John 1

ज़िन्दगी का कलाम

1 इब्तिदा में कलाम था। कलाम अल्लाह के साथ था और कलाम अल्लाह था। 2 यही इब्तिदा में अल्लाह के साथ था। 3 सब कुछ कलाम के वसीले से पैदा हुआ। मख़्लूक़ात की एक भी चीज़ उस के बग़ैर पैदा नहीं हुई। 4 उस में ज़िन्दगी थी, और यह ज़िन्दगी इन्सानों का नूर थी। 5 यह नूर तारीकी में चमकता है, और तारीकी ने उस पर क़ाबू न पाया। 6 एक दिन अल्लाह ने अपना पैग़म्बर भेज दिया, एक आदमी जिस का नाम यहया था। 7 वह नूर की गवाही देने के लिए आया। मक़्सद यह था कि लोग उस की गवाही की बिना पर ईमान लाएँ। 8 वह ख़ुद तो नूर न था बल्कि उसे सिर्फ़ नूर की गवाही देनी थी। 9 हक़ीक़ी नूर जो हर शख़्स को रौशन करता है दुनिया में आने को था। 10 गो कलाम दुनिया में था और दुनिया उस के वसीले से पैदा हुई तो भी दुनिया ने उसे न पहचाना। 11 वह उस में आया जो उस का अपना था, लेकिन उस के अपनों ने उसे क़बूल न किया। 12 तो भी कुछ उसे क़बूल करके उस के नाम पर ईमान लाए। उन्हें उस ने अल्लाह के फ़र्ज़न्द बनने का हक़ बख़्श दिया, 13 ऐसे फ़र्ज़न्द जो न फ़ित्री तौर पर, न किसी इन्सान के मन्सूबे के तहत पैदा हुए बल्कि अल्लाह से। 14 कलाम इन्सान बन कर हमारे दरमियान रिहाइशपज़ीर हुआ और हम ने उस के जलाल का मुशाहदा किया। वह फ़ज़्ल और सच्चाई से मामूर था और उस का जलाल बाप के इक्लौते फ़र्ज़न्द का सा था। 15 यहया उस के बारे में गवाही दे कर पुकार उठा, “यह वही है जिस के बारे में मैं ने कहा, एक मेरे बाद आने वाला है जो मुझ से बड़ा है, क्यूँकि वह मुझ से पहले था।” 16 उस की कस्रत से हम सब ने फ़ज़्ल पर फ़ज़्ल पाया। 17 क्यूँकि शरीअत मूसा की मारिफ़त दी गई, लेकिन अल्लाह का फ़ज़्ल और सच्चाई ईसा मसीह के वसीले से क़ाइम हुई। 18 किसी ने कभी भी अल्लाह को नहीं देखा। लेकिन इक्लौता फ़र्ज़न्द जो अल्लाह की गोद में है उसी ने अल्लाह को हम पर ज़ाहिर किया है।

यहया बपतिस्मा देने वाले का पैग़ाम

19 यह यहया की गवाही है जब यरूशलम के यहूदियों ने इमामों और लावियों को उस के पास भेज कर पूछा, “आप कौन हैं?” 20 उस ने इन्कार न किया बल्कि साफ़ तस्लीम किया, “मैं मसीह नहीं हूँ।” 210 उन्हों ने पूछा, “तो फिर आप कौन हैं? क्या आप इल्यास हैं?” उस ने जवाब दिया, “नहीं, मैं वह नहीं हूँ।” उन्हों ने सवाल किया, “क्या आप आने वाला नबी हैं?” उस ने कहा, “नहीं।” 22 “तो फिर हमें बताएँ कि आप कौन हैं? जिन्हों ने हमें भेजा है उन्हें हमें कोई न कोई जवाब देना है। आप ख़ुद अपने बारे में क्या कहते हैं?” 23 यहया ने यसायाह नबी का हवाला दे कर जवाब दिया, “मैं रेगिस्तान में वह आवाज़ हूँ जो पुकार रही है, रब का रास्ता सीधा बनाओ।” 24 भेजे गए लोग फ़रीसी फ़िर्क़े से ताल्लुक़ रखते थे। 25 उन्हों ने पूछा, “अगर आप न मसीह हैं, न इल्यास या आने वाला नबी तो फिर आप बपतिस्मा क्यूँ दे रहे हैं?” 26 यहया ने जवाब दिया, “मैं तो पानी से बपतिस्मा देता हूँ, लेकिन तुम्हारे दरमियान ही एक खड़ा है जिस को तुम नहीं जानते। 27 वही मेरे बाद आने वाला है और मैं उस के जूतों के तस्मे भी खोलने के लाइक़ नहीं।” 28 यह यर्दन के पार बैत-अनियाह में हुआ जहाँ यहया बपतिस्मा दे रहा था।

अल्लाह का लेला

29 अगले दिन यहया ने ईसा को अपने पास आते देखा। उस ने कहा, “देखो, यह अल्लाह का लेला है जो दुनिया का गुनाह उठा ले जाता है। 30 यह वही है जिस के बारे में मैं ने कहा, ‘एक मेरे बाद आने वाला है जो मुझ से बड़ा है, क्यूँकि वह मुझ से पहले था।’ 31 मैं तो उसे नहीं जानता था, लेकिन मैं इस लिए आ कर पानी से बपतिस्मा देने लगा ताकि वह इस्राईल पर ज़ाहिर हो जाए।” 32 और यहया ने यह गवाही दी, “मैं ने देखा कि रूह-उल-क़ुद्स कबूतर की तरह आसमान पर से उतर कर उस पर ठहर गया। 33 मैं तो उसे नहीं जानता था, लेकिन जब अल्लाह ने मुझे बपतिस्मा देने के लिए भेजा तो उस ने मुझे बताया, ‘तू देखेगा कि रूह-उल-क़ुद्स उतर कर किसी पर ठहर जाएगा। यह वही होगा जो रूह-उल-क़ुद्स से बपतिस्मा देगा।’ 34 अब मैं ने देखा है और गवाही देता हूँ कि यह अल्लाह का फ़र्ज़न्द है।”

ईसा के पहले शागिर्द

35 अगले दिन यहया दुबारा वहीं खड़ा था। उस के दो शागिर्द साथ थे। 36 उस ने ईसा को वहाँ से गुज़रते हुए देखा तो कहा, “देखो, यह अल्लाह का लेला है!” 37 उस की यह बात सुन कर उस के दो शागिर्द ईसा के पीछे हो लिए। 38 ईसा ने मुड़ कर देखा कि यह मेरे पीछे चल रहे हैं तो उस ने पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” उन्हों ने कहा, “उस्ताद, आप कहाँ ठहरे हुए हैं?” 39 उस ने जवाब दिया, “आओ, ख़ुद देख लो।” चुनाँचे वह उस के साथ गए। उन्हों ने वह जगह देखी जहाँ वह ठहरा हुआ था और दिन के बाक़ी वक़्त उस के पास रहे। शाम के तक़रीबन चार बज गए थे। 40 शमाऊन पतरस का भाई अन्द्रियास उन दो शागिर्दों में से एक था जो यहया की बात सुन कर ईसा के पीछे हो लिए थे। 41 अब उस की पहली मुलाक़ात उस के अपने भाई शमाऊन से हुई। उस ने उसे बताया, “हमें मसीह मिल गया है।” (मसीह का मतलब ‘मसह किया हुआ शख़्स’ है।) 42 फिर वह उसे ईसा के पास ले गया। उसे देख कर ईसा ने कहा, “तू यूहन्ना का बेटा शमाऊन है। तू कैफ़ा कहलाएगा।” (इस का यूनानी तर्जुमा पतरस यानी पत्थर है।)

ईसा फ़िलिप्पुस और नतनएल को बुलाता है

43 अगले दिन ईसा ने गलील जाने का इरादा किया। फ़िलिप्पुस से मिला तो उस से कहा, “मेरे पीछे हो ले।” 44 अन्द्रियास और पतरस की तरह फ़िलिप्पुस का वतनी शहर बैत-सैदा था। 45 फ़िलिप्पुस नतनएल से मिला, और उस ने उस से कहा, “हमें वही शख़्स मिल गया जिस का ज़िक्र मूसा ने तौरेत और नबियों ने अपने सहीफ़ों में किया है। उस का नाम ईसा बिन यूसुफ़ है और वह नासरत का रहने वाला है।” 46 नतनएल ने कहा, “नासरत? क्या नासरत से कोई अच्छी चीज़ निकल सकती है?” फ़िलिप्पुस ने जवाब दिया, “आ और ख़ुद देख ले।” 47 जब ईसा ने नतन-एल को आते देखा तो उस ने कहा, “लो, यह सच्चा इस्राईली है जिस में मक्र नहीं।” 48 नतन-एल ने पूछा, “आप मुझे कहाँ से जानते हैं?” ईसा ने जवाब दिया, “इस से पहले कि फ़िलिप्पुस ने तुझे बुलाया मैं ने तुझे देखा। तू अन्जीर के दरख़्त के साय में था।” 49 नतन-एल ने कहा, “उस्ताद, आप अल्लाह के फ़र्ज़न्द हैं, आप इस्राईल के बादशाह हैं।” 50 ईसा ने उस से पूछा, “अच्छा, मेरी यह बात सुन कर कि मैं ने तुझे अन्जीर के दरख़्त के साय में देखा तू ईमान लाया है? तू इस से कहीं बड़ी बातें देखेगा।” 51 उस ने बात जारी रखी, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि तुम आसमान को खुला और अल्लाह के फ़रिश्तों को ऊपर चढ़ते और इब्न-ए-आदम पर उतरते देखोगे।”

John 2

क़ाना में शादी

1 तीसरे दिन गलील के गाँव क़ाना में एक शादी हुई। ईसा की माँ वहाँ थी 2 और ईसा और उस के शागिर्दों को भी दावत दी गई थी। 3 मै ख़त्म हो गई तो ईसा की माँ ने उस से कहा, “उन के पास मै नहीं रही।” 4 ईसा ने जवाब दिया, “ऐ ख़ातून, मेरा आप से क्या वास्ता? मेरा वक़्त अभी नहीं आया।” 5 लेकिन उस की माँ ने नौकरों को बताया, “जो कुछ वह तुम को बताए वह करो।” 6 वहाँ पत्थर के छः मटके पड़े थे जिन्हें यहूदी दीनी ग़ुसल के लिए इस्तेमाल करते थे। हर एक में तक़रीबन 100 लिटर की गुन्जाइश थी। 7 ईसा ने नौकरों से कहा, “मटकों को पानी से भर दो।” चुनाँचे उन्हों ने उन्हें लबालब भर दिया। 8 फिर उस ने कहा, “अब कुछ निकाल कर ज़ियाफ़त का इन्तिज़ाम चलाने वाले के पास ले जाओ।” उन्हों ने ऐसा ही किया। 9 जूँ ही ज़ियाफ़त का इन्तिज़ाम चलाने वाले ने वह पानी चखा जो मै में बदल गया था तो उस ने दूल्हे को बुलाया। (उसे मालूम न था कि यह कहाँ से आई है, अगरचे उन नौकरों को पता था जो उसे निकाल कर लाए थे।) 10 उस ने कहा, “हर मेज़्बान पहले अच्छी क़िस्म की मै पीने के लिए पेश करता है। फिर जब लोगों को नशा चढ़ने लगे तो वह निस्बतन घटिया क़िस्म की मै पिलाने लगता है। लेकिन आप ने अच्छी मै अब तक रख छोड़ी है।” 110 यूँ ईसा ने गलील के क़ाना में यह पहला इलाही निशान दिखा कर अपने जलाल का इज़हार किया। यह देख कर उस के शागिर्द उस पर ईमान लाए। 12 इस के बाद वह अपनी माँ, अपने भाइयों और अपने शागिर्दों के साथ कफ़र्नहूम को चला गया। वहाँ वह थोड़े दिन रहे।

ईसा बैत-उल-मुक़द्दस में जाता है

13 जब यहूदी ईद-ए-फ़सह क़रीब आ गई तो ईसा यरूशलम चला गया। 14 बैत-उल-मुक़द्दस में जा कर उस ने देखा कि कई लोग उस में गाय-बैल, भेड़ें और कबूतर बेच रहे हैं। दूसरे मेज़ पर बैठे ग़ैरमुल्की सिक्के बैत-उल-मुक़द्दस के सिक्कों में बदल रहे हैं। 15 फिर ईसा ने रस्सियों का कोड़ा बना कर सब को बैत-उल-मुक़द्दस से निकाल दिया। उस ने भेड़ों और गाय-बैलों को बाहर हाँक दिया, पैसे बदलने वालों के सिक्के बिखेर दिए और उन की मेज़ें उलट दीं। 16 कबूतर बेचने वालों को उस ने कहा, “इसे ले जाओ। मेरे बाप के घर को मंडी में मत बदलो।” 17 यह देख कर ईसा के शागिर्दों को कलाम-ए-मुक़द्दस का यह हवाला याद आया कि “तेरे घर की ग़ैरत मुझे खा जाएगी।” 18 यहूदियों ने जवाब में पूछा, “आप हमें क्या इलाही निशान दिखा सकते हैं ताकि हमें यक़ीन आए कि आप को यह करने का इख़तियार है?” 19 ईसा ने जवाब दिया, “इस मक़्दिस को ढा दो तो मैं इसे तीन दिन के अन्दर दुबारा तामीर कर दूँगा।” 20 यहूदियों ने कहा, “बैत-उल-मुक़द्दस को तामीर करने में 46 साल लग गए थे और आप उसे तीन दिन में तामीर करना चाहते हैं?” 210 लेकिन जब ईसा ने “इस मक़्दिस” के अल्फ़ाज़ इस्तेमाल किए तो इस का मतलब उस का अपना बदन था। 22 उस के मुर्दों में से जी उठने के बाद उस के शागिर्दों को उस की यह बात याद आई। फिर वह कलाम-ए-मुक़द्दस और उन बातों पर ईमान लाए जो ईसा ने की थीं।

ईसा इन्सानी फ़ितरत से वाक़िफ़ है

23 जब ईसा फ़सह की ईद के लिए यरूशलम में था तो बहुत से लोग उस के पेशकरदा इलाही निशानों को देख कर उस के नाम पर ईमान लाने लगे। 24 लेकिन उस को उन पर एतिमाद नहीं था, क्यूँकि वह सब को जानता था। 25 और उसे इन्सान के बारे में किसी की गवाही की ज़रूरत नहीं थी, क्यूँकि वह जानता था कि इन्सान के अन्दर क्या कुछ है।

John 3

नीकुदेमुस के साथ मुलाक़ात

1 फ़रीसी फ़िर्क़े का एक आदमी बनाम नीकुदेमुस था जो यहूदी अदालत-ए-अलिया का रुकन था। 2 वह रात के वक़्त ईसा के पास आया और कहा, “उस्ताद, हम जानते हैं कि आप ऐसे उस्ताद हैं जो अल्लाह की तरफ़ से आए हैं, क्यूँकि जो इलाही निशान आप दिखाते हैं वह सिर्फ़ ऐसा शख़्स ही दिखा सकता है जिस के साथ अल्लाह हो।” 3 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुझे सच बताता हूँ, सिर्फ़ वह शख़्स अल्लाह की बादशाही को देख सकता है जो नए सिरे से पैदा हुआ हो।” 4 नीकुदेमुस ने एतिराज़ किया, “क्या मतलब? बूढ़ा आदमी किस तरह नए सिरे से पैदा हो सकता है? क्या वह दुबारा अपनी माँ के पेट में जा कर पैदा हो सकता है?” 5 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुझे सच बताता हूँ, सिर्फ़ वह शख़्स अल्लाह की बादशाही में दाख़िल हो सकता है जो पानी और रूह से पैदा हुआ हो। 6 जो कुछ जिस्म से पैदा होता है वह जिस्मानी है, लेकिन जो रूह से पैदा होता है वह रुहानी है। 7 इस लिए तू ताज्जुब न कर कि मैं कहता हूँ, ‘तुम्हें नए सिरे से पैदा होना ज़रूर है।’ 8 हवा जहाँ चाहे चलती है। तू उस की आवाज़ तो सुनता है, लेकिन यह नहीं जानता कि कहाँ से आती और कहाँ को जाती है। यही हालत हर उस शख़्स की है जो रूह से पैदा हुआ है।” 9 नीकुदेमुस ने पूछा, “यह किस तरह हो सकता है?” 10 ईसा ने जवाब दिया, “तू तो इस्राईल का उस्ताद है। क्या इस के बावुजूद भी यह बातें नहीं समझता? 11 मैं तुझ को सच बताता हूँ, हम वह कुछ बयान करते हैं जो हम जानते हैं और उस की गवाही देते हैं जो हम ने ख़ुद देखा है। तो भी तुम लोग हमारी गवाही क़बूल नहीं करते। 12 मैं ने तुम को दुनियावी बातें सुनाई हैं और तुम उन पर ईमान नहीं रखते। तो फिर तुम क्यूँकर ईमान लाओगे अगर तुम्हें आसमानी बातों के बारे में बताऊँ? 13 आसमान पर कोई नहीं चढ़ा सिवाए इब्न-ए-आदम के, जो आसमान से उतरा है। 14 और जिस तरह मूसा ने रेगिस्तान में साँप को लकड़ी पर लटका कर ऊँचा कर दिया उसी तरह ज़रूर है कि इब्न-ए-आदम को भी ऊँचे पर चढ़ाया जाए, 15 ताकि हर एक को जो उस पर ईमान लाएगा अबदी ज़िन्दगी मिल जाए। 16 क्यूँकि अल्लाह ने दुनिया से इतनी मुहब्बत रखी कि उस ने अपने इक्लौते फ़र्ज़न्द को बख़्श दिया, ताकि जो भी उस पर ईमान लाए हलाक न हो बल्कि अबदी ज़िन्दगी पाए। 17 क्यूँकि अल्लाह ने अपने फ़र्ज़न्द को इस लिए दुनिया में नहीं भेजा कि वह दुनिया को मुजरिम ठहराए बल्कि इस लिए कि वह उसे नजात दे। 18 जो भी उस पर ईमान लाया है उसे मुजरिम नहीं क़रार दिया जाएगा, लेकिन जो ईमान नहीं रखता उसे मुजरिम ठहराया जा चुका है। वजह यह है कि वह अल्लाह के इक्लौते फ़र्ज़न्द के नाम पर ईमान नहीं लाया। 19 और लोगों को मुजरिम ठहराने का सबब यह है कि गो अल्लाह का नूर इस दुनिया में आया, लेकिन लोगों ने नूर की निस्बत अंधेरे को ज़्यादा प्यार किया, क्यूँकि उन के काम बुरे थे। 20 जो भी ग़लत काम करता है वह नूर से दुश्मनी रखता है और उस के क़रीब नहीं आता ताकि उस के बुरे कामों का पोल न खुल जाए। 21 लेकिन जो सच्चा काम करता है वह नूर के पास आता है ताकि ज़ाहिर हो जाए कि उस के काम अल्लाह के वसीले से हुए हैं।”

ईसा और यहया

22 इस के बाद ईसा अपने शागिर्दों के साथ यहूदिया के इलाक़े में गया। वहाँ वह कुछ देर के लिए उन के साथ ठहरा और लोगों को बपतिस्मा देने लगा। 23 उस वक़्त यहया भी शालेम के क़रीब वाक़े मक़ाम ऐनोन में बपतिस्मा दे रहा था, क्यूँकि वहाँ पानी बहुत था। उस जगह पर लोग बपतिस्मा लेने के लिए आते रहे। 24 (यहया को अब तक जेल में नहीं डाला गया था।) 25 एक दिन यहया के शागिर्दों का किसी यहूदी के साथ मुबाहसा छिड़ गया। ज़ेर-ए-ग़ौर मज़्मून दीनी ग़ुसल था। 26 वह यहया के पास आए और कहने लगे, “उस्ताद, जिस आदमी से आप की दरया-ए-यर्दन के पार मुलाक़ात हुई और जिस के बारे में आप ने गवाही दी कि वह मसीह है, वह भी लोगों को बपतिस्मा दे रहा है। अब सब लोग उसी के पास जा रहे हैं।” 27 यहया ने जवाब दिया, “हर एक को सिर्फ़ वह कुछ मिलता है जो उसे आसमान से दिया जाता है। 28 तुम ख़ुद इस के गवाह हो कि मैं ने कहा, ‘मैं मसीह नहीं हूँ बल्कि मुझे उस के आगे आगे भेजा गया है।’ 29 दूल्हा ही दुल्हन से शादी करता है, और दुल्हन उसी की है। उस का दोस्त सिर्फ़ साथ खड़ा होता है। और दूल्हे की आवाज़ सुन सुन कर दोस्त की ख़ुशी की इन्तिहा नहीं होती। मैं भी ऐसा ही दोस्त हूँ जिस की ख़ुशी पूरी हो गई है। 30 लाज़िम है कि वह बढ़ता जाए जबकि मैं घटता जाऊँ।

आसमान से आने वाला

310 जो आसमान पर से आया है उस का इख़तियार सब पर है। जो दुनिया से है उस का ताल्लुक़ दुनिया से ही है और वह दुनियावी बातें करता है। लेकिन जो आसमान पर से आया है उस का इख़तियार सब पर है। 32 जो कुछ उस ने ख़ुद देखा और सुना है उसी की गवाही देता है। तो भी कोई उस की गवाही को क़बूल नहीं करता। 33 लेकिन जिस ने उसे क़बूल किया उस ने इस की तस्दीक़ की है कि अल्लाह सच्चा है। 34 जिसे अल्लाह ने भेजा है वह अल्लाह की बातें सुनाता है, क्यूँकि अल्लाह अपना रूह नाप तोल कर नहीं देता। 35 बाप अपने फ़र्ज़न्द को प्यार करता है, और उस ने सब कुछ उस के सपुर्द कर दिया है। 36 चुनाँचे जो अल्लाह के फ़र्ज़न्द पर ईमान लाता है अबदी ज़िन्दगी उस की है। लेकिन जो फ़र्ज़न्द को रद्द करे वह इस ज़िन्दगी को नहीं देखेगा बल्कि अल्लाह का ग़ज़ब उस पर ठहरा रहेगा।”

