1 झयर्ष नाम राजा के दिनोंमें थे बातें हुई :यह वही झयर्ष है, जो एक सौ सताईस प्रान्तोंपर, अर्यात् हिन्दुस्तान से लेकर कूश देश तक राज्य करता या। 2 उन्हीं दिनोंमें जब झयर्ष राजा अपक्की उस राजगद्दी पर विराजमान या जो शूशन नाम राजगढ़ में यी। 3 वहां उस ने अपके राज्य के तीसरे वर्ष में अपके सब हाकिमोंऔर कर्मचारियोंकी जेवनार की। फ़ारस और मादै के सेनापति और प्रान्त- प्रान्त के प्रधान और हाकिम उसके सम्मुख आ गए। 4 और वह उन्हें बहुत दिन वरन एक सौ अस्सी दिन तक अपके राजविभव का धन और अपके माहात्म्य के अनमोल पदार्य दिखाता रहा। 5 इतने दिनोंके बीतने पर राजा ने क्या छोटे क्य बड़े उन सभोंकी भी जो शूशन नाम राजगढ़ में इकट्ठे हुए थे, राजभवन की बारी के आंगन में सात दिन तक जेवनार की। 6 वहां के पर्दे श्वेत और नीले सूत के थे, और सन और बैंजनी रंग की डोरियोंसे चान्दी के छल्लोंमें, संगमर्मर के खम्भोंसे लगे हुए थे; और वहां की चौकियां सोने-चान्दी की यीं; और लाल और श्वेत और पीले और काले संगमर्मर के बने हुए फ़र्श पर धरी हुई यीं। 7 उस जेवनार में राजा के योग्य दाखमधु भिन्न भिन्न रूप के सोने के पात्रें में डालकर राजा की उदारता से बहुतायत के साय पिलाया जाता या। 8 पीना तो नियम के अनुसार होता या, किसी को बरबस नहीं पिलाया जाता या; क्योंकि राजा ने तो अपके भवन के सब भणडारियोंको आज्ञा दी यी, कि जो पाहुन जैसा चाहे उसके साय वैसा ही बर्ताव करना। 9 रानी बशती ने भी राजा झयर्ष के भवन में स्त्र्ियोंकी जेवनार की। 10 सातवें दिन, जब राजा का मन दाखमधु में मग्न या, तब उस ने महूमान, बिजता, हबॉना, बिगता, अबगता, जेतेर और कर्कस नाम सातोंखेजोंको जो झयर्ष राजा के सम्मुख सेवा टहल किया करते थे, आाज्ञा दी, 11 कि रानी वशती को राजमुकुट धारण किए हुए राजा के सम्मुख ले आओ; जिस से कि देश देश के लोगोंऔर हाकिमोंपर उसकी सुन्दरता प्रगट हो जाए; क्योंकि वह देखने में सुन्दर यी। 12 खोजोंके द्वारा राजा की यह आज्ञा पाकर रानी वशती ने आने से इनकार किया। इस पर राजा बड़े क्रोध से जलने लगा। 13 तब राजा ने समय समय का भेद जाननेवाले पणिडतोंसे पुछा (राजा तो नीति और न्याय के सब ज्ञानियोंसे ऐसा ही किया करता या। 14 और उसके पास कर्शना, शेतार, अदमाता, तशींश, मेरेस, मर्सना, और ममूकान नाम फ़ारस, और मादै के सातोंखेजे थे, जो राजा का दर्शन करते, और राज्य में मुख्य मुख्य पदोंपर नियुक्त किए गए थे। ) 15 राजा ने पूछा कि रानी वशती ने राजा झयर्ष की खोजोंद्वारा दिलाई हुई आज्ञा का उलंघन किया, तो नीति के अनुसार उसके साय क्या किया जाए? 16 तब ममूकान ने राजा और हाकिमोंकी उपस्यिति में उत्तर दिया, रानी वशती ने जो अनुचित काम किया है, वह न केवल राजा से परन्तु सब हाकिमोंसे और उन सब देशोंके लोगोंसे भी जो राजा झयर्ष के सब प्रान्तोंमें रहते हैं। 17 क्योंकि रानी के इस काम की चर्चा सब स्त्रियोंमें होगी और जब यह कहा जाएगा, कि राजा झयर्ष ने रानी वशती को अपके साम्हने ले आने की आज्ञा दी परन्तु वह न आई, तब वे भी अपके अपके पति को तुच्छ जानने लगेंगी। 18 और आज के दिन फ़ारसी और मादी हाकिमोंकी स्त्रियां जिन्होंने रानी की यह बात सुनी है तो वे भी राजा के सब हाकिमोंसे ऐसा ही कहने लगेंगी; इस प्रकार बहुत ही घृणा और क्रोध उत्पन्न होगा। 19 यदि राजा को स्वीकार हो, तो यह आज्ञा निकाले, और फासिर्योंऔर मादियोंके कानून में लिखी भी जाए, जिस से कभी बदल न सके, कि रानी वशती राजा झयर्ष के सम्मुख फिर कभी आने न पाए, और राजा पटरानी का पद किसी दूसरी को दे दे जो उस से अच्छी हो। 20 और जब राजा की यह आज्ञा उसके सारे राज्य में सुनाई जाएगी, तब सब पत्नियां छोटे, बड़े, अपके अपके पति का आदरमान करती रहेंगी। 21 यह बात राजा और हाकिमोंको पसन्द आई और राजा ने ममूकान की सम्मति मान ली और अपके राज्य में, 22 अर्यत् प्रत्थेक प्रान्त के अझरोंमें और प्रत्थेक जाति की भाषा में चिट्ठियां भेजीं, कि सब पुरुष अपके अपके घर में अधिक्कारने चलाएं, और अपक्की जाति की भाषा बोला करें।
