो तुझ को दासत्व के घर अर्यात् मिस्र देश से निकाल लाया है, बहकाने का यत्न किया है। 11 और सब इस्राएली सुनकर भय खाएंगे, और ऐसा बुरा काम फिर तेरे बीच न करेंगे।। 12 यदि तेरे किसी नगर के विषय में, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे रहने के लिथे देता है, ऐसी बात तेरे सुनने में आए, 13 कि कितने अधम पुरूषोंने तेरे ही बीच में से निकलकर अपके नगर के निवासिक्कों यह कहकर बहका दिया है, कि आओ हम और देवताओं की जिन से अब तक अनजान रहे उपासना करें, 14 तो पूछपाछ करना, और खोजना, और भलीं भांति पता लगाना; और यदि यह बात सच हो, और कुछ भी सन्देह न रहे कि तेरे बीच ऐसा घिनौना काम किया जाता है, 15 तो अवश्य उस नगर के निवासिक्कों तलवार से मान डालना, और पशु आदि उस सब समेत जो उस में हो उसको तलवार से सत्यानाश करना। 16 और उस में की सारी लूट चौक के बीच इकट्ठी करके उस नगर को लूट समेत अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे मानो सर्व्वांग होम करके जलाना; और वह सदा के लिथे डीह रहे, वह फिर बसाया न जाए। 17 और कोई सत्यानाश की वस्तु तेरे हाथ न लगने पाए; जिस से यहोवा अपके भड़के हुए कोप से शान्त होकर जैसा उस ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाई यी वैसा ही तुझ से दया का व्यवहार करे, और दया करके तुझ को गिनती में बढ़ाए। 18 यह तब होगा जब तू अपके परमेश्वर यहोवा की जितनी आज्ञाएं मैं आज तुझे सुनाता हूं उन सभोंको मानेगा, और जो तेरा परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही करेगा।।
1 तुम अपके परमेश्वर यहोवा के पुत्र हो; इसलिथे मरे हुओं के कारण न तो अपना शरीर चीरना, और न भौहोंके बाल मुंडाना। 2 क्योंकि तू अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे एक पवित्र समाज है, और यहोवा ने तुझ को पृय्वी भर के समस्त देशोंके लोगोंमें से अपक्की निज सम्पति होने के लिथे चुन लिया है। 3 तू कोई घिनौनी वस्तु न खाना। 4 जो पशु तुम खा सकते हो वे थे हैं, अर्यात् गाय-बैल, भेड़-बकरी, 5 हरिण, चिकारा, यखमूर, बनैली बकरी, साबर, नीलगाय, और बैनेली भेड़। 6 निदान पशुओं में से जितने पशु चिरे वा फटे खुरवाले और पागुर करनेवाले होते हैं उनका मांस तुम खा सकते हो। 7 परन्तु पागुर करनेवाले वा चिरे खुरवालोंमें से इन पशुओं को, अर्यात् ऊंट, खरहा, और शापान को न खाना, क्योंकि थे पागुर तो करते हैं परन्तु चिरे खुर के नही होते, इस कारण वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं। 8 फिर सूअर, जो चिरे खुर का होता है परन्तु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खाना, और न इनकी लोय छूना।। 9 फिर जितने जलजन्तु हैं उन में से तुम इन्हें खा सकते हो, अर्यात् जितनोंके पंख और छिलके होते हैं। 10 परन्तु जितने बिना पंख और छिलके के होते हैं उन्हें तुम न खाना; क्योंकि वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं।। 11 सब शुद्ध पझियोंका मांस तो तुम खा सकते हो। 12 परन्तु इनका मांस न खाना, अर्यात् उकाब, हड़फोड़, कुरर; 13 गरूड़, चील और भांति भांति के शाही; 14 और भांति भांति के सब काग; 15 शुतर्मुर्ग, तहमास, जलकुक्कट, और भांति भांति के बाज; 16 छोटा और बड़ा दोनोंजाति का उल्लू, और घुग्घू; 17 धनेश, गिद्ध, हाड़गील; 18 सारस, भांति भांति के बगुले, नौवा, और चमगीदड़। 19 और जितने रेंगनेवाले पकेरू हैं वे सब तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं; वे खाए न जाएं। 20 परन्तु सब शुद्ध पंखवालोंका मांस तुम खा सकते हो।। 21 जो अपक्की मृत्यु से मर जाए उसे तुम न खाना; उसे अपके फाटकोंके भीतर किसी पकेदशी को खाने के लिथे दे सकते हो, वा किसी पराए के हाथ बेच सकते हो; परन्तु तू तो अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे पवित्र समाज है। बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना।। 22 बीज की सारी उपज में से जो प्रतिवर्ष खेत में उपके उसका दंशमांश अवश्य अलग करके रखना। 23 और जिस स्यान को तेरा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास ठहराने के लिथे चुन ले उस में अपके अन्न, और नथे दाखमधु, और टटके तेल का दशमांश, और अपके गाय-बैलोंऔर भेड़-बकरियोंके पहिलौठे अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने खाया करना; जिस से तुम उसका भय नित्य मानना सीखोगे। 24 परन्तु यदि वह स्यान जिस को तेरा परमेश्वर यहोवा अपना नाम बानाए रखने के लिथे चुन लेगा बहुत दूर हो, और इस कारण वहां की यात्रा तेरे लिथे इतनी लम्बी हो कि तू अपके परमेश्वर यहोवा की आशीष से मिली हुई वस्तुएं वहां न ले जा सके, 25 तो उसे बेचके, रूपके को बान्ध, हाथ में लिथे हुए उस स्यान पर जाना जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा, 26 और वहां गाय-बैल, वा भेड़-बकरी, वा दाखमधु, वा मदिरा, वा किसी भांति की वस्तु क्योंन हो, जो तेरा जी चाहे, उसे उसी रूपके से मोल लेकर अपके घराने समेत अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने खाकर आनन्द करना। 27 और अपके फाटकोंके भीतर के लेवीय को न छोड़ना, क्योंकि तेरे साय उसका कोई भाग वा अंश न होगा।। 28 तीन तीन वर्ष के बीतने पर तीसरे वर्ष की उपज का सारा दशंमांश निकालकर अपके फाटकोंके भीतर इकट्ठा कर रखना; 29 तब लेवीय जिसका तेरे संग कोई निज भाग वा अंश न होगा वह, और जो परदेशी, और अनाय, और विधवांए तेरे फाटकोंके भीतर हों, वे भी आकर पेट भर खाएं; जिस से तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामोंमें तुझे आशीष दे।।
1 सात सात वर्ष बीतने पर तुम छुटकारा दिया करना, 2 अर्यात् जिस किसी ऋण देनेवाले ने अपके पड़ोसी को कुछ उधार दिया हो, तो वह उसे छोड़ दे; और अपके पड़ोसी वा भाई से उसको बरबस न भरवा ले, क्योंकि यहोवा के नाम से इस छुटकारे का प्रचार हुआ है। 3 परदेशी मनुष्य से तू उसे बरबस भरवा सकता है, परन्तु जो कुछ तेरे भाई के पास तेरा हो उसको तू बिना भरवाए छोड़ देना। 4 तेरे बीच कोई दरिद्र न रहेगा, क्योंकि जिस देश को तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है, कि तू उसका अधिक्कारनेी हो, उस में वह तुझे बहुत ही आशीष देगा। 5 इतना अवश्य है कि तू अपके परमेश्वर यहोवा की बात चित्त लगाकर सुने, और इन सारी आज्ञाओं के मानने में जो मैं आज तुझे सुनाता हूं चौकसी करे। 6 तब तेरा परमेश्वर यहोवा अपके वचन के अनुसार तुझे आशीष देगा, परन्तु तुझे उधार लेना न पकेगा; और तू बहुत जातियोंपर प्रभुता करेगा, परन्तु वे तेरे ऊपर प्रभुता न करने पाएंगी।। 7 जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसके किसी फाटक के भीतर यदि तेरे भाइयोंमें से कोई तेरे पास द्ररिद्र हो, तो अपके उस दरिद्र भाई के लिथे न तो अपना ह्रृदय कठोर करना, और न अपक्की मुट्ठी कड़ी करना; 8 जिस वस्तु की घटी उसको हो, उसका जितना प्रयोजन हो उतना अवश्य अपना हाथ ढीला करके उसको उधार देना। 9 सचेत रह कि तेरे मन में ऐसी अधम चिन्ता न समाए, कि सातवां वर्ष जो छुटकारे का वर्ष है वह निकट है, और अपक्की दृष्टि तू अपके उस दरिद्र भाई की ओर से क्रूर करके उसे कुछ न दे, तो यह तेरे लिथे पाप ठहरेगा। 10 तू उसको अवश्य देना, और उसे देते समय तेरे मन को बुरा न लगे; क्योकि इसी बात के कारण तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामोंमें जिन में तू अपना हाथ लगाएगा तुझे आशीष देगा। 11 तेरे देश में दरिद्र तो सदा पाए जाएंगे, इसलिथे मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं कि तू अपके देश में अपके दीन-दरिद्र भाइयोंको अपना हाथ ढीला करके अवश्य दान देना।। 12 यदि तेरा कोई भाईबन्धु, अर्यात् कोई इब्री वा इब्रिन, तेरे हाथ बिके, और वह छ: वर्ष तेरी सेवा कर चुके, तो सातवे वर्ष उसको अपके पास से स्वतंत्र करके जाने देना। 13 और जब तू उसको स्वतंत्र करके अपके पास से जाने दे तब उसे छूछे हाथ न जाने देना; 14 वरन अपक्की भेड़-बकरियों, और खलिहान, और दाखमधु के कुण्ड में से बहुतायत से देना; तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे जैसी आशीष दी हो उसी के अनुसार उसे देना। 15 और इस बात को स्मरण रखना कि तू भी मिस्र देश में दास या, और तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे छुड़ा लिया; इस कारण मैं आज तुझे यह आज्ञा सुनाता हूं। 16 और यदि वह तुझ से ओर तेरे घराने से प्रेम रखता है, और तेरे संग आनन्द से रहता हो, और इस कारण तुझ से कहने लगे, कि मैं तेरे पास से न जाऊंगा; 17 तो सुतारी लेकर उसका कान किवाड़ पर लगाकर छेदना, तब वह सदा तेरा दास बना रहेगा। और अपक्की दासी से भी ऐसा ही करना। 18 जब तू उसको अपके पास से स्वतंत्र करके जाने दे, तब उसे छोड़ देना तुझ को कठिन न जान पके; क्योंकि उस ने छ: वर्ष दो मजदूरोंके बराबर तेरी सेवा की है। और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे सारे कामोंमें तुझ को आशीष देगा।। 19 तेरी गायोंऔर भेड़-बकरियोंके जितने पहिलौठे नर होंउन सभोंको अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे पवित्र रखना; अपक्की गायोंके पहिलौठोंसे कोई काम न लेना, और न अपक्की भेड़-बकरियोंके पहिलौठोंका ऊन कतरना। 20 उस स्यान पर जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा तू यहोवा के साम्हने अपके अपके धराने समेत प्रति वर्ष उसका मांस खाना। 21 परन्तु यदि उस में किसी प्रकार का दोष हो, अर्यात् वह लंगड़ा वा अन्धा हो, वा उस में किसी और ही प्रकार की बुराई का दोष हो, तो उसे अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे बलि न करना। 22 उसको अपके फाटकोंके भीतर खाना; शुद्ध और अशुद्ध दोनोंप्रकार के मनुष्य जैसे चिकारे और हरिण का मांस खाते हैं वैसे ही उसका भी खा सकेंगे। 23 परन्तु उसका लोहू न खाना; उसे जल की नाई भूमि पर उंडेल देना।।
1 आबीब के महीने को स्मरण करके अपके परमेश्वर यहोवा के लिय फसह का पर्व्व मानना; क्योकिं आबीब महीने में तेरा परमेश्वर यहोवा रात को तुझे मिस्र से निकाल लाया। 2 इसलिथे जो स्यान यहोवा अपके नाम का निवास ठहराने को चुन लेगा, वही अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैल फसह करके बलि करना। 3 उसके संग कोई खमीरी वस्तु न खाना; सात दिन तक अखमीरी रोटी जो दु:ख की रोटी है खाया करना; क्योंकि तू मिस्र देश से उतावली करके निकला या; इसी रीति से तुझ को मिस्र देश से निकलने का दिन जीवन भर स्मरण रहेगा। 4 सात दिन तक तेरे सारे देश में तेरे पास कहीं खमीर देखने में भी न आए; और जो पशु तू पहिले दिन की संध्या को बलि करे उसके मांस में से कुछ बिहान तक रहने न पाए। 5 फसह को अपके किसी फाटक के भीतर, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे दे बलि न करना। 6 जो स्यान तेरा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास करने के लिथे चुन ले केवल वहीं, वर्ष के उसी समय जिस में तू मिस्र से निकला या, अर्यात् सूरज डूबने पर संध्याकाल को, फसह का पशुबलि करना। 7 तब उसका मांस उसी स्यान में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले भूंजकर खाना; फिर बिहान को उठकर अपके अपके डेरे को लौट जाना। 8 छ: दिन तक अखीमीरी रोटी खाया करना; और सातवें दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे महासभा हो; उस दिन किसी प्रकार का कामकाज न किया जाए।। 9 फिर जब तू खेत में हंसुआ लगाने लगे, तब से आरम्भ करके सात अठवारे गिनना। 10 तब अपके परमेश्वर यहोवा की आशीष के अनुसार उसके लिथे स्वेच्छा बलि देकर अठवारोंनाम पर्व्व मानना; 11 और उस स्यान में जो तेरा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास करने को चुन ले अपके अपके बेटे-बेटियों, दास-दासियोंसमेत तू और तेरे फाटकोंके भीतर जो लेवीय हों, और जो जो परदेशी, और अनाय, और विधवाएं तेरे बीच में हों, वे सब के सब अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने आनन्द करें। 12 और स्मरण रखना कि तू भी मिस्र में दास या; इसलिथे इन विधियोंके पालन करने में चौकसी करना।। 13 तू जब अपके खलिहान और दाखमधु के कुण्ड में से सब कुछ इकट्ठा कर चुके, तब फोपडिय़ोंका पर्व्व सात दिन मानते रहना; 14 और अपके इस पर्व्व में अपके अपके बेटे बेटियों, दास-दासियोंसमेत तू और जो लेवीय, और परदेशी, और अनाय, और विधवाएं तेरे फाटकोंके भीतर होंवे भी आनन्द करें। 15 जो स्यान यहोवा चुन ले उस में तु अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे सात दिन तक पर्व्व मानते रहना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तेरी सारी बढ़ती में और तेरे सब कामोंमें तुझ को आशीष देगा; तू आनन्द ही करना। 16 ुवर्ष में तीन बार, अर्यात् अखमीरी रोटी के पर्व्व, और अठवारोंके पर्व्व, और फोपडिय़ोंके पर्व्व, इन तीनोंपर्व्व में तुम्हारे सब पुरूष अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने उस स्यान में जो वह चुन लेगा जाएं। और देखो, छूछे हाथ यहोवा के साम्हने कोई न जाए; 17 सब पुरूष अपक्की अपक्की पूंजी, और उस आशीष के अनुसार जो तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझ को दी हो, दिया करें।। 18 तू अपके एक एक गोत्र में से, अपके सब फाटकोंके भीतर जिन्हें तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देता है न्यायी और सरदार नियुक्त कर लेना, जो लोगोंका न्याय धर्म से किया करें। 19 तुम न्याय न बिगाड़ना; तू न तो पझपात करना; और न तो घूस लेना, क्योंकि घूस बुद्धिमान की आंखें अन्धी कर देती है, और धमिर्योंकी बातें पलट देती है। 20 जो कुछ नितान्त ठीक है उसी का पीछा पकड़े रहना, जिस से तू जीवित रहे, और जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसका अधिक्कारनेी बना रहे।। 21 तू अपके परमेश्वर यहोवा की जो वेदी बनाऐगा उसके पास किसी प्रकार की लकड़ी की बनी हुई अशेरा का स्यापन न करना। 22 और न कोई लाठ खड़ी करना, क्योंकि उस से तेरा परमेश्वर यहोवा घृणा करता है।।
1 तू अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे कोई बैल वा भेड़-बकरी बलि न करना जिस में दोष वा किसी प्रकार की खोट हो; क्योंकि ऐसा करना तेरे परमेश्वर यहोवा के समीप घृणित है।। 2 जो बस्तियां तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, यदि उन में से किसी में कोई पुरूष वा स्त्री ऐसी पाई जाए, जिस ने तेरे परमेश्वर यहोवा की वाचा तोड़कर ऐसा काम किया हो, जो उसकी दृष्टि में बुरा है, 3 अर्यात् मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके पराए देवताओं की, वा सूर्य, वा चंद्रमा, वा आकाश के गण में से किसी की उपासना की हो, वा उसको दण्डवत किया हो, 4 और यह बात तुझे बतलाई जाए और तेरे सुनने में आए; तब भली भांति पूछपाछ करना, और यदि यह बात सच ठहरे कि इस्राएल में ऐसा घृणित कर्म किया गया है, 5 तो जिस पुरूष वा स्त्री ने ऐसा बुरा काम किया हो, उस पुरूष वा स्त्री को बाहर अपके फाटकोंपर ले जाकर ऐसा पत्यरवाह करना कि वह मर जाए। 6 जो प्राणदण्ड के योग्य ठहरे वह एक ही की साझी से न मार डाला जाए, किन्तु दो वा तीन मनुष्योंकी साझी से मार डाला जाए। 7 उसके मार डालने के लिथे सब से पहिले साझियोंके हाथ, और उनके बाद और सब लोगोंके हाथ उस पर उठें। इसी रीति से ऐसी बुराई को अपके मध्य से दूर करना।। 8 यदि तेरी बस्तियोंके भीतर कोई फगड़े की बात हो, अर्यात् आपस के खून, वा विवाद, वा मारपीट का कोई मुकद्दमा उठे, और उसका न्याय करना तेरे लिथे कठिन जान पके, तो उस स्यान को जाकर जो तेरा परमेश्वर यहोवा चुन लेगा; 9 लेवीय याजकोंके पास और उन दिनो के न्यायियोंके पास जाकर पूछताछ करना, कि वे तुम को न्याय की बातें बतलाएं। 10 और न्याय की जैसी बात उस स्यान के लोग जो यहोवा चुन लेगा तुझे बता दें, उसी के अनुसार करना; और जो व्यवस्या वे तुझे दें उसी के अनुसार चलने में चौकसी करना; 11 व्यवस्या की जो बात वे तुझे बताएं, और न्याय की जो बात वे तुझ से कहें, उसी के अनुसार करना; जो बात वे तुझ को बाताएं उस से दहिने वा बाएं न मुड़ना। 12 और जो मनुष्य अभिमान करके उस याजक की, जो वहां तेरे परमेश्वर यहोवा की सेवा टहल करने को उपस्यित रहेगा, न माने, वा उस न्यायी की न सुने, तो वह मनुष्य मार डाला जाए; इस प्रकार तू इस्राएल में से ऐसी बुराई को दूर कर देना। 13 इस से सब लोग सुनकर डर जाएंगे, और फिर अभिमान नहीं करेंगे।। 14 जब तू उस देश में पहुंचे जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, और उसका अधिक्कारनेी हो, और उन में बसकर कहने लगे, कि चारोंओर की सब जातियोंकी नाई मैं भी अपके ऊपर राजा ठहराऊंगा; 15 तब जिसको तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले अवश्य उसी को राजा ठहराना। अपके भाइयोंही में से किसी को अपके ऊपर राजा ठहराना; किसी परदेशी को जो तेरा भाई न हो तू अपके ऊपर अधिक्कारनेी नहीं ठहरा सकता। 16 और वह बहुत घोड़े न रखे, और न इस मनसा से अपक्की प्रजा के लोगोंको मिस्र में भेजे कि उसके पास बहुत से घोड़े हो जाएं, क्योंकि यहोवा ने तुम से कहा है, कि तुम उस मार्ग से फिर कभी न लौटना। 17 और वह बहुत स्त्रियां भी न रखे, ऐसा न हो कि उसका मन यहोवा की ओर से पलट जाए; और न वह अपना सोना रूपा बहुत बढ़ाए। 18 और जब वह राजगद्दी पर विराजमान हो, तब इसी व्यवस्या की पुस्तक, जो लेवीय याजकोंके पास रहेगी, उसकी एक नकल अपके लिथे कर ले। 19 और वह उसे अपके पास रखे, और अपके जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिस से वह अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्या और इन विधियोंकी सारी बातोंके मानने में चौकसी करना सीखे; 20 जिस से वह अपके मन में घमण्ड करके अपके भाइयोंको तुच्छ न जाने, और इन आज्ञाओं से न तो दहिने मुड़े और न बाएं; जिस से कि वह और उसके वंश के लोग इस्राएलियोंके मध्य बहुत दिनोंतक राज्य करते रहें।।
1 लेवीय याजकोंका, वरन सारे लेवीय गोत्रियोंका, इस्राएलियोंके संग कोई भाग वा अंश न हो; उनका भोजन हव्य और यहोवा का दिया हुआ भाग हो। 2 उनका अपके भाइयोंके बीच कोई भाग न हो; क्योंकि अपके वचन के अनुसार यहोवा उनका निज भाग ठहरा है। 3 और चाहे गाय-बैल चाहे भेड़-बकरी का मेलबलि हो, उसके करनेवाले लोगोंकी ओर से याजकोंका हक यह हो, कि वे उसका कन्धा और दोनोंगाल और फोफ याजक को दें। 4 तू उसका अपक्की पहिली उपज का अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल, और अपक्की भेंड़ोंका वह ऊन देना जो पहिली बार कतरा गया हो। 5 क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे सब गोत्रियोंमें से उसी को चुन लिया है, कि वह और उसके वंश सदा उसके नाम से सेवा टहल करने को उपस्यित हुआ करें।। 6 फिर यदि कोई लेवीय इस्राएल की बस्तियोंमें से किसी से, जहां वह परदेशी की नाई रहता हो, अपके मन की बड़ी अभिलाषा से उस स्यान पर जाए जिसे यहोवा चुन लेगा, 7 तो अपके सब लेवीय भाइयोंकी नाईं, जो वहां अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने उपस्यित होंगे, वह भी उसके नाम से सेवा टहल करे। 8 और अपके पूर्वजोंके भाग की मोल को छोड़ उसको भोजन का भाग भी उनके समान मिला करे।। 9 जब तू उस देश में पहुंचे जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब वहां की जातियोंके अनुसार घिनौना काम करने को न सीखना। 10 तुझ में कोई ऐसा न हो जो अपके बेटे वा बेटी को आग में होम करके चढ़ानेवाला, वा भावी कहनेवाला, वा शुभ अशुभ मुहूर्तोंका माननेवाला, वा टोन्हा, वा तान्त्रिक, 11 वा बाजीगर, वा ओफोंसे पूछनेवाला, वा भूत साधनेवाला, वा भूतोंका जगानेवाला हो। 12 क्योंकि जितने ऐसे ऐसे काम करते हैं वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं; और इन्हीं घृणित कामोंके कारण तेरा परमेश्वर यहोवा उनको तेरे साम्हने से निकालने पर है। 13 तू अपके परमेश्वर यहोवा के सम्मुख सिद्ध बना रहना। 14 वे जातियां जिनका अधिक्कारनेी तू होने पर है शुभ-अशुभ मुहूर्तोंके माननेवालोंऔर भावी कहनेवालोंकी सुना करती है; परन्तु तुझ को तेरे परमेश्वर यहोवा ने ऐसा करने नहीं दिया। 15 तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे मध्य से, अर्यात् तेरे भाइयोंमें से मेरे समान एक नबी को उत्पन्न करेगा; तू उसी की सुनना; 16 यह तेरी उस बिनती के अनुसार होगा, जो तू ने होरेब पहाड़ के पास सभा के दिन अपके परमेश्वर यहोवा से की यी, कि मुझे न तो अपके परमेश्वर यहोवा का शब्द फिर सुनना, और न वह बड़ी आग फिर देखनी पके, कहीं ऐसा न हो कि मर जाऊं। 17 तब यहोवा ने मुझ से कहा, कि वे जो कुछ कहते हैं सो ठीक कहते हैं। 18 सो मैं उनके लिथे उनके भाइयोंके बीच में से तेरे समान एक नबी को उत्पन्न करूंगा; और अपना वचन उसके मुंह में डालूंगा; और जिस जिस बात की मैं उसे आज्ञा दूंगा वही वह उनको कह सुनाएगा। 19 और जो मनुष्य मेरे वह वचन जो वह मेरे नाम से कहेगा ग्रहण न करेगा, तो मैं उसका हिसाब उस से लूंगा। 20 परन्तु जो नबी अभिमान करके मेरे नाम से कोई ऐसा वचन कहे जिसकी आज्ञा मैं ने उसे न दी हो, वा पराए देवताओं के नाम से कुछ कहे, वह नबी मार डाला जाए। 21 और यदि तू अपके मन में कहे, कि जो वचन यहोवा ने नहीं कहा उसको हम किस रीति से पहिचानें? 22 तो पहिचान यह है कि जब कोई नबी यहोवा के नाम से कुछ कहे; तब यदि वह वचन न घटे और पूरा न हो जाए, तो वह वचन यहोवा का कहा हुआ नहीं; परन्तु उस नबी ने वह बात अभियान करके कही है, तू उस से भय न खाना।।
1 जब तेरा परमेश्वर यहोवा उन जातियोंको नाश करे जिनका देश वह तुझे देता है, और तू उनके देश का अधिक्कारनेी हो के उनके नगरोंऔर घरोंमें रहने लगे, 2 तब अपके देश के बीच जिसका अधिक्कारनेी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे कर देता है तीन नगर अपके लिथे अलग कर देना। 3 और तू अपके लिथे मार्ग भी तैयार करना, और अपके देश के जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे सौंप देता है तीन भाग करना, ताकि हर एक खूनी वहीं भाग जाए। 4 और जो खूनी वहां भागकर अपके प्राण को बचाए, वह इस प्रकार का हो; अर्यात् वह किसी से बिना पहिले बैर रखे वा उसको बिना जाने बूफे मार डाला हो 5 जैसे कोई किसी के संग लकड़ी काटने को जंगल में जाए, और वृझ काटने को कुल्हाड़ी हाथ से उठाए, और कुल्हाड़ी बेंट से निकलकर उस भाई को ऐसी लगे कि वह मर जाए तो वह उस नगरोंमें से किसी में भागकर जीवित रहे; 6 ऐसा न हो कि मार्ग की लम्बाई के कारण खून का पलटा लेनेवाला अपके क्रोध के ज्वलन में उसका पीछा करके उसको जा पकड़े, और मार डाले, यद्यपि वह प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि उस से बैर नहीं रखता या। 7 इसलिथे मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं, कि अपके लिथे तीन नगर अलग कर रखना। 8 और यदि तेरा परमेश्वर यहोवा उस शपय के अनुसार जो उस ने तेरे पूर्वजोंसे खाई यी तेरे सिवानोंको बढ़ाकर वह सारा देश तुझे दे, जिसके देने का वचन उस ने तेरे पूर्वजोंको दिया या 9 यदि तू इन सब आज्ञाओं के मानने में जिन्हें मैं आज तुझ को सुनाता हूं चौकसी करे, और अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखे और सदा उसके मार्गोंपर चलता रहे तो इन तीन नगरोंसे अधिक और भी तीन नगर अलग कर देना, 10 इसलिथे कि तेरे उस देश में जो तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके देता है किसी निर्दोष का खून न बहाथा जाए, और उसका दोष तुझ पर न लगे। 11 परन्तु यदि कोई किसी से बैर रखकर उसकी घात में लगे, और उस पर लपककर उसे ऐसा मारे कि वह मर जाए, और फिर उन नगरोंमें से किसी में भाग जाए, 12 तो उसके नगर के पुरनिथे किसी को भेजकर उसको वहां से मंगाकर खून के पलटा लेनेवाले के हाथ में सौंप दे, कि वह मार डाला जाए। 13 उस पर तरस न खाना, परन्तु निर्दोष के खून का दोष इस्राएल से दूर करना, जिस से तुम्हारा भला हों।। 14 जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देता है, उसका जो भाग तुझे मिलेगा, उस में किसी का सिवाना जिसे अगले लोगोंने ठहराया हो न हटाना।। 15 किसी मनुष्य के विरूद्ध किसी प्रकार के अधर्म वा पाप के विषय में, चाहे उसका पाप कैसा ही क्यो न हो, एक ही जन की साझी न सुनना, परन्तु दो वा तीन साझीयोंके कहने से बात पक्की ठहरे। 16 यदि कोई फूठी साझी देनेवाला किसी के विरूद्ध याहोवा से फिर जाने की साझी देने को खड़ा हो, 17 तो वे दोनोंमनुष्य, जिनके बीच ऐसा मुकद्दमा उठा हो, यहोवा के सम्मुख, अर्यात् उन दिनोंके याजकोंऔर न्यायियोंके साम्हने खड़े किए जाएं; 18 तब न्यायी भली भांति पूछपाछ करें, और यदि यह निर्णय पाए कि वह फूठा साझी है, और अपके भाई के विरूद्ध फूठी साझी दी है 19 तो अपके भाई की जैसी भी हानि करवाने की युक्ति उस ने की हो वैसी ही तुम भी उसकी करना; इसी रीति से अपके बीच में से ऐसी बुराई को दूर करना। 20 और दूसरे लोग सुनकर डरेंगे, और आगे को तेरे बीच फिर ऐसा बुरा काम नहीं करेंगे। 21 और तू बिलकुल तरस न खाना; प्राण की सन्ती प्राण का, आंख की सन्ती आंख का, दांत की सन्ती दांत का, हाथ की सन्ती हाथ का, पांव की सन्ती पांव का दण्ड देना।।
1 जब तू अपके शत्रुओं से युद्ध करने को जाए, और घोड़े, रय, और अपके से अधिक सेना को देखे, तब उन से न डरना; तेरा परमेश्वर यहोवा जो तुझ को मिस्र देश से निकाल ले आया है वह तेरे संग है। 2 और जब तुम युद्ध करने को शत्रुओं के निकट जाओ, तब याजक सेना के पास आकर कहे, 3 हे इस्राएलियोंसुनो, आज तुम अपके शत्रुओं से युद्ध करने को निकट आए हो; तुम्हारा मन कच्चा न हो; तुम मत डरो, और न यरयराओ, और न उनके साम्हने भय खाओ; 4 क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे शत्रुओं से युद्ध करने और तुम्हें बचाने के लिथे तुम्हारे संग चलता है। 5 फिर सरदार सिपाहियोंसे यह कहें, कि तुम में से कौन है जिस ने नया घर बनाया हो और उसका समर्पण न किया हो? तो वह अपके घर को लौट जाए और दूसरा मनुष्य उसका समर्पण करे। 6 और कौन है जिस ने दाख की बारी लगाई हो, परन्तु उसके फल न खाए हों? वह भी अपके घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह संग्राम में मारा जाए, और दूसरा मनुष्य उसके फल खाए। 7 फिर कौन है जिस ने किसी स्त्री से ब्याह की बात लगाई हो, परन्तु उसको ब्याह न लाया हो? वह भी अपके घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि वह युद्ध में मारा जाए, और दूसरा मनुष्य उस से ब्याह कर ले। 8 इसके अलावा सरदार सिपाहियोंसे यह भी कहें, कि कौन कौन मनुष्य है जो डरपोक और कच्चे मन का है, वह भी अपके घर को लौट जाए, ऐसा न हो कि उसकी देखा देखी उसके भाइयोंका भी हियाव टूट जाए। 9 और जब प्रधान सिपाहियोंसे यह कह चुकें, तब उन पर प्रधानता करने के लिथे सेनापतियोंको नियुक्त करें।। 10 जब तू किसी नगर से युद्ध करने को उनके निकट जाए, तब पहिले उस से सन्धि करने का समाचार दे। 11 और यदि वह सन्धि करना अंगीकार करे और तेरे लिथे अपके फाटक खोल दे, तब जितने उस में होंवे सब तेरे अधीन होकर तेरे लिथे बेगार करनेवाले ठहरें। 12 परन्तु यदि वे तुझ से सन्धि न करें, परन्तु तुझ से लड़ना चाहें, तो तू उस नगर को घेर लेना; 13 और जब तेरा परमेश्वर यहोवा उसे तेरे हाथ में सौंप दे तब उस में के सब पुरूषोंको तलवार से मार डालना। 14 परन्तु स्त्रियां और बालबच्चे, और पशु आदि जितनी लूट उस नगर में हो उसे अपके लिथे रख लेना; और तेरे शत्रुओं की लूट जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे दे उसे काम में लाना। 15 इस प्रकार उन नगरोंसे करना जो तुझ से बहुत दूर हैं, और इन जातियोंके नगर नहीं हैं। 16 परन्तु जो नगर इन लोगोंके हैं, जिनका अधिक्कारनेी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को ठहराने पर है, उन में से किसी प्राणी को जीवित न रख छोड़ना, 17 परन्तु उनको अवश्य सत्यानाश करना, अर्यात् हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों, और यबूसिक्कों, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है; 18 ऐसा न हो कि जितने घिनौने काम वे अपके देवताओं की सेवा में करते आए हैं वैसा ही करना तुम्हें भी सिखाएं, और तुम अपके परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप करने लगो।। 19 जब तू युद्ध करते हुए किसी नगर को जीतने के लिथे उसे बहुत दिनोंतक घेरे रहे, तब उसके वृझोंपर कुल्हाड़ी चलाकर उन्हें नाश न करना, क्योंकि उनके फल तेरे खाने के काम आएंगे, इसलिथे उन्हें न काटना। क्या मैदान के वृझ भी मनुष्य हैं कि तू उनको भी घेर रखे? 20 परन्तु जिन वृझोंके विषय में तू यह जान ले कि इनके फल खाने के नहीं हैं, तो उनको काटकर नाश करना, और उस नगर के विरूद्ध उस समय तक कोट बान्धे रहना जब तक वह तेरे वश में न आ जाए।।
1 यदि उस देश के मैदान में जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है किसी मारे हुए की लोय पक्की हुई मिले, और उसको किस ने मार डाला है यह जान न पके, 2 तो तेरे सियाने लोग और न्यायी निकलकर उस लोय के चारोंओर के एक एक नगर की दूरी को नापें; 3 तब जो नगर उस लोय के सब से निकट ठहरे, उसके सियाने लोग एक ऐसी कलोर ले रखें, जिस से कुछ काम न लिया गया हो, और जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो। 4 तब उस नगर के सियाने लोग उस कलोर को एक बारहमासी नदी की ऐसी तराई में जो न जोती और न बोई गई हो ले जाएं, और उसी तराई में उस कलोर का गला तोड़ दें। 5 और लेवीय याजक भी निकट आएं, क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उनको चुन लिया है कि उसकी सेवा टहल करें और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें, और उनके कहने के अनुसार हर एक फगड़े और मारपीट के मुकद्दमे का निर्णय हो। 6 फिर जो नगर उस लोय के सब से निकट ठहरे, उसके सब सियाने लोग उस कलोर के ऊपर जिसका गला तराई में तोड़ा गया हो अपके अपके हाथ धोकर कहें, 7 यह खून हम से नहीं किया गया, और न यह हमारी आंखोंका देखा हुआ काम है। 8 इसलिथे, हे यहोवा, अपक्की छुड़ाई हुई इस्राएली प्रजा का पाप ढांपकर निर्दोष खून का पाप अपक्की इस्राएल प्रजा के सिर पर से उतार। तब उस खून का दोष उनको झमा कर दिया जाएगा। 9 योंवह काम करके जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है तू निर्दोष के खून का दोष अपके मध्य में से दूर करना।। 10 जब तू अपके शत्रुओं से युद्ध करने को जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उन्हें तेरे हाथ में कर दे, और तू उन्हें बन्धुआ कर ले, 11 तब यदि तू बन्धुओं में किसी सुन्दर स्त्री को देखकर उस पर मोहित हो जाए, और उस से ब्याह कर लेना चाहे, 12 तो उसे अपके घर के भीतर ले आना, और वह अपना सिर मुंड़ाए, नाखून कटाए, 13 और अपके बन्धुआई के वस्त्र उतारके तेरे घर में महीने भर रहकर अपके माता पिता के लिथे विलाप करती रहे; उसके बाद तू उसके पास जाना, और तू उसका पति और वह तेरी पत्नी बने। 14 फिर यदि वह तुझ को अच्छी न लगे, तो जहां वह जाना चाहे वहां उसे जाने देना; उसको रूपया लेकर कहीं न बेचना, और तू ने जो उसकी पत-पानी ली, इस कारण उस से दासी का सा ब्यवहार न करना।। 15 यदि किसी पुरूष की दो पत्नियां हों, और उसे एक प्रिय और दूसरी अप्रिय हो, और प्रिया और अप्रिया दोनोंस्त्रियां बेटे जने, परन्तु जेठा अप्रिया का हो, 16 तो जब वह अपके पुत्रोंको सम्पत्ति का बटवारा करे, तब यदि अप्रिया का बेटा जो सचमुच जेठा है यदि जीवित हो, तो वह प्रिया के बेटे को जेठांस न दे सकेगा; 17 वह यह जानकर कि अप्रिया का बेटा मेरे पौरूष का पहिला फल है, और जेठे का अधिक्कारने उसी का है, उसी को अपक्की सारी सम्पत्ति में से दो भाग देकर जेठांसी माने।। 18 यदि किसी के हठीला और दंगैत बेटा हो, जो अपके माता-पिता की बात न माने, किन्तु ताड़ना देने पर भी उनकी न सुने, 19 तो उसके माता-पिता उसे पकड़कर अपके नगर से बाहर फाटक के निकट नगर के सियानोंके पास ले जाएं, 20 और वे नगर के सियानोंसे कहें, कि हमारा यह बेटा हठीला और दंगैत है, यह हमारी नहीं सुनता; यह उड़ाऊ और पियक्कड़ है। 21 तब उस नगर के सब पुरूष उसको पत्यरवाह करके मार डाले, योंतू अपके मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना, तब सारे इस्राएली सुनकर भय खाएंगे। 22 फिर यदि किसी से प्राणदण्ड के योग्य कोई पाप हुआ हो जिस से वह मार डाला जाए, और तू उसकी लोय को वृझ पर लटका दे, 23 तो वह लोय रात को वृझ पर टंगी न रहे, अवश्य उसी दिन उसे मिट्टी देना, क्योंकि जो लटकाया गया हो वह परमेश्वर की ओर से शापित ठहरता है; इसलिथे जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके देता है उसकी भूमि को अशुद्ध न करना।।
1 तू अपके भाई के गाय-बैल वा भेड़-बकरी को भटकी हुई देखकर अनदेखी न करना, उसको अवश्य उसके पास पहुंचा देना। 2 परन्तु यदि तेरा वह भाई निकट न रहता हो, वा तू उसे न जानता हो, तो उस पशु को अपके घर के भीतर ले आना, और जब तक तेरा वह भाई उसको न ढूंढ़े तब तक वह तेरे पास रहे; और जब वह उसे ढूंढ़े तब उसको दे देना। 3 और उसके गदहे वा वस्त्र के विषय, वरन उसकी कोई वस्तु क्योंन हो, जो उस से खो गई हो और तुझ को मिले, उसके विषय में भी ऐसा ही करना; तू देखी-अनदेखी न करना।। 4 तू अपके भाई के गदहे वा बैल को मार्ग पर गिरा हुआ देखकर अनदेखी न करना; उसके उठाने में अवश्य उसकी सहाथता करना।। 5 कोई स्त्री पुरूष का पहिरावा न पहिने, और न कोई पुरूष स्त्री का पहिरावा पहिने; क्योंकि ऐसे कामोंके सब करनेवाले तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।। 6 यदि वृझ वा भूमि पर तेरे साम्हने मार्ग में किसी चिडिय़ा का घोंसला मिले, चाहे उस में बच्चे होंचाहे अण्डे, और उन बच्चोंवा अण्डोंपर उनकी मां बैठी हुई हो, तो बच्चोंसमेत मां को न लेना; 7 बच्चोंको अपके लिथे ले तो ले, परन्तु मां को अवश्य छोड़ देना; इसलिथे कि तेरा भला हो, और तेरी आयु के दिन बहुत हों।। 8 जब तू नया घर बनाए तब उसकी छत पर आड़ के लिथे मुण्डेर बनाना, ऐसा न हो कि कोई छत पर से गिर पके, और तू अपके घराने पर खून का दोष लगाए। 9 अपक्की दाख की बारी में दो प्रकार के बीज न बोना, ऐसा न हो कि उसकी सारी उपज, अर्यात् तेरा बोया हुआ बीज और दाख की बारी की उपज दोनोंअपवित्र ठहरें। 10 बैल और गदहा दोनोंसंग जोतकर हल न चलाना। 11 ऊन और सनी की मिलावट से बना हुआ वस्त्र न पहिनना।। 12 अपके ओढ़ने के चारोंओर की कोर पर फालर लगाया करना।। 13 यदि कोई पुरूष किसी स्त्री को ब्याहे, और उसके पास जाने के समय वह उसको अप्रिय लगे, 14 और वह उस स्त्री की नामधराई करे, और यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाए, कि इस स्त्री को मैं ने ब्याहा, और जब उस से संगति की तब उस में कुंवारी अवस्या के लझण न पाए, 15 तो उस कन्या के माता-पिता उसके कुंवारीपन के चिन्ह लेकर नगर के वृद्ध लोगोंके पास फाटक के बाहर जाएं; 16 और उस कन्या का पिता वृद्ध लोगोंसे कहे, मैं ने अपक्की बेटी इस पुरूष को ब्याह दी, और वह उसको अप्रिय लगती है; 17 और वह तो यह कहकर उस पर कुकर्म का दोष लगाता है, कि मैं ने तेरी बेटी में कुंवारीपन के लझण नहीं पाए। परन्तु मेरी बेटी के कुंवारीपन के चिन्ह थे हैं। तब उसके माता-पिता नगर के वृद्ध लोगोंके साम्हने उस चद्दर को फैलाएं। 18 तब नगर के सियाने लोग उस पुरूष को पकड़कर ताड़ना दें; 19 और उस पर सौ शेकेल रूपे का दण्ड भी लगाकर उस कन्या के पिता को दें, इसलिथे कि उस ने एक इस्राएली कन्या की नामधराई की है; और वह उसी की पत्नी बनी रहे, और वह जीवन भर उस स्त्री को त्यागने न पाए। 20 परन्तु यदि उस कन्या के कुंवारीपन के चिन्ह पाए न जाएं, और उस पुरूष की बात सच ठहरे, 21 तो वे उस कन्या को उसके पिता के घर के द्वार पर ले जाएं, और उस नगर के पुरूष उसको पत्यरवाह करके मार डालें; उस ने तो अपके पिता के घर में वेश्या का काम करके बुराई की है; योंतू अपके मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना।। 22 यदि कोई पुरूष दूसरे पुरूष की ब्याही हुई स्त्री के संग सोता हुआ पकड़ा जाए, तो जो पुरूष उस स्त्री के संग सोया हो वह और वह स्त्री दोनोंमार डालें जाएं; इस प्रकार तू ऐसी बुराई को इस्राएल में से दूर करना।। 23 यदि किसी कुंवारी कन्या के ब्याह की बात लगी हो, और कोई दूसरा पुरूष उसे नगर में पाकर उस से कुकर्म करे, 24 तो तुम उन दोनोंको उस नगर के फाटक के बाहर ले जाकर उनको पत्यरवाह करके मार डालना, उस कन्या को तो इसलिथे कि वह नगर में रहते हुए भी नहीं चिल्लाई, और उस पुरूष को इस कारण कि उस ने पड़ोसी की स्त्री की पत-पानी ली है; इस प्रकार तू अपके मध्य में से ऐसी बुराई को दूर करना।। 25 परन्तु यदि कोई पुरूष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात लगी हो मैदान में पाकर बरबस उस से कुकर्म करे, तो केवल वह पुरूष मार डाला जाए, जिस ने उस से कुकर्म किया हो। 26 और उस कन्या से कुछ न करना; उस कन्या का पाप प्राणदण्ड के योग्य नहीं, क्योंकि जैसे कोई अपके पड़ोसी पर चढ़ाई करके उसे मार डाले, वैसी ही यह बात भी ठहरेगी; 27 कि उस पुरूष ने उस कन्या को मैदान में पाया, और वह चिल्लाई को सही, परन्तु उसको कोई बचानेवाला न मिला। 28 यदि किसी पुरूष को कोई कुंवारी कन्या मिले जिसके ब्याह की बात न लगी हो, और वह उसे पकड़कर उसके साय कुकर्म करे, और वे पकड़े जाएं, 29 तो जिस पुरूष ने उस से कुकर्म किया हो वह उस कन्या के पिता को पचास शेकेल रूपा दे, और वह उसी की पत्नी हो, उस ने उस की पत-पानी ली; इस कारण वह जीवन भर उसे न त्यागने पाए।। 30 कोई अपक्की सौतेली माता को अपक्की स्त्री न बनाए, वह अपके पिता का ओढ़ना न उघारे।।
1 जिसके अण्ड कुचले गए वा लिंग काट डाला गया हो वह यहोवा की सभा में न आने पाए।। 2 कोई कुकर्म से जन्मा हुआ यहोवा की सभा में न आने पाए; किन्तु दस पीढ़ी तक उसके वंश का कोई यहोवा की सभा में न आने पाए।। 3 कोई अम्मोनी वा मोआबी यहोवा की सभा में न आने पाए; उनकी दसवीं पीढ़ी तक का कोई यहोवा की सभा में कभी न आने पाए; 4 इस कारण से कि जब तुम मिस्र से निकलकर आते थे तब उन्होंने अन्न जल लेकर मार्ग में तुम से भेंट नहीं की, और यह भी कि उन्होंने अरम्नहरैम देश के पतोर नगरवाले बोर के पुत्र बिलाम को तुझे शाप देने के लिथे दझिणा दी। 5 परन्तु तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे निमित्त उसके शाप को आशीष से पलट दिया, इसलिथे कि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से प्रेम रखता या। 6 तू जीवन भर उनका कुशल और भलाई कभी न चाहना। 7 किसी एदोमी से घृणा न करना, क्योंकि वह तेरा भाई है; किसी मिस्री से भी घृणा न करना, क्योंकि उसके देश में तू परदेशी होकर रहा या। 8 उनके जो परपोते उत्पन्न होंवे यहोवा की सभा में न आने पाएं। 9 जब तू शत्रुओं से लड़ने को जाकर छावनी डाले, तब सब प्रकार की बुरी बातोंसे बचा रहना। 10 यदि तेरे बीच कोई पुरूष उस अशुद्धता से जो रात्रि को आप से आप हुआ करती है अशुद्ध हुआ हो, तो वह छावनी से बाहर जाए, और छावनी के भीतर न आए; 11 परन्तु संध्या से कुछ पहिले वह स्नान करे, और जब सूर्य डूब जाए तब छावनी में आए। 12 छावनी के बाहर तेरे दिशा फिरने का एक स्यान हुआ करे, और वहीं दिशा फिरने को जाया करना; 13 और तेरे पास के हयियारोंमें एक खनती भी रहे; और जब तू दिशा फिरने को बैठे, तब उस से खोदकर अपके मल को ढांप देना। 14 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बचाने और तेरे शत्रुओं को तुझ से हरवाने को तेरी छावनी के मध्य घूमता रहेगा, इसलिथे तेरी छावनी पवित्र रहनी चाहिथे, ऐसा न हो कि वह तेरे मध्य में कोई अशुद्ध वस्तु देखकर तुझ से फिर जाए।। 15 जो दास अपके स्वामी के पास से भागकर तेरी शरण ले उसको उसके स्वामी के हाथ न पकड़ा देना; 16 वह तेरे बीच जो नगर उसे अच्छा लगे उसी में तेरे संग रहने पाए; और तू उस पर अन्धेर न करना।। 17 इस्राएली स्त्रियोंमें से कोई देवदासी न हो, और न इस्राएलियोंमें से कोई पुरूष ऐसा बुरा काम करनेवाला हो। 18 तू वेश्यापन की कमाई वा कुत्ते की कमाई किसी मन्नत को पूरी करने के लिथे अपके परमेश्वर यहोवा के घर में न लाना; क्योंकि तेरे परमेश्वर यहोवा के समीप थे दोनोंकी दोनोंकमाई घृणित कर्म है।। 19 अपके किसी भाई को ब्याज पर ऋण न देना, चाहे रूपया हो, चाहे भोजन-वस्तु हो, चाहे कोई वस्तु हो जो ब्याज पर दी जाति है, उसे ब्याज न देना। 20 तू परदेशी को ब्याज पर ऋण तो दे, परन्तु अपके किसी भाई से ऐसा न करना, ताकि जिस देश का अधिक्कारनेी होने को तू जा रहा है, वहां जिस जिस काम में अपना हाथ लगाए, उन सभोंको तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे आशीष दे।। 21 जब तू अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे मन्नत माने, तो उसके पूरी करने में विलम्ब न करना; क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा उसे निश्चय तुझ से ले लेगा, और विलम्ब करने से तू पापी ठहरेगा। 22 परन्तु यदि तू मन्नत न माने, तो तेरा कोई पाप नहीं। 23 जो कुछ तेरे मुंह से निकले उसके पूरा करने में चौकसी करना; तू अपके मुंह से वचन देकर अपक्की इच्छा से अपके परमेश्वर यहोवा की जैसी मन्नत माने, वैसा ही स्वतंत्रता पूर्वक उसे पूरा करना। 24 जब तू किसी दूसरे की दाख की बारी में जाए, तब पेट भर मनमाने दाख खा तो खा, परन्तु अपके पात्र में कुछ न रखना। 25 और जब तू किसी दूसरे के खड़े खेत में जाए, तब तू हाथ से बालें तोड़ सकता है, परन्तु किसी दूसरे के खड़े खेत पर हंसुआ न लगाना।।
1 यदि कोई पुरूष किसी स्त्री को ब्याह ले, और उसके बाद उसमें लज्जा की बात पाकर उस से अप्रसन्न हो, तो वह उसके लिथे त्यागपत्र लिखकर और उसके हाथ में देकर उसको अपके घर से निकाल दे। 2 और जब वह उसके घर से निकल जाए, तब दूसरे पुरूष की हो सकती है। 3 परन्तु यदि वह उस दूसरे पुरूष को भी अप्रिय लगे, और वह उसके लिथे त्यागपत्र लिखकर उसके हाथ में देकर उसे अपके घर से निकाल दे, वा वह दूसरा पुरूष जिस ने उसको अपक्की स्त्री कर लिया हो मर जाए, 4 तो उसका पहिला पति, जिस ने उसको निकाल दिया हो, उसके अशुद्ध होने के बाद उसे अपक्की पत्नी न बनाने पाए क्योंकि यह यहोवा के सम्मुख घृणित बात है। इस प्रकार तू उस देश को जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा भाग करके तुझे देता है पापी न बनाना।। 5 जो पुरूष हाल का ब्याहा हुआ हो, वह सेना के साय न जाए और न किसी काम का भार उस पर डाला जाए; वह वर्ष भर अपके घर में स्वतंत्रता से रहकर अपक्की ब्याही हुई स्त्री को प्रसन्न करता रहे। 6 कोई मनुष्य चक्की को वा उसके ऊपर के पाट को बन्धक न रखे; क्योंकि वह तो मानोंप्राण ही को बन्धक रखना है।। 7 यदि कोई अपके किसी इस्राएली भाई को दास बनाने वा बेच डालने की मनसा से चुराता हुआ पकड़ा जाए, तो ऐसा चोर मार डाला जाए; ऐसी बुराई को अपके मध्य में से दूर करना।। 8 कोढ़ की ब्याधि के विषय में चौकस रहना, और जो कुछ लेवीय याजक तुम्हें सिखाएं उसी के अनुसार यत्न से करने में चौकसी करना; जैसी आज्ञा मैं ने उनको दी है वैसा करने में चौकसी करना। 9 स्मरण रख कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने, जब तुम मिस्र से निकलकर आ रहे थे, तब मार्ग में मरियम से क्या किया। 10 जब तू अपके किसी भाई को कुछ उधार दे, तब बन्धक की वस्तु लेने के लिथे उसके घर के भीतर न घुसना। 11 तू बाहर खड़ा रहना, और जिसको तू उधार दे वही बन्धक की वस्तु को तेरे पास बाहर ले आए। 12 और यदि वह मनुष्य कंगाल हो, तो उसका बन्धक अपके पास रखे हुए न सोना; 13 सूर्य अस्त होते होते उसे वह बन्धक अवश्य फेर देना, इसलिथे कि वह अपना ओढ़ना ओढ़कर सो सके और तुझे आशीर्वाद दे; और यह तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में धर्म का काम ठहरेगा।। 14 कोई मजदूर जो दीन और कंगाल हो, चाहे वह तेरे भाइयोंमें से हो चाहे तेरे देश के फाटकोंके भीतर रहनेवाले परदेशियोंमें से हो, उस पर अन्धेर न करना; 15 यह जानकर, कि वह दीन है और उसका मन मजदूरी में लगा रहता है, मजदूरी करने ही के दिन सूर्यास्त से पहिले तू उसकी मजदूरी देना; ऐसा न हो कि वह तेरे कारण यहोवा की दोहाई दे, और तू पापी ठहरे।। 16 पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए; जिस ने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए।। 17 किसी पकेदशी मनुष्य वा अनाय बालक का न्याय न बिगाड़ना, और न किसी विधवा के कपके को बन्धक रखना; 18 और इस को स्मरण रखना कि तू मिस्र में दास या, और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे वहां से छुड़ा लाया है; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं।। 19 जब तू अपके पक्के खेत को काटे, और एक पूला खेत में भूल से छूट जाए, तो उसे लेने को फिर न लौट जाना; वह परदेशी, अनाय, और विधवा के लिथे पड़ा रहे; इसलिथे कि परमेश्वर यहोवा तेरे सब कामोंमें तुझ को आशीष दे। 20 जब तू अपके जलपाई के वृझ को फाड़े, तब डालियोंको दूसरी बार न फाड़ना; वह परदेशी, अनाय, और विधवा के लिथे रह जाए। 21 जब तू अपक्की दाख की बारी के फल तोड़े, तो उसका दाना दाना न तोड़ लेना; वह परदेशी, अनाय और विधवा के लिथे रह जाए। 22 और इसको स्मरण रखना कि तू मिस्र देश में दास या; इस कारण मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं।।
1 यदि मनुष्योंके बीच कोई फगड़ा हो, और वे न्याय करवाने के लिथे न्यायियोंके पास जाएं, और वे उनका न्याय करें, तो निर्दोष को निर्दोष और दोषी को दोषी ठहराएं। 2 और यदि दोषी मार खाने के योग्य ठहरे, तो न्यायी उसको गिरवाकर अपके साम्हने जैसा उसका दोष हो उसके अनुसार कोड़े गिनकर लगवाए। 3 वह उसे चालीस कोड़े तक लगवा सकता है, इस से अधिक नहीं लगवा सकता; ऐसा न हो कि इस से अधिक बहुत मार खिलवाने से तेरा भाई तेरी दृष्टि में तुच्छ ठहरे।। 4 दांवते समय चलते हुए बैल का मुंह न बान्धना। 5 जब कोई भाई संग रहते हों, और उन में से एक निपुत्र मर जाए, तो उसकी स्त्री का ब्याह परगोत्री से न किया जाए; उसके पति का भाई उसके पास जाकर उसे अपक्की पत्नी कर ले, और उस से पति के भाई का धर्म पालन करे। 6 और जो पहिला बेटा उस स्त्री से उत्पन्न हो वह उस मरे हुए भाई के नाम का ठहरे, जिस से कि उसका नाम इस्राएल में से मिट न जाए। 7 यदि उस स्त्री के पति के भाई को उसे ब्याहना न भाए, तो वह स्त्री नगर के फाटक पर वृद्ध लोगोंके पास जाकर कहे, कि मेरे पति के भाई ने अपके भाई का नाम इस्त्राएल में बनाए रखने से नकार दिया है, और मुझ से पति के भाई का धर्म पालन करना नहीं चाहता। 8 तब उस नगर के वृद्ध उस पुरूष को बुलवाकर उसे समझाएं; और यदि वह अपक्की बात पर अड़ा रहे, और कहे, कि मुझे इसको ब्याहना नहीं भावता, 9 तो उसके भाई की पत्नी उन वृद्ध लोगोंके साम्हने उसके पास जाकर उसके पांव से जूती उतारे, और उसके मूंह पर यूक दे; और कहे, जो पुरूष अपके भाई के वंश को चलाना न चाहे उस से इसी प्रकार व्यवहार किया जाएगा। 10 तब इस्राएल में उस पुरूष का यह नाम पकेगा, अर्यात् जूती उतारे हुए पुरूष का घराना।। 11 यदि दो पुरूष आपस में मारपीट करते हों, और उन में से एक की पत्नी अपके पति को मारनेवाले के हाथ से छुड़ाने के लिथे पास जाए, और अपना हाथ बढ़ाकर उसके गुप्त अंग को पकड़े, 12 तो उस स्त्री का हाथ काट डालना; उस पर तरस न खाना।। 13 अपक्की यैली में भांति भांति के अर्यात् घटती-बढ़ती बटखरे न रखना। 14 अपके घर में भांति भांति के, अर्यात् घटती-बढती नपुए न रखना। 15 तेरे बटखरे और नपुए पूरे पूरे और धर्म के हों; इसलिथे कि जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तेरी आयु बहुत हो। 16 क्योंकि ऐसे कामोंमें जितने कुटिलता करते हैं वे सब तेरे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।। 17 स्मरण रख कि जब तू मिस्र से निकलकर आ रहा या तब अमालेक ने तुझ से मार्ग में क्या किया, 18 अर्यात् उनको परमेश्वर का भय न या; इस कारण उस ने जब तू मार्ग में यका मांदा या, तब तुझ पर चढ़ाई करके जितने निर्बल होने के कारण सब से पीछे थे उन सभोंको मारा। 19 इसलिथे जब तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में, जो वह तेरा भाग करके तेरे अधिक्कारने में कर देता है, तुझे चारोंओर के सब शत्रुओं से विश्रम दे, तब अमालेक का नाम धरती पर से मिटा डालना; और तुम इस बात को न भूलना।।
1 फिर जब तू उस देश में जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरा निज भाग करके तुझे देता है पहुंचे, और उसका अधिक्कारनेी होकर उन में बस जाए, 2 तब जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, उसकी भूमि की भांति भांति की जो पहिली उपज तू अपके घर लाएगा, उस में से कुछ टोकरी में लेकर उस स्यान पर जाना, जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा अपके नाम का निवास करने को चुन ले। 3 और उन दिनोंके याजक के पास जाकर यह कहना, कि मैं आज तेरे परमेश्वर यहोवा के साम्हने निवेदन करता हूं, कि यहोवा ने हम लोगोंको जिस देश के देने की हमारे पूर्वजोंसे शपय खाई यी उस में मैं आ गया हूं। 4 तब याजक तेरे हाथ से वह टोकरी लेकर तेरे परमेश्वर यहोवा की वेदी के साम्हने धर दे। 5 तब तू अपके परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार कहना, कि मेरा मूलपुरूष एक अरामी मनुष्य या जो मरने पर या; और वह अपके छोटे से परिवार समेत मिस्र को गया, और वहां परदेशी होकर रहा; और वहंा उस से एक बड़ी, और सामर्यी, और बहुत मनुष्योंसे भरी हुई जाति उत्पन्न हुई। 6 और मिस्रियोंने हम लोगोंसे बुरा बर्ताव किया, और हमें दु:ख दिया, और हम से कठिन सेवा लीं। 7 परन्तु हम ने अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने हमारी सुनकर हमारे दुख-श्र्म और अन्धेर पर दृष्टि की; 8 और यहोवा ने बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से अति भयानक चिन्ह और चमत्कार दिखलाकर हम को मिस्र से निकाल लाया; 9 और हमें इस स्यान पर पहुंचाकर यह देश जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं हमें दे दिया है। 10 अब हे यहोवा, देख, जो भूमि तू ने मुझे दी है उसकी पहली उपज मैं तेरे पास ले आया हूं। 11 तब तू उसे अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने रखना; और यहोवा को दण्डवत करना; 12 और जितने अच्छे पदार्य तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे और तेरे घराने को दे, उनके कारण तू लेवीयोंऔर अपके मध्य में रहनेवाले परदेशियोंसहित आनन्द करना।। 13 और तू अपके परमेश्वर यहोवा से कहना, कि मैं ने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार पवित्र ठहराई हुई वस्तुओं को अपके घर से निकाला, और लेवीय, परदेशी, अनाय, और विधवा को दे दिया है; तेरी किसी आज्ञा को मैं ने न तो टाला है, और न भूला है। 14 उन वस्तुओं में से मैं ने शोक के समय नहीं खाया, और न उन में से कोई वस्तु अशुद्धता की दशा में घर से निकाली, और न कुछ शोक करनेवालोंको दिया; मैं ने अपके परमेश्वर यहोवा की सुन ली, मैं ने तेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया है। 15 तू स्वर्ग में से जो तेरा पवित्र धाम है दृष्टि करके अपक्की प्रजा इस्राएल को आशीष दे, और इस दूध और मधु की धाराओं के देश की भूमि पर आशीष दे, जिसे तू ने हमारे पूर्वजोंसे खाई हुई शपय के अनुसार हमें दिया है। 16 आज के दिन तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को इन्हीं विधियोंऔर नियमोंके मानने की आज्ञा देता है; इसलिथे अपके सारे मन और सारे प्राण से इनके मानने में चौकसी करना। 17 तू ने तो आज यहोवा को अपना परमेश्वर मानकर यह वचन दिया है, कि मैं तेरे बनाए हुए मागार्ें पर चलूंगा, और तेरी विधियों, आज्ञाओं, और नियमोंको माना करूंगा, और तेरी सुना करूंगा। 18 और यहोवा ने भी आज तुझ को अपके वचन के अनुसार अपना प्रजारूपी निज धन सम्पत्ति माना है, कि तू उसकी सब आज्ञाओं को माना करे, 19 और कि वह अपक्की बनाई हुई सब जातियोंसे अधिक प्रशंसा, नाम, और शोभा के विषय में तुझ को प्रतिष्ठित करे, और तू उसके वचन के अनुसार अपके परमेश्वर यहोवा की पवित्र प्रजा बना रहे।
1 फिर इस्राएल के वृद्ध लोगोंसमेत मूसा ने प्रजा के लोगोंको यह आज्ञा दी, कि जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सब को मानना। 2 और जब तुम यरदन पार होके उस देश में पहुंचो, जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, तब बड़े बड़े पत्यर खड़े कर लेना, और उन पर चूना पोतना; 3 और पार होने के बाद उन पर इस व्यवस्या के सारे वचनोंको लिखना, इसलिथे कि जो देश तेरे पूर्वजोंका परमेश्वर यहोवा अपके वचन के अनुसार तुझे देता है, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, उस देश में तू जाने पाए। 4 फिर जिन पत्यरोंके विषय में मैं ने आज आज्ञा दी है, उन्हें तुम यरदन के पार होकर एबाल पहाड़ पर खड़ा करना, और उन पर चूना पोतना। 5 और वहीं अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे पत्यरोंकी एक वेदी बनाना, उन पर कोई औजार न चलाना। 6 अपके परमेश्वर यहोवा की वेदी अनगढ़े पत्यरोंकी बनाकर उन पर उसके लिथे होमबलि चढ़ाना; 7 और वहीं मेलबलि भी चढ़ाकर भोजन करना, और अपके परमेश्वर यहोवा के सम्मुख आनन्द करना। 8 और उन पत्यरोंपर इस व्यवस्या के सब वचनोंको शुद्ध रीति से लिख देना।। 9 फिर मूसा और लेवीय याजकोंने सब इस्राएलियोंसे यह भी कहा, कि हे इस्राएल, चुप रहकर सुन; आज के दिन तू अपके परमेश्वर यहोवा की प्रजा हो गया है। 10 इसलिथे अपके परमेश्वर यहोवा की बात मानना, और उसकी जो जो आज्ञा और विधि मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका पालन करना। 11 फिर उसी दिन मूसा ने प्रजा के लोगोंको यह आज्ञा दी, 12 कि जब तुम यरदन पार हो जाओ तब शिमौन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, युसुफ, और बिन्यामीन, थे गिरिज्जीम पहाड़ पर खडे होकर आशीर्वाद सुनाएं। 13 और रूबेन, गाद, आशेर, जबूलून, दान, और नप्ताली, थे एबाल पहाड़ पर खड़े होके शाप सुनाएं। 14 तब लेवीय लोग सब इस्राएली पुरूषोंसे पुकारके कहें, 15 कि शापित हो वह मनुष्य जो कोई मूत्तिर् कारीगर से खुदवाकर वा ढलवाकर निराले स्यान में स्यापन करे, क्योंकि इस से यहोवा को घृणा लगती है। तब सब लोग कहें, आमीन।। 16 शापित हो वह जो अपके पिता वा माता को तुच्छ जाने। तब सब लोग कहें, आमीन।। 17 शापित हो वह जो किसी दूसरे के सिवाने को हटाए। तब सब लोग कहें, आमीन।। 18 शापित हो वह जो अन्धे को मार्ग से भटका दे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 19 शापित हो वह जो पकेदशी, अनाय, वा विधवा का न्याय बिगाड़े। तब सब लोग कहें आमीन।। 20 शापित हो वह जो अपक्की सौतेली माता से कुकर्म करे, क्योकिं वह अपके पिता का ओढ़ना उघारता है। तब सब लोग कहें, आमीन।। 21 शापित हो वह जो किसी प्रकार के पशु से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 22 शापित हो वह जो अपक्की बहिन, चाहे सगी हो चाहे सौतेली, उस से कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 23 शापित हो वह जो अपक्की सास के संग कुकर्म करे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 24 शापित हो वह जो किसी को छिपकर मारे। तब सब लोग कहें, आमीन।। 25 शापित हो वह जो निर्दोष जन के मार डालने के लिथे धन ले। तब सब लोग कहें, आमीन।। 26 शापित हो वह जो इस व्यवस्या के वचनोंको मानकर पूरा न करे। तब सब लोग कहें, आमीन।।
1 यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाएं, जो मैं आज तुझे सुनाता हूं, चौकसी से पूरी करने का चित्त लगाकर उसकी सुने, तो वह तुझे पृय्वी की सब जातियोंमें श्रेष्ट करेगा। 2 फिर अपके परमेश्वर यहोवा की सुनने के कारण थे सब आर्शीवाद तुझ पर पूरे होंगे। 3 धन्य हो तू नगर में, धन्य हो तू खेत में। 4 धन्य हो तेरी सन्तान, और तेरी भूमि की उपज, और गाय और भेड़-बकरी आदि पशुओं के बच्चे। 5 धन्य हो तेरी टोकरी और तेरी कठौती। 6 धन्य हो तू भीतर आते समय, और धन्य हो तू बाहर जाते समय। 7 यहोवा ऐसा करेगा कि तेरे शत्रु जो तुझ पर चढ़ाई करेंगे वे तुझ से हार जाएंगे; वे एक मार्ग से तुझ पर चढ़ाई करेंगे, परन्तु तेरे साम्हने से सात मार्ग से होकर भाग जाएंगे। 8 तेरे खत्तोंपर और जितने कामोंमें तू हाथ लगाएगा उन सभोंपर यहोवा आशीष देगा; इसलिथे जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में वह तुझे आशीष देगा। 9 यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को मानते हुए उसके मार्गोंपर चले, तो वह अपक्की शपय के अनुसार तुझै अपक्की पवित्र प्रजा करके स्यिर रखेगा। 10 और पृय्वी के देश देश के सब लोग यह देखकर, कि तू यहोवा का कहलाता है, तुझ से डर जाएंगे। 11 और जिस देश के विषय यहोवा ने तेरे पूर्वजोंसे शपय खाकर तुझे देने को कहा, या उस में वह तेरी सन्तान की, और भूमि की उपज की, और पशुओं की बढ़ती करके तेरी भलाई करेगा। 12 यहोवा तेरे लिथे अपके आकाशरूपी उत्तम भण्डार को खोलकर तेरी भूमि पर समय पर मेंह बरसाया करेगा, और तेरे सारे कामोंपर आशीष देगा; और तू बहुतेरी जातियोंको उधार देगा, परन्तु किसी से तुझे उधार लेना न पकेगा। 13 और यहोवा तुझ को पुंछ नहीं, किन्तु सिर ही ठहराएगा, और तू नीचे नहीं, परन्तु ऊपर ही रहेगा; यदि परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं, तू उनके मानने में मन लगाकर चौकसी करे; 14 और जिन वचनोंकी मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं उन में से किसी से दहिने वा बाएं मुड़के पराथे देवताओं के पीछे न हो ले, और न उनकी सेवा करे।। 15 परन्तु यदि तू अपके परमेश्वर यहोवा की बात न सुने, और उसकी सारी आज्ञाओं और विधियोंके पालने में जो मैं आज सुनाता हूं चौकसी नहीं करेगा, तो थे सब शाप तुझ पर आ पकेंगे। 16 अर्यात् शापित हो तू नगर में, शापित हो तू खेत में। 17 शापित हो तेरी टोकरी और तेरी कठौती। 18 शापित हो तेरी सन्तान, और भूमि की उपज, और गायोंऔर भेड़-बकरियोंके बच्चे। 19 शापित हो तू भीतर आते समय, और शापित हो तू बाहर जाते समय। 20 फिर जिस जिस काम में तू हाथ लगाए, उस में यहोवा तब तक तुझ को शाप देता, और भयातुरं करता, और धमकी देता रहेगा, जब तक तू मिट न जाए, और शीघ्र नष्ट न हो जाए; यह इस कारण होगा कि तू यहोवा को त्यागकर दुष्ट काम करेगा। 21 और यहोवा ऐसा करेगा कि मरी तुझ में फैलकर उस समय तक लगी रहेगी, जब तक जिस भूमि के अधिक्कारनेी होने के लिथे तू जा रहा है उस से तेरा अन्त न हो जाए। 22 यहोवा तुझ को झयरोग से, और ज्वर, और दाह, और बड़ी जलन से, और तलवार से, और फुलस, और गेरूई से मारेगा; और थे उस समय तक तेरा पीछा किथे रहेंगे, तब तक तू सत्यानाश न हो जाए। 23 और तेरे सिर के ऊपर आकाश पीतल का, और तेरे पांव के तले भूमि लोहे की हो जाएगी। 24 यहोवा तेरे देश में पानी के बदले बालू और धूलि बरसाएगा; वह आकाश से तुझ पर यहां तक बरसेगी कि तू सत्यानाश हो जाएगा। 25 यहोवा तुझ को शत्रुओं से हरवाएगा; और तू एक मार्ग से उनका साम्हना करने को जाएगा, परन्तु सात मार्ग से होकर उनके साम्हने से भाग जाएगा; और पृय्वी के सब राज्योंमें मारा मारा फिरेगा। 26 और तेरी लोय आकाश के भांति भांति के पझियों, और धरती के पशुओं का आहार होगी; और उनका कोई हाँकनेवाला न होगा। 27 यहोवा तुझ को मिस्र के से फोड़े, और बवासीर, और दाद, और खुजली से ऐसा पीड़ित करेगा, कि तू चंगा न हो सकेगा। 28 यहोवा तुझे पागल और अन्धा कर देगा, और तेरे मन को अत्यन्त घबरा देगा; 29 और जैसे अन्धा अन्धिक्कारने में टटोलता है वैसे ही तू दिन दुपहरी में टटोलता फिरेगा, और तेरे काम काज सुफल न होंगे; और तू सदैव केवल अन्धेर सहता और लुटता ही रहेगा, और तेरा कोई छुड़ानेवाला न होगा। 30 तू स्त्री से ब्याह की बात लगाएगा, परन्तु दूसरा पुरूष उसको भ्रष्ट करेगा; घर तू बनाएगा, परन्तु उस में बसने न पाएगा; दाख की बारी तू लगाएगा, परन्तु उसके फल खाने न पाएगा। 31 तेरा बैल तेरी आंखोंके साम्हने मारा जाएगा, और तू उसका मांस खाने न पाएगा; तेरा गदहा तेरी आंख के साम्हने लूट में चला जाएगा, और तुझे फिर न मिलेगा; तेरी भेड़-बकरियां तेरे शत्रुओं के हाथ लग जाएंगी, और तेरी ओर से उनका कोई छुड़ानेवाला न होगा। 32 तेरे बेटे-बेटियां दूसरे देश के लोगोंके हाथ लग जाएंगे, और उनके लिथे चाव से देखते देखते तेरी आंखे रह जाएंगी; और तेरा कुछ बस न चलेगा। 33 तेरी भूमि की उपज और तेरी सारी कमाई एक अनजाने देश के लोगे खा जाएंगे; और सर्वदा तू केवल अन्धेर सहता और पीसा जाता रहेगा; 34 यहां तक कि तू उन बातोंके कारण जो अपक्की आंखोंसे देखेगा पागल हो जाएगा। 35 यहोवा तेरे घुटनोंऔर टांगोंमें, वरन नख से शिख तक भी असाध्य फोड़े निकालकर तुझ को पीड़ित करेगा। 36 यहोवा तुझ को उस राजा समेत, जिस को तू अपके ऊपर ठहराएगा, तेरी और तेरे पूर्वजोंसे अनजानी एक जाति के बीच पहुंचाएगा; और उसके मध्य में रहकर तू काठ और पत्यर के दूसरे देवताओं की उपासना और पूजा करेगा। 37 और उन सब जातियोंमें जिनके मध्य में यहोवा तुझ को पहुंचाएगा, वहां के लोगोंके लिथे तू चकित होने का, और दृष्टान्त और शाप का कारण समझा जाएगा। 38 तू खेत में बीज तो बहुत सा ले जाएगा, परन्तु उपज योड़ी ही बटोरेगा; क्योंकि टिड्डियां उसे खा जाएंगी। 39 तू दाख की बारियां लगाकर उन मे काम तो करेगा, परन्तु उनकी दाख का मधु पीने न पाएगा, वरन फल भी तोड़ने न पाएगा; क्योंकि कीड़े उनको खा जाएंगे। 40 तेरे सारे देश में जलपाई के वृझ तो होंगे, परन्तु उनका तेल तू अपके शरीर में लगाने न पाएगा; क्योंकि वे फड़ जाएंगे। 41 तेरे बेटे-बेटियां तो उत्पन्न होंगे, परन्तु तेरे रहेंगे नहीं; क्योंकि वे बन्धुवाई में चले जाएंगे। 42 तेरे सब वृझ और तेरी भूमि की उपज टिड्डियां खा जाएंगी। 43 जो परदेशी तेरे मध्य में रहेगा वह तुझ से बढ़ता जाएगा; और तू आप घटता चला जाएगा। 44 वह तुझ को उधार देगा, परन्तु तू उसको उधार न दे सकेगा; वह तो सिर और तू पूंछ ठहरेगा। 45 तू जो अपके परमेश्वर यहोवा की दी हुई आज्ञाओं और विधियोंके मानने को उसकी न सुनेगा, इस कारण थे सब शाप तुझ पर आ पकेंगे, और तेरे पीछे पके रहेंगे, और तुझ को पकड़ेंगे, और अन्त में तू नष्ट हो जाएगा। 46 और वे तुझ पर और तेरे वंश पर सदा के लिथे बने रहकर चिन्ह और चमत्कार ठहरेंगे; 47 तू जो सब पदार्य की बहुतायत होने पर भी आनन्द और प्रसन्नता के साय अपके परमेश्वर यहोवा की सेवा नहीं करेगा, 48 इस कारण तुझ को भूखा, प्यासा, नंगा, और सब पदार्योंसे रहित होकर अपके उन शत्रुओं की सेवा करनी पकेगी जिन्हें यहोवा तेरे विरूद्ध भेजेगा; और जब तक तू नष्ट न हो जाए तब तक वह तेरी गर्दन पर लेहे का जूआ डाल रखेगा। 49 यहोवा तेरे विरूद्ध दूर से, वरन पृय्वी के छोर से वेग उड़नेवाले उकाब सी एक जाति को चढ़ा लाएगा जिसकी भाषा को तू न समझेगा; 50 उस जाति के लोगोंका व्यवहार क्रूर होगा, वे न तो बूढ़ोंका मुंह देखकर आदर करेंगे, और न बालकोंपर दया करेंगे; 51 और वे तेरे पशुओं के बच्चे और भूमि की उपज यहां तक खा जांएगे कि तू नष्ट हो जाएगा; और वे तेरे लिथे न अन्न, और न नया दाखमधु, और न टटका तेल, और न बछड़े, न मेम्ने छोड़ेंगे, यहां तक कि तू नाश हो जाएगा। 52 और वे तेरे परमेश्वर यहोवा के दिथे हुए सारे देश के सब फाटकोंके भीतर तुझे घेर रखेंगे; वे तेरे सब फाटकोंके भीतर तुझे उस समय तक घेरेंगे, जब तक तेरे सारे देश में तेरी ऊंची ऊंची और दृढ़ शहरपनाहें जिन पर तू भरोसा करेगा गिर न जाएं। 53 तब घिर जाने और उस सकेती के समय जिस में तेरे शत्रु तुझ को डालेंगे, तू अपके निज जन्माए बेटे-बेटियोंका मांस जिन्हें तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को देगा खाएगा। 54 और तुझ में जो पुरूष कोमल और अति सुकुमार हो वह भी अपके भाई, और अपक्की प्राणप्यारी, और अपके बचे हुए बालकोंको क्रूर दृष्टि से देखेगा; 55 और वह उन में से किसी को भी अपके बालकोंके मांस में से जो वह आप खाएगा कुछ न देगा, क्योंकि घिर जाने और उस सकेती में, जिस में तेरे शत्रु तेरे सारे फाटकोंके भीतर तुझे घेर डालेंगे, उसके पास कुछ न रहेगा। 56 और तुझ में जो स्त्री यहां तक कोमल और सुकुमार हो कि सुकुमारपन के और कोमलता के मारे भूमि पर पांव धरते भी डरती हो, वह भी अपके प्राणप्रिय पति, और बेटे, और बेटी को, 57 अपक्की खेरी, वरन अपके जने हुए बच्चोंको क्रूर दृष्टि से देखेगी, क्योंकि घिर जाने और सकेती के समय जिस में तेरे शत्रु तुझे तेरे फाटकोंके भीतर घेरकर रखेंगे, वह सब वस्तुओं की घटी के मारे उन्हें छिप के खाएगी। 58 यदि तू इन व्यवस्या के सारे वचनोंके पालने में, जो इस पुस्तक में लिखें है, चौकसी करके उस आदरनीय और भययोग्य नाम का, जो यहोवा तेरे परमेश्वर का है भय न माने, 59 तो यहोवा तुझ को और तेरे वंश को अनोखे अनोखे दण्ड देगा, वे दुष्ट और बहुत दिन रहनेवाले रोग और भारी भारी दण्ड होंगे। 60 और वह मिस्र के उन सब रोगोंको फिर तेरे ऊपर लगा देगा, जिन से तू भय खाता या; और वे तुझ में लगे रहेंगे। 61 और जितने रोग आदि दण्ड इस व्यवस्या की पुस्तक में नहीं लिखे हैं, उन सभोंको भी यहोवा तुझ को यहां तक लगा देगा, कि तू सत्यानाश हो जाएगा। 62 और तू जो अपके परमेश्वर यहोवा की न मानेगा, इस कारण आकाश के तारोंके समान अनगिनित होने की सन्ती तुझ में से योड़े ही मनुष्य रह जाएंगे। 63 और जैसे अब यहोवा की तुम्हारी भलाई और बढ़ती करने से हर्ष होता है, वैसे ही तब उसको तुम्हें नाश वरन सत्यानाश करने से हर्ष होगा; और जिस भूमि के अधिक्कारनेी होने को तुम जा रहे हो उस पर से तुम उखाड़े जाओगे। 64 और यहोवा तुझ को पृय्वी के इस छोर से लेकर उस छोर तक के सब देशोंके लोगोंमें तित्तर बित्तर करेगा; और वहां रहकर तू अपके और अपके पुरखाओं के अनजाने काठ और पत्यर के दूसरे देवताओं की उपासना करेगा। 65 और उन जातियोंमें तू कभी चैन न पाएगा, और न तेरे पांव को ठिकाना मिलेगा; क्योंकि वहां यहोवा ऐसा करेगा कि तेरा ह्रृदय कांपता रहेगा, और तेरी आंखे धुंधली पड़ जाएगीं, और तेरा मन कलपता रहेगा; 66 और तुझ को जीवन का नित्य सन्देह रहेगा; और तू दिन रात यरयराता रहेगा, और तेरे जीवन का कुछ भरोसा न रहेगा। 67 तेरे मन में जो भय बना रहेगा, उसके कारण तू भोर को आह मारके कहेगा, कि सांफ कब होगी! और सांफ को आह मारके कहेगा, कि भोर कब होगा। 68 और यहोवा तुझ को नावोंपर चढ़ाकर मिस्र में उस मार्ग से लौटा देगा, जिसके विषय में मैं ने तुझ से कहा या, कि वह फिर तेरे देखने में न आएगा; और वहंा तुम अपके शत्रुओं के हाथ दास-दासी होने के लिथे बिकाऊ तो रहोगे, परन्तु तुम्हारा कोई ग्राहक न होगा।।
1 इस्त्राएलियोंसे जिस वाचा के बान्धने की आज्ञा यहोवा ने मूसा को मोआब के देश में दी उसके थे ही वचन हैं, और जो वाचा उस ने उन से होरेब पहाड़ पर बान्धी यी यह उस से अलग है। 2 फिर मूसा ने सब इस्त्राएलियोंको बुलाकर कहा, जो कुछ यहोवा ने मिस्र देश में तुम्हारे देखते फिरौन और उसके सब कर्मचारियों, और उसके सारे देश से किया वह तुम ने देखा है; 3 वे बड़े बड़े पक्कीझा के काम, और चिन्ह, और बड़े बड़े चमत्कार तेरी आंखोंके साम्हने हुए; 4 परन्तु यहोवा ने आज तक तुम को न तो समझने की बुद्धि, और न देखने की आंखें, और न सुनने के कान दिए हैं। 5 मैं तो तुम को जंगल में चालीस वर्ष लिए फिरा; और न तुम्हारे तन पर वस्त्र पुराने हुए, और न तेरी जूतियां तेरे पैरोंमें पुरानी हुई; 6 रोटी जो तुम नहीं खाने पाए, और दाखमधु और मदिरा जो तुम नहीं पीने पाए, वह इसलिथे हुआ कि तुम जानो कि मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूं। 7 और जब तुम इस स्यान पर आए, तब हेशबोन का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग, थे दोनो युद्ध के लिथे हमारा साम्हना करने को निकल आए, और हम ने उनको जीतकर उनका देश ले लिया; 8 और रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगोंको निज भाग करके दे दिया। 9 इसलिथे इस वाचा की बातोंका पालन करो, ताकि जो कुछ करो वह सुफल हो।। 10 आज क्या वृद्ध लोग, क्या सरदार, तुम्हारे मुख्य मुख्य पुरूष, क्या गोत्र गोत्र के तुम सब इस्राएली पुरूष, 11 क्या तुम्हारे बालबच्चे और स्त्रियां, क्या लकड़हारे, क्या पनभरे, क्या तेरी छावनी में रहनेवाले परदेशी, तुम सब के सब अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने इसलिथे खड़े हुए हो, 12 कि जो वाचा तेरा परमेश्वर यहोवा आज तुझ से बान्धता है, और जो शपय वह आज तुझ को खिलाता है, उस में तू साफी हो जाए; 13 इसलिथे कि उस वचन के अनुसार जो उसने तुझ को दिया, और उस शपय के अनुसार जो उसने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजोंसे खाई यी, वह आज तुझ को अपक्की प्रजा ठहराए, और आप तेरा परमेश्वर ठहरे। 14 फिर मैं इस वाचा और इस शपय में केवल तुम को नहीं, 15 परन्तु उनको भी, जो आज हमारे संग यहां हमारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने खड़े हैं, और जो आज यहां हमारे संग नहीं हैं, साफी करता हूं। 16 तुम जानते हो कि जब हम मिस्र देश में रहते थे, और जब मार्ग में की जातियोंके बीचोंबीच होकर आ रहे थे, 17 तब तुम ने उनकी कैसी कैसी घिनौनी वस्तुएं, और काठ, पत्यर, चांदी, सोने की कैसी मूरतें देखीं। 18 इसलिथे ऐसा न हो, कि तुम लोगोंमें ऐसा कोई पुरूष, वा स्त्री, वा कुल, वा गोत्र के लोग होंजिनका मन आज हमारे परमेश्वर यहोवा से फिर जाए, और वे जाकर उन जातियोंके देवताओं की उपासना करें; फिर ऐसा न हो कि तुम्हारे मध्य ऐसी कोई जड़ हो, जिस से विष वा कडुआ बीज उगा हो, 19 और ऐसा मनुष्य इस शाप के वचन सुनकर अपके को आशीर्वाद के योग्य माने, और यह सोचे कि चाहे मैं अपके मन के हठ पर चलूं, और तृप्त होकर प्यास को मिटा डालूं, तौभी मेरा कुशल होगा। 20 यहोवा उसका पाप झमा नहीं करेगा, वरन यहोवा के कोप और जलन का धुंआ उसको छा लेगा, और जितने शाप इस पुस्तक में लिखें हैं वे सब उस पर आ पकेंगे, और यहोवा उसका नाम धरती पर से मिटा देगा। 21 और व्यवस्या की इस पुस्तक में जिस वाचा की चर्चा है उसके सब शापोंके अनुसार यहोवा उसको इस्राएल के सब गोत्रोंमें से हानि के लिथे अलग करेगा। 22 और आनेवाली पीढिय़ोंमें तुम्हारे वंश के लोग जो तुम्हारे बाद उत्पन्न होंगे, और पकेदेशी मनुष्य भी जो दूर देश से आएंगे, वे उस देश की विपत्तियोंऔर उस में यहोवा के फैलाए हुए रोग देखकर, 23 और यह भी देखकर कि इसकी सब भूमि गन्धक और लोन से भर गई है, और यहां तक जल गई है कि इस में न कुछ बोया जाता, और न कुछ जम सकता, और न घास उगती है, वरन सदोम और अमोरा, अदमा और सबोयीम के समान हो गया है जिन्हें यहोवा ने अपके कोप और जलजलाहट में उलट दिया या; 24 और सब जातियोंके लोग पूछेंगे, कि यहोवा ने इस देश से ऐसा क्योंकिया? और इस बड़े कोप के भड़कने का क्या कारण है? 25 तब लोग यह उत्तर देंगे, कि उनके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा ने जो वाचा उनके साय मिस्र देश से निकालने के समय बान्धी यी उसको उन्होंने तोड़ा है। 26 और पराए देवताओं की उपासना की है जिन्हें वे पहिले नहीं जानते थे, और यहोवा ने उनको नहीं दिया या; 27 इसलिथे यहोवा का कोप इस देश पर भड़क उठा है, कि पुस्तक मे लिखे हुए सब शाप इस पर आ पकें; 28 और यहोवा ने कोप, और जलजलाहट, और बड़ा ही क्रोध करके उन्हें उनके देश में से उखाड़ कर दूसरे देश में फेंक दिया, जैसा कि आज प्रगट है।। 29 गुप्त बातें हमारे परमेश्वर यहोवा के वश में हैं; परन्तु जो प्रगट की गई हैं वे सदा के लिथे हमारे और हमारे वंश में रहेंगी, इसलिथे कि इस व्यवस्या की सब बातें पूरी ही जाएं।।
1 फिर जब आशीष और शाप की थे सब बातें जो मैं ने तुझ को कह सुनाई हैं तुझ पर घटें, और तू उन सब जातियोंके मध्य में रहकर, जहां तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बरबस पहुंचाएगा, इन बातोंको स्मरण करे, 2 और अपक्की सन्तान सहित अपके सारे मन और सारे प्राण से अपके परमेश्वर यहोवा की ओर फिरकर उसके पास लौट आए, और इन सब आज्ञाओं के अनुसार जो मैं आज तुझे सुनाता हूं उसकी बातें माने; 3 तब तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को बन्धुआई से लौटा ले आएगा, और तुझ पर दया करके उन सब देशोंके लोगोंमें से जिनके मध्य में वह तुझ को तित्तर बित्तर कर देगा फिर इकट्ठा करेगा। 4 चाहे धरती के छोर तक तेरा बरबस पहुंचाया जाना हो, तौभी तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ को वहां से ले आकर इकट्ठा करेगा। 5 और तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे उसी देश में पहुंचाएगा जिसके तेरे पुरखा अधिक्कारनेी हुए थे, और तू फिर उसका अधिक्कारनेी होगा; और वह तेरी भलाई करेगा, और तुझ को तेरे पुरखाओं से भी गिनती में अधिक बढ़ाएगा। 6 और तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे और तेरे वंश के मन का खतना करेगा, कि तू अपके परमेश्वर यहोवा से अपके सारे मन और सारे प्राण के साय प्रेम करे, जिस से तू जीवित रहे। 7 और तेरा परमेश्वर यहोवा थे सब शाप की बातें तेरे शत्रुओं पर जो तुझ से बैर करके तेरे पीछे पकेंगे भेजेगा। 8 और तू फिरेगा और यहोवा की सुनेगा, और इन सब आज्ञाओं को मानेगा जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं। 9 और यहोवा तेरी भलाई के लिथे तेरे सब कामोंमें, और तेरी सन्तान, और पशुओं के बच्चों, और भूमि की उपज में तेरी बढ़ती करेगा; क्योंकि यहोवा फिर तेरे ऊपर भलाई के लिथे वैसा ही आनन्द करेगा, जैसा उस ने तेरे पूर्वजोंके ऊपर किया या; 10 क्योंकि तू अपके परमेश्वर यहोवा की सुनकर उसकी आज्ञाओं और विधियोंको जो इस व्यवस्या की पुस्तक में लिखी हैं माना करेगा, और अपके परमेश्वर यहोवा की ओर अपके सारे मन और सारे प्राण से मन फिराएगा।। 11 देखो, यह जो आज्ञा मैं आज तुझे सुनाता हूं, वह न तो तेरे लिथे अनोखी, और न दूर है। 12 और न तो यह आकाश में है, कि तू कहे, कि कौन हमारे लिथे आकाश में चढ़कर उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें? 13 और न यह समुद्र पार है, कि तू कहे, कौन हमारे लिथे समुद्र पार जाए, और उसे हमारे पास ले आए, और हम को सुनाए कि हम उसे मानें? 14 परन्तु यह वचन तेरे बहुत निकट, वरन तेरे मुंह और मन ही में है ताकि तू इस पर चले।। 15 सुन, आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है। 16 क्योंकि मैं आज तुझे आज्ञा देता हूं, कि अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, और उसके मागार्ें पर चलना, और उसकी आज्ञाओं, विधियों, और नियमोंको मानना, जिस से तू जीवित रहे, और बढ़ता जाए, और तेरा परमेश्वर यहोवा उस देश में जिसका अधिक्कारनेी होने को तू जा रहा है, तुझे आशीष दे। 17 परन्तु यदि तेरा मन भटक जाए, और तू न सुने, और भटककर पराए देवताओं को दण्डवत करे और उनकी उपासना करने लगे, 18 तो मैं तुम्हें आज यह चितौनी दिए देता हूं कि तुम नि:सन्देह नष्ट हो जाओगे; और जिस देश का अधिक्कारनेी होने के लिथे तू यरदन पार जा रहा है, उस देश में तुम बहुत दिनोंके लिथे रहने न पाओगे। 19 मैं आज आकाश और पृय्वी दोनोंको तुम्हारे साम्हने इस बात की साझी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिथे तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनोंजीवित रहें; 20 इसलिथे अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानों, और उस से लिपके रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घ जीवन यही है, और ऐसा करने से जिस देश को यहोवा ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब, तेरे पूर्वजोंको देने की शपय खाई यी उस देश में तू बसा रहेगा।।
1 और मूसा ने जाकर यह बातें सब इस्रएलियोंको सुनाईं। 2 और उस ने उन से यह भी कहा, कि आज मैं एक सौ बीच वर्ष का हूं; और अब मैं चल फिर नहीं सकता; क्योंकि यहोवा ने मुझ से कहा है, कि तू इस यरदन पार नहीं जाने पाएगा। 3 तेरे आगे पार जानेवाला तेरा परमेश्वर यहोवा ही है; वह उन जातियोंको तेरे साम्हने से नष्ट करेगा, और तू उनके देश का अधिक्कारनेी होगा; और यहोवा के वचन के अनुसार यहोशू तेरे आगे आगे पार जाएगा। 4 और जिस प्रकार यहोवा ने एमोरियोंके राजा सीहोन और ओग और उनके देश को नष्ट किया है, उसी प्रकार वह उन सब जातियोंसे भी करेगा। 5 और जब यहोवा उनको तुम से हरवा देगा, तब तुम उन सारी आज्ञाओं के अनुसार उन से करना जो मैं ने तुम को सुनाई हैं। 6 तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो, उन से न डर और न भयभीत हो; क्योंकि तेरे संग चलनेवाला तेरा परमेश्वर यहोवा है; वह तुझ को धोखा न देगा और न छोड़ेगा। 7 तब मूसा ने यहोशू को बुलाकर सब इस्राएलियोंके सम्मुख कहा, कि तू हियाव बान्ध और दृढ़ हो जा; क्योंकि इन लोगोंके संग उस देश में जिसे यहोवा ने इनके पूर्वजोंसे शपय खाकर देने को कहा या तू जाएगा; और तू इनको उसका अधिक्कारनेी कर देगा। 8 और तेरे आगे आगे चलनेवाला यहोवा है; वह तेरे संग रहेगा, और न तो तुझे धोखा देगा और न छोड़ देगा; इसलिथे मत डर और तेरा मन कच्चा न हो।। 9 फिर मूसा ने यही व्यवस्या लिखकर लेवीय याजकोंको, जो यहोवा की वाचा के सन्दूक उठानेवाले थे, और इस्राएल के सब वृद्ध लोगोंको सौंप दी। 10 तब मूसा ने उनको आज्ञा दी, कि सात सात वर्ष के बीतने पर, अर्यात् उगाही न होने के वर्ष के फोपक्कीवाले पर्व्व में, 11 जब सब इस्राएली तेरे परमेश्वर यहोवा के उस स्यान पर जिसे वह चुन लेगा आकर इकट्ठे हों, तब यह व्यवस्या सब इस्राएलियोंको पढ़कर सुनाना। 12 क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बालक, क्या तुम्हारे फाटकोंके भीतर के परदेशी, सब लोगोंको इकट्ठा करना कि वे सुनकर सीखें, और तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय मानकर, इस व्यवस्या के सारे वचनोंके पालन करने में चौकसी करें, 13 और उनके लड़केबाले जिन्होंने थे बातें नहीं सुनीं वे भी सुनकर सींखें, कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा का भय उस समय तक मानते रहें, जब तक तुम उस देश में जीवित रहो जिसके अधिक्कारनेी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो।। 14 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, तेरे मरने का दिन निकट है; तू यहोशू को बुलवा, और तुम दोनोंमिलापवाले तम्बू में आकर उपस्यित हो कि मैं उसको आज्ञा दूं। तब मूसा और यहोशू जाकर मिलापवाले तम्बू में उपस्यित हुए। 15 तब यहोवा ने उस तम्बू में बादल के खम्भे में होकर दर्शन दिया; और बादल का खम्भा तम्बू के द्वार पर ठहर गया। 16 तब यहोवा ने मूसा से कहा, तू तो अपके पुरखाओं के संग सो जाने पर है; और थे लागे उठकर उस देश के पराथे देवताओं के पीछे जिनके मध्य वे जाकर रहेंगे व्यभिचारी हो जाएंगे, और मुझे त्यागकर उस वाचा को जो मैं ने उन से बान्धी है तोडेंगे। 17 उस समय मेरा कोप इन पर भड़केगा, और मैं भी इन्हें त्यागकर इन से अपना मुंह छिपा लूंगा, और थे आहार हो जाएंगे; और बहुत सी विपत्तियां और क्लेश इन पर आ पकेंगे, यहां तक कि थे उस समय कहेंगे, क्या थे विपत्तियां हम पर इस कारण तो नहीं आ पक्कीं, क्योंकि हमारा परमेश्वर हमारे मध्य में नहीं रहा? 18 उस समय मैं उन सब बुराइयोंके कारण जो थे पराथे देवताओं की ओर फिरकर करेंगे नि:सन्देह उन से अपना मुंह छिपा लूंगा। 19 सो अब तुम यह गीत लिख लो, और तू उसे इस्राएलियोंको सिखाकर कंठ करा देना, इसलिथे कि यह गीत उनके विरूद्ध मेरा साझी ठहरे। 20 जब मैं इनको उस देश में पहुंचाऊंगा जिसे देने की मैं ने इनके पूर्वजोंसे शपय खाईं यी, और जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, और खाते-खाते इनका पेट भर जाए, और थे ह्रृष्ट-पुष्ट हो जाएंगे; तब थे पराथे देवताओं की ओर फिरकर उनकी उपासना करने लगेंगे, और मेरा तिरस्कार करके मेरी वाचा को तोड़ देंगे। 21 वरन अभी भी जब मैं इन्हें इस देश में जिसके विषय मैं ने शपय खाई है पहुंचा नहीं चुका, मुझे मालूम है, कि थे क्या क्या कल्पना कर रहे हैं; इसलिथे जब बहुत सी विपत्तियां और क्लेश इन पर आ पकेंगे, तब यह गीत इन पर साझी देगा, क्योंकि इनकी सन्तान इसको कभी भी नहीं भूलेगी। 22 तब मूसा ने उसी दिन यह गीत लिखकर इस्राएलियोंको सिखाया। 23 और उस ने नून के पुत्र यहोशू को यह आज्ञा दी, कि हियाव बान्ध और दृढ़ हो; क्योंकि इस्राएलियोंको उस देश में जिसे उन्हें देने को मैं ने उन से शपय खाई है तू पहुंचाएगा; और मैं आप तेरे संग रहूंगा।। 24 जब मूसा इस व्यवस्या के वचन को आदि से अन्त तक पुस्तक में लिख चुका, 25 तब उस ने यहोवा के सन्दूक उठानेवाले लेवियोंको आज्ञा दी, 26 कि व्यवस्या की इस पुस्तक को लेकर अपके परमेश्वर यहोवा की वाचा के सन्दूक के पास रख दो, कि यह वहां तुझ पर साझी देती रहे। 27 क्योंकि तेरा बलवा और हठ मुझे मालूम है; देखो, मेरे जीवित और संग रहते हुए भी तुम यहोवा से बलवा करते आए हो; फिर मेरे मरने के बाद भी क्योंन करोगे! 28 तुम अपके गोत्रोंके सब वृद्ध लोगोंको और अपके सरदारोंको मेरे पास इकट्ठा करो, कि मैं उनको थे वचन सुनाकर उनके विरुद्ध आकाश और पृय्वी दोनोंको साझी बनाऊं। 29 क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरी मृत्यु के बाद तुम बिलकुल बिगड़ जाओगे, और जिस मार्ग में चलने की आज्ञा मैं ने तुम को सुनाई है उसको भी तुम छोड़ दोगे; और अन्त के दिनोंमें जब तुम वह काम करके जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अपक्की बनाई हुई वस्तुओं की पूजा करके उसको रिस दिलाओगे, तब तुम पर विपत्ति आ पकेगी।। 30 तब मूसा ने इस्राएल की सारी सभा को इस गीत के वचन आदि से अन्त तक कह सुनाए:
1 हे आकाश, कान लगा, कि मैं बोलूं; और हे पृय्वी, मेरे मुंह की बातें सुन।। 2 मेरा उपकेश मेंह की नाईं बरसेगा और मेरी बातें ओस की नाईं टपकेंगी, जैसे कि हरी घास पर फीसी, और पौधोंपर फडिय़ां।। 3 मैं तो याहोवा नाम का प्रचार करूंगा। तुम अपके परमेश्वर की महिमा को मानो! 4 वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।। 5 परन्तु इसी जाति के लोग टेढ़े और तिर्छे हैं; थे बिगड़ गए, थे उसके पुत्र नहीं; यह उनका कलंक है।। 6 हे मूढ़ और निर्बुद्धि लोगों, क्या तुम यहोवा को यह बदला देते हो? क्या वह तेरा पिता नहीं है, जिस ने तुम को मोल लिया है? उस ने तुम को बनाया और स्यिर भी किया है।। 7 प्राचीनकाल के दिनोंको स्मरण करो, पीढ़ी पीढ़ी के वर्षोंको विचारो; अपके बाप से पूछो, और वह तुम को बताएगा; अपके वृद्ध लोगोंसे प्रश्न करो, और वे तुझ से कह देंगे।। 8 जब परमप्रधान ने एक एक जाति को निज निज भाग बांट दिया, और आदमियोंको अलग अलग बसाया, तब उस ने देश देश के लोगोंके सिवाने इस्राएलियोंकी गिनती के अनुसार ठहराए।। 9 क्योंकि यहोवा का अंश उसकी प्रजा है; याकूब उसका नपा हुआ निज भाग है।। 10 उस ने उसको जंगल में, और सुनसान और गरजनेवालोंसे भरी हुई मरूभूमि में पाया; उस ने उसके चंहु ओर रहकर उसकी रझा की, और अपक्की आंख की पुतली की नाई उसकी सुधि रखी।। 11 जैसे उकाब अपके घोंसले को हिला हिलाकर अपके बच्चोंके ऊपर ऊपर मण्डलाता है, वैसे ही उस ने अपके पंख फैलाकर उसको अपके परोंपर उठा लिया।। 12 यहोवा अकेला ही उसकी अगुवाई करता रहा, और उसके संग कोई पराया देवता न या।। 13 उस ने उसको पृय्वी के ऊंचे ऊंचे स्यानोंपर सवार कराया, और उसको खेतोंकी उपज खिलाई; उस ने उसे चट्टान में से मधु और चकमक की चट्ठान में से तेल चुसाया।। 14 गायोंका दही, और भेड़-बकरियोंका दूध, मेम्नोंकी चर्बी, बकरे और बाशान की जाति के मेढ़े, और गेहूं का उत्तम से उत्तम आटा भी; और तू दाखरस का मधु पिया करता या।। 15 परन्तु यशूरून मोटा होकर लात मारने लगा; तू मोटा और ह्रृष्ट-पुष्ट हो गया, और चर्बी से छा गया है; तब उस ने अपके सृजनहार ईश्वर को तज दिया, और अपके उद्धारमूल चट्टान को तुच्छ जाना।। 16 उन्होंने पराए देवताओं को मानकर उस में जलन उपजाई; और घृणित कर्म करके उसको रिस दिलाई ।। 17 उन्होंने पिशाचोंके लिथे जो ईश्वर न थे बलि चढ़ाए, और उनके लिथे वे अनजाने देवता थे, वे तो नथे नथे देवता थे जो योड़े ही दिन से प्रकट हुए थे, और जिन से उनके पुरखा कभी डरे नहीं। 18 जिस चट्टान से तू उत्पन्न हुआ उसको तू भूल गया, और ईश्वर जिस से तेरी उत्पत्ति हुई उसको भी तू भूल गया है।। 19 इन बातोंको देखकर यहोवा ने उन्हें तुच्छ जाना, क्योंकि उसके बेटे-बेटियोंने उसे रिस दिलाई यी।। 20 तब उस ने कहा, मैं उन से अपना मुख छिपा लूंगा, और देखूंगा कि उनका अन्त कैसा होगा, क्योंकि इस जाति के लोग बहुत टेढ़े हैं और धोखा देनेवाले पुत्र हैं। 21 उन्होंने ऐसी वस्तु मानकर जो ईश्वर नहीं हैं, मुझ में जलन उत्पन्न की; और अपक्की व्यर्य वस्तुओं के द्वारा मुझे रिस दिलाई। इसलिथे मैं भी उनके द्वारा जो मेरी प्रजा नहीं हैं उनके मन में जलन उत्पन्न करूंगा; और एक मूढ़ जाति के द्वारा उन्हें रिस दिलाऊंगा।। 22 क्योंकि मेरे कोप की आग भड़क उठी है, जो पाताल की तह तक जलती जाएगी, और पृय्वी अपक्की उपज समेत भस्म हो जाएगी, और पहाड़ोंकी नेवोंमें भी आग लगा देगी।। 23 मैं उन पर विपत्ति पर विपत्ति भेजूंगा; और उन पर मैं अपके सब तीरोंको छोडूंगा।। 24 वे भूख से दुबले हो जाएंगे, और अंगारोंसे और कठिन महारोगोंसे ग्रसित हो जाएंगे; और मैं उन पर पशुओं के दांत लगवाऊंगा, और धूलि पर रेंगनेवाले सर्पोंका विष छोड़ दूंगा।। 25 बाहर वे तलवार से मरेंगे, और कोठरियोंके भीतर भय से; क्या कुंवारे और कुंवारियां, क्या दूध पीता हुआ बच्चा क्या पक्के बालवाले, सब इसी प्रकार बरबाद होंगे। 26 मैं ने कहा या, कि मैं उनको दूर दूर से तित्तर-बित्तर करूंगा, और मनुष्योंमें से उनका स्मरण तक मिटा डालूंगा; 27 परन्तु मुझे शत्रुओं की छेड़ छाड़ का डर या, ऐसा न हो कि द्रोही इसको उलटा समझकर यह कहने लगें, कि हम अपके ही बाहुबल से प्रबल हुए, और यह सब यहोवा से नहीं हुआ।। 28 यह जाति युक्तहीन तो है, और इन में समझ है ही नहीं।। 29 भला होता कि थे बुद्धिमान होते, कि इसको समझ लेते, और अपके अन्त का विचार करते! 30 यदि उनकी चट्टान ही उनको न बेच देती, और यहोवा उनको औरोंके हाथ में न कर देता; तो यह क्योंकर हो सकता कि उनके हजार का पीछा एक मनुष्य करता, और उनके दस हजार को दो मनुष्य भगा देते? 31 क्योंकि जैसी हमारी चट्टान है वैसी उनकी चट्टान नहीं है, चाहे हमारे शत्रु ही क्योंन न्यायी हों।। 32 क्योंकि उनकी दाखलता सदोम की दाखलता से निकली, और अमोरा की दाख की बारियोंमें की है; उनकी दाख विषभरी और उनके गुच्छे कड़वे हैं; 33 उनका दाखमधु सांपोंका सा विष और काले नागोंका सा हलाहल है।। 34 क्या यह बात मेरे मन में संचित, और मेरे भण्डारोंमें मुहरबन्द नहीं है? 35 पलटा लेना और बदला देना मेरा ही काम है, यह उनके पांव फिसलने के समय प्रगट होगा; क्योंकि उनकी विपत्ति का दिन निकट है, और जो दुख उन पर पड़नेवाले है वे शीघ्र आ रहे हैं।। 36 क्योंकि जब यहोवा देखेगा कि मेरी प्रजा की शक्ति जाती रही, और क्या बन्धुआ और क्या स्वाधीन, उन में कोई बचा नहीं रहा, तब यहोवा अपके लोगोंका न्याय करेगा, और अपके दासोंके विषय में तरस खाएगा।। 37 तब वह कहेगा, उनके देवता कहां हैं, अर्यात वह चट्टान कहां जिस पर उनका भरोसा या, 38 जो उनके बलिदानोंकी चर्बी खाते, और उनके तपावनोंका दाखमधु पीते थे? वे ही उठकर तुम्हारी सहाथता करें, और तुम्हारी आड़ हों! 39 इसलिथे अब तुम देख लो कि मैं ही वह हूं, और मेरे संग कोई देवता नहीं; मैं ही मार डालता, और मैं जिलाता भी हूं; मैं ही घायल करता, और मैं ही चंगा भी करता हूं; और मेरे हाथ से कोई नहीं छुड़ा सकता।। 40 क्योंकिं मैं अपना हाथ स्वर्ग की ओर उठाकर कहता हूं, क्योंकि मैं अनन्त काल के लिथे जीवित हूं, 41 सो यदि मैं बिजली की तलवार पर सान धरकर फलकाऊं, और न्याय को अपके हाथ में ले लूं, तो अपके द्रोहियोंसे बदला लूंगा, और अपके बैरियोंको बदला दूंगा।। 42 मैं अपके तीरोंको लोहू से मतवाला करूंगा, और मेरी तलवार मांस खाएगी वह लोहू, मारे हुओं और बन्धुओं का, और वह मांस, शत्रुओं के प्रधानोंके शीश का होगा।। 43 हे अन्यजातियों, उसकी प्रजा के साय आनन्द मनाओ; क्योंकि वह अपके दासोंके लोहू का पलटा लेगा, और अपके द्रोहियोंको बदला देगा, और अपके देश और अपक्की प्रजा के पाप के लिथे प्रायश्चित देगा। 44 इस गीत के सब वचन मूसा ने नून के पुत्र होशे समेत आकर लोगोंको सुनाए। 45 जब मूसा थे सब वचन सब इस्राएलियोंसे कह चुका, 46 तब उस ने उन से कहा कि जितनी बातें मैं आज तुम से चिताकर कहता हूं उन सब पर अपना अपाना मन लगाओ, और उनके अर्यात् इस व्यवस्या की सारी बातोंके मानने में चौकसी करने की आज्ञा अपके लड़केबालोंको दो। 47 क्योंकि यह तुम्हारे लिथे व्यर्य काम नहीं, परन्तु तुम्हारा जीवन ही है, और ऐसा करने से उस देश में तुम्हारी आयु के दिन बहुत होंगे, जिसके अधिक्कारनेी होने को तुम यरदन पार जा रहे हो।। 48 फिर उसी दिन यहोवा ने मूसा से कहा, 49 उस अबारीम पहाड़ की नबो नाम चोटी पर, जो मोआब देश में यरीहो के साम्हने है, चढ़कर कनान देश जिसे मैं इस्राएलियोंकी निज भूमि कर देता हूं उसको देख ले। 50 तब जैसा तेरा भाई हारून होर पहाड़ पर मरकर अपके लोगोंमें मिल गया, वैसा ही तू इस पहाड़ पर चढ़कर मर जाएगा, और अपके लोगोंमें मिल जाएगा। 51 इसका कारण यह है, कि सीन जंगल में, कादेश के मरीबा नाम सोते पर, तुम दोनोंने मेरा अपराध किया, क्योंकि तुम ने इस्राएलियोंके मध्य में मुझे पवित्र न ठहराया। 52 इसलिथे वह देश जो मैं इस्राएलियोंको देता हूं, तू अपके साम्हने देख लेगा, परन्तु वहां जाने न पाएगा।।
1 जो आशीर्वाद परमेश्वर के जन मूसा ने अपक्की मृत्यु से पहिले इस्राएलियोंको दिया वह यह है।। 2 उस ने कहा, यहोवा सीनै से आया, और सेईर से उनके लिथे उदय हुआ; उस ने पारान पर्वत पर से अपना तेज दिखाया, और लाखोंपवित्रोंके मध्य में से आया, उसके दहिने हाथ से उनके लिथे ज्वालामय विधियां निकलीं।। 3 वह निश्चय देश देश के लोगोंसे प्रेम करता है; उसके सब पवित्र लोग तेरे हाथ में हैं: वे तेरे पांवोंके पास बैठे रहते हैं, 4 मूसा ने हमें व्यवस्या दी, और याकूब की मण्डली का निज भाग ठहरी।। 5 जब प्रजा के मुख्य मुख्य पुरूष, और इस्राएल के गोत्री एक संग होकर एकत्रित हुए, तब वह यशूरून में राजा ठहरा।। 6 रूबेन न मरे, वरन जीवित रहे, तौभी उसके यहां के मनुष्य योड़े हों।। 7 और यहूदा पर यह आशीर्वाद हुआ जो मूसा ने कहा, हे यहोवा तू यहूदा की सुन, और उसे उसके लोगोंके पास पहुंचा। वह अपके लिथे आप अपके हाथोंसे लड़ा, और तू ही उसके द्रोहियोंके विरूद्ध उसका सहाथक हो।। 8 फिर लेवी के विषय में उस ने कहा, तेरे तुम्मीम और ऊरीम तेरे भक्त के पास हैं, जिसको तू ने मस्सा में परख लिया, और जिसके साय मरीबा नाम सोते पर तेरा वादविवाद हुआ; 9 उस ने तो अपके माता पिता के विषय में कहा, कि मैं उनको नहीं जानता; और न तो उस ने अपके भाइयोंको अपना माना, और न अपके पुत्रोंको पहिचाना। क्योंकि उन्होंने तेरी बातें मानी, और वे तेरी वाचा का पालन करते हैं।। 10 वे याकूब को तेरे नियम, और इस्राएल को तेरी व्यवस्या सिखाएंगे; और तेरे आगे धूप और तेरी वेदी पर सर्वांग पशु को होमबलि करेंगे।। 11 हे यहोवा, उसकी सम्पत्ति पर आशीष दे, और उसके हाथोंकी सेवा को ग्रहण कर; उसके विरोधियोंऔर बैरियोंकी कमर पर ऐसा मार, कि वे फिर न उठ सकें।। 12 फिर उस ने बिन्यामीन के विषय में कहा, यहोवा का वह प्रिय जन, उसके पास निडर वास करेगा; और वह दिन भर उस पर छाया करेगा, और वह उसके कन्धोंके बीच रहा करता है।। 13 फिर यूसुफ के विषय में उस ने कहा; इसका देश यहोवा से आशीष पाए अर्यात् आकाश के अनमोल पदार्य और ओस, और वह गहिरा जल जो नीचे है, 14 और सूर्य के पकाए हुए अनमोल फल, और जो अनमोल पदार्य चंद्रमा के उगाए उगते हैं, 15 और प्राचीन पहाड़ोंके उत्तम पदार्य, और सनातन पहाडिय़ोंके अनमोल पदार्य, 16 और पृय्वी और जो अनमोल पदार्य उस में भरे हैं, और जो फाड़ी में रहता या उसकी प्रसन्नता। इन सभोंके विषय में यूसुफ के सिर पर, अर्यात् उसी के सिर के चांद पर जो अपके भाइयोंसे न्यारा हुआ या आशीष ही आशीष फले।। 17 वह प्रतापी है, मानो गया का पहिलौठा है, और उसके सींग बनैले बैल के से हैं; उन से वह देश देश के लोगोंको, वरन पृय्वी के छोर तक के सब मनुष्योंको ढकेलेगा; वे एप्रैम के लाखोंलाख, और मनश्शे के हजारोंहजार हैं।। 18 फिर जबूलून के विषय में उस ने कहा, हे जबूलून, तू बाहर निकलते समय, और हे इस्साकार, तू अपके डेरोंमें आनन्द करे।। 19 वे देश देश के लोगोंको पहाड़ पर बुलाएंगे; वे वहां धर्मयज्ञ करेंगे; क्योंकि वे समुद्र का धन, और बालू के छिपे हुए अनमोल पदार्य से लाभ उठाएंगे।। 20 फिर गाद के विषय में उस ने कहा, धन्य वह है जो गाद को बढ़ाता है! गाद तो सिंहनी के समान रहता है, और बांह को, वरन सिर के चांद तक को फाड़ डालता है।। 21 और उस ने पहिला अंश तो अपके लिथे चुन लिया, क्योंकि वहां रईस के योग्य भाग रखा हुआ या; तब उस ने प्रजा के मुख्य मुख्य पुरूषोंके संग आकर यहोवा का ठहराया हुआ धर्म, और इस्राएल के साय होकर उसके नियम का प्रतिपालन किया।। 22 फिर दान के विषय में उस ने कहा, दान तो बाशान से कूदनेवाला सिंह का बच्चा है।। 23 फिर नप्ताली के विषय में उस ने कहा, हे नप्ताली, तू जो यहोवा की प्रसन्नता से तृप्त, और उसकी आशीष से भरपूर है, तू पच्छिम और दक्खिन के देश का अधिक्कारनेी हो।। 24 फिर आशेर के विषय में उस ने कहा, आशेर पुत्रोंके विषय में आशीष पाए; वह अपके भाइयोंमें प्रिय रहे, और अपना पांव तेल में डुबोए।। 25 तेरे जूते लोहे और पीतल के होंगे, और जैसे तेरे दिन वैसी ही तेरी शक्ति हो।। 26 हे यशूरून, ईश्वर के तुल्य और कोई नहीं है, वह तेरी सहाथता करने को आकाश पर, और अपना प्रताप दिखाता हुआ आकाशमण्डल पर सवार होकर चलता है।। 27 अनादि परमेश्वर तेरा गृहधाम है, और नीचे सनातन भुजाएं हैं। वह शत्रुओं को तेरे साम्हने से निकाल देता, और कहता है, उनको सत्यानाश कर दे।। 28 और इस्राएल निडर बसा रहता है, अन्न और नथे दाखमधु के देश में याकूब का सोता अकेला ही रहता है; और उसके ऊपर के आकाश से ओस पड़ा करती है।। 29 हे इस्राएल, तू क्या ही धन्य है! हे यहोवा से उद्धार पाई हुई प्रजा, तेरे तुल्य कौन है? वह तो तेरी सहाथता के लिथे ढाल, और तेरे प्रताप के लिथे तलवार है; तेरे शत्रु तुझे सराहेंगे, और तू उनके ऊंचे स्यानोंको रौंदेगा।।
1 फिर मूसा मोआब के अराबा से नबो पहाड़ पर, जो पिसगा की एक चोटी और यरीहो के साम्हने है, चढ़ गया; और यहोवा ने उसको दान तक का गिलाद नाम सारा देश, 2 और नप्ताली का सारा देश, और एप्रैम और मनश्शे का देश, और पच्छिम के समुद्र तक का यहूदा का सारा देश, 3 और दक्खिन देश, और सोअर तक की यरीहो नाम खजूरवाले नगर की तराई, यह सब दिखाया। 4 तब याहोवा ने उस से कहा, जिस देश के विषय में मैं ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपय खाकर कहा या, कि मैं इसे तेरे वंश को दूंगा वह यही है। मैं ने इसको तुझे साझात दिखला दिया है, परन्तु तू पार होकर वहां जाने न पाएगा। 5 तब यहोवा के कहने के अनुसार उसका दास मूसा वहीं मोआब देश में मर गया, 6 और उस ने उसे मोआब के देश में बेतपोर के साम्हने एक तराई में मिट्टी दी; और आज के दिन तक कोई नहीं जानता कि उसकी कब्र कहां है। 7 मूसा अपक्की मृत्यु के समय एक सौ बीस वर्ष का या; परन्तु न तो उसकी आंखें धुंधली पक्कीं, और न उसका पौरूष घटा या। 8 और इस्राएली मोआब के अराबा में मूसा के लिथे तीस दिन तक रोते रहे; तक मूसा के लिथे रोने और विलाप करने के दिन पूरे हुए। 9 और नून का पुत्र यहोशू बुद्धिमानी की आत्मा से परिपूर्ण या, क्योंकि मूसा ने अपके हाथ उस पर रखे थे; और इस्राएली उस आज्ञा के अनुसार जो याहोवा ने मूसा को दी यी उसकी मानते रहे। 10 और मूसा के तुल्य इस्राएल में ऐसा कोई नबी नहीं उठा, जिस से यहोवा ने आम्हने-साम्हने बातें कीं, 11 और उसको यहोवा ने फिरौन और उसके सब कर्मचारियोंके साम्हने, और उसके सारे देश में, सब चिन्ह और चमत्कार करने को भेजा या, 12 और उस ने सारे इस्राएलियोंकी दृष्टि में बलवन्त हाथ और बड़े भय के काम कर दिखाए।।
1 यहोवा के दास मूसा की मृत्यु के बाद यहोवा ने उसके सेवक यहोशू से जो नून का पुत्र या कहा, 2 मेरा दास मूसा मर गया है; सो अब तू उठ, कमर बान्ध, और इस सारी प्रजा समेत यरदन पार होकर उस देश को जा जिसे मैं उनको अर्यात् इस्राएलियोंको देता हूं। 3 उस वचन के अनुसार जो मैं ने मूसा से कहा, अर्यात् जिस जिस स्यान पर तुम पांव धरोगे वह सब मैं तुम्हे दे देता हूं। 4 जंगल और उस लबानोन से लेकर परात महानद तक, और सूर्यास्त की ओर महासमुद्र तक हित्तियोंका सारा देश तुम्हारा भाग ठहरेगा। 5 तेरे जीवन भर कोई तेरे साम्हने ठहर न सकेगा; जैसे मैं मूसा के संग रहा वैसे ही तेरे संग भी रहूंगा; और न तो मैं तुझे धोखा दूंगा, और न तुझ को छोडूंगा। 6 इसलिथे हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा; क्योंकि जिस देश के देने की शपय मैं ने इन लोगोंके पूर्वजोंसे खाई यी उसका अधिक्कारनेी तू इन्हें करेगा। 7 इतना हो कि तू हियाव बान्धकर और बहुत दृढ़ होकर जो व्यवस्या मेरे दास मूसा ने तुझे दी है उन सब के अनुसार करने में चौकसी करना; और उस से न तो दहिने मुड़ना और न बांए, तब जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा काम सुफल होगा। 8 व्यवस्या की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिथे कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा। 9 क्या मैं ने तुझे आज्ञा नहीं दी? हियाव बान्धकर दृढ़ हो जा; भय न खा, और तेरा मन कच्चा न हो; क्योंकि जहां जहां तू जाएगा वहां वहां तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहेगा।। 10 तब यहोशू ने प्रजा के सरदारोंको यह आज्ञा दी, 11 कि छावनी में इधर उधर जाकर प्रजा के लोगोंको यह आज्ञा दो, कि अपके अपके लिथे भोजन तैयार कर रखो; क्योंकि तीन दिन के भीतर तुम को इस यरदन के पार उतरकर उस देश को अपके अधिक्कारने में लेने के लिथे जाना है जिसे तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे अधिक्कारने में देनेवाला है।। 12 फिर यहोशू ने रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोगोंसे कहा, 13 जो बात यहोवा के दास मूसा ने तुम से कही यीं, कि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हें विश्रम देता है, और यही देश तुम्हें देगा, उसकी सुधि करो। 14 तुम्हारी स्त्रियां, बालबच्चे, और पशु तो इस देश में रहें जो मूसा ने तुम्हें यरदन के इसी पार दिया, परन्तु तुम जो शूरवीर हो पांति बान्धे हुए अपके भांइयोंके आगे आगे पार उतर चलो, और उनकी सहाथता करो; 15 और जब यहोवा उनको ऐसा विश्रम देगा जैसा वह तुम्हें दे चुका है, और वे भी तुम्हारे परमश्ेवर यहोवा के दिए हुए देश के अधिक्कारनेी हो जाएंगे; तब तुम अपके अधिक्कारने के देश में, जो यहोवा के दास मूसा ने यरदन के इस पार सूर्योदय की ओर तुम्हें दिया है, लौटकर इसके अधिक्कारनेी होगे। 16 तब उन्होंने यहोशू को उत्तर दिया, कि जो कुछ तू ने हमें करने की आज्ञा दी है वह हम करेंगे, और जहां कहीं तू हमें भेजे वहां हम जाएंगे। 17 जैसे हम सब बातोंमें मूसा की मानते थे वैसे ही तेरी भी माना करेंगे; इतना हो कि तेरा परमेश्वर यहोवा जैसा मूसा के संग रहता या वैसे ही तेरे संग भी रहे। 18 कोई क्योंन हो जो तेरे विरूद्ध बलवा करे, और जितनी आज्ञाएं तू दे उनको न माने, तो वह मार डाला जाएगा। परन्तु तू दृढ़ और हियाव बान्धे रह।।
1 तब नून के पुत्र यहोशू ने दो भेदियोंको शित्तीम से चुपके से भेज दिया, और उन से कहा, जाकर उस देश और यरीहो को देखो। तुरन्त वे चल दिए, और राहाब नाम किसी वेश्या के घर में जाकर सो गए। 2 तब किसी ने यरीहो के राजा से कहा, कि आज की रात कई एक इस्राएली हमारे देश का भेद लेने को यहां आए हुए हैं। 3 तब यरीहो के राजा ने राहाब के पास योंकहला भेजा, कि जो पुरूष तेरे यहां आए हैं उन्हें बाहर ले आ; क्योंकि वे सारे देश का भेद लेने को आए हैं। 4 उस स्त्री ने दोनोंपुरूषोंको छिपा रखा; और इस प्रकार कहा, कि मेरे पास कई पुरूष आए तो थे, परन्तु मैं नहीं जानती कि वे कहां के थे; 5 और जब अन्धेरा हुआ, और फाटक बन्द होने लगा, तब वे निकल गए; मुझे मालूम नहीं कि वे कहां गए; तुम फुर्ती करके उनका पीछा करो तो उन्हें जा पकड़ोगे। 6 उस ने उनको घर की छत पर चढ़ाकर सनई की लकडिय़ोंके नीचे छिपा दिया या जो उस ने छत पर सजा कर रखी यी। 7 वे पुरूष तो यरदन का मार्ग ले उनकी खोज में घाट तक चले गए; और ज्योंही उनको खोजनेवाले फाटक से निकले त्योंही फाटक बन्द किया गया। 8 और थे लेटने न पाए थे कि वह स्त्री छत पर इनके पास जाकर 9 इन पुरूषोंसे कहने लगी, मुझे तो निश्चय है कि यहोवा ने तुम लोगोंको यह देश दिया है, और तुम्हारा भय हम लोगोंके मन में समाया है, और इस देश के सब निवासी तुम्हारे कारण घबरा रहे हैं। 10 क्योंकि हम ने सुना है कि यहोवा ने तुम्हारे मिस्र से निकलने के समय तुम्हारे साम्हने लाल समुद्र का जल सुखा दिया। और तुम लोगोंने सीहोन और ओग नाम यरदन पार रहनेवाले एमोरियोंके दोनोंराजाओं को सत्यानाश कर डाला है। 11 और यह सुनते ही हमारा मन पिघल गया, और तुम्हारे कारण किसी के जी में जी न रहा; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा ऊपर के आकाश का और नीचे की पृय्वी का परमेश्वर है। 12 अब मैं ने जो तुम पर दया की है, इसलिथे मुझ से यहोवा की शपय खाओ कि तुम भी मेरे पिता के घराने पर दया करोगे, और इसकी सच्ची चिन्हानी मुझे दो, 13 कि तुम मेरे माता-पिता, भाइयोंऔर बहिनोंको, और जो कुछ उनका है उन सभोंको भी जीवित रख छोड़ो, और हम सभोंका प्राण मरने से बचाओगे। 14 तब उन पुरूषोंने उस से कहा, यदि तू हमारी यह बात किसी पर प्रगट न करे, तो तुम्हारे प्राण के बदले हमारा प्राण जाए; और जब यहोवा हम को यह देश देगा, तब हम तेरे साय कृपा और सच्चाई से बर्ताव करेंगे। 15 तब राहाब जिसका घर शहरपनाह पर बना या, और वह वहीं रहती यीं, उस ने उनको खिड़की से रस्सी के बल उतारके नगर के बाहर कर दिया। 16 और उस ने उन से कहा, पहाड़ को चले जाओ, ऐसा न हो कि खोजनेवाले तुम को पाएं; इसलिथे जब तक तुम्हारे खोजनेवाले लौट न आएं तब तक, अर्यात् तीन दिन वहीं छिपे रहता, उसके बाद अपना मार्ग लेना। 17 उन्होंने उस से कहा, जो शपय तू ने हम को खिलाई है उसके विषय में हम तो निर्दोष रहेंगे। 18 तुम, जब हम लोग इस देश में आएंगे, तब जिस खिड़की से तू ने हम को उतारा है उस में यही लाल रंग के सूत की डोरी बान्ध देना; और अपके माता पिता, भाइयों, वरन अपके पिता के घराने को इसी घर में अपके पास इकट्ठा कर रखना। 19 तब जो कोई तेरे घर के द्वार से बाहर निकले, उसके खून का दोष उसी के सिर पकेगा, और हम निर्दोष ठहरेंगे: परन्तु यदि तेरे संग घर में रहते हुए किसी पर किसी का हाथ पके, तो उसके खून का दोष हमारे सिर पर पकेगा। 20 फिर यदि तू हमारी यह बात किसी पर प्रगट करे, तो जो शपय तू ने हम को खिलाई है उस से हम निर्बन्ध ठहरेंगे। 21 उस ने कहा, तुम्हारे वचनोंके अनुसार हो। तब उस ने उनको विदा किया, और वे चले गए; और उस ने लाल रंग की डोरी को खिड़की में बान्ध दिया। 22 और वे जाकर पहाड़ तक पहुंचे, और वहां खोजनेवालोंके लौटने तक, अर्यात् तीन दिन तक रहे; और खोजनेवाले उनको सारे मार्ग में ढूंढ़ते रहे और कहीं न पाया। 23 तब वे दोनोंपुरूष पहाड़ से उतरे, और पार जाकर नून के पुत्र यहोशू के पास पहुंचकर जो कुछ उन पर बीता या उसका वर्णन किया। 24 और उन्होंने यहोशू से कहा, निसन्देह यहोवा ने वह सारा देश हमारे हाथ में कर दिया है; फिर इसके सिवाय उसके सारे निवासी हमारे कारण घबरा रहे हैं।।
1 बिहान को यहोशू सबेरे उठा, और सब इस्राएलियोंको साय ले शित्तीम से कूच कर यरदन के किनारे आया; और वे पार उतरने से पहिले वहीं टिक गए। 2 और तीन दिन के बाद सरदारोंने छावनी के बीच जाकर 3 प्रजा के लोगोंको यह आज्ञा दी, कि जब तुम को अपके परमेश्वर यहोवा की वाचा का सन्दूक और उसे उठाए हुए लेवीय याजक भी देख पकें, तब अपके स्यान से कूच करके उसके पीछे पीछे चलना, 4 परन्तु उसके और तुम्हारे बीच में दो हजार हाथ के अटकल अन्तर रहे; तुम सन्दूक के निकट न जाना। ताकि तुम देख सको, कि किस मार्ग से तुम को चलना है, क्योंकि अब तक तुम इस मार्ग पर होकर नहीं चले। 5 फिर यहोशू ने प्रजा के लोगोंसे कहा, तुम अपके आप को पवित्र करो; क्योंकि कल के दिन यहोवा तुम्हारे मध्य में आश्चर्यकर्म करेगा। 6 तब यहोशू ने याजकोंसे कहा, वाचा का सन्दूक उठाकर प्रजा के आगे आगे चलो। तब वे वाचा का सन्दूक उठाकर आगे आगे चले। 7 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, आज के दिन से मैं सब इस्राएलियोंके सम्मुख तेरी प्रशंसा करना आरम्भ करूंगा, जिस से वे जान लें कि जैसे मैं मूसा के संग रहता या वैसे ही मैं तेरे संग भी हूं। 8 और तू वाचा के सन्दूक के उठानेवाले याजकोंको यह आज्ञा दे, कि जब तुम यरदन के जल के किनारे पहुंचो, तब यरदन में खड़े रहना।। 9 तब यहोशू ने इस्राएलियोंसे कहा, कि पास आकर अपके परमेश्वर यहोवा के वचन सुनो। 10 और यहोशू कहने लगा, कि इस से तुम जान लोगे कि जीवित ईश्वर तुम्हारे मध्य में है, और वह तुम्हारे सामहने से नि:सन्देह कनानियों, हित्तियों, हिव्वियों, परिज्जियों, गिर्गाशियों, एमोरियों, और यबूसिक्कों उनके देश में से निकाल देगा। 11 सुनो, पृय्वी भर के प्रभु की वाचा का सन्दूक तुम्हारे आगे आगे यरदन में जाने पर है। 12 इसलिथे अब इस्राएल के गात्रोंमें से बारह पुरूषोंको चुन लो, वे एक एक गोत्र में से एक पुरूष हो। 13 और जिस समय पृय्वी भर के प्रभु यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले याजकोंके पांव यरदन के जल में पकेंगे, उस समय यरदन का ऊपर से बहता हुआ जल यम जाएगा, और ढेर होकर ठहरा रहेगा। 14 सो जब प्रजा के लोगोंने अपके डेरोंसे यरदन पार जाने को कूच किया, और याजक वाचा का सन्दूक उठाए हुए प्रजा के आगे आगे चले, 15 और सन्दूक के उठानेवाले यरदन पर पहुंचे, और सन्दूक के उठानेवाले याजकोंके पांव यरदन के तीर के जल में डूब गए (यरदन का जल तो कटनी के समय के सब दिन कड़ारोंके ऊपर ऊपर बहा करता है), 16 तब जो जल ऊपर की ओर से बहा आता या वह बहुत दूर, अर्यात् आदाम नगर के पास जो सारतान के निकट है रूककर एक ढेर हो गया, और दीवार सा उठा रहा, और जो जल अराबा का ताल, जो खारा ताल भी कहलाता है, उसकी ओर बहा जाता या, वह पूरी रीति से सूख गया; और प्रजा के लाग यरीहो के साम्हने पार उतर गए। 17 और याजक यहोवा की वाचा का सन्दूक उठाए हुए यरदन के बीचोंबीच पहुंचकर स्यल पर स्यिर खड़े रहे, और सब इस्राएली स्यल ही स्यल पार उतरते रहे, निदान उस सारी जाति के लोग यरदन पार हो गए।।
1 जब उस सारी जाति के लोग यरदन के पार उतर चुके, तब यहोवा ने यहोशू से कहा, 2 प्रजा में से बारह पुरूष, अर्यात्गोत्र पीछे एक एक पुरूष को चुनकर यह आज्ञा दे, 3 कि तुम यरदन के बीच में, जहां याजकोंने पांव धरे थे वहां से बारह पत्यर उठाकर अपके साय पाल ले चलो, और जहां आज की रात पड़ाव होगा वहीं उनको रख देना। 4 तब यहोशू ने उन बारह पुरूषोंको, जिन्हें उस ने इस्राएलियोंके प्रत्थेक गोत्र में से छांटकर ठहरा रखा या, 5 बुलवाकर कहा, तुम अपके परमेश्वर यहोवा के सन्दूक के आगे यरदन के बीच में जाकर इस्राएलियोंके गोत्रोंकी गिनती के अनुसार एक एक पत्यर उठाकर अपके अपके कन्धे पर रखो, 6 जिस से यह तुम लोगोंके बीच चिन्हानी ठहरे, और आगे को जब तुम्हारे बेटे यह पूछें, कि इन पत्यरोंका क्या मतलब है? 7 तब तुम उन्हें उत्तर दो, कि यरदन का जल यहोवा की वाचा के सन्दूक के साम्हने से दो भाग हो गया या; क्योंकि जब वह यरदन पार आ रहा या, तब यरदन का जल दो भाग हो गया। सो वे पत्यर इस्राएल को सदा के लिथे स्मरण दिलानेवाले ठहरेंगे। 8 यहोशू की इस आज्ञा कें अनुसार इस्रएलियोंने किया, जैसा यहोवा ने यहोशू से कहा या वैसा ही उन्होंने इस्राएलियोंने किया, जैसा यहोवा ने यहोशू से कहा या वैसा ही उन्होंने इस्राएली गोत्रोंकी गिनती के अनुसार बारह पत्यर यरदन के बीच में से उठा लिए; और उनको अपके साय ले जाकर पड़ाव में रख दिया। 9 और यरदन के बीच जहां याजक वाचा के सन्दूक को उठाए हुए अपके पांव धरे थे वहां यहोशू ने बारह पत्यर खड़े कराए; वे आज तक वहीं पाए जाते हैं। 10 और याजक सन्दूक उठाए हुए उस समय तक यरदन के बीच खड़े रहे जब तक वे सब बातें पूरी न हो चुकीं, जिन्हें यहोवा ने यहोशू को लोगोंसे कहने की आज्ञा दी यी। तब सब लोग फुर्ती से पार उतर गए; 11 और जब सब लोग पार उतर चुके, तब याजक और यहोवा का सन्दूक भी उनके देखते पार हुए। 12 और रूबेनी, गादी, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोग मूसा के कहने के अनुसार इस्राएलियोंके आगे पांति बान्धे हुए पार गए; 13 अर्यात् कोई चालीस हजार पुरूष युद्ध के हयियार बान्धे हुए संग्राम करने के लिथे यहोवा के साम्हने पार उतरकर यरीहो के पास के अराबा में पहुंचे। 14 उस दिन यहोवा ने सब इस्राएलियोंके साम्हने यहोशू की महिमा बढ़ाई; और जैसे वे मूसा का भय मानते थे वैसे ही यहोशू का भी भय उसके जीवन भर मानते रहे।। 15 और यहोवा ने यहोशू से कहा, 16 कि साझी का सन्दूक उठानेवाले याजकोंको आज्ञा दे कि यरदन में से निकल आएं। 17 तो यहोशू ने याजकोंको आज्ञा दी, कि यरदन में से निकल आओ। 18 और ज्योंही यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले याजक यरदन के बीच में से निकल आए, और उनके पांव स्यल पर पके, त्योंही यरदन का जल अपके स्यान पर आया, और पहिले की नाईं कड़ारो के ऊपर फिर बहने लगा। 19 पहिले महिने के दसवें दिन को प्रजा के लोगोंने यरदन में से निकलकर यरीहो के पूर्वी सिवाने पर गिलगाल में अपके डेरे डाले। 20 और जो बारह पत्यर यरदन में से निकाले गए थे, उनको यहोशू ने गिलगाल में खड़े किए। 21 तब उस ने इस्राएलियोंसे कहा, आगे को जब तुम्हारे लड़केबाले अपके अपके पिता से यह पूछें, कि इन पत्यरोंका क्या मतलब है? 22 तब तुम यह कहकर उनको बताना, कि इस्राएली यरदन के पार स्यल ही स्यल चले आए थे। 23 क्योंकि जैसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने लाल समुद्र को हमारे पार हो जाने तक हमारे साम्हने से हटाकर सुखा रखा या, वैसे ही उस ने यरदन का भी जल तुम्हारे पार हो जाने तक तुम्हारे साम्हने से हटाकर सुखा रखा; 24 इसलिथे कि पृय्वी के सब देशोंके लोग जान लें कि यहोवा का हाथ बलवन्त है; और तुम सर्वदा अपके परमेश्वर यहोवा का भय मानते रहो।।
1 जब यरदन के पच्छिम की ओर रहनेवाले एमोरियोंके सब राजाओं ने, और समुद्र के पास रहनेवाले कनानियोंके सब राजाओं ने यह सुना, कि यहोवा ने इस्राएलियोंके पार होने तक उनके साम्हने से यरदन का जल हटाकर सुखा रखा है, तब इस्राएलियोंके डर के मारे उनका मन घबरा गया, और उनके जी में जी न रहा।। 2 उस समय यहोवा ने यहोशू से कहा, चकमक की छुरियां बनवाकर दूसरी बार इस्राएलियोंका खतना करा दें। 3 तब यहोशू ने चकमक की छुरियां बनवाकर खलडिय़ां नाम टीले पर इस्राएलियोंका खतना कराया। 4 और यहोशू ने जो खतना कराया, इसका कारण यह है, कि जितने युद्ध के योग्य पुरूष मिस्र से निकले थे वे सब मिस्र से निकलने पर जंगल के मार्ग में मर गए थे। 5 जो पुरूष मिस्र से निकले थे उन सब का तो खतना हो चुका या, परन्तु जितने उनके मिस्र से निकलने पर जंगल के मार्ग में उत्पन्न हुए उन में से किसी का खतना न हुआ या। 6 क्योंकि इस्राएली तो चालीस वर्ष तक जंगल में फिरते रहे, जब तक उस सारी जाति के लोग, अर्यात् जितने युद्ध के योग्य लोग मिस्र से निकले थे वे नाश न हो गए, क्योंकि उन्होंने यहोवा की न मानी यी; सो यहोवा ने शपय खाकर उन से कहा या, कि जो देश मैं ने तुम्हारे पूर्वजोंसे शपय खाकर तुम्हें देने को कहा या, और उस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं, वह देश मैं तुम को नहीं दिखाने का। 7 तो उन लोगोंके पुत्र जिन को यहोवा ने उनके स्यान पर उत्पन्न किया या, उनका खतना यहोशू से कराया, क्योंकि मार्ग में उनके खतना न होने के कारण वे खतनारहित थे। 8 और जब उस सारी जाति के लोगोंका खतना हो चुका, तब वे चंगे हो जाने तक अपके अपके स्यान पर छावनी में रहे। 9 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, तुम्हारी नामधराई जो मिस्रियोंमें हुई है उसे मैं ने आज दूर की है। इस कारण उस स्यान का नाम आज के दिन तक गिलगाल पड़ा है।। 10 सो इस्राएली गिलगाल में डेरे डाले हुए रहे, और उन्होंने यरीहो के पास के अराबा में पूर्णमासी की सन्ध्या के समय फसह माना। 11 और फसह के दूसरे दिन वे उस देश की उपज में से अखमीरी रोटी और उसी दिन से भुना हुआ दाना भी खाने लगे। 12 और जिस दिन वे उस देश की उपज में से खाने लगे, उसी दिन बिहान को मन्ना बन्द हो गया; और इस्राएलियोंको आगे फिर कभी मन्ना न मिला, परन्तु उस वर्ष उन्होंने कनान देश की उपज में से खाई।। 13 जब यहोशू यरीहो के पास या तब उस ने अपक्की आंखें उठाई, और क्या देखा, कि हाथ में नंगी तलवार लिथे हुए एक पुरूष साम्हने खड़ा है; और यहोशू ने उसके पास जाकर पूछा, क्या तू हमारी ओर का है, वा हमारे बैरियोंकी ओर का? 14 उस ने उत्तर दिया, कि नहीं; मैं यहोवा की सेना का प्रधान होकर अभी आया हूं। तब यहोशू ने पृय्वी पर मुंह के बल गिरकर दण्डवत् किया, और उस से कहा, अपके दास के लिथे मेरे प्रभु की क्या आज्ञा है? 15 यहोवा की सेना के प्रधान ने यहोशू से कहा, अपक्की जूती पांव से उतार डाल, क्योंकि जिस स्यान पर तू खड़ा है वह पवित्र है। तब यहोशू ने वैसा ही किया।।
1 और यरीहो के सब फाटक इस्राएलियोंके डर के मारे लगातार बन्द रहे, और कोई बाहर भीतर आने जाने नहीं पाता या। 2 फिर यहोवा ने यहोशू से कहा, सुन, मैं यरीहो को उसके राजा और शूरवीरोंसमेत तेरे वश में कर देता हूं। 3 सो तुम में जितने योद्धा हैं नगर को घेर लें, और उस नगर के चारोंओर एक बार घूम आएं। 4 और छ: दिन तक ऐसा ही किया करना। 5 और जब वे जुबली के नरसिंगे देर तक फूंकते रहें, तब सब लोग नरसिंगे का शब्द सुनते ही बड़ी ध्वनि से जयजयकार करें; तब नगर की शहरपनाह नेव से गिर जाएगी, और सब लोग अपके अपके साम्हने चढ़ जाएं। 6 सो नून के पुत्र यहोशू ने याजकोंको बुलवाकर कहा, वाचा के सन्दूक को उठा लो, और सात याजक यहोवा के सन्दूक के आगे आगे जुबली के सात नरसिंगे लिए चलें। 7 फिर उस ने लोगोंसे कहा, आगे बढ़कर नगर के चारोंऔर घूम आओ; और हयियारबन्द पुरूष यहोवा के सन्दूक के आगे आगे चलें। 8 और जब यहोशू थे बातें लोगोंसे कह चुका, तो वे सात याजक जो यहोवा के साम्हने सात नरसिंगे लिथे हुए थे नरसिंगे फूंकते हुए चले, और यहोवा की वाचा का सन्दूक उनके पीछे पीछे चला। 9 और हयियारबन्द पुरूष नरसिंगे फूंकनेवाले याजकोंके आगे आगे चले, और पीछे वाले सन्दूक के पीछे पीछे चले, और याजक नरसिंगे फूंकते हुए चले। 10 और यहोशू ने लोगोंको आज्ञा दी, कि जब तक मैं तुम्हें जयजयकार करने की आज्ञा न दूं, तब तक जयजयकार न करो, और न तुम्हारा कोई शब्द सुनने में आए, न कोई बात तुम्हारे मुंह से निकलने पाए; आज्ञा पाते ही जयजयकार करना। 11 उस ने यहोवा के सन्दूक को एक बार नगर के चारोंओर घुमवाया; तब वे छावनी में आए, और रात वहीं काटी।। 12 बिहान को यहोशू सबेरे उठा, और याजकोंने यहोवा का सन्दूक उठा लिया। 13 और उन सात याजकोंने जुबली के सात नरसिंगे लिए और यहोवा के सन्दूक के आगे आगे फूंकते हुए चले; और उनके आगे हयियारबन्द पुरूष चले, और पीछेवाले यहोवा के सन्दूक के पीछे पीछे चले, और याजक नरसिंगे फूंकते चले गए। 14 इस प्रकार वे दूसरे दिन भी एक बार नगर के चारोंओर घूमकर छावनी में लौट आए। और इसी प्रकार उन्होंने छ: दिन तक किया। 15 फिर सातवें दिन वे भोर को बड़े तड़के उठकर उसी रीति से नगर के चारोंओर सात बार घूम आए; केवल उसी दिन वे सात बार घूमे। 16 तब सातवीं बार जब याजक नरसिंगे फूंकते थे, तब यहोशू ने लोगोंसे कहा, जयजयकार करो; क्योंकि यहोवा ने यह नगर तुम्हें दे दिया है। 17 और नगर और जो कुछ उस में है यहोवा के लिथे अर्पण की वस्तु ठहरेगी; केवल राहाब वेश्या और जितने उसके घर में होंवे जीवित छोड़े जाएंगे, क्योंकि उस ने हमारे भेजे हुए दूतोंको छिपा रखा या। 18 और तुम अर्पण की हुई वस्तुओं से सावधानी से अपके आप को अलग रखो, ऐसा न हो कि अर्पण की वस्तु ठहराकर पीछे उसी अर्पण की वस्तु में से कुछ ले लो, और इस प्रकार इस्राएली छावनी को भ्रष्ट करके उसे कष्ट में डाल दो। 19 सब चांदी, सोना, और जो पात्र पीतल और लोहे के हैं, वे यहोवा के लिथे पवित्र हैं, और उसी के भण्डार में रखे जाएं। 20 तब लोगोंने जयजयकार किया, और याजक नरसिंगे फूंकते रहे। और जब लोगोंने नरसिंगे का शब्द सुना तो फिर बड़ी ही ध्वनि से उन्होंने जयजयकार किया, तब शहरपनाह नवे से गिर पक्की, और लोग अपके अपके साम्हने से उस नगर में चढ़ गए, और नगर को ले लिया। 21 और क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या जवान, क्या बूढ़े, वरन बैल, भेड़-बकरी, गदहे, और जितने नगर में थे, उन सभोंको उन्होंने अर्पण की वस्तु जानकर तलवार से मार डाला। 22 तब यहोशू ने उन दोनोंपुरूषोंसे जो उस देश का भेद लेने गए थे कहा, अपक्की शपय के अनुसार उस वेश्या के घर में जाकर उसको और जो उसके पास होंउन्हें भी निकाल ले आओ। 23 तब वे दोनोंजवान भेदिए भीतर जाकर राहाब को, और उसके माता-पिता, भाइयों, और सब को जो उसके यहां रहते थे, वरन उसके सब कुटुम्बियोंको निकाल लाए, और इस्राएल की छावनी से बाहर बैठा दिया। 24 तब उन्होंने नगर को, और जो कुछ उस में या, सब को आग लगाकर फूंक दिया; केवल चांदी, सोना, और जो पात्र पीतल और लोहे के थे, उनको उन्होंने यहोवा के भवन के भण्डार में रख दिया। 25 और यहोशू ने राहाब वेश्या और उसके पिता के घराने को, वरन उसके सब लोगोंको जीवित छोड़ दिया; और आज तक उसका वंश इस्राएलियोंके बीच में रहता है, क्योंकि जो दूत यहोशू ने यरीहो के भेद लेने को भेजे थे उनको उस ने छिपा रखा या। 26 फिर उसी समय यहोशू ने इस्राएलियोंके सम्मुख शपय रखी, और कहा, कि जो मनुष्य उठकर इस नगर यरीहो को फिर से बनाए वह यहोवा की ओर से शापित हो। जब वह उसकी नेव डालेगा तब तो उसका जेठा पुत्र मरेगा, और जब वह उसके फाटक लगावाएगा तब उसका छोटा पुत्र मर जाएगा। 27 और यहोवा यहोशू के संग रहा; और यहोशू की कीतिर् उस सारे देश में फैल गई।।
1 परन्तु इस्राएलियोंने अर्पण की वस्तु के विषय में विश्वासघात किया; अर्यात् यहूदा के गोत्र का आकान, जो जेरहवंशी जब्दी का पोता और कर्म्मी का पुत्र या, उस ने अर्पण की वस्तुओं में से कुछ ले लिया; इस कारण यहोवा का कोप इस्राएलियोंपर भड़क उठा।। 2 और यहोशू ने यरीहो से ऐ नाम नगर के पास, जो बेतावेन से लगा हुआ बेतेल की पूर्व की ओर है, कितने पुरूषोंको यह कहकर भेजा, कि जाकर देश का भेद ले आओ। और उन पुरूषोंने जाकर ऐ का भेद लिया। 3 और उन्होंने यहोशू के पास लौटकर कहा, सब लोग वहां न जाएं, कोई दो वा तीन हजार पुरूष जाकर ऐ को जीत सकते हैं; सब लोगोंको वहां जाने का कष्ट न दे, क्योंकि वे लोग योड़े ही हैं। 4 इसलिथे कोई तीन हजार पुरूष वहां गए; परन्तु ऐ के रहनेवालोंके साम्हने से भाग आए, 5 तब ऐ के रहनेवालोंने उन में से कोई छत्तीस पुरूष मार डाले, और अपके फाटक से शबारीम तक उनका पीछा करके उतराई में उनको मारते गए। तब लोगोंका मन पिघलकर जल सा बन गया। 6 तब यहोशू ने अपके वस्त्र फाड़े, और वह और इस्राएली वृद्ध लोग यहोवा के सन्दूक के साम्हने मुंह के बल गिरकर पृय्वी पर सांफ तक पके रहे; और उन्होंने अपके अपके सिर पर धूल डाली। 7 और यहोशू ने कहा, हाथ, प्रभु यहोवा, तू अपक्की इस प्रजा को यरदन पार क्योंले आया? क्या हमें एमोरियोंके वश में करके नष्ट करने के लिथे ले आया है? भला होता कि हम संतोष करके यरदन के उस पार रह जाते। 8 हाथ, प्रभु मैं क्या कहूं, जब इस्राएलियोंने अपके शत्रुओं को पीठ दिखाई है! 9 क्योंकि कनानी वरन इस देश के सब निवासी यह सुनकर हम को घेर लेंगे, और हमारा नाम पृय्वी पर से मिटा डालेंगे; फिर तू अपके बड़े नाम के लिथे क्या करेगा? 10 यहोवा ने यहोशू से कहा, उठ, खड़ा हो जा, तू क्योंइस भांति मुंह के बल पृय्वी पर पड़ा है? 11 इस्राएलियोंने पाप किया है; और जो वाचा मैं ने उन से अपके साय बन्धाई यी उसको उन्होंने तोड़ दिया है, उन्होंने अर्पण की वस्तुओं में से ले लिया, वरन चोरी भी की, और छल करके उसको अपके सामान में रख लिया है। 12 इस कारण इस्राएली अपके शत्रुओं के साम्हने खड़े नहीं रह सकते; वे अपके शत्रुओं को पीठ दिखाते हैं, इसलिथे कि वे आप अर्पण की वस्तु बन गए हैं। और यदि तुम अपके मध्य में से अर्पण की वस्तु को सत्यानाश न कर डालोगे, तो मैं आगे को तुम्हारे संग नहीं रहूंगा। 13 उठ, प्रजा के लोगोंको पवित्र कर, उन से कह; कि बिहान तक अपके अपके को पवित्र कर रखो; क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है, कि हे इस्राएल, तेरे मध्य में अर्पण की वस्तु है; इसलिथे जब तक तू अर्पण की वस्तु को अपके मध्य में से दूर न करे तब तक तू अपके शत्रुओं के साम्हने खड़ा न रह सकेगा। 14 इसलिथे बिहान को तुम गोत्र गोत्र के अनुसार समीप खड़े किए जाओगे; और जिस गोत्र को यहोवा पकड़े वह एक एक कुल करके पास आए; और जिस कुल को यहोवा पकड़े सो घराना घराना करके पास आए; फिर जिस घराने को यहोवा पकड़े वह एक एक पुरूष करके पास आए। 15 तब जो पुरूष अर्पण की वस्तु रखे हुए पकड़ा जाएगा, वह और जो कुछ उसका हो सब आग में डालकर जला दिया जाए; क्योंकि उस ने यहोवा की वाचा को तोड़ा है, और इस्राएल में अनुचित कर्म किया है।। 16 बिहान को यहोशू सवेरे उठकर इस्राएलियोंको गोत्र गोत्र करके समीप लिवा ले गया, और यहूदा का गोत्र पकड़ा गया; 17 तब उस ने यहूदा के परिवार को समीप किया, और जेरहवंशियोंका कुल पकड़ा गया; फिर जेरहवंशियोंके घराने के एक एक पुरूष को समीप लाया, और जब्दी पकडा गया; 18 तब उस ने उसके घराने के एक एक पुरूष को समीप खड़ा किया, और यहूदा गोत्र का आकान, जो जेरहवंशी जब्दी का पोता और कर्म्मी का पुत्र या, पकड़ा गया। 19 तब यहोशू आकान से कहने लगा, हे मेरे बेटे, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का आदर कर, और उसके आगे अंगीकार कर; और जो कुछ तू ने किया है वह मुझ को बता दे, और मुझ से कुछ मत छिपा। 20 और आकान ने यहोशू को उत्तर दिया, कि सचमुच मैं ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के विरूद्ध पाप किया है, और इस प्रकार मैं ने किया है, 21 कि जब मुझे लूट में शिनार देश का एक सुन्दर ओढ़ना, और दो सौ शेकेल चांदी, और पचास शेकेल सोने की एक ईट देख पक्की, तब मैं ने उनका लालच करके उन्हें रख लिया; वे मेरे डेरे के भीतर भूमि में गड़े हैं, और सब के नीचे चांदी है। 22 तब यहोशू ने दूत भेजे, और वे उस डेरे में दौड़े गए; और क्या देखा, कि वे वस्तुएं उसके डेरे में गड़ी हैं, और सब के नीचे चांदी है। 23 उनको उन्होंने डेरे में से निकालकर यहोशू और सब इस्राएलियोंके पास लाकर यहोवा के साम्हने रख दिया। 24 तब सब इस्राएलियोंसमेत यहोशू जेरहवंशी आकान को, और उस चांदी और ओढ़ने और सोने की ईंट को, और उसके बेटे-बेटियोंको, और उसके बैलों, गदहोंऔर भेड़-बकरियोंको, और उसके डेरे को, निदान जो कुछ उसका या उन सब को आकोर नाम तराई में ले गया। 25 तब यहोशू ने उस से कहा, तू ने हमें क्योंकष्ट दिया है? आज के दिन यहोवा तुझी को कष्ट देगा। तब सब इस्राएलियोंने उसको पत्यरवाह किया; और उनको आग में डालकर जलाया, और उनके ऊपर पत्यर डाल दिए। 26 और उन्होंने उसके ऊपर पत्यरोंका बड़ा ढेर लगा दिया जो आज तक बना है; तब यहोवा का भड़का हुआ कोप शान्त हो गया। इस कारण उस स्यान का नाम आज तक आकोर तराई पड़ा है।।
1 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, मत डर, और तेरा मन कच्चा न हो; कमर बान्धकर सब योद्धाओं को साय ले, और ऐ पर चढ़ाई कर; सुन, मैं ने ऐ के राजा को उसकी प्रजा और उसके नगर और देश समेत तेरे वश में किया है। 2 और जैसा तू ने यरीहो और उसके राजा से किया वैसा ही ऐ और उसके राजा के साय भी करना; केवल तुम पशुओं समेत उसकी लूट तो अपके लिथे ले सकोगे; इसलिथे उस नगर के पीछे की ओर अपके पुरूष घात में लगा दो। 3 सो यहोशू ने सब योद्धाओं समेत ऐ पर चढ़ाई करने की तैयारी की; और यहोशू ने तीस हजार पुरूषोंको जो शूरवीर थे चुनकर रात ही को आज्ञा देकर भेजा। 4 और उनको यह आज्ञा दी, कि सुनो, तुम उस नगर के पीछे की ओर घात लगाए बैठे रहना; नगर से बहुत दूर न जाना, और सब के सब तैयार रहना; 5 और मैं अपके सब सायियोंसमेत उस नगर के निकट जाऊंगा। और जब वे पहिले की नाईं हमारा साम्हना करने को निकलें, तब हम उनके आगे से भागेंगे; 6 तब वे यह सोचकर, कि वे पहिले की भांति हमारे साम्हने से भागे जाते हैं, हमारा पीछा करेंगे; इस प्रकार हम उनके साम्हने से भागकर उन्हें नगर से दूर निकाल ले जाएंगे; 7 तब तुम घात में से उठकर नगर को अपना कर लेना; क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उसको तुम्हारे हाथ में कर देगा। 8 और जब नगर को ले लो, तब उस में आग लगाकर फूंक देना, यहोवा की आज्ञा के अनुसार ही काम करना; सुनो, मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है। 9 तब यहोशू ने उनको भेज दिया; और वे घात में बैठने को चले गए, और बेतेल और ऐ के मध्य में और ऐ की पश्चिम की ओर बैठे रहे; परन्तु यहोशू उस रात को लोगोंके बीच टिका रहा।। 10 बिहान को यहोशू सवेरे उठा, ओर लोगोंकी गिनती लेकर इस्राएली वृद्ध लोगोंसमेत लोगोंके आगे आगे ऐ की ओर चला। 11 और उसके संग के सब योद्धा चढ़ गए, और ऐ नगर के निकट पहुंचकर उसके साम्हने उत्तर की ओर डेरे डाल दिए, और उनके और ऐ के बीच एक तराई यी। 12 तब उस ने कोई पांच हजार पुरूष चुनकर बेतेल और ऐ के मध्यस्त नगर की पश्चिम की ओर उनको घात में बैठा दिया। 13 और जब लोगोंने नगर की उत्तर ओर की सारी सेना को और उसकी पश्चिम ओर घात में बैठे हुओं को भी ठिकाने पर कर दिया, तब यहोशू उसी रात तराई के बीच गया। 14 जब ऐ के राजा ने यह देखा, तब वे फुर्ती करके सवेरे उठे, और राजा अपक्की सारी प्रजा को लेकर इस्राएलियोंके साम्हने उन से लड़ने को निकलकर ठहराए हुए स्यान पर जो अराबा के साम्हने है पहुंचा; और वह नहीं जानता या कि नगर की पिछली और लोग घात लगाए बैठे हैं। 15 तब यहोशू और सब इस्राएली उन से मानो हार मानकर जंगल का मार्ग लेकर भाग निकले। 16 तब नगर के सब लोग इस्राएलियोंका पीछा करने को पुकार पुकार के बुलाए गए; और वे यहोशू का पीछा करते हुए नगर से दूर निकल गए। 17 और न ऐ में और ने बेतेल में कोई पुरूष रह गया, जो इस्राएलियोंका पीछा करने को न गया हो; और उन्होंने नगर को खुला हुआ छोड़कर इस्राएलियोंका पीछा किया। 18 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, अपके हाथ का बर्छा ऐ की ओर बढ़ा; क्योंकि मैं उसे तेरे हाथ में दे दूंगा। और यहोशू ने अपके हाथ के बर्छे को नगर की ओर बढ़ाया। 19 उसके हाथ बढ़ाते ही जो लोग घात में बैठे थे वे फटपट अपके स्यान से उठे, और दौड़कर नगर में प्रवेश किया और उसको ले लिया; और फटपट उस में आग लगा दी। 20 जब ऐ के पुरूषोंने पीछे की ओर फिरकर दृष्टि की, तो क्या देखा, कि नगर का धूआं आकाश की ओर उठ रहा है; और उन में न तो इधर भागने की शक्ति रही, और न उधर, और जो लोग जंगल की ओर भागे जाते थे वे फिरकर अपके खदेड़नेवालोंपर टूट पके। 21 जब यहोशू और सब इस्राएलियोंने देखा कि घातियोंने नगर को ले लिया, और उसका धूंआ उठ रहा है, तब घूमकर ऐ के पुरूषोंको मारने लगे। 22 और उनका साम्हना करने को दूसरे भी नगर से निकल आए; सो वे इस्राएलियोंके बीच में पड़ गए, कुछ इस्राएली तो उनके आगे, और कुछ उनके पीछे थे; सो उन्होंने उनको यहां तक मार डाला कि उन में से न तो कोई बचने और न भागने पाया। 23 और ऐ के राजा को वे जीवित पकड़कर यहोशू के पास ले आए। 24 और जब इस्राएली ऐ के सब निवासिक्कों मैदान में, अर्यात् उस जंगल में जहां उन्होंने उनका पीछा किया या घात कर चुके, और वे सब के सब तलवार से मारे गए यहां तक कि उनका अन्त ही हो गया, तब सब इस्राएलियोंने ऐ को लौटकर उसे भी तलवार से मारा। 25 और स्त्री पुरूष, सब मिलाकर जो उस दिन मारे गए वे बारह हजार थे, और ऐ के सब पुरूष इतने ही थे। 26 क्योंकि जब तक यहोशू ने ऐ के सब निवासिक्कों सत्यानाश न कर डाला तब तब उस ने अपना हाथ, जिस से बर्छा बढ़ाया या, फिर न खींचा। 27 यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने यहोशू को दी यी इस्राएलियोंने पशु आदि नगर की लूट अपक्की कर ली। 28 तब यहोशू ने ऐ को फूंकवा दिया, और उसे सदा के लिथे खंडहर कर दिया : वह आज तक उजाड़ पड़ा है। 29 और ऐ के राजा को उस ने सांफ तक वृझ पर लटका रखा; और सूर्य डूबते डूबते यहोशू की आज्ञा से उसकी लोय वृष पर से उतारकर नगर के फाटक के साम्हने डाल दी गई, और उस पर पत्यरोंका बढ़ा ढेर लगा दिया, जो आज तक बना है।। 30 तब यहोशू ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिथे एबाल पर्वत पर एक वेदी बनवाई, 31 जैसा यहोवा के दास मूसा ने इस्राएलियोंको आज्ञा दी यी, और जैसा मूसा की व्यवस्या की पुस्तक में लिखा है, उस ने समूचे पत्यरोंकी एक वेदी बनवाई जिस पर औजार नहीं चलाया गया या। और उस पर उन्होंने यहोवा के लिथे होम-बलि चढ़ाए, और मेलबलि किए। 32 उसी स्यान पर यहोशू ने इस्राएलियोंके साम्हने उन पत्यरोंके ऊपर मूसा की व्यवस्या, जो उस ने लिखी यी, उसकी नकल कराई। 33 और वे, क्या देशी क्या परदेशी, सारे इस्राएली अपके वृद्ध लोगों, सरदारों, और न्यायियोंसमेत यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले लेवीय याजकोंके साम्हने उस सन्दूक के इधर उधर खड़े हुए, अर्यात् आधे लोग तो गिरिज्जीम पर्वत के, और आधे एबाल पर्वत के साम्हने खड़े हुए, जैसा कि यहोवा के दास मूसा ने पहिले आज्ञा दी यी, कि इस्राएली प्रजा को आर्शीवाद दिए जाएं। 34 उसके बाद उस ने आशीष और शाप की व्यवस्या के सारे वचन, जैसे जैसे व्यवस्या की पुस्तक में लिखे हुए हैं, वैसे वैसे पढ़ पढ़कर सुना दिए। 35 जितनी बातोंकी मूसा ने आज्ञा दी यी, उन में से कोई ऐसी बात नहीं रह गई जो यहोशू ने इस्राएली की सारी सभा, और स्त्रियों, और बाल-बच्चों, और उनके साय रहनेवाले परदेशी लोगोंके साम्हने भी पढ़कर न सुनाई।।
1 यह सुनकर हित्ती, एमोरी, कनानी, परिज्जी, हिव्वी, और यबूसी, जितने राजा यरदन के इस पार पहाड़ी देश में और नीचे के देश में, और लबानोन के साम्हने के महानगर के तट पर रहते थे, 2 वे एक मन होकर यहोशू और इस्राएलियोंसे लड़ने को इकट्ठे हुए।। 3 जब गिबोन के निवासियोंने सुना कि यहोशू ने यरीहो और ऐ से क्या क्या किया है, 4 तब उन्होंने छल किया, और राजदूतोंका भेष बनाकर अपके गदहोंपर पुराने बोरे, और पुराने फटे, और जोड़े हुए मदिरा के कुप्पे लादकर 5 अपके पांवोंमें पुरानी गांठी हुई जूतियां, और तन पर पुराने वस्त्र पहिने, और अपके भोजन के लिथे सूखी और फफूंदी लगी हुई रोटी ले ली। 6 तब वे गिलगाल की छावनी में यहोशू के पास जाकर उस से और इस्राएली पुरूषोंसे कहने लगे, हम दूर देश सें आए हैं; इसलिथे अब तुम हम से वाचा बान्धो। 7 इस्राएली पुरूषोंने उन हिव्वियोंसे कहा, क्या जाने तुम हमारे मध्य में ही रहते हो; फिर हम तुम से वाचा कैसे बान्धे? 8 उन्होंने यहोशू से कहा, हम तेरे दास हैं। तब यहोशू ने उन से कहा, तुम कौन हो? और कहां से आए हो? 9 उन्होंने उस से कहा, तेरे दास बहुत दूर के देश से तेरे परमेश्वर यहोवा का नाम सुनकर आए हैं; क्योंकि हम ने यह सब सुना है, अर्यात् उसकी कीतिर् और जो कुछ उस ने मिस्र में किया, 10 और जो कुछ उस ने एमोरियोंके दोनोंराजाओं से किया जो यरदन के उस पार रहते थे, अर्यात् हेश्बोन के राजा सीहोन से, और बाशान के राजा ओग से जो अश्तारोत में या। 11 इसलिथे हमारे यहां के वृद्धलोगोंने और हमारे देश के सब निवासियोंने हम से कहा, कि मार्ग के लिथे अपके साय भोजनवस्तु लेकर उन से मिलने को जाओ, और उन से कहना, कि हम तुम्हारे दास हैं; इसलिथे अब तुम हम से वाचा बान्धो। 12 जिस दिन हम तुम्हारे पास चलने को निकले उस दिन तो हम ने अपके अपके घर से यह रोटी गरम और ताजी ली यी; परन्तु अब देखो, यह सूख गई है और इस में फफूंदी लग गई है। 13 फिर थे जो मदिरा के कुप्पे हम ने भर लिथे थे, तब तो नथे थे, परन्तु देखो अब थे फट गए हैं; और हमारे थे वस्त्र और जूतियां बड़ी लम्बी यात्रा के कारण पुरानी हो गई हैं। 14 तब उन पुरूषोंने यहोवा से बिना सलाह लिथे उनके भोजन में से कुछ ग्रहण किया। 15 तब यहोशू ने उन से मेल करके उन से यह वाचा बान्धी, कि तुम को जीवित छोड़ेंगे; और मण्डली के प्रधानोंने उन से शपय खाई। 16 और उनके साय वाचा बान्धने के तीन दिन के बाद उनको यह समाचार मिला; कि वे हमारे पड़ोस के रहनेवाले लोग हैं, और हमारे ही मध्य में बसे हैं। 17 तब इस्राएली कूच करके तीसरे दिन उनके नगरोंको जिनके नाम गिबोन, कपीरा, बेरोत, और किर्यत्यारीम है पहुंच गए, 18 और इस्राएलियोंने उनको न मारा, क्योंकि मण्डली के प्रधानोंने उनके संग इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपय खाई यी। तब सारी मण्डली के लोग प्रधानोंके विरूद्ध कुड़कुड़ाने लगे। 19 तब सब प्रधानोंने सारी मण्डली से कहा, हम ने उन से इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपय खाई है, इसलिथे अब उनको छू नहीं सकते। 20 हम उन से यही करेंगे, कि उस शपय के अनुसार हम उनको जीवित छोड़ देंगे, नहीं तो हमारी खाई हुई शपय के कारण हम पर क्रोध पकेगां 21 फिर प्रधानोंने उन से कहा, वे जीवित छोड़े जाएं। सो प्रधानोंके इस वचन के अनुसार वे सारी मण्डली के लिथे लकड़हारे और पानी भरनेवाले बने। 22 फिर यहोशू ने उनको बुलवाकर कहा, तुम तो हमारे ही बीच में रहते हो, फिर तुम ने हम से यह कहकर क्योंछल किया है, कि हम तुम से बहुत दूर रहते हैं? 23 इसलिथे अब तुम शापित हो, और तुम में से ऐसा कोई न रहेगा जो दास, अर्यात् मेरे परमेश्वर के भवन के लिथे लकड़हारा और पानी भरनेवाला न हो। 24 उन्होंने यहोशू को उत्तर दिया, तेरे दासोंको यह निश्चय बतलाया गया या, कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने अपके दास मूसा को आज्ञा दी यी कि तुम को वह सारा देश दे, और उसके सारे निवासिक्कों तुम्हारे साम्हने से सर्वनाश करे; इसलिथे हम लोगोंको तुम्हारे कारण से अपके प्राणोंके लाले पड़ गए, इसलिथे हम ने ऐसा काम किया । 25 और अब हम तेरे वश में हैं, जैसा बर्ताव तुझे भला लगे और ठीक जान पके, वैसा ही व्यवहार हमारे साय कर। 26 तब उस ने उन से वैसा ही किया, और उन्हें इस्राएलियोंके हाथ से ऐसा बचाया, कि वे उन्हें घात करने न पाए। 27 परन्तु यहोशू ने उसी दिन उनको मण्डली के लिथे, और जो स्यान यहोवा चुन ले उसमें उसकी वेदी के लिथे, लकड़हारे और पानी भरनेवाले नियुक्त कर दिया, जैसा आज तक है।।
1 जब यरूशलेम के राजा अदोनीसेदेक ने सुना कि यहोशू ने ऐ को ले लिया, और उसको सत्यानाश कर डाला है, और जैसा उस ने यरीहो और उसके राजा से किया है, और यह भी सुना कि गिबोन के निवासियोंने इस्राएलियोंसे मेल किया, और उनके बीच रहने लगे हैं, 2 तब वे निपट डर गए, क्योंकि गिबोन बड़ा नगर वरन राजनगर के तुल्य और ऐ से बड़ा या, और उसके सब निवासी शूरवीर थे। 3 इसलिथे यरूशलेम के राजा अदोनीसेदेक ने हेब्रोन के राजा होहाम, यर्मूत के राजा पिराम, लाकीश के राजा यापी, और एग्लोन के राजा दबीर के पास यह कहला भेजा, 4 कि मेरे पास आकर मेरी सहाथता करो, और चलो हम गिबोन को मारें; क्योंकि उस ने यहोशू और इस्राएलियोंसे मेल कर लिया है। 5 इसलिथे यरूशलेम, हेब्रोन, यर्मूत, लाकीश, और एग्लोन के पांचोंएमोरी राजाओं ने अपक्की अपक्की सारी सेना इकट्ठी करके चढ़ाई कर दी, और गिबोन के साम्हने डेरे डालकर उस से युद्ध छेड़ दिया। 6 तक गिबोन के निवासियोंने गिलगाल की छावनी में यहोशू के पास योंकहला भेजा, कि अपके दासोंकी ओर से तू अपना हाथ न हटाना; शीघ्र हमारे पास आकर हमें बचा ले, और हमारी सहाथता कर; क्योंकि पहाड़ पर रहनेवाले एमोरियोंके सब राजा हमारे विरूद्ध इकट्ठे हए हैं। 7 तब यहोशू सारे योद्धाओं और सब शूरवीरोंको संग लेकर गिलगाल से चल पड़ा। 8 और यहोवा ने यहोशू से कहा, उन से मत डर, क्योंकि मैं ने उनको तेरे हाथ में कर दिया है; उन में से एक पुरूष भी तेरे साम्हने टिक न सकेगा। 9 तब यहोशू रातोरात गिलगाल से जाकर एकाएक उन पर टूट पड़ा। 10 तब यहोवा ने ऐसा किया कि वे इस्राएलियोंसे घबरा गए, और इस्राएलियोंने गिबोन के पास उनका बड़ा संहार किया, और बेयोरान के चढ़ाव पर उनका पीछा करके अजेका और मक्केदा तक उनको मारते गए। 11 फिर जब वे इस्राएलियोंके साम्हने से भागकर बेयोरोन की उतराई पर आए, तब अजेका पहुंचने तक यहोवा ने आकाश से बड़े बड़े पत्यर उन पर बरसाए, और वे मर गए; जो ओलोंसे मारे गए उनकी गिनती इस्राएलियोंकी तलवार से मारे हुओं से अधिक यी।। 12 और उस समय, अर्यात् जिस दिन यहोवा ने एमोरियोंको इस्राएलियोंके वश में कर दिया, उस दिन यहोशू ने यहोवा से इस्राएलियोंके देखते इस प्रकार कहा, हे सूर्य, तू गिबोन पर, और हे चन्द्रमा, तू अय्यालोन की तराई के ऊपर यमा रह।। 13 और सूर्य उस समय तक यमा रहा; और चन्द्रमा उस समय तक ठहरा रहा, जब तक उस जाति के लोगोंने अपके शत्रुओं से पलटा न लिया।। क्या यह बात याशार नाम पुस्तक में नहीं लिखी है कि सूर्य आकाशमण्डल के बीचोबीच ठहरा रहा, और लगभग चार पहर तक न डूबा? 14 न तो उस से पहिले कोई ऐसा दिन हुआ और न उसके बाद, जिस में यहोवा ने किसी पुरूष की सुनी हो; क्योंकि यहोवा तो इस्राएल की ओर से लड़ता या।। 15 तब यहोशू सारे इस्राएलियोंसमेत गिलगाल की छावनी को लौट गया।। 16 और वे पांचोंराजा भागकर मक्केदा के पास की गुफा में जा छिपे। 17 तब यहोशू को यह समाचार मिला, कि पांचोंराजा मक्केदा के पास की गुफा में छिपे हुए हमें मिले हैं। 18 यहोशू ने कहा, गुफा के मुंह पर बड़े बड़े पत्यर लुढ़काकर उनकी देख भाल के लिथे मनुष्योंको उसके पास बैठा दो; 19 परन्तु तुम मत ठहरो, अपके शत्रुओं का पीछा करके उन में से जो जो पिछड़ गए हैं उनको मार डालो, उन्हें अपके अपके नगर में प्रवेश करने का अवसर न दो; क्योकि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने उनको तुम्हारे हाथ में कर दिया है। 20 जब यहोशू और इस्राएली उनका संहार करके नाश कर चुके, और उन में से जो बच गए वे अपके अपके गढ़वाले नगर में घुस गए, 21 तब सब लोग मक्केदा की छावनी को यहोशू के पास कुशल-झेम से लौट आए; और इस्राएलियोंके विरूद्ध किसी ने जीभ तक न हिलाई। 22 तब यहोशू ने आज्ञा दी, कि गुफा का मुंह खोलकर उन पांचोंराजाओं को मेरे पास निकाल ले आओ। 23 उन्होंने ऐसा ही किया, और यरूशलेम, हेब्रोन, यर्मूत, लाकीश, और एग्लोन के उन पांचोंराजओं को गुफा में से उसके पास निकाल ले आए। 24 जब वे उन राजाओं को यहोशू के पास निकाल ले आए, तब यहोशू ने इस्राएल के सब पुरूषोंको बुलाकर अपके साय चलनेवाले योद्धाओं के प्रधानोंसे कहा, निकट आकर अपके अपके पांव इन राजाओं की गर्दनोंपर रखो। और उन्होंने निकट जाकर अपके अपके पांव उनकी गर्दनोंपर रखे। 25 तब यहोशू ने उन से कहा, डरो मत, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; हियाव बान्धकर दृढ़ हो; क्योंकि यहोवा तुम्हारे सब शत्रुओं से जिन से तुम लड़नेवाले हो ऐसा ही करेगा। 26 इस के बाद यहोशू ने उनको मरवा डाला, और पांच वृझोंपर लटका दिया। और वे सांफ तक उन वृझोंपर लटके रहे। 27 सूर्य डूबते डूबते यहोशू से आज्ञा पाकर लोगोंने उन्हें उन वृझोंपर से उतारके उसी गुफा में जहां वे छिप गए थे डाल दिया, और उस गुफा के मुंह पर बड़े बड़े पत्यर धर दिए, वे आज तक वहीं धरे हुए हैं।। 28 उसी दिन यहोशू ने मक्केदा को ले लिया, और उसको तलवार से मारा, और उसके राजा को सत्यानाश किया; और जितने प्राणी उस में थे उन सभोंमें से किसी को जीवित न छोड़ा; और जैसा उस ने यरीहो के राजा के साय किया या वैसा ही मक्केदा के राजा से भी किया।। 29 तब यहोशू सब इस्राएलियोंसमेत मक्केदा से चलकर लिब्ना को गया, और लिब्ना से लड़ा। 30 और यहोवा ने उस को भी राजा समेत इस्राएलियोंके हाथ मे कर दिया; और यहोशू ने उसको और उस में के सब प्राणियोंको तलवार से मारा; और उस में से किसी को भी जीवित न छोड़ा; और उसके राजा से वैसा ही किया जैसा उस ने यरीहो के राजा के साय किया या।। 31 फिर यहोशू सब इस्राएलियोंसमेत लिब्ना से चलकर लाकीश को गया, और उसके विरूद्ध छावनी डालकर लड़ा; 32 और यहोवा ने लाकीश को इस्राएल के हाथ में कर दिया, और दूसरे दिन उस ने उसको जीत लिया; और जैसा उस ने लिब्ना के सब प्राणियोंको तलवार से मारा या वैसा ही उस ने लाकीश से भी किया। 33 तब गेजेर का राजा होराम लाकीश की सहाथता करने को चढ़ आया; और यहोशू ने प्रजा समेत उसको भी ऐसा मारा कि उसके लिथे किसी को जीवित न छोड़ा।। 34 फिर यहोशू ने सब इस्राएलियोंसमेत लाकीश से चलकर एग्लोन को गया; और उसके विरूद्ध छावनी डालकर युद्ध करने लगा; 35 और उसी दिन उन्होंने उसको ले लिया, और उसको तलवार से मारा; और उसी दिन जैसा उस ने लाकीश के सब प्राणियोंको सत्यानाश कर डाला या वैसा ही उस ने एग्लोन से भी किया।। 36 फिर यहोशू सब इस्राएलियोंसमेत एग्लोन से चलकर हेब्रोन को गया, और उस से लड़ने लगा; 37 और उन्होंने उसे ले लिया, और उसको और उसके राजा और सब गावोंको और उन में के सब प्राणियोंको तलवार से मारा; जैसा यहोशू ने एग्लोन से किया या वैसा ही उस ने हेब्रोन में भी किसी को जीवित न छोड़ा; उस ने उसको और उस में के सब प्राणियोंको सत्यानाश कर डाला।। 38 तब यहोशू सब इस्राएलियोंसमेत घूमकर दबीर को गया, और उस से लड़ने लगा; 39 और राजा समेत उसे और उसके सब गांवोंको ले लिया; और उन्होंने उनको तलवार से घात किया, और जितने प्राणी उन में थे सब को सत्यानाश कर डाला; किसी को जीवित न छोड़ा, जैसा यहोशू ने हेब्रोन और लिब्ना और उसके राजा से किया या वैसा ही उस ने दबीर और उसके राजा से भी किया।। 40 इसी प्रकार यहोशू ने उस सारे देश को, अर्यात्पहाड़ी देश, दक्खिन देश, नीचे के देश, और ढालू देश को, उनके सब राजाओं समेत मारा; और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार किसी को जीवित न छोड़ा, वरन जितने प्राणी थे सभोंको सत्यानाश कर डाला। 41 और यहोशू ने कादेशबर्ने से ले अज्जा तक, और गिबोन तक के सारे गोशेन देश के लोगोंको मारा। 42 इन सब राजाओं को उनके देशोंसमेत यहोशू ने एक ही समय में ले लिया, क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस्राएलियोंकी ओर से लड़ता या। 43 तब यहोशू सब इस्राएलियोंसमेत गिलगाल की छावनी में लौट आया।।
1 यह सुनकर हासोर के राजा याबीन ने मादोन के राजा योबाब, और शिम्रोन और अझाप के राजाओं को, 2 और जो जो राजा उत्तर की ओर पहाड़ी देश में, और किन्नेरेत की दक्खिन के अराबा में, और नीचे के देश में, और पच्छिम की ओर दोर के ऊंचे देश में रहते थे, उनको, 3 और पूरब पच्छिम दोनोंओर के रहनेवाले कनानियों, और एमोरियों, हित्तियों, परिज्जियों, और पहाड़ी यबूसियों, और मिस्पा देश में हेर्मोन पहाड़ के नीचे रहनेवाले हिव्वियोंको बुलवा भेजा। 4 और वे अपक्की अपक्की सेना समेत, जो समुद्र के किनारे बालू के किनकोंके समान बहुत यीं, मिलकर निकल आए, और उनके साय बहुत ही घोड़े और रय भी थे। 5 तब थे सब राजा सम्मति करके इकट्ठे हुए, और इस्राएलियोंसे लड़ने को मेरोम नाम ताल के पास आकर एक संग छावनी डाली। 6 तब यहोवा ने यहोशू से कहा, उन से मत डर, क्योंकि कल इसी समय मैं उन सभोंको इस्राएलियोंके वश करके मरवा डालूंगा; तब तू उनके घोड़ोंके सुम की नस कटवाना, और उनके रय भस्म कर देना। 7 और यहोशू सब योद्धाओं समेत मेरोम नाम ताल के पास अचानक पहुंचकर उन पर टूट पड़ा। 8 और यहोवा ने उनको इस्राएलियोंके हाथ में कर दिया, इसलिथे उन्होंने उन्हें मार लिया, और बड़े नगर सीदोन और मिस्रपोतमैत तक, और पूर्व की ओर मिस्पे के मैदान तक उनका पीछा किया; और उनको मारा, और उन में से किसी को जीवित न छोड़ा। 9 तब यहोशू ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार उन से किया, अर्यात् उनके घोड़ोंके सुम की नस कटवाई, और उनके रय आग में जलाकर भस्म कर दिए।। 10 उस समय यहोशू ने घूमकर हासोर को जो पहिले उन सब राज्योंमें मुख्य नगर या ले लिया, और उसके राजा को तलवार से मार डाला। 11 और जितने प्राणी उस में थे उन सभोंको उन्होंने तलवार से मारकर सत्यानाश किया; और किसी प्राणी को जीवित न छोड़ा, और हासोर को यहोशू ने आग लगाकर फुंकवा दिया। 12 और उन सब नगरोंको उनके सब राजाओं समेत यहोशू ने ले लिया, और यहोवा के दास मूसा की आज्ञा के अनुसार उनको तलवार से घात करके सत्यानाश किया। 13 परन्तु हासोर को छोड़कर, जिसे यहोशू ने फुंकवा दिया, इस्राएल ने और किसी नगर को जो अपके टीले पर बसा या नहीं जलायां 14 और इन नगरोंके पशु और इनकी सारी लूट को इस्राएलियोंने अपना कर लिया; परन्तु मनुष्योंको उन्होंने तलवार से मार डाला, यहां तक उनको सत्यानाश कर डाला कि एक भी प्राणी को जीवित नहीं छोड़ा गया। 15 जो आज्ञा यहोवा ने अपके दास मूसा को दी यी उसी के अनुसार मूसा ने यहोशू को आज्ञा दी यी, और ठीक वैसा ही यहोशू ने किया भी; जो जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उन में से यहोशू ने कोई भी पूरी किए बिना न छोड़ी।। 16 तब यहोशू ने उस सारे देश को, अर्यात् पहाड़ी देश, और सारे दक्खिनी देश, और कुल गोशेन देश, और नीचे के देश, अराबा, और इस्राएल के पहाड़ी देश, और उसके नीचे वाले देश को, 17 हालाक नाम पहाड़ से ले, जो सेईर की चढ़ाई पर है, बालगाद तक, जो लबानोन के मैदान में हेर्मोन पर्वत के नीचे है, जितने देश हैं उन सब को जीत लिया और उन देशोंके सारे राजाओं को पकड़कर मार डाला। 18 उन सब राजाओं से युद्ध करते करते यहोशू को बहुत दिन लग गए। 19 गिबोन के निवासी हिव्वियोंको छोड़ और किसी नगर के लोगोंने इस्राएलियोंसे मेल न किया; और सब नगरोंको उन्होंने लड़ लड़कर जीत लिया। 20 क्योंकि यहोवा की जो मनसा यी, कि अपक्की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी यी उन पर कुछ भी दया न करे; वरन सत्यानाश कर डाले, इस कारण उस ने उनके मन ऐसे कठोर कर दिए, कि उन्होंने इस्राएलियोंका साम्हना करके उन से युद्ध किया।। 21 उस समय यहोशू ने पहाड़ी देश में आकर हेब्रोन, दबीर, अनाब, वरन यहूदा और इस्राएल दोनोंके सारे पहाड़ी देश में रहनेवाले अनाकियोंको नाश किया; यहोशू ने नगरोंसमेत उन्हें सत्यानाश कर डाला। 22 इस्राएलियोंके देश में कोई अनाकी न रह गया; केवल अज्जा, गत, और अशदोद में कोई कोई रह गए। 23 जैसा यहोवा ने मूसा से कहा या, वैसा ही यहोशू ने वह सारा देश ले लिया; और उसे इस्राएल के गोत्रोंऔर कुलोंके अनुसार बांट करके उन्हें दे दिया। और देश को लड़ाई से शान्ति मिली।।
1 यरदन पार सूर्योदय की ओर, अर्यात् अर्नोन नाले से लेकर हेर्मोन पर्वत तक के देश, और सारे पूर्वी अराबा के जिन राजाओं को इस्राएलियोंने मारकर उनके देश को अपके अधिक्कारने में कर लिया या थे हैं; 2 एमोरियोंका हेशबोनवासी राजा सीहोन, जो अर्नोन नाले के किनारे के अरोएर से लेकर, और उसी नाले के बीच के नगर को छोड़कर यब्बोक नदी तक, जो अम्मोनियोंका सिवाना है, आधे गिलाद पर, 3 और किन्नेरेत नाम ताल से लेकर बेत्यशीमोत से होकर अराबा के ताल तक, जो खारा ताल भी कहलाता है, पूर्व की ओर के अराबा, और दक्खिन की ओर पिसगा की सलामी के नीचे नीचे के देश पर प्रभुता रखता या। 4 फिर बचे हुए रपाइयोंमें से बाशान के राजा ओग का देश या, जो अशतारोत और ऐंदर््रई में रहा करता या, 5 और हेर्मोन पर्वत सलका, और गशूरियों, और माकियोंके सिवाने तक कुल बाशान में, और हेशबोन के राजा सीहोन के सिवाने तक आधे गिलाद में भी प्रभुता करता या। 6 इस्राएलियोंऔर यहोवा के दास मूसा ने इनको मार लिया; और यहोवा के दास मूसा ने उनका देश रूबेनियोंऔर गादियोंऔर मनश्शे के आधे गोत्र के लोगोंको दे दिया।। 7 और यरदन के पश्चिम की ओर, लबानोन के मैदान में के बालगात से लेकर सेईर की चढ़ाई के हालाक पहाड़ तक के देश के जिन राजाओं को यहोशू और इस्राएलियोंने मारकर उनका देश इस्राएलियोंके गोत्रोंऔर कुलोंके अनुसार भाग करके दे दिया या वे थे हैं, 8 हित्ती, और एमोरी, और कनानी, और परिज्जी, और हिव्वी, और यबूसी, जो पहाड़ी देश में, और नीचे के देश में, और अराबा में, और ढालू देश में और जंगल में, और दक्खिनी देश में रहते थे। 9 एक, यरीहो का राजा; एक, बेतेल के पास के ऐ का राजा; 10 एक, यरूशलेम का राजा; एक, हेब्रोन का राजा; 11 एक, यर्मूत का राजा; एक, लाकीश का राजा; 12 एक, एग्लोन का राजा; एक, गेजेर का राजा; 13 एक, दबीर का राजा; एक, गेदेर का राजा; 14 एक, होर्मा का राजा; एक, अराद का राजा; 15 एक, लिब्ना का राजा; एक, अदुल्लाम का राजा; 16 एक, मक्केदा का राजा; एक, बेतेल का राजा; 17 एक, तप्पूह का राजा; एक, हेपेर का राजा; 18 एक, अपेक का राजा; एक, लश्शारोन का राजा; 19 एक, मदोन का राजा; एक, हासोर का राजा; 20 एक, शिम्रोन्मरोन का राजा; एक, अझाप का राजा; 21 एक, तानाक का राजा; एक, मगिद्दो का राजा; 22 एक, केदेश का राजा; एक, कर्मैल में के योकनाम का राजा; 23 एक, दोर नाम ऊंचे देश में के दोर का राजा; एक, गिलगाल में के गोयीम का राजा; 24 और एक, तिर्सा का राजा; इस प्रकार सब राजा इकतीस हुए।।
1 यहोशू बूढ़ा और बहुत उम्र का हो गया; और यहोवा ने उस से कहा, तू बूढ़ा और बहुत उम्र का हो गया है, और बहुत देश रह गए हैं, जो इस्राएल के अधिक्कारने में अभी तक नहीं आए। 2 थे देश रह गए हैं, अर्यात् पलिश्तियोंका सारा प्रान्त, और सारे गशूरी 3 (मिस्र के आगे शीहोर से लेकर उत्तर की ओर एक्रोन के सिवाने तक जो कनानियोंका भाग गिना जाता है; और पलिश्िितयोंके पांचोंसरदार, अर्यात् अज्जा, अशदोद, अशकलोन, गत, और एक्रोन के लोग), और दक्खिनी ओर अव्वी भी, 4 फिर अपेक और एमोरियोंके सिवाने तक कनानियो का सारा देश और सीदोनियोंका मारा नाम देश, 5 फिर गवालियोंका देश, और सूर्योदय की ओर हेर्मोन पर्वत के नीचे के बालगाद से लेकर हमात की घाटी तक सारा लबानोन, 6 फिर लबानोन से लेकर मिस्रपोतमैम तक सीदोनियोंके पहाड़ी देश के निवासी। इनको मैं इस्राएलियोंके साम्हने से निकाल दूंगा; इतना हो कि तू मेरी आज्ञा के अनुसार चिट्ठी डाल डालकर उनका देश इस्राएल को बांट दे। 7 इसलिथे तू अब इस देश को नवोंगोत्रोंऔर मनश्शे के आधे गोत्र को उनका भाग होने के लिथे बांट दे।। 8 इसके साय रूबेनियोंऔर गादियोंको तो वह भाग मिल चुका या, जिसे मूसा ने उन्हें यरदन के पूर्व की ओर दिया या, क्योंकि यहोवा के दास मूसा ने उन्हीं को दिया या, 9 अर्यात् अर्नोन नाम नाले के किनारे के अरोएक से लेकर, और उसी नाले के बीच के नगर को छोड़कर दीबोन तक मेदवा के पास का सारा चौरस देश; 10 और अम्मोनियोंके सिवाने तक हेशबोत में विराजनेवाले एमोरियोंके राजा सीहोन के सारे नगर; 11 और गिलाद देश, और गशूरियोंऔर माकावासियोंका सिवाना, और सारा हेर्मोन पर्वत, और सल्का तक कुल बाशान, 12 फिर आशतारोत और एद्रेई में विराजनेवाले उस ओग का सारा राज्य जो रपइशें में से अकेला बच गया या; क्योंकि इन्ही को मूसा ने मारकर उनकी प्रजा को उस देश से निकाल दिया या। 13 परन्तु इस्राएलियोंने गशूरियोंऔर माकियोंको उनके देश से न निकाला; इसलिथे गशूरी और माकी इस्राएलियोंके मध्य में आज तक रहते हैं। 14 और लेवी के गोत्रियोंको उस ने कोई भाग न दिया; क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उसी के हव्य उनके लिथे भाग ठहरे हैं। 15 मूसा ने रूबेन के गोत्र को उनके कुलोंके अनुसार दिया, 16 अर्यात् अर्नोन नाम नाले के किनारे के अरोएर से लेकर और उसी नाले के बीच के नगर को छोड़कर मेदबा के पास का सारा चौरस देश; 17 फिर चौरस देश में का हेशबोन और उसके सब गांव; फिर दीबोन, बामोतबाल, बेतबाल्मोन, 18 यहसा, कदेमोत, मेपात, 19 किर्यातैम, सिबमा, और तराई में के पहाड़ पर बसा हुआ सेरेयश्शहर, 20 बेंतपोर, पिसगा की सलामी और बेत्यशीमोत, 21 निदान चौरस देश में बसे हुए हेशबोन में विराजनेवाले एमोरियोंके उस राजा सीहोन के राज्य के कुल नगर जिन्हें मूसा ने मार लिया या। मूसा ने एवी, रेकेम, सूर, हूर, और रेबा नाम मिद्दान के प्रधानोंको भी मार डाला या जो सीहोन के ठहराए हुए हाकिम और उसी देश के निवासी थे। 22 और इस्राएलियोंने उनके और मारे हुओं के साय बोर के पुत्र भावी कहनेवाले बिलाम को भी तलवार से मार डाला। 23 और रूबेनियोंका सिवाना यरदन का तीर ठहरा। रूबेनियोंका भाग उनके कुलोंके अनुसार नगरोंऔर गांवोंसमेत यही ठहरा।। 24 फिर मूसा ने गाद के गोत्रियोंको भी कुलोंके अनुसार उनका निज भाग करके बांट दिया। 25 तब यह ठहरा, अर्यात् याजेर आदि गिलाद के सारे नगर, और रब्बा के साम्हने के अरोएर तक अम्मोनियोंका आधा देश, 26 और हेशबोन से रामतमिस्पे और बतोनीम तक, और महनैम से दबीर के सिवाने तक, 27 और तराई में बेयारम, बेनिम्रा, सुक्कोत, और सापोन, और हेश्बोन के राजा सीहोन के राज्य के बचे हुए भाग, और किन्नेरेत नाम ताल के सिक्के तक, यरदन के पूर्व की ओर का वह देश जिसका सिवाना यरदन है। 28 गादियोंका भाग उनके कुलोंके अनुसार नगरोंऔर गांवोंसमेत यही ठहरा।। 29 फिर मूसा ने मनश्शे के आधे गोत्रियोंको भी उनका निज भाग कर दिया; वह मनश्शेइयोंके आधे गोत्र का निज भाग उनके कुलोंके अनुसार ठहरा। 30 वह यह है, अर्यात् महनैम से लेकर बाशान के राजा ओग के राज्य का सब देश, और बाशान में बसी हुई याईर की साठोंबस्तियां, 31 और गिलाद का आधा भाग, और अश्तारोत, और एद्रेई, जो बाशान में ओग के राज्य के नगर थे, थे मनश्शे के पुत्र माकीर के वंश का, अर्यात् माकीर के आधे वंश का निज भाग कुलोंके अनुसार ठहरे।। 32 जो भाग मूसा ने मोआब के अराबा में यरीहो के पास के यरदन के पूर्व की ओर बांट दिए वे थे ही हैं। 33 परन्तु लेवी के गोत्र को मूसा ने कोई भाग न दिया; इस्राएल का परमेश्वर यहोवा ही अपके वचन के अनुसार उनका भाग ठहरा।।
1 जो जो भाग इस्राएलियोंने कनान देश में पाए, उन्हें एलीआजर याजक, और नून के पुत्र यहोशू, और इस्राएली गोत्रोंके पूर्वजोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंने उनको दिया वे थे हैं। 2 जो आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा साढ़े नौ गोत्रोंके लिथे दी यी, उसके अनुसार उनके भाग चिट्ठी डाल डालकर दिए गए। 3 मूसा ने तो अढ़ाई गोत्रोंके भाग यरदन पार दिए थे; परन्तु लेवियोंको उसने उनके बीच कोई भाग न दिया या। 4 यूसुफ के वंश के तो दो गोत्र हो गए थे, अर्यात् मनश्शे और एप्रैम; और उस देश में लेवियोंको कुछ भाग न दिया गया, केवल रहने के नगर, और पशु आदि धन रखने को और चराइयां उनको मिलीं। 5 जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी यी उसके अनुसार इस्राएलियोंने किया; और उन्होंने देश को बांट लिया।। 6 तब यहूदी यहोशू के पास गिलगाल में आए; और कनजी यपुन्ने के पुत्र कालेब ने उस से कहा, तू जानता होगा कि यहोवा ने कादेशबर्ने में परमेश्वर के जन मूसा से मेरे और तेरे विषय में क्या कहा या। 7 जब यहोवा के दास मूसा ने मुझे इस देश का भेद लेने के लिथे कादेशबर्ने से भेजा या तब मैं चालीस वर्ष का या; और मैं सच्चे मन से उसके पास सन्देश ले आया। 8 और मेरे सायी जो मेरे संग गए थे उन्होंने तो प्रजा के लोगोंको निराश कर दिया, परन्तु मैं ने अपके परमेश्वर यहोवा की पूरी रीति से बात मानी। 9 तब उस दिन मूसा ने शपय खाकर मुझ से कहा, तू ने पूरी रीति से मेरे परमेश्वर यहोवा की बातोंका अनुकरण किया है, इस कारण नि:सन्देह जिस भूमि पर तू अपके पांव धर आया है वह सदा के लिथे तेरा और तेरे वंश का भाग होगी। 10 और अब देख, जब से यहोवा ने मूसा से यह वचन कहा या तब से पैतालीस वर्ष हो चुके हैं, जिन में इस्राएली जंगल में घूमते फिरते रहे; उन में यहोवा ने अपके कहने के अनुसार मुझे जीवित रखा है; और अब मैं पचासी वर्ष का हूं। 11 जितना बल मूसा के भेजने के दिन मुझ में या उतना बल अभी तक मुझ में है; युद्ध करने, वा भीतर बाहर आने जाने के लिथे जितनी उस समय मुझ मे सामर्य्य यी उतनी ही अब भी मुझ में सामर्य्य है। 12 इसलिथे अब वह पहाड़ी मुझे दे जिसकी चर्चा यहोवा ने उस दिन की यी; तू ने तो उस दिन सुना होगा कि उस में अनाकवंशी रहते हैं, और बड़े बड़े गढ़वाले नगर भी हैं; परन्तु क्या जाने सम्भव है कि यहोवा मेरे संग रहे, और उसके कहने के अनुसार मैं उन्हें उनके देश से निकाल दूं। 13 तब यहोशू ने उसको आशीर्वाद दिया; और हेब्रोन को यपुन्ने के पुत्र कालेब का भाग कर दिया। 14 इस कारण हेब्रोन कनजी यपुन्ने के पुत्र कालेब का भाग आज तक बना है, क्योंकि वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का पूरी रीति से अनुगामी या। 15 पहिले समय में तो हेब्रोन का नाम किर्यतर्बा या; वह अर्बा अनाकियोंमें सब से बड़ा पुरूष या। और उस देश को लड़ाई से शान्ति मिली।।
1 यहूदियोंके गोत्र का भाग उनके कुलोंके अनुसार चिट्ठी डालने से एदोम के सिवाने तक, और दक्खिन की ओर सीन के जंगल तक जो दक्खिनी सिवाने पर है ठहरा। 2 उनके भाग का दक्खिनी सिवाना खारे ताल के उस सिक्केवाले कोल से आरम्भ हुआ जो दक्खिन की ओर बढ़ा है; 3 और वह अक्रब्बीम नाम चढ़ाई की दक्खिनी ओर से निकलकर सीन होते हुए कादेशबर्ने के दक्खिन की ओर को चढ़ गया, फिर हेस्रोन के पास हो अद्दार को चढ़कर कर्काआ की ओर मुड़ गया, 4 वहां से अम्मोन होते हुए वह मिस्र के नाले पर निकला, और उस सिवाने का अन्त समुद्र हुआ। तुम्हारा दक्खिनी सिवाना यही होगा। 5 फिर पूर्वी सिवाना यरदन के मुहाने तक खारा ताल ही ठहरा, और उत्तर दिशा का सिवाना यरदन के मुहाने के पास के ताल के कोल से आरम्भ करके, 6 बेयोग्ला को चढ़ते हुए बेतराबा की उत्तर की ओर होकर रूबेनी बोहनवाले नाम पत्यर तक चढ़ गया; 7 और वही सिवाना आकोर नाम तराई से दबीर की ओर चढ़ गया, और उत्तर होते हुए गिलगाल की ओर फुका जो नाले की दक्खिन ओर की अदुम्मीम की चढ़ाई के साम्हने है; वहां से वह एनशेमेश नाम सोते के पास पहुंचकर एनरोगेल पर निकला; 8 फिर वही सिवाना हिन्नोम के पुत्र की तराई से होकर यबूस (जो यरूशलेम कहलाता है) उसकी दक्खिन अलंग से बढ़ते हुए उस पहाड़ की चोटी पर पहुंचा, जो पश्चिम की ओर हिन्नोम की तराई के साम्हने और रपाईम की तराई के उत्तरवाले सिक्के पर है; 9 फिर वही सिवाना उस पहाड़ की चोटी से नेप्तोह नाम सोते को चला गया, और एप्रोन पहाड़ के नगरोंपर निकला; फिर वहां से बाला को ( जो किर्यत्यारीम भी कहलाता है) पहुंचा; 10 फिर वह बाला से पश्चिम की ओर मुड़कर सेईर पहाड़ तक पहुंचा, और यारीम पहाड़ (जो कसालोन भी कहलाता है) उस की उत्तरवाली अलंग से होकर बेतशेमेश को उतर गया, और वहां से तिम्ना पर निकला; 11 वहां से वह सिवाना एक्रोन की उत्तरी अलंग के पास होते हुए शिक्करोन गया, और बाला पहाड़ होकर यब्नेल पर निकला; और उस सिवाने का अन्त समुद्र का तट हुआ। 12 और पश्चिम का सिवाना महासमुद्र का तीर ठहरा। यहूदियोंको जो भाग उनके कुलोंके अनुसार मिला उसकी चारोंओर का सिवाना यही हुआ।। 13 और यपुन्ने के पुत्र कालेब को उसने यहोवा की आज्ञा के अनुसार यहूदियोंके बीच भाग दिया, अर्यात् किर्यतर्बा जो हेब्रोन भी कहलाता है (वह अर्बा अनाक का पिता या)। 14 और कालेब ने वहां से शेशै, अहीमन, और तल्मै नाम, अनाक के तीनोंपुत्रोंको निकाल दिया। 15 फिर वहां से वह दबीर के निवासियोंपर चढ़ गया; पूर्वकाल में तो दबीर का नाम किर्यत्सेपेर या। 16 और कालेब ने कहा, जो किर्यत्सेपेर को मारकर ले ले उसे मैं अपक्की बेटी अकसा को ब्याह दूंगा। 17 तब कालेब के भाई ओत्नीएल कनजी ने उसे ले लिया; और उस ने उसे अपक्की बेटी अकसा को ब्याह दिया। 18 और जब वह उसके पास आई, तब उस ने उसको पिता से कुछ भूमि मांगने को उभारा, फिर वह अपके गदहे पर से उतर पक्की, और कालेब ने उस से पूछा, तू क्या चाहती है? 19 वह बोली, मुझे आशीर्वाद दे; तू ने मुझे दक्खिन देश में की कुछ भूमि तो दी है, मुझे जल के सोते भी दे। तब उस ने ऊपर के सोते, नीचे के सोते, दोनोंउसे दिए।। 20 यहूदियोंके गोत्र का भाग तो उनके कुलोंके अनुसार यही ठहरा।। 21 और यहूदियोंके गोत्र के किनारे-वाले नगर दक्खिन देश में एदोम के सिवाने की ओर थे हैं, अर्यात् कबसेल, एदेर, यागूर, 22 कीना, दीमोना, अदादा, 23 केदेश, हासोर, यित्नान, 24 जीप, तेलेम, बालोत, 25 हासोर्हदत्ता, करिय्योथेस्रोन, (जो हासोर भी कहलाता है), 26 और अमाम, शमा, मोलादा, 27 हसर्गद्दा, हेशमोन, बेत्पालेत, 28 हसर्शूआल, बेर्शेबा, बिज्योत्या, 29 बाला, इय्यीम, एसेम, 30 एलतोलद, कसील, होर्मा, 31 सिकलग, मदमन्ना, सनसन्ना, 32 लबाओत, शिल्हीम, ऐन, और रिम्मोन; थे सब नगर उन्तीस हैं, और इनके गांव भी हैं।। 33 और नीचे के देश में थे हैं; अर्यात् एशताओल सोरा, अशना, 34 जानोह, एनगन्नीम, तप्पूह, एनाम, 35 यर्मूत, अदुल्लाम, सोको, अजेका, 36 शारैम, अदीतैम, गदेरा, और गदेरोतैम; थे सब चौदह नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 37 फिर सनान, हदाशा, मिगदलगाद, 38 दिलान, मिस्पे, योक्तेल, 39 लाकीश, बोस्कत, एग्लोन, 40 कब्बोन, लहमास, कितलीश, 41 गदेरोत, बेतदागोन, नामा, और मक्केदा; थे सोलह नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 42 फिर लिब्ना, ऐतेर, आशान, 43 यिप्ताह, अशना, नसीब, 44 कीला, अकजीब और मारेशा; थे नौ नगर हैं, और इनके गांव भी हैं। 45 फिर नगरोंऔर गांवोंसमेत एक्रोन, 46 और एक्रोन से लेकर समुद्र तक, अपके अपके गांवोंसमेत जितने नगर अशदोद की अलंग पर हैं।। 47 फिर अपके अपके नगरोंऔर गावोंसमेत अशदोद, और अज्जा, वरन मिस्र के नाले तक और महासमुद्र के तीर तक जितने नगर हैं।। 48 और पहाड़ी देश में थे हैं; अर्यात् शामीर, यत्तीर, सोको, 49 दन्ना, किर्यत्सन्ना (जो दबीर भी कहलाता है), 50 अनाब, एशतमो, आनीम, 51 गोशेन, होलोन, और गीलो; थे ग्यारह नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 52 फिर अराब, दूमा, एशान, 53 यानीम, बेत्तप्पूह, अपेका, 54 हुमता, किर्यतर्बा (जो हेब्रोन भी कहलाता है, और सीओर;) थे नौ नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 55 फिर माओन, कर्मेल, जीप, यूता, 56 मिज्रेल, योकदाम, जानोह, 57 कैन, गिबा, और तिम्ना; थे दस नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 58 फिर हलहूल, बेतसूर, गदोर, 59 मरात, बेतनोत, और एलतकोन; थे छ: नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 60 फिर किर्यतबाल (जो किर्यत्बारीम भी कहलाता है), और रब्बा; थे दो नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 61 और जंगल में थे नगर हैं, अर्यात् बेतराबा, मिद्दीन, सकाका; 62 निबशान, लोनवाला नगर, और एनगदी, थे छ: नगर हैं, और इनके गांव भी हैं।। 63 यरूशलेम के निवासी यबूसिक्कों यहूदी न निकाल सके; इसलिथे आज के दिन तक यबूसी यहूदियोंके संग यरूशलेम में रहते हैं।।
1 फिर यूसुफ की सन्तान का भाग चिट्ठी डालने से ठहराया गया, उनका सिवाना यरीहो के पास की यरदन नदी से, अर्यात् पूर्ब की ओर यरीहो के जल से आरम्भ होकर उस पहाड़ी देश से होते हुए, जो जंगल में हैं, बेतेल को पहुंचा; 2 वहां से वह लूज तक पहुंचा, और एरेकियोंके सिवाने होते हुए अतारोत पर जा निकला; 3 और पश्चिम की ओर यपकेतियोंके सिवाने से उतरकर फिर नीचेवाले बेयोरोन के सिवाने से होकर गेजेर को पहुंचा, और समुद्र पर निकला। 4 तब मनश्शे और एप्रैम नाम यूसुफ के दोनोंपुत्रोंकी सन्तान ने अपना अपना भाग लिया। 5 एप्रैमियोंका सिवाना उनके कुलोंके अनुसार यह ठहरा; अर्यात् उनके भाग का सिवाना पूर्व से आरम्भ होकर अत्रोतदार से होते हुए ऊपर वाले बेयोरोन तक पहुंचा; 6 और उत्तरी सिवाना पश्चिम की ओर के मिकमतात से आरम्भ होकर पूर्व की ओर मुड़कर तानतशीलो को पहुंचा, और उसके पास से होते हुए यानोह तक पहुंचा; 7 फिर यानोह से वह अतारोत और नारा को उतरता हुआ यरीहो के पास होकर यरदन पर निकला। 8 फिर वही सिवाना तप्पूह से निकलकर, और पश्चिम की ओर जाकर, काना के नाले तक होकर समुद्र पर निकला। एप्रैमियोंके गोत्र का भाग उनके कुलोंके अनुसार यही ठहरा। 9 और मनश्शेइयोंके भाग के बीच भी कई एक नगर अपके अपके गांवोंसमेत एप्रैमियोंके लिथे अलग किथे गए। 10 परन्तु जो कनानी गेजेर में बसे थे उनको एप्रैमियोंने वहां से नहीं निकाला; इसलिथे वे कनानी उनके बीच आज के दिन तक बसे हैं, और बेगारी में दास के समान काम करते हैं।।
1 फिर यूसुफ के जेठे मनश्शे के गोत्र का भाग चिट्ठी डालने से यह ठहरा। मनश्शे का जेठा पुत्र गिलाद का पिता माकीर योद्धा या, इस कारण उसके वंश को गिलाद और बाशान मिला। 2 इसलिथे यह भाग दूसरे मनश्शेइशें के लिथे उनके कुलोंके अनुसार ठहरा, अर्यात् अबीएजेर, हेलेक, असीएल, शेकेम, हेपेर, और शमीदा; जो अपके अपके कुलोंके अनुसार यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश में के पुरूष थे, उनके अलग अलग वंशोंके लिथे ठहरा। 3 परन्तु हेपेर जो गिलाद का पुत्र, माकीर का पोता, और मनश्शे का परपोता या, उसके पुत्र सलोफाद के बेटे नहीं, बेटियां ही हुईं; और उनके नाम महला, नोआ, होग्ला, मिलका, और तिर्सा हैं। 4 तब वे एलीआज़र याजक, नून के पुत्र यहोशू, और प्रधानोंके पास जाकर कहने लगीं, यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी, कि वह हम को हमारे भाइयोंके बीच भाग दे। तो यहोशू ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार उन्हें उनके चाचाओं के बीच भाग दिया। 5 तब मनश्शे को, यरदन पार गिलाद देश और बाशान को छोड़, दस भाग मिले; 6 क्योंकि मनश्शेइयोंके बीच में मनश्शेई स्त्रियोंको भी भाग मिला। और दूसरे मनश्शेइयोंको गिलाद देश मिला। 7 और मनश्शे का सिवाना आशेर से लेकर मिकमतात तक पहुंचा, जो शकेम के साम्हने है; फिर वह दक्खिन की ओर बढ़कर एनतप्पूह के निवासियोंतक पहुंचा। 8 तप्पूह की भूमि तो मनश्शे को मिली, परन्तु तप्पूह नगर जो मनश्शे के सिवाने पर बसा है वह एप्रैमियोंका ठहरा। 9 फिर वहां से वह सिवाना काना के नाले तक उतरके उसके दक्खिन की ओर तक पहुंच गया; थे नगर यद्दपि मनश्शे के सिवाने पर बसा है वह एप्रैमियोंका ठहरा। 10 दक्खिन की ओर का देश तो एप्रैम को और उत्तर की ओर का मनश्शे को मिला, और उसका सिवाना समुद्र ठहरा; और वे उत्तर की ओर आशेर से और पूर्व की ओर इस्साकर से जा मिले। 11 और मनश्शे की, इस्साकार और आशेर अपके अपके नगरोंसमेत बेतशान, यिबलाम, और अपके नगरोंसमेत तानाक कि निवासी, और अपके नगरोंसमेत मगिद्दो के निवासी, थे तीनोंजो ऊंचे स्यानोंपर बसे हैं मिले। 12 परन्तु मनश्शेई उन नगरोंके निवासिक्कों उन में से नहीं निकाल सके; इसलिथे वे कनानी उस देश में बरियाई से बसे ही रहे। 13 तौभी जब इस्राएली सामर्यी हो गए, तब कनानियोंसे बेगारी तो कराने लगे, परन्तु उनको पूरी रीति से निकाल बाहर न किया।। 14 यूसुफ की सन्तान यहोशू से कहने लगी, हम तो गिनती में बहुत हैं, क्योंकि अब तक यहोवा हमें आशीष ही देता आया है, फिर तू ने हमारे भाग के लिथे चिट्ठी डालकर क्योंएक ही अंश दिया है? 15 यहोशू ने उन से कहा, यदि तुम गिनती में बहुत हो, और एप्रैम का पहाड़ी देश तुम्हारे लिथे छोटा हो, तो परिज्जयोंऔर रपाइयोंका देश जो जंगल है उसमें जाकर पेड़ोंको काट डालो। 16 यूसुफ की सन्तान ने कहा, वह पहाड़ी देश हमारे लिथे छोटा है; और क्या बेतसान और उसके नगरोंमें रहनेवाले, क्या यिज्रेल की तराई में रहेनवाले, जितने कनानी नीचे के देश में रहते हैं, उन सभोंके पास लोहे के रय हैं। 17 फिर यहोशू ने, क्या एप्रैमी क्या मनश्शेई, अर्यात् यूसुफ के सारे घराने से कहा, हां तुम लोग तो गिनती में बहुत हो, और तुम्हारी बड़ी सामर्य भी है, इसलिथे तुम को केवल एक ही भाग न मिलेगा; 18 पहाड़ी देश भी तुम्हारा हो जाएगा; क्योंकि वह जंगल तो है, परन्तु उसके पेड़ काट डालो, तब उसके आस पास का देश भी तुम्हारा हो जाएगा; क्योंकि चाहे कनानी सामर्यी हों, और उनके पास लोहे के रय भी हों, तौभी तुम उन्हें वहां से निकाल सकोगे।।
1 फिर इस्राएलियोंको सारी मण्डली ने शीलो में इकट्ठी होकर वहां मिलापवाले तम्बू को खड़ा किया; क्योंकि देश उनके वश में आ गया या। 2 और इस्राएलियोंमें से सात गोत्रोंके लोग अपना अपना भाग बिना पाथे रह गए थे। 3 तब यहोशू ने इस्राएलियोंसे कहा, जो देश तुम्हारे पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें दिया है, उसे अपके अधिक्कारने में कर लेने में तुम कब तक ढिलाई करते रहोगे? 4 अब प्रति गोत्र के पीछे तीन मनुष्य ठहरा लो, और मैं उन्हें इसलिथे भेजूंगा कि वे चलकर देश में घूमें फिरें, और अपके अपके गोत्र के भाग के प्रयोजन के अनुसार उसका हाल लिख लिखकर मेरे पास लौट आएं। 5 और वे देश के सात भाग लिखें, यहूदी तो दक्खिन की ओर अपके भाग में, और यूसुफ के घराने के लोग उत्तर की ओर अपके भाग में रहें। 6 और तुम देश के सात भाग लिखकर मेरे पास ले आओ; और मैं यहां तुम्हारे लिथे अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने चिट्ठी डालूंगा। 7 और लेवियोंका तुम्हारे मध्य में कोई भाग न होगा, क्योंकि यहोवा का दिया हुआ याजकपद ही उनका भाग है; और गाद, रूबेन, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोग यरदन के पूर्व की ओर यहोवा के दास मूसा का दिया हुआ अपना अपना भाग पा चुके हैं। 8 तो वे पुरूष उठकर चल दिए; और जो उस देश का हाल लिखने को चले उन्हें यहोशू ने यह आज्ञा दी, कि जाकर देश में घूमो फिरो, और उसका हाल लिखकर मेरे पास लौट आओ; और मैं यहां शिलोंमें यहोवा के साम्हने तुम्हारे लिथे चिट्ठी डालूंगा। 9 तब वे पुरूष चल दिए, और उस देश में घूमें, और उसके नगरोंके सात भाग करके उनका हाल पुस्तक में लिखकर शीलो की छावनी में यहोशू के पास आए। 10 तब यहोशू ने शीलोंमें यहोवा के साम्हने उनके लिथे चिट्ठियां डालीं; और वहीं यहोशू ने इस्राएलियोंको उनके भागोंके अनुसार देश बांट दिया।। 11 और बिन्यामीनियोंके गोत्र की चिट्ठी उनके कुलोंके अनुसार निकली, और उनका भाग यहूदियोंऔर यूसुफियोंके बीच में पड़ा। 12 और उनका उत्तरी सिवाना यरदन से आरम्भ हुआ, और यरीहो की उत्तर अलंग से चढ़ते हुए पश्चिम की ओर पहाड़ी देश में होकर बेतावेन के जंगल में निकला; 13 वहां से वह लूज को पहुंचा (जो बेतेल भी कहलाता है), और लूज की दक्खिन अलंग से होते हुए निचले बेयोरोन की दक्खिन ओर के पहाड़ के पास हो अत्रोतद्दार को उतर गया। 14 फिर पश्चिमी सिवाना मुड़के बेयोरोन के साम्हने और उसकी दक्खिन ओर के पहाड़ से होते हुए किर्यतबाल नाम यहूदियोंके एक नगर पर निकला (जो किर्यत्यारीम भी कहलाता है); पश्चिम का सिवाना यही ठहरा। 15 फिर दक्खिन अलंग का सिवाना पश्चिम से आरम्भ होकर किर्यत्यारीम के सिक्के से निकलकर नेप्तोह के सोते पर पहुंचा; 16 और उस पहाड़ के सिक्के पर उतरा, जो हिन्नोम के पुत्र की तराई के साम्हने और रपाईम नाम तराई की उत्तर ओर है; वहां से वह हिन्नोम की तराई में, अर्यात् यबूस की दक्खिन अलंग होकर एनरोगेल को उतरा; 17 वहां से वह उत्तर की ओर मुड़कर एनशेमेश को निकलकर उस गलीलोत की ओर गया, जो अदुम्मीम की चढ़ाई के साम्हने है, फिर वहां से वह रूबेन के पुत्र बोहन के पत्यर तक उतर गया; 18 वहां से वह उत्तर की ओर जाकर अराबा के साम्हने के पहाड़ की अलंग से होते हुए अराबा को उतरा; 19 वहां से वह सिवाना बेयोग्ला की उत्तर अलंग से जाकर खारे ताल की उत्तर ओर के कोल में यरदन के मुहाने पर निकला; दक्खिन का सिवाना यही ठहरा। 20 और पूर्व की ओर का सिवाना यरदन ही ठहरा। बिन्यामीनियोंका भाग, चारोंओर के सिवानोंसहित, उनके कुलोंके अनुसार, यही ठहरा। 21 और बिन्यामीनियोंके गोत्र को उनके कुलोंके अनुसार थे नगर मिले, अर्यात् यरीहो, बेयोग्ला, एमेक्कसीस, 22 बेतराबा, समारैम, बेतेल, 23 अव्वीम, पारा, ओप्रा, 24 कपरम्मोनी, ओप्नी और गेबा; थे बारह नगर और इनके गांव मिले। 25 फिर गिबोन, रामा, बेरोत, 26 मिस्पे, कपीरा, मोसा, 27 रेकेम, यिर्पेल, तरला, 28 सेला, एलेप, यबूस (जो यरूशलेम भी कहलाता है), गिबल और किर्यत; थे चौदह नगर और इनके गांव उन्हें मिले। बिन्यामीनियोंका भाग उनके कुलोंके अनुसार यही ठहरा।।
1 दूसरी चिट्ठी शमौन के नाम पर, अर्यात् शिमोनियोंके कुलोंके अनुसार उनके गोत्र के नाम पर निकली; और उनका भाग यहूदियोंके भाग के बीच में ठहरा। 2 उनके भाग में थे नगर हैं, अर्यात् बेर्शेबा, शेबा, मोलादा, 3 हसर्शूआल, बाला, एसेम, 4 एलतोलद, बतूल, होर्मा, 5 बेतलबाओत, और शारूहेन; थे तेरह नगर और इनके गांव उन्हें मिले। 6 बेतलबाओत, और शारूहेन; थे तेरह नगर और इनके गांव उन्हें मिले। 7 फिर ऐन, रिम्मोन, ऐतेर, और आशान, थे चार नगर गांवोंसमेत; 8 और बालत्बेर जो दिक्खन देश का रामा भी कहलाता है, वहां तक इन नगरोंके चारोंओर के सब गांव भी उन्हें मिले। शिमानियोंके गोत्र का भाग उनके कुलोंके अनुसार यही ठहरा। 9 शिमोनियोंका भाग तो यहूदियोंके अंश में से दिया गया; क्योंकि यहूदियोंका भाग उनके लिथे बहुत या, इस कारण शिमोनियोंका भाग उन्हीं के भाग के बीच ठहरा।। 10 तीसरी चिट्ठी जबूलूनियोंके कुलोंके अनुसार उनके नाम पर निकली। और उनके भाग का सिवाना सारीद तक पहुंचा; 11 और उनका सिवाना पश्चिम की ओर मरला को चढ़कर दब्बेशेत को पहुंचा; और योकनाम के साम्हने के नाले तक पहुंच गया; 12 फिर सारीद से वह सूर्योदय की ओर मुड़कर किसलोत्ताबोर के सिवाने तक पंहुचा, और वहां से बढ़ते बढ़ते दाबरत में निकला, और यापी की ओर जा निकला; 13 वहां से वह पूर्व की ओर आगे बढ़कर गथेपेर और इत्कासीन को गया, और उस रिम्मोन में निकला जो नेआ तक फैला हुआ है; 14 वहां से वह सिवाना उसके उत्तर की ओर से मुड़कर हन्नातोन पर पहुंचा, और यिप्तहेल की तराई में जा निकला; 15 कत्तात, नहलाल, शिभ्रोन, यिदला, और बेतलेहम; थे बारह नगर उनके गांवोंसमेत उसी भाग के ठहरे। 16 जबूलूनियोंका भाग उनके कुलोंके अनुसार यही ठहरा; और उस में अपके अपके गांवोंसमेत थे ही नगर हैं।। 17 चौयी चिट्ठी इस्साकारियोंके कुलोंके अनुसार उनके नाम पर निकली। 18 और उनका सिवाना यिज्रेल, कसुल्लोत, शूनेम 19 हपारैम, शीओन, अनाहरत, 20 रब्बीत, किश्योत, एबेस, 21 रेमेत, एनगन्नीम, एनहद्दा, और बेत्पस्सेस तक पहुंचा। 22 फिर वह सिवाना ताबोर-शहसूमा और बेतशेमेश तक पहुंचा, और उनका सिवाना यरदन नदी पर जा निकला; इस प्रकार उनको सोलह नगर अपके अपके गांवोंसमेत मिले। 23 कुलोंके अनुसार इस्साकारियोंके गोत्र का भाग नगरोंऔर गांवोंसमेत यही ठहरा।। 24 पांचक्कीं चिट्ठी आशेरियोंके गोत्र के कुलोंके अनुसार उनके नाम पर निकली। 25 उनके सिवाने में हेल्कत, हली, बेतेन, अझाप, 26 अलाम्मेल्लेक, अमाद, और मिशाल थे; और वह पश्चिम की ओर कार्म्मेल तक और शाहोलिर्ब्नात तक पहुंचा; 27 फिर वह सूर्योदय की ओर मुड़कर बेतदागोन को गया, और जबलून के भाग तक, और यिप्तहेल की तराई में उत्तर की ओर होकर बेतेमेक और नीएल तक पहुंचा और उत्तर की ओर जाकर काबूल पर निकला, 28 और वह एब्रोन, रहोब, हम्मोन, और काना से होकर बड़े सीदोन को पहुंचा; 29 वहां से वह सिवाना मुड़कर रामा से होते हुए सोन नाम गढ़वाले नगर तक चला गया; फिर सिवाना होसा की ओर मुड़कर और अकजीब के पास के देश में होकर समुद्र पर निकला, 30 उम्मा, अपेक, और रहोब भी उनके भाग में ठहरे; इस प्रकार बाईस नगर अपके अपके गांवोंसमेत उनको मिले। 31 कुलोंके अनुसार आशेरियोंके गोत्र का भाग नगरोंऔर गांवोंसमेत यही ठहरा।। 32 छठवीं चिट्ठी नप्तालियोंके कुलोंके अनुसार उनके नाम पर निकली। 33 और उनका सिवाना हेलेप से, और सानन्नीम में के बांज वृझ से, अदामीनेकेब और यब्नेल से होकर, और लक्कूम को जाकर यरदन पर निकला; 34 वहां से वह सिवाना पश्चिम की ओर मुड़कर अजनोत्ताबोर को गया, और वहां से हुक्कोक को गया, और दक्खिन, और जबूलून के भाग तक, और पश्चिम की ओर आशेर के भाग तक, और सूर्योदय की ओर यहूदा के भाग के पास की यरदन नदी पर पहुंचा। 35 और उनके गढ़वाले नगर थे हैं, अर्यात् सिद्दीम, सेर, हम्मत, रक्कत, किन्नेरेत, 36 अदामा, रामा, हासोर, 37 केदेश, एद्रेई, एन्हासेर, 38 यिरोन, मिगदलेल, होरेम, बेतनात, और बेतशेमेश; थे उन्नीस नगर गांवोंसमेत उनको मिले। 39 कुलोंके अुनसार नप्तालियोंके गोत्र का भाग नगरोंऔर उनके गांवोंसमेत यही ठहरा।। 40 सातवीं चिट्ठी कुलोंके अनुसार दानियोंके गोत्र के नाम पर निकली। 41 और उनके भाग के सिवाने में सोरा, एशताओल, ईरशमेश, 42 शालब्बीन, अय्यालोन, यितला, 43 एलोन, तिम्ना, एक्रोन, 44 एलतके, गिब्बतोन, बालात, 45 यहूद, बनेबराक, गत्रिम्मोन, 46 मेयर्कोन, और रक्कोन ठहरे, और यापो के साम्हने का सिवाना भी उनका या। 47 और दानियोंका भाग इस से अधिक हो गया, अर्यात् दानी लेशेम पर चढ़कर उस से लड़े, और उसे लेकर तलवार से मार डाला, और उसको अपके अधिक्कारने में करके उस में बस गए, और अपके मूलपुरूष के नाम पर लेशेम का नाम दान रखा। 48 कुलोंके अुनसार दानियोंके गोत्र का भाग नगरोंऔर गांवोंसमेत यही ठहरा।। 49 जब देश का बांटा जाना सिवानोंके अनुसार निपट गया, तब इस्राएलियोंने नून के पुत्र यहोशू को भी अपके बीच में एक भाग दिया। 50 यहोवा के कहने के अनुसार उन्होंने उसको उसका मांगा हुआ नगर दिया, यह एप्रैम के पहाड़ी देश में का विम्नत्सेरह है; और वह उस नगर को बसाकर उस में रहने लगा।। 51 जो जो भाग एलीआजर याजक, और नून के पुत्र यहोशू, और इस्राएलियोंके गोत्रोंके घरानोंके पूर्वजोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंने शीलो में, मिलापवाले तम्बू के द्वार पर, यहोवा के साम्हने चिट्ठी डाल डालके बांट दिए वे थे ही हैं। निदान उन्होंने देश विभाजन का काम निपटा दिया।।
1 फिर यहोवा ने यहोशू से कहा, 2 इस्राएलियोंसे यह कह, कि मैं ने मूसा के द्वारा तुम से शरण नगरोंकी जो चर्चा की यी उसके अनुसार उनको ठहरा लो, 3 जिस से जो कोई भूल से बिना जाने किसी को मार डाले, वह उन में से किसी में भाग जाए; इसलिथे वे नगर खून के पलटा लेनेवाले से बचने के लिथे तुम्हारे शरणस्यान ठहरें। 4 वह उन नगरोंमें से किसी को भाग जाए, और उस नगर के फाटक में से खड़ा होकर उसके पुरनियोंको अपना मुकद्दमा कह सुनाए; और वे उसको अपके नगर में अपके पास टिका लें, और उसे कोई स्यान दें, जिस में वह उनके साय रहे। 5 और यदि खून का पलटा लेनेवाला उसका पीछा करे, तो वे यह जानकर कि उस ने अपके पड़ोसी को बिना जाने, और पहिले उस से बिना बैर रखे मारा, उस खूनी को उसके हाथ में न दें। 6 और जब तक वह मण्डली के साम्हने न्याय के लिथे खड़ा न हो, और जब तक उन दिनोंका महाथाजक न मर जाए, तब तक वह उसी नगर में रहे; उसके बाद वह खूनी अपके नगर को लौटकर जिस से वह भाग आया हो अपके घर में फिर रहने पाए। 7 और उन्होंने नप्ताली के पहाड़ी देश में गलील के केदेश को, और एप्रैम के पहाड़ी देश में शकेम को, और यहूदा के पहाड़ी देश में किर्य्यतर्बा को, (जो हेब्रोन भी कहलाता है) पवित्र ठहराया। 8 और यरीहो के पास के यरदन के पूर्व की ओर उन्होंने रूबेन के गोत्र के भाग में बसेरे को, जो जंगल में चौरस भूमि पर बसा हुआ है, और गाद के गोत्र के भाग में गिलाद के रमोत को, और मनश्शे के गोत्र के भाग में बाशान के गालान को ठहराया। 9 सारे इस्राएलियोंके लिथे, और उन के बीच रहनेवाले परदेशियोंके लिथे भी, जो नगर इस मनसा से ठहराए गए कि जो कोई किसी प्राणी को भूल से मार डाले वह उन में से किसी में भाग जाए, और जब तक न्याय के लिथे मण्डली के साम्हने खड़ा न हो, तब तक खून का पलटा लेनेवाला उसे मार डालने न पाए, वे यह ही हैं।।
1 तब लेवियोंके पूर्वजोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूष एलीआज़र याजक, और नून के पुत्र यहोशू, और इस्राएली गोत्रोंके पूर्वजोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरूषोंके पास आकर 2 कनान देश के शीलो नगर में कहने लगे, यहोवा ने मूसा से हमें बसने के लिथे नगर, और हमारे पशुओं के लिथे उन्हीं नगरोंकी चराईयां भी देने की आज्ञा दिलाई यी। 3 तब इस्राएलियोंने यहोवा के कहने के अनुसार अपके अपके भाग में से लेवियोंको चराईयोंसमेत थे नगर दिए।। 4 और कहतियोंके कुलोंके नाम पर चिट्ठी निकली। इसलिथे लेवियोंमें से हारून याजक के वंश को यहूदी, शिमोन, और बिन्यामीन के गोत्रोंके भागोंमें से तेरह नगर मिले।। 5 और बाकी कहातियोंको एप्रैम के गोत्र के कुलों, और दान के गोत्र, और मनश्शे के आधे गोत्र के भागोंमें से चिट्ठी डाल डालकर दस नगर दिए गए।। 6 और गेर्शोनियोंको इस्साकार के गोत्र के कुलों, और आशेर, और नप्ताली के गोत्रोंके भागोंमें से, और मनश्शे के उस आधे गोत्र के भागोंमें से भी जो बाशान में या चिट्ठी डाल डालकर तेरह नगर दिए गए।। 7 और कुलोंके अनुसार मरारियोंको रूबेन, गाद, और जबूलून के गोत्रोंके भागोंमें से बारह नगर दिए गए।। 8 जो आज्ञा यहोवा ने मूसा से दिलाई भी उसके अनुसार इस्राएलियोंने लेवियोंको चराइयोंसमेत थे नगर चिट्ठी डाल डालकर दिए। 9 उन्होंने यहूदियोंऔर शिमोनियोंके गोत्रोंके भागोंमें से थे नगर जिनके नाम लिखे हैं दिए; 10 थे नगर लेवीय कहाती कुलोंमें से हारून के वंश के लिथे थे; क्योंकि पहिली चिट्ठी उन्हीं के नाम पर निकली यी। 11 अर्यात् उन्होंने उन को यहूदा के पहाड़ी देश में चारोंओर की चराइयोंसमेत किर्यतर्बा नगर दे दिया, जो अनाक के पिता अर्बा के नाम पर कहलाया और हेब्रोन भी कहलाता है। 12 परन्तु उस नगर के खेत और उसके गांव उन्होंने यपुन्ने के पुत्र कालेब को उसकी निज भूमि करके दे दिए।। 13 तब उन्होंने हारून याजक के वंश को चराइयोंसमेत खूनी के शरण नगर हेब्रोन, और अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत लिब्ना, 14 यत्तीर, एशतमो, 15 होलोन, दबीर, ऐन, 16 युत्ता और बेतशेमेश दिए; इस प्रकार उन दोनोंगोत्रोंके भागोंमें से नौ नगर दिए गए। 17 और बिन्यामीन के गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत थे चार नगर दिए गए, अर्यात्गिबोन, गेबा, 18 अनातोत और अल्मोन 19 इस प्रकार हारूनवंशी याजकोंको तेरह नगर और उनकी चराईयां मिली।। 20 फिर बाकी कहाती लेवियोंके कुलोंके भाग के नगर चिट्ठी डाल डालकर एप्रैम के गोत्र के भाग में से दिए गए। 21 अर्यात् उनको चराइयोंसमेत एप्रैम के पहाड़ी देश में खूनी शरण लेने का शकेम नगर दिया गया, फिर अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत गेजेर, 22 किबसैम, और बेयोरोन; थे चार नगर दिए गए। 23 और दान के गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत, एलतके, गिब्बतोन, 24 अय्यालोन, और गत्रिम्मोन; थे चार नगर दिए गए। 25 और मनश्शे के आधे गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत तानाक और गत्रिम्मोन; थे दो नगर दिए गए। 26 इस प्रकार बाकी कहातियोंके कुलोंके सब नगर चराइयोंसमेत दस ठहरे।। 27 फिर लेवियोंके कुलोंमें के गेर्शोनियोंको मनश्शे के आधे गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत खूनी के शरण नगर बाशान का गोलान और बेशतरा; थे दो नगर दिए गए। 28 और इस्साकार के गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत किश्योन, दाबरत, 29 यर्मूत, और एनगन्नीम; थे चार नगर दिए गए। 30 और आशेर के गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत मिशाल, अब्दोन, 31 हेल्कात, और रहोब; थे चार नगर दिए गए। 32 और नप्ताली के गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत खूनी के शरण नगर गलील का केदेश, फिर हम्मोतदोर, और कर्तान; थे तीन नगर दिए गए। 33 गेर्शोनियोंके कुलोंके अनुसार उनके सब नगर अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत तेरह ठहरे।। 34 फिर बाकी लेवियों, अर्यात् मरारियोंके कुलोंको जबूलून के गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत योक्नाम, कर्ता, 35 दिम्ना, और नहलाल; थे चार नगर दिए गए। 36 और रूबेन के गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत बेसेर, यहसा, 37 केदेमोत, और मेपात; थे चार नगर दिए गए। 38 और गाद के गोत्र के भाग में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत खूनी के शरण नगर गिलाद में का रामोत, फिर महनैम, 39 हेशबोन, और याजेर, जो सब मिलाकर चार नगर हैं दिए गए। 40 लेवियोंके बाकी कुलोंअर्यात् मरारियोंके कुलोंके अनुसार उनके सब नगर थे ही ठहरे, इस प्रकार उनको बारह नगर चिट्ठी डाल डालकर दिए गए।। 41 इस्राएलियोंकी निज भूमि के बीच लेवियोंके सब नगर अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत अड़तालीस ठहरे। 42 थे सब नगर अपके अपके चारोंओर की चराइयोंके साय ठहरे; इन सब नगरोंकी यही दशा यी।। 43 इस प्रकार यहोवा ने इस्राएलियोंको वह सारा देश दिया, जिसे उस ने उनके पूर्वजोंसे शपय खाकर देने को कहा या; और वे उसके अधिक्कारनेी होकर उस में बस गए। 44 और यहोवा ने उन सब बातोंके अनुसार, जो उस ने उनके पूर्वजोंसे शपय खाकर कही यीं, उन्हें चारोंओर से विश्रम दिया; और उनके शत्रुओं में से कोई भी उनके साम्हने टिक न सका; यहोवा ने उन सभोंको उनके वश में कर दिया। 45 जितनी भलाई की बातें यहोवा ने इस्राएल के घराने से कही यीं उन में से कोई भी न छूटी; सब की सब पूरी हुई।।
1 उस समय यहोशू ने रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियोंको बुलवाकर कहा, 2 जो जो आज्ञा यहोवा के दास मूसा ने तुम्हें दी यीं वे सब तुम ने मानी हैं, और जो जो आज्ञा मैं ने तुम्हें दी हैं उन सभोंको भी तुम ने माना है; 3 तुम ने अपके भाइयोंको इस मुद्दत में आज के दिन तक नहीं छोड़ा, परन्तु अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा तुम ने चौकसी से मानी है। 4 और अब तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे भाइयोंको अपके वचन के अनुसार विश्रम दिया है; इसलिथे अब तुम लौटकर अपके अपके डेरोंको, और अपक्की अपक्की निज भूमि में, जिसे यहोवा के दास मूसा ने यरदन पार तुम्हें दिया है चले जाओ। 5 केवल इस बात की पूरी चौकसी करना कि जो जो आज्ञा और व्यवस्या यहोवा के दास मूसा ने तुम को दी है उसको मानकर अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखो, उसके सारे मार्गोंपर चलो, उसकी आज्ञाएं मानों, उसकी भंक्ति मे लौलीन रहो, और अपके सारे मन और सारे प्राण से उसकी सेवा करो। 6 तब यहोशू ने उन्हें आशीर्वाद देकर विदा किया; और वे अपके अपके डेरे को चले गए।। 7 मनश्शे के आधे गोत्रियोंको मूसा ने बासान में भाग दिया या; परन्तु दूसरे आधे गोत्र को यहोशू ने उनके भाइयोंके बीच यरदन के पश्चिम की ओर भाग दिया। उनको जब यहोशू ने विदा किया कि अपके अपके डेरे को जाएं, 8 तब उनको भी आशीर्वाद देकर कहा, बहुत से पशु, और चांदी, सोना, पीतल, लोहा, और बहुत से वस्त्र और बहुत धन-सम्पित लिए हुए अपके अपके डेरे को लौट आओ; और अपके शत्रुओं की लूट की सम्पत्ति को अपके भाइयोंके संग बांट लेना।। 9 तब रूबेनी, गादी, और मनश्शे के आधे गोत्री इस्राएलियोंके पास से, अर्यात् कनान देश के शीलो नगर से, अपक्की गिलाद नाम निज भूमि में, जो मूसा से दिलाई हुई, यहोवा की आज्ञा के अनुसार उनकी निज भूमि हो गई यी, जाने की मनसा से लौट गए। 10 और जब रूबेनी, गादी, और मनश्शे के आधे गोत्री यरदन की उस तराई में पहुंचे जो कनान देश में है, तब उन्होंने वहां देखने के योग्य एक बड़ी वेदी बनाई। 11 और इसका समाचार इस्राएलियोंके सुनने में आया, कि रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियोंने कनान देश के साम्हने यरदन की तराई में, अर्यात् उसके उस पार जो इस्राएलियोंका है, एक वेदी बनाई है। 12 जब इस्राएलियोंने यह सुना, तब इस्राएलियोंकी सारी मण्डली उन से लड़ने के लिथे चढ़ाई करने को शीलो में इकट्ठी हुई।। 13 तब इस्राएलियोंने रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियोंके पास गिलाद देश में एलीआज़र याजक के पुत्र पीनहास को, 14 और उसके संग दस प्रधानोंको, अर्यात् इस्राएल के एक एक गोत्र में से पूर्वजोंके घरानोंके एक एक प्रधान को भेजा, और वे इस्राएल के हजारोंमें अपके अपके पूर्वजोंके घरानोंके मुख्य पुरूष थे। 15 वे गिलाद देश में रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियोंके पास जाकर कहने लगे, 16 यहोवा की सारी मण्डली यह कहती है, कि तुम ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का यह कैसा विश्वासघात किया; आज जो तुम ने एक वेदी बना ली है, इस में तुम ने उसके पीछे चलना छोड़कर उसके विरूद्ध आज बलवा किया है? 17 सुनो, पोर के विषय का अधर्म हमारे लिथे कुछ कम या, यद्दपि यहोवा की मण्डली को भारी दण्ड मिला तौभी आज के दिन तक हम उस अधर्म से शुद्ध नहीं हुए; क्या वह तुम्हारी दृष्टि में एक छोटी बात है, 18 कि आज तुम यहोवा को त्यागकर उसके पीछे चलना छोड़ देते हो? क्या तुम यहोवा से फिर जाते हो, और कल वह इस्राएल की सारी मण्डली पर क्रोधित होगा। 19 परन्तु यदि तुम्हारी निज भूमि अशुद्ध हो, तो पार आकर यहोवा की निज भूमि में, जहां यहोवा का निवास रहता है, हम लोगोंके बीच में अपक्की अपक्की निज भूमि कर लो; परन्तु हमारे परमेश्वर यहोवा की बेदी को छोड़ और कोई वेदी बनाकर न तो यहोवा से बलवा करो, और न हम से। 20 देखो, जब जेरह के पुत्र आकान ने अर्पण की हुई वस्तु के विषय में विश्वासघात किया, तब क्या यहोवा का कोप इस्राएल की पूरी मण्डली पर न भड़का? और उस पुरूष के अधर्म का प्राणदण्ड अकेले उसी को न मिला।। 21 तब रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियोंने इस्राएल के हजारोंके मुख्य पुरूषोंको यह उत्तर दिया, 22 कि यहोवा जो ईश्वरोंका परमेश्वर है, ईश्वरोंका परमेश्वर यहोवा इसको जानता है, और इस्राएली भी इसे जान लेंगे, कि यदि यहोवा से फिरके वा उसका विश्वासघात करके हम ने यह काम किया हो, तो तू आज हम को जीवित न छोड़, 23 यदि आज के दिन हम ने वेदी को इसलिथे बनाया हो कि यहोवा के पीछे चलना छोड़ दें, वा इसलिथे कि उस पर होमबलि, अन्नबलि, वा मेलबलि चढ़ाएं, तो यहोवा आप इसका हिसाब ले; 24 परन्तु हम ने इसी विचार और मनसा से यह किया है कि कहीं भविष्य में तुम्हारी सन्तान हमारी सन्तान से यह न कहने लगे, कि तुम को इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से क्या काम? 25 क्योंकि, हे रूबेनियों, हे गादियों, यहोवा ने जो हमारे और तुम्हारे बीच में यरदन को हद्द ठहरा दिया है, इसलिथे यहोवा में तुम्हारा कोई भाग नहीं है। ऐसा कहकर तुम्हारी सन्तान हमारी सन्तान में से यहोवा का भय छुड़ा देगी। 26 इसीलिथे हम ने कहा, आओ, हम अपके लिथे एक वेदी बना लें, वह होमबलि वा मेलबलि के लिथे नहीं, 27 परन्तु इसलिथे कि हमारे और तुम्हारे, और हमारे बाद हमारे और तुम्हारे वंश के बीच में साझी का काम दे; इसलिथे कि हम होमबलि, मेलबलि, और बलिदान चढ़ाकर यहोवा के सम्मुख उसकी उपासना करें; और भविष्य में तुम्हारी सन्तान हमारी सन्तान से यह न कहने पाए, कि यहोवा में तुम्हारा कोई भाग नहीं। 28 इसलिथे हम ने कहा, कि जब वे लोग भविष्य में हम से वा हमारे वंश से योंकहने लेगें, तब हम उन से कहेंगे, कि यहोवा के वेदी के नमूने पर बनी हुई इस वेदी को देखो, जिसे हमारे पुरखाओं ने होमबलि वा मेलबलि के लिथे नहीं बनाया; परन्तु इसलिथे बनाया या कि हमारे और तुम्हारे बीच में साझी का काम दे। 29 यह हम से दूर रहे कि यहोवा से फिरकर आज उसके पीछे चलना छोड़ दें, और अपके परमेश्वर यहोवा की उस वेदी को छोड़कर जो उसके निवास के साम्हने है होमबलि, और अन्नबलि, वा मेलबलि के लिथे दूसरी वेदी बनाएं।। 30 रूबेनियों, गादियों, और मनश्शे के आधे गोत्रियोंकी इन बातोंको सुनकर पीनहास याजक और उसके संग मण्डली के प्रधान, जो इस्राएल के हजारोंके मुख्य पुरूष थे, वे अति प्रसन्न हुए। 31 और एलीआजर याजक के पुत्र पीनहास ने रूबेनियों, गादियों, और मनश्शेइयोंसे कहा, तुम ने जो यहोवा का ऐसा विश्वासघात नहीं किया, इस से आज हम ने यह जान लिया कि यहोवा हमारे बीच में है: और तुम लोगोंने इस्राएलियोंको यहोवा के हाथ से बचाया है। 32 तब एलीआज़र याजक का पुत्र पीनहास प्रधानोंसमेत रूबेनियोंऔर गादियोंके पास से गिलाद होते हुए कनान देश में इस्राएलियोंके पास लौट गया: और यह वृतान्त उनको कह सुनाया। 33 तब इस्राएली प्रसन्न हुए; और परमेश्वर को धन्य कहा, और रूबेनियोंऔर गादियोंसे लड़ने और उनके रहने का देश उजाड़ने के लिथे चढ़ाई करने की चर्चा फिर न की। 34 और रूबेनियोंऔर गादियोंने यह कहकर, कि यह वेदी हमारे और उनके मध्य में इस बात का साझी ठहरी है, कि यहोवा ही परमेश्वर है: उस वेदी का नाम एद रखा।।
1 इसके बहुत दिनोंके बाद, जब यहोवा ने इस्राएलियोंको उनके चारोंओर के शत्रुओं से विश्रम दिया, और यहोशू बूढ़ा और बहुत आयु का हो गया, 2 तब यहोशू सब इस्राएलियोंको, अर्यात् पुरनियों, मुख्य पुरूषों, न्यायियों, और सरदारोंको बुलवाकर कहने लगा, मैं तो अब बूढ़ा और बहुत आयु का हो गया हूं; 3 और तुम ने देखा कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हारे निमित्त इन सब जातियोंसे क्या क्या किया है, क्योंकि जो तुम्हारी ओर लड़ता आया है वह तुम्हारा परमेश्वर यहोवा है। 4 देखो, मैं ने इन बची हुई जातियोंको चिट्ठी डाल डालकर तुम्हारे गोत्रोंका भाग कर दिया है; और यरदन से लेकर सूर्यास्त की ओर के बड़े समुद्र तक रहनेवाली उन सब जातियोंको भी ऐसा ही दिया है, जिनको मैं ने काट डाला है। 5 और तुम्हारा परमेश्वर यहोवा उनको तुम्हारे साम्हने से उनके देश से निकाल देगा; और तुम अपके परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उनके देश के अधिक्कारनेी हो जाओगे। 6 इसलिथे बहुत हियाव बान्धकर, जो कुछ मूसा की व्यवस्या की पुस्तक में लिखा है उसके पूरा करने में चौकसी करना, उस से न तो दाहिने मुड़ना और न बाएं। 7 थे जो जातियां तुम्हारे बीच रह गई हैं इनके बीच न जाना, और न इनके देवताओं के नामोंकी चर्चा करना, और न उनकी शपय खिलाना, और न उनकी उपासना करना, और न उनको दण्डवत् करना, 8 परन्तु जैसे आज के दिन तक तुम अपके परमेश्वर यहोवा की भक्ति में लवलीन रहते हो, वैसे ही रहा करना। 9 यहोवा ने तुम्हारे साम्हने से बड़ी बड़ी और बलवन्त जतियां निकाली हैं; और तुम्हारे साम्हने आज के दिन तक कोई ठहर नहीं सका। 10 तुम में से एक मनुष्य हजार मनुष्योंको भगाएगा, क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अपके वचन के अनुसार तुम्हारी ओर से लड़ता है। 11 इसलिथे अपके परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखने की पूरी चौकसी करना। 12 क्योंकि यदि तुम किसी रीति यहोवा से फिरकर इन जातियोंके बाकी लोगोंसे मिलने लगो जो तुम्हारे बीच बचे हुए रहते थें, और इन से ब्याह शादी करके इनके साय समधियाना रिश्ता जोड़ो, 13 तो निश्चय जान लो कि आगे को तुम्हारा परमेश्वर यहोवा इन जातियोंको तुम्हारे सामहने से नहीं निकालेगा; और थे तुम्हारे लिथे जाल और फंदे, और तुम्हारे पांजरोंके लिथे कोड़े, और तुम्हारी आंखोंमें कांटे ठहरेगी, और अन्त में तुम इस अच्छी भूमि पर से जो तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें दी है नष्ट हो जाओगे। 14 सुनो, मैं तो अब सब संसारियोंकी गति पर जानेवाला हूं, और तुम सब अपके अपके ह्रृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही। 15 तो जैसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की कही हुई सब भलाई की बातें तुम पर घटी है, वैसे ही यहोवा विपत्ति की सब बातें भी तुम पर घटाते घटाते तुम को इस अच्छी भूमि के ऊपर से, जिसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम्हें दिया है, सत्यानाश कर डालेगा। 16 जब तुम उस वाचा को, जिसे तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुम को आज्ञा देकर अपके साय बन्घाया है, उल्लंघन करके पराथे देवताओं की उपासना और उनको दण्डवत् करने लगो, तब यहोवा का कोप तुम पर भड़केगा, और तुम इस अच्छे देश में से जिसे उस ने तुम को दिया है शीघ्र नाश जो जाओगे।।
1 फिर यहोशू ने इस्राएल के सब गोत्रोंको शकेम में इकट्ठा किया, और इस्राएल के वृद्ध लोगों, और मुख्य पुरूषों, और न्यायियों, और सरदारोंको बुलवाया; और वे परमेश्वर के साम्हने उपस्यित हुए। 2 तब यहोशू ने उन सब लोगोंसे कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस प्रकार कहता है, कि प्राचीन काल में इब्राहीम और नाहोर का पिता तेरह आदि, तुम्हारे पुरखा परात महानद के उस पार रहते हुए दूसरे देवताओं की उपासना करते थे। 3 और मैं ने तुम्हारे मूलपुरूष इब्राहीम को महानद के उस पार से ले आकर कनान देश के सब स्यानोंमें फिराया, और उसका वंश बढ़ाया। और उसे इसहाक को दिया; 4 फिर मैं ने इसहाक को याकूब और एसाव दिया। और एसाव को मैं ने सेईर नाम पहाड़ी देश दिया कि वह उसका अधिक्कारनेी हो, परन्तु याकूब बेटों-पोतोंसमेत मिस्र को गया। 5 फिर मैं ने मूसा और हारून को भेजकर उन सब कामोंके द्वारा जो मैं ने मिस्र में किए उस देश को मारा; और उसके बाद तुम को निकाल लाया। 6 और मैं तुम्हारे पुरखाओं को मिस्र में से निकाल लाया, और तुम समुद्र के पास पहुंचे; और मिस्रियोंने रय और सवारोंको संग लेकर लाल समुद्र तक तुम्हारा पीछा किया। 7 और जब तुम ने यहोवा की दोहाई दी तब उस ने तुम्हारे और मिस्रियोंके बीच में अन्धिक्कारनेा कर दिया, और उन पर समुद्र को बहाकर उनको डुबा दिया; और जो कुछ मैं ने मिस्र में किया उसे तुम लोगोंने अपक्की आंखोंसे देखा; फिर तुम बहुत दिन तक जंगल में रहे। 8 तब मैं तुम को उन एमोरियोंके देश में ले आया, जो यरदन के उस पार बसे थे; और वे तुम से लड़े और मैं ने उन्हें तुम्हारे वश में कर दिया, और तुम उनके देश के अधिक्कारनेी हो गए, और मैं ने उनको तुम्हारे साम्हने से सत्यानाश कर डाला। 9 फिर मोआब के राजा सिप्पोर का पुत्र बालाक उठकर इस्राएल से लड़ा; और तुम्हें शाप देने के लिथे बोर के पुत्र बिलाम को बुलवा भेजा, 10 परन्तु मैं ने बिलाम की सुनने के लिथे नाहीं की; वह तुम को आशीष ही आशीष देता गया; इस प्रकार मैं ने तुम को उसके हाथ से बचाया। 11 तब तुम यरदन पार होकर यरीहो के पास आए, और जब यरीहो के लोग, और एमोरी, परिज्जी, कनानी, हित्ती, गिर्गाशी, हिब्बी, और यबूसी तुम से लड़े, तब मैं ने उन्हें तुम्हारे वश में कर दिया। 12 और मैं ने तुम्हारे आगे बर्रोंको भेजा, और उन्होंने एमोरियोंके दोनोंराजाओं को तुम्हारे साम्हने से भगा दिया; देखो, यह तुम्हारी तलवार वा धनुष का काम नहीं हुआ। 13 फिर मैं ने तुम्हें ऐसा देश दिया जिस में तुम ने परिश्र्म न किया या, और ऐसे नगर भी दिए हैं जिन्हें तुम ने न बसाया या, और तुम उन में बसे हो; और जिन दाख और जलपाई के बगीचोंके फल तुम खाते हो उन्हें तुम ने नहीं लगाया या। 14 इसलिथे अब यहोवा का भय मानकर उसकी सेवा खराई और सच्चाई से करो; और जिन देवताओं की सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार और मिस्र में करते थे, उन्हें दूर करके यहोवा की सेवा करो। 15 और यदि यहोवा की सेवा करनी तुम्हें बुरी लगे, तो आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे, चाहे उन देवताओं की जिनकी सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार करते थे, और चाहे एमोरियोंके देवताओं की सेवा करो जिनके देश में तुम रहते हो; परन्तु मैं तो अपके घराने समेत यहोवा की सेवा नित करूंगा। 16 तब लोगोंने उत्तर दिया, यहोवा को त्यागकर दूसरे देवताओं की सेवा करनी हम से दूर रहे; 17 क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा वही है जो हम को और हमारे पुरखाओं को दासत्व के घर, अर्यात् मिस्र देश से निकाल ले आया, और हमारे देखते बड़े बड़े आश्चर्य कर्म किए, और जिस मार्ग पर और जितनी जातियोंके मध्य में से हम चले आते थे उन में हमारी रझा की; 18 और हमारे साम्हने से इस देश में रहनेवाली एमोरी आदि सब जातियोंको निकाल दिया है; इसलिथे हम भी यहोवा की सेवा करेंगे, क्योंकि हमारा परमेश्वर वही है। 19 यहोशू ने लोगोंसे कहा, तुम से यहोवा की सेवा नहीं हो सकती; क्योंकि वह पवित्र परमेश्वर है; वह जलन रखनेवाला ईश्वर है; वह तुम्हारे अपराध और पाप झमा न करेगा। 20 यदि तुम यहोवा को त्यागकर पराए देवताओं की सेवा करने लगोगे, तो यद्दपि वह तुम्हारा भला करता आया है तौभी वह फिरकर तुम्हारी हानि करेगा और तुम्हारा अन्त भी कर डालेगा। 21 लोगोंने यहोशू से कहा, नहीं; हम यहोवा ही की सेवा करेंगे। 22 यहोशू ने लोगोंसे कहा, तुम आप ही अपके साझी हो कि तुम ने यहोवा की सेवा करनी अंगीकार कर ली है। उन्होंने कहा, हां, हम साझी हैं। 23 यहोशू ने कहा, अपके बीच पराए देवताओं को दूर करके अपना अपना मन इस्राएल के परमेश्वर की ओर लगाओ। 24 लोगोंने यहोशू से कहा, हम तो अपके परमेश्वर यहोवा ही की सेवा करेंगे, और उसी की बात मानेंगे। 25 तब यहोशू ने उसी दिन उन लोगोंसे वाचा बन्धाई, और शकेम में उनके लिथे विधि और नियम ठहराया।। 26 यह सारा वृत्तान्त यहोशू ने परमेश्वर की व्यवस्या की पुस्तक में लिख दिया; और एक बड़ा पत्यर चुनकर वहां उस बांजवृझ के तले खड़ा किया, जो यहोवा के पवित्र स्यान में या। 27 तब यहोशू ने सब लोगोंसे कहा, सुनो, यह पत्यर हम लोगोंका साझी रहेगा, क्योंकि जितने वचन यहोवा ने हम से कहें हैं उन्हें इस ने सुना है; इसलिथे यह तुम्हारा साझी रहेगा, ऐसा न हो कि तुम अपके परमेश्वर से मुकर जाओ। 28 तब यहोशू ने लोगोंको अपके अपके निज भाग पर जाने के लिथे विदा किया।। 29 इन बातोंके बाद यहोवा का दास, नून का पुत्र यहोशू, एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया। 30 और उसको तिम्नत्सेरह में, जो एप्रैम के पहाड़ी देश में गाश नाम पहाड़ की उत्तर अलंग पर है, उसी के भाग में मिट्टी दी गई। 31 और यहोशू के जीवन भर, और जो वृद्ध लोग यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और जानते थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिथे कैसे कैसे काम किए थे, उनके भी जीवन भर इस्राएली यहोवा ही की सेवा करते रहे। 32 फिर यूसुफ की हड्डियां जिन्हें इस्राएली मिस्र से ले आए थे वे शकेम की भूमि के उस भाग में गाड़ी गईं, जिसे याकूब ने शकेम के पिता हामोर से एक सौ चांदी के सिक्कोंमें मोल लिया या; इसलिथे वह यूसुफ की सन्तान का निज भाग हो गया। 33 और हारून का पुत्र एलीआज़र भी मर गया; और उसको एप्रैम के पहाड़ी देश में उस पहाड़ी पर मिट्टी दी गई, जो उसके पुत्र पीनहास के नाम पर गिबत्पीनहास कहलाती है और उसको दे दी गई यी।।
1 यहोशू के मरने के बाद इस्राएलियोंने यहोवा से पूछा, कि कनानियोंके विरूद्ध लड़ने को हमारी ओर से पहिले कौन चढ़ाई करेगा? 2 यहोवा ने उत्तर दिया, यहूदा चढ़ाई करेगा; सुनो, मैं ने इस देश को उसके हाथ में दे दिया है। 3 तब यहूदा ने अपके भाई शिमोन से कहा, मेरे संग मेरे भाग में आ, कि हम कनानियोंसे लड़ें; और मैं भी तेरे भाग में जाऊंगा। सो शिमोन उसके संग चला। 4 और यहूदा ने चढ़ाई की, और यहोवा ने कनानियोंऔर परिज्जियोंको उसके हाथ में कर दिया; तब उन्होंने बेजेक में उन में से दस हजार पुरूष मार डाले। 5 और बेजेक में अदोनीबेजेक को पाकर वे उस से लड़े, और कनानियोंऔर परिज्जियोंको मार डाला। 6 परन्तु अदोनीबेजेक भागा; तब उन्होंने उसका पीछा करके उसे पकड़ लिया, और उसके हाथ पांव के अंगूठे काट डाले। 7 तब अदोनीबेजेक ने कहा, हाथ पांव के अंगूठे काटे हुए सत्तर राजा मेरी मेज के नीचे टुकड़े बीनते थे; जैसा मैं ने किया या, वैसा ही बदला परमेश्वर ने मुझे दिया है। तब वे उसे यरूशलेम को ले गए और वहां वह मर गया।। 8 और यहूदियोंने यरूशलेम से लड़कर उसे ले लिया, और तलवार से उसके निवासिक्कों मार डाला, और नगर को फूंक दिया। 9 और तब यहूदी पहाड़ी देश और दक्खिन देश, और नीचे के देश में रहनेवाले कनानियोंसे लड़ने को गए। 10 और यहूदा ने उन कनानियोंपर चढ़ाई की जो हेब्रोन में रहते थे (हेब्रोन का नाम तो पूर्वकाल में किर्यतर्बा या); और उन्होंने शेशै, अहीमन, और तल्मै को मार डाला। 11 वहां से उस ने जाकर दबीर के निवासियोंपर चढ़ाई की। (दबीर का नाम तो पूर्वकाल में किर्यत्सेपेर या।) 12 तब कालेब ने कहा, जो किर्यत्सेपेर को मारके ले ले उसे मैं अपक्की बेटी अकसा को ब्याह दूंगा। 13 इस पर कालेब के छोटे भाई कनजी ओत्नीएल ने उसे ले लिया; और उस ने उसे अपक्की बेटी अकसा को ब्याह दिया। 14 और जब वह ओत्नीएल के पास आई, तब उस ने उसको अपके पिता से कुछ भूमि मांगने को उभारा; फिर वह अपके गदहे पर से उतरी, तब कालेब ने उस से पूछा, तू क्या चाहती है? 15 वह उस से बोली मुझे आशीर्वाद दे; तू ने मुझे दक्खिन देश तो दिया है, तो जल के सोते भी दे। इस प्रकार कालेब ने उसको ऊपर और नीचे के दोनोंसोते दे दिए।। 16 और मूसा के साले, एक केनी मनुष्य के सन्तान, यहूदी के संग खजूर वाले नगर से यहूदा के जंगल में गए जो अराद के दक्खिन की ओर है, और जाकर इस्राएल लोगोंके साय रहने लगे। 17 फिर यहूदा ने अपके भाई शिमोन के संग जाकर सपत में रहनेवाले कनानियोंको मार लिया, और उस नगर को सत्यानाश कर डाला। इसलिथे उस नगर का नाम होर्मा पड़ा। 18 और यहूदा ने चारोंओर की भूमि समेत अज्जा, अशकलोन, और एक्रोन को ले लिया। 19 और यहोवा यहूदा के साय रहा, इसलिथे उस ने पहाड़ी देश के निवासिक्कों निकाल दिया; परन्तु तराई के निवासियोंके पास लोहे के रय थे, इसलिथे वह उन्हें न निकाल सका। 20 और उन्होंने मूसा के कहने के अनुसार हेब्रोन कालेब को दे दिया: और उस ने वहां से अनाक के तीनोंपुत्रोंको निकाल दिया। 21 और यरूशलेम में रहनेवाले यबूसिक्कों बिन्यामीनियोंने न निकाला; इसलिथे यबूसी आज के दिन तक यरूशलेम में बिन्यामीनियोंके संग रहते हैं।। 22 फिर यूसुफ के घराने ने बेतेल पर चढ़ाई की; और यहोवा उनके संग या। 23 और यूसुफ के घराने ने बेतेल का भेद लेने को लोग भेजे। (और उस नगर का नाम पूर्वकाल में लूज या।) 24 और पहरूओं ने एक मनुष्य को उस नगर से निकलते हुए देखा, और उस से कहा, नगर में जाने का मार्ग हमें दिखा, और हम तुझ पर दया करेंगे। 25 जब उस ने उन्हें नगर में जाने का मार्ग दिखाया, तब उन्होंने नगर को तो तलवार से मारा, परन्तु उस मनुष्य को सारे घराने समेत छोड़ दिया। 26 उस मनुष्य ने हित्तियोंके देश में जाकर एक नगर बसाया, और उसका नाम लूज रखा; और आज के दिन तक उसका नाम वही है।। 27 मनश्शे ने अपके अपके गांवोंसमेत बेतशान, तानाक, दोर, यिबलाम, और मगिद्दोंके निवासिक्कों न निकाला; इस प्रकार कनानी उस देश में बसे ही रहे। 28 परन्तु जब इस्राएली सामर्यी हुए, तब उन्होंने कनानियोंसे बेगारी ली, परन्तु उन्हें पूरी रीति से न निकाला।। 29 और एप्रैम ने गेजेर में रहनेवाले कनानियोंको न निकाला; इसलिथे कनानी गेजेर में उनके बीच में बसे रहे।। 30 जबलून ने कित्रोन और नहलोल के निवासिक्कों न निकाला; इसलिथे कनानी उनके बीच में बसे रहे, और उनके वश में हो गए।। 31 आशेर ने अक्को, सीदोन, अहलाब, अकजीब, हेलवा, अपीक, और रहोब के निवासियोंके बीच में बस गए; क्योंकि उन्होंने उनको न निकाला या।। 32 इसलिथे आशेरी लोग देश के निवासी कनानियोंके बीच में बस गए; क्योंकि उन्होंने उनको न निकाला या।। 33 नप्ताली ने बेतशेमेश और बेतनात के निवासिक्कों न निकाला, परन्तु देश के निवासी कनानियोंके बीच में बस गए; तौभी बेतशेमेश और बेतनात के लोग उनके वश में हो गए।। 34 और एमोरियोंने दानियोंको पहाड़ी देश में भगा दिया, और तराई में आने न दिया; 35 इसलिथे एमोरी हेरेस नाम पहाड़, अय्यलोन और शालबीम में बसे ही रहे, तौभी यूसुफ का घराना यहां तक प्रबल हो गया कि वे उनके वश में हो गए। 36 और एमोरियोंके देश का सिवाना अक्रब्बीम नाम पर्वत की चढ़ाई से आरम्भ करके ऊपर की ओर या।।
1 और यहोवा का दूत गिलगाल से बोकीम को जाकर कहने लगा, कि मैं ने तुम को मिस्र से ले आकर इस देश में पहुंचाया है, जिसके विषय में मैं ने तुम्हारे पुरखाओं से शपय खाई यी। और मैं ने कहा या, कि जो वाचा मैं ने तुम से बान्धी है, उसे मैं कभी न तोडूंगा; 2 इसलिथे तुम इस देश के निवासिक्कों वाचा न बान्धना; तुम उनकी वेदियोंको ढा देना। परन्तु तुम ने मेरी बात नहीं मानी। तुम ने ऐसा क्योंकिया है? 3 इसलिथे मैं कहता हूं, कि मैं उन लोगोंको तुम्हारे साम्हने से न निकालूंगा; और वे तुम्हारे पांजर में कांटे, और उनके देवता तुम्हारे लिथे फंदे ठहरेंगे। 4 जब यहोवा के दूत ने सारे इस्राएलियोंसे थे बातें कहीं, तब वे लोग चिल्ला चिल्लाकर रोने लगे। 5 और उन्होंने उस स्यान का नाम बोकीम रखा। और वहां उन्होंने यहोवा के लिथे बलि चढ़ाया।। 6 जब यहोशू ने लोगोंको विदा किया या, तब इस्राएली देश को अपके अधिक्कारने में कर लेने के लिथे अपके अपके निज भाग पर गए। 7 और यहोशू के जीवन भर, और उन वृद्ध लोगोंके जीवन भर जो यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और देख चुके थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिथे कैसे कैसे बड़े काम किए हैं, इस्राएली लोग यहोवा की सेवा करते रहे। 8 निदान यहोवा का दास नून का पुत्र यहोशू एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया। 9 और उसको तिम्नथेरेस में जो एप्रैम के पहाड़ी देश में गाश नाम पहाड़ की उत्तर अलंग पर है, उसी के भाग में मिट्टी दी गई। 10 और उस पीढ़ी के सब लोग भी अपके अपके पितरोंमें मिल गए; तब उसके बाद जो दूसरी पीढ़ी हुई उसके लोग न तो यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उस ने इस्राएल के लिथे किया या।। 11 इसलिथे इस्राएली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और बाल नाम देवताओं की उपासना करने लगे; 12 वे अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा को, जो उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया या, त्यागकर पराथे देवताओं की उपासना करने लगे, और उन्हें दण्डवत् किया; और यहोवा को रिस दिलाई। 13 वे यहोवा को त्याग कर के बाल देवताओं और अशतोरेत देवियोंकी उपासना करने लगे। 14 इसलिथे यहोवा का कोप इस्राएलियोंपर भड़क उठा, और उस ने उनको लुटेरोंके हाथ में कर दिया जो उन्हें लूटने लगे; और उस ने उनको चारोंओर के शत्रुओं के आधीन कर दिया; और वे फिर अपके शत्रुओं के साम्हने ठहर न सके। 15 जहां कहीं वे बाहर जाते वहां यहोवा का हाथ उनकी बुराई में लगा रहता या, जैसे यहोवा ने उन से कहा या, वरन यहोवा ने शपय खाई यी; इस प्रकार से बड़े संकट में पड़ गए। 16 तौभी यहोवा उनके लिथे न्यायी ठहराता या जो उन्हें लूटनेवाले के हाथ से छुड़ाते थे। 17 परन्तु वे अपके न्यायियोंकी भी नहीं मानते थे; वरन व्यभिचारिन की नाईं पराथे देवताओं के पीछे चलते और उन्हें दण्डवत् करते थे; उनके पूर्वज जो यहोवा की आज्ञाएं मानते थे, उनकी उस लीक को उन्होंने शीघ्र ही छोड़ दिया? और उनके अनुसार न किया। 18 और जब जब यहोवा उनके लिथे न्यायी को ठहराता तब तब वह उस न्यायी के संग रहकर उसके जीवन भर उन्हें शत्रुओं के हाथ से छुड़ाता या; क्योंकि यहोवा उनका कराहना जो अन्धेर और उपद्रव करनेवालोंके कारण होता या सुनकर दु:खी या। 19 परन्तु जब न्यायी मर जाता, तब वे फिर पराथे देवताओं के पीछे चलकर उनकी उपासना करते, और उन्हें दण्डवत् करके अपके पुरखाओं से अधिक बिगड़ जाते थे; और अपके बुरे कामोंऔर हठीली चाल को नहीं छोड़ते थे। 20 इसलिथे यहोवा का कोप इस्राएल पर भड़क उठा; और उस ने कहा, इस जाति ने उस वाचा को जो मैं ने उनके पूर्वजोंसे बान्धी यी तोड़ दिया, और मेरी बात नहीं मानी, 21 इस कारण जिन जातियोंको यहोशू मरते समय छोड़ गया है उन में से मैं अब किसी को उनके साम्हने से न निकालूंगा; 22 जिस से उनके द्वारा मैं इस्राएलियोंकी पक्कीझा करूं, कि जैसे उनके पूर्वज मेरे मार्ग पर चलते थे वैसे ही थे भी चलेंगे कि नहीं। 23 इसलिथे यहोवा ने उन जातियोंको एकाएक न निकाला, वरन रहने दिया, और उस ने उन्हें यहोशू के हाथ में भी उनको न सौंपा या।।