John 4

ईसा और सामरी औरत

1 फ़रीसियों को इत्तिला मिली कि ईसा यहया की निस्बत ज़्यादा शागिर्द बना रहा और लोगों को बपतिस्मा दे रहा है, 2 हालाँकि वह ख़ुद बपतिस्मा नहीं देता था बल्कि उस के शागिर्द। 3 जब ख़ुदावन्द ईसा को यह बात मालूम हुई तो वह यहूदिया को छोड़ कर गलील को वापस चला गया। 4 वहाँ पहुँचने के लिए उसे सामरिया में से गुज़रना था। 5 चलते चलते वह एक शहर के पास पहुँच गया जिस का नाम सूख़ार था। यह उस ज़मीन के क़रीब था जो याक़ूब ने अपने बेटे यूसुफ़ को दी थी। 6 वहाँ याक़ूब का कुआँ था। ईसा सफ़र से थक गया था, इस लिए वह कुएँ पर बैठ गया। दोपहर के तक़रीबन बारह बज गए थे। 7 एक सामरी औरत पानी भरने आई। ईसा ने उस से कहा, “मुझे ज़रा पानी पिला।” 8 (उस के शागिर्द खाना ख़रीदने के लिए शहर गए हुए थे।) 9 सामरी औरत ने ताज्जुब किया, क्यूँकि यहूदी सामरियों के साथ ताल्लुक़ रखने से इन्कार करते हैं। उस ने कहा, “आप तो यहूदी हैं, और मैं सामरी औरत हूँ। आप किस तरह मुझ से पानी पिलाने की दरख़्वास्त कर सकते हैं?” 10 ईसा ने जवाब दिया, “अगर तू उस बख़्शिश से वाक़िफ़ होती जो अल्लाह तुझ को देना चाहता है और तू उसे जानती जो तुझ से पानी माँग रहा है तो तू उस से माँगती और वह तुझे ज़िन्दगी का पानी देता।” 110 ख़ातून ने कहा, “ख़ुदावन्द, आप के पास तो बाल्टी नहीं है और यह कुआँ गहरा है। आप को ज़िन्दगी का यह पानी कहाँ से मिला? 12 क्या आप हमारे बाप याक़ूब से बड़े हैं जिस ने हमें यह कुआँ दिया और जो ख़ुद भी अपने बेटों और रेवड़ों समेत उस के पानी से लुत्फ़अन्दोज़ हुआ?” 13 ईसा ने जवाब दिया, “जो भी इस पानी में से पिए उसे दुबारा प्यास लगेगी। 14 लेकिन जिसे मैं पानी पिला दूँ उसे बाद में कभी भी प्यास नहीं लगेगी। बल्कि जो पानी मैं उसे दूँगा वह उस में एक चश्मा बन जाएगा जिस से पानी फूट कर अबदी ज़िन्दगी मुहय्या करेगा।” 15 औरत ने उस से कहा, “ख़ुदावन्द, मुझे यह पानी पिला दें। फिर मुझे कभी भी प्यास नहीं लगेगी और मुझे बार बार यहाँ आ कर पानी भरना नहीं पड़ेगा।” 16 ईसा ने कहा, “जा, अपने ख़ावन्द को बुला ला।” 17 औरत ने जवाब दिया, “मेरा कोई ख़ावन्द नहीं है।” ईसा ने कहा, “तू ने सहीह कहा कि मेरा ख़ावन्द नहीं है, 18 क्यूँकि तेरी शादी पाँच मर्दों से हो चुकी है और जिस आदमी के साथ तू अब रह रही है वह तेरा शौहर नहीं है। तेरी बात बिलकुल दुरुस्त है।” 19 औरत ने कहा, “ख़ुदावन्द, मैं देखती हूँ कि आप नबी हैं। 20 हमारे बापदादा तो इसी पहाड़ पर इबादत करते थे जबकि आप यहूदी लोग इसरार करते हैं कि यरूशलम वह मर्कज़ है जहाँ हमें इबादत करनी है।” 210 ईसा ने जवाब दिया, “ऐ ख़ातून, यक़ीन जान कि वह वक़्त आएगा जब तुम न तो इस पहाड़ पर बाप की इबादत करोगे, न यरूशलम में। 22 तुम सामरी उस की परस्तिश करते हो जिसे नहीं जानते। इस के मुक़ाबले में हम उस की परस्तिश करते हैं जिसे जानते हैं, क्यूँकि नजात यहूदियों में से है। 23 लेकिन वह वक़्त आ रहा है बल्कि पहुँच चुका है जब हक़ीक़ी परस्तार रूह और सच्चाई से बाप की परस्तिश करेंगे, क्यूँकि बाप ऐसे ही परस्तार चाहता है। 24 अल्लाह रूह है, इस लिए लाज़िम है कि उस के परस्तार रूह और सच्चाई से उस की परस्तिश करें।” 25 औरत ने उस से कहा, “मुझे मालूम है कि मसीह यानी मसह किया हुआ शख़्स आ रहा है। जब वह आएगा तो हमें सब कुछ बता देगा।” 26 इस पर ईसा ने उसे बताया, “मैं ही मसीह हूँ जो तेरे साथ बात कर रहा हूँ।” 27 उसी लम्हे शागिर्द पहुँच गए। उन्हों ने जब देखा कि ईसा एक औरत से बात कर रहा है तो ताज्जुब किया। लेकिन किसी ने पूछने की जुरअत न की कि “आप क्या चाहते हैं?” या “आप इस औरत से क्यूँ बातें कर रहे हैं?” 28 औरत अपना घड़ा छोड़ कर शहर में चली गई और वहाँ लोगों से कहने लगी, 29 “आओ, एक आदमी को देखो जिस ने मुझे सब कुछ बता दिया है जो मैं ने किया है। वह मसीह तो नहीं है?” 30 चुनाँचे वह शहर से निकल कर ईसा के पास आए। 310 इतने में शागिर्द ज़ोर दे कर ईसा से कहने लगे, “उस्ताद, कुछ खाना खा लें।” 32 लेकिन उस ने जवाब दिया, “मेरे पास खाने की ऐसी चीज़ है जिस से तुम वाक़िफ़ नहीं हो।” 33 शागिर्द आपस में कहने लगे, “क्या कोई उस के पास खाना ले कर आया?” 34 लेकिन ईसा ने उन से कहा, “मेरा खाना यह है कि उस की मर्ज़ी पूरी करूँ जिस ने मुझे भेजा है और उस का काम तक्मील तक पहुँचाऊँ। 35 तुम तो ख़ुद कहते हो, ‘मज़ीद चार महीने तक फ़सल पक जाएगी।’ लेकिन मैं तुम को बताता हूँ, अपनी नज़र उठा कर खेतों पर ग़ौर करो। फ़सल पक गई है और कटाई के लिए तय्यार है। 36 फ़सल की कटाई शुरू हो चुकी है। कटाई करने वाले को मज़दूरी मिल रही है और वह फ़सल को अबदी ज़िन्दगी के लिए जमा कर रहा है ताकि बीज बोने वाला और कटाई करने वाला दोनों मिल कर ख़ुशी मना सकें। 37 यूँ यह कहावत दुरुस्त साबित हो जाती है कि ‘एक बीज बोता और दूसरा फ़सल काटता है।’ 38 मैं ने तुम को उस फ़सल की कटाई करने के लिए भेज दिया है जिसे तय्यार करने के लिए तुम ने मेहनत नहीं की। औरों ने ख़ूब मेहनत की है और तुम इस से फ़ाइदा उठा कर फ़सल जमा कर सकते हो।” 39 उस शहर के बहुत से सामरी ईसा पर ईमान लाए। वजह यह थी कि उस औरत ने उस के बारे में यह गवाही दी थी, “उस ने मुझे सब कुछ बता दिया जो मैं ने किया है।” 40 जब वह उस के पास आए तो उन्हों ने मिन्नत की, “हमारे पास ठहरें।” चुनाँचे वह दो दिन वहाँ रहा। 410 और उस की बातें सुन कर मज़ीद बहुत से लोग ईमान लाए। 42 उन्हों ने औरत से कहा, “अब हम तेरी बातों की बिना पर ईमान नहीं रखते बल्कि इस लिए कि हम ने ख़ुद सुन और जान लिया है कि वाक़ई दुनिया का नजातदहिन्दा यही है।”

अफ़्सर के बेटे की शिफ़ा

43 वहाँ दो दिन गुज़ारने के बाद ईसा गलील को चला गया। 44 उस ने ख़ुद गवाही दे कर कहा था कि नबी की उस के अपने वतन में इज़्ज़त नहीं होती। 45 अब जब वह गलील पहुँचा तो मक़ामी लोगों ने उसे ख़ुशआमदीद कहा, क्यूँकि वह फ़सह की ईद मनाने के लिए यरूशलम आए थे और उन्हों ने सब कुछ देखा जो ईसा ने वहाँ किया था। 46 फिर वह दुबारा क़ाना में आया जहाँ उस ने पानी को मै में बदल दिया था। उस इलाक़े में एक शाही अफ़्सर था जिस का बेटा कफ़र्नहूम में बीमार पड़ा था। 47 जब उसे इत्तिला मिली कि ईसा यहूदिया से गलील पहुँच गया है तो वह उस के पास गया और गुज़ारिश की, “काना से मेरे पास आ कर मेरे बेटे को शिफ़ा दें, क्यूँकि वह मरने को है।” 48 ईसा ने उस से कहा, “जब तक तुम लोग इलाही निशान और मोजिज़े नहीं देखते ईमान नहीं लाते।” 49 शाही अफ़्सर ने कहा, “ख़ुदावन्द आएँ, इस से पहले कि मेरा लड़का मर जाए।” 50 ईसा ने जवाब दिया, “जा, तेरा बेटा ज़िन्दा रहेगा।” आदमी ईसा की बात पर ईमान लाया और अपने घर चला गया। 51 वह अभी रास्ते में था कि उस के नौकर उस से मिले। उन्हों ने उसे इत्तिला दी कि बेटा ज़िन्दा है। 52 उस ने उन से पूछ-गछ की कि उस की तबीअत किस वक़्त से बेहतर होने लगी थी। उन्हों ने जवाब दिया, “बुख़ार कल दोपहर एक बजे उतर गया।” 53 फिर बाप ने जान लिया कि उसी वक़्त ईसा ने उसे बताया था, “तुम्हारा बेटा ज़िन्दा रहेगा।” और वह अपने पूरे घराने समेत उस पर ईमान लाया। 54 यूँ ईसा ने अपना दूसरा इलाही निशान उस वक़्त दिखाया जब वह यहूदिया से गलील में आया था।

John 5

बैत-उल-मुक़द्दस के हौज़ पर शिफ़ा

1 कुछ देर के बाद ईसा किसी यहूदी ईद के मौक़े पर यरूशलम गया। 2 शहर में एक हौज़ था जिस का नाम अरामी ज़बान में बैत-हसदा था। उस के पाँच बड़े बरामदे थे और वह शहर के उस दरवाज़े के क़रीब था जिस का नाम ‘भेड़ों का दरवाज़ा’ है। 3 इन बरामदों में बेशुमार माज़ूर लोग पड़े रहते थे। यह अंधे, लंगड़े और मफ़्लूज पानी के हिलने के इन्तिज़ार में रहते थे। 4क्यूँकि गाहे-ब-गाहे रब का फ़रिश्ता उतर कर पानी को हिला देता था। जो भी उस वक़्त उस में पहले दाख़िल हो जाता उसे शिफ़ा मिल जाती थी ख़्वाह उस की बीमारी कोई भी क्यूँ न होती। 5 मरीज़ों में से एक आदमी 38 साल से माज़ूर था। 6 जब ईसा ने उसे वहाँ पड़ा देखा और उसे मालूम हुआ कि यह इतनी देर से इस हालत में है तो उस ने पूछा, “क्या तू तन्दुरुस्त होना चाहता है?” 7 उस ने जवाब दिया, “ख़ुदावन्द, यह मुश्किल है। मेरा कोई साथी नहीं जो मुझे उठा कर पानी में जब उसे हिलाया जाता है ले जाए। इस लिए मेरे वहाँ पहुँचने में इतनी देर लग जाती है कि कोई और मुझ से पहले पानी में उतर जाता है।” 8 ईसा ने कहा, “उठ, अपना बिस्तर उठा कर चल फिर!” 9 वह आदमी फ़ौरन बहाल हो गया। उस ने अपना बिस्तर उठाया और चलने फिरने लगा। यह वाक़िआ सबत के दिन हुआ। 10 इस लिए यहूदियों ने शिफ़ायाब आदमी को बताया, “आज सबत का दिन है। आज बिस्तर उठाना मना है।” 110 लेकिन उस ने जवाब दिया, “जिस आदमी ने मुझे शिफ़ा दी उस ने मुझे बताया, ‘अपना बिस्तर उठा कर चल फिर’।” 12 उन्हों ने सवाल किया, “वह कौन है जिस ने तुझे यह कुछ बताया?” 13 लेकिन शिफ़ायाब आदमी को मालूम न था, क्यूँकि ईसा हुजूम के सबब से चुपके से वहाँ से चला गया था। 14 बाद में ईसा उसे बैत-उल-मुक़द्दस में मिला। उस ने कहा, “अब तू बहाल हो गया है। फिर गुनाह न करना, ऐसा न हो कि तेरा हाल पहले से भी बदतर हो जाए।” 15 उस आदमी ने उसे छोड़ कर यहूदियों को इत्तिला दी, “ईसा ने मुझे शिफ़ा दी।” 16 इस पर यहूदी उस को सताने लगे, क्यूँकि उस ने उस आदमी को सबत के दिन बहाल किया था। 17 लेकिन ईसा ने उन्हें जवाब दिया, “मेरा बाप आज तक काम करता आया है, और मैं भी ऐसा करता हूँ।” 18 यह सुन कर यहूदी उसे क़त्ल करने की मज़ीद कोशिश करने लगे, क्यूँकि उस ने न सिर्फ़ सबत के दिन को मन्सूख़ क़रार दिया था बल्कि अल्लाह को अपना बाप कह कर अपने आप को अल्लाह के बराबर ठहराया था।

फ़र्ज़न्द का इख़तियार

19 ईसा ने उन्हें जवाब दिया, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि फ़र्ज़न्द अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकता। वह सिर्फ़ वह कुछ करता है जो वह बाप को करते देखता है। जो कुछ बाप करता है वही फ़र्ज़न्द भी करता है, 20 क्यूँकि बाप फ़र्ज़न्द को प्यार करता और उसे सब कुछ दिखाता है जो वह ख़ुद करता है। हाँ, वह फ़र्ज़न्द को इन से भी अज़ीम काम दिखाएगा। फिर तुम और भी ज़्यादा हैरतज़दा होगे। 21 क्यूँकि जिस तरह बाप मुर्दों को ज़िन्दा करता है उसी तरह फ़र्ज़न्द भी जिन्हें चाहता है ज़िन्दा कर देता है। 22 और बाप किसी की भी अदालत नहीं करता बल्कि उस ने अदालत का पूरा इन्तिज़ाम फ़र्ज़न्द के सपुर्द कर दिया है 23 ताकि सब उसी तरह फ़र्ज़न्द की इज़्ज़त करें जिस तरह वह बाप की इज़्ज़त करते हैं। जो फ़र्ज़न्द की इज़्ज़त नहीं करता वह बाप की भी इज़्ज़त नहीं करता जिस ने उसे भेजा है। 24 मैं तुम को सच बताता हूँ, जो भी मेरी बात सुन कर उस पर ईमान लाता है जिस ने मुझे भेजा है अबदी ज़िन्दगी उस की है। उसे मुजरिम नहीं ठहराया जाएगा बल्कि वह मौत की गिरिफ़्त से निकल कर ज़िन्दगी में दाख़िल हो गया है। 25 मैं तुम को सच बताता हूँ कि एक वक़्त आने वाला है बल्कि आ चुका है जब मुर्दे अल्लाह के फ़र्ज़न्द की आवाज़ सुनेंगे। और जितने सुनेंगे वह ज़िन्दा हो जाएंगे। 26 क्यूँकि जिस तरह बाप ज़िन्दगी का मम्बा है उसी तरह उस ने अपने फ़र्ज़न्द को ज़िन्दगी का मम्बा बना दिया है। 27 साथ साथ उस ने उसे अदालत करने का इख़तियार भी दे दिया है, क्यूँकि वह इब्न-ए-आदम है। 28 यह सुन कर ताज्जुब न करो क्यूँकि एक वक़्त आ रहा है जब तमाम मुर्दे उस की आवाज़ सुन कर 29 क़ब्रों में से निकल आएँगे। जिन्हों ने नेक काम किया वह जी उठ कर ज़िन्दगी पाएँगे जबकि जिन्हों ने बुरा काम किया वह जी तो उठेंगे लेकिन उन की अदालत की जाएगी।

ईसा के गवाह

30 मैं अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकता बल्कि जो कुछ बाप से सुनता हूँ उस के मुताबिक़ अदालत करता हूँ। और मेरी अदालत रास्त है क्यूँकि मैं अपनी मर्ज़ी करने की कोशिश नहीं करता बल्कि उसी की जिस ने मुझे भेजा है। 310 अगर मैं ख़ुद अपने बारे में गवाही देता तो मेरी गवाही मोतबर न होती। 32 लेकिन एक और है जो मेरे बारे में गवाही दे रहा है और मैं जानता हूँ कि मेरे बारे में उस की गवाही सच्ची और मोतबर है। 33 तुम ने पता करने के लिए अपने लोगों को यहया के पास भेजा है और उस ने हक़ीक़त की तस्दीक़ की है। 34 बेशक मुझे किसी इन्सानी गवाह की ज़रूरत नहीं है, लेकिन मैं यह इस लिए बता रहा हूँ ताकि तुम को नजात मिल जाए। 35 यहया एक जलता हुआ चराग़ था जो रौशनी देता था, और कुछ देर के लिए तुम ने उस की रौशनी में ख़ुशी मनाना पसन्द किया। 36 लेकिन मेरे पास एक और गवाह है जो यहया की निस्बत ज़्यादा अहम है यानी वह काम जो बाप ने मुझे मुकम्मल करने के लिए दे दिया। यही काम जो मैं कर रहा हूँ मेरे बारे में गवाही देता है कि बाप ने मुझे भेजा है। 37 इस के इलावा बाप ने ख़ुद जिस ने मुझे भेजा है मेरे बारे में गवाही दी है। अफ़्सोस, तुम ने कभी उस की आवाज़ नहीं सुनी, न उस की शक्ल-ओ-सूरत देखी, 38 और उस का कलाम तुम्हारे अन्दर नहीं रहता, क्यूँकि तुम उस पर ईमान नहीं रखते जिसे उस ने भेजा है। 39 तुम अपने सहीफ़ों में ढूँडते रहते हो क्यूँकि समझते हो कि उन से तुम्हें अबदी ज़िन्दगी हासिल है। लेकिन यही मेरे बारे में गवाही देते हैं! 40 तो भी तुम ज़िन्दगी पाने के लिए मेरे पास आना नहीं चाहते। 410 मैं इन्सानों से इज़्ज़त नहीं चाहता, 42 लेकिन मैं तुम को जानता हूँ कि तुम में अल्लाह की मुहब्बत नहीं। 43 अगरचे मैं अपने बाप के नाम में आया हूँ तो भी तुम मुझे क़बूल नहीं करते। इस के मुक़ाबले में अगर कोई अपने नाम में आएगा तो तुम उसे क़बूल करोगे। 44 कोई अजब नहीं कि तुम ईमान नहीं ला सकते। क्यूँकि तुम एक दूसरे से इज़्ज़त चाहते हो जबकि तुम वह इज़्ज़त पाने की कोशिश ही नहीं करते जो वाहिद ख़ुदा से मिलती है। 45 लेकिन यह न समझो कि मैं बाप के सामने तुम पर इल्ज़ाम लगाऊँगा। एक और है जो तुम पर इल्ज़ाम लगा रहा है यानी मूसा, जिस से तुम उम्मीद रखते हो। 46 अगर तुम वाक़ई मूसा पर ईमान रखते तो ज़रूर मुझ पर भी ईमान रखते, क्यूँकि उस ने मेरे ही बारे में लिखा। 47 लेकिन चूँकि तुम वह कुछ नहीं मानते जो उस ने लिखा है तो मेरी बातें क्यूँकर मान सकते हो!”