1 इन बातोंके बाद जब राजा झयर्ष की जलजलाहट ठंडी हो गई, तब उस ने रानी वशती की, और जो काम उस ने किया या, और जो उसके विषय में आज्ञा निकली यी उसकी भी सुधि ली। 2 तब राजा के सेवक जो उसके टहलुए थे, कहने लगे, राजा के लिथे सुन्दर तया युवती कुंवारियां ढूंढी जाएं। 3 और राजा ने अपके राज्य के सब प्रान्तोंमें लोगोंको इसलिथे नियुक्त किया कि वे सब सुन्दर युवती कुंवारियोंको शूशन गढ़ के रनवास में इकट्ठा करें और स्त्रियोंके रखवाले हेगे को जो राजा का खोजा या सौप दें; और शुद्ध करने के योग्य वस्तुएं उन्हें दी जाएं। 4 तब उन में से जो कुंवारी राजा की दृष्टि में उत्तम ठहरे, वह रानी वशती के स्यान पर पटरानी बनाई जाए। यह बात राजा को पसन्द आई और उस ने ऐसा ही किया। 5 शूशन गढ़ में मोर्दकै नाम एक यहूदी रहता या, जो कीश नाम के एक बिन्यामीनी का परपोता, शिमी का पोता, और याईर का पुत्र या। 6 वह उन बन्धुओं के साय यरूशलेम से बन्धुआई में गया या, जिन्हें बाबेल का राजा नबूकदनेस्सर, यहूदा के राजा यकोन्याह के संग बन्धुआ करके ले गया या। 7 उस ने हदस्सा नाम अपक्की चचेरी बहिन को, जो एस्तेर भी कहलाती यी, पाला-पोसा या; क्योंकि उसके माता-मिता कोई न थे, और वह लड़की सुन्दर और रूपवती यी, और जब उसके माता-पिता मर गए, तब मोर्दकै ने उसको अपक्की बेटी करके पाला। 8 जब राजा की आज्ञा और नियम सुनाए गए, और बहुत सी युवती स्त्रियां, शूशन गढ़ में हेगे के अधिक्कारने में इकट्ठी की गई, तब एस्तेर भी राजभवन में स्त्रियोंके रखवाले हेगे के अधिक्कारने में सौंपी गई। 9 और वह युवती स्त्री उसकी दृष्टि में अच्छी लगी; और वह उस से प्रसन्न हुआ, तब उस ने बिना विलम्ब उसे राजभवन में से शुद्ध करने की वस्तुएं, और उसका भोजन, और उसके लिथे चुनी हुई सात सहेलियां भी दीं, और उसको और उसकी सहेलियोंको रनवास में सब से अच्छा रहने का स्यान दिया। 10 एस्तेर ने न अपक्की जाति बताई यी, न अपना कुल; क्योंकि मोर्दकै ने उसको आज्ञा दी यी, कि उसे न बताना। 11 मोर्दकै तो प्रतिदिन रनवास के आंगन के साम्हने टहलता या ताकि जाने की एस्तेर कैसी है और उसके साय क्या होगा? 12 जब एक एक कन्या की बारी हुई, कि वह झयर्ष राजा के पास जाए, ( और यह उस समय हुउा जब उसके साय स्त्रियोंके लिथे ठहराए हुए नियम के अनुसार बारह माह तक व्यवहार किया गया या; अर्यात् उनके शुद्ध करने के दिन इस रीति से बीत गए, कि छ: माह तक गन्धरस का तेल लगाया जाता या, और छ: माह तक सुगन्धदव्य, और स्त्रियोंके शुद्ध करने का और और सामान लगाया जाता या ) । 13 इस प्रकार से वह कन्या जब राजा के पास जाती यी, तब जो कुछ वह चाहती कि रनवास से राजभवन में ले जाए, वह उसको दिया जाता या। 14 सांफ को तो वह जाती यी और बिहान को वह लौटकर रनवास के दूसरे घर में जाकर रखेलियोंके रखवाले राजा के खोजे शाशगज के अधिक्कारने में हो जाती यी, और राजा के पास फिर नहीं जाती यी। और यदि राजा उस से प्रसन्न हो जाता या, तब वह नाम लेकर बुलाई जाती यी। 15 जब मोर्दकै के चाचा अबीहैल की बेटी एस्तेर, जिसको मोर्दकै ने बेटी मानकर रखा या, उसकी बारी आई कि राजा के पास जाए, तब जो कुछ स्त्रियोंके रखवाले राजा के खोजे हेगे ने उसके लिथे ठहराया या, उस से अधिक उस ने और कुछ न मांगा। और जितनोंने एस्तेर को देखा, वे सब उस से प्रसन्न हुए। 16 योंएस्तेर राजभवन में राजा झयर्ष के पास उसके राज्य के सातवें वर्ष के तेबेत नाम दसवें महीने में पहुंचाई गई। 17 और राजा ने एस्तेर को और सब स्त्रियोंसे अधिक प्यार किया, और और सब कुंवारियोंसे अधिक उसके अनुग्रह और कृपा की दृष्टि उसी पर हुई, इस कारण उस ने उसके सिर पर राजमुकुट रखा और उसको वशती के स्यान पर रानी बनाया। 18 तब राजा ने अपके सब हाकिमोंऔर कर्मचारियोंकी बड़ी जेवनार करके, उसे एस्तेर की जेवनार कहा; और प्रान्तोंमें छुट्टी दिलाई, और अपक्की उदारता के योग्य इनाम भी बांटे। 19 जब कुंवारियां दूसरी बार इकट्ठी की गई, तब मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा या। 