1 इस्राएलियोंमें से जितने कनान में की लड़ाईयोंमें भागी न हुए थे, उन्हें परखने के लिथे यहोवा ने इन जातियोंको देश में इसलिथे रहने दिया; 2 कि पीढ़ी पीढ़ी के इस्राएलियोंमें से जो लड़ाई को पहिले न जानते थे वे सीखें, और जान लें, 3 अर्यात् पांचो सरदारोंसमेत पलिश्तियों, और सब कनानियों, और सीदोनियों, और बालहेर्मोन नाम पहाड़ से लेकर हमात की तराई तक लबानोन पर्वत में रहनेवाले हिव्वियोंको। 4 थे इसलिथे रहने पाए कि उनके द्वारा इस्राएलियोंकी बात में पक्कीझा हो, कि जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा के द्वारा उनके पूर्वजोंको दिलाई यीं, उन्हें वे मानेंगे वा नहीं। 5 इसलिथे इस्राएली कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिव्वियों, और यबूसियोंके बीच में बस गए; 6 तब वे उनकी बेटियां ब्याह में लेने लगे, और अपक्की बेटियां उनके बेटोंको ब्याह मे देने लगे; और उनके देवताओं की भी उपासना करने लगे।। 7 इस प्रकार इस्राएलियोंने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया, और अपके परमेश्वर यहोवा को भूलकर बाल नाम देवताओं और अशेरा नाम देवियोंकी उपासना करने लग गए। 8 तब यहोवा का क्रोध इस्राएलियोंपर भड़का, और उस ने उनको अरम्नहरैम के राजा कूशत्रिशातैम के अधीन कर दिया; सो इस्राएली आठ वर्ष तक कूशत्रिशातैम के अधीन में रहे। 9 तब इस्राएलियोंने यहोवा की दोहाई दी, और उसने इस्राएलियोंके लिथे कालेब के छोटे भाई ओत्नीएल नाम एक कनजी छुड़ानेवाले को ठहराया, और उस ने उनको छुड़ाया। 10 उस में यहोवा का आत्मा समाया, और वह इस्राएलियोंका न्यायी बन गया, और लड़ने को निकला, और यहोवा ने अराम के राजा कूशत्रिशातैम को उसके हाथ में कर दिया; और वह कूशत्रिशातैम पर जयवन्त हुआ। 11 तब चालीस वर्ष तक देश में शान्ति बनी रही। और उन्हीं दिनोंमें कन्जी ओत्नीएल मर गया।। 12 तब इस्राएलियोंने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया; और यहोवा ने मोआब के राजा एग्लोन को इस्राएल पर प्रबल किया, क्योंकि उन्होंने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया या। 13 इसलिथे उस ने अम्मोनियोंऔर अमालेकियोंको अपके पास इकट्ठा किया, और जाकर इस्राएल को मार लिया; और खजूरवाले नगर को अपके वश में कर लिया। 14 तब इस्राएली अठारह वर्ष तक मोआब के राजा एग्लोन के अधीन में रहे। 15 फिर इस्राएलियोंने यहोवा की दोहाई दी, और उस ने गेरा के पुत्र एहूद नाम एक बिन्यामीनी को उनका छुड़ानेवाला ठहराया; वह बैहत्या या। इस्राएलियोंने उसी के हाथ से मोआब के राजा एग्लोन के पास कुछ भेंट भेजी। 16 एहूद ने हाथ भर लम्बी एक दोधारी तलवार बनवाई यी, और उसको अपके वस्त्र के नीचे दाहिनी जांघ पर लटका लिया। 17 तब वह उस भेंट को मोआब के राजा एग्लोन के पास जो बड़ा मोटा पुरूष या ले गया। 18 जब वह भेंट को दे चुका, तब भेंट के लानेवाले को विदा किया। 19 परन्तु वह आप गिलगाल के निकट की खुदी हुई मूरतोंके पास लौट गया, और एग्लोन के पास कहला भेजा, कि हे राजा, मुझे तुझ से एक भेद की बात कहनी है। तब राजा ने कहा, योड़ी देर के लिथे बाहर जाओ। तब जितने लोग उसके पास उपस्यित थे वे सब बाहर चले गए। 20 तब एहूद उसके पास गया; वह तो अपक्की एक हवादार अटारी में अकेला बैठा या। एहूद ने कहा, परमेश्वर की ओर से मुझे तुझ से एक बात कहनी है। तब वह गद्दी पर से उठ खड़ा हुआ। 21 इतने में एहूद ने अपना बायां हाथ बढ़ाकर अपक्की दाहिनी जांघ पर से तलवार खींचकर उसकी तोंद में घुसेड़ दी; 22 और फल के पीछे मूठ भी पैठ गई, ओर फल चर्बी में धंसा रहा, क्योंकि उस ने तलवार को उसकी तोंद में से न निकाला; वरन वह उसके आरपार निकल गई। 23 तब एहूद छज्जे से निकलकर बाहर गया, और अटारी के किवाड़ खींचकर उसको बन्द करके ताला लगा दिया। 24 उसके निकल जाते ही राजा के दास आए, तो क्या देखते हैं, कि अटारी के किवाड़ोंमें ताला लगा है; इस कारण वे बोले, कि निश्चय वह हवादार कोठरी में लघुशंका करता होगा। 25 वे बाट जोहते जोहते लज्जित हो गए; तब यह देखकर कि वह अटारी के किवाड़ नहीं खोलता, उन्होंने कुंजी लेकर किवाड़ खोले तो क्या देखा, कि उनका स्वामी भूमि पर मरा पड़ा है। 26 जब तक वे सोच विचार कर ही रहे थे तब तक एहूद भाग निकला, और खूदी हुई मूरतोंकी परली ओर होकर सेइरे में जाकर शरण ली। 27 वहां पहुंचकर उस ने एप्रैम के पहाड़ी देश में नरसिंगा फूंका; तब इस्राएली उसके संग होकर पहाड़ी देश से उसके पीछे पीछे नीचे गए। 28 और उस ने उन से कहा, मेरे पीछे पीछे चले आओ; क्योंकि यहोवा ने तुम्हारे मोआबी शत्रुओं को तुम्हारे हाथ में कर दिया है। तब उन्होंने उसके पीछे पीछे जाके यरदन के घाटोंको जो मोआब देश की ओर है ले लिया, और किसी को उतरने न दिया। 29 उस समय उन्होंने कोई दस हजार मोआबियोंको मार डाला; वे सब के सब ह्रृष्ट पुष्ट और शूरवीर थे, परन्तु उन में से एक भी न बचा। 30 इस प्रकार उस समय मोआब इस्राएल के हाथ के तले दब गया। तब अस्सी वर्ष तक देश में शान्ति बनी रही।। 31 उसके बाद अनात का पुत्र शमगर हुआ, उस ने छ: सौ पलिश्ती पुरूषोंको बैल के पैने से मार डाला; इस कारण वह भी इस्राएल का छुड़ानेवाला हुआ।।
1 जब एहूद मर गया तब इस्राएलियोंने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया। 2 इसलिथे यहोवा ने उनको हासोर में विराजनेवाले कनान के राजा याबीन के अधीन में कर दिया, जिसका सेनापति सीसरा या, जो अन्यजातियोंकी हरोशेत का निवासी या। 3 तब इस्राएलियोंने यहोवा की दोहाई दी; क्योंकि सीसरा के पास लोहे के नौ सौ रय थे, और वह इस्राएलियोंपर बीस वर्ष तक बड़ा अन्धेर करता रहा। 4 उस समय लप्पीदोत की स्त्री दबोरा जो नबिया यी इस्राएलियोंका न्याय करती यी। 5 वह एप्रैम के पहाड़ी देश में रामा और बेतेल के बीच में दबोरा के खजूर के तले बैठा करती यी, और इस्राएली उसके पास न्याय के लिथे जाया करते थे। 6 उस ने अबीनोअम के पुत्र बाराक को केदेश नप्ताली में से बुलाकर कहा, क्या इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने यह आज्ञा नहीं दी, कि तू जाकर ताबोर पहाड़ पर चढ़ और नप्तालियोंऔर जबूलूनियोंमें के दस हजार पुरूषोंको संग ले जा? 7 तब मैं याबीन के सेनापति सीसरा के रयोंऔर भीड़भाड़ समेत कीशोन नदी तक तेरी ओर खींच ले आऊंगा; और उसको तेरे हाथ में कर दूंगा। 8 बाराक ने उस से कहा, यदि तू मेरे संग चलेगी तो मैं जाऊंगा, नहीं तो न जाऊंगा। 9 उस ने कहा, नि:सन्देह मैं तेरे संग चलूंगी; तौभी यह यात्रा से तेरी तो कुछ बढ़ाई न होगी, क्योंकि यहोवा सीसरा को एक स्त्री के अधीन कर देगा। तब दबोरा उठकर बाराक के संग केदेश को गई। 10 तब बाराक ने जबूलून और नप्ताली के लोगोंको केदेश में बुलवा लिया; और उसके पीछे दस हजार पुरूष चढ़ गए; और दबोरा उसके संग चढ़ गई। 11 हेबेर नाम केनी ने उन केनियोंमें से, जो मूसा के साले होबाब के वंश के थे, अपके को अलग करके केदेश के पास के सानन्नीम के बांजवृझ तक जाकर अपना डेरा वहीं डाला य। 12 जब सीसरा को यह समाचार मिला कि अबीनोअम का पुत्र बाराक ताबोर पहाड़ पर चढ़ गया है, 13 तब सीसरा ने अपके सब रय, जो लोहे के नौ सौ रय थे, और अपके संग की सारी सेना को अन्यजातियोंके हरोशेत के कीशोन नदी पर बुलवाया। 14 तब दबोरा ने बाराक से कहा, उठ! क्योंकि आज वह दिन है जिस में यहोवा सीसरा को तेरे हाथ में कर देगा। क्या यहोवा तेरे आगे नहीं निकला है? इस पर बाराक और उसके पीछे पीछे दस हजार पुरूष ताबोर पहाड़ से उतर पके। 15 तब यहोवा ने सारे रयोंवरन सारी सेना समेत सीसरा को तलवार से बाराक के साम्हने घबरा दिया; और सीसरा रय पर से उतरके पांव पांव भाग चला। 16 और बाराक ने अन्यजातियोंके हरोशेत तक रयोंऔर सेना का पीछा किया, और तलवार से सीसरा की सारी सेना नष्ट की गई; और एक भी मनुष्य न बचा।। 17 परन्तु सीसरा पांव पांव हेबेर केनी की स्त्री याएल के डेरे को भाग गया; क्योंकि हासोर के राजा याबीन और हेबेर केनी में मेल या। 18 तब याएल सीसरा की भेंट के लिथे निकलकर उस से कहने लगी, हे मेरे प्रभु, आ, मेरे पास आ, और न डर। तब वह उसके पास डेरे में गया, और उस ने उसके ऊपर कम्बल डाल दिया। 19 तब सीसरा ने उस से कहा, मुझे प्यास लगी है, मुझे योड़ा पानी पिला। तब उस ने दूध की कुप्पी खोलकर उसे दूध पिलाया, और उसको ओढ़ा दिया। 20 तब उस ने उस से कहा, डेरे के द्वार पर खड़ी रह, और यदि कोई आकर तुझ से पूछे, कि यहां कोई पुरूष है? तब कहना, कोई भी नहीं। 21 इसके बाद हेबेर की स्त्री याएल ने डेरे की एक खूंटी ली, और अपके हाथ में एक हयौड़ा भी लिया, और दबे पांव उसके पास जाकर खूंटी को उसकी कलपक्की में ऐसा ठोक दिया कि खूंटी पार होकर भूमि में धंस गई; वह तो यका या ही इसलिथे गहरी नींद में सो रहा या। सो वह मर गया। 22 जब बाराक सीसरा का पीछा करता हुआ आया, तब याएल उस से भेंट करने के लिथे निकली, और कहा, इधर आ, जिसका तू खोजी है उसको मैं तुझे दिखाऊंगी। तब उस ने उसके साय जाकर क्या देखा; कि सीसरा मरा पड़ा है, और वह खूंटी उसकी कनपक्की में गड़ी है। 23 इस प्रकार परमेश्वर ने उस दिन कनान के राजा याबीन को इस्राएलियोंके साम्हने नीचा दिखाया। 24 और इस्राएली कनान के राजा याबीन पर प्रबल होते गए, यहां तक कि उन्होंने कनान के राजा याबीन को नष्ट कर डाला।।
1 उसी दिन दबोरा और अबीनोअम के पुत्र बाराक ने यह गीत गाया, 2 कि इस्राएल के अगुवोंने जो अगुवाई की और प्रजा जो अपक्की ही इच्छा से भरती हुई, इसके लिथे यहोवा को धन्य कहो! 3 हे राजाओ, सुनो; हे अधिपतियोंकान लगाओ, मैं आप यहोवा के लिथे गीत गाऊंगी; इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का मैं भजन करूंगी।। 4 हे यहोवा, जब तू सेईर से निकल चला, जब तू ने एदोम के देश से प्रस्यान किया, तब पृय्वी डोल उठी, और आकाश टूट पड़ा, बादल से भी जल बरसने लगा।। 5 यहोवा के प्रताप से पहाड़, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के प्रताप से वह सीनै पिघलकर बहने लगा। 6 अनात के पुत्र शमगर के दिनोंमें, और याएल के दिनोंमें सड़कें सूनी पक्की यीं, और बटोही पगदंडियोंसे चलते थे।। 7 जब तक मैं दबोरा न उठी, जब तक मैं इस्राएल में माता होकर न उठी, तब तक गांव सूने पके थे।। 8 नथे नथे देवता माने गए, उस समय फाटकोंमें लड़ाई होती यी। क्या चालीस हजार इस्राएलियोंमें भी ढ़ाल वा बर्छी कहीं देखने में आती यी? 9 मेरा मन इस्राएल के हाकिमोंकी ओर लगा है, जो प्रजा के बीच में अपक्की ही इच्छा से भरती हुए। यहोवा को धन्य कहो।। 10 हे उजली गदहियोंपर चढ़नेवालो, हे फर्शोंपर विराजनेवालो, ध्यान रखो।। 11 परघटोंके आस पास धनुर्धारियोंकी बात के कारण, वहां वे यहोवा के धर्ममय कामोंका, इस्राएल के लिथे उसके धर्ममय कामोंका बखान करेंगे। उस समय यहोवा की प्रजा के लोग फाटकोंके पस गए।। 12 जाग, जाग, हे दबोरा! जाग, जाग, गीत सुना! हे बाराक, उठ, हे अबीनोअम के पुत्र, अपके बन्धुओं को बन्धुआई में ले चल। 13 उस समय योड़े से रईस प्रजा समेत उतर पके; यहोवा शूरवीरोंके विरूद्ध मेरे हित उतर आया। 14 एप्रैम में से वे आए जिसकी जड़ अमालेक में है; हे बिन्यामीन, तेरे पीछे तेरे दलोंमें, माकीर में से हाकिम, और जबूलून में से सेनापति दण्ड लिए हुए उतरे; 15 और इस्साकार के हाकिम दबोरा के संग हुए, जैसा इस्साकार वैसा ही बाराक भी या; उसके पीछे लगे हुए वे तराई में फपटकर गए। रूबेन की नदियोंके पास बड़े बड़े काम मन में ठाने गए।। 16 तू चरवाहोंका सीटी बजाना सुनने को भेड़शालोंके बीच क्योंबैठा रहा? रूबेन की नदियोंके पास बड़े बड़े काम सोचे गए।। 17 गिलाद यरदन पार रह गया; और दान क्योंजहाजोंमें रह गया? आशेर समुद्र के तीर पर बैठा रहा, और उसकी खाडिय़ोंके पास रह गया।। 18 जबलून अपके प्राण पर खेलनेवाले लोग ठहरे; नप्ताली भी देश के ऊंचे ऊंचे स्यानोंपर वैसा ही ठहरा। 19 राजा आकर लड़े, उस समय कनान के राजा मगिद्दो के सोतोंके पास तानाक में लड़े; पर रूपयोंका कुछ लाभ न पाया।। 20 आकाश की ओर से भी लड़ाई हुई; वरन ताराओं ने अपके अपके मण्डल से सीसरा से लड़ाई की।। 21 कीशोन नदी ने उनको बहा दिया, अर्यात् वही प्राचीन नदी जो कीशोन नदी है। हे मन, हियाव बान्धे आगे बढ़।। 22 उस समय घोड़े के खुरोंसे टाप का शब्द होने लगा, उनके बलिष्ट घोड़ोंके कूदने से यह हूआ।। 23 यहोवा का दूत कहता है, कि मेरोज को शाप दो, उसके निवासिक्कों भारी शाप दो, क्योंकि वे यहोवा की सहाथता करने को, शूरवीरोंके विरूद्ध यहोवा की सहाथता करने को न आए।। 24 सब स्त्रियोंमें से केनी हेबेर की स्त्री याएल धन्य ठहरेगी; डेरोंमें से रहनेवाली सब स्त्रियोंमें वह धन्य ठहरेगी।। 25 सीसरा ने पानी मांगा, उस ने दूध दिया, रईसोंके योग्य बर्तन में वह मक्खन ले आई।। 26 उस ने अपना हाथ खूंटी की ओर अपना दहिना हाथ बढ़ई के हयौड़े की ओर बढ़ाया; और हयौड़े से सीसरा को मारा, उसके सिर को फोड़ डाला, और उसकी कनपक्की को आरपार छेद दिया।। 27 उस स्त्री के पांवो पर वह फुका, वह गिरा, वह पड़ा रहा; उस स्त्री के पांवो पर वह फुका, वह गिरा; जहां फुका, वहीं मरा पड़ा रहा।। 28 खिड़की में से एक स्त्री फांककर चिल्लाई, सीसरा की माता ने फिलमिली की ओट से पुकारा, कि उसके रय के आने में इतनी देर क्योंलगी? उसके रयोंके पहियोंको अबेर क्योंहुई है? 29 उसी बुद्धिमान प्रतिष्ठित स्त्रियोंने उसे उत्तर दिया, वरन उस ने अपके आप को इस प्रकार उत्तर दिया, 30 कि क्या उन्होंने लूट पाकर बांट नहीं ली? क्या एक एक पुरूष को एक एक वरन दो दो कुंवारियां; और सीसरा को रंगे हुए वस्त्र की लूट, वरन बूटे काढ़े हुए रंगीले वस्त्र की लूट, और लूटे हुओं के गले में दोनोंओर बूटे काढ़े हुए रंगीले वस्त्र नहीं मिले? 31 हे यहोवा, तेरे सब शत्रु ऐसे ही नाश हो जाएं! परन्तु उसके प्रेमी लोग प्रताप के साय उदय होते हुए सूर्य के समान तेजोमय हों।। फिर देश में चालीस वर्ष तक शान्ति रही।।
1 तब इस्राएलियोंने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया, इसलिथे यहोवा ने उन्हें मिद्यानियोंके वश में सात वर्ष कर रखा। 2 और मिद्यानी इस्राएलियोंपर प्रबल हो गए। मिद्यानियोंके डर के मारे इस्राएलियोंने पहाड़ोंके गहिरे खड्डों, और गुफाओं, और किलोंको अपके निवास बना लिए। 3 और जब जब इस्राएली बीज बोते तब तब मिद्यानी और अमालेकी और पूर्वी लोग उनके विरूद्ध चढ़ाई करके 4 अज्जा तक छावनी डाल डालकर भूमि की उपज नाश कर डालते थे, और इस्राएलियोंके लिथे न तो कुछ भोजनवस्तु, और न भेड़-बकरी, और न गाय-बैल, और न गदहा छोड़ते थे। 5 क्योंकि वे अपके पशुओं और डोरोंको लिए हुए चढ़ाई करते, और टिड्डियोंके दल के समान बहुत आते थे; और उनके ऊंट भी अनगिनत होते थे; और वे देश को उजाड़ने के लिथे उस में आया करते थे। 6 और मिद्यानियोंके कारण इस्राएली बड़ी दुर्दशा में पड़ गए; तब इस्राएलियोंने यहोवा की दोहाई दी।। 7 जब इस्राएलियोंने मिद्यानियोंके कारण यहोवा की दोहाई दी, 8 तब यहोवा ने इस्राएलियोंके पास एक नबी को भेजा, जिस ने उन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि मैं तुम को मिस्र में से ले आया, और दासत्व के घर से निकाल ले आया; 9 और मैं ने तुम को मिस्रियोंके हाथ से, वरन जितने तुम पर अन्धेर करते थे उन सभोंके हाथ से छुड़ाया, और उनको तुम्हारे साम्हने से बरबस निकालकर उनका देश तुम्हें दे दिया; 10 और मैं ने तुम से कहा, कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; एमोरी लोग जिनके देश में तुम रहते हो उनके देवताओं का भय न मानना। परन्तु तुम ने मेरा कहना नहीं माना।। 11 फिर यहोवा का दूत आकर उस बांजवृझ के तले बैठ गया, जो ओप्रा में अबीएजेरी योआश का या, और उसका पुत्र गिदोन एक दाखरस के कुण्ड में गेहूं इसलिथे फाड़ रहा या कि उसे मिद्यानियोंसे छिपा रखे। 12 उसको यहोवा के दूत ने दर्शन देकर कहा, हे शूरवीर सूरमा, यहोवा तेरे संग है। 13 गिदोन ने उस से कहा, हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, यदि यहोवा हमारे संग होता, तो हम पर यह सब विपत्ति क्योंपड़ती? और जितने आश्चर्यकर्मोंका वर्णन हमारे पुरखा यह कहकर करते थे, कि क्या यहोवा हम को मिस्र से छुड़ा नहीं लाया, वे कहां रहे? अब तो यहोवा ने हम को त्याग दिया, और मिद्यानियोंके हाथ कर दिया है। 14 तब यहोवा ने उस पर दृष्टि करके कहा, अपक्की इसी शक्ति पर जा और तू इस्राएलियोंको मिद्यानियोंके हाथ से छुड़ाएगा; क्या मैं ने तुझे नहीं भेजा? 15 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, मैं इस्राएल को क्योंकर छुड़ाऊ? देख, मेरा कुल मनश्शे में सब से कंगाल है, फिर मैं अपके पिता के घराने में सब से छोटा हूं। 16 यहोवा ने उस से कहा, निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा; सो तू मिद्यानियोंको ऐसा मार लेगा जैसा एक मनुष्य को। 17 गिदोन ने उस से कहा, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मुझे इसका कोई चिन्ह दिखा कि तू ही मुझ से बातें कर रहा है। 18 जब तक मैं तेरे पास फिर आकर अपक्की भेंट निकालकर तेरे साम्हने न रखूं, तब तक तू यहां से न जा। उस ने कहा, मैं तेरे लौटने तक ठहरा रहूंगा। 19 तब गिदोन ने जाकर बकरी का एक बच्चा और एक एपा मैदे की अखमीरी रोटियां तैयार कीं; तब मांस को टोकरी में, और जूस को तसले में रखकर बांजवृझ के तले उसके पास ले जाकर दिया। 20 परमेश्वर के दूत ने उस से कहा, मांस और अखमीरी रोटियोंको लेकर इस चट्टान पर रख दे, और जूस को उण्डेल दे। उस ने ऐसा ही किया। 21 तब यहोवा के दूत ने अपके हाथ की लाठी को बढ़ाकर मांस और अखमीरी रोटियोंको छूआ; और चट्टान से आग निकली जिस से मांस और अखमीरी रोटियां भस्म हो गई; तब यहोवा का दूत उसकी दृष्टि से अन्तरध्यान हो गया। 22 जब गिदोन ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत या, तब गिदोन कहने लगा, हाथ, प्रभु यहोवा! मैं ने तो यहोवा के दूत को साझात देखा है। 23 यहोवा ने उस से कहा, तुझे शान्ति मिले; मत डर, तू न मरेगा। 24 तब गिदोन ने वहां यहोवा की एक वेदी बनाकर उसका नाम यहोवा शालोम रखा। वह आज के दिन तक अबीएजेरियोंके ओप्रा में बनी है। 25 फिर उसी रात को यहोवा ने गिदोन से कहा, अपके पिता का जवान बैल, अर्यात् दूसरा सात वर्ष का बैल ले, और बाल की जो वेदी तेरे पिता की है उसे गिरा दे, और जो अशेरा देवी उसके पास है उसे काट डाल; 26 और उस दृढ़ स्यान की चोटी पर ठहराई हुई रीति से अपके परमेश्वर यहोवा की एक वेदी बना; तब उस दूसरे बैल को ले, और उस अशेरा की लकड़ी जो तू काट डालेगा जलाकर होमबलि चढ़ा। 27 तब गिदोन ने अपके संग दस दासोंको लेकर यहोवा के वचन के अनुसार किया; परन्तु अपके पिता के घराने और नगर के लोगोंके डर के मारे वह काम दिन को न कर सका, इसलिथे रात में किया। 28 बिहान को नगर के लोग सवेरे उठकर क्या देखते हैं, कि बाल की वेदी गिरी पक्की है, और उसके पास की अशेरा कटी पक्की है, और दूसरा बैल बनाई हुई वेदी पर चढ़ाया हुआ है। 29 तब वे आपस में कहने लगे, यह काम किस ने किया? और पूछपाछ और ढूंढ़-ढांढ़ करके वे कहने लगे, कि यह योआश के पुत्र गिदोन का काम है। 30 तब नगर के मनुष्योंने योआश से कहा, अपके पुत्र को बाहर ले आ, कि मार डाला जाए, क्योंकि उस ने बाल की वेदी को गिरा दिया है, और उसके पास की अशेरा को भी काट डाला है। 31 योआश ने उन सभोंसे जो उसके साम्हने खड़े हुए थे कहा, क्या तुम बाल के लिथे वाद विवाद करोगे? क्या तुम उसे बचाओगे? जो कोई उसके लिथे वाद विवाद करे वह मार डाला जाएगा। बिहान तक ठहरे रहो; तब तक यदि वह परमेश्वर हो, तो जिस ने उसकी वेदी गिराई है उस से वह आप ही अपना वाद विवाद करे। 32 इसलिथे उस दिन गिदोन का नाम यह कहकर यरूब्बाल रखा गया, कि इस ने जो बाल की वेदी गिराई है तो इस पर बाल आप वाद विवाद कर ले।। 33 इसके बाद सब मिद्यानी और अमालेकी और पूर्वी इकट्ठे हुए, और पार आकर यिज्रेल की तराई में डेरे डाले। 34 तब यहोवा का आत्मा गिदोन में समाया; और उस ने नरसिंगा फूंका, तब अबीएजेरी उसकी सुनने के लिथे इकट्ठे हुए। 35 फिर उस ने कुल मनश्शे के पास अपके दूत भेजे; और वे भी उसके समीप इकट्ठे हुए। और उस ने आशेर, जबूलून, और नप्ताली के पास भी दूत भेजे; तब वे भी उस से मिलने को चले आए। 36 तब गिदोन ने परमेश्वर से कहा, यदि तू अपके वचन के अनुसार इस्राएल को मेरे द्वारा छुड़ाएगा, 37 तो सुन, मैं एक भेड़ी की ऊन खलिहान में रखूंगा, और यदि ओस केवल उस ऊन पर पके, और उसे छोड़ सारी भूमि सूखी रह जाए, तो मैं जान लूंगा कि तू अपके वचन के अनुसार इस्राएल को मेरे द्वारा छुड़ाएगा। 38 और ऐसा ही हुआ। इसलिथे जब उस ने बिहान को सबेरे उठकर उस ऊन को दबाकर उस में से ओस निचोड़ी, तब एक कटोरा भर गया। 39 फिर गिदोन ने परमेश्वर से कहा, यदि मैं एक बार फिर कहूं, तो तेरा क्रोध मुझ पर न भड़के; मैं इस ऊन से एक बार और भी तेरी पक्कीझा करूं, अर्यात् केवल ऊन ही सूखी रहे, और सारी भूमि पर ओस पके। 40 इस रात को परमश्ेवर ने ऐसा ही किया; अर्यात् केवल ऊन ही सूखी रह गई, और सारी भूमि पर ओस पक्की।।
1 तब गिदोन जो यरूब्बाल भी कहलाता है और सब लोग जो उसके संग थे सवेरे उठे, और हरोद नाम सोते के पास अपके डेरे खड़े किए; और मिद्यानियोंकी छावनी उनकी उत्तरी ओर मोरे नाम पहाड़ी के पास तराई में पक्की यी।। 2 तब यहोवा ने गिदोन से कहा, जो लोग तेरे संग हैं वे इतने हैं कि मैं मिद्यानियोंको उनके हाथ नहीं कर सकता, नहीं तो इस्राएल यह कहकर मेरे विरूद्ध अपक्की बड़ाई मारने लगे, कि हम अपके ही भुजबल के द्वारा बचे हैं। 3 इसलिथे तू जाकर लोगोंमें यह प्रचार करके सुना दे, कि जो कोई डर के मारे यरयराता हो, वह गिलाद पहाड़ से लौटकर चला जाए। तब बाईस हजार लोग लौट गए, और केवल दस हजार रह गए। 4 फिर यहोवा ने गिदोन से कहा, अब भी लोग अधिक हैं; उन्हें सोते के पास नीचे ले चल, वहां मैं उन्हें तेरे लिथे परखूंगा; और जिस जिसके विषय में मैं तुझ से कहूं, कि यह तेरे संग चले, वह तो तेरे संग चले; और जिस जिसके विषय मे मैं कहूं, कि यह तेरे संग न जाए, वह न जाए। 5 तब वह उनको सोते के पास नीचे ले गया; वहां यहोवा ने गिदोन से कहा, जितने कुत्ते की नाई जीभ से पानी चपड़ चपड़ करके पीएं उनको अलग रख; और वैसा ही उन्हें भी जो घुटने टेककर पीएं। 6 जिन्होंने मुंह में हाथ लगा चपड़ चपड़ करके पानी पिया उनकी तो गिनती तीन सौ ठहरी; और बाकी सब लोगोंने घुटने टेककर पानी पिया। 7 तब यहोवा ने गिदोन से कहा, इन तीन सौ चपड़ चपड़ करके पीनेवालोंके द्वारा मैं तुम को छुड़ाऊंगा, और मिद्यानियोंको तेरे हाथ में कर दूंगा; और सब लोग अपके अपके स्यान को लौट जाए। 8 तब उन लोगोंने हाथ में सीधा और अपके अपके नरसिंगे लिए; और उस ने इस्राएल के सब पुरूषोंको अपके अपके डेरे की ओर भेज दिया, परन्तु उन तीन सौ पुरूषोंको अपके पास रख छोड़ा; और मिद्यान की छावनी उसके नीचे तराई में पक्की यी।। 9 उसी रात को यहोवा ने उस से कहा, उठ, छावनी पर चढ़ाई कर; क्योंकि मैं उसे तेरे हाथ कर देता हूं। 10 परन्तु यदि तू चढ़ाई करते डरता हो, तो अपके सेवक फूरा को संग लेकर छावनी के पास जाकर सुन, 11 कि वे क्या कह रहे है; उसके बाद तुझे उस छावनी पर चढ़ाई करने का हियाव होगा। तब वह अपके सेवक फूरा को संग ले उन हयियार-बन्दोंके पास जो छावनी की छोर पर थे उतर गया। 12 मिद्यानी और अमालेकी और सब पूर्वी लोग तो टिड्डियोंके समान बहुत से तराई में फैले पके थे; और उनके ऊंट समुद्रतीर के बालू के किनकोंके समान गिनती से बाहर थे। 13 जब गिदोन वहां आया, तब एक जन अपके किसी संगी से अपना स्वप्न योंकह रहा या, कि सुन, मैं ने स्वप्न में क्या देखा है कि जौ की एक रोटी लुढ़कते लुढ़कते मिद्यान की छावनी में आई, और डेरे को ऐसा टक्कर मारा कि वह गिर गया, और उसको ऐसा उलट दिया, कि डेरा गिरा पड़ा रहा। 14 उसके संगी ने उत्तर दिया, यह योआश के पुत्र गिदोन नाम एक इस्राएली पुरूष की तलवार को छोड़ कुछ नहीं है; उसी के हाथ में परमेश्वर ने मिद्यान को सारी छावनी समेत कर दिया है।। 15 उस स्वप्न का वर्णन और फल सुनकर गिदोन ने दण्डवत् की; और इस्राएल की छावनी में लौटकर कहा, उठो, यहोवा ने मिद्यानी सेना को तुम्हारे वश में कर दिया है। 16 तब उस ने उन तीन सौ पुरूषोंके तीन फुण्ड किए, और एक एक पुरूष के हाथ में एक नरसिंगा और खाली घड़ा दिया, और घड़ोंके भीतर एक मशाल यी। 17 फिर उस ने उन से कहा, मुझे देखो, और वैसा ही करो; सुनो, जब मैं उस छावनी की छोर पर पहुंचूं, तब जैसा मैं करूं वैसा ही तुम भी करना। 18 अर्यात् जब मैं और मेरे सब संगी नरसिंगा फूंकें तब तुम भी छावनी की चारोंओर नरसिंगे फूंकना, और ललकारना, कि यहोवा की और गिदोन की तलवार।। 19 बीचवाले पहर के आदि में ज्योंही पहरूओं की बदली हो गई यी त्योहीं गिदोन अपके संग के सौ पुरूषोंसमेत छावनी की छोर पर गया; और नरसिंगे को फूंक दिया और अपके हाथ के घड़ोंको तोड़ डाला। 20 तब तीनोंफुण्डोंने नरसिंगोंको फूंका और घड़ोंको तोड़ डाला; और अपके अपके बाएं हाथ में मशाल और दहिने हाथ में फूंकने को नरसिंगा लिए हुए चिल्ला उठे, यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार। 21 तब वे छावनी के चारोंओर अपके अपके स्यान पर खड़े रहे, और सब सेना के लोग दौड़ने लगे; और उन्होंने चिल्ला चिल्लाकर उन्हें भगा दिया। 22 और उन्होंने तीन सौ नरसिंगोंको फूंका, और यहोवा ने एक एक पुरूष की तलवार उसके संगी पर और सब सेना पर चलवाई; तो सेना के लोग सरेरा की ओर बेतशित्ता तब और तब्बात के पास के आबेलमहोला तक भाग गए। 23 तब इस्राएली पुरूष नप्ताली और आशेर और मनश्शे के सारे देश से इकट्ठे होकर मिद्यानियोंके पीछे पके। 24 और गिदोन ने एप्रैम के सब पहाड़ी देश में यह कहने को दूत भेज दिए, कि मिद्यानियोंसे मुठभेड़ करने को चले आओ, और यरदन नदी के घाटोंको बेतबारा तक उन से पहिले अपके वश में कर लो। तब सब एप्रैमी पुरूषोंने इकट्ठे होकर यरदन नदी को बेतबारा तक अपके वश में कर लिया। 25 और उन्होंने ओरेब और जेब नाम मिद्यान के दो हाकिमोंको पकड़ा; और ओरेब को ओरेब नाम चट्टान पर, और जेब को जेब नाम दाखरस के कुण्ड पर घात किया; और वे मिद्यानियोंके पीछे पके; और ओरेब और जेब के सिर यरदन के पार गिदोन के पास ले गए।।
1 तब एप्रैमी पुरूषोंने गिदाने से कहा, तू ने हमारे साय ऐसा बर्ताव क्योंकिया है, कि जब तू मिद्यान से लड़ने को चला तब हम को नहीं बुलवाया? सो उन्होंने उस से बड़ा फगड़ा किया। 2 उस ने उन से कहा, मैं ने तुम्हारे समान भला अब किया ही क्या है? क्या एप्रैम की छोड़ी हुई दाख भी अबीएजेर की सब फसल से अच्छी नहीं है? 3 तुम्हारे ही हाथोंमें परमेश्वर ने ओरब और जेब नाम मिद्यान के हाकिमोंको कर दिया; तब तुम्हारे बराबर मैं कर ही क्या सका? जब उस ने यह बात कही, तब उनका जी उसकी ओर से ठंड़ा हो गया।। 4 तब गिदोन और उसके संग तीनोंसौ पुरूष, जो यके मान्दे थे तौभी खदेड़ते ही रहे थे, यरदन के तीर आकर पार हो गए। 5 तब उस ने सुक्कोत के लोगोंसे कहा, मेरे पीछे इन आनेवालोंको रोटियां दो, क्योंकि थे यके मान्दे हैं; और मैं मिद्यान के जेबह और सल्मुन्ना नाम राजाओं का पीछा कर रहा हूं। 6 सुक्कोत के हाकिमोंने उत्तर दिया, क्या जेबह और सल्मुन्ना तेरे हाथ में पड़ चुके हैं, कि हम तेरी सेना को रोटी दे? 7 गिदोन ने कहा, जब यहोवा जेबह और सल्मुन्ना को मेरे हाथ में कर देगा, तब मैं इस बात के कारण तुम को जंगल के कटीले और बिच्छू पेड़ोंसे नुचवाऊंगा। 8 वहां से वह पनूएल को गया, और वहां के लोगोंसे ऐसी ही बात कही; और पनूएल के लोगोंने सुक्कोत के लोगोंका सा उत्तर दिया। 9 उस ने पनूएल के लोगोंसे कहा, जब मैं कुशल से लौट आऊंगा, तब इस गुम्मट को ढा दूंगा।। 10 जेबह और सल्मुन्ना तो कर्कोर में थे, और उनके साय कोई पन्द्रह हजार पुरूषोंकी सेना यी, क्योंकि पूविर्योंकी सारी सेना में से उतने ही रह गए थे; जो मारे गए थे वे एक लाख बीस हजार हयियारबन्द थे। 11 तब गिदोन ने नोबह और योग्बहा के पूर्व की ओर डेरोंमें रहनेवालोंके मार्ग में चढ़कर उस सेना को जो निडर पक्की यी मार लिया। 12 और जब जेबह और सल्मुन्ना को पकड़ लिया, और सारी सेना को भगा दिया। 13 और योआश का पुत्र गिदोन हेरेस नाम चढ़ाई पर से लड़ाई से लौटा। 14 और सुक्कोत के एक जवान पुरूष को पकड़कर उस से पूछा, और उस ने सुक्कोत के सतहत्तरोंहाकिमोंऔर वृद्ध लोगोंके पके लिखवाथे। 15 तब वह सुक्कोत के मनुष्योंके पास जाकर कहने लगा, जेबह और सल्मुन्ना को देखा, जिनके विषय में तुम ने यह कहकर मुझे चिढ़ाया या, कि क्या जेबह और सल्मुन्ना अभी तेरे हाथ में हैं, कि हम तेरे यके मान्दे जनोंको रोटी दें? 16 तब उस ने उस नगर के वृद्ध लोगोंको पकड़ा, और जंगल के कटीले और बिच्छू पेड़ लेकर सुक्कोत के पुरूषोंको कुछ सिखाया। 17 और उस ने पनूएल के गुम्मट को ढा दिया, और उस नगर के मनुष्योंको घात किया। 18 फिर उस ने जेबह और सल्मुन्ना से पूछा, जो मनुष्य तुम ने ताबोर पर घात किए थे वे कैसे थे? उन्होंने उत्तर दिया, जैसा तू वैसे ही वे भी थे अर्यात् एक एक का रूप राजकुमार का सा या। 19 उस ने कहा, वे तो मेरे भाई, वरन मेरे सहोदर भाई थे; यहोवा के जीवन की शपय, यदि तुम ने उनको जीवित छोड़ा होता, तो मैं तुम को घान न करता। 20 तब उस ने अपके जेठे पुत्र यतेरे से कहा, उठकर इन्हें घात कर। परन्तु जवान ने अपक्की तलवार न खींची, क्योंकि वह उस समय तक लड़का ही या, इसलिथे वह डर गया। 21 तब जेबह और सल्मुन्ना ने कहा, तू उठकर हम पर प्रहार कर; क्योंकि जैसा पुरूष हो, वैसा ही उसका पौरूष भी होगा। तब गिदोन ने उठकर जेबह और सल्मुन्ना को घात किया; और उनके ऊंटोंके गलोंके चन्द्रहारोंको ले लिया।। 22 तब इस्राएल के पुरूषोंने गिदोन से कहा, तू हमारे ऊपर प्रभुता कर, तू और तेरा पुत्र और पोता भी प्रभुता करे; क्योंकि तू ने हम को मिद्यान के हाथ से छुड़ाया है। 23 गिदोन ने उन से कहा, मैं तुम्हारे ऊपर प्रभुता न करूंगा, और न मेरा पुत्र तुम्हारे ऊपर प्रभुता करेगा; यहोवा ही तुम पर प्रभुता करेगा। 24 फिर गिदोन ने उन से कहा, मैं तुम से कुछ मांगता हूं; अर्यात् तुम मुझ को अपक्की अपक्की लूट में की बालियां दो। (वे तो इशमाएली थे, इस कारण उनकी बालियां सोने की यीं।) उन्होंने कहा, निश्चय हम देंगे। 25 तब उन्होंने कपड़ा बिछाकर उस में अपक्की अपक्की लूट में से निकालकर बालियां डाल दीं। 26 जो सोने की बालियां उस ने मांग लीं उनका तौल एक हजार सात सौ शेकेल हुआ; और उनको छोड़ चन्द्रहार, फुमके, और बैंगनी रंग के वस्त्र जो मिद्यानियोंके राजा पहिने थे, और उनके ऊंटोंके गलोंकी जंजीर। 27 उनका गिदोन ने एक एपोद बनवाकर अपके ओप्रा नाम नगर में रखा; और सब इस्राएल वहां व्यभिचारिणी की नाईं उसके पीछे हो लिया, और वह गिदोन और उसके घराने के लिथे फन्दा ठहरा। 28 इस प्रकार मिद्यान इस्रालियोंसे दब गया, और फिर सिर न उठाया। और गिदोन के जीवन भर अर्यात् चालीस वर्ष तक देश चैन से रहा। 29 योआश का पुत्र यरूब्बाल तो जाकर अपके घर में रहने लगा। 30 और गिदोन के सत्तर बेटे उत्पन्न हुए, क्योंकि उसके बहुत स्त्रियां यीं। 31 और उसकी जो एक रखेली शकेम में रहती यी उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और गिदोन ने उसका नाम अबीमेलेक रखा। 32 निदान योआश का पुत्र गिदोन पूरे बुढ़ापे में मर गया, और अबीएजेरियोंके ओप्रा नाम गांव में उसके पिता योआश की कबर में उसको मिट्टी दी गई।। 33 गिदोन के मरते ही इस्राएली फिर गए, और व्यभिचारिणी की नाईं बाल देवताओं के पीछे हो लिए, और बालबरीत को अपना देवता मान लिया। 34 और इस्राएलियोंने अपके परमेश्वर यहोवा को, जिस ने उनको चारोंओर के सब शत्रुओं के हाथ से छुड़ाया या, स्मरण न रखा; 35 और न उन्होंने यरूब्बाल अर्यात् गिदोन की उस सारी भलाई के अनुसार जो उस ने इस्राएलियोंके साय की यी उसके घराने को प्रीति दिखाई।।
1 यरूब्बाल का पुत्र अबीमेलेक शकेम को अपके मामाओं के पास जाकर उन से और अपके नाना के सब घराने से योंकहने लगा, 2 शकेम के सब मनुष्योंसे यह पूछो, कि तुम्हारे लिथे क्या भला है? क्या यह कि यरूब्बाल के सत्तर पुत्र तुम पर प्रभुता करें? वा यह कि एक ही पुरूष तुम पर प्रभुता करे? और यह भी स्मरण रखो कि मैं तुम्हारा हाड़ मांस हूं। 3 तब उसके मामाओं ने शकेम के सब मनुष्योंसे ऐसी ही बातें कहीं; और उन्होंने यह सोचकर कि अबीमेलेक तो हमारा भाई है अपना मन उसके पीछे लगा दिया। 4 तब उन्होंने बालबरीत के मन्दिर में से सत्तर टुकड़े रूपे उसको दिए, और उन्हें लगाकर अबीमेलेक ने नीच और लुच्चे जन रख लिए, जो उसके पीछे हो लिए। 5 तब उस ने ओप्रा में अपके पिता के घर जाके अपके भाइयोंको जो यरूब्बाल के सत्तर पुत्र थे एक ही पत्यर पर घात किया; परन्तु यरूब्बाल का योताम नाम लहुरा पुत्र छिपकर बच गया।। 6 तब शकेम के सब मनुष्योंऔर बेतमिल्लो के सब लोगोंने इकट्ठे होकर शकेम के खम्भे से पासवाले बांजवृझ के पास अबीमेलेक को राजा बनाया। 7 इसका समाचार सुनकर योताम गरिज्जीम पहाड़ की चोटी पर जाकर खड़ा हुआ, और ऊंचे स्वर से पुकारा के कहने लगा, हे शकेम के मनुष्यों, मेरी सुनो, इसलिथे कि परमेश्वर तुम्हारी सुनें। 8 किसी युग में वृझ किसी का अभिषेक करके अपके ऊपर राजा ठहराने को चले; तब उन्होंने जलपाई के वृझ से कहा, तू हम पर राज्य कर। 9 तब जलपाई के वृझ ने कहा, क्या मैं अपक्की उस चिकनाहट को छोड़कर, जिस से लोग परमेश्वर और मनुष्य दोनोंका आदर मान करते हैं, वृझोंका अधिक्कारनेी होकर इधर उधर डोलने को चलूं? 10 तब वृझोंने अंजीर के वृझ से कहा, तू आकर हम पर राज्य कर। 11 अंजीर के वृझ ने उन से कहा, क्या मैं अपके मीठेपन और अपके अच्छे अच्छे फलोंको छोड़ वृझोंका अधिक्कारनेी होकर इधर उधर डोलने को चलूं? 12 फिर वृझोंने दाखलता से कहा, तू आकर हम पर राज्य कर। 13 दाखलता ने उन से कहा, क्या मैं अपके नथे मधु को छोड़, जिस से परमेश्वर और मनुष्य दोनोंको आनन्द होता है, वृझोंकी अधिक्कारनेिणी होकर इधर उधर डोलने को चलूं? 14 तब सब वृझोंने फड़बेरी से कहा, तू आकर हम पर राज्य कर। 15 फड़बेरी ने उन वृझोंसे कहा, यदि तुम अपके ऊपर राजा होने को मेरा अभिषेक सच्चाई से करते हो, तो आकर मेरी छांह में शरण लो; और नहीं तो, फड़बेरी से आग निकलेगी जिस से लबानोन के देवदारू भी भस्म हो जाएंगे। 16 इसलिथे अब यदि तुम ने सच्चाई और खराई से अबीमेलेक को राजा बनाया है, और यरूब्बाल और उसके घराने से भलाई की, और उस ने उसके काम के योग्य बर्ताव किया हो, तो भला। 17 (मेरा पिता तो तुम्हारे निमित्त लड़ा, और अपके प्राण पर खेलकर तुम को मिद्यानियोंके हाथ से छुड़ाया; 18 परन्तु तुम ने आज मेरे पिता के घराने के विरूद्ध उठकर बलवा किया, और उसके सत्तर पुत्र एक ही पत्यर पर घात किए, और उसकी लौंड़ी के पुत्र अबीमेलेक को इसलिथे शकेम के मनुष्योंके ऊपर राजा बनाया है कि वह तुम्हारा भाई है); 19 इसलिथे यदि तुम लोगोंने आज के दिन यरूब्बाल और उसके घराने से सच्चाई और खराई से बर्ताव किया हो, तो अबीमेलेक के कारण आनन्द करो, और वह भी तुम्हारे कारण आनन्द करे; 20 और नहीं, तो अबीमेलेक से ऐसी आग निकले जिस से शकेम के मनुष्य और बेतमिल्लो भस्म हो जाएं: शकेम के मनुष्योंऔर बेतमिल्लो से ऐसी आग निकले जिस से अबीमेलेक भस्म हो जाए। 21 तब योताम भागा, और अपके भाई अबीमेलेक के डर के मारे बेर को जाकर वहां रहने लगा।। 22 और अबीमेलेक इस्राएल के ऊपर तीन वर्ष हाकिम रहा। 23 तब परमेश्वर ने अबीमेलेक और शकेम के मनुष्योंके बीच एक बुरी आत्मा भेज दी; सो शकेम के मनुष्य अबीमेलेक का विश्वासघात करने लगे; 24 जिस से यरूब्बाल के सत्तर पुत्रोंपर किए हुए उपद्रव का फल भोगा जाए, और उनका कुल उनके घात करनेवाले उनके भाई अबीमेलेक के सिर पर, और उसके अपके भाइयोंके घात करने में उसकी सहाथता करनेवाले शकेम के मनुष्योंके सिर पर भी हो। 25 तब शकेम के मनुष्योंने पहाड़ोंकी चोटियोंपर उसके लिथे घातकोंको बैठाया, जो उस मार्ग से सब आने जानेवालोंको लूटते थे; और इसका समाचार अबीमेलेक को मिला।। 26 तब एबेद का पुत्र गाल अपके भाइयोंसमेत शकेम में आया; और शकेम के मनुष्योंने उसका भरोसा किया। 27 और उन्होंने मैदान में जाकर अपक्की अपक्की दाख की बारियोंके फल तोड़े और उनका रस रौन्दा, और स्तुति का बलिदान कर अपके देवता के मन्दिर में जाकर खाने पीने और अबीमेलेक को कोसने लगे। 28 तब एबेद के पुत्र गाल ने कहा, अबीमेलेक कौन है? शकेम कौन है कि हम उसके अधीन रहें? क्या वह यरूब्बाल का पुत्र नहीं? शकेम के पिता हमोर के लोगोंके तो अधीन हो, परन्तु हमे उसके अधीन क्योंरहें? 29 और यह प्रजा मेरे वश में होती हो क्या ही भला होता! तब तो मैं अबीमेलेक को दूर करता। फिर उस ने अबीमेलेक से कहा, अपक्की सेना की गिनती बढ़ाकर निकल आ। 30 एबेद के पुत्र गाल की वे बातें सुनकर नगर के हाकिम जबूल का क्रोध भड़क उठा। 31 और उस ने अबीमेलेक के पास छिपके दूतोंसे कहला भेजा, कि एबेद का पुत्र गाल और उसके भाई शकेम में आके नगरवालोंको तेरा विरोध करने को उसका रहे हैं। 32 इसलिथे तू अपके संगवालोंसमेत रात को उठकर मैदान में घात लगा। 33 फिर बिहान को सवेरे सूर्य के निकलते ही उठकर इस नगर पर चढ़ाई करना; और जब वह अपके संगवालोंसमेत तेरा साम्हना करने को निकले तब जो तुझ से बन पके वही उस से करना।। 34 तब अबीमेलेक और उसके संग के सब लोग रात को उठ चार फुण्ड बान्धकर शकेम के विरूद्ध घात में बैठ गए। 35 और एबेद का पुत्र गाल बाहर जाकर नगर के फाटक में खड़ा हुआ; तब अबीमेलेक और उसके संगी घात छोड़कर उठ खड़े हुए। 36 उन लोगोंको देखकर गाल जबूल से कहने लगा, देख, पहाड़ोंकी चोटियोंपर से लोग उतरे आते हैं! जबूल ने उस से कहा, वह तो पहाड़ोंही छाया है जो तुझे मनुष्योंके समान देख पड़ती है। 37 गाल ने फिर कहा, देख, लोग देश के बीचोंबीच होकर उतरे आते हैं, और एक फुण्ड मोननीम नाम बांज वृझ के मार्ग से चला आता है। 38 जबूल ने उस से कहा, तेरी यह बात कहां रही, कि अबीमेलेक कौन है कि हम उसके अधीन रहें? थे तो वे ही लोग हैं जिनको तू ने निकम्मा जाना या; इसलिथे अब निकलकर उन से लड़। 39 तब गाल शकेम के पुरूषोंका अगुवा हो बाहर निकलकर अबीमेलेक से लड़ा। 40 और अबीमेलेक ने उसको खदेड़ा, और अबीमेलेक के साम्हने से भागा; और नगर के फाटक तक पहुंचते पहुंचते बहुतेरे घायल होकर गिर पके। 41 तब अबीमेलेक अरूमा में रहने लगा; और जबूल ने गाल और उसके भाइयोंको निकाल दिया, और शकेम में रहने न दिया। 42 दूसरे दिन लोग मैदान में निकल गए; और यह अबीमेलेक को बताया गया। 43 और उस ने अपक्की सेना के तीन दल बान्धकर मैदान में घात लगाई; और जब देखा कि लोग नगर से निकले आते हैं तब उन पर चढ़ाई करके उन्हें मार लिया। 44 अबीमेलेक अपके संग के दलोंसमेत आगे दौड़कर नगर के फाटक पर खड़ा हो गया, और दो दलोंने उन सब लोगोंपर धावा करके जो मैदान में थे उन्हें मार डाला। 45 उसी दिन अबीमेलेक ने नगर से दिन भर लड़कर उसको ले दिया, और उसके लोगोंको घात करके नगर को ढा दिया, और उस पर नमक छिड़कवा दिया।। 46 यह सुनकर शकेम के गुम्मट के सब रहनेवाले एलबरीत के मन्दिर के गढ़ में जा घुसे। 47 जब अबीमेलेक को यह समाचार मिला कि शकेम के गुम्मट के सब मनुष्य इकट्ठे हुए हैं, 48 तब वह अपके सब संगियोंसमेत सलमोन नाम पहाड़ पर चढ़ गया; और हाथ में कुल्हाड़ी ले पेड़ोंमें से एक डाली काटी, ओर उसे उठाकर अपके कन्धे पर रख ली। और अपके संगवालोंसे कहा कि जैसा तुम ने मुझे करते देखा वैसा ही तुम भी फटपट करो। 49 तब उन सब लोगोंने भी एक एक डाली काट ली, और अबीमेलेक के पीछे हो उनको गढ़ पर डालकर गढ़ में आग लगाई; तब शकेम के गुम्मट के सब स्त्री पुरूष जो अटकल एक हजार थे मर गए।। 50 तब अबीमेलेक ने तेबेस को जाकर उसके साम्हने डेरे खड़े करके उस को ले लिया। 51 परन्तु एक नगर के बीच एक दृढ़ गुम्मट या, सो क्या स्त्री पुरूष, नगर के सब लोग भागकर उस में घुसे; और उसे बन्द करके गुम्मट की छत पर चढ़ गए। 52 तब अबीमेलेक गुम्मट के निकट जाकर उसके विरूद्ध लड़ने लगा, और गुम्मट के द्वार तक गया कि उस में आग लगाए। 53 तब किसी स्त्री ने चक्की के ऊपर का पाट अबीमेलेक के सिर पर डाल दिया, और उसकी खोपक्की फट गई। 54 तब उस ने फट अपके हयियारोंके ढोनेवाले जवान को बुलाकर कहा, अपक्की तलवार खींचकर मुझे मार डाल, ऐसा न हो कि लोग मेरे विषय में कहने पाएं, कि उसको एक स्त्री ने घात किया। तब उसके जवान ने तलवार भोंक दी, और वह मर गया। 55 यह देखकर कि अबीमेलेक मर गया है इस्राएली अपके अपके स्यान को चले गए। 56 इस प्रकार जो दुष्ट काम अबीमेलेक ने अपके सत्तर भाइयोंको घात करके अपके पिता के साय किया या, उसको परमेश्वर ने उसके सिर पर लौटा दिया; 57 और शकेम के पुरूषोंके भी सब दुष्ट काम परमेश्वर ने उनके सिर पर लौटा दिए, और यरूब्बाल के पुत्र योताम का शाप उन पर घट गया।।
1 अबीमेलेक के बाद इस्राएल के छुड़ाने के लिथे तोला नाम एक इस्साकारी उठा, वह दोदो का पोता और पूआ का पुत्र या; और एप्रैम के पहाड़ी देश के शामीर नगर में रहता या। 2 वह तेईस वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। तब मर गया, और उसको शामीर में मिट्टी दी गई।। 3 उसके बाद गिलादी याईर उठा, वह बाईस वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। 4 और उसके तीस पुत्र थे जो गदहियोंके तीस बच्चोंपर सवार हुआ करते थे; और उनके तीस नगर भी थे जो गिलाद देश में हैं, और आज तक हब्बोत्याईर कहलाते हैं। 5 और याईर मर गया, और उसको कामोन में मिट्टी दी गई।। 6 तब इस्राएलियोंने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया, अर्यात् बाल देवताओं और अश्तोरेत देवियोंऔर आराम, सीदोन, मोआब, अम्मोनियों, और पलिश्तियोंके देवताओं की उपासना करने लगे; और यहोवा को त्याग दिया, और उसकी उपासना न की। 7 तब यहोवा का क्रोध इस्राएल पर भड़का, और उस ने उन्हें पलिश्तियोंऔर अम्मोनियोंके अधीन कर दिया, 8 और उस वर्ष थे इस्राएलियोंको सताते और पीसते रहे। वरन यरदन पार एमोरियोंके देश गिलाद में रहनेवाले सब इस्राएलियोंपर अठारह वर्ष तक अन्धेर करते रहे। 9 अम्मोनी यहूदा और बिन्यामीन से और एप्रैम के घराने से लड़ने को यरदन पार जाते थे, यहां तक कि इस्राएल बड़े संकट में पड़ गया। 10 तब इस्राएलियोंने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, कि हम ने जो अपके परमेश्वर को त्यागकर बाल देवताओं की उपासना की है, यह हम ने तेरे विरूद्ध महा पाप किया है। 11 यहोवा ने इस्राएलियोंसे कहा, क्या मैं ने तुम को मिस्रियों, एमोरियों, अम्मोनियों, और पलिश्तियोंके हाथ से न छुड़ाया या? 12 फिर जब सीदोनी, और अमालेकी, और माओनी लोगोंने तुम पर अन्धेर किया; और तुम ने मेरी दोहाई दी, तब मैं ने तुम को उनके हाथ से भी न छुड़ाया? 13 तौभी तुम ने मुझे त्यागकर पराथे देवताओं की उपासना की है; इसलिथे मैं फिर तुम को न छुड़ाऊंगा। 14 जाओ, अपके माने हुए देवताओं की दोहाई दो; तुम्हारे संकट के समय वे ही तुम्हें छुड़ाएं। 15 इस्राएलियोंने यहोवा से कहा, हम ने पाप किया है; इसलिथे जो कुछ तेरी दृष्टि में भला हो वही हम से कर; परन्तु अभी हमें छुड़ा। 16 तब वे पराए देवताओं को अपके मध्य में से दूर करके यहोवा की उपासना करने लगे; और वह इस्राएलियोंके कष्ट के कारण खेदित हुआ।। 17 तब अम्मोनियोंने इकट्ठे होकर गिलाद में अपके डेरे डाले; और इस्राएलियोंने भी इकट्ठे होकर मिस्पा में अपके डेरे डाले। 18 तब गिलाद के हाकिम एक दूसरे से कहने लगे, कौन पुरूष अम्मोनियोंसे संग्राम आरम्भ करेगा? वही गिलाद के सब निवासियोंका प्रधान ठहरेगा।।
1 यिप्तह नाम गिलादी बड़ा शूरवीर या, और वह वेश्या का बेटा या; और गिलाद से यिप्तह उत्पन्न हुआ या। 2 गिलाद की स्त्री के भी बेटे उत्पन्न हुए; और जब वे बड़े हो गए तब यिप्तह को यह कहकर निकाल दिया, कि तू तो पराई स्त्री का बेटा है; इस कारण हमारे पिता के घराने में कोई भाग न पाएगा। 3 तब यिप्तह अपके भाइयोंके पास से भागकर तोब देश में रहने लगा; और यिप्तह के पास लुच्चे मनुष्य इकट्ठे हो गए; और उसके संग फिरने लगे।। 4 और कुछ दिनोंके बाद अम्मोनी इस्राएल से लड़ने लगे। 5 जब अम्मोनी इस्राएल से लड़ते थे, तब गिलाद के वृद्ध लोग यिप्तह को तोब देश से ले आने को गए; 6 और यिप्तह से कहा, चलकर हमारा प्रधान हो जा, कि हम अम्मोनियोंसे लड़ सकें। 7 यिप्तह ने गिलाद के वृद्ध लोगोंसे कहा, क्या तुम ने मुझ से बैर करके मुझे मेरे पिता के घर से निकाल न दिया या? फिर अब संकट में पड़कर मेरे पास क्योंआए हो? 8 गिलाद के वृद्ध लोगोंने यिप्तह से कहा, इस कारण हम अब तेरी ओर फिरे हैं, कि तू हमारे संग चलकर अम्मोनियोंसे लड़े; तब तू हमारी ओर से गिलाद के सब निवासियोंका प्रधान ठहरेगा। 9 यिप्तह ने गिलाद के वृद्ध लोगोंसे पूछा, यदि तुम मुझे अम्मोनियोंसे लड़ने को फिर मेरे घर ले चलो, और यहोवा उन्हें मेरे हाथ कर दे, तो क्या मैं तुम्हारा प्रधान ठहरूंगा? 10 गिलाद के वृद्ध लोगोंने यिप्तह से कहा, निश्चय हम तेरी इस बाते के अनुसार करेंगे; यहोवा हमारे और तेरे बीच में इन वचनोंका सुननेवाला है। 11 तब यिप्तह गिलाद के वृद्ध लोगोंके संग चला, और लोगोंने उसको अपके ऊपर मुखिया और प्रधान ठहराया; और यिप्तह ने अपक्की सब बातें मिस्पा में यहोवा के सम्मुख कह सुनाई।। 12 तब यिप्तह ने अम्मोनियोंके राजा के पास दूतोंसे यह कहला भेजा, कि तुझे मुझ से क्या काम, कि तू मेरे देश में लड़ने को आया है? 13 अम्मोनियोंके राजा ने यिप्तह के दूतोंसे कहा, कारण यह है, कि जब इस्राएली मिस्र से आए, तब अर्नोन से यब्बोक और यरदन तक जो मेरा देश या उसको उन्होंने छीन लिया; इसलिथे अब उसको बिना फगड़ा किए फेर दे। 14 तब यिप्तह ने फिर अम्मोनियोंके राजा के पास यह कहने को दूत भेजे, 15 कि यिप्तह तुझ से योंकहता है, कि इस्राएल ने न तो मोआब का देश ले लिया और न अम्मोनियोंका, 16 वरन जब वे मिस्र से निकले, और इस्राएली जंगल में होते हुए लाल समुद्र तक चले, और कादेश को आए, 17 तब इस्राएल ने एदोम के राजा के पास दूतोंसे यह कहला भेजा, कि मुझे अपके देश में होकर जाने दे; और एदोम के राजा ने उनकी न मानी। इसी रीति उस ने मोआब के राजा से भी कहला भेजा, और उस ने भी न माना। इसलिथे इस्राएल कादेश में रह गया। 18 तब उस ने जंगल में चलते चलते एदोम और मोआब दोनोंदेशोंके बाहर बाहर घूमकर मोआब देश की पूर्व ओर से आकर अर्नोन के इसी पार अपके डेरे डाले; और मोआब के सिवाने के भीतर न गया, क्योंकि मोआब का सिवाना अर्नोन या। 19 फिर इस्राएल ने एमोरियोंके राजा सीहोन के पास जो हेश्बोन का राजा या दूतोंसे यह कहला भेजा, कि हमें अपके देश में से होकर हमारे स्यान को जाने दे। 20 परन्तु सीहोन ने इस्राएल का इतना विश्वास न किया कि उसे अपके देश में से होकर जाने देता; वरन अपक्की सारी प्रजा को इकट्ठी कर अपके डेरे यहस में खड़े करके इस्राएल से लड़ा। 21 और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने सीहोन को सारी प्रजा समेत इस्राएल के हाथ में कर दिया, और उन्होंने उनको मार लिया; इसलिथे इस्राएल उस देश के निवासी एमोरियोंके सारे देश का अधिक्कारनेी हो गया। 22 अर्यात् वह अनौन से यब्बोक तक और जंगल से ले यरदन तक एमोरियोंके सारे देश का अधिक्कारनेी हो गया। 23 इसलिथे अब इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अपक्की इस्राएली प्रजा के साम्हने से एमोरियोंको उनके देश से निकाल दिया है; फिर क्या तू उसका अधिक्कारनेी होने पाएगा? 24 क्या तू उसका अधिक्कारनेी न होगा, जिसका तेरा कमोश देवता तुझे अधिक्कारनेी कर दे? इसी प्रकार से जिन लोगोंको हमारा परमेश्वर यहोवा हमारे साम्हने से निकाले, उनके देश के अधिक्कारनेी हम होंगे। 25 फिर क्या तू मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक से कुछ अच्छा है? क्या उस ने कभी इस्राएलियोंसे कुछ भी फगड़ा किया? क्या वह उन से कभी लड़ा? 26 जब कि इस्राएल हेश्बोन और उसके गावोंमें, और अरोएल और उसके गावोंमें, और अर्नोन के किनारे के सब नगरोंमें तीन सौ वर्ष से बसा है, तो इतने दिनोंमें तुम लोगोंने उसको क्योंनहीं छुड़ा लिया? 27 मैं ने तेरा अपराध नहीं किया; तू ही मुझ से युद्ध छेड़कर बुरा व्यवहार करता है; इसलिथे यहोवा जो न्यायी है, वह इस्राएलियोंऔर अम्मोनियोंके बीच में आज न्याय करे। 28 तौभी अम्मोनियोंके राजा ने यिप्तह की थे बातें न मानीं जिनको उस ने कहला भेजा या।। 29 तब यहोवा का आत्मा यिप्तह में समा गया, और वह गिलाद और मनश्शे से होकर गिलाद के मिस्पे में आया, और गिलाद के मिस्पे से होकर अम्मोनियोंकी ओर चला। 30 और यिप्तह ने यह कहकर यहोवा की मन्नत मानी, कि यदि तू नि:सन्देह अम्मोनियोंको मेरे हाथ में कर दे, 31 तो जब मैं कुशल के साय अम्मोनियोंके पास से लौट आऊं तब जो कोई मेरे भेंट के लिथे मेरे घर के द्वार से निकले वह यहोवा का ठहरेगा, और मैं उसे होमबलि करके चढ़ाऊंगा। 32 तब यिप्तह अम्मोनियोंसे लड़ने को उनकी ओर गया; और यहोवा ने उनको उसके हाथ में कर दिया। 33 और वह अरोएर से ले मिन्नीत तक, जो बीस नगर हैं, वरन आबेलकरामीम तक जीतते जीतते उन्हें बहुत बड़ी मार से मारता गया। और अम्मोनी इस्राएलियोंसे हार गए।। 34 जब यिप्तह मिस्पा को अपके घर आया, तब उसकी बेटी डफ बजाती और नाचक्की हुई उसकी भेंट के लिथे निकल आई; वह उसकी एकलौती यी; उसको छोड़ उसके न तो कोई बेटा या और कोई न बेटी। 35 उसको देखते ही उस ने अपके कपके फाड़कर कहा, हाथ, मेरी बेटी! तू ने कमर तोड़ दी, और तू भी मेरे कष्ट देनेवालोंमें हो गई है; क्योंकि मैं ेने यहोवा को वचन दिया है, और उसे टाल नहीं सकता। 36 उस ने उस से कहा, हे मेरे पिता, तू ने जो यहोवा को वचन दिया है, तो जो बात तेरे मुंह से निकली है उसी के अनुसार मुझ से बर्ताव कर, क्योंकि यहोवा ने तेरे अम्मोनी शत्रुओं से तेरा पलटा लिया है। 37 फिर उस ने अपके पिता से कहा, मेरे लिथे यह किया जाए, कि दो महीने तक मुझे छोड़े रह, कि मैं अपक्की सहेलियोंसहित जाकर पहाड़ोंपर फिरती हुई अपक्की कुंवारीपन पर रोती रहूं। 38 उस ने कहा, जा। तब उस ने उसे दो महिने की छुट्टी दी; इसलिथे वह अपक्की सहेलियोंसहित चक्की गई, और पहाड़ोंपर अपक्की कुंवारीपन पर रोती रही। 39 दो महीने के बीतने पर वह अपके पिता के पास लौट आई, और उस ने उसके विषय में अपक्की मानी हुइ मन्नत को पूरी किया। और उस कन्या ने पुरूष का मुंह कभी न देखा या। इसलिथे इस्राएलियोंमें यह रीति चक्की 40 कि इस्राएली स्त्रियां प्रतिवर्ष यिप्तह गिलादी की बेटी का यश गाने को वर्ष में चार दिन तक जाया करती यीं।।
1 तब एप्रैमी पुरूष इकट्ठे होकर सापोन को जाकर यिप्तह से कहने लगे, कि जब तू अम्मोनियोंसे लड़ने को गया तब हमें संग चलने को क्योंनहीं बुलवाया? हम तेरा घर तुझ समेत जला देंगे। 2 यिप्तह ने उन से कहा, मेरा और मेरे लोगोंका अम्मोनियोंसे बड़ा फगड़ा हुआ या; और जब मैं ने तुम से सहाथता मांगी, तब तुम ने मुझे उनके हाथ से नहीं बचाया। 3 तब यह देखकर कि तुम मुझे नहीं बचाते मैं अपके प्राणोंको हथेली पर रखकर अम्मोनियोंके विरूद्ध चला, और यहोवा ने उनको मेरे हाथ में कर दिया; फिर तुम अब मुझ से लड़ने को क्योंचढ़ आए हो? 4 तब यिप्तह गिलाद के सब पुरूषोंको इकट्ठा करके एप्रैम से लड़ा और एप्रैम जो कहता या, कि हे गिलादियो, तुम तो एप्रैम और मनश्शे के बीच रहनेवाले एप्रैमियोंके भगोड़े हो, और गिलादियोंने उनको मार लिया। 5 और गिलादियोंने यरदन का घाट उन से पहिले अपके वश में कर लिया। और जब कोई एप्रैमी भगोड़ा कहता, कि मुझे पार जाने दो, तब गिलाद के पुरूष उस से पूछते थे, क्या तू एप्रैमी है? और यदि वह कहता नहीं, 6 तो वह उस से कहते, अच्छा, शिब्बोलेत कह, और वह कहता सिब्बोलेत, क्योंकि उस से वह ठीक बोला नहीं जाता य; तब वे उसको पकड़कर यरदन के घाट पर मार डालते थे। इस प्राकर उस समय बयालीस हजार एप्रैमी मारे गए।। 7 यिप्तह छ: वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। तब यिप्तह गिलादी मर गया, और उसको गिलाद के किसी नगर में मिट्टी दी गई।। 8 उसके बाद बेतलेहेम का निवासी इबसान इस्राएल का न्याय करने लगा। 9 और उसके तीस बेटे हुए; और उस ने अपक्की तीस बेटियां बाहर ब्याह दीं, और बाहर से अपके बेटोंका ब्याह करके तीस बहू ले आया। और वह इस्राएल का न्याय सात वर्ष तक करता रहा। 10 तब इबसान मर गया, और उसको बेतलेहेम में मिट्टी दी गई।। 11 उसके बाद जबूलूनी एलोन इस्राएल का न्याय करने लगा; और वह इस्राएल का न्याय दस वर्ष तक करता रहा। 12 तब एलोन जबूलूनी मर गया, और उसको जबूलून के देश के अय्यालोन में मिट्टी दी गई।। 13 उसके बाद हिल्लेल का पुत्र पिरातोनी अब्दोन इस्राएल का न्याय करने लगा। 14 और उसके चालीस बेटे और तीस पोते हुए, जो गदहियोंके सत्तर बच्चोंपर सवार हुआ करते थे। वह आठ वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। 15 तब हिल्लेल का पुत्र पिरातोनी अब्दोन मर गया, और उसको एप्रैम के देश के पिरातोन में, जो अमालेकियोंके पहाड़ी देश में है, मिट्टी दी गई।।
1 और इस्राएलियोंने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया; इसलिथे यहोवा ने उनको पलिश्तियोंके वश में चालीस वर्ष के लिथे रखा।। 2 दानियोंके कुल का सोरावासी मानोह नाम एक पुरूष या, जिसकी पत्नी के बांफ होने के कारण कोई पुत्र न या। 3 इस स्त्री को यहोवा के दूत ने दर्शन देकर कहा, सुन, बांफ होने के कारण तेरे बच्चा नहीं; परन्तु अब तू गर्भवती होगी और तेरे बेटा होगा। 4 इसलिथे अब सावधान रह, कि न तो तू दाखमधु वा और किसी भांति की मदिरा पीए, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाए, 5 क्योंकि तू गर्भवती होगी और तेरे एक बेटा उत्पन्न होगा। और उसके सिर पर छूरा न फिरे, क्योंकि वह जन्म ही से परमेश्वर का नाजीर रहेगा; और इस्राएलियोंको पलिश्तियोंके हाथ से छुड़ाने में वहीं हाथ लगाएगा। 6 उस स्त्री ने अपके पति के पास जाकर कहा, परमेश्वर का एक जन मेरे पास आया या जिसका रूप परमेश्वर के दूत का सा अति भययोग्य या; और मैं ने उस से न पूछा कि तू कहां का है? और न उस ने मुझे अपना नाम बताया; 7 परन्तु उस ने मुझ से कहा, सुन तू गर्भवती होगी और तेरे एक बेटा होगा; इसलिथे अब न तो दाखमधु वा और किसी भांति की मदिरा पीना, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाना, क्योंकि वह लड़का जन्म से मरण के दिन तक परमेश्वर का नाजीर रहेगा। 8 तब मानोह ने यहोवा से यह बिनती की, कि हे प्रभु, बिनती सुन, परमेश्वर का वह जन जिसे तू ने भेजा या फिर हमारे पास आए, और हमें सिखलाए कि जो बालक उत्पन्न होनेवाला है उस से हम क्या क्या करें। 9 मानोह की यह बात परमेश्वर ने सुन ली, इसलिथे जब वह स्त्री मैदान में बैठी यी, और उसका पति मानोह उसके संग न या, तब परमेश्वर का वही दूत उसके पास आया। 10 तब उस स्त्री ने फट दौड़कर अपके पति को यह समाचार दिया, कि जो पुरूष उस दिन मेरे पास आया या उसी ने मुझे दर्शन दिया है। 11 यह सुनते ही मानोह उठकर अपक्की पत्नी के पीछे चला, और उस पुरूष के पास आकर पूछा, कि क्या तू वही पुरूष है जिसने इस स्त्री से बातें की यीं? उस ने कहा, मैं वही हूं। 12 मानोह ने कहा, जब तेरे वचन पूरे हो जाएं तो, उस बालक का कैसा ढंग और उसका क्या काम होगा? 13 यहोवा के दूत ने मानोह से कहा, जितनी वस्तुओं की चर्चा मैं ने इस स्त्री से की यी उन सब से यह पके रहे। 14 यह कोई वस्तु जो दाखलता से उत्पन्न होती है न खाए, और न दाखमधु वा और किसी भंाति की मदिरा पीए, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाए; जो जो आज्ञा मैं ने इसको दी यी उसी को माने। 15 मानोह ने यहोवा के दूत से कहा, हम तुझ को रोक लें, कि तेरे लिथे बकरी का एक बच्चा पकाकर तैयार करें। 16 यहोवा के दूत ने मानोह से कहा, चाहे तू मुझे रोक रखे, परन्तु मैं तेरे भोजन में से कुछ न खाऊंगा; और यदि तू होमबलि करना चाहे तो यहोवा ही के लिथे कर। (मानोह तो न जानता या, कि यह यहोवा का दूत है।) 17 मानोह ने यहोवा के दूत से कहा, अपना नाम बता, इसलिथे कि जब तेरी बातें पूरी होंतब हम तेरा आदरमान कर सकें। 18 यहोवा के दूत ने उस से कहा, मेरा नाम तो अद्भुत है, इसलिथे तू उसे क्योंपूछता है? 19 तब मानोह ने अन्नबलि समेत बकरी का एक बच्चा लेकर चट्टान पर यहोवा के लिथे चढ़ाया तब उस दूत ने मानोह और उसकी पत्नी के देखते देखते एक अद्भुत काम किया। 20 अर्यात् जब लौ उस वेदी पर से आकाश की ओर उठ रही यी, तब यहोवा का दूत उस वेदी की लौ में होकर मानोह और उसकी पत्नी के देखते देखते चढ़ गया; तब वे भूमि पर मुंह के बल गिरे। 21 परन्तु यहोवा के दूत ने मानोह और उसकी पत्नी को फिर कभी दर्शन न दिया। तब मानोह ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत या। 22 तब मानोह ने अपक्की पत्नी से कहा, हम निश्चय मर जाएंगे, क्योंकि हम ने परमेश्वर का दर्शन पाया है। 23 उसकी पत्नी ने उस से कहा, यदि यहोवा हमें मार डालना चाहता, तो हमारे हाथ से होमबलि और अन्नबलि ग्रहण न करता, और न वह ऐसी सब बातें हम को दिखाता, और न वह इस समय हमें ऐसी बातें सुनाता। 24 और उस स्त्री के एक बेटा उत्पन्न हुआ, और उसका नाम शिमशोन रखा; और वह बालक बढ़ता गया, और यहोवा उसको आशीष देता रहा। 25 और यहोवा का आत्मा सोरा और एशताओल के बीच महनदान में उसको उभारने लगा।।
1 शिमशोन तिम्ना को गया, और तिम्ना में एक पलिश्तिी स्त्री को देखा। 2 तब उस ने जाकर अपके माता पिता से कहा, तिम्ना में मैं ने एक पलिश्तिी स्त्री को देखा है, सो अब तुम उस से मेरा ब्याह करा दो। 3 उसके माता पिता ने उस से कहा, क्या तेरे धाइयोंकी बेटियोंमें, वा हमारे सब लोगोंमें कोई स्त्री नहीं है, कि तू खतनाहीन पलिश्तियोंमें से स्त्री ब्याहने चाहता है? शिमशोन ने अपके पिता से कहा, उसी से मेरा ब्याह करा दे; क्योंकि मुझे वही अच्छी लगती है। 4 उसके माता पिता न जानते थे कि यह बात यहोवा की ओर से होती है, कि वह पलिश्तियोंके विरूद्ध दांव ढूंढता है। उस समय तो पलिश्ती इस्राएल पर प्रभुता करते थे।। 5 तब शिमशोन अपके माता पिता को संग ले तिम्ना को चलकर तिम्ना की दाख की बारी के पास पहुंचा, वहां उसके साम्हने एक जवान सिंह गरजने लगा। 6 तब यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा, और यद्यपि उसके हाथ में कुछ न या, तौभी उस ने उसको ऐसा फाड़ डाला जैसा कोई बकरी का बच्चा फाड़े। अपना यह काम उसने अपके पिता वा माता को न बतलाया। 7 तब उस ने जाकर उस स्त्री से बातचीत की; और वह शिमशोन को अच्छी लगी। 8 कुछ दिनोंके बीतने पर वह उसे लाने को लौट चला; और उस सिंह की लोय देखने के लिथे मार्ग से मुड़ गया? तो क्या देखा कि सिंह की लोय में मधुमक्खियोंका एक फुण्ड और मधु भी है। 9 तब वह उस में से कुछ हाथ में लेकर खाते खाते अपके माता पिता के पास गया, और उनको यह बिना बताए, कि मैं ने इसको सिंह की लोय में से निकाला है, कुछ दिया, और उन्होंने भी उसे खाया। 10 तब उसका पिता उस स्त्री के यहां गया, और शिमशोन न जवानोंकी रीति के अनुसार वहां जेवनार की। 11 उसको देखकर वे उसके संग रहने के लिथे तीस संगियोंको ले आए। 12 शिमशोन ने उस ने कहा, मैं तुम से एक पकेली कहता हूं; यदि तुम इस जेवनार के सातोंदिनोंके भीतर उसे बूफकर अर्य बता दो, तो मैं तुम को तीस कुरते और तीस जोड़े कपके दूंगा; 13 और यदि तुम उसे न बता सको, तो तुम को मुझे तीस कुर्ते और तीस जोड़े कपके देने पकेंगे। उन्होंने उस से कहा, अपक्की पकेली कह, कि हम उसे सुनें। 14 उस ने उन से कहा, खानेवाले में से खाना, और बलवन्त में से मीठी वस्तु निकली। इस पकेली का अर्य वे तीन दिन के भीतर न बता सके। 15 सातवें दिन उन्होंने शिमशोन की पत्नी से कहा, अपके पति को फुसला कि वह हमें पकेली का अर्य बताए, नहीं तो हम तुझे तेरे पिता के घर समेत आग में जलाएंगे। क्या तुम लोगोंने हमारा धन लेने के लिथे हमारा नेवता किया है? क्या यही बात नहीं है? 16 तब शिमशोन की पत्नी यह कहकर उसके साम्हने रोने लगी, कि तू तो मुझ से प्रेम नहीं, बैर ही रखता है; कि तू ने एक पकेली मेरी जाति के लोगोंसे तो कही है, परन्तु मुझ को उसका अर्य भी नहीं बताया। उस ने कहा, मैं ने उसे अपक्की माता वा पिता को भी नहीं बताया, फिर क्या मैं तुझ को बता दूं? 17 और जेवनार के सातोंदिनोंमें वह स्त्री उसके साम्हने रोती रही; और सातवें दिन जब उस ने उसको बहुत तंग किया; तब उस ने उसको पकेली का अर्य बता दिया। तब उस ने उसे अपक्की जाति के लोगोंको बता दिया। 18 तब सातवें दिन सूर्य डूबने न पाया कि उस नगर के मनुष्योंने शिमशोन से कहा, मधु से अधिक क्या मीठा? और सिंह से अधिक क्या बलवन्त है? उस ने उन से कहा, यदि तुम मेरी कलोर को हल में न जोतते, तो मेरी पकेली को कभी न बूफते।। 19 तब यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा, और उस ने अश्कलोन को जाकर वहां के तीस पूरूषोंको मार डाला, और उनका धन लूटकर तीस जोड़े कपड़ोंको पकेली के बतानेवालोंको दे दिया। तब उसका क्रोध भड़का, और वह अपके पिता के घर गया। 20 और शिमशोन की पत्नी उसके एक संगी को जिस से उस ने मित्र का सा बर्ताव किया या ब्याह दी गई।।
1 परन्तु कुछ दिनोंबाद, गेहूं की कटनी के दिनोंमें, शिमशोन ने बकरी का एक बच्चा लेकर अपक्की ससुराल में जाकर कहा, मैं अपक्की पत्नी के पास कोठरी में जाऊंगा। परन्तु उसके ससुर ने उसे भीतर जाने से रोका। 2 और उसके ससुर ने कहा, मैं सचमुच यह जानता या कि तू उस से बैर ही रखता है, इसलिथे मैं ने उसे तेरे संगी को ब्याह दिया। क्या उसकी छोटी बहिन उस से सुन्दर नहीं है? उसके बदले उसी को ब्याह ले। 3 शिमशोन ने उन लोगोंसे कहा, अब चाहे मैं पलिश्तियोंकी हानि भी करूं, तौभी उनके विषय में निर्दोष ही ठहरूंगा। 4 तब शिमशोन ने जाकर तीन सौ लोमडिय़ां पकड़ीं, और मशाल लेकर दो दो लोमडिय़ोंकी पूंछ एक साय बान्धी, और उनके बीच एक एक मशाल बान्धा। 5 तब मशालोंमें आग लगाकर उस ने लोमडिय़ोंको पलिश्तियोंके खड़े खेतोंमें छोड़ दिया; और पूलियोंके ढेर वरन खड़े खेत और जलपाई की बारियां भी जल गईं। 6 तब पलिश्ती पूछने लगे, यह किस ने किया है? लोगोंने कहा, उस तिम्नी के दामाद शिमशोन ने यह इसलिथे किया, कि उसके ससुर ने उसकी पत्नी उसे संगी को ब्याह दी। तब पलिश्तियोंने जाकर उस पत्नी और उसके पिता दोनोंको आग में जला दिया। 7 शिमशोन ने उन से कहा, तुम जो ऐसा काम करते हो, इसलिथे मैं तुम से पलटा लेकर ही चुप रहूंगा। 8 तब उस ने उनको अति निठुरता के साय बड़ी मार से मार डाला; तब जाकर एताम नाम चट्टान की एक दरार में रहने लगा।। 9 तब पलिश्तियोंने चढ़ाई करके यहूदा देश में डेरे खड़े किए, और लही में फैल गए। 10 तब यहूदी मनुष्योंने उन से पूछा, तुम हम पर क्योंचढ़ाई करते हो? उन्होंने उत्तर दिया, शिमशोन को बान्धने के लिथे चढ़ाई करते हैं, कि जैसे उस ने हम से किया वैसे ही हम भी उस से करें। 11 तब तीन हजार यहूदी पुरूष ऐताम नाम चट्टान की दरार में जाकर शिमशोन से कहने लगे, क्या तू नहीं जानता कि पलिश्ती हम पर प्रभुता करते हैं? फिर तू ने हम से ऐसा क्योंकिया है? उस ने उन से कहा, जैसा उन्होंने मुझ से किया या, वैसा ही मैं ने भी उन से किया है। 12 उन्होंने उस से कहा, हम तुझे बान्धकर पलिश्तियोंके हाथ में कर देने के लिथे आए हैं। शिमशोन ने उन से कहा, मुझ से यह शपय खाओ कि तुम मुझ पर प्रहार न करोगे। 13 उन्होंने कहा, ऐसा न होगा; हम तुझे कसकर उनके हाथ में कर देंगे; परन्तु तुझे किसी रीति मान न डालेंगे। तब वे उसको दो नई रस्सिक्कों बान्धकर उस चट्टान पर ले गए। 14 वह लही तक आ गया या, कि पलिश्ती उसको देखकर ललकारने लगे; तब यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा, और उसकी बांहोंकी रस्सियां आग में जले हुए सन के समान हो गईं, और उसके हाथोंके बन्धन मानोंगलकर टूट पके। 15 तब उसको गदहे के जबड़े की एक नई हड्डी मिली, और उस ने हाथ बढ़ा उसे लेकर एक हजार पुरूषोंको मार डाला। 16 तब शिमशोन ने कहा, गदहे के जबड़े की हड्डी से ढेर के ढेर लग गए, गदहे के जबड़े की हड्डी ही से मैं ने हजार पुरूषोंको मार डाला।। 17 जब वह ऐसा कह चुका, तब उस ने जबड़े की हड्डी फेंक दी और उस स्यान का नाम रामत-लही रखा गया। 18 तब उसको बड़ी प्यास लगी, और उस ने यहोवा को पुकार के कहा तू ने अपके दास से यह बड़ा छुटकारा कराया है; फिर क्या मैं अब प्यासोंमरके उन खतनाहीन लोगोंके हाथ में पडूं? 19 तब परमेश्वर ने लही में ओखली सा गढ़हा कर दिया, और उस में से पानी निकलने लगा; और जब शिमशोन ने पीया, तब उसके जी में जी आया, और वह फिर ताजा दम हो गया। इस कारण उस सोते का नाम एनहक्कोरे रखा गया, वह आज के दिन तक लही में हैं। 20 शिमशोन तो पलिश्तियोंके दिनोंमें बीस वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा।।
1 तब शिमशोन अज्जा को गया, और वहां एक वेश्या को देखकर उसके पास गया। 2 जब अज्जियोंको इसका समाचार मिला कि शिमशोन यहां आया है, तब उन्होंने उसको घेर लिया, और रात भर नगर के फाटक पर उसकी घात में लगे रहे; और यह कहकर रात भर चुपचाप रहे, कि बिहान को भोर होते ही हम उसको घात करेंगे। 3 परन्तु शिमशोन आधी रात तक पड़ा रह कर, आधी रात को उठकर, उस ने नगर के फाटक के दोनोंपल्लोंऔर दोनो बाजुओं को पकड़कर बेंड़ोंसमेत उखाड़ लिया, और अपके कन्घोंपर रखकर उन्हें उस पहाड़ की चोटी पर ले गया, जो हेब्रोन के साम्हने है।। 4 इसके बाद वह सोरेक नाम नाले में रहनेवाली दलीला नाम एक स्त्री से प्रीति करने लगा। 5 तब पलिश्तियोंके सरदारोंने उस स्त्री के पास जाके कहा, तू उसको फुसलाकर बूफ ले कि उसके महाबल का भेद क्या है, और कौन उपाय करके हम उस पर ऐसे प्रबल हों, कि उसे बान्धकर दबा रखें; तब हम तुझे ग्यारह ग्यारह सौ टुकड़े चान्दी देंगे। 6 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, मुझे बता दे कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है, और किसी रीति से कोई तुझे बान्धकर दबा रख सके। 7 शिमशोन ने उस से कहा, यदि मैं सात ऐसी नई नई तातोंसे बान्धा जाऊं जो सुखाई न गई हों, तो मेरा बल घट जाथेगा, और मैं साधारण मनुष्य सा हो जाऊंगा। 8 तब पलिश्तियोंके सरदार दलीला के पास ऐसी नई नई सात तातें ले गए जो सुखाई न गई यीं, और उन से उस ने शिमशोन को बान्धा। 9 उसके पास तो कुछ मनुष्य कोठरी में घात लगाए बैठे थे। तब उस ने उस से कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! तब उस ने तांतोंको ऐसा तोड़ा जैसा सन का सूत आग में छूते ही टूट जाता है। और उसके बल का भेद न खुला। 10 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, सुन, तू ने तो मुझ से छल किया, और फूठ कहा है; अब मुझे बता दे कि तू किस वस्तु से बन्ध सकता है। 11 उस ने उस से कहा, यदि मैं ऐसी नई नई रस्सिक्कों जो किसी काम में न आई होंकसकर बान्धा जाऊं, तो मेरा बल घट जाएगा, और मैं साधारण मनुष्य के समान हो जाऊंगा। 12 तब दलीला ने नई नई रस्सियां लेकर और उसको बान्धकर कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! कितने मनुष्य तो उस कोठरी में धात लगाए हुए थे। तब उस ने उनको सूत की नाईं अपक्की भुजाओं पर से तोड़ डाला। 13 तब दलीला ने शिमशोन से कहा, अब तक तू मुझ से छल करता, और फूठ बोलता आया है; अब मुझे बता दे कि तू काहे से बन्ध सकता है? उस ने कहा यदि तू मेरे सिर की सातोंलटें ताने में बुने तो बन्ध सकूंगा। 14 सो उस ने उसे खूंटी से जकड़ा। तब उस से कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! तब वह नींद से चौंक उठा, और खूंटी को धरन में से उखाड़कर उसे ताने समेत ले गया। 15 तब दलीला ने उस से कहा, तेरा मन तो मुझ से नहीं लगा, फिर तू क्योंकहता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं? तू ने थे तीनोंबार मुझ से छल किया, और मुझे नहीं बताया कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है। 16 सो जब उस ने हर दिन बातें करते करते उसको तंग किया, और यहां तक हठ किया, कि उसके नाकोंमें दम आ गया, 17 तब उस ने अपके मन का सारा भेद खोलकर उस से कहा, मेरे सिर पर छुरा कभी नहीं फिरा, क्योंकि मैं मां के पेट ही से परमेश्वर का नाजीर हूं, यदि मैं मूड़ा जाऊं, तो मेरा बल इतना घट जाएगा, कि मैं साधारण मनुष्य सा हो जाऊंगा। 18 यह देखकर, कि उस ने अपके मन का सारा भेद मुझ से कह दिया है, दलीला ने पलिश्तियोंके सरदारोंके पास कहला भेजा, कि अब की बार फिर आओ, क्योंकि उस ने अपके मन का सब भेद मुझे बता दिया है। तब पलिश्तियोंके सरदार हाथ में रूपया लिए हुए उसके पास गए। 19 तब उस ने उसको अपके घुटनोंपर सुला रखा; और एक मनुष्य बुलवाकर उसके सिर की सातोंलटें मुण्डवा डालीं। और वह उसको दबाने लगी, और वह निर्बल हो गया। 20 तब उस ने कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! तब वह चौंककर सोचने लगा, कि मैं पहिले की नाईं बाहर जाकर फटकूंगा। वह तो न जानता या, कि यहोवा उसके पास से चला गया है। 21 तब पलिश्तियोंने उसको पकड़कर उसकी आंखें फोड़ डालीं, और उसे अज्जा को ले जाके पीतल की बेडिय़ोंसे जकड़ दिया; और वह बन्दीगृह में चक्की पीसने लगा। 22 उसके सिर के बाल मुण्ड जाने के बाद फिर बढ़ने लगे।। 23 तब पलिश्तियोंके सरदार अपके दागोन नाम देवता के लिथे बड़ा यज्ञ, और आनन्द करने को यह कहकर इकट्ठे हुए, कि हमारे देवता ने हमारे शत्रु शिमशोन को हमारे हाथ में कर दिया है। 24 और जब लोगोंने उसे देखा, तब यह कहकर अपके देवता की स्तुति की, कि हमारे देवता ने हमारे शत्रु और हमारे देश के नाश करनेवाले को, जिस ने हम में से बहुतोंको मार भी डाला, हमारे हाथ में कर दिया है। 25 जब उनका मन मगन हो गया, तब उन्होंने कहा, शिमशोन को बुलवा लो, कि वह हमारे लिथे तमाशा करे। इसलिथे शिमशोन बन्दीगृह में से बुलवाया गया, और उनके लिथे तमाशा करने लगा, और खम्भोंके बीच खड़ा कर दिया गया। 26 तब शिमशोन ने उस लड़के से जो उसका हाथ पकड़े या कहा, मुझे उन खम्भोंको जिन से घर सम्भला हुआ है छूने दे, कि मैं उस पर टेक लगाऊं। 27 वह घर तो स्त्री पुरूषोंसे भरा हुआ या; पलिश्तियोंके सब सरदार भी वहां थे, और छत पर कोई तीन हजार सत्री पुरूष थे, जो शिमशोन को तमाशा करते हुए देख रहे थे। 28 तब शिमशोन ने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, कि हे प्रभु यहोवा, मेरी सुधि ले; हे परमेश्वर, अब की बार मुझे बल दे, कि मैं पलिश्तियोंसे अपक्की दोनोंआंखोंका एक ही पलटा लूं। 29 तब शिमशोन ने उन दोनोंबीचवाले खम्भोंको जिन से घर सम्भला हुआ या पकड़कर एक पर तो दाहिने हाथ से और दूसरे पर बाएं हाथ से बल लगा दिया। 30 और शिमशोन ने कहा, पलिश्तियोंके संग मेरा प्राण भी जाए। और वह अपना सारा बल लगाकर फुका; तब वह घर सब सरदारोंऔर उस में से सारे लोगोंपर गिर पड़ा। सो जिनको उस ने मरते समय मार डाला वे उन से भी अधिक थे जिन्हें उस ने अपके जीवन में मार डाला या। 31 तब उसके भाई और उसके पिता के सारे घराने के लोग आए, और उसे उठाकर ले गए, और सोरा और एशताओल के मध्य अपके पिता मानोह की कबर में मिट्टी दी। उसने इस्राएल का न्याय बीस वर्ष तक किया या।
1 एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका नाम एक पुरूष या। 2 उस ने अपक्की माता से कहा, जो ग्यारह सौ टुकड़े चान्दी तुझ से ले लिए गए थे, जिनके विषय में तू ने मेरे सुनते भी शाप दिया या, वे मेरे पास हैं; मैं ने ही उनको ले लिया या। उसकी माता ने कहा, मेरे बेटे पर यहोवा की ओर से आशीष होए। 3 जब उस ने वे ग्यारह सौ टुकड़े चान्दी अपक्की माता को फेर दिए; तब माता ने कहा, मैं अपक्की ओर से अपके बेटे के लिथे यह रूपया यहोवा को निश्चय अर्पण करती हूं ताकि उस से एक मूरत खोदकर, और दूसरी ढालकर बनाई जाए, सो अब मैं उसे तुझ को फेर देती हूं। 4 जब उस ने वह रूपया अपक्की माता को फेर दिया, तब माता ने दो सौ टुकड़े ढलवैयोंको दिए, और उस ने उन से एक मूत्तिर् खोदकर, और दूसरी ढालकर बनाई; और वे मीका के घर में रहीं। 5 मीका के पास एक देवस्यान या, तब उस ने एक एपोद, और कई एक गृहदेवता बनवाए; और अपके एक बेटे का संस्कार करके उसे अपना पुरोहित ठहरा लियां 6 उन दिनोंमें इस्राएलियोंका कोई राजा न या; जिसको जो ठीक सूफ पड़ता या वही वह करता या।। 7 यहूदा के कुल का एक जवान लेवीय यहूदा के बेतलेहेम में परदेशी होकर रहता या। 8 वह यहूदा के बेतलेहेम नगर से इसिलिथे निकला, कि जहां कहीं स्यान मिले वहां जा रहे। चलते चलते वह एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर पर आ निकला। 9 मीका ने उस से पूछा, तू कहां से आता है? उस ने कहा, मैं तो यहूदा के बेतलेहेम से आया हुआ एक लेवीय हूं, और इसलिथे चला जाता हूं, कि जहां कहीं ठिकाना मुझे मिले वहीं रहूं। 10 मीका ने उस से कहा, मेरे संग रहकर मेरे लिथे पिता और पुरोहित बन, और मैं तुझे प्रति वर्ष दस टुकड़े रूपे, और एक जोडा कपड़ा, और भोजनवस्तु दिया करूंगा; तब वह लेवीय भीतर गया। 11 और वह लेवीय उस पुरूष के संग रहने को प्रसन्न हुआ; और वह जवान उसके साय बेटा सा बना रहा। 12 तब मीका ने उस लेवीय का संस्कार किया, और वह जवान उसका पुरोहित होकर मीका के घर में रहने लगा। 13 और मीका सोचता या, कि अब मैं जानता हूं कि यहोवा मेरा भला करेगा, क्योंकि मैं ने एक लेवीय को अपना पुरोहित कर रखा है।।
1 उन दिनोंमें इस्राएलियोंका कोई राजा न या। और उन्हीं दिनोंमें दानियोंके गोत्र के लोग रहने के लिथे कोई भाग ढूंढ़ रहे थे; क्योंकि इस्राएली गोत्रोंके बीच उनका भाग उस समय तक न मिला या। 2 तब दानियोंने अपके सब कुल में से पांच शूरवीरोंको सोरा और एशताओल से देश का भेद लेने और उस में देख भाल करने के लिथे यह कहकर भेज दिया, कि जाकर देश में देख भाल करो। इसलिथे वे एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर तक जाकर वहां टिक गए। 3 जब वे मीका के घर के पास आए, तब उस जवान लेवीय का बोल पहचाना; इसलिथे वहां मुड़कर उस से पूछा, तुझे यहां कौन ले आया? और तू यहां क्या करता है? और यहां तेरे पास क्या है? 4 उस ने उन से कहा, मीका ने मुझ से ऐसा ऐसा व्यवहार किया है, और मुझे नौकर रखा है, और मैं उसका पुरोहित हो गया हूं। 5 उन्होंने उस से कहा, परमेश्वर से सलाह ले, कि हम जान लें कि जो यात्रा हम करते हैं वह सफल होगी वा नहीं। 6 पुरोहित ने उन से कहा, कुशल से चले जाओ। जो यात्रा तुम करते हो वह ठीक यहोवा के साम्हने है। 7 तब वे पांच मनुष्य चल निकले, और लैश को जाकर वहां के लोगोंको देखा कि सीदोनियोंकी नाईं निडर, बेखटके, और शान्ति से रहते हैं; और इस देश का कोई अधिक्कारनेी नहीं है, जो उन्हें किसी काम में रोके, और थे सीदोनियोंसे दूर रहते हैं, और दूसरे मनुष्योंसे कुछ व्यवहार नहीं रखते। 8 तब वे सोरा और एश्ताओल को अपके भाइयोंके पास गए, और उनके भाइयोंने उन से पूछा, तुम क्या समाचार ले आए हो? 9 उन्होंने कहा, आओ, हम उन लोगोंपर चढ़ाई करें; क्योंकि हम ने उस देश को देखा कि वह बहुत अच्छा है। तुम क्योंचुपचाप रहते हो? वहां चलकर उस देश को अपके वंश में कर लेने में आलस न करो। 10 वहां पहुंचकर तुम निडर रहते हुए लोगोंको, और लम्बा चौड़ा देश पाओगे; और परमेश्वर ने उसे तुम्हारे हाथ में दे दिया है। वह ऐसा स्यान है जिस में पृय्वी भर के किसी पदार्य की घटी नहीं है।। 11 तब वहां से अर्यात् सोरा और एशताओल से दानियोंके कुल के छ: सौ पुरूषोंने युद्ध के हयियार बान्धकर प्रस्यान किया। 12 उन्होंने जाकर यहूदा देश के किर्य्यत्यारीम नगर में डेरे खड़े किए। इस कारण उस स्यान का नाम महनेदान आज तक पड़ा है, वह तो किर्य्यत्यारीम के पश्चिम की ओर है। 13 वहां से वे आगे बढ़कर एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर के पास आए। 14 तब जो पांच मनुष्य लैश के देश का भेद लेने गए थे, वे अपके भाइयोंसे कहने लगे, क्या तुम जानते हो कि इन घरोंमें एक एपोद, कई एक गृहदेवता, एक खुदी और एक ढली हुई मूरत है? इसलिथे अब सोचो, कि क्या करना चाहिथे। 15 वे उधर मुड़कर उस जवान लेवीय के घर गए, जो मीका का घर या, और उसका कुशल झेम पूछा। 16 और वे छ: सौ दानी पुरूष फाटक में हयियार बान्धे हुए खड़े रहे। 17 और जो पांच मनुष्य देश का भेद लेने गए थे, उन्होंने वहां घुसकर उस खुदी हुई मूरत, और एपोद, और गृहदेवताओं, और ढली हुई मूरत को ले लिया, और वह पुरोहित फाटक में उन हयियार बान्धे हुए छ: सौ पुरूषोंके संग खड़ा या। 18 जब वे पांच मनुष्य मीका के घर में घुसकर खुदी हुई मूरत, एपोद, गृहदेवता, और ढली हुई मूरत को ले आए थे, तब पुरोहित ने उन से पूछा, यह तुम क्या करते हो? 19 उन्होंने उस से कहा, चुप रह, अपके मुंह को हाथ से बन्दकर, और हम लोगोंके संग चलकर, हमारे लिथे पिता और पुरोहित बन। तेरे लिथे क्या अच्छा है? यह, कि एक ही मनुष्य के घराने का पुरोहित हो, वा यह, कि इस्राएलियोंके एक गोत्र और कुल का पुरोहित हो? 20 तब पुरोहित प्रसन्न हुआ, सो वह एपोद, गृहदेवता, और खुदी हुई मूरत को लेकर उन लोगोंके संग चला गया। 21 तब वे मुड़े, और बालबच्चों, पशुओं, और सामान को अपके आगे करके चल दिए। 22 जब वे मीका के घर से दूर निकल गए थे, तब जो मनुष्य मीका के घर के पासवाले घरोंमें रहते थे उन्होंने इकट्ठे होकर दानियोंको जा लिया। 23 और दानियोंको पुकारा, तब उन्होंने मुंह फेर के मीका से कहा, तुझे क्या हुआ कि तू इतना बड़ा दल लिए आता है? 24 उस ने कहा, तुम तो मेरे बनवाए हुए देवताओं और पुरोहित को ले चले हो; फिर मेरे पास क्या रह गया? तो तुम मुझ से क्योंपूछते हो? कि तुझे क्या हुआ है? 25 दानियोंने उस से कहा, तेरा बोल हम लोगोंमें सुनाई न दे, कहीं ऐसा न हो कि क्रोधी जन तुम लोगोंपर प्रहार करें? और तू अपना और अपके घर के लोगोंके भी प्राण को खो दे। 26 तब दानियोंने अपना मार्ग लिया; और मीका यह देखकर कि वे मुझ से अधिक बलवन्त हैं फिरके अपके घर लौट गया। 27 और वे मीका के बनवाए हुए पदार्योंऔर उसके पुरोहित को साय ले लैश के पास आए, जिसके लोग शान्ति से और बिना खटके रहते थे, और उन्होंने उनको तलवार से मार डाला, और नगर को आग लगाकर फूंक दिया। 28 और कोई बचानेवाला न या, क्योंकि वह सीदोन से दूर या, और वे और मनुष्योंसे कुछ व्यवहार न रखते थे। और वह बेत्रहोब की तराई में या। तब उन्होंने नगर को दृढ़ किया, और उस में रहने लगे। 29 और उन्होंने उस नगर का नाम इस्राएल के एक पुत्र अपके मूलपुरूष दान के नाम पर दान रखा; परन्तु पहिले तो उस नगर का नाम लैश या। 30 तब दानियोंने उस खुदी हुई मूरत को खड़ा कर लिया; और देश की बन्धुआई के समय वह योनातान जो गेर्शोम का पुत्र और मूसा का पोता या, वह और उसके वंश के लोग दान गोत्र के पुरोहित बने रहे। 31 और जब तक परमेश्वर का भवन शीलो में बना रहा, तब तक वे मीका की खुदवाई हुई मूरत को स्यापित किए रहे।।
1 उन दिनोंमें जब इस्राएलियोंका कोई राजा न या, तब एक लेवीय पुरूष एप्रैम के पहाड़ी देश की परली ओर परदेशी होकर रहता या, जिस ने यहूदा के बेतलेहेम में की एक सुरैतिन रख ली यी। 2 उसकी सुरैतिन व्यभिचार करके यहूदा के बेतलेहेम को अपके पिता के घर चक्की गई, और चार महीने वहीं रही। 3 तब उसका पति अपके साय एक सेवक और दो गदहे लेकर चला, और उसके यहां गया, कि उसे समझा बुफाकर ले आए। वह उसे अपके पिता के घर ले गई, और उस जवान स्त्री का पिता उसे देखकर उसकी भेंट से आनन्दित हुआ। 4 तब उसके ससुर अर्यात् उस स्त्री के पिता ने बिनती करके उसे रोक लिया, और वह तीन दिन तक उसके पास रहा; सो वे वहां खाते पिते टिके रहे। 5 चौथे दिन जब वे भोर को सबेरे उठे, और वह चलने को हुआ; तब स्त्री के पिता ने अपके दामाद से कहा, एक टुकड़ा रोटी खाकर अपना जी ठण्डा कर, तब तुम लोग चले जाना। 6 तब उन दोनोंने बैठकर संग संग खाया पिया; फिर स्त्री के पिता ने उस पुरूष से कहा, और एक रात टिके रहने को प्रसन्न हो और आनन्द कर। 7 वह पुरूष विदा होने को उठा, परन्तु उसके सुसर ने बिनती करके उसे दबाया, इसलिथे उस ने फिर उसके यहां रात बिताई। 8 पांचवें दिन भोर को वह तो विदा होने को सवेरे उठा; परन्तु स्त्री के पिता ने कहा, अपना जी ठण्डा कर, और तुम दोनोंदिन ढलने तक रूके रहो। तब उन दोनोंने रोटी खाई। 9 जब वह पुरूष अपक्की सुरैतिन और सेवक समेत विदा होने को उठा, तब उसके ससुर अर्यात् स्त्री के पिता ने उस से कहा, देख दिन तो ढला चला है, और सांफ होने पर है; इसलिथे तुम लोग रात भर टिके रहो। देख, दिन तो डूबने पर है; सो यहीं आनन्द करता हुआ रात बिता, और बिहान को सवेरे उठकर अपना मार्ग लेना, और अपके डेरे को चले जाना। 10 परन्तु उस पुरूष ने उस रात को टिकना न चाहा, इसलिथे वह उठकर विदा हुआ, और काठी बान्धे हुए दो गदहे और अपक्की सुरैतिन संग लिए हुए यबूस के साम्हने तक (जो यरूशलेम कहलाता है) पहुंचा। 11 वे यबूस के पास थे, और दिन बहुत ढल गया या, कि सेवक ने अपके स्वामी से कहा, आ, हम यबूसियोंके इस नगर में मुड़कर टिकें। 12 उसके स्वामी ने उस से कहा, हम पराए नगर में जहां कोई इस्राएली नहीं रहता, न उतरेंगे; गिबा तक बढ़ जाएंगे। 13 फिर उस ने अपके सेवक से कहा, आ, हम उधर के स्यानोंमें से किसी के पास जाएं, हम गिबा वा रामा में रात बिताएं। 14 और वे आगे की ओर चले; और उनके बिन्यामीन के गिबा के निकट पहुंचते पहुंचते सूर्य अस्त हो गया, 15 इसलिथे वे गिबा में टिकने के लिथे उसकी ओर मुड़ गए। और वह भीतर जाकर उस नगर के चौक में बैठ गया, क्योंकि किसी ने उनको अपके घर में न टिकाया। 16 तब एक बूढ़ा अपके खेत के काम को निपटाकर सांफ को चला आया; वह तो एप्रैम के पहाड़ी देश का या, और गिबा में परदेशी होकर रहता या; परन्तु उस स्यान के लोग बिन्यामीनी थे। 17 उस ने आंखें उठाकर उस यात्री को नगर के चौक में बैठे देखा; और उस बूढ़े ने पूछा, तू किधर जाता, और कहां से आता है? 18 उस ने उस से कहा, हम लोग तो यहूदा के बेतलेहम से आकर एप्रैम के पहाड़ी देश की परली ओर जाते हैं, मैं तो वहीं का हूं; और यहूदा के बेतलेहेम तक गया या, और यहोवा के भवन को जाता हूं, परन्तु कोई मुझे अपके घर में नहीं टिकाता। 19 हमारे पास तो गदहोंके लिथे पुआल और चारा भी है, और मेरे और तेरी इस दासी और इस जवान के लिथे भी जो तेरे दासोंके संग है रोटी और दाखमधु भी है; हमें किसी वस्तु की घटी नहीं है। 20 बूढ़े ने कहा, तेरा कल्याण हो; तेरे प्रयोजन की सब वस्तुएं मेरे सिर हों; परन्तु रात को चौक में न बिता। 21 तब वह उसको अपके घर ले चला, और गदहोंको चारा दिया; तब वे पांव धोकर खाने पीने लगे। 22 वे आनन्द कर रहे थे, कि नगर के लुच्चोंने घर को घेर लिया, और द्वार को खटखटा-खटखटाकर घर के उस बूढ़े स्वामी से कहने लगे, जो पुरूष तेरे घर में आया, उसे बाहर ले आ, कि हम उस से भोग करें। 23 घर का स्वामी उनके पास बाहर जाकर उन से कहने लगा, नहीं, नहीं, हे मेरे भाइयों, ऐसी बुराई न करो; यह पुरूष जो मेरे घर पर आया है, इस से ऐसी मूढ़ता का काम मत करो। 24 देखा, यहां मेरी कुंवारी बेटी है, और इस पुरूष की सुरैतिन भी है; उनको मैं बाहर ले आऊंगा। और उनका पत-पानी लो तो लो, और उन से तो जो चाहो सो करो; परन्तु इस पुरूष से ऐसी मूढ़ता का काम मत करो। 25 परन्तु उन मनुष्योंने उसकी न मानी। तब उस पुरूष ने अपक्की सुरैतिन को पकड़कर उनके पास बाहर कर दिया; और उन्होंने उस से कुकर्म किया, और रात भर क्या भोर तक उस से लीला क्रीड़ा करते रहे। और पह फटते ही उसे छोड़ दिया। 26 तब वह स्त्री पह फटते हुए जाके उस मनुष्य के घर के द्वार पर जिस में उसका पति या गिर गई, और उजियाले के होने तक वहीं पक्की रही। 27 सवेरे जब उसका पति उठ, घर का द्वार खोल, अपना मार्ग लेने को बाहर गया, तो क्या देखा, कि मेरी सुरैतिन घर के द्वार के पास डेवढ़ी पर हाथ फैलाए हुए पक्की है। 28 उस ने उस से कहा, उठ हम चलें। जब कोई न बोला, तब वह उसको गदहे पर लादकर अपके स्यान को गया। 29 जब वह अपके घर पहुंचा, तब छूरी ले सुरैतिन को अंग अंग करके काटा; और उसे बारह टुकड़े करके इस्राएल के देश में भेज दिया। 30 जितनोंने उसे देखा, वे सब आपस में कहने लगे, इस्राएलियोंके मिस्र देश मे चले आने के समय से लेकर आज के दिन तक ऐसा कुछ कभी नहीं हुआ, और न देखा गया; सो इसको सोचकर सम्मति करो, और बताओ।।
1 तब दान से लेकर बर्शेबा तक के सब इस्राएली और गिलाद के लोग भी निकले, और उनकी मण्डली एक मत होकर मिस्पा में यहोवा के पास इकट्ठी हुई। 2 और सारी प्रजा के प्रधान लोग, वरन सब इस्राएली गोत्रोंके लोग जो चार लाख तलवार चलाने वाले प्यादे थे, परमेश्वर की प्रजा की सभा में उपस्यित हुए। 3 (बिन्यामीनियोंने तो सुना कि इस्राएली मिस्मा को आए हैं।) और इस्राएली पूछने लगे, हम से कहो, यह बुराई कैसे हुई? 4 उस मार डाली हुई स्त्री के लेवीय पति ने उत्तर दिया, मैं अपक्की सुरैतिन समेत बिन्यामीन के गिबा में टिकने को गया या। 5 तब गिबा के पुरूषोंने मुझ पर चढ़ाई की, और रात के समय घर को घेरके मुझे घात करना चाहा; और मेरी सुरैतिन से इतना कुकर्म किया कि वह मर गई। 6 तब मैं ने अपक्की सुरैतिन को लेकर टुकड़े टुकड़े किया, और इस्राएलियोंके भाग के सारे देश में भेज दिया, उन्होंने तो इस्राएल में महापाप और मूढ़ता का काम किया है। 7 सुनो, हे इस्राएलियों, सब के सब देखो, और यहीं अपक्की सम्मति दो। 8 तब सब लोग एक मन हो, उठकर कहने लगे, न तो हम में से कोई अपके डेरे जाएगा, और न कोई अपके घर की ओर मुड़ेगा। 9 परन्तु अब हम गिबा से यह करेंगे, अर्यात् हम चिट्ठी डाल डालकर उस पर चढ़ाई करेंगे, 10 और हम सब इस्राएली गोत्रोंमें सौ पुरूषोंमें से दस, और हजार पुरूषोंमें से एक सौ, और दस हजार में से एक हजार पुरूषोंको ठहराएं, कि वे सेना के लिथे भोजनवस्तु पहुंचाएं; इसलिथे कि हम बिन्यामीन के गिबा में पहुंचकर उसको उस मूढ़ता का पूरा फल भुगता सकें जो उन्होंने इस्राएल में की है। 11 तब सब इस्राएली पुरूष उस नगर के विरूद्ध एक पुरूष की नाईं जुटे हुए इकट्ठे हो गए।। 12 और इस्राएली गोत्रियोंमें कितने मनुष्य यह पूछने को भेजे, कि यह क्या बुराई है जो तुम लोगोंमें की गई है? 13 अब उन गिबावासी लुच्चोंको हमारे हाथ कर दो, कि हम उनको जान से मार के इस्राएल में से बुराई नाश करें। परन्तु बिन्यामीनियोंने अपके भाई इस्राएलियोंकी मानने से इन्कार किया। 14 और बिन्यामीनी अपके अपके नगर में से आकर गिबा में इसलिथे इकट्ठे हुए, कि इस्राएलियोंसे लड़ने को निकलें। 15 और उसी दिन गिबावासी पुरूषोंको छोड़, जिनकी गिनती सात सौ चुने हुए पुरूष ठहरी, और और नगरोंसे आए हुए तलवार चलानेवाले बिन्यामीनियोंकी गिनती छब्बीस हजार पुरूष ठहरी। 16 इन सब लोगोंमें से सात सौ बैंहत्थे चुने हुए पुरूष थे, जो सब के सब ऐसे थे कि गोफन से पत्यर मारने में बाल भर भी न चूकते थे। 17 और बिन्यामीनियोंको छोड़ इस्राएली पुरूष चार लाख तलवार चलानेवाले थे; थे सब के सब योद्धा थे।। 18 सब इस्राएली उठकर बेतेल को गए, और यह कहकर परमेश्वर से सलाह ली, और इस्राएलियोंने पूछा, कि हम में से कौन बिन्यामीनियोंसे लड़ने को पहिले चढ़ाई करे? यहोवा ने कहा, यहूदा पहिले चढ़ाई करे। 19 तब इस्राएलियोंने बिहान को उठकर गिबा के साम्हने डेरे डाले। 20 और इस्राएली पुरूष बिन्यामीनियोंसे लड़ने को निकल गए; और इस्राएली पुरूषोंने उस से लड़ने को गिबा के विरूद्ध पांति बान्धी। 21 तब बिन्यामीनियोंने गिबा से निकल उसी दिन बाईस हजार इस्राएली पुरूषोंको मारके मिट्टी में मिला दिया। 22 तौभी इस्राएली पुरूष लोगोंने हियाव बान्धकर उसी स्यान में जहां उन्होंने पहिले दिन पांति बान्धी यी, फिर पांती बान्धी। 23 और इस्राएली जाकर सांफ तक यहोवा के साम्हने राते रहे; और यह कहकर यहोवा से पूछा, कि क्या हम अपके भाई बिन्यामीनियोंसे लड़ने को फिर पास जाएं? यहोवा ने कहा, हां, उन पर चढ़ाई करो। 24 तब दूसरे दिन इस्राएली बिन्यामीनियोंके निकट पहुंचे। 25 तब बिन्यामीनियोंने दूसरे दिन उनका साम्हना करने को गिबा से निकलकर फिर अठारह हजार इस्राएली पुरूषोंको मारके, जो सब के सब तलवार चलानेवाले थे, मिट्टी में मिला दिया। 26 तब सब इस्राएली, वरन सब लोग बेतेल को गए; और रोते हुए यहोवा के साम्हने बैठे रहे, और उस दिन सांफ तक उपवास किए रहे, और यहोवा को होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। 27 और इस्राएलियोंने यहोवा से सलाह ली (उस समय तो परमेश्वर का वाचा का सन्दूक वहीं या, 28 और पीनहास, जो हारून का पोता, और एलीआजर का पुत्र या उन दिनोंमें उसके साम्हने हाजिर रहा करता या।) उन्होंने पूछा, क्या मैं एक और बार अपके भाई बिन्यामीनियोंसे लड़ने को निकल जाऊं, वा उनको छोड़ूं? यहोवा ने कहा, चढ़ाई कर; क्योंकि कल मैं उनको तेरे हाथ में कर दूंगा। 29 तब इस्राएलियोंने गिबा के चारोंओर लोगोंको धात में बैठाया। 30 तीसरे दिन इस्राएलियोंने बिन्यामीनियोंपर फिर चढ़ाई की, और पहिले की नाईं गिबा के विरूद्ध पांति बान्धी। 31 तब बिन्यामीनी उन लोगोंका साम्हना करने को निकले, और नगर के पास से खींचे गए; और जो दो सड़क, एक बेतेल को और दूसरी गिबा को गई है, उन में लोगोंको पहिले की नाईं मारने लगे, और मैदान में कोई तीस इस्राएली मारे गए। 32 बिन्यामीनी कहने लगे, वे पहिले की नाईं हम से मारे जाते हैं। परन्तु इस्राएलियोंने कहा, हम भागकर उनको नगर में से सड़कोंमें खींच ले आएं। 33 तब सब इस्राएली पुरूषोंने अपके स्यान में उठकर बालतामार में पांति बान्धी; और घात में बैठे हुए इस्राएली अपके स्यान से, अर्यात् मारेगेवा से अचानक निकले। 34 तब सब इस्राएलियोंमें से छांटे हुए दास हजार पुरूष गिबा के साम्हने आए, और घोर लड़ाई होने लगी; परन्तु वे न जानते थे कि हम पर विपत्ति अभी पड़ा चाहती है। 35 तब यहोवा ने बिन्यामीनियोंको इस्राएल से हरवा दिया, और उस दिन इस्राएलियोंने पक्कीस हजार एक सौ बिन्यामीनी पुरूषोंको नाश किया, जो सब के सब तलवार चलानेवाले थे।। 36 तब बिन्यामीनियोंने देखा कि हम हार गए। और इस्राएली पुरूष उन घातकोंपर भरोसा करके जिन्हें उन्होंने गिबा के साय बैठाया या बिन्यामीनियोंके साम्हने से चले गए। 37 परन्तु घातक लोग फुर्ती करके गिबा पर फपट गए; और घातकोंने आगे बढ़कर कुल नगर को तलवार से मारा। 38 इस्राएली पुरूषोंऔर घातकोंके बीच तो यह चिन्ह ठहराया गया या, कि वे नगर में से बहुत बड़ा धूएं का खम्भा उठाएं। 39 इस्राएली पुरूष तो लड़ाई में हटने लगे, और बिन्यामीनियोंने यह कहकर कि निश्चय वे पहिली लड़ाई की नाई हम से हारे जाते हैं, इस्राएलियोंको मार डालने लगे, और तीस एक पुरूषोंको घात किया। 40 परन्तु जब वह धूएं का खम्भा नगर में से उठने लगा, तब बिन्यामीनियोंने अपके पीछे जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि नगर का नगर धूंआ होकर आकाश की ओर उड़ रहा है। 41 तब इस्राएली पुरूष घूमे, और बिन्यामीनी पुरूष यह देखकर घबरा गए, कि हम पर विपत्ति आ पक्की है। 42 इसलिथे उन्होंने इस्राएली पुरूषोंको पीठ दिखाकर जंगल का मार्ग लिया; परन्तु लड़ाई उन से होती ही रह, और जो और नगरोंमें से आए थे उनको इस्राएली रास्ते में नाश करते गए। 43 उन्होंने बिन्यामीनियोंको घेर लिया, और उन्हें खदेड़ा, वे मनूहा में वरन गिबा के पूर्व की ओर तक उन्हें लताड़ते गए। 44 और बिन्यामीनियोंमें से अठारह हजार पुरूष जो सब के सब शूरवीर थे मारे गए। 45 तब वे घूमकर जंगल में की रिम्मोन नाम चट्टान की ओर तो भाग गए; परन्तु इस्राएलियोंने उन से पांच हजार को बीनकर सड़कोंमें मार डाला; फिर गिदोम तक उनके पीछे पड़के उन में से दो हजार पुरूष मार डाले। 46 तब बिन्यामीनियोंमें से जो उस दिन मारे गए वे पक्कीस हजार तलवार चलानेवाले पुरूष थे, और थे सब शूरवीर थे। 47 परन्तु छ: सौ पुरूष घूमकर जंगल की ओर भागे, और रिम्मोन नाम चट्टान में पहुंच गए, और चार महीने वहीं रहे। 48 तब इस्राएली पुरूष लौटकर बिन्यामिनियोंपर लपके और नगरोंमें क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या जो कुछ मिला, सब को तलवार से नाश कर डाला। और जितने नगर उन्हें मिले उन सभोंको आग लगाकर फूंक दिया।।
1 इस्राएली पुरूषोंने तो मिस्पा में शपय खाकर कहा या, कि हम में कोई अपक्की बेटी किसी बिन्यामीनी को न ब्याह देगा। 2 वे बेतेल को जाकर सांफ तक परमेश्वर के साम्हने बैठे रहे, और फूट फूटकर बहुत रोते रहे। 3 और कहते थे, हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, इस्राएल में ऐसा क्योंहोने पाया, कि आज इस्राएल में एक गोत्र की घटी हुई है? 4 फिर दूसरे दिन उन्होंने सवेरे उठ वहां वेदी बनाकर होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। 5 तब इस्राएली पूछने लगे, इस्राएल के सारे गोत्रोंमें से कौन है जो यहोवा के पास सभा में न आया या? उन्होंने तो भारी शपय खाकर कहा या, कि जो कोई मिस्पा को यहोवा के पास न आए वह निश्चय मार डाला जाएगा। 6 तब इस्राएली अपके भाई बिन्यामीन के विषय में यह कहकर पछताने लगे, कि आज इस्राएल में से एक गोत्र कट गया है। 7 हम ने जो यहोवा की शपय खाकर कहा है, कि हम उन्हें अपक्की किसी बेटी को न ब्याह देंगे, इसलिथे बचे हुओं को स्त्रियां मिलने के लिथे क्या करें? 8 जब उन्होंने यह पूछा, कि इस्राएल के गोत्रोंमें से कौन है जो मिस्पा को यहोवा के पास न आया या? तब यह मालूम हुआ, कि गिलादी यावेश से कोई छावनी में सभा को न आया या। 9 अर्यात् जब लोगोंकी गिनती की गई, तब यह जाना गया कि गिलादी यावेश के निवासियोंमें से कोई यहां नहीं है। 10 इसलिथे मण्डली ने बारह हजार शूरवीरोंको वहां यह आज्ञा देकर भेज दिया, कि तुम जाकर स्त्रियोंऔर बालबच्चोंसमेत गिलादी यावेश को तलवार से नाश करो। 11 और तुम्हें जो करना होगा वह यह है, कि सब पुरूषोंको और जितनी स्त्र्ियोंने पुरूष का मुंह देखा हो उनको सत्यानाश कर डालना। 12 और उन्हें गिलादी यावेश के निवासियोंमें से चार सौ जवान कुमारियां मिलीं जिन्होंने पुरूष का मुंह नहीं देखा या; और उन्हें वे शीलो को जो कनान देश में है छावनी में ले आए।। 13 तब सारी मण्डली ने उन बिन्यामीनियोंके पास जो रिम्मोन नाम चट्टान पर थे कहला भेजा, और उन से संधि का प्रचार कराया। 14 तब बिन्यामीन उसी समय लौट गए; और उनको वे स्त्रियां दी गईं जो गिलादी यावेश की स्त्रियोंमें से जीवित छोड़ी गईं यीं; तौभी वे उनके लिथे योड़ी यीं। 15 तब लोग बिन्यामीन के विषय फिर यह कहके पछताथे, कि यहोवा ने इस्राएल के गोत्रोंमें घटी की है। 16 तब मण्डली के वृद्ध गोत्रोंने कहा, कि बिन्यामीनी स्त्रियां जो नाश हुई हैं, तो बचे हुए पुरूषोंके लिथे स्त्री पाने का हम क्या उपाय करें? 17 फिर उन्होंने कहा, बचे हुए बिन्यामीनियोंके लिथे कोई भाग चाहिथे, ऐसा न हो कि इस्राएल में से एक गोत्र मिट जाए। 18 परन्तु हम तो अपक्की किसी बेटी को उन्हें ब्याह नहीं दे सकते, क्योंकि इस्राएलियोंने यह कहकर शपय खाई है कि शापित हो वह जो किसी बिन्यामीनी को अपक्की लड़की ब्याह दे। 19 फिर उन्होंने कहा, सुनो, शीलो जो बेतेल की उत्तर ओर, और उस सड़क की पूर्व ओर है जो बेतेल से शकेन को चक्की गई है, और लाबोना की दक्खिन ओर है, उस में प्रति वर्ष यहोवा का एक पर्व माना जाता है। 20 इसलिथे उन्होंने बिन्यामीनियोंको यह आज्ञा दी, कि तुम जाकर दाख की बारियोंके बीच घात लगाए बैठे रहो, 21 और देखते रहो; और यदि शीलो की लड़कियां नाचने को निकलें, तो तुम दाख की बारियोंसे निकलकर शीलो की लड़कियोंमें से अपक्की अपक्की स्त्री को पकड़कर बिन्यामीन के देश को चले जाना। 22 और जब उनके पिता वा भाई हमारे पास फगड़ने को आएंगे, तब हम उन से कहेंगे, कि अनुग्रह करके उनको हमें दे दो, क्योंकि लड़ाई के समय हम ने उन में से एक एक के लिथे स्त्री नहीं बचाई; और तुम लोगोंने तो उनको ब्याह नहीं दिया, नहीं तो तुम अब दोषी ठहरते। 23 तब बिन्यामीनियोंने ऐसा ही किया, अर्यात् उन्होंने अपक्की गिनती के अनुसार उन नाचनेवालियोंमें से पकड़कर स्त्रियां ले लीं; तब अपके भाग को लौट गए, और नगरोंको बसाकर उन में रहने लगे। 24 उसी समय इस्राएली वहां से चलकर अपके अपके गोत्र और अपके अपके घराने को गए, और वहां से वे अपके अपके निज भाग को गए। 25 उन दिनोंमें इस्राएलियोंका कोई राजा न या; जिसको जो ठीक सूफ पड़ता या वही वह करता या।।
1 जिन दिनोंमें न्यायी लोग न्याय करते थे उन दिनोंमें देश में अकाल पड़ा, तब यहूदा के बेतलेहेम का एक पुरूष अपक्की स्त्री और दोनो पुत्रोंको संग लेकर मोआब के देश में परदेशी होकर रहने के लिथे चला। 2 उस पुरूष का नाम एलीमेलेक, और उसकी पत्नि का नाम नाओमी, और उसके दो बेटोंके नाम महलोन और किल्योन थे; थे एप्राती अर्यात् यहूदा के बेतलेहेम के रहनेवाले थे। और मोआब के देश में आकर वहां रहे। 3 और नाओमी का पति एलीमेलेक मर गया, और नाओमी और उसके दोनो पुत्र रह गए। 4 और इन्होंने एक एक मोआबिन ब्याह ली; एक स्त्री का नाम ओर्पा और दूसरी का नाम रूत या। फिर वे वहां कोई दस वर्ष रहे। 5 जब महलोन और किल्योन दोनोंमर गए, तब नाआमी अपके दोनोंपुत्रोंऔर पति से रहित हो गई। 6 तब वह मोआब के देश में यह सुनकर, कि यहोवा ने अपक्की प्रजा के लोगोंकी सुधि लेके उन्हें भोजनवस्तु दी है, उस देश से अपक्की दोनोंबहुओं समेत लौट जाने को चक्की। 7 तब वह अपक्की दोनोंबहुओं समेत उस स्यान से जहां रहती यीं निकलीं, और उन्होने यहूदा देश को लौट जाने का मार्ग लिया। 8 तब नाओमी ने अपक्की दोनो बहुओं से कहा, तुम अपके अपके मैके लौट जाओ। और जैसे तुम ने उन से जो मर गए हैं और मुझ से भी प्रीति की है, वैसे ही यहोवा तुम्हारे ऊपर कृपा करे। 9 यहोवा ऐसा करे कि तुम फिर पति करके उनके घरोंमें विश्रम पाओ। तब उस ने उन को चूमा, और वे चिल्ला चिल्लाकर रोने लगीं, 10 और उस से कहा, निश्चय हम तेरे संग तेरे लोगोंके पास चलेंगी। 11 नाओमी ने कहा, हे मेरी बेटियों, लौट जाओ, तुम क्योंमेरे संग चलोगी? क्या मेरी कोख में और पुत्र हैं जो तुम्हारे पति हों? 12 हे मेरी बेटियों, लौटकर चक्की जाओ, क्योंकि मैं पति करने को बूढ़ी हूं। और चाहे मैं कहती भी, कि मुझे आशा है, और आज की रात मेरे पति होता भी, और मेरे पुत्र भी होते, 13 तौभी क्या तुम उनके सयाने होने तक आशा लगाए ठहरी रहतीं? और उनके निमित्त पति करने से रूकी रहतीं? हे मेरी बेटियों, ऐसा न हो, क्योंकि मेरा दु:ख तुम्हारे दु:ख से बहुत बढ़कर है; देखो, यहोवा का हाथ मेरे विरूद्ध उठा है। 14 तब वे फिर से उठीं; और ओर्पा ने तो अपक्की सास को चूमा, परन्तु रूत उस से अलग न हुई। 15 तब उस ने कहा, देख, तेरी जिठानी तो अपके लोगोंऔर अपके देवता के पास लौट गई है; इसलिए तू अपक्की जिठानी के पीछे लौट जा। 16 रूत बोली, तू मुझ से यह बिनती न कर, कि मुझे त्याग वा छोड़कर लौट जा; क्योंकि जिधर तू जाए उधर मैं भी जाऊंगी; जहां तू टिके वहां मैं भी टिकूंगी; तेरे लोग मेरे लोग होंगे, और तेरा परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा; 17 जहां तू मरेगी वहां मैं भी मरूंगी, और वहीं मुझे मिट्टी दी जाएगी। यदि मृत्यु छोड़ और किसी कारण मैं तुझ से अलग होऊं, तो यहोवा मुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे। 18 जब उस ने यह देखा कि वह मेरे संग चलने को स्यिर है, तब उस ने उस से और बात न कही। 19 सो वे दोनोंचल निकलीं और बेतलेहेम को पहुंची। और उनके बेतलेहेम में पहुंचने पर कुल नगर में उनके कारण धूम मची; और स्त्रियां कहने लगीं, क्या यह नाओमी है? 20 उस ने उन से कहा, मुझे नाओमी न कहो, मुझे मारा कहो, क्योंकि सर्वशक्तिमान् ने मुझ को बड़ा दु:ख दिया है। 21 मैं भरी पूरी चक्की गई यी, परन्तु यहोवा ने मुझे छूछी करके लौटाया है। सो जब कि यहोवा ही ने मेरे विरूद्ध साझी दी, और सर्वशक्तिमान ने मुझे दु:ख दिया है, फिर तुम मुझे क्योंनाओमी कहती हो? 22 इस प्रकार नाओमी अपक्की मोआबिन बहू रूत के साय लौटी, जो मोआब के देश से आई यी। और वे जो कटने के आरम्भ के समय बेतलेहेम में पहुंची।।
1 नाओमी के पति एलीमेलेक के कुल में उसका एक बड़ा धनी कुटुम्बी या, जिसका नाम बोअज या। 2 और मोआबिन रूत ने नाओमी से कहा, मुझे किसी खेत में जाने दे, कि जो मुझ पर अनुग्रह की दृष्टि करे, उसके पीछे पीछे मैं सिला बीनती जाऊं। उस ने कहा, चक्की जा, बेटी। 3 सो वह जाकर एक खेत में लवनेवालोंके पीछे बीनने लगी, और जिस खेत में वह संयोग से गई यी वह एलीमेलेक के कुटुम्बी बोअज का या। 4 और बोअज बेतलेहेम से आकर लवनेवालोंसे कहने लगा, यहोवा तुम्हारे संग रहे, और वे उस से बोले, यहोवा तुझे आशीष दे। 5 तब बोअज ने अपके उस सेवक से जो लवनेवालोंके ऊपर ठहराया गया या पूछा, वह किस की कन्या है। 6 जो सेवक लवनेवालोंके ऊपर ठहराया गया या उस ने उत्तर दिया, वह मोआबिन कन्या है, जो नाओमी के संग मोआब देश से लौट आई है। 7 उस ने कहा या, मुझे लवनेवालोंके पीछे पीछे पूलोंके बीच बीनने और बालें बटोरने दे। तो वह आई, और भोर से अब तक यहीं है, केवल योड़ी देर तक घर में रही यी। 8 तब बोअज ने रूत से कहा, हे मेरी बेटी, क्या तू सुनती है? किसी दूसरे के खेत में बीनने को न जाना, मेरी ही दासियोंके संग यहीं रहना। 9 जिस खेत को वे लवतीं होंउसी पर तेरा ध्यान बन्धा रहे, और उन्हीं के पीछे पीछे चला करना। क्या मैं ने जवानोंको आज्ञा नहीं दी, कि तुझ से न बोलें? और जब जब तुझे प्यास लगे, तब तब तू बरतनोंके पास जाकर जवानोंका भरा हुआ पानी पीना। 10 तब वह भूमि तक फुककर मुंह के बल गिरी, और उस से कहने लगी, क्या कारण है कि तू ने मुझ परदेशिन पर अनुग्रह की दृष्टि करके मेरी सुधि ली है? 11 बोअज ने उत्तर दिया, जो कुछ तू ने पति मरने के पीछे अपक्की सास से किया है, और तू किस रीति अपके माता पिता और जन्मभूमि को छोड़कर ऐसे लोगोंमें आई है जिनको पहिले तू ने जानती यी, यह सब मुझे विस्तार के साय बताया गया है। 12 यहोवा तेरी करनी का फल दे, और इस्राएल का परमेश्वर यहोवा जिसके पंखोंके तले तू शरण लेने आई है तुझे पूरा बदला दें 13 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे, क्योंकि यद्यपि मैं तेरी दासियोंमें से किसी के भी बराबर नहीं हूं, तौभी तू ने अपक्की दासी के मन में पैठनेवाली बातें कहकर मुझे शान्ति दी है। 14 फिर खाने के समय बोअज ने उस से कहा, यहीं आकर रोटी खा, और अपना कौर सिरके में बोर। तो वह लवनेवालोंके पास बैठ गई; और उस ने उसको भुनी हुई बालें दी; और वह खाकर तृप्त हुई, वरन कुछ बचा भी रखा। 15 जब वह बीनने को उठी, तब बोअज ने अपके जवानोंको आज्ञा दी, कि उसको पूलोंके बीच बीच में भी बीनने दो, और दोष मत लगाओ। 16 वरन मुट्ठी भर जाने पर कुछ कुछ निकाल कर गिरा भी दिया करो, और उसके बीनने के लिथे छोड़ दो, और उसे घुड़को मत। 17 सो वह सांफ तक खेत में बीनती रही; तब जो कुछ बीन चुकी उसे फटका, और वह कोई एपा भर जौ निकला। 18 तब वह उसे उठाकर नगर में गई, और उसकी सास ने उसका बीना हुआ देखा, और जो कुछ उस ने तृप्त होकर बचाया या उसको उस ने निकालकर अपक्की सास को दिया। 19 उसकी सास ने उस से पूछा, आज तू कहां बीनती, और कहां काम करती यी? धन्य वह हो जिस ने तेरी सुधि ली है। तब उस ने अपक्की सास को बता दिया, कि मैं ने किस के पास काम किया, और कहा, कि जिस पुरूष के पास मैं ने आज काम किया उसका नाम बोअज है। 20 नाओमी ने अपक्की बहू से कहा, वह यहोवा की ओर से आशीष पाए, क्योंकि उस ने न तो जीवित पर से और न मरे हुओं पर से अपक्की करूणा हटाई! फिर नाओमी ने उस से कहा, वह पुरूष तो हमारा कुटुम्बी है, वरन उन में से है जिनको हमारी भूमि छुड़ाने का अधिक्कारने है। 21 फिर रूत मोआबिन बोली, उस ने मुझ से यह भी कहा, कि जब तक मेरे सेवक मेरी कटनी पूरी न कर चुकें तब तक उन्हीं के संग संग लगी रह। 22 नाओमी ने अपक्की बहु रूत से कहा, मेरी बेटी यह अच्छा भी है, कि तू उसी की दासियोंके साय साय जाया करे, और वे तुझ को दूसरे के खेत में न मिलें। 23 इसलिथे रूत जौ और गेहूं दोनोंकी कटनी के अन्त तक बीनने के लिथे बोअज की दासियोंके साय साय लगी रही; और अपक्की सास के यहां रहती यी।।
1 उसकी सास नाओमी ने उस से कहा, हे मेरी बेटी, क्या मैं तेरे लिथे ठांव न ढूंढूं कि तेरा भला हो? 2 अब जिसकी दासियोंके पास तू यी, क्या वह बोअज हमारा कुटुम्बी नहीं है? वह तो आज रात को खलिहान में जौ फटकेगा। 3 तू स्नान कर तेल लगा, वस्त्र पहिनकर खलिहान को जा; परन्तु जब तक वह पुरूष खा पी न चुके तब तक अपके को उस पर प्रगट न करना। 4 और जब वह लेट जाए, तब तू उस के लेटने के स्यान को देख लेना; फिर भीतर जा उसके पांव उघारके लेट जाना; तब वही तुझे बताएगा कि तुझे क्या करना चाहिथे। 5 उस ने उस से कहा, जो कुछ तू कहती है वह सब मैं करूंगी। 6 तब वह खलिहान को गई और अपक्की सास की आज्ञा के अनुसार ही किया। 7 जब बोअज खा पी चुका, और उसका मन आनन्दित हुआ, तब जाकर राशि के एक सिक्के पर लेट गया। तब वह चुपचाप गई, और उसके पांव उघार के लेट गई। 8 आधी रात को वह पुरूष चौंक पड़ा, और आगे की ओर फुककर क्या पाया, कि मेरे पांवोंके पास कोई स्त्री लेटी है। 9 उस ने पूछा, तू कौन है? तब वह बोली, मैं तो तेरी दासी रूत हूं; तू अपक्की दासी को अपक्की चद्दर ओढ़ा दे, क्योंकि तू हमारी भूमि छुड़ानेवाला कुटुम्बी है। 10 उस ने कहा, हे बेटी, यहोवा की ओर से तुझ पर आशीष हो; क्योंकि तू ने अपक्की पिछली प्रीति पहिली से अधिक दिखाई, क्योंकि तू, क्या धनी, क्या कंगाल, किसी जवान के पीछे नहीं लगी। 11 इसलिथे अब, हे मेरी बेटी, मत डर, जो कुछ तू कहेगी मैं तुझ से करूंगा; क्योंकि मेरे नगर के सब लोग जानते हैं कि तू भली स्त्री है। 12 और अब सच तो है कि मैं छुड़ानेवाला कुटुम्बी हूं, तौभी एक और है जिसे मुझ से पहिले ही छुड़ाने का अधिक्कारने है। 13 सो रात भर ठहरी रह, और सबेरे यदि वह तेरे लिथे छुड़ानेवाले का काम करना चाहे; तो अच्छा, वही ऐसा करे; परन्तु यदि वह तेरे लिथे छुड़ानेवाले का काम करने को प्रसन्न न हो, तो यहोवा के जीवन की शपय मैं ही वह काम करूंगा। भोर तक लेटी रह। 14 तब वह उसके पांवोंके पास भोर तक लेटी रही, और उस से पहिले कि कोई दूसरे को चीन्ह सके वह उठी; और बोअज ने कहा, कोई जानने न पाए कि खलिहान में कोई स्त्री आई यी। 15 तब बोअज ने कहा, जो चद्दर तू ओढ़े है उसे फैलाकर याम्भ ले। और जब उस ने उसे याम्भा तब उस ने छ: नपुए जौ नापकर उसको उठा दिया; फिर वह नगर में चक्की गई। 16 जब रूत अपक्की सास के पास आई तब उस ने पूछा, हे बेटी, क्या हुआ? तब जो कुछ उस पुरूष ने उस से किया या वह सब उस ने उसे कह सुनाया। 17 फिर उस ने कहा, यह छ: नपुए जौ उस ने यह कहकर मुझे दिया, कि अपक्की सास के पास छूछे हाथ मत जा। 18 उस ने कहा, हे मेरी बेटी, जब तक तू न जाने कि इस बात का कैसा फल निकलेगा, तब तक चुपचाप बैठी रह, क्योंकि आज उस पुरूष को यह काम बिना निपटाए चैन न पकेगा।।
1 तब बोअज फाटक के पास जाकर बैठ गया; और जिस छुड़ानेवाले कुटुम्बी की चर्चा बोअज ने की यी, वह भी आ गया। तब बोअज ने कहा, हे फुलाने, इघर आकर यहीं बैठ जा; तो वह उधर जाकर बैठ गया। 2 तब उस ने नगर के दस वृद्ध लोगोंको बुलाकर कहा, यहीं बैठ जाओ; वे भी बैठ गए। 3 तब वह छुड़ानेवाले कुटुम्बी से कहने लगा, नाओमी जो मोआब देश से लौट आई है वह हमारे भाई एलीमेलेक की एक टुकड़ा भूमि बेचना चाहती है। 4 इसलिथे मैं ने सोचा कि यह बात तुझ को जताकर कहूंगा, कि तू उसको इन बैठे हुओं के साम्हने और मेरे लोगोंके इन वृद्ध लोगोंके साम्हने मोल ले। और यदि तू उसको छुड़ाना चाहे, तो छुड़ा; और यदि तू छुड़ाना न चाहे, तो मुझे ऐसा ही बता दे, कि मैं समझ लूं; क्योंकि तुझे छोड़ उसके छुड़ाने का अधिक्कारने और किसी को नहीं है, और तेरे बाद मैं हूं। उस ने कहा, मैं उसे छुड़ाऊंगा। 5 फिर बोअज ने कहा, जब तू उस भूमि को नाओमी के हाथ से मोल ले, तब उसे रूत मोआबिन के हाथ से भी जो मरे हुए की स्त्री है इस मनसा से मोल लेना पकेगा, कि मरे हुए का नाम उसके भाग में स्यिर कर दे। 6 उस छुड़ानेवाले कुटुम्बी ने कहा, मैं उसको छुड़ा नहीं सकता, ऐसा न हो कि मेरा निज भाग बिगड़ जाए। इसलिथे मेरा छुड़ाने का अधिक्कारने तू ले ले, क्योंकि मुझ से वह छुड़ाया नहीं जाता। 7 अगले समय में इस्राएल में छुड़ाने के बदलने के विषय में सब पक्का करने के लिथे यह व्यवहार या, कि मनुष्य अपक्की जूती उतार के दूसरे को देता या। इस्राएल में गवाही इसी रीति होती यी। 8 इसलिथे उस छुड़ानेवाले कुटुम्बी ने बोअज से यह कहकर; कि तू उसे मोल ले, अपक्की जूती उतारी। 9 तब बोअज ने वृद्ध लोगोंऔर सब लोगोंसे कहा, तुम आज इस बात के साझी हो कि जो कुछ एलीमेलेक का और जो कुछ किल्योन और महलोन का या, वह सब मैं नाओमी के हाथ से मोल लेता हूं। 10 फिर महलोन की स्त्री रूत मोआबिन को भी मैं अपक्की पत्नी करने के लिथे इस मनसा से मोल लेता हूं, कि मरे हुए का नाम उसके निज भाग पर स्यिर करूं, कहीं ऐसा न हो कि मरे हुए का नाम उसके भाइयोंमें से और उसके स्यान के फाटक से मिट जाए; तुम लोग आज साझी ठहरे हो। 11 तब फाटक के पास जितने लोग थे उन्होंने और वृद्ध लोगोंने कहा, हम साझी हैं। यह जो स्त्री तेरे घर में आती है उसको यहोवा इस्राएल के घराने की दो उपजानेवाली राहेल और लिआ: के समान करे। और तू एप्राता में वीरता करे, और बेतलेहेम में तेरा बड़ा नाम हो; 12 और जो सन्तान यहोवा इस जवान स्त्री के द्वारा तुझे दे उसके कारण से तेरा घराना पेरेस का सा हो जाए, जो तामार से यहूदा के द्वारा उत्पन्न हुआ। 13 तब बोअज ने रूत को ब्याह लिया, और वह उसकी पत्नी हो गई; और जब वह उसके पास गया तब यहोवा की दया से उस को गर्भ रहा, और उसके एक बेटा उत्पन्न हुआ। 14 तब स्त्रियोंने नाओमी से कहा, यहोवा धन्य है, जिस ने तुझे आज छुड़ानेवाले कुटुम्बी के बिना नहीं छोड़ा; इस्राएल में इसका बड़ा नाम हो। 15 और यह तेरे जी में जी ले आनेवाला और तेरा बुढ़ापे में पालनेवाला हो, क्योंकि तेरी बहू जो तुझ से प्रेम रखती और सात बेटोंसे भी तेरे लिथे श्रेष्ट है उसी का यह बेटा है। 16 फिर नाओमी उस बच्चे को अपक्की गोद में रखकर उसकी धाई का काम करने लगी। 17 और उसकी पड़ोसिनोंने यह कहकर, कि नाओमी के एक बेटा उत्पन्न हुआ है, लड़के का नाम ओबेद रखा। यिशै का पिता और दाऊद का दादा वही हुआ।। 18 पेरेस की यह वंशावली है, अर्यात् पेरेस से हेब्रोन, 19 और हेब्रोन से राम, और राम से अम्मीनादाब, 20 और अम्मीनादाब से नहशोन, और नहशोन से सल्मोन 21 और सल्मोन से बोअज, और बोअज से ओबेद, 22 और ओबेद से यिशै, और यिशै से दाऊद उत्पन्न हुआ।।
1 एप्रैम के पहाड़ी देश के रामतैम सोपीम नाम नगर का निवासी एल्काना नाम पुरूष या, वह एप्रेमी या, और सूप के पुत्र तोहू का परपोता, एलीहू का पोता, और यरोहाम का पुत्र या। 2 और उसके दो पत्नियां यीं; एक का तो नाम हन्ना और दूसरी का पनिन्ना या। और पनिन्ना के तो बालक हुए, परन्तु हन्ना के कोई बालक न हुआ। 3 वह पुरूष प्रति वर्ष अपके नगर से सेनाओं के यहोवा को दण्डवत् करने और मेलबलि चढ़ाने के लिथे शीलो में जाता या; और वहां होप्नी और पीनहास नाम एली के दोनोंपुत्र रहते थे, जो यहोवा के याजक थे। 4 और जब जब एल्काना मेलबलि चढ़ाता या तब तब वह अपक्की पत्नी पनिन्ना को और उसके सब बेटे-बेटियोंको दान दिया करता या; 5 परन्तु हन्ना को वह दूना दान दिया करता या, क्योंकि वह हन्ना से प्रीति रखता या; तौभी यहोवा ने उसकी कोख बन्द कर रखी यी। 6 परन्तु उसकी सौत इस कारण से, कि यहोवा ने उसकी कोख बन्द कर रखी यी, उसे अत्यन्त चिढ़ाकर कुढ़ाती रहती यीं। 7 और वह तो प्रति वर्ष ऐसा ही करता या; और जब हन्ना यहोवा के भवन को जाती यी तब पनिन्ना उसको चिढ़ाती यी। इसलिथे वह रोती और खाना न खाती यी। 8 इसलिथे उसके पति एल्काना ने उस से कहा, हे हन्ना, तू क्योंरोती है? और खाना क्योंनहीं खाती? और मेरा मन क्योंउदास है? क्या तेरे लिथे मैं दस बेटोंसे भी अच्छा नहीं हूं? 9 तब शीलो में खाने और पीने के बाद हन्ना उठी। और यहोवा के मन्दिर के चौखट के एक अलंग के पास एली याजक कुर्सी पर बैठा हुआ या। 10 और यह मन में व्याकुल होकर यहोवा से प्रार्यना करने और बिलख बिलखकर रोने लगी। 11 और उस ने यह मन्नत मानी, कि हे सेनाओं के यहोवा, यदि तू अपक्की दासी के दु:ख पर सचमुच दृष्टि करे, और मेरी सुधि ले, और अपक्की दासी को भूल न जाए, और अपक्की दासी को पुत्र दे, तो मैं उसे उसके जीवन भर के लिथे यहोवा को अर्पण करूंगी, और उसके सिर पर छुरा फिरने न पाएगा। 12 जब वह यहोवा के साम्हने ऐसी प्रार्यना कर रही यी, तब एली उसके मुंह की ओर ताक रहा या। 13 हन्ना मन ही मन कह रही यी; उसके होंठ तो हिलते थे परन्तु उसका शब्द न सुन पड़ता या; इसलिथे एली ने समझा कि वह नशे में है। 14 तब एली ने उस से कहा, तू कब तक नशे में रहेगी? अपना नशा उतार। 15 हन्ना ने कहा, नहीं, हे मेरे प्रभु, मैं तो दु:खिया हूं; मैं ने न तो दाखमधु पिया है और न मदिरा, मैं ने अपके मन की बात खोलकर यहोवा से कही है। 16 अपक्की दासी को ओछी स्त्री न जान जो कुछ मैं ने अब तक कहा है, वह बहुत ही शोकित होने और चिढ़ाई जाने के कारण कहा है। 17 एली ने कहा, कुशल से चक्की जा; इस्राएल का परमेश्वर तुझे मन चाहा वर दे। 18 उसे ने कहा, तेरी दासी तेरी दृष्टि में अनुग्रह पाए। तब वह स्त्री चक्की गई और खाना खाया, और उसका मुंह फिर उदास न रहा। 19 बिहान को वे सवेरे उठ यहोवा को दण्डवत् करके रामा में अपके घर लौट गए। और एलकाना अपक्की स्त्री हन्ना के पास गया, और यहोवा ने उसकी सुधि ली; 20 तब हन्ना गर्भवती हुई और समय पर उसके एक पुत्र हुआ, और उसका नाम शमूएल रखा, क्योंकि वह कहने लगी, मैं ने यहोवा से मांगकर इसे पाया है। 21 फिर एल्काना अपके पूरे घराने समेत यहोवा के साम्हने प्रति वर्ष की मेलबलि चढ़ाने और अपक्की मन्नत पूरी करने के लिथे गया। 22 परन्तु हन्ना अपके पति से यह कहकर घर में रह गई, कि जब बालक का दूध छूट जाएगा तब मैं उसको ले जाऊंगी, कि वह यहोवा को मुंह दिखाए, और वहां सदा बना रहे। 23 उसके पति एलकाना ने उस से कहा, जो तुझे भला लगे वही कर, जब तक तू उसका दूध न छुड़ाए तब तक यहीं ठहरी रह; केवल इतना हो कि यहोवा अपना वचन पूरा करे। इसलिथे वह स्त्री वहीं घर पर रह गई और अपके पुत्र के दूध छुटने के समय तक उसको पिलाती रही। 24 जब उस ने उसका दूध छुड़ाया तब वह उसको संग ले गई, और तीन बछड़े, और एपा भर आटा, और कुप्पी भर दाखमधु भी ले गई, और उस लड़के को शीलो में यहोवा के भवन में पहुंचा दिया; उस समय वह लड़का ही या। 25 और उन्होंने बछड़ा बलि करके बालक को एली के पास पहुंचा दिया। 26 तब हन्ना ने कहा, हे मेरे प्रभु, तेरे जीवन की शपय, हे मेरे प्रभु, मैं वही स्त्री हूं जो तेरे पास यहीं खड़ी होकर यहोवा से प्रार्यना करती यी। 27 यह वही बालक है जिसके लिथे मैं ने प्रार्यना की यी; और यहोवा ने मुझे मुंह मांगा वर दिया है। 28 इसी लिथे मैं भी उसे यहोवा को अर्पण कर देती हूं; कि यह अपके जीवन भर यहोवा ही का बना रहे। तब उस ने वहीं यहोवा को दण्डवत् किया।।
1 और हन्ना ने प्रार्यना करके कहा, मेरा मन यहोवा के कारण मगन है; मेरा सींग यहोवा के कारण ऊंचा, हुआ है। मेरा मुंह मेरे शत्रुओं के विरूद्ध खुल गया, क्योंकि मैं तेरे किए हुए उद्धार से आनन्दित हूं। 2 यहोवा के तुल्य कोई पवित्र नहीं, क्योंकि तुझ को छोड़ और कोई है ही नहीं; और हमारे परमेश्वर के समान कोई चट्टान नहीं है।। 3 फूलकर अहंकार की ओर बातें मत करो, और अन्धेर की बातें तुम्हारे मुंह से न निकलें; क्योंकि यहोवा ज्ञानी ईश्वर है, और कामोंको तौलनेवाला है।। 4 शूरवीरोंके धनुष टूट गए, और ठोकर खानेवालोंकी कटि में बल का फेंटा कसा गया।। 5 जो पेट भरते थे उन्हें रोटी के लिथे मजदूरी करनी पक्की, जो भूखे थे वे फिर ऐसे न रहे। वरन जो बांफ यी उसके सात हुए, और अनेक बालकोंकी माता घुलती जाती है। 6 यहोवा मारता है और जिलाता भी है; वही अधोलोक में उतारता और उस से निकालता भी है।। 7 यहोवा निर्धन करता है और धनी भी बनाता है, वही नीचा करता और ऊंचा भी करता है। 8 वह कंगाल को धूलि में से उठाता; और दरिद्र को घूरे में से निकाल खड़ा करता है, ताकि उनको अधिपतियोंके संग बिठाए, और महिमायुक्त सिंहासन के अधिक्कारनेी बनाए। क्योंकि पृय्वी के खम्भे यहोवा के हैं, और उस ने उन पर जगत को धरा है। 9 वह अपके भक्तोंके पावोंको सम्भाले रहेगा, परन्तु दुष्ट अन्धिक्कारने में चुपचाप पके रहेंगे; क्योंकि कोई मनुष्य अपके बल के कारण प्रबल न होगा।। 10 जो यहोवा से फगड़ते हैं वे चकनाचूर होंगे; वह उनके विरूद्ध आकाश में गरजेगा। यहोवा पृय्वी की छोर तक न्याय करेगा; और अपके राजा को बल देगा, और अपके अभिषिक्त के सींग को ऊंचा करेगा।। 11 तब एल्काना रामा को अपके घर चला गया। और वह बालक एली याजक के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करने लगा।। 12 एली के पुत्र तो लुच्चे थे; उन्होंने यहोवा को न पहिचाना। 13 और याजकोंकी रीति लोगोंके साय यह यी, कि जब कोई मनुष्य मेलबलि चढ़ाता या तब याजक का सेवक मांस पकाने के समय एक त्रिशूली कांटा हाथ में लिथे हुए आकर, 14 उसे कड़ाही, वा हांडी, वा हंडे, वा तसले के भीतर डालता या; और जितना मांस कांटे में लग जाता या उतना याजक आप लेता या। योंही वे शीलो में सारे इस्राएलियोंसे किया करते थे जो वहां आते थे। 15 और चर्बी जलाने से पहिले भी याजक का सेवक आकर मेलबलि चढ़ानेवाले से कहता या, कि कबाब के लिथे याजक को मांस दे; वह तुझ से पका हुआ नहीं, कच्चा ही मांस लेगा। 16 और जब कोई उस से कहता, कि निश्चय चर्बी अभी जलाई जाएगी, तब जितना तेरा जी चाहे उतना ले लेना, तब वह कहता या, नहीं, अभी दे; नहीं तो मैं छीन लूंगा। 17 इसलिथे उन जवानोंका पाप यहोवा की दृष्टि में बहुत भारी हुआ; क्योंकि वे मनुष्य यहोवा की भेंट का तिरस्कार करते थे।। 18 परन्तु शमूएल जो बालक या सनी का एपोद पहिने हुए यहोवा के साम्हने सेवा टहल किया करता या। 19 और उसकी माता प्रति वर्ष उसके लिथे एक छोटा सा बागा बनाकर जब अपके पति के संग प्रति वर्ष की मेलबलि चढ़ाने आती यी तब बागे को उसके पास लाया करती यी। 20 और एली ने एल्काना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद देकर कहा, यहोवा इस अर्पण किए हुए बालक की सन्ती जो उसको अर्पण किया गया है तुझ को इस पत्नी के वंश दे; तब वे अपके यहां चले गए। 21 और यहोवा ने हन्ना की सुधि ली, और वह गर्भवती हुई ओर उसके तीन बेटे और दो बेटियां उत्पन्न हुई। और शमूएल बालक यहोवा के संग रहता हुआ बढ़ता गया। 22 और एली तो अति बूढ़ा हो गया या, और उस ने सुना कि मेरे पुत्र सारे इस्राएल से कैसा कैसा व्यवहार करते हैं, वरन मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करनेवाली स्त्रियोंके संग कुकर्म भी करते हैं। 23 तब उस ने उन से कहा, तुम ऐसे ऐसे काम क्योंकरते हो? मैं तो इन सब लोगोंसे तुम्हारे कुकर्मोंकी चर्चा सुना करता हूं। 24 हे मेरे बेटों, ऐसा न करो, क्योंकि जो समाचार मेरे सुनने में आता है वह अच्छा नहीं; तुम तो यहोवा की प्रजा से अपराध कराते हो। 25 यदि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का अपराध करे, तब तो परमेश्वर उसका न्याय करेगा; परन्तु यदि कोई मनुष्य यहोवा के विरूद्ध पाप करे, तो उसके लिथे कौन बिनती करेगा? तौभी उन्होंने अपके पिता की बात न मानी; क्योंकि यहोवा की इच्छा उन्हें मार डालने की यी। 26 परन्तु शमूएल बालक बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनो उस से प्रसन्न रहते थे।। 27 और परमेश्वर का एक जन एली के पास जाकर उस से कहने लगा, यहोवा योंकहता है, कि जब तेरे मूलपुरूष का घराना मिस्र में फिरौन के घराने के वश में या, तब क्या मैं उस पर निश्चय प्रगट न हुआ या? 28 और क्या मैं ने उसे इस्राएल के सब गोत्रोंमें से इसलिथे चुन नहीं लिया या, कि मेरा याजक होकर मेरी वेदी के ऊपर चढ़ावे चढ़ाए, और धूप जलाए, और मेरे साम्हने एपोद पहिना करे? और क्या मैं ने तेरे मूलपुरूष के घराने को इस्राएलियोंके कुल हव्य न दिए थे? 29 इसलिथे मेरे मेलबलि और अन्नबलि जिनको मैं ने अपके धाम में चढ़ाने की आज्ञा दी है, उन्हें तुम लोग क्योंपांव तले रौंदते हो? और तू क्योंअपके पुत्रोंका आदर मेरे आदर से अधिक करता है, कि तुम लोग मेरी इस्राएली प्रजा की अच्छी से अच्छी भेंटें खा खाके मोटे हो जाओ? 30 इसलिथे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, कि मैं ने कहा तो या, कि तेरा घराना और तेरे मूलपुरूष का घराना मेरे साम्हने सदैव चला करेगा; परन्तु अब यहोवा की वाणी यह है, कि यह बात मुझ से दूर हो; क्योंकि जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा, और जो मुझे तुच्छ जानें वे छोटे समझे जाएंगे। 31 सुन, वे दिन आते हैं, कि मैं तेरा भुजबल और तेरे मूलपुरूष के घराने का भुजबल ऐसा तोड़ डालूंगा, कि तेरे घराने में कोई बूढ़ा होने न पाएगा। 32 इस्राएल का कितना ही कल्याण क्योंन हो, तौभी तुझे मेरे धाम का दु:ख देख पकेगा, और तेरे घराने में कोई कभी बूढ़ा न होने पाएगा। 33 मैं तेरे कुल के सब किसी से तो अपक्की वेदी की सेवा न छीनूंगा, परन्तु तौभी तेरी आंखें देखती रह जाएंगी, और तेरा मन शोकित होगा, और तेरे घर की बढ़ती सब अपक्की पूरी जवानी ही में मर मिटेंगें। 34 और मेरी इस बात का चिन्ह वह विपत्ति होगी जो होप्नी और पीनहास नाम तेरे दोनोंपुत्रोंपर पकेगी; अर्यात् वे दोनो के दोनोंएक ही दिन मर जाएंगे। 35 और मैं अपके लिथे एक विश्वासयोग्य याजक ठहराऊंगा, जो मेरे ह्रृदय और मन की इच्छा के अनुसार किया करेगा, और मैं उसका घर बसाऊंगा और स्यिर करूंगा, और वह मेरे अभिषिक्त के आगे सब दिन चला फिरा करेगा। 36 और ऐसा होगा कि जो कोई तेरे घराने में बचा रहेगा वह उसी के पास जाकर एक छोटे से टुकड़े चान्दी के वा एक रोटी के लिथे दण्डवत् करके कहेगा, याजक के किसी काम में मुझे लगा, जिस से मुझे एक टुकड़ा रोटी मिले।।
1 और वह बालक शमूएल एली के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करता या। और उन दिनोंमें यहोवा का वचन दुर्लभ या; और दर्शन कम मिलता या। 2 और उस समय ऐसा हुआ कि (एली की आंखे तो धुंघली होने लगी यीं और उसे न सूफ पड़ता या) जब वह अपके स्यान में लेटा हुआ या, 3 और परमेश्वर का दीपक अब तक बुफा नहीं या, और शमूएल यहेवा के मन्दिर में जंहा परमेश्वर का सन्दूक या लेटा या; 4 तब यहोवा ने शमूएल को पुकारा; और उस ने कहा, क्या आज्ञा! 5 तब उस ने एली के पास दौड़कर कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। वह बोला, मैं ने नहीं पुकारा; फिर जा लेट रह। तो वह जाकर लेट गया। 6 तब यहोवा ने फिर पुकार के कहा, हे शमूएल! शमूएल उठकर एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। उस ने कहा, हे मेरे बेटे, मैं ने नहीं पुकारा; फिर जा लेट रह। 7 उस समय तक तो शमूएल यहोवा को नहीं पहचानता या, और न तो यहोवा का वचन ही उस पर प्रगट हुआ या। 8 फिर तीसरी बार यहोवा ने शमूएल को पुकारा। और वह उठके एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। तब एली ने समझ लिया कि इस बालक को यहोवा ने पुकारा है। 9 इसलिथे एली ने शमूएल से कहा, जा लेट रहे; और यदि वह तुझे फिर पुकारे, तो तू कहना, कि हे यहोवा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है तब शमूएल अपके स्यान पर जाकर लेट गया। 10 तब यहोवा आ खड़ा हुआ, और पहिले की नाईं पुकारा, शमूएल! शमूएल! शमूएल ने कहा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है। 11 यहोवा ने शमूएल से कहा, सुन, मैं इस्राएल में एक काम करने पर हूं, जिससे सब सुननेवालोंपर बड़ा सन्नाटा छा जाएगा। 12 उस दिन मैं एली के विरूद्ध वह सब कुछ पूरा करूंगा जो मैं ने उसके घराने के विषय में कहा, उसे आरम्भ से अन्त तक पूरा करूंगा। 13 क्योंकि मैं तो उसको यह कहकर जता चुका हूं, कि मैं उस अधर्म का दण्ड जिसे वह जानता है सदा के लिथे उसके घर का न्याय करूंगा, क्योंकि उसके पुत्र आप शापित हुए हैं, और उस ने उन्हें नहीं रोका। 14 इस कारण मैं ने एली के घराने के विषय यह शपय खाई, कि एली के घराने के अधर्म का प्रायश्चित न तो मेलबलि से कभी होगा, और न अन्नबलि से। 15 और शमूएल भोर तक लेटा रहा; तब उस ने यहोवा के भवन के किवाड़ोंको खोला। और शमूएल एली को उस दर्शन की बातें बतानें से डरा। 16 तब एली ने शमूएल को पुकारकर कहा, हे मेरे बेटे, शमूएल! वह बोला, क्या आज्ञा। 17 तब उस ने पूछा, वह कौन सी बात है जो यहोवा ने तुझ से कही है? उसे मुझ से न छिपा। जो कुछ उस ने तुझ से कहा हो यदि तू उस में से कुछ भी मुझ से छिपाए, तो परमेश्वर तुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे। 18 तब शमूएल ने उसको रत्ती रत्ती बातें कह सुनाईं, और कुछ भी न छिपा रखा। वह बोला, वह तो यहोवा है; जो कुछ वह भला जाने वही करें। 19 और शमूएल बड़ा होता गया, और यहोवा उसके संग रहा, और उस ने उसकी कोई भी बात निष्फल होने नहीं दी। 20 और दान से बेर्शेबा तक के रहनेवाले सारे इस्राएलियोंने जान लिया कि शमूएल यहोवा का नबी होने के लिथे नियुक्त किया गया है। 21 और यहोवा ने शीलो में फिर दर्शन दिया, क्योंकि यहोवा ने अपके आप को शीलो में शमूएल पर अपके वचन के द्वारा प्रगट किया।।
1 और शमूएल का वचन सारे इस्राएल के पास पहुंचा। और इस्राएली पलिश्तियोंसे युद्ध करने को निकले; और उन्होंने तो एबेनेजेर के आस-पास छावनी डाली, और पलिश्तियोंने अपेक में छावनी डाली। 2 तब पलिश्तियोंने इस्राएल के विरूद्ध पांति बान्धी, और जब घमासान युद्ध होने लगा तब इस्राएली पलिश्तियोंसे हार एग, और उन्होंने कोई चार हजार इस्राएली सेना के पुरूषोंको मैदान ही में मार डाला। 3 और जब वे लोग छावनी में लौट आए, तब इस्राएल के वृद्ध लोग कहने लगे, कि यहोवा ने आज हमें पलिश्तियोंसे क्योंहरवा दिया है? आओ, हम यहोवा की वाचा का सन्दूक शीलो से मांग ले आएं, कि वह हमारे बीच में आकर हमें शत्रुओं के हाथ से बचाए। 4 तब उन लोगोंने शीलोंमें भेजकर वहां से करूबोंके ऊपर विराजनेवाले सेनाओं के यहोवा की वाचा का सन्दूक मंगा लिया; और परमेश्वर की वाचा के सन्दूक के साय एली के दोनोंपुत्र, होप्नी और पिनहास भी वहां थे। 5 जब यहोवा की वाचा का सन्दूक छावनी में पहुंचा, तब सारे इस्राएली इतने बल से ललकार उठे, कि भूमि गूंज उठी। 6 इस ललकार का शब्द सुनकर पलिश्तियोंने पूछा, इब्रियोंकी छावनी में ऐसी बड़ी ललकार का क्या कारण है? तब उन्होंने जान लिया, कि यहोवा का सन्दूक छावनी में आया है। 7 तब पलिश्ती डरकर कहने लगे, उस छावनी में परमेश्वर आ गया है। फिर उन्होंने कहा, हाथ! हम पर ऐसी बात पहिले नहीं हुई यी। 8 हाथ! ऐसे महाप्रतापी देवताओं के हाथ से हम को कौन बचाएगा? थे तो वे ही देवता हैं जिन्होंने मिस्रियोंपर जंगल में सब प्रकार की विपत्तियां डाली यीं। 9 हे पलिश्तियों, तुम हियाव बान्धो, और पुरूषार्य जगाओ, कहीं ऐसा न हो कि जैसे इब्री तुम्हारे अधीन हो गए वैसे तुम भी उनके अधीन हो जाओ; पुरूषार्य करके संग्राम करो। 10 तब पलिश्ती लड़ाई के मैदान में टूट पके, और इस्राएली हारकर अपके अपके डेरे को भागने लगे; और ऐसा अत्यन्त संहार हुआ, कि तीस हजार इस्राएली पैदल खेत आए। 11 और परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया; और एली के दोनो पुत्र, होप्नी और पीनहास, भी मारे गए। 12 तब एक बिन्यामीनी मनुष्य ने सेना में से दौड़कर उसी दिन अपके वस्त्र फाड़े और सिर पर मिट्टी डाले हुए शीलो में पहुंचा। 13 वह जब पहुंचा उस समय एली, जिसका मन परमेश्वर के सन्दूक की चिन्ता से यरयरा रहा या, वह मार्ग के किनारे कुर्सी पर बैठा बाट जोह रहा या। और ज्योंही उस मनुष्य ने नगर में पहुंचकर वह समाचार दिया त्योंही सारा नगर चिल्ला उठा। 14 चिल्लाने का शब्द सुनकर एली ने पूछा, ऐसे हुल्लड़ और हाहाकार मचने का क्या कारण है? और उस मनुष्य ने फट जाकर एली को पूरा हाल सुनाया। 15 एल तो अट्ठानवे वर्ष का या, और उसकी आंखें धुन्धली पड़ गई यीं, और उसे कुछ सूफता न या। 16 उस मनुष्य ने एली से कहा, मैं वही हूं जो सेना में से आया हूं; और मैं सेना से आज ही भाग आया। वह बोला, हे मेरे बेटे, क्या समाचार है? 17 उस समाचार देनेवाले ने उत्तर दिया, कि इस्राएली पलिश्तियोंके साम्हने से भाग गए हैं, और लोगोंका बड़ा भयानक संहार भी हुआ है, और तेरे दोनोंपुत्र होप्नी और पीनहास भी मारे गए, और परमेश्वर का सन्दूक भी छीन लिया गया है। 18 ज्योंही उस ने परमेश्वर के सन्दूक का नाम लिया त्योंही एली फाटक के पास कुर्सी पर से पछाड़ खाकर गिर पड़ा; और बूढ़े और भारी होने के कारण उसकी गर्दन टूट गई, और वह मर गया। उस ने तो इस्राएलियोंका न्याय चालीस वर्ष तक किया या। 19 उसकी बहू पीनहास की स्त्री गर्भवती यी, और उसका समय समीप या। और जब उस ने परमेश्वर के सन्दूक के छीन लिए जाने, और अपके ससुर और पति के मरने का समाचार सुना, तब उसको जच्चा का दर्द उठा, और वह दुहर गई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 20 उसके मरते मरते उन स्त्रियोंने जो उसके आस पास खड़ी यीं उस से कहा, मत डर, क्योंकि तेरे प्रत्र उत्पन्न हुआ है। परन्तु उस ने कुद उत्तर न दिया, और न कुछ ध्यान दिया। 21 और परमेश्वर के सन्दूक के छीन लिए जाने और अपके ससुर और पति के कारण उस ने यह कहकर उस बालक का नाम ईकाबोद रखा, कि इस्राएल में से महिमा उठ गई! 22 फिर उस ने कहा, इस्राएल में से महिमा उठ गई है, क्योंकि परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया है।।
1 और पलिश्तियोंने परमेश्वर का सन्दूक एबनेजेर से उठाकर अशदोद में पहुंचा दिया; 2 फिर पलिश्तियोंने परमेश्वर के सन्दूक को उठाकर दागोन के मन्दिर में पहुंचाकर दागोन के पास धर दिया। 3 बिहान को अशदोदियोंने तड़के उठकर क्या देखा, कि दागोन यहोवा के सन्दूक के साम्हने औंधे मूंह भूमि पर गिरा पड़ा है। तब उन्होंने दागोन को उठाकर उसी के स्यान पर फिर खड़ा किया। 4 फिर बिहान को जब वे तड़के उठे, तब क्या देखा, कि दागोन यहोवा के सन्दूक के साम्हने औंधे मुंह भूमि पर गिरा पड़ा है; और दागोन का सिर और दोनो हथेलियां डेवढ़ी पर कटी हुई पक्की हैं; निदान दागोन का केवल धड़ समूचा रह गया। 5 इस कारण आज के दिन तक भी दागोन के पुजारी और जितने दागोन के मन्दिर में जाते हैं, वे अशदोद में दागोन कीे डेवढ़ी पर पांव नहीं धरते।। 6 तब यहोवा का हाथ अशदोदियोंके ऊपर भारी पड़ा, और वह उन्हें नाश करने लगा; और उस ने अशदोद और उसके आस पास के लोगोंके गिलटियां निकालीं। 7 यह हाल देखकर अशदोद के लोगोंने कहा, इस्राएल के देवता का सन्दूक हमारे मध्य रहने नहीं पाएगा; क्योंकि उसका हाथ हम पर और हमारे देवता दागोन पर कठोरता के साय पड़ा है। 8 तब उन्होंने पलिश्तियोंके सब सरदारोंको बुलवा भेजा, और उन से पूछा, हम इस्राएल के देवता के सन्दूक से क्या करें? वे बोले, इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को घूमाकर गत में पहुंचाया जाए। तो उन्होंने इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को घुमाकर गत में पहुंचा दिया। 9 जब वे उसको घुमाकर वहां पहुंचे, तो यूं हुआ कि यहोवा का हाथ उस नगर के विरूद्ध ऐसा उठा कि उस में अत्यन्त हलचल मच गई; ओर उस ने छोटे से बड़े तब उस नगर के सब लोगोंको मारा, और उनके गिलटियां निकलने लगीं। 10 तब उन्होंने परमेश्वर का सन्दूक एक्रोन को भेजा और ज्योंही परमेश्वर का सन्दूक एक्रोन में पहुंचा त्योंही एक्रोनी यह कहकर चिल्लाने लगे, कि इस्राएल के देवता का सन्दूक घुमाकर हमारे पास इसलिथे पहुंचाया गया है, कि हम और हमारे लोगोंको मरवा डाले। 11 तब उन्होंने पलिश्तियोंके सब सरदारोंको इकट्ठा किया, और उन से कहा, इस्राएल के देवता के सन्दूक को निकाल दो, कि वह अपेन स्यान पर लौट जाए, और हम को और हमारे लोगोंको मार डालने न पाए। उस समस्त नगर में तो मृत्यु के भय की हलचल मच रही यी, और परमेश्वर का हाथ वहां बहुत भारी पड़ा या। 12 और जो मनुष्य न मरे वे भी गिलटियोंके मारे पके रहे; और नगर की चिल्लाहट आकाश तक पहुंची।।
1 यहोवा का सन्दूक पलिश्तियोंके देश में सात महीने तक रहा। 2 तब पलिश्तियोंने याजकोंऔर भावी करनेवालोंको बुलाकर पूछा, कि यहोवा के सन्दूक से हम क्या करें? हमें बताओं की क्या प्रायश्चित देकर हम उसे उसके स्यान पर भेजें? 3 वे बोले, यदि तुम इस्राएल के देवता का सन्दूक वहां भेजा, जो उसे वैसे ही न भेजना; उसकी हानि भरने के लिथे अवश्य ही दोषबलि देना। तब तुम चंगे हो जाओगे, और तुम जान लोगोंकि उसका हाथ तुम पर से क्योंनहीं उठाया गया। 4 उन्होंने पूछा, हम उसकी हानि भरने के लिथे कोन सा दोषबलि दें? वे बोले, पलिश्ती सरदारोंकी गिनती के अनुसार सोने की पांच गिलटियां, और सोने के पांच चूहे; क्योंकि तुम सब और तुम्हारे सरदार दोनोंएक ही रोग से ग्रसित हो। 5 तो तुम अपक्की गिलटियोंऔर अपके देश के नाश करनेवाले चूहोंकी भी मूरतें बनाकर इस्राएल के देवता की महिमा मानो; सम्भव है वह अपना हाथ तुम पर से और तुम्हारे देवताओं और देश पर से उठा ले। 6 तुम अपके मन क्योंऐसे हठीले करते हो जैसे मिस्रियोंऔर फिरौन ने अपके मन हठीले कर दिए थे? जब उस ने उनके मध्य में अचम्भित काम किए, तब क्या उन्होंने उन लोगोंको जाने न दिया, और क्या वे चले न गए? 7 सो अब तुम एक नई गाड़ी बनाओ, और ऐसी दो दुधार गाथें लो जो सुए तले न आई हों, और उन गायोंको उस गाड़ी में जोतकर उनके बच्चोंको उनके पास से लेकर घर को लौटा दो। 8 तब यहोवा का सन्दूक लेकर उस गाड़ी पर धर दो, और साने की जो वस्तुएं तुम उसकी हाति भरने के लिथे दोषबलि की रीति से दोगे उन्हें दूसरे सन्दूक में घर के उसके पास रख दो। फिर उसे रवाना कर दो कि चक्की जाए। 9 और देखते रहना; यदि वह अपके देश के मार्ग से होकर बेतशेमेश को चले, तो जानो कि हमारी यह बड़ी हानि उसी की ओर से हुई: और यदि नहीं, तो हम को निश्चय होगा कि यह मार हम पर उसकी ओर से नहीं, परन्तु संयोग ही से हुई। 10 उन मनुष्योंने वैसा ही किया; अर्यात् दो दुधार गाथें लेकर उस गाड़ी में जोतीं, और उनके बच्चोंको घर में बन्द कर दिया। 11 और यहोवा का सन्दूक, और दूसरा सन्दूक, और सोने के चूहोंऔर अपक्की गिलटियोंकी मूरतोंको गाड़ी पर रख दिया। 12 तब गायोंने बेतशमेश को सीधा मार्ग लिया; वे सड़क ही सड़क बम्बाती हुई चक्की गई, और न दहिने मुड़ी और न बाथें; और पलिश्तियोंके सरदार उनके पीछे पीछे बेतशेमेश के सिवाने तक गए। 13 और बेतशेमेश के लोग तराई में गेहूं काट रहे थे; और जब उन्होंने आंखें उठाकर सन्दूक को देखा, तब उसके देखने से आनन्दित हुए। 14 और गाड़ी यहोशू नाम एक बेतशेमेशी के खेत में जाकर वहां ठहर गई, जहां एक बड़ा पत्यर या। तब उन्होंने गाड़ी की लकड़ी को चीरा और गायोंको होमबलि करके यहोवा के लिथे चढ़ाया। 15 और लेवीयोंने यहोवा के सन्दूक को उस सन्दूक के समेत जो साय या, जिस में सोने की वस्तुएं यी, उतारके उस बड़े पत्यर पर धर दिया; और बेतशेमेश के लोगोंने उसी दिन यहोवा के लिथे होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। 16 यह देखकर पलिश्तियोंके पांचोंसरदार उसी दिन एक्रोन को लौट गए।। 17 सोने की गिलटियां जो पलिश्तियोंने यहोवा की हाति भरने के लिथे दोषबलि करके दे दी यी उन में से एक तो अशदोद की ओर से, एक अज्जा, एक अश्कलोन, एक गत, और एक एक्रोन की ओर से दी गई यी। 18 और वह सोने के चूहे, क्या शहरपनाहवाले नगर, क्या बिना शहरपनाह के गांव, वरन जिस बड़े पत्यर पर यहोवा का सन्दूक धरा गया या वहां पलिश्तियोंके पांचोंसरदारोंके अधिक्कारने तक की सब बस्तियोंकी गिनती के अनुसार दिए गए। वह पत्यर तो आज तक बेतशेमेशी यहोशू के खेत में है। 19 फिर इस कारण से कि बेतशेमेश के लोगोंने यहोवा के सन्दूक के भीतर फांका या उस ने उन में से सत्तर मनुष्य, और फिर पचास हजार मनुष्य मार डाले; और वहां के लोगोंने इसलिथे विलाप किया कि यहोवा ने लोगोंका बड़ा ही संहार किया या। 20 तब बेतशेमेश के लोग कहने लगे, इस पवित्र परमेश्वर यहोवा के साम्हने कौन खड़ा रह सकता है? और वह हमारे पास से किस के पास चला जाए? 21 तब उन्होंने किर्यत्यारीम के निवासियोंके पास योंकहने को दूत भेजे, कि पलिश्तियोंने यहोवा का सन्दूक लौटा दिया है; इसलिथे तुम आकर उसे अपके यहां ले जाओ।।
1 तब किर्यत्यारीम के लोगोंने जाकर यहोवा के सन्दूक को उठाया, और अबीनादाब के घर में जो टीले पर बना या रखा, और यहोवा के सन्दूक की रझा करने के लिथे अबीनादाब के पुत्र एलीआजार को पवित्र किया।। 2 किर्यत्यारीम में रहते रहते सन्दूक को बहुत दिन हुए, अर्यात् बीस वर्ष बीत गए, और इस्राएल का सारा घराना विलाप करता हुआ यहोवा के पीछे चलने लगा। 3 तब शमूएल ने इस्राएल के सारे घराने से कहा, यदि तुम अपके पूर्ण मन से यहोवा की ओर फिरे हो, तो पराए देवताओं और अश्तोरेत देवियोंको अपके बीच में से दूर करो, और यहोवा की ओर अपना मन लगाकर केवल उसी की उपासना करो, तब वह तुम्हें पलिश्तियोंके हाथ से छुड़ाएगा। 4 तब इस्राएलियोंने बाल देवताओं और अशतोरेत देवियोंको दूर किया, और केवल यहोवा ही की उपासना करने लगे।। 5 फिर शमूएल ने कहा, सब इस्राएलियोंको मिस्पा में इकट्ठा करो, और मैं तुम्हारे लिथे यहोवा से प्रार्यना करूंगा। 6 तब वे मिस्पा में इकट्ठे हुए, और जल भरके यहोवा के साम्हने उंडेल दिया, और उस दिन उपवास किया, और वहां कहने लगे, कि हम ने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है। और शमूएल ने मिस्पा में इस्राएलियोंका न्याय किया। 7 जब पलिश्तियोंने सुना कि इस्राएली मिस्पा में इकट्ठे हुए हैं, तब उनके सरदारोंने इस्राएलियोंपर चढ़ाई की। यह सुनकर इस्राएली पलिश्तियोंसे भयभीत हुए। 8 और इस्राएलियोंने शमूएल से कहा, हमारे लिथे हमारे परमेश्वर यहोवा की दोहाई देना न छोड़, जिस से वह हम को पलिश्तियोंके हाथ से बचाए। 9 तब शमूएल ने एक दूधपिउवा मेम्ना ले सर्वांग होमबलि करके यहोवा को चढ़ाया; और शमूएल ने इस्राएलियोंके लिथे यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने उसकी सुन ली। 10 और जिस समय शमूएल होमबलि हो चढ़ा रहा या उस समय पलिश्ती इस्राएलियोंके संग युद्ध करने के लिथे निकट आ गए, तब उसी दिन यहोवा ने पलिश्तियोंके ऊपर बादल को बड़े कड़क के साय गरजाकर उन्हें घबरा दिया; और वे इस्राएलियोंसे हार गए। 11 तब इस्राएली पुरूषोंने मिस्पा से निकलकर पलिश्तियोंको खदेड़ा, और उन्हें बेतकर के नीचे तक मारते चले गए। 12 तब शमूएल ने एक पत्यर लेकर मिस्पा और शेन के बीच में खड़ा किया, और यह कहकर उसका नाम एबेनेजेर रखा, कि यहां तक यहोवा ने हमारी सहाथता की है। 13 तब पलिश्ती दब गए, और इस्राएलियोंके देश में फिर न आए, और शमूएल के जीवन भर यहोवा का हाथ पलिश्तियोंके विरूद्ध बना रहा। 14 और एक्रोन और गत तक जितने नगर पलिश्तियोंने इस्राएलियोंके हाथ से छीन लिए थे, वे फिर इस्राएलियोंके वश में आ गए; और उनका देश भी इस्राएलियोंने पलिश्तियोंके हाथ से छुड़ाया। और इस्राएलियोंऔर एमोरियोंके बीच भी सन्धि हो गई। 15 और शमूएल जीवन भर इस्राएलियोंका न्याय करता रहा। 16 वह प्रति वर्ष बेतेल और गिलगाल और मिस्पा में घूम-घूमकर उन सब स्यानोंमें इस्राएलियोंका न्याय करता या। 17 तब वह रामा में जहां उसका घर या लौट आया, और वहां भी इस्राएलियोंका न्याय करता या, और वहां उस ने यहोवा के लिथे एक वेदी बनाई।।
1 जब शमूएल बूढ़ा हुआ, तब उस ने अपके पुत्रोंको इस्राएलियोंपर न्यायी ठहराया। 2 उसके जेठे पुत्र का नाम योएल, और दूसरे का नाम अबिय्याह या; थे बेर्शेबा में न्याय करते थे। 3 परन्तु उसके पुत्र उसकी राह पर न चले, अर्यात् लालच में आकर घूस लेते और न्याय बिगाड़ते थे।। 4 तब सब इस्राएली वृद्ध लोग इकट्ठे होकर रामा में शमूएल के पास जाकर 5 उस से कहने लगे, सुन, तू तो अब बूढ़ा हो गया, और तेरे पुत्र तेरी राह पर नहीं चलते; अब हम पर न्याय करने के लिथे सब जातियोंकी रीति के अनुसार हमारे लिथे एक राजा नियुक्त कर दे। 6 परन्तु जो बात उन्होंने कही, कि हम पर न्याय करने के लिथे हमारे ऊपर राजा नियुक्त कर दे, यह बात शमूएल को बुरी लगी। और शमूएल ने यहोवा से प्रार्यना की। 7 और यहोवा ने शमूएल से कहा, वे लोग जो कुछ तुझ से कहें उसे मान ले; क्योंकि उन्होंने तुझ को नहीं परन्तु मुझी को निकम्मा जाना है, कि मैं उनका राजा न रहूं। 8 जैसे जैसे काम वे उस दिन से, जब से मैं उन्हें मिस्र से निकाल लाया, आज के दिन तक करते आए हैं, कि मुझ को त्यागकर पराए, देवताओं की उपासना करते आए हैं, वैसे ही वे तुझ से भी करते हैं। 9 इसलिथे अब तू उनकी बात मान; तौभी तू गम्भीरता से उनको भली भांति समझा दे, और उनको बतला भी दे कि जो राजा उन पर राज्य करेगा उसका व्यवहार किस प्रकार होगा।। 10 और शमूएल ने उन लोगोंको जो उस से राजा चाहते थे यहोवा की सब बातें कह सुनाईं। 11 और उस ने कहा जो राजा तुम पर राज्य करेगा उसकी यह चाल होगी, अर्यात् वह तुम्हारे पुत्रोंको लेकर अपके रयोंऔर घोड़ोंके काम पर नौकर रखेगा, और वे उसके रयोंके आगे आगे दौड़ा करेंगे; 12 फिर वह उनको हजार हजार और पचास पचास के ऊपर प्रधान बनाएगा, और कितनोंसे वह अपके हल जुतवाएगा, और अपके खेत कटवाएगा, और अपके लिथे युद्ध के हयियार और रयोंके साज बनवाएगा। 13 फिर वह तुम्हारी बेटियोंको लेकर उन से सुगन्धद्रव्य और रसोई और रोटियां बनवाएगा। 14 फिर वह तुम्हारे खेतोंऔर दाख और जलपाई की बारियोंमें से जो अच्छी से अच्छी होंगे उन्हें ले लेकर अपके कर्मचारियोंको देगा। 15 फिर वह तुम्हारे बीच और दाख की बारियोंको दसवां अंश ले लेकर अपके हाकिमोंऔर कर्मचारियोंको देगा। 16 फिर वह तुम्हारे दास-दासिक्कों, और तुम्हारे अच्छे से अच्छे जवानोंको, और तुम्हारे गदहोंको भी लेकर अपके काम में लगाएगा। 17 वह तुम्हारी भेड़-बकरियोंका भी दसवां अंश लेगा; निदान तुम लोग उस के दास बन जाओगे। 18 और उस दिन तुम अपके उस चुने हुए राजा के कारण दोहाई दोगे, परन्तु यहोवा उस समय तुम्हारी न सुनेगा। 19 तौभी उन लोगोंने शमूएल की बात न सुनी; और कहने लगे, नहीं! हम निश्चय अपके लिथे राजा चाहते हैं, 20 जिस से हम भी और सब जातियोंके समान हो जाएं, और हमारा राजा हमारा न्याय करे, और हमारे आगे आगे चलकर हमारी ओर से युद्ध किया करे। 21 लोगोंकी थे सब बातें सुनकर शमूएल ने यहोवा के कानोंतक पहुंचाया। 22 यहोवा ने शमूएल से कहा, उनकी बात मानकर उनके लिथे राजा ठहरा दे। तब शमूएल ने इस्राएली मनुष्योंसे कहा, तुम अब अपके अपके नगर को चले जाओ।।
1 बिन्यामीन के गोत्र में कीश नाम का एक पुरूष या, जो अपीह के पुत्र बकोरत का परपोता, और सरोर का पोता, और अबीएल का पुत्र या; वह एक बिन्यामीनी पुरूष का पुत्र और बड़ा शक्तिशाली सूरमा या। 2 उसके शाऊल नाम एक जवान पुत्र या, जो सुन्दर या, और इस्राएलियोंमें कोई उस से बढ़कर सुन्दर न या; वह इतना लम्बा या कि दूसरे लोग उसके कान्धे ही तक आते थे। 3 जब शाऊल के पिता कीश की गदहियां खो गईं, तब कीश ने अपके पुत्र शाऊल से कहा, एक सेवक को अपके साय ले जा और गदहियोंको ढूंढ ला। 4 तब वह एप्रैम के पहाड़ी देश और शलीशा देश होते हुए गया, परन्तु उन्हें न पाया। तब वे शालीम नाम देश भी होकर गए, और वहां भी न पाया। फिर बिन्यामीन के देश में गए, परन्तु गदहियां न मिलीं। 5 जब वे सूफ नाम देश में आए, तब शाऊल ने अपके साय के सेवक से कहा, आ, हम लौट चलें, ऐसा न हो कि मेरा पिता गदहियोंकी चिन्ता छोड़कर हमारी चिन्ता करने लगे। 6 उस ने उस से कहा, सुन, इस नगर में परमेश्वर का एक जन है जिसका बड़ा आदरमान होता है; और जो कुछ वह कहता है वह बिना पूरा हुए नहीं रहता। अब हम उधर चलें, सम्भव है वह हम को हमार मार्ग बताए कि किधर जाएं। 7 शाऊल ने अपके सेवक से कहा, सुन, यदि हम उस पुरूष के पास चलें तो उसके लिथे क्या ले चलें? देख, हमारी यैलियोंमें की रोटी चुक गई है और भेंट के योग्य कोई वस्तु है ही नहीं, जो हम परमेश्वर के उस जन को दें। हमारे पास क्या है? 8 सेवक ने फिर शाऊल से कहा, कि मेरे पास तो एके शेकेल चान्दी की चौयाई है, वही मैं परमेश्वर के जन को दूंगा, कि वह हम को बताए कि किधर जाएं। 9 पूर्वकाल में तो इस्राएल में जब कोई ऐसा कहता या, कि चलो, हम दर्शी के पास चलें; क्योंकि जो आज कल नबी कहलाता है वह पूर्वकाल में दर्शी कहलाता या। 10 तब शाऊल ने अपके सेवक से कहा, तू ने भला कहा है; हम चलें। सो वे उस नगर को चले जहां परमेश्वर का जन या। 11 उस नगर की चढ़ाई पर चढ़ते समय उन्हें कई एक लड़कियां मिलीं जो पानी भरने को निकली यीं; उन्होंने उन से पूछा, क्या दर्शी यहां है? 12 उन्होंने उत्तर दिया, कि है; देखो, वह तुम्हारे आगे है। अब फुर्ती करो; आज ऊंचे स्यान पर लोगोंका यज्ञ है, इसलिथे वह आज नगर में आया हुआ है। 13 ज्योंही तुम नगर में पहुंचो त्योंही वह तुम को ऊंचे स्यान पर खाना खाने को जाने से पहिले मिलेगा; क्योंकि जब तक वह न पहुंचे तब तक लोग भोजन करेंगे, इसलिथे कि यज्ञ के विषय में वही धन्यवाद करता; तब उसके पीछे ही न्योतहरी भोजन करते हैं। इसलिथे तुम अभी चढ़ जाओ, इसी समय वह तुम्हें मिलेगा। 14 वे नगर में चढ़ गए और ज्योंही नगर के भीतर पहुंचे त्योंही शमूएल ऊंचे स्यान पर चढ़ने की मनसा से उनके साम्हने आ रहा या।। 15 शाऊल के आने से एक दिन पहिले यहोवा ने शमूएल को यह चिता रखा या, 16 कि कल इसी समय मैं तेरे पास बिन्यामीन के देश से एक पुरूश को भेजूंगा, उसी को तू मेरी इस्राएली प्रजा के ऊपर प्रधान होने के लिथे अभिषेक करता। और वह मेरी प्रजा को पलिश्तियोंके हाथ से छुड़ाएगा; क्योंकि मैं ने अपक्की प्रजा पर कृपा दृष्टि की है, इसलिथे कि उनकी चिल्लाहट मेरे पास पंहुची है। 17 फिर जब शमूएल को शाऊल देख पड़ा, तब यहोवा ने उस से कहा, जिस पुरूष की चर्चा मैं ने तु से की यी वह यही है; मेरी प्रजा पर यही अधिक्कारने करेगा। 18 तब शाऊल फाटक में शमूएल के निकट जाकर कहने लगा, मुझे बता कि दर्शी का घर कहां है? 19 उस ने कहा, दर्शी तो मैं हूं; मेरे आगे आगे ऊंचे स्यान पर चढ़ जा, क्योंकि आज के दिन तुम मेरे साय भोरन खाओगे, और बिहान को जो कुछ तेरे मन में हो सब कुछ मैं तुझे बताकर विदा करूंगा। 20 और तेरी गदहियां जो तीन दिन तुए खो गई यीं उनकी कुछ भी चिन्ता न कर, क्योंकि वे मिल गईं। और इस्राएल में जो कुछ मनभाऊ है वह किस का है? क्या वह तेरा और तेरे पिता के सारे घराने का नहीं है? 21 शाऊल ने उत्तर देकर कहा, क्या मैं बिन्यामीनी, अर्यात् सब इस्राएली गोत्रोंमें से छोटे गोत्र का नहीं हूं? और क्या मेरा कुल बिन्यामीनी के गोत्र के सारे कुलोंमें से छोटा नहीं है? इसलिथे तू मुझ से ऐसी बातें क्योंकहता है? 22 तब शमूएल ने शाऊल और उसके सेवक को कोठरी में पहुंचाकर न्योताहारी, जो लगभग तीस जन थे, उनके साय मुख्य स्यान पर बैठा दिया। 23 फिर शमूएल ने रसोइथे से कहा, जो टुकड़ा मैं ने तुझे देकर, अपके पास रख छोड़ने को कहा या, उसे ले आ। 24 तो रसोइथे ने जांघ को मांस समेत उठाकर शाऊल के आगे धर दिया; तब शमूएल ने कहा, जो रखा गया या उसे देख, और अपके साम्हने धरके खा; क्योंकि वह तेरे लिथे इसी नियत समय तक, जिसकी चर्चा करके मैं ने लोगोंको न्योता दिया, रखा हुआ है। और शाऊल ने उस दिन शमूएल के साय भोजन किया। 25 तब वे ऊंचे स्यान से उतरकर नगर में आए, और उस ने घर की छत पर शाऊल से बातें कीं। 26 बिहान को वे तड़के उठे, और पह फटते फटते शमूएल ने शाऊल को छत पर बुलाकर कहा, उठ, मैं तुम को विदा करूंगा। तब शाऊल उठा, और वह और शमूएल दोनोंबाहर निकल गए। 27 और नगर के सिक्के की उतराई पर चलते चलते शमूएल ने शाऊल से कहा, अपके सेवक को हम से आगे बढ़ने की आज्ञा दे, (वह आगे बढ़ गया,) परन्तु तू अभी खड़ा रह कि मैं तुझे परमेश्वर का वचन सुनाऊं।।
1 तब शमूएल ने एक कुप्पी तेल लेकर उसके सिर पर उंडेला, और उसे चूमकर कहा, क्या इसका कारण यह नहीं कि यहोवा ने अपके निज भाग के ऊपर प्रधान होने को तेरा अभिषेक किया है? 2 आज जब तू मेरे पास से चला जाएगा, तब राहेल की कब्र के पास जो बिन्यामीन के देश के सिवाने पर सेलसह में है दो जन तुझे मिलेंगे, और कहेंगे, कि जिन गदिहियोंको तू ढूंढने गया या वे मिल हैं; और सुन, तेरा पिता गदहियोंकी चिन्ता छोड़कर तुम्हारे कारण कुढ़ता हुआ कहता है, कि मैं अपके पुत्र के लिथे क्या करूं? 3 फिर वहां से आगे बढ़कर जब तू ताबोर के बांजवृझ के पास पहुंचेगा, तब वहां तीन जन परमेश्वर के पास बेतेल को जाते हुए तुझे मिलेंगे, जिन में से एक तो बकरी के तीन बच्चे, और दूसरा तीन रोटी, और तीसरा एक कुप्पी दाखमधु लिए हुए होगा। 4 और वे तेरा कुशल पूछेंगे, और तुझे दो रोटी देंगे, और तू उन्हें उनके हाथ से ले लेना। 5 तब तू परमेश्वर के पहाड़ पर पहुंचेगा जहां पलिश्तियोंकी चौकी है; और जब तू वहां नगर में प्रवेश करे, तब नबियोंका एक दल ऊंचे स्यान से उतरता हुआ तुझे मिलेगा; और उनके आगे सितार, डफ, बांसुली, और वीणा होंगे; और वे नबूवत करते होंगे। 6 तब यहोवा का आत्मा तुझ पर बल से उतरेगा, और तू उनके साय होकर नबूवत करने लगेगा, और तू परिवतिर्त होकर और ही मनुष्य हो जाएगा। 7 और जब थे चिन्ह तुझे देख पकेंगे, तब जो काम करने का अवसर तुझे मिले उस में लग जाना; क्योंकि परमेश्वर तेरे संग रहेगा। 8 और तू मुझ से पहिले गिलगाल को जाना; और मैं होमबलि और मेलबलि चढ़ाने के लिथे तेरे पास आऊंगा। तू सात दिन तक मेरी बाट जोहते रहना, तब मैं तेरे पास पहुंचकर तुझे बताऊंगा कि तुझ को क्या क्या करना है। 9 ज्योंही उस ने शमूएल के पास से जाने को पीठ फेरी त्योंही परमेश्वर ने उसके मन को परिवर्तन किया; और वे सब चिन्ह उसी दिन प्रगट हुए।। 10 जब वे उधर उस पहाड़ के पास आए, तब नबियोंका एक दल उसको मिला; और परमेश्वर का आत्मा उस पर बल से उतरा, और वह उसके बीच में नबूवत करने लगा। 11 जब उन सभोंने जो उसे पहिले से जानते थे यह देखा कि वह नबियोंके बीच में नबूवत कर रहा है, तब आपस में कहने लगे, कि कीश के पुत्र को यह क्या हुआ? क्या शाऊल भी नबियोंमें का है? 12 वहां के एक मनुष्य ने उत्तर दिया, भला, उनका बाप कौन है? इस पर यह कहावत चलने लगी, कि क्या शाऊल भी नबियोंमें का है? 13 जब वह नबूवत कर चुका, तब ऊंचे स्यान पर चढ़ गया।। 14 तब शाऊल के चचा ने उस से और उसके सेवक से पूछा, कि तुम कहां गए थे? उस ने कहा, हम तो गदहियोंको ढूंढ़ने गए थे; और जब हम ने देखा कि वे कहीं नहीं मिलतीं, तब शमूएल के पास गए। 15 शाऊल के चचा ने कहा, मुझे बतला दे कि शमूएल ने तुम से क्या कहा। 16 शाऊल ने अपके चचा से कहा, कि उस ने हमें निश्चय करके बतया कि गदहियां मिल गईं। परन्तु जो बात शमूएल ने राज्य के विषय में कही यी वह उस ने उसको न बताई।। 17 तब शमूएल ने प्रजा के लोगोंको मिस्पा में यहोवा के पास बुलवाया; 18 तब उस ने इस्राएलियोंसे कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि मैं तो इस्राएल को मिस्र देश से निकाल लाया, और तुम को मिस्रियोंके हाथ से, और न सब राज्योंके हाथ से जो तुम पर अन्धेर करते थे छुड़ाया है। 19 परन्तु तुम ने आज अपके परमेश्वर को जो सब विपत्तियोंऔर कष्टोंसे तुम्हारा छुड़ानेवाला है तुच्छ जाना; और उस से कहा है, कि हम पर राजा नियुक्त कर दे। इसलिथे अब तुम गोत्र गोत्र और हजार हजार करके यहोवा के साम्हने खड़े हो जाओ। 20 तब शमूएल सारे इस्राएली गोत्रियोंको समीप लाया, और चिट्ठी बिन्यामीन के नाम पर निकली। 21 तब वह बिन्यामीन के गोत्र के कुल कुल करके समीप लाया, और चिट्ठी मत्री के कुल के नाम पर निकली; फिर चिट्ठी कीश के पुत्र शाऊल के नाम पर निकली। और जब वह ढूंढ़ा गया, तब न मिला। 22 तब उन्होंने फिर यहोवा से पूछा, क्या यहां कोई और आनेवाला है? यहोवा ने कहा, हां, सुनो, वह सामान के बीच में छिपा हुआ है। 23 तब वे दौड़कर उसे वहां से लाए; और वह लोगोंके बीच में खड़ा हुआ, और वह कान्धे से सिर तक सब लोगोंसे लम्बा या। 24 शमूएल ने सब लोगोंसे कहा, क्या तुम ने यहोवा के चुने हुए को देखा है कि सारे लोगोंमें कोई उसके बराबर नहीं? तब सक लोग ललकारके बोल उठे, राजा चिरंजीव रहे।। 25 तब शमूएल ने लोगोंसे राजनीति का वर्णन किया, और उसे पुस्तक में लिखकर यहोवा के आगे रख दिया। और शमूएल ने सब लोगोंको अपके अपके घर जान को विदा किया। 26 और शाऊल गिबा को अपके घर चला गया, और उसके साय एक दल भी गया जिनके मन को परमेश्वर ने उभारा या। 27 परन्तु कई लुच्चे लोगोंने कहा, यह जन हमारा क्या उद्धार करेगा? और उन्होंने उसको तुच्छ जाना, और उसके पास भेंट न लाए। तौभी वह सुनी अनसुनी करके चुप रहा।।
1 तब अम्मोनी नाहाश ने चढ़ाई करके गिलाद के याबेस के विरूद्ध छावनी डाली; और याबेश के सब पुरूषोंने नाहाश से कहा, हम से वाचा बान्ध, और हम तेरी अधीनता मना लेंगे। 2 अम्मोनी नाहाश ने उन से कहा, मैं तुम से वाचा इस शर्त पर बान्धूंगा, कि मैं तुम सभोंकी दाहिनी आंखें फोड़कर इसे सारे इस्राएल की नामधराई का कारण कर दूं। 3 याबेश के वृद्ध लोगोंने उस से कहा, हमें सात दिन का अवकाश दे तब तक हम इस्राएल के सारे देश में दूत भेजेंगे। और यदि हम को कोई बचाने वाला न मिलेगा, तो हम तेरे ही पास निकल आऐंगे। 4 दूतोंने शाऊलवाले गिबा में आकर लोगोंको यह सन्देश सुनाया, और सब लोग चिल्ला चिल्लाकर रोने लगे। 5 और शाऊल बैलोंके पीछे पीछे मैदान से चला आता या; और शाऊल ने पूछा, लोगोंको क्या हुआ कि वे रोते हैं? उन्होंने याबेश के लोगोंका सन्देश उसे सुनाया। 6 यह सन्देश सुनते ही शाऊल पर परमेश्वर का आत्मा बल से उतरा, और उसका कोप बहुत भड़क उठा। 7 और उस ने एक जोड़ी बैल लेकर उसके टुकड़े टुकड़े काटे, और यह कहकर दूतोंके हाथ से इस्राएल के सारे देश में कहला भेजा, कि जो कोई आकर शाऊल और शमूएल के पीछे न हो लेगा उसके बैलोंसे ऐसा ही किया जाएगा। तब यहोवा का भय लोगोंमें ऐसा समाया कि वे एक मन होकर निकल आए। 8 तब उस ने उन्हें बेजेक में गिन लिया, और इस्राएलियोंके तीन लाख, और यहूदियोंके तीस हजार ठहरे। 9 और उन्होंने उन दूतोंसे जो आए थे कहा, तुम गिलाद में के याबेश के लोगोंसे योंकहो, कि कल धूप तेज होने की घड़ी तक तुम छुटकारा पाओगे। तब दूतोंने जाकर याबेश के लोगोंको सन्देश दिया, और वे आनन्दित हुए। 10 तब याबेश के लोगोंने कहा, कल हम तुम्हारे पास निकल आएंगे, और जो कुछ तुम को अच्छा लगे वही हम से करना। 11 दूसरे दिन शाऊल ने लोगोंके तीन दल किए; और उन्होंने रात के पिछले पहर में छावनी के बीच में आकर अम्मोनियोंको मारा; और घाम के कड़े होने के समय तक ऐसे मारते रहे कि जो बच निकले वह यहां तक तितर बितर हुए कि दो जन भी एक संग कहीं न रहे। 12 तब लोग शमूएल से कहने लगे, जिन मनुष्योंने कहा या, कि क्या शाऊल हम पर राज्य करेगा? उनको लाओ कि हम उन्हें मार डालें। 13 शाऊल ने कहा, आज के दिन कोई मार डाला न जाएगा; क्योंकि आज यहोवा ने इस्राएलियोंको छुटकारा दिया है।। 14 तब शमूएल ने इस्राएलियोंसे कहा, आओ, हम गिलगाल को चलें, और वहां राज्य को नथे सिक्के से स्यापित करें। 15 तब सब लोग गिलगाल को चले, और वहां उन्होंने गिलगाल में यहोवा के साम्हने शाऊल को राजा बनाया; और वहीं उन्होंने यहोवा को मेलबलि चढ़ाए; और वहीं शाऊल और सब इस्राएली लोगोंने अत्यन्त आनन्द मनाया।।
1 तब शमूएल ने सारे इस्राएलियोंसे कहा, सुनो, जो कुछ तुम ने मुझ से कहा या उसे मानकर मैं ने एक राजा तुम्हारे ऊपर ठहराया है। 2 और अब देखो, वह राजा तुम्हारे आगे आगे चलता है; और अब मैं बूढ़ा हूं, और मेरे बाल उजले हो गए हैं, और मेरे पुत्र तुम्हारे पास हैं; और मैं लड़कपन से लेकर आज तक तुम्हारे साम्हने काम करता रहा हूं। 3 मैं उपस्यित हूं; इसलिथे तुम यहोवा के साम्हने, और उसके अभिषिक्त के सामने मुझ पर साझी दो, कि मैं ने किस का बैल ले लिया? वा किस का गदहा ले लियो? वा किस पर अन्धेर किया? वा किस को पीसा? वा किस के हाथ से अपक्की आंखें बन्द करने के लिथे घूस लिया? बताओ, और मैं वह तुम को फेर दूंगा? 4 वे बोले, तू ने न तो हम पर अन्धेर किया, न हमें पीसा, और न किसी के हाथ से कुछ लिया है। 5 उस ने उन से कहा, आज के दिन यहोवा तुम्हारा साझी, और उसका अभिषिक्त इस बात का साझी है, कि मेरे यहां कुद नहीं निकला। वे बोले, हां, वह साझी है। 6 फिर शमूएल लोगोंसे कहने लगा, जो मूसा और हारून को ठहराकर तुम्हारे पूर्वजोंको मिस्र देश से निकाल लाया वह यहोवा ही है। 7 इसलिथे अब तुम खड़े रहो, और मैं यहोवा के साम्हने उसके सब धर्म के कामोंके विषय में, जिन्हें उस ने तुम्हारे साय और तुम्हारे पूर्वजोंके साय किया है, तुम्हारे साय विचार करूंगा। 8 याकूब मिस्र में गया, और तुम्हारे पूर्वजोंने यहोवा की दोहाई दी; तब यहोवा ने मूसा और हारून को भेजा, और उन्होंने तुम्हारे पूर्वजोंको मिस्र से निकाला, और इस स्यान में बसाया। 9 फिर जब वे अपके परमेश्वर यहोवा को भूल गए, तब उस ने उन्हें हासोर के सेनापति सीसरा, और पलिश्तियोंऔर मोआब के राजा के अधीन कर दिया; और वे उन से लड़े। 10 तब उन्होंने यहोवा की दोहाई देकर कहा, हम ने यहोवा को त्यागकर और बाल देवताओं और अशतोरेत देवियोंकी उपासना करके महा पाप किया है; परन्तु अब तू हम को हमारे शत्रुओं के हाथ से छुड़ा तो हम तेरी उपासना करेंगे। 11 इसलिथे यहोवा ने यरूब्बाल, बदान, यिप्तह, और शमूएल को भेजकर तुम को तुम्हारे चारोंओर के शत्रुओं के हाथ से छुड़ाया; और तुम निडर रहने लगे। 12 और जब तुम ने देखा कि अम्मोनियोंका राजा नाहाश हम पर चढ़ाई करता है, तब यद्यपि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारा राजा या तौभी तुम ने मुझ से कहा, नहीं, हम पर एक राजा राज्य करेगा। 13 अब उस राजा को देखो जिसे तुम ने चुन लिया, और जिसके लिथे तुम ने प्रार्यना की यी; देखो, यहोवा ने ऐ राजा तुम्हारे ऊपर नियुक्त कर दिया है। 14 यदि तुम यहोवा का भय मानते, उसकी उपासना करते, और उसकी बात सुनते रहो, और यहोवा की आज्ञा को टालकर उस से बलवा न करो, और तुम और वह जो तुम पर राजा हुआ है दोनो अपके परमेश्वर यहोवा के पीछे पीछे चलनेवाले बने रहो, तब तो भला होगा; 15 परन्तु यदि तुम यहोवा की बात न मानो, और यहोवा की आज्ञा को टालकर उस से बलवा करो, तो यहोवा का हाथ जैसे तुम्हारे पुरखाओं के विरूद्ध हुआ वैसे ही तुम्हारे भी विरूद्ध उठेगा। 16 इसलिथे अब तुम खड़े रहो, और इस बड़े काम को देखो जिसे यहोवा तुम्हारे आंखोंके साम्हने करने पर है। 17 आज क्या गेहूं की कटनी नहीं हो रही? मैं यहोवा को पुकारूंगा, और वह मेघ गरजाएगा और मेंह बरसाएगा; तब तुम जान लोगे, और देख भी लोगे, कि तुम ने राजा मांगकर यहोवा की दृष्टि में बहुत बड़ी बुराई की है। 18 तब शमूएल ने यहोवा का पुकारा, और यहोवा ने उसी दिन मेघ गरजाया और मेंह बरसाया; और सब लोग यहोवा से और शमूएल से अत्यन्त डर गए। 19 और सब लोगोंने शमूएल से कहा, अपके दासोंके निमित्त अपके परमेश्वर यहोवा से प्रार्यना कर, कि हम मर न जाएं; क्योंकि हम ने अपके सारे पापोंसे बढ़कर यह बुराई की है कि राजा मांगा है। 20 शमूएल ने लोगोंसे कहा, डरो मत; तुम ने यह सब बुराई तो की है, परन्तु अब यहोवा के पीछे चलने से फिर मत मुड़ना; परन्तु अपके सम्पूर्ण मन से उस की उपासना करना; 21 और मत मुड़ना; नहीं तो ऐसी व्यर्य वस्तुओं के पीछे चलने लगोगे जिन से न कुछ लाभ पहुंचेगा, और न कुछ छुटकारा हो सकता है, क्योंकि वे सब व्यर्य ही हैं। 22 यहोवा तो अपके बड़े नाम के कारण अपक्की प्रजा को न तजेगा, क्योंकि यहोवा ने तुम्हे अपक्की ही इच्छा से अपक्की प्रजा बनाया है। 23 फिर यह मुझ से दूर हो कि मैं तुम्हारे लिथे प्रार्यना करना छोड़कर यहोवा के विरूद्ध पापी ठहरूं; मैं तो तुम्हें अच्छा और सीधा मार्ग दिखाता रहूंगा। 24 केवल इतना हो कि तुम लोग यहोवा का भय मानो, और सच्चाई से अपके सम्पूर्ण मान के साय उसकी उपासना करो; क्योंकि यह तो सोचो कि उस ने तुम्हारे लिथे कैसे बड़े बड़े काम किए हैं। 25 परन्तु यदि तुम बुराई करते ही रहोगे, तो तुम और तुम्हारा राजा दोनोंके दोनोंमिट जाओगे।
1 शाऊल तीस वर्ष का होकर राज्य करने लगा, और उस ने इस्राएलियोंपर दो वर्ष तक राज्य किया। 2 फिर शाऊल ने इस्राएलियोंमें से तीन हजार पुरूषोंको अपके लिथे चुन लिया; और उन में से दो हजार शाऊल के साय मिकमाश में और बेतेल के पहाड़ पर रहे, और एक हजार योनातान के साय बिन्यामीन के गिबा में रहे; और दूसरे सब लोगोंको उस ने अपके अपके डेरे में जाने को विदा किया। 3 तब योनातान ने पलिश्तियोंकी उस चौकी को जो गिबा में भी मार लिया; और इसका समाचार पलिश्तियोंके कानोंमें पड़ा। तब शाऊल ने सारे देश में नरसिंगा फुंकवाकर यह कहला भेजा, कि इब्री लोग सुनें। 4 और सब इस्राएलियोंने यह समाचार सुना कि शाऊल ने पलिश्तियोंकी चौकी को मारा है, और यह भी कि पलिश्ती इस्राएल से घृणा करने लगे हैं। तब लोग शाऊल के पीछे चलकर गिलगाल में इकट्ठे हो गए।। 5 और पलिश्ती इस्राएल से युद्ध करने के लिथे इकट्ठे हो गए, अर्यात् तीस हजार रय, और छ: हजार सवार, और समुद्र के तीर की बालू के किनकोंके समान बहुत से लोग इकट्ठे हुए; और बेतावेन के पूर्व की ओर जाकर मिकमाश में छावनी डाली। 6 जब इस्राएली पुरूषोंने देखा कि हम सकेती में पके हैं (और सचमुच लोग संकट में पके थे), तब वे लोग गुफाओं, फाडिय़ों, चट्टानों, गढिय़ों, और गढ़होंमें जा छिपे। 7 और कितने इब्री यरदन पार होकर गाद और गिलाद के देशोंमें चले गए; परन्तु शाऊल गिलगाल ही में रहा, और सब लोग यरयराते हुए उसके पीछे हो लिए।। 8 वह शमूएल के ठहराए हुए समय, अर्यात् सात दिन तक बाट जोहता रहा; परन्तु शमूएल गिलगाल में न आया, और लोग उसके पास से इधर उधर होने लगे। 9 तब शाऊल ने कहा, होमबलि और मेलबलि मेरे पास लाओ। तब उस ने होमबलि को चढ़ाया। 10 ज्योंही वह होमबलि को चढ़ा चुका, तो क्श्या देखता है कि शमूएल आ पहुंचा; और शाऊल उस से मिलने और नमस्कार करने को निकला। 11 शमूएल ने पूछा, तू ने क्या किया? शाऊल ने कहा, जब मैं ने देखा कि लोग मेरे पास से इधर उधर हो चले हैं, और तू ठहराए हुए ेदनोंके भीतर नहीं आया, और पलिश्ती मिकपाश में इकट्ठे हुए हैं, 12 तब मैं ने सोचा कि पलिश्ती गिलगाल में मुझ पर अभी आ पकेंगे, और मैं ने यहोवा से बिनती भी नहीं की है; सो मैं ने अपक्की इच्छा न रहते भी होमबलि चढ़ाया। 13 शमूएल ने शाऊल से कहा, तू ने मूर्खता का काम किया है; तू ने अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को नहीं माना; नहीं तो यहोवा तेरा राज्य इस्राएलियोंके ऊपर सदा स्यिर रखता। 14 परन्तु अब तेरा राज्य बना न रहेगा; यहोवा ने अपके लिथे एक ऐसे पुरूष को ढूंढ़ लिया है जो उसके मन के अनुसार है; और यहोवा ने उसी को अपक्की प्रजा पर प्रधान होने को ठहराया है, क्योंकि तू ने यहोवा की आज्ञा को नहीं माना।। 15 तब शमूएल चल निकला, और गिलगाल से बिन्यामीन के गिबा को गया। और शाऊल ने अपके साय के लोगोंको गिनकर कोई छ: सौ पाए। 16 और शाऊल और उसका पुत्र योनातान और जो लोग उनके साय थे वे बिन्यामीन के गिबा में रहे; और पलिश्ती मिकमाश में डेरे डाले पके रहे। 17 और पलिश्तियोंकी छावनी से नाश करनेवाले तीन दल बान्धकर निकल; एक दल ने शूआल नाम देश की ओर फिर के ओप्रा का मार्ग लिया, 18 एक और दल ने मुझकर बेयोरोन का मार्ग लिया, और एक और दल ने मुड़कर उस देश का मार्ग लिया जो सबोईम नाम तराई की ओर जंगल की तरफ है।। 19 और इस्राएल के पूरे देश में लोहार कहीं नहीं मिलता या, क्योंकि पलिश्तियोंने कहा या, कि इब्री तलवार वा भाला बनाने न पांए; 20 इसलिथे सब इस्राएली अपके अपके हल की फली, और भाले, और कुल्हाड़ी, और हंसुआ तेज करने के लिथे पलिश्तियोंके पास जाते थे; 21 परन्तु उनके हंसुओं, फालों, खेती के त्रिशूलों, और कुल्हाडिय़ोंकी धारें, और पैनोंकी नोकें ठीक करने के लिथे वे रेती रखते थे। 22 सो युद्ध के दिन शाऊल और योनातान के सायियोंमें से किसी के पास न तो तलवार यी और न भाला, वे केवल शाऊल और उसके पुत्र योनातान के पास रहे। 23 और पलिश्तियोंकी चौकी के सिपाही निकलकर मिकमाश की घाटी को गए।।
1 एक दिन शाऊल के पुत्र योनातान ने अपके पिता से बिना कुछ कहे अपके हयियार ढोनेवाले जवान से कहा, आ, हम उधर पलिश्तियोंकी चौकी के पास चलें। 2 शाऊल तो गिबा के सिक्के पर मिग्रोन में के अनार के पेड़ के तले टिका हुआ या, और उसके संग के लोग कोई छ: सौ थे; 3 और एली जो शीलोंमें यहोवा का याजक या, उसके पुत्र पिनहास का पोता, और ईकाबोद के भाई, अहीतूब का पुत्र अहिय्याह भी एपोद पहिने हुए संग या। परन्तु उन लोगोंको मालूम न या कि योनातान चला गया है। 4 उन घाटियोंके बीच में, जिन से होकर योनातान पलिश्तियोंकी चौकी को जाना चाहता या, दोनोंअलंगोंपर एक एक नोकीली चट्टान यी; एक चट्टान का नाम तो बोसेस, और दूसरी का नाम सेने या। 5 एक चट्टान तो उत्तर की ओर मिकमाश के साम्हने, और दूसरी दक्खिन की ओर गेबा के साम्हने खड़ी है। 6 तब योनातान ने अपके हयियार ढोनेवाले जवान से कहा, आ, हम उन खतनारहित लोगोंकी चौकी के पास जाएं; क्या जाने यहोवा हमारी सहाथता करे; क्योंकि यहोवा को कुछ रोक नहीं, कि चाहे तो बहुत लोगोंके द्वारा चाहे योड़े लोगोंके द्वारा छुटकारा दे। 7 उसके हयियार ढोनेवाले ने उस से कहा, जो कुछ तेरे मन में हो वही कर; उधर चल, मैं तेरी इच्छा के अनुसार तेरे संग रहूंगा। 8 योनातान ने कहा, सुन, हम उन मनुष्योंके पास जाकर अपके को उन्हें दिखाएं। 9 यदि वे हम से योंकहें, हमारे आने तक ठहरे रहो, तब तो हम उसी स्यान पर खड़े रहें, और उनके पास न चढ़ें। 10 परन्तु यदि वे यह कहें, कि हमारे पास चढ़ आओ, तो हम यह जानकर चढ़ें, कि यहोवा उन्हें हमारे साय कर देगा। हमारे लिथे यही चिन्ह हो। 11 तब उन दोनोंने अपके को पलिश्तियोंकी चौकी पर प्रगट किया, तब पलिश्ती कहने लगे, देखो, इब्री लोग उन बिलोंमें से जहां वे छिप रहे थे निकले आते हैं। 12 फिर चौकी के लोगोंने योनातान और उसके हयियार ढोनवाले से पुकार के कहा, हमारे पास चढ़ आओ, तब हम तुम को कुछ सिखाएंगे। तब योनातान ने अपके हयियार ढोनवाले से कहा मेरे पीछे पीछे चढ़ आ; क्योंकि यहोवा उन्हें इस्राएलियोंके हाथ में कर देगा। 13 और योनातान अपके हाथोंऔर पावोंके बल चढ़ गया, और उसका हयियार ढोनेवाला भी उसके पीछे पीछे चढ़ गया। और पलिश्ती योनातान के साम्हने गिरते गए, और उसका हयियार ढोनेवाला उसके पीछे पीछे उन्हें मारता गया। 14 यह पहिला संहार जो योनातान और उसके हयियार ढोनेवाल से हुआ, उस में आधे बीघे भूमि में बीस एक पुरूष मारे गए। 15 और छावनी में, और मैदान पर, और उन सब लोगोंमें यरयराहट हुई; और चौकीवाले और नाश करनेवाले भी यरयराने लगे; और भुईंडोल भी हुआ; और अत्यन्त बड़ी यरयराहट हुई। 16 और बिन्यामीन के गिबा में शाऊल के पहरूओं ने दृष्टि करके देखा कि वह भीड़ घटती जाती है, और वे लोग इधर उधर चले जाते हैं।। 17 तब शाऊल ने अपके साय के लोगोंसे कहा, अपक्की गिनती करके देखो कि हमारे पास से कौन चला गया है। उन्होंने गिनकर देखा, कि योनातान और उसका हयियार ढोनेवाला यहां नहीं है। 18 तब शाऊल ने अहिय्याह से कहा, परमेश्वर का सन्दूक इस्राएलियोंके साय या। 19 शाऊल याजक से बातें कर रहा या, कि पलिश्तियोंकी छावनी में हुल्लड़ अधिक होता गया; तब शाऊल ने याजक से कहा, अपना हाथ खींच। 20 तब शाऊल और उसके संग के सब लोग इकट्ठे होकर लड़ाई में गए; वहां उन्होंने क्या देखा, कि एक एक पुरूष की तलवार अपके अपके सायी पर चल रही है, और बहुत कोलाहल मच रहा है। 21 और जो इब्री पहिले की नाईं पलिश्तियोंकी ओर के थे, और उनके साय चारोंओर से छावनी में गए थे, वे भी शाऊल और योनातान के संग के इस्राएलियोंमें मिल गए। 22 और जितने इस्राएली पुरूष एप्रैम के पहाड़ी देश में छिप गए थे, वे भी यह सुनकर कि पलिश्ती भागे जाते हैं, लड़ाई में आ उनका पीछा करने में लग गए। 23 तब यहोवा ने उस दिन इस्राएलियोंको छुटकार दिया; और लड़नेवाले बेतावेन की परली ओर तक चले गए। 24 परन्तु इस्राएली पुरूष उस दिन तंग हुए, क्योंकि शाऊल ने उन लोगोंको शपय धराकर कहा, शापित हो वह, जो सांफ से पहिले कुछ खाए; इसी रीति मैं अपके शत्रुओं से पलटा ले सकूंगा। तब उन लोगोंमें से किसी ने कुछ भी भोजन न किया। 25 और सब लोग किसी वन में पहुंचे, जहां भूमि पर मधु पड़ा हुआ या। 26 जब लोग वन में आए तब क्या देखा, कि मधु टपक रहा है, तौभी शपय के डर के मारे कोई अपना हाथ अपके मुंह तक न ले गया। 27 परन्तु योनातान ने अपके पिता को लोगोंको शपय धराते न सुना या, इसलिथे उस ने अपके हाथ की छड़ी की नोक बढ़ाकर मधु के छत्ते में डुबाया, और अपना हाथ अपके मुंह तक लगाया; तब उसकी आंखोंमें ज्योति आई। 28 तब लोगोंमें से एक मनुष्य ने कहा, तेरे पिता ने लोगोंको दृढ़ता से शपय धरा के कहा, शापित हो वह, जो आज कुछ खाए। और लोग यके मांदे थे। 29 योनातान ने कहा, मेरे पिता ने लोगोंको कष्ट दिया है; देखो, मैं ने इस मधु को योड़ा सा चखा, और मुझे आंखोंसे कैसा सूफने लगा। 30 यदि आज लोग अपके शत्रुओं की लूट से जिसे उन्होंने पाया मनमाना खाते, तो कितना अच्छा होता; अभी तो बहुत पलिश्ती मारे नहीं गए। 31 उस दिन वे मिकमाश से लेकर अय्यालोन तक पलिश्तियोंको मारते गए; और लोग बहुत ही यक गए। 32 सो वे लूट पर टूटे, और भेड़-बकरी, और गाय-बैल, और बछड़े लेकर भूमि पर मारके उनका मांस लोहू समेत खाने लगे। 33 जब इसका समाचार शाऊल को मिला, कि लोग लोहू समेत मांस खाकर यहोवा के विरूद्ध पाप करते हैं। तब उस ने उन से कहा; तुम ने तो विश्वासघात किया है; अभी एक बड़ा पत्यर मेरे पास लुढ़का दो। 34 फिर शाऊल ने कहा, लोगोंके बीच में इधर उधर फिरके उन से कहो, कि अपना अपना बैल और भेड़ शाऊल के पास ले जाओ, और वहीं बलि करके खाओ; और लोहू समेत खाकर यहोवा के विरूद्ध पाप न करो। तब सब लोगोंने उसी रात अपना अपना बैल ले जाकर वहीं बलि किया। 35 तब शाऊल ने यहोवा के लिथे एक वेदी बनवाई; वह तो पहिली वेदी है जो उस ने यहोवा के लिथे बनवाई।। 36 फिर शाऊल ने कहा, हम इसी राज को पलिश्तियोंका पीछा करके उन्हें भोर तक लूटते रहें; और उन में से एक मनुष्य को भी जीवित न छोड़ें। उन्होंने कहा, जो कुछ तुझे अच्छा लगे वही कर। परन्तु याजक ने कहा, हम इधर परमेश्वर के समीप आएं। 37 तब शाऊल ने परमेश्वर से पुछवाया, कि क्या मैं पलिश्तियोंका पीछा करूं? क्या तू उन्हें इस्राएल के हाथ में कर देगा? परन्तु उसे उस दिन कुछ उत्तर न मिला। 38 तब शाऊल ने कहा, हे प्रजा के मुख्य लोगों, इधर आकर बूफो; और देखो कि आज पाप किस प्रकार से हुआ है। 39 क्योंकि इस्राएल के छुड़ानेवाले यहोवा के जीवन की शपय, यदि वह पाप मेरे पुत्र योनातान से हुआ हो, तौभी निश्चय वह मार डाला जाएगा। परन्तु लोगोंमें से किसी ने उसे उत्तर न दिया। 40 तब उस ने सारे इस्राएलियोंसे कहा, तुम एक ओर हो, और मैं और मेरा पुत्र योनातान दूसरी और होंगे। लोगोंने शाऊल से कहा, जो कुछ तुझे अच्छा लगे वही कर। 41 तब शाऊल ने यहोवा से कहा, हे इस्राएल के परमेश्वर, सत्य बात बता। तब चिट्ठी योनातान और शाऊल के नाम पर निकली, और प्रजा बच गई। 42 फिर शाऊल ने कहा, मेरे और मेरे पुत्र योनातान के नाम पर चिट्ठी डालो। तब चिट्ठी योनातान के नाम पर निकली। 43 तब शाऊल ने योनातान से कहा, मुझे बता, कि तू ने क्या किया है। योनातान ने बताया, और उस से कहा, मैं ने अपके हाथ की छड़ी की नोक से योड़ा सा मधु चख तो लिया है; और देख, मुझे मरना है। 44 शाऊल ने कहा, परमेश्वर ऐसा ही करे, वरन इस से भी अधिक करे; हे योनातान, तू निश्चय मारा जाएगा। 45 परन्तु लोगोंने शाऊल से कहा, क्या योनातान मारा जाए, जिस ने इस्राएलियोंका ऐसा बड़ा छुटकारा किया है? ऐसा न होगा! यहोवा के जीवन की शपय, उसके सिर का एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा; क्योंकि आज के दिन उस ने परमेश्वर के साय होकर काम किया है। तब प्रजा के लोगोंने योनातान को बचा लिया, और वह मारा न गया। 46 तब शाऊल पलिश्तियोंका पीछा छोड़कर लौट गया; और पलिश्ती भी अपके स्यान को चले गए।। 47 जब शाऊल इस्राएलियोंके राज्य में स्यिर हो गया, तब वह मोआबी, अम्मोनी, एदोमी, और पलिश्ती, अपके चारोंओर के सब शत्रुओं से, और सोबा के राजाओं से लड़ा; और जहां जहां वह जाता वहां जय पाता या। 48 फिर उस ने वीरता करके अमालेकियोंको जीता, और इस्राएलियोंको लूटनेवालोंके हाथ से छुड़ाया।। 49 शाऊल के पुत्र योनातान, यिशबी, और मलकीश थे; और उसकी दो बेटियोंके नाम थे थे, बड़ी का नाम तो मेरब और छोटी का नाम मीकल या। 50 और शाऊल की स्त्री का नाम अहीनोअम या जो अहीमास की बेटी यी। और उसके प्रधान सेनापति का नाम अब्नेर या जो शाऊल के चचा नेर का पुत्र या। 51 और शाऊल का पिता कीश या, और अब्नेर का पिता नेर अबीएल का पुत्र या। 52 और शाऊल जीवन भर पलिश्तियोंसे संग्राम करता रहा; जब जब शाऊल को कोई वीर वा अच्छा योद्धा दिखाई पड़ा तब तब उस ने उसे अपके पास रख लिया।।
1 शमूएल ने शाऊल से कहा, यहोवा ने अपक्की प्रजा इस्राएल पर राज्य करने के लिथे तेरा अभिषेक करने को मुझे भेजा या; इसलिथे अब यहोवा की बातें सुन ले। 2 सेनाओं का यहोवा योंकहता है, कि मुझे चेत आता है कि अमालेकियोंने इस्राएलियोंसे क्या किया; और जब इस्राएली मिस्र से आ रहे थे, तब उन्होंने मार्ग में उनका साम्हना किया। 3 इसलिथे अब तू जाकर अमालेकियोंको मार, और जो कुछ उनका है उसे बिना कोमलता किए सत्यानाश कर; क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बच्चा, क्या दूधपिउवा, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, क्या ऊंट, क्या गदहा, सब को मार डाल।। 4 तब शाऊल ने लोगोंको बुलाकर इकट्ठा किया, और उन्हें तलाईम में गिना, और वे दो लाख प्यादे, और दस हजार यहूदी पुरूष भी थे। 5 तब शाऊल ने अमालेक नगर के पास जाकर एक नाले में घातकोंको बिठाया। 6 और शाऊल ने केनियोंसे कहा, कि वहां से हटो, अमालेकियोंके मध्य में से निकल जाओ कहीं ऐसा न हो कि मैं उनके साय तुम्हारा भी अन्त कर डालूं; क्योंकि तुम ने सब इस्राएलियोंपर उनके मिस्र से आते समय प्रीति दिखाई यी। और केनी अमालेकियोंके मध्य में से निकल गए। 7 तब शाऊल ने हवीला से लेकर शूर तक जो मिस्र के साम्हने है अमालेकियोंको मारा। 8 और उनके राजा अगाग को जीवित पकड़ा, और उसकी सब प्रजा को तलवार से सत्यानाश कर डाला। 9 परन्तु अगाग पर, और अच्छी से अच्छी भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, मोटे पशुओं, और मेम्नों, और जो कुछ अच्छा या, उन पर शाऊल और उसकी प्रजा ने कोमलता की, और उन्हें सत्यानाश करना न चाहा; परन्तु जो कुछ तुच्छ और निकम्मा या उसको उन्होंने सत्यानाश किया।। 10 तब यहोवा का यह वचन शमूएल के पास पहुंचा, 11 कि मैं शाऊल को राजा बना के पछताता हूं; क्योंकि उस ने मेरे पीछे चलना छोड़ दिया, और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। तब शमूएल का क्रोध भड़का; और वह रात भर यहोवा की दोहाई देता रहा। 12 बिहान को जब शमूएल शाऊल से भेंट करने के लिथे सवेरे उठा; तब शमूएल को यह बताया गया, कि शाऊल कर्म्मेल को आया या, और अपके लिथे एक निशानी खड़ी की, और घूमकर गिलगाल को चला गया है। 13 तब शमूएल शाऊल के पास गया, और शाऊल ने उस से कहा, तुझे यहोवा की ओर से आशीष मिले; मैं ने यहोवा की आज्ञा पूरी की है। 14 शमूएल ने कहा, फिर भेड़-बकरियोंका यह मिमियाना, और गय-बैलोंका यह बंबाना जो मुझे सुनाई देता है, यह क्योंहो रहा है? 15 शाऊल ने कहा, वे तो अमालेकियोंके यहां से आए हैं; अर्यात् प्रजा के लोगोंने अच्छी से अच्छी भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैलोंको तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे बलि करने को छोड़ दिया है; और बाकी सब को तो हम ने सत्यानाश कर दिया है। 16 तब शमूएल ने शाऊल से कहा, ठहर जा! और जो बात यहोवा ने आज रात को मुझ से कही है वह मैं तुझ को बताता हूं। उस ने कहा, कह दे। 17 शमूएल ने कहा, जब तू अपक्की दृष्टि में छोटा या, तब क्या तू इस्राएली गोत्रियोंका प्रधान न हो गया, और क्या यहोवा ने इस्राएल पर राज्य करने को तेरा अभिषेक नहीं किया? 18 और यहोवा ने तुझे यात्रा करने की आज्ञा दी, और कहा, जाकर उन पापी अमालेकियोंको सत्यानाश कर, और जब तक वे मिट न जाएं, तब तक उन से लड़ता रह। 19 फिर तू ने किस लिथे यहोवा की वह बात टालकर लूट पर टूट के वह काम किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है? 20 शाऊल ने शमूएल से कहा, नि:सन्देह मैं ने यहोवा की बात मानकर जिधर यहोवा ने मुझे भेजा उधर चला, और अमालेकियोंको सत्यानाश किया है। 21 परन्तु प्रजा के लोग लूट में से भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों, अर्यात् सत्यानाश होने की उत्तम उत्तम वस्तुओं को गिलगाल में तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे बलि चढ़ाने को ले आए हैं। 22 शमूएल ने कहा, क्या यहोवा होमबलियों, और मेलबलियोंसे उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपक्की बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने और कान लगाना मेढ़ोंकी चर्बी से उत्तम है। 23 देख बलवा करना और भावी कहनेवालोंसे पूछना एक ही समान पाप है, और हठ करना मूरतोंऔर गृहदेवताओं की पूजा के तुल्य है। तू ने जो यहोवा की बात को तुच्छ जाना, इसलिथे उस ने तुझे राजा होने के लिथे तुच्छ जाना है। 24 शाऊल ने शमूएल से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं ने तो अपक्की प्रजा के लोगोंका भय मानकर और उनकी बात सुनकर यहोवा की आज्ञा और तेरी बातोंका उल्लंघन किया है। 25 परन्तु अब मेरे पाप को झमा कर, और मेरे साय लौट आ, कि मैं यहोवा को दण्डवत् करूं। 26 शमूएल ने शाऊल से कहा, मैं तेरे साय न लौटूंगा; क्योंकि तू ने यहोवा की बात को तुच्छ जाना है, और यहोवा ने तुझे इस्राएल का राजा होने के लिथे तुच्छ जाना है। 27 तब शमूएल जाने के लिथे घूमा, और शाऊल ने उसके बागे की छोर को पकड़ा, और वह फट गया। 28 तब शमूएल ने उस से कहा आज यहोवा ने इस्राएल के राज्य को फाड़कर तुझ से छीन लिया, और तेरे एक पड़ोसी को जो तुझ से अच्छा है दे दिया है। 29 और जो इस्राएल का बलमूल है वह न तो फूठ बोलता और न पछताता है; क्योंकि वह मनुष्य नहीं है, कि पछताए। 30 उस ने कहा, मैं ने पाप तो किया है; तौभी मेरी प्रजा के पुरनियोंऔर इस्राएल के साम्हने मेरा आदर कर, और मेरे साय लौट, कि मैं तेरे परमेश्वर यहोवा को दण्डवत करूं। 31 तब शमूएल लौटकर शाऊल के पीछे गया; और शाऊल ने यहोवा का दण्डवत् की। 32 तब शमूएल ने कहा, अमालेकियोंके राजा आगाग को मेरे पास ले आओ। तब आगाग आनन्द के साय यह कहता हुआ उसके पास गया, कि निश्चय मृत्यु का दु:ख जाता रहा। 33 शमूएल ने कहा, जैसे स्त्रियां तेरी तलवार से निर्वंश हुई हैं, वैसे ही तेरी माता स्त्रियोंमें निर्वंश होगी। तब शमूएल ने आगाग को गिलगाल में यहोवा के साम्हने टुकड़े टुकड़े किया।। 34 तब शमूएल रामा को चला गया; और शाऊल अपके नगर गिबा को अपके घर गया। 35 और शमूएल ने अपके जीवन भर शाऊल से फिर भेंट न की, क्योंकि शमूएल शाऊल के लिथे विलाप करता रहा। और यहोवा शाऊल को इस्राएल का राजा बनाकर पछताता या।।
1 और यहोवा ने शमूएल से कहा, मैं ने शाऊल को इस्राएल पर राज्य करने के लिथे तुच्छ जाना है, तू कब तक उसके विषय विलाप करता रहेगा? अपके सींग में तेल भर के चल; मैं तुझ को बेतलेहेमी यिशै के पास भेजता हूं, क्योंकि मैं ने उसके पुत्रोंमें से एक को राजा होने के लिथे चुना है। 2 शमूएल बोला, मैं क्योंकर जा सकता हूं? यदि शाऊल सुन लेगा, तो मुझे घात करेगा। यहोवा ने कहा, एक बछिया साय ले जाकर कहना, कि मैं यहोवा के लिथे यज्ञ करने को आया हूं। 3 और यज्ञ पर यिशै को न्योता देता, तब मैं तुझे जता दूंगा कि तुझ को क्या करना है; और जिसको मैं तुझे बताऊं उसी को मेरी ओर से अभिषेक करना। 4 तब शमूएल ने यहोवा के कहने के अनुसार किया, और बेतलहेम को गया। उस नगर के पुरनिथे यरयराते हुए उस से मिलने को गए, और कहने लगे, क्या तू मित्रभाव से आया है कि नहीं? 5 उस ने कहा, हां, मित्रभाव से आया हूं; म्ें यहोवा के लिथे यज्ञ करने को आया हूं; तुम अपके अपके को पवित्र करके मेरे साय यज्ञ में आओ। तब उस ने यिशै और उसके पुत्रोंको पवित्र करके यज्ञ में आने का न्योता दिया। 6 जब वे आए, तब उस ने एलीआब पर दृष्टि करके सोचा, कि निश्चय जो यहोवा के साम्हने है वही उसका अभिषिक्त होगा। 7 परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके डील की ऊंचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है। 8 तब यिशै ने अबीनादाब को बुलाकर शमूएल के साम्हने भेजा। और उस से कहा, यहोवा ने इसको भी नहीं चुना। 9 फिर यिशै ने शम्मा को साम्हने भेजा। और उस ने कहा, यहोवा ने इसको भी नहीं चुना। 10 योंही यिशै ने अपके सात पुत्रोंको शमूएल के साम्हने भेजा। और शमूएल यिशै से कहता गया, यहोवा ने इन्हें नहीं चुना। 11 तब शमूएल ने यिशै से कहा, क्या सब लड़के आ गए? वह बोला, नहीं, लहुरा तो रह गया, और वह भेड़-बकरियोंको चरा रहा है। शमूएल ने यिशै से कहा, उसे बुलवा भेज; क्योंकि जब तक वह यहां न आए तब तक हम खाने को न बैठेंगे। 12 तब वह उसे बुलाकर भीतर ले आया। उसके तो लाली फलकती यी, और उसकी आंखें सुन्दर, और उसका रूप सुडौल या। तब यहोवा ने कहा, उठकर इस का अभिषेक कर: यही है। 13 तब शमूएल ने अपना तेल का सींग लेकर उसके भाइयोंके मध्य में उसका अभिषेक किया; और उस दिन से लेकर भविष्य को यहोवा का आत्मा दाऊद पर बल से उतरता रहा। तब शमूएल उठकर रामा को चला गया।। 14 और यहोवा का आत्मा शाऊल पर से उठ गया, और यहोवा की ओर से एक दुष्ट आत्मा उसे घबराने लगा। 15 और शाऊल के कर्मचारियोंने उस से कहा, सुन, परमेश्वर की ओर से एक दुष्ट आत्मा तुझे घबराता है। 16 हमारा प्रभु अपके कर्मचारियोंको जो उपस्यित हैं आज्ञा दे, कि वे किसी अच्छे वीणा बजानेवाले को ढूंढ़ ले आएं; और जब जब परमेश्वर की ओर से दुष्ट आत्मा तुझ पर चढ़े, तब तब वह अपके हाथ से बजाए, और तू अच्छा हो जाए। 17 शाऊल ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, अच्छा, एक उत्तम बजवैया देखो, और उसे मेरे पास लाओ। 18 तब एक जवान ने उत्तर देके कहा, सुन, मैं ने बेतलहमी यिशै के एक पुत्र को देखा जो वीणा बजाना जानता है, और वह वीर योद्धा भी है, और बात करने में बुद्धिमान और रूपवान भी है; और यहोवा उसके साय रहता है। 19 तब शाऊल ने दूतोंके हाथ यिशै के पास कहला भेजा, कि अपके पुत्र दाऊद को जो भेड़-बकरियोंके साय रहता है मेरे पास भेज दे। 20 तब यिशै ने रोटी से लदा हुआ एक गदहा, और कुप्पा भर दाखमधु, और बकरी का एक बच्चा लेकर अपके पुत्र दाऊद के हाथ से शाऊल के पास भेज दिया। 21 और दाऊद शाऊल के पास जाकर उसके साम्हने उपस्यित रहने लगा। और शाऊल उस से बहुत प्रीति करने लगा, और वह उसका हयियार ढोनेवाला हो गया। 22 तब शाऊल ने यिशै के पास कहला भेजा, कि दाऊद को मेरे साम्हने उपस्यित रहने दे, क्योंकि मैं उस से बहुत प्रसन्न हूं। 23 और जब जब परमेश्वर की ओर से वह आत्मा शाऊल पर चढ़ता या, तब तब दाऊद वीणा लेकर बजाता; और शाऊल चैन पाकर अच्छा हो जाता या, और वह दुष्ट आत्मा उस में से हट जाता या।।
1 अब पलिश्तियोंने युद्ध के लिथे अपक्की सेनाओं को इकट्ठा किया; और यहूदा देश के सोको में एक साय होकर सोको और अजेका के बीच एपेसदम्मीम में डेरे डाले। 2 और शाऊल और इस्राएली पुरूषोंने भी इकट्ठे होकर एला नाम तराई में डेरे डाले, और युद्ध के लिथे पलिश्तियोंके विरूद्ध पांती बान्धी। 3 पलिश्ती तो एक ओर के पहाड़ पर और इस्राएली दूसरी ओर के पहाड़ पर और इस्राएली दूसरी ओर के पहाड़ पर खड़े रहे; और दोनोंके बीच तराई यी। 4 तब पलिश्तियोंकी छावनी में से एक वीर गोलियत नाम निकला, जो गत नगर का या, और उसके डील की लम्बाई छ: हाथ एक बित्ता यी। 5 उसके सिर पर पीतल का टोप या; और वह एक पत्तर का फिलम पहिने हुए या, जिसका तौल पांच हजार शेकेल पीतल का या। 6 उसकी टांगोंपर पीतल के कवच थे, और उस से कन्धोंके बीच बरछी बन्धी यी। 7 उसके भाले की छड़ जुलाहे के डोंगी के समान यी, और उस भाले का फल छ: सौ शेकेल लोहे का या, और बड़ी ढाल लिए हुए एक जन उसके आगे आगे चलता या 8 वह खड़ा होकर इस्राएली पांतियोंको ललकार के बोला, तुम ने यहां आकर लड़ाई के लिथे क्योंपांति बान्धी है? क्या मैं पलिश्ती नहीं हूं, और तुम शाऊल के अधीन नहीं हो? अपके में से एक पुरूष चुना, कि वह मेरे पास उत्तर आए। 9 यदि वह मुझ से लड़कर मुझे मार सके, तब तो हम तुम्हारे अधीन हो जाएंगे; परन्तु यदि मैं उस पर प्रबल होकर मांरू, तो तुम को हमारे अधीन होकर हमारी सेवा करनी पकेगी। 10 फिर वह पलिश्ती बोला, मैं आज के दिन इस्राएली पांतियोंको ललकारता हूं, किसी पुरूष को मेरे पास भेजो, कि हम एक दूसरे से लड़ें। 11 उस पलिश्ती की इन बातोंको सुनकर शाऊल और समस्त इस्राएलियोंका मन कच्च हो गया, और वे अत्यन्त डर गए।। 12 दाऊद तो यहूदा के बेतलेहेम के उस एप्राती पुरूष को पुत्र या, जिसका नाम यिशै या, और उसके आठ पुत्र थे और वह पुरूष शाऊल के दिनोंमें बूढ़ा और निर्बल हो गया या। 13 यिशै के तीन बड़े पुत्र शाऊल के पीछे होकर लड़ने को गए थे; और उसके तीन पुत्रोंके नाम जो लड़ने को गए थे थे थे, अर्यात् ज्थेश्ठ का नाम एलीआब, दूसरे का अबीनादाब, और तीसरे का शम्मा या। 14 और सब से छोटा दाऊद या; और तीनोंबड़े पुत्र शाऊल के पीछे होकर गए थे, 15 और दाऊद बेतलहेम में अपके पिता की भेड़ बकरियां चराने को शाऊल के पास से आया जाया करता या।। 16 वह पलिश्ती तो चालीस दिन तक सवेरे और सांफ को निकट आकर खड़ा हुआ करता या। 17 और यिशै ने अपके पुत्र दाऊद से कहा, यह एपा भर चबैना, और थे दस रोटियां लेकर छावनी में अपके भाइयोंके पास दौड़ जा; 18 और पक्कीर की थे दस टिकियां उनके सहस्रपति के लिथे ले जा। और अपके भाइयोंका कुशल देखकर उन की कोई चिन्हानी ले आना। 19 शाऊल, और वे भाई, और समस्त इस्राएली पुरूष एला नाम तराई में पलिश्तियोंसे लड़ रहे थे। 20 और दाऊद बिहान को सबेरे उठ, भेड़ बकरियोंको किसी रखवाले के हाथ में छोड़कर, उन वस्तुओं को लेकर चला; और जब सेना रणभूमि को जा रही, और संग्राम के लिथे ललकार रही यी, उसी समय वह गाडिय़ोंके पड़ाव पर पहुंचा। 21 तब इस्राएलियोंऔर पलिश्तियोंने अपक्की अपक्की सेना आम्हने साम्हने करके पांति बांन्धी। 22 औ दाऊद अपक्की समग्री सामान के रखवाले के हाथ में छोड़कर रणभूमि को दौड़ा, और अपके भाइयोंके पास जाकर उनका कुशल झेम पूछा। 23 वह उनके साय बातें कर ही रहा या, कि पलिश्तियोंकी पांतियोंमें से वह वीर, अर्यात् गतवासी गालियत नाम वह पलिश्ती योद्धा चढ़ आया, और पहिले की सी बातें कहने लगा। और दाऊद ने उन्हें सुना। 24 उस पुरूष को देखकर सब इस्राएली अत्यन्त भय खाकर उसके साम्हने से भागे। 25 फिर इस्राएली पुरूष कहने लगे, क्या तुम ने उस पुरूष को देखा है जो चढ़ा आ रहा है? निश्चय वह इस्राएलियोंको ललकारने को चढ़ा आता है; और जो कोई उसे मार डालेगा उसको राजा बहुत धन देगा, और अपक्की बेटी ब्याह देगा, और उसके पिता के घराने को इस्राएल में स्वतन्त्र कर देगा। 26 तब दाऊद ने उन पुरूषोंसे जो उसके आस पास खड़े थे पूछा, कि जो उस पलिश्ती को मारके इस्राएलियोंकी नामधराई दूर करेगा उसके लिथे क्या किया जाएगा? वह खतनारहित पलिश्ती तो क्या है कि जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारे? 27 तब लोगोंने उस से वही बातें कहीं, अर्यात् यह, कि जो कोई उसे मारेगा उस से ऐसा ऐसा किया जाएगा। 28 जब दाऊद उन मनुष्योंसे बातें कर रहा या, तब उसका बड़ा भाई एलीआब सुन रहा या; और एलीआब दाऊद से बहुत क्रोधित होकर कहने लगा, तू यहां क्या आया है? और जंगल में उन योड़ी सी भेड़ बकरियोंको तू किस के पास छोड़ आया है? तेरा अभिमान और तेरे मन की बुराई मुझे मालूम है; तू तो लड़ाई देखने के लिथे यहां आया है। 29 दाऊद ने कहा, मैं ने अब क्या किया है, वह तो निरी बात यी? 30 तब उस ने उसके पास से मुंह फेरके दूसरे के सम्मुख होकर वैसी ही बात कही; और लोगोंने उसे पहिले की नाई उत्तर दिया। 31 जब दाऊद की बातोंकी चर्चा हुई, तब शाऊल को भी सुनाई गई; औश्र् उस ने उसे बुलवा भेजा। 32 तब दाऊद ने शाऊल से कहा, किसी मनुष्य का मन उसके कारण कच्चा न हो; तेरा दास जाकर उस पलिश्ती से लड़ेगा। 33 शाऊल ने दाऊद से कहा, तू जाकर उस पलिश्ती के विरूद्ध नहीं युद्ध कर सकता; क्योंकि तू तो लड़का ही है, और वह लड़कपन ही से योद्धा है। 34 दाऊद ने शाऊल से कहा, तेरा दास अपके पिता की भेड़ बकरियां चराता या; और जब कोई सिंह वा भालू फुंड में से मेम्ना उठा ले गया, 35 तब मैं ने उसका पीछा करके उसे मारा, और मेम्ने को उसके मुंह से छुड़ाया; और जब उस ने मुझ पर चढ़ाई की, तब मैं ने उसके केश को पकड़कर उसे मार डाला। 36 तेरे दास ने सिंह और भालू दोनोंको मार डाला; और वह खतनारहित पलिश्ती उनके समान हो जाएगा, क्योंकि उस ने जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारा है। 37 फिर दाऊद ने कहा, यहोवा जिस ने मुझ सिंह और भालू दोनोंके पंजे से बचाया है, वह मुझे उस पलिश्ती के हाथ से भी बचाएगा। शाऊल ने दाऊद से कहा, जा, यहोवा तेरे साय रहे। 38 तब शाऊल ने अपके वस्त्र दाऊद को पहिनाए, और पीतल का टोप उसके सिर पर रख दिया, और फिलम उसको पहिनाया। 39 और दाऊद ने उसकी तलवार वस्त्र के ऊपर कसी, और चलने का यत्न किया; उस ने तो उनको न परखा या। इसलिथे दाऊद ने शाऊल से कहा, इन्हें पहिने हुए मुझ से चला नहीं जाता, क्योंकि मैं ने नहीं परखा। और दाऊद ने उन्हें उतार दिया। 40 तब उस ने अपक्की लाठी हाथ में ले नाले में से पांच चिकने पत्यर छांटकर अपक्की चरवाही की यैली, अर्यात् अपके फोले में रखे; और अपना गोफन हाथ में लेकर पलिश्ती के निकट चला। 41 और पलिश्ती चलते चलते दाऊद के निकट पहुंचने लगा, और जो जन उसकी बड़ी ढाल लिए या वह उसके आगे आगे चला। 42 जब पलिश्ती ने दृष्टि करके दाऊद को देखा, तब उसे तुच्छ जाना; क्योंकि वह लड़का ही या, और उसके मुख पर लाली फलकती यी, औश्र् वह सुन्दर या। 43 तब पलिश्ती ने दाऊद से कहा, क्या मैं कुत्ता हूं, कि तू लाठी लेकर मेरे पास आता है? तब पलिश्ती अपके देवताओं के नाम लेकर दाऊद को कोसने लगा। 44 फिर पलिश्ती ने दाऊद से कहा, मेरे पास आ, मैं तेरा मांस आकाश के पझियोंऔर बनपशुओं को दे दूंगा। 45 दाऊद ने पलिश्ती से कहा, तू तो तलवार और भाला और सांग लिए हुए मेरे पास आता है; परन्तु मैं सेनाओं के यहोवा के नाम से तेरे पास आता हूं, जो इस्राएली सेना का परमेश्वर है, और उसी को तू ने ललकारा है। 46 आज के दिन यहोवा तुझ को मेरे हाथ में कर देगा, और मैं तुझ को मारूंगा, और तेरा सिर तेरे धड़ से अलग करूंगा; और मैं आज के दिन पलिश्ती सेना की लोथें आकाश के पझियोंऔर पृय्वी के जीव जन्तुओं को दे दूंगा; तब समस्त पृय्वी के लोग जान लेंगे कि इस्राएल में एक परमेश्वर है। 47 और यह समस्त मण्डली जान लेगी की यहोवा तलवार वा भाले के द्वारा जयवन्त नहीं करता, इसलिथे कि संग्राम तो यहोवा का है, और वही तुम्हें हमारे हाथ में कर देगा। 48 जब पलिश्ती उठकर दाऊद का साम्हना करने के लिथे निकट आया, तब दाऊद सना की ओर पलिश्ती का साम्हना करने के लिथे फुर्ती से दौड़ा। 49 फिर दाऊद ने अपक्की यैली में हाथ डालकर उस में से एक पत्यर निकाला, और उसे गोफन में रखकर पलिश्ती के माथे पर ऐसा मारा कि पत्यर उसके माथे के भीतर घुस गया, और वह भूमि पर मुंह के बल गिर पड़ा। 50 योंदाऊद ने पलिश्ती पर गोफन और एक ही पत्यर के द्वारा प्रबल होकर उसे मार डाला; परन्तु दाऊद के हाथ में तलवार न यी। 51 तब दाऊद दौड़कर पलिश्ती के ऊपर खड़ा हुआ, और उसकी तलवार पकड़कर मियान से खींची, और उसको घात किया, और उसका सिर उसी तलवार से काट डाला। यह देखकर कि हमारा वीर मर गया पलिश्ती भाग गए। 52 इस पर इस्राएली और यहूद पुरूष ललकार उठे, और गत और एक्रोन से फाटकोंतक पलिश्तियोंका पीछा करते गए, और घायल पलिश्ती शारैम के मार्ग में और गत और एक्रोन तक गिरते गए। 53 तब इस्राएली पलिश्तियोंका पीछा छोड़कर लौट आए, और उनके डेरोंको लूट लिया। 54 और दाऊद पलिश्ती का सिर यरूशलेम में ले गया; और उसके हयियार अपके डेरे में धर लिए।। 55 जब शाऊल ने दाऊद को उस पलिश्ती का साम्हना करने के लिथे जाते देखा, तब उस ने अपके सेनापति अब्नेर से पूछा, हे अब्नेर, वह जवान किस का पुत्र है? अब्नेर ने कहा, हे राजा, तेरे जीवन की शपय, मैं नहीं जानता। 56 राजा ने कहा, तू पूछ ले कि वह जवान किस का पुत्र है। 57 जब दाऊद पलिश्ती को मारकर लौटा, तब अब्नेर ने उसे पलिश्ती का सिर हाथ में लिए हुए शाऊल के साम्हने पहुंचाया। 58 शाऊल ने उस से पूछा, हे जवान, तू किस का पुत्र है? दाऊद ने कहा, मैं तो तेरे दास बेतलेहेमी यिशै का पुत्र हूं।।
1 जब वह शाऊल से बातें कर चुका, तब योनातान का मन दाऊद पर ऐसा लग गया, कि योनातान उसे अपके प्राण के बराबर प्यार करने लगा। 2 और उस दिन से शाऊल ने उसे अपके पास रखा, और पिता के घर को फिर लौटने न दिया। 3 ब योनातान ने दाऊद से वाचा बान्धी, क्योंकि वह उसको अपके प्राण के बराबर प्यार करता या। 4 और योनातान ने अपना बागा जो वह स्वयं पहिने या उतारकर अपके वस्त्र समेत दाऊद को दे दिया, वरन अपक्की तलवार और धनुष और कटिबन्ध भी उसको दे दिए। 5 और जहां कहीं शाऊल दाऊद को भेजता या वहां वह जाकर बुद्धिमानी के साय काम करता या; और शाऊल ने उसे योद्धाओं का प्रधान नियुक्त किया। और समस्त प्रजा के लोग और शाऊल के कर्मचारी उस से प्रसन्न थे।। 6 जब दाऊद उस पलिश्ती को मारकर लौटा आता या, और वे सब लोग भी आ रहे थे, तब सब इस्राएली नगरोंसे स्त्रियोंने निकलकर डफ और तिकोने बाजे लिए हुए, आनन्द के साय गाती और नाचक्की हुई, शाऊल राजा के स्वागत में निकलीं। 7 और वे स्त्रियां नाचक्की हुइ एक दूसरी के साय यह गाती गईं, कि शाऊल ने तो हजारोंको, परन्तु दाऊद ने लाखोंको मारा है।। 8 तब शाऊल अति क्रोधित हुआ, और यह बात उसको बुरी लगी; और वह कहने लगा, उन्होंने दाऊद के लिथे तो लाखोंऔर मेरे लिथे हजारोंको ठहराया; इसलिथे अब राज्य को छोड़ उसको अब क्या मिलना बाकी है? 9 तब उस दिन से भविष्य में शाऊल दाऊद की ताक में लगा रहा।। 10 दूसरे दिन परमेश्वर की ओर से ऐ दृष्ट आत्मा शाऊल पर बल से उतरा, और वह अपके घर के भीतर नबूवत करने लगा; दाऊद प्रति दिवस की नाईं अपके हाथ से बजा रहा या। और शाऊल अपके हाथ में अपना भाला लिए हुए या; 11 तब शाऊल ने यह सोचकर, कि मैं ऐसा मारूंगा कि भाला दाऊद को बेधकर भीत में धंस जाए, भाले को चलाया, परन्तु दाऊद उसके साम्हने से दो बार हट गया। 12 और शाऊल दाऊद से डरा करता या, क्योंकि यहोवा दाऊद के साय या और शाऊल के पास से अलग हो गया या। 13 शाऊल ने उसको अपके पास से अलग करके सहस्रपति किया, और वह प्रजा के साम्हने आया जाया करता या। 14 और दाऊद अपक्की समस्त चाल में बुद्धिमानी दिखाता या; और यहोवा उसके साय साय या। 15 और जब शाऊल ने देखा कि वह बहुत बुद्धिमान है, तब वह उस से डर गया। 16 परन्तु इस्राएल और यहूदा के समस्त लोग दाऊद से प्रेम रखते थे; क्योंकि वह उनके देखते आया जाया करता या।। 17 और शाऊल ने यह सोचकर, कि मेरा हाथ नहीं, वरन पलिश्तियोंही का हाथ दाऊद पर पके, उस से कहा, सुन, मैं अपक्की बड़ी बेटी मेरब को तुझे ब्याह दूंगा; इतना कर, कि तू मेरे लिथे वीरता के साय यहोवा की ओर से युद्ध कर। 18 दाऊद ने शाऊल से कहा, मैं क्या हूं, और मेरा जीवन क्या है, और इस्राएल में मेरे पिता का कुल क्या है, कि मैं राजा का दामाद हो जाऊं? 19 जब समय आ गया कि शाऊल की बेटी मेरब दाऊद से ब्याही जाए, तब वह महोलाई अद्रीएल से ब्याही गई। 20 और शाऊल की बेटी मीकल दाऊद से प्रीति रखने लगी; और जब इस बात का समाचार शाऊल को मिला, तब वह प्रसन्न हुआ। 21 शाऊल तो सोचता या, कि वह उसके लिथे फन्दा हो, और पलिश्तियोंका हाथ उस पर पके। और शाऊल ने दाऊद से कहा, अब की बार तो तू अवश्य ही मेरा दामाद हो जाएगा। 22 फिर शाऊल ने अपके कर्मचारियोंको आज्ञा दी, कि दाऊद से छिपकर ऐसी बातें करो, कि सुन, राजा तुझ से प्रसन्न है, और उसके सब कर्मचारी भी तुझ से प्रेम रखते हैं; इसलिथे अब तू राजा का दामाद हो जा। 23 तब शाऊल के कर्मचारियोंने दाऊद से ऐसी ही बातें कहीं। परन्तु दाऊद ने कहा, मैं तो निर्धन और तुच्छ मनुष्य हूं, फिर क्या तुम्हारी दृष्टि में राजा का दामाद होना छोटी बात है? 24 जब शाऊल के कर्मचारियोंने उसे बताया, कि दाऊद ने ऐसी ऐसी बातें कहीं। 25 तब शाऊल ने कहा, तुम दाऊद से योंकहो, कि राजा कन्या का मोल तो कुछ नहीं चाहता, केवल पलिश्तियोंकी एक सौ खलडिय़ां चाहता है, कि वह अपके शत्रुओं से पलटा ले। शाऊल की मनसा यह यी, कि पलिश्तियोंसे दाऊद को मरवा डाले। 26 जब उसके कर्मचारियोंने दाऊद से यह बातें बताईं, तब वह राजा का दामाद होने को प्रसन्न हुआ। जब ब्याह के दिन कुछ रह गए, 27 तब दाऊद अपके जनोंको संग लेकर चला, और पलिश्तियोंके दो सौ पुरूषोंको मारा; तब दाऊद उनकी खलडिय़ोंको ले आया, और वे राजा को गिन गिन कर दी गईं, इसलिथे कि वह राजा का दामाद हो जाए। और शाऊल ने अपक्की बेटी मीकल को उसे ब्याह दिया। 28 जब शाऊल ने देखा, और निश्चय किया कि यहोवा दाऊद के साय है, और मेरी बेटी मीकल उस से प्रेम रखती है, 29 तब शाऊल दाऊद से और भी डर गया। और शाऊल सदा के लिथे दाऊद का बैरी बन गया।। 30 फिर पलिश्तियोंके प्रधान निकल आए, और जब जब वे निकल आए तब तब दाऊद ने शाऊल के और सब कर्मचारियोंसे अधिक बुद्धिमानी दिखाई; इस से उसका नाम बहुत बड़ा हो गया।।
1 और शाऊल ने अपके पुत्र योनातन और अपके सब कर्मचारियोंसे दाऊद को मार डालने की चर्चा की। परन्तु शाऊल का पुत्र योनातन दाऊद से बहुत प्रसन्न या। 2 और योनातन ने दाऊद को बताया, कि मेरा पिता तुझे मरवा डालना चाहता है; इसलिथे तू बिहान को सावधान रहना, और किसी गुप्त स्यान में बैठा हुआ छिपा रहना; 3 और मैं मैदान में जहां तू होगा वहां जाकर अपके पिता के पास खड़ा होकर उस से तेरी चर्चा करूंगा; और यदि मुझे कुछ मालूम हो तो तुझे बताऊंगा। 4 और योनातन ने अपके पिता शाऊल से दाऊद की प्रशंसा करके उस से कहा, कि हे राजा, अपके दास दाऊद का अपराधी न हो; क्योंकि उस ने तेरा कुछ अपराध नहीं किया, वरन उसके सब काम तेरे बहुत हित के हैं; 5 उस ने अपके प्राण पर खेलकर उस पलिश्ती को मार डाला, और यहोवा ने समस्त इस्राएलियोंकी बड़ी जय कराई। इसे देखकर तू आनन्दित हुआ या; और तू दाऊद को अकारण मारकर निर्दोष के खून का पापी क्योंबने? 6 तब शाऊल ने योनातन की बात मानकर यह शपय खाई, कि यहोवा के जीवन की शपय, दाऊद मार डाला न जाएगा। 7 तब योनातन ने दाऊद को बुलाकर थे समस्त बातें उसको बताई। फिर योनातन दाऊद को शाऊल के पास ले गया, और वह पहिले की नाईं उसके साम्हने रहने लगा।। 8 तब फिर लड़ाई होने लगी; और दाऊद जाकर पलिश्तियोंसे लड़ा, और उन्हें बड़ी मार से मारा, और वे उसके साम्हने से भाग गए। 9 और जब शाऊल हाथ में भाला लिए हुए घर में बैठा या; और दाऊद हाथ से बजा रहा ााि, तब यहोवा की ओर से एक दुष्ट आत्मा शाऊल पर चढ़ा। 10 और शाऊल ने चाहा, कि दाऊद को ऐसा मारे कि भाला उसे बेधते हुए भीत में धंस जाए; परन्तु दाऊद शाऊल के साम्हने से ऐसा हट गया कि भाला जाकर भीत ही में धंस गया। और दाऊद भागा, और उस रात को बच गया। 11 और शाऊल ने दाऊद के घर पर दूत इसलिथे भेजे कि वे उसकी घात में रहें, और बिहान को उसे मार डालें, तब दाऊद की स्त्री मीकल ने उसे यह कहकर जताया, कि यदि तू इस रात को अपना प्राण न बचाए, तो बिहान को मारा जाएगा। 12 तब मीकल ने दाऊद को खिड़की से उतार दिया; और वह भाग कर बच निकला। 13 तब मीकल ने गृहदेवताओं को ले चारपाई पर लिटाया, और बकरियोंके रोएं की तकिया उसके सिरहाने पर रखकर उन को वस्त्र ओढ़ा दिए। 14 जब शाऊल ने दाऊद को पकड़ लाने के लिथे दूत भेजे, तब वह बोली, वह तो बीमार है। 15 तब शाऊल ने दूतोंको दाऊद के देखने के लिथे भेजा, और कहा, उसे चारपाई समेत मेरे पास लाओ कि मैं उसे मार डालूं। 16 जब दूत भीतर गए, तब क्या देखते हैं कि चारपाई पर गृहदेवता पके हैं, और सिरहाने पर बकरियोंके रोएं की तकिया है। 17 सो शाऊल ने मीकल से कहा, तू ने मुझे ऐसा धोखा क्योंदिया? तू ने मेरे शत्रु को ऐसा क्योंजाने दिया कि वह बच निकला है? मीकल ने शाऊल से कहा, उस ने मुझ से कहा, कि मुझे जाने दे; मैं तुझे क्योंमार डालूं।। 18 और दाऊद भागकर बच निकला, और रामा में शमूएल के पास पहुंचकर जो कुछ शाऊल ने उस से किया या सब उसे कह सुनाया। तब वह और शमूएल जाकर नबायोत में रहने लगे। 19 जब शाऊल ने दाऊद के पकड़ लाने के लिथे दूत भेजे; और जब शाऊल के दूतोंने नबियोंके दल को नबूवत करते हुए देखा, तब परमेश्वर का आत्मा उन पर चढ़ा, और वे भी नबूवत करने लगे। 20 तब शाऊल ने दाऊद के पकड़ लाने के लिथे दूत भेजे; और जब शाऊल के दूतोंने नबियोंके दल को नबूवत करते हुए, और शमूएल को उनकी प्रधानता करते हुए देखा, तब परमेश्वर का आत्मा उन पर चढ़ा, और वे भी नबूवत करने लगे। 21 इसका समाचार पाकर शाऊल ने और दूत भेजे, और वे भी नबूवत करने लगे। फिर शाऊल ने तीसरी बार दूत भेजे, और वे भी नबूवत करने लगे। 22 तब वह आप ही राता को चला, और उस बड़े गड़हे पर जो सेकू में है पहुंचकर पूछने लगा, कि शमूएल और दाऊद कहां है? किसी ने कहा, वे तो रामा के नबायोत में हैं। 23 तब वह उधर, अर्यात् रामा के नबायोत को चला; और परमेश्वर का आत्मा उस पर भी चढ़ा, और वह रामा के नबायोत को पहुंचने तक नबूवत करता हुआ चला गया। 24 और उस ने भी अपके वस्त्र उतारे, और शमूएल के साम्हने नबूवत करने लगा, और भूमि पर गिरकर दिन और रात नंगा पड़ा रहा। इस कारण से यह कहावत चक्की, कि क्या शाऊल भी नबियोंमें से है?
1 फिर दाऊद रामा के नबायोत से भागा, और योनातन के पास जाकर कहने लगा, मैं ने क्या किया है? मुझ से क्या पाप हुआ? मैं ने तेरे पिता की दृष्टि में ऐसा कौन सा अपराध किया है, कि वह मेरे प्राण की खोज में रहता है? 2 उस ने उस से कहा, ऐसी बात नहीं है; तू मारा न जाएगा। सुन, मेरा पिता मुझ को बिना जताए न तो कोई बड़ा काम करता है और न कोई छोटा; फिर वह ऐसी बात को मुझ से क्योंछिपाएगा? ऐसी कोई बात नहीं है। 3 फिर दाऊद ने शपय खाकर कहा, तेरा पिता निश्चय जानता है कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर है; और वह सोचता होगा, कि योनातन इस बात को न जानने पाए, ऐसा न हो कि वह खेदित हो जाए। परन्तु यहोवा के जीवन की शपय और तेरे जीवन की शपय, नि:सन्देह, मेरे और मृत्यु के बीच डग ही भर का अन्तर है। 4 योनातान ने दाऊद से कहा, जो कुछ तेरा जी चाहे वही मैं तेरे लिथे करूंगा। 5 दाऊद ने योनातान से कहा, सुन कल नया चाँद होगा, और मुझे उचित है कि राजा के साय बैठकर भोजन करूं; परन्तु तू मुझे विदा कर, और मैं परसोंसांफ तक मैदान में छिपा रहूंगा। 6 यदि तेरा पिता मेरी कुछ चिन्ता करे, तो कहना, कि दाऊद ने अपके नगर बेतलेहेम को शीघ्र जाने के लिथे मुझ से बिनती करके छुट्टी मांगी है; क्योंकि वहां उसके समस्त कुल के लिथे वाषिर्क यज्ञ है। 7 यदि वह योंकहे, कि अच्छा! तब तो तेरे दास के लिथे कुशल होगा; परन्तु यदि उसका कोप बहुत भड़क उठे, तो जान लेना कि उस ने बुराई ठानी है। 8 और तू अपके दास से कृपा का व्यवहार करना, क्योंकि तू ने यहोवा की शपय खिलाकर अपके दास को अपके साय वाचा बन्धाई है। परन्तु यदि मुझ से कुछ अपराध हुआ हो, तो तू आप मुझे मार डाल; तू मुझे अपके पिता के पास क्योंपहुंचाए? 9 योनातन ने कहा, ऐसी बात कभी न होगी! यदि मैं निश्चय जानता कि मेरे पिता ने तुझ से बुराई करनी ठानी है, तो क्या मैं तुझ को न बताता? 10 दाऊद ने योनातन से कहा, यदि तेरा पिता तुझ को कठोर उत्तर दे, तो कौन मुझे बताएगा? 11 योनातन ने दाऊद से कहा, चल हम मैदान को निकल जाएं। और वे दोनो मैदान की ओर चले गए।। 12 तब योनातन दाऊद से कहने लगा; इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपय, जब मैं कल वा परसोंइसी समय अपके पिता का भेद पांऊ, तब यदि दाऊद की भलाई देखूं, तो क्या मैं उसी समय तेरे पास दूत भेजकर तुझे न बताऊंगा? 13 यदि मेरे पिता का मन तेरी बुराई करने का हो, और मैं तुझ पर यह प्रगट करके तुझे विदा न करूँ कि तू कुशल के साय चला जाए, तो यहोवा योनातन से ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करे। और यहोवा तेरे साय वैसा ही रहे जैसा वह मेरे पिता के साय रहा। 14 और न केवल जब तक मैं जीवित रहूं, तब तक मुझ पर यहोवा की सी कृपा ऐसा करना, कि मैं न मरूं; 15 परन्तु मेरे घराने पर से भी अपक्की कृपादृष्टि कभी न हटाना! वरन जब यहोवा दाऊद के हर एक शत्रु को पृय्वी पर से नाश कर चुकेगा, तब भी ऐसा न करना। 16 इस प्रकार योनातन ने दाऊद के घराने से यह कहकर वाचा बन्धाई, कि यहोवा दाऊद के शत्रुओं से पलटा ले। 17 और योनातन दाऊद से प्रेम रखता या, और उस ने उसको फिर शपय खिलाई; क्योंकि वह उस ने अपके प्राण के बारबर प्रेम रखता या। 18 तब योनातन ने उस से कहा, कल नया चाँद होगा; और तेरी चिन्ता की जाएगी, क्योंकि तेरी कुर्सी खाली रहेगी। 19 और तू तीन दिन के बीतने पर तुरन्त आना, और उस स्यान पर जाकर जहां तू उस काम के दिन छिपा या, अर्यात् एजेल नाम पत्यर के पास रहना। 20 तब मैं उसकी अलंग, मानो अपके किसी ठहराए हुए चिन्ह पर तीन तीर चलाऊंगा। 21 फिर मैं अपके टहलुए छोकरे को यह कहकर भेजूंगा, कि जाकर तीरोंको ढूंढ ले आ। यदि मैं उस छोकरे से साफ साफ कहूं, कि देख तीर इधर तेरी इस अलंग पर हैं, तो तू उसे ले आ, क्योंकि यहोवा के जीवन की शपय, तेरे लिथे कुशल को छोड़ और कुछ न होगा। 22 परन्तु यदि मैं छोकरे से योंकहूं, कि सुन, तीर उधर तेरे उस अलंग पर है, तो तू चला जाना, क्योंकि यहोवा ने तुझे विदा किया है। 23 और उस बात के विषय जिसकी चर्चा मैं ने और तू ने आपस में की है, यहोवा मेरे और तेरे मध्य में सदा रहे।। 24 इसलिथे दाऊद मैदान में जा छिपा; और जब नया चाँद हुआ, तक राजा भोजन करने को बैठा। 25 राजा तो पहिले की नाईं अपके उस आसन पर बैठा जो भीत के पास या; और योनातन खड़ा हुआ, और अब्नेर शाऊल के निकट बैठा, परन्तु दाऊद का स्यान खाली रहा। 26 उस दिन तो शाऊल यह सोचकर चुप रहा, कि इसका कोई न कोई कारण होगा; वह अशुद्ध होगा, नि:सन्देह शुद्ध न होगा। 27 फिर नथे चाँद के दूसरे दिन को दाऊद का स्यान खाली रहा। और शाऊल ने अपके पुत्र योनातन से पूछा, क्या कारण है कि यिशै का पुत्र न तो कल भोजन पर आया या, और न आज ही आया है? 28 योनातन ने शाऊल से कहा, दाऊद ने बेतलेहेम जाने के लिथे मुझ से बिनती करके छुट्टी मांगी; 29 और कहा, मुझे जाने दे; क्योंकि उस नगर में हमारे कुल का यज्ञ है, और मेरे भाई ने मुझ को वहां उपस्यित होने की आज्ञा दी है। और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे जाने दे कि मैं अपके भाइयोंसे भेंट कर आऊं। इसी कारण वह राजा की मेज पर नहीं आया। 30 तब शाऊल का कोप योनातन पर भड़क उठा, और उस ने उस से कहा, हे कुटिला राजद्रोही के पुत्र, क्या मैं नहीं जानता कि तेरा मन तो यिशै के पुत्र पर लगा है? इसी से तेरी आशा का टूटना और तेरी माता का अनादर ही होगा। 31 क्योंकि जब तक यिशै का पुत्र भूमि पर जीवित रहेगा, तब तक न तो तू और न तेरा राज्य स्यिर रहेगा। इसलिथे अभी भेजकर उसे मेरे पास ला, क्योंकि निश्चय वह मार डाला जाएगा। 32 योनातन ने अपके पिता शाऊल को उत्तर देकर उस से कहा, वह क्योंमारा जाए? उस ने क्या किया है? 33 तब शाऊल ने उसको मारने के लिथे उस पर भाला चलाया; इससे योनातन ने जान लिया, कि मेरे पिता ने दाऊद को मार डालना ठान लिया है। 34 तब योनातन क्रोध से जलता हुआ मेज पर से उठ गया, और महीने के दूसरे दिन को भोजन न किया, क्योंकि वह बहुत खेदित या, इसलिथे कि उसके पिता ने दाऊद का अनादर किया या।। 35 बिहान को योनातन एक छोटा लड़का संग लिए हुए मैदान में दाऊद के साय ठहराए हुए स्यान को गया। 36 तब उस ने अपके छोकरे से कहा, दौड़कर जो जो तीर मैं चलाऊं उन्हें ढूंढ़ ले आ। छोकरा दौड़ता ही या, कि उस ने एक तीर उसके पके चलाया। 37 जब छोकरा योनातन के चलाए तीर के स्यान पर पहुंचा, तब योनातन ने उसके पीछे से पुकारके कहा, तीर तो तेरी परली ओर है। 38 फिर योनातन ने छोकरे के पीछे से पुकारकर कहा, बड़ी फुर्ती कर, ठहर मत। और योनातन ने छोकरे के पीछे से पुकारके कहा, बड़ी फुर्ती कर, ठहर मत! और योनातन का छोकरा तीरोंको बटोरके अपके स्वामी के पास ल आया। 39 इसका भेद छोकरा तो कुछ न जानता या; केवल योनातन और दाऊद इस बात को जानते थे। 40 और योनातन ने अपके हयियार अपके छोकरे को देकर कहा, जा, इन्हें नगर को पहुंचा। 41 ज्योंही छोकरा चला गया, त्योंही दाऊद दक्खिन दिशा की अलंग से निकला, और भूमि पर औंधे मुंह गिरके तीन बार दण्डवत् की; तब उन्होंने एक दूसरे को चूमा, और एक दूसरे के साय रोए, परन्तु दाऊद को रोना अधिक या। 42 तब योनातन ने दाऊद से कहा, कुशल से चला जा; क्योंकि हम दोनोंने एक दूसरे से यह कहके यहोवा के नाम की शपय खाई है, कि यहोवा मेरे और तेरे मध्य, और मेरे और तेरे वंश के मध्य में सदा रहे। तब वह उठकर चला गया; और योनातन नगर में गया।।
1 और दाऊद नोब को अहीमेलेक याजक के पास आया; और अहीमेलेक दाऊद से भेंट करने को यरयराता हुआ निकला, और उस से पूछा, क्या कारण है कि तू अकेला है, और तेरे साय कोई नहीं? 2 दाऊद ने अहीमेलेक याजक से कहा, राजा ने मुझे एक काम करने की आज्ञा देकर मुझ से कहा, जिस काम को मैं तुझे भेजता, और जो आज्ञा मैं तुझे देता हूं, वह किसी पर प्रकट न होने पाए; और मैं ने जवानोंको फलाने स्यान पर जाने को समझाया है। 3 अब तेरे हाथ में क्या है? पांच रोटी, वा जो कुछ मिले उसे मेरे हाथ में दे। 4 याजक ने दाऊद से कहा, मेरे पास साधारण रोटी तो कुछ नहीं है, केवल पवित्र रोटी है; इतना हो कि वे जवान स्त्रियोंसे अलग रहे हों। 5 दाऊद ने याजक को उत्तर देकर उस से कहा, सच है कि हम तीन दिन से स्त्रियोंसे अलग हैं; फिर जब मैं निकल आया, तब तो जवानोंके बर्तन पवित्र थे; यद्यपि यात्रा साधारण है तो आज उनके बर्तन अवश्य ही पवित्र होंगे। 6 तब याजक ने उसको पवित्र रोटी दी; क्योंकि दूसरी रोटी वहां न यी, केवल भेंट की रोटी यी जो यहोवा के सम्मुख से उठाई गई यी, कि उसके उठा लेने के दिन गरम रोटी रखी जाए। 7 उसी दिन वहां दोएग नाम शाऊल का एक कर्मचारी यहोवा के आगे रूका हुआ या; वह एदोमी और शाऊल के चरवाहोंका मुखिया या। 8 फिर दाऊद ने अहीमेलेक से पूछा, क्या यहां तेरे पास कोई भाला व तलवार नहीं है? क्योंकि मुझे राजा के काम की ऐसी जल्दी यी कि मैं न तो तलवार साय लाया हूं, और न अपना कोई हयियार ही लाया। 9 याजक ने कहा, हां, पलिश्ती गोलियत जिसे तू ने एला तराई में घात किया उसकी तलवार कपके में लपेअी हुई एपोद के पीदे धरी है; यदि तू उसे लेना चाहे, तो ले ले, उसे छोड़ और कोई यहां नहीं है। दाऊद बोला, उसके तुल्य कोई नहीं; वही मुझे दे।। 10 तब दाऊद चला, और उसी दिन शाऊल के डर के मारे भागकर गत के राजा आकीश के पास गया। 11 और आकीश के कर्मचारियोंने आकीश से कहा, क्या वह उस देश का राजा दाऊद नहीं है? क्या लोगोंने उसी के विषय नाचते नाचते एक दूसरे के साय यह गाना न गया या, कि शाऊल ने हजारोंको, और दाऊद ने लाखोंको मारा है? 12 दाऊद ने थे बातें अपके मन में रखीं, और गत के राजा आकीश से अत्यन्त डर गया। 13 तब वह उनके साम्हने दूसरी चाल चक्की, और उनके हाथ में पड़कर बौड़हा, अर्यात पागल बन गया; और फाटक के किवाडोंपर लकीरें खींचते, और अपक्की लार अपक्की दाढ़ी पर बहाने लगा। 14 तब आकीश ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, देखो, वह जन तो बावला है; तुम उसे मेरे पास क्योंलाए हो? 15 क्या मेरे पास बावलोंकी कुछ घटी है, कि तुम उसको मेरे साम्हने बावलापन करने के लिथे लाए हो? क्या ऐसा जन मेरे भवन में आने पाएगा?