John 6

ईसा बड़े हुजूम को खाना खिलाता है

1 इस के बाद ईसा ने गलील की झील को पार किया। (झील का दूसरा नाम तिबरियास था।) 2 एक बड़ा हुजूम उस के पीछे लग गया था, क्यूँकि उस ने इलाही निशान दिखा कर मरीज़ों को शिफ़ा दी थी और लोगों ने इस का मुशाहदा किया था। 3 फिर ईसा पहाड़ पर चढ़ कर अपने शागिर्दों के साथ बैठ गया। 4 (यहूदी ईद-ए-फ़सह क़रीब आ गई थी।) 5 वहाँ बैठे ईसा ने अपनी नज़र उठाई तो देखा कि एक बड़ा हुजूम पहुँच रहा है। उस ने फ़िलिप्पुस से पूछा, “हम कहाँ से खाना ख़रीदें ताकि उन्हें खिलाएँ?” 6 (यह उस ने फ़िलिप्पुस को आज़माने के लिए कहा। ख़ुद तो वह जानता था कि क्या करेगा।) 7 फ़िलिप्पुस ने जवाब दिया, “अगर हर एक को सिर्फ़ थोड़ा सा मिले तो भी चाँदी के 200 सिक्के काफ़ी नहीं होंगे।” 8 फिर शमाऊन पतरस का भाई अन्द्रियास बोल उठा, 9 “यहाँ एक लड़का है जिस के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं। मगर इतने लोगों में यह क्या हैं!” 10 ईसा ने कहा, “लोगों को बिठा दो।” उस जगह बहुत घास थी। चुनाँचे सब बैठ गए। (सिर्फ़ मर्दों की तादाद 5 ,000 थी।) 11 ईसा ने रोटियाँ ले कर शुक्रगुज़ारी की दुआ की और उन्हें बैठे हुए लोगों में तक़्सीम करवाया। यही कुछ उस ने मछलियों के साथ भी किया। और सब ने जी भर कर रोटी खाई। 12 जब सब सेर हो गए तो ईसा ने शागिर्दों को बताया, “अब बचे हुए टुकड़े जमा करो ताकि कुछ ज़ाए न हो जाए।” 13 जब उन्हों ने बचा हुआ खाना इकट्ठा किया तो जौ की पाँच रोटियों के टुकड़ों से बारह टोकरे भर गए। 14 जब लोगों ने ईसा को यह इलाही निशान दिखाते देखा तो उन्हों ने कहा, “यक़ीनन यह वही नबी है जिसे दुनिया में आना था।” 15 ईसा को मालूम हुआ कि वह आ कर उसे ज़बरदस्ती बादशाह बनाना चाहते हैं, इस लिए वह दुबारा उन से अलग हो कर अकेला ही किसी पहाड़ पर चढ़ गया।

ईसा पानी पर चलता है

16 शाम को शागिर्द झील के पास गए 17 और कश्ती पर सवार हो कर झील के पार शहर कफ़र्नहूम के लिए रवाना हुए। अंधेरा हो चुका था और ईसा अब तक उन के पास वापस नहीं आया था। 18 तेज़ हवा के बाइस झील में लहरें उठने लगीं। 19 कश्ती को खेते खेते शागिर्द चार या पाँच किलोमीटर का सफ़र तै कर चुके थे कि अचानक ईसा नज़र आया। वह पानी पर चलता हुआ कश्ती की तरफ़ बढ़ रहा था। शागिर्द दह्शतज़दा हो गए। 20 लेकिन उस ने उन से कहा, “मैं ही हूँ। ख़ौफ़ न करो।” 21 वह उसे कश्ती में बिठाने पर आमादा हुए। और कश्ती उसी लम्हे उस जगह पहुँच गई जहाँ वह जाना चाहते थे।

लोग ईसा को ढूँडते हैं

22 हुजूम तो झील के पार रह गया था। अगले दिन लोगों को पता चला कि शागिर्द एक ही कश्ती ले कर चले गए हैं और कि उस वक़्त ईसा कश्ती में नहीं था। 23 फिर कुछ कश्तियाँ तिबरियास से उस मक़ाम के क़रीब पहुँचीं जहाँ ख़ुदावन्द ईसा ने रोटी के लिए शुक्रगुज़ारी की दुआ करके उसे लोगों को खिलाया था। 24 जब लोगों ने देखा कि न ईसा और न उस के शागिर्द वहाँ हैं तो वह कश्तियों पर सवार हो कर ईसा को ढूँडते ढूँडते कफ़र्नहूम पहुँचे।

ईसा ज़िन्दगी की रोटी है

25 जब उन्हों ने उसे झील के पार पाया तो पूछा, “उस्ताद, आप किस तरह यहाँ पहुँच गए?” 26 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को सच बताता हूँ, तुम मुझे इस लिए नहीं ढूँड रहे कि इलाही निशान देखे हैं बल्कि इस लिए कि तुम ने जी भर कर रोटी खाई है। 27 ऐसी ख़ुराक के लिए जिद्द-ओ-जह्द न करो जो गल सड़ जाती है, बल्कि ऐसी के लिए जो अबदी ज़िन्दगी तक क़ाइम रहती है और जो इब्न-ए-आदम तुम को देगा, क्यूँकि ख़ुदा बाप ने उस पर अपनी तस्दीक़ की मुहर लगाई है।” 28 इस पर उन्हों ने पूछा, “हमें क्या करना चाहिए ताकि अल्लाह का मतलूबा काम करें?” 29 ईसा ने जवाब दिया, “अल्लाह का काम यह है कि तुम उस पर ईमान लाओ जिसे उस ने भेजा है।” 30 उन्हों ने कहा, “तो फिर आप क्या इलाही निशान दिखाएँगे जिसे देख कर हम आप पर ईमान लाएँ? आप क्या काम सरअन्जाम देंगे? 31 हमारे बापदादा ने तो रेगिस्तान में मन खाया। चुनाँचे कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है कि मूसा ने उन्हें आसमान से रोटी खिलाई।” 32 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि ख़ुद मूसा ने तुम को आसमान से रोटी नहीं खिलाई बल्कि मेरे बाप ने। वही तुम को आसमान से हक़ीक़ी रोटी देता है। 33 क्यूँकि अल्लाह की रोटी वह शख़्स है जो आसमान पर से उतर कर दुनिया को ज़िन्दगी बख़्शता है।” 34 उन्हों ने कहा, “ख़ुदावन्द, हमें यह रोटी हर वक़्त दिया करें।” 35 जवाब में ईसा ने कहा, “मैं ही ज़िन्दगी की रोटी हूँ। जो मेरे पास आए उसे फिर कभी भूक नहीं लगेगी। और जो मुझ पर ईमान लाए उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी। 36 लेकिन जिस तरह मैं तुम को बता चुका हूँ, तुम ने मुझे देखा और फिर भी ईमान नहीं लाए। 37 जितने भी बाप ने मुझे दिए हैं वह मेरे पास आएँगे और जो भी मेरे पास आएगा उसे मैं हरगिज़ निकाल न दूँगा। 38 क्यूँकि मैं अपनी मर्ज़ी पूरी करने के लिए आसमान से नहीं उतरा बल्कि उस की जिस ने मुझे भेजा है। 39 और जिस ने मुझे भेजा उस की मर्ज़ी यह है कि जितने भी उस ने मुझे दिए हैं उन में से मैं एक को भी खो न दूँ बल्कि सब को क़ियामत के दिन मुर्दों में से फिर ज़िन्दा करूँ। 40 क्यूँकि मेरे बाप की मर्ज़ी यही है कि जो भी फ़र्ज़न्द को देख कर उस पर ईमान लाए उसे अबदी ज़िन्दगी हासिल हो। ऐसे शख़्स को मैं क़ियामत के दिन मुर्दों में से फिर ज़िन्दा करूँगा।” 410 यह सुन कर यहूदी इस लिए बुड़बुड़ाने लगे कि उस ने कहा था, “मैं ही वह रोटी हूँ जो आसमान पर से उतर आई है।” 42 उन्हों ने एतिराज़ किया, “क्या यह ईसा बिन यूसुफ़ नहीं, जिस के बाप और माँ से हम वाक़िफ़ हैं? वह क्यूँकर कह सकता है कि ‘मैं आसमान से उतरा हूँ’?” 43 ईसा ने जवाब में कहा, “आपस में मत बुड़बुड़ाओ। 44 सिर्फ़ वह शख़्स मेरे पास आ सकता है जिसे बाप जिस ने मुझे भेजा है मेरे पास खैंच लाया है। ऐसे शख़्स को मैं क़ियामत के दिन मुर्दों में से फिर ज़िन्दा करूँगा। 45 नबियों के सहीफ़ों में लिखा है, ‘सब अल्लाह से तालीम पाएँगे।’ जो भी अल्लाह की सुन कर उस से सीखता है वह मेरे पास आ जाता है। 46 इस का मतलब यह नहीं कि किसी ने कभी बाप को देखा। सिर्फ़ एक ही ने बाप को देखा है, वही जो अल्लाह की तरफ़ से है। 47 मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो ईमान रखता है उसे अबदी ज़िन्दगी हासिल है। 48 ज़िन्दगी की रोटी मैं हूँ। 49 तुम्हारे बापदादा रेगिस्तान में मन खाते रहे, तो भी वह मर गए। 50 लेकिन यहाँ आसमान से उतरने वाली ऐसी रोटी है जिसे खा कर इन्सान नहीं मरता। 51 मैं ही ज़िन्दगी की वह रोटी हूँ जो आसमान से उतर आई है। जो इस रोटी से खाए वह अबद तक ज़िन्दा रहेगा। और यह रोटी मेरा गोश्त है जो मैं दुनिया को ज़िन्दगी मुहय्या करने की ख़ातिर पेश करूँगा।” 52 यहूदी बड़ी सरगर्मी से एक दूसरे से बह्स करने लगे, “यह आदमी हमें किस तरह अपना गोश्त खिला सकता है?” 53 ईसा ने उन से कहा, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि सिर्फ़ इब्न-ए-आदम का गोश्त खाने और उस का ख़ून पीने ही से तुम में ज़िन्दगी होगी। 54 जो मेरा गोश्त खाए और मेरा ख़ून पिए अबदी ज़िन्दगी उस की है और मैं उसे क़ियामत के दिन मुर्दों में से फिर ज़िन्दा करूँगा। 55 क्यूँकि मेरा गोश्त हक़ीक़ी ख़ुराक और मेरा ख़ून हक़ीक़ी पीने की चीज़ है। 56 जो मेरा गोश्त खाता और मेरा ख़ून पीता है वह मुझ में क़ाइम रहता है और मैं उस में। 57 मैं उस ज़िन्दा बाप की वजह से ज़िन्दा हूँ जिस ने मुझे भेजा। इसी तरह जो मुझे खाता है वह मेरी ही वजह से ज़िन्दा रहेगा। 58 यही वह रोटी है जो आसमान से उतरी है। तुम्हारे बापदादा मन खाने के बावुजूद मर गए, लेकिन जो यह रोटी खाएगा वह अबद तक ज़िन्दा रहेगा।” 59 ईसा ने यह बातें उस वक़्त कीं जब वह कफ़र्नहूम में यहूदी इबादतख़ाने में तालीम दे रहा था।

अबदी ज़िन्दगी की बातें

60 यह सुन कर उस के बहुत से शागिर्दों ने कहा, “यह बातें नागवार हैं। कौन इन्हें सुन सकता है!” 610 ईसा को मालूम था कि मेरे शागिर्द मेरे बारे में बुड़बुड़ा रहे हैं, इस लिए उस ने कहा, “क्या तुम को इन बातों से ठेस लगी है? 62 तो फिर तुम क्या सोचोगे जब इब्न-ए-आदम को ऊपर जाते देखोगे जहाँ वह पहले था? 63 अल्लाह का रूह ही ज़िन्दा करता है जबकि जिस्मानी ताक़त का कोई फ़ाइदा नहीं होता। जो बातें मैं ने तुम को बताई हैं वह रूह और ज़िन्दगी हैं। 64 लेकिन तुम में से कुछ हैं जो ईमान नहीं रखते।” (ईसा तो शुरू से ही जानता था कि कौन कौन ईमान नहीं रखते और कौन मुझे दुश्मन के हवाले करेगा।) 65 फिर उस ने कहा, “इस लिए मैं ने तुम को बताया कि सिर्फ़ वह शख़्स मेरे पास आ सकता है जिसे बाप की तरफ़ से यह तौफ़ीक़ मिले।” 66 उस वक़्त से उस के बहुत से शागिर्द उलटे पाँओ फिर गए और आइन्दा को उस के साथ न चले। 67 तब ईसा ने बारह शागिर्दों से पूछा, “क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?” 68 शमाऊन पतरस ने जवाब दिया, “ख़ुदावन्द, हम किस के पास जाएँ? अबदी ज़िन्दगी की बातें तो आप ही के पास हैं। 69 और हम ने ईमान ला कर जान लिया है कि आप अल्लाह के क़ुद्दूस हैं।” 70 जवाब में ईसा ने कहा, “क्या मैं ने तुम बारह को नहीं चुना? तो भी तुम में से एक शख़्स शैतान है।” 71 (वह शमाऊन इस्करियोती के बेटे यहूदाह की तरफ़ इशारा कर रहा था जो बारह शागिर्दों में से एक था और जिस ने बाद में उसे दुश्मन के हवाले कर दिया।)

John 7

ईसा और उस के भाई

1 इस के बाद ईसा ने गलील के इलाक़े में इधर उधर सफ़र किया। वह यहूदिया में फिरना नहीं चाहता था क्यूँकि वहाँ के यहूदी उसे क़त्ल करने का मौक़ा ढूँड रहे थे। 2 लेकिन जब यहूदी ईद बनाम झोंपड़ियों की ईद क़रीब आई 3 तो उस के भाइयों ने उस से कहा, “यह जगह छोड़ कर यहूदिया चला जा ताकि तेरे पैरोकार भी वह मोजिज़े देख लें जो तू करता है। 4 जो शख़्स चाहता है कि अवाम उसे जाने वह पोशीदगी में काम नहीं करता। अगर तू इस क़िस्म का मोजिज़ाना काम करता है तो अपने आप को दुनिया पर ज़ाहिर कर।” 5 (असल में ईसा के भाई भी उस पर ईमान नहीं रखते थे।) 6 ईसा ने उन्हें बताया, “अभी वह वक़्त नहीं आया जो मेरे लिए मौज़ूँ है। लेकिन तुम जा सकते हो, तुम्हारे लिए हर वक़्त मौज़ूँ है। 7 दुनिया तुम से दुश्मनी नहीं रख सकती। लेकिन मुझ से वह दुश्मनी रखती है, क्यूँकि मैं उस के बारे में यह गवाही देता हूँ कि उस के काम बुरे हैं। 8 तुम ख़ुद ईद पर जाओ। मैं नहीं जाऊँगा, क्यूँकि अभी वह वक़्त नहीं आया जो मेरे लिए मौज़ूँ है।” 9 यह कह कर वह गलील में ठहरा रहा।

ईसा झोंपड़ियों की ईद पर

10 लेकिन बाद में, जब उस के भाई ईद पर जा चुके थे तो वह भी गया, अगरचे अलानिया नहीं बल्कि ख़ुफ़िया तौर पर। 11 यहूदी ईद के मौक़े पर उसे तलाश कर रहे थे। वह पूछते रहे, “वह आदमी कहाँ है?” 12 हुजूम में से कई लोग ईसा के बारे में बुड़बुड़ा रहे थे। बाज़ ने कहा, “वह अच्छा बन्दा है।” लेकिन दूसरों ने एतिराज़ किया, “नहीं, वह अवाम को बहकाता है।” 13 लेकिन किसी ने भी उस के बारे में खुल कर बात न की, क्यूँकि वह यहूदियों से डरते थे। 14 ईद का आधा हिस्सा गुज़र चुका था जब ईसा बैत-उल-मुक़द्दस में जा कर तालीम देने लगा। 15 उसे सुन कर यहूदी हैरतज़दा हुए और कहा, “यह आदमी किस तरह इतना इल्म रखता है हालाँकि इस ने कहीं से भी तालीम हासिल नहीं की!” 16 ईसा ने जवाब दिया, “जो तालीम मैं देता हूँ वह मेरी अपनी नहीं बल्कि उस की है जिस ने मुझे भेजा। 17 जो उस की मर्ज़ी पूरी करने के लिए तय्यार है वह जान लेगा कि मेरी तालीम अल्लाह की तरफ़ से है या कि मेरी अपनी तरफ़ से। 18 जो अपनी तरफ़ से बोलता है वह अपनी ही इज़्ज़त चाहता है। लेकिन जो अपने भेजने वाले की इज़्ज़त-ओ-जलाल बढ़ाने की कोशिश करता है वह सच्चा है और उस में नारास्ती नहीं है। 19 क्या मूसा ने तुम को शरीअत नहीं दी? तो फिर तुम मुझे क़त्ल करने की कोशिश क्यूँ कर रहे हो?” 20 हुजूम ने जवाब दिया, “तुम किसी बदरुह की गिरिफ़्त में हो। कौन तुम्हें क़त्ल करने की कोशिश कर रहा है?” 210 ईसा ने उन से कहा, “मैं ने सबत के दिन एक ही मोजिज़ा किया और तुम सब हैरतज़दा हुए। 22 लेकिन तुम भी सबत के दिन काम करते हो। तुम उस दिन अपने बच्चों का ख़तना करवाते हो। और यह रस्म मूसा की शरीअत के मुताबिक़ ही है, अगरचे यह मूसा से नहीं बल्कि हमारे बापदादा इब्राहीम, इस्हाक़ और याक़ूब से शुरू हुई। 23 क्यूँकि शरीअत के मुताबिक़ लाज़िम है कि बच्चे का ख़तना आठवें दिन करवाया जाए, और अगर यह दिन सबत हो तो तुम फिर भी अपने बच्चे का ख़तना करवाते हो ताकि शरीअत की ख़िलाफ़वरज़ी न हो जाए। तो फिर तुम मुझ से क्यूँ नाराज़ हो कि मैं ने सबत के दिन एक आदमी के पूरे जिस्म को शिफ़ा दी? 24 ज़ाहिरी सूरत की बिना पर फ़ैसला न करो बल्कि बातिनी हालत पहचान कर मुन्सिफ़ाना फ़ैसला करो।”

क्या ईसा ही मसीह है?

25 उस वक़्त यरूशलम के कुछ रहने वाले कहने लगे, “क्या यह वह आदमी नहीं है जिसे लोग क़त्ल करने की कोशिश कर रहे हैं? 26 ताहम वह यहाँ खुल कर बात कर रहा है और कोई भी उसे रोकने की कोशिश नहीं कर रहा। क्या हमारे राहनुमाओं ने हक़ीक़त में जान लिया है कि यह मसीह है? 27 लेकिन जब मसीह आएगा तो किसी को भी मालूम नहीं होगा कि वह कहाँ से है। यह आदमी फ़र्क़ है। हम तो जानते हैं कि यह कहाँ से है।” 28 ईसा बैत-उल-मुक़द्दस में तालीम दे रहा था। अब वह पुकार उठा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो कि मैं कहाँ से हूँ। लेकिन मैं अपनी तरफ़ से नहीं आया। जिस ने मुझे भेजा है वह सच्चा है और उसे तुम नहीं जानते। 29 लेकिन मैं उसे जानता हूँ, क्यूँकि मैं उस की तरफ़ से हूँ और उस ने मुझे भेजा है।” 30 तब उन्हों ने उसे गिरिफ़्तार करने की कोशिश की। लेकिन कोई भी उस को हाथ न लगा सका, क्यूँकि अभी उस का वक़्त नहीं आया था। 31 तो भी हुजूम के कई लोग उस पर ईमान लाए, क्यूँकि उन्हों ने कहा, “जब मसीह आएगा तो क्या वह इस आदमी से ज़्यादा इलाही निशान दिखाएगा?”

पहरेदार उसे गिरिफ़्तार करने आते हैं

32 फ़रीसियों ने देखा कि हुजूम में इस क़िस्म की बातें धीमी धीमी आवाज़ के साथ फैल रही हैं। चुनाँचे उन्हों ने राहनुमा इमामों के साथ मिल कर बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदार ईसा को गिरिफ़्तार करने के लिए भेजे। 33 लेकिन ईसा ने कहा, “मैं सिर्फ़ थोड़ी देर और तुम्हारे साथ रहूँगा, फिर मैं उस के पास वापस चला जाऊँगा जिस ने मुझे भेजा है। 34 उस वक़्त तुम मुझे ढूँडोगे, मगर नहीं पाओगे, क्यूँकि जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते।” 35 यहूदी आपस में कहने लगे, “यह कहाँ जाना चाहता है जहाँ हम उसे नहीं पा सकेंगे? क्या वह बैरून-ए-मुल्क जाना चाहता है, वहाँ जहाँ हमारे लोग यूनानियों में बिखरी हालत में रहते हैं? क्या वह यूनानियों को तालीम देना चाहता है? 36 मतलब क्या है जब वह कहता है, ‘तुम मुझे ढूँडोगे मगर नहीं पाओगे’ और ‘जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते’।”

ज़िन्दगी के पानी की नहरें

37 ईद के आख़िरी दिन जो सब से अहम है ईसा खड़ा हुआ और ऊँची आवाज़ से पुकार उठा, “जो प्यासा हो वह मेरे पास आए, 38 और जो मुझ पर ईमान लाए वह पिए। कलाम-ए-मुक़द्दस के मुताबिक़ ‘उस के अन्दर से ज़िन्दगी के पानी की नहरें बह निकलेंगी’।” 39 (‘ज़िन्दगी के पानी’ से वह रूह-उल-क़ुद्स की तरफ़ इशारा कर रहा था जो उन को हासिल होता है जो ईसा पर ईमान लाते हैं। लेकिन वह उस वक़्त तक नाज़िल नहीं हुआ था, क्यूँकि ईसा अब तक अपने जलाल को न पहुँचा था।)

सुनने वालों में नाइत्तिफ़ाक़ी

40 ईसा की यह बातें सुन कर हुजूम के कुछ लोगों ने कहा, “यह आदमी वाक़ई वह नबी है जिस के इन्तिज़ार में हम हैं।” 410 दूसरों ने कहा, “यह मसीह है।” लेकिन बाज़ ने एतिराज़ किया, “मसीह गलील से किस तरह आ सकता है! 42 पाक कलाम तो बयान करता है कि मसीह दाऊद के ख़ानदान और बैत-लहम से आएगा, उस गाँव से जहाँ दाऊद बादशाह पैदा हुआ।” 43 यूँ ईसा की वजह से लोगों में फूट पड़ गई। 44 कुछ तो उसे गिरिफ़्तार करना चाहते थे, लेकिन कोई भी उस को हाथ न लगा सका।

यहूदी राहनुमा ईसा पर ईमान नहीं रखते

45 इतने में बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदार राहनुमा इमामों और फ़रीसियों के पास वापस आए। वह ईसा को ले कर नहीं आए थे, इस लिए राहनुमाओं ने पूछा, “तुम उसे क्यूँ नहीं लाए?” 46 पहरेदारों ने जवाब दिया, “किसी ने कभी इस आदमी की तरह बात नहीं की।” 47 फ़रीसियों ने तन्ज़न कहा, “क्या तुम को भी बहका दिया गया है? 48 क्या राहनुमाओं या फ़रीसियों में कोई है जो उस पर ईमान लाया हो? कोई भी नहीं! 49 लेकिन शरीअत से नावाक़िफ़ यह हुजूम लानती है!” 50 इन राहनुमाओं में नीकुदेमुस भी शामिल था जो कुछ देर पहले ईसा के पास गया था। अब वह बोल उठा, 51 “क्या हमारी शरीअत किसी पर यूँ फ़ैसला देने की इजाज़त देती है? नहीं, लाज़िम है कि उसे पहले अदालत में पेश किया जाए ताकि मालूम हो जाए कि उस से क्या कुछ सरज़द हुआ है।” 52 दूसरों ने एतिराज़ किया, “क्या तुम भी गलील के रहने वाले हो? कलाम-ए-मुक़द्दस में तफ़्तीश करके ख़ुद देख लो कि गलील से कोई नबी नहीं आएगा।” 53 यह कह कर हर एक अपने अपने घर चला गया।

John 8

ज़िनाकार औरत पर पहला पत्थर

1 ईसा ख़ुद ज़ैतून के पहाड़ पर चला गया। 2 अगले दिन पौ फटते वक़्त वह दुबारा बैत-उल-मुक़द्दस में आया। वहाँ सब लोग उस के गिर्द जमा हुए और वह बैठ कर उन्हें तालीम देने लगा। 3 इस दौरान शरीअत के उलमा और फ़रीसी एक औरत को ले कर आए जिसे ज़िना करते वक़्त पकड़ा गया था। उसे बीच में खड़ा करके 4 उन्हों ने ईसा से कहा, “उस्ताद, इस औरत को ज़िना करते वक़्त पकड़ा गया है। 5 मूसा ने शरीअत में हमें हुक्म दिया है कि ऐसे लोगों को संगसार करना है। आप क्या कहते हैं?” 6 इस सवाल से वह उसे फंसाना चाहते थे ताकि उस पर इल्ज़ाम लगाने का कोई बहाना उन के हाथ आ जाए। लेकिन ईसा झुक गया और अपनी उंगली से ज़मीन पर लिखने लगा। 7 जब वह उस से जवाब का तक़ाज़ा करते रहे तो वह खड़ा हो कर उन से मुख़ातिब हुआ, “तुम में से जिस ने कभी गुनाह नहीं किया, वह पहला पत्थर मारे।” 8 फिर वह दुबारा झुक कर ज़मीन पर लिखने लगा। 9 यह जवाब सुन कर इल्ज़ाम लगाने वाले यके बाद दीगरे वहाँ से खिसक गए, पहले बुज़ुर्ग, फिर बाक़ी सब। आख़िरकार ईसा और दरमियान में खड़ी वह औरत अकेले रह गए। 10 फिर उस ने खड़े हो कर कहा, “ऐ औरत, वह सब कहाँ गए? क्या किसी ने तुझ पर फ़त्वा नहीं लगाया?” 110 औरत ने जवाब दिया, “नहीं ख़ुदावन्द।” ईसा ने कहा, “मैं भी तुझ पर फ़त्वा नहीं लगाता। जा, आइन्दा गुनाह न करना।”