20 और एस्तेर ने अपक्की जाति और कुल का पता नहीं दिया या, क्योंकि मोर्दकै ने उसको ऐसी आज्ञा दी यी कि न बताए; और एस्तेर मोर्दकै की बात ऐसी मानती यी जैसे कि उसके यहां अपके पालन पोषण के समय मानती यी। 21 उन्हीं दिनोंमें जब मोर्दकै राजा के राजभवन के फाटक में बैठा करता या, तब राजा के खोजे जो द्वारपाल भी थे, उन में से बिकतान और तेरेश नाम दो जनोंने राजा झयर्ष से रूठकर उस पर हाथ चलाने की युक्ति की। 22 यह बात मोर्दकै को मालूम हुई, और उस ने एस्तेर रानी को यह बात बताई, और एस्तेर ने मोर्दकै का नाम लेकर राजा को चितौनी दी। 23 तब जांच पड़ताल होने पर यह बात सच निकली और वे दोनोंवृझ पर लटका दिए गए, और यह वृत्तान्त राजा के साम्हने इतिहास की पुस्तक में लिख लिया गया।
1 इन बातोंके बाद राजा झयर्ष ने अगामी हम्मदाता के पुत्र हामान को उन्च पद दिया, और उसको महत्व देकर उसके लिथे उसके सायी हाकिमोंके सिंहासनोंसे ऊंचा सिंहासन ठहराया। 2 और राजा के सब कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, वे हामान के साम्हने फुककर दणडवत किया करते थे क्योंकि राजा ने उसके विषय ऐसी ही आज्ञा दी यी; परन्तु मोर्दकै न तो फुकता या और न उसको दणडवत करता या। 3 तब राजा के कर्मचारी जो राजभवन के फाटक में रहा करते थे, उन्होंने मोर्दकै से पूछा, 4 तू राजा की आज्ञा क्योंउलंघन करता है? जब वे उस से प्रतिदिन ऐसा ही कहते रहे, और उस ने उनकी एक न मानी, तब उन्होंने यह देखने की इच्छा से कि मोर्दकै की यह बात चलेगी कि नहीं, हामान को बता दिया; उस ने तो उनको बता दिया या कि मैं यहूदी हूँ। 5 जब हामान ने देखा, कि मोर्दकै नहीं फुकता, और न मुझ को दणडवत करता है, तब हामान बहुत ही क्रोधित हुआ। 6 उस ने केवल मोर्दकै पर हाथ चलाना अपक्की मर्यादा के नीचे जाना। क्योंकि उन्होंने हामान को यह बता दिया या, कि मोर्दकै किस जाति का है, इसलिथे हामान ने झयर्ष के साम्राज्य में रहनेवाले सारे यहूदियोंको भी मोर्दकै की जाति जानकर, विनाश कर डालने की युक्ति निकाली। 7 राजा झयर्ष के बारहवें वर्ष के नीसान नाम पहिले महीने में, हामान ने अदार नाम बारहवें महीने तक के एक एक दिन और एक एक महीने के लिथे “पूर” अर्यात् चिट्ठी अपके साम्हने डलवाई। 8 और हामान ने राजा झयर्ष से कहा, तेरे राज्य के सब प्रान्तोंमें रहनेवाले देश देश के लोगोंके मध्य में तितर बितर और छिटकी हुई एक जाति है, जिसके नियम और सब लोगोंके नियमोंसे भिन्न हैं; और वे राजा के कानून पर नहीं चलते, इसलिथे उन्हें रहने देना राजा को लाभदायक नहीं है। 9 यदि राजा को स्वीकार हो तो उन्हें नष्ट करने की आज्ञा लिखी जाए, और मैं राज के भणडारियोंके हाथ में राजभणडार में पहुंचाने के लिलथे, दस हजार किक्कार चान्दी दूंगा। 10 तब राजा ने अपक्की अंगूठी अपके हाथ से उतारकर अगागी हम्मदाता के पुत्र हामान को, जो यहूदियोंका वैरी या दे दी। 11 और राजा ने हामान से कहा, वह चान्दी तुझे दी गई है, और वे लोग भी, ताकि तू उन से जैसा तेरा जी चाहे वैसा ही व्यवहार करे। 12 योंउसी पहिले महीने के तेरहवें दिन को राजा के लेखक बुलाए गए, और हामान की आज्ञा के अनुसार राजा के सब अधिपतियों, और सब प्रान्तोंके प्रधानों, और देश देश के लोगोंके हाकिमोंके लिथे चिट्ठियां, एक एक प्रान्त के अझरोंमें, और एक एक देश के लोगोंकी भाषा में राजा झयर्ष के नाम से लिखी गई; और उन में राजा की अंगूठी की छाप लगाई गई। 13 और राज्य के सब प्रान्तोंमें इस आशय की चिट्ठियां हर डाकियोंके द्वारा भेजी गई कि एक ही दिन में, अर्यात् अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को, क्या जवान, क्या बूढ़ा, क्या स्त्री, क्या बालक, सब यहूदी विध्वंसघात और नाश किए जाएं; और उनकी धन सम्मत्ति लूट ली जाए। 14 उस आज्ञा के लेख की नकलें सब प्रान्तोंमें खुली हुई भेजी गई कि सब देशोंके लोग उस दिन के लिथे तैयार हो जाएं। 15 यह आज्ञा शूशन गढ़ में दी गई, और डाकिए राजा की आज्ञा से तुरन्त निकल गए। और राजा और हामान तो जेवनार में बैठ गए; परन्तु शूशन नगर में घबराहट फैल गई।