1 और दाऊद वहां से चला, और अदुल्लाम की गुफा में पहुंचकर बच गया; और यह सुनकर उसके भाईं, वरन उसके पिता का समस्त घराना वहां उसके पास गया। 2 और जितने संकट में पके थे, और जितने ऋणी थे, और जितने उदास थे, वे एक उसके पास इकट्ठे हुए; और हव उनका प्रधान हुआ। और कोई चार सौ पुरूष उसके साय हो गए।। 3 वहां से दाऊद ने मोआब के मिसपे को जाकर मोआब के राजा से कहा, मेरे पिता को अपके पास तब तक आकर रहने दो, जब तक कि मैं न जानूं कि परमेश्वर मेरे लिथे क्या करेगा। 4 और वह उनको मोआब के राजा के सम्मुख ले गया, और जब तक दाऊद उस गढ़ में रहा, तब तक वे उसके पास रहे। 5 फिर गाद नाम एक नबी ने दाऊद से कहा, इस गढ़ में मत रह; चल, यहूदा के देश में जा। और दाऊद चलकर हेरेत के बन में गया।। 6 तब शाऊल ने सुना कि दाऊद और उसके संगियोंका पता लग गया हैं उस समय शाऊल गिबा के ऊंचे स्यान पर, एक फाऊ के पेड़ के तले, हाथ में अपना भाला लिए हुए बैठा या, और उसके कर्मचारी उसके आसपास खड़े थे। 7 तब शाऊल अपके कर्मचारियोंसे जो उसके आसपास खड़े थे कहने लगा, हे बिन्यामीनियों, सुनो; क्या यिशै का पुत्र तुम सभोंको खेत और दाख की बारियां देगा? क्या वह तुम सभोंको सहस्रपति और शतपति करेगा? 8 तुम सभोंने मेरे विरूद्ध क्योंराजद्रोह की गोष्ठी की है? और जब मेरे पुत्र ने यिशै के पुत्र से वाचा बान्धी, तब किसी ने मुझ पर प्रगट नहीं किया; और तुम में से किसी ने मेरे लिथे शोकित होकर मुझ पर प्रगट नहीं किया, कि मेरे पुत्र ने मेरे कर्मचारी को मेरे विरूद्ध ऐसा घात लगाने को उभारा है, जैसा आज के दिन है। 9 तब एदोमी दोएग ने, जो शाऊल के सेवकोंके ऊपर ठहराया गया या, उत्तर देकर कहा, मैं ने तो यिशै के पुत्र को नोब में अहीतूब के पुत्र अहीमेलेक के पास आते देखा, 10 और उस ने उसके लिथे यहोवा से पूछा, और उसे भोजन वस्तु दी, और पलिश्ती गोलियत की तलवार भी दी। 11 और राजा ने अहीतूब के पुत्र अहीमेलेक याजक को और उसके पिता के समस्त घराने को, बुलवा भेजा; और जब वे सब के सब शाऊल राज के पास आए, 12 तब शाऊल ने कहा, हे अहीतूब के पुत्र, सुन, वह बोला, हे प्रभु, क्या आज्ञा? 13 शाऊल ने उस से पुछा, क्या कारण है कि तू और यिशै के पुत्र दोनोंने मेरे विरूद्ध राजद्रोह की गोष्ठी की है? तू ने उसे रोटी और तलवार दी, और उसके लिथे परमेश्वर से पूछा भी, जिस से वह मेरे विरूद्ध उठे, और ऐसा घात लगाए जैसा आज के दिन है? 14 अहीमेलेक ने राजा को उत्तर देकर कहा, तेरे समस्त कर्मचारियोंमें दाऊद के तुल्य विश्वासयोग्य कौन है? वह तो राजा का दामाद है, और तेरी राजसभा में उपस्यित हुआ करत, और तेरे परिवार में प्रतिष्ठित है। 15 क्या मैं ने आज ही उसके लिथे परमेश्वर से पूछना आरम्भ किया है? वह मुझ से दूर रहे! राजा न तो अपके दास पर ऐसा कोई दोष लगाए, न मेरे पिता के समस्त घराने पर, क्योंकि तेरा दास इन सब बखेड़ोंके विषय कुछ भी नहीं जानता। 16 राजा ने कहा, हे अहीमेलेक, तू और तेरे पिता का समस्त घराना निश्चय मार डाला जाएगा। 17 फिर राजा ने उन पहरूओं से जो उसके आसपास खड़े थे आज्ञा दी, कि मुड़ो और यहोवा के याजकोंको मार डालो; क्योंकि उन्होंने भी दाऊद की सहाथता की है, और उसका भागना जानने पर भी मुझ पर प्रगट नहीं किया। परन्तु राजा के सेवक यहोवा के याजकोंको मारने के लिथे हाथ बढ़ाना न चाहते थे। 18 तब राजा ने दोएग से कहा, तू मुड़कर याजकोंको मार डाल। तब एदोमी दोएग ने मुड़कर याजकोंको मारा, और उस दिन सनीवाला एपोद पहिने हुए पचासी पुरूषोंको घात किया। 19 और याजकोंके नगर नोब को उस ने स्त्रियों-पुरूषों, और बालबच्चों, और दूधपिउवों, और बैलों, गदहों, और भेड़-बकरियोंसमेत तलवार से मारा। 20 परन्तु अहीतूब के पुत्र अहीमेलेक का एब्यातार नाम एक पुत्र बच निकला, और दाऊद के पास भाग गया। 21 तब एब्यातार ने दाऊद को बताया, कि शाऊल ने यहोवा के याजकोंको बध किया है। 22 और दाऊद ने एब्यातार से कहा, जिस दिन एदोमी दोएग वहां या, उसी दिन मैं ने जान लिया, कि वह निश्चय शाऊल को बताएगा। तेरे पिता के समस्त घराने के मारे जाने का कारण मैं ही हुआ। 23 इसलिथे तू मेरे साय निडर रह; जो मेरे प्राण का ग्राहक है वही तेरे प्राण का भी ग्राहक है; परन्तु मेरे साय रहने से तेरी रझा होगी।।
1 और दाऊद को यह समाचार मिला कि पलिश्ती लोग कीला नगर से युद्ध कर रहे हैं, और खलिहानोंको लूट रहे हैं। 2 तब दाऊद ने यहोवा से पूछा, कि क्या मैं जाकर पलिश्तियोंको मारूं? यहोवा ने दाऊद से कहा, जा, और पलिश्तियोंको मार के कीला को बचा। 3 परन्तु दाऊद के जनोंने उस से कहा, हम तो इस यहूदा देश में भी डरते रहते हैं, यदि हम कीला जाकर पलिश्तियोंकी सेना का साम्हना करें, तो क्या बहुत अधिक डर में न पकेंगे? 4 तब दाऊद ने यहोवा से फिर पूछा, और यहोवा ने उसे उत्तर देकर कहा, कमर बान्धकर कीला को जा; क्योंकि मैं पलिश्तियोंको तेरे हाथ में कर दूंगा। 5 इसलिथे दाऊद अपके जनोंको संग लेकर कीला को गया, और पलिश्तियोंसे लड़कर उनके पशुओं को हांक लाया, और उन्हें बड़ी मार से मारा। योंदाऊद ने कीला के निवासिक्कों बचाया। 6 जब अहीमेलेक का पुत्र एब्यातार दाऊद के पास कीला को भाग गया या, तब हाथ में एपोद लिए हुए गया या।। 7 तब शाऊल को यह समाचार मिला कि दाऊद कीला को गया है। और शाऊल ने कहा, परमेश्वर ने उसे मेरे हाथ में कर दिया है; वह तो फाटक और बेंड़ेवले नगर में घुसकर बन्द हो गया है। 8 तब शाऊल ने अपक्की सारी सेना को लड़ाई के लिथे बुलवाया, कि कीला को जाकर दाऊद और उसके जनोंको घेर ले। 9 तब दाऊद ने जान लिया कि शाऊल मेरी हानि कि युक्ति कर रहा है; इसलिथे उस ने एब्यातार याजक से कहा, एपोद को निकट ले आ। 10 तब दाऊद ने कहा, हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, तेरे दास ने निश्चय सुना है कि शाऊल मेरे कारण कीला नगर नाश करने को आना चाहता है। 11 क्या कीला के लोग मुझे उसके वश में कर देंगे? क्या जैसे तेरे दास ने सुना है, वैसे ही शाऊल आएगा? हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, अपके दास को यह बता। यहोवा ने कहा, हां, वह आएगा। 12 फिर दाऊद ने पूछा, क्या कीला के लोग मुझे और मेरे जनोंको शाऊल के वश में कर देंगे? यहोवा ने कहा, हां, वे कर देंगे। 13 तब दाऊद और उसके जन जो कोई छ: सौ थे कीला से निकल गए, और इधर उधर जहां कहीं जा सके वहां गए। और जब शाऊल को यह बताया गया कि दाऊद कीला से निकला भाग है, तब उस ने वहां जाने की मनसा छोड़ दी।। 14 जब दाऊद जो जंगल के गढ़ोंमें रहने लगा, और पहाड़ी देश के जीप नाम जंगल में रहा। और शाऊल उसे प्रति दिन ढूंढ़ता रहा, परन्तु परमेश्वर ने उसे उसके हाथ में न पड़ने दिया। 15 और दाऊद ने जान लिया कि शाऊल मेरे प्राण की खोज में निकला है। और दाऊद जीप नाम जंगल के होरेश नाम स्यान में या; 16 कि शाऊल का पुत्र योनातन उठकर उसके पास होरेश में गया, और परमेश्वर की चर्चा करके उसको ढाढ़स दिलाया। 17 उस ने उस से कहा, मत डर; क्योंकि तू मेरे पिता शाऊल के हाथ में न पकेगा; और तू ही इस्राएल का राजा होगा, और मैं तेरे नीचे हूंगा; और इस बात को मेरा पिता शाऊल भी जानता है। 18 तब उन दोनोंने यहोवा की शपय खाकर आपस में वाचा बान्धी; तब दाऊद होरेश में रह गया, और योनातन अपके घर चला गया। 19 तब जीपी लोग गिबा में शाऊल के पास जाकर कहने लगे, दाऊद तो हमारे पास होरेश के गढ़ोंमें, अर्यात् उस हकीला नाम पहाड़ी पर छिपा रहता है, जो यशीमोन के दक्खिन की ओर है। 20 इसलिथे अब, हे राजा, तेरी जो इच्छा आने की है, तो आ; और उसको राजा के हाथ में पकड़वा देना हमारा काम होगा। 21 शाऊल ने कहा, यहोवा की आशीष तुम पर हो, क्योंकि तुम ने मुझ पर दया की है। 22 तुम चलकर और भी निश्चय कर लो; और देख भालकर जान लो, और उसके अड्डे का पता लगा लो, और बूफो कि उसको वहां किसने देखा है; क्योंकि किसी ने मुझ से कहा है, कि वह बड़ी चतुराई से काम करता है। 23 इसलिथे जहां कहीं वह छिपा करता है उन सब स्यानोंको देख देखकर पहिचानो, तब निश्चय करके मेरे पास लौट आना। और मैं तुम्हारे साय चलूंगा, और यदि वह उस देश में कहीं भी हो, तो मैं उसे यहूदा के हजारोंमें से ढूंढ़ निकालूंगा। 24 तब वे चलकर शाऊल से पहिले जीप को गए। परन्तु दाऊद अपके जनोंसमेत माओन नाम जंगल में चला गया या, जो अराबा में यशीमोन के दक्खिन की ओर है। 25 तब शाऊल अपके जनोंको साय लेकर उसकी खोज में गया। इसका समाचार पाकर दाऊद पर्वत पर से उतरके माओन जंगल में रहने लगा। यह सुन शाऊल ने माओन जंगल में दाऊद का पीछा किया। 26 शाऊल तो पहाड़ की एक ओर, और दाऊद अपेन जनोंसमेत पहाड़ की दूसरी ओर जा रहा या; और दाऊद शाऊल के डर के मारे जल्दी जा रहा या, और शाऊल अपके जनोंसमेत दाऊद और उसके जनोंको पकड़ने के लिथे घेरा बनाना चाहता या, 27 कि एक दूत ने शाऊल के पास आकर कहा, फुर्ती से चला आ; क्योंकि पलिश्तियोंने देश पर चढ़ाई की है। 28 यह सुन शाऊल दाऊद का पीछा छोड़कर पलिश्तियोंका साम्हना करने को चला; इस कारण उस स्यान का नाम सेलाहम्महलकोत पड़ा। 29 वहां से दाऊद चढ़कर एनगदी के गढ़ोंमें रहने लगा।।
1 जब शाऊल पलिश्तियोंका पीछा करके लौटा, तब उसको यह समाचार मिला, कि दाऊद एनगदी के जंगल में है। 2 तब शाऊल समस्त इस्राएलियोंमें से तीन हजार को छांटकर दाऊद और उसके जनोंको बनैले बकरोंकी चट्टानोंपर खोजने गया। 3 जब वह मार्ग पर के भेड़शालोंके पास पहुंचा जहां एक गुफा यी, तब शाऊल दिशा फिरने को उसके भीतर गया। और उसी गुफा के कोनोंमें दाऊद और उसके जन बैठे हुए थे। 4 तब दाऊद के जनोंने उस से कहा, सुन, आज वही दिन है जिसके विषय यहोवा ने तुझ से कहा या, कि मैं तेरे शत्रु को तेरे हाथ में सौंप दूंगा, कि तू उस से मनमाना बर्ताव कर ले। तब दाऊद ने उठकर शाऊल के बागे की छोर को छिपकर काट लिया। 5 इसके पीछे दाऊद शाऊल के बागे की छोर काटने से पछताया। 6 और अपके जनोंसे कहने लगा, यहोवा न करे कि मैं अपके प्रभु से जो यहोवा का अभिषिक्त है ऐसा काम करूं, कि उस पर हाथ चलाऊं, क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्त है। 7 ऐसी बातें कहकर दाऊद ने अपके जनोंको घुड़की लगाई और उन्हें शाऊल की हानि करने को उठने न दिया। फिर शाऊल उठकर गुफा से निकला और अपना मार्ग लिया। 8 उसके पीछे दाऊद भी उठकर गुफा से निकला और शाऊल को पीछे से पुकार के बोला, हे मेरे प्रभु, हे राजा। जब शाऊल ने फिर के देखा, तब दाऊद ने भूमि की ओर सिर फुकाकर दण्डवत् की। 9 और दाऊद ने शाऊल से कहा, जो मनुष्य कहते हैं, कि दाऊद तेरी हानि चाहता है उनकी तू क्योंसुनता है? 10 देख, आज तू ने अपक्की आंखोंसे देखा है कि यहोवा ने आज गुफा में तुझे मेरे हाथ सौंप दिया या; और किसी किसी ने तो मुझ से तुझे मारने को कहा या, परन्तु मुझे तुझ पर तरस आया; और मैं ने कहा, मैं अपके प्रभु पर हाथ न चलाऊंगा; क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्त है। 11 फिर, हे मेरे पिता, देख, अपके बागे की छोर मेरे हाथ में देख; मैं ने तेरे बागे की छोर तो काट ली, परन्तु तुझे घात न किया; इस से निश्चय करके जान ले, कि मेरे मन में कोई बुराई वा अपराध का सोच नहीं है। और मैं ने तेरा कुछ अपराध नहीं किया, परन्तु तू मेरे प्राण लेने को मानो उसका अहेर करता रहता है। 12 यहोवा मेरा और तेरा न्याय करे, और यहोवा तुझ से मेरा पलटा ले; परन्तु मेरा हाथ तुझ पर न उठेगा। 13 प्राचीनोंके नीति वचन के अनुसार दुष्टता दुष्टोंसे होती है; परन्तु मेरा हाथ तुझ पर न उठेगा। 14 इस्राएल का राजा किस का पीछा करने को निकला है? और किस के पीछे पड़ा है? एक मरे कुत्ते के पीछे! एक पिस्सू के पीछे! 15 इसलिथे यहोवा न्यायी होकर मेरा तेरा विचार करे, और विचार करके मेरा मुकद्दमा लड़े, और न्याय करके मुझे तेरे हाथ से बचाए। 16 दाऊद शाऊल से थे बातें कही चुका या, कि शाऊल ने कहा, हे मेरे बेटे दाऊद, क्या यह तेरा बोल है? तब शाऊल चिल्लाकर रोने लगा। 17 फिर उस ने दाऊद से कहा, तू मुझ से अधिक धर्मी है; तू ने तो मेरे साय भलाई की है, परन्तु मैं ने तेरे साय बुराई की। 18 और तू ने आज यह प्रगट किया है, कि तू ने मेरे साय भलाई की है, कि जब यहोवा ने मुझे तेरे हाथ में कर दिया, तब तू ने मुझे घात न किया। 19 भला! क्या कोई मनुष्य अपके शत्रु को पाकर कुशल से जाने देता है? इसलिथे जो तू ने आज मेरे साय किया है, इसका अच्छा बदला यहोवा तुझे दे। 20 और अब, मुझे मालूम हुआ है कि तू निश्चय राजा को जाएगा, और इस्राएल का राज्य तेरे हाथ में स्यिर होगा। 21 अब मुझ से यहोवा की शपय खा, कि मैं तेरे वंश को तेरे पीछे नाश न करूंगा, और तेरे पिता के घराने में से तेरा नाम मिटा न डालूंगा। 22 तब दाऊद ने शाऊल से ऐसी ही शपय खाई। तब शाऊल अपके घर चला गया; और दाऊद अपके जनोंसमेत गढ़ोंमें चला गया।
1 और शमूएल मर गया; और समस्त इस्राएलियोंने इकट्ठे होकर उसके लिथे छाती पीटी, और उसके घर ही में जो रामा में या उसको मिट्टी दी। तब दाऊद उठकर पारान जंगल को चला गया।। 2 माओन में एक पुरूष रहता या जिसका माल कर्मेल में या। और वह पुरूष बहुत बड़ा या, और उसके तीन हजार भेड़ें, और एक हजार बकरियोंयीं; और वह अपक्की भेड़ोंका ऊन कतर रहा या। 3 उस पुरूष का नाम नाबाल, और उसकी पत्नी का नाम अबीगैल या। स्त्री तो बुद्धिमान और रूपवती यी, परन्तु पुरूष कठोर, और बुरे बुरे काम करनेवाला या; वह तो कालेबवंशी या। 4 जब दाऊद ने जंगल में समाचार पाया, कि नाबाल अपक्की भेड़ोंका ऊन कतर रहा है; 5 तब दाऊद ने दस जवानोंको वहां भेज दिया, ओर दाऊद ने उन जवानोंसे कहा, कि कर्मेल में नाबाल के पास जाकर मेरी ओर से उसका कुशलझेम पूछो। 6 और उस से योंकहो, कि तू चिरंजीव रहे, तेरा कल्याण हो, और तेरा घराना कल्याण से रहे, और जो कुछ तेरा है वह कल्याण से रहे। 7 मैं ने सुना है, कि जो तू ऊन कतर रहा है; तेरे चरवाहे हम लोगोंके पास रहे, और न तो हम ने उनकी कुछ हानि की, और न उनका कुछ खोया गया। 8 अपके जवानोंसे यह बात पूछ ले, और वे तुझ का बताएंगे। सो इन जवानोंपर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो; हम तो आनन्द के समय में आए हैं, इसलिथे जो कुछ तेरे हाथ लगे वह अपके दासोंऔर अपके बेटे दाऊद को दे। 9 ऐसी ऐसी बातें दाऊद के जवान जाकर उसके नाम से नाबाल को सुनाकर चुप रहे। 10 नाबाल ने दाऊद के जनोंको उत्तर देकर उन से कहा, दाऊद कौन है? यिशै का पुत्र कौन है? आज कल बहुत से दास अपके अपके स्वामी के पास से भाग जाते हैं। 11 क्या मैं अपक्की रोटी-पानी और जो पशु मैं ने अपके कतरनेवालोंके लिथे मारे हैं लेकर ऐसे लोगोंको दे दूं, जिनको मैं नहीं जानता कि कहां के हैं? 12 तब दाऊद के जवानोंने लौटकर अपना मार्ग लिया, और लौटकर उसको से सब बातें ज्योंकी त्योंसुना दीं। 13 तब दाऊद ने अपके जनोंसे कहा, अपक्की अपक्की तलवार बान्ध लो। तब उन्होंने अपक्की अपक्की तलवार बान्ध ली; और दाऊद ने भी अपक्की तलवार बान्घ ली; और कोई चार सौ पुरूष दाऊद के पीछे पीछे चले, और दो सौ समान के पास रह गए। 14 परन्तु एक सेवक ने नाबाल की पत्नी अबीगैल को बताया, कि दाऊद ने जंगल से हमारे स्वामी को आशीर्वाद देने के लिथे दूत भेजे थे; और उस ने उन्हें ललकारा दिया। 15 परन्तु वे मनुष्य हम से बहुत अच्छा बर्ताव रखते थे, और जब तक हम मैदान में रहते हुए उनके पास आया जाया करते थे, तब तक न तो हमारी कुछ हानि हुई, और न हमारा कुछ खोया गया; 16 जब तक हम उन के साय भेड़-बकरियां चराते रहे, तब तक वे रात दिन हमारी आड़ बने रहे। 17 इसलिथे अब सोच विचार कर कि क्या करना चाहिए; क्योंकि उन्होंने हमारे स्वामी की ओर उसके समस्त घराने की हानि ठानी होगी, वह तो ऐसा दुष्ट है कि उस से कोई बोल भी नहीं सकता। 18 अब अबीगैल ने फुर्ती से दो सौ रोटी, और दो कुप्पी दाखमधु, और पांच भेडिय़ोंका मांस, और पांच सआ भूना हुआ अनाज, और एक सौ गुच्छे किशमिश, और अंजीरोंकी दो सौ टिकियां लेकर गदहोंपर लदवाई। 19 और उस ने अपके जवानोंसे कहा, तुम मेरे आगे आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे पीछे आती हूं; परनतु उस ने अपके पति नाबाल से कुछ न कहा। 20 वह गदहे पर चक्की हुई पहाड़ की आड़ में उतरी जाती यी, और दाऊद अपके जनोंसमेत उसके सामहने उतरा आता या; और वह उनको मिली। 21 दाऊद ने तो सोचा या, कि मैं ने जो जंगल में उसके सब माल की ऐसी रझा की कि उसका कुछ भी न खोया, यह नि:सन्देह व्यर्य हुआ; क्योंकि उस ने भलाई के बदले मुझ से बुराई ही की है। 22 यदि बिहान को उजियाला होने तक उस जन के समस्त लोगोंमें से एक लड़के को भी मैं जीवित छोड़ूं, तो परमेश्वर मेरे सब शत्रुओं से ऐसा ही, वरन इस से भी अधिक करे। 23 दाऊद को देख अबीगैल फुर्ती करके गदहे पर से उतर पक्की, और दाऊद के सम्मुख मुंह के बल भूमि पर गिरकर दण्डवत् की। 24 फिर वह उसके पांव पर गिरके कहने लगी, हे मेरे प्रभु, यह अपराण मेरे ही सिर पर हो; तेरी दासी तुझ से कुछ कहना चाहती है, और तू अपक्की दासी की बातोंको सुन ले। 25 मेरा प्रभु उस दुष्ट नाबाल पर चित्त न लगाए; क्योंकि जैसा उसका नाम है वैसा ही वह आप है; उसका नाम तो नाबाल है, और सचमुच उस में मूढ़ता पाई जाती है; परन्तु मुझ तेरी दासी ने अपके प्रभु के जवानोंको जिन्हें तू ने भेजा या न देखा या। 26 और अब, हे मेरे प्रभु, यहोवा के जीवन की शपय और तेरे जीवन की शपय, कि यहोवा ने जो तुझे खून से और अपके हाथ के द्वारा अपना पलटा लेने से रोक रखा है, इसलिथे अब तेरे शत्रु और मेरे प्रभु की हाति के चाहनेवाले नाबाल ही के समान ठहरें। 27 और अब यह भेंट जो तेरी दासी अपके प्रभु के पास लाई है, उन जवानोंको दी जाए जो मेरे प्रभु के साय चालते हैं। 28 अपक्की दासी का अपराध झमा कर; क्योंकि यहोवा निश्चय मेरे प्रभु का घर बसाएगा और स्यिर करेगा, इसलिथे कि मेरा प्रभु यहोवा की ओर से लड़ता है; और जन्म भर तुझ में कोई बुराई नहीं पाई जाएगी। 29 और यद्यपि एक मनुष्य तेरा पीछा करनेऔर तेरे प्राण का ग्राहक होने को उठा है, तौभी मेरे प्रभु का प्राण तेरे परमेश्वर यहोवा की जीवनरूपी गठरी में बन्धा रहेगा, और तेरे शत्रुओं के प्राणोंको वह मानो गोफन में रखकर फेंक देगा। 30 इसलिथे जब यहोवा मेरे प्रभु के लिथे यह समस्त भलाई करेगा जो उस ने तेरे विषय में कही है, और तुझे इस्राएल पर प्रधान करके ठहराएगा, 31 तब तुझे इस कारण पछताना न होगा, वा मेरे प्रभु का ह्रृदय पीड़ित न होगा कि तू ने अकारण खून किया, और मेरे प्रभु ने अपना पलटा आप लिया है। फिर जब यहोवा मेरे प्रभु से भलाई करे तब अपक्की दासी को स्मरण करना। 32 दाऊद ने अबीगैल से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिस ने आज के दिन मुझ से भेंट करने केलिथे तुझे भेजा है। 33 और तेरा विवेक धन्य है, और तू आप भी धन्य है, कि तू ने मुझे आज के दिन खून करने और अपना पलटा आप लेने से रोक लिया है। 34 क्योंकि सचमुच इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जिस ने मुझे तेरी हानि करने से रोका है, उसके जीवन की शपय, यदि तू फुर्ती करके मुंफ से भेंट करने को न आती, तो नि:सन्देह बिहान को उजियाला होने तक नाबाल का कोई लड़का भी न बचता। 35 तब दाऊद ने उसे ग्रहण किया जो वह उसके लिथे लाई यी; फिर उस से उस ने कहा, अपके घर कुशल से जा; सुन, मैं ने तेरी बात मानी है और तेरी बिनती ग्रहण कर ली है। 36 तब अबीगैल नाबाल के पास लौट गई; और क्या देखती है, कि वह घर में राजा की सी जेवनार कर रहा है। और नाबाल का मन मगन है, और वह नशे में अति चूर हो गया है; इसलिथेउस ने भोर के उजियालेहाने से पहिले उस से कुछ भी न कहा। 37 बिहान को जब नाबाल का नशा उतर गया, तब उसकी पत्नी ने उसे कुल हाल सुना दिया, तब उसके मन का हियाव जाता रहा, और वह पत्यर सा सुन्न हो गया। 38 और दस दिन के पश्चात् यहोवा ने नाबाल को ऐसा मारा, कि वह मर गया। 39 नाबाल के मरने का हाल सुनकर दाऊद ने कहा, धन्य है यहोवा जिस ने नाबाल के साय मेरी नामधराई का मुकद्दमा लड़कर अपके दास को बुराई से रोक रखा; और यहोवा ने नाबाल की बुराईको उसी के सिर पर लाद दिया है। तब दाऊद ने लोगोंको अबीगैल के पास इसलिथे भेजा कि वे उस से उसकी पत्नी होने की बातचीत करें। 40 तो जब दाऊद के सेवक कर्मेल को अबीगैल के पास पहुंचे, तब उस से कहने लगे, कि दाऊद ने हमें तेरे पास इसलिथे भेजा है कि तू उसकी पत्नी बने। 41 तब वह उठी, और मुंह के बल भूमि पर गिर दण्डवत् करके कहा, तेरी दासी अपके प्रभु के सेवकोंके चरण धोने के लिथे लौंडी बने। 42 तब अबीगैल फुर्ती से उठी, और गदहे पर चक्की, और उसकी पांच सहेलियां उसके पीछे पीछे हो ली; और वह दाऊद के दूतोंके पीछे पीछे गई; और उसकी पत्नी हो गई। 43 और दाऊद ने चिज्रैल नगर की अहिनोअम को भी ब्याह लिया, तो वे दोनोंउसकी पत्नियां हुई। 44 परन्तुशाऊल ने अपक्की बेटी दाऊद की पत्नी मीकल को लैश के पुत्र गल्लीमवासी पलती को दे दिया या।।
1 फिर जीपी लोग गिबा में शाऊल के पास जाकर कहने लगे, क्या दाऊद उस हकीला नाम पहाड़ी पर जो यशीमोन के साम्हने है छिपा नहीं रहता? 2 तब शाऊल उठकर इस्राएल केतीन हजार छांटे हुए योद्धा संग लिए हुए गया कि दाऊद को जीप के जंगल में खोजे। 3 और शाऊल ने अपक्की छावनी मार्ग के पास हकीला नाम पहाड़ी पर जो यशीमोन के साम्हने है डाली। परन्तु दाऊद जंगल में रहा; और उस ने जान लिया, कि शाऊल मेरा पीछा करने को जंगल में आया है; 4 तब दाऊद ने भेदियोंको भेजकर निश्चय कर लिया कि शाऊल सचमुच आ गया है। 5 तब शाऊल उठकर उस स्यान पर गया जहां शाऊल पड़ा या; और दाऊद ने उस स्यान को देखा जहां शाऊल अपके सेनापति नेर के पुत्र अब्नेर समेत पड़ा या, और उसके लोग उसके चारोंओर डेरे डाले हुए थे। 6 तब दाऊद ने हित्ती अहीमेलेक और जरूयाह के पुत्र योआब के भाई अबीशै से कहा, मेरे साय उस छावनी में शाऊल के पास कौन चलेगा? अबीशै ने कहा, तेरे साय मैं चलूंगा। 7 सो दाऊद और अबीशै रातोंरात उन लोगोंके पास गए, और क्या देचाते हैं, कि शाऊल गाडिय़ोंकी आड़ में पड़ा सो रहा है, और उसका भाला उसके सिरहाने भूमि में गड़ा है; और अब्नेर और योद्धा लोग उसके चारोंओर पके हुए हैं। 8 तब अबीशै ने दाऊद से कहा, परमेश्वर ने आज तेरे शत्रु को तेरे हाथ में कर दिया है; इसलिथे अब मैं उसको एक बार ऐसा मारूं कि भाला उसे बेधता हुआ भूमि में धंस जाए, और मुझ को उसे दूसरी बार मारना न पकेगा। 9 दाऊद ने अबीशै से कहा, उसे नाश न कर; क्योंकि यहोवा के अभिषिक्त पर हाथ चलाकर कौन निर्दोष ठहर सकता है। 10 फिर दाऊद ने कहा, यहोवा के जीवन की शपय यहोवा ही उसको मारेगा; वा वह अपक्की मृत्यु से मरेगा; वा वह लड़ाई में जाकर मर जाएगा। 11 यहावो न करे कि मैं अपना हाथ यहोवा के अभिषिक्त पर बढ़ाऊ; अब उसके सिरहाने से भाला और पानी की फारी उठा ले, और हम यहां से चले जाएं। 12 तब दाऊद ने भाले और पानी की फारी को शाऊल के सिरहाने से उठा लिया; और वे चले गए। और किसी ने इसे न देखा, और न जाना, और न कोई जागा; क्योंकि वे सब इस कारण सोए हुए थे, कि यहोवा की ओर से उन में भारी नींद समा गई यी। 13 तब दाऊइ परली ओर जाकर दूर के पहाड़ की चोटी पर खड़ा हुआ, और दोनोंकेबीच बड़ा अन्तर या; 14 और दाऊद ने उन लोगोंको, और नेर के पुत्र अब्नेर कोपुकार के कहा, हे अब्नेरए क्या तू नहीं सुनता? अब्नेर ने उत्तर देकर कहा, तू कौन है जो राजा को पुकारता है? 15 दाऊद ने अब्नेर से कहा, क्या तू पुरूष नहीं है? इस्राएल में तेरे तुल्य कौन है? तू ने अपके स्वामी राजा की चौकसी क्योंनहीं की? एक जन तो तेरे स्वामी राजा को नाश करने घुसा या 16 जो काम तू ने किया है वह अच्छा नहीं। यहोवा के जीवन की शपय तुम लोग मारे जाने के योग्य हो, क्योंकि तुम ने अपके स्वामी, यहोवा के अभिषिक्त की चौकसी नहीं की। और अब देख, राजा का भाला और पानी की घरी जो उसके सिरहान यी वे कहां हैं, 17 तब शाऊल ने दाऊद का बोल पहिचानकर कहा, हे मेरे बेटे दाऊद, क्या यह तेरा बोल है, दाऊद ने कहा, हां, मेरे प्रभु राजा, मेरा ही बोल है। 18 फिर उस ने कहा, मेरा प्रभु अपके दास का पीछा क्योंकरता है? मैं ने क्या किया है? और मुझ से कौन सी बुराई हुई है? 19 अब मेरा प्रभु राजा, अपके दास की बातें सुन ले। यदि यहोवा नेतुझे मेरे विरूद्ध उसकाया हो, तब तो वह भेंट ग्रहण करे; परन्तु यदि आदमियोंने ऐसा किया हो, तो वे यहोवा की ओर से शापित हों, क्योंकि उन्होंने अब मुझे निकाल दिया हैकि मैं यहोवा के निज भाग में न रहूं, और उन्होंने कहा है, कि जा पराए देवताओं की उपासना कर। 20 इसलिथे अब मेरा लोहू यहोवा की आखोंकी ओट में भूमि पर न बहने पाए; इस्राएल का राजा तो एक पिस्सू ढूंढ़ने आया है, जैसा कि कोई पहाड़ोंपर तीतर का अहेर करे। 21 शाऊल ने कहा, मैं ने पाप किया है, हे मेरे बेटे दाऊद लौट आ; मेरा प्राण आज के दिन तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरा, इस कारण मैं फिर तेरी कुछ हानि न करूंगा; सुन, मैं ने मूर्खता की, और मुझ से बड़ी भूल हुई है। 22 दाऊद ने उत्तर देकर कहा, हे राजा, भाले को देख, कोई जवान इधर आकर इसे ले जाए। 23 यहोवा एक एक को अपके अपके धर्म और सच्चाई का फल देगा; देख, आज यहोवा ने तुझ को मेरे हाथ में कर दिया या, परन्तु मैं ने यहोवा के अभिषिक्त पर अपना हाथ बढ़ाना उचित न समझा। 24 इसलिथे जैसे तेरे प्राण आज मेरी दृष्टि में प्रिय ठहरे, वैसे ही मेरे प्राण भी यहोवा की दृष्टि में प्रिय ठहरे, और वह मुझे समस्त विपत्तियोंसे छुड़ाए। 25 शाऊल ने दाऊद से कहा, हे मेरे बेटे दाऊद तू धन्य है! तू बड़े बड़े काम करेगा और तेरे काम सुफल होंगे। तब दाऊद ने अपना मार्ग लिया, और शाऊल भी अपके स्यान को लौट गया।।
1 और दाऊद सोचने लगा, अब मैं किसी न किसी दिन शाऊल के हाथ से नाश हो जाऊंगा; अब मेरे लिथे उत्तम यह है कि मैं पलिश्तियोंके देश में भाग जाऊं; तब शाऊल मेरे विषय निराश होगा, और मुझे इस्राएल के देश के किसी भाग में फिर न ढूढ़ेगा, योंमैं उसके हाथ से बच निकलूंगा। 2 तब दाऊद अपके छ: सौ संगी पुरूषोंको लेकर चला गया, और गत के राजा माओक के पुत्र आकीश के पास गया। 3 और दाऊद और उसके जन अपके अपके परिवार समेत गत में आकीश के पास रहने लगे। दाऊद तो अपक्की दो स्त्रियोंके साय, अर्यात् यिज्रेली अहीनोअब, और नाबाल की स्त्री कर्मेली अबीगैल के साय रहा। 4 जब शाऊल को यह समाचार मिला कि दाऊद गत को भाग गया है, तब उस ने उसे फिर कभी न ढूंढ़ा 5 दाऊद ने आकीश से कहा, यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो देश की किसी बस्ती में मुझे स्यान दिला दे जहां मैं रहूं; तेरा दास तेरे साय राजधनी में क्योंरहे? 6 जब आकीश ने उसे उसी दिन सिकलग बस्ती दी; इस कारण से सिकलग आज के दिन तक यहूदा के राजाओं का बना है।। 7 पलिश्तियोंके देश में रहते रहते दाऊद को एक वर्ष चार महीने बीत गए। 8 और दाऊद ने अपके जनोंसमेत जाकर गशूरियों, गिजिर्यों, और अमालेकियोंपर चढ़ाई की; थे जातियां तो प्राचीन काल से उस देश में रहती यीं जो शूर के मार्ग में मिस्र देश तक है। 9 दाऊद ने उस देश को नाश किया, और स्त्री पुरूष किसी को जीवित न छोड़ा, और भेड़-बकरी, गाय-बैल, गदहे, ऊंट, और वस्त्र लेकर लौटा, और आकीश के पास गया। 10 आकीश ने पूछा, आज तुम ने चढ़ाई तोनहीं की? दाऊद ने कहा, हां, यहूदा यरहमेलियोंऔर केनियोंकी दक्खिन दिशा में। 11 दाऊद ने स्त्री पुरूष किसी को जीवित न छोड़ा कि उन्हें गत में पहुंचाए; उस ने सोचा या, कि ऐसा न हो कि वे हमारा काम बताकर यह कहें, कि दाऊद ने ऐसा ऐसा किया है। वरन जब से वह पलिश्तियोंके देश में रहता है, तब से उसका काम ऐसा ही है। 12 तब आकीश ने दाऊद की बात सच मानकर कहा, यह अपके इस्राएली लागोंकी दृष्टि में अति घृणित हुआ है; इसलिथे यह सदा के लिथे मेरा दास बना रहेगा।।
1 उन दिनोंमें पलिश्तियोंने इस्राएल से लड़ने के लिथे अपक्की सेना इकट्ठी की। और आकीश ने दाऊद से कहा, निश्चय जान कि तुझे अपके जनोंसमेत मेरे साय सेना में जाना होगा। 2 दाऊद ने आकीश से कहा, इस कारण तू जान लेगा कि तेरा दास क्या करेगा। आकीश ने दाऊद से कहा, इस कारण मैं तुझे अपके सिर का रझक सदा के लिथे ठहराऊंगा।। 3 शमूएल तो मर गया या, और समस्त इस्राएलियोंने उसके विषय छाती पीटी, और उसको उसके नगर रामा में मिट्टी दी यी। और शाऊल ने ओफोंऔर भूतसिद्धि करनेवालोंको देश से निकाल दिया या।। 4 जब पलिश्ती इकट्ठे हुए और शूनेम में छावनी डाली, तो शाऊल ने सब इस्राएलियोंको इकट्ठा किया, और उन्होंने गिलबो में छावनी डाली। 5 पलिश्तियोंकी सेना को देखकर शाऊल डर गया, और उसका मन अत्यन्त भयभीत हो कांप उठा। 6 और जब शाऊल ने यहोवा से पूछा, तब यहोवा ने न तो स्वप्न के द्वारा उस उत्तर दिया, और न ऊरीम के द्वारा, और न भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा। 7 तब शाऊल ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, मेरे लिथे किसी भूतसिद्धि करनेवाली को ढूंढो, कि मैं उसके पास जाकर उस से पूछूं। उसके कर्मचारियोंने उस से कहा, एन्दोर में एक भूतसिद्धि करनेवाली रहती है। 8 तब शाऊल ने अपना भेष बदला, और दूसरे कपके पहिनकर, दो मनुष्य संग लेकर, रातोंरात चलकर उस स्त्री के पास गया; और कहा, अपके सिद्धि भूत से मेरे लिथे भावी कहलवा, और जिसका नाम मैं लूंगा उसे बुलवा दे। 9 स्त्री ने उस से कहा, तू जानता है कि शाऊल ने क्या किया है, कि उस ने ओफोंऔर भूतसिद्धि करनेवालोंको देश से नाश किया है। फिर तू मेरे प्राण के लिथे क्योंफंदा लगाता है कि मुझे मरवा डाले। 10 शाऊल ने यहोवा की शपय खाकर उस से कहा, यहोवा के जीवन की शपय, इस बात के कारण तुझे दण्ड न मिलेगा। 11 स्त्री ने पूछा, मैं तेरे लिथे किस को बुलाऊ? उस ने कहा, शमूएल को मेरे लिथे बुला। 12 जब स्त्री ने शमूएल को देखा, तब ऊंचे शब्द से चिल्लाई; और शाऊल से कहा, तू ने मुझे क्योंधोखा दिया? तू तो शाऊल है। 13 राजा ने उस सेकहा, मत डर; तुझे क्या देख पड़ता है? स्त्री ने शाऊल से कहा, मुझे एक देवता पृय्वी में से चढ़ता हुआ दिखाई पड़ता है। 14 उस ने उस से पूछा उस का कैसा रूप ह? उस ने कहा, एक बूढ़ा पुरूष बागा ओढ़े हुए चढ़ा आता है। तब शाऊल ने निश्चय जानकर कि वह शमूएल है, औंधे मुंह भूमि पर गिरके दण्डवत् किया। 15 शमूएल ने शाऊल से पूछा, तू ने मुझे ऊपर बुलवाकर क्योंसताया है? शाऊल ने कहा, मैं बड़े संकट में पड़ा हूं; क्योंकि पलिश्ती मेरे साय लड़ रहे हैं और परमेश्वर ने मुझे छोड़ दिया, और अब मुझे न तो भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा उत्तर देता है, और न स्वपनोंके; इसलिथे मैं ने तुझे बुलाया कि तू मुझे जता दे कि मैं क्या करूं। 16 शमूएल ने कहा, जब यहोवा तुझे छोड़कर तेरा शत्रु बन गया, तब तू मुझ से क्योंपूछता है? 17 यहोवा ने तो जैसे मुझ से कहलावाया या वैसा ही उस ने व्यवहार किया है; अर्यात् उस ने तेरे हाथ से राज्य छीनकर तेरे पड़ोसी दाऊद को दे दिया है। 18 तू ने जो यहोवा की बात न मानी, और न अमालेकियोंको उसके भड़के हुए कोप के अनुसा दण्ड दिया या, इस कारण यहोवा ने तुझ से आज ऐसा बर्ताव किया। 19 फिर यहोवा तुझ समेत इस्राएलियोंको पलिश्तियोंके हाथ में कर देगा; और तू अपके बेटोंसमेत कल मेरे साय होगा; और इस्राएली सेना को भी यहोवा पलिश्तियोंके हाथ में कर देगा। 20 तब शाऊल तुरन्त मुंह के बल भूमि पर गिर पड़ा, और शमूएल की बातोंके कारण अत्यन्त डर गया; उस ने पूरे दिन और रात भोजन न किया या, इस से उस में बल कुछ भी न रहा। 21 तब वह स्त्री शाऊल के पास गई, और उसको अति व्याकुल देखकर उस से कहा, सुन, तेरी दासी ने तो तेरी बात मानी; और मैं ने अपके प्राण पर खेलकर तेरे वचनोंको सुन लिया जो तू ने मुझ से कहा। 22 तोअब तू भी अपक्की दासी की बात मान; और मैं तेरे साम्हने एक टुकड़ा रोटी रखूं; तू उसे खा, कि जब तू अपना मार्ग ले तब तुझे बल आ जाए। 23 उस ने इनकार करके कहा, मैं न खाऊंगा। परन्तु उसके सेवकोंऔर स्त्री ने मिलकर यहां तक उसे दबाया कि वह उनकी बात मानकर, भूमि पर से उठकर खाट पर बैठ गया। 24 स्त्री के घर में तो एक तैयार किया हुआ बछड़ा या, उस ने फुर्ती करके उसे मारा, फिर आटा लेकर गूंधा, और अखमीरी रोटी बनाकर 25 शाऊल और उसके सेवकोंके आगे लाई; और उन्होंने खाया। तब वे उठकर उसी रात चले गए।।
1 पलिश्तियोंने अपक्की समस्त सेना को अपेक में इकट्ठा किया; और इस्राएली यिज्रेल के निकट के सोते के पास डेरे डाले हुए थे। 2 तब पलिश्तियोंके सरदार अपके अपके सैकड़ोंऔर हजारोंसमेत आगे बढ़ गए, और सेना के पीछे पीछे आकीश के साय दाऊद भी अपके जनोंसमेत बढ़ गया। 3 तब पलिश्ती हाकिमोंने पूछा, इन इब्रियोंका यहां क्या काम है? आकीश ने पलिश्ती सरदारोंसे कहा, क्या वह इस्राएल के राजा शाऊल का कर्मचारी दाऊद नहीं है, जो क्या जाने कितने दिनोंसे वरन वर्षो से मेरे साय रहता है, और जब से वह भाग आया, तब से आज तक मैने उस में कोई दोष नहीं पाया। 4 तब पलिश्ती हाकिम उस से क्रोधित हुए; और उस से कहा, उस पुरूष को लौटा दे, कि वह उस स्यान पर जाए जो तू ने उसके लिथे ठहराया है; वह हमारे संग लड़ाई में न आने पाएगा, कहीं ऐसा न हो कि वह लड़ाई में हमारा विराधी बन जाए। फिर वह अपके स्वामी से किस रीति से मेल करे? क्या लोगोंके सिर कटवाकर न करेगा? 5 क्या यह वही दाऊद नहीं है, जिसके विषय में लोग नाचते और गाते हुए एक दूसरे से कहते थे, कि शाऊल ने हजारोंको , पर दाऊद ने लाखोंको मारा है? 6 तब आकीश ने दाऊद को बुलाकर उस से कहा, यहोवा के जीवन की शपय तू तो सीधा है, और सेना में तेरा मेरे संग आना जाना भी मुझे भावता है; क्योंकि जब से तू मेरे पास आया तब से लेकर आज तक मैं ने तो तुझ में कोई बुराई नहीं पाई। तौभी सरदार लोग तुझे नहीं चाहते। 7 इसलिथे अब तू कुशल से लौट जा; ऐसा न हो कि पलिश्ती सरदार तुझ से अप्रसन्न हों। 8 दाऊद ने आकीश से कहा, मैं ने क्या किया है? और जब से मैं तेरे साम्हने आया तब से आज तक तू ने अपके दास में क्या पाया है कि अपके प्रभु राजा के शत्रुओं से लड़ने न पाऊं? 9 आकीश ने दाऊद को उत्तर देकर कहा, हां, यह मुझे मालूम है, तू मेरी दृष्टि में तो परमेश्वर के दूत के समान अच्छा लगता है; तौभी पलिश्ती हाकिमोंने कहा है, कि वह हमारे संग लड़ाई में ने जाने पाएगा। 10 इसलिथे अब तू अपके प्रभु के सेवकोंको लेकर जो तेरे साय आए हैं बिहान को तड़के उठना; और तुम बिहान को लड़के उठकर उजियाला होते ही चले जाना। 11 इसलिथे बिहान को दाऊद अपके जनोंसमेत तड़के उठकर पलिश्तियोंके देश को लौअ गया। और पलिश्ती यिज्रेल को चढ़ गए।।
1 तीसरे दिन जब दाऊद अपके जनोंसमेत सिकलग पहुंचा, तब उन्होंने क्या देखा, कि अमालेकियोंने दक्खिन देश और सिकलग पर चढ़ाई की। और सिकलग को मार के फूंक दिया, 2 और उस में की स्त्री आदि छोटे बड़े जितने थे, सब को बन्धुआई में ले गए; उन्होंने किसी को मार तो नहीं डाला, परन्तु सभोंको लेकर अपना मार्ग लिया। 3 इसलिथे जब दाऊद अपके जनोंसमेत उस नगर में पहुंचा, तब नगर तो जला पड़ा या, और स्त्रियां और बेटे-बेछियां बन्धुआई में चक्की गई यीं। 4 तब दाऊद और वे लोग जो उसके साय थे चिल्लाकर इतना रोए, कि फिर उन में रोने की शक्ति न रही। 5 और दाऊद की दो स्त्रियां, यिज्रेली अहीनोअम, और कर्मैली नाबाल की स्त्री अबीगैल, बन्धुआई में गई यीं। 6 और दाऊद बड़े संकट में पड़ा; क्योंकि लोग अपके बेटे-बेटियोंके कारण बहुत शोकित होकर उस पर पत्यरवाह करने की चर्चा कर रहे थे। परन्तु दाऊद ने अपके परमेश्वर यहोवा को स्मरण करके हियाव बान्धा।। 7 तब दाऊद ने अहीमेलेक के पुत्र एब्यातार याजक से कहा, एपोद को मेरे पास ला। तब एब्यातार एपोद को दाऊद के पास ले आया। 8 और दाऊद ने यहोवा से पूछा, क्या मैं इस दल का पीछा करूं? क्या उसको जा पकडूंगा? उस ने उस से कहा, पीछा कर; क्योंकि तू निश्चय उसको पकड़ेगा, और निसन्देह सब कुछ छुड़ा लाएगा; 9 तब दाऊद अपकेछ: सौ सायी जनोंको लेकर बसोर नाम नाले तक पहुंचा; वहां कुछ लोग छोड़े जाकर रह गए। 10 दाऊद तो चार सौ पुरूषोंसमेत पीछा किए चला गया; परन्तु दौसौ जो ऐसे यक गए थे, कि बसोर नाले के पार न जा सके वहीं रहे। 11 उनको एक मिस्री पुरूष मैदान में मिला, उन्होंने उसे दाऊद के पास ले जाकर रोटी दी; और उस ने उसे खाया, तब उसे पानी पिलाया, 12 फिर उन्होंने उसको अंजीर की टिकिया का एक टुकड़ा और दो गुच्छे किशमिश दिए। और जब उस ने खाया, तब उसके जी में जी आया; उस ने तीन दिन और तीन रात से न तो रोटी खाई यी और न पानी पिया या। 13 तब दाऊद ने उस से पूछा, तू किस का जन है? और कहां का है? उस ने कहा, मैं तो मिस्री जवान अौर एक अमालेकी मनुष्य का दास हूँ; अौर तीन दिन हुए कि मैं बीमार पड़ा, अौर मेरा स्वामी मुझे छोड़ गया। 14 हम लोगोंने करेतियोंकी दक्खिन दिशा में, और यहूदा के देश में, और कालेब की दक्खिन दिशा में चढाई की; और सिकलग को आग लगाकर फूंक दिया या। 15 दाऊद ने उस से पूछा, क्या तू मुझे उस दल के पास पहुंचा देगा? उस ने कहा, मुझ से परमेश्वर की यह शपय खा, कि मैं तुझे न तो प्राण से मारूंगा, और न तेरे स्वामी के हाथ कर दूंगा, तब मैं तुझे उस दल के पास पहुंचा दूंगा। 16 जब उस ने उसे पहुंचाया, तब देखने में आया कि वे सब भूमि पर छिटके हुए खाते पीते, और उस बडी लूट के कारण, जो वे पलिश्तियोंके देश और यहूदा देश से लाए थे, नाच रहे हैं। 17 इसलिथे दाऊद उन्हें रात के पहिले पहर से लेकर दूसरे दिन की सांफ तक मारता रहा; यहां तक कि चार सौ जवान को छोड़, जो ऊंटोंपर चढ़कर भाग गए, उन में से एक भी मनुष्य न बचा। 18 और जो कुछ अमालेकी ले गए थे वह सब दाऊद ने छुड़ाया; और दाऊद ने आपक्की दोनोंस्त्रियोंको भी छुड़ा लिया। 19 वरन उनके क्या छोटे, क्या बड़े,क्या बेटे, क्या बेटियां, क्या लूट का माल, सब कुछ जो अमालेकी ले गए थे, उस में से कोई वस्तु न रही जो उनको न मिली हो; क्योंकि दाऊद सब का सब लौटा लाया। 20 और दाऊद ने सब भेड़-बकरियां, और गाय-बैल भी लूट लिए; और इन्हें लोग यह कहते हुए अपके जानवरोंके आगे हांकते गए, कि यह दाऊद की लूट है। 21 तब दाऊद उन दो सौ पुरुषोंके पास आया, जो ऐसे यक गए थे कि दाऊद के पीछे पीछे न जा सके थे, और बसोर नाले के पास छोड़ दिए गए थे; और वे दाऊद से और उसके संग के लोगोंसे मिलने को चले; और दाऊद ने उनके पास पहुंचकर उनका कुशल झेम पूछा। 22 तब उन लोगोंमें से जो दाऊद के संग गए थे सब दुष्ट और ओछे लोगोंने कहा, थे लोग हमारे साय नही चले थे, इस कारण हम उन्हें अपके छुड़ाए हुए लूट के माल में से कुछ न देंगे, केवल एक एक मनुष्य को उसकी स्त्री और बाल बच्चे देंगे, कि वे उन्हें लेकर चले जाएं। 23 परन्तु दाऊद ने कहा, हे मेरे भाइयो, तुम उस माल के साय एसा न करने पाओगे जिसे यहोवा ने हमें दिया है; और उसने हमारी रझा की, और उस दल को जिस ने हमारे ऊपर चढाई की यी हमारे हाथ में कर दिया है। 24 और इस विषय में तुम्हारी कौन सुनेगा? लड़ाई में जानेवाले का जैसा भाग हो, सामान के पास बैठे हए का भी वैसा ही भाग होगा; दोनोंएक ही समान भाग पाएंगे। 25 और दाऊद ने इस्राएलियोंके लिथे ऐसी ही विधि और नियम ठहराया, और वह उस दिन से लेकर आगे को वरन आज लोंबना है। 26 सिकलग में पहुंचकर दाऊद ने यहूदी पुरनियोंके पास जो उसके मित्र थे लूट के माल में से कुछ कुछ भेजा, और यह कहलाया, कि यहोवा के शत्रुओं से ली हुई लूट में से तुम्हारे लिथे यह भेंट है। 27 अर्यात्बेतेल के दक्खिन देश के रामोत,यत्तीर, 28 अरोएर, सिपमोत, एश्तमो, 29 राकाल, यरहमेलियोंके नगरों, केनियोंके नगरों, 30 होर्मा, कोराशान, अताक, 31 हेब्रोन आदि जितने स्यानोंमें दाऊद अपके जनोंसमेत फिरा करता या, उन सब के पुरनियोंके पास उसने कुछ कुछ भेजा।
1 पलिश्ती तो इस्राएलियोंसे लड़े; और इस्राएली पुरुष पलिश्तियोंके साम्हने से भागे, और गिलबो नाम पहाड़ पर मारे गए। 2 और पलिश्ती शाऊल और उसके पुत्रोंके पीछे लगे रहे; और पलिश्तियोंने शाऊल के पुत्र योनातन, अबीनादाब, और मल्कीश को मार डाला। 3 और शाऊल के साय धमासान युद्ध हो रहा या, और धनुर्धारियोंने उसे जा लिया, और वह उनके कारण अत्यन्त व्याकुल हो गया। 4 तब शाऊल ने अपके हयियार ढोनेवाले से कहा, अपक्की तलवार खींचकर मुझे फोंक दे, एसा न हो कि वे खतनारहित लोग आकर मुझे फोंक दें, और मेरी ठट्टा करें। परन्तु उाके हयियार ढोनेवाले ने अत्यन्त भय खाकर ऐसा करने से इन्कार किया। तब शाऊल अपक्की तलवार खड़ी करके उस पर गिर पड़ा। 5 यह देखकर कि शाऊल मर गया, उसका हयियार ढोनेवाला भी अपक्की तलवार पर आप गिरकर उसके साय मर गया। 6 योंशाऊल, और उसके तीनोंपुत्र, और उसका हयियार ढोनेवाला, और उसके समस्त जन उसी दिन एक संग मर गए। 7 यह देखकर कि इस्राएली पुरुष भाग गए, और शाऊल और उसके पुत्र मर गए, उस तराई की परली ओर वाले औ यरदन के पार रहनेवाले भी इस्राएली मनुष्य अपके अपके नगरोंको छोड़कर भाग गए; और पलिश्ती आकर उन में रहने लगे। 8 दूसरे दिन जब पलिश्ती मारे हुओं के माल को लूटने आए, तब उनको शाऊल और उसके तीनोंपुत्र गिलबो पहाड़ पर पके हाए मिले। 9 तब उन्होंने शाऊल का सिर काटा, और हयियार लूट लिए, और पलिश्तियोंके देश के सब स्यानोंमें दूतोंको इसलिथे भेजा, कि उनके देवालयोंऔर साघारण लोगोंमें यह शुभ समाचार देते जाएं। 10 तब उन्होंने उसके हयियार तो आश्तोरेत नाम देवियोंके मन्दिर में रखे, और उसकी लोय बेतशान की शहरपनाह में जड़दी। 11 जब गिलादवाले याबेश के निवासियोंने सुना कि पलिश्तियोंने शाऊल से क्या क्या किया है, 12 तब सब शूरवीर चले, और रातोंरात जाकर शाऊल और उसके पुत्रोंकी लोथें बेतशान की शहरपनाह पर से याबेश में ले आए, और वहोंफूंक दीं 13 तब उन्होंने उनकी हड्डियां लेकर याबेश के फाऊ के पेड़ के नीचे गाड़ दीं, और सात दिन तक उपवास किया।
1 शाऊल के मरने के बाद, जब दाऊद अमालेकियोंको मारकर लौटा, और दाऊद को सिकलग में रहते हुए दो दिन हो गए, 2 तब तीसरे दिन ऐसा हुआ कि छावनी में से शाऊल के पास से एक पुरुष कपके फाड़े सिर पर धूली डाले हुए आया। और जब वह दाऊद के पास पहुंचा, तब भूमि पर गिरा और दणडवत् किया। 3 दाऊद ने उस से पूछा, तू कहां से आया है? उस ने उस से कहा, मैं इस्राएली छावनी में से बचकर आया हूं। 4 दाऊद ने उस से पूछा, वहां क्या बात हुई? मुझे बता। उस ने कहा, यह, कि लोग रणभूमि छोड़कर भाग गए, और बहुत लोग मारे गए; और शाऊल और उसका पुत्र योनातन भी मारे गए हैं। 5 दाऊद ने उस समाचार देनेवाले जवान से पूछा, कि तू कैसे जानता है कि शाऊल और उसका पुत्र योनातन मर गए? 6 समाचार देनेवाले जवान ने कहा, संयोग से मैं गिलबो पहाड़ पर या; तो क्या देखा, कि शाऊल अपके भाले की टेक लगाए हुए है; फिर मैं ने यह भी देखा कि उसका पीछा किए हुए रय और सवार बड़े वेग से दौड़े आ रहे हैं। 7 उस ने पीछे फिरकर मुझे देखा, और मुझे पुकारा। मैं ने कहा,क्या आज्ञा? 8 उस ने मुझ से पूछा, तू कौन है? मैं ने उस से कहा, मैं तो अमालेकी हूँ। 9 उस ने मुझ से कहा, मेरे पास खड़ा होकर मुझे मार डाल; क्योंकि मेरा सिर तो घुमा जाता है, परन्तु प्राण नही निकलता। 10 तब मैं ने यह निश्चय जान लिया, कि वह गिर जाने के पहचात् नहीं बच सकता, उसके पास खड़े होकर उसे मार डाला; और मैं उसके सिर का मुकुट और उसके हाथ का कंगन लेकर यहां अपके प्रभु के पास आया हूँ। 11 तब दाऊद ने अपके कपके पकड़कर फाड़े; और जितने पुरुष उसके संग थे उन्होंने भी वैसा ही किया; 12 और वे शाऊल, और उसके पुत्र योनातन, और यहोवा की प्रजा, और इस्राएल के घराने के लिथे छाती पीटने और रोने लगे, और सांफ तक कुछ न खाया, इस कारण कि वे तलवार से मारे गए थे। 13 फिर दाऊद ने उस समाचार देनेवाले जवान से पूछा, तू कहां का है? उस ने कहा, मैं तो परदेशी का बेटा अर्यात् अमालेकी हूँ। 14 दाऊद ने उस से कहा, तू यहोवा के अभिषिक्त को नाश करने के लिथे हाथ बढ़ाने से क्योंनहीं डरा? 15 तब दाऊद ने एक जवान को बुलाकर कहा, निकट जाकर उस पर प्रहार कर। तब उस ने उसे ऐसा मारा कि वह मर गया। 16 और दाऊद ने उस से कहा, तेरा खून तेरे ही सिर पर पके; क्योंकि तू ने यह कहकर कि मैं ही ने यहोवा के अभिषिक्त को मार डाला, अपके मुंह से अपके ही विरुद्ध साझी दी है। 17 (शाऊल और योनातन के लिथे दाऊद का बनाया हुआ विलापक्कीत ) तब दाऊद ने शाऊल और उसके पुत्र योनातन के विषय यह विलापक्कीत बनाया, 18 और यहूदियोंको यह धनुष नाम गीत सिखाने की आज्ञा दी; यह याशार नाम पुस्तक में लिखा हुआ है; 19 हे इस्राएल, तेरा शिरोमणि तेरे ऊंचे स्यान पर मारा गया। हाथ, शूरवीर क्योंकर गिर पके हैं! 20 गत में यह न बताओ, और न अश्कलोन की सड़कोंमें प्रचार करना; न हो कि पलिश्ती स्त्रियाँ आनन्दित हों, न हो कि खतनारहित लोगोंकी बेटियां गर्व करने लगें। 21 हे गिलबो पहाड़ो, तुम पर न ओस पके, और न वर्षा हो, और न भेंट के योग्य उपजवाले खेत पाए जाएं! क्योंकि वहां शूरवीरोंकी ढालें अशुद्ध हो गई। और शाऊल की ढाल बिना तेल लगाए रह गई। 22 जूफे हुओं के लोहू बहाने से, और शूरवीरोंकी चर्बी खाने से, योनातन का धनुष लौट न जाता या, और न शाऊल की तलवार छूछी फिर आती यी। 23 शाऊल और योनातन जीवनकाल में तो प्रिय और मनभाऊ थे, और अपक्की मृत्यु के समय अलग न हुए; वे उकाब से भी वेग चलनेवाले, और सिंह से भी अधिक पराक्रमी थे। 24 हे इस्राएली स्त्रियो, शाऊल के लिथे रोओ, वह तो तुम्हें लाल रंग के वस्त्र पहिनाकर सुख देता, और तुम्हारे वस्त्रों के ऊपर सोने के गहने पहिनाता या। 25 हाथ, युद्ध के बीच शूरवीर कैसे काम आए ! हे योनातन, हे ऊंचे स्यानोंपर जूफे हुए, 26 हे मेरे भाई योनातन, मैं तेरे कारण दु:खित हूँ; तू मुझे बहुत मनभाऊ जान पड़ता या; तेरा प्रेम मुझ पर अद्भुत, वरन स्त्रियों के प्रेम से भी बढ़कर या। 27 हाथ, शूरवीर क्योंकर गिर गए, और युद्ध के हयियार कैसे नाश हो गए हैं !
1 इसके बाद दाऊद ने यहोवा से पूछा, कि क्या मैं यहूदा के किसी नगर में जाऊं? यहोवा ने उस से कहा, हां, जा। दाऊद ने फिर पूछा, किस नगर में जाऊं? उस ने कहा, हेब्रोन में। 2 तब दाऊद यिज्रेली अहीनोअम, और कमेंली नाबाल की स्त्री अबीगैल नाम, अपक्की दोनोंपत्नियोंसमेत वहाँ गया। 3 और दाऊद अपके सायियोंको भी एक एक के घराने समेत वहां ले गया; और वे हेब्रोन के गांवोंमें रहने लगे। 4 और यहूदी लोग गए, और वहां दाऊद का अभिषेक किया कि वह यहूदा के घराने का राजा हो। 5 और दाऊद को यह समाचार मिला, कि जिन्होंने शाऊल को मिट्टी दी वे गिलाद के याबेश नगर के लोग हैं। तब दाऊद ने दूतोंसे गिलाद के याबेश के लोगोंके पास यह कहला भेजा, कि यहोवा की आशिष तुम पर हो, क्योंकि तुम ने अपके प्रभु शाऊल पर यह कृपा करके उसको मिट्टी दी। 6 इसलिथे अब यहोवा तुम से कृपा और सच्चाई का बत्त्र्ााव करे; और मैं भी तुम्हारी इस भलाई का बदला तुम को दूंगा, क्योंकि तुम ने यह काम किया है। 7 और अब हियाव बान्धो, और पुरुषार्य करो; क्योंकि तुम्हारा प्रभु शाऊल मर गया, और यहूदा के घराने ने अपके ऊपर राजा होने को मेरा अभिष्ोक किया है। 8 परन्तु नेर का पुत्र अब्नेर जो शाऊल का प्रधान सेनापति या, उस ने शाऊल के पुत्र ईशबोशेत को संग ले पार जाकर महनैम में पहुंचाया; 9 और उसे गिलाद अशूरियोंके देश यिज्रेल, एप्रैम, बिन्यामीन, वरन समस्त इस्राएल के देश पर राजा नियुक्त किया। 10 शाऊल का पुत्र ईशबोशेत चालीस वर्ष का या जब वह इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। परन्तु यहूदा का घराना दाऊद के पझ में रहा। 11 और दाऊद के हेब्रोन में यहूदा के घराने पर राज्य करने का समय साढ़े सात वर्ष या। 12 और नेर का पुत्र अब्नेर, और शाऊल के पुत्र ईशबोशेत के जन, महनैम से गिबोन को आए। 13 तब सरुयाह का पुत्र योआब, और दाऊद के जन, हेब्रोन से निकलकर उन से गिबोन के पोखरे के पास मिले; और दोनोंदल उस पोखरे की एक एक ओर बैठ गए। 14 तब अब्नेर ने योआब से कहा, जवान लोग उठकर हमारे साम्हने खेलें। योआब ने कहा, वे उठें। 15 तब वे उठे, और बिन्यामीन, अर्याात् शाऊल के पुत्र ईशबोशेत के पझ के लिथे बारह जन गिनकर निकले, और दाऊद के जनोंमें से भी बारह निकले। 16 और उन्होंने एक दूसरे का सिर पकड़कर अपक्की अपक्की तलवार एक दूसरे के पांजर में भोंक दी; और वे एक ही संग मरे। इस से उस स्यान का नाम हेल्कयस्सूरीम पड़ा, वह गिबोन में है। 17 और उस दिन बड़ा घोर से युद्ध हुआ; और अब्नेर और इस्राएल के पुरुष दाऊद के जनोंसे हार गए। 18 वहां तो योआब, अबीशै, और असाहेल नाम सरुयाह के तीनोंपुत्र थे। और असाहेल बनैले चिकारे के समान वेग दौड़नेवाला या। 19 तब असाहेल अब्नेर का पीछा करने लगा, और उसका पीछा करते हुए न तो दाहिनी ओर मुड़ा न बाई ओर। 20 अब्नेर ने पीछे फिरके पूछा, क्या तू असाहेल है? उस ने कहा, हां मैं वही हूँ। 21 अब्नेर ने उस से कहा, चाहे दाहिनी, चाहे बाई ओर मुड़, किसी जवान को पकड़कर उसका बकतर ले ले। परन्तु असाहेल ने उसका पीछा न छोड़ा। 22 अब्नेर ने असाहेल से फिर कहा, मेरा पीछा छोड़ दे; मुझ को क्योंतुझे मारके मिट्टी में मिला देना पके? ऐसा करके मैं तेरे भाई योआब को अपना मुख कैसे दिखाऊंगा? 23 तौभी उस ने हट जाने को नकारा; तब अब्नेर ने अपके भाले की पिछाड़ी उसके पेट में ऐसे मारी, कि भाला आरपार होकर पीछे निकला; और वह वहीं गिरके मर गया। और जितने लोग उस स्यान पर आए जहां असाहेल गिरके मर गया, वहां वे सब खढ़े रहे। 24 परन्तु योआब और अबीशै अब्नेर का पीछा करते रहे; और सूर्य डूबते डूबते वे अम्मा नाम उस पहाड़ी तक पहुंचे, जो गिबोन के जंगल के मार्ग में गीह के साम्हने है। 25 और बिन्यामीनी अबब्नेर के पीछे होकर एक दल हो गए, और एक पहाड़ी की चोटी पर खड़े हुए। 26 तब अब्नेर योआब को पुकारके कहने लगा, क्या तलवार सदा मारती रहे? क्या तू नहीं जानता कि इसका फल दु:खदाई होगा? तू कब तक अपके लोगोंको आज्ञा न देगा, कि अपके भाइयोंका पीछा छोड़कर लौटो? 27 योआब ने कहा, परमेश्वर के जीवन की शपय, कि यदि तू न बोला होता, तो नि:सन्देह लोग सवेरे ही चले जाते, और अपके अपके भाई का पीछा न करते। 28 तब योआब ने नरसिंगा फूंका; और सब लोग ठहर गए, और फिर इस्राएलियोंका पीछा न किया, और लड़ाई फिर न की। 29 और अब्नेर अपके जनोंसमेत उसी दिन रातोंरात अराबा से होकर गया; और यरदन के पार हो समस्त बित्रोन देश में होकर महनैम में पहुंचा। 30 और योआब अब्नेर का पीछा छोड़कर लौटा; और जब उस ने सब लोगोंको इकट्टा किया, तब क्या देखा, कि दाऊद के जनोंमें से उन्नीस पुरुष और असाहेल भी नहीं हैं। 31 परन्तु दाऊद के जनोंने बिन्यामीनियोंऔर अब्नेर के जनोंको ऐसा मारा कि उन में से तीन सौ साठ जन मर गए। 32 और उन्होंने असाहेल को उठाकर उसके पिता के क़ब्रिस्तान में, जो बेतलेहेम में या, मिट्टी दी। तब योआब अपके जनोंसमेत रात भर चलकर पह फटते हेब्रोन में पहुंचा।
1 शाऊल के घराने और दाऊद के घराने के मध्य बहुत दिन तक लड़ाई होती रही; परन्तु दाऊद प्रबल होता गया, और शाऊल का घराना निर्बल पड़ता गया। 2 और हेब्रोन में दाऊद के पुत्र उत्पन्न हुए; उसका जेठा बेटा अम्नोन या, जो यिज्रेली अहीनोअम से उत्पन्न हुआ या; 3 और उसका दूसरा किलाव या, जिसकी मां कर्मेंली नाबाल की स्त्री अबीगैल यी; तीसरा अबशालोम, जो गशूर के राजा तल्मै की बेटी माका से उत्पन्न हुआ या; 4 चौया अदोनिय्याह, जो हग्गीत से उत्पन्न हुआ या; पांचवां शपत्याह, जिसकी मां अबीतल यी; 5 छठवां यित्राम, जो ऐग्ला नाम दाऊद की स्त्री से उत्पन्न हुआ। हेब्रोन में दाऊद से थे ही सन्तान उत्पन्न हुए। 6 जब शाऊल और दाऊद दोनोंके घरानोंके मध्य लड़ाई हो रही यी, तब अब्नेर शाऊल के घराने की सहाथता में बल बढ़ाता गया। 7 शाऊल की एक रखेली यी जिसका नाम रिस्पा या, वह अय्या की बेटी थी; और ईशबोशेत ने अब्नेर से पूछा, तू मेरे पिता की रखेली के पास क्योंगया? 8 ईशबोशेत की बातोंके कारण अब्नेर अति क्रोधित होकर कहने लगा, क्या मैं यहूदा के कुत्ते का सिर हूँ? आज तक मैं तेरे पिता शाऊल के घराने और उसके भाइयोंऔर मित्रोंको प्रीति दिखाता आया हूँ, और तुझे दाऊद के हाथ पड़ने नहीं दिया; फिर तू अब मुझ पर उस स्त्री के विषय में दोष लगाता है? 9 यदि मैं दाऊद के साय ईश्वर की शपय के अनुसार बर्ताव न करुं, तो परमेशवर अब्नेर से वैसा ही, वरन उस से भी अधिक करे; 10 अर्यात् मैं राज्य को शाऊल के घराने से छीनूंगा, और दाऊद की राजगद्दी दान से लेकर बेर्शेंबा तक इस्राएल और यहूदा के ऊपर स्यिर करुंगा। 11 और वह अब्नेर को कोई उत्तर न दे सका, इसलिथे कि वह उस से डरता या। 12 तब अब्नेर ने उसके नाम से दाऊद के पास दूतोंसे कहला भेजा, कि देश किस का है? और यह भी कहला भेजा, कि तू मेरे साध वाचा बान्ध, और मैं तेरी सहाथता करुंगा कि समस्त इस्राएल के मन तेरी ओर फेर दूं। 13 दाऊद ने कहा, भला, मैं तेरे साय वाचा तो बान्धूंगा परन्तु एक बात मैं तुझ से चाहता हूँ; कि जब तू मुझ से भेंट करने आए, तब यदि तू पहिले शाऊल की बेटी मीकल को न ले आए, तो मुझ से भेंट न होगी। 14 फिर दाऊद ने शाऊल के पुत्र ईशबोशेत के पास दूतोंसे यह कहला भेजा, कि मेरी पत्नी मीकल, जिसे मैं ने एक सौ पलिश्तियोंकी खलडिय़ां देकर अपक्की कर लिया या, उसको मुझे दे दे। 15 तब ईशबोशेत ने लोगोंको भेजकर उसे लैश के पुत्र पलतीएल के पास से छीन लिया। 16 और उसका पति उसके साय चला, और बहूरीम तक उसके पीछे रोता हुआ चला गया। तब अब्नेर ने उस से कहा, लौट जा; और वह लौट गया। 17 और अब्नेर ने इस्राएल के पुरनियोंके संग इस प्रकार की बातचीत की, कि पहिले तो तुम लोग चाहते थे कि दाऊद हमारे ऊपर राजा हो। 18 अब वैसा करो; क्योंकि यहोवा ने दाऊद के विषय में यह कहा है, कि अपके दास दाऊद के द्वारा मैं अपक्की प्रजा इस्राएल को पलिश्तियों, वरन उनके सब शत्रुओं के हाथ से छुड़ाऊंगा। 19 फिर अब्नेर ने बिन्यामीन से भी बातें कीं; तब अब्नेर हेब्रोन को चला गया, कि इस्राएल और बिन्यामीन के समस्त घराने को जो कुछ अच्छा लगा, वह दाऊद को सुनाए। 20 तब अब्नेर बीस पुरुष संग लेकर हेब्रोन में आया, और दाऊद ने उसके और उसके संगी पुरुषोंके लिथे जेवनार की। 21 तब अब्नेर ने दाऊद से कहा, मैं उठकर जाऊंगा, और अपके प्रभु राजा के पास सब इस्राएल को इकट्ठा करुंगा, कि वे तेरे साय वाचा बान्धें, और तू अपक्की इच्छा के अनुसार राज्य कर सके। तब दाऊद ने अब्नेर को विदा किया, और वह कुशल से चला गया। 22 तब दाऊद के कई एक जन योआब समेत कहीं चढ़ाई करके बहुत सी लूट लिथे हुए आ गए। और अब्नेर दाऊद के पास हेब्रोन में न या, क्योंकि उस ने उसको विदा कर दिया या, और वह कुशल से चला गया या। 23 जब योआब और उसके साय की समस्त सेना आई, तब लागोंने योबाब को बताया, कि नेर का पुत्र अब्नेर राजा के पास आया या, और उस ने उसको बिदा कर दिया, और वह कुशल से चला गया। 24 तब योआब ने राजा के पास जाकर कहा, तू ने यह क्या किया है? अब्नेर जो तेरे पास आया या, तो क्या कारण है कि तू ने उसको जाने दिया, और वह चला गया है? 25 तू नेर के पुत्र अब्नेर को जानता होगा कि वह तुझे धोखा देने, और तेरे आने जाने, और कुल काम का भेद लेने आया या। 26 योआब ने दाऊद के पास से निकलकर दाऊद के अनजाने अब्नेर के पीछे दूत भेजे, और वे उसको सीरा नाम कुण्ड से लौटा ले आए। 27 जब अब्नेर हेब्रोन को लौट आया, तब योआब उस से एकान्त में बातें करने के लिथे उसको फाटक के भीतर अलग ले गया, और वहां अपके भाई असाहेल के खून के पलटे में उसके पेट में ऐसा मारा कि वह मर गया। 28 इसके बाद जब दाऊद ने यह सुना, तो कहा, नेर के पुत्र अब्नेर के खून के विषय में अपक्की प्रजा समेत यहोवा की दृष्टि में सदैव निर्दोष रहूंगा। 29 वह योआब और उसके पिता के समस्त घराने को लगे; और योआब के वंश में कोई न कोई प्रमेह का रोगी, और कोढ़ी, और बैसाखी का लगानेवाला, और तलवार से खेत आनेवाला, और भूखें मरनेवाला सदा होता रहे। 30 योआब और उसके भाई अबीशै ने अब्नेर को इस कारण घात किया, कि उस ने उनके भाई असाहेल को गिबोन में लड़ाई के समय मार डाला या। 31 तब दाऊद ने योआब और अपके सब संगी लागोंसे कहा, अपके वस्त्र फाड़ो, और कमर में टाट बान्धकर अब्नेर के आगे आगे चलो। और दाऊद राजा स्वयं अयीं के पीछे पीछे चला। 32 अब्नेर को हेब्रोन में मिट्टी दी गई; और राजा अब्नेर की कब्र के पास फूट फूटकर रोया; और सब लोग भी रोए। 33 तब दाऊद ने अब्नेर के विषय यह विलापक्कीत बनाया कि, क्या उचित या कि अब्नेर मूूढ़ की नाई मरे? 34 न तो तेरे हाथ बान्धे गए, और न तेरे पांवोंमें बेडिय़ां डाली गई; जैसे कोई कुटिल मनुष्योंसे मारा जाए, वैसे ही तू मारा गया। 35 तब सब लोग उसके विषय फिर रो उठे। तब सब लोग कुछ दिन रहते दाऊद को रोटी खिलाने आए; परन्तु दाऊद ने शपय खाकर कहा, यदि मैं सूर्य के अस्त होने से पहिले रोटी वा और कोई वस्तु खाऊं, तो परमेश्वर मुझ से ऐसा ही, वरन इस से भी अधिक करे। 36 और सब लोगोंने इस पर विचार किया और इस से प्रसन्न हुए, वैसे ही जो कुछ राजा करता या उस से सब लोग प्रसन्न होते थे। 37 तब उन सब लोगोंने, वरन समस्त इस्राएल ने भी, उसी दिन जान लिया कि नेर के पुत्र अब्नेर का घात किया जाना राजा की और से नही हुआ। 38 और राजा ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, क्या तुम लोग नहीं जानते कि इस्राएल में आज के दिन एक प्रधान और प्रतापी मनुष्य मरा है? 39 और यद्यपि मैं अभिषिक्त राजा हूँ तौभी आज निर्बल हूँ; और वे सरूयाह के पुत्र मुझ से अधिक प्रचण्ड हैं। परन्तु यहोवा बुराई करनेवाले को उसकी बुराई के अनुसार ही पलटा दे।
1 जब शाऊल के पुत्र ने सुना, कि अब्नेर हेब्रोन में मारा गया, तब उसके हाथ ढीले पड़ गए, और सब इस्राएली भी घबरा गए। 2 शाऊल के पुत्र के दो जन थे जो दलोंके प्रधान थे; एक का नाम बाना, और दूसरे का नाम रेकाब या, थे दोनोंबेरोतवासी बिन्यामीनी रिम्मोन के पुत्र थे, ( क्योंकि बेरोत भी बिन्यामीन के भाग में गिना जाता है; 3 और बेरोती लोग गितैम को भाग गए, और आज के दिन तक वहीं परदेशी होकर रहते हैं।) 4 शाऊल के पुत्र योनातन के एक लगड़ा बेटा या। जब यिज्रेल से शाऊल और योनातन का समाचार आया तब वह पांच वर्ष का या; उस समय उसकी धाई उसे उठाकर भागी; और उसके उतावली से भागने के कारण वह गिरके लंगड़ा हो गया। और उसका नाम मपीबोशेत या। 5 उस बेरोती रिम्मोन के पुत्र रेकाब और बाना कड़े घाम के समय ईशबोशेत के घर में जब वह दोपहर को विश्रम कर रहा या आए। 6 और गेहूं ले जाने के बहाने मे घर में घुस गए; और उसके पेट में मारा; तब रेकाब और उसका भाई बाना भाग निकले। 7 जब वे घर में घुसे, और वह सोने की कोठरी में चारपाई पर सोता या, तब अन्होंने उसे मार डाला, और उसका सिर काट लिया, और उसका सिर लेकर रातोंरात अराबा के मार्ग से चले। 8 और वे ईशबोशेत का सिर हेब्रोन में दाऊद के पास ले जाकर राजा से कहने लगे, देख, शाऊल जो तेरा शत्रु और तेरे प्राणोंका ग्राहक या, उसके पुत्र ईशबोशेत का यह सिर है; तो आज के दिन यहोवा ने शाऊल और उसके वंश से मेरे प्रभु राजा का पलटा लिया है। 9 दाऊद ने बेरोती रिम्मोन के पुत्र रेकाब और उसके भाई बाना को उत्तर देकर उन से कहा, यहोवा जो मेरे प्राण को सब विपत्तियोंसे छुड़ाता आया है, उसके जीवन की शपय, 10 जब किसी ने यह जानकर, कि मैं शुभ समाचार देता हूं, सिकलग में मुझ को शाऊल के मरने का समाचार दिया, तब मैं ने उसको पकड़कर घात कराया; अर्यात् उसको समाचार का यही बदला मिला। 11 फिर जब दुष्ट मनुष्योंने एक निर्दोष मनुष्य को उसी के घर में, वरन उसकी चारपाई ही पर घात किया, तो मैं अब अवश्य ही उसके खून का पलटा तुम से लूंगा, और तुम्हें धरती पर से नष्ट कर डालूंगा। 12 तब दाऊद ने जवानोंको आज्ञा दी, और उन्होंने उनको घात करके उनके हाथ पांव काट दिए, और उनकी लोयोंको हेब्रोन के पोखरे के पास टांग दिया। तब ईशबोशेत के सिर को उठाकर हेब्रोन में अब्नेर की कब्र में गाड़ दिया।
1 ( दाऊद के यरूशलेम में राज्य करने का आरम्भ ) तब इस्राएल के सब गोत्र दाऊद के पास हेब्रोन में आकर कहने लगे, सुन, हम लोग और तू एक ही हाड़ मांस हैं। 2 फिर भूतकाल में जब शाऊल हमारा राजा या, तब भी इस्राएल का अगुवा तू ही या; और यहोवा ने तुझ से कहा, कि मेरी प्रजा इस्राएल का चरवाहा, और इस्राएल का प्रधान तू ही होगा। 3 सो सब इस्राएली पुरनिथे हेब्रोन में राजा के पास आए; और दाऊद राजा ने उनके साय हेब्रोन में यहोवा के साम्हने वाचा बान्धी, और उन्होंने इस्राएल का राजा होने के लिथे दाऊद का अभिषेक किया। 4 दाऊद तीस वर्ष का होकर राज्य करने लगा, और चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 5 साढ़े सात वर्ष तक तो उस ने हेब्रोन में यहूदा पर राज्य किया, और तैंतीस वर्ष तक यरूशलेम में समस्त इस्राएल और यहूदा पर राज्य किया। 6 तब राजा ने अपके जनोंको साय लिए हुए यरूशलेम को जाकर यबूसियोंपर चढ़ाई की, जो उस देश के निवासी थे। उन्होंने यह समझकर, कि दाऊद यहां पैठ न सकेगा, उस से कहा, जब तक तू अन्धें और लंगड़ोंको दूर न करे, तब तक यहां पैठने न पाएगा। 7 तौभी दाऊद ने सिय्योन नाम गढ़ को ले लिया, वही दाऊदपुर भी कहलाता है। 8 उस दिन दाऊद ने कहा, जो कोई यबूसिक्कों मारना चाहे, उसे चाहिथे कि नाले से होकर चढ़े, और अन्धे और लंगड़े जिन से दाऊद मन से घिन करता है उन्हें मारे। इस से यह कहावत चक्की, कि अन्धे और लगड़े भवन में आने न पाएंगे। 9 और दाऊद उस गढ़ में रहने लगा, और उसका नाम दाऊदपुर रखा। और दाऊद ने चारोंओर मिल्लो से लेकर भीतर की ओर शहरपनाह बनवाई। 10 और दाऊद की बड़ाई अधिक होती गई, और सेनाओं का परमेश्वर यहोवा उसके संग रहता या। 11 और सोर के राजा हीराम ने दाऊद के पास दूत, और देवदारू की लकड़ी, और बढ़ई, और राजमिस्त्री भेजे, और उन्होंने दाऊद के लिथे एक भवन बनाया। 12 और दाऊद को निश्चय हो गया कि यहोवा ने मुझे इस्राएल का राजा करके स्यिर किया, और अपक्की इस्राएली प्रजा के निमित्त मेरा राज्य बढ़ाया है। 13 जब दाऊद हेब्रोन से आया तब उसके बाद उस ने यरूशलेम की और और रखेलियां रख लीं, और पत्नियां बना लीं; और उसके और बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 14 उसके जो सन्तान यरूशलेम में उत्पन्न हुए, उनके थे नाम हैं, अर्यात् शम्मू, शोबाब, नातान, सुलैमान, 15 यिभार, एलोशू, नेपेग, यापी, 16 एलीशामा, एल्यादा, और एलोपेलेत। 17 जब पलिश्तियोंने यह सुना कि इस्राएल का राजा होने के लिथे दाऊद का अभिषेक हुआ, तब सब पलिश्ती दाऊद की खोज में निकले; यह सुनकर दाऊद गढ़ में चला गया। 18 तब पलिश्ती आकर रपाईम नाम तराई में फैल गए। 19 तब दाऊद ने यहावा से पूछा, क्या मैं पलिश्तियोंपर चढ़ाई करूं? क्या तू उन्हें मेरे हाथ कर देगा? यहोवा ने दाऊद से कहा, चढ़ाई कर; क्योंकि मैं निश्चय पलिश्तियोंको तेरे हाथ कर दूंगा। 20 तब दाऊद बालपरासीम को गया, और दाऊद ने उन्हें वहीं मारा; तब उस ने कहा, यहोवा मेरे साम्हने होकर मेरे शत्रुओं पर जल की धारा की नाई टूट पड़ा है। 21 वहां उन्होंने अपक्की मूरतोंको छोड़ दिया, और दाऊद और उसके जन उन्हें उठा ले गए। 22 फिर दूसरी बार पलिश्ती चढ़ाई करके रपाईम नाम तराई में फैल गए। 23 जब दाऊद ने यहोवा से पूछा, तब उस ने कहा, चढ़ाई न कर; उनके पीछे से घूमकर तूत वृझोंके साम्हने से उन पर छापा मार। 24 और जब तूत वृझोंकी फुनगियोंमें से सेना के चलने की सी आहट तुझे सुनाई पके, तब यह जानकर फुर्ती करना, कि यहोवा पलिश्तियोंकी सेना को मारने को मेरे आगे अभी पधारा है। 25 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार दाऊद गेबा से लेकर गेजेर तक पलिश्तियोंको मारता गया।
1 ( पवित्र सन्दूक का यरूशलेम में पहुंचाया जाना ) फिर दाऊद ने एक और बार इस्राएल में से सब बड़े वीरोंको, जो तीस हजार थे, इकट्ठा किया। 2 तब दाऊद और जितने लोग उसके संग थे, वे सब उठकर यहूदा के बाले नाम स्यान से चले, कि परमेश्वर का वह सन्दूक ले आएं, जो करूबोंपर विराजनेवाले सेनाओं के यहोवा का कहलाता है। 3 तब उन्होंने परमेश्वर का सन्दूक एक नई गाड़ी पर चढ़ाकर टीले पर रहनेवाले अबीनादाब के घर से निकाला; और अबीनादाब के उज्जा और अहह्मो नाम दो पुत्र उस नई गाड़ी को हांकने लगे। 4 और उन्होंने उसको परमेश्वर के सन्दूक समेत टीले पर रहनेवाले अबीनादाब के घर से बाहर निकाला; और अहह्मो सन्दूक के आगे आगे चला। 5 और दाऊद और इस्राएल का समस्त घराना यहोवा के आगे सनौवर की लकड़ी के बने हुए सब प्रकार के बाजे और वीणा, सारंगियां, डफ, डमरू, फांफ बजाते रहे। 6 जब वे नाकोन के खलिहान तक आए, तब उज्जा ने अपना हाथ परमेश्वर के सन्दूक की ओर बढ़ाकर उसे याम लिया, क्योंकि बैलोंने ठोकर खाई। 7 तब यहोवा का कोप उज्जा पर भड़क उठा; और परमेश्वर ने उसके दोष के कारण उसको वहां ऐसा मारा, कि वह वहां परमेश्वर के सन्दूक के पास मर गया। 8 तब दाऊद अप्रसन्न हुआ, इसलिथे कि यहोवा उज्जा पर टूट पड़ा या; और उस ने उस स्यान का नाम पेरेसुज्जा रखा, यह नाम आज के दिन तक वर्तमान है। 9 और उस दिन दाऊद यहोवा से डरकर कहने लगा, यहोवा का सन्दूक मेरे यहां क्योंकर आए? 10 इसलिथे दाऊद ने यहोवा के सन्दूक को अपके यहां दाऊदपुर में पहुंचाना न चाहा; परन्तु गतवासी ओबेदेदोम के यहां पहुंचाया। 11 और यहोवा का सन्दूक गती ओबेदेदोम के घर में तीन महीने रहा; और यहोवा ने ओबेदेदोम और उसके समस्त घराने को आशिष दी। 12 तब दाऊद राजा को यह बताया गया, कि यहोवा ने ओबेदेदोम के घराने पर, और जो कुछ उसका है, उस पर भी परमेश्वर के सन्दूक के कारण आशिष दी है। तब दाऊद ने जाकर परमेश्वर के सन्दूक को ओबेदेदोम के घर से दाऊदपुर में आनन्द के साय पहूंचा दिया। 13 जब यहोवा के सन्दूक के उठानेवाले छ: कदम चल चुके, तब दाऊद ने एक बैल और एक पाला पोसा हुआ बछड़ा बलि कराया। 14 और दाऊद सनी का एपोद कमर में कसे हुए यहोवा के सम्मुख तन मन से नाचता रहा। 15 योंदाऊद और इस्राएल का समस्त घराना यहोवा के सन्दूक को जय जयकार करते और नरसिंगा फूंकते हुए ले चला। 16 जब यहोवा का सन्दूक दाऊदपुर में आ रहा या, तब शाऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से फांककर दाऊद राजा को यहोवा के सम्मुख नाचते कूदते देखा, और उसे मन ही मन तुच्छ जाना। 17 और लोग यहोवा का सन्दूक भीतर ले आए, और उसके स्यान में, अर्यात् उस तम्बू में रखा, जो दाऊद ने उसके लिथे खड़ा कराया या; और दाऊद ने यहोवा के सम्मुख होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। 18 जब दाऊद होमबलि और मेलबलि चढ़ा चुका, तब उस ने सेनाओं के यहोवा के नाम से प्रजा को आशीर्वाद दिया। 19 तब उस ने समस्त प्रजा को, अर्यात्, क्या स्त्री क्या पुरुष, समस्त इस्राएली भीड़ के लोगोंको एक एक रोटी, और एक एक टुकड़ा मांस, और किशमिश की एक एक टिकिया बंटवा दी। तब प्रजा के सब लोग अपके अपके घर चले गए। 20 तब दाऊद अपके घराने को आशीर्वाद देने के लिथे लौटा। और शाऊल की बेटी मीकल दाऊद से मिलने को निकली, और कहने लगी, आज इस्राएल का राजा जब अपना शरीर अपके कर्मचारियोंकी लौंडियोंके साम्हने ऐसा उघाड़े हुए या, जैसा कोई निकम्मा अपना तन उघाढ़े रहता है, तब क्या ही प्रतापी देख पड़ता या ! 21 दाऊद ने मीकल से कहा, यहोवा, जिस ने तेरे पिता और उसके समस्त घराने की सन्ती मुझ को चुनकर अपक्की प्रजा इस्राएल का प्रधान होने को ठहरा दिया है, उसके सम्मुख मैं ने ऐसा खेला--और मैं यहोवा के सम्मुख इसी प्रकार खेला करूंगा। 22 और इस से भी मैं अधिक तुच्छ बनूंगा, और अपके लेखे नीच ठहरूंगा; और जिन लौंडियोंकी तू ने चर्चा की वे भी मेरा आदरमान करेंगी। 23 और शाऊल की बेटी मीकल के मरने के दिन तक उसके कोई सन्तान न हुआ।
1 जब राजा अपके भवन में रहता या, और यहोवा ने उसको उसके चारोंओर के सब शत्रुऔं से विश्रम दिया या, 2 तब राजा नातान नाम भविष्यद्वक्ता से कहने लगा, देख, मैं तो देवदारु के बने हुए घर में रहता हूँ, परन्तु परमेश्वर का सन्दूक तम्बू में रहता है। 3 नातान ने राजा से कहा, जो कुछ तेरे मन में हो उसे कर; क्योंकि यहोवा तेरे संग है। 4 उसी दिन रात को यहोवा का यह वचन नातान के पास पहुंचा, 5 कि जाकर मेरे दास दाऊद से कह, यहोवा सोंकहता है, कि क्या तू मेरे निवास के लिथे घर बनवाएगा? 6 जिस दिन से मैं इस्रालिएयोंको मिस्र से निकाल लाया आज के दिन तक मैं कभी घर में नहीं रहा, तम्बू के निवास में आया जाया करता हूँ। 7 जहां जहां मैं समस्त इस्राएलियोंके बीच फिरता यि, क्या मैं ने कहीं इस्राएल के किसी गोत्र से, जिसे मैं ने अपक्की प्रजा इस्राएल की चरवाही करने को ठहराया हो, ऐसी बात कभी कही, कि तुम ने मेरे लिऐ देवदारु का घर क्योंनहीं बनवाया? 8 इसलिथे अब तू मेरे दास दाऊद से ऐसा कह, कि सेनाओं का यहोवा योंकहता है, कि मैं ने तो तुझे भेड़शाला से, और भ्ोड़-बकरिसोंके पीछे पीछे फिरने से, इस मनसा से बुला लिया कि तू मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान हो जाए। 9 और जहां कहीं तू आया गया, वहां वहां मैं तेरे संग रहा, और तेरे समस्त शत्रुओं को तेरे साम्हने से नाश किया है; फिर मैं तेरे नाम को पृय्वी पर के बड़े बड़े लोगोंके नामोंके समान महान कर दूंगा। 10 और मैं अपक्की प्रजा इस्राएल के लिथे एक स्यान ठहराऊंगा, और उसको स्यिर करूंगा, कि वह अपके ही स्यान में बसी रहेगी, और कभी चलायमान न होगी; और कुटिल लोग उसे फिर दु:ख न देने पाएंगे, जैसे कि पहिले दिनोंमें करते थे, 11 वरन उस समय से भी जब मैं अपक्की प्रजा इस्राएल के ऊपर न्यायी ठहराता या; और मैं तुझे तेरे समस्त शत्रुओं से विश्रम दूंगा। और यहोवा तुझे यह भी बताता है कि यहोवा तेरा घर बनाए रखेगा। 12 जब तेरी आयु पूरी हो जाएगी, और तू अपके पुरखाओं के संग सो जाएगा, तब मैं तेरे निज वंश को तेरे पीछे खड़ा करंके उसके राज्य को स्यिर करूंगा। 13 मेरे नाम का घर वही बनवाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्यिर रखूंगा। 14 मैं उसका पिता ठहरूंगा, और वह मेरा पुत्र ठहरेगा। यदि वह अधर्म करे, तो मैं उसे मनुष्योंके योग्य दण्ड से, और आदमियोंके योग्य मार से ताड़ना दूंगा। 15 परन्तु मेरी करुणा उस पर से ऐसे न हटेगी, जैसे मैं ने शाऊल पर से हटाकर उसको तेरे आगे से दूर किया। 16 वरन तेरा घराना और तेरा राज्य मेरे साम्हने सदा अटल बना रहेगा; तेरी गद्दी सदैव बनी रहेगी। 17 इन सब बातोंऔर इस दर्शन के अनुसार नातान ने दाऊद को समझा दिया। 18 तब दाऊद राजा भीतर जाकर यहोवा के सम्मुख बैठा, और कहने लगा, हे प्रभु यहोवा, क्या कहूं, और मेरा घराना क्या है, कि तू ने मुझे यहां तक पहुंचा दिया है? 19 परन्तु तौभी, हे प्रभु यहोवा, यह तेरी दृष्टी में छोटी सी बात हुई; क्योंकि तु ने अपके दास के घराने के विषय आगे के बहुत दिनोंतक की चर्चा की है, और हे प्रभु यहोवा, यह तो मनुष्य का नियम है ! 20 दाऊद तुझ से और क्या कह सकता है? हे प्रभु यहावा, तू तो अपके दास को जानता है ! 21 तू ने अपके वचन के निमित्त, और अपके ही मन के अनुसार, यह सब बड़ा काम किया है, कि तेरा दास उसको जान ले। 22 इस कारण, हे यहोवा परमेश्वर, तू महान् है; क्योंकि जो कुछ हम ने अपके कानोंसे सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ कोई और परमेश्वर है। 23 फिर तेरी प्रजा इस्राएल के भी तुल्य कौन है? यह तो पृय्वी भर में एक ही जाति है जिसे परमेश्वर ने जाकर अपक्की निज प्रजा करने को छुड़ाया, इसलिथे कि वह अपना नाम करे, ( और तुम्हारे लिथे बड़े बड़े काम करे ) और तू अपक्की प्रजा के साम्हने, जिसे तू ने मिस्री आदि जाति जाति के लोगोंऔर उनके देवताओं से छूड़ा लिया, अपके देश के लिथे भयानक काम करे। 24 और तू ने अपक्की प्रजा इस्राएल को अपक्की सदा की प्रजा होने के लिथे ठहराया; और हे यहोवा, तू आप उसका परमेश्वर है। 25 अब हे यहोवा परमेश्वर, तू ने जो वचन अपके दास के और उसके घराने के विषय दिया है, उसे सदा के लिथे स्यिर कर, और अपके कहने के अनूसार ही कर; 26 और यह कर कि लोग तेरे नाम की महिमा सदा किया करें, कि सेनाओं का यहोवा इस्राएल के ऊपर परमेश्वर है; और तेरे दास दाऊद का घराना तेरे साम्हने अटल रहे। 27 क्योंकि, हे सेनाओं के यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर, तू ने यह कहकर अपके दास पर प्रगट किया है, कि मैं तेरा घर बनाए रखूंगा; इस कारण तेरे दास को तुझ से यह प्रार्यना करने का हियाव हुआ है। 28 और अब हे प्रभु यहोवा, तू ही परमेश्वर है, और तेरे वचन सत्य हैं, और तू ने अपके दास को यह भलाई करने का वचन दिया है; 29 तो अब प्रसन्न होकर अपके दास के घराने पर ऐसी आशीष दे, कि वह तेरे सम्मुख सदैव बना रहे; क्योंकि, हे प्रभु यहोवा, तू ने ऐसा ही कहा है, और तेरे दास का घराना तुझ से आशीष पाकर सदैव धन्य रहे।
1 इसके बाद दाऊद ने पलिश्तियोंको जीतकर अपके अधीन कर लिया, और दाऊद ने पलिश्तियोंकी राजधानी की प्रभुता उनके हाथ से छीन ली। 2 फिर उस ने मोआबियोंको भी जीता, और इनको भूमि पर लिटाकर डोरी से मापा; तब दो डोरी से लोगोंको मापकर घात किया, और डोरी भर के लोगोंको जीवित छोड़ दिया। तब मोआबी दाऊद के अधीन होकर भेंट ले आने लगे। 3 फिर जब सोबा का राजा रहोब का पुत्र हददेजेर महानद के पास अपना राज्य फिर ज्योंका त्योंकरने को जा रहा या, तब दाऊद ने उसको जीत लिया। 4 और दाऊद ने उस से एक हजार सात सौ सवार, और बीस हजार प्यादे छस्त्रीन लिए; और सब रयवाले घोड़ोंके सुम की नस कटवाई, परन्तु एक सौ रयवाले घोड़े बचा रखे। 5 और जब दमिश्क के अरामी सोबा के राजा हददेजेर की सहाथता करने को आए, तब दाऊद ने आरामियोंमें से बाईस हज़ार पुरुष मारे। 6 तब दाऊद ने दमिश्क में अराम के सिपाहियोंकी चौकियां बैठाई; इस प्रकार अरामी दाऊद के अधीन होकर भेंट ले आने लगे। और जहां जहां दाऊद जाता या वहां वहां यहोवा उसको जयवन्त करता या। 7 और हददेजेर के कर्मचारियोंके पास सोने की जो ढालें यीं उन्हें दाऊद लेकर यरूशलेम को आया। 8 और बेतह और बरौतै नाम हददेजेर के नगरोंसे दाऊद राजा बहुत सा पीतल ले आया। 9 और जब हमात के राजा तोई ने सुना कि दाऊद ने हददेजेर की समस्त सेना को जीत लिया है, 10 तब तोई ने योराम नाम अपके पुत्र को दाऊद राजा के पास उसका कुशल झेम पूछने, और उसे इसलिथे बधाई देने को भेजा, कि उस ने हददेजेर से लड़ कर उसको जीत लिया या; क्योंकि हददेजेर तोई से लड़ा करता या। और योराम चांदी, सोने और पीतल के पात्र लिए हुए आया। 11 इनको दाऊद राजा ने यहोवा के लिथे पवित्र करके रखा; और वैसा ही अपके जीती हुई सब जातियोंके सोने चांदी से भी किया, 12 अर्यात् अरामियों, मोआबियों, अम्मानियों, पलिश्तियों, और अमालेकियोंके सोने चांदी को, और रहोब के पुत्र सोबा के राजा हददेजेर की लूट को भी रखा। 13 और जब दाऊद लोमवाली तराई में अठारह हजार अरामियोंको मारके लौट आया, तब उसका बड़ा नाम हो गया। 14 फिर उस ने एदोम में सिपाहियोंकी चौकियां बैठाई; पूरे एदोम में उस ने सिपाहियोंकी चौकियां। बैठाई, और सब एदोमी दाऊद के अधीन हो गए। और दाऊद जहां जहां जाता या वहां वहां यहोवा उसको जयवन्त करता या। 15 ( दाऊद के कर्मचारियोंकी नामावली ) दाऊद तो समस्त इस्राएल पर राज्य करता या, और दाऊद अपक्की समस्त प्रजा के साय न्याय और धर्म के काम करता या। 16 और प्रधान सेनापति सरूयाह का पुत्र योआब या; इतिहास का लिखनेवाला अहीलूद का पुत्र यहोशापात या; 17 प्रधान याजक अहीतूब का पुत्र सादोक और एब्यातर का पुत्र अहीमेलेक थे; मंत्री सरायाह या; 18 करेतियो और पकेतियोंका प्रधान यहोयादा का पुत्र बनायाह या; और दाऊद के पुत्र भी मंत्री थे।
1 दाऊद ने पूछा, क्या शाऊल के घराने में से कोई अब तक बचा है, जिसको मैं योनातन के कारण प्रीति दिखाऊं? 2 शाऊल के घराने का सीबा नाम एक कर्मचारी या, वह दाऊद के पास बुलाया गया; और जब राजा ने उस से पूछा, क्या तू सीबा है? तब उस ने कहा, हां, तेरा दास वही है। 3 राजा ने पूछा, क्या शाऊल के घराने में से कोई अब तक बचा है, जिसको मैं परमेश्वर की सी प्रीति दिखाऊं? सीबा ने राजा से कहा, हां, योनातन का एक बेटा तो है, जो लंगड़ा है। 4 राजा ने उस से पूछा, वह कहां है? सीबा ने राजा से कहा, वह तो लोदबार नगर में, अम्मीएल के पुत्र माकीर के घर में रहता है। 5 तब राजा दाऊद ने दूत भेजकर उसको लोदबार से, अम्मीएल के पुत्र माकीर के घर से बुलवा लिया। 6 जब मपीबोशेत, जो योनातन का पुत्र और शाऊल का पोता या, दाऊद के पास आया, तब मुह के बल गिरके दणडवत् किया। दाऊद ने कहा, हे मपीबोशेत ! उस ने कहा, तेरे दास को क्या आज्ञा? 7 दाऊद ने उस से कहा, मत डर; तेरे पिता योनातन के कारण मैं निश्चय तुझ को प्रीति दिखाऊंगा, और तेरे दादा शाऊल की सारी भूूमि तुझे फेर दूंगा; और तू मेरी मेज पर नित्य भोजन किया कर। 8 उस ने दणडवत् करके कहा, तेरा दास क्या है, कि तू मुझे ऐसे मरे कुत्ते की ओर दृष्टि करे? 9 तब राजा ने शाऊल के कर्मचारी सीबा को बुलवाकर उस से कहा, जो कुछ शाऊल और उसके समस्त घराने का या वह मैं ने तेरे स्वामी के पोते को दे दिया है। 10 अब से तू अपके बेटोंऔर सेवकोंसमेत उसकी भूमि पर खेती करके उसकी उपज ले आया करना, कि तेरे स्वामी के पोते को भोजन मिला करे; परन्तु तेरे स्वामी का पोता मपीबोशेत मेरी मेज पर नित्य भोजन किया करेगा। और सीबा के तो पन्द्रह पुत्र और बीस सेवक थे। 11 सीबा ने राजा से कहा, मेरा प्रभु राजा अपके दास को जो जो आज्ञा दे, उन सभोंके अनुसार तेरा दास करेगा। दाऊद ने कहा, मपीबोशेत राजकुमारोंकी नाई मेरी मेज पर भोजन किया करे। 12 मपीबोशेत के भी मीका नाम एक छोटा बेटा या। और सीबा के घर में जितने रहते थे वे सब मपीबोशेत की सेवा करते थे। 13 और मपीबोशेत यरूशलेम में रहता या; क्योंकि वह राजा की मेज पर नित्य भोजन किया करता या। और वह दोनोंपांवोंका पंगुला या।
1 इसके बाद अम्मोनियोंका राजा मर गया, और उसका हानून नाम पुत्र उसके स्यान पर राजा हुआ। 2 तब दाऊद ने यह सोचा, कि जैसे हानून के पिता नाहाश ने मुझ को प्रीति दिखाई यी, वैसे ही मैं भी हानून को प्रीति दिखाऊंगा। तब दाऊद ने अपके कई कर्मचारियोंको उसके पास उसके पिता के विषय शान्ति देने के लिथे भ्ेज दिया। और दाऊद के कर्मचारी अम्मोनियोंके देश में आए। 3 परन्तु अम्मोनियोंके हाकिम अपके स्वामी हानून से कहने लगे, दाऊद ने जो तेरे पास शान्ति देनेवाले भेजे हैं, वह क्या तेरी समझ में तेरे पिता का आदर करने की मनसा मे भेजे हैं? क्या दाऊद ने अपके कर्मचारियोंको तेरे पास इसी मनसा मे नहीं भेजा कि इस नगर में ढूंढ़ ढांढ़ करके और इसका भेद लेकर इसको उलट दें? 4 इसलिथे हानून ने दाऊद के कर्मचारियोंको पकडा, और उनकी आधी-आधी डाढ़ी मुड़वाकर और आधे वस्त्र, अर्यात् नितम्ब तक कटवाकर, उनको जाने दिया। 5 इसका समाचार पाकर दाऊद ने लोगोंको उन से मिलने के लिथे भेजा, क्योंकि वे बहुत लजाते थे। और राजा ने यह कहा, कि जब तक तुम्हारी डाढिय़ां बढ़ न जाएं तब तक यरीहो में ठहरे रहो, तब लौट आना। 6 जब अम्मानियोंने देखा कि हम से दाऊद अप्रसन्न हैं, तब अम्मोनियोंने बेत्रहोब और सोबा के बीस हजार अरामी प्यादोंको, और हजार पुरुषोंसमेत माका के राजा को, और बारह हज़ार तोबी पुरुषोंको, वेतन पर बुलवाया। 7 यह सुनकर दाऊद ने योआब और शूरवीरोंकी समस्त सेना को भेजा। 8 तब अम्मोनी निकले और फाटक ही के पास पांती बान्धी; और सोबा और रहोब के अरामी और तोब और माका के पूरुष उन से न्यारे मैदान में थे। 9 यह देखकर कि आगे पीछे दोनोंओर हमारे विरुद्व पांति बन्धी है, योआब ने सब बड़े बढ़े इस्राएली वीरोंमें से बहुतोंको छांटकर अरामियोंके साम्हने उनकी पांति बन्धाई, 10 और और लोगोंको अपके भाई अबीशै के हाथ सौंप दिया, और उस ने अम्मोनियोंके साम्हने उनकी पांति बन्धाई। 11 फिर उस ने कहा, यदि अरामी मुझ पर प्रबल होने लगें, तो तू मेरी सहाथता करना; और यदि अम्मोनी तुझ पर प्रबल होने लगोंगे, तो मैं आकर तेरी सहाथता करूंगा। 12 तू हियाब बान्ध, और हम अपके लोगोंऔर अपके परमेश्वर के नगरोंके निमित्त पुरुषार्य करें; और यहोवा जैसा उसको अच्छा लगे वैसा करे। 13 तब योआब और जो लोग उसके साय थे अरामियोंसे युद्व करने को निकट गए; और वे उसके साम्हने से भागे। 14 यह देखकर कि अरामी भाग गए हैं अम्मोनी भी अबीशै के साम्हने से भागकर नगर के भीतर घुसे। तब योआब अम्मोनियोंके पास से लौटकर यरूशलेम को आया। 15 फिर यह देखकर कि हम इस्राएलियोंसे हार गए अरामी इकट्ठे हुए। 16 और हददेजेर ने दूत भेजकर महानद के पार के अरामियोंको बुलवाया; और वे हददेजेर के सेनापति शोवक को अपना प्रधान बनाकर हेलाम को आए। 17 इसका समाचार पाकर दाऊद ने समस्त इस्राएलियोंको इकट्ठा किया, और यरदन के पार होकर हेलाम में पहुंचा। तब अराम दाऊद के विरुद्ध पांति बान्धकर उस से लड़ा। 18 परन्तु अरामी इस्राएलियोंसे भागे, और दाऊद ने अरामियोंमें से सात सौ रयियोंऔर चालीय हजार सवारोंको मार डाला, और उनके सेनापति हाोबक को ऐसा घायल किया कि वह वहीं मर गया। 19 यह देखकर कि हम इस्राएल से हार गए हैं, जितने राजा हददेजेर के अधीन थे उन सभोंने इस्राएल के साय संधि की, और उसके अधीन हो गए। और अरामी अम्मोनियोंकी और सहाथता करने से डर गए।
1 फिर जिस समय राजा लोग युद्ध करने को निकला करते हैं, उस समय, अर्यात् वर्ष के आरम्भ में दाऊद ने योआब को, और उसके संग अपके सेवकोंऔर समस्त इस्राएलियोंको भेजा; और उन्होंने अम्मोनियोंको नाश किया, और रब्बा नगर को घेर लिया। परन्तु दाऊद सरूशलेम में रह गया। 2 सांफ के समय दाऊद पलंग पर से उठकर राजभवन की छत पर टहल रहा या, और छत पर से उसको एक स्त्री, जो अति सुन्दर यी, नहाती हुई देख पक्की। 3 जब दाऊद ने भेजकर उस स्त्री को पुछवाया, तब किसी ने कहा, क्या यह एलीआम की बेटी, और हित्त्ीि ऊरिय्याह की पत्नी बतशेबा नहीं है? 4 तब दाऊद ने दूत भेजकर उसे बुलवा लिया; और वह दाऊद के पास आई, और वह उसके साय सोया। ( वह तो ऋतु से शुद्ध हो गई यी ) तब वह अपके घर लौट गई। 5 और वह स्त्री गर्भवती हुई, तब दाऊद के पास कहला भेजा, कि मुझे गर्भ है। 6 तब दाऊद ने योआब के पास कहला भेजा, कि हित्ती ऊरिय्याह को मेरे पास भेज, तब योआब ने ऊरिय्याह को दाऊद के पास भेज दिया। 7 जब ऊरिय्याह उसके पास आया, तब दाऊद ने उस से योआब और सेना का कुशल झेम और युद्ध का हाल पूछा। 8 तब दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, अपके घर जाकर अपके पांव धो। और ऊरिय्याह राजभवन से निकला, और उसके पीछे राजा के पास से कुछ इनाम भेजा गया। 9 परन्तु ऊरिय्याह अपके स्वामी के सब सेवकोंके संग राजभवन के द्वार में लेट गया, और अपके घर न गया। 10 जब दाऊद को यह समाचार मिला, कि ऊरिय्याह अपके घर नहीं गया, तब दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, क्या तू यात्रा करके नहीं आया? तो अपके घर क्योंनहीं गया? 11 ऊरिय्याह ने दाऊद से कहा, जब सनदूक और इस्राएल और यहूदा फोपडिय़ोंमें रहते हैं, और मेरा स्वामी योआब और मेरे स्वामी के सेवक खुले मैदान पर डेरे डाले हुए हैं, तो क्या मैं घर जाकर खाऊं, पीऊं, और अपक्की पत्नी के साय सोऊं? तेरे जीवन की शपय, और तेरे प्राण की शपय, कि मैं ऐसा काम नहीं करने का। 12 दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, आज यहीं रह, और कल मैं तुझे विदा करूंगा। इसलिथे ऊरिय्याह उस दिन और दूसरे दिन भी यरूशलेम में रहा। 13 तब दाऊद ने उसे नेवता दिया, और उस ने उसके साम्हने खाया पिया, और उसी ने उसे मतवाला किया; और सांफ काो वह अपके स्वामी के सेवकोंके संग अपक्की चारपाई पर सोने को निकला, परन्तु अपके घर न गया। 14 बिहान को दाऊद ने योआब के नाम पर एक चिट्ठी लिखकर ऊरिय्याह के हाथ से भेजदी। 15 उस चिट्ठी में यह लिखा या, कि सब से घोर युद्ध के साम्हने ऊरिय्याह को रखना, तब उसे छोडकर लौट आबो, कि वह घायल हो कर मर जाए। 16 और योआब ने नगर को अच्छी रीति से देख भालकर जिस स्यान में वह जानता या कि वीर हैं, उसी में ऊरिय्याह को ठहरा दिया। 17 तब नगर के पुरुषोंने निकलकर योआब से युद्ध किया, और लागोंमें से, अर्यात् दाऊद के सेवकोंमें से कितने खेत आए; और उन में हित्ती ऊरिय्यह भी मर गया। 18 तब योआब ने भेजकर दाऊद को युद्ध का पूरा हाल बताया; 19 और दूत को आज्ञा दी, कि जब तू युद्धका पूरा हाल राजा को बता चुके, 20 तब यदि राजा जलकर कहने लगे, कि तुम लाग लड़ने को नगर के ऐसे निकट क्योंगए? क्या तुम न जानते थे कि वे शहरपनाह पर से तीर छोड़ेंगे? 21 यरुब्बेशेत के पुत्र अबीमेलेक को किसने मार डाला? क्या एक स्त्री ने शहरपनाह पर से चक्की का उपरला पाट उस पर ऐसा न डाला कि वह तेबेस में मर गया? फिर तुम हाहरपनाह के एसे निकट क्योंगए? तो तू योंकहना, कि तेरा दास ऊरिय्याह हित्ती भी मर गया। 22 तब दूत चल दिया, और जाकर दाऊद से योआब की सब बातें चर्णन कीं। 23 दूत ने दाऊद से कहा, कि वे लोग हम पर प्रबल होकर मैदान में हमारे पास निकल आए, फिर हम ने उन्हें फाटक तक खदेड़ा। 24 तब धनुर्धारियोंने शहरपनाह पर से तेरे जनोंपर तीर छोड़े; और राजा के कितने जन मर गए, और तेरा दास ऊरिय्याह हित्ती भी मर गया। 25 दाऊद ने दूत से कहा, योआब से योंकहना, कि इस बात के कारण उदास न हो, क्योंकि तलवार जैसे इसको वैसे उसको नाश करती है; तो तू नगर के विरुद्ध अधिक दृढ़ता से लड़कर उसे उलट दे। और तू उसे हियाव बन्धा। 26 जब ऊरिय्याह की स्त्री ने सुना कि मेरा पति मर गया, तब वह अपके पति के लिथे रोने पीटते लगी। 27 और जब उसके विलाप के दिन बीत चुके, तब दाऊद ने उसे बुलवाकर अपके घर में रख लिया, और वह उसकी पत्नी हो गई, और उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। परन्तु उस काम से जो दाऊद ने किया या यहोवा क्रोधित हुआ।
1 तब यहोवा ने दाऊद के पास नातान को भेजा, और वह उसके पास जाकर कहने लगा, एक नगर में दो मनुष्य रहते थे, जिन में से एक धनी और एक निर्धन या। 2 धनी के पास तो बहुत सी भेड़-बकरियां और गाय बैल थे; 3 परन्तु निर्धन के पास भेड़ की एक छोटी बच्ची को छोड़ और कुछ भी न या, और उसको उस ने मोल लेकर जिलाया या। और वह उसके यहां उसके बालबच्चोंके साय ही बढ़ी यी; वह उसके टुकड़े में से खाती, और उसके कटोरे में से पीती, और उसकी गोद मे सोती यी, और वह उसकी बेटी के समान यी। 4 और धनी के पास एक बटोही आया, और उस ने उस बटोही के लिथे, जो उसके पास आया या, भोजत बनवाने को अपक्की भेड़-बकरियोंवा गाय बैलोंमें से कुछ न लिया, परन्तु उस निर्धन मनुष्य की भेड़ की बच्ची लेकर उस जन के लिथे, जो उसके पास आया या, भोजन बनवाया। 5 तब दाऊद का कोप उस मनुष्य पर बहुत भड़का; और उस ने नातान से कहा, यहोवा के जीवन की शपय, जिस मनुष्य ने ऐसा काम किया वह प्राण दणड के योग्य है; 6 और उसको वह भेड़ की बच्ची का औगुणा भर देना होगा, क्योंकि उस ने ऐसा काम किया, और कुछ दया नहीं की। 7 तब नातान ने दाऊद से कहा, तू ही वह मनुष्य है। इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि मैं ने तेरा अभिशेक कराके तुझे इस्राएल का राजा ठहराया, और मैं ते तुझे शाऊल के हाथ से बचाया; 8 फिर मैं ने तेरे स्वामी का भवन तुझे दिया, और तेरे स्वामी की पत्नियां तेरे भाग के लिथे दीं; और मैं ने इस्राएल और सहूदा का घराना तुझे दिया या; और यदि यह योड़ा या, तो मैं तुझे और भी बहुत कुछ देनेवाला या। 9 तू ने यहोवा की आज्ञा तुच्छ जानकर क्योंवह काम किया, जो उसकी दृष्टि में बुरा है? हित्ती ऊरिय्याह को तू ने तलवार से घात किया, और उसकी पत्नी को अपक्की कर लिया है, और ऊरिय्याह को अम्मोनियोंकी तलवार से मरवा डाला है। 10 इसलिथे अब तलवार तेरे घर से कभी दूर न होगी, क्योंकि तू ने मुझे तुच्छ जानकर हित्ती ऊरिय्याह की पत्नी को अपक्की पत्नी कर लिया है। 11 यहोवा योंकहता है, कि सुन, मैं तेरे घर में से विपत्ति उठाकर तुझ पर डालूंगा; और तेरी पत्नियोंको तेरे साम्हने लेकर दूसरे को दूंगा, और वह दिन दुपहरी में तेरी पत्नियोंसे कुकर्म करेगा। 12 तू ने तो वह काम छिपाकर किया; पर मैं यह काम सब इस्राएलियोंके साम्हने दिन दुपहरी कराऊंगा। 13 तब दाऊद ने नातान से कहा, मैं ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है। नातान ने दाऊद से कहा, यहोवा ने तेरे पाप को दूर किया है।; तू न मरेगा। 14 तौभी तू ने जो इस काम के द्वारा यहोवा के शत्रुओं को तिरस्कार करने का बड़ा अवसर दिया है, इस कारण तेरा जो बेटा उत्पन्न हुआ है वह अवश्य ही मरेगा। 15 तब नातान अपके घर चला गया। और जो बच्चा ऊरिय्याह की पत्नी से दाऊद के द्वारा उत्पन्न या, वह यहोवा का मारा बहुत रोगी हो गया। 16 और दाऊद उस लड़के के लिथे परमेश्वर से बिनती करने लगा; और उपवास किया, और भीतर जाकर रात भर भूमि पर पड़ा रहा। 17 तब उसके घराने के पुरनिथे उठकर उसे भूमि पर से उठाने के लिथे उसके पास गए; परन्तु उस ने न चाहा, और उनके संग रोठी न खाई। 18 सातवें दिन बच्चा मर गया, और दाऊद के कर्मचारी उसको बच्चे के मरने का समाचार देने से डरे; उन्होंने तो कहा या, कि जब तक बच्चा जीवित रहा, तब तक उस ने हमारे बमफाने पर मन न लगाया; यदि हम उसको बच्चे के मर जाने का हाल सुनाएं तो वह बहुत ही अधिक दु:खी होगा। 19 अपके कर्मचारियोंको आपस में फुसफुसाते देखकर दाऊद ने जान लिया कि बच्चा मर गया; तो दाऊद ने अपके कर्मचारियोंसे पूछा, क्या बच्चा मर गया? उन्होंने कहा, हां, मर गया है। 20 तब दाऊद भूमि पर से उठा, और नहाकर तेल लगाया, और वस्त्र बदला; तब यहोवा के भवन में जाकर दणडवत् की; फिर अपके भवन में आया; और उसकी आज्ञा पर रोटी उसको परोसी गई, और उस ने भोजन किया। 21 तब उसके कर्मचारियोंने उस से पूछा, तू ने यह क्या काम किया है? जब तक बच्चा जीवित रहा, तब तक तू उपवास करता हुआ रोता रहा; परन्तु ज्योंही बच्चा मर गया, त्योंही तू उठकर भोजन करने लगा। 22 उस ने उत्तर दिया, कि जब तक बच्चा जीवित रहा तब तक तो मैं यह सोचकर उपवास करता और रोता रहा, कि क्या जाने यहोवा माुफ पर ऐसा अनुग्रह करे कि बच्चा जीवित रहे। 23 परन्तु अब वह मर गया, फिर मैं उपवास क्योंकरूं? क्या मैं उसे लौटा ला सकता हूं? मैं तो उसके पास जाऊंगा, परन्तु वह मेरे पास लौट न आएगा। 24 तब दाऊद ने अपक्की पत्नी बतशेबा को शान्ति दी, और वह उसके पास गया; और असके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और उस ने उसका नाम सुलैमान रखा। और वह सहोवा का प्रिय हुआ। 25 और उस ने नातान भविष्यद्वक्ता के द्वारा सन्देश भेज दिया; और उस ने यहोवा के कारण उसका नाम यदीद्याह रखा। 26 और योआब ने अम्मोनियोंके रब्बा नगर से लड़कर राजनगर को ले लिया। 27 तब योआब ने दूतोंसे दाऊद के पास यह कहला भेजा, कि मैं रब्बा से लड़ा और जलवाले नगर को ले लिया है। 28 सो अब रहे हुए लोगोंको इकट्ठा करके नगर के विरुद्ध छावनी डालकर उसे भी ले ले; ऐसा न हो कि मैं उसे ले लूं, और वह मेरे नाम पर कहलाए। 29 तब दाऊद सब लोगोंको इकट्ठा करके रब्बा को गया, और उस से युद्ध करके उसे ले लिया। 30 तब उस ने उनके राजा का मुकुट, जो तौल में किक्कार भर सोने का या, और उस में मणि जड़े थे, उसको उसके सिर पर से उतारा, और वह दाऊद के सिर पर रखा गया। फिर उस ने उस नगर की बहुत ही लूट पाई। 31 और उस ने उसके रहनेवालोंको निकालकर आरो से दो दो टुकड़े कराया, और लोहे के हेंगे उन पर फिरवाए, और लोहे की कुल्हाडिय़ोंसे उन्हें कटवाया, और ईट के पजावे में से चलवाया; और अम्मोनियोंके सब नगरोंसे भी उस ने ऐसा ही किया। तब दाऊद समस्त लोगोंसमेत यरूशलेम को लौट आया।
1 इसके बाद तामार नाम एक सुन्दरी जो दाऊद के पुत्र अबशालोम की बहिन यी, उस पर दाऊद का पुत्र अम्नोन मोहित हुआ। 2 और अम्नोन अपक्की बहिन तामार के कारण ऐसा विकल हो गया कि बीमार पड़ गया; क्योंकि वह कुमारी यी, और उसके साय कुछ करना अम्नोन को कठिन जान पड़ता या। 3 अम्नोन के योनादाब नाम एक मित्र या, जो दाऊद के भाई शिमा का बेटा या; और वह बड़ा चतुर या। 4 और उस ने अम्नोन से कहा, हे राजकुमार, क्या कारण है कि तू प्रति दिन ऐसा दुबला होता जाता है क्या तू मुझे न बताएगा? अम्नोन ने उस से कहा, मैं तो अपके भाई अबशालोम की बहिन तामार पर मोहित हूं। 5 योनादाब ने उस से कहा, अपके पलंग पर लेटकर बीमार बन जा; और जब तेरा पिता तुझे देखने को आए, तब उस से कहना, मेरी बहिन तामार आकर मुझे रोटी खिलाए, और भोजन को मेरे साम्हने बनाए, कि मैं उसको देखकर उसके हाथ से खाऊं। 6 और अम्नोन लेटकर बीमार बना; और जब राजा उसे देखने आया, तब अम्नोन ने राजा से कहा, मेरी बहिन तामार आकर मेरे देखते दो पूरी बनाए, कि मैं उसके हाथ से खाऊं। 7 और दाऊद ने अपके घर तामार के पास यह कहला भेजा, कि अपके भाई अम्नोन के घर जाकर उसके लिथे भोजन बना। 8 तब तामार अपके भाई अम्नोन के घर गई, और वह पड़ा हुआ या। तब उस ने आटा लेकर गूंधा, और उसके देखते पूरियां। पकाई। 9 तब उस ने याल लेकर उनको उसके लिथे परोसा, परन्तु उस ने खाने से इनकार किया। तब अम्नोन ने कहा, मेरे आस पास से सब लोगोंको निकाल दो, तब सब लोग उसके पास से निकल गए। 10 तब अम्नोन ने तामार से कहा, भोजत को कोठरी में ले आ, कि मैं तेरे हाथ से खाऊं। तो तामार अपक्की बनाई हुई पूरियोंको उठाकर अपके भाई अम्नोन के पास कोठरी में ले गई। 11 जब वह उनको उसके खाने के लिथे निकट ले गई, तब उस ने उसे पकड़कर कहा, हे मेरी बहिन, आ, मुझ से मिल। 12 उस ने कहा, हे मेरे भाई, ऐसा नहीं, मुझे भ्रष्ट न कर; क्योंकि इस्राएल में ऐसा काम होना नहीं चाहिथे; ऐसी मूढ़ता का काम न कर। 13 और फिर मैं अपक्की नामधराई लिथे हुए कहां जाऊंगी? और तू इस्राएलियोंमें एक मूढ़ गिना जाएगा। तू राजा से बातचीत कर, वह मुझ को तुझे ब्याह देने के लिथे मना न करेगा। 14 परन्तु उस ने उसकी न सुनी; और उस से बलवान होने के कारण उसके साय कुकर्म करके उसे भ्रष्ट किया। 15 तब अम्नोन उस से अत्यन्त बैर रखने लगा; यहां तक कि यह बैर उसके पहिले मोह से बढ़कर हुआ। तब अम्नोन ने उस से कहा, उठकर चक्की जा। 16 उस ने कहा, ऐसा नहीं, क्योंकि यह बढ़ा उपद्रव, अर्यात् मुझे निकाल देना उस पहिले से बढ़कर है जो तू ने मुझ से किया है। परन्तु उस ने उसकी न सुनी। 17 तब उस ने अपके टहलुए जवान को बुलाकर कहा, इस स्त्री को मेरे पास से बाहर निकाल दे, और उसके पीछे किवाड़ में चिटकनी लगा दे। 18 वह तो रंगबिरंगी कुतीं पहिने यी; क्योंकि जो राजकुमारियां कुंवारी रहती यीं वे ऐसे ही वस्त्र पहिनती यीं। सो अम्नोन के टहलुए ने उसे बाहर निकालकर उसके पीछे किवाड़ में चिटकनी लगा दी। 19 तब तामार ने अपके सिर पर राख डाली, और अपक्की रंगबिरंगी कुतीं को फाढ़ डाला; और सिर पर हाथ रखे चिल्लाती हुई चक्की गई। 20 उसके भाई अबशालोम ने उस से पूछा, क्या तेरा भाई अम्नोन तेरे साय रहा है? परन्तु अब, हे मेरी बहिन, चुप रह, वह तो तेरा भाई है; इस बात की चिन्ता न कर। तब तामार अपके भाई अबशालोम के घर में मन मारे बैठी रही। 21 जब थे सब बातें दाऊद राजा के कान में पक्कीं, तब वह बहुत फुंफला उठा। 22 और अबशालोम ने अम्नोन से भला-बुरा कुछ न कहा, क्योंकि अम्नोन ने उसकी बहिन तामार को भ्रष्ट किया या, इस कारण अबशालोम उस से घृणा रखता या। 23 दो पर्ष के बाद अबशालोम ने एप्रैम के निकट के बाल्हासोर में अपक्की भेड़ोंका ऊन कतरवाया और अबशालोम ने सब राजकुमारोंको नेवता दिया। 24 वह राजा के पास जाकर कहनलगा, बिनती यह है, कि तेरे दास की भेड़ोंका ऊन कतरा जाता है, इसलिथे राजा अपके कर्मचारियो समेत अपके दास के संग चले। 25 राजा ने अबशालोम से कहा, हे मेरे बेटे, ऐसा नहीं; हम सब न चलेंगे, ऐसा न हो कि तुझे अधिक कष्ट हो। तब अबशालोम ने उसे बिनती करके दबाया, परन्तु उस ने जाने से इनकार किया, तौभी उसे आशीर्वाद दिया। 26 तब अबशालोम ने कहा, यदि तू नहीं तो मेरे भाई अम्नोन को हमारे संग जाने दे। राजा ने उस से पूछा, वह तेरे संग क्योंचले? 27 परन्तु अबशालोम ने उसे ऐसा दबाया कि उस ने अम्नोन और सब राजकुमारोंको उसके साय जाने दिया। 28 औा अबशालोम ने अपके सेवको को आज्ञा दी, कि सावधान रहो और जब अम्नोन दाखमधु पीकर नशे में आ जाए, और मैं तुम से कहूं, अम्नोन को मार डालना। क्या इस आज्ञा का देनेवाला मैं नहीं हूं? हियाव बान्धकर पुरुषार्य करना। 29 तो अबशालोम के सेवकोंने अम्नोन के साय अबशालोम की आज्ञा के अनुसार किया। तब सब राजकुमार उठ खड़े हुए, और अपके अपके खच्चर पर चढ़कर भाग गए। 30 वे मार्ग ही में थे, कि दाऊद को यह समाचार मिला कि अबशालोम ने सब राजकुमारोंको मार डाला, और उन में से एक भी नहीं बचा। 31 तब दाऊद ने उठकर अपके वस्त्र फाड़े, और भूमि पर गिर पड़ा, और उसके सब कर्मचारी वस्त्र फाड़े हुए उसके पास खड़े रहे। 32 तब दाऊद के भाई शिमा के पुत्र यानादाब ने कहा, मेरा प्रभु यह न समझे कि सब जवान, अर्यात् राजकुमार मार डाले गए हैं, केवल अम्नोन मारा गया है; क्योंकि जिस दिन उस ने अबशालोम की बहिन तामार को भ्रष्ट किया, उसी दिन से अबशालोम की आज्ञा से ऐसी ही बात ठनी यी। 33 इसलिथे अब मेरा प्रभु राजा अपके मन में यह समझकर कि सब राजकुमार मर गए उदास न हो; क्योंकि केवल अम्नोन ही मर गया है। 34 इतने में अबशालोम भाग गया। और जो जवान पहरा देता य उस ने आंखें उठाकर देखा, कि पीछे की ओर से पहाड़ के पास के मार्ग से बहुत लोग चले आ रहे हैं। 35 तब योनादाब ने राजा से कहा, देख, राजकुमार तो आ गए हैं; जैसा तेरे दास ने कहा या वैसा ही हुआ। 36 वह कह ही चुका या, कि राजकुमार पहुंच गए, और चिल्ला चिल्लाकर रोने लगे; और राजा भी अपके सब कर्मचारियोंसमेत बिलख बिलख कर रोने लगा। 37 अबशालोम तो भागकर गशूर के राजा अम्मीहूर के पुत्र तल्मै के पास गया। और दाऊद अपके पुत्र के लिथे दिन दिन विलाप करता रहा। 38 जब अबशालोम भागकर गशूर को गया, तब पहां तीन पर्ष तक रहा। 39 और दाऊद के मन में अबशालोम के पास जाने की बड़ी लालसा रही; क्योंकि अम्नोन जो मर गया या, इस कारण उस ने उसके विषय में शान्ति पाई।
1 और सरूयाह का पुत्र योआब ताड़ गया कि राजा का मन अबशालोम की ओर लगा है। 2 इसलिथे योआब ने तको नगर में दूत भेजकर वहां से एक बुद्धिमान स्त्री को बुलवाया, और उस से कहा, शोक करनेवाली बन, अर्यात् शोक का पहिरावा पहिन, और तेल न लगा; परन्तु ऐसी स्त्री बन जो बहुत दिन से मुए के लिथे विलाप करती रही हो। 3 तब राजा के पास जाकर ऐसी ऐसी बातें कहना। और योआब ने उसको जो कुछ कहना या वह सिखा दिया। 4 जब वह तकोइन राजा से बातें करने लगी, तब मुंह के बल भूमि पर गिर दणडवत् करके कहने लगी, राजा की दोहाई 5 राजा ने उस से पूछा, तुझे क्या चाहिथे? उस ने कहा, सचमुच मेरा पति मर गया, और मैं विधवा हो गई। 6 और तेरी दासी के दो बेटे थे, और उन दोनोंने मैदान में मार पीट की; और उनको छुड़ानेवाला कोई न या, इसलिए एक ने दूसरे को ऐसा मारा कि वह मर गया। 7 और यह सुन सब कुल के लोग तेरी दासी के विरुद्ध उठकर यह कहते हैं, कि जिस ने अपके भाई को घात किया उसको हमें सौंप दे, कि उसके मारे हुए भाई के प्राण के पलटे में उसको प्राण दणड दे; और वारिस को भी नाश करें। इस तरह वे मेरे अंगारे को जो बच गया है बुफाएंगे, और मेरे पति का ताम और सन्तान धरती पर से मिटा डालेंगे। 8 राजा ने स्त्री से कहा, अपके घर जा, और मैं तेरे विषय आज्ञा दूंगा। 9 तकोइन ने राजा से कहा, हे मेरे प्रभु, हे राजा, दोष मुझी को और मेरे पिता के घराने ही को लगे; और राजा अपक्की गद्दी समेत निदॉष ठहरे। 10 राजा ने कहा, जो कोई तुझ से कुछ बोले उसको मेरे पास ला, तब वह फिर तुझे छूने न पाएगा। 11 उस ने कहा, राजा अपके परमेश्वर यहोवा को स्मरण करे, कि खून का पलटा लेनेवाला औैर नाश करने न पाए, और मेरे बेटे का नाश न होने पाए। उस ने कहा, यहोवा के जीवन की शपय, तेरे बेटे का एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा। 12 स्त्री बोली, तेरी दासी अपके प्रभु राजा से एक बात कहने पाए। 13 उस ने कहा, कहे जा। स्त्री कहने लगी, फिर तू ने परमेश्वर की प्रजा की हानि के लिथे ऐसी ही युक्ति क्योंकी है? राजा ने जो यह वचन कहा है, इस से वह दोषी सा ठहरता है, क्योंकि राजा अपके निकाले हुए को लौटा नहीं लाता। 14 हम को तो मरना ही है, और भूमि पर गिरे हुए जल के समान ठहरेंगे, जो फिर उठाया नहीं जाता; तौभी परमेश्वर प्राण नहीं लेता, वरन ऐसी युकित करता है कि निकाला हुआ उसके पास से निकाला हुआ न रहे। 15 और अब मैं जो अपके प्रभु राजा से यह बात कहने को आई हूं, इसका कारण यह है, कि लोगोंने मुझे डरा दिया या; इसलिथे तेरी दासी ने सोचा, कि मैं राजा से बोलूंगी, कदाचित राजा अपक्की दासी की बिनती को पूरी करे। 16 नि:सन्देह राजा सुनकर अवश्य अपक्की दासी को उस मनुष्य के हाथ से बचाएगा जो पाफे और मेरे बेटे दोनोंको परमेश्वर के भाग में से नाश करना चाहता है। 17 सो तेरी दासी ने सोचा, कि मेरे प्रभु राजा के वचन से शान्ति मिले; क्योंकि मेरा प्रभु राजा परमेश्वर के किसी दूत की नाई भले-बुरे में भेद कर सकता है; इसलिथे तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे संग रहे। 18 राजा ने उत्तर देकर उस स्त्री से कहा, जो बात मैं तुझ से पूछता हूं उसे मुझ से न छिपा। स्त्री ने कहा, मेरा प्रभु राजा कहे जाए। 19 राजा ने पूछा, इस बात में क्या योआब तेरा संगी है? स्त्री ने उत्तर देकर कहा, हे मेरे प्रभुु, हे राजा, तेरे प्राण की शपय, जो कुछ मेरे प्रभु राजा ने कहा है, उस से कोई न दाहिनी ओर मुड़ सकता है और न बाई। तेरे दास योआब ही ने मुझे आज्ञा दी, और थे सब बातें उसी ने तेरी दासी को सिखाई है। 20 तेरे दास योआब ने यह काम इसलिथे किया कि बात का रंग बदले। और मेरा प्रभु परमेश्वर के एक दूत के तुल्य बुद्धिमान है, यहां तक कि धरती पर जो कुछ होता है उन सब को वह जानता है। 21 तब राजा ने योआब से कहा, सुन, मैं ने यह बात मानी है; तू जाकर अबशालोम जवान को लौटा ला। 22 तब योआब ने भूमि पर मुंह के बल गिर दणडवत् कर राजा को आशीर्वाद दिया; और योआब कहने लगा, हे मेरे प्रभु, हे राजा, आज तेरा दास जान गया कि मुझ पर तेरी अनग्रह की दृष्टि है, क्योंकि राजा ने अपके दास की बिनती सुनी है। 23 और योआब उठकर गशूर को गया, और अबशालोम को यरूशलेम ले आया। 24 तब राजा ने कहा, वह अपके घर जाकर रहे; और मेरा दर्शन न पाए। तब अबशालोम अपके घर जा रहा, और राजा का दर्शन न पाया। 25 समस्त इस्राएल में सुन्दरता के कारण बहुत प्रशंसा योग्य अबशालोम के तुल्य और कोई न या; वरन उस में नख से सिख तक कुछ दोष न या। 26 और वह वर्ष के अन्त में अपना सिर मुंढ़वाता या ( उसके बाल उसको भारी जान पड़ते थे, इस कारण वह उसे मुंड़ाता या ); और जब जब वह उसे मुंड़ाता तब तब अपके सिर के बाल तौलकर राजा के तौल के अनुसार दो सौ शेकेल भर पाता या। 27 और अबशालोम के तीन बेटे, और तामार नाम एक बेटी उत्पन्न हुई यी; और यह रूपवती स्त्री यी। 28 और अबशालोम राजा का दर्शन बिना पाए यरूशलेम में दो वर्ष रहा। 29 तब अबशालोम ने योआब को बुलवा भेजा कि उसे राजा के पास भेजे; परन्तु योआब ने उसके पास आने से इनकार किया। और उस ने उसे दूसरी बार बुलवा भेजा, परन्तु तब भी उस ने आने से इनकार किया। 30 तब उस ने अपके सेवकोंसे कहा, सुनो, योआब का एक खेत मेरी भूमि के निकट है, और उस में उसका जव खड़ा है; तुम जाकर उस में आग लगाओ। और अबशालोम के सेवकोंने उस खेत में आग लगा दी। 31 तब योआब उठा, और अबशालोम के घर में उसके पास जाकर उस से पूछने लगा, तेरे सेवकोंने मेरे खेत में क्योंआग लगाई है? 32 अबशालोम ने योआब से कहा, मैं ने तो तेरे पास यह कहला भेजा या, कि यहां आना कि मैं तुझे राजा के पास यह कहने को भेजूं, कि मैं गशूर से क्योंआया? मैं अब तक वहां रहता तो अच्छा होता। इसलिथे अब राजा मुझे दर्शन दे; और यदि मैं दोषी हूं, तो वह मुझे मार डाले। 33 तो योआब ने राजा के पास जाकर उसको यह बात सुनाई; और राजा ने अबशालोम को बुलवाया। और वह उसके पास गया, और उसके सम्मुख भूमि पर मुंह के बल गिरके दणडवत् की; और राजा ने अबशालोम को चूमा।
1 इसके बाद अबशालोम ने रय और घोड़े, और अपके आगे आगे दौड़नेवाले पचास मनुष्य रख लिए। 2 और अबशालोम सवेरे उठकर फाटक के मार्ग के पास ख्ड़ा हाआ करता या; और जब जब कोई मुद्दई राजा के पास न्याय के लिथे आता, तब तब अबशालोम उसको पुकारके पूछता या, तू किय नगर से आता है? 3 और वह कहता या, कि तेरा दास इस्राएल के फुलाने गोत्र का है। तब अबशालोम उस से कहता या, कि सुन, तेरा पझ तो ठीक और न्याय का है; परन्तु राजा की ओर से तेरी युननेवाला कोई नहीं है। 4 फिर अबशालोम यह भी कहा करता या, कि भला होता कि मैं इस देश में न्यायी ठहराया जाता ! कि जितने मुकद्दमावाले होते वे सब मेरे ही पास आते, और मैं उनका न्याय चुकाता। 5 फिर जब कोई उसे दणडवत् करने को निकट आता, तब वह हाथ बढ़ाकर उसको पकड़के चूम लेता या। 6 और जितने इस्राएली राजा के पास अपना मुकद्दमा तै करने को आते उन सभोंसे अबशालोम ऐसा ही व्यवहार किया करता या; इस प्रकार अबशालोम ने इस्राएली मनुष्योंके मन को हर लिया। 7 चार वर्ष के बीतने पर अबशालोम ने राजा से कहा, मुझे हेब्रोन जाकर अपक्की उस मन्नत को पूरी करने दे, जो मैं ने यहोवा की मानी है। 8 तेरा दास तो जब आराम के गशूर में रहता या, तब यह कहकर यहोवा की मन्नत मानी, कि यदि यहोवा मुझे सचमुच यरूशलेम को लौटा ले जाए, तो मैं यहोवा की उपासना करूंगा। 9 राजा ने उस से कहा, कुशल झेम से जा। और वह चलकर हेब्रोन को गया। 10 तब अबशालोम ने इस्राएल के समस्त गोत्रें में यह कहने के लिथे भेदिए भेजे, कि जग नरसिंगे का शब्द तुम को सुन पके, तब कहना, कि अबशालोम हेब्रोन में राजा हुआ ! 11 और अबशालोम के संग दो सौ नेवतहारी यरूशलेम से गए; वे सीधे मन से उसका भेद बिना जाने गए। 12 फिर जब अबशालोम का यज्ञ हुआ, तब उस ने गीलोवासी अहीतोपेल को, जो दाऊद का मंत्री या, बुलवा भेजा कि वह अपके नगर गीलो से आए। और राजद्रोह की गोष्ठी ने बल पकड़ा, क्योंकि अबशालोम के पझ के लोग बराबर बढ़ते गए। 13 तब किसी ने दाऊद के पास जाकर यह समाचार दिया, कि इस्राएली मनुष्योंके मन अबशालोम की ओर हो गए हैं। 14 तब दाऊद ने अपके सब कर्मचारियोंसे जो यरूशलेम में उसके संग थे कहा, आओ, हम भाग चलें; नहीं तो हम में से कोर्ह भी अबशालोम से न बचेगा; इसलिथे फुतीं करते चले चलो, ऐसा न हो कि वह फुतीं करके हमें आ घेरे, और हमारी हानि करे, और इस नगर को तलवार से मार ले। 15 राजा के कर्मचारियोंने उस से कहा, जैसा हमारे प्रभु राजा को अच्छा जान पके, वैसा ही करने के लिथे तेरे दास तैयार हैं। 16 तब राजा निकल गया, और उसके पीछे उसका समस्त घराना निकला। और राजा दस रखेलियोंको भवन की चौकसी करने के लिथे छोड़ गया। 17 और राजा निकल गया, और उसके पीछे सब लोग निकले; और वे बेतमेर्हक में ठहर गए। 18 और उसके सब कर्मचारी उसके पास से होकर आगे गए; और सब करेती, और सब पकेती, और सब गती, अर्यात् जो छ: सौ पुरुष गत से उसके पीछे हो लिए थे वे सब राजा के साम्हने से होकर आगे चले। 19 तब राजा ने गती इत्तै से पूछा, हमारे संग तू क्योंचलता है? लौटकर राजा के पास रह; क्योंकि तू परदेशी और अपके देश से दूर है, इसलिथे अपके स्यान को लौट जा। 20 तू तो कल ही आया है, क्या मैं आज तुझे अपके साय मारा मारा फिराऊं? मैं तो जहां जा समूंगा वहां जाऊंगा। तू लौट जा, और अपके भाइयोंको भी लौटा दे; ईश्चर की करुणा और यच्चाई तेरे संग रहे। 21 इत्तै ने राजा को उत्तर देकर कहा, यहोवा के जीवन की शपय, और मेरे प्रभु राजा के जीवन की शपय, जिस किसी स्यान में मेरा प्रभु राजा रहेगा, चाहे मरने के लिथे हो चाहे जीवित रहने के लिथे, उसी स्यान में तेरा दास भी रहेगा। 22 तब दाऊद ने इत्तै से कहा, पार चल। सो गती इत्तै अपके समस्त जनोंऔर अपके साय के सब बाल-बच्चोंसमेत पार हो गया। 23 सब रहनेवाले चिल्ला चिल्लाकर रोए; और सब लोग पार हुए, और राजा भी किद्रोन नाम नाले के पार हुआ, और सब लोग नाले के पार जंगल के मार्ग की ओर पार होकर चल पके। 24 तब क्या देखने में आया, कि सादोक भी और उसके संग सब लेवीय परमेश्वर की वाचा का सन्दूक उठाए हुए हैं; और उन्होंने परमेश्वर के सन्दूक को धर दिया, तब एब्यातार चढ़ा, और जब तक सब लोग नगर से न निकले तब तक वहीं रहा। 25 तब राजा ने सादोक से कहा, परमेश्वर के सन्दूक को नगर में लौटा ले जा। यदि यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो, तो वह मुझे लौटाकर उसको और अपके वासस्यान को भी दिखाएगा; 26 परन्तु यदि वह मुझ से ऐसा कहे, कि मैं तुझ से प्रसन्न नहीं, तौभी मैं हाजिर हूं, जैसा उसको भाए वैसा ही वह मेरे साय बर्त्ताव करे। 27 फिर राजा ने सादोक याजक से कहा, क्या तू दशीं नहीं है? सो कुशल झेम से नगर में लौट जा, और तेरा पुत्र अहीमास, और एब्यातार का पुत्र योनातन, दोनोंतुम्हारे संग लौटें। 28 सुनो, मैं जंगल के घाट के पास तब तक ठहरा रहूंगा, जब तक तुम लोगोंसे मुझे हाल का समाचार न मिले। 29 तब सादोक और एब्यातार ने परमेश्वर के सन्दूक को यरूशलेम में लौटा दिया; और आप वही रहे। 30 तब दाऊद जलपाइसोंके पहाड़ की चढ़ाई पर सिर ढांपे, नंगे पांव, रोता हुआ चढ़ने लगा; और जितने लोग उसके संग थे, वे भी सिर ढांपे रोते हुए चढ़ गए। 31 तब दाऊद को यह समाचार मिला, कि अबशालोम के संगी राजद्रोहियोंके साय अहीतोपेल है। दाऊद ने कहा, हे यहोवा, अहीतोपेल की सम्मति को मूर्खता बना दे। 32 जब दाऊद चोटी तक पहुंचा, जहां परमेश्वर को दणडवत् किया करते थे, तब एरेकी हूशै अंगरखा फाड़े, सिर पर मिट्टी डाले हुए उस से मिलने को आया। 33 दाऊद ने उस से कहा, यदि तू मेरे संग आगे जाए, तब तो मेरे लिथे भार ठहरेगा। 34 परन्तु यदि तू नगर को लौटकर अबशालोम से कहने लगे, हे राजा, मैं तेरा कर्मचारी हूंगा; जैसा मैं बहुत दिन तेरे पिता का कर्मचारी रहा, वैसा ही अब तेरा रहूंगा, तो तू मेरे हित के लिथे अहीतोपेल की सम्मति को निष्फल कर सकेगा। 35 और क्या वहां तेरे संग सादोक और एब्यातार याजक न रहेंगे? इसलिथे राजभवन में से जो हाल तुझे सुन पके, उसे सादोक और एब्यातार याजकोंको बताया करना। 36 उनके साय तो उनके दो पुत्र, अर्यात् सादोक का पुत्र अहीमास, और एब्यातार का पुत्र योनातन, वहां रहेंगे; तो जो समाचार तुम लोगोंको मिले उसे मेरे पास उन्हीं के हाथ भेजा करना। 37 और दाऊद का मित्र, हूशै, नगर को गया, और अबशालोम भी यरूशलेम में पहुंच गया।
1 दाऊद चोटी पर से योड़ी दूर बढ़ गया या, कि मपीबोशेत का कर्मचारी मीबा एक जोड़ी, जीन बान्धे हुए गदहोंपर दो सौ रोटी, किशमिश की एक सौ टिकिया, धूपकाल के फल की एक सौ टिकिया, और कुप्पी भर दाखमधु, लादे हुए उस से आ मिला। 2 राजा ने सीबा से पूछा, इन से तेरा क्या प्रयोजन है? सीबा ने कहा, गदहे तो राजा के घराने की सवारी के लिथे हैं, और रोटी और धूपकाल के फल जवानोंके खाने के लिथे हैं, और दाखमधु इसलिथे है कि जो कोई जंगल में यक जाए वह उसे पीए। 3 राजा ने पूछा, फिर तेरे स्वामी का बेटा कहां है? सीबा ने राजा से कहा, वह तो यह कहकर यरूशलेम में रह गया, कि अब इस्राएल का घराना मुझे मेरे पिता का राज्य फेर देगा। 4 राजा ने सीबा से कहा, जो कुछ मपीबोशेत का या वह सब तुझे मिल गया। सीबा ने कहा, प्रणाम; हे मेरे प्रभु, हे राजा, मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि बनी रहे। 5 जब दाऊद राजा बहूरीम तक पहुंचा, तब शाऊल का एक कुटुम्बी वहां से निकला, वह गेरा का पुत्र शिमी नाम का या; और वह कोसता हुआ चला आया। 6 और दाऊद पर, और दाऊद राजा के सब कर्मचारियोंपर पत्यर फेंकने लगा; और शूरवीरोंसमेत सब लोग उसकी दाहिनी बाई दोनोंओर थे। 7 और शिमी कोसता हुआ योंबकता गया, कि दूर हो खूनी, दूर हो ओछे, निकल जा, निकल जा ! 8 यहोवा ने तुझ से शाऊल के घराने के खून का पूरा पलटा लिया है, जिसके स्यान पर तू राजा बना है; यहोवा ने राज्य को तेरे पुत्र अबशालोम के हाथ कर दिया है। और इसलिथे कि तू खूनी है, तू अपक्की बुराई में आप फंस गया। 9 तब सरूयाह के पुत्र अबीशै ने राजा से कहा, यह मरा हुआ कुत्ता मेरे प्रभु राजा को क्योंशाप देने पाए? मुझे उधर जाकर उसका सिर काटने दे। 10 राजा ने कहा, सरूयाह के बेटो, मुझे तुम से क्या काम? वह जो कोसता है, और यहोवा ने जो उस से कहा है, कि दाऊद को शाप दे, तो उस से कौन पूछ सकता, कि तू ने ऐसा क्योंकिया? 11 फिर दाऊद ने अबीशै और अपके सब कर्मचारियोंसे कहा, जब मेरा निज पुत्र भी मेरे प्राण का खोजी है, तो यह बिन्यामीनी अब ऐसा क्योंन करें? उसको रहने दो, और शाप देने दो; क्योंकि यहोवा ने उस से कहा है। 12 कदाचित् यहोवा इस उपद्रव पर, जो मुझ पर हो रहा है, दृष्टि करके आज के शाप की सन्ती मुझे भला बदला दे। 13 तब दाऊद अपके जनोंसमेत अपना मार्ग चला गया, और शिमी उसके साम्हने के पहाड़ की अलंग पर से शाप देता, और उस पर पत्यर और धूलि फेंकता हुआ चला गया। 14 निदान राजा अपके संग के सब लोगोंसमेत अपके ठिकाने पर यका हुआ पहुंचा; और वहां विश्रम किया। 15 अबशालोम सब इस्राएली लोगोंसमेत यरूशलेम को आया, और उसके संग अहीतोपेल भी आया। 16 जब दाऊद का मित्र एरेकी हूशै अबशालोम के पास पहुंचा, तब हूशै ने अबशालोम से कहा, राजा चिरंजीव रहे ! राजा चिरंजीव रहे ! 17 अबशालोम ने उस से कहा, क्या यह तेरी प्रीति है जो तू अपके मित्र से रखता है? तू अपके मित्र के संग क्योंनहीं गया? 18 हूशै ने अबशालोम से कहा, ऐसा नही; जिसको यहोवा और वे लोग, क्या वरन सब इस्राएली लोग चाहें, उसी का मैं हूं, और उसी के संग मैं रहूंगा। 19 और फिर मैं किसकी सेवा करूं? क्या उसके पुत्र के साम्हने रहकर सेवा न करूं? जैसा मैं तेरे पिता के साम्हने रहकर सेवा करता या, वैसा ही तेरे साम्हने रहकर सेवा करूंगा। 20 तब अबशालोम ने अहीतोपेल से कहा, तुम लोग अपक्की सम्मति दो, कि क्या करना चाहिथे? 21 अहीतोपेल ने अबशालोम से कहा, जिन रखेलियोंको तेरा पिता भवन की चौकसी करने को छोड़ गया, उनके पास तू जा; और जब सब इस्राएली यह सुनेंगे, कि अबशालोम का पिता उस से घिन करता है, तब तेरे सब संगी हियाव बान्धेंगे। 22 सो उसकेलिथे भवन की छत के ऊपर एक तम्बू खड़ा किया गया, और अबशालोम समरूत इस्राएल के देखते अपके पिता की रखेलियोंके पास गया। 23 उन दिनोंजो सम्मति अहीतोपेल देता या, वह ऐसी होती यी कि मानो कोई परमेश्वर का वचन पूछलेता हो; अहीतोपेल चाहे दाऊद को चाहे अबशलोम को, जो जो सम्मति देता वह ऐसी ही होती यी।
1 फिर अहीतोपेल ने अबशालोम से कहा, मुझे बारह हजार पुरुष छांटने दे, और मैं उठकर आज ही रात को दाऊद का पीछा करूंगा। 2 और जब वह यकित और निर्बल होगा, तब मैं उसे पकड़ूंगा, और डराऊंगा; और जितने लोग उसके साय हैं सब भागेंगे। और मैं राजा ही को मारूंगा, 3 और मैं सब लोगोंको तेरे पास लौटा लाऊंगा; जिस मनुष्य का तू खोजी है उसके मिलने मे समस्त प्रजा का मिलना हो जाएगा, और समस्त प्रजा कुशल झेम से रहेगी। 4 यह बात अबशालोम और सब इस्राएली पुरनियोंको उचित मालूम पक्की। 5 फिर अबशालोम ने कहा, एरेकी हूशै को भी बुला ला, और जो वह कहेगा हम उसे भी सुनें। 6 जब हूशै अबशालोम के पास आया, तब अबशालोम ने उस से कहा, अहीतोपेल ने तो इस प्रकार की बात कही है; क्या हम उसकी बात मानें कि नही? सदि नही, तो तू कह दे। 7 हूशै ने अबशालोम से कहा, जो सम्मति अहीतोपेल ने इस बार दी वह अच्छी नहीं। 8 फिर हूशै ने कहा, तू तो अपके पिता और उसके जनोंको जानता है कि वे शूरवीर हैं, और बच्चा छीनी हुई रीछनी के समान फ्रोधित होंगे। और तेरा पिता योद्धा है; और और लोगो के साय रात नहीं बिताता। 9 इस समय तो वह किसी गढ़हे, वा किसी दूसरे स्यान में छिपा होगा। जब इन में से पहिले पहिले कोई कोई मारे जाएं, तब इसके सब सुननेवाले कहने लगेंगे, कि अबशालोम के पझवाले हार गए। 10 तब वीर का ह्रृदय, जो सिंह का सा होता है, उसका भी हियाव छूट जाएगा, समस्त इस्राएल तो जानता है कि तेरा पिता वीर है, और उसके संगी बड़े योद्धा हैं। 11 इसलिथे मेरी सम्मति यह है कि दान से लेकर बेर्शेबा तक रहनेवाले समस्त इस्राएली तेरे पास समुद्रतीर की बालू के किनकोंके समान अकट्ठे किए जाए, और तू आप ही युद्ध को जाए। 12 और जब हम उसको किसी न किसी स्यान में जहां वह मिले जा पकड़ेंगे, तब जैसे ओस भूमि पर गिरती है वैसे ही हम उस पर टूट पकेंगे; तब न तो वह बचेगा, और न उसके संगियोंमें से कोई बचेगा। 13 और यदि वह किसी नगर में घुसा हो, तो सब इस्राएली उस नगर के पास रस्सियां ले आएंगे, और हम उसे नाले में खींचेंगे, यहां तक कि उसका एक छोटा सा पत्यर भी न रह जाएगा। 14 तब अबशालोम और सब इस्राएली पुरुषोंने कहा, एरेकी हूशै की बम्मति अहीतोपेल की सम्मति से उम्तम है। सहोवा ने तो अहीतोपेल की अच्छी सम्मति को निष्फल करने के लिथे ठाना या, कि यह अबशालोम ही पर विपत्ति डाले। 15 तब हूशै ने सादोक और एब्यातार याजकोंसे कहा, अहीतोपेल ने तो अबशालोम और इस्राएली पुरनियोंको इस इस प्रकार की सम्मति दी; और मैं ने इस इस प्रकार की सम्मति दी है। 16 इसलिथे अब फुतीं कर दाऊद के पास कहला भेजो, कि आज रात जंगली घाट के पास न ठहरना, अवश्य पार ही हो जाना; ऐसा न हो कि राजा और जितने लोग उसके संग हों, सब नाश हो जाएं। 17 योनातन और अहीमाय एनरोगेल के पास ठहरे रहे; और एक लौंडी जाकर उन्हें सन्देशा दे आती यी, और वे जाकर राजा दाऊद को सन्देशा देते थे; क्योंकि वे किसी के देखते नगर में नही जा सकते थे। 18 एक छोकरे ने तो उन्हें देखकर अबशालोम को बताया; परन्तु वे दोनोंफुतीं से चले गए, और एक बहरीमवासी मनुष्य के घर पहुंचकर जिसके आंगन में कुंआ या उस में उतर गए। 19 तब उसकी स्त्री ने कपड़ा लेकर कुंए के मुंह पर बिछाया, और उसके ऊपर दलर हुआ अन्न फैला दिया; इसलिथे कुछ मालूम न पड़ा। 20 तब अबशालोम के सेवक उस घर में उस स्त्री के पास जाकर कहने लगे, अहीमास और योनातन कहां हैं? स्त्री ने उन से कहा, वे तो उस छोटी नदी के पार गए। तब उन्होंने उन्हें ढूंढा, और न पाकर यरूशलेम को लौटे। 21 जब वे चले गए, तब थे कुंए में से निकले, और जाकर दाऊद राजा को समाचार दिया; और दाऊद से कहा, तुम लोग चलो, फुतीं करके नदी के पार हो जाओ; क्योंकि अहीतोपेल ने तुम्हारी हानि की ऐसी ऐसी सम्मति दी है। 22 तब दाऊद अपके सब संगियोंसमेत उठकर यरदन पार हो गया; और पह फटने तक उन में से एक भी न रह गया जो यरदन के पार न हो गया हो। 23 जब अहीतोपेल ने देखा कि मेरी सम्मति के अनुसार काम नहीं हुआ, तब उस ने अपके गदहे पर काठी कसी, और अपके नगर में जाकर अपके घर में गया। और अपके घराने के विषय जो जो आज्ञा देनी यी वह देकर अपके को फांसी लगा ली; और वह मर गया, और उसके पिता के कब्रिस्तान में उसे मिट्टी दे दी गई। 24 दाऊद तो महनैम में पहुंचा। और अबशालोम सब इस्राएली पुरुषोंसमेत यरदन के पार गया। 25 और अबशालोम ने अमासा को योआब के स्यान पर प्रधान सेनापति ठहराया। यह अमासा एक पुरुष का पुत्र या जिसका नाम इस्राएली यित्रो या, और वह योआब की माता, सरूयाह की बहिन, अबीगल नाम नाहाश की बेटी के संग सोया या। 26 और इस्राएलियोंने और अबशालोम ने गिलाद देश में छावनी डाली। 27 जब दाऊद महनैम में आया, तब अम्मोनियोंके रब्बा के निवासी नाहाश का पुत्र शोबी, और लोदबरवासी अम्मीएल का पुत्र माकीर, और रोगलीमवासी गिलादी बजिर्ल्लै, 28 चारपाइयां, तसले मिट्टी के बर्तन, गेहूं, जव, मैदा, लोबिया, मसूर, चबेना, 29 मधु, मक्खन, भेड़बकरियां, और गाय के दही का पक्कीर, दाऊद और उसके संगियोंके खाने को यह सोचकर ले आए, कि जंगल में वे लोग भूखे प्यासे और यके मांदे होंगे।
1 तब दाऊद ने अपके संग के लोगोंकी गिनती ली, और उन पर सहस्त्रपति और शतपति ठहराए। 2 फिर दाऊद ने लोगोंकी एक तिहाई तो योआब के, और एक तिहाई सरूयाह के पुत्र योआब के भाई अबीशै के, और एक तिहाई गती इत्तेै के, अधिक्कारने में करके युद्ध में भेज दिया। और राजा ने लोगोंसे कहा, मैं भी अवश्य तुम्हारे साय चलूंगा। 3 लोगोंने कहा, तू जाने न पाएगा। क्योंकि चाहे हम भाग जाएं, तौभी वे हमारी चिन्ता न करेंगे; वरन चाहे हम में से आधे मारे भी जाएं, तौभी वे हमारी चिन्ता न करेंगे। क्योंकि हमारे सरीखे दस हज़ार पुरुष हैं; इसलिथे अच्छा यह है कि तू नगर में से हमारी सहाथता करने को तैयार रहे। 4 राजा ने उन से कहा, जो कुछ तुम्हें भाए वही मैं करूंगा। और राजा ॅफाटक की एक ओर खड़ा रहा, और सब लोग सौ सौ, और हज़ार, हज़ार करके निकलने लगे। 5 और राजा ने योआब, अबीशै, और इत्ते को आज्ञा दी, कि मेरे निमित्त उस जवान, अर्यात् अबशालोम से कोमलता करना। यह आज्ञा राजा ने अबशालोम के विषय सब प्रधानोंको सब लोगोंके सुनते दी। 6 सो लोग इस्राएल का साम्हला करने को मैदान में निकले; और एप्रैम नाम वन में युद्ध हुआ। 7 वहां इस्राएली लोग दाऊद के जनोंसे हार गए, और उस दिन ऐसा बड़ा संहार हुआ कि बीस हजार खेत आए। 8 और युद्ध उस समस्त देश में फैल गया; और उस दिन जितने लोग तलवार से मारे गए, उन से भी अधिक वन के कारण मर गए। 9 संयोग से अबशालोम और दाऊद के जनोंकी भेंट हो गई। अबशालोम तो एक खच्चर पर चढ़ा हुआ जा रहा या, कि ख्च्चर एक बड़े बांज वृझ की घनी डालियोंके नीचे से गया, और उसका सिर उस बांज वृझ में अटक गया, और वह अधर में लटका रह गया, और उसका ख्च्चर निकल गया। 10 इसको देखकर किसी मनुष्य ने योआब को बताया, कि मैं ने अबशालोम को बांज वृझ में टंगा हुआ देखा। 11 योआब ने बतानेवाले से कहा, तू ने यह देखा ! फिर क्योंउसे वहीं मारके भूमि पर न गिरा दिया? तो मैं तुझे दस तुकड़े चांदी और एक कटिबन्द देता। 12 उस मनुष्य ने योआब से कहा, चाहे मेरे हाथ में हज़ार टुकड़े चांदी तौलकर दिए जाऐ, तौभी राजकुमार के विरुद्ध हाथ न बढ़ाऊंगा; क्योंकि हम लोगोंके सुनते राजा ने तुझे और अबीशै और इत्तै को यह आज्ञा दी, कि तुम में से कोई क्योंन हो उस जवान अर्यात् अबशालोम को न छूए। 13 यदि मैं धोखा देकर उसका प्राण लेता, तो तू आप मेरा विरोधी हो जाता, क्योंकि राजा से कोई बात छिपी नहीं रहती। 14 योआब ने कहा, मैं तेरे संग योंही ठहरा नहीं रह सकता ! सो उस ने तीन लकड़ी हाथ में लेकर अबशालोम के ह्रृदय में, जो बांज वृझ में जीवति लटका या, छेद डाला। 15 तब योआब के दस हयियार ढोनेवाले जवानोंने अबशालोम को घेरके ऐसा मारा कि वह मर गया। 16 फिर योआब ने नरसिंगा फूंका, और लोग इण््राएल का पीछा करने से लौटे; क्योंकि योआब प्रजा को बचाना चाहता या। 17 तब लोगोंने अबशालोम को उतारके उस वन के एक बड़े गड़हे में डाल दिया, और उस पर पत्यरोंका एक बहुत बड़ा ढेर लगा दिया; और सब इस्राएली अपके अपके डेरे को भाग गए। 18 अपके जीते जी अबशालोम ने यह सोचकर कि मेरे नाम का स्मरण करानेवाला कोई पुत्र मेरे नहीं है, अपके लिथे वह लाठ खड़ी कराई यी जो राजा की तराई में है; और लाठ का अपना ही नाम रखा, जो आज के दिन तक अबशालोम की लाठ कहलाती है। 19 और सादोक के पुत्र अहीमास ने कहा, मुझे दौड़कर राजा को यह समाचार देने दे, कि यहोवा ने न्याय करके तुझे तेरे शत्रुओं के हाथ से बचाया है। 20 योआब ने उस से कहा, तू आज के दिन समाचार न दे; दूसरे दिन समाचार देने पाएगा, परन्तु आज समाचार न दे, इसलिथे कि राजकुमार मर गया है। 21 तब योआब ने एक कूशी से कहा जो कुछ तू ने देखा है वह जाकर राजा को बता दे। तो वह कूशी योआब को दणडवत् करके दौड़ गया। 22 फिर सादोक के पुत्र अहीमास ने दूसरी बार योआब से कहा, जो हो सो हो, परन्तु मुझे भी कूशी के पीछे दौड़ जाने दे। योआब ने कहा, हे मेरे बेटे, तेरे समाचार का कुछ बदला न मिलेगा, फिर तू क्योंदौड़ जाना चाहता है? 23 उस ने यह कहा, जो हो सो हो, परन्तु मुझे दौड़ जाने दे। उसने उस से कहा, दौड़। तब अहीमास दौड़ा, और तराई से होकर कूशी के आगे बढ़ गया। 24 दाऊद तो दो फाटकोंके बीच बैठा या, कि पहरुआ जो फाटक की छत से होकर शहरपनाह पर चढ़ गया या, उस ने आंखें उठाकर क्या देखा, कि एक मनुष्य अकेला दौड़ा आता है। 25 जब पहरुए ने पुकारके राजा को यह बता दिया, तब राजा ने कहा, यदि अकेला आता हो, तो सन्देशा लाता होगा। वह दौड़ते दौड़ते निकल आया। 26 फिर पहरुए ने एक और मनुष्य को दौड़ते हुए देख फाटक के रखवाले को पुकारके कहा, सुन, एक और मनुष्य अकेला दौड़ा आता है। राजा ने कहा, वह भी सन्देशा लाता होगा। 27 पहरुए ने कहा, पुफे तो ऐसा देख पड़ता है कि पहले का दौड़ना सादोक के पुत्र अहीमास का सा है। राजा ने कहा, वह तो भला मनुष्य है, तो भला सन्देश लाता होगा। 28 तब अहीमास ने पुकारके राजा से कहा, कल्याण। फिर उस ने भूमि पर मुंह के बल गिर राजा को दणडवत् करके कहा, तेरा परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिस ने मेरे प्रभु राजा के विरुद्ध हाथ उठानेवाले मनुष्योंको तेरे वश में कर दिया है ! 29 राजा ने पूछा, क्या उस जवान अबशालोम का कल्याण है? अहीमास ने कहा, जब योआब ने राजा के कर्मचारी को और तेरे दास को भेज दिया, तब मुझे बड़ी भीड़ देख पक्की, परन्तु मालूम न हुआ कि क्या हुआ या। 30 राजा ने कहा; हटकर यहीं खड़ा रह। और वह हटकर खड़ा रहा। 31 तब कूशी भी आ गया; और कूशी कहने लगा, मेरे प्रभु राजा के लिथे समाचार है। यहोवा ने आज न्याय करके तुझे उन सभोंके हाथ से बचाया है जो तेरे विरुद्ध उठे थे। 32 राजा ने कूशी से पूछा, क्या वह जवान अर्यात् अबशालोम कल्याण से है? कूशी ने कहा, मेरे प्रभु राजा के शत्रु, और जितने तेरी हानि के लिथे उठे हैं, उनकी दशा उस जवान की सी हो। 33 तब राजा बहुत घबराया, और फाटक के ऊपर की अटारी पर रोता हुआ चढ़ने लगा; और चलते चलते योंकहता गया, कि हाथ मेरे बेटे अबशालोम ! मेरे बेटे, हाथ ! मेरे बेटे अबशालोम ! भला होता कि मैं आप तेरी सन्ती मरता, हाथ ! अबशालोम ! मेरे बेटे, मेरे बेटे !!
1 तब योआब को यह समाचार मिला, कि राजा अबशालोम के लिथे रो रहा है और विलाप कर रहा है। 2 इसलिथे उस दिन का विजय सब लोगोंकी समझ में विलाप ही का कारण बन गया; क्योंकि लोगोंने उस दिन सुना, कि राजा अपके बेटे के लिथे खेदित है। 3 और उस दिन लोग ऐसा मुंह चुराकर नगर में घुसे, जैसा लोग युद्ध से भाग आने से लज्जित होकर मुंह चुराते हैं। 4 और राजा मुंह ढांपे हुए चिल्ला चिल्लाकर पुकारता रहा, कि हाथ मेरे बेटे अबशालोम ! हाथ अबशालोम, मेरे बेटे, मेरे बेटे ! 5 तब योआब घर में राजा के पास जाकर कहने लगा, तेरे कर्मचारियोंने आज के दिन तेरा, और तेरे बेटे-बेटियोंका और तेरी पत्नियोंऔर रखेलियोंका प्राण तो बचाया है, परन्तु तू ते आज के दिन उन सभोंका मुंह काला किया है; 6 इसलिथे कि तू अपके बैरियोंसे प्रेम और अपके प्रेमियोंसे बैर रखता है। तू ने आज यह प्रगट किया कि तुझे हाकिमोंऔर कर्मचारियोंकी कुछ चिन्ता नहीं; वरन मैं ने आज जान लिया, कि यदि हम सब आज मारे जाते और अबशालोम जीवित रहता, तो तू बहुत प्रसन्न होता। 7 इसलिथे अब उठकर बाहर जा, और अपके कर्मचारियोंको शान्ति दे; तहीं तो मैं यहोवा की शपय खाकर कहता हूँ, कि यदि तू बाहर न जाएगा, तो आज रात को एक मनुष्य भी तेरे संग न रहेगा; और तेरे बचपन से लेकर अब तक जितनी विपत्तियां तुझ पर पक्की हैं उन सब से यह विपत्ति बड़ी होगी। 8 तब राजा उठकर फाटक में जा बैठा। और जब सब लोगोंको यह बताया गया, कि राजा फाटक में बैठा है; तब सब लोग राजा के साम्हने आए। और इस्राएली अपके अपके डेरे को भाग गए थे। 9 और इस्राएल के सब गोत्रें में सब लोग आपस में यह कहकर ढगड़ते थे, कि राजा ने हमें हमारे शत्रुओं के हाथ से बचाया या, और पलिश्तियोंके हाथ से उसी ने हमें छुड़ाया; परन्तु अब वह अबशालोम के डर के मारे देश छोड़कर भाग गया। 10 और अबशालोम जिसको हम ने अपना राजा होने को अभिषेक किया या, वह युद्ध में मर गया है। तो अब तुम क्योंचुप रहते? और जाजा को लौटा ले अपके की चर्चा क्योंनहीं करते? 11 तब राजा दाऊद ने सादोक और एब्यातार याजकोंके पास कहला भेजा, कि यहूदी पुरनियोंसे कहो, कि तुम लोग राजा को भवन पहुंचाने के लिथे सब से पीछे क्योंहोते हो जब कि समस्त इस्राएल की बातचीत राजा के सुनने में आई है, कि उसको भवन में पहुंचाए? 12 तुम लोग तो मेरे भाई, वरन मेरी ही हड्डी और मांस हो; तो तुम राजा को लौटाने में सब के पीछे क्योंहोते हो? 13 फिर अमासा से यह कहो, कि क्या तू मेरी हड्डी और मांस नहीं है? और यदि तू योआब के स्यान पर सदा के लिथे सेनापति न ठहरे, तो परमेश्वर मुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे। 14 इस प्रकार उस ने सब यहूदी पुरुषोंके मन ऐसे अपक्की ओर खींच लिया कि मानोंएक ही पुरुष या; और उन्होंने राजा के पास कहला भेजा, कि तू अपके सब कर्पचारियोंको संग लेकर लौट आ। 15 तब राजा लौटकर यरदन तक आ गया; और यहूदी लोग गिलगाल तक गए कि उस से मिलकर उसे यरदन पार ले आए। 16 यहूदियोंके संग गेरा का पुत्र बिन्यामीनी शिमी भी जो बहूरीमी या फुतीं करके राजा दाऊद से भेंट करने को गया; 17 उसके संग हज़ार बिन्यामीनी पुरुष थे। और शाऊल के घराने का कर्मचारी सीबा अपके पन्द्रह पुत्रोंऔर बीस दासोंसमेत या, और वे राजा के साम्हने यरदन के पार पांव पैदल उतर गए। 18 और एक बेड़ा राजा के परिवार को पार ले आने, और जिस काम में वह उसे लगाने चाहे उसी में लगने के लिथे पार गया। और जब राजा यरदन पार जाने पर या, तब गेरा का पुत्र शिमी उसके पावोंपर गिरके, 19 राजा से कहने लगा, मेरा प्रभु मेरे दोष का लेखा न करे, और जिस दिन मेरा प्रभु राजा यरूशलेम को छोड़ आया, उस दिन तेरे दास ने जो कुटिल काम किया, उसे ऐसा स्मरण न कर कि राजा उसे अपके ध्यान में रखे। 20 क्योंकि तेरा दास जानता है कि मैं ने पाप किया; देख, आज अपके प्रभु राजा से भेंट करने के लिथे यूसुफ के समस्त घ्राने में से मैं ही पहिला आया हूँ। 21 तब सरूयाह के पुत्र अबीशै ने कहा, शिमी ने जो यहोवा के अभिषिक्त को शाप दिया या, इस कारण क्या उसको वध करना न चाहिथे? 22 दाऊद ने कहा, हे सरूयाह के बेटों, मुझे तुम से क्या काम, कि तुम आज मेरे विरोधी ठहरे हो? आज क्या इस्राएल में किसी को प्राण दणड मिलेगा? क्या मैं नहीं जानता कि आज मैं इस्राएल का राजा हुआ हूँ? 23 फिर राजा ने शिमी से कहा, तुझे प्राण दणड न मिलेगा। और राजा ने उस से शपय भी खाई। 24 तब शाऊल का पोता मपीबोशेत राजा से भेंट करने को आया; उस ने राजा के चले जाने के दिन से उसके कुशल झेम से फिर आने के दिन तक न अपके पावोंके नाखून काटे, और न अपक्की दाढी बनवाई, और न अपके कपके धुलवाए थे। 25 तो जब यरूशलेमी राजा से मिलने को गए, तब राजा ने उस से पूछा, हे मपीबोशेत, तू मेरे संग क्योंनहीं गया या? 26 उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, हे राजा, मेरे कर्मचारी ने मुझे धोखा दिया या; तेरा दास जो पंगु है; इसलिथे तेरे दास ने सोचा, कि मैं गदहे पर काठी कसवाकर उस पर चढ़ राजा के साय चला जाऊंगा। 27 और मेरे कर्मचारी ने मेरे प्रभु राजा के साम्हने मेरी चुगली खाई। परन्तु मेरा प्रभु राजा परमेश्वर के दूत के समान है; और जो कुछ तुझे भाए वही कर। 28 मेरे पिता का समस्त घराना तेरी ओर से प्राण दणड के योग्य या; परन्तु तू ने अपके दास को अपक्की मेज पर खानेवालोंमें गिना है। मुझे क्या हक है कि मैं राजा की ओर दोहाई दूं? 29 राजा ने उस से कहा, तू अपक्की बात की चर्चा क्सोंकरता रहता है? मेरी आज्ञा यह है, कि उस भूमि को तुम और सीबा दोनोंआपस में बांट लो। 30 मपीबोशेत ने राजा से कहा, मेरे प्रभु राजा जो कुशल झेम से अपके घर आया है, इसलिथे सीबा ही सब कुछ ले ले। 31 तब गिलादी बजिर्ल्लै रोगलीम से आया, और राजा के साय यरदन पार गया, कि उसको यरदन के पार पहुंचाए। 32 बजिर्ल्लै तो वृद्ध पुरुष या, अर्यात् अस्सी पर्ष की आयु का या जब तक राजा महनैम में रहता या तब तक वह उसका पालन पोषण करता रहा; क्योंकि वह बहुत धनी या। 33 तब राजा ने बजिर्ल्लै से कहा, मेरे संग पार चल, और मैं तुझे यरूशलेम में अपके पास रखकर तेरा पालन पोषण करूंगा। 34 बजिर्ल्लै ने राजा से कहा, मुझे कितने दिन जीवित रहना है, कि मैं राजा के संग यरूशलेंम को जाऊं? 35 आज मैं अस्सी वर्ष का हूँ; क्या मैं भले-बुरे का विवेक कर सकता हूँ? क्या तेरा दास जो कुछ खाता पीता है उसका स्वाद पहिचान सकता है? क्या मुझे गवैय्योंवा गायिकाओं का शब्द अब सुन पड़ता है? तेरा दास अब अपके प्रभु राजा के लिथे क्योंबोफ का कारण हो? 36 तेरे दास राजा के संग यरदन पार ही तक जाएगा। राजा इसका ऐसा बड़ा बदला मुझे क्योंदे? 37 अपके दास को लौटने दे, कि मैं अपके ही नगर में अपके माता पिता के कब्रिस्तान के पास मरूं। परन्तु तेरा दास किम्हाम उपस्यित है; मेरे प्रभु राजा के संग वह पार जाए; और जैसा तुझे भाए वैया ही उस से व्यवहार करना। 38 राजा ने कहा, हां, किम्हान मेरे संग पार चलेगा, और जैसा तुझे भाए वैसा ही मैं उस से व्यवहार करूंगा वरन जो कुछ तू मुझ से चाहेगा वह मैं तेरे लिथे करूंगा। 39 तब सब लोग यरदन पार गए, और राजा भी पार हुआ; तब राजा ने बजिर्ल्लै को चूमकर आशीर्वाद दिया, और वह अपके स्यान को लौट गया। 40 तब राजा गिल्गाल की ओर पार गया, और उसके संग किम्हाम पार हुआ; और सब सहूदी लोगोंने और आधे इस्राएली लोगोंने राजा को पार पहुंचाया। 41 तब सब इस्राएली पुरुष राजा के पास आए, और राजा से कहने लगे, क्या कारण है कि हमारे यहूदी भाई तुझे चोरी से ले आए, और परिवार समेत राजा को और उसके सब जनोंको भी यरदन पार ले आए हैं? 42 सब यहूदी पुरुषोंने इस्राएली पुरुषोंको उत्तर दिया, कि कारण यह है कि राजा हमारे गोत्र का है। तो तुम लोग इस बात से क्योंरूठ गए हो? क्या हम ने राजा का दिया हुआ कुछ खाया है? वा उस ने हमें कुछ दान दिया है? 43 इस्राएली पुरुषोंने यहूदी पुरुषोंको उत्तर दिया, राजा में दस अंश हमारे हैं; और दाऊद में हमारा भाग तुम्हारे भाग से बड़ा है। तो फिर तुम ने हमें क्योंतुच्छ जाना? क्या अपके राजा के लौटा ले आने की चर्चा पहिले हम ही ने न की यी? और यहूदी पुरुषोंने इस्राएली पुरुषोंसे अधिक कड़ी बातें कहीं।
1 वहां संयोग से शेबा नाम एक बिन्यामीनी या, वह ओछा पुरुष बिक्री का पुत्र या; वह नरसिंगा फूंककर कहने लगा, दाऊद में हमारा कुछ अंश नहीं, और न यिशै के पुत्र में हमारा कोई भाग है; हे इस्राएलियो, अपके अपके डेरे को चले जाओ ! 2 इसलिथे सब इस्राएली पुरुष दाऊद के पीछे चलना छोड़कर बिक्री के पुत्र शेबा के पीछे हो लिए; परन्तु सब यहूदी पुरुष यरदन से यरूशलेम तक अपके राजा के संग लगे रहे। 3 तब दाऊद यरूशलेम को अपके भवन में आया; और राजा ने उन दस रखेलियोंको, जिन्हें वह भवन की चौकसी करने को छोड़ गया या, अलग एक घर में रखा, और उनका पालन पोषण करता रहा, परन्तु उन से सहवास न किया। इसलिथे वे अपक्की अपक्की मृत्यु के दिन तक विधवापन की सी दशा में जीवित ही बन्द रही। 4 तब राजा ने अमासा से कहा, यहूदी पुरुषोंको तीन दिन के भीतर मेरे पास बुला ला, और तू भी यहां उपस्यित रहना। 5 तब अमासा यहूदियोंको बुलाने गया; परन्तु उसके ठहराए हुए समय से अधिक रह गया। 6 तब दाऊद ने अबीशै से कहा, अब बिक्री का पुत्र शेबा अबशालोम से भी हमारी अधिक हानि करेगा; इसलिथे तू अपके प्रभु के लोगोंको लेकर उसका पीछा कर, ऐसा न हो कि वह गढ़वाले नगर पाकर हमारी दृष्टि से छिप जाए। 7 तब योआब के जन, और करेती और पकेती लोग, और सब शूरवीर उसके पीछे हो लिए; और बिक्री के पुत्र शेबा का पीछे करने को यरूशलेम से निकले। 8 वे गिबोन में उस भारी पत्यर के पास पहुंचे ही थे, कि अमासा उन से आ मिला। योआब तो योद्धा का वस्त्र फेटे से कसे हुए या, और उस फेटे में एक तलवार उसकी कमर पर अपक्की म्यान में बन्धी हुई यी; और जब वह चला, तब वह निकलकर गिर पक्की। 9 तो योआब ने अमासा से पूछा, हे मेरे भाई, क्या तू कुशल से है? तब योआब ने अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर अमासा को चूमने के लिथे उसकी दाढ़ी पकड़ी। 10 परन्तु अमासा ने उस तलवार की कुछ चिन्ता न की जो याआब के हाथ में यी; और उस ने उसे अमासा के पेट में भोंक दी, जिस से उसकी अन्तडिय़ां निकलकर धरती पर गिर पक्की, और उस ने उसको दूसरी बार न मारा; और वह मर गया। तब योआब और उसका भाई अबीशै बिक्री के पुत्र शेबा का पीछा करने को चले। 11 और उसके पास याआब का एक जवान खड़ा होकर कहने लगा, जो कोई योआब के पझ और दाऊद की ओर का हो वह योआब के पीछे हो ले। 12 अमासा तो सड़क के मध्य अपके लोहू में लोट रहा या। तो जब उस मनुष्य ने देखा कि सब लोग खड़े हो गए हैं, तब अमासा को सड़क पर से मैदान में उठा ले गया, और जब देखा कि जितने उसके पास आते हैं वे खड़े हो जाते हैं, तब उस ने उसके ऊपर एक कपड़ा डाल दिया। 13 उसके सड़क पर से सरकाए जाने पर, सब लोग बिक्री के पुत्र शेबा का पीछे करने को योआब के पीछे हो लिए। 14 और वह सब इस्राएली गोत्रें में होकर आबेल और बेतमाका और बेरियोंके देश तक पहुंचा; और वे भी इकट्ठे होकर उसके पीछे हो लिए। 15 तब उन्होंने उसको बेतमाका के आबेल में घेर लिया; और नगर के साम्हने ऐसा दमदमा बान्धा कि वह शहरपनाह से सट गया; और योआब के संग के सब लोग शहरपनाह को गिराने के लिथे धक्का देने लगे। 16 तब एक बुद्धिमान रूत्री ने नगर में से पुकारा, सुनो ! सुनो ! योआब से कहो, कि यहां आए, ताकि मैं उस से कुछ बातें करूं। 17 जब योआब उसके निकट गया, तब स्त्री ने पूछा, क्या तू योआब है? उस ने कहा, हां, मैं वही हूँ। फिर उस ने उस से कहा, अपक्की दासी के वचन सुन। उस ने कहा, मैं तो सुन रहा हूँ। 18 वह कहने लगी, प्राचीनकाल में तो लोग कहा करते थे, कि आबेल में पूछा जाए; और इस रीति फगड़े को निपटा देते थे। 19 मैं तो मेलमिलापवाले और विश्वासयोग्य इस्राएलियोंमें से हूँ; परन्तु तू एक प्रधन नगर नाश करने का यत्न करता है; तू यहोवा के भाग को क्योंनिगल जाएगा? 20 योआब ने उत्तर देकर कहा, यह मुझ से दूर हो, दूर, कि मैं निगल जाऊं वा नाश करूं ! 21 बात ऐसी नहीं है। शेबा नाम एप्रैम के पहाड़ी देश का एक पुरुष जो बिक्री का पुत्र है, उस ने दाऊद राजा के विरुद्ध हाथ उठााया है; तो तुम लोग केवल उसी को सौंप दो, तब मैं नगर को छोड़कर चला जाऊंगा। स्त्री ने योआब से कहा, उसका सिर शहरपनाह पर से तेरे पास फेंक दिया जाएगा। 22 तब स्त्री अपक्की बुद्धिमानी से सब लोगोंके पास गई। तब उन्होंने बिक्री के पुत्र शेबा का सिर काटकर योआब के पास फेंक दिया। तब योआब ने नरसिंगा फूंका, और सब लोग नगर के पास से अलग अलग होकर अपके अपके डेरे को गए। और योआब यरूशलेम को राजा के पास लौट गया। 23 योआब तो समस्त इस्राएली सेना के ऊपर प्रधान रहा; और यहोयादा का मुत्र बनायाह करेतियोंऔर पकेतियोंके ऊपर या; 24 और अदोराम बेगारोंके ऊपर या; और अहीलूद का पुत्र यहोशापात इतिहास का लेखक या; 25 और शया मंत्री या; और सादोक और एब्यातार याजक थे; 26 और याईरी ईरा भी दाऊद का एक मंत्री या।
1 दाऊद के दिनोंमें लगातार तीन बरस तक अकाल पड़ा; तो दाऊद ने यहोवा से प्रार्यना की। यहोवा ने कहा, यह शाऊल और उसके खूनी घराने के कारण हुआ, क्योंकि उस ने गिबोनियोंको मरवा डाला या। 2 तब राजा ने गिबोनियो को बुलाकर उन से बातें कीं। गिबोनी लोग तो इस्राएलियोंमें से नहीं थे, वे बचे हुए एमोरियो में से थे; और इस्राएलियोंने उनके साय शपय खाई यी, परन्तु शाऊल को जो इस्राएलियोंऔर यहूदियोंके दिथे जलन हुई यी, इस से उस ने उन्हें मार डासने के लिथे यत्न किया या। 3 तब दाऊद ने गिबोनियोंसे पूछा, मैं तुम्हारे लिथे क्या करूं? और क्या करके ऐसा प्रायश्चित करूं, कि तुम यहोवा के निज भाग को आशीर्वाद दे सको? 4 गिबोनियोंने उस से कहा, हमारे और शाऊल वा उसके घराने के मध्य रुपके पैसे का कुछ फगड़ा नहीं; और न हमारा काम है कि किसी इस्राएली को मार डालें। उस ने कहा, जो कुछ तुम कहो, वही मैं तुम्हारे लिथे करूंगा। 5 उन्होंने राजा से कहा, जिस पुरुष ने हम को नाश कर दिया, और हमारे विरुद्ध ऐसी युक्ति दी कि हम ऐसे सत्यानाश हो जाएं, कि इस्राएल के देश में आगे को न रह सकें, 6 उसके वंश के सात जन हमें सौंप दिए जाएं, और हम उन्हें यहोवा के लिथे यहोवा के चुने हुए शाऊल की गिबा नाम बस्ती में फांसी देंगे। राजा ने कहा, मैं उनको सौंप दूंगा। 7 परन्तु दाऊद ने और शाऊल के पुत्र योनातन ने आपस में यहोवा की शपय खाई यी, इस कारण राजा ने योनातन के पुत्र मपीबोशेत को जो शाऊल का पोता या बचा रखा। 8 परन्तु अमॉनी और मपीबोशेत नाम, अय्या की बेटी रिस्पा के दोनोंपुत्र जो शाऊल से उत्पन्न हुए थे; और हााऊल की बेटी मीकल के पांचोंबेटे, जो वह महोलवासी बजिर्ल्लै के पुत्र अद्रीएल की ओर से थे, इनको राजा ने पकड़वाकर 9 गिबोनियोंके हाथ सौंप दिया, और उन्होंने उन्हें पहाड़ पर यहोवा के साम्हने फांसी दी, और सातोंएक साय नाश हुए। उनका मार डाला जाना तो कटनी के पहिले दिनोंमें, अर्यात् जब की कटनी के आरम्भ में हुआ। 10 तब अय्या की बेटी रिस्पा ने टाट लेकर, कटनी के आरम्भ से लेकर जब तक आकाश से उन पर अत्यन्त वृष्टि न पक्की, तब तक चट्टान पर उसे अपके नीचे बिछाथे रही; और न तो दिन में आकाश के पझियोंको, और न रात में बनैले पशुओं को उन्हें छूने दिया। 11 जब अय्या की बीटी शाऊल की रखेली रिस्पा के इस काम का समाचार आऊद को मिला, 12 तब दाऊद ने जाकर शाऊल और उसके पुत्र योनातन की हड्डियोंको गिलादी याबेश के लोगोंसे ले लिया, जिन्होंने उन्हें बेतशान के उस चौक से चुरा लिया या, जहां पलिश्तियोंने उन्हें उस दिन टांगा या, जब उन्होंने शाऊल को गिल्बो पहाड़ पर मार डाला या; 13 तो वह वहां से शाऊल और उसके पुत्र योनातन की हड्डियोंको ले आया; और फांयी पाए हुओं की हड्डियां भी इकट्ठी की गई। 14 और शाऊल और उसके पुत्र योनातन की हड्डियां बिन्यामीन के देश के जेला में शाऊल के पिता कीश के क़ब्रिस्तान गाड़ी गई; और दाऊद की सब आज्ञाओं के अनुसार काम हुआ। और उसके बाद परमेश्वर ने देश के लिथे प्रार्य्ना सुन ली। 15 पलिश्तियोंने दस्राएल से फिर युद्ध किया, और दाऊद अपके जनोंसमेत जाकर पलिश्तियोंसे लड़ने लगा; परन्तु दाऊद यक गया। 16 तब यिशबोबनोब, जो रपाई के वंश का या, और उसके भाले का फल तौल में तीन सौ शेकेल पीतल का या, और वह नई तलवार बान्धे हुए या, उस ने दाऊद को मारने को ठाना। 17 परन्तु सरूयाह के पुत्र अबीशै ने दाऊद की सहाथता करके उस पलिश्ती को एसा मारा कि वह मर गया। तब दाऊद के जनोंने शपय खाकर उस से कहा, तू फिर हमारे संग युद्ध को जाने न पाएगा, ऐसा न हो कि तेरे मरने से इस्राएल का दिय बुफ जाए। 18 इसके बाद पलिश्तियोंके साय गोब में फिर युद्ध हुआ; उस समय हूशाई सिब्बकै ने रपाईवंशी सप को मारा। 19 और गोब में पलिश्तियोंके साय फिर युद्ध हुआ; उस में बेतलेहेम वासी यारयोरगीम के पुत्र एल्हनान ने गती गोल्यत को मार डाला, जिसके बछें की छड़ जोलाहे की डोंगी के समान यी। 20 फिर गत में भी युद्ध हुआ, और वहां एक बड़ी डील का रपाईवंशी पुरुष या, जिसके एक एक हाथ पांव में, छ: छ: उंगली, अर्यात् गिनती में चौबीस उंगलियां यीं। 21 जब उस ने इस्राएल को ललकारा, तब दाऊद के भाई शिमा के पुत्र यहोनातान ने उसे मारा। 22 थे ही चार गत में उस रपाई से उत्पन्न हुए थे; और वे दाऊद और उसके जनोंसे मार डाले गए।
1 और जिस समय यहोवा ने दाऊद को उसके सब शत्रुओं और शाऊल के हाथ से बचाया या, तब उस ने यहोवा के लिथे इस गीत के वचन गाए; 2 उस ने कहा, यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़, मेरा छुड़ानेवाला, 3 मेरा चट्टानरूपी परमेश्वर है, जिसका मैं शरणागत हूँ, मेरी ढाल, मेरा बचानेवाला सींग, मेरा ऊंचा गढ़, और मेरा शरणस्यान है, हे मेरे उद्धार कर्त्ता, तू उपद्रव से मेरा उद्धार किया करता है। 4 मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूंगा, और अपके शत्रुओं से बचाया जाऊंगा। 5 मृत्यु के तरंगोंने तो मेरे चारोंओर घेरा डाला, नास्तिकपन की धाराओं ने मुझ को घबड़ा दिया या; 6 अधोलोक की रस्सियां मेरे चारोंओर यीं, मृत्यु के फन्दे मेरे साम्हने थे। 7 अपके संकट में मैं ने यहोवा को पुकारा; और अपके परमेश्वर के सम्मुख चिल्लाया। औंर उस ने मेरी बात को अपके मन्दिर में से सुन लिया, और मेरी दोहाई उसके कानोंमें पहुंची। 8 तब पृय्वी हिल गई और डोल उठी; और आकाश की नेवें कांपकर बहुत ही हिल गई, क्योंकि वह अति क्रोधित हुआ या। 9 उसके नयनोंसे धुंआ निकला, और उसके मुंह से आग निकलकर भस्म करने लगी; जिस से कोयले दहक उठे। 10 और वह स्वर्ग को फुकाकर नीचे उतर आया; और उसके पांवोंके तले घोर अंधकार छाया या। 11 और वह करूब पर सवार होकर उड़ा, और पवन के पंखोंपर चढ़कर दिखाई दिया। 12 और उस ने अपके चारोंओर के अंधिक्कारने को, मेघोंके समूह, और आकाश की काली घटाओं को अपना मणडप बनाया। 13 उसके सम्मुख की फलक तो उसके आगे आगे यी, आग के कोयले दहक उठे। 14 यहोवा आकाश में से गरजा, और परमप्रधान ने अपक्की वाणी सुनाई। 15 उस ने तीर चला चलाकर मेरे शत्रुओं को तितर बितर कर दिया, और बिजली गिरा गिराकर उसको परास्त कर दिया। 16 तब समुद्र की याह दिखाई देने लगी, और जगत की नेवें खुल गई, यह तो यहोवा की डांट से, और उसके नयनोंकी सांस की फोंक से हुआ। 17 उस ने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे यांम लिया, और मुझे गहरे जल में से खींचकर बाहर निकाला। 18 उस ने मुझे मेरे बलवन्त शत्रु से, और मेरे बैरियोंसे, जो मुझ से अधिक सामयीं थे, मुझे छुड़ा लिया। 19 उन्होंने मेरी विपत्ति के दिन मेरा साम्हना तो किया; परन्तु यहोवा मेरा आश्र्य या। 20 और उस ने मुझे निकालकर चौड़े स्यान में पहुंचाया; उस ने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझ से प्रसन्न या। 21 यहोवा ने मुझ से मेरे धर्म के अनुसार व्यवहार किया; मेरे कामोंकी शुद्धता के अनुसार उस ने मुझे बदला दिया। 22 क्योंकि मैं यहोवा के मागॉं पर चलता रहा, और अपके परमेश्वर से मुंह मोड़कर दुष्ट न बना। 23 उसके सब नियम तो मेरे साम्हने बने रहे, और मैं उसकी विधियोंसे हट न गया। 24 और मैं उसके साय खरा बना रहा, और अधर्म से अपके को बचाए रहा, जिस में मेरे फंसने का डर या। 25 इसलिथे यहोवा ने मुझे मेरे धर्म के अनुसार बदला दिया, मेरी उस शुद्धता के अनुसार जिसे वह देखता या। 26 दयावन्त के साय तू अपके को दयावन्त दिखाता; खरे पुरुष के साय तू अपके को खरा दिखाता है; 27 शुद्ध के साय तू अपके को शुद्ध दिखाता; और टेढ़े के साय तू तिरछा बनता है। 28 और दीन लोगोंको तो तू बचाता है, परन्तु अभिमानियोंपर दृष्टि करके उन्हें नीचा करता है। 29 हे यहोवा, तू ही मेरा दीपक है, और यहोवा मेरे अन्धिक्कारने को दूर करके उजियाला कर देता है। 30 तेरी सहाथता से मैं दल पर धावा करता, अपके परमेश्वर की सहाथता से मैं शहरपनाह को फांद जाता हूँ। 31 ईश्वर की गति खरी है; यहोवा का वचन ताया हुआ है; वह अपके सब शरणागतोंकी ढाल है। 32 यहोवा को छोड़ क्या कोई ईश्वर है? हमारे परमेश्वर को छोड़ क्या और कोई चट्टान है? 33 यह वही ईश्वर है, जो मेरा अति दृढ़ क़िला है, वह खरे मनुष्य को अपके मार्ग में लिए चलता है। 34 वह मेरे पैरोंको हरिणियोंके से बना देता है, और मुझे ऊंचे स्यानोंपर खड़ा करता है। 35 वह मेरे हाथोंको युद्ध करना सिखाता है, यहां तक कि मेरी बांहें पीतल के धनुष को फुका देती हैं। 36 और तू ने मुझ को अपके उद्धार की ढाल दी है, और तेरी नम्रता मुझे बढ़ाती है। 37 तू मेरे पैरोंके लिथे स्यान चौड़ा करता है, और मेरे पैर नहीं फिसले। 38 मैं ने अपके शत्रुओं का पीछा करके उन्हें सत्यानाश कर दिया, और जब तक उनका अन्त न किया तब तक न लौटा। 39 और मैं ने उनका अन्त किया; और उन्हें ऐसा छेद डाला है कि वे उठ नहीं सकते; वरन वे तो मेरे पांवोंके नीचे गिरे पके हैं। 40 और तू ने युद्ध के लिथे मेरी कमर बलवन्त की; और मेरे विरोधियोंको मेरे ही साम्हने परास्त कर दिया। 41 और तू ने मेरे शत्रुओं की पीठ मुझे दिखाई, ताकि मैं अपके बैरियोंको काट डालूं। 42 उन्होंने बाट तो जोही, परन्तु कोई बचानेवाला न मिला; उन्होंने यहोवा की भी बाट जोही, परन्तु उस ने उनको कोई उत्तर न दिया। 43 तब मैं ने उनको कूट कूटकर भूमि की धूलि के समान कर दिया, मैं ने उन्हें सड़कोंऔर गली कूचोंकी कीचड़ के समान पटककर चारोंओर फैला दिया। 44 फिर तू ने मुझे प्रजा के फगड़ोंसे छुड़ाकर अन्य जातियोंका प्रधान होने के लिथे मेरी रझा की; जिन लोगोंको मैं न जानता या वे भी मेरे आधीन हो जाएंगे। 45 परदेशी मेरी चापलूसी करेंगे; वे मेरा नाम सुनते ही मेरे वश में आएंगे। 46 परदेशी मुर्फाएंगे, और अपके कोठोंमें से यरयराते हुए निकलेंगे। 47 यहोवा जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है, और परमेश्वर जो मेरे उद्धार की चट्टान है, उसकी महिमा हो। 48 धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला ईश्वर, जो देश देश के लोगोंको मेरे वश में कर देता है, 49 और मुझे मेरे शत्रुओं के बीच से निकालता है; हां, तू मुझे मेरे विरोधियोंसे ऊंचा करता है, और उपद्रवी पुरुष से बचाता है। 50 इस कारण, हे यहोवा, मैं जाति जाति के साम्हने तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम का भजन गाऊंगा। 51 वह अपके ठहराए हुए राजा का बड़ा उद्धार करता है, वह अपके अभिषिक्त दाऊद, और उसके वंश पर युगानुयुग करुणा करता रहेगा।
1 दाऊद के अन्तिम वचन थे हैं : यिशै के पुत्र की यह वाणी है, उस पुरुष की वाणी है जो ऊंचे पर खड़ा किया गया, और याकूब के परमेश्वर का अभिषिक्त, और इस्राएल का मधुर भजन गानेवाला है: 2 यहोवा का आत्मा मुझ में होकर बोला, और उसी का वचन मेरे मुंह में आया। 3 इस्राएल के परमेश्वर ने कहा है, इस्राएल की चट्टान ने मुझ से बातें की है, कि मनुष्योंमें प्रभुता करनेवाला एक धमीं होगा, जो परमेश्वर का भय मानता हुआ प्रभुता करेगा, 4 वह मानो भोर का प्रकाश होगा जब सूर्य निकलता है, ऐसा भोर जिस में बादल न हों, जैसा वर्षा के बाद निर्मल प्रकाश के कारण भूमि से हरी हरी घास उगती है। 5 क्या मेरा घराना ईश्वर की दृष्टि में ऐसा नहीं है? उस ने तो मेरे साय सदा की एक ऐसी वाचा बान्धी है, जो सब बातोंमें ठीक की हुई और अटल भी है। क्योंकि चाहे वह उसको प्रगट न करे, तौभी मेरा पूर्ण उद्धार और पूर्ण अभिलाषा का विषय वही है। 6 परन्तु ओछे लोग सब के सब निकम्मी फाडिय़ोंके समान हैं जो हाथ से पकड़ी नहीं जातीं; 7 और जो पुरुष उनको छूए उसे लोहे और भाले की छड़ से सुसज्जित होना चाहिथे। इसलिथे वे अपके ही स्यान में आग से भस्म कर दिए जाएंगे। 8 दाऊद के शूरवीरोंके नाम थे हैं : अर्यात् तहकमोनी योश्शेब्यश्शेबेत, जो सरदारोंमें मुख्य या; वह एस्नी अदीनो भी कहलाता या; जिस ने एक ही समय में आठ सौ पुरुष मार डाले। 9 उसके बाद अहोही दोदै का पुत्र एलीआज़र या। वह उस समय दाऊद के संग के तीनोंवीरोंमें से या, जब कि उन्होंने युद्ध के लिथे एकत्रित हुए पलिश्तियोंको ललकारा, और इस्राएली पुरुष चले गए थे। 10 वह कमर बान्धकर पलिश्तियोंको तब तक मारता रहा जब तक उसका हाथ यक न गया, और तलवार हाथ से चिपट न गई; और उस दिन यहोवा ने बड़ी विजय कराई; और जो लोग उसके पीछे हो लिए वे केवल लूटने ही के लिथे उसके पीछे हो लिए। 11 उसके बाद आगे नाम एक पहाड़ी का पुत्र शम्मा या। पलिश्तियोंने इकट्ठे होकर एक स्यान में दल बान्धा, जहां मसूर का एक खेत या; और लोग उनके डर के मारे भागे। 12 तब उस ने खेत के मध्य में खड़े होकर उसे बचाया, और पलिश्तियोंको मार लिया; और यहोवा ने बड़ी विजय दिलाई। 13 फिर तीसोंमुख्य सरदारोंमें से तीन जन कटनी के दिनोंमें दाऊद के पास अदुल्लाम नाम गुफ़ा में आए, और पलिश्तियोंका दल रपाईम नाम तराई में छावनी किए हुए या। 14 उस समय दाऊद गढ़ में या; और उस समय पलिश्तियोंकी चौकी बेतलेहेम में यी। 15 तब दाऊद ने बड़ी अभिलाषा के साय कहा, कौन मुझे बेतलेहेम के फाटक के पास के कुएं का पानी पिलाएगा? 16 तो वे तीनोंवीर पलिश्तियोंकी छावनी में टूट पके, और बेतलेहेम के फाटक के कुंए से पानी भरके दाऊद के पास ले आए। परन्तु उस ने पीने से इनकार किया, और यहोवा के साम्हने अर्ध करके उणडेला, 17 और कहा, हे यहोवा, मुझ से ऐसा काम दूर रहे। क्या मैं उन मनुष्योंका लोहू पीऊं जो अपके प्राणोंपर खेलकर गए थे? इसलिथे उस ने उस पानी को पीने से इनकार किया। इन तीन वीरोंने तो थे ही काम किए। 18 और अबीशै जो सरूयाह के पुत्र योआब का भाई या, वह तीनोंसे मुख्य या। उस ने अपना भाला चलाकर तीन सौ को मार डाला, और तीनोंमें नामी हो गया। 19 क्या वह तीनोंसे अधिक प्रतिष्ठित न या? और इसी से वह उनका प्रधान हो गया; परन्तु मुख्य तीनोंके पद को न पहुंचा। 20 फिर यहोयादा का पुत्र बनायाह या, जो कबसेलवासी एक बड़े काम करनेवाले वीर का पुत्र या; उस ने सिंह सरीखे दो मोआबियोंको मार डाला। और बर्फ के समय उस ने एक गड़हे में उतरके एक सिंह को मार डाला। 21 फिर उस ने एक रूपवान् मिस्री पुरुष को मार डाला। मिस्री तो हाथ में भाला लिए हुए या; परन्तु बनायाह एक लाठी ही लिए हुए उसके पास गया, और मिस्री के हाथ से भाला को छीनकर उसी के भाले से उसे घात किया। 22 ऐसे ऐसे काम करके यहोयादा का पुत्र बनायाह उन तीनोंवीरोंमें नामी हो गया। 23 वह तीसोंसे अधिक प्रतिष्ठित तो या, परन्तु मुख्य तीनोंके पद को न पहुंचा। उसको दाऊद ने अपक्की निज सभा का सभासद नियुक्त किया। 24 फिर तीसोंमें योआब का भाई असाहेल; बेतलेहेमी दोदो का पुत्र एल्हानान, 25 हेरोदी शम्मा, और एलीका, पेलेती हेलेस, 26 तकोई इक्केश का पुत्र ईरा, 27 अनातोती अबीएज़ेर, हूशाई मबुन्ने, 28 अहोही सल्मोन, नतोपाही महरै, 29 एक और नतोपाही बाना का पुत्र हेलेब, बिन्यामीनियोंके गिबा नगर के रीबै का पुत्र हुत्तै, 30 पिरातोनी, बनायाह, गाश के नालोंके पास रहनेवाला हिद्दै, 31 अराबा का अबीअल्बोन, बहूरीमी अजमावेत, 32 शालबोनी एल्यहबा, याशेन के वंश में से योनातन, 33 पहाड़ी शम्मा, अरारी शारार का पुत्र अहीआम, 34 अहसबै का पुत्र एलीपेलेत्त माका देश का, गीलोई अहीतोपेल का पुत्र एलीआम, 35 कम्मेंली हेस्रो, अराबी पारै 36 सोबाई नातान का पुत्र यिगाल, गादी बानी, 37 अम्मोनी सेलेक, बेरोती नहरै को सरूयाह के पुत्र योआब का हयियार ढोनेवाला या, 38 थेतेरी ईरा, और गारेब, 39 और हित्ती ऊरिय्याह या: सब मिलाकर सैैंतीस थे।
1 और यहोवा का कोप इस्राएलियोंपर फिर भड़का, और उस ने दाऊद को इनकी हानि के लिथे यह कहकर उभारा, कि इस्राएल और यहूदा की गिनती ले। 2 सो राजा ने योआब सेनापति से जो उसके पास या कहा, तू दान से बेशॅबा तक रहनेवाले सब इस्राएली गोत्रें में इधर उधर घूम, और तुम लोग प्रजा की गिनती लो, ताकि मैं जान लूं कि प्रजा की कितनी गिनती है। 3 योआब ने राजा से कहा, प्रजा के लोग कितने ही क्योंन हों, तेरा परमेश्वर यहोवा उनको सौगुणा बढ़ा दे, और मेरा प्रभु राजा इसे अपक्की आंखोंसे देखने भी पाए; परन्तु, हे मेरे प्रभु, हे राजा, यह बात तू क्योंचाहता है? 4 तौभी राजा की आज्ञा योआब और सेनापतियोंपर प्रबल हुई। सो योआब और सेनापति राजा के सम्मुख से इस्राएली प्रजा की गिनती लेने को निकल गए। 5 उन्होंने यरदन पार जाकर अरोएर नगर की दाहिनी ओर डेरे खड़े किए, जो गाद के नाले के मध्य में और याजेर की ओर है। 6 तब वे गिलाद में और तहतीम्होदशी नाम देश में गए, फिर दान्यान को गए, और चक्कर लगाकर सीदोन में पहुंचे; 7 तब वे सोर नाम दृढ़ गढ़, और हिब्बियोंऔर कनानियोंके सब नगरोंमें गए; और उन्होंने यहूदा देश की दक्खिन दिशा में बेशेंबा में दौरा निपटाया। 8 और सब देश में इधर उधर घूम घूमकर वे नौ महीने और बीस दिन के बीतने पर यरूशलेम को आए। 9 तब योआब ने प्रजा की गिनती का जोड़ राजा को सुनाया; और तलवार चलानेवाले योद्धा इस्राएल के तो आठ लाख, और यहूदा के पांच नाख निकले। 10 प्रजा की गणना करने के बाद दाऊद का मन व्याकुल हुआ। और दाऊद ने यहोवा से कहा, यह काम जो मैं ने किया वह महापाप है। तो अब, हे यहोवा, अपके दास का अधर्म दूर कर; क्योंकि मुझ से बड़ी मूर्खता हुई है। 11 बिहान को जब दाऊद उठा, तब यहोवा का यह वचन गाद नाम नबी के पास जो दाऊद का दशीं या पहुंचा, 12 कि जाकर दाऊद से कह, कि यहोवा योंकहता है, कि मैं तुझ को तीन विपत्तियां दिखाता हूँ; उन में से एक को चुन ले, कि मैं उसे तुझ पर डालूं। 13 सो गाद ने दाऊद के पास जाकर इसका समाचार दिया, और उस से पूछा, क्या तेरे देश में सात वर्ष का अकाल पके? वा तीन महीने तक तेरे शत्रु तेरा पीछा करते रहें और तू उन से भागता रहे? वा तेरे देश में तीन दिन तक मरी फैली रहे? अब सोच विचार कर, कि मैं अपके भेजनेवाले को क्या उत्तर दूं। 14 दाऊद ने गाद से कहा, मै बड़े संकट में हूँ; हम यहोवा के हाथ में पकें, क्योंकि उसकी दया बड़ी है; परन्तु मनुष्य के हाथ में मैं न पडूंगा। 15 तब यहोवा इस्राएलियोंमें बिहान से ले ठहराए हुए समय तक मरी फैलाए रहा; और दान से लेकर बेशॅबा तक रहनेवाली प्रजा में से सत्तर हज़ार पुरुष मर गए। 16 परन्तु जब दूत ने यरूशलेम का नाश करने को उस पर अपना हाथ बढ़ाया, तब यहोवा वह विपत्ति डालकर शोकित हुआ, और प्रजा के नाश करनेवाले दूत से कहा, बस कर; अब अपना हाथ खींच। और यहोवा का दूत उस समय अरौना नाम एक यबूसी के खलिहान के पास या। 17 तो जब प्रजा का नाश करनेवाला दूत दाऊद को दिखाई पड़ा, तब उस ने यहोवा से कहा, देख, पाप तो मैं ही ने किया, और कुटिलता मैं ही ने की है; परन्तु इन भेड़ोंने क्या किया है? सो तेरा हाथ मेरे और मेरे पिता के घराने के विरुद्ध हो। 18 उसी दिन गाद ने दाऊद के पास आकर उस से कहा, जाकर अरौना यबूसी के खलिहान में यहोवा की एक वेदी बनवा। 19 सो दाऊद यहोवा की आज्ञा के अनुसार गाद का वह वचन मानकर वहां गया। 20 जब अरौना ने दृष्टि कर दाऊद को कर्मचारियो समेत अपक्की ओर आते देखा, तब अरौना ने निकलकर भूमि पर मुह के बल गिर राजा को दणडवत् की। 21 और अरौना ने कहा, मेरा प्रभु राजा अपके दास के पास क्योंपधारा है? आऊद ने कहा, तुझ से यह खलिहान मोल लेने आया हूँ, कि यहोवा की एक बेदी बनवाऊं, इसलिथे कि यह व्याधि प्रजा पर से दूर की जाए। 22 अरौनर ने दाऊद से कहा, मेरा प्रभु राजा जो कुछ उसे अच्छा लगे सो लेकर चढ़ाए; देख, होमबलि के लिथे तो बैल हैं, और दांचने के हयियार, और बैलोंका सामान ईधन का काम देंगे। 23 यह सब अरौना ने राजा को दे दिया। फिर अरौना ने राजा से कहा, तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से प्रसन्न होए। 24 राजा ने अरौना से कहा, ऐसा नहीं, मै थे वस्तुएं तुझ से अवश्य दाम देकर लूंगा; मैं अपके परमेश्वर यहोवा को सेंतमेंत के होमबलि नहीं चढ़ाने का। सो दाऊद ने खलिहान और बैलोंको चांदी के पचास शेकेल पें मोल लिया। 25 और दाऊद ने वहां यहोवा की एक बेदी बनवाकर होमबलि और मेलबलि चढ़ाए। और यहोवा ने देश के निमित्त बिनती सुन ली, तब वह व्याधि इस्राएल पर से दूर हो गई।
1 दाऊद राजा बूढ़ा वरन बहुत पुरनिया हुआ; और यद्यपि उसको कपके ओढ़ाथे जाते थे, तौभी वह गर्म न होता या। 2 सो उसके कर्मचारियोंने उस से कहा, हमारे प्रभु राजा के लिथे कोई जवान कुंवारी ढूंढ़ी जाए, जो राजा के सम्मुख रहकर उसकी सेवा किया करे और तेरे पास लेटा करे, कि हमारे प्रभु राजा को गमीं पहुंचे। 3 तब उन्होंने समस्त इस्राएली देश में सुन्दर कुंवारी ढूंढ़ते ढूंढ़ते अबीशग नाम एक शूनेमिन को पाया, और राजा के पास ले आए। 4 वह कन्या बहुत ही सुन्दर यी; और वह राजा की दासी होकर उसकी सेवा करती रही; परन्तु राजा उस से सहबास न हुआ। 5 तब हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह सिर ऊंचा करके कहने लगा कि मैं राजा हूंगा; सो उस ने रय और सवार और अपके आगे आगे दौड़ने को पचास पुरुष रख लिए। 6 उसके पिता ने तो जन्म से लेकर उसे कभी यह कहकर उदास न किया या कि तू ने ऐसा क्योंकिया। वह बहुत रूपवान या, और अबशालोम के पीछे उसका जन्म हुआ या। 7 और उस ने सरूयाह के पुत्र योआब से और एब्यातार याजक से बातचीत की, और उन्होंने उसके पीछे होकर उसकी सहाथता की। 8 परन्तु सादोक याजक यहोयादा का पुत्र बनायाह, नातान नबी, शिमी रेई, और दाऊद के शूरवीरोंने अदोनिय्याह का साय न दिया। 9 और अदोनिय्याह ने जोहेलेत नाम पत्य्र के पास जो एनरोगेल के निकट है, भेड़-बैल और तैयार किए हुए पशू बलि किए, और अपके भाई सब राजकुमारोंको, और राजा के सब यहूदी कर्मचारियोंको बुला लिया। 10 परन्तु नातान नबी, और बनायाह और शूरवीरोंको और अपके भाई सुलैमान को उस ने न बुलाया। 11 तब नातान ने सुलैमान की माता बतशेबा से कहा, क्या तू ने सुना है कि हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह राजा बन बैठा है और हमारा प्रभु दाऊद हसे नहीं जानता? 12 इसलिथे अब आ, मैं तुझे ऐसी सम्मति देता हूँ, जिस से तू अपना और अपके पुत्र सुलैमान का प्राण बचाए। 13 तू दाऊद राजा के पास जाकर, उस से योंपूछ, कि हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! क्या तू ने शपय खाकर अपक्की दासी से नहीं कहा, कि तेरा पुत्र सुलैमान मेरे पीछे राजा होगा, और वह मेरी राजगद्दी पर विराजेगा? फिर अदोनिय्याह क्योंराजा बन बैठा है? 14 और जब तू वहां राजा से ऐसी बातें करती रहेगी, तब मैं तेरे पीछे आकर, तेरी बातोंको पुष्ट करूंगा। 15 तब बतशेबा राजा के पास कोठरी में गई; राजा तो बहुत बूढ़ा या, और उसकी सेवा टहल शूनेमिन अबीशग करती यी। 16 और बतशेबा ने फुककर राजा को दणडवत् की, और राजा ने पूछा, तू क्या चाहती है? 17 उस ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, तू ने तो अपके परमेश्वर यहोवा की शपय खाकर अपक्की दासी से कहा या कि तेरा पुत्र सुलैमान मेरे पीछे राजा होगा और वह मेरी गद्दी पर विराजेगा। 18 अब देख अदोनिय्याह राजा बन बैठा है, और अब तक मेरा प्रभु राजा इसे नहीं जानता। 19 और उस ने बहुत से बैल तैयार किए, पशु और भेड़ें बलि कीं, और सब राजकुमारोंकी और एब्यातार याजक और योआब सेनापति को बुलाया है, परन्तु तेरे दास सुलैमान को नहीं बुलाया। 20 और हे मेरे प्रभु ! जे राजा ! सब इसाएली तुझे ताक रहे हैं कि तू उन से कहे, कि हमारे प्रभु राजा की गद्दी पर उसके पीछे कौन बैठेगा। 21 नहीं तो जब हमारा प्रभु राजा, अपके पुरखाओं के संग सोएगा, तब मैं और मेरा पुत्र सुलैमान दोनोंअपराधी गिने जाएंगे। 22 योंबतशेबा राजा से बातें कर ही रही यी, कि नातान नबी भी आ गया। 23 और राजा से कहा गया कि नातान नबी हाज़िर है; तब वह राजा के सम्मुख आया, और मुह के बल गिरकर राजा को दणडवत् की। 24 और नातान कहने लगा, हे मेरे पभु, हे राजा ! क्या तू ने कहा है, कि अदोनिय्याह मेरे पीछे राजा होगा और वह मेरी गद्दी पर विराजेगा? 25 देख उस ने आज नीचे जाकर बहुत से बैल, तैयार किए हुए पशु और भेड़ें बलि की हैं, और सब राजकुमारोंऔर सेनापतियोंको और एब्यातार याजक को भी बुलालिया है; और वे उसके सम्मुख खाते पीते हुए कह रहे हैं कि अदोनिय्याह राजा जीवित रहे। 26 परन्तु मुझ तेरे दास को, और सादोक याजक और यहोयादा के पुत्र बनायाह, और तेरे दास सुलैमान को उस ने नहीं बुलाया। 27 क्या यह मेरे प्रभु राजा की ओर से हुआ? तू ने तो अपके दास को यह नहीं जताया है, कि प्रभु राजा की गद्दी पर कौन उसके पीछे विराजेगा। 28 दाऊद राजा ने कहा, बतशेबा को मेरे पास बुला लाओ। तब वह राजा के पास आकर उसके साम्हने खड़ी हुई। 29 राजा ने शपय खाकर कहा, यहोवा जो मेरा प्राण सब जोखिमोंसे बचाता आया है, 30 उसके जीवन की शपय, जैसा मैं ने तुझ से इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपय खाकर कहा या, कि तेरा पुत्र सुलैमान मेरे पीछे राजा होगा, और वह मेरे बदले मेरी गद्दी पर विराजेगा, वैसा ही मैं निश्चय आज के दिन करूंगा। 31 तब बतशेबा ने भूमि पर मुंह के बल गिर राजा को दणडवत् करके कहा, मेरा प्रभु राजा दाऊद सदा तक जीवित रहे ! 32 तब दाऊद राजा ने कहा, मेरे पास सादोक याजक नातान नबी, अहोयादा के पुत्र बनायाह को बुला लाओ। सो वे राजा के साम्हने आए। 33 राजा ने उन से कहा, अपके प्रभु के कर्मचारियो को साय लेकर मेरे पुत्र सुलैमान को मेरे निज खच्चर पर चढ़ाओ; और गीहोन को ले जाओ; 34 और वहां सादोक याजक और नातान नबी इस्राएल का राजा होने को उसका अभिषेक करें; तुब तुम सब नरसिंगा फूंककर कहना, राजा सुलैमान जीवित रहे। 35 और तुम उसके पीछे पीछे इधर आना, और वह उाकर मेरे सिंहासन पर विराजे, क्योंकि मेरे बदले में वही राजा होगा; और उसी को मैं ने इस्राएल और यहूदा का प्रधान होने को ठहराया है। 36 तब यहोयादा के पुत्र बनायाह ने कहा, आमीन ! मेरे प्रभु राजा का परमेश्वर यहोवा भी ऐसा ही कहे। 37 जिस रीति यहोवा मेरे प्रभु राजा के संग रहा, उसी रीति वह सुलैमान के भी संग रहे, और उसका राज्य मेरे प्रभु दाऊद राजा के राज्य से भी अधिक बढ़ाए। 38 तब सादोक याजक और नातान नबी और यहोयादा का पुत्र बनायाह करेतियोंऔर पकेतियोंको संग लिए हुए नीचे गए, और सुलैमान को राजा दाऊद के खच्चर पर चढ़ाकर गीहोन को ले चले। 39 तब सादोक याजक ने यहोवा के तम्बू में से तेल भरा हुआ सींग निकाला, और सुलैमान का राज्याभिषेक किया। और वे नरसिंगे फूंकने लगे; और सब लोग बोल उठे, राजा सुलैमान जीविन रहे। 40 तब सब लोग उसके पीछे पीछे बांसुली बजाते और इतना बड़ा आनन्द करते हुए ऊपर गए, कि उनकी ध्वनि से पृय्वी डोल उठी। 41 जब अदोनिय्याह और उसके सब नेवतहरी खा चुके थे, तब यह ध्वनि उनको सुनाई पक्की। और योआब ने नरसिंगे का शब्द सुनकर पूछा, नगर में हलचल और चिल्लाहट का शब्द क्योंहो रहा है? 42 वह यह कहता ही या, कि एब्यातार याजक का पुत्र योनातन आया और अदोनिय्याह ने उस से कहा, भीतर आ; तू तो भला मनुष्य है, और भला समाचार भी लाया होगा। 43 योनातन ने अदोनिय्याह से कहा, सचमुच हमारे प्रभु राजा दाऊद ने सुलैमान को राजा बना दिया। 44 और राजा ने सादोक याजक, नातान नबी और यहोयादा के पुत्र बनायाह और करेतियोंऔर पकेतियोंको उसके संग भेज दिया, और उन्होंने उसको राजा के खच्चर पर चढ़ाया है। 45 और सादोक याजक, और नातान नबी ने गीहोन में उसका राज्याभिषेक किया है; और वे वहां से ऐसा आनन्द करते हुए ऊपर गए हैं कि नगर में हलचल मच गई, और जो शब्द तुम को सुनाई पड़ रहा है वही है। 46 सुलैमान राजगद्दी पर विराज भी रहा है। 47 फिर राजा के कर्मचारी हमारे प्रभु दाऊद राजा को यह कहकर धन्य कहने आए, कि तेरा परमेश्वर, सुलैमान का नाम, तेरे नाम से भी महान करे, और उसका राज्य तेरे राज्य से भी अधिक बढ़ाए; और राजा ने अपके पलंग पर दणडवत् की। 48 फिर राजा ने यह भी कहा, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिस ने आज मेरे देखते एक को मेरी गद्दी पर विराजमान किया है। 49 तब जितने नेवतहरी अदोनिय्याह के संग थे वे सब यरयरा गए, और उठकर अपना अपना मार्ग लिया। 50 और अदोनिय्याह सुलैमान से डर कर अठा, और जाकर वेदी के सींगोंको पकड़ लिया। 51 तब सुलैमान को यह समाचार मिला कि अदोनिय्याह सुलैमान राजा से ऐसा डर गया है कि उस ने वेदी के सींगोंको यह कहकर पकड़ लिया है, कि आज राजा सुलैमान शपय खाए कि अपके दास को तलवार से न मार डालेगा। 52 सुलैमान ने कहा, यदि वह भलमनसी दिखाए तो उसका एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा, परन्तु यदि उस में दुष्टता पाई जाए, तो वह मारा जाएगा। 53 तब राजा सुलैमान ने लोगोंको भेज दिया जो उसको वेदी के पास से उतार ले आए तब उस ने आकर राजा सुलैमान को दणडवत् की और सुलैेमान ने उस से कहा, अपके घर चला जा।
1 जब दाऊद के मरने का समय निकट आया, तब उस ने अपके पुत्र सुलैमान से कहा, 2 कि मैं लोक की रीति पर कूच करनेवाला हूँ इसलिथे तू हियाब बांधकर पुरुषार्य दिखा। 3 और जो कुछ तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे सौंपा है, उसकी रझा करके उसके मागॉं पर चला करना और जैसा मूसा की व्यवस्या में लिखा है, वैसा ही उसकी विधियोंतया आज्ञाओं, और नियमों, और चितौनियोंका पालन करते रहना; जिस से जो कुछ तू करे और जहां कहीं तू जाए, उस में तू सफल होए; 4 और यहोवा अपना वह वचन पूरा करे जो उस ने मेरे विषय में कहा या, कि यदि तेरी सन्तान अपक्की चाल के विषय में ऐसे सावधान रहें, कि अपके सम्पूर्ण ह्रृदय और सम्पूर्ण प्राण से सच्चाई के साय नित मेरे सम्मुख चलते रहें तब तो इस्राएल की राजगद्दी पर विराजनेवाले की, तेरे कुल परिवार में घटी कभी न होगी। 5 फिर तू स्वयं जानता है, कि सरूयाह के पुत्र योआब ने मुझ से क्या क्या किया ! अर्यात् उस ने नेर के पुत्र अब्नेर, और थेतेर के पुत्र अमासा, इस्राएल के इन दो सेनापतियोंसे क्या क्या किया। उस ने उन दोनोंको घात किया, और मेल के सपय युद्ध का लोहू बहाकर उस से अपक्की कमर का कमरबन्द और अपके पावोंकी जूतियां भिगो दीं। 6 इसलिथे तू अपक्की बुद्धि से काम लेना और उस पक्के बालवाले को अधोलोक में शांति से उतरने न देना। 7 फिर गिलादी बजिर्ल्लै के पुत्रोंपर कृपा रखना, और वे तेरी मेज पर खानेवालोंमें रहें, क्योंकि जब मैं तेरे भाई अबशालोम के साम्हने से भागा जा रहा या, तब उन्होंने मेरे पास आकर वैसा ही किया या। 8 फिर सुन, तेरे पास बिन्यामीनी गेरा का पुत्र बहूरीमी शिमी रहता है, जिस दिन मैं महनैम को जाता या उस दिन उस ने मुझे कड़ाई से शाप दिया या पर जब वह मेरी भेंट के लिथे यरदन को आया, तब मैं ने उस से यहोवा की यह शपय खाई, कि मैं तुुफे तलवार से न मार डालूंगा। 9 परन्तु अब तू इसे निदॉष न ठहराना, तू तो बुद्धिमान पुरुष है; तुझे मालूम होगा कि उसके साय क्या करना चाहिथे, और उस पक्के बालवाले का लोहू बहाकर उसे अधोलोक में उतार देना। 10 तब दाऊद अपके पुरखाओं के संग सो गया और दाऊदमुर में उसे मिट्टी दी गई। 11 दाऊद ने इस्राएल पर चालीस वर्ष राज्य किया, सात वर्ष तो उस ने हब्रोन में और तैंतीस वर्ष यरूशलेम में राज्य किया या। 12 तब सुलैमान अपके पिता दाऊद की गद्दी पर विराजमान हुआ और उसका राज्य बहुत दृढ़ हुआ। 13 और हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह, सुलैमान की माता बतशेबा के पास आया, और बतशेबा ने पूछा, क्या तू मित्रभाव से आता है? 14 उस ने उत्तर दिया, हां, मित्रभाव से ! फिर वह कहने लगा, मुझे तुझ से एक बात कहनी है। उस ने कहा, कह ! 15 उस ने कहा, तुझे तो मालूम है कि राज्य मेरा हो गया या, और समस्त इस्राएली मेरी ओर मुंह किए थे, कि मैं राज्य करूं; परन्तु अब राज्य पलटकर मेरे भाई का हो गया है, क्योंकि वह यहोवा की ओर से उसको मिला है। 16 इसलिथे अब मैं तुझ से एक बात मांगता हूँ, मुझ से नाही न करना उस ने कहा, कहे जा। 17 उस ने कहा, राजा सुलैमान तुझ से नाही न करेगा; इसलिथे उस से कह, कि वह मुझे शूनेमिन अबीशग को ब्याह दे। 18 बतशेबा ने कहा, अच्छा, मैं तेरे लिथे राजा से कहूंगी। 19 तब बतशेबा अदोनिय्याह के लिथे राजा सुलैमान से बातचीत करने को उसके पास गई, और राजा उसकी भेंट के लिथे उठा, और उसे दणडवत् करके अपके सिंहासन पर बैठ गया: फिर राजा ने अपक्की माता के लिथे एक सिंहासन रख दिया, और वह उसकी दाहिनी ओर बैठ गई। 20 तब वह कहने लगी, मैं तुझ से एक छोटा सा वरदान मांगती हूँ इसलिथे पुफ से नाही न करना, राजा ने कहा, हे माता मांग; मैं तुझ से नाही न करूंगा। 21 उस ने कहा, वह शूनेमिन अबीशग तेरे भाई अदोनिय्याह को ब्याह दी जाए। 22 राजा सुलैमान ने अपक्की माता को उत्तर दिया, तू अदोनिय्याह के लिथे शूनेमिन अबीशग ही को क्यो मांगती है? उसके लिथे राज्य भी मांग, क्योंकि वह तो मेरा बड़ा भाई है, और उसी के लिथे क्या ! एब्यातार याजक और सरूयाह के पुत्र योआब के लिथे भी मांग। 23 और राजा सुलैमान ने यहोवा की शपय खाकर कहा, यदि अदोनिय्याह ने यह बात अपके प्राण पर खेलकर न कही हो तो परमेश्वर मुझ से वैसा ही क्या वरन उस से भी अधिक करे। 24 अब यहोवा जिस ने पुफे स्यिर किया, और मेरे पिता दाऊद की राजगद्दी पर विराजमान किया है और अपके वचन के अनुसार मेरे घर बसाया है, उसके जीपन की शपय आज ही अदोनिय्याह मार डाला जाएगा। 25 और राजा सुलैमान ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को भेज दिया और उस ने जाकर, उसको ऐसा मारा कि वह मर गया। 26 और एब्यातार याजक से राजा ने कहा, अनातोत में अपक्की भूमि को जा; क्योंकि तू भी प्राणदणड के योग्य है। आज के दिन तो मैं तुझे न मार डालूंगा, क्योंकि तू मेरे पिता दाऊद के साम्हने प्रभु यहोवा का सन्दूक उठाया करता या; और उन सब दु:खोंमें जो मेरे पिता पर पके थे तू भी दु:खी या। 27 और सुलैमान ने एब्यातार को यहोवा के याजक होने के पद से उतार दिया, इसलिथे कि जो वचन यहोवा ने एली के वंश के विषय में शीलो में कहा या, वह पूरा हो जाए। 28 इसका समाचार योआब तक पहुंचा; योआब अबशालोम के पीछे तो नहीं हो लिया या, परन्तु अदोनिय्याह के पीछे हो लिया या। तब योआब यहोवा के तम्बू को भाग गया, और वेदी के सींगोंको पकड़ लिया। 29 जब राजा सुलैमान को यह समाचार मिला, कि योआब यहोवा के तम्बू को भाग गया है, और वह वेदी के पास है, तब सुलैमान ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को यह कहकर भेज दिया, कि तू जाकर उसे मार डाल। 30 तब बनायाह ने यहोवा के तम्बू के पास जाकर उससे कहा, राजा की यह आज्ञा है, कि निकल आ। उस ने कहा, नहीं, मैं यहीं मर जाऊंगा। तब बनायाह ने लौटकर यह सन्देश राजा को दिया कि योआब ने मुझे यह उत्तर दिया। 31 राजा ने उस से कहा, उसके कहने के अनुसार उसको मार डाल, और उसे मिट्टी दे; ऐसा करके निदॉषोंका जो खून योआब ने किया है, उसका दोष तू मुझ पर से और मेरे पिता के घराने पर से दूर करेगा। 32 और यहोवा उसके सिर वह खून लौटा देगा क्योंकि उस ने मेरे पिता दाऊद के बिना जाने अपके से अधिक धमीं और भले दो पुरुषोंपर, अर्यात् इस्राएल के प्रधान सेनापति नेर के पुत्र अब्नेर और यहूदा के प्रधान सेनापति थेतेर के पुत्र अमासा पर टूटकर उनको तलवार से मार डाला या। 33 योंयोआब के सिर पर और उसकी सन्तान के सिर पर खून सदा तक रहेगा, परन्तु दाऊद और उसके वंश और उसके घराने और उसके राज्य पर यहोवा की ओर से शांति सदैव तक रहेगी। 34 तब यहोयादा के पुत्र बनायाह ने जाकर योआब को मार डाला; और उसको जंगल में उसी के घर में मिट्टी दी गई। 35 तब राजा ने उसके स्यान पर यहोयादा के पुत्र बनायाह को प्रधान सेनापति ठहराया; और एब्यातार के स्यान पर सादोक याजक को ठहराया। 36 और राजा ने शिमी को बुलवा भेजा, और उस से कहा, तू यरूशलेम में अपना एक घर बनाकर वहीं रहना: और नगर से बाहर कहीं न जाना। 37 तू निश्चय जान रख कि जिस दिन तू निकलकर किद्रोन नाले के पार उतरे, उसी दिन तू नि:सन्देह मार डाला जाएगा, और तेरा लोहू तेरे ही सिर पर पकेगा। 38 शिमी ने राजा से कहा, बात अच्छी है; जैसा मेरे प्रभु राजा ने कहा है, वैसा ही तेरा दास करेगा। तब शिमी बहुत दिन यरूशलेम में रहा। 39 परन्तु तीन वर्ष के व्यतीत होने पर शिमी के दो दास, गत नगर के राजा माका के पुत्र आकीश के पास भाग गए, और शिमी को यह समाचार मिला, कि तेरे दास गत में हैं। 40 तब शिमी उठकर अपके गदहे पर काठी कसकर, अपके दास को ढूंढ़ने के लिथे गत को आकीश के पास गया, और अपके दासोंको गत से ले आया। 41 जब सुलैमान राजा को इसका समाचार मिला, कि शिमी यरूशलेम से गत को गया, और फिर लौट आया है, 42 तब उस ने शिमी को बुलवा भेजा, और उस से कहा, क्या मैं ने तुझे यहोवा की शपय न खिलाई यी? और तुझ से चिताकर न कहा या, कि यह निश्चय जान रख कि जिस दिन तू निकलकर कहीं चला जाए, उसी दिन तू नि:सन्देह मार डाला जाएगा? और क्या तू ने मुझ से न कहा या, कि जो बात मैं ने सुनी, वह अच्छी है? 43 फिर तू ने यहोवा की शपय और मेरी दृढ़ आज्ञा क्योंनहीं मानी? 44 और राजा ने शिमी से कहा, कि तू आप ही अपके मन में उस सब दुष्टता को जानता है, जो तू ने मेरे पिता दाऊद से की यी? इसलिथे यहोवा तेरे सिर पर तेरी दुष्टता लौटा देगा। 45 परन्तु राजा सुलैमान धन्य रहेगा, और दाऊद का राज्य यहोवा के साम्हने सदैव दृढ़ रहेगा। 46 तब राजा ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को आज्ञा दी, और उस ने बाहर जाकर, उसको ऐसा मारा कि वह भी मर गया। और सुलैमान के हाथ मे राज्य दृढ़ हो गया।
1 फिर राजा सुलैमान मिस्र के राजा फ़िरौन की बेटी को ब्याह कर उसका दामाद बन गया, और उसको दाऊदपुर में लाकर जब नक अपना भवन और यहोवा का भवन और यरूशलेम के चारोंओर की शहरपनाह न बनवा चुका, तब तक उसको वहीं रखा। 2 क्योंकि प्रजा के लोग तो ऊंचे स्यानोंपर बलि चढ़ाते थे और उन दिनोंतक यहोवा के नाम का कोई भपन नहीं बना या। 3 सुलैमान यहोवा से प्रेम रखता या और अपके पिता दाऊद की विधियोंपर चलता तो रहा, परन्तु वह ऊंचे स्यानोंपर भी बलि चढ़ाया और धूप जलाया करता या। 4 और राजा गिबोन को बलि चढ़ाने गया, क्योंकि मुख्य ऊंचा स्यान वही या, तब वहां की वेदी पर सुलैमान ने एक हज़ार होमबलि चढ़ाए। 5 गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्शन देकर कहा, जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग। 6 सुलैमान ने कहा, तू अपके दास मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करुणा करता रहा, क्योंकि वह अपके को तेरे सम्मुख जानकर तेरे साय सच्चाई और धर्म और मनकी सीधाई से चलता रहा; और तू ने यहां तक उस पर करुणा की यी कि उसे उसकी गद्दी पर बिराजनेवाला एक पुत्र दिया है, जैसा कि आज वर्तमान है। 7 और अब हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! तूने अपके दास को मेरे पिता दाऊद के स्यान पर राजा किया है, परन्तु मैं छोटा लड़का सा हूँ जो भीतर बाहर आना जाना नहीं जानता। 8 फिर तेरा दास तेरी चुनी हुई प्रजा के बहुत से लोगोंके मध्य में है, जिनकी गिनती बहुतायत के मारे नहीं हो सकती। 9 तू अपके दास को अपक्की प्रजा का न्याय करने के लिथे समझने की ऐसी शक्ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूं; क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके? 10 इस बात से प्रभु प्रसन्न हुआ, कि सुलैमान ने ऐसा वरदान मांगा है। 11 तब परमेश्वर ने उस से कहा, इसलिथे कि तू ने यह वरदान मांगा है, और न तो दीर्धयु और न धन और न अपके शत्रुओं का नाश मांगा है, परन्तु सपफने के विवेक का वरदान मांगा है इसलिथे सुन, 12 मैं तेरे वचन के अनुसार करता हूँ, तुझे बुद्धि और विवेक से भरा मन देता हूँ, यहा तक कि तेरे समान न तो तुझ से पहिले कोई कभी हुआ, और न बाद में कोई कभी होगा। 13 फिर जो तू ने नहीं मांगा, अर्यात् धन और महिमा, वह भी मैं तुझे यहां तक देता हूँ, कि तेरे जीवन भर कोई राजा तेरे तुल्य न होगा। 14 फिर यदि तू अपके पिता दाऊद की नाई मेरे मागॉं में चलता हुआ, मेरी विधियोंऔर आज्ञाओं को मानता रहेगा तो मैं तेरी आयु को बढ़ाऊंगा। 15 तब सुलैमान जाग उठा; और देखा कि यह स्वप्न या; फिर वह यरूशलेम को गया, और यहोवा की वाचा के सन्दूक के साम्हने खड़ा होकर, होमबलि और मेलबलि चढ़ाए, और अपके सब कर्मचारियोंके लिथे जेवनार की। 16 उस समय दो वेश्याएं राजा के पास आकर उसके सम्मुख खड़ी हुई। 17 उन में से एक स्त्री कहने लगी, हे मेरे प्रभु ! मैं और यह स्त्री दोनोंएक ही घर में रहती हैं; और इसके संग घर में रहते हुए मेरे एक बच्चा हुआ। 18 फिर मेरे ज़च्चा के तीन दिन के बाद ऐसा हुआ कि यह स्त्री भी जच्चा हो गई; हम तो संग ही संग यीं, हम दोनोंको छोड़कर घर में और कोई भी न या। 19 और रात में इस स्त्री का बालक इसके नीचे दबकर मर गया। 20 तब इस ने आधी रात को उठकर, जब तेरी दासी सो ही रही यी, तब मेरा लड़का मेरे पास से लेकर अपक्की छाती में रखा, और अपना मरा हुआ बालक मेरी छाती में लिटा दिया। 21 भोर को जब मैं अपना बालक दूध पिलाने को उठी, तब उसे मरा हुआ पाया; परन्तु भोर को मैं ने ध्यान से यह देखा, कि वह मेरा पुत्र नही है। 22 तब दूसरी स्त्री ने कहा, नहीं जीवित पुत्र मेरा है, और मरा पुत्र तेरा है। परन्तु वह कहती रही, नहीं मरा हुआ तेरा पुत्र है और जीवित मेरा पुत्र है, योंवे राजा के साम्हने बातें करती रही। 23 राजा ने कहा, एक तो कहती है जो जीवित है, वही मेरा पुत्र है, और मरा हुआ तेरा पुत्र है; और दूसरी कहती है, नहीं, जो मरा है वही तेरा पुत्र है, और जो जीवित है, वह मेरा पुत्र है। 24 फिर राजा ने कहा, मेरे पास तलवार ले आओ; सो एक तलवार राजा के साम्हने लाई गई। 25 तब राजा बोला, जीविते बालक को दो टुकड़े करके आधा इसको और आधा उसको दो। 26 तब जीवित बालक की माता का मन अपके बेटे के स्नेह से भर आया, और उस ने राजा से कहा, हे मेरे प्रभु ! जीवित बालक उसी को दे; परन्तु उसको किसी भांति न मार। दूसरी स्त्री ने कहा, वह न तो मेरा हो और न तेरा, वह दो टुकड़े किया जाए। 27 तब राजा ने कहा, पहिली को जीवित बालक दो; किसी भांति उसको न पारो; क्योंकि उसकी माता वही है। 28 जो न्याय राजा ने चुकाया या, उसका समाचार समस्त इस्राएल को मिला, और उन्होंने राजा का भय माना, क्योंकि उन्होंने यह देखा, कि उसके मन में न्याय करने के लिथे परमेश्वर की बुद्धि है।
1 राजा सुलैमान तो समस्त इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त हुआ या। 2 और उसके हाकिम थे थे, अर्यात् सादोक का पुत्र अजर्याह याजक, और शीशा के पुत्र एलीहोरोप और अहिय्याह व्रधान मंत्री थे। 3 अहीलूद का पुत्र यहोशापात, इतिहास का लेखक या। 4 फिर यहोयादा का पुत्र बनायाह प्रधान सेनापति या, और सादोक और एब्यातार याजक थे ! 5 और नातान का पुत्र अजर्याह भणडारियोंके ऊपर या, और नातान का पुत्र जाबूद याजक, और राजा का मित्र भी या। 6 और अहीशार राजपरिवार के ऊपर या, और अब्दा का पुत्र अदोनीराम बेगारोंके ऊपर मुखिया या। 7 और सुलैमान के बारह भणडारी थे, जो समस्त इस्राएलियोंके अधिक्कारनेी होकर राजा और उसके घराने के लिथे भोजन का प्रबन्ध करते थे। एक एक पुरुष प्रति वर्ष अपके अपके नियुक्त महीने में प्रबन्ध करता या। 8 और उनके नाम थे थे, अर्यात् एप्रैम के पहाड़ी अेश में बेन्हूर। 9 और माकस, शाल्बीम बेतशेमेश और एलोनबेयानान में बेन्देकेर या। 10 अरुब्बोत में बेन्हेसेद जिसके अधिक्कारने में सौको और हेपेर का समस्त देश या। 11 दोर के समस्त ऊंचे देश में बेनबीनादाब जिसकी स्त्री सुलैमान की बेटी नापत यी। 12 और अहीलूद का पुत्र बाना जिसके अधिक्कारने में तानाक, मगिद्दो और बेतशान का वह सब देश या, जो सारतान के पास और यिज्रेल के नीचे और प्रेतशान से ले आबेलमहोला तक अर्यात् योकमाम की परली ओर तक है। 13 और गिला के रामोत में बेनगेबेर या, जिसके अधिक्कारने में मनश्शेई याईर के गिलाद के गांव थे, अर्यात् इसी के अधिक्कारने में बाशान के अगॉब का देश या, जिस में शहरपनाह और पीतल के बेड़ेवाले साठ बड़े बड़े नगर थे। 14 और इद्दा के पुत्र अहीनादाब के हाथ में महनैम या। 15 नप्ताली में अहीमास या, जिस ने सुलैमान की बासमत नाम बेटी को ब्याह लिया या। 16 और आशेर और आलोत में हूशै का पुत्र बाना, 17 इस्साकार में पारुह का पुत्र यहोशापात, 18 और बिन्यामीन में एला का पुत्र शिमी या। 19 ऊरी का पुत्र गेबेर गिलाद में अर्यात् एमोरियोंके राजा सीहान और बाशान के राजा ओग के देश में या, इस समस्त देश में वही भणडारी या। 20 यहूदा और इस्राएल के लोग बहुत थे, वे समुद्र के तीर पर की बालू के किनकोंके समान बहुत थे, और खाते-पीते और आनन्द करते रहे। 21 सुलैमान तो महानद से लेकर पलिश्तियोंके देश, और मिस्र के सिवाने तक के सब राज्योंके ऊपर प्रभुता करता या और अनके लोग सुलैमान के जीवत भर भेंट लाते, और उसके अधीन रहते थे। 22 और सुलैमान की एक दिन की रसोई में इतना उठता या, अर्यात् तीस कोर मैदा, 23 साठ कोर आटा, दस तैयार किए हुए बैल और चराइयोंमें से बीस बैल और सौ भेड़-बकरी और इनको छोड़ 24 हरिन, चिकारे, यखमूर और तैयार किए हुए पक्की क्योंकि महानद के इस पार के समस्त देश पर अर्यात् तिप्सह से लेकर अज्जा तक जितने राजा थे, उन सभोंपर सुलैमान प्रभुता करता, और अपके चारोंओर के सब रहनेवालोंसे मेल रखता या। 25 और दान से बेशॅबा तक के सब यहूदी और इस्राएली अपक्की अपक्की दाखलता और अंजीर के वृझ तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे। 26 फिर उसके रय के घोड़ोंके लिथे सुलैमान के चालीस हज़ार यान थे, और उसके बारह हज़ार सवार थे। 27 और वे भणडारी अपके अपके महीने में राजा सुलैमान के लिथे और जितने उसकी मेज़ पर आते थे, उन सभोंके लिथे भोजन का प्रबन्ध करते थे, किसी वस्तु की घटी होने नहीं पाती यी। 28 और घोड़ोंऔर वेग चलनेवाले घोड़ोंके लिथे जव और पुआल जहां प्रयोजन पड़ता या वहां आज्ञा के अनुसार एक एक जन पहुंचाया करता या। 29 और परमेश्वर ने सुलैमान को बुद्धि दी, और उसकी समझ बहुत ही बढ़ाई, और उसके ह्रृदय में समुद्र तट की बरलू के किनकोंके तुल्य अनगिनित गुण दिए। 30 और सुलैमान की बुद्धि पूर्व देश के सब निवासियोंऔर मिस्रियोंकी भी बुद्धि से बढ़कर बुद्धि यी। 31 वह तो और सब मनुष्योंसे वरन एतान, एज्रेही और हेमान, और माहोल के पुत्र कलकोल, और दर्दा से भी अधिक बुद्धिमान या: और उसकी कीत्तिर् चारोंओर की सब जातियोंमें फैल गई। 32 उस ने तीन हज़ार नीतिवचन कहे, और उसके एक हज़ार पांच गीत भी है। 33 फिर उस ने लबानोन के देवदारुओं से लेकर भीत में से उगते हु जूफा तक के सब पेड़ोंकी चर्चा और पशुओं पझियोंऔर रेंगनेवाले जन्तुओं और मछलियोंकी चर्चा की। 34 और देश देश के लोग पृय्वी के सब राजाओं की ओर से जिन्होंने सुलैमान की बुद्धि की कीत्तिर् सुनी यी, उसकी बुद्धि की बातें सुनने को आया करते थे।
1 और सोर नगर के हीराम राजा ने अपके दूत सुलैमान के पास भेजे, क्योंकि उस ने सुना या, कि वह अभिषिक्त होकर अपके पिता के स्यान पर राजा हुआ है : और दाऊद के जीवन भर हीराम उसका मित्र बना रहा। 2 और सुलैमान ने हीराम के पास योंकहला भेजा, कि नुफे मालूम है, 3 कि मेरा पिता दाऊद अपके परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन इसलिथे न बनवा सका कि वह चारोंओर लड़ाइयोंमें तब तक बफा रहा, जब नक यहोवा ने उसके शत्रुओं को उसके पांव तल न कर दिया। 4 परन्तु अब मेरे परमेश्वर यहोवा ने मुझे चारोंओर से विश्रम दिया है और न तो कोई विरोधी है, और न कुछ विपत्ति देख पड़ती है। 5 मैं ने अपके परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाने को ठाना है अर्यात् उस बान के अनुसार जो यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कही यी; कि तेरा पुत्र जिसे मैं तेरे स्यान में गद्दी पर बैठाऊंगा, वही मेरे नाम का भवन बनवाएगा। 6 इसलिथे अब तू मेरे लिथे लबानोन पर से देवदारु काटने की आज्ञा दे, और मेरे दास तेरे दासोंके संग रहेंगे, और जो कुछ मज़दूरी तू ठहराए, वही मैं तुझे तेरे दासोंके लिथे दूंगा, तुझे मालूम तो है, कि सीदोनियोंके बराबर लमड़ी काटने का भेद हम लोगोंमें से कोई भी नहीं जानता। 7 सुलैमान की थे बातें सुनकर, हीराम बहुत आनन्दित हुआ, और कहा, आज यहोवा धन्य है, जिस ने दाऊद को उस बड़ी जाति पर राज्य करने के लिथे एक बुद्धिमान पुत्र दिया है। 8 तब हीराम ने सुलैपान के पास योंकहला भेजा कि जो तू ने मेरे पास कहला भेजा है वह मेरी समझ में आ गया, देवदारू और सनोवर की लकड़ी के विषय जो कुछ तू चाहे, वही मैं करूंगा। 9 मेरे दास लकड़ी को लबानोन से समुद्र तक पहुंचाएंगे, फिर मैं उनके बेड़े बनवाकर, जो स्यान तू मेरे लिथे ठहराए, वहीं पर समुद्र के मार्ग से उनको पहुंचवा अूंगा : वहां मैं उनको खोलकर डलवा दूंगा, और तू उन्हें ले लेना : और तू मेरे परिवार के लिथे भोजन देकर, मेरी भी इच्छा पूरी करना। 10 इस प्रकार हीराम सुलैमान की इच्छा के अनुसार उसको देवदारू और सनोवर की लकड़ी देने लगा। 11 और सुलैमान ने हीराम के परिवार के खाने के लिथे उसे बीस हज़ार कोर गेहूं और बीस कोर पेरा हुआ तेल दिया; इस प्रकार सुलैमान हीराम को प्रति वर्ष दिया करता या। 12 और यहोवा ने सुलैमान को अपके वचन के अनुसार बुद्धि दी, और हीराम और सुलैमान के बीच मेल बना रहा वरन उन दोनोंने आपस में वाचा भी बान्ध ली। 13 और राजा सुलैमान ने पूरे इस्राएल में से तीन हज़ार पुरुष बेगार लगाए, 14 और उन्हें लबानोन पहाड़ पर पारी पारी करके, महीने महीने दस हज़ार भेज दिया करता या और एक महीना तो वे लबानोन पर, और दो महीने घर पर रहा करते थे; और बेगारियोंके ऊपर अदोनीराम ठहराया गया। 15 और सुलैमान के सत्तर हज़ार बोफ ढोनेवाले और पहाड़ पर अस्सी हज़ार वृझ काटनेवाले और पत्यर निकालनेवाले थे। 16 इनको छोड़ सुलैमान के तीन हज़ार तीन सौ मुखिथे थे, जो काम करनेवालोंके ऊपर थे। 17 फिर राजा की आज्ञा से बड़े बड़े अनमोल पत्यर इसलिथे खोदकर निकाले गए कि भवन की नेव, गढ़े हुए पत्यरोंसे डाली जाए। 18 और सुलैमान के कारीगरोंऔर हीराम के कारीगरोंऔर गबालियोंने उनको गढ़ा, और भवन के बनाने के लिथे लकड़ी और पत्य्र तैयार किए।
1 इस्राएलियोंके मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौया वर्ष या, उसके जीव नाम दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा। 2 और जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिथे बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ, चौड़ाई बीस हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की यी। 3 और भवन के मन्दिर के साम्हने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की यी, अर्यात् भवन की चौड़ाई के बराबर यी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के साम्हने यी, वह दस हाथ की यी। 4 फिर उस ने भवन में स्यिर फिलमिलीदार खिड़कियां बनाई। 5 और उस ने भवन के आसपास की भीतोंसे सटे हुए अर्यात् मन्दिर और दर्शन-स्यान दोनोंभीतोंके आसपास उस ने मंजिलें और कोठरियां बनाई। 6 सब से नीचेवाली मंजिल की चौड़ाई पांच हाथ, और बीचवाली की छ : हाथ, और ऊपरवाली की सात हाथ की यी, क्योंकि उस ने भवन के आसपास भीत को बाहर की ओर कुसींदार बनाया या इसलिथे कि कडिय़ां भवन की भीतोंको पकड़े हुए न हों। 7 और बनते समय भपन ऐसे पत्यरोंका बनाया गया, जो वहां ले आने से पहिले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हयैड़े वसूली वा और किसी प्रकार के लोहे के औजार का शब्द कभी सुनाई नहीं पड़ा। 8 बाहर की बीचवाली कोठरियोंका द्वार भवन की दाहिनी अलंग में या, और लोग चक्करदार सीढिय़ोंपर होकर बीचवाली कोठरियोंमें जाते, और उन से ऊपरवाली कोठरियोंपर जाया करते थे। 9 उस ने भवन को बनाकर पूरा किया, और उसकी छत देवदारु की कडिय़ोंऔर तख्तोंसे बनी यी। 10 और पूरे भवन से लगी हुई जो मंज़िलें उस ने बनाई वह पांच हाथ ऊंची थीं, और वे देवदारु की कड़ियों द्वारा भवन से मिलाई गई यीं। 11 तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुंचा, कि यह भवन जो नू बना रहा है, 12 यदि तू मेरी विधियोंपर चलेगा, और मेरे नियमोंको मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैं ने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया या उसको मैं पूरा करूंगा। 13 और मैं इस्राएलियोंके मध्य में निवास करूंगा, और अपक्की इस्राएली प्रजा को न तजूंगा। 14 सो सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया। 15 और उस ने भवन की भीतोंपर भीतरवार देवदारु की तख्ताबंदी की; और भवन के फ़र्श से छत तक भीतोंमें भीतरवार लकड़ी की तख्ताबंदी की, और भवन के फ़र्श को उस ने सनोवर के तख्तोंसे बनाया। 16 और भवन की पिछली अलंग में भी उस ने बीस हाथ की दूरी पर फ़र्श से ले भीतोंके ऊपर तक देवदारु की तख्ताबंदी की; इस प्रकार उस ने परमपवित्र स्यान के लिथे भवन की एक भीतरी कोठरी बनाई। 17 उसके साम्हने का भवन अर्यात् मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की यी। 18 और भवन की भीतोंपर भीतरवार देवदारु की लकड़ी की तख्ताबंदी यी, और उस में इत्द्रायन और खिले हुए फूल खुदे थे, सब देवदारु ही या : पत्भर कुछ नहीं दिखाई पड़ता या। 19 भवन के भीतर उस ते एक दर्शन स्यान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिथे तैयार किया। 20 और उस दर्शन-स्यान की लम्बाई चौड़ाई और ऊंचाई बीस बीस हाथ की यी; और उस ने उस पर चोखा सोना मढ़वाया और वेदी की तख्ताबंदी देवदारु से की। 21 फिर सुलैमान ने भवन को भीतर भीतर चोखे सोने से मढ़वाया, और दर्शन-स्यान के साम्हने सोने की सांकलें लगाई; और उसको भी सोने से मढ़वाया। 22 और उस ने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका पूरा काम निपटा दिया। और दर्शन-स्यान की पूरी वेदी को भी उस ने सोने से मढ़वाया। 23 दर्शन-स्यान में उस ने दस दस हाथ ऊंचे जलपाई की लकड़ी के दो करूब बना रखे। 24 एक करूब का एक पंख पांच हाथ का या, और उसका दूसरा पंख भी पांच हाथ का या, एक पंख के सिक्के से, दूसरे पंख के सिक्के तक दस हाथ थे। 25 और दूसरा करूब भी दस हाथ का या; दोनोंकरूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। 26 एक करूब की ऊंचाई दस हाथ की, और दूसरे की भी इतनी ही यी। 27 और उस ने करूबोंको भीतरवाले स्यान में धरवा दिया; और करूबोंके पंख ऐसे फैले थे, कि एक करूब का एक पंख, एक भीत से, और दूसरे का दूसरा पंख, दूसरी भीत से लगा हुआ या, फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे से लगे हुए थे। 28 और करूबोंको उस ने सोने से मढ़वाया। 29 और उस ने भवन की भीतोंमें बाहर और भीतर चारोंओर करूब, खजूर और खिले हुए फूल खुदवाए। 30 और भवन के भीतर और बाहरवाले फर्श उस ने सोने से मढ़वाए। 31 और दर्शन-स्यान के द्वार पर उस ने जलपाई की लकड़ी के किवाड़ लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की का पांचवां भाग यी। 32 दोनोंकिवाड़ जलपाई की लकड़ी के थे, और उस ने उन में करूब, खजूर के वृझ और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा और करूबोंऔर खजूरोंके ऊपर सोना मढ़वा दिया गया। 33 असी की रीति उस ने मन्दिर के द्वार के लिथे भी जलपाई की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए और वह भवन की चौड़ाई की चौयाई यी। 34 दोनोंकिवाड़ सनोवर की लकड़ी के थे, जिन में से एक किवाड़ के दो पल्ले थे; और दूसरे किवाड़ के दो पल्ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे। 35 और उन पर भी उस ने करूब और खजूर के वृझ और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उस ने सोना मढ़वाया। 36 और उस ने भीतरवाले आंगन के घेरे को गढ़े हुए पत्यरोंके तीन रद्दे, और एक परत देवदारू की कडिय़ां लगा कर बनाया। 37 चौथे वर्ष के जीव नाम महीने में यहोवा के भवन की नेव डाली गई। 38 और ग्यारहवें वर्ष के बूल नाम आठवें महीने में, वह भवन उस सब समेत जो उस में उचित समझा गया बन चुका : इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे।
1 और सुलैमान ने अपके महल को बनाया, और उसके पूरा करने में तेरह वर्ष लगे। 2 और उस ने लबानोनी वन नाम महल बनाया जिसकी लम्बाई सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की यी; वह तो देवदारु के खम्भोंकी चार पांति पर बना और खम्भोंपर देवदारु की कडिय़ां धरी गई। 3 और खम्भोंके ऊपर देवदारु की छतवाली पैंतालीस कोठरियां अर्यात् एक एक महल में पन्द्रह कोठरियां बनीं। 4 तीनोंमहलोंमें कडिय़ां धरी गई, और तीनोंमें खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं। 5 और सब द्वार और बाजुओं की कडिय़ां भी चौकोर यी, और तीनोंमहलोंमें खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं। 6 और उस ने एक खम्भेवाला ओसारा भी बनाया जिसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ की यी, और इन खम्भोंके साम्हने एक खम्भेवाला ओसारा और उसके साम्हने डेवढ़ी बनाई। 7 फिर उस ने न्याय के सिंहासन के लिथे भी एक ओसारा बनाया, जो न्याय का ओसारा कहलाया; और उस में ऐक फ़र्श से दूसरे फ़र्श तक देवदारु की तख्ताबन्दी यी। 8 और उसी के रहने का भवन जो उस ओसारे के भीतर के एक और आंगन में बना, वह भी उसी ढब से बना। फिर उसी ओसारे के ढब से सुलैमान ने फ़िरौन की बेटी के लिथे जिसको उस ने ब्याह लिया या, एक और भवन बनाया। 9 थे सब घर बाहर भीतर तेव से मुंढेर तक ऐसे अनमोल और गढ़े हुए पत्यरोंके बने जो नापकर, और आरोंसे चीरकर तैयार किथे गए थे और बाहर के आंगन से ले बड़े आंगन तक लगाए गए। 10 उसकी नेव तो बड़े मोल के बड़े बड़े अर्यात् दस दस और आठ आठ हाथ के पत्यरोंकी डाली गई यी। 11 और ऊपर भी बड़े मोल के पत्यर थे, जो नाप से गढ़े हुए थे, और देवदारु की लकड़ी भी यी। 12 और बड़े आंगन के चारोंओर के घेरे में गढ़े हुए पत्य्रोंके तीन रद्दे, और देवदारु की कडिय़ोंका एक परत या, जैसे कि यहोवा के भवन के भीतरवाले आंगन और भवन के ओसारे में लगे थे। 13 फिर राजा सुलैमान ने सोर से हीराम को बुलवा भेजा। 14 वह नप्ताली के गोत्र की किसी विधवा का बेटा या, और उसका पिता एक सोरवासी ठठेरा या, और वह पीतल की सब प्रकार की काीिगरी में पूरी बुद्धि, निमुणता और समझ रखता या। सो वह राजा सुलैमान के पास आकर उसका सब काम करने लगा। 15 उस ने पीतल ढालकर अठारह अठाही हाथ ऊंचे दो खम्भे बनाए, और एक एक का घेरा बारह हाथ के सूत का या। 16 और उस ने खम्भोंके सिरोंपर लगाने को पीतल ढालकर दो कंगनी बनाई; एक एक कंगनी की ऊंचाई, पांच पांच हाथ की यी। 17 और खम्भोंके सिरोंपर की कंगनियोंके लिथे चारखाने की सात सात जालियां, और सांकलोंकी सात सात फालरें बनीं। 18 और उस ने खम्भोंको भी इस प्रकार बनाया; कि खम्भोंके सिरोंपर की एक एक कंगनी के ढांपके को चारोंउाोर जालियोंकी एक एक पांति पर अनारोंकी दो पांतियां हों। 19 और जो कंगनियां ओसारोंमें खम्भो के सिरोंपर बनीं, उन में चार चार हाथ ऊंचे सोसन के फूल बने हुए थे। 20 और एक एक खम्भे के सिक्के पर, उस गोलाई के पास जो जाली से लगी यी, एक और कंगनी बनी, और एक एक कंगनी पर जो अनार चारोंओर पांति पांति करके बने थे वह दो सौ थे। 21 उन खम्भोंको उस ने मन्दिर के ओसारे के पास खड़ा किया, और दाहिनी ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम याकीन रखा; फिर बाई ओर के खम्भे को झड़ा करके उसका नाम बोआज़ रखा। 22 और खम्भोंके सिरोंपर सोसन के फूल का काम बना या खम्भोंका काम इसी रीति हुआ। 23 फिर उस ने एक ढाला हुआ एक बड़ा हौज़ बनाया, जो एक छोर से दूसरी छोर तक दस हाथ चौड़ा या, उसका आकार गोल या, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की यी, और उसके चारोंओर का घेरा तीस हाथ के सूत के बराबर या। 24 और उसके चारोंओर मोहड़े के नीचे एक एक हाथ में दस दस इन्द्रायन बने, जो हौज को घेरे यीं; जब वह ढाला गया; तब थे इन्द्रायन भी दो पांति करके ढाले गए। 25 और वह बारह बने हुए बैलोंपर रखा गया जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन, और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और उन ही के ऊपर हौज या, और उन सभोंका पिछला अंग भीतर की ओर या। 26 और उसका दल चौबा भर का या, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाई सोसन के फूलो के काम से बना या, और उस में दो हज़ार बत की समाई यी। 27 फिर उस ने पीतल के दस पाथे बनाए, एक एक पाथे की लम्बाई चार हाथ, चौड़ाई भी चार हाथ और ऊंचाई तीन हाथ की यी। 28 उन पायोंकी बनावट इस प्रकार यी; अनके पटरियां यीं, और पटरियोंके बीचोंबीच जोड़ भी थे। 29 और जोड़ोंके बीचोंबीच की पटरियोंपर सिंह, बैल, और करूब बने थे और जोड़ोंके ऊपर भी एक एक और पाया बना और सिंहोंऔर बैलोंके नीचे लटकते हुए हार बने थे। 30 और एक एक पाथे के लिथे पीतल के चार पहिथे और पीतल की धुरियां बनी; और एक एक के चारोंकोनोंसे लगे हुए कंधे भी ढालकर बनाए गए जो हौदी के नीचे तक पहुंचते थे, और एक एक कंधे के पास हार बने हुए थे। 31 औा हौदी का मोहड़ा जो पाथे की कंगनी के भीतर और ऊपर भी या वह एक हाथ ऊंचा या, और पाथे का मोहड़ा जिसकी चौड़ाई डेढ़ हाथ की यी, वह पाथे की बनावट के समान गोल बना; और पाथे के उसी मोहड़े पर भी कुछ खुदा हुआ काम या और उनकी पटरियां गोल नहीं, चौकोर यीं। 32 और चारोंपहिथे, पटरियो के नीचे थे, और एक एक पाथे के पहियोंमें धुरियां भी यीं; और एक एक पहिथे की ऊंचाई डेढ़ हाथ की यी। 33 पहियोंकी बनावट, रय के पहिथे की सी यी, और उनकी धुरियां, पुट्ठियां, आरे, और नाभें सब ढाली हुर्अ यीं। 34 और एक एक पाथे के चारोंकोनोंपर चार कंधे थे, और कंधे और पाथे दोनोंएक ही टुकड़े के बने थे। 35 और एक एक पाथे के सिक्के पर आध हाथ ऊंची चारोंओर गोलाई यी, और पाथे के सिक्के पर की टेकें और पटरियां पाथे से जुड़े हुए एक ही टुकड़े के बने थे। 36 और टेकोंके पाटोंऔर पटरियोंपर जितनी जगह जिस पर यी, उस में उस ने करूब, और सिंह, और खजूर के वृझ खोद कर भर दिथे, और चारोंओर हार भी बनाए। 37 इसी प्रकार से उस ने दसोंपायोंको बनाया; सभोंका एक ही सांचा और एक ही नाप, और एक ही आकार या। 38 और उस ने पीतल की दस हौदी बनाई। एक एक हौदी में चालीस चालीस बत की समाई यी; और एक एक, चार चार हाथ चौड़ी यी, और दसोंपायोंमें से एक एक पर, एक एक हौदी यी। 39 और उस ने पांच हौदी षवन की दक्खिन की ओर, और पांच उसकी उत्तर की ओर रख दीं; और हौज़ को भवन की दाहिनी ओर अर्यात् पूर्व की ओर, और दक्खिन के साम्हने धर दिया। 40 और हीराम ने हौदियों, फावडिय़ों, और कटोरोंको भी बनाया। सो हीराम ने राजा सुलैमान के लिथे यहोवा के भवन में जितना काम करना या, वह सब निपटा दिया, 41 अर्यात् दो खम्भे, और उन कंगनियोंकी गोलाइयां जो दोनोंखम्भोंके सिक्के पर यीं, और दोनोंखम्भोंके सिरोंपर की गोलाइयोंके ढांपके को दो दो जालियां, और दोनोंजालियोंके लिय चार चार सौ अनार, 42 अर्यात् खम्भोंके सिरोंपर जो गोलाइयां यीं, उनके ढांपके के लिथे अर्यात् एक एक जाली के लिथे अनारोंकी दो दो पांति; 43 दस पाथे और इन पर की दस हौदी, 44 एक हौज़ और उसके नीचे के बारह बैल, और हंडे, फावडिय़ां, 45 और कटोरे बने। थे सब पात्र जिन्हें हीराम ने यहोवा के भवन के निमित्त राजा सुलैमान के लिथे बनाया, वह फलकाथे हुए पीतल के बने। 46 राजा ने उनको यरदन की तराई में अर्यात् सुक्कोत और सारतान के मध्य की चिकनी मिट्टवाली भूमि में ढाला। 47 और सुलैमान ने सब पात्रोंको बहुत अधिक होने के कारण बिना तौले छोड़ दिया, पीतल के तौल का वज़न मालूम न हो सका। 48 यहोवा के भवन के जितने पात्र थे सुलैमान ने सब बनाए, अर्यात् सोने की वेदी, और सोने की वह मेज़ जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती यी, 49 और चोखे सोने की दीवटें जो भीतरी कोठरी के आगे पांच तो दक्खिन की ओर, और पांच उत्तर की ओर रखी गई; और सोने के फूल, 50 दीपक और चिमटे, और चोखे सोने के तसले, कैंचियां, कटोरे, धूपदान, और करछे और भीतरवाला भवन जो परमपवित्र स्यान कहलाता है, और भवन जो मन्दिर कहलाता है, दोनोंके किवाड़ोंके लिथे सोने के कब्जे बने। 51 निदान जो जो काम राजा सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिथे किया, वह सब पूरा किया गया। तब सुलैमान ने अपके पिता दाऊद के पवित्र किए हुए सोने चांदी और पात्रोंको भीतर पहुंचा कर यहोवा के भवन के भणडारोंमें रख दिया।
1 तब सुलैमान ने इस्राएली पुरनियोंको और गोत्रोंके सब मुख्य पुरुष जो इस्राएलियोंके पूर्वजोंके घरानोंके प्रधान थे,उनको भी यरूशलेम में अपके पास इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर अर्यात् सियोन से ऊपर ले आएं। 2 सो सब इस्राएली पुरुष एतानीम नाम सातवें महीने कें पर्व के समय राजा सुलैमान के पास इकट्ठे हुए। 3 जब सब इस्राएली पुरनिथे आए, तब याजकोंने सन्दूक को उठा लिया। 4 और यहोवा का सन्दूक, और मिलाप का तम्बू, और जितने पवित्र पात्र उस तम्बू में थे, उन सभोंयाजक और लेबीय लोग ऊपर ले गए। 5 और राजा सुलैमान और समस्त इस्राएली मंडली, जो उसके पास इाट्ठी हुई यी, वे रुब सन्दूक के साम्हने इतनी भेड़ और बैल बलि कर रहे थे, जिनकी गिनती किसी रीति से नहीं हो सकती यी। 6 तब याजकोंने यहोवा की वाचा का सन्दूक उसके स्यान को अर्यात् भवन के दर्शन-स्यान में, जो परमपवित्र स्यान है, पहुंचाकर करूबोंके पंखोंके तले रख दिया। 7 करूब तो सन्दूक के स्यान के ऊपर पंख ऐसे फैलाए हुए थे, कि वे ऊपर से सन्दूक और उसके डंडोंको ढांके थे। 8 डंडे तो ऐसे लम्बे थे, कि उनके सिक्के उस पवित्र स्यान से जो दर्शन-स्यान के साम्हने या दिखाई पड़ते थे परन्तु बाहर से वे दिखाई नहीं पड़ते थे। वे आज के दिन तक यहीं वतमपान हैं। 9 सन्दूक में कुछ नहीं या, उन दो पटरियोंको छोड़ जो मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखीं, जब यहोवा ने इस्राएलियोंके मिस्र से निकलने पर उनके साय वाचा बान्धी यी। 10 जब याजक पवित्रस्यान से निकले, तब यहोवा के भवन में बादल भर आया। 11 और बादल के कारण याजक सेवा टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया या। 12 तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा या, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूंगा। 13 सचमुच मैं ने तेरे लिथे एक वासस्यान, वरन ऐसा दृढ़ स्यान बनाया है, जिस में तू युगानुयुग बना रहे। 14 और राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुंह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया; और पूरी सभा खड़ी रही। 15 और उस ने कहा, धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा ! जिस ने अपके मुंह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया या, और अपके हाथ से उसे पूरा किया है, 16 कि जिस दिन से मैं अपक्की प्रजा इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया, तब से मैं ने किसी इस्राएली गोत्र का कोई नगर नहीं चुना, जिस में मेरे नाम के निवास के लिथे भवन बनाया जाए; परन्तु मैं ने दाऊद को चुन लिया, कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का अधिक्कारनेी हो। 17 मेरे पिता दाऊद की यह मनसा तो यी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाए। 18 परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, यह जो तेरी मनसा है, कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी मनसा करके तू ने भला तो किया; 19 तौभी तू उस भवन को न बनाएगा; तेरा जो निज पुत्र होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा। 20 यह जो वचन यहोवा ने कहा या, उसे उस ने पूरा भी किया है, और मैं अपके पिता दाऊद के स्यान पर उठकर, यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है। 21 और इस में मैं ने एक स्यान उस सन्दूक के लिथे ठहराया है, जिस में यहोवा की वह वाचा है, जो उस ने हमारे पुरखाओं को मिस्र देश से निकालने के समय उन से बान्धी यी। 22 तब सुलैमान इस्राएल की पूरी सभा के देखते यहोवा की वेदी के साम्हने खड़ा हुआ, और अपके हाथ स्वर्ग की ओर फैलाकर कहा, हे यहोवा ! 23 हे इस्राएल के परमेश्वर ! तेरे समान न तो ऊपर स्वर्ग में, और न नीचे पृय्वी पर कोई ईश्वर है : तेरे जो दास अपके सम्पूर्ण मन से अपके को तेरे सम्मुख जानकर चलते हैं, उनके लिथे तू अपक्की वाचा मूरी करता, और करुणा करता रहता है। 24 जो वचन तू ने मेरे पिता दाऊद को दिया या, उसका तू ने पालन किया है, जैसा तू ने अपके मुंह से कहा या, वैसा ही अपके हाथ से उसको पूरा किया है, जैसा आज है। 25 इसलिथे अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! इस वचन को भी पूरा कर, जो तू ने अपके दास मेरे पिता दाऊद को दिया या, कि तेरे कुल में, मेरे साम्हने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदैव बने रहेंगे : इतना हो कि जैसे तू स्वयं मुझे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपक्की चालचलन में ऐसी ही वौकसी करें। 26 इसलिथे अब हे इस्राएल के परमेश्वर अपना जो वचन तू ने अपके दास मेरे पिता दाऊद को दिया या उसे सच्चा सिद्ध कर। 27 क्या परमेश्वर सचमुच पृय्वी पर वास करेगा, स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में क्योंकर समाएगा। 28 तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! अपके दास की प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट की ओर कान लगाकर, मेरी चिल्लाहट और यह प्रार्यना सुन ! जो मैं आज तेरे साम्हने कर रहा हूँ; 29 कि तेरी आंख इस भवन की ओर अर्यात् इसी स्यान की ओर जिसके विषय तू ने कहा है, कि मेरा नाम वहां रहेगा, रात दिन खुली रहें : और जो प्रार्यना तेरा दास इस स्यान की ओर करे, उसे तू सुन ले। 30 और तू अपके दास, और अपक्की प्रजा इस्राएल की प्रार्यना जिसको वे इस स्यान की ओर गिड़गिड़ा के करें उसे सुनना, वरद स्वर्ग। में से जो तेरा निवासस्यान है सुन लेना, और सुनकर झमा करना। 31 जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे, और उसको शपय खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के साम्हने शपय खाए, 32 तब तू स्वर्ग में सुन कर, अर्यात् अपके दासोंका न्याय करके दुष्ट को दुष्ट ठहरा और उसकी चाल उसी के सिर लौटा दे, और निदॉष को निदॉष ठहराकर, उसके धर्म के अनुसार उसको फल देना। 33 फिर जब नेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करने के कारण अपके शत्रुओं से हार जाए, और तेरी ओर फिरकर तेरा नाम ले और इस भवन में तुझ से गिड़गिड़ाहट के साय प्रार्यना करे, 34 तब तू स्वर्ग में से सुनकर अपक्की प्रजा इस्राएल का पाप झमा करना : और उन्हें इस देश में लौटा ले आना, जो तू ने उनके पुरुखाओं को दिया या। 35 जब वे तेरे विरुद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश बन्द हो जाए, कि वर्षा न होए, ऐसे समय यदि वे इस स्यान की ओर प्रार्यना करके तेरे नाम को मानें जब तू उन्हें दु:ख देता है, और अपके पाप से फिरें, तो तू स्वर्ग में से सुनकर झमा करना, 36 और अपके दासों, अपक्की प्रजा इस्राएल के पाप को झ्मा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है, जिस पर उन्हें चलना चाहिथे, इसलिथे अपके इस देश पर, जो तू ने अपक्की प्रजा का भाग कर दिया है, पानी बरसा देना। 37 जब इस देश में काल वा मरी वा फुलस हो वा गेरुई वा टिड्डियां वा कीड़े लगें वा उनके शत्रु उनके देश के फाटकोंमें उन्हें घेर रखें, अयवा कोई विपत्ति वा रोग क्योंन हों, 38 तब यदि कोई मनुष्य वा तेरी प्रजा इस्राएल अपके अपके मन का दु:ख जान लें, और गिड़गिड़ाहट के साय प्रार्यना करके अपके हाथ इस भवन की ओर फैलाएं; 39 तो तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से सुनकर झमा करुना, और ऐसा करना, कि एक एक के मन को जानकर उसकी समस्त चाल के अनुसार उसको फल देना : तू ही तो सब आदमियोंके मन के भेदोंका जानने वाला है। 40 तब वे जितने दिन इस देश में रहें, जो तू ने उनके पुरखाओं को दिया या, उतने दिन तक तेरा भय मानते रहें। 41 फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरा नाम सुनकर, दूर देश से आए, 42 वह तो तेरे बड़े ताम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा का समाचार पाए; इसलिथे जब ऐसा कोई आकर इस भवन की ओर प्रार्यना करें, 43 तब तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से सुन, और जिस बात के लिथे ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसी के अनुसार व्यवहार करना जिस से पृय्वी के सब देशोंके लोग तेरा नाम जानकर तेरी प्रजा इस्राएल की नाई तेरा भय मानें, और निश्चय जानें, कि यह भवन जिसे मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है। 44 जब तेरी प्रजा के लोग जहां कहीं तू उन्हें भेजे, वहां अपके शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएं, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम पर बनाया है, यहोवा से प्रार्यना करें, 45 तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट सुनकर उनका न्याय कर। 46 निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है : यदि थे भी तेरे विरुद्ध पाप करें, और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रओं के हाथ कर दे, और वे उनको बन्धुआ करके अपके देश को चाहे वह दूर हो, चाहे निकट ले जवएं, 47 तो यदि वे बन्धुआई के देश में सोच विचार करें, और फिरकर अपके बन्धुआ करनेवालोंके देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें कि हम ने पाप किया, और कुटिलता ओर दुष्टता की है; 48 और यदि वे अपके उन शत्रुओं के देश में जो उन्हें बन्धुआ करके ले गए हों, अपके सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से तेरी ओर फिरें और अपके इस देश की ओर जो तू ने उनके पुरुखाओं को दिया या, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, तुझ से प्रार्यना करें, 49 तो तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से उनकी प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट सुनना; और उनका न्याय करना, 50 और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरुद्ध करेंगे, और जितने अपराध वे तेरे विरुद्ध करेंगे, सब को झमा करके, उनके बन्धुआ करनेवालोंके मन में ऐसी दया उपजाना कि वे उन पर दया करें। 51 क्योंकि वे तो तेरी प्रजा और तेरा निज भाग हैं जिन्हें तू लोहे के भट्ठे के मध्य में से अर्यात् मिस्र से निकाल लाया है। 52 इसलिथे तेरी आंखें तेरे दाय की गिड़गिड़ाहट और तेरी प्रजा इस्राएल की गिड़गिड़ाहट की ओर ऐसी खुली रहें, कि जब जब वे तुझे पुकारें, तब तब तू उनकी सुन ले; 53 क्योंकि हे प्रभु यहोवा अपके उस वचन के अनुसार, जो तू ने हमारे पुरखाओं को मिस्र से निकालने के समय अपके दास मूसा के द्वारा दिया या, तू ने इन लोगोंको अपना निज भाग होने के लिथे पृय्वी की सब जातियोंसे अलग किया है। 54 जब सुलैमान यहोवा से यह सब प्रार्यना गिड़गिड़ाहट के साय कर चुका, तब वह जो घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाए हुए या, सो यहोवा की वेदी के साम्हने से उठा, 55 और खड़ा हो, समस्त इस्राएली सभा को ऊंचे स्वर से यह कहकर आशीर्वाद दिया, कि धन्य है यहोवा, 56 जिस ने ठीक अपके कयन के अनुसार अपक्की प्रजा इस्राएल को विश्रम दिया है, जितनी भलाई की बातें उसने अपके दास मूसा के द्वारा कही यीं,उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही। 57 हमारा परमेश्वर यहोवा जैसे हमारे पुरखाओं के संग रहता या, वैसे ही हमारे संग भी रहे, वह हम को त्याग न दे और न हम को छोड़ दे। 58 वह हमारे मन अपक्की ओर ऐसा फिराए रखे, कि हम उसके सब मागॉं पर चला करें, और उसकी आज्ञाएं और विधियां और नियम जिन्हें उसने हमारे पुरखाओं को दिया या, नित माना करें। 59 और मेरी थे बातें जिनकी मैं ने यहोवा के साम्हने बिनती की है, वह दिन और रात हमारे परमेश्वर यहोवा के मन में बनी रहें, और जैसा दिन दिन प्रयोजन हो वैसा ही वह अपके दास का और अपक्की प्रजा इस्राएल का भी न्याय किया करे, 60 और इस से पृय्वी की सब जातियां यह जान लें, कि यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं। 61 तो तुम्हारा मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ऐसी पूरी रीति से लगा रहे, कि आज की नाई उसकी विधियोंपर चलते और उसकी आज्ञाएं मानते रहो। 62 तब राजा समस्त इस्राएल समेत यहोवा के सम्मुख मेलबलि चढ़ाने लगा। 63 और जो पशु सुलैमान ने मेलबलि में यहोवा को चढ़ाए, सो बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ें यीं। इस रीति राजा ने सब इस्राएलियोंसमेत यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की। 64 उस दिन राजा ने यहोवा के भवन के साम्हनेवाले आंगन के मध्य भी एक स्यान पवित्र किया और होमबलि, और अन्नबलि और मेलबलियोंकी चरबी वहीं चढ़ाई; क्योंकि जो पीतल की वेदी यहोवा के साम्हने यी, वह उनके लिथे छोटी यी। 65 और सुलैमान ने और उसके संग समस्त इस्राएल की एक बड़ी सभा ने जो हमात की घाटी से लेकर मिस्र के नाले तक के सब देशोंसे इाट्ठी हुई यी, दो सप्ताह तक अर्यात् चौदह दिन तक हमारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने पर्व को माना। फिर आठवें दिन उस ने प्रजा के लोगोंको विदा किया। 66 और वे राजा को धन्य, धन्य, कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपके दास दाऊद और अपक्की प्रजा इस्राएल से की यी, आनन्दित और मगन होकर अपके अपके डेरे को चले गए।
1 जब सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और जो कुछ उस ने करना चाहा या, उसे कर चुका, 2 तब यहोवा ने जैसे गिबोन में उसको दर्शन दिया या, वैसे ही दूसरी बार भी उसे दर्शन दिया। 3 और यहोवा ने उस से कहा, जो प्रार्यना गिड़गिड़ाहट के साय तू ने मुझ से की है, उसको मैं ने सुना है, यह जो भवन तू ने बनाया है, उस में मैं ने अपना नाम सदा के लिथे रखकर उसे पवित्र किया है; और मेरी आंखें और मेरा मन नित्य वहीं लगे रहेंगे। 4 और यादे तू अपके पिता दाऊद की नाई मन की खराई और सिधाई से अपके को मेरे साम्हने जानकर चलता रहे, और मेरी सब अपज्ञाओं के अनुसार किया करे, और मेरी विधियोंऔर नियमोंको मानता रहे, तो मैं तेरा राज्य इस्राएल के ऊपर सदा के लिथे स्य्िर करूंगा; 5 जैसे कि मैं ने तेरे पिता दाऊद को वचन दिया या, कि तेरे कुल में इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदा बने रहेंगे। 6 परन्तु यदि तुम लोग वा तुम्हारे वंश के लोग मेरे पीछे चलना छोड़ दें; और मेरी उन आज्ञाओं और विधियोंको जो मैं ने तुम को दी हैं, न मानें, और जाकर पराथे देवताओं की उपासना करे और उन्हें दणडवत करने लगें, 7 तो मैं इस्राएल को इस देश में से जो मैं ने उनको दिया है, काट डालूंगा और इस भवन को जो मैं ने अपके नाम के लिथे पवित्र किया है, अपक्की दृष्टि से उतार दूंगा; और सब देशोंके लोगोंमें इस्राएल की उपमा दी जाथेगी और उसका दृष्टान्त चलेगा। 8 और यह भवन जो ऊंचे पर रहेगा, तो जो कोई इसके पास होकर चलेगा, वह चकित होगा, और ताली बजाएगा और वे पूछेंगे, कि यहोवा ने इस देश और इस भवन के साय क्योंऐसा किया है; 9 तब लोग कहेंगे, कि उन्होंने अपके परमेश्वर यहोवा को जो उनके पुरखाओं को मिस्र देश से निकाल लाया या। तजकर पराथे देवताओं को पकड़ लिया, और उनको दणडवत की और उनकी उपासना की इस कारण यहोवा ने यह सब विपत्ति उन पर डाल दी। 10 सुलैमान को तो यहोवा के भवन और राजभवन दोनोंके बनाने में बीस वर्ष लग गए। 11 तब सुलैमान ने सोर के राजा हीराम को जिस ने उसके मनमाने देवदारू और सनोवर की लकड़ी और सोना दिया या, गलील देश के बीस नगर दिए। 12 जब हीराम ने सोर से जाकर उन नगरोंको देखा, जो सुलैमान ने उसको दिए थे, तब वे उसको अच्छे न लगे। 13 तब उस ने कहा, हे मेरे भाई, थे नगर क्या तू ने मुझे दिए हैं? और उस ने उनका नाम कबूल देश रखा। 14 और यही नाम आज के दिन तक पड़ा है। फिर हीराम ने राजा के पास साठ किक्कार सोना भेज दिया। 15 राजा सुलैमान ने लोगोंको जो बेगारी में रखा, इसका प्रयोजन यह या, कि यहोवा का और अपना भवन बनाए, और मिल्लो और यरूशलेम की शहरपनाह और हासोर, मगिद्दो और गेजेर नगरोंको दृढ़ करे। 16 गेजेर पर तो मिस्र के राजा फ़िरौन ने चढ़ाई करके उसे ले लिया और आग लगाकर फूंक दिया, और उस नगर में रहनेवाले कनानियोंको मार डालकर, उसे अपक्की बेटी सुलैमान की रानी का निज भाग करके दिया या, 17 सो सुलैमान ने गेजेर और नीचेवाले बयोरेन, 18 बालात और तामार को जो जंगल में हैं, दृढ़ किया, थे तो देश में हैं। 19 फिर सुलैमान के जितने भणडार के नगर थे, और उसके रयोंऔर सवारोंके नगर, उनको वरन जो कुछ सुलैमान ने यरूशलेम, लबानोन और अपके राज्य के सब देशोंमें बनाना चाहा, उन सब को उस ने दृढ़ किया। 20 एमोरी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी जो रह गए थे, जो इस्राएलियोंमें के न थे, 21 उनके वंश जो उनके बाद देश में रह गए, और उनको इस्राएली सत्यानाश न कर सके, उनको तो सुलैमान ने दास कर के बेगारी में रखा, और आज तक उनको वही दशा है। 22 परन्तु इस्राएलियोंमें से सुलैमान ने किसी को दास न बनाया; वे तो योद्धा और उसके कर्मचारी, उसके हाकिम, उसके सरदार, और उसके रयों, और सवारोंके प्रधान हुए। 23 जो मुख्य हाकिम सुलैमान के कामोंके ऊपर ठहर के काम करनेवालोंपर प्रभुता करते थे, थे पांच सौ पचास थे। 24 जब फ़िरौन की बेटी दाऊदपुर में से अपके उस भवन को आ गई, जो उस ने उसके लिथे बनाया या तब उस ने मिल्लो को बनाया। 25 और सुलैमान उस वेदी पर जो उस ने यहोवा के लिथे बनाई यी, प्रति वर्ष में तीन बार होमबलि और मेलबलि चढ़ाया करता या और साय ही उस वेदी पर जो यहोवा के सम्मुख यी, धूप जलाया करता या, इस प्रकार उस ने उस भवन को तैयार कर दिया। 26 फिर राजा सुलैमान ने एस्योनगेबेर में जो एदोम देश मे लाल समुद्र के तीर एलोत के पास है, जहाज बनाए। 27 और जहाजोंमें हीराम ने अपके अधिक्कारने के मल्लाहोंको, जो समुद्र से जानकारी रखते थे, सुलैमान के सेवकोंके संग भेज दिया। 28 उन्होंने ओपोर को जाकर वहां से चार सौ बीस किक्कार सोना, राजा सुलैमान को लाकर दिया।
1 जब शीबा की रानी ने यहोवा के नाम के विषय सुलैमान की कीत्तिं सुनी, तब वह कठिन कठिन प्रश्नोंसे उसकी पक्कीझा करने को चल पक्की। 2 वह तो बहुत भारी दल, और मसालों, और बहुत सोने, और मणि से लदे ऊंट साय लिथे हुए यरूशलेम को आई; और सुलैमान के पास पहुंचकर अपके मन की सब बातोंके विषय में उस से बातें करने लगी। 3 सुलैमान ने उसके सब प्रश्नोंका उत्तर दिया, कोई बात राजा की बुद्धि से ऐसी बाहर न रही कि वह उसको न बता सका। 4 जब शीबा की रानी ने सुलैमान की सब बुद्धिमानी और उसका बनाया हुआ भवन, और उसकी मेज पर का भोजन देखा, 5 और उसके कर्मचारी किस रीति बैठते, और उसके टहंलुए किस रीति खड़े रहते, और कैसे कैसे कपके पहिने रहते हैं, और उसके पिलानेवाले कैसे हैं, और वह कैसी चढ़ाई है, जिस से वह यहोवा के भवन को जाया करता है, यह सब जब उस ने देखा, तब वह चकित हो गई। 6 तब उस ने राजा से कहा, तेरे कामोंऔर बुद्धिमानी की जो कीत्तिं मैं ने अपके देश में सुनी यी वह सच ही है। 7 परन्तु जब तक मैं ने आप ही आकर अपक्की आंखोंसे यह न देखा, तब तक मैं ने उन बातोंकी प्रतीत न की, परन्तु इसका आधा भी मुझे न बताया गया या; तेरी बुद्धिमानी और कल्याण उस कीत्तिं से भी बढ़कर है, जो मैं ने सुनी यी। 8 धन्य हैं तेरे जन ! धन्य हैं तेरे थे सेवक ! जो नित्य तेरे सम्मुख उपस्यित रहकर तेरी बुद्धि की बातें सुनते हैं। 9 धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा ! जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ कि तुझे इस्राएल की राजगद्दी पर विराजमान किया : यहोवा इस्राएल से सदा प्रेम रखता है, इस कारण उस ने तुझे न्याय और धर्म करने को राजा बना दिया है। 10 और उस ने राजा को एक सौ बीस किक्कार सोना, बहुत सा सुगन्ध द्रय्य, और मणि दिया; जितना सुगन्ध द्रय्य शीबा की रानी ने राजा सुलैमान को दिया, उतना फिर कभी नहीं आया। 11 फिर हीराम के जहाज भी जो ओपीर से सोना लाते थे, वह बहुत सी चन्दन की लकड़ी और मणि भी लाए। 12 और राजा ने चन्दन की लकड़ी से यहोवा के भवन और राजभवन के लिथे जंगले और गवैयोंके लिथे वीणा और सारंगियां बनवाई ; ऐसी चन्दन की लकड़ी आज तक फिर नहीं आई, और न दिखाई पक्की है। 13 और शीबा की रानी ने जो कुछ चाहा, वही राजा सुलैमान ने उसकी इच्छा के अनुसार उसको दिया, फिर राजा सुलैमान ने उसको अपक्की उदारता से बहुत कुछ दिया, तब वह अपके जनोंसमेत अपके देश को लौट गई। 14 जो सोना प्रति वर्ष सुलैमान के पास पहुंचा करता या, उसका तौल छ:सौ छियासठ किक्कार या। 15 इस से अधिक सौदागरोंसे, और य्योपारियोंके लेन देन से, और दोगली जातियोंके सब राजाओं, और अपके देश के गवर्नरो से भी बहुत कुछ मिलता या। 16 और राजा सुलैमान ने सोना गढ़बाकर दो सौ बड़ी बड़ी ढालें बनवाई; एक एक ढाल में छ: छ: सौ शेकेल सोना लगा। 17 फिर उस ने सोना गढ़वाकर तीन सौ छोटी ढालें भी बनवाई; एक एक छोटी ढाल में, तीन माने सोना लगा; और राजा ने उनको लबानोनी वन नाम भवन में रखवा दिया। 18 और राजा ने हाथीदांत का एक बड़ा सिंहासन बनवाया, और उत्तम कुन्दन से मढ़वाया। 19 उस सिंहासन में छ: सीढिय़ां यीं; और सिंहासन का सिरहाना पिछाड़ी की ओर गोल या, और बैठने के स्यान की दोनोंअलग टेक लगी यीं, और दोनोंटेकोंके पास एक एक सिंह खड़ा हुआ बना या। 20 और छहोंसीढिय़ोंकी दोनोंअलंग एक एक सिंह खड़ा हुआ बना या, कुल बारह हुए। किसी राज्य में ऐसा कभी नहीं बना; 21 और राजा सुलैमान के पीने के सब पात्र सोने के बने थे, और लबानोनी बन नाम भवन के सब पात्र भी चोखे सोने के थे, चांदी का कोई भी न या। सुलैमान के दिनोंमें उसका कुछ लेखा न या। 22 क्योंकि समुद्र पर हीराम के जहाजोंके साय राजा भी तशींश के जहाज रखता या, ओर तीन तीन वर्ष पर तशींश के जहाज सोना, चांदी, हाथीदांत, बन्दर और मयूर ले आते थे। 23 इस प्रकार राजा सुलैमान, धन और बुद्धि में पृय्वी के सब राजाओं से बढ़कर हो गया। 24 और समस्त पृय्वी के लोग उसकी बुद्धि की बातें सुनने को जो परमेश्वर ने मन में उत्पन्न की यीं, सुलैमान का दर्शन पाना चाहते थे। 25 और वे प्रति वर्ष अपक्की अपक्की भेंट, अर्यात् चांदी और सोने के पात्र, वस्त्र, शस्त्र, सुगन्ध द्रय्य, घोड़े, और खच्चर ले आते थे। 26 और सुलैमान ने रय और सवार इकट्ठे कर लिए, तो उसके चौदह सौ रय, और बारह हजार सवार हुए, और उनको उस ने रयोंके नगरोंमें, और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 27 और राजा ने बहुतायत के कारण, यरूशलेम में चांदी को तो ऐसा कर दिया जैसे पत्यर और देवदारू को जैसे नीचे के देश के गूलर। 28 और जो घोड़े सुलैमान रखता या, वे मिस्र से आते थे, और राजा के व्योपारी उन्हें फुणड फुणड करके ठहराए हुए दाम पर लिया करते थे। 29 एक रय तो छ: सौ शेकेल चांदी पर, और एक घोड़ा डेढ़ सौ शेकेल पर, मिस्र से आता या, और इसी दाम पर वे हित्तियोंऔर अराम के सब राजाओं के लिथे भी व्योपारियोंके द्वारा आते थे।
1 परन्तु राजा सुलैमान फ़िरौन की बेटी, और बहुतेरी और पराथे स्त्रियोंसे, जो मोआबी, अम्मोनी, एदोमी, सीदोती, और हित्ती यीं, प्रीति करने लगा। 2 वे उन जातियोंकी यीं, जिनके विषय में यहोवा ने इस्राएलियोंसे कहा या, कि तुम उनके मध्य में न जाना, और न वे तुम्हारे मध्य में आने पाएं, वे तुम्हारा मन अपके देवताओं की ओर नि:सन्देह फेरेंगी; उन्हीं की प्रीति में सुलैमान लिप्त हो गया। 3 और उसके सात सौ रानियां, और तीन सौ रखेलियां हो गई यीं और उसकी इन स्त्रियोंने उसका मन बहका दिया। 4 सो जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब उसकी स्त्रियोंने उसका मन पराथे देवताओं की ओर बहका दिया, और उसका मन अपके पिता दाऊद की नाई अपके परमेश्वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा। 5 सुलैमान तो सीदोनियोंकी अशतोरेत नाम देवी, और अम्मोनियोंके मिल्कोम नाम घृणित देवता के पीछे चला। 6 और सुलैमान ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और यहोवा के पीछे अपके पिता दाऊद की नाई पूरी रीति से न चला। 7 उन दिनोंसुलैमान ने यरूशलेम के साम्हने के पहाड़ पर मोआबियोंके कमोश नाम घृणित देवता के लिथे और अम्मोनियोंके मोलेक नाम घृणित देवता के लिथे एक एक ऊंचा स्यान बनाया। 8 और अपक्की सब पराथे स्त्रियोंके लिथे भी जो अपके अपके देवताओं को धूप जलातीं और बलिदान करती यीं, उस ने ऐसा ही किया। 9 तब यहोवा ने सुलैमान पर क्रोध किया, क्योंकि उसका मन इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से फिर गया या जिस ने दो बार उसको दर्शन दिया या। 10 और उस ने इसी बात के विषय में आज्ञा दी यी, कि पराथे देवताओं के पीछे न हो लेना, तौभी उस ने यहोवा की आज्ञा न मानी। 11 और यहोवा ने सुलैमान से कहा, तुझ से जो ऐसा काम हुआ है, और मेरी बन्धाई हुई वाचा और दी हुई वीधि तू ने पूरी नहीं की, इस कारण मैं जाज्य को निश्चय तूफ से छीनकर तेरे एक कर्मचारी को दे दूंगा। 12 तौभी तेरे पिता दाऊद के कारण तेरे दिनो में तो ऐसा न करूंगा; परन्तु तेरे पुत्र के हाथ से राज्य छीन लूंगा। 13 फिर भी मैं पूर्ण राज्य तो न छीन लूंगा, परन्तु अपके दास दाऊद के कारण, और अपके चुने हुए यरूशलेम के कारण, मैं तेरे पुत्र के हाथ में एक गोत्र छोड़ दूंगा। 14 सो यहोवा ने एदोमी हदद को जो एदोमी राजवंश का या, सुलैमान का शत्रु बना दिया। 15 क्योंकि जब दाऊद एदोम में या, और योआब सेनापति मारे हुओं को मिट्ट देने गया, 16 ( योआब तो समस्त इस्राएल समेत वहां छ: महीने रहा, जब तक कि उस ने एदोम के सब मुरुषोंको नाश न कर दिया) 17 तब हदद जो छोटा लड़का या, अपके पिता के कई एक एदोमी सेवकोंके संग मिस्र को जाने की मनसा से भागा। 18 और वे मिद्यान से होकर परान को आए, और परान में से कई पुरुषोंको संग लेकर मिस्र में फ़िरौन राजा के पास गए, और फ़िरौन ने उसको घर दिया, और उसको भोजन मिलने की आज्ञा दी और कुछ भूमि भी दी। 19 और हदद पर फ़िरौन की बड़े अनुग्रह की दृष्टि हुई, और उस ने उसको अपक्की साली अर्यात् तहपकेस रानी की बहिन ब्याह दी। 20 और तहपकेस की बहिन से गनूबत उत्पन्न हुआ और इसका दूध तहपकेस ने फ़िरौन के भवन में छुड़ाया; तब बनूबत फ़िरौन के भवन में उसी के पुत्रोंके साय रहता या। 21 जब हदद ने मिस्र में रहते यह सुना, कि दाऊद अपके पुरखाओं के संग सो गया, और योआब सेनापति भी मर गया है, तब उस ने फ़िरौन से कहा, मुझे आज्ञा दे कि मैं अपके देश को जाऊं ! 22 फ़िरौन ने उस से कहा, क्यों? मेरे यहां तुझे क्या घटी हुई कि तू अपके देश को जला जाना चाहता है? उस ने उत्तर दिया, कुछ नहीं हुई, तौभी मुझे अपश्य जाने दे। 23 फिर परमेश्वर ने उसका एक और शत्रु कर दिया, अर्यात् एल्यादा के पुत्र रजोन को, वह तो अपके स्वामी सोबा के राजा हददेजेर के पास से भागा या; 24 और जब दाऊद ने सोबा के जनोंको घात किया, तब रजोन अपके पास कई पुरुषोंको इकट्ठे करके, एक दल का प्रधान हो गया, और वह दमिश्क को जाकर वहीं रहने और राज्य करने लगा। 25 और उस हानि को छोड़ जो हदद ने की, रजोन भी, सुलैमान के जीवन भर अस्राएल का शत्रु बना रहा; और वह इस्राएल से घृणा रखता हुआ अराम पर राज्य करता या 26 फिर नबात का और सरूआह नाम एक विधवा का पुत्र यारोबाम नाम एक एप्रैमी सरेदाबासी जो सुलैमान का कर्मचारी या, उस ने भी राजा के विरुद्ध सिर उठाया। 27 उसका राजा के विरुद्ध सिर अठाने का यह कारण हुआ, कि सुलैमान मिल्लो को बना रहा या ओर अपके पिता दाऊद के नगर के दरार बन्द कर रहा या। 28 यारोबाम बड़ा हाूरवीर या, और जब सुलैमान ने जवान को देखा, कि यह परिश्र्मी ह; तब उस ने उसको यूसुफ के घराने के सब काम पर मुखिया ठहराया। 29 उन्हीं दिनोंमें यारोबाम यरूशलेम से निकलकर जा रहा या, कि शीलोबासी अहिय्याह नबी, नई चद्दर ओढ़े हुए मार्ग पर उस से मिला; और केवल वे ही दोनोंमैदान में थे। 30 अपैर अहिय्याह ने अपक्की उस नई चद्दर को ले लिया, और उसे फाड़कर बारह टुकड़े कर दिए। 31 तब उस ने यारोबाम से कहा, दस टुकड़े ले ले; क्योंकि, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि सुन, मैं राज्य को सुलैमान के हाथ से छीन कर दस गोत्र तेरे हाथ में कर दूंगा। 32 परन्तु मेरे दास दाऊद के कारण और यरूशलेम के कारण जो मैं ने इस्राएल के सब गोत्रोंमें से चुना है, उसका एक गोत्र बना रहेगा। 33 इसका कारण यह है कि उन्होंने मुझे त्याग कर सीदोनियोंकी देवी अश्तोरेत और मोआबियोंके देवता कमोश, और अम्मोनियोंके देवता मिल्कोम को दणडवत की, और मेरे मागॉं पर नहीं चले : और जो मेरी दृष्टि में ठीक है, वह नहीं किया, और मेरी वेधियोंऔर नियमोंको नहीं माना जैसा कि उसके पिता दाऊद ने किया। 34 तौभी मैं उसके हाथ से पूर्ण राज्य न ले लूंगा, परन्तु मेरा चुना हुआ दास दाऊद जो मेरी आज्ञाएं और विधियां मानता रहा, उसके कारण मैं उसको जीवन भर प्रधान ठहराए रखूंगा। 35 परन्तु उसके पुत्र के हाथ से मैं राज्य अर्यात् दस गोत्र लेकर तुझे दे दूंगा। 36 और उसके पुत्र को मैं एक गोत्र दूंगा, इसलिथे कि यरूश्सलेम अर्यात् उस नगर में जिसे अपना नाम रखने को मैं ने चुना है, मेरे दास दाऊद का दीपक मेरे साम्हने सदैव बना रहे। 37 परन्तु तुझे मैं ठहरा लूंगा, और तू अपक्की इच्छा भर इस्राएल पर राज्य करेगा। 38 और यदि तू मेरे दास दाऊद की नाई मेरी सब आज्ञाएं, और मेरे मागॉं पर चले, और जो काम मेरी दृष्टि में ठीक है, वही करे, और मेरी विधियां और आााएं मानता रहे, तो मैं तेरे संग रहूंगा, और जिस तनह मैं ने दाऊद का घराना बनाए रखा है, वैसे ही तेरा भी घराना बनाए रखूंगा, और तेरे हाथ इस्राएल को दूंगा। 39 इस पाप के कारण मैं दाऊद के वंश को दु:ख दूंगा, तौभी सदा तक नहीं। 40 और सुलैमान ने यारोबाम को मार डालना चाहा, परन्तु यारोबाम मिस्र के राजा शीशक के पास भाग गया, और सुलैमान के मरने नक वहीं रहा। 41 सुलैमान की और सब बातें और उसके सब काम और उसकी बुद्धिमानी का वर्णन, क्या सुलैमान के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 42 सुलैमान को यरूशलेम में सब इस्राएल पर राज्य करते हुए चालीस वर्ष बीते। 43 और सुलैमान अपके पुरखाओं के संग सोया, और उसको उसके पिता दाऊद के नगर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र रहूबियाम उसके स्यान पर राजा हुआ।
1 रहूबियाम तो शकेम को गया, क्योंकि सब इस्राएली उसको राजा बनाने के लिथे वहीं गए थे। 2 और जब नबात के पुत्र यारोबाम ने यह सुना, ( जो अब तक मिस्र में रहता या, य्योंकि यारोबाम सुलैमान राजा के डर के मारे भगकर मिस्र में रहता या। 3 सो उन लोगोंने उसको बुलवा भेजा ) तब यारोबाम और इस्राएल की समस्त सभा रहूबियाम के पास जाकर योंकहने लगी, 4 कि तेरे पिता ने तो हम लोगोंपर भारी जूआ डाल रखा या, तो अब तू अपके पिता की कठिन सेवा को, और उस भारी जूए को, जो उस ने हम पर डाल रखा है, कुछ हलका कर; तब हम तेरे अधीन रहेंगे। 5 उस ने कहा, उभी तो जाओ, और तीन दिन के बाद मेरे पास फिर आना। तब वे चले गए। 6 तब राजा रहूबियाम ने उन बूढ़ोंसे जो उसके पिता सुलैमान के जीवन भर उसके साम्हने उपस्यित रहा करते थे सम्मति ली, कि इस प्रजा को कैसा उत्तर देना उचित है, इस में तुम क्या सम्मति देते हो? 7 उन्होंने उसको यह उत्तर दिया, कि यदि तू अभी प्रजा के लोगोंका दास बनकर उनके अधीन हो और उन से मधुर बातें कहे, तो वे सदैव तेरे अधीन बने रहेंगे। 8 रहूबियाम ने उस सम्मति को छोड़ दिया, जो बूढ़ोंने उसको दी यी,और उन जवानोंसे सम्मति ली, जो उसके संग बड़े हुए थे, और उसके सम्मुख उपस्यित रहा करते थे। 9 उन से उस ने पूछा, मैं प्रजा के लोगोंको कैसा उत्तर दूं? उस में तुम क्या सम्मति देते हो? उन्हो ने तो मुझ से कहा है, कि जो जूआ तेरे पिता ने हम पर डाल रखा है, उसे तू हलका कर। 10 जवानोंने जो उसके संग बड़े हुए थे उसको यह उत्तर दिया, कि उन लोगोंने तुझ से कहा है, कि तेरे पिता ने हमारा जूआ भारी किया या, परन्तु तू उसे हमारे लिऐ हलका कर; तू उन से योंकहना, कि मेरी छिंगुलिया मेरे पिता की कमर से भी मोटी है। 11 मेरे पिता ने तुम पर जो भारी जूआ रखा या, उसे मैं और भी भारी करूंगा; मेरा पिता तो तुम को कोड़ोंसे ताड़ना देता या, परन्तु मैं बिच्छुओं से दूंगा। 12 तीसरे दिन, जैसे राजा ने ठहराया या, कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना, वैसे ही यारोबाम और समस्त प्रजागण रहूबियाम के पास उपस्यित हुए। 13 तब राजा ने प्रजा से कड़ी बातें कीं, 14 और बूढ़ोंकी दी हुई सम्मति छोड़कर, जवानोंकी सम्मति के अनुसार उन से कहा, कि मेरे पिता ने तो तुम्हारा जूआ भारी कर दिया, परन्तु मैं उसे और भी भारी कर दूंगा : मेरे पिता ने तो कोड़ोंसे तुम को ताड़ना दी, परन्तु मैं तुम को बिच्छुओं से ताड़ना दूंगा। 15 सो राजा ने प्रजा की बान नहीं मानी, इसका कारण यह है, कि जो वचन यहोवा ने शीलोवासी अहिय्याह के द्वारा नबात के पुत्र यारोबाम से कहा या, उसको पूरा करने के लिथे उस ने ऐसा ही ठहराया या। 16 जब सब इस्राएल ने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता, तब वे बोले, कि दाऊद के साय हमारा क्या अंश? हमारा तो यिशै के पुत्र में कोई भाग नहीं ! हे इस्राएल अपके अपके डेरे को चले जाओ : अब हे दाऊद, अपके ही घराने की चिन्ता कर। 17 सो इस्राएल अपके अपके डेरे को चले गए। केवल जितने इस्राएली यहूदा के नगरोंमें बसे हुए थे उन पर रहूबियाम राज्य करता रहा। 18 तब राजा रहूबियाम ने अदोराम को जो सब बेगारोंपर अधिक्कारनेी या, भेज दिया, और सब इस्राएलियोंने असको पत्य्रवाह किया, और वह मर गया : तब रहूबियाम फुतीं से अपके रय पर चढ़कर यरूशलेम को भाग गया। 19 और इस्राएल दाऊद के घराने से फिर गया, और आज तक फिरा जुआ है। 20 यह सुनकर कि यारोबाम लौट आया है, समस्त इस्राएल ने उसको मणडली में बुलवा भेजकर, पूर्ण इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त किया, और यहूदा के गोत्र को छोड़कर दाऊद के घाराने से कोई मिला न रहा। 21 जब रइूबियाम यरूशलेम को आया, तब उस ने यहूदा के पूर्ण घराने को, और बिन्यामीन के गोत्र को, जो मिलकर एक लाख अस्सी हजार अच्छे योद्धा थे, इकट्ठा किया, कि वे इस्राएल के घराने के साय लड़कर सुलैमान के पुत्र रहूबियाम के वश में फिर राज्य कर दें। 22 तब परमेश्वन का यह वचन परमेश्वर के जन शमायाह के पास पहुंचा कि यहूदा के राजा सुलैमान के पु,ा रहूबियाम से, 23 और यहूदा और बिन्यामीन के सब घराने से, और सब लोगोंसे कह, यहोवा योंकहता है, 24 कि अपके भाई इस्राएलियोंपर चढ़ाई करके युद्ध न करो; तुम अपके अपके घर लौट जाओ, क्योंकि यह बात मेरी ही ओर से हुई है। यहोवा का यह वचन मानकर उन्होंने उसके अनुसार लौट जाने को अपना अपना मार्ग लिया। 25 तब यारोबाम एप्रैम के पहाड़ी देश के शकेम नगर को दृढ़ करके उस में रहने लगा; फिर वहांसे निकलकर पनूएल को भी दृढ़ किया। 26 तब यारोबाम सोचने लगा, कि अब राज्य दाऊद के घराने का हो जाएगा। 27 यदि प्रजा के लोग यरूशलेम में बलि करने को जाएं, तो उनका मन अपके स्वामी यहूदा के राजा रहूगियाम की ओर फिरेगा, और वे मुझे घात करके यहूदा के राजा रहूबियाम के हो जाएंगे। 28 तो राजा ने सम्मति लेकर सोने के दो बछड़े बनाए और लोगोंसे कहा, यरूशलेम को जाना तुम्हारी शक्ति से बाहर है इसलिथे हे इस्राएल अपके देवताओं को देखो, जो नुम्हें मिस्र देश से दिकाल लाए हैं। 29 तो उस ने एक बछड़े को बेतेल, और दूसरे को दान में स्यपित किया। 30 और यह बात पाप का कारण हुई; क्योंकि लोग उस एक के साम्हने दणडवत करने को दान तक जाने लगे। 31 और उस ने ऊंचे स्यानोंके भवन बनाए, और सब प्रकार के लोगोंमें से जो लेवीवंशी न थे, याजक ठहराए। 32 फिर यारोबाम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन यहूदा के पर्व के समान एक पर्व इहरा दिया, और वेदी पर बलि चढ़ाने लगा; इस रीति उस ने बेतेल में अपके बनाए हुए बछड़ोंके लिथे वेदी पर, बलि किया, और अपके बनाए हुए ऊंचे स्यनोंके याजकोंको बेतेल में ठहरा दिया। 33 और जिस महीने की उस ने अपके मन में कल्पना की यी अर्यात् आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन को वह बेतेल में अपक्की बनाई हुई वेदी के पास चढ़ गया। उस ने इस्राएलियोंके लिथे एक पर्ब्व ठहरा दिया, और धूप जलाने को वेदी के पास चढ़ गया।
1 तब यहोवा से वचन पाकर परमेश्वर का बक जन यहूदा से बेतेल को आया, और यारोबाम धूप जलाने के लिथे वेदी के पास खड़ा या। 2 उस जन ने यहोवा से वचन पाकर वेदी के विरुद्ध योंपुकारा, कि वेदी, हे वेदी ! यहोवा योंकहता है, कि सुन, दाऊद के कुल में योशिय्याह नाम एक लड़का उत्पन्न होगा, वह उन ऊंचे स्यनोंके याजकोंको जो तुझ पर धूप जलाते हैं, तुझ पर बलि कर देगा; और तुझ पर पनुष्योंकी हड्डियां जलाई जाएंगी। 3 और उस ने, उसी दिन यह कहकर उस बात का एक चिह्रृ भी बताया, कि यह वचन जो यहोवा ने कहा है, इसका चिह्रृ यह है कि यह वेदी फट जाएगी, और इस पर की राख गिर जाएगी। 4 तब ऐसा हुआ कि परमेश्वर के जन का यह वचन सुनकर जो उस ने बेतेल के विरुद्ध पुकार कर कहा, यारोबाम ने वेदी के पास से हाथ बढ़ाकर कहा, उसको पाड़ लो : तब उसका हाथ जो उसकी ओर बढ़ाया गया या, सूख गया और वह उसे अपक्की ओर खींच न सका। 5 और वेदी फट गई, और उस पर की राख गिर गई; सो वह चिह्रृ पूरा हुआ, जो परमेश्वर के जन ने यहोवा से वचन पाकर कहा या। 6 तब राजा ने परमेश्वर के जन से कहा, अपके परमेश्वर यहोवा को मना और मेरे लिथे प्रार्यना कर, कि मेरा हाथ ज्योंका त्यो हो जाए : तब परमेश्वर के जन ने यहोवा को मनाया और राजा का हाथ फिर ज्योंका त्योंहो गया। 7 तब राजा ने परमेश्वर के जन से कहा, मेरे संग घर चलकर अपना प्राण ठंडा कर, और मैं तुझे दान भी दूंगा। 8 परमेश्वर के जन ने राजा से कहा, चाहे नू मुझे अपना आधा घर भी दे, तौभी तेरे घर न चलूंगा; और इस स्यन में मैं न तो रोटी खाऊंगा और न पानी पीऊंगा। 9 क्योंकि यहोवा के वचन के द्वारा मुझे योंआज्ञा मिली है, कि न तो रोटी खाना, और न पानी पीना, और न उस मार्ग से लौटना जिस से तू जाएगा। 10 इसलिथे वह उस मार्ग से जिसे बेतेल को गया या न लौटकर, दूसरे मार्ग से चला गया। 11 बेतेल में एक बूढ़ा नबी रहता या, और उसके एक बेटे ने आकर उस से उन सब कामोंका वर्णन किया जो परमेश्वर के जन ने उस दिन बेतेल में किए थे; और जो बातें उस ने राजा से कही थीं, उनको भी उस ने अपके पिता से कह सुनाया। 12 उसके बेटोंने तो यह देखा या, कि परमेश्वर का वह जन जो यहूदा से आया या, किस मार्ग से चला गया, सो उनके पिता ने उन से पूछा, वह किस मार्ग से चला गया? 13 और उस ने अपके बेटोंसे कहा, मेरे लिथे गदहे पर काठी बान्धो्र; तब अन्होंने गदहे पर काठी बान्धी, और वह उस पर चढ़ा, 14 और परमेश्वर के जन के पीछे जाकर उसे एक बांजवृझ के तले बैठा हुआ पाया; और उस से मूछा, परमेश्वर का जो जन यहूदा से आया या, क्या तू वही है? 15 उस ने कहा हां, वही हूँूू। उस ने उस से कहा, मेरे संग घर चलकर भोजन कर। 16 उस ने उस से कहा, मैं न तो तेरे संग लौट सकता, और न तेरे संग घर में जा सकता हूँ और न मैं इस स्यान में तेरे संग रोटी खाऊंगा, वा पानी पीऊंगा। 17 क्योंकि यहोवा के वचन के द्वारा मुझे यह आज्ञा मिली है, कि वहां न तो रोटी खाना और न पानी पीना, और जिस मार्ग से तू जाएगा उस से न लौटना। 18 उस ने कहा, जैसा तू नबी है वैसा ही मैं भी नबी हूँ; और मुझ से एक दूत ने यहोवा से वचन पाकर कहा, कि उस पुरुष को अपके संग अपके घर लौटा ले आ, कि वह रोटी खाए, और पानी पीए। यह उस ने उस से फूठ कहा। 19 अतएव वह उसके संग लौट गया और उसके घर में रोटी खाई और मानी पीया। 20 और जब वे मेज पर बैठे ही थे, कि यहोवा का वचन उस नबी के पास पहुंचा, जो दूसरे को लौटा ले आया या। 21 और उस ने परमेश्वर के उस जन को जो यहूदा से आया या, पुकार के कहा, यहोवा योंकहता है इसलिथे कि तू ने यहोवा का वचन न माना, और जो आज्ञा तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे दी यी उसे भी नहीं माना; 22 परन्तु जिस स्यान के विषय उस ने तुझ से कहा या, कि उस में न तो रोटी खाना और न पानी पीना, उसी में तू ने लौट कर रोटी खाई, और पानी भी पिया है इस कारण तूफे अपके पुरखाओं के कब्रिस्तान में मिट्टी नहीं दी जाएगी। 23 जब यह खा पी चुका, तब उस ने परमेश्वर के उस जन के लिथे जिसको वह लौटा ले आया या गदहे पर काठी बन्धाई। 24 जब वह मार्ग में चल रहा या, तो एक सिंह उसे मिला, और उसको मार डाला, और उसकी लोय मार्ग पर पक्की रही, और गदहा उसके पास खड़ा रहा और सिंह भी लोय के पास खड़ा रहा। 25 जो लोग उधर से चले आ रहे थे उन्होंने यह देख कर कि मार्ग पर एक लोय पक्की है, और उसके पास सिंह खड़ा है, उस नगर में जाकर जहां वह बूढ़ा नबी रहता या यह समाचार सुनाया। 26 यह सुनकर उस नबी ने जो उसको मार्ग पर से लौटा ले आया या, कहा, परमेश्वर का वही जन होगा, जिस ने यहोवा के वचन के विरुद्ध किया या, इस कारण यहोवा ने उसको सिंह के पंजे में पड़ने दिया; और यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने उस से कहा या, सिंह ने उसे फाड़कर मार डाला होगा। 27 तब उस ने अपके बेटोंसे कहा, मेरे लिथे गदहे पर काठी बान्धो; जब उन्होंने काठी बान्धी, 28 तब उस ने जाकर उस जन की लोय मार्ग पर पक्की हुई, और गदहे, और सिंह दोनोंको लोय के पास खड़े हुए पाया, और यह भी कि सिंह ने न तो लौय को खाया, और न बदहे को फाड़ा है। 29 तब उस बूढ़े नबी ने परमेश्वर के जन की लोय उठाकर गदहे पर लाद ली, और उसके लिथे छाती पीटने लगा, और उसे मिट्टी देने को अपके नगर में लौटा ले गया। 30 और उस ने उसकी लोय को अपके कब्रिस्तान में रखा, और लोग हाथ, मेरे भाई ! यह कहकर छाती पीटने लगे। 31 फिर उसे मिट्टी देकर उस ने अपके बेटोंसे कहा, जब मैं मर जाऊंगा तब मुझे इसी कब्रिस्तान में रखना, जिस में परमेश्वर का यह जन रखा गया है, और मेरी हड्डियां उसी की हड्डियोंके पास धर देना। 32 क्योंकि जो वचन उस ने यहोवा से पाकर बेतेल की वेदी और शोंमरोन के नगरोंके सब ऊंचे स्यानोंके भवनोंके विरुद्ध पुकार के कहा है, वह निश्चय पूरा हो जाएगा। 33 इसके बाद यारोबाम अपक्की बुरी चाल से न फिरा। उस ने फिर सब प्रकार के लोगो में से ऊंचे स्यानोंके याजक बनाए, वरन जो कोई चाहता या, उसका संस्कार करके, वह उसको ऊंचे स्यानोंका याजक होने को ठहरा देता या। 34 और यह बात यारोबाम के घराने का पाप ठहरी, इस कारण उसका विनाश हुआ, और वह धरती पर से नाश किया गया।
1 उस समय यारोबाम का बेटा अबिय्याह रोगी हुआ। 2 तब यारोबाम ने अपक्की स्त्री से कहा, ऐसा भेष बना कि कोई तुझे पहिचान न सके कि यह यारोबाम की स्त्री है, और शीलो को चक्की जा, वहां तो अहिय्याह नबी रहता है जिस ने मुझ से कहा या कि तू इस प्रजा का राजा हो जाएगा। 3 उसके पास तू दस रोटी, और पपडिय़ां और एक कुप्पी मधु लिथे हुए जा, और वह तुझे बताएगा कि लड़के को क्या होगा। 4 यारोबाम की स्त्री ने वैसा ही किया, और चलकर हाीलो को पहुंची और अहिय्याह के घर पर आई : अहिय्याह को तो कुछ सूफ न पड़ता या, क्योंकि बुढ़ापे के कारण उसकी आंखें धुन्धली पड़ गई यीं। 5 और यहोवा ने अहिय्याह से कहा, सुन यारोबाम की स्त्री तुझ से अपके बेटे के विषय में जो रोगी है कुछ पूछने को आती है, तू उस से थे थे बातें कहना; वह तो आकर अपके को दूसरी औरत बनाएगी। 6 जब अहिय्याह ने द्वार में आते हुए उसके पांव की आहट सुनी तब कहा, हे यारोबाम की स्त्री ! भीतर आ; तू अपके को क्योंदूसरी स्त्री बनाती है? मुझे तेरे लिथे भारी सन्देश मिला है। 7 तू जाकर यारोबाम से कह कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा तुझ से योंकहता है, कि मैं ने तो तुझ को प्रजा में से बढ़ाकर अपक्की प्रजा इस्राएल पर प्रधान किया, 8 और दाऊद के घराने से राज्य छीनकर तुझ को दिया, परन्तु तू मेरे दास दाऊद के समान न हुआ जो मेरी आज्ञाओं को मानता, और अपके पूर्ण मन से मेरे पीछे पीछे चलता, और केवल वही करता या जो मेरी दृष्टि में ठीक है। 9 तू ने उन सभोंसे बढ़कर जो तुझ से पहिले थे बुराई, की है, और जाकर पराथे देवता की उपासना की और मूरतें ढालकर बनाई, जिस से मुझे क्रोधित कर दिया और मुझे तो पीठ के पीछे फेंक दिया है। 10 इस कारण मैं यारोबाम के घराने पर विपत्ति डालूंगा, वरन मैं यारोबाम के कुल में से हर एक लड़के को ओर क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन इस्राएल के मध्य हर बक रहनेवाले को भी नष्ट कर डालूंगा : और जैसा कोई गोबर को तब तक उठाता रहता है जब तक वह सब उठा तहीं लिया जाता, वैसे ही मैं यारोबाम के घराने की सफाई कर दूंगा। 11 यारोबाम के घराने का जो कोई नगर में मर जाए, उसको कुत्ते खाएंगे; और जो मैदान में मरे, उसको आकाश के पक्की खा जाएंगे; क्योंकि यहोवा ने यह कहा है ! 12 इसलिथे तू उठ और अपके घर जा, और नगर के भीतर तेरे पांव पड़ते ही वह बालक तर जाएगा। 13 उसे तो समस्त इस्राएली छाती पीटकर मिट्टी देंगे; यारोबाम के सन्तानोंमें से केवल उसी को कबर मिलेगी, क्योंकि यारोबाम के घराने में से उसी में कुछ पाया जाता है जो यहोवा इस्राएल के प्रभु की दष्टि में भला है। 14 फिर यहोवा इस्राएल के लिथे एक ऐसा राजा खड़ा करेगा जो उसी दिन यारोबाम के घराने को नाश कर डालेगा, परन्तु कब? 15 यह अभी होगा। क्योंकि यहोवा इस्राएल को ऐसा मारेगा, जैसा जल की धारा से नरकट हिलाया जाता है, और वह उनको इस अच्छी भूमि में से जो उस ने उनके पुरखाओं को दी यी उखाड़कर महानद के पार तित्तर-बित्तर करेगा; क्योंकि उन्होंने अशेरा ताम मूरतें अपके लिथे बनाकर यहोवा को क्रोध दिलाया है। 16 और उन पापोंके कारण जो यारोबाम ने किए और इस्राएल से कराए थे, यहोवा इस्राएल को त्याग देगा। 17 तब यारोबाम की स्त्री बिदा होकर चक्की और तिरज़ा को आई, और वह भवन की डेवढ़ी पर जैसे ही पहुंची कि वह बालक मर गया। 18 तब यहोवा के वचन के अनुसार जो उस ने अपके दास अहिय्याह नबी से कहलाया या, समस्त इस्राएल ने उसको मिट्टी देकर उसके लिथे शोक मनाया। 19 यारोबाम के और काम अर्यात् उस ने कैसा कैसा युद्ध किया, और कैसा राज्य किया, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 20 यारोबाम बाईस वर्ष तक राज्य करके अपके पुरखाओं के साय सो गया और नादाब नाम उसका पुत्र उसके स्यान पर राजा हुआ। 21 और सुलैमान का पुत्र रहूबियाम यहूदा में राज्य करने लगा। रहूबियाम इकतालीस वर्ष का होकर राज्य करने लगा; और यरूशलेम जिसको यहोवा ने सारे इस्राएली गोत्रोंमें से अपना नाम रखने के लिथे चुन लिया या, उस नगर में वह सत्रह वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम नामा या जो अम्मोनी स्त्री यी। 22 और यहूदी लोग वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और अपके पुरखाओं से भी अधिक पाप काके उसकी जलन भड़काई। 23 उन्होंने तो सब ऊंचे टीलोंपर, और सब हरे वृझोंके तले, ऊंचे स्यान, और लाठें, और अशेरा नाम मूरतें बना लीं । 24 और उनके देश में पुरुषगामी भी थे; निदान वे उन जातियोंके से सब घिनौने काम करते थे जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से निकाल दिया या। 25 राजा सहूबियाम के पांचवें वर्ष में मिस्र का राजा शीशक, यरूशलेम पर चढ़ाई करके, 26 यहोवा के भवन की अनमोल वस्तुएं और राजभवन की अनमोल वस्तुएं, सब की सब उठा ले गया; और सोने की जो ढालें सुलैमान ने बनाई थीं सब को वह ले गया। 27 इसलिथे राजा रहूबियाम ने उनके बदले पीतल की ढालें बनवाई और उन्हें पहरुओं के प्रधानोंके हाथ सौंप दिया जो राजभवन के द्वार की रखवाली करते थे। 28 और जब जब राजा यहोवा के भवन में जाता या तब तब पहरुए उन्हें उठा ले चलते, और फिर अपक्की कोठरी में लौटाकर रख देते थे। 29 रहूबियाम के और सब काम जो उस ने किए वह क्या यहूदा के राजाओ के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 30 रहूबियाम और यारोबाम में तो सदा लड़ाई होती रही। 31 और रहूबियाम जिसकी माता नामा नाम एक अम्मोनिन यी, अपके पुरखाओं के साय सो गया; और उन्हीं के पास दाऊदपुर में उसको मिट्टी दी गई : और उसका पुत्र अबिय्याम उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 नाबात के पुत्र यारोबाम के राज्य के अठारहवें वर्ष में अबिय्याम यहूदा पर राज्य करने लगा। 2 और वह तीन वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम माका या जो अबशालोम की पुत्री यी : 3 वह वैसे ही पापोंकी लीक पर चलता रहा जैसे उसके पिता ने उस से पहिले किए थे और उसका मन अपके परमेश्वर यहोवा की ओर अपके परदादा दाऊद की नाई पूरी रीति से सिद्ध न या; 4 तौभी दाऊद के कारण उसके परमेश्वर यहोवा ने यरूशलेम में उसे एक दीपक दिया अर्यात् उसके पुत्र को उसके बाद ठहराया और यरूशलेम को बनाए रखा। 5 क्योंकि दाऊद वह किया करता या जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या और हित्ती ऊरिय्याह की बात के सिवाय और किसी बात में यहोवा की किसी आज्ञा से जीवन भर कभी न मुड़ा। 6 रहूबियाम के जीवन भर तो उसके और यारोबाम के बीच लड़ाई होती रही। 7 अबिय्याम के और सब काम जो उस ने किए, क्या वे यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? और अबिय्याम की यारोबाम के साय लड़ाई होती रही। 8 निदान अबिय्याम अपके पुरखाओं के संग सोया, और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र आसा उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 9 इस्राएल के राजा यारोबाम के बीसवें वर्ष में आसा यहूदा पर राज्य करने लगा; 10 और यरूशलेम में इकतालीस वर्ष तक राज्य करता रहा, और उसकी माता अबिशालोम की पुत्री माका यी। 11 और आसा ने अपके मूलपुरुष दाऊद की नाई वही किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या। 12 उस ने तो पुरुषगामियोंको देश से निकाल दिया, और जितनी मूरतें उसके पुरखाओं ने बनाई यी उन सभोंको उस ने दूर कर दिया। 13 वरन उसकी माता माका जिस ने अशेरा के लिथे एक घिनौनी मूरत बनाई यी उसको उस ने राजमाता के पद से उतार दिया, और आसा ने उसकी मूरत को काट डाला और किद्रोन के नाले में फूंक दिया। 14 परन्तु ऊंचे स्यान तो ढाए न गए; तौभी आसा का मन जीवन भर यहोवा की ओर पूरी रीति से लगा रहा। 15 और जो सोना चांदी और पात्र उसके पिता ने अर्पण किए थे, और जो उसने स्वयं अर्पण किए थे, उन सभोंको उस ने यहोवा के भवन में पहुंचा दिया। 16 और आसा और इस्राएल के राजा बाशा के बीच उनके जीवन भर युद्ध होता रहा 17 और इस्राएल के राजा बाशा ने यहूदा पर चढ़ाई की, और रामा को इसलिथे दृढ़ किया कि कोई यहूदा के राजा आसा के पास आने जाने न पाए। 18 तब आसा ने जितना सोना चांदी यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारोंमें रह गया या उस सब को निकाल अपके कर्मचारियोंके हाथ सोंपकर, दमिश्कवासी अराम के राजा बेन्हदद के पास जो हेज्योन का पोता और तब्रिम्मोन का पुत्र या भेजकर यह कहा, कि जैसा मेरे और तेरे पिता के मध्य में वैसा ही मेरे और तेरे मध्य भी वाचा बान्धी जाए : 19 देख, मैं तेरे पास चांदी सोने की भेंट भेजता हूँ, इसलिथे आ, इस्राएल के राजा बाशा के साय की अपक्की वाचा को टाल दे, कि वह मेरे पास से चला जाए। 20 राजा आसा की यह बात मानकर बेन्हदद ने अपके दलोंके प्रधानोंसे इस्राएली नगरोंपर चढ़ाई करवाकर इय्योन, दान, आबेल्वेत्माका और समस्त किन्नेरेत को और नप्ताली के समस्त देश को पूरा जीत लिया। 21 यह सुनकर बाशा ने रामा को दृढ़ करना छोड़ दिया, और तिर्सा में रहने लगा। 22 तब राजा आसा ने सारे यहूदा में प्रचार करवाया और कोई अनसुना न रहा, तब वे रामा के पत्य्रोंउौर लकड़ी को जिन से बासा उसे दृढ़ करता या उठा ले गए, और उन से राजा आसा ने बिन्यामीन के गेबा और मिस्पा को दृढ़ किया। 23 आसा के और काम और उसकी वीरता और जो कुछ उस ने किया, और जो नगर उस ने दृढ़ किए, यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 24 परन्तु उसके बुढ़ापे में तो उसे पांवोंका रोग लग गया। निदान आसा अपके पुरखाओं के संग सो गया, और उसे उसके मूलपुरुष दाऊद के नगर में उन्हीं के पास पिट्टी दी गई और उसका पुत्र यहोशापात उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 25 यहूदा के राजा आसा के दूसरे वर्ष में यारोबाम का पुत्र नादाब इस्राएल पर राज्य करने लगा; और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 26 उस ने वह काम किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या और अपके पिता के मार्ग पर वही पाप करता हुआ चलता रहा जो उस ने इस्राएल से करवाया या। 27 नादाब सब इस्राएल समेत पलिश्तियोंके देश के गिब्बतोन नगर को घेरे या। और उस्साकार के गोत्र के अहिय्याह के पुत्र बाशा ने उसके विरुद्ध राजद्रोह की गोष्ठी करके गिब्बतोन के पास उसको मार डाला। 28 और यहूदा के राजा आसा के तीसरे वर्ष में बाशा ने नादाब को मार डाला, और उसके स्यान पर राजा बन गया। 29 राजा होते ही बाशा ने यारोबाम के समस्त घराने को मार डाला; उस ने यारोबाम के वंश को यहां तक नष्ट किया कि एक भी जीवित न रहा। यह सब यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ जो उस ने अपके दास शीलोवासी अहिय्याह से कहवाया या। 30 यह इस कारण हुआ कि यारोबाम ने स्वयं पाप किए, और इस्राएल से भी करवाए थे, और उस ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया या। 31 नादाब के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक पें नहीं लिखे हैं? 32 आसा और इस्राएल के राजा बाशा के मध्य में तो उनके जीवन भर युद्ध होता रहा। 33 यहूदा के राजा आसा के तीसरे वर्ष में अहिय्याह का पुत्र बाशा, तिर्सा में समस्त इस्राएल पर राज्य करने लगा, और चौबीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 34 और उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, और यारोबाम के मार्ग पर वही पाप करता रहा जिसे उस ने हस्राएल से करवाया या।
1 और बाशा के विषय यहोवा का यह वचन हनानी के पुत्र थेहू के पास पहुंचा, 2 कि मैं ने तुझ को मिट्टी पर से उठाकर अपक्की प्रजा इस्राएल का प्रधान किया, परन्तु तू यारोबाम की सी चाल चलता और मेरी प्रजा इस्राएल से ऐसे पाप कराता आया है जिन से वे मुझे क्रोध दिलाते हैं। 3 सुन, मैं बाशा और उसके घराने की पूरी रीति से सफाई कर दूंगा और तेरे घराने को नबात के पुत्र यारोबाम के समान कर दूंगा। 4 बाशा के घर का जो कोई नगर में मर जाए, उसको कुत्ते खा डालेंगे, और उसका जो कोई मैदान में मर जाए, उसको आकाश के पक्की खा डालेंगे। 5 बाशा के और सब काम जो उस ने किए, और उसकी वीरता यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 6 निदान बाशा अपके पुरखाओं के संग सो गया और तिर्सा में उसे मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र एला उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 7 यहोवा का जो वचन हनानी के पुत्र थेहू के द्वारा बाशा और उसके घराने के विरुद्ध आया, वह न केवल उन सब बुराइयोंके कारण आया जो उस ने यारोबाम के घराने के समान होकर यहोवा की दृष्टि में किया या और अपके कामोंसे उसको क्रोधित किया, वरन इस कारण भी आया, कि उस ने उसको मार डाला या। 8 यहूदा के राजा आसा के छब्बीसवे वर्ष में बाशा का पुत्र एला तिर्सा में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 9 जब वह तिर्सा में अर्सा नाम भणडारी के घर में जो उसके तिर्सावाले भवन का प्रधान या, दारू पीकर मतवाला हो गया या, तब उसके जिम्री नाम एक कर्मचारी ने जो उसके आधे रयोंका प्रधान या, 10 राजद्रोह की गोष्ठी की और भीतर जाकर उसको मार डाला, और उसके स्यान पर राजा बन गया। यह यहूदा के राजा आसा के सत्ताइसवें वर्ष में हुआ। 11 और जब वह राज्य करने लगा, तब गद्दी पर बैठते ही उस ने बाशा के पूरे घराने को मार डाला, वरन उस ने न तो उसके कुटुम्बियोंउौर न उसके मित्रोंमें से एक लड़के को भी जीवित छोड़ा। 12 इस रीति यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने थेहू नबी के द्वारा बाशा के विरुद्ध कहा या, जिम्री ने बाशा का समस्त घराना नष्ट कर दिया। 13 इसका कारण बाशा के सब पाप और उसके पुत्र एला के भी पाप थे, जो उन्होंने स्वयं आप करके और इस्राएल से भी करवा के इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को य्यर्य बातोंसे क्रोध दिलाया या। 14 एला के उाौर सब काम जो उस ने किए, वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नही लिखे हैं। 15 यहूदा के राजा आसा के सत्ताईसवें वर्ष में जिम्री तिर्सा में राज्य करने लगा, और तिर्सा में सात दिन तक राज्य करता रहा। उस समय लोग पलिश्तियोंके देश गिब्बतोन के विरुद्ध डेरे किए हुए थे। 16 तो जब उन डेरे लगाए हुए लोगोंने सुना, कि जिम्री ने राजद्रोह की गोष्ठी करके राजा को मार डाला, तब उसी दिन समस्त इस्राएल ने ओम्री नाम प्रधान सेनापति को छावनी में इस्राएल का राजा बनाया। 17 तब ओम्री ने समस्त इस्राएल को संग ले गिब्बतोन को छोड़कर तिर्सा को घेर लिया। 18 जब जिम्री ने देखा, कि नगर ले लिया गया है, तब राजभवन के गुम्मट में जाकर राजभवन में आग लगा दी, और उसी में स्वयं जल मरा। 19 यह उसके पापोंके कारण हुआ क्योंकि उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, क्योकि वह यारोबाम की सी चाल और उसके किए हूए और इस्राएल से करवाए हुए पाप की लीक पर चला। 20 जिम्री के और काम और जो राजद्रोह की गोष्ठी उस ने की, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 21 तब इस्राएली प्रजा के दो भाग किए गए, प्रजा के आधे लोग तो तिब्नी नाम गीनत के पुत्र को राजा करने के लिथे उसी के पीछे हो लिए, और आधे ओम्री के पीछे हो लिए। 22 अन्त में जो लोग ओम्री के पीछे हुए थे वे उन पर प्रबल हुए जो गीनत के पुत्र तिब्नी के पीछे हो लिए थे, इसलिथे तिब्नी मारा गया और ओम्री राजा बन गया। 23 यहूदा के राजा आशा के इकतीसवें वर्ष में ओम्री इस्राएल पर राज्य करने लगा, और बारह वर्ष तक राज्य करता रहा; उसने छ:वर्ष तो तिर्सा में राज्य किया। 24 और उस ने शमेर से शोमरोन पहाड़ को दो किक्कार चांदी में मोल लेकर, उस पर एक नगर बसाया; और अपके बसाए हुए नगर का नाम पहाड़ के मालिक शेमेर के नाम पर शोमरोन रखा। 25 और उोम्री ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या वरन उन सभोंसे भी जो उससे पहिले थे अधिक बुराई की। 26 वह नबात के पुत्र यारोबाम की सी सब चाल चला, और उसके सब पापोंके अनुसार जो उस ने इस्राएल से करवाए थे जिसके कारण इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को उन्होंने अपके य्यर्य कमॉंसे क्रोध दिलाया या। 27 ओम्री के और काम जो उस ने किए, और जो वीरता उस ने दिखाई, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 28 निदान ओम्री अपके पुरखाओं के संग सो गया और शोमरोन में उसको मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र अहाब उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 29 यहूदा के राजा आसा के अड़तीसवें वर्ष में ओम्री का पुत्र अहाब इस्राएल पर राज्य करने लगा, और इस्राएल पर शोमरोन में बाईस पर्ष तक राज्य करता रहा। 30 और ओम्री के पुत्र अहाब ने उन सब से अधिक जो उस से पहिले थे, वह कर्म किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे थे। 31 उस ने तो नबात के पुत्र यारोबाम के पापोंमें चलना हलकी सी बात जानकर, सीदोनियोंके राजा एतबाल की बेटी ईजेबेल को ब्याह कर बाल देवता की उपासना की और उसको दणडवत किया। 32 और उस ने बाल का एक भवन शोमरोन में बनाकर उस में बाल की एक वेदी बनाई। 33 और अहाब ने एक अशेरा भी बनाया, वरन उस ने उन सब इस्राएली राजाओं से बढ़कर जो उस से पहिले थे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को क्रोध दिलाने के काम किए। 34 उसके दिनोंमें बेतेलवासी हीएल ने यरीहो को फिर बसाया; जब उस ने उसकी नेव डाली तब उसका जेठा पुत्र अबीराम मर गया, और जब उस ने उसके फाटक खड़े किए तब उसका लहुरा पुत्र सगूब मर गया, यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ, जो उस ने नून के पुत्र यहोशू के द्वारा कहलवाया या।
1 और तिशबी एलिय्याह जो गिलाद के परद्देसियोंमें से या उस ने अहाब से कहा, इस्राएल का परमेश्वा यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्य्ित रहता हूँ, उसके जीवन की शपय इन वषॉं में मेरे बिना कहे, न तो मेंह बरसेगा, और न ओस पकेगी। 2 तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, 3 कि यहां से चलकर पूरब ओर मुख करके करीत नाम नाले पें जो यरदन के साम्हने है छिप जा। 4 उसी नाले का पानी तू पिया कर, और मैं ने कौवोंको आज्ञा दी है कि वे तूफे वहां खिलाएं। 5 यहोवा का यह वचन मानकर वह यरदन के साम्हने के करीत नाम नाले में जाकर छिपा रहा। 6 और सबेरे और सांफ को कौवे उसके पास रोटी और मांस लाया करते थे और वह नाले का पानी पिया करता या। 7 कुछ दिनोंके बाद उस देश में वर्षा न होने के कारण नाला सूख गया। 8 तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, 9 कि चलकर सीदोन के सारपत नगर में जाकर वहीं रह : सुन, मैं ने वहां की एक विधवा को तेरे खिलाने की आज्ञा दी है। 10 सो वह वहां से चल दिया, और सारपत को गया; नगर के फाटक के पास पहुंचकर उस ने क्या देखा कि, एक विधवा लकड़ी बीन रही है, उसको बुलाकर उस ने कहा, किसी पात्र में मेरे पीने को योड़ा पानी ले आ। 11 जब वह लेने जा रही यी, तो उस ने उसे पुकार के कहा अपके हाथ में एक टुकड़ा रोटी भी मेरे पास लेती आ। 12 उस ने कहा, तेरे परमेश्वर यहोवा के जीवन की शपय मेरे पास एक भी रोटी नहीं है केवल घड़े में मुट्ठी भर मैदा और कुप्पी में योड़ा सा तेल है, और मैं दो एक लकड़ी बीनकर लिए जाती हूँ कि अपके और अपके बेटे के लिथे उसे पकाऊं, और हम उसे खाएं, फिर मर जाएं। 13 एलिय्याह ने उस से कहा, मत डर; जाकर अपक्की बात के अनुसार कर, परन्तु पहिले मेरे लिथे एक छोटी सी रोटी बनाकर मेरे पास ले आ, फिर इसके बाद अपके और अपके बेटे के लिथे बनाना। 14 क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि जब तक यहोवा भूमि पर मेंह न बरसाएगा तब तक न तो उस घड़े का मैदा चुकेगा, और न उस कुप्पी का तेल घटेगा। 15 तब वह चक्की गई, और एलिय्याह के वचन के अनुसार किया, तब से वह और स्त्री और उसका घराना बहुत दिन तक खाते रहे। 16 यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने एलिय्याह के द्वारा कहा या, न तो उस घड़े का मैदा चुका, और न उस कुप्पी का तेल घट गया। 17 इन बातोंके बाद उस स्त्री का बेटा जो घर की स्वामिनी यी, रोगी हुआ, और उसका रोग यहां तक बढ़ा कि उसका सांस लेना बन्द हो गया। 18 तब वह एलिय्याह से कहने लगी, हे परमेश्वर के जन ! मेरा तुझ से क्या काम? क्या तू इसलिथे मेरे यहां आया है कि मेरे बेटे की मृत्यु का कारण हो और मेरे पाप का स्मरण दिलाए ? 19 उस ने उस से कहा अपना बेटा मुझे दे; तब वह उसे उसकी गोद से लेकर उस अटारी पर ले गया जहां वह स्वयं रहता या, और अपक्की खाट पर लिटा दिया। 20 तब उस ने यहोवा को पुकारकर कहा, हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! क्या तू इस विधवा का बेटा मार डालकर जिसके यहां मैं टिका हूं, इस पर भी विपत्ति ले आया है? 21 तब वह बालक पर तीन बार पसर गया और यहोवा को पुकारकर कहा, हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! इस बालक का प्राण इस में फिर डाल दे। 22 एलिय्याह की यह बात यहोवा ने सुन ली, और बालक का प्राण उस में फिर आ गया और वह जी उठा। 23 तब एलिय्याह बालक को अटारी पर से नीचे घर में ले गया, और एलिय्याह ने यह कहकर उसकी माता के हाथ में सौंप दिया, कि देख तेरा बेटा जीवित है। 24 स्त्री ने एलिय्याह से कहा, अब मुझे निश्चय हो गया है कि तू परमेश्वर का जन है, और यहोवा का जो वचन तेरे मुंह से निकलता है, वह सच होता है।
1 बहुत दिनोंके बाद, तीसरे वर्ष में यहोवा का यह वचन एलिय्याह के पास पहुंचा, कि जाकर अपके अपप को अहाब को दिखा, और मैं भूमि पर मेंह बरसा दूंगा। 2 तब एलिय्याह अपके आप को अहाब को दिखाने गया। उस समय शोमरोन में अकाल भारी या। 3 इसलिथे अहाब ने ओबद्याह को जो उसके घराने का दीवान या बुलवाया। 4 ओबद्याह तो यहोवा का भय यहां तक मानता या कि जब हेज़ेबेल यहोवा के नबियोंको नाश करती यी, तब ओबद्याह ने एक सौ नबियोंको लेकर पचास-पचास करके गुफाओं में छिपा रखा; और अन्न जल देकर उनका पालन-पोषण करता रहा। 5 और अहाब ने ओबद्याह से कहा, कि देश में जल के सब सोतोंऔर सब नदियोंके पास जा, कदाचित इतनी घास मिले कि हम घेड़ोंऔर खच्चरोंको जीवित बचा सकें, 6 और हमारे सब पशु न मर जाएं। और उन्होंने आपस में देश बांटा कि उस में होकर चलें; एक ओर अहाब और दूसरी ओर ओबद्याह चला। 7 ओबद्याह मार्ग में या, कि एलिय्याह उसको मिला; उसे चरन्ह कर वह मुंह के बल गिरा, और कहा, हे मेरे प्रभु एलिय्यह, क्या तू है? 8 उस ने कहा हां मैं ही हूँ : जाकर अपके स्वामी से कह, कि एलिय्याह मिला है। 9 उस ने कहा, मैं ने ऐसा क्या पाप किया है कि तू मुझे मरवा डालने के लिथे अहाब के हाथ करना चाहता है? 10 तेरे परमेश्वर यहोवा के जीवन की शपय कोई ऐसी जाति वा राज्य नहीं, जिस में मेरे स्वामी ने तुझे ढूंढ़ने को न भेजा हो, और जब उन लोगोंने कहा, कि वह यहां नहीं है, तब उस ने उस राज्य वा जाति को इसकी शपय खिलाई कि एलिय्याह नहीं मिला। 11 और अब तू कहता है कि जाकर अपके स्वामी से कह, कि एलिय्याह मिला ! 12 फिर ज्योंही मैं तेरे पास से चला जाऊंगा, त्योंही यहोवा का आत्मा तुझे न जाने कहां उठा ले जाएगा, सो जब मैं जाकर अहाब को बताऊंगा, और तू उसे न मिलेगा, तब वह मुझे मार डालेगा : परन्तु मैं तेरा दास अपके लड़कपन से यहोवा का भय मानता आया हूँ ! 13 क्या मेरे प्रभु को यह नहीं बताया गया, कि जब हेज़ेबेल यहोवा के नबियोंको घात करती यी तब मैं ने क्या किया? कि यहोवा के नबियोंमें से एक सौ लेकर पचाय-पचाय करके गुफाओं में छिपा रखा, और उन्हें अन्न जल देकर पालता रहा। 14 फिर अब तू कहता है, जाकर अपके स्वामी से कह, कि एलिय्याह मिला है ! तब वह मुझे घात करेगा। 15 एलिय्याह ने कहा, सेनाओं का यहोवा जिसके साम्हने मैं रहता हूँ, उसके जीवन की शपय आज मैं अपके अप को उसे दिखाऊंगा। 16 तब ओबद्याह अहाब से मिलने गया, और उसको बता दिया, सो अहाब एलिय्याह से मिलने चला। 17 एलिय्याह को देखते ही अहाब ने कहा, हे इस्राएल के सतानेवाले क्या तू ही है? 18 उस ने कहा, मैं ने इस्राएल को कष्ट नहीं दिया, परन्तु तू ही ने और तेरे पिता के घराने ने दिया है; क्योंकि तुम यहोवा की आज्ञाओ को टालकर बाल देवताओं की उपासना करने लगे। 19 अब दूत भेजकर सारे इस्राएल को और बाल के साढ़े चार सौ नबियोंऔर अशेरा के चार सौ नबियोंको जो हेज़ेबेल की मेज पर खाते हैं, मेरे पास कर्म्मेल पर्वत पर इकट्ठा कर ले। 20 तब अहाब ने सारे इस्राएलियोंको बुला भेजा और नबियोंको कर्म्मेल पर्वत पर इकट्ठा किया। 21 और एलिय्याह सब लोगोंके पास आकर कहने लगा, तुम कब तक दो विचारोंमें लटके रहोगे, यदि यहोवा परमेश्वर हो, तो उसके पीछे हो लेओ; और यदि बाल हो, तो उसके पीछे हो लेओ। लोगोंने उसके उत्तर में एक भी बात न कही। 22 तब एलिय्याह ने लोगोंसे कहा, यहोवा के नबियोंमें से केवल मैं ही रह गया हूँ; और बाल के नबी साढ़े चार सौ मनुष्य हैं। 23 इसलिथे दो बछड़े लाकर हमें दिए जाएं, और वे एक अपके लिथे चुनकर उसे टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ी पर रख दें, और कुछ आग न लगाएं; और मैं दूसरे बछड़े को तैयार करके लकड़ी पर रखूंगा, और कुछ आग न लगाऊंगा। 24 तब तुम तो अपके दवता से प्रार्यना करना, और मैं यहोवा से प्रार्यना करूंगा, और जो आग गिराकर उत्तर दे वही परमेश्वर ठहरे। तब सब लोग बोल उठे, अच्छी बात। 25 और एलिय्याह ने बाल के नबियोंसे कहा, पहिले तुम एक बछड़ा चुनकर तैयार कर लो, क्योंकि तुम तो बहुत हो; तब अपके देवता से प्रार्यना करना, परन्तु आग न लगाना। 26 तब उन्होंने उस बछड़े को जो उन्हें दिया गया या लेकर तैयार किया, और भोर से लेकर दोपहर तक वह यह कहकर बाल से प्रार्यना करते रहे, कि हे बाल हमारी सुन, हे बाल हमारी सुन ! परन्तु न कोई शब्द और न कोई उत्तर देनेवाला हुआ। तब वे अपक्की बनाई हुई वेदी पर उछलने कूदने लगे। 27 दोपहर को एलिय्याह ने यह कहकर उनका ठट्ठा किया, कि ऊंचे शब्द से पुकारो, वह तो देवता है; वह तो ध्यान लगाए होगा, वा कहीं गया होगा वा यात्रा में होगा, वा हो सकता है कि सोता हो और उसे जगाना चाहिए। 28 और उन्होंने बड़े शब्द से पुकार पुकार के अपक्की रीति के अनुसार छुरियोंऔर बछिर्योंसे अपके अपके को यहां तक घायल किया कि लोहू लुहान हो गए। 29 वे दोपहर भर ही क्या, वरन भेंट चढ़ाने के समय तक नबूवत करते रहे, परन्तु कोई शब्द सुन न पड़ा; और न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया। 30 तब एलिय्याह ने सब लोगोंसे कहा, मेरे निकट आओ; और सब लोग उसके निकट आए। तब उस ने यहोवा की वेदी की जो गिराई गई यी मरम्मत की। 31 फिर एलिय्याह ने याकूब के पुत्रोंकी गिनती के अनुसार जिसके पास यहोवा का यह पचन आया या, 32 कि तेरा नाम इस्राएल होगा, बारह पत्य्र छांटे, और उन पत्यरोंसे यहोवा के नाम की एक वेदी बनाई; और उसके चारोंओर इतना बड़ा एक गड़हा खोद दिया, कि उस में दो सआ बीज समा सके। 33 तब उस ने वेदी पर लकड़ी को सजाया, और बछड़े को टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ी पर धर दिया, और कहा, चार घड़े पानी भर के होमबलि, पशु और लकड़ी पर उणडेल दो। 34 तब उस ने कहा, दूसरी बार वैसा ही करो; तब लोगोंने दूसरी बार वैसा ही किया। फिर उस ने कहा, तीसरी बार करो; तब लोगोंने तीसरी बार भी वैसा ही किया। 35 और जल वेदी के चारोंओर बह गया, और गड़हे को भी उस ने जल से भर दिया। 36 फिर भेंट चढ़ाने के समय एलिय्याह नबी समीप जाकर कहने लगा, हे इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! आज यह प्रगट कर कि इस्राएल में तू ही परमेश्वर है, और मैं तेरा दास हूँ, और मैं ने थे सब काम तफ से वचन पाकर किए हैं। 37 हे यहावा ! मेरी सुन, मेरी सुन, कि थे लोग जान लें कि हे यहोवा, तू ही परमेश्वर है, और तू ही उनका मन लौटा लेता है। 38 तब यहोवा की आग आकाश से प्रगट हुई और होमबलि को लकड़ी और पत्य्रोंऔर धूलि समेत भस्म कर दिया, और गड़हे में का जल भी सुखा दिया। 39 यह देख सब लोग मुंह के बल गिरकर बोल उठे, यहोवा ही परमेश्वर है, यहोवा ही परमेश्वर है; 40 एलिय्याह ने उन से कहा, बाल के नबियोंको पकड़ लो, उन में से एक भी छूटते न पाए; तब उन्होंने उनको पकड़ लिया, और एलिय्याह ने उन्हें नीचे किशोन के नाले में ले जाकर मार डाला। 41 फिर एलिय्याह ने अहाब से कहा, उठकर खा पी, क्योंकि भारी वर्षा की सनसनाहट सुन पडती है। 42 तब अहाब खाने पीने चला गया, और एलिय्याह कर्म्मेल की चोटी पर चढ़ गया, और भूमि पर गिर कर अपना मुंह घुटनोंके बीच किया। 43 और उस ने अपके सेवक से कहा, चढ़कर समुद्र की ओर दृष्टि कर देख, तब उस ने चढ़कर देखा और लौटकर कहा, कुछ नहीं दीखता। एलिय्याह ने कहा, फिर सात बार जा। 44 सातवीं बार उस ने कहा, देख समुद्र में से मनुष्य का हाथ सा एक छोटा आदल उठ रहा है। एलिय्याह ने कहा, अहाब के पास जाकर कह, कि रय जुतवा कर नीचे जा, कहीं ऐसा न हो कि नू वर्षा के कारण रुक जाए। 45 योड़ी ही देर में आकाश वायु से उड़ाई हुई घटाओं, और आन्धी से काला हो गया और भरी वर्षा होने लगी; और अहाब सवार होकर यिज्रेल को चला। 46 तब यहोवा की शक्ति एलिय्याह पर ऐसी हुई; कि वह कमर बान्धकर अहाब के आगे आगे यिज्रेल तक दौड़ता चला गया।
1 तब अहाब ने हेज़ेबेल को एलिय्याह के सब काम विस्तार से बताए कि उस ने सब नबियोंको तलवार से किस प्रकार मार डाला। 2 तब हेज़ेबेल ने एलिय्याह के पास एक दूत के द्वारा कहला भेजा, कि यदि मैं कल इसी समय तक तेरा प्राण उनका सा न कर डालूं तो देवता मेरे साय वैसा ही वरन उस से भी अधिक करें। 3 यह देख एलिय्याह अपना प्राण लेकर भागा, और यहूदा के बेशॅबा को पहुंचकर अपके सेवक को वहीं छोड़ दिया। 4 और आप जंगल में एक दिन के मार्ग पर जाकर एक फाऊ के पेड़ के तले बैठ गया, वहां उस ने यह कह कर अपक्की मृत्यु मांगी कि हे यहोवा बस है, अब मेरा प्राण ले ले, क्योंकि मैं अपके पुरखाओं से अच्छा नहीं हूँ। 5 चह फाऊ के पेड़ तले लेटकर सो गया और देखो एक दूत ने उसे छूकर कहा, उठकर खा। 6 उस ने दृष्टि करके क्या देखा कि मेरे सिरहाने पत्यरोंपर पको ऊई एक रोटी, और एक सुराही पानी धरा है; तब उस ने खाया और पिया और फिर लेट गया। 7 दूसरी बार यहोवा का दूत आया और उसे छूकर कहा, उठकर खा, क्योंकि तुझे बहुत भारी यात्रा करनी है। 8 तब उस ने उठकर खाया पिया; और उसी भोजन से बल पाकर चालीस दिन रात चलते चलते परमेश्वर के पर्वत होरेब को पहुंचा। 9 वहां वह एक गुफा में जाकर टिका और यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, कि हे एलिय्याह तेरा यहां क्या काम? 10 उन ने उत्तर दिया सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के निमित्त मुझे बड़ी जलन हुई है, क्योकि इस्राएलियोंने तेरी वाचा आल दी, तेरी बेदियोंको गिरा दिया, और तेरे नबियोंको तलवार से घात किया है, और मैं ही अकेला रह गया हूँ; और वे मेरे प्राणोंके भी खोजी हैं। 11 उस ने कहा, निकलकर यहोवा के सम्मुख पर्वत पर खड़ा हो। और यहोवा पास से होकर चला, और यहोवा के साम्हने एक बड़ी प्रचणड आन्धी से पहाड़ फटने और चट्टानें टूटने लगीं, तौभी यहोवा उस आन्धी में न या; फिर आन्धी के बाद भूंईडोल हूआ, तौभी यहोवा उस भूंईडोल में न या। 12 फिर भूंईडोल के बाद आग दिखाई दी, तौभी यहोवा उस आग में न या; फिर आग के बाद एक दबा हुआ धीमा शब्द सुनाई दिया। 13 यह सुनते ही एलिय्याह ने अपना मुंह चद्दर से ढांपा, और बाहर जाकर गुफा के द्वार पर खड़ा हुआ। फिर एक शब्द उसे सुनाई दिया, कि हे एलिय्याह तेरा यहां क्या काम? 14 उस ने कहा, मुझे सेनाऔं के परमेश्वर यहोवा के निमित्त बड़ी जलन हुई, क्योंकि इस्राएलियोंने तेरी वाचा टाल दी, और तेरी वेदियोंको गिरा दिया है और तेरे नबियोंको तलवार से घात किया है; और मैं ही अकेला रह गया हूँ; और वे मेरे प्राणोंके भी खोजी हैं। 15 यहोवा ने उस से कहा, लौटकर दमिश्क के जंगल को जा, और वहां पहुंचकर अराम का राजा होने के लिथे हजाएल का, 16 और इस्राएल का राजा होने को निमशी के पोते थेहू का, और अपके स्यान पर नबी होने के लिथे आबेलमहोला के शापात के पुत्र एलीशा का अभिषेक करना। 17 और हजाएल की तलवार से जो कोई बच जाए उसको थेहू मार डालेगा; और जो कोई थेहू की तलवार से बच जाए उसको एलीशा मार डालेगा। 18 तौभी मैं सात हजार इस्राएलियोंको बचा रखूंगा। थे तो वे सब हैं, जिन्होंने न तो बाल के आगे घुटने टेके, और न मुंह से उसे चूमा है। 19 तब वह वहां से चल दिया, और शापात का पुत्र एलीशा उसे मिला जो बारह जोड़ी बैल अपके आगे किए हुए आप बारहवीं के साय होकर हल जोत रहा य। उसके पास जाकर एलिय्याह ने अपक्की चद्दर उस पर डाल दी। 20 तब वह बैलोंको छोड़कर एलिय्याह के पीछे दौड़ा, और कहने लगा, मुझे अपके माता-पिता को चूमने दे, तब मैं तेरे पीछे चलूंगा। उस ने कहा, लौट जा, मैं ने तुझ से क्या किया है? 21 तब वह उसके पीछे से लौट गया, और एक जोड़ी बैल लेकर बलि किए, और बैलोंका सामान जलाकर उनका मांस पका के अपके लोगोंको दे दिया, और उन्होंने खाया; तब वह कमर बान्धकर एलिय्याह के पीछे चला, और उसकी सेवा टहल करने लगा।
1 और अराम के राजा बेन्हदद ने अपक्की सारी सेना इकट्ठी की, और उसके साय बत्तीस राजा और घोड़े और रय थे; उन्हें संग लेकर उस ने शोमरोन पर चढ़ाई की, और उसे घेर के उसके विरुद्ध लड़ा। 2 और उस ने नगर में इस्राएल के राजा अहाब के पास दूतोंको यह कहने के लिथे भेजा, कि बेन्हदद तुझ से योंकहता है, 3 कि तेरा चान्दी सोना मेरा है, और तेरी स्त्रियोंऔर लड़केबालोंमें जो जो उत्तम हैं वह भी सब मेरे हैं। 4 इस्राएल के राजा ने उसके पास कहला भेजा, हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! तेरे वचन के अनुसार मैं और मेरा जो कुछ है, सब तेरा है। 5 उन्हीं दूतोंने फिर आकर कहा बेन्हदद तुझ से योंकहता है, कि मैं ने तेरे पास यह कहला भेजा या कि तुझे अपक्की चान्दी सोना और स्त्रियां और बालक भी मुझे देने पकेंगे। 6 परन्तु कल इसी समय मैं अपके कर्मचारियोंको तेरे पास भेजूंगा और वे तेरे और तेरे कर्मचारियोंके धरोंमें ढूंढ़-ढांढ़ करेंगे, और तेरी जो जो मनभावनी वस्तुएं निकालें उन्हें वे अपके अपके हाथ में लेकर आएंगे। 7 तब इस्राएल के राजा ने अपके देश के सब पुरनियोंको बुलवाकर कहा, सोच विचार करो, कि वह मनुष्य हमारी हानि ही का अभिलाषी है; उस ने मुझ से मेरी स्त्रियां, बालक, चान्दी सोना मंगा भेजा है, और मैं ने इन्कार न किया। 8 तब सब पुरनियोंने और सब साधारण लोगोंने उस से कहा, उसकी न सुनना; और न मानना। 9 तब राजा ने बेन्हदद के दूतोंसे कहा, मेरे प्रभु राजा से मेरी ओर से कहो, जो कुुछ तू ने पहिले अपके दास से चाहा या वह तो मैं करूंगा, परन्तु यह मुझ से न होगा। तब बेन्हदद के दूतोंने जाकर उसे यह उत्तर सुना दिया। 10 तब बेन्हदद ने अहाब के पास कहला भेजा, यदि शोमरोन में इतनी धूलि निकले कि मेरे सब पीछे चलनेहारोंकी मुट्ठी भर कर अट जाए तो देवता मेरे साय ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करें। 11 इस्राएल के राजा ने उत्तर देकर कहा, उस से कहो, कि जो हयियार बान्धता हो वह उसकी नाई न फूले जो उन्हें उतारता हो। 12 यह वचन सुनते ही वह जो और राजाओं समेत डेरोंमें पी रहा या, उस ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, पांति बान्धो, तब उन्होंने नगर के विरुद्ध पांति बान्धी। 13 तब एक नबी ते इस्राएल के राजा अहाब के पास जाकर कहा, यहोवा तुझ से योंकहता है, यह बड़ी भीड़ जो तू ने देखी है, उस सब को मैं आज तेरे हाथ में कर दूंगा, इस से तू जान लेगा, कि मैं यहोवा हूँ। 14 अहाब ने पूछा, किस के द्वारा? उस ने कहा यहोवा योंकहता है, कि प्रदेशोंके हाकिमोंके सेवकोंके द्वारा ! फिर उस ने पूछा, युद्ध को कौन आरम्भ करे? उस ने उत्तर दिया, तू ही। 15 तब उस ने प्रदेशोंके हाकिमोंके सेवकोंकी गिनती ली, और वे दो सौ बत्तीस निकले; और उनके बाद उस ने सब इस्राएली लोगोंकी गिनती ली, और वे सात हजार निकले। 16 थे दोपहर को निकल गए, उस समय बेन्हदद अपके सहाथक बत्तीसोंराजाओं समेत डेरोंमें दारू पीकर मतवाला हो रहा या। 17 प्रदेशोंके हाकिमोंके सेवक पहिले निकले। तब बेन्हदद ने दूत भेजे, और उन्होंने उस से कहा, शोमरोन से कुछ मनुष्य निकले आते हैं। 18 उस ने कहा, चाहे वे मेल करने को निकले हों, चाहे लड़ने को, तौभी उन्हें जीवित ही पकड़ लाओ। 19 तब प्रदेशोंके हाकिमोंके सेवक और उनके पीछे की सेना के सिपाही नगर से निकले। 20 तौर वे अपके अपके साम्हने के पुरुष को पारने लगे; और अरामी भागे, और इस्राएल ने उनका पीछा किया, और अराम का राजा बेन्हदद, सवारोंके संग घोड़े पर चढ़ा, और भागकर बच गया। 21 तब इस्राएल के राजा ने भी निकलकर घोड़ोंऔर रयोंको मारा, और अरामियोंको बड़ी मार से मारा। 22 तब उस नबी ने इस्राएल के राजा के पास जाकर कहा, जाकर लड़ाई के लिथे अपके को दृढ़ कर, और सचेत होकर सोच, कि क्या करना है, क्योंकि नथे वर्ष के लगते ही अराम का राजा फिर तुझ पर चढ़ाई करेगा। 23 तब अराम के राजा के कर्मचारियोंने उस से कहा, उन लोगोंका देवता पहाड़ी देवता है, इस कारण वे हम पर प्रबल हुए; इसलिथे हम उन से चौरस भूमि पर लड़ें तो निश्चय हम उन पर प्रबल हो जाएंगे। 24 और यह भी काम कर, अर्यात् सब राजाओं का पद ले ले, और उनके स्यान पर सेनापतियोंको ठहरा दे। 25 फिर एक और सेना जो तेरी उस सेना के बराबर हो जो नष्ट हो गई है, घोड़े के बदले घोड़ा, और रय के बदले रय, अपके लिथे गिन ले; तब हम चौरस भूमि पर उन से लड़ें, और निश्चय उन पर प्रबल हो जाएंगे। उनकी यह सम्मति मानकर बेन्हदद ने वैसा ही किया। 26 और नथे वर्ष के लगते ही बेन्हदद ने अरामियोंको इकट्ठा किया, और इस्राएल से लड़ने के लिथे अपेक को गया। 27 और इस्राएली भी इकट्ठे किए गए, और उनके भोजन की तैयारी हुई; तब वे उनका साम्हना करने को गए, और इस्राएली उनके साम्हने डेरे डालकर बकरियोंके दो छोटे फुणड से देख पके, परन्तु अरामियोंसे देश भर गया। 28 तब परमेश्वर के उसी जन ने इस्राएल के राजा के पास जाकर कहा, यहोवा योंकहता है, अरामियोंने यह कहा है, कि यहोवा पहाड़ी देवता है, परन्तु नीची भूमि का नहीं है; इस कारण मैं उस बड़ी भीड़ को तेरे हाथ में कर दूंगा, तब तुम्हें बोध हो जाएगा कि मैं यहोवा हूँ। 29 और वे सात दिन आम्हने साम्हने डेरे डाले पके रहे; तब सातवें दिन युद्ध छिड़ गया; और एक दिन में इस्राएलियोंने एक लाख अरामी पियादे मार डाले। 30 जो बच गए, वह अपेक को भागकर नगर में घुसे, और वहां उन बचे हुए लोगोंमें से सत्ताईस हजार पुरुष श्हरपनाह की दीवाल के गिरने से दब कर मर गए। बेन्हदद भी भाग गया और नगर की एक भीतरी कोठरी में गया। 31 तब उसके कर्मचारियोंने उस से कहा, सुन, हम ने तो सुना है, कि इस्राएल के घराने के राजा दयालु राजा होते हैं, इसदिथे हमें कमर में टाट और सिर पर रस्सियां बान्धे हुए इस्राएल के राजा के पास जाने दे, सम्भव है कि वह तेरा प्राण बचा ले। 32 तब वे कमर में टाट और सिर पर रस्सियां बान्ध कर इस्राएल के राजा के पास जाकर कहने लगे, तेरा दास बेन्हदद तुझ से कहता है, कृपा कर के मुझे जीवित रहने दे। राजा ने उत्तर दिया, क्या वह अब तक जीवित है? वह तो मेरा भाई है। 33 उन लोगोंने इसे शुभ शकुन जानकर, फुतीं से बूफ लेने का यत्न किया कि यह उसके मन की बात है कि नहीं, और कहा, हां तेरा भाई बेन्हदद। राजा ने कहा, जाकर उसको ले आओ। तब बेन्हदद उसके पास निकल आया, और उस ने उसे अपके रय पर चढ़ा लिया। 34 तब बेन्हदद ने उस से कहा, जो नगर मेरे पीता ने तेरे पिता से ले लिए थे, उनको मैं फेर दूंगा; और जैसे मेरे पिता ने शोमरोन में अपके लिथे सड़कें बनवाई, वैसे ही तू दमिश्क में सड़कें बनवाना। अहाब ने कहा, मैं इसी वाचा पर तुझे छोड़ देता हूँ, तब उस ने बेन्हदद से वाचा बान्धकर, उसे स्वतन्त्र कर दिया। 35 इसके बाद नबियोंके चेलोंमें से एक जन ने यहोवा से वचन पाकर अपके संगी से कहा, मुझे मार, जब उस मनुष्य ने उसे मारने से इनकार किया, 36 तब उस ने उस से कहा, तू ने यहोवा का वचन नहीं माना, इस कारण सुन, ज्योंही तू मेरे पास से चला जाएगा, त्योंही सिंह से मार डाला जाएगा। तब ज्योंही वह उसके पास से चला गया, ज्योंही उसे एक सिंह मिला, और उसको मार डाला। 37 फिर उसको दूसरा मनुष्य मिला, और उस से भी उस ने कहा, मुझे मार। और उस ने उसको ऐसा मारा कि वह घायल हुआ। 38 तब वह नबी चला गया, और आंखोंको पगड़ी से ढांपकर राजा की बाट जोहता हुआ मार्ग पर खड़ा रहा। 39 जब राजा पास होकर जा रहा या, तब उस ने उसकी दोहाई देकर कहा, कि जब तेरा दास युद्ध झेत्र में गया या तब कोइ मनुष्य मेरी ओर मुड़कर किसी मनुष्य को मेरे पास ले आया, और मुझ से कहा, इस पतुष्य की चौकसी कर; यदि यह किसी रीति छूट जाए, तो उसके प्राण के बदले तुझे अपना प्राण देना होगा; नहीं तो किक्कार भर चान्दी देना पकेगा। 40 उसके बाद तेरा दास इधर उधर काम में फंस गया, फिर वह न मिला। इस्राएल के राजा ने उस से कहा, तेरा ऐसा ही न्याय होगा; तू ने आप अपना न्याय किया है। 41 नबी ने फट अपक्की आंखोंसे पगड़ी उठाई, तब इस्राएल के राजा ने उसे पहिचान लिया, कि वह कोई नबी है। 42 तब उस ने राजा से कहा, यहोवा तुझ से योंकहता है, इसलिथे कि तू ने अपके हाथ से ऐसे ऐक मनुष्य को जाने दिया, जिसे मैं ने सत्यानाश हो जाने को ठहराया या, तुझे उसके प्राण की सन्ती अपना प्राण और उसकी प्रजा की सन्ती, अपक्की प्रजा देनी पकेगी। 43 तब इस्राएल का राजा उदास और अप्रसन्न होकर घर की ओर जला, और शोमरोन को आया।
1 नाबोत नाम एक यिज्रेली की एक दाख की बारी शोमरोन के राजा अहाब के राजमन्दिर के पास यिज्रेल में यी। 2 इन बातोंके बाद अीाब ने नाबोत से कहा, तेरी दाख की बारी मेरे घर के पास है, तू उसे मुझे दे कि मैं उस में साग पात की बारी लगाऊं; और मैं उसके बदले तुझे उस से अच्छी एक बाटिका दूंगा, नहीं तो तेरी इच्छा हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दे दूंगा। 3 नाबोत ने यहाब से कहा, यहोवा न करे कि मैं अपके पुरखाओं का निज भाग तुझे दूं ! 4 यिज्रेली नाबोत के इस वचन के कारण कि मैं तुझे अपके पुरखाओं का निज भाग न दूंगा, अहाब उदास और अप्रसन्न होकर अपके घर गया, और बिछौने पर लेट गया और मुंह फेर लिया, और कुछ भेजन न किया। 5 तब उसकी पत्नी हेज़ेबेल ने उसके पास आकर पूछा, तेरा मन क्योंऐसा उदास है कि तू कुछ भोजन नहीं करता? 6 उस ने कहा, कारण यह है, कि मैं ने यिज्रेली नाबोत से कहा कि रुपया लेकर मुझे अपक्की दाख की बारी दे, नहीं तो यदि नू चाहे तो मैं उसकी सन्ती दूसरी दाख की बारी दूंगा; और उसने कहा, मैं अपक्की दाख की बारी तुझे न दूंगा। 7 उसकी पत्नी हेज़ेबेल ने उस से कहा, क्या तू इस्राएल पर राज्य करता है कि नहीं? उठकर भोजन कर; और तेरा मन आनन्दित हो; यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी मैं तुझे दिलवा दूंगी। 8 तब उस ने अहाब के नाम से चिट्ठी लिखकर उसकी अंगूठी की छाप लगाकर, उन पुरनियोंऔर रईसोंके पास भेज दी जो उसी नगर में नाबोत के पड़ोस में रहते थे। 9 उस चिट्ठी में उस ने योंलिखा, कि उपवास का प्रचार करो, और नाबोत को लोगोंके साम्हने ऊंचे स्यान पर बैठाना। 10 तब दो नीच जनोंको उसके साम्हने बैठाना जो साझी देकर उस से कहें, तू ने परमेश्वर और राजा दोनोंकी निन्दा की। नब नुम लोग उसे बाहर ले जाकर उसको पत्यरवाह करना, कि वह मर जाए। 11 हेज़ेबेल की चिट्ठी में की आज्ञा के अनुसार नगर में रहनेवाले पुरनियोंऔर रईसोंने उपवास का प्रचार किया, 12 और नाबोत को लोगोंके साम्हने ऊंचे स्यान पर बैठाया। 13 तब दो नीच जन आकर उसके सम्मुख बैठ गए; और उन नीच जनोंने लोगोंलोगोंके साम्हने नाबोत के विम्द्ध यह साझी दी, कि नाबोत ने परमेश्वर और राजा दोनोंकी निन्दा की। इस पर उन्होंने उसे नगर से बाहर ले जाकर उसको पत्यरवाह किया, और वह मर गया। 14 तब उन्होंने हेज़ेबेल के पास यह कहला भेजा कि नाबोत पत्यरवाह करके मार डाला गया है। 15 यह सुनते ही कि नाबोत पत्यरवाह करके मारडाला गया है, हेज़ेबेल ने अहाब से कहा, उठकर यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी को जिसे उस ने तुझे रुपया लेकर देने से भी इनकार किया या अपके अधिक्कारने में ले, क्योंकि नाबोत जीवित नहीं परन्तु वह मर गया है। 16 यिज्रेली नाबोत की मृत्यु का समाचार पाते ही अहाब उसकी दाख की बारी अपके अधिक्कारने में लेने के लिथे वहां जाने को उठ खड़ा हुआ। 17 तब यहोवा का यह वचन निशबी एलिय्यह के पास पहुंचा, कि चल, 18 शोमरोन में रहनेवाले इस्राएल के राजा अहाब से मिलने को जा; वह तो नाबोत की दाख की बारी में है, उसे अपके अधिक्कारने में लेने को वह वहां गया है। 19 और उस से यह कहना, कि यहोवा योंकहता है, कि क्या तू ने घात किया, और अधिक्कारनेी भी बन बैटा? फिर तू उस से यह भी कहना, कि यहोवा योंकहता है, कि जिस स्यान पर कुत्तोंने नाबोत का लोहू चाटा, उसी स्यान पर कुत्ते तेरा भी लोहू चाटेंगे। 20 एलिय्याह को देखकर अहाब ने कहा, हे मेरे शत्रु ! क्या तू ने मेरा पता लगाया है? उस ने कहा हां, लगाया तो है; और इसका कारण यह है, कि जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, उसे करने के लिथे तू ने अपके को बेच डाला है। 21 मैं तुझ पर ऐसी विपत्ति डालूंगा, कि तुझे पूरी रीति से मिटा डालूंगा; और अहाब के घर के एक एक लड़के को उौर क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन इस्राएल में हर एक रहनेवाले को भी नाश कर डालूंगा। 22 और मैं तेरा घराना नबात के पुत्र यारोबाम, और अहिय्याह के पुत्र बाशा का सा कर दूंगा; इसलिथे कि तू ने मुझे क्रोधित किया है, और इस्राएल से पाप करवाया है। 23 और हेज़ेबेल के विषय में यहोवा यह कहता है, कि यिज्रेल के किले के पास कुत्ते हेज़ेबेल को खा डालेंगे। 24 अहाब का जो काई नगर में मर जाएगा उसको कुत्ते खा लेंगे; उौर जो कोई मैदान में मर जाएगा उसको आकाश के पक्की खा जाएंगे। 25 सचमुच अहाब के तुल्य और कोई न या जिसने अपक्की पत्नी हेज़ेबेल के उसकाने पर वह काम करने को जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अपके को बेच डाला या। 26 वह तो उन एमोरियोंकी नाई जिनको यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से निकाला या बहुत ही घिनौने काम करता या, अर्यात् मूरतोंकी उपासना करने लगा या। 27 एलिय्याह के थे वचन सुनकर अहाब ने अपके वस्त्र फाड़े, और अपक्की देह पर टाट लपेटकर उपवास करने और टाट ही ओढ़े पड़ा रहने लगा, और दबे पांवोंचलने लगा। 28 और यहोवा का यह वचन तिशबी एलिय्याह के पास पहुंचा, 29 कि क्या तू ने देखा है कि अहाब मेरे साम्हने नम्र बन गया है? इस कारण कि वह मेरे साम्हने नम्र बन गया है मैं वह विपत्ति उसके जीते जी उस पर न डालूंगा परन्तू उसके पुत्र के दिनोंमें मैं उसके घराने पर वह पिपत्ति भेजूंगा।
1 और तीन वर्ष तक अरामी और इस्राएली बिना युद्ध रहे। 2 तीसरे वर्ष में यहूदा का राजा यहोशापात इस्राएल के राजा के पास गया। 3 तब इस्राएल के राजा ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, क्या तुम को मालूम है, कि गिलाद का रामोत हमारा है? फिर हम क्योंचुपचाप रहते और उसे अराम के राजा के हाथ से क्योंनहीं छीन लेते हैं? 4 और उस ने यहोशापात से पूछा, क्या तू मेरे संग गिलाद के रामोत से लड़ने के लिथे जाएगा? यहोशापात ने इस्राएल के राजा को उत्तर दिया, जैसा तू है वैसा मैं भी हूँ। जैसी तेरी प्रजा है वैसी ही मेरी भी प्रजा है, और जैसे तेरे घोड़े हैं वैसे ही मेरे भी घोड़े हैं। 5 फिर यहोशापात ने इस्राएल के राजा से कहा, 6 कि आज यहोवा की इच्छा मालूम कर ले, नब इस्राएल के राजा ने नबियोंको जो कोई चार सौ पुरुष थे इकट्ठा करके उन से पूछा, क्या मैं गिलाद के रामोत से युद्ध करने के लिथे चढ़ाई करूं, वा रुका रहूं? उन्होंने उत्तर दिया, चढ़ाई कर : क्योंकि प्रभु उसको राजा के हाथ में कर देगा। 7 परन्तु यहोशापात ने पूछा, क्या यहां यहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिस से हम पूछ लें? 8 इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, हां, यिम्ला का पुत्र मीकायाह एक पुरुष और है जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछ सकते हैं? परन्तु मैं उस से घृणा रखता हूँ, क्योंकि वह मेरे विष्य कल्याण की नहीं वरन हानि ही की भविष्यद्वाणी करता है। 9 यहोशापात ने कहा, राजा ऐसा न कहे। तब दस्राएल के राजा ने एक हाकिम को बुलवा कर कहा, यिम्ला के पुत्र मीकायाह को फुतीं से ले आ। 10 इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा यहोशापात, अपके अपके राजवस्त्र पहिने हुए शोमरोन के फाटक में एक खुले स्यान में अपके अपके सिंहासन पर विराजमान थे और सब भविष्यद्वक्ता उनके सम्मुख भविष्यद्वाणी कर रहे थे। 11 तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने लोहे के सींग बनाकर कहा, यहोवा योंकहता है, कि इन से तू अरामियोंको मारते मारते नाश कर डालेगा। 12 और सब नबियोंने इसी आशय की भविष्यद्वाणी करके कहा, गिलाद के रामोत पर चढ़ाई कर और तू कृतार्य हो; क्योंकि यहोवा उसे राजा के हाथ में कर देगा। 13 और जो दूत मीकायाह को बुलाने गया या उस ने उस से कहा, सुन, भविष्यद्वक्ता एक ही मुंह से राजा के विषय शुभ वचन कहते हैं तो तेरी बातें उनकी सी हों; तू भी शुभ वचन कहना। 14 मीकायाह ने कहा, यहोवा के जीवन की शपय जो कुछ यहोवा मुझ से कहे, वही मैं कहूंगा। 15 जब वह राजा के पास आया, तब राजा ने उस से पूछा, हे मीकायाह ! क्या हम गिलाद के रामोत से युद्ध करने के लिथे चढ़ाई करें वा रुके रहें? उस ने उसको उत्तर दिया हां, चढ़ाई कर और तू कृतार्य हो; और यहोवा उसको राजा के हाथ में कर दे। 16 राजा ने उस से कहा, मुझे कितनी बार तुझे शपय धराकर चिताना होगा, कि तू यहोवा का स्मरण करके मुझ से सच ही कह। 17 मीकायाह ने कहा मुझे समस्त इस्राएल बिना चरपाहे की भेड़बकरियोंकी नाई पहाड़ोंपर; तित्तर बित्तर देख पड़ा, और यहोवा का यह वचन आया, कि वे तो अनाय हैं; अतएव वे अपके अपके घर कुशल झेम से लौट जाएं। 18 तब इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा या, कि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं हानि ही की भविष्यद्वाणी करेगा। 19 मीकायाह ने कहा इस कारण तू यहोवा का यह वचन सुन ! मुझे सिंहासन पर विराजमान यहोवा और उसके पास दाहिने बांथें खड़ी इुई स्वर्ग की समस्त सेना दिखाई दी है। 20 तब यहोवा ने पूछा, अहाब को कौन ऐसा बहकाएगा, कि वह गिलाद के रामो पर चढ़ाई करके खेत आए तब किसी ते कुछ, और किसी ने कुछ कहा। 21 निदान एक आत्मा पास आकर यहोव के सम्मुख खड़ी हुई, और कहने लगी, मैं उसको वहकाऊंगी : यहोवा ने पूछा, किस उपाय से? 22 उस ने कहा, मैं जाकर उसके सब भविष्यद्वक्ताओं में पैठकर उन से फूठ बुलवाऊंगी। यहोवा ने कहा, तेरा उसको बहकाना सुफल होगा, जाकर ऐसा ही कर। 23 तो अब सुन यहोवा ने तेरे इन सब भविष्यद्वक्ताओं के मुंह में एक फूठ बोलनेवाली आत्मा पैठाई है, और यहोवा ने तेरे विष्य हानि की बात कही है। 24 तब कनाना के पुत्र सिदकिज्याह ने मीकायाह के निकट जा, उसके गाल पर यपेड़ा मार कर पूछा, यहोवा का आन्मा मुझे छोड़कर तूफ से बातें करने को किधर गया? 25 मीकायाह ने कहा, जिस दिन तू छिपके के लिथे कोठरी से कोठरी में भगेगा, तब तूफे बोधा होगा। 26 तब इस्राएल के राजा ने कहा, मीकायाह को नगर के हाकिम आमोन और योआश राजकुमार के पास ले जा; 27 और उन से कह, राजा योंकहता है, कि इसको बन्दीगृह में डालो, और जब तक मैं कुशल से न आऊं, तब तक इसे दु:ख की रोटी और पानी दिया करो। 28 और मीकायाह ने कहा, यदि तू कभी कुशल से लौटे, तो जान कि यहोवा ने मेरे द्वारा नहीं कहा। फिर उस ने कहा, हे लोगो तुम सब के सब सुन लो। 29 तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा यहोशापात दोनोंने गिलाद के रामोत पर चढ़ाई की। 30 और इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, मैं तो भेष बदलकर युद्ध झेत्र में जाऊंगा, परन्तु तू अपके ही वस्त्र पहिने रहना। तब इस्राएल का राजा भेष बदलकर युद्ध झेत्र में गया। 31 और अराम के राजा ने तो अपके रयोंके बत्तीसोंप्रधानोंको आज्ञा दी यी, कि न तो छोटे से लड़ो और न बड़े से, केवल इस्राएल के राजा से यूद्ध करो। 32 तो जब रयोंके प्रधानोंने यहोशापात को देखा, तब कहा, निश्चय इस्राएल का राजा वही है। और वे उसी से युद्ध करने को मुड़े; तब यहोशपात चिल्ला उठा। 33 यह देखाकर कि वह इस्राएल का राजा नहीं है, रयोंके प्रधान उसका पीछा छोड़कर लौट गए। 34 तब किसी ने अटकल से एक तीर चलाया और वह इस्राएल के राजा के फिलम और निचले वस्त्र के बीच छेदकर लगा; तब उसने अपके सारयी से कहा, मैं घायल हो गया हूँ इसलिथे बागडोर फेर कर मुझे सेना में से बाहर निकाल ले चल। 35 और उस दिन युद्ध बढ़ता गया और राजा अपके रय में औरोंके सहारे अरामियोंके सम्मुख खड़ा रहा, और सांफ को मर गया; और उसके घाव का लोहू बहकर रय के पौदान में भर गया। 36 सूर्य डूबते हुए सेना में यह पुकार हुई, कि हर एक अपके नगर और अपके देश को लौट जाए। 37 जब राजा मर गया, तब शोमरोन को पहुंचाया गया और शोमरोन में उसे मिट्टी दी गई। 38 और यहोवा के वचन के अनुसार जब उसका रय शोमरोन के पोखरे में धोया गया, तब कुत्तोंने उसका लोहू चाट लिया, और वेश्याएं यहीं स्नान करती यीं। 39 अहाब के और सब काम जो उस ने किए, और हाथीदांत का जो भवन उस ने बनाया, और जो जो नगर उस ने बसाए थे, यह सब क्या इस्राएली राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 40 निदान अहाब अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र अहज्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 41 इस्राएल के राजा अहाब के चौथे वर्ष में आसा का पुत्र यहोशापात यहूदा पर राज्य करने लगा। 42 जब यहोशापात राज्य करने लगा, तब वह पैंतीस वर्ष का या। और पक्कीस पर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अजूबा या, जो शिल्ही की बेटी यी। 43 और उसकी चाल सब प्रकार से उसके पिता आसा की सी यी, अर्यात जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही वह करता रहा, और उस से कुछ न मुड़ा। तौभी ऊंचे स्यान ढाए न गए, प्रजा के लोग ऊंचे स्यानोंपर उस समय भी बलि किया करते थे और धूप भी जलाया करते थे। 44 यहोशापात ने इस्राएल के राजा से मेल किया। 45 और यहोशापात के काम और जो वीरता उस ने दिखाई, और उस ने जो जो लड़ाइयां कीं, यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 46 पुरुषगामियोंमें से जो उसके पिता आसा के दिनोंमें रह गए थे, उनको उस ने देश में से नाश किया। 47 उस समय एदाम में कोई राजा न या; एक नायब राजकाज का काम करता या। 48 फिर यहोशापात ने तशींश के जहाज सोना लाने के लिथे ओपीर जाने को बनवा लिए, परन्तु वे एश्योनगेबेर में टूट गए, असलिथे वहां न जा सके। 49 तब अहाब के पुत्र अहज्याह ने यहोशापात से कहा, मेरे जहाजियोंको अपके जहाजियोंके संग, जहाजोंमें जाने दे, परन्तु यहोशापात ने इनकार किया। 50 निदान यहोशापात अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसको उसके पुरखाओं के साय उसके मूलपुरुष दाऊद के नबर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र यहोराम उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 51 यहूदा के राजा यहोशापत के सत्रहवें वर्ष में अहाब का पुत्र अहज्याह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा और दो वर्ष तक इस्राएल पर राज्य करता रहा। 52 और उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या। और उसकी चाज उसके माता पिता, और नबात के पुत्र यारोबाम की सी यी जिस ने इस्राएल से पाप करवाया या। 53 जैसे उसका पिता बाल की उपासने और उसे दणडवत करने से इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को क्रोधित करता रहा वैसे ही अहज्याह भी करता रहा।
1 अहाब के मरने के बाद मोआब इस्राएल के विरुद्ध हो गया। 2 और अहज्याह एक फिलमिलीदार खिड़की में से, जो शोमरोन में उसकी अटारी में यी, गिर पड़ा, और बीमार हो गया। तब उस ने दूतोंको यह कहकर भेजा, कि तुम जाकर एक्रोन के बालजबूब नाम देवता से यह पूछ आओ, कि क्या मैं इस बीमारी से बचूंगा कि नहीं? 3 तब यहोवा के दूत ने तिशबी एलिय्याह से कहा, उठकर शोमरोन के राजा के दूतोंसे मिलने को जा, और उन से कह, क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तुम एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने जाते हो? 4 इसलिथे अब यहोवा तुझ से योंकहता है, कि जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। तब एलिय्याह चला गया। 5 जब अहज्याह के दूत उसके पास लौट आए, तब उस ने उन से पूछा, तुम क्योंलौट आए हो? 6 उन्होंने उस से कहा, कि एक मनुष्य हम से मिलने को आया, और कहा, कि जिस राजा ने तुम को भेजा उसके पास लौटकर कहो, यहोवा योंकहता है, कि क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तू एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने को भेजता है? इस कारण जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। 7 उस ने उन से पूछा, जो मनुष्य तुम से मिलने को आया, और तुम से थे बातें कहीं, उसका कैसा रंग-रूप या? 8 उन्होंने उसको उत्तर दिया, वह तो रोंआर मनुष्य या और अपक्की कमर में चमड़े का फेंटा बान्धे हुए या। उस ने कहा, वह तिशबी एलिय्याह होगा। 9 तब उस ने उसके पास पचास सिपाहियोंके एक प्रधान को उसके पचासोंसिपाहियोंसमेत भेजा। प्रधान ने उसके पास जाकर क्या देखा कि वह पहाड़ की चोटी पर बैठा है। और उस ने उस से कहा, हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है, कि तू उतर आ। 10 एलिय्याह ने उस पचास सिपाहियोंके प्रधान से कहा, यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे तेरे पचासोंसमेत भस्म कर डाले। तब आकाश से आग उतरी और उसे उसके पचासोंसमेत भस्म कर दिया। 11 फिर राजा ने उसके पास पचास सिपाहियोंके एक और प्रधान को, पचासोंसिपाहियोंसमेत भेज दिया। प्रधान ने उस से कहा हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है, कि फुतीं से तू उतर आ। 12 एलिय्याह ने उत्तर देकर उन से कहा, यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे, तेरे पचासोंसमेत भस्म कर डाले; तब आकाश से परमेश्वर की आग उतरी और उसे उसके पचासोंसमेत भस्म कर दिया। 13 फिर राजा ने तीसरी बार पचास सिपाहियोंके एक और प्रधान को, पचासोंसिपाहियोंसमेत भेज दिया, और पचास का वह तीसरा प्रधान चढ़कर, एलिय्याह के साम्हने घुटनोंके बल गिरा, और गिड़गिड़ा कर उस से कहने लगा, हे परमेश्वर के भक्त मेरा प्राण और तेरे इन पचास दासोंके प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरें। 14 पचास पचास सिपाहियोंके जो दो प्रधान अपके अपके पचासोंसमेत पहिले आए थे, उनको तो आग ने आकाश से गिरकर भस्म कर डाला, परन्तु अब मेरा प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरे। 15 तब यहोवा के दूत ने उलिय्याह से कहा, उसके संग नीचे जा, उस से पत डर। तब एलिय्याह उठकर उसके संग राजा के पास नीचे गया। 16 और उस से कहा, यहोवा योंकहता है, कि तू ने तो एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने को दूत भेजे थे तो क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं कि जिस से तू पूछ सके? इस कारण तू जिस पलंग पर पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। 17 यहोवा के इस वचन के अनुसार जो एलिय्याह ने कहा या, वह मर गया। और उसके सन्तान न होने के कारण यहोराम उसके स्यान पर यहूदा के राजा यहोशापात के पुत्र यहोराम के दूसरे वर्ष में राज्य करने लगा। 18 अहज्याह के और काम जो उस ने किए वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं?