ईसा दुनिया का नूर है

12 फिर ईसा दुबारा लोगों से मुख़ातिब हुआ, “दुनिया का नूर मैं हूँ। जो मेरी पैरवी करे वह तारीकी में नहीं चलेगा, क्यूँकि उसे ज़िन्दगी का नूर हासिल होगा।” 13 फ़रीसियों ने एतिराज़ किया, “आप तो अपने बारे में गवाही दे रहे हैं। ऐसी गवाही मोतबर नहीं होती।” 14 ईसा ने जवाब दिया, “अगरचे मैं अपने बारे में ही गवाही दे रहा हूँ तो भी वह मोतबर है। क्यूँकि मैं जानता हूँ कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ को जा रहा हूँ। लेकिन तुम को तो मालूम नहीं कि मैं कहाँ से आया हूँ और कहाँ जा रहा हूँ। 15 तुम इन्सानी सोच के मुताबिक़ लोगों का फ़ैसला करते हो, लेकिन मैं किसी का भी फ़ैसला नहीं करता। 16 और अगर फ़ैसला करूँ भी तो मेरा फ़ैसला दुरुस्त है, क्यूँकि मैं अकेला नहीं हूँ। बाप जिस ने मुझे भेजा है मेरे साथ है। 17 तुम्हारी शरीअत में लिखा है कि दो आदमियों की गवाही मोतबर है। 18 मैं ख़ुद अपने बारे में गवाही देता हूँ जबकि दूसरा गवाह बाप है जिस ने मुझे भेजा।” 19 उन्हों ने पूछा, “आप का बाप कहाँ है?” ईसा ने जवाब दिया, “तुम न मुझे जानते हो, न मेरे बाप को। अगर तुम मुझे जानते तो फिर मेरे बाप को भी जानते।” 20 ईसा ने यह बातें उस वक़्त कीं जब वह उस जगह के क़रीब तालीम दे रहा था जहाँ लोग अपना हदिया डालते थे। लेकिन किसी ने उसे गिरिफ़्तार न किया क्यूँकि अभी उस का वक़्त नहीं आया था।

जहाँ मैं जा रहा हूँ तुम वहाँ नहीं जा सकते

210 एक और बार ईसा उन से मुख़ातिब हुआ, “मैं जा रहा हूँ और तुम मुझे ढूँड ढूँड कर अपने गुनाहों में मर जाओगे। जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं पहुँच सकते।” 22 यहूदियों ने पूछा, “क्या वह ख़ुदकुशी करना चाहता है? क्या वह इसी वजह से कहता है, ‘जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं पहुँच सकते’?” 23 ईसा ने अपनी बात जारी रखी, “तुम नीचे से हो जबकि मैं ऊपर से हूँ। तुम इस दुनिया के हो जबकि मैं इस दुनिया का नहीं हूँ। 24 मैं तुम को बता चुका हूँ कि तुम अपने गुनाहों में मर जाओगे। क्यूँकि अगर तुम ईमान नहीं लाते कि मैं वही हूँ तो तुम यक़ीनन अपने गुनाहों में मर जाओगे।” 25 उन्हों ने सवाल किया, “आप कौन हैं?” ईसा ने जवाब दिया, “मैं वही हूँ जो मैं शुरू से ही बताता आया हूँ। 26 मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ कह सकता हूँ। बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन की बिना पर मैं तुम को मुजरिम ठहरा सकता हूँ। लेकिन जिस ने मुझे भेजा है वही सच्चा और मोतबर है और मैं दुनिया को सिर्फ़ वह कुछ सुनाता हूँ जो मैं ने उस से सुना है।” 27 सुनने वाले न समझे कि ईसा बाप का ज़िक्र कर रहा है। 28 चुनाँचे उस ने कहा, “जब तुम इब्न-ए-आदम को ऊँचे पर चढ़ाओगे तब ही तुम जान लोगे कि मैं वही हूँ, कि मैं अपनी तरफ़ से कुछ नहीं करता बल्कि सिर्फ़ वही सुनाता हूँ जो बाप ने मुझे सिखाया है। 29 और जिस ने मुझे भेजा है वह मेरे साथ है। उस ने मुझे अकेला नहीं छोड़ा, क्यूँकि मैं हर वक़्त वही कुछ करता हूँ जो उसे पसन्द आता है।” 30 यह बातें सुन कर बहुत से लोग उस पर ईमान लाए।

सच्चाई तुम को आज़ाद करेगी

310 जो यहूदी उस का यक़ीन करते थे ईसा अब उन से हमकलाम हुआ, “अगर तुम मेरी तालीम के ताबे रहोगे तब ही तुम मेरे सच्चे शागिर्द होगे। 32 फिर तुम सच्चाई को जान लोगे और सच्चाई तुम को आज़ाद कर देगी।” 33 उन्हों ने एतिराज़ किया, “हम तो इब्राहीम की औलाद हैं, हम कभी भी किसी के ग़ुलाम नहीं रहे। फिर आप किस तरह कह सकते हैं कि हम आज़ाद हो जाएंगे?” 34 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो भी गुनाह करता है वह गुनाह का ग़ुलाम है। 35 ग़ुलाम तो आरिज़ी तौर पर घर में रहता है, लेकिन मालिक का बेटा हमेशा तक। 36 इस लिए अगर फ़र्ज़न्द तुम को आज़ाद करे तो तुम हक़ीक़तन आज़ाद होगे। 37 मुझे मालूम है कि तुम इब्राहीम की औलाद हो। लेकिन तुम मुझे क़त्ल करने के दरपै हो, क्यूँकि तुम्हारे अन्दर मेरे पैग़ाम के लिए गुन्जाइश नहीं है। 38 मैं तुम को वही कुछ बताता हूँ जो मैं ने बाप के हाँ देखा है, जबकि तुम वही कुछ सुनाते हो जो तुम ने अपने बाप से सुना है।” 39 उन्हों ने कहा, “हमारा बाप इब्राहीम है।” ईसा ने जवाब दिया, “अगर तुम इब्राहीम की औलाद होते तो तुम उस के नमूने पर चलते। 40 इस के बजाए तुम मुझे क़त्ल करने की तलाश में हो, इस लिए कि मैं ने तुम को वही सच्चाई सुनाई है जो मैं ने अल्लाह के हुज़ूर सुनी है। इब्राहीम ने कभी भी इस क़िस्म का काम न किया। 41 नहीं, तुम अपने बाप का काम कर रहे हो।” उन्हों ने एतिराज़ किया, “हम हरामज़ादे नहीं हैं। अल्लाह ही हमारा वाहिद बाप है।” 42 ईसा ने उन से कहा, “अगर अल्लाह तुम्हारा बाप होता तो तुम मुझ से मुहब्बत रखते, क्यूँकि मैं अल्लाह में से निकल आया हूँ। मैं अपनी तरफ़ से नहीं आया बल्कि उसी ने मुझे भेजा है। 43 तुम मेरी ज़बान क्यूँ नहीं समझते? इस लिए कि तुम मेरी बात सुन नहीं सकते। 44 तुम अपने बाप इब्लीस से हो और अपने बाप की ख़्वाहिशों पर अमल करने के ख़्वाहाँ रहते हो। वह शुरू ही से क़ातिल है और सच्चाई पर क़ाइम न रहा, क्यूँकि उस में सच्चाई है नहीं। जब वह झूट बोलता है तो यह फ़ित्री बात है, क्यूँकि वह झूट बोलने वाला और झूट का बाप है। 45 लेकिन मैं सच्ची बातें सुनाता हूँ और यही वजह है कि तुम को मुझ पर यक़ीन नहीं आता। 46 क्या तुम में से कोई साबित कर सकता है कि मुझ से कोई गुनाह सरज़द हुआ है? मैं तो तुम को हक़ीक़त बता रहा हूँ। फिर तुम को मुझ पर यक़ीन क्यूँ नहीं आता? 47 जो अल्लाह से है वह अल्लाह की बातें सुनता है। तुम यह इस लिए नहीं सुनते कि तुम अल्लाह से नहीं हो।”

ईसा और इब्राहीम

48 यहूदियों ने जवाब दिया, “क्या हम ने ठीक नहीं कहा कि तुम सामरी हो और किसी बदरुह के क़ब्ज़े में हो?” 49 ईसा ने कहा, “मैं बदरुह के क़ब्ज़े में नहीं हूँ बल्कि अपने बाप की इज़्ज़त करता हूँ जबकि तुम मेरी बेइज़्ज़ती करते हो। 50 मैं ख़ुद अपनी इज़्ज़त का ख़्वाहाँ नहीं हूँ। लेकिन एक है जो मेरी इज़्ज़त और जलाल का ख़याल रखता और इन्साफ़ करता है। 51 मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो भी मेरे कलाम पर अमल करता रहे वह मौत को कभी नहीं देखेगा।” 52 यह सुन कर लोगों ने कहा, “अब हमें पता चल गया है कि तुम किसी बदरुह के क़ब्ज़े में हो। इब्राहीम और नबी सब इन्तिक़ाल कर गए जबकि तुम दावा करते हो, ‘जो भी मेरे कलाम पर अमल करता रहे वह मौत का मज़ा कभी नहीं चखेगा।’ 53 क्या तुम हमारे बाप इब्राहीम से बड़े हो? वह मर गया, और नबी भी मर गए। तुम अपने आप को क्या समझते हो?” 54 ईसा ने जवाब दिया, “अगर में अपनी इज़्ज़त और जलाल बढ़ाता तो मेरा जलाल बातिल होता। लेकिन मेरा बाप ही मेरी इज़्ज़त-ओ-जलाल बढ़ाता है, वही जिस के बारे में तुम दावा करते हो कि ‘वह हमारा ख़ुदा है।’ 55 लेकिन हक़ीक़त में तुम ने उसे नहीं जाना जबकि मैं उसे जानता हूँ। अगर मैं कहता कि मैं उसे नहीं जानता तो मैं तुम्हारी तरह झूटा होता। लेकिन मैं उसे जानता और उस के कलाम पर अमल करता हूँ। 56 तुम्हारे बाप इब्राहीम ने ख़ुशी मनाई जब उसे मालूम हुआ कि वह मेरी आमद का दिन देखेगा, और वह उसे देख कर मसरूर हुआ।” 57 यहूदियों ने एतिराज़ किया, “तुम्हारी उम्र तो अभी पचास साल भी नहीं, तो फिर तुम किस तरह कह सकते हो कि तुम ने इब्राहीम को देखा है?” 58 ईसा ने उन से कहा, “मैं तुम को सच बताता हूँ, इब्राहीम की पैदाइश से पेशतर ‘मैं हूँ’।” 59 इस पर लोग उसे संगसार करने के लिए पत्थर उठाने लगे। लेकिन ईसा ग़ाइब हो कर बैत-उल-मुक़द्दस से निकल गया।

John 9

अंधे की शिफ़ा

1 चलते चलते ईसा ने एक आदमी को देखा जो पैदाइश का अंधा था। 2 उस के शागिर्दों ने उस से पूछा, “उस्ताद, यह आदमी अंधा क्यूँ पैदा हुआ? क्या इस का कोई गुनाह है या इस के वालिदैन का?” 3 ईसा ने जवाब दिया, “न इस का कोई गुनाह है और न इस के वालिदैन का। यह इस लिए हुआ कि इस की ज़िन्दगी में अल्लाह का काम ज़ाहिर हो जाए। 4 अभी दिन है। लाज़िम है कि हम जितनी देर तक दिन है उस का काम करते रहें जिस ने मुझे भेजा है। क्यूँकि रात आने वाली है, उस वक़्त कोई काम नहीं कर सकेगा। 5 लेकिन जितनी देर तक मैं दुनिया में हूँ उतनी देर तक मैं दुनिया का नूर हूँ।” 6 यह कह कर उस ने ज़मीन पर थूक कर मिट्टी सानी और उस की आँखों पर लगा दी। 7 उस ने उस से कहा, “जा, शिलोख़ के हौज़ में नहा ले।” (शिलोख़ का मतलब ‘भेजा हुआ’ है।) अंधे ने जा कर नहा लिया। जब वापस आया तो वह देख सकता था। 8 उस के हमसाय और वह जिन्हों ने पहले उसे भीक माँगते देखा था पूछने लगे, “क्या यह वही नहीं जो बैठा भीक माँगा करता था?” 9 बाज़ ने कहा, “हाँ, वही है।” औरों ने इन्कार किया, “नहीं, यह सिर्फ़ उस का हमशक्ल है।” लेकिन आदमी ने ख़ुद इसरार किया, “मैं वही हूँ।” 10 उन्हों ने उस से सवाल किया, “तेरी आँखें किस तरह बहाल हुईं?” 110 उस ने जवाब दिया, “वह आदमी जो ईसा कहलाता है उस ने मिट्टी सान कर मेरी आँखों पर लगा दी। फिर उस ने मुझे कहा, ‘शिलोख़ के हौज़ पर जा और नहा ले।’ मैं वहाँ गया और नहाते ही मेरी आँखें बहाल हो गईं।” 12 उन्हों ने पूछा, “वह कहाँ है?” उस ने जवाब दिया, “मुझे नहीं मालूम।”

फ़रीसी शिफ़ा की तफ़्तीश करते हैं

13 तब वह शिफ़ायाब अंधे को फ़रीसियों के पास ले गए। 14 जिस दिन ईसा ने मिट्टी सान कर उस की आँखों को बहाल किया था वह सबत का दिन था। 15 इस लिए फ़रीसियों ने भी उस से पूछ-गछ की कि उसे किस तरह बसारत मिल गई। आदमी ने जवाब दिया, “उस ने मेरी आँखों पर मिट्टी लगा दी, फिर मैं ने नहा लिया और अब देख सकता हूँ।” 16 फ़रीसियों में से बाज़ ने कहा, “यह शख़्स अल्लाह की तरफ़ से नहीं है, क्यूँकि सबत के दिन काम करता है।” दूसरों ने एतिराज़ किया, “गुनाहगार इस क़िस्म के इलाही निशान किस तरह दिखा सकता है?” यूँ उन में फूट पड़ गई। 17 फिर वह दुबारा उस आदमी से मुख़ातिब हुए जो पहले अंधा था, “तू ख़ुद इस के बारे में क्या कहता है? उस ने तो तेरी ही आँखों को बहाल किया है।” उस ने जवाब दिया, “वह नबी है।” 18 यहूदियों को यक़ीन नहीं आ रहा था कि वह वाक़ई अंधा था और फिर बहाल हो गया है। इस लिए उन्हों ने उस के वालिदैन को बुलाया। 19 उन्हों ने उन से पूछा, “क्या यह तुम्हारा बेटा है, वही जिस के बारे में तुम कहते हो कि वह अंधा पैदा हुआ था? अब यह किस तरह देख सकता है?” 20 उस के वालिदैन ने जवाब दिया, “हम जानते हैं कि यह हमारा बेटा है और कि यह पैदा होते वक़्त अंधा था। 21 लेकिन हमें मालूम नहीं कि अब यह किस तरह देख सकता है या कि किस ने इस की आँखों को बहाल किया है। इस से ख़ुद पता करें, यह बालिग़ है। यह ख़ुद अपने बारे में बता सकता है।” 22 उस के वालिदैन ने यह इस लिए कहा कि वह यहूदियों से डरते थे। क्यूँकि वह फ़ैसला कर चुके थे कि जो भी ईसा को मसीह क़रार दे उसे यहूदी जमाअत से निकाल दिया जाए। 23 यही वजह थी कि उस के वालिदैन ने कहा था, “यह बालिग़ है, इस से ख़ुद पूछ लें।” 24 एक बार फिर उन्हों ने शिफ़ायाब अंधे को बुलाया, “अल्लाह को जलाल दे, हम तो जानते हैं कि यह आदमी गुनाहगार है।” 25 आदमी ने जवाब दिया, “मुझे क्या पता है कि वह गुनाहगार है या नहीं, लेकिन एक बात मैं जानता हूँ, पहले मैं अंधा था, और अब मैं देख सकता हूँ!” 26 फिर उन्हों ने उस से सवाल किया, “उस ने तेरे साथ क्या किया? उस ने किस तरह तेरी आँखों को बहाल कर दिया?” 27 उस ने जवाब दिया, “मैं पहले भी आप को बता चुका हूँ और आप ने सुना नहीं। क्या आप भी उस के शागिर्द बनना चाहते हैं?” 28 इस पर उन्हों ने उसे बुरा-भला कहा, “तू ही उस का शागिर्द है, हम तो मूसा के शागिर्द हैं। 29 हम तो जानते हैं कि अल्लाह ने मूसा से बात की है, लेकिन इस के बारे में हम यह भी नहीं जानते कि वह कहाँ से आया है।” 30 आदमी ने जवाब दिया, “अजीब बात है, उस ने मेरी आँखों को शिफ़ा दी है और फिर भी आप नहीं जानते कि वह कहाँ से है। 31 हम जानते हैं कि अल्लाह गुनाहगारों की नहीं सुनता। वह तो उस की सुनता है जो उस का ख़ौफ़ मानता और उस की मर्ज़ी के मुताबिक़ चलता है। 32 इब्तिदा ही से यह बात सुनने में नहीं आई कि किसी ने पैदाइशी अंधे की आँखों को बहाल कर दिया हो। 33 अगर यह आदमी अल्लाह की तरफ़ से न होता तो कुछ न कर सकता।” 34 जवाब में उन्हों ने उसे बताया, “तू जो गुनाहआलूदा हालत में पैदा हुआ है क्या तू हमारा उस्ताद बनना चाहता है?” यह कह कर उन्हों ने उसे जमाअत में से निकाल दिया।

रुहानी अंधापन

35 जब ईसा को पता चला कि उसे निकाल दिया गया है तो वह उस को मिला और पूछा, “क्या तू इब्न-ए-आदम पर ईमान रखता है?” 36 उस ने कहा, “ख़ुदावन्द, वह कौन है? मुझे बताएँ ताकि मैं उस पर ईमान लाऊँ।” 37 ईसा ने जवाब दिया, “तू ने उसे देख लिया है बल्कि वह तुझ से बात कर रहा है।” 38 उस ने कहा, “ख़ुदावन्द, मैं ईमान रखता हूँ” और उसे सिज्दा किया। 39 ईसा ने कहा, “मैं अदालत करने के लिए इस दुनिया में आया हूँ, इस लिए कि अंधे देखें और देखने वाले अंधे हो जाएँ।” 40 कुछ फ़रीसी जो साथ खड़े थे यह कुछ सुन कर पूछने लगे, “अच्छा, हम भी अंधे हैं?” 410 ईसा ने उन से कहा, “अगर तुम अंधे होते तो तुम क़ुसूरवार न ठहरते। लेकिन अब चूँकि तुम दावा करते हो कि हम देख सकते हैं इस लिए तुम्हारा गुनाह क़ाइम रहता है।

John 10

चरवाहे की तम्सील

1 मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो दरवाज़े से भेड़ों के बाड़े में दाख़िल नहीं होता बल्कि फलाँग कर अन्दर घुस आता है वह चोर और डाकू है। 2 लेकिन जो दरवाज़े से दाख़िल होता है वह भेड़ों का चरवाहा है। 3 चौकीदार उस के लिए दरवाज़ा खोल देता है और भेड़ें उस की आवाज़ सुनती हैं। वह अपनी हर एक भेड़ का नाम ले कर उन्हें बुलाता और बाहर ले जाता है। 4 अपने पूरे गल्ले को बाहर निकालने के बाद वह उन के आगे आगे चलने लगता है और भेड़ें उस के पीछे पीछे चल पड़ती हैं, क्यूँकि वह उस की आवाज़ पहचानती हैं। 5 लेकिन वह किसी अजनबी के पीछे नहीं चलेंगी बल्कि उस से भाग जाएँगी, क्यूँकि वह उस की आवाज़ नहीं पहचानतीं।” 6 ईसा ने उन्हें यह तम्सील पेश की, लेकिन वह न समझे कि वह उन्हें क्या बताना चाहता है।

अच्छा चरवाहा

7 इस लिए ईसा दुबारा इस पर बात करने लगा, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि भेड़ों के लिए दरवाज़ा मैं हूँ। 8 जितने भी मुझ से पहले आए वह चोर और डाकू हैं। लेकिन भेड़ों ने उन की न सुनी। 9 मैं ही दरवाज़ा हूँ। जो भी मेरे ज़रीए अन्दर आए उसे नजात मिलेगी। वह आता जाता और हरी चरागाहें पाता रहेगा। 10 चोर तो सिर्फ़ चोरी करने, ज़बह करने और तबाह करने आता है। लेकिन मैं इस लिए आया हूँ कि वह ज़िन्दगी पाएँ, बल्कि कस्रत की ज़िन्दगी पाएँ। 110 अच्छा चरवाहा मैं हूँ। अच्छा चरवाहा अपनी भेड़ों के लिए अपनी जान देता है। 12 मज़दूर चरवाहे का किरदार अदा नहीं करता, क्यूँकि भेड़ें उस की अपनी नहीं होतीं। इस लिए जूँ ही कोई भेड़िया आता है तो मज़दूर उसे देखते ही भेड़ों को छोड़ कर भाग जाता है। नतीजे में भेड़िया कुछ भेड़ें पकड़ लेता और बाक़ियों को मुन्तशिर कर देता है। 13 वजह यह है कि वह मज़दूर ही है और भेड़ों की फ़िक्र नहीं करता। 14 अच्छा चरवाहा मैं हूँ। मैं अपनी भेड़ों को जानता हूँ और वह मुझे जानती हैं, 15 बिलकुल उसी तरह जिस तरह बाप मुझे जानता है और मैं बाप को जानता हूँ। और मैं भेड़ों के लिए अपनी जान देता हूँ। 16 मेरी और भी भेड़ें हैं जो इस बाड़े में नहीं हैं। लाज़िम है कि उन्हें भी ले आऊँ। वह भी मेरी आवाज़ सुनेंगी। फिर एक ही गल्ला और एक ही गल्लाबान होगा। 17 मेरा बाप मुझे इस लिए प्यार करता है कि मैं अपनी जान देता हूँ ताकि उसे फिर ले लूँ। 18 कोई मेरी जान मुझ से छीन नहीं सकता बल्कि मैं उसे अपनी मर्ज़ी से दे देता हूँ। मुझे उसे देने का इख़तियार है और उसे वापस लेने का भी। यह हुक्म मुझे अपने बाप की तरफ़ से मिला है।” 19 इन बातों पर यहूदियों में दुबारा फूट पड़ गई। 20 बहुतों ने कहा, “यह बदरुह की गिरिफ़्त में है, यह दीवाना है। इस की क्यूँ सुनें!” 210 लेकिन औरों ने कहा, “यह ऐसी बातें नहीं हैं जो बदरुह-गिरिफ़्ता शख़्स कर सके। क्या बदरुहें अंधों की आँखें बहाल कर सकती हैं?”