1 जब मोर्दकै ने जान लिया कि क्या क्या किया गया है तब मोर्दकै वस्त्र फाड़, टाट पहिन, राख डालकर, नगर के मध्य जाकर ऊंचे और दुखभरे शब्द से चिल्लाने लगा; 2 और वह राजभवन के फाटक के साम्हने पहुंचा, परन्तु टाट पहिने हुए राजभवन के फाटक के भीतर तो किसी के जाने की आज्ञा न यी। 3 और एक एक प्रान्त में, जहां जहां राजा की आज्ञा और नियम पहुंचा, वहां वहां यहूदी बड़ा विलाप करने और उपवास करने और रोने पीटने लगे; वरन बहुतेरे टाट पहिने और राख डाले हुए पके रहे। 4 और एस्तेर रानी की सहेलियोंऔर खोजोंने जाकर उसको बता दिया, तब रानी शोक से भर गई; और मोर्दकै के पास वस्त्र भेजकर यह कहलाया कि टाट उतारकर इन्हें पहिन ले, परन्तु उस ने उन्हें न लिया। 5 तब एस्तेर ने राजा के खोजोंमें से हताक को जिसे राजा ने उसके पास रहने को ठहराया या, बुलवाकर आज्ञा दी, कि मोर्दकै के पास जाकर मालूम कर ले, कि क्या बात है और इसका क्या कारण है। 6 तब हताक नगर के उस चौक में, जो राजभवन के फाटक के साम्हने या, मोर्दकै के पास निकल गया। 7 मोर्दकै ने उसको सब कुछ बता दिया कि मेरे ऊपर क्या क्या बीता है, और हामान ने यहूदियोंके नाश करने की अनुमति पाने के लिथे राजभणडार में कितनी चान्दी भर देने का वचन दिया है, यह भी ठीक ठीक बतला दिया। 8 फिर यहूदियोंको विनाश करने की जो आज्ञा शूशन में दी गई थी, उसकी एक नकल भी उस ने हताक के हाथ में, एस्तेर को दिखाने के लिथे दी, और उसे सब हाल बताने, और यह आज्ञा देने को कहा, कि भीतर राजा के पास जाकर अपके लोगोंके लिथे गिड़गिड़ाकर बिनती करे। 9 तब हताक ने एस्तेर के पास जाकर मोर्दकै की बातें कह सुनाई। 10 तब एस्तेर ने हताक को मोर्दकै से यह कहने की आज्ञा दी, 11 कि राजा के सब कर्मचारियों, वरन राजा के प्रान्तोंके सब लोगोंको भी मालूम है, कि क्या पुरुष क्या स्त्री कोई क्योंन हो, जो आज्ञा बिना पाए भीतरी आंगन में राजा के पास जाएगा उसके मार डालने ही की आज्ञा है; केवल जिसकी ओर राजा सोने का राजदणड बढ़ाए वही बचता है। परन्तु मैं अब तीस दिन से राजा के पास नहीं बुलाई गई हूँ। 12 एस्तेर की थे बातें मोर्दकै को सुनाई गई। 13 तब मोर्दकै ने एस्तेर के पास यह कहला भेजा, कि तू मन ही मन यह विचार न कर, कि मैं ही राजभवन में रहने के कारण और सब यहूदियोंमें से बची रहूंगी। 14 क्योंकि जो तू इस समय चुपचाप रहे, तो और किसी न किसी उपाय से यहूदियोंका छुटकारा और उद्धार हो जाएगा, परन्तु तू अपके पिता के घराने समेत नाश होगी। फिर क्या जाने तुझे ऐसे ही कठिन समय के लिथे राजपद मिल गया हो? 15 तब एस्तेर ने मोर्दकै के पास यह कहला भेजा, 16 कि तू जाकर शूशन के सब यहूदियोंको इकट्ठा कर, और तुम सब मिलकर मेरे निमित्त उपवास करो, तीन दिन रात न तो कुछ खाओ, और न कुछ पीओ। और मैं भी अपक्की सहेलियोंसहित उसी रीति उपवास करूंगी। और ऐसी ही दशा में मैं नियम के विरुद्ध राजा के पास भीतर जाऊंगी; और यदि नाश हो गई तो हो गई। 17 तब मोर्दकै चला गया और एस्तेर की आज्ञा के अनुसार ही उस ने किया।
1 तीसरे दिन एस्तेर अपके राजकीय वस्त्र पहिनकर राजभवन के भीतरी आंगन में जाकर, राजभवन के साम्हने खड़ी हो गई। राजा तो राजभवन में राजगद्दी पर भवन के द्वार के साम्हने विराजमान या; 2 और जब राजा ने एस्तेर रानी को आंगन में खड़ी हुई्र देखा, तब उस से प्रसन्न होकर सोने का राजदणड जो उसके हाथ में या उसकी ओर बढ़ाया। तब एस्तेर ने निकट जाकर राजदणड की लोक छुई। 3 तब राजा ने उस से पूछा, हे एसतेर रानी, तुझे क्या चाहिथे? और तू क्य मांगती है? मांग और तुझे आधा राज्य तक दिया जाएगा। 4 एस्तेर ने कहा, यदि राजा को स्वीकार हो, तो आज हामान को साय लेकर उस जेवनार में आए, जो मैं ने राजा के लिथे तैयार की है। 5 तब राजा ने आज्ञा दी कि हामान को तुरन्त ले आओ, कि एस्तेर का निमंत्रण ग्रहण किया जाए। सो राजा और हामान एस्तेर की तैयार की हुई जेवनार में आए। 6 जेवनार के समय जब दाखमधु पिया जाता या, तब राजा ने एस्तेर से कहा, तेरा क्या निवेदन है? वह पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? मांग, ओर आधा राज्य तक तुझे दिया जाएगा। 