1 जब यहोवा एलिय्याह को बवंडर के द्वारा स्वर्ग में उठा लेने को या, तब एलिय्याह और एलीशा दोनोंसंग संग गिलगाल से चले। 2 एलिय्याह ने एलीशा से कहा, यहोवा मुझे बेतेल तक भेजता है इसलिथे तू यहीं ठहरा रह। एलीशा ने कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपय मैं तुझे नहीं छोड़ने का; इसलिथे वे बेतेल को चले गए। 3 और बेतेलवासी भविष्यद्वक्ताओं के चेले एलीशा के पास आकर कहने लगे, क्या तुझे मालूम है कि आज यहोवा तेरे स्वामी को तेरे ऊपर से उठा लेने पर है? उस ने कहा, हां, मुझे भी यह मालूम है, तुम चुप रहो। 4 और एलिय्याह ने उस से कहा, हे एलीशा, यहोवा मुझे यरीहो को भेजता है; इसलिथे तू यहीं ठहरा रह : उस ने कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपय मैं तुझे नहीं छोड़ने का; सो वे यरीहो को आए। 5 और यरीहोवासी भविष्यद्वक्ताओं के चेले एलीशा के पास आकर कहने लगे, क्या तुझे मालूम है कि आज यहोवा तेरे स्वामी को तेरे ऊपर से उठा लेने पर है? उस ने उत्तर दिया, हां मुझे भी मालूम है, तुम चुप रहो। 6 फिर एलिय्याह ने उस से कहा, यहोवा मुझे यरदन तक भेजता है, सो तू यहीं ठहरा रह; उस ने कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपय मैं तुझे नहीं छोड़नेका; सो वे दोनोंआगे चने। 7 और भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंमें से पचास जन जाकर उनके साम्हने दूर खड़े हुए, और वे दोनोंयरदन के तीर खड़े हुए। 8 तब एलिय्याह ने अपक्की चद्दर पकड़कर ऐंठ ली, और जल पर मारा, तब वह इधर उधर दो भाग हो गया; और वे दोनोंस्यल ही स्यल पार उतर गए। 9 उनके पार पहुंचने पर एलिय्याह ने एलीशा से कहा, उस से पहिले कि मैं तेरे पास से उठा लिथे जाऊं जो कुछ तू चाहे कि मैं तेरे लिथे करूं वह मांग; एलीशा ने कहा, तुझ में जो आत्मा है, उसका दूना भाग मुझे मिल जाए। 10 एलिय्याह ने कहा, तू ने कठिन बात मांगी है, तौभी यदि तू मुझे उठा लिथे जाने के बाद देखने पाए तो तेरे लिथे ऐसा ही होगा; नहीं तो न होगा। 11 वे चलते चलते बातें कर रहे थे, कि अचानक एक अग्नि मय रय और अग्निमय धोड़ोंने उनको अलग अलग किया, और एलिय्याह बवंडर में होकर स्वर्ग पर चढ़ गया। 12 और उसे एलीशा देखता और मुकारता रहा, हंाय मेरे पिता ! हाथ मेरे पिता ! हाथ इस्राएल के रय और सवारो ! जब वह उसको फिर देख न पड़ा, तब उस ने अपके वस्त्र पाड़े और फाड़कर दो भाग कर दिए। 13 फिर उस ने एलिय्याह की चद्दर उठाई जो उस पर से गिरी यी, और वह लौट गया, और यरदन के तीर पर खड़ा हुआ। 14 और उस ने एलिय्याह की वह चद्दर जो उस पर से गिरी यी, पकड़ कर जल पर मारी और कहा, एलिय्याह का परमेश्वर यहोवा कहां है? जब उस ने जल पर मारा, तब वह इधर उधर दो भाग हो गया और एलीशा पार हो गया। 15 उसे देखकर भविष्यद्वक्ताओं के चेले जो यरीहो में उसके साम्हने थे, कहने लगे, एलिय्याह में जो आत्मा यी, वही एलीशा पर ठहर गई है; सो वे उस से मिलने को आए और उसके साम्हने भूमि तक फुककर दणडवत की। 16 तब उन्होंने उस से कहा, सुन, तेरे दासोंके पास पचास बलवान पुरुष हैं, वे जाकर तेरे स्वामी को ढूढें, सम्भव है कि क्या जाने यहोवा के आत्मा ने उसको उठाकर किसीं पहाड़ पर वा किसी तराई में डाल दिया हो; उस ने कहा, मत भेजो। 17 जब उन्होंने उसको यहां तक दबाया कि वह लज्जित हो गया, तब उस ने कहा, भेज दो; सो उन्होंने पचास पुरुष भेज दिए, और वे उसे तीन दिन तक ढूंढ़ते रहे परन्तु न पाया। 18 उस समय तक वह यरीहो में ठहरा रहा, सो जब वे उसके पास लौट आए, तब उस ने उन से कहा, क्या मैं ने तुम से न कहा या, कि मत जाओ? 19 उस नगर के निवासियोंने एलीशा से कहा, देख, यह नगर मनभावने स्यान पर बसा है, जैसा मेरा प्रभु देखता है परन्तु पानी बुरा है; और भूमि गर्भ गिरानेवाली है। 20 उस ने कहा, एक नथे प्याले में नमक डालकर मेरे पास ले आओ; वे उसे उसके पास ले आए। 21 तब वह जल के सोते के पास निकल गया, और उस में नमक डालकर कहा, यहोवा योंकहता है, कि मैं यह पानी ठीक कर देता हूँ, जिस से वह फिर कभी मृत्यु वा गर्भ गिरने का कारण न होगा। 22 एलीशा के इस वचन के अनुसार पानी ठीक हो गया, और आज तक ऐसा ही है। 23 वहां से वह बेतेल को चला, और मार्ग की चढ़ाई में चल रहा या कि नगर से छोटे लड़के निकलकर उसका ठट्ठा करके कहने लगे, हे चन्दुए चढ़ जा, हे चन्दुए चढ़ जा। 24 तब उस ने पीछे की ओर फिर कर उन पर दृष्टि की और यहोवा के नाम से उनको शाप दिया, तब जंगल में से दो रीछिनियोंने निकलकर उन में से बयालीस लड़के फाड़ डाले। 25 वहां से वह कर्म्मेल को गया, और फिर वहां से शोमरोन को लौट गया।
1 यहूदा के राजा यहोशापात के अठारहवें वर्ष में अहाब का पुत्र यहोराम शिमरोन में राज्य करने लगा, और बारह पर्ष तक राज्य करता रहा। 2 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है नौभी उस ने अपके माता-पिता के बराबर नहीं किया वरन अपके पिता की बनवाई हुई बाल की लाठ को दूर किया। 3 तौभी वह नबात के पुत्र यारोबाम के ऐसे पापोंमें जैसे उस ने इस्राएल से भी कराए लिपटा रहा और उन से न फिरा। 4 मोआब का राजा मेशा बहुत सी भेड़-बकरियां रखता या, और इस्राएल के राजा को एक लाख बच्चे और एक लाख मेढ़ोंका ऊन कर की रीति से दिया करता या। 5 जब अहाब मर गया, तब मोआब के राजा ने इस्राएल के राजा से बलवा किया। 6 उस समय राजा यहोराम ने शोमरोन से निकलकर सारे इस्राएल की गिनती ली। 7 और उस ने जाकर यहूदा के राजा यहोशापात के पास योंकहला भेजा, कि मोआब के राजा ने मुझ से बलवा किया है, क्या तू मेरे संग मोआब से लड़ने को चलेगा? उस ने कहा, हां मैं चलूंगा, जैसा तू वैसा मैं, जैसी तेरी प्रजा वैसी मेरी प्रजा, और जैसे तेरे धोड़े वैसे मेरे भी घोड़े हैं। 8 फिर उस ने पूछा, हम किस मार्ग से जाएं? उस ने उत्तर दिया, एदोम के जंगल से होकर। 9 तब इस्राएल का राजा, और यहूदा का राजा, और एदोम का राजा चले और जब सात दिन तक धूमकर चल चुके, तब सेना और उसके पीछे पीछे चलनेवाले पशुओं के लिथे कुछ पानी न मिला। 10 और इस्राएल के राजा ने कहा, हाथ ! यहोवा ने इन तीन राजाओं को इसलिथे इकट्ठा किया, कि उनको मोआब के हाथ में कर दे। 11 परन्तु सहोशापात ने कहा, क्या यहां यहोवा का कोई नबी नहीं है, जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछें? इस्राएल के राजा के किसी कर्मचारी ने उत्तर देकर कहा, हां, शापात का पुत्र एलीशा जो एलिय्याह के हाथोंको धुलाया करता या वह तो यहां है। 12 तब यहोशापात ने कहा, उसके पास यहोवा का वचन पहुंचा करता है। तब इस्राएल का राजा और यहोशापात और एदोम का राजा उसके पास गए। 13 तब एलीशा ने इस्राएल के राजा से कहा, मेरा तुझ से क्या काम है? अपके पिता के भविष्यद्वक्ताओं और अपक्की माता के नबियोंके पास जा। इस्राएल के राजा ने उस से कहा, ऐसा न कह, क्योंकि यहोवा ने इन तीनोंराजाओं को इसलिथे इकट्ठा किया, कि इनको मोआब के हाथ में कर दे। 14 एलीशा ने कहा, सेनाओं का यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्यित रहा करता हूँ, उसके जीवन की शपय यदि मैं यहूदा के राजा यहोशापात का आदर मान न करता, तो मैं न तो तेरी ओर मुह करता और न तुझ पर दृष्टि करता । 15 अब कोई बजवैय्या मेरे पास ले आओ। जब बजवैय्या बजाने लगा, तब यहोवा की शक्ति एलीशा पर इुई। 16 और उस ने कहा, इस नाले में तुम लोग इतना खोदो, कि इस में गड़हे ही गड़हे हो जाएं। 17 क्योंकि यहोवा योंकहता है, कि तुम्हारे साम्हने न तो वायु चलेगी, और न वर्षा होगी; तौभी यह नाला पानी से भर जाएगा; और अपके गाय बैलोंऔर पशुओं समेत तुम पीने पाओगे। 18 और इसको हलकी सी बात जानकर यहोवा मोआब को भी तुम्हारे हाथ में कर देगा। 19 तब तुम सब गढ़वाले और उत्तम नगरोंको नाश करना, और सब अच्छे वृझोंको काट डालना, और जल के सब खेतोंको भर देना, और सब अच्छे खेतोंमें पत्यर फेंककर उन्हें बिगाड़ देना। 20 विहान को अन्नबलि चढ़ाने के समय एदोम की ओर से जल बह आया, और देश जल से भर गया। 21 यह सुनकर कि राजाओं ने हम से युद्ध करते के लिथे चढ़ाई की है, जितने मोआबियोंकी अवस्या हयियार बान्धने योग्य यी, वे सब बुलाकर इकट्ठे किए गए, और सिवाने पर खड़े हुए। 22 बिहान को जब वे उठे उस समय सूर्य की किरणोंउस जल पर ऐसी पक्कीं कि वह मोआबियोंकी परली ओर से लोहू सा लाल दिखाई पड़ा। 23 तो वे कहने लगे वह तो लोहू होगा, नि:सन्देह वे राजा एक दूसरे को मारकर नाश हो गए हैं, इसलिथे अब हे मोआबियो लूट लेने को जाओ; 24 और जब वे इस्राएल की छावनी के पास आए ही थे, कि इस्राएली उठकर मोआबियोंको मारने लगे और वे उनके साम्हने से भाग गए; और वे मोआब को मारते मारते उनके देश में पहुंच गए। 25 और उन्होंने नगरोंको ढा दिया, और सब अच्छे खेतोंमें एक एक पुरुष ने अपना अपना मत्यर डाल कर उन्होंभर दिया; और जल के सब सोतोंको भर दिया; और सब अच्छे अच्छे वृझोंको काट डाला, यहां तक कि कीर्हरेशेत के पत्य्र तो रह गए, परन्तु उसको भी चारोंओर गोफन चलानेवालोंने जाकर मारा। 26 यह देखकर कि हम युद्ध में हार चले, मोआब के राजा ने सात सौ तलवार रखनेवाले पुरुष संग लेकर एदोम के राजा तक पांति चीरकर पहुंचने का यत्न किया परन्तु पहुंच न सका। 27 तब उस ने अपके जेठे पुत्र को जो उसके स्यान में राज्य करनेवाला या पकड़कर शहरपनाह पर होमबलि चढ़ाया। इस कारण इस्राएल पर बड़ा ही क्रोध हुआ, सो वे उसे छोड़कर अपके देश को लौट गए।
1 भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंकी पत्नियोंमें से एक स्त्री ने एलीशा की दोहाई देकर कहा, तेरा दास मेरा पति मर गया, और तू जानता है कि वह यहोवा का भय पाननेवाला या, और जिसका वह कर्जदार या वह आया है कि मेरे दोनोंपुत्रोंको अपके दाय बनाने के लिथे ले जाए। 2 एलीशा ने उस से पूछा, मैं तेरे लिथे क्या करूं? मुझ से कह, कि तेरे घर में क्या है? उस ने कहा, तेरी दासी के घर में एक हांड़ी तेल को छोड़ और कुछ तहीं है। 3 उस ने कहा, तू बाहर जाकर अपक्की सब पड़ोसिक्कों खाली बरतन मांग ले आ, और योड़े बरतन न लाना। 4 फिर तू अपके बेटोंसमेत अपके घर में जा, और द्वार बन्द करकें उन सब बरतनोंमें तेल उणडेल देना, और जो भर जाए उन्हें अलग रखना। 5 तब वह उसके पास से चक्की गई, और अपके बेटोंसमेत अपके घर जाकर द्वार बन्द किया; तब वे तो उसके पास बरतन लाते गए और वह उणडेलती गई। 6 जब बरतन भर गए, तब उस ने अपके बेटे से कहा, मेरे पास एक और भी ले आ, उस ने उस से कहा, और बरतन तो नहीं रहा। तब तेल यम गया। 7 तब उस ने जाकर परमेश्वर के भक्त को यह बता दिया। ओर उस ने कहा, जा तेल बेचकर ऋण भर दे; और जो रह जाए, उस से तू अपके पुत्रोंसहित अपना निर्वाह करना। 8 फिर एक दिन की बात है कि एलीशा शूनेम को गया, जहां एक कुलीन स्त्री यी, और उस ने उसे रोटी खाने के लिथे बिनती करके विवश किया। और जब जब वह उधर से जाता, तब तब वह वहां रोटी खाने को उतरता या। 9 और उस स्त्री ने अपके पति से कहा, सुन यह जो बार बार हमारे यहां से होकर जाया करता है वह मुझे परमेश्वर का कोई पवित्र भक्त जान पड़ता है। 10 तो हम भीत पर एक छोटी उपरौठी कोठरी बनाएं, और उस में उसके लिथे एक खाट, एक मेज, एक कुसीं और एक दीवट रखें, कि जब जब वह हमारे यहां आए, तब तब उसी में टिका करे। 11 एक दिन की बात है, कि वह वहां जाकर उस उपरौठी कोठरी में टिका और उसी में लेट गया। 12 और उस ने अपके सेवक गेहजी से कहा, उस शुनेमिन को बुला ले। उसके बुलाने से वह उसके साम्हने खड़ी हुई। 13 तब उस ने गेहजी से कहा, इस से कह, कि तू ने हमारे लिथे ऐसी बड़ी चिन्ता की है, तो तेरे लिथे क्या किया जाए? क्या तेरी चर्चा राजा, वा प्रधान सेनापति से की जाए? उस ने उत्तर दिया मैं तो अपके ही लोगोंमें रहती हूँ। 14 फिर उस ने कहा, तो इसके लिथे क्या किया जाए? गेहजी ने उत्तर दिया, निश्चय उसके कोई लड़का नहीं, और उसका पति बूढ़ा है। 15 उस ने कहा, उसको बुला ले। और जब उस ने उसे बुलाया, तब वह द्वार में खड़ी हुई। 16 तब उस ने कहा, बसन्त ऋतु में दिन पूरे होने पर तू एक बेटा छाती से लगाएगी। स्त्री ने कहा, हे मेरे प्रभु ! हे परमेश्वर के भक्त ऐसा नहीं, अपक्की दासी को धोखा न दे। 17 और स्त्री को गर्भ रहा, और वसन्त ऋतु का जो समय एलीशा ने उस से कहा या, उसी समय जब दिन पूरे हुए, तब उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। 18 और जब लड़का बड़ा हो गया, तब एक दिन वह अपके पिता के पास लवनेवालोंके निकट निकल गया। 19 और उस ने अपके पिता से कहा, आह ! मेरा सिर, आह ! मेरा सिर। तब पिता ने अपके सेवक से कहा, इसको इसकी माता के पास ले जा। 20 वह उसे उठाकर उसकी माता के पास ले गया, फिर वह दोपहर तक उसके घुटनोंपर बैठा रहा, तब मर गया। 21 तब उस ने चढ़कर उसको परमेश्वर के भक्त की खाट पर लिटा दिया, और निकलकर किवाड़ बन्द किया, तब उतर गई। 22 और उस ने अपके पति से पुकारकर कहा, मेरे पास एक सेवक और एक गदही तुरन्त भेज दे कि मैं परमेश्वर के भक्त के यहां फट पट हो आऊं। 23 उस ने कहा, आज तू उसके यहां क्योंजाएगी? आज न तो नथे चांद का, और न विश्रम का दिन है; उस ने कहा, कल्याण होगा। 24 तब उस स्त्री ने गदही पर काठी बान्ध कर अपके सेवक से कहा, हांके चल; और मेरे कहे बिना हांकने में ढिलाई न करना। 25 तो वह चलते चलते कर्मेल पर्वत को परमेश्वर के भक्त के निकट पहुंची। उसे दूर से देखकर परमेश्वर के भक्त ने अपके सेवक गेहजी से कहा, देख, उधर तो वह शूनेमिन है। 26 अब उस से मिलने को दौड़ जा, और उस से पूछ, कि तू कुशल से है? तेरा पति भी कुशल से है? और लड़का भी कुशल से है? पूछने पर स्त्री ने उत्तर दिया, हां, कुशल से हैं। 27 वह पहाड़ पर परमेश्वर के भक्त के पास पहुंची, और उसके पांव पकड़ने लगी, तब गेहजी उसके पास गया, कि उसे धक्का देकर हटाए, परन्तु परमेश्वर के भक्त ने कहा, उसे छोड़ दे, उसका मन य्याकुल है; परन्तु यहोवा ने मुझ को नहीं बताया, छिपा ही रखा है। 28 तब वह कहने लगी, क्या मैं ने अपके प्रभु से पुत्र का वर मांगा या? क्या मैं ने न कहा या मुझे धोखा न दे? 29 तब एलीशा ने गेहजी से कहा, अपक्की कमर बान्ध, और मेरी छड़ी हाथ में लेकर चला जा, मार्ग में यदि कोई तुझे मिले तो उसका कुशल न पूछना, और कोई तेरा कुशल पूछे, तो उसको उत्तर न देना, और मेरी यह छड़ी उस लड़के के मुंह पर धर देना। 30 तब लड़के की मां ने एलीशा से कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपय मैं तुझे न छोड़ूंगी। तो वह उठकर उसके पीछे पीछे चला। 31 उन से पहिले पहुंचकर गेहजी ने छड़ी को उस लड़के के मुंह पर रखा, परन्तु कोई शब्द न सुन पड़ा, और न उस ने कान लगाया, तब वह एलीशा से मिलने को लौट आया, और उसको बतलादिया दिया, कि लड़का नहीं जागा। 32 जब एलीशा घर में आया, तब क्या देखा, कि लड़का मरा हुआ उसकी खाट पर पड़ा है। 33 तब उस ने अकेला भीतर जाकर किवाड़ बन्द किया, और यहोवा से प्रार्यना की। 34 तब वह चढ़कर लड़के पर इस रीति से लेट गया कि अपना मुंह उसके मुंह से और अपक्की आंखें उसकी आंखोंसे और अपके हाथ उसके हाथोंसे मिला दिथे और वह लड़के पर पसर गया, तब लड़के की देह गर्म होने लगी। 35 और वह उसे छोड़कर घर में इधर उधर टहलने लगा, और फिर चढ़कर लड़के पर पसर गया; तब लड़के ने सात बार छींका, और अपक्की आंखें खोलीं। 36 तब एलीशा ने गेहजी को बुलाकर कहा, शूनेमिन को बुला ले। जब उसके बुलाने से वह उसके पास आई, तब उस ने कहा, अपके बेटे को उठा ले। 37 वह भीतर बई, और उसके पावोंपर गिर भूमि तक फुककर दणडवत किया; फिर अपके बेटे को उठाकर निकल गई। 38 तब एलीशा गिलगाल को लौट गया। उस समय देश में अकाल या, और भविष्यद्वक्ताओं के चेले उसके साम्हने बैटे हुए थे, और उस ने अपके सेवक से कहा, हण्डा चढ़ाकर भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंके लिथे कुछ पका। 39 तब कोई मैदान में साग तोड़ने गया, और कोई जंगली लता पाकर अपक्की अंकवार भर इन्द्रायण तोड़ ले आया, और फांक फांक करके पकने के लिथे हण्डे में डाल दिया, और वे उसको न पहिचानते थे। 40 तब उन्होंने उन मनुष्योंके खाने के लिथे हण्डे में से परोसा। खाते समय वे चिल्लाकर बोल उठे, हे परमेश्वर के भक्त हण्डे में माहुर है, और वे उस में से खा न सके। 41 तब एलीशा ने कहा, अच्छा, कुछ मैदा ले आओ, तब उस ने उसे हण्डे में डाल कर कहा, उन लोगोंके खाने के लिथे परोस दे, फिर हण्डे में कुछ हानि की वस्तु न रही। 42 और कोई पतुष्य बालशालीशा से , पहिले उपके हुए जव की बीस रोटियां, और अपक्की बोरी में हरी बालें परमेश्वर के भक्त के पास ले आया; तो एलीशा ने कहा, उन लोगोंको खाने के लिथे दे। 43 उसके टहलुए ने कहा, क्या मैं सौ मनुष्योंके साम्हने इतना ही रख दूं? उस ने कहा, लोगोंको दे दे कि खएं, क्योंकि यहोवा योंकहता है, उनके खाने के बाद कुछ बच भी जाएगा। 44 तब उस ने उनके आगे धर दिया, और यहोवा के वचन के अनुसार उनके खाने के बाद कुछ बच भी गया।
1 अराम के राजा का नामान नाम सेनापति अपके स्वामी की दृष्टि में बड़ा और प्रतिष्ठित पुम्ष या, क्योंकि यहोवा ने उसके द्वारा अरामियोंको विजयी किया या, और यह शूरवीर या, परन्तु कोढ़ी या। 2 अरामी लोग दल बान्धकर इस्राएल के देश में जाकर वहां से एक छोटी लड़की बन्धुवाई में ले आए थे और वह नामान की पत्नी की सेवा करती यी। 3 उस ने अपक्की स्वामिन से कहा, जो मेरा स्वामी शोमरोन के भविष्यद्वक्ता के पास होता, तो क्या ही अच्छा होता ! क्योंकि वह उसको कोढ़ से चंगा कर देता। 4 तो किसी ने उसके प्रभु के पास जाकर कह दिया, कि इस्राएली लड़की इस प्रकार कहती है। 5 अराम के राजा ने कहा, तू जा, मैं इस्राएल के राजा के पास एक पत्र भेजूंगा; तब वह दस किक्कार चान्दी और छ:हजार टुकड़े सोना, और दस जोड़े कपके साय लेकर रवाना हो गया। 6 और वह इस्राएल के राजा के पास वह पत्र ले गया जिस में यह लिखा या, कि जब यह पत्र तुझे मिले, तब जानना कि मैं ने नामान नाम अपके एक कर्मचारी को तेरे पास इसलिथे भेजा है, कि तू उसका कोढ़ दूर कर दे। 7 इस पत्र के पढ़ने पर इस्राएल का राजा अपके वस्त्र फाड़कर बोला, क्या मैं मारनेवाला और जिलानेवाला परमेश्वर हूँ कि उस पुरुष ने मेरे पास किसी को इसलिथे भेजा है कि मैं उसका कोढ दूर करूं? सोच विचार तो करो, वह मुझ से फगड़े का कारण ढूंढ़ता होगा। 8 यह सुनकर कि इस्राएल के राजा ने अपके वस्त्र फाड़े हैं, परमेश्वर के भक्त एलीशा ने राजा के पास कहला भेजा, तू ने क्योंअपके वस्त्र फाड़े हैं? वह मेरे पास आए, तब जान लेगा, कि इस्राएल में भविष्यद्वक्ता तो है। 9 तब नामान धोड़ोंऔर रयोंसमेत एलीशा के द्वार पर आकर खड़ा हुआ। 10 तब एलीशा ने एक दूत से उसके पास यह कहला भेजा, कि तू जाकर यरदन में सात बार डुबकी मार, तब तेरा शरीर ज्योंका त्योंहो जाएगा, और तू शुद्ध होगा। 11 परन्तु नामान क्रोधित हो यह कहता हुआ चला गया, कि मैं ने तो सोचा या, कि अवश्य वह मेरे पास बाहर आएगा, और खड़ा होकर अपके परमेश्वर यहोवा से प्रार्यना करके कोढ़ के स्यान पर अपना हाथ फेरकर कोढ़ को दूर करेगा ! 12 क्या दमिश्क की अबाना और पर्पर नदियां इस्राएल के सब जलाशयोंसे अत्तम नहीं हैं? क्या मैं उन में स्नान करके शुद्ध नहीं हो सकता हूँ? इसलिथे वह जलजलाहट से भरा हुआ लौटकर चला गया। 13 तब उसके सेवक पास आकर कहने लगे, हे हमारे पिता यदि भविष्यद्वक्ता तुझे कोई भारी काम करने की आज्ञा देता, तो क्या तू उसे न करता? फिर जब वह कहता है, कि स्नान करके शुद्ध हो जा, तो कितना अधिक इसे मानना चाहिथे। 14 तब उस ने परमेश्वर के भक्त के वचन के अनुसार यरदन को जाकर उस में सात बार डुबकी मारी, और उसका शरीर छोटे लड़के का सा हो गया; उौर वह शुद्ध हो गया। 15 तब वह अपके सब दल बल समेत परमेश्वर के भक्त के यहां लौट आया, और उसके सम्मुख खड़ा होकर कहने लगा सुन, अब मैं ने जान लिया है, कि समस्त पृय्वी में इस्राएल को छोड़ और कहीं परमेश्वर नहीं है। इसलिथे अब अपके दास की भेंट ग्रहण कर। 16 एलीशा ने कहा, यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्यित रहता हूँ उसके जीवन की शपय मैं कुछ भेंट न लूंगा, और जब उस ने उसको बहुत विवश किया कि भेंट को ग्रहण करे, तब भी वह इनकार ही करता रहा। 17 तब नामान ने कहा, अच्छा, तो तेरे दास को दो खच्चर मिट्टी मिले, क्योंकि आगे को तेरा दास यहोवा को छोड़ और किसी ईश्वर को होमबलि वा मेलबलि न चढ़ाएगा। 18 एक बात तो यहोवा तेरे दास के लिथे झमा करे, कि जब मेरा स्वामी रिम्मोन के भवन में दणडवत करने को जाए, और वह मेरे हाथ का सहारा ले, और योंमुझे भी रिम्मोन के भवन में दणडवत करनी पके, तब यहोवा तेरे दास का यह काम झमा करे कि मैं रिम्मोन के भवन में दणडवत करूं। 19 उस ने उस से कहा, कुशल से बिदा हो। 20 वह उसके यहां से योड़ी दूर जला गया या, कि परमेश्वर के भक्त एलीशा का सेवक गेहजी सोचने लगा, कि मेरे स्वामी ने तो उस अरामी नामान को ऐसा ही छोड़ दिया है कि जो वह ले आया या उसको उस ने न लिया, परन्तु यहोवा के जीवन की शपय मैं उसके पीछे दौड़कर उस से कुछ न कुछ ले लूंगा। 21 तब गेहजी नामान के पीछे दौड़ा, और नामान किसी को अपके पीछे दौड़ता हूआ देखकर, उस से मिलने को रय से उतर पड़ा, और पूछा, सब कुशल झेम तो है? 22 उस ने कहा, हां, सब कुशल है; परन्तु मेरे स्वामी ने मुझे यह कहने को भेजा है, कि एप्रैम के पहाड़ी देश से भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंमें से दो जवान मेरे यहां अभी आए हैं, इसदिथे उनके लिथे एक किक्कार चान्दी और दो जोड़े वस्त्र दे। 23 नामान ने कहा, दो किक्कार लेने को प्रसन्न हो, तब उस ने उस से बहुत बिनती करके दो किक्कार खन्दी अलग यैलियोंमें बान्धकर, दो जोड़े वस्त्र समेत अपके दो सेवकोंपर लाद दिया, और वे उन्हें उसके आगे आगे ले चले। 24 जब वह टीले के पास पहुंचा, तब उस ने उन वस्तुओं को उन से लेकर घर में रख दिया, और उन मनुष्योंको बिदा किया, और वे चले गए। 25 और वह भीतर जाकर, अपके स्वामी के साम्हने खड़ा हुआ। एलीशा ने उस से पूछा, हे गेहजी तू कहां से आता है? उस ने कहा, तेरा दास तो कहीं नहीं गया, 26 उस ने उस से कहा, जब वह पुरुष इधर मुंह फेरकर तुझ से मिलने को अपके रय पर से उतरा, तब वह पूरा हाल मुझे मालूम या; क्या यह समय चान्दी वा वस्त्र वा जलपाई वा दाख की बारियां, भेड़-बकरियां, गायबैल और दास-दासी लेने का है? 27 इस कारण से नामान का कोढ़ तुझे और तेरे वंश को सदा लगा रहेगा। तब वह हिम सा श्वेत कोढ़ी होकर उसके साम्हने से चला गया।
1 और भ्विष्यद्वक्ताओं के चेलोंमें से किसी ने एलीशा से कहा, यह स्यान जिस में हम तेरे साम्हने रहते हैं, वह हमारे लिथे सकेत है। 2 इसलिथे हम यरदन तक जाएं, और वहां से एक एक बल्ली लेकर, यहां अपके रहने के लिथे एक स्यान बना लें; उस ने कहा, अच्छा जाओ। 3 तब किसी ने कहा, अपके दासोंके संग चलने को प्रसन्न हो, उस ने कहा, चलता हूँ। 4 तो वह उनके संग चला और वे यरदन के तीर पहुंचकर लकड़ी काटने लगे। 5 परन्तु जब एक जन बल्ली काट रहा या, तो कुल्हाड़ी बेंट से निकलकर जल में गिर गई; सो वह चिल्लाकर कहने लगा, हाथ ! मेरे प्रभु, वह तो मंगनी की यी। 6 परमेश्वर के भक्त ने पूछा, वह कहां गिरी? जब उस ने स्यान दिखाया, तब उस ने एक लकड़ी काटकर वहां डाल दी, और वह लाहा पानी पर तैरने लगा। 7 उस ने कहा, उसे उठा ले, तब उस ने हाथ बढ़ाकर उसे ले लिया। 8 ओैर अराम का जाजा इस्राएल से युद्ध कर रहा या, और सम्मति करके अपके कर्मचारियोंसे कहा, कि अमुक स्यान पर मेरी छावनी होगी। 9 तब परमेश्वर के भक्त ने इस्राएल के राजा के पास कहला भेजा, कि चौकसी कर और अमुक स्यान से होकर न जाना क्योंकि वहां अरामी चढ़ाई करनेवाले हैं। 10 तब इस्राएल के राजा ने उस स्यान को, जिसकी चर्चा करके परमेश्वर के भक्त ने उसे चिताया या, भेजकर, अपक्की रझा की; और उस प्रकार एक दो बार नहीं वरन बहुत बार हुआ। 11 इस कारण अराम के राजा का मन बहुत घबरा गया; सो उस ने अपके कर्मचारियोंको बुलाकर उन से पूछा, क्या तुम मुझे न बताओगे कि हम लोगोंमें से कौन इस्राएल के राजा की ओर का है? उसके एक कर्मचारी ने कहा, हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! ऐसा नहीं, 12 एलीशा जो इस्राएल में भविष्यद्वक्ता है, वह इस्राएल के राजा को वे बातें भी बताया करता है, जो तू शयन की कोठरी में बोलता है। 13 राजा ने कहा, जाकर देखो कि वह कहां है, तब मैं भेजकर उसे पहड़वा मंगाऊंगा। और उसको यह समाचार मिला कि वह दोतान में है। 14 तब उस ने वहां घोड़ोंऔर रयोंसमेत एक भारी दल भेजा, और उन्होंने रात को आकर नगर को घेर लिया। 15 भोर को परमेश्वर के भक्त का टहलुआ उठा और निकलकर क्या देखता है कि घोड़ोंऔर रयोंसमेत एक दल नगर को घेरे हुए पड़ा है। और उसके सेवक ने उस से कहा, हाथ ! मेरे स्वामी, हम क्या करें? 16 उस ने कहा, मत डर; क्योंकि जो हमारी ओर हैं, वह उन से अधिक हैं, जो उनकी ओर हैं। 17 तब एलीशा ने यह प्रार्यना की, हे यहोवा, इसकी आंखें खोल दे कि यह देख सके। तब यहोवा ने सेवक की आंखें खोल दीं, और जब वह देख सका, तब क्या देखा, कि एलीशा के चारोंओर का पहाड़ अग्निमय घोड़ोंऔर रयोंसे भरा हुआ है। 18 जब अरामी उसके पास आए, तब एलीशा ने यहोवा से प्रार्यना की कि इस दल को अन्धा कर डाल। एलीशा के इस वचन के अनुसार उस ने उन्हें अन्धा कर दिया। 19 तब एलीशा ने उन से कहा, यह तो मार्ग नहीं है, और न यह नगर है, मेरे पीछे हो लो; मैं तुम्हें उस पनुष्य के पास जिसे तुम ढूंढ़ रहे हो पहुंचाऊंगा। तब उस ने उन्हें शोमरोन को पहुंचा दिया। 20 जब वे शोमरोन में आ गए, तब एलीशा ने कहा, हे यहोवा, इन लोगोंकी आंखें खोल कि देख सकें। तब यहोवा ने उनकी आंखें खोलीं, और जब वे देखने लगे तब क्या देखा कि हम शोमरोन के मध्य में हैं। 21 उनको देखकर इस्राएल के राजा ने एलीशा से कहा, हे मेरे पिता, क्या मैं इनको मार लूं? मैं उनको मार लूं? 22 उस ने उत्तर दिया, मत मार। क्या तू उनको मार दिया करता है, जिनको तू तलवार और धनुष से बन्धुआ बना लेता है? तू उनको अन्न जल दे, कि खा पीकर अपके स्वामी के पास चले जाएं। 23 तब उस ने उनके लिथे बड़ी जेवनार की, और जब वे खा पी चुके, तब उस ने उन्हें बिदा किया, और वे अपके स्वामी के पास चले गए। इसके बाद अराम के दल इस्राएल के देश में फिर न आए। 24 परन्तु इसके बाद अराम के राजा बेंन्हदद ने अपक्की समस्त सेना इकट्ठी करके, शोमरोन पर चढ़ाई कर दी और उसको घेर लिया। 25 तब शोमरोन में बड़ा अकाल पड़ा और वह ऐसा घिरा रहा, कि अन्त में एक गदहे का सिर चान्दी के अस्सी टुकड़ोंमें और कब की चौयाई भर कबूतर की बीट पांच टुकड़े चान्दी तक बिकने लगी। 26 और इस्राएल का राजा शहरपनाह पर टहल रहा या, कि एक स्त्री ने पुकार के उस से कहा, हे प्रभु, हे राजा, बचा। 27 उस ने कहा, यदि यहोवा तुझे न बचाए, तो मैं कहां से तुझे बचाऊं? क्या खलिहान में से, वा दाखरस के कुण्ड में से? 28 फिर राजा ने उस से पूछा, तुझे क्या हुआ? उस ने उत्तर दिया, इस स्त्री ने मुझ से कहा या, मुझे अपना बेटा दे, कि हम आज उसे खा लें, फिर कल मैं अपना बेटा दूंगी, और हम उसे भी खाएंगी। 29 तब मेरे बेटे को पकाकर हम ने खा लिया, फिर दूसरे दिन जब मैं ने इस से कहा कि अपना बेटा दे कि हम उसे खा लें, तब इस ने अपके बेटे को छिपा रखा। 30 उस स्त्री की थे बातें सुनते ही, राजा ने अपके वस्त्र फाड़े ( वह तो शहरपनाह पर टहल रहा या ), जब लोगोंने देखा, तब उनको यह देख पड़ा कि वह भीतर अपक्की देह पर टाट पहिने है। 31 तब वह बोल उठा, यदि मैं शापात के वुत्र एलीशा का सिर आज उसके घड़ पर रहने दूं, तो परमेश्वर मेरे साय ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करे। 32 एलीशा अपके घर में बैठा हुआ या, और पुरनिथे भी उसके संग बैठे थे। सो जब राजा ने अपके पास से एब जन भेजा, तब उस दूत के पहुंचने से पहिले उस ने पुरनियोंसे कहा, देखो, इस खूनी के बेटे ने किसी को मेरा सिर काटते को भेजा है; इसलिथे जब वह दूत आए, तब किवाड़ बन्द करके रोके रहना। क्या उसके स्वामी के पांव की आहट उसके पीछे नहीं सुन पड़ती? 33 वह उन से योंबातें कर ही रहा या कि दूत उसके पास आ पहुंचा। और राजा कहने लगा, यह विपत्ति यहोवा की ओर से है, अब मैं आगे को यहोवा की बाट क्योंजोहता रहूं?
1 तब एलीशा ने कहा, यहोवा का वचन सुनो, यहोवा योंकहता है, कि कल इसी समय शोमरोन के फाटक में सआ भर मैदा एक शेकेल में और दो सआ जव भी एक शेकेल में बिकेगा। 2 तब उस सरदार ने जिसके हाथ पर राजा तकिया करता य, परमेश्वर के भक्त को उत्तर देकर कहा, सुन, चाहे यहोवा आकाश के फरोखे खोले, तौभी क्या ऐसी बात हो सकेगी? उस ने कहा, सुन, तू यह अपक्की आंखोंसे तो देखेगा, परन्तु उस अन्न में से कुछ खाने न पाएगा। 3 और चार कोढ़ी फाटक के बाहर थे; वे आपस में कहने लगे, हम क्योंयहां बैठे बैठे मर जाएं? 4 यदि हम कहें, कि नगर में जाएं, तो वहां मर जाएंगे; क्योंकि वहां मंहगी पक्की है, और जो हम यहीं बैठे रहें, तौभी मर ही जाएंगे। तो आओ हम अराम की सेना में पकड़े जाएं; यदि वे हम को जिलाए रखें तो हम जीवित रहेंगे, और यदि वे हम को मार डालें, तौभी हम को मरना ही है। 5 तब वे सांफ को अराम की छावनी में जाने को चले, और अराम की छावनी की छोर पर पहुंचकर क्या देखा, कि वहां कोई नहीं है। 6 क्योंकि प्रभु ने अराम की सेना को रयोंऔर घोड़ोंकी और भारी सेना की सी आहट सुनाई यी, और वे आपस में कहने लगे थे कि, सुनो, इस्राएल के राजा ने हित्ती और मिस्री राजाओं को बेतन पर बुलवाया है कि हम पर चढ़ाई करें। 7 इसलिथे वे सांफ को उठकर ऐसे भाग गए, कि अपके डेरे, घोड़े, गदहे, और छावनी जैसी की तैसी छोड़-छाड़ अपना अपना प्राण लेकर भाग गए। 8 तो जब वे कोढ़ी छावनी की छोर के डेरोंके पास पहुंचे, तब एक डेरे में घुसकर खाया पिया, और उस में से चान्दी, सोना और वस्त्र ले जाकर छिपा रखा; फिर लौटकर दूसरे डेरे में घुस गए और उस में से भी ले जाकर छिपा रखा। 9 तब वे आपस में कहने लगे, जो हम कर रहे हैं वह अच्छा काम नहीं है, यह आनन्द के समाचार का दिन है, परन्तु हम किसी को नहीं बताते। जो हम पह फटने तक ठहरे रहें तो हम को दणड मिलेगा; सो अब आओ हम राजा के घराने के पास जाकर यह बात बतला दें। 10 तब वे चले और नगर के चौकीदारोंको बुलाकर बताया, कि हम जो अराम की छावनी में गए, तो क्या देखा, कि वहां कोई नहीं है, और मनुष्य की कुछ आहट नहीं है, केवल बन्धे हूए घोड़े और गदहे हैं, और डेरे जैसे के तैसे हैं। 11 तब चौकीदारोंने पुकार के राजभवन के भीतर समाचार दिया। 12 और राजा रात ही को उठा, और अपके कर्मचारियोंसे कहा, मैं तुम्हें बताता हूँ कि अरामियोंने हम से क्या किया है? वे जानते हैं, कि हम लोग भूखे हैं इस कारण वे छावनी में से मैदान में छिपके को यह कहकर गए हैं, कि जब वे नगर से निकलेंगे, तब हम उनको जीवित ही पकड़कर नगर में घुसने पाएंगे। 13 परन्तु राजा के किसी कर्मचारी ने उत्तर देकर कहा, कि जो घोड़े तगर में बच रहे हैं उन में से लोग पांच घोड़े लें, और उनको भेजकर हम हाल जान लें। ( वे तो इस्राएल की सब भीड़ के समान हैं जो नगर में रह गए हैं वरन इस्राएल की जो भीड़ मर मिट गई है वे उसी के समान हैं। ) 14 सो उन्होंने दो रय और उनके घोड़े लिथे, और राजा ने उनको अराम की सेना के पीछे भेजा; और कहा, जाओ, देखो। 15 तब वे यरदन तक उनके पीछे चले गए, और क्या देखा, कि पूरा मार्ग वस्त्रोंऔर पात्रोंसे भरा पड़ा है, जिन्हें अरामियोंने उतावली के मारे फेंक दिया या; तब दूत लौट आए, और राजा से यह कह सुनाया। 16 तब लोगोंने निकलकर अराम के डेरोंको लूट लिया; और यहोवा के वचन के अनुसार एक सआ मैदा एक शेकेल में, और दो सआ जव एक शेकेल में बिकने लगा। 17 और राजा ने उस सरदार को जिसके हाथ पर वह तकिया करता या फाटक का अधिक्कारनेी ठहराया; तब वह फाटक में लोगोंके पावोंके नीचे दबकर मर गया। यह परमेश्वर के भक्त के उस वचन के अनुसार हुआ जो उस ने राजा से उसके यहां आने के यमय कहा या। 18 परमेश्वर के भक्त ने जैसा राजा से यह कहा या, कि कल इसी समय शोमरोन के फाटक में दो सआ जव एक शेकेल में, और एक सआ मैदा एक शेकेल में बिकेगा, वैसा ही हुआ। 19 और उस सरदार ने परमेश्वर के भक्त को, उत्तर देकर कहा या, कि सुन चाहे यहोवा आकाश में फरोखे खोले तौभ्ी क्या ऐसी बात हो सकेगी? और उस ने कहा या, सुन, तू यह अपक्की आंखोंसे तो देखेगा, परन्तु उस अन्न में से खाने न पाएगा। 20 सो उसके साय ठीक वैसा ही हुआ, अतएव वह फाटक में लोगोंके पांवोंके नीचे दबकर मर गया।
1 जिस स्त्री के बेटे को एलीशा ने जिलाया या, उस से उस ने कहा या कि अपके घराने समेत यहां से जाकर जहां कहीं तू रह सके वहां रह; क्योंकि यहोवा की इच्छा है कि अकाल पके, और वह इस देश में सात वर्ष तक बना रहेगा। 2 परमेश्वर के भक्त के इस वचन के अनुसार वह स्त्री अपके घराने समेत पलिश्तियोंके देश में जाकर सात वर्ष रही। 3 सात वर्ष के बीतने पर वह पलिश्तियोंके देश से लौट आई, और अपके घर और भूमि के लिथे दोहाई देने को राजा के पास गई। 4 राजा परमेश्वर के भक्त के सेवक गेहजी से बातें कर रहा या, और उस ने कहा कि जो बड़े बड़े काम एलीशा ने किथे हैं उनहें मुझ से वर्णन कर। 5 जब वह राजा से यह वर्णन कर ही रहा या कि एलीशा ने एक मुर्दे को जिलाया, तब जिस स्त्री के बेटे को उस ने जिलाया या वही आकर अपके घर और भूमि के लिथे दोहाई देने लगी। तब गेहजी ने कहा, हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! यह वही स्त्री है और यही उसका बेटा है जिसे एलीशा ने जिलाया या। 6 जब राजा ने स्त्री से मूछा, तब उस ने उस से सब कह दिया। तब राजा ने एक हाकिम को यह कहकर उसके साय कर दिया कि लो कुछ इसका या वरन जब से इस ने देश को छोड़ दिया तब से इसके खेत की जितनी आमदनी अब तक हुई हो सब इसे फेर दे। 7 और एलीशा दमिशक को गया। और जब अराम के राजा बेन्हदद को जो रोगी या यह समाचार मिला, कि परमेश्वर का भक्त यहां भी आया है, 8 तब उस ने हजाएल से कहा, भेंट लेकर परमेश्वर के भक्त से मिलने को जा, और उसके द्वारा यहोवा से यह पूछ, कि क्या बेन्हदद जो रोगी है वह बचेगा कि नहीं? 9 तब हजाएल भेंट के लिथे दमिश्क की सब उत्तम उत्तम वस्तुओं से चालीस ऊंट लदवाकर, उस से मिलने को चला, और उसके सम्मुख खड़ा होकर कहने लगा, तेरे पुत्र अराम के राजा बेन्हदद ने मुझे तुझ से यह पूछने को भेजा है, कि क्या मैं जो रोगी हूँ तो बचूंगा कि नहीं? 10 एलीशा ने उस से कहा, जाकर कह, तू निश्चय बच सकता, तौभी यहोवा ने मुझ पर प्रगट किया है, कि तू नि:सन्देह मर जाएगा। 11 और वह उसकी ओर टकटकी बान्ध कर देखता रहा, यहां तक कि वह लज्जित हुआ। और परमेश्वर का भक्त रोने लगा। 12 तब हजाएल ने पूछा, मेरा प्रभु क्योंरोता है? उस ने उत्तर दिया, इसलिथे कि मुझे मालूम है कि नू इस्राएलियोंपर क्या क्या उपद्रव करेगा; उनके गढ़वाले तगरोंको तू फूंक देगा; उनके जवानोंको तू तलवार से घात करेगा, उनके बालबच्चोंको तू पटक देगा, और उनकी गर्भवती स्त्रियोंको तू चीर डालेगा। 13 हजाएल ने कहा, तेरा दास जो कुत्ते सरीखा है, वह क्या है कि ऐसा बड़ा काम करे? एलीशा ने कहा, यहोवा ने मुझ पर यह प्रगट किया है कि तू अराम का राजा हो जाएगा। 14 तब वह एलीशा से बिदा होकर अपके स्वामी के पास गया, और उस ने उस से पूछा, एलीशा ने तुझ से क्या कहा? उस ने उत्तर दिया, उस ने मुझ से कहा कि बेन्हदद नि:सन्देह बचेगा। 15 दूसरे दिन उस ने राजाई को लेकर जल से भिगो दिया, और उसको उसके मुंह पर ऐसा ओढ़ा दिया कि वह मर गया। तब हजाएल उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 16 इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र योराम के पांचवें वर्ष में, जब यहूदा का राजा यहोशापात जीवित या, तब यहोशापात का पुत्र यहोराम यहूदा पर राज्य करने लगा। 17 जब वह राजा हुआ, तब बत्तीस वर्ष का या, और आठ वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 18 वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता या, क्योंकि उसकी स्त्री अहाब की बेटी यी; और वह उस काम को करता या जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 19 तौभ्ी यहोवा ने यहूदा को नाश करना न चाहा, यह उसके दास दाऊद के कारण हुआ, क्योंकि उस ने उसको वचन दिया या, कि तेरे वंश के निमित्त मैं सदा तेरे लिथे एक दीपक जलता हुआ रखूंगा। 20 उसके दिनोंमें एदोम ने यहूदा की अधीनता छोड़कर अपना एक राजा बना लिया। 21 तब योराम अपके सब रय साय लिथे हुए साईर को गया, ओर रात को उठकर उन एदोमियोंको जो उसे घेरे हुए थे, और रयोंके प्रधानोंको भी मारा; उाौर लोग अपके अपके डेरे को भाग गए। 22 योंएदोम यहूदा के वश से छूट गया, और आज तक वैसा ही है। उस समय लिब्ना ने भी यहूदा की अधीनता छोड़ दी। 23 योराम के और सब काम और जो कुछ उस ने किया, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 24 निदान योराम अपके पुरखाओं के संग सो गया और उनके बीच दाऊदपुर में उसे मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र अहज्जाह उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 25 अहाब के पुत्र इस्राएल के राजा योराम के बारहवें वर्ष में यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह राज्य करने लगा। 26 जब अहज्याह राजा बना, तब बाईस वर्ष का या, और यरूशलेम में एक ही वर्ष राज्य किया। और उसकी माता का नाम अतल्याह या, जो इस्राएल के राजा ओम्री की पोती यी। 27 वह अहाब के घराने की सी चाल चला, और अहाब के घराने की नाई वह काम करता या, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, क्योंकि वह अहाब के घराने का दामाद या। 28 और वह अहाब के पुत्र योराम के संग गिलाद के रामोत में अराम के राजा हजाएल से लड़ने को गया, और अरामियोंने योराम को घायल किया। 29 सो राजा योराम इसलिथे लौट गया, कि यिज्रैल में उन घावोंका इलाज कराए, जो उसको अरामियोंके हाथ से उस समय लगे, जब वह हजाएल के साय लड़ रहा या। और अहाब का पुत्र योराम तो यिज्रैल में रोगी रहा, इस कारण यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहजयाह उसको देखने गया।
1 तब एलीशा भविष्यद्वक्ता ने भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंमें से एक को बुलाकर उस से कहा, कमर बान्ध, और हाथ में तेल की यह कुप्पी लेकर गिलाद के रामोत को जा। 2 और वहां पहूंचकर थेहू को जो यहोशापात का पुत्र और निमशी का पोता है, ढूंढ़ लेना; तब भीतर जा, उसकी खड़ा कराकर उसके भइयोंसे अलग एक भीतरी कोठरी में ले जाना। 3 तब तेल की यह कुप्पी लेकर तेल को उसके सिर पर यह कह कर डालना, यहोवा योंकहता है, कि मैं इस्राएल का राजा होने के लिथे तेरा अभिषेक कर देता हूँ। तब द्वार खोलकर भागना, विलम्ह न करना। 4 तब वह जवान भविष्यद्वक्ता गिलाद के रामोत को गया। 5 वहां पहुंचकर उस ने क्या देखा, कि सेनापति बैठे हए हैं; तब उस ने कहा, हे सेनापति, मुझे तुझ से कुछ कहना है। थेहू ने पूछा, हम सभोंमें किस से ? उस ने कहा हे सेनापति, तुझी से ! 6 तब वह उठकर घर में गया; और उस ने यह कहकर उसके सिर पर तेल डाला कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं अपक्की प्रजा इस्राएल पर राजा होने के लिथे तेरा अभिषेक कर देता हूँ। 7 तो तू अपके स्वामी अहाब के घराने को मार डालना, जिस से मुझे अपके दास भविष्यद्वक्ताओं के वरन अपके सब दासोंके खून का जो हेज़ेबेल ने बहाथा, पलटा मिले। 8 क्योंकि अहाब का समस्त घराना नाश हो जाएगा, और मैं अहाब के वंश के हर बक लड़के को और इस्राएल में के क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन, हर एक को नाश कर डालूंगा। 9 और मैं अहाब का घराना नबात के पुत्र यारोबाम का सा, और अहिय्याह के पुत्र बाशा का सा कर दूंगा। 10 और हेज़ेबेल को यिज्रैल की भ्ूमि में कुत्ते खाएंगे, और उसको मिट्टी देनेवाला कोई न होगा। तब वह द्वार खोलकर भाग गया। 11 तब थेहू अपके स्वामी के कर्मचारियोंके पास निकल आया, और एक ने उस से पूछा, क्या कुशल है, वह बावला क्योंतेरे पास आया या? उस ने उन से कहा, तुम को मालूम होगा कि वह कौन है और उस से क्या बातचीत हुई। 12 उन्होंने कहा फूठ है, हमें बता दे। उस ने कहा, उस ने मुझ से कहा तो बहुत, परन्तु मतलब यह है कि यहोवा योंकहता है कि मैं इस्राएल का राजा होने के लिथे तेरा अभिषेक कर देता हूँ। 13 तब उन्होंने फट अपना अपना वस्त्र उतार कर उसके तीचे सीढ़ी ही पर बिछाया, और नरसिंगे फूंककर कहने लगे, थेहू राजा है। 14 योंथेहू जो निमशी का पोता और यहोशापात का पुत्र या, उस ने योराम से राजद्रोह की गोष्ठी की। ( योराम तो सब इस्राएल समेत अराम के राजा हजाएल के कराण गिलाद के रामोत की रझा कर रहा या; 15 परन्तु राजा योराम आप अपके घाव का जो अराम के राजा हजाएल से युद्ध करने के समय उसको अरामियोंसे लगे थे, उनका इलाज कराने के लिथे यिज्रैल को लौठ गया या। ) तब थेहू ने कहा, यदि तुम्हारा ऐसा मन हो, तो इस नगर में से कोई निकल कर यिज्रैल में सुनाने को न जाने पाए। 16 तब थेहू रय पर चढ़कर, यिज्रैल को चला जहां योराम पड़ा हुआ या; और यहूदा का राजा अहज्याह योराम के देखने को वहां आया या। 17 यिज्रैल के गुम्मट पर, जो पहरुआ खड़ा या, उस ने थेहू के संग आते हुए दल को देखकर कहा, मुझे एक दल दीखता है; योराम ने कहा, एक सवार को बुलाकर उन लोगोंसे मिलने को भेज और वह उन से पूछे, क्या कुशल है? 18 तब बक सवार उस से मिलने को गया, और उस से कहा, राजा पूछता है, क्या कुशल है? थेहू ने कहा, कुशल से तेरा क्या काम? हटकर मेरे पीछे चल। तब पहरुए ने कहा, वह दूत उनके पास पहुंचा तो या, परन्तु लौटकर नहीं आया। 19 तब उसने दूसरा सवार भेजा, और उस ने उनके पास पहुंचकर कहा, राजा पूछता है, क्या कुशल है? थेहू ने कहा, कुशल से तेरा क्या काम? हटकर मेरे पीछे चल। 20 तब पहरुए ने कहा, वह भी उनके पास पहुंचा तो या, परन्तु लौटकर नहीं आया। हांकना निमशी के पोते थेहू का सा है; वह तो बौड़हे की नाई हांकता है। 21 योराम ने कहा, मेरा रय जुतवा। जब उसका रय जुत गया, तब इस्राएल का राजा योराम और यहूदा का राजा अहज्याह, दोनो अपके अपके रय पर चढ़कर निकल गए, और थेहू से मिलने को बाहर जाकर यिज्रैल नाबोत की भूमि में उस से भेंट की। 22 थेहू को देखते ही योराम ने पूछा, हे थेहू क्या कुशल है, थेहू ने उत्तर दिया, जब तक तेरी माता हेज़ेबेल छिनालपन और टोना करती रहे, तब तक कुशल कहां? 23 तब याराम रास फेर के, और अहज्याह से यह कहकर कि हे अहज्याह विश्वासघात है, भाग चल। 24 तब थेहू ने धनुष को कान तक खींचकर योराम के पखौड़ोंके बीच ऐसा तीर मारा, कि वह उसका ह्रृदय फोड़कर निकल गया, और वह अपके रय में फुककर गिर पड़ा। 25 तब थेहू ने बिदकर नाम अपके एक सरदार से कहा, उसे उठाकर यिज्रैली नाबोत की भूमि में फेंक दे; स्मरण तो कर, कि जब मैं और तू, हम दोनो एक संग सवार होकर उसके पिता अहाब के पीछे पीछे चल रहे थे तब यहोवा ने उस से यह भरी वचन कहवाया या, कि यहोवा की यह वाणी है, 26 कि नाबोत और उसके पुत्रोंका जो खून हुआ, उसे मैं ने देखा है, और यहोवा की यह वाण्एी है, कि मैं उसी भूमि में तुझे बदला दूंगा। तो अब यहोवा के उस वचन के अनुसार इसे उठाकर उसी भूमि में फेंक दे। 27 यह देखकर यहूदा का राजा अहज्याह बारी के भवन के मार्ग से भाग चला। और थेहू ने उसका पीछा करके कहा, उसे भी रय ही पर मारो; तो वह भी यिबलाम के पास की गूर की चढ़ाई पर मारा गया, और मगिद्दो तक भगकर मर गया। 28 तब उसके कर्मचारियोंने उसे रय पर यरूशलेम को पहुंचाकर दाऊदपुर में उसके पुरखाओं के बीच मिट्टी दी। 29 अहज्याह तो अहाब के पुत्र योराम के ग्यारहवें वर्ष में यहूदा पर राज्य करने लगा या। 30 जब थेहू यिज्रैल को आया, तब हेज़ेबेल यह सुन अपक्की आंखोंमें सुर्मा लगा, अपना सिर संवारकर, खिड़की में से फांकने लगी। 31 जब थेहू फाटक में होकर आ रहा या तब उस ने कहा, हे अपके स्वामी के घात करने वाले जिम्री, क्या कुशल है? 32 तब उस ने खिड़की की ओर मुंह उठाकर पूछा, मेरी ओर कौन है? कौन? इस पर दो तीन खोजोंने उसकी ओर फांका। 33 तब उस ने कहा, उसे नीचे गिरा दो। सो उन्होंने उसको नीचे गिरा दिया, और उसके लोहू के कुछ छींटे भीत पर और कुछ घोड़ोंपर पके, और उन्होंने उसको पांव से लताड़ दिया। 34 तब वह भीतर जाकर खाने पीने लगा; और कहा, जाओ उस स्रापित स्त्री को देख लो, और उसे मिट्टी दो; वह तो राजा की बेटी है। 35 जब वे उसे मिट्टी देने गए, तब उसकी खोपक्की पांवोंऔर हथेलियोंको छोड़कर उसका और कुछ न पाया। 36 सो उन्होंने लौटकर उस से कह दिया; तब उस ने कहा, यह यहोवा का वह वचन है, जो उस ने अपके दास तिशबी एलिय्याह से कहलवाया या, कि हेज़ेबेल का मांस यिज्रैल की भूमि में कुत्तोंसे खाया जाएगा। 37 और हेज़ेबेल की लोय यिज्रैल की भूमि पर खाद की नाई पक्की रहेगी, यहां तक कि कोई न कहेगा, यह हेज़ेबेल है।
1 अहाब के तो सत्तर बेटे, पोते, शोमरोन में रहते थे। सो थेहू ने शोमरोन में उन पुरनियोंके पास, और जो यिज्रैल के हाकिम थे, और जो अहाब के लड़केवालोंके पालनेवाले थे, उनके पास पत्र लिखकर भेजे, 2 कि तुम्हारे स्वामी के बेटे, पोते तो तुम्हारे पास रहते हैं, और तुम्हारे रय, और धेड़े भी हैं, और तुम्हारे एक गढ़वाला नगर, और हयियार भी हैं; तो इस पत्र के हाथ लगते ही, 3 अपके स्वामी के बेटोंमें से जो सब से अच्छा और योग्य हो, उसको छांटकर, उसके पिता की गद्दी पर बैठाओ, और अपके स्वामी के घराने के लिथे लड़ो। 4 परंतु वे निपट डर गए, और कहने लगे, उसके साम्हने दो राजा भी ठहर न सके, फिर हम कहां ठहर सकेंगे? 5 तब जो राज घराने के काम पर या, और जो नगर के ऊपर या, उन्होंने और पुरनियोंऔर लड़केबालोंके पालनेवालोंने थेहू के पास योंकहला भेजा, कि हम तेरे दास हैं, जो कुछ तू हम से कहे, उसे हम करेंगे; हम किसी को राजा न बनाएंगे, जो तुझे भाए वहीं कर। 6 तब उस ने दूसरा पत्र लिखकर उनके पास भेजा, कि यदि तुम मेरी ओर के हो और मेरी मानो, तो अपके स्वामी के बेटोंपोतोंके सिर कटवाकर कल इसी समय तक मेरे पास यिज्रैल में हाजिर होना। राजपुत्र तो जो सत्तर मतुष्य थे, वे उस नगर के रईसोंके पास पलते थे। 7 यह पत्र उनके हाथ लगते ही, उन्होंने उन सत्तरोंराजपुत्रोंको पकड़कर मार डाला, और उनके सिर टोकरियोंमें रखकर यिज्रैल को उसके पास भेज दिए। 8 और एक दूत ने उसके पास जाकर बता दिया, कि राजकुमारोंके सिर आगए हैं। तब उस ने कहा, उन्हें फाटक में दो ढेर करके बिहान तक रखो। 9 बिहान को उस ने बाहर जा खड़े होकर सब लोगोंसे कहा, तुम तो निदॉष हो, मैं ने अपके स्वामी से राजद्रोह की गोष्ठी करके उसे घात किया, परन्तु इन सभोंको किस ने मार डाला? 10 अब जान लो कि जो वचन यहोवा ने अपके दास एलिय्याह के द्वारा कहा या, उसे उस ने पूरा किया है; जो वचन यहोवा ने अहाब के घराने के विषय कहा, उस में से एक भी बात बिना पूरी हुए न रहेगी। 11 तब अहाब के घराने के जितने लोग यिज्रैल में रह गए, उन सभोंको और उसके जितने प्रधान पुरुष और मित्र और याजक थे, उन सभोंको थेहू ने मार डाला, यहां तक कि उस ने किसी को जीवित न छोड़ा। 12 तब वह वहां से चलकर शोमरोन को गया। और मार्ग में चरवाहोंके ऊन कतरने के स्यान पर पहुंचा ही या, 13 कि यहूदा के राजा अहय्याह के भई थेहू से मिले और जब उस ने पूछा, तुम कौन हो? तब उन्होंने उत्तर दिया, हम अहज्याह के भाई हैं, और राजमुत्रोंऔर राजमाता के बेटोंका कुशलझेम पूछने को जाते हैं। 14 तब उस ने कहा, इन्हें जीवित पकड़ो। सो उन्होंने उनको जो बयालीस पुरुष थे, जीवित पकड़ा, और ऊन कतरते के स्यान की बाबली पर मार डाला, उस ने उन में से किसी को न छोड़ा। 15 जब वह वहां से चला, तब रेकाब का पुत्र यहोनादाब साम्हने से आता हुआ उसको मिला। उसका कशल उस ने पूछकर कहा, मेरा मन तो तेरी ओर निष्कपट है सो क्या तेरा मन भी वैसा ही है? यहोनादाब ने कहा, हां, ऐसा ही है। फिर उस ने कहा, ऐसा हो, तो अपना हाथ मुझे दे। उस ने अपना हाथ उसे दिया, और वह यह कहकर उसे अपके पास रय पर चढ़ाने लगा, 16 कि मेरे संग चल। और देख, कि मुझे यहोवा के निमित्त कैसी जलन रहती है। तब वह उसके रय पर चढ़ा दिया गया। 17 शोमरोन को पहुंचकर उस ने यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने एलिय्याह से कहा या, अहाब के जितने शोमरोन में बचे रहे, उन सभोंको मार के विनाश किया। 18 तब थेहू ने सब लोगोंको इकट्ठा करके कहा, अहाब ने तो बाल की योड़ी ही उपासना की यी, अब थेहू उसकी अपासना बढ़के करेगा। 19 इसलिथे अब बाल के सब नबियों, सब उपासकोंऔर सब याजकोंको मेरे पास बुला लाओ, उन में से कोई भी न रह जाए; क्योंकि बाल के लिथे मेरा एक बड़ा यज्ञ होनेवाला है; जो कोई न आए वह जीवित न बचेगा। थेहू ने यह काम कमट करके बाल के सब उपासकोंको नाश करने के लिथे किया। 20 तब थेहू ने कहा, बाल की एक पवित्र महासभा का प्रचार करो। और लोगोंने प्रचार किया। 21 और थेहू ने सारे इस्राएल में दूत भेजे; तब वाल के सब उपासक आए, यहां तक कि ऐसा कोई न रह गया जो न आया हो। और वे बाल के भवन में इतने आए, कि वह एक सिक्के से दूसरे सिक्के तक भर गया। 22 तब उस ने उस मनुष्य से जो वस्त्र के घर का अधिक्कारनेी या, कहा, बाल के सब उपासकोंके लिथे वस्त्र निकाल ले आ; सो वह उनके लिथे वस्त्र निकाल ले आया। 23 तब थेहू रेकाब के पुत्र यहोनादाब को संग लेकर बाल के भपन में गया, और बाल के उपासकोंसे कहा, ढूंढ़कर देखो, कि यहां तुम्हारे संग यहोवा का कोई उपासक तो नहीं है, केवल बाल ही के उपासक हैं। 24 तब वे मेलबलि और होमबलि चढ़ाने को भीतर गए। थेहू ने तो अस्सी पुरुष बाहर ठहरा कर उन से कहा या, यदि उन मनुष्योंमें से जिन्हें मैं तुम्हारे हाथ कर दूं, कोर्ठ भी बचने पाए, तो जो उसे जाने देगा उसका प्राण, उसके प्राण की सन्ती जाएगा। 25 फिर जब होमबलि चढ़ चुका, तब संहू ने पहरुओं उौर सरदारोंसे कहा, भीतर जाकर उन्हें मार डालो; कोई निकलने न पाए। तब उन्होंने उन्हें तलवार से मारा और पहरुए और सरदार उनको बाहर फेंककर बाल के भवन के नगर को गए। 26 और उन्होंने बाल के भवन में की लाठें निकालकर फूंक दीं। 27 और बाल की लाठ को उन्होंने तोड़ डाला; और बाल के भवन को ढाकर पायखाना बना दिया; और वह आज तक ऐसा ही है। 28 योंथेहू ने बाल को इस्राएल में से नाश करके दूर किया। 29 ैतौभी नबात के पुत्र यारोबाम, जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार करने, अर्यात् बेतेल और दान में के सोने के बछड़ोंकी पूजा, उस से थेहू अलग न हुआ। 30 और यहोवा ने थेहू से कहा, इसलिथे कि नू ने वह किया, जो मेरी दृष्टि में ठीक है, और अहाब के घराने से मेरी इच्छा के अनुसार बर्ताव किया है, तेरे परपोते के पुत्र तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर बिराजती रहेगी। 31 परन्तु थेहू ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की य्यवस्या पर पूर्ण मन से चलने की चौकसी न की, वरन यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार करने से वह अलग न हुआ। 32 उन दिनोंयहोवा इस्राएल को घटाने लगा, इसलिथे हजाएल ने इस्राएल के उन सारे देशोंमें उनको मारा : 33 यरदन से पूरब की ओर गिलाद का सारा देश, और गादी और रूबेनी और मनश्शेई का देश अर्यात् अरोएर से लेकर जो अनॉन की तराई के पास है, गिलाद और बाशान तक। 34 थेहू के और सब काम और जो कुछ उस ने किया, और उसकी पूर्णर् वीरता, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 35 निदान थेहू अपके पुरखाओं के संग सो गया, और शोमरोन में उसको मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र यहोआहाज उसके स्यान पर राजा बन गया। 36 थेहू के शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने का समय तो अट्ठाईस वर्ष का या।
1 जब अहज्याह की माता अतल्याह ने देखा, कि मेरा पुत्र मर गया, तब उस ने पूरे राजवंश को नाश कर डाला। 2 परन्तु यहोशेबा जो राजा योराम की बेटी, और अहज्याह की बहिन यी, उस ने अहज्याह के पुत्र योआश को घात होनेवाले राजकुमारोंके बीच में से चुराकर धाई समेत बिछौने रखने की कोठरी में छिपा दिया। और उन्होंने उसे अतल्याह से ऐसा छिपा रखा, कि वह मारा न गया। 3 और वह उसके पास यहोवा के भवन में छ:वर्ष छिपा रहा, और अतल्याह देश पर राज्य करती रही। 4 सातवें वर्ष में यहोयादा ने जल्लादोंऔर पहरुओं के शतपतियोंको बुला भेजा, और उनको यहोवा के भवन में अपके पास ले आया; और उन से वाचा बान्धी और यहोवा के भवन में उनको शपय खिलाकर, उनको राजपुत्र दिखाया। 5 और उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि एक काम करो : अर्यात् तुम में से एक तिहाई लोग जो विश्रमदिन को आनेवाले हों, वह राजभवन के पहरे की चौकसी करें। 6 और एक तिहाई लोग सूर नाम फाटक में ठहरे रहें, और एक तिहाई लोग पहरुओं के पीछे के फाटक में रहें; योंतुम भवन की चौकसी करके लोगोंको रोके रहना। 7 और तुम्हारे दो दल अर्यात् जितने विश्रम दिन को बाहर जानेवाले होंवह राजा के आसपास होकर यहोवा के भवन की चौकसी करें। 8 और तुम अपके अपके हाथ में हयियार लिथे हुए राजा के चारोंओर रहना, और जो कोई पांतियोंके भीतर घुसना चाहे वह मार डाला जाए, और तुम राजा के आते-जाते समय उसके संग रहना। 9 यहाथादा याजक की इन सब आज्ञाओं के अनुसार शतपतियोंने किया। वे विश्रमदिन को आनेवाले और जानेवाले दोनोंदलोंके अपके अपके जनोंको संग लेकर यहोयादा याजक के पास गए। 10 तब याजक ने शतपतियोंको राजा दाऊद के बर्छे, और ढालें जो यहोवा के भवन में यीं दे दीं। 11 इसलिथे वे पहरुए अपके अपके हाथ में हयियार लिए हुए भवन के दक्खिनी कोने से लेकर उत्तरी कोने तक वेदी और भवन के पास राजा के चारोंओर उसकी आड़ करके खड़े हुए। 12 तब उस ने राजकुमार को बाहर लाकर उसके सिर पर मुकुट, और साझीपत्र धर दिया; तब लोगोंने उसका अभिषेक करके उसको राजा बनाया; फिर ताली बजा बजाकर बोल उठे, राजा जीवित रहे । 13 जब अतल्याह को पहरुओं और लोगोंका हलचल सुन पड़ा, तब वह उनके पास यहोवा के भवन में गई। 14 और उस ने क्या देखा कि राजा रीति के अनुसार खम्भे के पास खड़ा है, और राजा के पास प्रधान और तुरही बजानेवाले खड़े हैं। और लोग आनन्द करते और तुरहियां बजा रहे हैं। तब अतल्याह अपके वस्त्र फाड़कर राजद्रोह राजद्रोह योंपुकारने लगी। 15 तब यहोयादा याजक ने दल के अधिक्कारनेी शतपतियोंको आज्ञा दी कि उसे अपक्की पांतियोंके बीच से निकाल ले जाओ; और जो कोई उसके पीछे चले उसे तलवार से मार डालो। क्योंकि याजक ने कहा, कि वह यहोवा के भवन में न मार डाली जाए। 16 इसलिथे उन्होंने दोनोंओर से उसको जगह दी, और वह उस मार्ग के बीच से चक्की गई, जिस से घोड़े राजभवन में जाया करते थे; और वहां वह मार डाली गई। 17 तब यहोयादा ने यहोवा के, और राजा-प्रजा के बीच यहोवा की प्रजा होने की वाचा बन्धाई, और उस ने राजा और प्रजा के मध्य भी वाचा बन्धाई। 18 तब सब लोगोंने बाल के भवन को जाकर ढा दिया, और उसकी वेदियां और मूरतें भली भंति तोड़ दीं; और मतान नाम बाल के याजक को वेदियोंके साम्हने ही घात किया। और याजक ने यहोवा के भवन पर अधिक्कारनेी ठहरा दिए। 19 तब वह शतपतियों, जल्लादोंऔर पहरुओं और सब लोगोंको साय लेकर राजा को यहोवा के भवन से नीचे ले गया, और पहरुओं के फाटक के मार्ग से राजभवन को पहुंचा दिया। और राजा राजगद्दी पर विराजमान हुआ। 20 तब सब लोग आनन्दित हुए, और नगर में शान्ति हुई। अतल्याह तो राजभवन के पास तलवार से मार डाली गई यी। 21 जब योआश राजा हुआ, उस समय वह सात पर्ष का या।
1 थेहू के सातवें वर्ष में योआश राज्य करने लगा, और यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम सिब्या या जो बेशॅबा की यी। 2 और जब तक यहोयादा याजक योआश को शिझा देता रहा, तब तक वह वही काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है। 3 तौभी ऊंचे स्यान गिराए न गए; प्रजा के लोग तब भी ऊंचे स्यान पर बलि चढ़ाते और धूप जलाते रहे। 4 और योआश ने याजकोंसे कहा, पवित्र की हुई वस्तुओं का जितना रुपया यहोवा के भवन में पहुंचाया जाए, अर्यात् गिने हुए लोगोंका रुपया और जितने रुपके के जो कोई योग्य ठहराया जाए, और जितना रुपया जिसकी इच्छा यहोवा के भवन में ले आने की हो, 5 इन सब को याजक लोग अपक्की जान पहचान के लोगोंसे लिया करें और भवन में जो कुछ टूटा फूटा हो उसको सुधार दें। 6 तौभी याजकोंने भवन में जो टूटा फूटा या, उसे योआश राजा के तेईसवें वर्ष तक नहीं सुधारा या। 7 इसलिथे राजा योआश ने यहोयादा याजक, और और याजकोंको बुलवाकर पूछा, भवन में जो कुछ टूटा फूटा है, उसे तुम क्योंनहीं सुधारते? अब से अपक्की जान पहचान के लोगोंसे और रुपया न लेना, और जो तुम्हें मिले, उसे भवन के सुधारने के लिथे दे देना। 8 तब याजकोंने मानलिया कि न तो हम प्रजा से और रुपया लें और न भवन को सुधारें। 9 तब यहोयादा याजक ने एक सन्दूक ले, असके ढकने में छेद करके उसको यहोवा के भवन में आनेवालोंके दाहिने हाथ पर वेदी के पास धर दिया; और द्वार की रखवाली करनेवाले याजक उस में वह सब रुपया डालते लगे जो यहोवा के भवन में लाया जाता या। 10 जब उन्होंने देखा, कि सन्दूक में बहुत रुपया है, तब राजा के प्रधान और महाथाजक ने आकर उसे यैलियोंमें बान्ध दिया, और यहोवा के भवन में पाए हुए रुपके को गिन लिया। 11 तब उन्होंने उस तौले हुए रुपके को उन काम करानेवालोंके हाथ में दिया, जो यहोवा के भवन में अधिक्कारनेी थे; और इन्होंने उसे यहोवा के भवन के बनानेवाले बढ़इयों, राजों, और संगतराशोंको दिथे। 12 और लकड़ी और गढ़े हुए पत्यर मोल लेने में, वरन जो कुछ भवन के टूटे फूटे की मरम्मत में खर्च होता या, उस में लगाया। 13 मरन्तु जो रुपया यहोवा के भवन में आता या, उस से चान्दी के तसले, चिमटे, कटोरे, तुरहियां आदि सोने वा चान्दी के किसी प्रकार के पात्र न बने। 14 परन्तु वह काम करनेवाले को दिया गया, और उन्होंने उसे लेकर यहोवा के भवन की मरम्मत की। 15 और जिनके हाथ में काम करनेवालोंको देने के लिथे रुपया दिया जाता या, उन से कुछ हिसाब न लिया जाता या, क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे। 16 जो रुपया दोषबलियोंऔर पापबलियोंके लिथे दिया जाता या, यह तो यहोवा के भवन में न लगाया गया, वह याजकोंको मिलता या। 17 तब अराम के राजा हजाएल ने गत नगर पर चढ़ाई की, और उस से लड़ाई करके उसे ले लिया। तब उस ने यरूशलेम पर भी चढ़ाई करने को अपना मुंह किया। 18 तब यहूदा के राजा योआश ने उन सब पवित्र वस्तुओं को जिन्हें उसके पुरखा यहोशापात यहोराम और अहज्याह नाम यहूदा के राजाओं ने पवित्र किया या, और अपक्की पवित्र की हुई वस्तुओं को भी और जितना सोना यहोवा के भवन के भणडारोंमें और राजभवन में मिला, उस सब को लेकर अराम के राजा हजाएल के पास भेज दिया; और वह यरूशलेम के पास से चला गया। 19 योआश के और सब काम जो उस ने किया, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 20 योआश के कर्मचारियोंने राजद्रोह की गोष्ठी करके, उसको मिल्लो के भवन में जो सिल्ला की उतराई पर या, मार डाला। 21 अर्यात् शिमात का पुत्र योजाकार और शोमेर का पुत्र यहोजाबाद, जो उसके कर्मचारी थे, उन्होंने उसे ऐसा मारा, कि वह मर गया। तब उसे उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी, और उसका पुत्र अमस्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 अहज्याह के पुत्र यहूदा के राजा योआश के तेईसवें वर्ष में यंहू का मुत्र यहोआहाज शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और सत्रह वर्ष तक राज्य करता रहा। 2 और उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उनको छोड़ न दिया। 3 इसलिथे यहोवा का क्रोध इस्राएलियोंके विरुद्ध भड़क उठा, और उस ने उनको अराम के राजा हजाएल, और उसके पुत्र बेन्हदद के अधीन कर दिया। 4 तब यहोआहाज यहोवा के साम्हने गिड़गिड़ाया और यहोवा ने उसकी सुन ली; क्योंकि उस ने इस्राएल पर अन्धेर देखा कि अराम का राजा उन पर कैसा अन्धेर करता या। 5 इसलिथे यहोवा ने इस्राएल को एक छुड़ानेवाला दिया और वे अराम के वश से छूट गए; और इस्राएली अगले दिनोंकी नाई फिर अपके अपके डेरे में रहने लगे। 6 तौभी वे ऐसे पापोंसे न फिरे, जैसे यारोबाम के घराने ने किया, और जिनके अनुसार उस ने इस्राएल से पाप कराए थे : परन्तु उन में चलते रहे, और शोमरोन में अशेरा भी खड़ी रही। 7 अराम के राजा ने तो यहोआहाज की सेना में से केवल पचास सवार, दस रय, और दस हजार प्यादे छोड़ दिए थे; क्योंकि उस ने उनको नाश किया, और रौंद रौंदकर के धूलि में मिला दिया या। 8 यहोआहाज के और सब काम जो उस ने किए, और उसकी वीरता, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 9 निदान यहोआहाज अपके पुरखाओं के संग सो गया और शोमरोन में उसे मिद्दी दी बई; और उसका पुत्र योआश उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 10 यहूदा के राजा योआश के राज्य के सैंतीसवें वर्ष में यहोआहाज का पुत्र यहोआश शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करते लगा, और सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। 11 और उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात् नबात का पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापो के अनुसार वह करता रहा, और उन से अलग न हुआ। 12 योआश के और सब काम जो उस ने किए, और ख्सि वीरता से वह सहूदा के राजा अमस्याह से लड़ा, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 13 निदान योआश अपके पुरखाओं के संग सो गया और यारोबाम उसकी गद्दी पर विराजमान हुआ; और योआश को शोमरोन में इय्राएल के राजाओं के बीच मिट्टी दी गई। 14 और एलीशा को वह रोग लग गया जिस से वह मरने पर या, तब इस्राएल का राजा योआश उसके पास गया, और उसके ऊपर रोकर कहने लगा, हाथ मेरे पिता ! हाथ मेरे पिता ! हाथ इस्राएल के रय और सवारो ! एलीश ने उस से कहा, धनुष और तीर ले आ। 15 वह उसके पास धनुष और तीर ले आया। 16 तब उस ने इस्राएल के राजा से कहा, धनुष पर अपना हाथ लगा। जब उस ने अपना हाथ लगाया, तब एलीशा ने अपके हाथ राजा के हाथोंपर धर दिए। 17 तब उस ने कहा, पूर्व की खिड़की खोल। जब उस ने उसे खोल दिया, तब एलीशा ने कहा, तीर छोड़ दे; उस ने तीर छोड़ा। और एलीशा ने कहा, यह तीर यहोवा की ओर से छुटकारे अर्यात् अराम से छुटकारे का चिह्रृ है, इसलिथे तू अपेक में अराम को यहां तक मार लेगा कि उनका अन्त कर डालेगा। 18 फिर उस ने कहा, तीरोंको ले; और जब उस ने उन्हें लिया, तब उस ने इस्राएल के राजा से कहा, भूमि पर मार; तब वह तीन बार मार कर ठहर गया। 19 और परमेश्वर के जन ने उस पर क्रोधित होकर कहा, तुझे तो पांच छ: बार मारना चाहिथे या। ऐसा करते से तो तू अराम को यहां तक मारता कि उनका अन्त कर डालता, परन्तु अब तू उन्हें तीन ही बार मारेगा। 20 तब एलीशा मर गया, और उसे मिट्टी दी गई। एक वर्ष के बाद मोआब के दल देश में आए। 21 लोग किसी मनुष्य को मिट्ठी दे रहे थे, कि एक दल उन्हें देख पड़ा तब उन्होंने उस लोय को एलीशा की कबर में डाल दिया, और एलीशा की हड्ढियोंके छूते ही वह जी उठा, और अपके पावोंके बल खड़ा हो गया। 22 यहोआहाज के जीवन भर अराम का राजा हजाएल इस्राएल पर अन्धेर ही करता रहा। 23 परन्तु यहोवा ने उन पर अनुग्रह किया, और उन पर दया करके अपक्की उस वाचा के कारण जो उस ने इब्राहीम, इसहाक और याकूब से बान्धी यी, उन पर कृपा दृष्टि की, और न तो उन्हें नाश किया, और न अपके साम्हने से निकाल दिया। 24 तब अराम का राजा हजाएल मर गया, और उसका पुत्र बेन्हदद उसके स्यान पर राजा बन गया। 25 और यहोआहाज के पुत्र यहोआश ने हजाएल के पुत्र बेन्हदद के हाथ से वे नगर फिर ले लिए, जिन्हें उस ने युद्ध करके उसके पिता यहोआहाज के हाथ से छीन लिया या। योआश ने उसको तीन बार जीतकर इस्राएल के नगर फिर ले लिए।
1 इस्राएल के राजा यहोआहाज के पुत्र सोआश के दूसरे वर्ष में यहूदा के राजा योआश का मुत्र असस्याह राजा हुआ। 2 जब वह राज्य करने लगा। तब वह पक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यहोअद्दीन या, जो यरूशलेम की यी। 3 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या तौभी अपके मूल पुरुष दाऊद की नाई न किया; उस ने ठीक अपके पिता योआश के से काम किए। 4 उसके दिनोंमें ऊंचे स्यान गिराए न गए; लोग तब भी उन पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे। 5 जब राज्य उसके हाथ में स्यिर हो गया, तब उस ने अपके उन कर्मचारियोंको मार डाला, जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला या। 6 परन्तु उन खूनियोंके लड़केवालोंको उस ने न मार डाला, क्योंकि यहोवा की यह आज्ञा मूसा की य्यवस्या की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और पिता के कारण पुत्र न मार डाला जाए : जिस ने पाप किया हो, वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 7 उसी अमस्याह ने लोन की तराई में दस हजार एदोमी पुरुष मार डाले, और सेला नगर से युद्ध करके उसे ले लिया, और उसका नाम योक्तेल रखा, और वह नाम आज तक चलता है। 8 तब अमस्याह ने इस्राएल के राजा योआश के पास जो थेहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र या दूतोंसे कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें। 9 इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास योंकहला भेजा, कि लबानोन पर की एक फड़बेरी ने लबानोन के एक देवदारु के पास कहला भेजा, कि अपक्की बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन में का एक बनपशु पास से चला गया और उस फड़बेरी को रौंद डाला। 10 तू ने एदोमियोंको जीता तो है इसलिथे तू फूल उठा है। उसी पर बड़ाई पारता हुआ घर रह जा; तू अपक्की हानि के लिथे यहां क्योंहाथ उठाता है, जिस से तू क्या वरन यहूदा भी तीचा खाएगा ? 11 परन्तु अमस्साह ने न माना। तब इस्राएल के राजा योआश ने चढाई की, और उस ने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का सामहना किया। 12 और यहूदा इस्राएल से हार गया, और एक एक अपके अपके डेरे को भागा। 13 तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को जो अहज्याह का पोता, और योआश का पुत्र या, बेतशेमेश में पकड़ लिया, और यरूशलेम को गया, और यरूशलेम की शहरपनाह में से बप्रैमी फाटक से कोनेवाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए। 14 और जितना सोना, चान्दी और जितने पात्र यहोवा के भवन में और राजभवन के भणडारोंमें मिले, उन सब को और बन्धक लोगोंको भी लेकर वह शोमरोन को लौट गया। 15 योआश के और काम जो उस ने किए, ओर उसकी वीरता और उस ने किस रीति यहूदा के राजा अमस्याह से युद्ध किया, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 16 निदान योआश अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे इस्राएल के राजाओं के बीच शोमरोन में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र यारोबाम उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 17 यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा यहोआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष जीवित रहा। 18 अमस्याह के और काम क्या यहूदा के रजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 19 जब यरूशलेम में उसके विरुद्ध राजद्रोह की गोष्ठी की गई, तब वह लाकीश को भाग गया। सो उन्होंने लाकीश तक उसका पीछा करके उसको वहां मार डाला। 20 तब वह घोड़ोंपर रखकर यरूशलेम में पहुंचाया गया, और वहां उसके पुरखाओं के बीच उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। 21 तब सररी यहूदी प्रजा ने अजर्याह को लेकर, जो सोलह वर्ष का या, उसके पिता अमस्याह के स्यान पर राजा नियुक्त कर दिया। 22 जब राजा अमस्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया, उसके बाद अजर्याह ने एलत को दृढ़ करके यहूदा के वश में फिर कर लिया। 23 यहूदा के राजा योआश के पुत्र अमस्याह के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष में इस्राएल के राजा योआश का पुत्र यारोबाम शोमरोन में राज्य करने लगा, और एकतालीस वर्ष राज्य करता रहा। 24 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या; अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 25 उस ने इस्राएल का सिवाना हमात की घाटी से ले अराबा के ताल तक ज्योंका त्योंकर दिया, जैसा कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अमित्तै के पुत्र अपके दास गथेपेरवासी योना भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा या। 26 क्योंकि यहोवा ने इस्राएल का दु:ख देखा कि बहुत ही कठिन है, वरन क्या बन्धुआ क्या स्वाधीन कोई भी बचा न रहा, और न इस्राएल के लिथे कोई सहाथक या। 27 यहोवा ने नहीं कहा या, कि मैं इस्राएल का नाम घरती पर से मिटा डालूंगा। सो उस ने योआश के पुत्र यारोबाम के द्वारा उनको छूटकारा दिया। 28 यारोबाम के उौर सब काम जो उस ने किए, और कैसे पराक्रम के साय उस ने युद्ध किया, और दमिश्क और हमात को जो पहले यहूदा के राज्य में थे इस्राएल के वश में फिर मिला लिया, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 29 निदान यारोबाम अपके पुरखाओं के संग जो इस्राएल के राजा थे सो गया, और उसका पुत्र जकर्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 इस्राएल के राजा यारोबाम के सताईसवें वर्ष में यहूदा के राजा अमस्याह का पुत्र अजर्याह राजा हुआ। 2 जब वह राज्य करने लगा, तब सोलह वर्ष का या, और यरूशलेम में बावन वर्ष राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम यकोल्याह या, जो यरूशलेम की यी। 3 जैसे उसका पिता अमस्याह किया करता या जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या, वैसे ही वह भी करता या। 4 तौभी ऊंचे स्यान गिराए न गए; प्रजा के लोग उस समय भी उन पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे। 5 और यहोवा ने उस राजा को ऐसा मारा, कि वह मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और अलग एक घर में रहता या। और योताम नाम राजपुत्र उसके घराने के काम पर अधिक्कारनेी होकर देश के लोगोंका न्याय करता या। 6 अजर्याह के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में तहीं लिखे हैं? 7 निदान अजर्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया और असको दाऊदपुुर में उसके पुरखाओं के बीच मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र योताम उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 8 यहूदा के राजा अजर्याह के अड़तीसवें वर्ष में यारोबाम का पुत्र जकर्याह इस्राएल पर शोमरोन में राज्य करने लगा, और छ: महीने राज्य किया। 9 उस ने अपके पुरखाओं की नाई वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया य, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 10 और याबेश के पुत्र शल्लूम ने उस से राजद्रोह की गोष्ठी करके उसको प्रजा के साम्हने मारा, और उसका घात करके उसके स्यान पर राजा हुआ। 11 जकर्याह के और काम इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 12 योंयहोवा का वह वचन पूरा हुआ, जो उस ने थेहू से कहा या, कि तेरे परपोते के पुत्र तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर बैठती जाएगी। और वैसा ही हुआ। 13 यहूदा के राजा उज्जिय्याह के उनतालीसवें वर्ष में याबेश का पुत्र शल्लूम राज्य करने लगा, और महीने भर शोमरोन में राज्य करता रहा। 14 क्योंकि गादी के पुत्र मनहेम ने, तिर्सा से शोमरोन को जाकर याबेश के पुत्र शल्लूम को वहीं मारा, और उसे घात करके उसके स्यान पर राजा हुआ। 15 शल्लूम के और काम और उस ने राजद्रोह की जो गोष्ठी की, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की मुस्तक में लिखा है। 16 तब मनहेम ने तिर्सा से जाकर, सब निवासियोंऔर आस पास के देश समेत तिप्सह को इस कारण मार लिया, कि तिप्सहियोंने उसके लिथे फाटक न खेले थे, इस कारण उस ने उन्हें मार लिया, और उस में जितनी गर्भवती स्त्रियां यीं, उस सभोंको चीर डाला। 17 यहूदा के राजा अजर्याह के उनतालीसवें वर्ष में गादी का पुत्र मनहेम इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दस वर्ष शोमरोन में राज्य करता रहा। 18 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह जीवन भर अलग न हुआ। 19 अश्शूर के राजा पूल ने देश पर चढ़ाई की, और मनहेम ने उसको हजार किक्कार चान्दी इस इच्छा से दी, कि वह उसका यहाथक होकर राज्य को उसके हाथ में स्यिर रखे। 20 यह चान्दी अश्शूर के राजा को देने के लिथे मनहेम ने बड़े बड़े धनवान इस्राएलियोंसे ले ली, एक एक पुरुष को पचास पचास शेकेल चान्दी देनी पक्की; तब अश्शूर का राजा देश को छोड़कर लौट गया। 21 मनहेम के उौर काम जो उस ने किए, वे सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 22 निदान मनहेम अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र मकहयाह उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 23 यहूदा के राजा अजर्याह के पचासवें वर्ष में मनहेम का पुत्र पकहयाह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 24 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप रािया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 25 उसके सरदार रमल्याह के पुत्र पेकह ने उस से राजद्रोह की गोष्ठी करके, शोमरोन के राजभवन के गुम्मट में उसको और उसके संग अगॉब और अर्थे को मारा; और पेकह के संग पचास गिलादी पुरुष थे, और वह उसका घात करके उसके स्यान पर राजा बन गया। 26 पकहयाह के और सब काम जो उस ने किए, वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 27 यहूदा के राजा अजर्याह के बावनवें वर्ष में रमल्याह का पुत्र पेकह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और बीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 28 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम, जिस ने इस्राऐल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 29 इस्राएल के राजा पेकह के दिनोंमें अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर ने आकर इय्योन, अबेल्बेत्माका, यानोह, केदेश और हासोर नाम नगरोंको और गिलाद और गालील, वरन नप्ताली के पूरे देश को भी ले लिया, और उनके लोगोंको बन्धुआ करके अश्शूर को ले गया। 30 उजिय्याह के पुत्र योताम के बीसवें वर्ष में एला के पुत्र होशे ने रमल्याह के पुत्र पेकह से राजद्रोह की गोष्ठी करके उसे मारा, और उसे घात करके उसके स्यान पर राजा बन गया। 31 पेकह के और सब काम जो उस ने किए वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 32 रमल्याह के पुत्र इस्राएल के राजा पेकह के दूसरे वर्ष में यहूदा के जाजा उजिय्याह का पुत्र योताम राजा हुआ। 33 जब वह राज्य करने लगा, तब पक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी पाता का नाम यरूशा या जो सादोक की बेटी यी। 34 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या, अर्यात् जैसा उसके पिता उजिय्याह ने किया या, ठीक वैसा ही उस ने भी किया। 35 तौभी ऊंचे स्यान गिराए न गए, प्रजा के लोग उन पर उस समय भी बलि चढाते और धूम जलाते रहे। यहोवा के भवन के ऊंचे फाटक को इसी ने बनाया या। 36 योताम के और सब काम जो उस ने किए, वे क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 37 उन दिनोंमें यहोवा अराम के राजा रसीन को, और रमल्याह के पुत्र पेकह को, यहूदा के विरुद्ध भेजने लगा। 38 निदान योताम अपके पुरखाओं के संग सो गया और अपके मुलपुरुष दाऊद के नगर में अपके पुरखाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र आहाज उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 रमल्याह के पुत्र पेकह के सत्रहवें वर्ष में यहूदा के राजा योताम का पुत्र आहाज राज्य करने लगा। 2 जब आहाज राज्य करने लगा, तब वह बीस पर्ष का या, और सोलह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उस ने अपके मूलपुरुष दाऊद का सा काम नहीं किया, जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में ठीक या। 3 परन्तु वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, वरन उन जातियोंके घिनौने कामोंके अनुसार, जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से निकाल दिया या, उस ने अपके बेटे को भी आग में होम कर दिया। 4 और ऊंचे स्यानोंपर, और पहाडिय़ोंपर, और सब हरे वृझोंके तले, वह बलि चढ़ाया और धूम जलाया करता या। 5 तब अराम के राजा रसीन, और रमल्याह के पुत्र इस्राएल के राजा पेकह ने लड़ने के लिथे यरूशलेम पर चढ़ाई की, और उन्होंने आहाज को घेर लिया, परन्तु युद्ध करके उन से कुछ बन न पड़ा। 6 उस समय अराम के राजा रसीन ने, एलत को अराम के वश में करके, यहूदियोंको वहां से निकाल दिया; तब अरामी लोग एलत को गए, और आज के दिन तक वहां रहते हैं। 7 और आहाज ने दूत भेजकर अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर के पास कहला भेजा कि मुझे अपना दास, वरन बेटा जानकर चढ़ाई कर, और मुझे अराम के राजा और इस्राएल के राजा के हाथ से बचा जो मेरे विरुद्ध उठे हैं। 8 और आहाज ने यहोवा के भवन में और राजभवन के भणडारोंमें जितना सोना-चान्दी मिला उसे अश्शूर के राजा के पास भेंट करके भेज दिया। 9 उसकी मानकर अश्शूर के राजा ने दमिश्क पर चढ़ाई की, और उसे लेकर उसके लोगोंको बन्धुआ करके, कीर को ले गया, और रसीन को मार डाला। 10 तब राजा आहाज अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर से भेंट करने के लिथे दमिश्क को गया, और वहां की वेदी देखकर उसकी सब बनावट के अनुसार उसका नकशा ऊरिय्याह याजक के पास नमूना करके भेज दिया। 11 और ठीक इसी नमूने के अनुसार जिसे राजा आहाज ने दमिश्क से भेजा या, ऊरिय्याह याजक ने राजा आहाज के दमिश्क से आने तक एक वेदी बना दी। 12 जब राजा दमिश्क से आया तब उस ने उस वेदी को देखा, और उसके निकट जाकर उस पर बलि चढ़ाए। 13 उसी वेदी पर उस ने अपना होमबलि और अन्नबलि जलौया, और अर्ध दिया और मेलबलियोंका लोहू छिड़क दिया। 14 और पीतल की जो वेदी यहोवा के साम्हने रहती यी उसको उस ने भवन के साम्हने से अर्यात् अपक्की वेदी और यहोवा के भवन के बीच से हटाकर, उस वेदी की उतर ओर रख दिया। 15 तब राजा आहाज ने ऊरिय्याह याजक को यह आज्ञा दी, कि भोर के होपबलि और सांफ के अन्नबलि, राजा के होमबलि और उसके अन्नबलि, और सब साधारण लोगोंके होमबलि और अर्ध बड़ी वेदी पर चढ़ाया कर, और होमबलियोंऔर मेलबलियोंका सब लोहू उस पर छिड़क; और पीतल की वेदी के विषय मैं विचार करूंगा। 16 राजा आहाज की इस आज्ञा के अनुसार ऊरिय्याह याजक ने किया। 17 फिर राजा आहाज ने कुसिर्योंकी पटरियोंको काट डाला, और हौदियोंको उन पर से उतार दिया, और बड़े हौद को उन पीतल के बैलोंपर से जो उसके तले थे उतारकर, पत्यरोंके फर्श पर धर दिया। 18 और विश्रम के दिन के लिथे जो छाया हुआ स्यान भवन में बना या, और राजा के बाहर के प्रवेश करने का फाटक, उनको उस ने अश्शूर के राजा के कारण यहोवा के भवन से अलग कर दिया। 19 आहाज के और काम जो उस ने किए, वे क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 20 निदान आहाज अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र हिजकिय्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 यहूदा के राजा आहाज के बारहवें वर्ष में एला का पुत्र होशे शोमरोन में, इस्राएल पर राज्य करने लगा, और नौ वर्ष तक राज्य करता रहा। 2 उस ने वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, परन्तु इस्राएल के उन राजाओं के बराबर नहीं जो उस से पहिले थे। 3 उस पर अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने चढ़ाई की, और होशे उसके अधीन होकर, उसको भेंट देने लगा। 4 परन्तु अश्शूर के राजा ने होशे को राजद्रोह की गोष्ठी करनेवाला जान लिया, क्योंकि उस ने “सो” नाम मिस्र के राजा के पास दूत भेजे, और अश्शूर के राजा के पास सालियाना भेंट भेजनी छोड़ दी; इस कारण अश्शूर के राजा ने उसको बन्द किया, और बेड़ी डालकर बन्दीगृह में डाल दिया। 5 तब अश्शूर के राजा ने पूरे देश पर चढ़ाई की, और शोमरोन को जाकर तीन वर्ष तक उसे घेरे रहा। 6 होशे के नौवें वर्ष में अश्शूर के राजा ने शोमरोन को ले लिया, और इस्राएल को अश्शूर में ले जाकर, हलह में और गोजान की नदी हाबोर के पास और मादियोंके नगरोंमें बसाया। 7 इसका यह कारण है, कि यद्यपि इस्राएलियोंका परमेश्वर यहोवा उनको मिस्र के राजा फ़िरौन के हाथ से छुड़ाकर मिस्र देश से निकाल लाया या, तौभी उन्होंने उसके विरुद्ध पाप किया, और पराथे देवताओं का भय माना। 8 और जिन जातियोंको यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से तिकाला या, उनकी रीति पर, और अपके राजाओं की चलाई हुई रीतियोंपर चलते थे। 9 और इस्राएलियोंने कपठ करके अपके परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध अनुचित काम किए, अर्यात पहरुओं के गुम्मट से लेकर गढ़वाले नगर तक अपक्की सारी बस्तियोंमें ऊंचे स्यान बना लिए; 10 और सब ऊंची पहाडिय़ोंपर, और सब हरे वुझोंके तले लाठें और अशेरा खड़े कर लिए। 11 और ऐसे ऊंचे स्यानोंमें उन जातियोंकी नाई जिनको यहोवा ने उनके साम्हने से निकाल दिया या, धूप जलाया, और यहोवा को क्रोध दिलाने के योग्य बुरे काम किए। 12 और मूरतोंकी उपासना की, जिसके विषय यहोवा ने उन से कहा या कि तुम यह काम न करना। 13 तौभी यहोवा ने सब भविष्यद्वक्ताओं और सब दशिर्योंके द्वारा इस्राएल और यहूदा को यह कह कर चिताया या, कि अपक्की बुरी चाल छोड़कर उस सारी य्यवस्या के अनुसार जो मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दी यी, और अपके दास भविष्यद्वक्ताओं के हाथ तूम्हारे पास पहुंचाई है, मेरी आज्ञाओं और विधियोंको माना करो। 14 परन्तु उन्होंने न माना, वरन अपके उन पुरखाओं की नाई, जिन्होंने अपके परमेश्वर यहोवा का विश्वास न किया या, वे भी हठीले बन गए। 15 और वे उसकी विधियोंऔर अपके पुरखाओं के साय उसकी वाचा, और जो चितौनियां उस ने उन्हें दी यीं, उनको तुच्छ जानकर, निकम्मी बातोंके पीछे हो लिए; जिस से वे आप निकम्मे हो गए, और अपके चारोंओर की उन जातियोंके पीछे भी हो लिए जिनके विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी यी कि उनके से काम न करना। 16 वरन उन्होंने अपके परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाओं को त्याग दिया, और दो बछड़ोंकी मूरतें ढालकर बनाई, और अशेरा भी बनाई; और आकाश के सारे गणोंको दणडवत की, और बाल की उपासना की। 17 और अपके बेटे-बेटियोंको आग में होम करके चढाया; और भावी कहनेवालोंसे पूछने, और टोना करने लगे; और जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या जिस से वह क्रोधित भी होता है, उसके करने को अपक्की इच्छा से बिक गए। 18 इस कारण यहोवा इस्राएल से अति क्रोधित हुआ, और उन्हें अपके साम्हने से दूर कर दिया; यहूदा का गोत्र छोड़ और कोई बचा न रहा। 19 यहूदा ने भी अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएं न मानीं, वरन जो विधियां इस्राएल ने चलाई यीं, उन पर चलने लगे। 20 तब यहोवा ने इस्राएल की सारी सन्तान को छोड़ कर, उनको दु:ख दिया, और लूटनेवालोंके हाथ कर दिया, और अन्त में उन्हें अपके साम्हने से निकाल दिया। 21 उस ने इस्राएल को तो दाऊद के घराने के हाथ से छीन लिया, और उन्होंने नबात के पुत्र यारोबाम को अपना राजा बनाया; और यारोबाम ने इस्राएल को यहोवा के पीछे चलने से दूर खींचकर उन से बड़ा पाप कराया। 22 सो जैसे पाप यारोबाम ने किए थे, वैसे ही पाप इस्राएली भी करते रहे, और उन से अलग न हुए। 23 अन्त में यहोवा ने इस्राएल को अपके साम्हने से दूर कर दिया, जैसे कि उस ने अपके सब दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा या। इस प्रकार इस्राएल अपके देश से निकालकर अश्शूर को पहंचाया गया, जहां वह आज के दिन तक रहता है। 24 और अश्शूर के राजा ने बाबेल, कूता, अब्वा हमात और सपवैंम नगरोंसे लोगोंको लाकर, इस्राएलियोंके स्यान पर शोमरोन के नगरोंमें बसाया; सो वे शोमरोन के अधिक्कारनेी होकर उसके नगरोंमें रहने लगे। 25 जब वे वहां पहिले पहिले रहने लगे, तब यहोवा का भय न मानते थे, इस कारण यहोवा ने उनके बीच सिंह भेजे, जो उनको मार डालने लगे। 26 इस कारण उन्होंने अश्शूर के राजा के पास कहला भेजा कि जो जातियां तू ने उनके देशोंसे निकालकर शोमरोन के नगरोंमें बसा दी हैं, वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानतीं, उस से उस ने उसके मध्य सिंह भेजे हैं जो उनको इसलिथे मार डालते हैं कि वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानते। 27 तब अश्शूर के राजा ने आज्ञा दी, कि जिन याजकोंको तुम उस देश से ले आए, उन में से एक को वहां पहुंचा दो; और वह वहां जाकर रहे, और वह उनको उस देश के देवता की रीति सिखाए। 28 तब जो याजक शोमरोन से निकाले गए थे, उन में से एक जाकर बेतेल में रहने लगा, और उनको सिखाने लगा कि यहोवा का भय किस रीति से मानना चाहिथे। 29 तौभी एक एक जाति के लोगोंने अपके अपके निज देवता बनाकर, अपके अपके बसाए हुए नगर में उन ऊंचे स्यानोंके भवनोंमें रखा जो शोमरोनियोंने बसाए थे। 30 बाबेल के मनुष्योंने तो सुक्कोतबनोत को, कूत के पनुष्योंने नेर्गल को, हमात के मनुष्योंने अशीमा को, 31 और अब्वियोंने निभज, और तर्त्ताक को स्यापित किया; और सपवमी लोग अपके बेटोंको अद्रम्मेलेक और अनम्मेलेक नाम सपवैंम के देवताओं के लिथे होम करके चढ़ाने लगे। 32 योंवे यहावा का भय मानते तो थे, परन्तु सब प्रकार के लोगोंमें से ऊंचे स्यानोंके याजक भी ठहरा देते थे, जो ऊंचे स्यानोंके भवनोंमें उनके लिथे बलि करते थे। 33 वे यहोवा का भय मानते तो थे, परन्तु उन जातियोंकी रीति पर, जिनके बीच से वे निकाले गए थे, अपके अपके देवताओं की भी उपासना करते रहे। 34 आज के दिन तक वे अपक्की पहिली रीतियोंपर चलते हैं, वे यहोवा का भय नहीं मानते। 35 न तो उपक्की विधियोंऔर नियमोंपर और न उस य्यवस्या और आज्ञा के अनुसार चलते हैं, जो यहोवा ने याकूब की सन्तान को दी यी, जिसका नाम उस ने इस्राएल रखा या। उन से यहोवा ने बाचा बान्धकर उन्हें यह आज्ञा दी यी, कि तुम पाराथे देवताओं का भय न मानना और न उन्हें दणडवत करना और न उनकी उपासना करना और न उनको बलि चढ़ाना। 36 परन्तु यहोवा जो तुम को बड़े बल और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा मिय्र देश से निकाल ले आया, तुम उसी का भय मानना, उसी को दणडवत करना और उसी को बलि चढ़ाना। 37 और उस ने जो जो विधियां और नियम और जो य्यवस्या और आज्ञाएं तुम्हारे लिथे लिखीं, उन्हें तुम सदा चौकसी से मानते रहो; और पराथे देवताओं का भय न मानना। 38 और जो वाचा मैं ने तुम्हारे साय बान्धी है, उसे न भूलना और पराथे देवताओं का भय न मानना। 39 केवल अपके परमेश्वर यहोवा का भय पानना, वही तुम को तुम्हारे सब शत्रुओं के हाथ से बचाएगा। 40 तौभी उन्होंने न माना, परन्तु वे अपक्की पहिली रीति के अनुसार करते रहे। 41 अतएव वे जातियां यहोवा का भय मानती तो यीं, परन्तु अपक्की खुदी हुई मूरतोंकी उपासना भी करती रहीं, और जैसे वे करते थे वैसे ही उनके बेटे पोते भी आज के दिन तक करते हैं।
1 एला के पुत्र इस्राएल के राजा होशे के तीसरे वर्ष में यहूदा के राजा आहाज का पुत्र हिजकिय्याह राजा हुआ। 2 जब वह राज्य करने लगा तब पच्चीस वर्ष का या, और उनतीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अबी या, जो जकर्याह की बेटी यी। 3 जैसे उसके मूलपुरुष दाऊद ने किया या जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वैसा ही उस ने भी किया। 4 उस ने ऊंचे स्यान गिरा दिए, लाठोंको तोड़ दिया, अशेरा को काट डाला। और पीतल का जो सांप मूसा ने बनाया या, उसको उस ने इस कारण चूर चूर कर दिया, कि उन दिनोंतक इस्राएली उसके लिथे धूप जलाते थे; और उस ने उसका नाम नहुशतान रखा। 5 वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखता या, और उसके बाद यहूदा के सब राजाओं में कोई उसके बराबर न हुआ, और न उस से पहिले भी ऐसा कोई हुआ या। 6 और वह यहोवा से लिपटा रहा और उसके पीछे चलना न छोड़ा; और जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी यीं, उनका वह पालन करता रहा। 7 इसलिथे यहोवा उसके संग रहा; और जहां कहीं वह जाता या, वहां उसका काम सफल होता या। और उस ने अश्शूर के राजा से बलवा करके, उसकी अधीनता छोड़ दी। 8 उस ने पलिश्तियोंको राज़ा और उसके सिवानोंतक, पहरुओं के गुम्मट और गढ़वाले नगर तक मारा। 9 राजा हिजकिय्याह के चौथे वर्ष में जो एला के पुत्र इस्राएल के राजा होशे का सातवां वर्ष या, अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने शोमरोन पर चढ़ाई करके उसे घेर लिया। 10 और तीन वर्ष के बीतने पर उन्होंने उसको ले लिया। इस प्रकार हिजकिय्याह के छठवें वर्ष में जो इस्राएल के राजा होशे का नौवां वर्ष या, शोमरोन ले लिया गया। 11 तब अश्शूर का राजा इस्राएल को बन्धुआ करके अश्शूर में ले गया, और हलह में ओर गोजान की नदी हाबोर के पास और मादियोंके नगरोंमें उसे बसा दिया। 12 इसका कारण यह या, कि उन्होंने अपके परमेश्वर यहोवा की बात न मानी, वरन उसकी वाचा को तोड़ा, और जितनी आज्ञाएं यहोवा के दास मूसा ने दी यीं, उनको टाल दिया और न उनको सुना और न उनके अनुसार किया। 13 हिजकिय्याह राजा के चौदहवें वर्ष में अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरोंपर चढ़ाई करके उनको ले लिया। 14 तब यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने अश्शूर के राजा के पास लाकीश को कहला भेजा, कि मुझ से अपराध हुआ, मेरे पास से लौट जा; और जो भर तू मुझ पर डालेगा उसको मैं उठाऊंगा। तो अश्शूर के राज ने यहूदा के राजा हिजकिय्याह के लिथे तीन सौ किक्कार चान्दी और तीस किक्कार लोना ठहरा दिया। 15 तब जितनी चान्दी यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारोंमें मिली, उस सब को हिजकिय्याह ने उसे दे दिया। 16 उस समय हिजकिय्याह ने यहोवा के मन्दिर के किवाड़ोंसे और उन खम्भोंसे भी जिन पर यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने सोना मढ़ा या, सोने को छीलकर अश्शूर के राजा को दे दिया। 17 तौभी अश्शूर के राजा ने तर्त्तान, रबसारीस और रबशाके को बड़ी सेना देकर, लाकीश से यरूशलेम के पास हिजकिय्याह राजा के विरुद्ध भेज दिया। सो वे यरूशलेम को गए और वहां पहुंचकर ऊपर के पोखरे की नाली के पास धेबियोंके खेत की सड़क पर जाकर खड़े हुए। 18 और जब उन्होंने राजा को पुकारा, तब हिलकिय्याह का पुत्र एल्याकीम जो राजघराने के काम पर या, और शेब्ना जो मन्त्री या और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लिखनेवाला या, थे तीनोंउनके पास बाहर निकल गए। 19 रबशाके ने उन से कहा, हिजकिय्याह से कहो, कि महाराजाधिराज अर्यात् अश्शूर का राजा योंकहता है, कि तू किस पर भरोसा करता है? 20 तू जो कहता है, कि मेरे यहां युद्ध के लिथे युक्ति और पराक्रम है, सो तो केवल बात ही बात है। तू किस पर भरोसा रखता है कि तू ने मुझ से बलवा किया है? 21 सुन, तू तो उस कुचले हुए नरकट अर्यात् मिस्र पर भरोसा रखता है, उस पर यदि कोई टेक लगाए, तो वह उसके हाथ में चुभकर छेदेगा। मिस्र का राजा फ़िरौन अपके सब भरोसा रखनेवालोंके लिथे ऐसा ही है। 22 फिर यदि तुम मुझ से कहो, कि हमारा भरोसा अपके परमेश्वर यहोवा पर है, तो क्या यह वही नहीं है जिसके ऊंचे स्यानोंऔर वेदियोंको हिजकिय्याह ने दूर करके यहूदा और यरूशलेम से कहा, कि तुम इसी वेदी के साम्हने जो यरूशलेम में है दणडवत करना? 23 तो अब मेरे स्वामी अश्शूर के राजा के पास मुछ बन्धक रख, तब मैं तुझे दो हाजार घोड़े दूंगा, क्या तू उन पर सवार चढ़ा सकेगा कि नहीं? 24 फिर तू मेरे स्वामी के छोटे से छोटे कर्मचारी का भी कहा न मान कर क्योंरयोंऔर सवारोंके लिथे मिस्र पर भरोसा रखता है? 25 क्या मैं ने यहोवा के बिना कहे, इस स्यान को उजाड़ने के लिथे चढ़ाई की है? यहोवा ने मुझ से कहा है, कि उस देश पर चढ़ाई करके उसे उजाड़ दे। 26 तब हिलकिय्याह के पुत्र एल्याकीम और शेब्ना योआह ने रबशाके से कहा, अपके दासोंसे अरामी भाषा में बातें कर, क्योंकि हम उसे समझते हैं; और हम से यहूदी भाषा में शहरपनाह पर बैठे हुए लोगोंके सुनते बातें न कर। 27 रबशाके ने उन से कहा, क्या मेरे स्वामी ने मुझे तुम्हारे स्वामी ही के, वा तुम्हारे ही पास थे बातें कहने को भेजा है? क्या उस ने मुझे उन लोगोंके पास नहीं भेजा, जो शहरपनाह पर बैठे हैं, ताकि नुम्हारे संग उनको भी अपक्की बिष्ठा खाना और अपना मूत्र पीना पके? 28 तब रबशाके ने खड़े हो, यहूदी भाषा में ऊंचे शब्द से कहा, महाराजाधिराज अर्यत् अश्शूर के राजा की बात सुनो। 29 राजा योंकहता है, कि हिजकिय्याह तुम को भुलाने न पाए, क्योंकि वह तुम्हें मेरे हाथ से बचा न सकेगा। 30 और वह तुम से यह कहकर यहोवा पर भरोसा कराने न पाए, कि यहोवा निश्चय हम को बचाएगा और यह नगर अश्शूर के राजा के वश में न पकेगा। 31 हिजकिय्याह की मत सुनो। अश्शूर का राजा कहता है कि भेंट भेजकर मुझे प्रसन्न करो और मेरे पास निकल आओ, और प्रत्थेक अपक्की अपक्की दाखलता और अंजीर के वृझ के फल खाता और अपके अपके कुण्ड का पानी पीता रहे। 32 तब मैं आकर तुम को ऐसे देश में ले जाऊंगा, जो तुम्हारे देश के समान अनाज और नथे दाखमधु का देश, रोटी और दाख्बारियोंका देश, जलपाइयोंऔर मधु का देश है, वहां तुम मरोगे नहीं, जीवित रहोगे; तो जब हिजकिय्याह यह कहकर तुम को बहकाए, कि यहोवा हम को बचाएगा, तब उसकी न सुनना। 33 क्या और जातियोंके देवताओं ने अपके अपके देश को अश्शूर के राजा के हाथ से कभी बचाया है? 34 हमात और अर्पाद के देवता कहां रहे? सपवैंम, हेना और इय्वा के देवता कहां रहे? क्या उन्होंने शोमरोन को मेरे हाथ से बचाया है, 35 देश देश के सब देवताओं में से ऐसा कौन है, जिस ने अपके देश को मेरे हाथ से बचाया हो? फिर क्या यहोवा यरूशलेम को मेरे हाथ से बचाएगा। 36 परन्तु सब लोग चुप रहे और उसके उत्तर में एक बात भी न कही, क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा यी, कि उसको उत्तर न देना। 37 तब हिलकिय्याह का पुत्र एल्याकीम जो राजघराने के काम पर या, और शेब्ना जो मन्त्री या, और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लिखनेवाला या, अपके वस्त्र फाड़े हुए, हिजकिय्याह के पास जाकर रबशाके की बातें कह सुनाई।
1 जब हिजकिय्याह राजा ने यह सुना, तब वह अपके वस्त्र फाड़, टाट ओढ़कर यहोवा के भपन में गया। 2 और उस ने एल्याकीम को जो राजघराने के काम पर या, और शेब्ना मन्त्री को, और याजकोंके पुरनियोंको, जो सब टाट ओढ़े हुए थे, आमोस के पुत्र यशायाह भविष्यद्वक्ता के पास भेज दिया। 3 उन्होंने उस से कहा, हिजकिय्याह योंकहता है, आज का दिन संकट, और उलहने, और निन्दा का दिन है; बच्चे जन्मने पर हुए पर जच्चा को जन्म देने का बल न रहा। 4 कदाचित तेरा परमेश्वर यहोवा रबशाके की सब बातें सुने, जिसे उसके स्वामी अश्शूर के राजा ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को भेजा है, और जो बातें तेरे परमेश्वर यहावा ने सुनी हैं उन्हें डपके; इसलिथे तू इन बचे हुओं के लिथे जो रह गए हैं प्रार्यना कर। 5 जब हिजकिय्याह राजा के कर्मचारी यशायाह के पास आए, 6 तब यशायाह ने उन से कहा, अपके स्वामी से कहो, यहेवा योंकहता है, कि जो वचन तू ने सुने हैं, जिनके द्वारा अश्शूर के राजा के जनोंने मेरी निन्दा की है, उनके कारण मत डर। 7 सुन, मैं उसके मन में प्रेरणा करूंगा, कि वह कुछ समाचार सुनकर अपके देश को लौट जाए, और मैं उसको उसी के देश में तलवार से मरवा डालूंगा। 8 तब रबशाके ने लौटकर अश्शूर के राजा को लिब्ना नगर से युद्ध करते पाया, क्योंकि उस ने सुना या कि वह लाकीश के पास से उठ गया है। 9 और जब उस ने कूश के राजा तिर्हाका के विष्य यह सुना, कि वह मुझ से लड़ने को निकला है, तब उस ने हिजकिय्याह के पास दूतोंको यह कह कर भेजा, 10 तुम यहूदा के राजा हिजकिय्याह से योंकहना : तेरा परमेश्वर जिसका तू भरोसा करता है, यह कहकर तुझे धोखा न देने पाए, कि यरूशलेम अश्शूर के राजा के वश में न पकेगा। 11 देख, तू ने तो सुना है अश्शूर के राजाओं ने सब देशोंसे कैसा य्यवहार किया है उन्हें सत्यानाश कर दिया है। फिर क्या तू बचेगा? 12 गोजान उाौर हारान और रेसेप और तलस्सार में रहनेवाले एदेनी, जिन जातियोंको मेरे पुरखाओं ने नाश किया, क्या उन में से किसी जाति के देवताओं ने उसको बचा लिया? 13 हमात का राजा, और अर्पाद का राजा, और समवैंम नगर का राजा, और हेना और इय्वा के राजा थे सब कहां रहे? इस पत्री को हिजकिय्याह ने दूतोंके हाथ से लेकर पढ़ा। 14 तब यहोवा के भवन में जाकर उसको यहोवा के साम्हने फैला दिया। 15 और यहोवा से यह प्रार्यना की, कि हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! हे करूबोंपर विराजनेवाले ! पृय्वी के सब राज्योंके ऊपर केवल तू ही परमेश्वर है। आकाश और पृय्वी को तू ही ने बनाया है। 16 हे यहोवा ! कान लगाकर सुन, हे यहोवा आंख खोलकर देख, और सन्हेरीब के वचनोंको सुन ले, जो उस ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को कहला भेजे हैं। 17 हे यहोवा, सच तो है, कि अश्शूर के राजाओं ने जातियोंको और उनके देशोंको उजाड़ा है। 18 और उनके देवताओं को आग में फेंका है, क्योंकि वे ईश्वर न थे; वे मनुष्योंके बनाए हुए काठ और पत्यर ही के थे; इस कारण वे उनको नाश कर सके। 19 इसलिथे अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा तू हमें उसके हाथ से बचा, कि पृय्वी के राज्य राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है। 20 तब आमोस के पुत्र यशायाह ने हिजकिय्याह के पास यह कहला भेजा, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि जो प्रार्यना तू ने अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय मुझ से की, उसे मैं ने सुना है। 21 उसके विषय में यहोवा ने यह वचन कहा है, कि सिय्योन की कुमारी कन्या तुझे तुच्छ जानती और तुझे ठट्ठोंमें उड़ाती है, यरूशलेम की पुत्री, तुझ पर सिर हिलाती है। 22 तू ने जो नामधराई और निन्दा की है, वह किसकी की है? और तू ने जो बड़ा बोल बोला और घमणड किया है वह किसके विरुद्ध किया है? इस्राएल के पवित्र के विरुद्ध तू ने किया है ! 23 अपके दूतोंके द्वारा तू ने प्रभु की निन्दा करके कहा है, कि वहुत से रय लेकर मैं पर्वतोंकी चोटियोंपर, वरन लबानोन के बीच तक चढ़ आया हूँ, और मैं उसके ऊंचे ऊंचे देवदारुओं और अच्छे अच्छे सनोवरोंको काट डालूंगा; और उस में जो सब से ऊंचा टिकने का स्यान होगा उस में और उसके वन की फलदाई बारियोंमें प्रवेश करूंगा। 24 मैं ने तो खुदवाकर परदेश का पानी पिया; और मिस्र की नहरोंमें पांव धरते ही उन्हें सुखा डालूंगा। 25 क्या तू ने नहीं सुना, कि प्राचीनकाल से मैं ने यही ठहराया? और अगले दिनोंसे इसकी तैयारी की यी, उन्हें अब मैं ने पूरा भी किया है, कि तू गढ़वाले नगरोंको खणडहर ही खणडहर कर दे, 26 इसी कारण उनके रहनेवालोंका बल घट गया; वे विस्मित और लज्जित हुए; वे मैदान के छोटे छोटे पेड़ोंऔर हरी घास और छत पर की घास, और ऐसे अनाज के समान हो गए, जो बढ़ने से पहिले सूख जाता है। 27 मैं तो तेरा बैठा रहना, और कूच करना, और लौट आना जानता हूँ, और यह भी कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता है। 28 इस कारण कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता और तेरे अभिमान की बातें मेरे कानोंमें पक्की हैं; मैं तेरी नाक में अपक्की नकेल डालकर और तेरे मुंह में अपना लगाम लगाकर, जिस मार्ग से तू आया है, उसी से तुझे लोटा दूंगा। 29 और तेरे लिथे यह चिन्ह होगा, कि इस वर्ष तो तुम उसे खाओगे जो आप से आप उगे, और दूसरे वर्ष उसे जो उत्पन्न हो वह खाओगे; और तीसरे वर्ष बीज बोने और उसे लवने पाओगे, और दाख की बारियां लगाने और उनका फल खाने पाओगे। 30 और यहूदा के घराने के बचे हुए लोग फिर जड़ पकड़ेंगे, और फलेंगे भी। 31 क्योंकि यरूशलेम में से बचे हुए और सिय्योन पर्वत के भागे हुए लोग निकलेंगे। यहोवा यह काम अपक्की जलन के कारण करेगा। 32 इसलिथे यहोवा अश्शूर के राजा के विषय में योंकहता है कि वह इस नगर में प्रवेश करने, वरन इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा, और न वह ढाल लेकर इसके साम्हने आने, वा इसके विरुद्ध दमदमा बनाने पाएगा। 33 जिस मार्ग से वह आया, उसी से वह लौट भी जाएगा, और इस नगर में प्रवेश न करने पाएगा, यहोवा की यही वाणी है। 34 और मैं अपके निमित्त और अपके दास दाऊद के निमित्त इस नगर की रझा करके इसे बचाऊंगा। 35 उसी रात में क्या हुआ, कि यहोवा के दूत ने निकलकर अश्शूरियोंकी छावनी में एक लाख पचासी हजार पुरुषोंको मारा, और भोर को जब लोग सबेरे उठे, तब देखा, कि लोय ही लोय पक्की है। 36 तब अश्शूर का राजा सन्हेरीब चल दिया, और लौटकर नीनवे में रहने लगा। 37 वहां वह अपके देवता निस्रोक के मन्दिर में दणडवत कर रहा या, कि अदेम्मेलेक और सरेसेर ने उसको तलवार से मारा, और अरारात देश में भाग गए। और उसी का पुत्र एसर्हद्दोन उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 उन दिनोंमें हिजकिय्याह ऐसा रोगी हुआ कि मरते पर या, और आमोस के पुत्र यशायाह भविष्यद्वक्ता ने उसके पास जाकर कहा, यहोवा योंकहता है, कि अपके घराने के विषय जो आज्ञा देनी हो वह दे; क्योंकि तू नहीं बचेगा, मर जाएगा। 2 तब उस ने भीत की ओर मुंह फेर, यहोवा से प्रार्यना करके कहा, हे यहोवा ! 3 मैं बिन्ती करता हूँ, स्मरण कर, कि मैं सच्चाई और खरे मन से अपके को तेरे सम्मुख जानकर चलता आया हूँ; और जो तुझे अच्छा तगता है वही मैं करता आया हूँ। तब हिजकिय्याह बिलक बिलक कर रोया। 4 और ऐसा हुआ कि यशायाह नगर के बीच तक जाने भी न पाया या कि यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, 5 कि लौटकर मेरी प्रजा के प्रधान हिजकिय्याह से कह, कि तेरे मूलपुरुष दाऊद का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि मैं ने तेरी प्रार्यना सुनी और तेरे आंसू देखे हैं; देख, मैं तुझे चंगा करता हूँ; परसोंतू यहोवा के भवन में जा सकेगा। 6 और मैं तेरी आयू पन्द्रह वर्ष और बढ़ा दूंगा। और अश्शूर के राजा के हाथ से तुझे और इस नगर को बचाऊंगा, और मैं अपके निमित्त और अपके दास दाऊद के निमित्त इस नगर की रझा करूंगा। 7 तब यशायाह ने कहा, अंजीरोंकी एक टिकिया लो। जब उन्होंने उसे लेकर फोड़े पर बान्धा, तब वह चंगा हो गया। 8 हिजकिय्याह ने यशायाह से पूछा, यहोवा जो मुझे चंगा करेगा और मैं परसोंयहोवा के भवन को जा सकूंगा, इसका क्या चिन्ह होगा? 9 यशायाह ने कहा, यहोवा जो अपके कहे हुए वचन को पूरा करेगा, इस बात का यहोवा की ओर से तेरे लिथे यह चिन्ह होगा, कि धूपघड़ी की छाया दस अंश आगे बढ़ जाएगी, व दस अंश घट जाएगी। 10 हिजकिय्याह ने कहा, छाया का दस अंश आगे ण्ढ़ना तो हलकी बात है, इसलिए ऐसा हो कि छाया दस अंश पीछे लौट जाए। 11 तब यशायाह भविष्यद्वक्ता ने यहोवा को पुकारा, और आहाज की घूपघड़ी की छाया, जो दस अंश ढल चुकी यी, यहोवा ने उसको पीछे की ओर लौटा दिया। 12 उस समय बलदान का पुत्र बरोदकबलदान जो बाबेल का राजा या, उस ने हिजकिय्याह के रोगी होने की चर्चा सुनकर, उसके पास पत्री और भेंट भेजी। 13 उनके लानेवालोंकी मानकर हिजकिय्याह ने उनको अपके अनमोल पदायॉं का सब भणडार, और चान्दी और सोना और सुगन्ध द्रय्य और उत्तम तेल और अपके हयियारोंका पूरा घर और अपके भणडारोंमें जो जो वस्तुएं यीं, वे सब दिखाई; हिजकिय्याह के भवन और राज्य भर में कोई ऐसी वस्तु न रही, जो उस ने उन्हें न दिख्खाई हो। 14 तब यशायाह भविष्यद्वक्ता ने हिजकिय्याह राजा के पास जाकर पुछा, वे मनुष्य क्या कह गए? और कहां से तेरे पास आए थे? हिजकिय्याह ने कहा, वे तो दूर देश से अर्यात् बाबेल से आए थे। 15 फिर उस ने पूछा, तेरे भवन में उन्होंने क्या क्या देखा है? हिजकिय्याह ने कहा, जो कुछ मेरे भवन में है, वह सब उन्होंने देखा। मेरे भणडारोंमें कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मैं ने उन्हें न दिखाई हो। 16 यशायाह ने हिजकिय्याह से कहा, यहोवा का वचन सुन ले। 17 ऐसे दिन आनेवाले है, जिन में जो कुछ तेरे भवन में हैं, और जो कुछ तेरे मुरखाओं का रखा हुआ आज के दिन तक भणडारोंमें है वह सब बाबेल को उठ जाएगा; यहोवा यह कहता है, कि कोई वस्तु न बचेगी। 18 और जो पुत्र तेरे वंश में उत्पन्न हों, उन में से भी कितनोंको वे बन्धुआई में ले जाएंगे; और वे खोजे बनकर बाबेल के राजभवन में रहेंगे। 19 हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, यहोवा का वचन जो तू ने कहा है, वह भला ही है, फिर उस ने कहा, क्या मेरे दिनोंमें शांति और सच्चाई बनी न रहेंगी? 20 हिजकिय्याह के और सब काम और उसकी सारी वीरता और किस रीति उस ने एक पोखरा और नाली खुदवाकर नगर में पानी पहुंचा दिया, यह सग क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 21 निदान हिजकिय्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र मनश्शे उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 जब मनश्शे राज्य करने लगा, तब वह बारह वर्ष का या, और यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हेप्सीबा या। 2 उस ने उन जातियोंके घिनौने कामोंके अनुसार, जिनको यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने देश से निकाल दिया या, वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या। 3 उस ने उन ऊंचे स्यानोंको जिनको उसके पिता हिजकिय्याह ने नाश किया या, फिर बनाया, और इस्राएल के राजा अहाब की नाई बाल के लिथे वेदियां और एक अशेरा बनवाई, और आकाश के कुल गण को दणडवत और उनकी उपासना करता रहा। 4 और उस ने यहोवा के उस भवन में वेदियां बनाई जिसके विषय यहोवा ने कहा या, कि यरूशलेम में मैं अपना नाम रखूंगा। 5 वरन यहोवा के भवन के दोनोंआंगनोंमें भी उस ने आकाश के कुल गण के लिथे वेदियां बनाई। 6 फिर उस ने अपके बेटे को आग में होम करके चढ़ाया; और शुभअशुभ मुहुत्तॉंको मानता, और टोना करता, और ओफोंऔर भूत सिद्धिवालोंसे य्यवहार करता या; वरन उस ने ऐसे बहुत से काम किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं, और जिन से वह क्रोधित होता है। 7 और अशेरा की जो मूरत उस ने खुदवाई, उसको उस ने उस भवन में स्यापित किया, जिसके विषय यहोवा ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा या, कि इस भवन में और यरूशलेम में, जिसको मैं ने इस्राएल के सब गोत्रोंमें से चुन लिया है, मैं सदैव अपना नाम रखूंगा। 8 और यदि वे मेरी सब आज्ञाओं के और मेरे दास मूसा की दी हुई पूरी य्यवस्या के अनुसार करने की चौकसी करें, तो मैं ऐसा न करूंगा कि जो देश मैं ने इस्राएल के पुरखओं को दिया या, उस से वे फिर निकलकर मारे मारे फिरें। 9 परन्तु उन्होंने न माना, बरन मनश्शे ने उनको यहां तक भटका दिया कि उन्होंने उन जातियोंसे भी बढ़कर बुराई की जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से विनाश किया या। 10 इसलिथे यहोवा ने अपके दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा, 11 कि यहूदा के राजा मनश्शे ने जो थे घृणित काम किए, और जितनी बुराइयां एमोरियोंने जो उस से पहिले थे की यीं, उन से भी अधिक बुराइयां कीं; और यहूदियोंसे अपक्की बनाई हुई मूरतोंकी पूजा करवा के उन्हें पाप में फंसाया है। 12 इस कारण इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि सुनो, मैं यरूशलेम और यहूदा पर ऐसी विपत्ति डालना चाहता हूँ कि जो कोई उसका समाचार सुनेगा वह बड़े सन्नाटे में आ जाएगा। 13 और जो मापके की डोरी मैं ने शोमरोन पर डाली है और जो साहुल मैं ने अहाब के घराने पर लटकाया है वही यरूशलेम पर डालूंगा। और मैं यरूशलेम को ऐसा पोछूंगा जैसे कोई याली को पोंछता है और उसे पोंछकर उलट देता है। 14 और मैं अपके निज भाग के बचे हुओं को त्यागकर शत्रुओं के हाथ कर दूंगा और वे अपके सब शत्रुओं के लिए लूट और धन बन जाएंगे। 15 इसका कारण यह है, कि जब से उनके पुरखा मिस्र से निकले तब से आज के दिन तक वे वह काम करके जो मेरी दृष्टि में बुरा है, मुझे रिस दिलाते आ रहे हैं। 16 मनश्शे ने तो न केवल वह काम कराके यहूदियोंसे पाप कराया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, वरन निदॉषोंका खून बहुत बहाथा, यहां तक कि उस ने यरूशलेम को एक सिक्के से दूसरे सिक्के तक खून से भर दिया। 17 मनश्शे के और सब काम जो उस ने किए, और जो पाप उस ने किए, वह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 18 निदान मनश्शे अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसके भवन की बारी में जो उज्जर की बारी कहलाती यी मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र आमोन उसके स्यान पर राजा हुआ। 19 जब आमोन राज्य करने लगा, तब वह बाईस पर्ष का या, और यरूशलेम में दो वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम मशुल्लेमेत या जो योत्बावासी हारूम की बेटी यी। 20 और उस ने अपके पिता मनश्शे की नाई वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 21 और वह अपके पिता के समान पूरी चाल चला, और जिन मूरतोंकी उपासना उसका पिता करता या, उनकी वह भी उपासना करता, और उन्हें दणडवत करता या। 22 और उस ने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया, और यहोवा के मार्ग पर न चला। 23 और आमोन के कर्मचारियोंने द्रोह की गोष्ठी करके राजा को उसी के भवन में मार डाला। 24 तब साधारण लोगोंने उन सभोंको मार डाला, जिन्होंने राजा आमोन से द्रोह की गोष्ठी की यी, और लोगोंने उसके पुत्र योशिय्याह को उसके स्यान पर राजा किया। 25 आमोन के और काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं। 26 उसे भी उज्जर की बारी में उसकी निज कबर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र योशिय्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 जब योशिय्याह राज्य करने लगा, तब वह आठ वर्ष का या, और यरूशलेम में एकतीस वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यदीदा या जो बोस्कतवासी अदाया की बेटी यी। 2 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है और जिस मार्ग पर उसका मूलपुरुष दाऊद चला ठीक उसी पर वह भी चला, और उस से न तो दाहिनी ओर और न बाई ओर मुड़ा। 3 अपके राज्य के अठारहवें वर्ष में राजा योशिय्याह ने असल्याह के पुत्र शापान मंत्री को जो मशुल्लाम का पोता या, यहोवा के भवन में यह कहकर भेजा, कि हिलकिय्याह महाथाजक के पास जाकर कह, 4 कि जो चान्दी यहोवा के भवन में लाई गई है, और द्वारपालोंने प्रजा से इकट्ठी की है, 5 उसको जोड़कर, उन काम करानेवालोंको सौंप दे, जो यहोवा के भवन के काम पर मुखिथे हैं; फिर वे उसको यहोवा के भवन में काम करनेवाले कारीगरोंको दें, इसलिथे कि उस में जो कुछ टूटा फूटा हो उसकी वे मरम्मत करें। 6 अर्यात् बढ़इयों, राजोंऔर संगतराशोंको दें, और भवन की मरम्मत के लिथे लकड़ी और गढ़े हुए पत्यर मोल लेने में लगाएं। 7 परन्तु जिनके हाथ में वह चान्दी सौंपी गई, उन से हिसाब न लिया गया, क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे। 8 और हिलकिय्याह महाथाजक ने शापान मंत्री से कहा, मुझे यहोवा के भवन में य्यवस्या की पुस्तक मिली है; तब हिलकिय्याह ने शापान को वह पुस्तक दी, और वह उसे पढ़ने लगा। 9 तब शापान मंत्री ने राजा के पास लौटकर यह सन्देश दिया, कि जो चानदी भवन में मिली, उसे तेरे कर्मचारियो ने यैलियोंमें डाल कर, उनको सौंप दिया जो यहोवा के भवन में काम करानेवाले हैं। 10 फिर शपान मंत्री ने राजा को यह भी बता दिया, कि हिलकिय्याह याजक ने उसे एक पुस्तक दी है। तब शपान उसे राजा को पढ़कर सुनाने लगा। 11 य्यवस्या की उस पुस्तक की बातें सुनकर राजा ने अपके वस्त्र फाड़े। 12 फिर उस ने हिलकिय्याह याजक, शापान के पुत्र अहीकाम, मीकायाह के पुत्र अकबोर, शापान मंत्री और असाया ताम अपके एक कर्मचारी को आज्ञा दी, 13 कि यह पुस्तक जो मिली है, उसकी बातोंके विष्य तुम जाकर मेरी ओर प्रजा की और सब सहूदियोंकी ओर से यहोवा से पूछो, क्योंकि यहोवा की बड़ी ही जलजलाहट हम पर इस कारण भड़की है, कि हमारे पुरखाओं ने इस पुस्तक की बातें न मानी कि कुछ हमारे लिथे लिखा है, उसके अनुसार करते। 14 हिलकिय्याह याजक और अहीकाम, अकबोर, शापान और असाया ने हुल्दा नबिया के पास जाकर उस से बातें की, वह उस शल्लूम की पत्नी यी जो तिकवा का पुत्र और हर्हस का पोता और वस्त्रोंका रखवाला या, ( और वह स्त्री यरूशलेम के नथे टोले में रहती यी ) । 15 उस ने उन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि जिस पुरुष ने तुम को मेरे पास भेजा, उस से यह कहो, 16 यहोवा योंकहता है, कि सुन, जिस पुस्तक को यहूदा के राजा ने पढ़ा है, उसकी सब बातोंके अनुसार मैं इस स्यान और इसके निवासियोंपर विपत्ति डाला चाहता हूँ।ं 17 उन लोगोंने मुझे त्याग कर पराथे देवताओं के लिथे धूप जलाया और अपक्की बनाई हुई सब वस्तुओं के द्वारा मुझे क्रोध दिलाया है, इस कारण मेरी जलजलाहट इस स्यान पर भड़केगी और फिर शांत न होगी। 18 परन्तु यहूदा का राजा जिस ने तुम्हें यहोवा से पूछने को भेजा है उस से तुम योंकहो, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है। 19 इसलिथे कि तू वे बातें सुनकर दीन हुआ, और मेरी वे बातें सुनकर कि इस स्यान और इसके निवासिक्कों देखकर लोग चकित होंगे, और शप दिया करेंगे, तू ने यहोवा के साम्हने अपना सिर नवाया, और अपके वस्त्र फाड़कर मेरे साम्हने रोया है, इस कारण मैं ने तेरी सुनी है, यहोवा की यही वाणी है। 20 इसलिथे देख, मैं ऐसा करूंगा, कि तू अपके पुरखाओं के संग मिल जाएगा, और तू शांति से अपक्की कबर को पहुंचाया जाएगा, और जो विपत्ति मैं इस स्यान पर डाला चाहता हूँ, उस में से तुझे अपक्की ओखोंसे कुछ भी देखना न पकेगा। तब उन्होंने लौटकर राजा को यही सन्देश दिया।
1 राजा ने यहूदा और यरूशलेम के सब पुरनियोंको अपके पास इकट्ठा बुलवाया। 2 और राजा, यहूदा के सब लोगोंऔर यरूशलेम के सब निवासियोंऔर याजकोंऔर नबियोंवरन छोटे बड़े सारी प्रजा के लोगोंको संग लेकर यहोवा के भवन में गया। तब उस ने जो वाचा की मुस्तक यहोवा के भवन में मिली यी, उसकी सब बातें उनको पढ़कर सुनाई। 3 तब राजा ने खम्भे के पास खड़ा होकर यहोवा से इस आशय की वाचा बान्धी, कि मैं यहोवा के पीछे पीछे चलूंगा, और अपके सारे मन और सारे प्राण से उसकी आज्ञाएं, चितौनियां और विधियोंका नित पालन किया करूंगा? और इस वाचा की बातोंको जो इस पुस्तक में लिखी है पूरी करूंगा। और सब प्रजा वाचा में सम्भागी हुई। 4 तब राजा ने हिलकिय्याह महाथाजक और उसके नीचे के याजकोंऔर द्वारपालोंको आज्ञा दी कि जितने पात्र बाल और अशेरा और आकाश के सब गण के लिथे बने हैं, उन सभोंको यहोवा के मन्दिर में से निकाल ले आओ। तब उस ने उनको यरूशलेम के बाहर किद्रोन के खेतोंमें फूंककर उनकी राख बेतेल को पहुंचा दी। 5 और जिन पुजारियोंको यहूदा के राजाओं ने यहूदा के नगरोंके ऊंचे स्यानोंमें और यरूशलेम के आस पास के स्यानोंमें धूप जलाने के लिथे ठहराया या, उनको और जो बाल और सूर्य-चन्द्रमा, राशिचक्र और आकाश के कुल गण को धूप जलाते थे, उनको भी राजा ने दूर कर दिया। 6 और वह अशेरा को यहोवा के भवन में से निकालकर यरूशलेम के बाहर किद्रोन नाले में लिवाले गया और वहीं उसको फूंक दिया, और पीसकर बुकनी कर दिया। तब वह बुकनी साधारण लोगोंकी कबरोंपर फेंक दी। 7 फिर पुरुषगामियोंके घर जो यहोवा के भवन में थे, जहां स्त्रियां अशेरा के लिथे पर्दे बुना करती यीं, उनको उस ने ढा दिया। 8 और उस ने यहूदा के सब नगरोंसे याजकोंको बुलवाकर गेबा से बेशॅबा तक के उन ऊंचे स्यानोंको, जहां उन याजकोंने धूप जलाया या, अशुद्ध कर दिया; और फाटकोंके ऊंचे स्यान अर्यात् जो स्यान नगर के यहोशू नाम हाकिम के फाटक पर थे, और नगर के फाटक के भीतर जानेवाले की बाई ओर थे, उनको उस ने ढा दिया। 9 तौभी ऊंचे स्यानोंके याजक यरूशलेम में यहोवा की बेदी के पास न आए, वे अखमीरी रोटी अपके भइयोंके साय खाते थे। 10 फिर उस ने तोपेत को जो हिन्नोमवंशियोंकी तराई में या, अशुद्ध कर दिया, ताकि कोई अपके बेठे वा बेटी को मोलोक के लिथे आग में होम करके न चढ़ाए। 11 और जो घोड़े यहूदा के राजाओं ने सूर्य को अर्पण करके, यहोवा के भवन के द्वार पर नतन्मेलेक नाम खोजे की बाहर की कोठरी में रखे थे, उनको उस ने दूर किया, और सूर्य के रयोंको आग में फूंक दिया। 12 और आहाज की अटारी की छत पर जो वेदियां यहूदा के राजाओं की बनाई हुई यीं, और जो वेदियां मनश्शे ने यहोवा के भवन के दोनोंआंगनोंमें बनाई यीं, उनको राजा ने ढाकर पीस डाला और उनकी बुकनी किद्रोन नाले में फेंक दी। 13 और जो ऊंचे स्यान इस्राएल के राजा सुलैमान ने यरूशलेम की पूर्व ओर और विकारी नाम पहाड़ी की दक्खिन अलंग, अश्तोरेत नाम सीदोनियोंकी घिनौनी देवी, और कमोश नाम मोआबियोंके घिनौने देवता, और मिल्कोम नाम अम्मोनियोंके घिनौने देवता के लिथे बनवाए थे, उनको राजा ने अशुद्ध कर दिया। 14 और उस ने लाठोंको तोड़ दिया और अशेरोंको काट डाला, और उनके स्यान मनुष्योंकी हड्डियोंसे भर दिए। 15 फिर बेतेल में जो वेदी यी, और जो ऊंचा स्यान नबात के पुत्र यारोबाम ने बनाया या, जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उस वेदी और उस ऊंचे स्यान को उस ने ढा दिया, और ऊंचे स्यान को फूंककर बुकनी कर दिया और अशेरा को फूंक दिया। 16 और योशिय्याह ने फिर कर वहां के पहाड़ की कबरोंको देखा, और लोगोंको भेजकर उन कबरोंसे हड्डियां निकलवा दीं और वेदी पर जलवाकर उसको अशुद्ध किया। यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ, जो परमेश्वर के उस भक्त ने पुकारकर कहा या जिस ने इन्हीं बातोंकी चर्चा की यी। 17 तब उस ने पूछा, जो खम्भा मुझे दिखाई पड़ता है, वह क्या है? तब नगर के लोगोंने उस से कहा, वह परमेश्वर के उस भक्त जन की कबर है, जिस ने यहूदा से आकर इसी काम की चर्चा पुकारकर की जो तू ने बेतेल की वेदी से किया है। 18 तब उस ने कहा, उसको छोड़ दो; उसकी हड्डियोंको कोई न हटाए। तब उन्होंने उसकी हड्डियां उस नबी की हड्डियोंके संग जो शोमरोन से आया या, रहने दी। 19 फिर ऊंचे स्यान के जितने भपन शोमरोन के नगरोंमें थे, जिनको इस्राएल के राजाओं ने बनाकर यहोवा को रिस दिलाई यी, उन सभोंको योशिय्याह ने गिरा दिया; और जैसा जैसा उस ने बेतेल में किया या, वैसा वैसा उन से भी किया। 20 और उन ऊंचे स्यानोंके जितने याजक वहां थे उन सभोंको उस ने उन्ही वेदियोंपर बलि किया और उन पर मनुष्योंकी हड्डियां जलाकर यरूशलेम को लौट गया। 21 और राजा ने सारी प्रजा के लोगोंको आज्ञा दी, कि इस वाचा की पुस्तक में जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे फसह का पर्व मानो। 22 निश्चय ऐसा फसह न तो न्यायियोंके दिनोंमें माना गया या जो इस्राएल का न्याय करते थे, और न इस्राएल वा यहूदा के राजाओं के दिनोंमें माना गया या। 23 राजा योशिय्याह के अठारहवें वर्ष में यहोवा के लिथे यरूशलेम में यह फसह माना गया। 24 फिर ओफे, भूतसिद्धिवाले, गृहदेवता, मूरतें और जितनी घिनौनी वस्तुएं यहूद देश और यरूशलेम में जहां कहीं दिखाई पक्कीं, उन सभोंको योशिय्याह ने उस मनसा से नाश किया, कि य्यवस्या की जो बातें उस पुस्तक में लिखी यीं जो हिलकिय्याह याजक को यहोवा के भवन में मिली यी, उनको वह पूरी करे। 25 और उसके तुल्य न तो उस से पहिले कोई ऐसा राजा हुआ और न उसके बाद ऐसा कोई राजा उठा, जो मूसा की पूरी य्यवस्या के अनुसार अपके पूर्ण मन और मूर्ण प्राण और पूर्ण शक्ति से यहोवा की ओर फिरा हो। 26 तौभी यहोवा का भड़का हुआ बड़ा कोप शान्त न हुआ, जो इस कारण से यहूदा पर भड़का या, कि मनश्शे ने यहोवा को क्रोध पर क्रोध दिलाया या। 27 और यहोवा ने कहा या जेसे मैं ने इस्राएल को अपके साम्हने से दूर किया, वैसे ही सहूदा को भी दूर करूंगा; और इस यरूशलेम नगर से जिसे मैं ने चुना और इस भवन से जिसके विषय मैं ने कहा, कि यह मेरे नाम का निवास होगा, मैं हाथ उठाऊंगा। 28 योशिय्याह के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 29 उसके दिनोंमें फ़िरौन-नको नाम मिस्र का राजा अश्शूर के राजा के विरुद्ध परात महानद तक गया तो योशिय्याह राजा भी उसका साम्हना करने को गया, और उस ने उसको देखते ही मगिद्दो में मार डाला। 30 तब उसके कर्मचारियोंने उसकी लोय एक रय पर रख मगिद्दो से ले जाकर यरूशलेम को पहुंचाई और उसकी निज कबर में रख दी। तब साधारण लोगोंने योशिय्याह के पुत्र यहोआहाज को लेकर उसका अभिषेक करके, उसके पिता के स्यान पर राजा नियुक्त किया। 31 जब यहोआहाज राज्य करने लगा, तब वह तेई्रस वर्ष का या, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हमूतल या, जो लिब्नावासी यिर्मयाह की बेटी यी। 32 उस ने इीक अपके पुरखाओं की नाई वही किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 33 उसको फ़िरौन-नको ने हमात देश के रिबला नगर में बान्ध रखा, ताकि वह यरूशलेम में राज्य न करने पाए, फिर उस ने देश पर सौ किक्कार चान्दी और किक्कार भर सोना जुरमाना किया। 34 तब फिरौन-नको ने योशिय्याह के पुत्र एल्याकीम को उसके पिता योशिय्याह के स्यान पर राजा नियुक्त किया, और उसका नाम बदलकर यहोयाकीम रखा; और यहोआहाज को ले गया। सो यहोआहाज मिस्र में जाकर वहीं मर गया। 35 यहोयाकीम ने फ़िरौन को वह चान्दी और सोना तो दिया परन्तु देश पर इसलिथे कर लगाया कि फ़िरौन की अज्ञा के अनुसार उसे दे सके, अर्यात् देश के सब लोगोंसे जितना जिस पर लगान लगा, उतनी चान्दी और सोना उस से फ़िरौन-नको को देने के लिथे ले लिया। 36 जब सहोयाकीम राज्य करने लगा, तब वह पक्कीस पर्ष का या, और ग्यारह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम जबीदा या जो रूमावासी अदायाह की बेटी यी। 37 उस ने ठीक अपके पुरखाओं की नाई वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है।
1 उसके दिनोंमें बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने चढाई की और यहोयाकीम तीन वर्ष तक उसके अधीन रहा; तब उस ने फिर कर उस से बलवा किया। 2 तब यहावा ने उसके विरुद्ध और यहूदा को नाश करने के लिथे कसदियों, अरामियों, मोआबियोंऔर अम्मोनियोंके दल भेजे, यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ, जो उस ने अपके दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा या। 3 नि:सन्देह यह यहूदा पर यहोवा की आज्ञा से हुआ, ताकि वह उनको अपके साम्हने से दूर करे। यह मनश्शे के सब पापोंके कारण हुआ। 4 और निदॉषोंके उस खून के कारण जो उस ने किया या; क्योंकि उस ने यरूशलेम को निदॉषोंके खून से भर दिया या, जिसको यहोवा ने झमा करना न चाहा। 5 यहोयाकीम के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 6 निदान यहोयाकीम अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र यहोयाकीन उसके स्यान पर राजा हुआ। 7 और मिस्र का राजा अपके देश से बाहर फिर कभी न आया, क्योंकि बाबेल के राजा ने मिस्र के नाले से लेकर परात महानद तक जितना देश मिस्र के राजा का या, सब को अपके वश में कर लिया या। 8 जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह अठारह वर्ष का या, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नम तहुश्ता या, जो यरूशलेम के एलनातान की बेटी यी। 9 उस ने ठीक अपके पिता की नाई वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 10 उसके दिनोंमें बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कर्मचारियोंने यरूशलेम पर चढ़ाई करके नगर को घेर लिया। 11 और जब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कर्मचारी नगर को घेरे हुए थे, तब वह आप वहां आ गया। 12 और यहूदा का राजा यहोयाकीन अपक्की माता और कर्मचारियों, हाकिमोंऔर खोजोंको संग लेकर बाबेल के राजा के पास गया, और बाबेल के राजा ने अपके राज्य के आठवें वर्ष मे उनको पकड़ लिया। 13 तब उस ने यहोवा के भवन में और राजभवन में रखा हुआ पूरा धन वहां से निकाल लिया और सोने के जो पात्र इस्राएल के राजा सुलैमान ने बनाकर यहोवा के मन्दिर में रखे थे, उन सभोंको उस ने टुकड़े टुकड़े कर डाला, जैसा कि यहोवा ने कहा या। 14 फिर वह पूरे यरूशलेम को अर्यात् सब हाकिमोंऔर सब धनवानोंको जो मिलकर दस हजार थे, और सब कारीगरोंऔर लोहारोंको बन्धुआ करके ले गया, यहां तक कि साधारण लोगोंमें से कंगालोंको छोड़ और कोई न रह गया। 15 और वह यहोयाकीन को बाबेल में ले गया और उसकी माता और स्त्रियोंऔर खोजोंको और देश के बड़े लोगोंको वह बन्धुआ करके यरूशलेम से बाबेल को ले गया। 16 और सब धनवान जो सात हजार थे, और कारीगर और लोहार जो मिलकर एक हजार थे, और वे सब वीर और युद्ध के योग्य थे, उन्हें बाबेल का राजा बन्धुआ करके बाबेल को ले गया। 17 और बाबेल के राजा ने उसके स्यान पर उसके चाचा मत्तन्याह को राजा नियुक्त किया और उसका नाम बदलकर सिदकिय्याह रखा। 18 जब सिदकिय्याह राज्य करने लगा, तब वह इक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में ग्यारह वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हमूतल या, जो लिब्नावासी यिर्मयाह की बेटी यी। 19 उस ने ठीक यहोयाकीम की लीक पर चलकर वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 20 क्योंकि यहोवा के कोप के कारण यरूशलेम और यहूदा को ऐसी दशा हुई, कि अन्त में उस ने उनको अपके साम्हने से दूर किया।
1 और सिदकिय्याह ने बाबेल के राजा से बलवा किया। उसके राज्य के नौवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन को बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने अपक्की पूरी सेना लेकर यरूशलेम पर चढ़ाई की, और उसके पास छावनी करके उसके चारोंओर कोट बनाए। 2 और नगर सिदकिय्याह राजा के ग्यारहवें वर्ष तक घिरा हुआ रहा। 3 चौथे महीने के नौवें दिन से नगर में महंगी यहां तक बढ़ गई, कि देश के लोगोंके लिथे कुछ खाने को न रहा। 4 तब नगर की शहरपनाह में दरार की गई, और दोनोंभीतोंके बीच जो फाटक राजा की बारी के निकट या उस मार्ग से सब योद्धा रात ही रात निकल भागे। कसदी तो नगर को घेरे हुए थे, परन्तु राजा ने अराबा का मार्ग लिया। 5 तब कसदियोंकी सेना ने राजा का पीछा किया, और उसको यरीहो के पास के अराबा में जा लिया, और उसकी पूरी सेना उसके पास से तितर बितर हो गई। 6 तब वे राजा को पकड़कर रिबला में बाबेल के राजा के पास ले गए, और उसे दणड की आज्ञा दी गई। 7 और उन्होंने सिदकिय्याह के पुत्रोंको उसके साम्हने घात किया और सिदकिय्याह की आंखें फोड़ डालीं और उसे पीतल की बेडिय़ोंसे जकड़कर बाबेल को ले गए। 8 बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के उन्नीसवें वर्ष के पांचवें महीने के सातवें दिन को जल्लादोंका प्रधान नबूजरदान जो बाबेल के राजा का एक कर्मचारी य, यरूशलेम में आया। 9 और उस ने यहोवा के भवन और राजभवन और यरूशलेम के सब घरोंको अर्यात् हर एक बड़े घर को आग लगाकर फूंक दिया। 10 और यरूशलेम के चारोंओर की सब शहरपनाह को कसदियो की पूरी सेना ने जो जल्लादोंके प्रधान के संग यी ढा दिया। 11 और जो लोग नगर में रह गए थे, और जो लोग बाबेल के राजा के पास भाग गए थे, और साधारण लोग जो रह गए थे, इन सभें को जल्लादोंका प्रधान नबूजरदान बन्धुआ करके ले गया। 12 परन्तु जल्लादोंके प्रधान ने देश के कंगालोंमें से कितनोंको दाख की बारियोंकी सेवा और काश्तकारी करने को छोड़ दिया। 13 और यहोवा के भ्वन में जो पीतल के खम्भे थे और कुसिर्यां और पीतल का हौद जो यहोवा के भवन में या, इनको कसदी तोड़कर उनका पीतल बाबेल को ले गए। 14 और हण्डियों, फावडिय़ों, चिमटों, धूपदानोंऔर पीतल के सब पात्राोंको जिन से सेवा टहल होती यी, वे ले गए। 15 और करछे और कटोरियां जो सोने की यीं, और जो कुछ चान्दी का या, वह सब सोना, चान्दी, जल्लादोंका प्रधान ले गया। 16 दोनोंखम्भे, एक हौद और जो कुसिर्यां सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिथे बनाए थे, इन सब वस्तुओं का पीतल तौल से बाहर या। 17 एक एक खम्भे की ऊंचाई अठारह अठारह हाथ की यी और एक एक खम्भे के ऊपर तीन तीन हाथ ऊंची पीतल की एक एक कंगनी यी, और एक एक कंगनी पर चारोंओर जो जाली और अनार बने थे, वे सब पीतल के थे। 18 और जल्लादोंके प्रधान ने सरायाह महाथाजक और उसके नीचे के याजक सपन्याह और तीनोंद्वारपालोंको पकड़ लिया। 19 और नगर में से उस ने एक हाकिम को पकड़ा जो योद्वाओं के ऊपर या, और जो पुरुष राजा के सम्मुख रहा करते थे, उन में से पांच जन जो नगर में मिले, और सेनापति का मुन्शी जो लोगोंको सेना में भरती किया करता या; और लोगोंमें से साठ पुरुष जो नगर में मिले। 20 इनको जल्लादोंका प्रधान नबूजरदान पकड़कर रिबला के राजा के पास ले गया। 21 तब बाबेल के राजा ने उन्हें हमात देश के रिबला में ऐसा मारा कि वे मर गए। योंयहूदी बन्धुआ बनके अपके देश से तिकाल दिए गए। 22 और जो लोग यहूदा देश में रह गए, जिनको बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने छोड़ दिया, उन पर उस ने अहीकाम के पुत्र गदल्याह को जो शापान का पोता या अधिक्कारनेी ठहराया। 23 जब दलोंके सब प्रधानोंने अर्यात् नतन्याह के पुत्र इश्माएल कारेहू के पुत्र योहानान, नतोपाई, तन्हूमेत के पुत्र सरायाह और किसी माकाई के पुत्र याजन्याह ने और उनके जनोंने यह सुना, कि बाबेल के राजा ने गदल्याह को अधिक्कारनेी ठहराया है, तब वे अपके अपके जनोंसमेत मिस्पा में गदल्याह के पास आए। 24 और गदल्याह ने उन से और उनके जनोंसे शपय खाकर कहा, कसदियोंके सिपाहियोंसे न डरो, देश में रहते हुए बाबेल के राजा के अधीन रहो, तब नुम्हारा भला होगा। 25 परन्तु सातवें महीने में नतन्याह का पुत्र इश्माएल, जो एलीशामा का पोता और राजवंश का या, उस ने दस जन संग ले गदल्याह के पास जाकर उसे ऐसा मारा कि वह मर गया, और जो यहूदी और कसदी उसके संग मिस्पा में रहते थे, उनको भी मार डाला। 26 तब क्या छोटे क्या बड़े सारी प्रजा के लोग और दलोंके प्रधान कसदियोंके डर के मारे उठकर मिस्र में जाकर रहने लगे। 27 फिर यहूदा के राजा यहोयाकीन की बन्धुआई के तैंतीसवें वर्ष में अर्यात् जिस वर्ष में बाबेल का राजा एवील्मरोदक राजगद्दी पर विराजमान हुआ, उसी के बारहवें महीने के सत्ताईसवें दिन को उस ने यहूदा के राजा यहोयाकीन को बन्दीगृह से निकालकर बड़ा पद दिया। 28 और उस से मधुर मधुर वचन कहकर जो राजा उसके संग बाबेल में बन्धुए थे उनके सिंहासनोंसे उसके सिंहासन को अधिक ऊंचा किया, 29 और उसके बन्दीगृह के वस्त्र बदल दिए और उस ने जीवन भर नित्य राजा के सम्मुख भोजन किया। 30 और प्रतिदिन के खर्च के लिथे राजा के यहां से नित्य का झर्च ठहराया गया जो उसके जीवन भर लगातार उसे मिलता रहा।
1 आदम,शेत, एनोश; 2 केनान, महललेल, थेरेद; 3 हनोक, मतूशेलह, लेमेक; 4 नूह, शेम, हाम और थेपेत । 5 थेपेत के पुत्र : गोमेर, मागोग, मादै, सावान, तूबल, मेशेक और तीरास हैं। 6 और गोमेर के पुत्र : अशकनज, दीपत और तोगर्मा हैं। 7 और यावान के पुत्र : एलीशा, तशींश, और कित्ती और रोदानी लोग हैं। 8 हाम के पुत्र : कुश, मिस्र, पूत और कनान हैं। 9 और कूश के पुत्र : सबा, हबीला, सबाता, रामा और सब्तका हैं; और रामा के पुत्र : शबा और ददान हैं। 10 और कूश से निम्रोद उत्पन्न हुआ; मृय्वी पर पहिला वीर वही हुआ। 11 और मिस्र से लूदी, अनामी, लहावी, नप्तही। 12 पत्रूसी, कसलूही ( वहां से पलिश्ती निकले ) और कप्तोरी उत्पन्न हुए। 13 कनान से उसका जेठा सीदोन और हित्त। 14 और यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी। 15 हिय्वी, अकीं,सीनी। 16 अर्वदी, समारी और हमाती उत्पन्न हुए। 17 शेम के पुत्र : एलाम, अश्शूर, अर्पझद, लूद, अराम, ऊस, हूल, गेतेर और मेशेक हैं। 18 और अर्पझद से शेलह और शेलह से एबेर उत्पन्न हुआ। 19 और एबेर के दो पुत्र उत्पन्न हुए : एक का नाम पेलेग इस कारण रखा गया कि उसके दिनोंमें पृय्वी बांटी गई; और उसके भाई का नाम योक्तान या। 20 और योक्तान से अल्मोदाद, शुलेप, हसर्मावेत, थेरह। 21 हदोराम, ऊजाल, दिक्ला। 22 एबाल, अबीमाएल, शबा, 23 ओपीर, हवीला और सोबाब उत्पन्न हुए; थे ही सब योक्तान के पुत्र हैं। 24 शेम, अर्पझद, शेलह। 25 एबेर, पेलेग, रू। 26 सरूग, नाहोर, तेरह, 27 अब्राम, वही इब्राहीम भी कहलाता है। 28 इब्राहीम के पुत्र इसहाक और इश्माएल हैं। 29 इनकी वंशावलियां थे हैं। इश्माएल का जेठा नवायोत, फिर केदार, अदवेल, मिबसाम। 30 मिश्मा, दूमा, मस्सा, हदद, तेमा। 31 यतूर, नापीश, केदमा। थे इश्माएल के पुत्र हुए। 32 फिर कतूरा जो इब्राहीम की रखेली यी, उसके थे पुत्र उत्पन्न हुए, अर्यात् उस से जिम्रान, योझान, मदान, मिद्यान, यिशबाक और शूह उत्पन्न हुए। योझान के पुत्र : शबा और ददात। 33 और मिद्यान के पुत्र : एपा, एपेर, हनोक, अबीदा और एलदा, थे सब कतूरा के पुत्र हैं। 34 इब्राहीम से इसहाक उत्पन्न हुआ। इसहाक के पुत्र : एसाव और इस्राएल। 35 एसाव के पुत्र : एलीपज, रूएल, यूश, यालाम और कोरह हैं। 36 एलीपज के थे पुत्र हैं : तेमान, ओमार, सपी, गाताम, कनज, तिम्ना और अपालेक। 37 रूएल के पुत्र : नहत, जेरह, शम्मा और मिज्जा। 38 फिर सेईर के पुत्र : लोतान, शोबाल, सिबोन, अना, दीशोन, एसेर और दीशान हैं। 39 और लोतान के पुत्र : होरी और होमाम, और लोतान की बहिन तिम्ना यीं। 40 शोबाल के पुत्र : अल्यान, मानहत, एबाल, शषी और ओनाम। 41 और सिबोन के पुत्र : अय्या, और अना। अना का पुत्र : दीशोन। और दीशोन के पुत्र : हम्रान, एशबान, यित्रान और करान। 42 एसेर के पुत्र बिल्हान, जाचान और याकान। और दीशान के पुत्र : ऊस और अरान हैं। 43 जब किसी राजा ने इस्राएलियोंपर राज्य न किया या, तब एदोम के देश में थे राजा हुए : अर्यात् बोर का पुत्र बेला और उसकी राजधानी का नाम दिन्हाबा या। 44 बेला के मरने पर, बोस्राई जेरह का पुत्र योबाब, उसके स्यान पर राजा हुआ। 45 और योबाब के मरने पर, तेमानियोंके देश का हूशाम उसके स्यान पर राजा हुआ। 46 फिर हूशाम के मरने पर, बदद का पुत्र हदद, उसके स्यान पर राजा हुआ : यह वही है, जिस ने मिद्यानियोंको मोआब के देश में मार लिया; और उसकी राजधानी का नाम अबीत या। 47 और हदद के मरने पर, मस्रेकाई सम्ला उसके स्यान पर राजा हुआ। 48 फिर सम्ला के मरने पर शाऊल, जो महानद के तट पर के रहोबोत नगर का या, वह उसके स्यान पर राजा हुआ। 49 और शाऊल के मरने पर अकबोर का पुत्र बाल्हानान उसके स्यान पर राजा हुआ। 50 और बल्हानान के मरने पर, हदद उसके स्यान पर राजा हुआ; और उसकी राजधानी का नाम पाई या। और उसकी पत्नी का नाम महेतबेल या जो मेज़ाहाब की नातिनी और मत्रेद की बेटी यी। और हदद मर गया। 51 फिर एदोम के अधिपति थे थे : अर्यात् अधिपति तिम्ना, अधिपति अल्या, अधिपति यतेत, अधिपति ओहोलीवामा, 52 अधिपति एला, अधिपति पीनोन, अधिपति कनज, 53 अधिपति तेमान, अधिपति मिबसार, अधिपति मग्दीएल, अधिपति ईराम। 54 एदोम के थे अधिपति हुए।
1 इस्राएल के थे पुत्र हुए; रूबेन, शिमोन, लेवी, सहूदा, इस्साकार, जबूलून, दान। 2 यूसुफ, बिन्यामीन, नन्ताली, गाद और आशेर। 3 यहूदा के थे पुत्र हुए : एर, ओनान और शेला, उसके थे तीनोंपुत्र, बतशू नाम एक कनानी स्त्री से उत्पन्न हुए। और यहूदा का जेठा एर, यहोवा की दृष्टि में बुरा या, इस कारण उस ने उसको मार डाला। 4 यहूदा की बहू तामार से पेरेस और जेरह उत्पन्न हुए। यहूदा के सब पुत्र पांच हुए। 5 मेरेस के पुत्र : हेस्रोन और हामूल। 6 और जेरेह के पुत्र : जिम्री, एतान, हेमान, कलकोल और दारा सब मिलकर पांच। 7 फिर कमीं का पुत्र : आकार जो अर्पण की हुई पस्तु के विषय में विश्वासघात करके इस्राएलियोंका कष्ट देनेवाला हुआ। 8 और एतान का पुत्र : अजर्याह। 9 हेस्रोन के जो पुत्र उत्पन्न हुए : यरह्मेल, राम और कलूबै। 10 और राम से अम्मीनादाब और अम्मीनादाब से नहशोन उत्पन्न हुआ जो यहूदियोंका प्रधान बना। 11 और नहशोन से सल्मा और सल्मा से बोअज, 12 और बोअज से ओबेद और ओबेद से यिशै उत्पन्न हुआ। 13 और यिशै से उसका जेठा एलीआब और दूसरा अबीनादाब तीसरा शिमा। 14 चौया नतनेल और पांचवां रद्दैं। छठा ओसेम और सातवां दाऊद उत्पन्न हुआ। 15 इनकी बहिनें सरूयाह ओर अबीगैल यीं। 16 और सरूयाह के पुत्र अबीशै, योआब और असाहेल थे तीन थे। 17 और अबीगैल से अमासा उत्पन्न हुआ, और अमासा का पिता इश्माएली थेतेर या। 18 हेस्रोन के पुत्र कालेब के अजूबा नाम एक स्त्री से, और यरीओत से, बेटे उत्पन्न हुए; और इसके पुत्र थे हूए अर्यात् थेशेर, शेबाब और अदॉन। 19 जब अजूबा मर गई, सब कालेब ने एप्रात को ब्याह लिया; और जिससे हूर उत्पन्न हुआ। 20 और हूर से ऊरी और ऊरी से बसलेल उत्पन्न हुआ। 21 इसके बाद हेस्रोन गिलाद के पिता माकीर की बेटी के पास गया, जिसे उस ने तब ब्याह लिया, जब वह साठ वर्ष का या; और उस से सगूब उत्पन्न हुआ। 22 और सगूब से याईर जन्मा, जिसके गिलाद देश में तेईस नगर थे। 23 और गशूर और अराम ने याईर की बस्तियोंको और गांवोंसमेत कनत को, उन से ले लिया; थे सब नगर मिलकर साठ थे। थे सब गिलाद के पिता माकीर के पुत्र हुए। 24 और जब हेस्रोन कालेबेप्राता में मर गया, तब उसकी अबिय्याह नाम स्त्री से अशहूर उत्पन्न हुआ जो तको का पिता हुआ। 25 और हेस्रोन के जेठे यरह्मेल के थे पुत्र हुए : अर्यात् राम जो उसका जेठा या; और बूना, ओरेन, ओसेम और यहिय्याह। 26 और यरह्मेल की एक और पत्नी यी, जिसका नाम अतारा या; वह ओनाम की माता यी। 27 और यरह्मेल के जेठे राम के थे पुत्र हुए, अर्यात् मास, यामीन और एकेर। 28 और ओनाम के पुत्र शम्मै और यादा हुए। और शम्मै के पुत्र नादाब और अबीशूर हुए। 29 और अबीशूर की पत्नी का नाम अबीहैल या, और उस से अहबान और मोलीद उत्पन्न हुए। 30 और नादाब के पुत्र सेलेद और अत्पैम हुए; सेलेद तो नि:सन्तान मर गया। और अत्तैम का पुत्र यिशी। 31 और यिशी का पुत्र शेशान और शेशान का पुत्र : अहलै। 32 फिर शम्मै के भाई यादा के पुत्र : थेतेर और योनातान हुए; थेतेर तो नि:सन्तान मर गया। 33 यानातान के पुत्र पेलेत और जाजा; यरह्मेल के पुत्र थे हुए। 34 शेशान के तो बेटा न हुआ, केवल बेटियां हुई। शेशान के पास यर्हा नाम एक मिस्री दास या। 35 और शेशान ने उसको अपक्की बेटी ब्याह दी, और उस से अत्तै उत्पन्न हुआ। 36 और अत्तै से नातान, नातान से जाबाद। 37 जाबाद से एपलाल, एपलाल से ओबेद। 38 ओबेद से थेहू, थेहू से अजर्याह। 39 अजर्याह से हेलैस, हेलैस से एलासा। 40 एलासा से सिस्मै, सिस्मै से शल्लूम। 41 शल्लूम से यकम्याह और यकम्याह से एलीशामा उत्पन्न हुए। 42 फिर यरह्मेल के भाई कालेब के थे पुत्र हुए : अर्यात् उसका जेठा मेशा जो जीप का पिता हुआ। और मारेशा का पुत्र हेब्रोन भी उसी के वंश में हुआ। 43 और हेब्रोन के पुत्र कोरह, तप्पूह, रेकेम और शेमा। 44 और शेमा से योर्काम का पिता रहम और रेकेम से शम्मै उत्पन्न हुआ या। 45 और शम्मै का पुत्र माओन हुआ; और माओन बेत्सूर का पिता हुआ। 46 फिर एपा जो कालेब की रखेली यी, उस से हारान, मोसा और गाजेज उत्पन्न हुए; और हारान से गाजेज उत्पन्न हुआ। 47 फिर याहदै के पुत्र रेगेम, योताम, गेशान, पेलेत, एपा और शाप। 48 और माका जो कालेब की रखेली यी, उस से शेबेर और तिर्हाना उत्पन्न हुए। 49 फिर उस से मदमन्ना का पिता शाप और मकबेना और गिबा का पिता शबा उत्पन्न हुए। और कालेब की बेटी अकसा यी। कालेब के पुत्र थें हुए। 50 एप्राता के जेठे हूर का पुत्र किर्यत्यारीम का पिता शोबाल। 51 बेतलेहेम का पिता सल्मा और बेतगादेर का पिता हारेप। 52 और किर्यत्यारीम के पिता शोबाल के वंश में हारोए आधे मनुहोतवासी, 53 और किर्यत्यारीम के कुल अर्यात् यित्री, पूती, शूमाती और मिश्रई और इन से सोराई और एश्ताओली निकले। 54 फिर सल्मा के वंश में बेतलेहेम और नतोपाई, अत्रोतबेत्योआब और आधे मानहती, सोरी। 55 फिर याबेस में रहनेवाले लेखकोंके कुल अर्यात् तिराती, शिमाती और सूकाती हुए। थे रेकाब के घराने के मूलपुरुष हम्मन के वंशवाले केनी हैं।
1 दाऊद के पुत्र जो हेब्रोन में उस से उत्पन्न हुए वे थे हैं : जेठा अम्नोन जो यिज्रेली अहीनोआम से, दूसरा दानिय्थेल जो कर्मेली अबीगैल से उत्पन्न हुआ। 2 तीसरा अबशालोम जो गशूर के राजा तल्मै की बेटी माका का मुत्र या, चौया ओदानिय्याह जो हरगीत का पुत्र या। 3 पांचवां शपत्याह जो अबीतल से, और छठवां यित्राम जो उसकी स्त्री एग्ला से उत्पन्न हुआ। 4 दाऊद से हेब्रोन में छ: पुत्र उत्पन्न हुए, और वहां उस ने साढ़े सात वर्ष राज्य किया; और यरूशलेम में तैंतीस वर्ष राज्य किया। 5 और यरूशलेम में उसके थे पुत्र उत्पन्न हुए अर्यात् शिमा, शोबाब, तातान और सुलैमान, थे चारो अम्मीएल की बेटी बतशू से उत्पन्न हुए। 6 और यिभार, एलीशामा एलीपेलेत। 7 नेगाह, नेपेग, यापी। 8 एलीशामा, एल्यादा और एलीमेलेत, थे नौ पुत्र थे, थे सब दाऊद के पुत्र थे। 9 और इनको छोड़ रखेलियोंके भी पुत्र थे, और इनकी बहिन तामार यी। 10 फिर सुलैमान का पुत्र रहबाम उत्पन्न हुआ; रहबाम का अबिय्याह का आसा, आसा का यहोशापात। 11 यहोशपात का योराम, योराम का अहज्याह, अहज्याह का योआश। 12 योआश का अमस्याह, अमस्याह का अजर्याह, अजर्याह का योताम। 13 योताम का आहाज, आहाज का हिजकिय्याह, हिजकिय्याह का मनश्शे। 14 मनश्शे का आमोन, और आमोन का योशिय्याह पुत्र हुआ। 15 और योशिय्याह के पुत्र उसका जेइा योहानान, दूसरा यहोयाकीम; तीसरा सिदकिय्याह, चौैया शल्लूम। 16 और यहोयाकीम का पुत्र यकोन्याह, इसका पुत्र सिदकिय्याह। 17 ओर यकोन्याह का पुत्र अस्सीर, उसका पुत्र शालतीएल। 18 और मल्कीराम, पदायाह, शेनस्सर, यकम्याह, होशामा और नदब्याह। 19 और पदायाह के पुत्र जरुब्बाबेल और शिमी हुए; और जरुब्बाबेल के पुत्र मशुल्लाम और हनन्याह, जिनकी बहीन शलोमीत यी। 20 और हशूबा, ओहेल, बेरेक्याह, हसद्याह और यूशमेसेद, पांच। 21 और हनन्याह के पुत्र पलत्याह और यशायाह। और रपायाह के पुत्र अर्नान के पुत्र ओबद्याह के पुत्र और शकन्याह के पुत्र। 22 और तकन्याह का पुत्र शमायाह। और शमायाह के पुत्र हत्तूश और यिगाल, बारीह, नार्याह और शपात, छ: । 23 और नार्याह के पुत्र एल्योएनै, हिजकिय्याह और अज्रीकाम, तीन। 24 और एल्योएनै के पुत्र होदब्याह, एल्याशीब, पलायाह, अककूब, योहानान, दलायाह और अनानी, सात।
1 यहूदा के पुत्र : पेरेस, हेस्रोन, कमीं, हूर और शोबाल। 2 और शोबाल के पुत्र : रायाह से यहत और यहत से अहूमै और लहद उत्पन्न हुए, थे सोराई कुल हैं। 3 और एताम के पिता के थे पुत्र हुए : अर्यात् यिज्रेल, यिश्मा और यिद्वाश, जिनकी बहिन का नाम हस्सलेलपोनी या। 4 और गदोर का पिता पनूएल, और रूशा का पिता एजेर। थे एप्राता के जेठे हूर के सन्तान हैं, जो बेतलेहेम का पिता हुआ। 5 और तको के पिता अशहूर के हेबा और नारा नाम दो स्त्रियां यीं। 6 और नारा से अहुज्जाम, हेपेर, तेमनी और हाहशतारी उत्पन्न हुए, नारा के थे ही पुत्र, हुए। 7 और हेला के पुत्र, सेरेत, यिसहर और एम्नान। 8 फिर कोस से आनूब और सोबेवा उत्पन्न हुए और उसेक वंश में हारून के पुत्र अहर्हेल के कुल भी उत्पन्न हुए। 9 और याबेस अपके भइयोंसे अधिक प्रतिष्ठित हुआ, और उसकी माता ने यह कहकर उसका नाम याबेस रखा, कि मैं ने इसे पीड़ित होकर उत्पन्न किया। 10 और याबेस ने इस्राएल के परमेश्वर को यह कहकर पुकारा, कि भला होता, कि तू मुझे सचमुच आशीष देता, और मेरा देश बढाता, और तेरा हाथ मेरे साय रहता, और तू मुझे बुराई से ऐसा बचा रखता कि मैं उस से पीड़ित त होता ! और जो कुछ उस ने मांगा, वह परमेश्वर ने उसे दिया। 11 फिर शूहा के भाई कलूब से एशतोन का पिता महीर उत्पन्न हुआ। 12 और एशतोन के वंश में रामा का घराना, और पासेह और ईर्नाहाश का पिता तहिन्ना उत्पन्न हुए, रेका के लोग थे ही हैं। 13 और कनज के पुत्र, ओत्नीएल और सरायाह, और ओत्नीएल का पुत्र हतत। 14 मोनोतै से ओप्रा और सरायाह से योआब जो गेहराशीम का पिता हुआ; वे कारीगर थे। 15 और यपुन्ने के पुत्र कालेब के पुत्र एला और नाम, और एला के पुत्र कनज। 16 और यहल्लेल के पुत्र, जीप, जीपा, तीरया और असरेल। 17 और एज्रा के पुत्र थेतेर, मेरेद, एपेर और यालोन, और उसकी स्त्री से मिर्य्याम, शम्मै और एशतमो का पिता यिशबह उत्पन्न हुए। 18 और उसकी यहूदिन स्त्री से गदोर का पिता थेरेद, सोको के पिता हेबेर और जानोह के पिता यकूतीएल उत्पन्न हुए, थे फ़िरौन की बेटी बित्या के पुत्र थे जिसे मेरेद ने ब्याह लिया या। 19 और होदिय्याह की स्त्री जो नहम की बहिन यी, उसके पुत्र कीला का पिता एक गेरेमी और एशतमो का पिता एक माकाई। 20 और शीमोन के पुत्र अम्नोन, रिन्ना, बेन्हानान और तोलोन और यिशी के पुत्र जोहेत और बेनजोहेत। 21 यहूदा के पुत्र शेला के पुत्र लेका का पिता एर, मारेशा का पिता लादा और अशबे के घराने के कुल जिस में सन के कपके का काम होता या। 22 और योकीम और कोजेबा के मनुष्य और योआश और साराप जो मोआब में प्रभुता करते थे और याशूब, लेहेम इनका वृत्तान्त प्राचीन है। 23 थे कुम्हार थे, और नताईम और गदेरा में रहते थे जहां वे राजा का कामकाज करते हुए उसके पास रहते थे। 24 शिमोन के पुत्र नमूएल, यामीन, यारीब, जेरह और शाऊल। 25 और शाऊल का पुत्र शल्लूम, शल्लूम का पुत्र मिबसाम और मिबसाम का मिश्मा हुआ। 26 और मिश्मा का पुत्र हम्मूएल, उसका पुत्र जक्कूर, और उसका पुत्र शिमी। 27 शिमी के सोलह बेटे और छ: बेटियां हुई परन्तु उसके भाइयोंके बहुत बेटे न हुए; और उनका सारा कुल यहूदियोंके बराबर न बढ़ा। 28 वे बेर्शबा, मोलादा, हसर्शूआल। 29 बिल्हा, एसेम, तोलाद। 30 बतूएल, होर्मा, सिल्कग, 31 बेतमर्काबोत, हसर्सूसीम, बेतबिरी और शारैम में बस गए; दाऊद के राजय के समय तक उनके थे ही नगर रहे। 32 और उनके गांव एताम, ऐन, रिम्मोन, तोकेन और आशान नाम पांच नगर। 33 और बाल तक जितने गांव इन नगरोंके आसपास थे, उनके बसने के स्यान थे ही थे, और यह उनकी वंशावली हैं। 34 फिर मशोबाब और यम्लेक और अपस्याह का पुत्र योशा। 35 और योएल और योशिब्याह का पुत्र थेहू, जो सरायाह का पोता, और असीएल का परमोता या। 36 और एल्योएनै और याकोबा, यशोहाथाह और असायाह और अदीएल और यसीमीएल और बनायाह। 37 और शिपी का पुत्र जीजा जो अल्लोन का पुत्र, यह यदायाह का पुत्र, यह शिम्री का पुत्र, यह शमायाह का पुत्र या। 38 थे जिनके नाम लिखें हुए हैं, अपके अपके कुल में प्रधान थे; और उनके पितरोंके घराने बहुत बढ़ गए। 39 थे अपक्की भेड़-बकरियोंके लिथे चराई ढूंढ़ने को गदोर की घाटी की तराई की पूर्व ओर तक गए। 40 और उनको उत्तम से उत्तम चराई मिली, और देश लम्बा-चौड़ा, चैत और शांति का या; क्योंकि वहां के पहिले रहनेवाले हाम के वंश के थे। 41 और जिनके नाम ऊपर लिखे हैं, उन्होंने यहूदा के राजा हिजकिय्याह के दिनोंमें वहां आकर जो मूनी वहां मिले, उनको डेरोंसमेत मारकर ऐसा सत्यानाश कर डाला कि आह तक उनका पता नहीं है, और वे उनके स्यान में रहने लगे, क्योंकि वहां उनकी भेड़-बकरियोंके लिथे चराई यीं। 42 और उन में से अर्यात् शिमोनियोंमें से पाच सौ पुरुष अपके ऊपर पलत्याह, नार्याह, रपायाह और उज्जीएल नाम यिशी के पुत्रोंको अपके प्रधान ठहराया; 43 तब वे सेईद पहाड़ को गए, और जो अमेलेकी बचकर रह गए थे उनको मारा, और आज के दिन तब वहां रहते हैं।
1 इस्राएल का जेठा तो रूबेन या, परन्तु उस ने जो अपके पिता के बिछौने को अशुद्व किया, इस कारण जेठे का अधिक्कारने इस्राएल के पुत्र यूसुफ के पुत्रोंको दिया गया। वंशावली जेठे के अधिक्कारने के अनुसार नहीं ठहरी। 2 क्योकि यहूदा अपके भइयोंपर प्रबल हो गया, और प्रधान उसके वंश से हुआ परन्तु जेठे का अधिक्कारने यूसुफ का या। 3 इस्राएल के जेठे पुत्र रूबेन के पुत्र थे हुए, अर्यात् हनोक, पल्लू, हेस्रोन और कमीं। 4 और योएल के पुत्र शमायाह, शमायाह का गोग, गोग का शिमी। 5 शिमी का मीका, मीका का रायाह, रायाह का बाल। 6 और बाल का पुत्र बेरा, इसको अश्शूर का राजा तिलगतपिलनेसेर बन्धुआई में ले गया; और वह रूबेनियो का प्रधान या। 7 और उसके भाइयोंकी चंशवली के लिखते यमय वे अपके अपके कुल के अनुसार थे ठहरे, अर्यात् मुख्य तो यीएल, फिर जकर्याह। 8 और अजाज का पुत्र बेला जो शेमा का पोता और योएल का परपोता या, वह अरोएर में और नबो और बाल्मोन तक रहता या। 9 और पूर्व ओर वह उस जंगल के सिवाने तक रहा जो परात महानद तक महुंचाता है, क्योंकि उनके पशु गिलाद देश में बढ़ गए थे। 10 और शऊल के दिनोंमें उन्होंने हग्रियोंसे युद्ध किया, और हग्री उनके हाथ से मारे गए; तब वे गिलाद की सारी पूरबी अलंग में अपके डेरोंमें रहने लगे। 11 गादी उनके साम्हने सल्का तक बाशान देश में रहते थे। 12 अर्यात् मुख्य तो योएल और दूसरा शापाम फिर यानै और शापात, थे बाशान में रहते थे। 13 और उनके भाई अपके अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार मीकाएल, मशुल्लाम, शेबा, योरै, याकान, जी और एबेर, सात थे। 14 थे अबीहैल के पुत्र थे, जो हूरी का पुत्र या, यह योराह का पुत्र, यह गिलाद का पुत्र, यह मिकाएल का पुत्र, यह यशीशै का पुत्र, यह यहदो का पुत्र, यह बूज का पुत्र या। 15 इनके पितरोंके घरानोंका मुख्य पूरुष अब्दीएल का पुत्र, और गूनी का पोता अही या। 16 थे लोग बाशान में, गिलाद और उसके गांवोंमें, और शारोन की सब चराइयोंमें उसकी परली ओर तक रहते थे। 17 इन सभोंकी वंशावली यहूदा के राजा योनातन के दिनोंऔर इस्राएल के राजा यारोबाम के दिनोंमें लिखी गई। 18 रूबेनियों, गादियोंऔर मनश्शें के आधे गोत्र के योद्धा जो ढाल बान्धने, तलवार चलाने, और धनुष के तीर छोड़ने के योग्य और युद्ध करना सीखे हुए थे, वे चौवालीस हजार सात सौ साठ थे, जो युद्ध में जाने के योग्य थे। 19 इन्होंने हग्रियोंऔर यतूर नापीश और नोदाब से युद्ध किया या। 20 उनके विरुद्ध इनको सहाथता मिली, और अग्री उन सब समेत जो उनके साय थे उनके हाथ में कर दिए गए, क्योंकि युद्ध में इन्होंने परमेश्वर की दोहाई दी यी और उस ने उनकी बिनती इस कारण सुनी, कि इन्होंने उस पर भरोसा रखा या। 21 और इन्होंने उनके पशु हर लिए, अर्याात् ऊंट तो पचास हजार, भेड़-बकरी अढ़ाई लाख, गदहे दो हजार, और मनुष्य एक लाख बन्धुए करके ले गए। 22 और बहुत से मरे पके थे क्योंकि वह लड़ाई परमेश्वर की ओर से हुई। और थे उनके स्यान में बन्शुआई के समय तक बसे रहे। 23 फिर मनश्शे के आधे गोत्र की सन्तान उस देश में बसे, और वे बाशान से ले बाल्हेमॉन, और सनीर और हेमॉन पर्वत तक फैल गए। 24 और उनके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुष थे थे, अर्यात् एपेर, यिशी, एलीएल, अज्रीएल, यिर्मयाह, होदय्याह और यहदीएल, थे बड़े वीर और नामी और अपके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुष थे। 25 और उन्होंने अपके पितरोंके परमेश्वर से विश्वासघात किया, और उस देश के लोग जिनको परमेश्वर ने उनके साम्हने से विनाश किया या, उनके देवताओं के पीछे य्यभिचारिन की नाई हो लिए। 26 इसलिथे इस्राएल के परमेश्वर ने अश्शूर के राजा पूल और अश्शूर के राजा तिलगत्पिलनेसेर का मन उभारा, और इन्होंने उन्हें अर्यात् रूबेनियों, गादियोंऔर मनश्शे के आधे गोत्र के लोगोंको बन्धुआ करके हलह, हाबोर और हारा और गोजान नदी के पास पहुंचा दिया; और वे आज के दिन तक वहीं रहते हैं।
1 लेवी के पुत्र गेशॉन, कहात और मरारी। 2 और कहात के पुत्र, अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल। 3 और अम्राम की सन्तान हारून, मूसा और मरियंम, और हारून के पुत्र, नादाब, अबीहू, एलीआज़र और ईतामार। 4 एलीआज़र से पीनहास, पीनहास से अबीशू। 5 अबीशू से बुक्की, बुक्की से उज्जी। 6 उज्जी से जरह्याह, जरह्याह से मरायोत। 7 मरायोत से अमर्याह, अमर्याह से अहीतूब। 8 अहीतूब से सादोक, सादोक से अहीमास। 9 अहीमास से अजर्याह, अजर्याह से योहानान। 10 और योहानान से अजर्याह, उत्पन्न हुआ ( जो सुलैमान के यरूशलेम में बनाए हुए भवन में याजक का काम करता या ) 11 फिर अजर्याह से अमर्याह, अमर्याह से यहीतूब। 12 यहीतूब से सादोक, सादोक से शल्लूम। 13 शल्लूम से हिलकिय्याह, हिलकिय्याह से अजर्याह। 14 अजर्याह से सरायाह, और सरायाह से यहोसादाक उत्पन्न हुआ। 15 और जब यहोवा, यहूदा और यरूशलेम को नबूकदनेस्सर के द्वारा बन्धुआ करके ले गया, तब यहोसादाक भी बन्धुआ होकर गया। 16 लेवी के पुत्र गेशॉम, कहात और मरारी। 17 और गेशॉम के पुत्रोंके नाम थे थे, अर्यात् लिब्नी और शिमी। 18 और कहात के पुत्र अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल। 19 और मरारी के पुत्र महली और मूशी और अपके अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार लेवियोंके कुल थे हुए। 20 अर्यात्, गेशॉन का पुत्र लिब्नी हुआ, लिब्नी का यहत, यहत का जिम्मा। 21 जिम्मा का योआह, योआह का इद्दो, इद्दो का जेरह, और जेरह का पुत्र यातरै हुआ। 22 फिर कहात का पुत्र अम्मीनादाब हुआ, अम्मीनादाब का कोरह, कोरह का अस्सीर। 23 अस्सीर का एल्काना, एल्काना का एब्यासाप, एब्यासाप का अस्सीर। 24 अस्सीर का तहत, तहत का ऊरीएल, ऊरीएल का उज्जिय्याह और उज्जिय्याह का पुत्र शाऊल हुआ। 25 फिर एल्काना के पुत्र अमासै और अहीमोत। 26 एल्काना का पुत्र सोपै, सोपै का नहत। 27 नहत का एलीआब, एलीआब का यरोहाम, और यरोहाम का पुत्र एल्काना हुआ। 28 और शमूएल के पुत्र, उसका जेठा योएल और दूसरा अबिय्याह हुआ। 29 फिर मरारी का पुत्र महली, महली का लिब्नी, लिब्नी का शिमी, शिमी का उज्जा। 30 उज्जा का शिमा; शिमा का हग्गिय्याह और हग्गिय्याह का पुत्र असायाह हुआ। 31 फिर जिनको दाऊद ने सन्दूक के ठिकाना पाने के बाद यहोवा के भवन में गाने के अधिक्कारनेी ठहरा दियया वे थे हैं। 32 जब तब सुलैमान यरूशलेम में यहोवा के भवन को बनवा न चुका, तब तक वे मिलापवाले तम्बू के निवास के साम्हने गाने के द्वारा सेवा करते थे; और इस सेवा में नियम के अनुसार उपस्यित हुआ करते थे। 33 जो अपके अपके पुत्रोंसमेत उपस्यित हुआ करते थे वे थे हैं, अर्यात् कहातियोंमें से हेमान गवैया जो योएल का पुत्र या, और योएल शमुएल का। 34 शमूएल एल्काना का, एल्काना यरोहाम का, यरोहाम एलीएल का, एलीएल तोह का। 35 तोह सूप का, सूप एल्काना का, एल्काना महत का, महत अमासै का। 36 अमासै एल्काना का, एल्काना योएल का, योएल अजर्याह का, अजर्याह सपन्याह का। 37 समन्याह तहत का, तहत अस्सीर का, अस्सीर एब्यासाप का, एटयासाप कोरह का। 38 कोरह यिसहार का, यिसहार कहात का, कहात लेवी का और लेवी इस्राएल का पुत्र या। 39 और उसका भाई असाप जो उसके दाहिने खड़ा हुआ करता या वह बेरेक्याह का पुत्र या, और बेरेक्याह शिमा का। 40 शिमा मीकाएल का, मीकाएल बासेयाह का, बासेयाह मल्मिय्याह का। 41 मल्किय्याह एत्नी का, एत्नी जेरह का, जेरह अदायाह का। 42 अदायाह एतान का, एतान जिम्मा का, जिम्मा शिमी का। 43 शिमी यहत का, यहत गेशॉम का, गेशॉम लेवी का पुत्र या। 44 और बाई ओर उनके भाई मरारी खड़े होते थे, अर्यात् एताव जो कीशी का पुत्र या, और कीशी अब्दी का, अब्दी मल्लूक का। 45 मल्लूक हशब्याह का, हशब्याह अमस्यााह का, अमस्याह हिलकिय्याह का। 46 हिलकिय्याह अमसी का, अमसी बानी का, बानी शेमेर का। 47 शेमेर महली का, महली मूशी का, मूशी मरारी का, और मरारी लेवी का पुत्र या। 48 और इनके भाई जो लेवीय थे वह परमेश्वर के भवन के निवास की सब प्रकार की सेवा के लिथे अर्पण किए हुए थे। 49 परन्तु हारून और उसके पुत्र होपबलि की वेदी, और धूप की वेदी दोनोंपर बलिदान चढ़ाते, और परम पवित्रस्यान का सब काम करते, और इस्राएलियोंके लिथे प्रायश्चित करते थे, जैसे कि परमेश्वर के दास मूसा ने आज्ञााएं दी यीं। 50 और हारून के वंश में थे हुए, अर्यात् उसका पुत्र एलीआजर हुआ, और एलीआजर का पीनहास, पीनहास का अबीशू। 51 अबीशू का बुक्की, बुक्की का उज्जी, उज्जी का जरह्याह। 52 जरह्याह का मरायोत, मरायोत का अमर्याह, अमर्याह का अहीतूब। 53 अहीतूब का सादोक और सादोक का अहीमास पुत्र हुआ। 54 और उनके भागोंमें उनकी छावनियोंके अनुसार उनकी बस्तियां थे हैं, अर्यात् कहात के कुलोंमें से पहिली चिट्ठी जो हारून की सन्तान के नाम पर निकली। 55 अर्यात् चारोंओर की चराइयोंसमेत यहूदा देश का हेब्रोन उन्हें मिला। 56 परन्तु उस नगर के खेत और गांव यपुन्ने के पुत्र कालेब को दिए गए। 57 और हारून की सन्तान को शरणनगर हेब्रोन, और चराइयोंसमेत लिब्ना, 58 और यत्तीर और अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत एशतमो। हीलेन, दबीर। 59 आशान और बेतशेमेश। 60 और बिन्यामीन के गोत्र में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत गेबा, अल्लेमेत और अनातोत दिए गए। उनके घरानोंके सब नगर तेरह थे। 61 और शेष कहातियोंके गोत्र के कुल, अर्यात् मनश्शे के आधे गोत्र में से चिट्ठी डालकर दस नगर दिए गए। 62 और गेशॉमियोंके कुलोंके अनुसार उन्हें इस्साकार, आशेर और नप्ताली के गोत्र, और बाशान में रहनेवाले मनश्शे के गोत्र में से तेरह नगर मिले। 63 मरारियोंके कुलोंके अनुसार उन्हें रूबेन, गाद और जबूलून के गोत्रें में से चिट्ठी डालकर बारह नगर दिए गए। 64 और इस्राएलियोंने लेवियोंको थे नगर चराइयोंसमेत दिए। 65 और उन्होंने यहूदियों, शिमोनियोंऔर बिन्यामीनियोंके गोत्रोंमें से वे नगर दिए, जिनके नाम ऊपर दिए गए हैं। 66 और कहातियोंके कई कुलोंको उनके भाग के नगर एप्रैम के गोत्र में से मिले। 67 सो उनको अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत एप्रैम के पहाड़ी देश का शकेम जो शरण नगर या, फिर गेजेर। 68 योकमाम, बेथेरोन। 69 अय्यालोन और गत्रिम्मोन। 70 और मनश्शे के आधे गोत्र में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत आनेर और बिलाम शेष कहातियोंके कुल को मिले। 71 फिर गेशॉमियोंको मनश्शे के आधे गोत्र के कुल में से तो अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत बाशान का गोलान और अशतारोत। 72 और इस्साकार के गोत्र में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत केदेश, दाबरात। 73 रामोत और आनेम, 74 और आशेर के गोत्र में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत माशाल, अब्दोन। 75 हूकोक और रहोब। 76 और नप्ताली के गोत्र में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत गालील का केदेश हम्मोन और किर्यातैम मिले। 77 फिर शेष लेवियोंअर्यात् मरारियोंको जबूलून के गोत्र में से तो अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत शिम्मोन और ताबोर। 78 और यरीहो के पास की यरदन नदी की पूर्व और रूबेन के गोत्र में से तो अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत जंगल का बेसेर, यहसा। 79 कदेमोत और मेपाता। 80 और गाद के गोत्र में से अपक्की अपक्की चराइयोंसमेत गिलाद का रामोत महनैम, 81 हेशोबोन और याजेर दिए गए।
1 इस्साकार के पुत्र तोला, पूआ, याशूब और शिम्रोन, चार थे। 2 और तोला के पुत्र उज्जी, रपायाह, यरीएल, यहमै, यिबसाम और शमूएल, थे अपके अपके पितरोंके घरानोंअर्यात् तोला की सन्तान के मुख्य पुरुष और बड़े वीर थे, और दाऊद के दिनोंमें उनके वंश की गिनती बाईस हजार छ: सौ यी। 3 और उज्जी का पुत्र यिज्रह्याह, और यिज्रह्याह के पुत्र मीकाएल, ओबद्याह, योएल और यिश्शिय्यह पांच थे; थे सब मुख्य पुरुष थे। 4 और उनके साय उनकी वंशावलियोंऔर पितरोंके घरानोंके अनुसार सेना के दलोंके छत्तीस हजार योद्धा थे; क्योंकि उनके बहुत स्त्रियां और पुत्र थे। 5 और उनके भाई जो इस्साकार के सब कुलोंमें से थे, वे सत्तासी हजार बड़े वीर थे, जो अपक्की अपक्की वंशावली के अनुसार गिने गए। 6 बिन्यामीन के पुत्र बेला, बेकेर और यदीएल थे तीन थे। 7 बेला के पुत्र : एसबोन, उज्जी, उज्जीएल, यरीमोत और ईरी थे पांच थे। थे अपके अपके पितरोंके घरातोंके मुख्य पुरुष और बड़े वीर थे, और अपक्की अपक्की वंशाबली के अनुसार उनकी गिनती बाईस हजार चौंतीस यी। 8 और बेकेर के पुत्र : जमीरा, योआश, बलीएजेर, एल्योएनै, ओम्री, यरेमोत, अबिय्याह, अनातोत और आलेमेत थे सब बेकेर के पुत्र थे। 9 थे जो अपके अपके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुष और बड़े वीर थे, इनके वंश की गिनती अपक्की अपक्की वंशावली के अनुसार बीस हजार दो सौ यी। 10 और यदीएल का पुत्र बिल्हान, और बिल्हान के पुत्र, यूश, बिन्यामीन, एहूद, कनाना, जेतान, तशींश और अहीशहर थे। 11 थे सब जो यदीएल की सन्तान और अपके अपके पितरोंके घरानोंमें मुख्य पुरुष और बड़े वीर थे, इनके वंश से सेना में युद्ध करने के याग्य सत्रह हजार दो सौ पुरुष थे। 12 और ईर के पुत्र शुप्पीम और हुप्पीम और अहेर के पुत्र हूशी थे। 13 नप्ताली के पुत्र, एहसीएल, गूनी, थेसेर और शल्लूम थे, थे बिल्हा के पोते थे। 14 मनश्शे के पुत्र, अस्रीएल जो उसकी अरामी रखेली स्त्री से उत्पन्न हुआ या; और उस अरामी स्त्री ने गिलाद के पिता माकीर को भी जन्म दिया। 15 और माकीर ( जसकी बहिन का नाम माका या ) उस ने हुप्पीम और शुप्पीम के लिथे स्त्रियां ब्याह लीं, और दूसरे का नाम सलोफाद या, और सलोफाद के बेटियां हुई। 16 फिर माकीर की स्त्री माका के एक पुत्र उत्पन्न हुआ और उसका नाम पेरेश रखा; और उसके भाई का नाम शेरेश या; और इसके पुत्र ऊलाम और राकेम थे। 17 और ऊलाम का पुत्र बदान। थे गिलाद की सन्तान थे जो माकीर का पुत्र और मनश्शे का पोता या। 18 फिर उसकी बहिन हम्मोलेकेत ने ईशहोद, अबीएजेर और महला को जन्म दिया। 19 और शमीदा के पुत्र अह्यान, शेकेम, लिखी और अनीआम थे। 20 और एप्रैम के पुत्र शूतेलह और शूतेलह का बेरेद, बेरेद का तहत, तहत का एलादा, एलादा का तहत। 21 तहत का जाबाद और जाबाद का पुत्र शूतेलह हुआ, और थेजेर और एलाद भी जिन्हें गत के मनुष्योंने जो उस देश में उत्पन्न हुए थे इसलिथे घात किया, कि वे उनके पशु हर लेने को उतर आए थे। 22 सो उनका पिता एप्रैम उनके लिथे बहुत दिन शोक करता रहा, और उसके भाई उसे शांति देने को आए। 23 और वह अपक्की पत्नी के पास गया, और उस ने गर्भवती होकर एक पुत्र को जन्म दिया और बप्रैम ने उसका नाम इस कारण बरीआ रखा, कि उसके घराने में विपत्ति पक्की यी। 24 (और उसकी पुत्री शेरा यी, जिस ने निचले और ऊपरवाले दोनोंबेयोरान नाम नगरोंको और उज्जेनशेरा को दृढ कराया। ) 25 उौर उसका पुत्र रेपा या, और रेशेप भी, और उसका पुत्र तेलह, तेलह का तहन, तहन का लादान, 26 लादान का अम्मीहूद, अम्मीहूद का एलीशामा। 27 एलीशमा का नून, और नून का पुत्र यहोशू या। 28 और उनकी निज भूमि और बस्तियां गांवोंसमेत बेतेल और पूर्व की ओर नारान और पश्चिम की ओर गांवोंसमेत गेजेर, फिर गांवोंसमेत शकेम, और गांवोंसमेत अज्जा यीं। 29 और मनश्शेइयोंके सिवाने के पास अपके अपके गांवोंसमेत बेतशान, तानाक, मगिद्दो और दोर। इन में इस्राएल के पुत्र युसुफ की सन्तान के लोग रहते थे। 30 आशेर के पुत्र, यिम्ना, यिश्वा, यिश्वी और बरुीआ, और उनकी बहिन सेरह हुई। 31 और बरीआ के पुत्र, हेबेर और मल्कीएल और यह बिजॉत का पिता हुआ। 32 और हेबेर ने यपकेत, शोमेर, होताम और उनकी बहिन शूआ को जन्म दिया। 33 और यपकेत के पुत्र पासक बिम्हाल और अश्वात। यपकेत के थे ही पुत्र थे। 34 और शेमेर के पुत्र, अही, रोहगा, यहुब्बा और अराम थे। 35 और उसके भाई हेलेम के पुत्र सोपह, यिम्ना, शेलेश और आमाल थे। 36 और सोपह के पुत्र, सूह, हर्नेपेर, शूआल, वेरी, इम्रा। 37 बेसेर, होद, शम्मा, शिलसा, यित्रान और बेरा थे।। 38 और थेतेर के पुत्र, यपुन्ने, पिस्पा और अरा। 39 और उल्ला के पुत्र, आरह, हन्नीएल और रिस्या। 40 थे सब आशेर के वुश में हुए, और अपके अपके पितरोंके घरानोंमें मुख्य पुरुष और बड़े से बड़े वीर थे और प्रधानोंमें मुख्य थे। और थे जो अपक्की अपक्की वंशावली के अनुसार सेना में युद्ध करने के लिथे गिने गए, इनकी गिनती छब्बीस हजार यी।
1 बिन्यामीन से उसका जेठा बेला, दूसरा अशबेल, तीसरा अह्रृह, 2 चौया नोहा और पांचवां रापा उत्पन्न हुआ। 3 और बेला के पुत्र, अद्दार, गेरा, अबीहूद। 4 अबीशू, नामान, अहोह, 5 गेरा, शपूपान और हूराम थे। 6 और एहूद के पुत्र थे हुए ( गेबा के निवासियोंके पितरोंके घरानोंमें मुख्य पुरुष थे थे, जिन्हें बन्धुआई में मानहत को ले गए थे ) । 7 और नामान, अहिय्याह और गेरा ( इन्हें भी बन्धुआ करके मानहत को ले गए थे ), और उस ने उज्जा और अहिलूद को जन्म दिया। 8 और शहरैम से हशीम और बारा नाम अपक्की स्त्रियोंको छोड़ देने के बाद मोआब देश में लड़के उत्पन्न हुए। 9 और उसकी अपक्की स्त्राी होदेश से योआब, सिब्या, मेशा, मल्काम, यूस, सोक्या, 10 और मिर्मा उत्पन्न हुए उसके थे पुत्र अपके अपके पितरोंके घरानोंमें मुख्य पुरुष थे। 11 और हूशीम से अबीतूब और एल्पाल का जन्म हुआ। 12 एल्पाल के पुत्र एबेर, मिशाम और शेमेर, इसी ने ओनो और गांवोंसमेत लोद को बसाया। 13 फिर वरीआ और शेमा जो अय्यालोन के निवासियोंके पितरोंके घरानोंमें मुख्य पुरुष थे, और जिन्होंने गत के निवासिक्कों भगा दिया। 14 और अह्यो, हाासक, यरमोत। 15 जबद्याह, अराद, एदेर। 16 मीकाएल, यिस्पा, योहा, जो बीिआ के पुत्र थे। 17 जबद्याह, मशुल्लाम, हिजकी, हेबर। 18 यिशमरै, यिजलीआ, योबाब, जो एल्पाल के पुत्र थे। 19 और याकीम, जिक्री, जब्दी। 20 एलीएनै, सिल्लतै, एलीएल। 21 अदायाह, बरायाह और शिम्रात जो शिमी के पुत्र थे। 22 और यिशपान, यबेर, एलीएल। 23 अब्दोन, जिक्री,हानान। 24 हनन्याह, एलाम, अन्तोतिय्याह। 25 यिपदयाह और पनूएल जो शाशक के पुत्र थे। 26 और शमशरै, शहर्याह, अतल्याह। 27 योरेश्याह, एलिय्याह और जिक्र जो यरोहाम के पुत्र थे। 28 थे अपक्की अपक्की पीढ़ी में अपके अपके पितरोंके घरानोंमें मुख्य पुरुष और प्रधान थे, थे यरूशलेम में रहते थे। 29 और गिबोन में गिबोन का पिता रहता या, जिसकी पत्नी का ताम माका या। 30 और उसका जेठा पुत्र अब्दोन या, फिर शूर, कीश, बाल, नादाब। 31 गदोर; अह्यो और जेकेर हुए। 32 और मिकोत से शिमा उत्पन्न हुआ। और थे भी अपके भइयोंके साम्हने यरूशलेम में रहते थे, अपके भाइयोंही के साय। 33 और नेर से कीश उत्पन्न हुआ, कीश से शाऊल, और शाऊल से योनातान, मलकीश, अबीनादाब, और एशबाल उत्पन्न हुआ। 34 और योनातन का पुत्र मरीब्बाल हुआ, और मरीब्बाल से मीका उत्पन्न हुआ। 35 और मीका के पुत्र पीतोन, मेलेक, तारे और आहाज। 36 और आहाज से यहोअद्दा उत्पन्न हुआ। और यहोअद्दा से आलेमेत, अजमावेत और जिम्री; और जिम्री से मोसा। 37 मोसा से बिना उत्पन्न हुआ। और इसका पुत्र रापा हुआ, रापा का एलासा और एलासा का पुत्र आसेल हुआ। 38 और आसेल के छ: पुत्र हुए जिनके थे नाम थे, अर्यात् अज्रीकाम, बोकरू, यिश्माएल, शार्याह, ओबद्याह, और हानान। थे ही सब आसेल के पुत्र थे। 39 ओर उसके भाई एशेक के थे पुत्र हुए, अर्यात् उसका जेठा ऊलाम, दूसरा यूशा, तीसरा एलीपेलेत। 40 और ऊलाम के पुत्र शूरवीर और धनुर्धारी हुए, और उनके बहुत बेटे-पोते अर्यात् डेढ़ सौ हुए। थे ही सब बिन्यामीन के वंश के थे।
1 इस प्रकार सब इस्राएली अपक्की अपक्की वंशावली के अनुसार, जो इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त की पुस्तक में लिखी हैं, गिने गए। और यहूदी अपके विश्वासघात के कारण बन्धुआई में बाबुल को पहुंचाए गए। 2 जो लोग अपक्की अपक्की निज भूमि अर्यात् अपके नगरोंमें रहते थे, वह इस्राएली, याजक, लेवीय और नतीन थे। 3 और यरूशलेम में कुछ यहूदी; कुछ बिन्यामीन, और कुछ एप्रैमी, और मनश्शेई, रहते थे : 4 अर्यात् यहूदा के पुत्र पेरेस के वंश में से अम्मीहूद का पुत्र ऊतै, जो ओम्री का पुत्र, और इम्री का पोता, और बानी का परपोता या। 5 और शीलोइयोंमें से उसका जेठा पुत्र असायाह और उसके पुत्र। 6 और जेरह के वंश में से यूएल, और इनके भई, थे छ: सौ नब्बे हुए। 7 फिर बिन्यामीन के वंश में से सल्लू जो मशुल्लाम का पुत्र, होदय्याह का पोता, और हस्सनूआ का परपोता या। 8 और यिब्रिय्याह जो यरोहाम का पुत्र या, एला जो उज्जी का पुत्र, और मिक्री का पोता या, और मशुल्लाम जो शपत्याह का पुत्र, रूएल का पोता, और यिब्निय्याह का परपोता या; 9 और इनके भाई जो अपक्की अपक्की वंशावली के अनुसार मिलकर नौ सौ छप्पन। थे सब पुरुष अपके अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार पितरोंके घरानोंमें मुख्य थे। 10 और याजकोंमें से यदायाह, यहोयारीब और याकीन, 11 और अजर्याह जो परमेश्वर के भवन का प्रधान और हिलकिय्याह का पुत्र या, यह पशुल्लाम का पुत्र, यह सादोक का पुत्र, यह मरायोत का पुत्र, यह अहीतूब का पुत्र या। 12 और अदायाह जो यरोहाम का पुत्र या, यह पशहूर का पुत्र, यह मल्कियाह का पुत्र, यह मासै का पुत्र, यह अदोएल का पुत्र, यह जेरा का पुत्र, यह पशुल्लाम का पुत्र, यह मशिल्लीत का पुत्र, यह इम्मेर का पुत्र या। 13 और उनके भाई थे, जो अपके अपके पितरोंके घरानोंमें सत्रह सौ साठ मुख्य पुरुष थे, वे परमेश्वर के भवन की सेवा के काम में बहुत निपुण पुरुष थे। 14 फिर लेवियोंमें से मरारी के वंश में से शमायाह जो हश्शूव का पुत्र, अज्रीकाम का पोता, और हशय्याह का परपोता या। 15 और बकबक्कर, हेरेश और गालाल और आसाप के वंश में से मत्तन्याह जो मीका का पुत्र, और जिक्री का पोता या। 16 और ओबद्याह जो शमायाह का पुत्र, गालाल का पोता और यदूतून का परपोता या, और बेरेक्याह जो आसा का पुत्र, और एल्काना का पोता या, जो नतोपाइयोंके गांवोंमें रहता या। 17 ओर द्वारपालोंमें से अपके अपके भइयोंसहित शल्लूम, अक्कूब, तल्मोन और अहीमान, उन में से मुख्य तो शल्लूम या। 18 और वह अब तक पूर्व ओर राजा के फाटक के पास द्वारपाली करता या। लेवियोंकी छावनी के द्वारपाल थे ही थे। 19 और शल्लूम जो कोरे का पुत्र, एब्यासाप का पोता, और कोरह का परपोता या, और उसके भाई जो उसके मूलपुरुष के घराने के अर्यात् कोरही थे, वह इस काम के अधिक्कारनेी थे, कि वे तम्बू के द्वारपाल हों। उनके पुरखा तो यहोवा की छावनी के अधिक्कारनेी, और पैठाव के रवावाले थे। 20 और अगले समय में एलीआज़र का पुत्र पीनहास जिसके संग यहोवा रहता या वह उनका प्रधान या। 21 मेशेलेम्याह का पुत्र जकर्याह मिलापवाले तम्बू का द्वारपाल या। 22 थे सब जो द्वारपाल होने को चुने गए, वह दो सौ बारह थे। थे जिनके पुरखाओं को दाऊद और शमूएल दशीं ने विश्वासयोग्य जानकर ठहराया या, वह अपके अपके गांव में अपक्की अपक्की वंशावली के अनुसार गिने गए। 23 सो वे और उनकी सन्तान यहोवा के भवन अर्यात् तम्बू के भवन के फाटकोंका अधिक्कारने बारी बारी रखते थे। 24 द्वारपाल पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्खिन, चारोंदिशा की ओर चौकी देते थे। 25 ओर उनके भाई जो गांवोंमें रहते थे, उनको सात सात दिन के बाद बारी बारी से उनके संग रहने के लिथे आना पड़ता या। 26 क्योंकि चारोंप्रधान द्वारपाल जो लेवीय थे, वे विश्वासयोग्य जानकर परमेश्वर के भवन की कोठरियोंऔर भण्डारोंके अधिक्कारनेी ठहराए गए थे। 27 और वे परमेश्वर के भवन के आसपास इसलिथे रात बिताते थे, कि उसकी रझा उन्हें सौंपी गई यी, और भोर-भोर को उसे खोलना उन्हीं का काम या। 28 और उन में से कुछ उपासना के पात्रोंके अधिक्कारनेी थे, क्योंकि थे गिनकर भीतर पहुंचाए, और गिनकर बाहर तिकाले भी जाते थे। 29 और उन में से कुछ सामान के, और पवित्रस्यान के पात्रोंके, और मैदे, दाखमधु, तेल, लोबान और सुगन्धद्रय्योंके अधिक्कारनेी ठहराए गए थे। 30 और याजकोंके पुत्रोंमें से कुछ सुगन्धद्रय्योंमें गंधी का काम करते थे। 31 और मतित्याह नाम एक लेवीय जो कोरही शल्लूम का जेठा या उसे बिश्वासयोग्य जानकर तवोंपर बनाई हुई वस्तुओं का अधिक्कारनेी नियुक्त किया या। 32 और उसके भइयोंअर्यात कहातियोंमें से कुछ तो भंटवाली रोटी के अधिक्कारनेी थे, कि हर एक विश्रमदिन को उसे तैयार किया करें। 33 और थे गवैथे थे जो लेवीय पितरोंके घरानोंमें मुख्य थे, और कोठरियोंमें रहते, और उाौर काम से छूटे थे; क्योंकि वे रात-दिन अपके काम में लगे रहते थे। 34 थे ही अपक्की अपक्की पीढ़ी में लेवियोंके पितरोंके घरानोंमें मुख्य पुरुष थे, थे यरूशलेम में रहते थे। 35 और गिबोन में गिबोन का पिता यीएल रहता या, जिसकी पत्नी का नाम माका य। 36 उसका जेठा पुत्र अब्दोन हुआ, फिर सुर, कीश, बाल, नेर, नादाब। 37 गदोर, अह्यो, जकर्याह और मिल्कोत। 38 और मिल्कोत से शिमाम उत्पन्न हुआ और थे भी अपके भइयोंके साम्हने अपके भइयोंके संग यरूशलेम में रहते थे। 39 और नेर से कीश, कीश से शाऊल, और शाऊल से योनातान, मल्कीश, अबीनादाब और एशबाल उत्पन्न हुए। 40 और योनातान का पुत्र मरीब्बाल हुआ, और मरीब्बाल से मीका उत्पन्न हुआ। 41 और मीका के पुत्र पीतोन, मेलेक, तह्रे और अहाज थे। 42 और अहाज से यारा और यारा से आलेमेत, अजमावेत और जिम्री, और जिम्री से मोसा। 43 और मोसा से बिना उत्पन्न हुआ और बिना का पुत्र रपायाह हुआ, रपायाह का एलासा, और एलासा का पुत्र आसेल हुआ। 44 और आसेल के छ: पुत्र हुए जिनके थे नाम थे, अर्यात् अज्रीकाम, बोकरू, यिश्माएल, शार्याह, ओबद्याह और हतान; आसेल के थे ही पुत्र हुए।
1 पलिश्ती इस्राएलियोंसे लड़े; और इस्राएली पलिश्तियोंके साम्हने से भागे, और गिलबो नाम पहाड़ पर मारे गए। 2 और पलिश्ती शाऊल और उसके पुत्रोंके पीछे लगे रहे, और पलिश्तियोंने शाऊल के पुत्र योनातान, अबीनादाब और मल्कीशू को मार डाला। 3 और शाऊल के साय धमासान युद्ध होता रहा और धनुर्धारियोंने उसे जा लिया, और वह उनके कारण य्याकुल हो गया। 4 तब शाऊल ने अपके हयियार ढोनेवाले से कहा, अपक्की तलवार खींचकर मुझे फोंक दे, कहीं ऐसा न हो कि वे खतनारहित लोग आकर मेरी ठट्ठा करें, परन्तु उसके हय्यािर ढोनेवाले ने भयभीत होकर ऐसा करने से इनकार किया, तब शाऊल अपक्की तलवार खड़ी करके उस पर गिर पड़ा। 5 यह देखकर कि शाऊल मर गया है उसका हयियार ढोनेपसल भी अपक्की तलवार पर आप गिरकर मर गया। 6 योंशाऊल और उसके तीनोंपुत्र, और उसके घराने के सब लोग एक संग मर गए। 7 यह देखकर कि वे भाग गए, और शाऊल और उसके पुत्र मर गए, उस तराई में रहनेवाले सब इस्राएली मनुष्य अपके अपके नगर को छोड़कर भाग गए; और पलिश्ती आकर उन में रहने लगे। 8 दूसरे दिन जब पलिश्ती मारे हुओं के माल को लूटने आए, तब उनको शाऊल और उसके पुत्र गिलबो पहाड़ पर पके हुए मिले। 9 तब उन्होंने उसके वस्त्रें को उतार उसका सिर और हयियार ले लिया और पलिश्तियोंके देश के सब स्यानोंमें दूतोंको इसलिथे भेजा कि उनके देवताओं और साधारण लोगोंमें यह शुभ समाचार देते जाएं। 10 तब उन्होंने उसके हयियार अपके देवालय में रखे, और उसकी खोपक्की को दागोन के मन्दिर में लटका दिया। 11 जब गिलाद के याबेश के सब लोगोंने सुना कि पलिश्तियोंने शाऊल से क्या क्या किया है। 12 तब सब शूरवीर चले और शाऊल और उसके पुत्रोंकी लोथें उठाकर याबेश में ले आए, और उनकी हड्डियोंको याबेश में एक बांज वृझ के तले गाड़ दिया और सात दिन तक अनशन किया। 13 योंशाऊल उस विश्वासघात के कारण मर गया, जो उस ने यहोवा से किया या; क्योंकि उस ने यहोवा का वचन टाल दिया या, फिर उस ने भूतसिद्धि करनेवाली से पूछकर सम्मति ली यी। 14 उस ने यहोवा से न पूछा या, इसलिथे यहोवा ने उसे मारकर राज्य को यिशै के पुत्र दाऊद को दे दिया।
1 तब सब इस्राएली दाऊद के पास हेब्रोन में इकट्ठे होकर कहने लगे, सुन, हम लोग और तू एक ही हड्डी और मांस हैं। 2 अगले दिनोंमें जब शाऊल राजा या, तब भी इस्राएलियोंका अगुआ तू ही या, और तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझ से कहा, कि मेरी प्रजा इस्राएल का चरवाहा, और मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान, तू ही होगा। 3 इसलिथे सब इस्राएली पुरनिथे हेब्रोन में राजा के पास उाए, और दाऊद ने उनके साय हेब्रोन में यहोवा के साम्हने वाचा बान्धी; और उन्होंने यहोवा के वचन के अनुसार, जो उस ने शमूएल से कहा या, इस्राएल का राजा होने के लिथे दाऊद का अभिषेक किया। 4 तब सब इस्राएलियोंसमेत दाऊद यरूशलेम गया, जो यबूस भी कहलाता या, और वहां यबूसी नाम उस देश के निवासी रहते थे। 5 तब यबूस के निवासियोंने दाऊद से कहा, तू यहां आने नहीं पाएगा। तौभी दाऊद ने सिय्योन नाम गढ़ को ले लिया, वही दाऊदपुर भी कहलाता है। 6 और दाऊद ने कहा, जो कोई यबूसिक्कों सब से पहिले मारेगा, वह मुख्य सेनापति होगा, तब सरूयाह का पुत्र योआब सब से पहिले चढ़ गया, और सेनापति बन गया। 7 और दाऊद उस गढ़ में रहने लगा, इसलिथे उसका नाम दाऊदपुर पड़ा। 8 और उस ने नगर के चारोंओर, अर्यात् मिल्लो से लेकर चारोंओर शहरपनाश् बनवाई, और योआब ने शेष नगर के खष्डहरोंको फिर बसाया। 9 और दाऊद की प्रतिष्ठा अधिक बढ़ती गई और सेनाओं का यहोवा उसके संग या। 10 यहोवा ने इस्राएल के विष्य जो वचन कहा या, उसके अनुसार दाऊद के जिन शूरवीरोंने सब इस्राएलियोंसमेत उसके राज्य में उसके पझ में होकर, उसे राजा बनाने को ज़ोर दिया, उन में से मुख्य पुरुष थे हैं। 11 दाऊद के शूरवीरोंकी नामावली यह है, अर्यात् किसी हक्मोनी का पुत्र याशोबाम जो तीसोंमें मुखय य, उस ने तीन सै पुरुषोंपर भाला चला कर, उन्हें एक ही समय में मार डाला। 12 उसके बाद अहोही दोदो का पुत्र एलीआज़र जो तीनोंमहान वीरोंमें से एक या। 13 वह पसदम्मीम में जहां जव का एक खेत या, दाऊद के संग रहा जब पलिश्ती वहां युद्ध करने को इाट्ठे हुए थे, और लोग पलिश्तियोंके साम्हने से भाग गए। 14 तब उन्होंने उस खेत के बीच में खड़े होकर उसकी रझा की, और पलिश्तियोंको मारा, और यहोवा ने उनका बड़ा उद्धार किया। 15 और तीसोंमुख्य पुरुषोंमें से तीन दाऊद के पास चट्टान को, अर्यात् अदुल्लाम नाम गुफा में गए, और पलिश्तियोंकी छावनॉं रपाईम नाम तराई में पक्की इुई यी। 16 उस समय दाऊद गढ़ में या, और उस समय पलिश्तियोंकी एक चौकी बेतलेहेम में यी। 17 तब दाऊद ने बड़ी अभिलाषा के साय कहा, कौन मुझे बेतलेहेम के फाटक के पास के कुएं का पानी पिलाएगा। 18 तब वे तीनोंजन पलिश्तियोंकी छावनी में टूट पके और बेतलेहेम के फाटक के कुएं से पानी भरकर दाऊद के पास ले आए; परन्तु दाऊद ने पीने से इनकार किया और यहोवा के साम्हने अर्ध करके उण्डेला। 19 और उस ने कहा, मेरा परमेश्वर मुझ से ऐसा करना दूर रखे; क्या मैं इन मनुष्योंका लोहू पीऊं जिन्होंने अपके प्राणोंपर खेला है? थे तो अपके प्राण पर खेलकर उसे ले आए हैं। इसलिथे उस ने वह पानी पीने से इनकार किया। इन तीन वीरोंने थे ही काम किए। 20 और अबीशै जो योआब का भाई या, वह तीनोंमें मुख्य या। और उस ने अपना भाला चलाकर तीन सौ को मार डाला और तीनोंमें नामी हो गया। 21 दूसरी श्र्ेणी के तीनोंमें वह अधिक प्रतिष्ठित या, और उनका प्रधान हो गया, परन्तु मुख्य तीनोंका पद को न पहुंचा। 22 यहोयादा का पुत्र बनायाह या, जो कबजेल के एक वीर का पुत्र या, जिस ने बड़े बड़े काम किए थे, उस ने सिंह समान दो मोआबियोंको मार डाला, और हिमऋतु में उस ने एक गड़हे में उतर के एक सिंह को मार डाला। 23 फिर उस ने एक डीलवाले अर्यात् पांच हाथ लम्बे मिस्री पुरुष को मार डाला, वह मिस्री हाथ में जुलाहोंका ढेका का एक भाला लिए हुए या, परन्तु बनायाह एक लाठी ही लिए हुए उसके पास गया, और मिस्री के हाथ से भाले को छीनकर उसी के भाले से उसे घात किया। 24 ऐसे ऐसे काम करके यहोयादा का पुत्र बनायाह उन तीनोंवीरोंमें नामी हो गया। 25 वह तो तीसोंसे अधिक प्रतिष्ठित या, परन्तु मुख्य तीनोंके पद को न पहुंचा। उसको दाऊद ने अपक्की निज सभा में सभासद किया। 26 फिर दलोंके वीर थे थे, अर्यात् योआब का भाई असाहेल, बेतलेहेमी दोदो का पुत्र एल्हानान। 27 हरोरी शम्मोत, पलोनी हेलेस। 28 तकोई इक्केश का पुत्र ईरा, अनातोती अबीएजेर। 29 सिब्बके होसाती, अहोही ईलै। 30 महरै नतोपाई, एक और नतोपाई बाना का पुत्र हेलेद। 31 बिन्यामीनियोंके गिबा नगरवासी रीबै का पुत्र इतै, पिरातोनी बनायाह। 32 गाशके नालोंके पास रहनेवाला हूरै, अराबावासी अबीएल। 33 बहूरीमी अजमावेत, शल्बोनी एल्यहबा। 34 गीजोई हाशेम के पुत्र, फिर हरारी शागे का पुत्र योनातान। 35 हरारी सकार का पुत्र अहीआम, ऊर का पुत्र एलीपाल। 36 मकेराई हेपेर, पलोनी अहिय्याह। 37 कर्मेली हेस्रो, एज्बै का पुत्र नारै। 38 नातान का भाई योएल, हग्री का पुत्र मिभार। 39 मम्मोनी सेलेक, बेरोती नहरै जो सरूयाह के पुत्र योआब का हयियार ढोनेवाला या। 40 थेतेरी ईरा और गारेब। 41 हित्ती ऊरिय्याह, अहलै का पुत्र जाबाद। 42 तीस पुरुषोंसमेत रूबेनी शीजा का पुत्र अदीना जो रूबेनियोंका मुखिया या। 43 माका का पुत्र हानान, मेतेनी योशापात। 44 अशतारोती उज्जिय्याह, अरोएरी होताम के पुत्र शामा और यीएल। 45 शिम्री का पुत्र यदीएल और उसका भाई तीसी, योहा। 46 महवीमी एलीएल, एलनाम के पुत्र यरीबै और योशय्याह, 47 मोआबी यित्मा, एलीएल, ओबेद और मसोबाई यासीएल।
1 जब दाऊद सिकलग में कीश के पुत्र शाऊल के डर के मारे छिपा रहता या, तब थे उसके पास वहां आए, और थे उन वीरोंमें से थे जो युद्ध में उसके सहाथक थे। 2 थे धनुर्धारी थे, जो दाहिने-बाथें, दोनोंहाथोंसे गोफन के पत्यर और धनुष के तीर चला सकते थे; और थे शाऊल के भाइयोंमें से बिन्यामीनी थे। 3 मुख्य तो अहीएजेर और दूसरा योआश या जो गिबावासी शमाआ का पुत्र या; फिर अजमावेत के पुत्र यजीएल और पेलेत, फिर बराका और अनातोती थेहू। 4 और गिबोनी यिशमायाह जो तीसोंमें से एक वीर और उनके ऊपर भी या; फिर यिर्मयाह, यहजीएल, योहानान, गदेरावासी योजाबाद। 5 एलूजै, यरीमोत, बाल्याह, शमर्याह, हारूपी शपत्याह। 6 एल्काना, यिशिय्याह, अजरेल, योएजेर, याशोबाम, जो सब कोरहवंशी थे। 7 और गदोरवासी यरोहाम के पुत्र योएला और जबद्याह। 8 फिर जब दाऊद जंबल के गढ़ में रहता या, तब थे गादी जो शूरवीर थे, और युद्ध विद्या सीखे हुए और ढाल और भाला काम में लानेवाले थे, और उनके मुह सिंह के से और वे पहाड़ी मृग के समान वेग से दौड़नेवाले थे, थे और गादियोंसे अलग होकर उसके पास आए। 9 अर्यात् मुख्य तो एजेर, दूसरा ओबद्याह, तीसरा एलीआब। 10 चौया मिश्मन्ना, पांचपां यिर्मयाह। 11 छठा अत्तै, सातवां एलीएल। 12 आठवां योहानान, नौवां एलजाबाद। 13 दसवां यिर्मयाह और ग्यारहवां मकबन्नै या। 14 थे गादी मुख्य योद्धा थे, उन में से जो सब से छोटा या वह तो एक सौ के ऊपर, और जो सब से बड़ा या, वह हजार के ऊपर या। 15 थे ही वे हैं, जो पहिले महीने में जब यरदन नदी सब कड़ाड़ोंके ऊपर ऊपर बहती यी, तब उसके पार उतरे; और पूर्व और पश्चिम दानोंओर के सब तराई के रहनेवालोंको भगा दिया। 16 और कई एक बिन्यामीनी और यहूदी भी दाऊद के पास गढ़ में आए। 17 उन से मिलने को दाऊद निकला और उन से कहा, यदि तुम मेरे पास मित्रभाव से मेरी सहाथता करने को आए हो, तब तो मेरा मन तुम से लगा रहेगा; परन्तु जो तुम मुझे धोखा देकर मेरे शत्रुओं के हाथ पकड़वाने आए हो, तो हमारे पितरोंका परमेश्वर इस पर दृष्टि करके डांटे, क्योंकि मेरे हाथ से कोई उपद्रव नहीं हुआ। 18 अब आत्मा अमासै में समाया, जो तीसोंवीरोंमें मुख्य या, और उस ने कहा, हे दाऊद ! हम तेरे हैं; हे यिशै के पुत्र ! हम तेरी ओर के हैं, तेरा कुशल ही कुशल हो और तेरे सहाथकोंका कुशल हो, क्योंकि तेरा परमेश्वर तेरी सहाथता किया करता है। इसलिथे दाऊद ने उनको रख लिया, और अपके दल के मुखिथे ठहरा दिए। 19 फिर कुछ मनश्शेई भी उस समय दाऊद के पास भाग गए, जब वह पलिश्तियोंके साय होकर शाऊल से लड़ने को गया, परन्तु उसकी कुछ सहाथता न की, क्योंकि पलिश्तियोंके सरदारोंने सम्मति लेने पर वह कहकर उसे बिदा किया, कि वह हमारे सिर कटवाकर अपके स्वामी शाऊल से फिर मिल जाएगा। 20 जब वह सिक्लग को जा रहा या, तब थे मनश्शेई उसके पास भाग गए; अर्यात् अदना, योजाबाद, यदीएल, मीकाएल, योजाबाद, एलीहू और सिल्लतै जो मनश्शे के हजारोंके मुखिथे थे। 21 इन्होंने लुटेरोंके दल के विरुद्ध दाऊद की सहाथता की, क्योंकि थे सब शूरवीर थे, और सेना के प्रधान भी बन गए। 22 वरन प्रतिदिन लोग दाऊद की सहाथता करने को उसके पास आते रहे, यहां तक कि परमेश्वर की सेना के समान एक बड़ी सेना बन गई। 23 फिर लोग लड़ने के लिथे हयियार बान्धे हुए होब्रोन में दाऊद के पास इसलिथे आए कि यहोवा के वचन के अनुसार शाऊल का राज्य उसके हाथ में कर दें : उनके मुखियोंकी गिनती यह है। 24 यहूदा के ढाल और भाला लिए हुए छ: हजार आठ सौ हयियारबन्ध लड़ने को बाए। 25 शिमोनी सात हजार एक सौ तैयार शूरवीर लड़ने को आए। 26 लेवीय चार हजार छ: सौ आए। 27 और हारून के घराने का प्रधान यहोयादा या, और उसके साय तीन हजार सात सौ आए। 28 और सादोक नाम एक जवान वीर भी आया, और उसके पिता के घराने के बाईस प्रधान आए। 29 और शाऊल के भाई बिन्यामीनियोंमें से तीन हजार आए, क्योंकि उस समय तक आधे बिन्यामीनियोंसे अधिक शाऊल के घराने का पझ करते रहे। 30 फिर एप्रैमियोंमें से बड़े वीर और अपके अपके पितरोंके घरानोंमें नामी पुरुष बीस हजार आठ सौ आए। 31 और मनश्शे के आधे गोत्र में से दाऊद को राजा बनाने के लिथे अठारह हजार आए, जिनके नाम बताए गए थे। 32 और इस्साकारियोंमें से जो समय को पहचानते थे, कि इस्राएल को क्या करना उचित है, उनके प्रधान दो सौ थे; और उनके सब भाई उनकी आज्ञा में रहते थे। 33 फिर जबूलून में से युद्ध के सब प्रकार के हयियार लिए हुए लड़ने को पांति बान्धनेवाले योद्धा पचास हजार आए, वे पांति बान्ध्नेवाले थे : और चंचल न थे। 34 फिर नप्ताली में से प्रधान तो एक हजार, और उनके संग ढाल और भाला लिए सैंतीस हजार आए। 35 और दानियोंमें से लड़ने के लिथे पांति बान्धनेवाले अठाईस हजार छ: सौ आए। 36 और आशेर में से लड़ने को पांति बान्धनेवाले चालीस हजार योद्धा आए। 37 और यरदन पार रहनेवाले रूबेनी, गादी और मनश्शे के आधे गोत्रियोंमें से युद्ध के सब प्रकार के हयियार लिए हुए एक लाख बीस हजार आए। 38 थे सब युद्ध के लिथे पांति बान्धनेवाले दाऊद को सारे इस्राएल का राजा बनाने के लिथे हेब्रोन में सच्चे मन से आए, और और सब इस्राएली भी दाऊद को राजा बनाने के लिथे सहमत थे। 39 और वे वहां तीन दिन दाऊद के संग खाते पीते रहे, क्योंकि उनक भाइयोंने उनके लिथे तैयारी की यी। 40 और जो उनके निकट वरन इस्साकार, जबूलून और नप्ताली तक रहते थे, वे भी गदहों, ऊंटों, खच्चरोंऔर बैलोंपर मैदा, अंजीरोंऔर किशमिश की टिकियां, दाखमधु और तेल आदि भोजनवस्तु लादकर लाए, और बैल और भेड़-बकरियां बहुतायत से लाए; क्योंकि इस्राएल में आनन्द मनाया जारहा या।
1 और दाऊद ने सहस्त्रपतियों, शतपतियोंऔर सब प्रधानोंसे सम्मति ली। 2 तब दाऊद ने इस्राएल की सारी मण्डली से कहा, यदि यह तुम को अच्छा लगे और हमारे परमेश्वर की इच्छा हो, तो इस्राएल के सब देशोंमें जो हमारे भाई रह गए हैं और उनके साय जो याजक और लेवीय अपके अपके चराईवाले नगरोंमें रहते हैं, उनके पास भी यह कहला भेजें कि हमारे पास इकट्ठे हो जाओ। 3 और हम अपके परमेश्वर के सन्दमक को अपके यहां ले आएं; क्योंकि शाऊल के दिनोंमें हम उसके समीप नहीं जाते थे। 4 और समस्त मण्डली ने कहा, हम ऐसा ही करेंगे, क्योंकि यह बात उन सब लोगोंकी दृष्टि में उचित मालूम हुई। 5 तब दाऊद ने मिस्र के शीहोर से ले हमात की घाटी तब के सब इस्राएलियोंको इसलिथे इकट्ठा किया, कि परमेश्वर के सन्दूक को किर्यत्यारीम से ले आए। 6 तब दाऊद सब इस्राएलियोंको संग लेकर बाला को गया, जो किर्यत्यारीम भी कहलाता और यहूदा के भाग में या, कि परमेश्वर यहोवा का सन्दूक वहां से ले आए; वह तो करूबोंपर विराजनेवाला है, और उसका नाम भी यही लिया जाता है। 7 तब उन्होंने परमेश्वर का सन्दूक एक नई गाड़ी पर चढ़ाकर, अबीनादाब के घर से निकाला, और उज्जा और अह्यो उस गाड़ी को हांकने लगे। 8 और दाऊद और सारे इस्राएली परमेश्वर के साम्हने तन मन से गीत गाते और बीणा, सारंगी, डफ, फांफ और तुरहियां बजाते थे। 9 जब वे कीदोन के खलिहान तक आए, तब उज्जा ने अपना हाथ सन्दूक यामने को बढ़ाया, क्योंकि बैलोंने ठोकर खाई यी। 10 तब यहोवा का कोप उज्जा पर भड़क उठा; और उस ने उस को मारा क्योंकि उस ने सन्दूक पर हाथ लगाया या; वह वहीं परमेश्वर के साम्हने मर गया। 11 तब दाऊद अप्रसन्न हुआ, इसलिथे कि यहोवा उज्जा पर टूट पड़ा या; और उस ने उस स्यान का नाम पेरेसुज्जा रखा, यह नाम आज तक बना है। 12 और उस दिन दाऊद परमेश्वर से डरकर कहने लगा, मैं परमेश्वर के सन्दूक को अपके यहां कैसे ले आऊं? 13 तब दाऊद ने सन्दूक को अपके यहां दाऊदपुर में न लाया, परन्तु ओबेदेदोम नाम गती के यहां ले गया। 14 और परमेश्वर का सन्दूक ओबेदेदोम के यहां उसके घराने के पास तीन महीने तक रहा, और यहोवा ने ओबेदेदोम के घराने पर और जो कुछ उसका या उस पर भी आशीष दी।
1 और सोर के राजा हीराम ने दाऊद के पास दूत भेजे, और उसका भवन बनाने को देवदारु की लकड़ी और राज और बढ़ई भेजे। 2 और दाऊद को निश्चय हो गया कि यहोवा ने मुझे इस्राएल का राजा करके स्यिर किया, क्योंकि उसकी प्रजा इस्राएल के निमित्त उसका राज्य अत्यन्त बढ़ गया या। 3 और यरूशलेम में दाऊद ने और स्त्रियां ब्याह लीं, और उन से और बेटे-बेटियां उत्पन्न हुई। 4 उसके जो सन्तान यरूशलेम में उत्पन्न हुए, उनके नाम थे हैं : अर्यात् शम्मू,शोबाब, नातान, सुलैमान; 5 यिभार, एलीशू, एलपेलेत; 6 नोगह, नेपेग, यापी, एलीशामा, 7 बेल्यादा और एलीपेलेद। 8 जब पलिश्तियोंने सुना कि पूरे इस्राएल का राजा होने के लिथे दाऊद का अभिषेक हुआ, तब सब पलिश्तियोंने दाऊद की खोज में चढ़ाई की; यह सुनकर दाऊद उनका साम्हना करने को निकल गया। 9 और पलिश्ती आए और रपाईम नाम तराई में धावा मारा। 10 तब दाऊद ने परमेश्वर से पूछा, क्या मैं पलिश्तियोंपर चढ़ाई करूं? और कया तू उन्हें मेरे हाथ में कर देगा? यहोवा ने उस से कहा, चढ़ाई कर, क्योंकि मैं उन्हें तेरे हाथ में कर दूंगा। 11 इसलिथे जब वे बालपरासीम को आए, तब दाऊद ने उन को वहीं मार लिया; तब दाऊद ने कहा, परमेश्वर मेरे द्वारा मेरे शत्रुओं पर जल की धारा की नाई टूट पड़ा है। इस कारण उस स्यान का नाम बालपरासीम रखा गया। 12 वहां वे अपके देवताओं को छोड़ गए, और दाऊद को आज्ञा से वे आग लगाकर फूंक दिए गए। 13 फिर दूसरी बार पलिश्तियोंने उसी तािई में धावा मारा। 14 तब दाऊद ने परमेश्वर से फिर पूछा, और परमेश्वर ने उस से कहा, उनका पीछा मत कर; उन से मुड़कर तूत के वृझोंके साम्हने से उन पर छापा मार। 15 और जब तूत के वृझोंकी फुनगियोंमें से सेना के चलने की सी आहट तुझे सुन पके, तब यह जानकर युद्ध करने को निकल जाना कि परमेश्वर पलिश्तियोंकी सेना को मारने के लिथे तेरे आगे जा रहा है। 16 परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार दाऊद ने किया, और इस्राएलियोंने पलिश्तियोंकी सेना को गिबोन से लेकर गेजेर तक मार लिया। 17 तब दाऊद की कीत्तिर् सब देशोंमें फैल गई, और यहोवा ने सब जातियोंके मन में उसका भय भर दिया।
1 तब दाऊद ने दाऊदपुर में भवन बनवाए, और परमेश्वर के सन्दूक के लिथे एक स्यान तैयार करके एक तम्बू खड़ा किया। 2 तब दाऊद ने कहा, लेवियोंको छोड़ और किसी को परमेश्वर का सन्दूक उठाना नहीं चाहिथे, क्योंकि यहोवा ने उनको इसी लिथे चुना है कि वे परमेश्वर का सन्दूक उठाएं और उसकी सेवा टहल सदा किया करें। 3 तब दाऊद ने सब इस्राएलियोंको यरूशलेम में इसलिथे इाट्ठा किया कि यहोवा का सन्दूक उस स्यान पर पहुंचाएं, जिसे उस ने उसके लिथे तैयार किया या। 4 इसलिथे दाऊद ने हारून के सन्तानोंऔर लेवियोंको इकट्ठा किया : 5 अर्यात् कहातियोंमें से ऊरीएल नाम प्रधान को और उसके एक सौ बीस भाइयोंको; 6 मरारियोंमें से असायाह नाम प्रधान को और उसके दो सौ बीस भाइयोंको; 7 गेशॉमियोंमें से योएल नाम प्रधान को और उसके एक सौ तीस भाइयोंको; 8 एलीसापानियोंमें से शमायाह नाम प्रधान को और उसके दो सौ भाइयोंको; 9 हेब्रोनियोंमें से एलीएल नाम प्रधान को और उसके अस्सी भाइयोंको; 10 और उज्जीएलियोंमें से अम्मीनादाब नाम प्रधान को और उसके एक सौ बारह भाइयोंको। 11 तब दाऊद ने सादोक और एब्यातार नाम याजकोंको, और ऊरीएल, असायाह, योएल, शमायाह, एलीएल और अम्मीनादाब नाम लेवियोंको बुलवाकर उन से कहा, 12 तुम तो लेवीय पितरोंके घरानोंमें मुख्य पुरुष हो; इसलिथे अपके भाइयोंसमेत अपके अपके को पवित्र करो, कि तुम इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का सन्दूक उस स्यान पर पहुंचा सको जिसको मैं ने उसके लिथे तैयार किया है। 13 क्योंकि पहिली बार तुम ने उसको न उठाया इस कारण हमारा परमेश्वर यहोवा हम पर टूट पड़ा, क्योंकि हम उसकी खोज में नियम के अनुसार न लगे थे। 14 तब याजकोंऔर लेवियोंने अपके अपके को पवित्र किया, कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का सन्दूक ले जा सकें। 15 तब उस आज्ञा के अनुसार जो मूसा ने यहोवा का वचन सुनकर दी यी, लेवियोंने सन्दूक को डंडोंके बल अपके कंधोंपर उठा लिया। 16 और दाऊद ने प्रधान लेवियोंको आज्ञा दी, कि अपके भाई गवैयोंको बाजे अर्यात् सारंगी, वीणा और फांफ देकर बजाने और आनन्द के साय ऊंचे स्वर से गाने के लिथे नियुक्त करें। 17 तब लेवियोंने योएल के पुत्र हेमान को, और उसके भाइयोंमें से बेरेक्याह के पुत्र आसाप को, और अपके भाई मरारियोंमें से कूशायाह के पुत्र एतान को ठहराया। 18 और उनके साय उन्होंने दूसरे पद के अपके भाइयोंको अर्यात् जकर्याह, बेन, याजीएल, शमीरामोत, यहीएल, उन्नी, एलीआब, बनायाह, मासेयाह, मत्तित्याह, एलीपकेह, मिकनेयाह, और ओबेदेदोम और पीएल को जो द्वारपाल थे ठहराया। 19 योंहेमान, आसाप और एतान नाम के गवैथे तो पीतल की फांफ बजा बजाकर राग चलाने को; 20 और जकर्याह, अजीएल, शमीरामोत, यहीएल, उन्नी, एलीआब, मासेयाह, और बनायाह, अलामोत, नाम राग में सारंगी बजाने को; 21 और मत्तित्याह, एलीपकेह, मिकनेयाह ओबेदेदोम, यीएल और अजज्याह वीणा खर्ज में छेड़ने को ठहराए गए। 22 और राग उठाने का अधिक्कारनेी कनन्याह नाम लेवियोंका प्रधान या, वह राग उठाने के विषय शिझा देता या, क्योंकि वह निपुण या। 23 और बेरेक्याह और एलकाना सन्दूक के द्वारपाल थे। 24 और शबन्याह, योशापात, नतनेल, अमासै, जकर्याह, बनायाह और एलीएजेर नाम याजक परमेश्वर के सन्दूक के आगे आगे तुरहियां बजाते हुए चले, और ओबेदेदोम और यहिय्याह उसके द्वारपाल थे। 25 और दाऊद और इस्राएलियोंके पुरनिथे और सहस्त्रपति सब मिलकर यहोवा की वाचा का सन्दूक ओबेदेदोम के घर से आनन्द के साय ले आने के लिए गए। 26 जब परमेश्वर ने लेवियोंकी सहाथता की जो यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले थे, तब उन्होंने सात बैल और सात मेढ़े बलि किए। 27 दाऊद, और यहोवा की वाचा का सन्दूक उठानेवाले सब लेवीय और गानेवाले और गानेवालोंके साय राग उठानेवाले का प्रधान कनन्याह, थे सब तो सन के कपके के बागे पहिने थे, और दाऊद सन के कपके का एपोद पहिने या। 28 इस प्रकार सब इस्राएली यहोवा की वाचा के सन्दूक को जयजयकार करते, और नरसिंगे, तुरहियां और फांफ बजाते और सारंगियां और वीणा बजाते हुए ले चले। 29 जब यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर में पहुंचा तब शाऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से फांककर दाऊद राजा को कूदते और खेलते हुए देखा, और उसे मन ही मन तूच्छ जाना।
1 तब परमेश्वर का सन्दूक ले आकर उस तम्हू में रखा गया जो दाऊद ने उसके लिथे खड़ा कराया या; और परमेश्वर के साम्हने होमबलि और मेलबलि चढ़ाए गए। 2 जब दाऊद होमबलि और मेलबलि चढ़ा जूका, तब उस ने यहोवा के नाम से प्रजा को आशीर्वाद दिया। 3 और उस ने क्या पुरुष, क्या स्त्री, सब इस्राएलियोंको एक एक रोटी और एक एक टुकड़ा मांस और किशमिश की एक एक टिकिया बंटवा दी। 4 तब उस ने कई लेवियोंको इसलिथे ठहरा दिया, कि यहोवा के सत्दूक के साम्हने सेवा टहल किया करें, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की चर्चा और उसका धन्यवाद और स्तुति किया करें। 5 उनका मुखिया तो आसाप या, और उसके नीचे जकर्याह या, फिर यीएल, शमीरामोत, यहीएल, मत्तित्याह, एलीआब बनायाह, ओबेदेदोम और यीएल थे; थे तो सारंगियां और वीणाएं लिथे हुए थे, और आसाप फांफ पर राग बजाता या। 6 और बनायाह और यहजीएल नाम याजक परमेश्वर की वाचा के सन्दूक के साम्हने नित्य तुरहियां बजाने के लिए नियुक्त किए गए। 7 तब उसी दिन दाऊद ने यहोवा का धन्यवाद करने का काम आसाम और उसके भाइयोंको सौंप दिया। 8 यहोवा का धन्यवाद करो, उस से प्रार्यना करो; देश देश में उसके कामोंका प्रचार करो। 9 उसका गीत गाओ, उसका भजन करो, उसके सब आश्चर्य-कमॉं का ध्यान करो। 10 उसके पवित्र नाम पर घपंड करो; यहोवा के खोजियोंका ह्रृदय आनन्दित हो। 11 यहोवा और उसकी सामर्य की खोज करो; उसके दर्शन के लिए लगातार खोज करो। 12 उसेक किए हुए आश्र्ख्यकर्म, उसके चमत्कार और न्यायवचन स्मरण करो। 13 हे उसके दास इस्राएल के वंश, हे याकूब की सन्तान तुम जो उसके चुने हुए हो ! 14 वही हमारा परमेश्वर यहोवा है, उसके न्याय के काम पृय्वी भर में होते हैं। 15 उसकी वाचा को सदा स्मरण रखो, यह वही वचन है जो उस ने हजार पीढिय़ोंके लिथे ठहरा दिया। 16 वह वाचा उस ने इब्राहीम के साय बान्धी, उौर उसी के विषय उस ने इसहाक से शपय खाई, 17 और उसी को उस ने याकूब के लिथे विधि करके और इस्राएल के लिथे सदा की वाचा बान्धकर यह कहकर दृढ़ किया, कि 18 मैं कनान देश तुझी को दूंगा, वह बांट में तुम्हारा निज भाग होगा। 19 उस समय तो तुम गिनती में योड़े थे, वरन बहुत ही योड़े और उस देश में परदेशी थे। 20 और वे एक जाति से दूसरी जाति में, और एक जाज्य से दूसरे में फिरते तो रहे, 21 परन्तु उस ने किसी पनुष्य को उन पर अन्धेर करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता या, कि 22 मेरे अभिषिक्तोंको मत छुओ, और न मेरे नबियोंकी हानि करो। 23 हे समस्त पृय्वी के लोगो यहोवा का गीत गाओ। प्रतिदिन उसके किए हुए उद्धार का शुभ समाचार सुनाते रहो। 24 अन्यजातियोंमें उसकी महिमा का, और देश देश के लोगोंमें उसके आश्चर्य-कमॉं का वर्णन करो। 25 क्योंकि यहोवा महान और स्तुति के अति योग्य है, वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है। 26 क्योंकि देश देश के सब देवता मूतिर्यां ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है। 27 उसके चारोंओर विभव और ऐश्वर्य है; उसके स्यान में सामर्य और आनन्द है। 28 हे देश देश के कुलो, यहोवा का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्य को मानो। 29 यहोवा के नाम की महिमा ऐसी मानो जो उसके नाम के योग्य है। भेंट लेकर उसके सम्मुख आाओ, पवित्रता से शोभायमान होकर यहोवा को दणडवत करो। 30 हे सारी पृय्वी के लोगो उसके साम्हने यरयराओ ! जगत ऐसा स्यिर है, कि वह टलने का नहीं। 31 आकाश आनन्द करे और पृय्वी मगन हो, और जाति जाति में लोग कहें, कि यहोवा राजा 32 हुआ है। समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें, मैदान और जो कुछ उस में है सो प्रफुल्लित हों। 33 उसी समय वन के वृझ यहोवा के साम्हने जयजयकार करें, क्योंकि वह पृय्वी का न्याय करने को आनेवाला है। 34 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; उसकी करुणा सदा की है। 35 और यह कहो, कि हे हमारे उद्धार करनेवाले परमेश्वर हमारा उद्धार कर, और हम को इकट्ठा करके अन्यजातियोंसे छुड़ा, कि हम तेरे पवित्र नाम का धन्यवाद करें, और तेरी स्तुति करते हुए तेरे विषय बड़ाई करें। 36 अनादिकाल से अनन्तकाल तक इस्राएल का परमेश्वर यहोवा धन्य है। तब सब प्रजा ने आमीन कहा : और यहोवा की स्तुति की। 37 तब उस ने वहां अर्यात् यहोवा की वाचा के सन्दूक के साम्हने आसाप और उसके भाइयोंको छोड़ दिया, कि प्रतिदिन के प्रयोजन के अनुसार वे सन्दूक के साम्हने नित्य सेवा टहल किया करें ! 38 और अड़सठ भाइयोंसमेत ओबेदेदोम को, और द्वारपालोंके लिथे यदूतून के पुत्र ओबेदेदोम और होसा को छोड़ दिया। 39 फिर उस ने सादोक याजक और उसके भाई याजकोंको यहोवा के निवास के साम्हने, जो गिबोन के ऊंचे स्यान में या, ठहरा दिया, 40 कि वे नित्य सवेरे और सांफ को होमबलि की वेदी पर यहोवा को होमबलि चढ़ाया करें, और उन सब के अनुसार किया करें, जो यहोवा की य्यवस्या में लिखा है, जिसे उस ने इस्राएल को दिया या। 41 और उनके संग उस ने हेमान और यदूतून और दूसरोंको भी जो नाम लेकर चुने गए थे ठहरा दिया, कि यहोवा की सदा की करुणा के कारण उसका धन्यवाद करें। 42 और उनके संग उस ने हेमान और यदूतून को बजानेवालोंके लिथे तुरहियां और फांफें और परमेश्वर के गीत गाने के लिथे बाजे दिए, और यदूतून के बेटोंको फाटक की रखवाली करने को ठहरा दिया। 43 निदान प्रजा के सब लोग अपके अपके घर चले गए, और दाऊद अपके घराने को आशीर्वाद देने लौट गया।