ईसा को रद्द किया जाता है

22 सर्दियों का मौसम था और ईसा बैत-उल-मुक़द्दस की मख़्सूसियत की ईद बनाम हनूका के दौरान यरूशलम में था। 23 वह बैत-उल-मुक़द्दस के उस बरामदे में फिर रहा था जिस का नाम सुलेमान का बरामदा था। 24 यहूदी उसे घेर कर कहने लगे, “आप हमें कब तक उलझन में रखेंगे? अगर आप मसीह हैं तो हमें साफ़ साफ़ बता दें।” 25 ईसा ने जवाब दिया, “मैं तुम को बता चुका हूँ, लेकिन तुम को यक़ीन नहीं आया। जो काम मैं अपने बाप के नाम से करता हूँ वह मेरे गवाह हैं। 26 लेकिन तुम ईमान नहीं रखते क्यूँकि तुम मेरी भेड़ें नहीं हो। 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनती हैं। मैं उन्हें जानता हूँ और वह मेरे पीछे चलती हैं। 28 मैं उन्हें अबदी ज़िन्दगी देता हूँ, इस लिए वह कभी हलाक नहीं होंगी। कोई उन्हें मेरे हाथ से छीन न लेगा, 29 क्यूँकि मेरे बाप ने उन्हें मेरे सपुर्द किया है और वही सब से बड़ा है। कोई उन्हें बाप के हाथ से छीन नहीं सकता। 30 मैं और बाप एक हैं।” 310 यह सुन कर यहूदी दुबारा पत्थर उठाने लगे ताकि ईसा को संगसार करें। 32 उस ने उन से कहा, “मैं ने तुम्हें बाप की तरफ़ से कई इलाही निशान दिखाए हैं। तुम मुझे इन में से किस निशान की वजह से संगसार कर रहे हो?” 33 यहूदियों ने जवाब दिया, “हम तुम को किसी अच्छे काम की वजह से संगसार नहीं कर रहे बल्कि कुफ़्र बकने की वजह से। तुम जो सिर्फ़ इन्सान हो अल्लाह होने का दावा करते हो।” 34 ईसा ने कहा, “क्या यह तुम्हारी शरीअत में नहीं लिखा है कि अल्लाह ने फ़रमाया, ‘तुम ख़ुदा हो’? 35 उन्हें ‘ख़ुदा’ कहा गया जिन तक अल्लाह का यह पैग़ाम पहुँचाया गया। और हम जानते हैं कि कलाम-ए-मुक़द्दस को मन्सूख़ नहीं किया जा सकता। 36 तो फिर तुम कुफ़्र बकने की बात क्यूँ करते हो जब मैं कहता हूँ कि मैं अल्लाह का फ़र्ज़न्द हूँ? आख़िर बाप ने ख़ुद मुझे मख़्सूस करके दुनिया में भेजा है। 37 अगर मैं अपने बाप के काम न करूँ तो मेरी बात न मानो। 38 लेकिन अगर उस के काम करूँ तो बेशक मेरी बात न मानो, लेकिन कम अज़ कम उन कामों की गवाही तो मानो। फिर तुम जान लोगे और समझ जाओगे कि बाप मुझ में है और मैं बाप में हूँ।” 39 एक बार फिर उन्हों ने उसे गिरिफ़्तार करने की कोशिश की, लेकिन वह उन के हाथ से निकल गया। 40 फिर ईसा दुबारा दरया-ए-यर्दन के पार उस जगह चला गया जहाँ यहया शुरू में बपतिस्मा दिया करता था। वहाँ वह कुछ देर ठहरा। 41 बहुत से लोग उस के पास आते रहे। उन्हों ने कहा, “यहया ने कभी कोई इलाही निशान न दिखाया, लेकिन जो कुछ उस ने इस के बारे में बयान किया, वह बिलकुल सहीह निकला।” 42 और वहाँ बहुत से लोग ईसा पर ईमान लाए।

John 11

लाज़र की मौत

1 उन दिनों में एक आदमी बीमार पड़ गया जिस का नाम लाज़र था। वह अपनी बहनों मरियम और मर्था के साथ बैत-अनियाह में रहता था। 2 यह वही मरियम थी जिस ने बाद में ख़ुदावन्द पर ख़ुश्बू उंडेल कर उस के पाँओ अपने बालों से ख़ुश्क किए थे। उसी का भाई लाज़र बीमार था। 3 चुनाँचे बहनों ने ईसा को इत्तिला दी, “ख़ुदावन्द, जिसे आप प्यार करते हैं वह बीमार है।” 4 जब ईसा को यह ख़बर मिली तो उस ने कहा, “इस बीमारी का अन्जाम मौत नहीं है, बल्कि यह अल्लाह के जलाल के वास्ते हुआ है, ताकि इस से अल्लाह के फ़र्ज़न्द को जलाल मिले।” 5 ईसा मर्था, मरियम और लाज़र से मुहब्बत रखता था। 6 तो भी वह लाज़र के बारे में इत्तिला मिलने के बाद दो दिन और वहीं ठहरा। 7 फिर उस ने अपने शागिर्दों से बात की, “आओ, हम दुबारा यहूदिया चले जाएँ।” 8 शागिर्दों ने एतिराज़ किया, “उस्ताद, अभी अभी वहाँ के यहूदी आप को संगसार करने की कोशिश कर रहे थे, फिर भी आप वापस जाना चाहते हैं?” 9 ईसा ने जवाब दिया, “क्या दिन में रौशनी के बारह घंटे नहीं होते? जो शख़्स दिन के वक़्त चलता फिरता है वह किसी भी चीज़ से नहीं टकराएगा, क्यूँकि वह इस दुनिया की रौशनी के ज़रीए देख सकता है। 10 लेकिन जो रात के वक़्त चलता है वह चीज़ों से टकरा जाता है, क्यूँकि उस के पास रौशनी नहीं है।” 11 फिर उस ने कहा, “हमारा दोस्त लाज़र सो गया है। लेकिन मैं जा कर उसे जगा दूँगा।” 12 शागिर्दों ने कहा, “ख़ुदावन्द, अगर वह सो रहा है तो वह बच जाएगा।” 13 उन का ख़याल था कि ईसा लाज़र की फ़ित्री नींद का ज़िक्र कर रहा है जबकि हक़ीक़त में वह उस की मौत की तरफ़ इशारा कर रहा था। 14 इस लिए उस ने उन्हें साफ़ बता दिया, “लाज़र वफ़ात पा गया है। 15 और तुम्हारी ख़ातिर मैं ख़ुश हूँ कि मैं उस के मरते वक़्त वहाँ नहीं था, क्यूँकि अब तुम ईमान लाओगे। आओ, हम उस के पास जाएँ।” 16 तोमा ने जिस का लक़ब जुड़वाँ था अपने साथी शागिर्दों से कहा, “चलो, हम भी वहाँ जा कर उस के साथ मर जाएँ।”

ईसा क़ियामत और ज़िन्दगी है

17 वहाँ पहुँच कर ईसा को मालूम हुआ कि लाज़र को क़ब्र में रखे चार दिन हो गए हैं। 18 बैत-अनियाह का यरूशलम से फ़ासिला तीन किलोमीटर से कम था, 19 और बहुत से यहूदी मर्था और मरियम को उन के भाई के बारे में तसल्ली देने के लिए आए हुए थे। 20 यह सुन कर कि ईसा आ रहा है मर्था उसे मिलने गई। लेकिन मरियम घर में बैठी रही। 21 मर्था ने कहा, “ख़ुदावन्द, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता। 22 लेकिन मैं जानती हूँ कि अब भी अल्लाह आप को जो भी माँगेंगे देगा।” 23 ईसा ने उसे बताया, “तेरा भाई जी उठेगा।” 24 मर्था ने जवाब दिया, “जी, मुझे मालूम है कि वह क़ियामत के दिन जी उठेगा, जब सब जी उठेंगे।” 25 ईसा ने उसे बताया, “क़ियामत और ज़िन्दगी तो मैं हूँ। जो मुझ पर ईमान रखे वह ज़िन्दा रहेगा, चाहे वह मर भी जाए। 26 और जो ज़िन्दा है और मुझ पर ईमान रखता है वह कभी नहीं मरेगा। मर्था, क्या तुझे इस बात का यक़ीन है?” 27 मर्था ने जवाब दिया, “जी ख़ुदावन्द, मैं ईमान रखती हूँ कि आप ख़ुदा के फ़र्ज़न्द मसीह हैं, जिसे दुनिया में आना था।”

ईसा रोता है

28 यह कह कर मर्था वापस चली गई और चुपके से मरियम को बुलाया, “उस्ताद आ गए हैं, वह तुझे बुला रहे हैं।” 29 यह सुनते ही मरियम उठ कर ईसा के पास गई। 30 वह अभी गाँव के बाहर उसी जगह ठहरा था जहाँ उस की मुलाक़ात मर्था से हुई थी। 31 जो यहूदी घर में मरियम के साथ बैठे उसे तसल्ली दे रहे थे, जब उन्हों ने देखा कि वह जल्दी से उठ कर निकल गई है तो वह उस के पीछे हो लिए। क्यूँकि वह समझ रहे थे कि वह मातम करने के लिए अपने भाई की क़ब्र पर जा रही है। 32 मरियम ईसा के पास पहुँच गई। उसे देखते ही वह उस के पाँओ में गिर गई और कहने लगी, “ख़ुदावन्द, अगर आप यहाँ होते तो मेरा भाई न मरता।” 33 जब ईसा ने मरियम और उस के साथियों को रोते देखा तो उसे बड़ी रंजिश हुई। मुज़्तरिब हालत में 34 उस ने पूछा, “तुम ने उसे कहाँ रखा है?” उन्हों ने जवाब दिया, “आएँ ख़ुदावन्द, और देख लें।” 35 ईसा रो पड़ा। 36 यहूदियों ने कहा, “देखो, वह उसे कितना अज़ीज़ था।” 37 लेकिन उन में से बाज़ ने कहा, “इस आदमी ने अंधे को शिफ़ा दी। क्या यह लाज़र को मरने से नहीं बचा सकता था?”

लाज़र को ज़िन्दा कर दिया जाता है

38 फिर ईसा दुबारा निहायत रंजीदा हो कर क़ब्र पर आया। क़ब्र एक ग़ार थी जिस के मुँह पर पत्थर रखा गया था। 39 ईसा ने कहा, “पत्थर को हटा दो।” लेकिन मरहूम की बहन मर्था ने एतिराज़ किया, “ख़ुदावन्द, बदबू आएगी, क्यूँकि उसे यहाँ पड़े चार दिन हो गए हैं।” 40 ईसा ने उस से कहा, “क्या मैं ने तुझे नहीं बताया कि अगर तू ईमान रखे तो अल्लाह का जलाल देखेगी?” 41 चुनाँचे उन्हों ने पत्थर को हटा दिया। फिर ईसा ने अपनी नज़र उठा कर कहा, “ऐ बाप, मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि तू ने मेरी सुन ली है। 42 मैं तो जानता हूँ कि तू हमेशा मेरी सुनता है। लेकिन मैं ने यह बात पास खड़े लोगों की ख़ातिर की, ताकि वह ईमान लाएँ कि तू ने मुझे भेजा है।” 43 फिर ईसा ज़ोर से पुकार उठा, “लाज़र, निकल आ!” 44 और मुर्दा निकल आया। अभी तक उस के हाथ और पाँओ पट्टियों से बंधे हुए थे जबकि उस का चेहरा कपड़े में लिपटा हुआ था। ईसा ने उन से कहा, “इस के कफ़न को खोल कर इसे जाने दो।”

ईसा के ख़िलाफ़ मन्सूबाबन्दी

45 उन यहूदियों में से जो मरियम के पास आए थे बहुत से ईसा पर ईमान लाए जब उन्हों ने वह देखा जो उस ने किया। 46 लेकिन बाज़ फ़रीसियों के पास गए और उन्हें बताया कि ईसा ने क्या किया है। 47 तब राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदी अदालत-ए-आलिया का इज्लास मुनअक़िद किया। उन्हों ने एक दूसरे से पूछा, “हम क्या कर रहे हैं? यह आदमी बहुत से इलाही निशान दिखा रहा है। 48 अगर हम उसे खुला छोड़ें तो आख़िरकार सब उस पर ईमान ले आएँगे। फिर रोमी आ कर हमारे बैत-उल-मुक़द्दस और हमारे मुल्क को तबाह कर देंगे।” 49 उन में से एक काइफ़ा था जो उस साल इमाम-ए-आज़म था। उस ने कहा, “आप कुछ नहीं समझते 50 और इस का ख़याल भी नहीं करते कि इस से पहले कि पूरी क़ौम हलाक हो जाए बेहतर यह है कि एक आदमी उम्मत के लिए मर जाए।” 51 उस ने यह बात अपनी तरफ़ से नहीं की थी। उस साल के इमाम-ए-आज़म की हैसियत से ही उस ने यह पेशगोई की कि ईसा यहूदी क़ौम के लिए मरेगा। 52 और न सिर्फ़ इस के लिए बल्कि अल्लाह के बिखरे हुए फ़र्ज़न्दों को जमा करके एक करने के लिए भी। 53 उस दिन से उन्हों ने ईसा को क़त्ल करने का इरादा कर लिया। 54 इस लिए उस ने अब से अलानिया यहूदियों के दरमियान वक़्त न गुज़ारा, बल्कि उस जगह को छोड़ कर रेगिस्तान के क़रीब एक इलाक़े में गया। वहाँ वह अपने शागिर्दों समेत एक गाँव बनाम इफ़्राईम में रहने लगा। 55 फिर यहूदियों की ईद-ए-फ़सह क़रीब आ गई। दीहात से बहुत से लोग अपने आप को पाक करवाने के लिए ईद से पहले पहले यरूशलम पहुँचे। 56 वहाँ वह ईसा का पता करते और बैत-उल-मुक़द्दस में खड़े आपस में बात करते रहे, “क्या ख़याल है? क्या वह तहवार पर नहीं आएगा?” 57 लेकिन राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने हुक्म दिया था, “अगर किसी को मालूम हो जाए कि ईसा कहाँ है तो वह इत्तिला दे ताकि हम उसे गिरिफ़्तार कर लें।”

John 12

ईसा को बैत-अनियाह में मसह किया जाता है

1 फ़सह की ईद में अभी छः दिन बाक़ी थे कि ईसा बैत-अनियाह पहुँचा। यह वह जगह थी जहाँ उस लाज़र का घर था जिसे ईसा ने मुर्दों में से ज़िन्दा किया था। 2 वहाँ उस के लिए एक ख़ास खाना बनाया गया। मर्था खाने वालों की ख़िदमत कर रही थी जबकि लाज़र ईसा और बाक़ी मेहमानों के साथ खाने में शरीक था। 3 फिर मरियम ने आधा लिटर ख़ालिस जटामासी का निहायत क़ीमती इत्र ले कर ईसा के पाँओ पर उंडेल दिया और उन्हें अपने बालों से पोंछ कर ख़ुश्क किया। ख़ुश्बू पूरे घर में फैल गई। 4 लेकिन ईसा के शागिर्द यहूदाह इस्करियोती ने एतिराज़ किया (बाद में उसी ने ईसा को दुश्मन के हवाले कर दिया)। उस ने कहा, 5 “इस इत्र की क़ीमत चाँदी के 300 सिक्के थी। इसे क्यूँ नहीं बेचा गया ताकि इस के पैसे ग़रीबों को दिए जाते?” 6 उस ने यह बात इस लिए नहीं की कि उसे ग़रीबों की फ़िक्र थी। असल में वह चोर था। वह शागिर्दों का ख़ज़ान्ची था और जमाशुदा पैसों में से बददियानती करता रहता था। 7 लेकिन ईसा ने कहा, “उसे छोड़ दे! उस ने मेरी तद्फ़ीन की तय्यारी के लिए यह किया है। 8 ग़रीब तो हमेशा तुम्हारे पास रहेंगे, लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे पास नहीं रहूँगा।”

लाज़र के ख़िलाफ़ मन्सूबाबन्दी

9 इतने में यहूदियों की बड़ी तादाद को मालूम हुआ कि ईसा वहाँ है। वह न सिर्फ़ ईसा से मिलने के लिए आए बल्कि लाज़र से भी जिसे उस ने मुर्दों में से ज़िन्दा किया था। 10 इस लिए राहनुमा इमामों ने लाज़र को भी क़त्ल करने का मन्सूबा बनाया। 11 क्यूँकि उस की वजह से बहुत से यहूदी उन में से चले गए और ईसा पर ईमान ले आए थे।

यरूशलम में ईसा का पुरजोश इस्तिक़्बाल

12 अगले दिन ईद के लिए आए हुए लोगों को पता चला कि ईसा यरूशलम आ रहा है। एक बड़ा हुजूम 13 खजूर की डालियाँ पकड़े शहर से निकल कर उस से मिलने आया। चलते चलते वह चिल्ला कर नारे लगा रहे थे, “होशाना! मुबारक है वह जो रब के नाम से आता है! इस्राईल का बादशाह मुबारक है!” 14 ईसा को कहीं से एक जवान गधा मिल गया और वह उस पर बैठ गया, जिस तरह कलाम-ए-मुक़द्दस में लिखा है, 15 “ऐ सिय्यून बेटी, मत डर! देख, तेरा बादशाह गधे के बच्चे पर सवार आ रहा है।” 16 उस वक़्त उस के शागिर्दों को इस बात की समझ न आई। लेकिन बाद में जब ईसा अपने जलाल को पहुँचा तो उन्हें याद आया कि लोगों ने उस के साथ यह कुछ किया था और वह समझ गए कि कलाम-ए-मुक़द्दस में इस का ज़िक्र भी है। 17 जो हुजूम उस वक़्त ईसा के साथ था जब उस ने लाज़र को मुर्दों में से ज़िन्दा किया था, वह दूसरों को इस के बारे में बताता रहा था। 18 इसी वजह से इतने लोग ईसा से मिलने के लिए आए थे, उन्हों ने उस के इस इलाही निशान के बारे में सुना था। 19 यह देख कर फ़रीसी आपस में कहने लगे, “आप देख रहे हैं कि बात नहीं बन रही। देखो, तमाम दुनिया उस के पीछे हो ली है।”

कुछ यूनानी ईसा को तलाश करते हैं

20 कुछ यूनानी भी उन में थे जो फ़सह की ईद के मौक़े पर परस्तिश करने के लिए आए हुए थे। 21 अब वह फ़िलिप्पुस से मिलने आए जो गलील के बैत-सैदा से था। उन्हों ने कहा, “जनाब, हम ईसा से मिलना चाहते हैं।” 22 फ़िलिप्पुस ने अन्द्रियास को यह बात बताई और फिर वह मिल कर ईसा के पास गए और उसे यह ख़बर पहुँचाई। 23 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “अब वक़्त आ गया है कि इब्न-ए-आदम को जलाल मिले। 24 मैं तुम को सच बताता हूँ कि जब तक गन्दुम का दाना ज़मीन में गिर कर मर न जाए वह अकेला ही रहता है। लेकिन जब वह मर जाता है तो बहुत सा फल लाता है। 25 जो अपनी जान को प्यार करता है वह उसे खो देगा, और जो इस दुनिया में अपनी जान से दुश्मनी रखता है वह उसे अबद तक मह्फ़ूज़ रखेगा। 26 अगर कोई मेरी ख़िदमत करना चाहे तो वह मेरे पीछे हो ले, क्यूँकि जहाँ मैं हूँ वहाँ मेरा ख़ादिम भी होगा। और जो मेरी ख़िदमत करे मेरा बाप उस की इज़्ज़त करेगा।

ईसा अपनी मौत का ज़िक्र करता है

27 अब मेरा दिल मुज़्तरिब है। मैं क्या कहूँ? क्या मैं कहूँ, ‘ऐ बाप, मुझे इस वक़्त से बचाए रख’? नहीं, मैं तो इसी लिए आया हूँ। 28 ऐ बाप, अपने नाम को जलाल दे।” तब आसमान से एक आवाज़ सुनाई दी, “मैं उसे जलाल दे चुका हूँ और दुबारा भी जलाल दूँगा।” 29 हुजूम के जो लोग वहाँ खड़े थे उन्हों ने यह सुन कर कहा, “बादल गरज रहे हैं।” औरों ने ख़याल पेश किया, “कोई फ़रिश्ता उस से हमकलाम हुआ है।” 30 ईसा ने उन्हें बताया, “यह आवाज़ मेरे वास्ते नहीं बल्कि तुम्हारे वास्ते थी। 31 अब दुनिया की अदालत करने का वक़्त आ गया है, अब दुनिया के हुक्मरान को निकाल दिया जाएगा। 32 और मैं ख़ुद ज़मीन से ऊँचे पर चढ़ाए जाने के बाद सब को अपने पास खैंच लूँगा।” 33 इन अल्फ़ाज़ से उस ने इस तरफ़ इशारा किया कि वह किस तरह की मौत मरेगा। 34 हुजूम बोल उठा, “कलाम-ए-मुक़द्दस से हम ने सुना है कि मसीह अबद तक क़ाइम रहेगा। तो फिर आप की यह कैसी बात है कि इब्न-ए-आदम को ऊँचे पर चढ़ाया जाना है? आख़िर इब्न-ए-आदम है कौन?” 35 ईसा ने जवाब दिया, “नूर थोड़ी देर और तुम्हारे पास रहेगा। जितनी देर वह मौजूद है इस नूर में चलते रहो ताकि तारीकी तुम पर छा न जाए। जो अंधेरे में चलता है उसे नहीं मालूम कि वह कहाँ जा रहा है। 36 नूर के तुम्हारे पास से चले जाने से पहले पहले उस पर ईमान लाओ ताकि तुम नूर के फ़र्ज़न्द बन जाओ।”