7 एस्तेर ने उत्तर दिया, मेरा निवेदन और जो मैं मांगती हूँ वह यह है, 8 कि यदि राजा मुझ पर प्रसन्न है और मेरा निवेदन सुनना और जो वरदान मैं मांगूं वही देना राजा को स्वीकार हो, तो राजा और हामान कल उस जेवनार में आएं जिसे मैं उनके लिथे करूंगी, और कल मैं राजा के इस वचन के अनुसार करूंगी। 9 उस दिन हामान आनन्दित ओर मन में प्रसन्न होकर बाहर गया। परन्तु जब उस ने मोर्दकै को राजभवन के फाटक में देखा, कि वह उसके साम्हने न तो खड़ा हुआ, और न हटा, तब वह मोर्दकै के विरुद्ध क्रोध से भर गया। 10 तौभी वह अपके को रोककर अपके घर गया; और अपके मित्रोंऔर अपक्की स्त्री जेरेश को बुलवा भेजा। 11 तब हामान ने, उन से अपके धन का विभव, और अपके लड़के-बालोंकी बढ़ती और राजा ने उसको कैसे कैसे बढ़ाया, और और सब हाकिमोंऔर अपके और सब कर्मचारियोंसे ऊंचा पद दिया या, इन सब का वर्णन किया। 12 हामान ने यह भी कहा, कि एस्तेर रानी ने भी मुझे छोड़ और किसी को राजा के संग, अपक्की की हुई जेवनार में आने न दिया; और कल के लिथे भी राजा के संग उस ने मुझी को नेवता दिया है। 13 तौभी जब जब मुझे वह यहूदी मोर्दकै राजभवन के फाटक में बैठा हुआ दिखाई पड़ता है, तब तब यह सब मेरी दृष्टि में व्यर्य है। 14 उसकी पत्नी जेरेश और उसके सब मित्रोंने उस से कहा, पचास हाथ ऊंचा फांसी का एक खम्भा, बनाया जाए, और बिहान को राजा से कहना, कि उस पर मोर्दकै लटका दिया जाए; तब राजा के संग आनन्द से जेवनार में जाना। इस बात से प्रसन्न होकर हामान ने बैसा ही फांसी का एक खम्भा बनवाया।
1 उस रात राजा को नींद नहीं आई, इसलिथे उसकी आज्ञा से इतिहास की पुस्तक लाई गई, और पढ़कर राजा को सुनाई गई। 2 और यह लिखा हुआ मिला, कि जब राजा झयर्ष के हाकिम जो द्वारपाल भी थे, उन में से बिगताना और तेरेश नाम दो जनोंने उस पर हाथ चलाने की युक्ति की यी उसे मोर्दकै ने प्रगट किया या। 3 तब राजा ने पूछा, इसके बदले मोर्दकै की क्या प्रतिष्ठा और बड़ाई की गई? राजा के जो सेवक उसकी सेवा टहल कर रहे थे, उन्होंने उसको उत्तर दिया, उसके लिथे कुछ भी नहीं किया गया। 4 राजा ने पूछा, आंगन में कौन है? उसी समय तो हामान राजा के भवन से बाहरी आंगन में इस मनसा से आया या, कि जो खम्भा उस ने मोर्दकै के लिथे तैयार कराया या, उस पर उसको लटका देने की चर्चा राजा से करे। 5 तब राजा के सेवकोंने उस से कहा, आंगन में तो हामान खड़ा है। राजा ने कहा, उसे भीतर बुलवा लाओ। 6 जब हामान भीतर आया, तब राजा ने उस से पूछा, जिस मनुष्य की प्रतिष्ठा राजा करना चाहता हो तो उसके लिथे क्या करना उचित होगा? हामान ने यह सोचकर, कि मुझ से अधिक राजा किस की प्रतिष्ठा करना चाहता होगा? 7 राजा को उत्तर दिया, जिस मनुष्य की प्रतिष्ठा राजा करना चाहे, 8 तो उसके लिथे राजकीय वस्त्र लाया जाए, जो राजा पहिनता है, और एक घेड़ा भी, जिस पर राजा सवार होता है, ओर उसके सिर पर जो राजकीय मुकुट धरा जाता है वह भी लाया जाए। 9 फिर वह वस्त्र, और वह घेड़ा राजा के किसी बड़े हाकिम को सौंपा जाए, और जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता हो, उसको वह वस्त्र पहिनाया जाए, और उस घोड़े पर सवार करके, नगर के चौक में उसे फिराया जाए; और उसके आगे आगे यह प्रचार किया जाए, कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है, उसके साय ऐसा ही किया जाएगा। 10 राजा ने हामान से कहा, फुतीं करके अपके कहने के अनुसार उस वस्त्र और उस घोड़े को लेकर, उस यहूदी मोर्दकै से जो राजभवन के फाटक में बैठा करता है, वैसा ही कर। जैसा तू ने कहा है उस में कुछ भी कमी होने न पाए। 11 तब हामान ने उस वस्त्र, और उस घोड़े को लेकर, मोर्दकै को पहिनाया, और उसे घोड़े पर चढ़ाकर, नगर के चौक में इस प्रकार पुकारता हुआ घुमाया कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है उसके साय ऐसा ही किया जाएगा। 12 तब मोर्दकै तो राजभवन के फाटक में लौट गया परन्तु हामान शोक करता हुआ और सिर ढांपे हुए फट अपके घर को गया। 13 और हामान ने अपक्की पत्ती जेरेश और अपके सब मित्रोंसे सब कुछ जो उस पर बीता या वर्णन किया। 14 तब उसके बुद्धिमान मित्रोंऔर उसकेी पत्नी जेरेश ने उस से कहा, मोर्दकै जिसे तू नीचा दिखना चाहता है, यदि वह यहूदियोंके वंश में का है, तो तू उस पर प्रबल न होने पाएगा उस से पूरी रीति नीचा ही खएगा। वे उस से बातें कर ही रहे थे, कि राजा के खोजे आकर, हामान को एस्तेर की की हुई जेवनार में फुतीं से लिवा ले गए।