1 जब दाऊद अपके भवन में रहने लगा, तब दाऊद ने नातान नबी से कहा, देख, मैं तो देवदारु के बने हुए घर में रहता हूँ, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक तम्बू में रहता है। 2 नातान ने दाऊद से कहा, जो कुछ तेरे मन में हो उसे कर, क्योंकि परमेश्वर तेरे संग है। 3 उसी दिन रात को परमेश्वर का यह वचन नातान के पास पहुंचा, जाकर मेरे दास दाऊद से कह, 4 यहोवा योंकहता है, कि मेरे निवास के लिथे तू घर बनवाने न पाएगा। 5 क्योंकि जिस दिन से मैं इस्राएलियोंको मिस्र से ले आया, आज के दिन तक मैं कभी घर में नहीं रहा; परन्तु एक तम्बू से दूसरे तम्बू को ओर एक निवास से दूसरे निवास को आया जाया करता हूँ। 6 जहां जहां मैं ने सब इस्राएलियोंके बीच आना जाना किया, क्या मैं ने इस्राएल के न्यायियोंमें से जिनको मैं ने अपक्की प्रजा की चरवाही करने को ठहराया या, किसी से ऐसी बात कभी कहीं, कि तुम लोगोंने मेरे लिथे देवदारु का घर क्योंनहीं बनवाया? 7 सो अब तू मेरे दास दाऊद से ऐसा कह, कि सेनाओं का यहोवा योंकहता है, कि मैं ने तो तुझ को भेड़शाला से और भेड़-बारियोंके पीछे पीछे फिरने से इस मनसा से बुला लिया, कि तू मेरी प्रजा इस्राएल का प्रधान हो जाए; 8 और जहां कहीं तू आया और गया, वहां मैं तेरे संग रहा, और तेरे सब शत्रुओं को तेरे साम्हने से नष्ट किया है। अब मैं तेरे नाम को पृय्वी के बड़े बड़े लोगोंके नामो के समान बड़ा कर दूंगा। 9 और मैं अपक्की प्रजा इस्राएल के लिथे एक स्यान ठहराऊंगा, और उसको स्यिर करूंगा कि वह अपके ही स्यान में बसी रहे और कभी चलायमान न हो; और कुटिल लोग उनको नाश न करने पाएंगे, जैसे कि पहिले दिनोंमें करते थे; 10 उस समय भी जब मैं अपक्की प्रजा इस्राएल के ऊपर न्यायी ठहराता या; सो मैं तेरे सब शत्रुओं को दबा दूंगा। फिर मैं तुझे यह भी बताता हूँ, कि यहोवा तेरा घर बनाथे रखेगा। 11 जब तेरी आयु पूरी हो जाथेगी और तुझे अपके पितरोंके संग जाना पकेगा, तब मैं तेरे बाद तेरे वंश को जो तेरे पुत्रोंमें से होगा, खड़ा करके उसके राज्य को स्यिर करूंगा। 12 मेरे लिए एक घर वही बनाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्यिर रखूंगा। 13 मैं उसका पिता ठहरूंगा और वह मेरा पुत्र ठहरेगा; और जैसे मैं ने अपक्की करुणा उस पर से जो तुझ से पहिले या हटाई, वैसे मैं उस पर से न हटाऊंगा, 14 वरन मैं उसको अपके घर और अपके राज्य में सदैव स्यिर यखूंगा और उसकी राजगद्दी सदैव अटल रहेगी। 15 इन सब बातोंऔर इस दर्शन के अनुसार नातान ने दाऊद को समझा दिया। 16 तब दाऊद राजा भीतर जाकर यहोवा के सम्मुख बैठा, और कहने लगा, हे यहोवा परमेश्वर ! मैं क्या हूँ? और मेरा घराना क्या है? कि तू ने मुझे यहां तक पहुंचाया है? 17 और हे परमेश्वर ! यह तेरी दृष्टि में छोटी सी बात हुई, क्योंकि तू ने अपके दास के घराने के विषय भविष्य के बहुत दिनोंतक की चर्चा की है, और हे यहोवा परमेश्वर ! तू ने मुझे ऊंचे पद का मतुष्य सा जाना है। 18 जो महिमा तेरे दास पर दिखाई गई है, उसके विषय दाऊद तुझ से और क्या कह सकता है? तू तो अपके दास को जानता है। 19 हे यहोवा ! तू ने अपके दास के निमित्त और अपके मन के अनुसार यह बड़ा काम किया है, कि तेरा दास उसको जान ले। 20 हे यहोवा ! जो कुछ हम ने अपके कानोंसे सुना है, उसके अनुसार तेरे तुल्य कोई नहीं, और न तुझे छोड़ और कोई परमेश्वर है। 21 फिर तेरी प्रजा इस्राएल के भी तुल्य कौन है? वह तो पृय्वी भर में एक ही जाति है, उसे परमेश्वर ने जाकर अपक्की निज प्रजा करने को छुड़ाया, इसलिथे कि तू बड़े और डरावने काम करके अपना नाम करे, और अपक्की प्रजा के साम्हने से जो तू ने मिस्र से छुड़ा ली यी, जाति जाति के लोगोंको निकाल दे। 22 क्योंकि तू ने अपक्की प्रजा इस्राएल को अपक्की सदा की प्रजा होने के लिथे ठहराया, और हे यहोवा ! तू आप उसका परमेश्वर ठहरा। 23 इसलिथे, अब हे यहोवा, तू ने जो वचन अपके दास के और उसके घराने के विषय दिया है, वह सदैव अटल रहे, और अपके वचन के अनुसार ही कर। 24 और तेरा नाम सदैव अटल रहे, और यह कहकर तेरी बड़ाई सदा की जाए, कि सेनाओं का यहोवा इस्राएल का परमेश्वर है, वरन वह इस्राएल ही के लिथे परमेश्वर है, और तेरा दास दाऊद का घराना तेरे साम्हने स्यिर रहे। 25 क्योंकि हे मेरे परमेश्वर, तू ने यह कहकर अपके दास पर प्रगट किया है कि मैं तेरा घर बनाए रखूंगा, इस कारण तेरे दास को तेरे सम्मुख प्रार्यना करने का हियाब हुआ है। 26 और अब हे यहोवा तू ही परमेश्वर है, और तू ने अपके दास को यह भलाई करने का वचन दिया है। 27 और अब तू ने प्रसन्न होकर, अपके दास के घराने पर ऐसी आशीष दी है, कि वह तेरे सम्मुख सदैव बना रहे, क्योंकि हे यहोवा, तू आशीष दे चुका है, इसलिथे वह सदैव आशीषित बना रहे।
1 इसके बाद दाऊद ने पलिश्तियोंको जीतकर अपके अधीन कर लिया, और गांवोंसमेत गत नगर को पलिश्तियोंके हाथ से छीन लिया। 2 फिर उस ने मोआबियोंका भी जीत लिया, और मोआबी दाऊद के अधीन होकर भेंट लाने लगे। 3 फिर जब सोबा का राजा हदरेजेर परात महानद के पास अपके राज्य स्यिर करने को जा रहा या, तब दाऊद ने उसको हमात के पास जीत लिया। 4 और दाऊद ने उससे एक हजार रय, सात हजार सवार, और बीस हजार पियादे हर लिए, और दाऊद ने सब रयवाले घेड़ोंके सुम की नस कटवाई, परन्तु एक सौ रयवाले धेड़े बचा रखे। 5 और जब दमिश्क के अरामी, सोबा के राजा हदरेजेर की सहाथता करने को आए, तब दाऊद ने अरामियोंमें से बाईस हजार पुरुष मारे। 6 तब दाऊद ने दमिष्क के अराम में सिपाहियोंकी चौकियां बैठाई; सो अरामी दाऊद के अधीन होकर भेंट ले आने लगे। और जहां जहां दाऊद जाता, वहां वहां यहोवा उसको जय दिलाता या। 7 और हदरेजेर के कर्मचारियोंके पास सोने की जो ढालें यीं, उन्हें दाऊद लेकर यरूशलेम को आया। 8 और हदरेजेर के तिभत और कून नाम नगरोंसे दाऊद बहुत सा पीतल ले आया; और उसी से सुलेमान ने पीतल के हौद और खम्भोंऔर पीतल के पात्रोंको बनवाया। 9 जब हमात के राजा तोऊ ने सुना, कि दाऊद ने सोबा के राजा हदरेजेर की समस्त सेना को जीत लिया है, 10 तब उस ने हदोराम नाम अपके पुत्र को दाऊद राजा के पास उसका कुशल झेम पूछने और उसे बधाई देने को भेजा, इसलिथे कि उस ने हदरेजेर से लड़कर उसे जीत लिया या; ( क्योंकि हदरेजेर तोऊ से लड़ा करता या ) और हदोराम सोने चांदी और पीतल के सब प्रकार के पात्र लिथे हुए आया। 11 इनको दाऊद राजा ने यहोवा के लिथे पवित्र करके रखा, और वैसा ही उस सोने-चांदी से भी किया जिसे सब जातियो से, अर्यात् एदोमियोंमोआबियों, अम्मोनियों, पलिश्तियों, और अमालेकियोंसे प्राप्त किया या। 12 फिर यरूयाह के पुत्र अबीशै ने लान की तराई में अठारह हजार एदोमियोंको मार लिया। 13 तब उस ने एदोम में सिपाहियोंकी चौकियां बैठाई; और सब एदोमी दाऊद के अधीन हो गए। और दाऊद जहां जहां जाता या वहां वहां यहोवा उसको जय दिलाता या। 14 दाऊद तो सारे इस्राएल पर राज्य करता या, और वह अपक्की सब प्रजा के साय न्याय और धर्म के काम करता या। 15 और प्रधान सेनापति सरूयाह का पुत्र योआब या; इतिहास का लिखनेवाला अहीलूद का पुत्र यहोशापात या। 16 प्रधान याजक, अहीतूब का पुत्र सादोक और एब्यातार का पुत्र अबीमेलेक थे; मंत्री शबशा या। 17 करेतियोंऔर पकेतियोंका प्रधान यहोयादा का पुत्र बनायाह या; और दाऊद के पुत्र राजा के पास मुखिथे होकर रहते थे।
1 इसके बाद अम्मोनियोंका राजा नाहाश मर गया, और उसका पुत्र उसके स्यान पर राजा हुआ। 2 तब दाऊद ने यह सोचा, कि हानून के पिता नाहाश ने जो मुझ पर प्रीति दिखाई यी, इसलिथे मैं भी उस पर प्रीति दिखाऊंगा। तब दाऊद ने उसके पिता के विषय शांति देने के लिथे दूत भेजे। और दाऊद के कर्पचारी अम्मोनियोंके देश में हानून के पास उसे शांति देने को आए। 3 परन्तु अम्मोनियोंके हाकिम हानून से कहने लगे, दाऊद ने जो तेरे पास शांति देनेवाले भेजे हैं, वह क्या तेरी समझ में तेरे पिता का आदर करने की मनसा से भेजे हैं? क्या उसके कर्मचारी इसी मनसा से तेरे पास नहीं आए, कि ढूंढ़-ढांढ़ करें और नष्ट करें, और देश का भेद लें? 4 तब हानून ने दाऊद के कर्मचारियोंको पकड़ा, और उनके बाल मुड़वाए, और आधे वस्त्र अर्यात् नितम्ब तक कटवाकर उनको जाने दिया। 5 तब कितनोंने जाकर दाऊद को बता दिया, कि उन पुरुषोंके साय कैसा बर्ताव किया गया, सो उस ने लोगोंको उन से मिलने के लिथे भेजा क्योंकि वे पुरुष बहुत लजाते थे। और राजा ने कहा, जब तक तुम्हारी दाढिय़ां बढ़ न जाएं, तब तक यरीहो में ठहरे रहो, और बाद को लौट आना। 6 जब अम्मोनियोंने देखा, कि हम दाऊद को घिनौने लगते हैं, तब हानून और अम्मोनियोंने एक हजार किक्कार चांदी, अरम्नहरैम और अरम्माका और सोबा को भेजी, कि रय और सवार किराथे पर बुलाएं। 7 सो उन्होंने बत्तीस हजार रय, और माका के राजा और उसकी सेना को किराथे पर बुलाया, और इन्होंने आकर मेदबा के साम्हने, अपके डेरे खड़े किए। और अम्मोनी अपके अपके नगर में से इकट्ठे होकर लड़ने को आए। 8 यह सुनकर दाऊद ने योआब और शूरवीरोंकी पूरी सेना को भेजा। 9 तब अम्मोनी निकले और नगर के फाटक के पास पांति बान्धी, और जो राजा आए थे, वे उन से अलग मैदान में थे। 10 यह देखकर कि आगे पीछे दोनोंओर हमारे विरुद्ध पांति बन्धी हैं, योआब ने सब बड़े बड़े इस्राएली वीरोंमें से किततोंको छांटकर अरामियोंके साम्हने उनकी पांति बन्धाई; 11 और शेष लोगोंको अपके भाई अबीशै के हाथ सौंप दिया, और उन्होंने अम्मोनियोंके साम्हने पांति बान्धी। 12 और उस ने कहा, यदि अरामी मुझ पर प्रबल होने लगें, तो तू मेरी सहाथता करना; और यदि अम्मोनी तुझ पर प्रबल होने लगें, तो मैं तेरी सहाथता करूंगा। 13 तू हियाब बान्ध और हम सब अपके लोगोंऔर अपके परमेश्वर के नगरोंके निमित्त पुरुषार्य करें; और यहोवा जैसा उसको अच्छा लगे, वैसा ही करेगा। 14 तब योआब और जो लोग उसके साय थे, अरामियोंसे युद्ध करने को उनके साम्हने गए, और वे उसके साम्हने से भागे। 15 यह देखकर कि अरामी भाग गए हैं, अम्मोनी भी उसके भाई अबीशै के साम्हने से भागकर नगर के भीतर घुसे। तब योआब यरूशलेम को लौट आया। 16 फिर यह देखकर कि वे इस्राएलियोंसे हार गए हैं अरामियोंने दूत भेजकर महानद के पार के अरामियोंको बुलवाया, और हदरेजेर के सेनापति शोपक को अपना प्रधान बनाया। 17 इसका समाचार पाकर दाऊद ने सब इस्राएलियोंको इकट्ठा किया, और यरदन पार होकर उन पर चढ़ाई की और उनके विरुद्ध पांति बन्धाई, तब वे उस से लड़ने लगे। 18 परन्तु अरामी इस्राएलियोंसे भागे, और दाऊद ने उन में से सात हजार रयियोंऔर चालीस हजार प्यादोंको मार डाला, और शोपक सेनापति को भी मार डाला। 19 यह देखकर कि वे इस्राएलियोंसे हार गए हैं, हदरेजेर के कर्मचारियोंने दाऊद से संधि की और उसके अधीन हो गए; और अरामियोंने अम्मोनियोंकी सहाथता फिर करनी न चाही।
1 फिर नथे वर्ष के आरम्भ में जब राजा लोग युद्ध करने को निकला करते हैं, तब योआब ने भारी सेना संग ले जाकर अम्मोनियोंका देश उजाड़ दिया और आकर रब्बा को घेर लिया; परन्तु दाऊद यरूशलेम में रह गया; और योआब ने रब्बा को जीतकर ढा दिया। 2 तब दाऊद ने उनके राजा का मुकुट उसके सिर से उतारकर क्या देखा, कि उसका तौल किक्कार भर सोने का है, और उस में मणि भी जड़े थे; और वह दाऊद के सिर पर रखा गया। फिर उस ने उस नगर से बहुत सामान लूट में पाया। 3 और उस ने उसके रहनेवालोंको निकालकर आरोंऔर लोहे के हेंगोंऔर कुल्हाडिय़ोंसे कटवाया; और अम्मोनियोंके सब नगरोंके साय भी दाऊद ने वैसा ही किया। तब दाऊद सब लोगोंसमेत यरूशलेम को लौट गया। 4 इसके बाद गेजेर में पलिश्तियोंके साय युद्ध हुआ; उस समय हूशाई सिब्बकै ने सिप्पै को, जो रापा की सन्तान या, मार डाला; और वे दब गए। 5 और पलिश्तियोंके साय फिर युद्ध हुआ; उस में याईर के पुत्र एल्हानान ने गती गोल्यत के भाई लहमी को मार डाला, जिसके बर्छे की छड़, जुलाहे की डोंगी के समान यी। 6 फिर गत में भी युद्ध हुआ, और वहां एक बड़े डील का पुरुष या, जो रापा की सन्तान या, और उसके एक एक हाथ पांव में छ: छ: उंगलियां अर्यात् सब मिलाकर चौबीस उंगलियां यीं। 7 जब उस ने इस्राएलियोंको ललकारा, तब दाऊद के भाई शिमा के पुत्र योनातान ने उसको मारा। 8 थे ही गत में रापा से उत्पन्न हुए थे, और वे दाऊद और उसके सेवकोंके हाथ से मार डाले गए।
1 और शैतान ने इस्राएल के विरुद्ध उठकर, दाऊद को उसकाया कि इस्राएलियोंकी गिनती ले। 2 तब दाऊद ने योआब और प्रजा के हाकिमोंसे कहा, तुम जाकर बर्शेबा से ले दान तक के इस्राएल की गिनती लेकर मुझे बताओ, कि मैं जान लूं कि वे कितने हैं। 3 योआब ने कहा, यहोवा की प्रजा के कितने ही क्योंन हों, वह उनको सौ गुना बढ़ा दे; परन्तु हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! क्या वे सब राजा के अधीन नहीं हैं? मेरा प्रभु ऐसी बात क्योंचाहता है? वह इस्राएल पर दोष लगने का कारण क्योंबने? 4 तौभी राजा की आज्ञा योआब पर प्रबल हुई। तब योआब विदा होकर सारे इस्राएल में धूमकर यरूशलेम को लौट आया। 5 तब योआब ने प्रजा की गिनती का जोड़, दाऊद को सुनाया और सब तलवारिथे पुरुष इस्राएल के तो ग्यारह लाख, और यहूदा के चार लाख सत्तर हजार ठहरे। 6 परन्तु उन में योआब ने लेवी और बिन्यामीन को न गिना, क्योंकि वह राजा की आज्ञा से घुणा करता या 7 और यह बात परमेश्वर को बुरी लगी, इसलिथे उस ने इस्राएल को मारा। 8 और दाऊद ने परमेश्वर से कहा, यह काम जो मैं ने किया, वह महापाप है। परन्तु अब अपके दास का अधर्म दूर कर; मुझ से तो बड़ी मूर्खता हुई है। 9 तब यहोवा ने दाऊद के दशीं गाद से कहा, 10 जाकर दाऊद से कह, कि यहोवा योंकहता है, कि मैं तुझ को तीन विपत्तियां दिखाता हूँ, उन में से एक को चुन ले, कि मैं उसे तुझ पर डालूं। 11 तब गाद ने दाऊद के पास जाकर उस से कहा, यहोवा योंकहता है, कि जिसको तू चाहे उसे चुन ले : 12 या तो तीन वर्ष का काल पके; वा तीन महीने तक तेरे विरोधी तुझे नाश करते रहें, और तेरे शत्रुऔं की तलवार तुझ पर चलती रहे; वा तीन दिन तक यहोवा की तलवार चले, अर्यात् मरी देश में फैले और यहोवा का दूत इस्राएली देश में चारोंओर विनाश करता रहे। अब सोच, कि मैं अपके भेजनेवाले को क्या उत्तर दूं। 13 दाऊद ने गाद से कहा, मैं बड़े संकट में पड़ा हूँ; मैं यहोवा के हाथ में पड़ूं, क्योंकि उसकी दया बहुत बड़ी है; परन्तु मनुष्य के हाथ में मुझे पड़ना न पके। 14 तब यहोवा ने इस्राएल में मरी फैलाई, और इस्राएल में सत्तर हजार पुरुष मर मिटे। 15 फिर परमेश्वर ने एक दूत यरूशलेम को भी उसे नाश करने को भेजा; और वह नाश करने ही पर या, कि यहोवा दु:ख देने से खेदित हुआ, और नाश करनेवाले दूत से कहा, बस कर; अब अपना हाथ खींच ले। और यहोवा का दूत यबूसी ओर्नान के खलिहान के पास खड़ा या। 16 और दाऊद ने आंखें उठाकर देखा, कि यहोवा का दूत हाथ में खींची हुई और यरूशलेम के ऊपर बढ़ाई हुई एक तलवार लिथे हुए आकाश के बीच खड़ा है, तब दाऊद और पुरनिथे टाट पहिने हुए मुंह के बल गिरे। 17 तब दाऊद ने परमेश्वर से कहा, जिस ने प्रजा की गिनती लेने की आज्ञा दी यी, वह क्या मैं नहीं हूँ? हां, जिस ने पाप किया और बहुत बुराई की है, वह तो मैं ही हूँ। परन्तु इन भेड़-बकरियोंने क्या किया है? इसलिथे हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! तेरा हाथ मेरे पिता के घराने के विरुद्ध हो, परन्तु तेरी प्रजा के विरुद्ध न हो, कि वे मारे जाएं। 18 तब यहोवा के दूत ने गाद को दाऊद से यह कहने की आज्ञा दी, कि दाऊद चढ़कर यबूसी ओर्नान के खलिहान में यहोवा की एक वेदी बनाए। 19 गाद के इस वचन के अनुसार जो उस ने यहोवा के नाम से कहा या, दाऊद चढ़ गया। 20 तब ओर्नान ने पीछे फिर के दूत को देखा, और उसके चारोंबेटे जो उसके संग थे छिप गए, ओर्नान तो गेहूं दांवता या। 21 जब दाऊद ओर्नान के पास आया, तब ओर्नान ने दृष्टि करके दाऊद को देखा और खलिहान से बाहर जाकर भूमि तक फुककर दाऊद को दणडवत किया। 22 तब दाऊद ने ओर्नान से कहा, उस खलिहान का स्यान मुझे दे दे, कि मैं उस पर यहोवा को एक वेदी बनाऊं, उसका पूरा दाम लेकर उसे पुफ को दे, कि यह विपित्त प्रजा पर से दूर की जाए। 23 ओर्नान ने दाऊद से कहा, इसे ले ले, और मेरे प्रभु राजा को जो कुछ भाए वह वही करे; सुन, मैं तुझे होमबलि के लिथे बैल और ईधन के लिथे दांबने के हयियार और अन्नबलि के लिथे गेहूं, यह सब मैं देता हूँ। 24 राजा दाऊद ने ओर्नान से कहा, सो नहीं, मैं अवश्य इसका पूरा दाम ही देकर इसे मोल लूंगा; जो तेरा है, उसे मैं यहोवा के लिथे नहीं लूंगा, और न सेंतमेंत का होमबलि चढ़ाऊंगा। 25 तब दाऊद ने उस स्यान के लिथे ओर्नान को छ: सौ शेकेल सोना तौलकर दिया। 26 तब दाऊद ने वहां यहोवा की एक वेदी बनाई और होमबलि और मेलबलि चढ़ाकर यहोवा से प्रार्यना की, और उस ने होपबलि की वेदी पर स्वर्ग से आग गिराकर उसकी सुन ली। 27 तब यहोवा ने दूत को आज्ञा दी; और उस ने अपक्की तलवार फिर म्यान में कर ली। 28 यह देखकर कि यहोवा ने यबूसी ओर्नान के खलिहान में मेरी सुन ली है, दाऊद ने उसी समय वहां बलिदान किया। 29 यहोवा का निवास जो मूसा ने जंगल में बनाया या, और होमबलि की वेदी, थे दोनोंउस समय गिबोन के ऊंचे स्यान पर थे। 30 परन्तु दाऊद परमेश्वर के पास उसके साम्हने न जा सका, क्योंकि वह यहोवा के दूत की तलवार से डर गया या।
1 तब दाऊद कहने लगा, यहोवा परमेश्वर का भवन यही है, और इस्राएल के लिथे होमबलि की वेदी यही है। 2 तब दाऊद ने इस्राएल के देश में जो परदेशी थे उनको इकट्ठा करने की आज्ञा दी, और परमेश्वर का भवन बनाने को पत्यर गढ़ने के लिथे राज ठहरा दिए। 3 फिर दाऊद ने फाटकोंके किवाड़ोंकी कीलोंऔर जोड़ोंके लिथे बहुत सा लोहा, और तौल से बाहर बहुत पीतल, 4 और गिनती से बाहर देवदार के पेड़ इकट्ठे किए; क्योंकि सीदोन और सोर के लोग दाऊद के पास बहुत से देवदार के पेड़ लाए थे। 5 और दाऊद ने कहा, मेरा पुत्र सुलैमान सुकुमार और लड़का है, और जो भवन यहोवा के लिथे बनाना है, उसे अत्यन्त तेजोमय और सब देशोंमें प्रसिद्ध और शोभायमान होना चाहिथे; इसलिथे मैं उसके लिथे तैयारी करूंगा। सो दाऊद ने मरने से पहिले बहुत तैयारी की। 6 फिर उस ने अपके पुत्र सुलैमान को बुलाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिथे भवन बनाने की आज्ञा दी। 7 दाऊद ने अपके पुत्र सुलैमान से कहा, मेरी मनसा तो यी, कि अपके परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाऊं। 8 परन्तु यहोवा का यह वचन मेरे पास पहुंचा, कि तू ने लोहू बहुत बहाथा और बढ़े बड़े युद्ध किए हैं, सो तू मेरे नाम का भवन न बनाने पाएगा, क्योंकि तू ने भूमि पर मेरी दृष्टि में बहुत लोहू बहाथा है। 9 देख, तुझ से एक पुत्र उत्पन्न होगा, जो शान्त पुरुष होगा; और मैं उसको चारोंओर के शत्रुऔं से शान्ति दूंगा; उसका नाम तो सुलैमान होगा, और उसके दिनोंमें मैं इस्राएल को शान्ति और चैन दूंगा। 10 वही मेरे नाम का भवन बनाएगा। और वही मेरा पुत्र ठहरेगा और मैं उसका पिता ठहरूंगा, और उसकी राजगद्दी को मैं इस्राएल के ऊपर सदा के लिथे स्यिर रखूंगा। 11 अब हे मेरे पुत्र, यहोवा तेरे संग रहे, और तू कृतार्य होकर उस वचन के अनुसार जो तेरे परमेश्वर यहोवा ने तेरे विषय कहा है, उसका भवन बनाना। 12 अब यहोवा तुझे बुद्धि और समझ दे और इस्राएल का अधिक्कारनेी ठहरा दे, और तू अपके परमेश्वर यहोवा की य्यवस्या को मानता रहे। 13 तू तब ही कृतार्य होगा जब उन विधियोंऔर नियमोंपर चलने की चौकसी करेगा, जिनकी आज्ञा यहोवा ने इस्राएल के लिथे मूसा को दी यी। हियाब बान्ध और दृढ़ हो। मत डर; और तेरा मन कच्चा न हो। 14 सुन, मैं ने अपके क्लेश के समय यहोवा के भवन के लिथे एक लाख किक्कार सोना, और दस लाख किक्कार चान्दी, और पीतल और लोहा इतना इकट्ठा किया है, कि बहुतायत के कारण तौल से बाहर है; और लकड़ी और पत्यर मैं ने इकट्ठे किए हैं, और तू उनको बढ़ा सकेगा। 15 और तेरे पास बहुत कारीगर हैं, अर्यात् पत्यर और लकड़ी के काटने और गढ़नेवाले वरन सब भांति के काम के लिथे सब प्रकार के प्रवीण पुरुष हैं। 16 सोना, चान्दी, पीतल और लोहे की तो कुछ गिनती नहीं है, सो तू उस काम में लग जा ! यहोवा तेरे संग नित रहे। 17 फिर दाऊद ने इस्राएल के सब हाकिमोंको अपके पुत्र सुलैमान की सहाथता करने की आज्ञाा यह कहकर दी, 18 कि क्या तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे संग नहीं है? क्या उस ने नुम्हें चारोंओर से विश्रम नहीं दिया? उस ने तो देश के निवासिक्कों मेरे वश में कर दिया है; और देश यहोवा और उसकी प्रजा के साम्हने दबा हुआ है। 19 सब तन मन से अपके परमेश्वर यहोवा के पास जाया करो, और जी लगाकर यहोवा परमेश्वर का पवित्रस्यान बनाना, कि तुम यहोवा की वाचा का सन्दूक और परमेश्वर के पवित्र पात्र उस भवन में लाओ जो यहोवा के नाम का बननेवाला है।
1 दाऊद तो बूढ़ा वरन बहुत बूढा हो गया या, इसलिथे उस ने अपके पुत्र सुलैमान को इसगाएल पर राजा नियुक्त कर दिया। 2 तब उस ने इस्राएल के सब हाकिमोंऔर याजकोंऔर लेमियोंको इकट्ठा किया। 3 और जितने लेवीय तीस वर्ष के और उस से अधिक अवस्या के थे, वे गिने एए, और एक एक पुरुष के गिनने से उनकी गिनती अड़तीस हजार हुई। 4 इन में से चौबीस हजार तो यहोवा के भवन का काम चलाने के लिथे नियुक्त हुए, और छ: हजार सरदार और न्यायी। 5 और चार हजार द्वारपाल नियुक्त हुए, और चार हजार उन बाजोंसे यहोवा की स्तुति करने के लिथे ठहराए गए जो दाऊद ने स्तुति करने के लिथे बनाए थे। 6 फिर दाऊद ने उनको गेशॉन, कहात और मरारी नाम लेवी के पुत्रोंके अनुसार दलोंमें अलग अलग कर दिया। 7 गेशॉनियोंमें से तो लादान और शिमी थे। 8 और लादान के पुत्र : सरदार यहीएल, फिर जेताम और योएल थे तीन थे। 9 और शिमी के पुत्र : शलेमीत, हजीएल और हारान से तीन थे। लादान के कुल के पूर्वजोंके घरानोंके मुख्य पुरुष थे ही थे। 10 फिर शिमी के पुत्र : यहत, जीना, यूश, और वरीआ के पुत्र शिमी यही चार थे। 11 यहत मुख्य या, और जीजा दूसरा; यूश और बरीआ के वहुत बेटे न हुए, इस कारण वे सब मिलकर पितरोंका एक ही घराना ठहरे। 12 कहात के पुत्र : अम्राम, यिसहार, हेब्रोन और उज्जीएल चार। अम्राम के पुत्र : हारून और मूसा। 13 हारून तो इसलिथे अलग किया गया, कि वह और उसके सन्तान सदा परमपवित्र वस्तुओं को पवित्र ठहराएं, और सदा यहोवा के सम्मुख धूप जलाया करें और उसकी सेवा टहल करें, और उसके नाम से आशीर्वाद दिया करें। 14 परन्तु परमेश्वर के भक्त मूसा के पुत्रोंके नाम लेवी के गोत्र के बीच गिने गए। 15 मूसा के पुत्र, गेशॉम और एलीएजेर। 16 और गेशॉम का पुत्र शबूएल मुख्य या। 17 और एलीएजेर के पुत्र : रहब्याह मुख्य; और एलीएजेर के और कोई पुत्र न हुआ, परन्तु रहब्याह के बहुत से बेटे हुए। 18 यिसहार के पुत्रें में से शलोमीत मुख्य ठहरा। 19 हेब्रोन के पुत्र : यरीय्याह मुख्य, दूसरा अमर्याह, तीसरा यहजीएल, और चौया यकमाम या। 20 उज्जीएल के पुत्रें में से मुख्य तो मीका और दूसरा यिश्शिय्याह या। 21 मरारी के पुत्र : महली और मूशी। महली के पुत्र : एलीआजर और कीश थे। 22 एलीआजर पुत्रहीन मर गया, उसके केवल बेटियां हुई; सो कीश के पुत्रोंने जो उनके भाई थे उन्हें ब्याह लिया। 23 मूशी के पुत्र : महली; एदोर और यरेमोत यह तीन थे। 24 लेवीय पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुष थे ही थे, थे नाम ले लेकर, एक एक पुरुष करके गिने गए, और बीस वर्ष की वा उस से अधिक अवस्या के थे और यहोवा के भवन में सेवा टहल करते थे। 25 क्योंकि दाऊद ने कहा, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अपक्की प्रजा को विश्रम दिया है, और वह तो यरूशलेम में सदा के लिथे बस गया है। 26 और लेवियोंको निवास और उस की उपासना का सामान फिर उठाना न पकेगा । 27 क्योंकि दाऊद की पिछली आज्ञाओं के अनुसार बीस वर्ष वा उस से अधिक अवस्या के लेवीय गिने गए। 28 क्योंकि उनका काम तो हारून की सन्तान की सेवा टहल करना या, अर्यात यह कि वे आंगनोंऔर कोठरियोंमें, और सब पवित्र वस्तुओं के शुद्ध करने में और परमेश्वर के भवन की उपासना के सब कामोंमें सेवा टहल करें। 29 और भेंट की रोटी का, अन्नबलियोंके मैदे का, और अखमीरी पपडिय़ोंका, और तवे पर बनाए हुए और सने हुए का, और मापके और तौलने के सब प्रकार का काम करें। 30 और प्रति भोर और प्रति सांफ को यहोवा का धन्यवाद और उसकी स्तुति करने के लिथे खड़े रहा करें। 31 और विश्रमदिनोंऔर नथे चान्द के दिनों, और नियत पय्वॉं में गिनती के नियम के अनुसार नित्य यहोवा के सब होपबलियोंको बढ़ाएं। 32 और यहोवा के भवन की उपासना के विषय मिलापवाले नम्बू और पवित्रस्यान की रझा करें, और अपके भाई हारूनियोंके सौंपे हुए काम को चौकसी से करें।
1 फिर हारून की सन्तान के दल थे थे। हारून के पुत्र तो नादाब, अबीहू, एलीआजर और ईतामार थे। 2 परन्तु नादाब और अबीहू अपके पिता के साम्हने पुत्रहीन मर गए, इस लिथे याजक का काम एलीआजर और ईतामार करते थे। 3 और दाऊद ने एलीआजर के वंश के सादोक और ईतामार के वंश के अहांमेलेक की सहाथता से उनको अपक्की अपक्की सेवा के अनुसार दल दल करके बांट दिया। 4 और एलीआजर के वंश के मुख्य पुरुष, ईतामार के वंश के मुख्य पुरुषोंसे अधिक थे, और वे योंबांटे गए अर्यात् एलीआजर के वंश के पितरोंके घरानोंके सोलह, और ईतामार के वंश के पितरोंके घरानोंके आठ मुख्य पुरुष थे। 5 तब वे चिट्ठी डालकर बराबर बराबर बांटे गए, क्योंकि एलीआजर और ईतामार दोनोंके वंशोंमें पवित्रस्यान के हाकिम और परमेश्वर के हाकिम नियुक्त हुए थे। 6 और नतनेल के पुत्र शमायाह ने जो लेवीय या, उनके नाम राजा और हाकिमोंऔर सादोक याजक, और एब्यातार के पुत्र अहीमेलेक और याजकोंऔर लेवियोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुषोंके साम्हने लिखे; अर्यात् पितरोंका एक घराना तो एलीआजर के वंश में से और एक ईतामार के वंश में से लिया गया। 7 पहिली चिट्ठी तो यहोयारीब के, और दूसरी यदायाह, 8 तीसरी हारीम के, चौयी सोरीम के, 9 पांचक्कीं मल्किय्याह के, छठवीं मिय्यामीन के, 10 सातवीं हक्कोस के, आठवीं अबिय्याह के, 11 नौवीं थेशू के, दसवीं शकन्याह के, 12 ग्यारहवीं एल्याशीब के, बारहवीं याकीम के, 13 तेरहवीं हुप्पा के, चौदहवीं थेसेबाब के, 14 पन्द्रहवीं बिल्गा के, लोलहवीं इम्मेर के, 15 सतरहवीं हेजीर के, अठारहवीं हप्पित्सेस के, 16 उन्नीसवीं पतह्याह के, बीसवीं यहेजकेल के, 17 इक्कीसवीं याकीन के, बाईसवीं गामूल के, 18 तेईसवीं दलायाह के, और चौबीसवीं साज्याह के नाम पर निकलीं। 19 उनकी सेवकाई के लिथे उनका यही नियम ठहराया गया कि वे अपके उस नियम के अनुसार जो इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की आज्ञा के अनुसार उनके मूलपुरुष हारून ने चलाया या, यहोवा के भवन में जाया करें। 20 बचे हुए लेवियोंमें से अम्राम के वंश में से शूबाएल, शूबाएल के वंश में से थेहदयाह। 21 बचा रहब्याह, सोरहब्याह, के वंश में से यिश्शिय्याह मुख्य या। 22 इसहारियोंमें से शलोमोत और हालोमोत के वंश में से यहत। 23 और हेब्रोन के वंश में से मुख्य तो यरिय्याह, दूसरा अमर्याह, तीसरा यहजीएल, और चौया यकमाम। 24 उज्जीएल के वंश में से मीका और मीका के वंश में से शामीर। 25 मीका का भाई यिश्शिय्याह, यिश्शिय्याह के वंश में से जकर्याह। 26 मरारी के पुत्र महली और मूशी और याजिय्याह का पुत्र बिनो या। 27 मरारी के पुत्र : याजिय्याह से बिनो और शोहम, जक्कू और इब्री थे। 28 महली से, एलीआजर जिसके कोई पुत्र न या। 29 कीश से कीश के वंश में यरह्योल। 30 और मूशी के पुत्र, महली, एदेर और यरीमोत। अपके अपके पितरो के घरानोंके अनुसार थे ही लेवीय सन्तान के थे। 31 इन्होंने भी अपके भाई हारून की सन्तानोंकी नाई दाऊद राजा और सादोक और अहीमेलेक और याजकोंऔर लेवियोंके पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुषोंके साम्हने चिट्ठियां डालीं, अर्यात् मुख्य पुरुष के पितरोंका घराना उसके छोटे भाई के पितरोंके घराने के बराबर ठहरा।
1 फिर दाऊद और सेनापतियोंने आसाप, हेमान और यदूतून के कितने पुत्रोंको सेवकाई के लिथे अलग किया कि वे वीणा, सारंगी और फांफ बजा बजाकर नबूवत करें। और इस सेवकाई के काम करनेवाले मनुष्योंकी गिनती यह यी : 2 अर्यात् आसाप के पुत्रोंमें से तो जक्कूर, योसेप, नतन्याह और अशरेला, आसाप के थे पुत्र आसाप ही की आज्ञा में थे, जो राजा की आज्ञा के अनुसार नबूवत करता या। 3 फिर यदूतून के पुत्रोंमें से गदल्याह, सरीयशायाह, हसब्याह, मत्तित्याह, थे ही छ: अपके पिता यदूतून की आज्ञा में होकर जो यहोवा का धन्यवाद और स्तुति कर करके नबूवत करता या, वीणा बजाते थे। 4 और हेमान के पुत्रोंमें से, मुक्किय्याह, मत्तन्याह, लज्जीएल, शबूएल, यरीमोत, हनन्याह, हनानी, एलीआता, गिद्दलती, रोममतीएजेर, योशबकाशा, मल्लोती, होतीर और महजीओत। 5 परमेश्वर की प्रतिज्ञानुकूल जो उसका नाम बढ़ाने की यी, थे सब हेमान के पुत्र थे जो राजा का दशीं या; क्योंकि परमेश्वर ने हेमान को चौदह बेटे और तीन बेटियां दीं यीं। 6 थे सब यहोवा के भवन में गाने के लिथे अपके अपके पिता के अधीन रहकर, परमेश्वर के भवन, की सेवकाई में फांफ, सारंगी और वीणा बजाते थे। और आसाप, यदूतून और हेमान राजा के अधीन रहते थे। 7 इन सभोंकी गिनती भाइयोंसमेत जो यहोवा के गीत सीखे हुए और सब प्रकार से निपुण थे, दो सौ अठासी यी। 8 और उन्होंने क्या बड़ा, क्या छोटा, क्या गुरू, क्या चेला, अपक्की अपक्की बारी के लिथे चिट्ठी डाली। 9 और पहिली चिट्ठी आसाप के बेटोंमें से योसेप के नाम पर निकली, दूसरी गदल्याह के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 10 तीसरी जक्कूर के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 11 चौयी यिस्री के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 12 पांचक्कीं नतन्याह के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 13 छठीं बुक्किय्याह के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 14 सातवीं यसरेला के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 15 आठवीं यशायाह के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 16 नौवीं मतन्याह के नाम पर निकली, जिसके पुत्र और भाई समेत बारह थे। 17 दसवीं शिमी के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 18 ग्यारहवीं अजरेल के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 19 बारहवीं हशब्याह के नाम पर निकली, जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 20 तेरहवी शूबाएल के नाम पर निकली, जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 21 चौदहवीं मत्तिय्याह के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 22 पन्द्रहवीं यरेमोत के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 23 सोलहवीं हनन्याह के नाम पर निकली, जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 24 सत्रहवीं योशबकाशा के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 25 अठारहवीं हरानी के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 26 उन्नीसवीं मल्लोती के नाम पर निकली, जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 27 बीसवीं इलिय्याता के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 28 इक्कीसवीं होतीर के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 29 बाईसवीं गिद्दलती के नाम पर तिकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 30 तेईसवीं महजीओत के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे। 31 और चौबीसवीं चिट्ठी रोममतीएजेर के नाम पर निकली जिसके पुत्र और भाई उस समेत बारह थे।
1 फिर द्वारपालोंके दल थे थे : कोरहियोंमें से तो मशेलेम्याह, जो कोरे का पुत्र और आसाप के सन्तानोंमेंसे या। 2 और मशेलेम्याह के पुत्र हुए, अर्यात् उसका जेठा जकर्याह दूसरा यदीएल, तीसरा जवद्याह, 3 चौया यतीएल, पांचवां एलाम, छठवां यहोहानान और सातवां एल्यहोएनै। 4 फिर ओबेदेदोम के भी पुत्र हुए, उसका जेठा शमायाह, दूसरा यहोजाबाद, तीसरा योआह, चौया साकार, पांचवां नतनेल, 5 छठवां अम्मीएल, सातवां इस्साकार और आठवां पुल्लतै, क्योंकि परमेश्वर ने उसे आशीष दी यी। 6 और उसके पुत्र शमायाह के भी पुत्र उत्पन्न हुए, जो शूरवीर होने के कारण अपके पिता के घराने पर प्रभुता करते थे। 7 शमायाह के पुत्र थे थे, अर्यात् ओती, रपाएल, ओबेद, एलजाबाद और उनके भाई एलीहू और समक्याह बलवान पुरुष थे। 8 थे सब आबेदेदोम की सन्तान में से थे, वे और उनके पुत्र और भाई इस सेवकाई के लिथे बलवान और शक्तिमान थे; थे ओबेदेदोमी बासठ थे। 9 और मशेलेम्याह के पुत्र और भाई अठारह थे, जो बलवान थे। 10 फिर मरारी के वंश में से होसा के भी पुत्र थे, अर्यात् मुख्य तो शिम्री ( जिसको जेठा न होने पर भी उसके पिता ने मुख्य ठहराया ), 11 दूसरा हिल्किय्याह, तीसरा तबल्याह और चौया जकर्याह या; होसा के सब पुत्र और भाई मिलकर तेरह थे। 12 द्वारपालोंके दल इन मुख्य पुरुषोंके थे, थे अपके भाइयोंके बराबर ही यहोवा के भवन में सेवा टहल करते थे। 13 इन्होंने क्या छोटे, क्या बड़े, अपके अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार एक एक फाटक के लिथे चिट्ठी डाली। 14 पूर्व की ओर की चिट्ठी शेलेम्याह के नाम पर निकली। तब उन्होंने उसके पुत्र जकर्याह के नाम की चिट्ठी डाली ( वह बुद्धिमान मंत्री या ) और चिट्ठी उत्तर की ओर के लिथे निकली। 15 दक्खिन की ओर के लिथे ओबोदेदोम के नाम पर चिट्ठी निकली, और उसके बेटोंके नाम पर खजाने की कोठरी के लिथे। 16 फिर शुप्पीम और होसा के नामोंकी चिट्ठी पश्चिम की ओर के लिथे निकली, कि वे शल्लेकेत नाम फाटक के पास चढ़ाई की सड़क पर आम्हने साम्हने चौकीदारी किया करें। 17 पूर्व ओर जो छ: लेवीय थे, उत्तर की ओर प्रतिदिन चार, दक्खिन की ओर प्रतिदिन चार, और खजाने की कोठरी के पास दो ठहरे। 18 पश्चिम ओर के पर्बार नाम स्यान पर ऊंची सड़क के पास तो चार और पर्बार के पास दो रहे। 19 थे द्वारपालोंके दल थे, जिन में से कितने तो कोरह के थे और कितने मरारी के वंश के थे। 20 फिर लेवियोंमें से अहिय्याह परमेश्वर के भवन और पवित्र की हुई वस्तुओं, दोनोंके भण्डारोंका अधिक्कारनेी नियुक्त हुआ। 21 थे लादान की सन्तान के थे, अर्यात् गेर्शेनियोंकी सन्तान जो लादान के कुल के थे, अर्यात् लादान और गेर्शेनी के पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुष थे, अर्यात् यहोएली । 22 यहोएली के पुत्र थे थे, अर्यात् जेताम और उसका भाई योएल जो यहोवा के भवन के खजाने के अधिक्कारनेी थे। 23 अम्रामियों, यिसहारियों, हेब्रोनियोंऔर उज्जीएलियोंमें से। 24 और शबूएल जो मूसा के पुत्र गेर्शेम के वंश का या, वह खजानोंका मुख्य अधिक्कारनेी या। 25 और उसके भाइयोंका वृत्तान्त यह है : एलीआजर के कुल में उसका पुत्र रहब्याह, रहब्याह का पुत्र यशायाह, यशायाह का पुत्र योराम, योराम का पुत्र जिक्री, और जिक्री का पुत्र शलोमोत या। 26 यही शलोमोत अपके भाइयोंसमेत उन सब पवित्र की हुई पस्तुओं के भण्डारोंका अधिक्कारनेी या, जो राजा दाऊद और पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुषोंऔर सहस्रपतियोंऔर शतपतियोंऔर मुख्य सेनापतियोंने पवित्र की यीं। 27 जो लूट लड़ाइयोंमें मिलती यी, उस में से उन्होंने यहोवा का भवन दृढ़ करने के लिथे कुछ पवित्र किया। 28 वरन जितना शमूएल दशीं, कीश के पुत्र शाऊल, नेर के पुत्र अब्नेर, और सरूयाह के पुत्र योआब ने पवित्र किया या, और जो कुछ जिस किसी ने पवित्र कर रखा या, वह सब शलोमोत और उसके भाइयोंके अधिक्कारने में या। 29 यिसहारियोंमें से कनन्याह और उसके पुत्र, इस्राएल के देश का काम अर्यात् सरदार और न्यायी का काम करने के लिथे नियुक्त हुए। 30 और हेब्रोनियोंमें से हशय्याह और उसके भाई जो सत्रह सौ बलवान पुरुष थे, वे यहोवा के सब काम और राजा की सेवा के विषय यरदन की पश्चिम ओर रहनेवाले इस्राएलियोंके अणिकारी ठहरे। 31 हेब्रोनियोंमें से यरिय्याह मुख्य या, अर्यात् हेब्रोनियोंकी पीढ़ी पीढ़ी के पितरोंके घरानोंके अनुसार दाऊद के राज्य के चालीसवें वर्ष में वे ढूंढ़े गए, और उन में से कई शूरवीर गिलाद के याजेर में मिले। 32 और उसके भाई जो वीर थे, पितरोंके घरानोंके दो हाजार सात सौ मुख्य पुरुष थे, इनको दाऊद राजा ने परमेश्वर के सब विषयोंऔर राजा के विषय में रूबेनियों, गादियोंऔर मनश्शेके आधे गोत्र का अधिक्कारनेी ठहराया।
1 इस्राएलियो की गिनती, अर्यात् मितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुषोंऔर यहस्रपतियोंऔर शतपतियोंऔर उनके सरदारोंकी गिनती जो वर्ष भर के महीने महीने उपस्यित होने और छुट्टी पानेवाले दलोंके सब विषयोंमें राजा की सेवा टहल करते थे, एक एक दल में चौबीस हजार थे। 2 पहिले महीने के लिथे पहिले दल का अधिक्कारनेी जब्दीएल का पुत्र याशोबाम नियुक्त हुआ; और उसके दल में चौबीस हजार थे। 3 वह पेरेस के वंश का या और पहिले महीने में सब सेनापतियोंका अधिक्कारनेी या। 4 और दूसरे महीने के दल का अधिक्कारनेी दोदै नाम एक अहोही या, और उसके दल का प्रधान मिक्लोत या, और उसके दल में चौबीस हजार थे। 5 तीसरे महीने के लिथे तीसरा सेनापति यहोयादा याजक का पुत्र बनायाह या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 6 यह वही बनायाह है, जो तीसोंशूरोंमें वीर, और तीसोंमें श्रेष्ट भी या; और उसके दल में उसका पुत्र अम्मीजाबाद या। 7 चौथे महीने के लिथे चौया सेनापति योआब का भाई असाहेल या, और उसके बाद उसका पुत्र जबद्याह या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 8 पांचवें महीने के लिथे पांचवां सेनापति यिज्राही शम्हूत या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 9 छठवें महीने के लिथे छठवां सेनापति तकोई इक्केश का पुत्र ईरा या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 10 सातवें महीने के लिथे सातवां सेनापति एप्रैम के वंश का हेलेस पलोनी या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 11 आठवें महीने के लिथे आठवां सेनापति जेरह के वंश में से हूशाई सिब्बकै या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 12 नौवें महीने के लिथे नौवां सेनापति बिन्यामीनी अबीएजेर अनातोतवासी या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 13 दसवें महीने के लिथे दसवां सेनापति जेरही महरै नतोपावासी या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 14 ग्यारहवें महीने के लिथे ग्यारहवां सेनापति एप्रैम के वंश का बनायाह पिरातोनवासी या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 15 बारहवें महीने के लिथे बारहवां सेनापति ओत्नीएल के वंश का हेल्दै नतोपावासी या और उसके दल में चौबीस हजार थे। 16 फिर इस्राएली गोत्रें के थे अधिक्कारनेी थे : अर्यात् रूबेनियोंका प्रधान जिक्री का पुत्र एलीआज़र; शिमोनियोंसे माका का पुत्र शपत्याह। 17 लेवी से कमूएल का पुत्र हशब्याह; हारून की सन्तान का सादोक। 18 यहूदा का एलीहू नाम दाऊद का एक भाई, इस्साकार से मीकाएल का पुत्र ओम्नी। 19 जबूलून से ओबद्याह का पुत्र यिशमायाह, नप्ताली से अज्रीएल का पुत्र यरीमोत। 20 एप्रैम से अजज्याह का पुत्र होशे, मनश्शे से आधे गोत्र का, फ़दायाह का पुत्र योएल। 21 गिलाद में आधे गोत्र मनश्शे से जकर्याह का पुत्र इद्दो, बिन्यामीन से अब्नेर का पुत्र यासीएल, 22 और दान से यारोहाम का पुत्र अजरेल, ठहरा। थे ही इस्राएल के गोत्रोंके हाकिम थे। 23 परन्तु दाऊद ने उनकी गिनती बीस वर्ष की अवस्या के तीचे न की, क्योंकि यहोवा ने इस्राएल की गिनती आकाश के तारोंके बराबर बढ़ाने के लिथे कहा या। 24 सरूयाह का पुत्र योआब गिनती लेने लगा, पर निपटा न सका क्योंकि ईश्वर का क्रोध इस्राएल पर भड़का, और यह गिनती राजा दाऊद के इतिहास में नहीं लिखी गई। 25 फिर अदीएल का पुत्र अजमावेत राज भण्डारोंका अधिक्कारनेी या, और देहात और नगरोंऔर गांवोंऔर गढ़ोंके भण्डारोंका अणिकारी उज्जिय्याह का पुत्र यहोनातान या। 26 और जो भूमि को जोतकर बोकर खेती करते थे, उनका अधिक्कारनेी कलूब का पुत्र एज्री या। 27 और दाख की बारियोंका अधिक्कारनेी रामाई शिमी और दाख की बारियोंकी उपज जो दाखमधु के भण्डारोंमें रखने के लिथे यी, उसका अधिक्कारनेी शापामी जब्दी या। 28 ओर नीचे के देश के जलपाई और गूलर के वृझोंका अधिक्कारनेी गदेरी बाल्हानान या और तेल के भण्डारोंका अधिक्कारनेी योआश या। 29 और शारोन में चरनेवाले गाय-बैलोंका अधिक्कारनेी शारोनी शित्रै या और तराइयोंके गाय-बैलोंका अधिक्कारनेी अदलै का पुत्र शापात या। 30 और ऊंटोंका अधिक्कारनेी इश्माएली ओबील और गदहियोंका अधिक्कारनेी मेरोनोतवासी थेहदयाह। 31 और भैड़-बकरियोंका अधिक्कारनेी हग्री याजीज या। थे ही सब राजा दाऊद के धन सम्मत्ति के अधिक्कारनेी थे। 32 और दाऊद का भतीजा योनातान एक समझदार मंत्री और शास्त्री या, और किसी हक्मोनी का पुत्र एहीएल राजपुत्रोंके संग रहा करता या। 33 और अहीतोपेल राजा का मंत्री या, और एरेकी हूशै राजा का मित्र या। 34 और यहीतोपेल के बाद बनायाह का पुत्र यहोयादा और एय्यातार मंत्री ठहराए गए। और राजा का प्रधान सेनापति योआब या।
1 और दाऊद ने इस्राएल के सब हाकिमोंको अर्यात् गोत्रोंके हाकिमोंऔर राजा की सेवा टहल करनेवाले दलोंके हाकिमोंको और सहस्रपतियोंऔर शतपतियोंऔर राजा और उसके पुत्रोंके पशु आदि सब धन सम्पत्ति के अधिक्कारनेियों, सरदारोंऔर वीरोंऔर सब शूरवीरोंको यरूशलेम में बुलवाया। 2 तब दाऊद राजा खड़ा होकर कहने लगा, हे मेरे भाइयों! और हे मेरी प्रजा के लोगो ! मेरी सुनो, मेरी मनसा तो यी कि यहोवा की वाचा के सन्दूक के लिथे और हम लोगोंके परमेश्वर के चरणोंकी पीढ़ी के लिथे विश्रम का एक भवन बनाऊं, और मैं ने उसके बनाने की तैयारी की यी। 3 परन्तु परमेश्वर ने मुझ से कहा, तू मेरे नाम का भवन बनाने न पाएगा, क्योंकि तू युद्ध करनेवाला है और तू ने लोहू बहाथा है। 4 तौभी इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने मेरे पिता के सारे घराने में से मुझी को चुन लिया, कि इस्राएल का राजा सदा बना रहूं : अर्यात् उस ने यहूदा को प्रधान होने के लिथे और यहूदा के घराने में से मेरे पिता के घराने को चुन लिया और मेरे पिता के पुत्रोंमें से वह मुझी को सारे इस्राएल का राजा बनाने के लिथे प्रसन्न हुआ। 5 और मेरे सब पुत्रोंमें से ( यहोवा ने तो मुझे बहुत पुत्र दिए हैं ) उस ने मेरे पुत्र सुलैमान को चुन लिया है, कि वह इस्राएल के ऊपर यहोवा के राज्य की गद्दी पर विराजे। 6 और उस ने मुझ से कहा, कि तेरा पुत्र सुलैमान ही मेरे भवन और आंगनोंको बनाएगा, क्योंकि मैं ने उसको चुन लिया है कि मेरा पुत्र ठहरे, और मैं उसका पिता ठहरूंगा। 7 और सदि वह मेरी आज्ञाओं और नियमोंके मानने में आज कल की नाई दृढ़ रहे, तो मैं उसका राज्य सदा स्यिर रखूंगा। 8 इसलिथे अब इस्राएल के देखते अर्यात्यहोवा की मण्डली के देखते, और अपके परमेश्वर के साम्हने, अपके परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाओं को मानो और उन पर ध्यान करते रहो; ताकि तुम इस अच्छे देश के अधिक्कारनेी बने रहो, और इसे अपके बाद अपके वंश का सदा का भाग होने के लिथे छोड़ जाओ। 9 और हे मेरे पुत्र सुलैमान ! तू अपके पिता के परमेश्वर का ज्ञान रख, और खरे मन और प्रसन्न जीव से उसकी सेवा करता रह; क्योंकि यहोवा मन को जांचता और विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है उसे समझता है। यदि तू उसकी खोज में रहे, तो वह तुझ को मिलेगा; परन्तु यदि तू उसको त्याग दे तो वह सदा के लिथे तुझ को छोड़ देगा। 10 अब चौकस रह, यहोवा ने तुझे एक ऐसा भवन बनाने को चुन लिया है, जो पवित्रस्यान ठहरेगा, हियाव बान्धकर इस काम में लग जा। 11 तब दाऊद ने अपके पुत्र सुलैमान को मन्दिर के ओसारे, कोठरियों, भण्डारोंअटारियों, भीतरी कोठरियों, और प्रायश्चित के ढकने से स्यान का नमूना, 12 और यहोवा के भवन के आंगनोंऔर चारोंओर की कोठरियों, और परमेश्वर के भवन के भण्डारोंऔर ववित्र की हुई वस्तुओं के भण्डारोंके, जो जो नमूने ईश्वर के आत्मा की प्रेरणा से उसको मिले थे, वे सब दे दिए। 13 फिर याजकोंऔर लेबियोंके दलों, और यहोवा के भवन की सेवा के सब कामों, और यहोवा के भवन की सेवा के सब सामान, 14 अर्यात्सब प्रकार की सेवा के लिथे सोने के पात्रोंके निमित्त सोना तौलकर, और सब प्रकार की सेवा के लिथे चान्दी के पात्रें के निमित्त चान्दी तौलकर, 15 और सोने की दीवटोंके लिथे, और उनके दीपकोंके लिथे प्रति एक एक दीवट, और उसके दीपकोंका सोना तौलकर और चान्दी के दीवटोंके लिथे एक एक दीवट, और उसके दीपक की चान्दी, प्रति एक एक दीवट के काम के अनुसार तौलकर, 16 ओर भेंट की रोटी की मेजोंके लिथे एक एक मेज का सोना तौलकर, और जान्दी की मेजोंके लिथे चान्दी, 17 और चोखे सोने के कांटों, कटोरोंऔर प्यालोंऔर सोने की कटोरियोंके लिथे एक एक कटोरी का सोना तौलकर, और चान्दी की कटोरियोंके लिथे एक एक कटोरी की चान्दी तौलकर, 18 और धूप की वेदी के लिथे तपाया हुआ सोना तौलकर, और रय अर्यत् यहोवा की वाचा का सन्दूक ढांकनेवाले और पंख फैलाए हुए करूबोंके नमूने के लिथे सोना दे दिया। 19 मैं ने यहोवा की शक्ति से जो मुझ को मिली, यह सब कुछ बफकर लिख दिया है। 20 फिर दाऊद ने अपके पुत्र सुलैमान से कहा, हियाव बान्ध और दृढ़ होकर इस काम में लग जा। मत डर, और तेरा मन कच्चा न हो, क्योंकि यहोवा परमेश्वर जो मेरा परमेश्वर है, वह तेरे संग है; और जब तक यहोवा के भवन में जितना काम करना हो वह न हो चुके, तब तक वह न तो तुझे धोखा देगा और न तुझे त्यागेगा। 21 और देख परमेश्वर के भवन के सब काम के लिथे जाजकोंऔर लेवियोंके दल ठहराए गए हैं, और सब प्रकार की सेवा के लिथे सब प्रकार के काम प्रसन्नता से करनेवाले बुद्धिमान पुरुष भी तेरा साय देंगे; और हाकिम और सारी प्रजा के लोग भी जो कुछ तू कहेगा वही करेंगे।
1 फिर राजा दाऊद ने सारी सभा से कहा, मेरा पुत्र सुलैमान सुकुमार लड़का है, और केवल उसी को परमेश्वर ने चुना है; काम तो भारी है, क्योंकि यह भवन मनुष्य के लिथे नहीं, यहोवा परमेश्वर के लिथे बनेगा। 2 मैं ने तो अपक्की शक्ति भर, अपके परमेश्वर के भवन के निमित्त सोने की वस्तुओं के लिथे सोना, चान्दी की वस्तुओं के लिथे चान्ी, पीतल की वस्तुओं के लिथे पीतल, लोहे की वस्तुओं के लिथे लोहा, और लकड़ी की वस्तुओं के लिथे लकड़ी, और सुलैमानी पत्यर, और जड़ने के योग्य मणि, और पच्ची के काम के लिथे रड़ग रड़ग के नग, और सब भांति के मणि और बहुत संगमर्मर इकट्ठा किया है। 3 फिर मेरा मन अपके परमेश्वर के भवन में लगा है, इस कारण जो कुछ मैं ने पवित्र भवन के लिथे इकट्ठा किया है, उस सब से अधिक मैं अपना निज धन भी जो सोना चान्दी के रूप में मेरे पास है, अपके परमेश्वर के भवन के लिथे दे देता हूँ। 4 अर्यात् तीन हजार किक्कार ओपीर का सोना, और सात हजार किक्कार तपाई हुई चान्दी, जिस से कोठरियोंकी भीतें मढ़ी जाएं। 5 और सोने की वस्तुओं के लिथे सोना, और चान्दी की वस्तुओं के लिथे चान्दी, और कारीगरोंसे बनानेवाले सब प्रकार के काम के लिथे मैं उसे देता हूँ। और कौन अपक्की इच्छा से यहोवा के लिथे अपके को अर्पण कर देता है? 6 तब पितरोंके घरानोंके प्रधानोंऔर इस्राएल के गोत्रोंके हाकिमोंऔर सहस्रपतियोंऔर शतपतियोंऔर राजा के काम के अधिक्कारनेियोंने अपक्की अपक्की इच्छा से, 7 परमेश्वर के भवन के काम के लिथे पांच हजार किक्कार और दस हजार दर्कनोन सोना, दस हजार किक्कार चान्दी, अठारह हजार किक्कार पीतल, और एक लाख किक्कार लोहा दे दिया। 8 और जिनके पास मणि थे, उन्होंने उन्हें यहोवा के भवन के खजाने के लिथे गेशॉनी यहीएल के हाथा में दे दिया। 9 तब प्रजा के लोग आनन्दित हुए, क्योंकि हाकिमोंने प्रसन्न होकर खरे मन और अपक्की अपक्की इच्छा से यहोवा के लिथे भेंट दी यी; और दाऊद राजा बहुत ही आनन्दित हुआ। 10 तब दाऊद ने सारी सभा के सम्मुख यहोवा का धन्यवाद किया, और दाऊद ने कहा, हे यहोवा ! हे हमारे मूल पुरुष इस्राएल के परमेश्वर ! अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू धन्य है। 11 हे यहोवा ! महिमा, पराक्रम, शोभा, सामर्य्य और विभव, तेरा ही है; क्योंकि अकाश और पृय्वी में जो कुछ है, वह तेरा ही है; हे यहोवा ! राज्य तेरा है, और तू सभोंके ऊपर मुख्य और महान ठहरा है। 12 धन और महिमा तेरी ओर से मिलती हैं, और तू सभोंके ऊपर प्रभुता करता है। सामर्य्य और पराक्रम तेरे ही हाथ में हैं, और सब लोगोंको बढ़ाना इौर बल देना तेरे हाथ में है। 13 इसलिथे अब हे हमारे परमेश्वर ! हम तेरा ध्न्यवाद और तेरे महिमायुक्त नाम की स्तुति करते हैं। 14 मैं क्या हूँ? और मेरी प्रजा क्या है? कि हम को इस रीति से अपक्की इच्छा से तुझे भेंट देने की शक्ति मिले? तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है। 15 तेरी दृष्टि में हम तो अपके सब पुरखाओं की नाई पराए और परदेशी हैं; पृय्वी पर हमारे दिन छाया की नाई बीते जाते हैं, और हमारा कुछ ठिकाना नहीं। 16 हे हमारे परमेश्वर यहोवा ! वह जो बड़ा संचय हम ने तेरे पवित्र नाम का एक भवन बनाने के लिथे किया है, वह तेरे ही हाथ से हमे मिला या, और सब तेरा ही है। 17 और हे मेरे परमेश्वर ! मैं जानता हूँ कि तू मन को जांचता है और सिधाई से प्रसन्न रहता है; मैं ने तो यह सब कुछ मन की सिधाई और अपक्की इच्छा से दिया है; और अब मैं ने आनन्द से देखा है, कि तेरी प्रजा के लोग जो यहां उपस्यित हैं, वह अपक्की इच्छा से तेरे लिथे भेंट देते हैं। 18 हे यहोवा ! हे हमारे पुरखा इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के परमेश्वर ! अपक्की प्रजा के मन के विचारोंमें यह बात बनाए रख और उनके मन अपक्की ओर लगाए रख। 19 और मेरे पुत्र सुलैमान का मन ऐसा खरा कर दे कि वह तेरी आज्ञाओं चितौनियोंऔर विधियोंको मानता रहे और यह सब कुछ करे, और उस भवन को बनाए, जिसकी तैयारी मैं ने की है। 20 तब दाऊद ने सारी सभा से कहा, तुम अपके परमेश्वर यहोवा का धन्यवाद करो। तब सभा के सब लोगोंने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा का धन्यवाद किया, और अपना अपना सिर फुकाकर यहोवा को और राजा को दण्डवत किया। 21 और दूसरे दिन उन्होंने यहोवा के लिथे बलिदान किए, अर्यात् अधॉं समेत एक हजार बैल, एक हजार मेढ़े और एक हजार भेड़ के बच्चे होमबलि करके चढ़ाए, और सब इस्राएल के लिथे बहुत से मेलबलि चढ़ाए। उसी दिन यहोवा के साम्हने उन्होंने बड़े आनन्द से खाया और पिया। 22 फिर उन्होंने दाऊद के पुत्र सुलैमान को दूसरी बार राजा ठहराकर यहोवा की ओर से प्रधान होने के लिथे उसका और याजक होने के लिथे सादोक का अभिषेक किया। 23 तब सुलैमान अपके पिता दाऊद के स्यान पर राजा होकर यहोवा के सिंहासन पर विराजने लगा और भाग्यवान हुआ, और इस्राएल उसके अधीन हुआ। 24 और सब हाकिमोंऔर शूरवीरोंऔर राजा दाऊद के सब पुत्रोंने सुलैमान राजा की अधीनता अंगीकार की। 25 और यहोवा ने सुलैमान को सब इस्राएल के देखते बहुत बढ़ाया, और उसे ऐसा राजकीय ऐश्वर्य दिया, जैसा उस से पहिले इस्राएल के किसी राजा का न हुआ या। 26 इस प्रकार यिहौ के पुत्र दाऊद ने सारे इस्राएल के ऊपर राज्य किया। 27 और उसके इस्राएल पर राज्य करने का समय चालीस वर्ष का या; उस ने सात वर्ष तो हेब्रोन में और तैंतीस वर्ष यरूशलेम में राज्य किया। 28 और वह पूरे बूढ़ापे की अवस्या में दीर्घायु होकर और धन और विभव, मनमाना भोगकर मर गया; और उसका पुत्र सुलैमान उसके स्यान पर राजा हुआ। 29 आादि से अन्त तक राजा दाऊद के सब कामोंका वृत्तान्त, 30 और उसके सब राज्य और पराक्रम का, और उस पर और इस्राएल पर, वरन देश देश के सब राज्योंपर जो कुछ बीता, इसका भी वृत्तान्त शमूएल दशीं और नातान नबी और गाद दशीं की पुस्तकोंमें लिखा हुआ है।
1 दाऊद का पुत्र सुलैमान राज्य में स्यिर हो गया, और उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग रहा और उसको बहुत ही बढ़ाया। 2 और सुलैमान ने सारे इस्राएल से, अर्यात् सहस्रपतियों, शतपतियों, न्यायियोंऔर इस्राएल के सब रईसोंसे जो पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुष थे, बातें कीं। 3 और सुलैमान पूरी मण्डली समेत गिबोन के ऊंचे स्यान पर गया, क्योंकि परमेश्वर का मिलापवाला तम्बू, जिसे यहोवा के दास मूसा ने जंगल में बनाया या, वह वहीं पर या। 4 परन्तु परमेश्वर के सन्दूक को दाऊद किर्यत्यारीम से उस स्यान पर ले आया या जिसे उस ने उसके लिथे तैयार किया या, उस ने तो उसके लिथे यरूशलेम में एक तम्बू खड़ा कराया या। 5 और पीतल की जो वेदी ऊरी के पुत्र बसलेल ने, जो हूर का पोता या, बनाई यी, वह गिबोन में यहोवा के निवास के साम्हने यी। इसलिथे सुलैमान मण्डली समेत उसके पास गया। 6 और सुलैमान ने वहीं उस पीतल की वेदी के पास जाकर, जो यहोवा के साम्हने मिलापवाले तम्बू के पास यी, उस पर एक हजार होमबलि चड़ाए। 7 उसी दिन रात को परमेश्वर ने सुलैमान को दर्शन देकर उस से कहा, जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग। 8 सुलैमान ने परमेश्वर से कहा, तू मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करुणा करता रहा और मुझ को उसके स्यान पर राजा बनाया है। 9 अब हे यहोवा परमेश्वर ! जो बचन तू ने मेरे पिता दाऊद को दिया या, वह पूरा हो; तू ने तो मुझे ऐसी प्रजा का राजा बनाया है जो भूमि की धूलि के किनकोंके समान बहुत है। 10 अब मुझे ऐसी बुद्धि और ज्ञान दे, कि मैं इस प्रजा के साम्हने अन्दर- बाहर आना-जाना कर सकूं, क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके? 11 परमेश्वर ने सुलैमान से कहा, तेरी जो ऐसी ही मनसा हुई, अर्यात तू ने न तो धन सम्पत्ति मांगी है, न ऐश्वर्य्और न अपके बैरियोंका प्राण और न अपक्की दीर्घायु मांगी, केवल बुद्धि और ज्ञान का वर मांगा है, जिस से तू मेरी प्रजा का जिसके ऊपर मैं ने तुझे राजा नियुक्त किया है, न्याय कर सके, 12 इस कारण बुद्धि और ज्ञान तुझे दिया जाता है। और मैं तुझे इतना धन सम्पत्ति और ऐश्वर्य दूंगा, जितना न तो तुझ से पहिले किसी राजा को, मिला और न तेरे बाद किसी राजा को मिलेगा। 13 तब सुलैमान गिबोन के ऊंचे स्यान से, अर्यात् मिलापवाले तम्बू के साम्हने से यरूशलेम को आया और वहां इस्राएल पर राज्य करने लगा। 14 फिर सुलैमान ने रय और सवार इकट्ठे कर लिथे; और उसके चौदह सौ रय और बारह हजार सवार थे, और उनको उस ने रयोंके नगरोंमें, और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 15 और राजा ने ऐसा किया, कि यरूशलेम में सोने-चान्दी का मूल्य बहुतायत के कारण पत्यरोंका सा, और देवदारोंका मूल्य नीचे के देश के गूलरोंका सा बना दिया। 16 और जो घोड़े सुलैमान रखता या, वे मिस्र से आते थे, और राजा के य्यापारी उन्हें फुणड के फुणड ठहराए हुए दाम पर लिया करते थे। 17 एक रय तो छ: सौ शेकेल चान्दी पर, और एक घोड़ा डेढ़ सौ शेकेल पर मिस्र से आता या; और इसी दाम पर वे हित्तियोंके सब राजाओं और अराम के राजाओं के लिथे उन्हीं के द्वारा लाया करते थे।
1 और सुलैमान ने यहोवा के नाम का एक भवन और अपना राजभवन बनाने का विचार किया। 2 इसलिए सुलैमान ने सत्तर हजार बोफिथे और अस्सी हजार पहाड़ से पत्यर काटनेवाले और वृझ काटनेवाले, और इन पर तीन हजार छ: सौ मुखिथे गिनती करके ठहराए। 3 तब सुलैमान ने सोर के राजा हूराम के पास कहला भेजा, कि जैसा तू ने मेरे पिता दाऊद से बर्त्ताव किया, अर्यात् उसके रहने का भवन बनाने को देवदार भेजे थे, पैसा ही अब मुझ से भी बर्त्ताव कर। 4 देख, मैं अपके परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाने पर हूँ, कि उसे उसके लिथे पवित्र करूं और उसके सम्मुख सुगन्धित धूम जलाऊं, और नित्य भेंट की रोटी उस में रखी जाए; और प्रतिदिन सबेरे और सांफ को, और विश्रम और नथे चांद के दिनोंमें और हमारे परमेश्वर यहोवा के सब नियत पब्बॉं में होमबलि चढ़ाया जाए। इस्राएल के लिथे ऐसी ही सदा की विधि है। 5 और जो भवन मैं बनाने पर हूं, वह महान होगा; क्योंकि हमारा परमेश्वर सब देवताओं में महान है। 6 परन्तु किस की इतनी शक्ति है, कि उसके लिथे भवन बनाए, वह तो स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी नहीं समाता? मैं क्या हूँ कि उसके साम्हने धूप जलाने को छोड़ और किसी मनसा से उसका भवन बनाऊं? 7 सो अब तू मेरे पास एक ऐसा मनुष्य भेज दे, जो सोने, चान्दी, पीतल, लोहे और बैंजनी, लाल और नीले कपके की कारीगरी में निपुण हो और नक्काशी भी जानता हो, कि वह मेरे पिता दाऊद के ठहराए हुए निपुण पनुष्योंके साय होकर जो मेरे पास यहूदा और यरूशलेम में रहते हैं, काम करे। 8 फिर लबानोन से मेरे पास देवदार, सनोवर और चंदन की लकड़ी भेजना, क्योंकि मैं जानता हूँ कि तेरे दास लबानोन में वृझ काटना जानते हैं, और तेरे दासोंके संग मेरे दास भी रहकर, 9 मेरे लिथे बहुत सी लकड़ी तैयार करेंगे, क्योंकि जो भवन मैं बनाना चाहता हूँ, वह बड़ा और अचम्भे के योग्य होगा। 10 और तेरे दास जो लकड़ी काटेंगे, उनको मैं बीस हजार कोर कूटा हुआ गंहूं, बीस हजार कोर जव, बीस हजार बत दाखमधु और बीस हजार बत तेल दूंगा। 11 तब सोर के राजा हूराम ने चिट्ठी लिखकर सुलैमान के पास भेजी, कि यहोवा अपक्की प्रजा से प्रेम रखता है, इस से उस ने तुझे उनका राजा कर दिया। 12 फिर हूराम ने यह भी लिखा कि धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जो आकाश और पृय्वी का सृजनहार है, और उस ने दाऊद राजा को एक बुद्धिमान, चतुर और समझदार पुत्र दिया है, ताकि वह यहोवा का एक भवन और अपना राजभवन भी बनाए। 13 इसलिथे अब मैं एक बुद्धिमान और समझदार पुरुष को, अर्यात् हूराम-अबी को भेजता हूँ, 14 जो एक दानी स्त्री का बेटा है, और उसका पिता सोर का या। और वह सोने, चान्दी, पीतल, लोहे, पत्यर, लकड़ी, बैंजनी और नीले और लाल और सूझ्म सन के कपके का काम, और सब प्रकार की नक्काशी को जानता और सब भांति की कारीगरी बना सकता है : सो तेरे चतुर मनुष्याोंके संग, और मेरे प्रभु तेरे पिता दाऊद के चतुर मनुष्योंके संग, उसको भी काम मिले। 15 और मेरे प्रभु ने जो गेहूं, जव, तेल और दाखमधु भेजने की चर्चा की है, उसे अपके दासोंके पास भ्जिवा दे। 16 और हम लोग जितनी लकड़ी का तुझे प्रयोजन हो उतनी लबानोन पर से काटेंगे, और बेड़े बनवाकर समुद्र के मार्ग से जापा को पहुचाएंगे, और तू उसे यरूशलेम को ले जाना। 17 तब सुलैमान ने इस्राएली देश के सब परदेशियोंकी गिनती ली, यह उस गिनती के बाद हुई जो उसके पिता दाऊद ने ली यी; और वे डेढ़ लाख तीन हजार छ: सौ पुरुष निकले। 18 उन में से उस ने सत्तर हजार बोफिथे, अस्सी हजार पहाड़ पर पत्यर काटनेवाले और वृझ काटनेवाले और तीन हजार छ: सौ उन लोगोंसे काम करानेवाले मुखिथे नियुक्त किए।
1 तब सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिय्याह नाम पहाड़ पर उसी स्यान में यहोवा का भवन बनाना आरम्भ किया, जिसे उसके पिता दाऊद ने दर्शन पाकर यबूसी ओर्नान के खलिहान में तैयार किया या : 2 उस ने अपके राज्य के चौथे वर्ष के दूसरे महीने के, दूसरे दिन को बनाना आरम्भ किया। 3 परमेश्वर का जो भवन सुलैमान ने बनाया, उसका यह ढव है, अर्यात् उसकी लम्बाई तो प्राचीन काल की नाप के अनुसार साठ हाथ, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ् की यी। 4 और भवन के साम्हने के ओसारे की लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की; और उसकी ऊंचाई एक सौ बीस हाथ की थी। सुलैमान ने उसको भीतर चोखे सोने से मढ़वाया। 5 और भवन के बड़े भाग की छत उस ने सनोवर की लकड़ी से पटवाई, और उसको अच्छे सोने से मढ़वाया, और उस पर खजूर के वृझ की और सांकलोंकी नक्काशी कराई। 6 फिर शोभा देने के लिथे उस ने भवन में मणि जड़वाए। और यह सोना पवैंम का या। 7 और उस ने भवन को, अर्यात् उसकी कडिय़ों, डेवढिय़ों, भीतोंऔर किवाडोंको सोने से मढ़वाया, और भीतोंपर करूब खुदवाए। 8 फिर उस ने भवन के परमपवित्र स्यान को बनाया; उसकी लम्बाई तो भवन की चौड़ाई के बराबर बीस हाथ की यी, और उसकी चौड़ाई बीस हाथ की यी; और उस ने उसे छ: सौ किक्कार चोखे सोने से मढ़वाया। 9 और सोने की कीलोंका तौल पचास शेकेल या। और उस ने अटारियोंको भी सोने से मढ़वाया। 10 फिर भवन के परमपवित्र स्यान में उसने नक्काशी के काम के दो करूब बनवाए और वे सोने से मढ़वाए गए। 11 करूबोंके पंख तो सब मिलकर बीस हाथ लम्बे थे, अर्यात् एक करूब का एक पंख पांच हाथ का और भवन की भीत तक पहुंचा हुआ या; और उसका दूसरा पंख पांच हाथ का या और दूसरे करूब के पंख से मिला हुआ या। 12 और दूसरे करूब का भी एक पंख पांच हाथ का और भवन की दूसरी भीत तक पहुंचा या, और दूसरा पंख पांच हाथ का और पहिले करूब के पंख से सटा हुआ या। 13 इन करूबोंके पंख बीस हाथ फैले हुए थे; और वे अपके अपके पांवोंके बल खड़े थे, और अपना अपना मुख भीतर की ओर किए हुए थे। 14 फिर उस ने बीचवाले पर्दे को नीले, बैंजनी और लाल रंग के सन के कपके का बनवाया, और उस पर करूब कढ़वाए। 15 और भवन के साम्हने उस ने पैंतीस पैंतीस हाथ ऊंचे दो खम्भे बनवाए, और जो कंगनी एक एक के ऊपर यी वह पांच पांच हाथ की यी। 16 फिर उस ने भीतरी कोठरी में सांकलें बनवाकर खम्भोंके ऊपर लगाई, और एक सौ अनार भी बनाकर सांकलोंपर लटकाए। 17 उस ने इन ख्म्भोंको मन्दिर के साम्हने, एक तो उसकी दाहिनी ओर और दूसरा बाई ओर खड़ा कराया; और दाहिने खम्भे का नाम याकीन और बाथें खम्भे का नाम बोअज़ रखा।
1 फिर उस ने पीतल की एक वेदी बनाई, उसकी लम्बाई और चौड़ाई बीस बीस हाथ की और ऊंचाई दस हाथ की यी। 2 फिर उस ने एक ढाला हुआ हौद बनवाया; जो छोर से छोर तक दस हाथ तक चौड़ा या, उसका आकार गोल या, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की यी, और उसके चारोंओर का घेर तीस हाथ के नाप का या। 3 और उसके तले, उसके चारोंओर, एक एक हाथ में दस दस बैलोंकी प्रतिमाएं बनी यीं, जो हौद को घेरे यीं; जब वह ढाला गया, तब थे बैल भी दो पांति करके ढाले गए। 4 और वह बारह बने हुए बैलोंपर धरा गया, जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और इनके ऊपर हौद घरा या, और उन सभोंके पिछले अंग भीतरी भाग में पड़ते थे। 5 और हौद की मोटाई चौवा भर की यी, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाई, सोसन के फूलोंके काम से बना या, और उस में तीन हजार बत भरकर समाता या। 6 फिर उस ने धोने के लिथे दस हौदी बनवाकर, पांच दाहिनी और पांच बाई ओर रख दीं। उन में होमबलि की वस्तुएं धोई जाती यीं, परन्तु याजकोंके धोने के लिलथे बड़ा हौद या। 7 फिर उस ने सोने की दस दीवट विधि के अनुसार बनवाई, और पांच दाहिनी ओर और पांच बाई ओर मन्दिर में रखवा दीं। 8 फिर उस ने दस मेज बनवाकर पांच दाहिनी ओर और पाच बाई ओर मन्दिर में रखवा दीं। और उस ने सोने के एक सौ कटोरे बनवाए। 9 फिर उस ने याजकोंके आंगन और बड़े आंगन को बनवाया, और इस आंगन में फाटक बनवाकर उनके किवाड़ोंपर पीतल मढ़वाया। 10 और उस ने हौद को भवन की दाहिनी ओर अर्यात् पूर्व और दक्खिन के कोने की ओर रखवा दिया। 11 और हूराम ने हण्डों, फावडिय़ों, और कटोरोंको बनाया। और हूराम ने राजा सुलैमान के लिथे परमेश्वर के भवन में जो काम करना या उसे निपटा दिया : 12 अर्यात् दो खम्भे और गोलोंसमेत वे कंगनियां जो खम्भोंके सिरोंपर यीं, और खम्भोंके सिरोंपर के गोलोंको ढांपके के लिए जालियोंकी दो दो पांति; 13 और दोनोंजालियोंके लिथे चार सौ अनार और जो गोले खम्भोंके सिरोंपर थे, उनको ढांपकेवाली एक एक जाली के लिथे अनारोंकी दो दो पांति बनाई। 14 फिर उस न कुसिर्यां और कुसिर्योंपर की हौदियां, 15 और उनके नीचे के बारह बैल बनाए। 16 फिर हूराम-अबी ने हण्डों, फावडिय़ों, कांटोंऔर इनके सब सामान को यहोवा के भवन के लिथे राजा सुलैमान की आज्ञा से फलकाए हुए पीतल के बनवाए। 17 राजा ने उसको यरदन की तराई में अर्यात् सुक्कोत और सारतान के बीच की चिकनी मिट्टीवाली भूमि में ढलवाया। 18 सुलैमान ने थे सब पात्र बहुत बनवाए, यहां तक कि पीतल के तौल का हिसाब न या। 19 और सुलैमान ने परमेश्वर के भवन के सब पात्र, सोने की वेदी, और वे मेज जिन पर भेंट की रोटी रखी जाती यीं, 20 और दीपकोंसमेत चोखे सोने की दीवटें, जो विधि के अनुसार भीतरी कोठरी के साम्हने जला करतीं यीं। 21 और सोने बरन निरे सोने के फूल, दीपक और चिमटे; 22 और चोखे सोने की कैंचियां, कटोरे, धूपदान और करछे बनवाए। फिर भवन के द्वार और परम पवित्र स्यान के भीतरी किवाड़ और भवन अर्यात् मन्दिर के किवाड़ सोने के बने।
1 इस प्रकार सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिथे जो जो काम बनवाया वह सब निपट गया। तब सुलैमान ने अपके पिता दाऊद के पवित्र किए हुए सोने, चान्दी और सब पात्रोंको भीतर पहुंचाकर परमेश्वर के भवन के भएाडारोंमें रखवा दिया। 2 तब सुलैमान ने इस्राएल के पुरनियोंको और गोत्रोंके सब मुखय पुरुष, जो इस्राएलियोंके पितरोंके घरानोंके प्रधान थे, उनको भी यरूशलेम में इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर से अर्यात् सिय्योन से ऊपर लिवा ले आएं। 3 सब इस्राएली पुरुष सातवें महीने के पर्व के समय राजा के पास इकट्ठे हुए। 4 जब इस्राएल के सब पुरनिथे आए, तब लेवियोंने सन्दूक को उठा लिया। 5 और लेवीय याजक सन्दूक और मिलाप का तम्बू और जितने पवित्र पात्र उस तम्बू में थे उन सभोंको ऊपर ले गए। 6 और राजा सुलैमान और सब इस्राएली मण्डली के लोग जो उसके पास इकट्ठे हुए थे, उन्होंने सन्दूक के साम्हने इतनी भेड़ और बैल बलि किए, जिनकी गिनती और हिसाब बहुतायत के कारण न हो सकती यी। 7 तब याजकोंने यहोवा की वाचा का सनदूक उसके स्यान में, अर्यात् भवन की भीतरी कोठरी में जो परमपवित्र स्यान है, पहंचाकर, करूबोंके पंखोंके तले रख दिया। 8 सन्दूक के स्यान के ऊपर करूब तो पंख फैलाए हुए थे, जिससे वे ऊपर से सन्दूक और उसके डणडोंको ढांपे थे। 9 डणडे तो इतने लम्बे थे, कि उनके सिक्के सन्दूक से निकले हुए भीतरी कोठरी के साम्हने देख पड़ते थे, परन्तु बाहर से वे दिखई न पड़ते थे। वे आज के दिन तक वहीं हैं। 10 सन्दूक में पत्य्र की उन दो पटियाओं को छोड़ कुछ न या, जिन्हें मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखा, जब यहोवा ने इस्राएलियोंके मिस्र से निकलने के बाद उनके साय वाचा बान्धी यी। 11 जब याजक पवित्रस्यान से निकले ( जितने याजक उपस्यित थे, उन सभोंने तो अपके अपके को पवित्र किया या, और अलग अलग दलोंमें होकर सेवा न करते थे; 12 और जितने लेवीय गवैथे थे, वे सब के सब अर्यात् मुत्रोंऔर भइयोंसमेत आसाप, हेमान और यदूतून सन के वस्त्र पहिने फांफ, सारंगियां और वीणाएं लिथे हुए, वेदी के पूर्व अलंग में खड़े थे, और उनके साय एक सौ बीस याजक तुरहियां बजा रहे थे।) 13 तो जब तुरहियां बजानेवाले और गानेवाले एक स्वर से यहोवा की स्तुति और धन्यवाद करने लगे, और तुरहियां, फांफ आदि बाजे बजाते हुए यहोवा की यह स्तुति ऊंचे शब्द से करने लगे, कि वह भला है और उसकी करुणा सदा की है, तब यहोवा के भवन मे बादल छा गया, 14 और बादल के कारण याजक लोग सेवा-टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज परमेश्वर के भवन में भर गया या।
1 तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा या, कि मैं घोर अंधकार मैं वास किए रहूंगा। 2 परन्तु मैं ने तेरे लिथे एक वासस्यान वरन ऐसा दृढ़ स्यान बनाया है, जिस में तू युग युग रहे। 3 और राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुंह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया, और इस्राएल की पूरी सभा खड़ी रही। 4 और उस ने कहा, धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जिस ने अपके मुंह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया या, और अपके हाथोंसे इसे पूरा किया है, 5 कि जिस दिन से मैं अपक्की प्रजा को मिस्र देश से निकाल लाया, तब से मैं ने न तो इस्राएल के किसी गोत्र का कोई नगर चुना जिस में मेरे नाम के निवास के लिथे भवन बनाया जाए, और न कोई मनुष्य चुना कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो। 6 परन्तु मैं ने यरूशलेम को इसलिथे चुना है, कि मेरा नाम वहां हो, और दाऊद को चुन लिया है कि वह मेरी प्रजा इस्राएल पर प्रधान हो। 7 मेरे पिता दाऊद की यह मनसा यी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाए। 8 परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, तेरी जो मनसा है कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी मनसा करके नू ने भला तो किया; 9 तौभी तू उस भवन को बनाने न पाएगा : तेरा जो निज पुत्र होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा। 10 यह वचन जो यहोवा ने कहा या, उसे उस ने पूरा भी किया है; ओर मैं अपके पिता दाऊद के स्यान पर उठकर यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम के इस भवन को बनाया है। 11 और इस में मैं ने उस सन्दूक को रख दिया है, जिस में यहोवा की वह वाचा है, जो उस ने इस्राएलियोंसे बान्धी यी। 12 तब वह इस्राएल की सारी सभा के देखते यहोवा की वेदी के साम्हने खड़ा हुआ और अपके हाथ फैलाए। 13 सुलैमान ने पांच हाथ लम्बी, पांच हाथ चौड़ी और तीन हाथ ऊंची पीतल की एक चौकी बनाकर आंगन के बीच रखवाई यी; उसी पर खड़े होकर उस ने सारे इस्राएल की सभा के सामने घुटने टेककर स्वर्ग की ओर हाथ फैलाए हुए कहा, 14 हे यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर, तेरे समान न तो स्वर्ग में और न पृय्वी पर कोई ईश्वर है : तेरे जो दास अपके सारे मन से अपके को तेरे सम्मुख जानकर जलते हैं, उनके लिथे तू अपक्की वाचा पूरी करता और करुणा करता रहता है। 15 तू ने जो वचन मेरे पिता दाऊद को दिया या, उसका तू ने पालन किया है; जैसा तू ने अपके मुंह से कहा या, वैसा ही अपके हाथ से उसको हमारी आंखोंके साम्हने पूरा भी किया है। 16 इसलिथे अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा इस वचन को भी मूरा कर, जो तू ने अपके दास मेरे पिता दाऊद को दिया या, कि तेरे कुल में मेरे साम्हने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदा बने रहेंगे, यह हो कि जैसे तू अपके को मेरे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपक्की चाल चलन में ऐसी चौकसी करें, कि मेरी य्यवस्या पर चलें। 17 अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा जो वचन तू ने अपके दास दाऊद को दिया य, वह सव्चा किया जाए। 18 परन्तु क्या परमेश्वर सचमुच मनुष्योंके संग पुय्वी पर वास करेगा? स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में तू क्योंकर समाएगा? 19 तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा, अपके दास की प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट की ओर ध्यान दे और मेरी पुकार और यह प्रार्यना सुन, जो मैं तेरे साम्हने कर रहा हूँ। 20 वह यह है कि तेरी आंखें इस भवन की ओर, अर्यत् इसी स्यान की ओर जिसके विषय में तू ने कहा है कि मैं उस में अपना नाम रखूंगा, रात दिन खुली रहें, और जो प्रार्यना तेरा दास इस स्यान की ओर करे, उसे तू सुन ले। 21 और अपके दास, और अपक्की प्रजा इस्राएल की प्रार्यना जिसको वे इस स्यान की ओर मुंह किए हुए गिड़गिड़ाकर करें, उसे सुन लेना; स्वर्ग में से जो तेरा निवासस्यान है, सुन लेना; और सुनकर झमा करना। 22 जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे और उसको शपय खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के साम्हने शपय खाए, 23 तब तू स्वर्ग में से सुनना और मानना, और अपके दासोंका न्याय करके दुष्ट को बदला देना, और उसकी चाल उसी के सिर लैटा देना, और निदॉष को निदॉष ठहराकर, उसके धर्म के अनुसार उसको फल देना। 24 फिर यदि तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करने के कारण अपके शत्रुओं से हार जाएं, और तेरी ओर फिरका तेरा नाम मानें, और इस भवन में तुझ से प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट करें, 25 तो तू स्वर्ग में से सुनना; और अपक्की प्रजा इस्राएल का पाप झमा करना, और उन्हें इस देश में लौटा ले आना जिसे तू ने उनको और उनके पुरखाओं को दिया है। 26 जब वे तेरे विरुद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश इतना बन्द हो जाए कि वर्षा न हो, ऐसे समय यदि वे इस स्यान की ओर प्रार्यना करके तेरे नाम को मानें, और तू जो उन्हें दु:ख देता है, इस कारण वे अपके पाप से फिरें, 27 तो तू स्वर्ग में से सुनना, और अपके दासोंऔर अपक्की प्रजा इस्राएल के पाप को झमा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है जिस पर उन्हें चलना चाहिथे, इसलिथे अपके इस देश पर जिसे तू ने अपक्की प्रजा का भाग करके दिया है, पानी बरसा देना। 28 जब इस देश में काल वा मरी वा फुलस हो वा गेरुई वा टिड्डियां वा कीड़े लगें, वा उनके शत्रु उनके देश के फाटकोंमें उन्हें घेर रखें, वा कोई विपत्ति वा रोग हो; 29 तब यदि कोई मनुष्य वा तेरी सारी प्रजा इस्राएल जो अपना अपना दु:ख और अपना अपना खेद जान कर और गिड़गिड़ाहट के साय प्रार्यना करके अपके हाथ इस भवन की ओर फैलाए; 30 जो तू अपके स्वगींय निवासस्यान से सुनकर झमा करना, और एक एक के मन की जानकर उसकी चाल के अनुसार उसे फल देना; (तू ही तो आदमियोंके मन का जाननेवाला है); 31 कि वे जितने दिन इस देश में रहें, जिसे तू ने उनके पुरखाओं को दिया या, उतने दिन तक तेरा भय मानते हुए तेरे मागॉं पर चनते रहें। 32 फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा के कारण दूर देश से आए, और आकर इस भवन की ओर मुंह किए हुए प्रार्यना करे, 33 तब तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से सुने, और जिस बात के लिथे ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसके अनुसार करना; जिस से पुय्वी के सब देशोंके लोग तेरा नाम जानकर, तेरी प्रजा इस्राएल की नाई तेरा भय मानें; और निश्चय करें, कि यह भवन जो मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता हैं। 34 जब तेरी प्रजा के लोग जहां कहीं तू उन्हें भेजे वहां अपके शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएं, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, मुंह किए हुए तुझ से प्रार्यना करें, 35 तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना। 36 निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है, यदि वे भी तेरे विरुद्ध पाप करें और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रुओं के हाथ कर दे, और वे उन्हें बन्धुआ करके किसी देश को, चाहे वह दूर हो, चाहे निकट, ले जाएं, 37 तो यदि वे बन्धुआई के देश में सोच विचर करें, और फिरकर अपक्की बन्धुआई करनेवालोंके देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें, कि हम ने पाप किया, और कुटिलता और दूष्टता की है; 38 सो यदि वे अपक्की बन्धुआई के देश में जहां वे उन्हें बन्धुआ करके ले गए होंअपके पूरे मन और सारे जीव से तेरी ओर फिरें, और अपके इस देश की ओर जो तू ने उनके पुरखाओं को दिया या, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, मुंह किए हुए तुझ से प्रार्यना करें, 39 तो तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से उनकी प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट सुनना, और उनका न्याय करना और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरुद्ध करें, उन्हें झमा करना। 40 और हे मेरे परमेश्वर ! जो प्रार्यना इस स्यान में की जाए उसकी ओर अपक्की आंखें खोले रह और अपके कान लगाए रख। 41 अब हे यहोवा परमेश्वर, उठकर अपके सामर्य्य के सन्दूक समेत अपके विश्रमस्यान में आ, हे यहोवा परमेश्वर तेरे याजक उद्धाररूपी वस्त्र पहिने रहें, और तेरे भक्त लोग भलाई के कारण आनन्द करते रहें। 42 हे यहोवा परमेश्वर, अपके अभिशिक्त की प्रार्यना को अनसुनी न कर, तू अपके दास दाऊद पर की गई करुणा के काम स्मरण रख।
1 जब सुलैमान यह प्रार्यना काजुका, तब स्वर्ग से आग ने गिरकर होमबलियोंतया और बलियोंको भस्म किया, और यहोवा का तेज भवन में भर गया। 2 और याजक यहोवा के भवन में प्रवेश न कर सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया या। 3 और जब आग गिरी और यहोवा का तेज भवन पर छा गया, तब सब इस्राएली देखते रहे, और फर्श पर फुककर अपना अपना मुंह भूमि की ओर किए हुए दणडवत किया, और योंकहकर यहोवा का धन्यवाद किया कि, वह भला है, उसकी करुणा सदा की है। 4 तब सब प्रजा समेत राजा ने यहोवा को बलि चढ़ाई। 5 और राजा सुलैमान ने बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ -बकरियां चढ़ाई। योंपूरी प्रजा समेत राजा ने यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की। 6 और याजक अपना अपना कार्य करने को खड़े रहे, और लेवीय भी यहोवा के गीत के गाने के लिथे बाजे लिथे हूए खड़े थे, जिन्हें दाऊद राजा ने यहोवा की सदा की करुणा के कारण उसका धन्यवाद करने को बनाकर उनके द्वारा स्तुति कराई यी; और इनके साम्हने याजक लोग तुरहियां बजाते रहे; और सब इस्राएली झड़े रहे। 7 फिर सुलैमान ने यहोवा के भवन के साम्हने आंगन के बीच एक स्यान ववित्र करके होमबलि और मेलबलियोंकी चक्कीं वहीं चढ़ाई, क्योंकि सुलैमान की बनाई इुई पीतल की बेदी होमबलि और अन्नबलि और चक्कीं के लिथे छोटी यी। 8 उसी समय सुलैमान ने और उसके संग हमात की घाटी से लेकर मिस्र के नाले तक के सारे इस्राएल की एक बहुत बड़ी सभा ने सात दिन तक पर्व को माना। 9 और आठवें दिन को उन्होंने महासभा की, उन्होंने वेदी की प्रतिष्ठा सात दिन की; और पवॉं को भी सात दिन माना। 10 निदान सातवें महीने के तेइसवें दिन को उस ने प्रजा के लोगोंको विदा किया, कि वे अपके अपके डेरे को जाएं, और वे उस भलाई के कारण जो यहोवा ने दाऊद और सुलैमान और अपक्की प्रजा इस्राएल पर की यी आनन्दित थे। 11 योंसुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और यहोवा के भवन में और अपके भवन में जो कुछ उस ने बनाना चाहा, उस में उसका मनोरय पूरा हुआ। 12 तब यहोवा ने रात में उसको दर्शन देकर उस से कहा, मैं ने तेरी प्रार्याना सुनी और इस स्यान को यज्ञ के भवन के लिथे अपनाया है। 13 यदि मैं आकाश को ऐसा बन्द करूं, कि वर्षा न हो, वा टिडियोंको देश उजाड़ने की आज्ञा दूं, वा अपक्की प्रजा में मरी फैलाऊं, 14 तब यदि मेरी प्रजा के लोग जो मेरे कहलाते हैं, दीन होकर प्रार्यना करें और मेरे दर्शन के खोजी होकर अपक्की बुरी चाल से फिरें, तो मैं स्वर्ग में से सुनकर उनका पाप झमा करूंगा और उनके देश को ज्योंका त्योंकर दूंगा। 15 अब से जो प्रार्यना इस स्यान में की जाएगी, उस पर मेरी आंखें खुली और मेरे कान लगे रहेंगे। 16 और अब मैं ने इस भवन को अपनाया और पवित्र किया है कि मेरा नाम सदा के लिथे इस में बना रहे; मेरी आंखें और मेरा मन दोनोंनित्य यहीं लगे रहेंगे। 17 और यदि तू अपके पिता दाऊद की नाई अपके को मेरे सम्मुख जानकर चलता रहे और मेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया करे, और मेरी विधियोंऔर नियमोंको मानता रहे, 18 तो मैं तेरी राजगद्दी को स्यिर रखूंगा; जैसे कि मैं ने तेरे पिता दाऊद के साय वाचा बान्धी यी, कि तेरे कुल में इस्राएल पर प्रभुता करनेवाला सदा बना रहेगा। 19 परन्तु यदि तुम लोग फिरो, और मेरी विधियोंऔर आज्ञाओं को जो मैं ने तुम को दी हैं त्यागो, और जाकर पराथे देवताओं की उपासना करो और उन्हें दणडवत करो, 20 तो मैं उनको अपके देश में से जो मैं ने उनको दिया है, जड़ से उखाडूंगा; और इस भवन को जो मैं ने अपके नाम के लिथे पवित्र किया है, अपक्की दृष्टि से दूर करूंगा; और ऐसा करूंगा कि देश देश के लोगोंके बीच उसकी उपमा और नामधराई चलेगी। 21 और यह भवन जो इतना विशाल है, उसके पास से आने जानेवाले चकित होकर पूछेंगे कि यहोवा ने इस देश और इस भवन से ऐसा क्योंकिया है। 22 तब लोग कहेंगे, कि उन लोगोंने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को जो उनको मिस्र देश से निकाल लाया या, त्यागकर पराथे देवताओं को ग्रहण किया, और उन्हें दफाडवत की और उनकी उपासना की, इस कारण उस ने यह सब विपत्ति उन पर डाली है।
1 सुलैमान को यहोवा के भवन और अपके भवन के बनाने में बीस वर्ष लगे। 2 तब जो नगर हूराम ने सुलैमान को दिए थे, उन्हें सुलैमान ने दृढ़ करके उन में इस्राएलियोंको बसाया। 3 तब सुलैमान सोबा के हमात को जाकर, उस पर जयवन्त हुआ। 4 और उस ने तदमोर को जो जंगल में है, और हमात के सब भणडार नगरोंको दृढ़ किया। 5 फिर उस ने ऊपरवाले और नीचेवाले दोनोंबेयोरोन को शहरपनाह और फाटकोंऔर बेड़ोंसे दृढ़ किया। 6 और उस ने बालात को और सुलैमान के जितने भणडार नगर थे और उसके रयोंऔर सवारोंके जितने नगर थे उनको, और जो कुछ सुलैमान ने यरूशलेम, लबानोन और अपके राज्य के सब देश में बनाना चाहा, उन सब को बनाया। 7 हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिय्वियोंऔर यबूसियोंके बचे हुए लोग जो इस्राएल के न थे, 8 उनके वंश जो उनके बाद देश में रह गए, और जिनका इस्राएलियोंने अन्त न किया या, उन में से तो कितनोंको सुलैमान ने बेगार में रखा और आज तक उनकी वही दशा है। 9 परन्तु इस्राएलियोंमें से सुलैमान ने अपके काम के लिथे किसी को दास न बनाया, वे तो योद्धा और उसके हाकिम, उसके सरदार और उसके रथें और सवारोंके प्रधान हुए। 10 और सुलैमान के सरदारोंके प्रधान जो प्रजा के लोगोंपर प्रभुता करनेवाले थे, वे अढ़ाई सौ थे। 11 फिर सुलैमान फ़िरौन की बेटी को दाऊदपुर में से उस भवन में ले आया जो उस ने उसके लिथे बनाया या, क्योंकि उस ने कहा, कि जिस जिस स्यान में यहोवा का सन्दूक आया है, वह पवित्र है, इसलिथे मेरी रानी इस्राएल के राजा दाऊद के भवन में न रहने पाएगी। 12 तब सुलैमान ने यहोवा की उस वेदी पर जो उस ने ओसारे के आगे बनाई यी, यहोवा को होमबलि चढ़ाई। 13 वह मूसा की आज्ञा के और दिन दिन के प्रयोजन के अनुसार, अर्यात् विश्रम और नथे चांद और प्रति वर्ष तीन बार ठहराए हुए पवॉं अर्यात् अखमीरी रोटी के पर्य्व, और अठवारोंके पर्य्व, और फोपडिय़ोंके पर्य्व में बलि चढ़ाया करता या। 14 और उस ने अपके पिता दाऊद के नियम के अनुसार याजकोंकी सेवकाई के लिथे उनके दल ठहराए, और लेवियोंको उनके कामोंपर ठहराया, कि हर एक दिन के प्रयोजन के अनुसार वे यहोवा की स्तुति और याजकोंके साम्हने सेवा-टहल किया करें, और एक एक फाटक के पास द्वारपालोंको दल दल करके ठहरा दिया; क्योंकि परमेश्वर के भक्त दाऊद ने ऐसी आज्ञा दी यी। 15 और राजा ने भणडारोंया किसी और बात में याजकोंऔर लेवियोंके लिथे जो जो आज्ञा दी यी, उन्होंने न टाला। 16 और सुलैमान का सब काम जो उस ने यहोवा के भ्वन की नेव डालने से लेकर उसके पूरा करने तक किया वह ठीक हुआ। निदान यहोवा का भवन पूरा हुआ। 17 तब सुलैमान एस्योनगेबेर और एलोत को गया, जो एदोम के देश में समुद्र के तीर पर हैं। 18 और हूराम ने उसके पास अपके जहाजियोंके द्वारा जहाज और समुद्र के जानकार मल्लाह भेज दिए, और उन्होंने सुलैमान के जहाजियोंके संग ओपीर को जाकर वहां से साढ़े चार सौ किक्कार सोना राजा सुलैमान को ला दिया।
1 जब शीबा की रानी ने सुलैमान की कीत्तिर् सुनी, तब वह कठिन कठिन प्रश्नोंसे उसकी पक्कीझा करने के लिथे यरूशलेम को चक्की । वह बहुत भारी दल और मसालोंऔर बहुत सोने और मणि से लदे ऊंट साय लिथे हुए आई, और सुलैमान के पास पहुंचकर उससे अपके मन की सब बातोंके विषय बातें कीं। 2 सुलैमान ने उसके सब प्रश्नोंका उत्तर दिया, कोई बात सुलैमान की बुद्धि से ऐसी बाहर न रही कि वह उसे न बता सके। 3 जब शीबा की रानी ने सुलैमान की बुद्धिमानी और उसका बनाया हुआ भवन 4 और उसकी मेज पर का भोजन देखा, और उसके कर्मचारी किस रीति बैठते और उसके ठहलुए किस रीति खड़े रहते और कैसे कैसे कपके पहिने रहते हैं, और उसके पिलानेवाले कैसे हैं, और वे कैसे कपके पहिने हैं, और वह कैसी चढ़ाई है जिस से वह यहोवा के भवन को जाया करता है, जब उस ने यह सब देखा, तब वह चकित हो गई। 5 तब उस ने राजा से कहा, मैं ने तेरे कामोंऔर बुद्धिमानी की जो कीत्तिर् अपके देश में सुनी वह सच ही है। 6 परन्तु जब तक मैं ने आप ही आकर अपक्की आंखोंसे यह न देखा, तब तक मैं ने उनकी प्रतीति न की; परन्तु तेरी बुद्धि की आधी बड़ाई भी मुझे न बताई गई यी; तू उस कीत्तिर् से बढ़कर है जो मैं ने सुनी यी। 7 धन्य हैं तेरे जन, धन्य हैं तेरे थे सेवक, जो नित्य तेरे सम्मुख उपस्यित रहकर तेरी बुद्धि की बातें सुनते हैं। 8 धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ, कि तुझे अपक्की राजगद्दी पर इसलिथे विराजमान किया कि तू अपके परमेश्वर यहोवा की ओर से राज्य करे; तेरा परमेश्वर जो इस्राएल से प्रेम करके उन्हें सदा के लिथे स्य्िर करना जाहता य, उसी कारण उस ने तुझे न्याय और धर्म करने को उनका राजा बना दिया। 9 और उस ने राजा को एक सौ बीस किक्कार सोना, बहुत सा सुगन्ध द्रय्य, और मणि दिए; जैसे सुगन्धद्रय्य शीबा की रानी ने राजा सुलैमान को दिए, वैसे देखने में नहीं आए। 10 फिर हूराम और सुलैमान दोनोंके जहाजी जो ओषीर से सोना लाते थे, वे चन्दन की लकड़ी और मणि भी लाते थे। 11 और राजा ने चन्दन की लकड़ी से यहोवा के भवन और राजभवन के लिथे चबूतरे और गवैयोंके लिथे वीणाएं और सारंगियां बनवाई; ऐसी वस्तुएं उस से पहिले यहूदा देश में न देख पक्की यीं 12 और शीबा की रानी ने जो कुछ चाहा वही राजा सुलैमान ने उसको उसकी इच्छा के अनुसार दिया; यह उस से अधिक या, जो वह राजा के पास ले आई यी। तब वह अपके जनोंसमेत अपके देश को लौट गई। 13 जो सोना प्रति वर्ष सुलैमान के पास पहुचा करता या, उसका तौल छ: सौ छियासठ किक्कार या। 14 यह उस से अधिक या जो सौदागर और य्यापारी लाते थे; और अरब देश के सब राजा और देश के अधिपति भी सुलैमान के पास सोना चान्दी लाते थे। 15 और राजा सुलैमान ने सोना गढ़ाकर दो सौ बड़ी बड़ी ढालें बनवाई; एक एक ढाल में छ:छ:सौ शेकेल गढ़ा हुआ सोना लगा। 16 फिर उस ने सोना गढ़ाकर तीन सौ छोटी ढालें और भी बनवाई; एक एक छोटी ढाल मे तीन सौ शेकेल सोना लगा, और राजा ने उनको लबानोनी बन नामक भवन में रखा दिया। 17 और राजा ने हाथीदांत का एक बड़ा सिंहासन बनाया और चोखे सोने से मढ़ाया। 18 उस सिंहासन में छ: सीढियां और सोने का एक पावदान या; थे सब सिंहासन से जुड़े थे, और बैठने के स्यान की दोनोंअलंग टेक लगी यी और दोनोंटेकोंके पास एक एक सिंह खड़ा हुआ बना या। 19 और छहोंसीढिय़ोंकी दोनोंअलंग में एक एक सिंह खड़ा हुउा बना या, वे सब बारह हुए। किसी राज्य में ऐसा कभी न बना। 20 और रजा सुलैमान के पीने के सब पात्र सोने के थे, और लबानोनी बन नामक भवन के सब पात्र भी चोखे सोने के थे; सुलैमान के दिनोंमें चान्दी का कुछ हिसाब न या। 21 क्योंकि हूराम के जहाजियोंके संग राजा के तशींश को जानेवाले जहाज थे, और तीन तीन वर्ष के बाद वे तशींश के जहाज सोना, चान्दी, हाथीदांत, बन्दर और मोर ले आते थे। 22 योंराजा सुलैमान धन और बुद्धि में पृय्वी के सब राजाओं से बढ़कर हो गया। 23 और पृय्वी के सब राजा सुलैमान की उस बुद्धि की बातें सुनने को जो परमेश्वर ने उसके मन में उपजाई यीं उसका दर्शन करना चाहते थे। 24 और वे प्रति वर्ष अपक्की अपक्की भेंट अर्यात् चान्दी और सोने के पात्र, वस्त्र-शस्त्र, सुगन्धद्रय्य, घोड़े और खच्चर ले आते थे। 25 और अपके घेड़ोंऔर रयोंके लिथे सुलैमान के चार हजार यान और बारह हजार सवार भी थे, जिनको उस ने रयोंके नगरोंमें और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 26 और वह महानद से ले पलिश्तियोंके देश और मिस्र के सिवाने तक के सब राजाओं पर प्रभुता करता या। 27 और राजा ने ऐसा किया, कि बहुतायत के कारण यरूशलेम में चान्दी का मूल्य पत्यरोंका और देवदार का मूल्य नीचे के देश के गूलरोंका सा हो गया। 28 और लोग मिस्र से और और सब देशोंसे सुलैमान के लिथे घोड़े लाते थे। 29 आदि से अन्त तक सुलैमान के और सब काम क्या नातान नबी की पुस्तक में, और शीलोवासी अहिय्याह की तबूवत की पुस्तक में, और नबात के पुत्र यारोबाम के विषय इद्दो दशीं के दर्शन की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 30 सुलैमान ने यरूशलेम में सारे इस्राएल पर चालीस वर्ष तक राज्य किया। 31 और सुलैमान अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसको उसके पिता दाऊद के नगर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र रहूबियाम उसके स्यान पर राजा हुआ।
1 रहूबियाम शकेम को गया, क्योंकि सारे इस्राएली उसको राजा बनाने के लिथे वहीं गए थे। 2 और नबात के पुत्र यारोबाम ने यह सुना (वह तो मिस्र में रहता या, जहां वह सुलैमान राजा के डर के मारे भाग गया या), और यारोबाम मिस्र से लौट आया। 3 तब उन्होंने उसको बुलवप भेजा; सो यारोबाम और सब इस्राएली आकर रहूबियाम से कहने लगे, 4 तेरे पिता ने तो हम लोगोंपर भारी जूआ डाल रखा या, इसलिथे अब तू अपके पिता की कठिन सेवा को और उस भारी जूए को जिसे उस ने हम पर डाल रखा है कुछ हलका कर, तब हम तेरे अधीन रहेंगे। 5 उस ने उन से कहा, तीन दिन के उपरान्त मेरे पास फिर आना, तो वे चले गए। 6 तब राजा रहूबियाम ने उन बूढ़ोंसे जो उसके पिता सुलैमान के जीवन भर उसके साम्हने अपस्य्ित रहा करते थे, यह कहकर सम्मति ली, कि इस प्रजा को कैसा उत्तर देना उचित है, इस में तुम क्या सम्मति देते हो? 7 उन्होंने उसको यह उत्तर दिया, कि यदि तू इस प्रजा के लोगोंसे अच्छा बर्त्ताव करके उन्हें प्रसन्न करे और उन से मधुर बातें कहे, तो वे सदा तेरे अधीन बने रहेंगे। 8 परन्तु उस ने उस सम्मति को जो बूढ़ोंने उसको दी यी छोड़ दिया और उन जवानोंसे सम्मति ली, जो उसके संग बड़े हुए थे और उसके सम्मुख उपस्यित रहा करते थे। 9 उन से उस ने पूछा, मैं प्रजा के लोगोंको कैसा उत्तर दूं, इस में तुम क्या सम्मति देते हो? उन्होंने तो मुझ से कहा है, कि जो जूआ तेरे पिता ने हम पर डाल रखा है, उसे तू हलका कर। 10 जवानोंने जो उस के संग बड़े हुए थे उसको यह उत्तर दिया, कि उन लागोंने तुझ से कहा है, कि तेरे पिता ने हमारा जूआ भारी किया या, परन्तु उसे हमारे लिथे हलका कर; तू उन से योंकहना, कि मेरी छिंगुलिया मेरे पिता की कटि से भी मोटी ठहरेगी। 11 मेरे मिता ने तुम पर जो भारी जूआ रखा या, उसे मैं और भी भारी करूंगा; मेरा पिता तो तूम को कोड़ोंसे ताड़ना देता या, परन्तु मैं बिच्छुओं से दूंगा। 12 तीसरे दिन जैसे राजा ने ठहराया या, कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना, वैसे ही यारोबाम और सारी प्रजा रहूबियाम के पास उपस्यित हुई। 13 तब राजा ने उस से कड़ी बातें कीं, और रहूबियाम राजा ने बूढ़ोंकी दी हुई सम्मति छोड़कर 14 जवानोंकी सम्मति के अनुसार उन से कहा, मेरे पिता ने तो तुम्हारा जूआ भारी कर दिया, परन्तु मैं उसे और भी कठिन कर दूंगा; मेरे पिता ने तो तुम को कोड़ोंसे ताड़ना दी, परन्तु मैं बिच्छुओं से ताड़ना दूंगा। 15 इस प्रकार राजा ने प्रजा की बिनती न मानी; इसका कारण यह है, कि जो वचन यहोवा ने शीलोवासी अहिय्याह के द्वारा नबात के पुत्र यारोबाम से कहा या, उसको पूरा करने के लिथे परमेश्वर ने ऐसा ही ठहराया या। 16 जब सब इस्राएलियोंने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता, तब वे बोले कि दाऊद के साय हमारा क्या अंश? हमारा तो यिशै के पुत्र में कोई भाग नहीं है। हे इस्राएलियो, अपके अपके डेरे को चले जाओ। अब हे दाऊद, अपके ही घराने की चिन्ता कर। 17 तब सब इस्राएली अपके डेरे को चले गए। केवल जितने इस्राएली यहूदा के नगरोंमें बसे हुए थे, उन्हीं पर रहूबियाम राज्य करता रहा। 18 तब राजा रहूबियाम ने हदोराम को जो सब बेगारोंपर अधिक्कारनेी या भेज दिया, और इस्राएलियोंने उसको पत्य्रवाह किया और वह मर गया। तब रहूबियाम फुतीं से अपके रय पर चढ़कर, यरूशलेम को भाग गया। 19 योंइस्राएल दाऊद के घराने से फिर गया और आज तक फिरा हुआ है।
1 जब रहूबियाम यरूशलेम को आया, तब उस ने यहूदा और बिन्यामीन के घराने को जो मिलकर एक लाख अस्सी हजार अच्छे योद्धा थे इकट्ठा किया, कि इस्राएल के साय युद्ध करें जिस से राज्य रहूबियाम के वश में फिर आ जाए। 2 तब यहोवा का यह वचन परमेश्वर के भक्त शमायाह के पास पहुंचा, 3 कि यहूदा के राजा सुलैमान के पुत्र रहूबियाम से और यहूदा और बिन्यामीन के सब इस्राएलियोंसे कह, 4 यहोवा योंकहता है, कि अपके भाइयोंपर चढ़ाई करके युद्ध न करो। तुम अपके अपके घर लौट जाओ, क्योंकि यह बात मेरी ही ओर से हुई है। यहोवा के थे वचन मानकर, वे यारोबाम पर बिना चढ़ाई किए लौट गए। 5 सो रहूबियाम यरूशलेम में रहने लगा, और यहूदा में बचाव के लिथे थे नगर दृढ़ किए, 6 अर्यात् बेतलेहेम, एताम, तकोआ, 7 बेत्सूर, सोको, अदुल्लाम। 8 गत, मारेशा, जीप। 9 अदोरैम, लाकीश, अजेका। 10 सोरा, अय्यालोत और हेब्रोन जो यहूदा और बिन्यामीन में हैं, दृढ़ किया। 11 और उस ने दृढ़ नगरोंको और भी दृढ़ करके उन में प्रधान ठहराए, और भोजन वस्तु और तेल और दाखमधु के भणडार रखवा दिए। 12 फिर एक एक नगर में उस ने ढालें और भाले रखवाकर उनको अत्यन्त दृढ़ कर दिया। यहूदा और बिन्यामीन तो उसके थे। 13 और सारे इस्राएल के याजक और लेवीय भी अपके सब देश से उठकर उसके पास गए। 14 योंलेवीय अपक्की चराइयोंऔर निज भूमि छोड़कर, यहूदा और यरूशलेम में आए, क्योंकि यारोबाम और उसके पुत्रोंने उनको निकाल दिया या कि वे यहोवा के लिथे याजक का काम न करें। 15 और उस ने ऊंचे स्यानोंऔर बकरोंऔर अपके बनाए हुए बछड़ोंके लिथे, अपक्की ओर से याजक ठहरा लिए। 16 और लेवियोंके बाद इस्राएल के सब गोत्रोंमें से जितने मन लगाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के खोजी थे वे अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को बलि चढ़ाने के लिथे यरूशलेम को आए। 17 और उन्होंने यहूदा का राज्य स्यिर किया और सुलैमान के पुत्र रहूबियाम को तीन वर्ष तक दृढ़ कराया, क्योंकि तीन वर्ष तक वे दाऊद और सुलैमान की लीक पर चलते रहे। 18 और रहूबियाम ने एक स्त्री को ब्याह लिया, अर्यात् महलत को जिसका पिता दाऊद का पुत्र यरीमोत और माता यिशै के पुत्र एलीआब की बेटी अबीहैल यी। 19 और उस से यूश, शमर्याह और जाहम नाम पुत्र उत्पन्न हुए। 20 और उसके बाद उस ने अबशलोम की बेटी माका को ब्याह लिया, और उस से अबिय्याह, अत्ते, जीजा और शलोमीत उत्पन्न हुए। 21 रहूबियाम ने अठारह रानियां ब्याह लीं और साठ रखेलियां रखीं, और उसके अठाईस बेटे और साठ बेटियां उत्पन्न हुई। अबशलोम की नतिनी माका से वह अपक्की सब रानियोंऔर रखेलियोंसे अधिक प्रेम रखता या; 22 सो रहूबियाम ने माका के बेटे अबिय्याह को मुख्य और सब भाइयोंमें प्रधान इस मनसा से ठहरा दिया, कि उसे राजा बनाए। 23 और वह समझ बूफकर काम करता या, और उस ने अपके सब पुत्रोंको अलग अलग करके यहूदा और बिन्यामीन के सब दाशोंके सब गढ़वाले नगरोंमें ठहरा दिया; और उन्हें भोजन वस्तु बहुतायत से दी, और उनके लिथे बहुत सी स्त्रियां ढूंढ़ी।
1 परन्तु जब रहूबियाम का राज्य दृढ़ हो गया, और वह आप स्यिर हो गया, तब उस ने और उसके साय सारे इस्राएल ने यहोवा की य्यवस्या को त्याग दिया। 2 उन्होंने जो यहोवा से विश्वासघात किया, उस कारण राजा रहूबियाम के पांचपें वर्ष में मिस्र के राजा शीशक ने, 3 बारह सौ रय और साठ हजार सवार लिथे हुए यरूशलेम पर चढ़ाई की, और जो लोग उसके संग मिस्र से आए, अर्यात् लूबी, सुक्किय्यी, कूशी, थे अनगिनत थे। 4 और उस ने यहूदा के गढ़वाले नगरोंको ले लिया, और यरूशलेम तक आया। 5 तब शमायाह नबी रहूबियाम और यहूदा के हाकिमोंके पास जो शीशक के डर के मारे यरूशलेम में इाट्ठे हुए थे, आकर कहने लगा, यहोवा योंकहता है, कि तुम ने मुझ को छोड़ दिया है, इसलिथे मैं ने तुम को छोड़कर शीशक के हाथ में कर दिया है। 6 तब इस्राएल के हाकिम और राजा दीन हो गए, और कहा, यहोवा धमीं है। 7 जब यहोवा ने देखा कि वे दीन हुए हैं, तब यहोवा का यह वचन शमायाह के पास पहुंचा कि वे दीन हो गए हैं, मैं उनको नष्ट न करूंगा; मैं उनका कुछ बचाव करूंगा, और मेरी जलजलाहट शीशक के द्वारा यरूशलेम पर न भड़केगी। 8 तौभी वे उसके अधीन तो रहेंगे, ताकि वे मेरी और देश देश के राज्योंकी भी सेवा जान लें। 9 तब मिस्र का राजा शीशक यरूशलेम पर चढ़ाई करके यहोवा के भवन की अनमोल वस्तुएं और राजभवन की अनमोल वस्तुएं उठा ले गया। वह सब कुछ उठा ले गया, और सोने की जो फरियां सुलैमान ने बनाई यीं, उनको भी वह ले गया। 10 तब राजा रहूबियाम ने उनके बदले पीतल की ढालें बनावाई और उन्हें पहरुओं के प्रधानोंके हाथ सौंप दिया, जो राजभवन के द्वार की रखवाली करते थे। 11 और जब जब राजा यहोवा के भवन में जाता, तब तब पहरुए आकर उन्हें उठा ले चलते, और फिर पहरुओं की कोठरी में लौटाकर रख देते थे। 12 जब रहूबियाम दीन हुआ, तब यहोवा का क्रोध उस पर से उतर गया, और उस ने उसका पूरा विनाश न किया; और यहूदा में अच्छे गुण भी थे। 13 सो राजा रहूबियाम यरूशलेम में दृढ़ होकर राज्य करता रहा। जब रहूबियाम राज्य करने लगा, तब एकनालीस वर्ष की आयु का या, और यरूशलेम में अर्यात् उस नगर में, जिसे यहोवा ने अपना नाम बनाए रखने के लिथे इस्राएल के सारे गोत्र में से चुन लिया या, सत्रह वर्ष तक राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम नामा या, जो अम्मोनी स्त्री यी। 14 उस ने वह कर्म किया जो बुरा है, अर्यात् उस ने अपके मन को यहोवा की खोज में न लगाया। 15 आादि से अन्त तक रहूबियाम के काम क्या शमायाह नबी और इद्दो दशीं की पुस्तकोंमें वंशावलियोंकी रीति पर नहीं लिखे हैं? रहूबियाम और यारोबाम के बीच तो लड़ाई सदा होती रही। 16 और रहूबियाम अपके पुरखाओं के संग सो गया और दाऊदपुर में उसको मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र अबिय्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 यारोबाम के अठारहवें वर्ष में अबिय्याह यहूदा पर राज्य करने लगा। 2 वह तीन वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा, और उसकी माता का नाम मीकायाह या; जो गिबावासी ऊरीएल की बेटी यी। और अबिय्याह और यारोबाम के बीच में लड़ाई हई। 3 अबिय्याह ने तो बड़े योद्धाओं का दल, अर्यात् चार लाख छंटे हुए पुरुष लेकर लड़ने के लिथे पांति बन्धाई, और यारोबाम ने आठ लाख छंटे हुए पुरुष जो एड़े शूरवीर थे, लेकर उसके विरुद्ध पांति बन्धाई। 4 तब अबिय्याह समारैम नाम पहाड़ पर, जो एप्रैम के पहाड़ी देश में है, खड़ा होकर कहने लगा, हे यारोबाम, हे सब इस्राएलियो, मेरी सुनो। 5 क्या तुम को न जानना चाहिए, कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने लोनवाली वाचा बान्धकर दाऊद को और उसके वंश को इस्राएल का राज्य सदा के लिथे दे दिया है। 6 तौभी नबात का पुत्र यारोबाम जो दाऊद के पुत्र सुलैमान का कर्मचारी या, वह अपके स्वामी के विरुद्ध उठा है। 7 और उसके पास हलके और ओछे मनुष्य इकट्ठा हो गए हैं और जब सुलैमान का पुत्र रहूबियाम लड़का और अल्हड़ मन का या और उनका साम्हना न कर सकता या, तब वे उसके विरुद्ध सामयीं हो गए। 8 और अब तुम सोचते हो कि हम यहोवा के राज्य का साम्हना करेंगे, जो दाऊद की सन्तान के हाथ में है, क्योंकि तुम सब मिलकर बड़ा समाज बन गए हो और तुम्हारे पास वे सोने के बछड़े भी हैं जिन्हें यारोबाम ने तुम्हारे देवता होने के लिथे बनवाया। 9 क्या तुम ने यहोवा के याजकोंको, अर्यात् हारून की सन्तान और लेवियोंको निकालकर देश देश के लोगोंकी नाई याजक नियुक्त नहीं कर लिए? जो कोई एक बछड़ा और सात मेढ़े अपना संस्कार कराने को ले आता, तो उनका याजक हो जाता है जो ईश्वर नहीं है। 10 परन्तु हम लोगोंका परमेश्वर यहोवा है और हम ने उसको नहीं त्यागा, और हमारे पास यहोवा की सेवा टहल करनेवाले याजक हारून की सन्तान और अपके अपके काम में लगे हुए लेवीय हैं। 11 और वे नित्य सवेरे और सांफ को यहोवा के लिथे होमबलि और सुगन्धद्रय्य का धूप जलाते हैं, और शूद्ध मेज पर भेंट की रोटी सजाते और सोने की दीवट और उसके दीपक सांफ-सांफ को जलाते हैं; हम तो अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं को मानते रहते हैं, परन्तु तुम ने उसको त्याग दिया है। 12 और देखो, हमारे संग हमारा प्रधान परमेश्वर है, और उसके याजक तुम्हारे विरुद्ध सांस वान्धकर फूंकने को तुरहियां लिथे हुए भी हमारे साय हैं। हे इस्राएलियो अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा से मत लड़ो, क्योंकि तुम कृतार्य न होगे। 13 परन्तु यारोबाम ने घातकोंको उनके पीछे भेज दिया, वे तो यहूदा के साम्हने थे, और घातक उनके पीछे थे। 14 और जब यहूदियोंने पीछे को मुंह फेरा, तो देखा कि हमारे आगे और पीछे दोनोंओर से लड़ाई होनेवाली है; तब उन्होंने यहोवा की दोहाई दी, और याजक तुरहियोंको फूंकने लगे। 15 तब यहूदी पुरुषोंने जय जयकार किया, और जब यहूदी पुरुषोंने जय जयकार किया, तब परमेश्वर ने अबिय्याह और यहूदा के साम्हने, यारोबाम और सारे इस्राएलियोंको मारा। 16 और इस्राएली यहूदा के साम्हने से भागे, और परमेश्वर ने उन्हें उनके हाथ में कर दिया। 17 और अबिय्याह और उसकी प्रजा ने उन्हें बड़ी मार से मारा, यहां तक कि इस्राएल में से पांच लाख छंटे हुए पुरुष मारे गए। 18 उस समय तो इस्राएली दब गए, और यहूदी इस कारण प्रबल हुए कि उन्होंने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखा या। 19 तब अबिय्याह ने यारोबाम का पीछा करके उस से बेतेल, यशाना और एप्रोन नगरोंऔर उनके गांवोंको ले लिया। 20 और अबिय्याह के जीवन भर यारोबाम फिर सामथीं न हुआ; निदान यहोवा ने उसको ऐसा मारा कि वह मर गया। 21 परन्तु अबिय्याह और भी सामयीं हो गया और चौदह स्त्रियां ब्याह लीं जिन से बाइस बेटे और सोलह बेटियां उत्पन्न हुई। 22 और अबिय्याह के काम और उसकी चाल चलन, और उसके वचन, इद्दो नबी की कया में लिखे हैं।
1 निदान अबिय्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया, और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र आसा उसके स्यान पर राज्य करने लगा। इसके दिनोंमें दस वर्ष तक देश में चैन रहा। 2 और आसा ने वही किया जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में अच्छा और ठीक या। 3 उस ने तो पराई वेदियोंको और ऊंचे स्यानोंको दूर किया, और लाठोंको तुड़वा डाला, और अशेरा नाम मूरतोंको तोड़ डाला। 4 और यहूदियोंको आज्ञा दी कि अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा की खोज करें और य्यवस्या और आज्ञा को मानों। 5 और उस ने ऊंचे स्यानोंऔर सूर्य की प्रतिमाओं को यहूदा के सब नगरोंमें से दूर किया, और उसके साम्हने राज्य में चैन रहा। 6 और उस ने यहूदा में गढ़वाले नगर बसाए, क्योंकि देश में चैन रहा। और उन बरसोंमें उसे किसी से लड़ाई न करनी पक्की क्योंकि यहोवा ने उसे विश्रम दिया या। 7 उस ने यहूदियोंसे कहा, आओ हम इन नगरोंको बसाएं और उनके चारोंओर शहरपनाह, गढ़ और फाटकोंके पल्ले और बेड़े बनाएं; देश अब तक हमारे साम्हने पड़ा है, क्योंकि हम ने, अपके परमेश्वर यहोवा की खोज की है हमने उसकी खोज की और उस ने हमको चारोंओर से विश्रम दिया है। तब उन्होंने उन नगरोंको बसाया और कृतार्य हुए। 8 फिर आसा के पास ढाल और बछीं रखनेवालोंकी एक सेना थी, अर्यात् यहूदा में से तो तीन लाख पुरुष और बिन्यामीन में से फरी रखनेवाले और धनुर्धारी दो लाख अस्सी हजार थे सब शूरवीर थे। 9 और उनके विरुद्ध दस लाख पुरुषोंकी सेना और तीन सौ रय लिथे हुए जेरह नाम एक कूशी निकला और मारेशा तक आ गया। 10 तब आसा उसका साम्हना करने को चला और मारेशा के निकट सापता नाम तराई में युद्ध की पांति बान्धी गई। 11 तब आसा ने अपके परमेश्वर यहोवा की योंदोहाई दी, कि हे यहोवा ! जैसे तू सामयीं की सहाथता कर सकता है, वैसे ही शक्तिहीन की भी; हे हमारे परमेश्वर यहोवा ! हमारी सहाथता कर, क्योंकि हमारा भरोसा तुझी पर है और तेरे नाम का भरोसा करके हम इस भीड़ के विरुद्ध आए हैं। हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है; मनुष्य तुझ पर प्रबल न होने पाएगा। 12 तब यहोवा ने कूशियोंको आसा और यहूदियोंके साम्हने मारा और कूशी भाग गए। 13 और आसा और उसके संग के लोगोंने उनका पीछा गरार तक किया, और इतने कूशी मारे गए, कि वे फिर सिर न उठा सके क्योंकि वे यहोवा और उसकी सेना से हार गए, और यहूदी बहुत सा लूट ले गए। 14 और उन्होंने गरार के आस पास के सब नगरोंको मार लिया, क्योंकि यहोवा का भय उनके रहनेवालोंके मन में समा गया और उन्होंने उन नगरोंको लूट लिया, क्योंकि उन में बहुत सा धन या। 15 फिर पशु-शालाओं को जीतकर बहुत सी भेड़- बकरियां और ऊंट लूटकर यरूशलेम को लौटे।
1 तब परमेश्वर का आत्मा ओदेद के पुत्र अजर्याह में समा गया, 2 और वह आसा से भेंट करने निकला, और उस से कहा, हे आसा, और हे सारे यहूदा और बिन्यामीन मेरी सुनो, जब तक तुम यहोवा के संग रहोगे तब तक वह तुम्हारे संग रहेगा; और यदि तुम उसकी खोज में लगे रहो, तब तो वह तुम से मिला करेगा, परन्तु यदि तुम उसको त्याग दोगे तो वह भी तुम को त्याग देगा। 3 बहुत दिन इस्राएल बिना सत्य परमेश्वर के और बिना सिखानेवाले याजक के और बिना ब्यवस्या के रहा। 4 परन्तु जब जब वे संकट में पड़कर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर फिरे और उसको ढूंढ़ा, तब तब वह उनको मिला। 5 उस समय न तो जानेवाले को कुछ शांति होती यी, और न आनेवाले को, वरन सारे देश के सब निवासियोंमें बड़ा ही कोलाहल होता या। 6 और जाति से जाति और तगर से नगर चूर किए जाते थे, क्योंकि परमेश्वर नाना प्रकार का कष्ट देकर उन्हें घबरा देता या। 7 परन्तु तुम लोग हियाब बान्धो और तुम्हारे हाथ ढीले न पकें, क्योंकि तुम्हारे काम का बदला मिलेगा। 8 जब आसा ने थे वचन और ओदेद नबी की नबूवत सुनी, तब उस ने हियाब बान्धकर यहूदा और बिन्यामीन के सारे देश में से, और उन नगरोंमें से भी जो उस ने एप्रैम के पहाड़ी देश में ले लिथे थे, सब घिनौनी वस्तुएं दूर कीं, और यहोवा की जो वेदी यहोवा के ओसारे के साम्हने यी, उसको नथे सिक्के से बनाया। 9 और उस ने सारे यहूदा और बिन्यामीन को, और एप्रैम, मनश्शे और शिमोन में से जो लोग उसके संग रहते थे, उनको इकट्ठा किया, क्योंकि वे यह देखकर कि उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग रहता है, इस्राएल में से उसके पास बहुत से चले आए थे। 10 आसा के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष के तीसरे महीने में वे यरूशलेम में इाट्ठे हुए। 11 और उसी समय उन्होंने उस लूट में से जो वे ले आए थे, सात सौ बैल और सात हजार भेड़-बकरियां, यहोवा को बलि करके चढ़ाई। 12 और उन्होंने वाचा बान्धी कि हम अपके पूरे मन और सारे जीव से अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा की खोज करेंगे। 13 और क्या बड़ा, क्या छोटा, क्या स्त्री, क्या पुरुष, जो कोई इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की खोज न करे, वह मार डाला जाएगा। 14 और उन्होंने जय जयकार के साय तुरहियां और नरसिंगे बजाते हुए ऊंचे शब्द से यहोवा की शपय खाई। 15 और यह शपय खाकर सब यहूदी आनन्दित हुए, क्योंकि उन्होंने अपके सारे मन से शपया खाई और बडी अभिलाषा से उसको ढूंढ़ा और वह उनको मिला, और यहोवा ने चारोंओर से उन्हें विश्रम दिया। 16 बरन आसा राजा की माता माका जिस ने अशेरा के पास रखने के लिए एक घिनौनी मूरत बनाई, उसको उस ने राजमाता के पद से उतार दिया, और आसा ने उसकी मूरत काटकर पीस डाली और किद्रोन नाले में फूंक दी। 17 ऊंचे स्यान तो इस्राएलियोंमें से न ढाए गए, तौभी आसा का मन जीवन भर तिष्कपट रहा। 18 और उस ने जो सोना चान्दी, और पात्र उसके पिता ने अर्पण किए थे, और जो उस ने आप अर्पण किए थे, उनको परमेश्वर के भवन में पहंचा दिया। 19 और राजा आसा के राज्य के पैंतीसवें वर्ष तक फिर लड़ाई न हुई।
1 आसा के राज्य के छत्तीसवें वर्ष में इस्राएल के राजा बाशा ने यहूदा पर चढ़ाई की और रामा को इसलिथे दृढ़ किया, कि यहूदा के राजा आसा के पास कोई आने जाने न पाए। 2 तब आस ने यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारोंमें से चान्दी-सोना निकाल दमिश्कवासी अराम के राजा बेन्हदद के पास दूत भेजकर यह कहा, 3 कि जैसे मेरे-तेरे पिता के बीच वैसे ही मेरे-तेरे बीच भी वाचा बन्धे; देख मैं तेरे पास चान्दी-सोना भेजता हूं, इसलिथे आ, इस्राएल के राजा बाशा के साय की अपक्की वाचा को तोड़ दे, ताकि वह मुझ से दूर हो। 4 बेन्हदद ने राजा आसा की यह बात मानकर, अपके दलोंके प्रधानोंसे इस्राएली नगरोंपर चढ़ाई करवाकर इय्योन, दान, आबेल्मैम और नप्ताली के सब भणडारवाले नगरोंको जीत लिया। 5 यह सुनकर बाशा ने रामा को दृढ़ करना छोड़ दिया, और अपना वह काम बन्द करा दिया। 6 तब राजा आसा ने पूरे यहूदा देश को साय लिया और रामा के पत्यरोंऔर लकड़ी को, जिन से बासा काम करता या, उठा ले गया, और उन से उस ने गेवा, और मिस्पा को दृढ़ किया। 7 उस समय हनानी दशीं यहूदा के राजा आसा के पास जाकर कहने लगा, तू ने जो अपके परमेश्वर यहोवा पर भरोसा नही रखा वरन अराम के राजा ही पर भरोसा रखा है, इस कारण अराम के राजा की सेना तेरे हाथ से बच गई है। 8 क्या कूशियोंऔर लूबियोंकी सेना बड़ी न यी, और क्या उस में बहुत ही रय, और सवार न थे? तौभी तू ने यहोवा पर भरोसा रखा या, इस कारण उस ने उनको तेरे हाथ में कर दिया। 9 देख, यहोवा की दृष्टि सारी पृय्वी पर इसलिथे फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कमट रहता है, उनकी सहाथता में वह अपना सामर्य दिखाए। तूने यह काम मूर्खता से किया है, इसलिथे अब से तू लड़ाइयोंमे फंसा रहेगा। 10 तब आसा दशीं पर क्रोधित हुआ और उसे काठ में ठोंकवा दिया, क्योंकि वहउसकी ऐसी बात के कारण उस पर क्रोधित या। और उसी समय से आसा प्रजा के कुछ लोगोंको पीसने भी लगा। 11 आदि से लेकर अन्त तक आसा के काम यहूदा औ इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त में लिखे हैं। 12 अपके राज्य के उनतीसवें वर्ष में आसा को पांव का रोग हुआ, और वह रोग अत्यन्त बढ़ गया, तौभी उस ने रोगी होकर यहोवा की नहीं वैद्योंही की शरण ली। 13 निदान आसा अपके राज्य के एकतालीसवें वर्ष में मरके अपके पुरखाओं के साय सो गया। 14 तब उसको उसी की कब्र में जो उस ने दाऊदपुर में खुदवा ली यी, मिट्टी दी गई; और वह सुगन्धद्रय्योंऔर गंधी के काम के भांति भांति के मसालोंसे भरे हुए एक बिछौने पर लिटा दिया गया, और बहुत सा सुगन्धद्रय्य उसके लिथे जलाया गया।
1 और उसका पुत्र यहोशापात उसके स्यान पर राज्य करने लगा, और इस्राएल के विरुद्ध अपना बल बढ़ाया। 2 और उस ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरोंमें सिपाहियोंके दल ठहरा दिए, और यहूदा के देश में और एप्रैम के उन नगरोंमें भी जो उसके पिता आसा ने ले लिथे थे, सिपाहियोंकी चौकियां बैठा दीं। 3 और यहोवा यहोशापात के संग रहा, क्योंकि वह अपके मूलपुरुष दाऊद की प्राचीन चाल सी चाल चला और बाल देवताओं की खोज में न लगा। 4 वरन वह अपके पिता के परमेश्वर की खोज में लगा रहता या और उसी की आज्ञाओं पर चलता या, और इस्राएल के से काम नहीं करता या। 5 इस कारएा यहोवा ने रज्य को उसके हाथ में दृढ़ किया, और सारे यहूदी उसके पास भेंट लाया करते थे, और उसके पास बहुत धन और उसका विभव बढ़ गया। 6 और यहोवा के मागॉं पर चलते चलते उसका मन मगन हो गया; फिर उस ने यहूदा से ऊंचे स्यान और अशेरा नाम मूरतें दूर कर दीं। 7 और उस ने अपके राज्य के तीसरे वर्ष में बेन्हैल, ओबद्याह, जकर्याह, नतनेल और मीकायाह नामक अपके हाकिमोंको यहूदा के नगरोंमें शिझा देने को भेज दिया। 8 और उनके साय शमायाह, नतन्याह, जबद्याह, असाहेल, शमीरामोत, यहोनातान, अदोनिय्याह, तोबिय्याह और तोबदोनिय्याह, नाम लेवीय और उनके संग एलीशामा और यहोराम नामक याजक थे। 9 सो उन्होंने यहोवा की य्यवस्या की पुस्तक अपके साय लिथे हुए यहूदा में शिझा दी, वरन वे यहूदा के सब नगरोंमें प्रजा को सिखाते हुए घूमे। 10 और यहूदा के आस पास के देशोंके राज्य राज्य में यहोवा का ऐसा डर समा गया, कि उन्होंने यहोशापात से युद्ध न किया। 11 वरन किनते पलिश्ती यहोशपात के पास भेंट और कर समझकर चान्दी लाए; और अरबी लोग भी सात हजार सात सौ मेढ़े और सात हजार सात सौ बकरे ले आए। 12 और यहोशापात बहुत ही बढ़ता गया और उस ने यहूदा में किले और भण्डार के नगर तैयार किए। 13 और यहूदा के नगरोंमें उसका बहुत काम होता या, और यरूशलेम में उसके योद्धा अर्यात् शूरवीर रहते थे। 14 और इनके पितरोंके घरानोंके अनुसार इनकी यह गिनती यी, अर्यात् यहूदी सहस्रपति तो थे थे, प्रधान अदना जिसके साय तीन लाख शूरवीर थे, 15 और उसके बाद प्रधान यहोहानान जिसके साय दो लाख अस्सी हजार पुरुष थे। 16 और इसके बाद जिक्री का पुत्र अमस्याह, जिस ने अपके को अपक्की ही इच्छा से यहोवा को अर्पण किया या, उसके साय दो लाख शूरवीर थे। 17 फिर बिन्यामीन में से एल्यादा नामक एक शूरवीर जिसके साय ढाल रखनेवाले दो लाख धनुर्धारी थे। 18 और उसके नीचे यहोजाबाद जिसके साय युद्ध के हयियार बान्धे हुए एक लाख अस्सी हजार पुरुष थे। 19 वे थे हैं, जो राजा की सेवा में लवलीन थे। और थे उन से अलग थे जिन्हें राजा ने सारे यहूदा के गढ़वाले नगरोंमें ठहरा दिया।
1 यहोशपात बड़ा धनवान और ऐश्वर्य्यवान हो गया; और उस ने अहाब के साय समधियाना किया। 2 कुछ वर्ष के बाद वह शोमरोन में अहाब के पास गया, तब अहाब ने उसके और उसके संगियोंके लिथे बहुत सी भेड़-बकरियां और गाय-बैल काटकर, उसे गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करने को उसकाया। 3 और इस्राएल के राजा अहाब ने यहूदा के राजा यहोशापात से कहा, क्या तू मेरे साय गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करेगा? उस ने उसे उत्तर दिया, जैसा तू वैसा मैं भी हूँ, और जैसी तेरी प्रजा, वैसी मेरी भी प्रजा है। हम लोग युद्ध में तेरा साय देंगे। 4 फिर यहोशापात ते इस्राएल के राजा से कहा, आज यहोवा की आज्ञा ले। 5 तब इस्राएल के राजा ने नबियोंको जो चार सौ पुरुष थे, इकट्ठा करके उन से पूछा, क्या हम गिलाद के रामोत पर युद्ध करने को चढ़ाई करें, अयवा मैं रुका रहूं? उन्होंने उत्तर दिया चढ़ाई कर, क्योंकि परमेश्वर उसको राजा के हाथ कर देगा। 6 परन्तु यहोशापात ने पूछा, क्या यहोंयहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिस से हम पूछ लें? 7 इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, हां, एक पुरुष और है, जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछ सकते हैं; परन्तु मैं उस से घृणा करता हूँ; क्योंकि वह मेरे विष्य कभी कल्याण की नहीं, सदा हानि ही की नबूवत करता है। वह यिम्ला का पुत्र मीकायाह है। यहोशापात ने कहा, राजा ऐसा न कहे। 8 तब इस्राएल के राजा ने एक हाकिम को बुलवाकर कहा, यिम्ला के पुत्र मीकायाह को फुतीं से ले आ। 9 इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा यहोशापात अपके अपके राजवस्त्र पहिने हुए, अपके अपके सिंहासन पर बैठे हुए थे; वे शोमरोन के फाटक में एक खुले स्यान में बैठे थे और सब नबी उनके साम्हने नबूवत कर रहे थे। 10 तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने लोहे के सींग बनवाकर कहा, यहोवा योंकहता है, कि इन से तू अरामियोंको मारते मारते नाश कर डालेगा। 11 और सब नबियोंने इसी आशय की नबूवत करके कहा, कि गिलाद के रामोत पर चढ़ाई कर और तू कृतार्य होवे; क्योंकि यहोवा उसे राजा के हाथ कर देगा। 12 और जो दूत मीकायाह को बुलाने गया या, उस ने उस से कहा, सुन, नबी लोग एक ही मुंह से राजा के विषय हाुभ वचन कहते हैं; सो तेरी बात उनकी सी हो, तू भी शुभ वचन कहना। 13 मीकायाह ने कहा, यहोवा के जीवन की सौंह, जो कुछ मेरा परमेश्वर कहे वही मैं भी कहूंगा। 14 जब वह राजा के पास आया, तब राजा ने उस से पूछा, हे मीकायाह, क्या हम गिलाद के रामोत पर युद्ध करने को चढ़ाई करें अयवा मैं रुका रहूं? उस ने कहा, हां, तुम लोग चढ़ाई करो, और कृतार्य होओ; और वे तुम्हारे हाथ में कर दिए जाएंगे। 15 राजा ने उस से कहा, मुझे कितनी बार तुझे शपय धराकर चिताना होगा, कि तू यहोवा का स्मरण करके मुझ से सच ही कह। 16 मीकायाह ने कहा, मुझे सारा इस्राएल बिना चरवाहे की भेंड़-बकरियोंकी नाई पहाड़ोंपर तितर बितर दिखाई पड़ा, और यहोवा का वचन आया कि वे तो अनाय हैं, इसलिथे हर एक अपके अपके घर कुशल झेम से लौट जाएं। 17 तब इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा या, कि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं, हानि ही की नबूवत करेगा? 18 मीकायाह ने कहा, इस कारण तुम लोग यहोवा का यह वचन सुनो : मुझे सिंहासन पर विराजमान यहोवा और उसके दाहिने बाएं खड़ी हुई स्वर्ग की सारी सेना दिखाई पक्की। 19 तब यहोवा ने पूछा, इस्राएल के राजा अहाब को कौन ऐसा बहकाएगा, कि वह गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करके खेत आए, तब किसी ने कुछ और किसी ने कुछ कहा। 20 निदान एक आत्मा पास आकर यहोवा के सम्मुख खड़ी हुई, और कहने लगी, मैं उसको बहकाऊंगी। 21 यहोवा ने पूछा, किस उपाय से? उस ने कहा, मैं जाकर उसके सब नबियोंमें पैठ के उन से फूठ बुलवाऊंगी। यहोवा ने कहा, तेरा उसको बहकाना सफल होगा, जाकर ऐसा ही कर। 22 इसलिथे तुन अब यहोवा ने तेरे इन नबियोंके मुंह में एक फूठ बोलनेवाली आत्मा पैठाई है, और यहोवा ने तेरे विषय हानि की बात कही है। 23 तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने निकट जा, मीकायाह के गाल पर यप्पड़ मारकर पूछा, यहोवा का आत्मा मुझे छोड़कर तुझ से बातें करने को किधर गया। 24 उस ने कहा, जिस दिन तू छिपके के लिथे कोठरी से कोठरी में भागेगा, तब जान लेगा। 25 इस पर इस्राएल के राजा ने कहा, कि मीकायाह को नगर के हाकिम आमोन और राजकुमार योआश के पास लौटाकर, 26 उन से कहो, राजा योंकहता है, कि इसको बन्दीगृह में डालो, और जब तक मैं कुशल से न आऊं, तब तक इसे दु:ख की रोटी और पानी दिया करो। 27 तब मीकायाह ने कहा, यदि तू कभी कुशल से लौटे, तो जान, कि यहोवा ने मेरे द्वारा नहीं कहा। फिर उस ने कहा, हे लोगो, तुम सब के सब सुनं लो। 28 तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा यहोशापात दोनोंने गिलाद के रामोत पर चढ़ाई की। 29 और इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, मैं तो भेष बदलकर युद्ध में जाऊंगा, परन्तु तू अपके ही वस्त्र पहिने रह। इस्राएल के राजा ने भेष बदला और वे दोनोंयुद्ध में गए। 30 अराम के राजा ने तो अपके रयोंके प्रधानोंको आज्ञा दी यी, कि न तो छोटे से लड़ो और न बड़े से, केवल इस्राएल के राजा से लड़ो। 31 सो जब रयोंके प्रधानोंने यहोशापात को देखा, तब कहा इस्राएल का राजा वही है, और वे उसी से लड़ने को मुड़े। इस पर यहोशापात चिल्ला उठा, तब यहोवा ने उसकी सहाथता की। और परमेश्वर ने उनको उसके पास से फिर जाने की प्रेरणा की। 32 सो यह देखकर कि वह इस्राएल का राजा नही है, रयोंके प्रधान उसका पीछा छोड़ के लौट गए। 33 तब किसी ने अटकल से एक तीर चलाया, और वह इस्राएल के राजा के फिलम और निचले वस्त्र के बीच छेदकर लगा; तब उस ने अपके सारयी से कहा, मैं घायल हुआ, इसलिथे लगाम फेरके मुझे सेना में से बाहर ले चल। 34 और उस दिन युद्ध बढ़ता गया और इस्राएल का राजा अपके रय में अरामियोंके सम्मुख सांफ तक खड़ा रहा, परन्तु सूर्य अस्त होते-होते वह मर गया।
1 और यहूदा का राजा यहोशापात यरूशलेम को अपके भवन में कुशल से लौट गया। 2 तब हनानी नाम दशीं का पुत्र थेहू यहोशापात राजा से भेंट करने को निकला और उस से कहने लगा, क्या दुष्टोंकी सहाथता करनी और यहोवा के बैरियोंसे प्रेम रखना चाहिथे? इस काम के कारण यहोवा की ओर से तुझ पर क्रोध भड़का है। 3 तौभी तुझ में कुछ अच्छी बातें पाई जाती हैं। तू ने तो देश में से अशेरोंको नाश किया और उपके मन को परमेश्वर की खोज में लगाया है। 4 यहोशापात यरूशलेम में रहता या, और उस ने बेर्शेबा से लेकर बप्रैम के पहाड़ी देश तक अपक्की प्रजा में फिर दौरा करके, उनको उनके पितरोंके परमेश्वर यहोवा की ओर फेर दिया। 5 फिर उस ने यहूदा के एक एक गढ़वाले नगर में न्यायी ठहराया। 6 और उस ने न्यायियोंसे कहा, सोचो कि क्या करते हो, क्योंकि तुम जो न्याय करोगे, वह मनुष्य के लिथे नहीं, यहोवा के लिथे करोगे; और वह न्याय करते समय तुम्हारे साय रहेगा। 7 अब यहोवा का भय तुम में बना रहे; चौकसी से काम करना, क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा में कुछ कुटिलता नहीं है, और न वह किसी का पझ करता और न घूस लेता है। 8 और यरूशलेम में भी यहोशापात ने लेवियोंऔर याजकोंऔर इस्राएल के पितरोंके घरानोंके कुछ मुख्य पुरुषोंको यहोवा की ओर से न्याय करने और मुकद्दमोंको जांचने के लिथे ठहराया। 9 और वे यरूशलेम को लौटे। और उस ने उनको आज्ञा दी, कि यहोवा का भय मानकर, सच्चाई और निष्कपट मन से ऐसा करना। 10 तुम्हारे भाई जो अपके अपके नगर में रहते हैं, उन में से जिसका कोई मुकद्दमा तुम्हारे साम्हने आए, चाहे वह खून का हो, चाहे य्यवस्या, अयवा किसी आज्ञा या विधि वा नियम के विषय हो, उनको चिता देना, कि यहोवा के विषय दोषी न होओ। बेसा न हो कि तुम पर और तुम्हारे भाइयोंपर उसका क्रोध भड़के। ऐसा करो तो तुम दोषी न ठहरोगे। 11 और देखो, यहोवा के विष्य के सब मुकद्दमोंमें तो अमर्याह महाथाजक और राजा के विषय के सब मुकद्दमोंमें यहूदा के घराने का प्रधान इश्माएल का पुत्र जबद्याह तुम्हारे ऊपर अधिक्कारनेी है; और लेवीय तुम्हारे साम्हने सरदारोंका काम करेंगे। इसलिथे हियाब बान्धकर काम करो और भले मनुष्य के साय यहोवा रहेगा।
1 इसके बाद मोआबियोंऔर अम्मोनियोंने और उनके साय कई मूनियोंने युद्ध करने के लिथे यहोशाात पर चढ़ाई की। 2 तब लोगोंने आकर यहोशापात को बता दिया, कि ताल के पार से एदोम देश की ओर से एक बड़ी भीड़ तुझ पर चढ़ाई कर रही है; और देख, वह हसासोन्तामार तक जो एनगदी भी कहलाता है, पहुंच गई है। 3 तब यहोशपात डर गया और यहोवा की खोज में लग गया, और पूरे यहूदा में उपवास का प्रचार करवाया। 4 सो यहूदी यहोवा से सहाथता मांगने के लिथे इकट्ठे हुए, वरन वे यहूदा के सब नगरोंसे यहोवा से भेंट करते को आए। 5 तब यहोशपात यहोवा के भवन में नथे आंगन के साम्हने यहूदियोंऔर यरूशलेमियोंकी मण्डली में खड़ा होकर 6 यह कहने लगा, कि हे हमारे पितरोंके परमेश्वर यहोवा ! क्या तू स्वर्ग में परमेश्वर नहीं है? और क्या तू जाति जाति के सब राज्योंके ऊपर प्रभुता नहीं करता? और क्या तेरे हाथ में ऐसा बल और पराक्रम नहीं है कि तेरा साम्हना कोई नहीं कर सकता? 7 हे हमारे परमेश्वर ! क्या तू ने इस देश के निवासिक्कों अपक्की प्रजा इस्राएल के साम्हने से निकालकर इन्हें अपके मित्र इब्राहीम के वंश को सदा के लिथे नहीं दे दिया? 8 वे इस में बस गए और इस में तेरे नाम का एक पवित्रस्यान बनाकर कहा, 9 कि यदि तलवार या मरी अयवा अकाल वा और कोई विपत्ति हम पर पके, तौभी हम इसी भवन के साम्हने और तेरे साम्हने (तेरा नाम तो इस भवन में बसा है) खड़े होकर, अपके क्लेश के कारण तेरी दोहाई देंगे और तू सुनकर बचाएगा। 10 और अब अम्मोनी और मोआबी और सेईर के पहाड़ी देश के लोग जिन पर तू ने इस्राएल को मिस्र देश से आते समय चढ़ाई करने न दिया, और वे उनकी ओर से मुड़ गए और उनको विनाश न किया, 11 देख, वे ही लोग तेरे दिए हुए अधिक्कारने के इस देश में से जिसका अधिक्कारने तू ने हमें दिया है, हम को निकालकर कैसा बदला हमें दे रहे हैं। 12 हे हमारे परमेश्वर, क्या तू उनका न्याय न करेगा? यह जो बड़ी भीड़ हम पर चढ़ाई कर रही है, उसके साम्हने हमारा तो बस नहीं चलता और हमें हुछ सूफता नहीं कि क्या करना चाहिथे? परन्तु हमारी आंखें तेरी ओर लगी हैं। 13 और सब यहूदी अपके अपके बालबच्चों, स्त्रिीयोंऔर पुत्रोंसमेत यहोवा के सम्मुख खड़े रहे। 14 तब आसाप के वंश में से यहजीएल नाम एक लेवीय जो जकर्याह का पुत्र और बनायाह का पोता और मत्तन्याह के पुत्र यीएल का परपोता या, उस में मण्डली के बीच यहोवा का आत्मा समाया। 15 और वह कहने लगा, हे सब यहूदियो, हे यरूशलेम के रहनेवालो, हे राजा यहोशापात, तुम सब ध्यान दो; यहोवा तुम से योंकहता है, तुम इस बड़ी भीड़ से मत डरो और तुम्हारा मन कच्चा न हो; क्योंकि युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्वर का है। 16 कल उनका साम्हना करने को जाना। देखो वे सीस की चढ़ाई पर चढ़े आते हैं और यरूएल नाम जंगल के साम्हने नाले के सिक्के पर तुम्हें मिलेंगे। 17 इस लड़ाई में तुम्हें लड़ना न होगा; हे यहूदा, और हे यरूशलेम, ठहरे रहना, और खड़े रहकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखना। मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो; कल उनका साम्हना करने को चलना और यहोवा तुम्हारे साय रहेगा। 18 तब यहोशापात भूमि की ओर मुंह करके भुका और सब यहूदियोंऔर यरूशलेम के निवासियोंने यहोवा के साम्हने गिरके यहोवा को दण्डवत किया। 19 और कहातियोंऔर कोरहियोंमें से कुछ लेवीय खड़े होकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की स्तुति अत्यन्त ऊंचे स्वर से करने लगे। 20 बिहान को वे सबेरे उठकर तकोआ के जंगल की ओर निकल गए; और चलते समय यहोशापात ने खड़े होकर कहा, हे यहूदियो, हे यरूशलेम के निवासियो, मेरी सुुनो, अपके परमेश्वर यहोवा पर विश्वास रखो, तब तुम स्यिर रहोगे; उसके नबियोंकी प्रतीत करो, तब तुम कृतार्य हो जाओगे। 21 तब उस ने प्रजा के साय सम्मति करके कितनोंको ठहराया, जो कि पवित्रता से शोभायमान होकर हयियारबन्दोंके आगे आगे चलते हुए यहोवा के गीत गाएं, और यह कहते हुए उसकी स्तुति करें, कि यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि उसकी करुणा सदा की है। 22 जिस समय वे गाकर स्तुति करने लगे, उसी समय यहोवा ने अम्मोनियोंमोआबियोंऔर सेईर के पहाड़ी देश के लोगोंपर जो यहूदा के विरुद्ध आ रहे थे, घातकोंको बैठा दिया और वे मारे गए। 23 क्योंकि अम्मोनियोंऔर मोआबियोंने सेईर के पहाड़ी देश के निवासिक्कों डराने और सत्यानाश करने के लिथे उन पर चढ़ाई की, और जब वे सेईर के पहाड़ी देश के निवासियोंका अन्त कर चुके, तब उन सभोंने एक दूसरे के नाश करने में हाथ लगाया। 24 सो जब यहूदियोंने जंगल की चौकी पर पहुंचकर उस भीड़ की ओर दृष्टि की, तब क्या देख कि वे भूमि पर पक्की हुई लोय हैं; और कोई नहीं बचा। 25 तब यहोशापात और उसकी प्रजा लूट लेने को गए और लोयोंके बीचा बहुत सी सम्मत्ति और मनभावने गहने मिले; उन्होंने इतने गहने उतार लिथे कि उनको न ले जा सके, वरन लूट इतनी मिली, कि बटोरते बटोरते तीन दिन बीत गए। 26 चौथे दिन वे बराका नाम तराई में इकट्ठे हुए और वहां यहोवा का धन्यवाद किया; इस कारण उस स्यान का नाम बराका की तािई पड़ा, जो आज तक है। 27 तब वे, अर्यात् यहूदा और यरूशलेम नगर के सब पुरुष और उनके आगे आगे यहोशापात, आनन्द के साय यरूशलेम लौटे क्योंकि यहोवा ने उन्हें शत्रुओं पर आनन्दित किया या। 28 सो वे सारंगियां, वीणाएं और तुरहियां बजाते हुए यरूशलेम में यहोवा के भवन को आए। 29 और जब देश देश के सब राज्योंके लोगोंने सुना कि इस्राएल के शत्रुओं से यहोवा लड़ा, तब उनके मन में परमेश्वर का डर समा गया। 30 और यहोशापात के राज्य को चैन मिला, क्योंकि उसके परमेश्वर ने उसको चारोंओर से विश्रम दिया। 31 योंयहोशापात ने यहूदा पर राज्य किया। जब वह राज्य करने लगा तब वह पैंतीस वर्ष का या, और पच्चीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अजूबा या, जो शिल्ही की बेटी यी। 32 और वह अपके पिता आसा की लीक पर चला ओर उस से न मुड़ा, अर्यात् जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही वह करता रहा। 33 तौभी ऊंचे स्यान ढाए न गए, वरन अब तक प्रजा के लोगोंने अपना मन अपके पितरोंके परमेश्वर की ओर न लगाया या। 34 और आदि से अन्त तक यहोशापात के और काम, हनानी के पुत्र थेहू के विषय उस वृत्तान्त में लिखे हैं, जो इस्राएल के राजाओं के वृत्तान्त में पाया जाता हैं। 35 इसके बाद यहूद के राजा यहोशापात ने इस्राएल का राजा अहज्याह से जो बड़ी दुष्टता करता या, मेल किया। 36 अर्यात् उस ने उसके साय इसलिथे मेल किया कि तशींश जाने को जहाज बनवाए, और उन्होंने ऐसे जहाज एस्योनगेबेर में बनवाए। 37 तब दोदावाह के पुत्र मारेशावासी एलीआजर ने यहोशापात के विरुृद्ध यह नबूवत कही, कि तू ने जो अहज्याह से मेल किया, इस कारण यहोवा तेरी बनवाई हुई वस्तुओं को तोड़ डालेगा। सो जहरज टूट गए और तशींश को न जा सके।
1 निदान यहोशापात अपके पुरखाओं के संग सो गया, और उसको उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र यहोराम उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 2 इसके भाई जो यहोशापात के पुत्र थे, थे थे, अर्यात् अजर्याह, यहीएल, जकर्याह, अजर्याह, मीकाएल और शपत्याह; थे सब इस्राएल के राजा यहोशापात के पुत्र थे। 3 और उनके पिता ने उन्हे चान्दी सोना और अनमोल वस्तुएं और बड़े बड़े दान और यहूदा में गढ़वाले नगर दिए थे, परन्तु यहोराम को उस ने राज्य दे दिया, क्योंकि वह जेठा या। 4 जब यहोराम अपके पिता के राज्य पर नियुक्त हुआ और बलवन्त भी हो गया, तब उसने अपके सब भाइयोंको और इस्राएल के कुछ हाकिमोंको भी तलवार से घात किया। 5 जब यहोराम राजा हुआ, तब वह बत्तीस वर्ष का या, और वह आठ वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 6 वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता या, क्योंकि उसकी पत्नी अहाब की बेटी यी। और वह उस काम को करता या, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 7 तौभी यहोवा ने दाऊद के घराने को नाश करना न चाहा, यह उस वाचा के कारण या, जो उसने दाऊद से बान्धी यी। और उस वचन के अनुसार या, जो उस ने उसको दिया या, कि में ऐसा करूंगा कि तेरा और तेरे वंश का दीपक कभी न बुफेगा। 8 उसके दिनोंमें एदोम ने यहूदा की अधीनता छोड़कर अपके ऊपर एक राजा बना लिया। 9 सो यहोराम अपके हाकिमोंऔर अपके सब रयोंको साय लेकर उधर गया, और रयोंके प्रधानोंको मारा। 10 योंएदोम यहूदा के वश से छूट गया और आज तक वैसा ही है। उसी समय लिब्ना ने भी उसकी अधीनता छोड़ दी, यह इस कारण हुआ, कि उस ने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया या। 11 और उस ने यहूदा के पहाड़ोंपर ऊंचे स्यान बनाए और यरूशलेम के निवासिक्कों य्यभिचार कराया, और यहूदा को बहका दिया। 12 तब एलिय्याह नबी का एक पत्र उसके पास आया, कि तेरे मूलपुरुष दाऊद का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि तू जो न तो अपके पिता यहोशापात की लीक पर चला है और न यहूदा के राजा आसा की लीक पर, 13 वरन इस्राएल के राजाओं की लीक पर चला है, और अहाब के घराने की नाई यहूलियोंऔर यरूशलेम के निवासिक्कों य्यभिचार कराया है और अपके पिता के घराने में से अपके भाइयोंको जो तुझ से अच्छे थे, घात किया है, 14 इस कारण यहोवा तेरी प्रजा, पुत्रों, स्त्रियोंऔर सारी सम्मत्ति को बड़ी मार से मारेगा। 15 और तू अंतडिय़ोंके रोग से बहुत पीड़ित हो जाएगा, यहां तक कि उस रोग के कारण तेरी अंतडिय़ां प्रतिदिन निकलती जाएंगी। 16 और यहोवा ने पलिश्तियोंको और कूशियोंके पास रहनेवाले अरबियोंको, यहोराम के विरुद्ध उभारा। 17 और वे यहूदा पर चढ़ाई करके उस पर टूट पके, और राजभवन में जितनी सम्पत्ति मिली, उस सब को और राजा के पुत्रोंऔर स्त्रियोंको भी ले गए, यहां तक कि उसके लहुरे बेटे यहोआहाज को छोड़, उसके पास कोई भी पुत्र न रहा। 18 इन सब के बाद यहोवा ने उसे अंतडिय़ोंके असाध्यरोग से पीड़ित कर दिया। 19 और कुछ समय के बाद अर्यात् दो वर्ष के अन्त में उस रोग के कारण उसकी अंतडिय़ां निकल पक्कीं, ओर वह अत्यन्त पीड़ित होकर मर गया। और उसकी प्रजा ने जैसे उसके पुरखाओं के लिथे सुगन्धद्रय्य जलाया या, वैसा उसके लिथे कुछ न जलाया। 20 वह जब रज्य करने लगा, तब बत्तीस वर्ष का या, और यरूशलेम में आठ वर्ष तक राज्य करता रहा; और सब को अप्रिय होकर जाता रहा। और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं।
1 तब यरूशलेम के निवासियोंने उसके लहुरे पुत्र अहज्याह को उसके स्यान पर राजा बनाया; क्योंकि जो दल अरबियोंके संग छावनी में आया या, उस ने उसके सब बड़े बड़े बेटोंको घात किया या सो यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह राजा हुआ। 2 जब अहज्याह राजा हुआ, तब वह बयालीस वर्ष का या, और यरूशलेम में बक ही वर्ष राज्य किया, और उसकी माता का ताम अतल्याह या, जो ओम्री की पोती यी। 3 वह अहाब के घराने की सी चाल चला, क्योंकि उसकी माता उसे दुष्टता करने की सम्मति देती यी। 4 और वह अहाब के घराने की नाई वह काम करता या जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, क्योंकि उसके पिता की मृत्यु के बाद वे उसको ऐसी सम्मति देते थे, जिस से उसका विनाश हुआ। 5 और वह उनकी सम्मति के अनुसार चलता या, और इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र यहोराम के संग गिलाद के रामोत में अराम के राजा हजाएल से लड़ने को गया और अरामियोंने यहोराम को घायल किया। 6 सो राजा यहोराम इसलिथे लौट गया कि यिज्रेल में उन घावोंका इताज कराए जो उसको अरामियोंके हाथ से उस समय लगे थे जब वह हजाएल के साय लड़ रहा या। और अहाब का पुत्र यहोराम जो यिज्रेल में रोगी या, इस कारण से यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह उसको देखने गया। 7 और अहज्याह का विनाश यहोवा की ओर से हुआ, क्योंकि वह यहोराम के पास गया या। और जब वह वहां पहुंचा, तब यहोराम के संग निमशी के पुत्र थेहू का साम्हना करने को निकल गया, जिसका अभिषेक यहोवा ने इसलिथे कराया या कि वह अहाब के घराने को नाश करे। 8 और जब थेहू अहाब के घराने को दणड दे रहा या, तब उसको यहूदा के हाकिम और अहज्याह के भतीजे जो अहज्याह के टहलुए थे, मिले, और उस ने उनको घात किया। 9 तब उस ने अहज्याह को ढूंढ़ा। वह शोमरोन में छिपा या, सो लोगोंने उसको पकड़ लिया और थेहू के पास पहुंचाकर उसको मार डाला। तब यह कहकर उसको मिट्टी दी, कि यह यहोशपात का पोता है, जो अपके पूरे मन से यहोवा की खोज करता या। और अहज्याह के घराने में राज्य करने के योग्य कोई न रहा। 10 जब अहज्याह की माता अतल्याह ने देख कि मेरा पुत्र मर गया, तब उस ने उठकर यहूदा के घराने के सारे राजवंश को नाश किया। 11 परन्तु यहोशवत जो राजा की बेटी यी, उस ने अहज्याह के पुत्र योआश को घात होनेवाले राजकुमारोंके बीच से चुराकर धाई समेत बिछौने रखने की कोठरी में छिपा दिया। इस प्रकार राजा यहोराम की बेटी यहोशवत जो यहोयादा याजक की स्त्री और अहज्याह की बहिन यी, उस ने योआश को अतल्याह से ऐसा छिपा रखा कि वह उसे मार डालने न पाई। 12 और वह उसके पास परमेश्वर के भवन में छ: वर्ष छिपा रहा, इतने दिनोंतक अतल्याह देश पर राज्य करती रही।
1 सातवें वर्ष में यहोयादा ने हियाब बान्धकर यरोहाम के पुत्र अजर्याह, यहोहानान के पुत्र इश्वाएल, ओबेद के पुत्र अजर्याह, अदायाह के पुत्र मासेयाह और जिक्री के पुत्र बलीशपात, इन शतपतियोंसे वाचा बान्धी। 2 तब वे यहूदा में घूमकर यहूदा के सब नगरोंमें से लेवियोंको और इस्राएल के पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुषोंको इकट्ठा करके यरूशलेम को ले आए। 3 और उस सारी मएडली ने परमेश्वर के भवन में राजा के साय वाचा बान्धी, और यहोयादा ने उन से कहा, सुनो, यह राजकुमार राज्य करेगा जैसे कि यहोवा ने दाऊद के वंश के विषय कहा है। 4 तो तुम एक काम करो, अर्यात् तुम याजकोंऔर लेवियोंकी एक तिहाई लोग जो विश्रमदिन को आनेवाले हो, वे द्वारपाली करें, 5 और एक तिहाई लोग राजभवन में रहें और एक तिहाई लोग नेव के फाटक के पास रहें; और सब लोग यहोवा के भवन के आंगनोंमें रहें। 6 परन्तु याजकोंऔर सेवा टहल करनेवाले लेवियोंको छोड़ और कोई यहोवा के भवन के भीतर न आने पाए; वे तो भीतर आएं, क्योंकि वे पवित्र हैं परन्तु सब लोग यहोवा के भवन की चौकसी करें। 7 और लेवीय लोग अपके अपके हाथ में हयियार लिथे हुए राजा के चारोंओर रहें और जो कोई भवन के भीतर घुसे, वह मार डाला जाए। और तुम राजा के आते जाते उसके साय रहना। 8 यहोयादा याजक की इन सब आज्ञाओं के अनुसार लेवियोंऔर सब यहूदियोंने किया। उन्होंने विश्रमदिन को आनेवाले और विश्रमदिन को जानेवाले दोनोंदलोंके, अपके अपके जनोंको अपके साय कर लिया, क्योंकि यहोयादा याजक ने किसी दल के लेवियोंको विदा न किया य। 9 तब यहोयादा याजक ने शतपतियोंको राजा दाऊद के बर्छे और भाले और ढालें जो परमेश्वर के भवन में यीं, दे दीं। 10 फिर उस ने उन सब लोगोंको अपके अपके हाथ में हयियार लिथे हुए भवन के दक्खिनी कोने से लेकर, उत्तरी कोने तक वेदी और भवन के पास राजा के चारोंओर उसकी आड़ करके खड़ा कर दिया। 11 तब उन्होंने राजकुमार को बाहर ला, उसके सिर पर मुकुट रखा और साझीपत्र देकर उसे राजा बनाया; और यहोयादा और उसके पुत्रोंने उसका अभिषेक किया, और लोग बोल उठे, राजा जीवित रहे। 12 जब अतल्याह को उन लोगोंका हल्ला, जो दौड़ते और राजा को सराहते थे सुन पड़ा, तब वह लोगोंके पास यहोवा के भवन में गई। 13 और उस ने क्या देखा, कि राजा द्वार के निकट खम्भे के पास खड़ा है और राजा के पास प्रधान और तुरही बजानेवाले खड़े हैं, और सब लोग आनन्द कर रहे हैं और तुरहियां बजा रहे हैं और गाने बजानेवाले बाजे बजाते और स्तुति करते हैं। तब अतल्याह अपके वस्त्र फाड़कर पुकारने लगी, राजद्रोह, राजद्रोह ! 14 तब यहोयादा याजक ने दल के अधिक्कारनेी शतपतियोंको बाहर लाकर उन से कहा, कि उसे अपक्की पांतियोंके बीच से निकाल ले जाओ; और जो कोई उसके पीछे चले, वह तलवार से मार डाला जाए। याजक ने कहा, कि उसे यहोवा के भवन में न मार डालो। 15 तब उन्होंने दोनोंओर से उसको जगह दी, और वह राजभवन के घोड़ाफाटक के द्वार तक गई, और वहां उन्होंने उसको मार डाला। 16 तब यहोयादा ने अपके और सारी प्रजा के और राजा के बीच यहोवा की प्रजा होने की वाचा बन्धवाई। 17 तब सब लोगोंने बाल के भवन को जाकर ढा दिया; और उसकी वेदियोंऔर मूरतोंको टुकड़े टुकड़े किया, और मत्तान नाम बाल के याजक को वेदियोंके साम्हने ही घात किया। 18 तब यहोयादा ने यहोवा के भवन की सेवा के लिथे उन लेवीय याजकोंको ठहरा दिया, जिन्हें दाऊद ने यहोवा के भवन पर दल दल करके इसलिथे ठहराया या, कि जैसे मूसा की य्यवस्या में लिखा है, वैसे ही वे यहोवा को होमबलि चढ़ाया करें, और दाऊद की चलाई हुई विधि के अनुसार आनन्द करें और गाएं। 19 और उस ने यहोवा के भवन के फाटकोंपर द्वारपालोंको इसलिथे खड़ा किया, कि जो किसी रीति से अशुद्ध हो, वह भीतर जाने न पाए। 20 और वह शतपतियोंऔर रईसोंऔर प्रजा पर प्रभुता करनेवालोंऔर देश के सब लोगोंको साय करके राजा को यहोवा के भवन से नीचे ले गया और ऊंचे फाटक से होकर राजभवन में आया, और राजा को राजगद्दी पर बैठाया। 21 तब सब लोग आनन्दित हुए और नगर में शान्ति हुई। अतल्याह तो तलवार से मार ही डाली गई यी।
1 जब योआश राजा हुआ, तब वह सात वर्ष का या, और यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा; उसकी माता का नाम सिब्या या, जो बेर्शेबा की यी। 2 और जब तक यहोयादा याजक जीवित रहा, तब तक योआश वह काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है। 3 और यहसेयादा ने उसके दो ब्याह कराए और उस से बेटे-बेटियां उत्पन्न हुई। 4 इसके बाद योआश के मन में यहोवा के भवन की मरम्मत करने की मनसा उपक्की। 5 तब उस ने याजकोंऔर लेवियोंको इकट्ठा करके कहा, प्रति वर्ष यहूदा के नगरोंमें जा जाकर सब इस्राएलियोंसे रुपके लिया करो जिस से तुम्हारे परमेश्वर के भवन की मरम्मत हो; देखो इसकाम में फुतीं करो। तौभी लेवियोंने कुछ फुतीं न की। 6 तब राजा ने यहोयादा महाथाजक को बुलवा कर पूछा, क्या कारण है कि तू ने लेवियोंको दृढ़ आज्ञा नहीं दी कि वे यहूदा और यरूशलेम से उस चन्दे के रुपए ले आएं जिसका नियम यहोवा के दास मूसा और इस्राएल की मण्डली ने साझीपत्र के तम्बू के निमित्त चलाया या। 7 उस दुष्ट स्त्री अतल्याह के बेटोंने तो परमेश्वर के भवन को तोड़ दिया और यहोवा के भवन की सब पवित्र की हुई वस्तुएं बाल देवताओं को दे दी यीं। 8 और राजा ने एक सन्दूक बनाने की आज्ञा दी और वह यहोवा के भवन के फाटक के पास बाहर रखा गया। 9 तब यहूदा और यरूशलेम में यह प्रचार किया गया कि जिस चन्दे का नियम परमेश्वर के दास मूसा ने जंगल में इस्राएल में चलाया या, उसके रुपए यहोवा के निमित्त ले आओ। 10 तो सब हाकिम और प्रजा के सब लोग आनन्दित हो रुपए लाकर जब तक चन्दा पूरा न हुआ तब तक सन्दूक में डालते गए। 11 और जब जब वह सन्दूक लेवियोंके हाथ से राजा के प्रधानोंके पास पहुंचाया जाता और यह जान पड़ता या कि उस में रुपए बहुत हैं, तब तब राजा के प्रधान और महाथाजक का नाइब आकर सन्दूक को खाली करते और तब उसे फिर उसके स्यान पर रख देते थे। उन्होंने प्रतिदिन ऐसा किया और बहुत रुपए इाट्ठा किए। 12 तब राजा और यहोयादा ने वह रुपए यहोवा के भवन में काम करनेवालोंको दे दिए, और उन्होंने राजोंऔर बढ़इयोंको यहोवा के भवन के सुधारने के लिथे, और लोहारोंऔर ठठेरोंको यहोवा के भवन की मरम्मत करने के लिथे मजदूरी पर रखा। 13 और कारीगर काम करते गए और काम पूरा होता गया और उन्होंने परमेश्वर का भवन जैसा का तैसा बनाकर दृढ़ कर दिया। 14 जब उन्होंने वह काम निपटा दिया, तब वे शेष रुपए राजा और यहोयादा के पास ले गए, और उन से यहोवा के भवन के लिथे पात्र बनाए गए, अर्यात् सेवा टहल करने और होमबलि चढ़ाने के पात्र और धूपदान आदि सोने चान्दी के पात्र। और जब तक यहोयादा जीवित रहा, तब तक यहोवा के भवन में होमबलि नित्य चढ़ाए जाते थे। 15 परन्तु यहोयादा बूढ़ा हो गया और दीर्घायु होकर मर गया। जब वह मर गया तब एक सौ तीस वर्ष का या। 16 और दाऊदपुर में राजाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, क्योंकि उस ने इस्राएल में और परमेश्वर के और उसके भवन के विषय में भला किया या। 17 यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के हाकिमोंने राजा के पास जाकर उसे दणडवत की, और राजा ने उनकी मानी। 18 तब वे अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा का भवन छोड़कर अशेरोंऔर मूरतोंकी उपासना करने लगे। सो उनके ऐसे दोषी होने के कारण परमेश्वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का। 19 तौभी उस ने उनके पास नबी भेजे कि उनको यहोवा के पास फेर लाएं; और इन्होंने उन्हें चिता दिया, परन्तु उन्होंने कान न लगाया। 20 और परमेश्वर का आत्मा यहोयादा याजक के पुत्र जकर्याह में समा गया, और वह ऊंचे स्यन पर खड़ा होकर लोगोंसे कहने लगा, परमेश्वर योंकहता है, कि तुम यहोवा की आज्ञाओं को क्योंटालते हो? ऐसा करके तुम भाग्यवान नहीं हो सकते, देखो, तुम ने तो यहोवा को त्याग दिया है, इस कारण उस ने भी तुम को त्याग दिया। 21 तब लोगोंने उस से द्रोह की गोष्ठी करके, राजा की आज्ञा से यहोवा के भवन के आंगन में उसको पत्यरवाह किया। 22 योंराजा योआश ने वह प्रीति भूलकर जो यहोयादा ने उस से की यी, उसके पुत्र को घात किया। और मरते समय उस ने कहा यहोवा इस पर दृष्टि करके इसका लेखा ले। 23 तथे वर्ष के लगते अरामियोंकी सेना ने उस पर चढ़ाई की, और यहूदा ओर यरूशलेम आकर प्रजा में से सब हाकिमोंको नाश किया और उनका सब धन लूटकर दमिश्क के राजा के पास भेजा। 24 अरामियोंकी सेना थेड़े ही पुरुषोंकी तो आई, पन्तु यहोवा ने एक बहुत बड़ी सेना उनके हाथ कर दी, क्योंकि उन्होंने अपके पितरो के परमेश्वा को त्याग दिया य। और योआश को भी उन्होंने दणड दिया। 25 और जब वे उसे बहुत ही रोगी छोड़ गए, तब उसके कर्मचारियोंने यहोयादा याजक के पुत्रोंके खून के कारण उस से द्रोह की गोष्ठी करके, उसे उसके बिछौने पर ही ऐसा मारा, कि वह मर गया; और उन्होंने उसको दाऊद पुर में मिट्टी दी, परन्तु राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं। 26 जिन्होंने उस से राजद्रोह की गोष्ठी की, वे थे थे, अर्यात् अम्मोनिन, शिमात का पुत्र जाबाद और शिम्रित, मोआबिन का पुत्र यहोजाबाद। 27 उसके बेटोंके विषय और उसके विरुद्ध, जो बड़े दणड की तबूवत हुई, उसके और परमेश्वर के भवन के बनने के विषय थे सब बातें राजाओं के वृत्तान्त की पुस्तक में लिखी हैं। और उसका पुत्र अमस्याह उसके स्यान पर राजा हुआ।
1 जब अमस्याह राज्य करने लगा तब वह वचीस वर्ष का या, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम यहोअद्दान या, जो यरूशलेम की यी। 2 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, परन्तु खरे मन से न किया। 3 जब राज्य उसके हाथ में स्यिर हो गया, तब उस ने अपके उन कर्मचारियोंको मार डाला जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला या। 4 परन्तु उस ने उनके लड़केवालोंको न मारा क्योंकि उस ने यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार किया, जो मूसा की य्यवस्या की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए, जिस ने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 5 और अमस्याह ने यहूदा को वरन सारे यहूदियोंऔर बिन्यामीनियोंको इकट्ठा करके उनको, पितरोंके घरानोंके अनुसार सहस्रपतियोंऔर शतपतियोंके अधिक्कारने में ठहराया; और उन में से जितनोंकी अवस्या बीस वर्ष की अयवा उस से अधिक यी, उनकी गिनती करके तीन लाख भाला चलानेवाले और ढाल उठानेवाले बड़े बड़े योद्धा पाए। 6 फिर उस ने एक लाख इस्राएली शूरवीरोंको भी एक सौ किक्कार चान्दी देकर बुलवा रखा। 7 परन्तु परमेश्वर के एक जन ने उसके पास आकर कहा, हे राजा इस्राएल की सेना तेरे साय जाने न पाए; क्योंकि यहोवा इस्राएल अर्यात् एप्रैम की कुल सन्तान के संग नहीं रहता। 8 यदि तू जाकर पुरुषार्य करे; और युद्ध के लिथे हियाव वान्धे, तौभी परमेश्वर तुझे शत्रुओं के साम्हने गिराएगा, क्योंकि सहाथता करने और गिरा देने दोनोंमें परमेश्वर सामयीं है। 9 अमस्याह ने परमेश्वर के भक्त से पूछा, फिर जो सौ किक्कार चान्दी मैं इस्राएली दल को दे चुका हूँ, उसके विषय क्या करूं? परमेश्वर के भक्त ने उत्तर दिया, यहोवा तुझे इस से भी बहुत अधिक दे सकता है। 10 तब अमस्याह ने उन्हें अर्यात् उस दल को जो एप्रैम की ओर से उसके पास आया या, अलग कर दिया, कि वे अपके स्यान को लौट जाएं। तब उनका क्रोध यहूदियो पर बहुत भड़क उठा, और वे अत्यन्त क्रोधित होकर अपके स्यान को लौट गए। 11 परन्तु अमस्याह हियाब बान्धकर अपके लोगोंको ले चला, और लोन की तराई में जाकर, दस हजार सेईरियोंको मार डाला। 12 और यहूलियोंने दस हजार को बन्धुआ करके चट्टान की चोटी पर ले गथे, और चट्टान की चोटी पर से गिरा दिया, सो वे सब चूर चूर हो गए। 13 परन्तु उस दल के पुरुष जिसे अमस्याह ने लौटा दिया कि वे उसके साय युद्ध करने को न जाएं, शेमरोन से बेथेरोन तक यहूदा के सब नगरोंपर टूट पके, और उनके तीन हजार निवासी मार डाले और बहुत लूट ले ली। 14 जब अमस्याह एदोनियोंका संहार करके लौट आया, तब उस ने सेईरियोंके देवताओं को ले आकर अपके देवता करके खड़ा किया, और उन्हीं के साम्हने दणडवत करने, और उन्हीं के लिथे धूप जलाने लगा। 15 तब यहोवा का क्रोध अमस्याह पर भड़क उठा और उस ने उसके पास एक नबी भेजा जिस ने उस से कहा, जो देवता अपके लोगोंको तेरे हाथ से बचा न सके, उनकी खोज में तू क्योंलगा है? 16 वह उस से कह ही रहा या कि उस ने उस से पूछा, क्या हम ने तुझे राजमन्त्री ठहरा दिया है? चुप रह ! क्या तू मार खाना चाहता है? तब वह नबी यह कहकर चुप हो गया, कि मुझे मालूम है कि परमेश्वर ने तुझे नाश करने को ठाना है, क्योंकि तू ने ऐसा किया है और मेरी सम्मति नहीं मानी। 17 तब यहूदा के राजा अमस्याह ने सम्मति लेकर, इस्राएल के राजा योआश के पास, जो थेहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र या, योंकहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें। 18 इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास योंकहला भेजा, कि लबानोन पर की एक फड़बेरी ने लबानोन के एक देवदार के पास कहला भेजा, कि अपक्की बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन का कोई वन पशु पास से चला गया और उस फड़बेरी को दौंद डाला। 19 तू कहता है, कि मैं ने एदोमियोंको जीत लिया है; इस कारण तू फूल उठा और बड़ाई मारता है ! अपके घर में रह जा; तू अपक्की हानि के लिथे यहां क्योंहाथ डालता है, इस से तू क्या, वरन यहूदा भी नीचा खाएगा। 20 परन्तु अमस्याह ने न माना। यह तो परमेश्वर की ओर से हुआ, कि वह उन्हें उनके शत्रुओं के हाथ कर दे, क्योंकि वे एदोम के देवताओं की खोज में लग गए थे। 21 तब इस्राएल के राजा योआश ने चढ़ाई की और उस ने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का साम्हना किया। 22 और यहूदा इस्राएल से हार गया, और हर एक अपके अपके डेरे को भागा। 23 तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को, जो यहोआहाज का पोता और योआश का पुत्र या, बेतशेमेश में पकड़ा और यरूशलेम को ले गया और यरूशलेम की शहरपनाह में से बप्रैमी फाटक से कोनेवाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए। 24 और जितना सोना चान्दी और जितने पात्र परमेश्वर के भवन में ओबेदेदोम के पास मिले, और राजभवन में जितना खजाना या, उस सब को और बन्धक लोगोंको भी लेकर वह शोमरोन को लोट गया। 25 यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा योआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष तक जीवित रहा। 26 आदि से अन्त तक अमस्याह के और काम, क्या यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 27 जिस समय अपस्याह यहोवा के पीछे चलना छोड़कर फिर गया या उस समय से यरूशलेम में उसके विरुद्ध द्रोह की गोष्ठी होने लगी, और वह लाकीश को भाग गया। सो दूतोंने लाकीश तक उसका पीछा कर के, उसको वहीं मार डाला। 28 तब वह घोड़ोंपर रखकर पहुंचाया गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच यहूदा के नगर में मिट्टी दी गई।
1 तब सब यहूदी प्रजा ने उज्जिय्याह को लेकर जो सोलह वर्ष का या, उसके पिता अमस्याह के स्यान पर राजा बनाया। 2 जब राजा अमस्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया तब उज्जिय्याह ने एलोत नगर को दृढ़ कर के यहूदा में फिर मिला लिया। 3 जब उज्जिय्याह राज्य करने लगा, तब वह सोलह वर्ष का या। और यरूशलेम में बावन वर्ष तक राज्य करता रहा, और उसकी माता का नाम यकील्याह या, जो यरूशलेम की यी। 4 जैसे उसका पिता अमस्याह, किया करता या वैसा ही उसने भी किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या। 5 और जकर्याह के दिनोंमें जो परमेश्वर के दर्शन के विषय समझ रखता या, वह परमेश्वर की खोज में लगा रहता या; और जब तक वह यहोवा की खोज में लगा रहा, तब तक परमेश्वर उसको भाग्यवान किए रहा। 6 तब उस ने जाकर पलिश्तियोंसे युद्ध किया, और गत, यब्ने और अशदोद की शहरपनाहें गिरा दीं, और अशदोद के आसपास और पलिश्तियोंके बीच में नगर बसाए। 7 और परमेश्वर ने पलिश्तियोंऔर गूर्बालवासी, अरबियोंऔर मूनियोंके विरुद्ध उसकी सहाथता की। 8 और अम्मोनी उज्जिय्याह को भेंट देने लगे, वरन उसकी कीत्तिर् मिस्र के सिवाने तक भी फैल गई्र, क्योंकि वह अत्यन्त सामयीं हो गया या। 9 फिर उज्जिय्याह ने यरूशलेम में कोने के फाटक और तराई के फाटक और शहरपनाह के मोड़ पर गुम्मट बनवाकर दृढ़ किए। 10 और उसके बहुत जानवर थे इसलिथे उस ने जंगल में और नीचे के देश और चौरस देश में गुम्मट बनवाए और बहुत से हौद खुदवाए, और पहाड़ोंपर और कर्म्मेल में उसके किसान और दाख की बारियोंके माली थे, क्योंकि वह खेती किसानी करनेवाला या। 11 फिर उज्जिय्याह के योद्धाओं की एक सेना यी जिनकी गिनती यीएल मुंशी और मासेयाह सरदार, हनन्याह नामक राजा के एक हाकिम की आज्ञा से करते थे, और उसके अनुसार वह दल बान्धकर लड़ने को जाती यी। 12 पितरोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुष जो शूरवीर थे, उनकी पूरी गिनती दो हजार छ: सौ यी। 13 और उनके अधिक्कारने में तीन लाख साढ़े सात हजार की एक बड़ी बड़ी सेना यी, जो शत्रुओं के विरुद्ध राजा की सहाथता करने को बड़े बल से युद्ध करनेवाले थे। 14 इनके लिथे अर्यात् पूरी सेना के लिथे उज्जिय्याह ने ढालें, भाले, टोप, फिलम, धनुष और गोफन के पत्यर तैयार किए। 15 फिर उस ने यरूशलेम में गुम्मटोंऔर कंगूरोंपर रखने को चतुर पुरुषोंके निकाले हुए यन्त्र भी बनवाए जिनके द्वारा तीर और बड़े बड़े पत्यर फेंके जाते थे। और उसकी कीत्तिर् दूर दूर तक फैल गई, क्योंकि उसे अदभुत यहाथता यहां तक मिली कि वह सामयीं हो गया। 16 परन्तु जब वह सामयीं हो गया, तब उसका मन फूल उठा; और उस ने बिगड़कर अपके परमेश्वर यहोवा का विश्वासघात किया, अर्यात् वह धूप की वेदी पर धूम जलाने को यहोवा के मन्दिर में घुस गया। 17 और अजर्याह याजक उसके बाद भीतर गया, और उसके संग यहोवा के अस्सी याजक भी जो वीर थे गए। 18 और उन्होंने उज्जिय्याह राजा का साम्हना करके उस से कहा, हे उज्जिय्याह यहोवा के लिथे धूप जलाना तेरा काम नहीं, हारून की सन्तान अर्यात् उन याजकोंही का काम है, जो धूप जलाने को पवित्र किए गए हैं। तू पवित्रस्यान से निकल जा; तू ने विश्वासघात किया है, यहोवा परमेश्वर की ओर से यह तेरी महिमा का कारण न होगा। 19 तब उज्जिय्याह धूप जलाने को धूपदान हाथ में लिथे हुए फुंफला उठा। और वह याजकोंपर फुंफला रहा या, कि याजकोंके देखते देखते यहोवा के भवन में धूप की वेदी के पास ही उसके माथे पर कोढ़ प्रगट हुआ। 20 और अजर्याह महाथाजक और सब याजकोंने उस पर दृष्टि की, और क्या देखा कि उसके माथे पर कोढ़ निकला है ! तब उत्होंने उसको वहां से फटपट निकाल दिया, वरन यह जानकर कि यहोवा ने मुझे कोढ़ी कर दिया है, उस ने आप बाहर जाने को उतावली की। 21 और उज्जिय्याह राजा मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और कोढ़ के कारण अलग एक घर में रहता या, वह तो यहोवा के भवन में जाने न पाता या। और उसका पुत्र योताम राजघराने के काम पर नियुक्त किया गया और वह लोगोंका न्याय भी करता या। 22 आदि से अन्त तक उज्जिय्याह के और कामोंका वर्णन तो आमोस के पुत्र यशायाह नबी ने लिखा है। 23 निदान उज्जिय्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया, और उसको उसके पुरखाओं के निकट राजाओं के मिट्टी देने के खेत में मिट्टी दी गई क्योंकि उन्होंने कहा, कि वह कोढ़ी है। और उसका पुत्र योताम उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 जब योताम राज्य करने लगा तब वह पक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यरूशा या, जो सादोक की बेठी यी। 2 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, अर्यात् जैसा उसके पिता उज्जिय्याह ने किया या, ठीक वैसा ही उस ने भी किया : तौभी वह यहोवा के मन्दिर में न घुसा। और प्रजा के लोग तब भी बिगड़ी चाल चलते थे। 3 उसी ने यहोवा के भवन के ऊपरवाले फाटक को बनाया, और ओपेल की शहरपनाह पर बहुत कुछ बनवाया। 4 फिर उस ने यहूदा के पहाड़ी देश में कई नगर दृढ़ किए, और जंगलोंमें गढ़ और गुम्मट बनाए। 5 और वह अम्मोनियोंके राजा से युद्ध करके उन पर प्रबल हो गया। उसी वर्ष अम्मोनियोंने उसको सौ किक्कार चांदी, और दस दस हजार कोर गेहूं और जव दिया। और फिर दूसरे और तीसरे वर्ष में भी उन्होंने उसे उतना ही दिया। 6 योंयोताम सामयीं हो गया, क्योंकि वह अपके आप को अपके परमेश्वर यहोवा के सम्मुख जानकर सीधी चाल चलता या। 7 योताम के और काम और उसके सब युद्ध और उसकी चाल चलन, इन सब बातोंका वर्णन इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास में लिखा है। 8 जब वह राजा हुआ, तब पक्कीस वर्ष का या; और वह यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। 9 निदान योताम अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र आहाज उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 जब आहाज राज्य करने लगा तब वह बीस वर्ष का या, और सोलह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और अपके मूलपुरुष दाऊद के समान काम नहीं किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या, 2 परन्तु वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, और बाल देवताओं की मूतिर्यां ढलवाकर बनाई; 3 और हिन्नोम के बेटे की तराई में धूूप जलाया, और उन जातियोंके घिनौने कामोंके अनुसार जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से निकाल दिया या, अपके लड़केबालोंको आग में होम कर दिया। 4 और ऊंचे स्यानोंपर, और पहाडिय़ोंपर, और सब हरे वृझोंके तले वह बलि चढ़ाया और धूम जलाया करता या। 5 इसलिथे उसके परमेश्वर यहोवा ने उसको अरामियोंके राजा के हाथ कर दिया, और वे उसको जीतकर, उसके बहुत से लोगोंको बन्धुआ बनाके दमिश्क को ले गए। और वह इस्राएल के राजा के वश में कर दिया गया, जिस ने उसे बड़ी मार से मारा। 6 और रमल्याह के पुत्र पेकह ने, यहूदा में एक ही दिन में एक लाख बीस हजार लोगोंको जो सब के सब वीर थे, घात किया, क्योंकि उन्होंने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया या। 7 और जिक्री नामक एक एप्रैमी वीर ने मासेयाह नामक एक राजपुत्र को, और राजभवन के प्रधान अज्रीकाम को, और एलकाना को, जो राजा का मंत्री या, मार डाला। 8 और इस्राएली अपके भाइयोंमें से त्रियों, बेटोंऔर बेटियोंको मिलाकर दो लाख लोगोंको बन्धुआ बनाके, और उनकी बहुत लूट भी छीनकर शोमरोन की ओर ले चले। 9 परन्तु वहां ओदेद नामक यहोवा का एक नबी या; वह शोमरोन को आनेवाली सेना से मिलकर उन से कहने लगा, सुनो, तुम्हारे पितरोंके परमेश्वर यहोवा ने यहूदियोंपर फुंफलाकर उनको तुम्हारे हाथ कर दिया है, और तुम ने उनको ऐसा क्रोध करके घात किया जिसकी चिल्लाहट स्वर्ग को पहुंच गई है। 10 और अब तुम ने ठाना है कि यहूदियोंऔर यरूशलेमियोंको अपके दास-दासी बनाकर दबाए रखो। क्या तुम भी अपके परमेश्वर यहोवा के यहां दाषी नहीं हो? 11 इसलिथे अब मेरी सुनो और इन बन्धुओं को जिन्हें तुम अपके भाइयोंमें से बन्धुआ बनाके ले आए हो, लौटा दो, यहोवा का क्रोध तो तुम पर भड़का है। 12 तब एप्रैमियोंके कितने मुख्य पुरुष अर्यात् योहानान का पुत्र अजर्याह, मशिल्लेमोत का पुत्र बेरेक्याह, शल्लूम का पुत्र यहिजकिय्याह, और हदलै का पुत्र अमासा, लड़ाई से आनेवालोंका साम्हना करके, उन से कहने लगे। 13 तुम इन बन्धुओं को यहां मत लाओ; क्योंकि तुम ने वह बात ठानी है जिसके कारण हम यहोवा के यहां दोषी हो जाएंगे, और उस से हमारा पाप और दोष बढ़ जाएगा, हमारा दोष तो बड़ा है और इस्राएल पर बहुत क्रोध भड़का है। 14 तब उन हयियार बन्धोंने बन्धुओं और लूट को हाकिमोंऔर सारी सभा के साम्हने छोड़ दिया। 15 तब जिन पुरुषोंके नाम ऊपर लिखे हैं, उन्होंने उठकर बन्धुओं को ले लिया, और लूट में से सब नंगे लोगोंको कपके, और जूतियां पहिनाई; और खाना खिलाया, और पानी पिलाया, और तेल मला; और तब निर्बल लोगोंको गदहोंपर चढ़ाकर, यरीहो को जो खजूर का नगर कहलाता है, उनके भाइयोंके पास पहुंचा दिया। तब वे शोमरोन को लौट आए। 16 उस समय राजा आहाज ने अश्शूर के राजाओं के पास दूत भेजकर सहाथता मांगी। 17 क्योंकि एदोमियोंने यहूदा में आकर उसको मारा, और बन्धुओं को ले गए थे। 18 और पलिश्तयोंने नीचे के देश और यहूदा के दक्खिन देश के नगरोंपर चढ़ाई करके, बेतशेमेश, अय्यालोन और गदेरोत को, और अपके अपके गांवोंसमेत सोको, तिम्ना, और गिमजो को ले लिया; और उन में रहने लगे थे। 19 योंयहोवा ने इस्राएल के राजा आहाज के कारण यहूदा को दबा दिया, क्योंकि वह निरंकुश होकर चला, और यहोवा से बड़ा विश्वासघात किया। 20 तब अश्शूर का राजा तिलगतपिलनेसेर उसके विरुद्ध आया, और उसको कष्ट दिया; दृढ़ नहीं किया। 21 आहाज ने तो यहोवा के भवन और राजभवन और हाकिमोंके घरोंमें से धन निकालकर अश्शूर के राजा को दिया, परन्तु इससे उसकी कुछ सहाथता न हुई। 22 और क्लेश के समय राजा आहाज ने यहोवा से और भी विश्वासघात किया। 23 और उस ने दमिश्क के देवताओं के लिथे जिन्होंने उसको मारा या, बलि चढ़ाया; क्योंकि उस ने यह सोचा, कि आरामी राजाओं के देवताओं ने उनकी यहाथता की, तो मैं उनके लिथे बलि चढ़ाऊंगा कि वे मेरी सहाथता करें। परन्तु वे उसके और सारे इस्राएल के पतन का कारण हुए। 24 फिर आहाज ने परमेश्वर के भवन के पात्र बटोरकर तुड़वा डाले, और यहोवा के भवन के द्वारोंको बन्द कर दिया; और यरूशलेम के सब कोनोंमें वेदियां बनाई। 25 और यहूदा के एक एक नगर में उस ने पराथे देवताओं को धूप जलाने के लिथे ऊंचे स्यान बनाए, और अपके मितरोंके परमेश्वर यहोवा को रिस दिलाई। 26 और उसके और कामों, और आदि से अन्त तक उसकी पूरी चाल चलन का वर्णन यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 27 निदान आहाज अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसको यरूशलेम नगर में मिट्टी दी गई, परन्तु वह इस्राएल के राजाओं के कब्रिस्तान में पहुंचाया न गया। और उसका पुत्र हिजकिय्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 जब हिजकिय्याह राज्य करने लगा तब वह पक्कीस वर्ष का या, और उनतीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का ताम अबिय्याह या, जो जकर्याह की बेटी यी। 2 जैसे उसके मूलपुरुष दाऊद ने किया या अर्यात् जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या वैसा ही उस ने भी किया। 3 अपके राज्य के पहिले वर्ष के पहिले महीने में उस ने यहोवा के भवन के द्वार खुलवा दिए, और उनकी मरम्मत भी कराई। 4 तब उस ने याजकोंऔर लेवियोंको ले आकर पूर्व के चौक में इकट्ठा किया। 5 और उन से कहने लगा, हे लेवियो मेरी सुनो ! अब अपके अपके को पवित्र करो, और अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा के भवन को पवित्र करो, और पवित्रस्यान में से मैल निकालो। 6 देखो हमारे पुरखाओं ने विश्वासघात करके वह कर्म किया या, जो हमारे परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है और उसको तज करके यहोवा के निवास से मुंह फेरकर उसको पीठ दिखाई यी। 7 फिर उन्होंने ओसारे के द्वार बन्द किए, और दीपकोंको बुफा दिया या; और पवित्र स्यान में इस्राएल के परमेश्वर के लिथे न तो धूप जलाया और न होमबलि चढ़ाया या। 8 इसलिथे यहोवा का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का है, और उस ने ऐसा किया, कि वे मारे मारे फिरें और चकित होने और ताली बजाने का कारण हो जाएं, जैसे कि तुम अपक्की आंखोंसे देख रहे हो। 9 देखो, अस कारण हमारे बाप तलवार से मारे गए, और हमारे बेटे-बेटियां और स्त्रियां बन्धुआई में चक्की गई हैं। 10 अब मेरे मन ने यह निर्णय किया है कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से वाचा बान्धूं, इसलिथे कि उसका भड़का हुआ क्रोध हम पर से दूर हो जाए। 11 हे मेरे बेटो, ढिलाई न करो देखो, यहोवा ने अपके सम्मुख खड़े रहने, और अपक्की सेवा टहल करने, और अपके टहलुए और धूप जलानेवाले का काम करने के लिथे तुम्हीं को चुन लिया है। 12 तब लेवीय उठ खड़े हुए, अर्यात् कहातियोंमें से अमासै का पुत्र महत, और अजर्याह का पुत्र योएल, और मरारियोंमें से अब्दी का पुत्र कीश, और यहल्लेलेल का पुत्र अजर्याह, और गेशॉनियोंमें से जिम्मा का पुत्र योआह, और योआह का पुत्र एदेन। 13 और एलीसापान की सन्तान में से शिम्री, और यूएल और आसाप की सन्तान में से जकर्याह और मत्तन्याह। 14 और हेमान की सन्तान में से यहूएल और शिमी, और यदूतून की सन्तान में से शमायाह और उज्जीएल। 15 इन्होंने अपके भाइयोंको इकट्ठा किया और अपके अपके को पवित्र करके राजा की उस आज्ञा के अनुसार जो उस ने यहोवा से वचन पाकर दी यी, यहोवा के भवन के शुद्ध करने के लिथे भीतर गए। 16 तब याजक यहोवा के भवन के भीतरी भाग को शुद्ध करने के लिथे उस में जाकर यहोवा के मन्दिर में जितनी अशुद्ध वस्तुएं मिीं उन सब को निकालकर यहोवा के भवन के आंगन में ले गए, और लेवियोंने उन्हें उठाकर बाहर किद्रोन के नाले में पहुंचा दिया। 17 पहिले महीने के पहिले दिन को उन्होंने पवित्र करने का काम आरम्भ किया, और उसी महीने के आठवें दिन को वे यहोवा के ओसारे तक आ गए। इस प्रकार उन्होंने यहोवा के भवन को आठ दिन में पवित्र किया, और पहिले महीने के सोलहवें दिन को उन्होंने उस काम को पूरा किया। 18 तब उन्होंने राजा हिजकिय्याह के पास भीतर जाकर कहा, हम यहोवा के पूरे भवन को और पात्रोंसमेत होमबलि की वेदी और भेंट की रोटी की मेज को भी शुद्ध कर चुके। 19 और जितने पात्र राजा आहाज ने अपके राज्य में विश्वासघात करके फेंक दिए थे, उनको भी हम ने ठीक करके पवित्र किया है; और वे यहोवा की वेदी के साम्हने रखे हुए हैं। 20 तब राजा हिजकिय्याह सबेरे उठकर नगर के हाकिमोंको इकट्ठा करके, यहोवा के भवन को गया। 21 तब वे राज्य और पवित्रस्यान और यहूदा के निमित्त सात बछड़े, सात मेढ़े, सात भेड़ के बच्चे, और पापबलि के लिथे सात बकरे ले आए, और उस ने हारून की सन्तान के लेवियोंको आज्ञा दी कि इन सब को यहोवा की वेदी पर चढ़ाएं। 22 तब उन्होंने बछड़े बलि किए, और याजकोंने उनका लोहू लेकर वेदी पर छिड़क दिया; तब उन्होंने मेढ़े बलि किए, और उनका लोहू भी वेदी पर छिड़क दिया। और भेड़ के बच्चे बलि किए, और उनका भी लोहू वेदी पर छिडक दिया। 23 तब वे पापबलि के बकरोंको राजा और मण्डली के समीप ले आए और उन पर अपके अपके हाथ रखे। 24 तब याजकोंने उनको बलि करके, उनका लोहू वेदी पर छिड़क कर पापबलि किया, जिस से सारे इस्राएल के लिथे प्रायश्चित्त किया जाए। क्योंकि राजा ने सारे इस्राएल के लिथे होमबलि और पापबलि किए जाने की आज्ञा दी यी। 25 फिर उस ने दाऊद और राजा के दशीं गाद, और नातान नबी की आज्ञा के अनुसार जो यहोवा की ओर से उसके नबियोंके द्वारा आई यी, फांफ, सारंगियां और वीणाएं लिए हुए लेवियोंको यहोवा के भवन में खड़ा किया। 26 तब लेवीय दाऊद के चलाए बाजे लिए हुए, और याजक तुरहियां लिए हुए खड़े हुए। 27 तब हिजकिय्याह ने वेदी पर होमबलि चढ़ाने की आज्ञा दी, और जब होमबलि चढ़ने लगी, तब यहोवा का गीत आरम्भ हुआ, और तुरहियां और इस्राएल के राजा दाऊद के बाजे बजने लगे। 28 और मण्डली के सब लोग दणडवत करते और गानेवाले गाते और तुरही फूंकनेवाले फूंकते रहे; यह सब तब तक होता रहा, जब तक होमबलि चढ़ न चुकी। 29 और जब बलि चढ़ चुकी, तब राजा और जितने उसके संग वहां थे, उन सभोंने सिर फुकाकर दणडवत किया। 30 और राजा हिजकिय्याह और हाकिमोंने लेवियोंको आज्ञा दी, कि दाऊद और आसाप दशीं के भजन गाकर यहोवा की स्तुति करें। और उन्होंने आनन्द के साय स्तुति की और सिर नवाकर दणडवत किया। 31 तब हिजकिय्याह कहने लगा, अब तुम ने यहोवा के निमित्त अपना अर्पण किया है; इसलिथे समीप आकर यहोवा के भवन में मेलबलि और धन्यवादबलि पहुंचाओ। तब मण्डली के लोगोंने मेलबलि और धन्यवादबलि पहुंचा दिए, और जितने अपक्की इच्छा से देना चाहते थे उन्होंने भी होमबलि पहुंचाए। 32 जो होमबलि पशु मण्डली के लाग ले आए, उनकी गिनती यह यी; सत्तर बैल, एक सौ मेढ़े, और दो सौ भेड़ के बच्चे; थे सब यहोवा के निमित्त होमबलि के काम में आए। 33 और पवित्र किए हुए पशु, छ: सौ बैल और तीन हजार भेड़-बकरियां यी। 34 परन्तु याजक ऐसे थेड़े थे, कि वे सब होमबलि पशुओं की खालें न उतार सके, तब उनके भाई लेवीय उस समय तक उनकी सहाथता करते रहे जब तक वह काम निपट न गया, और याजकोंने अपके को पवित्र न किया; क्योंकि लेवीय अपके को पवित्र करने के लिथे पवित्र याजकोंसे अधिक सीधे मन के थे। 35 और फिर होमबलि पशु बहुत थे, और मेलबलि पशुओं की चक्कीं भी बहुत यी, और एक एक होमबलि के साय अर्ध भी देना पड़ा। योंयहोवा के भवन में की उपासना ठीक की गई। 36 तब हिजकिय्याह और सारी प्रजा के लोग उस काम के कारण आनन्दित हुए, जो यहोवा ने अपक्की प्रजा के लिथे तैयार किया या; क्योंकि वह काम एकाएक हो गया या।
1 फिर हिजकिय्याह ने सारे इस्राएल और यहूदा में कहला भेजा, और एप्रैम और मनश्शे के पास इस आशय के पत्र लिख भेजे, कि तुम यरूशलेम को यहोवा के भवन में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिथे फसह मनाने को आओ। 2 राजा और उसके हाकिमोंऔर यरूशलेम की मणडली ने सम्मति की यी कि फसह को दूसरे महीने में मनाएं। 3 वे उसे उस समय इस कारण न मना सकते थे, क्योंकि योड़े ही याजकोंने अपके अपके को पवित्र किया या, और प्रजा के लोग यरूशलेम में इकट्ठे न हुए थे। 4 और यह बात राजा और सारी मणडली को अच्छी लगी। 5 तब उन्होंने यह ठहरा दिया, कि बेर्शेबा से लेकर दान के सारे इस्राएलियोंमें यह प्रचार किया जाय, कि यरूशलेम में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिथे फसह मनाने को चले आओ; क्योंकि उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में उसको इस प्रकार न मनाया या जैसा कि लिखा है। 6 इसलिथे हरकारे राजा और उसके हाकिमोंसे चिट्ठियां लेकर, राजा की आज्ञा के अनुसार सारे इस्राएल और यहूदा में घूमे, और यह कहते गए, कि हे इस्राएलियो ! इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर फिरो, कि वह अश्शूर के राजाओं के हाथ से बचे हुए तुम लोगाोंकी ओर फिरे। 7 और अपके पुरखाओं और भाइयोंके समान मत बनो, जिन्होंने अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा से विश्वासघात किया या, और उस ने उन्हें चकित होने का कारण कर दिया, जैसा कि तुम स्वयं देख रहे हो। 8 अब अपके पुरखाओं की नाई हठ न करो, वरन यहोवा के अधीन होकर उसके उस पवित्रस्यान में आओ जिसे उस ने सदा के लिथे पवित्र किया है, और अपके परमेश्वर यहोवा की उपासना करो, कि उसका भड़का हुआ क्रोध तुम पर से दूर हो जाए। 9 यदि तुम यहोवा की ओर फिरोगे तो जो तुम्हारे भाइयोंऔर लड़केबालोंको बन्धुआ बनाके ले गए हैं, वे उन पर दया करेंगे, और वे इस देश में लौट सकेंगे क्योंकि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु है, और यदि तुम उसकी ओर फिरोगे तो वह अपना मुंह तुम से न मोड़ेगा। 10 इस प्रकार हरकारे एप्रैम और मनश्शे के देशें में नगर नगर होते हुए जबूलून तक गए; परन्तु उन्होंने उनकी हंसी की, और उन्हें ठट्ठोंमें उड़ाया। 11 तौभी आशेर, मनश्शे और जबूलून में से कुछ लोग दीन होकर यरूशलेम को आए। 12 और यहूदा में भी परमेश्वर की ऐसी शक्ति हुई, कि वे एक मन होकर, जो आज्ञा राजा और हाकिमोंने यहोवा के वचन के अनुसार दी यी, उसे मानने को तैयार हुए। 13 इस प्रकार अधिक लोग यरूशलेम में इसलिथे इकट्ठे हुए, कि दूसरे महीने में अखमीरी रोटी का पर्व्व मानें। और बहुत बड़ी सभा इकट्ठी हो गई। 14 और उन्होंने उठकर, यरूशलेम की वेदियोंऔर धूम जलाने के सब स्यानोंको उठाकर किद्रोन नाले में फेंक दिया। 15 तब दूसरे महीने के चौदहवें दिन को उन्होंने फसह के पशु बलि किए तब याजक और लेवीय लज्जित हुए और अपके को पवित्र करके होमबलियोंको यहोवा के भवन में ले आए। 16 और वे अपके नियम के अनुुसार, अर्यात् परमेश्वर के जन मूसा की व्यवस्या के अनुसार, अपके अपके स्यान पर खड़े हुए, और याजकोंने रक्त को लेवियोंके हाथ से लेकर छिड़क दिया। 17 क्योंकि सभा में बहुते ऐसे थे जिन्होंने अपके को पवित्र न किया या; इसलिथे सब अशुद्ध लोगोंके फसह के पशुओं को बलि करने का अधिक्कारने लेवियोंको दिया गया, कि उनको यहोवा के लिथे पवित्र करें। 18 बहुत से लोगोंने अर्यात् एप्रैम, मनश्शे, इस्साकार और जबूलून में से बहुतोंने अपके को शुद्ध नहीं किया या, तौभी वे फसह के पशु का मांस लिखी हुई विधि के विरुद्ध खाते थे। क्योंकी हिजकिय्याह ने उनके लिथे यह प्रार्यना की यी, कि यहोवा जो भला है, वह उन सभोंके पाप ढांप दे; 19 जो परमेश्वर की अर्यात् अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा की खोज में मन लगाए हुए हैं, चाहे वे पवित्रस्यान की विधि के अनुसार शुद्ध न भी हों। 20 और यहोवा ने हिजकिय्याह की यह प्रार्यन सुनकर लोगोंको चंगा किया। 21 और जो इस्राएली यरूशलेम में उपस्यित थे, वे सात दिन तक अखमीरी रोटी का पर्व्व बड़े आनन्द से मनाते रहे; और प्रतिदिन लेवीय और याजक ऊंचे शब्द के बाजे यहोवा के लिथे बजाकर यहोवा की स्तुति करते रहे। 22 और जितने लेवीय यहोवा का भजन बुद्धिमानी के साय करते थे, उनको हिजकिय्याह ने शान्ति के वचन कहे। इस प्रकार वे मेलबलि चढ़ाकर और अपके पुर्वजोंके परमेश्वर यहोवा के सम्मुख पापांगीकार करते रहे और उस नियत पर्व्व के सातोंदिन तक खाते रहे। 23 तब सारी सभा ने सम्मति की कि हम और सात दिन वर्व मानेंगे; सो उन्होंने और सात दिन आनन्द से पर्व्व मनाया। 24 क्योंकि यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने सभा को एक हजार बछड़े और सात हजार भेड़-बकरियां दे दीं, और हाकिमोंने सभा को एक हजार बछड़े और दस हजार भेड़-बकरियां दीं, और बहुत से याजकोंने अपके को पवित्र किया। 25 तब याजकोंऔर लेवियोंसमेत यहूदा की सारी सभा, और इस्राएल से आए हुओं की सभा, और इस्राएल के देश से आए हुए, और यहूदा में रहनेवाले परदेशी, इन सभोंने आनन्द किया। 26 सो यरूशलेम में बड़ा आनन्द हुआ, क्योंकि दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान के दिनोंसे ऐसी बात यरूशलेम में न हुई यी। 27 अन्त में लेवीय याजकोंने खड़े होकर प्रजा को आशीर्वाद दिया, और उनकी सुनी गई, और उनकी प्रार्यना उसके पपित्र धाम तक अर्यात् स्वर्ग तक पहुंची।
1 जब यह सब हो चुका, तब जितने इस्राएली अपस्यित थे, उन सभोंने यहूदा के नगरोंमें जाकर, सारे यहूदा और बिन्यामीन और एप्रेम और मनश्शे में कि लाठोंको तोड़ दिया, अशेरोंको काट डाला, और ऊंचे स्यानोंऔर वेदियोंको गिरा दिया; और उन्होंने उन सब का अन्त कर दिया। तब सब इस्राएली अपके अपके नगर को लौटकर, अपक्की अपक्की निज भूमि में पहुंचे। 2 और हिजकिय्याह ने याजकोंके दलोंको और लेवियोंको वरन याजकोंऔर लेवियोंदोनोंको, प्रति दल के अनुसार और एक एक मतुष्य को उसकी सेवकाई के अनुसार इसलिथे ठहरा दिया, कि वे यहोवा की छावनी के द्वारोंके भीतर होमबलि, मेलबलि, सेवा टहल, धन्यवाद और स्तुति किया करें। 3 फिर उस ने अपक्की सम्पत्ति में से राजभाषा को होमबलियोंके लिथे ठहरा दिया; अर्यत् सबेरे और सांफ की होमबलि और विश्रम और नथे चांद के दिनोंऔर नियत समयोंकी होमबलि के लिथे जैसा कि यहोवा की व्यवस्या में लिखा है। 4 और उस ने यरूशलेम में रहनेवालोंको याजकोंऔर लेवियोंको उनका भाग देने की आज्ञा दी, ताकि वे यहोवा की व्यवस्या के काम मन लगाकर कर सकें। 5 यह आज्ञा सुनते ही इस्राएली अन्न, नया दाखमधु, टटका तेल, मधु आादि खेती की सब भांति की पहिली उपज बहुतायत से देने, और सब वस्तुओं का दशमांश अधिक मात्रा में लाने लगे। 6 और जो इस्राएली और यहूदी, यहूदा के नगरोंमें रहते थे, वे भी बैलोंऔर भेड़-बकरियोंका दशमांश, और उन पवित्र वस्तुओं का दशमांश, जो उनके परमेश्वर यहोवा के निमित्त पवित्र की गई यीं, लाकर ढेर ढेर करके रखने लगे। 7 इस प्रकार ढेर का लगाना उन्होंने तीसरे महीने में आरम्भ किया और सातवें महीने में पूरा किया। 8 जब हिजकिय्याह और हाकिमोंने आकर उन ढेरोंको देखा, तब यहोवा को और उसकी प्रजा इस्राएल को धन्य धन्य कहा। 9 तब हिजकिय्याह ने याजकोंऔर लेवियोंसे उन ढेरोंके विषय पूछा। 10 और अजर्याह महाथाजक ने जो सादोक के घराने का या, उस से कहा, जब से लोग यहोवा के भवन में उठाई हुई भेंटें लाने लगे हैं, तब से हम लोग पेट भर खाने को पाते हैं, वरन बहुत बचा भी करता है; क्योंकि यहोवा ने अपक्की प्रजा को आशीष दी है, और जो शेष रह गया है, उसी का यह बड़ा ढेर है। 11 तब हिजकिय्याह ने यहोवा के भवन में कोठरियां तैयार करने की आज्ञा दी, और वे तैयार की गई। 12 तब लोगोंने उठाई हुई भेंटें, दशमांश और पवित्र की हुई वस्तुएं, सच्चाई से पहुंचाई और उनके मुख्य अधिक्कारनेी तो कोनन्याह नाम एक लेवीय और इूसरा उसका भाई शिमी नायब या। 13 और कोनन्याह और उसके भाई शिमी के नीचे, हिजकिय्याह राजा और परमेश्वर के भवन के प्रधान अजर्याह दोनोंकी आज्ञा से अहीएल, अजज्याह, नहत, असाहेल, यरीमेत, योजाबाद, एलीएल, यिस्मक्याह, महत और बनायाह अधिक्कारनेी थे। 14 और परमेश्वर के लिथे स्वेच्छाबलियोंका अधिक्कारनेी यिम्ना लेवीय का पुत्र कोरे या, जो पूर्व फाटक का द्वारापाल या, कि वह यहोवा की उठाई हुई भेंटें, और परमपवित्र वस्तुएं बांटा करे। 15 और उसके अधिक्कारने में एदेन, मिन्यामीन, थेशू, शमायाह, अमर्याह और शकन्याह याजकोंके नगरोंमें रहते थे, कि वे क्या बड़े, क्या छोटे, अपके भाइयोंको उनके दलोंके अनुसार सच्चाई से दिया करें, 16 और उनके अलावा उनको भी दें, जो पुरुषोंकी वंशावली के अनुसार गिने जाकर तीन वर्ष की अवस्या के वा उस से अधिक आयु के थे, और अपके अपके दल के अनुसार अपक्की अपक्की सेवकाई निबाहने को दिन दिन के काम के अनुसार यहोवा के भवन में जाया करते थे। 17 और उन याजकोंको भी दें, जिनकी वंशावली उनके पितरोंके घरानोंके अनुसार की गई, और उन लेवियोंको भी जो बीस वर्ष की अवस्या से ले आगे को अपके अपके दल के अनुसार, अपके अपके काम निबाहते थे। 18 और सारी सभा में उनके बालबच्चों, स्त्रियों, बेटोंऔर बेटियोंको भी दें, जिनकी वंशवली यी, क्योंकि वे सच्चाई से अपके को पवित्र करते थे। 19 फिर हारून की सन्तान के याजकोंको भी जो अपके अपके नगरोंके चराईवाले मैदान में रहते थे, देने के लिथे वे पुरुष नियुक्त किए गए थे जिनके नाम ऊपर लिखे हुए थे कि वे याजकोंके सब पुरुषोंऔर उन सब लेवियोंको भी उनका भाग दिया करें जिनकी वंशावली यी। 20 और सारे यहूदा में भी हिजकिय्याह ने ऐसा ही प्रबन्ध किया, और जो कुछ उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला ओर ठीक और सच्चाई का या, उसे वह करता या। 21 और जो जो काम उस ने परमेश्वर के भवन की उपासना और व्यवस्या और आज्ञा के विषय अपके परमेश्वर की खोज में किया, वह उस ने अपना सारा मन लगाकर किया और उस में कृतार्य भी हुआ।
1 इन बातोंऔर ऐसे प्रबन्ध के बाद अश्शूर का राजा सन्हेरीब ने आकर यहूदा में प्रवेश कर ओर गढ़वाले नगरोंके विरुद्ध डेरे डालकर उनको अपके लाभ के लिथे लेना चाहा। 2 यह देखकर कि सन्हेरीब निकट आया है और यरूशलेम से लड़ने की मनसा करता है, 3 हिजकिय्याह ने अपके हाकिमोंऔर वीरोंके साय यह सम्मति की, कि नगर के बाहर के सोतोंको पठवा दें; और उन्होंने उसकी सहाथता की। 4 इस पर बहुत से लोग इकट्ठे हुए, और यह कहकर, कि अश्शूर के राजा क्योंयहां आएं, और आकर बहुत पानी पाएं, उन्होंने सब सोतोंको पाट दिया और उस नदी को सुखा दिया जो देश के मध्य होकर बहती यी। 5 फिर हिजकिय्याह ने हियाव बान्धकर शहरपनाह जहां कहीं टूटी यी, वहां वहां उसको बनवाया, और उसे गुम्मटोंके बराबर ऊंचा किया और बाहर एक और शहरपनाह बनवाई, और दाऊदपुर में मिल्लो को दृढ़ किया। और बहुत से तीर और ढालें भी बनवाई। 6 तब उस ने प्रजा के ऊपर सेनापति नियुक्त किए और उनको नगर के फाटक के चौक में इकट्ठा किया, और यह कहकर उनको धीरज दिया, 7 कि हियाव बान्धो और दृढ हो तुम न तो अश्शूर के राजा से डरो और न उसके संग की सारी भीड़ से, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; क्योंकि जो हमारे साय है, वह उसके संगियोंसे बड़ा है। 8 अर्यात् उसका सहारा तो मतुष्य ही है परन्तु हमारे साय, हमारी सहाथता और हमारी ओर से युद्ध करने को हमारा परमेश्वर यहोवा है। इसलिथे प्रजा के लोग यहूदा के राजा हिजकिय्याह की बातोंपर भरोसा किए रहे। 9 इसके बाद अश्शूर का राजा सन्हेरीब जो सारी सेना समेत लाकीश के साम्हने पड़ा या, उस ने अपके कर्मचारियोंको यरूशलेम में यहूदा के राजा हिजकिय्याह और उन सब यहूदियोंसे जो यरूशलेम में थे योंकहने के लिथे भेजा, 10 कि अश्शूर का राजा सन्हेरीब कहता है, कि तुम्हें किस का भरोसा है जिससे कि तुम घेरे हुए यरूशलेम में बैठे हो? 11 क्या हिजकिय्याह तुम से यह कहकर कि हमारा परमेश्वर यहोवा हम को अश्शूर के राजा के पंजे से बचाएगा तुम्हें नहीं भरमाता है कि तुम को भूखोंप्यासोंमारे? 12 क्या उसी हिजकिय्याह ने उसके ऊंचे स्यान और वेदियो दूर करके यहूदा और यरूशलेम को आज्ञा नहीं दी, कि तुम एक ही वेदी के साम्हने दणडवत करना और उसी पर धूप जलाना? 13 क्या तुम को मालूम नहीं, कि मैं ने और मेरे पुरखाओं ने देश देश के सब लोगोंसे क्या क्या किया है? क्या उन देशें की जातियोंके देवता किसी भी उपाय से अपके देश को मेरे हाथ से बचा सके? 14 जितनी जातियोंका मेरे पुरखाओं ने सत्यानाश किया है उनके सब देवताओं में से ऐसा कौन या जो अपक्की प्रजा को मेरे हाथ से बचा सका हो? फिर तुम्हारा देवता तुम को मेरे हाथ से कैसे बचा सकेगा? 15 अब हिजकिय्याह तुम को इस रीति भुलाने अयवा बहकाने न पाए, और तुम उसकी प्रतीति न करो, क्योंकि किसी जाति या राज्य का कोई देवता अपक्की प्रजा को न तो मेरे हाथ से और न मेरे पुरखाओं के हाथ से बचा सका। यह निश्चय है कि तुम्हारा देवता तुम को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा। 16 इस से भी अधिक उसके कर्मचारियोंने यहोवा परमेश्वर की, और उसके दास हिजकिय्याह की निन्दा की। 17 फिर उस ने ऐसा एक पत्र भेजा, जिस में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की निन्दा की थे बातें लिखी यीं, कि जैसे देश देश की जातियोंके देवताओं ने अपक्की अपक्की प्रजा को मेरे हाथ से नहीं बचाया वैसे ही हिजकिय्याह का देवता भी अपक्की प्रजा को मेरे हाथ से नहीं बचा सकेगा। 18 और उन्होंने ऊंचे शब्द से उन यरूशलेमियोंको जो शहरपनाह पर बैठे थे, यहूदी बोली में पुकारा, कि उनको डराकर घबराहट में डाल दें जिस से नगर को ले लें। 19 और उन्होंने यरूशलेम के परमेश्वर की ऐसी चर्चा की, कि मानो पृय्वी के देश देश के लोगोंके देवताओं के बराबर हो, जो मनुष्योंके बनाए हुए हैं। 20 तब इन घटनाओं के कारण राजा हिजकिय्याह और आमोस के पुत्र यशायाह नबी दोनोंने प्रार्यना की और स्वर्ग की ओर दोहाई दी। 21 तब यहोवा ने एक दूत भेज दिया, जिस ने अश्शूर के राजा की छावनी में सब शूरवीरों, प्रधानोंऔर सेनापतियोंको नाश किया। और वह लज्जित होकर, आने देश को लौट गया। और जब वह अपके देवता के भवन में या, तब उसके निज पुत्रोंने वहीं उसे तलवार से मार डाला। 22 योंयहोवा ने हिजकिय्याह और यरूशलेम के निवासिक्कों अश्शूर के राजा सन्हेरीब और अपके सब शत्रुओं के हाथ से बचाया, और चारोंओर उनकी अगुवाई की। 23 और बहुत लोग यरूशलेम को यहोवा के लिथे भेंट और यहूदा के राजा हिजकिय्याह के लिथे अनमोल वस्तुएं ले आने लगे, और उस समय से वह सब जातियोंकी दृष्टि में महान ठहरा। 24 उन दिनोंहिजकिय्याह ऐसा रोगी हुआ, कि वह मरा चाहता या, तब उस ने यहोवा से प्रार्यना की; और उस ने उस से बातें करके उसके लिथे एक चमत्कार दिखाया। 25 परन्तु हिजकिय्याह ने उस उपकार का बदला न दिया, क्योंकि उसका मन फूल उठा या। इस कारण उसका कोप उस पर और यहूदा और यरूशलेम पर भड़का। 26 तब हिजकिय्याह यरूशलेम के निवासियोंसमेत अपके मन के फूलने के कारण दीन हो गया, इसलिथे यहोवा का क्रोध उन पर हिजकिय्याह के दिनोंमें न भड़का। 27 और हिजकिय्याह को बहुत ही धन और विभव मिला; और उस ने चान्दी, सोने, मणियों, सुगन्धद्रव्य, ढालोंऔर सब प्रकार के मनभावने पात्रोंके लिथे भणडार बनवाए। 28 फिर उस ने अन्न, नया दाखमधु, और टटका लेल के लिथे भणडार, और सब भांति के पशुओं के लिथे यान, और भेड़-बकरियोंके लिथे भेड़शालाएं बनवाई। 29 और उस ने नगर बसाए, और बहुत ही भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैलोंकी सम्पत्ति इकट्ठा कर ली, क्योंकि परमेश्वर ने उसे बहुत ही धन दिया या। 30 उसी हिजकिय्याह ने गीहोन नाम नदी के ऊपर के सोते को पाटकर उस नदी को नीचे की ओर दाऊदपुर की पच्छिम अलंग को सीधा पहुंचाया, और हिजकिय्याह अपके सब कामोंमें कृतार्य होता या। 31 तौभी जब बाबेल के हाकिमोंने उसके पास उसके देश में किए हुए चमत्कार के विषय पूछने को दूत भेजे तब परमेश्वर ने उसको इसलिथे छोड़ दिया, कि उसको परख कर उसके मन का सारा भेद जान ले। 32 हिजकिय्याह के और काम, ओर उसके भक्ति के काम आमोस के पुत्र यशायाह नबी के दर्शन नाम पुस्तक में, और यहूदा और इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 33 अन्त में हिजकिय्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसको दाऊद की सन्तान के कब्रिस्तान की चढाई पर मिट्टी दी गई, और सब यहूदियोंऔर यरूशलेम के निवासियोंने उसकी मृत्यु पर उसका आदरमान किया। और उसका पुत्र मनश्शे उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
1 जब मनश्शे राज्य करने लगा तब वह बारह वर्ष का या, और यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राज्य करता रहा। 2 उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात् उन जातियोंके घिनौने कामोंके अनुसार जिनको यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से तिकाल दिया या। 3 उस ने उन ऊंचे स्यानोंको जिन्हें उसके पिता हिजकिय्याह ने तोड़ दिया या, फिर बनाया, और बाल नाम देवताओं के लिथे वेदियां ओर अशेरा नाम मूरतें बनाई, और आकाश के सारे गण को दणडवत करता, और उनकी उपासना करता रहा। 4 और उस ने यहोवा के उस भवन मे वेदियां बनाई जिसके विषय यहोवा ने कहा या कि यरूशलेम में मेरा नाम सदा बना रहेगा। 5 वरन यहोवा के भवन के दोनोंआंगनोंमें भी उस ने आकाश के सारे गण के लिथे वेदियां बनाई। 6 फिर उस ने हिन्नोम के बेटे की तराई में अपके लड़केबालोंको होम करके चढ़ाया, और शुभ-अशुभ मुहूतॉं को मानता, और टोना और तंत्र-मंत्र करता, और ओफोंऔर भूतसिद्धिवालोंसे व्यवहार करता या। वरन उस ने ऐसे बहुत से काम किए, जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं और जिन से वह अप्रसन्न होता है। 7 और उस ने अपक्की खुदवाई हुई मूत्तिर् परमेश्वर के उस भवन में स्यापन की जिसके विषय परमेश्वर ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा या, कि इस भवन में, और यरूशलेम में, जिसको मैं ने इस्राएल के सब गोत्रोंमें से चुन लिया है मैं आना नाम सर्वदा रखूंगा, 8 और मैं ऐसा न करूंगा कि जो देश मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दिया या, उस में से इस्राएल फिर मारा मारा फिरे; इतना अवश्य हो कि वे मेरी सब आज्ञाओं को अर्यात् मूसा की दी हुई सारी व्यवस्या और विधियोंऔर नियमोंको पालन करने की चौकसी करें। 9 और मनश्शे ने यहूदा और यरूशलेम के निवासिक्कों यहां तक भटका दिया कि उन्होंने उन जातियोंसे भी बढ़कर बुराई की, जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से विनाश किया या। 10 और यहोवा ने मनश्शे और उसकी प्रजा से बातें कीं, परन्तु उन्होंने कुछ ध्यान नहीं दिया। 11 तब यहोवा ने उन पर अश्शूर के सेनापतियोंसे चढ़ाई कराई, और थे मनश्शे को नकेल डालकर, और पीतल की बेडिय़ां जकड़कर, उसे बाबेल को ले गए। 12 तब संकट में पड़कर वह अपके परमेश्वर यहोवा को मानने लगा, और अपके पूर्वजोंके परमेश्वर के साम्हने बहुत दीन हुआ, और उस से प्रार्यना की। 13 तब उस ने प्रसन्न होकर उसकी बिनती सुनी, और उसको यरूशलेम में पहुंचाकर उसका राज्य लौटा दिया। तब मनश्शे को निश्चय हो गया कि यहोवा ही परमेश्वर है। 14 इसके बाद उस ने दाऊदमुर से बाहर गीहोन के पश्चिम की ओर नाले में मच्छली फाटक तक एक शहरपनाह बनवाई, फिर ओपेल को घेरकर बहुत ऊंचा कर दिया; और यहूदा के सब गढ़वाले नगरोंमें सेनापति ठहरा दिए। 15 फिर उस ने पराथे देवताओं को और यहोवा के भवन में की मूत्तिर् को, और जितनी वेदियां उस ने यहोवा के भवन के पर्वत पर, और यरूशलेम में बनवाई यीं, उन सब को दूर करके नगर से बाहर फेंकवा दिया। 16 तब उस ने यहोवा की वेदी की मरम्मत की, और उस पर मेलबलि और धन्यवादबलि चढ़ाने लगा, और यहूदियोंको इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की उपासना करते की आज्ञा दी। 17 तौभी प्रजा के लोग ऊंचे स्यानोंपर बलिदान करते रहे, परन्तु केवल अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे। 18 मनश्शे के ओर काम, और उस ने जो प्रार्यना अपके परमेश्वर से की, और उन दशिर्योंके वचन जो इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से उस से बातें करते थे, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास में लिखा हुआ है। 19 और उसकी प्रार्यना और वह कैसे सुनी गई, और उसका सारा पाप और विश्वासघात और उस ने दीन होने से पहिले कहां कहां ऊंचे स्यान बनवाए, और अशेरा नाम और खुदी हुई मूत्तिर्यां खड़ी कराई, यह सब होशे के वचनोंमें जिखा है। 20 निदान मनश्शे अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसी के घर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र आमोन उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 21 जब आमोन राज्य करने लगा, तब वह बाईस वर्ष का या, और यरूशलेम में दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 22 और उस ने अपके पिता मनश्शे की नाई वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। और जितनी मूत्तिर्यां उसके पिता मनश्शे ने खोदकर बनवाई यीं, वह भी उन सभोंके साम्हने बलिदान करता और उन सभोंकी उपासना भी करता या। 23 और जैसे उसका पिता मनश्शे यहोवा के साम्हने दीन हुआ, वैसे वह दीन न हुआ, वरन आमोन अधिक दोषी होता गया। 24 और उसके कर्मचारियोंने द्रोह की गोष्ठी करके, उसको उसी के भवन में मार डाला। 25 तब साधारण लोगोंने उन सभोंको मार डाला, जिन्होंने राजा आमोन से द्रोह की गोष्ठी की यी; और लोगोंने उसके पुत्र योशिय्याह को उसके स्यान पर राजा बनाया।
1 जब योशिय्याह राज्य करने लगा तब वह आठ वर्ष का या, और यरूशलेम में इकतीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 2 उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है, और जिन मागॉं पर उसका मूलपुरुष दाऊद चलता रहा, उन्हीं पर वह भी चला करता या और उस से न तो दाहिनी ओर मूड़ा, और न बाईं ओर। 3 वह लड़का ही या, अर्यात उसको गद्दी पर बैठे आठ वर्ष पूरे भी न हुए थे कि अपके मूलमुरुष दाऊद के परमेश्वर की खोज करने लगा, और बारहवें वर्ष में वह ऊंचे स्यानोंऔर अश्ेरा नाम मूरतोंको और खुदी और ढली हुई मूरतोंको दूर करके, यहूदा और यरूशलेम को शुद्ध करने लगा। 4 और बालदेवताओं की वेदियां उसके साम्हने तोड़ डाली गई, और सूर्य की प्रतिमाथें जो उनके ऊपर ऊंचे पर यी, उस ने काट डालीं, और अशेरा नाम, और खुदी और ढली हुई मूरतोंको उस ने तोड़कर पीस डाला, और उनकी बुकनी उन लोगोंकी कबरोंपर छितरा दी, जो उनको बलि चढ़ाते थे। 5 और पुजारियोंकी हड्डियां उस ने उन्हीं की वेदियोंपर जलाई। योंउस ने यहूदा और यरूशलेम को शुद्ध किया। 6 फिर मनश्शे, एप्रैम और शिमोन के बरन नप्ताली तक के नगरोंके खणडहरोंमें, उस ने वेदियोंको तोड़ डाला, 7 और अशेरा नाम और खुदी हुई मूरतोंको पीसकर बुकनी कर डाला, और इस्राएल के सारे देश की सूर्य की सब प्रतिमाओं को काटकर यरूशलेम को लौट गया। 8 फिर अपके राज्य के अठारहवें वर्ष में जब वह देश और भवन दोनोंको शुद्ध कर चुका, तब उस ने असल्याह के पुत्र शापान और नगर के हाकिम मासेयाह और योआहाज के पुत्र इतिहास के लेखक योआह को अपके परमेश्वर यहोवा के भवन की मरम्मत कराने के लिथे भेज दिया। 9 सो उन्होंने हिल्किय्याह महाथाजक के पास जाकर जो रुपया परमेश्वर के भवन में लाया गया या, अर्यात् जो लेवीय दरबानोंने मनश्शियों, एप्रैमियोंऔर सब बचे हुए इस्राएलियोंसे और सब यहूदियोंऔर बिन्यामीनियोंसे और यरूशलेम के निवासियोंके हाथ से लेकर इकट्ठा किया या, उसको सौंप दिया। 10 अर्यात् उन्होंने उसे उन काम करनेवालोंके हाथ सौंप दिया जो यहोवा के भवन के काम पर मुखिथे थे, और यहोवा के भवन के उन काम करनेवालोंने उसे भवन में जो कुछ टूटा फूटा या, उसकी मरम्मत करने में लगाया। 11 अर्यात् उन्होंने उसे बढ़इयोंऔर राजोंको दिया कि वे गढ़े हुए पत्यर और जोड़ोंके लिथे लकड़ी मोल लें, और उन घरोंको पाटें जो यहूदा के राजाओं ने नाश कर दिए थे। 12 और वे मनुष्य सच्चाई से काम करते थे, और उनके अधिक्कारनेी मरारीय, यहत और ओबद्याह, लेवीय और कहाती, जकर्याह और मशुल्लाम काम चलानेवाले और गाने-बजाने का भेद सब जाननेवाले लेवीय भी थे। 13 फिर वे बोफियोंके अधिक्कारनेी थे और भांति भांति की सेवकाई और काम चलानेवाले थे, और कुछ लेवीय मुंशी सरदार और दरबान थे। 14 जब वे उस रुपके को जो यहोवा के भवन में पहुंचाया गया या, निकाल रहे थे, तब हिल्किय्याह याजक को मूसा के द्वारा दी हुई यहोवा की व्यवस्या की पुस्तक मिली। 15 तब हिल्किय्याह ने शापान मंत्री से कहा, मुझे यहोवा के भवन में व्यवस्या की पुस्तक मिली है; तब हिल्किय्याह ने शापान को वह पुस्तक दी। 16 तब शापान उस पुस्तक को राजा के पास ले गया, और यह सन्देश दिया, कि जो जो काम तेरे कर्मचारियोंको सौंपा गया या उसे वे कर रहे हैं। 17 और जो रुपया यहोवा के भवन में मिला, उसको उन्होंने उणडेलकर मुखियोंऔर कारीगरोंके हाथोंमें सौंप दिया है। 18 फिर शापान मंत्री ने राजा को यह भी बता दिया कि हिल्किय्याह याजक ने मुझे एक पुस्तक दी है तब शपान ने उस में से राजा को पढ़कर सुनाया। 19 व्यवस्या की वे बातें सुनकर राजा ने अपके वस्त्र फाढ़े। 20 फिर राजा ने हिल्किय्याह शापान के पुत्र अहीकाम, मीका के पुत्र अब्दोन, शापान मंत्री और असायाह नाम अपके कर्मचारी को आज्ञा दी, 21 कि तुम जाकर मेरी ओर से और इस्राएल और यहूदा में रहनेवालोंकी ओर से इस पाई हुई पुस्तक के वचनोंके विष्य यहोवा से पूछो; क्योंकि यहोवा की बड़ी ही जलजलाहट हम पर इसलिथे भड़की है कि हमारे पुरखाओं ने यहोवा का वचन नहीं माना, और इस पुस्तक में लिखी हुई सब आज्ञाओं का पालन नहीं किया। 22 तब हिल्कय्याह ने राजा के और और दूतोंसमेत हुल्दा नबिया के पास जाकर उस से उसी बात के अनुसार बातें की, वह तो उस शल्लूम की स्त्री यी जो तोखत का पुत्र और हस्रा का पोता और वस्त्रालय का रखवाला या : और वह स्त्री यरूशलेम के नथे टोले में रहती यी। 23 उस ने उन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि जिस पुरुष ने तुम को मेरे पास भेजा, उस से यह कहो, 24 कि यहोवा योंकहता है, कि सुन, मैं इस स्यान और इस के निवासियोंपर विपत्ति डालकर यहूदा के राजा के साम्हने जो पुस्तक पक्की गई, उस में जितने शाप लिखे हैं उन सभोंको पूरा करूंगा। 25 उन लोगोंने मुझे त्यागकर पराथे देवताओं के लिथे धूप जलाया है और अपक्की बनाई हुई सब वस्तुओं के द्वारा मुझे रिस दिलाई है, इस कारण मेरी जलजलाहट इस स्यान पर भड़क उठी है, और शान्त न होगी। 26 परन्तु यहूदा का राजा जिस ने तुम्हें यहोवा के पूछने को भेज दिया है उस से तुम योंकहो, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, 27 कि इसलिथे कि तू वे बातें सुनकर दीन हुआ, और परमेश्वर के साम्हने अपना सिर नवाया, और उसकी बातें सुनकर जो उसने इस स्यान और इस के निवासियोंके विरुद्ध कहीं, तू ने मेरे साम्हने अपना सिर नवाया, और वस्त्र फाड़कर मेरे साम्हने रोया है, इस कारण मैं ने तेरी सुनी है; यहोवा की यही बाणी है। 28 सुन, मैं तुझे तेरे पुरखाओं के संग ऐसा मिलाऊंगा कि तू शांति से अपक्की कब्र को पहुंचाया जायगा; और जो विपत्ति मैं इस स्यान पर, और इसके निवासियोंपर डालना चाहता हूँ, उस में से तुझे अपक्की आंखोंसे कुछ भी देखना न पकेगा। तब उन लोगोंने लौटकर राजा को यही सन्देश दिया। 29 तब राजा ने सहूदा और यरूशलेम के सब पुरनियोंको इकट्ठे होने को बचलवा भेजा। 30 और राजा यहूदा के सब लोगोंऔर यरूशलेम के सब निवासियोंऔर याजकोंऔर लेवियोंवरन छोटे बड़े सारी प्रजा के लोगोंको संग लेकर यहोवा के भवन को गया; तब उस न जो वाचा की पुस्तक यहोवा के भवन में मिली याी उस में की सारी बातें उनको पढ़कर सुनाई। 31 तब राजा ने अपके स्यान पर खड़ा होकर, यहोवा से इस आशय की वाचा बान्धी कि मैं यहोवा के पीछे पीछे चलूंगा, और अपके पूर्ण मन और पूर्ण जीव से उसकी आज्ञाएं, चितौनियोंऔर विधियोंका पालन करूंगा, और इन वाचा की बातोंको जो इस पुस्तक में लिखी हैं, पूरी करूंगा। 32 और उस ने उन सभोंसे जो यरूशलेम में और बिन्यामीन में थे वैसी ही वाचा बन्धाई। और यरूशलेम के निवासी, परमेश्वर जो उनके पितरोंका परमेश्वर या, उसकी वाचा के अनुसार करने लगे। 33 और योशिय्याह ने इस्राएलियोंके सब देशोंमें से सब घिनौनी वस्तुओं को दूर करके जितने इस्राएल में मिले, उन सभोंसे उपासना कराई; अर्यात् उनके परमेश्वर सहोवा की उपासना कराई। और उसके जीवन भर उन्होंने अपके पूवजोंके परमेश्वर यहोवा के पीछे चलना न छोड़ा।
1 और योशिय्याह ने यरूशलेम में यहोवा के लिथे फसह पर्व माना और पहिले महीने के चौदहवें दिन को फसह का पशु बलि किया गया। 2 और उस ने याजकोंको अपके अपके काम में ठहराया, और यहोवा के भवन में की सेवा करने को उनका हियाब बन्धाया। 3 फिर लेवीय जो सब इस्राएल लियोंको सिखाते और यहोवा के लिथे पवित्र ठहरे थे, उन से उस ने कहा, तुम पवित्र सन्दूक को उस भवन में रखो जो दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान ने बनवाया या; अब तुम को कन्धोंपर बोफ उठाना न होगा। अब अपके परमेश्वर यहोवा की और उसकी प्रजा इस्राएल की सेवा करो। 4 और इस्राएल के राजा दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान दोनोंकी लिखी हुई विधियोंके अनुसार, अपके अपके पितरोंके अनुसार, अपके अपके दल में तैयार रहो। 5 और तुम्हारे भाई लोगोंके पितरोंके घरानोंके भागोंके अनुसार पवित्रस्यान में खड़े रहो, अर्यात् उनके एक भाग के लिथे लेवियोंके एक एक पितर के घराने का एक भाग हो। 6 और फसह के पशुओं को बलि करो, और अपके अपके को पवित्र करके अपके भाइयोंके लिथे तैयारी करो कि वे यहोवा के उस वचन के अनुसार कर सकें, जो उस ने मूसा के द्वारा कहा या। 7 फिर योशिय्याह ने सब लोगोंको जो वहां उपस्यित थे, तीस हजार भेड़ोंऔर बकरियोंके बच्चे और तीन हजार बैल दिए थे; थे सब फसह के बलिदानोंके लिथे राजा की सम्पत्ति में से दिए गए थे। 8 और उसके हाकिमोंने प्रजा के लोगों, याजकोंऔर लेवियोंको स्वेच्छा -बलियोंके लिथे पशु दिए। और हिल्किय्याह, जकर्याह और यहीएल नाम परमेश्वर के भवन के प्रधानोंने याजकोंको दो हजार छ:सौ भेड �-बकरियां। और तीन सौ बैल फसह के बलिदानोंके लिए दिए। 9 और कोनन्याह ने और शमायाह और नतनेल जो उसके भाई थे, और हसब्याह, यीएल और योजाबाद नामक लेवियोंके प्रधानोंने लेवियोंको पांच हजार भेड़-बकरियां, और पांच सौ बैल फसह के बलिदानोंके लिथे दिए। 10 इस प्रकार उपासना की तैयारी हो गई, और राजा की आज्ञा के अनुसार याजक अपके अपके स्यान पर, और लेवीय अपके अपके दल में खड़े हुऐ। 11 तब फसह के पशु बलि किए गए, और याजक बलि करनेवालोंके हाथ से लोहू को लेकर छिड़क देते और लेवीय उनकी खाल उतारते गए। 12 तब उन्होंने होमबलि के पशु इसलिथे अलग किए कि उन्हें लोगोंके पितरोंके घरानोंके भागोंके अनुसार दें, कि वे उन्हें यहोवा के लिथे चढ़वा दें जैसा कि मूसा की पुस्तक में लिखा है; और बैलोंको भी उन्होंने वैसा ही किया। 13 तब उन्होंने फसह के पशुओं का मांस विधि के अनुसार आग में भूंजा, और पवित्र वस्तुएं, हंडियोंऔर हंडोंऔर यालियोंमें सिफा कर फूतीं से लोगोंको पहुंचा दिया। 14 तब उन्होंने अपके लिथे और याजकोंके लिथे तैयारी की, क्योंकि हारून की सन्तान के याजक होमबलि के पशु और चरबी रात तक चढ़ाते रहे, इस कारण लेवियोंने अपके लिथे और हारून की सन्तान के याजकोंके लिथे तैयारी की। 15 और आसाप के वंश के गवैथे, दाऊद, आसाप, हेमान और राजा के दशीं यदूतून की आज्ञा के अनुसार अपके अपके स्यान पर रहे, और द्वारपाल एक एक फाटक पर रहे। उन्हें अपना अपना काम छोड़ना न पड़ा, क्योंकि उनके भई लेवियोंने उनके लिथे तैयारी की। 16 योंउसी दिन राजा योशिय्याह की आज्ञा के अनुसार फसह मनाने और यहोवा की बेदी पर होमबलि चढ़ाने के लिथे यहोवा की सारी अपासना की तैयारी की गई। 17 जो इस्राएली वहां उपस्यित थे उन्होंने फसह को उसी समय और अखमीरी रोटी के पर्व को सात दिन तक माना। 18 इस फसह के बराबर शमूएल नबी के दिनोंसे इस्राएल में कोई फसह मनाया न गया या, और न इस्राएल के किसी राजा ने ऐसा मनाया, जैसा योशिय्याह और याजकों, लेवियोंऔर जितने यहूदी और इस्राएली उपस्यित थे, उनहोंने और यरूशलेम के निवासियोंने मनाया। 19 यह फसह योशिय्याह के राज्य के अठारहवें वर्ष में मनाया गया। 20 इसके बाद जब योशिय्याह भवन को तैयार कर चुका, तब मिस्र के राजा नको ने परात के पास के कुर्कमीश नगर से लड़ने को चढ़ाई की और योशिय्याह उसका साम्हना करने को गया। 21 परन्तु उस ने उसके पास दूतोंसे कहला भेजा, कि हे यहूदा के राजा मेरा तुझ से क्या काम ! आज मैं तुझ पर नहीं उसी कुल पर चढ़ाई कर रहा हूँ, जिसके साय मैं युद्ध करता हूँ; फिर परमेश्वर ने मुझ से फुतीं करने को कहा है। इसलिथे परमेश्वर जो मेरे संग है, उससे अलग रह, कहीं ऐसा न हो कि वह तुझे नाश करे। 22 परन्तु योशिय्याह ने उस से मुंह न मोड़ा, वरन उस से लड़ने के लिथे भेष बदला, और नको के उन वचनोंको न माना जो उस ने परमेश्वर की ओर से कहे थे, और मगिद्दो की तराई में उस से युद्ध करने को गया। 23 तब धनुर्धारियोंने राजा योशिय्याह की ओर तीर छोड़े; और राजा ने अपके सेवकोंसे कहा, मैं तो बहुत घायल हुआ, इसलिथे मुझे यहां से ले जाओ। 24 तब उसके सेवकोंने उसको रय पर से उतार कर उसके दूसरे रय पर चढ़ाया, और यरूशलेम ले गथे। और वह मर गया और उसके पुरखाओं के कब्रिस्तान में उसको मिट्टी दी गई। और यहूदियोंऔर यरूशलेमियोंने योशिय्याह के लिए विलाप किया। 25 और यिर्मयाह ने योशिय्याह के लिथे विलाप का गीत बनाया और सब गानेवाले और गानेवालियां अपके विलाप के गीतोंमें योशिय्याह की चर्चा आज तक करती हैं। और इनका गाना इस्राएल में एक विधि के तुल्य ठहराया गया और थे बातें विलापक्कीतोंमें लिखी हुई हैं। 26 योशिय्याह के और काम और भक्ति के जो काम उस ने उसी के अनुसार किए जो यहोवा की व्यवस्या में लिखा हुआ है। 27 और आदि से अन्त तक उसके सब काम इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हुए हैं।