लोग ईमान नहीं रखते

यह कहने के बाद ईसा चला गया और ग़ाइब हो गया। 37 अगरचे ईसा ने यह तमाम इलाही निशान उन के सामने ही दिखाए तो भी वह उस पर ईमान न लाए। 38 यूँ यसायाह नबी की पेशगोई पूरी हुई, “ऐ रब, कौन हमारे पैग़ाम पर ईमान लाया? और रब की क़ुदरत किस पर ज़ाहिर हुई?” 39 चुनाँचे वह ईमान न ला सके, जिस तरह यसायाह नबी ने कहीं और फ़रमाया है, 40 “अल्लाह ने उन की आँखों को अंधा और उन के दिल को बेहिस्स कर दिया है, ऐसा न हो कि वह अपनी आँखों से देखें, अपने दिल से समझें, मेरी तरफ़ रुजू करें और मैं उन्हें शिफ़ा दूँ।” 410 यसायाह ने यह इस लिए फ़रमाया क्यूँकि उस ने ईसा का जलाल देख कर उस के बारे में बात की। 42 तो भी बहुत से लोग ईसा पर ईमान रखते थे। उन में कुछ राहनुमा भी शामिल थे। लेकिन वह इस का अलानिया इक़्रार नहीं करते थे, क्यूँकि वह डरते थे कि फ़रीसी हमें यहूदी जमाअत से ख़ारिज कर देंगे। 43 असल में वह अल्लाह की इज़्ज़त की निस्बत इन्सान की इज़्ज़त को ज़्यादा अज़ीज़ रखते थे। ईसा का कलाम लोगों की अदालत करेगा 44 फिर ईसा पुकार उठा, “जो मुझ पर ईमान रखता है वह न सिर्फ़ मुझ पर बल्कि उस पर ईमान रखता है जिस ने मुझे भेजा है। 45 और जो मुझे देखता है वह उसे देखता है जिस ने मुझे भेजा है। 46 मैं नूर की हैसियत से इस दुनिया में आया हूँ ताकि जो भी मुझ पर ईमान लाए वह तारीकी में न रहे। 47 जो मेरी बातें सुन कर उन पर अमल नहीं करता मैं उस की अदालत नहीं करूँगा, क्यूँकि मैं दुनिया की अदालत करने के लिए नहीं आया बल्कि उसे नजात देने के लिए। 48 तो भी एक है जो उस की अदालत करता है। जो मुझे रद्द करके मेरी बातें क़बूल नहीं करता मेरा पेश किया गया कलाम ही क़ियामत के दिन उस की अदालत करेगा। 49 क्यूँकि जो कुछ मैं ने बयान किया है वह मेरी तरफ़ से नहीं है। मेरे भेजने वाले बाप ही ने मुझे हुक्म दिया कि क्या कहना और क्या सुनाना है। 50 और मैं जानता हूँ कि उस का हुक्म अबदी ज़िन्दगी तक पहुँचाता है। चुनाँचे जो कुछ मैं सुनाता हूँ वही कुछ है जो बाप ने मुझे बताया है।”

John 13

ईसा अपने शागिर्दों के पाँओ धोता है

1 फ़सह की ईद अब शुरू होने वाली थी। ईसा जानता था कि वह वक़्त आ गया है कि मुझे इस दुनिया को छोड़ कर बाप के पास जाना है। गो उस ने हमेशा दुनिया में अपने लोगों से मुहब्बत रखी थी, लेकिन अब उस ने आख़िरी हद तक उन पर अपनी मुहब्बत का इज़हार किया। 2 फिर शाम का खाना तय्यार हुआ। उस वक़्त इब्लीस शमाऊन इस्करियोती के बेटे यहूदाह के दिल में ईसा को दुश्मन के हवाले करने का इरादा डाल चुका था। 3 ईसा जानता था कि बाप ने सब कुछ मेरे सपुर्द कर दिया है और कि मैं अल्लाह में से निकल आया और अब उस के पास वापस जा रहा हूँ। 4 चुनाँचे उस ने दस्तरख़्वान से उठ कर अपना लिबास उतार दिया और कमर पर तौलिया बांध लिया। 5 फिर वह बासन में पानी डाल कर शागिर्दों के पाँओ धोने और बंधे हुए तौलिया से पोंछ कर ख़ुश्क करने लगा। 6 जब पतरस की बारी आई तो उस ने कहा, “ख़ुदावन्द, आप मेरे पाँओ धोना चाहते हैं?” 7 ईसा ने जवाब दिया, “इस वक़्त तू नहीं समझता कि मैं क्या कर रहा हूँ, लेकिन बाद में यह तेरी समझ में आ जाएगा।” 8 पतरस ने एतिराज़ किया, “मैं कभी भी आप को मेरे पाँओ धोने नहीं दूँगा!” ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं तुझे न धोऊँ तो मेरे साथ तेरा कोई हिस्सा नहीं होगा।” 9 यह सुन कर पतरस ने कहा, “तो फिर ख़ुदावन्द, न सिर्फ़ मेरे पाँओ बल्कि मेरे हाथों और सर को भी धोएँ!” 10 ईसा ने जवाब दिया, “जिस शख़्स ने नहा लिया है उसे सिर्फ़ अपने पाँओ को धोने की ज़रूरत होती है, क्यूँकि वह पूरे तौर पर पाक-साफ़ है। तुम पाक-साफ़ हो, लेकिन सब के सब नहीं।” 11 (ईसा को मालूम था कि कौन उसे दुश्मन के हवाले करेगा। इस लिए उस ने कहा कि सब के सब पाक-साफ़ नहीं हैं।) 12 उन सब के पाँओ धोने के बाद ईसा दुबारा अपना लिबास पहन कर बैठ गया। उस ने सवाल किया, “क्या तुम समझते हो कि मैं ने तुम्हारे लिए क्या किया है? 13 तुम मुझे ‘उस्ताद’ और ‘ख़ुदावन्द’ कह कर मुख़ातिब करते हो और यह सहीह है, क्यूँकि मैं यही कुछ हूँ। 14 मैं, तुम्हारे ख़ुदावन्द और उस्ताद ने तुम्हारे पाँओ धोए। इस लिए अब तुम्हारा फ़र्ज़ भी है कि एक दूसरे के पाँओ धोया करो। 15 मैं ने तुम को एक नमूना दिया है ताकि तुम भी वही करो जो मैं ने तुम्हारे साथ किया है। 16 मैं तुम को सच बताता हूँ कि ग़ुलाम अपने मालिक से बड़ा नहीं होता, न पैग़म्बर अपने भेजने वाले से। 17 अगर तुम यह जानते हो तो इस पर अमल भी करो, फिर ही तुम मुबारक होगे। 18 मैं तुम सब की बात नहीं कर रहा। जिन्हें मैं ने चुन लिया है उन्हें मैं जानता हूँ। लेकिन कलाम-ए-मुक़द्दस की उस बात का पूरा होना ज़रूर है, ‘जो मेरी रोटी खाता है उस ने मुझ पर लात उठाई है।’ 19 मैं तुम को इस से पहले कि वह पेश आए यह अभी बता रहा हूँ, ताकि जब वह पेश आए तो तुम ईमान लाओ कि मैं वही हूँ। 20 मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो शख़्स उसे क़बूल करता है जिसे मैं ने भेजा है वह मुझे क़बूल करता है। और जो मुझे क़बूल करता है वह उसे क़बूल करता है जिस ने मुझे भेजा है।”

ईसा को दुश्मन के हवाले किया जाता है

210 इन अल्फ़ाज़ के बाद ईसा निहायत मुज़्तरिब हुआ और कहा, “मैं तुम को सच बताता हूँ कि तुम में से एक मुझे दुश्मन के हवाले कर देगा।” 22 शागिर्द उलझन में एक दूसरे को देख कर सोचने लगे कि ईसा किस की बात कर रहा है। 23 एक शागिर्द जिसे ईसा प्यार करता था उस के क़रीबतरीन बैठा था। 24 पतरस ने उसे इशारा किया कि वह उस से दरयाफ़्त करे कि वह किस की बात कर रहा है। 25 उस शागिर्द ने ईसा की तरफ़ सर झुका कर पूछा, “ख़ुदावन्द, यह कौन है?” 26 ईसा ने जवाब दिया, “जिसे मैं रोटी का लुक़्मा शोर्ब में डुबो कर दूँ, वही है।” फिर लुक़्मे को डुबो कर उस ने शमाऊन इस्करियोती के बेटे यहूदाह को दे दिया। 27 जूँ ही यहूदाह ने यह लुक़्मा ले लिया इब्लीस उस में समा गया। ईसा ने उसे बताया, “जो कुछ करना है वह जल्दी से कर ले।” 28 लेकिन मेज़ पर बैठे लोगों में से किसी को मालूम न हुआ कि ईसा ने यह क्यूँ कहा। 29 बाज़ का ख़याल था कि चूँकि यहूदाह ख़ज़ान्ची था इस लिए वह उसे बता रहा है कि ईद के लिए दरकार चीज़ें ख़रीद ले या ग़रीबों में कुछ तक़्सीम कर दे। 30 चुनाँचे ईसा से यह लुक़्मा लेते ही यहूदाह बाहर निकल गया। रात का वक़्त था।

ईसा का नया हुक्म

310 यहूदाह के चले जाने के बाद ईसा ने कहा, “अब इब्न-ए-आदम ने जलाल पाया और अल्लाह ने उस में जलाल पाया है। 32 हाँ, चूँकि अल्लाह को उस में जलाल मिल गया है इस लिए अल्लाह अपने में फ़र्ज़न्द को जलाल देगा। और वह यह जलाल फ़ौरन देगा। 33 मेरे बच्चो, मैं थोड़ी देर और तुम्हारे पास ठहरूँगा। तुम मुझे तलाश करोगे, और जो कुछ मैं यहूदियों को बता चुका हूँ वह अब तुम को भी बताता हूँ, जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते। 34 मैं तुम को एक नया हुक्म देता हूँ, यह कि एक दूसरे से मुहब्बत रखो। जिस तरह मैं ने तुम से मुहब्बत रखी उसी तरह तुम भी एक दूसरे से मुहब्बत करो। 35 अगर तुम एक दूसरे से मुहब्बत रखोगे तो सब जान लेंगे कि तुम मेरे शागिर्द हो।”

पतरस के इन्कार की पेशगोई

36 पतरस ने पूछा, “ख़ुदावन्द, आप कहाँ जा रहे हैं?” ईसा ने जवाब दिया, “जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ तू मेरे पीछे नहीं आ सकता। लेकिन बाद में तू मेरे पीछे आ जाएगा।” 37 पतरस ने सवाल किया, “ख़ुदावन्द, मैं आप के पीछे अभी क्यूँ नहीं जा सकता? मैं आप के लिए अपनी जान तक देने को तय्यार हूँ।” 38 लेकिन ईसा ने जवाब दिया, “तू मेरे लिए अपनी जान देना चाहता है? मैं तुझे सच बताता हूँ कि मुर्ग़ के बाँग देने से पहले पहले तू तीन मर्तबा मुझे जानने से इन्कार कर चुका होगा।

John 14

ईसा बाप के पास जाने की राह है

1 तुम्हारा दिल न घबराए। तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो, मुझ पर भी ईमान रखो। 2 मेरे बाप के घर में बेशुमार मकान हैं। अगर ऐसा न होता तो क्या मैं तुम को बताता कि मैं तुम्हारे लिए जगह तय्यार करने के लिए वहाँ जा रहा हूँ? 3 और अगर मैं जा कर तुम्हारे लिए जगह तय्यार करूँ तो वापस आ कर तुम को अपने साथ ले जाऊँगा ताकि जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम भी हो। 4 और जहाँ मैं जा रहा हूँ उस की राह तुम जानते हो।” 5 तोमा बोल उठा, “ख़ुदावन्द, हमें मालूम नहीं कि आप कहाँ जा रहे हैं। तो फिर हम उस की राह किस तरह जानें?” 6 ईसा ने जवाब दिया, “राह और हक़ और ज़िन्दगी मैं हूँ। कोई मेरे वसीले के बग़ैर बाप के पास नहीं आ सकता। 7 अगर तुम ने मुझे जान लिया है तो इस का मतलब है कि तुम मेरे बाप को भी जान लोगे। और अब से ऐसा है भी। तुम उसे जानते हो और तुम ने उस को देख लिया है।” 8 फ़िलिप्पुस ने कहा, “ऐ ख़ुदावन्द, बाप को हमें दिखाएँ। बस यही हमारे लिए काफ़ी है।” 9 ईसा ने जवाब दिया, “फ़िलिप्पुस, मैं इतनी देर से तुम्हारे साथ हूँ, क्या इस के बावुजूद तू मुझे नहीं जानता? जिस ने मुझे देखा उस ने बाप को देखा है। तो फिर तू क्यूँकर कहता है, ‘बाप को हमें दिखाएँ’? 10 क्या तू ईमान नहीं रखता कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझ में है? जो बातें में तुम को बताता हूँ वह मेरी नहीं बल्कि मुझ में रहने वाले बाप की तरफ़ से हैं। वही अपना काम कर रहा है। 11 मेरी बात का यक़ीन करो कि मैं बाप में हूँ और बाप मुझ में है। या कम अज़ कम उन कामों की बिना पर यक़ीन करो जो मैं ने किए हैं। 12 मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो मुझ पर ईमान रखे वह वही कुछ करेगा जो मैं करता हूँ। न सिर्फ़ यह बल्कि वह इन से भी बड़े काम करेगा, क्यूँकि मैं बाप के पास जा रहा हूँ। 13 और जो कुछ तुम मेरे नाम में माँगो मैं दूँगा ताकि बाप को फ़र्ज़न्द में जलाल मिल जाए। 14 जो कुछ तुम मेरे नाम में मुझ से चाहो वह मैं करूँगा।

रूह-उल-क़ुद्स देने का वादा

15 अगर तुम मुझे प्यार करते हो तो मेरे अह्काम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारोगे। 16 और मैं बाप से गुज़ारिश करूँगा तो वह तुम को एक और मददगार देगा जो अबद तक तुम्हारे साथ रहेगा 17 यानी सच्चाई का रूह, जिसे दुनिया पा नहीं सकती, क्यूँकि वह न तो उसे देखती न जानती है। लेकिन तुम उसे जानते हो, क्यूँकि वह तुम्हारे साथ रहता है और आइन्दा तुम्हारे अन्दर रहेगा। 18 मैं तुम को यतीम छोड़ कर नहीं जाऊँगा बल्कि तुम्हारे पास वापस आऊँगा। 19 थोड़ी देर के बाद दुनिया मुझे नहीं देखेगी, लेकिन तुम मुझे देखते रहोगे। चूँकि मैं ज़िन्दा हूँ इस लिए तुम भी ज़िन्दा रहोगे। 20 जब वह दिन आएगा तो तुम जान लोगे कि मैं अपने बाप में हूँ, तुम मुझ में हो और मैं तुम में। 210 जिस के पास मेरे अह्काम हैं और जो उन के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारता है, वही मुझे प्यार करता है। और जो मुझे प्यार करता है उसे मेरा बाप प्यार करेगा। मैं भी उसे प्यार करूँगा और अपने आप को उस पर ज़ाहिर करूँगा।” 22 यहूदाह (यहूदाह इस्करियोती नहीं) ने पूछा, “ख़ुदावन्द, क्या वजह है कि आप अपने आप को सिर्फ़ हम पर ज़ाहिर करेंगे और दुनिया पर नहीं?” 23 ईसा ने जवाब दिया, “अगर कोई मुझे प्यार करे तो वह मेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारेगा। मेरा बाप ऐसे शख़्स को प्यार करेगा और हम उस के पास आ कर उस के साथ सुकूनत करेंगे। 24 जो मुझ से मुहब्बत नहीं करता वह मेरी बातों के मुताबिक़ ज़िन्दगी नहीं गुज़ारता। और जो कलाम तुम मुझ से सुनते हो वह मेरा अपना कलाम नहीं है बल्कि बाप का है जिस ने मुझे भेजा है। 25 यह सब कुछ मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम को बताया है। 26 लेकिन बाद में रूह-उल-क़ुद्स, जिसे बाप मेरे नाम से भेजेगा तुम को सब कुछ सिखाएगा। यह मददगार तुम को हर बात की याद दिलाएगा जो मैं ने तुम को बताई है। 27 मैं तुम्हारे पास सलामती छोड़े जाता हूँ, अपनी ही सलामती तुम को दे देता हूँ। और मैं इसे यूँ नहीं देता जिस तरह दुनिया देती है। तुम्हारा दिल न घबराए और न डरे। 28 तुम ने मुझ से सुन लिया है कि ‘मैं जा रहा हूँ और तुम्हारे पास वापस आऊँगा।’ अगर तुम मुझ से मुहब्बत रखते तो तुम इस बात पर ख़ुश होते कि मैं बाप के पास जा रहा हूँ, क्यूँकि बाप मुझ से बड़ा है। 29 मैं ने तुम को पहले से बता दिया है, इस से पेशतर कि यह हो, ताकि जब पेश आए तो तुम ईमान लाओ। 30 अब से मैं तुम से ज़्यादा बातें नहीं करूँगा, क्यूँकि इस दुनिया का हुक्मरान आ रहा है। उसे मुझ पर कोई क़ाबू नहीं है, 31 लेकिन दुनिया यह जान ले कि मैं बाप को प्यार करता हूँ और वही कुछ करता हूँ जिस का हुक्म वह मुझे देता है। अब उठो, हम यहाँ से चलें।

John 15

ईसा अंगूर की हक़ीक़ी बेल है

1 मैं अंगूर की हक़ीक़ी बेल हूँ और मेरा बाप माली है। 2 वह मेरी हर शाख़ को जो फल नहीं लाती काट कर फैंक देता है। लेकिन जो शाख़ फल लाती है उस की वह काँट-छाँट करता है ताकि ज़्यादा फल लाए। 3 उस कलाम के ज़रीए जो मैं ने तुम को सुनाया है तुम तो पाक-साफ़ हो चुके हो। 4 मुझ में क़ाइम रहो तो मैं भी तुम में क़ाइम रहूँगा। जो शाख़ बेल से कट गई है वह फल नहीं ला सकती। बिलकुल इसी तरह तुम भी अगर तुम मुझ में क़ाइम नहीं रहते फल नहीं ला सकते। 5 मैं ही अंगूर की बेल हूँ, और तुम उस की शाख़ें हो। जो मुझ में क़ाइम रहता है और मैं उस में वह बहुत सा फल लाता है, क्यूँकि मुझ से अलग हो कर तुम कुछ नहीं कर सकते। 6 जो मुझ में क़ाइम नहीं रहता और न मैं उस में उसे बेफ़ाइदा शाख़ की तरह बाहर फैंक दिया जाता है। ऐसी शाख़ें सूख जाती हैं और लोग उन का ढेर लगा कर उन्हें आग में झोंक देते हैं जहाँ वह जल जाती हैं। 7 अगर तुम मुझ में क़ाइम रहो और मैं तुम में तो जो जी चाहे माँगो, वह तुम को दिया जाएगा। 8 जब तुम बहुत सा फल लाते और यूँ मेरे शागिर्द साबित होते हो तो इस से मेरे बाप को जलाल मिलता है। 9 जिस तरह बाप ने मुझ से मुहब्बत रखी है उसी तरह मैं ने तुम से भी मुहब्बत रखी है। अब मेरी मुहब्बत में क़ाइम रहो। 10 जब तुम मेरे अह्काम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते हो तो तुम मुझ में क़ाइम रहते हो। मैं भी इसी तरह अपने बाप के अह्काम के मुताबिक़ चलता हूँ और यूँ उस की मुहब्बत में क़ाइम रहता हूँ। 110 मैं ने तुम को यह इस लिए बताया है ताकि मेरी ख़ुशी तुम में हो बल्कि तुम्हारा दिल ख़ुशी से भर कर छलक उठे। 12 मेरा हुक्म यह है कि एक दूसरे को वैसे प्यार करो जैसे मैं ने तुम को प्यार किया है। 13 इस से बड़ी मुहब्बत है नहीं कि कोई अपने दोस्तों के लिए अपनी जान दे दे। 14 तुम मेरे दोस्त हो अगर तुम वह कुछ करो जो मैं तुम को बताता हूँ। 15 अब से मैं नहीं कहता कि तुम ग़ुलाम हो, क्यूँकि ग़ुलाम नहीं जानता कि उस का मालिक क्या करता है। इस के बजाए मैं ने कहा है कि तुम दोस्त हो, क्यूँकि मैं ने तुम को सब कुछ बताया है जो मैं ने अपने बाप से सुना है। 16 तुम ने मुझे नहीं चुना बल्कि मैं ने तुम को चुन लिया है। मैं ने तुम को मुक़र्रर किया कि जा कर फल लाओ, ऐसा फल जो क़ाइम रहे। फिर बाप तुम को वह कुछ देगा जो तुम मेरे नाम में माँगोगे। 17 मेरा हुक्म यही है कि एक दूसरे से मुहब्बत रखो।

दुनिया की दुश्मनी

18 अगर दुनिया तुम से दुश्मनी रखे तो यह बात ज़हन में रखो कि उस ने तुम से पहले मुझ से दुश्मनी रखी है। 19 अगर तुम दुनिया के होते तो दुनिया तुम को अपना समझ कर प्यार करती। लेकिन तुम दुनिया के नहीं हो। मैं ने तुम को दुनिया से अलग करके चुन लिया है। इस लिए दुनिया तुम से दुश्मनी रखती है। 20 वह बात याद करो जो मैं ने तुम को बताई कि ग़ुलाम अपने मालिक से बड़ा नहीं होता। अगर उन्हों ने मुझे सताया है तो तुम्हें भी सताएँगे। और अगर उन्हों ने मेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारी तो वह तुम्हारी बातों पर भी अमल करेंगे। 21 लेकिन तुम्हारे साथ जो कुछ भी करेंगे, मेरे नाम की वजह से करेंगे, क्यूँकि वह उसे नहीं जानते जिस ने मुझे भेजा है। 22 अगर मैं आया न होता और उन से बात न की होती तो वह क़ुसूरवार न ठहरते। लेकिन अब उन के गुनाह का कोई भी उज़्र बाक़ी नहीं रहा। 23 जो मुझ से दुश्मनी रखता है वह मेरे बाप से भी दुश्मनी रखता है। 24 अगर मैं ने उन के दरमियान ऐसा काम न किया होता जो किसी और ने नहीं किया तो वह क़ुसूरवार न ठहरते। लेकिन अब उन्हों ने सब कुछ देखा है और फिर भी मुझ से और मेरे बाप से दुश्मनी रखी है। 25 और ऐसा होना भी था ताकि कलाम-ए-मुक़द्दस की यह पेशगोई पूरी हो जाए कि ‘उन्हों ने बिलावजह मुझ से कीना रखा है।’ 26 जब वह मददगार आएगा जिसे मैं बाप की तरफ़ से तुम्हारे पास भेजूँगा तो वह मेरे बारे में गवाही देगा। वह सच्चाई का रूह है जो बाप में से निकलता है। 27 तुम को भी मेरे बारे में गवाही देना है, क्यूँकि तुम इब्तिदा से मेरे साथ रहे हो।