1 सो राजा और हामान एस्तेर रानी की जेवनार में आगए। 2 और राजा ने दूसरे दिन दाखमधु पीते-पीते एस्तेर से फिर पूछा, हे एस्तेर रानी ! तेरा क्या निवेदन है? वह पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? मांग, और आधा राज्य तक तुझे दिया जाएगा। 3 एस्तेर रानी ने उत्तर दिया, हे राजा ! यदि तू मुझ पर प्रसन्न है, और राजा को यह स्वीकार हो, तो मेरे निवेदन से मुझे, और मेरे मांगने से मेरे लोगोंको प्राणदान मिले। 4 क्योंकि मैं उाौर मेरी जाति के लोग बेच डाले गए हैं, और हम सब विध्वंसघात और नाश किए जानेवाले हैं। यदि हम केवल दास-दासी हो जाने के लिथे बेच डाले जाते, तो मैं चुप रहती; चाहे उस दशा में भी वह विरोधी राजा की हानि भर न सकता। 5 तब राजा झयर्ष ने एस्तेर रानी से पूछा, वह कौन है? और कहां है जिस ने ऐसा करने की मनसा की है? 6 एस्तेर ने उत्तर दिया है कि वह विरोधी और शत्रु यही दुष्ट हामान है। तब हामान राजा-रानी के साम्हते भयभीत हो गया। 7 राजा तो जलजलाहट में आ, मधु पीने से उठकर, राजभवन की बारी में निकल गया; और हामान यह देखकर कि राजा ने मेरी हानि ठानी होगी, एस्तेर रानी से प्राणदान मांगने को खड़ा हुआ। 8 जब राजा राजभवन की बारी से दाखमधु पीने के स्यान में लौट आया तब क्या देखा, कि हामान उसी चौकी पर जिस पर एस्तेर बैठी है पड़ा है; और राजा ने कहा, क्या यह घर ही में मेरे साम्हने ही रानी से बरबस करना चाहता है? राजा के मुंह से यह वचन निकला ही या, कि सेवकोंने हामान का मुंह ढांप दिया। 9 तब राजा के साम्हने उपस्य्ित रहनेवाले खोजोंमें से हवॉना नाम एक ने राजा से कहा, हामान को यहां पचास हाथ ऊंचा फांसी का एक खम्भा खड़ा है, जो उस ने मोर्दकै के लिथे बनवाया है, जिस ने राजा के हित की बात कही यी। राजा ने कहा, उसको उसी पर लटका दो। 10 तब हामान उसी खम्भे पर जो उस ने मोर्दकै के लिथे तैयार कराया या, लटका दिया गया। इस पर राजा की जलजलाहट ठंडी हो गई।
1 उसी दिन राजा झयर्ष ने यहूदियोंके विरोधी हामान का घरबार एस्तेर रानी को दे दिया। और मोर्दकै राजा के साम्हने आया, क्योंकि एस्तेर ने राजा को बताया या, कि उस से उसका क्या नाता या 2 तब राजा ने अपक्की वह अंगूठी जो उस ने हामान से ले ली यी, उतार कर, मोर्दकै को दे दी। और एसतेर ने मोर्दकै को हामान के घरबार पर अधिक्कारनेी नियुक्त कर दिया। 3 फिर एस्तेर दूसरी बार राजा से बोली; और उसके पांव पर गिर, आंसू बहा बहाकर उस से गिड़गिड़ाकर बिन्ती की, कि अगागी हामान की बुराई और यहूदियोंकी हानि की उसकी युक्ति निष्फल की जाए। 4 तब राजा ने एस्तेर की ओर सोने का राजदणड बढ़ाया। 5 तब एस्तेर उठकर राजा के साम्हने खड़ी हुई; और कहने लगी कि यदि राजा को स्वीकार हो और वह मुझ से प्रसन्न है और यह बात उसको ठीक जान पके, और मैं भी उसको अच्छी लगती हूँ, तो जो चिट्ठियां हम्मदाता अगागी के पुत्र हामान ने राजा के सब प्रान्तोंके यहूदियोंको नाश करने की युक्ति करके लिखाई यीं, उनको पलटने के लिथे लिखा जाए। 6 क्योंकि मैं अपके जाति के लोगोंपर पड़नेवाली उस विपत्ति को किस रीति से देख सकूंगी? और मैं अपके भाइयोंके विनाश को क्योंकर देख सकूंगी? 7 तब राजा झयर्ष ने एस्तेर रानी से और मोर्दकै यहूदी से कहा, मैं हामान का घरबार तो एस्तेर को दे चुका हूँ, और वह फांसी के खम्भे पर लटका दिया गया है, इसलिथे कि उस ने यहूदियोंपर हाथ बढ़ाया या। 8 सो तुम अपक्की समझ के अनुसार राजा के नाम से यहूदियोंके नाम पर लिखो, और राजा की अंगूठी की छाप भी लगाओ; क्योंकि जो चिट्ठी राजा के नाम से लिखी जाए, और उस पर उसकी अंगूठी की छाप लगाई जाए, उसको कोई भी पलट नहीं सकता। 