1 तब देश के लोगोंने योशिय्याह के पुत्र यहोआहाज को लेकर उसके पिता के स्यान पर यरूशलेम में राजा बनाया। 2 जब यहोआहाज राज्य करने लगा, तब वह तेईस वर्ष का या, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 3 तब मिस्र के राजा ने उसको यरूशलेम में राजगद्दी से उनार दिया, और देश पर सौ किक्कार चान्दी और किक्कार भर लोना जुरमाने में दणड लगाया। 4 तब मिस्र के राजा ने उसके भाई एल्याकीम को यहूदा और यरूशलेम का राजा बनाया और उसका नाम बदलकर यहोयाकीम रखा। और नको उसके भाई यहोआहाज को मिस्र में ले गया। 5 जब यहोयाकीम राज्य करने लगा, तब वह पक्कीस वर्ष का या, और ग्यारह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उस ने वह काम किया, जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 6 उस पर बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने चढ़ाई की, और बाबेल ले जाने के लिथे उसको बेडिय़ां पहना दीं। 7 फिर नबूकदनेस्सर ने यहोवा के भवन के कुछ पात्र बाबेल ले जाकर, अपके मन्दिर में जो बाबेल में या, रख दिए। 8 यहोयाकीम के और काम और उस ने जो जो घिनौने काम किए, और उस में जो जो बिुराइयां पाई गई, वह इस्राएल और यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखी हैं। और उसका पुत्र यहोयाकीन उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 9 जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह आठ वर्ष का या, और तीन महीने और दस दिन तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उस ने वह किया, जो परमेश्वर यहोवा की दुष्टि में बुरा है। 10 नथे वर्ष के लगते ही नबूकदनेस्सर ने लोगोंको भेजकर, उसे और यहोवा के भवन के मनभावने पात्रोंको बाबेल में मंगवा लिया, और उसके भाई सिदकिय्याह को यहूदा और यरूशलेम पर राजा नियुक्त किया। 11 जब सिदकिय्याह राज्य करने लगा, तब वह इक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में ग्यारह वर्ष तक राज्य करता रहा। 12 और उस ने वही किया, जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में बुरा है। यद्यापि यिर्मयाह नबी यहोवा की ओर से बातें कहता या, तौभी वह उसके साम्हने दीन न हुआ। 13 फिर नबूकदनेस्सर जिस ने उसे परमेश्वर की शपय खिलाई यी, उस से उस ने बलवा किया, और उस ने हठ किया और अपना मन कठोर किया, कि वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की ओर न फिरे। 14 वरन सब प्रधान याजकोंने और लोगोंने भी अन्य जातियोंके से घिनौने काम करके बहुत बड़ा विश्वासघात किया, और यहोवा के भवन को जो उस ने यरूशलेम में पवित्र किया या, अशुद्ध कर डाला। 15 और उनके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा ने बड़ा यत्न करके अपके दूतोंसे उनके पास कहला भेजा, क्योंकि वह अपक्की प्रजा और अपके धाम पर तरस खाता या; 16 परन्तु वे परमेश्वर के दूतोंको ठट्ठोंमें उड़ाते, उसके वचनोंको तुच्छ जानते, और उसके नबियोंकी हंसी करते थे। निदान यहोवा अपक्की प्रजा पर ऐसा फुंफला उठा, कि बचने का कोई उपाय न रहा। 17 तब उस ने उन पर कसदियोंके राजा से चढ़ाई करवाई, और इस ने उनके जवानोंको उनके पवित्र भवन ही में तलवार से मार डाला। और क्या जवान, क्या कुंवारी, क्या बूढ़े, क्या पक्के बालवाले, किसी पर भी कोमलता न की; यहोवा ने सभोंको उसके हाथ में कर दिया। 18 और क्या छोटे, क्या बड़े, परमेश्वर के भवन के सब पात्र और यहोवा के भवन, और राजा, और उसके हाकिमोंके खजाने, इन सभोंको वह बाबेल में ले गया। 19 और कसदियो ने परमेश्वर का भवन फूंक दिया, और यरूशलेम की शहरपनाह को तोड़ ड़ाला, और आग लगा कर उसके सब भवनोंको जलाया, और उस में का सारा बहुमूल्य सामान नष्ट कर दिया। 20 और जो तलवार से बच गए, उन्हें वह बाबेल को ले गया, और फारस के राज्य के प्रबल होने तक वे उसके और उसके बेटों-पोतोंके आधीन रहे। 21 यह सब इसलिथे हुआ कि यहोवा का जो वचन यिर्मयाह के मुंह से निकला या, वह पूरा हो, कि देश अपके विश्रम कालोंमें मुख भोगता रहे। इसलिथे जब तक वह सूना पड़ा रहा तब तक अर्यात् सत्तर वर्ष के पूरे होने तक उसको विश्रम मिला। 22 फारस के राजा कूस्रू के पहिले वर्ष में यहोवा ने उसके मन को उभारा कि जो वचन यिर्मयाह के मुंह से निकला या, वह पूरा हो। इसलिथे उस ने अपके समस्त राज्य में यह प्रचार करवाया, और इस आशय की चिट्ठियां लिखवाई, 23 कि फारस का राजा कू्रस्रू कहता है, कि स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा ने पृय्वी भर का राज्य मुझे दिया है, और उसी ने मुझे आज्ञा दी है कि यरूशलेम जो यहूदा में है उस में मेरा एक भवन बनवा; इसलिथे हे उसकी प्रजा के सब लोगो, तुम में से जो कोई चाहे कि उसका परमेश्वर यहोवा उसके साय रहे, तो वह वहां रवाना हो जाए।
1 फारस के राजा कुस्रू के पहिले वर्ष में यहोवा ने फारस के राजा कुस्रू का मन उभारा कि यहोवा का जो वचन यिर्मयाह के मुंह से निकला या वह पूरा हो जाए, इसलिथे उस ने अपके समस्त राज्य में यह प्रचार करवाया और लिखवा भी दिया: 2 कि फारस का राजा कुस्रू योंकहता है : कि स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा ने पृय्वी भर का राज्य मुझे दिया है, और उस ने मुझे आज्ञा दी, कि यहूदा के यरूशलेम में मेरा एक भवन बनवा। 3 उसकी समस्त प्रजा के लोगोंमें से तुम्हारे मध्य जो कोई हो, उसका परमेश्वर उसके साय रहे, और वह यहूदा के यरूशलेम को जाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का भवन बनाए - जो यरूशलेम में है वही परमेश्वर है। 4 और जो कोई किसी स्यान में रह गया हो, जहां वह रहता हो, उस स्यान के मनुष्य चान्दी, सोना, धन और पशु देकर उसकी सहाथता करें और इस से अधिक परमेश्वर के यरूशलेम के भवन के लिथे अपक्की अपक्की इच्छा से भी भेंट चढ़ाएं।। 5 तब यहूदा और बिन्यामीन के जितने पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरूषोंऔर याजकोंओर लेवियोंका मन परमेश्वर ने उभारा या कि जाकर यरूशलेम में यहोवा के भवन को बनाएं, वे सब उठ खड़े हुए; 6 और उनके आसपास सब रहनेवालोंने चान्दी के पात्र, सोना, धन, पशु और अनमोल वस्तुएं देकर, उनकी सहाथता की; यह उन सब से अधिक या, जो लोगोंने अपक्की अपक्की इच्छा से दिया। 7 फिर यहोवा ने भवन के जो पात्र नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम से निकालकर अपके देवता के भवन में रखे थे, 8 उनको कुस्रू राजा ने, मियूदान खजांची से निकलवा कर, यहूदियोंके शेशबस्सर नाम प्रधान को गिनकर सौंप दिया। 9 उनकी गिनती यह यी, अर्यात् सोने के तीस और चान्दी के एक हजार परात और उनतीस छुरी, 10 सोने के तीस और मघ्यम प्रकार के चान्दी के चार सौ दस कटोरे तया और प्रकार के पात्र एक हजार। 11 सोने चान्दी के पात्र सब मिलकर पांच हजार चार सौ थे। इन सभोंको शेशबस्सर उस समय ले आया जब बन्धुए बाबेल से यरूशलेम को आए।।
1 जिनको बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर बाबेल को बन्धुआ करके ले गया या, उन में से प्रान्त के जो लोग बन्धुआई से छूटकर यरूशलेम और यहूदा को अपके अपके नगर में लौटे वे थे हैं। 2 थे जरूब्बाबेल, थेशू, नहेम्याह, सरायाह, रेलायाह, मौर्दकै, बिलशान, मिस्पार, बिगवै, रहूम और बाना के साय आए। इस्राएली प्रजा के मनुष्योंकी गिनती यह है, अर्यात् 3 परोश की सन्तान दो हजार एक सौ बहत्तर, 4 शपत्याह की सन्तान तीन सौ बहत्तर, 5 आरह की सन्तान सात सौ पछहत्तर, 6 पहत्मोआब की सन्तान थेशू और योआब की सन्तान में से दो हजार आठ सौ बारह, 7 एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन, 8 जत्तू की सन्तान नौ सौ पैंतालीस, 9 जक्कै की सन्तान सात सौ पैंतालीस, 10 बानी की सन्तान छ: सौ बयालीस 11 बेबै की सन्तान छ: सौ तेईस, 12 अजगाद की सन्तान बारह सौ बाईस, 13 अदोनीकाम की सन्तान छ: सौ छियासठ, 14 बिग्वै की सन्तान दो हजार छप्पन, 15 आदीन की सन्तान चार सौ चौवन, 16 यहिजकिय्याह की सन्तान आतेर की सन्तान में से अट्ठानवे, 17 बेसै की सन्तान तीन सौ तेईस, 18 योरा के लोग एक सौ बारह, 19 हाशूम के लोग दो सौ तेईस, 20 गिब्बार के लोग पंचानवे, 21 बेतलेहेम के लोग एक सौ तेईस, 22 नतोपा के मनुष्य छप्पन; 23 अनातोत के मनुष्य एक सौ अट्ठाईस, 24 अज्मावेत के लोग बयालीस, 25 किर्यतारीम कपीरा और बेरोत के लोग सात सौ तैतालीस, 26 रामा और गेबा के लोग छ: सौ इक्कीस, 27 मिकमास के मनुष्य एक सौ बाईस, 28 बेतेल और ऐ के मनुष्य दो सौ तेईस, 29 नबो के लोग बावन, 30 मग्बीस की सन्तान एक सौ छप्पन, 31 दूसरे एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन, 32 हारीम की सन्तान तीन सौ बीस, 33 लोद, हादीद और ओनो के लोग सात सौ पक्कीस, 34 यरीहो के लोग तीन सौ पैतालीस, 35 सना के लोग तीन हजार छ: सौ तीस।। 36 फिर याजकोंअर्यात् थेशू के घराने में से यदायाह की सन्तान नौ सौ तिहत्तर, 37 इम्मेर की सन्तान एक हजार बावन, 38 पशहूर की सन्तान बारह सौ सैंतालीस, 39 हारीम की सन्तान एक हजार सतरह। 40 फिर लेवीय, अर्यात् थेशू की सन्तान और कदमिएल की सन्तान होदब्याह की सन्तान में से चौहत्तर। 41 फिर गवैयोंमें से आसाप की सन्तान एक सौ अट्ठाईस। 42 फिर दरबानोंकी सन्तान, शल्लूम की सन्तान, आतेर की सन्तान, तल्मोन की सन्तान, अक्कूब की सन्तान, हतीता की सन्तान, और शोबै की सन्तान, थे सब मिलकर एक सौ उनतालीस हुए। 43 फिर नतीन की सन्तान, सीहा की सन्तान, हसूपा की सन्तान, तब्बाओत की सन्तान। 44 केरोस की सन्तान, सीअहा की सन्तान, पादोन की सन्तान, 45 लवाना की सन्तान, हगबा की सन्तान, अक्कूब की सन्तान, 46 हागाब की सन्तान, शमलै की सन्तान, हानान की सन्तान, 47 गिद्दल की सन्तान, गहर की सन्तान, रायाह की सन्तान, 48 रसीन की सन्तान, नकोदा की सन्तान, गज्जाम की सन्तान, 49 उज्जा की सन्तान, पासेह की सन्तान, बेसै की सन्तान, 50 अस्ना की सन्तान, मूनीम की सन्तान, नपीसीम की सन्तान, 51 बकबूक की सन्तान, हकूपा की सन्तान, हर्हूर की सन्तान। 52 बसलूत की सन्तान, महीदा की सन्तान, हर्शा की सन्तान, 53 बर्कोस की सन्तान, सीसरा की सन्तान, तेमह की सन्तान, 54 नसीह की सन्तान, और हतीपा की सन्तान।। 55 फिर सुलैमान के दासोंकी सन्तान, सोतै की सन्तान, हस्सोपेरेत की सन्तान, परूदा की सन्तान, 56 याला की सन्तान, दर्कोन की सन्तान, गिद्देल की सन्तान, 57 शपत्याह की सन्तान, हत्तील की सन्तान, पोकरेतसबायीम की सन्तान, और आमी की सन्तान। 58 सब नतीन और सुलैमान के दासोंकी सन्तान, तीन सौ बानवे थे।। 59 फिर जो तेल्मेलह, तेलहर्शा, करूब, अद्दान और इम्मेर से आए, परन्तु वे अपके अपके पितरोंके घराने और वंशावली न बता सके कि वे इस्राएल के हैं, वे थे हैं: 60 अर्यात् दलायाह की सन्तान, तोबिय्याह की सन्तान और नकोदा की सन्तान, जो मिलकर छ: सौ बावन थे। 61 और याजकोंकी सन्तान में से हबायाह की सन्तान, हक्कोस की सन्तान और बजिर्ल्लै की सन्तान, जिस ने गिलादी बजिर्ल्ले की एक बेटी को ब्याह लिया और उसी का नाम रख लिया या। 62 इन सभोंने अपक्की अपक्की वंशावली का पत्र औरोंकी वंशावली की पोयियोंमें ढूंढ़ा, परन्तु वे न मिले, इसलिथे वे अशुद्ध ठहराकर याजकपद से निकाले गए। 63 और अधिपति ने उन से कहा, कि जब तक ऊरीम और तुम्मीम धारण करनेवाला कोई याजक न हो, तब तक कोई परमपवित्र वस्तु खाने न पाए।। 64 समस्त मण्डली मिलकर बयालीस हजार तीन सौ साठ की यी। 65 इनको छोड़ इनके सात हजार तीन सौ सैंतीस दास-दासियां और दो सौ गानवाले और गानेवालियां यीं। 66 उन के घोड़े सात सौ छत्तीस, खच्चर दो सौ पैंतालीस, ऊंट चार सौ पैंतीस, 67 और गदहे छ: हजार सात सौ बीस थे। 68 और पितरोंके घरानोंके कुछ मुख्य मुख्य पुरूषोंने जब यहोवा के भसन को जो यरूशलेम में है, आए, तब परमेश्वर के भवन को उसी के स्यान पर खड़ा करने के लिथे अपक्की अपक्की इच्छा से कुछ दिया। 69 उन्होंने अपक्की अपक्की पूंजी के अनुसार इकसठ हजार दर्कमोन सोना और पांच हजार माने चान्दी और याजकोंके योग्य एक सौ अंगरखे अपक्की अपक्की इच्छा से उस काम के खजाने में दे दिए। 70 तब याजक और लेवीय और लोगोंमें से कुछ और गवैथे और द्वारपाल और नतीन लोग अपके नगर में और सब इस्राएली अपके अपके नगर में फिर बस गए।।
1 जब सातवां महीना आया, और इस्राएली अपके अपके नगर में बस गए, तो लोग यरूशलेम में एक मन होकर इकट्ठे हुए। 2 तब योसादाक के पुत्र थेशू ने अपके भाई याजकोंसमेत और शालतीएल के पुत्र जरूब्बाबेल ने अपके भाइयोंसमेत कमर बान्धकर इस्राएल के परमेश्वर की वेदी को बनाया कि उस पर होमबलि चढ़ाएं, जैसे कि परमेश्वर के भक्त मूसा की व्यवस्या में लिखा है। 3 तब उन्होंने वेदी को उसके स्यान पर खड़ा किया क्योंकि उन्हें उस ओर के देशोंके लोगोंका भय रहा, और वे उस पर यहोवा के लिथे होमबलि अर्यात् प्रतिदिन सबेरे और सांफ के होमबलि चढ़ाने लगे। 4 और उन्होंने फोपडिय़ोंके पर्व को माना, जैसे कि लिखा है, और प्रतिदिन के होमबलि एक एक दिन की गिनती और नियम के अनुसार चढ़ाए। 5 और उसके बाद नित्य होमबलि और नथे नथे चान्द और यहोवा के पवित्र किए हुए सब नियत पवॉं के बलि और अपक्की अपक्की इच्छा से यहोवा के लिथे सब स्वेच्छाबलि हर एक के लिथे बलि चढ़ाए। 6 सातवें महीने के पहिले दिन से वे यहोवा को होमबलि चढ़ाने लगे। परन्तु यहोवा के मन्दिर की नेव तब तक न डाली गई यी। 7 तब उन्होंने पत्य्र गढ़नेवालोंऔर कारीगरोंको रुपया, और सीदोनी और सोरी लोगोंको खने-पीने की वस्तुएं और तेल दिया, कि वे फारस के राजा कुस्रू के पत्र के अनुसार देवदार की लकड़ी लबानोन से जापा के पास के समुद्र में पहुंचाएं। 8 उनके परमेश्वर के भवन में, जो यरूशलेम में है, अपके के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने में, शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल ने और योसादाक के पुत्र थेशू ने और उनके और भाइयोंने जो याजक और लेवीय थे, और जितने बन्धुआई से यरूशलेम में आए थे उन्होंने भी काम को आरम्भ किया, और बीस वर्ष अयवा उससे अधिक अवस्या के लेवियोंको यहोवा के भवन का काम चलाने के लिथे नियुक्त किया। 9 तो सेशू और उसके बेटे और भाई और कदमीएल और उसके बेटे, जो यहूदा की सन्तान थे, और हेनादाद कीं सन्तान और उनके बेटे परमेश्वर के भवन में कारीगरोंका काम चलाने को खड़े हुए। 10 और जब राजोंने यहोवा के मन्दिर की नेव डाली तब अपके वस्त्र पहिने हुए, और तुरहियां लिथे हुए याजक, और फांफ लिथे हुए आसाप के वंश के लेवीय इसलिथे नियुक्त किए गए कि इस्राएलियोंके राजा दाऊद की चलाई हुई रीति के अनुसार यहोवा की स्तुति करें। 11 सो वे यह गा गाकर यहोवा की स्तुति और धन्यवाद करने लगे, कि वह भला है, और उसकी करुणा इस्राएल पर सदैव बनी है। और जब वे यहोवा की स्तुति करने लगे तब सब लोगोंने यह जानकर कि यहोवा के भवन की नेब अब पड़ रही है, ऊंचे शब्द से जय जयकार किया। 12 परन्तु बहुतेरे याजक और लेवीय और पूर्वजोंके घरानोंके मुख्य पुरुष, अर्यात् वे बूढ़े जिन्होंने पहिला भवन देखा या, जब इस भवन की नेव उनकी आंखोंके साम्हने पक्की तब फूट फूटकर रोने लगे, और बहुतेरे आनन्द के मारे ऊंचे शब्द से जय जयकार कर रहे थे। 13 इसलिथे लोग, आनन्द के जय जयकार का शब्द, लोगोंके रोने के शब्द से अलग पहिचान न सके, क्योंकि लोग ऊंचे शब्द से जय जयकार कर रहे थे, और वह शब्द दूर तक सुनाई देता या।
1 जब यहूदा और बिन्यामीन के शत्रुओं ने यह सुना कि बन्धुआई से छूटे हुए लोग इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिथे मन्दिर बना रहे हैं, 2 तब वे जरुब्बाबेल और पूर्वजोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुषोंके पास आकर उन से कहने लगे, हमें भी अपके संग बनाने दो; क्योंकि तुम्हारी नाई हम भी तुम्हारे परमेश्वर की खोज में लगे हुए हैं, और अश्शूर का राजा एसर्हद्दोन जिस ने हमें यहां पहुंचाया, उसके दिनोंसे हम उसी को बलि चढ़ाते भी हैं। 3 जरुब्बाबेल, थेशू और इस्राएल के पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुषोंने उन से कहा, हमारे परमेश्वर के लिथे भवन बनाने में तुम को हम से कुछ काम नहीं; हम ही लोग एक संग मिलकर फारस के राजा कुस्रू की आज्ञा के अनुसार इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के लिथे उसे बनाएंगे। 4 तब उस देश के लोग यहूदियोंके हाथ ढीला करने और उन्हें डराकर मन्दिर बनाने में रुकावट डालने लगे। 5 और फारस के राजा कुस्रू के जीवन भर वरन फारस के राजा द्वारा के राज्य के समय तक उनके मनोरय को निष्फल करने के लिथे वकीलोंको रुपया देते रहे। 6 श्रयर्ष के राज्य के पहिले दिनोंमें उन्होंने यहूदा और यरूशलेम के निवासियोंका दोषपत्र उसे लिख भेजा। 7 फिर अर्तश्र्त्र के दिनोंमें बिशलाम, मियदात और ताबेल ने और उसके सहचरियोंने फारस के राजा अर्तश्र्त्र को चिट्ठी लिखी, और चिट्ठी अरामी अश्र्रोंऔर अरामी भाषा में लिखी गई। 8 अर्यात् रहूम राजमंत्री और शिलशै मंत्री ने यरूशलेम के विरुद्ध राजा अर्तश्र्त्र को इस आशय की चिट्ठी लिखी। 9 उस समय रहूम राजमंत्री और शिमशै मंत्री और उनके और सहचरियोंने , अर्यात् दीनी, अपर्सतकी, तर्पक्की, अफ़ारसी, एरेकी, बाबेली, शूशनी, देहवी, एलामी, 10 आदि जातियोंने जिन्हें महान और प्रधान ओस्नप्पर ने पार ले आकर शोमरोन नगर में और महानद के इस पार के शेष देश में बसाया या, एक चिट्ठी लिखी। 11 जो चिट्ठी उन्होंने अर्तश्र्त्र राजा को लिखी, उसकी यह नकल है---तेरे दास जो महानद के पार के मनुष्य हैं, इत्यादि। 12 राजा को यह विदित हो, कि जो यहूदी तेरे पास से चले आए, वे हमारे पास यरूशलेम को पहुंचे हैं। वे उस दंगैत और घिनौने नगर को बसा रहे हैं; वरन उसकी शहरपनाह को खड़ा कर चुके हैं और उसकी नेव को जोड़ चुके हैं। 13 अब राजा को विदित हो कि यदि वह नगर बस गया और उसकी शहरपनाह बन चुकी, तब तो वे लोग कर, चुंगी और राहदारी फिर न देंगे, और अन्त में राजाओं की हानि होगी। 14 हम लोग तो राजमन्दिर का नमक खाते हैं और उचित नहीं कि राजा का अनादर हमारे देखते हो, इस कारण हम यह चिट्ठी भेजकर राजा को चिता देते हैं। 15 तेरे पुरखाओं के इतिहास की पुस्तक में खोज की जाए; तब इतिहास की पुस्तक में तू यह पाकर जान लेगा कि वह नगर बलवा करनेवाला और राजाओं और प्रान्तोंकी हानि करनेवाला है, और प्राचीन काल से उस में बलवा मचता आया है। और इसी कारण वह नगर नष्ट भी किया गया या। 16 हम राजा को निश्चय करा देते हैं कि यदि वह नगर बसाया जाए और उसकी शहरपनाह बन चुके, तब इसके कारण महानद के इस पार तेरा कोई भाग न रह जाएगा। 17 तब राजा ने रहूम राजमंत्री और शिमशै मंत्री और शोमरोन और महानद के इस पार रहनेवाले उनके और सहचरियोंके पास यह उत्तर भेजा, कुशल, इत्यादि। 18 जो चिट्ठी तुम लोगोंने हमारे पास भेजी वह मेरे साम्हने पढ़ कर साफ साफ सुनाई गई। 19 और मेरी आज्ञा से खोज किथे जाने पर जान पड़ा है, कि वह नगर प्राचीनकाल से राजाओं के विरुद्ध सिर उठाता आया है और उसमें दंगा और बलवा होता आया है। 20 यरूशलेम के सामयीं राजा भी हुए जो महानद के पार से समस्त देश पर राज्य करते थे, और कर, चुंगी और राहदारी उनको दी जाती यी। 21 इसलिथे अब इस आज्ञा का प्रचार कर कि वे मनुष्य रोके जाएं और जब तक मेरी ओर से आज्ञा न मिले, तब तक वह नगर बनाया न जाए। 22 और चौकस रहो, कि इस बात में ढीले न होना; राजाओं की हानि करनेवाली वह बुराई क्योंबढ़ने पाए? 23 जब राजा अर्तश्र्त्र की यह चिट्ठी रहूम और शिमशै मंत्री और उनके सहचरियोंको पढ़कर सुनाई गई, तब वे उतावली करके यरूशलेम को यहूदियोंके पास गए और भुजबल और बरियाई से उनको रोक दिया। 24 तब परमेश्वर के भवन का काम जो यरूशलेम में है, रुक गया; और फारस के राजा दारा के राज्य के दूसरे वर्ष तक रुका रहा।
1 तब हाग्गै नामक नबी और इद्दो का पोता जकर्याह यहूदा और यरूशलेम के यहूदियोंसे नबूवत करने लगे, उन्होंने इस्राएल के परमेश्वर के नाम से उन से नबूवत की। 2 तब शालतीएल का पुत्र जरुब्बाबेल और योसादाक का पुत्र थेशू, कमर बान्धकर परमेश्वर के भवन को जो यरूशलेम में है बनाने लगे; और परमेश्वर के वे नबी उनका साय देते रहे। 3 उसी समय महानद के इस पार का तत्तनै नाम अधिपति और शतबॉजनै अपके सहचरियोंसमेत उनके पास जाकर योंपूछने लगे, कि इस भवन के बनाने और इस शहरपनाह के खड़े करने की किस ने तुम को आज्ञा दी है? 4 तब हम लोगोंसे यह कहा, कि इस भवन के बनानेवालोंके क्या क्या नाम हैं? 5 परन्तु यहूदियोंके पुरनियोंके परमेश्वर की दृष्टि उन पर रही, इसलिथे जब तक इस बात की चर्चा दारा से न की गई और इसके विषय चिट्ठी के द्वारा उत्तर न मिला, तब तक उन्होंने इनको न रोका। 6 जो चिट्ठी महानद के इस पार के अधिपति तत्तनै और शतबॉजनै और महानद के इस पार के उनके सहचक्की अपार्सकियोंने राजा दाना के पास भेजी उसकी नकल यह है; 7 उन्होंने उसको एक चिट्ठी लिखी, जिस में यह लिखा या : कि राजा दारा का कुशल झेम सब प्रकार से हो। 8 राजा को विदित हो, कि हम लोग यहूदा नाम प्रान्त में महान परमेश्वर के भवन के पास गए थे, वह बड़े बड़े पत्य्रोंसे बन रहा है, और उसकी भीतोंमें कडिय़ां जुड़ रही हैं; और यह काम उन लोगोंसे फुतीं के साय हो रहा है, और सुफल भी होता जाता है। 9 इसलिथे हम ने उन पुरनियोंसे योंपूछा, कि यह भवन बनवाने, और यह शहरपनाह खड़ी करने की आाज्ञा किस ने तुम्हें दी? 10 और हम ने उनके नाम भी पूछे, कि हम उनके मुख्य पुरुषोंके नाम लिखकर तुझ को जता सकें। 11 और उन्होंने हमें योंउत्तर दिया, कि हम तो शकाश और पृय्वी के परमेश्वर के दास हैं, और जिस भवन को बहुत वर्ष हुए इस्राएलियोंके एक बड़े राजा ने बनाकर तैयार किया या, उसी को हम बना रहे हैं। 12 जब हमारे पुरखाओं ने स्वर्ग के परमेश्वर को रिस दिलाई यी, तब उस ने उन्हें बाबेल के कसदी राजा नबूकदनेस्सर के हाथ में कर दिया या, और उस ने इस भवन को नाश किया और लोगोंको बन्धुआ करके बाबेल को ले गया। 13 परन्तु बाबेल के राजा कुस्रू के पहिले वर्ष में उसी कुस्रू राजा ने परमेश्वर के इस भवन के बनाने की आज्ञा दी 14 और परमेश्वर के भवन के जो सोने और चान्दी के पात्र नबूकदनेस्सर यरूशलेम के मन्दिर में से निकलवाकर बाबेल के मन्दिर में ले गया या, उनको राजा कुस्रू ने बाबेल के मन्दिर में से निकलवाकर शेशबस्सर नामक एक पुरुष को जिसे उस ने अधिपति ठहरा दिया या, सौंप दिया। 15 और उस ने उससे कहा, थे पात्र ले जाकर यरूशलेम के मन्दिर में रख, और परमेश्वर का वह भवन अपके स्यान पर बनाया जाए। 16 तब उसी शेशबस्सर ने आकर परमेश्वर के भवन की जो यरूशलेम में है नेव डाली; और तब से अब तक यह बन रहा है, परन्तु अब तक नहीं बन पाया। 17 अब यदि राजा को अच्छा लगे तो बाबेल के राजभणडार में इस बात की खोज की जाए, कि राजा कुस्रू ने सचमुच परमेश्वर के भवन के जो यरूशलेम में है बनवाने की आज्ञा दी यी, या नहीं। तब राजा इस विषय में अपक्की इच्छा हम को बताए।
1 तब राजा दारा की आज्ञा से बाबेल के पुस्तकालय में जहां खजाना भी रहता या, खोज की गई। 2 और मादे नाम प्रान्त के अहमता नगर के राजगढ़ में एक पुस्तक मिली, जिस में यह वृत्तान्त लिखा या : 3 कि राजा कुस्रू के पहिले वर्ष में उसी कुस्रू राजा ने यह आज्ञा दी, कि परमेश्वर के भवन के विष्य जो यरूशलेम में है, अर्यात् वह भवन जिस में बलिदान किए जाते थे, वह बनाया जाए और उसकी नेव दृढ़ता से डाली जाए, उसकी ऊंचाई और चौड़ाई साठ साठ हाथ की हों; 4 उस में तीन रद्दे भारी भारी पत्य्रोंके हों, और एक परत नई लकड़ी का हो; और इनकी लागत राजभवन में से दी जाए। 5 और परमेश्वर के भवन के जो सोने ओर चान्दी के पात्र नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम के मन्दिर में से निकलवाकर बाबेल को पहुंचा दिए थे वह लौटाकर यरूशलेम के मन्दिर में अपके अपके स्यान पर पहुंचाए जाएं, और तू उन्हें परमेश्वर के भवन में रख देना। 6 अब हे महानद के पार के अधिपति तत्तनै ! हे शतबॉजनै ! तुम अपके सहचक्की महानद के पार के अपार्सकियोंसमेत वहां से अलग रहो; 7 परमेश्वर के उस भवन के काम को रहने दो; यहूदियोंका अधिपति और यहूदियोंके पुरनिथे परमेश्वर के उस भवन को उसी के स्यान पर बनाएं। 8 वरन मैं आज्ञा देता हूं कि तुम्हें यहूदियोंके उन पुरनियोंसे ऐसा बर्ताव करना होगा, कि परमेश्वर का वह भवन बनाया जाए; अर्यात् राजा के धन में से, महानद के पार के कर में से, उन पुरुषोंका फुतीं के साय खर्चा दिया जाए; ऐसा न हो कि उनको रुकना पके। 9 और क्या बछड़े ! क्या मेढ़े ! क्या मेम्ने ! स्वर्ग के परमेश्वर के होमबलियोंके लिथे जिस जिस वस्तु का उन्हें प्रयोजन हो, और जितना गेहूं, नमक, दाखमधु और तेल यरूशलेम के याजक कहें, वह सब उन्हें बिना भूल चूक प्रतिदिन दिया जाए, 10 इसलिथे कि वे स्वर्ग के परमेश्वर को सुखदायक सुगन्धवाले बलि चढ़ाकर, राजा और राजकुमारोंके दीर्धायु के लिथे प्रार्यना किया करें। 11 फिर मैं ने आज्ञा दी है, कि जो कोई यह आज्ञा टाले, उसके घर में से कड़ी निकाली जाए, और उस पर वह स्वयं चढ़ाकर जकड़ा जाए, और उसका घर इस अपराध के कारण घूरा बनाया जाए। 12 और परमेश्वर जिस ने वहां अपके नाम का निवास ठहराया है, वह क्या राजा क्या प्रजा, उन सभोंको जो यह आज्ञा टालने और परमेश्वर के भवन को जो यरूशलेम में है नाश करने के लिथे हाथ बढ़ाएं, नष्ट करें। मुझ दारा ने यह आज्ञा दी है फुतीं से ऐसा ही करना। 13 तब महानद के इस पार के अधिपति तत्तनै और शतबॉजनै और उनके सहचरियोंने दारा राजा के चिट्ठी भेजने के कारण, उसी के अनुसार फुतीं से काम किया। 14 तब यहूदी पुरनिथे, हाग्गै नबी और इद्दो के पोते जकर्याह के नबूवत करने से मन्दिर को बनाते रहे, और कृतार्य भी हुए। ओर इस्राएल के परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार और फारस के राजा कुस्रू, दारा और अर्तझत्र की आज्ञाओं के अनुसार बनाते बनाते उसे पूरा कर लिया। 15 इस प्रकार वह भवन राजा दारा के राज्य के छठवें वर्ष में अदार महीने के तीसरे दिन को बनकर समाप्त हुआ। 16 इस्राएली, अर्यात् याजक लेवीय और और जितने बन्धुआई से आए थे उन्होंने परमेश्वर के उस भवन की प्रतिष्ठा उत्सव के साय की। 17 और उस भवन की प्रतिष्ठा में उन्होंने एक सौ बैल और दो सौ मेढ़े और चार सौ मेम्ने और फिर सब इस्राएल के निमित्त पापबलि करके इस्राएल के गोत्रें की गिनती के अनुसार बारह बकरे चढ़ाए। 18 तब जैसे मूसा की पुस्तक में लिखा है, वैसे ही उन्होंने परमेश्वर की आराधना के लिथे जो यरूशलेम में है, बारी बारी से शजकोंऔर दल दल के लेवियोंको नियुक्त कर दिया। 19 फिर पहिले महीने के चौदहवें दिन को बन्धुआई से आए हुए लोगोंने फसह माना। 20 क्योंकि याजकोंऔर लेवियोंने एक मन होकर, अपके अपके को शुद्ध किया या; इसलिथे वे सब के सब शुद्ध थे। और उन्होंने बन्धुआई से आए हुए सब लोगोंऔर अपके भाई याजकोंके लिथे और अपके अपके लिथे फसह के पशु बलि किए। 21 तब बन्धुआई से लौटे हुए इस्राएली और जितने और देश की अन्य जातियोंकी अशुद्धता से इसलिथे अलग हो गए थे कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की खोज करें, उन सभोंने भोजन किया। 22 और अखमीरी रोटी का वर्व सात दिन तक आनन्द के साय मनाते रहे; क्योंकि यहोवा ने उन्हें आनन्दित किया या, और अश्शूर के राजा का मन उनकी ओर ऐसा फेर दिया कि वह परमेश्वर अर्यात् इस्राएल के परमेश्वर के भवन के काम में उनकी सहाथता करे।
1 इन बातोंके बाद अर्यात् फारस के राजा अर्तझत्र के दिनोंमें, एज्रा बाबेल से यरूशलेम को गया। वह सरायाह का पुत्र या। और सरायाह अजर्याह का पुत्र या, अजर्याह हिल्किय्याह का, 2 हिल्किय्याह शल्लूम का, शल्लूम सादोक का, शदोक 3 अहीतूब का, अहीतूब अमर्याह का, अमर्याह अजर्याह का, अजर्याह मरायोत का, 4 मरायोत जरह्याह का, जरह्याह उज्जी का, उज्जी बुक्की का, 5 बुक्की अबीशू का, अबीशू पीनहास का, पीनहास एलीआज़र का और एलीआज़र हारून महाथाजक का पुत्र या। 6 यही एज्रा मूसा की व्यवस्या के विष्य जिसे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने दी यी, निपुण शास्त्री या। और उसके परमेश्वर यहोवा की कृपादृष्टि जो उस पर रही, इसके कारण राजा ने उसका मुंह मांगा वर दे दिया। 7 और कितने इस्राएली, और याजक लेवीय, गवैथे, और द्वारपाल और नतीन के कुछ लोग अर्तझत्र राजा के सातवें वर्ष में यरूशलेम को ले गए। 8 और वह राजा के सातवें वर्ष के पांचवें महीने में यरूशलेम को पहुंचा। 9 पहिले महीने के पहिले दिन को वह बाबेल से चल दिया, और उसके परमेश्वर की कृपादृष्टि उस पर रही, इस कारएा पांचवें महीने के पहिले दिन वह यरूशलेम को पहुंचा। 10 क्योंकि एज्रा ने यहोवा की व्यवस्या का अर्य बूफ लेने, और उसके अनुसार चलने, और इस्राएल में विधि और नियम सिखाने के लिथे अपना मन लगाया या। 11 जो चिट्ठी राजा अर्तझख ने एज्रा याजक और शास्त्री को दी यी जो यहोवा की आज्ञाओं के वचनोंका, और उसकी इस्राएलियोंमें चलाई हुई विधियोंका शास्त्री या, उसकी तकल यह है; 12 अर्यात्, एज्रा याजक जो स्वर्ग के परमेश्वर की व्यवस्या का पूर्ण शास्त्री है, उसको अर्तझत्र महाराजाधिराज की ओर से, इत्यादि। 13 मैं यह आज्ञा देता हूँ, कि मेरे राज्य में जितने इस्राएली और उनके याजक और लेवीय अपक्की इच्छा से यरूशलेम जाना चाहें, वे तेरे साय जाने पाएं। 14 तू तो राजा और उसके सातोंमंत्रियोंकी ओर से इसलिथे भेजा जाता है, कि अपके परमेश्वर की व्यवस्या के विषय जो तेरे पास है, यहूदा और यरूशलेम की दशा बूफ ले, 15 और जो चान्दी-सोना, राजा और उसके मत्रियोंने इस्राएल के परमेश्वर को जिसका निवास यरूशलेम में है, अपक्की इच्छा से दिया है, 16 और जितना चान्दी-सोना कुल बाबेल प्रान्त में तुझे मिलेगा, और जो कुछ लोग और याजक अपक्की इच्छा से अपके परमेश्वर के भवन के लिथे जो यरूशलेम में हैं देंगे, उसको ले जाए। 17 इस कारण तू उस रुपके से फुतीं के साय बैल, मेढ़े और मेम्ने उनके योग्य अन्नबलि और अर्ध की वस्तुओं समेत मोल लेना और उस वेदी पर चढ़ाना, जो तुम्हारे परमेश्वर के यरूशलेमवाले भवन में है। 18 और जो चान्दी-सोना बचा रहे, उस से जो कुछ तुझे और तेरे भाइयोंको उचित जान पके, वही अपके परमेश्वर की इच्छा के अनुसार करना। 19 और तेरे परमेश्वर के भवन की उपासना के लिथे जो पात्र तुझे सौपे जातो हैं, उन्हें यरूशलेम के परमेश्वर के साम्हने दे देना। 20 और इन से अधिक जो कुछ तुझे अपके परमेश्वर के भवन के लिथे आवश्यक जानकर देना पके, वह राजखजाने में से दे देना। 21 मैं अर्तझत्र राजा यह आज्ञा देता हूँ, कि तुम महानद के पार के सब खजांचियोंसे जो कुछ बज्रा याजक, जो स्वर्ग के परमेश्वर की व्यवस्या का शास्त्री है, तुम लोगोंसे चाहे, वह फुतीं के साय किया जाए। 22 अर्यत् सौ किक्कार तक चान्दी, सौ कोर तक गेहूं, सौ बत तक दाखमधु, सौ बत तक तेल और नमक जितना चाहिथे उतना दिया जाए। 23 जो जो आज्ञा स्वर्ग के परमेश्वर की ओर से मिले, ठीक उसी के अनुसार स्वर्ग के परमेश्वर के भवन के लिथे किया जाय, राजा और राजकुमारोंके राज्य पर परमेश्वर का क्रोध क्योंभड़कने पाए। 24 फिर हम तुम को चिता देते हैं, कि परमेश्वर के उस भवन के किसी याजक, लेवीय, गवैथे, द्वारपाल, नतीन या और किसी सेवक से कर, चुंगी, अयवा राहदारी लेने की आज्ञा नहीं है। 25 फिर हे एज्रा ! तेरे परमेश्वर से मिली हुई बुद्धि के अनुसार जो तुझ में है, न्यायियोंऔर विचार करनेवालोंको नियुक्त कर जो महानद के पार रहनेवाले उन सब लोगोंमें जो तेरे परमेश्वर की व्यवस्या जानते होंन्याय किया करें; और जो जो उन्हें न जानते हों, उनको तुम सिखाया करो। 26 और जो कोई तेरे परमेश्वर की व्यवस्या और राजा की व्यवस्या न माने, उसको फुतीं से दणड दिया जाए, चाहे प्राणदणड, चाहे देशनिकाला, चाहे माल जप्त किया जाना, चाहे केद करना। 27 धन्य है हमारे पितरोंका परमेश्वर यहोवा, जिस ने ऐसी मनसा राजा के मन में उत्पन्न की है, कि यहोवा के यरूशलेम के भवन को संवारे, 28 और मूफ पर राजा और उसके मंत्रियोंऔर राजा के सब बड़े हाकिमोंको दयालु किया। मेरे परमेश्वर यहोवा की कृपादृष्टि जो मुझ पर हुई, इसके अनुसार मॅं ने हियाव बान्धा, और इस्राएल में से मुख्य पुरुषोंको इकट्ठा किया, कि वे मेरे संग चलें।
1 उनके पूर्वजोंके घरानोंके मुख्य मुख्य पुरुष थे हैं, और जो लोग राजा अर्तझत्र के राज्य में बाबेल से मेरे संग यरूशलेम को गए उनकी वंशावली यह है : 2 अर्यात् पीनहास के वंश में से गेशॉम, ईतामार के वंश में से दानिय्थेल, दाऊद के वंश में से हत्तूस। 3 शकन्याह के वंश के परोश के गोत्र में से जकर्याह, जिसके संग डेढ़ सौ पुरुषें की वंशावली हुई। 4 पहत्मोआब के वंश में से जरह्याह का पुत्र एल्यहोएनै, जिसके संग दो सौ पुरुष थे। 5 शकन्याह के वंश में से यहजीएल का पुत्र, जिसके संग तीन सौ पुरुष थे। 6 आदीन के वंश में से योनातान का पुत्र एबेद, जिसके संग पचास पुरुष थे। 7 एलाम के वंश में से अतल्याह का पुत्र यशायाह, जिसके संग सत्तर पुरुष थे। 8 शपत्याह के वंश में से मीकाएल का पुत्र जबद्याह, जिसके संग अस्सी पुरुष थे। 9 योआब के वंश में से यहीएल का पुत्र ओबद्याह, जिसके संग दो सौ अठारह पुरुष थे। 10 शलोमीत के वंश में से योसिब्याह का पुत्र, जिसके संग एक सौ साठ पुरुष थे। 11 बेबै के वंश में से बेबै का पुत्र जकर्याह, जिसके संग अट्ठाईस पुरुष थे। 12 अजगाद के वंश में से हक्कातान का पुत्र योहानान, जिसके संग एक सौ दस पुरुष थे। 13 अदोनीकाम के वंश में से जो पीछे गएं उनके थे नाम हैं : अर्यात् एलीपेलेत, यीएल, और समायाह, और उनके संग साठ पुरुष थे। 14 और बिगवै के वंश में से ऊतै और जब्बूद थे, और उनके संग सत्तर पुरुष थे। 15 इनको मैं ने उस नदी के पास जो अहवा की ओर बहती है इकट्ठा कर लिया, और वहां हम लोग तीन दिन डेरे डाले रहे, और मैं ने वहां लोगोंऔर याजकोंको देख लिया परन्तु किसी लेवीय को न पाया। 16 मैं ने एलीएजेर, अरीएल, शमायाह, एलनातान, यारीब, एलनातान, नातान, जकर्याह और मशूल्लाम को जो मुख्य पुरुष थे, और योयारीब और एलनातान को जो बुद्धिमान थे 17 बुलवाकर, इद्दो के पास जो कासिप्या नाम स्यान का प्रधान या, भेज दिया; और उनको समझा दिया, कि कासिप्या स्यान में इद्दो और उसके भाई नतीन लोगोंसे क्या क्या कहना, कि वे हमारे पास हमारे परमेश्वर के भवन के लिथे सेवा टहल करनेवालोंको ले आएं। 18 और हमारे परमेश्वर की कृपादृष्टि जो हम पर हुई इसके अनुसार वे हमारे पास ईश्शेकेल के जो इस्राएल के परपोता और लेवी के पोता महली के वंश में से या, और शेरेब्याह को, और उसके पुत्रोंऔर भाइयोंको, अर्यात् अठारह जनोंको; 19 और हशब्याह को, और उसके संग मरारी के वंश में से यशायाह को, और उसके पुत्रोंऔर भाइयोंको, अर्यात् बीस जनोंको; 20 और नतीन लोगोंमें से जिन्हें दाऊद और हाकिमोंने लेवियोंकी सेवा करने को ठहराया या दो सौ बीस नतिनोंको ले आए। इन सभोंके नाम लिखे हुए थे। 21 तब मैं ने वहां अर्यात् अहवा नदी के तीर पर उपवास का प्रचार इस आशय से किया, कि हम परमेश्वर के साम्हने दीन हों; और उस से अपके और अपके बालबच्चोंऔर अपक्की समस्त सम्पत्ति के लिथे सरल यात्रा मांगें। 22 क्योंकि मैं मार्ग के शत्रुओं से वचने के लिथे सिपाहियोंका दल और सवार राजा से मांगने से लजाता य, क्योंकि हम राजा से यह कह चुके थे कि हमारा परमेश्वर अपके सब खोजियोंपर, भलाई के लिथे कृपादृष्टि रखता है और जो उसे त्याग देते हैं, उसका बल और कोप उनके विरुद्ध है। 23 इसी विषय पर हम ने उपवास करके अपके परमेश्वर से प्रार्यना की, और उस ने हमारी सुनी। 24 तब मैं ने मुख्य याजकोंमें से बारह पुरुषोंको, अर्यात् शेरेब्याह, हशब्याह और इनके दस भाइयोंको अलग करके, जो चान्दी, सोना और पात्र, 25 राजा और उसके मंत्रियोंऔर उसके हाकिमोंऔर जितने इस्राएली अपस्यित थे उन्होंने हमारे परमेश्वर के भवन के लिथे भेंट दिए थे, उन्होंतौलकर उनको दिया। 26 अर्यात् मैं ने उनके हाथ में साढ़े छ: सौ किक्कार चान्दी, सौ किक्कार चान्दी के पात्र, 27 सौ किक्कार सोना, हाजार दर्कमोन के सोने के बीस कटोरे, और सोने सरीखे अनमोल चोखे चमकनेवाले पीतल के दो पात्र लौलकर दे दिथे। 28 और मैं ने उन से कहा, तुम तो यहोवा के लिथे पवित्र हो, और थे पात्र भी पवित्र हैं; और यह चान्दी और सोना भेंट का है, जो तुम्हारे पितरोंके परमेश्वर यहोवा के लिथे प्रसन्नता से दी गई। 29 इसलिथे जागते रहो, और जब तक तुम इन्हें यरूशलेम में प्रधान याजकोंऔर लेवियोंऔर इस्राएल के पितरोंके घरानोंके प्रधानोंके साम्हने यहोवा के भवन की कोठरियोंमें तौलकर न दो, तब तक इनकी रझा करते रहो। 30 तब याजकोंऔर लेवियोंने चान्दी, सोने और पात्रोंको तौलकर ले लिया कि उन्हें यरूशलेम को हमारे परमेश्वर के भवन में पहुंचाएं। 31 पहिले महीने के बारहवें दिन को हम ने अहवा नदी से कूच करके यरूशलेम का मार्ग लिया, और हमारे परमेश्वर की कृपादृष्टि हम पर रही; और उस ने हम को शत्रुओं और मार्ग पर घात लगानेवालोंके हाथ से बचाया। 32 निदान हम यरूशलेम को पहुंचे और वहां तीन दिन रहे। 33 फिर चौथे दिन वह वान्दी-सोना और पात्र हमारे परमेश्वर के भवन में ऊरीयाह के पुत्र मरेमोत याजक के हाथ में तौलकर दिए गए। और उसके संग पीनहास का पुत्र एलीआजर या, और उनके साय थेशू का पुत्र योजाबाद लेवीय और बिल्नूई का पुत्र नोअद्याह लेवीय थे। 34 वे सब वस्तुएं गिनी और तौली गई, और उनका तौल उसी समय लिखा गया। 35 जो बन्धुआई से आए थे, उन्होंने इस्राएल के परमेश्वर के लिथे होमबलि चढ़ाए; अर्यात् समस्त इस्राएल के निमित्त बारह बछड़े, छियानवे मेढ़े और सतहत्तर मेम्ने और पापबलि के लिथे बारह बकरे; यह सब यहोवा के लिथे होमबलि या। 36 तब उन्होंने राजा की आज्ञाएं महानद के इस पार के अधिक्कारनेियोंऔर अधिपतियोंको दी; और उन्होंने इस्राएली लोगोंऔर परमेश्वर के भवन के काम में सहाथता की।
1 तब थे काम हो चुके, तब हाकिम मेरे पास आकर कहने लगे, न तो इस्राएली लोग, न याजक, न लेवीय इस ओर के देशोंके लोगोंसे अलग हुए; वरन उनके से, अर्यात् कनानियों, हित्तियों, परिज्जियों, यबूसियों, अम्मोनियों, मोआबियों, मिस्रियोंऔर एमोरियोंके से घिनौने काम करते हैं। 2 क्योंकि उन्होंने उनकी बेटियोंमें से अपके और अपके बेटोंके लिथे स्त्रियां कर ली हैं; और पवित्र वंश इस ओर के देशोंके लोगोंमें मिल गया है। वरन हाकिम और सरदार इस विश्वासघात में मुख्य हुए हैं। 3 यह बात सुनकर मैं ने अपके वस्त्र और बागे को फाड़ा, और अपके सिर और दाढ़ी के बाल नोचे, और विस्मित होकर बैठा रहा। 4 तब जितने लोग इस्राएल के परमेश्वर के वचन सुनकर बन्धुआई से आए हुए लोगोंके विश्वासघात के कारण यरयराते थे, सब मेरे पास इकट्ठे हुए, और मैं सांफ की भेंट के समय तक विस्मित होकर बैठा रहा। 5 परन्तु सांफ की भेंट के समय मैं वस्त्र और बागा फाड़े हुए उपवास की दशा में उठा, फिर घुटनोंके बल फुका, और अपके हाथ अपके परमेश्वर यहोवा की ओर फैलाकर कहा, 6 हे मेरे परमेश्वर ! मुझे तेरी ओर अपना मुंह उठाते लाज आती है, और हे मेरे परमेश्वर ! मेरा मुंह काला है; क्योंकि हम लोगोंके अधर्म के काम हमारे सिर पर बढ़ गए हैं, और हमारा दोष बढते आकाश तक पहुंचा है 7 अपके पुरखाओं के दिनोंसे लेकर आज के दिन तक हम बड़े दोषी हैं, और अपके अधर्म के कामोंके कारण हम अपके राजाओं और याजकोंसमेत देश देश के राजाओं के हाथ में किए गए कि तलवार, बन्धुआई, लूटे जाने, और मुंह काला हो जाने की विपत्तियोंमें पकें जैसे कि आज हमारी दशा है। 8 और अब योड़े दिन से हमारे परमेश्वर यहोवा का अनुग्रह हम पर हुआ है, कि हम में से कोई कोई बच निकले, और हम को उसके पवित्र स्यान में एक खूंटी मिले, और हमारा परमेश्वर हमारी आंखोंमें जयोति आने दे, और दासत्व में हम को कुछ विश्रन्ति मिले। 9 हम दास तो हैं ही, परन्तु हमारे दासत्व में हमारे परमेश्वर ने हम को नहीं छोड़ दिया, बरन फारस के राजाओं को हम पर ऐसे कृपालु किया, कि हम नया जीवन पाकर अपके परमेश्वर के भवन को उठाने, और इसके खंडहरोंको सुधारने पाए, और हमें यहूदा और यरूशलेम में आड़ मिली। 10 और अब हे हमारे परमेश्वर इसके बाद हम क्या कहें, यही कि हम ने तेरी उन आज्ञाओं को तोड़ दिया है, 11 जो तू ने यह कहकर अपके दास नबियोंके द्वारा दीं, कि जिस देश के अधिक्कारनेी होने को तुम जाने पर हो, वह तो देश देश के लोगोंकी अशुद्धता के कारण और उनके घिनौने कामोंके कारण अशुद्ध देश है, अन्होंने उसे एक सिवाने से दूसरे सिवाने तक अपक्की अशुद्धता से भर दिया है। 12 इसलिथे अब तू न तो अपक्की बेठियां उनके बेटोंको ब्याह देना और न उनकी बेटियोंसे अपके बेटोंका ब्याह करना, और न कभी उनका कुशल झेम चाहना, इसलिथे कि तुम बलवान बनो और उस देश के अच्छे अच्छे पदार्य खाने पाओ, और उसे ऐसा छोड़ जाओ, कि वह तुम्हारे वंश के अधिक्कारने में सदैव बना रहे। 13 और उस सब के बाद जो हमारे बुरे कामोंऔर बड़े दोष के कारण हम पर बीता है, जब कि हे हमारे परमेश्वर तू ने हमारे अधर्म के बराबर हमें दणड नहीं दिया, वरन हम में से कितनोंको बचा रखा है, 14 तो क्या हम तेरी आज्ञाओं को फिर से उल्लंघन करके इन घिनौने काम करनेवाले लोगोंसे समधियाना का सम्बन्ध करें? क्या तू हम पर यहां तक कोप न करेगा लिस से हम मिट जाएं और न तो कोई बचे और न कोई रह जाए? 15 हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! तू तो धमीं है, हम बचकर मुक्त हुए हैं जैसे कि आज वर्तमान हैं। देख, हम तेरे साम्हने दोषी हैं, इस कारण कोई तेरे साम्हने खड़ा नहीं रह सकता।
1 जब एज्रा परमेश्वर के भवन के साम्हने पड़ा, रोता हुआ प्रार्यना और पाप का अंगीकार कर रहा या, तब इस्राएल में से पुरुषों, स्त्रियोंऔर लड़केवालोंकी एक बहुत बड़ी मणडली उसके पास इकट्ठी हुई; और लोग बिलक बिलक कर रो रहे थे। 2 तब यहीएल का पुत्र शकन्याह जो एलाम के वुश में का या, एज्रा से कहने लगा, हम लोगोंने इस देश के लोगोंमें से अन्यजाति स्त्रियां ब्याह कर अपके परमेश्वर का विश्वासघात तो किया है, परन्तु इस दशा में भी इस्राएल के लिथे आश है। 3 अब हम अपके परमेश्वर से यह वाचा बान्धें, कि हम अपके प्रभुकी सम्मति और अपके परमेश्वर की आज्ञा सुनकर यरयरानेवालोंकी सम्मति के अनुसार ऐसी सब स्त्रियोंको और उनके लड़केवालोंको दूर करें; और व्यवस्या के अनुसार काम किया जाए। 4 तू उठ, क्योंकि यह काम तेरा ही है, और हम तेरे साय है; इसलिथे हियाव बान्धकर इस काम में लग जा। 5 तब एज्रा उठा, और याजकों, लेवियोंऔर सब इस्राएलियोंके प्रधानोंको यह शपय खिलाई कि हम इसी वचन के अनुसार करेंगे; और उन्होंने वैसी ही शपय खाई। 6 तब बज्रा परमेश्वर के भवन के साम्हने से उठा, और एल्याशीब के पुत्र योहानान की कोठरी में गया, और वहां पहुंचकर न तो रोटी खाई, न पानी पिया, क्योंकि वह बन्धुआई में से निकल आए हुओं के विश्वासघात के कारण शोक करता रहा। 7 तब उन्होंने यहूदा और यरूशलेम में रहनेवाले बन्धुआई में से आए हुए सब लोगोंमें यह प्रचार कराया, कि तुम यरूशलेम में इाट्ठे हो; 8 और जो कोई हाकिमोंऔर पुरनियोंकी सम्मति न मानेगा और तीन दिन के भीतर न आए तो उसकी समस्त धन-सम्पत्ति नष्ट की जाएगी और वह आप बन्धुआई से आए हुओं की सभा से अलग किया जाएगा। 9 तब यहूदा और बिन्यामीन के सब मनुष्य तीन दिन के भीतर यरूशलेम में इकट्ठे हुए; यह नौवें महीने के बीसवें दिन में हुआ; और सब लोग परमेश्वर के भवन के चौक में उस विषय के कारण और फड़ी के मारे कांपके हुए बैठे रहे। 10 तब एज्रा याजक खड़ा होकर उन से कहने लगा, तुम लोगोंने विश्वासघात करके अन्यजाति-स्त्रियां ब्याह लीं, और इस से इस्राएल का दोष बढ़ गया है। 11 सो अब अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा के साम्हने अपना पाप मान लो, और उसकी इच्छा पूरी करो, और इस देश के लोगोंसे और अन्यजातिस्त्रियोंसे न्यारे हो जाओ। 12 तब पूरी मणडली के लोगोंने ऊंचे शब्द से कहा, जैसा तू ने कहा है, वैसा ही हमें करना उचित है। 13 परन्तु लोग बहुत हैं, और फड़ी का समय है, और हम बाहर खड़े नहीं रह सकते, और यह दो एक दिन का काम नहीं है, क्योंकि हम ने इस बात में बड़ा अपराध किया है। 14 समस्त मणडली की ओर से हमारे हाकिम नियुक्त किए जाएं; और जब तक हमारे परमेश्वर का भड़का हुआ कोप हम से दूर न हो, और यह काम निपट न जाए, तब तक हमारे नगरोंके जितने निवासियोंने अन्यजाति-स्त्रियां ब्याह ली हों, वे नियत समयोंपर आया करें, और उनके संग एक नगर के पुरनिथे और न्यायी आएं। 15 इसके विरुद्ध केवल असाहेल के पुत्र योनातान और तिकवा के पुत्र यहजयाह खड़े हुए, और मशुल्लाम और शब्बतै लेवियोंने उनकी सहाथता की। 16 परन्तु बन्धुआई से आए हुए लोगोंने वैसा ही किया। तब एज्रा याजक और पितरोंके घरानोंके कितने मुख्य पुरुष अपके अपके पितरोंके घराने के अनुसार अपके सब नाम लिखाकर अलग किए गए, और दसवें महीने के पहिले दिन को इस बात की तहकीकात के लिथे बैठे। 17 और पहिले महीने के पहिले दिन तक उन्होंने उन सब पुरुषोंकी बात निपटा दी, जिन्होंने अन्यजाति-स्त्रियोंको ब्याह लिया या। 18 और याजकोंकी सन्तान में से; थे जन पाए गए जिन्होंने अन्यजाति-स्त्रियोंको ब्याह लिया या, अर्यात् थेशू के पुत्र, योसादाक के पुत्र, और उसके भाई मासेयाह, एलीआज़र, यारीब और गदल्याह। 19 इन्होंने हाथ मारकर वचन दिया, कि हम अपक्की स्त्रियोंको निकाल देंगे, और उन्होंने दोषी ठहरकर, अपके अपके दोष के कारण एक एक मेढ़ा बलि किया। 20 और इम्मेर की सन्तान में से; हनानी और जबद्याह, 21 और हारीम की सन्तान में से; मासेयाह, एलीयाह, शमायाह, यहीएल और उज्जियाह। 22 और पशहूर की सन्तान में से; उल्योएनै, मासेयाह, इशमाएल, नतनेल, योजाबाद और एलासा। 23 फिर लेवियोंमें से; योजाबाद, शिमी, केलायाह जो कलीता कहलाता है, पतह्याह, यहूदा और एलीआज़र। 24 और गवैयोंमें से; एल्याशीव और द्वारपालोंमें से शल्लूम, तेलेम और ऊरी। 25 और इस्राएल में से; परोश की सन्तान में रम्याह, यिज्जियाह, मल्कियाह, मियामीन, एलीआज़र, मल्कियाह और बनायाह। 26 और एलाम की सन्तान में से; मत्तन्याह, जकर्याह, यहीएल अब्दी, यरेमोत और एलियाह। 27 और जतू की सन्तान में से; एल्योएनै, एल्याशीब, सत्तन्याह, यरेमोत, जाबाद और अजीजा। 28 और बेबै की सन्तान में से; यहोहानान, हनन्याह, जब्बै और अतलै। 29 और बानी की सन्तान में से; मशुल्लाम, मल्लूक, अदायाह, याशूब, शाल और यरामोत। 30 और पहतमोआब की सन्तान में से; अदना, कलाल, बनायाह, मासेयाह, मत्तन्याह, बसलेल, बिन्नूई और मनश्शे। 31 और हारीम की सन्तान में से; एलीआज़र, यिश्शियाह, मल्कियाह, शमायाह, शिमोन; 32 बिन्यामीन, मल्लूक और शमर्याह। 33 और हाशूम की सन्तान में से; मत्तनै, मत्तत्ता, जाबाद, एलीपेलेत, यरेमै, मनश्शे और शिमी। 34 और बानी की सन्तान में से; मादै, अम्राम, ऊएल; 35 बनायाह, बेदयाह, कलूही; 36 बन्याह, मरेमोत, एल्याशीब; 37 मत्तन्याह, मत्तनै, यासू; 38 वानी, विन्नूई, शिमी; 39 शेलेम्याह, नातान, अदायाह; 40 मक्नदबै, शाशै, शारै; 41 अजरेल, शेलेम्याह, शेमर्याह; 42 शल्लूम, अमर्याह और योसेफ। 43 और नबो की सन्तान में से; यीएल, मत्तिन्याह, जाबाद, जबीना, यद्दो, योएल और बनायाह। 44 इन सभोंने अन्यजाति-स्त्रियां ब्याह ली यीं, और कितनोंकी स्त्र्ियोंसे लड़के भी उत्पन्न हुए थे।
1 हकल्याह के पुत्र नहेमायाह के वचन। बीसवें वर्ष के किसलवे नाम महीने में, जब मैं शूशन नाम राजगढ़ में रहता या, 2 तब हनानी नाम मेरा एक भाई और यहूदा से आए हुए कई एक पुरुष आए; तब मैं ने उन से उन बचे हुए यहूदियोंके विषय जो बन्धुआई से छूट गए थे, और यरूशलेम के विष्य में पूछा। 3 उन्होंने मुझ से कहा, जो बचे हुए लोग बन्धुआई से छूटकर उस प्रान्त में रहते हैं, वे बड़ी दुर्दशा में पके हैं, और उनकी निन्दा होती है; क्योंकि यरूशलेम की शहरपनाह टूटी हुई, और उसके फाटक जले हुए हैं। 4 थे बातें सुनते ही मैं बैठकर रोने लगा और कितने दिन तक विलाप करता; और स्वर्ग के परमेश्वर के सम्मुख उपवास करता और यह कहकर प्रार्यना करता रहा। 5 हे स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा, हे महान और भययोग्य ईश्वर ! तू जो अपके प्रेम रखनेवाले और आज्ञा माननेवाले के विष्य अपक्की वाचा पालता और उन पर करुणा करता है; 6 तू कान लगाए और आंखें खोले रह, कि जो प्रार्यना मैं तेरा दास इस समय तेरे दास इस्राएलियोंके लिथे दिन रात करता रहता हूँ, उसे तू सुन ले। मैं इस्राएलियोंके पापोंको जो हम लोगोंने तेरे विरुद्ध किए हैं, मान लेता हूँ। मैं और मेरे पिता के घराने दोनोंने पाप किया है। 7 हम ने तेरे साम्हने बहुत बुराई की है, और जो आज्ञाएं, विधियां और नियम तू ने अपके दास मूसा को दिए थे, उनको हम ने नहीं माना। 8 उस वचन की सुधि ले, जो तू ने अपके दास मूसा से कहा या, कि यदि तुम लोग विश्वासघात करो, तो मैं तुम को देश देश के लोगोंमें तितर बितर करूंगा। 9 परन्तु यदि तुम मेरी ओर फिरो, और मेरी आज्ञाएं मानो, और उन पर चलो, तो चाहे तुम में से निकाले हुए लोग आकाश की छोर में भी हों, तौभी मैं उनको वहां से इकट्ठा करके उस स्यान में पहुंचाऊंगा, जिसे मैं ने अपके नाम के निवास के लिथे चुन लिया है। 10 अब वे तेरे दास और तेरी प्रजा के लोग हैं जिनको तू ने अपक्की बड़ी सामर्य और बलवन्त हाथ के द्वारा छुड़ा लिया है। 11 हे प्रभु बिनती यह है, कि तू अपके दास की प्रार्यना पर, और अपके उन दासोंकी प्रार्यना पर, जो तेरे नाम का भय मानना चाहते हैं, कान लगा, और आज अपके दास का काम सुफल कर, और उस पुरुष को उस पर दयालु कर। (मैं तो राजा का पियाऊ या।)
1 अर्तझत्र राजा के बीसवें वर्ष के नीसान नाम महीने में, जब उसके साम्हने दाखमधु या, तब मैं ने दाखमधु उठाकर राजा को दिया। इस से पहिले मैं उसके साम्हने कभी उदास न हुआ या। 2 तब राजा ने मुझ से पूछा, तू तो रेगी नहीं है, फिर तेरा मुंह क्योंउतरा है? यह तो मन ही की उदासी होगी। 3 तब मैं अत्यन्त डर गया। और राजा से कहा, राजा सदा जीवित रहे ! जब वह नगर जिस में मेरे पुरखाओं की कबरें हैं, उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं, तो मेरा मुंह क्योंन उतरे? 4 राजा ने मुझ से पूछा, फिर तू क्या मांगता है? तब मैं ने स्वर्ग के परमेश्वर से प्रार्यना करके, राजा से कहा; 5 यदि राजा को भाए, और तू अपके दास से प्रसन्न हो, तो मुझे यहूदा और मेरे पुरखाओं की कबरोंके नगर को भेज, ताकि मैं उसे बनाऊं। 6 तब राजा ने जिसके पास रानी भी बैठी यी, मुझ से पूछा, तू कितने दिन तक यात्रा में रहेगा? और कब लैटेगा? सो राजा मुझे भेजने को प्रसन्न हुआ; और मैं ने उसके लिथे एक समय नियुक्त किया। 7 फिर मैं ने राजा से कहा, यदि राजा को भाए, तो महानद के पार के अधिपतियोंके लिथे इस आशय की चिट्ठियां मुझे दी जाएं कि जब तक मैं यहूदा को न महुंचूं, तब तक वे मुझे अपके अपके देश में से होकर जाने दें। 8 और सरकारी जंगल के रखवाले आसाप के लिथे भी इस आशय की चिट्ठी मुझे दी जाए ताकि वह मुझे भवन से लगे हुए राजगढ़ की कडिय़ोंके लिथे, और शहरपनाह के, और उस घर के लिथे, जिस में मैं जाकर रहूंगा, लकड़ी दे। मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर यी, इसलिथे राजा ने यह बिनती ग्रहण किया। 9 तब मैं ने महानद के पार के अधिपतियोंके पास जाकर उन्हें राजा की चिट्ठियां दीं। राजा ने मेरे संग सेनापति और सवार भी भेजे थे। 10 यह सुनकर कि एक मनुष्य इस्राएलियोंके कल्याण का उपाय करने को आया है, होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नाम कर्मचारी जो अम्मोनी या, उन दोनोंको बहुत बुरा लगा। 11 जब मैं यरूशलेम पहुंच गया, तब वहां तीन दिन रहा। 12 तब मैं योड़े पुरुषोंको लेकर रात को उठा; मैं ने किसी को नहीं बताया कि मेरे परमेश्वर ने यरूशलेम के हित के लिथे मेरे मन में क्या उपजाया या। और अपक्की सवारी के पशु को छोड़ कोई पशु मेरे संग न या। 13 मैं रात को तराई के फाटक में होकर निकला और अजगर के सोते की ओर, और कूड़ाफाटक के पास गया, और यरूशलेम की टूटी पक्की हुई शहरपनाह और जले फाटकोंको देखा। 14 तब मैं आगे बढ़कर सोते के फाटक और राजा के कुणड के पास गया; परन्तु मेरी सवारी के पशु के लिथे आगे जाने को स्यान न या। 15 तब मैं रात ही रात नाले से होकर शहरपनाह को देखता हुआ चढ़ गया; फिर घूमकर तािई के फाटक से भीतर आया, और इस प्रकार लौट आया। 16 और हाकिम न जानते थे कि मैं कहां गया और क्या करता या; वरन मैं ने तब तक न तो यहूदियोंको कुछ बताया या और न याजकोंऔर न रईसोंऔर न हाकिमोंऔर न दूसरे काम करनेवालोंको। 17 तब मैं ने उन से कहा, तुम तो आप देखते हो कि हम कैसी दुर्दशा में हैं, कि यरूशलेम उजाड़ पड़ा है और उसके फाटक जले हुए हैं। तो आओ, हम यरूशलेम की शहरपनाह को बनाएं, कि भविष्य में हमारी नामधराई न रहे। 18 फिर मैं ने उनको बतलाया, कि मेरे परमेश्वर की कृपादृष्टि मुझ पर कैसी हुई और राजा ने मुझ से क्या क्या बातें कही यीं। तब उन्होंने कहा, आओ हम कमर बान्धकर बनाने लगें। और उन्होंने इस भले काम को करने के लिथे हियाव बान्ध लिया। 19 यह सुनकर होरोनी सम्बल्लत और तोबियाह नाम कर्मचारी जो अम्मोनी या, और गेशेम नाम एक अरबी, हमेें ठट्ठोंमें उड़ाने लगे; और हमें तुच्छ जानकर कहन लगे, यह तुम क्या काम करते हो। 20 क्या तुम राजा के विरुद्ध बलवा करोगे? तब मैं ने उनको उत्तर देकर उन से कहा, स्वर्ग का परमेश्वर हमारा काम सुफल करेगा, इसलिथे हम उसके दास कमर बान्धकर बनाएंगे; परन्तु यरूशलेम में तुम्हारा न तो कोई भाग, न हक्क, न स्मारक है।
1 तब एल्याशीब महाथाजक ने अपके भाई याजकोंसमेत कमर बान्धकर भेड़फाटक को बनाया। उन्होंने उसकी प्रतिष्ठा की, और उसके पल्लोंको भी लगाया; और हम्मेआ नाम गुम्मट तक वरन हननेल के गुम्मट के पास तक उन्होंने शहरपनाह की प्रतिष्ठा की। 2 उस से आगे यरीहो के मनुष्योंने बनाया। और इन से आगे इम्री के पुत्र जक्कूर ने बनाया । 3 फिर मछलीफाटक को हस्सना के बेटोंने बनाया; उन्होंने उसकी कडिय़ां लगाई, और उसके पल्ले, ताले और बेंड़े लगाए। 4 और उन से आगे मरेमोत ने जो हक्कोस का पोता और ऊरियाह का पुत्र या, मरम्मत की। और इन से आगे मशुल्लाम ने जो मशेजबेल का पोता, और बरेक्याह का पुत्र या, मरम्मत की। और इस से आगे बाना के पुत्र सादोक ने मरम्मत की। 5 और इन से आगे तकोइयोंने मरम्मत की; परन्तु उनके रईसोंने अपके प्रभु की सेवा का जूआ अपक्की गर्दन पर न लिया। 6 फिर पुराने फाटक की मरम्मत पासेह के पुत्र योयादा और बसोदयाह के पुत्र मशुल्लाम ने की; उन्होंने उसकी कडिय़ां लगाई, और उसके पल्ले, ताले और बेंड़े लगाए। 7 और उन से आगे गिबोनी मलत्याह और मेरोनोती यादोन ने और गिबोन और मिस्पा के मनुष्योंने महानद के पार के अधिपति के सिंहासन की ओर से मरम्मत की। 8 उन से आगे हर्हयाह के पुत्र उजीएल ने और और सुनारोंने मरम्मत की। और इस से आगे हनन्याह ने, जो गन्धियोंके समाज का या, मरम्मत की; और उन्होंने चौड़ी शहरपनाह तक यरूशलेम को दृढ़ किया। 9 और उन से आगे हूर के पुत्र रपायाह ने, जो यरूशलेम के आधे जिले का हाकिम या, मरम्मत की। 10 और उन से आगे हरुमप के पुत्र यदायाह ने अपके ही घर के साम्हने मरम्मत की; और इस से आगे हशब्नयाह के पुत्र हत्तूश ने मरम्मत की। 11 हारीम के पुत्र मल्कियाह और पहत्तोआब के पुत्र हश्शूब ने एक और भाग की, और भट्टोंके गुम्मट की मरम्मत की। 12 इस से आगे यरूशलेम के आधे जिले के हाकिम हल्लोहेश के पुत्र शल्लूम ने अपक्की बेटियोंसमेत मरम्मत की। 13 तराई के फाटक की मरम्मत हानून और जानोह के निवासियोंने की; उन्होंने उसको बनाया, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए, और हजार हाथ की शहरपनाह को भी अर्यात् कूड़ाफाटक तक बनाया। 14 और कूड़ाफाटक की मरम्मत रेकाब के पुत्र मल्कियाह ने की, जो बेयक्केरेम के जिले का हाकिम या; उसी ने उसको बनाया, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए। 15 और सोताफाटक की मरम्मत कोल्होजे के पुत्र शल्लूम ने की, जो मिस्पा के जिले का हाकिम या; उसी ने उसको बनाया और पाटा, और उसके ताले, बेंड़े और पल्ले लगाए; और उसी ने राजा की बारी के पास के शेलह नाम कुणड की शहरपनाह को भी दाऊदपुर से उतरनेवाली सीढ़ी तक बनाया। 16 उसके बाद अज अजबूक के पुत्र नहेमायाह ने जो बेतसूर के आधे जिले का हाकिम या, दाऊद के कब्रिस्तान के साम्हने तक और बनाए हुए पोखरे तक, वरन वीरोंके घर तक भी मरम्मत की। 17 इसके बाद बानी के पुत्र रहूम ने कितने लेवियोंसमेत मरम्मत की। इस से आगे कीला के आधे जिले के हाकिम हशब्याह ने अपके जिले की ओर से मरम्मत की। 18 उसके बाद उनके भाइयोंसमेत कीला के आधे जिले के हाकिम हेनादाद के पुत्र बव्वै ने मरम्मत की। 19 उस से आगे एक और भाग की मरम्मत जो शहरपनाह के मोड़ के पास शस्त्रें के घर की चढ़ाई के साम्हने है, थेशु के पुत्र एज़ेर ने की, जो मिस्पा का हाकिम या। 20 फिर एक और भाग की अर्यात् उसी मोड़ से ले एल्याशीब महाथाजक के घर के द्वार तक की मरम्मत जब्बै के पुत्र बारूक ने तन मन से की। 21 इसके बाद एक और भाग की अर्यात् एल्याशीब के घर के द्वार से ले उसी घर के सिक्के तक की मरम्मत, मरेमोत ने की, जो हक्कोस का पोता और ऊरियाह का पुत्र या। 22 उसके बाद उन याजकोंने मरम्मत की जो तराई के मनुष्य थे। 23 उनके बाद बिन्यामीन और हश्शूब ने अपके घर के साम्हने मरम्मत की; और इनके पीछे अजर्याह ने जो मासेयाह का पुत्र और अनन्याह का पोता या अपके घर के पास मरम्मत की। 24 तब एक और भाग की, अर्यात् अजर्याह के घर से लेकर शहरपनाह के मोड़ तक वरन उसके कोने तक की मरम्मत हेनादाद के पुत्र बिन्नूई ने की। 25 फिर उसी मोड़ के साम्हने जो ऊंचा गुम्मट राजभवन से बाहर निकला हुआ बन्दीगृह के आंगन के पास है, उसके साम्हने ऊजै के पुत्र पालाल ने मरम्मत की। इसके बाद परोश के पुत्र पदायाह ने मरम्मत की। 26 नतीन लोग तो ओपेल में पूरब की ओर जलफाटक के साम्हने तक और बाहर निकले हुए गुम्मट तक रहते थे। 27 पदायाह के बाद तकोइयोंने एक और भाग की मरम्मत की, जो बाहर तिकले हुए बड़े गुम्मट के साम्हने और ओबेल की शहरपनाह तक है। 28 फिर घोड़ाफाटक के ऊपर याजकोंने अपके अपके घर के साम्हने मरम्मत की। 29 इनके बाद इम्मेर के पुत्र सादोक ने अपके घर के साम्हने मरम्मत की; और तब पूरवी फाटक के रखवाले शकन्याह के पुत्र समयाह ने मरम्मत की। 30 इसके बाद शेलेम्याह के पुत्र हनन्याह और सालाप के छठवें पुत्र हानून ने एक और भाग की मरम्मत की। तब बेरेक्याह के पुत्र मशुल्लाम ने अपक्की कोठरी के साम्हने मरम्मत की। 31 उसके बाद मल्कियाह ने जो सुनार या नतिनोंऔर व्यापारियोंके स्यान तक ठहराए हुए स्यान के फाटक के साम्हने और कोने के कोठे तक मरम्मत की। 32 और कोनेवाले कोठे से लेकर भेड़फाटक तक सुनारोंऔर व्यापारियोंने मरम्मत की।
1 जब सम्बल्लत ने सुना कि यहूदी लोग शहरपनाह को बना रहे हैं, तब उस ने बुरा माना, और बहुत रिसियाकर यहूदियोंको ठट्ठोंमें उड़ाने लगा। 2 वह अपके भाइयोंके और शोमरोन की सेना के साम्हने योंकहने लगा, वे निर्बल यहूदी क्या किया चाहते हैं? क्या वे वह काम अपके बल से करेंगे? क्या वे अपना स्यान दृढ़ करेंगे? क्या वे यज्ञ करेंगे? क्या वे आज ही सब काम निपटा डालेंगे? क्या वे मिट्टीके ढेरोंमें के जले हुए पत्य्रोंको फिर नथे सिक्के से बनाएंगे? 3 उसके पास तो अम्मोनी तोबियाह या, और वह कहने लगा, जो कुछ वे बना रहे हैं, यदि कोई गीदड़ भी उस पर चढ़े, तो वह उनकी बनाई हुई पत्यर की शहरपनाह को तोड़ देगा। 4 हे हमारे परमेश्वर सुन ले, कि हमारा अपमान हो रहा है; और उनका किया हुआ अपमान उन्हीं के सिर पर लौटा दे, और उन्हें बन्धुआई के देश में लुटवा दे। 5 और उनका अधर्म तू न ढांप, और न उनका पाप तेरे सम्मुख से मिटाया जाए; क्योंकि उन्होंने तुझे शहरपनाह बनानेवालोंके साम्हने क्रोध दिलाया है। 6 और हम लोगोंने शहरपनाह को बनाया; और सारी शहरपनाह आधी ऊंचाई तक जुड़ गई। क्योंकि लोगोंका मन उस काम में नित लगा रहा। 7 जब सम्बल्लत और तोबियाह और अरबियों, अम्मोनियोंऔर अशदोदियोंने सुना, कि यरूशलेम की शहरपनाह की मरम्मत होती जाती है, और उस में के नाके बन्द होने लगे हैं, तब उन्होंने बहुत ही बुरा माना; 8 और सभोंने एक मन से गोष्ठी की, कि जाकर यरूशलेम से लड़ें, और उस में गड़बड़ी डालें। 9 परन्तु हम लोगोंने अपके परमेश्वर से प्रार्यना की, और उनके डर के मारे उनके विरुद्ध दिन रात के पहरुए ठहरा दिए। 10 और यहूदी कहने लगे, ढोनेवालोंका बल घट गया, और मिट्टी बहुत पक्की है, इसलिथे शहरपनाह हम से नहीं बन सकती। 11 और हमारे शत्रु कहने लगे, कि जब तक हम उनके बीच में न महुंचे, और उन्हें घात करके वह काम बन्द न करें, तब तक उनको न कुछ मालूम होगा, और न कुछ दिखाई पकेगा। 12 फिर जो यहूदी उनके आस पास रहते थे, उन्होंने सब स्यानोंसे दस बार आ आकर, हम लोगोंसे कहा, तुम को हमारे पास लौट आना चाहिथे। 13 इस कारण मैं ने लोगोंको तलवारें, बछिर्यां और धनुष देकर शहरपनाह के पीछे सब से नीचे के खुले स्यानोंमें घराने घराने के अनुसार बैठा दिया। 14 तब मैं देखकर उठा, और रईसोंऔर हाकिमोंऔर और सब लोगोंसे कहा, उन से मत डरो; प्रभु जो महान और भययोग्य है, उसी को स्मरण करके, अपके भाइयों, बेटों, बेटियों, स्त्रियोंऔर घरोंके लिथे युद्ध करना। 15 जब हमारे शत्रुओं ने सुना, कि यह बात हम को मालूम हो गई है और परमेश्वर ने उनकी युक्ति निष्फल की है, तब हम सब के सब शहरपनाह के पास अपके अपके काम पर लौट गए। 16 और उस दिन से मेरे आधे सेवक तो उस काम मे लगे रहे और आधे बछिर्यों, तलवारों, धनुषोंऔर फिलमोंको धारण किए रहते थे; और यहूदा के सारे धराने के पीछे हाकिम रहा करते थे। 17 शहरपनाह के बनानेवाले और बोफ के ढोनेवाले दोनोंभार उठाते थे, अर्यत् एक हाथ से काम करते थे और दूसरे हाथ से हयियार पकड़े रहते थे। 18 और राज अपक्की अपक्की जांघ पर तलवार लटकाए हुए बनाते थे। और नरसिंगे का फूंकनेवाला मेरे पास रहता या। 19 इसलिथे मैं ने रईसों, हाकिमोंऔर सब लोगोंसे कहा, काम तो बड़ा और फैला हुआ है, और हम लोग शहरपनाह पर अलग अलग एक दूसरे से दूर रहते हैं। 20 इसलिथे जिधर से नरसिंगा तुम्हें सुनाई दे, उधर ही हमारे पास इकट्ठे हो जाना। हमारा परमेश्वर हमारी ओर से लड़ेगा। 21 योंहम काम में लगे रहे, और उन में आधे, पौ फटने से तारोंके निकलने तक बछिर्यां लिथे रहते थे। 22 फिर उसी समय मैं ने लोगोंसे यह भी कहा, कि एक एक मनुष्य अपके दास समेत यरूशलेम के भीतर रात बिताया करे, कि वे रात को तो हमारी रखवाली करें, और दिन को काम में लगे रहें। 23 और न तो मैं अपके कपके उतारता या, और न मेरे भाई, न मेरे सेवक, न वे पहरुए जो मेरे अनुचर थे, अपके कपके उतारते थे; सब कोई पानी के पास हयियार लिथे हुए जागते थे।
1 तब लोग और उनकी स्त्रियोंकी ओर से उनके भाई यहूदियोंके किरुद्ध बड़ी चिल्लाहट मची। 2 कितने तो कहते थे, हम अपके बेटे-बेटियोंसमेत बहुत प्राणी हैं, इसलिथे हमें अन्न मिलना चाहिथे कि उसे खाकर जीवित रहें। 3 और कितने कहते थे, कि हम अपके अपके खेतों, दाख की बारियोंऔर घरोंको महंगी के कारण बन्धक रखते हैं, कि हमें अन्न मिले। 4 फिर कितने यह कहते थे, कि हम ने राजा के कर के लिथे अपके अपके खेतोंऔर दाख की बारियोंपर रुपया उधार लिया। 5 परन्तु हमारा और हमारे भाइयोंका शरीर और हमारे और उनके लड़केबाले एक ही समान हैं, तौभी हम अपके बेटे-बेटियोंको दास बनाते हैं; वरन हमारी कोई कोई बेटी दासी भी हो चुकी हैं; और हमारा कुछ बस नहीं जलता, क्योंकि हमारे खेत और दाख की बारियां औरोंके हाथ पक्की हैं। 6 यह चिल्लाहट ओर थे बातें सुनकर मैं बहुत क्रोधित हुआ। 7 तब अपके मन में सोच विचार करके मैं ने रईसोंऔर हाकिमोंको घुड़ककर कहा, तुम अपके अपके भाई से ब्याज लेते हो। तब मैं ने उनके विरुद्ध एक बड़ी सभा की। 8 और मैं ने उन से कहा, हम लोगोंने तो अपक्की शक्ति भर अपके यहूदी भाइयोंको जो अन्यजातियोंके हाथ बिक गए थे, दाम देकर छुड़ाया है, फिर क्या तुम अपके भाइयोंको बेचोगे? क्या वे हमारे हाथ बिकेंगे? तब वे चुप रहे और कुछ न कह सके। 9 फिर मैं कहता गया, जो काम तुम करते हो वह अच्छा नहीं है; क्या तुम को इस कारण हमारे परमेश्वर का भय मानकर चलना न चाहिथे कि हमारे शत्रु जो अन्यजाति हैं, वे हमारी नामधराई न करें? 10 मैं भी और मेरे भाई और सेवक उनको रुपया और अनाज उधार देते हैं, परन्तु हम इसका ब्याज छोड़ दें। 11 आज ही अनको उनके खेत, और दाख, और जलपाई की बारियां, और घर फेर दो; और जो रुपया, अन्न, नया दाखमधु, और टटका तेल तुम उन से ले लेते हो, उसका सौवां भाग फेर दो? 12 अन्होंने कहा, हम उन्हें फेर देंगे, और उन से कुछ न लेंगे; जैसा तू कहता है, वैसा ही हम करेंगे। तब मैं ने याजकोंको बुलाकर उन लोगोंको यह शपय खिलाई, कि वे इसी वचन के अनुसार करेंगे। 13 फिर मैं ने अपके कपके की छोर फाड़कर कहा, इसी रीति से जो कोई इस वचन को पूरा न करे, उसको परमेश्वर फाड़कर, उसका घर और कमाई उस से छुड़ाए, और इसी रीति से वह फाड़ा जाए, और छूछा हो जाए। तब सारी सभा ने कहा, आमेन ! और यहोवा की स्तुति की। और लोगोंने इस वचन के अनुसार काम किया। 14 फिर जब से मैं यहूदा देश में उनका अधिपति ठहराया गया, अर्यात् राजा अर्तझत्र के बीसवें वर्ष से ले उसके बत्तीसवें वर्ष तक, अर्यात् बारह वर्ष तक मैं और मेरे भाई अधिपति के हक का भोजन खाते रहे। 15 परन्तु पहिले अधिपति जो मुझ से आगे थे, वह प्रजा पर भार डालते थे, और उन से रोटी, और दाखमधु, और इस से अधिक चालीस शेकेल चान्दी लेते थे, वरन उनके सेवक भी प्रजा के ऊपर अधिक्कारने जताते थे; परन्तु मैं ऐसा नहीं करता या, क्योंकि मैं यहोवा का भय मानता या। 16 फिर मैं शहरपनाह के काम में लिपटा रहा, और हम लोगोंने कुछ भूमि मोल न ली; और मेरे सब सेवक काम करने के लिथे वहां इकट्ठे रहते थे। 17 फिर मेरी मेज पर खानेवाले एक सौ पचास यहूदी और हाकिम और वे भी थे, जो चारोंओर की अन्यजातियोंमें से हमारे पास आए थे। 18 और जो प्रतिदिन के लिथे तैयार किया जाता या वह एक बैल, छ: अच्छी अच्छी भेड़ें व बकरियां यीं, और मेरे लिथे चिडिय़ें भी तैयार की जाती यीं; दस दस दिन के बाद भांति भांति का बहुत दाखमधु भी तैयार किया जाता या; परन्तु तौभी मैं ने अधिपति के हक का भोज नहीं लिया, 19 क्योंकि काम का भार प्रजा पर भारी या। हे मेरे परमेश्वर ! जो कुछ मैं ने इस प्रजा के लिथे किया है, उसे तू मेरे हित के लिथे स्मरण रख।
1 जब सम्बल्लत, तोबियाह और अरबी गेशेम और हमारे और शत्रुओं को यह समाचार मिला, कि मैं शहरपनाह को बनवा चुका; और यद्यपि उस समय तक भी मैं फाटकोंमें पल्ले न लगा चुका या, तौभी शहरपनाह में कोई दरार न रह गया या। 2 तब सम्बल्लत और गेशेम ने मेरे पास योंकहला भेजा, कि आ, हम ओनो के मैदान के किसी गांव में एक दूसरे से भेंट करें। परन्तु वे मेरी हानि करने की इच्छा करते थे। 3 परन्तु मैं ने उनके पास दूतोंसे कहला भेजा, कि मैं तो भारी काम में लगा हूँ, वहां नहीं जा सकता; मेरे इसे छोड़कर तुम्हारे पास जाने से वह काम क्योंबन्द रहे? 4 फिर उन्होंने चार बार मेरे पास वैसी ही बात कहला भेजी, और मैं ने उनको वैसा ही उत्तर दिया। 5 तब पांचक्की बार सम्बल्लत ने अपके सेवक को खुली हुई चिट्ठी देकर मेरे पास भेजा, 6 जिस में योंलिखा या, कि जाति जाति के लोगोंमें यह कहा जाता है, और गेशेम भी यही बात कहता है, कि तुम्हारी और यहूदियोंकी मनसा बलवा करने की है, और इस कारण तू उस शहरपनाह को बनवाता है; और तू इन बातोंके अनुसार उनका राजा बनना चाहता है। 7 और तू ने यरूशलेम में नबी ठहराए हैं, जो यह कहकर तेरे विषय प्रचार करें, कि यहूदियोंमें एक राजा है। अब ऐसा ही समाचार राजा को दिया जाएगा। इसलिथे अब आ, हम एक साय सम्मति करें। 8 तब मैं ने उसके पास कहला भेजा कि जैसा तू कहता है, वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ, तू थे बातें अपके मन से गढ़ता है। 9 वे सब लोग यह सोचकर हमें डराना चाहते थे, कि उनके हाथ ढीले पकें, और काम बन्द हो जाए। परन्तु अब हे परमेश्वर तू मुझे हियाव दे। 10 और मैं शमायाह के घर में गया, जो दलायाह का पुत्र और महेतबेल का पोता या, वह तो बन्द घर में या; उस ने कहा, आ, हम परमेश्वर के भवन अर्यात् मन्दिर के भीतर आपस में भेंट करें, और मन्दिर के द्वार बन्द करें; क्योंकि वे लोग तुझे घात करने आएंगे, रात ही को वे तुझे घात करने आएंगे। 11 परन्तु मैं ने कहा, क्या मुझ ऐसा मनुष्य भागे? और तुझ ऐसा कौन है जो अपना प्राण बचाने को मन्दिर में घुसे? मैं नहीं जाने का। 12 फिर मैं ने जान लिया कि वह परमेश्वर का भेजा नहीं है परन्तु उस ने हर बात ईश्वर का वचन कहकर मेरी हानि के लिथे कही, क्योंकि तोबियाह और सम्बल्लत ने उसे रुपया दे रखा या। 13 उन्होंने उसे इस कारण रुपया दे रखा या कि मैं डर जाऊं, और वैसा ही काम करके पापी ठहरूं, और उनको अपवाद लगाने का अवसर मिले और वे मेरी नामधराई कर सकें। 14 हे मेरे रपरमेश्वर ! तोबियाह, सम्बल्लत, और नोअद्याह, नबिया और और तितने नबी मुझे डराना चाहते थे, उन सब के ऐसे ऐसे कामोंकी सुधि रख। 15 एलूल महीने के पक्कीसवें दिन को अर्यात् बावन दिन के भीतर शहरपनाह बन चुकी। 16 जब हमारे सब शत्रुओं ने यह सुना, तब हमारे चारोंओर रहनेवाले सब अन्यजाति डर गए, और बहुत लज्जित हुए; क्योंकि उन्होंने जान लिया कि यह काम हमारे परमेश्वर की ओर से हुआ। 17 उन दिनोंमें भी यहूदी रईसोंऔर तोबियाह के बीच चिट्ठ बहुत आया जाया करती यी। 18 क्योंकि वह आरह के पुत्र शकम्याह का दामाद या, और उसके पुत्र यहोहानान ने बेरेक्याह के पुत्र मशुल्लाम की बेटी की ब्याह लिया या; इस कारण बहुत से यहूदी उसका पझ करने की शपय खाए हुए थे। 19 और वे मेरे सुनते उसके भले कामोंकी चर्चा किया करते, और मेरी बातें भी उसको सुनाया करते थे। और तोबियाह मुझे डराने के लिथे चिट्ठियां भेजा करता या।
1 जब शहरपनाह बन गई, और मैं ने उसके फाटक खड़े किए, और द्वारपाल, और गवैथे, और लेवीय लोग ठहराथे गए, 2 तब मैं ने अपके भाई हनानी और राजगढ़ के हाकिम हनन्याह को यरूशलेम का अधिक्कारनेी ठहराया, क्योंकि यह सच्चा पुरुष और बहुतेरोंसे अधिक परमेश्वर का भय माननेवाला या। 3 और मैं ने उन से कहा, जब तक घाम कड़ा न हो, तब तक यरूशलेम के फाटक न खोले जाएं और जब पहरुए पहरा देते रहें, तब ही फाटक बन्द किए जाएं और बेड़े लगाए जाएं। फिर यरूशलेम के निवासियोंमें से तू रखवाले ठहरा जो अपना अपना पहरा अपके अपके घर के साम्हने दिया करें। 4 नगर तो लम्बा चौड़ा या, परन्तु उस में लोग योड़े थे, और घर नहीं बने थे। 5 तब मेरे परमेश्वर ने मेरे मन में यह उपजाया कि रईसों, हाकिमोंऔर प्रजा के लोगोंको इसलिथे इकट्ठे करूं, कि वे अपक्की अपक्की वंशावली के अनुसार गिने जाएं। और मुझे पहिले पहिल यरूशलेम को आए हुओं का वंशावलीपत्र मिला, और उस में मैं ने योंलिख हुआ पाया: 6 जिनको बाबेल का राजा, नबूकदनेस्सर बन्धुआ करके ले गया या, उन में से प्रान्त के जो लोग बन्धुआई से छूटकर, यरूशलेम और यहूदा के अपके अपके नगर को आए। 7 वे जरुब्बाबेल, थेशू, नहेमायाह, अजर्याह, राम्याह, नहमानी, मोर्दकै, बिलशान, मिस्पेरेत, विग्वै, नहूम और बाना के संग आए। 8 इस्राएली प्रजा के लोगोंकी गिनती यह है : अर्यात् परोश की सन्तान दो हजार एक सौ बहत्तर, 9 सपत्याह की सन्तान तीन सौ बहत्तर, आाह की सन्तान छ: सौ बावन। 10 पहत्मोआब की सन्तान याने थेशू और योआब की सन्तान, 11 दो हजार आठ सौ अठारह। 12 एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन, 13 जत्तू की सन्तान आठ सौ पैंतालीस। 14 जवकै की सन्तान सात सौ साठ। 15 बिन्नूई की सन्तान छ:सौ अड़तालीस। 16 बेबै की सन्तान छ:सौ अट्ठाईस। 17 अजगाद की सन्तान दो हजार तीन सौ बाईस। 18 अदोनीकाम की सन्तान छ:सौ सड़सठ। 19 बिग्बै की सन्तान दो हजार सड़सठ। 20 आदीन की सन्तान छ:सौ पचपन। 21 हिचकिय्याह की सन्तान आतेर के वंश में से अट्ठानवे। 22 हाशम की सन्तान तीन सौ अट्ठाईस। 23 बैसै की सन्तान तीन सौ चौबीस। 24 हारीप की सन्तान एक सौ बारह। 25 गिबोन के लोग पचानवे। 26 बेतलेहेम और नतोपा के मनुष्य एक सौ अट्ठासी। 27 अनातोत के मनुष्य एक सौ अट्ठाईस। 28 बेतजमावत के मनुष्य बयालीस। 29 किर्यत्यारीम, कपीर, और बेरोत के मनुष्य सात सौ तैंतालीस। 30 रामा और गेबा के मनुष्य छ:सौ इक्कीस। 31 मिकपास के मनुष्य एक सौ बाईस। 32 बेतेल और ऐ के मनुष्य एक सौ तेईस। 33 दूसरे नबो के मनुष्य बावन। 34 दूसरे एलाम की सन्तान बारह सौ चौवन। 35 हारीम की सन्तान तीन सौ बीस। 36 यरीहो के लोग तीन सौ पैंतालीस। 37 लोद हादीद और ओनोंके लोग सात सौ इक्कीस। 38 सना के लोग तीन हजार नौ सौ तीस। 39 फिर याजक अर्यात् थेशू के घराने में से यदायाह की सन्तान नौ सौ तिहत्तर। 40 इम्मेर की सन्तान एक हजार बावन। 41 पशहूर की सन्तान बारह सौ सैंतालीस। 42 हारीम की सन्तान एक हजार सत्रह। 43 फिर लेवीय थे थे: अर्यात् होदवा के दंश में से कदमीएल की सन्तान थेशू की सन्तान चौहत्तर। 44 फिर गवैथे थे थे: अर्यात् आसाप की सन्तान एक सौ अड़तालीस। 45 फिर द्वारपाल थे थे: अर्यात् शल्लूम की सन्तान, आतेर की सन्तान, तल्मोन की सन्तान, अक्कूब की सन्तान, हतीता की सन्तान, और शोबै की सन्तान, जो सब मिलकर एक सौ अड़तीस हुए। 46 फिर नतीन अर्यत् सीहा की सन्तान, हसूपा की सन्तान, तब्बाओत की सन्तान, 47 केरोस की सन्तान, सीआ की सन्तान, पादोन की सन्तान, 48 लबाना की सन्तान, हगावा की सन्तान, शल्मै की सन्तान। 49 हानान की सन्तान, गिद्देल की सन्तान, गहर की सन्तान, 50 राया की सन्तान, रसीन की सन्तान, नकोदा की सन्तान, 51 गज्जाम की सन्तान, उज्जा की सन्तान, पासेह की सन्तान, 52 बेसै की सन्तान, मूनीम की सन्तान, नमूशस की सन्तान, 53 बकबूक की सन्तान, हकूपा की सन्तान, हर्हूर की सन्तान, 54 बसलीत की सन्तान, महीदा की सन्तान, हर्शा की सन्तान, 55 बकॉस की सन्तान, सीसरा की सन्तान, तेमेह की सन्तान, 56 नसीह की सन्तान, और हतीपा की सन्तान। 57 फिर सुलैमान के दासोंकी सन्तान, अर्यात् सोतै की सन्तान, सोपेरेत की सन्तान, पक्कीदा की सन्तान, 58 याला की सन्तान, दकॉन की सन्तान, गिद्देल की सन्तान, 59 शपत्याह की सन्तान, हत्तील की सन्तान, पोकेरेत सवायीम की सन्तान, और आमोन की सन्तान। 60 नतीन और सुलैमान के दासोंकी सन्तान मिलकर तीन सौ बानवे थे। 61 और थे वे हैं, जो तेलमेलह, तेलहर्शा, करूब, अद्दोन, और इम्मेर से यरूशलेम को गए, परन्तु अपके अपके पितरोंके घराने और वंशावली न बता सके, कि इस्राएल के हैं, वा नहीं : 62 अर्यात् दलायाह की सन्तान, तोबिय्याह की सन्तान, और दकोदा की सन्तान, जो सब मिलकर छ: सौ बयालीस थे। 63 और याजकोंमें से होबायाह की सन्तान, हक्कोस की सन्तान, और बजिर्ल्लै की सन्तान, जिस ने गिलादी बजिर्ल्लै की बेटियोंमें से एक को ब्याह लिया, और उन्हीं का नाम रख लिया या। 64 इन्होंने अपना अपना वंशावलीपत्र और और वंशावलीपत्रोंमें दूंढ़ा, परन्तु न पाया, इसलिथे वे अशुद्ध ठहरकर याजकपद से निकालेगए। 65 और अधिपति ने उन से कहा, कि जब तक ऊरीम और तुम्मीम धारण करनेवाला कोई याजक न उठे, तब तक तुम कोई परमपवित्र वस्तु खाने न पाओगे। 66 पूरी मणडली के लोग मिलकर बयालीस हजार तीन सौ साठ ठहरे। 67 इनको छोड़ उनके सात हजार तीन सौ सैंतीस दास-दासियां, और दो सौ पैंतालीस गानेवाले और गानेवालियां यीं। 68 उनके घोड़े सात सौ छत्तीस, ख्च्चर दो सौ पैंतालीस, 69 ऊंट चार सौ पैंतीस और गदहे छ: हजार सात सौ बीस थे। 70 और पितरोंके घरानोंके कई एक मुख्य पुरुषोंने काम के लिथे दिया। अधिपति ने तो चन्दे में हजार दर्कमोन सोना, पचास कटोरे और पांच सौ तीस याजकोंके अंगरखे दिए। 71 और पितरोंके घरानोंके कई मुख्य मुख्य पुरुषोंने उस काम के चन्दे में बीस हजार दर्कमोन सोना और दो हजार दो सौ माने चान्दी दी। 72 और शेष प्रजा ने जो दिया, वह बीस हजार दर्कमोन सोना, दो हजार माने चान्दी और सड़सठ याजकोंके अंगरखे हुए। 73 इस प्रकार याजक, लेवीय, द्वारपाल, गवैथे, प्रजा के कुछ लोग और नतीन और सब इस्राएली अपके अपके नगर में बस गए।
1 जब सातवां महीना निकट आया, उस समय सब इस्राएली अपके अपके नगर में थे। तब उन सब लोगोंने एक मन होकर, जलफाटक के साम्हने के चौक में इकट्ठे होकर, बज्रा शास्त्री से कहा, कि मूसा की जो व्यवस्या यहोवा ने इस्राएल को दी यी, उसकी पुस्तक ले आ। 2 तब एज्रा याजक सातवें महीने के पहिले दिन को क्या स्त्री, क्या पुरुष, जितने सुनकर समझ सकते थे, उन सभोंके साम्हने व्यवस्या को ले आया। 3 और वह उसकी बातें भोर से दो पहर तक उस चौक के साम्हने जो जलफाटक के साम्हने या, क्या स्त्री, क्या पुरुष और सब समझने वालोंको पढ़कर सुनाता रहा; और लोग व्यवस्या की पुस्तक पर कान लगाए रहे। 4 एज्रा शास्त्री, काठ के एक मचान पर जो इसी काम के लिथे बना या, ख्ड़ा हो गयां; और उसकी दाहिनी अलंग मत्तित्याह, शेमा, अनायाह, ऊरिय्याह, हिल्किय्याह और मासेयाह; और बाई अलंग, पदायाह, मीशाएल, मल्किय्याह, हाशूम, हश्बद्दाना,जकर्याह और मशुल्लाम खड़े हुए। 5 तब एज्रा ने जो सब लोगोंसे ऊंचे पर या, सभोंके देखते उस पुस्तक को खोल दिया; और जब उस ने उसको खोला, तब सब लोग उठ खाड़े हुए। 6 तब एज्रा ने महान परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा; और सब लोगोंने अपके अपके हाथ उठाकर आमेन, आमेन, कहा; और सिर फुकाकर अपना अपना माया भूमि पर टेक कर यहोवा को दणडवत किया। 7 और थेशू, बानी, शेरेब्याह, यामीन, अक्कूब, शब्बतै, होदिय्याह, मासेयाह, कलीता, अजर्याह, योजाबाद, हानान और पलायाह नाम लेवीय, लोगोंको व्यवस्या समझाते गए, और लोग अपके अपके स्यान पर खड़े रहे। 8 और उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्या की पुस्तक से पढ़कर अर्य समझा दिया; और लोगोंने पाठ को समझ लिया। 9 तब नहेमायाह जो अधिपति या, और एज्रा जो याजक और शास्त्री या, और जो लेवीय लोगोंको समझा रहे थे, उन्होंने सब लोगोंसे कहा, आज का दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के लिथे पवित्र है; इसलिथे विलाप न करो और न रोओ। क्योंकि सब लोग व्यवस्या के वचन सुनकर रोते रहे। 10 फिर उस ने उन से कहा, कि जाकर चिकना चिकना भोजन करो और मीठा मीठा रस पियो, और जिनके लिथे कुछ तैयार नहीं हुआ उनके पास बैना भेजो; क्योंकि आज का दिन हमारे प्रभु के लिथे पवित्र है; और उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है। 11 योंलेवियोंने सब लोगोंको यह कहकर चुप करा दिया, कि चुप रहो क्योंकि आज का दिन पवित्र है; और उदास मत रहो। 12 तब सब लोग खाने, पीने, बैना भेजने और बड़ा आनन्द मनाने को चले गए, क्योंकि जो वचन उनको समझाए गए थे, उन्हें वे समझ गए थे। 13 और दूसरे दिन को भी समस्त प्रजा के पितरोंके घराने के मुख्य मुख्य पुरुष और याजक और लेवीय लोग, एज्रा शास्त्री के पास व्यवस्या के वचन ध्यान से सुनने के लिथे इकट्टे हुए। 14 और उन्हें व्यवस्या में यह लिखा हुआ मिला, कि यहोवा ने मूसा से यह आज्ञा दिलाई यी, कि इस्राएली सातवें महीने के पर्व के समय फोपडिय़ोंमें रहा करें, 15 और अपके सब नगरोंऔर यरूशलेम में यह सुनाया और प्रचार किया जाए, कि पहाड़ पर जाकर जलपाई, तैलवृझ, मेंहदी, खजूर और घने घने वृझोंकी डालियां ले आकर फोपडिय़ां बनाओ, जैसे कि लिखा है। 16 सो सब लोग बाहर जाकर डालियां ले आए, और अपके अपके घर की छत पर, और अपके आंगनोंमें, और परमेश्वर के भवन के आंगनोंमें, और जलफाटक के चौक में, और एप्रैम के फाटक के चौक में, फोंपडिय़ां बना लीं। 17 वरन सब मणडली के लोग जितने बन्धुआई से छूटकर लौट आए थे, फोंपडिय़ां बना कर उन में टिके। नून के पुत्र यहोशू के दिनोंसे लेकर उस दिन तक इस्राएलियोंने ऐसा नहीं किया या। और उस समय बहुत बड़ा आनन्द हुआ। 18 फिर पक्कीले दिन से पिछले दिन तक एज्रा ने प्रतिदिन परमेश्वर की व्यवस्या की पुस्तक में से पढ़ पढ़कर सुनाया। योंवे सात दिन तक पर्व को मानते रहे, और साठवें दिन नियम के अनुसार महासभा हुई।
1 फिर उसी महीने के चौबीसवें दिन को इस्राएली उपवास का टाट पहिने और सिर पर धूल डाले हुए, इकट्ठे हो गए। 2 तब इस्राएल के वंश के लोग सब अन्यजाति लोगोंसे अलग हो गए, और खड़े होकर, अपके अपके पापोंऔर अपके पुरखाओं के अधर्म के कामोंको मान लिया। 3 तब उन्होंने अपके अपके स्यान पर खड़े होकर दिन के एक पहर तक अपके परमेश्वर यहोवा की व्यवस्या की पुस्तक पढ़ते, और एक और पहर अपके पापोंको मानते, और अपके परमेश्वर यहोवा को दणडवत करते रहे। 4 और थेशू, बानी, कदमीएल, शबन्याह, बुन्नी, शेरेब्याह, बानी और कनानी ने लेवियोंकी सीढ़ी पर खड़े होकर ऊंचे स्वर से अपके परमेश्वर यहोवा की दोहाई दी। 5 फिर थेशू, कदमीएल, बानी, हशब्नयाह, शेरेब्याह, होदिय्याह, शबन्याह, और पतह्याह नाम लेवियोंने कहा, खड़े हो; अपके परमेश्वर यहोवा को अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य कहो। तेरा महिमायुक्त नाम धन्य कहा जाए, जो सब धन्यवाद और स्तुति से पके है। 6 तू ही अकेला यहोवा है; स्वर्ग वरन सब से ऊंचे स्वर्ग और उसके सब गण, और पृय्वी और जो कुछ उस में है, और समुद्र और जो कुछ उस में है, सभोंको तू ही ने बनाया, और सभोंकी रझा तू ही करता है; और स्वर्ग की समस्त सेना तुझी को दणडवत करती हैं। 7 हे यहोवा ! तू वही परमेश्वर है, जो अब्राहाम को चुनकर कसदियोंके ऊर नगर में से निकाल लाया, और उसका नाम इब्राहीम रखा; 8 और उसके मन को अपके साय सच्चा पाकर, उस से वाचा बान्धी, कि मैं तेरे वंश को कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, यबूसियों, और गिर्गाशियोंका देश दूंगा; और तू ने अपना वह वचन पूरा भी किया, क्योंकि तू धमीं है। 9 फिर तू ने मिस्र में हमारे पुरखाओं के दु:ख पर दृष्टि की; और लाल समुद्र के तट पर उनकी दोहाई सुनी। 10 और फ़िरौन और उसके सब कर्मचारी वरन उसके देश के सब लोगोंको दणड देने के लिथे चिन्ह और चमत्कार दिखाए; क्योंकि तू जानता या कि वे उन से अभिमान करते हैं; और तू ने अपना ऐसा बड़ा नाम किया, जैसा आज तक वर्तमान है। 11 और तू ने उनके आगे समुद्र को ऐसा दो भाग किया, कि वे समुद्र के बीच स्यल ही स्यल चलकर पार हो गए; और जो उनके पीछे पके थे, उनको तू ने गहिरे स्यानोंमें ऐसा डाल दिया, जैसा पत्य्र महाजलराशि में डाला जाए। 12 फिर तू ने दिन को बादल के खम्भे में होकर और रात को आग के खम्भे में होकर उनकी अगुआई की, कि जिस मार्ग पर उन्हें चलना या, उस में उनको उजियाला मिले। 13 फिर तू ने सीनै पर्वत पर उतरकर आकाश में से उनके साय बातें की, और उनको सीधे नियम, सच्ची व्यवस्या, और अच्छी विधियां, और आज्ञाएं दीं। 14 और उन्हें अपके पवित्र विश्रम दिन का ज्ञान दिया, और अपके दास मूसा के द्वारा आज्ञाएं और विधियां और व्यवस्या दीं। 15 और उनकी भूख मिटाने को आकाश से उन्हें भोजन दिया और उनकी प्यास बुफाने को चट्टान में से उनके लिथे पानी निकाला, और उन्हें आज्ञा दी कि जिस देश को तुम्हें देने की मैं ने शपय खाई है उसके अधिक्कारनेी होने को तुम उस में जाओ। 16 परन्तु उन्होंने और हमारे पुरखाओं ने अभिमान किया, और हठीले बने और तेरी आज्ञाएं न मानी; 17 और आज्ञा मनने से इनकार किया, और जो आश्चर्यकर्म तू ने उनके बीच किए थे, उनका स्मरण न किया, वरन हठ करके यहां तक बलवा करनेवाले बने, कि एक प्रधान ठहराया, कि अपके दासत्व की दशा में लौटे। परन्तु तू झमा करनेवाला अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से कोप करनेवाला, और अतिकरुणामय ईश्वर है, तू ने उनको न त्यागा। 18 वरन जब दन्होंने बछड़ा ढालकर कहा, कि तुम्हारा परमेश्वर जो तुम्हें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, वह यही है, और तेरा बहुत तिरस्कार किया, 19 तब भी तू जो अति दयालु है, उनको जंगल में न त्यागा; न तो दिन को अगुआई करनेवाला बादल का खम्भा उन पर से हटा, और न रात को उजियाला देनेवाला और उनका मार्ग दिखानेवाला आग का खम्भा। 20 वरन तू ने उन्हें समझाने के लिथे अपके आत्मा को जो भला है दिया, और अपना मान्ना उन्हें खिलाना न छोड़ा, और उनकी प्यास बुफाने को पानी देता रहा। 21 चालीस वर्ष तक तू जंगल में उनका ऐसा पालन पोषण करता रहा, कि उनको कुछ घटी न हुई; न तो उनके वस्त्र पुराने हुए और न उनके पांव में सूजन हुई। 22 फिर तू ने राज्य राज्य और देश देश के लोगोंको उनके वश में कर दिया, और दिशा दिशा में उनको बांट दिया; योंवे हेशबोन के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग दोनोंके देशोंके अधिक्कारनेी हो गए। 23 फिर तू ने उनकी सन्तान को आकाश के तारोंके समान बढ़ाकर उन्हें उस देश में पहुंचा दिया, जिसके विषय तू ने उनके पूर्वजोंसे कहा या; कि वे उस में जाकर उसके अधिक्कारनेी हो जाएंगे। 24 सो यह सन्तान जाकर उसकी अधिक्कारनेिन हो गई, और तू ने उनके द्वारा देश के निवासी कनानियोंको दबाया, और राजाओं और देश के लोगोंसमेत उनको, उनके हाथ में कर दिया, कि वे उन से जो चाहें सो करें। 25 और उन्होंने गढ़वाले नगर और उपजाऊ भूमि ले ली, और सब भांति की अच्छी वस्तुओं से भरे हुए घरोंके, और खुदे हुए हौदोंके, और दाख और जलपाई बारियोंके, और खाने के फलवाले बहुत से वृझोंके अधिक्कारनेी हो गए; वे उसे खा खाकर तृप्त हुए, और ह्रृष्ट-पुष्ट हो गए, और तेरी बड़ी भलाई के कारण सुख भोगते रहे। 26 परन्तु वे तुझ से फिरकर बलवा करनेवाले बन गए और तेरी व्यवस्या को त्याग दिया, और तेरे जो नबी तेरी ओर उन्हें फेरने के लिथे उनको चिताते रहे उनको उन्होंने घात किया, और तेरा बहुत तिरस्कार किया। 27 इस कारण तू ने उनको उनके शत्रुओं के हाथ में कर दिया, और उन्होंने उनको संकट में डाल दिया; तौभी जब जब वे संकट में पड़कर तेरी दोहाई देते रहे तब तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता रहा; और तू जो अतिदयालु है, इसलिथे उनके छुड़ानेवाले को भेजता रहा जो उनको शत्रुओं के हाथ से छुड़ाते थे। 28 परन्तु जब जब उनको चैन मिला, तब तब वे फिर तेरे साम्हने बुराई करते थे, इस कारण तू उनको शत्रुओं के हाथ में कर देता या, और वे उन पर प्रभुता करते थे; तौभी जब वे फिरकर तेरी दोहाई देते, तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता और तू जो दयालु है, इसलिथे बार बार उनको छुड़ाता, 29 और उनको जिताता या कि उनको फिर अपक्की व्यवस्या के अधीन कर दे। परन्तु वे अभिमान करते रहे और तेरी आज्ञाएं नहीं मानते थे, और तेरे नियम, जिनको यदि मनुष्य माने, तो उनके कारण जीवित रहे, उनके विरुद्ध पाप करते, और हठ करके अपना कन्धा हटाते और न सुनते थे। 30 तू तो बहुत वर्ष तक उनकी सहता रहा, और अपके आत्मा से नबियोंके द्वारा उन्हें चिताता रहा, परन्तु वे कान नहीं लगाते थे, इसलिथे तू ने उन्हें देश देश के लोगोंके हाथ में कर दिया। 31 तौभी तू ने जो अतिदयालु है, उनका अन्त नहीं कर डाला और न उनको त्याग दिया, क्योंकि तू अनुग्रहकारी और दयालु ईश्वर है। 32 अब तो हे हमारे परमेश्वर ! हे महान पराक्रमी और भययोग्य ईश्वर ! जो अपक्की वाचा पालता और करुणा करता रहा है, जो बड़ा कष्ट, अश्शूर के राजाओं के दिनोंसे ले आज के दिन तक हमें और हमारे राजाओं, हाकिमों, याजकों, नबियों, पुरखाओं, वरन तेरी समस्त प्रजा को भोगना पड़ा है, वह तेरी दृष्टि में योड़ा न ठहरे। 33 तौभी जो कुछ हम पर बीता है उसके विष्य तू तो धमीं है; तू ने तो सच्चाई से काम किया है, परन्तु हम ने दुष्टता की है। 34 और हमारे राजाओं और हाकिमों, याजकोंऔर पुरखाओं ने, न तो तेरी व्यवस्या को माना है और न तेरी आज्ञाओं और चितौनियोंकी ओर ध्यान दिया है जिन से तू ने उनको चिताया या। 35 उन्होंने अपके राज्य में, और उस बड़े कल्याण के समय जो तू ने उन्हें दिया या, और इस लम्बे चौड़े और उपजाऊ देश मेंं तेरी सेवा नहीं की; और न अपके बुरे कामोंसे पश्चाताप किया। 36 देख, हम आज कल दास हैं; जो देश तू ने हमारे पितरोंको दिया या कि उसकी उत्तम उपज खाएं, इसी में हम दास हैं। 37 इसकी उपज से उन राजाओं को जिन्हें तू ने हमारे पापोंके कारण हमारे ऊपर ठहराया है, बहुत धन मिलता है; और वे हमारे शरीरोंऔर हमारे पशुओं पर अपक्की अपक्की इच्छा के अनुसार प्रभुता जताते हैं, इसलिथे हम बड़े संकट में पके हैं। 38 इस सब के कारण, हम सच्चई के साय वाचा बान्धते, और लिख भी देते हैं, और हमारे हाकिम, लेवीय और याजक उस पर छाप लगाते हैं।
1 जिन्होंने छाप लगाई वे थे हैं, अर्यात् हकल्याह का पुत्र नहेमायाह जो अधिपति या, और सिदकिय्याह; 2 मरायाह, अजर्याह, यिर्मयाह; 3 पशहूर, अमर्याह, मल्किय्याह; 4 हतूश, शबन्याह, मल्लूक; 5 हारीम, मरेयोत, ओबद्याह; 6 दानिय्थेल, गिन्नतोन, बारूक; 7 मशुल्लाम, अबिय्याह, मिय्यामीन; 8 माज्याह, बिलगै और शमायाह; थे ही तो याजक थे। 9 और लेवी थे थे : आजन्याह का पुत्र थेशू, हेनादाद की सन्तान में से बिन्नई और कदमीएल; 10 और उनके भाई शबन्याह, होदिय्याह, कलीता, पलायाह, हानान; 11 मीका, रहोब, हशब्याह; 12 जक्कूर, शेरेब्याह, शबन्याह। 13 होदिय्याह, बानी और बनीन; 14 फिर प्रजा के प्रधान थे थे : परोश, पहत्मोआब, एलाम, जत्तू, बानी; 15 बुनी, अजगाद, बेबै; 16 अदोनिय्याह, बिग्वै, आदीन; 17 आतेर, हिजकिय्याह, मज्जूर; 18 होदिय्याह, हाशूम, बेसै; 19 हारीफ, अनातोत, नोबै; 20 मग्पीआश, मशुल्लाम, हेजीर; 21 मशेजबेल, सादोक, यद्दू; 22 पलत्याह, हानान, अनायाह; 23 होशे, हनन्याह, हश्शूब; 24 हल्लोहेश, पिल्हा, शोबेक; 25 रहूम, हशब्ना, माशेयाह; 26 अहिय्याह, हानान, आनान; 27 मल्लूक, हारीम और बाना। 28 शेष लोग अर्यात् याजक, लेवीय, द्वारपाल, गवैथे और नतीन लोग, निदान जितने परमेश्वर की व्यवस्या मानने के लिथे देश देश के लोगोंसे अलग हुए थे, उन सभें ने अपक्की स्त्रियोंऔर उन बेटें-बेटियोंसमेत जो समझनेवाले थे, 29 अपके भाई रईसोंसे मिलकर शपय खाई, कि हम परमेश्वर की उस व्यवस्या पर चलेंगे जो उसके दास मूसा के द्वारा दी गई है, और अपके प्रभु यहोवा की सब आज्ञाएं, नियम और विधियां मानने में चौकसी करेंगे। 30 और हम न तो अपक्की बेटियां इस देश के लोगोंको ब्याह देंगे, और न अपके बेटोंके लिथे उनकी बेटियां ब्याह लेंगे। 31 और जब इस देश के लोग विश्रमदिन को अन्न वा और बिकाऊ वस्तुएं बेचने को ले आथेंगे तब हम उन से न तो विश्रमदिन को न किसी पवित्र दिन को कुछ लेंगे; और सातवें वर्ष में भूमि पक्की रहने देंगे, और अपके अपके ॠण की वसूली छोड़ देंगे। 32 फिर हम लोगोंने ऐसा नियम बान्ध लिया जिस से हम को अपके परमेश्वर के भवन की उपासना के लिथे एक एक तिहाई शेकेल देना पकेगा: 33 अर्यात् भेंट की रोटी और नित्य अन्नबलि और नित्य होमबलि के लिथे, और विश्रमदिनोंऔर नथे चान्द और नियत पब्बॉं के बलिदानोंऔर और पवित्र भेंटोंऔर इस्राएल के प्रायश्चित्त के निमित्त पाप बलियोंके लिथे, निदान अपके परमेश्वर के भवन के सारे काम के लिथे। 34 फिर क्या याजक, क्या लेवीय, क्या साधारण लोग, हम सभोंने इस बात के ठहराने के लिथे चिट्ठियां डालीं, कि अपके पितरोंके घरानोंके अनुसार प्रति वर्ष में ठहराए हुए समयोंपर लकड़ी की भेंट व्यवस्या में लिखी हुई बात के अनुसार हम अपके परमेश्वर यहोवा की वेदी पर जलाने के लिथे अपके परमेश्वर के भवन में लाया करेंगे। 35 और अपक्की अपक्की भूमि की पहिली उपज और सब भांति के वृझोंके पहिले फल प्रति वर्ष यहोवा के भवन में ले आएंगे। 36 और व्यवस्या में लिखी हुई बात के अनुसार, अपके अपके पहिलौठे बेटोंऔर पशुओं, अर्यात् पहिलौठे बछड़ोंऔर मेम्नोंको अपके परमेश्वर के भवन में उन याजकोंके पास लाया करेंगे, जो हमारे परमेश्वर के भवन में सेवा टहल करते हैं। 37 और अपना पहिला गूंधा हुआ आटा, और उठाई हुई भेंटे, और सब प्रकार के वृझोंके फल, और नया दाखमधु, और टटका तेल, अपके परमेश्वर के भवन की कोठरियोंमें याजकोंके पास, और अपक्की अपक्की भूमि की उपज का दशमांश लेवियोंके पास लाया करेंगे; क्योंकि वे लेवीय हैं, जो हमारी खेती के सब नगरोंमें दशमांश लेते हैं। 38 और जब जब लेवीय दशमांश लें, तब तब उनके संग हारून की सन्तान का कोई याजक रहा करे; और लेवीय दशमांशोंका दशमांश हमारे परमेश्वर के भवन की कोठरियोंमें अर्यात् भणडार में पहुंचाया करेंगे। 39 क्योंकि जिन कोठरियोंमें पवित्र स्यान के पात्र और सेवा टहल करनेवाले याजक और द्वारपाल और गवैथे रहते हैं, उन में इस्राएली और लेवीय, अनाज, नथे दाखपधु, और टटके तेल की उठाई हुई भेंटे पहुंचाएंगे। निदान हम अपके परमेश्वर के भवन को न छोड़ेंगे।
1 प्रजा के हाकिम तो यरूशलेम में रहते थे, और शेष लोगोंने यह ठहराने के लिथे चिट्ठियां डालीं, कि दस में से एक मनुष्य यरूशलेम में, जो पवित्र नगर है, बस जाएं; और नौ मनुष्य और और नगरोंमें बसें। 2 और जिन्होंने अपक्की ही इच्छा से यरूशलेम में वास करना चाहा उन सभोंको लोगोंने आशिर्वाद दिया। 3 उस प्रान्त के मुख्य मुख्य पुरुष जो यरूशलेम में रहते थे, वे थे हैं; (परन्तु यहूदा के नगरोंमें एक एक मनुष्य अपक्की निज भूमि में रहता या; अर्यात् इस्राएली, याजक, लेवीय, नतीन और सुलैमान के दासोंके सन्तान ) 4 यरूशलेम में तो कुछ यहूदी और बिन्यामीनी रहते थे। यहूदियोंमें से तो थेरेस के वंश का अतायाह जो अज्जिय्याह का पुत्र या, यह जकर्याह का पुत्र, यह अमर्याह का पुत्र, यह शपत्याह का पुत्र, यह महललेल का पुत्र या। 5 और मासेयाह जो बारूक का पुत्र या, यह कोलहोजे का पुत्र, यह हजायाह का पुत्र, यह अदायाह का पुत्र, यह योयारीब का पुत्र, यह जकर्याह का पुत्र, यह और यह शीलोई का पुत्र या। 6 पेरेस के वंश के जो यरूशलेम में रहते थे, वह सब मिलाकर चार सौ अड़सठ शूरवीर थे। 7 और बिन्यामीनियोंमें से सल्लू जो मशुल्लाम का पुत्र या, यह योएद का पुत्र, यह पदायाह का पुत्र या, यह कोलायाह का पुत्र यह मासेयाह का पुत्र, यह इतीएह का पुत्र, यह यशायाह का पुत्र या। 8 और उसके बाद गब्यै सल्लै जिनके साय नौ सौ अट्ठाईस पुरुष थे। 9 इनका रखवाल जिक्री का पुत्र योएल या, और हस्सनूआ का पुत्र यहूदा नगर के प्रधान का नायब या। 10 फिर याजकोंमें से योयारीब का पुत्र यदायाह और याकीन। 11 और सरायाह जो परमेश्वर के भवन का प्रधान और हिल्किय्याह का पुत्र या, यह मशुल्लाम का पुत्र, यह सादोक का पुत्र, यह मरायोत का पुत्र, यह अहीतूब का पुत्र या। 12 और इनके आठ सौ बाईस भाई जो उस भवन का काम करते थे; और अदायाह, जो यरोहाम का पुत्र या, यह पलल्याह का वुत्र, यह अम्सी का पुत्र, यह जकर्याह का पुत्र, यह पशहूर का पुत्र, यह मल्किय्याह का पुत्र या। 13 और इसके दो सौ बयालीस भाई जो पितरोंके घरानोंके प्रधान थे; और अमशै जो अजरेल का पुत्र या, यह अहजै का पुत्र, यह मशिल्लेमोत का पुत्र, यह इम्मेर का पुत्र या। 14 और इनके एक सौ अट्ठाईस शूरवीर भाई थे और इनका रखवाल हग्गदोलीम का पुत्र जब्दीएल या। 15 फिर लेवियोंमें से शमायाह जो हश्शूब का पुत्र या, यह अज्रीकाम का पुत्र, यह हुशब्याह का पुत्र, यह बुन्नी का पुत्र या। 16 ओर शब्बत और योजाबाद मुख्य लेवियोंमें से परमेश्वर के भवन के बाहरी काम पर ठहरे थे। 17 और मत्तन्याह जो मीका का पुत्र और जब्दी का पोता, और आसाप का परपोता या; वह प्रार्यना में धन्यवाद करनेवालोंका मुखिया या, और बकबुक्याह अपके भाइयोंमें दूसरा पद रखता या; और अब्दा जो शम्मू का पुत्र, और गालाल का पोता, और यदूतून का परपोता या। 18 जो लेवीय पवित्र नगर में रहते थे, वह सब मिलाकर दो सौ चौरासी थे। 19 और अक्कूब और तल्मोन नाम द्वारपाल और उनके भाई जो फाटकोंके रखवाले थे, एक सौ बहत्तर थे। 20 और शेष इस्राएली याजक और लेवीय, यहूदा के सब नगरोंमें अपके अपके भाग पर रहते थे। 21 और नतीन लोग ओपेल में रहते; और नतिनोंके ऊपर सीहा, और गिश्पा ठहराए गए थे। 22 और जो लेवीय यरूशलेम में रहकर परमेश्वर के भवन के काम में लगे रहते थे, उनका मुखिया आसाप के वंश के गवैयोंमें का उज्जी या, जो बानी का पुत्र या, यह हशब्याह का पुत्र, यह मत्तन्याह का पुत्र और यह हशब्याह का पुत्र या। 23 क्योंकि उनके विषय राजा की आज्ञा यी, और गवैयोंके प्रतिदिन के प्रयोजन के अनुसार ठीक प्रबन्ध या। 24 और प्रजा के सब काम के लिथे मशेजबेल का पुत्र पतह्याह जो यहूदा के पुत्र जेरह के वंश में या, वह राजा के पास रहता या। 25 बच गए गांव और उनके खेत, सो कुछ यहूदी किर्यतर्बा, और उनके गांव में, कुछ दीबोन, और उसके गांवोंमें, कुछ यकब्सेल और उसके गांवोंमें रहते थे। 26 फिर थेशू, मोलादा, बेत्पेलेत; 27 हमर्शूआल, और बेर्शेबा और और उसके गांवोंमें; 28 और सिकलग और मकोना और उनके गांवोंमें; 29 एन्निम्मोन, सोरा, यर्मूत, 30 जानोह और अदूल्लाम और उनके गांवोंमें, लाकीश, और उसके खेतोंमें अजेका, और उसके गांवोंमें वे बेर्शेबा से ले हिन्नोम की तराई तक डेरे डाले हुए रहते थे। 31 और बिन्यामीनी गेबा से लेकर मिकमश, अय्या और बेतेल और उसके गांवोंमें; 32 अनातोत, नोब, अनन्याह, 33 हासोर, रामा, गित्तैम, 34 हादीद, सबोईम, नबल्लत, 35 लोद, ओनो और कारीगरोंकी तराई तक रहते थे। 36 और कितने लेवियोंके दल यहूदा और बिन्यामीन के प्रान्तोंमें बस गए।
1 जो याजक और लेवीय शालतीएल के पुत्र जरुब्बाबेल और थेशू के संग यरूशलेम को गए थे, वे थे थे : अर्यात् सरायाह, यिर्मयाह, एज्रा, 2 अमर्याह, मल्लूक, हत्तूश, 3 शकन्याह, रहूम, मरेमोत, 4 इद्दो, गिन्नतोई, अबिय्याह, 5 मीय्यामीन, माद्याह, बिलगा, 6 शमायाह, योआरीब, यदायाह, 7 सल्लू, आमोक, हिल्किय्याह और यदायाह। थेशू के दिनोंमें याजकोंऔर उनके भाइयोंके मुख्य मुख्य पुरुष, थे ही थे। 8 फिर थे लेवीय गए : अर्यात् थेशू, बिन्नूई, कदमीएल, शेरेब्याह, यहूदा और वह मत्तन्याह जो अपके भाइयोंसमेत धन्यवाद के काम पर ठहराया गया या। 9 और उनके भाई बकबुक्याह और उन्नो उनके साम्हने अपक्की अपक्की सेवकाई में लगे रहते थे। 10 और थेशू से योयाकीम उत्पन्न हुआ और योयाकीम से एल्याशीब और एल्याशीब से योयादा, 11 और योयादा से योनातान और योनातान से यद्द उत्पन्न हुआ। 12 और योयाकीम के दिनोंमें थे याजक अपके अपके पितरोंके घराने के मुख्य पुरुष थे, अर्यात् शरायाह का तो मरायाह; यिर्मयाह का हनन्याह। 13 एज्रा का मशुल्लाम; अमर्याह का यहोहानान। 14 मल्लूकी का योनातान; शबन्याह का योसेप। 15 हारीम का अदना; मरायोत का हेलकै। 16 इद्दो का जकर्याह; गिन्नतोन का मशुल्लाम। 17 अबिय्याह का जिक्री; मिन्यामीन के मोअद्याह का पिलतै। 18 बिलगा का शम्मू; शामायह का यहोनातान। 19 योयारीब का मत्तनै; यदायाह का उज्जी। 20 सल्लै का कल्लै; आमोक का एबेर। 21 हिल्किय्याह का हशब्याह; और यदायाह का नतनेल। 22 एल्याशीब, योयादा, योहानान और यद्द के दिनोंमें लेवीय पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुषोंके नाम लिखे जाते थे, और दारा फारसी के राज्य में याजकोंके भी नाम लिखे जाते थे। 23 जो लेवीय पितरोंके घरानोंके मुख्य पुरुष थे, उनके नाम एल्याशीब के पुत्र योहानान के दिनोंतक इतिहास की पुस्तक में लिखे जाते थे। 24 और लेवियोंके मुख्य पुरुष थे थे : अर्यात् हसब्याह, शेरेब्याह और कदमीएल का पुत्र थेशू; और उनके साम्हने उनके भाई परमेश्वर के भक्त दाऊद की आज्ञा के अनुसार आम्हने-साम्हने स्तुति और धन्यवाद करने पर नियुक्त थे। 25 मत्तन्याह, बकबुक्याह, ओबद्याह, मशुल्लाम, तल्मोन और अक्कूब फाटकोंके पास के भणडारोंका पहरा देनेवाले द्वारपाल थे। 26 योयाकीम के दिनोंमें जो योसादाक का पोता और थेशू का पुत्र या, और नहेमायाह अधिपति और एज्रा याजक और शास्त्री के दिनोंमें थे ही थे। 27 और यरूशलेम की शहरपनाह की प्रतिष्ठा के समय लेवीय अपके सब स्यानोंमें ढूंढ़े गए, कि यरूशलेम को पहुंचाए जाएं, जिस से आनन्द और धन्यवाद करके और फांफ, सारंगी और वीणा बजाकर, और गाकर उसकी प्रतिष्ठा करें। 28 तो गवैयोंके सन्तान यरूशलेम के चारोंओर के देश से और नतोपातियोंके गांवोंसे, 29 और बेतगिलगाल से, और गेबा और अज्माबेत के खेतोंसे इकट्ठे हुए; क्योंकि गवैयोंने यरूशलेम के आस-पास गांव बसा लिथे थे। 30 तब याहकोंऔर लेवियोंने अपके अपके को शुद्ध किया; और उन्होंने प्रजा को, और फाटकोंऔर शहरपनाह को भी शुद्ध किया। 31 तब मैं ने यहूदी हाकिमोंको शहरपनाह पर चढ़ाकर दो बड़े दल ठहराए, जो धन्यवाद करते हुए धूमधाम के साय चलते थे। इनमें से एक दल तो दक्खिन ओर, अर्यात् कूड़ाफाटक की ओर शहरपनाह के ऊपर ऊपर से चला; 32 और उसके पीछे पीछे थे चले, अर्यात् होशयाह और यहूदा के आधे हाकिम, 33 और अजर्याह, एज्रा, मशुल्लाम, 34 यहूदा, बिन्यामीन, शमायाह, और यिर्मयाह, 35 और याजकोंके कितने पुत्र तुरहियां लिथे हुए : अर्यात् जकर्याह जो योहानान का पुत्र या, यह शमायाह का पुत्र, यह मत्तन्याह का पुत्र, यह मीकायाह का पुत्र, यह जक्कूर का पुत्र, यह आसाप का पुत्र या। 36 और उसके भाई शमायाह, अजरेल, मिललै, गिललै, माऐ, नतनेल, यहूदा और हनानी परमेश्वर के भक्त दाऊद के बाजे लिथे हुए थे; और उनके आगे आगे एज्रा शास्त्री चला। 37 थे सेताफाटक से हो सीधे दाऊदपुर की सीढ़ी पर चढ़, शहरपनाह की ऊंचाई पर से चलकर, दाऊद के भवन के ऊपर से होकर, पूरब की ओर जलफाटक तक पहुंचे। 38 और धन्यवाद करने और धूमधाम से चलनेवालोंका दूसरा दल, और उनके पीछे पीछे मैं, और आधे लोग उन से मिलने को शहरपनाह के ऊपर ऊपर से भट्ठोंके गुम्मट के पास से चौड़ी शहरपनाह तक। 39 और एप्रैम के फाटक और पुराने फाटक, और मछलीफाटक, और हननेल के गुम्मट, और हम्मेआ नाम गुम्मट के पास से होकर भेड़ फाटक तक चले, और पहरुओं के फाटक के पास खड़े हो गए। 40 तब धन्यवाद करने वालोंके दोनोंदल और मैं और मेरे साय आधे हाकिम परमेश्वर के भवन में खड़े हो गए। 41 और एल्याकीम, मासेयाह, मिन्यामीन, मीकायाह, एल्योएनै, जकर्याह और हनन्याह नाम याजक तुरहियां लिथे हुए थे। 42 और मासेयाह, शमायाह, एलीआजर, उज्जी, यहोहानान, मल्किय्याह, एलाम, ओर एजेर (खड़े हुए थे) और गवैथे जिनका मुखिया यिज्रह्याह या, वह ऊंचे स्वर से गाते बजाते रहे। 43 उसी दिन लोगोंने बड़े बड़े मेलबलि चढ़ाए, और आनन्द लिया; क्योंकि परमेश्वर ने उनको बहुत ही आनन्दित किया या; स्त्रियोंने और बालबच्चोंने भी आनन्द किया। और यरूशलेम के आनन्द की ध्वनि दूर दूर तक फैल गई। 44 उसी दिन खज़ानों के, उठाई हुई भेंटोंके, पहिली पहिली उपज के, और दशमांशोंकी कोठरियोंके अधिक्कारनेी ठहराए गए, कि उन में नगर नगर के खेतोंके अनुसार उन वस्तुओं को जमा करें, जो व्यवस्या के अनुसार याजकोंऔर लेवियोंके भाग में की यी; क्योंकि यहूदी उपस्य्ित याजकोंऔर लेवियोंके कारण आनन्दित थे। 45 इसलिथे वे अपके परमेश्वर के काम और शुद्धता के विषय चौकसी करते रहे; और गवैथे ओर द्वारपाल भी दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान की आज्ञा के अनुसार वैसा ही करते रहे। 46 प्राचीनकाल, अर्यात् दाऊद और आसाप के दिनोंमें तो गवैयोंके प्रधान थे, और परमेश्वर की स्तुति और धन्यवाद के गीत गाए जाते थे। 47 और जरुब्बाबेल और नहेमायाह के दिनोंमें सारे इस्राएली, गवैयोंऔर द्वारपालोंके प्रतिदिन का भाग देते रहे; और वे लेवियोंके अंश पवित्र करके देते थे; और लेवीय हारून की सन्तान के अंश पवित्र करके देते थे।
1 उसी दिन मूसा की पुस्तक लोगोंको पढ़कर सुनाई गई; और उस में यह लिखा हुआ मिला, कि कोई अम्मोनी वा मोआबी परमेश्वर की सभा में कभी न आने पाए; 2 क्योंकि उन्होंने अन्न जल लेकर इस्राएलियोंसे भेंट नहीं की, वरन बिलाम को उन्हें शाप देने के लिथे दझिणा देकर बुलवाया या--तौभी हमारे परमेश्वर ने उस शाप को आशीष से बदल दिया। 3 यह व्यवस्या सुनकर, उन्होंने इस्राएल में से मिली जुली भीड़ को अलग अलग कर दिया। 4 इस से पहिले एल्याशीब याजक जो हमारे परमेश्वर के भवन की कोठरियोंका अधिक्कारनेी और तोबिय्याह का सम्बन्धी या। 5 उस ने तोबिय्याह के लिथे एक बड़ी कोठरी तैयार की यी जिस में पहिले अन्नबलि का सामान और लोबान और पात्र और अनाज, नथे दाखमधु और टटके तेल के दशमांश, जिन्हें लेवियों, गवैयोंऔर द्वारपालोंको देने की आज्ञा यी, रखी हुई यी; और याजकोंके लिथे उठाई हुई भेंट भी रखी जाती यीं। 6 परन्तु मैं इस समय यरूशलेम में नहीं या, क्योंकि बाबेल के राजा अर्तझत्र के बत्तीसवें वर्ष में मैं राजा के पास चला गया। फिर कितने दिनोंके बाद राजा से छुट्टी मांगी, 7 और मैं यरूशलेम को आया, तब मैं ने जान लिया, कि एल्याशीब ने तोबिय्याह के लिथे परमेश्वर के भवन के आंगनोंमें एक कोठरी तैयार कर, क्या ही बुराई की है। 8 इसे मैं ने बहुत बुरा माना, और तोबिय्याह का सारा घरेलू सामान उस कोठरी में से फेंक दिया। 9 तब मेरी आज्ञा से वे कोठरियां शुद्ध की गई, और मैं ने परमेश्वर के भवन के पात्र और अन्नबलि का सामान और लोबान उन में फिर से रखवा दिया। 10 फिर मुझे मालूम हुआ कि लेवियोंका भाग उन्हें नहीं दिया गया है; और इस कारण काम करनेवाले लेवीय और गवैथे अपके अपके खेत को भाग गए हैं। 11 तब मैं ने हाकिमोंको डांटकर कहा, परमेश्वर का भवन क्योंत्यागा गया है? फिर मैं ने उनको इकट्ठा करके, एक एक को उसके स्यान पर नियुक्त किया। 12 तब से सब यहूदी अनाज, नथे दाखमधु और टटके तेल के दशमांश भणडारोंमें लाने लगे। 13 और मैं ने भणडारोंके अधिक्कारनेी शेलेम्याह याजक और सादोक मुंशी को, और लेवियोंमें से पदायाह को, और उनके नीचे हानान को, जो मत्तन्याह का पोता और जक्कूर का पुत्र या, नियुक्त किया; वे तो विश्वासयोग्य गिने जाते थे, और अपके भाइयोंके मय बांटना उनका काम या। 14 हे मेरे परमेश्वर ! मेरा यह काम मेरे हित के लिथे स्मरण रख, और जो जो सुकर्म मैं ने अपके परमेश्वर के भवन और उस में की आराधना के विषय किए हैं उन्हे मिटा न डाल। 15 उन्हीं दिनोंमें मैं ने यहूदा में कितनोंको देखा जो विश्रमदिन को हैदोंमें दाख रौंदते, और पूलियोंको ले आते, और गदहोंपर लादते थे; वैसे ही वे दाखमधु, दाख, अंजीर और भांति भांति के बोफ विश्रमदिन को यरूशलेम में लाते थे; तब जिस दिन वे भोजनवस्तु बेचते थे, उसी दिन मैं ने उनको चिता दिया। 16 फिर उस में सोरी लोग रहकर मछली और भांति भांति का सौदा ले आकर, यहूदियोंके हाथ यरूशलेम में विश्रमदिन को बेचा करते थे। 17 तब मैं ने यहूदा के रईसोंको डांटकर कहा, तुम लोग यह क्या बुराई करते हो, जो विश्रमदिन को अपवित्र करते हो? 18 क्या तुम्हारे पुरखा ऐसा नहीं करते थे? और क्या हमारे परमेश्वर ने यह सब विपत्ति हम पर और इस नगर पर न डाली? तौभी तुम विश्रमदिन को अपवित्र करने से इस्राएल पर परमेश्वर का क्रोध और भी भड़काते जाते हो। 19 सो जब विश्रमवार के पहिले दिन को यरूशलेम के फाटकोंके आस-पास अन्ध्ेरा होने लगा, तब मैं ने आज्ञा दी, कि उनके पल्ले बन्द किए जाएं, और यह भी आज्ञा दी, कि वे विश्रमवार के पूरे होने तक खोले न जाएं। तब मैं ने अपके कितने सेवकोंको फाटकोंका अधिक्कारनेी ठहरा दिया, कि विश्रमवार को कोई बोफ भीतर आने न पाए। 20 इसलिथे व्योपारी और भांति भांति के सौदे के बेचनेवाले यरूशलेम के बाहर दो एक बेर टिके। 21 तब मैं ने उनको चिताकर कहा, तुम लोग शहरपनाह के साम्हने क्योंटिकते हो? यदि तुम फिर ऐसा करोगे तो मैं तुम पर हाथ बढ़ाऊंगा। इसलिथे उस समय से वे फिर विश्रमबार को नहीं आए। 22 तब मैं ने लेवियोंको आज्ञा दी, कि अपके अपके को शुद्ध करके फाटकोंकी रखवाली करने के लिथे आया करो, ताकि विश्रमदिन पवित्र माना जाए। हे मेरे परमेश्वर ! मेरे हित के लिथे यह भी स्मरण रख और अपक्की बड़ी करुणा के अनुसार मुझ पर तरस खा। 23 फिर उन्हीं दिनोंमें मुझ को ऐसे यहूदी दिखाई पके, जिन्होंने अशदोदी, अम्मोनी और मोआबी स्त्रियां ब्याह ली यीं। 24 और उनके लड़केबालोंकी आधी बोली अशदोदी थी, और वे यहूदी बोली न बोल सकते थे, दोनोंजाति की बोली बोलते थे। 25 तब मैं ने उनको डांटा और कोसा, और उन में से कितनोंको पिटवा दिया और उनके बाल नुचवाए; और उनको परमेश्वर की यह शपय खिलाई, कि हम अपक्की बेटियां उनके बेटोंके साय ब्याह में न देंगे और न अपके लिथे वा अपके बेटोंके लिथे उनकी बेटियां ब्याह में लेंगे। 26 क्या इस्राएल का राजा सुलैमान इसी प्रकार के पाप में न फंसा य? बहुतेरी जातियोंमें उसके तुल्य कोई राजा नहीं हुआ, और वह अपके परमेश्वर का प्रिय भी या, और परमेश्वर ने उसे सारे इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त किया; परन्तु उसको भी अन्यजाति स्त्रियोंने पाप में फंसाया। 27 तो क्या हम तुम्हारी सुनकर, ऐसी बड़ी बुराई करें कि अन्यजाति की स्त्रियां ब्याह कर अपके परमेश्वर के विरुद्ध पाप करें? 28 और एल्याशीब महाथाजक के पुत्र योयादा का एक पुत्र, होरोनी सम्बल्लत का दामाद या, इसलिथे मैं ने उसको अपके पास से भगा दिया। 29 हे मेरे परमेश्वर उनकी हानि के लिथे याजकपद और याजकोंओर लेवियोंकी वाचा का तोड़ा जाना स्मरण रख। 30 इस प्रकार मैं ने उनको सब अन्यजातियोंसे शुद्ध किया, और एक एक याजक और लेवीय की बारी और काम ठहरा दिया। 31 फिर मैं ने लकड़ी की भेंट ले आने के विशेष समय ठहरा दिए, और पहिली पहिली उपज के देने का प्रबन्ध भी किया। हे मेरे परमेश्वर ! मेरे हित के लिथे मुझे स्मरण कर।
1 झयर्ष नाम राजा के दिनोंमें थे बातें हुई :यह वही झयर्ष है, जो एक सौ सताईस प्रान्तोंपर, अर्यात् हिन्दुस्तान से लेकर कूश देश तक राज्य करता या। 2 उन्हीं दिनोंमें जब झयर्ष राजा अपक्की उस राजगद्दी पर विराजमान या जो शूशन नाम राजगढ़ में यी। 3 वहां उस ने अपके राज्य के तीसरे वर्ष में अपके सब हाकिमोंऔर कर्मचारियोंकी जेवनार की। फ़ारस और मादै के सेनापति और प्रान्त- प्रान्त के प्रधान और हाकिम उसके सम्मुख आ गए। 4 और वह उन्हें बहुत दिन वरन एक सौ अस्सी दिन तक अपके राजविभव का धन और अपके माहात्म्य के अनमोल पदार्य दिखाता रहा। 5 इतने दिनोंके बीतने पर राजा ने क्या छोटे क्य बड़े उन सभोंकी भी जो शूशन नाम राजगढ़ में इकट्ठे हुए थे, राजभवन की बारी के आंगन में सात दिन तक जेवनार की। 6 वहां के पर्दे श्वेत और नीले सूत के थे, और सन और बैंजनी रंग की डोरियोंसे चान्दी के छल्लोंमें, संगमर्मर के खम्भोंसे लगे हुए थे; और वहां की चौकियां सोने-चान्दी की यीं; और लाल और श्वेत और पीले और काले संगमर्मर के बने हुए फ़र्श पर धरी हुई यीं। 7 उस जेवनार में राजा के योग्य दाखमधु भिन्न भिन्न रूप के सोने के पात्रें में डालकर राजा की उदारता से बहुतायत के साय पिलाया जाता या। 8 पीना तो नियम के अनुसार होता या, किसी को बरबस नहीं पिलाया जाता या; क्योंकि राजा ने तो अपके भवन के सब भणडारियोंको आज्ञा दी यी, कि जो पाहुन जैसा चाहे उसके साय वैसा ही बर्ताव करना। 9 रानी बशती ने भी राजा झयर्ष के भवन में स्त्र्ियोंकी जेवनार की। 10 सातवें दिन, जब राजा का मन दाखमधु में मग्न या, तब उस ने महूमान, बिजता, हबॉना, बिगता, अबगता, जेतेर और कर्कस नाम सातोंखेजोंको जो झयर्ष राजा के सम्मुख सेवा टहल किया करते थे, आाज्ञा दी, 11 कि रानी वशती को राजमुकुट धारण किए हुए राजा के सम्मुख ले आओ; जिस से कि देश देश के लोगोंऔर हाकिमोंपर उसकी सुन्दरता प्रगट हो जाए; क्योंकि वह देखने में सुन्दर यी। 12 खोजोंके द्वारा राजा की यह आज्ञा पाकर रानी वशती ने आने से इनकार किया। इस पर राजा बड़े क्रोध से जलने लगा। 13 तब राजा ने समय समय का भेद जाननेवाले पणिडतोंसे पुछा (राजा तो नीति और न्याय के सब ज्ञानियोंसे ऐसा ही किया करता या। 14 और उसके पास कर्शना, शेतार, अदमाता, तशींश, मेरेस, मर्सना, और ममूकान नाम फ़ारस, और मादै के सातोंखेजे थे, जो राजा का दर्शन करते, और राज्य में मुख्य मुख्य पदोंपर नियुक्त किए गए थे। ) 15 राजा ने पूछा कि रानी वशती ने राजा झयर्ष की खोजोंद्वारा दिलाई हुई आज्ञा का उलंघन किया, तो नीति के अनुसार उसके साय क्या किया जाए? 16 तब ममूकान ने राजा और हाकिमोंकी उपस्यिति में उत्तर दिया, रानी वशती ने जो अनुचित काम किया है, वह न केवल राजा से परन्तु सब हाकिमोंसे और उन सब देशोंके लोगोंसे भी जो राजा झयर्ष के सब प्रान्तोंमें रहते हैं। 17 क्योंकि रानी के इस काम की चर्चा सब स्त्रियोंमें होगी और जब यह कहा जाएगा, कि राजा झयर्ष ने रानी वशती को अपके साम्हने ले आने की आज्ञा दी परन्तु वह न आई, तब वे भी अपके अपके पति को तुच्छ जानने लगेंगी। 18 और आज के दिन फ़ारसी और मादी हाकिमोंकी स्त्रियां जिन्होंने रानी की यह बात सुनी है तो वे भी राजा के सब हाकिमोंसे ऐसा ही कहने लगेंगी; इस प्रकार बहुत ही घृणा और क्रोध उत्पन्न होगा। 19 यदि राजा को स्वीकार हो, तो यह आज्ञा निकाले, और फासिर्योंऔर मादियोंके कानून में लिखी भी जाए, जिस से कभी बदल न सके, कि रानी वशती राजा झयर्ष के सम्मुख फिर कभी आने न पाए, और राजा पटरानी का पद किसी दूसरी को दे दे जो उस से अच्छी हो। 20 और जब राजा की यह आज्ञा उसके सारे राज्य में सुनाई जाएगी, तब सब पत्नियां छोटे, बड़े, अपके अपके पति का आदरमान करती रहेंगी। 21 यह बात राजा और हाकिमोंको पसन्द आई और राजा ने ममूकान की सम्मति मान ली और अपके राज्य में, 22 अर्यत् प्रत्थेक प्रान्त के अझरोंमें और प्रत्थेक जाति की भाषा में चिट्ठियां भेजीं, कि सब पुरुष अपके अपके घर में अधिक्कारने चलाएं, और अपक्की जाति की भाषा बोला करें।
1 इन बातोंके बाद जब राजा झयर्ष की जलजलाहट ठंडी हो गई, तब उस ने रानी वशती की, और जो काम उस ने किया या, और जो उसके विषय में आज्ञा निकली यी उसकी भी सुधि ली। 2 तब राजा के सेवक जो उसके टहलुए थे, कहने लगे, राजा के लिथे सुन्दर तया युवती कुंवारियां ढूंढी जाएं। 3 और राजा ने अपके राज्य के सब प्रान्तोंमें लोगोंको इसलिथे नियुक्त किया कि वे सब सुन्दर युवती कुंवारियोंको शूशन गढ़ के रनवास में इकट्ठा करें और स्त्रियोंके रखवाले हेगे को जो राजा का खोजा या सौप दें; और शुद्ध करने के योग्य वस्तुएं उन्हें दी जाएं। 4 तब उन में से जो कुंवारी राजा की दृष्टि में उत्तम ठहरे, वह रानी वशती के स्यान पर पटरानी बनाई जाए। यह बात राजा को पसन्द आई और उस ने ऐसा ही किया। 5 शूशन गढ़ में मोर्दकै नाम एक यहूदी रहता या, जो कीश नाम के एक बिन्यामीनी का परपोता, शिमी का पोता, और याईर का पुत्र या। 6 वह उन बन्धुओं के साय यरूशलेम से बन्धुआई में गया या, जिन्हें बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर, यहूदा के राजा यकोन्याह के संग बन्धुआ करके ले गया या। 7 उस ने हदस्सा नाम अपक्की चचेरी बहिन को, जो एस्तेर भी कहलाती यी, पाला-पोसा या; क्योंकि उसके माता-मिता कोई न थे, और वह लड़की सुन्दर और रूपवती यी, और जब उसके माता-पिता मर गए, तब मोर्दकै ने उसको अपक्की बेटी करके पाला। 8 जब राजा की आज्ञा और नियम सुनाए गए, और बहुत सी युवती स्त्रियां, शूशन गढ़ में हेगे के अधिक्कारने में इकट्ठी की गई, तब एस्तेर भी राजभवन में स्त्रियोंके रखवाले हेगे के अधिक्कारने में सौंपी गई। 9 और वह युवती स्त्री उसकी दृष्टि में अच्छी लगी; और वह उस से प्रसन्न हुआ, तब उस ने बिना विलम्ब उसे राजभवन में से शुद्ध करने की वस्तुएं, और उसका भोजन, और उसके लिथे चुनी हुई सात सहेलियां भी दीं, और उसको और उसकी सहेलियोंको रनवास में सब से अच्छा रहने का स्यान दिया। 10 एस्तेर ने न अपक्की जाति बताई यी, न अपना कुल; क्योंकि मोर्दकै ने उसको आज्ञा दी यी, कि उसे न बताना। 11 मोर्दकै तो प्रतिदिन रनवास के आंगन के साम्हने टहलता या ताकि जाने की एस्तेर कैसी है और उसके साय क्या होगा? 12 जब एक एक कन्या की बारी हुई, कि वह झयर्ष राजा के पास जाए, ( और यह उस समय हुउा जब उसके साय स्त्रियोंके लिथे ठहराए हुए नियम के अनुसार बारह माह तक व्यवहार किया गया या; अर्यात् उनके शुद्ध करने के दिन इस रीति से बीत गए, कि छ: माह तक गन्धरस का तेल लगाया जाता या, और छ: माह तक सुगन्धदव्य, और स्त्रियोंके शुद्ध करने का और और सामान लगाया जाता या ) । 13 इस प्रकार से वह कन्या जब राजा के पास जाती यी, तब जो कुछ वह चाहती कि रनवास से राजभवन में ले जाए, वह उसको दिया जाता या। 14 सांफ को तो वह जाती यी और बिहान को वह लौटकर रनवास के दूसरे घर में जाकर रखेलियोंके रखवाले राजा के खोजे शाशगज के अधिक्कारने में हो जाती यी, और राजा के पास फिर नहीं जाती यी। और यदि राजा उस से प्रसन्न हो जाता या, तब वह नाम लेकर बुलाई जाती यी। 15 जब मोर्दकै के चाचा अबीहैल की बेटी एस्तेर, जिसको मोर्दकै ने बेटी मानकर रखा या, उसकी बारी आई कि राजा के पास जाए, तब जो कुछ स्त्रियोंके रखवाले राजा के खोजे हेगे ने उसके लिथे ठहराया या, उस से अधिक उस ने और कुछ न मांगा। और जितनोंने एस्तेर को देखा, वे सब उस से प्रसन्न हुए। 16 योंएस्तेर राजभवन में राजा झयर्ष के पास उसके राज्य के सातवें वर्ष के तेबेत नाम दसवें महीने में पहुंचाई गई। 17 और राजा ने एस्तेर को और सब स्त्रियोंसे अधिक प्यार किया, और और सब कुंवारियोंसे अधिक उसके अनुग्रह और कृपा की दृष्टि उसी पर हुई, इस कारण उस ने उसके सिर पर राजमुकुट रखा और उसको वशती के स्यान पर रानी बनाया। 18 तब राजा ने अपके सब हाकिमोंऔर कर्मचारियोंकी बड़ी जेवनार करके, उसे एस्तेर की जेवनार कहा; और प्रान्तोंमें छुट्टी दिलाई, और अपक्की उदारता के योग्य इनाम भी बांटे। 19 जब कुंवारियां दूसरी बार इकट्ठी की गई, तब मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा या। 20 और एस्तेर ने अपक्की जाति और कुल का पता नहीं दिया या, क्योंकि मोर्दकै ने उसको ऐसी आज्ञा दी यी कि न बताए; और एस्तेर मोर्दकै की बात ऐसी मानती यी जैसे कि उसके यहां अपके पालन पोषण के समय मानती यी। 21 उन्हीं दिनोंमें जब मोर्दकै राजा के राजभवन के फाटक में बैठा करता या, तब राजा के खोजे जो द्वारपाल भी थे, उन में से बिकतान और तेरेश नाम दो जनोंने राजा झयर्ष से रूठकर उस पर हाथ चलाने की युक्ति की। 22 यह बात मोर्दकै को मालूम हुई, और उस ने एस्तेर रानी को यह बात बताई, और एस्तेर ने मोर्दकै का नाम लेकर राजा को चितौनी दी। 23 तब जांच पड़ताल होने पर यह बात सच निकली और वे दोनोंवृझ पर लटका दिए गए, और यह वृत्तान्त राजा के साम्हने इतिहास की पुस्तक में लिख लिया गया।
1 इन बातोंके बाद राजा झयर्ष ने अगामी हम्मदाता के पुत्र हामान को उन्च पद दिया, और उसको महत्व देकर उसके लिथे उसके सायी हाकिमोंके सिंहासनोंसे ऊंचा सिंहासन ठहराया। 2 और राजा के सब कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, वे हामान के साम्हने फुककर दणडवत किया करते थे क्योंकि राजा ने उसके विषय ऐसी ही आज्ञा दी यी; परन्तु मोर्दकै न तो फुकता या और न उसको दणडवत करता या। 3 तब राजा के कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, उन्होंने मोर्दकै से पूछा, 4 तू राजा की आज्ञा क्योंउलंघन करता है? जब वे उस से प्रतिदिन ऐसा ही कहते रहे, और उस ने उनकी एक न मानी, तब उन्होंने यह देखने की इच्छा से कि मोर्दकै की यह बात चलेगी कि नहीं, हामान को बता दिया; उस ने तो उनको बता दिया या कि मैं यहूदी हूँ। 5 जब हामान ने देखा, कि मोर्दकै नहीं फुकता, और न मुझ को दणडवत करता है, तब हामान बहुत ही क्रोधित हुआ। 6 उस ने केवल मोर्दकै पर हाथ चलाना अपक्की मर्यादा के नीचे जाना। क्योंकि उन्होंने हामान को यह बता दिया या, कि मोर्दकै किस जाति का है, इसलिथे हामान ने झयर्ष के साम्राज्य में रहनेवाले सारे यहूदियोंको भी मोर्दकै की जाति जानकर, विनाश कर डालने की युक्ति निकाली। 7 राजा झयर्ष के बारहवें वर्ष के नीसान नाम पहिले महीने में, हामान ने अदार नाम बारहवें महीने तक के एक एक दिन और एक एक महीने के लिथे “पूर” अर्यात् चिट्ठी अपके साम्हने डलवाई। 8 और हामान ने राजा झयर्ष से कहा, तेरे राज्य के सब प्रान्तोंमें रहनेवाले देश देश के लोगोंके मध्य में तितर बितर और छिटकी हुई एक जाति है, जिसके नियम और सब लोगोंके नियमोंसे भिन्न हैं; और वे राजा के कानून पर नहीं चलते, इसलिथे उन्हें रहने देना राजा को लाभदायक नहीं है। 9 यदि राजा को स्वीकार हो तो उन्हें नष्ट करने की आज्ञा लिखी जाए, और मैं राज के भणडारियोंके हाथ में राजभणडार में पहुंचाने के लिलथे, दस हजार किक्कार चान्दी दूंगा। 10 तब राजा ने अपक्की अंगूठी अपके हाथ से उतारकर अगागी हम्मदाता के पुत्र हामान को, जो यहूदियोंका वैरी या दे दी। 11 और राजा ने हामान से कहा, वह चान्दी तुझे दी गई है, और वे लोग भी, ताकि तू उन से जैसा तेरा जी चाहे वैसा ही व्यवहार करे। 12 योंउसी पहिले महीने के तेरहवें दिन को राजा के लेखक बुलाए गए, और हामान की आज्ञा के अनुसार राजा के सब अधिपतियों, और सब प्रान्तोंके प्रधानों, और देश देश के लोगोंके हाकिमोंके लिथे चिट्ठियां, एक एक प्रान्त के अझरोंमें, और एक एक देश के लोगोंकी भाषा में राजा झयर्ष के नाम से लिखी गई; और उन में राजा की अंगूठी की छाप लगाई गई। 13 और राज्य के सब प्रान्तोंमें इस आशय की चिट्ठियां हर डाकियोंके द्वारा भेजी गई कि एक ही दिन में, अर्यात् अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को, क्या जवान, क्या बूढ़ा, क्या स्त्री, क्या बालक, सब यहूदी विध्वंसघात और नाश किए जाएं; और उनकी धन सम्मत्ति लूट ली जाए। 14 उस आज्ञा के लेख की नकलें सब प्रान्तोंमें खुली हुई भेजी गई कि सब देशोंके लोग उस दिन के लिथे तैयार हो जाएं। 15 यह आज्ञा शूशन गढ़ में दी गई, और डाकिए राजा की आज्ञा से तुरन्त निकल गए। और राजा और हामान तो जेवनार में बैठ गए; परन्तु शूशन नगर में घबराहट फैल गई।
1 जब मोर्दकै ने जान लिया कि क्या क्या किया गया है तब मोर्दकै वस्त्र फाड़, टाट पहिन, राख डालकर, नगर के मध्य जाकर ऊंचे और दुखभरे शब्द से चिल्लाने लगा; 2 और वह राजभवन के फाटक के साम्हने पहुंचा, परन्तु टाट पहिने हुए राजभवन के फाटक के भीतर तो किसी के जाने की आज्ञा न यी। 3 और एक एक प्रान्त में, जहां जहां राजा की आज्ञा और नियम पहुंचा, वहां वहां यहूदी बड़ा विलाप करने और उपवास करने और रोने पीटने लगे; वरन बहुतेरे टाट पहिने और राख डाले हुए पके रहे। 4 और एस्तेर रानी की सहेलियोंऔर खोजोंने जाकर उसको बता दिया, तब रानी शोक से भर गई; और मोर्दकै के पास वस्त्र भेजकर यह कहलाया कि टाट उतारकर इन्हें पहिन ले, परन्तु उस ने उन्हें न लिया। 5 तब एस्तेर ने राजा के खोजोंमें से हताक को जिसे राजा ने उसके पास रहने को ठहराया या, बुलवाकर आज्ञा दी, कि मोर्दकै के पास जाकर मालूम कर ले, कि क्या बात है और इसका क्या कारण है। 6 तब हताक नगर के उस चौक में, जो राजभवन के फाटक के साम्हने या, मोर्दकै के पास निकल गया। 7 मोर्दकै ने उसको सब कुछ बता दिया कि मेरे ऊपर क्या क्या बीता है, और हामान ने यहूदियोंके नाश करने की अनुमति पाने के लिथे राजभणडार में कितनी चान्दी भर देने का वचन दिया है, यह भी ठीक ठीक बतला दिया। 8 फिर यहूदियोंको विनाश करने की जो आज्ञा शूशन में दी गई थी, उसकी एक नकल भी उस ने हताक के हाथ में, एस्तेर को दिखाने के लिथे दी, और उसे सब हाल बताने, और यह आज्ञा देने को कहा, कि भीतर राजा के पास जाकर अपके लोगोंके लिथे गिड़गिड़ाकर बिनती करे। 9 तब हताक ने एस्तेर के पास जाकर मोर्दकै की बातें कह सुनाई। 10 तब एस्तेर ने हताक को मोर्दकै से यह कहने की आज्ञा दी, 11 कि राजा के सब कर्मचारियों, वरन राजा के प्रान्तोंके सब लोगोंको भी मालूम है, कि क्या पुरुष क्या स्त्री कोई क्योंन हो, जो आज्ञा बिना पाए भीतरी आंगन में राजा के पास जाएगा उसके मार डालने ही की आज्ञा है; केवल जिसकी ओर राजा सोने का राजदणड बढ़ाए वही बचता है। परन्तु मैं अब तीस दिन से राजा के पास नहीं बुलाई गई हूँ। 12 एस्तेर की थे बातें मोर्दकै को सुनाई गई। 13 तब मोर्दकै ने एस्तेर के पास यह कहला भेजा, कि तू मन ही मन यह विचार न कर, कि मैं ही राजभवन में रहने के कारण और सब यहूदियोंमें से बची रहूंगी। 14 क्योंकि जो तू इस समय चुपचाप रहे, तो और किसी न किसी उपाय से यहूदियोंका छुटकारा और उद्धार हो जाएगा, परन्तु तू अपके पिता के घराने समेत नाश होगी। फिर क्या जाने तुझे ऐसे ही कठिन समय के लिथे राजपद मिल गया हो? 15 तब एस्तेर ने मोर्दकै के पास यह कहला भेजा, 16 कि तू जाकर शूशन के सब यहूदियोंको इकट्ठा कर, और तुम सब मिलकर मेरे निमित्त उपवास करो, तीन दिन रात न तो कुछ खाओ, और न कुछ पीओ। और मैं भी अपक्की सहेलियोंसहित उसी रीति उपवास करूंगी। और ऐसी ही दशा में मैं नियम के विरुद्ध राजा के पास भीतर जाऊंगी; और यदि नाश हो गई तो हो गई। 17 तब मोर्दकै चला गया और एस्तेर की आज्ञा के अनुसार ही उस ने किया।
1 तीसरे दिन एस्तेर अपके राजकीय वस्त्र पहिनकर राजभवन के भीतरी आंगन में जाकर, राजभवन के साम्हने खड़ी हो गई। राजा तो राजभवन में राजगद्दी पर भवन के द्वार के साम्हने विराजमान या; 2 और जब राजा ने एस्तेर रानी को आंगन में खड़ी हुई्र देखा, तब उस से प्रसन्न होकर सोने का राजदणड जो उसके हाथ में या उसकी ओर बढ़ाया। तब एस्तेर ने निकट जाकर राजदणड की लोक छुई। 3 तब राजा ने उस से पूछा, हे एसतेर रानी, तुझे क्या चाहिथे? और तू क्य मांगती है? मांग और तुझे आधा राज्य तक दिया जाएगा। 4 एस्तेर ने कहा, यदि राजा को स्वीकार हो, तो आज हामान को साय लेकर उस जेवनार में आए, जो मैं ने राजा के लिथे तैयार की है। 5 तब राजा ने आज्ञा दी कि हामान को तुरन्त ले आओ, कि एस्तेर का निमंत्रण ग्रहण किया जाए। सो राजा और हामान एस्तेर की तैयार की हुई जेवनार में आए। 6 जेवनार के समय जब दाखमधु पिया जाता या, तब राजा ने एस्तेर से कहा, तेरा क्या निवेदन है? वह पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? मांग, ओर आधा राज्य तक तुझे दिया जाएगा। 7 एस्तेर ने उत्तर दिया, मेरा निवेदन और जो मैं मांगती हूँ वह यह है, 8 कि यदि राजा मुझ पर प्रसन्न है और मेरा निवेदन सुनना और जो वरदान मैं मांगूं वही देना राजा को स्वीकार हो, तो राजा और हामान कल उस जेवनार में आएं जिसे मैं उनके लिथे करूंगी, और कल मैं राजा के इस वचन के अनुसार करूंगी। 9 उस दिन हामान आनन्दित ओर मन में प्रसन्न होकर बाहर गया। परन्तु जब उस ने मोर्दकै को राजभवन के फाटक में देखा, कि वह उसके साम्हने न तो खड़ा हुआ, और न हटा, तब वह मोर्दकै के विरुद्ध क्रोध से भर गया। 10 तौभी वह अपके को रोककर अपके घर गया; और अपके मित्रोंऔर अपक्की स्त्री जेरेश को बुलवा भेजा। 11 तब हामान ने, उन से अपके धन का विभव, और अपके लड़के-बालोंकी बढ़ती और राजा ने उसको कैसे कैसे बढ़ाया, और और सब हाकिमोंऔर अपके और सब कर्मचारियोंसे ऊंचा पद दिया या, इन सब का वर्णन किया। 12 हामान ने यह भी कहा, कि एस्तेर रानी ने भी मुझे छोड़ और किसी को राजा के संग, अपक्की की हुई जेवनार में आने न दिया; और कल के लिथे भी राजा के संग उस ने मुझी को नेवता दिया है। 13 तौभी जब जब मुझे वह यहूदी मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा हुआ दिखाई पड़ता है, तब तब यह सब मेरी दृष्टि में व्यर्य है। 14 उसकी पत्नी जेरेश और उसके सब मित्रोंने उस से कहा, पचास हाथ ऊंचा फांसी का एक खम्भा, बनाया जाए, और बिहान को राजा से कहना, कि उस पर मोर्दकै लटका दिया जाए; तब राजा के संग आनन्द से जेवनार में जाना। इस बात से प्रसन्न होकर हामान ने बैसा ही फांसी का एक खम्भा बनवाया।
1 उस रात राजा को नींद नहीं आई, इसलिथे उसकी आज्ञा से इतिहास की पुस्तक लाई गई, और पढ़कर राजा को सुनाई गई। 2 और यह लिखा हुआ मिला, कि जब राजा झयर्ष के हाकिम जो द्वारपाल भी थे, उन में से बिगताना और तेरेश नाम दो जनोंने उस पर हाथ चलाने की युक्ति की यी उसे मोर्दकै ने प्रगट किया या। 3 तब राजा ने पूछा, इसके बदले मोर्दकै की क्या प्रतिष्ठा और बड़ाई की गई? राजा के जो सेवक उसकी सेवा टहल कर रहे थे, उन्होंने उसको उत्तर दिया, उसके लिथे कुछ भी नहीं किया गया। 4 राजा ने पूछा, आंगन में कौन है? उसी समय तो हामान राजा के भवन से बाहरी आंगन में इस मनसा से आया या, कि जो खम्भा उस ने मोर्दकै के लिथे तैयार कराया या, उस पर उसको लटका देने की चर्चा राजा से करे। 5 तब राजा के सेवकोंने उस से कहा, आंगन में तो हामान खड़ा है। राजा ने कहा, उसे भीतर बुलवा लाओ। 6 जब हामान भीतर आया, तब राजा ने उस से पूछा, जिस मनुष्य की प्रतिष्ठा राजा करना चाहता हो तो उसके लिथे क्या करना उचित होगा? हामान ने यह सोचकर, कि मुझ से अधिक राजा किस की प्रतिष्ठा करना चाहता होगा? 7 राजा को उत्तर दिया, जिस मनुष्य की प्रतिष्ठा राजा करना चाहे, 8 तो उसके लिथे राजकीय वस्त्र लाया जाए, जो राजा पहिनता है, और एक घेड़ा भी, जिस पर राजा सवार होता है, ओर उसके सिर पर जो राजकीय मुकुट धरा जाता है वह भी लाया जाए। 9 फिर वह वस्त्र, और वह घेड़ा राजा के किसी बड़े हाकिम को सौंपा जाए, और जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता हो, उसको वह वस्त्र पहिनाया जाए, और उस घोड़े पर सवार करके, नगर के चौक में उसे फिराया जाए; और उसके आगे आगे यह प्रचार किया जाए, कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है, उसके साय ऐसा ही किया जाएगा। 10 राजा ने हामान से कहा, फुतीं करके अपके कहने के अनुसार उस वस्त्र और उस घोड़े को लेकर, उस यहूदी मोर्दकै से जो राजभवन के फाटक में बैठा करता है, वैसा ही कर। जैसा तू ने कहा है उस में कुछ भी कमी होने न पाए। 11 तब हामान ने उस वस्त्र, और उस घोड़े को लेकर, मोर्दकै को पहिनाया, और उसे घोड़े पर चढ़ाकर, नगर के चौक में इस प्रकार पुकारता हुआ घुमाया कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है उसके साय ऐसा ही किया जाएगा। 12 तब मोर्दकै तो राजभवन के फाटक में लौट गया परन्तु हामान शोक करता हुआ और सिर ढांपे हुए फट अपके घर को गया। 13 और हामान ने अपक्की पत्ती जेरेश और अपके सब मित्रोंसे सब कुछ जो उस पर बीता या वर्णन किया। 14 तब उसके बुद्धिमान मित्रोंऔर उसकेी पत्नी जेरेश ने उस से कहा, मोर्दकै जिसे तू नीचा दिखना चाहता है, यदि वह यहूदियोंके वंश में का है, तो तू उस पर प्रबल न होने पाएगा उस से पूरी रीति नीचा ही खएगा। वे उस से बातें कर ही रहे थे, कि राजा के खोजे आकर, हामान को एस्तेर की की हुई जेवनार में फुतीं से लिवा ले गए।
1 सो राजा और हामान एस्तेर रानी की जेवनार में आगए। 2 और राजा ने दूसरे दिन दाखमधु पीते-पीते एस्तेर से फिर पूछा, हे एस्तेर रानी ! तेरा क्या निवेदन है? वह पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? मांग, और आधा राज्य तक तुझे दिया जाएगा। 3 एस्तेर रानी ने उत्तर दिया, हे राजा ! यदि तू मुझ पर प्रसन्न है, और राजा को यह स्वीकार हो, तो मेरे निवेदन से मुझे, और मेरे मांगने से मेरे लोगोंको प्राणदान मिले। 4 क्योंकि मैं उाौर मेरी जाति के लोग बेच डाले गए हैं, और हम सब विध्वंसघात और नाश किए जानेवाले हैं। यदि हम केवल दास-दासी हो जाने के लिथे बेच डाले जाते, तो मैं चुप रहती; चाहे उस दशा में भी वह विरोधी राजा की हानि भर न सकता। 5 तब राजा झयर्ष ने एस्तेर रानी से पूछा, वह कौन है? और कहां है जिस ने ऐसा करने की मनसा की है? 6 एस्तेर ने उत्तर दिया है कि वह विरोधी और शत्रु यही दुष्ट हामान है। तब हामान राजा-रानी के साम्हते भयभीत हो गया। 7 राजा तो जलजलाहट में आ, मधु पीने से उठकर, राजभवन की बारी में निकल गया; और हामान यह देखकर कि राजा ने मेरी हानि ठानी होगी, एस्तेर रानी से प्राणदान मांगने को खड़ा हुआ। 8 जब राजा राजभवन की बारी से दाखमधु पीने के स्यान में लौट आया तब क्या देखा, कि हामान उसी चौकी पर जिस पर एस्तेर बैठी है पड़ा है; और राजा ने कहा, क्या यह घर ही में मेरे साम्हने ही रानी से बरबस करना चाहता है? राजा के मुंह से यह वचन निकला ही या, कि सेवकोंने हामान का मुंह ढांप दिया। 9 तब राजा के साम्हने उपस्य्ित रहनेवाले खोजोंमें से हवॉना नाम एक ने राजा से कहा, हामान को यहां पचास हाथ ऊंचा फांसी का एक खम्भा खड़ा है, जो उस ने मोर्दकै के लिथे बनवाया है, जिस ने राजा के हित की बात कही यी। राजा ने कहा, उसको उसी पर लटका दो। 10 तब हामान उसी खम्भे पर जो उस ने मोर्दकै के लिथे तैयार कराया या, लटका दिया गया। इस पर राजा की जलजलाहट ठंडी हो गई।
1 उसी दिन राजा झयर्ष ने यहूदियोंके विरोधी हामान का घरबार एस्तेर रानी को दे दिया। और मोर्दकै राजा के साम्हने आया, क्योंकि एस्तेर ने राजा को बताया या, कि उस से उसका क्या नाता या 2 तब राजा ने अपक्की वह अंगूठी जो उस ने हामान से ले ली यी, उतार कर, मोर्दकै को दे दी। और एसतेर ने मोर्दकै को हामान के घरबार पर अधिक्कारनेी नियुक्त कर दिया। 3 फिर एस्तेर दूसरी बार राजा से बोली; और उसके पांव पर गिर, आंसू बहा बहाकर उस से गिड़गिड़ाकर बिन्ती की, कि अगागी हामान की बुराई और यहूदियोंकी हानि की उसकी युक्ति निष्फल की जाए। 4 तब राजा ने एस्तेर की ओर सोने का राजदणड बढ़ाया। 5 तब एस्तेर उठकर राजा के साम्हने खड़ी हुई; और कहने लगी कि यदि राजा को स्वीकार हो और वह मुझ से प्रसन्न है और यह बात उसको ठीक जान पके, और मैं भी उसको अच्छी लगती हूँ, तो जो चिट्ठियां हम्मदाता अगागी के पुत्र हामान ने राजा के सब प्रान्तोंके यहूदियोंको नाश करने की युक्ति करके लिखाई यीं, उनको पलटने के लिथे लिखा जाए। 6 क्योंकि मैं अपके जाति के लोगोंपर पड़नेवाली उस विपत्ति को किस रीति से देख सकूंगी? और मैं अपके भाइयोंके विनाश को क्योंकर देख सकूंगी? 7 तब राजा झयर्ष ने एस्तेर रानी से और मोर्दकै यहूदी से कहा, मैं हामान का घरबार तो एस्तेर को दे चुका हूँ, और वह फांसी के खम्भे पर लटका दिया गया है, इसलिथे कि उस ने यहूदियोंपर हाथ बढ़ाया या। 8 सो तुम अपक्की समझ के अनुसार राजा के नाम से यहूदियोंके नाम पर लिखो, और राजा की अंगूठी की छाप भी लगाओ; क्योंकि जो चिट्ठी राजा के नाम से लिखी जाए, और उस पर उसकी अंगूठी की छाप लगाई जाए, उसको कोई भी पलट नहीं सकता। 9 सो उसी समय अर्यात् सीवान नाम तीसरे महीने के तेईसवें दिन को राजा के लेखक बुलवाए गए और जिस जिस बात की आज्ञा मोर्दकै ने उन्हें दी यी उसे यहूदियोंऔर अधिपतियोंऔर हिन्दुस्तान से लेकर कूश तक, जो एक सौ सत्ताईस प्रान्त हैं, उन सभोंके अधिपतियोंऔर हाकिमोंको एक एक प्रान्त के अझरोंमें और एक एक देश के लोगोंकी भाषा में, और यहूदियोंको उनके अझरोंऔर भाषा में लिखी गई। 10 मोर्दकै ने राजा झयर्ष के नाम से चिट्ठियां लिखाकर, और उन पर राजा की अंगूठी की छाप लगाकर, वेग चलनेवाले सरकारी घोड़ों, खच्चरोंऔर सांड़नियोंकी डाक लगाकर, हरकारोंके हाथ भेज दीं। 11 इन चिट्ठियोंमें सब नगरोंके यहूदियोंको राजा की ओर से अनुमति दी गई, कि वे इकट्ठे होंऔर अपना अपना प्राण बचाने के लिथे तैयार होकर, जिस जाति वा प्रान्त से लोग अन्याय करके उनको वा उनकी स्त्रियोंऔर बालबच्चोंको दु:ख देना चाहें, उनको विध्वंसघात और नाश करें, और उनकी धन सम्मत्ति लूट लें। 12 और यह राजा झयर्ष के सब प्रान्तोंमें एक ही दिन में किया जाए, अर्यात् अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को। 13 इस आज्ञा के लेख की नकलें, समस्त प्रान्तोंमें सब देशें के लोगोंके पास खुली हुई भेजी गई; ताकि यहूदी उस दिन अपके शत्रुओं से पलटा लेने को तैयार रहें। 14 सो हरकारे वेग चलनेवाले सरकारी घोड़ोंपर सवार होकर, राजा की आज्ञा से फुतीं करके जल्दी चले गए, और यह आज्ञा शूशन राजगढ़ में दी गई यी। 15 तब मोर्दकै नीले और श्वेत रंग के राजकीय वस्त्र पहिने और सिर पर सोने का बड़ा मुमुट धरे हुए और सूझ्मसन और बैंजनी रंग का बागा पहिने हुए, राजा के सम्मुख से निकला, और शूशन नगर के लोग आनन्द के मारे ललकार उठे। 16 और यहूदियोंको आनन्द और हर्ष हुआ और उनकी बड़ी प्रतिष्ठा हुई। 17 और जिस जिस प्रान्त, और जिस जिस नगर में, जहां कहीं राजा की आज्ञा और नियम पहुंचे, वहां वहां यहूदियोंको आनन्द और हर्ष हुआ, और उन्होंने जेवनार करके उस दिन को खुशी का दिन माना। और उस देश के लोगोंमें से बहुत लोग यहूदी बन गए, क्योंकि उनके मन में यहूदियोंका डर समा गया या।
1 अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को, जिस दिन राजा की आज्ञा और नियम पूरे होने को थे, और यहूदियोंके शत्रु उन पर प्रबल होने की आशा रखते थे, परन्तु इसके उलटे यहूदी अपके वैरियोंपर प्रबल हुए, उस दिन, 2 यहूदी लोग राजा झयर्ष के सब प्रान्तोंमें अपके अपके नगर में इकट्ठे हुए, कि जो उनकी हानि करने का यत्न करे, उन पर हाथ चलाए। और कोई उनका साम्हना न कर सका, क्योंकि उनका भय देश देश के सब लोगोंके मन में समा गया या। 3 वरन प्रान्तोंके सब हाकिमोंऔर अधिपतियोंऔर प्रधानोंऔर राजा के कर्मचारियोंने यहूदियोंकी सहाथता की, क्योंकि उनके मन में मोर्दकै का भय समा गया या। 4 मोर्दकै तो राजा के यहां बहुत प्रतिष्ठित या, और उसकी कीत्तिर् सब प्रान्तोंमें फैल गई; वरन उस पुरुष मोर्दकै की महिमा बढ़ती चक्की गई। 5 और यहूदियोंने अपके सब शत्रुओं को तलवार से मारकर और घात करके नाश कर डाला, और अपके वैरियोंसे अपक्की इच्छा के अनुसार बर्ताव किया। 6 और शूशन राजगढ़ में यहूदियोंने पांच सौ मनुष्योंको घात करके नाश किया। 7 और उन्होंने पर्शन्दाता, दल्पोन, अस्पाता, 8 पोराता, अदल्या, अरीदाता, 9 पर्मशता, अरीसै, अरीदै और वैजाता, 10 अर्यात् हम्मदाता के पुत्र यहूदियोंके विरोधी हामान के दसोंपुत्रोंको भी घात किया; परन्तु उनके धन को न लूटा। 11 उसी दिन शूशन राजगढ़ में घात किए हुओं की गिनती राजा को सुनाई गई। 12 तब राजा ने एस्तेर रानी से कहा, यहूदियोंने शूशन राजगढ़ ही में पांच सौ मनुष्य और हामान के दसोंपुत्रोंको भी घात करके नाश किया है; फिर राज्य के और और प्रान्तोंमें उन्होंने न जाने क्या क्या किया होगा ! अब इस से अधिक तेरा निवेदन क्या है? वह भी पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? वह भी तुझे दिया जाएगा। 13 एस्तेर ने कहा, यदि राजा को स्वीकार हो तो शूशन के यहूदियोंको आज की नाई कल भी करने की आज्ञा दी जाए, और हामान के दसोंपुत्र फांसी के खम्भें पर लटकाए जाएं। 14 राजा ने कहा, ऐसा किया जाए; यह आज्ञा शूशन में दी गई, और हामान के दसोंपुत्र लटकाए गए। 15 और शूशन के यहूदियोंने अदार महीने के चौदहवें दिन को भी इकट्ठे होकर शूशन में तीन सौ पुरुषोंको घात किया, परन्तु धन को न लूटा। 16 राज्य के और और प्रान्तोंके यहूदी इकट्ठे होकर अपना अपना प्राण बचाने के लिथे खड़े हुए, और अपके वैरियोंमें से पचहत्तर हजार मनुष्योंको घात करके अपके शत्रुओं से विश्रम पाया; परन्तु धन को न लूटा। 17 यह अदार महीने के तेरहवें दिन को किया गया, और चौदहवें दिन को उन्होंने विश्रम करके जेवनार की और आनन्द का दिन ठहराया। 18 परन्तु शूशन के यहूदी अदार महीने के तेरहवें दिन को, और उसी महीने के चौदहवें दिन को इकट्ठे हुए, और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्होंने विश्रम करके जेवनार का और आनन्द का दिन ठहराया। 19 इस कारण देहाती यहूदी जो बिना शहरपनाह की बस्तियोंमें रहते हैं, वे अदार महीने के चौदहवें दिन को आनन्द ओर जेवनार और खुशी और आपस में बैना भेजने का दिन नियुक्त करके मानते हैं। 20 इन बातोंका वृत्तान्त लिखकर, मोर्दकै ने राजा झयर्ष के सब प्रान्तोंमें, क्या निकट क्या दूर रहनेवाले सारे यहूदियोंके पास चिट्ठियां भेजीं, 21 और यह आज्ञा दी, कि अदार महीने के चौदहवें और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को प्रति वर्ष माना करें। 22 जिन में यहूदियोंने अपके शत्रुओं से विश्रम पाया, और यह महीना जिस में शोक आनन्द से, और विलाप खुशी से बदला गया; (माना करें) और उनको जेवनार और आनन्द और एक दूसरे के पास बैना भेजने ओर कंगालोंको दान देने के दिन मानें। 23 और यहूदियोंने जैसा आरम्भ किया या, और जैसा मोर्दकै ने उन्हें लिखा, वैसा ही करने का निश्चय कर लिया। 24 क्योंकि हम्मदाता अगागी का पुत्र हामान जो सब यहूदियोंका विरोधी या, उस ने यहूदियोंके नाश करने की युक्ति की, और उन्हें मिटा डालने और नाश करने के लिथे पूर अर्यात् चिट्ठी डाली यी। 25 परन्तु जब राजा ने यह जान लिया, तब उस ने आज्ञा दी और लिखवाई कि जो दुष्ट युक्ति हामान ने यहूदियोंके विरुद्ध की यी वह उसी के सिर पर पलट आए, तब वह और उसके पुत्र फांसी के झम्भोंपर लटकाए गए। 26 इस कारण उन दिनोंका नाम पूर शब्द से पूरीम रखा गया। इस चिट्ठी की सब बातोंके कारण, और जो कुछ उन्होंने इस विषय में देखा और जो कुछ उन पर बीता या, उसके कारण भी 27 यहूदियोंने अपके अपके लिथे और अपक्की सन्तान के लिथे, और उन सभोंके लिथे भी जो उन में मिल गए थे यह अटल प्रण किया, कि उस लेख के अनुसार प्रति वर्ष उसके ठहराए हुए समय में वे थे दो दिन मानें। 28 और पीढ़ी पीढ़ी, कुल कुल, प्रान्त प्रान्त, नगर नगर में थे दिन स्मरण किए और माने जाएंगे। और पूरीम नाम के दिन यहूदियोंमें कभी न मिटेंगे और उनका स्मरण उनके वंश से जाता न रहेगा। 29 फिर अबीहैल की बेटी एस्तेर रानी, और मोर्दकै यहूदी ने, पूरीम के विषय यह दूसरी चिट्ठी बड़े अधिक्कारने के साय लिखी। 30 इसकी नकलें मोर्दकै ने झयर्ष के राज्य के, एक सौ सत्ताईसोंप्रान्तोंके सब यहूदियोंके पास शान्ति देनेवाली और सच्ची बातोंके साय इस आशय से भेजीं, 31 कि पूरीम के उन दिनोंके विशेष ठहराए हुए समयोंमें मोर्दकै यहूदी और एस्तेर रानी की आज्ञा के अनुसार, और जो यहूदियोंने अपके और अपक्की सन्तान के लिथे ठान लिया या, उसके अनुसार भी उपवास और विलाप किए जाएं। 32 और पूरीम के विष्य का यह नियम एस्तेर की आज्ञा से भी स्यिर किया गया, और उनकी चर्चा पुस्तक में लिखी गई।
1 और राजा झयर्ष ने देश और समुद्र के टापू दोनोंपर कर लगाया। 2 और उसके माहात्म्य और पराक्रम के कामों, और मोर्दकै की उस बड़ाई का पूरा ब्योरा, जो राजा ने उसकी की यी, क्या वह मादै और फारस के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 3 निदान यहूदी मोर्दकै, झयर्ष राजा ही के नीचे या, और यहूदियोंकी दृष्टि में बड़ा या, और उसके सब भाई उस से प्रसन्न थे, क्योंकि वह अपके लोगोंकी भलाई की खोज में रहा करता या और अपके सब लोगोंसे शान्ति की बातें कहा करता या।
1 ऊज़ देश में अय्यूब नाम एक पुरुष या; वह खरा और सीधा या और परमेश्वर का भय मानता और बुराई से पके रहता या। 2 उसके सात बेटे और तीन बेटियां उत्पन्न हुई। 3 फिर उसके सात हजार भेड़-बकरियां, तीन हजार ऊंट, पांच सौ जोड़ी बैल, और पांच सौ गदहियां, और बहुत ही दास-दासियां यीं; वरन उसके इतनी सम्पत्ति यी, कि पूरबियोंमें वह सब से बड़ा या। 4 उसके बेटे उपके अपके दिन पर एक दूसरे के घर में खाने-पीने को जाया करते थे; और अपक्की तीनोंबहिनोंको अपके संग खाने-पीने के लिथे बुलवा भेजते थे। 5 और जब जब जेवनार के दिन पूरे हो जाते, तब तब अय्यूब उन्हें बुलवाकर पवित्र करता, और बड़ी भोर उठकर उनकी गिनती के अनुसार होमबलि चढ़ाता या; क्योंकि अय्यूब सोचता या, कि कदाचित् मेरे लड़कोंने पाप करके परमेश्वर को छोड़ दिया हो। इसी रीति अय्यूब सदैव किया करता या। 6 एक दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्र उसके साम्हने उपस्यित हुए, और उनके बीच शैतान भी आया। 7 यहोवा ने शैतान से पूछा, तू कहां से आता है? शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, कि पृय्वी पर इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ। 8 यहोवा ने शैतान से पूछा, क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है? क्योंकि उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है। 9 शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है? 10 क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारोंओर बाड़ा नहीं बान्धा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। 11 परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा। 12 यहोवा ने शैतान से कहा, सुन, जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना। तब शैतान यहोवा के साम्हने से चला गया। 13 एक दिन अय्यूब के बेटे-बेटियां बड़े भाई के घर में खाते और दाखमधु पी रहे थे; 14 तब एक दूत अय्यूब के पास आकर कहने लगा, हम तो बैलोंसे हल जोत रहे थे, और गदहियां उनके पास चर रही यी, 15 कि शबा के लोग धावा करके उनको ले गए, और तलवार से तेरे सेवकोंको मार डाला; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ। 16 वह अभी यह कह ही रहा या कि दूसरा भी आकर कहने लगा, कि परमेश्वर की आग आकाश से गिरी और उस से भेड़-बकरियां और सेवक जलकर भस्म हो गए; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ। 17 वह अभी यह कह ही रहा या, कि एक और भी आकर कहने लगा, कि कसदी लोग तीन गोल बान्धकर ऊंटोंपर धावा करके उन्हें ले गए, और तलवार से तेरे सेवकोंको मार डाला; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ। 18 वह अभी यह कह ही रहा या, कि एक और भी आकर कहने लगा, तेरे बेट-बेटियां बड़े भाई के घर में खाते और दाखमधु पीते थे, 19 कि जंगल की ओर से बड़ी प्रचणड वायु चक्की, और घर के चारोंकोनोंको ऐसा फोंका मारा, कि वह जवानोंपर गिर पड़ा और वे मर गए; और मैं ही अकेला बचकर तुझे समाचार देने को आया हूँ। 20 तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुंड़ाकर भूमि पर गिरा और दणडवत् करके कहा, 21 मैं अपक्की मां के पेट से नंगा निकला और वहीं नंगा लौट जाऊंगा; यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है। 22 इन सब बातोंमें भी अय्यूब ने न तो पाप किया, और न परमेश्वर पर मूर्खता से दोष लगाया।
1 फिर एक और दिन यहोवा परमेश्वर के पुत्र उसके साम्हने उपस्यित हुए, और उनके बीच शैतान भी उसके साम्हने उपस्यित हुआ। 2 यहोवा ने शैतान से पूछा, तू कहां से आता है? शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, कि इधर-उधर घूमते-फिरते और डोलते-डालते आया हूँ। 3 यहोवा ने शैतान से पूछा, क्या तू ने मेरे दास अय्यूब पर ध्यान दिया है कि पृय्वी पर उसके तुल्य खरा और सीधा और मेरा भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य और कोई नहीं है? और यद्यापि तू ने मुझे उसको बिना कारण सत्यानाश करते को उभारा, तौभी वह अब तक अपक्की खराई पर बना है। 4 शैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, खाल के बदले खाल, परन्तु प्राण के बदले मनुष्य अपना सब कुछ दे देता है। 5 सो केवल अपना हाथ बढ़ाकर उसकी हड्डियां और मांस छू, तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा। 6 यहोवा ने शैतान से कहा, सुन, वह तेरे हाथ में है, केवल उसका प्राण छोड़ देना। 7 तब शैतान यहोवा के साम्हने से निकला, और अय्यूब को पांव के तलवे से ले सिर की चोटी तक बड़े बड़े फोड़ोंसे पीड़ित किया। 8 तब अय्यूब खुजलाने के लिथे एक ठीकरा लेकर राख पर बैठ गया। 9 तब उसकी स्त्री उस से कहने लगी, क्या तू अब भी अपक्की खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा। 10 उस ने उस से कहा, तू एक मूढ़ स्त्री की सी बातें करती है, क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दु:ख न लें? इन सब बातोंमें भी अय्यूब ने अपके मुंह से कोई पाप नहीं किया। 11 जब तेमानी एलीपज, और शूही बिलदद, और नामाती सोपर, अय्यूब के इन तीन मित्रोंने इस सब विपत्ति का समाचार पाया जो उस पर पक्की यीं, तब वे आपस में यह ठानकर कि हम अय्यूब के पास जाकर उसके संग विलाप करेंगे, और उसको शान्ति देंगे, अपके अपके यहां से उसके पास चले। 12 जब उन्होंने दूर से आंख उठाकर अय्यूब को देखा और उसे न चीन्ह सके, तब चिल्लाकर रो उठे; और अपना अपना बागा फाड़ा, और आकाश की ओर धूलि उड़ाकर अपके अपके सिर पर डाली। 13 तब वे सात दिन और सात रात उसके संग भूमि पर बैठे रहे, परन्तु उसका दु:ख बहुत ही बड़ा जान कर किसी ने उस से एक भी बात न कही।
1 इसके बाद अय्यूब मुंह खोलकर अपके जन्मदिन को धिम्मारने 2 और कहने लगा, 3 वह दिन जल जाए जिस में मैं उत्पन्न हुआ, और वह रात भी जिस में कहा गया, कि बेटे का गर्भ रहा। 4 वह दिन अन्धिक्कारनेा हो जाए ! ऊपर से ईश्वर उसकी सुधि न ले, और न उस में प्रकाश होए। 5 अन्धिक्कारनेा और मृत्यु की छाया उस पर रहे। बादल उस पर छाए रहें; और दिन को अन्धेरा कर देनेवाली चीजोंउसे डराएं। 6 घोर अन्धकार उस रात को पकड़े; वर्ष के दिनोंके बीच वह आनन्द न करने पाए, और न महीनोंमें उसकी गिनती की जाए। 7 सुनो, वह रात बांफ हो जाए; उस में गाने का शब्द न सुन पके 8 जो लोग किसी दिन को धिक्कारते हैं, और लिब्यातान को छेड़ने में निपुण हैं, उसे ध्क्िकारें। 9 उसकी संध्या के तारे प्रकाश न दें; वह उजियाले की बाट जोहे पर वह उसे न मिले, वह भोर की पलकोंको भी देखने न पाए; 10 क्योंकि उस ने मेरी माता की कोख को बन्द न किया और कष्ट को मेरी दृष्टि से न छिपाया। 11 मैं गर्भ ही में क्योंन मर गया? मैं पेट से निकलते ही मेरा प्राण क्योंन छूटा? 12 मैं घुटनोंपर क्योंलिया गया? मैं छातियोंको क्योंपीने पाया? 13 ऐसा न होता तो मैं चुपचाप पड़ा रहता, मैं सोता रहता और विश्रम करता, 14 और मैं पृय्वी के उन राजाओं और मन्त्रियोंके साय होता जिन्होंने अपके लिथे सुनसान स्यान बनवा लिए, 15 वा मैं उन राजकुमारोंके साय होता जिनके पास सोना या जिन्होंने अपके घरोंको चान्दी से भर लिया या; 16 वा मैं असमय गिरे हुए गर्भ की नाई हुआ होता, वा ऐसे बच्चोंके समान होता जिन्होंने उजियाले को कभी देखा ही न हो। 17 उस दशा में दुष्ट लोग फिर दु:ख नहीं देते, और यके मांदे विश्रम पाते हैं। 18 उस में बन्धुए एक संग सुख से रहते हैं; और परिश्र्म करानेवाले का शब्द नहीं सुनते। 19 उस में छोटे बड़े सब रहते हैं, और दास अपके स्वामी से स्वतन्त्र रहता है। 20 दु:खियोंको उजियाला, और उदास मनवालोंको जीवन क्योंदिया जाता है? 21 वे मृत्यु की बाट जोहते हैं पर वह आती नहीं; और गड़े हुए धन से अधिक उसकी खोज करते हैं; 22 वे क़ब्र को पहुंचकर आनन्दित और अत्यन्त मगन होते हैं। 23 उजियाला उस पुरुष की क्योंमिलता है जिसका मार्ग छिपा है, जिसके चारोंओर ईश्वर ने घेरा बान्ध दिया है? 24 मुझे तो रोटी खाने की सन्ती लम्बी लम्बी सांसें आती हैं, और मेरा विलाप धारा की नाई बहता रहता है। 25 क्योंकि जिस डरावनी बात से मैं डरता हूँ, वही मुझ पर आ पड़ती है, और जिस बात से मैं भय खाता हूँ वही मुझ पर आ जाती है। 26 मुझे न तो चैन, न शान्ति, न विश्रम मिलता है; परन्तु दु:ख ही आता है।
1 तब तेमानी एलीपज ने कहा, 2 यदि कोई तुझ से कुछ कहने लगे, तो क्या तुझे बुरा लगेगा? परन्तु बोले बिना कौन रह सकता है? 3 सुन, तू ने बहुतोंको शिझा दी है, और निर्बल लोगोंको बलवन्त किया है। 4 गिरते हुओं को तू ने अपक्की बातोंसे सम्भाल लिया, और लड़खड़ाते हुए लोगोंको तू ने बलवन्त किया। 5 परन्तु अब विपत्ति तो तुझी पर आ पक्की, और तू निराश हुआ जाता है; उस ने तुझे छुआ और तू घबरा उठा। 6 क्या परमेश्वर का भय ही तेरा आसरा नहीं? और क्या तेरी चालचलन जो खरी है तेरी आशा नहीं? 7 क्या तुझे मालूम है कि कोई निदॉष भी कभी नाश हुआ है? या कहीं सज्जन भी काट डाले गए? 8 मेरे देखने में तो जो पाप को जोतते और दु:ख बोते हैं, वही उसको काटते हैं। 9 वे तो ईश्वर की श्वास से नाश होते, और उसके क्रोध के फोके से भस्म होते हैं। 10 सिंह का गरजना और हिंसक सिंह का दहाड़ना बन्द हो आता है। और जवान सिंहोंके दांत तोड़े जाते हैं। 11 शिकार न पाकर बूढ़ा सिंह मर जाता है, और सिंहनी के वच्चे तितर बितर हो जाते हैं। 12 एक बात चुपके से मेरे पास पहुंचाई गई, और उसकी कुछ भनक मेरे कान में पक्की। 13 रात के स्वप्नोंकी चिन्ताओं के बीच जब मनुष्य गहरी निद्रा में रहते हैं, 14 मुझे ऐसी यरयराहट और कंपकंपी लगी कि मेरी सब हड्डियां तक हिल उठीं। 15 तब एक आत्मा मेरे साम्हने से होकर चक्की; और मेरी देह के रोएं खड़े हो गए। 16 वह चुपचाप ठहर गई और मैं उसकी आकृति को पहिचान न सका। परन्तु मेरी आंखोंके साम्हने कोई रुप या; पहिले सन्नाटा छाया रहा, फिर मुझे एक शब्द सुन पड़ा, 17 क्या नाशमान मनुष्य ईश्वर से अधिक न्यायी होगा? क्या मनुष्य अपके सृजनहार से अधिक पवित्र हो सकता है? 18 देख, वह अपके सेवकोंपर भरोसा नहीं रखता, और अपके स्वर्गदूतोंको मूर्ख ठहराता है; 19 फिर जो मिट्टी के घरोंमें रहते हैं, और जिनकी नेव मिट्टी में डाली गई है, और जो पतंगे की नाई पिस जाते हैं, उनकी क्या गणना। 20 वे भोर से सांफ तक नाश किए जाते हैं, वे सदा के लिथे मिट जाते हैं, और कोई उनका विचार भी नहीं करता। 21 क्या उनके डेरे की डोरी उनके अन्दर ही अन्दर नहीं कट जाती? वे बिना बुद्धि के ही मर जाते हैं !
1 पुकार कर देख; क्या कोई है जो तुझे उत्तर देगा? और पवित्रोंमें से तू किस की ओर फिरेगा? 2 क्योंकि मूढ़ तो खेद करते करते नाश हो जाता है, और भोला जलते जलते मर मिटता है। 3 मैं ने मूढ़ को जड़ माड़ते देखा है; परन्तु अचानक मैं ने उसके वासस्यान को धिक्कारा। 4 उसके लड़केबाले उद्धार से दूर हैं, और वे फाटक में पीसे जाते हैं, और कोई नहीं है जो उन्हें छुड़ाए। 5 उसके खेत की उपज भूखे लोग खा लेते हैं, वरन कटीली बाड़ में से भी निकाल लेते हैं; और प्यासा उनके धन के लिथे फन्दा लगाता है। 6 क्योंकि विपत्ति धूल से उत्पन्न नहीं होती, और न कष्ट भूमि में से उगता है; 7 परन्तु जैसे चिंगारियां ऊपर ही ऊपर को उड़ जाती हैं,वैसे ही मनुष्य कष्ट ही भोगने के लिथे उत्पन्न हुआ है। 8 परन्तु मैं तो ईश्वर ही को खोजता रहूंगा और अपना मुक़द्दमा परमेश्वर पर छोड़ दूंगा। 9 वह तो एसे बड़े काम करता है जिनकी याह नहीं लगती, और इतने आश्चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जाते। 10 वही पृय्वी के ऊपर वर्षा करता, और खेतोंपर जल बरसाता है। 11 इसी रीति वह नम्र लोगोंको ऊंचे स्यान पर बिठाता है, और शोक का पहिरावा पहिने हुए लोग ऊंचे पर पहुचकर बचते हैं। 12 वह तो धूर्त्त लोगोंकी कल्पनाएं व्यर्य कर देता है, और उनके हाथोंसे कुछ भी बन नहीं पड़ता। 13 वह बुद्धिमानोंको उनकी धूर्त्तता ही में फंसाता है; और कुटिल लोगोंकी युक्ति दूर की जाती है। 14 उन पर दिन को अन्धेरा छा जाता है, और दिन दुपहरी में वे रात की नाई टटोलते फिरते हैं। 15 परन्तु वह दरिद्रोंको उनके वचनरुपी तलवार से और बलवानोंके हाथ से बचाता है। 16 इसलिथे कंगालोंको आशा होती है, और कुटिल मनुष्योंका मुंह बन्द हो जाता है। 17 देख, क्या ही धन्य वह मनुष्य, जिसको ईश्वर ताड़ना देता है; इसलिथे तू सर्वशक्तिमान की ताड़ना को तुच्छ मत जान। 18 क्योंकि वही घायल करता, और वही पट्टी भी बान्धता है; वही मारता है, और वही अपके हाथोंसे चंगा भी करता है। 19 वह तुझे छ:विपत्तियोंसे छुड़ाएगा; वरन सात से भी तेरी कुछ हानि न होने पाएगी। 20 अकाल में वह तुझे मुत्यु से, और युद्ध में तलवार की धार से बचा लेगा। 21 तू वचनरूपी कोड़े से बचा रहेगा और जब विनाश आए, तब भी तुझे भय न होगा। 22 तू उजाड़ और अकाल के दिनोंमें हँसमुख रहेगा, और तुझे बनैले जन्तुओं से डर न लगेगा। 23 वरन मैदान के पत्यर भी तुझ से वाचा बान्धे रहेंगे, और वनपशु तुझ से मेल रखेंगे। 24 और तुझे निश्चय होगा, कि तेरा डेरा कुशल से है, और जब तू अपके निवास में देखे तब कोई वस्तु खेई न होगी। 25 तुझे यह भी निश्चित होगा, कि मेरे बहुत वंश होंगे। और मेरे सन्तान पृय्वी की घास के तुल्य बहुत होंगे। 26 जैसे पूलियोंका ढेर समय पर खलिहान में रखा जाता है, वैसे ही तू पूरी अवस्या का होकर क़ब्र को पहुंचेगा। 27 देख, हम ने खोज खोजकर ऐसा ही पाया है; इसे तू सुन, और अपके लाभ के लिथे ध्यान में रख।
1 फिर अय्यूब ने कहा, 2 भला होता कि मेरा खेद तौला जाता, और मेरी सारी विपत्ति तुला में धरी जाती ! 3 क्योंकि वह समुद्र की बालू से भी भारी ठहरती; इसी कारण मेरी बातें उतावली से हूई हैं। 4 क्योंकि सर्वशक्तिमान के तीर मेरे अन्दर चुभे हैं; और उनका विष मेरी आत्मा में वैठ गया है ;ईश्वर की भयंकर बात मेरे विरुद्ध पांति बान्धे हैं। 5 जब बनैले गदहे को घास मिलती, तब क्या वह रेंकता है? और बैल चारा पाकर क्या डकारता है? 6 जो फीका है वह क्या बिना नमक खाया जाता है? क्या अणडे की सफेदी में भी कुछ स्वाद होता है? 7 जिन वस्तुओं को मैं छूना भी नहीं चाहता वही मानो मेरे लिथे घिनौना आहार ठहरी हैं। 8 भला होता कि मुझे मुंह मांगा वर मिलता और जिस बात की मैं आशा करता हूँ वह ईश्वर मुझे दे देता ! 9 कि ईश्वर प्रसन्न होकर मुझे कुचल डालता, और हाथ बढ़ाकर मुझे काट डालता ! 10 यही मेरी शान्ति का कारण; वरन भारी पीड़ा में भी मैं इस कारण से उछल पड़ता; क्योंकि मैं ने उस पवित्र के वचनोंका कभी इनकार नहीं किया। 11 मुझ में बल ही क्या है कि मैं आशा रखूं? और मेरा अन्त ही क्या होगा, कि मैं धीरज धरूं? 12 क्या मेरी दृढ़ता पत्यरोंकी सी है? क्या मेरा शरीर पीतल का है? 13 क्या मैं निराधार नहीं हूँ? क्या काम करने की शक्ति मुझ से दूर नहीं हो गई? 14 जो पड़ोसी पर कृपा नहीं करता वह सर्वशक्तिमान का भय मानना छोड़ देता है। 15 मेरे भाई नाले के समान विश्वासघाती हो गए हैं, वरन उन नालोंके समान जिनकी धार सूख जाती है; 16 और वे बरफ के कारण काले से हो जाते हैं, और उन में हिम छिपा रहता है। 17 परन्तु जब गरमी होने लगती तब उनकी धाराएं लोप हो जाती हैं, और जब कड़ी धूप पड़ती है तब वे अपक्की जगह से उड़ जाते हैं 18 वे घूमते घूमते सूख जातीं, और सुनसान स्यान में बहकर नाश होती हैं। 19 तेमा के बनजारे देखते रहे और शबा के काफिलेवालोंने उनका रास्ता देखा। 20 वे लज्जित हुए क्योंकि उन्होंने भरोसा रखा या और वहां पहुचकर उनके मुंह सूख गए। 21 उसी प्रकार अब तुम भी कुछ न रहे; मेरी विपत्ति देखकर तुम डर गए हो। 22 क्या मैं ने तुम से कहा या, कि मुझे कुछ दो? वा उपक्की सम्पत्ति में से मेरे लिथे घूस दो? 23 वा मुझे सतानेवाले के हाथ से बचाओ? वा उपद्रव करनेवालोंके वश से छुड़ा लो? 24 मुझे शिझा दो और मैं चुप रहूंगा; और मुझे समझाओ, कि मैं ने किस बान में चूक की है। 25 सच्चाई के वचनोंमें कितना प्रभाव होता है, परन्तु तुम्हारे विवाद से क्या लाभ होता है? 26 क्या तुम बातें पकड़ने की कल्पना करते हो? निराश जन की बातें तो वायु की सी हैं। 27 तुम अनायोंपर चिट्ठी डालते, और अपके मित्र को बेचकर लाभ उठानेवाले हो। 28 इसलिथे अब कृपा करके मुझे देखो; निश्चय मैं तुम्हारे साम्हने कदापि फूठ न बोलूंगा। 29 फिर कुछ अन्याय न होने पाए; फिर इस मुक़द्दमे में मेरा धर्म ज्योंका त्योंबना है, मैं सत्य पर हूँ। 30 क्या मेरे वचनोंमें कुछ कुटिलता है? क्या मैं दुष्टता नहीं पहचान सकता?
1 क्या मनुष्य को पृय्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती? क्या उसके दिन मजदूर के से नहीं होते? 2 जैसा कोई दास छाया की अभिलाषा करे, वा मजदूर अपक्की मजदूरी की आशा रखे; 3 वैसा ही मैं अनर्य के महीनोंका स्वामी बनाया गया हूँ, और मेरे लिथे क्लेश से भरी रातें ठहराई गई हैं। 4 जब मैं लेट लाता, तब कहता हूँ, मैं कब उठूंगा? और रात कब बीतेगी? और पौ फटने तक छटपटाते छटपटाते उकता जाता हूँ। 5 मेरी देह कीड़ोंऔर और मिट्टी के ढेलोंसे ढकी हुई है; मेरा चमड़ा सिमट जाता, और फिर गल जाता है। 6 मेरे दिन जुलाहे की धड़की से अधिक फुतीं से चलनेवाले हैं और निराशा में बीते जाते हैं। 7 याद कर कि मेरा जीवन वायु ही है; और मैं अपक्की आंखोंसे कल्याण फिर न देखूंगा। 8 जो मुझे अब देखता है उसे मैं फिर दिखाई न दूंगा; तेरी आंखें मेरी ओर होंगी परन्तु मैं न मिलूंगा। 9 जैसे बादल छटकर लोप हो जाता है, वैसे ही अधोलोक में उतरनेवाला फिर वहां से नहीं लौट सकता; 10 वह अपके घर को फिर लौट न आएगा, और न अपके स्यान में फिर मिलेगा। 11 इसलिथे मैं अपना मुंह बन्द न रखूंगा; अपके मन का खेद खोलकर कहूंगा; और अपके जीव की कड़ुवाहट के कारण कुड़कुड़ाता रहूंगा। 12 क्या मैं समुद्र हूँ, वा मगरमच्छ हूँ, कि तू मुझ पर पहरा बैठाता है? 13 जब जब मैं सोचता हूं कि मुझे खाट पर शान्ति मिलेगी, और बिछौने पर मेरा खेद कुछ हलका होगा; 14 तब तब तू मुझे स्वप्नोंसे घबरा देता, और दर्शनोंसे भयभीत कर देता है; 15 यहां तक कि मेरा जी फांसी को, और जीवन से मृत्यु को अधिक चाहता है। 16 मुझे अपके जीवन से घृणा आती है; मैं सर्वदा जीवित रहना नहीं चाहता। मेरा जीवनकाल सांस सा है, इसलिथे मुझे छोड़ दे। 17 मनुष्य क्या है, कि तू उसे महत्व दे, और अपना मन उस पर लगाए, 18 और प्रति भोर को उसकी सुधि ले, और प्रति झण उसे जांचता रहे? 19 तू कब तक मेरी ओर आंख लगाए रहेगा, और इतनी देर के लिथे भी मुझे न छोड़ेगा कि मैं अपना यूक निगल लूं? 20 हे मनुष्योंके ताकनेवाले, मैं ने पाप तो किया होगा, तो मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा? तू ने क्योंमुझ को अपना निशाना बना लिया है, यहां तक कि मैं अपके ऊपर आपक्की बोफ हुआ हूँ? 21 और तू क्योंमेरा अपराध झमा नहीं करता? और मेरा अधर्म क्योंदूर नहीं करता? अब तो मैं मिट्टी में सो जाऊंगा, और तू मुझे यत्न से ढूंढ़ेगा पर मेरा पता नहीं मिलेगा।
1 तब शूही बिलदद ने कहा, 2 तू कब तक ऐसी ऐसी बातें करता रहेगा? और तेरे मुंह की बातें कब तक प्रचणड वायु सी रहेगी? 3 क्या ईश्वर अन्याय करता है? और क्या सर्वशक्तिमान धर्म को उलटा करता है? 4 यदि तेरे लड़केबालोंने उसके विरुद्ध पाप किया है, तो उस ने उनको उनके अपराध का फल भुगताया है। 5 तौभी यदि तू आप ईश्वर को यत्न से ढूंढ़ता, और सर्वशक्तिमान से गिड़गिड़ाकर बिनती करता, 6 और यदि तू निर्मल और धमीं रहता, तो निश्चय वह तेरे लिथे जागता; और तेरी धमिर्कता का निवास फिर ज्योंका त्योंकर देता। 7 चाहे तेरा भाग पहिले छोटा ही रहा हो परन्तु अन्त में तेरी बहुत बढती होती। 8 अगली पीढ़ी के लोगोंसे तो पूछ, और जो कुछ उनके पुरखाओं ने जांच पड़ताल की है उस पर ध्यान दे। 9 क्योंकि हम तो कल ही के हैं, और कुछ नहीं जानते; और पृय्वी पर हमारे दिन छाया की नाई बीतते जाते हैं। 10 क्या वे लोग तुझ से शिझा की बातें न कहेंगे? क्या वे अपके मन से बात न निकालेंगे? 11 क्या कछार की घास पानी बिना बढ़ सकती है? क्या सरकणडा कीच बिना बढ़ता है? 12 चाहे वह हरी हो, और काटी भी न गई हो, तौभी वह और सब भांति की घास से पहिले ही सूख जाती है। 13 ईश्वर के सब बिसरानेवालोंकी गति ऐसी ही होती है और भक्तिहीन की आशा टूट जाती है। 14 उसकी आश का मूल कट जाता है; और जिसका वह भरोसा करता है, वह मकड़ी का जाला ठहराता है। 15 चाहे वह अपके घर पर टेक लगाए परन्तु वह न ठहरेगा; वह उसे दृढ़ता से यांभेगा परन्तु वह स्य्िर न रहेगा। 16 वह चूप पाकर हरा भरा हो जाता है, और उसकी डालियां बगीचे में चारोंओर फैलती हैं। 17 उसकी जड़ कंकरोंके ढेर में लिपक्की हुई रहती है, और वह पत्त्र के स्यान को देख लेता है। 18 परन्तु जब वह अपके स्यान पर से नाश किया जाए, तब वह स्यान उस से यह कहकर मुंह मोड़ लेगा कि मैं ने उसे कभी देखा ही नहीं। 19 देख, उसकी आनन्द भरी चाल यही है; फिर उसी मिट्टी में से दूसरे उगेंगे। 20 देख, ईश्वर न तो खरे मनुष्य को निकम्मा जानकर छोड़ देता है, और न बुराई करतेवालोंको संभालता है। 21 वह तो तुझे हंसमुख करेगा; और तुझ से जयजयकार कराएगा। 22 तेरे वैरी लज्जा का वस्त्र पहिनेंगे, और दुष्टोंका डेरा कहीं रहने न पाएगा।
1 तब अय्यूब ने कहा, 2 मैं निश्चय जानता हूं, कि बात ऐसी ही है; परन्तु मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में क्योंकर धमीं ठहर सकता है? 3 चाहे वह उस से मुक़द्दमा लड़ना भी चाहे तौभी मनुष्य हजार बातोंमें से एक का भी उत्तर न दे सकेगा। 4 वह बुद्धिमान और अति सामयीं है: उसके विरोध में हठ करके कौन कभी प्रबल हुआ है? 5 वह तो पर्वतोंको अचानक हटा देता है और उन्हें पता भी नहीं लगता, वह क्रोध में आकर उन्हें उलट पुलट कर देता है। 6 वह पृय्वी को हिलाकर उसके स्यान से अलग करता है, और उसके खम्भे कांपके लगते हैं। 7 उसकी आज्ञा बिना सूर्य उदय होता ही नहीं; और वह तारोंपर मुहर लगाता है; 8 वह आकाशमणडल को अकेला ही फैलाता है, और समुद्र की ऊंची ऊंची लहरोंपर चलता है; 9 वह सप्तषिर्, मृगशिरा और कचपचिया और दक्खिन के नझत्रोंका बनानेवाला है। 10 वह तो ऐसे बड़े कर्म करता है, जिनकी याह नहीं लगती; और इतने आश्चर्यकर्म करता है, जो गिने नहीं जा सकते। 11 देखो, वह मेरे साम्हने से होकर तो चलता है परन्तु मुझको नहीं दिखाई पड़ता; और आगे को बढ़ जाता है, परन्तु मुझे सूफ ही नहीं पड़ता है। 12 देखो, जब वह छीनने लगे, तब उसको कौन रोकेगा? कोन उस से कह सकता है कि तू यह क्या करता है? 13 ईश्वर अपना क्रोध ठंडा नहीं करता। अभिमानी के सहाथकोंको उसके पांव तले फुकना पड़ता है। 14 फिर मैं क्या हूं, जो उसे उत्तर दूं, और बातें छांट छांटकर उस से विवाद करूं? 15 चाहे मैं निदॉष भी होता परन्तु उसको उत्तर न दे सकता; मैं अपके मुद्दई से गिड़गिड़ाकर बिनती करता। 16 चाहे मेरे पुकारने से वह उत्तर भी देता, तौभी मैं इस बात की प्रतीति न करता, कि वह मेरी बात सुनता है। 17 वह तो आंधी चलाकर मुझे तोड़ डालता है, और बिना कारण मेरे चोट पर चोट लगाता है। 18 वह मुझे सांस भी लेने नहीं देता है, और मुझे कड़वाहट से भरता है। 19 जो सामर्य्य की चर्चा हो, तो देखो, वह बलवान है: और यदि न्याय की चर्चा हो, तो वह कहेगा मुझ से कौन मुक़द्दमा लड़ेगा? 20 चाहे मैं निदॉष ही क्योंन हूँ, परन्तु अपके ही मुंह से दोषी ठहरूंगा; खरा होने पर भी वह मुझे कुटिल ठहराएगा। 21 मैं खरा तो हूँ, परन्तु अपना भेद नहीं जानता; अपके जीवन से मुझे घृण आती है। 22 बात तो एक ही है, इस से मैं यह कहता हूँ कि ईश्वर खरे और दुष्ट दोनोंको नाश करता है। 23 जब लोग विपत्ति से अचानक मरने लगते हैं तब वह निदॉष लोगोंके जांचे जाने पर हंसता है। 24 देश दुष्टोंके हाथ में दिया गया है। वह उसके न्यायियोंकी आंखोंको मून्द देता है; इसका करनेवाला वही न हो तो कौन है? 25 मेरे दिन हरकारे से भी अधिक वेग से चले जाते हैं; वे भागे जाते हैं और उनको कल्याण कुछ भी दिखाई नहीं देता। 26 वे वेग चाल से नावोंकी नाई चले जाते हैं, वा अहेर पर फपटते हुए उक़ाब की नाई। 27 जो मैं कहूं, कि विलाप करना फूल जाऊंगा, और उदासी छोड़कर अपना मन प्रफुल्लित कर दूंगा, 28 तब मैं अपके सब दुखोंसे डरता हूँ। मैं तो जानता हूँ, कि तू मुझे निदॉष न ठहराएगा। 29 मैं तो दोषी ठहरूंगा; फिर व्यर्य क्योंपरिश्र्म करूं? 30 चाहे मैं हिम के जल में स्नान करूं, और अपके हाथ खार से निर्मल करूं, 31 तैभी तू मुझे गड़हे में डाल ही देगा, और मेरे वस्त्र भी मुझ से घिनाएंगे। 32 क्योंकि वह मेरे तुल्य मनुष्य नहीं है कि मैं उस से वादविवाद कर सकूं, और हम दोनोंएक दूसरे से मुक़द्दमा लड़ सकें। 33 हम दोनोंके बीच कोई बिचवई नहीं है, जो हम दोंनोंपर अपना हाथ रखे। 34 वह अपना सोंटा मुझ पर से दूर करे और उसकी भय देनेवाली बात मुझे न घबराए। 35 तब मैं उस से निडर होकर कुछ कह सकूंगा, क्योंकि मैं अपक्की दृष्टि में ऐसा नहीं हूँ।
1 मेरा प्राण जीवित रहने से उकताता है; मैं स्वतंत्रता पूर्वक कुड़कुड़ाऊंगा; और मैं अपके मन की कड़वाहट के मारे बातें करूंगा। 2 मै ईश्वर से कहूंगा, मुझे दोषी न ठहरा; मुझे बता दे, कि तू किस कारण मूफ से मुक़द्दमा लड़ता है? 3 क्या तुझे अन्धेर करना, और दुष्टोंकी युक्ति को सुफल करके अपके हाथोंके बनाए हुए को निकम्मा जानना भला लगता है? 4 क्या तेरी देश्धारियोंकी सी बांखें है? और क्या तेरा देखना मनुष्य का सा है? 5 क्या तेरे दिन मनुष्य के दिन के समान हैं, वा तेरे वर्ष पुरुष के समयोंके तुल्य हैं, 6 कि तू मेरा अधर्म ढूंढ़ता, और मेरा पाप पूछता है? 7 तुझे तो मालूम ही है, कि मैं दुष्ट नहीं हूँ, और तेरे हाथ से कोई छुड़ानेवाला नहीं ! 8 तू ने अपके हाथोंसे मुझे ठीक रचा है और जोड़कर बनाया है; तौभी मुझे नाश किए डालता है। 9 स्मरण कर, कि तू ने मुझ को गून्धी हुई मिट्टी की नाई बनाया, क्या तू मुझे फिर धूल में मिलाएगा? 10 क्या तू ने मुझे दूध की नाई उंडेलकर, और दही के समान जमाकर नहीं बनाया? 11 फिर तू ने मुझ पर चमड़ा और मांस चढ़ाया और हड्डियां और नसें गूंयकर मुझे बनाया है। 12 तू ने मुझे जीवन दिया, और मुझ पर करुणा की है; और तेरी चौकसी से मेरे प्राण की रझा हई है। 13 तौभी तू ने ऐसी बातोंको अपके मन में छिपा रखा; मैं तो जान गया, कि तू ने ऐसा ही करने को ठाना या। 14 जो मैं पाप करूं, तो तू उसका लेखा लेगा; और अधर्म करने पर मुझे निदॉष न ठहराएगा। 15 जो मैं दुष्टता करूं तो मुझ पर हाथ ! और जो मैं धमीं बनूं तौभी मैं सिर न उठाऊंगा, क्योंकि मैं अपमान से भरा हुआ हूं और अपके दु:ख पर ध्यान रखता हूँ। 16 और चाहे सिर उठाऊं तौभी तू सिंह की नाई मेरा अहेर करता है, और फिर मेरे विरुद्ध आश्चर्यकर्म करता है। 17 तू मेरे साम्हने अपके नथे नथे साझी ले आता है, और मुझ पर अपना क्रोध बढ़ाता है; और मुझ पर सेना पर सेना चढ़ाई करती है। 18 तू ने मुझे गर्भ से क्योंनिकाला? नहीं तो मैं वहीं प्राण छोड़ता, और कोई मुझे देखने भी न पाता। 19 मेरा होना न होने के समान होता, और पेट ही से क़ब्र को पहुंचाया जाता। 20 क्या मेरे दिन योड़े नहीं? मुझे छोड़ दे, और मेरी ओर से मुंह फेर ले, कि मेरा मन योड़ा शान्त हो जाए 21 इस से पहिले कि मैं वहां जाऊं, जहां से फिर न लौटूंगा, अर्यात् अन्धिक्कारने और धोर अन्धकार के देश में, जहां अन्धकार ही अन्धकार है; 22 और मृत्यु के अन्धकार का देश जिस में सब कुछ गड़बड़ है; और जहां प्रकाश भी ऐसा है जैसा अन्धकार।
1 तब नामाती सोपर ने कहा: 2 बहुत सी बातें जो कही गई हैं, क्या उनका उत्तर देना न चाहिथे? क्या बकवादी मनुष्य धमीं ठहराया जाए? 3 क्या तेरे बड़े बोल के कारण लोग चुप रहें? और जब तू ठट्ठा करता है, तो क्या कोई तुझे लज्जित न करे? 4 तू तो यह कहता है कि मेरा सिद्धान्त शुद्ध है और मैं ईश्वर की दृष्टि में पवित्र हूँ। 5 परन्तु भला हो, कि ईश्वर स्वयं बातें करें, और तेरे विरुद्ध मुंह खोले, 6 और तुझ पर बुद्धि की गुप्त बातें प्रगट करे, कि उनका मर्म तेरी बुद्धि से बढ़कर है। इसलिथे जान ले, कि ईश्वर तेरे अधर्म में से बहुत कुछ भूल जाता है। 7 क्या तू ईश्वर का गूढ़ भेद पा सकता है? और क्या तू सर्वशक्तिमान का मर्म पूरी रीति से चांच सकता है? 8 वह आकाश सा ऊंचा है; तू क्या कर सकता है? वह अधोलोक से गहिरा है, तू कहां समझ सकता है? 9 उसकी माप पृय्वी से भी लम्बी है और समुद्र से चौड़ी है। 10 जब ईश्वर बीच से गुजरकर बन्द कर दे और अदालत में बुलाए, तो कौन उसको रोक सकता है। 11 क्योंकि वह पाखणडी मनुष्योंका भेद जानता है, और अनर्य काम को बिना सोच विचार किए भी जान लेता है। 12 पनन्तु मनुष्य छूछा और निर्बुद्धि होता है; क्योंकि मनुष्य जन्म ही से जंगली गदहे के बच्चे के समान होता है। 13 यदि तू अपना मन शुद्ध करे, और ईश्वर की ओर अपके हाथ फैलाए, 14 और जो कोई अनर्य काम तुझ से होता हो उसे दूर करे, और अपके डेरोंमें कोई कुटिलता न रहने दे, 15 तब तो तू निश्चय अपना मुंह निष्कलंक दिखा सकेगा; और तू स्य्िर होकर कभी न डरेगा। 16 तब तू अपना दु:ख भूल जाएगा, तू उसे उस पानी के समान स्मरण करेगा जो बह गया हो। 17 और तेरा जीवन दोपहर से भी अधिक प्रकाशमान होगा; और चाहे अन्धेरा भी हो तौभी वह भोर सा हो जाएगा। 18 और तुझे आशा होगी, इस कारण तू निर्भय रहेगा; और अपके चारोंओर देख देखकर तू निर्भय विश्रम कर सकेगा। 19 और जब तू लेटेगा, तब कोई तुझे डराएगा नहीं; और बहुतेरे तुझे प्रसन्न करते का यत्न करेंगे। 20 परन्तु दुष्ट लोगोंकी आंखें रह जाएंगी, और उन्हें कोई शरुण स्यान न मिलेगा और उनकी आशा यही होगी कि प्राण निकल जाए।
1 तब अय्यूब ने कहा; 2 नि:सन्देह मनुष्य तो तुम ही हो और जब तुम मरोगे तब बुद्धि भी जाती रहेगी। 3 परन्तु तुम्हारी नाई मुझ में भी समझ है, मैं तुम लोगोंसे कुछ तीचा नहीं हूँ कौन ऐसा है जो ऐसी बातें न जानता हो? 4 मैं ईश्वर से प्रार्यना करता या, और वह मेरी सुन दिया करता या; परन्तु अब मेरे पड़ोसी मुझ पर हंसते हैं; जो धमीं और खरा मनुष्य है, वह हंसी का कारण हो गया है। 5 दु:खी लोग तो सुखियोंकी समझ में तुच्छ जाने जाते हैं; और जिनके पांव फिसला चाहते हैं उनका अपमान अवश्य ही होता है। 6 डाकुओं के डेरे कुशल झेम से रहते हैं, और जो ईश्वर को क्रोध दिलाते हैं, वह बहुत ही निडर रहते हैं; और उनके हाथ में ईश्वर बहुत देता है। 7 पशुओं से तो पूछ और वे तुझे दिखाएंगे; और आकाश के पझियोंसे, और वे तुझे बता देंगे। 8 पृय्वी पर ध्यान दे, तब उस से तुझे शिझा मिलेगी; ओर समुद्र की मछलियां भी तुझ से वर्णन करेंगी। 9 कौन इन बातोंको नहीं जानता, कि यहोवा ही ने अपके हाथ से इस संसार को बनाया है। 10 उसके हाथ में एक एक जीवधारी का प्राण, और एक एक देहधारी मनुष्य की आत्मा भी रहती है। 11 जैसे जीभ से भोजन चखा जाता है, क्या वैसे ही कान से वचन नहीं परखे जाते? 12 बूढ़ां में बुद्धि पाई जाती है, और लम्बी आयुवालोंमें समझ होती तो है। 13 ईश्वर में पूरी बुद्धि और पराक्रम पाए जाते हैं; युक्ति और समझ उसी में हैं। 14 देखो, जिसको वह ढा दे, वह फिर बनाया नहीं जाता; जिस मनुष्य को वह बन्द करे, वह फिर खोला नहीं जाता। 15 देखो, जब वह वर्षा को रोक रखता है तो जल सूख जाता है; फिर जब वह जल छोड़ देता है तब पृय्वी उलट जाती है। 16 उस में सामर्य्य और खरी बुद्धि पाई जाती है; धोख देनेवाला और धोखा खानेवाला दोनोंउसी के हैं। 17 वह मंत्रियोंको लूटकर बन्धुआई में ले जाता, और न्यायियोंको मूर्ख बना देता है। 18 वह राजाओं का अधिक्कारने तोड़ देता है; और उनकी कमर पर बन्धन बन्धवाता है। 19 वह याजकोंको लूटकर बन्धुआई में ले जाता और सामयिर्योंको उलट देता है। 20 वह विश्वासयोग्य पुरुषोंसे बोलने की शक्ति और पुरनियोंसे विवेक की शक्ति हर लेता है। 21 वह हाकिमोंको अपमान से लादता, और बलवानोंके हाथ ढीले कर देता है। 22 वह अन्धिक्कारने की गहरी बातें प्रगट करता, और मृत्यु की छाया को भी प्रकाश में ले आता है। 23 वह जातियोंको बढ़ाता, और उनको नाश करता है; वह उनको फैलाता, और बन्धुआई में ले जाता है। 24 वह पृय्वी के मुख्य लोगोंकी बुद्धि उड़ा देता, और उनको निर्जन स्यानोंमें जहां रास्ता नहीं है, भटकाता है। 25 वे बिन उजियाले के अन्धेरे में टटोलते फिरते हैं; और वह उन्हें ऐसा बना देता है कि वे मतवाले की नाई डगमगाते हुए चलते हैं।
1 सुनो, मैं यह सब कुछ अपक्की आंख से देख चुका, और अपके कान से सुन चुका, और समझ भी चुका हूँ। 2 जो कुछ तुम जानते हो वह मैं भी जानता हूँ; मैं तुम लोगोंसे कुछ कम नहीं हूँ। 3 मैं तो सर्वशक्तिमान से बातें करूंगा, और मेरी अभिलाषा ईश्वर से वादविवाद करने की है। 4 परन्तु तुम लोग फूठी बात के गढ़नेवाले हो; तुम सबके सब निकम्मे वैद्य हो। 5 भला होता, कि तुम बिलकुल चुप रहते, और इस से तुम बुद्धिमान ठहरते। 6 मेरा विवाद सुनो, और मेरी बहस की बातोंपर कान लगाओ। 7 क्या तुम ईश्वर के निमित्त टेढ़ी बातें कहोगे, और उसके पझ में कपट से बोलोगे? 8 क्या तुम उसका पझपात करोगे? और ईश्वर के लिथे मुकद्दमा चलाओगे। 9 क्या यह भला होगा, कि वह तुम को जांचे? क्या जैसा कोई मनुष्य को धोखा दे, वैसा ही तुम क्या उसको भी धेखा दोगे? 10 जो तुम छिपकर पझपात करो, तो वह निश्चय तुम को डांटेगा। 11 क्या तुम उसके माहात्म्य से भय न खाओगे? क्या उसका डर तुम्हारे मन में न समाएगा? 12 तुम्हारे स्मरणयोग्य नीतिवचन राख के समान हैं; तुम्हारे कोट मिट्टी ही के ठहरे हैं : 13 मुझ से बात करना छोड़ो, कि मैं भी कुछ कहने पाऊं; फिर मुझ पर जो चाहे वह आ पके। 14 मैं क्योंअपना मांस अपके दांतोंसे चबाऊं? और क्योंअपना प्राण हथेली पर रखूं? 15 वह मुझे घात करेगा, मुझे कुछ आशा नहीं; तौभी मैं अपक्की चाल चलन का पझ लूंगा। 16 और यह भी मेरे बचाव का कारण होगा, कि भक्तिहीन जन उसके साम्हने नहीं जा सकता। 17 चित्त लगाकर मेरी बात सुनो, और मेरी बिनती तुम्हारे कान में पके। 18 देखो, मैं ने अपके बहस की पूरी तैयारी की है; मुझे निश्चय है कि मैं निदॉष ठहरूंगा। 19 कौन है जो मुझ से मुकद्दमा लड़ सकेगा? ऐसा कोई पाया जाए, तो मैं चुप होकर प्राण छोडूंगा। 20 दो ही काम मुझ से न कर, तब मैं तुझ से नहीं छिपूंगा: 21 अपक्की ताड़ना मुझ से दूर कर ले, और अपके भय से मुझे भयभीत न कर। 22 तब तेरे बुलाने पर मैं बोलूंगा; नहीं तो मैं प्रश्न करूंगा, और तू मुझे उत्तर दे। 23 मुझ से कितने अधर्म के काम और पाप हुए हैं? मेरे अपराध और पाप मुझे जता दे। 24 तू किस कारण अपना मुंह फेर लेता है, और मुझे अपना शत्रु गिनता है? 25 क्या तू उड़ते हुए पत्ते को भी कंपाएगा? और सूखे डंठल के पीछे पकेगा? 26 तू मेरे लिथे कठिन दु:खोंकी आज्ञा देता है, और मेरी जवानी के अधर्म का फल मुझे भुगता देता है। 27 और मेरे पांवोंको काठ में ठोंकता, और मेरी सारी चाल चलन देखता रहता है; और मेरे पांवोंकी चारोंओर सीमा बान्ध लेता है। 28 और मैं सड़ी गली वस्तु के तुल्य हूं जो नाश हो जाती है, और कीड़ा खाए कपके के तुल्य हूँ।
1 मनुष्य जो स्त्री से उत्मन्न होता है, वह थेड़े दिनोंका और दुख से भरा रहता है। 2 वह फूल की नाई खिलता, फिर तोड़ा जाता हे; वह छाया की रीति पर ढल जाता, और कहीं ठहरता नहीं। 3 फिर क्या तू ऐसे पर दृष्टि लगाता है? क्या तू मुझे अपके साय कचहरी में घसीटता है? 4 अशुद्ध वस्तु से शुद्ध वस्तु को कौन निकाल सकता है? कोई नहीं। 5 मनुष्य के दिन नियुक्त किए गए हैं, और उसके महीनोंकी गिनती तेरे पास लिखी है, और तू ने उसके लिथे ऐसा सिवाना बान्धा है जिसे वह पार नहीं कर सकता, 6 इस कारण उस से अपना मुंह फेर ले, कि वह आराम करे, जब तक कि वह मजदूर की नाई अपना दिन पूरा न कर ले। 7 वुझ की तो आशा रहती है, कि चाहे वह काट डाला भी जाए, तौभी फिर पनपेगा और उस से नर्म नर्म डालियां निकलती ही रहेंगी। 8 चाहे उसकी जड़ भूमि में पुरानी भी हो जाए, और उसका ठूंठ मिट्टी में सूख भी जाए, 9 तौभी वर्षा की गन्ध पाकर वह फिर पनपेगा, और पौधे की नाई उस से शाखाएं फूटेंगी। 10 परन्तु पुरुष मर जाता, और पड़ा रहता है; जब उसका प्राण छूट गया, तब वह कहां रहा? 11 जैसे नील नदी का जल घट जाता है, और जैसे महानद का जल सूखते सूखते सूख जाता है, 12 वैसे ही मनुष्य लेट जाता और फिर नहीं उठता; जब तक आकाश बना रहेगा तब तक वह न जागेगा, और न उसकी नींद टूटेगी। 13 भला होता कि तू मुझे अधोलोक में छिपा लेता, और जब तक तेरा कोप ठंढा न हो जाए तब तक मुझे छिपाए रखता, और मेरे लिथे समय नियुक्त करके फिर मेरी सुधि लेता। 14 यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? जब तक मेरा छूटकारा न होता तब तक मैं अपक्की कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता। 15 तू मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपके हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती। 16 परन्तु अब तू मेरे पग पग को गिनता है, क्या तू मेरे पाप की ताक में लगा नहीं रहता? 17 मेरे अपराध छाप लगी हुई यैली में हैं, और तू ने मेरे अधर्म को सी रखा है। 18 और निश्चय पहाड़ भी गिरते गिरते नाश हो जाता है, और चट्टान अपके स्यान से हट जाती है; 19 और पत्यर जल से घिस जाते हैं, और भूमि की धूलि उसकी बाढ़ से बहाई जाती है; उसी प्रकार तू मनुष्य की आशा को मिटा देता है। 20 तू सदा उस पर प्रबल होता, और वह जाता रहता है; तू उसका चिहरा बिगाड़कर उसे निकाल देता है। 21 उसके पुत्रोंकी बड़ाई होती है, और यह उसे नहीं सूफता; और उनकी घटी होती है, परन्तु वह उनका हाल नहीं जानता। 22 केवल अपके ही कारण उसकी देी को दु:ख होता है; और अपके ही कारण उसका प्राण अन्दर ही अन्दर शोकित रहता है।
1 तब तेमानी एलीपज ने कहा, 2 क्या बुद्धिमान को उचित है कि अज्ञानता के साय उत्तर दे, वा उपके अन्त:करण को पूरबी पवन से भरे? 3 क्या वह निष्फल वचनोंसे, वा व्यर्य बातोंसे वादविवाद करे? 4 वरन तू भय मानना छोड़ देता, और ईश्वर का ध्यान करना औरोंसे छुड़ाता है। 5 तू अपके मुंह से अपना अधर्म प्रगट करता है, और धूर्त्त लोगोंके बोलने की रीति पर बोलता है। 6 मैं तो नहीं परन्तु तेरा मुंह ही तुझे दोषी ठहराता है; और तेरे ही वचन तेरे विरुद्ध साझी देते हैं। 7 क्या पहिला मतुष्य तू ही उत्पन्न हुआ? क्या तेरी उत्पत्ति पहाड़ोंसे भी पहिले हुई? 8 क्या तू ईश्वर की सभा में बैठा सुनता या? क्या बुद्धि का ठीका तू ही ने ले रखा है? 9 तू ऐसा क्या जानता है जिसे हम नहीं जानते? तुझ में ऐसी कौन सी समझ है जो हम में नहीं? 10 हम लोगोंमें तो पक्के बालवाले और अति पुरनिथे मनुष्य हैं, जो तेरे पिता से भी बहुत आयु के हैं। 11 ईश्वर की शान्तिदायक बातें, और जो वचन तेरे लिथे कोमल हैं, क्या थे तेरी दृष्टि में तुच्छ हैं? 12 तेरा मन क्योंतुझे खींच ले जाता है? और तू आंख से क्योंसैन करता है? 13 तू भी अपक्की आत्मा ईश्वर के विरुद्ध करता है, और अपके मुंह से व्यर्य बातें निकलने देता है। 14 मनुष्य है क्या कि वह निष्कलंक हो? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ वह है क्या कि निदॉष हो सके? 15 देख, वह अपके पवित्रोंपर भी विश्वास नहीं करता, और स्वर्ग भी उसकी दृष्टि में निर्मल नहीं है। 16 फिर मनुष्य अधिक घिनौना और मलीन है जो कुटिलता को पानी की नाई पीता है। 17 मैं तुझे समझा दूंगा, इसलिथे मेरी सुन ले, जो मैं ने देखा है, उसी का वर्णन मैं करता हूँ। 18 (वे ही बातें जो बुद्धिमानोंने अपके पुरखाओं से सुनकर बिना छिपाए बताया है। 19 केवल उन्हीं को देश दिया गया या, और उनके मध्य में कोई विदेशी आता जाता नहीं या।) 20 दुष्ट जन जीवन भर पीड़ा से तड़पता है, और बलात्कारी के वषॉं की गिनती ठहराई हुई है। 21 उसके कान में डरावना शब्द गूंजता रहता है, कुशल के समय भी नाशक उस पर आ पड़ता है। 22 उसे अन्धिक्कारने में से फिर निकलने की कुछ आशा नहीं होती, और तलवार उसकी घात में रहती है। 23 वह रोटी के लिथे मारा मारा फिरता है, कि कहां मिलेगी। उसे निश्चय रहता है, कि अन्धकार का दिन मेरे पास ही है। 24 संकट और दुर्घटना से असको डर लगता रहता है, ऐसे राजा की नाई जो युद्ध के लिथे तैयार हो, वे उस पर प्रबल होते हैं। 25 उस ने तो ईश्वर के विरुद्ध हाथ बढ़ाया है, और सर्वशक्तिमान के विरुद्ध वह ताल ठोंकता है, 26 और सिर उठाकर और अपक्की मोटी मोटी ढालें दिखाता हुआ घमणड से उस पर धावा करता है; 27 इसलिथे कि उसके मुंह पर चिकनाई छा गई है, और उसकी कमर में चक्कीं जमी है। 28 और वह उजाड़े हुए नगरोंमें बस गया है, और जो घर रहने योग्य नहीं, और खणडहर होने को छोड़े गए हैं, उन में बस गया है। 29 वह धनी न रहेगा, और न उसकी सम्पत्ति बनी रहेगी, और ऐसे लोगोंके खेत की उपज भूमि की ओर न भुकने पाएगी। 30 वह अन्धिक्कारने से कभी न निकलेगा, और उसकी डालियां आग की लपट से फुलस जाएंगी, और ईश्वर के मुंह की श्वास से वह उड़ जाएगा। 31 वह अपके को धोखा देकर व्यर्य बातोंका भरोसा न करे, क्योंकि उसका बदला धोखा ही होगा। 32 वह उसके नियत दिन से पहिले पूरा हो जाएगा; उसकी डालियां हरी न रहेंगी। 33 दाख की नाई उसके कच्चे फल फड़ जाएंगे, और उसके फूल जलपाई के वृझ के से गिरेंगे। 34 क्योंकि भक्तिहीन के परिवार से कुछ बन न पकेगा, और जो घूस लेते हैं, उनके तम्बू आग से जल जाएंगे। 35 उनके उपद्रव का पेट रहता, और अनर्य उत्पन्न होता है: और वे अपके अन्त:करण में छल की बातें गढ़ते हैं।
1 तब अय्यूब ने कहा, 2 ऐसी बहुत सी बातें मैं सुन चुका हूँ, तुम सब के सब निकम्मे शान्तिदाता हो। 3 क्या व्यर्य बातोंका अन्त कभी होगा? तू कौन सी बात से फिड़ककर उत्तर देता। 4 जो तुम्हारी दशा मेरी सी होती, तो मैं भी तुम्हारी सी बातें कर सकता; मैं भी तुम्हारे विरुद्ध बातें जोड़ सकता, और तुम्हारे विरुद्ध सिर हिला सकता। 5 वरन मैं अपके वचनोंसे तुम को हियाव दिलाता, और बातोंसे शान्ति देकर तुम्हारा शोक घटा देता। 6 चाहे मैं बोलूं तौभी मेरा शोक न घटेगा, चाहे मैं चुप रहूं, तौभी मेरा दु:ख कुछ कम न होगा। 7 परन्तु अब उस ने पुफे उकता दिया है; उस ने मेरे सारे परिवार को उजाड़ डाला है। 8 और उस ने जो मेरे शरीर को सुखा डाला है, वह मेरे विरुद्ध साझी ठहरा है, और मेरा दुबलापन मेरे विरुद्ध खड़ा होकर मेरे साम्हने साझी देता है। 9 उस ने क्रोध में आकर मुझ को फाड़ा और मेरे पीछे पड़ा है; वह मेरे विरुद्ध दांत पीसता; और मेरा वैरी मुझ को आंखें दिखाता है। 10 अब लोग मुझ पर मुंह पसारते हैं, और मेरी नामधराई करके मेरे गाल पर यपेड़ा मारते, और मेरे विरुद्ध भीड़ लगाते हैं। 11 ईश्वर ने मुझे कुटिलोंके वश में कर दिया, और दुष्ट लोगोंके हाथ में फेंक दिया है। 12 मैं सुख से रहता या, और उस ने मुझे चूर चूर कर डाला; उस ने मेरी गर्दन पकड़कर मुझे टुकड़े टुकड़े कर दिया; फिर उस ने पुफे अपना निशाना बनाकर खड़ा किया है। 13 उसके तीर मेरे चारोंओर उड़ रहे हैं, वह निर्दय होकर मेरे गुदॉं को बेधता है, और मेरा मित्त भूमि पर बहाता है। 14 वह शूर की नाई मुझ पर धावा करके मुझे चोट पर चोट पहुंचाकर घायल करता है। 15 मैं ने अपक्की खाल पर टाट को सी लिया है, और अपना सींग मिट्टी में मैला कर दिया है। 16 रोते रोते मेरा मुंह सूज गया है, और मेरी आंखोंपर घोर अन्धकार छा गया है; 17 तौभी मुझ से कोई उपद्रव नहीं हुआ है, और मेरी प्रार्यना पवित्र है। 18 हे पृय्वी, तू मेरे लोहू को न ढांपना, और मेरी दोहाई कहीं न रुके। 19 अब भी स्वर्ग में मेरा साझी है, और मेरा गवाह ऊपर है। 20 मेरे मित्र मुझ से घृणा करते हैं, परन्तु मैं ईश्वर के साम्हने आंसू बहाता हूँ, 21 कि कोई ईश्वर के विरुद्ध सज्जन का, और आदमी का मुक़द्दमा उसके पड़ोसी के विरुद्ध लड़े। 22 क्योंकि योड़े ही वषॉं के बीतने पर मैं उस मार्ग से चला जाऊंगा, जिस से मैं फिर वापिस न लौटूंगा।
1 मेरा प्राण नाश हुआ चाहता है, मेरे दिन पूरे हो चुके हैं; मेरे लिथे कब्र तैयार है। 2 निश्चय जो मेरे संग हैं वह ठट्ठा करनेवाले हैं, और उनका फगड़ा रगड़ा मुझे लगातार दिखाई देता है। 3 जमानत दे अपके और मेरे बीच में तू ही जामिन हो; कौन है जो मेरे हाथ पर हाथ मारे? 4 तू ने इनका मन समझने से रोका है, इस कारण तू इनको प्रबल न करेगा। 5 जो अपके मित्रोंको चुगली खाकर लूटा देता, उसके लड़कोंकी आंखें रह जाएंगी। 6 उस ने ऐसा किया कि सब लोग मेरी उपमा देते हैं; और लोग मेरे मुंह पर यूकते हैं। 7 खेद के मारे मेरी आंखोंमें घुंघलापन छा गया है, और मेरे सब अंग छाया की नाई हो गए हैं। 8 इसे देखकर सीधे लोग चकित होते हैं, और जो निदॉष हैं, वह भक्तिहीन के विरुद्ध उभरते हैं। 9 तौभी धमीं लोग अपना मार्ग पकड़े रहेंगे, और शुद्ध काम करनेवाले सामर्य्य पर सामर्य्य पाते जाएंगे। 10 तुम सब के सब मेरे पास आओ तो आओ, परन्तु मुझे तुम लोगोंमें एक भी बुद्धिमान न मिलेगा। 11 मेरे दिन तो बीत चुके, और मेरी मनसाएं मिट गई, और जो मेरे मन में या, वह नाश हुआ है। 12 वे रात को दिन ठहराते; वे कहते हैं, अन्धिक्कारने के निकट उजियाला है। 13 यदि मेरी आश यह हो कि अधोलोक मेरा धाम होगा, यदि मैं ने अन्धिक्कारने में अपना बिछौना बिछा लिया है, 14 यदि मैं ने सड़ाहट से कहा कि तू मेरा पिता है, और कीड़े से, कि तू मेरी मां, और मेरी बहिन है, 15 तो मेरी आशा कहां रही? और मेरी आशा किस के देखने में आएगी? 16 वह तो अधोलोक में उतर जाएगी, और उस समेत मुझे भी मिट्टी में विश्रम मिलेगा।
1 तब शूही बिल्दद ने कहा, 2 तुम कब तक फन्दे लगा लगाकर वचन पकड़ते रहोगे? चित्त लगाओ, तब हम बोलेंगे। 3 हम लोग तुम्हारी दृष्टि में क्योंपशु के तुल्य समझे जाते, और अशुद्ध ठहरे हैं। 4 हे अपके को क्रोध में फाड़नेवाले क्या तेरे निमित्त पृय्वी उजड़ जाएगी, और चट्टान अपके स्यान से हट जाएगी? 5 तौभी दुष्टोंका दीपक बुफ जाएगा, और उसकी आग की लौ न चमकेगी। 6 उसके डेरे में का उजियाला अन्धेरा हो जाएगा, और उसके ऊपर का दिया बुफ जाएगा। 7 उसके बड़े बड़े फाल छोटे हो जाएंगे और वह अपक्की ही युक्ति के द्वारा गिरेगा। 8 वह अपना ही पांव जाल में फंसाएगा, वह फन्दोंपर चलता है। 9 उसकी एड़ी फन्दे में फंस जाएगी, और वह जाल में पकड़ा जाएगा। 10 फन्दे की रस्सियां उसके लिथे भूमि में, और जाल रास्ते में छिपा दिया गया है। 11 चारोंओर से डरावनी वस्तुएं उसे डराएंगी और उसके पीछे पड़कर उसको भगाएंगी। 12 उसका बल दु:ख से घट जाएगा, और विपत्ति उसके पास ही तैयार रहेगी। 13 वह उसके अंग को खा जाएगी, वरन काल का पहिलौठा उसके अंगोंको खा लेगा। 14 अपके जिस डेरे का भरोसा वह करता है, उस से वह छीन लिया जाएगा; और वह भयंकरता के राजा के पास पहुंचाया जाएगा। 15 जो उसके यहां का नहीं है वह उसके डेरे में वास करेगा, और उसके घर पर गन्धक छितराई जाएगी। 16 उसकी जड़ तो सूख जाएगी, और डालियां कट जाएंगी। 17 पृय्वी पर से उसका स्मरण मिट जाएगा, और बाज़ार में उसका नाम कभी न सुन पकेगा। 18 वह उजियाले से अन्धिक्कारने में ढकेल दिया जाएगा, और जगत में से भी भगाया जाएगा। 19 उसके कुटुम्बियोंमें उसके कोई पुत्रपौत्र न रहेगा, और जहां वह रहता या, वहां कोई बचा न रहेगा। 20 उसका दिन देखकर पूरबी लोग चकित होंगे, और पश्चिम के निवासियोंके रोएं खड़े हो जाएंगे। 21 नि:सन्देह कुटिल लोगोंके निवास ऐसे हो जाते हैं, और जिसको ईश्वर का ज्ञान नहीं रहता उसका स्यान ऐसा ही हो जाता है।
1 तब अय्यूब ने कहा, 2 तुम कब तक मेरे प्राण को दु:ख देते रहोगे; और बातोंसे मुझे चूर चूर करोगे? 3 इन दसोंबार तुम लोग मेरी निन्दा ही करते रहे, तुम्हें लज्जा नहीं आती, कि तुम मेरे साय कठोरता का बरताव करते हो? 4 मान लिया कि मुझ से भूल हुई, तौभी वह भूल तो मेरे ही सिर पर रहेगी। 5 यदि तुम सचमुच मेरे विरुद्ध अपक्की बड़ाई करते हो और प्रमाण देकर मेरी तिन्दा करते हो, 6 तो यह जान लो कि ईश्वर ने मुझे गिरा दिया है, और मुझे अपके जाल में फंसा लिया है। 7 देखो, मैं उपद्रव ! उपद्रव ! योंचिल्लाता रहता हूँ, परन्तु कोई नहीं सुनता; मैं सहाथता के लिथे दोहाई देता रहता हूँ, परन्तु कोई न्याय नहीं करता। 8 उस ने मेरे मार्ग को ऐसा रूंधा है कि मैं आगे चल नहीं सकता, और मेरी डगरें अन्धेरी कर दी हैं। 9 मेरा विभव उस ने हर लिया है, और मेरे सिर पर से मुकुट उतार दिया है। 10 उस ने चारोंओर से मुझे तोड़ दिया, बस मैं जाता रहा, और मेरा आसरा उस ने वृझ की नाई उखाड़ डाला है। 11 उस ने मुझ पर अपना क्रोध भड़काया है और अपके शत्रुओं में मुझे गिनता है। 12 उसके दल इकट्ठे होकर मेरे विरुद्ध मोर्चा बान्धते हैं, और मेरे डेरे के चारोंओर छावनी डालते हैं। 13 उस ने मेरे भाइयोंको मुझ से दूर किया है, और जो मेरी जान पहचान के थे, वे बिलकुल अनजान हो गए हैं। 14 मेरे कुटुंबी मुझे छोड़ गए हैं, और जो मुझे जानते थे वह मुझे भूल गए हैं। 15 जो मेरे घर में रहा करते थे, वे, वरन मेरी दासियां भी मुझे अनजाना गिनने लगीं हैं; उनकी दृष्टि में मैं परदेशी हो गया हूँ। 16 जब मैं अपके दास को बुलाता हूँ, तब वह नहीं बोलता; मुझे उस से गिड़गिड़ाना पड़ता है। 17 मेरी सांस मेरी स्त्री को और मेरी गन्ध मेरे भाइयोंकी दृष्टि में घिनौनी लगती है। 18 लड़के भी मुझे तुच्छ जानते हैं; और जब मैं उठने लगता, तब वे मेरे विरुद्ध बोलते हैं। 19 मेरे सब परम मित्र मुझ से द्वेष रखते हैं, और जिन से मैं ने प्रेम किया सो पलटकर मेरे विरोधी हो गए हैं। 20 मेरी खाल और मांस मेरी हड्डियोंसे सट गए हैं, और मैं बाल बाल बच गया हूं। 21 हे मेरे मित्रो ! मुझ पर दया करो, दया, क्योंकि ईश्वर ने मुझे मारा है। 22 तुम ईश्वर की नाई क्योंमेरे पीछे पके हो? और मेरे मांस से क्योंतृप्त नहीं हुए? 23 भला होता, कि मेरी बातें लिखी जातीं; भला होता, कि वे पुस्तक में लिखी जातीं, 24 और लोहे की टांकी और शीशे से वे सदा के लिथे चट्टान पर खोदी जातीं। 25 मुझे तो निश्चय है, कि मेरा छुड़ानेवाला जीवित है, और वह अन्त में पृय्वी पर खड़ा होगा। 26 और अपक्की खाल के इस प्रकार नाश हो जाने के बाद भी, मैं शरीर में होकर ईश्वर का दर्शन पाऊंगा। 27 उसका दर्शन मैं आप अपक्की आंखोंसे अपके लिथे करूंगा, और न कोई दूसरा। यद्यपि मेरा ह्रृदय अन्दर ही अन्दर चूर चूर भी हो जाए, 28 तौभी मुझ में तो धर्म का मूल पाया जाता है ! और तुम जो कहते हो हम इसको क्योंकर सताएं ! 29 तो तुम तलवार से डरो, क्योंकि जलजलाहट से तलवार का दणड मिलता है, जिस से तुम जान लो कि न्याय होता है।
1 तब नामाती सोपर ने कहा, 2 मेरा जी चाहता है कि उत्तर दूं, और इसलिथे बोलने में फुतीं करता हूँ। 3 मैं ने ऐसी चितौनी सुनी जिस से मेरी निन्दा हुई, और मेरी आत्मा अपक्की समझ के अनुसार तुझे उत्तर देती है। 4 क्या तू यह नियम नहीं जानता जो प्राचीन और उस समय का है, जब मनुष्य पृय्वी पर बसाया गया, 5 कि दुष्टोंका ताली बजाना जल्दी बन्द हो जाता और भक्तिहीनोंका आनन्द पल भर का होता है? 6 चाहे ऐसे मनुष्य का माहात्म्य आकाश तक पहुंच जाए, और उसका सिर बादलोंतक पहुंचे, 7 तौभी वह अपक्की विष्ठा की नाई सदा के लिथे नाश हो जाएगा; और जो उसको देखते थे वे पूछेंगे कि वह कहां रहा? 8 वह स्वप्न की नाई लोप हो जाएगा और किसी को फिर न मिलेगा; रात में देखे हुए रूप की नाई वह रहने न पाएगा। 9 जिस ने उसको देखा हो फिर उसे न देखेगा, और अपके स्यान पर उसका कुछ पता न रहेगा। 10 उसके लड़केबाले कंगालोंसे भी बिनती करेंगे, और वह अपना छीना हुआ माल फेर देगा। 11 उसकी हड्डियोंमें जवानी का बल भरा हुआ है परन्तु वह उसी के साय मिट्टी में मिल जाएगा। 12 चाहे बुराई उसको मीठी लगे, और वह उसे अपक्की जीभ के नीचे छिपा रखे, 13 और वह उसे बचा रखे और न छोड़े, वरन उसे अपके तालू के बीच दबा रखे, 14 तौभी उसका भोजन उसके पेट में पलटेगा, वह उसके अन्दर नाग का सा विष बन जाएगा। 15 उस ने जो धन निगल लिया है उसे वह फिर उगल देगा; ईश्वर उसे उसके पेट में से निकाल देगा। 16 वह नागोंका विष चूस लेगा, वह करैत के डसने से मर जाएगा। 17 वह नदियोंअर्यात् मधु और दही की नदियोंको देखने न पाएगा। 18 जिसके लिथे उस ने परिश्र्म किया, उसको उसे लौटा देना पकेगा, और वह उसे निगलने न पाएगा; उसकी मोल ली हुई वस्तुओं से जितना आनन्द होना चाहिथे, उतना तो उसे न मिलेगा। 19 क्योंकि उस ने कंगालोंको पीसकर छोड़ दिया, उस ने घर को छीन लिया, उसको वह बढ़ाने न पाएगा। 20 लालसा के मारे उसको कभी शान्ति नहीं मिलती यी, इसलिथे वह अपक्की कोई मनभावनी वस्तु बचा न सकेगा। 21 कोई वस्तु उसका कौर बिना हुए न बचक्की यी; इसलिथे उसका कुशल बना न रहेगा 22 पूरी सम्पत्ति रहते भी वह सकेती में पकेगा; तब सब दु:खियोंके हाथ उस पर उठेंगे। 23 ऐसा होगा, कि उसका पेट भरने के लिथे ईश्वर अपना क्रोध उस पर भड़काएगा, और रोटी खाने के समय वह उस पर पकेगा। 24 वह लोहे के हयियार से भागेगा, और पीतल के धनुष से मारा जाएगा। 25 वह उस तीर को खींचकर अपके पेट से निकालेगा, उसकी चमकीली नोंक उसके पित्ते से होकर निकलेगी, भय उस में समाएगा। 26 उसके गड़े हुए धन पर घोर अन्धकार छा जाएगा। वह ऐसी आग से भस्म होगा, जो मनुष्य की फूंकी हुई न हो; और उसी से उसके डेरे में जो बचा हो वह भी भस्म हो जाएगा। 27 आकाश उसका अयर्म प्रगट करेगा, और पृय्वी उसके विरुद्ध खड़ी होगी। 28 उसके घर की बढ़ती जाती रहेगी, वह उसके क्रोध के दिन बह जाएगी। 29 परमेश्वर की ओर से दुष्ट मनुष्य का अंश, और उसके लिथे ईश्वर का ठहराया हुआ भाग यही है।
1 तब अय्यूब ने कहा, 2 चित्त लगाकर मेरी बात सुनो; और तुम्हारी शान्ति यही ठहरे। 3 मेरी कुछ तो सहो, कि मैं भी बातें करूं; और जब मैं बातें कर चुकूं, तब पीछे ठट्ठा करना। 4 क्या मैं किसी मनुष्य की दोहाई देता हूँ? फिर मैं अधीर क्योंन होऊं? 5 मेरी ओर चित्त लगाकर चकित हो, और अपक्की अपक्की उंगली दांत तले दबाओ। 6 जब मैं स्मरण करता तब मैं घबरा जाता हूँ, और मेरी देह में कंपकंपी लगती है। 7 क्या कारण है कि दुष्ट लोग जीवित रहते हैं, वरन बूढ़े भी हो जाते, और उनका धन बढ़ता जाता है? 8 उनकी सन्तान उनके संग, और उनके बालबच्चे उनकी आंखोंके साम्हने बने रहते हैं। 9 उनके घर में भयरहित कुशल रहता है, और ईश्वर की छड़ी उन पर नहीं पड़ती। 10 उनका सांड़ गाभिन करता और चूकता नहीं, उनकी गाथें बियाती हैं और बच्चा कभी नहीं गिरातीं। 11 वे अपके लड़कोंको फुणड के फुणड बाहर जाने देते हैं, और उनके बच्चे नाचते हैं। 12 वे डफ और वीणा बजाते हुए गाते, और बांसुरी के शब्द से आनन्दित होते हैं। 13 वे अपके दिन सुख से बिताते, और पल भर ही में अधोलोक में उतर जाते हैं। 14 तौभी वे ईश्वर से कहते थे, कि हम से दूर हो ! तेरी गति जानने की हम को इच्छा नहीं रहती। 15 सर्वशक्तिमान क्या है, कि हम उसकी सेवा करें? और जो हम उस से बिनती भी करें तो हमें क्या लाभ होगा? 16 देखो, उनका कुशल उनके हाथ में नहीं रहती, दुष्ट लोगोंका विचार मुझ से दूर रहे। 17 कितनी बार दुष्टोंका दीपक बुफ जाता है, और उन पर विपत्ति आ पड़ती है; और ईश्वर क्रोध करके उनके बांट में शोक देता है, 18 और वे वायु से उड़ाए हुए भूसे की, और बवणडर से उड़ाई हुई भूसी की नाई होते हैं। 19 ईश्वर उसके अधर्म का दणड उसके लड़केबालोंके लिथे रख छोड़ता है, वह उसका बदला उसी को दे, ताकि वह जान ले। 20 दुष्ट अपना नाश अपक्की ही आंखोंसे देखे, और सर्वशक्तिमान की जलजलाहट में से आप पी ले। 21 क्योंकि जब उसके महीनोंकी गिनती कट चुकी, तो अपके बादवाले घराने से उसका क्या काम रहा। 22 क्या ईश्वर को कोई ज्ञान सिखाएगा? वह तो ऊंचे पद पर रहनेवालोंका भी न्याय करता है। 23 कोई तो अपके पूरे बल में बड़े चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है। 24 उसकी दोहनियां दूध से और उसकी हड्डियां गूदे से भरी रहती हैं। 25 और कोई अपके जीव में कुढ़ कुढ़कर बिना सुख भोगे मर जाता है। 26 वे दोनोंबराबर मिट्टी में मिल जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं। 27 देखो, मैं तुम्हारी कल्पनाएं जानता हूँ, और उन युक्तियोंको भी, जो तुम मेरे विषय में अन्याय से करते हो। 28 तुम कहते तो हो कि रईस का घर कहां रहा? दुष्टोंके निवास के डेरे कहां रहे? 29 परन्तु क्या तुम ने बटोहियोंसे कभी नहीं पूछा? क्या तुम उनके इस विषय के प्रमाणोंसे अनजान हो, 30 कि विपत्ति के दिन के लिथे दुर्जन रखा जाता है; और महाप्रलय के समय के लिथे ऐसे लोग बचाए जाते हैं? 31 उसकी चाल उसके मुंह पर कौन कहेगा? और उस ने जो किया है, उसका पलटा कौन देगा? 32 तौभी वह क़ब्र को पहुंचाया जाता है, और लोग उस क़ब्र की रखवाली रिते रहते हैं। 33 नाले के ढेले उसको सुखदायक लगते हैं; और जैसे पूर्वकाल के लोग अनगिनित जा चुके, वैसे ही सब मनुष्य उसके बाद भी चले जाएंगे। 34 तुम्हारे उत्तरोंमें तो फूठ ही पाया जाता है, इसलिथे तुम क्योंमुझे व्यर्य शान्ति देते हो?