John 16

1 मैं ने तुम को यह इस लिए बताया है ताकि तुम गुमराह न हो जाओ। 2 वह तुम को यहूदी जमाअतों से निकाल देंगे, बल्कि वह वक़्त भी आने वाला है कि जो भी तुम को मार डालेगा वह समझेगा, ‘मैं ने अल्लाह की ख़िदमत की है।’ 3 वह इस क़िस्म की हरकतें इस लिए करेंगे कि उन्हों ने न बाप को जाना है, न मुझे। 4 मैं ने तुम को यह बातें इस लिए बताई हैं कि जब उन का वक़्त आ जाए तो तुम को याद आए कि मैं ने तुम्हें आगाह कर दिया था।

रूह-उल-क़ुद्स की ख़िदमत

मैं ने अब तक तुम को यह नहीं बताया क्यूँकि मैं तुम्हारे साथ था। 5 लेकिन अब मैं उस के पास जा रहा हूँ जिस ने मुझे भेजा है। तो भी तुम में से कोई मुझ से नहीं पूछता, ‘आप कहाँ जा रहे हैं?’ 6 इस के बजाए तुम्हारे दिल ग़मज़दा हैं कि मैं ने तुम को ऐसी बातें बताई हैं। 7 लेकिन मैं तुम को सच बताता हूँ कि तुम्हारे लिए फ़ाइदामन्द है कि मैं जा रहा हूँ। अगर मैं न जाऊँ तो मददगार तुम्हारे पास नहीं आएगा। लेकिन अगर मैं जाऊँ तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूँगा। 8 और जब वह आएगा तो गुनाह, रास्तबाज़ी और अदालत के बारे में दुनिया की ग़लती को बेनिक़ाब करके यह ज़ाहिर करेगा : 9 गुनाह के बारे में यह कि लोग मुझ पर ईमान नहीं रखते, 10 रास्तबाज़ी के बारे में यह कि मैं बाप के पास जा रहा हूँ और तुम मुझे अब से नहीं देखोगे, 11 और अदालत के बारे में यह कि इस दुनिया के हुक्मरान की अदालत हो चुकी है। 12 मुझे तुम को मज़ीद बहुत कुछ बताना है, लेकिन इस वक़्त तुम उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। 13 जब सच्चाई का रूह आएगा तो वह पूरी सच्चाई की तरफ़ तुम्हारी राहनुमाई करेगा। वह अपनी मर्ज़ी से बात नहीं करेगा बल्कि सिर्फ़ वही कुछ कहेगा जो वह ख़ुद सुनेगा। वही तुम को मुस्तक़बिल के बारे में भी बताएगा। 14 और वह इस में मुझे जलाल देगा कि वह तुम को वही कुछ सुनाएगा जो उसे मुझ से मिला होगा। 15 जो कुछ भी बाप का है वह मेरा है। इस लिए मैं ने कहा, ‘रूह तुम को वही कुछ सुनाएगा जो उसे मुझ से मिला होगा।’

अब दुख फिर सुख

16 थोड़ी देर के बाद तुम मुझे नहीं देखोगे। फिर थोड़ी देर के बाद तुम मुझे दुबारा देख लोगे।” 17 उस के कुछ शागिर्द आपस में बात करने लगे, “ईसा के यह कहने से क्या मुराद है कि ‘थोड़ी देर के बाद तुम मुझे नहीं देखोगे, फिर थोड़ी देर के बाद मुझे दुबारा देख लोगे’? और इस का क्या मतलब है, ‘मैं बाप के पास जा रहा हूँ’?” 18 और वह सोचते रहे, “यह किस क़िस्म की ‘थोड़ी देर’ है जिस का ज़िक्र वह कर रहे हैं? हम उन की बात नहीं समझते।” 19 ईसा ने जान लिया कि वह मुझ से इस के बारे में सवाल करना चाहते हैं। इस लिए उस ने कहा, “क्या तुम एक दूसरे से पूछ रहे हो कि मेरी इस बात का क्या मतलब है कि ‘थोड़ी देर के बाद तुम मुझे नहीं देखोगे, फिर थोड़ी देर के बाद मुझे दुबारा देख लोगे’? 20 मैं तुम को सच बताता हूँ कि तुम रो रो कर मातम करोगे जबकि दुनिया ख़ुश होगी। तुम ग़म करोगे, लेकिन तुम्हारा ग़म ख़ुशी में बदल जाएगा। 21 जब किसी औरत के बच्चा पैदा होने वाला होता है तो उसे ग़म और तक्लीफ़ होती है क्यूँकि उस का वक़्त आ गया है। लेकिन जूँ ही बच्चा पैदा हो जाता है तो माँ ख़ुशी के मारे कि एक इन्सान दुनिया में आ गया है अपनी तमाम मुसीबत भूल जाती है। 22 यही तुम्हारी हालत है। क्यूँकि अब तुम ग़मज़दा हो, लेकिन मैं तुम से दुबारा मिलूँगा। उस वक़्त तुम को ख़ुशी होगी, ऐसी ख़ुशी जो तुम से कोई छीन न लेगा। 23 उस दिन तुम मुझ से कुछ नहीं पूछोगे। मैं तुम को सच बताता हूँ कि जो कुछ तुम मेरे नाम में बाप से माँगोगे वह तुम को देगा। 24 अब तक तुम ने मेरे नाम में कुछ नहीं माँगा। माँगो तो तुम को मिलेगा। फिर तुम्हारी ख़ुशी पूरी हो जाएगी।

दुनिया पर फ़त्ह

25 मैं ने तुम को यह तम्सीलों में बताया है। लेकिन एक दिन आएगा जब मैं ऐसा नहीं करूँगा। उस वक़्त मैं तम्सीलों में बात नहीं करूँगा बल्कि तुम को बाप के बारे में साफ़ साफ़ बता दूँगा। 26 उस दिन तुम मेरा नाम ले कर माँगोगे। मेरे कहने का मतलब यह नहीं कि मैं ही तुम्हारी ख़ातिर बाप से दरख़्वास्त करूँगा। 27 क्यूँकि बाप ख़ुद तुम को प्यार करता है, इस लिए कि तुम ने मुझे प्यार किया है और ईमान लाए हो कि मैं अल्लाह में से निकल आया हूँ। 28 मैं बाप में से निकल कर दुनिया में आया हूँ। और अब मैं दुनिया को छोड़ कर बाप के पास वापस जाता हूँ।” 29 इस पर उस के शागिर्दों ने कहा, “अब आप तम्सीलों में नहीं बल्कि साफ़ साफ़ बात कर रहे हैं। 30 अब हमें समझ आई है कि आप सब कुछ जानते हैं और कि इस की ज़रूरत नहीं कि कोई आप की पूछ-गछ करे। इस लिए हम ईमान रखते हैं कि आप अल्लाह में से निकल कर आए हैं।” 310 ईसा ने जवाब दिया, “अब तुम ईमान रखते हो? 32 देखो, वह वक़्त आ रहा है बल्कि आ चुका है जब तुम तित्तर-बित्तर हो जाओगे। मुझे अकेला छोड़ कर हर एक अपने घर चला जाएगा। तो भी मैं अकेला नहीं हूँगा क्यूँकि बाप मेरे साथ है। 33 मैं ने तुम को इस लिए यह बात बताई ताकि तुम मुझ में सलामती पाओ। दुनिया में तुम मुसीबत में फंसे रहते हो। लेकिन हौसला रखो, मैं दुनिया पर ग़ालिब आया हूँ।”

John 17

ईसा अपने शागिर्दों के लिए दुआ करता है

1 यह कह कर ईसा ने अपनी नज़र आसमान की तरफ़ उठाई और दुआ की, “ऐ बाप, वक़्त आ गया है। अपने फ़र्ज़न्द को जलाल दे ताकि फ़र्ज़न्द तुझे जलाल दे। 2 क्यूँकि तू ने उसे तमाम इन्सानों पर इख़तियार दिया है ताकि वह उन सब को अबदी ज़िन्दगी दे जो तू ने उसे दिए हैं। 3 और अबदी ज़िन्दगी यह है कि वह तुझे जान लें जो वाहिद और सच्चा ख़ुदा है और ईसा मसीह को भी जान लें जिसे तू ने भेजा है। 4 मैं ने तुझे ज़मीन पर जलाल दिया और उस काम की तक्मील की जिस की ज़िम्मादारी तू ने मुझे दी थी। 5 और अब मुझे अपने हुज़ूर जलाल दे, ऐ बाप, वही जलाल जो मैं दुनिया की तख़्लीक़ से पेशतर तेरे हुज़ूर रखता था। 6 मैं ने तेरा नाम उन लोगों पर ज़ाहिर किया जिन्हें तू ने दुनिया से अलग करके मुझे दिया है। वह तेरे ही थे। तू ने उन्हें मुझे दिया और उन्हों ने तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारी है। 7 अब उन्हों ने जान लिया है कि जो कुछ भी तू ने मुझे दिया है वह तेरी तरफ़ से है। 8 क्यूँकि जो बातें तू ने मुझे दीं मैं ने उन्हें दी हैं। नतीजे में उन्हों ने यह बातें क़बूल करके हक़ीक़ी तौर पर जान लिया कि मैं तुझ में से निकल कर आया हूँ। साथ साथ वह ईमान भी लाए कि तू ने मुझे भेजा है। 9 मैं उन के लिए दुआ करता हूँ, दुनिया के लिए नहीं बल्कि उन के लिए जिन्हें तू ने मुझे दिया है, क्यूँकि वह तेरे ही हैं। 10 जो भी मेरा है वह तेरा है और जो तेरा है वह मेरा है। चुनाँचे मुझे उन में जलाल मिला है। 11 अब से मैं दुनिया में नहीं हूँगा। लेकिन यह दुनिया में रह गए हैं जबकि मैं तेरे पास आ रहा हूँ। क़ुद्दूस बाप, अपने नाम में उन्हें मह्फ़ूज़ रख, उस नाम में जो तू ने मुझे दिया है, ताकि वह एक हों जैसे हम एक हैं। 12 जितनी देर मैं उन के साथ रहा मैं ने उन्हें तेरे नाम में मह्फ़ूज़ रखा, उसी नाम में जो तू ने मुझे दिया था। मैं ने यूँ उन की निगहबानी की कि उन में से एक भी हलाक नहीं हुआ सिवाए हलाकत के फ़र्ज़न्द के। यूँ कलाम की पेशगोई पूरी हुई। 13 अब तो मैं तेरे पास आ रहा हूँ। लेकिन मैं दुनिया में होते हुए यह बयान कर रहा हूँ ताकि उन के दिल मेरी ख़ुशी से भर कर छलक उठें। 14 मैं ने उन्हें तेरा कलाम दिया है और दुनिया ने उन से दुश्मनी रखी, क्यूँकि यह दुनिया के नहीं हैं, जिस तरह मैं भी दुनिया का नहीं हूँ। 15 मेरी दुआ यह नहीं है कि तू उन्हें दुनिया से उठा ले बल्कि यह कि उन्हें इब्लीस से मह्फ़ूज़ रखे। 16 वह दुनिया के नहीं हैं जिस तरह मैं भी दुनिया का नहीं हूँ। 17 उन्हें सच्चाई के वसीले से मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस कर। तेरा कलाम ही सच्चाई है। 18 जिस तरह तू ने मुझे दुनिया में भेजा है उसी तरह मैं ने भी उन्हें दुनिया में भेजा है। 19 उन की ख़ातिर मैं अपने आप को मख़्सूस करता हूँ, ताकि उन्हें भी सच्चाई के वसीले से मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस किया जाए। 20 मेरी दुआ न सिर्फ़ इन ही के लिए है, बल्कि उन सब के लिए भी जो इन का पैग़ाम सुन कर मुझ पर ईमान लाएँगे 21 ताकि सब एक हों। जिस तरह तू ऐ बाप, मुझ में है और मैं तुझ में हूँ उसी तरह वह भी हम में हों ताकि दुनिया यक़ीन करे कि तू ने मुझे भेजा है। 22 मैं ने उन्हें वह जलाल दिया है जो तू ने मुझे दिया है ताकि वह एक हों जिस तरह हम एक हैं, 23 मैं उन में और तू मुझ में। वह कामिल तौर पर एक हों ताकि दुनिया जान ले कि तू ने मुझे भेजा और कि तू ने उन से मुहब्बत रखी है जिस तरह मुझ से रखी है। 24 ऐ बाप, मैं चाहता हूँ कि जो तू ने मुझे दिए हैं वह भी मेरे साथ हों, वहाँ जहाँ मैं हूँ, कि वह मेरे जलाल को देखें, वह जलाल जो तू ने इस लिए मुझे दिया है कि तू ने मुझे दुनिया की तख़्लीक़ से पेशतर प्यार किया है। 25 ऐ रास्त बाप, दुनिया तुझे नहीं जानती, लेकिन मैं तुझे जानता हूँ। और यह शागिर्द जानते हैं कि तू ने मुझे भेजा है। 26 मैं ने तेरा नाम उन पर ज़ाहिर किया और इसे ज़ाहिर करता रहूँगा ताकि तेरी मुझ से मुहब्बत उन में हो और मैं उन में हूँ।”

John 18

ईसा की गिरिफ़्तारी

1 यह कह कर ईसा अपने शागिर्दों के साथ निकला और वादी-ए-क़िद्रोन को पार करके एक बाग़ में दाख़िल हुआ। 2 यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करने वाला था वह भी इस जगह से वाक़िफ़ था, क्यूँकि ईसा वहाँ अपने शागिर्दों के साथ जाया करता था। 3 राहनुमा इमामों और फ़रीसियों ने यहूदाह को रोमी फ़ौजियों का दस्ता और बैत-उल-मुक़द्दस के कुछ पहरेदार दिए थे। अब यह मशअलें, लालटैन और हथियार लिए बाग़ में पहुँचे। 4 ईसा को मालूम था कि उसे क्या पेश आएगा। चुनाँचे उस ने निकल कर उन से पूछा, “तुम किस को ढूँड रहे हो?” 5 उन्हों ने जवाब दिया, “ईसा नासरी को।” ईसा ने उन्हें बताया, “मैं ही हूँ।” यहूदाह जो उसे दुश्मन के हवाले करना चाहता था, वह भी उन के साथ खड़ा था। 6 जब ईसा ने एलान किया, “मैं ही हूँ,” तो सब पीछे हट कर ज़मीन पर गिर पड़े। 7 एक और बार ईसा ने उन से सवाल किया, “तुम किस को ढूँड रहे हो?” उन्हों ने जवाब दिया, “ईसा नासरी को।” 8 उस ने कहा, “मैं तुम को बता चुका हूँ कि मैं ही हूँ। अगर तुम मुझे ढूँड रहे हो तो इन को जाने दो।” 9 यूँ उस की यह बात पूरी हुई, “मैं ने उन में से जो तू ने मुझे दिए हैं एक को भी नहीं खोया।” 10 शमाऊन पतरस के पास तलवार थी। अब उस ने उसे मियान से निकाल कर इमाम-ए-आज़म के ग़ुलाम का दहना कान उड़ा दिया (ग़ुलाम का नाम मलख़ुस था)। 11 लेकिन ईसा ने पतरस से कहा, “तलवार को मियान में रख। क्या मैं वह प्याला न पियूँ जो बाप ने मुझे दिया है?”

ईसा हन्ना के सामने

12 फिर फ़ौजी दस्ते, उन के अफ़्सर और बैत-उल-मुक़द्दस के यहूदी पहरेदारों ने ईसा को गिरिफ़्तार करके बांध लिया। 13 पहले वह उसे हन्ना के पास ले गए। हन्ना उस साल के इमाम-ए-आज़म काइफ़ा का सुसर था। 14 काइफ़ा ही ने यहूदियों को यह मश्वरा दिया था कि बेहतर यह है कि एक ही आदमी उम्मत के लिए मर जाए।

पतरस ईसा को जानने से इन्कार करता है

15 शमाऊन पतरस किसी और शागिर्द के साथ ईसा के पीछे हो लिया था। यह दूसरा शागिर्द इमाम-ए-आज़म का जानने वाला था, इस लिए वह ईसा के साथ इमाम-ए-आज़म के सहन में दाख़िल हुआ। 16 पतरस बाहर दरवाज़े पर खड़ा रहा। फिर इमाम-ए-आज़म का जानने वाला शागिर्द दुबारा निकल आया। उस ने गेट की निगरानी करने वाली औरत से बात की तो उसे पतरस को अपने साथ अन्दर ले जाने की इजाज़त मिली। 17 उस औरत ने पतरस से पूछा, “तुम भी इस आदमी के शागिर्द हो कि नहीं?” उस ने जवाब दिया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।” 18 ठंड थी, इस लिए ग़ुलामों और पहरेदारों ने लकड़ी के कोएलों से आग जलाई। अब वह उस के पास खड़े ताप रहे थे। पतरस भी उन के साथ खड़ा ताप रहा था।

इमाम-ए-आज़म ईसा की पूछ-गछ करता है

19 इतने में इमाम-ए-आज़म ईसा की पूछ-गछ करके उस के शागिर्दों और तालीम के बारे में तफ़्तीश करने लगा। 20 ईसा ने जवाब में कहा, “मैं ने दुनिया में खुल कर बात की है। मैं हमेशा यहूदी इबादतख़ानों और बैत-उल-मुक़द्दस में तालीम देता रहा, वहाँ जहाँ तमाम यहूदी जमा हुआ करते हैं। पोशीदगी में तो मैं ने कुछ नहीं कहा। 21 आप मुझ से क्यूँ पूछ रहे हैं? उन से दरयाफ़्त करें जिन्हों ने मेरी बातें सुनी हैं। उन को मालूम है कि मैं ने क्या कुछ कहा है।” 22 इस पर साथ खड़े बैत-उल-मुक़द्दस के पहरेदारों में से एक ने ईसा के मुँह पर थप्पड़ मार कर कहा, “क्या यह इमाम-ए-आज़म से बात करने का तरीक़ा है जब वह तुम से कुछ पूछे?” 23 ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं ने बुरी बात की है तो साबित कर। लेकिन अगर सच कहा, तो तू ने मुझे क्यूँ मारा?” 24 फिर हन्ना ने ईसा को बंधी हुई हालत में इमाम-ए-आज़म काइफ़ा के पास भेज दिया।

पतरस दुबारा ईसा को जानने से इन्कार करता है

25 शमाऊन पतरस अब तक आग के पास खड़ा ताप रहा था। इतने में दूसरे उस से पूछने लगे, “तुम भी उस के शागिर्द हो कि नहीं?” लेकिन पतरस ने इन्कार किया, “नहीं, मैं नहीं हूँ।” 26 फिर इमाम-ए-आज़म का एक ग़ुलाम बोल उठा जो उस आदमी का रिश्तेदार था जिस का कान पतरस ने उड़ा दिया था, “क्या मैं ने तुम को बाग़ में उस के साथ नहीं देखा था?” 27 पतरस ने एक बार फिर इन्कार किया, और इन्कार करते ही मुर्ग़ की बाँग सुनाई दी।

ईसा को पीलातुस के सामने पेश किया जाता है

28 फिर यहूदी ईसा को काइफ़ा से ले कर रोमी गवर्नर के महल बनाम प्रैटोरियुम के पास पहुँच गए। अब सुब्ह हो चुकी थी और चूँकि यहूदी फ़सह की ईद के खाने में शरीक होना चाहते थे, इस लिए वह महल में दाख़िल न हुए, वर्ना वह नापाक हो जाते। 29 चुनाँचे पीलातुस निकल कर उन के पास आया और पूछा, “तुम इस आदमी पर क्या इल्ज़ाम लगा रहे हो?” 30 उन्हों ने जवाब दिया, “अगर यह मुजरिम न होता तो हम इसे आप के हवाले न करते।” 310 पीलातुस ने कहा, “फिर इसे ले जाओ और अपनी शरई अदालतों में पेश करो।” लेकिन यहूदियों ने एतिराज़ किया, “हमें किसी को सज़ा-ए-मौत देने की इजाज़त नहीं।” 32 ईसा ने इस तरफ़ इशारा किया था कि वह किस तरह मरेगा और अब उस की यह बात पूरी हुई। 33 तब पीलातुस फिर अपने महल में गया। वहाँ से उस ने ईसा को बुलाया और उस से पूछा, “क्या तुम यहूदियों के बादशाह हो?” 34 ईसा ने पूछा, “क्या आप अपनी तरफ़ से यह सवाल कर रहे हैं, या औरों ने आप को मेरे बारे में बताया है?” 35 पीलातुस ने जवाब दिया, “क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारी अपनी क़ौम और राहनुमा इमामों ही ने तुम्हें मेरे हवाले किया है। तुम से क्या कुछ सरज़द हुआ है?” 36 ईसा ने कहा, “मेरी बादशाही इस दुनिया की नहीं है। अगर वह इस दुनिया की होती तो मेरे ख़ादिम सख़्त जिद्द-ओ-जह्द करते ताकि मुझे यहूदियों के हवाले न किया जाता। लेकिन ऐसा नहीं है। अब मेरी बादशाही यहाँ की नहीं है।” 37 पीलातुस ने कहा, “तो फिर तुम वाक़ई बादशाह हो?” ईसा ने जवाब दिया, “आप सहीह कहते हैं, मैं बादशाह हूँ। मैं इसी मक़्सद के लिए पैदा हो कर दुनिया में आया कि सच्चाई की गवाही दूँ। जो भी सच्चाई की तरफ़ से है वह मेरी सुनता है।” 38 पीलातुस ने पूछा, “सच्चाई क्या है?”