9 सो उसी समय अर्यात् सीवान नाम तीसरे महीने के तेईसवें दिन को राजा के लेखक बुलवाए गए और जिस जिस बात की आज्ञा मोर्दकै ने उन्हें दी यी उसे यहूदियोंऔर अधिपतियोंऔर हिन्दुस्तान से लेकर कूश तक, जो एक सौ सत्ताईस प्रान्त हैं, उन सभोंके अधिपतियोंऔर हाकिमोंको एक एक प्रान्त के अझरोंमें और एक एक देश के लोगोंकी भाषा में, और यहूदियोंको उनके अझरोंऔर भाषा में लिखी गई। 10 मोर्दकै ने राजा झयर्ष के नाम से चिट्ठियां लिखाकर, और उन पर राजा की अंगूठी की छाप लगाकर, वेग चलनेवाले सरकारी घोड़ों, खच्चरोंऔर सांड़नियोंकी डाक लगाकर, हरकारोंके हाथ भेज दीं। 11 इन चिट्ठियोंमें सब नगरोंके यहूदियोंको राजा की ओर से अनुमति दी गई, कि वे इकट्ठे होंऔर अपना अपना प्राण बचाने के लिथे तैयार होकर, जिस जाति वा प्रान्त से लोग अन्याय करके उनको वा उनकी स्त्रियोंऔर बालबच्चोंको दु:ख देना चाहें, उनको विध्वंसघात और नाश करें, और उनकी धन सम्मत्ति लूट लें। 12 और यह राजा झयर्ष के सब प्रान्तोंमें एक ही दिन में किया जाए, अर्यात् अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को। 13 इस आज्ञा के लेख की नकलें, समस्त प्रान्तोंमें सब देशें के लोगोंके पास खुली हुई भेजी गई; ताकि यहूदी उस दिन अपके शत्रुओं से पलटा लेने को तैयार रहें। 14 सो हरकारे वेग चलनेवाले सरकारी घोड़ोंपर सवार होकर, राजा की आज्ञा से फुतीं करके जल्दी चले गए, और यह आज्ञा शूशन राजगढ़ में दी गई यी। 15 तब मोर्दकै नीले और श्वेत रंग के राजकीय वस्त्र पहिने और सिर पर सोने का बड़ा मुमुट धरे हुए और सूझ्मसन और बैंजनी रंग का बागा पहिने हुए, राजा के सम्मुख से निकला, और शूशन नगर के लोग आनन्द के मारे ललकार उठे। 16 और यहूदियोंको आनन्द और हर्ष हुआ और उनकी बड़ी प्रतिष्ठा हुई। 17 और जिस जिस प्रान्त, और जिस जिस नगर में, जहां कहीं राजा की आज्ञा और नियम पहुंचे, वहां वहां यहूदियोंको आनन्द और हर्ष हुआ, और उन्होंने जेवनार करके उस दिन को खुशी का दिन माना। और उस देश के लोगोंमें से बहुत लोग यहूदी बन गए, क्योंकि उनके मन में यहूदियोंका डर समा गया या।
1 अदार नाम बारहवें महीने के तेरहवें दिन को, जिस दिन राजा की आज्ञा और नियम पूरे होने को थे, और यहूदियोंके शत्रु उन पर प्रबल होने की आशा रखते थे, परन्तु इसके उलटे यहूदी अपके वैरियोंपर प्रबल हुए, उस दिन, 2 यहूदी लोग राजा झयर्ष के सब प्रान्तोंमें अपके अपके नगर में इकट्ठे हुए, कि जो उनकी हानि करने का यत्न करे, उन पर हाथ चलाए। और कोई उनका साम्हना न कर सका, क्योंकि उनका भय देश देश के सब लोगोंके मन में समा गया या। 3 वरन प्रान्तोंके सब हाकिमोंऔर अधिपतियोंऔर प्रधानोंऔर राजा के कर्मचारियोंने यहूदियोंकी सहाथता की, क्योंकि उनके मन में मोर्दकै का भय समा गया या। 4 मोर्दकै तो राजा के यहां बहुत प्रतिष्ठित या, और उसकी कीत्तिर् सब प्रान्तोंमें फैल गई; वरन उस पुरुष मोर्दकै की महिमा बढ़ती चक्की गई। 5 और यहूदियोंने अपके सब शत्रुओं को तलवार से मारकर और घात करके नाश कर डाला, और अपके वैरियोंसे अपक्की इच्छा के अनुसार बर्ताव किया। 6 और शूशन राजगढ़ में यहूदियोंने पांच सौ मनुष्योंको घात करके नाश किया। 7 और उन्होंने पर्शन्दाता, दल्पोन, अस्पाता, 8 पोराता, अदल्या, अरीदाता, 9 पर्मशता, अरीसै, अरीदै और वैजाता, 10 अर्यात् हम्मदाता के पुत्र यहूदियोंके विरोधी हामान के दसोंपुत्रोंको भी घात किया; परन्तु उनके धन को न लूटा। 11 उसी दिन शूशन राजगढ़ में घात किए हुओं की गिनती राजा को सुनाई गई। 12 तब राजा ने एस्तेर रानी से कहा, यहूदियोंने शूशन राजगढ़ ही में पांच सौ मनुष्य और हामान के दसोंपुत्रोंको भी घात करके नाश किया है; फिर राज्य के और और प्रान्तोंमें उन्होंने न जाने क्या क्या किया होगा ! अब इस से अधिक तेरा निवेदन क्या है? वह भी पूरा किया जाएगा। और तू क्या मांगती है? वह भी तुझे दिया जाएगा। 13 एस्तेर ने कहा, यदि राजा को स्वीकार हो तो शूशन के यहूदियोंको आज की नाई कल भी करने की आज्ञा दी जाए, और हामान के दसोंपुत्र फांसी के खम्भें पर लटकाए जाएं। 