1 तब तेमानी एलीपज ने कहा, 2 क्या पुरुष से ईश्वर को लाभ पहुंच सकता है? जो बुद्धिमान है, वह अपके ही लाभ का कारण होता है। 3 क्या तेरे धमीं होने से सर्वशक्तिमान सुख पा सकता है? तेरी चाल की खराई से क्या उसे कुछ लाभ हो सकता है? 4 वह तो तुझे डांटता है, और तुझ से मुकद्दमा लड़ता है, तो क्या इस दशा में तेरी भक्ति हो सकती है? 5 क्या तेरी बुराई बहुत नहीं? तेरे अधर्म के कामोंका कुछ अन्त नहीं। 6 तू ने तो अपके भाई का बन्धक अकारण रख लिया है, और नंगे के वस्त्र उतार लिथे हैं। 7 यके हुए को तू ने पानी न पिलाया, और भूखे को रोटी देने से इनकार किया। 8 जो बलवान या उसी को भूमि मिली, और जिस पुरुष की प्रतिष्ठा हुई यी, वही उस में बस गया। 9 तू ने विधवाओं को छूछे हाथ लौटा दिया। और अनायोंकी बाहें तोड़ डाली गई। 10 इस कारण तेरे चारोंओर फन्दे लगे हैं, और अचानक डर के मारे तू घगरा रहा है। 11 क्या तू अन्धिक्कारने को नहीं देखता, और उस बाढ़ को जिस में तू डूब रहा है? 12 क्या ईश्वर स्वर्ग के ऊंचे स्यान में नहीं है? ऊंचे से ऊंचे तारोंको देख कि वे कितने ऊंचे हैं।। 13 फिर तू कहता है कि ईश्वर क्या जानता है? क्या वह घोर अन्धकार की आड़ में होकर न्याय करेगा? 14 काली घटाओं से वह ऐसा छिपा रहता है कि वह कुछ नहीं देख सकता, वह तो आकाशमणडल ही के ऊपर चलता फिरता है। 15 क्या तू उस पुराने रास्ते को पकड़े रहेगा, जिस पर वे अनर्य करनेवाले चलते हैं? 16 वे अपके समय से पहले उठा लिए गए और उनके घर की नेव नदी बहा ले गई। 17 उन्होंने ईश्वर से कहा या, हम से दूर हो जा; और यह कि सर्वशक्तिमान हमारा क्या कर सकता है? 18 तौभी उस ने उनके घर अच्छे अच्छे पदायॉंसे भर दिए-- परन्तु दुष्ट लोगोंका विचार मुझ से दूर रहे। 19 धमीं लेग देखकर आनन्दित होते हैं; और निदॉष लोग उनकी हंसी करते हैं, कि 20 जो हमारे विरुद्ध उठे थे, नि:सन्देह मिट गए और उनका बड़ा धन आग का कौर हो गया है। 21 उस से मेलमिलाप कर तब तुझे शान्ति मिलेगी; और इस से तेरी भलाई होगी। 22 उसके मुंह से शिझा सुन ले, और उसके वचन अपके मन में रख। 23 यदि तू सर्वशक्तिमान की ओर फिरके समीप जाए, और अपके डेरे से कुटिल काम दूर करे, तो तू बन जाएगा। 24 तू अपक्की अनमोल वस्तुओं को धूलि पर, वरन ओपीर का कुन्दन भी नालोंके पत्यरोंमें डाल दे, 25 तब सर्वशक्तिमान आप तेरी अनमोल वस्तु और तेरे लिथे चमकीली चान्दी होगा। 26 तब तू सर्वशक्तिमान से सुख पाएगा, और ईश्वर की ओर अपना मुंह बेखटके उठा सकेगा। 27 और तू उस से प्रार्यना करेगा, और वह तेरी सुनेगा; और तू अपक्की मन्नतोंको पूरी करेगा। 28 जो बात तू ठाने वह तुझ से बन भी पकेगी, और तेरे मागॉं पर प्रकाश रहेगा। 29 चाहे दुर्भाग्य हो तौभी तू कहेगा कि सुभाग्य होगा, क्योंकि वह नम्र मनुष्य को बचाता है। 30 वरन जो निदॉष न हो उसको भी वह बचाता है; तेरे शुद्ध कामोंके कारण तू छुड़ाया जाएगा।
1 तब अय्यूब ने कहा, 2 मेरी कुड़कुड़ाहट अब भी नहीं रुक सकती, मेरी मार मेरे कराहने से भारी है। 3 भला होता, कि मैं जानता कि वह कहां मिल सकता है, तब मैं उसके विराजने के स्यान तक जा सकता ! 4 मैं उसके साम्हने अपना मुक़द्दमा पेश करता, और बहुत से प्रमाण देता। 5 मैं जान लेता कि वह मुझ से उत्तर में क्या कह सकता है, और जो कुछ वह मुझ से कहता वह मैं समझ लेता। 6 क्या वह अपना बड़ा बल दिखाकर मुझ से मुक़द्दमा लड़ता? नहीं, वह मुझ पर ध्यान देता। 7 सज्जन उस से विवाद कर सकते, और इस रीति मैं अपके न्यायी के हाथ से सदा के लिथे छूट जाता। 8 देखो, मैं आगे जाता हूँ परन्तु वह नहीं मिलता; मैं पीछे हटता हूँ, परन्तु वह दिखाई नहीं पड़ता; 9 जब वह बाई ओर काम करता है तब वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह तो दहिनी ओर ऐसा छिप जाता है, कि मुझे वह दिखाई ही नहीं पड़ता। 10 परन्तु वह जानता है, कि मैं कैसी चाल चला हूँ; और जब वह मुझे ता लेगा तब मैं सोने के समान निकलूंगा। 11 मेरे पैर उसके मागॉं में स्यिर रहे; और मैं उसी का मार्ग बिना मुड़े यामे रहा। 12 उसकी आज्ञा का पालन करने से मैं न हटा, और मैं ने उसके वचन अपक्की इच्छा से कहीं अधिक काम के जानकर सुरझित रखे। 13 परन्तु वह एक ही बात पर अड़ा रहता है, और कौन उसको उस से फिरा सकता है? जो कुछ उसका जी चाहता है वही वह करता है। 14 जो कुछ मेरे लिथे उस ने ठाना है, उसी को वह पूरा करता है; और उसके मन में ऐसी ऐसी बहुत सी बातें हैं। 15 इस कारण मैं उसके सम्मुख घबरा जाता हूँ; जब मैं सोचता हूँ तब उस से यरयरा उठता हूँ। 16 क्योंकि मेरा मन ईश्वर ही ने कच्चा कर दिया, और सर्वशक्तिमान ही ने मुझ को असमंजस में डाल दिया है। 17 इसलिथे कि मैं इस अन्धयारे से पहिले काट डाला न गया, और उस ने घोर अन्धकार को मेरे साम्हने से न छिपाया।
1 सर्वशक्तिमान ने समय क्योंनहीं ठहराया, और जो लोग उसका ज्ञान रखते हैं वे उसके दिन क्योंदेखने नहीं पाते? 2 कुछ लोग भूमि की सीमा को बढ़ाते, और भेड़ बकरियां छीनकर चराते हैं। 3 वे अनायोंका गदहा हांक ले जाते, और विधवा का बैल कन्धक कर रखते हैं। 4 वे दरिद्र लोगोंको मार्ग से हटा देते, और देश के दीनोंको इकट्ठे छिपना पड़ता है। 5 देखो, वे जंगली गदहोंकी नाई अपके काम को और कुछ भोजन यत्न से ढूंढ़ने को निकल जाते हैं; उनके लड़केबालोंका भोजन उनको जंगल से मिलता है। 6 उनको खेत में चारा काटना, और दुष्टोंकी बची बचाई दाख बटोरना पड़ता है। 7 रात को उन्हें बिना वस्त्र नंगे पके रहना और जाड़े के समय बिना ओढ़े पके रहना पड़ता है। 8 वे पहाड़ोंपर की फडिय़ोंसे भीगे रहते, और शरण न पाकर चट्टान से लिपट जाते हैं। 9 कुछ लोग अनाय बालक को मा की छाती पर से छीन लेते हैं, और दीन लोगोंसे बन्धक लेते हैं। 10 जिस से वे बिना वस्त्र नंगे फिरते हैं; और भूख के मारे, पूलियां ढोते हैं। 11 वे उनकी भीतोंके भीतर तेल पेरते और उनके कुणडोंमें दाख रौंदते हुए भी प्यासे रहते हैं। 12 वे बड़े नगर में कराहते हैं, और घायल किए हुओं का जी दोहाई देता है; परन्तु ईश्वर मूर्खता का हिसाब नहीं लेता। 13 फिर कुछ लोग उजियाले से बैर रखते, वे उसके मागॉं को नहीं पहचानते, और न उसके मागॉं में बने रहते हैं। 14 खूनी, पह फटते ही उठकर दीन दरिद्र मनुष्य को घात करता, और रात को चोर बन जाता है। 15 व्यभिचारी यह सोचकर कि कोई मुझ को देखने न पाए, दिन डूबने की राह देखता रहता है, और वह अपना मुंह छिपाए भी रखता है। 16 वे अन्धिक्कारने के समय घरोंमें सेंध मारते और दिन को छिपे रहते हैं; वे उजियाले को जानते भी नहीं। 17 इसलिथे उन सभोंको भोर का प्रकाश घोर अन्धकार सा जान पड़ता है, क्योंकि घोर अन्धकार का भय वे जानते हैं। 18 वे जल के ऊपर हलकी वस्तु के सरीखे हैं, उनके भाग को पृय्वी के रहनेवाले कोसते हैं, और वे अपक्की दाख की बारियोंमें लौटने नहीं पाते। 19 जैसे सूखे और घाम से हिम का जल सूख जाता है वैसे ही पापी लोग अधोलोक में सूख जाते हैं। 20 माता भी उसको भूल जाती, और कीड़े उसे चूसते हें, भवीष्य में उसका स्मरण न रहेगा; इस रीति टेढ़ा काम करनेवाला वृझ की राई कट जाता है। 21 वह बांफ स्त्री को जो कभी नहीं जनी लूटता, और विधवा से भलाई करना नहीं चाहता है। 22 बलात्कारियोंको भी ईश्वर अपक्की शक्ति से खींच लेता है, जो जीवित रहने की आशा नहीं रखता, वह भी फिर उठ बैठता है। 23 उन्हें ऐसे बेखटके कर देता है, कि वे सम्भले रहते हैं; उौर उसकी कृपादृष्टि उनकी चाल पर लगी रहती है। 24 वे बढ़ते हैं, तब योड़ी बेर में जाते रहते हैं, वे दबाए जाते और सभोंकी नाई रख लिथे जाते हैं, और अनाज की बाल की नाई काटे जाते हैं। 25 क्या यह सब सच नहीं ! कौन मुझे फुठलाएगा? कौन मेरी बातें निकम्मी ठहराएगा?
1 तब शूही बिल्दद ने कहा, 2 प्रभुता करना और डराना यह उसी का काम है; वह अपके ऊंचे ऊंचे स्यानोंमें शान्ति रखता है। 3 क्या उसकी सेनाओं की गिनती हो सकती? और कौन है जिस पर उसका प्रकाश नहीं पड़ता? 4 फिर मनुष्य ईश्वर की दृष्टि में धमीं क्योंकर ठहर सकता है? और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है वह क्योंकर निर्मल हो सकता है? 5 देख, उसकी दृष्टि में चन्द्रमा भी अन्धेरा ठहरता, और तारे भी निर्मल नहीं ठहरते। 6 फिर मनुष्य की क्या गिनती जो कीड़ा है, और आदमी कहां रहा जो केंचुआ है !
1 तब अय्यूब ने कहा, 2 निर्बल जन की तू ने क्या ही बड़ी सहाथता की, और जिसकी बांह में सामर्य्य नहीं, उसको तू ने कैसे सम्भाला है? 3 निर्बुद्धि मनुष्य को तू ने क्या ही अच्छी सम्मति दी, और अपक्की खरी बुद्धि कैसी भली भांति प्रगट की है? 4 तू ने किसके हित के लिथे बातें कही? और किसके मन की बातें तेरे मुंह से निकलीं? 5 बहुत दिन के मरे हुए लोग भी जलनिधि और उसके निवासियोंके तले तड़पके हैं। 6 अधोलोक उसके साम्हने उधड़ा रहता है, और विनाश का स्यान ढंप नहीं सकता। 7 वह उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, और बिना अेक पृय्वी को लटकाए रखता है। 8 वह जल को अपक्की काली घटाओं में बान्ध रखता, और बादल उसके बोफ से नहीं फटता। 9 वह अपके सिंहासन के साम्हने बादल फैलाकर उसको छिपाए रखता है। 10 उजियाले और अन्धिक्कारने के बीच जहां सिवाना बंधा है, वहां तक उस ने जलनिधि का सिवाना ठहरा रखा है। 11 उसकी घुड़की से आकाश के खम्भे यरयराकर चकित होते हैं। 12 वह अपके बल से समुद्र को उछालता, और अपक्की बुद्धि से घपणड को छेद देता है। 13 उसकी आत्मा से आकाशमणडल स्वच्छ हो जाता है, वह अपके हाथ से वेग भागनेवाले नाग को मार देता है। 14 देखो, थे तो उसकी गति के किनारे ही हैं; और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है, फिर उसके पराक्रम के गरजने का भेद कौन समझ सकता है?
1 अय्यूब ने और भी अपक्की गूढ़ बात उठाई और कहा, 2 मैं ईश्वर के जीवन की शपय खाता हूँ जिस ने मेरा न्याय बिगाड़ दिया, अर्यात् उस सर्वशक्तिमान के जीवन की जिस ने मेरा प्राण कड़ुआ कर दिया। 3 क्योंकि अब तक मेरी सांस बराबर आती है, और ईश्वर का आत्मा मेरे नयुनोंमें बना है। 4 मैं यह कहता हूँ कि मेरे मुंह से कोई कुटिल बात न निकलेगी, और न मैं कपट की बातें बोलूंगा। 5 ईश्वर न करे कि मैं तुम लोगोंको सच्चा ठहराऊं, जब तक मेरा प्राण न छूटे तब तक मैं अपक्की खराई से न हटूंगा। 6 मैं अपना धर्म पकड़े हुए हूँ और उसको हाथ से जाने न दूंगा; क्योंकि मेरा मन जीवन भर मुझे दोषी नहीं ठहराएगा। 7 मेरा शत्रु दुष्टोंके समान, और जो मेरे विरुद्ध उठता है वह कुटिलोंके तुल्य ठहरे। 8 जब ईश्वर भक्तिहीन मनुष्य का प्राण ले ले, तब यद्यपि उस ने धन भी प्राप्त किया हो, तौभी उसकी क्या आशा रहेगी? 9 जब वह संकट में पके, तब क्या ईश्वर उसकी दोहाई सुनेगा? 10 क्या वह सर्वशक्तिमान में सुख पा सकेगा, और हर समय ईश्वर को पुकार सकेगा? 11 मैं तुम्हें ईश्वर के काम के विषय शिझा दूंगा, और सर्वशक्तिमान की बात मैं न छिपाऊंगा 12 देखो, तुम लोग सब के सब उसे स्वयं देख चुके हो, फिर तुम व्यर्य विचार क्योंपकड़े रहते हो? 13 दुष्ट पनुष्य का भाग ईश्वर की ओर से यह है, और बलात्कारियोंका अंश जो वे सर्वशक्तिमान के हाथ से पाते हैं, वह यह है, कि 14 चाहे उसके लड़केबाले गिनती में बढ़ भी जाएं, तौभी तलवार ही के लिथे बढ़ेंगे, और उसकी सन्तान पेट भर रोटी न खाने पाएगी। 15 उसके जो लोग बच जाएं वे मरकर क़ब्र को पहुंचेंगे; और उसके यहां की विधवाएं न रोएंगी। 16 चाहे वह रुपया धूलि के समान बटोर रखे और वस्त्र मिट्टी के किनकोंके तुल्य अनगिनित तैयार कराए, 17 वह उन्हें तैयार कराए तो सही, परन्तु धमीं उन्हें पहिन लेगा, और उसका रुपया निदॉष लोग आपस में बांटेंगे। 18 उस ने अपना घर कीड़े का सा बनाया, और खेत के रखवाले को फोपक्की की नाई बनाया। 19 वह धनी होकर लेट जाए परन्तु वह गाड़ा न जाएगा; आंख खोलते ही वह जाता रहेगा। 20 भय की धाराएं उसे बहा ले जाएंगी, रात को बवणडर उसको उड़ा ले जाएगा। 21 पुरवाई उसे ऐसा उड़ा ले जाएगी, और वह जाता रहेगा और उसको उसके स्यान से उड़ा ले जाएगी। 22 क्योंकि ईश्वर उस पर विपत्तियां बिना तरस खाए डाल देगा, उसके हाथ से वह भाग जाने चाहेगा। लोग उस पर ताली बजाएंगे, 23 और उस पर ऐसी सुसकारियां भरेंगे कि वह अपके स्यान पर न रह सकेगा।
1 चांदी की खानि तो होती है, और सोने के लिथे भी स्यान होता है जहां लोग ताते हैं। 2 जोहा मिट्टी में से निकाला जाता और पत्यर पिघलाकर पीतल बनाया जाता है 3 मनुष्य अन्धिक्कारने को दूर कर, दूर दूर तक खोद खोद कर, अन्धिक्कारने ओर घोर अन्धकार में पत्यर ढूंढ़ते हैं। 4 जहां लोग रहते हैं वहां से दूर वे खानि खोदते हैं वहां पृय्वी पर चलनेवालोंके भूले बिसरे हुए वे मनुष्योंसे दूर लटके हुए फूलते रहते हैं। 5 यह भूमि जो है, इस से रोटी तो मिलती है, परन्तु उसके नीचे के स्यान मानो आग से उलट दिए जाते हैं। 6 उसके पत्य्र नीलमणि का स्यान हैं, और उसी में सोने की धूलि भी है। 7 उसका मार्ग कोई मांसाहारी पक्की नहीं जानता, और किसी गिद्ध की दृष्टि उस पर नहीं पक्की। 8 उस पर अभिमानी पशुओं ने पांव नहीं धरा, और न उस से होकर कोई सिंह कभी गया है। 9 वह चकमक के पत्यर पर हाथ लगाता, और पहाड़ोंको जड़ ही से उलट देता है। 10 वह चट्टान खोदकर नालियां बनाता, और उसकी आंखोंको हर एक अनमोल वस्तु दिखाई पड़ती है। 11 वह नदियोंको ऐसा रोक देता है, कि उन से एक बूंद भी पानी नहीं टपकता और जो कुछ छिपा है उसे वह उजियाले में निकालता है। 12 परन्तु बुद्धि कहां मिल सकती है? और समझ का स्यान कहां है? 13 उसका मोल मनुष्य को मालूम नहीं, जीवनलोक में वह कहीं नहीं मिलती ! 14 अयाह सागर कहता है, वह मुझ में नहीं है, और समुद्र भी कहता है, वह मेरे पास नहीं है। 15 चोखे सोने से वह मोल लिया नहीं जाता। और न उसके दाम के लिथे चान्दी तौली जाती है। 16 न तो उसके साय ओपीर के कुन्दन की बराबरी हो सकती है; और न अनमोल सुलैमानी पत्यर वा नीलमणि की। 17 न सोना, न कांच उसके बराबर ठहर सकता है, कुन्दन के गहने के बदले भी वह नहीं मिलती। 18 मूंगे उौर स्फटिकमणि की उसके आगे क्या चर्चा ! बुद्धि का मोल माणिक से भी अधिक है। 19 कूश देश के पद्क़राग उसके तुल्य नहीं ठहर सकते; और न उस से चोखे कुन्दन की बराबरी हो सकती है। 20 फिर बुद्धि कहां मिल सकती है? और समझ का स्यान कहां? 21 वह सब प्राणियोंकी आंखोंसे छिपी है, और आकाश के पझियोंके देखने में नहीं आती। 22 विनाश ओर मृत्यु कहती हैं, कि हमने उसकी चर्चा सुनी है। 23 परन्तु परमेश्वर उसका मार्ग समझता है, और उसका स्यान उसको मालूम है। 24 वह तो पृय्वी की छोर तक ताकता रहता है, और सारे आकाशमणडल के तले देखता भालता है। 25 जब उस ने वायु का तौल ठहराया, और जल को नपुए में नापा, 26 और मेंह के लिथे विधि और गर्जन और बिजली के लिथे मार्ग ठहराया, 27 तब उस ने बुद्धि को देखकर उसका बखान भी किया, और उसको सिद्ध करके उसका पूरा भेद बूफ लिया। 28 तब उस न मनुष्य से कहा, देख, प्रभु का भय मानना यही बुद्धि है: और बुराई से दूर रहना यही समझ है।
1 अय्यूब ने और भी अपक्की गूढ़ बात उठाई और कहा, 2 भला होता, कि मेरी दशा बीते हुए महीनोंकी सी होती, जिन दिनोंमें ईश्वर मेरी रझा करता या, 3 जब उसके दीपक का प्रकाश मेरे सिर पर रहता या, और उस से उजियाला पाकर मैं अन्धेरे में चलता या। 4 वे तो मेरी जवानी के दिन थे, जब ईश्वर की मित्रता मेरे डेरे पर प्रगट होती यी। 5 उस समय तक तो सर्वशक्तिमान मेरे संग रहता या, और मेरे लड़केबाले मेरे चारोंओर रहते थे। 6 तब मैं अपके पगोंको मलाई से धोता या और मेरे पास की चट्टानोंसे तेल की धाराएं बहा करती यीं। 7 जब जब मैं नगर के फाटक की ओर चलकर खुले स्यान में अपके बैठने का स्यान तैयार करता या, 8 तब तब जवान मुझे देखकर छिप जाते, और पुरनिथे उठकर खड़े हो जाते थे। 9 हाकिम लोग भी बोलने से रुक जाते, और हाथ से मुंह मूंदे रहते थे। 10 प्रधान लोग चुप रहते थे और उनकी जीभ तालू से सट जाती यी। 11 क्योंकि जब कोई मेरा समाचार सुनता, तब वह मुझे धन्य कहता या, और जब कोई मुझे देखता, तब मेरे विषय साझी देता या; 12 क्योंकि मैं दोहाई देनेवाले दीन जन को, और असहाथ अनाय को भी छुड़ाता या। 13 जो नाश होने पर या मुझे आशीर्वाद देता या, और मेरे कारण विधवा आनन्द के मारे गाती यी। 14 मैं धर्म को पहिने रहा, और वह मुझे ढांके रहा; मेरा न्याय का काम मेरे लिथे बागे और सुन्दर पगड़ी का काम देता या। 15 मैं अन्धोंके लिथे आंखें, और लंगड़ोंके लिथे पांव ठहरता या। 16 दरिद्र लोगोंका मैं पिता ठहरता या, और जो मेरी पहिचान का न या उसके मुक़द्दमे का हाल मैं पूछताछ करके जान लेता या। 17 मैं कुटिल मनुष्योंकी डाढ़ें तोड़ डालता, और उनका शिकार उनके मुंह से छीनकर बचा लेता या। 18 तब मैं सोचता या, कि मेरे दिन बालू के किनकोंके समान अनगिनत होंगे, और अपके ही बसेरे में मेरा प्राण छूटेगा। 19 मेरी जड़ जल की ओर फैली, और मेरी डाली पर ओस रात भर पक्की, 20 मेरी महिमा ज्योंकी त्योंबनी रहेगी, और मेरा धनुष मेरे हाथ में सदा नया होता जाएगा। 21 लोग मेरी ही ओर कान लगाकर ठहरे रहते थे और मेरी सम्मति सुनकर चुप रहते थे। 22 जब मैं बोल चुकता या, तब वे और कुछ न बोलते थे, मेरी बातें उन पर मेंह की ताई बरसा करती यीं। 23 जैसे लोग बरसात की वैसे ही मेरी भी बाट देखते थे; और जैसे बरसात के अन्त की वर्षा के लिथे वैसे ही वे मुंह पसारे रहते थे। 24 जब उनको कुछ आशा न रहती यी तब मैं हंसकर उनको प्रसन्न करता या; और कोई मेरे मुंह को बिगाड़ न सकता या। 25 मैं उनका मार्ग चुन लेता, और उन में मुख्य ठहरकर बैठा करता या, और जैसा सेना में राजा वा विलाप करनेवालोंके बीच शान्तिदाता, वैसा ही मैं रहता या।
1 परन्तु अब जिनकी अवस्या मुझ से कम है, वे मेरी हंसी करते हैं, वे जिनके पिताओं को मैं अपक्की भेड़ बकरियोंके कुत्तोंके काम के योग्य भी न जानता या। 2 उनके भुजबल से मुझे क्या लाभ हो सकता या? उनका पौरुष तो जाता रहा। 3 वे दरिद्रता और काल के मारे दुबले पके हुए हैं, वे अन्धेरे और सुनसान स्यानोंमें सुखी धूल फांकते हैं। 4 वे फाड़ी के आसपास का लोनिया साग तोड़ लेते, और फाऊ की जड़ें खाते हैं। 5 वे मनुष्योंके बीच में से निकाले जाते हैं, उनके पीछे ऐसी पुकार होती है, जैसी जोर के पीछे। 6 डरावने नालोंमें, भूमि के बिलोंमें, और चट्टानोंमें, उन्हें रहना पड़ता है। 7 वे फाडिय़ोंके बीच रेंकते, और बिच्छू पौधोंके नीचे इकट्ठे पके रहते हैं। 8 वे मूढ़ोंऔर नीच लोगोंके वंश हैं जो मार मार के इस देश से निकाले गए थे। 9 ऐसे ही लोग अब मुझ पर लगते गीत गाते, और मुझ पर ताना मारते हैं। 10 वे मुझ से घिन खाकर दूर रहते, वा मेरे मुंह पर यूकने से भी नहीं डरते। 11 ईश्वर ने जो मेरी रस्सी खोलकर मुझे द:ख दिया है, इसलिथे वे मेरे साम्हने मुंह में लगाम नहीं रखते। 12 मेरी दहिनी अलंग पर बजारू लोग उठ खड़े होते हैं, वे मेरे पांव सरका देते हैं, और मेरे नाश के लिथे अपके उपाय बान्धते हैं। 13 जिनके कोई सहाथक नहीं, वे भी मेरे रास्तोंको बिगाड़ते, और मेरी विपत्ति को बढ़ाते हैं। 14 मानो बड़े नाके से घुसकर वे आ पड़ते हैं, और उजाड़ के बीच में होकर मुझ पर धावा करते हैं। 15 मुुफ में घबराहट छा गई है, और मेरा रईसपन मानो वायु से उड़ाया गया है, और मेरा कुशल बादल की नाई जाता रहा। 16 और अब मैं शोकसागर में डूबा जाता हूँ; दु:ख के दिनोंने मुझे जकड़ लिया है। 17 रात को मेरी हड्डियां मेरे अन्दर छिद जाती हैं और मेरी नसोंमें चैन नहीं पड़ती 18 मेरी बीमारी की बहुतायत से मेरे वस्त्र का रूप बदल गया है; वह मेरे कुत्तें के गले की नाई मुझ से लिपक्की हुई है। 19 उस ने मुझ को कीचड़ में फेंक दिया है, और मैं मिट्टी और राख के तुल्य हो गया हूँ। 20 मैं तेरी दोहाई देता हूँ, परन्तु तू नहीं सुनता; मैं खड़ा होता हूँ परन्तु तू मेरी ओर घूरने लगता है। 21 तू बदलकर मुझ पर कठोर हो गया है; और अपके बली हाथ से मुझे सताता हे। 22 तू मुझे वायु पर सवार करके उड़ाता है, और आंधी के पानी में मुझे गला देता है। 23 हां, मुझे निश्चय है, कि तू मुझे मृत्यु के वश में कर देगा, और उस घर में पहुंचाएगा, जो सब जीवित प्राणियोंके लिथे ठहराया गया है। 24 तौभी क्या कोई गिरते समय हाथ न बढ़ाएगा? और क्या कोई विपत्ति के समय दोहाई न देगा? 25 क्या मैं उसके लिथे रोता नहीं या, जिसके दुदिर्न आते थे? और क्या दरिद्र जन के कारण मैं प्राण में दुखित न होता या? 26 जब मैं कुशल का मार्ग जोहता या, तब विपत्ति आ पक्की; और जब मैं उजियाले का आसरा लगाए या, तब अन्धकार छा गया। 27 मेरी अन्तडिय़ां निरन्तर उबलती रहती हैं और आराम नहीं पातीं; मेरे दु:ख के दिन आ गए हैं। 28 मैं शोक का पहिरावा पहिने हुए मानो बिना सूर्य की गमीं के काला हो गया हूँ। और सभा में खड़ा होकर सहाथता के लिथे दोहाई देता हूँ। 29 मैं गीदड़ोंका भाई और शुतुर्मुगॉं का संगी हो गया हूँ। 30 मेरा चमड़ा काला होकर मुझ पर से गिरता जाता है, और तप के मारे मेरी हड्डियां जल गई हैं। 31 इस कारण मेरी वीणा से विलाप और मेरी बांसुरी से रोने की ध्वनि निकलती है।
1 मैं ने अपक्की आंखोंके विषय वाचा बान्धी है, फिर मैं किसी कुंवारी पर क्योंकर आंखें लगाऊं? 2 क्योंकि ईश्वर स्वर्ग से कौन सा अंश और सर्वशक्तिमान ऊपर से कौन सी सम्पत्ति बांटता है? 3 क्या वह कुटिल मनुष्योंके लिथे विपत्ति और अनर्य काम करनेवालोंके लिथे सत्यानाश का कारण नहीं है? 4 क्या वह मेरी गति नहीं देखता और क्या वह मेरे पग पग नहीं गिनता? 5 यदि मैं व्यर्य चाल चालता हूं, वा कपट करने के लिथे मेरे पैर दौड़े हों; 6 (तो मैं धर्म के तराजू में तौला जाऊं, ताकि ईश्वर मेरी खराई को जान ले)। 7 यदि मेरे पग मार्ग से बहक गए हों, और मेरा मन मेरी आंखो की देखी चाल चला हो, वा मेरे हाथोंको कुछ कलंक लगा हो; 8 तो मैं बीज बोऊं, परन्तु दूसरा खाए; वरन मेरे खेत की उपज उखाड़ डाली जाए। 9 यदि मेरा ह्रृदय किसी स्त्री पर मोहित हो गया है, और मैं अपके पड़ोसी के द्वार पर घात में बैठा हूँ; 10 तो मेरी स्त्री दूसरे के लिथे पीसे, और पराए पुरुष उसको भ्रष्ट करें। 11 क्योंकि वह तो महापाप होता; और न्यायियोंसे दणड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; 12 क्योंकि वह ऐसी आग है जो जलाकर भस्म कर देती है, और वह मेरी सारी उपज को जड़ से नाश कर देती है। 13 जब मेरे दास वा दासी ने मुझ से फगड़ा किया, तब यदि मैं ने उनका हक मार दिया हो; 14 तो जब ईश्वर उठ खड़ा होगा, तब मैं क्या करूंगा? और जब वह आएगा तब मैं क्या उत्तर दूंगा? 15 क्या वह उसका बनानेवाला नहीं जिस ने मुझे गर्भ में बनाया? क्या एक ही ने हम दोनोंकी सूरत गर्भ में न रची यी? 16 यदि मैं ने कंगालोंकी इच्छा पूरी न की हो, वा मेरे कारण विधवा की आंखें कभी रह गई हों, 17 वा मैं ने अपना टुकड़ा अकेला खाया हो, और उस में से अनाय न खाने पाए हों, 18 (परन्तु वह मेरे लड़कपन ही से मेरे साय इस प्रकार पला जिस प्रकार पिता के साय, और मैं जन्म ही से विधवा को पालता आया हूँ); 19 यदि मैं ने किसी को वस्त्रहीन मरते हुए देखा, वा किसी दरिद्र को जिसके पास ओढ़ने को न या 20 और उसको अपक्की भेड़ोंकी ऊन के कपके न दिए हों, और उस ने गर्म होकर मुझे आशीर्वाद न दिया हो; 21 वा यदि मैं ने फाटक में अपके सहाथक देखकर अनायोंके मारने को अपना हाथ उठाया हो, 22 तो मेरी बांह पखौड़े से उखड़कर गिर पके, और मेरी भुजा की हड्डी टूट जाए। 23 क्योंकि ईश्वर के प्रताप के कारण मैं ऐसा नहीं कर सकता या, क्योंकि उसकी ओर की विपत्ति के कारण मैं भयभीत होकर यरयराता या। 24 यदि मैं ने सोने का भरोसा किया होता, वा कुन्दन को अपना आसरा कहा होता, 25 वा अपके बहुत से धन वा अपक्की बड़ी कमाई के कारण आनन्द किया होता, 26 वा सूर्य को चमकते वा चन्द्रमा को महाशोभा से चलते हुए देखकर 27 मैं मन ही मन मोहित हो गया होता, और अपके मुंह से अपना हाथ चूम लिया होता; 28 तो यह भी न्यायियोंसे दणड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; क्योंकि ऐसा करके मैं ने सर्वश्रेष्ट ईश्वर का इनकार किया होता। 29 यदि मैं अपके बैरी के नाश से आनन्दित होता, वा जब उस पर विपत्ति पक्की तब उस पर हंसा होता; 30 (परन्तु मैं ने न तो उसकी शाप देते हुए, और न उसके प्राणदणड की प्रार्यना करते हुए अपके मुंह से पाप किया है); 31 यदि मेरे डेरे के रहनेवालोंने यह न कहा होता, कि ऐसा कोई कहां मिलेगा, जो इसके यहां का मांस खाकर तृप्त न हुआ हो? 32 (परदेशी को सड़क पर टिकना न पड़ता या; मैं बटोही के लिथे अपना द्वार खुला रखता या); 33 यदि मैं ने आदम की नाई अपना अपराध छिपाकर अपके अधर्म को ढांप लिया हो, 34 इस कारण कि मैं बड़ी भीड़ से भय खाता या, वा कुलीनोंसे तुच्छ किए जाने से डर गया यहां तक कि मैं द्वार से बाहर न निकला--- 35 भला होता कि मेरा कोई सुननेवाला होता ! (सर्वशक्तिमान अभी मेरा त्याय चुकाए ! देखो मेरा दस्तखत यही है)। भला होता कि जो शिकायतनामा मेरे मुद्दई ने लिखा है वह मेरे पास होता ! 36 निश्चय मैं उसको अपके कन्धे पर उठाए फिरता; और सुन्दर पगड़ी जानकर अपके सिर में बान्धे रहता। 37 मैं उसको अपके पग पग का हिसाब देता; मैं उसके निकट प्रधान की नाई निडर जाता। 38 यदि मेरी भूमि मेरे विरुद्ध दोहाई देती हो, और उसकी रेघारियां मिलकर रोती हों; 39 यदि मैं ने अपक्की भूमि की उपज बिना मजूरी दिए खई, वा उसके मालिक का प्राण लिया हो; 40 तो गेहूं के बदले फड़बेड़ी, और जव के बदले जंगली घास उगें! अय्यूब के वचन पूरे हुए हैं।
1 तब उन तीनोंपुरुषोंने यह देखकर कि अय्यूब अपक्की दृष्टि में निदॉष है उसको उत्तर देना छोड़ दिया। 2 और बूजी बारकेल का पुत्र एलीहू जो राम के कुल का या, उसका क्रोध भड़क उठा। अय्यूब पर उसका क्रोध इसलिथे भड़क उठा, कि उस ने परमेश्वर को नहीं, अपके ही को निदॉष ठहराया। 3 फिर अय्यूब के तीनोंमित्रोंके विरुद्ध भी उसका क्रोध इस कारण भड़का, कि वे अय्यूब को उत्तर न दे सके, तौभी उसको दोषी ठहराया। 4 एलीहू तो अपके को उन से छोटा जानकर अय्यूब की बातोंके अन्त की बाट जोहता रहा। 5 परन्तु जब एलीहू ने देखा कि थे तीनोंपुरुष कुछ उत्तर नहीं देते, तब उसका क्रोध भड़क उठा। 6 तब बूजी बारकेल का पुत्र एलीहू कहने लगा, कि मैं तो जवान हूँ, और तुम बहुत बूढ़े हो; इस कारण मैं रुका रहा, और अपना विचार तुम को बताने से डरता या। 7 मैं सोचता या, कि जो आयु में बड़े हैं वे ही बात करें, और जो बहुत वर्ष के हैं, वे ही बुद्धि सिखाएं। 8 परन्तु मनुष्य में आत्मा तो है ही, और सर्वशक्तिमान अपक्की दी हुई सांस से उन्हें समझने की शक्ति देता है। 9 जो बुद्धिमान हैं वे बड़े बड़े लोग ही नहीं और न्याय के समझनेवाले बूढ़े ही नहीं होते। 10 इसलिथे मैं कहता हूं, कि मेरी भी सुनो; मैं भी अपना विचार बताऊंगा। 11 मैं तो तुम्हारी बातें सुनने को ठहरा रहा, मैं तुम्हारे प्रमाण सुनने के लिथे ठहरा रहा; जब कि तुम कहने के लिथे शब्द ढूढ़ते रहे। 12 मैं चित्त लगाकर तुम्हारी सुनता रहा। परन्तु किसी ने अय्यूब के पझ का खणडन नहीं किया, और न उसकी बातोंका उत्तर दिया। 13 तुम लोग मत समझो कि हम को ऐसी बुद्धि मिली है, कि उसका खणडन मनुष्य नहीं ईश्वर ही कर सकता है। 14 जो बातें उस ने कहीं वह मेरे विरुद्ध तो नहीं कहीं, और न मैं तुम्हारी सी बातोंसे उसको उत्तर दूंगा। 15 वे विस्मित हुए, और फिर कुछ उत्तर नहीं दिया; उन्होंने बातें करना छोड़ दिया। 16 इसलिथे कि वे कुछ नहीं बोलते और चुपचाप खड़े हैं, क्या इस कारण मैं ठहरा रहूं? 17 परन्तु अब मैं भी कुछ कहूंगा मैं भी अपना विचार प्रगट करूंगा। 18 क्योंकि मेरे मन में बातें भरी हैं, और मेरी आत्मा मुझे उभार रही है। 19 मेरा मन उस दाखमधु के समान है, जो खोला न गया हो; वह नई कुप्पियोंकी नाई फटा चाहता है। 20 शान्ति पाने के लिथे मैं बोलूंगा; मैं मुंह खोलकर उत्तर दूंगा। 21 न मैं किसी आदमी का पझ करूंगा, और न मैं किसी मनुष्य को चापलूसी की पदवी दूंगा। 22 क्योंकि मुझे तो चापलूसी करना आता ही नहीं नहीं तो मेरा सिरजनहार झण भर में मुझे उठा लेता।
1 तौभी हे अय्यूब ! मेरी बातें सुन ले, और मेरे सब वचनोंपर कान लगा। 2 मैं ने तो अपना मुंह खोला है, और मेरी जीभ मुंह में चुलबुला रही है। 3 मेरी बातें मेरे मन की सिधाई प्रगट करेंगी; जो ज्ञान मैं रखता हूं उसे खराई के साय कहूंगा। 4 मुझे ईश्वर की आत्मा ने बनाया है, और सर्वशक्तिमान की सांस से मुझे जीवन मिलता है। 5 यदि तू मुझे उत्तर दे सके, तो दे; मेरे साम्हने अपक्की बातें क्रम से रचकर खड़ा हो जा। 6 देख मैं ईश्वर के सन्मुख तेरे तुल्य हूँ; मैं भी मिट्टी का बना हुआ हूँ। 7 सुन, तुझे मेरे डर के मारे घबराना न पकेगा, और न तू मेरे बोफ से दबेगा। 8 नि:सन्देह तेरी ऐसी बात मेरे कानोंमें पक्की है और मैं ने तेरे वचन सुने हैं, कि 9 मैं तो पवित्र और निरपराध और निष्कलंक हूँ; और मुझ में अर्ध्म नहीं है। 10 देख, वह मुझ से फगड़ने के दांव ढूंढ़ता है, और मुझे अपना शत्रु समझता है; 11 वह मेरे दोनोंपांवोंको काठ में ठोंक देता है, और मेरी सारी चाल की देखभाल करता है। 12 देख, मैं तुझे उत्तर देता हूँ, इस बात में तू सच्चा नहीं है। क्योंकि ईश्वर मनुष्य से बड़ा है। 13 तू उस से क्योंफगड़ता है? क्योंकि वह अपक्की किसी बात का लेखा नहीं देता। 14 क्योंकि ईश्वर तो एक क्या वरन दो बार बोलता है, परन्तु लोग उस पर चित्त नहीं लगाते। 15 स्वप्न में, वा रात को दिए हुए दर्शन में, जब मनुष्य घोर निद्रा में पके रहते हैं, वा बिछौने पर सोते समय, 16 तब वह मनुष्योंके कान खोलता है, और उनकी शिझा पर मुहर लगाता है, 17 जिस से वह मनुष्य को उसके संकल्प से रोके और गर्व को मनुष्य में से दूर करे। 18 वह उसके प्राण को गढ़हे से बचाता है, और उसके जीवन को खड़ग की मार से बचाता हे। 19 उसे ताड़ना भी हेती है, कि वह अपके बिछौने पर पड़ा पड़ा तड़पता है, और उसकी हड्डी हड्डी में लगातार फगड़ा होता है 20 यहां तक कि उसका प्राण रोटी से, और उसका मन स्वादिष्ट भोजन से घृणा करने लगता है। 21 उसका मांस ऐसा सूख जाता है कि दिखाई नहीं देता; और उसकी हड्डियां जो पहिले दिखाई नहीं देती यीं निकल आती हैं। 22 निदान वह कबर के निकट पहुंचता है, और उसका जीवन नाश करनेवालोंके वश में हो जाता है। 23 यदि उसके लिथे कोई बिचवई स्वर्ग दूत मिले, जो हजार में से एक ही हो, जो भावी कहे। और जो मनुष्य को बताए कि उसके लिथे क्या ठीक है। 24 तो वह उस पर अनुग्रह करके कहता है, कि उसे गढ़हे में जाने से वचा ले, मुझे छुड़ौती मिली है। 25 तब उस मनुष्य की देह बालक की देह से अधिक स्वस्य और कोमल हो जाएगी; उसकी जवानी के दिन फिर लौट आएंगे। 26 वह ईश्वर से बिनती करेगा, और वह उस से प्रसन्न होगा, वह आनन्द से ईश्वर का दर्शन करेगा, और ईश्वर मनुष्य को ज्योंका त्योंधमीं कर देगा। 27 वह मनुष्योंके साम्हने गाने ओर कहने लगता है, कि मैं ने पाप किया, और सच्चाई को उलट पुलट कर दिया, परन्तु उसका बदला मुझे दिया नहीं गया। 28 उस ने मेरे प्राण क़ब्र में पड़ने से बचाया है, मेरा जीवन उजियाले को देखेगा। 29 देख, ऐसे ऐसे सब काम ईश्वर पुरुष के साय दो बार क्या वरन तीन बार भी करता है, 30 जिस से उसको क़ब्र से बचाए, और वह जीवनलोक के उजियाले का प्रकाश पाए। 31 हे अय्यूब ! कान लगाकर मेरी सुन; चुप रह, मैं और बोलूंगा। 32 यदि तुझे बात कहनी हो, तो मुझे उत्तर दे; बोल, क्योंकि मैं तुझे निदॉष ठहराना चाहता हूँ। 33 यदि नहीं, तो तु मेरी सुन; चुप रह, मैं तुझे बुद्धि की बात सिखाऊंगा।
1 फिर एलीहू योंकहता गया; 2 हे बुद्धिमानो ! मेरी बातें सुनो, और हे ज्ञानियो ! मेरी बातोंपर कान लगाओ; 3 क्योंकि जैसे जीभ से चखा जाता है, वैसे ही वचन कान से परखे जाते हैं। 4 जो कुछ ठीक है, हम अपके लिथे चुन लें; जो भला है, हम आपस में समझ बूफ लें। 5 क्योंकि अय्यूब ने कहा है, कि मैं निदॉष हूँ, और ईश्वर ने मेरा हक़ मार दिया है। 6 यद्यपि मैं सच्चाई पर हूं, तौभी फूठा ठहरता हूँ, मैं निरपराध हूँ, परन्तु मेरा घाव असाध्य है। 7 अय्यूब के तुल्य कौन शूरवीर है, जो ईश्वर की निन्दा पानी की नाई पीता है, 8 जो अनर्य करनेवालोंका साय देता, और दुष्ट मनुष्योंकी संगति रखता है? 9 उस ने तो कहा है, कि मनुष्य को इस से कुछ लाभ नहीं कि वह आनन्द से परमेश्वर की संगति रखे। 10 इसलिऐ हे समझवालो ! मेरी सुनो, यह सम्भव नहीं कि ईश्वर दुष्टता का काम करे, और सर्वशकितमान बुराई करे। 11 वह मनुष्य की करनी का फल देता है, और प्रत्थेक को अपक्की अपक्की चाल का फल भुगताता है। 12 नि:सन्देह ईश्वर दुष्टता नहीं करता और न सर्वशक्तिमान अन्याय करता है। 13 किस ने पृय्वी को उसके हाथ में सौंप दिया? वा किस ने सारे जगत का प्रबन्ध किया? 14 यदि वह मनुष्य से अपना मन हटाथे और अपना आत्मा और श्वास अपके ही में समेट ले, 15 तो सब देहधारी एक संग नाश हो जाएंगे, और मनुष्य फिर मिट्टी में मिल जाएगा। 16 इसलिथे इसको सुनकर समझ रख, और मेरी इन बातोंपर कान लगा। 17 जो न्याय का बैरी हो, क्या वह शासन करे? जो पूर्ण धमीं है, क्या तू उसे दुष्ट ठहराएगा? 18 वह राजा से कहता है कि तू नीच है; और प्रधानोंसे, कि तुम दुष्ट हो। 19 ईश्वर तो हाकिमोंका पझ नहीं करता और धनी और कंगाल दोनोंको अपके बनाए हुए जानकर उन में कुछ भेद नहीं करता। 20 आधी रात को पल भर में वे मर जाते हैं, और प्रजा के लोग हिलाए जाते और जाते रहते हैं। और प्रतापी लोग बिना हाथ लगाए उठा लिए जाते हैं। 21 क्योंकि ईश्वर की आंखें मनुष्य की चालचलन पर लगी रहती हैं, और वह उसकी सारी चाल को देखता रहता है। 22 ऐसा अन्धिक्कारनेा वा घोर अन्धकार कहीं नहीं है जिस में अनर्य करनेवाले छिप सकें। 23 क्योंकि उस ने मनुष्य का कुछ समय नहीं ठहराया ताकि वह ईश्वर के सम्मुख अदालत में जाए। 24 वह बड़े बड़े बलवानोंको बिना मुछपाछ के चूर चूर करता है, और उनके स्यान पर औरोंको खड़ा कर देता है। 25 इसलिथे कि वह उनके कामोंको भली भांति जानता है, वह उन्हें रात में ऐसा उलट देता है कि वे चूर चूर हो जाते हैं। 26 वह उन्हें दुष्ट जानकर सभोंके देखते मारता है, 27 क्योंकि उन्होंने उसके पीछे चलना छोड़ दिया है, और उसके किसी मार्ग पर चित्त न लगाया, 28 यहां तक कि उनके कारण कंगालोंकी दोहाई उस तक पहुंची और उस ने दीन लोगोंकी दोहाई सुनी। 29 जब वह चैन देता तो उसे कौन दोषी ठहरा सकता है? और जब वह मुंह फेर ले, तब कौन उसका दर्शन पा सकता है? जाति भर के साय और अकेले मनुष्य, दोनोंके साय उसका बराबर व्यवहार है 30 ताकि भक्तिहीन राज्य करता न रहे, और प्रजा फन्दे में फंसाई न जाए। 31 क्या किसी ने कभी ईश्वर से कहा, कि मैं ने दणड सहा, अब मैं भविष्य में बुराई न करूंगा, 32 जो कुछ मुझे नहीं सूफ पड़ता, वह तू मुझे सिखा दे; और यदि मैं ने टेढ़ा काम किया हो, तो भविष्य में वैसा न करूंगा? 33 क्या वह तेरे ही मन के अनुसार बदला पाए क्योंकि तू उस से अप्रसन्न है? क्योंकि तुझे निर्णय करना है, न कि मुझे; इस कारण जो कुछ तुझे समझ पड़ता है, वह कह दे। 34 सब ज्ञानी पुरुष वरन जितले बुद्धिमान मेरी सुनते हैं वे मुझ से कहेंगे, कि 35 अय्यूब ज्ञान की बातें नहीं कहता, और न उसके वचन समझ के साय होते हैं। 36 भला होता, कि अय्यूब अन्त तब पक्कीझा में रहता, क्योंकि उस ने अनयिर्योंके से उत्तर दिए हैं। 37 और वह अपके पाप में विरोध बढ़ाता है; ओर हमारे बीच ताली बजाता है, और ईश्वर के पिरुद्ध बहुत सी बातें बनाता है।
1 फिर एलीहू इस प्रकार और भी कहता गया, 2 कि क्या तू इसे अपना हक़ समझता है? क्या तू दावा करता है कि तेरा धर्म ईश्वर के धर्म से अधिक है? 3 जो तू कहता है कि मुझे इस से क्या लाभ? और मुझे पापी होने में और न होने में कौन सा अधिक अन्तर है? 4 मैं तुझे और तेरे सायियोंको भी एक संग उत्तर देता हूँ। 5 आकाश की ओर दृष्टि करके देख; और आकाशमणडल को ताक, जो तुझ से ऊंचा है। 6 यदि तू ने पाप किया है तो ईश्वर का क्या बिगड़ता है? यदि तेरे अपराध बहुत ही बढ़ जाएं तौभी तू उसके साय क्या करता है? 7 यदि तू धमीं है तो उसको क्या दे देता है; वा उसे तेरे हाथ से क्या मिल जाता है? 8 तेरी दुष्टता का फल तुझ ऐसे ही पुरुष के लिथे है, और तेरे धर्म का फल भी मनुष्य मात्र के लिथे है। 9 बहुत अन्धेर होने के कारण वे चिल्लाते हैं; और बलवान के बाहुबल के कारण वे दोहाई देते हैं। 10 तौभी कोई यह नहीं कहता, कि मेरा सृजनेवाला ईश्वर कहां है, जो रात में भी गीत गवाता है, 11 और हमें पृय्वी के पशुओं से अधिक शिझा देता, और आकाश के पझियोंसे अधिक बुद्धि देता है? 12 वे दोहाई देते हैं परन्तु कोई उत्तर नहीं देता, यह बुरे लोगोंके घमणड के कारण होता है। 13 निश्चय ईश्वर व्यर्य बातें कभी नहीं सुनता, और न सर्वशक्तिमान उन पर चित्त लगाता है। 14 तो तू क्योंकहता है, कि वह मुझे दर्शन नहीं देता, कि यह मुक़द्दमा उसके साम्हने है, और तू उसकी बाट जोहता हुआ ठहरा है? 15 परन्तु अभी तो उस ने क्रोध करके दणड नहीं दिया है, और अभिमान पर चित्त बहुत नहीं लगाया; 16 इस कारण अय्यूब व्यर्य मुंह खोलकर अज्ञानता की बातें बहुत बनाता है।
1 फिर एलीहू ने यह भी कहा, 2 कुछ ठहरा रह, और मैं तुझ को समझाऊंगा, क्योंकि ईश्वर के पझ में मुझे कुछ और भी कहना है। 3 मैं अपके ज्ञान की बात दूर से ले आऊंगा, और अपके सिरजनहार को धमीं ठहराऊंगा। 4 निश्चय मेरी बातें फूठी न होंगी, वह जो तेरे संग है वह पूरा ज्ञानी है। 5 देख, ईश्वर सामयीं है, और किसी को तुच्छ नहीं जानता; वह समझने की शक्ति में समर्य है। 6 वह दुष्टोंको जिलाए नहीं रखता, और दीनोंको उनका हक देता है। 7 वह धमिर्योंसे अपक्की आंखें नहीं फेरता, वरन उनको राजाओं के संग सदा के लिथे सिंहासन पर बैठाता है, और वे ऊंचे पद को प्राप्त करते हैं। 8 ओर चाहे वे बेडिय़ोंमें जकड़े जाएं और दु:ख की रस्सिक्कों बान्धे जाए, 9 तौभी ईश्वर उन पर उनके काम, और उनका यह अपराध प्रगट करता है, कि उन्होंने गर्व किया है। 10 वह उनके कान शिझा सुनने के लिथे खोलता है, और आज्ञा देता है कि वे बुराई से पके रहें। 11 यदि वे सुनकर उसकी सेवा करें, तो वे अपके दिन कल्याण से, और अपके वर्ष सुख से पूरे करते हैं। 12 परन्तु यदि वे न सुनें, तो वे खड़ग से नाश हो जाते हैं, और अज्ञानता में मरते हैं। 13 परन्तु वे जो मन ही मन भक्तिहीन होकर क्रोध बढ़ाते, और जब वह उनको बान्धता है, तब भी दोहाई नहीं देते, 14 वे जवानी में मर जाते हैं और उनका जीवन लूच्चोंके बीच में नाश होता है। 15 वह दुख्यथें को उनके दु:ख से छुड़ाता है, और उपद्रव में उनका कान खोलता है। 16 परन्तु वह तुझ को भी क्लेश के मुंह में से निकालकर ऐसे चौड़े स्यान में जहां सकेती नहीं है, पहुचा देता है, और चिकना चिकना भोजन तेरी मेज पर परोसता है। 17 परन्तु तू ने दुष्टोंका सा निर्णय किया है इसलिथे निर्णय और न्याय तुझ से लिपके रहते है। 18 देख, तू जलजलाहट से उभर के ठट्ठा मत कर, और न प्रायश्चित्त को अधिक बड़ा जानकर मार्ग से मुड़। 19 क्या तेरा रोना वा तेरा बल तुझे दु:ख से छुटकारा देगा? 20 उस रात की अभिलाषा न कर, जिस में देश देश के लोग अपके अपके स्यान से मिटाए जाते हैं। 21 चौकस रह, अनर्य काम की ओर मत फिर, तू ने तो द:ख से अधिक इसी को चुन लिया है। 22 देख, ईश्वर अपके सामर्ध्य से बड़े बड़े काम करता है, उसके समान शिझक कौन है? 23 किस ने उसके चलने का मार्ग ठहराया है? और कौन उस से कह सकता है, कि तू ने अनुचित काम किया है? 24 उसके कामोंकी महिमा और प्रशंसा करने को स्मरण रख, जिसकी प्रशंसा का गीत मनुष्य गाते चले आए हैं। 25 सब मनुष्य उसको ध्यान से देखते आए हैं, और मनुष्य उसे दूर दूर से देखता है। 26 देख, ईश्वर महान और हमारे ज्ञान से कहीं पके है, और उसके वर्ष की गिनती अनन्त है। 27 क्योंकि वह तो जल की बूंदें ऊपर को खींच लेता है वे कुहरे से मेंह होकर टपकती हैं, 28 वे ऊंचे ऊंचे बादल उंडेलते हैं और मनुष्योंके ऊपर बहुतायत से बरसाते हैं। 29 फिर क्या कोई बादलोंका फैलना और उसके मणडल में का गरजना समझ सकता है? 30 देख, वह अपके उजियाले को चहुँओर फैलाता है, और समुद्र की याह को ढांपता है। 31 क्योंकि वह देश देश के लोगोंका न्याय इन्हीं से करता है, और भोजनवस्तुएं बहुतायत से देता है। 32 वह बिजली को अपके हाथ में लेकर उसे आज्ञा देता है कि दुश्मन पर गिरे। 33 इसकी कड़क उसी का समाचार देती है पशु भी प्रगट करते हैं कि अन्धड़ चढ़ा आता है।
1 फिर इस बात पर भी मेरा ह्रृदय कांपता है, और अपके स्यान से उछल पड़ता है। 2 उसके बोलने का शब्द तो सुनो, और उस शब्द को जो उसके मुंह से निकलता है सुनो। 3 वह उसको सारे आकाश के तले, और अपक्की बिजली को पृय्वी की छोर तक भेजता है। 4 उसके पीछे गरजने का शब्द होता है; वह अपके प्रतापी शब्द से गरजता है, और जब उसका शब्द सुनाई देता है तब बिजली लगातार चमकने लगती है। 5 ईश्वर गरजकर अपना शब्द अद्भूत रीति से सुनाता है, और बड़े बड़े काम करता है जिनको हम नहीं समझते। 6 वह तो हिम से कहता है, पृय्वी पर गिर, और इसी प्रकार मेंह को भी और मूसलाधार वर्षा को भी ऐसी ही आज्ञा देता है। 7 वह सब मनुष्योंके हाथ पर मुहर कर देता है, जिस से उसके बनाए हुए सब मनुष्य उसको पहचानें। 8 तब वनपशु गुफाओं में घुस जाते, और अपक्की अपक्की मांदोंमें रहते हैं। 9 दक्खिन दिशा से बवणडर और उतरहिया से जाड़ा आता है। 10 ईश्वर की श्वास की फूंक से बरफ पड़ता है, तब जलाशयोंका पाट जम जाता है। 11 फिर वह घटाओं को भाफ़ से लादता, और अपक्की बिजली से भरे हुए उजियाले का बादल दूर तक फैलाता है। 12 वे उसकी बुद्धि की युक्ति से इधर उधर फिराए जाते हैं, इसलिथे कि जो आज्ञा वह उनको दे, उसी को वे बसाई हुई पृय्वी के ऊपर पूरी करें। 13 चाहे ताड़ना देने के लिथे, चाहे अपक्की पृय्वी की भलाई के लिथे वा मनुष्योंपर करुणा करने के लिथे वह उसे भेजे। 14 हे अय्यूब ! इस पर कान लगा और सुन ले; चुपचाप खड़ा रह, और ईश्वर के आश्चर्यकमॉं का विचार कर। 15 क्या तू जानता है, कि ईश्वर क्योंकर अपके बादलोंको आज्ञा देता, और अपके बादल की बिजली को चमकाता है? 16 क्या तू घटाओं का तौलना, वा सर्वज्ञानी के आश्चर्यकर्म जानता है? 17 जब पृय्वी पर दक्खिनी हवा ही के कारण से सन्नाटा रहता है तब तेरे वस्त्र गर्म हो जाते हैं? 18 फिर क्या तू उसके साय आकाशमणडल को तान सकता है, जो ढाले हुए दर्पण के तुल्य दृढ़ है? 19 तू हमें यह सिखा कि उस से क्या कहना चाहिथे? क्योंकि हम अन्धिक्कारने के कारण अपना व्याख्यान ठीक नहीं रच सकते। 20 क्या उसको बनाया जाए कि मैं बोलना चाहता हूँ? क्या कोई अपना सत्यानाश चाहता है? 21 अभी तो आकाशमणडल में का बड़ा प्रकाश देखा नहीं जाता जब वायु चलकर उसको शुद्ध करती है। 22 उत्तर दिशा से सुनहली ज्योति आती है ईश्वर भययोग्य तेज से आभूषित है। 23 सर्वशक्तिमान जो अति सामयीं है, और जिसका भेद हम पा नहीं सकते, वह न्याय और पूर्ण धर्म को छोड़ अत्याचार नहीं कर सकता। 24 इसी कारण सज्जन उसका भय मानते हैं, और जो अपक्की दृष्टि में बुद्धिमान हैं, उन पर वह दृष्टि नहीं करता।
1 तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यूं उत्तर दिया, 2 यह कौन है जो अज्ञानता की बातें कहकर युक्ति को बिगाड़ना चाहता है? 3 पुरुष की नाई अपक्की कमर बान्ध ले, क्योंकि मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे उत्तर दे। 4 जब मैं ने पृय्वी की नेव डाली, तब तू कहां या? यदि तू समझदार हो तो उत्तर दे। 5 उसकी नाप किस ने ठहराई, क्या तू जानता है उस पर किस ने सूत खींचा? 6 उसकी नेव कौन सी वस्तु पर रखी गई, वा किस ने उसके कोने का पत्यर लिठाया, 7 जब कि भोर के तारे एक संग आनन्द से गाते थे और परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करते थे? 8 फिर जब समुद्र ऐसा फूट निकला मानो वह गर्भ से फूट निकला, तब किस ने द्वार मूंदकर उसको रोक दिया; 9 जब कि मैं ने उसको बादल पहिनाया और घोर अन्धकार में लमेट दिया, 10 और उसके लिथे सिवाना बान्धा और यह कहकर बेंड़े और किवाड़े लगा दिए, कि 11 यहीं तक आ, और आगे न बढ़, और तेरी उमंडनेवाली लहरें यहीं यम जाएं? 12 क्या तू ने जीवन भर में कभी भोर को आज्ञा दी, और पौ को उसका स्यान जताया है, 13 ताकि वह पृय्वी की छोरोंको वश में करे, और दुष्ट लोग उस में से फाड़ दिए जाएं? 14 वह ऐसा बदलता है जैसा मोहर के नीचे चिकनी मिट्टी बदलती है, और सब वस्तुएं मानो वस्त्र पहिने हुए दिखाई देती हैं। 15 दुष्टोंसे उनका उजियाला रोक लिया जाता है, और उनकी बढ़ाई हुई बांह तोड़ी जाती है। 16 क्या तू कभी समुद्र के सोतोंतक पहुंचा है, वा गहिरे सागर की याह में कभी चला फिरा है? 17 क्या मृत्यु के फाटक तुझ पर प्रगट हुए, क्या तू घोर अन्धकार के फाटकोंको कभी देखन पाया है? 18 क्या तू ने पृय्वी की चौड़ाई को पूरी रीति से समझ लिया है? यदि तू यह सब जानता है, तो बतला दे। 19 उजियाले के निवास का मार्ग कहां है, और अन्धिक्कारने का स्यान कहां है? 20 क्या तू उसे उसके सिवाने तक हटा सकता है, और उसके घर की डगर पहिचान सकता है? 21 नि:सन्देह तू यह सब कुछ जानता होगा ! क्योंकि तू तो उस समय उत्पन्न हुआ या, और तू बहुत आयु का है। 22 फिर क्या तू कभी हिम के भणडार में पैठा, वा कभी ओलोंके भणडार को तू ने देखा है, 23 जिसको मैं ने संकट के समय और युद्ध और लड़ाई के दिन के लिथे रख छोड़ा है? 24 किस मार्ग से उजियाला फैलाया जाता है, ओर पुरवाई पृय्वी पर बहाई जाती है? 25 महावृष्टि के लिथे किस ने नाला काटा, और कड़कनेवाली बिजली के लिथे मार्ग बनाया है, 26 कि निर्जन देश में और जंगल में जहां कोई मनुष्य नहीं रहता मेंह बरसाकर, 27 उजाड़ ही उजाड़ देश को सींचे, और हरी घास उगाए? 28 क्या मेंह का कोई पिता है, और ओस की बूंदें किस ने उत्पन्न की? 29 किस के गर्भ से बर्फ निकला है, और आकाश से गिरे हुए पाले को कौन उत्पन्न करता है? 30 जल पत्यर के समान जम जाता है, और गहिरे पानी के ऊपर जमावट होती है। 31 क्या तू कचपचिया का गुच्छा गूंय सकता वा मृगशिरा के बन्धन खोल सकता है? 32 क्या तू राशियोंको ठीक ठीक समय पर उदय कर सकता, वा सप्तषिर् को सायियोंसमेत लिए चल सकता है? 33 क्या तू आकाशमणडल की विधियां जानता और पृय्वी पर उनका अधिक्कारने ठहरा सकता है? 34 क्या तू बादलोंतक अपक्की वाणी पहुंचा सकता है ताकि बहुत जल बरस कर तुझे छिपा ले? 35 क्या तू बिजली को आज्ञा दे सकता है, कि वह जाए, और तुझ से कहे, मैं उपस्यित हूँ? 36 किस ने अन्त:करण में बुद्धि उपजाई, और मन में समझने की शक्ति किस ने दी है? 37 कौन बुद्धि से बादलोंको गिन सकता है? और कौन आकाश के कुप्पोंको उणडेल सकता है, 38 जब धूलि जम जाती है, और ढेले एक दूसरे से सट जाते हैं? 39 क्या तू सिंहनी के लिथे अहेर पकड़ सकता, और जवान सिंहोंका पेट भर सकता है, 40 जब वे मांद में बैठे होंऔर आड़ में घात लगाए दबक कर बैठे हों? 41 फिर जब कौवे के बच्चे ईश्वर की दोहाई देते हुए निराहार उड़ते फिरते हैं, तब उनको आहार कौन देता है?
1 क्या तू जानता है कि पहाड़ पर की जंगली बकरियां कब बच्चे देती हैं? वा जब हरिणियां बियाती हैं, तब क्या तू देखता रहता है? 2 क्या तू उनके महीने गिन सकता है, क्या तू उनके बियाने का समय जानता है? 3 जब वे बैठकर अपके बच्चोंको जनतीं, वे अपक्की पीड़ोंसे छूट जाती हैं? 4 उनके बच्चे ह्रृष्टपुष्ट होकर मैदान में बढ़ जाते हैं; वे निकल जाते और फिर नहीं लौटते। 5 किस ने बनैले गदहे को स्वाधीन करके छोड़ दिया है? किस ने उसके बन्धन खोले हैं? 6 उसका घर मैं ने निर्जल देश को, और उसका निवास लोनिया भूमि को ठहराया है। 7 वह नगर के कोलाहल पर हंसता, और हांकनेवाले की हांक सुनता भी नहीं। 8 पहाड़ोंपर जो कुछ मिलता है उसे वह चरता वह सब भांति की हरियाली ढूंढ़ता फिरता है। 9 क्या जंगली सांढ़ तेरा काम करने को प्रसन्न होगा? क्या वह तेरी चरनी के पास रहेगा? 10 क्या तू जंगली सांढ़ को रस्से से बान्धकर रेघारियोंमें चला सकता है? क्या वह नालोंमें तेरे पीछे पीछे हेंगा फेरेगा? 11 क्या तू उसके बड़े बल के कारण उस पर भरोसा करेगा? वा जो परिश्र्म का काम तेरा हो, क्या तू उसे उस पर छोड़ेगा? 12 क्या तू उसका विश्वास करेगा, कि वह तेरा अनाज घर ले आए, और तेरे खलिहान का अन्न इकट्ठा करे? 13 फिर शुतुरमुगीं अपके पंखोंको आनन्द से फुलाती है, परन्तु क्या थे पंख और पर स्नेह को प्रगट करते हैं? 14 क्योंकि वह तो अपके अणडे भूमि पर छोड़ देती और धूलि में उन्हें गर्म करती है; 15 और इसकी सुधि नहीं रखती, कि वे पांव से कुचले जाएंगे, वा कोई वनपशु उनको कुचल डालेगा। 16 वह अपके बच्चोंसे ऐसी कठोरता करती है कि मानो उसके नहीं हैं; यद्यपि उसका कष्ट अकारय होता है, तौभी वह निश्चिन्त रहती है; 17 क्योंकि ईश्वर ने उसको बुद्धिरहित बनाया, और उसे समझने की शक्ति नहीं दी। 18 जिस समय वह सीधी होकर अपके पंख फैलाती है, तब घोड़े और उसके सवार दोनोंको कुछ नहीं समझती है। 19 क्या तू ने घोड़े को उसका बल दिया है? क्या तू ने उसकी गर्दन में फहराती हुई अयाल जमाई है? 20 क्या उसको टिड्डी की सी उछलने की शक्ति तू देता है? उसके कुंक्कारने का शब्द डरावना होता है। 21 वह तराई में टाप मारता है और अपके बल से हषिर्त रहता है, वह हयियारबन्दोंका साम्हना करने को निकल पड़ता है। 22 वह डर की बात पर हंसता, और नहीं घबराता; और तलवार से पीछे नहीं हटता। 23 तर्कश और चमकता हुआ सांग ओर भाला उस पर खड़खड़ाता है। 24 वह रिस और क्रोध के मारे भूमि को निगलता है; जब नरसिंगे का शब्द सुनाई देता है तब वह रुकता नहीं। 25 जब जब नरसिंगा बजता तब तब वह हिन हिन करता है, और लड़ाई और अफसरोंकी ललकार और जय-जयकार को दूर से सूंध लेता हे। 26 क्या तेरे समझाने से बाज़ उड़ता है, और दक्खिन की ओर उड़ने को अपके पंख फैलाता है? 27 क्या उकाब तेरी आज्ञा से ऊपर चढ़ जाता है, और ऊंचे स्यान पर अपना घोंसला बनाता है? 28 वह चट्टान पर रहता और चट्टान की चोटी और दृढ़स्यान पर बसेरा करता है। 29 वह अपक्की आंखोंसे दूर तक देखता है, वहां से वह अपके अहेर को ताक लेता है। 30 उसके बच्चे भी लोहू चूसते हैं; और जहां घात किए हुए लोग होते वहां वह भी होता है।
1 फिर यहोवा ने अय्यूब से यह भी कहा: 2 क्या जो बकवास करता है वह सर्वशक्तिमान से फगड़ा करे? जो ईश्वर से विवाद करता है वह इसका उत्तर दे। 3 तब अय्यूब ते यहोवा को उत्तर दिया: 4 देख, मैं तो तुच्छ हूँ, मैं तुझे क्या उत्तर दूं? मैं अपक्की अंगुली दांत तले दबाता हूँ। 5 एक बार तो मैं कह चुका, परन्तु और कुछ न कहूंगा: हां दो बार भी मैं कह चुका, परन्तु अब कुछ और आगे न बढ़ूंगा। 6 तब यहोवा ने अय्यूब को आँधी में से यह उत्तर दिया: 7 पुरुष की नाई अपक्की कमर बान्ध ले, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, और तू मुझे बता। 8 क्या तू मेरा न्याय भी व्यर्य ठहराएगा? क्या तू आप निदॉष ठहरने की मनसा से मुझ को दोषी ठहराएगा? 9 क्या तेरा बाहुबल ईश्वर के तुल्य है? क्या तू उसके समान शब्द से गरज सकता है? 10 अब अपके को महिमा और प्रताप से संवार और ऐश्वर्य्य और तेज के वस्त्र पहिन ले। 11 अपके अति क्रोध की बाढ़ को बहा दे, और एक एक घमणडी को देखते ही उसे नीचा कर। 12 हर एक घमणडी को देखकर फुका दे, और दुष्ट लोगोंको जहां खड़े होंवहां से गिरा दे। 13 उनको एक संग मिट्टी में मिला दे, और उस गुप्त स्यान में उनके मुंह बान्ध दे। 14 तब मैं भी तेरे विषय में मान लूंगा, कि तेरा ही दहिना हाथ तेरा उद्वार कर सकता है। 15 उस जलगज को देख, जिसको मैं ने तेरे साय बनाया है, वह बैल की नाई घास खाता है। 16 देख उसकी कटि में बल है, और उसके पेट के पट्ठोंमें उसकी सामर्य्य रहती है। 17 वह अपक्की पूंछ को देवदार की नाई हिलाता है; उसकी जांधोंकी नसें एक दूसरे से मिली हुई हैं। 18 उसकी हट्टियां मानो पीतल की नलियां हैं, उसकी पसुलियां मानो लोहे के बेंड़े हैं। 19 वह ईश्वर का मुख्य कार्य है; जो उसका सिरजनहार हो उसके निकट तलवार लेकर आए ! 20 निश्चय पहाड़ोंपर उसका चारा मिलता है, जहां और सब वनपशु कालोल करते हैं। 21 वह छतनार वृझोंके तले नरकटोंकी आड़ में और कीच पर लेटा करता है 22 छतनार वृझ उस पर छाया करते हैं, वह नाले के बेंत के वृझोंसे घिरा रहता है। 23 चाहे नदी की बाढ़ भी हो तौभी वह न घबराएगा, चाहे यरदन भी बढ़कर उसके मुंह तक आए परन्तु वह निर्भय रहेगा। 24 जब वह चौकस हो तब क्या कोई उसको पकड़ सकेगा, वा फन्दे लगाकर उसको नाय सकेगा?
1 फिर क्या तू लिब्यातान अयवा मगर को बंसी के द्वारा खींच सकता है, वा डोरी से उसकी जीभ दबा सकता है? 2 क्या तू उसकी नाक में नकेल लगा सकता वा उसका जबड़ा कील से बेध सकता है? 3 क्या वह तुझ से बहुत गिड़गिड़ाहट करेगा, वा तुझ से मीठी बातें बोलेगा? 4 क्या वह तुझ से वाचा बान्ध्ेगा कि वह सदा तेरा दास रहे? 5 क्या तू उस से ऐसे खेलेगा जैसे चिडिय़ा से, वा अपक्की लड़कियोंका जी बहलाने को उसे बान्ध रखेगा? 6 क्या मछुओं के दल उसे बिकाऊ माल समझेंगे? क्या वह उसे व्योपारियोंमें बांट देंगे? 7 क्या तू उसका चमड़ा भाले से, वा उसका सिर मछुवे के तिरशूलोंसे भर सकता है? 8 तू उस पर अपना हाथ ही धरे, तो लड़ाई को कभी न भूलेगा, और भविष्य में कभी ऐसा न करेगा। 9 देख, उसे पकड़ने की आशा निष्फल रहती है; उसके देखने ही से मन कच्चा पड़ जाता है। 10 कोई ऐसा साहसी नहीं, जो उसको भड़काए; फिर ऐसा कौन है जो मेरे साम्हने ठहर सके? 11 किस ने पुफे पहिले दिया है, जिसका बदला मुझे देना पके ! देख, जो कुछ सारी धरती पर है सो मेरा है। 12 मैं उसके अंगोंके विषय, और उसके बड़े बल और उसकी बनावट की शोभा के विषय चुप न रहूंगा। 13 उसके ऊपर के पहिरावे को कौन उतार सकता है? उसके दांतोंकी दोनोंपांतियोंके अर्यात् जबड़ोंके बीच कौन आएगा? 14 उसके मुख के दोनोंकिवाड़ कौन खोल सकता है? उसके दांत चारोंओर से डरावने हैं। 15 उसके छिलकोंकी रेखाएं घमण्ड का कारण हैं; वे मानो कड़ी छाप से बन्द किए हुए हैं। 16 वे एक दूसरे से ऐसे जुड़े हुए हैं, कि उन में कुछ वायु भी नहीं पैठ सकती। 17 वे आपस में मिले हुए और ऐसे सटे हुए हैं, कि अलग अलग नहीं हो सकते। 18 फिर उसके छींकने से उजियाला चमक उठता है, और उसकी आंखें भोर की पलकोंके समान हैं। 19 उसके मुंह से जलते हुए पक्कीते निकलते हैं, और आग की चिनगारियां छूटती हैं। 20 उसके नय्ुानोंसे ऐसा धुआं निकलता है, जैसा खौलती हुई हांड़ी और जलते हुए नरकटोंसे। 21 उसकी सांस से कोयले सुलगते, और उसके मुंह से आग की लौ निकलती है। 22 उसकी गर्दन में सामर्य्य बनी रहती है, और उसके साम्हने डर नाचता रहता है। 23 उसके मांस पर मांस चढ़ा हुआ है, और ऐसा आपस में सटा हुआ है जो हिल नहीं सकता। 24 उसका ह्रृदय पत्यर सा दृढ़ है, वरन चक्की के निचले पाट के समान दृढ़ है। 25 जब वह उठने लगता है, तब सामयीं भी डर जाते हैं, और डर के मारे उनकी सुध बुध लोप हो जाती है। 26 यदि कोई उस पर तलवार चलाए, तो उस से कुछ न बन पकेगा; और न भाले और न बछीं और न तीर से। 27 वह लोहे को पुआल सा, और पीतल को सड़ी लकड़ी सा जानता है। 28 वह तीर से भगाया नहीं जाता, गोफन के पत्यर उसके लिथे भूसे से ठहरते हैं। 29 लाठियां भी भूसे के समान गिनी जाती हैं; वह बछीं के चलने पर हंसता है। 30 उसके निचले भाग पैने ठीकरे के समान हैं, कीच पर मानो वह हेंगा फेरता है। 31 वह गहिरे जल को हंडे की नाई मय्ता है: उसके कारण नील नदी मरहम की हांडी के समान होती है। 32 वह अपके पीछे चमकीली लीक छोड़ता जाता है। गहिरा जल मानो श्वेत दिखाई देने लगता है। 33 धरती पर उसके तुल्य और कोई नहीं है, जो ऐसा निर्भय बनाया गया है। 34 जो कुछ ऊंचा है, उसे वह ताकता ही रहता है, वह सब घमणिडयोंके ऊपर राजा है।
1 तब अय्यूब यहोवा को उत्तर दिया; 2 मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है, और तेरी युक्तियोंमें से कोई रुक नहीं सकती। 3 तू कौन है जो ज्ञान रहित होकर युक्ति पर परदा डालता है? परन्तु मैं ने तो जो नहीं समझता या वही कहा, अर्यात् जो बातें मेरे लिथे अधिक कठिन और मेरी समझ से बाहर यीं जिनको मैं जानता भी नहीं या। 4 मैं निवेदन करता हूं सुन, मैं कुछ कहूंगा, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, तू मुझे बता दे। 5 मैं कानोंसे तेरा समाचार सुना या, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं; 6 इसलिथे मुझे अपके ऊपर घृणा आती है, और मैं धूलि और राख में पश्चात्ताप करता हूँ। 7 और ऐसा हुआ कि जब यहोवा थे बातें अय्यूब से कह चुका, तब उस ने तेमानी एलीपज से कहा, मेरा क्रोध तेरे और तेरे दोनोंमित्रोंपर भड़का है, क्योंकि जैसी ठीक बात मेरे दास अय्यूब ने मेरे विषय कही है, वैसी तुम लोगोंने नहीं कही। 8 इसलिथे अब तुम सात बैल और सात मेढ़े छांटकर मेरे दास अय्यूब के पास जाकर अपके निमित्त होमबलि चढ़ाओ, तब मेरा दास अय्यूब तुम्हारे लिथे प्रार्यना करेगा, क्योंकि उसी की मैं ग्रहण करूंगा; और नहीं, तो मैं तुम से तुम्हारी मूढ़ता के योग्य बर्ताव करूंगा, क्योंकि तुम लोगोंने मेरे विषय मेरे दास अय्यूब की सी ठीक बात नहीं कही। 9 यह सुन तेमानी एलीपज, शूही बिल्दद और नामाती सोपर ने जाकर यहोवा की आाज्ञा के अनुसार किया, और यहोवा ने अय्यूब की प्रार्यना ग्रहण की। 10 जब अय्यूब ने अपके मित्रोंके लिथे प्रार्यना की, तब यहोरवा ने उसका सारा दु:ख दूर किया, और जितना अय्यूब का पहिले या, उसका दुगना यहोवा ने उसे दे दिया। 11 तब उसके सब भाई, और सब बहिनें, और जितने पहिले उसको जानते पहिचानते थे, उन सभोंने आकर उसके यहां उसके संग भोजन किया; और जितनी विपत्ति यहोवा ने उस पर डाली यी, उस सब के विषय उन्होंने विलाप किया, और उसे शान्ति दी; और उसे एक एक सिक्का ओर सोने की एक एक बाली दी। 12 और यहोवा ने अय्यूब के पिछले दिनोंमें उसको अगले दिनोंसे अधिक आशीष दी; और उसके चौदह हजार भेंड़ बकरियां, छ:हजार ऊंट, हजार जोड़ी बैल, और हजार गदहियां हो गई। 13 और उसके सात बेटे ओर तीन बेटियां भी उत्पन्न हुई। 14 इन में से उस ने जेठी बेटी का नाम तो यमीमा, दूसरी का कसीआ और तीसरी का केरेन्हप्पूक रखा। 15 और उस सारे देश में एंसी स्त्रियां कहीं न यीं, जो अय्यूब की बेटियोंके समान सुन्दर हों, और उनके पिता ने उनको उनके भाइयोंके संग ही सम्पत्ति दी। 16 इसके बाद अय्यूब एक सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, और चार पीढ़ी तक अपना वंश देखने पाया। 17 निदान अय्यूब वृद्धावस्या में दीर्घायु होकर मर गया।
1 क्या ही धन्य है वह पुरूष जो दुष्टोंकी युक्ति पर नहीं चलता, और न पापियोंके मार्ग में खड़ा होता; और न ठट्ठा करनेवालोंकी मण्डली में बैठता है! 2 परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। 3 वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियोंके किनारे लगाया गया है। और अपक्की ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिथे जो कुछ वह पुरूष करे वह सफल होता है।। 4 दुष्ट लोग ऐसे नहीं होते, वे उस भूसी के समान होते हैं, जो पवन से उड़ाई जाती है। 5 इस कारण दुष्ट लोग अदालत में स्थिर न रह सकेंगे, और न पापी धर्मियोंकी मण्डली में ठहरेंगे; 6 क्योंकि यहोवा धर्मियोंका मार्ग जानता है, परन्तु दुष्टोंका मार्ग नाश हो जाएगा।।
1 जाति जाति के लोग क्योंहुल्लड़ मचाते हैं, और देश देश के लोग व्यर्थ बातें क्योंसोच रहे हैं? 2 यहोवा के और उसके अभिषिक्त के विरूद्ध पृथ्वी के राजा मिलकर, और हाकिम आपस में सम्मति करके कहते हैं, कि 3 आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें, और उनकी रस्सिक्कों अपके ऊपर से उतार फेंके।। 4 वह जो स्वर्ग में विराजमान है, हंसेगा, प्रभु उनको ठट्ठोंमें उड़ाएगा। 5 तब वह उन से क्रोध करके बातें करेगा, और क्रोध में कहकर उन्हें घबरा देगा, कि 6 मैं तो अपके ठहराए हुए राजा को अपके पवित्रा पर्वत सिरयोन की राजगद्दी पर बैठा चुका हूं। 7 मैं उस वचन का प्रचार करूंगा: जो यहोवा ने मुझ से कहा, तू मेरा पुत्रा है, आज तू मुझ से उत्पन्न हुआ। 8 मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगोंको तेरी सम्पत्ति होने के लिथे, और दूर दूर के देशोंको तेरी निज भूमि बनने के लिथे दे दूंगा। 9 तू उन्हें लोहे के डण्डे से टुकड़े टुकड़े करेगा। तू कुम्हार के बर्तन की नाईं उन्हें चकना चूर कर डालेगा।। 10 इसलिथे अब, हे राजाओं, बुद्धिमान बनो; हे पृथ्वी के न्यायियों, यह उपकेश ग्रहण करो। 11 डरते हुए यहोवा की उपासना करो, और कांपके हुए मगन हो। 12 पुत्रा को चूमो ऐसा न हो कि वह क्रोध करे, और तुम मार्ग ही में नाश हो जाओ; क्योंकि क्षण भर में उसका क्रोध भड़कने को है।। धन्य है वे जिनका भरोसा उस पर है।।
1 हे यहोवा मेरे सतानेवाले कितने बढ़ गए हैं! वह जो मेरे विरूद्ध उठते हैं बहुत हैं। 2 बहुत से मेरे प्राण के विषय में कहते हैं, कि उसका बचाव परमेश्वर की आरे से नहीं हो सकता। 3 परन्तु हे यहोवा, तू तो मेरे चारोंओर मेरी ढ़ाल है, तू मेरी महिमा और मेरे मस्तिष्क का ऊंचा करनेवाला है। 4 मैं ऊंचे शब्द से यहोवा को पुकारता हूं, और वह अपके पवित्रा पर्वत पर से मुझे उत्तर देता है। 5 मैं लेटकर सो गया; फिर जाग उठा, क्योंकि यहोवा मुझे सम्हालता है। 6 मैं उन दस हजार मनुष्योंसे नहीं डरता, जो मेरे विरूद्ध चारोंओर पांति बान्धे खड़े हैं।। 7 उठ, हे यहोवा! हे मेरे परमेश्वर मुझे बचा ले! क्योंकि तू ने मेरे सब शत्रुओं के जबड़ोंपर मारा है और तू ने दुष्टोंके दांत तोड़ डाले हैं।। 8 उद्धार यहोवा ही की ओर से होता है; हे यहोवा तेरी आशीष तेरी प्रजा पर हो।।
1 हे मेरे धर्ममय परमेश्वर, जब मैं पुकारूं तब तू मुझे उत्तर दे; जब मैं सकेती में पड़ा तब तू ने मुझे विस्तार दिया। मुझ पर अनुग्रह कर और मेरी प्रार्थना सुन ले।। 2 हे मनुष्योंके पुत्रों, कब तक मेरी महिमा के बदले अनादर होता रहेगा? तुम कब तक व्यर्थ बातोंसे प्रीति रखोगे और झूठी युक्ति की खोज में रहोगे? 3 यह जान रखो कि यहोवा ने भक्त को अपके लिथे अलग कर रखा है; जब मैं यहोवा को पुकारूंगा तब वह सुन लेगा।। 4 कांपके रहो और पाप मत करो; अपके अपके बिछौने पर मन ही मन सोचो और चुपचाप रहो। 5 धर्म के बलिदान चढ़ाओ, और यहोवा पर भरोसा रखो।। 6 बहुत से हैं जो कहते हैं, कि कौन हम को कुछ भलाई दिखाएगा? हे यहोवा तू अपके मुख का प्रकाश हम पर चमका! 7 तू ने मेरे मन में उस से कहीं अधिक आनन्द भर दिया है, जो उनको अन्न और दाखमधु की बढ़ती से होती थी। 8 मैं शान्ति से लेट जाऊंगा और सो जाऊंगा; क्योंकि, हे यहोवा, केवल तू ही मुझ को एकान्त में निश्चिन्त रहने देता है।।
1 हे यहोवा, मेरे वचनोंपर कान लगा; मेरे ध्यान करने की ओर मन लगा। 2 हे मेरे राजा, हे मेरे परमेश्वर, मेरी दोहाई पर ध्यान दे, क्योंकि मैं तुझी से प्रार्थना करता हूं। 3 हे यहोवा, भोर को मेरी वाणी तुझे सुनाई देगी, मैं भोर को प्रार्थना करके तेरी बाट जोहूंगा। 4 क्योंकि तू ऐसा ईश्वर नहीं जो दुष्टता से प्रसन्न हो; बुराई तेरे साथ नहीं रह सकती। 5 घमंडी तेरे सम्मुख खड़े होने न पांएगे; तुझे सब अनर्थकारियोंसे घृणा है। 6 तू उनको जो झूठ बोलते हैं नाश करेगा; यहोवा तो हत्यारे और छली मनुष्य से घृणा करता है। 7 परन्तु मैं तो तेरी अपार करूणा के कारण तेरे भवन में आऊंगा, मैं तेरा भय मानकर तेरे पवित्रा मन्दिर की ओर दण्डवत् करूंगा। 8 हे यहोवा, मेरे शत्रुओं के कारण अपके धर्म के मार्ग में मेरी अगुवाई कर; मेरे आगे आगे अपके सीधे मार्ग को दिखा। 9 क्योंकि उनके मुंह में कोई सच्चाई नहीं; उनके मन में निरी दुष्टता है। उनका गला खुली हुई कब्र है, वे अपक्की जीभ से चिकनी चुपड़ी बातें करते हैं। 10 हे परमेश्वर तू उनको दोषी ठहरा; वे अपक्की ही युक्तियोंसे आप ही गिर जाएं; उनको उनके अपराधोंकी अधिकाई के कारण निकाल बाहर कर, क्योंकि उन्होंने तुझ से बलवा किया है।। 11 परन्तु जितने तुझ पर भरोसा रखते हैं वे सब आनन्द करें, वे सर्वदा ऊंचे स्वर से गाते रहें; क्योंकि तू उनकी रक्षा करता है, और जो तेरे नाम के प्रेमी हैं तुझ में प्रफुल्लित हों। 12 क्योंकि तू धर्मी को आशिष देगा; हे यहोवा, तू उसको अपके अनुग्रहरूपी ढाल से घेरे रहेगा।।
1 हे यहोवा, तू मुझे अपके क्रोध में न डांट, और न झुंझलाहट में मुझे ताड़ना दे। 2 हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं कुम्हला गया हूं; हे यहोवा, मुझे चंगा कर, क्योंकि मेरी हडि्डयोंमें बेचैनी है। 3 मेरा प्राण भी बहुत खेदित है। और तू, हे यहोवा, कब तक? 4 लौट आ, हे यहोवा, और मेरे प्राण बचा अपक्की करूणा के निमित्त मेरा उद्धार कर। 5 क्योंकि मृत्यु के बाद तेरा स्मरण नहीं होता; अधोलोक में कौन तेरा धन्यवाद करेगा? 6 मैं कराहते कराहते थक गया; मैं अपक्की खाट आंसुओं से भिगोता हूं; प्रति रात मेरा बिछौना भीगता है। 7 मेरी आंखें शोक से बैठी जाती हैं, और मेरे सब सतानेवालोंके कारण वे धुन्धला गई हैं।। 8 हे सब अनर्थकारियो मेरे पास से दूर हो; क्योंकि यहोवा ने मेरे रोने का शब्द सुन लिया है। 9 यहोवा ने मेरा गिड़गिड़ाना सुना है; यहोवा मेरी प्रार्थना को ग्रहण भी करेगा। 10 मेरे सब शत्रु लज्जित होंगे और बहुत घबराएंगे; वे लौट जाएंगे, और एकाएक लज्जित होंगे।।
1 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरा भरोसा तुझ पर है; सब पीछा करनेवालोंसे मुझे बचा और छुटकारा दे, 2 ऐसा न हो कि वे मुझ को सिंह की नाई फाड़कर टुकड़े टुकड़े कर डालें; और कोई मेरा छुड़ानेवाला न हो।। 3 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, यदि मैं ने यह किया हो, यदि मेरे हाथोंसे कुटिल काम हुआ हो, 4 यदि मैं ने अपके मेल रखनेवालोंसे भलाई के बदले बुराई की हो, (वरन मैं ने उसको जो अकारण मेरा बैरी था बचाया है) 5 तो शत्रु मेरे प्राण का पीछा करके मुझे आ पकड़े, वरन मेरे प्राण को भूमि पर रौंदे, और मेरी महिमा को मिट्टी में मिला दे।। 6 हे यहोवा क्रोध करके उठ; मेरे क्रोधभरे सतानेवाले के विरूद्ध तू खड़ा हो जा; मेरे लिथे जाग! तू ने न्याय की आज्ञा तो दे दी है। 7 देश देश के लोगोंकी मण्डली तेरे चारोंओर हो; और तू उनके ऊपर से होकर ऊंचे स्थानोंपर लौट जा। 8 यहोवा समाज समाज का न्याय करता है; यहोवा मेरे धर्म और खराई के अनुसार मेरा न्याय चुका दे।। 9 भला हो कि दुष्टोंकी बुराई का अन्त हो जाए, परन्तु धर्म को तू स्थिर कर; क्योंकि धर्मी परमेश्वर मन और मर्म का ज्ञाता है। 10 मेरी ढाल परमेश्वर के हाथ में है, वह सीधे मनवालोंको बचाता है।। 11 परमेश्वर धर्मी और न्यायी है, वरन ऐसा ईश्वर है जो प्रति दिन क्रोध करता है।। 12 यदि मनुष्य न फिरे तो वह अपक्की तलवार पर सान चढ़ाएगा; वह अपना धनुष चढ़ाकर तीर सन्धान चुका है। 13 और उस मनुष्य के लिथे उस ने मृत्यु के हथियार तैयार कर लिए हैं: वह अपके तीरोंको अग्निबाण बनाता है। 14 देख दुष्ट को अनर्थ काम की पीड़ाएं हो रही हैं, उसको उत्पात का गर्भ है, और उस से झूठ उत्पन्न हुआ। उस ने गड़हा खोदकर उसे गहिरा किया, 15 और जो खाई उस ने बनाई थी उस में वह आप ही गिरा। 16 उसका उत्पात पलट कर उसी के सिर पर पकेगा; और उसका उपद्रव उसी के माथे पर पकेगा।। 17 मैं यहोवा के धर्म के अनुसार उसका धन्यवाद करूंगा, और परमप्रधान यहोवा के नाम का भजन गाऊंगा।।
1 हे यहोवा हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है! तू ने अपना विभव स्वर्ग पर दिखाया है। 2 तू ने अपके बैरियोंके कारण बच्चोंऔर दूध पिउवोंके द्वारा सामर्थ्य की नेव डाली है, ताकि तू शत्रु और पलटा लेनेवालोंको रोक रखे। 3 जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथोंका कार्य है, और चंद्रमा और तरागण को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूं; 4 तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले? 5 क्योंकि तू ने उसको परमेश्वर से थोड़ा ही कम बनाया है, और महिमा और प्रताप का मुकुट उसके सिर पर रखा है। 6 तू ने उसे अपके हाथोंके कार्योंपर प्रभुता दी है; तू ने उसके पांव तले सब कुछ कर दिया है। 7 सब भेड़- बकरी और गाय- बैल और जितने वनपशु हैं, 8 आकाश के पक्षी और समुद्र की मछलियां, और जितने जीव- जन्तु समुद्रोंमें चलते फिरते हैं। 9 हे यहोवा, हे हमारे प्रभु, तेरा नाम सारी पृथ्वी पर क्या ही प्रतापमय है।।
1 हे यहोवा परमेश्वर मैं अपके पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं तेरे सब आश्चर्य कर्मोंका वर्णन करूंगा। 2 मैं तेरे कारण आनन्दित और प्रफुल्लित होऊंगा, हे परमप्रधान, मैं तेरे नाम का भजन गाऊंगा।। 3 जब मेरे शत्रु पीछे हटते हैं, तो वे तेरे साम्हने से ठोकर खाकर नाश होते हैं। 4 क्योंकि तू ने मेरा न्याय और मुक मा चुकाया है; तू ने सिंहासन पर विराजमान होकर धर्म से न्याय किया। 5 तू ने अन्यजातियोंको झिड़का और दुष्ट को नाश किया है; तू ने उनका नाम अनन्तकाल के लिथे मिटा दिया है। 6 शत्रु जो है, वह मर गए, वे अनन्तकाल के लिथे उजड़ गए हैं; और जिन नगरोंको तू ने ढा दिया, उनका नाम वा निशान भी मिट गया है। 7 परन्तु यहोवा सदैव सिंहासन पर विराजमान है, उस ने अपना सिंहासन न्याय के लिथे सिद्ध किया है; 8 और वह आप ही जगत का न्याय धर्म से करेगा, वह देश देश के लोगोंका मुक मा खराई से निपटाएगा।। 9 यहोवा पिसे हुओं के लिथे ऊंचा गढ़ ठहरेगा, वह संकट के समय के लिथे भी ऊंचा गढ़ ठहरेगा। 10 और तेरे नाम के जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, क्योंकि हे यहोवा तू ने अपके खोजियोंको त्याग नहीं दिया।। 11 यहोवा जो सिरयोन में विराजमान है, उसका भजन गाओ! जाति जाति के लोगोंके बीच में उसके महाकर्मोंका प्रचार करो! 12 क्योंकि खून का पलटा लेनेवाला उनको स्मरण करता है; वह दीन लोगोंकी दोहाई को भूलता।। 13 हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर। तू जो मुझे मृत्यु के फाटकोंके पास से उठाता है, मेरे दु:ख को देख जो मेरे बैरी मुझे दे रहे हैं; 14 ताकि मैं सिरयोन के फाटकोंके पास तेरे सब गुणोंका वर्णन करूं, और तेरे किए हुए उद्धार से मगन होऊं।। 15 अन्य जातिवालोंने जो गड़हा खोदा था, उसी में वे आप गिर पके; जो जाल उन्होंने लगाया था, उस में उन्हीं का पांव फंस गया। 16 यहोवा ने अपके को प्रगट किया, उस ने न्याय किया है; दुष्ट अपके किए हुए कामोंमें फंस जाता है। 17 दुष्ट अधोलोक में लौट जाएंगे, तथा वे सब जातियां भी जा परमेश्वर को भूल जाती है। 18 क्योंकि दरिद्र लोग अनन्तकाल तक बिसरे हुए न रहेंगे, और न तो नम्र लोगोंकी आशा सर्वदा के लिथे नाश होगी। 19 उठ, हे परमेश्वर, मनुष्य प्रबल न होने पाए! जातियोंका न्याय तेरे सम्मुख किया जाए। 20 हे परमेश्वर, उनको भय दिला! जातियां अपके को मनुष्यमात्रा ही जानें।
1 हे यहोवा तू क्योंदूर खड़ा रहता है? संकट के समय में क्योंछिपा रहता है? 2 दुष्टोंके अहंकार के कारण दी मनुष्य खदेड़े जाते हैं; वे अपक्की ही निकाली हुई युक्तियोंमें फंस जाएं।। 3 क्योंकि दुष्ट अपक्की अभिलाषा पर घमण्ड करता है, और लोभी परमेश्वर को त्याग देता है और उसका तिरस्कार करता है।। 4 दुष्ट अपके अभिमान के कारण कहता है कि वह लेखा नहीं लेने का; उसका पूरा विचार यही है कि कोई परमेश्वर है ही नहीं।। 5 वह अपके मार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; तेरे न्याय के विचार ऐसे ऊंचे पर होते हैं, कि उसकी दृष्टि वहां तक नहीं पहुंचक्की; जितने उसके विरोधी हैं उन पर वह फुंकारता है। 6 वह अपके मन में कहता है कि मैं कभी टलने का नहीं: मैं पीढ़ी से पीढ़ी तक दु:ख से बचा रहूंगा।। 7 उसका मुंह शाप और छल और अन्धेर से भरा है; उत्पात और अनर्थ की बातें उसके मुंह में हैं। 8 वह गांवोंके घतोंमें बैठा करता है, और गुप्त स्थानोंमें निर्दोष को घात करता है, उसकी आंखे लाचार की घात में लगी रहती है। 9 जैसा सिंह अपक्की झाड़ी में वैसा ही वह भी छिपकर घात में बैठा करता है; वह दीन को पकड़ने के लिथे घात लगाए रहता है, 10 वह दीन को अपके जाल में फंसाकर घसीट लाता है, तब उसे पकड़ लेता है। 11 वह झुक जाता है और वह दबक कर बैठता है; और लाचार लोग उसके महाबली हाथोंसे पटके जाते हैं। 12 वह अपके मन में सोचता है, कि ईश्वर भूल गया, वह अपना मुंह छिपाता है; वह कभी नहीं देखेगा।। 13 उठ, हे यहोवा; हे ईश्वर, अपना हाथ बढ़ा; और दीनोंको न भूल। 14 परमेश्वर को दुष्ट क्योंतुच्छ जानता है, और अपके मन में कहता है कि तू लेखा न लेगा? 15 तू ने देख लिया है, क्योंकि तू उत्पात और कलपाने पर दुष्टि रखता है, ताकि उसका पलटा अपके हाथ में रखे; लाचार अपके को तेरे हाथ में सौंपता है; अनाथोंका तू ही सहाथक रहा है। दुष्ट की भुजा को तोड़ डाल; 16 यहोवा अनन्तकाल के लिथे महाराज है; उसके देश में से अन्यजाति लोग नाश हो गए हैं।। 17 हे यहोवा, तू ने नम्र लोगोंकी अभिलाषा सुनी है; तू उनका मन तैयार करेगा, तू कान लगाकर सुनेगा 18 कि अनाथ और पिसे हुए का न्याय करे, ताकि मनुष्य जो मिट्टी से बना है फिर भय दिखाने न पाए।।
1 मेरा भरोसा परमेश्वर पर है; तुम क्योंकि मेरे प्राण से कहते हो कि पक्षी की नाई अपके पहाड़ पर उड़ जा? 2 क्योंकि देखो, दुष्ट अपना धनुष चढ़ाते हैं, और अपना तीर धनुष की डोरी पर रखते हैं, कि सीधे मनवालोंपर अन्धिक्कारने में तीर चलाएं। 3 यदि नेवें ढ़ा दी जाएं तो धर्मी क्या कर सकता है? 4 परमेश्वर अपके पवित्रा भवन में है; परमेश्वर का सिंहासन स्वर्ग में है; उसकी आंखें मनुष्य की सन्तान को नित देखती रहती हैं और उसकी पलकें उनको जांचक्की हैं। 5 यहोवा धर्मीं को परखता है, परन्तु वह उन से जो दुष्ट हैं और उपद्रव से प्रीति रखते हैं अपक्की आत्मा में घृणा करता है। 6 वह दुष्टोंपर फन्दे बरसाएगा; आग और गन्धक और प्रचण्ड लूह उनके कटोरोंमें बांट दी जाएंगी। 7 क्योंकि यहोवा धर्मी है, वह धर्म के ही कामोंसे प्रसन्न रहता है; धर्मीजन उसका दर्शन पाएंगे।।
1 हे परमेश्वर बचा ले, क्योंकि एक भी भक्त नहीं रहा; मनुष्योंमें से विश्वासयोग्य लाग मर मिटे हैं। 2 उन में से प्रत्थेक अपके पड़ोसी से झूठी बातें कहता है; वे चापलूसी के ओठोंसे दो रंगी बातें करते हैं।। 3 प्रभु सब चापलूस ओठोंको और उस जीभ को जिस से बड़ा बोल निकलता है काट डालेगा। 4 वे कहते हैं कि हम अपक्की जीभ ही से जीतेंगे, हमारे ओंठ हमारे ही वश में हैं; हमार प्रभु कौन है? 5 दी लोगोंके लुट जाने, और दरिद्रोंके कराहने के कारण, परमेश्वर कहता है, अब मैं उठूंगा, जिस पर वे फुंकारते हैं उसे मैं चैन विश्राम दूंगा। 6 परमेश्वर का वचन पवित्रा है, उस चान्दि के समान जो भट्टी में मिट्टी पर ताई गई, और सात बार निर्मल की गई हो।। 7 तू ही हे परमेश्वर उनकी रक्षा करेगा, उनको इस काल के लोगोंसे सर्वदा के लिथे बचाए रखेगा। 8 जब मनुष्योंमें नीचपन का आदर होता है, तब दुष्ट लोग चारोंओर अकड़ते फिरते हैं।।
1 हे परमेश्वर तू कब तक? क्या सदैव मुझे भूला रहेगा? तू कब तक अपना मुखड़ा मुझ से छिपाए रहेगा? 2 मैं कब तक अपके मन ही मन में युक्तियां करता रहूं, और दिन भर अपके हृदय में दुखित रहा करूं, कब तक मेरा शत्रु मुझ पर प्रबल रहेगा? 3 हे मेरे परमेश्वर यहोवा मेरी ओर ध्यान दे और मुझे उत्तर दे, मेरी आंखोंमें ज्योति आने दे, नहीं तो मुझे मृत्यु की नींद आ जाएगी; 4 ऐसा न हो कि मेरा शत्रु कहे, कि मैं उस पर प्रबल हो गया; और ऐसा न हो कि जब मैं डगमगाने लगूं तो मेरे शत्रु मगन हों।। 5 परन्तु मैं ने तो तेरी करूणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा। 6 मैं परमेश्वर के नाम का भजन गाऊंगा, क्योंकि उस ने मेरी भलाई की है।।
1 मूर्ख ने अपके मन में कहा है, कोई परमेश्वर है ही नहीं। वे बिगड़ गए, उन्होंने घिनौने काम किए हैं, कोई सुकर्मी नहीं। 2 परमेश्वर ने स्वर्ग में से मनुष्योंपर दृष्टि की है, कि देखे कि कोई बुद्धिमान, कोई परमेश्वर का खोजी है या नहीं। 3 वे सब के सब भटक गए, वे सब भ्रष्ट हो गए; कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं। 4 क्या किसी अनर्थकारी को कुछ भी ज्ञान नहीं रहता, जो मेरे लोगोंको ऐसे खा जाते हैं जैसे रोटी, और परमेश्वर का नाम नहीं लेते? 5 वहां उन पर भय छा गया, क्योंकि परमेश्वर धर्मी लोगोंके बीच में निरन्तर रहता है। 6 तुम तो दीन की युक्ति की हंसी उड़ाते हो इसलिथे कि यहोवा उसका शरणस्थान है। 7 भला हो कि इस्राएल का उद्धार सिरयोन से प्रगट होता! जब यहोवा अपक्की प्रजा को दासत्व से लौटा ले आएगा, तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा।।
1 हे परमेश्वर तेरे तम्बू में कौन रहेगा? तेरे पवित्रा पर्वत पर कौन बसने पाएगा? 2 वह जो खराई से चलता और धर्म के काम करता है, और हृदय से सच बोलता है; 3 जो अपक्की जीभ से निन्दा नहीं करता, और न अपके मित्रा की बुराई करता, और न अपके पड़ोसी की निन्दा सुनता है; 4 वह जिसकी दृष्टि में निकम्मा मनुष्य तुच्छ है, और जो यहोवा के डरवैयोंका आदर करता है, जो शपथ खाकर बदलता नहीं चाहे हानि उठाना पके; 5 जो अपना रूपया ब्याज पर नहीं देता, और निर्दोष की हानि करने के लिथे घूस नहीं लेता है। जो कोई ऐसी चाल चलता है वह कभी न डगमगाएगा।।
1 हे ईश्वर मेरी रक्षा कर, क्योंकि मैं तेरा ही शरणागत हूं। 2 मैं ने परमेश्वर से कहा है, कि तू ही मेरा प्रभु है; तेरे सिवाए मेरी भलाई कहीं नहीं। 3 पृथ्वी पर जो पवित्रा लोग हैं, वे ही आदर के योग्य हैं, और उन्हीं से मैं प्रसन्न हूं। 4 जो पराए देवता के पीछे भागते हैं उनका दु:ख बढ़ जाएगा; मैं उनके लोहूवाले तपावन नहीं तपाऊंगा और उनका नाम अपके ओठोंसे नहीं लूंगा।। 5 यहोवा मेरा भाग और मेरे कटोरे का हिस्सा है; मेरे बांट को तू स्थिर रखता है। 6 मेरे लिथे माप की डोरी मनभावने स्थान में पड़ी, और मेरा भाग मनभावना है।। 7 मैं यहोवा को धन्य कहता हूं, क्योंकि उस ने मुझे सम्मत्ति दी है; वरन मेरा मन भी रात में मुझे शिक्षा देता है। 8 मैं ने यहोवा को निरन्तर अपके सम्मुख रखा है : इसलिथे कि वह मेरे दहिने हाथ रहता है मैं कभी न डगमगाऊंगा।। 9 इस कारण मेरा हृदय आनन्दित और मेरी आत्मा मगन हुई; मेरा शरीर भी चैन से रहेगा। 10 क्योंकि तू मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, न अपके पवित्रा भक्त को सड़ने देगा।। 11 तू मुझे जीवन का रास्ता दिखाएगा; तेरे निकट आनन्द की भरपूरी है, तेरे दहिने हाथ में सुख सर्वदा बना रहता है।।
1 हे यहोवा परमेश्वर सच्चाई के वचन सुन, मेरी पुकार की ओर ध्यान दे। मेरी प्रार्थना की ओर जो निष्कपट मुंह से निकलती है कान लगा। 2 मेरे मुक में का निर्णय तेरे सम्मुख हो! तेरी आंखें न्याय पर लगी रहें! 3 तू ने मेरे हृदय को जांचा है; तू ने रात को मेरी देखभाल की, तू ने मुझे परखा परन्तु कुछ भी खोटापन नहीं पाया; मैं ने ठान लिया है कि मेरे मुंह से अपराध की बात नहीं निकलेगी। 4 मानवी कामोंमें मैं तेरे मुंह के वचन के द्वारा क्रूरोंकी सी चाल से अपके को बचाए रहा। 5 मेरे पांव तेरे पथोंमें स्थिर रहे, फिसले नहीं।। 6 हे ईश्वर, मैं ने तुझ से प्रार्थना की है, क्योंकि तू मुझे उत्तर देगा। अपना कान मेरी ओर लगाकर मेरी बिनती सुन ले। 7 तू जो अपके दहिने हाथ के द्वारा अपके शरणगतोंको उनके विरोधियोंसे बचाता है, अपक्की अद्भुत करूणा दिखा। 8 अपके आंखो की पुतली की नाई सुरक्षित रख; अपके पंखोंके तले मुझे छिपा रख, 9 उन दुष्टोंसे जो मुझ पर अत्याचार करते हैं, मेरे प्राण के शत्रुओं से जो मुझे घेरे हुए हैं।। 10 उन्होंने अपके हृदयोंको कठोर किया है; उनके मुंह से घमंड की बातें निकलती हैं। 11 उन्होंने पग पग पर हमको घेरा है; वे हमको भूमि पर पटक देने के लिथे घात लगाए हुए हैं। 12 वह उस सिंह की नाई है जो अपके शिकार की लालसा करता है, और जवान सिंह की नाई घात लगाने के स्थानोंमें बैठा रहता है।। 13 उठ, हे यहोवा उसका सामना कर और उसे पटक दे! अपक्की तलवार के बल से मेरे प्राण को दुष्ट से बचा ले। 14 अपना हाथ बढ़ाकर हे यहोवा, मुझे मनुष्योंसे बचा, अर्थात् संसारी मनुष्योंसे जिनका भाग इसी जीवन में है, और जिनका पेट तू अपके भण्डार से भरता है। वे बालबच्चोंसे सन्तुष्ट हैं; और शेष सम्पति अपके बच्चोंके लिथे छोड़ जाते हैं।। 15 परन्तु मैं तो धर्मी होकर तेरे मुख का दर्शन करूंगा जब मैं जानूंगा तब तेरे स्वरूप से सन्तुष्ट हूंगा।।
1 हे परमेश्वर, हे मेरे बल, मैं तुझ से प्रेम करता हूं। 2 यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है; मेरा ईश्वर, मेरी चट्टान है, जिसका मैं शरणागत हूं, वह मेरी ढ़ाल और मेरी मुक्ति का गढ़ है। 3 मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूंगा; इस प्रकार मैं अपके शत्रुओं से बचाया जाऊंगा।। 4 मृत्यु की रस्सिक्कों मैं चारो ओर से घिर गया हूं, और अधर्म की बाढ़ ने मुझ को भयभीत कर दिया; 5 पाताल की रस्सियां मेरे चारो ओर थीं, और मृत्यु के फन्दे मुझ पर आए थे। 6 अपके संकट में मैं ने यहोवा परमेश्वर को पुकारा; मैं ने अपके परमेश्वर को दोहाई दी। और उस ने अपके मन्दिर में से मेरी बातें सुनी। और मेरी दोहाई उसके पास पहुंचकर उसके कानोंमें पड़ी।। 7 तब पृथ्वी हिल गई, और कांप उठी और पहाड़ोंकी नेवे कंपित होकर हिल गई क्योंकि वह अति क्रोधित हुआ था। 8 उसके नथनोंसे धुआं निकला, और उसके मुंह से आग निकलकर भस्म करने लगी; जिस से कोएले दहक उठे। 9 और वह स्वर्ग को नीचे झुकाकर उतर आया; और उसके पांवोंतले घोर अन्धकार था। 10 और वह करूब पर सवार होकर उड़ा, वरन पवन के पंखोंपर सवारी करके वेग से उड़ा। 11 उस ने अन्धिक्कारने को अपके छिपके का स्थान और अपके चारोंओर मेघोंके अन्धकार और आकाश की काली घटाओं का मण्डप बनाया। 12 उसकी उपस्थिति की झलक से उसकी काली घटाएं फट गई; ओले और अंगारे। 13 तब यहोवा आकाश में गरजा, और परमप्रधान ने अपक्की वाणी सुनाई, ओले ओर अंगारे।। 14 उस ने अपके तीर चला चलाकर उनको तितर बितर किया; वरन बिजलियां गिरा गिराकर उनको परास्त किया। 15 तब जल के नाले देख पके, और जगत की नेवें प्रगट हुई, यह तो यहोवा तेरी डांट से, और तेरे नथनोंकी सांस की झोंक से हुआ।। 16 उस ने ऊपर से हाथ बढ़ाकर मुझे थांम लिया, और गहिरे जल में से खींच लिया। 17 उस ने मेरे बलवन्त शत्रु से, और उन से जो मुझ से घृणा करते थे मुझे छुड़ाया; क्योंकि वे अधिक सामर्थी थे। 18 मेरी विपत्ति के दिन वे मुझ पर आ पके। परन्तु यहोवा मेरा आश्रय था। 19 और उस ने मुझे निकालकर चौड़े स्थान में पहुंचाया, उस ने मुझ को छुड़ाया, क्योंकि वह मुझ से प्रसन्न था। 20 यहोवा ने मुझ से मेरे धर्म के अनुसार व्यवहार किया; और मेरे हाथोंकी शुद्धता के अनुसार उस ने मुझे बदला दिया। 21 क्योंकि मैं यहोवा के मार्गोंपर चलता रहा, और दुष्टता के कारण अपके परमेश्वर से दूर न हुआ। 22 क्योंकि उसके सारे निर्णय मेरे सम्मुख बने रहे और मैं ने उसकी विधियोंको न त्यागा। 23 और मैं उसके सम्मुख सिद्ध बना रहा, और अधर्म से अपके को बचाए रहा। 24 यहोवा ने मुझे मेरे धर्म के अनुसार बदला दिया, और मेरे हाथोंकी उस शुद्धता के अनुसार जिसे वह देखता था।। 25 दयावन्त के साथ तू अपके को दयावन्त दिखाता; और खरे पुरूष के साथ तू अपके को खरा दिखाता है। 26 शुद्ध के साथ तू अपके को शुद्ध दिखाता, और टेढ़े के साथ तू तिर्छा बनता है। 27 क्योंकि तू दी लोगोंको तो बचाता है; परन्तु घमण्ड भरी आंखोंको नीची करता है। 28 हां, तू ही मेरे दीपक को जलाता है; मेरा परमेश्वर यहोवा मेरे अन्धिक्कारने को उजियाला कर देता है। 29 क्योंकि तेरी सहाथता से मैं सेना पर धावा करता हूं; और अपके परमेश्वर की सहाथता से शहरपनाह को लांघ जाता हूं। 30 ईश्वर का मार्ग सच्चाई; यहोवा का वचन ताया हुआ है; वह अपके सब शरणागतोंकी ढाल है।। 31 यहोवा को छोड़ क्या कोई ईश्वर है? हमारे परमेश्वर को छोड़ क्या और कोई चट्टान है? 32 यह वही ईश्वर है, जो सामर्थ से मेरा कटिबन्ध बान्धता है, और मेरे मार्ग को सिद्ध करता है। 33 वही मेरे पैरोंको हरिणियोंके पैरोंके समान बनाता है, और मुझे मेरे ऊंचे स्थानोंपर खड़ा करता है। 34 वह मेरे हाथोंको युद्ध करना सिखाता है, इसलिथे मेरी बाहोंसे पीतल का धनुष झुक जाता है। 35 तू ने मुझ को अपके बचाव की ढाल दी है, तू अपके दहिने हाथ से मुझे सम्भाले हुए है, और मेरी नम्रता ने महत्व दिया है। 36 तू ने मेरे पैरोंके लिथे स्थान चौड़ा कर दिया, और मेरे पैर नहीं फिसले। 37 मैं अपके शत्रुओं का पीछा करके उन्हें पकड़ लूंगा; और जब तब उनका अन्त न करूं तब तक न लौटूंगा। 38 मैं उन्हें ऐसा बेधूंगा कि वे उठ न सकेंगे; वे मेरे पांवोंके नीचे गिर पकेंगे। 39 क्योंकि तू ने युद्ध के लिथे मेरी कमर में शक्ति का पटुका बान्धा है; और मेरे विरोधियोंको मेरे सम्मुख नीचा कर दिया। 40 तू ने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी, ताकि मैं उनको काट डालूं जो मुझ से द्वेष रखते हैं। 41 उन्होंने दोहाई तो दी परन्तु उन्हें कोई भी बचानेवाला न मिला, उन्होंने यहोवा की भी दोहाई दी, परन्तु उस ने भी उनको उत्तर न दिया। 42 तब मैं ने उनको कूट कूटकर पवन से उड़ाई हुई धूलि के समान कर दिया; मैं ने उनको गली कूचोंकी कीचड़ के समान निकाल फेंका।। 43 तू ने मुझे प्रजा के झगड़ोंसे भी छुड़ाया; तू ने मुझे अन्यजातियोंका प्रधान बनाया है; जिन लोगोंको मैं जानता भी न था वे मेरे अधीन हो गथे। 44 मेरा नाम सुनते ही वे मेरी आज्ञा का पालन करेंगे; परदेशी मेरे वश में हो जाएंगे। 45 परदेशी मुर्झा जाएंगे, और अपके किलोंमें से थरथराते हुए निकलेंगे।। 46 यहोवा परमेश्वर जीवित है; मेरी चट्टान धन्य है; और मेरे मुक्तिदाता परमेश्वर की बड़ाई हो। 47 धन्य है मेरा पलटा लेनेवाला ईश्वर! जिस ने देश देश के लोगोंको मेरे वंश में कर दिया है; 48 और मुझे मेरे शत्रुओं से छुड़ाया है; तू मुझ को मेरे विरोधियोंसे ऊंचा करता, और उपद्रवी पुरूष से बचाता है।। 49 इस कारण मैं जाति जाति के साम्हने तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम का भजन गाऊंगा। 50 वह अपके ठहराए हुए राजा का बड़ा उद्धार करता है, वह अपके अभिषिक्त दाऊद पर और उसके वंश पर युगानुयुग करूणा करता रहेगा।।
1 आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है। 2 दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है। 3 न तो कोई बोली है और न कोई भाषा जहां उनका शब्द सुनाई नहीं देता है। 4 उनका स्वर सारी पृथ्वी पर गूंज गया है, और उनके वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं। उन में उस ने सूरर्य के लिथे एक मण्डप खड़ा किया है, 5 जो दुल्हे के समान अपके महल से निकलता है। वह शूरवीर की नाई अपक्की दौड़ दौड़ने को हर्षित होता है। 6 वह आकाश की एक छोर से निकलता है, और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सबको पहुंचक्की है।। 7 यहोवा की व्यवस्था खरी है, वह प्राण को बहाल कर देती है; यहोवा के नियम विश्वासयोग्य हैं, साधारण लोगोंको बुद्धिमान बना देते हैं; 8 यहोवा के उपकेश सिद्ध हैं, हृदय को आनन्दित कर देते हैं; यहोवा की आज्ञा निर्मल है, वह आंखोंमें ज्योति ले आती है; 9 यहोवा का भय पवित्रा है, वह अनन्तकाल तक स्थिर रहता है; यहोवा के नियम सत्य और पूरी रीति से धर्ममय हैं। 10 वे तो सोने से और बहुत कुन्दन से भी बढ़कर मनोहर हैं; वे मधु से और टपकनेवाले छत्ते से भी बढ़कर मधुर हैं। 11 और उन्हीं से तेरा दास चिताया जाता है; उनके पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है। 12 अपक्की भूलचूक को कौन समझ सकता है? मेरे गुप्त पापोंसे तू मुझे पवित्रा कर। 13 तू अपके दास को ढिठाई के पापोंसे भी बचाए रख; वह मुझ पर प्रभुता करने न पाएं! तब मैं सिद्ध हो जाऊंगा, और बड़े अपराधोंसे बचा रहूंगा।। 14 मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले!
1 संकट के दिन यहोवा तेरी सुन ले! याकूब के परमेश्वर का नाम तुझे ऊंचे स्थान पर नियुक्त करे! 2 वह पवित्रास्थान से तेरी सहाथता करे, और सिरयोन से तुझे सम्भाल ले! 3 वह तेरे सब अन्नबलियोंको स्मरण करे, और तेरे होमबलि को ग्रहण करे। 4 वह तेरे मन की इच्छा को पूरी करे, और तेरी सारी युक्ति को सुफल करे! 5 तब हम तेरे उद्धार के कारण ऊंचे स्वर से हर्षित होकर गाएंगे, और अपके परमेश्वर के नाम से झण्डे खड़े करेंगे। यहोवा तुझे मुंह मांगा बरदान दे् 6 अब मैं जान गया कि यहोवा अपके अभिषिक्त का उद्धार करता है; वह अपके दहिने हाथ के उद्धार करनेवाले पराक्रम से अपके पवित्रा स्वर्ग पर से सुनकर उसे उत्तर देगा। 7 किसी को रथोंको, और किसी को घोड़ोंका भरोसा है, परन्तु हम तो अपके परमेश्वर यहोवा ही का नाम लेंगे। 8 वे तो झुक गए और गिर पके परन्तु हम उठे और सीधे खड़े हैं।। 9 हे यहोवा, बचा ले; जिस दिन हम पुकारें तो महाराजा हमें उत्तर दे।।
1 हे यहोवा तेरी सामर्थ्य से राजा आनन्दित होगा; और तेरे किए हुए उद्धार से वह अति मगन होगा। 2 तू ने उसके मनोरथ को पूरा किया है, और उसके मुंह की बिनती को तू ने अस्वीकार नहीं किया। 3 क्योंकि तू उत्तम आशीषें देता हुआ उस से मिलता है और तू उसके सिर पर कुन्दन का मुकुट पहिनाता है। 4 उस ने तुझ से जीवन मांगा, ओर तू ने जीवनदान दिया; तू ने उसको युगानुयुग का जीवन दिया है। 5 तेरे उद्धार के कारण उसकी महिमा अधिक है; तू उसको विभव और ऐश्वर्य से आभूषित कर देता है। 6 क्योंकि तू ने उसको सर्वदा के लिथे आशीषित किया है; तू अपके सम्मुख उसको हर्ष और आनन्द से भर देता है। 7 क्योंकि राजा का भरोसा यहोवा के ऊपर है; और परमप्रधान की करूणा से वह कभी नहीं टलने का।। 8 तेरा हाथ तेरे सब शत्रुओं को ढूंढ़ निकालेगा, तेरा दहिना हाथ तेरे सब बैरियोंका पता लगा लेगा। 9 तू अपके मुख के सम्मुख उन्हें जलते हुए भट्टे की नाई जलाएगा। यहोवा अपके क्रोध में उन्हें निगल जाएगा, और आग उनको भस्म कर डालेगी। 10 तू उनके फलोंको पृथ्वी पर से, और उनके वंश को मनुष्योंमें से नष्ट करेगा। 11 क्योंकि उन्होंने तेरी हाति ठानी है, उन्होंने ऐसी युक्ति निकाली है जिसे वे पूरी न कर सकेंगे। 12 क्योंकि तू अपना धुनष उनके विरूद्ध चढ़ाएगा, और वे पीठ दिखाकर भागेंगे।। 13 हे यहोवा, अपक्की सामर्थ्य में महान हो! और हम गा गाकर तेरे पराक्रम का भजन सुनाएंगे।।
1 हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्योंछोड़ दिया? तू मेरी पुकार से और मेरी सहाथत करने से क्योंदूर रहता है? मेरा उद्धार कहां है? 2 हे मेरे परमेश्वर, मैं दिन को पुकारता हूं परन्तु तू उत्तर नहीं देता; और रात को भी मैं चुप नहीं रहता। 3 परन्तु हे तू जो इस्राएल की स्तुति के सिहांसन पर विराजमान है, तू तो पवित्रा है। 4 हमारे पुरखा तुझी पर भरोसा रखते थे; वे भरोसा रखते थे, और तू उन्हें छुड़ाता था। 5 उन्होंने तेरी दोहाई दी और तू ने उनको छुड़ाया वे तुझी पर भरोसा रखते थे और कभी लज्जित न हुए।। 6 परन्तु मैं तो कीड़ा हूं, मनुष्य नहीं; मनुष्योंमें मेरी नामधराई है, और लोगोंमें मेरा अपमान होता है। 7 वह सब जो मुझे देखते हैं मेरा ठट्ठा करते हैं, और ओंठ बिचकाते और यह कहते हुए सिर हिलाते हैं, 8 कि अपके को यहोवा के वश में कर दे वही उसको छुड़ाए, वह उसको उबारे क्योंकि वह उस से प्रसन्न है। 9 परन्तु तू ही ने मुझे गर्भ से निकाला; जब मैं दूधपिउवा बच्च था, तब ही से तू ने मुझे भरोसा रखना सिखलाया। 10 मैं जन्मते ही तुझी पर छोड़ दिया गया, माता के गर्भ ही से तू मेरा ईश्वर है। 11 मुझ से दूर न हो क्योंकि संकट निकट है, और कोई सहाथक नहीं। 12 बहुत से सांढ़ोंने मुझे घेर लिया है, बाशान के बलवन्त सांढ़ मेरे चारोंओर मुझे घेरे हुए है। 13 वह फाड़ने और गरजनेवाले सिंह की नाईं मुझ पर अपना मुंह पसारे हुए है।। 14 मैं जल की नाईं बह गया, और मेरी सब हडि्डयोंके जोड़ उखड़ गए: मेरा हृदय मोम हो गया, वह मेरी देह के भीतर पिघल गया। 15 मेरा बल टूट गया, मैं ठीकरा हो गया; और मेरी जीभ मेरे तालू से चिपक गई; और तू मुझे मारकर मिट्टी में मिला देता है। 16 क्योंकि कुत्तोंने मुझे घेर लिया है; कुकर्मियोंकी मण्डली मेरी चरोंओर मुझे घेरे हुए है; वह मेरे हाथ और मेरे पैर छेदते हैं। 17 मैं अपक्की सब हडि्डयां गिन सकता हूं; वे मुझे देखते और निहारते हैं; 18 वे मेरे वस्त्रा आपस में बांटते हैं, और मेरे पहिरावे पर चिट्ठी डालते हैं। 19 परन्तु हे यहोवा तू दूर न रह! हे मेरे सहाथक, मेरी सहाथता के लिथे फुर्ती कर! 20 मेरे प्राण को तलवार से बचा, मेरे प्राण को कुत्ते के पंजे से बचा ले! 21 मुझे सिंह के मुंह से बचा, हां, जंगती सांढ़ोंके सींगो में से तू ने मुझे बचा लिया है।। 22 मैं अपन भाइयोंके साम्हने तेरे नाम का प्रचार करूंगा; सभा के बीच में तेरी प्रशंसा करूंगा। 23 हे यहोवा के डरवैयोंउसकी स्तुति करो! हे याकूब के वंश, तुम उसका भय मानो! 24 क्योंकि उस ने दु:खी को तुच्छ नहीं जाना और न उस से घृणा करता है, ओर न उस से अपना मुख छिपाता है; पर जब उस ने उसकी दोहाई दी, तब उसकी सुन ली।। 25 बड़ी सभा में मेरा स्तुति करना तेरी ही ओर से होता है; मैं अपके प्रण को उस से भय रखनेवालोंके साम्हने पूरा करूंगा 26 नम्र लोग भोजन करके तृप्त होंगे; जो यहोवा के खोजी हैं, वे उसकी स्तुति करेंगे। तुम्हारे प्राण सर्वदा जीवित रहें! 27 पृथ्वी के सब दूर दूर देशोंके लोग उसको स्मरण करेंगे और उसकी ओर फिरेंगे; और जाति जाति के सब कुल तेरे साम्हने दण्डवत् करेंगे। 28 क्योंकि राज्य यहोवा की का है, और सब जातियोंपर वही प्रभुता करता है।। 29 पृथ्वी के सब हृष्टपुष्ट लोग भोजन करके दण्डवत् करेंगे; वह सब जितने मिट्टी में मिल जाते हैं और अपना अपना प्राण नहीं बचा सकते, वे सब उसी के साम्हने घुटने टेकेंगे। 30 एक वंश उसकी सेवा करेगा; दूसरा पीढ़ी से प्रभु का वर्णन किया जाएगा। 31 वह आएंगे और उसके धर्म के कामोंको एक वंश पर जो उत्पन्न होगा यह कहकर प्रगट करेंगे कि उस ने ऐसे ऐसे अद्भुत काम किए।।
1 यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी। 2 वह मुझे हरी हरी चराइयोंमें बैठाता है; वह मुझे सुखदाई जल के झरने के पास ले चलता है; 3 वह मेरे जी में जी ले आता है। धर्म के मार्गो में वह अपके नाम के निमित्त अगुवाई करता है। 4 चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं, तौभी हानि से न डरूंगा, क्योंकि तू मेरे साथ रहता है; तेरे सोंटे और तेरी लाठी से मुझे शान्ति मिलती है।। 5 तू मेरे सतानेवालोंके साम्हने मेरे लिथे मेज बिछाता है; तू ने मेरे सिर पर तेल मला है, मेरा कटोरा उमण्ड रहा है। 6 निश्चय भलाई और करूणा जीवन भर मेरे साथ साथ बनी रहेंगी; और मैं यहोवा के धाम में सर्वदा वास करूंगा।।
1 पृथ्वी और जो कुछ उस में है यहोवा ही का है; जगत और उस में निवास करनेवाले भी। 2 क्योंकि उसी ने उसकी नींव समुद्रोंके ऊपर दृढ़ करके रखी, और महानदोंके ऊपर स्थिर किया है।। 3 यहोवा के पर्वत पर कौन चढ़ सकता है? और उसके पवित्रास्थान में कौन खड़ा हो सकता है? 4 जिसके काम निर्दोष और हृदय शुद्ध है, जिस ने अपके मन को व्यर्थ बात की ओर नहीं लगाया, और न कपट से शपथ खाई है। 5 वह यहोवा की ओर से आशीष पाएगा, और अपके उद्धार करनेवाले परमेश्वर की ओर से धर्मी ठहरेगा। 6 ऐसे ही लोग उसके खोजी है, वे तेरे दर्शन के खोजी याकूबवंशी हैं।। 7 हे फाटकों, अपके सिर ऊंचे करो। हे सनातन के द्वारों, ऊंचे हो जाओ। क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा। 8 वह प्रतापी राजा कौन है? परमेश्वर जो सामर्थी और पराक्रमी है, परमेश्वर जो युद्ध में पराक्रमी है! 9 हे फाटकों, अपके सिर ऊंचे करो हे सनातन के द्वारोंतुम भी खुल जाओ! क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा! 10 वह प्रतापी राजा कौन है? सेनाओं का यहोवा, वही प्रतापी राजा है।।
1 हे यहोवा मैं अपके मन को तेरी ओर उठाता हूं। 2 हे मेरे परमेश्वर, मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है, मुझे लज्जित होने न दे; मेरे शत्रु मुझ पर जयजयकार करने न पाएं। 3 वरन जितने तेरी बाट जोहते हैं उन में से कोई लज्जित न होगा; परन्तु जो अकारण विश्वासघाती हैं वे ही लज्जित होंगे।। 4 हे यहोवा अपके मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे। 5 मुझे अपके सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्वार करनेवाला परमेश्वर है; मैं दिन भर तेरी ही बाट जाहता रहता हूं। 6 हे यहोवा अपक्की दया और करूणा के कामोंको स्मरण कर; क्योंकि वे तो अनन्तकाल से होते आए हैं। 7 हे यहोवा अपक्की भलाई के कारण मेरी जवानी के पापोंऔर मेरे अपराधोंको स्मरण न कर; अपक्की करूणा ही के अनुसार तू मुझे स्मरण कर।। 8 यहोवा भला और सीधा है; इसलिथे वह पापियोंको अपना मार्ग दिखलाएगा। 9 वह नम्र लोगोंको न्याय की शिक्षा देता, हां वह नम्र लोगोंको अपना मार्ग दिखलाएगा। 10 जो यहोवा की वाचा और चितौनियोंको मानते हैं, उनके लिथे उसके सब मार्ग करूणा और सच्चाई हैं।। 11 हे यहोवा अपके नाम के निमित्त मेरे अधर्म को जो बहुत हैं क्षमा कर।। 12 वह कौन है जो यहोवा का भय मानता है? यहोवा उसको उसी मार्ग पर जिस से वह प्रसन्न होता है चलाएगा। 13 वह कुशल से टिका रहेगा, और उसका वंश पृथ्वी पर अधिक्कारनेी होगा। 14 यहोवा के भेद को वही जानते हैं जो उस से डरते हैं, और वह अपक्की वाचा उन पर प्रगट करेगा। 15 मेरी आंखे सदैव यहोवा पर टकटकी लगाए रहती हैं, क्योंकि वही मेरे पांवोंको जाल में से छुड़ाएगा।। 16 हे यहोवा मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; क्योंकि मैं अकेला और दीन हूं। 17 मेरे हृदय का क्लेश बढ़ गया है, तू मुझ को मेरे दु:खोंसे छुड़ा ले। 18 तू मेरे दु:ख और कष्ट पर दृष्टि कर, और मेरे सब पापोंको क्षमा कर।। 19 मेरे शत्रुओं को देख कि वे कैसे बढ़ गए हैं, और मुझ से बड़ा बैर रखते हैं। 20 मेरे प्राण की रक्षा कर, और मुझे छुड़ा; मुझे लज्जित न होने दे, क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूं। 21 खराई और सीधाई मुझे सुरक्षित रखें, क्योंकि मुझे तेरे ही आशा है।। 22 हे परमेश्वर इस्राएल को उसके सारे संकटोंसे छुड़ा ले।।
1 हे यहोवा, मेरा न्याय कर, क्योंकि मैं खराई से चलता रहा हूं, और मेरा भरोसा यहोवा पर अटल बना है। 2 हे यहोवा, मुझ को जांच और परख; मेरे मन और हृदय को परख। 3 क्योंकि तेरी करूणा तो मेरी आंखोंके साम्हने है, और मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलता रहा हूं।। 4 मैं निकम्मी चाल चलनेवालोंके संग नहीं बैठा, और न मैं कपटियोंके साथ कहीं जाऊंगा; 5 मैं कुकर्मियोंकी संगति से घृणा रखता हूं, और दुष्टोंके संग न बैठूंगा।। 6 मैं अपके हाथोंको निर्दोषता के जल से धोऊंगा, तब हे यहोवा मैं तेरी वेदी की प्रदक्षिणा करूंगा, 7 ताकि मेरा धन्यवाद ऊंचे शब्द से करूं, 8 और तेरे सब आश्चर्यकर्मोंका वर्णन करूं।। हे यहोवा, मैं तेरे धाम से तेरी महिमा के निवासस्थान से प्रीति रखता हूं। 9 मेरे प्राण को पापियोंके साथ, और मेरे जीवन को हत्यारोंके साथ न मिला। 10 वे तो ओछापन करने में लगे रहते हैं, और उनका दहिना हाथ घूस से भरा रहता है।। 11 परन्तु मैं तो खराई से चलता रहूंगा। तू मुझे छुड़ा ले, और मुझ पर अनुग्रह कर। 12 मेरे पांव चौरस स्थान में स्थिर है; सभाओं में मैं यहोवा को धन्य कहा करूंगा।।
1 यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं? 2 जब कुकर्मियोंने जो मुझे सताते और मुझी से बैर रखते थे, मुझे खा डालने के लिथे मुझ पर चढ़ाई की, तब वे ही ठोकर खाकर गिर पकें।। 3 चाहे सेना भी मेरे विरूद्ध छावनी डाले, तौभी मैं न डरूंगा; चाहे मेरे विरूद्ध लड़ाई ठन जाए, उस दशा में भी मैं हियाव बान्धे निशिजित रहूंगा।। 4 एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है, उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं।। 5 क्योंकि वह तो मुझे विपत्ति के दिन में अपके मण्डप में छिपा रखेगा; अपके तम्बू के गुप्तस्थान में वह मुझे छिपा लेगा, और चट्टान पर चढ़ाएगा। 6 अब मेरा सिर मेरे चारोंओर के शत्रुओं से ऊंचा होगा; और मैं यहोवा के तम्बू में जयजयकार के साथ बलिदान चढ़ाऊंगा; और उसका भजन गाऊंगा।। 7 हे यहोवा, मेरा शब्द सुन, मैं पुकारता हूं, तू मुझ पर अनुग्रह कर और मुझे उत्तर दे। 8 तू ने कहा है, कि मेरे दर्शन के खोजी हो। इसलिथे मेरा मन तुझ से कहता है, कि हे यहोवा, तेरे दर्शन का मैं खोजी रहूंगा। 9 अपना मुख मुझ से न छिपा।। अपके दास को क्रोध करके न हटा, तू मेरा सहाथक बना है। हे मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्वर मुझे त्याग न दे, और मुझे छोड़ न दे! 10 मेरे माता पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।। 11 हे यहोवा, अपके मार्ग में मेरी अगुवाई कर, और मेरे द्रोहियोंके कारण मुण् को चौरस रास्ते पर ले चल। 12 मुझ को मेरे सतानेवालोंकी इच्छा पर न छोड़, क्योंकि झूठे साक्षी जो उपद्रव करने की धुन में हैं मेरे विरूद्ध उठे हैं।। 13 यदि मुझे विश्वास न होता कि जीवितोंकी पृथ्वी पर यहोवा की भलाई को देखूंगा, तो मैं मूच्छित हो जाता। 14 यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह!
1 हे यहोवा, मैं तुझी को पुकारूंगा; हे मेरी चट्टान, मेरी सुनी अनसुनी न कर, ऐसा न हो कि तेरे चुप रहने से मैं कब्र में पके हुओं के समान हो जाऊं जो पाताल में चले जाते हैं। 2 जब मैं तेरी दोहाई दूं, और तेरे पवित्रास्थान की भीतरी कोठरी की ओर अपके हाथ उठाऊं, तब मेरी गिड़गिड़ाहट की बात सुन ले। 3 उन दुष्टोंऔर अनर्थकारियोंके संग मुझे न घसीट; जो अपके पड़ोसिक्कों बातें तो मेल की बोलते हैं परन्तु हृदय में बुराई रखते हैं। 4 उनके कामोंके और उनकी करनी की बुराई के अनुसार उन से बर्ताव कर, उनके हाथोंके काम के अनुसार उन्हें बदला दे; उनके कामोंका पलटा उन्हें दे। 5 वे यहोवा के कामोंपर और उसके हाथोंके कामोंपर ध्यान नहीं करते, इसलिथे वह उन्हें पछाड़ेगा और फिर न उठाएगा।। 6 यहोवा धन्य है; क्योंकि उस ने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुना है। 7 यहोवा मेरा बल और मेरी ढ़ाल है; उस पर भरोसा रखने से मेरे मन को सहाथता मिली है; इसलिथे मेरा हृदय प्रफुल्लित है; और मैं गीत गाकर उसका धन्यवाद करूंगा। 8 यहोवा उनका बल है, वह अपके अभिषिक्त के लिथे उद्धार का दृढ़ गढ़ है। 9 हे यहोवा अपक्की प्रजा का उद्धार कर, और अपके निज भाग के लोगोंको आशीष दे; और उनकी चरवाही कर और सदैव उन्हें सम्भाले रह।।
1 हे परमेश्वर के पुत्रोंयहोवा का, हां यहोवा की का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्थ को सराहो। 2 यहोवा के नाम की महिमा करो; पवित्राता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत् करो। 3 यहोवा की वाणी मेघोंके ऊपर सुन पड़ती है; प्रतामी ईश्वर गरजता है, यहोवा घने मेघोंके ऊपर रहता है। 4 यहोवा की वाणी शक्तिशाली है, यहोवा की वाणी प्रतापमय है। 5 यहोवा की वाणी देवदारोंको तोड़ डालती है; यहोवा लबानोन के देवदारोंको भी तोड़ डालता है। 6 वह उन्हें बछड़े की नाई और लबानोन और शिर्योन को जंगली बछड़े के समान उछालता है।। 7 यहोवा की वाणी आग की लपटोंको चीरती है। 8 यहोवा की वाणी वन को हिला देती है, यहोवा कादेश के वन को भी कंपाता है।। 9 यहोवा की वाणी से हरिणियोंका गर्भपात हो जाता है। और अरण्य में पतझड़ होती है; और उसके मन्दिर में सब कोई महिमा ही महिमा बोलता रहता है।। 10 जलप्रलय के समय यहोवा विराजमान था; और यहोवा सर्वदा के लिथे राजा होकर विराजमान रहता है। 11 यहोवा अपक्की प्रजा को बल देगा; यहोवा अपक्की प्रजा को शान्ति की आशीष देगा।।
1 हे यहोवा मैं तुझे सराहूंगा, क्योंकि तू ने मुझे खींचकर निकाला है, और मेरे शत्रुओं को मुझ पर आनन्द करने नहीं दिया। 2 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी और तू ने मुझे चंगा किया है। 3 हे यहोवा, तू ने मेरा प्राण अधोलोक में से निकाला है, तू ने मुझ को जीवित रखा और कब्र में पड़ने से बचाया है।। 4 हे यहोवा के भक्तों, उसका भजन गाओ, और जिस पवित्रा नाम से उसका स्मरण होता है, उसका धन्यवाद करो। 5 क्योंकि उसका क्रोध, तो क्षण भर का होता है, परन्तु उसकी प्रसन्नता जीवन भर की होती है। कदाचित् रात को रोना पके, परन्तु सबेरे आनन्द पहुंचेगा।। 6 मैं ने तो चैन के समय कहा था, कि मैं कभी नहीं टलने का। 7 हे यहोवा अपक्की प्रसन्नता से तू ने मेरे पहाड़ को दृढ़ और स्थिर किया था; जब तू ने अपना मुख फेर लिया तब मैं घबरा गया।। 8 हे यहोवा मैं ने तुझी को पुकारा; और यहोवा से गिड़गिड़ाकर यह बिनती की, कि 9 जब मैं कब्र में चला जाऊंगा तब मेरे लोहू से क्या लाभ होगा? क्या मिट्टी तेरा धन्यवाद कर सकती है? क्या वह तेरी सच्चाई का प्रचार कर सकती है? 10 हे यहोवा, सुन, मुझ पर अनुग्रह कर; हे यहोवा, तू मेरा सहाथक हो।। 11 तू ने मेरे लिथे विलाप को नृत्य में बदल डाला, तू ने मेरा टाट उतरवाकर मेरी कमर में आनन्द का पटुका बान्धा है; 12 ताकि मेरी आत्मा तेरा भजन गाती रहे और कभी चुप न हो। हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं सर्वदा तेरा धन्यवाद करता रहूंगा।।
1 हे यहोवा मेरा भरोसा तुझ पर है; मुझे कभी लज्जित होना न पके; तू अपके धर्मी होने के कारण मुझै छुड़ा ले! 2 अपना कान मेरी ओर लगाकर तुरन्त मुझे छुड़ा ले! 3 क्योंकि तू ने मेरे लिथे चट्टान और मेरा गढ़ है; इसलिथे अपके नाम के निमित्त मेरी अगुवाई कर, और मुझे आगे ले चल। 4 जो जाल उन्होंने मेरे लिथे बिछाया है उस से तू मुझ को छुड़ा ले, क्योंकि तू ही मेरा दृढ़ गढ़ है। 5 मैं अपक्की आत्मा को तेरे ही हाथ में सौंप देता हूं; हे यहोवा, हे सत्यवादी ईश्वर, तू ने मुझे मोल लेकर मुक्त किया है।। 6 जो व्यर्थ वस्तुओं पर मन लगाते हैं, उन से मैं घृणा करता हूं; परन्तु मेरा भरोसा यहोवा ही पर है। 7 मैं तेरी करूणा से मगन और आनन्दित हूं, क्योंकि तू ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है, मेरे कष्ट के समय तू ने मेरी सुधि ली है, 8 और तू ने मुझे शत्रु के हाथ में पड़ने नहीं दिया; तू ने मेरे पांवोंको चौड़े स्थान में खड़ा किया है।। 9 हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर क्योंकि मैं संकट में हूं; मेरी आंखे वरन मेरा प्राण और शरीर सब शोक के मारे घुले जाते हैं। 10 मेरा जीवन शोक के मारे और मेरी अवस्था कराहते कराहते घट चक्की है; मेरा बल मेरे अधर्म के कारण जाता रह, ओर मेरी हडि्डयां घुल गई।। 11 अपके सब विरोधियोंके कारण मेरे पड़ोसियोंमें मेरी नामधराई हुई है, अपके जानपहिचानवालोंके लिथे डर का कारण हूं; जो मुझ को सड़क पर देखते है वह मुझ से दूर भाग जाते हैं। 12 मैं मृतक की नाई लोगोंके मन से बिसर गया; मैं टूटे बासन के समान हो गया हूं। 13 मैं ने बहुतोंके मुंह से अपना अपवाद सुना, चारोंओर भय ही भय है! जब उन्होंने मेरे विरूद्ध आपस में सम्मति की तब मेरे प्राण लेने की युक्ति की।। 14 परन्तु हे यहोवा मैं ने तो तुझी पर भरोसा रखा है, मैं ने कहा, तू मेरा परमेश्वर है। 15 मेरे दिन तेरे हाथ में है; तू मुझे मेरे शत्रुओं और मेरे सतानेवालोंके हाथ से छुड़ा। 16 अपके दास पर अपके मुंह का प्रकाश चमका; अपक्की करूणा से मेरा उद्धार कर।। 17 हे यहोवा, मुझे लज्जित न होने दे क्योंकि मैं ने तुझ को पुकारा है; दुष्ट लज्जित होंऔर वे पाताल में चुपचाप पके रहें। 18 जो अंहकार और अपमान से धर्मी की निन्दा करते हैं, उनके झूठ बोलनेवाले मुंह बन्द किए जाएं।। 19 आहा, तेरी भलाई क्या ही बड़ी है जो तू ने अपके डरवैयोंके लिथे रख छोड़ी है, और अपके शरणागतोंके लिथे मनुष्योंके साम्हने प्रगट भी की है! 20 तू उन्हें दर्शन देने के गुप्तस्थान में मनुष्योंकी बुरी गोष्ठी से गुप्त रखेगा; तू उनको अपके मण्डप में झगड़े- रगड़े से छिपा रखेगा।। 21 यहोवा धन्य है, क्योंकि उस ने मुझे गढ़वाले नगर में रखकर मुझ पर अद्धभुत करूणा की है। 22 मैं ने तो घबराकर कहा था कि मैं यहोवा की दृष्टि से दूर हो गया। तौभी जब मैं ने तेरी दोहाई दी, तब तू ने मेरी गिड़गिड़ाहट को सुन लिया।। 23 हे यहोवा के सब भक्तोंउस से प्रेम रखो! यहोवा सच्चे लोगोंकी तो रक्षा करता है, परन्तु जो अहंकार करता है, उसको वह भली भांति बदला देता है। 24 हे यहोवा पर आशा रखनेवालोंहियाव बान्धोंऔर तुम्हारे हृदय दृढ़ रहें!
1 क्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढ़ापा गया हो। 2 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो।। 3 जब मैं चुप रहा तक दिन भर कहरते कहरते मेरी हडि्डयां पिघल गई। 4 क्योंकि रात दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई।। 5 जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के साम्हने अपके अपराधोंको मान लूंगा; तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया।। 6 इस कारण हर एक भक्त तुझ से ऐसे समय में प्रार्थना करे जब कि तू मिल सकता है। निश्चय जब जल की बड़ी बाढ़ आए तौभी उस भक्त के पास न पहुंचेगी। 7 तू मेरे छिपके का स्थान है; तू संकट से मेरी रक्षा करेगा; तू मुझे चारोंओर से छुटकारे के गीतोंसे घेर लेगा।। 8 मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपादृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा। 9 तुम घोड़े और खच्चर के समान न बनो जो समझ नहीं रखते, उनकी उमंग लगाम और बाग से रोकनी पड़ती है, नहीं तो वे तेरे वश में नहीं अपके के।। 10 दुष्ट को तो बहुत पीड़ा होगी; परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह करूणा से घिरा रहेगा। 11 हे धर्मियोंयहोवा के कारण आनन्दित और मगन हो, और हे सब सीधे मनवालोंआनन्द से जयजयकार करो!
1 हे धर्मियोंयहोवा के कारण जयजयकार करो् क्योंकि धर्मी लोगोंको स्तुति करनी सोहती है। 2 वीणा बजा बजाकर यहोवा का धन्यवाद करो, दस तारवाली सारंगी बजा बजाकर उसका भजन गाओ। 3 उसके लिथे नया गीत गाओ, जयजयकार के साथ भली भांति बजाओ।। 4 क्योंकि यहोवा का वचन सीधा है; और उसका सब काम सच्चाई से होता है। 5 वह धर्म और न्याय से प्रीति रखता है; यहोवा की करूणा से पृथ्वी भरपूर है।। 6 आकाशमण्डल यहोवा के वचन से, और उसके सारे गण उसके मुंह ही श्वास से बने। 7 वह समुद्र का जल ढेर की नाई इकट्ठा करता; वह गहिरे सागर को अपके भण्डार में रखता है।। 8 सारी पृथ्वी के लोग यहोवा से डरें, जगत के सब निवासी उसका भय मानें! 9 क्योंकि जब उस ने कहा, तब हो गया; जब उस ने आज्ञा दी, तब वास्तव में वैसा ही हो गया।। 10 यहोवा अन्यअन्यजाथियो की युक्ति को व्यर्थ कर देता है; वह देश देश के लोगोंकी कल्पनाओं को निष्फल करता है। 11 यहोवा की युक्ति सर्वदा स्थिर रहेगी, उसके मन की कल्पनाएं पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहेंगी। 12 क्या ही धन्य है वह जाति जिसका परमेश्वर यहोवा है, और वह समाज जिसे उस ने अपना निज भाग होने के लिथे चुन लिया हो! 13 यहोवा स्वर्ग से दृष्टि करता है, वह सब मनुष्योंको निहारता है; 14 अपके निवास के स्थान से वह पृथ्वी के सब रहनेवालोंको देखता है, 15 वही जो उन सभोंके हृदयोंको गढ़ता, और उनके सब कामोंका विचार करता है। 16 कोई ऐसा राजा नहीं, जो सेना की बहुतायत के कारण बच सके; वीर अपक्की बड़ी शक्ति के कारण छूट नहीं जाता। 17 बच निकलने के लिथे घोड़ा व्यर्थ है, वह अपके बड़े बल के द्वारा किसी को नहीं बचा सकता है।। 18 देखो, यहोवा की दृष्टि उसके डरवैयोंपर और उन पर जो उसकी करूणा की आशा रखते हैं बनी रहती है, 19 कि वह उनके प्राण को मृत्यु से बचाए, और अकाल के समय उनको जीवित रखे।। 20 हम यहोवा का आसरा देखते आए हैं; वह हमारा सहाथक और हमारी ढाल ठहरा है। 21 हमारा हृदय उसके कारण आनन्दित होगा, क्योंकि हम ने उसके पवित्रा नाम का भरोसा रखा है। 22 हे यहोवा जैसी तुझ पर हमारी आशा है, वैसी ही तेरी करूणा भी हम पर हो।।
1 मैं हर समय यहोवा को धन्य कहा करूंगा; उसकी स्तुति निरन्तर मेरे मुख से होती रहेगी। 2 मैं यहोवा पर घमण्ड करूंगा; नम्र लोग यह सुनकर आनन्दित होंगे। 3 मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो, और आओ हम मिलकर उसके नाम की स्तुति करें। 4 मैं यहोवा के पास गया, तब उस ने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया। 5 जिन्होंने उसकी ओर दृष्टि की उन्होंने ज्योति पाई; और उनका मुंह कभी काला न होने पाया। 6 इस दीन जन ने पुकारा तब यहोवा ने सुन लिया, और उसको उसके सब कष्टोंसे छुड़ा लिया।। 7 यहोवा के डरवैयोंके चारोंओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है। 8 परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरूष जो उसकी शरण लेता है। 9 हे यहोवा के पवित्रा लोगो, उसका भय मानो, क्योंकि उसके डरवैयोंको किसी बात की घटी नहीं होती! 10 जवान सिक्कों तो घटी होती और वे भूखे भी रह जाते हैं; परन्तु यहोवा के खोजियोंको किसी भली वस्तु की घटी न होवेगी।। 11 हे लड़कों, आओ, मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊंगा। 12 वह कौन मनुष्य है जो जीवन की इच्छा रखता, और दीर्घायु चाहता है ताकि भलाई देखे? 13 अपक्की जीभ को बुराई से रोक रख, और अपके मुंह की चौकसी कर कि उस से छल की बात न निकले। 14 बुराई को छोड़ और भलाई कर; मेल को ढूंढ और उसी का पीछा कर।। 15 यहोवा की आंखे धर्मियोंपर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उसकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं। 16 यहोवा बुराई करनेवालोंके विमुख रहता है, ताकि उनका स्मरण पृथ्वी पर से मिटा डाले। 17 धर्मी दोहाई देते हैं और यहोवा सुनता है, और उनको सब विपत्तियोंसे छुड़ाता है। 18 यहोवा टूटे मनवालोंके समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्वार करता है।। 19 धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्त यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है। 20 वह उसकी हड्डी हड्डी की रक्षा करता है; और उन में से एक भी टूटने नहीं पाती। 21 दुष्ट अपक्की बुराई के द्वारा मारा जाएगा; और धर्मी के बैरी दोषी ठहरेंगे। 22 यहोवा अपके दासोंका प्राण मोल लेकर बचा लेता है; और जितने उसके शरणागत हैं उन में से कोई भी दोषी न ठहरेगा।।
1 हे यहोवा जो मेरे साथ मुक मा लड़ते हैं, उनके साथ तू भी मुक मा लड़; जो मुझ से युद्व करते हैं, उन से तू युद्व कर। 2 ढाल और भाला लेकर मेरी सहाथता करने को खड़ा हो। 3 बर्छी को खींच और मेरा पीछा करनेवालोंके साम्हने आकर उनको रोक; और मुझ से कह, कि मैं तेरा उद्वार हूं।। 4 जो मेरे प्राण के ग्राहक हैं वे लज्जित और निरादर हों! जो मेरी हाति की कल्पना करते हैं, वह पीछे हटाए जाएं और उनका मुंह काला हो! 5 वे वायु से उड़ जानेवाली भूसी के समान हों, और यहोवा का दूत उन्हें हांकता जाए! 6 उनका मार्ग अन्धिक्कारनेा और फिसलाहा हो, और यहोवा का दूत उनको खदेड़ता जाए।। 7 क्योंकि अकारण उन्होंने मेरे लिथे अपना जाल गड़हे में बिछाया; अकारण ही उन्होंने मेरा प्राण लेने के लिथे गड़हा खोदा है। 8 अचानक उन पर विपत्ति आ पके! और जो जाल उन्होंने बिछाया है उसी में वे आप ही फंसे; और उसी विपत्ति में वे आप ही पकें! 9 परन्तु मैं यहोवा के कारण अपके मन में मगन होऊंगा, मैं उसके किए हुए उद्वार से हर्षित होऊंगा। 10 मेरी हड्डी हड्डी कहेंगी, हे यहोवा तेरे तुल्य कौन है, जो दी को बड़े बड़े बलवन्तोंसे बचाता है, और लुटेरोंसे दीन दरिद्र लोगोंकी रक्षा करता है? 11 झूठे साक्षी खड़े होते हैं; और जो बात मैं नहीं जानता, वही मुझ से पूछते हैं। 12 वे मुझ से भलाई के बदले बुराई करते हैं; यहां तक कि मेरा प्राण ऊब जाता है। 13 जब वे रोगी थे तब तो मैं टाट पहिने रहा, और उपवास कर करके दु:ख उठाता रहा; और मेरी प्रार्थना का फल मेरी गोद में लौट आया। 14 मैं ऐसा भाव रखता था कि मानो वे मेरे संगी वा भाई हैं; जैसा कोई माता के लिथे विलाप करता हो, वैसा ही मैं ने शोक का पहिरावा पहिने हुए सिर झुकाकर शोक किया।। 15 परन्तु जब मैं लंगड़ाने लगा तब वे लोग आनन्दित होकर इकट्ठे हुए, नीच लोग और जिन्हें मैं जानता भी न था वे मेरे विरूद्व इकट्ठे हुए; वे मुझे लगातार फाड़ते रहे; 16 उन पाखण्डी भांड़ोंकी नाई जो पेट के लिथे उपहास करते हैं, वे भी मुझ पर दांत पीसते हैं।। 17 हे प्रभु तू कब तक देखता रहेगा? इस विपत्ति से, जिस में उन्होंने मुझे डाला है मुझ को छुड़ा! जवान सिक्कों मेरे प्राण को बचा ले! 18 मैं बड़ी सभा में तेरा धन्यवाद करूंगा; बहुतेरे लोगोंके बीच में तेरी स्तुति करूंगा।। 19 मेरे झूठ बोलनेवाले शत्रु मेरे विरूद्व आनन्द न करने पाएं, जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे आपस में नैन से सैन न करने पांए। 20 क्योंकि वे मेल की बातें नहीं बोलते, परन्तु देश में जो चुपचाप रहते हैं, उनके विरूद्व छल की कल्पनाएं करते हैं। 21 और उन्होंने मेरे विरूद्व मुंह पसारके कहा; आहा, आहा, हम ने अपक्की आंखोंसे देखा है! 22 हे यहोवा, तू ने तो देखा है; चुप न रह! हे प्रभु, मुझ से दूर न रह! 23 उठ, मेरे न्याय के लिथे जाग, हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे प्रभु, मेरे मुक मा निपटाने के लिथे आ! 24 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अपके धर्म के अनुसार मेरा न्याय चुका; ओश्र उन्हें मेरे विरूद्व आनन्द करने न दे! 25 वे मन में न कहने पाएं, कि आहा! हमारी तो इच्छा पूरी हुई! वह यह न कहें कि हम उसे निगल गए हैं।। 26 जो मेरी हाति से आनन्दित होते हैं उनके मुंह लज्जा के मारे एक साथ काले हों! जो मेरे विरूद्ध बड़ाई मारते हैं वह लज्जा और अनादर से ढ़ंप जाएं! 27 जो मेरे धर्म से प्रसन्न रहते हैं, वह जयजयकार और आनन्द करें, और निरन्तर करते रहें, यहोवा की बड़ाई हो, जो अपके दास के कुशल से प्रसन्न होता है! 28 तब मेरे मुंह से तेरे धर्म की चर्चा होगी, और दिन भर तेरी स्तुति निकलेगी।।
1 दुष्ट जन का अपराण मेरे हृदय के भीतर यह कहता है कि परमेश्वर का भय उसकी दृष्टि में नहीं है। 2 वह अपके अधर्म के प्रगट होने और घृणित ठहरने के विषय अपके मन में चिकनी चुपड़ी बातें विचारता है। 3 उसकी बातें अनर्थ और छल की हैं; उस ने बुद्धि और भलाई के काम करने से हाथ उठाया है। 4 वह अपके बिछौने पर पके पके अनर्थ की कल्पना करता है; वह अपके कुमार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है; बुराई से वह हाथ नहीं उठाता।। 5 हे यहोवा तेरी करूणा स्वर्ग में है, तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुंची है। 6 तेरा धर्म ऊंचे पर्वतोंके समान है, तेरे नियम अथाह सागर ठहरे हैं; हे यहोवा तू मनुष्य और पशु दोनोंकी रक्षा करता है।। 7 हे परमेश्वर तेरी करूणा, कैसी अनमोल है! मनुष्य तेरे पंखो के तले शरण लेते हैं। 8 वे तेरे भवन के चिकने भोजन से तृप्त होंगे, और तू अपक्की सुख की नदी में से उन्हें पिलाएगा। 9 क्योंकि जीवन का सोता तेरे ही पास है; तेरे प्रकाश के द्वारा हम प्रकाश पाएंगे।। 10 अपके जाननेवालोंपर करूणा करता रह, और अपके धर्म के काम सीधे मनवालोंमें करता रह! 11 अहंकारी मुझ पर लात उठाने न पाए, और न दुष्ट अपके हाथ के बल से मुझे भगाने पाए। 12 वहां अनर्थकारी गिर पके हैं; वे ढकेल दिए गए, और फिर उठ न सकेंगे।।
1 कुकर्मियोंके कारण मत कुढ़, कुटिल काम करनेवालोंके विषय डाह न कर! 2 क्योंकि वे घास की नाई झट कट जाएंगे, और हरी घास की नाई मुर्झा जाएंगे। 3 यहोवा पर भरोसा रख, और भला कर; देश में बसा रह, और सच्चाई में मन लगाए रह। 4 यहोवा को अपके सुख का मूल जान, और वह तेरे मनोरथोंको मूरा करेगा।। 5 अपके मार्ग की चिन्ता यहोवा पर छोड़; और उस पर भरोसा रख, वही पूरा करेगा। 6 और वह तेरा धर्म ज्योति की नाई, और तेरा न्याय दोपहर के उजियाले की नाई प्रगट करेगा।। 7 यहोवा के साम्हने चुपचाप रह, और धीरज से उसका आस्त्रा रख; उस मनुष्य के कारण न कुढ़, जिसके काम सुफल होते हैं, और वह कुरी युक्तियोंको निकालता है! 8 क्रोध से पके रह, और जलजलाहट को छोड़ दे! मत कुढ़, उस से बुराई ही निकलेगी। 9 क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएंगे; और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वही पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे। 10 थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं; और तू उसके स्थान को भलीं भांति देखने पर भी उसको न पाएगा। 11 परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे। 12 दुष्ट धर्मी के विरूद्ध बुरी युक्ति निकालता है, और उस पर दांत पीसता है; 13 परन्तु प्रभु उस पर हंसेगा, क्योंकि वह देखता है कि उसका दिन आनेवाला है।। 14 दुष्ट लोग तलवार खींचे और धनुष बढ़ाए हुए हैं, ताकि दीन दरिद्र को गिरा दें, और सीधी चाल चलनेवालोंको वध करें। 15 उनकी तलवारोंसे उन्हीं के हृदय छिदेंगे, और उनके धनुष तोड़े जाएंगे।। 16 धर्मी को थोड़ा से माल दुष्टोंके बहुत से धन से उत्तम है। 17 क्योंकि दुष्टोंकी भुजाएं तो तोड़ी जाएंगी; परन्तु यहोवा धर्मियोंको सम्भालता है।। 18 यहोवा खरे लोगोंकी आयु की सुधि रखता है, और उनका भाग सदैव बना रहेगा। 19 विपत्ति के समय, उनकी आशा न टूटेगी और न वे लज्जित होंगे, और अकाल के दिनोंमें वे तृप्त रहेंगे।। 20 दुष्ट लोग नाश हो जाएंगे; और यहोवा के शत्रु खेत की सुथरी घास की नाई नाश होंगे, वे धूएं की नाई बिलाय जाएंगे।। 21 दुष्ट ऋण लेता है, और भरता नहीं परनतु धर्मीं अनुग्रह करके दान देता है; 22 क्योंकि जो उस से आशीष पाते हैं वे तो पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे, परन्तु जो उस से शापित होते हैं, वे नाश को जाएंगे।। 23 मनुष्य की गति यहोवा की ओर से दृढ़ होती है, और उसके चलन से वह प्रसन्न रहता है; 24 चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थांभे रहता है।। 25 मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है। 26 वह तो दिन भर अनुग्रह कर करके ऋण देता है, और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है।। 27 बुराई को छोड़ भलाई कर; और तू सर्वदा बना रहेगा। 28 क्योंकि यहोवा न्याय से प्रीति रखता; और अपके भक्तोंको न तजेगा। उनकी तो रक्षा सदा होती है, परन्तु दुष्टोंका वंश काट डाला जाएगा। 29 धर्मी लोग पृथ्वी के अधिक्कारनेी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।। 30 धर्मी अपके मुंह से बुद्धि की बातें करता, और न्याय का वचन कहता है। 31 उसके परमेश्वर की व्यवस्था उसके हृदय में बनी रहती है, उसके पैर नहीं फिसलते।। 32 दुष्ट धर्मी की ताक में रहता है। और उसके मार डालने का यत्न करता है। 33 यहोवा उसको उसके हाथ में न छोड़ेगा, और जब उसका विचार किया जाए तब वह उसे दोषी न ठहराएगा।। 34 यहोवा की बाट जोहता रह, और उसके मार्ग पर बना रह, और वह तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिक्कारनेी कर देगा; जब दुष्ट काट डाले जाएंगे, तब तू देखेगा।। 35 मैं ने दुष्ट को बड़ा पराक्रमी और ऐसा फैलता हुए देखा, जैसा कोई हरा पेड़ अपके निज भूमि में फैलता है। 36 परन्तु जब कोई उधर से गया तो देखा कि वह वहां है ही नहीं; और मैं ने भी उसे ढूंढ़ा, परन्तु कहीं न पाया।। 37 खरे मनुष्य पर दृष्टि कर और धर्मी को देख, क्योंकि मेल से रहनेवाले पुरूष का अन्तफल अच्छा है। 38 परन्तु अपराधी एक साथ सत्यानाश किए जाएंगे; दुष्टोंका अन्तफल सर्वनाश है।। 39 धर्मियोंकी मुक्ति यहोवा की ओर से होती है; संकट के समय वह उनका दृढ़ गढ़ है। 40 और यहोवा उनकी सहाथता करके उनको बचाता है; वह उनको दुष्टोंसे छुड़ाकर उनका उद्वार करता है, इसलिथे कि उन्होंने उस में अपक्की शरण ली है।।
1 हे यहोवा क्रोध में आकर मुझे झिड़क न दे, और न जलजलाहट में आकर मेरी ताड़ना कर! 2 क्योंकि तेरे तीर मुझ में लगे हैं, और मैं तेरे हाथ के नीचे दबा हूं। 3 तेरे क्रोध के कारण मेरे शरीर में कुछ भी आरोग्यता नहीं; और मेरे पाप के कारण मेरी हडि्डयोंमें कुछ भी चैन नहीं। 4 क्योंकि मेरे अधर्म के कामोंमें मेरा सिर डूब गया, और वे भारी बोझ की नाई मेरे सहने से बाहर हो गए हैं।। 5 मेरी मूढ़ता के कारण से मेरे कोड़े खाने के घाव बसाते हैं और सड़ गए हैं। 6 मैं बहुत दुखी हूं और झूक गया हूं; दिन भर मैं शौक का पहिरावा पहिने हुए चलता फिरता हूं। 7 क्योंकि मेरी कमर में जलन है, और मेरे शरीर में आरोग्यता नहीं। 8 मैं निर्बल और बहुत ही चूर हो गया हूं; मैं अपके मन की घबराहट से कराहता हूं।। 9 हे प्रभु मेरी सारी अभिलाषा तेरे सम्मुख है, और मेरा कराहना तुझ से छिपा नहीं। 10 मेरा हृदय धड़कता है, मेरा बल घटता जाता है; और मेरी आंखोंकी ज्योति भी मुझ से जाती रही। 11 मेरे मित्रा और मेरे संगी मेरी विपत्ति में अलग हो गए, और मेरे कुटुम्बी भी दूर जा खड़े हुए।। 12 मेरे प्राण के ग्राहक मेरे लिथे जाल बिछाते हैं, और मेरी हाति के यत्न करनेवाले दुष्टता की बातें बोलते, और दिन भर छल की युक्ति सोचते हैं। 13 परन्तु मैं बहिरे की नाई सुनता ही नहीं, और मैं गूंगे के समान मूंह नहीं खोलता। 14 वरन मैं ऐसे मनुष्य के तुल्य हूं जो कुछ नहीं सुनता, और जिसके मुंह से विवाद की कोई बात नहीं निकलती।। 15 परन्तु हे यहोवा, मैं ने तुझ ही पर अपक्की आशा लगाई है; हे प्रभु, मेरे परमेश्वर, तू ही उत्तर देगा। 16 क्योंकि मैं ने कहा, ऐसा न हो कि वे मुझ पर आनन्द करें; जो, जब मेरा पांव फिसल जाता है, तब मुझ पर अपक्की बड़ाई मारते हैं।। 17 क्योंकि मैं तो अब गिरने ही पर हूं, और मेरा शोक निरन्तर मेरे साम्हने है। 18 इसलिथे कि मैं तो अपके अधर्म को प्रगट करूंगा, और अपके पाप के कारण खेदित रहूंगा। 19 परन्तु मेरे शत्रु फुर्तीले और सामर्थी हैं, और मेरे विरोधी बैरी बहुत हो गए हैं। 20 जो भलाई के बदले में बुराई करते हैं, वह भी मेरे भलाई के पीछे चलने के कारण मुझ से विरोध करते हैं।। 21 हे यहोवा, मुझे छोड़ न दे! हे मेरे परमेश्वर, मुझ से दूर न हो! 22 हे यहोवा, हे मेरे उद्वारकर्त्ता, मेरी सहाथता के लिथे फुर्ती कर!
1 मैं ने कहा, मैं अपक्की चालचलन में चौकसी करूंगा, ताकि मेरी जीभ से पाप न हो; जब तक दुष्ट मेरे साम्हने है, तब तक मैं लगाम लगाए अपना मुंह बन्द किए रहूंगा। 2 मैं मौन धारण कर गूंगा बन गया, और भलाई की ओर से भी चुप्पी साधे रहा; और मेरी पीड़ा बढ़ गई, 3 मेरा हृदय अन्दर ही अन्दर जल रहा था। सोचते सोचते आग भड़क उठी; तब मैं अपक्की जीभ से बोल उठा; 4 हे यहोवा ऐसा कर कि मेरा अन्त मुझे मालुम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिस से मैं जान लूं कि कैसा अनित्य हूं! 5 देख, तू ने मेरे आयु बालिश्त भर की रखी है, और मेरी अवस्था तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं। सचमुच सब मनुष्य कैसे ही स्थिर क्योंन होंतौभी व्यर्थ ठहरे हैं। 6 सचमुच मनुष्य छाया सा चलता फिरता है; सचमुच वे व्यर्थ घबराते हैं; वह धन का संचय तो करता है परन्तु नहीं जानता कि उसे कौन लेगा! 7 और अब हे प्रभु, मैं किस बात की बाट जोहूं? मेरी आशा तो तेरी ओर लगी है। 8 मुझे मेरे सब अपराधोंके बन्धन से छुड़ा ले। मूढ़ मेरी निन्दा न करने पाए। 9 मैं गूंगा बन गया और मुंह न खोला; क्योंकि यह काम तू ही ने किया है। 10 तू ने जो विपत्ति मुझ पर डाली है उसे मुझ से दूर कर दे, क्योंकि मैं तो तरे हाथ की मार से भस्म हुआ जाता हूं। 11 जब तू मनुष्य को अधर्म के कारण दपट दपटकर ताड़ना देता है; तब तू उसकी सुन्दरता को पतिंगे की नाई नाश करता है; सचमुच सब मनुष्य वृथाभिमान करते हैं।। 12 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, और मेरी दोहाई पर कान लगा; मेरा रोना सुनकर शांत न रह! क्योंकि मैं तेरे संग एक परदेशी यात्री की नाई रहता हूं, और अपके सब पुरखाओं के समान परदेशी हूं। 13 आह! इस से पहिले कि मैं यहां से चला जाऊं और न रह जाऊं, मुझे बचा ले जिस से मैं प्रदीप्त जीवन प्राप्त करूं!
1 मैं धीरज से यहोवा की बाट जोहता रहा; और उस ने मेरी ओर झुककर मेरी दोहाई सुनी। 2 उस ने मुझे सत्यानाश के गड़हे और दलदल की कीच में से उबारा, और मुझ को चट्टान पर खड़ा करके मेरे पैरोंको दृढ़ किया है। 3 और उस ने मुझे एक नया गीत सिखाया जो हमारे परमेश्वर की स्तुति का है। बहुतेरे यह देखकर डरेंगे, और यहोवा पर भरोसा रखेंगे।। 4 क्या ही धन्य है वह पुरूष, जो यहोवा पर भरोसा करता है, और अभिमानियोंऔर मिथ्या की ओर मुड़नेवालोंकी ओर मुंह न फेरता हो। 5 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू ने बहुत से काम किए हैं! जो आश्चर्यकर्म और कल्पनाएं तू हमारे लिथे करता है वह बहुत सी हैं; तेरे तुल्य कोई नहीं! मैं तो चाहता हूं की खोलकर उनकी चर्चा करूं, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती।। 6 मेलबलि और अन्नबलि से तू प्रसन्न नहीं होता तू ने मेरे कान खोदकर खोले हैं। होमबलि और पापबलि तू ने नहीं चाहा। 7 तब मैं ने कहा, देख, मैं आया हूं; क्योंकि पुस्तक में मेरे विषय ऐसा ही लिखा हुआ है। 8 हे मेरे परमेश्वर मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूं; और तेरी व्यवस्था मेरे अन्त:करण में बनी है।। 9 मैं ने बड़ी सभा में धर्म के शुभ समाचार का प्रचार किया है; देख, मैं ने अपना मुंह बन्द नहीं किया हे यहोवा, तू इसे जानता है। 10 मैं ने तेरा धर्म मन ही में नहीं रखा; मैं ने तेरी सच्चाई और तेरे किए हुए उधार की चर्चा की है; मैं ने तेरी करूणा और सत्यता बड़ी सभा से गुप्त नहीं रखी।। 11 हे यहोवा, तू भी अपक्की बड़ी दया मुझ पर से न हटा ले, तेरी करूणा और सत्यता से निरन्तर मेरी रक्षा होती रहे! 12 क्योंकि मैं अनगिनत बुराइयोंसे घिरा हुआ हूं; मेरे अधर्म के कामोंने मुझे आ पकड़ा और मैं दृष्टि नहीं उठा सकता; वे गिनती में मेरे सिर के बालोंसे भी अधिक हैं; इसलिथे मेरा हृदय टूट गया।। 13 हे यहोवा, कृपा करके मुझे छुड़ा ले! हे यहोवा, मेरी सहाथता के लिथे फुर्ती कर! 14 जो मेरे प्राण की खोज में हैं, वे सब लज्जित हों; और उनके मुंह काले होंऔर वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएं जो मेरी हाति से प्रसन्न होते हैं। 15 जो मुझ से आहा, आहा, कहते हैं, वे अपक्की लज्जा के मारे विस्मित हों।। 16 परन्तु जितने तुझे ढूंढ़ते हैं, वह सब तेरे कारण हर्षित औश्र आनन्दित हों; जो तेरा किया हुआ उद्धार चाहते हैं, वे निरन्तर कहते रहें, यहोवा की बड़ाई हो! 17 मैं तो दीन और दरिद्र हूं, तौभी प्रभु मेरी चिन्ता करता है। तू मेरा सहाथक और छुड़ानेवाला है; हे मेरे परमेश्वर विलम्ब न कर।।
1 क्या ही धन्य है वह, जो कंगाल की सुधि रखता है! विपत्ति के दिन यहोवा उसको बचाएगा। 2 यहोवा उसकी रक्षा करके उसको जीवित रखेगा, और वह पृथ्वी पर भाग्यवान होगा। तू उसको शत्रुओं की इच्छा पर न छोड़। 3 जब वह व्याधि के मारे सेज पर पड़ा हो, तब यहोवा उसे सम्भालेगा; तू रोग में उसके पूरे बिछौने को उलटकर ठीक करेगा।। 4 मैं ने कहा, हे यहोवा, मुझ पर अनुग्रह कर; मुझ को चंगा कर, क्योंकि मैं ने तो तेरे विरूद्ध पाप किया है! 5 मेरे शत्रु यह कहकर मेरी बुराई करते हैं: वह कब मरेगा, और उसका नाम कब मिटेगा? 6 और जब वह मुझ से मिलने को आता है, तब वह व्यर्थ बातें बकता है, जब कि उसका मन अपके अन्दर अधर्म की बातं! संचय करता है; और बाहर जाकर उनकी चर्चा करता है। 7 मेरे सब बैरी मिलकर मेरे विरूद्ध कानाफूसी करते हैं; मे मेरे विरूद्ध होकर मेरी हानि की कल्पना करते हैं।। 8 वे कहते हैं कि इसे तो कोई बुरा रोग लग गया है; अब जो यह पड़ा है, तो फिर कभी उठने का नहीं। 9 मेरा परम मित्रा जिस पर मैं भरोसा रखता था, जो मेरी रोटी खाता था, उस ने भी मेरे विरूद्ध लात उठाई है। 10 परन्तु हे यहोवा, तु मुझ पर अनुग्रह करके मुझ को उठा ले कि मैं उनको बदला दूं! 11 मेरा शत्रु जो मुझ पर जयवन्त नहीं हो पाता, इस से मैं ने जान लिया है कि तू मुझ से प्रसन्न है। 12 और मुझे तो तू खराई से सम्भालता, और सर्वदा के लिथे अपके सम्मुख स्थिर करता है।। 13 इस्राएल का परमेश्वर यहोवा आदि से अनन्तकाल तक धन्य है आमीन, फिर आमीन।।
1 जैसे हरिणी नदी के जल के लिथे हांफती है, वैसे ही, हे परमेश्वर, मैं तेरे लिथे हांफता हूं। 2 जीवते ईश्वर परमेश्वर का मैं प्यासा हूं, मैं कब जाकर परमेश्वर को अपना मुंह दिखाऊंगा? 3 मेरे आंसू दिन और रात मेरा आहार हुए हैं; और लोग दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? 4 मैं भीड़ के संग जाया करता था, मैं जयजयकार और धन्यवाद के साथ उत्सव करनेवाली भीड़ के बीच में परमेश्वर के भवन को धीरे धीरे जाया करता था; यह स्मरण करके मेरा प्राण शोकित हो जाता है। 5 हे मेरे प्राण, तू क्योंगिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्योंव्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूंगा।। 6 हे मेरे परमेश्वर; मेरा प्राण मेरे भीतर गिरा जाता है, इसलिथे मैं यर्दन के पास के देश से और हर्मोन के पहाड़ोंऔर मिसगार की पहाड़ी के ऊपर से तुझे स्मरण करता हूं। 7 तेरी जलधाराओं का शब्द सुनकर जल, जल को पुकारता है; तेरी सारी तरंगोंऔर लहरोंमें मैं डूब गया हूं। 8 तौभी दिन को यहोवा अपक्की शक्ति और करूणा प्रगट करेगा; और रात को भी मैं उसका गीत गाऊंगा, और अपके जीवनदाता ईश्वर से प्रार्थना करूंगा।। 9 मैं ईश्वर से जो मेरी चट्टान है कहूंगा, तू मुझे क्योंभूल गया? मैं शत्रु के अन्धेर के मारे क्योंशोक का पहिरावा पहिने हुए चलता फिरता हूं? 10 मेरे सतानेवाले जो मेरी निन्दा करते हैं मानो उस में मेरी हडि्डयां चूर चूर होती हैं, मानो कटार से छिदी जाती हैं, क्योंकि वे दिन भर मुझ से कहते रहते हैं, तेरा परमेश्वर कहां है? 11 हे मेरे प्राण तू क्योंगिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्योंव्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख; क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है, मैं फिर उसका धन्यवाद करूंगा।।
1 हे परमेश्वर, मेरा न्याय चुका और विधर्मी जाति से मेरा मुक मा लड़; मुझ को छली और कुटिल पुरूष से बचा। 2 क्योंकि हे परमेश्वर, तू ही मेरी शरण है, तू ने क्योंमुझे त्याग दिया है? मैं शत्रु के अन्धेर के मारे शोक का पहिरावा पहिने हुए क्योंफिरता रहूं? 3 अपके प्रकाश और अपक्की सच्चाई को भेज; वे मेरी अगुवाई करें, वे ही मुझ को तेरे पवित्रा पर्वत पर और तेरे निवास स्थान में पहुंचाए! 4 तब मैं परमेश्वर की वेदी के पास जाऊंगा, उस ईश्वर के पास जो मेरे अति आनन्द का कुण्ड है; और हे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर मैं वीणा बजा बजाकर तेरा धन्यवाद करूंगा।। 5 हे मेरे प्राण तू क्योंगिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्योंव्याकुल है? परमेश्वर पर भरोसा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूंगा।।
1 हे परमेश्वर हम ने अपके कानोंसे सुना, हमारे बापदादोंने हम से वर्णन किया है, कि तू ने उनके दिनोंमें और प्राचीनकाल में क्या क्या काम किए हैं। 2 तू ने अपके हाथ से जातियोंको निकाल दिया, और इनको बसाया; तू ने देश देश के लोगोंको दु:ख दिया, और इनको चारोंओर फैला दिया; 3 क्योंकि वे न तो अपक्की तलवार के बल से इस देश के अधिक्कारनेी हुए, और न अपके बाहुबल से; परन्तु तेरे दहिने हाथ और तेरी भुजा और तेरे प्रसन्न मुख के कारण जयवन्त हुए; क्योंकि तू उनको चाहता था।। 4 हे परमेश्वर, तू ही हमारा महाराजा है, तू याकूब के उद्धार की आज्ञा देता है। 5 तेरे सहारे से हम अपके द्रोहियोंको ढकेलकर गिरा देंगे; तेरे नाम के प्रताप से हम अपके विरोधियोंको रौंदेंगे। 6 क्योंकि मैं अपके धनुष पर भरोसा न रखूंगा, और न अपक्की तलवार के बल से बचूगा। 7 परन्तु तू ही ने हम को द्रोहियोंसे बचाया है, और हमारे बैरियोंको निराश और लज्जित किया है। 8 हम परमेश्वर की बड़ाई दिन भर करते रहते हैं, और सदैव तेरे नाम का धन्यवाद करते रहेंगे।। 9 तौभी तू ने अब हम को त्याग दिया और हमारा अनादर किया है, और हमारे दलोंके साथ आगे नहीं जाता। 10 तू हम को शत्रु के साम्हने से हटा देता है, और हमारे बैरी मनमाने लूट मार करते हैं। 11 तू ने हमें कसाई की भेडोंके समान कर दिया है, और हम को अन्य जातियोंमें तित्तर बित्तर किया है। 12 तू अपक्की प्रजा को सेंतमेंत बेच डालता है, परन्तु उनके मोल से तू धनी नहीं होता।। 13 तू हमारे पड़ोसिक्कों हमारी नामधराई कराता है, और हमारे चारोंओर से रहनेवाले हम से हंसी ठट्ठा करते हैं। 14 तू हम को अन्यजातियोंके बीच में उपमा ठहराता है, और देश देश के लेग हमारे कारण सिर हिलाते हैं। दिन भर हमें तिरस्कार सहना पड़ता है, 15 और कलंक लगाने और निन्दा करनेवाले के बोल से, 16 और शत्रु और बदला लेनेवालोंके कारण, बुरा- भला कहनेवालोंऔर निन्दा करनेवालोंके कारण। 17 यह सब कुछ हम पर बीता तौभी हम तुझे नहीं भूले, न तेरी वाचा के विषय विश्वासघात किया है। 18 हमारे मन न बहके, न हमारे पैर तरी बाट से मुड़े; 19 तौभी तू ने हमें गीदड़ोंके स्थान में पीस डाला, और हम को घोर अन्धकार में छिपा दिया है।। 20 यदि हम अपके परमेश्वर का नाम भूल जाते, वा किसी पराए देवता की ओर अपके हाथ फैलाते, 21 तो क्या परमेश्वर इसका विचार न करता? क्योंकि वह तो मन की गुप्त बातोंको जानता है। 22 परन्तु हम दिन भर तेरे निमित्त मार डाले जाते हैं, और उन भेड़ोंके समान समझे जाते हैं जो वध होने पर हैं।। 23 हे प्रभु, जाग! तू क्योंसोता है? उठ! हम को सदा के लिथे त्याग न दे! 24 तू क्योंअपना मुंह छिपा लेता है? और हमारा दु:ख और सताया जाना भूल जाता है? 25 हमारा प्राण मिट्टी से लग गया; हमारा पेट भूमि से सट गया है। 26 हमारी सहाथता के लिथे उठ खड़ा हो! और अपक्की करूणा के निमित्त हम को छुड़ा ले।।
1 मेरा हृदय एक सुन्दर विषय की उमंग से उमण्ड रहा है, जो बात मैं ने राजा के विषय रची है उसको सुनाता हूं; मेरी जीभ निपुण लेखक की लेखनी बनी है। 2 तू मनुष्य की सन्तानोंमें परम सुन्दर है; तेरे ओठोंमें अनुग्रह भरा हुआ है; इसलिथे परमेश्वर ने तुझे सदा के लिथे आशीष दी है। 3 हे वीर, तू अपक्की तलवार को जो तेरा विभव और प्रताप है अपक्की कटि पर बान्ध! 4 सत्यता, नम्रता और धर्म के निमित्त अपके ऐश्वर्य और प्रताप पर सफलता से सवार हो; तेरा दहिना हाथ तुझे भयानक काम सिखलाए! 5 तेरे तीर तो तेज हैं, तेरे साम्हने देश देश के लोग गिरेंगे; राजा के शत्रुओं के हृदय उन से छिदेंगे।। 6 हे परमेश्वर, तेरा सिंहासन सदा सर्वदा बना रहेगा; तेरा राजदण्ड न्याय का है। 7 तू ने धर्म से प्रीति और दुष्टता से बैर रखा है। इस कारण परमेश्वर ने हां तेरे परमेश्वर ने तुझ को तेरे साथियोंसे अधिक हर्ष के तेल से अभिषेक किया है। 8 तेरे सारे वस्त्रा, गन्धरस, अगर, और तेल से सुगन्धित हैं, तू हाथीदांत के मन्दिरोंमें तारवाले बाजोंके कारण आनन्दित हुआ है। 9 तेरी प्रतिष्ठित स्त्रियोंमें राजकुमारियां भी हैं; तेरी दहिनी ओर पटरानी, ओपीर के कुन्दन से विभूषित खड़ी है।। 10 हे राजकुमारी सुन, और कान लगाकर ध्यान दे; अपके लोगोंऔर अपके पिता के घर को भूल जा; 11 और राजा तेरे रूप की चाह करेगा। क्योंकि वह तो तेरा प्रभु है, तू उसे दण्डवत् कर। 12 सोर की राजकुमारी भी भेंट करने के लिथे उपस्थित होगी, प्रजा के धनवान लोग तुझे प्रसन्न करने का यत्न करेंगे।। 13 राजकुमारी महल में अति शोभायमान है, उसके वस्त्रा में सुनहले बूटे कढ़े हुए हैं; 14 वह बूटेदार वस्त्रा पहिने हुए राजा के पास पहुंचाई जाएगी। जो कुमारियां उसकी सहेलियां हैं, वे उसके पीछे पीछे चलती हुई तेरे पास पहुंचाई जाएंगी। 15 वे आनन्दित और मगन होकर पहुंचाई जाएंगी, और वे राजा के महल में प्रवेश करेंगी।। 16 तेरे पितरोंके स्थान पर तेरे पुत्रा होंगे; जिनको तू सारी पृथ्वी पर हाकिम ठहराएगा। 17 मैं ऐसा करूंगा, कि तेरी नाम की चर्चा पीढ़ी से पीढ़ी तक होती रहेगी; इस कारण देश देश के लोग सदा सर्वदा तेरा धन्यवाद करते रहेंगे।।
1 परमेश्वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहाथक। 2 इस कारण हम को कोई भय नहीं चाहे पृथ्वी उलट जाए, और पहाड़ समुद्र के बीच में डाल दिए जाएं; 3 चाहे समुद्र गरजे और फेन उठाए, और पहाड़ उसकी बाढ़ से कांप उठे।। 4 एक नदी है जिसकी नहरोंसे परमेश्वर के नगर में अर्थात् परमप्रधान के पवित्रा निवास भवन में आनन्द होता है। 5 परमेश्वर उस नगर के बीच में है, वह कभी टलने का नहीं; पौ फटते ही परमेश्वर उसकी सहाथता करता है। 6 जाति जाति के लोग झल्ला उठे, राज्य राज्य के लोग डगमगाने लगे; वह बोल उठा, और पृथ्वी पिघल गई। 7 सेनाओं का यहोवा हमारे संगे है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।। 8 आओ, यहोवा के महाकर्म देखो, कि उस ने पृथ्वी पर कैसा कैसा उजाड़ किया है। 9 वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयोंको मिटाता है; वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, और रथोंको आग में झोंक देता है! 10 चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं। मैं जातियोंमें महान् हूं, मैं पृथ्वी भर में महान् हूं! 11 सेनाओं का यहोवा हमारे संग है; याकूब का परमेश्वर हमारा ऊंचा गढ़ है।।
1 हे देश देश के सब लोगों, तालियोंबजाओ! ऊंचे शब्द से परमेश्वर के लिथे जयजयकार करो! 2 क्योंकि यहोवा परमप्रधान और भययोग्य है, वह सारी पृथ्वी के ऊपर महाराजा है। 3 वह देश के लोगोंको हमारे सम्मुख नीचा करता, और अन्यजातियोंको हमारे पांवोंके नीचे कर देता है। 4 वह हमारे लिथे उत्तम भाग चुन लेगा, जो उसके प्रिय याकूब के घमण्ड का कारण है।। 5 परमेश्वर जयजयकार सहित, यहोवा नरसिंगे के शब्द के साथ ऊपर गया है। 6 परमेश्वर का भजन गाओ, भजन गाओ! हमारे महाराजा का भजन गाओ, भजन गाओ! 7 क्योंकि परमेश्वर सारी पृथ्वी का महाराजा है; समझ बूझकर बुद्धि से भजन गाओ 8 परमेश्वर जाति जाति पर राज्य करता है; परमेश्वर अपके पवित्रा सिंहासन पर विराजमान है। 9 राज्य राज्य के रईस इब्राहीम के परमेश्वर की प्रजा होने के लिथे इकट्ठे हुए हैं। क्योंकि पृथ्वी की ढालें परमेश्वर के वश में हैं, वह तो शिरोमणि है!
1 हमारे परमेश्वर के नगर में, और अपके पवित्रा पर्वत पर यहोवा महान् और अति स्तुति के योग्य है! 2 सिरयोन पर्वत ऊंचाई में सुन्दर और सारी पृथ्वी के हर्ष का कारण है, राजाधिराज का नगर उत्तरीय सिक्के पर है। 3 उसके महलोंमें परमेश्वर ऊंचा गढ़ माना गया है। 4 क्योंकि देखो, राजा लोग इकट्ठे हुए, वे एक संग आगे बढ़ गए। 5 उन्होंने आप ही देखा और देखते ही विस्मित हुए, वे घबराकर भाग गए। 6 वहां कपकपी ने उनको आ पकड़ा, और जच्चा की सी पीड़ाएं उन्हें होने लगीं। 7 तू पूर्वी वायु से तर्शीश के जहाजोंको तोड़ डालता है। 8 सेनाओं के यहोवा के नगर में, अपके परमेश्वर के नगर में, जैसा हम ने सुना था, वैसा देखा भी है; परमेश्वर उसको सदा दृढ़ और स्थिर रखेगा।। 9 हे परमेश्वर हम ने तेरे मन्दिर के भीतर तेरी करूणा पर ध्यान किया है। 10 हे परमेश्वर तेरे नाम के योग्य तेरी स्तुति पृथ्वी की छोर तक होती है। तेरा दहिना हाथ धर्म से भरा है; 11 तेरे न्याय के कामोंके कारण सिरयोन पर्वत आनन्द करे, और यहूदा के नगर की पुत्रियां मगन हों! 12 सिरयोन के चारोंओर चलो, और उसकी परिक्रमा करो, उसके गुम्मटोंको गिन लो, 13 उसकी शहरपनाह पर दृष्टि लगाओ, उसके महलोंको ध्यान से देखो; जिस से कि तुम आनेवाली पीढ़ी के लोगोंसे इस बात का वर्णन कर सको। 14 क्योंकि वह परमेश्वर सदा सर्वदा हमारा परमेश्वर है, वह मृत्यु तक हमारी अगुवाई करेगा।।
1 हे देश देश के सब लोगोंयह सुनो! हे संसार के सब निवासियों, कान लगाओ! 2 क्या ऊंच, क्या नीच क्या धनी, क्या दरिद्र, कान लगाओ! 3 मेरे मुंह से बुद्धि की बातें निकलेंगी; और मेरे हृदय की बातें समझ की होंगी। 4 मैं नीतिवचन की ओर अपना कान लगाऊंगा, मैं वीणा बजाते हुए अपक्की गुप्त बात प्रकाशित करूंगा।। 5 विपत्ति के दिनोंमें जब मैं अपके अड़ंगा मारनेवालोंकी बुराइयोंसे घिरूं, तब मैं क्योंडरूं? 6 जो अपक्की सम्पत्ति पर भरोसा रखते, और अपके धन की बहुतायत पर फूलते हैं, 7 उन में से कोई अपके भाई को किसी भांति छुड़ा नहीं सकता है; और न परमेश्वर को उसकी सन्ती प्रायश्चित्त में कुछ दे सकता है, 8 (क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे)। 9 कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे, और कब्र को न देखे।। 10 क्योंकि देखने में आता है, कि बुद्धिमान भी मरते हैं, और मूर्ख और पशु सरीखे मनुष्य भी दोनोंनाश होते हैं, और अपक्की सम्पत्ति औरोंके लिथे छोड़ जाते हैं। 11 वे मन ही मन यह सोचते हैं, कि उनका घर सदा स्थिर रहेगा, और उनके निवास पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे; इसलिथे वे अपक्की अपक्की भूमि का नाम अपके अपके नाम पर रखते हैं। 12 परन्तु मनुष्य प्रतिष्ठा पाकर भी स्थिर नहीं रहता, वह पशुओं के समान होता है, जो मर मिटते हैं।। 13 उनकी यह चाल उनकी मूर्खता है, तौभी उनके बाद लोग उनकी बातोंसे प्रसन्न होते हैं। 14 वे अधोलोक की मानोंभेड़- बकरियां ठहराए गए हैं; मृत्यु उनका गड़ेरिया ठहरी; और बिहान को सीधे लोग उन पर प्रभुता करेंगे; और उनका सुन्दर रूप अधोलोक का कौर हो जाएगा और उनका कोई आधार न रहेगा। 15 परन्तु परमेश्वर मेरे प्राण को अधोलोक के वश से छुड़ा लेगा, क्योंकि वही मुझे ग्रहण कर अपनाएगा।। 16 जब कोई धनी हो जाए और उसके घर का विभव बढ़ जाए, तब तू भय न खाना। 17 क्योंकि वह मर कर कुछ भी साथ न ले जाएगा; न उसका विभव उसके साथ कब्र में जाएगा। 18 चाहे वह जीते जी अपके आप को धन्य कहता रहे, (जब तू अपक्की भलाई करता है, तब वे लोग तेरी प्रशंसा करते हैं) 19 तौभी वह अपके पुरखाओं के समाज में मिलाया जाएगा, जो कभी उजियाला न देखेंगे। 20 मनुष्य चाहे प्रतिष्ठित भी होंपरन्तु यदि वे समझ नहीं रखते, तो वे पशुओं के समान हैं जो मर मिटते हैं।।
1 ईश्वर परमेश्वर यहोवा ने कहा है, और उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक पृथ्वी के लोगोंको बुलाया है। 2 सिरयोन से, जो परम सुन्दर है, परमेश्वर ने अपना तेज दिखाया है। 3 हमारा परमेश्वर आएगा और चुपचाप न रहेगा, आग उसके आगे आगे भस्म करती जाएगी; और उसके चारोंओर बड़ी आंधी चलेगी। 4 वह अपक्की प्रजा का न्याय करने के लिथे ऊपर से आकाश को और पृथ्वी को भी पुकारेगा: 5 मेरे भक्तोंको मेरे पास इकट्ठा करो, जिन्होंने बलिदान चढ़ाकर मुझ से वाचा बान्धी है! 6 और स्वर्ग उसके धर्मी होने का प्रचार करेगा क्योंकि परमेश्वर तो आप ही न्यायी है।। 7 हे मेरी प्रजा, सुन, मैं बोलता हूं, और हे इस्राएल, मैं तेरे विषय साक्षी देता हूं। परमेश्वर तेरा परमेश्वर मैं ही हूं। 8 मैं तुझ पर तेरे मेलबलियोंके विषय दोष नहीं लगाता, तेरे होमबलि तो नित्य मेरे लिथे चढ़ते हैं। 9 मैं न तो तेरे घर से बैल न तेरे पशुशालोंसे बकरे ले लूंगा। 10 क्योंकि वन के सारे जीवजन्तु और हजारोंपहाड़ोंके जानवर मेरे ही हैं। 11 पहाड़ोंके सब पक्षियोंको मैं जानता हूं, और मैदान पर चलने फिरनेवाले जानवार मेरे ही हैं।। 12 यदि मैं भूखा होता तो तुझ से न कहता; क्योंकि जगत् और जो कुछ उस में है वह मेरा है। 13 क्या मैं बैल का मांस खाऊं, वा बकरोंका लोहू पीऊं? 14 परमेश्वर को धन्यवाद ही का बलिदान चढ़ा, और परमप्रधान के लिथे अपक्की मन्नतें पूरी कर; 15 और संकट के दिन मुझे पुकार; मैं तुझे छुड़ाऊंगा, और तू मेरी महिमा करने पाएगा।। 16 परन्तु दुष्ट से परमेश्वर कहता है: तुझे मेरी विधियोंका वर्णन करने से क्या काम? तू मरी वाचा की चर्चा क्योंकरता है? 17 तू तो शिक्षा से बैर करता, और मेरे वचनोंको तुच्छ जातना है। 18 जब तू ने चोर को देखा, तब उसकी संगति से प्रसन्न हुआ; और परस्त्रीगामियोंके साथ भागी हुआ।। 19 तू ने अपना मुंह बुराई करने के लिथे खोला, और तेरी जीभ छल की बातें गढ़ती है। 20 तू बैठा हुआ अपके भाई के विरूद्ध बोलता; और अपके सगे भाई की चुगली खाता है। 21 यह काम तू ने किया, और मैं चुप रहा; इसलिथे तू ने समझ लिया कि परमेश्वर बिलकुल मेरे साम्हने है। परन्तु मैं तुझे समझाऊंगा, और तेरी आंखोंके साम्हने सब कुछ अलग अलग दिखाऊंगा।। 22 हे ईश्वर को भूलनेवालो यह बात भली भांति समझ लो, कहीं ऐसा न हो कि मैं तुम्हें फाड़ डालूं, और कोई छुड़ानेवाला न हो! 23 धन्यवाद के बलिदान का चढ़ानेवाला मेरी महिमा करता है; और जो अपना चरित्रा उत्तम रखता है उसको मैं परमेश्वर का किया हुआ उद्धार दिखाऊंगा!
1 हे परमेश्वर, अपक्की करूणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर; अपक्की बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधोंको मिटा दे। 2 मुझे भलीं भांति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर! 3 मैं तो अपके अपराधोंकोंजानता हूं, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है। 4 मैं ने केवल तेरे ही विरूद्ध पाप किया, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है, वही किया है, ताकि तू बोलने में धर्मी और न्याय करने में निष्कलंक ठहरे। 5 देख, मैं अधर्म के साथ उत्पन्न हुआ, और पाप के साथ अपक्की माता के गर्भ में पड़ा।। 6 देख, तू हृदय की सच्चाई से प्रसन्न होता है; और मेरे मन ही में ज्ञान सिखाएगा। 7 जूफा से मुझे शुद्ध कर, तो मैं पवित्रा हो जाऊंगा; मुझे धो, और मैं हिम से भी अधिक श्वेत बनूंगा। 8 मुझे हर्ष और आनन्द की बातें सुना, जिस से जो हडि्डयां तू ने तोड़ डाली हैं वह मगन हो जाएं। 9 अपना मुख मेरे पापोंकी ओर से फेर ले, और मेरे सारे अधर्म के कामोंको मिटा डाल।। 10 हे परमेश्वर, मेरे अन्दर शुद्ध मन उत्पन्न कर, और मेरे भीतर स्थिर आत्मा नथे सिक्के से उत्पन्न कर। 11 मुझे अपके साम्हने से निकाल न दे, और अपके पवित्रा आत्मा को मुझ से अलग न कर। 12 अपके किए हुए उद्धार का हर्ष मुझे फिर से दे, और उदार आत्मा देकर मुझे सम्भाल।। 13 जब मैं अपराधियोंको तेरा मार्ग सिखाऊंगा, और पापी तेरी ओर फिरेंगे। 14 हे परमेश्वर, हे मेरे उद्धारकर्ता परमेश्वर, मुझे हत्या के अपराध से छुड़ा ले, तब मैं तेरे धर्म का जयजयकार करने पाऊंगा।। 15 हे प्रभु, मेरा मुंह खोल दे तब मैं तेरा गुणानुवाद कर सकूंगा। 16 क्योकि तू मेलबलि में प्रसन्न नहीं होता, नहीं तो मैं देता; होमबलि से भी तू प्रसन्न नहीं होता। 17 टूटा मन परमेश्वर के योग्य बलिदान है; हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।। 18 प्रसन्न होकर सिरयोन की भलाई कर, यरूशलेम की शहरपनाह को तू बना, 19 तब तू धर्म के बलिदानोंसे अर्थात् सर्वांग पशुओं के होमबलि से प्रसन्न होगा; तब लोग तेरी वेदी पर बैल चढ़ाएंगे।।
1 हे वीर, तू बुराई करने पर क्योंघमण्ड करता है? ईश्वर की करूणा तो अनन्त है। 2 तेरी जीभ केवल दुष्टता गढ़ती है; सारे धरे हुए अस्तुरे की नाईं वह छल का काम करती है। 3 तू भलाई से बढ़कर बुराई में और अधर्म की बात से बढ़कर झूठ से प्रीति रखता है। 4 हे छली जीभ तू सब विनाश करनेवाली बातोंसे प्रसन्न रहती है।। 5 हे ईश्वर तुझे सदा के लिथे नाश कर देगा; वह तुझे पकड़कर तेरे डेरे से निकाल देगा; और जीवतोंके लोक में तुझे उखाड़ डालेगा। 6 तब धर्मी लोग इस घटना को देखकर डर जाएंगे, और यह कहकर उस पर हंसेंगे, कि 7 देखो, यह वही पुरूष है जिस ने परमेश्वर को अपक्की शरण नहीं माना, परन्तु अपके धन की बहुतायत पर भरोसा रखता था, और अपके को दुष्टता में दृढ़ करता रहा! 8 परन्तु मैं तो परमेश्वर के भवन में हरे जलपाई के वृक्ष के समान हूं। मैं ने परमेश्वर की करूणा पर सदा सर्वदा के लिथे भरोसा रखा है। 9 मैं तेरा धन्यवाद सर्वदा करता रहूंगा, क्योंकि तू ही ने यह काम किया है। मैं तेरे ही नाम की बाट जोहता रहूंगा, क्योंकि यह तेरे पवित्रा भक्तोंके साम्हने उत्तम है।।
1 मूढ़ ने अपके मन में कहा है, कि कोई परमेश्वर है ही नहीं। वे बिगड़ गए, उन्होंने कुटिलता के घिनौने काम किए हैं; कोई सुकर्मी नहीं।। 2 परमेश्वर ने स्वर्ग पर से मनुष्योंके ऊपर दृष्टि की ताकि देखे कि कोई बुद्धि से चलनेवाला वा परमेश्वर को पूछनेवाला है कि नहीं।। 3 वे सब के सब हट गए; सब एक साथ बिगड़ गए; कोई सुकर्मी नहीं, एक भी नहीं।। क्या उन सब अनर्थकारियोंको कुछ भी ज्ञान नहीं 4 जो मेरे लोगोंको ऐसे खाते हैं जैसे रोटी और परमेश्वर का नाम नहीं लेते? 5 वहां उन पर भय छा गया जहां भय का कोई कारण न था। क्योंकि यहोवा न उनकी हडि्डयोंको, जो तेरे विरूद्ध छावनी डाले पके थे, तितर बितर कर दिया; तू ने तो उन्हें लज्जित कर दिया इसलिथे कि परमेश्वर ने उनको निकम्मा ठहराया है।। 6 भला होता कि इस्राएल का पूरा उद्धार सिरयोन से निकलता! जब परमेश्वर अपक्की प्रजा को बन्धुवाई से लौटा ले आएगा तब याकूब मगन और इस्राएल आनन्दित होगा।।
1 हे परमेश्वर अपके नाम के द्वारा मेरा उद्वार कर, और अपके पराक्रम से मेरा न्याय कर। 2 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन ले; मेरे मुंह के वचनोंकी ओर कान लगा।। 3 क्योंकि परदेशी मेरे विरूद्व उठे हैं, और बलात्कारी मेरे प्राण के ग्राहक हुए हैं; उन्होंने परमेश्वर को अपके सम्मुख नहीं जाना।। 4 देखो, परमेश्वर मेरा सहाथक है; प्रभु मेरे प्राण के सम्भालनेवालोंके संग है। 5 वह मेरे द्रोहियोंकी बुराई को उन्हीं पर लौटा देगा; हे परमेश्वर, अपक्की सच्चाई के कारण उन्हें विनाश कर।। 6 मैं तुझे स्वेच्छाबलि चढ़ाऊंगा; हे यहोवा, मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा, क्योंकि यह उत्तम है। 7 क्योंकि तू ने मुझे सब दुखोंसे छुड़ाया है, और मैं अपके शत्रुओं पर दृष्टि करके सन्तुष्ट हुआ हूं।।
1 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुंह न मोड़! 2 मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; मैं चिन्ता के मारे छटपटाता हूं और व्याकुल रहता हूं। 3 क्योंकि शत्रु कोलाहल और दुष्ट उपद्रव कर रहें हैं; वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, और क्रोध में आकर मुझे सताते हैं।। 4 मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है, और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है। 5 भय और कंपकपी ने मुझे पकड़ लिया है, और भय के कारण मेरे रोंए रोंए खड़े हो गए हैं। 6 और मैं ने कहा, भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता! 7 देखो, फिर तो मैं उड़ते उड़ते दूर निकल जाता और जंगल में बसेरा लेता, 8 मैं प्रचण्ड बयार और आन्धी के झोंके से बचकर किसी शरण स्थान में भाग जाता।। 9 हे प्रभु, उनको सत्यानाश कर, और उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दे; क्योंकि मैं ने नगर में उपद्रव और झगड़ा देखा है। 10 रात दिन वे उसकी शहरपनाह पर चढ़कर चारोंओर घूमते हैं; और उसके भीतर दुष्टता और उत्पात होता है। 11 उसके भीतर दुष्टता ने बसेरा डाला है; और अन्धेर, अत्याचार और छल उसके चौक से दूर नहीं होते।। 12 जो मेरी नामधराई करता है वह शत्रु नहीं था, नहीं तो मैं उसको सह लेता; जो मेरे विरूद्व बड़ाई मारता है वह मेरा बैरी नहीं है, नहीं तो मैं उस से छिप जाता। 13 परन्तु वह तो तू ही था जो मेरी बराबरी का मनुष्य मेरा परममित्रा और मेरी जान पहचान का था। 14 हम दोनोंआपस में कैसी मीठी मीठी बातें करते थे; हम भीड़ के साथ परमेश्वर के भवन को जाते थे। 15 उनको मृत्यु अचानक आ दबाए; वे जीवित ही अधोलोक में उतर जाएं; क्योंकि उनके घर और मन दोनोंमें बुराइयां और उत्पात भरा है।। 16 परन्तु मैं तो परमेश्वर को पुकारूंगा; और यहोवा मुझे बचा लेगा। 17 सांझ को, भोर को, दोपहर को, तीनोंपहर मैं दोहाई दूंगा और कराहता रहूंगा। और वह मेरा शब्द सुन लेगा। 18 जो लड़ाई मेरे विरूद्व मची थी उस से उस ने मुझे कुशल के साथ बचा लिया है। उन्होंने तो बहुतोंको संग लेकर मेरा साम्हना किया था। 19 ईश्वर जो आदि से विराजमान है यह सुनकर उनको उत्तर देगा। थे वे है जिन में कोई परिवर्तन नहीं और उन में परमेश्वर का भय है ही नहीं।। 20 उस ने अपके मेल रखनेवालोंपर भी हाथ छोड़ा है, उस ने अपक्की वाचा को तोड़ दिया है। 21 उसके मुंह की बातें तो मक्खन सी चिकनी थी परन्तु उसके मन में लड़ाई की बातें थीं; उसके वचन तेल से अधिक नरम तो थे परन्तु नंगी तलवारें थीं।। 22 अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।। 23 परन्तु हे परमेश्वर, तू उन लोगोंको विनाश के गड़हे में गिरा देगा; हत्यारे और छली मनुष्य अपक्की आधी आयु तक भी जीवित न रहेंगे। परन्तु मैं तुझ पर भरोसा रखे रहूंगा।।
1 हे परमेश्वर, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मनुष्य मुझे निगलना चाहते हैं। वे दिन भर लड़कर मुझे सताते हैं। 2 मेरे द्रोही दिन भर मुझे निगलना चाहते हैं, क्योंकि जो लोग अभिमान करके मुझ से लड़ते हैं वे बहुत हैं। 3 जिस समय मुझे डल लगेगा, मैं तुझ पर भरोसा रखूंगा। 4 परमेश्वर की सहाथता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा, परमेश्वर पर मैं ने भरोसा रखा है, मैं नहीं डरूंगा। कोई प्राणी मेरा क्या कर सकता है? 5 वे दिन भर मेरे वचनोंको, उलटा अर्थ लगा लगाकर मरोड़ते रहते हैंद्ध उनकी सारी कल्पनाएं मेरी ही बुराई करने की होती है। 6 वे सब मिलकर इकट्ठे होते हैं और छिपकर बैठते हैं; वे मेरे कदमोंको देखते भालते हैं मानोंवे मेरे प्राणोंकी घात में ताक लगाए बैठें हों। 7 क्या वे बुराई करके भी बच जाएंगे? हे परमेश्वर, अपके क्रोध से देश देश के लोगोंको गिरा दे! 8 तू मेरे मारे मारे फिरने का हिसाब रखता है; तू मेरे आंसुओं को अपक्की कुप्पी में रख ले! क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है? 9 जब जिस समय मैं पुकारूंगा, उसी समय मेरे शत्रु उलटे फिरेंगे। यह मैं जानता हूं, कि परमेश्वर मेरी ओर है। 10 परमेश्वर की सहाथता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा, यहोवा की सहाथता से मैं उसके वचन की प्रशंसा करूंगा। 11 मैं ने परमेश्वर पर भरोसा रखा है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है? 12 हे परमेश्वर, तेरी मन्नतोंका भरा मुझ पर बना है; मैं तुझ को धन्यवाद बलि चढ़ाऊंगा। 13 क्योंकि तू ने मुझ को मृत्यु से बचाया है; तू ने मेरे पैरोंको भी फिसलने से न बचाया, ताकि मैं ईश्वर के साम्हने जीवतोंके उजियाले में चलूं फिरूं?
1 हे परमेश्वर, मुझ पर अनुग्रह कर, मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं तेरा शरणागत हूं; और जब तक थे आपत्तियां निकल न जाएं, तब तक मैं तेरे पंखोंके तले शरण लिए रहूंगा। 2 मैं परम प्रधान परमेश्वर को पुकारूंगा, ईश्वर को जो मेरे लिथे सब कुछ सिद्ध करता है। 3 ईश्वर स्वर्ग से भेजकर मुझे बचा लेगा, जब मेरा निगलनेवाला निन्दा कर रहा हो। परमेश्वर अपक्की करूणा और सच्चाई प्रगट करेगा।। 4 मेरा प्राण सिंहोंके बीच में है, मुझे जलते हुओं के बीच में लेटना पड़ता है, अर्थात् ऐसे मनुष्योंके बीच में जिन के दांत बर्छी और तीर हैं, और जिनकी जीभ तेज तलवार है।। 5 हे परमेश्वर तू स्वर्ग के ऊपर अति महान और तेजोमय है, तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर फैल जाए! 6 उन्होंने मेरे पैरोंके लिथे जाल लगाया है; मेरा प्राण ढला जाता है। उन्होंने मेरे आगे गड़हा खोदा, परन्तु आप ही उस में गिर पके।। 7 हे परमेश्वर, मेरा मन स्थिर है, मेरा मन स्थिर है; मैं गाऊंगा वरन भजन कीर्तन करूंगा। 8 हे मेरी आत्मा जाग जा! हे सारंगी और वीणा जाग जाओ। मैं भी पौ फटते ही जाग उठूंगा। 9 हे प्रभु, मैं देश के लोगोंके बीच तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं राज्य राज्य के लोगोंके बीच में तेरा भजन गाऊंगा। 10 क्योंकि तेरी करूणा स्वर्ग तक बड़ी है, और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक पहुंचक्की है।। 11 हे परमेश्वर, तू स्वर्ग के ऊपर अति महान है! तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर फैल जाए!
1 हे मनुष्यों, क्या तुम सचमुच धर्म की बात बोलते हो? और हे मनुष्यवंशियोंक्या तुम सीधाई से न्याय करते हो? 2 नहीं, तुम मन ही मन में कुटिल काम करते हो; तुम देश भर में उपद्रव करते जाते हो।। 3 दुष्ट लोग जन्मते ही पराए हो जाते हैं, वे पेट से निकलते ही झूठ बालते हुए भटक जाते हैं। 4 उन में सर्प का सा विष है; वे उस नाम के समान हें, जो सुनना नहीं चाहता; 5 और सपेरा कैसी ही निपुणता से क्योंन मंत्रा पढ़े, तौभी उसकी नहीं सुनता।। 6 हे परमेश्वर, उनके मुंह में से दांतोंको तोड़ दे; हे यहोवा उन जवान सिंहोंकी दाढ़ोंको उखाड़ डाल! 7 वे घुलकर बहते हुए पानी के समान हो जाएं; जब वे अपके तीर चढ़ाएं, तब तीर मानोंदो टुकड़े हो जाएं। 8 वे घोंघे के समान हो जाएं जो घुलकर नाश हो जाता है, और स्त्री के गिरे हुए गर्भ के समान हो जिस ने सूरज को देखा ही नहीं। 9 उस से पहिले कि तुम्हारी हांबियोंमें कांटोंकी आंच लगे, हरे व जले, दोनोंको वह बवंडर से उड़ा ले जाएगा।। 10 धर्मी ऐसा पलटा देखकर आनन्दित होगा; वह अपके पांव दुष्ट के लोहू में धोएगा।। 11 तब मनुष्य कहने लगेंगे, निश्चय धर्मी के लिथे फल है; निश्चय परमेश्वर है, जो पृथ्वी पर न्याय करता है।।
1 हे मेरे परमेश्वर, मुझ को शत्रुओं से बचा, मुझे ऊंचे स्थान पर रखकर मेरे विरोधियोंसे बचा, 2 मुझ को बुराई करनेवालोंके हाथ से बचा, और हत्यारोंसे मेरा उद्वार कर।। 3 क्योंकि देख, वे मेरी घात में लगे हैं; हे यहोवा, मेरा कोई दोष वा पाप नहीं है, तौभी बलवन्त लोग मेरे विरूद्ध इकट्ठे होते हैं। 4 वह मुझ निर्दोष पर दौड़े दौड़कर लड़ने को तैयार हो जाते हैं।। मुझ से मिलने के लिथे जाग उठ, और यह देख! 5 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हे इस्राएल के परमेश्वर सब अन्यजातिवालोंको दण्ड देने के लिथे जाग; किसी विश्वासघाती अत्याचारी पर अनुग्रह न कर।। 6 वे लागे सांझ को लौटकर कुत्ते की नाईं गुर्राते हैं, और नगर के चारोंओर घूमते हैं। देख वे डकारते हैं, 7 उनके मुंह के भीतर तलवारें हैं, क्योंकि वे कहते हैं, कौन सुनता है? 8 परन्तु हे यहोवा, तू उन पर हंसेगा; तू सब अन्य जातियोंको ठट्ठां में उड़ाएगा। 9 हे मेरे बल, मुझे तेरी ही आस होगी; क्योंकि परमेश्वर मेरा ऊंचा गढ़ है।। 10 परमेश्वर करूणा करता हुआ मुझ से मिलेगा; परमेश्वर मेरे द्रोहियोंके विषय मेरी इच्छा पूरी कर देगा।। 11 उन्हें घात न कर, न हो कि मेरी प्रजा भूल जाए; हे प्रभु, हे हमारी ढाल! अपक्की शक्ति के उन्हें तितर बितर कर, उन्हें दबा दे। 12 वह अपके मुंह के पाप, और ओठोंके वचन, और शाप देने, और झूठ बोलने के कारण, अभिमान में फंसे हुए पकड़े जाएं। 13 जलजलाहट में आकर उनका अन्त कर, उनका अन्त कर दे ताकि वे नष्ट हो जाएं तब लोग जानेंगे कि परमेश्वर याकूब पर, वरन पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करता है।। 14 वे सांझ को लौटकर कुत्ते की नाईं गुर्राएं, और नगर के चारोंओर घूमें। 15 वे टुकड़े के लिथे मारे मारे फिरें, और तृप्त न होन पर रात भर वहीं ठहरे रहें।। 16 परन्तु मैं तेरी सामर्थ्य का यश गाऊंगा, और भोर को तेरी करूणा का जय जयकार करूंगा। क्योंकि तू मेरा ऊंचा गढ़ है, और संकट के समय मेरा शरणस्थान ठहरा है। 17 हे मेरे बल, मैं तेरा भजन गाऊंगा, क्योंकि हे परमेश्वर, तू मेरा ऊंचा गढ़ और मेरा करूणामय परमेश्वर है।।
1 हे परमेश्वर तू ने हम को त्याग दिया, और हम को तोड़ डाला है; तू क्रोधित हुआ; फिर हम को ज्योंका त्योंकर दे। 2 तू ने भूमि को कंपाया और फाड़ डाला है; उसके दरारोंको भर दे, क्योंकि वह डगमगा रही है। 3 तू ने अपक्की प्रजा को कठिन दु:ख भुगताया; तू ने हमें लड़खड़ा देनेवाला दाखमधु पिलाया है।। 4 तू ने अपके डरवैयोंको झण्डा दिया है, कि वह सच्चाई के कारण फहराया जाए। 5 तू अपके दहिने हाथ से बचा, और हमारी सुन ले कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएं।। 6 परमेश्वर पवित्राता के साथ बोला है मैं प्रफुल्लित हूंगा; मैं शकेम को बांट लूंगा, और सुक्कोत की तराई को नपवाऊंगा। 7 गिलाद मेरा है; मनश्शे भी मेरा है; और एप्रैम मेरे सिर का टोप, यहूदा मेरा राजदण्ड है। 8 मोआब मेरे धोने का पात्रा है; मैं एदोम पर अपना जूता फेंकूंबा; हे पलिश्तीन मेरे ही कारण जयजयकार कर।। 9 मुझे गढ़वाले नगर में कौन पहुंचाएगा? एदोम तक मेरी अगुवाई किस ने की है? 10 हे परमेश्वर, क्या तू ने हम को त्याग नही दिया? हे परमेश्वर, तू हमारी सेना के साथ नहीं जाता। 11 द्रोही के विरूद्ध हमारी सहाथता कर, क्योंकि मनुष्य का किया हुआ छुटकारा व्यर्थ होता है। 12 परमेश्वर की सहाथता से हम वीरता दिखाएंगे, क्योंकि हमारे द्रोहियोंको वही रौंदेगा।।
1 हे परमेश्वर, मेरा चिल्लाना सुन, मेरी प्रार्थना की ओर घ्यान दे। 2 मूर्छा खाते समय मैं पृथ्वी की छोर से भी तुझे पुकारूंगा, जो चट्टान मेरे लिथे ऊंची है, उस पर मुझ को ले चला; 3 क्योंकि तू मेरा शरणस्थान है, और शत्रु से बचने के लिथे ऊंचा गढ़ है।। 4 मै तेरे तम्बू में युगानुयुग बना रहूंगा। 5 क्योंकि हे परमेश्वर, तू ने मेरी मन्नतें सुनीं, जो तेरे नाम के डरवैथे हैं, उनका सा भाग तू ने मुझे दिया है।। 6 तू राजा की आयु को बहुत बढ़ाएगा; उसके वर्ष पीढ़ी पीढ़ी के बराबर होंगे। 7 वह परमेश्वर के सम्मुख सदा बना रहेगा; तू अपक्की करूणा और सच्चाई को उसकी रक्षा के लिथे ठहरा रख। 8 और मैं सर्वदा तेरे नाम का भजन गा गाकर अपक्की मन्नतें हर दिन पूरी किया करूंगा।।
1 सचमुच मैं चुपचाप होकर परमेरश्वर की ओर मन लगाए हूं; मेरा उद्धार उसी से होता है। 2 सचमुच वही, मेरी चट्टान और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है; मैं बहुत न डिगूंगा।। 3 तुम कब तक एक पुरूष पर धावा करते रहोगे, कि सब मिलकर उसका घात करो? वह तो झुकी हुई भीत वा गिरते हुए बाड़े के समान है। 4 सचमुच वे उसको, उसके ऊंचे पद से गिराने की सम्मति करते हैं; वे झूठ से प्रसन्न रहते हैं। मुंह से तो वे आशीर्वाद देते पर मन में कोसते हैं।। 5 हे मेरे मन, परमेश्वर के साम्हने चुपचाप रह, क्योंकि मेरी आशा उसी से है। 6 सचमुच वही मेरी चट्टान, और मेरा उद्धार है, वह मेरा गढ़ है; इसलिथे मैं न डिगूंगा। 7 मेरा उद्धार और मेरी महिमा का आधार परमेश्वर है; मेरी दृढ़ चट्टान, और मेरा शरणस्थान परमेश्वर है। 8 हे लोगो, हर समय उस पर भरोसा रखो; उस से अपके अपके मन की बातें खोलकर कहो; परमेश्वर हमारा शरणस्थान है। 9 सचमुच नीच लोग तो अस्थाई, और बड़े लोग मिथ्या ही हैं; तौल में वे हलके निकलते हैं; वे सब के सब सांस से भी हलके हैं। 10 अन्धेर करने पर भरोसा मत रखो, और लूट पाट करने पर मत फूलो; चाहे धन सम्पति बढ़े, तौभी उस पर मन न लगाना।। 11 परमेश्वर ने एक बार कहा है; और दो बार मैं ने यह सुना है: कि सामर्थ्य परमेश्वर का है। 12 और हे प्रभु, करूणा भी तेरी है। क्योंकि तू एक एक जन को उसके काम के अनुसार फल देता है।।
1 हे परमेश्वर, तू मेरा ईश्वर है, मैं तुझे यत्न से ढूंढूंगा; सूखी और निर्जल ऊसर भूमि पर, मेरा मन तेरा प्यासा है, मेरा शरीर तेरा अति अभिलाषी है। 2 इस प्रकार से मैं ने पवित्रास्थान में तुझ पर दृष्टि की, कि तेरी सामर्थ्य और महिमा को देखूं। 3 क्योंकि तेरी करूणा जीवन से भी उत्तम है मैं तेरी प्रशंसा करूंगा। 4 इसी प्रकार मैं जीवन भर तुझे धन्य कहता रहूंगा; और तेरा नाम लेकर अपके हाथ उठाऊंगा।। 5 मेरा जीव मानो चर्बी और चिकने भोजन से तृप्त होगा, और मैं जयजयकार करके तेरी स्तुति करूंगा। 6 जब मैं बिछौने पर पड़ा तेरा स्मरण करूंगा, तब रात के एक एक पहर में तुझ पर ध्यान करूंगा; 7 क्योंकि तू मेरा सहाथक बना है, इसलिथे मैं तेरे पंखोंकी छाया में जयजयकार करूंगा। 8 मेरा मन तेरे पीछे पीछे लगा चलता है; और मुझे तो तू अपके दहिने हाथ से थाम रखता है।। 9 परन्तु जो मेरे प्राण के खोजी हैं, वे पृथ्वी के नीचे स्थानोंमें जा पकेंगे; 10 वे तलवार से मारे जाएंगे, और गीदड़ोंका आहार हो जाएंगे। 11 परन्तु राजा परमेश्वर के कारण आनन्दित होगा; जो कोई ईश्वर की शपथ खाए, वह बड़ाई करने पाएगा; परन्तु झूठ बोलनेवालोंका मुंह बन्द किया जाएगा।।
1 हे परमेश्वर, जब मैं तेरी दोहाई दूं, तब मेरी सुन; शत्रु के उपजाए हुए भय के समय मेरे प्राण की रक्षा कर। 2 कुकर्मियोंकी गोष्ठी से, और अनर्थकारियोंके हुल्लड़ से मेरी आड़ हो। 3 उन्होंने अपक्की जीभ को तलवार की नाईं तेज किया है, और अपके कड़वे बचनोंके तीरोंको चढ़ाया है; 4 ताकि छिपकर खरे मनुष्य को मारें; वे निडर होकर उसको अचानक मारते भी हैं। 5 वे बुरे काम करने को हियाव बान्धते हैं; वे फन्दे लगने के विषय बातचीत करते हैं; और कहते हैं, कि हम को कौन देखेगा? 6 वे कुटिलता की युक्ति निकालते हैं; और कहते हैं, कि हम ने पक्की युक्ति खोजकर निकाली है। क्योंकि मनुष्य का मन और हृदय अथाह हैं! 7 परन्तु परमेश्वर उन पर तीर चलाएगा; वे अचानक घायल हो जाएंगे। 8 वे अपके ही वचनोंके कारण ठोकर खाकर गिर पकेंगे; जितने उन पर दृष्टि करेंगे वे सब अपके अपके सिर हिलाएंगे 9 तब सारे लोग डर जाएंगे; और परमेश्वर के कामोंका बखान करंगे, और उसके कार्यक्रम को भली भांति समझेंगे।। 10 धर्मी तो यहोवा के कारण आनन्दित होकर उसका शरणागत होगा, और सब सीधे मनवाले बड़ाई करेंगे।।
1 हे परमेश्वर, सिरयोन में स्तुति तेरी बाट जोहती है; और तेरे लिथे मन्नतें पूरी की जाएंगी। 2 हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएंगे। 3 अर्धम के काम मुझ पर प्रबल हुए हैं; हमारे अपराधोंको तू ढांप देगा। 4 क्या ही धन्य है वह; जिसको तू चुनकर अपके समीप आने देता है, कि वह तेरे आंगनोंमें बास करे! हम तेरे भवन के, अर्थात् तेरे पवित्रा मन्दिर के उत्तम उत्तम पदार्थोंसे तृप्त होंगे।। 5 हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, हे पृथ्वी के सब दूर दूर देशोंके और दूर के समुद्र पर के रहनेवालोंके आधार, तू धर्म से किए हुए भयानक कामोंके द्वारा हमारा मुंह मांगा वर देगा; 6 तू जो पराक्रम का फेंटा कसे हुए, अपक्की सामर्थ्य के पर्वतोंको स्थिर करता है; 7 तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगो का महाशब्द, और देश देश के लोगोंका कोलाहल शन्त करता है; 8 इसलिथे दूर दूर देशोंके रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं; तू उदयाचल और अस्ताचल दोनोंसे जयजयकार कराता है।। 9 तू भूमि की सुधि लेकर उसको सींचता हैं, तू उसको बहुत फलदायक करता है; परमेश्वर की नहर जल से भरी रहती है; तू पृथ्वी को तैयार करके मनुष्योंके लिथे अन्न को तैयार करता है। 10 तू रेघारियोंको भली भांति सींचता है, और उनके बीच की मिट्टी को बैठाता है, तू भूमि को मेंह से नरम करता है, और उसकी उपज पर आशीष देता है। 11 अपक्की भलाई से भरे हुए वर्ष पर तू ने मानो मुकुट धर दिया है; तेरे मार्गोंमें उत्तम उत्तम पदार्थ पाए जाते हैं। 12 वे जंगल की चराइयोंमें पाए जाते हैं; और पहाड़ियां हर्ष का फेंटा बान्धे हुए है।। 13 चराइयां भेड़- बकरियोंसे भरी हुई हैं; और तराइयां अन्न से ढंपी हुई हैं, वे जयजयकार करतीं और गाती भी हैं।।
1 हे सारी पृथ्वी के लोगों, परमेश्वर के लिथे जयजयकार करो; 2 उसके नाम की महिमा का भजन गाओ; उसकी स्तुति करते हुए, उसकी महिमा करो। 3 परमेश्वर से कहो, कि तेरे काम क्या ही भयानक हैं! तेरी महासामर्थ्य के कारण तेरे शत्रु तेरी चापलूसी करेंगे। 4 सारी पृथ्वी के लोग तुझे दण्डवत् करेंगे, और तेरा भजन गाएंगे; वे तेरे नाम का भजन गाएंगे।। 5 आओ परमेश्वर के कामोंको दखो; वह अपके कार्योंके कारण मनुष्योंको भययोग्य देख पड़ता है। 6 उस ने समुद्र को सूखी भूमि कर डाला; वे महानद में से पांव पावं पार उतरे। वहां हम उसके कारण आनन्दित हुए, 7 जो पराक्रम से सर्वदा प्रभुता करता है, और अपक्की आंखोंसे जाति जाति को ताकता है। हठीले अपके सिर न उठाएं।। 8 हे देश देश के लोगो, हमारे परमेश्वर को धन्य कहो, और उसकी स्तुति में राग उठाओ, 9 जो हम को जीवित रखता है; और हमारे पांव को टलने नहीं देता। 10 क्योंकि हे परमेश्वर तू ने हम को जांचा; तू ने हमें चान्दी की नाईं ताया था। 11 तू ने हम को जाल में फंसाया; और हमारी कटि पर भारी बोझ बान्धा था; 12 तू ने घुड़चढ़ोंको हमारे सिरोंके ऊपर से चलाया, हम आग और जल से होकर गए; परन्तु तू ने हम को उबार के सुख से भर दिया है।। 13 मैं होमबलि लेकर तेरे भवन में आंऊंगा मैं उन मन्नतोंको तेरे लिथे पूरी करूंगा, 14 जो मैं ने मुंह खोलकर मानीं, और संकट के समय कही थीं। 15 मैं तुझे मोटे पशुओं के होमबलि, मेंढ़ोंकी चर्बी के धूप समेत चढ़ऊंगा; मैं बकरोंसमेत बैल चढ़ाऊंगा।। 16 हे परमेश्वर के सब डरवैयोंआकर सुनो, मैं बताऊंगा कि उस ने मेरे लिथे क्या क्या किया है। 17 मैं ने उसको पुकारा, और उसी का गुणानुवाद मुझ से हुआ। 18 यदि मैं मन में अनर्थ बात सोचता तो प्रभु मेरी न सुनता। 19 परन्तु परमेश्वर ने तो सुना है; उस ने मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दिया है।। 20 धन्य है परमेश्वर, जिस ने न तो मेरी प्रार्थना अनसुनी की, और न मुझ से अपक्की करूणा दूर कर दी है!
1 परमेश्वर हम पर अनुग्रह करे और हम को आशीष दे; वह हम पर अपके मुख को प्रकाश चमकाए 2 जिस से तेरी गति प्थ्वी पर, और तेरा किया हुआ उद्वार सारी जातियोंमें जाना जाए। 3 हे परमेश्वर, देश देश के लोग तेरा धन्यवाद करें; देश देश के सब लोग तेरा धन्यवाद करें।। 4 राज्य राज्य के लोग आनन्द करें, और जयजयकार करें, क्योंकि तू देश देश के लोंगोंका न्याय धर्म से करेगा, और पृथ्वी के राज्य राज्य के लोगोंकी अगुवाई करेगा।। 5 हे परमेश्वर, देश देश के लोग तेरा धन्यवाद करें; देश देश के सब लोग तेरा धन्यवाद करें।। 6 भूमि ने अपक्की उपज दी है, परमेश्वर जो हमारा परमेश्वर है, उस ने हमें आशीष दी है। 7 परमेश्वर हम को आशीष देगा; और पृथ्वी के दूर दूर देशोंके सब लोग उसका भय मानेंगे।।
1 परमेश्वर उठे, उसके शत्रु तित्तर बितर हों; और उसके बैरी उसके साम्हने से भाग जाएं। 2 जैसे धुआं उड़ जाता है, वैसे ही तू उनको उड़ा दे; जैसे मोम आग की आंच से पिघल जाता है, वैसे ही दुष्ट लोग परमेश्वर की उपस्थिति से नाश हों। 3 परन्तु धर्मी आनन्दित हों; वे परमेश्वर के साम्हने प्रफुल्लित हों; वे आनन्द से मगन हों! 4 परमेश्वर का गीत गाओ, उसके नाम का भजन गाओ; जो निर्जल देशोंमें सवार होकर चलता है, उसके लिथे सड़क बनाओ; उसका नाम याह है, इसलिथे तुम उसके साम्हने प्रफुल्लित हो! 5 परमेश्वर अपके पवित्रा धाम में, अनाथोंका पिता और विधवाओं का न्यायी है। 6 परमेश्वर अनाथोंका घर बसाता है; और बन्धुओं को छुड़ाकर भाग्यवान करता है; परन्तु हठीलोंको सूखी भूमि पर रहना पड़ता है।। 7 हे परमेश्वर, जब तू अपक्की प्रजा के आगे आगे चलता था, जब तू निर्जल भूमि में सेना समेत चला, 8 तब पृथ्वी कांप उठी, और आकाश भी परमेश्वर के साम्हने टपकने लगा, उधर सीनै पर्वत परमेश्वर, हां इस्राएल के परमेश्वर के साम्हने कांप उठा। 9 हे परमेश्वर, तू ने बहुत से वरदान बरसाए; तेरा निज भाग तो बहुत सूखा था, परन्तू तू ने उसको हरा भरा किया है; 10 तेरा झुण्ड उस में बसने लगा; हे परमेश्वर तू ने अपक्की भलाई से दीन जन के लिथे तैयारी की है। 11 प्रभु आज्ञा देता है, तब शुभ समाचार सुनानेवालियोंकी बड़ी सेना हो जाती है। 12 अपक्की अपक्की सेना समेत राजा भागे चले जाते हैं, और गृहस्थिन लूट को बांट लेती है। 13 क्या तुम भेड़शालोंके बीच लेट जाओगे? और ऐसी कबूतरी के समान होगे जिसके पंख चान्दी से और जिसके पर पीले सोने से मढ़े हुए हों? 14 जब सर्वशक्तिमान ने उस में राजाओं को तित्तर बितर किया, तब मानो सल्मोन पर्वत पर हिम पड़ा।। 15 बाशान का पहाड़ परमेश्वर का पहाड़ है; बाशान का पहाड़ बहुत शिखरवाला पहाड़ है। 16 परन्तु हे शिखरवाले पहाड़ों, तुम क्योंउस पर्वत को घूरते हो, जिसे परमेश्वर ने अपके वास के लिथे चाहा है, और जहां यहोवा सदा वास किए रहेगा? 17 परमेश्वर के रथ बीस हजार, वरन हजारोंहजार हैं; प्रभु उनके बीच में है, जैसे वह सीनै पवित्रास्थान में है। 18 तू ऊंचे पर चढ़ा, तू लोगोंको बन्धुवाई में ले गया; तू ने मनुष्योंसे, वरन हठीले मनुष्योंसे भी भेंटें लीं, जिस से याह परमेश्वर उन में वास करे।। 19 धन्य है प्रभु, जो प्रति दिन हमारा बोझ उठाता है; वही हमारा उद्धारकर्ता ईश्वर है। 20 वही हमारे लिथे बचानेवाला ईश्वर ठहरा; यहोवा प्रभु मृत्यु से भी बचाता है।। 21 निश्चय परमेश्वर अपके शत्रुओं के सिर पर, और जो अधर्म के र्माग पर चलता रहता है, उसके बाल भरे चोंडें पर मार मार के उसे चूर करेगा। 22 प्रभु ने कहा है, कि मैं उन्हें बाशान से निकाल लाऊंगा, मैं उनको गहिरे सागर के तल से भी फेर ले आऊंगा, 23 कि तू अपके पांव को लोहू में डुबोए, और तेरे शत्रु तेरे कुत्तोंका भाग ठहरें।। 24 हे परमशॆवर तेरी गति देखी गई, मेरे ईश्वर, मेरे राजा की गति पवित्रास्थान में दिखाई दी है; 25 गानेवाले आगे आगे और तारवाले बाजोंके बजानेवाले पीछे पीछे गए, चारोंओर कुमारियां डफ बजाती थीं। 26 सभाओं में परमेश्वर का, हे इस्राएल के सोते से निकले हुए लोगों, प्रभु का धन्यवाद करो। 27 वहां उनको अध्यक्ष छोटा बिन्यामीन है, वहां यहूदा के हाकिम अपके अनुचरोंसमेत हैं, वहां जबूलून और नप्ताली के भी हाकिम हैं।। 28 तेरे परमेश्वर ने आज्ञा दी, कि तुझे सामर्थ्य मिले; हे परमेश्वर जो कुछ तू ने हमारे लिथे किया है, उसे दृढ़ कर। 29 तेरे मन्दिर के कारण जो यरूशलेम में हैं, राजा तेरे लिथे भेंट ले आएंगे। 30 नरकटोंमें रहनेवाले बनैले पशुओं को, सांड़ोंके झुण्ड को और देश देश के बछड़ोंको झिड़क दे। वे चान्दी के टुकड़े लिथे हुए प्रणाम करेंगे; जो लोगे युद्ध से प्रसन्न रहते हैं, उनको उस ने तितर बितर किया है। 31 मि से रईस आएंगे; कूशी अपके हाथोंको परमेश्वर की ओर फुर्ती से फैलाएंगे।। 32 हे पृथ्वी पर के राज्य राज्य के लोगोंपरमेश्वर का गीत गाओ; प्रभु का भजन गाओ, 33 जो सब से ऊंचे सनातन स्वर्ग में सवार होकर चलता है; देखो वह अपक्की वाणी सुनाता है, वह गम्भीर वाणी शक्तिशाली है। 34 परमशॆवर की सामर्थ्य की स्तुति करो, उसका प्रताप इस्राएल पर छाया हुआ है, और उसकी सामर्थ्य आकाशमण्डल में है। 35 हे परमेश्वर, तू अपके पवित्रास्थानोंमें भययोग्य है, इस्राएल का ईश्वर ही अपक्की प्रजा को सामर्थ्य और शक्ति का देनेवाला है। परमेश्वर धन्य है।।
1 हे परमेश्वर, मेरा उद्धार कर, मैं जल में डूबा जाता हूं। 2 मैं बड़े दलदल में धसा जाता हूं, और मेरे पैर कहीं नहीं रूकते; मैं गहिरे जल में आ गया, और धारा में डूबा जाता हूं। 3 मैं पुकारते पुकारते थक गया, मेरा गला सूख गया है; अपके परमेश्वर की बाट जोहते जोहते, मेरी आंखे रह गई हैं।। 4 जो अकारण मेरे बैरी हैं, वे गिनती में मेरे सिर के बालोंसे अधिक हैं; मेरे विनाश करनेवाले जो व्यर्थ मेरे शत्रु हैं, वे सामर्थीं हैं, इसलिथे जो मैं ने लूटा नहीं वह भी मुझ को देना पड़ा है। 5 हे परमेश्वर, तू तो मेरी मूढ़ता को जानता है, और मेरे दोष तुझ से छिपे नहीं हैं।। 6 हे प्रभु, हे सेनाओं के यहोवा, जो तेरी बाट जोहते हैं, उनकी आशा मेरे कारण न टूटे; हे इस्राएल के परमेश्वर, जो तुझे ढूंढते हैं उनका मुंह मेरे कारण काला न हो। 7 तेरे ही कारण मेरी निन्दा हुई है, और मेरा मुंह लज्जा से ढंपा है। 8 मैं अपके भाइयोंके साम्हने अजनबी हुआ, और अपके सगे भाइयोंकी दृष्टि में परदेशी ठहरा हूं।। 9 क्योंकि मैं तेरे भवन के निमित्त जलते जलते भस्म हुआ, और जो निन्दा वे तेरी करते हैं, वही निन्दा मुझ को सहनी पड़ी है। 10 जब मैं रोकर और उपवास करके दु:ख उठाता था, तब उस से भी मेरी नामधराई ही हुई। 11 और जब मैं टाट का वस्त्रा पहिने था, तब मेरा दृष्टान्त उन में चलता था। 12 फाटक के पास बैठनेवाले मेरे विषय बातचीत करते हैं, और मदिरा पीनेवाले मुझ पर लगता हुआ गीत गाते हैं। 13 परन्तु हे यहोवा, मेरी प्रार्थना तो तेरी प्रसन्नता के समय में हो रही है; हे परमेश्वर अपक्की करूणा की बहुतायात से, और बचाने की अपक्की सच्ची प्रतिज्ञा के अनुसार मेरी सुन ले। 14 मुझ को दलदल में से उबार, कि मैं धंस न जाऊं; मैं अपके बैरियोंसे, और गहिरे जल में से बच जाऊं। 15 मैं धारा में डूब न जाऊं, और न मैं गहिरे जल में डूब मरूं, और न पाताल का मुंह मेरे ऊपर बन्द हो।। 16 हे यहोवा, मेरी सुन ले, क्योंकि तेरी करूणा उत्तम है; अपक्की दया की बहुतायत के अनुसार मेरी ओर ध्यान दे। 17 अपके दास से अपना मुंह न मोड़; क्योंकि मैं संकट में हूं, फुर्ती से मेरी सुन ले। 18 मेरे निकट आकर मुझे छुड़ा ले, मेरे शत्रुओं से मुझ को छुटकारा दे।। 19 मेरी नामधराई और लज्जा और अनादर को तू जानता है: मेरे सब द्रोही तेरे साम्हने हैं। 20 मेरा हृदय नामधराई के कारण फट गया, और मैं बहुत उदास हूं। मैं ने किसी तरस खानेवाले की आशा तो की, परन्तु किसी को न पाया, और शान्ति देनेवाले ढूंढ़ता तो रहा, परन्तु कोई न मिला। 21 और लोगोंने मेरे खाने के लिथे इन्द्रायन दिया, और मेरी प्यास बुझाने के लिथे मुझे सिरका पिलाया।। 22 उनको भोजन उनके लिथे फन्दा हो जाए; और उनके सुख के समय जाल बन जाए। 23 उनकी आंखोंपर अन्धेरा छा जाए, ताकि वे देख न सकें; और तू उनकी कटि को निरन्तर कंपाता रह। 24 उनके ऊपर अपना रोष भड़का, और तेरे क्रोध की आंच उनको लगे। 25 उनकी छावनी उजड़ जाए, उनके डेरोंमें कोई न रहे। 26 क्योंकि जिसको तू ने मारा, वे उसके पीछे पके हैं, और जिनको तू ने घायल किया, वे उनकी पीड़ा की चर्चा करते हैं। 27 उनके अधर्म पर अधर्म बढ़ा; और वे तेरे धर्म को प्राप्त न करें। 28 उनका नाम जीवन की पुस्तक में से काटा जाए, और धर्मियोंके संग लिखा न जाए।। 29 परन्तु मैं तो दु:खी और पीड़ित हूं, इसलिथे हे परमेश्वर तू मेरा उद्धार करके मुझे ऊंचे स्थान पर बैठा। 30 मैं गीत गाकर तेरे नाम की स्तुति करूंगा, और धन्यवाद करता हुआ तेरी बड़ाई करूंगा। 31 यह यहोवा को बैल से अधिक, वरन सींग और खुरवाले बैल से भी अधिक भाएगा। 32 नम्र लोग इसे देखकर आनन्दित होंगे, हे परमेश्वर के खोजियोंतुम्हारा मन हरा हो जाए। 33 क्योंकि यहोवा दरिद्रोंकी ओर कान लगाता है, और अपके लोगोंको जो बन्धुए हैं तुच्छ नही जानता।। 34 स्वर्ग और पृथ्वी उसकी स्तुति करें, और समुद्र अपके सब जीव जन्तुओं समेत उसकी स्तुति करे। 35 क्योंकि परमेश्वर सिरयोन का उद्धार करेगा, और यहूदा के नगरोंको फिर बसाएगा; और लोग फिर वहां बसकर उसके अधिक्कारनेी हो जाएंगे। 36 उसके दासोंको वंश उसको अपके भाग में पाएगा, और उसके नाम के प्रेमी उस में वास करेंगे।।
1 हे परमेश्वर मुझे छुड़ाने के लिथे, हे यहोवा मेरी सहाथता करने के लिथे फुर्ती कर! 2 जो मेरे प्राण के खोजी हैं, उनकी आशा टूटे, और मुंह काला हो जाए! जो मेरी हानि से प्रसन्न होते हैं, वे पीछे हटाए और निरादर किए जाएं। 3 जो कहते हैं, आहा, आहा, वे अपक्की लज्जा के मारे उलटे फेरे जाएं।। 4 जितने तुझे ढूंढ़ते हैं, वे सब तेरे कारण हर्षित और आनन्दित हों! और जो तेरा उद्धार चाहते हैं, वे निरन्तर कहते रहें, कि परमेश्वर की बड़ाई हो। 5 मैं तो दीन और दरिद्र हूं; हे परमेश्वर मेरे लिथे फुर्ती कर! तू मेरा सहाथक और छुड़ानेवाला है; हे यहोवा विलम्ब न कर!
1 हे यहोवा मैं तेरा शरणागत हूं; मेरी आशा कभी टूटने न पाए! 2 तू तो धर्मी है, मुझे छुड़ा और मेरा उद्धार कर; मेरी ओर कान लगा, और मेरा उद्धार कर! 3 मेरे लिथे सनातन काल की चट्टान का धाम बन, जिस में मैं नित्य जा सकूं; तू ने मेरे उद्धार की आज्ञा तो दी है, क्योंकि तू मेरी चट्टान और मेरा गढ़ ठहरा है।। 4 हे मेरे परमेश्वर दुष्ट के, और कुटिल और क्रूर मनुष्य के हाथ से मेरी रक्षा कर। 5 क्योंकि हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूं; बचपन से मेरा आधार तू है। 6 मैं गर्भ से निकलते ही, तुझ से सम्भाला गया; मुझे मां की कोख से तू ही ने निकाला; इसलिथे मैं नित्य तेरी स्तुति करता रहूंगा।। 7 मैं बहुतोंके लिथे चमत्कार बना हूं; परन्तु तू मेरा दृढ़ शरणस्थान है। 8 मेरे मुंह से तेरे गुणानुवाद, और दिन भर तेरी शोभा का वर्णन बहुत हुआ करे। 9 बुढ़ापे के समय मेरा त्याग न कर; जब मेरा बल घटे तब मुझ को छोड़ न दे। 10 क्योंकि मेरे शत्रु मेरे विषय बातें करते हैं, और जो मेरे प्राण की ताक में हैं, वे आपस में यह सम्मति करते हैं, कि 11 परमेश्वर ने उसको छोड़ दिया है; उसका पीछा करके उसे पकड़ लो, क्योंकि उसका कोई छुड़ानेवाला नहीं।। 12 हे परमेश्वर, मुझ से दूर न रह; हे मेरे परमेश्वर, मेरी सहाथता के लिथे फुर्ती कर! 13 जो मेरे प्राण के विरोधी हैं, उनकी आशा टूटे और उनका अन्त हो जाए; जो मेरी हानि के अभिलाषी हैं, वे नामधराई और अनादर में गड़ जाएं। 14 मैं तो निरन्तर आशा लगाए रहूंगा, और तेरी स्तुति अधिक अधिक करता जाऊंगा। 15 मैं अपके मुंह से तेरे धर्म का, और तेरे किए हुए उद्धार का वर्णन दिन भर करता रहूंगा, परन्तु उनका पूरा ब्योरा जाना भी नहीं जाता। 16 मैं प्रभु यहोवा के पराक्रम के कामोंका वर्णन करता हुआ आऊंगा, मैं केवल तेरे ही धर्म की चर्चा किया करूंगा।। 17 हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्चर्य कर्मोंका प्रचार करता आया हूं। 18 इसलिथे हे परमेश्वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगोंको तेरा बाहुबल और सब उत्पन्न होनेवालोंको तेरा पराक्रम सुनाऊं। 19 और हे परमेश्वर, तेरा धर्म अति महान है।। तू जिस ने महाकार्य किए हैं, हे परमेवर तेरे तुल्य कौन है? 20 तू ने तो हम को बहुत से कठिन कष्ट दिखाए हैं परन्तु अब तू फिर से हम को जिलाएगा; और पृथ्वी के गहिरे गड़हे में से उबार लेगा। 21 तू मेरी बड़ाई को बढ़ाएगा, और फिरकर मुझे शान्ति देगा।। 22 हे मेरे परमेश्वर, मैं भी तेरी सच्चाई को धन्यवाद सारंगी बजाकर गाऊंगा; हे इस्राएल के पवित्रा मैं वीणा बजाकर तेरा भजन गाऊंगा। 23 जब मैं तेरा भजन गाऊंगा, तब अपके मुंह से और अपके प्राण से भी जो तू ने बचा लिया है, जयजयकार करूंगा। 24 और मैं तेरे धर्म की चर्चा दिन भर करता रहूंगा; क्योंकि जो मेरी हानि के अभिलाषी थे, उनकी आशा टूट गई और मुंह काले हो गए हैं।।
1 हे परमेश्वर, राजा को अपना नियम बता, राजपुत्रा को अपना धर्म सिखला! 2 वह तेरी प्रजा का न्याय धर्म से, और तेरे दी लोगोंका न्याय ठीक ठीक चुकाएगा। 3 पहाडोंऔर पहाड़ियोंसे प्रजा के लिथे, धर्म के द्वारा शान्ति मिला करेगी 4 वह प्रजा के दीन लोगोंका न्याय करेगा, और दरिद्र लोगोंको बचाएगा; और अन्धेर करनेवालोंको चूर करेगा।। 5 जब तक सूर्य और चन्द्रमा बने रहेंगे तब तक लोग पीढ़ी- पीढ़ी तेरा भय मानते रहेंगे। 6 वह घास की खूंटी पर बरसनेवाले मेंह, और भूमि सींचनेवाली झाड़ियोंके समान होगा। 7 उसके दिनोंमें धर्मी फूले फलेंगे, और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा, तब तक शान्ति बहुत रहेगी।। 8 वह समुद्र से समुद्र तक और महानद से पृथ्वी की छोर तक प्रभुता करेगा। 9 उसके साम्हने जंगल के रहनेवाले घुटने टेकेंगे, और उसके शत्रु मिट्टी चाटेंगे। 10 तर्शीश और द्वीप द्वीप के राजा भेंट ले आएंगे, शेबा और सबा दोनोंके राजा द्रव्य पहुंचाएंगे। 11 सब राजा उसको दण्डवत् करेंगे, जाति जाति के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।। 12 क्योंकि वह दोहाई देनेवाले दरिद्र को, और दु:खी और असहाथ मनुष्य का उद्धार करेगा। 13 वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रोंके प्राणो को बचाएगा। 14 वह उनके प्राणोंको अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लोहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा।। 15 वह तो जीवित रहेगा और शेबा के सोने में से उसको दिया जाएगा। लोग उसके लिथे नित्य प्रार्थना करेंगे; और दिन भर उसको धन्य कहते हरेंगे। 16 देश में पहाड़ोंकी चोटियोंपर बहुत से अन्न होगा; जिसकी बालें लबानोन के देवदारूओं की नाईं झूमेंगी; और नगर के लोग घास की नाई लहलहाएंगे। 17 उसका नाम सदा सर्वदा बना रहेगा; जब तक सूर्य बना रहेगा, तब तक उसका नाम नित्य नया होता रहेगा, और लोग अपके को उसके कारण धन्य गिनेंगे, सारी जातियां उसको भाग्यवान कहेंगी।। 18 धन्य है, यहोवा परमेश्वर जो इस्राएल का परमेश्वर है; आश्चर्य कर्म केवल वही करता है। 19 उसका महिमायुक्त नाम सर्वदा धन्य रहेगा; और सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण होगी। आमीन फिर आमीन।। 20 यिशै के पुत्रा दाऊद की प्रार्थना समाप्त हुई।।
1 सचमुच इस्त्राएल के लिथे अर्थात् शुद्ध मनवालोंके लिथे परमेश्वर भला है। 2 मेरे डग तो उखड़ना चाहते थे, मेरे डग फिसलने ही पर थे। 3 क्योंकि जब मैं दुष्टोंका कुशल देखता था, तब उन घमण्डियोंके विषय डाह करता था।। 4 क्योंकि उनकी मृत्यु में बेधनाएं नहीं होतीं, परन्तु उनका बल अटूट रहता है। 5 उनको दूसरे मनुष्योंकी नाईं कष्ट नहीं होता; और और मनुष्योंके समान उन पर विपत्ति नहीं पड़ती। 6 इस कारण अहंकार उनके गले का हार बना है; उनका ओढ़ना उपद्रव है। 7 उनकी आंखें चर्बीं से झलकती हैं, उनके मन की भवनाएं उमण्डती हैं। 8 वे ठट्ठा मारते हैं, और दुष्टता से अन्धेर की बात बोलते हैं; 9 वे डींग मारते हैं। वे मानोंस्वर्ग में बैठे हुए बोलते हैं, और वे पृथ्वी में बोलते फिरते हैं।। 10 तौभी उसकी प्रजा इधर लौट आएगी, और उनको भरे हुए प्याले का जल मिलेगा। 11 फिर वे कहते हैं, ईश्वर कैसे जानता है? क्या परमप्रधान को कुछ ज्ञान है? 12 देखो, थे तो दुष्ट लोग हैं; तौभी सदा सुभागी रहकर, धन सम्पत्ति बटोरते रहते हैं। 13 निश्चय, मैं ने अपके हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपके हाथोंको निर्दोषता में धोया है; 14 क्योंकि मैं दिन भर मार खाता आया हूं और प्रति भोर को मेरी ताड़ना होती आई है।। 15 यदि मैं ने कहा होता कि मैं ऐसा ही कहूंगा, तो देख मैं तेरे लड़कोंकी सन्तान के साथ क्रूरता का व्यवहार करता, 16 जब मैं सोचने लगा कि इसे मैं कैसे समझूं, तो यह मेरी दृष्टि में अति कठिन समस्या थी, 17 जब तक कि मैं ने ईश्वर के पवित्रा स्थान में जाकर उन लोगोंके परिणाम को न सोचा। 18 निश्चय तू उन्हें फिसलनेवाले स्थानोंमें रखता है; और गिराकर सत्यानाश कर देता है। 19 अहा, वे क्षण भर में कैसे उजड़ गए हैं! वे मिट गए, वे घबराते घबराते नाश हो गए हैं। 20 जैसे जागनेहारा स्वप्न को तुच्छ जानता है, वैसे ही हे प्रभु जब तू उठेगा, तब उनको छाया से समझकर तुच्छ जानेगा।। 21 मेरा मन तो चिड़चिड़ा हो गया, मेरा अन्त:करण छिद गया था, 22 मैं तो पशु सरीखा था, और समझता न था, मैं तेरे संग रहकर भी, पशु बन गया था। 23 तौभी मैं निरन्तर तेरे संग ही था; तू ने मेरे दहिने हाथ को पकड़ रखा। 24 तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपके पास रखेगा। 25 स्वर्ग में मेरा और कौन है? तेरे संग रहते हुए मैं पृथ्वी पर और कुछ नहीं चाहता। 26 मेरे हृदय और मन दोनोंतो हार गए हैं, परन्तु परमेश्वर सर्वदा के लिथे मेरा भाग और मेरे हृदय की चट्टान बना है।। 27 जो तुझ से दूर रहते हैं वे तो नाश होंगे; जो कोई तेरे विरूद्ध व्यभिचार करता है, उसको तू विनाश करता है। 28 परन्तु परमेश्वर के समीप रहना, यही मेरे लिथे भला है; मैं ने प्रभु यहोवा को अपना शरणस्थान माना है, जिस से मैं तेरे सब कामोंको वर्णन करूं।।
1 हे परमेश्वर, तू ने हमें क्योंसदा के लिथे छोड़ दिया है? तेरी कोपाग्नि का धुआं तेरी चराई की भेंड़ोंके विरूद्ध क्योंउठ रहा है? 2 अपक्की मण्डली को जिसे तू ने प्राचीनकाल में मोल लिया था, और अपके निज भाग का गोत्रा होने के लिथे छुड़ा लिया था, और इस सिरयोन पर्वत को भी, जिस पर तू ने वास किया था, स्मारण कर! 3 अपके डग सनातन की खंडहर की ओर बढ़ा; अर्थात् उन सब बुराइयोंकी ओर जो शत्राृ ने पवित्रास्थान में किए हैं।। 4 तेरे द्रोही तेरे सभास्थान के बीच गरजते रहे हैं; उन्होंने अपक्की ही ध्वजाओं को चिन्ह ठहराया है। वे उन मनुष्योंके समान थे 5 जो घने वन के पेड़ोंपर कुल्हाड़े चलाते हैं। 6 और अब वे उस भवन की नक्काशी को, कुल्हाडियोंऔर हथौड़ोंसे बिलकुल तोड़े डालते हैं। 7 उन्होंने तेरे पवित्रास्थान को आग में झोंक दिया है, और तेरे नाम के निवास को गिराकर अशुद्ध कर डाला है। 8 उन्होंने मन में कहा है कि हम इनको एकदक दबा दें; उन्होंने इस देश में ईश्वर के सब सभास्थानोंकोंफूंक दिया है।। 9 हम को हमारे निशान नहीं देख पड़ते; अब कोई नबी नहीं रहा, न हमारे बीच कोई जानता है कि कब तक यह दशा रहेगी। 10 हे परमेश्वर द्रोही कब तक नामधराई करता रहेगा? क्या शत्रु, तेरे नाम की निन्दा सदा करता रहेगा? 11 तू अपना दहिना हाथ क्योंरोके रहता है? उसे अपके पांजर से निकाल कर उनका अन्त कर दे।। 12 परमेश्वर तो प्राचीनकाल से मेरा राजा है, वह पृथ्वी पर उद्धार के काम करता आया है। 13 तू ने अपक्की शक्ति से समुद्र को दो भाग कर दिया; तू ने जल में मगरमच्छोंके सिक्कों फोड़ दिया। 14 तू ने तो लिव्यातानोंके सिर टुकड़े टुकड़े करके जंगली जन्तुओं को खिला दिए। 15 तू ने तो सोता खोलकर जल की धारा बहाई, तू ने तो बारहमासी नदियोंको सुखा डाला। 16 दिन तेरा है रात भी तेरी है; सूर्य और चन्द्रमा को तू ने स्थिर किया है। 17 तू ने तो पृथ्वी के सब सिवानोंको ठहराया; धूपकाल और जाड़ा दोनोंतू ने ठहराए हैं।। 18 हे यहोवा स्मरण कर, कि शत्रु ने नामधराई ही है, और मूढ़ लोगोंने तेरे नाम की निन्दा की है। 19 अपक्की पिण्डुकी के प्राण को वनपशु के वश में न कर; अपके दी जनोंको सदा के लिथे न भूल 20 अपक्की वाचा की सुधि ले; क्योंकि देश के अन्धेरे स्थान अत्याचार के घरोंसे भरपूर हैं। 21 पिसे हुए जन को निरादर होकर लौटना न पके; दीन दरिद्र लोग तेरे नाम की स्तुति करने पाएं।। 22 हे परमेश्वर उठ, अपना मुक मा आप ही लड़; तेरी जो नामधराई मूढ़ से दिन भर होती रहती है, उसे स्मरण कर। 23 अपके द्रोहियोंका बड़ा बोल न भूल, तेरे विरोधियोंको कोलाहल तो निरन्तर उठता रहता है।
1 हे परमेश्वर हम तेरा धन्यवाद करते, हम तेरा नाम धन्यवाद करते हैं; क्योंकि तेरा नाम प्रगट हुआ है, तेरे आश्चर्यकर्मोंका वर्णन हो रहा है।। 2 जब ठीक समय आएगा तब मैं आप ही ठीक ठीक न्याय करूंगा। 3 पृथ्वी अपके सब रहनेवालोंसमेत गल रही है, मैं ने उसके खम्भोंको स्थिर कर दिया है। 4 मैं ने घमंडियोंसे कहा, घमंड मत करो, और दुष्टोंसे, कि सींग ऊंचा मत करो; 5 अपना सींग बहुत ऊंचा मत करो, न सिर उठाकर ढिठाई की बात बोलो।। 6 क्योंकि बढ़ती न तो पूरब से न पच्छिम से, और न जंगल की ओर से आती है; 7 परन्तु परमेश्वर ही न्यायी है, वह एक को घटाता और दूसरे को बढ़ाता है। 8 यहोवा के हाथ में एक कटोरा है, जिस में का दाखमधु झागवाला है; उस में मसाला मिला है, और वह उस में से उंडेलता है, निश्चय उसकी तलछट तक पृथ्वी के सब दृष्ट लोग पी जाएंगे।। 9 परन्तु मैं तो सदा प्रचार करता रहूंगा, मैं याकूब के परमेश्वर का भजन गांऊगा। 10 दुष्टोंके सब सींगोंको मैं काट डालूंगा, परन्तु धर्मी के सींग ऊंचे किए जाएंगे।
1 परमेश्वर यहूदा में जाना गया है, उसका नाम इस्राएल में महान हुआ है। 2 और उसका मण्डप शालेम में, और उसका धाम सिरयोन में है। 3 वहां उस ने चमचमाते तीरोंको, और ढाल ओर तलवार को तोड़कर, निदान लड़ाई ही को तोड़ डाला है।। 4 हे परमेश्वर तू तो ज्योतिमय है; तू अहेर से भरे हुए पहाड़ोंसे अधिक उत्तम और महान है। 5 दृढ़ मनवाले लुट गए, और भरी नींद में पके हैं; 6 और शूरवीरोंमें से किसी का हाथ न चला। हे याकूब के परमेश्वर, तेरी घुड़की से, रथोंसमेत घोड़े भारी नींद में पके हैं। 7 केवल तू ही भययोग्य है; और जब तू क्रोध करने लगे, तब तेरे साम्हने कौन खड़ा रह सकेगा? 8 तू ने स्वर्ग से निर्णय सुनाया है; पृथ्वी उस समय सुनकर डर गई, और चुप रही, 9 जब परमेश्वर न्याय करने को, और पृथ्वी के सब नम्र लोगोंका उद्धार करने को उठा।। 10 निश्चय मनुष्य की जलजलाहट तेरी स्तुति का कारण हो जाएगी, और जो जलजलाहट रह जाए, उसको तू रोकेगा। 11 अपके परमेश्वर यहोवा की मन्नत मानो, और पूरी भी करो; वह जो भय के योग्य है, उसके आस पास के सब उसके लिथे भेंट ले आएं। 12 वह तो प्रधानोंका अभिमान मिटा देगा; वह पृथ्वी के राजाओं को भययोग्य जान पड़ता है।।
1 मैं परमेश्वर की दोहाई चिल्ला चिल्लाकर दूंगा, मैं परमेश्वर की दोहाई दूंगा, और वह मेरी ओर कान लगाएगा। 2 संकट के दिन मैं प्रभु की खोज में लगा रहा; रात को मेरा हाथ फैला रहा, और ढीला न हुआ, मुझ में शांति आई ही नहीं। 3 मैं परमेश्वर का स्मरण कर करके कहरता हूं; मैं चिन्ता करते करते मूर्छित हो चला हूं। (सेला) 4 तू मुझे झपक्की लगने नहीं देता; मैं ऐसा घबराया हूं कि मेरे मुंह से बात नहीं निकलती।। 5 मैं प्राचीनकाल के दिनोंको, और युग युग के वर्षोंको सोचा है। 6 मैं रात के समय अपके गीत को स्मरण करता; और मन में ध्यान करता हूं, और मन में भली भांति विचार करता हूं: 7 क्या प्रभु युग युग के लिथे छोड़ देगा; और फिर कभी प्रसन्न न होगा? 8 क्या उसकी करूणा सदा के लिथे जाती रही? क्या उसका वचन पीढ़ी पीढ़ी के लिथे निष्फल हो गया है? 9 क्या ईश्वर अनुग्रह करना भूल गया? क्या उस ने क्रोध करके अपक्की सब दया को रोक रखा है? (सेला) 10 मैने कहा यह तो मेरी दुर्बलता ही है, परन्तु मैं परमप्रधान के दहिने हाथ के वर्षोंको विचारता हूं।। 11 मैं याह के बड़े कामोंकी चर्चा करूंगा; निश्चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्भुत कामोंको स्मरण करूंगा। 12 मैं तेरे सब कामोंपर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामोंको सोचूंगा। 13 हे परमेश्वर तेरी गति पवित्राता की है। कौन सा देवता परमेश्वर के तुल्य बड़ा है? 14 अद्भुत काम करनेवाला ईश्वर तू ही है, तू ने अपके देश देश के लोगोंपर अपक्की शक्ति प्रगट की है। 15 तू ने अपके भुजबल से अपक्की प्रजा, याकूब और यूसुफ के वंश को छुड़ा लिया है।। (सेला) 16 हे परमेश्वर समुद्र ने तुझे देखा, समुद्र तुझे देखकर ड़र गया, गहिरा सागर भी कांप उठा। 17 मेघोंसे बड़ी वर्षा हुई; आकाश से शब्द हुआ; फिर तेरे तीर इधर उधर चले। 18 बवणडर में तेरे गरजने का शब्द सुन पड़ा था; जगत बिजली से प्रकाशित हुआ; पृथ्वी कांपी और हिल गई। 19 तेरे मार्ग समुद्र में है, और तेरा रास्ता गहिरे जल में हुआ; और तेरे पांवोंके चिन्ह मालम नहीं होते। 20 तू ने मूसा और हारून के द्धारा, अपक्की प्रजा की अगुवाई भेड़ोंकी सी की।।
1 हे मेरे लागो, मेरी शिक्षा सुनो; मेरे वचनोंकी ओर कान लगाओ! 2 मैं अपना मूंह नीतिवचन कहने के लिथे खोलूंगा; मैं प्राचीकाल की गुप्त बातें कहूंगा, 3 जिन बातोंको हम ने सुना, ओर जान लिया, और हमारे बाप दादोंने हम से वर्णन किया है। 4 उन्हे हम उनकी सन्तान से गुप्त न रखेंगें, परन्तु होनहार पीढ़ी के लोगोंसे, यहोवा का गुणानुवाद और उसकी सामर्थ और आश्चर्यकर्मोंका वर्णन करेंगें।। 5 उस ने तो याकूब में एक चितौनी ठहराई, और इस्त्राएल में एक व्यवस्था चलाई, जिसके विषय उस ने हमारे पितरोंको आज्ञा दी, कि तुम इन्हे अपके अपके लड़केवालोंको बताना; 6 कि आनेवाली पीढ़ी के लोग, अर्थात जो लड़केवाले उत्पन्न होनेवाले हैं, वे इन्हे जानें; और अपके अपके लड़केवालोंसे इनका बखान करने में उद्यत हों, जिस से वे परमेश्वर का आस्त्रा रखें, 7 और ईश्वर के बड़े कामोंको भूल न जाएं, परन्तु उसकी आज्ञाओं का पालन करते रहें; 8 और अपके पितरोंके समान न हों, क्योंकि उस पीढ़ी के लोग तो हठीले और झगड़ालू थे, और उन्होंने अपना मन स्थिर न किया था, और न उनकी आत्मा ईश्वर की ओर सच्ची रही।। 9 एप्रेमयोंने तो शस्त्राधारी और धनुर्धारी होने पर भी, युठ्ठ के समय पीठ दिखा दी। 10 उन्हो ने परमेश्वर की वाचा पूरी नहीं की, और उसकी व्यवस्था पर चलने से इनकार किया। 11 उन्हो ने उसके बड़े कामोंको और जो आश्चर्यकर्म उस ने उनके साम्हने किए थे, उनको भुला दिया। 12 उस ने तो उनके बापदादोंके सम्मुख मिस्त्रा देश के सोअन के मैदान में अद्भुत कर्म किए थे। 13 उस ने समुद्र को दो भाग करके उन्हे पार कर दिया, और जल को ढ़ेर की नाई खड़ा कर दिया। 14 और उस ने दिन को बादल के खम्भोंसे और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्धारा उनकी अगुवाई की। 15 वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उनको मानो गहिरे जलाशयोंसे मनमाने पिलाता था। 16 उस ने चट्टान से भी धाराएं निकालीं और नदियोंका सा जल बहाथा।। 17 तौभी वे फिर उसके विरूद्ध अघिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरूद्ध उठते रहे। 18 और अपक्की चाह के अनुसार भोजन मांगकर मन ही मन ईश्वर की पक्कीक्षा की। 19 वे परमेश्वर के विरूद्ध बोले, और कहने लगे, क्या ईश्वर जंगल में मेज लगा सकता है? 20 उस ने चट्टान पर मारके जल बहा तो दिया, और धाराएं उमण्ड़ चक्की, परन्तु क्या वह रोटी भी दे सकता है? क्या वह अपक्की प्रजा के लिथे मांस भी तैयार कर सकता? 21 यहोवा सुनकर क्रोध से भर गया, तब याकूब के बीच आग लगी, और इस्त्राएल के विरूद्ध क्रोध भड़का; 22 इसलिए कि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं रखा था, न उसकी उठ्ठार करने की शक्ति पर भरोसा किया। 23 तौभी उस ने आकाश को आज्ञा दी, और स्वर्ग के ठ्ठारोंको खोला; 24 और उनके लिथे खाने को मान बरसाया, और उन्हे स्वर्ग का अन्न दिया। 25 उनको शूरवीरोंकी सी रोटी मिली; उस ने उनको मनमाना भोजन दिया। 26 उस ने आकाश में पुरवाई को चलाया, और अपक्की शक्ति से दक्खिनी बहाई; 27 और उनके लिथे मांस धूलि की नाई बहुत बरसाया, और समुद्र के बालू के समान अनगिनित पक्षी भेजे; 28 और उनकी छावनी के बीच में, उनके निवासोंके चारोंओर गिराए। 29 और वे खाकर अति तृप्त हुए, और उस ने उनकी कामना पूरी की। 30 उनकी कामना बनी ही रही, उनका भोजन उनके मुंह ही में था, 31 कि परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़का, और उस ने उनके हष्टपुष्टोंको घात किया, और इस्त्राएल के जवानोंको गिरा दिया।। 32 इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए; और परमेश्वर के आश्चर्यकर्मोंकी प्रतीति न की। 33 तब उस ने उनके दिनोंको व्यर्थ श्रम में, और उनके वर्षोंको धबराहट में कटवाया। 34 जब जब वह उन्हे घात करने लगता, तब तब वे उसको पूछते थे; और फिरकर ईश्वर को यत्न से खोजते थे। 35 और उनको स्मरण होता था कि परमेश्वर हमारी चट्टान है, और परमप्रधान ईश्वर हमारा छुड़ानेवाला है। 36 तौभी उन्होंने उस से चापलूसी की; वे उस से झूठ बोले। 37 क्योंकि उनका ह्यदय उसकी ओर दृढ़ न था; न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे। 38 परन्तु वह जो दयालु है, वह अधर्म को ढांपता, और नाश नहीं करता; वह बारबार अपके क्रोध को ठण्डा करता है, और अपक्की जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं देता। 39 उसको स्मरण हुआ कि थे नाशमान हैं, थे वायु के समान हैं जो चक्की जाती और लौट नहीं आती। 40 उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उस से बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया! 41 वे बारबार ईश्वर की पक्कीक्षा करते थे, और इस्त्राएल के पवित्रा को खेदित करते थे। 42 उन्होने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उस ने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था; 43 कि उस ने क्योंकर अपके चिन्ह मिस्त्रा में, और अपके चमत्कार सोअन के मैदान में किए थे। 44 उस ने तो मिस्त्रियोंकी नहरोंको लोहू बना डाला, और वे अपक्की नदियोंका जल पी न सके। 45 उस ने उनके बीच में डांस भेजे जिन्होंने उन्हे काट खाया, और मेंढक भी भेजे, जिन्होंने उनका बिगाड़ किया। 46 उस ने उनकी भूमि की उपज कीड़ोंको, और उनकी खेतीबारी टिड्डयोंको खिला दी थी। 47 उस ने उनकी दाखलताओं को ओेलोंसे, और उनके गूलर के पेड़ोंको बड़े बड़े पत्थ्र बरसाकर नाश किया। 48 उस ने उनके पशुओं को ओलोंसे, और उनके ढोरोंको बिजलियोंसे मिटा दिया। 49 उस ने उनके ऊपर अपना प्रचणड क्रोध और रोष भड़काया, और उन्हे संकट में डाला, और दुखदाई दूतोंका दल भेजा। 50 उस ने अपके क्रोध का मार्ग खोला, और उनके प्राणोंको मृत्यु से न बचाया, परन्तु उनको मरी के वश में कर दिया। 51 उस ने मिस्त्रा के सब पहिलौठोंको मारा, जो हाम के डेरोंमें पौरूष के पहिले फल थे; 52 परन्तु अपक्की प्रजा को भेड़- बकरियोंकी नाई पयान कराया, और जंगल में उनकी अगुवाई पशुओं के झुण्ड की सी की। 53 तब वे उसके चलाने से बेखटके चले और उनको कुछ भय न हुआ, परन्तु उनके शत्रु समुद्र में डूब गए। 54 और उस ने उनको अपके पवित्रा देश के सिवाने तक, इसी पहाड़ी देश में पहुंचाया, जो उस ने अपके दहिने हाथ से प्राप्त किया था। 55 उस ने उनके साम्हने से अन्यजातियोंको भगा दिया; और उनकी भूमि को डोरी से माप मापकर बांट दिया; और इस्त्राएल के गोत्रोंको उनके डेरोंमें बसाया।। 56 तौभी उन्होने परमप्रधान परमेश्वर की पक्कीक्षा की और उस से बलवा किया, और उसकी चितौनियोंको न माना, 57 और मुड़कर अपके पुरखाओं की नाई विश्वासघात किया; उन्होंने निकम्मे धनुष की नाई धोखा दिया। 58 क्योंकि उन्होंने ऊंचे स्थान बनाकर उसको रिस दिलाई, और खुदी हुई मुर्तियोंके द्वारा उस में जलन उपजाई। 59 परमेश्वर सुनकर रोष से भर गया, और उस ने इस्त्राएल को बिलकुल तज दिया। 60 उस ने शीलो के निवास, अर्थात् उस तम्बु को जो उस ने मनुष्योंके बीच खडा किया था, त्याग दिया, 61 और अपक्की सामर्थ को बन्धुआई में जाने दिया, और अपक्की शोभा को द्रोही के वश में कर दिया। 62 उस ने अपक्की प्रजा को तलवार से मरवा दिया, और अपके निज भाग के लोगोंपर रोष से भर गया। 63 उन के जवान आग से भस्म हुए, और उनकी कुमारियोंके विवाह के गीत न गाए गए। 64 उनके याजक तलवार से मारे गए, और उनकी विधवाएं रोने न पाई। 65 तब प्रभु मानो नींद से चौंक उठा, और ऐसे वीर के समान उठा जो दाखमधु पीकर ललकारता हो। 66 और उस ने अपके द्रोहियोंको मारकर पीछे हटा दिया; और उनकी सदा की नामधराई कराई।। 67 फिर उस ने यूसुफ के तप्बु को तज दिया; और एप्रैम के गोत्रा को न चुना; 68 परन्तु यहूदा ही के गोत्रा को, और अपके प्रिय सिरयोन पर्वत को चुन लिया। 69 उस ने अपके पवित्रास्थान को बहुत ऊंचा बना दिया, और पृथ्वी के समान स्थिर बनाया, जिसकी नेव उस ने सदा के लिथे डाली है। 70 फिर उसने अपके दास दाऊद को चुनकर भेड़शालाओं में से ले लिया; 71 वह उसको बच्चेवाली भेड़ोंके पीछे पीछे फिरने से ले आया कि वह उसकी प्रजा याकूब की अर्थात उसके निज भाग इस्त्राएल की चरवाही करे। 72 तब उस ने खरे मन से उनकी चरवाही की, और अपके हाथ की कुशलता से उनकी अगुवाई की।।
1 हे परमेश्वर अन्यजातियां तेरे निज भग में घुस आई; उन्होंने तेेरे पवित्रा मन्दिर को अशुठ्ठ किया; और यरूशलेम को खंडहर कर दिया है। 2 उन्होंने तेरे दासोंकी लोथोंको आकाश के पक्षियोंका आहार कर दिया, और तेरे भक्तोंका मांस वनपशुओें को खिला दिया है। 3 उन्होंने उनका लोहू यरूशलेम के चारोंओर जल की नाई बहाथा, और उनको मिट्टी देनेवाला कोई न था। 4 पड़ोसियोंके बीच हमारी नामधराई हुई; चारोंओर के रहनेवाले हम पर हंसते, और ठट्ठा करते हैं।। 5 हे यहोवा, तू कब तक लगातार क्रोध करता रहेगा? तुझ में आग की सी जलन कब तक भड़कती रहेगी? 6 जो जातियां तुझ को नहीं जानती, और जिन राज्योंके लोग तुझ से प्रार्थना नहीं करते, उन्ही पर अपक्की सब जलजलाहट भड़का! 7 क्योंकि उन्होंने याकूब को निगल लिया, और उसके वासस्थान को उजाड़ दिया है। 8 हमारी हानि के लिथे हमारे पुरखाओं के अधर्म के कामोंको स्मरण न कर; तेरी दया हम पर शीघ्र हो, क्योंकि हम बड़ी दुर्दशा में पके हैं। 9 हे हमारे उठ्ठारकर्त्ता परमेश्वर, अपके नाम की महिमा के निमित हमारी सहाथता कर; और अपके नाम के निमित हम को छुड़ाकर हमारे पापोंको ढांप दे। 10 अनयजातियां क्योंकहने पाएं कि उनका परमेश्वर कहां रहा? अन्यजातियोंके बीच तेरे दासोंके खून का पलटा लेना हमारे देखते उन्हें मालूम हो जाए।। 11 बन्धुओं का कराहना तेरे कान तक पहुंचे; घात होनेवालोंको अपके भुजबल के द्वारा बचा। 12 और हे प्रभु, हमारे पड़ोसियोंने जो तेरी निन्दा की है, उसका सातगुणा बदला उनको दे! 13 तब हम जो तेरी प्रजा और तेरी चराई की भेड़ें हैं, तेरा धन्यवाद सदा करते रहेंगे; और पीढ़ी से पीढ़ी तक तेरा गुणानुवाद करते रहेंगें।।
1 हे इस्त्राएल के चरवाहे, तू जो यूसुफ की अगुवाई भेड़ोंकी सी करता है, कान लगा! तू जो करूबोंपर विराजमान है, अपना तेज दिखा! 2 एप्रैम, बिन्यामीन, और मनश्शे के साम्हने अपना पराक्रम दिखाकर, हमारा उठ्ठार करने को आ! 3 हे परमेश्वर, हम को ज्योंके त्योंकर दे; और अपके मुख का प्रकाश चमका, तब हमारा उठ्ठार हो जाएगा! 4 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, तू कब तक अपक्की प्रजा की प्रार्थना पर क्रोधित रहेगा? 5 तू ने आंसुओं को उनका आहार कर दिया, और मटके भर भरके उन्हें आंसु पिलाए हैं। 6 तू हमें हमारे पड़ोसियोंके झगड़ने का कारण कर देता है; और हमारे शत्रु मनमाने ठट्ठा करते हैं।। 7 हे सेनाओं के परमेश्वर, हम को ज्योंके त्योंकर दे; और अपके मुख का प्रकाश हम पर चमका, तब हमारा उठ्ठार हो जाएगा।। 8 तू मि से एक दाखलता ले आया; और अन्यजातियोंको निकालकर उसे लगा दिया। 9 तू ने उसके लिथे स्थान तैयार किया है; और उस ने जड़ पकड़ी और फैलकर देश को भर दिया। 10 उसकी छाया पहाड़ोंपर फैल गई, और उसकी डालियां ईश्वर के देवदारोंके समान हुई; 11 उसकी शाखाएं समुद्र तक बढ़ गई, और उसके अंकुर महानद तक फैल गए। 12 फिर तू ने उसके बाड़ोंको क्योंगिरा दिया, कि सब बटोही उसके फलोंको तोड़ते है? 13 वनसूअर उसको नाश किए डालता है, और मैदान के सब पशु उसे चर जाते हैं।। 14 हे सेनाओं के परमेश्वर, फिर आ! स्वर्ग से ध्यान देकर देख, और इस दाखलता की सुधि ले, 15 थे पौधा तू ने अपके दहिने हाथ से लगाया, और जो लता की शाखा तू ने अपके लिथे दृढ़ की है। 16 वह जल गई, वह कट गई है; तेरी घुड़की से वे नाश होते हैं। 17 तेरे दहिने हाथ के सम्भाले हुअ पुरूष पर तेरा हाथ रखा रहे, उस आदमी पर, जिसे तू ने अपके लिथे दृढ़ किया है। 18 तब हम लोग तुझ से न मुड़ेंगे: तू हम को जिला, और हम तुझ से प्रार्थना कर सकेंगे। 19 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हम को ज्योंका त्योंकर दे! और अपके मुख का प्रकाश हम पर चमका, तब हमारा उठ्ठार हो जाएगा!
1 परमेश्वर जो हमारा बल है, उसका गीत आनन्द से गाओ; याकूब के परमेश्वर का जयजयकार करो! 2 भजन उठाओ, डफ और मधुर बजनेवाली वीणा और सारंगी को ले आओ। 3 नथे चाँद के दिन, और पूणमासी को हमारे पर्व के दिन नरसिंगा फुको। 4 क्योंकि यह इस्त्राएल के लिथे विधि, और याकूब के परमेश्वर का ठहराया हुआ नियम है। 5 इसको उस ने यूसुफ में चितौनी की रीति पर उस समय चलाया, जब वह मिस्त्र देश के विरूद्ध चला।। वहां मैं ने एक अनजानी भाषा सुनी; 6 मैं ने उनके कन्धोंपर से बोझ को उतार दिया; उनका टोकरी ढोना छुट गया। 7 तू ने संकट में पड़कर पुकारा, तब मैं ने तुझे छुड़ाया; बादल गरजने के गुप्त स्थान में से मैं ने तेरी सुनी, और मरीबा नाम सोते के पास तेरी पक्कीक्षा की। (सेला) 8 हे मेरी प्रजा, सुन, मैं तुझे चिता देता हूं! हे इस्त्राएल भला हो कि तू मेरी सुने! 9 तेरे बीच में पराया ईश्वर न हो; और न तू किसी पराए देवता को दणडवत् करना! 10 तेरा परमेश्वर यहोवा मैं हूं, जो तुझे मिस्त्र देश से निकाल लाया है। तू अपना मुंह पसार, मैं उसे भर दूंगा।। 11 परन्तु मेरी प्रजा ने मेरी न सुनी; इस्त्राएल ने मुझ को न चाहा। 12 इसलिथे मैं ने उसको उसके मन के हठ पर छोड़ दिया, कि वह अपक्की ही युक्तियोंके अनुसार चले। 13 यदि मेरी प्रजा मेरी सुने, यदि इस्त्राएल मेरे मार्गोंपर चले, 14 तो क्षण भर में उनके शत्रुओं को दबाऊं, और अपना हाथ उनके द्रोहयोंके विरूद्ध चलाऊं। 15 यहोवा के बैरी तो उस के वश में हो जाते, और वे सदाकाल बने रहते हैं। 16 और वह उनको उत्तम से उत्तम गेहूं खिलाता, और मैं चट्टान में के मधु से उनको तृप्त करूं।।
1 परमेश्वर की सभा में परमेश्वर ही खड़ा है; वह ईश्वरोंके बीच में न्याय करता है। 2 तुम लोग कब तक टेढ़ा न्याय करते और दुष्टोंका पक्ष लेते रहोगे? 3 कंगाल और अनाथोंका न्याय चुकाओ, दीन दरिद्र का विचार धर्म से करो। 4 कंगाल और निर्धन को बचा लो; दुष्टोंके हाथ से उन्हें छुड़ाओ।। 5 वे न तो कुछ समझते और न कुछ बूझते हैं, परन्तु अन्धेरे में चलते फिरते रहते हैं; पृथ्वी की पूरी नीव हिल जाती है।। 6 मैं ने कहा था कि तुम ईश्वर हो, और सब के सब परमप्रधान के पुत्रा हो; 7 तौभी तुम मनुष्योंकी नाई मरोगे, और किसी प्रधान के समान गिर जाओगे।। 8 हे परमेश्वर उठ, पृथ्वी का न्याय कर; क्योंकि तू ही सब जातियोंको अपके भाग में लेगा!
1 हे परमेश्वर मौन न रह; हे ईश्वर चुप न रह, और न शांत रह! 2 क्योंकि देख तेरे शत्रु धूम मचा रहे हैं; और तेरे बैरियोंने सिर उठाया है। 3 वे चतुराई से तेरी प्रजा की हानि की सम्मति करते, और तेरे रक्षित लोगोंके विरूद्ध युक्तियां निकालते हैं। 4 उन्होंने कहा, आओ, हम उनको ऐसा नाश करें कि राज्य भी मिट जाए; और इस्त्राएल का नाम आगे को स्मरण न रहे। 5 उन्होंने एक मन होकर युक्ति निकाली है, और तेरे ही विरूद्ध वाचा बान्धी है। 6 थे तो एदोम के तम्बूवाले और इश्माइली, मोआबी और हुग्री, 7 गबाली, अम्मोनी, अमालेकी, और सोर समेत पलिश्ती हैं। 8 इनके संग अश्शूरी भी मिल गए हैं; उन से भी लोतवंशियोंको सहारा मिला है। 9 इन से ऐसा कर जैसा मिद्यानियोंसे, और कीशोन नाले में सीसरा और याबीन से किया था, जो एन्दोर में नाश हुए, 10 और भूमि के लिथे खाद बन गए। 11 इनके रईसोंको ओरेब और जाएब सरीखे, और इनके सब प्रधानोंको जेबह और सल्मुन्ना के समान कर दे, 12 जिन्होंने कहा था, कि हम परमेश्वर की चराइयोंके अधिक्कारनेी आप ही हो जाएं।। 13 हे मेरे परमेश्वर इनको बवन्डर की धूलि, वा पवन से उड़ाए हुए भूसे के समान कर दे। 14 उस आग की नाई जो वन को भस्म करती है, और उस लौ की नाई जो पहाड़ोंको जला देती है, 15 तू इन्हे अपक्की आंधी से भाग दे, और अपके बवन्डर से घबरा दे! 16 इनके मुंह को अति लज्जित कर, कि हे यहोवा थे तेरे नाम को ढूंढ़ें। 17 थे सदा के लिथे लज्जित और घबराए रहें इनके मुंह काले हों, और इनका नाश हो जाए, 18 जिस से यह जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।।
1 हे सेनाओं के यहोवा, तेरे निवास क्या ही प्रिय हैं! 2 मेरा प्राण यहोवा के आंगनोंकी अभिलाषा करते करते मूर्र्छित हो चला; मेरा तन मन दोंनो जीवते ईश्वर को पुकार रहे।। 3 हे सेनाओं के यहोवा, हे मेरे राजा, और मेरे परमेश्वर, तेरी वेदियोंमे गौरैया ने अपना बसेरा और शूपाबेनी ने घोंसला बना लिया है जिस में वह अपके बच्चे रखे। 4 क्या ही धन्य हैं वे, जो तेरे भवन में रहते हैं; वे तेरी स्तुति निरन्तर करते रहेंगे।। 5 क्या ही धन्य है, वह मनुष्य जो तुझ से शक्ति पाता है, और वे जिनको सिरयोन की सड़क की सुधि रहती है। 6 वें रोने की तराई में जाते हुए उसको सोतोंका स्थान बनाते हैं; फिर बरसात की अगली वृष्टि उसमें आशीष ही आशीष उपजाती है। 7 वे बल पर बल पाते जाते हैं; उन में से हर एक जन सिरयोन में परमेश्वर को अपना मुंह दिखाएगा।। 8 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन, हे याकूब के परमेश्वर, कान लगा! 9 हे परमेश्वर, हे हमारी ढ़ाल, दृष्टि कर; और अपके अभिषिक्ति का मुख देख! 10 क्योंकि तेरे आंगनोंमें का एक दिन और कहीं के हजार दिन से उत्तम है। दुष्टोंके डेरोंमें वास करने से अपके परमेश्वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है। 11 क्योंकि यहोवा परमेश्वर सूर्य और ढाल है; यहोवा अनुग्रह करेगा, और महिमा देगा; और जो लोग खरी चाल चलते हैं; उन से वह कोई अच्छा पदार्थ रख न छोड़ेगा। 12 हे सेनाओं के यहोवा, क्या ही धन्य वह मनुष्य है, जो तुझ पर भरोसा रखता है!