ईसा को सज़ा-ए-मौत सुनाई जाती है

फिर वह दुबारा निकल कर यहूदियों के पास गया। उस ने एलान किया, “मुझे उसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली। 39 लेकिन तुम्हारी एक रस्म है जिस के मुताबिक़ मुझे ईद-ए-फ़सह के मौक़े पर तुम्हारे लिए एक क़ैदी को रिहा करना है। क्या तुम चाहते हो कि मैं ‘यहूदियों के बादशाह’ को रिहा कर दूँ?” 40 लेकिन जवाब में लोग चिल्लाने लगे, “नहीं, इस को नहीं बल्कि बर-अब्बा को।” (बर-अब्बा डाकू था।)

John 19

1 फिर पीलातुस ने ईसा को कोड़े लगवाए। 2 फ़ौजियों ने काँटेदार टहनियों का एक ताज बना कर उस के सर पर रख दिया। उन्हों ने उसे अर्ग़वानी रंग का लिबास भी पहनाया। 3 फिर उस के सामने आ कर वह कहते, “ऐ यहूदियों के बादशाह, आदाब!” और उसे थप्पड़ मारते थे। 4 एक बार फिर पीलातुस निकल आया और यहूदियों से बात करने लगा, “देखो, मैं इसे तुम्हारे पास बाहर ला रहा हूँ ताकि तुम जान लो कि मुझे इसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली।” 5 फिर ईसा काँटेदार ताज और अर्ग़वानी रंग का लिबास पहने बाहर आया। पीलातुस ने उन से कहा, “लो यह है वह आदमी।” 6 उसे देखते ही राहनुमा इमाम और उन के मुलाज़िम चीख़ने लगे, “इसे मस्लूब करें, इसे मस्लूब करें!” पीलातुस ने उन से कहा, “तुम ही इसे ले जा कर मस्लूब करो। क्यूँकि मुझे इसे मुजरिम ठहराने की कोई वजह नहीं मिली।” 7 यहूदियों ने इसरार किया, “हमारे पास शरीअत है और इस शरीअत के मुताबिक़ लाज़िम है कि वह मारा जाए। क्यूँकि इस ने अपने आप को अल्लाह का फ़र्ज़न्द क़रार दिया है।” 8 यह सुन कर पीलातुस मज़ीद डर गया। 9 दुबारा महल में जा कर ईसा से पूछा, “तुम कहाँ से आए हो?” लेकिन ईसा ख़ामोश रहा। 10 पीलातुस ने उस से कहा, “अच्छा, तुम मेरे साथ बात नहीं करते? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मुझे तुम्हें रिहा करने और मस्लूब करने का इख़तियार है?” 110 ईसा ने जवाब दिया, “आप को मुझ पर इख़तियार न होता अगर वह आप को ऊपर से न दिया गया होता। इस वजह से उस शख़्स से ज़्यादा संगीन गुनाह हुआ है जिस ने मुझे दुश्मन के हवाले कर दिया है।” 12 इस के बाद पीलातुस ने उसे आज़ाद करने की कोशिश की। लेकिन यहूदी चीख़ चीख़ कर कहने लगे, “अगर आप इसे रिहा करें तो आप रोमी शहन्शाह क़ैसर के दोस्त साबित नहीं होंगे। जो भी बादशाह होने का दावा करे वह शहन्शाह की मुख़ालफ़त करता है।” 13 इस तरह की बातें सुन कर पीलातुस ईसा को बाहर ले आया। फिर वह जज की कुर्सी पर बैठ गया। उस जगह का नाम “पच्चीकारी” था। (अरामी ज़बान में वह गब्बता कहलाती थी।) 14 अब दोपहर के तक़रीबन बारह बज गए थे। उस दिन ईद के लिए तय्यारियाँ की जाती थीं, क्यूँकि अगले दिन ईद का आग़ाज़ था। पीलातुस बोल उठा, “लो, तुम्हारा बादशाह!” 15 लेकिन वह चिल्लाते रहे, “ले जाएँ इसे, ले जाएँ! इसे मस्लूब करें!” पीलातुस ने सवाल किया, “क्या मैं तुम्हारे बादशाह को सलीब पर चढ़ाऊँ?” राहनुमा इमामों ने जवाब दिया, “सिवाए शहन्शाह के हमारा कोई बादशाह नहीं है।” 16 फिर पीलातुस ने ईसा को उन के हवाले कर दिया ताकि उसे मस्लूब किया जाए।

ईसा को मस्लूब किया जाता है

चुनाँचे वह ईसा को ले कर चले गए। 17 वह अपनी सलीब उठाए शहर से निकला और उस जगह पहुँचा जिस का नाम खोपड़ी (अरामी ज़बान में गुल्गुता) था। 18 वहाँ उन्हों ने उसे सलीब पर चढ़ा दिया। साथ साथ उन्हों ने उस के बाएँ और दाएँ हाथ दो और आदमियों को मस्लूब किया। 19 पीलातुस ने एक तख़्ती बनवा कर उसे ईसा की सलीब पर लगवा दिया। तख़्ती पर लिखा था, ‘ईसा नासरी, यहूदियों का बादशाह।’ 20 बहुत से यहूदियों ने यह पढ़ लिया, क्यूँकि मस्लूबियत का मक़ाम शहर के क़रीब था और यह जुमला अरामी, लातीनी और यूनानी ज़बानों में लिखा था। 21 यह देख कर यहूदियों के राहनुमा इमामों ने एतिराज़ किया, “‘यहूदियों का बादशाह’ न लिखें बल्कि यह कि ‘इस आदमी ने यहूदियों का बादशाह होने का दावा किया’।” 22 पीलातुस ने जवाब दिया, “जो कुछ मैं ने लिख दिया सो लिख दिया।” 23 ईसा को सलीब पर चढ़ाने के बाद फ़ौजियों ने उस के कपड़े ले कर चार हिस्सों में बाँट लिए, हर फ़ौजी के लिए एक हिस्सा। लेकिन चोग़ा बेजोड़ था। वह ऊपर से ले कर नीचे तक बुना हुआ एक ही टुकड़े का था। 24 इस लिए फ़ौजियों ने कहा, “आओ, इसे फाड़ कर तक़्सीम न करें बल्कि इस पर क़ुरआ डालें।” यूँ कलाम-ए-मुक़द्दस की यह पेशगोई पूरी हुई, “उन्हों ने आपस में मेरे कपड़े बाँट लिए और मेरे लिबास पर क़ुरआ डाला।” फ़ौजियों ने यही कुछ किया। 25 कुछ ख़वातीन भी ईसा की सलीब के क़रीब खड़ी थीं : उस की माँ, उस की ख़ाला, क्लोपास की बीवी मरियम और मरियम मग्दलीनी। 26 जब ईसा ने अपनी माँ को उस शागिर्द के साथ खड़े देखा जो उसे प्यारा था तो उस ने कहा, “ऐ ख़ातून, देखें आप का बेटा यह है।” 27 और उस शागिर्द से उस ने कहा, “देख, तेरी माँ यह है।” उस वक़्त से उस शागिर्द ने ईसा की माँ को अपने घर रखा।

ईसा की मौत

28 इस के बाद जब ईसा ने जान लिया कि मेरा मिशन तक्मील तक पहुँच चुका है तो उस ने कहा, “मुझे प्यास लगी है।” (इस से भी कलाम-ए-मुक़द्दस की एक पेशगोई पूरी हुई।) 29 क़रीब मै के सिरके से भरा बर्तन पड़ा था। उन्हों ने एक इस्पंज सिरके में डुबो कर उसे ज़ूफ़े की शाख़ पर लगा दिया और उठा कर ईसा के मुँह तक पहुँचाया। 30 यह सिरका पीने के बाद ईसा बोल उठा, “काम मुकम्मल हो गया है।” और सर झुका कर उस ने अपनी जान अल्लाह के सपुर्द कर दी।

ईसा का पहलू छेदा जाता है

310 फ़सह की तय्यारी का दिन था और अगले दिन ईद का आग़ाज़ और एक ख़ास सबत था। इस लिए यहूदी नहीं चाहते थे कि मस्लूब हुई लाशें अगले दिन तक सलीबों पर लटकी रहें। चुनाँचे उन्हों ने पीलातुस से गुज़ारिश की कि वह उन की टाँगें तुड़वा कर उन्हें सलीबों से उतारने दे। 32 तब फ़ौजियों ने आ कर ईसा के साथ मस्लूब किए जाने वाले आदमियों की टाँगें तोड़ दीं, पहले एक की फिर दूसरे की। 33 जब वह ईसा के पास आए तो उन्हों ने देखा कि वह फ़ौत हो चुका है, इस लिए उन्हों ने उस की टाँगें न तोड़ीं। 34 इस के बजाए एक ने नेज़े से ईसा का पहलू छेद दिया। ज़ख़्म से फ़ौरन ख़ून और पानी बह निकला। 35 (जिस ने यह देखा है उस ने गवाही दी है और उस की गवाही सच्ची है। वह जानता है कि वह हक़ीक़त बयान कर रहा है और उस की गवाही का मक़्सद यह है कि आप भी ईमान लाएँ।) 36 यह यूँ हुआ ताकि कलाम-ए-मुक़द्दस की यह पेशगोई पूरी हो जाए, “उस की एक हड्डी भी तोड़ी नहीं जाएगी।” 37 कलाम-ए-मुक़द्दस में यह भी लिखा है, “वह उस पर नज़र डालेंगे जिसे उन्हों ने छेदा है।”

ईसा को दफ़नाया जाता है

38 बाद में अरिमतियाह के रहने वाले यूसुफ़ ने पीलातुस से ईसा की लाश उतारने की इजाज़त माँगी। (यूसुफ़ ईसा का ख़ुफ़िया शागिर्द था, क्यूँकि वह यहूदियों से डरता था।) इस की इजाज़त मिलने पर वह आया और लाश को उतार लिया। 39 नीकुदेमुस भी साथ था, वह आदमी जो गुज़रे दिनों में रात के वक़्त ईसा से मिलने आया था। नीकुदेमुस अपने साथ मुर और ऊद की तक़रीबन 34 किलोग्राम ख़ुश्बू ले कर आया था। 40 यहूदी जनाज़े की रुसूमात के मुताबिक़ उन्हों ने लाश पर ख़ुश्बू लगा कर उसे पट्टियों से लपेट दिया। 41 सलीबों के क़रीब एक बाग़ था और बाग़ में एक नई क़ब्र थी जो अब तक इस्तेमाल नहीं की गई थी। 42 उस के क़रीब होने के सबब से उन्हों ने ईसा को उस में रख दिया, क्यूँकि फ़सह की तय्यारी का दिन था और अगले दिन ईद का आग़ाज़ था।

John 20

ख़ाली क़ब्र

1 हफ़्ते का दिन गुज़र गया तो इत्वार को मरियम मग्दलीनी सुब्ह-सवेरे क़ब्र के पास आई। अभी अंधेरा था। वहाँ पहुँच कर उस ने देखा कि क़ब्र के मुँह पर का पत्थर एक तरफ़ हटाया गया है। 2 मरियम दौड़ कर शमाऊन पतरस और ईसा को प्यारे शागिर्द के पास आई। उस ने इत्तिला दी, “वह ख़ुदावन्द को क़ब्र से ले गए हैं, और हमें मालूम नहीं कि उन्हों ने उसे कहाँ रख दिया है।” 3 तब पतरस दूसरे शागिर्द समेत क़ब्र की तरफ़ चल पड़ा। 4 दोनों दौड़ रहे थे, लेकिन दूसरा शागिर्द ज़्यादा तेज़रफ़्तार था। वह पहले क़ब्र पर पहुँच गया। 5 उस ने झुक कर अन्दर झाँका तो कफ़न की पट्टियाँ वहाँ पड़ी नज़र आईं। लेकिन वह अन्दर न गया। 6 फिर शमाऊन पतरस उस के पीछे पहुँच कर क़ब्र में दाख़िल हुआ। उस ने भी देखा कि कफ़न की पट्टियाँ वहाँ पड़ी हैं 7 और साथ वह कपड़ा भी जिस में ईसा का सर लिपटा हुआ था। यह कपड़ा तह किया गया था और पट्टियों से अलग पड़ा था। 8 फिर दूसरा शागिर्द जो पहले पहुँच गया था, वह भी दाख़िल हुआ। जब उस ने यह देखा तो वह ईमान लाया। 9 (लेकिन अब भी वह कलाम-ए-मुक़द्दस की यह पेशगोई नहीं समझते थे कि उसे मुर्दों में से जी उठना है।) 10 फिर दोनों शागिर्द घर वापस चले गए।

ईसा मरियम मग्दलीनी पर ज़ाहिर होता है

110 लेकिन मरियम रो रो कर क़ब्र के सामने खड़ी रही। और रोते हुए उस ने झुक कर क़ब्र में झाँका 12 तो क्या देखती है कि दो फ़रिश्ते सफ़ेद लिबास पहने हुए वहाँ बैठे हैं जहाँ पहले ईसा की लाश पड़ी थी, एक उस के सिरहाने और दूसरा वहाँ जहाँ पहले उस के पाँओ थे। 13 उन्हों ने मरियम से पूछा, “ऐ ख़ातून, तू क्यूँ रो रही है?” उस ने कहा, “वह मेरे ख़ुदावन्द को ले गए हैं, और मालूम नहीं कि उन्हों ने उसे कहाँ रख दिया है।” 14 फिर उस ने पीछे मुड़ कर ईसा को वहाँ खड़े देखा, लेकिन उस ने उसे न पहचाना। 15 ईसा ने पूछा, “ऐ ख़ातून, तू क्यूँ रो रही है, किस को ढूँड रही है?” यह सोच कर कि वह माली है उस ने कहा, “जनाब, अगर आप उसे ले गए हैं तो मुझे बता दें कि उसे कहाँ रख दिया है ताकि उसे ले जाऊँ।” 16 ईसा ने उस से कहा, “मरियम!” वह उस की तरफ़ मुड़ी और बोल उठी, “रब्ब्बूनी!” (इस का मतलब अरामी ज़बान में उस्ताद है।) 17 ईसा ने कहा, “मेरे साथ चिमटी न रह, क्यूँकि अभी मैं ऊपर, बाप के पास नहीं गया। लेकिन भाइयों के पास जा और उन्हें बता, ‘मैं अपने बाप और तुम्हारे बाप के पास वापस जा रहा हूँ, अपने ख़ुदा और तुम्हारे ख़ुदा के पास’।” 18 चुनाँचे मरियम मग्दलीनी शागिर्दों के पास गई और उन्हें इत्तिला दी, “मैं ने ख़ुदावन्द को देखा है और उस ने मुझ से यह बातें कहीं।”

ईसा अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर होता है

19 उस इत्वार की शाम को शागिर्द जमा थे। उन्हों ने दरवाज़ों पर ताले लगा दिए थे क्यूँकि वह यहूदियों से डरते थे। अचानक ईसा उन के दरमियान आ खड़ा हुआ और कहा, “तुम्हारी सलामती हो,” 20 और उन्हें अपने हाथों और पहलू को दिखाया। ख़ुदावन्द को देख कर वह निहायत ख़ुश हुए। 21 ईसा ने दुबारा कहा, “तुम्हारी सलामती हो! जिस तरह बाप ने मुझे भेजा उसी तरह मैं तुम को भेज रहा हूँ।” 22 फिर उन पर फूँक कर उस ने फ़रमाया, “रूह-उल-क़ुद्स को पा लो। 23 अगर तुम किसी के गुनाहों को मुआफ़ करो तो वह मुआफ़ किए जाएंगे। और अगर तुम उन्हें मुआफ़ न करो तो वह मुआफ़ नहीं किए जाएंगे।”

तोमा शक करता है

24 बारह शागिर्दों में से तोमा जिस का लक़ब जुड़वाँ था ईसा के आने पर मौजूद न था। 25 चुनाँचे दूसरे शागिर्दों ने उसे बताया, “हम ने ख़ुदावन्द को देखा है!” लेकिन तोमा ने कहा, “मुझे यक़ीन नहीं आता। पहले मुझे उस के हाथों में कीलों के निशान नज़र आएँ और मैं उन में अपनी उंगली डालूँ, पहले मैं अपने हाथ को उस के पहलू के ज़ख़्म में डालूँ। फिर ही मुझे यक़ीन आएगा।” 26 एक हफ़्ता गुज़र गया। शागिर्द दुबारा मकान में जमा थे। इस मर्तबा तोमा भी साथ था। अगरचे दरवाज़ों पर ताले लगे थे फिर भी ईसा उन के दरमियान आ कर खड़ा हुआ। उस ने कहा, “तुम्हारी सलामती हो!” 27 फिर वह तोमा से मुख़ातिब हुआ, “अपनी उंगली को मेरे हाथों और अपने हाथ को मेरे पहलू के ज़ख़्म में डाल और बेएतिक़ाद न हो बल्कि ईमान रख।” 28 तोमा ने जवाब में उस से कहा, “ऐ मेरे ख़ुदावन्द! ऐ मेरे ख़ुदा!” 29 फिर ईसा ने उसे बताया, “क्या तू इस लिए ईमान लाया है कि तू ने मुझे देखा है? मुबारक हैं वह जो मुझे देखे बग़ैर मुझ पर ईमान लाते हैं।”

इस किताब का मक़्सद

30 ईसा ने अपने शागिर्दों की मौजूदगी में मज़ीद बहुत से ऐसे इलाही निशान दिखाए जो इस किताब में दर्ज नहीं हैं। 31 लेकिन जितने दर्ज हैं उन का मक़्सद यह है कि आप ईमान लाएँ कि ईसा ही मसीह यानी अल्लाह का फ़र्ज़न्द है और आप को इस ईमान के वसीले से उस के नाम से ज़िन्दगी हासिल हो।

John 21

ईसा झील पर शागिर्दों पर ज़ाहिर होता है

1 इस के बाद ईसा एक बार फिर अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर हुआ जब वह तिबरियास यानी गलील की झील पर थे। यह यूँ हुआ। 2 कुछ शागिर्द शमाऊन पतरस के साथ जमा थे, तोमा जो जुड़वाँ कहलाता था, नतन-एल जो गलील के क़ाना से था, ज़ब्दी के दो बेटे और मज़ीद दो शागिर्द। 3 शमाऊन पतरस ने कहा, “मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।” दूसरों ने कहा, “हम भी साथ जाएंगे।” चुनाँचे वह निकल कर कश्ती पर सवार हुए। लेकिन उस पूरी रात एक भी मछली हाथ न आई। 4 सुब्ह-सवेरे ईसा झील के किनारे पर आ खड़ा हुआ। लेकिन शागिर्दों को मालूम नहीं था कि वह ईसा ही है। 5 उस ने उन से पूछा, “बच्चो, क्या तुम्हें खाने के लिए कुछ मिल गया?” उन्हों ने जवाब दिया, “नहीं।” 6 उस ने कहा, “अपना जाल कश्ती के दाएँ हाथ डालो, फिर तुम को कुछ मिलेगा।” उन्हों ने ऐसा किया तो मछलियों की इतनी बड़ी तादाद थी कि वह जाल कश्ती तक न ला सके। 7 इस पर ख़ुदावन्द के प्यारे शागिर्द ने पतरस से कहा, “यह तो ख़ुदावन्द है।” यह सुनते ही कि ख़ुदावन्द है शमाऊन पतरस अपनी चादर ओढ़ कर पानी में कूद पड़ा (उस ने चादर को काम करने के लिए उतार लिया था।) 8 दूसरे शागिर्द कश्ती पर सवार उस के पीछे आए। वह किनारे से ज़्यादा दूर नहीं थे, तक़रीबन सौ मीटर के फ़ासिले पर थे। इस लिए वह मछलियों से भरे जाल को पानी में खैंच खैंच कर ख़ुश्की तक लाए। 9 जब वह कश्ती से उतरे तो देखा कि लकड़ी के कोएलों की आग पर मछलियाँ भुनी जा रही हैं और साथ रोटी भी है। 10 ईसा ने उन से कहा, “उन मछलियों में से कुछ ले आओ जो तुम ने अभी पकड़ी हैं।” 110 शमाऊन पतरस कश्ती पर गया और जाल को ख़ुश्की पर घसीट लाया। यह जाल 153 बड़ी मछलियों से भरा हुआ था, तो भी वह न फटा। 12 ईसा ने उन से कहा, “आओ, नाशता कर लो।” किसी भी शागिर्द ने सवाल करने की जुरअत न की कि “आप कौन हैं?” क्यूँकि वह तो जानते थे कि यह ख़ुदावन्द ही है। 13 फिर ईसा आया और रोटी ले कर उन्हें दी और इसी तरह मछली भी उन्हें खिलाई। 14 ईसा के जी उठने के बाद यह तीसरी बार थी कि वह अपने शागिर्दों पर ज़ाहिर हुआ।

ईसा का पतरस से सवाल

15 नाशते के बाद ईसा शमाऊन पतरस से मुख़ातिब हुआ, “यूहन्ना के बेटे शमाऊन, क्या तू इन की निस्बत मुझ से ज़्यादा मुहब्बत करता है?” उस ने जवाब दिया, “जी ख़ुदावन्द, आप तो जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ।” ईसा बोला, “फिर मेरे लेलों को चरा।” 16 तब ईसा ने एक और मर्तबा पूछा, “शमाऊन यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझ से मुहब्बत करता है?” उस ने जवाब दिया, “जी ख़ुदावन्द, आप तो जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ।” ईसा बोला, “फिर मेरी भेड़ों की गल्लाबानी कर।” 17 तीसरी बार ईसा ने उस से पूछा, “शमाऊन यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझे प्यार करता है?” तीसरी दफ़ा यह सवाल सुनने से पतरस को बड़ा दुख हुआ। उस ने कहा, “ख़ुदावन्द, आप को सब कुछ मालूम है। आप तो जानते हैं कि मैं आप को प्यार करता हूँ।” ईसा ने उस से कहा, “मेरी भेड़ों को चरा। 18 मैं तुझे सच बताता हूँ कि जब तू जवान था तो तू ख़ुद अपनी कमर बांध कर जहाँ जी चाहता घूमता फिरता था। लेकिन जब तू बूढ़ा होगा तो तू अपने हाथों को आगे बढ़ाएगा और कोई और तेरी कमर बांध कर तुझे ले जाएगा जहाँ तेरा दिल नहीं करेगा।” 19 (ईसा की यह बात इस तरफ़ इशारा था कि पतरस किस क़िस्म की मौत से अल्लाह को जलाल देगा।) फिर उस ने उसे बताया, “मेरे पीछे चल।”

ईसा और दूसरा शागिर्द

20 पतरस ने मुड़ कर देखा कि जो शागिर्द ईसा को प्यारा था वह उन के पीछे चल रहा है। यह वही शागिर्द था जिस ने शाम के खाने के दौरान ईसा की तरफ़ सर झुका कर पूछा था, “ख़ुदावन्द, कौन आप को दुश्मन के हवाले करेगा?” 21 अब उसे देख कर पतरस ने सवाल किया, “ख़ुदावन्द, इस के साथ क्या होगा?” 22 ईसा ने जवाब दिया, “अगर मैं चाहूँ कि यह मेरे वापस आने तक ज़िन्दा रहे तो तुझे क्या? बस तू मेरे पीछे चलता रह।” 23 नतीजे में भाइयों में यह ख़याल फैल गया कि यह शागिर्द नहीं मरेगा। लेकिन ईसा ने यह बात नहीं की थी। उस ने सिर्फ़ यह कहा था, “अगर मैं चाहूँ कि यह मेरे वापस आने तक ज़िन्दा रहे तो तुझे क्या?” 24 यह वह शागिर्द है जिस ने इन बातों की गवाही दे कर इन्हें क़लमबन्द कर दिया है। और हम जानते हैं कि उस की गवाही सच्ची है।

ख़ुलासा

25 ईसा ने इस के इलावा भी बहुत कुछ किया। अगर उस का हर काम क़लमबन्द किया जाता तो मेरे ख़याल में पूरी दुनिया में यह किताबें रखने की गुन्जाइश न होती।