14 राजा ने कहा, ऐसा किया जाए; यह आज्ञा शूशन में दी गई, और हामान के दसोंपुत्र लटकाए गए। 15 और शूशन के यहूदियोंने अदार महीने के चौदहवें दिन को भी इकट्ठे होकर शूशन में तीन सौ पुरुषोंको घात किया, परन्तु धन को न लूटा। 16 राज्य के और और प्रान्तोंके यहूदी इकट्ठे होकर अपना अपना प्राण बचाने के लिथे खड़े हुए, और अपके वैरियोंमें से पचहत्तर हजार मनुष्योंको घात करके अपके शत्रुओं से विश्रम पाया; परन्तु धन को न लूटा। 17 यह अदार महीने के तेरहवें दिन को किया गया, और चौदहवें दिन को उन्होंने विश्रम करके जेवनार की और आनन्द का दिन ठहराया। 18 परन्तु शूशन के यहूदी अदार महीने के तेरहवें दिन को, और उसी महीने के चौदहवें दिन को इकट्ठे हुए, और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्होंने विश्रम करके जेवनार का और आनन्द का दिन ठहराया। 19 इस कारण देहाती यहूदी जो बिना शहरपनाह की बस्तियोंमें रहते हैं, वे अदार महीने के चौदहवें दिन को आनन्द ओर जेवनार और खुशी और आपस में बैना भेजने का दिन नियुक्त करके मानते हैं। 20 इन बातोंका वृत्तान्त लिखकर, मोर्दकै ने राजा झयर्ष के सब प्रान्तोंमें, क्या निकट क्या दूर रहनेवाले सारे यहूदियोंके पास चिट्ठियां भेजीं, 21 और यह आज्ञा दी, कि अदार महीने के चौदहवें और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को प्रति वर्ष माना करें। 22 जिन में यहूदियोंने अपके शत्रुओं से विश्रम पाया, और यह महीना जिस में शोक आनन्द से, और विलाप खुशी से बदला गया; (माना करें) और उनको जेवनार और आनन्द और एक दूसरे के पास बैना भेजने ओर कंगालोंको दान देने के दिन मानें। 23 और यहूदियोंने जैसा आरम्भ किया या, और जैसा मोर्दकै ने उन्हें लिखा, वैसा ही करने का निश्चय कर लिया। 24 क्योंकि हम्मदाता अगागी का पुत्र हामान जो सब यहूदियोंका विरोधी या, उस ने यहूदियोंके नाश करने की युक्ति की, और उन्हें मिटा डालने और नाश करने के लिथे पूर अर्यात् चिट्ठी डाली यी। 25 परन्तु जब राजा ने यह जान लिया, तब उस ने आज्ञा दी और लिखवाई कि जो दुष्ट युक्ति हामान ने यहूदियोंके विरुद्ध की यी वह उसी के सिर पर पलट आए, तब वह और उसके पुत्र फांसी के झम्भोंपर लटकाए गए। 26 इस कारण उन दिनोंका नाम पूर शब्द से पूरीम रखा गया। इस चिट्ठी की सब बातोंके कारण, और जो कुछ उन्होंने इस विषय में देखा और जो कुछ उन पर बीता या, उसके कारण भी 27 यहूदियोंने अपके अपके लिथे और अपक्की सन्तान के लिथे, और उन सभोंके लिथे भी जो उन में मिल गए थे यह अटल प्रण किया, कि उस लेख के अनुसार प्रति वर्ष उसके ठहराए हुए समय में वे थे दो दिन मानें। 28 और पीढ़ी पीढ़ी, कुल कुल, प्रान्त प्रान्त, नगर नगर में थे दिन स्मरण किए और माने जाएंगे। और पूरीम नाम के दिन यहूदियोंमें कभी न मिटेंगे और उनका स्मरण उनके वंश से जाता न रहेगा। 29 फिर अबीहैल की बेटी एस्तेर रानी, और मोर्दकै यहूदी ने, पूरीम के विषय यह दूसरी चिट्ठी बड़े अधिक्कारने के साय लिखी। 30 इसकी नकलें मोर्दकै ने झयर्ष के राज्य के, एक सौ सत्ताईसोंप्रान्तोंके सब यहूदियोंके पास शान्ति देनेवाली और सच्ची बातोंके साय इस आशय से भेजीं, 31 कि पूरीम के उन दिनोंके विशेष ठहराए हुए समयोंमें मोर्दकै यहूदी और एस्तेर रानी की आज्ञा के अनुसार, और जो यहूदियोंने अपके और अपक्की सन्तान के लिथे ठान लिया या, उसके अनुसार भी उपवास और विलाप किए जाएं। 32 और पूरीम के विष्य का यह नियम एस्तेर की आज्ञा से भी स्यिर किया गया, और उनकी चर्चा पुस्तक में लिखी गई।
1 और राजा झयर्ष ने देश और समुद्र के टापू दोनोंपर कर लगाया। 2 और उसके माहात्म्य और पराक्रम के कामों, और मोर्दकै की उस बड़ाई का पूरा ब्योरा, जो राजा ने उसकी की यी, क्या वह मादै और फारस के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 3 निदान यहूदी मोर्दकै, झयर्ष राजा ही के नीचे या, और यहूदियोंकी दृष्टि में बड़ा या, और उसके सब भाई उस से प्रसन्न थे, क्योंकि वह अपके लोगोंकी भलाई की खोज में रहा करता या और अपके सब लोगोंसे शान्ति की बातें कहा करता या।