1 हे यहोवा, तू अपके देश पर प्रसन्न हुआ, याकूब को बन्धुआई से लौटा ले आया है। 2 तू ने अपक्की प्रजा के अधर्म को क्षमा किया है; और उसके सब पापोंको ढांप दिया है। 3 तू ने अपके रोष को शान्त किया है; और अपके भड़के हुए कोप को दूर किया है।। 4 हे हमारे उठ्ठारकर्त्ता परमेश्वर हम को फेर, और अपना क्रोध हम पर से दूर कर! 5 क्या तू हम पर सदा कोपित रहेगा? क्या तू पीढ़ी से पीढ़ी तक कोप करता रहेगा? 6 क्या तू हम को फिर न जिलाएगा, कि तेरी प्रजा तुझ में आनन्द करे? 7 हे यहोवा अपक्की करूणा हमें दिखा, और तू हमारा उठ्ठार कर।। 8 मैं कान लगाए रहूंगा, कि ईश्वर यहोवा क्या कहता है, वह तो अपक्की प्रजा से जो उसके भक्त है, शान्ति की बातें कहेगा; परन्तु वे फिरके मूर्खता न करने लगें। 9 निश्चय उसके डरवैयोंके उठ्ठार का समय निकट है, तब हमारे देश में महिमा का निवास होगा।। 10 करूणा और सच्चाई आपस में मिल गई हैं; धर्म और मेल ने आपस में चुम्बन किया हैं। 11 पृथ्वी में से सच्चाई उगती और स्वर्ग से धर्म झुकता है। 12 फिर यहोवा उत्तम पदार्थ देगा, और हमारी भूमि अपक्की उपज देगी। 13 धर्म उसके आगे आगे चलेगा, और उसके पांवोंके चिन्होंको हमारे लिथे मार्ग बनाएगा।।
1 हे यहोवा कान लगाकर मेरी सुन ले, क्योंकि मैं दीन और दरिद्र हूं। 2 मेरे प्राण की रक्षा कर, क्योंकि मैं भक्त हूं; तू मेरा परमेश्वर है, इसलिथे अपके दास का, जिसका भरोसा तुझ पर है, उठ्ठार कर। 3 हे प्रभु मुझ पर अनुग्रह कर, क्योंकि मैं तुझी को लगातार पुकारता रहता हूं। 4 अपके दास के मन को आनन्दित कर, क्योंकि हे प्रभु, मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं। 5 क्योंकि हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है, और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभोंके लिथे तू अति करूणामय है। 6 हे यहोवा मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा, और मेरे गिड़गिड़ाने को ध्यान से सुन। 7 संकट के दिन मैं तुझ को पुकारूंगा, क्योंकि तू मेरी सुन लेगा।। 8 हे प्रभु देवताओं में से कोई भी तेरे तुल्य नहीं, और ने किसी के काम तेरे कामोंके बराबर हैं। 9 हे प्रभु जितनी जातियोंको तू ने बनाया है, सब आकर तेरे साम्हने दणडवत् करेंगी, और तेरे नाम की महिमा करेंगी। 10 क्योंकि तू महान् और आश्चर्यकर्म करनेवाला है, केवल तू ही परमेश्वर है। 11 हे यहोवा अपना मार्ग मुझे दिखा, तब मैं तेरे सत्य मार्ग पर चलूंगा, मुझ को एक चित्त कर कि मैं तेरे नाम का भय मानूं। 12 हे प्रभु हे मेरे परमेश्वर मैं अपके सम्पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा, और तेरे नाम की महिमा सदा करता रहूंगा। 13 क्योंकि तेरी करूणा मेरे ऊपर बड़ी है; और तू ने मुझ को अधोलोक की तह में जाने से बचा लिया है।। 14 हे परमेश्वर अभिमानी लोग तो मेरे विरूद्ध उठे हैं, और बलात्कारियोंका समाज मेरे प्राण का खोजी हुआ है, और वे तेरा कुछ विचार नहीं रखते। 15 परन्तु प्रभु दयालु और अनुग्रहकारी ईश्वर है, तू विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करूणामय है। 16 मेरी ओर फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर; अपके दास को तू शक्ति दे, और अपक्की दासी के पुत्रा का उठ्ठार कर।। 17 मुझे भलाई का कोई लक्षण दिखा, जिसे देखकर मेरे बैरी निराश हों, क्योंकि हे यहोवा तू ने आप मेरी सहाथता की और मुझे शान्ति दी है।।
1 उसकी नेव पवित्रा पर्वतोंमें है; 2 और यहोवा सिरयोन के फाटकोंको याकूब के सारे निवासोंसे बढ़कर प्रीति रखता है। 3 हे परमेश्वर के नगर, तेरे विषय महिमा की बातें कही गई हैं। 4 मैं अपके जान- पहचानवालोंसे रहब और बाबेल की भी चर्चा करूंगा; पलिश्त, सोर और कूश को देखो, यह वहां उत्पन्न हुआ था। 5 और सिरयोन के विषय में यह कहा जाएगा, कि अमुक अमुक मनुष्य उस में उत्पन्न हुआ था; और परमप्रधान आप ही उसको स्थिर रखेगा। 6 यहोेवा जब देश देश के लोगोंके नाम लिखकर गिन लेगा, तब यह कहेगा, कि यह वहां उत्पन्न हुआ था।। 7 गवैथे और नृतक दोनोंकहेंगे कि हमारे सब सोते तुझी में पाए जाते हैं।।
1 हे मेरे उठ्ठारकर्त्ता परमेश्वर यहोवा, मैं दिन को और रात को तेरे आगे चिल्लाता आया हूं। 2 मेरी प्रार्थना तुझ तक पहुंचे, मेरे चिल्लाने की ओर कान लगा! 3 क्योंकि मेरा प्राण क्लेश में भरा हुआ है, और मेरा प्राण अधोलोक के निकट पहुंचा है। 4 मैं कबर में पड़नेवालोंमें गिना गया हूं; मैं बलहीन पुरूष के समान हो गया हूं। 5 मैं मुर्दोंके बीच छोड़ा गया हूं, और जो घात होकर कबर में पके हैं, जिनको तू फिर स्मरण नहीं करता और वे तेरी सहाथता रहित हैं, उनके समान मैं हो गया हूं। 6 तू ने मुझे गड़हे के तल ही में, अन्धेरे और गहिरे स्थान में रखा है। 7 तेरी जलजलाहट मुझी पर बनी हुई है, और तू ने अपके सब तरंगोंसे मुझे दु:ख दिया है; 8 तू ने मेरे पहिचानवालोंको मुझ से दूर किया है; और मुझ को उनकी दृष्टि में घिनौना किया है। मैं बन्दी हूं और निकल नही सकता; 9 दु:ख भोगते भोगते मेरी आंखे धुन्धला गई। हे यहोवा मैं लगातार तुझे पुकारता और अपके हाथ तेरी ओर फैलाता आया हूं। 10 क्या तू मुर्दोंके लिथे अदभुत् काम करेगा? क्या मरे लोग उठकर तेरा धन्यवाद करेंगे? 11 क्या कबर में तेरी करूणा का, और विनाश की दशा में तेरी सच्चाई का वर्णन किया जाएगा? 12 क्या तेरे अदभुत् काम अन्धकार में, वा तेरा धर्म विश्वासघात की दशा में जाना जाएगा? 13 परन्तु हे यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी है; और भोर को मेरी प्रार्थना तुझ तक पहुंचेगी। 14 हे यहोवा, तू मुझ को क्योंछोड़ता है? तू अपना मुख मुझ से क्योंछिपाता रहता है? 15 मैं बचपन ही से दु:खी वरन अधमुआ हूं, तुझ से भय खाते मैं अति व्याकुल हो गया हूं। 16 तेरा क्रोध मुझ पर पड़ा है; उस भय से मैं मिट गया हूं। 17 वह दिन भर जल की नाई मुझे घेरे रहता है; वह मेरे चारोंओर दिखाई देता है। 18 तू ने मित्रा और भाईबन्धु दोनोंको मुझ से दूर किया है; और मेरे जान- पहिचानवालोंको अन्धकार में डाल दिया है।।
1 मैं यहोवा की सारी करूणा के विषय सदा गाता रहूंगा; मैं तेरी सच्चाई पीढ़ी पीढ़ी तक जताता रहूंगा। 2 क्योंकि मैं ने कहा है, तेरी करूणा सदा बनी रहेगी, तू स्वर्ग में अपक्की सच्चाई को स्थिर रखेगा। 3 मैं ने अपके चुने हुए से वाचा बान्धी है, मैं ने अपके दास दाऊद से शपथ खाई है, 4 कि मैं तेरे वंश को सदा स्थिर रखूंगा; और तेरी राजगद्दी को पीढ़ी पीढ़ी तक बनाए रखूंगा। 5 हे यहोवा, स्वर्ग में तेरे अद्भुत काम की, और पवित्रोंकी सभा में तेरी सच्चाई की प्रशंसा होगी। 6 क्योंकि आकाशमण्डल में यहोवा के तुल्य कौन ठहरेगा? बलवन्तोंके पुत्रोंमें से कौन है जिसके साथ यहोवा की उपमा दी जाएगी? 7 ईश्वर पवित्रोंकी गोष्ठी में अत्यन्त प्रतिष्ठा के योग्य, और अपके चारोंओर सब रहनेवालोंसे अधिक भययोग्य है। 8 हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, हे याह, तेरे तुल्य कौन सामर्थी है? तेरी सच्चाई तो तेरे चारोंओर है! 9 समुद्र के गर्व को तू ही तोड़ता है; जब उसके तरंग उठते हैं, तब तू उनको शान्त कर देता है। 10 तू ने रहब को घात किए हुए के समान कुचल डाला, और अपके शत्रुओं को अपके बाहुबल से तितर बितर किया है। 11 आकाश तेरा है, पृथ्वी भी तेरी है; जगत और जो कुछ उस में है, उसे तू ही ने स्थिर किया है। 12 उत्तर और दक्खिन को तू ही ने सिरजा; ताबोर और हेर्मोन तेरे नाम का जयजयकार करते हैं। 13 तेरी भुजा बलवन्त है; तेरा हाथ शक्तिमान और तेरा दहिना हाथ प्रबल है। 14 तेरे सिंहासन का मूल, धर्म और न्याय है; करूणा और सच्चाई तेरे आगे आगे चलती है। 15 क्या ही धन्य है वह समाज जो आनन्द के ललकार को पहिचानता है; हे हयोवा वे लोग मेरे मुख के प्रकाश में चलते हैं, 16 वे तेरे नाम के हेतु दिन भर मगन रहते हैं, और तेरे धर्म के कारण महान हो जाते हैं। 17 क्योंकि तू उनके बल की शोभा है, और अपक्की प्रसन्नता से हमारे सींग को ऊंचा करेगा। 18 क्योंकि हमारी ढाल यहोवा की ओर से है हमारा राजा इस्राएल के पवित्रा की ओर से है।। 19 एक समय तू ने अपके भक्त को दर्शन देकर बातें की; और कहा, मैं ने सहाथता करने का भार एक वीर पर रखा है, और प्रजा में से एक को चुनकर बढ़ाया है। 20 मैं ने अपके दास दाऊद को लेकर, अपके पवित्रा तेल से उसका अभिषेक किया है। 21 मेरा हाथ उसके साथ बना रहेगा, और मेरी भुजा उसे दृढ़ रखेगी। 22 शत्रु उसको तंग करने न पाएगा, और न कुटिल जल उसको दु:ख देने पाएगा। 23 मैं उसके द्रोहियोंको उसके साम्हने से नाश करूंगा, और उसके बैरियोंपर विपत्ति डालूंगा। 24 परन्तु मेरी सच्चाई और करूणा उस पर बनी रहेंगी, और मेरे नाम के द्वारा उसका सींग ऊंचा हो जाएगा। 25 मैं समुद्र को उसके हाथ के नीचे और महानदोंको उसके दहिने हाथ के नीचे कर दूंगा। 26 वह मुझे पुकारके कहेगा, कि तू मेरा पिता है, मेरा ईश्वर और मेरे बचने की चट्टान है। 27 फिर मैं उसको अपना पहिलौठा, और पृथ्वी के राजाओं पर प्रधान ठहराऊंगा। 28 मैं अपक्की करूणा उस पर सदा बनाए रहूंगा, और मेरी वाचा उसके लिथे अटल रहेगी। 29 मैं उसके वंश को सदा बनाए रखूंगा, और उसकी राजगद्दी स्वर्ग के समान सर्वदा बनी रहेगी। 30 यदि उसके वंश के लोग मेरी व्यवस्था को छोड़ें और मेरे नियमोंके अनुसार न चलें, 31 यदि वे मेरी विधियोंका उल्लंघन करें, और मेरी आज्ञाओं को न मानें, 32 तो मैं उनके अपराध का दण्ड सोंटें से, और उनके अधर्म का दण्ड कोड़ोंसे दूंगा। 33 परन्तु मैं अपक्की करूणा उस पर से हटाऊंगा, और न सच्चाई त्यागकर झूठा ठहरूंगा। 34 मैं अपक्की वाचा न तोडूंगा, और जो मेरे मुंह से निकल चुका है, उसे न बदलूंगा। 35 एक बार मैं अपक्की पवित्राता की शपथ खा चुका हूं; मैं दाऊद को कभी धोखा न दूंगा। 36 उसका वंश सर्वदा रहेगा, और उसकी राजगद्दी सूर्य की नाई मेरे सम्मुख ठहरी रहेगी। 37 वह चन्द्रमा की नाईं, और आकाशमण्डल के विश्वासयोग्य साक्षी की नाई सदा बना रहेगा। 38 तौभी तू ने अपके अभिषिक्त को छोड़ा और उसे तज दिया, और उस पर अति क्रोध किया है। 39 तू अपके दास के साथ की वाचा से घिनाया, और उसके मुकुट को भूमि पर गिराकर अशुद्ध किया है। 40 तू ने उसके सब बाड़ोंको तेड़ डाला है, और उसके गढ़ोंको उजाड़ दिया है। 41 सब बटोही उसको लूट लेते हैं, और उसके पड़ोसिक्कों उसकी नामधराई होती है। 42 तू ने उसके द्रोहियोंको प्रबल किया; और उसके सब शत्रुओं को आनन्दित किया; और उसके सब शत्रुओं को आनन्दित किया है। 43 फिर तू उसकी तलवार की धार को मोड़ देता है, और युद्ध में उसके पांव जमने नहीं देता। 44 तू ने उसका तेज हर लिया है और उसके सिंहासन को भूमि पर पटक दिया है। 45 तू ने उसकी जवानी को घटाया, और उसको लज्जा से ढांप दिया है।। 46 हे यहोवा तू कब तक लगातार मूंह फेरे रहेगा, तेरी जलजलाहट कब तक आग की नाईं भड़की रहेगी।। 47 मेरा स्मरण कर, कि मैं कैसा अनित्य हूं, तू ने सब मनुष्योंको क्योंव्यर्थ सिरजा है? 48 कौन पुरूष सदा अमर रहेगा? क्या कोई अपके प्राण को अधोलोक से बचा सकता है? 49 हे प्रभु तेरी प्राचीनकाल की करूणा कहां रही, जिसके विषय में तू ने अपक्की सच्चाई की शपथ दाऊद से खाई थी? 50 हे प्रभु अपके दासोंकी नामधराई की सुधि कर; मैं तो सब सामर्थी जातियोंका बोझ लिए रहता हूं। 51 तेरे उन शत्रुओं ने तो हे यहोवा तेरे अभिषिक्त के पीछे पड़कर उसकी नामधराई की है।। 52 यहोवा सर्वदा धन्य रहेगा! आमीन फिर आमीन।।
1 हे प्रभु, तू पीढ़ी से पीढ़ी तक हमारे लिथे धाम बना है। 2 इस से पहिले कि पहाड़ उत्पन्न हुए, वा तू ने पृथ्वी और जगत की रचना की, वरन अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही ईश्वर है।। 3 तू मनुष्य को लौटाकर चूर करता है, और कहता है, कि हे आदमियों, लौट आओ! 4 क्योंकि हजार वर्ष तेरी दृष्टि में ऐसे हैं, जैसा कल का दिन जो बीत गया, वा रात का एक पहर।। 5 तू मनुष्योंको धारा में बहा देता है; वे स्वप्न से ठहरते हैं, वे भोर को बढ़नेवाली घास के समान होते हैं। 6 वह भोर को फूलती और बढ़ती है, और सांझ तक काटकर मुर्झा जाती है।। 7 क्योंकि हम तेरे क्रोध से नाश हुए हैं; और तेरी जलजलाहट से घबरा गए हैं। 8 तू ने हमारे अधर्म के कामोंसे अपके सम्मुख, और हमारे छिपे हुए पापोंको अपके मुख की ज्योति में रखा है।। 9 क्योंकि हमारे सब दिन तेरे क्रोध में बीत जाते हैं, हम अपके वर्ष शब्द की नाई बिताते हैं। 10 हमारी आयु के वर्ष सत्तर तो होते हैं, और चाहे बल के कारण अस्सी वर्ष के भी हो जाएं, तौभी उनका घमण्ड केवल नष्ट और शोक ही शोक है; क्योंकि वह जल्दी कट जाती है, और हम जाते रहते हैं। 11 तेरे क्रोध की शक्ति को और तेरे भय के योग्य रोष को कौन समझता है? 12 हम को अपके दिन गिनने की समझ दे कि हम बुद्धिमान हो जाएं।। 13 हे यहोवा लौट आ! कब तक? और अपके दासोंपर तरस खा! 14 भोर को हमें अपक्की करूणा से तृप्त कर, कि हम जीवन भर जयजयकार और आनन्द करते रहें। 15 जितने दिन तू ने हमें दु:ख देता आया, और जितने वर्ष हम क्लेश भोगते आए हैं उतने ही वर्ष हम को आनन्द दे। 16 तेरी काम तेरे दासोंको, और तेरा प्रताप उनकी सन्तान पर प्रगट हो। 17 और हमारे परमेश्वर यहोवा की मनोहरता हम पर प्रगट हो, तू हमारे हाथोंका काम हमारे लिथे दृढ़ कर, हमारे हाथोंके काम को दृढ़ कर।।
1 जो परमप्रधान के छाए हुए स्थान में बैठा रहे, वह सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएगा। 2 मैं यहोवा के विषय कहूंगा, कि वह मेरा शरणस्थान और गढ़ है; वह मेरा परमेश्वर है, मैं उस पर भरोसा रखूंगा। 3 वह तो मुझे बहेलिथे के जाल से, और महामारी से बचाएगा; 4 वह तुझे अपके पंखोंकी आड़ में ले लेगा, और तू उसके पैरोंके नीचे शरण पाएगा; उसकी सच्चाई तेरे लिथे ढाल और झिलम ठहरेगी। 5 तू न रात के भय से डरेगा, और न उस तीर से जो दिन को उड़ता है, 6 न उस मरी से जो अन्धेरे में फैलती है, और न उस महारोग से जो दिन दुपहरी में उजाड़ता है।। 7 तेरे निकट हजार, और तेरी दहिनी ओर दस हजार गिरेंगे; परन्तु वह तेरे पास न आएगा। 8 परनतु तू अपक्की आंखोंकी दृष्टि करेगा और दुष्टोंके अन्त को देखेगा।। 9 हे यहोवा, तू मेरा शरणस्थान ठहरा है। तू ने जो परमप्रधान को अपना धाम मान लिया है, 10 इसलिथे कोई विपत्ति तुझ पर न पकेगी, न कोई दु:ख तेरे डेरे के निकट आएगा।। 11 क्योंकि वह अपके दूतोंको तेरे निमित्त आज्ञा देगा, कि जहां कहीं तू जाए वे तेरी रक्षा करें। 12 वे तुझ को हाथोंहाथ उठा लेंगे, ऐसा न हो कि तेरे पांवोंमें पत्थर से ठेस लगे। 13 तू सिंह और नाग को कुचलेगा, तू जवान सिंह और अजगर को लताड़ेगा। 14 उस ने जो मुझ से स्नेह किया है, इसलिथे मैं उसको छुड़ाऊंगा; मैं उसको ऊंचे स्थान पर रखूंगा, क्योंकि उस ने मेरे नाम को जान लिया है। 15 जब वह मुझ को पुकारे, तब मैं उसकी सुनूंगा; संकट में मैं उसके संग रहूंगा, मैं उसको बचाकर उसकी महिमा बढ़ाऊंगा। 16 मैं उसको दीर्घायु से तृप्त करूंगा, और अपके किए हुए उद्धार का दर्शन दिखाऊंगा।।
1 यहोवा का धन्यवाद करना भला है, हे परमप्रधान, तेरे नाम का भजन गाना; 2 प्रात:काल को तेरी करूणा, और प्रति रात तेरी सच्चाई का प्रचार करना, 3 दस तारवाले बाजे और सारंगी पर, और वीणा पर गम्भीर स्वर से गाना भला है। 4 क्योंकि, हे यहोवा, तू ने मुझ को अपके काम से आनन्दित किया है; और मैं तेरे हाथोंके कामोंके कारण जयजयकार करूंगा।। 5 हे यहोवा, तेरे काम क्या ही बड़े है! तेरी कल्पनाएं बहुत गम्भीर है! 6 पशु समान मनुष्य इसको नहीं समझता, और मूर्ख इसका विचार नहीं करता: 7 कि दुष्ट जो घास की नाईं फूलते- फलते हैं, और सब अनर्थकारी जो प्रफुल्लित होते हैं, यह इसलिथे होता है, कि वे सर्वदा के लिथे नाश हो जाएं, 8 परन्तु हे यहोवा, तू सदा विराजमान रहेगा। 9 क्योंकि थे यहोवा, तेरे शत्रु, हां तेरे शत्रु नाश होंगे; सब अनर्थकारी तितर बितर होंगे।। 10 परन्तु मेरा सींग तू ने जंगली सांढ़ का सा ऊंचा किया है; मैं टटके तेल से चुपड़ा गया हूं। 11 और मैं अपके द्रोहियोंपर दृष्टि करके, और उन कुकर्मियोंका हाल मेरे विरूद्ध उठे थे, सुनकर सन्तुष्ट हुआ हूं।। 12 धर्मी लोग खजूर की नाई फूले फलेंगे, और लबानोन के देवदार की नाई बढ़ते रहेंगे। 13 वे यहोवा के भवन में रोपे जाकर, हमारे परमेश्वर के आंगनोंमें फूले फलेंगे। 14 वे पुराने होने पर भी फलते रहेंगे, और रस भरे और लहलहाते रहेंगे, 15 जिस से यह प्रगट हो, कि यहोवा सीधा है; वह मेरी चट्टान है, और उस में कुटिलता कुछ भी नहीं।।
1 यहोवा राजा है; उस ने माहात्म्य का पहिरावा पहिना है; यहोवा पहिरावा पहिने हुए, और सामर्थ्य का फेटा बान्धे है। इस कारण जगत स्थिर है, वह नहीं टलने का। 2 हे यहोवा, तेरी राजगद्दी अनादिकाल से स्थिर है, तू सर्वदा से है।। 3 हे यहोवा, महानदोंका कोलाहल हो रहा है, महानदोंका बड़ा शब्द हो रहा है, महानद गरजते हैं। 4 महासागर के शब्द से, और समुद्र की महातरंगोंसे, विराजमान यहोवा अधिक महान है।। 5 तेरी चितौनियां अति विश्वासयोग्य हैं; हे यहोवा तेरे भवन को युग युग पवित्राता ही शोभा देती है।।
1 हे यहोवा, हे पलटा लेनेवाले ईश्वर, हे पलटा लेनेवाले ईश्वर, अपना तेज दिखा! 2 हे पृथ्वी के न्यायी उठ; और घमण्ड़ियोंको बदला दे! 3 हे यहोवा, दुष्ट लोग कब तक, दुष्ट लोग कब तक डींग मारते रहेंगे? 4 वे बकते और ढ़िठाई की बातें बोलते हैं, सब अनर्थकारी बड़ाई मारते हैं। 5 हे यहोवा, वे तेरी प्रजा को पीस डालते हैं, वे तेरे निज भाग को दु:ख देते हैं। 6 वे विधवा और परदेशी का घात करते, और बपमूओं को मार डालते हैं; 7 और कहते हैं, कि याह न देखेगा, याकूब का परमेश्वर विचार न करेगा।। 8 तुम जो प्रजा में पशु सरीखे हो, विचार करो; और हे मूर्खोंतुम कब तक बुद्धिमान हो जाओगे? 9 जिस ने कान दिया, क्या वह आप नहीं सुनता? जिस ने आंख रची, क्या वह आप नहीं देखता? 10 जो जाति जाति को ताड़ना देता, और मनुष्य को ज्ञान सिखाता है, क्या वह न समझाएगा? 11 यहोवा मनुष्य की कल्पनाओं को तो जानता है कि वे मिथ्या हैं।। 12 हे यहा, क्या ही धन्य है वह पुरूष जिसको तू ताड़ना देता है, और अपक्की व्यवस्था सिखाता है, 13 क्योंकि तू उसको विपत्ति के दिनोंमें उस समय तक चैन देता रहता है, जब तक दुष्टोंके लिथे गड़हा नहीं खोदा जाता। 14 क्योंकि यहोवा अपक्की प्रजा को न तजेगा, वह अपके निज भाग को न छोड़ेगा; 15 परन्तु न्याय फिर धर्म के अनुसार किया जाएगा, और सारे सीधे मनवाले उसके पीछे पीछे हो लेंगे।। 16 कुकर्मियोंके विरूद्ध मेरी ओर कौन खड़ा होगा? मेरी ओर से अनर्थकारियोंका कौन साम्हना करेगा? 17 यदि यहोवा मेरा सहाथक न होता, तो क्षण भर में मुझे चुपचाप होकर रहना पड़ता। 18 जब मैं ने कहा, कि मेरा पांव फिसलने लगा है, तब हे यहोवा, तेरी करूणा ने मुझे थाम लिया। 19 जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है। 20 क्या तेरे और दुष्टोंके सिंसाहन के बीच सन्धि होगी, जो कानून की आड़ में उत्पात मचाते हैं? 21 वे धर्मी का प्राण लेने को दल बान्धते हैं, और निर्दोष को प्राणदण्ड देते हैं। 22 परन्तु यहोवा मेरा गढ़, और मेरा परमेश्वर मेरी शरण की चट्टान ठहरा है। 23 और उस ने उनका अनर्थ काम उन्हीं पर लौटाया है, और वह उन्हें उन्हीं की बुराई के द्वारा सन्यानाश करेगा; हमारा परमेश्वर यहोवा उनको सत्यानाश करेगा।।
1 आओ हम यहोवा के लिथे ऊंचे स्वर से गाएं, अपके उद्धार की चट्टान का जयजयकार करें! 2 हम धन्यवाद करते हुए उसके सम्मुख आएं, और भजन गाते हुए उसका जयजयकार करें! 3 क्योंकि यहोवा महान ईश्वर है, और सब देवताओं के ऊपर महान राजा है। 4 पृथ्वी के गहिरे स्थान उसी के हाथ में हैं; और पहाड़ोंकी चोटियां भी उसी की हैं। 5 समुद्र उसका है, और उसी ने उसको बनाया, और स्थल भी उसी के हाथ का रख है।। 6 आओ हम झुककर दण्डवत् करें, और अपके कर्ता यहोवा के साम्हने घुटने टेकें! 7 क्योंकि वही हमारा परमेश्वर है, और हम उसकी चराई की प्रजा, और उसके हाथ की भेड़ें हैं।। भला होता, कि आज तुम उसकी बात सुनते! 8 अपना अपना हृदय ऐसा कठोर मत करो, जैसा मरीबा में, वा मस्सा के दिन जंगल में हुआ था, 9 जब तुम्हारे पुरखाओं ने मुझे परखा, उन्होंने मुझ को जांचा और मेरे काम को भी देखा। 10 चालीस वर्ष तक मैं उस पीढ़ी के लोगोंसे रूठा रहा, और मैं ने कहा, थे तो भरमनेवाले मन के हैं, और इन्होंने मेरे मार्गोंको नहीं पहिचाना। 11 इस कारण मैं ने क्रोध में आकर शपथ खाई कि थे मेरे विश्रामस्थान में कभी प्रवेश न करने पाएंगे।।
1 यहोवा के लिथे एक नया गीत गाओ, हे सारी पृथ्वी के लोगोंयहोवा के लिथे गाओ! 2 यहोवा के लिथे गाओ, उसके नाम को धन्य कहो; दिन दिन उसके किए हुए उद्धार का शुभसमाचार सुनाते रहो। 3 अन्य जातियोंमें उसकी महिमा का, और देश देश के लोगोंमें उसके आश्चर्यकर्मोंका वर्णन करो। 4 क्योंकि यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है; वह तो सब देवताओं से अधिक भययोग्य है। 5 क्योंकि देश देश के सब देवता तो मूरतें ही हैं; परन्तु यहोवा ही ने स्वर्ग को बनाया है। 6 उसके चारोंऔर विभव और ऐश्वर्य है; उसके पवित्रास्थान में सामर्थ्य और शोभा है। 7 हे देश देश के कुलों, यहोवा का गुणानुवाद करो, यहोवा की महिमा और सामर्थ्य को मानो! 8 यहोवा के नाम की ऐसी महिमा करो जो उसके योग्य है; भेंट लेकर उसके आंगनोंमें आओ! 9 पवित्राता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत करो; हे सारी पृथ्वी के लोगोंउसके साम्हने कांपके रहो! 10 जाति जाति में कहो, यहोवा राजा हुआ है! और जगत ऐसा स्थिर है, कि वह टलने का नहीं; वह देश देश के लोगोंका न्याय सीधाई से करेगा।। 11 आकाश आनन्द करे, और पृथ्वी मगन हो; समुद्र और उस में की सब वस्तुएं गरज उठें; 12 मैदान और जो कुछ उस में है, वह प्रफुल्लित हो; उसी समय वन के सारे वृक्ष जयजयकार करेंगे। 13 यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह आनेवाला है। वह पृथ्वी का न्याय करने को आने वाला है, वह धर्म से जगत का, और सच्चाई से देश देश के लोगोंका न्याय करेगा।।
1 यहोवा राजा हुआ है, पृथ्वी मगन हो; और द्वीप जो बहुतेरे हैं, वह भी आनन्द करें! 2 बादल और अन्धकार उसके चारोंओर हैं; उसके सिंहासन का मूल धर्म और न्याय है। 3 उसके आगे आगे आग चलती हुइ उसके द्रोहियोंको चारोंओर भस्म करती है। 4 उसकी बिजलियोंसे जगल प्रकाशित हुआ, पृथ्वी देखकर थरथरा गई है! 5 पहाड़ यहोवा के साम्हने, मोम की नाई पिघल गए, अर्थात् सारी पृथ्वी के परमेश्वर के साम्हने।। 6 आकाश ने उसके धर्म की साक्षी दी; और देश देश के सब लोगोंने उसकी महिमा देखी है। 7 जितने खुदी हुई मूत्तियोंकी उपासना करते और मूरतोंपर फूलते हैं, वे लज्जित हों; हे सब देवताओं तुम उसी को दण्डवत् करो। 8 सिरयोन सुनकर आनन्दित हुई, और यहूदा की बेटियां मगन हुई; हे यहोवा, यह तेरे नियमोंके कारण हुआ। 9 क्योंकि हे यहोवा, तू सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है; तू सारे देवताओं से अधिक महान ठहरा है। 10 हे यहोवा के प्रेमियों, बुराई से घृणा करो; वह अपके भक्तोंके प्राणो की रक्षा करता, और उन्हें दुष्टोंके हाथ से बचाना है। 11 धर्मी के लिथे ज्योति, और सीधे मनवालोंके लिथे आनन्द बोया गया है। 12 हे धर्मियोंयहोवा के कारण आनन्दित हो; और जिस पवित्रा नाम से उसका स्मरण होता है, उसका धन्यवाद करो!
1 यहोवा के लिथे एक नया गीत गाओ, क्योंकि उस ने आश्चर्यकर्म किए है! उसके दहिने हाथ और पवित्रा भुजा ने उसके लिथे उद्धार किया है! 2 यहोवा ने अपना किया हुआ उद्धार प्रकाशित किया, उस ने अन्यजातियोंकी दृष्टि में अपना धर्म प्रगट किया है। 3 उस ने इस्राएल के घराने पर की अपक्की करूणा और सच्चाई की सुधि ली, और पृथ्वी के सब दूर दूर देशोंने हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार देखा है।। 4 हे सारी पृथ्वी के लोगोंयहोवा का जयजयकार करो; उत्साहपूर्वक जयजयकार करो, और भजन गाओ! 5 वीणा बजाकर यहोवा का भजन गाओ, वीणा बजाकर भजन का स्वर सुनाओं। 6 तुरहियां और नरसिंगे फूंक फूंककर यहोवा राजा का जयजयकार करो।। 7 समुद्र औश्र उस में की सब वस्तुएं गरज उठें; जगत और उसके निवासी महाशब्द करें! 8 नदियां तालियां बजाएं; पहाड़ मिलकर जयजयकार करें। 9 यह यहोवा के साम्हने हो, क्योंकि वह पृथ्वी का न्याय करने को आनेवाला है। वह धर्म से जगत का, और सीधाई से देश देश के लोगोंका न्याय करेगा।।
1 यहोवा राजा हुआ है; देश देश के लोग कांप उठें! वह करूबोंपर विराजमान है; पृथ्वी डोल उठे! 2 यहोवा सिरयोन में महान है; और वह देश देश के लोगोंके ऊपर प्रधान है। 3 वे तेरे महान और भययोग्य नाम का धन्यवाद करें! वह तो पवित्रा है। 4 राजा की सामर्थ्य न्याय से मेल रखती है, तू ही ने सीधाई को स्थापित किया; न्याय और धर्म को याकूब में तू ही ने चालू किया है। 5 हमारे परमेश्वर यहोवा को सराहो; और उसके चरणोंकी चौकी के साम्हने दण्डवत् करो! वह पवित्रा है! 6 उसके याजकोंमें मूसा और हारून, और उसके प्रार्थना करनेवालोंमें से शमूएल यहोवा को पुकारते थे, और वह उनकी सुन लेता था। 7 वह बादल के खम्भे में होकर उन से बातें करता था; और वे उसी चितौनियोंऔर उसकी दी हुई विधियोंपर चलते थे।। 8 हे हमारे परमेश्वर यहोवा तू उनकी सुन लेता था; तू उनके कामोंका पलटा तो लेता था तौभी उनके लिथे क्षमा करनेवाला ईश्वर था। 9 हमारे परमेश्वर यहोवा को सराहो, और उसके पवित्रा पर्वत पर दण्डवत् करो; क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा पवित्रा है!
1 हे सारी पृथ्वी के लोगोंयहोवा का जयजयकार करो! 2 आनन्द से यहोवा की आराधना करो! जयजयकार के साथ उसके सम्मुख आओ! 3 निश्चय जानो, कि यहोवा की परमेश्वर है। उसी ने हम को बनाया, और हम उसी के हैं; हम उसकी प्रजा, और उसकी चराई की भेड़ें हैं।। 4 उसके फाटकोंसे धन्यवाद, और उसके आंगनोंमें स्तुति करते हुए प्रवेश करो, उसका धन्यवाद करो, और उसके नाम को धन्य कहो! 5 क्योंकि यहोवा भला है, उसकी करूणा सदा के लिथे, और उसकी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।।
1 मैं करूणा और न्याय के विषय गाऊंगा; हे यहोवा, मैं तेरा ही भजन गाऊंगा। 2 मैं बुद्धिमानी से खरे मार्ग में चलूंगा। तू मेरे पास कब आएगा! मैं अपके घर में मन की खराई के साथ अपक्की चाल चलूंगा; 3 मैं किसी आछे काम पर चित्त न लगाऊंगा।। मैं कुमार्ग पर चलनेवालोंके काम से घिन रखता हूं; ऐसे काम में मैं न लगूंगा। 4 टेढ़ा स्वभाव मुझ से दूर रहेगा; मैं बुराई को जानूंगा भी नहीं।। 5 जो छिपकर अपके पड़ोसी की चुगली खाए, उसको मैं सत्यानाश करूंगा; जिसकी आंखें चढ़ी होंऔर जिसका मन घमण्डी है, उसकी मैं न सहूंगा।। 6 मेरी आंखें देश के विश्वासयोग्य लोगोंपर लगी रहेंगी कि वे मेरे संग रहें; जो खरे मार्ग पर चलता है वही मेरा टहलुआ होगा।। 7 जो छल करता है वह मेरे घर के भीतर न रहने पाएगा; जो झूठ बोलता है वह मेरे साम्हने बना न रहेगा।। 8 भोर ही भोर को मैं देश के सब दुष्टोंको सत्यानाश किया करूंगा, इसलिथे कि यहोवा के नगर के सब अनर्थकारियोंको नाश करूं।।
1 हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन; मेरी दोहाई तुझ तक पहुंचे! 2 मेरे संकट के दिन अपना मुख मुझ से न छिपा ले; अपना कान मेरी ओर लगा; जिस समय मैं पुकारूं, उसी समय फुर्ती से मेरी सुन ले! 3 क्योंकि मेरे दिन धुएं की नाईं उड़े जाते हैं, और मेरी हडि्डयां लुकटी के समान जल गई हैं। 4 मेरा मन झुलसी हुई घास की नाईं सूख गया है; और मैं अपक्की रोटी खाना भूल जाता हूं। 5 कहरते कहरते मेरा चमड़ा हडि्डयोंमें सट गया है। 6 मैं जंगल के धनेश के समान हो गया हूं, मैं उजड़े स्थानोंके उल्लू के समान बन गया हूं। 7 मैं पड़ा पड़ा जागता रहता हूं और गौरे के समान हो गया हूं जो छत के ऊपर अकेला बैठता है। 8 मेरे शत्रु लगातार मेरी नामधराई करते हैं, जो मेरे विराध की धुन में बावले हो रहे हैं, वे मेरा नाम लेकर शपथ खाते हैं। 9 क्योंकि मैं ने रोटी की नाईं राख खाईं और आंसू मिलाकर पानी पीता हूं। 10 यह तेरे क्रोध और कोप के कारण हुआ है, क्योंकि तू ने मुझे उठाया, और फिर फेंक दिया है। 11 मेरी आयु ढलती हुई छाया के समान है; और मैं आप घास की नाईं सूख चला हूं।। 12 परन्तु हे यहोवा, तू सदैव विराजमान रहेगा; और जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, वह पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा। 13 तू उठकर सिरयोन पर दया करेगा; क्योंकि उस पर अनुग्रह करने का ठहराया हुअ समय आ पहुंचा है। 14 क्योंकि तेरे दास उसके पत्थरोंको चाहते हैं, और उसकी धूलि पर तरस खाते हैं। 15 इसलिथे अन्यजातियां यहोवा के नाम का भय मानेंगी, और पृथ्वी के सब राजा तेरे प्रताप से डरेंगे। 16 क्योंकि यहोवा ने सिरयोन को फिर बसाया है, और वह अपक्की महिमा के साथ दिखाई देता है; 17 वह लाचार की प्रार्थना की ओर मुंह करता है, और उनकी प्रार्थना को तुच्छ नहीं जानता। 18 यह बात आनेवाली पीढ़ी के लिथे लिखी जाएगी, और एक जाति जो सिरजी जाएगी वही याह की स्तुति करेगी। 19 क्योंकि यहोवा ने अपके ऊंचे और पवित्रा स्थान से दृष्टि करके स्वर्ग से पृथ्वी की ओर देखा है, 20 ताकि बन्धुओं का कराहना सुने, और घात होनवालोंके बन्धन खोले; 21 और सिरयोन में यहोवा के नाम का वर्णन किया जाए, और यरूशलेम में उसकी स्तुति की जाए; 22 यह उस समय होगा जब देश देश, और राज्य राज्य के लोग यहोवा की उपासना करने को इकट्ठे होंगे।। 23 उस ने मुझे जीवन यात्रा में दु:ख देकर, मेरे बल और आयु को घटाया। 24 मैं ने कहा, हे मेरे ईश्वर, मुझे आधी आयु में न उठा ले, मेरे वर्ष पीढ़ी से पीढ़ी तक बने रहेंगे! 25 आदि में तू ने पृथ्वी की नेव डाली, और आकाश तेरे हाथोंका बनाया हुआ है। 26 वह तो नाश होगा, परन्तु तू बना रहेगा; और वह सब कपके के समान पुराना हो जाएगा। तू उसको वस्त्रा की नाई बदलेगा, और वह तो बदल जाएगा; 27 परन्तु तू वहीं है, और तेरे वर्षोंका अन्त नहीं होने का। 28 तेरे दासोंकी सन्तान बनी रहेगी; और उनका वंश तेरे साम्हने स्थिर रहेगा।।
1 हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्रा नाम को धन्य कहे! 2 हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह, और उसके किसी उपकार को न भूलना। 3 वही तो तेरे सब अधर्म को क्षमा करता, और तेरे सब रोगोंको चंगा करता है, 4 वही तो तेरे प्राण को नाश होने से बचा लेता है, और तेरे सिर पर करूणा और दया का मुकुट बान्धता है, 5 वही तो तेरी लालसा को उत्तम पदार्थोंसे तृप्त करता है, जिस से तेरी जवानी उकाब की नाईं नई हो जाती है।। 6 यहोवा सब पिसे हुओं के लिथे धर्म और न्याय के काम करता है। 7 उस ने मूसा को अपक्की गति, और इस्राएलियोंपर अपके काम प्रगट किए। 8 यहोवा दयालु और अनुग्रहकरी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करूणामय है। 9 वह सर्वदा वादविवाद करता न रहेगा, न उसका क्रोध सदा के लिथे भड़का रहेगा। 10 उस ने हमारे पापोंके अनुसार हम से व्यवहार नहीं किया, और न हमारे अधर्म के कामोंके अनुसार हम को बदला दिया है। 11 जैसे आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊंचा है, वैसे ही उसकी करूणा उसके डरवैयोंके ऊपर प्रबल है। 12 उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उस ने हमारे अपराधोंको हम से उतनी ही दूर कर दिया है। 13 जैसे पिता अपके बालकोंपर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपके डरवैयोंपर दया करता है। 14 क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही है।। 15 मनुष्य की आयु घास के समान होती है, वह मैदान के फूल की नाईं फूलता है, 16 जो पवन लगते ही ठहर नहीं सकता, और न वह अपके स्थान में फिर मिलता है। 17 परन्तु यहोवा की करूणा उसके डरवैयोंपर युग युग, और उसका धर्म उनके नाती- पोतोंपर भी प्रगट होता रहता है, 18 अर्थात् उन पर जो उसकी वाचा का पालन करते और उसके उपकेशोंको स्मरण करके उन पर चलते हैं।। 19 यहोवा ने तो अपना सिंहासन स्वर्ग में स्थिर किया है, और उसका राज्य पूरी सृष्टि पर है। 20 हे यहोवा के दूतों, तुम जो बड़े वीर हो, और उसके वचन के मानने से उसको पूरा करते हो उसको धन्य कहो! 21 हे यहोवा की सारी सेनाओं, हे उसके टहलुओं, तुम जो उसकी इच्छा पूरी करते हो, उसको धन्य कहो! 22 हे यहोवा की सारी सृष्टि, उसके राज्य के सब स्थानोंमें उसको धन्य कहो। हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह!
1 हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह! हे मेरे परमेश्वर यहोवा, तू अत्यन्त महान है! तू विभव और ऐश्वर्य का वस्त्रा पहिने हुए है, 2 जो उजियाले को चादर की नाई ओढ़े रहता है, और आकाश को तम्बू के समान ताने रहता है, 3 जो अपक्की अटारियोंकी कड़ियां जल में धरता है, और मेघोंको अपना रथ बनाता है, और पवन के पंखोंपर चलता है, 4 जो पवनोंको अपके दूत, और धधकती आग को अपके टहलुए बनाता है।। 5 तू ने पृथ्वी को उसकी नीव पर स्थिर किया है, ताकि वह कभी न डगमगाए। 6 तू ने उसको गहिरे सागर से ढांप दिया है जैसे वस्त्रा से; जल पहाड़ोंके ऊपर ठहर गया। 7 तेरी घुड़की से वह भाग गया; तेरे गरजने का शब्द सुनते ही, वह उतावली करके बह गया। 8 वह पहाड़ोंपर चढ़ गया, और तराईयोंके मार्ग से उस स्थान में उतर गया जिसे तू ने उसके लिथे तैयार किया था। 9 तू ने एक सिवाना ठहराया जिसको वह नहीं लांघ सकता है, और न फिरकर स्थल को ढांप सकता है।। 10 तू नालोंमें सोतोंको बहाता है; वे पहाड़ोंके बीच से बहते हैं, 11 उन से मैदान के सब जीव- जन्तु जल पीते हैं; जंगली गदहे भी अपक्की प्यास बुझा लेते हैं। 12 उनके पास आकाश के पक्षी बसेरा करते, और डालियोंके बीच में से बोलते हैं। 13 तू अपक्की अटारियोंमें से पहाड़ोंको सींचता है तेरे कामोंके फल से पृथ्वी तृप्त रहती है।। 14 तू पशुओं के लिथे घास, और मनुष्योंके काम के लिथे अन्नादि उपजाता है, और इस रीति भूमि से वह भोजन- वस्तुएं उत्पन्न करता है, 15 और दाखमधु जिस से मनुष्य का मन आनन्दित होता है, और तेल जिस से उसका मुख चमकता है, और अन्न जिस से वह सम्भल जाता है। 16 यहोवा के वृक्ष तृप्त रहते हैं, अर्थात् लबानोन के देवदार जो उसी के लगाए हुए हैं। 17 उन में चिड़ियां अपके घोंसले बनाती हैं; लगलग का बसेरा सनौवर के वृक्षोंमें होता है। 18 ऊंचे पहाड़ जंगली बकरोंके लिथे हैं; और चट्टानें शापानोंके शरणस्थान हैं। 19 उस ने नियत समयोंके लिथे चन्द्रमा को बनाया है; सूर्य अपके अस्त होने का समय जानता है। 20 तू अन्धकार करता है, तब रात हो जाती है; जिस में वन के सब जीव जन्तु घूमते फिरते हैं। 21 जवान सिंह अहेर के लिथे गरजते हैं, और ईश्वर से अपना आहार मांगते हैं। 22 सूर्य उदय होते ही वे चले जाते हैं और अपक्की मांदोंमें जा बैठते हैं। 23 तब मनुष्य अपके काम के लिथे और सन्ध्या तक परिश्रम करने के लिथे निकलता है। 24 हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है। 25 इसी प्रकार समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है, और उस में अनगिनित जलचक्की जीव- जन्तु, क्या छोटे, क्या बड़े भरे पके हैं। 26 उस में जहाज भी आते जाते हैं, और लिब्यातान भी जिसे तू ने वहां खेलने के लिथे बनाया है।। 27 इन सब को तेरा ही आसरा है, कि तू उनका आहार समय पर दिया करे। 28 तू उन्हें देता हे, वे चुन लेते हैं; तू अपक्की मुट्ठी खोलता है और वे उत्तम पदार्थोंसे तृप्त होते हैं। 29 तू मुख फेर लेता है, और वे घबरा जाते हैं; तू उनकी सांस ले लेता है, और उनके प्राण छूट जाते हैं और मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। 30 फिर तू अपक्की ओर से सांस भेजता है, और वे सिरजे जाते हैं; और तू धरती को नया कर देता है।। 31 यहोवा की महिमा सदा काल बनी रहे, यहोवा अपके कामोंसे आन्दित होवे! 32 उसकी दृष्टि ही से पृथ्वी कांप उठती है, और उसके छूते ही पहाड़ोंसे धुआं निकलता है। 33 मैं जीवन भर यहोवा का गीत गाता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा तब तक अपके परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा। 34 मेरा ध्यान करना, उसको प्रिय लगे, क्योंकि मैं तो याहेवा के कारण आनन्दित रहूंगा। 35 पापी लोग पृथ्वी पर से मिट जाएं, और दुष्ट लोग आगे को न रहें! हे मेरे मन यहोवा को धन्य कह! याह की स्तुति करो!
1 यहोवा का धन्यवाद करो, उस से प्रार्थना करो, देश देश के लोगोंमें उसके कामोंका प्रचार करो! 2 उसके लिथे गीत गाओ, उसके लिथे भजन गाओ, उसके सब आश्चर्यकर्मोंपर ध्यान करो! 3 उसके पवित्रा नाम की बढ़ाई करो; यहोवा के खोजियोंका हृदय आनन्दित हो! 4 यहोवा और उसकी सामर्थ को खोजो, उसके दर्शन के लगातार खोजी बने रहो! 5 उसके किए हु आश्चर्यकर्म स्मरण करो, उसके चमत्कार और निर्णय स्मरण करो! 6 हे उसके दास इब्राहीम के वंश, हे याकूब की सन्तान, तुम तो उसके चुने हुए हो! 7 वही हमारा परमेश्वर यहोवा है; पृथ्वी भर में उसके निर्णय होते हैं। 8 वह अपक्की वाचा को सदा स्मरण रखता आया है, यह वही वचन है जो उस ने हजार पीढ़ीयोंके लिथे ठहराया है; 9 वही वाचा जो उस ने इब्राहीम के साथ बान्धी, और उसके विषय में उस ने इसहाक से शपथ खाई, 10 और उसी को उस ने याकूब के लिथे विधि करके, और इस्राएल के लिथे यह कहकर सदा की वाचा करके दृढ़ किया, 11 कि मैं कनान देश को तुझी को दूंगा, वह बांट में तुम्हारा निज भाग होगा।। 12 उस समय तो वे गिनती में थोड़े थे, वरन बहुत ही थोड़े, और उस देश में परदेशी थे। 13 वे एक जाति से दूसरी जाति में, और एक राज्य से दूसरे राज्य में फिरते रहे; 14 परन्तु उस ने किसी मनुष्य को उन पर अन्धेर करने न दिया; और वह राजाओं को उनके निमित्त यह धमकी देता था, 15 कि मेरे अभिषिक्तोंको मत छुओं, और न मेरे नबियोंकी हानि करो! 16 फिर उस ने उस देश में अकाल भेजा, और अन्न के सब आधार को दूर कर दिया। 17 उस ने यूसुफ नाम एक पुरूष को उन से पहिले भेजा था, जो दास होने के लिथे बेचा गया था। 18 लोंगोंने उसके पैरोंमें बेड़ियां डालकर उसे दु:ख दिया; वह लोहे की सांकलोंसे जकड़ा गया; 19 जब तक कि उसकी बात पूरी न हुई तब तक यहोवा का वचन उसे कसौटी पर कसता रहा। 20 तब राजा के दूत भेजकर उसे निकलवा लिया, और देश देश के लोगोंके स्वामी ने उसके बन्धन खुलवाए; 21 उस ने उसको अपके भवन का प्रधान और अपक्की पूरी सम्पत्ति का अधिक्कारनेी ठहराया, 22 कि वह उसके हाकिमोंको अपक्की इच्छा के अनुसार कैद करे और पुरनियोंको ज्ञान सिखाए।। 23 फिर इस्राएल मि में आया; और याकूब हाम के देश में पकेदशी रहा। 24 तब उस ने अपक्की प्रजा को गिनती में बहुत बढ़ाया, और उसके द्रोहियो से अधिक बलवन्त किया। 25 उस ने मिस्त्रियोंके मन को ऐसा फेर दिया, कि वे उसकी प्रजा से बैर रखने, और उसके दासोंसे छल करने लगे।। 26 उस ने अपके दास मूसा को, और अपके चुने हुए हारून को भेजा। 27 उन्होंने उनके बीच उसकी ओर से भांति भांति के चिन्ह, और हाम के देश में चमत्कार दिखाए। 28 उस ने अन्धकार कर दिया, और अन्धिक्कारनेा हो गया; और उन्होंने उसकी बातोंको न टाला। 29 उस ने मिस्त्रियोंके जल को लोहू कर डाला, और मछलियोंको मार डाला। 30 मेंढक उनकी भूमि में वरन उनके राजा की कोठरियोंमें भी भर गए। 31 उस ने आज्ञा दी, तब डांस आ गए, और उनके सारे देश में कुटकियां आ गईं। 32 उस ने उनके लिथे जलवृष्टि की सन्ती ओले, और उनके देश में धधकती आग बरसाई। 33 और उस ने उनकी दाखलताओं और अंजीर के वृक्षोंको वरन उनके देश के सब पेड़ोंको तोड़ डाला। 34 उस ने आज्ञा दी तब अनगिनत टिडि्डयां, और कीड़े आए, 35 और उन्होंने उनके देश के सब अन्नादि को खा डाला; औश्र उनकी भूमि के सब फलोंको चट कर गए। 36 उस ने उनके देश के सब पहिलौठोंको, उनके पौरूष के सब पहिले फल को नाश किया।। 37 तब वह अपके गोत्रियोंको सोना चांदी दिलाकर निकाल लाया, और उन में से कोई निर्बल न था। 38 उनके जाने से मिस्त्रि आनन्दित हुए, क्योंकि उनका डर उन में समा गया था। 39 उस ने छाया के लिथे बादल फैलाया, और रात को प्रकाश देने के लिथे आग प्रगट की। 40 उन्होंने मांगा तब उस ने बटेरें पहुंचाई, और उनको स्वर्गीय भोजन से तृप्त किया। 41 उस ने चट्टान फाड़ी तब पानी बह निकला; और निर्जल भूमि पर नदी बहने लगी। 42 क्योंकि उस ने अपके पवित्रा वचन और अपके दास इब्राहीम को स्मरण किया।। 43 वह अपक्की प्रजा को हर्षित करके और अपके चुने हुओं से जयजयकार करोके निकाल लाया। 44 और उनको अन्यजातियोंके देश दिए; और वे और लोगोंके श्रम के फल के अधिक्कारनेी किए गए, 45 कि वे उसकी विधियोंको मानें, और उसकी व्यवस्था को पूरी करें। याह की स्तुति करो!
1 याह की स्तुति करो! यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है! 2 यहोवा के पराक्रम के कामोंका वर्णन कौन कर सकता है, न उसका पूरा गुणानुवाद कौन सुना सकता? 3 क्या ही धन्य हैं वे जो न्याय पर चलते, और हर समय धर्म के काम करते हैं! 4 हे यहोवा, अपक्की प्रजा पर की प्रसन्नता के अनुसार मुझे स्मरण कर, मेरे उद्धार के लिथे मेरी सुधि ले, 5 कि मैं तेरे चुने हुओं का कल्याण देखूं, और तेरी प्रजा के आनन्द में आनन्दित हो जाऊं; और तेरे निज भाग के संग बड़ाई करने पाऊं।। 6 हम ने तो अपके पुरखाओं की नाईं पाप किया है; हम ने कुटिलता की, हम ने दुष्टता की है! 7 मि में हमारे पुरखाओं ने तेरे आश्चर्यकर्मोंपर मन नहीं लगाया, न तेरी अपार करूणा को स्मरण रखा; उन्होंने समुद्र के तीर पर, अर्थात् लाल समुद्र के तीर पर बलवा किया। 8 तौभी उस ने अपके नाम के निमित्त उनका उद्धार किया, जिस से वह अपके पराक्रम को प्रगट करे। 9 तब उस ने लाल समुद्र को घुड़का और वह सूख गया; और वह उन्हें गहिरे जल के बीच से मानोंजंगल में से निकाल ले गया। 10 उस ने उन्हें बैरी के हाथ से उबारा, और शत्रु के हाथ से छुड़ा लिया। 11 और उनके द्रोही जल में डूब गए; उन में से एक भी न बचा। 12 तब उनहोंने उसके वचनोंका विश्वास किया; और उसकी स्तुति गाने लगे।। 13 परन्तु वे झट उसके कामोंको भूल गए; और उसकी युक्ति के लिथे न ठहरे। 14 उन्होंने जंगल में अति लालसा की और निर्जल स्थान में ईश्वर की पक्कीक्षा की। 15 तब उस ने उन्हें मुंह मांगा वर तो दिया, परन्तु उनके प्राण को सुखा दिया।। 16 उन्होंने छावनी में मूसा के, और यहोवा के पवित्रा जन हारून के विषय में डाह की, 17 भूमि फट कर दातान को निगल गई, और अबीराम के झुण्ड को ग्रस लिया। 18 और उनके झुण्ड में आग भड़क उठी; और दुष्ट लोग लौ से भस्म हो गए।। 19 उन्होंने होरब में बछड़ा बनाया, और ढली हुई मूत्ति को दण्डवत् की। 20 योंउन्होंने अपक्की महिमा अर्थात् ईश्वर को घास खानेवाले बैल की प्रतिमा से बदल डाला। 21 वे अपके उद्धारकर्ता ईश्वर को भूल गए, जिस ने मि में बड़े बड़े काम किए थे। 22 उस ने तो हाम के देश में आश्चर्यकर्म और लाल समुद्र के तीर पर भयंकर काम किए थे। 23 इसलिथे उस ने कहा, कि मैं इन्हें सत्यानाश कर डालता यदि मेरा चुना हुआ मूसा जोखिम के स्थान में उनके लिथे खड़ा न होता ताकि मेरी जलजलाहट को ठण्डा करे कहीं ऐसा न हो कि मैं उन्हें नाश कर डालूं।। 24 उन्होंने मनभावने देश को निकम्मा जाना, और उसके वचन की प्रतीति न की। 25 वे अपके तम्बुओं में कुड़कुड़ाए, और यहोवा का कहा न माना। 26 तब उस ने उनके विषय में शपथ खाई कि मैं इनको जंगल में नाश करूंगा, 27 और इनके वंश को अन्यजातियोंके सम्मुख गिरा दूंगा, और देश देश में तितर बितर करूंगा।। 28 वे पोरवाले बाल देवता को पूजने लगे और मुर्दोंको चढ़ाए हुए पशुओं का मांस खाने लगे। 29 योंउन्होंने अपके कामोंसे उसको क्रोध दिलाया और मरी उन में फूट पड़ी। 30 तब पीहास ने उठकर न्यायदण्ड दिया, जिस से मरी थम गई। 31 और यह उसके लेखे पीढ़ी से पीढ़ी तक सर्वदा के लिथे धर्म गिना गया।। 32 उन्होंने मरीबा के सोते के पास भी यहोवा का क्रोध भड़काया, और उनके कारण मूसा की हानि हुई; 33 क्योंकि उन्होंने उसकी आत्मा से बलवा किया, तब मूसा बिन सोचे बोल उठा। 34 जिन लोगोंके विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी, उनको उन्होंने सत्यानाश न किया, 35 वरन उन्हीं जातियोंसे हिलमिल गए और उनके व्यवहारोंको सीख लिया; 36 और उनकी मूत्तियोंकी पूजा करने लगे, और वे उनके लिथे फन्दा बन गई। 37 वरन उन्होंने अपके बेटे- बेटियोंको पिशाचोंके लिथे बलिदान किया; 38 और अपके निर्दोष बेटे- बेटियोंका लोहू बहाथा जिन्हें उन्होंने कनान की मूत्तियोंपर बलि किया, इसलिथे देश खून से अपवित्रा हो गया। 39 और वे आप अपके कामोंके द्वारा अशुद्ध हो गए, और अपके कार्योंके द्वारा व्यभिचारी भी बन गए।। 40 तब यहोवा का क्रोध अपक्की प्रजा पर भड़का, और उसको अपके निज भाग से घृणा आई; 41 तब उस ने उनको अन्यजातियोंके वश में कर दिया, और उनके बैरियो ने उन पर प्रभुता की। 42 उनके शत्रुओं ने उन पर अन्धेर किया, और वे उनके हाथ तले दब गए। 43 बारम्बार उस ने उन्हें छुड़ाया, परन्तु वे उसके विरूद्ध युक्ति करते गए, और अपके अधर्म के कारण दबते गए। 44 तौभी जब जब उनका चिल्लाना उसके कान में पड़ा, तब तब उस ने उनके संकट पर दृष्टि की! 45 और उनके हित अपक्की वाचा को स्मरण करके अपक्की अपार करूणा के अनुसार तरस खाया, 46 औश्र जो उन्हें बन्धुए करके ले गए थे उन सब से उन पर दया कराई।। 47 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमारा उद्धार कर, और हमें अन्यजातियोंमें से इकट्ठा कर ले, कि हम तेरे पवित्रा नाम का धन्यवाद करें, और तेरी स्तुति करते हुए तेरे विषय में बड़ाई करें।। 48 इस्राएल का परमेश्वर यहोवा अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य है! और सारी प्रजा कहे आमीन! याह की स्तुति करो।।
1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है! 2 यहोवा के छुड़ाए हुए ऐसा ही कहें, जिन्हें उस ने द्रोही के हाथ से दाम देकर छुड़ा लिया है, 3 और उन्हें देश देश से पूरब- पश्चिम, उत्तर और दक्खिन से इकट्ठा किया है।। 4 वे जंगल में मरूभूमि के मार्ग पर भटकते फिरे, और कोई बसा हुआ नगर न पाया; 5 भूख और प्यास के मारे, वे विकल हो गए। 6 तब उन्होंने संकट में यहोवा की दोहाई दी, और उस ने उनको सकेती से छुड़ाया; 7 और उनको ठीक मार्ग पर चलाया, ताकि वे बसने के लिथे किसी नगर को जा पहुंचे। 8 लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मोंके कारण, जो वह मनुष्योंके लिथे करता है, उसका धन्यवाद करें! 9 क्योंकि वह अभिलाषी जीव को सन्तुष्ट करता है, और भूखे को उत्तम पदार्थोंसे तृप्त करता है।। 10 जो अन्धिक्कारने और मृत्यु की छाया में बैठे, और दु:ख में पके और बेड़ियोंसे जकड़े हुए थे, 11 इसलिथे कि वे ईश्वर के वचनोंके विरूद्ध चले, और परमप्रधान की सम्मति को तुच्छ जाना। 12 तब उसने उनको कष्ट के द्वारा दबाया; वे ठोकर खाकर गिर पके, और उनको कोई सहाथक न मिला। 13 तब उन्होंने संकट में यहोवा की दोहाई दी, और उस न सकेती से उनका उद्धार किया; 14 उस ने उनको अन्धिक्कारने और मृत्यु की छाया में से निकाल लिया; और उनके बन्धनोंको तोड़ डाला। 15 लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मोंके कारण जो वह मनुष्योंके लिथे करता है, उसका धन्यवाद करें! 16 क्योंकि उस ने पीतल के फाटकोंको तोड़ा, और लोहे के बेण्डोंको टुकड़े टुकड़े किया।। 17 मूढ़ अपक्की कुचाल, और अधर्म के कामोंके कारण अति दु:खित होते हैं। 18 उनका जी सब भांति के भोजन से मिचलाता है, और वे मृत्यु के फाटक तक पहुंचते हैं। 19 तब वे संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं, और व सकेती से उनका उद्धार करता है; 20 वह अपके वचन के द्वारा उनको चंगा करता और जिस गड़हे में वे पके हैं, उस से निकालता है। 21 लोग यहोवा की करूणा के कारण और उन आश्चर्यकर्मोंके कारण जो वह मनुष्योंके लिथे करता है, उसका धन्यवाद करें! 22 और वे धन्यवादबलि चढ़ाएं, और जयजयकार करते हुए, उसके कामोंका वर्णन करें।। 23 जो लोग जहाजोंमें समुद्र पर चलते हैं, और महासागर पर होकर व्योपार करते हैं; 24 वे यहोवा के कामोंको, और उन आश्चर्यकर्मोंको जो वह गहिरे समुद्र में करता है, देखते हैं। 25 क्योंकि वह आज्ञा देता है, वह प्रचण्ड बयार उठकर तरंगोंको उठाती है। 26 वे आकाश तक चढ़ जाते, फिर गहराई में उतर आते हैं; और क्लेश के मारे उनके जी में जी नहीं रहता; 27 वे चक्कर खाते, और मतवाले की नाई लड़खड़ाते हैं, और उनकी सारी बुद्धि मारी जाती है। 28 तब वे संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं, और वह उनको सकेती से निकालता है। 29 वह आंधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं। 30 तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, और वह उनको मन चाहे बन्दर स्थान में पहुंचा देता है। 31 लोग यहोवा की करूणा के कारण, और वह उन आश्चर्यकर्मोंके कारण जो वह मनुष्योंके लिथे करता है, उसका धन्यवाद करें। 32 और सभा में उसको सराहें, और पुरतियोंके बैठक में उसकी स्तुति करें।। 33 वह नदियोंको जंगल बना डालता है, और जल के सोतोंको सूखी भूमि कर देता है। 34 वह फलवन्त भूमि को नोनी करता है, यह वहां के रहनेवालोंकी दुष्टता के कारण होता है। 35 वह जंगल को जल का ताल, और निर्जल देश को जल के सोते कर देता है। 36 और वहां वह भूखोंको बसाता है, कि वे बसने के लिथे नगर तैयार करें; 37 और खेती करें, और दाख की बारियां लगाएं, और भांति भांति के फल उपजा लें। 38 और वह उनको ऐसी आशीष देता है कि वे बहुत बढ़ जाते हैं, और उनके पशुओं को भी वह घटने नहीं देता।। 39 फिर अन्धेर, विपत्ति और शोक के कारण, वे घटते और दब जाते हैं। 40 और वह हाकिमोंको अपमान से लादकर मार्ग रहित जंगल में भटकाता है; 41 वह दरिद्रोंको दु:ख से छुड़ाकर ऊंचे पर रखता है, और उनको भेड़ोंके झुंड सा परिवार देता है। 42 सीधे लोग देखकर आनन्दित होते हैं; और सब कुटिल लोग अपके मुंह बन्द करते हैं। 43 जो कोई बुद्धिमान हो, वह इन बातोंपर ध्यान करेगा; और यहोवा की करूणा के कामोंपर ध्यान करेगा।।
1 हे परमेश्वर, मेरा हृदय स्थ्रि है; मैं गाऊंगा, मैं अपक्की आत्मा से भी भजन गाऊंगा। 2 हे सारंगी और वीणा जागो! मैं आप पौ फटते जाग उठूंगा! 3 हे यहोवा, मैं देश देश के लोगोंके मध्य में तेरा धन्यवाद करूंगा, और राज्य राज्य के लोगोंके मध्य में तेरा भजन गाऊंगा। 4 क्योंकि तेरी करूणा आकाश से भी ऊंची है, और तेरी सच्चाई आकाशमण्डल तक है।। 5 हे परमेश्वर, तू स्वर्ग के ऊपर हो! और तेरी महिमा सारी पृथ्वी के ऊपर हो! 6 इसलिथे कि तेरे प्रिय छुड़ाए जाएं, तू अपके दहिने हाथ से बचा ले और हमारी बिनती सुन ले! 7 परमेश्वर ने अपक्की पवित्राता में होकर कहा है, मैं प्रफुल्लित होकर शेकेम को बांट लूंगा, और सुक्कोत की तराई को नपवाऊंगा। 8 गिलाद मेरा है, मनश्शे भी मेरा है; और एप्रैम मेरे सिर का टोप है; यहूदा मेरा राजदण्ड है। 9 मोआब मेरे धोने का पात्रा है, मैं एदोम पर अपना जूता फेंकूंगा, पलिश्त पर मैं जयजयकार करूंगा।। 10 मुझे गढ़वाले नगर में कौन पहुंचाएगा? ऐदोम तक मेरी अगुवाई किस ने की हैं? 11 हे परमेश्वर, क्या तू ने हम को नहीं त्याग दिया, और हे परमेश्वर, तू हमारी सेना के साथ पयान नहीं करता। 12 द्रोहियोंके विरूद्ध हमारी सहाथता कर, क्योंकि मनुष्य का किया हुआ छुटकारा व्यर्थ है! 13 परमेश्वर की सहाथता से हम वीरता दिखाएंगे, हमारे द्रोहियोंको वही रौंदेगा।।
1 हे परमेश्वर तू जिसकी मैं स्तुति करता हूं, चुप न रह। 2 क्योंकि दुष्ट और कपक्की मनुष्योंने मेरे विरूद्ध मुंह खोला है, वे मेरे विषय में झूठ बोलते हैं। 3 और उन्होंने बैर के वचनोंसे मुझे चारोंओर घेर लिया है, और व्यर्थ मुझ से लड़ते हैं। 4 मेरे प्रेम के बदले में वे मुझ से विरोध करते हैं, परन्तु में तो प्रार्थना में लवलीन रहता हूं। 5 उन्होंने भलाई के पलटे में मुझ से बुराई की और मेरे प्रेम के बदले मुझ से बैर किया है।। 6 तू उसको किसी दुष्ट के अधिक्कारने में रख, और कोई विरोधी उसकी दहिनी ओर खड़ा रहे। 7 जब उसका न्याय किया जाए, तब वह दोषी निकले, और उसकी प्रार्थना पाप गिनी जाए! 8 उसके दिन थोड़े हों, और उसके पद को दूसरा ले! 9 उसक लड़केबाले अनाथ हो जाएं और उसकी स्त्री विधवा हो जाए! 10 और उसके लड़के मारे मारे फिरें, और भीख मांगा करे; उनको उनके उजड़े हुए घर से दूर जाकर टुकड़े मांगना पके! 11 महाजन फन्दा लगाकर, उसका सर्वस्व ले ले; और परदेशी उसकी कमाई को लूट लें! 12 कोई न हो जो उस पर करूणा करता रहे, और उसके अनाथ बालकोंपर कोई अनुग्रह न करे! 13 उसका वंश नाश हो जाए, दूसरी पीढ़ी में उसका नाम मिट जाए! 14 उसके पितरोंका अधर्म यहोवा को स्मरण रहे, और उसकी माता का पाप न मिटे! 15 वह निरन्तर यहोवा के सम्मुख रहे, कि वह उनका नाम पृथ्वी पर से मिटा डाले! 16 क्योंकि वह दुष्ट, कृपा करना भूल गया वरन दी और दरिद्र को सताता था और मार डालने की इच्छा से खेदित मनवालोंके पीछे पड़ा रहता था।। 17 वह शाप देने में प्रीति रखता था, और शाप उस पर आ पड़ा; वह आशीर्वाद देने से प्रसन्न न होता था, सो आर्शीवाद उस से दूर रहा। 18 वह शाप देना वस्त्रा की नाई पहिनता था, और वह उसके पेट में जल की नाई और उसकी हडि्डयोंमें तेल की नाई समा गया। 19 वह उसके लिथे ओढ़ने का काम दे, और फेंटे की नाईं उसकी कटि में नित्य कसा रहे।। 20 यहोवा की ओर से मेरे विरोधियोंको, और मेरे विरूद्ध बुरा कहनेवालोंको यही बदला मिले! 21 परन्तु मुझ से हे यहोवा प्रभु, तू अपके नाम के निमित्त बर्ताव कर; तेरी करूणा तो बड़ी है, सो तू मुझे छुटकारा दे! 22 क्योंकि मैं दी और दरिद्र हूं, और मेरा हृदय घायल हुआ है। 23 मैं ढलती हुई छाया की नाई जाता रहा हूं; मैं टिड्डी के समान उड़ा दिया गया हूं। 24 उपवास करते करते मेरे घुटने निर्बल हो गए; और मुझ में चर्बी न रहने से मैं सूख गया हूं। 25 मेरी तो उन लोगोंसे नामधराई होती है; जब वे मुझे देखते, तब सिर हिलाते हैं।। 26 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मेरी सहाथता कर! अपक्की करूणा के अनुसार मेरा उद्धार कर! 27 जिस से वे जाने कि यह तेरा काम है, और हे यहोवा, तू ही ने यह किया है! 28 वे कोसते तो रहें, परन्तु तू आशीष दे! वे तो उठते ही लज्जित हों, परन्तु तेरा दास आनन्दित हो! 29 मेरे विरोधियोंको अनादररूपी वस्त्रा पहिनाया जाए, और वे अपक्की लज्जा को कम्बल की नाईं ओढ़ें! 30 मैं यहोवा का बहुत धन्यवाद करूंगा, और बहुत लोगोंके बीच में उसकी स्तुति करूंगा। 31 क्योंकि वह दरिद्र की दहिनी ओर खड़ा रहेगा, कि उसको घात करनेवाले न्यायियोंसे बचाए।।
1 मेरे प्रभु से यहोवा की वाणी यह है, कि तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणोंकी चौकी न कर दूं।। 2 तेरे पराक्रम का राजदण्ड यहोवा सिरयोन से बढ़ाएगा। तू अपके शत्रुओं के बीच में शासन कर। 3 तेरी प्रजा के लोगर तेरे पराक्रम के दिन स्वेच्छाबलि बनते हैं; तेरे जवान लोग पवित्राता से शोभायमान, और भोर के गर्भ से जन्मी हुई ओस के समान तेरे पास हैं। 4 यहोवा ने शपथ खाई और न पछताएगा, कि तू मेल्कीसेदेक की रीति पर सर्वदा का याजक है।। 5 प्रभु तेरी दहिनी ओर होकर अपके क्रोध के दिन राजाओं को चूर कर देगा। 6 वह जाति जाति में न्याय चुकाएगा, रणभूमि लोथोंसे भर जाएगी; वह लम्बे चौड़े देश के प्रधान को चूर चूर कर देगा। 7 वह मार्ग में चलता हुआ नदी का जल पीएगा इस कारण वह सिर को ऊंचा करेगा।।
1 याह की स्तुति करो। मैं सीधे लोगोंकी गोष्ठी में और मण्डली में भी सम्पूर्ण मन से यहोवा का धन्यवाद करूंगा। 2 यहोवा के काम बड़े हैं, जितने उन से प्रसन्न रहते हैं, वे उन पर ध्यान लगाते हैं। 3 उसके काम का विभवमय और ऐश्वरर्यमय होते हैं, और उसका धन सदा तक बना रहेगा। 4 उस ने अपके आश्चर्यकर्मोंका स्मरण कराया है; यहोवा अनुग्रहकारी और दयावन्त है। 5 उस ने अपके डरवैयोंको आहार दिया है; वह अपक्की वाचा को सदा तक स्मरण रखेगा। 6 उस ने अपक्की प्रजा को अन्यजातियोंका भाग देने के लिथे, अपके कामोंका प्रताप दिखाया है। 7 सच्चाई और न्याय उसके हाथोंके काम हैं; उसके सब उपकेश विश्वासयोग्य हैं, 8 वे सदा सर्वदा अटल रहेंगे, वे सच्चाई और सिधाई से किए हुए हैं। 9 उस ने अपक्की प्रजा का उद्धार किया है; उस ने अपक्की वाचा को सदा के लिथे ठहराया है। उसका नाम पवित्रा और भययोग्य है। 10 बुद्धि का मूल यहोवा का भय है; जितने उसकी आज्ञाओं को मानते हैं, उनकी बुद्धि अच्छी होती है। उसकी स्तुति सदा बनी रहेगी।।
1 याह की स्तुति करो। क्या ही धन्य है वह पुरूष जो यहोवा का भय मानता है, और उसकी आज्ञाओं से अति प्रसन्न रहता है! 2 उसका वंश पृथ्वी पर पराक्रमी होगा; सीधे लोगोंकी सन्तान आशीष पाएगी। 3 उसके घर में धन सम्पत्ति रहती है; और उसका धर्म सदा बना रहेगा। 4 सीधे लोगोंके लिथे अन्धकार के बीच में ज्योति उदय होती है; वह अनुग्रहकारी, दयावन्त और धर्मी होता है। 5 जो पुरूष अनुग्रह करता और उधार देता है, उसका कल्याण होता है, वह न्याय में अपके मुक में को जीतेगा। 6 वह तो सदा तक अटल रहेगा; धर्मी का स्मरण सदा तक बना रहेगा। 7 वह बुरे समाचार से नहीं डरता; उसका हृदय यहोवा पर भरोसा रखने से स्थिर रहता है। 8 उसका हृदय सम्भला हुआ है, इसलिथे वह न डरेगा, वरन अपके द्रोहियोंपर दृष्टि करके सन्तुष्ट होगा। 9 उस ने उदारता से दरिद्रोंको दान दिया, उसका धर्म सदा बना रहेगा और उसका सींग महिमा के साथ ऊंचा किया जाएगा। 10 दुष्ट उसे देखकर कुढेगा; वह दांत पीस- पीसकर गल जाएगा; दुष्टोंकी लालसा पूरी न होगी।।
1 याह की स्तुति करो हे यहोवा के दासोंस्तुति करो, यहोवा के नाम की स्तुति करो! 2 यहोवा का नाम अब से लेकर सर्वदा तक धन्य कहा जाय! 3 उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक, यहोवा का नाम स्तुति के योग्य है। 4 यहोवा सारी जातियोंके ऊपर महान है, और उसकी महिमा आकाश से भी ऊंची है।। 5 हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कौन है? वह तो ऊंचे पर विराजमान है, 6 और आकाश और पृथ्वी पर भी, दृष्टि करने के लिथे झुकता है। 7 वह कंगाल को मिट्टी पर से, और दरिद्र को घूरे पर से उठाकर ऊंचा करता है, 8 कि उसको प्रधानोंके संग, अर्थात् अपक्की प्रजा के प्रधानोंके संग बैठाए। 9 वह बांझ को घर में लड़कोंकी आनन्द करनेवाली माता बनाता है। याह की स्तुति करो!
1 जब इस्राएल ने मि से, अर्थात् याकूब के घराने ने अन्य भाषावालोंके बीच में कूच किया, 2 तब यहूदा यहोवा का पवित्रास्थान और इस्राएल उसके राज्य के लोग हो गए।। 3 समुद्र देखकर भागा, यर्दन नदी उलटी बही। 4 पहाड़ मेढ़ोंकी नाईं उछलने लगे, और पहाड़ियां भेड़- बकरियोंके बच्चोंकी नाईं उछलने लगीं।। 5 हे समुद्र, तुझे क्या हुआ, कि तू भागा? और हे यर्दन तुझे क्या हुआ, कि तू उलठी बही? 6 हे पहाड़ोंतुम्हें क्या हुआ, कि तुम भेड़ोंकी नाईं, और हे पहाड़ियोंतुम्हें क्या हुआ, कि तुम भेड़- बकरियोंके बच्चोंकी नाईं उछलीं? 7 हे पृथ्वी प्रभु के साम्हने, हां याकूब के परमेश्वर के साम्हने थरथरा। 8 वह चट्टान को जल का ताल, चकमक के पत्थर को जल का सोता बना डालता है।।
1 हे यहोवा, हमारी नहीं, हमारी नहीं, वरन अपके ही नाम की महिमा, अपक्की करूणा और सच्चाई के निमित्त कर। 2 जाति जाति के लोग क्योंकहने पांए, कि उनका परमेश्वर कहां रहा? 3 हमारा परमेश्वर तो स्वर्ग में हैं; उस ने जो चाहा वही किया है। 4 उन लोगोंकी मूरतें सोने चान्दी ही की तो हैं, वे मनुष्योंके हाथ की बनाई हुई हैं। 5 उनक मुंह तो रहता है परन्तु वे बोल नहीं सकती; उनके आंखें तो रहती हैं परन्तु वे देख नहीं सकतीं। 6 उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकतीं; उनके नाक तो रहती हैं, परन्तु वे सूंघ नहीं सकतीं। 7 उनके हाथ तो रहते हैं, परन्तु वे स्पर्श नहीं कर सकतीं; उनके पांव तो रहते हैं, परन्तु वे चल नहीं सकतीं; और उनके कण्ठ से कुछ भी शब्द नहीं निकाल सकतीं। 8 जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनानेवाले हैं; और उन पर भरोसा रखनेवाले भी वैसे ही हो जाएंगे।। 9 हे इस्राएल यहोवा पर भरोसा रख! तेरा सहाथक और ढाल वही है। 10 हे हारून के घराने यहोवा पर भरोसा रख! तेरा सहाथक और ढाल वही है। 11 हे यहोवा के डरवैयो, यहोवा पर भरोसा रखो! तुम्हारा सहाथक और ढाल वही है।। 12 यहोवा ने हम को स्मरण किया है; वह आशीष देगा; वह इस्राएल के घराने को आशीष देगा; वह हारून के घराने को आशीष देगा। 13 क्या छोटे क्या बड़े जितने यहोवा के डरवैथे हैं, वह उन्हें आशीष देगा।। 14 यहोवा तुम को और तुम्हारे लड़कोंको भी अधिक बढ़ाता जाए! 15 यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, उसकी ओर से तुम अशीष पाए हो।। 16 स्वर्ग तो यहोवा का है, परन्तु पृथ्वी उस ने मनुष्योंको दी है। 17 मृतक जितने चुपचाप पके हैं, वे तो याह की स्तुति नहीं कर सकते, 18 परन्तु हम लोग याह को अब से लेकर सर्वदा तक धन्य कहते रहेंगे। याह की स्तुति करो!
1 मैं प्रेम रखता हूं, इसलिथे कि यहोवा ने मेरे गिड़गिड़ाने को सुना है। 2 उस ने जो मेरी ओर कान लगाया है, इसलिथे मैं जीवन भर उसको पुकारा करूंगा। 3 मृत्यु की रस्सियां मेरे चारोंओर थीं; मैं अधोलोक की सकेती में पड़ा था; मुझे संकट और शोक भोगना पड़ा। 4 तब मैं ने यहोवा से प्रार्थना की, कि हे यहोवा बिनती सुनकर मेरे प्राण को बचा ले! 5 यहोवा अनुग्रहकारी और धर्मी है; और हमारा परमेश्वर दया करनेवाला है। 6 यहोवा भोलोंकी रक्षा करता है; जब मैं बलहीन हो गया था, उस ने मेरा उद्धार किया। 7 हे मेरे प्राण तू अपके विश्रामस्थान में लौट आ; क्योंकि यहोवा ने तेरा उपकार किया है।। 8 तू ने तो मेरे प्राण को मृत्यु से, मेरी आंख को आंसू बहाने से, और मेरे पांव को ठोकर खाने से बचाया है। 9 मैं जीवित रहते हुए, अपके को यहोवा के साम्हने जानकर नित चलता रहूंगा। 10 मैं ने जो ऐसा कहा है, इसे विश्वास की कसौटी पर कस कर कहा है, कि मैं तो बहुत की दु:खित हुआ; 11 मैं ने उतावली से कहा, कि सब मनुष्य झूठें हैं।। 12 यहोवा ने मेरे जितने उपकार किए हैं, उनका बदला मैं उसको क्या दूं? 13 मैं उद्धार का कटोरा उठाकर, यहोवा से प्रार्थना करूंगा, 14 मैं यहोवा के लिथे अपक्की मन्नतें सभोंकी दृष्टि में प्रगट रूप में उसकी सारी प्रजा के साम्हने पूरी करूंगा। 15 यहोवा के भक्तोंकी मृत्यु, उसकी दृष्टि में अनमोल है। 16 हे यहोवा, सुन, मैं तो तेरा दास हूं; मैं तेरा दास, और तेरी दासी का पुत्रा हूं। तू ने मेरे बन्धन खोल दिए हैं। 17 मैं तुझ को धन्यवादबलि चढ़ाऊंगा, और यहोवा से प्रार्थना करूंगा। 18 मैं यहोवा के लिथे अपक्की मन्नतें, प्रगट में उसकी सारी प्रजा के साम्हने 19 यहोवा के भवन के आंगनोंमें, हे यरूशलेम, तेरे भीतर पूरी करूंगा। याह की स्तुति करो!
1 हे जाति जाति के सब लोगोंयहोवा की स्तुति करो! हे राज्य राज्य के सब लोगो, उसकी प्रशंसा करो! 2 क्योंकि उसकी करूणा हमारे ऊपर प्रबल हुई है; और यहोवा की सच्चाई सदा की है याह की स्तुति करो!
1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा की है! 2 इस्राएल कहे, उसकी करूणा सदा की है। 3 हारून का घराना कहे, उसकी करूणा सदा की है। 4 यहोवा के डरवैथे कहे, उसकी करूणा सदा की है। 5 मैं ने सकेती में परमेश्वर को पुकारा, परमेश्वर ने मेरी सुनकर, मुझे चौड़े स्थान में पहुंचाया। 6 यहोवा मेरी ओर है, मैं न डरूंगा। मनुष्य मेरा क्या कर सकता है? 7 यहोवा मेरी ओर मेरे सहाथकोंमें है; मैं अपके बैरियोंपर दृष्टि कर सन्तुष्ट हूंगा। 8 यहोवा की शरण लेनी, मनुष्य पर भरोसा रखने से उत्तम है। 9 यहोवा की शरण लेनी, प्रधानोंपर भी भरोसा रखने से उत्तम है।। 10 सब जातियोंने मुझ को घेर लिया है; परन्तु यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूंगा! 11 उन्होंने मुझ को घेर लिया है, नि:सन्देह घेर लिया है; परन्तु यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूंगा! 12 उन्होंने मुझे मधुमक्खियोंकी नाईं घेर लिया है, परन्तु कांटोंकी आग की नाईं वे बुझ गए; यहोवा के नाम से मैं निश्चय उन्हें नाश कर डालूंगा! 13 तू ने मुझे बड़ा धक्का दिया तो था, कि मैं गिर पडूं परन्तु यहोवा ने मेरी सहाथता की। 14 परमेश्वर मेरा बल और भजन का विषय है; वह मेरा उद्धार ठहरा है।। 15 धर्मियोंके तम्बुओं में जयजयकार और उद्धार की ध्वनि हो रही है, यहोवा के दहिने हाथ से पराक्रम का काम होता है, 16 यहोवा का दहिना हाथ महान हुआ है, यहोवा के दहिने हाथ से पराक्रम का काम होता है! 17 मैं न मरूंगा वरन जीवित रहूंगा, और परमेश्वर परमेश्वर के कामोंका वर्णन करता रहूंगा। 18 परमेश्वर ने मेरी बड़ी ताड़ना तो की है परन्तु मुझे मृत्यु के वश में नहीं किया।। 19 मेरे लिथे धर्म के द्वार खोलो, मैं उन से प्रवेश करके याह का धन्यवाद करूंगा।। 20 यहोवा का द्वार यही है, इस से धर्मी प्रवेश करने पाएंगे।। 21 हे यहोवा मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, क्योंकि तू ने मेरी सुन ली है और मेरा उद्धार ठहर गया है। 22 राजमिस्त्रियोंने जिस पत्थर को निकम्मा ठहराया था वही कोने का सिरा हो गया है। 23 यह तो यहोवा की ओर से हुआ है, यह हमारी दृष्टि में अद्भुत है। 24 आज वह दिन है जो यहोवा ने बनाया है; हम इस में मगन और आनन्दित हों। 25 हे यहोवा, बिनती सुन, उद्धार कर! हे यहोवा, बिनती सुन, सफलता दे! 26 धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है! हम ने तुम को यहोवा के घर से आशीर्वाद दिया है। 27 यहोवा ईश्वर है, और उस ने हम को प्रकाश दिया है। यज्ञपशु को वेदी के सींगोंसे रस्सिक्कों बान्धो! 28 हे यहोवा, तू मेरा ईश्वर है, मैं तेरा धन्यवाद करूंगा; तू मेरा परमेश्वर है, मैं तुझ को सराहूंगा।। 29 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है; और उसकी करूणा सदा बनी रहेगी!
1 क्या ही धन्य हैं वे जो चाल के खरे हैं, और यहोवा की व्यवस्था पर चलते हैं! 2 क्या ही धन्य हैं वे जो उसकी चितौनियोंको मानते हैं, और पूर्ण मन से उसके पास आते हैं! 3 फिर वे कुटिलता का काम नहीं करते, वे उसके मार्गोंमें चलते हैं। 4 तू ने अपके उपकेश इसलिथे दिए हैं, कि वे यत्न से माने जाएं। 5 भला होता कि तेरी विधियोंके मानने के लिथे मेरी चालचलन दृढ़ हो जाए! 6 तब मैं तेरी सब आज्ञाओं की ओर चित्त लगाए रहूंगा, और मेरी आशा न टूटेगी। 7 जब मैं तेरे धर्ममय नियमोंको सीखूंगा, तब तेरा धन्यवाद सीधे मन से करूंगा। 8 मैं तेरी विधियोंको मानूंगा: मुझे पूरी रीति से न तज! 9 जवान अपक्की चाल को किस उपाय से शुद्ध रखे? तेरे वचन के अनुसार सावधान रहने से। 10 मैं पूरे मन से तेरी खोज मे लगा हूं; मुझे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटकने न दे! 11 मैं ने तेरे वचन को अपके हृदय में रख छोड़ा है, कि तेरे विरूद्ध पाप न करूं। 12 हे यहोवा, तू धन्य है; मुझे अपक्की विधियां सिखा! 13 तेरे सब कहे हुए नियमोंका वर्णन, मैं ने अपके मुंह से किया है। 14 मैं तेरी चितौनियोंके मार्ग से, मानोंसब प्रकार के धन से हर्षित हुआ हूं। 15 मैं तेरे उपकेशोंपर ध्यान करूंगा, और तेरे मार्गोंकी ओर दृष्टि रखूंगा। 16 मैं तेरी विधियोंसे सुख पाऊंगा; और तेरे वचन को न भूलूंगा।। 17 अपके दास का उपकार कर, कि मैं जीवित रहूं, और तेरे वचन पर चलता रहूं। 18 मेरी आंखें खोल दे, कि मैं तेरी व्यवस्था की अद्भुत बातें देख सकूं। 19 मैं तो पृथ्वी पर परदेशी हूं; अपक्की आज्ञाओं को मुझ से छिपाए न रख! 20 मेरा मन तेरे नियमोंकी अभिलाषा के कारण हर समय खेदित रहता है। 21 तू ने अभिमानियोंको, जो शापित हैं, घुड़का है, वे तेरी आज्ञाओं की बाट से भटके हुए हैं। 22 मेरी नामधराई और अपमान दूर कर, क्योंकि मैं तेरी चितौनियोंको पकड़े हूं। 23 हाकिम भी बैठे हुए आपास में मेरे विरूद्ध बातें करते थे, परन्तु तेरा दास तेरी विधियोंपर ध्यान करता रहा। 24 तेरी चितौनियां मेरा सुखमूल और मेरे मन्त्री हैं।। 25 मैं धूल में पड़ा हूं; तू अपके वचन के अनुसार मुझ को जिला! 26 मैं ने अपक्की चालचलन का तुझ से वर्णन किया है और तू ने मेरी बात मान ली है; तू मुझ को अपक्की विधियां सिखा! 27 अपके उपकेशोंका मार्ग मुझे बता, तब मैं तेरे आश्यर्चकर्मोंपर ध्यान करूंगा। 28 मेरा जीवन उदासी के मारे गल चला है; तू अपके वचन के अनुसार मुझे सम्भल! 29 मुझ को झूठ के मार्ग से दूर कर; और करूणा करके अपक्की व्यवस्था मुझे दे। 30 मैं ने सच्चाई का मार्ग चुन लिया है, तेरे नियमोंकी ओर मैं चित्त लगाए रहता हूं। 31 मैं तेरी चितौनियोंमें लवलीन हूं, हे यहोवा, मेरी आशा न तोड़! 32 जब तू मेरा हियाव बढ़ाएगा, तब मैं तेरी आज्ञाओ के मार्ग में दौडूंगा।। 33 हे यहोवा, मुझे अपक्की विधियोंका मार्ग दिखा दे; तब मैं उसे अन्त तक पकड़े रहूंगा। 34 मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूंगा और पूर्ण मन से उस पर चलूंगा। 35 अपक्की आज्ञाओं के पथ में मुझ को चला, क्योंकि मैं उसी से प्रसन्न हूं। 36 मेरे मन को लोभ की ओर नहीं, अपक्की चितौनियोंही की ओर फेर दे। 37 मेरी आंखोंको व्यर्थ वस्तुओं की ओर से फेर दे; तू अपके मार्ग में मुझे जिला। 38 तेरा वचन जो तेरे भय माननेवालोंके लिथे है, उसको अपके दास के निमित्त भी पूरा कर। 39 जिस नामधराई से मैं डरता हूं, उसे दूर कर; क्योंकि तेरे नियम उत्तम हैं। 40 देख, मैं तेरे उपकेशोंका अभिलाषी हूं; अपके धर्म के कारण मुझ को जिला। 41 हे यहोवा, तेरी करूणा और तेरा किया हुआ उद्धार, तेरे वचन के अनुसार, मुझ को भी मिले; 42 तब मैं अपक्की नामधराई करनेवालोंको कुछ उत्तर दे सकूंगा, क्योंकि मेरा भरोसा, तेरे वचन पर है। 43 मुझे अपके सत्य वचन कहने से न रोक क्योंकि मेरी आशा तेरे नियमोंपर है। 44 तब मैं तेरी व्यवस्था पर लगातार, सदा सर्वदा चलता रहूंगा; 45 और मैं चोड़े स्थान में चला फिरा करूंगा, क्योंकि मैं ने तेरे उपकेशोंकी सुधि रखी है। 46 और मैं तेरी चितौनियोंकी चर्चा राजाओं के साम्हने भी करूंगा, और संकोच न करूंगा; 47 क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं के कारण सुखी हूं, और मैं उन से प्रीति रखता हूं। 48 मैं तेरी आज्ञाओं की ओर जिन में मैं प्रीति रखता हूं, हाथ फैलाऊंगा और तेरी विधियोंपर ध्यान करूंगा।। 49 जो वचन तू ने अपके दास को दिया है, उसे स्मरण कर, क्योंकि तू ने मुझे आशा दी है। 50 मेरे दु:ख में मुझे शान्ति उसी से हुई है, क्योंकि तेरे वचन के द्वारा मैं ने जीवन पाया है। 51 अभिमानियोंने मुझे अत्यन्त ठट्ठे में उड़ाया है, तौभी मैं तेरी व्यवस्था से नहीं हटा। 52 हे यहोवा, मैं ने तेरे प्राचीन नियमोंको स्मरण करके शान्ति पाई है। 53 जो दुष्ट तेरी व्यवस्था को छोड़े हुए हैं, उनके कारण मैं सन्ताप से जलता हूं। 54 जहां मैं परदेशी होकर रहता हूं, वहां तेरी विधियां, मेरे गीत गाने का विषय बनी हैं। 55 हे यहोवा, मैं ने रात को तेरा नाम स्मरण किया और तेरी व्यवस्था पर चला हूं। 56 यह मुझ से इस कारण हुआ, कि मैं तेरे उपकेशोंको पकड़े हुए था।। 57 यहोवा मेरा भाग है; मैं ने तेरे वचनोंके अनुसार चलने का निश्चय किया है। 58 मैं ने पूरे मन से तुझे मनाया है; इसलिथे अपके वचन के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर। 59 मैं ने अपक्की चालचलन को सोचा, और तेरी चितौनियोंका मार्ग लिया। 60 मैं ने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है। 61 मैं दुष्टोंकी रस्सिक्कों बन्ध गया हूं, तौभी मैं तेरी व्यवस्था को नहीं भूला। 62 तेरे धर्ममय नियमोंके कारण मैं आधी रात को तेरा धन्यवाद करने को उठूंगा। 63 जितने तेरा भय मानते और तेरे उपकेशोंपर चलते हैं, उनका मैं संगी हूं। 64 हे यहोवा, तेरी करूणा पृथ्वी में भरी हुई है; तू मुझे अपक्की विधियां सिखा! 65 हे यहोवा, तू ने अपके वचन के अनुसार अपके दास के संग भलाई की है। 66 मुझे भली विवेक- शक्ति और ज्ञान दे, क्योंकि मैं ने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है। 67 उस से पहिले कि मैं दु:खित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूं। 68 तू भला है, और भला करता भी है; मुझे अपक्की विधियां सिखा। 69 अभिमानियोंने तो मेरे विरूद्ध झूठ बात गढ़ी है, परन्तु मैं तेरे उपकेशोंको पूरे मन से पकड़े रहूंगा। 70 उनका मन मोटा हो गया है, परन्तु मैं तेरी व्यवस्था के कारण सुखी हूं। 71 मुझे जो दु:ख हुआ वह मेरे लिथे भला ही हुआ है, जिस से मैं तेरी विधियोंको सीख सकूं। 72 तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिथे हजारोंरूपयोंऔर मुहरोंसे भी उत्तम है।। 73 तेरे हाथोंसे मैं बनाया और रचा गया हूं; मुझे समझ दे कि मैं तेरी आज्ञाओं को सीखूं। 74 तेरे डरवैथे मुझे देखकर आनन्दित होंगे, क्योंकि मैं ने तेरे वचन पर आशा लगाई है। 75 हे यहोवा, मैं जान गया कि तेरे नियम धर्ममय हैं, और तू ने अपके सच्चाई के अनुसार मुझे दु:ख दिया है। 76 मुझे अपक्की करूणा से शान्ति दे, क्योंकि तू ने अपके दास को ऐसा ही वचन दिया है। 77 तेरी दया मुझ पर हो, तब मैं जीवित रहूंगा; क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूं। 78 अभिमानियोंकी आशा टूटे, क्योंकि उन्होंने मुझे झूठ के द्वारा गिरा दिया है; परन्तु मैं तेरे उपकेशोंपर ध्यान करूंगा। 79 जो तेरा भय मानते हैं, वह मेरी ओर फिरें, तब वे तेरी चितौनियोंको समझ लेंगे। 80 मेरा मन तेरी विधियोंके मानने में सिद्ध हो, ऐसा न हो कि मुझे लज्जित होना पके।। 81 मेरा प्राण तेरे उद्धार के लिथे बैचेन है; परन्तु मुझे तेरे वचन पर आशा रहती है। 82 मेरी आंखें तेरे वचन के पूरे होने की बाट जोहते जोहते रह गईं है; और मैं कहता हूं कि तू मुझे कब शान्ति देगा? 83 क्योंकि मैं धूएं में की कुप्पी के समान हो गया हूं, तौभी तेरी विधियोंको नहीं भूला। 84 तेरे दास के कितने दिन रह गए हैं? तू मेरे पीछे पके हुओं को दण्ड कब देगा? 85 अभिमानी जो तरी व्यवस्था के अनुसार नहीं चलते, उन्होंने मेरे लिथे गड़हे खोदे हैं। 86 तेरी सब आज्ञाएं विश्वासयोग्य हैं; वे लोग झूठ बोलते हुए मेरे पीछे पके हैं; तू मेरी सहाथता कर! 87 वे मुझ को पृथ्वी पर से मिटा डालने ही पर थे, परन्तु मैं ने तेरे उपकेशोंको नहीं छोड़ा। 88 अपक्की करूणा के अनुसार मुझ को जिला, तब मैं तेरी दी हुई चितौनी को मानूंगा।। 89 हे यहोवा, तेरा वचन, आकाश में सदा तक स्थिर रहता है। 90 तेरी सच्चाई पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है; तू ने पृथ्वी को स्थिर किया, इसलिथे वह बनी है। 91 वे आज के दिन तक तेरे नियमोंके अनुसार ठहरे हैं; क्योंकि सारी सृष्टि तेरे अधीन है। 92 यदि मैं तेरी व्यवस्था से सुखी न होता, तो मैं दु:ख के समय नाश हो जाता। 93 मैं तेरे उपकेशोंको कभी न भूलूंगा; क्योंकि उन्हीं के द्वारा तू ने मुझे जिलाया है। 94 मैं तेरा ही हूं, तू मेरा उद्धार कर; क्योंकि मैं तेरे उपकेशोंकी सुधि रखता हूं। 95 दुष्ट मेरा नाश करने के लिथे मेरी घात में लगे हैं; परन्तु मैं तेरी चितौनियोंपर ध्यान करता हूं। 96 जितनी बातें पूरी जान पड़ती हैं, उन सब को तो मैं ने अधूरी पाया है, परन्तु तेरी आज्ञा का विस्तार बड़ा है।। 97 अहा! मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है। 98 तू अपक्की आज्ञाओं के द्वारा मुझे अपके शत्रुओं से अधिक बुद्धिमान करता है, क्योंकि वे सदा मेरे मन में रहती हैं। 99 मैं अपके सब शिक्षकोंसे भी अधिक समझ रखता हूं, क्योंकि मेरा ध्यान तेरी चितौनियोंपर लगा है। 100 मैं पुरनियोंसे भी समझदार हूं, क्योंकि मैं तेरे उपकेशोंको पकड़े हुए हूं। 101 मैं ने अपके पांवोंको हर एक बुरे रास्ते से रोक रखा है, जिस से मैं तेरे वचन के अनुसार चलूं। 102 मैं तेरे नियमोंसे नहीं हटा, क्योंकि तू ही ने मुझे शिक्षा दी है। 103 तेरे वचन मुझ को कैसे मीठे लगते हैं, वे मेरे मुंह में मधु से भी मीठे हैं! 104 तेरे उपकेशोंके कारण मैं समझदार हो जाता हूं, इसलिथे मैं सब मिथ्या मार्गोंसे बैर रखता हूं।। 105 तेरा वचन मेरे पांव के लिथे दीपक, और मेरे मार्ग के लिथे उजियाला है। 106 मैं ने शपथ खाई, और ठाना भी है कि मैं तेरे धर्मपय नियमोंके अनुसार चलूंगा। 107 मैं अत्यन्त दु:ख में पड़ा हूं; हे यहोवा, अपके वचन के अनुसार मुझे जिला। 108 हे यहोवा, मेरे वचनोंको स्वेच्छाबलि जानकर ग्रहण कर, और अपके नियमोंको मुझे सिखा। 109 मेरा प्राण निरन्तर मेरी हथेली पर रहता है, तौभी मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। 110 दुष्टोंने मेरे लिथे फन्दा लगाया है, परन्तु मैं तेरे उपकेशोंके मार्ग से नहीं भटका। 111 मैं ने तेरी चितौनियोंको सदा के लिथे अपना निज भाग कर लिया है, क्योंकि वे मेरे हृदय के हर्ष का कारण है। 112 मैं ने अपके मन को इस बात पर लगाया है, कि अन्त तक तेरी विधियोंपर सदा चलता रहूं। 113 मैं दुचित्तोंसे तो बैर रखता हूं, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूं। 114 तू मेरी आड़ और ढ़ाल है; मेरी आशा तेरे वचन पर है। 115 हे कुकर्मियों, मुझ से दूर हो जाओ, कि मैं अपके परमेश्वर की आज्ञाओं को पकड़े रहूं। 116 हे यहोवा, अपके वचन के अनुसार मुझे सम्भाल, कि मैं जीवित रहूं, और मेरी आशा को न तोड़! 117 मुझे थांभ रख, तब मैं बचा रहूंगा, और निरन्तर तेरी विधियोंकी ओर चित्त लगाए रहूंगा! 118 जितने तेरी विधियोंके मार्ग से भटक जाते हैं, उन सब को तू तुच्छ जानता है, क्योंकि उनकी चतुराई झूठ है। 119 तू ने पृथ्वी के सब दुष्टोंको धातु के मैल के समान दूर किया है; इस कारण मैं तेरी चितौनियोंमें प्रीति रखता हूं। 120 तेरे भय से मेरा शरीर कांप उठता है, और मैं तेरे नियमोंसे डरता हूं।। 121 मैं ने तो न्याय और धर्म का काम किया है; तू मुझे अन्धेर करनेवालोंके हाथ में न छोड़। 122 अपके दास की भलाई के लिथे जामिन हो, ताकि अभिमानी मुझ पर अन्धेर न करने पांए। 123 मेरी आंखें तुझ से उद्धार पाने, और तेरे धर्ममय वचन के पूरे होने की बाट जोहते जोहते रह गई हैं। 124 अपके दास के संग अपक्की करूणा के अनुसार बर्ताव कर, और अपक्की विधियां मुझे सिखा। 125 मैं तेरा दास हूं, तू मुझे समझ दे कि मैं तेरी चितौनियोंको समझूं। 126 वह समय आया है, कि यहोवा काम करे, क्योंकि लोगोंने तेरी व्यवस्था को तोड़ दिया है। 127 इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूं। 128 इसी कारण मैं तेरे सब उपकेशोंको सब विषयोंमें ठीक जानता हूं; और सब मिथ्या मार्गोंसे बैर रखता हूं।। 129 तेरी चितौनियां अनूप हैं, इस कारण मैं उन्हें अपके जी से पकड़े हुए हूं। 130 तेरी बातोंके खुलने से प्राकाश होता है; उस से भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं। 131 मैं मुंह खोलकर हांफने लगा, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था। 132 जैसी तेरी रीति अपके नाम की प्रीति रखनेवालोंसे है, वैसे ही मेरी ओर भी फिरकर मुझ पर अनुग्रह कर। 133 मेरे पैरोंको अपके वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे। 134 मुझे मनुष्योंके अन्धेर से छुड़ा ले, तब मैं तेरे उपकेशोंको मानूंगा। 135 अपके दास पर अपके मुख का प्रकाश चमका दे, और अपक्की विधियां मुझे सिखा। 136 मेरी आंखोंसे जल की धारा बहती रहती है, क्योंकि लोग तेरी व्यवस्था को नहीं मानते।। 137 हे यहोवा तू धर्मी है, और तेरे नियम सीधे हैं। 138 तू ने अपक्की चितौनियोंको धर्म और पूरी सत्यता से कहा है। 139 मैं तेरी धुन में भस्म हो रहा हूं, क्योंकि मेरे सतानेवाले तेरे वचनोंको भूल गए हैं। 140 तेरा वचन पूरी रीति से ताया हुआ है, इसलिथे तेरा दास उस में प्रीति रखता है। 141 मैं छोटा और तुच्छ हूं, तौभी मैं तेरे उपकेशोंको नही भूलता। 142 तेरा धर्म सदा का धर्म है, और तेरी व्यवस्था सत्य है। 143 मैं संकट और सकेती में फंसा हूं, परन्तु मैं तेरी आज्ञाओं से सुखी हूं। 144 तेरी चितौनियां सदा धर्ममय हैं; तू मुझ को समझ दे कि मैं जीवित रहूं।। 145 मैं ने सारे मन से प्रार्थना की है, हे यहोवा मेरी सुन लेना! मैं तेरी विधियोंको पकड़े रहूंगा। 146 मैं ने तुझ से प्रार्थना की है, तू मेरा उद्धार कर, और मैं तेरी चितौनियोंको माना करूंगा। 147 मैं ने पौ फटने से पहिले दोहाई दी; मेरी आशा तेरे वचनोंपर थी। 148 मेरी आंखें रात के एक एक पहर से पहिले खुल गईं, कि मैं तेरे वचन पर ध्यान करूं। 149 अपक्की करूणा के अनुसार मेरी सुन ले; हे यहोवा, अपक्की रीति के अनुसार मुझे जीवित कर। 150 जो दुष्टता में धुन लगाते हैं, वे निकट आ गए हैं; वे तेरी व्यवस्था से दूर हैं। 151 हे यहोवा, तू निकट है, और तेरी सब आज्ञाएं सत्य हैं। 152 बहुत काल से मैं तेरी चितौनियोंको जानता हूं, कि तू ने उनकी नेव सदा के लिथे डाली है।। 153 मेरे दु:ख को देखकर मुझे छुड़ा ले, क्योंकि मैं तेरी व्यवस्था को भूल नहीं गया। 154 मेरा मुक मा लड़, और मुझे छुड़ा ले; अपके वचन के अनुसार मुझ को जिला। 155 दुष्टोंको उद्धार मिलना कठिन है, क्योंकि वे तेरी विधियोंकी सुधि नहीं रखते। 156 हे यहोवा, तेरी दया तो बड़ी है; इसलिथे अपके नियमोंके अनुसार मुझे जिला। 157 मेरा पीछा करनेवाले और मेरे सतानेवाले बहुत हैं, परन्तु मैं तेरी चितौनियोंसे नहीं हटता। 158 मैं विश्वासघातियोंको देखकर उदास हुआ, क्योंकि वे तेरे वचन को नहीं मानते। 159 देख, मैं तेरे नियमोंसे कैसी प्रीति रखता हूं! हे यहोवा, अपक्की करूणा के अनुसार मुझ को जिला। 160 तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।। 161 हाकिम व्यर्थ मेरे पीछे पके हैं, परन्तु मेरा हृदय तेरे वचनोंका भय मानता है। 162 जैसे कोई बड़ी लूट पाकर हर्षित होता है, वैसे ही मैं तेरे वचन के कारण हर्षित हूं। 163 झूठ से तो मैं बैर और घृणा रखता हूं, परन्तु तेरी व्यवस्था से प्रीति रखता हूं। 164 तेरे धर्ममय नियमोंके कारण मैं प्रतिदिन सात बेर तेरी स्तुति करता हूं। 165 तेरी व्यवस्था से प्रीति रखनेवालोंको बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती। 166 हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की आशा रखता हूं; और तेरी आज्ञाओं पर चलता आया हूं। 167 मैं तेरी चितौनियोंको जी से मानता हूं, और उन से बहुत प्रीति रखता आया हूं। 168 मैं तेरे उपकेशोंऔर चितौनियोंको मानता आया हूं, क्योंकि मेरी सारी चालचलन तेरे सम्मुख प्रगट है।। 169 हे यहोवा, मेरी दोहाई तुझ तक पहुंचे; तू अपके वचन के अनुसार मुझे समझ दे! 170 मेरा गिड़गिड़ाना तुझ तक पहुंचे; तू अपके वचन के अनुसार मुझे छुड़ा ले। 171 मेरे मुंह से स्तुति निकला करे, क्योंकि तू मुझे अपक्की विधियां सिखाता है। 172 मैं तेरे वचन का गीत गाऊंगा, क्योंकि तेरी सब आज्ञाएं धर्ममय हैं। 173 तेरा हाथ मेरी सहाथता करने को तैयार रहता है, क्योंकि मैं ने तेरे उपकेशोंको अपनाया है। 174 हे यहोवा, मैं तुझ से उद्धार पाने की अभिलाषा करता हूं, मैं तेरी व्यवस्था से सुखी हूं। 175 मुझे जिला, और मैं तेरी स्तुति करूंगा, तेरे नियमोंसे मेरी सहाथता हो। 176 मैं खोई हुई भेड़ की नाईं भटका हूं; तू अपके दास को ढूंढ़ ले, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं को भूल नहीं गया।।
1 संकट के समय मैं ने यहोवा को पुकारा, और उस ने मेरी सुन ली। 2 हे यहोवा, झूठ बोलनेवाले मुंह से और छली जीभ से मेरी रक्षा कर।। 3 हे छली जीभ, तुझ को क्या मिले? और तेरे साथ और क्या अधिक किया जाए? 4 वीर के नोकीले तीर और झाऊ के अंगारे! 5 हाथ, हाथ, क्योंकि मुझे मेशेक में परदेशी होकर रहना पड़ा और केदार के तम्बुओं में बसना पड़ा है! 6 बहुत काल से मुझ को मेल के बैरियोंके साथ बसना पड़ा है। 7 मैं तो मेल चाहता हूं; परन्तु मेरे बोलते ही, वे लड़ना चाहते हैं!
1 मैं अपक्की आंखें पर्वतोंकी ओर लगाऊंगा। मुझे सहाथता कहां से मिलेगी? 2 मुझे सहाथता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता है।। 3 वह तेरे पांव को टलने न देगा, तेरा रक्षक कभी न ऊंघे। 4 सुन, इस्राएल का रक्षक, न ऊंघेगा और न सोएगा।। 5 यहोवा तेरा रक्षक है; यहोवा तेरी दहिनी ओर तेरी आड़ है। 6 न तो दिन को धूप से, और न रात को चांदनी से तेरी कुछ हाति होगी।। 7 यहोवा सारी विपत्ति से तेरी रक्षा करेगा; यह तेरे प्राण की रक्षा करेगा। 8 यहोवा तेरे आने जाने में तेरी रक्षा अब से लेकर सदा तक करता रहेगा।।
1 जब लोगोंने मुझ से कहा, कि हम यहोवा के भवन को चलें, तब मैं आनन्दित हुआ। 2 हे यरूशलेम, तेरे फाटकोंके भीतर, हम खड़े हो गए हैं! 3 हे यरूशलेम, तू ऐसे नगर के समान बना है, जिसके घर एक दूसरे से मिले हुए हैं। 4 वहां याह के गोत्रा गोत्रा के लोग यहोवा के नाम का धन्यवाद करने को जाते हैं; यह इस्राएल के लिथे साक्षी है। 5 वहां तो न्याय के सिंहासन, दाऊद के घराने के लिथे धरे हुए हैं।। 6 यरूशलेम की शान्ति का वरदान मांगो, तेरे प्रेमी कुशल से रहें! 7 तेरी शहरपनाह के भीतर शान्ति, और तेरे महलोंमें कुशल होवे! 8 अपके भाइयोंऔर संगियोंके निमित्त, मैं कहूंगा कि तुझ में शान्ति होवे! 9 अपके परमेश्वर यहोवा के भवन के निमित्त, मैं तेरी भलाई का यत्न करूंगा।।
1 हे स्वर्ग में विराजमान मैं अपक्की आंखें तेरी ओर लगाता हूं! 2 देख, जैसे दासोंकी आंखें अपके स्वामियोंके हाथ की ओर, और जैसे दासियोंकी आंखें अपक्की स्वामिनी के हाथ की ओर लगी रहती है, वैसे ही हमारी आंखें हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर उस समय तक लगी रहेंगी, जब तक वह हम पर अनुग्रह न करे।। 3 हम पर अनुग्रह कर, हे यहोवा, हम पर अनुग्रह कर, क्योंकि हम अपमान से बहुत ही भर गए हैं। 4 हमारा जीव सुखी लोगोंके ठट्ठोंसे, और अहंकारियोंके अपमान से बहुत ही भर गया है।।
1 इस्राएल यह कहे, कि यदि हमारी ओर यहोवा न होता, 2 यदि यहोवा उस समय हमारी ओर न होता जब मनुष्योंने हम पर चढ़ाई की, 3 तो वे हम को उसी समय जीवित निगल जाते, जब उनका क्रोध हम पर भड़का था, 4 हम उसी समय जल में डूब जाते और धारा में बह जाते; 5 उमड़ते जल में हम उसी समय ही बह जाते।। 6 धन्य है यहोवा, जिस ने हम को उनके दातोंतले जाने न दिया! 7 हमार जीव पक्षी की नाईं चिड़ीमार के जाल से छूट गया; जाल फट गया, हम बच निकले! 8 यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्त्ता है, हमारी सहाथता उसी के नाम से होती है।
1 जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं, वे सिरयोन पर्वत के समान हैं, जो टलता नहीं, वरन सदा बना रहता है। 2 जिस प्रकार यरूशलेम के चारोंओर पहाड़ हैं, उसी प्रकार यहोवा अपक्की प्रजा के चारोंओर अब से लेकर सर्वदा तक बना रहेगा। 3 क्योंकि दुष्टोंका राजदण्ड धर्मियोंके भाग पर बना न रहेगा, ऐसा न हो कि धर्मी अपके हाथ कुटिल काम की ओर बढ़ाएं।। 4 हे यहोवा, भलोंका, और सीधे मनवालोंका भला कर! 5 परन्तु जो मुड़कर टेढ़े मार्गोंमें चलते हैं, उनको यहोवा अनर्थकारियोंके संग निकाल देगा! इस्राएल को शान्ति मिले!
1 जब यहोवा सिरयोन से लौअनेवालोंको लौटा ले आया, तब हम स्वप्त देखनेवाले से हो गए। 2 तब हम आनन्द से हंसने और जयजयकार करने लगे; तब जाति जाति के बीच में कहा जाता था, कि यहोवा ने, इनके साथ बड़े बड़े काम किए हैं। 3 यहोवा ने हमारे साथ बड़े बड़े काम किए हैं; और इस से हम आनन्दित हैं।। 4 हे यहोवा, दक्खिन देश के नालोंकी नाईं, हमारे बन्धुओं को लौटा ले आ! 5 जो आंसू बहाते हुए बोते हैं, वे जयजयकार करते हुए लवने पाएंगे। 6 चाहे बोनेवाला बीज लेकर रोता हुआ चला जाए, परन्तु वह फिर पूलियां लिए जयजयकार करता हुआ निश्चय लौट आएगा।।
1 यदि घर को यहोवा न बानाए, तो उसके बनानेवालोंको परिश्रम व्यर्थ होगा। यदि नगर की रक्षा यहोवा न करे, तो रखवाले का जागना व्यर्थ ही होगा। 2 तुम जो सवेरे उठते और देर करके विश्राम करते और दु:ख भरी रोटी खाते हो, यह सब तुम्हारे लिथे व्यर्थ ही है; क्योंकि वह अपके प्रियोंको योंही नींद दान करता है।। 3 देखे, लड़के यहोवा के दिए हुए भाग हैं, गर्भ का फल उसकी ओर से प्रतिफल है। 4 जैसे वीर के हाथ में तीर, वैसे ही जवानी के लड़के होते हैं। 5 क्या ही धन्य है वह पुरूष जिस ने अपके तर्कश को उन से भर लिया हो! वह फाटक के पास शत्रुओं से बातें करते संकोच न करेगा।।
1 क्या ही धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गोंपर चलता है! 2 तू अपक्की कमाई को निश्चय खाने पाएगा; तू धन्य होगा, और तेरा भला ही होगा।। 3 तेरे घर के भीतर तेरी स्त्री फलवन्त दाखलता सी होगी; तेरी मेज के चारोंओर तेरे बालक जलपाई के पौधे से होंगे। 4 सुन, जो पुरूष यहोवा का भय मानता हो, वह ऐसी ही आशीष पाएगा।। 5 यहोवा तुझे सिरयोन से आशीष देवे, और तू जीवन भर यरूशलेम का कुशल देखता रहे! 6 वरन तू अपके नाती- पोतोंको भी देखने पाए! इस्राएल को शान्ति मिले!
1 इस्राएल अब यह कहे, कि मेरे बचपन से लोग मुझे बार बार क्लेश देते आए हैं, 2 मेरे बचपन से वे मुझ को बार बार क्लेश देते तो आए हैं, परन्तु मुझ पर प्रबल नहीं हुए। 3 हलवाहोंने मेरी पीठ के ऊपर हल चलाया, और लम्बी लम्बी रेखाएं कीं। 4 यहोवा धर्मी है; उस ने दुष्टोंके फन्दोंको काट डाला है। 5 जितने सिरयोन से बैर रखते हैं, उन सभोंकी आशा टूटे, ओर उनको पीछे हटना पके! 6 वे छत पर की घास के समान हों, जो बढ़ने से पहिले सूख जाती है; 7 जिस से कोई लवैया अपक्की मुट्ठी नहीं भरता, न पूलियोंका कोई बान्धनेवाला अपक्की अंकवार भर पाता है, 8 और न आने जानेवाले यह कहते हैं, कि यहोवा की आशीष तुम पर होवे! हम तुम को यहोवा के नाम से आशीर्वाद देते हैं!
1 हे यहोवा, मैं ने गहिरे स्थानोंमें से तुझ को पुकारा है! 2 हे प्रभु, मेरी सुन! तेरे कान मेरे गिड़गिड़ाने की ओर ध्यान से लगे रहें! 3 हे याह, यदि तू अधर्म के कामोंका लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा? 4 परन्तु तू क्षमा करनेवाला है? जिस से तेरा भय माना जाए। 5 मैं यहोवा की बाट जोहता हूं, मैं जी से उसकी बाट जोहता हूं, और मेरी आशा उसके वचन पर है; 6 पहरूए जितना भोर को चाहते हैं, हां, पहरूए जितना भोर को चाहते हैं, उस से भी अधिक मैं यहोवा को अपके प्राणोंसे चाहता हूं।। 7 इस्राएल यहोवा पर आशा लगाए रहे! क्योंकि यहोवा करूणा करनेवाला और पूरा छुटकारा देनेवाला है। 8 इस्राएल को उसके सारे अधर्म के कामोंसे वही छुटकारा देगा।।
1 हे यहोवा, न तो मेरा मन गर्व से और न मेरी दृष्टि घमण्ड से भरी है; और जो बातें बड़ी और मेरे लिथे अधिक कठिन हैं, उन से मैं काम नहीं रखता। 2 निश्चय मैं ने अपके मन को शान्त और चुप कर दिया है, जैसे दूध छुड़ाया हुआ लड़का अपक्की मां की गोद में रहता है, वैसे ही दूध छुड़ाए हुए लड़के के समान मेरा मन भी रहता है।। 3 हे इस्राएल, अब से लेकर सदा सर्वदा यहोवा ही पर आशा लगाए रह!
1 हे यहोवा, दाऊद के लिथे उसकी सारी दुर्दशा को स्मरण कर; 2 उस ने यहोवा से शपथ खाई, और याकूब के सर्वशक्तिमान की मन्नत मानी है, 3 कि निश्चय मैं उस समय तक अपके घर में प्रवेश न करूंगा, और ने अपके पलंग पर चढूंगा; 4 न अपक्की आंखोंमें नींद, और न अपक्की पलकोंमें झपक्की आने दूंगा, 5 जब तक मैं यहोवा के लिथे एक स्थान, अर्थात् याकूब के सर्वशक्तिमान के लिथे निवास स्थान न पाऊं।। 6 देखो, हम ने एप्राता में इसकी चर्चा सुनी है, हम ने इसको वन के खेतोंमें पाया है। 7 आओ, हम उसके निवास में प्रवेश करें, हम उसके चरणोंकी चौकी के आगे दण्डवत् करें! 8 हे यहोवा, उठकर अपके विश्रामस्थान में अपक्की सामर्थ्य के सन्दूक समेत आ। 9 तेरे याजक धर्म के वस्त्रा पहिने रहें, और तेरे भक्त लोग जयजयकार करें। 10 अपके दास दाऊद के लिथे अपके अभिषिक्त की प्रार्थना की अनसुनी न कर।। 11 यहोवा ने दाऊद से सच्ची शपथ खाई है और वह उस से न मुकरेगा: कि मैं तेरी गद्दी पर तेरे एक निज पुत्रा को बैठाऊंगा। 12 यदि तेरे वंश के लोग मेरी वाचा का पालन करें और जो चितौनी मैं उन्हें सिखाऊंगा, उस पर चलें, तो उनके वंश के लोग भी तेरी गद्दी पर युग युग बैठते चले जाएंगे। 13 क्योंकि यहोवा ने सिरयोन को अपनाया है, और उसे अपके निवास के लिथे चाहा है।। 14 यह तो युग युग के लिथे मेरा विश्रामस्थान हैं; यहीं मैं रहूंगा, क्योंकि मैं ने इसका चाहा है। 15 मैं इस में की भोजनवस्तुओं पर अति आशीष दूंगा; और इसके दरिद्रोंको रोटी से तृप्त करूंगा। 16 इसके याजकोंको मैं उद्धार का वस्त्रा पहिनाऊंगा, और इसके भक्त लोग ऊंचे स्वर से जयजयकार करेंगे। 17 वहां मैं दाऊद के एक सींग उगाऊंगा; मैं ने अपके अभिषिक्त के लिथे एक दीपक तैयार कर रखा है। 18 मैं उसे शत्रुओं को तो लज्जा का वस्त्रा पहिनाऊंगा, परन्तु उसी के सिर पर उसका मुकुट शोभायमान रहेगा।।
1 देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहें! 2 यह तो उस उत्तम तेल के समान है, जो हारून के सिर पर डाला गया था, और उसकी दाढ़ी पर बहकर, उसके वस्त्रा की छोर तक पहुंच गया। 3 वह हेर्मोन् की उस ओस के समान है, जो सिरयोन के पहाड़ोंपर गिरती है! यहोवा ने तो वहीं सदा के जीवन की आशीष ठहराई है।।
1 हे यहोवा के सब सेवको, सुनो, तुम जो रात रात को यहोवा के भवन में खड़े रहते हो, यहोवा को धन्य कहो। 2 अपके हाथ पवित्रास्थान में उठाकर, यहोवा को धन्य कहो। 3 यहोवा जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है, वह सिरयोन में से तुझे आशीष देवे।।
1 याह की स्तुति करो, यहोवा के नाम की स्तुति करो, हे यहोवा के सेवको तुम स्तुति करो, 2 तुम जो यहोवा के भवन में, अर्थात् हमारे परमेश्वर के भवन के आंगनोंमें खड़े रहते हो! 3 याह की स्तुति करो, क्योंकि यहोवा भला है; उसके नाम का भजन गाओ, क्योंकि यह मनभाऊ है! 4 याह ने तो याकूब को अपके लिथे चुना है, अर्थात् इस्राएल को अपके निज धन होने के लिथे चुन लिया है। 5 मैं तो जानता हूं कि हमारा प्रभु यहोवा सब देवताओं से महान है। 6 जो कुछ यहोवा ने चाहा उसे उस ने आकाश और पृथ्वी और समुद्र और सब गहिरे स्थानोंमें किया है। 7 वह पृथ्वी की छोर से कुहरे उठाता है, और वर्षा के लिथे बिजली बनाता है, और पवन को अपके भण्डार में से निकालता है। 8 उस ने मि में क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठोंको मार डाला! 9 हे मि , उस ने तेरे बीच में फिरौन और उसके सब कर्मचारियोंके बीच चिन्ह और चमत्कार किए। 10 उस ने बहुत सी जातियां नाश की, और सामर्थी राजाओं को, 11 अर्थात् एमोरियोंके राजा सीहोन को, और बाशान के राजा ओग को, और कनान के सब राजाओं को घात किया; 12 और उनके देश को बांटकर, अपक्की प्रजा इस्राएल के भाग होने के लिथे दे दिया।। 13 हे यहोवा, तेरा नाम सदा स्थिर है, हे यहोवा जिस नाम से तेरा स्मरण होता है, वह पीढ़ी- पीढ़ी बना रहेगा। 14 यहोवा तो अपक्की प्रजा का न्याय चुकाएगा, और अपके दासोंकी दुर्दशा देखकर तरस खाएगा। 15 अन्यजातियोंकी मूरतें सोना- चान्दी ही हैं, वे मनुष्योंकी बनाई हुई हैं। 16 उनके मुंह तो रहता है, परन्तु वे बोल नहीं सकतीं, उनके आंखें तो रहती हैं, परन्तु वे देख नहीं सकतीं, 17 उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकतीं, न उनके कुछ भी सांस चलती है। 18 जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनानेवाले भी हैं; और उन पर सब भरोसा रखनेवाले भी वैसे ही हो जाएंगे! 19 हे इस्राएल के घराने यहोवा को धन्य कह! हे हारून के घराने यहोवा को धन्य कह! 20 हे लेवी के घराने यहोवा को धन्य कह! हे यहोवा के डरवैयो यहोवा को धन्य कहो! 21 यहोवा जो यरूशलेम में वास करता है, उसे सिरयोन में धन्य कहा जावे! याह की स्तुति करो!
1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है, और उसकी करूणा सदा की है। 2 जो ईश्वरोंका परमेश्वर है, उसका धन्यवाद करो, उसकी करूणा सदा की है। 3 जो प्रभुओं का प्रभु है, उसका धन्यवाद करो, उसकी करूणा सदा की है।। 4 उसको छोड़कर कोई बड़े बड़े अशचर्यकर्म नहीं करता, उसकी करूणा सदा की है। 5 उस ने अपक्की बुद्धि से आकाश बनाया, उसकी करूणा सदा की है। 6 उस ने पृथ्वी को जल के ऊपर फैलाया है, उसकी करूणा सदा की है। 7 उस ने बड़ी बड़ी ज्योतियोंबनाईं, उसकी करूणा सदा की है। 8 दिन पर प्रभुता करने के लिथे सूर्य को बनाया, उसकी करूणा सदा की है। 9 और रात पर प्रभुता करने के लिथे चन्द्रमा और तारागण को बनाया, उसकी करूणा सदा की है। 10 उस ने मिस्त्रियोंके पहिलौठोंको मारा, उसकी करूणा सदा की है।। 11 और उनके बीच से इस्राएलियोंको निकाला, उसकी करूणा सदा की है। 12 बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा से निकाल लाया, उसकी करूणा सदा की है। 13 उस ने लाल समुद्र को खण्ड खण्ड कर दिया, उसकी करूणा सदा की है। 14 और इस्राएल को उसके बीच से पार कर दिया, उसकी करूणा सदा की है। 15 और फिरौन को सेना समेत लाल समुद्र में डाल दिया, उसकी करूणा सदा की है। 16 वह अपक्की प्रजा को जंगल में ले चला, उसकी करूणा सदा की है। 17 उस ने बड़े बड़े राजा मारे, उसकी करूणा सदा की है। 18 उस ने प्रतापी राजाओं को भी मारा, उसकी करूणा सदा की है। 19 एमोरियोंके राजा सीहोन को, उसकी करूणा सदा की है। 20 और बाशान के राजा ओग को घात किया, उसकी करूणा सदा की है। 21 और उनके देश को भाग होने के लिथे, उसकी करूणा सदा की है। 22 अपके दास इस्राएलियोंके भाग होने के लिथे दे दिया, उसकी करूणा सदा की है। 23 उस ने हमारी दुर्दशा में हमारी सुधि ली, उसकी करूणा सदा की है। 24 और हम को द्रोहियोंसे छुड़ाया है, उसकी करूणा सदा की है। 25 वह सब प्राणियोंको आहार देता है, उसकी करूणा सदा की है। 26 स्वर्ग के परमेश्वर का धन्यवाद करो, उसकी करूणा सदा की है।
1 बाबुल की नहरोंके किनारे हम लोग बैठ गए, और सिरयोन को स्मरण करके रो पके! 2 उसके बीच के मजनू वर्क्षोंपर हम ने अपक्की वीणाओं को टांग दिया; 3 क्योंकि जो हम को बन्धुए करके ले गए थे, उन्होंने वहां हम से गीत गवाना चाहा, और हमारे रूलानेवलोंने हम से आनन्द चाहकर कहा, सिरयोन के गीतोंमें से हमारे लिथे कोई गीत गाओ! 4 हम यहोवा के गीत को, पराए देश में क्योंकर गाएं? 5 हे यरूशलेम, यदि मैं तुझे भूल जाऊं, तो मेरा दहिना हाथ झूठा हो जाए! 6 यदि मैं तुझे स्मरण न रखूं, यदि मैं यरूशलेम को अपके सब आनन्द से श्रेष्ठ न जानूं, तो मेरी जीभ तालू से चिपट जाए! 7 हे यहोवा, यरूशलेम के दिन को एदोमियोंके विरूद्ध स्मरण कर, कि वे क्योंकर कहते थे, ढाओ! उसको नेव से ढा दो। 8 हे बाबुल तू जो उजड़नेवाली है, क्या ही धन्य वह होगा, जो तुझ से ऐसा बर्ताव करेगा जैसा तू ने हम से किया है! 9 क्या ही धन्य वह होगा, जो तेरे बच्चोंको पकड़कर, चट्टान पर पटक देगा!
1 मैं पूरे मन से तेरा धन्यवाद करूंगा; देवताओं के साम्हने भी मैं तेरा भजन गाऊंगा। 2 मैं तेरे पवित्रा मन्दिर की ओर दण्डवत् करूंगा, और तेरी करूणा और सच्चाई के कारण तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा; क्योंकि तू ने अपके वचन को अपके बड़े नाम से अधिक महत्व दिया है। 3 जिस दिन मैं ने पुकारा, उसी दिन तू ने मेरी सुन ली, और मुझ में बल देकर हियाव बन्धाया।। 4 हे यहोवा, पृथ्वी के सब राजा तेरा धन्यवाद करेंगे, क्योंकि उन्होंने तेरे वचन सुने हैं; 5 और वे यहोवा की गति के विषय में गाएंगे, क्योंकि यहोवा की महिमा बड़ी है। 6 यद्यपि यहोवा महान है, तौभी वह नम्र मनुष्य की ओर दृष्टि करता है; परन्तु अहंकारी को दूर ही से पहिचानता है।। 7 चाहे मैं संकट के बीच में रहूं तौभी तू मुझे जिलाएगा, तू मेरे क्रोधित शत्रुओं के विरूद्ध हाथ बढ़ाएगा, और अपके दहिने हाथ से मेरा उद्धार करेगा। 8 यहोवा मेरे लिथे सब कुछ पूरा करेगा; हे यहोवा, तेरी करूणा सदा की है। तू अपके हाथोंके कार्योंको त्याग न दे।।
1 हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है।। 2 तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारोंको दूर ही से समझ लेता है। 3 मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है। 4 हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो। 5 तू ने मुझे आगे पीछे घेर रखा है, और अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है। 6 यह ज्ञान मेरे लिथे बहुत कठिन है; यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है।। 7 मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊं? वा तेरे साम्हने से किधर भागूं? 8 यदि मैं आकाश पर चढूं, तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊं तो वहां भी तू है! 9 यदि मैं भोर की किरणोंपर चढ़कर समुद्र के पार जा बसूं, 10 तो वहां भी तू अपके हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपके दहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा। 11 यदि मैं कहूं कि अन्धकार में तो मैं छिप जाऊंगा, और मेरे चारोंओर का उजियाला रात का अन्धेरा हो जाएगा, 12 तौभी अन्धकार तुझ से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिथे अन्धिक्कारनेा और उजियाला दोनोंएक समान हैं।। 13 मेरे मन का स्वामी तो तू है; तू ने मुझे माता के गर्भ में रचा। 14 मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिथे कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं। तेरे काम तो आश्चर्य के हैं, और मैं इसे भली भांति जानता हूं। 15 जब मैं गुप्त में बनाया जाता, और पृथ्वी के नीचे स्थानोंमें रचा जाता था, तब मेरी हडि्डयां तुझ से छिपी न थीं। 16 तेरी आंखोंने मेरे बेड़ौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे। 17 और मेरे लिथे तो हे ईश्वर, तेरे विचार क्या ही बहुमूल्य हैं! उनकी संख्या का जोड़ कैसा बड़ा है।। 18 यदि मैं उनको गिनता तो वे बालू के किनकोंसे भी अधिक ठहरते। जब मैं जाग उठता हूं, तब भी तेरे संग रहता हूं।। 19 हे ईश्वर निश्चय तू दुष्ट को घात करेगा! हे हत्यारों, मुझ से दूर हो जाओ। 20 क्योंकि वे तेरी चर्चा चतुराई से करते हैं; तेरे द्रोही तेरा नाम झूठी बात पर लेते हैं। 21 हे यहोवा, क्या मैं तेरे बैरियोंसे बैर न रखूं, और तेरे विरोधियोंसे रूठ न जाऊं? 22 हां, मैं उन से पूर्ण बैर रखता हूं; मैं उनको अपना शत्रु समझता हूं। 23 हे ईश्वर, मुझे जांचकर जान ले! मुझे परखकर मेरी चिन्ताओं को जान ले! 24 और देख कि मुझ में कोई बुरी चाल है कि नहीं, और अनन्त के मार्ग में मेरी अगुवाई कर!
1 हे यहोवा, मुझ को बुरे मनुष्य से बचा ले; उपद्रवी पुरूष से मेरी रक्षा कर, 2 क्योंकि उन्होंने मन में बुरी कल्पनाएं की हैं; वे लगातार लड़ाइयां मचाते हैं। 3 उनका बोलना सांप का काटना सा है, उनके मुंह में नाग का सा विष रहता है।। 4 हे यहोवा, मुझे दुष्ट के हाथोंसे बचा ले; उपद्रवी पुरूष से मेरी रक्षा कर, क्योंकि उन्होंने मेरे पैरोंके उखाड़ने की युक्ति की है। 5 घमण्डियोंने मेरे लिथे फन्दा और पासे लगाए, और पथ के किनारे जाल बिछाया है; उन्होंने मेरे लिथे फन्दे लगा रखे हैं।। 6 हे यहोवा, मैं ने तुझ से कहा है कि तू मेरा ईश्वर है; हे यहोवा, मेरे गिड़गड़ाने की ओर कान लगा! 7 हे यहोवा प्रभु, हे मेरे सामर्थी उद्धारकर्ता, तू ने युद्ध के दिन मेरे सिर की रक्षा की है। 8 हे यहोवा दुष्ट की इच्छा को पूरी न होने दे, उसकी बुरी युक्ति को सफल न कर, नहीं तो वह घमण्ड करेगा।। 9 मेरे घेरनेवालोंके सिर पर उन्हीं का विचारा हुआ उत्पात पके! 10 उन पर अंगारे डाले जाएं! वे आग में गिरा दिए जाएं! और ऐसे गड़होंमें गिरें, कि वे फिर उठ न सकें! 11 बकवादी पृथ्वी पर स्थिर नहीं होने का; उपद्रवी पुरूष को गिराने के लिथे बुराई उसका पीछा करेगी।। 12 हे यहोवा, मुझे निश्चय है कि तू दीन जन का और दरिद्रोंका न्याय चुकाएगा। 13 नि:सन्देह धर्मी तेरे नाम का धन्यवाद करने पाएंगे; सीधे लोग तेरे सम्मुख वास करेंगे।।
1 हे यहोवा, मैं ने तुझे पुकारा है; मेरे लिथे फुर्ती कर! जब मैं तुझ को पुकारूं, तब मेरी ओर कान लगा! 2 मेरी प्रार्थना तेरे साम्हने सुगन्ध धूप, और मेरा हाथ फैलाना, संध्याकाल का अन्नबलि ठहरे! 3 हे हयोवा, मेरे मुख का पहरा बैठा, मेरे हाठोंके द्वार पर रखवाली कर! 4 मेरा मन किसी बुरी बात की ओर फिरने न दे; मैं अनर्थकारी पुरूषोंके संग, दुष्ट कामोंमें न लगूं, और मै उनके स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं में से कुछ न खाऊं! 5 धर्मी मुझ को मारे तो यह कुपा मानी जाएगी, और वह मुझे ताड़ना दे, तो यह मेरे सिर पर का लेत ठहरेगा; मेरा सिर उस से इन्कार न करेगा।। लोगोंके बुरे काम करने पर भी मैं प्रार्थना में लवलीन रहूंगा। 6 जब उनके न्यायी चट्टान के पास गिराए गए, तब उन्होंने मेरे वचन सुन लिए; क्योंकि वे मधुर हैं। 7 जैसे भूमि में हल चलने से ढेले फूटते हैं, वैसे ही हमारी हडि्डयां अधोलोक के मुंह पर छितराई हुई हैं।। 8 परन्तु हे यहोवा, प्रभु, मेरी आंखे तेरी ही ओर लगी हैं; मैं तेरा शरणागत हूं; तू मेरे प्राण जाने न दे! 9 मुझे उस फन्दे से, जो उन्होंने मेरे लिथे लगाया है, और अनर्थकारियोंके जाल से मेरी रक्षा कर! 10 दुष्ट लोग अपके जालोंमें आप ही फंसें, और मैं बच निकलूं।।
1 मैं यहोवा की दोहाई देता, मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूं, 2 मैं अपके शोक की बातें उस से खोलकर कहता, मैं अपना संकट उसके आगे प्रगट करता हूं। 3 जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी, तब तू मेरी दशा को जानता था! जिस रास्ते से मैं जानेवाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिथे फन्दा लगाया। 4 मैं ने दहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता है। मेरे लिथे शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है।। 5 हे यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी है; मैं ने कहा, तू मेरा शरणस्थान है, मेरे जीते ही तू मेरा भाग है। 6 मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन, क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है! जो मेरे पीछे पके हैं, उन से मुझे बचा ले; क्योंकि वे मुझ से अधिक सामर्थी हैं। 7 मुझ को बन्दीगृह से निकाल कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूं! धर्मी लोग मेरे चारोंओर आएंगे; क्योंकि तू मेरा उपकार करेगा।।
1 हे यहोवा मेरी प्रार्थना सुन; मेरे गिड़गिड़ाने की ओर कान लगा! तू जो सच्चा और धर्मी है, सो मेरी सुन ले, 2 और अपके दास से मुक मा न चला! क्योंकि कोई प्राणी तेरी दृष्टि में निर्दोष नहीं ठहर सकता।। 3 शत्रु तो मेरे प्राण का गाहक हुआ है; उस ने मुझे चूर करके मिट्टी में मिलाया है, और मुझे ढेर दिन के मरे हुओं के समान अन्धेरे स्थान में डाल दिया है। 4 मेरी आत्मा भीतर से व्याकुल हो रही है मेरा मन विकल है।। 5 मुझे प्राचीनकाल के दिन स्मरण आते हैं, मैं तेरे सब अद्भुत कामोंपर ध्यान करता हूं, और तेरे काम को सोचता हूं। 6 मैं तेरी ओर अपके हाथ फैलाए हूए हूं; सूखी भूमि की नाईं मैं तेरा प्यासा हूं।। 7 हे यहोवा, फुर्ती करके मेरी सुन ले; क्योंकि मेरे प्राण निकलने ही पर हैं मुझ से अपना मुंह न छिपा, ऐसा न हो कि मैं कबर में पके हुओं के समान हो जाऊं। 8 अपक्की करूणा की बात मुझे शीघ्र सुना, क्योंकि मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है। जिस मार्ग से मुझे चलना है, वह मुझ को बता दे, क्योंकि मैं अपना मन तेरी ही ओर लगाता हूं।। 9 हे हयोवा, मुझे शत्रुओं से बचा ले; मैं तेरी ही आड़ में आ छिपा हूं। 10 मुझ को यह सिखा, कि मैं तेरी इच्छा क्योंकर पूरी करूं, क्योंकि मेरा परमेश्वर तू ही है! तेरा भला आत्मा मुझ को धर्म के मार्ग में ले चले! 11 हे यहोवा, मुझे अपके नाम के निमित्त जिला! तू जो धर्मी है, मुझ को संकट से छुड़ा ले! 12 और करूणा करके मेरे शत्रुओं को सत्यानाश कर, और मेरे सब सतानेवालोंका नाश कर डाल, क्योंकि मैं तेरा दास हूं।।
1 धन्य है यहोवा, जो मेरी चट्टान है, वह मेरे हाथोंको लड़ने, और युद्ध करने के लिथे तैयार करता है। 2 वह मेरे लिथे करूणानिधान और गढ़, ऊंचा स्थान और छुड़ानेवाला है, वह मेरी ढ़ाल और शरणस्थान है, जो मेरी प्रजा को मेरे वश में कर देता है।। 3 हे यहोवा, मनुष्य क्या है कि तू उसकी सुधि लेता है, या आदमी क्या है, कि तू उसकी कुछ चिन्ता करता है? 4 मनुष्य तो सांस के समान है; उसके दिन ढलती हुई छाया के समान हैं।। 5 हे यहोवा, अपके स्वर्ग को नीचा करके उतर आ! पहाड़ोंको छू तब उन से धुंआं उठेंगा! 6 बिजली कड़काकर उनके तितर बितर कर दे, अपके तीर चलाकर उनको घबरा दे! 7 अपके हाथ ऊपर से बढ़ाकर मुझे महासागर से उबार, अर्थात् परदेशियोंके वश से छुड़ा। 8 उनके मुंह से तो व्यर्थ बातें निकलती हैं, और उनके दहिने हाथ से धोखे के काम होते हैं।। 9 हे परमेश्वर, मैं तेरी स्तुति का नया गीत गाऊंगा; मैं दस तारवाली सारंगी बजाकर तेरा भजन गाऊंगा। 10 तू राजाओं का उद्धार करता है, और अपके दास दाऊद को तलवार की मार से बचाता है। 11 तू मुझ को उबार और परदेशियोंके वश से छुड़ा ले, जिन के मुंह से व्यर्थ बातें निकलती हैं, और जिनका दहिना हाथ झूठ का दहिना हाथ है।। 12 जब हमारे बेटे जवानी के समय पौधोंकी नाईं बढ़े हुए हों, और हमारी बेटियां उन कोनेवाले पत्थरोंके समान हों, जो मन्दिर के पत्थरोंकी नाईं बनाए जाएं; 13 जब हमारे खत्ते भरे रहें, और उन में भांति भांति का अन्न धरा जाए, और हमारी भेड़- बकरियोंहमारे मैदानोंमें हजारोंहजार बच्चे जनें; 14 जब हमारे बैल खूब लदे हुए हों; जब हमें न विध्न हो और न हमारा कहीं जाना हो, और न हमारे चौकोंमें रोना- पीटना हो, 15 तो इस दशा में जो राज्य हो वह क्या ही धन्य होगा! जिस राज्य का परमेश्वर यहोवा है, वह क्या ही धन्य है!
1 हे मेरे परमेश्वर, हे राजा, मैं तुझे सराहूंगा, और तेरे नाम को सदा सर्वदा धन्य कहता रहूंगा। 2 प्रति दिन मैं तुझ को धन्य कहा करूंगा, और तेरे नाम की स्तुति सदा सर्वदा करता रहूंगा। 3 यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है, और उसकी बड़ाई अगम है।। 4 तेरे कामोंकी प्रशंसा और तेरे पराक्रम के कामोंका वर्णन, पीढ़ी पीढ़ी होता चला जाएगा। 5 मैं तेरे ऐश्वर्य की महिमा के प्रताप पर और तेरे भांति भांति के आश्चर्यकर्मोंपर ध्यान करूंगा। 6 लोग तेरे भयानक कामोंकी शक्ति की चर्चा करेंगे, और मैं तेरे बड़े बड़े कामोंका वर्णन करूंगा। 7 लोग तेरी बड़ी भलाई का स्मरण करके उसकी चर्चा करेंगे, और तेरे धर्म का जयजयकार करेंगे।। 8 यहोवा अनुग्रहकारी और दयालु, विलम्ब से क्रोध करनेवाला और अति करूणामय है। 9 यहोवा सभोंके लिथे भला है, और उसकी दया उसकी सारी सृष्टि पर है।। 10 हे यहोवा, तेरी सारी सृष्टि तेरा धन्यवाद करेगी, और तेरे भक्त लाग तुझे धन्य कहा करेंगे! 11 वे तेरे राज्य की महिमा की चर्चा करेंगे, और तेरे पराक्रम के विषय में बातें करेंगे; 12 कि वे आदमियोंपर तेरे पराक्रम के काम और तेरे राज्य के प्रताप की महिमा प्रगट करें। 13 तेरा राज्य युग युग का और तेरी प्रभुता सब पीढ़ियोंतक बनी रहेगी।। 14 यहोवा सब गिरते हुओं को संभालता है, और सब झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है। 15 सभोंकी आंखें तेरी ओर लगी रहती हैं, और तू उनको आहार समय पर देता है। 16 तू अपक्की मुट्ठी खोलकर, सब प्राणियोंको आहार से तृप्त करता है। 17 यहोवा अपक्की सब गति में धर्मी और अपके सब कामोंमे करूणामय है। 18 जिनते यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात् जितने उसको सच्चाई से पुकारते हें; उन सभोंके वह निकट रहता है। 19 वह अपके डरवैयोंकी इच्छा पूरी करता है, ओर उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है। 20 यहोवा अपके सब प्रेमियोंकी तो रक्षा करता, परन्तु सब दुष्टोंको सत्यानाश करता है।। 21 मैं यहोवा की स्तुति करूंगा, और सारे प्राणी उसके पवित्रा नाम को सदा सर्वदा धन्य कहते रहें।।
1 याह की स्तुति करो। हे मेरे मन यहोवा की स्तुति कर! 2 मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूंगा; जब तक मैं बना रहूंगा, तब तक मैं अपके परमेश्वर का भजन गाता रहूंगा।। 3 तुम प्रधानोंपर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नहीं। 4 उसका भी प्राण निकलेगा, वही भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।। 5 क्या ही धन्य वह है, जिसका सहाथक याकूब का ईश्वर है, और जिसका भरोसा अपके परमेश्वर यहोवा पर है। 6 वह आकाश और पृथ्वी और समुद्र और उन में जो कुछ है, सब का कर्ता है; और वह अपना वचन सदा के लिथे पूरा करता रहेगा। 7 वह पिसे हुओं का न्याय चुकाता है; और भूखोंको रोटी देता है।। यहोवा बन्धुओं को छुड़ाता है; 8 यहोवा अन्धोंको आंखें देता है। यहोवा झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है; यहोवा धर्मियोंसे प्रेम रखता है। 9 यहोवा परदेशियोंकी रक्षा करता है; और अनाथोंऔर विधवा को तो सम्भालता है; परन्तु दुष्टोंके मार्ग को टेढ़ा मेढ़ा करता है।। 10 हे सिरयोन, यहोवा सदा के लिथे, तेरा परमेश्वर पीढ़ी पीढ़ी राज्य करता रहेगा। याह की स्तुति करो!
1 याह की स्तुति करो! क्योंकि अपके परमेश्वर का भजन गाना अच्छा है; क्योंकि वह मनभावना है, उसकी स्तुति करनी मनभावनी है। 2 यहोवा यरूशलेम को बसा रहा है; वह निकाले हुए इस्राएलियोंको इकट्ठा कर रहा है। 3 वह खेदित मनवालोंको चंगा करता है, और उनके शोक पर मरहम- पट्टी बान्धता है। 4 वह तारोंको गिनता, और उन में से एक एक का नाम रखता है। 5 हमारा प्रभु महान और अति सामर्थी है; उसकी बुद्धि अपरम्पार है। 6 यहोवा नम्र लोगोंको सम्भलता है, और दुष्टोंको भूमि पर गिरा देता है।। 7 धन्यवाद करते हुए यहोवा का गीत गाओ; वीणा बजाते हुए हमारे परमेश्वर का भजन गाओ। 8 वह आकाश को मेघोंसे छा देता है, और पृथ्वी के लिथे मेंह की तैयारी करता है, और पहाड़ोंपर घास उगाता है। 9 वह पशुओं को और कौवे के बच्चोंको जो पुकारते हैं, आहार देता है। 10 न तो वह घोड़े के बल को चाहता है, और न पुरूष के पैरोंसे प्रसन्न होता है; 11 यहोवा अपके डरवैयोंही से प्रसन्न होता है, अर्थात् उन से जो उसकी करूणा की आशा लगाए रहते हैं।। 12 हे यरूशलेम, यहोवा की प्रशंसा कर! हे सिरयोन, अपके परमेश्वर की स्तुति कर! 13 क्योंकि उस ने तेरे फाटकोंके खम्भोंको दृढ़ किया है; और तेरे लड़के बालोंको आशीष दी है। 14 और तेरे सिवानोंमें शान्ति देता है, और तुझ को उत्तम से उत्तम गेहूं से तृप्त करता है। 15 वह पृथ्वी पर अपक्की आज्ञा का प्रचार करता है, उसका वचन अति वेग से दौड़ता है। 16 वह ऊन के समान हिम को गिराता है, और राख की नाईं पाला बिखेरता है। 17 वह बर्फ के टुकड़े गिराता है, उसकी की हुई ठण्ड को कौन सह सकता है? 18 वह आज्ञा देकर उन्हें गलाता है; वह वायु बहाता है, तब जल बहने लगता है। 19 वह याकूब को अपना वचन, और इस्राएल को अपक्की विधियां और नियम बताता है। 20 किसी और जाति से उस ने ऐसा बर्ताव नहीं किया; और उसके नियमोंको औरोंने नहीं जाता।। याह की स्तुति करो।
1 याह की स्तुति करो! यहोवा की स्तुति स्वर्ग में से करो, उसकी स्तुति ऊंचे स्थानोंमें करो! 2 हे उसके सब दूतों, उसकी स्तुति करो: हे उसकी सब सेना उसकी स्तुति कर! 3 हे सूर्य और चन्द्रमा उसकी स्तुति करो, हे सब ज्योतिमय तारागण उसकी स्तुति करो! 4 हे सब से ऊंचे आकाश, और हे आकाश के ऊपरवाले जल, तुम दोनोंउसकी स्तुति करो। 5 वे यहोवा के नाम की स्तुति करें, क्योंकि उसी ने आज्ञा दी और थे सिरजे गए। 6 और उस ने उनको सदा सर्वदा के लिथे स्थिर किया है; और ऐसी विधि ठहराई है, जो टलने की नहीं।। 7 पृथ्वी में से यहोवा की स्तुति करो, हे मगरमच्छोंऔर गहिरे सागर, 8 हे अग्नि और ओलो, हे हिम और कुहरे, हे उसका वचन माननेवाली प्रचण्ड बयार! 9 हे पहाड़ोंऔर सब टीलो, हे फलदाई वृक्षोंऔर सब देवदारों! 10 हे वन- पशुओं और सब घरैलू पशुओं, हे रेंगनेवाले जन्तुओं और हे पक्षियों! 11 हे पृथ्वी के राजाओं, और राज्य राज्य के सब लोगों, हे हाकिमोंऔर पृथ्वी के सब न्यायियों! 12 हे जवनोंऔर कुमारियों, हे पुरनियोंऔर बालकों! 13 यहोवा के नाम की स्तुति करो, क्योंकि केवल उसकी का नाम महान है; उसका ऐश्वर्य पृथ्वी और आकाश के ऊपर है। 14 और उस ने अपक्की प्रजा के लिथे एक सींग ऊंचा किया है; यह उसके सब भक्तोंके लिथे अर्थात् इस्राएलियोंके लिथे और उसके समीप रहनेवाली प्रजा के लिथे स्तुति करने का विषय है। याह की स्तुति करो।
1 याह की स्तुति करो! यहोवा के लिथे नया गीत गाओ, भक्तोंकी सभा में उसकी स्तुति गाओ! 2 इस्राएल अपके कर्त्ता के कारण आनन्दित को, सिरयोन के निवासी अपके राजा के कारण मगन हों! 3 वे नाचते हुए उसके नाम की स्तुति करें, और डफ और वीणा बजाते हुए उसका भजन गाएं! 4 क्योंकि यहोवा अपक्की प्रजा से प्रसन्न रहता है; वह नम्र लोगोंका उद्धार करके उन्हें शोभायमान करेगा। 5 भक्त लोग महिमा के कारण प्रफुल्लित हों; और अपके बिछौनोंपर भी पके पके जयजयकार करें। 6 उनके कण्ठ से ईश्वर की प्रशंसा हो, और उनके हाथोंमें दोधारी तलवारें रहें, 7 कि वे अन्यजातियोंसे पलटा ले सकें; और राज्य राज्य के लोगोंको ताड़ना दें, 8 और उनके राजाओं को सांकलोंसे, और उनके प्रतिष्ठित पुरूषोंको लोहे की बेड़ियोंसे जकड़ रखें, 9 और उनको ठहराया हुआ दण्ड दें! उसके सब भक्तोंकी ऐसी ही प्रतिष्ठा होगी। याह की स्तुति करो।
1 याह की स्तुति करो! ईश्वर के पवित्रास्थान में उसकी स्तुति करो; उसकी सामर्थ्य से भरे हुए आकाशमण्डल में उसी की स्तुति करो! 2 उसके पराक्रम के कामोंके कारण उसकी स्तुति करो; उसकी अत्यन्त बड़ाई के अनुसार उसकी स्तुति करो! 3 नरसिंगा फूंकते हुए उसकी स्तुति करो; सारंगी और वीणा बजाते हुए उसकी स्तुति करो! 4 डफ बजाते और नाचते हुए उसकी स्तुति करो; तारवाले बाजे और बांसुली बजाते हुए उसकी स्तुति करो! 5 ऊंचे शब्दवाली झांझ बाजाते हुए उसकी स्तुति करो; आनन्द के महाशब्दवाली झांझ बजाते हुए उसकी स्तुति करो! 6 जिते प्राणी हैं सब के सब याह की स्तुति करें! याह की स्तुति करो!
1 दाऊद के पुत्र इस्राएल के राजा सुलैमान के नीतिवचन: 2 इनके द्वारा पढ़नेवाला बुद्धि और शिझा प्राप्त करे, और समझ की बातें समझे, 3 और काम करने में प्रवीणता, और धर्म, न्याय और सीधाई की शिझा पाए; 4 कि भोलोंको चतुराई, और जवान को ज्ञान और विवेक मिले; 5 कि बुद्धिमान सुनकर अपक्की विद्या बढ़ाए, और समझदार बुद्धि का उपकेश पाए, 6 जिस से वे नितिवचन और दृष्टान्त को, और बुद्धिमानोंके वचन और उनके रहस्योंको समझें।। 7 यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है; बुद्धि और शिझ को मूढ़ ही लोग तुच्छ जानते हैं।। 8 हे मेरे पुत्र, अपके पिता की शिझा पर कान लगा, और अपक्की माता की शिझा को न तज; 9 क्योंकि वे मानो तेरे सिर के लिथे शोभायमान मुकुट, और तेरे गले के लिथे कन्ठ माला होगी। 10 हे मेरे पुत्र, यदि पापी लोग तुझे फुसलाए, तो उनकी बात न मानना। 11 यदि वे कहें, हमारे संग चल कि, हम हत्या करने के लिथे घात जगाएं हम निर्दोषोंकी ताक में रहें; 12 हम अधोलोक की नाईं उनको जीवता, कबर में पके हुओं के समान समूचा निगल जाएं; 13 हम को सब प्रकार के अनमोल पदार्य मिलेंगे, हम अपके घरोंको लूट से भर लेंगे; 14 तू हमारा साफी हो जा, हम सभोंका एक ही बटुआ हो, 15 तो, हे मेरे पुत्र तू उनके संग मार्ग में न चलना, वरन उनकी डगर में पांव भी न धरना; 16 क्योंकि वे बुराई की करने को दौड़ते हैं, और हत्या करने को फुर्ती करते हैं। 17 क्योंकि पक्की के देखते हुए जाल फैलाना व्यर्य होता है; 18 और थे लोग तो अपक्की ही हत्या करने के लिथे घात लगाते हैं, और अपके ही प्राणोंकी घात की ताक में रहते हैं। 19 सब लालचियोंकी चाल ऐसी ही होती है; उनका प्राण लालच ही के कारण नाश हो जाता है।। 20 बुद्धि सड़क में ऊंचे स्वर से बोलती है; और चौकोंमें प्रचार करती है; 21 वह बाजारोंकी भीड़ में पुकारती है; वह फाटकोंके बीच में और नगर के भीतर भी थे बातें बोलती है: 22 हे भोले लोगो, तुम कब तक भोलेपन से प्रीति रखोगे? और हे ठट्ठा करनेवालो, तुम कब तक ठट्ठा करने से प्रसन्न रहोगे? और हे मूर्खों, तुम कब तक ज्ञान से बैर रखोगे? 23 तुम मेरी डांट सुनकर मन फिराओ; सुनो, मैं अपक्की आत्मा तुम्हारे लिथे उण्डेल दूंगी; मैं तुम को अपके वचन बताऊंगी। 24 मैं ने तो पुकारा परन्तु तुम ने इनकार किया, और मैं ने हाथ फैलाया, परन्तु किसी ने ध्यान न दिया, 25 वरन तुम ने मेरी सारी सम्मति को अनसुनी किया, और मेरी ताड़ना का मूल्य न जाना; 26 इसलिथे मैं भी तुम्हारी विपत्ति के समय हंसूंगी; और जब तुम पर भय आ पकेगा, 27 वरन आंधी की नाई तुम पर भय आ पकेगा, और विपत्ति बवण्डर के समान आ पकेगी, और तुम संकट और सकेती में फंसोगे, तब मैं ठट्ठा करूंगी। 28 उस समय वे मुझे पुकारेंगे, और मैं न सुनूंगी; वे मुझे यत्न से तो ढूंढ़ेंगे, परन्तु न पाएंगे। 29 क्योंकि उन्होंने ज्ञान से बैर किया, और यहोवा का भय मानना उनको न भाया। 30 उन्होंने मेरी सम्पत्ति न चाही वरन मेरी सब ताड़नाओं को तुच्छ जाना। 31 इसलिथे वे अपक्की करनी का फल आप भोगेंगे, और अपक्की युक्तियोंके फल से अघा जाएंगे। 32 क्योंकि भोले लोगोंका भटक जाना, उनके घात किए जाने का कारण होगा, और निश्चिन्त रहने के कारण मूढ़ लोग नाश होंगे; 33 परन्तु जो मेरी सुनेगा, वह निडर बसा रहेगा, और बेखटके सुख से रहेगा।।
1 हे मेरे पुत्र, यदि तू मेरे वचन ग्रहण करे, और मेरी आज्ञाओं को अपके ह्रृदय में रख छोड़े, 2 और बुद्धि की बात ध्यान से सुने, और समझ की बात मन लगाकर सोचे; 3 और प्रवीणता और समझ के लिथे अति यत्न से पुकारे, 4 ओर उसको चान्दी की नाईं ढूंढ़े, और गुप्त धन के समान उसी खोज में लगा रहे; 5 तो तू यहोवा के भय को समझेगा, और परमेश्वर का ज्ञान तुझे प्राप्त होगा। 6 क्योंकि बुद्धि यहोवा ही देता है; ज्ञान और समझ की बातें उसी के मुंह से निकलती हैं। 7 वह सीधे लोगोंके लिथे खरी बुद्धि रख छोड़ता है; जो खराई से चलते हैं, उनके लिथे वह ढाल ठहरता है। 8 वह न्याय के पयोंकी देख भाल करता, और अपके भक्तोंके मार्ग की रझा करता है। 9 तब तू धर्म और न्याय, और सीधाई को, निदान सब भली-भली चाल समझ सकेगा; 10 क्योंकि बुद्धि तो तेरे ह्रृदय में प्रवेश करेगी, और ज्ञान तुझे मनभाऊ लगेगा; 11 विवेक तुझे सुरझित रखेगा; और समझ तेरी रझक होगी; 12 ताकि तुझे बुराई के मार्ग से, और उलट फेर की बातोंके कहने वालोंसे बचाए, 13 जो सीधाई के मार्ग को छोड़ देते हैं, ताकि अन्धेरे मार्ग में चलें; 14 जो बुराई करने से आनन्दित होते हैं, और दुष्ट जन की उलट फेर की बातोंमें मगन रहते हैं; 15 जिनकी चालचलन टेढ़ी मेढ़ी और जिनके मार्ग बिगड़े हुए हैं।। 16 तब तू पराई स्त्री से भी बचेगा, जो चिकनी चुपक्की बातें बोलती है, 17 और अपक्की जवानी के सायी को छोड़ देती, और जो अपके परमेश्वर की वाचा को भूल जाती है। 18 उसका घर मृत्यु की ढलान पर है, और उसी डगरें मरे हुओं के बीच पहुंचाती हैं; 19 जो उसके पास जाते हैं, उन में से कोई भी लौटकर नहीं आता; और न वे जीवन का मार्ग पाते हैं।। 20 तू भले मनुष्योंके मार्ग में चल, और धमिर्योंकी बाट को पकड़े रह। 21 क्योंकि धर्मी लोग देश में बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। 22 दुष्ट लोग देश में से नाश होंगे, और विश्वासघाती उस में से उखाड़े जाएंगे।।
1 हे मेरे पुत्र, मेरी शिझा को न भूलना; अपके ह्रृदय में मेरी आज्ञाओं को रखे रहना; 2 क्योंकि ऐसा करने से तेरी आयु बढ़ेगी, और तू अधिक कुशल से रहेगा। 3 कृपा और सच्चाई तुझ से अलग न होने पाएं; वरन उनको अपके गले का हार बनाना, और अपक्की ह्रृदयरूपी पटिया पर लिखना। 4 और तू परमेश्वर और मनुष्य दोनोंका अनुग्रह पाएगा, तू अति बुद्धिमान होगा।। 5 तू अपक्की समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। 6 उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वे तेरे लिथे सीधा मार्ग निकालेगा। 7 अपक्की दृष्टि में बुद्धिमान न होना; यहोवा का भय मानना, और बुराई से अलग रहना। 8 ऐसा करने से तेरा शरीर भला चंगा, और तेरी हड्डियां पुष्ट रहेंगी। 9 अपक्की संपत्ति के द्वारा और अपक्की भूमि की पहिली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना; 10 इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डोंसे नया दाखमधु उमण्डता रहेगा।। 11 हे मेरे पुत्र, यहोवा की शिझा से मुंह न मोड़ना, और जब वह तुझे डांटे, तब तू बुरा न मानना, 12 क्योंकि यहोवा जिस से प्रेम रखता है उसको डांटता है, जैसे कि बाप उस बेटे को जिसे वह अधिक चाहता है।। 13 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो बुद्धि पाए, और वह मनुष्य जो समझ प्राप्त करे, 14 क्योंकि बुद्धि की प्राप्ति चान्दी की प्राप्ति से बड़ी, और उसका लाभ चोखे सोने के लाभ से भी उत्तम है। 15 वह मूंगे से अधिक अनमोल है, और जितनी वस्तुओं की तू लालसा करता है, उन में से कोई भी उसके तुल्य न ठहरेगी। 16 उसके दहिने हाथ में दीर्घायु, और उसके बाएं हाथ में धन और महिमा है। 17 उसके मार्ग मनभाऊ हैं, और उसके सब मार्ग कुशल के हैं। 18 जो बुद्धि को ग्रहण कर लेते हैं, उनके लिथे वह जीवन का वृझ बनती है; और जो उसको पकड़े रहते हैं, वह धन्य हैं।। 19 यहोवा ने पृय्वी की नेव बुद्धि ही से डाली; और स्वर्ग को समझ ही के द्वारा स्यिर किया। 20 उसी के ज्ञान के द्वारा गहिरे सागर फूट निकले, और आकाशमण्डल से ओस टपकती है।। 21 हे मेरे पुत्र, थे बातें तेरी दृष्टि की ओट न हाने पाएं; खरी बुद्धि और विवेक की रझा कर, 22 तब इन से तुझे जीवन मिलेगा, और थे तेरे गले का हार बनेंगे। 23 और तू अपके मार्ग पर निडर चलेगा, और तेरे पांव में ठेस न लगेगी। 24 जब तू लेटेगा, तब भय न खाएगा, जब तू लेटेगा, तब सुख की नींद आएगी। 25 अचानक आनेवाले भय से न डरना, और जब दुष्टोंपर विपत्ति आ पके, तब न घबराना; 26 क्योंकि यहोवा तुझे सहारा दिया करेगा, और तेरे पांव को फन्दे में फंसने न देगा। 27 जिनका भला करना चाहिथे, यदि तुझ में शक्ति रहे, तो उनका भला करने से न रूकना।। 28 यदि तेरे पास देने को कुछ हो, तो अपके पड़ोसी से न कहना कि जा कल फिर आना, कल मैं तुझे दूंगा। 29 जब तेरा पड़ोसी तेरे पास बेखटके रहता है, तब उसके विरूद्ध बुरी युक्ति न बान्धना। 30 जिस मनुष्य ने तुझ से बुरा व्यवहार न किया हो, उस से अकारण मुकद्दमा खड़ा न करना। 31 उपद्रवी पुरूष के विषय में डाह न करना, न उसकी सी चाल चलना; 32 क्योंकि यहोवा कुटिल से घृणा करता है, परन्तु वह अपना भेद सीधे लोगोंपर खोलता है।। 33 दुष्ट के घर पर यहोवा का शाप और धमिर्योंके वासस्यान पर उसकी आशीष होती है। 34 ठट्ठा करनेवालोंसे वह निश्चय ठट्ठा करता है और दीनोंपर अनुग्रह करता है। 35 बुद्धिमान महिमा को पाएंगे, और मूर्खोंकी बढ़ती अपमान ही की होगी।।
1 हे मेरे पुत्रो, पिता की शिझा सुनो, और समझ प्राप्त करने में मन लगाओ। 2 क्योंकि मैं ने तुम को उत्तम शिझा दी है; मेरी शिझा को न छोड़ो। 3 देखो, मैं भी अपके पिता का पुत्र या, और माता का अकेला दुलारा या, 4 और मेरा पिता मुझे यह कहकर सिखाता या, कि तेरा मन मेरे वचन पर लगा रहे; तू मेरी आज्ञाओं का पालन कर, तब जीवित रहेगा। 5 बुद्धि को प्राप्त कर, समझ को भी प्राप्त कर; उनको भूल न जाना, न मेरी बातोंको छोड़ना। 6 बुद्धि को न छोड़, वह तेरी रझा करेगी; उस से प्रीति रख, वह तेरा पहरा देगी। 7 बुद्धि श्रेष्ट है इसलिथे उसकी प्राप्ति के लिथे यत्न कर; जो कुछ तू प्राप्त करे उसे प्राप्त तो कर परन्तु समझ की प्राप्ति का यत्न घटने न पाए। 8 उसकी बड़ाई कर, वह तुझ को बढ़ाएगी; जब तू उस से लिपट जाए, तब वह तेरी महिमा करेगी। 9 वह तेरे सिर पर शोभायमान भूषण बान्धेगी; और तुझे सुन्दर मुकुट देगी।। 10 हे मेरे पुत्र, मेरी बातें सुनकर ग्रहण कर, तब तू बहुत वर्ष तब जीवित रहेगा। 11 मैं ने तुझे बुद्धि का मार्ग बताया है; और सीधाई के पय पर चलाया है। 12 चलने में तुझे रोक टोक न होगी, और चाहे तू दौड़े, तौभी ठोकर न खाएगा। 13 शिझा को पकड़े रह, उसे छोड़ न दे; उसकी रझा कर, क्योंकि वही तेरा जीवन है। 14 दुष्टोंकी बाट में पांव न धरना, और न बुरे लोगोंके मार्ग पर चलना। 15 उसे छोड़ दे, उसके पास से भी न चल, उसके निकट से मुड़कर आगे बढ़ जा। 16 क्योंकि दुष्ट लोग यदि बुराई न करें, तो उनको नींद नहीं आती; और जब तक वे किसी को ठोकर न खिलाएं, तब तक उन्हें नींद नहीं मिलती। 17 वे तो दुष्टता से कमाई हुई रोटी खाते, और उपद्रव के द्वारा पाया हुआ दाखमधु पीते हैं। 18 परन्तु धमिर्योंकी चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है। 19 दुष्टोंका मार्ग घोर अन्धकारमय है; वे नहीं जानते कि वे किस से ठोकर खाते हैं।। 20 हे मेरे पुत्र मेरे वचन ध्यान धरके सुन, और अपना कान मेरी बातोंपर लगा। 21 इनको अपक्की आंखोंकी ओट न होने दे; वरन अपके मन में धारण कर। 22 क्योंकि जिनकोंवे प्राप्त होती हैं, वे उनके जीवित रहने का, और उनके सारे शरीर के चंगे रहने का कारण होती हैं। 23 सब से अधिक अपके मन की रझा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है। 24 टेढ़ी बात अपके मुंह से मत बोल, और चालबाजी की बातें कहना तुझ से दूर रहे। 25 तेरी आंखें साम्हने ही की ओर लगी रहें, और तेरी पलकें आगे की ओर खुली रहें। 26 अपके पांव धरने के लिथे मार्ग को समयर कर, और तेरे सब मार्ग ठीक रहें। 27 न तो दहिनी ओर मुढ़ना, और न बाईं ओर; अपके पांव को बुराई के मार्ग पर चलने से हटा ले।।
1 हे मेरे पुत्र, मेरी बुद्धि की बातोंपर ध्यान दे, मेरी समझ की ओर कान लगा; 2 जिस से तेरा विवेक सुरझित बना रहे, और तू ज्ञान के वचनोंको यामें रहे। 3 क्योंकि पराई स्त्री के ओठोंसे मधु टपकता है, और उसकी बातें तेल से भी अधिक चिकनी होती हैं; 4 परन्तु इसका परिणाम नागदौना सा कडुवा और दोधारी तलवार सा पैना होता है। 5 उसके पांव मृत्यु की ओर बढ़ते हैं; और उसके पग अधोलोक तक पहुंचते हैं।। 6 इसलिथे उसे जीवन का समयर पय नहीं मिल पाता; उसके चालचलन में चंचलता है, परन्तु उसे वह आप नहीं जानती।। 7 इसलिथे अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो, और मेरी बातोंसे मुंह न मोड़ो। 8 ऐसी स्त्री से दूर ही रह, और उसकी डेवढ़ी के पास भी न जाना; 9 कहीं ऐसा न हो कि तू अपना यश औरोंके हाथ, और अपना जीवन क्रूर जन के वश में कर दे; 10 या पराए तेरी कमाई से अपना पेट भरें, और पकेदशी मनुष्य तेरे परिश्र्म का फल अपके घर में रखें; 11 और तू अपके अन्तिम समय में जब कि तेरा शरीर झीण हो जाए तब यह कहकर हाथ मारने लगे, कि 12 मैं ने शिझा से कैसा बैर किया, और डांटनेवाले का कैसा तिरस्कार किया! 13 मैं ने अपके गुरूओं की बातें न मानी और अपके सिखानेवालोंकी ओर ध्यान न लगाया। 14 मैं सभा और मण्डली के बीच में प्राय: सब बुराइयोंमें जा पड़ा।। 15 तू अपके ही कुण्ड से पानी, और अपके ही कूंए से सोते का जल पिया करना। 16 क्या तेरे सोतोंका पानी सड़क में, और तेरे जल की धारा चौकोंमें बह जाने पाए? 17 यह केवल तेरे ही लिथे रहे, और तेरे संग औरोंके लिथे न हो। 18 तेरा सोता धन्य रहे; और अपक्की जवानी की पत्नी के साय आनन्दित रह, 19 प्रिय हरिणी वा सुन्दर सांभरनी के समान उसके स्तन सर्वदा तुझे संतुष्ट रखे, और उसी का प्रेम नित्य तुझे आकषिर्त करता रहे। 20 हे मेरे पुत्र, तू अपरिचित स्त्री पर क्योंमोहित हो, और पराई को क्योंछाती से लगाए? 21 क्योंकि मनुष्य के मार्ग यहोवा की दृष्टि से छिपे नहीं हैं, और वह उसके सब मार्गोंपर ध्यान करता है। 22 दुष्ट अपके ही अधर्म के कर्मोंसे फंसेगा, और अपके ही पाप के बन्धनोंमें बन्धा रहेगा। 23 वह शिझा प्राप्त किए बिना मर जाएगा, और अपक्की ही मूर्खता के कारण भटकता रहेगा।।
1 हे मरे पुत्र, यदि तू अपके पड़ोसी का उत्तरदायी हुआ हो, अयवा परदेशी के लिथे हाथ पर हाथ मार कर उत्तरदायी हुआ हो, 2 तो तू अपके ही मूंह के वचनोंसे फंसा, और अपके ही मुंह की बातोंसे पकड़ा गया। 3 इसलिथे हे मेरे पुत्र, एक काम कर, अर्यात् तू जो अपके पड़ोसी के हाथ में पड़ चुका है, तो जा, उसको साष्टांग प्रणाम करके मना ले। 4 तू ने तो अपक्की आखोंमें नींद, और न अपक्की पलकोंमें झपक्की आने दे; 5 और अपके आप को हरिणी के समान शिकारी के हाथ से, और चिडिय़ा के समान चिडिक़ार के हाथ से छुड़ा।। 6 हे आलसी, च्यूंटियोंके पास जा; उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो। 7 उनके न तो कोई न्यायी होता है, न प्रधान, और न प्रभुता करनेवाला, 8 तौभी वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं, और कटनी के समय अपक्की भोजनवस्तु बटोरती हैं। 9 हे आलसी, तू कब तक सोता रहेगा? तेरी नींद कब टूटेगी? 10 कुछ और सो लेना, योड़ी सी नींद, एक और झपक्की, योड़ा और छाती पर हाथ रखे लेटे रहना, 11 तब तेरा कंगालपन बटमार की नाई और तेरी घटी हयियारबन्द के समान आ पकेगी।। 12 ओछे और अनर्यकारी को देखो, वह टेढ़ी टेढ़ी बातें बकता फिरता है, 13 वह नैन से सैन और पांव से इशारा, और अपक्की अगुंलियोंसे सकेंत करता है, 14 उसके मन में उलट फेर की बातें रहतीं, वह लगातार बुराई गढ़ता है और फगड़ा रगड़ा उत्पन्न करता है। 15 इस कारण उस पर विपत्ति अचानक आ पकेगी, वह पल भर में ऐसा नाश हो जाएगा, कि बचने का कोई उपाय न रहेगा।। 16 छ: वस्तुओं से यहोवा बैर रखता है, वरन सात हैं जिन से उसको धृणा है 17 अर्यात् घमण्ड से चक्की हुई आंखें, फूठ बोलनेवाली जीभ, और निर्दोष का लोहू बहानेवाले हाथ, 18 अनर्य कल्पना गढ़नेवाला मन, बुराई करने को वेग दौड़नेवाले पांव, 19 फूठ बोलनेवाला साझी और भाइयोंके बीच में फगड़ा उत्पन्न करनेवाला मनुष्य। 20 हे मेरे पुत्र, मेरी आज्ञा को मान, और अपक्की माता की शिझा का न तज। 21 इन को अपके ह्रृदय में सदा गांठ बान्धे रख; और अपके गले का हार बना ले। 22 वह तेरे चलने में तेरी अगुवाई, और सोते समय तेरी रझा, और जागते समय तुझ से बातें करेगी। 23 आज्ञा तो दीपक है और शिझा ज्योति, और सिखानेवाले की डांट जीवन का मार्ग है, 24 ताकि तुझ को बुरी स्त्री से बचाए और पराई स्त्री की चिकनी चुपक्की बातोंसे बचाए। 25 उसकी सुन्दरता देखकर अपके मन में उसकी अभिलाषा न कर; वह तुझे अपके कटाक्ष से फंसाने न पाए; 26 क्योंकि वेश्यागमन के कारण मनुष्य टुकड़ोंका भिखारी हो जाता है, परन्तु व्यभिचारिणी अनमोल जीवन का अहेर कर लेती है। 27 क्या हो सकता है कि कोई अपक्की छाती पर आग रख ले; और उसके कपके न जलें? 28 क्या हो सकता है कि कोई अंगारे पर चले, और उसके पांव न फुलसें? 29 जो पराई स्त्री के पास जाता है, उसकी दशा ऐसी है; वरन जो कोई उसको छूएगा वह दण्ड से न बचेगा। 30 जो चारे भूख के मारे अपना पेट भरने के लिथे चोरी करे, उसके तो लोग तुच्छ नहीं जानते; 31 तौभी यदि वह पकड़ा जाए, तो उसको सातगुणा भर देना पकेगा; वरन अपके घर का सारा धन देना पकेगा। 32 परनतु जो परस्त्रीगमन करता है वह निरा निर्बुद्ध है; जो अपके प्राणोंको नाश करना चाहता है, वह ऐसा करता है।। 33 उसको घायल और अपमानित होना पकेगा, और उसकी नामधराई कभी न मिटेगी। 34 क्योंकि जलन से पुरूष बहुत ही क्रोधित हो जाता है, और पलटा लेने के दिन वह कुछ कोमलता नहीं दिखाता। 35 वह घूस पर दृष्टि न करेगा, और चाहे तू उसको बहुत कुछ दे, तौभी वह न मानेगा।।
1 हे मेरे पुत्र, मेरी बातोंको माना कर, और मेरी आज्ञाओं को अपके मन में रख छोड़। 2 मेरी आज्ञाओं को मान, इस से तू जीवित रहेगा, और मेरी शिझा को अपक्की आंख की पुतली जान; 3 उनको अपक्की उंगलियोंमें बान्ध, और अपके ह्रृदय की पटिया पर लिख ले। 4 बुद्धि से कह कि, तू मेरी बहिन है, और समझ को अपक्की सायिन बना; 5 तब तू पराई स्त्री से बचेगा, जो चिकनी चुपक्की बातें बोलती है।। 6 मैं ने एक दिन अपके घर की खिड़की से, अर्यात् अपके फरोखे से फांका, 7 तब मैं ने भोले लोगोंमें से एक निर्बुद्धि जवान को देखा; 8 वह उस स्त्री के घर के कोने के पास की सड़क पर चला जाता या, और उस ने उसके घर का मार्ग लिया। 9 उस समय दिन ढल गया, और संध्याकाल आ गया या, वरन रात का घोर अन्धकार छा गया या। 10 और उस से एक स्त्री मिली, जिस का भेष वेश्या का सा या, और वह बड़ी धूर्त यी। 11 वह शान्तिरहित और चंचल यी, और अपके घर में न ठहरती यी; 12 कभी वह सड़क में, कभी चौक में पाई जाती यी, और एक एक कोने पर वह बाट जोहती यी। 13 तब उस ने उस जवान को पकड़कर चूमा, और निर्लज्जता की चेष्टा करके उस से कहा, 14 मुझे मेलबलि चढ़ाने थे, और मैं ने अपक्की मन्नते आज ही पूरी की हैं; 15 इसी कारण मैं तुझ से भेंट करने को निकली, मैं तेरे दर्शन की खोजी यी, सो अभी पाया है। 16 मैं ने अपके पलंग के बिछौने पर मिस्र के बेलबूटेवाले कपके बिछाए हैं; 17 मैं ने अपके बिछौने पर गन्घरस, अगर और दालचीनी छिड़की है। 18 इसलिथे अब चल हम प्रेम से भोर तक जी बहलाते रहें; हम परस्पर की प्रीति से आनन्दित रहें। 19 क्योंकि मेरा पति घर में नहीं है; वह दूर देश को चला गया है; 20 वह चान्दी की यैली ले गया है; और पूर्णमासी को लौट आएगा।। 21 ऐसी ही बातें कह कहकर, उस ने उसको अपक्की प्रबल माया में फंसा लिया; और अपक्की चिकनी चुपक्की बातोंसे उसको अपके वश में कर लिया। 22 वह तुरन्त उसके पीछे हो लिया, और बैल कसाई-खाने को, वा जौसे बेड़ी पहिने हुए कोई मूढ़ ताड़ना पाने को जाता है। 23 अन्त में उस जवान का कलेजा तीर से बेधा जाएगा; वह उस चिडिय़ा के समान है जो फन्दे की ओर वेग से उड़े और न जानती हो कि उस में मेरे प्राण जाएंगे।। 24 अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो, और मेरी बातोंपर मन लगाओ। 25 तेरा मन ऐसी स्त्री के मार्ग की ओर न फिरे, और उसकी डगरोंमें भूल कर न जाना; 26 क्योंकि बहुत लोग उस से मारे पके हैं; उसके घात किए हुओं की एक बड़ी संख्या होगी। 27 उसका घर अधोलोक का मार्ग है, वह मृत्यु के घर में पहुंचाता है।।
1 क्या बुद्धि नहीं पुकारती है, क्या समझ ऊंचे शब्द से नहीं बोलती है? 2 वह तो ऊंचे स्यानोंपर मार्ग की एक ओर ओर तिर्मुहानियोंमें खड़ी होती है; 3 फाटकोंके पास नगर के पैठाव में, और द्वारोंही में वह ऊंचे स्वर से कहती है, 4 हे मनुष्यों, मैं तुम को पुकारती हूं, और मेरी बात सब आदमियोंके लिथे है। 5 हे भोलो, चतुराई सीखो; और हे मूर्खों, अपके मन में समझ लों 6 सुनो, क्योंकि मैं उत्तम बातें कहूंगी, और जब मुंह खोलूंगी, तब उस से सीधी बातें निकलेंगी; 7 क्योंकि मुझ से सच्चाई की बातोंका वर्णन होगा; दुष्टता की बातोंसे मुझ को घृणा आती है।। 8 मेरे मुंह की सब बातें धर्म की होती हैं, उन में से कोई टेढ़ी वा उलट फेर की बात नहीं निकलती है। 9 समझवाले के लिथे वे सब सहज, और ज्ञान के प्राप्त करनेवालोंके लिथे अति सीधी हैं। 10 चान्दी नहीं, मेरी शिझा ही को लो, और उत्तम कुन्दन से बढ़कर ज्ञान को ग्रहण करो। 11 क्योंकि बुद्धि, मूंगे से भी अच्छी है, और सारी मनभावनी वस्तुओं में कोई भी उसके तुल्य नहीं है। 12 मैं जो बुद्धि हूं, सो चतुराई में वास करती हूं, और ज्ञान और विवेक को प्राप्त करती हूं। 13 यहोवा का भय मानना बुराई से बैर रखना है। घमण्ड, अंहकार, और बुरी चाल से, और उलट फेर की बात से भी मैं बैर रखती हूं। 14 उत्तम युक्ति, और खरी बुद्धि मेरी ही है, मैं तो समझ हूं, और पराक्रम भी मेरा है। 15 मेरे ही द्वारा राजा राज्य करते हैं, और अधिक्कारनेी धर्म से विचार करते हैं; 16 मेरे ही द्वारा राजा हाकिम और रईस, और पृय्वी के सब न्यायी शासन करते हैं। 17 जो मुझ से प्रेम रखते हैं, उन से मैं भी प्रेम रखती हूं, और जो मुझ को यत्न से तड़के उठकर खोजते हैं, वे मुझे पाते हैं। 18 धन और प्रतिष्ठा मेरे पास है, वरन ठहरनेवाला धन और धर्म भी हैं। 19 मेरा फल चोखे सोने से, वरन कुन्दन से भी उत्तम है, और मेरी उपज उत्तम चान्दी से अच्छी है। 20 मैं धर्म की बाट में, और न्याय की डगरोंके बीच में चलती हूं, 21 जिस से मैं अपके प्रेमियोंको परमार्य के भागी करूं, और उनके भण्डारोंको भर दूं। 22 यहोवा ने मुझे काम करते के आरम्भ में, वरन अपके प्राचीनकाल के कामोंसे भी पहिले उत्पन्न किया। 23 मैं सदा से वरन आदि ही से पृय्वी की सृष्टि के पहिले ही से ठहराई गई हूं। 24 जब न तो गहिरा सागर या, और न जल के सोते थे तब ही से मैं उत्पन्न हुई। 25 जब पहाड़ वा पहाडिय़ां स्यिर न की गई यीं, 26 जब यहोवा ने न तो पृय्वी और न मैदान, न जगत की धूलि के परमाणु बनाए थे, इन से पहिले मैं उत्पन्न हुई। 27 जब उस ने अकाश को स्यिर किया, तब मैं वहां यी, जब उस ने गहिरे सागर के ऊपर आकाशमण्डल ठहराया, 28 जब उस ने आकाशमण्डल को ऊपर से स्यिर किया, और गहिरे सागर के सोते फूटने लगे, 29 जब उस ने समुद्र का सिवाना ठहराया, कि जल उसकी आज्ञा का उल्लंघन न कर सके, और जब वह पृय्वी की नेव की डोरी लगाता या, 30 तब मैं कारीगर सी उसके पास यी; और प्रति दिन मैं उसकी प्रसन्नता यी, और हस समय उसके साम्हने आनन्दित रहती यी। 31 मैं उसकी बसाई हुई पृय्वी से प्रसन्न यी और मेरा सुख मनुष्योंकी संगति से होता या।। 32 इसलिथे अब हे मेरे पुत्रों, मेरी सुनो; क्या ही धन्य हैं वे जो मेरे मार्ग को पकड़े रहते हैं। 33 शिझा को सुनो, और बुद्धिमान हो जाओ, उसके विषय में अनसुनी न करो। 34 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो मेरी सुनता, वरन मेरी डेवढ़ी पर प्रति दिन खड़ा रहता, और मेरे द्वारोंके खंभोंके पास दृष्टि लगाए रहता है। 35 क्योंकि जो मुझे पाता है, वह जीवन को पाता है, और यहोवा उस से प्रसन्न होता है। 36 परन्तु जो मेरा अपराध करता है, वह अपके ही पर उपद्रव करता है; जितने मुझ से बैर रखते वे मृत्यु से प्रीति रखते हैं।।
1 बुद्धि ने अपना घर बनाया और उसके सातोंखंभे गढ़े हुए हैं। 2 उस ने अपके पशु वध करके, अपके दाखमधु में मसाला मिलाया है, और अपक्की मेज़ लगाई है। 3 उस ने अपक्की सहेलियां, सब को बुलाने के लिथे भेजी है; वह नगर के ऊंचे स्यानोंकी चोटी पर पुकारती है, 4 जो कोई भोला हे वह मुड़कर यहीं आए! और जो निर्बुद्धि है, उस से वह कहती है, 5 आओ, मेरी रोटी खाओ, और मेरे मसाला मिलाए हुए दाखमधु को पीओ। 6 भोलोंका संग छोड़ो, और जीवित रहो, समझ के मार्ग में सीधे चलो। 7 जो ठट्ठा करनेवाले को शिझा देता है, सो अपमानित होता है, और जो दुष्ट जन को डांटता है वह कलंकित होता है।। 8 ठट्ठा करनेवाले को न डांट ऐसा न हो कि वह तुझ से बैर रखे, बुद्धिमान को डांट, वह तो तुझ से प्रेम रखेगा। 9 बुद्धिमान को शिझा दे, वह अधिक बुद्धिमान होगा; धर्मी को चिता दे, वह अपक्की विद्या बढ़ाएगा। 10 यहोवा का भय मानना बुद्धि का आरम्भ है, और परमपवित्र ईश्वर को जानना ही समझ है। 11 मेरे द्वारा तो तेरी आयु बढ़ेगी, और तेरे जीवन के वर्ष अधिक होंगे। 12 यदि तू बुद्धिमान हो, ते बुद्धि का फल तू ही भोगेगा; और यदि तू ठट्ठा करे, तो दण्ड केवल तू ही भोगेगा।। 13 मूर्खतारूपी स्त्री हौरा मचानेवाली है; वह तो भोली है, और कुछ नहीं जानती। 14 वह अपके घर के द्वार में, और नगर के ऊंचे स्यानोंमें मचिया पर बैठी हुई 15 जो बटोही अपना अपना मार्ग पकड़े हुए सीधे चले जाते हैं, उनको यह कह कहकर पुकारती है, 16 जो कोई भोला है, वह मुड़कर यहीं आए; जो निर्बुद्धि है, उस से वह कहती है, 17 चोरी का पानी मीठा होता है, और लुके छिपे की रोटी अच्छी लगती है। 18 और वह नहीं जानता है, कि वहां मरे हुए पके हैं, और उस स्त्री के नेवतहारी अधोलोक के निचले स्यानोंमें पहुंचे हैं।।
1 सुलैमान के नीतिवचन।। बुद्धिमान पुत्र से पिता आनन्दित होता है, परन्तु मूर्ख पुत्र के कारण माता उदास रहती है। 2 दुष्टोंके रखे हुए धन से लाभ नही होता, परन्तु धर्म के कारण मृत्यु से बचाव होता है। 3 धर्मी को यहोवा भूखोंमरने नहीं देता, परन्तु दुष्टोंकी अभिलाषा वह पूरी होने नहीं देता। 4 जो काम में ढिलाई करता है, वह निर्धन हो जाता है, परन्तु काममाजु लोग अपके हाथोंके द्वारा धनी होते हैं। 5 जो बेटा धूपकाल में बटोरता है वह बुद्धि से काम करनेवाला है, परन्तु जो बेटा कटनी के समय भारी नींद में पड़ा रहता है, वह लज्जा का कारण होता है। 6 धर्मी पर बहुत से आर्शीवाद होते हैं, परन्तु उपद्रव दुष्टोंका मुंह छा लेता है। 7 धर्मी को स्मरण करके लोग आशीर्वाद देते हैं, परन्तु दुष्टोंका नाम मिट जाता है। 8 जो बुद्धिमान है, वह आज्ञाओं को स्वीकार करता है, परन्तु जो बकवादी और मूढ़ है, वह पछाड़ खाता है। 9 जो खराई से चलता है वह निडर चलता है, परन्तु जो टेढ़ी चाल चलता है उसकी चाल प्रगट हो जाती है। 10 जो नैन से सैन करता है उस से औरोंको दुख मिलता है, और जो बकवादी और मूढ़ है, वह पछाड़ खाता है। 11 धर्मी का मुंह तो जीवन का सोता है, परन्तु उपद्रव दुष्टोंका मुंह छा लेता है। 12 बैर से तो फगड़े उत्पन्न होते हैं, परन्तु प्रेम से सब अपराध ढंप जाते हैं। 13 समझवालोंके वचनोंमें बुद्धि पाई जाती है, परन्तु निर्बुद्धि की पीठ के लिथे कोड़ा है। 14 बुद्धिमान लोग ज्ञान को रख छोड़ते हैं, परन्तु मूढ़ के बोलने से विनाश निकट आता है। 15 धनी का धन उसका दृढ़ नगर है, परन्तु कंगाल लोग निर्धन होने के कारण विनाश होते हैं। 16 धर्मी का परिश्र्म जीवन के लिथे होता है, परन्तु दुष्ट के लाभ से पाप होता है। 17 जो शिझा पर चलता वह जीवन के मार्ग पर है, परन्तु जो डांट से मुंह मोड़ता, वह भटकता है। 18 जो बैर को छिपा रखता है, वह फूठ बोलता है, और जो अपवाद फैलाता है, वह मूर्ख है। 19 जहां बहुत बातें होती हैं, वहां अपराध भी होता है, परन्तु जो अपके मुंह को बन्द रखता है वह बुद्धि से काम करता है। 20 धर्मी के वचन तो उत्तम चान्दी हैं; परन्तु दुष्टोंका मन बहुत हलका होता है। 21 धर्मी के वचनोंसे बहुतोंका पालनपोषण होता है, परन्तु मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के ारण मर जाते हैं। 22 धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है, और वह उसके साय दु:ख नहीं मिलाता। 23 मूर्ख को तो महापाप करना हंसी की बात जान पड़ती है, परन्तु समझवाले पुरूष में बुद्धि रहती है। 24 दुष्ट जन जिस विपत्ति से डरता है, वह उस पर आ पड़ती है, परन्तु धमिर्योंकी लालसा पूरी होती है। 25 बवण्डर निकल जाते ही दुष्ट जन लोप हो जाता है, परन्तु धर्मी सदा लोंस्यिर है। 26 जैसे दांत को सिरका, और आंख को धूंआ, वैसे आलसी उनको लगात है जो उसको कहीं भेजते हैं। 27 यहोवा के भय मानने से आयु बढ़ती है, परन्तु दुष्टोंका जीवन योड़े ही दिनोंका होता है। 28 धमिर्योंको आशा रखने में आनन्द मिलता है, परन्तु दुष्टोंकी आशा टूट जाती है। 29 यहोवा खरे मनुष्य का गढ़ ठहरता है, परन्तु अनर्यकारियोंका विनाश होता है। 30 धर्मी सदा अटल रहेगा, परन्तु दुष्ट पृय्वी पर बसने न पाएंगे। 31 धर्मी के मुंह से बुद्धि टपकती है, पर उलट फेर की बात कहने वाले की जीभ काटी जाथेगी। 32 धर्मी गहणयोग्य बात समझ कर बोलता है, परन्तु दुष्टोंके मुंह से उलट फेर की बातें निकलती हैं।।
1 छल के तराजू से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु वह पूरे बटखरे से प्रसन्न होता है। 2 जब अभिमान होता, तब अपमान भी होता है, परन्तु नम्र लोगोंमें बुद्धि होती है। 3 सीधे लोग अपक्की खराई से अगुवाई पाते हैं, परन्तु विश्वासघाती अपके कपट से विनाश होते हैं। 4 कोप के दिन धन से तो कुछ लाभ नहीं होता, परन्तु धर्म मृत्यु से भी बचाता है। 5 खरे मनुष्य का मार्ग धर्म के कारण सीधा होता है, परन्तु दुष्ट अपक्की दुष्टता के कारण गिर जाता है। 6 सीधे लोगोंको बचाव उनके धर्म के कारण होता है, परन्तु विश्वासघाती लोग अपक्की ही दुष्टता में फंसते हैं। 7 जब दुष्ट मरता, तब उसकी आशा टूट जाती है, और अधर्मी की आशा व्यर्य होती है। 8 धर्मी विपत्ति से छूट जाता है, परन्तु दुष्ट उसी विपत्ति में पड़ जाता है। 9 भक्तिहीन जन अपके पड़ोसी को अपके मुंह की बात से बिगाड़ता है, परन्तु धर्मी लोग ज्ञान के द्वारा बचते हैं। 10 जब धमिर्योंका कल्याण होता है, तब नगर के लोग प्रसन्न होते हैं, परन्तु जब दुष्ट नाश होते, तब जय-जयकार होता है। 11 सीधे लोगोंके आशीर्वाद से नगर की बढ़ती होती है, परन्तु दुष्टोंके मुंह की बात से वह ढाया जाता है। 12 जो अपके पड़ोसी को तुच्छ जानता है, वह निर्बुद्धि है, परन्तु समझदार पुरूष चुपचाप रहता है। 13 जो लुतराई करता फिरता वह भेद प्रगट करता है, परन्तु विश्वासयोग्य मनुष्य बात को छिपा रखता है। 14 जहां बुद्धि की युक्ति नहीं, वहां प्रजा विपत्ति में पड़ती है; परन्तु सम्मति देनेवालोंकी बहुतायत के कारण बचाव होता है। 15 जो परदेशी का उत्तरदायी होता है, वह बड़ा दु:ख उठाता है, परन्तु जो उत्तरदायित्व से घृणा करता, वह निडर रहता है। 16 अनुग्रह करनेवाली स्त्री प्रतिष्ठा नहीं खोती है, और बलात्कारी लाग धन को नहीं खोते। 17 कृपालु मनुष्य अपना ही भला करता है, परन्तु जो क्रूर है, वह अपक्की ही देह को दु:ख देता है। 18 दुष्ट मिय्या कमाई कमाता है, परन्तु जो धर्म का बीज बोता, उसको निश्चय फल मिलता है। 19 जो धर्म में दृढ़ रहता, वह जीवन पाता है, परन्तु जो बुराई का पीछा करता, वह मृत्यु का कौर हो जाता है। 20 जो मन के टेढ़े है, उन से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु वह खरी चालवालोंसे प्रसन्न रहता है। 21 मैं दृढ़ता के साय कहता हूं, बुरा मनुष्य निर्दोष न ठहरेगा, परन्तु धर्मी का वंश बचाया जाएगा। 22 जो सुन्दर स्त्री विवेक नहीं रखती, वह यूयन में सोने की नत्य पहिने हुए सूअर के समान है। 23 धमिर्योंकी लालसा तो केवल भलाई की होती है; परन्तु दुष्टोंकी आशा का फल क्रोध ही होता है। 24 ऐसे हैं, जो छितरा देते हैं, तौभी उनकी बढ़ती ही होती है; और ऐसे भी हैं जो यर्याय से कम देते हैं, और इस से उनकी घटती ही होती है। 25 उदार प्राणी ह्रृष्ट पुष्ट हो जाता है, और जो औरोंकी खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी। 26 जो अपना अनाज रख छोड़ता है, उसकी लोग शाप देते हैं, परन्तु जो उसे बेच देता है, उसको आशीर्वाद दिया जाता है। 27 जो यत्न से भलाई करता है वह औरोंकी प्रसन्नता खोजता है, परन्तु जो दूसरे की बुराई का खोजी होता है, उसी पर बुराई आ पड़ती है। 28 जो अपके धन पर भरोसा रखता है वह गिर जाता है, परन्तु धर्मी लोग नथे पत्ते की नाई लहलहाते हैं। 29 जो अपके घराने को दु:ख देता, उसका भाग वायु ही होगा, और मूढ़ बुद्धिमान का दास हो जाता है। 30 धर्मी का प्रतिफल जीवन का वृझ होता है, और बुद्धिमान मनुष्य लोगोंके मन को मोह लेता है। 31 देख, धर्मी को पृय्वी पर फल मिलेगा, तो निश्चय है कि दुष्ट और पापी को भी मिलेगा।।
1 जो शिझा पाने में प्रीति रखता है वह ज्ञान से प्रीति रखता है, परन्तु जो डांट से बैर रखता, वह पशु सरीखा है। 2 भले मनुष्य से तो यहोवा प्रसन्न होता है, परन्तु बुरी युक्ति करनेवाले को वह दोषी ठहराता है। 3 कोई मनुष्य दुष्टता के कारण स्यिर नहीं होता, परन्तु धमिर्योंकी जड़ उखड़ने की नहीं। 4 भली स्त्री अपके पति का मुकुट है, परन्तु जो लज्जा के काम करती वह मानो उसकी हड्डियोंके सड़ने का कारण होती है। 5 धमिर्योंकी कल्पनाएं न्याय ही की होती हैं, परन्तु दुष्टोंकी युक्तियां छल की हैं। 6 दुष्टोंकी बातचीत हत्या करने के लिथे घात लगाने के विषय में होती है, परन्तु सीधे लोग अपके मुंह की बात के द्वारा छुड़ानेवाले होते हैं। 7 जब दुष्ट लोग उलटे जाते हैं तब वे रहते ही नहीं, परन्तु धमिर्योंका घर स्यिर रहता है। 8 मनुष्य कि बुद्धि के अनुसार उसकी प्रशंसा होती है, परन्तु कुटिल तुच्छ जाना जाता है। 9 जो रोटी की आस लगाए रहता है, और बड़ाई मारता है, उस से दास रखनेवाला तुच्छ मनुष्य भी उत्तम है। 10 धर्मी अपके पशु के भी प्राण की सुधि रखता है, परन्तु दुष्टोंकी दया भी निर्दयता है। 11 जो अपक्की भूमि को जोतता, वह पेट भर खाता है, परन्तु जो निकम्मोंकी संगति करता, वह निर्बुद्धि ठहरता है। 12 दुष्ट जन बुरे लोगोंके जाल की अभिलाषा करते हैं, परन्तु धमिर्योंकी जड़ हरी भरी रहती है। 13 बुरा मनुष्य अपके दुर्वचनोंके कारण फन्दे में फंसता है, परन्तु धर्मी संकट से निकास पाता है। 14 सज्जन अपके वचनोंके फल के द्वारा भलाई से तृप्त होता है, और जैसी जिसकी करनी वैसी उसकी भरनी होती है। 15 मूढ़ को अपक्की ही चाल सीधी जान पड़ती है, परन्तु जो सम्मति मानता, वह बुद्धिमान है। 16 मूढ़ की रिस उसी दिन प्रगट हो जाती है, परन्तु चतुर अपमान को छिपा रखता है। 17 जो सच बोलता है, वह धर्म प्रगट करता है, परन्तु जो फूठी साझी देता, वह छल प्रगट करता है। 18 ऐसे लोग हैं जिनका बिना सोचविचार का बोलना तलवार की नाई चुभता है, परन्तु बुद्धिमान के बोलने से लोग चंगे होते हैं। 19 सच्चाई सदा बनी रहेगी, परन्तु फूढ पल ही भर का होता है। 20 पुरी युक्ति करनेवालोंके मन में छल रहता है, परन्तु मेल की युक्ति करनेवालोंको आनन्द होता है। 21 धर्मी को हानि नहीं होती है, परन्तु दुष्ट लोग सारी विपत्ति में डूब जाते हैं। 22 फूठोंसे यहोवा को घृणा आती है परन्तु जो विश्वास से काम करते हैं, उन से वह प्रसन्न होता है। 23 चतुर मनुष्य ज्ञान को प्रगट नहीं करता है, परन्तु मूढ़ अपके मन की मूढ़ता ऊंचे शब्द से प्रचार करता है। 24 कामकाजी लोग प्रभुता करते हैं, परन्तु आलसी बगारी में पकड़े जाते हैं। 25 उदास मन दब जाता है, परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है। 26 धर्मी अपके पड़ोसी की अगुवाई करता है, परन्तु दुष्ट लोग अपक्की ही चाल के कारण भटक जाते हैं। 27 आलसी अहेर का पीछा नहीं करता, परन्तु कामकाजी को अनमोल वस्तु मिलती है। 28 धर्म की बाट में जीवन मिलता है, और उसके पय में मृत्यु का पता भी नहीं।।
1 बुद्धिमान पुत्रा पिता की शिक्षा सुनता है, परन्तु ठट्ठा करनेवाला घुड़की को भी नहीं सुनता। 2 सज्जन अपक्की बातोंके कारण उत्तम वस्तु खाने पाता है, परन्तु विश्वासघाती लोगोंका पेट उपद्रव से भरता है। 3 जो अपके मुंह की चौकसी करता है, वह अपके प्राण की रक्षा करता है, परन्तु जो गाल बजाता उसका विनाश जो जाता है। 4 आलसी का प्राण लालसा तो करता है, और उसको कुछ नहीं मिलता, परन्तु कामकाजी हृष्ट पुष्ट हो जाते हैं। 5 धर्मी झूठे वचन से बैर रखता है, परन्तु दुष्ट लज्जा का कारण और लज्जित हो जाता है। 6 धर्म खरी चाल चलनेवाली की रक्षा करता है, परन्तु पापी अपक्की दुष्टता के कारण उलट जाता है। 7 कोई तो धन बटोरता, परन्तु उसके पास कुछ नहीं रहता, और कोई धन उड़ा देता, तौभी उसके पास बहुत रहता है। 8 प्राण की छुड़ौती मनुष्य का धन है, परन्तु निर्धन घुड़की को सुनता भी नहीं। 9 धर्मियोंकी ज्योति आनन्द के साथ रहती है, परन्तु दुष्टोंका दिया बुझ जाता है। 10 झगड़े रगड़े केवल अंहकार ही से होते हैं, परन्तु जो लोग सम्मति मानते हैं, उनके पास बुद्धि रहती है। 11 निर्धन के पास माल नहीं रहता, परन्तु जो अपके परिश्रम से बटोरता, उसकी बढ़ती होती है। 12 जब आशा पूरी होने से विलम्ब होता है, तो मन शिथिल होता है, परन्तु जब लालसा पूरी होती है, तब जीवन का वृक्ष लगता है। 13 जो वचन को तुच्छ जानता, वह नाश हो जाता है, परन्तु आज्ञा के डरवैथे को अच्छा फल मिलता है। 14 बुद्धिमान की शिक्षा का जीवन का सोता है, और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फन्दोंसे बच सकते हैं। 15 सुबुद्धि के कारण अनुग्रह होता है, परन्तु विश्वासघातियोंका मार्ग कड़ा होता है। 16 सब चतुर तो ज्ञान से काम करते हैं, परन्तु मूर्ख अपक्की मूढ़ता फैलाता है। 17 दुष्ट दूत बुराई में फंसता है, परन्तु विश्वासयोग्य दूत से कुशलक्षेम होता है। 18 जो शिक्षा को सुनी- अनसुनी करता वह निर्धन होता और अपमान पाता है, परन्तु जो डांट को मानता, उसकी महिमा होती है। 19 लालसा का पूरा होना तो प्राण को मीठा लगता है, परन्तु बुराई से हटना, मूर्खोंके प्राण को बुरा लगता है। 20 बुद्धिमानोंकी संगति कर, तब तू भी बुद्धिमान हो जाएगा, परन्तु मूर्खोंका साथी नाश हो जाएगा। 21 बुराई पापियोंके पीछे पड़ती है, परन्तु धर्मियोंको अच्छा फल मिलता है। 22 भला मनुष्य अपके नाती- पोतोंके लिथे भाग छोड़ जाता है, परन्तु पापी की सम्पत्ति धर्मी के लिथे रखी जाती है। 23 निर्बल लोगोंको खेती बारी से बहुत भोजनवस्तु मिलती है, परन्तु ऐसे लोग भी हैं जो अन्याय के कारण मिट जाते हैं। 24 जो बेटे पर छड़ी नहीं चलाता वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम रखता, वह यत्न से उसको शिक्षा देता है। 25 धर्मी पेट भर खाते पाता है, परन्तु दुष्ट भूखे ही रहते हैं।।
1 हर बुद्धिमान स्त्री अपके घर को बनाती है, पर मूढ़ स्त्री उसको अपके ही हाथोंसे ढा देती है। 2 जो सीधाई से चलता वह यहोवा का भय माननेवाला है, परन्तु जो टेढ़ी चाल चलता वह उसको तुच्छ जाननेवाला ठहरता है। 3 मूढ़ के मुंह में गर्व का अंकुर है, परन्तु बुद्धिमान लोग अपके वचनोंके द्वारा रझा पाते हैं। 4 जहां बैल नहीं, वहां गौशाला निर्मल तो रहती है, परन्तु बैल के बल से अनाज की बढ़ती हाती है। 5 सच्चा साझी फूठ नहीं बोलता, परन्तु फूठा साझी फूठी बातें उड़ाता है। 6 ठट्ठा करनेवाला बुद्धि को ढूंढ़ता, परन्तु नहीं पाता, परन्तु समझवाले को ज्ञान सहज से मिलता है। 7 मूर्ख से अलग हो जा, तू उस से ज्ञान की बात न पाएगा। 8 चतुर की बुद्धि अपक्की चाल का जानना है, परन्तु मूर्खोंकी मूढ़ता छल करना है। 9 मूढ़ लोग दोषी होने को ठट्ठा जानते हैं, परन्तु सीधे लोगोंके बीच अनुग्रह होता है। 10 मन अपना ही दु:ख जानता है, और परदेशी उसके आनन्द में हाथ नहीं डाल सकता। 11 दुष्टोंको घर विनाश हो जाता है, परन्तु सीधे लोगोंके तम्बू में आबादी होती है। 12 ऐसा मार्ग है, जो मनुष्य को ठीक देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है। 13 हंसी के समय भी मन उदास होता है, और आनन्द के अन्त में शोक होता है। 14 जिसका मन ईश्वर की ओर से हट जाता है, वह अपक्की चालचलन का फल भोगता है, परन्तु भला मनुष्य आप ही आप सन्तुष्ट होता है। 15 भोला तो हर एक बात को सच मानता है, परन्तु चतुर मनुष्य समझ बूफकर चलता है। 16 बुद्धिमान डरकर बुराई से हटता है, परन्तु मूर्ख ढीठ होकर निडर रहता है। 17 जो फट क्रोध करे, वह मूढ़ता का काम भी करेगा, और जो बुरी युक्तियां निकालता है, उस से लोग बैर रखते हैं। 18 भोलोंका भाग मूढ़ता ही होता है, परन्तु चतुरोंको ज्ञानरूपी मुकुट बान्धा जाता है। 19 बुरे लोग भलोंके सम्मुख, और दुष्ट लोग धर्मी के फाटक पर दण्डवत् करते हैं। 20 निर्धन का पड़ोसी भी उस से घृणा करता है, परन्तु धनी के बहुतेरे प्रेमी होते हैं। 21 जो अपके पड़ोसी को तुच्छ जानता, वह पाप करता है, परन्तु जो दीन लोगोंपर अनुग्रह करता, वह धन्य होता है। 22 जो बुरी युक्ति निकालते हैं, क्या वे भ्रम में नहीं पड़ते? परन्तु भली युक्ति निकालनेवालोंसे करूणा और सच्चाई का व्यवहार किया जाता है। 23 परिश्र्म से सदा लाभ होता है, परन्तु बकवाद करने से केवल घटती होती है। 24 बुद्धिमानोंका धन उनका मुकुट ठहरता है, परन्तु मूर्खोंकी मूढ़ता निरी मूढ़ता है। 25 सच्चा साझी बहुतोंके प्राण बचाता है, परन्तु जो फूठी बातें उड़ाया करता है उस से धोखा ही होता है। 26 यहोवा के भय मानने से दृढ़ भरोसा होता है, और उसके पुत्रोंको शरणस्यान मिलता है। 27 यहोवा का भय मानना, जीवन का सोता है, और उसके द्वारा लोग मृत्यु के फन्दोंसे बच जाते हैं। 28 राजा की महिमा प्रजा की बहुतायत से होती है, परन्तु जहां प्रजा नहीं, वहां हाकिम नाश हो जाता है। 29 जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है वह बड़ा समझवाला है, परन्तु जो अधीर है, वह मूढ़ता की बढ़ती करता है। 30 शान्त मन, तन का जीवन है, परन्तु मन के जलने से हड्डियां भी जल जाती हैं। 31 जो कंगाल पर अंधेर करता, वह उसके कर्ता की निन्द करता है, परन्तु जो दरिद्र पर अनुग्रह करता, वह उसकी महिमा करता है। 32 दुष्ट मनुष्य बुराई करता हुआ नाश हो जाता है, परन्तु धर्मी को मृत्यु के समय भी शरण मिलती है। 33 समझवाले के मन में बुद्धि वास किए रहती है, परन्तु मूर्खोंके अन्त:काल में जो कुछ है वह प्रगट हो जाता है। 34 जाति की बढ़ती धर्म ही से होती है, परन्तु पाप से देश के लोगोंका अपमान होता है। 35 जो कर्मचारी बुद्धि से काम करता है उस पर राजा प्रसन्न होता है, परन्तु जो लज्जा के काम करता, उस पर वह रोष करता है।।
1 कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है, परन्तु कटुवचन से क्रोध धधक उठता है। 2 बुद्धिमान ज्ञान का ठीक बखान करते हैं, परन्तु मूर्खोंके मुंह से मूढ़ता उबल आती है। 3 यहोवा की आंखें सब स्यानोंमें लगी रहती हैं, वह बुरे भले दोनोंको देखती रहती हैं। 4 शान्ति देनेवाली बात जीवन-वृझ है, परन्तु उलट फेर की बात से आत्मा दु:खित होती है। 5 मूढ़ अपके पिता की शिझा का तिरस्कार करता है, परन्तु जो डांट को मानता, वह चतुर हो जाता है। 6 धर्मी के घर में बहुत धन रहता है, परन्तु दुष्ट के उपार्जन में दु:ख रहता है। 7 बुद्धिमान लोग बातें करने से ज्ञान को फैलाते हैं, परन्तु मूर्खोंका मन ठीक नहीं रहता। 8 दुष्ट लोगोंके बलिदान से यहोवा धृणा करता है, परन्तु वह सीधे लोगोंकी प्रार्यना से प्रसन्न होता है। 9 दुष्ट के चालचलन से यहोवा को घृणा आती है, परन्तु जो धर्म का पीछा करता उस से वह प्रेम रखता है। 10 जो मार्ग को छोड़ देता, उसको बड़ी ताड़ना मिलती है, और जो डांट से बैर रखता, वह अवश्य मर जाता है। 11 जब कि अधोलोक और विनाशलोक यहोवा के साम्हने खुले रहते हैं, तो निश्चय मनुष्योंके मन भी। 12 ठट्ठा करनेवाला डांटे जाने से प्रसन्न नहीं होता, और न वह बुद्धिमानोंके पास जाता है। 13 मन आनन्दित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है, परन्तु मन के दु:ख से आत्मा निराश होती है। 14 समझनेवाले का मन ज्ञान की खोज में रहता है, परन्तु मूर्ख लोग मूढ़ता से पेट भरते हैं। 15 दुखिया के सब दिन दु:ख भरे रहते हैं, परन्तु जिसका मन प्रसन्न रहता है, वह मानो नित्य भोज में जाता है। 16 घबराहट के साय बहुत रखे हुए धन से, यहोवा के भय के साय योड़ा ही धन उत्तम है, 17 प्रेम वाले घर में सागपात का भोजन, बैर वाले घर में पाले हुए बैल का मांस खाने से उत्तम है। 18 क्रोधी पुरूष फगड़ा मचाता है, परन्तु जो विलम्ब से क्रोध करनेवाला है, वह मुकद्दमोंको दबा देता है। 19 आलसी का मार्ग कांटोंसे रून्धा हुआ होता है, परन्तु सीधे लोगोंका मार्ग राजमार्ग ठहरता है। 20 बुद्धिमान पुत्र से पिता आनन्दित होता है, परन्तु मूर्ख अपक्की माता को तुच्छ जानता है। 21 निर्बुद्धि को मूढ़ता से आनन्द होता है, परन्तु समझवाला मनुष्य सीधी चाल चलता है। 22 बिना सम्मति की कल्पनाएं निष्फल हुआ करती हैं, परन्तु बहुत से मंत्रियोंकी सम्मत्ति से बात ठहरती है। 23 सज्जन उत्तर देने से आनन्दित होता है, और अवसर पर कहा हुआ वचन क्या ही भला होता है! 24 बुद्धिमान के लिथे जीवन का मार्ग ऊपर की ओर जाता है, इस रीति से वह अधोलोक में पड़ने से बच जाता है। 25 यहोवा अहंकारियोंके घर को ढा देता है, परन्तु विधवा के सिवाने को अटल रखता है। 26 बुरी कल्पनाएं यहोवा को घिनौनी लगती हैं, परन्तु शुद्ध जन के वचन मनभावने हैं। 27 लालची अपके घराने को दु:ख देता है, परन्तु घूस से घृणा करनेवाला जीवित रहता है। 28 धर्मी मन में सोचता है कि क्या उत्तर दूं, परन्तु दुष्टोंके मुंह से बुरी बातें उबल आती हैं। 29 यहोवा दुष्टोंसे दूर रहता है, परन्तु धमिर्योंकी प्रार्यना सुनता है। 30 आंखोंकी चमक से मन को आनन्द होता है, और अच्छे समाचार से हड्डियां पुष्ट होती हैं। 31 जो जीवनदायी डांट कान लगाकर सुनता है, वह बुद्धिमानोंके संग ठिकाना पाता है। 32 जो शिझा को सुनी-अनसुनी करता, वह अपके प्राण को तुच्छ जानता है, परन्तु जो डांट को सुनता, वह बुद्धि प्राप्त करता है। 33 यहोवा के भय मानने से शिझा प्राप्त होती है, और महिमा से पहिले नम्रता होती है।।
1 मन की युक्ति मनुष्य के वश में रहती है, परन्तु मुंह से कहना यहोवा की ओर से होता है। 2 मनुष्य का सारा चालचलन अपक्की दृष्टि में पवित्र ठहरता है, परन्तु यहोवा मन को तौलता है। 3 अपके कामोंको यहोवा पर डाल दे, इस से तेरी कल्पनाएं सिद्ध होंगी। 4 यहोवा ने सब वस्तुएं विशेष उद्देश्य के लिथे बनाई हैं, वरन दुष्ट को भी विपत्ति भोगने के लिथे बनाया है। 5 सब मन के घमण्डियोंसे यहोवा घृणा करता है करता है; मैं दृढ़ता से कहता हूं, ऐसे लोग निर्दोष न ठहरेंगे। 6 अधर्म का प्रायश्चित कृपा, और सच्चाई से होता है, और यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं। 7 जब किसी का चालचलन यहोवा को भवता है, तब वह उसके शत्रुओं का भी उस से मेल कराता है। 8 अन्याय के बड़े लाभ से, न्याय से योड़ा ही प्राप्त करना उत्तम है। 9 मनुष्य मन में अपके मार्ग पर विचार करता है, परन्तु यहोवा ही उसके पैरोंको स्यिर करता है। 10 राजा के मुंह से दैवीवाणी निकलती है, न्याय करने में उस से चूक नहीं होती। 11 सच्चा तराजू और पलड़े यहोवा की ओर से होते हैं, यैली में जितने बटखरे हैं, सब उसी के बनवाए हुए हैं। 12 दुष्टता करना राजाओं के लिथे घृणित काम है, क्योंकि उनकी गद्दी धर्म ही से स्यिर रहती है। 13 धर्म की बात बोलनेवालोंसे राजा प्रसन्न होता है, और जो सीधी बातें बोलता है, उस से वह प्रेम रखता है। 14 राजा का क्रोध मृत्यु के दूत के समान है, परन्तु बुद्धिमान मनुष्य उसको ठण्डा करता है। 15 राजा के मुख की चमक में जीवन रहता है, और उसकी प्रसन्नता बरसात के अन्त की घटा के समान होती है। 16 बुद्धि की प्राप्ति चोखे सोने से क्या ही उत्तम है! और समझ की प्राप्ति चान्दी से अति योग्य है। 17 बुराई से हटना सीधे लोगोंके लिथे राजमार्ग है, जो अपके चालचलन की चौकसी करता, वह अपके प्राण की भी रझा करता है। 18 विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है। 19 घमण्डियोंके संग लूट बांट लने से, दीन लोगोंके संग नम्र भाव से रहना उत्तम है। 20 जो वचन पर मन लगाता, वह कल्याण पाता है, और जो यहोवा पर भरोसा रखता, वह धन्य होता है। 21 जिसके ह्रृदय में बुद्धि है, वह समझवाला कहलाता है, और मधुर वाणी के द्वारा ज्ञान बढ़ता है। 22 जिसके बुद्धि है, उसके लिथे वह जीवन का सोता है, परन्तु मूढ़ोंको शिझा देना मूढ़ता ही होती है। 23 बुद्धिमान का मन उसके मुंह पर भी बुद्धिमानी प्रगट करता है, और उसके वचन में विद्या रहती है। 24 मनभावने वचन मधुभरे छते की नाईं प्राणोंको मीठे लगते, और हड्डियोंको हरी-भरी करते हैं। 25 ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्य को सीधा देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है। 26 परिश्र्मी की लालसा उसके लिथे परिश्र्म करती है, उसकी भूख तो उसको उभारती रहती है। 27 अधर्मी मनुष्य बुराई की युक्ति निकालता है, और उसके वचनोंसे आग लगा जाती है। 28 टेढ़ा मनुष्य बहुत फगड़े को उठाता है, और कानाफूसी करनेवाला परम मित्रोंमें भी फूट करा देता है। 29 उपद्रवी मनुष्य अपके पड़ोसी को फुसलाकर कुमार्ग पर चलाता है। 30 आंख मूंदनेवाला छल की कल्पनाएं करता है, और ओंठ दबानेवाला बुराई करता है। 31 पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं। 32 विलम्ब से क्रोध करना वीरता से, और अपके मन को वश में रखना, नगर के जीत लेने से उत्तम है। 33 चिट्ठी डाली जाती तो है, परन्तु उसका निकलना यहोवा ही की ओर से होता है।
1 चैन के साय सूखा टुकड़ा, उस घर की अपेझा उत्तम है जो मेलबलि-पशुओं से भरा हो, परन्तु उस में फगड़े रगड़े हों। 2 बुद्धि से चलनेवाला दास अपके स्वामी के उस पुत्र पर जो लज्जा का कारण होता है प्रभुता करेगा, और उस पुत्र के भाइयोंके बीच भागी होगा। 3 चान्दी के लिथे कुठाली, और सोने के लिथे भट्ठी हाती है, परन्तु मनोंको यहोवा जांचता है। 4 कुकर्मी अनर्य बात को ध्यान देकर सुनता है, और फूठा मनुष्य दुष्टता की बात की ओर कान लगाता है। 5 जो निर्धन को ठट्ठोंमें उड़ाता है, वह उसके कर्त्ता की निन्दा करता है; और जो किसी की विपत्ति पर हंसता, वह निर्दोष नहीं ठहरेगा। 6 बूढ़ोंकी शोभा उनके नाती पोते हैं; और बाल-बच्चोंकी शोभा उनके माता-पिता हैं। 7 मूढ़ तो उत्तम बात फबती नहीं, और अधिक करके प्रधान को फूठी बात नहीं फबती। 8 देनेवाले के हाथ में घूस मोह लेनेवाले मणि का काम देता है; जिधर ऐसा पुरूष फिरता, उधर ही उसका काम सुफल होता है। 9 जो दूसरे के अपराध को ढांप देता, वह प्रेम का खोजी ठहरता है, परन्तु जो बात की चर्चा बार बार करता है, वह परम मित्रोंमें भी फूट करा देता है। 10 एक घुड़की समझनेवाले के मन में जितनी गड़ जाती है, उतना सौ बार मार खाना मूर्ख के मन में नहीं गड़ता। 11 बुरा मनुष्य दंगे ही का यत्न करता है, इसलिथे उसके पास क्रूर दूत भेजा जाएगा। 12 बच्चा-छीनी-हुई-रीछनी से मिलना तो भला है, परन्तु मूढ़ता में डूबे हुए मूर्ख से मिलना भला नहीं। 13 जो कोई भलाई के बदले में बुराई करे, उसके घर से बुराई दूर न होगी। 14 फगड़े का आरम्भ बान्ध के छेद के समान है, फगड़ा बढ़ने से पहिले उसको छोड़ देता उचित है। 15 जो दोषी को निर्दोष, और जो निर्दोष को दोषी ठहराता है, उन दोनोंसे यहोवा घृणा करता है। 16 बुद्धि मोल लेने के लिथे मूर्ख अपके हाथ में दाम क्योंलिए हैं? वह उसे चाहता ही नहीं। 17 मित्र सब समयोंमें प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है। 18 निर्बुद्धि मनुष्य हाथ पर हाथ मारता है, और अपके पड़ोसी के सामने उत्तरदायी होता है। 19 जो फगड़े-रगड़े में प्रीति रखता, वह अपराण करने में भी प्रीति रखता है, और जो अपके फाटक को बड़ा करता, वह अपके विनाश के लिथे यत्न करता है। 20 जो मन का टेढ़ा है, उसका कल्याण नहीं होता, और उलट-फेर की बात करनेवाला विपत्ति में पड़ता है। 21 जो मूर्ख को जन्माता है वह उस से दु:ख ही पाता है; और मूढ़ के पिता को आनन्द नहीं होता। 22 मन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हड्डियां सूख जाती हैं। 23 दुष्ट जन न्याय बिगाड़ने के लिथे, अपक्की गांठ से घूस निकालता है। 24 बुद्धि समझनेवाले के साम्हने ही रहती है, परन्तु मूर्ख की आंखे पृय्वी के दूर दूर देशोंमें लगी रहती है। 25 मूर्ख पुत्र से पिता उदास होता है, और जननी को शोक होता है। 26 फिर धर्मी से दण्ड लेना, और प्रधानोंको सिधाई के कारण पिटवाना, दोनोंकाम अच्छे नहीं हैं। 27 जो संभलकर बोलता है, वही ज्ञानी ठहरता है; और जिसी आत्मा शान्त रहती है, सोई समझवाला पुरूष ठहरता है। 28 मूढ़ भी जब चुप रहता है, तब बुद्धिमान गिना जाता है; और जो अपना मुंह बन्द रखता वह समझवाला गिना जाता है।।
1 जो औरोंसे अलग हो जाता है, वह अपक्की ही इच्छा पूरी करने के लिथे ऐसा करता है, 2 और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है। मूर्ख का मन समझ की बातोंमें नहीं लगता, वह केवल अपके मन की बात प्रगट करना चाहता है। 3 जहां दुष्ट आता, वहां अपमान भी आता है; और निन्दित काम के साय नामधराई होती है। 4 मनुष्य के मुंह के वचन गहिरा जल, वा उमण्डनेवाली नदी वा बुद्धि के सोते हैं। 5 दुष्ट का पझ करना, और धर्मी का हक मारना, अच्छा नहीं है। 6 बात बढ़ाने से मूर्ख मुकद्दमा खड़ा करता है, और अपके को मार खाने के योग्य दिखाता है। 7 मूर्ख का विनाश उसकी बातोंसे होता है, और उसके वचन उसके प्राण के लिथे फन्दे होते हैं। 8 कानाफूसी करनेवाले के वचन स्वादिष्ट भोजन की नाईं लगते हैं; वे पेट में पच जाते हैं। 9 जो काम में आलस करता है, वह खोनेवाले का भाई ठहरता है। 10 यहोवा का नाम दृढ़ कोट है; धर्मी उस में भागकर सब दुर्घटनाओं से बचता है। 11 धनी का धन उसकी दृष्टि में गढ़वाला नगर, और ऊंचे पर बनी हुई शहरपनाह है। 12 नाश होने से पहिले मनुष्य के मन में घमण्ड, और महिमा पाने से पहिले नम्रता होती है। 13 जो बिना बात सुने उत्तर देता है, वह मूढ़ ठहरता है, और उसका अनादर होता है। 14 रोग में मनुष्य अपक्की आत्मा से सम्भलता है; परन्तु जब आत्मा हार जाती है तब इसे कौन सह सकता है? 15 समझवाले का मन ज्ञान प्राप्त करता है; और बुद्धिमान ज्ञान की बात की खोज में रहते हैं। 16 भेंट मनुष्य के लिथे मार्ग खोल देती है, और उसे बड़े लोगोंके साम्हने पहुंचाती है। 17 मुकद्दमें में जो पहिले बोलता, वही धर्मी जान पड़ता है, परन्तु पीछे दूसरा पझवाला आका उसे खोज लेता है। 18 चिट्ठी डालने से फगड़े बन्द होते हैं, और बलवन्तोंकी लड़ाई का अन्त होता है। 19 चिढ़े हुए भाई को मनाना दृढ़ नगर के ले लेने से कठिन होता है, और फगड़े राजभवन के बेण्डोंके समान हैं। 20 मनुष्य का पेट मुंह की बातोंके फल से भरता है; और बोलने से जो कुछ प्राप्त होता है उस से वह तृप्त होता है। 21 जीभ के वश में मृत्यु और जीवन दोनोंहोते हैं, और जो उसे काम में लाना जानता है वह उसका फल भोगेगा। 22 जिस ने स्त्री ब्याह ली, उस ने उत्तम पदार्य पाया, और यहोवा का अनुग्रह उस पर हुआ है। 23 निर्धन गिड़गिड़ाकर बोलता है। परन्तु धनी कड़ा उत्तर देता है। 24 मित्रोंके बढ़ाने से तो नाश होता है, परन्तु ऐसा मित्र होता है, जो भाई से भी अधिक मिला रहता है।
1 जो निर्धन खराई से चलता है, वह उस मूर्ख से उत्तम है जो टेढ़ी बातें बोलता है। 2 मनुष्य का ज्ञानरहित रहना अच्छा नहीं, और जो उतावली से दौड़ता है वह चूक जाता है। 3 मूढ़ता के कारण मनुष्य का मार्ग टेढ़ा होता है, और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है। 4 धनी के तो बहुत मित्र हो जाते हैं, परन्तु कंगाल के मित्र उस से अलग हो जाते हैं। 5 फूठा साझी निर्दोष नहीं ठहरता, और जो फूठ बोला करता है, वह न बचेगा। 6 उदार मनुष्य को बहुत से लोग मना लेते हैं, और दानी पुरूष का मित्र सब कोई बनता है। 7 जब निर्धन के सब भाई उस से बैर रखते हैं, तो निश्चय है कि उसके मित्र उस से दूर हो जाएं। वह बातें करते हुए उनका पीछा करता है, परन्तु उनको नहीं पाता। 8 जो बुद्धि प्राप्त करता, वह अपके प्राण को प्रेमी ठहरता है; और जो समझ को धरे रहता है उसका कल्याण होता है। 9 फूठा साझी निर्दोष नहीं ठहरता, और जो फूठ बोला करता है, वह नाश होता है। 10 जब सुख में रहना मूर्ख को नहीं फबता, तो हाकिमोंपर दास का प्रभुता करना कैसे फबे! 11 जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को फुलाना उसको सोहता है। 12 राजा का क्रोध सिंह की गरजन के समान है, परन्तु उसकी प्रसन्नता घास पर की ओस के तुल्य होती है। 13 मूर्ख पुत्र पिता के लिथे विपत्ति ठहरता है, और पत्नी के फगड़े-रगड़े सदा टपकने के समान है। 14 घर और धन पुरखाओं के भाग में, परन्तु बुद्धिमती पत्नी यहोवा ही से मिलती है। 15 आलस से भारी नींद आ जाती है, और जो प्राणी ढिलाई से काम करता, वह भूखा ही रहता है। 16 जो आज्ञा को मानता, वह अपके प्राण की रझा करता है, परन्तु जो अपके चालचलन के विषय में निश्चिन्त रहता है, वह मर जाता है। 17 जो कंगाल पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है, और वह अपके इस काम का प्रतिफल पाएगा। 18 जबतक आशा है तो अपके पुत्र को ताड़ना कर, जान बूफकर उसका मार न डाल। 19 जो बड़ा क्रोधी है, उसे दण्ड उठाने दे; क्योंकि यदि तू उसे बचाए, तो बारम्बार बचाना पकेगा। 20 सम्मति को सुन ले, और शिझा को ग्रहण कर, कि तू अन्तकाल में बुद्धिमान ठहरे। 21 मनुष्य के मन में बहुत सी कल्पनाएं होती हैं, परन्तु जो युक्ति यहोवा करता है, वही स्यिर रहती है। 22 मनुष्य कृपा करने के अनुसार चाहने योग्य होता है, और निर्धन जन फूठ बोलनेवाले से उत्तम है। 23 यहोवा का भय मानने से जीवन बढ़ता है; और उसका भय माननेवाला ठिकाना पाकर सुखी रहता है; उस पर विपत्ती नहीं पड़ने की। 24 आलसी अपना हाथ याली में डालता है, परन्तु अपके मुंह तक कौर नहीं उठाता। 25 ठट्ठा करनेवाले को मार, इस से भोला मनुष्य समझदार हो जाएगा; और समझवाले को डांट, तब वह अधिक ज्ञान पाएगा। 26 जो पुत्र अपके बाप को उजाड़ता, और अपक्की मां को भगा देता है, वह अपमान और लज्जा का कारण होगा। 27 हे मेरे पुत्र, यदि तू भटकना चाहता है, तो शिझा का सुनना छोड़ दे। 28 अधम साझी न्याय को ठट्ठोंमें उड़ाता है, और दुष्ट लोग अनर्य काम निगल लेते हैं। 29 ठट्ठा करनेवालोंके लिथे दण्ड ठहराया जाता है, और मूर्खोंकी पीठ के लिथे कोड़े हैं।
1 दाखमधु ठट्ठा करनेवाला और मदिरा हल्ला मचानेवाली है; जो कोई उसके कारण चूक करता है, वह बुद्धिमान नहीं। 2 राजा का भय दिखाना, सिंह का गरजना है; जो उस पर रोष करता, वह अपके प्राण का अपराधी होता है। 3 मुकद्दमें से हाथ उठाना, पुरूष की महिमा ठहरती है; परन्तु सब मूढ़ फगड़ने को तैयार होते हैं। 4 आलसी मनुष्य शीत के कारण हल नहीं जोतता; इसलिथे कटनी के समय वह भीष मांगता, और कुछ नहीं पाता। 5 मनुष्य के मन की युक्ति अयाह तो है, तौभी समझवाला मनुष्य उसको निकाल लेता है। 6 बहुत से मनुष्य अपक्की कृपा का प्रचार करते हैं; परन्तु सच्चा पुरूष कौन पा सकता है? 7 धर्मी जो खराई से चलता रहता है, उसके पीछे उसके लड़केबाले धन्य होते हैं। 8 राजा जो न्याय के सिंहासन पर बैठा करता है, वह अपक्की दृष्टि ही से सब बुराई को उड़ा देता है। 9 कौन सह सकता है कि मैं ने अपके ह्रृदय को पवित्र किया; अयवा मैं पाप से शुद्ध हुआ हूं? 10 घटती-बढ़ती बटखरे और घटते-बढ़ते नपुए इन दोनोंसे यहोवा घृणा करता है। 11 लड़का भी अपके कामोंसे पहिचाना जाता है, कि उसका काम पवित्र और सीधा है, वा नहीं। 12 सुनने के लिथे कान और देखने के लिथे जो आंखें हैं, उन दोनोंको यहोवा ने बनाया है। 13 नींद से प्रीति न रख, नहीं तो दरिद्र हो जाएगा; आंखें खोल तब तू रोटी से तृप्त होगा। 14 मोल लेने के समय ग्राहक तुच्छ तुच्छ कहता है; परन्तु चले जाने पर बढ़ाई करता है। 15 सोना और बहुत से मूंगे तो हैं; परन्तु ज्ञान की बातें अनमोल मणी ठहरी हैं। 16 जो अनजाने का उत्तरदायी हुआ उसका कपड़ा, और जो पराए का उत्तरदायी हुआ उस से बंघक की वस्तु ले रख। 17 चोरी-छिपे की रोटी मनुष्य को मीठी तो लगती है, परन्तु पीछे उसका मुंह कंकड़ से भर जाता है। 18 सब कल्पनाएं सम्मत्ति ही से स्यिर होती हैं; और युक्ति के साय युद्ध करना चाहिथे। 19 जो लुतराई करता फिरता है वह भेद प्रगट करता है; इसलिथे बकवादी से मेल जोल न रखना। 20 जो अपके माता-पिता को कोसता, उसका दिया बुफ जाता, और घोर अन्धकार हो जाता है। 21 जो भाग पहिले उतावली से मिलता है, अन्त में उस पर आशीष नहीं होती। 22 मत कह, कि मैं बुराई का पलटा लूंगा; वरन यहोवा की बाट जोहता रह, वह तुझ को छुड़ाएगा। 23 घटती बढ़ती बटखरोंसे यहोवा घृणा करता है, और छल का तराजू अच्छा नहीं। 24 मनुष्य का मार्ग यहोवा की ओर से ठहराया जाता है; आदमी क्योंकर अपना चलना समझ सके? 25 जो मनुष्य बिना विचारे किसी वस्तु को पवित्र ठहराए, और जो मन्नत मानकर पूछपाछ करने लगे, वह फन्दे में फंसेगा। 26 बुद्धिमान राजा दुष्टोंको फटकता है, ओर उन पर दावने का पहिया चलवाता है। 27 मनुष्य की आत्मा यहोवा का दीपक है; वह मन की सब बातोंकी खोज करता है। 28 राजा की रझा कृपा और सच्चाई के कारण होती है, और कृपा करने से उसकी गद्दी संभलती है। 29 जवानोंका गौरव उनका बल है, परन्तु बूढ़ोंकी शोभा उनके पक्के बाल हैं। 30 चोट लगने से जो घाव होते हैं, वह बुराई दूर करते हैं; और मार खाने से ह्रृदय निर्मल हो जाता है।।
1 राजा का मन नालियोंके जल की नाई यहोवा के हाथ में रहता है, जिधर वह चाहता उधर उसको फेर देता है। 2 मनुष्य का सारा चालचलन अपक्की दृष्टि में तो ठीक होता है, परन्तु यहोवा मन को जांचता है, 3 धर्म और न्याय करना, यहोवा को बलिदान से अधिक अच्छा लगता है। 4 चक्की आंखें, घमण्डी मन, और दुष्टोंकी खेती, तीनोंपापमय हैं। 5 कामकाजी की कल्पनाओं से केवल लाभ होता है, परन्तु उतावली करनेवाले को केवल घटती होती है। 6 जो धन फूठ के द्वारा प्राप्त हो, वह वायु से उड़ जानेवाला कुहरा है, उसके ढूंढ़नेवाले मृत्यु ही को ढूंढ़ते हैं। 7 जो उपद्रव दुष्ट लोग करते हैं, उस से उन्हीं का नाश होता है, क्योंकि वे न्याय का काम करने से इनकार करते हैं। 8 पाप से लदे हुए मनुष्य का मार्ग बहुत ही टेढ़ा होता है, परन्तु जो पवित्र है, उसका कर्म सीधा होता है। 9 लम्बे-चौड़े घर में फगड़ालू पत्नी के संग रहने से छत के कोने पर रहना उत्तम है। 10 दुष्ट जन बुराई की लालसा जी से करता है, वह अपके पड़ोसी पर अनुग्रह की दृष्टि नही करता। 11 जब ठट्ठा करनेवाले को दण्ड दिया जाता है, तब भोला बुद्धिमान हो जाता है; और जब बुद्धिमान को उपकेश दिया जाता है, तब वह ज्ञान प्राप्त करता है। 12 धर्मी जन दुष्टोंके घराने पर बुद्धिमानी से विचार करता है; ईश्वर दुष्टोंको बुराइयोंमें उलट देता है। 13 जो कंगाल की दोहाई पर कान न दे, वह आप पुकारेगा और उसकी सुनी न जाएगी। 14 गुप्त में दी हुई भेंट से क्रोध ठण्डा होता है, और चुपके से दी हुई घूस से बड़ी जलजलाहट भी यामती है। 15 न्याय का काम, करना धर्मी को तो आनन्द, परन्तु अनर्यकारियोंको विनाश ही का कारण जान पड़ता है। 16 जो मनुष्य बुद्धि के मार्ग से भटक जाए, उसका ठिकाना मरे हुओं के बीच में होगा। 17 जो रागरंग से प्रीति रखता है, वह कंगाल होता है; और दो दाखमधु पीने और तेल लगाने से प्रीति रखता है, वह धनी नहीं होता। 18 दुष्ट जन धर्मी की छुडौती ठहरता है, और विश्वासघाती सीधे लोगोंकी सन्ती दण्ड भोगते हैं। 19 फगड़ालू और चिढ़नेवाली पत्नी के संग रहने से जंगल में रहना उत्तम है। 20 बुद्धिमान के घर में उत्तम धन और तेल पाए जाते हैं, परन्तु मूर्ख उनको उड़ा डालता है। 21 जो धर्म और कृपा का पीछा पकड़ता है, वह जीवन, धर्म और महिमा भी पाता है। 22 बुद्धिमान शूरवीरोंके नगर पर चढ़कर, उनके बल को जिस पर वे भरोसा करते हैं, नाश करता है। 23 जो अपके मुंह को वश में रखता है वह अपके प्राण को विपत्तियोंसे बचाता है। 24 जो अभिमन से रोष में आकर काम करता है, उसका नाम अभिमानी, और अंहकारी ठट्ठा करनेवाला पड़ता है। 25 आलसी अपक्की लालसा ही में मर जाता है, क्योंकि उसके हाथ काम करने से इन्कार करते हैं। 26 कोई ऐसा है, जो दिन भर लालसा ही किया करता है, परन्तु धर्मी लगातार दान करता रहता है। 27 दुष्टोंका बलिदान घृणित लगता है; विशेष करके जब वह महापाप के निमित्त चढ़ाता है। 28 फूठा साझी नाश होता है, जिस ने जो सुना है, वही कहता हुआ स्यिर रहेगा। 29 दुष्ट मनुष्य कठोर मुख का होता है, और जो सीधा है, वह अपक्की चाल सीधी करता है। 30 यहोवा के विरूद्ध न तो कुछ बुद्धि, और न कुछ समझ, न कोई युक्ति चलती है। 31 युद्ध के दिन के लिथे घोड़ा तैयार तो होता है, परन्तु जय यहोवा ही से मिलती है।।
1 बड़े धन से अच्छा नाम अधिक चाहने योग्य है, और सोने चान्दी से औरोंकी प्रसन्नता उत्तम है। 2 धनी और निर्धन दोनोंएक दूसरे से मिलते हैं; यहोवा उन दोनोंका कर्त्ता है। 3 चतुर मनुष्य विपत्ति को आते देखकर छिप जाता है; परन्तु भोले लोग आगे बढ़कर दण्ड भोगते हैं। 4 नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है। 5 टेढ़े मनुष्य के मार्ग में कांटे और फन्दे रहते हैं; परन्तु जो अपके प्राणोंकी रझा करता, वह उन से दूर रहता है। 6 लड़के को शिझा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिथे, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा। 7 धनी, निर्धन लोगोंपर प्रभुता करता है, और उधार लेनेवाला उधार देनेवाले का दास होता है। 8 जो कुटिलता का बीज बोता है, वह अनर्य ही काटेगा, और उसके रोष का सोंटा टूटेगा। 9 दया करनेवाले पर आशीष फलती है, क्योंकि वह कंगाल को अपक्की रोटी में से देता है। 10 ठट्ठा करनेवाले को निकाल दे, तब फगड़ा मिट जाएगा, और वाद-विवाद और अपमान दोनोंटूट जाएंगे। 11 जो मन की शुद्धता से प्रीति रखता है, और जिसके वचन मनोहर होते हैं, राजा उसका मित्र होता है। 12 यहोवा ज्ञानी पर दृष्टि करके, उसकी रझा करता है, परन्तु विश्वासघाती की बातें उलट देता है। 13 आलसी कहता है, बाहर तो सिंह होगा! मैं चौक के बीच घात किया जाऊंगा। 14 पराई स्त्रियोंका मुंह गहिरा गड़हा है; जिस से यहोवा क्रोधित होता, सोई उस में गिरता है। 15 लड़के के मन में मूढ़त बन्धी रहती है, परन्तु छड़ी की ताड़ना के द्वारा वह उस से दूर की जाती है। 16 जो अपके लाभ के निमित्त कंगाल पर अन्धेर करता है, और जो धनी को भेंट देता, वे दोनो केवल हानि ही उठाते हैं।। 17 कान लगाकर बुद्धिमानोंके वचन सुन, और मेरी ज्ञान की बातोंकी ओर मन लगा; 18 यदि तू उसको अपके मन में रखे, और वे सब तेरे मुंह से निकला भी करें, तो यह मनभावनी बात होगी। 19 मैं आज इसलिथे थे बातें तुझ को जता देता हूं, कि तेरा भरोसा यहोवा पर हो। 20 मैं बहुत दिनोंसे तेरे हित के उपकेश और ज्ञान की बातें लिखता आया हूं, 21 कि मैं तुझे सत्य वचनोंका निश्चय करा दूं, जिस से जो तुझे काम में लगाएं, उनको सच्चा उत्तर दे सके।। 22 कंगाल पर इस कारण अन्धेर न करता कि वह कंगाल है, और न दीन जन को कचहरी में पीसना; 23 क्योंकि यहोवा उनका मुकद्दमा लड़ेगा, और जो लोग उनका धन हर लेते हैं, उनका प्राण भी वह हर लेगा। 24 क्रोधी मनुष्य का मित्र न होना, और फट क्रोध करनेवाले के संग न चलना, 25 कहीं ऐसा न हो कि तू उसकी चाल सीखे, और तेरा प्राण फन्दे में फंस जाए। 26 जो लोग हाथ पर हाथ मारते, और ऋणियोंके उत्तरदायी होते हैं, उन में तू न होना। 27 यदि भर देने के लिथे तेरे पास कुछ न हो, तो वह क्योंतेरे नीचे से खाट खींच ले जाए? 28 जो सिवाना तेरे पुरखाओं ने बान्धा हो, उस पुराने सिवाने को न बढ़ाना। 29 यदि तू ऐसा पुरूष देखे जो कामकाज में निपुण हो, तो वह राजाओं के सम्मुख खड़ा होगा; छोटे लोगोंके सम्मुख नहीं।।
1 जब तू किसी हाकिम के संग भोजन करने को बैठे, तब इस बात को मन लगाकर सोचना कि मेरे साम्हने कौन है? 2 और यदि तू खाऊ हो, तो योड़ा खाकर भूखा उठ जाना। 3 उसकी स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं की लालसा न करना, क्योंकि वह धोखे का भोजन है। 4 धनी होने के लिथे परिश्र्म न करना; अपक्की समझ का भरोसा छोड़ना। 5 क्या तू अपक्की दृष्टि उस वस्तु पर लगाएगा, जो है ही नहीं? वह उकाब पक्की की नाईं पंख लगाकर, नि:सन्देह आकाश की ओर उड़ जाता है। 6 जो डाह से देखता है, उसकी रोटी न खाना, और न उसकी स्वादिष्ट भोजनवस्तुओं की लालसा करना; 7 क्योंकि जैसा वह अपके मन में विचार करता है, वैसा वह आप है। वह तुझ से कहता तो है, खा पी, परन्तु उसका मन तुझ से लगा नहीं। 8 जो कौर तू ने खाया हो, उसे उगलना पकेगा, और तू अपक्की मीठी बातोंका फल खोएगा। 9 मूर्ख के साम्हने न बोलना, नहीं तो वह तेरे बुद्धि के वचनोंको तुच्छ जानेगा। 10 पुराने सिवानोंको न बढ़ाना, और न अनायोंके खेत में घुसना; 11 क्योंकि उनका छुड़ानेवाला सामर्यी है; उनका मुकद्दमा तेरे संग वही लड़ेगा। 12 अपना ह्रृदय शिझा की ओर, और अपके कान ज्ञान की बातोंकी ओर लगाना। 13 लड़के की ताड़ना न छोड़ना; क्योंकि यदि तू उसका छड़ी से मारे, तो वह न मरेगा। 14 तू उसका छड़ी से मारकर उसका प्राण अधोलोक से बचाएगा। 15 हे मेरे पुत्र, यदि तू बुद्धिमान हो, तो विशेष करके मेरा ही मन आनन्दित होगा। 16 और जब तू सीधी बातें बोले, तब मेरा मन प्रसन्न होगा। 17 तू पापियोंके विषय मन में डाह न करना, दिन भर यहोवा का भय मानते रहना। 18 क्योंकि अन्त में फल होगा, और तेरी आशा न टूटेगी। 19 हे मेरे पुत्र, तू सुनकर बुद्धिमान हो, और अपना मन सुमार्ग में सीधा चला। 20 दाखमधु के पीनेवालोंमें न होना, न मांस के अधिक खानेवालोंकी संगति करना; 21 क्योंकि पियक्कड़ और खाऊ अपना भाग खोते हैं, और पीनकवाले को चियड़े पहिनने पड़ते हैं। 22 अपके जन्मानेवाले की सुनना, और जब तेरी माता बुढिय़ा हो जाए, तब भी उसे तुच्छ न जानना। 23 सच्चाई को मोल लेना, बेचना नहीं; और बुद्धि और शिझा और समझ को भी मोल लेना। 24 धर्मी का पिता बहुत मगन होता है; और बुद्धिमान का जन्मानेवाला उसके कारण आनन्दित होता है। 25 तेरे कारण माता-पिता आनन्दित और तेरी जननी मगन होए।। 26 हे मेरे पुत्र, अपना मन मेरी ओर लगा, और तेरी दृष्टि मेरे चालचलन पर लगी रहे। 27 वेश्या गहिरा गड़हा ठहरती है; और पराई स्त्री सकेत कुंए के समान है। 28 वह डाकू की नाई घात लगाती है, और बहुत से मनुष्योंको विश्वासघाती कर देती है।। 29 कौन कहता है, हाथ? कौन कहता है, हाथ हाथ? कौन फगड़े रगड़े में फंसता है? कौन बक बक करता है? किसके अकारण घाव होते हैं? किसकी आंखें लाल हो जाती हैं? 30 उनकी जो दाखमधु देर तक पीते हैं, और जो मसाला मिला हुआ दाखमधु ढूंढ़ने को जाते हैं। 31 जब दाखमधु लाल दिखाई देता है, और कटोरे में उसका सुन्दर रंग होता है, और जब वह धार के साय उण्डेला जाता है, तब उसको न देखना। 32 क्योंकि अन्त में वह सर्प की नाई डसता है, और करैत के समान काटता है। 33 तू विचित्र वस्तुएं देखेगा, और उल्टी-सीधी बातें बकता रहेगा। 34 और तू समुद्र के बीच लेटनेवाले वा मस्तूल के सिक्के पर सोनेवाले के समान रहेगा। 35 तू कहेगा कि मैं ने मान तो खाई, परन्तु दु:खित न हुआ; मैं पिट तो गया, परन्तु मुझे कुछ सुधि न यी। मैं होश में कब आऊं? मैं तो फिर मदिरा ढूंढूंगा।।
1 बुरे लोगोंके विषय में डाह न करना, और न उसकी संगति की चाह रखना; 2 क्योंकि वे उपद्रव सोचते रहते हैं, और उनके मुंह से दुष्टता की बात निकलती है। 3 घर बुद्धि से बनता है, और समझ के द्वारा स्यिर होता है। 4 ज्ञान के द्वारा कोठरियां सब प्रकार की बहुमूल्य और मनभाऊ वस्तुओं से भर जाती हैं। 5 बुद्धिमान पुरूष बलवान् भी होता है, और ज्ञानी जन अधिक शक्तिमान् होता है। 6 इसलिथे जब तू युद्ध करे, तब युक्ति के साय करना, विजय बहुत से मन्त्रियोंके द्वारा प्राप्त होती है। 7 बुद्धि इतने ऊंचे पर है कि मूढ़ उसे पा नहीं सकता; वह सभा में अपना मुंह खोल नहीं सकता।। 8 जो सोच विचार के बुराई करता है, उसको लोग दुष्ट कहते हैं। 9 मूर्खता का विचार भी पाप है, और ठट्ठा करनेवाले से मनुष्य घृणा करते हैं।। 10 यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्ति बहुत कम है। 11 जो मार डाले जाने के लिथे घसीटे जाते हैं उनको छुड़ा; और जो घात किए जाने को हैं उन्हें मत पकड़ा। 12 यदि तू कहे, कि देख मैं इसको जानता न या, तो क्या मन का जांचनेवाला इसे नहीं समझता? और क्या तेरे प्राणोंका रझक इसे नहीं जानता? और क्या वह हर एक मनुष्य के काम का फल उसे न देगा? 13 हे मेरे पुत्र तू मधु खा, क्योंकि वह अच्छा है, और मधु का छत्ता भी, क्योंकि वह तेरे मुंह में मीठा लगेगा। 14 इसी रीति बुद्धि भी तुझे वैसी ही मीठी लगेगी; यदि तू उसे पा जाए तो अन्त में उसका फल भी मिलेगा, और तेरी आशा न टूटेगी।। 15 हे दुष्ट, तू धर्मी के निवास को नाश करने के लिथे घात को न बैठ; ओर उसके विश्रमस्यान को मत उजाड़; 16 क्योंकि धर्मी चाहे सात बार गिरे तौभी उठ खड़ा होता है; परन्तु दुष्ट लोग विपत्ति में गिरकर पके ही रहते हैं। 17 जब तेरा शत्रु गिर जाए तब तू आनन्दित न हो, और जब वह ठोकर खाए, तब तेरा मन मगन न हो। 18 कहीं ऐसा न हो कि यहोवा यह देखकर अप्रसन्न हो और अपना क्रोध उस पर से हटा ले।। 19 कुकमिर्योंके कारण मत कुढ़ दुष्ट लोगोंके कारण डाह न कर; 20 क्योंकि बुरे मनुष्य को अन्त में कुछ फल न मिलेगा, दुष्टोंका दिया बुफा दिया जाएगा।। 21 हे मेरे पुत्र, यहोवा और राजा दोनोंका भय मानना; और बलवा करनेवालोंके साय न मिलना; 22 क्योंकि उन पर विपत्ति अचानक आ पकेगी, और दोनोंकी ओर से आनेवाली आपत्ति को कौन जानता है? 23 बुद्धिमानोंके वचन यह भी हैं।। न्याय में पझपात करना, किसी रीति भी अच्छा नहीं। 24 जो दुष्ट से कहता है कि तू निर्दोष है, उसको तो हर समाज के लोग शाप देते और जाति जाति के लोग धमी देते हैं; 25 परन्तु जो लोग दुष्ट को डांटते हैं उनका भला होता है, और उत्तम से उत्तम आशीर्वाद उन पर आता है। 26 जो सीधा उत्तर देता है, वह होठोंको चूमता है।। 27 अपना बाहर का कामकाज ठीक करना, और खेत में उसे तैयार कर लेना; उसके बाद अपना घर बनाना।। 28 व्यर्य अपके पड़ोसी के विरूद्ध साझी न देना, और न उसको फुसलाना। 29 मत कह, कि जैसा उस ने मेरे साय किया वैसा ही मैं भी उसके साय करूंगा; और उसको उसके काम के अनुसा पलटा दूंगा।। 30 मैं आलसी के खेत के पास से और निर्बुद्धि मनुष्य की दाख की बारी के पास होकर जाता या, 31 तो क्या देखा, कि वहां सब कहीं कटीले पेड़ भर गए हैं; और वह बिच्छू पेड़ोंसे ढंप गई है, और उसके पत्यर का बाड़ा गिर गया है। 32 तब मैं ने देखा और उस पर ध्यानपूर्वक विचार किया; हां मैं ने देखकर शिझा प्राप्त की। 33 छोटी सी नींद, एक और झपक्की, योड़ी देर हाथ पर हाथ रख के और लेटे रहना, 34 तब तेरा कंगालपन डाकू की नाई, और तेरी घटी हयियारबन्द के समान आ पकेगी।।
1 सुलैमान के नीतिवचन थे भी हैं; जिन्हें यहूदा के राजा हिजकिय्याह के जनोंने नकल की यी।। 2 परमेश्वर की महिमा, गुप्त रखने में है परन्तु राजाओं की महिमा गुप्त बात के पता लगाने से होती है। 3 स्वर्ग की ऊंचाई और पृय्वी की गहराई और राजाओं का मन, इन तीनोंका अन्त नहीं मिलता। 4 चान्दी में से मैल दूर करने पर सुनार के लिथे एक पात्र हो जाता है। 5 राजा के साम्हने से दुष्ट को निकाल देने पर उसकी गद्दी धर्म के कारण स्यिर होगी। 6 राजा के साम्हने अपक्की बड़ाई न करना और बड़े लोगोंके स्यान में खड़ा न होना; 7 क्योंकि जिस प्रधान का तू ने दर्शन किया हो उसके साम्हने तेरा अपमान न हो, वरन तुझ से यह कहा जाए, आगे बढ़कर विराज।। 8 फगड़ा करने में जल्दी न करना नहीं तो अन्त में जब तेरा पड़ोसी तेरा मुंह काला करे तब तू क्या कर सकेगा? 9 अपके पडोसी के साय वादविवाद एकान्त में करना और पराथे का भेद न खोलना; 10 ऐसा न हो कि सुननेवाला तेरी भी निन्दा करे, और तेरा अपवाद बना रहे।। 11 जैसे चान्दी की टोकरियोंमें सोनहले सेब होंवैसे ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है। 12 जैसे सोने का नत्य और कुन्दन का जेवन अच्छा लगता है, वैसे ही माननेवाले के कान में बुद्धिमान की डांट भी अच्छी लगती है। 13 जैसे कटनी के समय बर्फ की ठण्ड से, वैसे ही विश्वासयोग्य दूत से भी, भेजनेवालोंका जी ठण्डा होता है। 14 जैसे बादल और पवन बिना दृष्टि निर्लाभ होते हैं, वैसे ही फूठ-मूठ दान देनेवाले का बड़ाई मारना होता है।। 15 धीरज धरने से न्यायी मनाया जाता है, और कोमल वचन हड्डी को भी तोड़ डालता है। 16 क्या तू ने मधु पाया? तो जितना तेरे लिथे ठीक हो उतना ही खाना, ऐसा न हो कि अधिक खाकर उसे उगल दे। 17 अपके पड़ोसी के घर में बारम्बार जाने से अपके पांव हो रोक ऐसा न हो कि वह खिन्न होकर घृणा करने लगे। 18 जो किसी के विरूद्ध फूठी साझी देता है, वह मानो हयौड़ा और तलवार और पैना तीर है। 19 विपत्ति के समय विश्वासघाती का भरोसा टूटे हुए दांत वा उखड़े पांव के समान है। 20 जैसा जाड़े के दिनोंमें किसी का वस्त्र उतारना वा सज्जी पर सिरका डालना होता है, वैसा ही उदास मनवाले के साम्हने गीत गाना होता है। 21 यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसको रोटी खिलाना; और यदि वह प्यासा हो तो उसे पानी पिलाना; 22 क्योंकि इस रीति तू उसके सिर पर अंगारे डालेगा, और यहोवा तुझे इसका फल देगा। 23 जैसे उत्तरीय वायु वर्षा को लाती है, वैसे ही चुगली करने से मुख पर क्रोध छा जाता है। 24 लम्बे चौड़े घर में फगड़ालू पत्नी के संग रहने से छत के कोने पर रहना उत्तम है। 25 जैसा यके मान्दे के प्राणोंके लिथे ठण्डा पानी होता है, वैसा ही दूर देश से आया हुआ शुभ समाचार भी होता है। 26 जो धर्मी दुष्ट के कहने में आता है, वह गंदले सोते और बिगड़े हुए कुण्ड के समान है। 27 बहुत मधु खाना अच्छा नहीं, परन्तु कठिन बातोंकी पूछताछ महिमा का कारण होता है। 28 जिसकी आत्मा वश में नहीं वह ऐसे नगर के समान है जिसकी शहरपनाह नाका करके तोड़ दी गई हो।।
1 जैसा धूपकाल में हिम का, और कटनी के समय जल का पड़ना, वैसा ही मूर्ख की महिमा भी ठीक नहीं होती। 2 जैसे गौरिया घूमते घूमते और सूपाबेनी उड़ते-उड़ते नहीं बैठती, वैसे ही व्यर्य शाप नहीं पड़ता। 3 घोड़े के लिथे कोड़ा, गदहे के लिथे बाग, और मूर्खोंकी पीठ के लिथे छड़ी है। 4 मूर्ख को उसको मूर्खता के अनुसार उत्तर न देना ऐसा न हो कि तू भी उसके तुल्य ठहरे। 5 मूर्ख को उसकी मूढ़ता के अनुसार उत्तर न देना, ऐसा न हो कि वह अपके लेखे बुद्धिमान ठहरे। 6 जो मूर्ख के हाथ से संदेशा भेजता है, वह मानो अपके पांव में कुल्हाड़ा मारता और विष पीता है। 7 जैसे लंगड़े के पांव लड़खड़ाते हैं, वैसे ही मूर्खोंके मुंह में नीतिवचन होता है। 8 जैसे पत्यरोंके ढेर में मणियोंकी यैली, वैसे ही मूर्ख को महिमा देनी होती है। 9 जैसे मतवाले के हाथ में कांटा गड़ता है, वैसे ही मूर्खोंका कहा हुआ नीतिवचन भी दु:खदाई होता है। 10 जैसा कोई तीरन्दाज जो अकारण सब को मारता हो, वैसा ही मूर्खोंवा बटोहियोंका मजदूरी में लगानेवाला भी होता है। 11 जैसे कुत्ता अपक्की छाँट को चाटता है, वैसे ही मूर्ख अपक्की मूर्खता को दुहराता है। 12 यदि तू ऐसा मनुष्य देखे जो अपक्की दृष्टि में बुद्धिमान बनता हो, तो उस से अधिक आशा मूर्ख ही से है। 13 आलसी कहता है, कि मार्ग में सिंह है, चौक में सिंह है! 14 जैसे किवाड़ अपक्की चूल पर घूमता है, वैसे ही आलसी अपक्की खाट पर करवटें लेता है। 15 आलसी अपना हाथ याली में तो डालता है, परन्तु आलस्य के कारण कौर मुंह तक नहीं उठाता। 16 आलसी अपके को ठीक उत्तर देनेवाले सात मनुष्योंसे भी अधिक बुद्धिमान समझता है। 17 जो मार्ग पर चलते हुए पराथे फगड़े में विघ्न डालता है, सो वह उसके समान है, जो कुत्ते को कानोंसे पकड़ता है। 18 जैसा एक पागल जो जंगली लकडिय़ां और मृत्यु के तीर फेंकता है, 19 वैसा ही वह भी होता है जो अपके पड़ोसी को धोखा देकर कहता है, कि मैं तो ठट्ठा कर रहा या। 20 जैसे लकड़ी न होने से आग बुफती है, उसी प्रकार जहां कानाफूसी करनेवाला नहीं वहां फगड़ा मिट जाता है। 21 जैसा अंगारोंमें कोयला और आग में लकड़ी होती है, वैसा ही फगड़े के बढ़ाने के लिथे फगडालू होता है। 22 कानाफूसी करनेवाले के वचन, स्वादिष्ट भोजन के समान भीतर उतर जाते हैं। 23 जैसा कोई चान्दी का पानी चढ़ाया हुअ मिट्टी का बर्तन हो, वैसा ही बुरे मनवाले के प्रेम भरे वचन होते हैं। 24 जो बैरी बात से तो अपके को भोला बनाता है, परन्तु अपके भीतर छल रखता है, 25 उसकी मीठी-मीठी बात प्रतीति न करना, क्योंकि उसके मन में सात घिनौनी वस्तुएं रहती हैं; 26 चाहे उसका बैर छल के कारण छिप भी जाए, तौभी उसकी बुराई सभा के बीच प्रगट हो जाएगी। 27 जो गड़हा खोदे, वही उसी में गिरेगा, और जो पत्यर लुढ़काए, वह उलटकर उसी पर लुढ़क आएगा। 28 जिस ने किसी को फूठी बातोंसे घायल किया हो वह उस से बैर रखता है, और चिकनी चुपक्की बात बोलनेवाला विनाश का कारण होता है।।
1 कल के दिन के विषय में मत फूल, क्योंकि तू नहीं जानता कि दिन भर में क्या होगा। 2 तेरी प्रशंसा और लोग करें तो करें, परन्तु तू आप न करना; दूसरा तूफे सराहे तो सराहे, परन्तु तू अपक्की सराहना न करना। 3 पत्यर तो भारी है और बालू में बोफ है, परन्तु मूढ का क्रोध उन दोनोंसे भी भारी है। 4 क्रोध तो क्रूर, और प्रकोप धारा के समान होता है, परन्तु जब कोई जल उठता है, तब कौन ठहर सकता है? 5 खुली हुई डांट गुप्त प्रेम से उत्तम है। 6 जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य है परन्तु बैरी अधिक चुम्बन करता है। 7 सन्तुष्ट होने पर मधु का छत्ता भी फीका लगता है, परन्तु भूखे को सब कड़वी वस्तुएं भी मीठी जान पड़ती हैं। 8 स्यान छोड़कर घूमनेवाला मनुष्य उस चिडिय़ा के समान है, जो घोंसला छोड़कर उड़ती फिरती है। 9 जैसे तेल और सुगन्ध से, वैसे ही मित्र के ह्रृदय की मनोहर सम्मति से मन आनन्दित होता है। 10 जो तेरा और तेरे पिता का भी मित्र हो उसे न छोड़ना; और अपक्की विपत्ति के दिन अपके भाई के घर न जाना। प्रेम करनेवाला पड़ोसी, दूर रहनेवाले भाई से कहीं उत्तम है। 11 हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपके निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा। 12 बुद्धिमान मनुष्य विपत्ति को आती देखकर छिप जाता है; परन्तु भोले लोग आगे बढ़े चले जाते और हानि उठाते हैं। 13 जो पराए का उत्तरदायी हो उसका कपड़ा, और जो अनजान का उत्तरदायी हो उस से बन्धक की वस्तु ले ले। 14 जो भोर को उठकर अपके पड़ोसी को ऊंचे शब्द से आशीर्वाद देता है, उसके लिथे यह शाप गिना जाता है। 15 फड़ी के दिन पानी का लगातार टपकना, और फगडालू पत्नी दोनोंएक से हैं; 16 जो उसको रोक रखे, वह वायु को भी रोक रखेगा और दहिने हाथ से वह तेल पकड़ेगा। 17 जैसे लोहा लोहे को चमका देता है, वैसे ही मनुष्य का मुख अपके मित्र की संगति से चमकदार हो जाता है। 18 जो अंजीर के पेड़ की रझा करता है वह उसका फल खाता है, इसी रीति से जो अपके स्वामी की सेवा करता उसकी महिमा होती है। 19 जैसे जल में मुख की परछाई सुख से मिलती है, वैसे ही एक मनुष्य का मन दूसरे मनुष्य के मन से मिलता है। 20 जैसे अधोलोक और विनाशलोक, वैसे ही मनुष्य की आंखें भी तृप्त नहीं होती। 21 जैसे चान्दी के लिथे कुठाई और सोने के लिथे भट्ठी हैं, वैसे ही मनुष्य के लिथे उसकी प्रशंसा है। 22 चाहे तू मूर्ख को अनाज के बीच ओखली में डालकर मूसल से कूटे, तौभी उसकी मूर्खता नहीं जाने की। 23 अपक्की भेड़-बकरियोंकी दशा भली-भांति मन लगाकर जान ले, और अपके सब पशुओं के फुण्डोंकी देखभाल उचित रीति से कर; 24 क्योंकि सम्पत्ति सदा नहीं ठहरती; और क्या राजमुकुट पीढ़ी-पीढ़ी चला जाता है? 25 कटी हुई घास उठ गई, नई घास दिखाई देती हैं, पहाड़ोंकी हरियाली काटकर इकट्ठी की गई है; 26 भेड़ोंके बच्चे तेरे वस्त्र के लिथे हैं, और बकरोंके द्वारा खेत का मूल्य दिया जाएगा; 27 और बकरियोंका इतना दूध होगा कि तू अपके घराने समेत पेट भरके पिया करेगा, और तेरी लौण्उियोंका भी जीवन निर्वाह होता रहेगा।।
1 दुष्ट लोग जब कोई पीछा नहीं करता तब भी भागते हैं, परन्तु धर्मी लोग जवान सिहोंके समान निडर रहते हैं। 2 देश में पाप होन के कारण उसके हाकिम बदलते जाते हैं; परन्तु समझदार और ज्ञानी मनुष्य के द्वारा सुप्रबन्ध बहुत दिन के लिथे बना रहेगा। 3 जो निर्धन पुरूष कंगालोंपर अन्धेर करता है, वह ऐसी भारी वर्षा के समान है। जो कुछ भोजनवस्तु नहीं छोड़ती। 4 जो लोग व्यवस्या को छोड़ देते हैं, वे दुष्ट की प्रशंसा करते हैं, परन्तु व्यवस्या पर चलनेवाले उन से लड़ते हैं। 5 बुरे लोग न्याय को नहीं समझ सकते, परन्तु यहोवा को ढूंढनेवाले सब कुछ समझते हैं। 6 टेढ़ी चाल चलनेवाले धनी मनुष्य से खराई से चलनेवाला निर्धन पुरूष ही उत्तम है। 7 जो व्यवस्या का पालन करता वह समझदार सुपूत होता है, परन्तु उड़ाऊ का संगी अपके पिता का मुंह काला करता है। 8 जो अपना धन ब्याज आदि बढ़ती से बढ़ाता है, वह उसके लिथे बटोरता है जो कंगालोंपर अनुग्रह करता है। 9 जो अपना कान व्यवस्या सुनने से फेर लेता है, उसकी प्रार्यना घृणित ठहरती है। 10 जो सीधे लोगोंको भटकाकर कुमार्ग में ले जाता है वह अपके खोदे हुए गड़हे में आप ही गिरता है; परन्तु खरे लोग कल्याण के भागी होते हैं। 11 धनी पुरूष अपक्की दृष्टि में बुद्धिमान होता है, परन्तु समझदार कंगाल उसका मर्म बूफ लेता है। 12 जब धर्मी लोग जयवन्त होते हैं, तब बड़ी शोभा होती है; परन्तु जब दुष्ट लोग प्रबल होते हैं, तब मनुष्य अपके आप को छिपाता है। 13 जो अपके अपराध छिपा रखता है, उसका कार्य सुफल नहीं होता, परन्तु जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जाथेगी। 14 जो मनुष्य निरन्तर प्रभु का भय मानता रहता है वह धन्य है; परन्तु जो अपना मन कठोर कर लेता है वह विपत्ति में पड़ता है। 15 कंगाल प्रजा पर प्रभुता करनेवाला दुष्ट गरजनेवाले सिंह और घूमनेवाले रीछ के समान है। 16 जो प्रधान मन्दबुद्धि का होता है, वही बहुत अन्धेर करता है; और जो लालच का बैरी होता है वह दीर्घायु होता है। 17 जो किसी प्राणी की हत्या का अपराधी हो, वह भागकर गड़हे में गिरेगा; कोई उसको न रोकेगा। 18 जो सीधाई से चलता है वह बचाया जाता है, परन्तु जो टेढ़ी चाल चलता है वह अचानक गिर पड़ता है। 19 जो अपक्की भूमि को जोता-बोया करता है, उसका तो पेट भरता है, परन्तु जो निकम्मे लोगोंकी संगति करता है वह कंगालपन से घिरा रहता है। 20 सच्चे मनुष्य पर बहुत आशीर्वाद होते रहते हैं, परन्तु जो धनी होन से उतावली करता है, वह निर्दोष नहीं ठहरता। 21 पझपात करना अच्छा नहीं; और यह भी अच्छा नहीं कि पुरूष एक टुकड़े रोटी के लिथे अपराध करे। 22 लोभी जन धन प्राप्त करने में उतावली करता है, और नहीं जानता कि वह घटी में पकेगा। 23 जो किसी मनुष्य को डांटता है वह अन्त में चापलूसी करनेवाले से अधिक प्यारा हो जाता है। 24 जो अपके मां-बाप को लूटकर कहता है कि कुछ अपराध नहीं, वह नाश करनेवाले का संगी ठहरता है। 25 लालची मनुष्य फगड़ा मचाता है, और जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह ह्रृष्टपुष्ट हो जाता है। 26 जो अपके ऊपर भरोसा रखता है, वह मूर्ख है; और जो बुद्धि से चलता है, वह बचता है। 27 जो निर्धन को दान देता है उसे घटी नहीं होती, परन्तु जो उस से दुष्टि फेर लेता है वह शाप पर शाप पाता है। 28 जब दुष्ट लोग प्रबल होते हैं तब तो मनुष्य ढूंढ़े नहीं मिलते, परन्तु जब वे नाश हो जाते हैं, तब धर्मी उन्नति करते हैं।।
1 जो बार बार डांटे जाने पर भी हठ करता है, वह अचानक नाश हो जाएगा और उसका कोई भी उपाय काम न आएगा। 2 जब धर्मी लोग शिरोमणि होते हैं, तब प्रजा आनन्दित होती है; परन्तु जब दुष्ट प्रभुता करता है तब प्रजा हाथ मारती है। 3 जो पुरूष बुद्धि से प्रीति रखता है, अपके पिता को आनन्दित करता है, परन्तु वेश्याओं की संगति करनेवाला धन को उड़ा देता है। 4 राजा न्याय से देश को स्यिर करता है, परन्तु जो बहुत घूस लेता है उसको उलट देता है। 5 जो पुरूष किसी से चिकनी चुपक्की बातें करता है, वह उसके पैरोंके लिथे जाल लगाता है। 6 बुरे मनुष्य का अपराध फन्दा होता है, परन्तु धर्मी आनन्दित होकर जयजयकार करता है। 7 धर्मी पुरूष कंगालोंके मुकद्दमें में मन लगाता है; परन्तु दुष्ट जन उसे जानने की समझ नहीं रखता। 8 ठट्ठा करनेवाले लोग नगर को फूंक देते हैं, परन्तु बुद्धिमान लोग क्रोध को ठण्डा करते हैं। 9 जब बुद्धिमान मूढ़ के साय वादविवाद करता है, तब वह मूढ़ क्रोधित होता और ठट्ठा करता है, और वहां शान्ति नहीं रहती। 10 हत्यारे लोग खरे पुरूष से बैर रखते हैं, और सीधे लोगोंके प्राण की खोज करते हैं। 11 मूर्ख अपके सारे मन की बात खोल देता है, परन्तु बुद्धिमान अपके मन को रोकता, और शान्त कर देता है। 12 जब हाकिम फूठी बात की ओर कान लगाता है, तब उसके सब सेवक दुष्ट हो जाते हैं। 13 निर्धन और अन्धेर करनेवाला पुरूष एक समान है; और यहोवा दोनोंकी आंखोंमें ज्योति देता है। 14 जो राजा कंगालोंका न्याय सच्चाई से चुकाता है, उसकी गद्दी सदैव स्यिर रहती है। 15 छड़ी और डांट से बुद्धि प्राप्त होती है, परन्तु जो लड़का योंइी छोड़ा जाता है वह अपक्की माता की लज्जा का कारण होता है। 16 दुष्टोंके बड़ने से अपराध भी बढ़ता है; परन्तु अन्त में धर्मी लोग उनका गिरना देख लेते हैं। 17 अपके बेटे की ताड़ना कर, तब उस से तुझे चैन मिलेगा; और तेरा मन सुखी हो जाएगा। 18 जहां दर्शन की बात नहीं होती, वहां लोग निरंकुश हो जाते हैं, और जो व्यवस्या को मानता है वह धन्य होता है। 19 दास बातोंही के द्वारा सुधारा नहीं जाता, क्योंकि वह समझदार भी नहीं मानता। 20 क्या तू बातें करने में उतावली करनेवाले मनुष्य को देखता है? उस से अधिक तो मूर्ख ही से आशा है। 21 जो अपके दास को उसके लड़कपन से सुकुमारपन में पालता है, वह दास अन्त में उसका बेटा बन बैठता है। 22 क्रोध करनेवाला मनुष्य फगड़ा मचाता है और अत्यन्त क्रोध करनेवाला अपराधी होता है। 23 मनुष्य गर्व के कारण नीचा खाता है, परन्तु नम्र आत्मावाला महिमा का अधिक्कारनेी होता है। 24 जो चोर की संगति करता है वह अपके प्राण का बैरी होता है; शपय खाने पर भी वह बात को प्रगट नहीं करता। 25 मनुष्य का भय खाना फन्दा हो जाता है, परन्तु जो यहोवा पर भरोसा रखता है वह ऊंचे स्यान पर चढ़ाया जाता है। 26 हाकिम से भेंट करना बहुत लोग चाहते हैं, परन्तु मनुष्य का न्याय यहोवा की करता है। 27 धर्मी लोग कुटिल मनुष्य से घृणा करते हैं और दुष्ट जन भी सीधी चाल चलनेवाले से घृणा करता है।।
1 याके के पुत्र आगूर के प्रभावशाली वचन।। उस पुरूष ने ईतीएल और उक्काल से यह कहा, 2 निश्चय मैं पशु सरीखा हूं, वरन मनुष्य कहलाने के योग्य भी नहीं; और मनुष्य की समझ मुझ में नहीं है। 3 न मैं ने बुद्धि प्राप्त की है, और न परमपवित्र का ज्ञान मुझे मिला है। 4 कौन स्वर्ग में चढ़कर फिर उतर अया? किस ने वायु को अपक्की मुट्ठी में बटोर रखा है? किस ने महासागर को अपके वस्त्र में बान्ध लिया है? किस ने पृय्वी के सिवनोंको ठहराया है? उसका नाम क्या है? और उसके पुत्र का नाम क्या है? यदि तू जानता हो तो बता! 5 ईश्वर का एक एक वचन ताया हुआ है; वह अपके शरणागतोंकी ढाल ठहरा है। 6 उसके वचनोंमें कुछ मत बढ़ा, ऐसा न हो कि वह तुझे डांटे और तू फूठा ठहरे।। 7 मैं ने तुझ से दो वर मांगे हैं, इसलिथे मेरे मरने से पहिले उन्हें मुझे देने से मुंह न मोड़: 8 अर्यात व्यर्य और फूठी बात मुझ से दूर रख; मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना; प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर। 9 ऐसा न हो, कि जब मेरा पेट भर जाए, तब मैं इन्कार करके कहूं कि यहोवा कौन है? वा अपना भाग खोकर चोरी करूं, और अपके परमेश्वर का नाम अनुचित रीति से लूं। 10 किसी दास की, उसके स्वामी से चुगली न करना, ऐसा न हो कि वह तुझे शाप दे, और तू दोषी ठहराया जाए।। 11 ऐसे लोग हैं, जो अपके पिता को शाप देते और अपक्की माता को धन्य नहीं कहते। 12 ऐसे लोग हैं जो अपक्की दृष्टि में शुद्ध हैं, तौभी उनका मैल धोया नहीं गया। 13 एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं उनकी दृष्टि क्या ही घमण्ड से भरी रहती है, और उनकी आंखें कैसी चक्की हुई रहती हैं। 14 एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं, जिनके दांत तलवार और उनकी दाढ़ें छुरियां हैं, जिन से वे दीन लोगोंको पृय्वी पर से, और दरिद्रोंको मनुष्योंमें से मिटा डालें।। 15 जैसे जोंक की दो बेछियां होती हैं, जो कहती हैं दे, दे, वैसे ही तीन वस्तुएं हैं, जो तृप्त नहीं होतीं; वरन चार हैं, जो कभी नहीं कहतीं, बस। 16 अधोलोक और बांफ की कोख, भूमि जो जल पी पीकर तृप्त नहीं होती, और आग जो कभी नहीं कहती, बस।। 17 जिस आंख से कोई अपके पिता पर अनादर की दृष्टि करे, और अपमान के साय अपक्की माता की आज्ञा न माने, उस आंख को तराई के कौवे खोद खोदकर निकालेंगे, और उकाब के बच्चे खा डालेंगे।। 18 तीन बातें मेरे लिथे अधिक कठिन है, वरन चार हैं, जो मेरी समझ से पके हैं: 19 आकाश में उकाब पक्की का मार्ग, चट्टान पर सर्प की चाल, समुद्र में जहाज की चाल, और कन्या के संग पुरूष की चाल।। 20 व्यभिचारिणी की चाल भी वैसी ही है; वह भोजन करके मुंह पोंछती, और कहती है, मैं ने कोई अनर्य काम नहीं किया।। 21 तीन बातोंके कारण पृय्वी कांपक्की है; वरन चार है, जो उस से सही नहीं जातीं: 22 दास का राजा हो जाना, मूढ़ का पेट भरना 23 घिनौनी स्त्री का ब्याहा जाना, और दासी का अपक्की स्वामिन की वारिस होना।। 24 पृय्वी पर चार छोटे जन्तु हैं, जो अत्यन्त बुद्धिमान हैं: 25 च्यूटियां निर्बल जाति तो हैं, परन्तु धूपकाल में अपक्की भोजनवस्तु बटोरती हैं; 26 शापान बली जाति नहीं, तौभी उनकी मान्दें पहाड़ोंपर होती हैं; 27 टिड्डियोंके राजा तो नहीं होता, तौभी वे सब की सब दल बान्ध बान्धकर पयान करती हैं; 28 और छिपकली हाथ से पकड़ी तो जाती है, तौभी राजभवनोंमें रहती है।। 29 तीन सुन्दर चलनेवाले प्राणी हैं; वरन चार हैं, जिन की चाल सुन्दर है: 30 सिंह जो सब पशुओं में पराक्रमी हैं, और किसी के डर से नहीं हटता; 31 शिकारी कुत्ता और बकरा, और अपक्की सेना समेत राजा। 32 यदि तू ने अपक्की बढ़ाई करने की मूढ़ता की, वा कोई बुरी युक्ति बान्धी हो, तो अपके मुंह पर हाथ धर। 33 क्योंकि जैसे दूध के मयने से मक्खन और नाक के मरोड़ने से लोहू निकलता है, वैसे ही क्रोध के भड़काने से फगड़ा उत्पन्न होता है।।
1 लमूएल राजा के प्रभावशाली वचन, जो उसकी माता ने उसे सिखाए।। 2 हे मेरे पुत्र, हे मेरे निज पुत्र! हे मेरी मन्नतोंके पुत्र! 3 अपना बल स्त्रियोंको न देना, न अपना जीवन उनके वश कर देता जो राजाओं का पौरूष खो देती हैं। 4 हे लमूएल, राजाओं का दाखमघु पीना उनको शोभा नहीं देता, और मदिरा चाहना, रईयोंको नहीं फबता; 5 ऐसा न हो कि वे पीकर व्यवस्या को भूल जाएं और किसी दु:खी के हक को मारें। 6 मदिरा उसको पिलाओ जो मरने पर है, और दाखमधु उदास मनवालोंको ही देना; 7 जिस से वे पीकर अपक्की दरिद्रता को भूल जाएं और अपके कठिन श्र्म फिर स्मरण न करें। 8 गूंगे के लिथे अपना मुंह खोल, और सब अनायोंका न्याय उचित रीति से किया कर। 9 अपना मुंह खोल और धर्म से न्याय कर, और दीन दरिद्रोंका न्याय कर। 10 भली पत्नी कौन पा सकता है? क्योंकि उसका मूल्य मूंगोंसे भी बहुत अधिक है। उसके पति के मन में उसके प्रति विश्वास है। 11 और उसे लाभ की घटी नहीं होती। 12 वह अपके जीवन के सारे दिनोंमें उस से बुरा नहीं, वरन भला ही व्यवहार करती है। 13 वह ऊन और सन ढूंढ़ ढूंढ़कर, अपके हाथोंसे प्रसन्नता के साय काम करती है। 14 वह व्योपार के जहाजोंकी नाई अपक्की भोजनवस्तुएं दूर से मंगवाती हैं। 15 वह रात ही को उठ बैठती है, और अपके घराने को भोजन खिलाती है और अपक्की लौण्डियोंको अलग अलग काम देती है। 16 वह किसी खेत के विषय में सोच विचार करती है और उसे मोल ले लेती है; और अपके परिश्र्म के फल से दाख की बारी लगाती है। 17 वह अपक्की कटि को बल के फेंटे से कसती है, और अपक्की बाहोंको दृढ़ बनाती है। 18 वह परख लेती है कि मेरा व्योपार लाभदायक है। रात को उसका दिया नहीं बुफता। 19 वह अटेरन में हाथ लगाती है, और चरखा पकड़ती है। 20 वह दीन के लिथे मुट्ठी खोलती है, और दरिद्र के संभालने को हाथ बढ़ाती है। 21 वह अपके घराने के लिथे हिम से नहीं डरती, क्योंकि उसके घर के सब लोग लाल कपके पहिनते हैं। 22 वह तकिथे बना लेती है; उसके वस्त्र सूझ्म सन और बैंजनी रंग के होते हैं। 23 जब उसका पति सभा में देश के पुरनियोंके संग बैठता है, तब उसका सन्मान होता है। 24 वह सन के वस्त्र बनाकर बेचक्की है; और व्योपारी को कमरबन्द देती है। 25 वह बल और प्रताप का पहिरावा पहिने रहती है, और आनेवाले काल के विषय पर हंसती है। 26 वह बुद्धि की बात बोलती है, और उसके वचन कृपा की शिझा के अनुसार होते हैं। 27 वह अपके घराने के चालचलन को ध्यान से देखती है, और अपक्की रोटी बिना परिश्र्म नहीं खाती। 28 उसके पुत्र उठ उठकर उसको धन्य कहते हैं, उनका पति भी उठकर उसकी ऐसी प्रशंसा करता है: 29 बहुत सी स्त्रियोंने अच्छे अच्छे काम तो किए हैं परन्तु तू उन सभोंमें श्रेष्ट है। 30 शोभा तो फूठी और सुन्दरता व्यर्य है, परन्तु जो स्त्री यहोवा का भय मानती है, उसकी प्रशंसा की जाएगी। 31 उसके हाथोंके परिश्र्म का फल उसे दो, और उसके कार्योंसे सभा में उसकी प्रशंसा होगी।।
1 यरूशलेम के राजा, दाऊद के पुत्र और उपकेशक के वचन। 2 उपकेशक का यह वचन है, कि व्यर्य ही व्यर्य, व्यर्य ही व्यर्य! सब कुछ व्यर्य है। 3 उस सब परिश्र्म से जिसे मनुष्य धरती पर करता है, उसको क्या लाभ प्राप्त होता है? 4 एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, परन्तु पृय्वी सर्वदा बनी रहती है। 5 सूर्य उदय होकर अस्त भी होता है, और अपके उदय की दिशा को वेग से चला जाता है। 6 वायु दक्खिन की ओर बहती है, और उत्तर की ओर घूमती जाती है; वह घूमती और बहती रहती है, और अपके चक्करोंमें लौट आती है। 7 सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्यान से नदियां निकलती हैं; उधर ही को वे फिर जाती हैं। 8 सब बातें परिश्र्म से भरी हैं; मनुष्य इसका वर्णन नहीं कर सकता; न तो आंखें देखने से तृप्त होती हैं, और न कान सुनने से भरते हैं। 9 जो कुछ हुआ या, वही फिर होगा, और जो कुछ बन चुका है वही फिर बनाया जाएगा; और सूर्य के नीचे कोई बात नई नहीं है। 10 क्या ऐसी कोई बात है जिसके विषय में लोग कह सकें कि देख यह नई है? यह तो प्राचीन युगोंमें वर्तमान यी। 11 प्राचीन बातोंका कुछ स्मरण नहीं रहा, और होनेवाली बातोंका भी स्मरण उनके बाद होनेवालोंको न रहेगा।। 12 मैं उपकेशक यरूशलेम में इस्राएल का राजा या। 13 और मैं ने अपना मन लगाया कि जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है, उसका भेद बुद्धि से सोच सोचकर मालूम करूं; यह बड़े दु:ख का काम है जो परमेश्वर ने मनुष्योंके लिथे ठहराया है कि वे उस में लगें। 14 मैं ने उन सब कामोंको देखा जो सूर्य के नीचे किए जाते हैं; देखो वे सब व्यर्य और मानो वायु को पकड़ना है। 15 जो टेढ़ा है, वह सीधा नहीं हो सकता, और जितनी वस्तुओं में घटी है, वे गिनी नहीं जातीं।। 16 मैं ने मन में कहा, देख, जितने यरूशलेम में मुझ से पहिले थे, उन सभोंसे मैं ने बहुत अधिक बुद्धि प्राप्त की है; और मुझ को बहुत बुद्धि और ज्ञान मिल गया है। 17 और मैं ने अपना मन लगाया कि बुद्धि का भेद लूं और बावलेपन और मूर्खता को भी जान लूं। मुझे जान पड़ा कि यह भी वायु को पकड़ना है।। 18 क्योंकि बहुत बुद्धि के साय बहुत खेद भी होता है, और जो अपना ज्ञान बढ़ाता है वह अपना दु:ख भी बढ़ाता है।।
1 मैं ने अपके मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जांचूंगा; इसलिथे आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्य है। 2 मैं ने हंसी के विषय में कहा, यह तो बावलापन है, और आनन्द के विषय में, उस से क्या प्राप्त होता है? 3 मैं ने मन में सोचा कि किस प्रकार से मेरी बुद्धि बनी रहे और मैं अपके प्राण को दाखमधु पीने से क्योंकर बहलाऊं और क्योंकर मूर्खता को यामे रहूं, जब तक मालूम न करूं कि वह अच्छा काम कौन सा है जिसे मनुष्य जीवन भर करता रहे। 4 मैं ने बड़े बड़े काम किए; मैं ने अपके लिथे घर बनवा लिए और अपके लिथे दाख की बारियां लगवाई; 5 मैं ने अपके लिथे बारियां और बाग लगावा लिए, और उन में भांति भांति के फलदाई वृझ लगाए। 6 मैं ने अपके लिथे कुण्ड खुदवा लिए कि उन से वह वन सींचा जाए जिस में पौधे लगाए जाते थे। 7 मैं ने दास और दासियां मोल लीं, और मेरे घर में दास भी उत्पन्न हुए; और जितने मुझ से पहिले यरूशलेम में थे उस ने कहीं अधिक गाय-बैल और भेड़-बकरियोंका मैं स्वामी या। 8 मैं ने चान्दी और सोना और राजाओं और प्रान्तोंके बहुमूल्य पदार्योंका भी संग्रह किया; मैं ने अपके लिथे गवैयोंऔर गानेवालियोंको रखा, और बहुत सी कामिनियां भी, जिन से मनुष्य सुख पाते हैं, अपक्की कर लीं।। 9 इस प्रकार मैं अपके से पहिले के सब यरूशलेमवासिक्कों अधिक महान और धनाढय हो गया; तौभी मेरी बुद्धि ठिकाने रही। 10 और जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभोंको देखने से मैं न रूका; मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्र्म के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्र्म से मुझे यही भाग मिला। 11 तब मैं ने फिर से अपके हाथोंके सब कामोंको, और अपके सब परिश्र्म को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्य और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं।। 12 फिर मैं ने अपके मन को फेरा कि बुद्धि और बावलेपन और मूर्खता के कार्योंको देखूं; क्योंकि जो मनुष्य राजा के पीछे आएगा, वह क्या करेगा? केवल वही जो होता चला आया है। 13 तब मैं ने देखा कि उजियाला अंधिक्कारने से जितना उत्तम है, उतना बुद्धि भी मूर्खता से उत्तम है। 14 जो बुद्धिमान है, उसके सिर में आंखें रहती हैं, परन्तु मूर्ख अंधिक्कारने में चलता है; तौभी मैं ने जान लिया कि दोनोंकी दशा एक सी होती है। 15 तब मैं ने मन में कहा, जैसी मूर्ख की दशा होगी, वैसी ही मेरी भी होगी; फिर मैं क्योंअधिक बुद्धिमान हुआ? और मैं ने मन में कहा, यह भी व्यर्य ही है। 16 क्योंकि ने तो बुद्धिमान का और न मूर्ख का स्मरण सर्वदा बना रहेगा, परन्तु भविष्य में सब कुछ बिसर जाएगा। 17 बुद्धिमान क्योंकर मूर्ख के समान मरता है! इसलिथे मैं ने अपके जीवन से घृणा की, क्योंकि जो काम संसार में किया जाता है मुझे बुरा मालूम हुआ; क्योंकि सब कुछ व्यर्य और वायु को पकड़ना है। 18 मैं ने अपके सारे परिश्र्म के प्रतिफल से जिसे मैं ने धरती पर किया या घृणा की, क्योंकि अवश्य है कि मैं उसका फल उस मनुष्य के लिथे छोड़ जाऊं जो मेरे बाद आएगा। 19 यह कौन जानता है कि वह मनुष्य बुद्धिमान होगा वा मूर्ख? तौभी धरती पर जितना परिश्र्म मैं ने किया, और उसके लिथे बुद्धि प्रयोग की उस सब का वही अधिक्कारनेी होगा। यह भी व्यर्य ही है। 20 तब मैं अपके मन में उस सारे परिश्र्म के विषय जो मैं ने धरती पर किया या निराश हुआ, 21 क्योंकि ऐसा मनुष्य भी है, जिसका कार्य परिश्र्म और बुद्धि और ज्ञान से होता है और सफल भी होता है, तौभी उसको ऐसे मनुष्य के लिथे छोड़ जाना पड़ता है, जिस ने उस में कुछ भी परिश्र्म न किया हो। यह भी व्यर्य और बहुत ही बुरा है। 22 मनुष्य जो धरती पर मन लगा लगाकर परिश्र्म करता है उस से उसको क्या लाभ होता है? 23 उसके सब दिन तो दु:खोंसे भरे रहते हैं, और उसका काम खेद के साय होता है; रात को भी उसका मन चैन नहीं पाता। यह भी व्यर्य ही है। 24 मनुष्य के लिथे खाने-पीने और परिश्र्म करते हुए अपके जीव को सुखी रखने के सिवाय और कुछ भी अच्छा नहीं। मैं ने देखा कि यह भी परमेश्वर की ओर से मिलता है। 25 क्योंकि खाने-पीने और सुख भोगने में मुझ से अधिक समर्य कौन है? 26 जो मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि और ज्ञान और आनन्द देता है; परन्तु पापी को वह दु:खभरा काम ही देता है कि वह उसका देने के लिथे संचय करके ढेर लगाए जो परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा हो। यह भी व्यर्य और वायु को पकड़ना है।।